Romance काला इश्क़!(completed)

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आज शनिवार का दिन था, सुबह मैं जल्दी उठ गया पर ऋतू अब भी मुझसे चिपकी हुई थी| मैंने घडी देखि तो सुबह के 6 बजे थे, मैंने धीरे से अपने आप को ऋतू से छुड़ाना चाहा तो ऋतू भी जाग गई| "सॉरी जान!" मैंने उसे जगाने के लिए माफ़ी मांगी तो मुस्कुराने लगी, उसकी मुस्कराहट देख मेरी मॉर्निंग और भी गुड हो गई| मैंने उसके माथे को चूमा और उठ के बाथरूम में घुस गया| जब वापस आया तो ऋतू चाय बना रही थी, चाय छान कर उसने मुझे बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए दी और फिर खुद बाथरूम चली गई| फ्रेश हो कर आई तो मैं अब भी कप थामे उसके आने का इंतजार कर रहा था| वो भी समझ गई और हम दोनों अपनी-अपनी चाय लिए खिड़की के पास खड़े हो गए| ऋतू मेरे आगे थी, और हम दोनों के दाहिने हाथों में हमारे कप थे| मेरा बायाँ हाथ ऋतू के पेट पर था और ऋतू ने भी अपने बाएँ हाथ से मेरे हाथ को पकड़ रखा था| "काश की हम हर रोज इसी तरह खड़ा हो कर चाय पीते?" ऋतू बोली, मैंने ऋतू के सर को पीछे से चूम लिया| "वो दिन भी आएगा|" मैंने जवाब दिया तो ऋतू ने उत्सुकता वश पूछा; "कब?" अब मैं इसका जवाब नहीं जानता था पर फिर भी मैंने ऋतू को आस बंधाते हुए कहा; "जल्द" इसके आगे उसने और कुछ नहीं कहा और हम दोनों इसी तरह खड़े खिड़की से बाहर पेड़ों को देखते रहे| आज बरसों बाद मुझे सुबह की ठंडी हवा सुकून दे रही थी|

कुछ देर ऐसे ही खड़े रहने के बाद मुझे याद आया की हमें तो गाँव भी जाना है? "ऋतू... आज गाँव चलें?" मैंने ऋतू से संकुचाते हुए पुछा| तो वो मेरी तरफ पलटी और ऐसे देखने लगी जैसे की मैंने उससे कहा हो की मैं सरहद पर जा रहा हूँ?! "घर वालों को शक न हो इसलिए कह रहा हूँ|" मैंने ऋतू के दाएँ गाल पर आई उसकी लट को ऊँगली से हटाते हुए कहा| "आपसे दूर जाने को मन नहीं करता|" ऋतू ने सर झुकाते हुए कहा| मैंने ऋतू को कस कर अपने सीने से लगा लिया; "मेरी जानेमन! बस कुछ दिनों की तो बात है| फिर मैं आपके साथ आज का दिन और कल का दिन वहीँ रुकूँगा और सोमवार को मैं वापस आ जाऊँगा|"

"और मेरा क्या? मुझे कब 'लिवाने' आओगे?" ऋतू ने मेरे सीने से अलग होते हुए शर्माते हुए पुछा| पर जब उसने 'लिवाने' शब्द का इस्तेमाल किया तो मेरे चहरे पर मुस्कुराहट आ गई|

"बुधवार को अपनी दुल्हनिया को लिवाने आएंगे उसके साजना|" मेरा जवाब सुन ऋतू बुरी तरह शर्मा गई और कस कर मेरे सीने से चिपक गई|

"एक बात पूछूँ? अगर सब कुछ नार्मल होता, I mean ... की हम एक परिवार के ना होते, तो आप मेरा हाथ घरवालों से कैसे माँगते?" ऋतू का सवाल सुन में कुछ सोच में पड़ गया| फिर मुझे कुछ याद आया और मैंने फ़ोन में एक वीडियो प्ले की, फिर ऋतू के सामने अपने एक घुटने पर बैठ गया;

Saturday morning jumped out of bed and put on my best suit
Got in my car and raced like a jet, all the way to you
Knocked on your door with heart in my hand
To ask you a question
'Cause I know that you're an old fashioned man yeah yeah

Can I have your daughter for the rest of my life? Say yes, say yes
'Cause I need to know
You say I'll never get your blessing till the day I die
Tough luck my friend but the answer is no!

Why you gotta be so rude?
Don't you know I'm human too
Why you gotta be so rude
I'm gonna marry her anyway
(Marry that girl) Marry her anyway
(Marry that girl) Yeah no matter what you say
(Marry that girl) And we'll be a family

ये सुनते ही ऋतू खिलखिला कर हँस पड़ी| पर गाने की जब अगली लाइन्स आईं तो ऋतू आँखें फाड़े मुझे देखने लगी;

I hate to do this, you leave no choice
I can't live without her
Love me or hate me we will be boys
Standing at that alter
Or we will run away
To another galaxy you know
You know she's in love with me
She will go anywhere I go

Can I have your daughter for the rest of my life? Say yes, say yes
'Cause I need to know
You say I'll never get your blessing till the day I die
Tough luck my friend cause the answer's still no!


Why you gotta be so rude?
Don't you know I'm human too
Why you gotta be so rude
I'm gonna marry her anyway
(Marry that girl) Marry her anyway
(Marry that girl) Yeah no matter what you say
(Marry that girl) And we'll be a family…..


ये सुन कर ऋतू ने मुझे गले लगा लिया, मेरा मुँह उसके पेट पर था और उसका हाथ मेरे बालों में था| "मैं सच में बहुत खुशकिस्मत हूँ की मुझे आपके जितना चाहने वाला मिला|" ऋतू ने मेरे बालों में उँगलियाँ फेरते हुए कहा|


कुछ देर बाद हम नाश्ता कर के तैयार हुए और मेरी प्यारी बुलेट रानी पर सवार हो कर गाँव की तरफ निकल लिए| ठीक दोपहर के खाने पर पहुँचे और हमें वहाँ देख कर किसी को कुछ ख़ास ख़ुशी नहीं हुई| "तुम दोनों को शहर की हवा लग गई है|" ताऊजी ने गुस्से में गरजते हुए कहा| कुछ देर पहले मेरी जान जो बहुत खुश थी वो अचानक ही सहम गई| "ऋतू...तू अंदर जा|" मैंने ऋतू को अंदर भेजा| "उसे क्यों अंदर भेज रहा है?" ताऊ जी ने गरजते हुए कहा|

"ऑफिस में वर्क लोड इतना बढ़ गया है की मैं ही गाँव नहीं आ पा रहा था तो वो बेचारी अकेले तो गाँव आ नहीं सकती ना?" मैंने अपनी सफाई दी|

"आग लगे तेरी नौकरी को|" ताई जी ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा|

"तुझे कहा था न की छोड़ दे ये नौकरी और खेती संभाल, पर नहीं तुझे तो उड़ना है|" पिताजी ने भी आगे आते हुए ताना मारा| मेरा गुस्सा अब फूटने को था पर तभी अनु मैडम का फ़ोन आया; "Mam मैं आपको दो मिनट में कॉल करता हूँ|" अभी मैंने कॉल काटा भी नहीं था की ताऊजी चिल्ला कर बोले; "मिनट भर हुआ नहीं घर में घुसे और तेरे फ़ोन आने चालु हो गए? ऐसी कौन सी तनख्वा देते है तुझे?" मैडम ने सब सुन लिया था और खुद ही फ़ोन काट दिया| अब घर में तो कोई नहीं जानता था की मेरी तनख्वा बढ़ गई है इसलिए मैं बस अपने गुस्से पर काबू करना चाहता था|

"मैं पूछती हूँ तुझे कमी क्या है इस घर में? सब कुछ तो है हमारे पास| सारी उम्र बैठ कर खा सकता है, फिर क्यों तू दूसरों के यहाँ नौकरी करता है?" माँ ने कहा|

"बस बहु बहुत होगया इसका! इसी साल तेरी शादी कर देते हैं|" ताऊ जी ने अपना फरमान सुनाते हुए कहा|

"आपने वादा किया था ताऊ जी!" मैंने उन्हें उनका वादा याद दिलाया|

"तूने तीन साल मांगे थे और वो इस साल पूरे होते हैं| अगले साल जनवरी में ही तेरी शादी होगी और ये मैं तुझसे पूछ नहीं रहा बल्कि बता रहा हूँ|" ताऊ जी ने आखरी फैसला सुना दिया| अब मुझे कुछ तो बहाना मारना था ताकि इस शादी की लटक रही तलवार से अपनी गर्दन बचा सकूँ|

मैं: मुझे शहर में घर लेना है!

मैं बस इतना कह कर चुप हो गया और मेरी बात सुन के सब के सब आँखें फाड़े मुझे देखने लगे|

ताऊ जी: क्या?

मैं: मैं शादी के बाद यहाँ रहना नहीं चाहता| मैं नहीं चाहता की मेरा बच्चा उसी स्कूल में जमीन पर बैठ के पढ़े जहाँ मैं पढ़ा था! यहाँ अगर इंसान बीमार हो जाए तो इलाज के लिए एक घंटे दूर बाजार जाना पड़ता है| न इंटरनेट है न ही ठीक से बिजली आती है, ऐसी जगह मैं अपनी नै जिंदगी शुरू नहीं करना चाहता| शहर में सब सुख सुविधा है, पर यहाँ सिर्फ बीहड़ है| घर में अगर बाइक न हो तो कहीं भी जाने के लिए सड़क तक पैदल जाना पड़ता है....

ताऊ जी: (बात काटते हुए) ये क्या बोल रहा है तू?

मैं: ताऊ जी, अपने परिवार के बारे में सोचना गलत तो नहीं? आज कल की नै पीढ़ी इस तरह बंध कर नहीं रह सकती| अगर हम गरीब होते और ये सुख-सुविधा नहीं खरीद सकते तो मैं आपसे कुछ नहीं कहता पर हम गरीब तो नहीं?

मेरी बात सुन कर ताऊ जी चुप हो गए पर ताई जी तमतमाते हुए बोलीं;

ताई जी: तो तू क्या चाहता है हम सब खेती-किसानी बेच के तेरे साथ शहर चलें?

मैं: बिलकुल नहीं... मैं बस इतना चाहता हूँ की मैं शहर में अपना घर ले सकूँ, अपनी बीवी-बच्चों के साथ वहां रह सकूँ और उन्हें वो सब सुख सुवुधा दूँ जिसके लिए मुझे घर से दूर जाना पड़ा था|

माँ: तो तू शादी के बाद वहीँ रहेगा? हमें छोड़ के?

मैं: नहीं माँ! बच्चों की छुट्टियों में मैं यहाँ आता रहूँगा और आप सब भी हमसे मिलने वहीँ आ कर मेरे घर में रहना|

ताऊ जी: बस बहुत हो गया! बता कितने पैसे चाहिए तुझे? 10 लाख? 20 लाख? छोटे (मेरे पिताजी) वो नहर वाली जमीन....

मैं: (बात काटते हुए) 55 लाख चाहिए मुझे!

ये सुन कर तो ताऊ जी सन्न रह गए!

मैं: मैं आपसे ये पैसे मांग नहीं रहा| मैं अपने पैसों से घर लेना चाहता हूँ, मेरी अपनी मेहनत की कमाई से!

ताऊ जी: अच्छा? तेरी वो चुल्लू भर कमाई से घर खरीदने की सोचेगा तो जिंदगी भर नहीं खरीद पाएगा|

मैं: ताऊ जी मुझे बस दो साल का समय लगेगा ताकि मैं कुछ पैसे जोड़ लूँ, उसके बाद बाकी सारा पैसा में लोन लूँगा|

ताऊ जी: क्या?

पिताजी: तेरा दिमाग ख़राब हो गया है?

मैं: नहीं... मुझे अपने पाँव पर खड़ा होना है|

पिताजी; तो ये सब जो जमीन जायदाद है वो किसकी है?

मैं: मेरी तो नहीं? मैंने उसे कमाया नहीं है! मुझे मेरे पैसे का घर चाहिए!

पिताजी और ताऊ जी आगे कुछ नहीं बोले|

मैं: मैं शादी से मना नहीं कर रहा, बस आपसे दो साल का समय और माँग रहा हूँ|

ताऊ जी: ठीक है! पर ये आखरी बार है जब हम तुझे समय दे रहे हैं, अगली बार तू हमें कुछ नहीं बोलेगा और कोई बहाना नहीं करेगा|

मैं: जी

इतना कह कर ताऊ जी और सब खाना खाने बैठ गए| उस समय मुझे ऐसा लगा जैसे की उन्हें मेरे ऊपर गर्व है की मैं खुद कुछ बनना चाहता हूँ| खाना खाने के समय मैं बस ऋतू को देख रहा था जो सर झुकाये बेमन से खाना खा रही थी| मेरा मन तो किया की मैं उसे जा के अपने हाथ से खाना खिलाऊँ पर मजबूर था! खेर खाना खा कर मैं अपने कमरे में आ गया और लैपटॉप पर कुछ ढूँढ रहा था| तभी ऋतू मेरे सामने से अपने कमरे की तरफ बिना कुछ बोले चली गई| मैं उठा और जा के देखा तो वो जमीन पर बैठी सर झुका कर रो रही थी| उसे रोता हुआ देख दिल दुख मैंने जा के जमीन से उसे उठा कर बिस्तर पर बिठाया, ऋतू आ कर मेरे सीने से लग गई और रोने लगी| "बस-बस! कोई शादी नहीं हो रही! मुझे जो भी बहाना सूझा वो मैंने बना दिया और देख सब मान भी गए, फिर क्यों रो रही है?" मैंने ऋतू के आँसूँ पोछते हुए पुछा| पर उसके मन में डर बैठ गया था जिसे निकालने के लिए मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था| घर पर सभी लोगों की मौजूदगी थी और ऐसे में हम दोनों का इस तरह चिपके रहना मुसीबत खड़ी कर सकता था| मैंने एक आखरी कोशिश की; "तुझे मुझ पर भरोसा है?" ऋतू ने हाँ में सर हिलाया| "तो बस मुझ पर भरोसा रख, मैं कोई शादी-वादी नहीं करने वाले| इन लोगों ने ज्यादा जोर-जबरदस्ती की तो हम उसी वक़्त भाग जायेंगे|" अब ये सुन कर ऋतू को तसल्ली हुई और उसका रोना बंद हुआ| मैंने ऋतू के माथे को चूमा और बाहर आ गया| फिर याद आया की मैंने मैडम को फ़ोन करना है तो उन्हें कॉल मिला कर मैं छत पर आ गया| घंटी बजती रही पर मैडम ने फ़ोन नहीं उठाया, मुझे लगा शायद बीजी होंगी इसलिए मैंने कॉल काटा और घर से बाहर टहलने को निकल गया| जब शाम को वापस आया तो ऋतू अब सामन्य दिखी, सब ने बैठ के चाय पी और उस पूरे दौरान मैं चुप रहा| कुछ देर बाद ताऊ जी बोले; "तूने वहाँ कोई जमीन देखि है?"

"जी ...देखि है... करीब 250 गज है|" मैंने झूठ बोला|

"कितने की है?" ताऊ जी ने चाय का घूँट पीते हुए पुछा|

"जी...वो... 35 लाख की है| घर बनवाई और बाकी के काम जोड़-जाड कर 15 लाख ऊपर से लगेगा|" मैंने बात बनाते हुए कहा| वो चुप हो गए और चाय पी कर पिताजी को अपने साथ ले कर चले गए| आंगन में बस मैं, ताई जी, माँ और भाभी ही बचे थे, ऋतू रसोई में बर्तन धो रही थी| "ऋतू तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है?" मैंने पुछा तो वो रसोई से बाहर आई और बोली; "ठीक चल रही है|" फिर मैंने उसे एकाउंट्स की किताब लेन को कहा तो वो चुप-चाप ऊपर के कमरे से अपनी किताब ले आई| मैं उसे जानबूझ कर सब के सामने पढ़ाने लगा ताकि सब को लगे की हम दोनों शहर में एक दूसरे से नहीं मिलते| आखिर ताई जी ने पूछ ही लिया; "इतना भी क्या काम रहता है तुझे की तुझसे अपनी प्यारी भतीजी से मिला नहीं जाता?"

"बैंगलोर का एक प्रोजेक्ट है, उसकी वजह से संडे को भी ऑफिस जाता हूँ| इसलिए टाइम नहीं मिलता की ऋतू के हॉस्टल जा सकूँ|" मैंने जवाब दिया तो ताई जी चुप हो गईं| कुछ देर पढ़ने के बाद ऋतू खुद ही खाना बनाए की तैयारी करने लगी| मुझे इत्मीनान हो गया की ऋतू पढ़ाई भी करती है ना की सारा टाइम मुझे खुश करने के लिए पोर्न देखती है| रात को खाने के बाद मैं छत पर टहल रहा था की ऋतू आ गई, उसके हाथ में एक कटोरी थी और कटोरी में गुड़! "आपने मुझसे एक वादा किया था न?" उसने पुछा पर मैं सोच में पड़ गया की वो कौनसे वादे की बात कर रही है| "सिगरेट और शराब नहीं पीने का?" जब ऋतू ने ये कहा तब मुझे याद आया और मैंने हाँ में सर हिलाया| "तो आज से सब बंद! Promise me???" ऋतू ने कहा तो मैंने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा; "I Promise की आज से शराब या सिगरेट को हाथ नहीं लगाऊँगा|" ऋतू मुस्कुराई और नीचे चली गई| कुछ देर बाद संकेत तिवारी आया और माँ ने मुझे नीचे बुलाया| उसके घर पर पतुरिया का प्रोग्राम था और वो मुझे बुलाने आया था| "चल यार घर पर प्रोग्राम है और तू यहाँ घर पर बैठा है? कम से कम मुझे बता तो देता की तू आया हुआ है?" मुझे माँ को कुछ कहने की जर्रूरत ही नहीं पड़ी और मैं उसके साथ चला गया| वहाँ पहुँच कर सबसे आगे की चारपाई पर हम दोनों बैठ गए और गाना-बजाना चल रहा था| सारे गाने डबल मीनिंग वाले थे और वहाँ खड़े लौंडे सब चिल्ला रहे थे और पैसे उड़ा रहे थे| वो औरत नाचती हुई आई और मुझे खींच के स्टेज पर ले जाने लगी तो मैंने उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ा लिया और संकेत को आगे कर दिया| संकेत ने अपने मुँह में एक 500 का नोट दबाया और अपनी गर्दन उसके मुँह के आगे कर दी, उस औरत ने अपने होठों से संकेत के मुँह से वो नोट छुड़ाया और संकेत उसे अपनी बाँहों में कस कर नाचने लगा| वो जानती थी की यही मालिक है इसलिए वो उसे ज्यादा से ज्यादा खुश कर रही थी, कभी अपनी कमर यहाँ लचकाती तो कभी वहाँ| अपने चुचों से दुपट्टा उतारा और संकेत की तरफ फेंक दिया| उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों की घाटी साफ़-साफ़ नजर आ रही थी और हो-हल्ला शुरू हो गया था| खेर इसी तरह मैं वहाँ बैठा रहा और रात 1 बजे तक ये प्रोग्राम चलता रहा| इस पूरे दौरान मैं ऋतू के बारे में सोच रहा था और मेरा लंड बिलकुल अकड़ चूका था| जब प्रोग्राम खत्म हुआ तो संकेत ने गांजा भर के चिलम मेरी तरफ बधाई| उस चिलम को देखते ही मेरा मन करने लगा की एक कश मार लूँ पर ऋतू को वादा जो किया था इसलिए मैंने उसे मना कर दिया| "ओह बहनचोद! तू इसे मना कर रहा है? तबियत तो ठीक है ना तेरी?" संकेत ने पुछा| "ना यार मन नहीं है!" इतना कह कर मैं घर जाने को उठ खड़ा हुआ| दरवाजा खटखटाया तो भाभी ने दरवाजा खोला; "देख आये पतुरिया का नाच?" भाभी ने मुझे छेड़ते हुए कहा, पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप अपने कमरे में आ कर लेट गया| ऋतू सो चुकी थी पर मुझे आज उसके बिना नींद नहीं आ रही थी| मन कर रहा था की जा कर उसके जिस्म से चिपक जाऊँ पर डरता था की घर में काण्ड ना हो जाए| पूरी रात बस करवटों में निकल गई और सुबह ऊँघता हुआ उठा| ऋतू ने जब मुझे देखा तो प्यार से बोली; "जानू! नींद नहीं आई आपको?" मैंने ना में गर्दन हिलाई और कहा; "कैसे आती? मेरी जानेमन मुझसे दूर थी!" ये सुनते ही वो शर्मा गई और मुझे गले लग्न चाहा पर तभी भाभी आ गई; "और सो लो थोड़ा? पतुरिया को याद कर-कर के सोये तो होंगे नहीं?" ये सुनते ही ऋतू गुस्सा हो गई; "भाभी थोड़ी तो शर्म किया करो?! देखते नहीं ऋतू खड़ी है?" मैंने उन्हें झाड़ते हुए कहा|

"बच्ची थोड़े ही है?" उन्होंने कहा और चली गईं| ऋतू भी उनके पीछे-पीछे जाने लगी, माने दौड़ कर उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपने कमरे में खींच लिया| "मेरे होते हुए आप पतुरिया देखने गए?" ऋतू ने गुस्से से कहा|

"जान! मुझे नहीं पता था की वो कहाँ बुला रहा है? यक़ीन मानो मैंने कुछ नहीं किया ना ही उसे छुआ, वो मुझे खींच कर ले जा रही थी पर मैंने संकेत को आगे कर दी| उसने तो मुझे चिलम भी ऑफर की थी पर मैंने तुम्हारे वादे की खातिर उसे मना कर दिया|" मैंने ऋतू से ऐसे कहा जैसे की एक छोटा बच्चा अपनी सफाई देता है| ये सुन कर ऋतू खिलखिला कर हँस पड़ी और मेरे दोनों गाल पकड़ के खींचते हुए बोली; "I know ...I was joking!!!" हँसती-खेलती हुई वो नीचे चली गई| मैं भी नहा धो कर अपना लैपटॉप ले कर नीचे आ गया और आंगन में बैठ कुछ PPTs पर काम करने लगा| अम्मा और माँ मुझे काम करता हुआ देख रहे थे और पहला ताना माँ ने ही मारा; "दो दिन के लिए घर आया है, कम से कम यहाँ तो इस डिब्बे को बंद कर दे!"

