Romance काला इश्क़!(completed)

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मुझे सेठ के पैसों से कोई सरोकार नहीं था मुझे तो मुन्ना के जाने का दुःख था! भारी मन से मैं ऊपर आया और दरवाजा जोर से बंद किया| शराब की बोतल निकाली और उसे मुँह से लगा कर गटागट पीने लगा| एक साँस में दारु खींचने के बाद मैंने बोतल खेंच कर जमीन पर मारी और वो चकना चूर हो गई, कांच सारे घर में फ़ैल गया था! मैं बहुत जोर से चिल्लाया; "आआआआआआआआआआआआआ!!" और फिर घुटनों के बल बैठ कर रोने लगा| "क्या दुश्मनी है तेरी मुझसे? मैंने कौन सा सोना-चांदी माँगा था तुझसे? तुने 'ऋतू' को मुझसे छीन लिया मैंने तुझे कुछ नहीं कहा, पर वो छोटा सा बच्चा जिससे प्यार करने लगा था उसे भी तूने मुझसे छीन लिया? जरा सी भी दया नहीं आई तेरे मन में? क्या पाप किया है मैंने जिसकी सजा तू मुझे दे रहा है? सच्चा प्यार किया था मैंने!!!! कम से कम उस बच्चे को तो मेरे जीवन में रहने दिया होता! दो दिन की ख़ुशी दे कर छीन ली, इससे अच्छा देता ही ना!" मैं गुस्से में फ़रियाद करने लगा|

update 62

अल्लाह तुझसे, बंदा पूछे..
राह तू दे दे जाना कहा है जाना

अल्लाह तुझसे, बंदा पूछे..
राह तू दे दे जाना कहा है जाना

जाना कहा है जाना
जाना कहा है जाना...

तय थे दिल को ग़म जहाँ पे
मिली क्यों खुशियां वहीँ पे
हाथों से अब फिसले जन्नत
हम तो रहे न कही के

होना जुदा अगर
है ही लिखा
यादों को उसकी
आके तू आग लगा जा

अल्लाह तुझसे, बंदा पूछे..
राह तू दे दे जाना कहा है जाना
अल्लाह तुझसे, बंदा पूछे

तेरी ही मर्ज़ी सारे जहाँ में
तोह ऐसा क्यों जतलाये

ख्वाबों को मेरे छीन कैसे
तू खुदा कहलाये

माँग बैठा
चाँद जो दिल
भूल की इतनी
देता है कोई सजा किया?

अल्लाह तुझसे, बंदा पूछे..
राह तू दे दे जाना कहा है जाना

जाना कहा है जाना…
जाना कहा है जाना

पर वहाँ मेरी फ़रियाद सुनने वाला कोई नहीं था, थी तो बस शराब जो मेरे दिल को चैन और रहत देती थी, एक वही तो थी जिसने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा था! कुछ देर बाद पोलिस और मकान मालिक घर आये और मेरी हालत देख कर पोलिस वाला कुछ पूछने ही वाला था की मकान मालिक बोला; "इंस्पेक्टर साहब ये तो अभी कुछ दिन पहले ही आया है| सीधा-साधा लड़का है!"

"हाँ वो तो इसे देख कर ही पता लग रहा है?! क्या नाम है?" पोलिस वाले ने पुछा| अब मैं इतना भी नशे में नहीं था; "मानु" मैंने बड़ा संक्षेप में जवाब दिया क्योंकि ज्यादा बोलता तो वो पता नहीं और कितने सवाल पूछता|

"तुम संजय या उसकी पत्नी को जानते थे?" उसने सवाल दागा|

"संजय से बस एक बार मिला था और उसकी पत्नी मेरे यहाँ काम करती थी|"

"उसका कोई फ़ोन नंबर है तुम्हारे पास?"

"जी नहीं!"

"दिन में क्यों पीते हो?"

"पर्सनल reason है!" ये सुन कर वो मुझे घूरता हुआ बाकियों से पूछताछ करने लगा| मैंने दरवाजा भेड़ा और बिस्तर पर लेट गया, इधर मेरा फ़ोन बज उठा| मैंने फ़ोन उठाया तो अरुण पूछने लगा की कब आ रहा है? मैंने बस इतना बोला की तबियत ठीक नहीं है और वो समझ गया की मैंने पी हुई है| शाम को वो धड़धड़ाता हुआ मेरे घर आ पहुँचा और जब मैंने दरवाजा खोला तो वो मेरी शक्ल देख कर समझ गया| मैं हॉल में बैठ गया और वो मेरे सामने बैठ गया, "भाई क्या हो गया है तुझे? दो दिन तो तू चक रहा था और अब फिर से वापस उदास हो गया? क्या हुआ?" मैंने कोई जवाब नहीं दिया बीएस सर झुकाये बैठा रहा| तभी उसकी नजर कमरे में बिखरे काँच पर पड़ी और वो बोला; "वो आई थी क्या यहाँ?" मैंने ना में सर हिलाया| "तो ये बोतल कैसे टूटी?" उसने पुछा और तब मुझे ध्यान आया की घर में काँच फैला हुआ है| वो खुद उठा और झाड़ू उठा कर साफ़ करने लगा, मुझे खुद पर बड़ा गुस्सा आया इसलिए मैंने उससे झाड़ू ले लिया और खुद झाड़ू लगाने लगा| "तू ने खाया कुछ?" अरुण ने पुछा तो माने फिर से ना में सर हिलाया और उसने खुद मेरे लिए खाना आर्डर किया| "देख तू कुछ दिन के लिए घर चला जा! मैं भी कुछ दिन के लिए गाँव जा रहा हूँ|" मैं उसकी बात समझ गया था, उसे चिंता थी की उसकी गैरहजरी में मैं यहाँ अकेला रहूँगा तो फिर से ये सब करता रहूँगा और तब मुझे टोकने वाला कोई नहीं होगा| "देखता हूँ!" मैं बस इतना बोला और वापस उसके सामने बैठ गया| "मेरी सास की तबियत खराब है, तेरी भाभी तो पहले ही वहाँ जा चुकी है पर वो अकेले संभाल नहीं पा रही इसलिए कुछ दिन की छुट्टी ले कर जा रहा हूँ|" अरुण ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा| "कुछ जयदा सीरियस तो नहीं?" मैंने पुछा और इस तरह से हमारी बात शुरू हुई| मैंने उसे अपनी बाइक की चाभी दी ताकि वो समय से घर पहुँच जाए वरना बस के सहारे रहता तो कल सुबह से पहले नहीं पहुँचता| "अरे! मैं बस से चला जाऊँगा|" अरुण ने चाबही मुझे वापस देते हुए कहा| अब मुझे बात बनानी थी इसलिए मैंने कहा; "यार तू ले जा वरना यहाँ कहाँ खड़ी रखूँगा?" मेरी बात सुन कर उसे विश्वास हो गया की मैं भी घर जा रहा हूँ और उसने चाभी ले ली| फिर मैं उसे नीचे छोड़ने के बहाने गया और रात की दारु का जुगाड़ कर वापस आ गया| वापस आया तो खाना भी आ चूका था, अब किसका मन था खाने का पर उसे waste करने का मन नहीं किया| मैं वापस से बालकनी में बैठ गया और अपना खाना और पेग ले कर बैठ गया|


मेरे मन में अब जहर भर चूका था, प्यार का नामोनिशान दिल से मिट चूका था| मन ने ये मान लिया था की इस दुनिया में प्यार-मोहब्बत सब दिखावा है, बस जर्रूरत पूरी करने का नाम है! पर अभी मेरी परेशानियाँ खत्म नहीं हुई थी, रितिका की शादी होनी थी और मुझे घर जाना था| घर अगर नहीं गया तो सब मुझे ढूंढते हुए यहाँ आ जायेंगे और फिर पता नहीं क्या काण्ड हो! घर जा कर मैं ये भी नहीं कह सकता की मैं शादी में शरीक ही नहीं होना चाहता! क्योंकि फिर मुझे उसका कारन बताना पड़ता जो की रितिका के लिए घातक साबित होता| ये ख्याल आते ही दिमाग ने बदला लेने की सोची, "जा के घर में सब सच बोल दे!" मेरे दिमाग ने कहा पर फिर उसका परिणाम सोच कर मन ने मना कर दिया| भले ही मेरा दिमाग रितिका से नफरत करता था पर मन तो अभी अपनी ऋतू का इंतजार कर रहा था| दिमाग और दिल में जंग छिड़ चुकी थी और आखिर नफरत ही जीती! इस जीत को मनाने के लिए मैंने एक लार्ज पेग बनाया और उसे गटक गया| नफरत तो जीत गई पर मेरा दिल हार गया और अब वो अंदर से बिखर चूका था| बस एक लाश ही रह गई थी जिसमें बस दर्द ही दर्द बचा था और उस दर्द की बस एक ही दवा थी वो थी शराब! अब तो बस इसी में डूब जाने का मन था शायद ये ही मुझे किसी किनारे पहुँचा दे|

अगली सुबह में देर से उठा और ऑफिस पहुँचा क्योंकि अरुण के गैरहाजरी में काम देखने वाला कोई नहीं था| अगले दो दिन तक मैंने देर रात तक बैठ कर काम निपटाया और फिर तीसरे दिन मैंने सर से बात की; "सर I'm सॉरी पर मैं अब और ऑफिस नहीं आ सकता! टैक्स रिटर्न्स फाइनल हो चुकी हैं और अरुण वापस आ कर जमा कर देगा| इसलिए प्लीज मैं कल से नहीं आ पाउँगा|" सर ने बटहरी कोशिश की पर मैं नहीं माना और उसी वक़्त सर से अपनी बैलेंस पेमेंट का चेक ले कर पहले बैंक पहुँचा और उसे जमा किया फिर घर आ कर सो गया| जब उठा तो पहले नहाया और जब खुद को आज माने आईने में देखा तो मुझे यक़ीन ही नहीं हुआ की ये शक़्स कौन है? मैं आँखें बड़ी कर के हैरानी से खुद को ही आईने में देखने लगा| वो सीधा-साधा लड़का कहाँ खो गया? उसकी जगह ये कौन है जो आईने में मुझे ही घूर रहा है? मेरी दाढ़ी के बाल इतने बड़े हो गए थे की मैं अब बाबा लगने लगा था| सर के बाल झबरे से थे और जब नजर नीचे के बदन पर गई तो मुझे बड़ा जोर का झटका लगा| गर्दन से नीचे का जिस्म सूख चूका था और मैं हद्द से ज्यादा कमजोर दिख रहा था| मेरी पसलियाँ तक मुझे दिखने लगीं थी! ये क्या हालत बना ली है मैंने अपनी? क्या यही होता है प्यार में? अच्छा-खासा इंसान इस कदर सूख जाता है?! अब मुझे समझ आने लगा था की क्यों मेरे दोस्त मुझे कहते थे की मैंने अपनी क्या हालत बना ली है?! दिमाग कहने लगा था की सुधर जा और ये बेवकूफियां बंद कर, वो कमबख्त तो तेरा दिल तोड़ चुकी है तू क्यों उसके प्यार के दर्द में खुद को खत्म करना चाहता है| पर अगले ही पल मन ने मुझे फिर से पीने का बहाना दे दिया, "अभी तो उसकी शादी भी होनी है? तब कैसे संभालेगा खुद को?" और मेरे लिए इतनी वजह काफी थी फिर से पीने के लिए| "पुराना वाला मानु अब मर चूका है!" ये कहते हुए मैंने किचन काउंटर से गिलास उठाया और उसमें शराब डाल कर पीने लगा| दोपहर से रात हुई और रात से सुबह.... पर मेरा पीना चालु रहा| जब नींद आ जाती तो सो जाता और जब आँख खुलती तो फिर से पीने लगता, इस तरह से करते-करते संडे आया|


सुबह मेरी नींद पेट में अचानक हुए भयंकर दर्द से खुली, मैं तड़पता हुआ सा उठा और उठ कर बैठना चाहा| बैठने के बाद मैं अपने पेट को पकड़ कर झुक कर बैठ गया की शायद पेट दर्द कम हो पर ऐसा नहीं हुआ| दर्द अब भी हो रहा था और धीरे-धीरे बढ़ने लगा था, मैं उठ खड़ा हुआ और किचन में जा कर पानी पीने लगा| मुझे लगा शायद पानी पीने से दर्द कम हो पर ऐसा नहीं हुआ| मैं जमीन पर लेट गया पर पेट से अब भी हाथ नहीं हटाया था| बल्कि मैं तो लेटे-लेटे ही अपने घुटनों को अपनी छाती से दबाना छह रहा था ताकि दर्द कम हो पर उससे दर्द और बढ़ रहा था| फिर अचानक से मुझे उबकाई आने लगी, मैं फटाफट उठा और बाथरूम में भागा और कमर पकड़ कर उल्टियाँ करने लगा| मुँह से सिर्फ और सिर्फ दारु ही बाहर आ रही थी, खाने के नाम पर सिर्फ चखना या खीरा-टमाटर ही अंदर गए थे जो दारु के साथ बाहर आ गए| करीब 10 मिनट मैं कमोड पर झुक कर खड़ा रहा ताकि और उलटी होनी है तो हो जाये| पर उलटी नहीं आई और अब पेट का दर्द धीरे-धीरे कम हो रहा था| मुँह-हाथ धो कर आ कर मैं जमीन पर बैठ गया, मेरे हाथ-पैर काँपने लगे थे और निगाह शराब की बोतल पर थी| पर दिमाग कह रहा था की और और पीयेगा तो मरेगा! उठ और डॉक्टर के चल| मैं उठा कपडे बदले और परफ्यूम छिड़क कर घर से निकला| ऑटो किया और डॉक्टर के पास पहुँचा, मेरा नम्बर आने तक मैं बैठा-बैठा ऊँघता रहा| जब आया तो डॉक्टर ने मुझसे बीमारी के बारे में पुछा| "सर आज सुबह मेरे पेट में बड़े जोर से दर्द हुआ, उसके कुछ देर बाद उल्टियाँ हुई और अब मेरे हाथ-पैर काँप रहे हैं!" उसने पुछा की मैं कितना ड्रिंक करता हूँ तो मैंने उन्हें सब सच बता दिया| उन्होंने कुछ टेस्ट्स लिखे और सामने वाले Lab में भेज दिया| वहाँ मेरा Ultrasound हुआ, ECG हुआ और X-ray भी हुआ और भी पता नहीं क्या-क्या ब्लड टेस्ट किये उन्होंने! मैं पूरे टाइम यही सोच रहा था की शरीर में कुछ है ही नहीं तो टेस्ट्स में आएगा क्या घंटा! पर जब रिपोर्ट्स डॉक्टर ने देखि तो वो बहुत हैरान हुआ| "It’s a clear case of fatty liver! You’ll have to stop drinking otherwise you’re very close to develop Cirrhosis of Liver and things will get complicated from there. Your present condition can be controlled and improved.” डॉक्टर ने बहुत गंभीर होते हुए कहा| पर उसकी बात का अर्थ जो मेरे दिमाग ने निकला वो ये था की मैं जल्द ही मरने वाला हूँ पर कितनी जल्दी ये मुझे पूछना था! "Sir if you don’t mind me asking, how much time do I have?” ये सवाल सुन कर डॉक्टर को मेरे मानसिक स्थिति का अंदाजा हुआ और वो गरजते हुए बोला; "Are you out of your mind? This condition of yours can be contained, you’re not gonna die!”

“But what if I don’t stop drinking? Then I’m gonna die right?”

“Tell me why do you wanna die? Is that a solution to whatever crisis you’re going through? Death isn’t a solution, Life is!”

मैं खामोश हो गया क्योंकि उसके आगे मेरे कान कुछ सुनना नहीं चाहते थे| डॉक्टर को ये समझते देर न लगी की I'm going through depression! इसलिए वो अपनी कुर्सी से उठा और मेरी बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए मुझे सांत्वना देने लगा|

“Do you have a family?” मैंने हाँ में सर हिलाया| “Call them here, you need their love and affection. You’ve to understand, you’re slipping into depression and its not good! You need proper medical care, don’t throw your life that easily!” मेरा दिमाग जानता था की डॉक्टर मेरे भले की कह रहा था पर रितिका की बेवफाई मुझे बस अन्धकार में ही रखना चाहती थी| "Thank you doctor!" इतना कह कर मैं उठ गया और उन्होंने मुझे मेरी केस फाइल दे दी| पर हॉस्पिटल से बाहर आते ही शराब की ललक जाग गई और मैं ऑटो पकड़ कर सीधा घर के पास वाले ठेके पर आ गया| वहाँ दारु ले ही रहा था की मेरी नजर एक बोर्ड पर पड़ी, कोई नया पब खुला था जिसका नाम 'मैखाना' था! ये नाम ही मेरे मन उस जगह के बारे में उत्सुकता जगाने के लिए काफी था, ऊपर से जब मैंने नीचे देखा तो वहाँ लिखा था 1 + 1 on IMFL Drinks after 8 PM अब ये पढ़ते ही मेरे मन में आया की आज रात तो कुछ नया ब्रांड try करते हैं! वहाँ से मेरा घर करीब 20 मिनट दूर था तो मैंने ऑटो किया और घर आ गया| अब शराब पीने लगा ही था की पिताजी का फ़ोन आ गया| "कब आ रहा है तू घर?' उन्होंने डाँटते हुए कहा| मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही उनका गुस्सा फुट पड़ा; "मुश्किल से महीना रह गया है, घर पर इतना काम है और तू है की घर तक नहीं भटकता? क्या तकलीफ है तुझे? यहाँ सब बहुत खफा हैं तुझसे!"

"पिताजी .... काम...." आगे कुछ कहने से पहले ही वो फिर से बरस पड़े; "हरबार तेरी मनमानी नहीं चलेगी! तूने कहा तुझे नौकरी करनी है हमने तुझे जाने दिया, तूने कहा मुझे शादी नहीं करनी हम वहां भी मान गए पर अब घर में शादी है और तू वहाँ अपनी नौकरी पकड़ कर बैठ है? छोड़ दे अगर छुट्टी नहीं देता तेरा मालिक तो! बाद में दूसरी पकड़ लिओ!"

"पिताजी इतनी आसानी से नौकरी नहीं मिलती! ये मेरी दूसरी नौकरी है, पहली वाली मैंने छोड़ दी क्योंकि वो बॉस तनख्वा नहीं बढ़ाता था| मैंने आप को इसलिए नहीं बताया क्योंकि आप मुझे वापस बुला लेटे! अब नई नौकरी है तो इतनी जल्दी छुट्टी नहीं माँग सकता! मैं कल बात करता हूँ बॉस से और फिर आपको बताता हूँ|" मैंने बड़े आराम से जवाब दिया|

"ठीक है! पर जल्दी आ यहाँ बहुत सा काम है!" उन्होंने बस इतना कहा और फ़ोन काट दिया| अब माने बहाना तो बना दिया था पर कल क्या करूँगा यही सोचते-सोचते शाम हो गई, जो जाम मैंने पहले बनाया था उसे पीया और फिर गांजा फूंका और फिर बालकनी में बैठ गया| बैठे-बैठे आँख लग गई और जब खुली तो रात के नौ बज रहे थे| मुझे याद आया की आज तो 'मैखाने' जाना है, मैंने मुँह-हाथ धोया, कपडे पहने और परफ्यूम छिड़क कर ही पैदल वहाँ पहुँच गया| ज्यादा लोग नहीं आये थे, मैं सीधा बार स्टूल पर बैठा और बारटेंडर से 60 ml सिंगल माल्ट मांगी! वहाँ के म्यूजिक को सुन कर मुझे अच्छा लग रहा था, अकेले में शराब पी कर सड़ने से तो ये जगह सही लगी मुझे| मरना ही तो थोड़ा ऐश कर के मरो ना! ये ख्याल आते ही मैंने भी गाने को एन्जॉय करना शुरू कर दिया| एक-एक कर मैंने 10 ड्रिंक्स खत्म की और अब बजे थे रात के बारह और बारटेंडर ने और ड्रिंक सर्वे करने से मना कर दिया| कारन था की मैं बहुत ज्यादा ही नशे में था और मुझसे ठीक से खड़ा ही नहीं जा रहा था| बारटेंडर ने बाउंसर को बुलाया जिसने मुझे साहरा दे कर बाहर छोड़ा और खुद अंदर चला गया| मैं वहाँ ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था और ऑटो का इंतजार कर रहा था पर कोई ऑटो आ ही नहीं रहा था और जो आया भी वो मेरी हालत देख कर रुका नहीं| अब मुझे एहसास हुआ की घर में पीने का फायदा क्या होता है, वहाँ पीने के बाद कहीं भी फ़ैल सकते हो! मैंने हिम्मत बटोरी और पैदल ही जाने का सोचा, पर अभी मुझे एक सड़क पार करनी थी जो मेरे लिए बहुत बड़ा चैलेंज था| रात का समय था और ट्रक के चलने का टाइम था इसलिए मैं धीरे-धीरे सड़क पार करने लगा| नशे में वो दस फूटा रोड भी किलोमीटर चौड़ी लग रही थी| आधा रास्ता पार किया की एक ट्रक के हॉर्न की जोरदार आवाज आई और मैं जहाँ खड़ा था वहीँ खड़ा हो गया| नशे में आपके बॉडी के रेफ्लेक्सेस काम नहीं करते इसलिए मैं रूक गया था, पर उस ट्रक वाले ने मेरे साइड से बचा कर अपना ट्रक निकाल लिया| आज तो मौत से बाल-बाल बचा था, पर मैं तो पलट के उसे ही गालियाँ देने लगा; "अबे! भोसड़ी के मार देता तो दुआ लगती मेरी बहनचोद साइड से निकाल कर ले गया!" पर वो तो अपना ट्रक भगाता हुआ आगे निकल गया| मैं फिर से धीरे-धीरे अपना रास्ता पार करने लगा| जैसे-तैसे मैंने रास्ता पार किया और सड़क किनारे खड़ा हो गया, कोई ऑटो तो मिलने वाला था नहीं, न ही फ़ोन में बैटरी थी की कैब बुला लूँ और अब चल कर घर जाने की हिम्मत थी नहीं| मैंने देखा तो कुछ दूर पर एक टूटा हुआ बस-स्टैंड दिखा, सोचा वहीँ रात काट लेता हूँ और सुबह घर चला जाऊँगा| धीरे-धीरे वहाँ पहुँचा पर वहाँ लेटने की जगह नहीं थी बस बैठने भर को जगह थी| मैं अपनी पीठ टिका कर और सड़क की तरफ मुँह कर के बैठ गया और सोने लगा| वहाँ से जो कोई भी गाडी गुजरती उसकी हेडलाइट मेरे मुँह पर पड़ती, पर मैं गहरी नींद सो चूका था| कुछ देर बाद मेरे पास एक गाडी रुकी, गाडी से कोई निकला जिसने मेरा नाम पुकारा; "मानु!" पर मैं तो गहरी नींद में था तो मैंने कोई जवाब नहीं दिया| फिर वो शक़्स मेरे नजदीक आया और अपने फ़ोन की रौशनी मेरे मुँह पर मार कर मेरी पहचान करने लगा| जब उसे यक़ीन हुआ की मैं ही मानु हूँ तो उसने मुझे हिलना शुरू कर दिया| मेरे जिस्म से आती दारु की महक से वो सक्स समझ गया की मैं नशे में टुन हूँ| बड़ी मेहनत से उसने मुझे अपनी गाडी की पिछली सीट पर लिटाया और मेरे पाँव अंदर कर के वो शक़्स चल दिया|


अगली सुबह जब मेरी नींद खुली तो मेरी आँखों के सामने छत थी और मैंने खुद को एक कमरे में बिस्तर पर लेटा हुआ पाया| मैं जैसे ही उठा वो शक़्स जो मुझे उठा कर लाया था वो मेरे सामने था| "आप?" मेरे मुँह से इतना निकला की उन्होंने मेरी तरफ एक कॉफ़ी का मग बढ़ा दिया| ये शक़्स कोई और नहीं बल्कि अनु मैडम थीं|
 
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अगली सुबह जब मेरी नींद खुली तो मेरी आँखों के सामने छत थी और मैंने खुद को एक कमरे में बिस्तर पर लेटा हुआ पाया| मैं जैसे ही उठा वो शक़्स जो मुझे उठा कर लाया था वो मेरे सामने था| "आप?" मेरे मुँह से इतना निकला की उन्होंने मेरी तरफ एक कॉफ़ी का मग बढ़ा दिया| ये शक़्स कोई और नहीं बल्कि अनु मैडम थीं|

update 63
"क्या हालत बना रखी है अपनी?" उन्होंने मुझे डाँटते हुए पुछा| पर मैं उन्हें अपने पास देख कर थोड़ा सकपका गया था, मेरा इस वक़्त उनके घर में होना ठीक नहीं था, इसलिए मैं उठा और कॉफ़ी का मग साइड में रखा और जाने लगा| उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और बोलीं; "कहाँ जा रहे हो? बैठो यहाँ और कॉफ़ी पियो!"

"Mam मेरा आपके घर रुकना सही नहीं है| आपके Parents क्या सोचेंगे?" इतना कह कर मैं फिर उठने लगा तो उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोलीं; "ये मेरी फ्रेंड का घर है| तुम जरा भी नहीं बदले अब भी बिलकुल जेंटलमैन हो!" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा और कॉफ़ी वाला मग मुझे दुबारा पकड़ा दिया| मैं चुप-चाप कॉफ़ी पीने लगा और इधर वो कुछ सोचने लगीं की कुछ तो माजरा है जो मेरी ये हालत हो गई है!

'अच्छा अब बताओ क्या बात है? क्यों इस तरह अपनी हालत बना रखी है?" पर मैं खामोश रहा और कॉफ़ी पीने लगा| "ओह! Silent Treatment!!!! नाराज हो मुझसे?" Mam ने फिर से पुछा और मैंने ना में गर्दन हिला दी| फिर मैंने अपना फ़ोन ढूंढ़ने के लिए हाथ मारा तो उन्होंने मेरा 'Charged' फ़ोन मुझे दिया| "कभी फ़ोन भी charge कर लिया करो! या काम में इतने मशरूफ रहते हो की चार्ज करने का टाइम नहीं मिलता|" उन्होंने कहा और अचानक ही मेरे मुँह से निकला; "जॉब छोड़ दी मैंने!" ये सुनते ही वो चौंक गईं और मुझसे पूछने लगीं; "क्यों?" मैं जाने के लिए उठ के खड़ा हुआ तो उन्होंने एक बार फिर मुझे जबरदस्ती बिठा दिया; "जॉब क्यों छोड़ी?" अब मैं उन्हें कुछ भी नहीं कहना चाहता था क्योंकि मेरी बात सुन कर वो मुझे अपनी हमदर्दी देना चाहती जो में कतई नहीं चाहता था| "मन नहीं था! ... बोर हो गया था!" मैंने झूठ बोला पर उन्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ, वो मेरे अंदर की झुंझलाहट समझ चुकीं थीं की अगर वो कुछ और पूछेंगी तो मैं उन्हीं पर बरस पडूँगा| इसलिए वो कुछ देर खामोश रहीं| मैं फिर उठा और जाने के लिए बाहर आया ही था की उन्होंने पीछे से कहा; "मुझे कॉल क्यों नहीं किया?" अब ये ऐसा सवाल था जिसके कारन मेरा गुस्सा बाहर आने को उबल पड़ा और मैं बड़ी तेजी से उनकी तरफ पलटा और चिल्लाने को हुआ ही था की मैंने अपने दाहिने हाथ की मुट्ठी तेज बंद की और खुद को चिल्लाने से रोका और दाँत पीसते हुए कहा; "आपने कॉल किया मुझे बैंगलोर जा कर?" ये सुन कर अनु mam का सर झुक गया| "और मैं कॉल करता भी तो किस नंबर पर?" ये कहते हुए मैंने उन्हें अपना व्हाटस अप्प खोल कर दिखाया जिस पर मेरे आखरी के दो happy Birthday वाले मैसेज अब भी उन्हें रिसीव नहीं हुए थे क्योंकि उन्होंने वहाँ जा कर अपना नंबर बदल लिया था| जब mam ने ये मैसेज देखे तो उनकी आँखों में आँसू छलक आये और उन्हें एहसास हुआ की उन्होंने मुझे मेरे बर्थडे तक पर wish नहीं किया था| दरअसल जब मैं उनके पति कुमार के ऑफिस में काम करता था तो मैं और राखी उन्हें उनके जन्मदिन पर Happy Birthday बोला करते थे और उनके बैंगलोर जाने के बाद भले ही मैंने उन्हें कोई कॉल करने की कोशिश नहीं की पर उनके बर्थडे वाले दिन उन्हें मैसेज जर्रूर कर दिया करता था| पहली बार जब मैसेज भेजा तो काफी दिन तक वो उन्होंने read नहीं किया| मैंने सोचा की शायद वो बिजी होंगी या नंबर चेंज कर लिया होगा| फिर भी मैंने उन्हें वो दूसरा मैसेज उन्हें भेजा था ये सोच कर की इतनी दोस्ती तो निभानी चाहिए|

"I’m sorry मानु! मैं वहाँ जा कर अपनी दुनिया में खो गई और तुम्हें कॉल करना ही भूल गई|" Mam ने सर झुकाये हुए कहा|

"Its okay mam...anyway thanks for ... what you did last night ......I hope I didn't misbehave last night." मैंने झूठी मुस्कराहट का नक़ाब पहन कर कहा और दरवाजे के पास जाने लगा तो mam ने आ कर मेरे कंधे पर हाथ रख कर फिर से रोक लिया| "ये mam - mam क्या लगा रखा है? पिछली बार मैंने तुम्हें कहा था न की मुझे अनु बोला करो!" mam ने मुस्कुराते हुए कहा|

"Mam दो साल में तो लोग शक़्लें भूल जाते हैं, मैं तो फिर भी आपको इज्जत दे कर mam बुला रहा हूँ!" मेरे तीर से पैने शब्द mam को आघात कर गए पर वो सर झुकाये सुनती रही| उन्हें ऐसे सर झुकाये देखा तो मुझे भी एहसास हुआ की मैंने उन्हें ज्यादा बोल दिया; "sorry!!!" इतना बोल कर मैं वपस जाने को निकला तो वो बोलीं; "चलो मैं तुम्हें drop कर देती हूँ|" इस बार उनके चेहरे पर वही मुस्कान थी जो अभी कुछ देर पहले थी|

"Its okay mam ... मैं चला जाऊँगा|"

"कैसे जाओगे? ऑटो करोगे ना?"

"हाँ"

"तो ऐसा करो वो पैसे मुझे दे देना|" mam ने फिर से मुस्कुराते हुए कहा| मैंने मजबूरन उनकी बात मान ली और उनके साथ गाडी में चल दिया| "दो दिन पहले मैं यहाँ अपने मम्मी-डैडी से मिलने आई थी, पर उन्होंने तो मुझे घर से ही निकाल दिया! अब कहाँ जाती, तो अपनी दोस्त को फ़ोन किया और उससे मदद मांगी| वो बोली की वो कुछ दिनों के लिए बाहर जा रही है और मैं उसकी गैरहाजरी में रह सकती हूँ| कल रात उसे एयरपोर्ट चूड कर आ रही थी जब तुम मुझे उस टूटे-फूटे बस स्टैंड पर बैठे नजर आये| पहले तो मुझे यक़ीन नहीं हुआ की ये तुम हो इसलिए मैंने दो-तीन बार गाडी की हेडलाइट तुम्हारे ऊपर मारी पर तुमने कोई रियेक्ट ही नहीं किया| हिम्मत जुटा कर तुम्हारे पास आई और तुम्हारा नाम लिया पर तुम तब भी कुछ नहीं बोले, फिर फ़ोन की flash light से चेक करने लगी की ये तुम ही हो या कोई और है! 5 मिनट लगा मुझे तुम्हारी इन घनी दाढ़ी और बालों के जंगल के बीच शक्ल पहचानने में, फिर बड़ी मुश्किल से तुम्हें गाडी तक लाई और फिर हम घर पहुँचे|"

"आपको इतना बड़ा रिस्क नहीं लेना चाहिए था|" मैंने कहा|

"कोई और होता तो नहीं लेती, पर वहाँ तुम थे और तुम्हें इस तरह छोड़ कर जाने को मन नहीं हुआ| " Mam ने नजरें चुराते हुए अपने मन की बात कह डाली थी| पर मेरा दिमाग उस टाइम जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहता था ताकि मैं फिर से अपनी मेहबूबा को अपने होठों से लगा सकूँ! लगत-राइट करते हुए हम आखिर सोसाइटी के मैन गेट पर पहुँचे और मैन सीट बेल्ट निकाल कर जाने लगा तो mam बोलीं; "अरे! घर के नीचे से ही रफा-दफा करोगे?" अब ये सुन कर मैं फिर से बैठ गया और उनकी गाडी पार्क करवा कर घर ले आया| घर का दरवाजा खुलते ही उसमें बसी गांजे और दारु की महक mam को आई और उन्होंने जल्दी से बालकनी ढूँढी और दरवाजा खोल दिया ताकि फ्रेश हवा अंदर आये| मैन खड़ा हुआ उन्हें ऐसा करते हुए देख रहा था और मुझे इसका जरा भी अंदाजा नहीं था की घर में ऐसी महक भरी हुई है, क्योंकि मेरे लिए तो ये महक किसी इत्र की सुगंध के समान थी| जब mam ने मुझे अपनी तरफ देखते हुए पाया तो मैंने उनसे नजर बचा कर अपना सर खुजलाना शुरू कर दिया| "यार! सच्ची तुम तो बड़े बेगैरत हो! मेहमान पहली बार घर आया है और तुम उसे चाय तक नहीं पूछते!" Mam ने प्यार भरी शिकायत की| मैन सर खुजलाता हुआ बाथरूम में गया और हाथ-मुँह धो कर उनके लिए चाय बनाने लग गया| इसी बीच mam ने घर का मोआईना करना शुरू कर दिया और मोआईना करते-करते वो मेरे कमरे में जा पहुँची जहाँ उन्हें मेरी मेडिकल रिपोर्ट सामने ही पड़ी मिली| उन्होंने वो सारी रिपोर्ट पढ़ डाली और उनकी आँखें नम हो गईं, तभी मैंने उन्हें किचन से आवाज दी; "mam चाय!" अनु mam ने अपने आँसू पोछे और वो बाहर आ गईं और अपने चेहरे पर हँसी का मुखौटा पहन कर बैठ गईं| "चाय तो बढ़िया बनाई है?" उन्होंने मेरी झूठी तारीफ की|

"बुराइयाँ कितनी भी बुरी हों, सच्ची होती हैं...

झूठी तारीफों से तो सच्ची होती हैं!" मेरे मुँह से ये सुन कर mam मेरी तरफ देखने लगीं और अपने दर्द को छुपाने के लिए बोलीं; "क्या मतलब?"

"मतलब ये की चाय में दूध तक नहीं और आप चाय अच्छी होने की तारीफ कर रही हैं!"

"चाय, शायरी, और तुम्हारी यादें

भाते बहुत हो, दिल जलाते बहुत हो" Mam के मुँह से ये सुन कर मैन आँखें फाड़े उन्हें देखने लगा की तभी उन्होंने बात घुमा दी; "अच्छा… एक अरसा हुआ लखनऊ घूमे हुए! चलो आज घूमते हैं!"

"Mam मैं तो यहीं रहता हूँ, बाहर से तो आप आये हो! आप घूमिये मैं तो यहाँ सब देख चूका हूँ, यहाँ के हर रंग से वाक़िफ़ हूँ!"

"Oh come on यार! मैं अकेली कहाँ जाऊँगी? तुम सब जगह जानते हो तो आज मेरे guide बन जाओ, घर बैठ कर ऊबने से तो बेहतर है|"

"Mam मेरा जरा भी मन नहीं है, मुझे बस सोना है!" मैंने मुँह बनाते हुए कहा पर वो मानने वाली तो थी नहीं!

"जब तक यहाँ हूँ तब तक तो मेरे साथ घूम लो, मेरे जाने के बाद जो मन करे वो करना|" मैंने मना करने के लिए जैसे ही मुँह खोला की वो जिद्द करते हुए बोली; "प्लीज...प्लीज...प्लीज....प्लीज...प्लीज....प्लीज!!!" मैं सोच में पड़ गया क्योंकि मन मेरा शराब पीना चाहता था और दिमाग कह रहा था की बाहर चलते हैं| एक बार तो मन ने कहा की एक पेग पी और फिर mam के साथ चला जा पर दिमाग कह रहा था की ये ठीक नहीं होगा! आखिर बेमन से मैंने mam को बाहर बैठने को कहा और मैं नहाने चला गया| ठन्डे-ठन्डे पानी की बूँदें जब जिस्म पर पड़ी तो जिस्म में अजीब सी ऊर्जा का संचार हुआ एक पल के लिए लगा जैसे वही पुराना मानु ने जागने के लिए आँख खोली हैं पर दर्द ने उसे पिंजरे में कैद कर रखा था और उसे बाहर नहीं जाने देना चाहता था| मैं आज रगड़-रगड़ कर नहाया और आज फेस-वाश भी लगाया, साबुन की खुशबु से नहाया हुआ मैं बाहर निकला| मैंने बनियान और नीचे टॉवल लपेटा हुआ था और मेरे सामने Mam शर्ट-जीन्स ले कर खड़ी थीं| मुझे ये देख कर थोड़ी हैरानी हुई की mam ने मेरे लिए खुद कपडे निकाले थे पर मैंने उस बात पर जयदा ध्यान नहीं दिया क्योंकि मुझे अब जयदा चीजें affect नहीं करती थीं! मैं तैयार हुआ, दाढ़ी में कंघी मार कर उसे सीधा किया और बाल चूँकि बहुत लम्बे थे तो उन्हें पीछे की तरफ किया| जैसे ही बाहर आया तो Mam मुझे बड़े गौर से देख रहीं थी, उनका मुझे इस तरह देखने से पता नहीं कैसे मेरे चेहरे पर मुस्कराहट ले आया;

“My eyes were on him, when his shiny black hairs, thick black beard, beautiful brown eyes, red cheeks and the pleasant smile made me realize how colorful he was!”