अब इससे पहले ताई जी मुझे ताना मारें मैंने लैपटॉप बंद किया और उनके पास जा कर बैठ गया| माँ और ताई जी बैठीं मटर छील रही थीं और मैं भी वहीँ बैठ गया और मटर छीलने लगा| मुझे देख कर भाभी जोर से हँस पड़ीं और उनकी देखा-देखि सब हँस पड़े| "क्या हुआ? आपने ही कहा था की डिब्बा बंद कर दो, तो सोचा की आपकी मदद ही कर दूँ|" ये सुन कर ताई जी बोलीं; "ये काम करने को नहीं बोला, ये बता वहाँ तू अकेला खाना कैसे बनाता है?" मैं पहले तो थोड़ा हैरान हुआ क्योंकि आज तक कभी मुझसे इस तरह की बात नहीं की गई थी| "रात को सात बजे तक पहुँचता हूँ, फिर राइस कुकर में चावल और स्टील वाले में दाल डाल कर गैस पर चढ़ा देता हूँ| एक साथ दोनों तैयार हो जाते हैं, फिर चॉपर में प्याज-टमाटर और हरी मिर्च डाल कर के 5-7 बार खींचता हूँ और फटफट तड़का मारा... खाना तैयार| जब ज्यादा लेट हो जाता हूँ तो बाहर से मँगा लेता हूँ|" मैंने कहा|

"ये चापर क्या होता है?" माँ ने पुछा तो मैंने उन्हें बता दिया; "एक कटोरी जैसे बर्तनहोता है उसमें दो ब्लेड लगे होते हैं, उसके ऊपर एक हैंडल होता है और उसे खींचने से नीचे ब्लेड घूमता है| अगली बार आऊँगा तब आपको ला कर दिखा देता हूँ|" तभी ऋतू बोल पड़ी; "आज आप ही खाना बना कर खिला दो सब को!" पर ताई जी को ये बात नहीं जचि और वो ऋतू पर बिगड़ पड़ीं; "पागल हो गई तू? इतने महीनों बाद आया है और तू इससे चूल्हा-चौका करवाएगी?" ऋतू ने अपना सर झुका लिया|

"ताई जी, आज तो आपको ऐसा खाना खिलाऊंगा की आप उँगलियाँ चाट जाओगे!" मैंने जोश में आते हुए ऋतू का बचाव किया| मैंने हाथ-मुँह धोये और रसोई में घुस गया, सबसे पहले मैंने फ़ोन में गाना लगाया: "ना जा न जा" और ऋतू का हाथ सब के सामने पकड़ा और उसके दाहिने हाथ की ऊँगली पकड़ कर उसे गोल घुमा दिया| ऋतू इस सबसे बेखबर थी और मेरे अचानक उसे गोल घुमाने से वो गोल घूम गई|

उस एक पल के लिए मैं सब कुछ भूल गया था, मुझे बस ऋतू के उदास चेहरे को खुशियों से भरना था| ऋतू डांस करने में बहुत झिझक रही थी पर मैं ही उसे जबरदस्ती नचा रहा था| चूँकि वहाँ सिवाय औरतों के कोई नहीं था तो इसलिए कोई कुछ बोला नहीं| जब गाना खत्म हुआ तो ताई जी बोलीं; "देख रही है छोटी (माँ) तू, गाँव में जिस लड़के की आवाज नहीं निकलती थी वो शहर जा आकर नाचने भी लगा है|" मैंने ऋतू की तरफ एक टमाटर उछाला जिसे उसने बड़ी मुश्किल से पकड़ा और मैंने उसे काट के देने को कहा| तभी भाभी बोल पड़ी; "देखो ना चची कितने बेशर्म हो गया है मानु, ऋतू को नचा रहा है!" अब ये बात मुझे बहुत चुभी; "अपनी माँ और ताई जी के सामने नचा रहा हूँ बाहर सड़क पर तो नहीं नचा रहा|" ये सुन कर भाभी का मुँह बन गया और माँ कहने लगी; "कोई बात नहीं बहु, कम से कम इसके आने से घर में थोड़ी रौनक तो आ गई|"

"तू एक बात बता मानु, तू अपनी भाभी से चिढ़ा क्यों रहता है?" ताई जी ने पुछा|

"ताई जी ये जब देखो ऋतू के पीछे पड़ीं रहती हैं, मैंने आज तक इन्हें कभी हँस कर ऋतू से बात करते नहीं देखा| हमेशा उसे ताना मरती रहतीं हैं, उससे प्यार से बात करें तो मैं भी इनसे हँस कर बात करूँ| अगर उसे नचा सकता हूँ तो इनको भी थोड़ा नचा दूँगा|" मैंने माहौल को थोड़ा हल्का करने के लिए कहा| फिर मैं खाना बनाने में लग गया और सारा सब्जी काटने का काम ऋतू से करवाया; "अगर सारी चोप्पिंग मुझसे करानी थी तो खाना मैं ही बना लेती|' ऋतू ने प्यार से मुझे ताना मारते हुए कहा|

"खाना तो बना लेती पर मेरे हाथ का स्वाद कैसे आता?" मैंने ऋतू को आँख मारते हुए कहा| जब सब दोपहर को खाने बैठे तो खाना वाक़ई में सब को पसंद आया पर पिताजी और ताऊ जी ने कुछ कहा नहीं, हाँ बस ताई जी और माँ ने खाने की तारीफ की थी| भाभी बोलीं; "चलो भाई एक बात तो तय हुई, शादी के बाद मानु अपनी लुगाई को खुश बहुत रखेगा|" ये सुन ऋतू मुस्कुराई जैसे खुद पर फक्र कर रही हो| शाम होने तक मैं सभी के पास बैठा रहा, 7 बजे लाइट चली गई और फ़ोन की बैटरी भी डिस्चार्ज हो गई और लैपटॉप तो मैं चार्जर पर लगाना ही भूल गया था| रात का खाना भी मैंने ही बनाया और इस बार पिताजी बोल ही पड़े; "घर में तू तीसरा आदमी है जिसे खाना बनाना आता है| याद है भाईसाहब जब हम छोटे होते थे तब खेतों में आलू का भरता बनाते थे|" ताऊजी मुस्कुराये और उन्होंने अपने बचपन की कहानी सुनाई; "मैं और तेरा बाप माँ के गुजरने के बाद चूल्हा-चौका संभालते थे| कभी-कभी कहते में पहरिदारी करनी होती थी तो घर से रोटी बना कर ले जाते और खेत में कांडों की आग में आलू भूनते और फिर उसमें घर का नून मिला कर रोटी के संग खाते थे|" सब के सब उनकी बातें बड़े गौर से सुन रहा थे, चन्दर ने तो आज तक रसोई में घुस के एक गिलास पानी तक नहीं लिया था| खेर खाना खा कर मैं और ऋतू छत पर बैठे थे क्योंकि लाइट अभी तक नहीं आये थे| तभी सब अपने-अपने बिस्तर ले कर ऊपर आ गए| एक कोने में सारे आदमी लेट गए और दूसरे कोने में सारी औरतें लेट गईं| मेरा बड़ा मन कर रहा था की ऋतू को कस कर अपनी बाहों में प्यार करूँ पर सब के रहते ये नामुमकिन था| करवटें बदलते हुए सो गया और सुबह जल्दी उठ गया| पांच बजे नाहा धो कर तैयार होगया| ठीक 6 बजे में निकलने लगा क्योंकि मुझे सीधा ऑफिस जाना था तो ऋतू ने मेरे लिए दोपहर का खाना पैक कर दिया| बुधवार को ऋतू को 'लिवाने' का वादा कर मैं घर से निकला, आँखों में उसकी वही हँसती हुई तस्वीर थी| सीधा उसी ढाबे पर रुका और अपना फ़ोन चार्जिंग पर लगाया क्योंकि घर में लाइट तो आई नहीं थी| चाय पी कर वहाँ से निकला, घडी में 9 बजे थे की मैडम के ताबड़तोड़ कॉल आने लगे| मैंने बाइक साइड खड़ी की और फ़ोन चेक किया तो मैडम के कल से अभी तक 50 कॉल आये थे| इससे पहले की मैं कॉल करता उनका ही फ़ोन आ गया; "मानु जी!!!! आप कहाँ हो?" उन्होंने घबराते हुए कहा| "Mam रास्ते में हूँ..." आगे मैं कुछ बोल पाता उससे पहले ही मैडम ने कहा: "आप सीधा फॅमिली कोर्ट आना, कोर्ट नंबर 5!!!" इतना कह कर उन्होंने फ़ोन काट दिया| ये सुन कर मैं परेशान हो गया की भला उन्होंने मुझे कोर्ट क्यों बुलाया है? माने उन्हें दुबारा कॉल मिलाया तो फ़ोन स्विच ऑफ बता रहा था| अब मरते क्या न करते मैं कोर्ट की तरफ चल दिया|
 
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बेमन से फॅमिली कोर्ट पहुंचा और मन में हो रही उथल-पुथल को काबू करते हुए मैं कोर्ट नंबर 5 ढूँढने लगा| बहुत पूछने पर पता चला ये तो मेडिएशन वाला कोर्ट है, और उसके बाहर ही मुझे सर और अनु मैडम दिखे| दोनों के घरवाले और वकील वहाँ खड़े थे और सब मुझे ही देख रहे थे| मुझे तो समझ ही नहीं आया की में क्या कहूँ और किसके पास जाऊँ? ये तो मैं समझ ही चूका था की दोनों यहाँ डाइवोर्स के लिए आये हैं पर जाऊँ किसके पास? तभी अनु मैडम मेरे पास आईं और मुझे अपने माँ-पिताजी से मिलवाया; "डैड ये हैं मानु जी|" मैंने हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्ते की और साथ ही उनकी वाइफ मतलब अनु मैडम की माँ को भी नमस्ते कहा पर दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला| इधर सर के घरवाले मुझे बड़ी कोफ़्त की नजर से देख रहे थे और कुछ बोलने ही वाले थे की अंदर कमरे में सब को बुलाया गया| मैडम ने मुझे भी अपने साथ बुलाया, अंदर एक लम्बा सा कॉन्फ्रेंस टेबल था, जिसके एक तरफ दो लोग बैठे थे, शायद वो मीडिएटर थे| उनके दाहिने तरफ सर, उनका वकील और उनके परिवार वाले बैठ गए, दूसरी तरफ मैडम, उनकी वकील और उनके माता-पिता बैठ गए, मैं लास्ट वाली कुर्सी पर बैठ गया| सबसे पहले सर के वकील ने मेरी तरफ ऊँगली करते हुए कहा; "ये लड़का जिसका नाम मानु है, इसका मेरी मुवकिल की पत्नी से नाजायज संबंध है|" ये सुनते ही मेरे जिस्म में आग लग गई और मैं एक दम से उठ खड़ा हुआ और जोर से बोला; "ये क्या बकवास है? आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझ पर ऐसा गन्दा इल्जाम लगाने की?" मेरी आवाज सुन कर अनु मैडम की वकील बोल पड़ी; "मानु .. प्लीज आप चुप हो जाओ|" मैं बाहर जाने लगा तो मैडम ने दबे होठों से 'प्लीज' कहा इसलिए मैं गुस्से में बैठ गया| "सिर्फ यही नहीं ये लड़का इनके (अनु मैडम) साथ मुंबई भी गया था, वो भी अकेला!" सर का वकील बोला अब ये तो मेरे लिए सुन्ना मुश्किल था इसलिए मैं तमतमाते हुए बोला; "मुंबई जाने का प्लान इन्होने (सर ने) ही बनाया था और टिकट्स अपनी और मेरे नाम की बुक की थीं, जब मैं स्टेशन पहुंचा तो वहां जा के पता चला की इनकी जगह Mam जा रहीं हैं| इसमें मैं क्या करता?" मेरा जवाब सुनते ही सर मुझे घूर के देखने लगे और ये मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ; "क्या घूर रहा है? I’m not your employee anymore! I Quit!!!” "मानु...प्लीज चुप हो जाओ!" मैडम की वकील ने मिन्नत करते हुए कहा|

"बहुत पर निकल आये हैं तेरे? तू क्या Quit करेगा साले मैं तुझे निकालता हूँ जॉब से और देखता हूँ कैसे तुझे कोई जॉब देगा|" सर ने मुझे धमकाते हुए कहा|

"तू मुझे निकालेगा? मेरी जॉब में रोड अटकाएगा? रुक तू बताता हूँ तुझे! जाता हूँ मैं इनकम टैक्स ऑफिस में और बताता हूँ जो तू शुक्ल से फ़र्ज़ी बिल भरवाता है, अपने ही क्लाइंट्स को ओवरचार्ज करता है| एक-एक का रिकॉर्ड है मेरे पास और जो तू ने इन्वेस्टर्स से अपनी मनमानी कंपनी में पैसे लगवाया है न उन्हें भी मैं जा के बता के आता हूँ| ना तू मुझे इसी कोर्ट के चक्कर काटता हुआ मिला ना तो बताइओ|" मैं सर को करारा जवाब दिया जिससे उनकी बोलती बंद हो गई| मैडम की वकील साहिबा उठीं और मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे चुप-चाप बैठने को कहा| अब तो उन्हें बोलने के लिए और भी पॉइंट मिल गया था|

सर के वकील ने कुछ फोटोज जज साहब को दिखाईं, ये फोटोज वो थी जब मैंने मैडम को उस दिन बाइक पर GSTऑफिस तक छोड़ा था और हम जब गलौटी कबाब खा रहे थे| जज साहब ने वो तसवीरें मैडम के वकील को दिखाईं और वो तसवीरें मैडम ने भी देखि| "इससे क्या साबित होता है? क्या एक लड़का एक लड़की को लिफ्ट नहीं दे सकता? या उसके साथ कुछ खा नहीं सकता?" मैडम की वकील ने पुछा|

"अपनी मैडम को कौन लिफ्ट देता है? और ऑफिस hours में चाट कौन खाता है?" सर के वकील ने पुछा|

"तो कानून की कौन सी किताब में लिखा है की आप बॉस की बीवी को लिफ्ट नहीं दे सकते? चाट खाने का भी कोई टाइम-टेबल होता है? कैसी छोटी सोच रखते हैं आप?" वकील साहिबा ने पुछा|

"उस दिन मैंने ही मानु जी से कहा था की वो मुझे GSTऑफिस छोड़ दें और चूँकि लंच टाइम हो गया था तो हम 'कबाब' खा रहे थे| मुझे नहीं पता था की कुमार (सर) ने मेरे पीछे जासूस छोड़ रखे हैं!" मैडम ने सफाई दी| इसी बीच मैंने टेबल पर से एक कोरा कागज उठाया और अपना रेसिग्नेशन लेटर लिखने लगा;


Date: 21/09/2019


Mr. Kumar,


I’m writing you to inform of my resignation effective immediately. The time spent working for you has been a colossal waste of my time.


Your business is the most corrupt and fraud company I can imagine, and it is absolutely amazing that it continues to hang on!


Please send my final paycheck at my home address mentioned below:

House no. XXX

XXXX Colony
XXXXXXXXXX


Manu

मैडम की वकील साहिबा कुछ कहने ही वालीं थीं की मैंने अपना रेसिग्नेशन लेटर सर की तरफ सरका दिया, सब के सब उसी कागज की तरफ देखने लगे| मैंने अपने पेन का कैप बंद किया और अपनी जेब में रख लिया| "ये क्या है?" सर के वकील ने जानबूझ कर पुछा|

"मेरा रेसिग्नेशन लेटर!" मैंने जवाब दिया तो सब के सब मुड़ के मेरी तरफ देखने लगे|

"ये तुम बाद में भी तो दे सकते हो?" सर का वकील बोला|

"मैं दुबारा इनकी शक्ल नहीं देखना चाहता, इसलिए यहीं दे रहा हूँ| मेरी फाइनल पेमेंट का चेक मुझे भिजवा दीजियेगा|" मैंने सर की तरफ देखते हुए कहा|

"Mr. Manu behave yourself!" जज साहब ने मुझे चेतावनी देते हुए कहा और मैं भी चुप हो गया| "देख रहे है जज साहब, इस लड़के को रत्ती भर भी तमीज नहीं की कोर्ट में कैसे बेहवे किया जाता है!" सर के वकील ने तंज कस्ते हुए कहा|

"ये उसका रोज का काम नहीं है, पहली बार आया है कोर्ट में|" मैडम के वकील साहिबा ने मेरा बचाव करते हुए कहा| "जज साहब मैं आपका ध्यान इन कॉल लिस्ट्स की तरफ लाना चाहती हूँ|" ये कहते हुए उन्होंने जज साहब को एक कॉल लिस्ट की कॉपी दी और दूसरी कॉपी उन्होंने सर के वकील की तरफ बढ़ा दी| "इसमें जो नंबर मार्क कर रखा है ये किसका है? किस्से ये घंटों तक बातें करते हैं?" वकील साहिबा ने पुछा|

"वो...क..कुछ बिज़नेस रिलेटेड कॉल था|" सर ने हिचकते हुए जवाब दिया| ये सुन कर मैडम बरस पड़ीं; "झूठ तो बोलो मत! रात के एक बजे कौन इतनी लम्बी-लम्बी बातें करता है? जज साहब ये नंबर इनकी 'प्रियतमा' का है| जिसका नाम है जास्मिन! शादी से पहले का इनका प्यार!" अब ये सुनते ही दोनों परिवारों की आँखें चौड़ी हो गईं| | वकील साहिबा ने फाइल से जास्मिन की पिक्चर निकाल कर सर से पुछा की ये कौन है? उन्होंने बस उस लड़की को पहचाना पर अपने रिश्ते से साफ़ मना करते रहे| "इस नंबर पर कॉल करो और हम सब से बात कराओ|" जज साहब ने सर को डराया तो उन्होंने बात काबुली की वो जास्मिन से बात करते हैं पर उनके वकील ने सर का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की बात नहीं कबूली| "जज साहब! हमारी शादी को 4 साल हो चुके हैं, पर इन चार सालों में एक पल के लिए भी मुझे इनका साथ या प्यार नहीं मिला| मिलता भी कैसे? इनके मन मंदिर में तो जास्मिन बसी थी, शादी की रात ही इन्होने मुझे अपने और जास्मिन के बारे में बताया| उस दिन से ले कर आज तक प्यार के दो पल मुझे नसीब नहीं हुए, ऐसा नहीं है की मैंने कोई कोशिश नहीं की! पर ये हमेशा ही मुझसे दूर रहते थे, हमेशा फ़ोन पर या ऑफिस के काम में बिजी रहते| मुझे भी इन्होने जबरदस्ती ऑफिस में बुलाना शुरू कर दिया और काम में बिजी कर दिया ताकि मेरा ध्यान इन पर ना जाये| वो लड़की जास्मिन... उसने आज तक इनके लिए शादी नहीं की और मुझे पूरा यक़ीन है की इन दोनों एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर है क्योंकि ...... we haven't consummated this marriage!!!" ये कहते हुए मैडम रो पड़ीं|

पर अभी मैडम की बात पूरी नहीं हुई थी उन्होंने गुस्से से चिल्लाते हुए सर से कहा; "तुम्हारा मन इतना मैला है की तुमने दो दोस्तों की दोस्ती को गाली दी है! मैं और मानु जी बस अच्छे दोस्त हैं और दोस्ती कोई जुर्म नहीं!" जज साहब ने उन्हें शांत होने को कहा और पानी पीने को कहा|

"जज साहब हमारी माँग बस ये है की एक तो आप प्लीज मानु जी का नाम इस केस से clear कर दीजिये क्योंकि उनके खिलाफ कुमार के पास कोई भी conclusive evidence नहीं है| दूसरा मेरी मुवकिल को उचित मुआवजा मिले, वो चार साल जो इन्होने mental torture सहा है और ऑफिस में जो काम किया है उसके एवज में! तीसरा आप प्लीज इस डाइवोर्स को जल्द से जल्द फाइनल कीजिये क्योंकि मेरी मुवकिल बहुत मेन्टल स्त्री में हैं| बस इससे ज्यादा हमारी और कोई माँग नहीं है|" मैडम की वकील साहिबा ने कहा|

"देखिये मानु का नाम तो हम clear कर देते हैं पर इतनी जल्दी हम मुआवजे का फैसला नहीं कर सकते, पहले तो ये जास्मिन को यहाँ ले कर आइये उसके बाद हम फैसला करेंगे|" जज साहब ने अपना फैसला सुनाया और अगली डेट दे दी| सब के सब बाहर आगये पर मेरा तो खून खोल रहा था पर खुद को काबू कर के मैं अकेला खड़ा था और बस खुंदक भरी नजरों से सर को देख रहा था| मैं अगर कुछ भी बोलता या कहता तो मैडम के लिए बात बिगड़ सकती थी| तभी सर की माँ मेरे पास आईं; "तू ने हमारे परिवार की खुशियों में आग लगाईं है|" इससे पहले मैं कुछ जवाब देता मैडम ने तेजी से मेरे पास आईं और उन पर बरस पड़ीं; "कुछ नहीं किया इन्होने, आप को अपने बेटे की गलती नजर नहीं आती? मैंने जो अंदर कहा वो आपको समझ में नहीं आया ना? आपके बेटे ने शादी के बाद से मुझे छुआ तक नहीं है, यक़ीन नहीं आता तो चलो कौन सा टेस्ट करवाना है मेरा करवा लो!" मैडम गुस्से में चिल्लाते हुए बोलीं और ये सुन कर सर की माँ का सर झुक गया और वो कुछ नहीं बोलीं| इधर मैडम के आँसूँ निकल आये थे मैंने आगे बढ़ कर उन्हें संभालना चाहा पर उनके माता-पिता आगे आगये और उनके कंधे पर हाथ रख कर उनको चुप करने लगे| मैडम ने मेरे हाथों को नोटिस कर लिया था जो उन्हें संभालने को आगे बढे थे पर वो कुछ बोलीं नहीं, क्योंकि उनका कुछ भी कहना या करना उनका केस बिगाड़ सकता था|


मैडम ने अपने आँसु पोछे; "सॉरी मानु! मेरी वजह से तुम्हें कोर्ट तक आना पड़ा| पिछली हियरिंग में जज साहब ने मेडिएशन के लिए बुलाया था और कुमार के वकील ने तुम्हारा नाम लिया था इसलिए तुम्हें परेशान किया|"

"Its okay mam!!! Just lemme know if you need my help." अब मैं इससे ज्यादा और क्या कहता इसलिए मैं बस वहाँ से चल दिया| मैं कुछ दूर आया था की मुझे रोहित मिल गया| रोहित कोर्ट में किसी वकील के पास असिस्टेंट था, उसने मुझसे वहाँ आने का कारन पुछा तो मैंने ये कह कर बात टाल दी की वो मैडम का केस था, इतना कह कर मैं बाहर आ गया| अब मुझ पर नई जॉब ढूँढने का प्रेशर बन गया था| मैं सीधा घर आया और पहले बैठ कर चैन से सांस ली और सोचने लगा की आगे क्या करूँ? बैंक कितने पैसे बचे हैं ये चेक किया और फिर हिसाब लगाने लगा की कितने दिन इन पैसों से गुजारा होगा| शुक्र है की मेरी बुलेट की EMI खत्म हो चुकी थी! मैं इंटरनेट पर जॉब सर्च करने लगा| इधर मेरे पास जो ऋतू का फ़ोन था वो बज उठा| ऋतू जब भी गाँव जाती थी तो अपना फ़ोन मुझे दे देती थी ताकि वहाँ किसी को पता ना चल जाए| ये किसी और का नहीं बल्कि काम्या का फ़ोन था, पर मेरे उठाने से पहले ही वो स्विच ऑफ हो गया| ऋतू जाने से पहले फ़ोन स्विच ऑफ करना भूल गई थी इसलिए बैटरी डिस्चार्ज हो गई| तब मुझे याद आया की मुझे ऋतू के ये सब बता देना चाहिए पर बताऊँ कैसे? मैंने माँ के फ़ोन पर कॉल किया तो उन्होंने फ़ोन नहीं उठाया| अब मैं और कुछ भी नहीं कर सकता था, न ही घर पर बता सकता था की मैं जॉब छोड़ रहा हूँ वरना वो सब मुझे घर बिठा देते| वो पूरा दिन मैं बस ऑनलाइन जॉब ढूँढता रहा और ऑनलाइन अपने रिज्यूमे पोस्ट करता रहा| रात में एक लिस्ट बनायीं जहाँ सुबह इंटरव्यू के लिए जाना था| टेंशन एक दम से मेरे ऊपर सवार हुआ की मन किया की एक सिगरेट पी लूँ पर ऋतू को किया हुआ वादा याद आ गया| ब्रेड-बटर खा कर सो गया और सुबह जल्दी से तैयार हो गया, हयात नगर में एक छोटे ऑफिस के लिए निकला| वहाँ पहुँच कर देखा तो दो कमरों का एक ओफिस जहाँ सैलरी के नाम पर मुझे बस दस हजार मिलने थे| अब 8,000/- का रेंट भरने के बाद बचता क्या ख़ाक! वहाँ से मायूस लौटा और बिस्तर पर लेट गया| अगले दिन उठा और कुछ प्लेसमेंट एजेंसी गया और वहाँ अपने रिज्यूमे दिया और फिर वापस आया, पर अब दिल बेचैन होने लगा था| ऋतू की बहुत याद आ रही थी और साथ ही ये एहसास हुआ की शादी के बाद मेरी जिम्मेदारियाँ और भी बढ़ जाएँगी| ये सोच-सोच कर मैं टेंशन में डूब गया, गुम-सुम बैठा मायूस होगया| दिल ने बहुत हिम्मत बटोरी और होंसला दिया की इस तरह हार मान ली तो ऋतू का क्या होगा| मुझे पॉजिटिव रहना चाहिए इसी जोश से मैं उठा और नाहा-धो कर तैयार हो गया और ऋतू को लेने घर के निकल पड़ा|


घर पहुँचते-पहुँचते रात हो गई, ठीक दस बजे मेरी बुलेट की आवाज सुन कर ऋतू दौड़ी-दौड़ी आई और उसने दरवाजा खोला| उसे देखते ही मेरी साड़ी टेंशन्स फुर्र हो गईं, मैंने आँखों के इशारे से उससे पुछा की सब कहाँ हैं तो उसने कहा की सब सो लेट गए| मैंने तुरंत बाइक दिवार के सहारे खड़ी की और जा कर ऋतू को अपने सीन से लगा लिया| ऋतू भी कस कर मुझसे लिपट गई; "आपको बहुत मिस किया मैंने!" ऋतू ने खुसफुसाते हुए कहा| "मैंने भी...." बस इससे ज्यादा कहने को मन नहीं किया| हम अलग हुए और मैंने जा कर बाइक को स्टैंड पर लगाया और लॉक कर के अंदर आया| ऋतू ने दरवाजा बंद किया और बिना कहे ही खाना परोस कर ले आई| वो जानती थी की मैंने खाना नहीं खाया है, मैंने आंगन में पड़ी चारपाई खींची और रसोई के पास ले आया| ऋतू कुर्सी पर बैठी थी और मैं चारपाई पर बैठा था, खाने में ऋतू ने मेरे पसंद के दाल-चावल और करेले बनाये थे| वो अपने हाथों से मुझे खिलाने लगी, मुझे खिलाने में उसे जो आनंद आरहा था ठीक वैसे ही आनंद मुझे उसके हाथ से खाने में आ रहा था| "तुमने खाया?" मैंने पुछा तो ऋतू ने बस सर हाँ में हिलाया| मैं समझ गया था की घर में सब के डर के मारे उसने खाना खा लिया होगा| पूरा खाना खा कर ऋतू बर्तन रखने गई तो थोड़ी आवाज हुई जिससे ताई जी उठ गईं और मुझे आंगन में बैठा देख कर पूछने लगी; "तू कब आया?" मैंने बताया की अभी 20 मिनट हुए आये हुए| उन्होंने ऋतू को आवाज मारी और ऋतू रसोई से निकली; "लड़के को खाना दे|" तो मैंने खुद ही कहा; "खाना खा लिया ताई जी|" ये सुन कर ताई जी बोलीं; "चलो इतनी तो अक्ल आ गई इसमें (ऋतू में)| चल अब आराम कर|" इतना कह कर ताई जी सोने चली गईं, मैं और ऋतू नजरें बचाते हुए हाथ में हाथ डाले ऊपर आ गए| चूँकि मेरा कमरा पहले आता था तो मैं ने ऋतू को पकड़ के अंदर खींच लिया| मेरे कुछ कहने या करने से पहले ही ऋतू अपने पंजों के बल खड़ी हुई और मेरे होठों को चूम लिया| मैंने अपने दोनों होठों से ऋतू के निचले होंठ को मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा| अभी हम kiss करते हुए दो मिनट ही हुए की मुझे लगा की कोई आ रहा है तो मैं और ऋतू दोनों अलग हो गए पर प्यास हमारे चेहरे से झलक रही थी| बेमन से ऋतू अपने कमरे में गई और मैं भी बिना कपडे बदले बिस्तर पर लेट गया| नींद थी की आने का नाम ही ले रही थी, मैं आधे घंटे बाद उठा और ऋतू के कमरे के बाहर खड़ा हो गया| पर कमरा अंदर से बंद था, एक बार को तो मन किया की दरवाजा खटखटाऊँ पर फिर रूक गया ये सोच कर की ऋतू ने दिन भर बहुत काम किया होगा और बेचारी तक कर सो रही होगी| मैं छत पर चला गया और एक किनारे जमीन पर बैठ गया और रात के सन्नाटे में सर झुकाये सोचने लगा| रात बड़े काँटों भरी निकली ... सुबह की पहली किरण के साथ ही मैं उठ गया और नीचे आकर फ्रेश हो गया| नहाने के समय मैं सोच रहा था की मैं ऋतू को ये सब कैसे बताऊँ? वो ये सुन कर परेशान हो जाती पर उससे छुपाना भी ठीक नहीं था| सात बजे तक मैंने और घर के सभी लोगों ने खाना खा लिया था और हम दोनों शहर के लिए निकल पड़े| हमेशा की तरह घर से कुछ दूर आते ही ऋतू मुझसे चिपक कर बैठ गई और अपने ख़्वाबों की दुनिया में खो गई| हमेशा ही की तरह हम उस ढाबे पर रुके और चाय पीने बैठ गए| तब मैंने ऋतू को सारी बातें बता दी और वो अवाक सी मेरी बातें सुनती रही| मेरे जॉब छोड़ने के डिसिशन से वो सहमत थी पर नै जॉब मिलने के बारे में सोच वो भी काफी टेंशन में थी| "जान! छोडो ये टेंशन ओके? अब ये बताओ की आज शाम का क्या प्लान है?" मैंने बात घुमाते हुए कहा पर ऋतू का मन जैसे उचाट होगया था|


फिर कुछ सोचते हुए बोली; "आपके पास अभी कितने पैसे हैं बैंक में?"

"35,000/-" मैंने कहा|

"ठीक है, आज से फ़िज़ूल खर्चे बंद! बाहर से खाना-खाना बंद, आप को बनाने में दिक्कत होती है तो मुझे कहो मैं आ कर बना दिया करूँगी| बाइक पर घूमना बंद! मुझसे मिलने आओगे तो बस से आना! मेरे लिए आप कोई भी खरीदारी नहीं करोगे! जब तक आपको अच्छी जॉब नहीं मिलती तब तक ये राशनिंग चलेगी|" ऋतू ने किसी घरवाली की तरह अपना हुक्म सुना दिया| मैंने भी मुस्कुराते हुए सर झुका कर उसकी हर बात मान ली| चाय पी कर हम उठे और वापस शहर की तरफ चल दिए| पहले ऋतू को कॉलेज ड्राप किया और फिर घर आ गया| घर में घुसा ही था की मैडम का फ़ोन आ गया| उन्होंने मुझे मिलने के लिए एक कैफ़े में बुलाया और साथ अपना लैपटॉप भी लाने को कहा| मैंने अपना लैपटॉप बैग उठाया और पैदल ही चल दिया, वो कैफ़े मेरे घर से करीब 20 मिनट दूर था तो सोचा पैदल ही चलूँ| वहाँ पहुँचा तो मैडम ने हाथ हिला कर मुझे एक टेबल पर बुलाया| मेरे बैठते ही उन्होंने मेरे लिए एक कॉफ़ी आर्डर कर दी| "वो डेड लाइन नजदीक आ रही है और अब तो कोई है भी नहीं मेरी मदद करने वाला, तो प्लीज मेरी मदद कर दो|"

"ok mam!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो मैडम बोलीं; "अब काहे की mam?! अब ना तो मैं बॉस हूँ और न तुम एम्प्लोयी, मैंने यहाँ तुम्हें फ्रेंड के नाते बुलाया है| Call me अनु!" अब ये सुन कर तो मैं चुप हो गया और मैडम मेरी झिझक भाँप गईं; "Come on yaar!"

"इतने सालों से आपको Mam कह रहा हूँ की आपको अनु कहना अजीब लग रहा है!" मैंने कहा|

"पर अब इस फॉर्मेलिटी का क्या फायदा? हम अच्छे दोस्त हैं और वही काफी है, ख़ामख़ा उसमें फॉर्मेलिटी दिखाना भी तो ठीक नहीं?!"

"ठीक है अनु जी!" मैंने बड़ी मुश्किल से शर्माते हुए कहा|

"अनु जी नहीं...सिर्फ अनु! और मैं भी अब से तुम्हें मानु कहूँगी! और प्लीज अब से मेरे साथ दोस्तों जैसा व्यवहार करना|" मैडम ने मुस्कुराते हुए कहा| ओह! I mean अनु ने मुस्कुराते हुए कहा!

शाम तक हम दोनों वहीँ कैफ़े में बैठे रहे और काम करते रहे| दोपहर को खाने के समय अनु ने ग्रिल्ड सैंडविच और कॉफ़ी मंगाई और अब बस प्रेजेंटेशन का काम बचा था| मैं चलने को हुआ तो अनु ने मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया; " तुम्हें पता है, डाइवोर्स को ले कर किसी ने भी मुझे सपोर्ट नहीं किया| मेरे अपने मोम-डैड ने भी ये कहा की जैसे चल रहा है वैसे चलने दे! बस एक तुम थे जिसने मुझे उस दिन सपोर्ट किया| मेरे लिए तुम कोर्ट तक आये और वहाँ तुम पर कितना घिनोना इल्जाम भी लगाया गया .... You even quit your job because of me!" इतना कह अनु रोने लगीं तो मैंने उन्हें सांत्वना देने के लिए उनके कंधे को छुआ और धीरे से दबा कर उन्हें ढाँढस बंधाने लगा| "अगर अब भी रोना ही है तो डाइवोर्स के लिए क्यों लड़ रहे हो? रो तो आप पहले भी रहे थे ना?" ये सुन कर उन्होंने अपने आँसु पोछे और मेरी तरफ एक recommendation letter बढ़ा दिया| मैंने उसे पढ़ा और उनसे पूछ बैठा; "आपने ये कब...आपकी अपनी कंपनी?"