Mam के मुँह से अपनी ये तारीफ सुन कर मैं चौंक गया था क्योंकि मेरी नजर में मैं अब वो मानु नहीं रहा था जो पहले हुआ करता था|

"धीरे-धीरे ज़रा ज़रा सा निखरने लगा हूँ मैं

लगता हैं उस बेवफ़ा के जख्मों से उबरने लगा हूँ मैं" मुझे नहीं पता उस समय क्या हुआ की ये शब्द मेरे मुँह से अपने आप ही निकले| Mam ने इन शब्दों को बड़े घ्यान से सुना था पर उन्होंने इसे कुरेदा नहीं, क्योंकि वो जानती थी की मैं उदास हो कर बैठ जाऊँगा और फिर कहीं नहीं जाऊँगा| उन्होंने ऐसे जताया जैसे की कुछ सुना ही ना हो और बोली; "चलो जल्दी!" मैंने भी उनकी बात का विश्वास कर लिया और उनके साथ चल दिया| "तो पहले थोड़ा नाश्ता हो जाए?" Mam ने कहा, पर मुझे भूख नहीं थी इसलिए मैंने सोचा वहाँ जा कर मैं खाने से मना कर दूँगा| Mam ने सीधा अमीनाबाद का रुख किया, गाडी पार्क की और टुंडे कबाबी खाने के लिए चल दीं| पूरे रस्ते वो पटर-पटर बोलती जा रही थीं, मेरा ध्यान आस-पास की दुकानों और लोगों पर बंट गया था| दूकान पहुँच कर मैं उनके लिए एक प्लेट टुंडे कबाबी और रुमाली रोटी लाया तो वो मेरी तरफ हैरानी से देखने लगीं और बोलीं: "ये तो मैं अकेली खा जाऊँगी! तुम्हारी प्लेट कहाँ है?"

"मेरा मन नहीं है...आप खाओ|" मैंने मना करते हुए कहा|

"ठीक है.... मैं भी नहीं खाऊँगी!" ऐसा कहते हुए उन्होंने एकदम से मुँह बना लिया|

"Mam प्लीज मत कीजिये ऐसा!" मैंने रिक्वेस्ट करते हुए कहा|

"अगर मुझे अकेले खाने होते तो मैं तुम्हें क्याहैं क्यों लाती? इंसान को कभी-कभी दूसरों की ख़ुशी के लिए भी कुछ करना चाहिए!" Mam ने उदास होते हुए कहा| "अच्छा एक बाईट तो ले लो|" इतना कहते हुए Mam ने अपनी प्लेट मेरी तरफ बढ़ा दी| मैंने हार मानते हुए एक बाईट ली और बाकी का उन्होंने ख़ुशी-ख़ुशी खाया|

"नेक्स्ट स्टॉप रेजीडेंसी!" ये कहते हुए Mam ने गाडी स्टार्ट की, पूरी ड्राइव के समय मैं बस इधर-उधर देखता रहा क्यों की मन में शराब की ललक भड़कने लगी थी| जब भी कोई ठेका दिखता तो मन करता की यहीं उतर जा और शराब ले आ, पर Mam के साथ होने की वजह से मैं खामोश रहा और अपनी ललक को पकड़ के उसे शांत करने लगा| शायद Mam भी मेरी बेचैनी भाँप गई थी इसलिए अब जब भी मेरी गर्दन ठेके की तरफ घूमती तो वो मेरा ध्यान भंग करने के लिए कुछ न कुछ बात शुरू कर देतीं| किसी तरह से हम रेजीडेंसी पहुँचे और वहाँ घूमने लगे और वहाँ भी mam चुप नहीं हुईं और मुझे अपने बैंगलोर के घर के बारे में बताने लगी| बैंगलोर का नाम सुनते ही मेरा मन दुखने लगा और एक बार फिर अनायास ही मेरे मुँह से कुछ शब्द निकले;

"इन अंधेरों से मुझे कहीं दूर जाना था...

तुम्हारे साथ मुझे अपना एक सुन्दर आशियाना बसना था..."


ये सुन कर mam एक दम से चुप हो गईं और मुझे भी एहसास हुआ की मुझे ये सब नहीं कहना चाहिए था| माने इधर-उधर देखना शुरू किया और मजबूरन बहाना बनाना पड़ा; "Mam ... भूख लगी है!" ये सुनते ही उनके चेहरे पर ख़ुशी आ गई; "नेक्स्ट स्टॉप इदरीस की बिरयानी!!!" दोपहर के दो बजे हम बिरयानी खाने पहुँचे और मैंने अपने लिए हाफ और मम के लिए फुल प्लेट बिरयानी ली| मेरा तो फटाफट खाना हो गया पर mam अभी भी खा रही थीं| मैं पानी की बोतल लेने गया और मेरे जाते ही वहाँ सिद्धार्थ अपने ऑफिस के colleague के साथ वहाँ आ गया|

सिद्धार्थ: Hi mam!!!

अनु Mam: Hi सिद्धार्थ, so good to see you! यहाँ लंच करने आये हो?

सिद्धार्थ: जी mam!!!

अनु Mam: और अब भी वहीँ काम कर रहे हो?

सिद्धार्थ: नहीं mam ...सर ने काम बंद कर दिया था, मैंने दूसरी जगह ज्वाइन कर लिया और मानु ने अपने ही ऑफिस में अरुण को लगा लिया|

अब तक सिद्धार्थ का colleague आर्डर करने जा चूका था और mam को उससे बात करने का समय मिल गया|

अनु Mam: सिद्धार्थ ... If you don’t ind me asking, मानु को क्या हुआ है? मैं उससे कल रात मिली और उसकी हालत मुझसे देखि नहीं जाती! वो बहुत बीमार है, Fatty liver, Depression, Abdomen pain, loss of appetite...I hope तुमने उसे देखा होगा? वो बहुत कमजोर हो चूका है!

सिद्धार्थ: Mam वो चूतिया हो गया है!

सिद्धार्थ ने गुस्से में कहा और फिर उसे एहसास हुआ की उसने mam के सामने ऐसा बोला इसलिए उसने उनसे माफ़ी मांगते हुए बात जारी रखी;

सिद्धार्थ: सॉरी mam .... मुझे ऐसा...

अनु Mam: Its okay सिद्धार्थ, I can understand! (mam ने सिद्धार्थ की बात काटते हुए कहा|)

सिद्धार्थ: He was in love with Ritika, अब पता नहीं दोनों के बीच में क्या हुआ? ये साला देवदास बन गया! मैंने और अरुण ने इसे बहुत समझाया पर किसी की नहीं सुनता, सारा दिन बस शराब पीटा रहता है, अच्छी खासी जॉब थी वो भी छोड़ दी! अब आप बता रहे हो की ये इतना बीमार है, अब ये किसी की नहीं सुनेगा तो पक्का मर जायेगा|

अनु Mam: तो उसके घर वाले?

सिद्धार्थ: उन्हें कुछ नहीं पता, ये घर ही नहीं जाता बस उनसे फ़ोन पर बात करता है| अरुण बता रह था की बीच में दो दिन ये बहुत खुश था पर उसके बाद फिर से वापस दारु, गाँजा!

इतने में मैं पानी की बोतल ले कर आ गया|

सिद्धार्थ: और देवदास?

ये सुनते ही मैं उसे आँखें दिखने लगा की mam के सामने तो मत बोल ऐसा| पर वो मेरे बहुत मजे लेता था;

सिद्धार्थ: तू mam के साथ आया है?

मैं: हाँ... आजकल मैं गाइड की नौकरी कर ली है|

मैंने माहौल को हल्का करते हुए कहा, पर वो तो mam के सामने मेरी पोल-पट्टी खोलने को उतारू था;

सिद्धार्थ: चलो अच्छा है, कम से कम तू अपने जेलखाने से तो बाहर निकला|

मैंने उसे फिर से आँख दिखाई तो वो चुप हो गया|

मैं: चलें mam?!

अनु mam: चलते हैं.... पहले जरा तुम्हारी रिपोर्ट तो ले लूँ सिद्धार्थ से!

पर तभी उसका colleague आ गया और सिद्धार्थ ने मुझे उससे introduce कराया;

सिद्धार्थ: ये है मेरा भाई जो साला इतना ढीढ है की मेरी एक नहीं सुनता!

ये सुन कर सारे हंस पड़े पर अभी उसका मुझे धमकाना खत्म नहीं हुआ था;

सिद्धार्थ: बेटा सुधर जा वरना अब तक मुँह से समझाता था, अब मार-मार के समझाऊँगा?"

मैं: छोटे भाई पर हाथ उठाएगा?

और फिर सारे हँस पड़े| Mam का खाना खत्म होने तक हँसी-मजाक चलता रहा और मैं भी उस हँसी-मजाक में हँसता रहा| काफी दिनों बाद मेरे चेहरे पर ख़ुशी दिखाई दे रही थी जिसे देख Mam और सिद्धार्थ दोनों खुश दिखे|


विदा ले कर मैं और mam चलने को हुए तो सिद्धार्थ ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और अचानक से मेरे गले लग गया| भावुक हो कर वो कुछ बोलने ही वाला था की mam ने पीछे से अपने होठों पर ऊँगली रख कर उसे चुप होने को कहा| सिद्धार्थ ने बात समझते हुए धीरे से मेरे कान में बुदबुदाते हुए कहा; "भाई ऐसे ही मुस्कुराता रहा कर! तेरी हँसी देखने को तरस गया था!" उसकी बात दिल को छू गई और मैं भी थोड़ा रुनवासा हो गया; "कोशिश करता हूँ यार!" फिर हम अलग हुए और वो ऑफिस की तरफ चल दिया और मैं अपने आँसुओं को पूछने के लिए रुम्मल ढूँढने लगा, तो एहसास हुआ की मेरी आँखों का पानी मर चूका है| दर्द तो होता है बस वो बाहर नहीं आता और अंदर ही अंदर मुझे खाता जा रहा है|

Mam ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे बिना कुछ बोले पार्किंग की तरफ ले जाने लगीं| मैं भी बिना कुछ बोले अपने जज्बातों को फिर से अपने सीने में दफन कर उनके साथ चल दिया| अब mam भी चुप और मैं भी चुप तो मुझे कुछ कर के उन्हें बुलवाना था ताकि मेरे कारन उनका मन खराब न हो| "तो नेक्स्ट स्टॉप कहाँ का है mam?" मैंने पुछा तो वो कुछ सोचने लगी और बोलीं; "हज़रतगंज मार्किट!!!"

............और इस तरह हम शाम तक टहलते रहे, रात हुई और Mam ने जबरदस्ती डिनर भी करवाया और फिर हम वापस गाडी के पास आ रहे थे की मेरे पूरे जिस्म में बगावत छिड़ गई! मेरे हाथ-पेअर कांपने लगे थे और उन्हें बस अपनी दवा यानी की दारु चाहिए थी| मैं mam से अपनी ये हालत छुपाते हुए चल रहा था, गाडी में बैठ कर अभी कुछ दूर ही गए होंगे की mam को शक हो गया; "Are you alright?" उन्होंने पुछा तो मैंने ये कह कर टाल दिया की मैं बहुत थका हुआ हूँ| फिर आगे उन्होंने और कुछ कहा नहीं और मुझे सोसाइटी के गेट पर छोड़ा; "अच्छा मैं तो तुम्हें एक बात बताना ही भूल गई, Palmer Infotech याद है ना?”

मैंने हाँ में सर हिलाया| "मेरी उनसे एक प्रोजेक्ट पर बात चल रही थी जिसके सिलसिले में 'हमें' New York जाना है|"

"हम?" मैंने चौंकते हुए कहा|

"हाँ जी... हम! लास्ट प्रोजेक्ट पर तुमने ही तो सारा काम संभाला था!"

"पर mam...." मेरे आगे कुछ कहने से पहले ही उन्होंने मेरे सामने हाथ जोड़ दिए;

"मानु प्लीज मान जाओ! देखो मैं इतना बड़ा प्रोजेक्ट नहीं संभाल सकती!"

"mam .... मैं सोच कर कल बताता हूँ|"

"ok ... तो कल सुबह 10 बजे तैयार रहना!"

"क्यों?" मैंने फिर से चौंकते हुए पुछा|

"अरे यार! लखनऊ घुमाना है ना तुमने!" इतना कह कर वो हँसने लगी, मैं भी उनके इस बचपने पर हँस दिया और Good Night बोल कर घर आ गया| घर घुसते ही मैंने सबसे पहले बोतल खोली और उसे अपने मुँह से लगा कर पानी की तरह पीने लगा, आधी बोतल खींचने के बाद मैं अपनी पसंदीदा जगह, बालकनी में बैठ गया| अब मेरा जिस्म कांपना बंद हो चूका था और अब समय था अभी जो mam ने कहा उसके बारे में सोचने की| आज 31 अक्टूबर था, 25 नवंबर को दिवाली और 27 नवंबर को रितिका की शादी थी, मुझे कैसे न कैसे इस शादी में शरीक नहीं होना था! तो अगर मैं mam की बात मान लूँ तो मुझे विदेश जाना पड़ेगा और मैं इस शादी से बच जाऊँगा! ...... पर घर वाले मानेंगे? ये ख़याल आते ही मैं सोच में पड़ गया| इस बहाने के अलावा मेरे जहन में कोई और बहाना नहीं था, जो भी हो मुझे इसी बहाने को ढाल बना कर ये लड़ाई लड़नी थी| मन को अब थोड़ा चैन मिला था की अब मुझे इस शादी में तो शरीक नहीं होना होगा इसलिए उस रात मैंने कुछ ज्यादा ही पी| अगली सुबह किसी ने ताबड़तोड़ घंटियां बजा कर मेरी नींद तोड़ी! मैं गुस्से में उठा और दरवाजे पर पहुँचा तो वहाँ मैंने अनु mam को खड़ा पाया| उनके हाथों में एक सूटकेस था और कंधे पर उनका बैग, मुझे साइड करते हुए वो सीधा अंदर आ गईं और मैं इधर हैरानी से आँखें फाड़े उन्हें और उनके बैग को देख रहा था| "मेरी फ्रेंड और उसके हस्बैंड आज सुबह वापस आ गए तो मुझे मजबूरन वहाँ से निकलना पड़ा| अब यहाँ मैं तुम्हारे सिवा किसी को नहीं जानती तो अपना समान ले कर मैं यहीं आ गई|" मैं अब भी हैरान खड़ा था क्योंकि मैं नहीं चाहता था की मेरे इस place of solitude में फिर कोई आ कर अपना घोंसला बनाये और जाते-जाते फिर मुझे अकेला छोड़ जाए| "क्या देख रहे हो? मैंने तो पहले ही बोला था न की If I ever need a place to crash, I'll let you know! ओह! शायद मेरा यहाँ आना तुम्हें अच्छा नहीं लगा?" इतना कह कर वो जाने लगीं तो मैंने उनके सूटकेस का हैंडल पकड़ लिया| "आप मेरे वाले कमरे में रुक जाइये मैं दूसरे वाले में सो जाऊँगा|" फिर मैंने उनके हाथ से सूटकेस लिया और अपने कमरे में रखने चल दिया| मुझे जाते हुए देख कर mam पीछे से अपनी चतुराई पर हँस दीं उन्होंने बड़ी चालाकी से जूठ जो बोला था!
 
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सुबह किसी ने ताबड़तोड़ घंटियां बजा कर मेरी नींद तोड़ी! मैं गुस्से में उठा और दरवाजे पर पहुँचा तो वहाँ मैंने अनु mam को खड़ा पाया| उनके हाथों में एक सूटकेस था और कंधे पर उनका बैग, मुझे साइड करते हुए वो सीधा अंदर आ गईं और मैं इधर हैरानी से आँखें फाड़े उन्हें और उनके बैग को देख रहा था| "मेरी फ्रेंड और उसके हस्बैंड आज सुबह वापस आ गए तो मुझे मजबूरन वहाँ से निकलना पड़ा| अब यहाँ मैं तुम्हारे सिवा किसी को नहीं जानती तो अपना समान ले कर मैं यहीं आ गई|" मैं अब भी हैरान खड़ा था क्योंकि मैं नहीं चाहता था की मेरे इस place of solitude में फिर कोई आ कर अपना घोंसला बनाये और जाते-जाते फिर मुझे अकेला छोड़ जाए| "क्या देख रहे हो? मैंने तो पहले ही बोला था न की If I ever need a place to crash, I'll let you know! ओह! शायद मेरा यहाँ आना तुम्हें अच्छा नहीं लगा?" इतना कह कर वो जाने लगीं तो मैंने उनके सूटकेस का हैंडल पकड़ लिया| "आप मेरे वाले कमरे में रुक जाइये मैं दूसरे वाले में सो जाऊँगा|" फिर मैंने उनके हाथ से सूटकेस लिया और अपने कमरे में रखने चल दिया| मुझे जाते हुए देख कर mam पीछे से अपनी चतुराई पर हँस दीं उन्होंने बड़ी चालाकी से जूठ जो बोला था!

update 64

मैं अपना समान बटोरने लगा था की तभी mam अंदर आईं और बोलीं; "कपडे ही तो हैं? पड़े रहने दो.... हाँ अगर कुछ पोर्न वाली चीजें हैं तो अलग बात है!" Mam ने जिस धड़ल्ले से पोर्न कहा था उसे सुन कर मेरी हवा टाइट हो गई! मुझे ऐसे देख कर mam ने ठहाका मार के हँसना शुरू कर दिया, इसी बहाने से मेरी में हँसी निकल गई| मैंने अपने कपडे छोड़ दिए बस शराब की बोतले उठा कर बाहर निकलने लगा| मेरे हाथ में बोतल देख कर mam की हँसी गायब हो गई और उदासी फिर से उनके चेहरे पर लौट आई| पर मैं इस बात से अनजान दूसरे कमरे में आ गया, इस कमरे में बस एक गद्दा पड़ा था| मैंने सारी खाली बोतलें डस्टबिन में डालीं और दो खाली बोतलें अपने सिरहाने रखी| इधर mam ने किचन में खाने लायक चीजें देखनी शुरू कर दी, मैं अपने गद्दे पर चादर बिछा रहा था की mam दरवाजे पर अपनी कमर पर हाथ रख कर खड़ी हो गईं; "तुम कुछ खाते-वाते नहीं हो? किचन में चायपत्ती और कुछ नमकीन के आलावा कुछ है ही नहीं!" अब में उन्हें क्या कहता की मैं तो सिर्फ दारु पीता हूँ! 'चलो get ready, कुछ ग्रोसरी का समान लाते हैं|" अब मेरा मन घर से बाहर जाने का कतई नहीं था, तो मैंने अपने फ़ोन में app खोल कर उन्हें दे दिया और मैं करवट ले कर लेट गया| मैंने ये तक नहीं सोचा की उस फ़ोन में मेरी और रितिका की तसवीरें हैं! Mam फ़ोन ले कर बाहर चली गईं और ग्रोसरी का समान आर्डर कर दिया, फिर उन्होंने फ़ोन गैलरी में photos देखनी शुरू कर दी| मेरा फोन मैने आज तक कभी किसी को नहीं दिया था इसलिए फ़ोन में किसी भी app पर लॉक नहीं था| Mam ने सारी तसवीरें देखि, इधर जैसे ही मुझे होश आया की mam फोटोज न देख लें तो में फटाफट बाहर आया और देखा mam ग्रोसरी की पेमेंट वाले पेज पर पिन नंबर एंटर कर रहीं थी| मैं उनके पीछे चुप-चाप खड़ा रखा और जब उन्होंने पेमेंट कर दी तो मैंने उनसे फ़ोन माँगा| "क्यों डर रहे हो? फ़ोन में पोर्न छुपा रखा है क्या?" Mam ने मजाक करते हुए कहा तो फिर से मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गई| मैं दुबारा सोने जाने लगा तो mam ने रोक लिया; "यार कितना सोओगे? रात में कहीं चौकीदारी करते हो? चलो बैठो यहाँ मैं चाय बनाती हूँ|" मैं चुप-चाप बालकनी में फर्श पर बैठ गया| ठंड का आगाज हो चूका था और हवा में अब हलकी-हलकी ठंडक महसूस की जा सकती थी और मैं इसी ठंडक को महसूस कर हल्का सा मुस्कुरा दिया| मैंने दोनों हाथों से कप पकड़ा और mam भी मेरे सामने ही अपनी चाय ले कर बैठ गईं| "तो क्या सोचा New York जाने के बारे में?" Mam ने चाय की चुस्की लेते हुए पुछा| ये याद आते ही मैं बहुत गंभीर हो गया और mam समझ गईं की मैं मना कर दूँगा, इसलिए mam का चेहरा मुरझा गया; "कब जाना है?" मैंने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा तो mam के चेहरे पर ख़ुशी फिर से लौट आई| "20 नवंबर को पहले बैंगलोर जाना है, वहाँ से मुझे अपना समान लेना है और फिर वहाँ से मुंबई और फिर फाइनल स्टॉप New York!" Mam ने excited होते हुए कहा और उनके चेहरे की ख़ुशी मुझे सुकून देने लगी थी| ऐसा लगा मानो किसी अपने को ख़ुशी दे रहा हूँ और उनकी ख़ुशी से मुझे भी ख़ुशी होने लगी|

कुछ देर बाद ग्रोसरी का सारा समान आ गया, इतना समान अपने सामने मैं कई दिनों बाद देख रहा था| मैं उठ कर नहाने गया और mam ने किचन संभाल लिया, नहा के आते-आते उन्होंने नाश्ता बना लिया था| Mam ने एक प्लेट में आधा परांठा मुझे परोस कर दिया| "Mam मुझे भूख नहीं लगती, आप क्यों मेरे लिए तकलीफ उठा रहे हो! आप खाइये!"

"क्या भूख नहीं लगती? अपनी हालत देखि है? अच्छी खासी body थी और तुमने उसकी रैड मार दी है! कहीं मॉडलिंग करने जाना है जो weight loss कर रहे हो?!" Mam ने प्यार से मुझे डाँटा और एक बार फिर मेरी हँसी निकल गई| दरअसल ये Mam का game प्लान था, मुझे इस तरह छेड़ना और प्यार से डाँटना ताकि मैं थोड़ा मुस्कुराता रहूँ, पर मैं उनके इस game plan से अनविज्ञ था! मैंने परांठे का आधा हिस्सा Mam को दे दिया और बाकी का हिस्सा ले कर मैं वापस बालकनी में बैठ गया| Mam भी अपना परांठा ले कर मेरे पास बैठ गईं और मुझे Project के बारे में बताने लगी, इस बार मैं बड़े गौर से उनकी बातें सुन रहा था| "वैसे हम जा कितने दिन के लिए रहे हैं?" मैंने पुछा तो उन्होंने 20 दिन कहा और मैं उसी हिसाब से सोचने लगा की घर पर मुझे कितने दिन का बताना है| "और expenses?" मैंने पुछा क्योंकि मेरे पास सवा चार लाख बचे थे, और बाकी मैं शराब और नए फ्लैट के चक्कर में फूँक चूका था! "उसकी चिंता मत करो वो सब reimbursed हो जायेगा!"

इसके अलावा मैंने उनसे कुछ नहीं पुछा| नाश्ते के बाद हम इधर-उधर की बातें करते रहे और लैपटॉप पर कुछ डिस्कशन करने लगे| तभी mam के लैपटॉप की बैटरी डिस्चार्ज हो गई और उन्होंने मुझसे मेरा लैपटॉप माँगा और उस पर वो मुझे कुछ साइट्स दिखाने लगीं जिनके साथ उन्होंने थोड़ा-थोड़ा काम किया था| मैं दो मिनट के लिए गया तो mam ने मेरा लैपटॉप सारा चेक कर मारा और उन्हें वो सब bookmarks चेक कर लिए जो मैंने मार्क किये थे रेंट पर घर लेने के लिए, साथ ही उन्होंने job opening भी देख ली थीं और वो अब धीरे-धीरे सब समझने लगी थीं| जो वो नहीं समझ पाईं थी वो था मेरा और ऋतू का रिश्ता! मेरे वापस आने तक उन्होंने साड़ी windows close कर दी थी और उन्हें history से भी डिलीट कर दिया था! जब मैं वापस आया तो mam ने फिर से मेरी टाँग खींचते हुए कहा; "यार तुम तो बढ़िया वाली पोर्न देखते हो?" ये सुनते ही मैं चौंका क्योंकि कई महीनों से पोर्न देखा ही नहीं था| "नहीं तो! बड़े दिन हुए......" इतना मुंह से निकला और मुझे एहसास हुआ की मैंने कुछ जयदा बोल दिया| Mam मेरा रिएक्शन देख कर जोर-जोर से हँसने लगी, उनकी देखा-देखि मेरी भी हँसी निकल गई| दोपहर हुई और Mam ने खाना बना दिया और मुझे आवाज दी, हम दोनों अपनी-अपनी प्लेट ले कर फिर वहीँ बैठ गए| मैंने बड़ी मुश्किल से एक रोटी खाई और जैसे ही मैं उठने को हुआ तो मम ने मेरा हाथ पकड़ कर वापस बिठा दिया| "हेल्लो मिस्टर इतनी मन मनाई नहीं चलेगी, चुप कर के दो रोटी और खाओ! सुबह भी आधा परांठा खाया है और अब बस एक रोटी?!" Mam ने फिर से प्यार से मुझे डाँटा|

"Mam क्या करूँ इतना प्यार भरा खाना खाने की आदत नहीं है!" मुझे नहीं पता की मेरे मुँह से ये क्यों निकला, शायद ये Mam का असर था जो मुझ पर अब दिखने लगा था|

"तो आदत डाल लो!" Mam ने हक़ जताते हुए कहा और मैं भौएं सिकोड़ कर हैरानी से उनकी तरफ देखने लगा| उनका ये कहना की आदत डाल लो का मतलब क्या था? तभी Mam ने मेरा ध्यान भंग करने को एक रोटी और परोस दी| चूँकि मैंने अभी पी नहीं थी इसलिए अब दिमाग बहुत ज्यादा अलर्ट था और आज सुबह से जो हो रहा था उसका आंकलन करने लगा था| मैं सर झुका कर चुप-चाप खान खाने लगा, Mam का खाना हो चूका था इसलिए वो मुझसे नजरें चुराती हुई चली गईं| मेरा दिल अब किसी और को अपने नजदीक नहीं आने देना चाहता था, फिर New York वाले trip के बाद उन्होंने बैंगलोर चले जाना था और मैंने फिर वापस यहीं लौट आना था तो फिर इतनी नजदीकियाँ क्यों? ये दूसरीबार था जब mam मेरे नजदीक आना चाहती थीं, पहली बार तब था जब हम मुंबई में थे और मैंने उन्हें अपने गाँव के रीती-रिवाज के डर की आड़ में उन्हें अपने नजदीक नहीं आने दिया था| इस बार भी मुझे फिर उसी डर का सहारा लेना था ताकि वो मेरे चक्कर में अपनी जिंदगी बर्बाद ना करें और मैं यहाँ अकेला चैन से घुट-घुट कर मरता रहूँ| मैंने सोचा अगली बार उन्होंने मुझे ऐसा कुछ कहा तो मैं उन्हें समझा दूँगा| अगर मुन्ना मेरी जिंदगी में नहीं आया होता तो शायद मैं mam की तरफ बह जाता पर मुन्ना के आने के बाद मैंने एक बहुत जरुरी सबक सीखा था! मैं अभी इसी उधेड़-बन में था की mam मेरी प्लेट लेने आ गई, पर मैंने उन्हें अपनी प्लेट नहीं दी बल्कि खुद उठा कर किचन में चल दिया| वहाँ से निकल कर मैंने देखा तो mam बालकनी में बैठीं थी और उनकी आँखें बंद थीं| मुझे लगा वो सो रही हैं, इसलिए मैं अपने कमरे में चला गया| कमरे में मेरे सिरहाने पड़ी बोतल पर ध्यान गया तो सोचा की एक घूँट पी लेता हूँ पर ख्याल आया की mam यहाँ हैं, ऐसे में मेरा पीना उन्हें uncomfortable महसूस करवाएगा| पर अब कुछ तो नशा चाहिए था, क्योंकि मेरे हाथ-पेअर थोड़ा कांपने लगे थे! इसलिए मैंने सिगेरट और माल उठाया और चुप-चाप छत पर आ गया| वहाँ बैठ कर मैंने मालभरा और तसल्ली से सिगरेट पी और वहीँ दिवार से पीठ लगा कर बैठ गया| शाम के 4 बजे मैं नीचे आया तो mam अब भी वैसे ही सो रही थीं बस ठंड के कारण वो थोड़ा सिकुड़ीं हुई थीं| मैंने अंदर से एक चादर निकाली और उन पर डाल दी, फिर मैं चाय बनाने लगा| चाय की खुशबु सूंघ कर मम अंगड़ाई लेते हुए उठीं| जान क्यों पर उन्हें ऐसे अंगड़ाई लेते देख मुझे रितिका की याद आ गई| मैं दोनों हाथों में चाय का कप पकडे वहीँ रुक गया, अब तक mam ने मुझे देख लिया था इसलिए वो खुद आईं और मेरे हाथ से चाय का कप ले लिया|

शायद mam ये भाँप गई थीं की मैं उनकी दोपहर की बात का बुरा मान चूका हूँ, इसलिए हम दोनों में फिलहाल कोई बात नहीं हो रही थी| रात का खाना बनाने के बहाने से mam ने बात शुरू की; "मानु रात को खाने में क्या बनाऊँ?"

"बाहर से मंगा लेते हैं!" मैंने कहा और फ़ोन पर देखने लगा की उनके लिए क्या मँगाऊँ? पर mam बोलीं; "क्यों मेरे हाथ का खाना पसंद नहीं आया तुम्हें?"

"ऐसी बात नहीं है mam .... आप यहाँ खाना बनाने थोड़े ही आये हो!" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा|

"पर मैंने लोबिया भिगो दिए थे!" Mam ने मुँह बनाते हुए कहा, ये सुनकर मैं जोर से हँस पड़ा| उन्हें समझ नहीं आया की मैं क्यों हँस रहा हूँ पर मुझे हँसता हुआ देख वो बहुत खुश थीं|

"Mam जब आपने पहले से लोबिया भिगो दिए थे तो आपने पुछा क्यों की क्या बनाऊँ?" ये सुन कर mam को पता चला की मैं क्यों हँस रहा था और अब उन्होंने अपना माथा पीटते हुए हँसना शुरू कर दिया|

"बिलकुल मम्मी की तरह!" इतना कहते हुए उनकी हँसी गायब हो गई और सर झुका कर वो उदास हो गईं| उनकी आँख से आँसू का एक कटरा जमीन पर पड़ा, मैं एक दम से उठा और उनके कंधे पर हाथ रख कर उन्हें सांत्वना देने लगा| फिर मैंने उनका हाथ पकड़ा और उन्हें कुर्सी पर बिठाया|

“क्या किसी इंसान को खुश होने का हक़ नहीं है? स्कूल से ले कर शादी तक मैंने वो हर एक चीज की जो मेरे मम्मी-डैडी ने चाही| Tenth के बाद मुझे साइंस लेनी थी पर मम्मी-डैडी ने कहा कॉमर्स ले लो, फिर मुझे DU जाना था तो मुझे करेकपॉन्डेंस में एडमिशन दिलवा दिया ये बोल कर की कौन सा तुझे जॉब करनी है! उसके बाद सीधा शादी के लिए मेरे सामने एक लड़का खड़ा कर दिया और कहा की ये तेरा जीवन साथी है| मैंने वो भी मान लिया पर वो ही अगर धोकेबाज निकला तो इसमें मेरा क्या कसूर है? वो मुझे कैसे कह सकते हैं की निभा ले?! जब मैंने मना किया और डाइवोर्स ले लिया तो मुझे disown कर दिया! इतनी जल्दी माँ-बाप अपने जिगर के टुकड़े को खुद से काट कर अलग कर देते हैं?" ये कहते हुए mam रोने लगीं, मुझसे उनका ये दुःख देखा नहीं गया तो मैं उनके साथ बैठ गया और उनके कंधे पर हाथ रख कर उन्हें शांत करने लगा| उन्होंने अपना मुँह मेरे कंधे से लगाया और रोने लगीं| मैं बस उनका कन्धा सहलाता रहा ताकि वो शांत हो जाएँ| मेरा मन कहने लगा था की हम दोनों ही चैन से जीना चाहते है, एक को माँ-बाप ने छोड़ दिया तो दूसरे को उसकी मेहबूबा ने छोड़ दिया| हालाँकि तराजू में mam का दुःख मेरे दुःख से की ज्यादा बड़ा था पर कम से कम उन्होंने अपनी जिंदगी दुबारा शुरू तो कर ली थी और वहीँ मैं अपने गम में सड़ता जा रहा था|

कुछ देर बाद वो चुप हुईं और मेरे कंधे से अपना चेहरा हटाया, जहाँ उनका मुँह था वो जगह उनके आंसुओं से गीली हो गई थी| अब उन्हें हँसाने की जिम्मेदारी मेरी थी, पर जो इंसान खुद हँसना भूल गया हो वो भला दूसरों को क्या हसायेगा? "Mam माने आपको पहले भी कहा था न की आप के चेहरे पर हँसी अच्छी लगती है आँसू नहीं!" Mam ने तुरंत मेरी बात मान ली और अपने आँसू पोछ कर मुस्कुरा दी| फिर mam ने खाना बनाया और उनका दिल रखने के लिए मैंने दो रोटी खाईं, कुछ देर तक हम दोनों बालकनी में खड़े रहे और फिर सोने चले गए| बारह बजे तक मैंने सोने की बहुत कोशिश की, बड़ी करवटें ली पर नींद एक पल के लिए नहीं आई| Mam की मौजूदगी में मेरा दिमाग मुझे पीने नहीं दे रहा था पर मन बेचैन होने लगा था, हाथ-पाँव फिर से कांपने लगे थे और अब तो बस दारु चाहिए थी|


हार मान कर मैं उठा और सोचा की ज्यादा नहीं पीयूँगा, जैसे ही मैंने अपने सिरहाने देखा तो वहाँ से बोतलें गायब थीं| मैं समझ गया की ये mam ने ही हटाईं हैं, मैं गुस्से में बाहर आया और mam के कमरे में झाँका तो पाया वो सो रही हैं| किसी तरह मैंने गुस्सा कण्ट्रोल किया और किचन में बोतले ढूँढने लगा| अभी 24 घंटे हुए नहीं इन्हें आये और इन्होने मेरी जिंदगी में उथल-पुथल मचाना शुरू कर दिया| ये शराब की ललक थी जो मेरे दिमाग पर हावी हो कर बोल रही थी! मेरा दिमाग भी यही चाह रहा था की mam ने वो बोतलें फेंक दी हों ताकि आज मैं दारु पीने से बच जाऊँ, ये तो कम्बख्त मन तो जिसे दारु का सहारा चाहिए था! सबसे ऊपर की शेल्फ पर मुझे बोतल मिल ही गई और मैंने फटाफट गिलास में डाली और उसे पीने ही जा रहा था की पीछे से एक आवाज मेरे कान में पड़ी; "प्लीज.... मत पियो...." इस आवाज में जो दर्द था उसने जाम को मेरे होठों से लगने नहीं दिया| मैंने सबसे पहले लाइट जलाई और पलट कर देखा तो mam आँखों में आँसू लिए मेरी तरफ देख रही थीं| उन्होंने ना में गर्दन हिलाई और मुझे पीने से मना करने लगी| ऐसा लगा जैसे बहुत हिम्मत कर के वो मुझे रोक रहीं हों, उनके हाव-भाव से मुझे डर भी साफ़ दिख रहा था| एक शराबी को दारु पीने से रोकना इतना आसान नहीं होता, क्योंकि शराब की ललक में वो कुछ नहीं सुनता और किसी को भी नुक्सान पहुँचा सकता है| पर मैं अभी उस हद्द तक नहीं गिरा था की उन पर हाथ उठाऊँ!


मैंने चुप-चाप गिलास किचन स्लैब पर रख दिया और सर झुका कर अपने अंदर उठ रही शराब पीनी की आग को शांत करने लगा| मेरा ऐसा करने का करना था mam के आँसू, जिन्होंने मेरे जलते हुए कलेजे पर राहत के कुछ छींटें मारे थे| Mam डर्टी हुई मेरे नजदीक आईं और मेरे कांपते हुए दाएं हाथ को पकड़ कर धीरे से मुझे हॉल की कुर्सी पर बिठाया| फिर मेरे सामने वो अपने घुटनों के बल बैठ गईं और आँखों में आँसू लिए हिम्मत बटोर कर बोलीं; "मानु....मैं जानती हूँ तुम रितिका को कितना प्यार करते थे!" ये सुनते ही मैंने हैरानी से उनकी आंखों में देखा, पर इससे पहले मेरे लब कोई सवाल पूछते उन्होंने ही सवाल का जवाब दे दिया; "मुझे सिद्धार्थ ने कल बताया| मैं नहीं जानती की क्यों तुम दोनों अलग हुए पर इतना जर्रूर जानती हूँ की उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं हो सकती| वो ही तुम्हें समझ नहीं सकी, इतना प्यार करने वाला उसे कहाँ मिलेगा? पर वो तो move on कर गई ना? फिर तुम क्यों अपनी जान देना चाहते हो? मैंने तुम्हारी साड़ी मेडिकल रिपोर्ट्स पढ़ी हैं, तुम ने अगर पीना बंद नहीं किया तो मैं अपना सबसे प्यारा दोस्त खो दूँगी!" Mam ने मेरे दोनों गालों को अपने दोनों हाथों के बीच रखते हुए कहा| ये सब सुन कर मैं फिर से टूट गया; "Mam ... अगर नहीं पीयूँगा तो वो और याद आएगी और मैं सो नहीं पाऊँगा| चैन से सो सकूँ इसलिए पीता हूँ!" मैंने ने रोते हुए कहा| ये सब मेरे दिमाग की उपज थी जो मुझे पीना नहीं छोड़ने देना चाहती थी और mam ये जानती थीं|

"तुम इतने भी कमजोर नहीं हो! ये तुम्हारे अंदर का डिप्रेशन है जो तुम्हें खुल कर साँस नहीं लेने दे रहा| फिर मैं हूँ ना यहाँ पर? I promise मैं तुम्हें इस बार छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगी| एक बार गलती कर चुकी हूँ पर दुबारा नहीं करुँगी! हम दोनों साथ-साथ ये लड़ाई लड़ेंगे और जीतेंगे भी|" Mam ने मेरी आँखों में देखते हुए कहा और ना चाहते हुए भी मैं उनकी बातों पर विश्वास करने लगा| वैसे भी मेरे पास खोने के लिए बस मेरी एक जान ही रह गई थी!


Mam ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे उठा कर अपने साथ अपने कमरे में ले गईं, वो पलंग के सिरहाने बैठ गईं और मुझे उनकी गोद में सर रखने को कहा| मैं उस वक़्त अंदर से इतना कमजोर था की मुझे अब किसी का साथ चाहिए था जो मुझे इस दुःख के सागर से निकाल कर किनारे लाये| Mam की वो गोद मेरे लिए कश्ती थी, ऐसी कश्ती जिसका सहारा अगर मैं ना लिया तो मैं पक्का डूब जाऊँगा| जब इंसान डूबने को होता है तो उसकी fighting spirit सामने आती है जो उसे आखरी सांस तक लड़ने में मदद करती है और यही वो spirit थी जिसने मुझे mam की गोद में सर रखने को कहा| मैं भी उनकी गोद में सर रख कर सिकुड़ कर लेट गया| मेरी आँखें अब भी खुली थीं और वो सामने दिव्वार पर टिकी थी, दिल पिघलने लगा था और उसमें से आँसू का कतरा बहा और बिस्तर पर गिरा| Mam जिनकी नजर मुझ पर बनी हुई थी, उन्होंने मेरे आँसू पोछे और बोलीं; "मानु एक रिक्वेस्ट करूँ?"मैंने हाँ में सर हिलाया| "प्लीज मुझे मेरे नाम से बुलाया करो, तुम्हारे मुँह से 'Mam' सुनना मुझे अच्छा नहीं लगता|" मैंने फिर से हाँ में सर हिलाया|


'अनु' ने मेरे बालों में हाथ फेरना शुरू किया, ये एहसास मेरे लिए जादुई था| मन शांत हो गया था और आँखें भारी होने लगी थीं, धीरे-धीरे मैं नींद के आगोश में चला गया| पर जिस्म को नशे की आदत हो गई थी इसलिए तीन बजे मेरी आँख फिर खुल गई| कमरे में अँधेरा था और इधर मेरा गला शराब की दरक़ार करने लगा था, दिल की धड़कनें अचानक ही तेज हो गई थीं, हाथ-पेअर फिर से कांपने लगे थे अब बस दारु चाहिए थी ताकि मैं खुद को काबू में कर सकूँ| मैं धीरे से उठा और कमरे से बाहर आया और किचन स्लैब पर देखा जहाँ मेरा जाम मुझे देख रहा था और अपनी तरफ बुला रहा था| मेरे कदम अपने आप ही उस दिशा में बढ़ने लगे, काँपते हाथ अपने आप ही जाम को थाम कर उठा चुके थे पर कहते हैं ना की जब हम कोई गलत काम करते हैं तो हमारी अंतर्-आत्मा हमें एक बार रोकती जरूर है| मैं एक पल के लिए रुका और ममेरी अंतर्-आत्मा ने मुझे गाली देते हुए कह; "वहाँ अनु तुझे इस गम से निकालने के लिए इतना त्याग कर रही है और तू उसे ही धोका देने जा रहा है? भला तुझमें और रितिका में फर्क ही क्या रहा?" ये ख़याल आते ही मुझे खुद से नफरत हुई, क्योंकि मेरे लिए सिर्फ और सिर्फ रितिका ही दोषी थी और मेरी इस हालत की जिम्मेदार भी वही थी! मेरा कुछ भी ऐसा करना जिसके कारन मैं उसके जैसा बन जाऊँ उससे अच्छा था की मर जाऊँ| मैंने वो गिलास किचन सिंक में खाली कर दिया, पता नहीं क्यों पर मुझे ऐसा लगा जैसे नाली में गिरती वो दारु मुझे गालियाँ दे रही हो और कह रही हो; "जब कोई नहीं था तेरे पास तब मैं थी! आज जब अनु आ गई तो तू मुझे नाली में बहा रहा है? जब ये भी छोड़ कर जायेगी तब मेरे पास ही आएगा तू!"

"कभी नहीं आऊँगा तेरे पास, मर जाऊँगा पर नहीं आऊँगा! बहुत तिल-तिल कर मर लिया अब फिर तुझे कभी अपने मुँह नहीं लगाऊँगा| तूने सिर्फ मुझे जलाया ही है, कोई एहसान नहीं किया मुझ पर! एक इंसान मुझे सहारा दे कर संभालना चाहता है और तू चाहती है मैं भी उसे धोका दूँ?" मैं जोश-जोश में ऊँची आवाज में बोल गया इस बात से अनजान की अनु ने पीछे खड़े हो कर ये सब देख और सुन लिया है| जब मैं पलटा तो अनु की आँखें भरी हुई थीं, उन्होंने मेरे काँपते हुए हाथों को पकड़ा और आ कर मेरे सीने से लग गईं और बोलीं; "Thank You!!!" इसके आगे वो कुछ नहीं बोलीं, फिर मुझे वापस पलंग पर ले गईं और मुझे अपने गोद में सर रख कर लेटने को कहा| एक बार फिर मैं उस प्यार की गर्माहट में लेट गया पर नींद आना इतना आसान नहीं था| "I’m proud of you!” ये कहते हुए उन्होंने मेरे माथे को चूमा और मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ फेरने लगीं| अनु का ये kiss मेरे पूरे शरीर को झिंझोड़ गया, पुराण मानु अब जाग गया था और वो अब वापस आने को तैयार था! पर अंदर से मेरा पूरा जिस्म काँप रहा था और अनु बस मन ही मन प्रार्थना कर रही थीं की ये रात कैसे भी पार हो जाए ताकि वो कल सुबह मुझे हॉस्पिटल ले जा सकें| जागते हुए दोनों ने रात गुजारी और सुबह होते ही उन्होंने मुझे फ्रेश होने को कहा, उन्होंने चाय बनाई और नाश्ता भी बनाया| मेरा शरीर अब बुरी तरह कांपने लगा था, जिस्म से पसीना आने लगा था और मुझे थकावट भी बहुत लग रही थी| नहाने का जैसे कोई असर ही नहीं पड़ा था मुझ पर, मुझसे तो ठीक से बैठा भी नहीं जा रहा था| अनु ने बड़ी मुश्किल से मुझे नाश्ता कराया और कटोरी से धीरे-धीरे चाय पिलाई| घर से निकलना आफत हो गई थी ऐसा लगा जैसे की कोई भूत-बाधा वाला मरीज भगवान के डर से बाहर नहीं आना चाहता हो|

"एम्बुलेंस बुलाऊँ?" अनु ने पुछा तो मैंने ना में सर हिला दिया और कहा; "इतनी जल्दी हार नहीं मानूँगा! आप कैब बुला लो!" कैब आई और मैं सीढ़ियों पर बैठते-बैठते नीचे उतरा और आखिर हम हॉस्पिटल पहुँचे| अनु ने वहाँ इमरजेंसी में मुझे उसी फैक्टर से मिलवाया और वो मेरी ये हालत देख कर समझ गया| "See I told you!" उसने फटाफट जो औपचारिकताएं थी वो पूरी कीं और वही tests दुबारा दोहराये| रिपोर्ट आने तक उसने मुझे आराम करने को कहा और एक बेड दे दिया| पर मैंने मना कर दिया; "सर I'm a fighter! अभी इस पर लेटने का समय नहीं आया| मैं बाहर वेट करता हूँ!" डॉक्टर और अनु मेरे अंदर ये पॉजिटिव चेंज देख कर बहुत खुश थे| रिपोर्ट्स आने के बाद डॉक्टर ने हमें वापस अंदर बुला लिया और बिठा कर बताने लगा; "मानु I’m afraid reports are not good! Your liver is damaged considerably….. you’ve Cirrhosis of Liver!!! YOU CAN’T GO BACK TO DRINKING OR ELSE YOU’RE GONNA DIE!” ये बात अनु के लिए बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था इसलिए वो रो पड़ी| मैंने उनके कंधे पर हाथ रखा; "Hey! I'm dying!" मैंने थोड़ा मजाक करते हुए कहा|

"Is she you’re wife?” डॉक्टर ने पुछा| तो मैंने मुस्कुराते हुए कहा; "She's the one who’s keeping me alive!”

“Then mam its gonna be one hellova fight for you! As you can see the constant shivering, its because his body is addicted to the intoxication he’s been taking for such a long time. Now that he’s stopped, his body is craving for it! His body will reject any medication we give but you’ve to make sure he takes medicines on time. Also, very soon you’ll see the withdrawl symptoms! He’s goning to react and by react I mean he might become violent. Keep an eye on him cause I know HE WILL START DRINKING AGAIN! You’ve to keep alcohol away from him at any cost or you’ll loose your best friend! He also needs a therapist so he can ease the pressure on his head, he seems a very emotional person and he’ll eventually have a nervous breakdown! At that time do take care of him, the therapist will write some medication to ease his mental pressure and keep him in check. I’m writing some syrups and capsules for his liver as well as his apetite. Home cooked food only! No oily food, fast food or anything. Normal Home cooked food only. Also, he complained about sleep deprivation so I’m writing one sleeping pill, DO NOT INCREASE THE DOSAGE UNDER ANY CONDITION!” डॉक्टर ने बड़ी ही सख्त हिदायतें दी थीं और ये सुन कर ही पालन करने से डर लगने लगा था|
"कितना टाइम लगेगा इस में?" मैंने पुछा तो डॉक्टर ऐसे हैरान हुआ जैसे मैं कोई तुर्रमखाँ हूँ|

"It won’t be easy! If you follow my advice properly then atleast a year!” डॉक्टर ने गंभीर होते हुए कहा| पर मुझे अपने ऊपर पूरा विश्वास था की मैं ये कर लूँगा..... Bloody Overconfidence!
 
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"It won’t be easy! If you follow my advice properly then atleast a year!” डॉक्टर ने गंभीर होते हुए कहा| पर मुझे अपने ऊपर पूरा विश्वास था की मैं ये कर लूँगा..... Bloody Overconfidence!

update 65
पहला दिन


हॉस्पिटल से लौटते-लौटते शाम के 4 बज गए थे, अनु ने आते ही चाय बनानी शुरू कर दी और मैं उनसे बात करने लगा| जब से अनु आई थी वो बीएस घर में खाना ही बना रही थी, मुझे बड़ा बुरा लग रहा था की मेरी वजह से उन्हें ये तकलीफ उठानी पड़ रही है| मैंने सिक्योरिटी गार्ड को फ़ोन कर के कहा की वो कोई काम करने वाली भेज दे, अनु ने जब ये सुना तो वो बोली; "क्या जर्रूरत है? मैं कर रही हूँ ना सारा काम?"

"खाना बनाने तक तो ठीक है पर ये बर्तन धोना, झाड़ू-पोछा और कपडे धोना मुझे पसंद नहीं, ये काम कोई और कर लेगा| आप बस tasty-tasty खाना बनाओ!" मैंने हँसते हुए कहा|

"अच्छा मेरे हाथ का खाना इतना पसंद है? ठीक है तो फिर आज से एक रोटी एक्स्ट्रा खानी होगी!" अनु की बात सुन कर मैं अपनी ही बात में फँस गया था| मैं मुस्कुरा दिया और अपने कमरे में जा कर लेट गया| लेटे-लेटे मैं सोच रहा था की मुझे घर भी जाना है ताकि वहाँ जा कर मैं विदेश जाने का कारन बता कर शादी से अपनी जान बचा सकूँ! पर इस हालत में जाना, मतलब वो लोग मुझे कहीं जाने नहीं देंगे| दिन कम बचे थे और मुझे जल्द से जल्द ठीक होना था| रात को खाने के बाद अनु ने मुझे दवाई दी और मैं थोड़ा वॉक करने के बाद अपने कमरे में सोने जाने लगा| "वहाँ कहाँ जा रहे हो?" अनु ने पुछा, मैंने इशारे से उन्हें कहा की मैं सोने जा रहा हूँ| "नहीं....रात में तबियत खराब हुई तो?" अनु ने चिंता जताते हुए कहा|

"कुछ नहीं होगा? अगर तबियत खराब हुई तो मैं आपको उठा दूँगा|"

"तुम्हें क्या प्रॉब्लम है मेरे साथ इस कमरे में सोने में?" अनु ने अपनी कमर पर दोनों हाथ रखते हुए पुछा|

"यार! अच्छा नहीं लगता आप और मैं एक ही रूम में, एक ही बेड पर!"

"ओ हेल्लो मिस्टर! I'm single समझे! अपनी ये chivalry है न अपने पास रखो!" अनु ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा|

"तभी तो दिक्कत है? आप सिंगल, मैं सिंगल फिर .... you know ... शादी हुई होती तो बात अलग होती!" मैंने भी अनु की टाँग खींची!

"अच्छा? चलो अभी करते हैं शादी?" अनु ने मेरा हाथ पकड़ा और बाहर जाने के लिए तैयार हो गईं| हम दोनों ने इस बात पर खूब जोर से ठहाका लगाया! 5 मिनट तक non-stop हँसने के बाद अनु बोली; "चलो सो जाओ!" उन्होंने जबरदस्ती मुझे अपने कमरे में सोने के लिए कहा| मैं भी मान गया और जा कर एक तरफ करवट ले कर लेट गया और अनु दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गईं| दवाई का असर था तो मैं कुछ देर के लिए बड़े इत्मीनान से सोया पर असर ज्यादा देर तक नहीं रहा और 2 बजे मेरी आँख खुल गई और उसके बाद करवटें बदलते-बदलते सुबह हुई|
दूसरा दिन



सुबह अनु ने उठते ही देखा की मैं आँखें खोले छत को देख रहा हूँ; "Good Morning! सोये नहीं रात भर?"

"दो बजे के बाद नींद नहीं आई, इसलिए जागता रहा|" मैंने उठ के बैठते हुए कहा| तभी अनु की नजर मेरे काँपते हुए हाथों पर पड़ी और उनकी चिंता झलकने लगी| मैं धीरे-धीरे उठा क्योंकि मुझे लग रहा था की कहीं चक्कर आ गया तो! फ्रेश हो कर मैं बालकनी में कुर्सी पर बैठ गया और अनु चाय बना कर ले आई| "अच्छा therapist के पास कब जाना है?" अनु ने पुछा| ये सुनते ही मेरी आंखें चौड़ी हो गईं, मैं जानता था की थेरेपिस्ट के पास जाने के बाद मुझे उसे सब बातें बतानी होंगी और ये सब बताना मेरे लिए आसान नहीं था| "प्लीज...मुझे थेरेपिस्ट के पास नहीं जाना!" मैंने मिन्नत करते हुए कहा| "पर क्यों?" अनु ने चिंता जताते हुए कहा|

"प्लीज...मैं नहीं जाऊँगा.... तुम जो कहोगी वो करूँगा पर वहाँ नहीं जाऊँगा|" मैं किसी भी हालत में ये सच किसी के सामने नहीं आने देना चाहता था क्योंकि ये सुन कर डॉक्टर और अनु दोनों ही मेरे बारे में गलत सोचते और मैं खुद को गलत साबित होने नहीं देना चाहता था| अब मुझमें इतनी ताक़त नहीं थी की मैं किसी को अपनी सफाई दूँ पर उनकी सोच मुझे जर्रूर चुभती!

"ठीक है...मैं एक बार डॉक्टर से बात करती हूँ!"

नाश्ता बनाने का समय हुआ तो अनु ने एक पतला सा परांठा बनाया, जैसे ही उन्होंने मुझे परोस कर दिया मैंने तुरंत उसके दो टुकड़े किये और आधा टुकड़ा उठा लिया| पर अनु को मुझे डराने का स्वर्णिम मौका मिल चूका था, उन्होंने आँखें तर्रेर कर कहा; "थेरेपिस्ट के जाना है?" ये सुनते ही मैं डरने का नाटक करते हुए ना में सर हिलाने लगा| "तो फिर ये पूरा खाओ!" मैंने डरे सहमे से बच्चे की तरह वो बचा हुआ टुकड़ा उठा लिया, मेरा बचपना देख उन्हें बहुत हँसी आई| उनके चेहरे की हँसी मेरे दिल को छू गई, ऐसा लगा जैसे बरसों बाद उन्हें हँसता हुआ देख रहा हूँ| नाश्ते के बाद गार्ड एक काम करने वाली को ले आया और अनु ने चौधरी बनते हुए उससे सारी बात की और उसे आज से ही काम पर रख लिया| उसने काम शुरू कर दिया था और मुझे अचानक से दीदी और मुन्ना की याद आ गई| मैं एक पल के लिए खमोश हो गया और मुन्ना को याद करने लगा| उस नन्हे से बच्चे ने मुझे दो दिन में ही बहुत सी खुशियाँ दे दी थीं, पता नहीं वोकहान होगा और किस हाल में होगा? अनु ने जब मुझे गुमसुम देखा तो वो मेरे बगल में बैठ गईं और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोलीं; "क्या हुआ?" उनका इतना प्यार से बोलना था की मैंने उन्हें मुन्ना और दीदी के बारे में सब बता दिया| वो मेरा दुख समझ गईं और मुझे संत्वना देने लगी.... खेर दोपहर हुई और फिर वही उनका मुझे थेरेपिस्ट के नाम से डराना जारी रहा| शाम को उन्होंने बताया की डॉक्टर बोल रहा है की मुझे थेरेपिस्ट के पास जाना पड़ेगा| पर मेरे जिद्द करने पर वो कुछ सोचने लगीं और बोलीं की हफ्ते भर के लिए वो जो-जो कहें मुझे करना होगा, मेरे लिए तो थेरेपिस्ट के बजाए यही सही था| मैं तुरंत मान गया पर मुझे नहीं पता था की वो मुझसे क्या करवाने वाली हैं!

रात हुई और खाना खाने के बाद अनु ने मुझे अपने पास जमीन पर बैठने को कहा| वो मेरे पीछे कुर्सी ले कर बैठीं और मेरे दिल की अच्छे से मालिश की ताकि मुझे अच्छे से नींद आये| "बाल बड़े रखने हैं तो ठीक से बाँधा भी करो!" ये कहते हुए अनु ने मेरे बालों का bun बनाया|


बाल बहुत बड़े नहीं थे वरना और भी अच्छे लगते| खेर दवाई खा कर मैं अनु वाले कमरे में लेट गया| मैं इस वक़्त सीधा लेटा था की अनु ने झुक कर मेरे माथे को चूमा| कल की ही तरह ये Kiss मेरे पूरे शरीर को झिंझोड़ कर चला गया| "कल सुबह 6 बजे उठना है! कल से हम योग करेंगे!" ये कहते हुए अनु बिस्तर के अपने साइड सो गईं| पर रात के दो बजते ही मेरे नींद खुली और मेरे बेट में बहुत जोर से दर्द होने लगा| दर्द इतनी तेज बढ़ रहा था की ऐसा लग रहा था की मेरे प्राण अब निकले! मैं जितना हो सके उतना अपनी कराह को दबा कर सिकोड़ कर लेटा हुआ था| पर अनु को मेरे दर्द का एहसास हो ही गया और उन्होंने तुरंत कमरे की लाइट जला दी| मैं अपने घुटने अपने छाती से चिपकाए लेटा कसमसा रहा था, माथे पर ढेर सारा पसीना, जिस्म में कंपकंपाहट! मेरी हालत देख कर अनु घबरा गई और किसी तरह खुद को संभाल कर मेरे माथे पर हाथ फेरने लगी| पसीने से उनके हाथ गीले हो गए, तो वो बाहर से एक टॉवल ले आईं और मेरे चेहरे से पसीने पोछने लगी और तभी उनकी आँखों से आँसू निकलने लगे| वो खुद को लाचार महसूस कर रही थी और चाह कर भी मेरा दर्द कम नहीं कर पा रहीं थी| उनका रोना मुझसे देखा नहीं गया तो मैंने उनसे पानी माँगा, वो दौड़ कर पानी ले आईं| दो घुट पानी पिया था की मुझे उबकाई आ गई, किसी तरह से मैं अपनी उबकाई को कण्ट्रोल करता हुआ बाथरूम पहुँचा और वहाँ मैं कमोड पकड़ कर बैठ गया और जो कुछ भी पेट में अन्न था वो सब बाहर निकाल दिया| मेरे उलटी करने के दौरान अनु मेरी पीठ सहला रही थी| पेट खाली हुआ थो कंपकपी और बढ़ गई| मुझे सहारा दे कर अनु ने मुझे वापस पलंग पर लिटाया; "मैं एम्बुलेंस बुलाती हूँ!" ये कहते हुए अनु फ़ोन नंबर ढूँढने लगी|

"नहीं.... !!! सुबह तक .... wait करो प्लीज!" मैंने कांपते हुए कहा| उस समय मुझे एहसास हुआ की मैं किस कदर कमजोर हो चूका हूँ| रितिका के चक्कर में मैं मौत के मुँह में पहुँच चूका हूँ| अनु उस वक़्त बहुत ज्यादा घबराई हुई थी, वो मेरे सिरहाने बैठ गई और मेरा सर अपनी गोद में रख लिया| पूरी रात वो मेरे सर पर हाथ फेरती रहीं, जिस कारन मेरी थोड़ी आँख लगी|


तीसरा दिन


सुबह 6 बजते ही मेरी आँख खुल गई क्योंकि अनु मेरा सर धीरे से अपनी गोद से हटा रही थीं| "चाय" मैंने कांपती हुई आवाज में कहा| अनु ने तुरंत चाय बनाई, मैंने बहुत ताक़त लगाई और bedpost से टेक लगा कर बैठा| अपने हाथों को देखा तो वो काँप रहे थे| अनु कप में हकाय लाइ और एक कप को पकड़ने के लिए हम दोनों ने अपने दोनों हाथ लगाए थे| चाय अंदर गई तो जिस्म को लगा की कुछ ताक़त आई है| मैं इतना तो समझ गया था की अगर मैंने खाना नहीं खाया तो मुझे IV चढ़ाना पड़ेगा इसलिए मैंने अनु से टोस्ट खाने को मांगे| ये सुन कर उन्हें थोड़ी तसल्ली हुई की मेरी तबियत में कुछ सुधार आ रहा है| नाश्ता करते-करते दस बज गए थे, मैं खुद ही बोला की हॉस्पिटल चलते हैं| बड़ी मुश्किल से हम हॉस्पिटल पहुँचे और जब डॉक्टर ने चेक किया तो उसने कहा; "मानु की बॉडी दवाइयाँ रिजेक्ट कर रहीं हैं, मैं दवाइयाँ बदल रहा हूँ| इसके खाने का भी ध्यान रखो हल्का खाना दो, सूप दो, खिचड़ी, फ्रूट्स ये सब दो| एक बार में नहीं खाता तो थोड़ा-थोड़ा दो!"

"डॉक्टर साहब प्लीज कोई भी दवाई दो पर कल वाला हादसा फिर से ना हो!" मैंने कहा|

"दवाई चेंज की है मैंने, hopefully अब नहीं होगा|" डॉक्टर ने और दवाइयाँ लिख दीं|

"सर इस कंपकंपी का भी कुछ कर दीजिये!" माने कहा|

"इसकी कोई दवाई नहीं है, ये तुम्हारा जिस्म जिसे तुमने नशे का आदि बना दिया था वो रियेक्ट कर रहा है| इसे ठीक होने में समय लगेगा!' तभी अनु ने इशारे से थेरेपी वाली बात छेड़ी और डॉक्टर ने मेरी क्लास ले ली! "ये बताओ तुम्हें थेरेपी लेने से क्या प्रॉब्लम है?"

"सर मैं जिन बातों को भूलना चाहता हूँ वो डॉक्टर को फिर से बता कर उस दुःख को दुबारा face नहीं करना चाहता|" मैंने गंभीर होते हुए कहा|

"ये बातें फिलहाल दबीं हैं पर कभी न कभी ये बाहर आएंगी और फिर तुम्हें बहुत दर्द देंगी, फिर तुम दुबारा से पीना शुरू कर दोगे! इसलिए आज चले जाओ डॉक्टर अभी यहीं है|" डॉक्टर की बात थी तो सही पर मैं उन बातों को किसी के सामने दोहराना नहीं चाहता था और उससे बचने के लिए मैं बहाने बनाने लगा| कभी योग का बहाना करता तो कभी morning walk करने का बहाना करता| पर डॉक्टर पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा और मुझे मजबूरन थेरेपिस्ट के पास जाना पड़ा| पर मैंने भी होशियारी दिखाई और उसे ऋतू और मेरे रिश्ते की बात छोड़ कर सब बता दिया| उसे लगा की एक और आशिक़ आ गया और उसने मुझे 10 मिनट का लेक्चर दिया और कहा की मैं ज्यादा सोचूं न, जो हो चूका है उसे भूल जाऊँ, हँसी-ख़ुशी रहूँ, तबियत सुधरने के बाद एक healthy lifestyle जिऊँ और जल्दी से शादी कर लूँ| घर की जिम्मेदारियाँ पड़ेंगी तो ये सब धीरे-धीरे भूल जाऊँगा| चलो आज अनु को भी आधा सच जानने को मिल गया की आखिर हुआ क्या था!

हम घर आये तो एक बात जो मैंने नोटिस की वो थी की अनु को शादी की बात से कुछ ठेस पहुँची हो| शायद उन्हें अपनी शादी याद आ गई, खेर ये बचा हुआ दीं बहुत ही शान्ति से गुजरा| रात में वही कंपकंपी और फिर जागते हुए सुबह का इंतजार करना|


चौथा दिन


सुबह उठते ही मैंने अनु से कहा की वो मुझे योग करना सिखाये| अनु की योग में महारथ हासिल थी, उन्होंने चुन-चुन कर मुझे वो ही आसन कराये जो मेरे लिए करना आसान था| कोई भी exercise करने वाला आसन नहीं करवाया क्योंकि शरीर अभी भी बहुत कमजोर था| वो बीएस मुझे मेरी साँस पर नियंत्रण करना और फोकस करने के लिए अनु-विलोम सीखा रही थीं| योग के बाद हमने चाय पी और तभी उनका फ़ोन बज उठा| वो फ़ोन ले कर कमरे में चली गईं और मैं उठ कर बाथरूम जाने लगा की तभी मुझे इतना सुनाई दिया; "मैं अभी नहीं आ सकती, जो भी है अपने आप संभाल लो!" मैं उस टाइम कुछ नहीं बोला, नाश्ते के बाद हम बैठे थे और नौकरानी काम कर रही थी| मेरा ध्यान अब भी मेरे कांपते जिस्म पर था और मुझे अपनी इस हालत पर गुस्सा आ रहा था| "मेरी वजह से आप क्यों अपना बिज़नेस खराब कर रहे हो?" मैंने अनु की तरफ देखते हुए कहा और उन्हें समझ आ गया की मैंने उनकी बात सुन ली है|

"अभी मेरा तुम्हारे साथ रहना जर्रूरी है!"

"1-2 दिन की बात होती तो मैं कुछ नहीं कहता, पर इसे ठीक होने में बहुत टाइम लगेगा और तब तक आपका ऑफिस का काम कौन देखेगा? आप चले जाओ, मैं अपना ध्यान रखूँगा!" मैंने कहा|

"बोल दिया न नहीं!" इतने कहते हुए वो गुस्से में उठ कर चली गईं| मुझे भी इस बात पर बहुत गुस्सा आया, मैं जोश में उठा और अपने कमरे में जा कर लेट गया| मैं नहीं चाहता था की कोई मेरी वजह से किसी भी तरह का नुक्सान सही और यहाँ तो अनु के बिज़नेस की बात थी तो मैं कैसे उन्हें ये नुक्सान सहते हुए देखता| मैंने अपने गद्दे के नीचे से सिगरेट का पैक निकाला और पीने लगा| अभी दो कश ही पीये थे की अनु धड़धड़ाते हुए अंदर आईं और मेरे हाथ से सिगरेट छीन कर फेंक दी| इतना काफी था मेरे अंदर के गुस्से को बाहर निकलने के लिए; "डॉक्टर ने सिगरेट पीने से तो मना नहीं किया ना?"

"इसकी भी आदत लगानी है? Liver तो खराब कर ही लिया है अब क्या Lungs भी खराब करने हैं?" उन्होंने गुस्से में कहा|

"कुछ तो रहने दो मेरी जिंदगी में? शराब छोड़ दी अब क्या ये सिगरेट भी छोड़ दूँ? तो जियूँ किसके लिए? ये उबला हुआ खाना खाने के लिए?" मैंने गुस्से से कहा|

"सिर्फ शराब और सिगरेट के लिए ही जीना है तुम्हें?" अनु ने पुछा| मेरे पास उनकी इस बात का कोई जवाब नहीं था, तो आँसू ही सच बोलने को बाहर आ गए|

"आप क्यों अपनी लाइफ मुझ जैसे लूज़रके लिए बर्बाद कर रहे हो? आपको तक़रीबन एक हफ्ता हो गया मेरी तीमारदारी करते हुए? क्यों कर रहे हो ये सब? क्या मिलेगा आपको ये सब कर के? छोड़ दो मुझे अकेला और मरने दो!" मैंने बिलखते हुए कहा| ये था वो Nervous Breakdown जो डॉक्टर ने कहा था की होगा| क्योंकि दिमाग को अब शराब पीने के लिए बहाना चाहिए था और इस समय उसने ये बहाना बनाया की अनु की लाइफ मेरे कारन खराब हो रही है| अनु भी जानती थी की वो मुझे चाहे कितना भी प्यार से समझा ले पर मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ेगा| उन्हें मुझे जीने के लिए एक वजह देनी थी, एक ऐसी वजह जिसके लिए मैं ये लड़ाई जारी रखूँ और फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊँ| उन्हें मुझे अपनी दोस्ती का एहसास दिलाना था, पर सख्ती से ताकि मेरे दिमाग में उनकी बात घुसे!


वो मेरे गद्दे पर घुटनों के बल बैठीं और मेरे टी-शर्ट के कालर को पकड़ा और मुझे बड़े जोर से झिंझोड़ा, फिर गरजते हुए मेरी आँसुओं से लाल आँखों में देखती हुई बोलीं; "Look at me! तुम्हारी जगह मैं पड़ी होती तो क्या मुझे छोड़ कर चले जाते?..... बोलो? ..... नहीं ना?.... फिर मैं कैसे छोड़ दूँ तुम्हें?! ..... तुम्हें जीना होगा....मेरे लिए....मेरी दोस्ती के लिए..... तुम्हें ऐसे मरने नहीं दूँगी मैं! मेरी लाइफ में तुम वो अकेले इंसान हो जिसे मैंने अपना माना है और तुम मरने की बात करते हो? Now put on your big boy pants and start fighting! (मर्द बनो और इस लड़ाई को जारी रखो!)" अनु की ये बातें मेरे लिए ऐसी थीं जैसे काली गुफा में रौशनी की एक किरण, मैं धीरे-धीरे इस रौशनी की तरफ बढ़ ही रहा था की अनु ने मुझे एक बार फिर से झिंझोड़ा और पुछा; "समझे? Fight!!!!" मैंने हाँ में गर्दन हिलाई और तब जा कर उन्होंने मेरा कालर छोड़ा| कुछ टाइम तक वो मेरी तरफ प्यार से देखने लगीं जैसे मुझसे माफ़ी माँग रही हों की उन्होंने मेरे साथ सख्ती दिखाई और इधर मेरा पूरा जिस्म दहल गया था| अनु की आँखें नम हो चली थीं तो मैंने उनके आँसू पोछे और गद्दे के नीचे से सिगरेट का पैक उन्हें निकाल कर दे दिया| अनु ने वो पैक लिया और बिना कुछ बोले चली गईं और मैं दिवार से सर लगा कर बैठा रहा और अपने दिल को तसल्ली देता रहा और हिम्मत बटोरता रहा की अनु ने ने इतनी मेहनत की है मुझे ठीक करने में तो मैं इसे बर्बाद जाने नहीं दूँगा| कुछ देर बाद मैं खुद बाहर आया और देखा तो अनु किचन में खाना बना रही हैं| मैं चुप-चाप हॉल में बैठ गया की तभी उन्होंने कहा की मैं उनका लैपटॉप ऑन करूँ| मैंने वैसा ही किया और उन्होंने मुझे पासवर्ड बताया और Mail access करने को बोला| Mail में एक कंपनी का कुछ डाटा था जिसे उन्हें सॉर्ट करना था| आगे उन्हें कुछ नहीं कहना पड़ा और मैं खुद ही लग गया| इतने दिनों बाद माउस पकड़ कर बड़ा अजीब सा लग रहा था| दिक्कत ये थी की हाथ कांपने की वजह से माउस इधर-उधर क्लिक हो रहा था तो मैं उसे बड़े धीरे चला रहा था| जब टाइप करने की बारी आई तो लैपटॉप की keys ज्यादा press हो जाती| मुझे नहीं पता था की अनु मुझे इस तरह जूझते देख मुस्कुरा रही थीं| खाना बनने के बाद वो दोनों का खाना एक थाली में परोस कर लाईं| मैंने चुप-चाप लैपटॉप बंद कर दिया, थोड़ा डरा-सहमा था की कहीं अनु फिर से न डाँट दे| पर नहीं इस बार उन्होंने मुझे अपने हाथ से खाना खिलाना शुरू कर दिया| मुझे खिलने के बाद उन्होंने भी वही बेस्वाद खाना खाया| "आप क्यों ये खाना खा रहे हो? आप बीमार थोड़े हो?" मैंने कहा| "बहुत मोटी हो गई हूँ मैं, इसी बहाने मैं भी थोड़ा वजन कम कर लूँगी|" उन्होंने मजाक करते हुए कहा|

"कौन से Beauty Pageant में हिस्सा ले रहे हो?" मैंने उनका बहाना पकड़ते हुए कहा| "आप पहले ही मेरा इतना 'ख्याल' रख रहे हो ऊपर से ये बेस्वाद खाना भी खा रहे हो! प्लीज ऐसा मत करो!" मैंने रिक्वेस्ट करते हुए कहा|

"दो बार खाना मुझसे नहीं बनता!" अनु ने फिर से बहाना मारा|

"कोई दो बार खाना नहीं बनाना, दाल में तड़का लगाने से पहले मेरे लिए निकाल दो और तड़के वाली आप खा लो|" मैंने उन्हें solution दिया पर वो कहाँ मानने वाली थीं तो मुझे बात घुमा कर कहनी पड़ी; "ok! ऐसा करो मेरे मुंह का स्वाद बदलने के लिए मुझे 1-2 चम्मच तड़के वाली दाल दे दो| फिर तो ठीक है? इतने से खाने से कुछ नहीं होगा!" बड़ी मुश्किल से वो मानी|

खेर खाना हुआ और उसके बाद हमने लैपटॉप पर ही एक मूवी देखि, मूवी देखते-देखते अनु सो गई| शाम को मैंने चाय बनाई और बड़ी मुश्किल से बनाई क्योंकि हाथ कांपते थे! रात को खाने के बाद मैंने फिर से बात शुरू की; "आप मेरे लिए इतना कर रहे हो की मेरे पास आपको शुक्रिया कहने को भी शब्द नहीं हैं|"

"लगता है सुबह वाली डाँट से अक्ल ठिकाने नहीं आई तुम्हारी?" उन्होंने फिर से चेहरे पर गुस्सा लाते हुए कहा|

"आ गई बाबा! पर एक बार बात तो सुन लो! काम ही पूजा होती है ना? तो आपका यूँ ऑफिस के काम ना करना ठीक है?" मैंने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा|

"ठीक है...तुम्हें मेरे काम की इतनी ही चिंता है तो चलो मेरे साथ बैंगलोर! तुम मुझे वहाँ Join कर लो as an employee नहीं बल्कि as a business partner!" ये सुनते ही मैं चौंक गया?

"Business Partner? कैसे? ...impossible!"