"उस दिन जब तुम मुझे GST ऑफिस छोड़ने गए थे उस दिन मैं अपनी कंपनी के GST नंबर के लिए अप्लाई किया था| कुमार के साथ काम कर के इतना तो सीख ही गई थी की पैसे की क्या एहमियत होती है और इस प्रोजेक्ट ने मुझे काफी self confidence दे दिया| अब तुम अपने रिज्यूमे में मेरी कंपनी का नाम लिख दो और ये recommendation letter शायद तुम्हारे काम आ जाये|"

"थैंक यू!!!" मैं बस इतना ही कह पाया|

"काहे का थैंक यू? जॉब मिलने के बाद पार्टी चाहिए!" अनु ने हँसते हुए कहा| मैं भी हँस दिया और फिर वहाँ से सीधा ऋतू से मिलने कॉलेज निकला| ऋतू गुस्से से लाल बाहर निकली और उसके पीछे ही काम्या भी आती हुई दिखाई दी| गेट पर पहुँच कर ऋतू मेरे पास आई और काम्य दूसरी तरफ जाने लगी तभी ऋतू चिल्लाते हुए उससे बोली; "दुबारा मेरे आस-पास भी दिखाई दी ना तो तेरी चमड़ी उधेड़ दूँगी!" ये सुन कर मैं हैरान था की अब इन दोनों को क्या हो गया उस दिन का गुस्सा अब तक निकल रहा है?! "क्या हुआ?" मैंने ऋतू से पुछा| "ये हरामजादी मुझसे हमदर्दी करने के लिए आई और बोली की आपका अनु मैडम से अफेयर चल रहा है और आपके कारन उनका डाइवोर्स हो रहा है| कुतिया ...छिनाल साली!" अब ये सुन कर मैं समझ गया की ये लगाईं-बुझाई सब रोहित की है| "बस अभी शांत हो जा...कल बता हूँ मैं इसे!" मैंने ऋतू को शांत किया, उस ले कर चाय की एक दूकान पर आ गया और उसे चाय पिलाई ताकि उसका गुस्सा शांत हो| फिर मैंने उसे आज के बारे में सब बताया| जो बात मुझे महसूस हुई वो ये थी की उसे अनु बिलकुल पसंद नहीं, क्योंकि ऋतू के अनुसार मन ही मन वो ही मेरी नौकरी छोड़ने के लिए जिम्मेदार थीं| मैं भी चुप रहा क्योंकि मैं खुद नहीं जानता था की जो हो रहा है वो किसका कसूर है! अनु को डाइवोर्स चाहिए था वो तो ठीक है पर मेरा नाम उसमें क्यों घसींटा गया? ना तो मैंने उनसे दोस्ती करने की पहल की थी ना ही उनके नजदीक जाने की कोई कोशिश की थी| खेर ऋतू से कुछ बातें कर मैंने उसे हॉस्टल छोड़ा और खुद घर लौटा और खाना बनाने की तैयारी कर रहा था| पर एक तरह की बेचैनी थी, ऋतू के साथ को मिस कर रहा था|
 
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दो दिन बीते और इन दो दिनों में मेरा और ऋतू का मिलना बदस्तूर जारी रहा| रात को ऋतू फ़ोन कर के पूछती की कल सुबह आप कहाँ इंटरव्यू देने जा रहे हो और अगले दिन सुबह मुझे Best of Luck wish करती, दोपहर को ये पूछती की इंटरव्यू कैसा रहा और शाम को हम मिलते| शुक्रवार को जब मैं उससे मिल कर लौटा तो रात को ऋतू का फ़ोन आया और मुझसे उसने शनिवार का प्लान पुछा| पर उस दिन मेरा कोई इंटरव्यू नहीं था इसलिए मैं घर पर ही रहने वाला था| मुझसे शाम का मिलने का वादा लिया और ऋतू खाना खाने चली गई| मैं भी अपना खाना बनाने में लग गया| बीते कुछ दिनों में कम से कम मैं खाना ढंग से खा रहा था, वरना तो रोज कच्चा-पक्का बना कर खा लिया करता था, बस एक बात थी, रात में बड़ी बेचैनी रहती थी! अगली सुबह मैं देर से उठा क्योंकि रात भर नींद ही नहीं आई| सुबह के दस बज होंगे की दरवाजे पर दस्तक हुई, मैं उठा और दरवाजा खोला| अभी ठीक से देख भी नहीं पाया था की ऋतू एक दम से अंदर आई और मेरे सीने से कस कर लिपट गई| उसके गर्म एहसास ने मेरी नींद भगा दी और मैं भी उसे कस कर गले लगा कर उसके सर को चूमने लगा| आखिर ऋतू मुझसे अलग हुई और दरवाजा बंद किया; "आप बैठो मैं चाय बनाती हूँ|" ये कह कर वो चाय बनाने लगी| चाय के साथ-साथ वो पोहा भी ले कर आई, ये पोहा उसने नाश्ते में न खा कर मेरे लिए लाई थी| "तो कोई कॉल आया?" ऋतू ने पुछा, उसका मतलब था की मैंने जहाँ-जहाँ इंटरव्यू दिए हैं वहां से कोई कॉल आया| "नहीं.... हाँ एक ऑफर आया है|" ये सुनते ही ऋतू खुश हो गई| "कितनी पे है?" उसने उत्साह से पुछा|

"35K ... मतलब 35,000/-" अब मेरे मुँह से ये सुन कर ऋतू की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा| पर जब मैंने आगे; "पर यहाँ नहीं बरैली जाना होगा!" कहा तो वो उदास हो गई| "मेरी जान! मैं नहीं जा रहा अपनी जानेमन को छोड़ कर|" मेरी बात से उसे तसल्ली हुई पर ख़ुशी नहीं| "चले जाओ ना! 35K कम नहीं होते!" ऋतू ने अपने मन को मारते हुए कहा| "सच में चला जाऊँ?" मैंने थोड़ा मस्ती करने के इरादे से कहा, ऋतू ने बस जवाब में सर हिला दिया| "पक्का?" मैंने फिर मस्ती करते हुए पुछा| "हाँ!!!! कौन सा हमेशा के लिए जाना है? 2 साल की ही तो बात है, फिर तो हम दोनों शादी कर लेंगे|" ऋतू ने बेमन से जवाब दिया और पूरी कोशिश की कि अपने मुँह पर नकली मुखौटा लगा ले| ऋतू उस समय मेरे सामने कुर्सी पर बैठी थी और मैं उसके सामने पलंग पर बैठा था| मैं उठा और जा के ऋतू को पीछे से अपने बाजुओं से जकड़ लिया और ऋतू के कान में होले से खुसफुसाया; "तुम्हें पता है पिछले कुछ दिनों से मुझे तुम्हारी 'लत' पड़ गई है| रात को बस तुम्हें ही याद करता रहता हूँ और तुम्हारी ही कमी महसूस करता हूँ, करवटें बदलता रहता हूँ| ऐसा क्या जादू कर दिया तुमने मुझ पर?" ये कहते हुए मैंने ऋतू के दाएँ गाल को चूम लिया| ऋतू उठ खड़ी हुई, मुझे बिस्तर तक खींच कर ले गई और मुझे अपने ऊपर झटके से खींच लिया| हम दोनों ही बिस्तर पर जा गिरे, नीचे ऋतू और उसके ऊपर मैं| हम दोनों ही की आँखों में प्यास झलक रही थी| मैंने ऋतू की होठों को अपनी गिरफ्त में लिया और उनको चूसने लगा और इधर ऋतू के दोनों हाथ मेरी टी-शर्ट उतारने के लिए मेरी पीठ पर चल रहे थे| तभी अचानक से अनु का फ़ोन बज उठा, मैंने ऋतू को होठों को छोड़ा और स्क्रीन पर किसका नाम है ये देखा| मैंने कॉल साइलेंट किया और ऋतू की आँखों में देखा तो उसमें एक चिंगारी नजर आई| ऋतू ने करवट ले कर मुझे अपने बगल में गिरा दिया और खुद मेरे ऊपर चढ़ गई| उसने बहुत तेजी से मेरे होठों पर हमला किया और उसे चूसने लगी| आज उसका मुझे kiss करना बहुत आक्रामक था| मैं अपने दोनों हाथों से ऋतू का चेहरा थामना था पर ऋतू बार-बार अपनी गर्दन कुछ इस तरह हिला रही थी की मैं उसे थामने में असफल हो रहा था| उसका निशाने पर मेरे होंठ जिसे आज वो चूस के निचोड़ लेना चाहती थी| फिर अगले ऋतू मुझ पर से उतरी और अपने पटिआला का नाडा खोला और वो सरक कर नीचे जा गिरा, फिर उसने अपनी पैंटी निकाली और फटाफट मेरे लोअर को खींचा और उसे बिना पूरा निकाले बस लंड को बाहर निकाला| मैं उसे ये सब करता हुआ देख रहा था, वो फिर से मेरे ऊपर चढ़ गई और मेरे लंड को पकड़ के अपनी बुर पर टिकाया| धीरे-धीरे वो उस पर अपना वजन डालते हुए उसे अपनी बुर में समा ने लगी| दर्द की लकीरें उसके माथे पर छाईं थीं पर ऋतू अपने होठों को दबा के दर्द को अपने मुँह में होते नीचे आ रही थी| जैसे ही पूरा लंड अंदर पहुँचा की ऋतू की आँखें दर्द से बंद हो गईं, उसने अपने दोनों होठों अब भी अपने मुँह में दबा रखे थे और अपनी चीख मुँह में दफन कर चुकी थी| लगभ मिनट भर लगा उसे मेरे कांड को अपनी बुर में एडजस्ट करने में और फिर अपने दोनों हाथ मेरी छाती पर टिका ऋतू ने ऊपर-नीचे होना शुरू किया| अगले पल ही उसकी स्पीड तेज हो चुकी थी और उसकी बुर अंदर ही अंदर मेरे लंड को जैसे चूसने लगी थी| मैं ऋतू की बुर का दबाव अपने लंड पर साफ़ महसूस कर रहा था, मेरा पूरा जिस्म एक डीएम से गर्म हो गया था मानो जैसे की उसकी बुर मेरे लंड के जरिये मेरी आत्मा को चूस रही हो| पाँच मिनट तक ऋतू जितना हो सके उतनी तेजी से मेरे लंड पर कूद रही थी और उसे निचोड़ रही थी| फिर अगले ही पल वो मुझ पर लेट गई और अपना सर मेरी छाती पर रख दिया| मैंने उसे नीचे किया, अपने घुटने बिस्तर पर टिकाये और तेजी से कमर हिलाना शुरू कर दिया| हर धक्के के साथ मेरी स्पीड बढ़ने लगी, ऋतू ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और मेरी आँखों में देखने लगी| आज मैं पहली बार उसकी आँखों में एक आग देख पा रहा था, मुझे ऐसे लगने लगा जैसे वो यही आग मेरे जिस्म लगाना चाहती हो| ऋतू बिना पलकें झपके मेरी आँखों में देख रही थी, उसके मुँह से कोई सिसकारी नहीं निकल रही थी बस एक टक वो मेरी आँखों में झाँकने में लगी थी| हर धक्के के साथ उसका जिस्म हिल रहा था और नीचे उसकी बुर भी पूरी प्रतिक्रिया दे रही थी पर ऋतू की आँखें मेरी आँखों में गड़ी थी| पाँच मिनट होने को आये थे और अब ऋतू छूटने की कगार पर थी, तभी उसने अपनी पकड़ मेरे चेहरे पर कड़ी कर दी और मेरी आँखों में गुस्से से चिल्लाती हुई बोली; “You’re bloody mine!” इतना कहते हुए वो झड़ गई, उसके हाथों से मेरा चेहरा आजाद हुआ और इधर आखरी झटका मारता हुआ मैं भी उसकी बुर में झड़ गया और ऋतू के ऊपर से लुढ़क कर बगल में गिर गया|


सासें दुरुस्त होने तक मेरे दिमाग बस ऋतू के वो शब्द ही घूम रहे थे, मैं समझ गया था की उसके मन में अब भी मुझे ले कर insecurity थी! पर मेरे कुछ कहने से पहले ही ऋतू मेरी तरफ पलटी और अपना सर मेरी छाती पर रखते हुए बोली; "जानू...." पर मैं ने उसकी बात काट दी और उसे खुद से दूर धकेला और उसके ऊपर आ गया| अब मेरी आँखों में भी वही आग थी जो कुछ पल उसकी आँखों में थी| "एक बार बोलूँगा उसे ध्यान से सुन और अपनी दिल और दिमाग में बिठा ले! मैं सिर्फ तेरा हूँ और तू सिर्फ मेरी है, हमारे बीच कोई नहीं आ सकता! समझ आया? आज के बाद फिर कभी तूने insecure फील किया ना तो खायेगी मेरे हाथ से!" मैंने गुस्से से अपने दाँत पीसते हुए कहा और जवाब में ऋतू ने अपनी दोनों बाहें मेरे गले में डाल दीं और मैंने उसे एक जोरदार Kiss किया! ये Kiss इस बात को दर्शा रहा था की मेरा उसके लिए प्यार अटूट है और चाहे कुछ भी होजाये ये प्यार कभी कम नहीं होगा| Kiss कर के में ऋतू के ऊपर से हटा और बाथरूम चला गया, मुँह-हाथ धो कर बाहर आया तो ऋतू खिड़की के सामने अपनी दोनों टांगें अपनी छाती से मोड बैठी बाहर देख रही थी| मैं उसके साथ खड़ा हो कर बाहर देखने लगा और ऋतू ने अपने बाएँ हाथ को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट कर मुझे अपने और नजदीक खींच लिया| “Go wash yourself!” मैंने कहा तो ऋतू उठी और मेरे सीने पर Kiss करके बाथरूम चली गई और मैं बाएँ हाथ से खिड़की को पकडे बाहर देखने लगा| ऋतू पीछे से आई और अपने गीले हाथों को मेरी छाती को जकड़ते हुए मुझसे सट कर खड़ी हो गई| मैं उसे अपने साथ बिस्तर पर ले गया और खींच कर उसे अपना ऊपर गिरा लिया, और हम ऐसे ही लेटे रहे| पूरी रात जिसने बड़ी मुश्किल से काटी हो उसके लिए तो ये पल खुशियों से भरा होगा| मुझे कब नींद आ गई कुछ होश नहीं रहा जब उठा तो कमरे में देसी घी की खुशबु फैली हुई थी| दाल रोटी खा कर हम दोनों खिड़की के सामने जमीन पर बैठे थे| ऋतू अपनी पीठ मेरे सीने से लगा कर बैठी थी;

ऋतू: आप वो बरैली वाली जॉब कर लो|

मैं: जान! आप जानते हो बरैली यहाँ से पाँच घंटे दूर है! फिर हम रोज-रोज नहीं मिल पाएंगे, सिर्फ एक संडे ही मिलेगा और उस दिन भी घर जाना पड़ गया तो?

ऋतू: थोड़ा एडजस्ट कर लेते हैं?

मैं: जान! एक आध दिन की बात नहीं है? यहाँ पर जॉब ओपनिंग कब खुलेगी कुछ पता नहीं है? और ये बताओ तब तक मेरे बिना आप रह लोगे?

ऋतू ये सुन कर खामोश हो गई!

मैं: मैं तो नहीं रह सकता आपके बिना| पता है पिछले कुछ दिनों से मेरा क्या हाल है आपके बिना? दिन तो जैसे-तैसे गुजर जाता है पर रात है की कमबख्त खत्म ही नहीं होती| मेरा दिल आपके जिस्म की गर्माहट पाने के लिए बेचैन रहता है| क्या जादू कर दिया तुमने मुझ पर?

ऋतू: ये मेरे प्यार का भूत है जो आपके जिस्म से चिपका हुआ है!


ऋतू ने हँसते हुए कहा| पर कुछ देर चुप रहने के बाद वो मुस्कुराते हुए बोली;


ऋतू: जानू दशेहरा आने वाला है|

मैं: हाँ तो?

ऋतू: फिर करवाचौथ आएगा....

इतना कह के ऋतू चुप हो गई और उसके पेट में तितलियाँ उड़ने लगीं| मैं समझ गया की उसका मतलब क्या है;

मैं: तो क्या चाहिए मेरी जानू को करवाचौथ पर? (मैंने ऋतू को कस कर अपनी बाहों में जकड़ते हुए कहा|)

ऋतू: बस आप!

मैं: मैं तो तुम्हारा हो चूका हूँ ना?

ऋतू: वो पूरा दिन मैं आपके साथ बिताऊँगी और उस दीं उपवास भी रखूँगी|

मैं: जो हुक्म बेगम साहिबा!

ये सुनते ही ऋतू खिलखिला कर हँस पड़ी| उसकी ये खिलखिलाती हँसी मुझे बहुत पसंद थी और में आँख मूंदें उसकी इस हँसी को अपनी रूह में उतारने लगा| पर अगले ही पल वो चुप हो गई और मेरी तरफ आलथी-पालथी मार के बैठ गई और मेरी आँखों में देखते हुए बोली;

ऋतू: I’m sorry जानू! मैंने उस टाइम आपको ..... वो सब कहा!

मैं: हम्म्म... कोई बात नहीं| I know तू मुझे ले कर कितना possessive है but तेरी insecurity मुझे बहुत गुस्सा दिलाती है|

ऋतू: मैं क्या करूँ? बहुत मुश्किल से मैंने अपनी इस insecurity को काबू किया था पर कुतिया (काम्या) की वजह से सब कुछ खराब हो गया! मुझे आप पर भरोसा है पर मुझे ये डर लगता है की अनु मैडम आपको मुझसे छीन लेगी| अब तो आपने उन्हें अनु भी कहना शुरू कर दिया! आपको पता है मुझे कितनी जलन होती है जब आप उसे अनु कहते हो? प्लीज मेरे लिए उससे मिलना बंद कर दो? मैंने आप से जो भी माँगा है आपने वो दिया है, प्लीज ये एक आखरी बार... प्लीज... मैं आगे से आपसे कुछ नहीं माँगूगी|

ऋतू ने रोते-रोते सब कहा और फिर आकर मेरे सीने से लग गई और रोती रही|

मैं: अनु के साथ बस एक आखरी प्रेजेंटेशन बाकी है उसके बाद वो अपने रास्ते और मैं अपने रास्ते|

ऋतू: उसके बाद आप उससे नहीं मिलोगे ना?

मैं: नहीं

ऋतू: Thank you!