"क्यों Impossible? तुम काम इतने अच्छे से जानते हो, वो Project याद है ना? वो सब तुम ने ही तो संभाला था| इस वक़्त मेरी टीम में बस दो ही लोग हैं और हम दोनों आसानी से काम कर सकते हैं|"

"पर Business Partner क्यों? Employee क्यों नहीं? मैंने पुछा|

"हेल्लो सैलरी कौन देगा? पहले ही दो लोगों को सैलरी देनी पद रही है ऊपर से तुम्हें तो सबसे ज्यादा सैलरी देनी पड़ेगी आखिर सबसे experienced हो तुम!" अनु ने हँसते हुए कहा|

"अच्छा? यार आप तो बड़े calculative निकले!" मैंने हँसते हुए कहा|

"Business संभालती हूँ तो इतना तो सीख गई हूँ, वैसे भी हम दोनों दोस्त हैं और ऑफिस में वो Employer - Employee का ड्रामा मुझसे नहीं होगा!" आखिर सच उनके मुँह से बाहर आ ही गया|

"Okay .... New York से आने के बाद मैं वहीं शिफ्ट हो जाऊँगा|" ये सुनते ही अनु खामोश हो गई|

"नहीं...हम New York नहीं जा रहे... अभी तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है!"

"हेल्लो...मैडम मुझे नहीं पता .... अगर New York नहीं जाना तो मैं कहीं नहीं जा रहा|" मैंने रूठते हुए कहा|

"But तुम्हारी तबियत...." अनु ने चिंता जताते हुए कहा पर मैंने उनकी बात काट दी;

"Come on यार! ऐसी opportunity कोई छोड़ता है क्या? हमारे पास अभी काफी टाइम है and I promise मैं ठीक हो जाऊँगा| मुझे भी थोड़ा change चाहिए! प्लीज....प्लीज...प्लीज..." मेरा जबरदस्ती करने का कारन था की अनु ये golden opportunity waste करे| अगर मैं उन्हें ना मिला होता तो वो ये opportunity कभी miss नहीं करती, आखिर वो मान ही गईं और तुरंत Laptop से एक mail कर दिया|

अगली सुबह से मेरे अंदर बहुत से बदलाव आने लगे, जितनी भी नकारात्मकता थी वो सब अनु की care के कारन निकल चुकी थी और मेरी जिंदगी की नै शुरुआत हो चुकी थी| अब मैंने रोज सुबह समय पर उठना, योग करना और फिर अनु के साथ morning walk करना शुरू कर दिया था| खाने में मैं वही उबला हुआ खाना खा रहा था और साथ में फ्रूट्स और sprouts वगैरह खाने लगा था| अनु के ऑफिस का सारा काम मैंने laptop से करना शुरू कर दिया था| अनु का काम बस खाना बनाना और मुझे दवाई देने तक ही रह गया था| हाथ-पैर अब भी कांपते थे पर पहले जितने नहीं! कुछ दिन बाद अरुण और सिद्धर्थ मुझसे मिलने आये और अनु को वहाँ देख कर दोनों थोड़ा हैरान थे और शक करने लगे थे की हम दोनों का कुछ चल तो नहीं रहा पर मैंने उन्हें अनु की चोरी से सब सच बता दिया| वो खुश थे की मेरी सेहत में दिन पर दिन सुधार आ रहा था और दोनों ने अनु को बहुत-बहुत शुक्रिया किया| दिन कैसे गुजरे पता ही नहीं चला और 15 तरीक आ गई| इन बीते दिनों में घर से बहुत से फ़ोन आये और मुझे बहुत सी गालियाँ भी पड़ीं क्योंकि लगभग 3 महीने हो गए थे मुझे घर अपनी शक्ल दिखाए और ऊपर से शादी भी थी जिसके लिए मैंने एक ढेले का काम नहीं किया था| 16 तरीक को आने का वादा कर के मैं जाने को तैयार हुआ तो अनु ने कहा की वो भी साथ चलेंगी, पर उन्हें साथ ले जाना मतलब बवाल होना! इसलिए मैंने उन्हें समझाते हुए कहा; "बस एक दिन की बात है, मैं बस घर जा कर New York जाने की बात कर के अगले दिन आ जाऊँगा|" पर उन्हें चिंता ये थी की अगर वहाँ जा कर मैंने फिर से पी ली तो? "I Promise मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा!" बड़ी मुश्किल से उन्हें समझा-बुझा कर मैं निकला पर अंदर ही अंदर रितिका की शक्ल देखने से दिल में टीस उठना और फिर खुद को फिर से गिरा देने का डर लग रहा था| पर कब तक मैं इसी तरह डरूँगा ये सोच कर दिल मज़बूत किया और बस में बैठ गया|
 
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बस में बैठा ही था की अनु का फ़ोन आ गया, ये कॉल उन्होंने मेरा हाल-चाल पूछने को किया था| "यार अभी तो निकला हूँ, बस में बैठा हूँ....आप चिंता मत करो!" पर उन्होंने मेरी एक ना सुनी और अगले 4 घंटे तक हम बात करते रहे| उनके पास जैसे बात करने के लिए आज सब कुछ था| जब और कुछ नहीं मिला तो उन्होंने Web सीरीज की ही बात छेड़ दी और मैं भी उनसे इस मुद्दे पर बड़े चाव से बात करने लगा| जैसे ही ग्यारह बजे तो मुझे नाश्ता करने को कहा, रास्ते के लिए उन्होंने थोड़ा नाश्ता बाँधा था वो मैंने खाया और मेरे साथ-साथ उन्होंने भी फ़ोन पर बात करते हुए खाया| जब बस एक जगह हॉल्ट पर रुकी तो मैंने केले खरीदे ताकि बाहर का खाने की बजाए फ्रूट्स खाऊँ| आखिर एक बजे मैं बस से उतरा और घर की तरफ चल दिया| मेरी दाढ़ी बढ़ी हुई, बालों का bun बना हुआ और दोनों हाथ जीन्स में घुसेड़ कर मैं बात करता हुआ चलता रहा| हाथ जीन्स की जेब में डालने का करण ये था की मैं अपने हाथों की कंपकंपी छुपा सकूँ, वरना घर वाले सब चिंता करते और मुझे वापस नहीं जाने देते|

अगर अनु ने फ़ोन कर के मुझे बातों में व्यस्त ना रखा होता तो घर की तरफ बढ़ते हुए मेरे मन में फिर वही दुखभरे ख्याल आने शुरू हो जाते| घर से दस कदम की दूरी पर मैंने उन्हें ये कह दिया की घर आ गया मैं आपको थोड़ी देर में कॉल करता हूँ| कॉल काटते ही मेरे अंदर गुस्सा भरने लगा, मैं मन ही मन मना रहा था की रितिका मेरे सामने ना आये वरना पता नहीं मेरे मुँह से क्या निकलेगा| शुक्र है की घर का दरवाजा खुला था, माँ और ताई जी आंगन में बैठीं थीं| घर दुबारा रंगा जा चूका था, टेंट वगैरह का समान घर के बाहर और आंगन में पड़ा था, देख कर साफ पता चलता था की ये शादी वाला घर है| जैसे ही माँ और ताई जी ने मुझे देखा तो दस सेकंड तक वो दोनों मुझे पहचानने की कोशिश में लगी रहीं| जब उन्हें तसल्ली हुई तो ताई जी ने डांटते हुए पुछा; "ये क्या हालत बना रखी है? बाबा-वाबा बन गया है क्या?" मैं कुछ कहता उसके पहले ही माँ भी बरस पड़ी; "सूख कर काँटा हुआ है, इतना भी क्या काम में व्यस्त रहता है की खाने-पीने का ध्यान नहीं रहता?"

"बीमार हो गया था!" मैंने बस इतना ही कहा क्योंकि मैं जो सोच रहा था उसके विपरीत मेरे साथ हो रहा था| मुझे लगा था मेरी ये हालत देख कर वो रोयेंगे, चिंता करेंगे पर यहाँ तो मुझे और डाँटा जा रहा है! माना मैंने इतने महीने घर न आने की गलती की पर मेरी ये हालत देख कर तो माँ का दिल पसीज जाना चाहिए था! "माँ, पिताजी और ताऊ जी कहाँ हैं?" मैंने पुछा|

"तुझसे तो शादी के काम करने के लिए छुट्टी ली नहीं जाती तो अब किसी को तो काम करना होगा ना? वो तो शुक्र है की रितिका को तू घर छोड़ गया था वरना चूल्हा-चौका भी हमें फूँकना पड़ता! न्योता बाँटने गए हैं, कल आएंगे!" माँ के मुँह से रितिका का नाम सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं पाँव पटकता हुआ ऊपर पाने कमरे में चला गया| मेरे पास एक पिट्ठू बैग था जिसे मैंने अपने बिस्तर पर रखा और मैं धुप में छत की तरफ जा रहा था की तभी अनु का फ़ोन आ गया; "बात हो गई?"

"नहीं.... ताऊ जी और पिताजी घर से बाहर गए हैं! कल आएंगे उनसे बात कर के कल आ जाऊँगा|" मैंने मुंडेर पर बैठते हुए कहा|

"किसी से लड़ाई मत करना, आराम से बात करना और अगर जाने से मना करें तो कोई बात नहीं!" अनु ने प्यार से मुझे समझाते हुए कहा| मैंने उन्हें जान बुझ कर अभी जो हुआ उस बारे में नहीं बताया क्योंकि मैं उम्मीद कर रहा था की शायद ताऊ जी का दिल जर्रूर पसीज जाएगा| अभी मैं बात कर ही रहा था की रितिका मुझे मेरी तरफ आती हुई दिखाई दी, मैंने गुस्से से उसे देखा और हाथ के इशारे से वापस लौट जाने को कहा पर वो नहीं मानी और मेरी तरफ आती गई| "मैं आपको थोड़ी देर में कॉल करता हूँ!" इतना कह कर मैंने कॉल काटा|

"ये क्या हालत बना रखी है आपने?" ऋतू ने चिंता जताने का नाटक करते हुए कहा| शुरू से ही वो कभी इस तरह का नाटक नहीं कर पाई तो अब क्या कर पाती|

"ज्यादा नाटक मत चोद! मेरी इतनी ही फ़िक्र होती तो मुझे यूँ छोड़ नहीं देती!" मैंने उसे झाड़ते हुए कहा| पर उसके पर निकल आये थे इसलिए वो भी मेरे ऊपर बरसने लगी;

"अगर अपनी लाइफ के बारे में सोच कर एक डिसिशन लिया तो क्या गलत किया? तुम मुझे कभी स्टेबिलिटी नहीं दे सकते थे, राहुल दे सकता है!" आज उसने पहली बार मुझे आप की जगह 'तुम' कहा था और उसका ये कहना था की मेरा गुस्सा उबल पड़ा;

"तुझे पहले दिन से ही पता था की हमारे रिलेशनशिप में कितना खतरा है पर तब तो तुझे सिर्फ प्यार चाहिए था मुझसे?! अगर तूने मुझे ये बहाना दे कर छोड़ा होता और फिर घरवालों की मर्जी से शादी आकृति तो शायद कम खून जलता मेरा पर तूने मुझे सिर्फ और सिर्फ इसलिए छोड़ा क्योंकि तुझे एक अमीर घर का लड़का मिल गया जो तुझे दुनिया भर के ऐशों-आराम दे सकता है! तूने मुझे धोका सिर्फ और सिर्फ पैसों के लिए दिया है!" ये सच सुन कर वो चुप हो गई और सर झुका कर खड़े हो गई|

"अब बोल क्या लेने आई थी यहाँ?" मैंने गुस्से में पुछा|

मेरा गुस्सा देख उसका बुरा हाल था, फिर भी हिम्मत करते हुए वो बोली; "आप ...शादी तर प्लीज मत रुकना...कॉलेज से राहुल के दोस्त आएंगे और वो आपको देखेंगे तो....." रितिका ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी|

"मुझे यहाँ देख कर वो कहेंगे की ये तो चाचा-भतीजी हैं और कॉलेज में तो Lovers बन कर घुमते थे! Hawwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww" मैंने ऋतू को टोंट मारते हुए कहा| "ओह! तूने उसे मेरे बारे में कुछ नहीं बताया ना?" मैंने रितिका का मजाक उड़ाते हुए कहा|
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"अगर चाहूँ तो मुझे मिनट नहीं लगेगा सब सच बोलने में और फिर वो खेत में खड़ा पेड़ दिख रहा है ना?!" मैंने उस पेड़ की तरफ ऊँगली करते हुए उसे फिर ताना मारा| "पर मैं तेरी तरह गिरा हुआ इंसान नहीं हूँ! तुझे क्या लगा मैं यहाँ तेरी शादी में 'चन्ना मेरेया' गाने आया हूँ?!" इतना कह कर मैं नीचे जाने को पलटा तो रितिका को यक़ीन हो गया की मैं उसकी शादी में शरीक नहीं हूँगा और उसने मुझे; "थैंक यू" कहा पर मेरे मन में तो उसके लिए सिर्फ नफरत थी जो गाली के रूप में बाहर आ ही गई; "FUCK OFF!!!" इतना कह कर मैं नीचे आ गया|

मैंने रितिका को अनु के बारे में कुछ नहीं बताया, क्यों नहीं बताया ये मैं नहीं जानता| शायद इसलिए की उसे ये जानकर जलन और दुःख होगा या फिर शायद इसलिए की कल को वो सबसे मेरे और अनु के बारे में कुछ न कह दे, या फिर इसलिए की उसका गंदा दिमाग इस सब का गंदा ही मतलब निकालता और फिर मेरा गुस्सा उस पर फूट ही पड़ता|!



मैं नीचे आया तो सब मुझे ही देख रहे थे क्योकि छत पर जब मेरी आवाज ऊँची हुई तो वो सब ने सुनी थी पर मैं कहा क्या ये वो सुन नहीं पाए थे! उनके लिए तो मैं रितिका को झाड़ रहा था| भाभी ने कहा की मैं खाना खा लूँ पर मैं बिना खाये ही बाहर चल दिया| भूख तो लगी थी पर मन अब घर में रहने को नहीं कर रहा था| मैं ने बाहर से फ्रूट चाट खाया और अनु को फ़ोन किया| उसे मैंने जरा भी भनक नहीं होने दी की अभी क्या हुआ! बात करते-करते मैं एक बगीचे में बैठ गया, कुछ देर बाद मुझे संकेत मिला और मेरी हालत देख कर वो समझ गया की लौंडा इश्कबाजी में दिल तुड़वा चूका है! उसने मुझसे लड़की के बारे में बहुत पुछा और मैं उसे टालता रहा ये कह कर की उस बेवफा को क्या याद करना! खेर मैं शाम को घर आया तो किसी ने मुझसे कोई बात नहीं की, चाय पी और आंगन में लेटा रहा| तभी वहाँ चन्दर आ गया और मुझे तना मारते हुए बोला; "मिल गई छुट्टी?" मैं एकदम से उठ बैठा और उसे सुनाते हुए कहा; "मुझे तो छुट्टी नहीं मिली पर तेरी तो बेटी की शादी है तूने कौन से झंडे गाड़ दिए?! अभी भी तो कहीं से पी कर ही रहा है!" वो कुछ बोलने को आया पर ताई जी को देख कर चुप हो गया| वो चुप-चाप अपने कमरे में घुसा और भाभी को आवाज दे कर अंदर बुलाया|
रात के खाने के समय ताई जी ने फिर मुझे बात सुनाने के लिए बोली; "भाई क्या जमाना आ गया है, चाचा की शादी हुई नहीं और हमें भतीजी की शादी करनी पड़ रही है!"

"दीदी क्या करें, बाहर जा कर इसके पर निकल आये हैं, तो ये हमारी क्यों सुनेगा?!" माँ ने कहा| मैंने चुप-चाप खाना खाया और अपने कमरे में आ गया| सर्दी शुरू हो चुकी थी इसलिए मैं दरवाजा भेड़ कर लेटा था की भाभी हाथ में दूध का गिलास ले कर आईं| आते ही उन्होंने शाल उतार कर रख दी, उन्होंने साडी कुछ इस तरह पहनी थी की उनका एक स्तन उभर कर दिख रहा था| ब्लाउज के दो हुक खोल कर वो मुझे अपना क्लीवेज दिखते हुए गिलास रखने लगीं| फिर मेरी तरफ अपनी गांड कर के वो नीचे झुकीं और कुछ उठाने का नाटक करने लगी| पर मेरा दिमाग तो उनकी सौतेली बेटी के कारन पहले से ही आउट था! मैं एक दम से उठ बैठा और उनका हाथ पकड़ कर अपने पास खींच कर बिठाया| भाभी के चेहरे पर बड़ी कातिल मुस्कान थी, वो सोच रहीं थी की आज उन्हें मेरा लंड मिल ही जायेगा जिसके लिए वो इतना तड़पी हैं!


"क्यों करते हो ये सब?" मैंने उन्हें थोड़ा डाँटते हुए कहा|

"मैंने क्या किया?" भाभी ने अपनी जान बचाने के लिए कहा|

"ये जो अपने जिस्म की नुमाइश कर के मुझे लुभाने की कोशिश करते रहते हो!" मैंने भाभी के ब्लाउज के खुले हुए हुक की तरफ ऊँगली करते हुए कहा| ये सुन कर उनकी शर्म से आँखें झुक गई;

"बोलो भाभी? क्यों करते हो आप? आपको लगता है की इस सबसे मैं पिघल जाऊँगा और आपके साथ सेक्स करूँगा?!" अब भाभी की आँख से आँसू का एक कतरा उनकी साडी पर गिरा| ये देख कर मैं पिघल गया और समझ गया की बात कुछ और है जो भाभी मुझे बता नहीं रही;

"मुझे अपना देवर नहीं दोस्त समझो और बताओ की बात क्या है? क्यों आपको ये जिल्लत भरी हरकत करनी पड़ती है?" ये सुन कर भाभी एकदम से बिफर पड़ीं और रोने लगी, रोते-रोते उन्होंने सारी बात कही; "तुम जानते हो न अपने भैया को? बताओ मुझे और कुछ कहने की जर्रूरत है? इतने साल हो गए शादी को और मैं आज तक माँ बन नहीं पाई, बताओ क्यों? सारा दिन नशा कर-कर अपना सारा किस्म खराब कर लिया तो ऐसे में मैं क्या करूँ? कहीं बाहर इसलिए नहीं जाती की पिछली बार की तरह बदनामी हुई तो ये सब मुझे मौत के घाट उतार देंगे! इसलिए मैंने तुम्हारी तरफ आस से देखना शुरू किया! तुम्हारी तरफ एक अजीब सा खिचाव महसूस होता था| तुम्हें बचपन से बड़े होते देखा है, भले ही अब माँ बनने की उम्र नहीं मेरी कम से कम तुम्हें एक बार पा लूँ तो दिल को सकून मिले!"

“भाभी जो आपके साथ हुआ वो बहुत गलत है पर ये सब करना इसका इलाज तो नहीं? आप डाइवोर्स ले लो और दूसरी शादी कर लो!" मैंने भाभी को दिलासा देते हुए कहा|

"नहीं मानु! ये मेरी दूसरी शादी है और अब तीसरी शादी करना या करवाना मेरे परिवार के बस की बात नहीं! मेरे लिए तो तुम ही एक आखरी उम्मीद हो, रहम खाओ मुझ पर! तुम्हारा क्या चला जायेगा अगर मुझे दो पल की खुशियाँ मिल जायनेंगी?!" उन्होंने फिर रोते हुए कहा|

"नहीं भाभी मैं ये सब नहीं कर सकता!" मैंने उनसे दूर होते हुए कहा|

"क्यों?" भाभी ने अपने आँसू पोछते हुए कहा|

"क्योंकि मैं आपसे प्यार नहीं करता!"

"तो थोड़ी देर के लिए कर लो!" उन्होंने मिन्नत करते हुए कहा|

"नहीं भाभी ....मेरे साथ जबरदस्ती मत करो!"

"एक बार मानु! बस एक बार...."

"भाभी प्लीज चले जाओ!" मैंने उन्हें थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा क्योंकि उनकी आँखों में मुझे वासना नजर आ रही थी| भाभी की बातों से उनका दर्द मैं समझ सकता था पर एक उलझन थी, उन्हें बच्चा चाहिए या फिर अपने तन की आग मिटानी है| मेरा उनके साथ कुछ भी करना बहुत गलत होता इसलिए मैंने उनके साथ कुछ नहीं किया| भाभी उठ के जाने लगी तो मैंने कहा; "भाभी.... ताई जी से कहो की चन्दर को नशा मुक्ति केंद्र भेजे, थोड़ी तकलीफ होगी पर वो धीरे-धीरे सम्भल जायेगा| फिर हो सकता है की आपके रिश्ते उसके साथ सुधर जाएँ और प्लीज किसी और के साथ कुछ गलत करने की सोचना भी मत| आपकी इज्जत का बहुत मोल है, सिर्फ आपके लिए ही नहीं बल्कि इस घर के लिए भी| मैं भी दुआ करूँगा की आप को अपने पति से वो प्यार मिले जिस पर आपका हक़ है|" भाभी ने पहले हाथ जोड़ कर मूक माफ़ी माँगी और फिर हाँ में सर हिलाया और वो चली गईं| उनके जाने के बाद मुझे खुद पर गर्व हुआ क्योंकि मैं आज चाहता तो गलत रास्ते पर जा सकता था पर मैंने ऐसा नहीं किया, मैं लेट गया और चन्दर के बारे में सोचने लगा|

चन्दर बचपन से ही गलत संगत में रहा, पढ़ाई-लिखाई में उसका मन नहीं था क्योंकि वो जानता था की आगे उसे जमींदारी का काम संभालना है| उसे सुधरने के लिए घरवालों ने उसकी शादी जल्दी करा दी, ये सोच कर की वो सुधर जायेगा और वो कुछ सुधरा भी| पर फिर भाभी को वो प्यार नहीं दे पाया जो उसे देना चाहिए था| दिन भर खेत के मजदूरों के साथ गांजा फूकना शुरू किया तो भाभी पर से उसका ध्यान हटता रहा| फिर भाभी पेट से हुई, घर वाले लड़के की उम्मीद करने लगे और जब लड़की पैदा हुई तो सब ने उन्हें ही दोषी मान लिया| अब ऐसे में उन्हें खेत में काम करने वाले एक लड़के से प्यार हुआ और फिर वो काण्ड हुआ! उस काण्ड के बाद चन्दर के दोस्तों ने उसका बड़ा मजाक उड़ाया और इसी के चलते उसकी शादी फिर से करा दी| नई वाली भाभी का पति गौना होने से पहले ही मर गया था तो उनके लिए तो ये अच्छा मौका था पर उन्हें क्या पता की उन्हें एक चरसी के गले बाँधा जा रहा है, पता नहीं उसने नई भाभी को कितना प्यार दिया, या दिया भी की नहीं! बचपन से ही उसे इतने छूट दी गई थी जिसके कारन वो ऐसा हो गया| मेरे पैदा होने के बाद ना चाहते हुए भी घर में उसका और मेरा comparison शुरू हो गया और शायद इसी के चलते उसने किसी की परवाह नहीं की| खेतों में जाना छोड़ दिया, जो काम मेरे पिताजी को संभालना पड़ा| शहर वो सिर्फ और सिर्फ एक ख़ास 'माल' लेने जाता था, इस बहाने अगर किसी ने उसे कोई काम दे दिया तो वो करता या कई बार वो भी नहीं करता| ताऊ जी और पिताजी मजबूरी में सारा काम सँभालते थे क्योंकि उन्हें चन्दर से अब कोई उम्मीद नहीं थी|



यही सब सोचते-सोचते सुबह हुई और मैं जल्दी से उठ गया, छत पर योग किया और वॉक के लिए बाहर निकल गया| मेरे वापस आने तक पिताजी और ताऊ जी भी आ चुके थे|

ताऊ जी: ये क्या हालत बना रखी है अपनी?

उन्होंने भी सब की तरह वही सवाल दोहराया|

मैं: जी बीमार हो गया था|

पिताजी: तो यहाँ नहीं आ सकता था? फ़ोन कर देता हम लेने आ जाते? यहाँ तेरी देखभाल अच्छे से होती|

मैं: आप सब को शादी-ब्याह की तैयारी करनी थी ऐसे में मुझे अपनी तीमारदारी करवाना सही नहीं लगा| अभी मैं ठीक हूँ|

पिताजी: बहुत अक्ल आ गई तुझ में? ये कुछ पत्रियाँ हैं इन्हें आज बाँट आ और वापसी में टेंट वाले को बोलता आइओ की वो कल आजाये|

पिताजी ने मुझे शादी का काम पकड़ा दिया जो मैं कर नहीं सकता था क्योंकि उस घर में हर एक क्षण मुझे सिर्फ और सिर्फ दर्द दे रहा था|

मैं: पिताजी ....आप सब से कुछ बात करनी है|

ताऊ जी: बोल? (उखड़ी हुई आवाज में)

मैं: मुझे एक प्रोजेक्ट मिला है जिसके लिए मुझे अमेरिका जाना है और फिर उसी कंपनी ने मुझे बैंगलोर में जॉब भी ऑफर की है|

मेरा इतना कहना था की ताऊ जी ने एक झन्नाटे दर तमाचा मेरे दे मारा|

ताऊ जी: चुप चाप ब्याह के कामों में हाथ बँटा, कोई नहीं जाना तूने अमेरिका!

मैं: ताऊ जी ये मेरी लाइफ का सवाल है!

पिताजी: भाई साहब ने कहा वो सुनाई नहीं दे रहा तुझे? कहीं नहीं जायेगा तू! जितना उड़ना था उतना उड़ लिया तू, अब घर बैठ!

मैं: पिताजी विदेश जाने का मौका सब को नहीं मिलता, मुझे मिला है और मैं इसे गंवाना नहीं चाहता| (मैंने थोड़ा सख्ती दिखते हुए कहा|)

ताऊ जी: तुझे विदेश जाना है ना, तू शादी कर मैं भेजता हूँ तुझे विदेश!

मैं: ताऊ जी आपको पता है की एक तरफ की टिकट कितने की है? 90,000/- रूपए है! दो लोगों का आना-जाना 4 लाख रूपए! वहाँ रहना-खाना अलग! एक ट्रिप के लिए सब कुछ बेचना पड़ जायेगा आपको!

ताई जी: तुझे शर्म नहीं आती जुबान लड़ाते?

ताऊ जी: नहीं ...नहीं...नहीं...बात कुछ और है! ये विदेश जाना इसका बहाना है, असल बात कुछ और है?

ताऊ जी कुछ-कुछ समझने लगे थे पर मुझे तो उनसे सच छुपाना था इसलिए मैं बस इसी बात को पकड़ कर बैठ गया|

मैं: नहीं ताऊ जी, मैं आपसे सच कह रहा हूँ| ये देखिये....

ये कहते हुए मैंने उन्हें फ़ोन में ई-मेल दिखाई जो उनके समझ तो आनी नहीं थी, इसलिए मैंने ऋतू को इशारे से बुलाया और उसे पढ़ने को कहा| उसने साड़ी मेल पढ़ी और ये भी की वो मेल अनु ने भेजा है|

रितिका: जी दादा जी|

पिताजी: चल एक पल को मान लेता हूँ पर तू कुछ दिन रुक कर भी जा सकता है ना? रितिका क्या तारिख लिखी है इसमें?

रितिका: जी 29 तरीक!

ताऊ जी: अब बोल?

मैं: (एक गहरी साँस लेते हुए) आपको सच सुनना ही है तो सुनिए, में इस शादी से ना खुश हूँ! इस Idiot को पढ़ाने के लिए मैंने क्या-क्या पापड़ नहीं बेले! वो पंडित याद है ना आपको जिसे आपने इसके दसवीं के रिजल्ट वाले दिन बुलाया था, उसे मैंने पूरे 5,000/- रुपये खिलाये थे ताकि वो आपके सामने झूठ बोले की इसके ग्रहों में दोष है, वरना आप तो इसकी शादी तब ही करा देते! और ये वहाँ शहर में उस मंत्री के लड़के से इश्क़ लड़ा रही थी! आप सब को पता है न उस मंत्री के बारे में की उसने क्या किया था? यही सब करने के लिए इसे शहर भेजा था आपने? शादी के बाद तो अब इसे वो मंत्री पढ़ने नहीं देगा!

मैंने जानबूझ कर रीतिका को बलि का बकरा बनाया, इधर मेरी बात सुन ऋतू का सर शर्म से झुक गया क्योंकि मैंने जो कहा था वो सच ही था! वहीं मेरे मुँह से ये सुनते ही ताऊ जी ने अपना सर पकड़ लिया और पिताजी समेत बाकी सभी लोग मुझे देखने लगे|

ताई जी: तो इसी लिए तो कल रितिका पर बरस रहा था, हमने कितना पुछा पर वो कुछ नहीं बोली बस रोती रही!

वो आगे कुछ और बोलतीं पर ताऊ जी ने हाथ दिखा कर उन्हें चुप करा दिया और खुद बोले;

ताऊ जी: तूने हम लोगों से दगा किया?

मैं: दगा कैसा? आप सब को प्यार से जब समझाया की इसे आगे पढ़ने दो तब आप सब ने मुझे ही झाड़ दिया तो मुझे मजबूरन ये करना पड़ा| मुझे क्या पता था की शहर जा कर इसे हवा लग जायेगी और ये ऐसे गुल खिलाएगी?!

पिताजी: कुत्ते! (पिताजी ने मुझे जीवन में पहली बार गाली दी|)

मैं: आप सब को मैं ही गलत लग रहा हूँ? इसकी कोई गलती नहीं? दो साल पहले तक तो आप सब इसे छोटी सी बात पर झिड़क दिया करते थे और आज अचानक इतना प्यार क्यों?

ताई जी: इसकी हिमायत इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इसके कारन हमें इतने बड़े खानदान से नाम जोड़ने का मौका मिल रहा है| समाज में हमें वो समान वापस मिलने वाला है जो इसकी माँ के कारन छीन गया था| तूने ऐसा कौन सा काम किया है?

मैं: ताई जी आपको बस घर के मान सम्मान की पड़ी है? कल से आया हूँ आप में से किसी ने भी ये पुछा की मेरी तबियत कैसी है? मुझे आखिर क्या बिमारी हुई थी? दो पल किसी ने प्यार से पुचकारा मुझे? ऐसा कौन सा जादू चला दिया इसने यहाँ रह कर?

ताऊ जी: बस कर! मैं तुझसे बस एक आखरी बार पूछूँगा, तू यहाँ रह कर शादी में शरीक होगा या फिर तुझे विदेश जाना है?

मैं: मैं विदेश जाना चाहता हूँ|

ताऊ जी: ठीक है, अपना सामान उठा और निकल जा मेरे घर से! दुबारा यहाँ कभी पेअर मत रखिओ, मैं तुझे जायदाद से भी बेदखल करता हूँ|

ताऊ जी का फैसला सुन कर मुझे लगा की मेरे माँ-बाप रोयेंगे या मुझे समझायेंगे पर पिताजी ने गरजते हुए कहा;

पिताजी: सामान उठा और निकल जा!

मैं आँखों में आँसू लिए ऊपर अपना बैग लेने चल दिया| बैग ले कर आया और एक-एक कर सबके पेअर छुए पर किसी ने एक शब्द नहीं कहा| जब पिताजी के पाँव छूने आया तो उन्होंने मुझे दकके मारते हुए घर से निकाल दिया और दरवाजे मेरे मुँह पर बंद कर दिए| मैं अपने आँसू पोछते हुए चल दिया, आज मन बहुत दुखी था और खून के आँसू रो रहा था और इस सब का जिम्मेदार अगर कोई था तो वो थी रितिका! ना वो मेरी जिंदगी में जबरदस्त घुस आती और तबाही मचा कर मेरा हँसता-खेलता जीवन उजाड़ती! बस स्टैंड पर पहुँचने से पहले मुझे संकेत मिला और मैंने उससे मदद मांगते हुए कहा; "यार एक मदद कर दे! देख मुझे कुछ जर्रूरी काम से जाना पड़ रहा है तू प्लीज शादी के काम संभाल लिओ!" उस मिनट नहीं लगा कहने में की चिंता मत कर पर वो समझ गया की बात कुछ और है| पर मैंने उसे कहा की मैं बाद में बता दूंगा, फिलहाल वो मेरे घर में होने वाले कार्यक्रम को संभाल ले! उसकी यहाँ बहुत जान-पहचान थी और मैं जानता था की वो आसानी से सारा काम संभाल लेगा| मैं बस में बैठ कर वापस लौटा, घर आते-आते 2 बज गए थे और जैसे ही बैल बजी तो अनु ने ख़ुशी-ख़ुशी दरवाजा खोला| पर जब मेरी आँसुओं से लाल आँखें देखीं तो वो सब समझ गई और एकदम से मेरे गले लग गई और रो पड़ी| मैंने उसके सर पर हाथ फेरा और हम घर के अंदर आये| मैंने रितिका की शादी की बात छोड़ कर उसे सब बता दिया और वो भी बहुत दुखी हुई और कहने लगी की मैंने क्यों जबरदस्ती अमेरिका जाने की जिद्द की!

"वहाँ अब मेरी कोई जर्रूरत नहीं थी, मुझे अपनी जिंदगी में अब आगे बढ़ना है और वो सब मुझे अब भी इसी तरह बाँध के रखना चाहते हैं| मैं उड़ना चाहता हूँ पर उनकी सोच अब भी शादी पर अटकी हुई है! दो पल के लिए प्यार से बात कर के समझाते तो शायद मैं जाने से मना भी कर देता पर सब को मुझ पर सिर्फ गुस्सा ही आ रहा था| कल से किसी ने ये तक नहीं पुछा की मुझे बिमारी क्या हुई थी? मेरी अपनी माँ तक ने मेरा हाल-चाल नहीं लिया| तो अब क्या उम्मीद करूँ? अब या तो उनके हिसाब से चलो और जो वो कहें वो करो तो सब ठीक है पर जहाँ अपनी मर्जी चलानी चाही तो मुझे घर से निकाल दिया| मेरे अपने पिताजी ने मुझे धक्के मार कर घर से निकाल दिया|" ये कहते हुए मेरी आँखें फिर नम हो गईं| अनु ने आगे बढ़ कर मेरे आँसू पोछे और मुझे अपने सीने से लगा कर पुचकारा|
 
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अपने ही माँ-बाप के द्वारा दुत्कारे जाने से मैं बहुत उदास था, पर इसमें उनका कोई दोष नहीं था, दोष था तो उस रितिका का!

खेर दोपहर का समय था पर खाने का जरा भी मन नहीं था| मन तो अनु का भी नहीं था पर वो जानती थी की खाना खा के मुझे दवाई लेनी है, पहले ही मैं सुबह घर से भूखे पेट निकला जा चूका था| उन्होंने जबरदस्ती खाना परोसा और प्लेट मेरे सामने रख दी| मैंने ना में गर्दन हिला कर मना किया पर वो नहीं मानी, अपने हाथों से एक कौर मेरे होठों के सामने ले आईं| मेरा मन नहीं हुआ की मैं उनका दिल तोड़ूँ, इसलिए मैंने मुंह खोला और उन्होंने मुझे वो कौर खिला दिया| खाना खा कर मैं बालकनी में फिर अपनी जगह बैठ गया| मेरा सर चौखट से लगा था और घुटने मेरे सीने से दबे थे| अनु बिना कुछ बोले मेरे साथ बैठ गई और अपना सर मेरे दाएँ कंधे पर रख दिया| हम दोनों ऐसे ही चुपचाप बैठे रहे, मुझे लगा कहीं अनु खुद को इस सब के लिए दोषी न मानने लगे इसलिए मैंने बात शुरू की; "भगवान का शुक्र है की आप हो मुझे संभालने के लिए वरना पता नहीं मेरा क्या होता!" पर अनु खामोश रही अब उन्हें बुलवाने के लिए मुझे कुछ तो करना ही था|

"मैं तो बस तुझसे ही बना हूँ

तेरे बिन मैं बेवजह हूँ

मेरा मुझे कुछ भी नही, सब तेरा

सब तेरा, सब तेरा, सब तेरा" मैंने गाने के बोल गुनगुनाये तो अनु एक दम से मेरी तरफ देखने लगी और उनके होठों पर मुस्कराहट तैरने लगी जो मुझे पसंद थी|

"मैं तो तेरे रंग में रंग चुका हूँ

बस तेरा बन चुका हूँ

मेरा मुझमे कुछ नही, सब तेरा" अब तो ये सुन कर अनु जोश में आ गई और उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खड़ा किया और अपने फ़ोन पर यही गाना लगा दिया| अनु मेरे सीने से लग कर खड़ी हुई और हम धीरे-धीरे झूमने लगे और गाने के बोल गुनगुनाने लगे| अब दोनों का मूड ठीक हो चूका था तो हमें जाने की प्लानिंग करनी थी| सामान अनु ने पहले से ही पैक कर दिया था, बस अब मेरी एक बाइक बची थी| जिसे बेचने का मन मेरा कतई नहीं था क्योंकि वो मैंने अपने पैसों से खरीदी थी, अनु मेरी परेशानी अच्छे से जानती थी इसलिए वो बोली; "तुम्हें ये बेचने की कोई जर्रूरत नहीं है|" इतना कह कर उन्होंने फटाफट एक फ़ोन घुमाया; "अक्कू! सुन बेटा मुझे लखनऊ से एक बुलेट भेजनी है बैंगलोर तो जरा पता कर के बताना कैसे भेजेंगे!" उस लड़के ने कुछ कहा होगा की अनु बोली; "ओये! तेरे लिए नहीं है, मेरे फ्रेंड की है| हाँ वही वाला!" ऐसे कहते हुए वो हँसने लगी| कॉल खत्म हुआ तो मैंने पुछा; "वही वाला? और कितने फ्रेंड हैं आपके?"

"पिछले कुछ दिनों से तुम मेल भेज रहे थे ना तो वो पूछ रहा था की वो मेल वाला फ्रेंड|" ये सुन कर मैं भी मुस्कुरा दिया| फिर मैंने उनसे उनका बैंक अकाउंट नंबर माँगा तो वो भड़क गईं; "मुझे पैसे दोगे?"