तब जा कर ऋतू का रोना बंद हो गया| जब सुबह ऋतू ने मुझसे 'You’re bloody mine!' कहा था मैं तब ही समझ चूका था की उसकी insecurity कभी खत्म नहीं होगी| मैं चाहे उसे कितना भी समझा लूँ वो नहीं समझेगी और फिर कहीं वो कुछ उल्टा-सीधा न कर दे इसलिए मैंने उसकी बात मान ली थी| इतना प्यार करता था ऋतू से की उसके लिए एक दोस्ती कुर्बान करने जा रहा था! शाम को ठीक 6 बजे मैंने ऋतू को उसके हॉस्टल छोड़ा और घर आ गया| घर घुसते ही अनु का फ़ोन आ गया, उन्होंने मुझे प्रेजेंटेशन देने के लिए समय माँगा| मंडे का दिन फाइनल प्रेजेंटेशन था और उन्होंने मुझे ठीक ग्यारह बजे उसी कैफ़े में बुलाया| इधर मेरी मेल पर मुझे एक इंटरव्यू के लिए मंडे को बारह बजे बुलाया गया| इसलिए मैंने अनु को फ़ोन कर के प्रेजेंटेशन 10 बजे reschedule करवाई और वो मान भी गईं|
 
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अगले दिन संडे था, मैं जानता था की ऋतू आज भी आएगी, मैं जल्दी उठा और नहा-धो के तैयार होगया और उसका इंतजार करने लगा| ठीक दस बजे दरवाजे पर दस्तक हुई और मैंने भाग कर दरवाजा खोला| सामने वही ऋतू का खिल-खिलाता चेहरा और उसके हाथ में एक थैली जिसमें अंडे थे! ऋतू सबसे पहले मेरे गले लगी और फिर हम ऐसे ही गले लगे हुए अंदर आये और दरवाजा बंद किया| फिर ऋतू ने अंडे संभाल कर किचन काउंटर पर रख दिए; "आज आप मुझे ऑमलेट बनाना सिखाओगे!" उसने बड़ी अदा से कहा| मैंने ऋतू को पलटा और उसका मुँह किचन काउंटर की तरफ किया, इशारे से उसे प्याज उठाने को कहा और इस मौके का फायदा उठा कर उसकी कमर से होते हुए उसके पेट पर अपने हाथों को लॉक कर के अपने जिस्म से चिपका लिया| ऋतू की गर्दन को चूमते हुए मैंने उसे प्याज छीलने को कहा, फिर उसके गर्दन की दायीं तरफ चूमा और उसे प्याज काटने को कहा| प्याज काटते समय दोनों ही की आँखें भर आईं थीं! आँखों से जब पानी आने लगा तो हम दोनों हँस दिए और मैंने ऋतू को अपनी गिरफ्त से आजाद कर दिया| जैसे ही मैं जाने को मुड़ा तो ऋतू ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली: "मुझे छोड़ कर कहाँ जा रहे हो आप?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा; "अपनी जानेमन को छोड़ कर कहा जाऊँगा?!" तो वो बोली; "जैसे पकड़ के खड़े थे वैसे ही खड़े रहो!" अब उसका आदेश मैं कैसे मना कर सकता था| मैं फिर से ऋतू के पीछे चिपक कर खड़ा हो गया और अपने हाथ फिर से उसके पेट पर लॉक कर लिए| प्याज कट गए थे अब मैंने उसे हरी मिर्च काटने को कहा; "कितनी मिर्च काटूँ?" ऋतू ने पुछा तो मैंने उसके दाएँ गाल से अपने गाल मिला दिए और कहा; "पिछले कुछ दिनों से जितनी तू स्पाइसी (spicy) हो गई है उतनी मिर्च काट!" ये सुन कर ऋतू धीरे से हँस पड़ी और उसने 3 मिर्चें काटी| अब बारी थी अंडे तोड़ने की जो ऋतू को बिलकुल नहीं आता था| मैंने पास ही पड़ी कटोरी खींची और स्पून स्टैंड से एक फोर्क निकाला| फिर मैंने पीछे खड़े-खड़े ऋतू को अंडा कैसे तोडना है वो सिखाया| फोर्क से धीरे से 'टक' कर के अंडे के बीचों बीच मारा और फिर अपने दोनों अंगूठों की मदद से अंडा तोड़ के कटोरी में डाल दिया| जब अंडे की जर्दी वाला हिस्सा ऋतू ने देखा तो उसके मुँह में पानी आ गया| "जान! अभी ये कच्चा है, स्मेल आएगी पाक जाने दो फिर खाना|" फिर ऋतू को अंडा फटने को कहा| पास ही पड़े कपडे से मैंने अपने हाथ पोंछें और फिर से ऋतू को पेट पर अपने हाथों को लॉक किया| अब माने ऋतू की गर्दन के हर हिस्से को चूमना शुरू कर दिया| हर बार मेरे गीले होंठ उसे छूटे तो वो सिंहर जाती और उसके मुँह से सिसकारी फूटने लगती| अंडा फिट गया था अब उसमें प्याज और मिर्च मिला के ऋतू ने पुछा की अब और इसमें क्या डालना है> मैंने उसे नमक डालने को कहा तो वो पूछने लगी की कितना डालूँ तो इसके जवाब में मैंने ऋतू के दाएँ गाल को पाने मुँह में भर उसे चूसा और छोड़ दिया| "बस इतना डाल!" ऋतू शर्मा गई और उसने थोड़ा नमक डाला| मैंने ऊपर शेल्फ पर पड़ी ऑरेगैनो सीज़निंग उठाई और एक चुटकी उसमें डाल दी| अब मैंने ऋतू को अपनी गिरफ्त से आजाद किया और गैस जलाई और उस पर फ्राइंग पैन रखा| ऋतू साइड में खड़ी मुझे देखने लगी, फिर मैंने उससे मख्हन लाने को कहा और वो फ्रिज से मक्खन ले आई| मक्खन फ्राइंग पैन में डाला तो वो तुरंत ही पिघल गया, अब मैंने ऋतू से कहा की वो गौर से देखे, तो ऋतू किचन काउंटर पर बैठ गई| अंडे वाला घोल मैंने जैसे ही डाला उसकी खुशबु पूरे घर में फैलने लगी| जब पलटने की बारी आई तो मैंने फ्राइंग पैन को हैंडल से पकड़ा और उसे आगे-पीछे हिलाने लगा| फिर एक झटका दे कर मैंने पूरा ऑमलेट पलटा, थोड़ा बहुत छिटक कर नीचे गिर गया पर ऋतू इस प्रोफेशनल तरीके को देख खुश हो गई और उसे भी सिखाने को कहने लगी| ऑमलेट बन कर तैयार था; "पर ये तो मैं ही खा जाऊँगी? आप क्या खाओगे?" ऋतू ने किसी छोटे बच्चे की तरह कहा| "फ्रेंच टोस्ट खाओगी?" मैंने ऋतू से पुछा|

"वो क्या होता है?" ऋतू ने ऑमलेट की एक बाईट लेते हुए कहा| मैंने उसे ब्रेड और दूध ले के आने को कहा| ऋतू सब ले कर आ गई और फिर से काउंटर पर बैठ कर ऑमलेट खाने लगी| मैंने दूध और अंडे को मिक्स किया और उसमें हलकी सी चीनी और नमक-मिर्च मिला कर ब्रेड उसमें डूबा कर फ्राइंग पैन पर डाला| मीठी सी सुगंध आते ही ऋतू आँखें बंद कर के सूंघने लगी| "Wow!!!" ये कहते हुए उसकी आँखें चमक उठी! आधा ऑमलेट उसने मेरे लिए छोड़ दिया और मुँह में पानी भरे वो टोस्ट के बनने का इंतजार करने लगी|


टोस्ट रेडी होते ही मैंने उसे दिया तो उसने जल्दी-जल्दी से उस की एक बाईट ली; "मममम.....!!!" फिर उसने मेरे कंधे को पकड़ के अपने पास खींचा और मेरे दाएँ गाल को चूम लिया| "इतना अच्छा खाना बनाते हो आप? फिर बेकार में बाहर से क्यों खाना? आज से आप ही खाना बनाओगे!" ऋतू ने कहा|

"तुम साथ हो इसलिए इतना अच्छा खाना बन रहा है!" मैंने अगला टोस्ट फ्राइंग पैन में डालते हुए कहा|

"सच? तो शादी के बाद भी आप ही खाना बनोगे ना?" ऋतू ने मुझे ऑमलेट खिलाते हुए कहा|

"Why not?!!!"

"अच्छा जानू एक बात पूछूँ?"

"हाँ जी पूछो!" मैंने बहुत प्यार से कहा|

"मुझे ये प्रेगनेंसी वाली गोलियां कब टक खानी है?"

"जब तक हम शादी हो कर सेटल नहीं हो जाते तब टक!" मैंने एक और टोस्ट ऋतू की प्लेट में रखते हुए कहा|

"पर शादी के कितने महीने बाद?" ऋतू ने अपनी ऊँगली दाँतों तले दबाते हुए कहा| मैंने गैस बंद की और दोनों हाथों से उसके दोनों गाल खींचते हुए पुछा; "बहुत जल्दी है तुझे माँ बनने की?"

"हम्म...उससे ज्यादा जल्दी आपको पापा बनाने की है!"

"जब तक चीजें सेटल नहीं होती तब तक तो कुछ नहीं! I know .... painful है... बूत कोई और चारा भी नहीं! घर से भाग कर नई जिंदगी शुरू करना इतना आसान नहीं|" इसके आगे मैं कुछ नहीं बोलै क्योंकि फिर ऋतू का मन खराब हो जाता| उसने भी आगे कुछ नहीं कहा, शायद वो समझ गई थी की बिना नौकरी के अभी ये हाल है तो शादी के बाद तो मेरी जिमेदारी बढ़ जाएगी! खेर हमने किचन में ही खड़े-खड़े नाश्ता किया और फिर कमरे में आ कर बैठ गए| मैंने ऋतू को चाय बनाने को कहा और मैं बाथरूम में घुस गया| तभी अचानक दरवाजे पर नॉक हुई और इससे पहले की मैं बाथरूम से निकल कर दरवाजा खोलता ऋतू ने ही दरवाजा खोल दिया|


सामने अरुण और सिद्धार्थ खड़े थे और उन्हें देखते ही ऋतू की सिटी-पिट्टी गुल हो गई| वो दोनों भी एक दूसरे को हैरानी से देखने लगे? इतने में मैं बाथरूम से बाहर आया और उन दोनों को अपने सामने दरवाजे पर खड़ा पाया और मुँह से दबी हुई आवाज में निकला; "oh shit!" ऋतू ने दोनों को नमस्ते कही और अंदर आने को कहा| दोनों अंदर आये तो ऋतू ने अपनई जीभ दांतों तले दबाई और होंठ हिलाते हुए मुझे सॉरी कहा| इधर अरुण और सिद्धार्थ मुझे देख कर हँस रहे थे, हाथ मिला कर हम गले मिले और दोनों बैठ गए| सिद्धार्थ ने मेरी तरफ एक कागज़ का एनवेलप बढ़ाया, मैंने वो खोल कर देखा तो उसमें मेरी सैलरी का चेक था| "ये सर ने दिया है!" सिद्धार्थ ने कहा और मैंने भी वो एनवेलप देख कर टेबल पर रख दिया|

"और बताओ क्या हाल-चाल?" मैंने पुछा|

"सब बढ़िया, पर तूने क्यों जॉब छोड़ दी?" अरुण ने पुछा|

"कुमार ने कुछ बोला नहीं?" मैंने पुछा तो दोनों ने ना में सर हिलाया| मैं बस मुस्कुराया और कहा; "यार ...उस साले की वजह से छोड़ी!" मैंने बात को हलके में लेते हुए कहा| इधर ऋतू पलट कर किचन में जाने लगी तो सिद्धार्थ ने मजाक करते हुए पुछा; "अरे रितिका जी! आप यहाँ कैसे?" ऋतू पलटी और शर्म से उसके गाल लाल थे! वो बस मुस्कुराने लगी और मेरी तरफ देखने लगी|

"यार जैसे तुम दोनों को मेरी जॉब का पता चला और तुम मुझसे मिलने आ गए वैसे ही जब 'इनको' पता चला की मैंने जॉब छोड़ दी है तो मुझे मिलने आ गईं!"

"अच्छा???" अरुण ने मेरी टांग खींचते हुए कहा| "पर हमें तो तेरा घर पता था, रितिका जी को कैसे पता चला?" अरुण ने अपनी खिंचाई जारी रखी|

"वो...एक दिन देख लिया था 'इन्होने' मुझे|" मैंने फिर से सफाई दी|

"अबे जा साले!" सिद्धार्थ ने कहा|

"नहीं सिद्धार्थ जी ... वो मेरी एक फ्रेंड यहीं नजदीक रहती है ...उसी से मिलने एक दिन आई थी... तब मैंने ... 'इन्हें'...मतलब मानु जी को देखा!" ऋतू ने जैसे-तैसे बात संभालते हुए कहा|

"इन्हें ??? क्या बात है?" अरुण ने अब ऋतू को चिढ़ाने के लिए कहा और ये सुन हम तीनों हँस पड़े और ऋतू ने शर्म से गर्दन झुका ली|

"शादी-वादी तो नहीं कर लिए हो?" सिद्धर्थ ने मजाक-मजाक में कहा और हम तीनों हँसने लगे|

"यार शादी करते तो तुम दोनों को नहीं बताते? गवाही तो तुम दोनों ही देते!" मैंने ऋतू ला बचाव करते हुए कहा पर ये सुन कर पूरे कमरे में हँसी गूंजने लगे| ऋतू भी अब हमारे साथ हँसने लगी थी और अब साड़ी बात खुल ही चुकी थी तो उसे एक्सेप्ट करने के अलावा किया भी क्या जा सकता था| अरुण और सिद्धार्थ भले ही मेरे colleagues थे पर दिल के बहुत अच्छे थे| ऑफिस में कभी भी हमारे बीच किसी भी तरह की होड़ या तीखी बहस नहीं होती थी| Colleagues कम और अच्छे दोस्त ज्यादा थे मेरे! आखिर ऋतू किचन में जा के सब के लिए चाय बनाने लगी|

"तो कब से चल रहा है ये?" अरुण ने पुछा|

"यार जब पहलीबार ऋतू को देखा तो बस.....हाय!" मैंने आवाज ऊँचीं कर के कहा ताकि ऋतू सुन ले|

"चल अच्छी बात है यार! congratulations!!!" अरुण ने कहा|

"भाई हमें तो कॉन्फिडेंस में ले लेता! हम कौनसा किसी को बता देते?" सिद्धार्थ ने मुझे मेरी गलती की याद दिलाई|

"यार बताने वाला हुआ था और फिर ये सब हो गया|" मैंने कहा इतने में ऋतू चाय बना कर ले आई और उसने अरुण और सिद्धार्थ को दी|

"पर तूने जॉब छोड़ी क्यों?" सिद्धार्थ ने जोर दे कर पुछा पर मैं इस टॉपिक को अवॉयड कर रहा है|

"आपके बॉस ने इन पर इल्जाम लगा दिया की इनका उनकी बीवी के साथ नाजायज संबंध है!" ऋतू ने तपाक से बोला और ये सुन दोनों उसे आँखें फाड़े देखने लगे|

"क्या बकवास है ये?" अरुण ने कहा|

"तेरा और मैडम के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर? पागल हो गया है क्या वो साला?" सिद्धार्थ बोला|

"कोर्ट में केस है और जब ये बात उस दिन इन्हें पता चली तो इन्होने उसी वक़्त अपना रेसिग्नेशन दे दिया|" ऋतू बोली|

"ये तो बहुत बड़ी चिरांद निकला!" सिद्धार्थ ने सर पीटते हुए कहा|

"सिद्धार्थ जी आपके बॉस ने खुद गर्लफ्रेंड फंसा रखी है और इल्जाम इन पर लगाते हैं|" ऋतू ने चाय का कप रखते हुए कहा| ये सुन कर दोनों सन्न थे! "आप दोनों अपना ध्यान रखना कहीं वो आपको ही न फँसा दे! सब कुछ पहले से प्लान था, पहले वो मुंबई के ट्रिप का बहाना, फिर वो राखी की शादी का काण्ड और फिर बाकी की रही सही कस्र अनु मैडम ने पूरी कर दी!" ऋतू ने गुस्से से कहा|

"ऋतू मैडम ने क्या किया?" अरुण ने पुछा, तो मैं समझ गया की ऋतू अब उस दिन होटल की साड़ी बात बक देगी| इसलिए मैंने ही बात संभाली;

"कुछ दिन पहले मैडम ने मुझसे लिफ्ट मांगी थी, उन्हें GST ऑफिस जाना था| वहाँ से उन्होंने कहा की कबाब खाते हैं, अब कुमार ने हमारे पीछे जासूस छोड़ रखे थे जिसने हमें देख लिया और फोटो खींच ली|"

मेरी बात सुन कर दोनों हैरान थे और उन्हें कहीं भी मेरी गलती नहीं लगी, खेर थोड़ा हँसी मजाक हुआ और चाय पी कर वो दोनों निकलने को हुए|

"अच्छा भाभी जी! चलते हैं, ये तो शुक्र है की आप यहाँ थे वरना ये साला तो कभी हमें चाय तक नहीं पूछता|" सिद्धार्थ ने मजाक करते हुए कहा| उसके मुँह से 'भाभी जी' सुन कर ऋतू की खुशियों का कोई ठिकाना नहीं था|

"चल भाई लव बर्ड्स को अकेला छोड़ देते हैं वरना मन ही मन दोनों गाली देते होंगे!" अरुण ने भी टांग खींचते हुए कहा| मैं दोनों के गले मिला और उन्हें छोड़ने नीचे उतरा| नीचे आ कर तो दोनों ने मेरी जम कर खिंचाई की ये बोल-बोल कर की लड़की पटा ली और हमें बताया भी नहीं| उन्हें छोड़ कर मैं ऊपर आया तो ऋतू चाय के बर्तन धो रही थी| मैंने दरवाजा बंद कर ऋतू को फिर पीछे से अपनी बाहों में भर लिया| "जानू! ये भाभी शब्द सुनने में बहुत अच्छा लगता है|" ऋतू ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए कहा| मेरे हाथ ऋतू के सीने तक पहुँच गए और उसके स्तन मेरी मुट्ठी में आ गए| मैंने उन्हें धीरे-धीरे मसलना शुरू कर दिया| "अब तो जल्दी से मुझे अपने दोस्तों की भाभी बना दो ना?" ऋतू ने कसमसाते हुए कहा|

"पहले तुम्हें ढंग से बीवी तो बना लूँ|" मैंने ऋतू की गर्दन पर धीरे से काटा| "ससससस...आह!हह..!!!" इस आवाज के साथ ही ऋतू ने जल्दी से हाथ धोये और मेरी तरफ पलट गई| "आप ना? बहुत शरारती हो!" ये कहते हुए ऋतू मुझसे चिपट गई| मैंने ऋतू को अपनी गोद में उठाया और उसे पलंग पर लिटा दिया, मैं उसके ऊपर आ कर उसे kiss करने वाला था की ऋतू ने अपने सीधे हाथ की ऊँगली मेरे होंठों पर रख दी| "सॉरी जान! आज सुबह से मेरे पीरियड्स शुरू हो गए!| ऋतू ने मायूस होते हुए कहा| मैंने झुक कर उसकी नाक से अपनी नाक लड़ाई और उसके माथे को चूमा| मैं उठा और फ्रिज से डेरी मिल्क चॉकलेट निकाली और उसे दी| "ये क्यों? ऋतू ने पुछा| "यार मैंने इंटरनेट पर पढ़ा था की पीरियड्स के टाइम लड़कियों को चॉकलेट और आइस-क्रीम बहुत पसंद होती है|"

"अच्छा? और क्या-क्या पढ़ा आपने?"

"ये ही की इन दिनों लड़कियां बहुत चिड़चिड़ी हो जाती हैं|" मैंने ऋतू को चिढ़ाते हुए कहा|

"मैं कब हुई चिड़चिड़ी?" ये कह कर ऋतू मुझसे रूठ गई और दूसरी तरफ मुँह कर लिया| मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ के अपनी तरफ घुमाई और कहा; "हो गई ना नाराज?" ये सुन कर ऋतू मुस्कुरा दी|

"आपने कब से ये सब पढ़ना शुरू कर दिया? पीरियड्स मुझे पहली बार थोड़े ही हुए हैं?" ऋतू ने चॉकलेट की बाईट लेते हुए कहा|

"बाप बनना है तो इन चीजों का ख्याल तो रखना ही होगा ना? पहले मैं इतना इंटरेस्ट नहीं लेता था पर जब से घर बैठा हूँ तो रात को यही सब पढता रहता हूँ|" मैंने कहा|

"प्रेगनेंसी मैं हैंडल कर लूँगी! आप बाकी सब देखो?" ऋतू ने पूरे आत्मविश्वास से कहा|

"बाकी सब भी देख रहा हूँ|" ये कहते हुए मैंने अपनी डायरी निकाली और उसमें मैंने बैंगलोर में सेटल होने से जुडी साड़ी चीजें लिखी थीं| नए घर बसाने का सारा जिक्र था उसमें, बर्तन-भांडे से ले कर परदे, बेडशीट सब कुछ| अपने लैपटॉप पर मैंने प्रॉपर्टी वाले जो लिंक बुकमार्क कर रखे तो वो सब मैं ऋतू की दिखाने लगा| घर का 360 डिग्री व्यू था और मैं ऋतू को सब बता रहा था की कौन सा हमारा कमरा होगा और कौन सा किचन होगा| किस फ्लैट का कितना भाड़ा है और कितना डिपाजिट लगेगा सब कुछ लिखा था| ऋतू मेरी सारी प्लानिंग देख कर हैरान थी और ये सब सुन कर उसकी आँखें भर आईं| "Hey!!! क्या हुआ जान?" मैंने ऋतू के चेहरे को अपने हाथों में थामते हुए कहा| "आज मुझे मेरे सपनों का संसार दिखाई दिया.... Thank you!!!" मैंने ऋतू को अपने सीने से लगा लिया और उसे रोने नहीं दिया| "अच्छा दशहरे की छुट्टियाँ कब से हैं?" मैंने बात बदलते हुए कहा ताकि ऋतू का ध्यान हटे और वो और न रोये| "next to next week से! Friday अगर छुट्टी कर लूँ तो फिर सीधा मंडे को कॉलेज ज्वाइन करुँगी|" ऋतू ने अपने आँसूँ पोछते हुए कहा| दशहरे का कुछ ख़ास प्लान नहीं था बस घर जाना था, हालाँकि ऋतू मना कर रही थी घर जाने से और कह रही थी की दशहरे हम शेहरा में एक साथ मनाते है पर मैंने उसे समझाया की ऐसे घर नहीं जाने से वो लोग कभी भी यहाँ टपक सकते हैं और फिर सारा रायता फ़ैल जायेगा| ऋतू को बात समझ आ गई और उसने बात मान ली| दोपहर को खाना मैंने और ऋतू ने मिल कर बनाया और हमारी मस्ती चलती रही, मैं ऋतू को और वो मुझे बार-बार छूती रहती| खाना खा कर मैंने उसे कल की प्रेजेंटेशन के बारे में याद दिलाया तो उसने फिर से मुझे याद दिलाते हुए कहा; "कल लास्ट टाइम है!" मैंने बस हाँ में सर हिलाया और फिर 5 बजे उसे हॉस्टल छोड़ आया| घर आ कर दोपहर का खाना गर्म कर खाया, ऋतू से कुछ देर चैट की और फिर ‘प्यासा’ ही सो गया!
 
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अगली सुबह मैं उठ कर तैयार हुआ और सबसे पहले कैफ़े पहुँचा और वहां अनु पहले से ही मेरा इंतजार कर रही थी| हम बिलकुल कोने में बैठे थे ताकि प्रेजेंटेशन के दौरान कोई हमें डिस्टर्ब न दे| वीडियो कॉल पर प्रेजेंटेशन शुरू हुआ और जल्दी ही सारा काम निपट गया| अनु ने प्रेजेंटेशन के बाद थैंक यू कहा और साथ ही ये भी बताया की वो कल बैंगलोर जा रहीं हैं| मैंने उसने आगे और कुछ नहीं पुछा और जल्दी-जल्दी सीधा इंटरव्यू के लिए निकल गया| इंटरव्यू सक्सेसफुल नहीं था क्योंकि वहाँ कोई अपनी जान-पहचान निकला लाया था! मैं हारा हुआ घर आया और लेट गया, मन में यही बात आ रही थी की 5 दिन में तू ने हार मान ली तो इतनी बड़ी लड़ाई कैसे लड़ेगा? आँखें बंद किये हुए कुछ देर लेटा रहा और फिर अचानक से मुझे भगवान् का ख्याल आया| जब कोई रास्ता दिखाई नहीं देता तो एक भगवान् के घर का ही रास्ता दिखाई देने लगता है, में उठा और मंदिर जा पहुँचा| वहां बैठे-बैठे मन ही मन में मैंने अपने दिल की साड़ी बात भगवान् से कह दी, कोई जवाब तो नहीं मिला पर मन हल्का हो गया| ऐसा लगने लगा जैसे की कोई कह रहा हो की कोशिश करता रह कभी न कभी तो कामयाबी मिल जाएगी| मंदिर की शान्ति से मन काबू में आने लगा था इसलिए शाम तक मैं मंदिर में ही बैठा रहा| ठीक 4 बजे मैं ऋतू के कॉलेज के लिए निकला, जब ऋतू ने मेरे मस्तक पर टिका देखा तो वो असमंजस में पड़ गई और फिर एक दम से उदास हो गई| हम चलते-चलते एक पार्क में पहुँचे और तब मैंने बात शुरू की; "क्या हुआ? अभी तो तेरे मुँह खिला-खिला था, अचानक से उदास कैसे हो गई?" ऋतू ने गर्दन झुकाये हुए कहा; "आपने अनु से शादी कर ली ना?" ये सुन कर मैं बहुत तेज ठहाका मार के हँसने लगा| उसके इस बचपने पर मुझे बहुत हँसी आ रही थी और उधर ऋतू मुझे हँसता हुआ देख कर हैरान थी| ऋतू गुस्से में मुड़ के जाने लगी तो मैंने पहले बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी काबू में की और ऋतू के सामने जा के खड़ा हो गया| "तू पागल हो गई है क्या? मैं अनु से शादी क्यों करूँगा? प्यार तो मैं तुझसे करता हूँ! मैं मंदिर गया था..." इसके आगे मैंने ऋतू से कुछ नहीं कहा और उसके चेहरे को हाथों में थामे उसकी आँखों में देखने लगा| ऋतू भी मेरी आँखों में सच देख पा रही थी और उसे यक़ीन हो गया था की मैं झूठ नहीं बोल रहा| वो आके मेरे सीने से लग गई, और मैं उसके सर पर हाथ फेरता रहा|

कुछ देर में जब उसके जज्बात उसके काबू में आये तो उसने पुछा; "आप मंदिर क्यों गए थे?" अब मैं इस बात को उससे छुपाना चाहता था की मैं मंदिर इसलिए गया था क्योंकि मैं इंटरव्यू के बाद हारा हुआ महसूस कर रहा था| "बस ऐसे ही!" मैंने बात को वहीँ खत्म कर दिया| "आपका इंटरव्यू कैसा था?" ऋतू ने अपने बैग से टिफ़िन निकालते हुए कहा| "Not good! किसी का आलरेडी जुगाड़ फिट था!" मैंने ऋतू से नजर चुराते हुए कहा| ऋतू अब सब समझ गई थी की मैं क्यों मंदिर गया था| उसने मेरे ठुड्डी पकड़ी और अपनी तरफ घुमाई और मेरी आँखों में आँखें डालते हुए बोली; "मैं हूँ ना आपके पास, तो क्यों चिंता करते हो?" उसका ये कहना ही मेरे लिए बहुत था| मेरा आत्मविश्वास अब दुगना हो गया था और माहौल हल्का करने के लिए मैंने थोड़ा हँसी-मजाक शुरू कर दिया| वो पूरा हफ्ता मैं या तो इंटरव्यू देने के लिए ऑफिसेस के चक्कर काटा या फिर जॉब कंसल्टेंसी वालों के यहाँ जाता था| जहाँ कहीं जॉब मिली भी तो पाय इतनी नहीं थी जितनी मैं चाहता था| पर फिर मुझे कुछ-कुछ समझ आने लगा, दिवाली आने में 1 महीना रह गया था तो ऐसे मैं कौन सा मालिक एक एक्स्ट्रा आदमी को hire कर बोनस देना चाहेगा, इसीलिए vacancy कम निकल रहीं हैं| मैंने ये सोच कर संतोष कर लिया की दिवाली के बाद तो नौकरी मिल ही जाएगी| सहबीवार का दिन था और ऋतू सुबह-सुबह ही आ धमकी! मैं तो पहले से ही जानता था की वो आने वाली है इसलिए मैं खिड़की के सामने बैठा चाय पी रहा था| दरवाजा खुला था, इसलिए ऋतू चुपके से अंदर आई और मेरी आँखों पर अपने कोमल हाथ रख दिए ये सोच कर की मैं कहूँगा की कौन है? मैं तो पहले से ही जानता था की ये ऋतू है क्योंकि उसकी परफ्यूम की जानी-पहचानी महक मुझे पहले ही आ गई थी| अब समय था उसे जलाने का; "अरे रिंकी भाभी?!" मैंने जान बूझ कर ये नाम लिया, ये नाम किसी और का नहीं बल्कि मेरे मकान मालिक अंकल की बहु का नाम था| ये सुनते ही ऋतू गुस्से से तमतमा गई और उसने मेरी आँखों से हाथ हटाए और मेरे सामने गुस्से से खड़ी हो गई; "रिंकू भाभी के साथ आपका चक्कर है? वो आपके घर में कभी भी बिना बातये घुस आती है और आपको ऐसे छूती है? ये सारी औरतें आपके पीछे क्यों पड़ीं हैं? एक अनु मैडम कम थी जो ये रिंकू भाभी भी आपके पीछे पड़ गईं? और आप.... आप बोल नहीं सकते की आप किसी से प्यार करते हो? मैं....मैं....."

"अरे..अरे..अरे... यार मजाक कर रहा था, तू क्यों इतनी जल्दी भड़क जाती है?" मैंने ऋतू को मनाते हुए कहा|

"भड़कूं नहीं? आपके मुँह से किसी भी लड़की का नाम सुनते ही मेरे जिस्म में आग लग जाती है! आपको मजाक करने के लिए कोई और टॉपिक नहीं मिलता?" ऋतू ने गुस्से से कहा|

'अच्छा सॉरी! आज के बाद ऐसा कभी मजाक नहीं करूँगा!" मैंने कान पकड़ते हुए कहा| मेरे ऐसा करने से ऋतू का दिल एक दम से पिघल गया और वो आ कर मुझसे चिपक गई|

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, मैं और ऋतू अलग हुए और एक दूसरे को देखने लगे| मैं दरवाजे के पास आया और मैजिक ऑय से देखा तो बाहर मोहिनी खड़ी थी| मैंने इशारे से ऋतू को बाथरूम में छुपने को कहा| जैसे ही ऋतू अंदर घुसी और बाथरूम का दरवाजा सटाया मैंने मैन डोर खोला| "बड़ी देर लगा दी दरवाजा खोलने में? कोई लड़की-वड़की छुपा राखी है?" मोहिनीं ने हँसते हुए कहा|

"नंगा था ... कपड़े पहन रहा था|" मैंने भी उसी तरह से जवाब दिया|

"तो मुझसे कैसी शर्म?" मोहिनी ने फिर से मुझे छेड़ते हुए कहा|

"ओ मैडम जी! आपने कब देख लिया मुझे नंगा?" मैंने थोड़ा हैरानी से कहा|

''अरे मजाक कर रही थी! काहे सीरियस हो जाते हो आप?"

"यही मजाक करना आता है? कउनो और मजाक नहीं कर सकती?" मैं जानता था की ऋतू अंदर बाथरूम से हमारी सारी बात सुन रही है इसलिए अभी कुछ देर पहले कही उसकी बात उसे सुनाते हुए मैंने कहा| इधर मोहिनी खिलखिला कर हँस रही थी, कारन ये की हम दोनों कई बार एक दूसरे से इसी तरह देहाती भाषा में बात करते थे!

"चलो जल्दी से तैयार हो जाओ?"

"क्यों?" मैंने पुछा और यही सवाल ऋतू के मन में भी चल रहा था|

"माँ ने बुलाया है आपको, लंच पर|"

"क्यों आज कोई ख़ास दिन है?" मैंने पुछा|

"वो..आज ...मेरा बर्थडे है!" मोहिनी ने मुस्कुराते हुए कहा|

"अरे सॉरी यार! हैप्पी बर्थडे! सॉरी मैं भूल गया था!" मैंने माफ़ी माँगते हुए उसे wish किया|

"मेरा बर्थडे याद करके रखते हो?"

:यार कॉलेज के कुछ 'ख़ास' लोगों का जन्मदिन याद है|" मेरे ये कहने के बाद मुझे एहसास हुआ की ऋतू ये सब सुन रही होगी और अभी मुझसे फिर लड़ेगी इसलिए मैंने अपनी इस बात में आगे बात जोड़ दी; "जैसे मुन्ना, सोमू भैया और मेरे ऑफिस के colleagues के|"

"पर wish तो कभी किया नहीं?" मोहिनी ने सवाल किया|

"कैसे करता? मेरे पास नंबर तो था नहीं, बाकियों को व्हाटस ऍप पर wish कर दिया करता था|" मैंने अपनी सफाई दी, जबकि मेरा उसका बर्थडे याद रखने का कारन मेरा उसके लिए प्यार था जो मैं उससे फर्स्ट ईयर में किया करता था| पर जब मुझे संकेत ने ऋतू की माँ वाले काण्ड के बारे में बताया था तब से मैंने खुद को जैसे-तैसे समझा लिया था की मैं मोहिनी से प्यार नहीं कर सकता| फिर ऋतू मिल गई और मेरे मन में मोहिनी के प्यार की कब्र बन गई|

"चलो कोई बात नहीं, इस बार तो wish कर दिया आपने| चलो चलते हैं... (कुछ सोचते हुए) अच्छा एक बात बताओ रितिका सुबह बोल के गई थी की कॉलेज जा रही है पर मुझे तो वो वहाँ मिली नहीं! आपको पता है कहाँ गई है?" मोहनी ने पुछा| मैं जानता था की ऋतू मेरे ही बाथरूम में छुपी है पर ये मैं उसे कैसे बता सकता था|

"पता नहीं... कहीं दोस्तों के साथ बंक तो नहीं कर रही?" मैंने अनजान बनते हुए कहा|

"हो सकता है, उसके पास फ़ोन भी नहीं की उसे कॉल कर के बुला लूँ| आप अपने घर में कह दो ना की उसे एक फ़ोन दिलवा दें ताकि कभी जर्रूरत हो तो उसे कॉल कर लूँ|"

"आ जाएगी जहाँ भी होगी, लंच तक! आप ऐसा करो आप चलो मुझे एक जर्रूरी काम है वो निपटा कर मैं आता हूँ|" मैंने बहाना मारा ताकि मोहिनी निकले|

"ठीक है पर लेट मत होना|" इतना कह कर वो चली गई, मैंने दरवाजा बंद किया और ऋतू फिर से गुस्से में बाहर आई और अपनी कमर पर दोनों हाथ रख कर मुझे घूरने लगी|

"सॉरी बाबा ...सॉरी!!!' मैंने कान पकड़ते हुए कहा पर उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ, वो किचन में घुसी और चम्मच और गिलास उठा के फेंकने शुरू कर दिए| "अरे यार ...सॉरी! ...सॉरी!!!!" पर उसने बर्तन मेरी ओर फेकने जारी रखे, हैरानी की बात है की एक भी बर्तन मुझे लगा नहीं| मैं धीरे-धीरे उसके नजदीक पहुँचा तभी उसके हाथ में बेलन आ गया| मुझे मारने के लिए उसने बेलन उठाया की तभी कुछ सोचने लगी ओर वो वापस किचन काउंटर पर छोड़ दिया ओर मेरे पास आ कर प्यार से अपने मुक्के मेरे सीने में मारने शरू कर दिए|

अउ..अउ..अउ..आह!" मैंने झूठ-मूठ का करहाना शुरू किया पर वो रुकी नहीं| मैंने उसे गोद में उठाया ओर पलंग पर ले आया, पर उसने मेरी छाती पर अब भी मुक्के मारने चालु रखे| मैंने दोनों हाथों से उसके दोनों हाथों को पकड़ कर अलग-अलग किया ओर उसके ऊपर झुक कर उसके होठों को चूमा, तब जा कर उसका गुस्सा शांत हुआ| "बाबू! ये बहुत पुरानी बात है, कॉलेज फर्स्ट ईयर की! पर जब से तुमसे प्यार हुआ मैं सब कुछ भूल गया था, तुम्हारी कसम! अब प्लीज गुस्सा थूक दो!" मैंने बहुत प्यार से कहा ओर ऋतू के हाथ छोड़ दिए| मैं उसके ऊपर से उठने लगा तो ऋतू ने मेरे टी-शर्ट के कालर को पकड़ा ओर अपने ऊपर खींच लिया; "ज्यादा न पुरानी बातें याद ना किया कीजिये, नहीं सच कर रही हूँ जान दे दूंगी मैं!"

"अरे बाप रे बाप! ई व्यवस्था!" मैंने भोजपुरी में कहा तो ऋतू की हँसी छूट गई| "अच्छा जान! चलो उठो ओर चलें आपके हॉस्टल!"

हम दोनों उठे और मैंने कपडे बदले और दोनों बस से हॉस्टल पहुँचे| चौराहे पर पहुँच कर मैंने ऋतू से जाने को कहा और मैं मार्किट की तरफ निकल गया| जन्मदिन पर खाली हाथ जाना सही नहीं लगा, अब अगर तौह्फे के लिए फूल लिए तो ऋतू जान खा जाएगी इसलिए मैंने एक पेन खरीदा और उसे गिफ्ट-व्रैप करा कर हॉस्टल पहुँचा| ऋतू ने दरवाजा खोला और हँसते हुए 'नमस्ते' कहा| अब आखिर सब के समने ये भी तो जताना था की हम दोनों एक साथ नहीं थे! मैंने आंटी जी के पाँव छुए और उन्होंने मुझे बैठे को कहा| वो भी मेरे पास ही बैठ गईं और घर के हाल-चाल पूछने लगीं| "और बताओ जॉब कैसी चल रही है?" आंटी जी ने पुछा, मैंने बात को गोलमोल करना चाहा की तभी ऋतू बोल पड़ी; "आंटी जी जॉब तो छोड़ दी इन्होने!" अब ये सुनते ही आंटी जी मेरी तरफ देखने लगीं; "वो आंटी जी वर्क लोड बहुत बढ़ गया था ऊपर से सैलरी ढंग की देते नहीं थे!" मैंने झूठ बोला और आंटी ने मेरी बात मान भी ली| "सही किया बेटा, मेरे हिसाब से तो सरकारी नौकरी ही बढ़िया है| काम कम और सैलरी ज्यादा!" मैं ये सुन कर मुस्कुरा दिया क्योंकि मेरी ऐसी आदत थी नहीं, मुझे तो मेरी मेहनत की कमाई हुई रोटी ही भाति थी! कुछ देर बाद मोहिनी आ गई और मैंने उसे उसका तौहफा दिया तो उसने झट से तौहफा ले लिया| आंटी जी ने बड़ा कहा की बेटा क्या जर्रूरत थी तो मैंने बस इतना ही कहा की आंटी जी बस एक पेन ही तो है, वो बात अलग है की वो पेन पार्कर का था! ऋतू शांत रही और कुछ नहीं बोली, अब मैं चलने को हुआ तो मोहिनी कहने लगी की वो मुझे ड्राप कर देगी| मैंने बहुत मना किया पर आंटी जी ने भी कहा की कोई नहीं छोड़ आ| मैं उसकी स्कूटी पर पीछे बैठ गया और दोनों हाथों से पीछे के हैंडल को पकड़ लिया| हम रेड लाइट पर रुके तो मोहिनी पीछे मुड़ी और बोली; थैंक यू!" मैंने बस its alright कहा और तभी ग्रीन लाइट हो गई| फिर पूरे रस्ते वो कुछ न कुछ बोलती रही, उसे अब भी पता नहीं था की मैंने जॉब छोड़ दी है| जब घर आया तो मोहिनी बोली; "सॉरी इस बार आपको घर का खाना खिलाया! नेक्स्ट टाइम मैं पार्टी दूँगी!"

"कोई नहीं!" मैं बाय बोल कर जाने लगा तो वो खुद ही बोलने लगी; "माँ ना... सच्ची बहुत रोक-टोक रखती है मुझ पर! ऑफिस से घर और घर से ऑफिस, जरा सी लेट हो जाऊँ तो जान खा जाती है मेरी| मैंने कहा मैं बाहर ट्रीट दूँगी तो कहने लगी किसको ट्रीट देनी है? अब अगर ऑफिस वालों का नाम लेती तो वो मना कर देती इसलिए मैंने आपका नाम ले लिया| आपका नाम सुनते ही उन्होंने कहा की मानु को यहीं बुला ले बहुत दिनों से उससे मुलाक़ात नहीं हुई, इसलिए आप को आज के लंच का न्योता दिया| इतनी रोक-टोक तो वो रितिका पर भी नहीं रखती!"