"अरे बाबा! अब यहाँ से जा रहा हूँ तो बैंक आकउंट यहाँ रख कर क्या फायदा? कौन बार-बार यहाँ आएगा, इसलिए अभी मैं आपके अकाउंट में पैसे ट्रांसफर कर रहा हूँ और बाद में वहाँ अकाउंट खुलने के बाद आप वापस मेरे अकाउंट में डाल देना||" ये सुनने के बाद वो समझीं और डिटेल्स दीं, पर जब अमाउंट ट्रांसफर हुआ और उन्होंने 4 लाख रुपये देखे तो वो आँखें फाड़े मुझे देखने लगी| "इस तरह आँख मूँद कर कभी किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए!" अनु ने कहा|

"किसी पर नहीं करता, पर आप पर करता हूँ!" इतना कह कर मैं मुस्कुरा दिया|

"थैंक यू इतना विश्वास करने के लिए!" अनु ने मुस्कुराते हुए कहा| हमारे पास मुश्किल से दो दिन ही रह गए थे, मैंने अरुण-सिद्धार्थ को मिलने बुलाया, हम चारों हॉल में बैठे थे और अनु ने सब के लिए चाय बना दी थी| अनु मेरे साथ बैठी थी और अरुण और सिद्धार्थ मेरे सामने बैठे थे| पता नहीं क्यों पर वो दोनों कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रहे थे; "यार तुम दोनों को एक खुश खबरि देना चाहता हूँ!" मैंने कहा| इतना सुनते ही उनकी बाछें खिल गई| "बता यार, तेरे मुँह से खुशखबरी सुनने को कान तरस गए थे|" अरुण ने कहा|

"यार अनु को एक प्रोजेक्ट मिला जिसके सिलसिले में हम New York जा रहे हैं और उसके बाद वापसी में मैं अनु को ही बैंगलोर में ज्वाइन करूँगा|" मेरी बात अनु को अधूरी लगी तो उन्होंने उसमें अपनी बात जोड़ दी;

"Not as an employee but as a business partner!!!" ये सुन कर अरुण और सिद्धार्थ दोनों खुश हुए पर ये वो खबर नहीं थी जो वो सुनना चाहते थे|

"अरे wow!" अरुण ने कहा और सिद्धार्थ ने मुझसे हाथ मिलाया और इस बार उसकी पकड़ थोड़ी कठोर थी और वो मुझे आँखों से कुछ इशारा भी कर रहा था जिसे मैं समझ नहीं पाया था| "अब तो पार्टी बनती है!" अरुण बोला पर पार्टी सुनते ही अनु का चेहरा थोड़ा फीका पड़ गया क्योंकि मैं बाहर कुछ भी नहीं खा सकता था|

"Guys, डॉक्टर ने मुझे बाहर से खाने को मना किया है!" मैंने सफाई देते हुए कहा|

"अरे तो क्या हुआ? हम घर पर ही कुछ बना लेते हैं! चल गाजर का हलवा बनाते हैं!" सिद्धार्थ ने पूरे जोश में आते हुए कहा| इतना कह कर हम तीनों उठ खड़े हुए पर अनु बोल पड़ी;

"अरे तो तुम लोग बैठो मैं बनाती हूँ|"

"अरे mam आप क्यों तकलीफ करते हो, हम तीनों हैं ना!" अरुण बोला|

"ये क्या mam-मम लगा रखा है? You're not my employees anymore! Call me Anu!" अब ये सुन कर दोनों मेरी तरफ देखने लगे| तभी अनु दुबारा बोली; "मानु भी तो मुझे अनु कहता है फिर तुम्हें क्या प्रॉब्लम है?"

"Mam वो क्या है न हम इसकी तरह बद्तमीज नहीं हैं!" सिद्धार्थ ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा|

"ओह! भाई साहब मुझे भी इन्होने ही बोला था की नाम से बुलाया करो!" मैंने अपनी सफाई दी|

"Guys, ये बात तो सच है की इससे ज्यादा तमीजदार लड़का मैंने नहीं देखा| Chivalry तो इनके रग-रग में बसी है|"

"Mam वो..." अरुण कुछ कहने को हुआ तो अनु ने उसकी बात काट दी;

"Come on guys!" उनका इतना कहना था की दोनों मान ही गए और एक साथ बोले; "ओके अनु जी!"

"अनु जी नहीं सिर्फ अनु!" अनु ने कहा तो दोनों ने मुस्कुरा कर हाँ में सर हिलाया| उसके बाद हम तीनों ने किचन में मिलकर गाजर का हलवा बनाया और बनाते-बनाते हमारी बहुत सी बातें हुई, बहुत से राज खोले गए और हँसी मजाक खूब चला|

20 तरीक को हम सुबह एयरपोर्ट के लिए निकले, दिल का एक टुकड़ा अचानक से रो पड़ा और आँखें नम हो गईं| हम टैक्सी में बैठे थे और मेरी नजरें खिड़की से चिपकी हुईं थी, हर वो दूकान, हर वो मोहल्ला, हर वो सड़क जहाँ मैंने घूमते हुए इतने साल निकाले आज वो सब मैं पीछे छोड़ कर जा रहा था| कॉलेज से ले कर अब तक करीब 7 साल बिताने के बाद जैसे दिल का एक हिस्सा यहीं रह जाना चाहता था| इस शहर ने मेरी जिंदगी का हर एक पहलु देखा था फिर चाहे वो कॉलेज में पढ़ने वाले स्टूडेंट की आवारागर्दी हो या मोहब्बत में चोट खाये आशिक़ के आँसू! मेरे ये आँसू अनु से छुप नहीं पाए और उन्होंने मेरी ठुड्डी पकड़ के अपनी तरफ घुमाई और आँखों के इशारे से पुछा की क्या हुआ? तो मैंने उन्हें अपने मन के ख्याल सुना दिए| ये सुन कर वो मुस्कुरा दी और मेरे माथे को चूमते हुए बोलीं; "तुम शहर छोड़ कर नहीं बल्कि इस यादें अपने सीने में बसाये ले जा रहे हो|" मैंने हाँ में सर हिलाया और उनकी बात accept की!


इमोशनल होते हुए हम एयरपोर्ट पहुँचे, ये मेरी लाइफ की पहली हवाई यात्रा थी जो अनु करवा रही थी| कहने को तो ये ढाई घंटे की यात्रा थी पर मेरे लिए ये यादगार यात्रा थी| अपने फ़ोन से मैं जितनी पिक्चर ले सकता था वो लीं, अनु को मुझे ऐसा करता देख एक अजीब सा सुख मिल रहा था और वो बैठी बस मुस्कुराती हुई मुझे देख रही थी| मैं उनके पास आया और उनके साथ बहुत सी selfie खींची| रितिका और मेरी साड़ी selfie तो मैं डिलीट कर चूका था और फ़ोन खाली था, तो सोचा की उसे एक अच्छे दोस्त के साथ फोटो खींच कर भर दूँ| खेर जब बोर्डिंग शुरू हुई तो हमारी seats एक साथ नहीं बल्कि दूर-दूर थीं क्योंकि मेरी टिकट लास्ट में बुक हुई थी| पर अनु बहुत होशियार थी, उनकी बगल वाली सीट पर एक लड़की बैठी थी तो उसने उससे कहा; "excuse me, मेरे हस्बैंड और मेरी seats दूर-दूर मिली हैं तो आप प्लीज वहाँ बैठ जाओगे?" उस लड़की ने मुस्कुराते हुए हाँ भरी और मेरे पास आई और मेरे कंधे को छूते हुए कहा; "आपकी वाइफ बुला रही हैं!" मैं हैरानी से उसे देखने लगा की ये क्या बोल रही है, फिर मैंने पलट कर देखा तो अनु हँस रही थी| मैं समझ गया और उठ कर उनके पास चल दिया| "यार आपको चैन नहीं है ना?" मैंने हँसते हुए कहा| मैं उनके बगल वाली सीट पर बैठने लगा तो उन्होंने मुझे अपनी खिड़की वाली सीट दे दी| हवाई जहाज में पहलीबार बैठना वो भी खिड़की वाली सीट पर! Take off से पहले सीट बेल्ट की announcement हुई और फ़ोन switch off करने की पर आज मैं अपने जीवन में पहली बार अपना फ़ोन 'airplane' mode में डालने को मरा जा रहा था| जब मैंने ये बात अनु को बताई तो वो भी मेरा बचपना सुन हँस पड़ी| Take off और Land करते हुए मेरी थोड़ी फटी थी पर अनु ने मेरे बाएँ हाथ पर अपने हाथ रखे हुए थे तो डर कम लगा| हम बैंगलोर पहुँचे और बाहर निकलते ही मैंने उस जमीन को अपनी उँगलियों से iछू लिया| "जब पहलीबार लखनऊ आया था कॉलेज पढ़ने तब भी मैंने ये किया था और आप देखो कितना प्यार दिया उस शहर ने और आज यहाँ नई जिंदगी शुरू करने आया हूँ तो गर्व महसूस हो रहा है|" मैंने कहा तो अनु ने मेरी पीठ थपथपाई! अनु ने अक्कू को फ़ोन किया तो उसने हमें बाहर बुलाया, बाहर पहुँच कर देखा तो मुझे विश्वास नहीं हुआ, वहाँ अक्कू मेरी बाइक के साथ खड़ा था| मैंने हालाँकि अक्कू को तो नहीं पहचाना पर अपनी बाइक को पहचान गया था| "तुम्हारा welcome gift!" अनु ने कहा तो मेरे चेहरे पर खुशियाँ अपने रंग बिखेरने लगी| "बेटा ये तीन बैग ले कर तू घर निकल हम तुझे वहीँ मिलेंगे|" अनु ने अक्कू को कहा और उसने तुरंत ऑटो कर लिया| मैंने दाहिने हाथ को चूमा और फिर उसी हाथ से बाइक को छुआ और फिर उस पर सवार हो कर बड़े स्टाइल से किक मारी, वो भड़भड़ करते हुए स्टार्ट हुई और ये आवाज नए शहर में सुन मेरे मन में रोमांच भर उठा| अनु पीछे से आ कर मेरे से सट कर बैठ गई| "सच्ची आज एक आरसे बाद तुम्हारे साथ बाइक पर बैठने का मौका मिला है|" अनु खुश होती हुई बोली और मुझे पीछे से थाम लिया| अनु मुझे रास्ता बताती रही और मैं बाइके ख़ुशी-ख़ुशी चलाता रहा, रास्ते में पड़ने वाली हर जगह के बारे में मुझे जानकारी दी| अंततः हम घर पहुँचे, नीचे बाइक खड़ी कर के हम ऊपर पहुँचे तो अनु ने घंटी बजाई दरवाजा एक मलयाली लड़की ने खोला जो वहाँ काम करती थी| उसके हाथ में पूजा की थाली थी और मेरे चेहरे पर हैरानी! "वो दीदी ने बोला की आप आ रे कर के!"

"यार मेरा ग्रह प्रवेश हो रहा है क्या?" मैंने कहा और फिर हम तीनों ठहाका मार के हँसने लगे| खेर अंदर जाने के बाद अनु ने मेरा उस लड़की से इंट्रो करवाया, उसका नाम 'रंजीथा' था| (नाम लिखने में कोई गलती नहीं हुई है, असली नाम यही था रंजीथा|) पर ये घर 1 BHK था और मुझे रंजीथा के सामने उनके कमरे में जाने में झिझक हो रही थी| इतने में अक्कू समान ले कर आ गया, मैंने फ़ौरन उसके हाथ से सूटकेस लिया| अब अक्कू और रंजीथा के सामने मैं कैसे सामान अंदर रखूँ?

मैं हॉल में ही बैठ गया और इधर अनु ने रंजीथा को खाना बनाने के बारे में instruction शुरू कर दिया| अक्कू उर्फ़ आकाश एक ट्रेनी था और उसी की तरह एक और लड़का था जिसका नाम रवि था| दोनों MBA स्टूडेंट्स थे और अनु के पास training ले रहे थे| "तो ऑफिस चलें?" मैंने पुछा तो अनु अक्कू को देखने लगी और फिर ना में सर हिला दिया| "आज ही तो आये हैं और तुम्हें आज से ही काम स्टार्ट करना है? चलो पहले थोड़ा घूम लो, ऑफिस कल से ज्वाइन कर लेना| मैंने भी सोचा की ठीक ही तो है आज का दिन शहर ही घुमते हैं| इसलिए वो पूरा दिन हम शहर घुमते रहे और जब रात को वापस आये तो मुझे अनु के कमरे में मेरा सामान मिला| "मैं हॉल में ही सो जाता हूँ!" मैंने कहा तो अनु भड़क गई; "क्या हॉल मैं सो जाता हूँ? ये डबल बीएड पर मैं अकेले सोऊँ?"

"यार अच्छा नहीं लगता की हम दोनों एक घर में एक ही रूम में सोएं! आपके employees और रंजीथा क्या सोचेगी?"

"मानु ये लखनऊ नहीं है, यहाँ लोग Live-in रिलेशनशिप में रहते हैं और तुम हो के बेड शेयर करने से डर रहे हो? हम सिर्फ एक बेड शेयर कर रहे हैं ना और तो कुछ नहीं? So grow up!"

लेटते ही अनु को नींद आ गई पर मेरे लिए जगह नई थी तो थोड़ी बेचैनी थी! मैं चुप-चाप उठा और बालकनी में खड़ा हो गया और उस सोते हुए शहर को देखने लगा| मुझे वो शहर भी लखनऊ जैसा ही लगा बीएस दिन के समय ये लखनऊ से अलग था वर्ण रात में तो ये अब भी वैसे ही लग रहा था| मैं हाथ बाँधे खड़ा चाँद को निहारता रहा और जब लगने लगा की अब नींद आ रही है तो सोने चला गया| अगले दिन सबसे पहले उठा और चाय बनाने की सोची पर कीतचने में क्या कहाँ रखा है उसमें थोड़ा समय लगा| आखिर चाय बन गई और मैं अनु के लिए चाय ले कर पहुँचा तो वो करवट ले कर लेटी हुई थी| मैंने उनके साइड टेबल पर चाय रखी और एक आवाज दी और उन्होंने आँख खोल दी| सामने चाय देख वो उठ बैठीं; "अरे मुझे बोला होता?"

"जल्दी उठ गया था तो सोचा चाय बना लूँ!" मैंने कहा और उनके सामने बैठ कर चाय की चुस्की लेने लगा| फिर हम रेडी हुए और ऑफिस के लिए निकले, अभी मैं बाइक पार्क ही कर रहा था की अनु ने अक्कू को कॉल कर दिया| मैंने ये नहीं देखा और जब मैं आया तो हम एक बुलिडिंग में दाखिल हुए, मुझे लगा की इतनी बड़ी बिल्डिंग में ऑफिस होना ही बड़ी बात है पर जब हम ऊपर पहुँचे तो ये एक शेयर्ड ऑफिस निकला| दरवाजे पर अक्कू और रवि दोनों प्लेट ले कर खड़े थे, दरवाजे पर वेलकम का स्टीकर था और मैं ये देख कर खुश था| रवि चूँकि ब्राह्मण था तो वो मंत्र पढ़ते हुए उसने तिलक किया और फिर आरती ले कर हम अंदर घुसे| सामने ही एक छोटा सा मंदिर था मैंने वहाँ प्रणाम किया और प्रार्थना की कि भगवान हमें काम में तरक्की देना| अनु का ऑफिस कुल मिला कर बीएस दो कमरों का ही था, एक बड़ा हॉल जिसमें दो डेस्क थे जिनपर प्रिंटर और दोनों लड़कों के लैपटॉप थे| दूसरा था एक छोटा केबिन जिसमें एक बॉस चेयर, बॉस टेबल और उसके सामने दो चेयर्स अनु ने मुझे अपनी चेयर पर बैठने को कहा पर मैं नहीं माना; "ये आपकी जगह है!" मैंने कहा पर तभी अक्कू ने Partnership Deed अनु के हाथ में दी| अनु ने वो दीड टेबल पर रखी और मुझे कहा; "ये लो partnership deed इस पर साइन करो और पूरे हक़ से यहाँ बैठो|

"पर इसकी क्या जर्रूरत है?" मैंने कहा|

"अरे कमाल करते हो? बिना इस पर साइन किये हम अकाउंट कैसे खोलेंगे? और अभी तो और भी जर्रूरी डाक्यूमेंट्स हैं जिन पर तुम्हें साइन करना है!" उनकी बात सही थी इसलिए मैंने बिना पड़े ही साइन कर दिया| "पढ़ तो लो?" अनु ने कहा|

"आपने पढ़ लिया था न? तो बस!" मैंने कहा| पर अब अनु फिर से कहने लगी की मैं उसकी सीट पर बैठूँ; "नहीं...ये आपकी जगह है धीरे-धीरे जब मैं इस ऑफिस में अपनी जगह बना लूँगा तब बैठूंगा, पर फिलहाल तो मुझे बाकियों से मिलवाओ!" इतना कह कर मैंने बात टाल दी और फिर अनु ने मुस्कुराते हुए आस-पड़ोस वाले Bosses से इंट्रो कराया ये कह के की मैं उनका Business Partner हूँ! सबसे मिलकर हम वापस आये, रवि और अक्कू अपने डेस्क पर बैठे काम कर रहे थे| "अच्छा आकाश आप मुझे clients की lists दे दो!" मैंने कहा तो उसने जवाब में "ओके सर" कहा| उस समय मेरी छाती गर्व से फूल गई| जिस इंसान ने इतने साल से सबको सर कहा हो अचानक से उसे कोई सर कहे तो उसे कितना गर्व होता है ये मुझे उस दिन पता चला| मैं तो काम में लग गया पर अनु ने शॉपिंग शुरू कर दी| लंच टाइम मैंने सबके लिए बाहर से खाना मंगाया और मेरा खाना तो मैं साथ ही लाया था| आकाश और रवि ने पुछा तो मैंने उन्हें बता दिया की मेरी तबियत ठीक नहीं है और डॉक्टर ने मुझे बाहर के खाने से परहेज करने को कहा है| शाम होते ही अनु मुझे मॉल ले गई और वहाँ उसने मुझे बिज़नेस सूट दिलवाया, अब चूँकि मुझे New York जाना था तो presentable तो लग्न था| फिर वहीँ एक saloon में मुझे एक अच्छा सा haircut और beard स्टाइल करवाया और अब मैं वाक़ई में हैंडसम लग रहा था| "हाय! मानु सच्ची बड़े सेक्सी लग रहे हो!" अनु ने कहा और इधर मेरे गाल शर्म से लाल हो गए| जब मैंने खुद को आईने में देखा तो पाया की कहाँ उस दिन जब मैंने खुद को आईने में देख कर अफ़सोस किया था और कहाँ आज जब मैं वाक़ई में इतना हैंडसम दिख रहा हूँ|


खेर दूसरे दिन हमारी New York की फ्लाइट थी और उत्साह से भरे हम दोनों वहाँ पहुँचे और होटल में check-in किया| वो पूरी रात हमने presentation और बाकी की सारी तैयारी में लगा दी| हमारी प्रेजेंटेशन से पहले एक सेमीनार था जहाँ उनहोनेकुछ guidelines दी थीं, मुझे उसके हिसाब से थोड़े changes करने पड़े और हम तैयार थे| कॉन्फ्रेंस रूम में दो Americans बैठे थे जिन्हें हमें प्रेजेंटेशन देनी थी| स्टार्ट अनु ने किया और जैसे ही data present करने की बारी आई तो उन्होंने मुझे पॉइंटर दे दिया| मैंने बड़े ही आराम से उन्हें सारा कुछ समझाया और उसके बाद उन्होंने हमें बाहर बैठने को कहा| हम दोनों ही बाहर बेसब्री से इंतजार कर रहे थे की तभी उन्होंने हमें अंदर बुलाया और कॉन्ट्रैक्ट ऑफर किया| ये सुनते ही अनु ख़ुशी से उछल पड़ी और मेरे गले लग गई और मेरे दाएं गाल को अपनी लिपस्टिक से लाल कर दिया|, ये देख वो अंग्रेज भी हँसने लगे और हम दोनों भी हँसने लगे| "Thank you sir for giving us this opportunity and I promise we’ll deliver what we promised!” मैंने ये कहते हुए उनसे हाथ मिलाया और फिर हम दोनों हँसी-ख़ुशी बाहर आये| बाहर आते ही ऋतू ने फिर से मुझे अपनी बाहों में कस लिया| आज दिवाली थी तो वहाँ से निकल कर हम सीधा होटल आये और वहाँ नहा-धो कर हम ने कपडे बदले| मैंने कुरता-पजामा और अनु ने साडी पहनी और हम सीधा मंदिर पहुँचे| ये पहलीबार था की मैं दिवाली पर अपने परिवार के साथ नहीं था और जब हम मंदिर पहुँचे तो वहाँ सब लोगों को उनके परिवार के साथ देख आखिर मेरी आँखें छलक ही आईं| अनु ने मेरे आँसू पोछे पर उनका भी वही हाल था जो मेरा था| मैंने उनकी आँखें पोछीं और फिर हमने भगवान के दर्शन किये और अपने लिए तथा अपने परिवारों के लिए भी प्रार्थना की| पूजा के बाद मैंने संकेत को फ़ोन किया और उससे हाल-चाल लेने लगा तो उसने जो बताया वो सुन कर मैं हैरान हो गया| मेरे घर में बाकायदा पूजा हो रही थी और खुशियाँ मनाई जा रही थी, किसी को भी मेरे ना होने का गम नहीं था! दिल दुखा की मैं यहाँ सब को इतना miss कर रहा हूँ और वहाँ किसी को कोई दुःख भी नहीं, पर फिर ये सोचा की मेरी कमी शायद रितिका की शादी ने पूरी कर दी होगी| शादी की सारी तैयारियाँ संकेत करवा रहा था जिससे पिताजी और ताऊ जी को थोड़ी सहूलत थी| उन्होंने उसे ये भी बता दिया था की मुझे घर से निकाल दिया गया है क्योंकि मैंने भतीजी की शादी की जगह विदेश जाना ज्यादा जर्रूरी समझा जिस पर संकेत ने मुझे डाँटा| पर मैं उसे सच नहीं बता सकता था इसलिए जो वो कह रहा था वो सब सुनता रहा| फ़ोन पर बात करने के बाद मैं उदास खड़ा था की तभी अनु ने पीछे से आ कर मेरा दाहिना हाथ थाम लिया| "क्या हुआ? घर पर सब ठीक है ना?" अनु ने पुछा तो मैंने झूठी मुस्कान के साथ कहा; "हाँ...सब ठीक है! चलो चल कर कुछ खाते हैं!" अब चूँकि वहाँ घर का खान नहीं मिल सकता था तो बाहर खाने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था| पर मेरी तबियत में पहले से काफी सुधार था इसलिए मैंने ये रिस्क ले लिया| खाना मैं कम मिर्च और तेल वाला ही खा रहा था ताकि कुछ कम्प्लीकेशन ना बढे| खा-पी कर हम होटल लौटे और लेट गए, अनु जानती थी की मेरा मन उदास है और कहीं मैं इस दुःख को फिर से अपने सीने से ना चिपका लूँ इसलिए आज लेटते समय उन्होंने मेरी कमर पर हाथ रख दिया| उनका ऐसा करना मेरे लिए बहुत अजीब था क्योंकि मेरे शरीर के सारे रोएं खड़े हो गए थे| पर मैं चुप-चाप पड़ा रहा, कुछ देर लगी सोने में और आखिर नींद आ ही गई| कुछ देर बाद उन्होंने धीरे से हाथ सरका लिया और दूसरी तरफ मुँह कर के सो गईं| अगली सुबह हम दोनों देर से उठे और उठने के बाद भी नींद पूरी नहीं हुई शायद जेट लेग हो गया था| वो पूरा दिन हमने ऊँघते हुए बिताया और कंपनी के साथ बैठ कर कुछ स्टडी किया| शाम हुई तो आज मन 'cheating' करने को कर रहा था| सर्दी का आगाज हो चूका था तो कुछ तो चाहिए था! "आज बियर पीएं?" मैंने एक्ससिटेड होते हुए पुछा तो अनु चिढ गई; "बिलकुल नहीं! जरा सा ठीक हुए नहीं की बियर पीनी है!" मैंने आगे कुछ नहीं कहा और मुस्कुरा दिया, उनका इस कदर हक़ जताना मुझे अच्छा लगता था| हम आखिर होटल आ गए तो खाना खा कर जल्दी सो गए| सुबह मैं जल्दी उठ गया और मैंने रवि को कॉल किया और उससे कुछ अपडेट लेने लगा| फिर अचानक से मुझे कुछ याद आया और मैंने कुछ पुरानी कम्पनियाँ जिनके साथ 'कुमार' काम करते थे उन्हें मैंने मेल भेज दिए| चूँकि इन कंपनियों का data मैं ही देखता था तो मेरे लिए ये काम आसान था| 8 बजे अनु भी उठ गई और मुझे ऐसे काम करते देख कर मेरे पास आईं और मेरे हाथ से लैपटॉप छीन लिया| "थोड़ा आराम भी कर लो!" इतना कहते हुए वो लैपटॉप अपने साथ ले गईं| मैंने शाम को घूमने का प्लान बना लिया, और मीटिंग के बाद हम घूमने निकल पड़े| हमारे पास दिन बहुत थे इसलिए हमें कोई जल्दी नहीं थी|

दिन निकलते गए और मेरी दोस्ती एक गोरी से हो गई, पर अनु को वो फूटी आँख नहीं भाति थी! जब भी मैं उससे बात करता तो अनु मेरे पास आ कर बैठ जाती| मुझे अनु को इस तरह सताने में बड़ा मजा आता था और मैं जानबूझ कर उससे लम्बी-लम्बी बातें किया करता था| उसकी रूचि थी इंडिया घूमने की और मैं उसे अलग-अलग जगह के बारे में बताया करता था| अनु को शायद ये डर था की कहीं मैं उस गोरी जिसका नाम लिज़ा था उससे प्यार तो नहीं करता? एक दिन की बात है हम दोनों कॉफ़ी पी रहे थे की अनु भी आ कर बैठ गईं| लिज़ा को किसी ने बुलाया तो वो excuse me बोल कर चली गई| उसके जाते ही अनु ने मेरे कान पकड़ लिए; "इससे शादी कर के यहीं सेटल होने का इरादा है क्या?" ये सुन कर मैं हँस पड़ा|

"वो मैरिड है!" मैंने हँसते हुए कहा और तब अनु को समझ आया की इतने दिन से मैं उन्हें सताये जा रहा था| वो भी हँसने लगी और फिर एकदम से खामोश हो गई; "क्या हुआ?" मैंने पुछा|

"तुम्हारी दोस्ती खोने का डर सताने लगा|" अनु ने उदास होते हुए कहा|

"Are you mad? ऐसा कुछ नहीं होगा, मैं भला आपको छोड़ दूँ? मेलि प्याली-प्याली दोस्त को!" मैंने अनु की ठुड्डी पकड़ते हुए कहा| ये सुन कर अनु फिर से मुस्कुराने लगी| उस दिन शाम को लिज़ा और उसका पति भी हमारे साथ घूमने आये और फिर मौका आया पीने का| अब अनु उनके सामने मुझे कैसे मना करती पर फिर मैंने ही मना किया| इस बार अनु ने खुद कहा; "just one beer!" हमने बस एक-एक बियर पी और फिर होटल लौट आये| दि


न गुजरते गए और आखिर हम वापस बैंगलोर आ ही गए और अनु ने आते ही रवि और आकाश को इस प्रोजेक्ट पर लगा दिया| पर वो अकेले इसे संभाल नहीं सकते थे इसलिए मैंने उनके साथ बैठना शुरू कर दिया, अनु की involvement कम थी क्योंकि ये advanced accounting थी और Indian Accounting Standards की जगह GAAP के हिसाब से काम करना था जिसके बारे में मैंने उन कुछ दिनों में सीखा था, बाकी का सब मैंने केस-स्टडी से सीखना शुरू कर दिया| मैंने जो पुरानी कंपनियों को मेल किया था उसमें से 1-2 ने रिवर्ट किया था तो मैंने वो काम अनु को दे दिया| वो बहुत हैरान थी की मैंने उन्हें क्यों approach किया| कुमार ने तो काम बंद कर दिया अब अगर हमें उनके client मिल जाते हैं तो अच्छा ही है! वो तो मेरी repo थी की उन लोगों ने 1-1 क्वार्टर की returns का काम हमें दे दिया था| कुल मिला कर काम अच्छा चल पड़ा था, सिर्फ पुराने क्लाइंट्स से ही हमने अच्छा प्रॉफिट कमा लेना था| USA वाली का काम थोड़ा मुश्किल था पर पैसा बहुत अच्छा था| हालाँकि उन्होंने कॉन्ट्रैक्ट बहुत थोड़े टाइम का दिया था पर मुझे पूरी उम्मीद थी की वो कॉन्ट्रैक्ट आगे extend जर्रूर करेंगे|

मुश्किल से हफ्ता बीता होगा की अनु का जन्मदिन आ गया था|
 
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19 को अनु का जन्मदिन था तो मैंने 18 को ही सोच लिया था की मुझे क्या करना है| 18 का पूरा दिन मैं ऑफिस में ही था, शाम होने को आई तो मैंने अनु को अकेले ही भेज दिया क्योंकि मुझे data फाइनल करना था ताकि कल का पूरा दिन मैं और अनु घुमते रहें! मैं रात को ठीक साढ़े ग्यारह बजे पहुंचा और चूँकि मेरे पास डुप्लीकेट चाभी थी तो मैं दबे पाँव अंदर आया| हॉल में मैंने केक रखा और मोमबत्ती लगाई और मैं पहले चेंज करने लगा, जैसे ही बारह बजे मैंने अनु को आवाज दे कर उठाया| पर वो एक आवाज में नहीं उठी, मैंने साइड लैंप जलाया और फिर पूरा हैप्पी बर्थडे वाला गाना गाय; "Happy Birthday to you,
Happy Birthday Dear Anu,
Happy Birthday to You" तब जा कर अनु की आँख खुली और उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे देखा| मैंने उनके सामने घुटनों के बल बैठा था, अनु एक दम से उठी और मेरे गले लग गई| "thank you" कहते-कहते उनकी आवाज रोने वाली हो गई| मैं समझ गया की वो अपने मम्मी-डैडी को miss कर रही हैं| 'अच्छा अब रोना नहीं है, चलो बाहर आओ एक सरप्राइज है!" ये कहते हुए मैं उन्हें बाहर लाया और केक देख कर वो खुश हो गेन| उन्होंने मुझे एक बाद फिर गले लगा लिया| मैंने फ़ौरन मोमबत्ती जलाई और फिर उन्होंने केक काटा| हम दोनों हॉल में ही सोफे पर बैठ गए| "एक आरसे बाद मैं अपना birthday celebrate कर रही हूँ! पर मुझे लगा की तुम इतना busy हो तो शायद भूल गए होगे?"

"इतने साल आप से दूर रहा तब आपको wish करना नहीं भूला तो साथ रह कर भूल जाऊँगा?"

रात में भूख लगी तो मैंने मैगी बनाई और दोनों ने किचन में खड़े-खड़े खाई और फिर सोने चले गए| अगली सुबह मैं जल्दी उठा और coffee बना कर अनु के साइड टेबल पर रखते हुए कहा; "coffee for the birthday girl!" अनु एक दम से उठ बैठी और मेरा हाथ पकड़ कर वहीं बिठा लिया| "तो आज का क्या प्रोग्राम है?" अनु ने पुछा| मैं एक दम से खड़ा हुआ और दोनों हाथ हवा में उठाते हुए चिल्लाया; "Road Trip!!!!" ये सुनते ही अनु भी excited हो गई! "पर कहाँ?" अनु ने पुछा| "Shivanasamudram Falls!!!!" मैंने कहा और हम दोनों कूदने लगे, मैं जमीन पर अनु पलंग पर! रंजीथा आई तो अनु ने उसे भी केक खिलाया, मैंने आकाश और रवि को भी बुला लिया था| दोनों ने आ कर अनु को विश किया और सबने केक खाया| रवि ने मना किया क्योंकि उसे लगा की इसमें अंडा होगा पर मैंने उसे बताया की इसमें अंडा नहीं है तो उसने भी तुरंत खा लिया| हम दोनों तैयार हो कर बाइक से निकले, पूरे 135 किलो मीटर की ड्राइव थी| पहले 60 किलोमीटर में ही हवा निकल गई इसलिए मैंने बाइक एक रेस्टुरेंट पर रोकी और दोनों ने एक-एक कप स्ट्रांग वाली कॉफ़ी पी और फिर से चल पड़े| कुछ देर बाद रोड खाली आया तो अनु जिद्द करने लगी की उसे ड्राइव करना है| आजतक उन्होंने स्कूटी ही चलाई थी और ऐसे में ये भारी भरकम बाइक वो कैसे संभालती? उन्हें मना करना मुझे ठीक नहीं लगा, इसलिए मैंने उन्हें आगे आने को कहा| "ये बहुत भारी है, आप संभाल नहीं पाओगे, मैं आपके नजदीक आ कर बैठ जाऊँ?" मैंने उनसे पुछा| अब थोड़ा दर तो उन्हें भी लग रहा था क्योंकि बुलेट पर बैठते ही उन्हें उसके वजन का अंदाजा मिल गया था| "प्लीज गिरने मत देना!" इतना कहते हुए उन्होंने मुझे अपने नजदीक बैठने की इजाजत दी| मैंने उन्हें जब बाइक स्टार्ट करने को कहा तो उनसे वो भी नहीं हुई क्योंकि मैंने किक थोड़ी टाइट रखी थी ताकि मैं उसे स्टाइल से स्टार्ट करूँ| अब इसमें self था नहीं जो वो एक बटन दबा कर स्टार्ट कर लेतीं, इसलिए मुझे ही खड़े हो कर बाइक स्टार्ट करनी पड़ी| अब बुलेट की भड़भड़ आवाज सुन कर ही वो डर गईं और क्लच छोड़ ही नहीं रही थीं| "no...no ...no ...मैं नहीं चालाऊँगी!" अनु ने घबराते हुए कहा| अब मुझे लगा की अगर इन्होने डर के एक दम से छोड़ दिया तो दोनों टूट-फुट जाएंगे! इसलिए मैंने दोनों हाथ उनके पेट पर लॉक कर दिए और बड़ी धीमी आवाज में उनके कान में कहा; "क्लच को धीरे-धीरे छोडो जैसे आप स्कूटी चलाते टाइम छोड़ते हो!" मेरे उनके छू भर लेने से अनु की सांसें तेज हो गईं थी पर जब मैंने धीरे से उनके कान में instructions दी तो उन्होंने खुद पर काबू किया और धीरे-धीरे क्लच छोड़ा| शुरुरात में थोड़े झटके लगे और फिर बाइक चल गई पड़ी| अब मुझे भी एहसास हुआ की मुझे उनको ऐसे नहीं छूना चाहिए था, मैंने धीरे-धीरे अपने हाथ उनके पेट से हटा लिए ताकि वो नार्मल हो जाएँ| अनु का ध्यान अब बाइक पर था और मेरा ध्यान सब तरफ था की कहीं कोई आकर हमें ठोक नहीं दे| कुछ देर बाद आखिर उनका हाथ बैठ ही गया, घंटे भर में ही उनका मन भर गया और उन्होंने फिर मुझे चलाने को कहा| मैंने इस बार कुछ ज्यादा ही तेजी से चलाई जिससे अनु को मुझसे चिपक कर बैठना पड़ा| साढ़े तीन घंटे मकई ड्राइव के बाद हम पहुँचे और वहाँ का नजारा देख कर शरीर में और फूर्ति आ गई| पानी का शोर सुन कर ही उसमें कूद जाने का मन कर रहा था| हमने वहाँ मिल कर खूब मौज-मस्ती की और शाम को निकले| घर आते-आते 10 बज गए, वो तो शुक्र है की रंजीथा जाते-जाते खाना बना गई थी वरना आज भूखे ही सोना पड़ता| खाना खा कर मैं उठा तो अनु बोली; "Thank you आज का दिन इतना स्पेशल और memorable बनाने के लिए!"

"Thank you आपको की आपने पहले वाले मानु को फिर से मरने नहीं दिया!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और हम दोनों सो गए|

अब आया क्रिसमस और हररोज की तरह जब मैं अनु की बेड टी ले कर आया तो अनु बोली; "रोज-रोज क्यों तकलीफ करते हो?"

"तकलीफ कैसी ये तो मेरा प्यार है!" मैंने हँसते हुए कहा पर अनु के पास इसका जवाब पहले से तैयार था; "थोड़ा और प्यार दिखा कर खाना भी बना दो फिर!"

"अच्छा चलो आज आपको अपने हाथ का खाना भी खिला देता हूँ| उँगलियाँ ना चाट जाओ तो कहना| पर अभी तैयार हो जाओ चर्च जाना है|" मैंने कहा|

"क्यों शादी करनी है?" अनु ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा|

"शादी तो हम रजिस्ट्रार ऑफिस में कर्नेगे पहले चर्च जा कर गॉड का आशीर्वाद तो ले लें|" ये सुनते ही हम दोनों बहुत जोर से हँसे| अनु और मेरे बीच ऐसा मजाक बहुत होता था, एक तरह से दोनों जानते थे की हमें कैसे दूसरे को हँसाना है| अब ले-दे कर हम दोनों ही अब एक-दूसरे का सहारा थे! खेर हम तैयार हो कर चर्च आये और वहाँ अपने और अपने परिवार के लिए Pray किया| भले ही उनसब ने हम से मुँह मोड़ लिया था पर हम अब भी अपने परिवार को उतना ही चाहते थे! हम दोनों ही भावुक हो कर चर्च से निकले पर जानते थे की एक-दूसरे को कैसे हँसाना है| "तो क्या खिला रहे हो आज?" अनु ने पुछा|

"यार मैं ठहरा देहाती, मुझे तो दाल-रोटी ही बनानी आती है|" मैंने बाइक स्टार्ट करते हुए कहा|

"प्यार से बनाओगे तो दाल में भी चिकन का स्वाद आजायेगा|" अनु ने पीछे बैठते हुए कहा|

"चलो फिर आज चिकन ही खिलाता हूँ!" मैंने कहा और बाइक सीधा सुपरमार्केट की तरफ ले ली| वहाँ से सारा समान खरीदा और एप्रन पहन कर कीचन में कूद पड़ा, अनु को मैंने दूर ही रखा वरना वो टोक-टोक कर मेरी नाक में दम कर देती| Marination की और सोचा की बटर चिकन बनाऊँ लेकिन फिर मन किया की ग्रिल चिकन बनाते हैं! जब बन गया तो मैंने अनु को चखने को बुलाया, किस्मत से वो टेस्टी बना, पहलीबार के हिसाब से टेस्टी! वो तो शुक्र है की मैंने साथ में दाल बनाई थी जिसमें मेरी महारत हासिल थी तो खाना थोड़ा बैलेंस हो गया, वरना उस दिन अच्छी बिज्जाति हो जानी थी! दिन हँसी ख़ुशी बीत रहे थे और Business भी अब अच्छी रफ्तार पकड़ने लगा था|

फिर आया 31 दिसंबर और आकाश और रवि दोनों ने अनु से कहा की आज तो पार्टी होनी चाहिए| अनु का कहना था की घर पर ही करते हैं, पर मुझे पता था की लड़कों को चाहिए शराब और शबाब और वो सिर्फ pub में मिलता| मैंने जब अनु से जाने को कहा तो वो मना करने लगी| "प्लीज यार! देखो लड़कों का बड़ा मन है!" पर वो नहीं मानी, मैं जानता था की उनके न जाने का कारन मैं ही हूँ| "अच्छा बाबा I Promise 1 बियर से ज्यादा और कुछ नहीं लूँगा! फिर ये देखो team building के लिए ये अच्छा भी है|" मैंने एक बहन और जोड़ा तो अनु मान गई, पर अब दिक्कत ये आई की stag entry allowed नहीं थी| मेरे साथ तो अनु थी, पर उन लड़कों की पहले से ही गर्लफ्रेंड थी| उन दोनों लड़कियों से हमारा इंट्रोडक्शन हुआ, अब जगह पहले से ही भरी पड़ी थी तो खड़े-खड़े ही हमने पीना शुरू किया| मेरी बियर अभी आधी ही हुई थी की अनु मुझे खींच कर डांस फ्लोर पर ले गई और हम दोनों ने नाचना शुरू किया| हमारी देखा-देखि वो चारों भी डांस करने लगे| Loud Music में डांस करते-करते पता ही नहीं चला की 11 बज गए! अनु ने जैसे ही टाइम देखा वो मुझे अपने साथ ले कर निकलने लगी, हमने सबको बाई बोला और हम घर पहुँच गए| पर अनु ने घर पर सेलिब्रेट करने का प्लान बना रखा था इसलिए वो मुझे शुरू से ही कहीं नहीं जाने देना चाहती थी| मैं change कर रहा था और इधर अनु ने पूरा माहौल बनाना शुरू कर दिया था| बालकनी में गद्दियां लगी थी, ब्लूटूथ पर सारे स्लो ट्रैक्स धीमी आवाज में चल रहे थे और वाइन के दो गिलास रखे हुए थे| साइड में रेड वाइन की एक बोतल रखी थी, जब मैं बाहर वापस आया तो मैं अपने दोनों गालों पर हाथ रख कर आँखें फाड़े देखने लगा| "आँखें फाड़ कर क्या देख रहे हो, आओ बैठो|" अनु ने कहा और मैं जा कर बालकनी में फर्श पर बैठ गया| अनु ने गिलास में वाइन डाली और फिर हमने चियर्स किया, इधर अनु ने पीना शुरू कर दिया और मैंने उसे सूँघना शुरू किया| "क्या हुआ? वाइन से बदबू आ रही है?" अनु ने पुछा| मैं उस समय वाइन को गिलास के अंदर गोल-गोल घुमा रहा था; "इसे wine tasting कहते हैं!" मैंने कहा और मुस्कुरा दिया| "सारे शौक अमीरों वाले पाल रखे हैं तुमने?" अनु ने चिढ़ते हुए कहा| "हाँ...क्योंकि मुझे अमीर बनना है, गरीब और कमजोर आदमी की यहाँ कोई औकात नहीं! याद है वो first time मुंबई जाना और वहाँ मेरा मीटिंग के बाहर वेट करना और फिर रितिका का मुझे छोड़ना| आपको पता है जब मैंने पहली बार आपका ऑफिस देखा तो मेरे मन में आया की मुझे इसे दो कमरों से पूरे हॉल पर फैलाना है|" मेरे ख्याल सुन कर अनु के चेहरे पर मुस्कान आ गई| ये कोई आम मुस्कान नहीं थी, बल्कि ये गर्व वाली मुस्कान थी| ठीक बारह बजते ही पटाखों का शोर शुरू हो गया, अनु कड़ी हुई और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अंदर लाई| मेरे गले लगते हुए बोली; "Happy New Year!! I wish की ये साल तुम्हारे लिए खुशियां ले कर आये और तुम्हें खूब ऊँचाइयों पर ले जाए|"

"Correction: ये साल 'हमारे' लिए ढेर सारी खिशियाँ लाये और 'हमें' खूब ऊँचाइयों पर ले जाए| दुःख में साथ देते हो और खुशियों में पीछे रहना चाहते हो? अब कुछ भी मेरा नहीं बल्कि हमारा है, यो दोस्ती एक नए मुक़ाम तक जाएगी और सब के लिए मिसाल होगी!" मैंने अनु को कस कर गले लगाते हुए कहा| मेरी बात सुन कर अनु की आँखें भर आईं और उन्होंने भी मुझे कस कर गले लगा लिया|

अगले दिन सुबह-सुबह मुझे संकेत का फ़ोन आया और नए साल की मुबारकबाद के बाद वो मुझे सॉरी बोलने लगा| "तेरी भाभी मिली थी उन्होंने बताया की तू आखिर क्यों गया घर छोड़ कर! तेरी इतनी मेहनत के बाद भी रितिका ने पढ़ाई पूरी नहीं की और प्यार के चक्कर में पड़ कर शादी कर ली|"

"भाई छोड़ वो सब, ये बता वहाँ सब कैसे हैं? शादी ठीक से निपट गई ना?" मैंने पुछा|

"हाँ सब अच्छे से निपट गया पर यार सच में यहाँ तेरे ना होने से किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा| मुझे कहना तो नहीं चाहिए पर तेरे परिवार को तेरी पड़ी ही नहीं! तेरे ताऊ जी तो गाँव में छाती ठोक कर घूम रहे हैं, उन्हें ये नहीं पता की मंत्री ने ये शादी सिर्फ और सिर्फ अपने लड़के की ख़ुशी और अगले महीने होने वाले चुनाव में अपनी image बचाने को की है|" संकेत ने काफी गंभीर होते हुए कहा|

"यार छोड़ ये सब, तुझे एक गिफ्ट भेज रहा हूँ शायद तुझे पसंद आये| जब मिले तो कॉल करिओ|" मैंने ये कहते हुए बात जल्दी से निपटाई जब की मेरा दुःख मैं ही जानता था| अनु को चाय दे कर मैं हॉल में अपना काम ले कर बैठ गया क्योंकि अगर खाली बैठता तो फिर वही सब सोचने लगता| कुछ देर बाद रंजीथा आ गई और उसने नाश्ता बनाया, "अरे आज तो साल का पहला दिन है आज भी काम करोगे?" अनु ने अंगड़ाई लेते हुए कहा|

"साल की शुरुआत काम से हो तो सारा साल काम करते रहेंगे!" इतना कह कर मैं फिर से बिजी हो गया| मुझे अनु को अपने परिवार के बारे में कुछ भी कहना ठीक नहीं लगा इसलिए मैं खुद को लैपटॉप में घुसाए रहा| शाम होते-होते वो समझ गई की कुछ तो गड़बड़ है इसलिए उन्होंने मेरा लैपटॉप एक दम से बंद कर दिया जिससे मुझे बहुत गुस्सा आया; "क्या कर रहे हो?" मैंने चिढ़ते हुए कहा|

"सुबह से इसमें घुसे हो? थोड़ी देर आराम कर लो!" अनु ने एकदम से जवाब दिया जिससे मेरा गुस्सा फूट ही पड़ा|

"आपको पता भी है की आपके आस-पास क्या हो रहा है? दुनिया चाँद पर जा रही है और आप हो की अब भी वही financial analysis में लगे हो! Social Media पर आपकी presence zero है! अपनी फोटो डालते हो, पर मैंने आपको Company Profile बनाने को कहा वो बनाई आपने? आपको मैंने service charge के बारे में मेल भेजा था उस पर बात की आपने मुझसे? AMIS traders का डाटा रेडी किया आपने? सारा काम आकाश और रवि पर छोड़ देते हो! सिर्फ contracts लाने से काम नहीं चलता, जो हाथ में काम है उसे भी करना पड़ता है!" मैं बोलता रहा और वो सर झुकाये सुनती रही| मैं आखिर बालकनी में आ करआँखें बंद कर के बैठ गया| आधे घण्टे तक मुझे कोई आवाज सुनाई नहीं दी, वरना वो सारा दिन घर में इधर से उधर चहल कदमी करती रहती थीं| मुझे एहसास हुआ की मैंने अपने घरवालों का गुस्सा उन पर उतार दिया तो मैं उठ कर उन्हें मनाने कमरे में पहुँचा तो अनु बेड पर सर झुका कर बैठी थीं|

"I'm really sorry! मुझे गुस्सा किसिस और बात का था और मैंने वो आप पर उतार दिया! Please forgive me." मैंने घुटने के बल उनके सामने बैठते हुए कहा| पर अनु ने अबतक अपना सर नहीं उठाया था और वो वैसे ही सर झुकाये हुए बोलीं; "मैं बहुत स्लो हूँ, चीजों को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेती| जर्रूरी बातों को कई बार नजर अंदाज कर देती हूँ, आजतक मैंने सिर्फ और सिर्फ किसी को गंभीरता से लिया है तो वो तुम हो! मुझे बुरा नहीं लगा की तुमने जो कहा पर बुरा लगा तो ये की तुमने मुझे डाँटा!" अनु ने ये बात 'तुमने मुझे डाँटा' बिलकुल बच्चे की तरह तुतलाते हुए कहा और ये देख कर मुझे उन पर प्यार आ गया; "आजा मेरा बच्चा!"" कहते हुए मैंने अपनी बाहें खोली और अनु आ कर मेरे गले लग गई|

"अब ये बताओ की क्या बात है की सुबह से इतना गुस्सा हो!" अनु ने पुछा तो मैंने उन्हें सुबह की बात बता दी पर आधी| ये बात सुन कर उन्हें भी बुरा लगा और मैं इस बारे में ज्यादा ना सोचूं इसलिए उन्होंने मजाक में कहा; "अब सजा के लिए तैयार हो जाओ!" अनु ने कहा और मैंने सरेंडर करते हुए कहा; "जो हुक्म मालिक!"

"आज रात पार्टी करनी है, जबरदस्त वाली वरना सारा साल मुझे ऐसे ही डाँटते रहोगे|" अनु ने कहा इसलिए हम तैयार हो कर 8 बजे निकले| वहाँ पहुँचते ही अनु मस्त हो गई, अब मुझ पर तो पीने की बंदिश थी तो मैं बस एक बियर की बोतल को चुस्की ले-ले कर पीने लगा| देखते ही देखते उन्होंने 2 pints पी ली और मुझे खींच कर डांस फ्लोर पर ले आईं| बारह बजे तक उन्होंने दबा कर पी और मैं बिचारा एक बियर और स्टार्टर्स खाता रहा| बारह बजने को आये तो मैंने उन्हें चलने को कहा पर मैडम जी आज फुल मूड में थी| कैब करके उन्हें घर लाया पर अब वो टैक्सी से उतरने से मना करने लगी और सो गईं| "साहब ले जाओ ना, मुझे घर भी जाना है!" ड्राइवर बोला तो मजबूरन मुझे उन्हें गोद में उठा आकर ऊपर लाना पड़ा| ऊपर ला कर मैंने उन्हें बेड पर लिटाया और मैं चेंज करके लेट गया| करीब घंटे भर बाद ही अनु का हाथ मेरी कमर पर था और मुझे उनकी तरफ खींच रहा था| मैं समझ गया की मैडम जी कोई सपना देख रही हैं| अब वहाँ रुकता तो पता नहीं वो नींद में क्या करतीं, इसलिए मैं बाहर हॉल में आ कर लेट गया| सुबह जब मैं बेड टी ले कर गया तो उनका सर बहुत जोर से घूम रहा था| चाय पी कर वो करहाते हुए बोलीं; "हम ....घर कब आये?"

"साढ़े बारह!" मैंने चाय की चुस्की लेते हुए कहा और ऐसे जताया जैसे मैं उनसे नाराज हूँ|

"सॉरी" उन्होंने शर्मिंदा होते हुए कहा|

"मेरी इज्जत लूटने के बाद सॉरी कहते हुए?" मैंने ड्रामा जारी रखते हुए गुस्से से कहा|

"क्या?" अनु ने चौंकते हुए कहा|

"हाँ जी! रात में पता नहीं आपको क्या हुआ की आप मेरे ऊपर चढ़ गए और मेरे कपडे नोचने शुरू कर दिए! आपको होश भी है आपने क्या-क्या किया मेरे साथ?" मैंने रोने का नाटक किया| पर अनु समझ गई थी की मैं ड्रामा कर रहा हूँ क्योंकि उन्होंने अभी तक कल रात वाले कपड़े पहने थे|

"सससस....हाय! मानु सच्ची बड़ा मजा आया कल रात! कल रात तुम्हारा ठीक से चीर हरण नहीं हो पाया था, आज मैं जी भर के तुम्हारा चीर हरण करती हूँ!" ये कहते हुए वो खड़ी हुई और मैं भी उठ कर भागा| उनको dodge करते हुए मैं पूरे घर में भाग रहा था और वो भी मेरे पीछे-पीछे कभी सोफे पर चढ़ जाती तो कभी पलंग पर| अचनक ही उन्हें ठोकर लगीं और वो मेरे ऊपर गिरीं और मैं पलंग पर गिरा| एक पल के लिए दोनों एक दूसरे की आँख में देख रहे थे पर फिर हम दोनों को कुछ अजीब सा एहसास हुआ, वो उठ कर बाथरूम में चली गईं और मैं उठ कर बालकनी में आ गाय| मन में अजीब सी तरंगें उठ रही न थी पर मैं उन तरंगों को प्यार का नाम नहीं देना चाहता था इसलिए अपना ध्यान वापस काम में लगा दिया|

दिन हँसी-ख़ुशी से बीत रहे थे और हमारा ये हँसी-मजाक चलता रहता था, मेहनत दोनों बड़ी शिद्दत से कर रहे थे और कामयाबी मिल रही थी| जिन कंपनियों के हमें एक क्वार्टर का ही काम दिया था उन्होंने हमें पूरे साल का काम दे दिया था| US वाला प्रोजेक्ट बड़े जोर-शोर से चल रहा था और मैंने अनु को उसकी प्रेजेंटेशन के काम में लगा दिया| मार्च तक हमें एक और employee चाहिए था तो अनु ने मेरी जिम्मेदारी लगा दी की मैं इंटरव्यू लूँ, आज तक जिसने इंटरव्यू दिया हो उसे आज इंटरव्यू लेने का मौका मिल रहा था| Experienced की जगह मैंने Freshie बुलाये, क्योंकि एक तो सैलरी कम देनी पड़ती और दूसरा वो जोश-जोश में परमानेंट जॉब के चक्कर में काम अच्छा करते हैं| नए लड़के को Hire कर लिया गया और उसे काम अच्छे से समझा कर टीम में जोड़ लिया गया| लड़के अनु से शर्म कर के हँसी-मजाक कम किया करते थे पर मेरे साथ उनकी अच्छी बनती थी और मैं जब उन्हें खाली देखता तो उनकी टांग खिचाई कर देता था| किसी पर भी गुस्सा नहीं करता था, मैं अच्छे से जानता था की काम कैसे निकालना है| उनकी ख़ुशी के लिए कभी-कभार खाना बाहर से मंगा देता तो वो खुश हो जाया करते| जून में US का प्रोजेक्ट फाइनल हुआ और अब मौका था celebrate करने का, अब तो मेरी सेहत भी अच्छी हो गई थी तो इस बार जम कर दारु पी मैंने| रात के एक बजे हम दारु के नशे में धुत्त घर पहुँचे, दरवाजा बंद करके हम दोनों एक दूसरे से लिपट कर सो गए| सुबह जब मेरी आँख खुली तो मैंने अनु को खुद से चिपका हुआ पाया और धीरे से खुद को छुड़ाने लगा| पर तभी अनु की नींद खुल गई और वो मेरी आँखों में देखने लगी, फिर मेरे गाल को चूम कर वो बाथरूम में घुस गईं| दरअसल उन्होंने मेरा morning wood देख लिया था| यही वो कारन है की मैं रोज उनसे पहले उठ जाता था ताकि वो मेरा morning wood न देख लें| उसे देख कर वो मेरे बारे में गलत ही सोचेंगी|


P.S. Morning Wood का मतलब होता है जब लड़के सुबह सो कर उठते हैं तो उनका लंड टाइट खड़ा होता है उसे ही Morning Wood कहते हैं|


मैं बहुत शर्मा रहा था ये सोच कर की अनु मेरे बारे में क्या सोचती होगी? उन्हें लगता होगा की कैसा ठरकी लड़का है, एक रात साथ चिपक कर क्या सोइ की इसके लंड खड़ा हो गया! मैं यही सोचता हुआ बालकनी में बैठा था, अनु बाथरूम से बाहर निकलीं और चाय बनाने लगी| मैं अब भी शर्म के मारे बाहर बैठा था| "क्या हुआ?" अनु ने मुझे चाय देते हुए पुछा| मैं कुछ नहीं बोला बस सर झुकाये उनसे चाय ले ली| पर वो चुप कहाँ रहने वाली थीं, इसलिए मेरे पीछे पड़ गईं तो मैंने हार कर हकलाते-हकलाते कहा: "व...वो ...सुबह...मैं...वो... hard ...था!" मैं उनसे पूरी बात कहने से डर रहा था| पर वो समझ गईं और हँसने लगी; "तो क्या हुआ?"

"आपको नहीं देखना चाहिए था!.... I mean ... मुझे जल्दी उठना चाहिए था! रोज इसीलिए तो जल्दी उठ जाता हूँ|" मैंने कहा|

"ये पहलीबार तो नहीं देखा!" अनु ने चाय की चुस्की लेते हुए आँखें नीचे करते हुए कहा| पर ये मेरे लिए shock था; "क्या? आपने कब देख लिया?"

"तुम्हें क्या लगता है की मैं रात को उठती नहीं हूँ? Its okay .... ये तो नार्मल बात है!" अनु ने कहा पर मेरे शर्म से गाल लाल थे! "आय-हाय! गाल तो देखो, सेब जैसे लाल हो रहे हैं!" अनु ने मेरी खिंचाई शुरू कर दी और मैं हँस पड़ा|


खेर काम बढ़ता जा रहा था और अब हमें एक कॉन्फ्रेंस रूम चाहिए था जहाँ हम किसी से मिल सकें या फिर अगर कोई टीम मीटिंग करनी हो| उसी बिल्डिंग में सबसे ऊपर का फ्लोर खाली था, तो मैंने अनु से उसके बारे में बात की| वो शुरू-शुरू में डरी हुई थी क्योंकि रेंट डबल था पर चूँकि वहाँ कोई और ऑफिस नहीं था जबतक कोई नहीं आता तो हम पूरा फ्लोर इस्तेमाल कर सकते थे! अनु को Idea पसंद आया और हमने मालिक से बात की, अब उसे दो कमरों के लिए तो कोई भी किरायदार मिल जाता पर पूरा फ्लोर लेने वाले कम लोग थे| सारा ऑफिस सेट हो गया था, आज मुझे मेरा अपना केबिन मिला था...मेरा अपना! ये मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी और इसके लिए मैंने बहुत मेहनत भी की थी| अपनी बॉस चेयर को मैं बस एक टक निहारे जा रहा था, मेरे अंदर बहुत ख़ुशी थी जो आँसू बन कर टपक पड़ी| अनु जो मेरे पीछे कड़ी थी उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मुझे ढाँढस बँधाने लगी| "काश मेरे माँ और पिताजी यहाँ होते तो आज उनका कितना गर्व हो रहा होता!" मैंने कहा पर वो सब तो वहाँ रितिका की खुशियों में लीन थे, मुझसे उनका कोई सरोकार नहीं रह गया था| "मानु आज ख़ुशी का दिन है, ऐसे आँसू बहा कर इस दिन को खराब ना करो! I know तुम अपने माँ-पिताजी को miss कर रहे हो पर वो अपनी ख़ुशी में व्यस्त हैं|" अनु ने कहा और तभी बाकी के सारे अंदर आये और मुझे ऐसा देख कर मुझे cheer करने के लिए बोले; "सर आज तो पार्टी होनी चाहिए!"

"अबे यार काम भी कर लिया करो, हर बार पार्टी चाहिए तुम्हें!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा, पर उनकी ख़ुशी के लिए बाहर से खाना मंगा लिया|


इधर US से हमें एक और कॉन्ट्रैक्ट मिल गया और वो भी पूरे साल का| काम डबल हो गया था और अब हमें एक और employee की दरकार हुई और साथ में एक peon भी जो चाय वगैरह बनाये| अब तक तो हम चाय बाहर से पिया करते थे| Peon के लिए हमने रंजीथा को ही रख लिया और एक और employee को अनु ने hire किया| अनु के शुरू के दिनों में वो यहाँ एक हॉस्टल में रहतीं थीं और ये लड़की उनकी रूममेट थी| एक लड़की के आने से लड़के भी जोश में आ गए थे और तीनों उसे काम में मदद करने के बहाने से घेरे रहते| "Guys सारे एक साथ समझाओगे तो कैसे समझेगी वो?" मैंने तीनों की टांग खींचते हुए कहा| ये सुन कर सारे हँस पड़े थे, अनु बड़ा ख़ास ध्यान रखती थी की ये तीनों कहीं इसी के चक्कर में पड़ कर काम-धाम न छोड़ दें और वो जब भी किसी को उस लड़की के साथ देखती तो घूर के देखने लगती और लड़के डर के वापस अपने डेस्क पर बैठ जाते| तीनों लड़के मन के साफ़ थे बस छिछोरपना भरा पड़ा था| अनु ने उसे अपने साथ रखना शुरू कर दिया और ये तीनों मेरे पास आये; "सर देखो न mam ने उसे अपना साथ रख लिया है, सारा टाइम वो उनके साथ ही बैठती है, ऐसे में हम उससे FRIENDSHIP कैसे करें?"

"क्या फायदा यार, आखिर में उसने तुम्हें Friendzone कर देना है!" मैंने कहा|

"सर try try but don't cry!" आकाश बोला|

"अच्छा बेटा, करो try फिर! मैंने कुछ कहा तो मेरी क्लास लग जाएगी!" मैंने ये कहते हुए खुद को दूर कर लिया| फिर एक दिन की बात है मैं और अनु अपने-अपने केबिन में बैठे थे की उस लड़की का boyfriend उसे मिलने ऑफिस आया| वो उससे बात कर रही थी और इधर तीनों के दिल एक साथ टूट गए! मैं ये देख कर दहाड़े मार कर हँसने लगा, सब लोग मुझे ही देख रहे थे और मैं बस हँसता जा रहा था| अनु अपने केबिन से मेरे पास आई और पूछने लगी तो मैंने हँसते हुए उन्हें सारी बात बताई| तो वो भी हँस पड़ीं और तीनों लड़के शर्मा ने लगे और एक दूसरे की शक्ल देख कर हँस रहे थे!

"कहा था मैंने इन्हें की friendzoned हो जाओगे पर नहीं इन्हें try करना था!" मैंने हँसी काबू करते हुए कहा|

"क्या सर एक तो यहाँ कट गया और आप हमारी ही ले रहे हो!" आकाश बोला|

"बेटा भगवान् ने दी है ना एक गर्लफ्रेंड उसी के साथ खुश रहो, अब जा कर पंडित जी के साथ बैठ कर GST की return फाइनल कर के लाओ|" मैंने उसे प्यार से आर्डर देते हुए कहा और वो भी मुस्कुराते हुए चला गया| अनु भी बहुत खुश थी क्योंकि उन्होंने मेरी सब के साथ understanding देख ली थी|


खेर दिन बीते और फिर एक दिन हम दोनों शाम को बैठे चाय पी रहे थे;

मैं: यार थोड़ा बोर हो गया हूँ, सोच रहा हूँ की एक ब्रेक ले लेते हैं!

अनु: सच कहा तो बताओ कहाँ चलें? कोई नई जगह चलते हैं!

मैं: मेरा मन Trekking करने को कर है|

अनु: Wow!!!

मैं: खीरगंगा का ट्रेक छोटा है, वहाँ चलें?

अनु: वो कहा है?

मैं: हिमाचल प्रदेश में है| हालाँकि ये बारिश का सीजन पर मजा बहुत आएगा|

अनु: ठीक है done!

मैं: पर पहले बता रहा हूँ की trekking आसान नहीं होती, वहाँ जा कर आधे रस्ते से वापस नहीं आ सकते| चाहे जो हो ट्रेक पूरा करना होगा!

अनु: तुम साथ हो ना तो क्या दिक्कत है?!

मैं: ठीक है तो तुम टिकट्स बुक करो और मैं Gear खरीदता हूँ|

अनु: Gear?

मैं: और क्या? Ruck Sack चाहिए, raincoat चाहिए, ट्रैकिंग के लिए shoes चाहिए वरना वहाँ फिसलने का खतरा है|

अनु ने टिकट्स book की और जानबूझ कर ऐसे दिन पर करि ताकि वो मेरा बर्थडे वहीं मना सके, इधर मैंने भी अपनी तैयारी पूरी की| 30 अगस्त को हम निकले और दिल्ली पहुँचे, वहाँ दो दिन का stay था| दिल्ली में जो पहली चीज मुझे देखनी थी वो था India Gate, वहाँ पहुँच कर गर्व से सीना चौड़ा हो गया, अब चूँकि मुझ पर कोई खाने-पीने की बंदिश नहीं थी तो मैं अनु को निकल पड़ा| दिल्ली आने से पहले मैंने 'पेट भर' के research की थी जिसके फल स्वरुप यहाँ पर क्या-क्या मिलता है वो सब मैंने लिस्ट में डाल लिया था| सबसे पहले हमने पहाड़गंज में सीता राम दीवान चाँद के छोले भठूरे खाये| हमने एक ही प्लेट ली थी क्योंकि आज हमें पेट-फटने तक खाना था| वहाँ से हम Delhi Metro ले कर चावड़ी बजार आ गए और वहाँ हमने सबसे पहले नटराज के दही भल्ले खाये, फिर जुंग बहादुर की कचौड़ी, फिर जलेबी वाला की जलेबी और लास्ट में कुरेमल की कुल्फी! पेट अब पूरा गले तक भर गया था और अब बस सोना था| अगले दिन भी हम खूब घूमें और शाम 6 बजे चेकआउट किया, उसके बाद हम सीधा कश्मीरी गेट बस स्टैंड आये और वहाँ से हमें Volvo मिली जिसने हमें अगली सुबह भुंतर उतारा| हमारी किस्मत अच्छी थी की बारिशें बंद हो चुकीं थीं इसलिए हमें कोई तकलीफ नहीं हुई| भुंतर से टैक्सी ले कर हम कसोल पहुँचे और वहाँ समान रख कर फ्रेश हुए और सीधा मणिकरण गुरुद्वारे गए वहाँ, गर्म पानी में मुंह-हाथ धोये और लंगर का प्रसाद खाया| वापस आ कर हम सो गए क्योंकि अगली सुबह हमें जल्दी निकलना था| सुबह हमने एक rucksack लिया जिसमें कुछ समान था!

एक बस ने हमें वहाँ उतारा जहाँ से ट्रैकिंग शुरू होनी थी और रास्ता देखते ही दोनों की हवा टाइट हो गई, बिलकुल कच्चा रास्ता जो एक छोटे से गाँव से होता हुआ जाता था और फिर पहाड़ की चढ़ाई! पर वहाँ का नजारा इतना अद्भुत था की हम रोमांच से भर उठे और ट्रैकिंग शुरू की| रास्ता सिर्फ दिखने में ही डरावना था पर वहाँ सहूलतें इतनी थी की कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन सिर्फ आधे रास्ते तक! रुद्रनाग पहुँच कर हमने वहाँ मंदिर में दर्शन किये और आगे बढे, उसके आगे की चढ़ाई बिलकुल खड़ी थी रिस्की थी! ये देख कर अनु ने ना में गर्दन हिला दी| "मैं नहीं जाऊँगी आगे!" अनु बोली|

"यार आधा रास्ता पहुचंह गए हैं और अब हार मान लोगे तो कैसे चलेगा?" ये कहते हुए मैंने उनका हाथ पकड़ा और आगे ले कर चल पड़ा| मैं आगे-आगे था और उन्हें बता रहा था की कहाँ-कहाँ पैर रखना है| आगे हमें के संकरा रास्ता मिला जहाँ सिर्फ एक पाँव रखने की जगह थी और वहाँ थोड़ा कीचड भी था| मैं आगे था और rucksack उठाये हुए था और अनु मेरे पीछे थी| उन्होंने कीचड़ में जूते गंदे ना हो जाएँ ये सोच कर पाँव ऊँचा-नीच रखा जिससे उनका बैलेंस बिगड़ गया और वो खाईं की तरफ गिरने लगीं, मैंने तुरंत फुर्ती दिखाई और उनका हाथ पकड़ लिया वरना वो नीचे खाईं की तरफ गिर जातीं| उन्हें खींच कर ऊपर लाया और वो एक दम से मेरे सीने से लग गईं और रोने लगी| इन कुछ पलों में उन्होंने जैसे मौत देख ली थी, मैंने उनके पीठ को काफी रगड़ा ताकि वो चुप हो जाएँ| आधे घंटे तक हम वहीं खड़े रहे और लोग हमें देखते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे| मैं चुपचाप था और कोशिश कर रहा था की वो चुप हो जाएँ ताकि हम वापिस जा सकें! उन्होंने रोना बंद किया और मैंने उन्हें पीने को पानी दिया, फिर खाने के लिए एक चॉकलेट दी और जब वो नार्मल हो गईं तो कहा; "चलो वापस चलते हैं!" पर वो जानती थी की मेरा मन ऊपर जाने का है इसलिए उन्होंने हिम्मत करते हुए कहा; "मैंने कहा था ना की मुझे संभालने के लिए तुम हो! तो फिर वापस क्यों जाएंगे? गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में। वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले|" अनु ने बड़े गर्व से कहा| मैंने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें उठाया और गले लगाया, उनके माथे को चूमते हुए कहा; "I'm proud of you!" हम आगे चल पड़े और बड़ी सावधानी से आगे बढे, टाइम थोड़ा ज्यादा लगा पर हम ऊपर पहुँच ही गए| सबसे पहले हमने एक टेंट बुक किया और अपना समान रख कर photo click करने लगे| आज दो तरीक थी और अनु को रात बारह बजे का बेसब्री से इंतजार था| हम दोनों कुर्सी लगा कर अपने ही टेंट के बाहर बैठे थे| अब वहाँ कोई नेटवर्क नहीं था तो हम बस बातों में लगे थे और वहाँ का नजारा देख कर प्रफुल्लित थे|

शाम को खाने के लिए वहाँ Maggie और चाय थी तो हमने बड़े चाव से वो खाई| रात के खाने में हमने दो थालियाँ ली और टेंट के बाहर ही बैठ कर खाई| बारह बजे तक अनु ने मुझे सोने नहीं दिया और मेरे साथ बैठ के बातें करती रही, अपने जीवन के किस्से सुनाती रही और मैं भी उन्हें अपने कॉलेज लाइफ के बारे में बताने लगा| इसी बीच मैंने उन्हें वो भांग वाले काण्ड के बारे में भी बताया| जैसे ही बारह बजे अनु ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खड़ा किया और मेरे गले लग कर बोलीं; "Happy Birthday my dear! God bless you!" इतना कहते हुए उनकी आवाज भारी हो गई, माने उन्हें कस कर गले लगा लिया ताकि वो रो ना पड़ें| कुछ देर में वो नार्मल हो गईं और हम सोने के लिए अंदर आ गए| सुबह जल्दी ही आँख खुल गई, फ्रेश होने के बाद उन्होंने मुझे कहा की ऊपर मंदिर चलते हैं| मंदिर के बाहर एक गर्म पानी का स्त्रोत्र था जिसमें सारे लोग नहा रहे थे, हमने हाथ-मुंह धोया और भगवान के दर्शन करने लगे| दर्शन के बाद अनु ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे वहाँ एक पत्थर पर बैठने को कहा| "मुझे तुमसे कुछ बात करनी है!" अनु ने बहुत गंभीर होते हुए कहा| एक पल के लिए मैं भी सोच में पड़ गया की उन्हें आखिर बात क्या करनी है?
 
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"मानु मैं तुमसे प्यार करती हूँ....सच्चा प्यार!" अनु ने गंभीर होते हुए कहा|

"आप ये क्या कह रहे हो?" मैंने चौंक कर खड़े होते हुए कहा|

"जब हम कुमार के ऑफिस में प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे तभी मुझे तुमसे प्यार हो गया था! पर मैं उस समय कुमार की पत्नी थी, इसलिए कुछ नहीं बोली! बड़ी हिम्मत लगी और फिर तुम्हारे सहारे के कारन मैं आजाद हुई| फिर घरवालों ने मुझे अकेला छोड़ दिया ओर ऐसे में मैं तुम्हारे लिए बोझ नहीं बनना चाहती थी| इसलिए तुम से दूर बैंगलोर आ गई और सोचा की जिंदगी दुबारा शुरू करूँगी पर तुम्हारी यादें साथ नहीं छोड़ती थीं| बहुत कोशिश की तुम्हें भुलाने की और भूल भी गई, इसलिए मैंने अपना नंबर बदल लिया था क्योंकि मेरा मन जानता था की तुम मुझे कभी नहीं अपनाओगे| देखा जाए वो सही भी था क्योंकि उस टाइम तुम रितिका के थे, अगर मैं तुमसे अपने प्यार का इजहार भी करती तो तुम मना कर देते और तब मैं टूट जाती| बड़े मुश्किल से डरते हुए मैं दुबारा लखनऊ आई, क्योंकि जानती थी की तुम्हारे सामने मैं खुद को संभाल नहीं पाऊँगी पर एक बार और अपने मम्मी-डैडी से रिश्ते सुधारने की बात थी, लेकिन उन्होंने तो मुझसे बात तक नहीं की और घर से बाहर निकाल दिया| फिर उस रात जब मैंने तुम्हें उस बस स्टैंड पर देखा तो मैं बता नहीं सकती मुझ पर क्या बीती| दूर से देख कर ही मन कह रहा था की ये तुम नहीं हो सकते, तुम्हारी ऐसी हालत नहीं हो सकती! वो रात मैंने रोते-रोते गुजारी ....फिर ये तुम्हारी बिमारी और वो सब.... मैंने बहुत सम्भलने की कोशिश की पर ये दिल अब नहीं सम्भलता!" अनु ने रोते-रोते कहा|

"आप मेरे बारे में सब नहीं जानते, अगर जानते तो प्यार नहीं नफरत करते!" मैंने उनका कन्धा पकड़ कर उन्हें झिंझोड़ते हुए कहा|

"क्या नहीं पता मुझे?" अनु ने अपना रोना रोकते हुए पुछा?

"मेरे और रितिका के रिश्ते के बारे में|" मैंने उनके कन्धों को छोड़ दिया|

"तुम उससे प्यार करते थे और उसने तुमसे धोखा किया, बस!" अनु ने कहा|

"बात इतनी आसान नहीं है!..... हम दोनों असल जिंदगी में चाचा-भतीजी थे!" इतना कहते हुए मैंने उन्हें सारी कहानी सुना दी, उसकं ुझे धोखा देने से ले कर उसकी शादी तक सब बात!