"उनकी गलती नहीं है, ये जो आपका मुँहफट पना है न इसी के चलते वो ऐसा करती हैं| रही ऋतू की बात तो वो हमेशा ही शांत रहती है, कम बोलती है और अपने काम से काम रखती है और कुछ-कुछ मेरी वजह से भी आंटी जी उस पर lenient हैं, इसलिए उसे ज्यादा रोकती-टोकती नहीं!" मैंने आंटी की तरफदारी की|

"अच्छा तो मैं भी रितिका की तरह गाय बन जाऊँ?" मोहिनी ने हँसते हुए कहा|

"नहीं बन सकती! वो बानी ही अलग मिटटी के सांचे की है और फिर ऊपर वाले ने ही वो साँचा तोड़ दिया!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा| मैंने ऋतू की तारीफ कुछ इस ढंग से की ताकि मोहिनी उसे समझ ही न पाए की मैंने तारीफ की है या उसका मजाक उड़ाया है| मैं ऊपर आ गया और मोहनी अपनी स्कूटी मोड़ के चली गई| कुछ देर बाद ऋतू का मैसेज आया पर उसने गिफ्ट के बारे में कुछ नहीं कहा| वो समझ गई थी की मैंने वो गिफ्ट बस खानापूरी के लिए दिया था| थोड़ी इधर-उधर की बातें हुईं फिर मैं घर के कुछ काम करने लगा| वो दिन बस ऐसे ही निकल गया और फिर आया संडे और मैं नाहा-धो के पूजा कर के तैयार था| ऋतू भी समय से आ गई और आते ही मेरे सीने से चिपक गई| पर आज मैंने उसे नहीं छुआ और वो तुरंत ये बदलाव ताड़ गई| "क्या हुआ? नाराज हो?" उसने मेरी ठुड्डी पकड़ते हुए कहा| नहीं तो.... आज से व्रत हैं!" ये सुनते ही ऋतू मुझसे छिटक कर कड़ी हो गई और अपनी जीभ दाँतों तले दबा कर सॉरी बोली| दरअसल मैं हर साल नवरात्रों में व्रत रखता था और पूरे रखता था| "तब तो मैं आपको छू भी नहीं सकती?!" ऋतू ने पुछा| "दिल साफ़ हो तो छू सकती हो, पर वासना भरी हो तो नहीं!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो जवाब में ऋतू बोली; "आपको देखते ही मेरे जिस्म में आग लग जाती है| उसे बूझाने ही तो मैं आपके करीब आती हूँ, पर हाय रे मेरी किस्मत! आप तो विश्वामित्र बन गए पर कोई बात नहीं ये मेनका आपकी तपस्या भंग अवश्य कर देगी!"

"बड़ा ज्ञान है तुझे? पर मेरे साथ ऐसा कुछ करने की कोशिश भी मत करना| मार खायेगी मेरे से!" मैंने ऋतू को चेतावनी दी| उसने बस हाँ में गर्दन हिलाई, वो जानती थी की व्रत के दिनों में मैं बहुत सख्त नियमों का प्लान करता हूँ| हालाँकि मेरे लिए भी इस बार बहुत मुश्किल था ऋतू के सामने होते हुए उससे दूर रहना| अब उस दिन चूँकि मैं कुछ खाने वाला नहीं था तो ऋतू ने भी कुछ खाने से मना कर दिया| मैंने फिर भी उसके लिए फ्रूट चाट बना दी और दोनों बिस्तर पर बैठे मूवी देखते रहे| वो पूरा हफ्ता वही रूटीन चलता रहा, जॉब ढूँढना, शाम को ऋतू से मिलना और फिर घर आ कर सो जाना| बुधवार को ही घर से बालवा आ गया और गुरूवार की शाम मैं और ऋतू गाँव चले गए| घर में सब जानते थे की मेरा व्रत है तो माँ ने मेरे लिए दूध बनाया था जिसे पी कर मैं सो गया| शनिवार को घर में पूजा हुई और मेरा व्रत पूर्ण हुआ, फिर दबा के हलवा-पूरी खाई| शाम को मैं छत पर बैठा था की ऋतू आ गई; "अच्छा अब तो आपको छूने की इज्जाजत है मुझे?"

"घर में सब मौजूद हैं तो ज्यादा मेरे पास भटकना भी मत|" मैंने कहा तो ऋतू मुँह फुला कर चली गई| मैं जानता था की मुझे उसे कैसे मनाना है पर आज नहीं कल!
 
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शाम से ले कर रात तक ऋतू मुझसे बात नहीं कर रही थी और मुँह फुला कर घूम रही थी| मैंने एक दो बार उससे बात करनी चाही तो वो बिदक कर चली गई| खाना परोस कर मुझे देने के टाइम भी वो अपनी आँखों से मुझे अपना गुस्सा दिखा रही थी| खाना खाने के बाद वो बर्तन धो रही थी, और उसके बर्तन धोना खत्म होगया था| वो उठने लगी तभी मैंने अपना जूठा गिलास उसे दिया तो वो बुदबुदाते हुए बोली; "अब घर में आपको सब नहीं दिख रहे जो मुझे गिलास दे रहे हो?" मैं बस मुस्कुराया और वापस आंगन में सबके साथ बैठ गया| रात को सब एक-एक कर अपने कमरों में चले गए बस मैं, भाभी और ऋतू ही रह गए थे| भाभी का कमरा नीचे था तो वो मेरे सामने से इठलाते हुए गईं जो की ऋतू ने देख लिया और गुस्से में तमतमाते हुए गिलास नीचे फेंका| भाभी ने उसे ऐसा करते हुए नहीं देखा बस आवाज सुन के उस पर चिल्लाईं; "हाथ में खून है की नहीं!" ऋतू कुछ नहीं बोली और मेरे सामने से होती हुई सीढ़ी चढ़ने लगी| मैं मिनट भर आंगन में टहलता रहा और फिर ऊपर अपने कमरे की तरफ चल दिया| मैं अपने कमरे में ना घुस कर ऋतू के कमरे के दरवाजे पर खड़ा हो कर उसे पलंग पर सर झुकाए बैठा देखने लगा| मैं दो कदम अंदर आया और बोला; "यार मैं सोच रहा हूँ की शादी के बाद अपने हाथ पर लिखवा लूँ: 'ऋतू का आदमी!'" ये सुन कर ऋतू हँस पड़ी फिर अगले ही पल कोशिश करने लगी की मुझे फिर से अपना गुस्सा दिखाए पर उस का चेहरा उसे ऐसा करने नहीं दे रहा था| वो हँसना चाह रही थी पर अपना गुस्सा भी दिखाना चाहती थी| वो उठी और आ कर मेरे सीने से लग गई; "आपको पता है मैं बार-बार आपके सीने से क्यों लगती हूँ?"

"हाँ...बहुत बार बताया है तुमने!" मैंने कहा|

"आपके सीने की आँच से मेरे दिल में हो रही उथल-पुथल शांत हो जाती है| जिस गर्मी के लिए मैं तड़पती हूँ वो बस यहीं मिलती है|" ऋतू ने फिर से दोहराते हुए कहा|

"चलो अब सो जाओ! सुबह से काम कर कर के तक गए होंगे!" मैंने ऋतू को खुद से दूर करते हुए कहा|

"ना..आपके सीने से लगते ही सारी थकावट दूर हो जाती है|" ऋतू फिर से मेरी छाती से चिपक गई| अब मुझे कैसे भी कर के उसे खुद से दूर करना था वरना अगर कोई आ जाता तो बखेड़ा खड़ा हो सकता था|

"माँ.. आप?!!!" मैंने झूठ बोला जिससे ऋतू मुझसे एक दम से छिटक कर दूर हो गई| पर जब उसने दरवाजे की तरफ देखा और वहाँ किसी को नहीं पाया तो वो गुस्सा हो गई| "सॉरी जान! पर कोई हमें देख लेगा तो बखेड़ा खड़ा हो जायेगा|" मैंने उसे मनाते हुए कहा पर वो दूसरी तरफ मुँह कर खड़ी हो गई| मैं पलट के जाने लगा तो वो बोली; "दरवाजा बंद कर के सोना! माँ प्यासी शेरनी की तरह आपका इंतजार कर रही है|" मैंने पलट कर देखा तो ऋतू की आँखों में जलन साफ़ झलक रही थी| मैं उसे गले लगाने को जैसे ही आगे बढ़ा की ऋतू एक दम से पलट गई| मुझे डर था की कहीं कोई आ ना जाये इसलिए मैं अपने कमरे में आ गया और दरवाजा बंद कर लिया और लेट गया| मुझे पता था की अगली सुबह मुझे क्या करना है?


सुबह फटाफट उठा और नाहा-धो के तैयार हो गया| सब आंगन में बैठे चाय पी रहे थे की मैंने बात शुरू की;

मैं: ताऊ जी शाम को सारे रावण दहन देखने चलें?

ताऊ जी: सारे क्यों? तुझे जाना है तो जा, यहाँ अपनी छत से सब नजर आता है|

मैं: पर राम-लीला भी तो देखनी है!

ताऊ जी: नहीं..कोई जर्रूरत नहीं! वहाँ भीड़-भाड़ में कौन जाएगा!

मैं: हमारे लिए भीड़-भाड़ कैसी? आपको बस मुखिया को एक फ़ोन करना है और राम-लीला की आगे वाली लाइन में सीट मिल जाएगी!

पिताजी: इतने से काम के लिए कौन एहसान ले?

मैं: ठीक है एक मुखिया थोड़े ही है?

मैंने अपना फ़ोन निकाला और संकेत को फ़ोन किया;

मैं: सुन यार वो राम-लीला की आगे वाली 8 सीटें चाहिए!

संकेत: अबे तू वहाँ आ कर मुझे कॉल कर डीओ सीटें मिल जाएँगी|

मैंने फ़ोन रखा और ताऊ जी और पिताजी मेरी तरफ हैरानी से देख रहे थे|

मैं: होगया जी सीटों का इंतजाम, अब तो सारे चलें?

ताऊ जी: बड़े जुगाड़ लगाने लगा है तू?

पिताजी: शहर में भी यही करता होगा?

मैं आगे कुछ नहीं बोला और चुप-चाप चाय पीने लगा| चूँकि हम अयोध्या वासी हैं तो दशहरे पर बहुत धूम-धाम होती है| हमारे गाँव के मुखिया हर साल इन दिनों में रामलीला का आयोजन जोर-शोर से करते हैं| रावण का एक बहुत बड़ा पुतला बना कर फूँका जाता है, पर हमारे घर का हाल ये था की कोई भी सम्मिलित नहीं होता था| मैं जब छोटा था तब ऋतू को अपने साथ ले जाया करता था और वो भी जैसे ही रावण के पुतले में आग लगती तो भाग कड़ी होती! बाकी बचीं घर की औरतें तो वो छत पर कड़ी हो जातीं और पटाखों का शोर सुन लिया करती| इस बार मैंने पहल की थी तो ताऊ जी मान ही गए, ताई जी. माँ और भाभी खुश थीं और मैं इसलिए खुश था की मेरा ऋतू को मनाने का प्लान कामयाब होने वाला था| शाम 4 बजे सारे मैदान में पहुँच गए जो की घर से करीब 10 मिनट ही दूर था| मैंने संकेत को इशारे से बुलाया तो उसने पिताजी, ताऊ जी और चन्दर को आगे की लाइन में बिठा दिया| मुझे, ऋतू, भाभी, माँ और ताई जी को उसने पीछे वाली लाइन में बिठा दिया अपनी बीवी और माँ के साथ| इस बार के दशहरे की तैयारी उसी के परिवार ने की थी इसलिए वहाँ सिर्फ उसी का हुक्म चल रहा था| रामलीला शुरू हुई और मैंने सब की नजर बचाते हुए ऋतू का हाथ पकड़ लिया| पहले तो ऋतू हैरान हुई पर जब उसे एहसास हुआ की ये मेरा हाथ है तो वो मुस्कुरा दी और फिर से रामलीला देखने लगी| मैं धीरे-धीरे उसके हाथ को दबाता रहा और उसे इसमें बहुत आनंद आ रहा था| हम दोनों रामलीला के खत्म होने के दौरान ऐसे ही चुप-चाप एक दूसरे के हाथ को बारी-बारी दबाते रहे| जब रामलीला खत्म हुई तो बारी है रावण दहन की तो सभी उठ के उस तरफ चल दिए| पर घरवाले सभी वहीँ खड़े हो गए जहाँ हम बैठे थे, इधर ऋतू को उसकी कुछ सहेलियाँ मिल गईं और वो उनके साथ थोड़ा नजदीक चली गई जहाँ बाकी सब गाँव वाले थे| मैं ऋतू के पीछे धीरे-धीरे उसी तरफ बढ़ने लगा, "रितिका तू तो शहर जा कर मोटी हो गई है!" ऋतू की एक दोस्त ने कहा| "चल हट!" रितिका ने उस लड़की को कंधा मरते हुए कहा| "सच कह रही हूँ, ये देख कितना बड़े हो गए हैं तेरे!" ये कहते हुए उसने ऋतू के कूल्हों को सहलाया| "तेरी चूचियाँ भी पहले से बढ़ गईं हैं...और तेरे होंठ! क्या करती है तू वहाँ शहर में? कोई यार ढूँढ लिया क्या?" ऋतू ने गुस्से से दोनों को कंधे पर घुसा मारा| "ज्यादा बकवास ना कर मुँह नोच लूँगी दोनों का!" तीनों खड़े-खड़े हँस रहे और उनकी बात सुन कर मैं भी मन ही मन हँस रहा था| जैसे ही दहन शुरू हुआ और पटाखों की आवाज तक हुई मैंने ऋतू का हाथ पीछे से पकड़ा और उसे खींच कर ले जाने लगा| ऋतू पहले तो थोड़ा हैरान थी की आखिर कौन उसे खींच रहा है पर जब उसने मुझे देखा तो मेरे साथ चल पड़ी| भीड़ में कुछ भगदड़ मची क्योंकि सब लोग बहुत नजदीक खड़े थे और ऐसे में जिस किसी ने भी हमें वहाँ से जाते देखा वो यही सोच रहा होगा की ये दोनों शोर सुन कर जा रहे हैं|


मैं ऋतू को घर की बजाये दूर संकेत के खेतों में ले गया, वहाँ संकेत के खेतों में एक कमरा बना था जहाँ वो अपना माल छुपा कर रखता था| उस कमरे में आते ही मैंने दरवाजा बंद कर दिया और कमरे में घुप अँधेरा छ गया| मैंने फ़ोन की टोर्च जला कर उसे चारपाई पर रख दिया और ऋतू के चेहरे को थाम कर उसके होठों को बेतहाशा चूमने लगा| समय कम था, इसलिए मैं जमीन पर घुटनों के बल बैठा गया और ऋतू को अभी भी दरवाजे के बगल में खड़ा रखा| उसके कुर्ते में हाथ डाल कर उसकी पजामी का नाडा खोला और उसे जल्दी से नीचे सरकाया फिर ऋतू की बुर पर अपने होंठ रखे| पर तभी उसकी कच्छी बीच में आ गई! मैंने जल्दी से उसे भी नीचे सरकाया और अपनी लपलपाती हुई जीभ से ऋतू की बुर को चाटा| मिनट भर में ही उसकी बुर पनिया गई और उसने मुझे ऊपर खींच कर खड़ा किया| मैंने उसे गोद में उठाया और चारपाई पर लिटा दिया| में ऋतू के ऊपर छा गया, दोनों की सांसें धोकनी की तरह चल रही थीं| मैंने और देर न करते हुए अपने लंड को ऋतू की बुर में ठेल दिया| लंड सरसराता हुआ आधा अंदर चला गया और इधर ऋतू ने जोश में आते हुए अपने दोनों हाथों से मुझे अपने जिस्म से चिपका लिया| मैंने नीचे से कमर को और ऊपर ठेला और पूरा का पूरा लंड जड़ समेत उसकी बुर में उतार दिया| ऋतू ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में थामा और मेरे होठों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगी| मैंने नीचे से तेज-तेज झटके मारने शुरू किये और 7-8 मिनट में ही दोनों का छूट गया! साँसों को दुरसुत कर दोनों खड़े हुए और अपने-अपने कपडे ठीक किये| ऋतू और मैं दोनों तृप्त हो चुके थे, उसके चेहरे पर वही ख़ुशी लौट आई थी| बाहर निकलने से पहले उसने फिर से मुझे अपनी बाहों में कैद किया और मेरे होंठों को अपने मुँह में भर के चूसने लगी| मुझे फिर से जोश आया और मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और दिवार से तेल लगा कर उसके निचले होंठ को अपने मुँह में भर के चूसने लगा| मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और ऋतू उसे चूसने लगी, तभी मेरा फ़ोन वाइब्रेट करने लगा तो हम दोनों अलग हुए पर दोनों की साँसे फिर से तेज हो चली थीं, प्यार की आग फिर भड़क गई थी| पर समय नहीं था इसलिए मैंने ऋतू से कहा; "आज रात!" इतना सुनते ही ऋतू खुश हो गई| मैंने दरवाजा खोला और बाहर आ कर देखा की कोई है तो नहीं, फिर ऋतू को बाहर आने का इशारा किया| ऋतू को घर की तरफ चल दी और मैं दूसरे रास्ते से घूमता हुआ घर पहुँचा| घर पर सब आ चुके थे और बाहर अभी भी थोड़ी आतिशबाजी जारी थी| 'कहाँ रह गया था तू?" माँ ने पुछा| "वो में संकेत के साथ था|" इतना कह कर मैं आंगन में मुँह-हाथ धोने लगा तो नजर ऋतू पर गई जो अब बहुत खुश थी! रात को खाना खाने के समय भी ऋतू के चेहरे से उसकी ख़ुशी टप-टप टपक रही थी जो वहाँ किसी से देखि ना गई;

भाभी: तू बड़ी खुश है आज?

ये सुनते ही ऋतू की ख़ुशी काफूर हो गई|

मैं: इतने दिनों बाद अपनी सहेलियों के साथ समय बिताया है, खुश तो होना ही है!

मैंने ऋतू का बचाव किया, पर भाभी को ये जरा भी नहीं जचा और इससे पहले की वो कुछ बोलती ताई जी बोल पड़ी;

ताई जी: इस बार का दशहेरा यादगार था! वैसे तुम दोनों कहाँ गायब हो गए थे?

भाभी: हाँ...मैंने फ़ोन भी किया पर तुमने उठाया ही नहीं?

ताई जी ने मुझसे और ऋतू से पुछा, अब बेचारी ऋतू सोच में पड़ गई की बोले तो बोले क्या? ऊपर से भाभी के कॉल वाली बात से तो ऋतू सुलगने लगी थी, इसलिए मुझे ही बचाव करना पड़ा;

मैं: ऋतू तो अपनी सहेलियों के साथ आगे चली गई थी और मैं संकेत के साथ था| भाभी का फ़ोन आया था पर शोर-शराबे में सुनाई ही नहीं दिया!