"तो इसमें तुम्हारी क्या गलती थी? आई वो थी तुम्हारे पास, तुम तो अपने रिश्ते की मर्यादा जानते थे ना? तभी तो उसे मना कर रहे थे, और रिश्ते क्या होते हैं? इंसान उन्हें बनाता है ना? हमारा ये दोस्ती का रिश्ता भी हमने बनाया ना? अगर तुमने उससे अपने प्यार का इजहार किया होता तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता! फर्क पड़ता है तो सिर्फ इस बात से की अभी तुम क्या चाहते हो? क्या तुम उससे अब भी प्यार करते हो? क्या तुम्हारे दिल में उसके लिए अब भी प्यार है?" अनु ने मुझे झिंझोड़ते हुए पुछा| में अनु की बातों में खो गया था, क्योंकि जिस सरलता से वो इस सब को ले रहे थीं वो मेरे गले नहीं उतर रही थी! पर उनका मुझे झिंझोड़ना जारी था और वो जवाब की उम्मीद कर रहीं थीं|

"नहीं....मैं उससे सिर्फ नफरत करता हूँ! उसकी वजह से मुझे मेरे ही परिवार से अलग होना पड़ा!" मैंने कहा|

"तो फिर क्या प्रॉब्लम है? इतने दिनों में एक छत के नीचे रहते हुए तुम्हें कभी नहीं लगा की तुम्हारे दिल में मेरे लिए थोड़ा सा भी प्यार है?" अनु ने पुछा|

"हुआ था...कई बार हुआ पर...मुझ में अब दुबारा टूटने की ताक़त नहीं है|" मैंने अनु की आँखों में देखते हुए कहा| ये मेरा सवाल था की क्या होगा अगर उन्होंने भी मेरे साथ वही किया जो रितिका ने किया|

"मैं तुम्हें कभी टूटने नहीं दूँगी! मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ!" अनु ने पूरे आत्मविश्वास से कहा| उस पल मेरा दिमाग सुन्न हो चूका था, बस एक दिल था जो प्यार चाहता था और उसे अनु का प्यार सच्चा लग रहा था| पर खुद को फिर से टूटते हुए देखने का डर भी था जो मुझे रोक रहा था|

"मैं तुम्हारा डर समझ सकती हूँ, पर हाथ की सभी उँगलियाँ एक सी नहीं होतीं| अगर एक लड़की ने तुम्हें धोखा दिया तो जर्रूरी तो नहीं की मैं भी तुम्हें धोका दूँ? उसके लिए तुम बाहर जाने का रास्ता थे, पर मेरे लिए तुम मेरी पूरी जिंदगी हो!" मेरा दिल अनु की बातें सुन कर उसकी ओर बहने लगा था, पर जुबान खामोश थी!

"हाँ अगर तुम्हें मेरी उम्र से कोई प्रॉब्लम है तो बात अलग है!" अनु ने माहौल को हल्का करते हुए कहा| पर मुझे उनकी उम्र से कोई फर्क नहीं पड़ता था, बस दिल टूटने का डर था!

"I love you!!!" मैंने एकदम से उनकी आँखों में देखते हुए कहा|

"I love you too!!!!" अनु ने एकदम से जवाब दिया और मेरे गले लग गई| हम 10 मिनट तक बस ऐसे ही गले लगे रहे, कोई बात-चीत नहीं हुई बस दो बेक़रार दिल थे जो एक दूसरे में करार ढूँढ रहे थे| "तो शादी कब करनी है?" अनु बोली और मैंने उन्हें अपने आलिंगन से आजाद किया|

"पहले इस पहाड़ से तो नीचे उतरें!" माने मुस्कुराते हुए कहा| हम दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर अपने टेंट की तरफ आ रहे थे की तभी अनु बोली; "मैं बड़ी खुशनसीब हूँ, यहाँ आई थी एक दोस्त के साथ और जा रही हूँ हमसफ़र के साथ!"

"खुशनसीब तो मैं हूँ जो मुझे तुम्हारे जैसा साथी मिला, जो मेरे सारे दुःख बाँट रहा है!" मैंने कहा|

"मैं तुम्हें इतना प्यार दूँगी की तुम सारे दुःख भूल जाओगे!" अनु ने मुस्कुराते हुए आत्मविश्वास से कहा|

'जो तू मेरा हमदर्द है.....सुहाना हर दर्द है!" मैंने कहा और अनु के सर को चूम लिया|

हमने बैग उठाया और नीचे उतर चले| इस वक़्त हम दोनों ही एक अजीब से जोश से भरे हुए थे, वो प्यार जो हम दोनों के दिलों में धधकरहा था ये उसी की ऊर्जा थी| रास्ते भर हमने जगह-जगह पर फोटोज क्लिक करी| दोपहर होते-होते हम कसोल वापस पहुँचे और सबसे पहले मैंने नूडल पैक करवाए| हाय क्या नूडल्स थे! ऐसे नूडल माने आजतक नहीं खाये थे! मैंने एक पौवा रम ली और 'माल' भी लिया! रूम पर आ कर पहले हम दोनों बारी-बारी नहाये और फिर नूडल खाने लगे, मैंने एक-एक पेग भी ना कर रेडी किया| अब रम में होती है थोड़ी बदबू जो अनु को पसंद नहीं आई| "eeew .....तुम तो हमेशा अच्छी वाली पीते हो तो आज रम क्यों?" अनु ने नाक सिकोड़ते हुए कहा| "इंसान को कभी अपनी जड़ नहीं भूलनी चाहिए! रम से ही मैंने शुरुआत की थी और पहाड़ों पर रम पीने का मजा ही अलग होता है|" मैंने कहा और नाक सिकोड़ कर ही सही पर अनु ने पूरा पेग एक सांस में खींच लिया| जैसे ही रम गले से नीचे उत्तरी उनका पूरा जिस्म गर्म हो गया| "Wow ये तो सच में बहुत गर्म है! अब समझ में आया पहाड़ों पर इसे पीने का मतलब!" अनु ने गिलास मेरे आगे सरकाते हुए कहा| "सिर्फ पहाड़ों पर ही नहीं, सर्दी में भी ये 'रम बाण्ड इलाज' है!" मैंने कहा और हम दोनों हंसने लगे| नूडल के साथ आज रम का एक अलग ही सुररोर था और जब खाना खत्म हुआ तो मैंने अपनी 'लैब' खोल दी जिसे देख कर अनु हैरान हो गई! "अब ये क्या कर रहे हो?" अनु ने पुछा|

"इसे कहते हैं 'माल'!" ये कहते हुए मैंने सिगरेट का तम्बाकू एक पेपर निकाला और मलाना क्रीम निकाली, दिखने में वो काली-काली, चिप-चिपि सी होती है| "ये क्या है?" अनु ने अजीब सा मुंह बनाते हुए कहा|

"ये है यहाँ की फेमस मलाना क्रीम!" पर अनु को समझ नहीं आया की वो क्या होती है| "हशीश!" मैंने कहा तो अनु एक दम से अपने दोनों गालों को हाथ से ढकते हुए मुझे देखने लगी! "Hawwww .... ये तो ड्रग्स है? तुम ड्रग्स लेते हो?" अनु ने चौंकते हुए कहा| उनका इतना लाउड रिएक्शन का कारन था रम का असर जो अब धीरे-धीरे उन पर चढ़ रहा था|

"ड्रग्स तो अंग्रेजी नशे की चीजें होती हैं, ये तो नेचुरल है! ये हमें प्रकृति देती है!" मैंने अपनी प्यारी हशीश का बचाव करते हुए कहा जिसे सुन अनु हँस पड़ी| मैंने हशीश की एक छोटी गोली को माचिस की तीली पर रख कर गर्म किया और फिर उसे सिगरेट के तम्बाकू में दाल कर मिलाया और बड़ी सावधानी से वापस सिगरेट में भर दिया| सिगरेट मुँह पर लगा कर मैंने पहला कश लिया और पीठ दिवार से टिका कर बैठ गया| आँखें अपने आप बंद हो गईं क्योंकि जिस्म को आज कई महीनों बाद असली माल चखने को मिला था| "इसकी आदत तो नहीं पड़ती?" आने ने थोड़ा चिंता जताते हुए पुछा|

"इतने महीनों में तुमने कभी देखा मुझे इसे पीते हुए? नशा जब तक कण्ट्रोल में रहे ठीक होता है, जब उसके लिए आपकी आत्मा आपको परेशान करने लगे तब वो हद्द से बाहर हो जाता है|" मैंने प्रवचन देते हुए कहा, पिछले साल यही तो सीखा था मैंने!

"मैं भी एक puff लूँ?" अनु ने पुछा तो मैंने उन्हें सिगरेट दे दी| उन्होंने एक छोटा सा ड्रैग लिया और खांसने लगी और मुझे सिगरेट वापस दे दी| मैंने उनकी पीठ सहलाई ताकि उनकी खांसी काबू में आये| उनकी खांसी काबू में आई और मैंने एक और ड्रैग लिया और फिर से आँख मूँद कर पीठ दिवार से लगा कर बैठ गया| तभी अचानक से अनु ने मेरे हाथ से सिगरेट ले ली और एक बड़ा ड्रैग लिया, इस बार उन्हें खांसी नहीं आई, दस मिनट बाद वो बोलीं; "कुछ भी तो नहीं हुआ? मुझे लगा की चढ़ेगी पर ये तो कुछ भी नहीं कर रही!" अनु ने चिढ़ते हुए कहा|

"ये दारु नहीं है, इसका असर धीरे-धीरे होगा, दिमाग सुन्न हो जाएगा| मैंने कहा| पर उस पर रम की गर्मी चढ़ गई तो अनु ने अपने कपडे उतारे, अब वो सिर्फ एक पतली सी टी-शर्ट और काप्री पहने मेरे बगल में लेती थीं और फोटोज अपलोड करने लगी| इधर उनकी फोटोज अपलोड हुई और इधर मेरे फ़ोन में नोटिफिकेशन की घंटियाँ बजने लगी| मैंने फ़ोन उठाया ही था की अनु ने फिर से मेरे हाथ से सिगरेट ली और एक बड़ा ड्रैग लिया, उनका ऐसा करने से मैं हँस पड़ा और वो भी हँस दीं| मैंने अपना फ़ोन खोल के देखा तो 30 फेसबुक की नोटिफिकेशन थी! मैं हैरान था की की इतनी नोटिफिकेशन कैसे! मैंने जब खोला तो देखा की अनु ने हम दोनों की एक फोटो डाली थी और caption में लिखा था; 'He said YESSSSSSS! I Love You!!!' अनु के जितने भी दोस्त थे उन सब ने फोटो पर Heart react किया था और congratulations की झड़ी लगा दी थी! तभी आकाश का कमेंट भी आया है; "Congratulations sir and mam!" मैं मुस्कुराते हुए अनु को देखने लगा जो मेरी तरफ ही देख रही थी| चेहरे पर वही मुस्कुराहट लिए और रम और हशीश के नशे में चूर उनका चेहरा दमक रहा था| "चलो अब सो जाओ!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और लास्ट ड्रैग ले कर मैं दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गया| अनु ने मेरे कंधे पर हाथ रख मुझे अपनी तरफ घुमाया और मेरे से चिपक कर लेट गई| आज पता नहीं क्यों पर मेरे जिस्म में एक झुरझुरी सी पैदा हुई और मेरा मन बहकने लगा| बरसों से सोइ हुई प्यास भड़कने लगी, दिल की धड़कनें तेज होने लगीं और मन मेरे और अनु के बीच बंधी दोस्ती की मर्यादा तोड़ने को करने लगा| मेरे शरीर का अंग जिसे मैं इतने महीनों से सिर्फ सु-सु करने के लिए इस्तेमाल करता था आज वो अकड़ने लगा था, पर कुछ तो था जो मुझे रोके हुए था| मैंने अनु की तरफ देखा तो उसकी आँख लग चुकी थी, मैंने खुद को धीरे से उसकी गिरफ्त से निकाला और कमरे से बाहर आ कर बालकनी में बैठ गया| सांझ हो रही थी और मेरा मन ढलते सूरज को देखने का था, सो मैं बाहर कुर्सी लगा कर बैठ गया| जिस अंग में जान आई थी वो वापस से शांत हो गया था, दिमाग ने ध्यान बहारों पर लगा दिया| कुछ असर सिगरेट का भी था सो मैं चुप-चाप वो नजारा एन्जॉय करने लगा| साढ़े सात बजे अनु उठी और मुझे ढूंढती हुई बाहर आई, पीछे से मुझे अपनी बाहों में भर कर बोली; "यहाँ अकेले क्या कर रहे हो?"

"कुछ नहीं बस ढलती हुई सांझ को देख रहा था|" ये सुन कर अनु मेरी गोद में बैठ गई और अपना सर मेरे सीने से लगा दिया| उसके जिस्म की गर्माहट से फिर से जिस्म में झूझुरी छूटने लगी और मन फिर बावरा होने लगा, दिल की धड़कनें तेज थीं जो अनु साफ़ सुन पा रही थी| शायद वो मेरी स्थिति समझ पा रही थी इसलिए वो उठी और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अंदर ले आई| दरवाजा बंद किया और मेरी तरफ बड़ी अदा से देखा| उनकी ये अदा आज मैं पहली बार देख रहा था और अब तो दिल बगावत कर बैठा था, उसे अब बस वो प्यार चाहिए था जिसके लिए वो इतने दिनों से प्यासा था| अनु धीरे-धीरे चलते हुए मेरे पास आई और अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और कुछ पलों के लिए हमारी आँखें बस एक दूसरे को देखती रहीं| इन्ही कुछ पलों में मेरे दिमाग ने जिस्म पर काबू पा लिया, अनु ने आगे बढ़ कर मुझे Kiss करना चाहा पर मैंने उनके होठों पर ऊँगली रख दी; "अभी नहीं!" मैंने कहा और अनु को कस कर गले लगा लिया| अनु ने एक शब्द नहीं कहा और मेरी बात का मान रखा| हम वापस बिस्तर पर बैठ गए; "तुम्हारा मन था ना?" अनु ने पुछा|

"था.... पर ऐसे नहीं!!!" मैंने कहा|

"तो कैसे?" अनु ने पुछा|

"शादी के बाद! तब तक हम ये दोस्ती का रिश्ता बरकरार रखेंगे! प्यार भी होगा पर एक हद्द तक!"

"अब पता चला क्यों मैं तुमसे इतना प्यार करती हूँ?!" अनु ने फिर से अपनी बाहों में जकड़ लिया, पर इस बार मेरा जिस्म में नियंत्रण में था|

मेरा खुद को और उनको रोकने का कारन था, समर्पण! हम दोनों एक दूसरे को आत्मिक समर्पण कर चुके थे पर जिस्मानी समर्पण के लिए अनु पूरी तरह से तैयार नहीं थी| इतने महीनों में मैंने जो जाना था वो ये की अनु की सेक्स के प्रति उतनी रूचि नहीं जितनी की होनी चाहिए थी| मैं नहीं चाहता था की वो ये सिर्फ मेरी ख़ुशी के लिए करें और वही गलती फिर दोहराई जाए जो मैंने रितिका के लिए की थी!

अगले दिन हम तैयार हो कर तोश जाने के लिए निकले, यहाँ की चढ़ाई खीरगंगा के मुकाबले थकावट भरी नहीं थी| यहाँ पर बहुत से घर थे और रास्ता इन्हीं के बीच से ऊपर तक जाता था| ऊपर पहुँच कर हमने वादियाँ का नजारा देखा, अनु को इतना जोश आया की वो जोर से चिल्लाने लगी; " I Love You Maanu!" मैं खड़ा हुआ उसे ऐसा देख कर मुस्कुरा रहा था| हमने बहुत साड़ी फोटोज खईंची और वापस कसोल आ गए| शाम की बस थी जो हमें दिल्ली छोड़ती, बस में एक प्रेमी जोड़ा था जिसे देख कर अनु के मन में प्यार उबलने लगा| उसने मेरी बाँह अपने दोनों हाथों में पकड़ ली, जैसे की कोई प्रेमी जोड़ा पकड़ता है| मैंने फ़ोन निकाला और हमारी कल वाली फोटो पर आये कमैंट्स पढ़ने शुरू किये| ऐसा लग रहा था जैसे सारा बैंगलोर जान गया हो, "तैयार हो जाओ, बैंगलोर पहुँचते ही सब टूट पड़ेंगे!" अनु ने कहा| तभी मेरा फ़ोन बजने लगा; "ओ भोसड़ीवाले! हमें बताया भी नहीं तू ने और शादी कर ली?" सिद्धार्थ बोला, ये सुनते ही मेरी हँसी छूट गई| "यार अभी की नहीं है!" मैंने हँसते हुए कहा|

"मुझे तो पहले से ही पता था की तुम दोनों का कुछ चल रहा है!" अरुण बोला, दरअसल सिद्धार्थ का फ़ोन स्पीकर पर था|

"उस दिन जब तूने कहा था न की तू एक खुशखबरी बाँटना चाहता है मुझे तभी लगा था की तूम दोनों शादी की बात कहने वाले हो|" सिद्धार्थ बोला|

"तब तक हम इतने करीब नहीं आये थे ना!" अनु ने बोला, क्योंकि मेरे फ़ोन में हेडफोन्स लगे थे और एक ear पीस अनु के पास था और एक मेरे पास|

"भाभी जी! कब कर रहे हो शादी!" अरुण बोला, ये सुन कर हम दोनों ही हँस पड़े और उधर वो दोनों भी हँस पड़े|

"मैं तो अभी तैयार हूँ पर मानु मान ही नहीं रहा!" अनु ने बात साडी मेरे सर मढ़ते हुए कहा|

"यार अभी हम कसोल में हैं, पहले घर पहुँचते हैं फिर जरा workout करते हैं| चिंता मत करो 'वर दान' तुम ही करोगे!" मैंने कहा, इस बात पर हम चारों हँस पड़े|

इसी तरह हँसते हुए हम अगले दिन दिल्ली पहुँचे और वहाँ से फ्लाइट ली जिसने हमें बैंगलोर छोड़ा| घर पहुँचे तो अनु के जितने भी जानकार थे या दोस्त थे वो सब आ गए और हमें बधाइयाँ दी और सब की जुबान पर एक ही सवाल था की शादी कब कर रहे हो| अभी तक तो हमने नहीं सोचा था की शादी कब करनी है तो उन्हें क्या बताते, हम दोनों ही इस सवाल पर एक दूसरे की शक्ल देख रहे होते और हँस के बात टाल देते| वैसे शादी के नाम से दोनों ही के पेट में तितलियाँ उड़ रहीं थी! पर अनु कुछ सोच रही थी, कुछ था जो वो चाहती थी पर मुझे बता नहीं रही थी| एक दिन की बात है, मैं ऑफिस से जल्दी आया तो देखा अनु बालकनी में चाय का कप पकडे गुम-शूम बैठी है| मैंने चुपके से आ कर उसके सर को चूमा और उसकी बगल में बैठ गया| "क्या हो रहा है?" मैंने पुछा तो अनु ने भीगी आँखों से मेरी तरफ देखा, मैं एक दम से घबरा गया और तुरंत उसके सामने बैठ गया और उसके आँसूँ पोछे! "सुबह से मम्मी-डैडी को दस बार कॉल कर चुकी हूँ पर वो हरबार मेरा फ़ोन काट देते हैं!" अनु ने फिर से रोते-रोते कहा| मैं सब समझ गया, वो चाहती थी की हमारी शादी में उसके मम्मी-डैडी भी शामिल हों और ना केवल शामिल हों बल्कि वो हमें आशीर्वाद भी दें| अब मेरे परिवार ने तो मुझसे मुँह मोड़ लिया था तो उन्हें बता कर भी क्या फर्क पड़ना था! "मम्मी-डैडी घर पर ही हैं ना?" मैंने अनु का चेहरा अपने हाथों में थामते हुए पुछा| तो जवाब में अनु ने हाँ में सर हिलाया, मैंने तुरंत फ़ोन निकाला और कल की फ्लाइट की टिकट्स बुक कर दी| "Pack your bags we're going to your parent's!" मैंने उनकी आँखों में देखते हुए कहा|

"पर वो नहीं मानेंगे! खामाखां बेइज्जत कर देंगे!" अनु ने रोते हुए कहा|

"वो हमसे बड़े हैं, थोड़ा गरिया भी दिए तो क्या? मेरे घरवालों की तरह जान से तो नहीं मार देंगे ना?!" मैंने कहा|

"तुम्हारे लिए जान देनी पड़ी तो दे दूँगी...." अनु इसके आगे कुछ बोलती उससे पहले मैं बोल पड़ा; "वाह! मेरे लिए मरने के लिए तैयार हो और मैं तुम्हारे लिए चार गालियाँ नहीं खा सकता?" मैंने कहा और अनु का हाथ पकड़ कर उसे खड़ा किया और अपने सीने से लगा लिया| अगले दीं हम सीधा अनु के मम्मी-डैडी के घर पहुँचे, मैंने डोरबेल बजाई और दरवाजा अनु की मम्मी ने खोला| उन्होंने पहले मुझे देखा पर मुझे पहचान नहीं पाईं, पर जब उनकी नजर अनु पर पड़ी तो उनके चेहरे पर गुस्सा लौट आया| वो कुछ बोल पातीं उससे पहले ही पीछे से अनु के डैडी आ गए और उन्होंने सीधा अनु को ही देखा और चिल्लाते हुए बोले; "क्यों आई है यहाँ?"

"सर प्लीज... मेरी एक बार बात सुन लीजिये उसके बाद आप जो कहेंगे हम वो करेंगे...आप कहेंगे तो हम अभी चले जाएंगे! बस एक बार इत्मीनान से हमारी बात सुन लीजिये....!" मैंने उनके आगे हाथ जोड़ते हुए कहा| उनके मन में अपनी बेटी के लिए प्यार अब भी था इसलिए उन्होंने हाँ में गर्दन हिला कर हमें अंदर आने दिया, वो हॉल में सोफे पर बैठ गए और उनकी बगल में अनु की मम्मी खड़ी थीं| मैं अब भी हाथ जोड़े खड़ा था और अनु मेरे पीछे सर झुकाये खड़ी थी|

"सर आपकी बेटी उस रिश्ते से खुश नहीं थी, वो एक ऐसे रिश्ते में भला कैसे रह सकती थी जहाँ उसका ख्याल रखने वाला, उसको प्यार करने वाला कोई नहीं था? ऐसा नहीं है की इसने रिश्ता निभाने की कोई कोशिश नहीं की, पूरी शिद्दत से इसने उस आदमी से रिश्ता निभाना चाहा पर अगर कोई साफ़ कह दे की वो किसी और से प्यार करता है और जिंदगी भर उसे ही प्यार करेगा तो ऐसे में अनु क्या करती? आपने शायद मुझे नहीं पहचाना, मेरा नाम मानु है! कुमार ने मुझे ही बलि का बकरा बनाया था ताकि वो अनु से छुटकारा पा सके| वो आदमी कतई अनु के काबिल नहीं था! बचपन से ले कर जवानी तक अनु ने वही किया जो आपने कहा! फिर चाहे वो सब्जेक्ट choose करना हो या कॉलेज सेलेक्ट करना हो, सिर्फ और सिर्फ इसलिए की वो आपको खुश देखना चाहती है| शादी भी सिर्फ और सिर्फ इसलिए की ताकि आप दोनों को ख़ुशी मिले तो क्या उसे हक़ नहीं की वो अपनी जिंदगी थोड़ी सी अपनी ख़ुशी से जी सके?! डाइवोर्स के बाद वो आप पर बोझ न बने इसलिए उसने जॉब की, डाइवोर्स के बाद उसे जो पैसा मिला उससे खुद बिज़नेस शुरू किया और फिर आपके पास लौटी आपका आशीर्वाद लेने और आपको prove करने के लिए की उसने जिंदगी में तर्रक्की पाई है! पर शायद आप तब भी अनु से खफा थे! उस दिन अनु को मैं बहुत बुरी हालत में मिला...." आगे मैं कुछ और बोलता उससे पहले अनु ने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया, वो नहीं चाहती थी की मैं उन्हें रितिका के बारे में सब कहूं| इसलिए मैंने अपनी बात को थोड़ा छोटा कर दिया; "मैं लघभग मरने की हालत में था, जब अनु ने मुझे संभाला और मुझे जिंदगी का मतलब समझाया, मुझे याद दिलाया की जिंदगी कितनी जर्रूरी होती है| मुझे मेरे पाँव पर खड़ा करवाया और अपने साथ बिज़नेस में as a partner ले कर आई| पिछले साल दिसंबर से ले कर अब तक हमने बहुत तरक्की की है, दो कमरे के ऑफिस को आज हमने पूरे फ्लोर पर फैला दिया है| अब जब हम अपनी जिंदगी का एक जर्रूरी कदम लेना चाहते हैं तो हमें आपके प्यार और आशीर्वाद की जर्रूरत है! हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं! आप प्लीज हमें अपना आशीर्वाद दीजिये और हमें अपना लीजिये| आपके अलावा हमारा अब कोई नहीं है और बिना माँ-बाप के आशीर्वाद के हम शादी नहीं कर सकते! बस इसीलिए हम आपके पास आये हैं!" मैंने घुटनों पर बैठते हुए कहा| मेरी बातें उन पर असर कर गईं और उनकी आँखों से अश्रुओं की धारा बह निकली| उन्होंने गले लगाने को अपनी बाहें खोली और अनु भागी-भागी गई और उनके गले लग गई| मैं उठ कर खड़ा हुआ और ये मिलन देख कर मेरी भी आँखें नम हो चली थीं, क्योंकि मैं अपने माँ-बाप को miss कर रहा था| अनु से गले मिलने के बाद अनु के डैडी ने मुझे भी गले लगने को बुलाया| मैं ने पहले उनके पाँव छुए और फिर उनके गले लग गया, आज बरसों बाद मुझे वही गर्मी का एहसास मिला जो मुझे मेरे पिताजी से गले लगने के बाद मिलता था| उनसे गले लगने के बाद अनु की मम्मी ने भी मुझे गले लगने को बुलाया| मैंने पहले उनके पाँव छुए और फिर उन्होंने मेरे माथे पर चूमा और फिर अपने गले से लगा लिया| उनसे गले लग कर मुझे माँ की फिर याद आ गई|

अनु के मम्मी-डैडी ने हमें अपना लिया था, और अनु बहुत खुश थी! उन्होंने मुझे बिठा कर मुझसे मेरे परिवार के बारे में पुछा और मैंने उन्हें सब बता दिया| फिर मम्मी जी ने एक सवाल पुछा जो उनकी तसल्ली के लिए जर्रूरी था;

मम्मी जी: बेटा बुरा ना मानो तो एक बात पूछूँ?

मैं: जी जर्रूर

मम्मी जी: बेटा तुम्हारी उम्र कितनी है?

मैं: जी 28

मम्मी जी: अनु 34 की है और फिर डिवोर्सी भी है| तुम्हें इससे कोई परेशानी तो नहीं? बुरा मत मानना बेटा पर तुम या तुम्हारे परिवार वाले इसके लिए राजी होंगे?

मैं: Mam मेरे घरवालों ने मुझे घर से निकाल दिया, क्योंकि मैंने अपनी भतीजी की शादी में हिस्सा लेने की बजाय अपना career चुना! इसलिए उनका शादी में आने का सवाल ही पैदा नहीं होता! रही मेरी बात तो Mam, I assure you की मुझे अनु के डिवोर्सी होने से या उम्र में ज्यादा होने से कोई फर्क नहीं पड़ता! मैंने उनसे प्यार उनकी उम्र या उनका marital status देख कर नहीं किया|

डैडी जी: वो सब तो ठीक है बेटा पर ये तुमने sir-mam क्या लगा रखा है? तुम यहाँ कोई इंटरव्यू देने थोड़े ही आये हो?

अनु: डैडी इंटरव्यू ही तो देने आये हैं, मेरे हस्बैंड की जॉब का इंटरव्यू!

ये सुन कर सब हँसने लगे|

डैडी जी: बेटा जब हम अनु के मम्मी-डैडी हैं तो तुम्हारे भी हुए ना?

अनु: डैडी ये ऐसे ही हैं! मुझे भी पहले ये mam ही कह कर बुलाते थे, वो तो मैंने कहा तब जा कर मेरा नाम लेना शुरू किया|

मम्मी जी: बेटा Chivalry होना अच्छी बात है पर अपनों में नहीं!

मैं: जी मम्मी जी!

डैडी जी: शाबाश!

वो पूरा दिन मैं उन्हीं के पास बैठा और हमारी बहुत सी बातें हुई जिससे उन्हें ये पता चल गया की मैं कैसा लड़का हूँ| रात को खाने के बाद सोने की बारी आई; वहाँ बस दो ही कमरे थे एक मम्मी-डैडी का और एक अनु का| अनु तो अपने ही कमरे में सोने वाली थी, मैंने सोचा मैं हॉल में ही सो जाता हूँ| पर तभी मम्मी जी आ गईं;

मम्मी जी: बेटा तुम यहाँ नहीं सोओगे!

अनु: तो क्या मेरे कमरे में? (अनु ने मजे लेने की सोची!)

मम्मी जी: वो शादी के बाद अभी मानु तेरे डैडी के साथ सोयेगा और मैं तेरे साथ! (मम्मी जी ने अनु के साथ थोड़ा मजाक में बात की और ये देख मैं मुस्कुराने लगा|)

अनु: डैडी रात में खरांटें मारते हैं!

मैं: मेरी चिंता मत करो, मैं और डैडी जी तो रात भर बातें करेंगे!

तभी डैडी जी भी आ गए|

डैडी जी: कौन बोला मैं खर्राटें मारता हूँ?

मैंने एक दम से अनु की तरफ ऊँगली कर दी|

डैडी जी: अच्छा? और जो तू 10 साल की उम्र तक रात को डर के मारे बेड गीला कर देती थी वो?

ये सुन कर मैं, मम्मी जी और डैडी जी हँस पड़े और अनु शर्म से लाल हो गई!

मैं: डैडी जी ये आपने सही बात बताई, बहुत टांग खींची है मेरी अब मेरी बारी है! आज रात तो सारे राज जानूँगा मैं तुम्हारे! (मैंने हँसते हुए कहा|)

अनु: प्लीज डैडी कुछ मत बताना वरना ये साड़ी उम्र मुझे चिढ़ाते रहेंगे!

मैं: नहीं प्लीज डैडी मुझे सब बताना, ये मेरी बहुत खिंचाई करती है|

डैडी जी: मैं तो बता कर रहूँगा!

तो इस तरह मजाक-मस्ती में वो रात गुजरी, अगली सुबह ही हम सब उनके पंडित के पास चल दिए और उन्होंने मेरी जन्म तिथि से मेरी कुंडली बनाई और शादी की तारिख 23 फरवरी निकाली| अब तारिख सुन कर हम दोनों का मुँह फीका हो गया, मम्मी जी ने अनु के गाल पकड़ते हुए कहा; "बड़ी जल्दी है तुझे शादी करने की!" उनकी बात सुन हम सब हँस दिए|


अब मम्मी-डैडी को बैंगलोर में हमारा घर देखना था और उन्हें ये नहीं पता था की हम 1BHK में रह रहे हैं वरना वो बहुत गुस्सा करते! हम ने सोचा की पहले एक 2 BHK लेते हैं और फिर उन्हें वहाँ बुला आकर घर दिखाएँगे| तो तय ये हुआ की इस साल दिवाली वो हमारे साथ बैंगलोर में ही मनाएंगे| हम हँसी-ख़ुशी वापस आये और अनु ने House Hunting का काम पकड़ लिया और मुझे पहले के पेंडिंग काम करने पड़े| अनु घर शॉर्टलिस्ट करती और रोज शाम को मुझे अपने साथ देखने के लिए ले जाती| ऐसे करते-करते 20 दिन हो गए और हमें finally पाने सपनो का घर मिल गया| हमने मिल कर उसे सजाया, ये वो खरोंदा था जहाँ हमारी नई जिंदगी शुरू होने वाली थी! दिवाली में 10 दिन रह गए थे और मम्मी-डैडी आ गए थे| उन्हें पिक करने मैं ही गया था और नए घर में आ कर वो बहुत खुश थे| अनु ने उन्हें हमारे पुराने घर के बारे में सब सच बता दिया था और उन्होंने हमें कुछ नहीं कहा| वो जानते थे की बच्चे बड़े हो गए हैं और समझदार भी! अगले दिन हम दोनों मम्मी-डैडी को ऑफिस ले गए और अपना ऑफिस दिखाया, डैडी जी हमारे लिए एक गणपति जी की मूर्ति लाये थे जो उन्होंने ऑफिस के मंदिर में खुद रखी| फिर दिवाली की पूजा हुई और उन्होंने अपने हाथ से सारे स्टाफ को बोनस दिया| घर पर पूजा भी पूरे विधि-विधान से हुई और उन्होंने हमें ढेर सारा आशीर्वाद दिया| कुछ दिन बैंगलोर घूमने के बाद वो वापस लखनऊ चले गया| उनके जाने के अगले दिन मेरे फ़ोन पर कॉल आया, मैंने बिना देखे ही कॉल उठा लिया और फिर एक भारी-भरकम आवाज मेरे कान में पड़ी; "बेटा....घर आजा...." ये आवाज मेरे ताऊ जी की थी और उनकी आवाज से दर्द साफ़ झलक रहा था.... उनके आगे कुछ कहने से पहले ही मेरी जुबान ने हाँ कह दिया| मैंने तुरंत अपना बैग उठाया और उसमें कपडे ठूसने लगा, अनु ने मुझे ऐसा करते देखा तो वो घबरा गई; "क्या हुआ?" उसने पुछा| पर मेरे कहने से पहले ही उसे मेरी आँखों में आँसू नजर आ गए; "ताऊ जी का फ़ोन था...मुझे कुछ दिन के लिए गाँव जाना होगा!" मैंने खुद को संभालते हुए कहा| "मैं भी चलती हूँ!" अनु ने घबराते हुए कहा| "नहीं....अभी नहीं! पहले मुझे जाने दो, फिर मैं तुम्हें कॉल करूँगा तब आना|" मैंने कहा और अनु एकदम से मेरे सीने से लग गई, उसे डर लग रहा था की मैं कहीं उसे छोड़ कर तो नहीं जा रहा? "Baby ... डरो मत.... मैं वापस आऊँगा! I Promise!!!" मैंने अनु के आँसूँ पोछते हुए कहा| अनु को यक़ीन हो गया और वो मुझे छोड़ने के लिए एयरपोर्ट तक आई और आँखों में आँसू लिए बोली; "मैं तुम्हारा इंतजार करुँगी!" मैंने अपने दोनों हाथों से उनके चेहरे को थामा और माथे को चूमा; "जल्दी आऊँगा!" ये कहते हुए मैं एयरपोर्ट के अंदर घुसा और फ्लाइट में बैठ कर लखनऊ पहुंचा और वहाँ से बस पकड़ कर घर की ओर चल दिया| जहाँ पिछली बार मेरी आँखों में आँसू थे क्योंकी मेरे अपनों ने ही मुझे घर से निकाल दिया था वहाँ आज एक अजीब सी ख़ुशी थी की मेरे परिवार ने मुझे फिर वापस बुलाया|
 
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ख़ुशी-ख़ुशी मैं बस से उतरा और अपने बचपन के हसीन दिन याद करता हुआ घर की ओर चल पड़ा| साड़ी पुरानी सुखद यादें ताज़ा हो चुकीं थीं और घरवालों से मिलने की बेचैनी बढ़ती जा रही थी| घर पहुँचा और दरवाजा खटखटाया तो ताऊ जी ने दरवाजा खोला| मुझे देखते ही उनकी आँखिन नम हो गईं, मैंने झुक कर उनके पाँव छुए और उन्होंने तुरंत मुझे अपने गले लगा लिया| रोती हुई आवाज में वो बस इतने बोले; "तेरी माँ...." इतना सुनते ही मेरे मन की ख़ुशी गायब हो गई और डर सताने लगा की कहीं उन्हें कुछ हो तो नहीं गया| मैं तुरंत माँ के कमरे की तरफ दौड़ा वहाँ जा के देखा तो माँ लेटी हुई थी और पिताजी उनकी बगल मैं बैठे थे| जैसे ही माँ की नजर मुझ पर पड़ी उन्होंने मुझे गले लगाने को तुरंत अपने हाथ खोल दिए, मैंने अपना बैग बाहर ही छो कर अंदर आया और माँ के गले लग गया| माँ का शरीर कमजोर हो गया था पर अब भी उनके कलेजे में वो तपिश थी जो पहले हुआ करती थी| माँ ने रोना शुरू कर दिया और मैं भी खुद को रोने से ना रोक पाया| पिताजी जो अभी तक सर झुका कर बैठे थे मुझे देखते ही उठ खड़े हुए और शर्म से उनका सर झुक गया, पीछे ताई जी, ताऊ जी और भाभी भी चुप-चाप आ कर खड़े हो गए| सभी की आंखें भीगी हुई थीं पर मेरा ध्यान अभी सिर्फ और सिर्फ मेरी माँ पर था| माँ ने रोती हुई आवाज में कहा; "मुझे माफ़ कर दे बेटा!" पर मैं उन के मुँह से कुछ नहीं सुनना चाहता था क्योंकि वो बहुत बीमार थीं इसलिए मैं ने उनको आगे कुछ बोलने का मौका ही नहीं दिया| "बस माँ... सब भूल जाओ!" मैंने कहा और जब मैं उनके पास से उठा तो मैंने सब को अपने पीछे खड़ा पाया| सबसे पहले ताई जी आगे आईं और मैंने उनके पाँव छुए और उन्होंने मुझे अपने गले लगा लिया| "बेटा....माफ़ कर दे....!" ताई जी ने रोते-रोते कहा| "छोडो ताई जी!" मैंने बस इतना ही कहा| उसके बाद भाभी भी मेरे गले लग गईं और मुझे उनके पाँव छूने का मौका ही नहीं दिया| "मानु भैया! मुझसे भी नराज हो!" भाभी ने रोते-रोते कहा| मैंने धीरे से कहा; "भाभी आपने तो कुछ किया ही नहीं?" फिर नजर पिताजी पर पड़ी जो सर झुकाये खड़े थे, मैं उनके पास पहुंचा और उनके पाँव छूने को झुका तो उन्होंने सीधा मुझे अपने गले लगा लिया और फूट-फूट के रोने लगे| "बेटा...मेरे पास अलफ़ाज़ नहीं कुछ कहने को....मैंने अपने ही बेटे को धक्के मार कर घर से निकाला, उसके मुँह पर दरवाजा बंद कर दिया! मुझे तो मर जाना चाहिए!" पिताजी रोते हुए बोले| "बस पिताजी...आपको पूरा हक़ है!" मैंने कहा और खुद को रोने से रोका| जब मैं वापस पलटा तो ताऊ जी बोले; "बेटा तू क्या गया घर से, इस घर की किस्मत ने हम से मुँह मोड़ लिया! तेरे साथ जो हमने किया उसी के कारन हम लोगों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा! 8 जुलाई को कुछ हमलावर लोग उसके ससुराल में घुस आये और इसके सास-ससुर और पति को जान से मर दिया| वो तो शुक्र है की उसने खुद को घर के गुसल खाने में छुपा लिया था वर्ण वो लोग इसे भी मार देते! पूरा का पूरा खानदान खत्म हो गया! पुलिस का चक्कर हुआ और चार महीने तक हमें इसी घर में कैद रखा गया ताकि कहीं हम लोगों पर भी हमला ना हो जाए| इन चार महीनों में सारा खेती-बाड़ी का काम खराब हो गया, फिर तेरी माँ ने अन्न-जल त्याग दिया और कहने लगी जब तक मेरा बेटा नहीं आ जाता तब तक मैं कुछ नहीं खाऊँगी! तब मैंने तुझे फ़ोन किया! और तुम लोग जानते हो, मैंने बस इतना कहा की बेटा घर आजा और इसने एक शब्द नहीं कहा और सीधा घर आगया! इसके मन में हम में से किसी के लिए दिल में कोई मलाल नहीं और हमने ऐसे फ़रमाबरदार लड़के के साथ जो सलूक किया ये सब उसकी का फल है!" ताऊ जी बोले|

"ताऊ जी जो हुआ सो हुआ! आप सब मेरा परिवार हो और अगर आपने मुझे घर से निकाला भी तो क्या हुआ? आपको पूरा हक़ था!" मैंने अपने आँसू पोछते हुए कहा| तभी पीछे छुपी हुई रितिका सामने आई, आँखें आंसुओं से लाल, काली साडी पहने हुए और आ कर सीधा मेरे गले लग गई| मेरे जिस्म को ऐसा लगा जैसे की किसी काले साये ने मुझे दबोच लिया हो, मैंने तुरंत उससे खुद से अलग कर दिया| सब ने मेरा ये बर्ताव देखा और ताई जी बोलीं; "माफ़ कर दे इसे बेटा! इस बेचारी ने बहुत कुछ सहा है!"

"कभी नहीं ताई जी! इसे तो मरते दम तक माफ़ नहीं करूँगा! इसके कारन मुझे मेरे ही घर से मेरे ही परिवार ने निकाल दिया और ये खड़ी चुप-चाप सब देखती रही| आपको याद है न इसके बचपन के दिन, जब आप सब इसे डाँटा और झिड़का करते थे? तब मैं इसे बचाता था और उस दिन इसके मुँह से एक शब्द नहीं फूटा!" ये सुन कर सब का सर झुक गया, मेरे दिल में आग तो इस बात की लगी थी की इस लड़की ने मुझे अपने प्यार के जाल में फंसा कर मेरा इस्तेमालक किया पर वो मैं कह नहीं सकता था| इसलिए मैंने बात को नया मोड़ दिया था| अब मैं अपने परिवार को और दुखी नहीं देखना चाहता था और ऊपर से मुझे माँ की भी चिंता थी; "ताऊ जी मैं जा कर डॉक्टर को ले आता हूँ|" इतना कहते हुए मैं बाहर निकला और कुछ दूरी पर पहुँच कर मैंने अनु को फ़ोन मिलाया और उसे सारी बात बताई| माँ की हालत खराब सुन वो आने की जिद्द करने लगी पर मैंने उसे समझाया की ये समय ठीक नहीं है| एक बार उनकी तबियत ठीक हो जाए मैं उन्हें सब कुछ बता दूँगा और तब अनु को माँ से मिलवाऊँगा|

"ऋतू के साथ ....." आगे अनु कुछ कह पाती उससे पहले मैंने उसकी बात बीच में काट दी; "ऋतू नहीं रितिका! दुबारा ये नाम कभी अपनी जुबान पर मत लाना! मैं ये नहीं कहूंगा की जो हुआ वो अच्छा हुआ पर मुझे उससे घंटा कोई फर्क नहीं पड़ा! जब उसकी बला से मैं जीऊँ या मरुँ तो मेरी बला से वो जिये या मरे!" मैंने गुस्से से कहा|

"ok ...ok ... calm down! इस वक़्त तुम्हें घर को संभालना है, कहीं इतना गुस्सा कर के खुद बीमार न पड़ जाना|" अनु ने कहा| कॉल काट कार मैं कुछ दूर आया हूँगा की मुझे संकेत मिल गया| उसने अपनी बाइक रोकी और उतर कर मेरे गले लग कर रोने लगा| "भाई....." इसके आगे वो कुछ नहीं बोला| "देख मैं आ गया हूँ तो सब कुछ ठीक हो जायेगा| वैसे ये बता की घडी कैसी लगी?" मैंने बात बदलते हुए कहा| उसने तुरंत मुझे अपना हाथ दिखाया जिसमें उसने घडी पहनी हुई थी| "अब लग रहा है न तू हीरो!" मैंने हँसते हुए कहा| उसने पुछा की मैं कहाँ जा रहा हूँ तो मैंने उसे बताया की डॉक्टर को लेने तो वो बोला की मेरी बाइक ले जा| उसकी बाइक ले कर मैं फ़ौरन डॉक्टर के पहुँचा और उन्हें माँ का हाल बताया, जो-जो जर्रूरी था वो सब ले कर हम घर आये| डॉक्टर ने माँ को देखा और दवाइयां लिखीं, IV चढ़ाया और फिर मैं उसे छोड़ कर आ गया| शाम होने को आई थी और अभी तक किसी ने कुछ नहीं खाया था| तभी मुझे याद आया की चन्दर तो यहाँ है ही नहीं? "ताऊ जी चन्दर भैया कहा हैं?" मैंने पुछा तो उन्होंने कहा; "बेटा 4 महीने पुलिस का सख्त पहरा था और वो किसी को भी बाहर जाने नहीं देती थी, अब तू तो जानता ही है की चन्दर को नशे की लत है| उससे ये सब बर्दाश्त नहीं हो रहा था और उसकी हालत दिन पर दिन खराब होती जा रही थी| तब तेरी भाभी ने बताया की जाने से पहले तूने कहा था की उसे नशा मुक्ति केंद्र ले जाय जाए| इसलिए हम ने उसे वहाँ भर्ती कराया है और ईश्वर की कृपा से अब उसमें बहुत सुधार है|"

ये जान कर ख़ुशी हुई की अब चन्दर सुधर जाएगा| पकोड़े बन कर आये और मैंने माँ को अपने हाथ से खिलाये, नवंबर का पहला हफ्ता था तो सर्द हवाएँ चल रहीं थीं| सब माँ-पिताजी के कमरे में ही बैठे थे सिवाय रितिका के! "तो बेटा तू इतने दिन था कहा पर?" माँ ने पुछा|

"माँ पहले तो मैं बैंगलोर गया था जहाँ मैंने एक दोस्त की कंपनी में काम शुरू किया| उसने मुझे अपनी कंपनी में पार्टनर बनाया, मैंने इतने साल जो भी कमाया था वो मैंने उसके बिज़नेस में लगा दिया, फिर उसी के साथ मैं अमेरिका गया और वहाँ नया काम सीखा और हम वापस बैंगलोर आ गए| नया काम मिला और हम दोनों ने मिल कर काम बहुत फैलाया बाकी आप सब का आशीर्वाद है की बिज़नेस अच्छा चल रहा है|" मैंने कहा पर मैंने जानबूझ कर उन्हें अनु के बारे में कुछ नहीं बताया|

"अरे फिर तो तूने अमरीका में गाय-गोरु, सूअर, मछली, सांप, केकड़े और पता नहीं क्या क्या खाया होगा?" ताई जी ने नाक सिकोड़ते हुए कहा|

"नहीं ताई जी... मैं उन दिनों बीमार था और बाहर का खाना नहीं खा सकता था|वहाँ जा कर मैंने सलाद या फिर एक भारतीय रेस्टुरेंट था जहाँ मैं दाल-रोटी ही खाता था|" मैंने हँसते हुए कहा, क्योंकि मेरे परिवार को अब भी लगता था की बाहर सब यही खाते हैं!

"तुझे हुआ क्या था उन दिनों? तू एक दम से सूख गया था! वो तो हम लोग शादी-ब्याह के काम में लगे थे इस करके पूछना भूल गए!" पिताजी ने पुछा|

"कुछ नहीं पिताजी....जब सपने टूटते हैं तो इंसान थोड़ा टूट ही जाता है!: ये शब्द अपने आप ही निकल पड़े जिसे रितिका ने सब के बर्तन उठाते हुए सुना और फिर चली गई|

"क्या मतलब?" ताऊ जी ने पुछा|

"जी वो...मेरी जॉब छूट गई थी! मैं मन ही मन घर लेने की तयारी कर रहा था ...तो..." मैंने बात को जैसे-तैसे संभाला|

'पर बेटा ऐसा था तो तूने हमें क्यों कुछ नहीं बताया? पिताजी बोले|

"क्या बताता पिताजी? वो हालत आप सब से देखि नहीं जाती..... बिलकुल चन्दर भैया जैसी हालत थी मेरी..... मौत के कगार पर पहुँच गया था मैं! अगर मेरा दोस्त नहीं होता और मुझे नहीं संभालता तो मैं मर ही जाता!| मैंने उन्हें सच बता दिया पर अनु का नाम अब भी नहीं बताया था| इधर सब के सब हैरानी से मुझे देख रहे थे|

"तू शराब पीटा है?" ताऊ जी ने कहा|

"ताऊ जी इतने साल शहर में रहा, कभी-कभी जब टेंशन ज्यादा होती तो पी लेता था पर कण्ट्रोल में पीता था, पर उन दिनों काबू से बाहर हो गई!" मैंने शर्म से सर झुकाते हुए कहा|

"तो तू अब भी पीता है?" माँ ने पुछा|

"माँ मैं जिस माहौल में काम करता हूँ उसमें कभी-कभी कोई ख़ुशी मनानी होती है तो थोड़ा बहुत होता है|" मैंने कहा|

"देख बेटा हम सब के लिए तू ही एक सहारा है और तू ऐसा कुछ ना कर की...." आगे बोलने से पहले माँ की आँखें गीली हो गईं|

"माँ मैं वादा करता हूँ की मैं ऐसा कभी कुछ नहीं करूँगा!"

"अब तेरा बिज़नेस भी चल पड़ा है, तो शादी कर ले!" पिताजी बोले|

"बिलकुल पिताजी....पर पहले माँ तो ठीक हो जाए!" मैंने उत्साह में आते हुए कहा|

"तूने इतना कह दिया, मेरी आधी तबियत ठीक हो गई!" माँ ने कहा और सारे लोग हँस पड़े| रात का खाना मैंने माँ को अपने हाथ से खिलाया तो माँ बोली; "देख कितनी नसीब वाली हूँ मैं, पहले मैं तुझे खिलाती थी और आज तू मुझे खिला रहा है!" मैं ये सुन कर मुस्कुरा दिया| उन्हें अच्छे से खाना खिला कर मैंने भी उनके सामने बैठ कर खाना खाया और फिर उन्हें दवाई दी| माँ के सोने तक मैं उनके पाँव दबाता रहा और फिर अपने कमरे में आ कर पलंग पर सर झुका कर बैठ गया| मैं सोच रहा था की माँ जल्दी से तंदुरुस्त हो जाएँ तो मैं उन्हें अनु से मिलवाऊँ! पर एक ही दिक्कत है, रितिका! अभी उसका नाम लिया ही था की एक काला साया मेरे कमरे की चौखट पर खड़ा हो गया|

"आपकी बद्दुआ लग गई मुझे! कहते हैं की सेक सच्चे आशिक़ को कभी दुःख नहीं देना चाहिए और मैंने उसका दिल तोडा था, तो मुझे सजा तो मिलनी ही थी!" रितिका मेरे नजदीक आई| उसने एक शाल ओढ़ रखी थी; "मैंने कभी राहुल को आपके और मेरे प्यार के बारे में कुछ नहीं बताया| कभी हिम्मत नहीं हुई उसे कुछ कहने की, वो सच्चा प्यार करता था मुझसे पर मैं उसे भी 'छलने' लगी! ऋतू ने अपनी शाल हटाई और उसकी गोद में एक नन्ही सी जान थी, उसने उसे मेरी तरफ बढ़ाया और बोली; "ये आपके प्यार की निशानी! इसे आपको सौंपने आई हूँ....! नेहा....वही नाम जो आप देना चाहते थे!" मैं एक टक उस दो महीने की बच्ची को देखने लगा, आँखें बंद किये हुए वो सो रही थी| पर सर्द हवा से उसकी नींद टूटने लगी थी, मैंने उसे तुरंत अपनी गोद में ले लिया और अपने सीने से लगा लिया| जिगर में जल रही नफरत की आग पर आज पानी बरसने लगा था!
 
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सीने में जितनी भी जलन थी, अगन थी वो सब ठंडी हो रही थी! आँख बंद किये मैं उस आनंद के सागर में डूब गया..... मेरे सीने की तपन पा कर वो बची भी जैसे मुझ में अपने पापा को ढूँढ रही थी| मैंने उसे अपने सीने से अलग किया और उसके मस्तक को चूमा| अपने दाहिने हाथ से उसके गाल को सहलाया! आँखें जैसे प्यासी हो चली थीं और उसके मासूम चहरे से हटती ही नहीं थी| आज मैं खुद को दुनिया का सबसे खुशकिस्मत इंसान समझ रहा था! मेरा जीवन जैसे पूरा हो चूका था! आज तक सीने में बीएस एक आशिक़ का दिल धड़कता था पर आज से एक बाप का दिल धड़कने लगा था| मैंने एक बार फिर से उसके माथे को चूमा, दिवार का सहारा ले कर मैं बैठा और अपने ऊपर चादर दाल ली और वो चादर मैंने मेरी बेटी के इर्द-गिर्द लपेटी| कुछ इस तरह से की उसे गर्माहट मिले पर सांस भी पूरा आये| नेहा की छोटी सी प्यारी सी नाक... उसके छोटे-छोटे होंठ.... गुलाब जामुन से गुलाबी गाल... तेजोमई मस्तक.... उसके छोटे-छोटे हाथ .... मैं मंत्र मुग्ध सा उसे देखता ही रहा| धौंकनी सी चलती उसकी सांसें जैसे मेरा नाम ले रही थी.... उसके छोटे-छोटे पाँव जिनमें एक छोटी सी जुराब थी| वो पूरी रात मैं बस नेहा को निहारता रहा और एक पल के लिए भी अपनी आँखें नहीं झपकाईं! सुबह कब हुई पता नहीं, कौन आया और कौन गया मुझे जैसे कोई फर्क ही नहीं पद रहा था| आँखें बस उसी पर टिकी थीं और मैं उम्मीद करने लगा था की वो अभी अपने छोटे से मुँह से 'पापा' कहेगी! सुबह जब उसकी आँख खुली तो उसने मुझे देखा और मुझे ऐसा लगा जैसे की वो मुस्कुराई हो| मैंने उसके माथे को चूमा और उसने अपने नन्हे-नन्हे हाथ ऊपर उठा दिए| मैंने जब उन्हें पकड़ा तो उसने एक दम से मेरी ऊँगली पकड़ ली| "मेरा बच्चा उठ गया?" मैंने उसकी मोतियों जैसी आँखों में देखते हुए कहा| "मैं आपका पापा हूँ!" मैंने कहा और उसके गाल को हुमा और वो मुस्कुराने लगी| मैं उठा क्योंकि मन ने कहा की उसे दूध चाहिए होगा और नीचे आया| मेरी गोद में नेहा को देख ताई जी बोलीं; "मिल लिए?" तभी रितिका सामने आई और उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी| ये मुस्कान इसलिए थी की मैं आज अपनी बेटी को पा कर बहुत खुश था| "जानता था तू नेहा की वजह से रितिका को माफ़ कर देगा!" ताऊ जी बोले| "माँ-बाप के किये की सजा बच्चों को कभी नहीं देते और फिर ये तो मेरी बेटी है, मैं भला इससे गुस्सा कैसे हो सकता हूँ|" मैंने नेहा का कमाता चूमते हुए कहा| उस पल एक बाप बोल रहा था और उसे कुछ फर्क नहीं पद रहा था की कोई क्या सोचेगा| अगर उस समय कोई मुझसे सच पूछता तो भी मैं सब सच बोल देते! मेरे मुँह से 'मेरी बेटी' सुन कर रितिका फिर से मुस्कुरा दी, वो सोच रही थी की मैंने उसे माफ़ कर दिया है| पर मेरा दिल उसके लिए अब पत्थर का बन चूका था! उसने मेरे हाथ से नेहा को लिया और युपर उसे दूध पिलाने चली गई| मैं इधर अपनी माँ के पास आया और उनका हाल-चाल पुछा| चाय पी और मेरा दिल फिर से नेहा के लिए बेकरार हो गया मैं उसे ढ़ुडंछ्ता हुआ ऊपर पहुँचा| रितिका ने उसे दूध पिलाना बंद किया था और वो अपने ब्लाउज का हुक बंद कर रही थी| मैं वहाँ रुका नहीं और छत पर चला गया| वो मेरे पीछे-पीछे नेहा को गोद में ले कर आई और फिर मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोली; "आपकी लाड़ली!" मैंने उसकी तरफ देखा भी नहीं और मुस्कुराते हुए नेहा को अपनी जो में उठा लिया| मैं नेहा की पीठ सहलाते हुए छत पर घूमने लगा| फिर अचानक से मुझे याद आया की अनु को कॉल कर के खुशखबरी दे दूँ| मैंने तुरंत उसे कॉल मिलाया और कहा की जल्दी से वीडियो कॉल पर आओ| मैं छत पर पैरापिट वॉल से पीठ लगा कर नीचे बैठा| मेरी दोनों टांगें जुडी थीं और नेहा उसी का सहारा ले कर बैठी थी, इतने में अनु का वीडियो कॉल आ गया; "आपको पता है आज है ना, मैं हैं ना, आपको है ना एक प्याली-प्याली, गोलू-गोलू princess से मिलवाना है!" मैंने तुतलाते हुए कहा| मेरी ऐसी भाषा सुन कर अनु हँसने लगी और बोली; "अच्छा जी? मुझे भी मिलवाओ ना!" मैंने फ़ोन साइड में रखा और नेहा को अपने सीने से लगा कर बिठाया और फिर फ़ोन दुबारा उठाया| नेहा को देखते ही अनु बोल पड़ी; "ये प्यालि-पयाली छोटी सी गुड़िया कौन है?" नेहा भी फ़ोन देख कर मुस्कुराने लगी| "मेरी बेटी नेहा!" मैंने गर्व से कहा| ये सुन कर अनु को एक झटका लगा पर उसने ये बात जाहिर नहीं की और मुस्कुराते हुए कहा; "छो छवींट!" मैंने नेहा के सर को चूमा और तभी अनु ने पुछा; "माँ कैसी हैं अब?"

"कल IV चढ़ाया था और दवाइयाँ दी हैं| कल सब कह रहे थे की शादी कर ले, तो मैंने कहा की माँ की तबियत ठीक हो जाये फिर| वैसे मैंने सब को तुम्हारे बारे में थोड़ा-थोड़ा बता दिया है|"

"क्या-क्या बताया?" अनु ने उत्सुकता से पुछा|

"यही की तुम ने मुझे मरने से बचाया और फिर मुझे अपने बिज़नेस में भी पार्टनर बनाया, बस तुम्हारा नाम नहीं बताया!" मैंने कहा|

"हाय! कितना wait करना होगा!" अनु ने साँस छोड़ते हुए कहा|

"यार जैसे ही माँ ठीक हो जाएंगी मैं उन्हें सब कुछ बता दूँगा| तब तक मैं तुम्हारा परिचय मेरी बेटी से करा देता हूँ| बेटा (नेहा) ये देखो ...मैं है ना... इनसे है ना... शादी करने वाला हूँ! फिर ये है ना आपकी मम्मी होंगी!" मैंने तुतलाते हुए कहा| पर मेरी ये बात शायद अनु को ठीक नहीं लगी|

"तुम बुरा न मानो तो एक बात पूछूँ?" अनु बोली| उसी आवाज में गंभीरता थी इसलिए मैंने पूरा ध्यान नेहा से हटा कर अनु पर लगाया और हाँ में सर हिलाया| "Are you sure!" अनु ने डरते हुए कहा| ये डर जायज था क्योंकि अगर किसी बाप से पूछा जाए की ये उसका बच्चा है तो गुस्सा आना लाज़मी है|

"हाँ ये मेरा ही खून है! तुम तो जानती ही हो की रितिका के कॉलेज के दिनों में हम बहुत नजदीक आ गए थे और रितिका की लापरवाही की वजह से उसके पीरियड्स मिस हो गए! तब मैं उसे डॉक्टर के ले गया था और उन्होंने कहा था की वो physically healthy नहीं है इसलिए उस टाइम कुछ भी नहीं हो सकता था| उन्होंने उसे कुछ दवाइयां दी थीं ताकि वो अपनी pregnancy को delay करती रहे! शादी के बाद रितिका ने वो गोलियाँ खानी बंद कर दी होंगी!" मैंने कहा| अनु को विश्वास हो गया की ये मेरा ही बच्चा है पर अब मेरे दिल में एक सवाल पैदा हो चूका था; "अगर तुम बुरा ना मनो तो मैं एक सवाल पूछूँ?" मैंने कहा पर अनु जान गई थी की मैं क्या पूछने वाला हूँ और वो तपाक से बोली; "हाँ... मैं इस प्यारी सी गुड़िया को अपनाऊँगी और अपनी बेटी की तरह ही प्यार करूंगी!" इस जवाब को सुन मेरे पास अब कोई सवाल नहीं था और मुझे मेरा परिवार पूरा होता दिख रहा था| "thank you!" मैंने नम आँखों से कहा|

"Thank you किस बात का? अगर तुम मेरी जगह होते तो मना कर देते?" अनु ने मुझे थोड़ा डाँटते हुए कहा| मैंने अपने कान पकड़े और दबे होठों से सॉरी कहा| "नेहा देख रहे हो अपने पापा को? पहले गलती करते हैं और फिर सॉरी कहते हैं? चलो नेहा को मेरी तरफ से एक बड़ी वाली Kissi दो!" अनु ने हुक्म सुनाते हुए कहा| मैंने तुरंत नेहा के दाएँ गाल को चूम लिया, नेहा एक दम से मुस्कुरा दी| उसकी मुस्कराहट देख कर हम दोनों का दिल एक दम से ठहर गया| "अब तो मुझे और भी जल्दी आना है ताकि मैं मेरी बेटी को खुद Kissi कर सकूँ!" अनु ने हँसते हुए कहा| तभी नीचे से मुझे पिताजी की आवाज आई और मैं bye बोल कर नेहा को गोद में लिए नीचे आ गया| नाश्ता तैयार था तो रितिका ने नेहा को गोद में लेने को हाथ आगे बढाए, पर मैंने उसे कुछ नहीं कहा और नेहा को गोद में ले कर माँ के कमरे में आ गया| मेरा और माँ का नाश्ता ले कर पिताजी कमरे में ही आ गए| "अच्छा बीटा अब तो नेहा को यहाँ लिटा दे और नाश्ता कर ले|" पिताजी बोले पर मेरे पास उनकी बात का तर्क मौजूद था| "आज माँ मुझे खिलाएँगी!" मैंने कहा तो माँ ने बड़े प्यार से मुझे परांठा खिलाना शुरू किया और मैंने नेहा के साथ खेलना जारी रखा| नाष्ते के बाद मैंने माँ को दवाई दी और फिर उन्हीं के बगल में बैठ गया, क्या मनोरम दृश्य था! एक साथ तीन पीढ़ी, माँ के बगल में उनका बेटा और बेटे की गोद में उसकी बेटी!


कुछ देर बाद रितिका आई और चेहरे पर मुस्कान लिए बोली; "नेहा को नहलाना है!" अब मुझे मजबूरन नेहा को रितिका की गोद में देना पड़ा पर मेरा दिल बेचैन हो गया था| नेहा से एक पल की भी जुदाई बर्दाश्त नहीं थी मुझे! माँ सो चुकी थी इसलिए मैं एक दम से उठा और ताऊ जी से कहा की मैं बजार जा रहा हूँ तू उन्होंने एक काम बता दिया| मैं पहले संकेत के घर पहुँचा और उससे चाभी माँगी और बजार पहुँचा| वहां मैंने माँ के लिए फल लिए और अपनी बेटी के लिए कुछ समान खरीदने लगा| गूगल से जो भी जानकारी ले पाया था वो सब खरीद लिया, दिआपेरस, बेबी पाउडर, बेबी आयल, बेबी वाइप्स, एक सॉफ्ट टॉवल, एक छोटा सा बाथ टब और बहुत ढूंढने के बाद हीलियम गैस वाले गुब्बारे! सब समान बाइक के पीछे बाँध कर मैं घर पहुँचा| समान मुझसे उठाया भी नहीं जा रहा था इसलिए माने भाभी को आवाज दी और वो ये सब देख कर हँस पड़ी| सारा समान ले कर हम अंदर आये, फल आदि तो भाभी ने रसोई में रख दिए और बाकी का समान ले कर मैं माँ वाले कमरे में आ गया| ये सारा समान देख सब हँस रहे थे की मैं क्यों इतना सामान ले आया| नेहा आंगन में चारपाई पर लेटी थी, मैंने सब समान छोड़ कर पहले गुब्बारे उसके नन्हे हाथों और पैरों से बाँध दिए| वो हवा में उड़ रहे थे और नेहा अपने हाथ-पैर हिला रही थी, ऐसा लगता था मानो ख़ुशी से हँसना छह रही हो! सारा घर ये देख कर खुश था और हँस रहा था| मैंने फ़ौरन एक वीडियो बनाई और अनु को भेज दी! उसने जवाब में; "Awwwwwwwwwwww" लिख कर भेजा, फिर अगले मैसेज में बोली; "मुझे भी आना है अभी!" उसका उतावलापन जायज था पर मैं मजबूर था क्योंकि घर वालों को अभी इतना बड़ा झटका नहीं देना चाहत था| माँ अकेली कमरे में थीं तो मैंने उन्हें उठा कर बिठाया और उन्हें भी कमरे के भीतर से ही ये नजारा दिखाया| उन्होंने तुरंत कहा; "जल्दी से बच्ची को टिका लगा, कहीं नजर ना लग जाए!" ताई जी ने फ़ौरन नेहा को टीका लगा दिया| पूरा घर नेहा की किलकारियों से भर चूका था और आज बरसों बाद जैसे खुशियाँ घर लौट आई हों! दोपहर खाने के बाद मैं नेहा को अपने सीने से सटाये था और माँ की बगल में लेटा था| कुछ देर बाद नेहा उठ गई क्योंकि उसने सुसु किया था| मैंने पहले बेबी वाइप्स से उसे साफ़ किया, पॉउडर लगाया और फिर उसे डायपर पहनाया| फिर रितिका का कमरे से दूसरे कपडे निकाल कर पहनाया, रितिका हाथ बाँधे मुझे ऐसा करते हुए बस देखती रही और मुस्कुराती रही, पर मेरा ध्यान सिर्फ नेहा पर था| जब नेहा को भूख लगी तो मजबूररन मुझे उसे रितिका के हवाले करना पड़ा, पर मेरा मन जानता है की उस टाइम मुझे कितना बुरा लग रहा था| तभी अनु का फ़ोन आया और उसने मुझे किसी से बात करने को कहा| मैं अपना फ़ोन ले कर आंगन में बैठ गया और पार्टी से बात कर रहा था, सारी बात अंग्रेजी में हो रही थी और मुझे ये नहीं पता था की घर के सारे लोग मुझे ही देख रहे हैं| जब मेरी बात खत्म हुई तब मैंने देखा की सब मुझे ही देख रहे हैं और गर्व महसूस कर रहे हैं|

रात को रितिका ने दूध पिला कर नेहा को मुझे दे दिया, मैंने नेहा को फिर से अपनी छाती से चिपकाया और लेट गया| अपने ऊपर मैंने एक चादर डाल ली ताकि नेहा को सर्दी ना लगे| नींद तो आने से रही और ऐसा ही हाल अनु का भी था| उसने मुझे एक miss call मारी और मैंने तुरंत कॉल बैक किया और उससे बात करने लगा| जब से हमारी शादी की तारिख तय हुई थी हम दोनों रात को एक दूसरे के पहलु में ही सोते थे और अब तो ऐसी हालत थी की उसे मेरे बिना और मुझे उसके बिना नींद ही नहीं आती थी| देर रात तक हम बस ऐसे ही खुसर-फुसर करते हुए बातें करते रहे| अनु तकिये को अपने से दबा कर सो गई और मैंने अपनी बेटी नेहा को खुद से चिपका लिया और उसके प्यारे एहसास ने मुझे सुला दिया| सुबह 6 बजे ताई जी ने मेरे सर पर हाथ फेरा तब मैं उठा और उनके पाँव छुए! फिर सब के साथ चाय पी और नहाने का समय हुआ तो रितिका फिर से नेहा को लेने आ गई पर मैंने उसकी तरफ देखे बिना ही "नहीं" कहा और राजसी में पानी गर्म करने रख दिया| नेहा अब तक उठ गई और अब उसे शायद मेरी आदत हो गई थी इसलिए उसकी किलकारियाँ शुरू हो गईं| पानी गर्म करके मैंने उसे नेहा के लिए लाये हुए टब में डाला और फिर उसमें ठंडा पानी डाला और जब वो हल्का गुनगुना हो गया तब मैंने नेहा को उसमें बिठाया| पानी बिलकियल कोसा था इसलिए उसे ठंड नहीं लगी पर पानी का एहसास पाते ही उसने हिलना शुरू कर दिया| ताऊ जी, ताई जी, पिताजी, भाभी और रितिका सब देखने लगे की मैं कैसे नेहा को नहलाता हूँ| मैंने धीरे-धीरे पानी से उसे नहलाया और साबुन लगा कर अच्छे से साफ़ किया| फिर उसे तौलिये से धीर-धीरे साफ किया, अच्छे से तेल की मालिश की और फिर उसे कपड़े पहनाये| मैंने ये भी नहीं ध्यान दिया की सब घरवाले मुझे ही देख रहे हैं और मुस्कुरा रहे हैं| अच्छे से तेल-पाउडर लगा कर नेहा एक सुन्दर गुड़िया की तरह तैयार थी! मैंने खुद उसके कान के पीछे टीका लगाया और उसके माथे को चूमा फिर उसे अपने सीने से लगा कर मैं पलटा तो देखा सब मुझे देख रहे हैं; "चाचा जी, मानु की बीवी बड़ी किस्मत वाली होगी! उसे कुछ नहीं करना पड़ेगा, सब काम तो मानु कर ही लेता है|" भाभी बोलीं और सब हँस पड़े, जो नहीं हँसा था वो थी रितिका क्योंकि उसे अब एहसास हुआ था की उसने किसे खो दिया! उस दिन से नेहा मुझसे एक पल को भी जुड़ा नहीं होती थी, दिन में बस उसे मुझसे दूर तब ही जाना पड़ता जब उसे भूख लगती और पेट भरने के बाद वो सीधा मेरे पास आती| हफ्ता बीत गया और मेरा नेहा के लिए प्यार दिनों-दिन बढ़ता जा रहा था| हम दोनों बाप-बेटी एक दूसरे के बिना नहीं रह पाते!


सोमवार को ताऊ जी ने कहा की आज चन्दर भैया को लाने जाना है तो मैं और वो साथ निकले| जब चन्दर से मिले तो वो काफी कमजोर होगया था और मुझे देखते ही वो मेरे गले लग गया| आज बरसों बाद मुझे उसके दिल में भाई वाला प्यार नजर आया, मैं बाहर आया और टैक्सी की और हम तीनों साथ घर लौटे| ताऊ जी आगे थे और मैं चन्दर के साथ उसका समान ले कर चल रहा था| जैसे ही मैं अंदर घुसा मैंने देखा की रितिका नेहा को डाँट रही है और उसे मारने के लिए उसने हाथ उठाया है, ये देखते ही मेरे जिस्म में आग लग गई और मैं जोर से चिल्लाया; "रितिका! तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बेटी को मारने की!" मैंने उसे धक्का दिया और नेहा को अपने सीने से लगा लिया और उसके सर को चूमने लगा और इधर से उधर तेजी से चलने लगा ताकि वो रोना बंद कर दे| "ताई जी आप भी कुछ नहीं बोल रहे इसे?" मैंने ताई जी से शिकायत की!

"बेटा ये दूध पीने के बाद भी नहीं चुप हो रही थी, इसलिए रितिका को गुस्सा आ गया!" ताई जी बोलीं|

"इतनी छोटी बच्ची को कोई मारता है?" मैंने गुस्से से रितिका को झाड़ते हुए कहा, रितिका डरी सहमी सी अपने कमरे में चली गई और मैं नेहा की पीठ सहलाता हुआ आंगन में एक कोने से दूसरे कोने घूमता रहा| पर उसका रोना बंद नहीं हो रहा था, मुझे पता नहीं क्या सूझी मैंने गुनगुनाना शुरू कर दिया;

"कौन मेरा, मेरा क्या तु लागे
क्यूँ तु बांधे, मन के मन से धागे
बस चले ना क्यूँ मेरा तेरे आगे
कौन मेरा, मेरा क्या तु लागे
क्यूँ तु बांधे, मन के मन से धागे

ढूंढ ही लोगे मुझे तुम हर जगह
अब तो मुझको खबर है
हो गया हूँ तेरा
जब से मैं हवा में हूँ तेरा असर है
तेरे पास हूँ एहसास में, मैं याद में तेरी
तेरा ठिकाना बन गया अब सांस में मेरी

कौन मेरा, मेरा क्या तु लागे
क्यूँ तु बांधे, मन के मन से धागे
बस चले ना क्यूँ मेरा तेरे आगे
कौन मेरा, मेरा क्या तु लागे
क्यूँ तु बांधे, मन के मन से धागे|"

इस गाने के एक-एक बोल को मैं महसूस कर पा रहा था, ऐसा लगा जैसे मैं अपने मन की बात को उस छोटी सी बच्ची से पूछ रहा हूँ! कुछ देर बाद नेहा मुझसे लिपट कर सो गई| एक बार फिर सब मुझे ही देख रहे थे; "बेटा तेरे जैसा प्यार करने वाला नहीं देखा!" ताऊ जी बोले|

"इतना प्यार तो मैंने तुझे नहीं किया!" पिताजी बोले|

"चाचा जी, सच में मानु नेहा से सबसे ज्यादा प्यार करता है|" भाभी बोली|

"भाभी सिर्फ प्यार नहीं बल्कि जान बस्ती है मेरी इसमें और आप में से कोई इसे कुछ नहीं कहेगा|" माने सब को प्यारसे चेतावनी दी| ये मेरी पैतृक वृत्‍ति (Paternal Instincts) थी जो अब सबके सामने आ रही थी| खेर चन्दर भैया का बड़ा स्वागत हुआ क्योंकि वो सच में एक जंग जीत कर आये थे| जब नेहा को भूख लगी तो मैंने भाभी से कहा की वो नेहा को रितिका के पास ले जाएँ; "तुम ही ले जाओ! जाके अपनी लाड़ली को भी मना लो तब से रोये जा रहे है!" उनका मतलब रितिका से था; "मेरी सिर्फ एक लाड़ली है और वो है मेरी बेटी नेहा!" इतना कहता हुआ मैं ऊपर आ आया और देखा रितिका फ्रेश पर उकड़ूँ हो कर बैठी है, उसका चेहरा उसके घटनों के बीच था और मुझे उसकी सिसकने की आवाज आ रही थी| मैंने उसके कमरे के दरवाजे पर खटखटाया तो उसने मेरी तरफ देखा, उसकी आँखें लाल थीं और वो जैसे मुझे कस कर गले लगाना चाहती थी| पर मेरा व्यवहार अभी भी उसके लिए नरम नहीं हुआ था, अब भी वही सख्ती थी जो मुझे उससे दूर खड़ा किये हुए थी| रितिका ने अपने आँसू पोछे और नेहा को प्यार से अपनी गोद में लिया और मैं छत पर चल दिया| बड़ी बेसब्री से मैं एक कोने से दूसरे कोने के चक्कर लगा रहा था और इंतजार कर रहा था की कब नेहा मेरे पास वापस आये| कुछ देर बाद रितिका नेहा को ले कर आई और मुस्कुराते हुए मुझे गोद में वापस दिया, वो पलट के जाने को हुई पर फिर कुछ सोचते हुए रुक गई| "आपने मुझे माफ़ कर दिया ना?" रितिका ने मेरी तरफ घूमते हुए पुछा| पर मैंने उसकी किसी बात का जवाब नहीं दिया और नीचे जाने लगा| रितिका ने एकदम से मेरी बाजू पकड़ी, "प्लीज जवाब तो दे दो?" उसने मिन्नत करते हुए कहा|

"किस बात की माफ़ी चाहिए तुझे? मेरा दिल तोड़ने की? या फिर नेहा पर हाथ उठाने की?" मैंने गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए कहा|

"दोनों की!" रितिका ने सर झुकाते हुए कहा|

"नहीं!" इतना कह कर मैं नीचे आ गया|
 

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