ताई जी: अच्छा... वैसे मुन्ना तूने आज बड़े सालों बाद रामलीला दिखाई|

अब ताई जी क्या जाने की मेरा असली प्लान क्या था इसलिए मैं बस मुस्कुरा दिया| खाना खाने के बाद मैं छत पर टहल रहा था, तभी ऋतू ऊपर आई और मुझसे कुछ दूरी पर खड़ी हो गई; "आज रात का वादा याद है ना?" ऋतू ने मुझे मेरा किया वादा याद दिलाया, मन तो कर रहा था की थोड़ा और मजाक करूँ ये कह के की कौन सा वादा पर जानता था की ये सुन कर ऋतू बिदक जाएगी! मैंने बस हाँ में सर हिलाया और फिर ऋतू मुस्कुराती हुई नीचे चली गई| अभी सब लोग आंगन में ही बैठे थे की पिताजी ने मुझे नीचे से आवाज दे कर बुलाया| मैं नीचे आया तो कुछ जर्रूरी बातें हुई जमीन को ले कर और फिर मुझसे पुछा गया की मैं वापस कब जा रहा हूँ? "कल सुबह" मैंने बस इतना कहा और फिर सब अपने-अपने कमरों में जाने को चल दिए| मैं भी अपने कमरे में आ गया और कुछ देर बाद ऋतू भी ऊपर आ गई| वो मेरे दरवाजे की चौखट पर हाथ रख खड़ी हो गई; "बारह बजे मैं आपका इंतजार करूँगी!" मैंने बस मुस्कुरा कर हाँ कहा और वो अपने कमरे में चली गई और मुझे उसके दरवाजा बंद करने की आवाज आई| रात बारह बजे तक मैं जागा रहा और फ़ोन में कुछ मैसेज देखने लगा| ठीक बारह बजे मैं उठा और ऋतू के कमरे का दरवाजा धीरे से खोला, ऋतू पलंग पर ऐसे बैठी थी:

ऋतू मुस्कुराती हुई मेरा ही इंतजार कर रही थी, उसके कमरे में एक लाल रंग का जीरो वाट का बल्ब जल रहा था| उसे ऐसे देखते ही मैं एक पल के लिए दरवाजे पर ही रूक गया और चौखट से सर लगा कर उसे निहारने लगा| मैं धीरे से उसके नजदीक पहुँचा पर नजरें उस पर से हट ही नहीं रही थी| ऋतू ने अपना दायाँ हाथ बढ़ा कर मुझे अपने पास बुलाना चाहा| मैंने उसका हाथ थाम लिया और फिर उसके पास पलंग पर बैठ गया| मैंने ऋतू के चेहरे को थामा और उसे kiss करने ही जा रहा था की नीचे से मुझे बड़ी जोर की खाँसने की आवाज आई| ये आवाज ताऊ जी की थी जिसे सुनते ही हम दोनों के तोते उड़ गए! मैं छिटक कर ऋतू के पलंग से खड़ा हुआ और ऋतू भी बहुत घबरा गई थी और मेरी तरफ डर के मारे देख रही थी| मैंने उसे ऊँगली से छुपा रहने का इशारा किया और धीरे से दरवाजे की तरफ बढ़ा, बाहर झाँका तो वहाँ कोई नहीं था| मैंने चैन की साँस ली, फिर थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए मैंने नीचे आंगन में झाँका तो पाया की ताऊ जी बाथरूम में घुस रहे थे| मैं वापस ऋतू के कमरे में आया और उसे बताया की ताऊ जी बाथरूम में घुसे हैं| अब ये तो साफ़ था की अब कुछ नहीं हो सकता इसलिए मैं दबे पाँव अपने कमरे में आ गया और लेट गया|
 
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रात के एक बजे थे और मुझे झपकी लगी थी की ऋतू मेरे कमरे में आई और और झुक कर मेरे होठों को चूसने लगी| मैंने तुरंत आँख खोली और जब नजरें ऋतू पर पड़ीं तो मैं निश्चिंत हो गया और उसके होठों को चूसने लगा| दरअसल मैं दरवाजा बंद करना भूल गया था, इसलिए ऋतू चुप-चाप अंदर आ गई थी| इधर आग दोनों के जिस्म में भड़क चुकी थी पर कुछ भी करना खतरे से खाली नहीं था! मैंने ऋतू को रोका और उठ बैठा; "जान! मेरा भी बहुत मन है पर यहाँ घर पर कुछ भी करना ठीक नहीं है! कल कॉलेज की छुट्टी कर ले और फिर वो पूरा दिन हम दोनों एक साथ होंगे!" ये सुन कर ऋतू का मुंह फीका पड़ गया और वो मुड़ कर जाने लगी| अब मुझसे उसका ये उदास चेहरा देखा नहीं गया, मैं पलंग से उतरा और ऋतू का हाथ पकड़ कर खींच कर उसे छत पर ले गया| छत की पैरापेट वाल थोड़ी ऊँची थी, करीब 4 फुट की होगी, मैं वहाँ नीचे बैठ गया और ऋतू को भी अपने पास बिठा लिया| हम दोनों कुछ इस तरह बैठे थे की अगर कोई ऊपर चढ़ कर आता तो हमें साफ़ दिखाई दे जाता पर वो हमें नहीं देख पाता| उससे हमें इतना समय तो मिल जाता की हम एक दूसरे से अलग हो कर बैठ जाएँ| हाँ वो इंसान जब छत पर आ जाता तो ये सवाल जर्रूर आता की तुम दोनों छत पर अकेले क्या कर रहे हो? ये वो एक सवाल था जिसका हमारे पास कोई जवाब नहीं होता, पर जब प्यार किया है तो रिस्क तो लेना ही पड़ता है| सवाल के जवाब में झूठ बोलने के अलावा कोई और चारा नहीं था हमारे पास| खेर नीचे बैठा था और अपनी दोनों टांगें 'V' के अकार में खोल रखी थी| मैंने ऋतू को ठीक बीच में बैठने को कहा, ऋतू बैठ गई और अपना सर मेरे सीने से टिका दिया| हम दोनों ही आसमान में देख रहे थे| चांदनी रात में टीम-टिमाते तारे देखने का मजा ही कुछ और था, ऊपर से चारों तरफ सन्नाटा और हलकी-हलकी हवा ने समा बाँध रखा था|


ऋतू: जानू! आपको पता है आज क्या हुआ?

मैं: क्या हुआ? (मैंने ऋतू के गाल को चूमते हुए कहा)

ऋतू: ससस... मेरी सहेलियाँ कह रही थी की मैं मोटी हो गई हूँ? मेरी Ass, मेरी Breast और मेरे Lips मोटे हो गए हैं, और ये सब आपकी वजह से हुआ है?

मैं: शिकायत कर रही हो या कॉम्पलिमेंट दे रही हो?

ऋतू: कॉम्पलिमेंट

मैं: I feel you're ready to be a mother!

ऋतू: सच? तो कब बंद करूँ वो प्रेगनेंसी वाली गोली लेना? (उसने मजाक में कहा|)

मैं: पागल! (मैंने ऋतू के दूसरे को गाल को चूमते हुए कहा|)

ऋतू: ससस... सच्ची जानू! आपने मेरे बदन को तराशने में बड़ी मेहनत की है!

मैं: हम्म्म... (मैं ऋतू की जुल्फों की महक सूंघते हुए बोला|)

अब ऋतू ने अपने दाहिने हाथ को मेरी जाँघ पर रख उसे सहलाने लगी जिसका सीधा असर मेरे लंड महराज पर हुआ| उन्हें फूल कर खड़ा होने में सेकंड नहीं लगा और वो ऋतू की कमर पर अपनी दस्तक देने लगे| ऋतू मेरी तरफ घूमी और प्यासी नजरों से मुझे देखने लगी, पर वहाँ कुछ भी कर पाना बहुत बड़ा रिस्क था! पर प्यास तो लगी थी, और उसे बुझाना तो था ही! मैंने ऋतू को ऐसे ही बैठे रहने को कहा और मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी पजामी के नाड़े को खोलना शुरू कर दिया| नाडा खोल कर मैंने अपना दाहिना हाथ अंदर डाला तो पाया की ऋतू ने पैंटी नहीं पहनी, मतलब वो पहले से ही तैयारी कर के बैठी थी! मैंने अपनी बीच वाली ऊँगली को ऋतू की बुर में सरकाया तो पाया की वो तो पहले से ही गीली है| "मेरी जान को प्यार चाहिए?" मैंने पुछा तो ऋतू ने सीसियाते हुए 'हाँ' कहा| मैंने अपनी ऊँगली से ऋतू की बुर की फांकों को सहलाना शुरू कर दिया और ऋतू ने अपने आप को मेरी छाती से दबाना शुरू कर दिया| मैंने अपनी तीनों उँगलियों से ऋतू की बुर की फाँकों को धीरे-धीरे मनसलना शरू कर दिया, और ऋतू का कसमसाना शुरू हो गया| मैंने अपनी दो उँगलियाँ उसके बुर में डाली और उन्हें ऋतू की बुर में गोल-गोल घुमाने लगा| अब ऋतू ने अपनी कमर को मेरे लंड पर और दबाना शुरू कर दिया| "जानू...ससस....!!!! आपको नहीं पता ये नौ दिन मैंने कैसे तड़प-तड़प के निकाले हैं!" मुझे ऋतू की प्यास का अंदाज हो चला था तो मैंने अपनी दोनों उँगलियाँ उसकी बुर में तेजी से अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी| "उम्ममम ...ससस... और कितना ...स..ससस...तड़पाओगे?" ऋतू ने धीमी आवाज में सिसकते हुए कहा| "जान! प्लीज आज रात इसी से काम चला लो कल शहर पहुँच कर कपडे फाड़ के सेक्स करेंगे!" मैंने अब भी ऋतू की बुर में अपनी ऊँगली अंदर-बाहर किये जा रहा था, ऋतू की आँखें बंद हो चलीं थी और उसके दोनों हाथ मेरी जाँघ पर थे| "ससस...जानू!! ....ससस...पिछले कुछ दिनों से में डरी हुई थी...स्स्स्साहह... मुझे लगा ....मेरे जिस्म का जादू आप पर से उतर गया!" ऋतू के मुँह से अनायास शब्दों ने मेरा ध्यान खींचा, अब मुझे जानना था की ऋतू किस जादू की बात कर रही है इसलिए मैंने और तेजी से उसकी बुर की चुदाई अपनी उँगलियों से शुरू कर दी!| ऋतू इस आनंद से फिसल कर आगे की ओर जाने लगी तो मैंने अपने बाएँ हाथ को उसके पेट पर रखा और उसे आगे फिसलने नहीं दिया| "ममममममम.... उस सससस....हरामजादी .....ने मुझे एक बात सिखाई थी.... की अपने बंदे को अपने काबू में रखना है तो उसे अपनी चूत से बाँध कर रख! आअह..सससस...." अब मुझे सब कुछ समझ आने लगा था! ऋतू का अचानक से सेक्स में इतना 'निपुण' हो जाना सिर्फ उसकी insecurity को छुपाने के लिए एक पर्दा था| मैं उसे छोड़ कर किसी और के पास ना जाऊँ इसलिए ऋतू इस तरह मुझसे चिपकी रहती थी| मैंने उसे इतनी बार भरोसा दिलाया, कसमें खाईं पर उसे क्यों यक़ीन नहीं होता की मैं बस उसका हूँ| उसका ये possessive होना अब सारी हदें पार कर रहा है, अगर इसने अपनी जलन और insecurity के चलते किसी के सामने कुछ बक दिया तो? वो दिन हम दोनों का अंत होगा! पर आखिर कारन क्या है की ऋतू इस कदर insecure है? मैंने ऐसा क्या कर दिया की उसे ये insecurity होती है? Wait a minute ..... ये मुझसे प्यार भी करती है या फिर ये सिर्फ इसकी सेक्स की भूख है?!! मैं यही सब सोच रहा था और अपनी उँगलियों को ऋतू की बुर में तेजी से अंदर-बाहर किये जा रहा था| अब ऋतू छूटने वाली थी और उसने अपने नाखून मेरी जाँघ में गाड़ दिए थे जिससे मैं अपने ख्यालों से बाहर आया और अगले ही पल ऋतू झड़ गई और निढाल हो कर मेरी छाती पर सर रखे हुए लेटी रही|
ये तो साफ़ था की मैं चाहे कुछ भी कह लूँ या भले ही अपना दिल निकाल कर ऋतू के सामने रख दूँ ये मानने वाली नहीं है| अगर इससे प्यार न करता तो अब तक इसे छोड़ देता पर साला अब करूँ क्या ये नहीं पता! ऊपर से मैं भी चूतिया हो चला था जो ऋतू के चक्कर में एक से बढ़कर एक चूतियापे करने लगा था? क्या जर्रूरत थी तुझे बहनचोद यहाँ छत पर खुले में ये सब करने की? पर अगर ये ना करता तो मुझे ये सब कैसे पता चलता? तुझे जरा भी डर नहीं लगा की तू इस तरह ऋतू को अपने लंड से चिपटाये पड़ा है? भूल गया वो खेत के बीचों बीच पेड़ की डाल पर लटक रहे भाभी और उनके प्रेमी की अस्थियाँ? वहीँ जा कर मरना है तुझे? और ये क्या तूने ऋतू को अपने सर पर चढ़ा रखा है? बहनचोद उसकी हर एक ख्वाइश पागलों की तरह पूरी करता है और बदले में उसे ही तेरे ऊपर विश्वास नहीं! ये कैसा प्यार है?


ऋतू की सांसें दुरुस्त होने तक मेरा ही दिमाग मेरे दिल को गरिया रहा था| "जानू! क्या सोच रहे हो?" ऋतू ने मुझे झिंझोड़ा तो मैं अपने 'मन की अदालत' से बाहर आया| मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया बल्कि अपनी टांगें मोड़ कर ऋतू के इर्द-गिर्द से हटाईं और उठ खड़ा हुआ| ऋतू फटाफट कड़ी हुई और मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया; "क्या हुआ? कहाँ जा रहे हो?" मैं अब भी कोई जवाब नहीं दिया और उसके हाथों की गिरफ्त से अपना हाथ छुड़ाया और आंगन में आ गया| ऋतू छत पर से नीचे झाँकने लगी और फिर उसे मैं बाथरूम में जाता हुआ नजर आया| ऋतू छत पर कड़ी नीचे देखती रही और इंतजार करने लगी की मैं बाथरूम से कब निकलूँगा| मैंने निकल कर ऊपर देखा तो वो अब भी वहीँ खड़ी थी और मेरे ऊपर आने का इंतजार कर रही थी| मैं अगर उस समय ऊपर जाता तो वो मुझसे पूछती की मेरे उखड़ जाने का कारन क्या है और तब मेरा कुछ भी कहना बवाल खड़ा कर देता, ऐसा बवाल जिसे सुन आज काण्ड होना तय था| इसलिए में आंगन में पड़ी चारपाई पर ही लेट गया पर ऋतू अपनी जगह से टस से मस ना हुई और टकटकी बांधे मुझे देखती रही| मैंने अपनी आँखें बंद की और सोने की कोशिश करने लगा, जो बात मेरे दिम्माग में चल रही थी वो ये थी की मुझे अपने दिल पर काबू रखना होगा वरना ऋतू मुझे कहीं फिर से अपनी जिस्म के जरिये पिघला ना ले| पिछले नौ दिनों से जो हम दोनों के बीच जिस्मानी दूरियाँ आई थी उससे कुछ तो काम आसान होगया था पर आज उस कर्म वाले काण्ड ने फिर से उस दबी हुई आग को हवा दे दी थी| शायद इस तरह उससे दूरियाँ बनाने से ऋतू को कुछ अक्ल आये, अब क्योंकि उसकी हर ख़ुशी पूरी करने के चक्कर में मैं अपनी और नहीं लगवाना चाहता था| शादी के बाद चाहे वो मुझसे जो करवा ले पर उससे पहले तो हम दोनों को maturity दिखानी होगी| पर दिमाग जानता था की कुछ होने वाला नहीं है...काण्ड तो होना ही है! इधर ऋतू की हिम्मत नहीं हो रही थी की वो नीचे आ कर मुझसे पूछ सके की मैं क्यों उसके साथ ऐसा बर्ताव कर रहा हूँ? वो पैरापिट वाल पर अपनी कोहनियाँ टिकाये मुझे बस देखती रही! वो पूरी रात मैं बस करवटें बदलता रहा और बार-बार ऋतू को खुद को देखते हुए notice करता रहा| सुबह हुई तो ताई जी उठ के आंगन में आईं; "अरे मुन्ना? तू यहाँ क्या कर रहा है?" उन्होंने पुछा| उन्हें देखते ही ऋतू नीचे आ गई; "ताई जी..वो रात को पेट ख़राब हो गया था इसलिए मैं नीचे ही लेट गया|" मैंने झूठ बोला| ताई जी मेरे पास बैठ गईं और ऋतू बाथरूम में नहाने घुस गई और फ्रेश हो कर चाय बनाने लगी| मैं भी उठा और नहा धो के तैयार हो गया और अब तो घर वाले सब बरी-बारी नाहा के नाश्ते के लिए तैयार बैठे थे| "मानु, चन्दर तुम लोगों के साथ जायेगा|" ताऊ जी ने कहा और मैंने बस 'जी' कहा| पर ये सुनते ही ऋतू को बहुत गुस्सा आया, वो सोच रही थी की वो शहर जा कर मुझसे कल रात के उखड़ेपन का कारन पूछेगी पर चन्दर भैया के साथ जाने से उसके प्लान पर पानी फिर गया था| पर मुझे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा था, नाश्ता कर के हम तीनों निकले और बस स्टैंड तक पैदल चल दिए| ऋतू पीछे थी और आगे-आगे मैं और चन्दर भैया थे| वो अपनी बातें किये जा रहे थे और मैं बस हाँ-हुनकुर ही कर रहा था| बस आई और हम तीनों चढ़ गए, ऋतू तो एक अम्मा के साथ बैठ गई| हम दोनों खड़े रहे और कुछ देर बाद हमें सीट मिल गई| मुझे नींद आ रही थी तो मैं खिड़की से सर लगा कर सो गया पर ऋतू के मन में उथल-पुथल मची थी| बस स्टैंड पहुँच कर चन्दर को तहसीलदार के जाना था और उसे वहाँ का कुछ पता नहीं था तो हमने एक ऑटो किया और उसमें बैठ गए| सबसे पहले ऋतू हुई, फिर मैं और आखरी में चन्दर घुसा| मैं ऋतू की तरफ ना देखकर सामने देख रहा था, अब ऋतू मुझसे बात करने को मृ जा रही थी पर अपने बाप के डर के मारे कुछ कह नहीं पा रही थी| ऋतू ने चुपके से मेरा दाहिना हाथ पकड़ लिया पर मैंने किसी तरह हाथ छुड़ा लिया और चन्दर से बात करने लगा| पहले ऋतू का कॉलेज आया और उसे वहाँ उतारने लगे तो लगा जैसे वो जाना ही ना चाहती हो! "जा ना?" मैंने कहा तो ऋतू सर झुकाये कॉलेज के गेट की तरफ चली गई और हमारा ऑटो तहसीलदार के ऑफिस की तरफ चल दिया| चन्दर भैया को वहाँ छोड़ कर मैं घर आ गया और मेल देखने लगा की शायद कोई जॉब ओपनिंग आई हो| एक मेल आई थी तो मैं वहाँ इंटरव्यू के लिए चल दिया| शाम को 4 बजे घर पहुँचा और आ कर ऐसे ही लेट गया| ठीक 5 बजे दरवाजे पर दस्तक हुई और मैंने जब दरवाजा खोला तो सामने ऋतू खड़ी थी|
 
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ऋतू बिना कुछ कहे अंदर आई और दरवाजा उसने लात मार कर मेरी आँखों में देखते हुए बंद किया| फिर अगले ही पल उसकी आँखें छल-छला गईं और उसने मेरी कमीज का कालर पकड़ लिया और मुझे पीछे धकेलने लगी| "क्या कर दिया मैंने जो आप मुझसे इस तरह उखड़े हुए हो? कल रात से ना कुछ बोल रहे हो न कुछ बात कर रहे हो? ऐसा क्या कर दिया मैंने? कम से कम मुझे मेरा गुनाह तो बताओ? आपके अलावा मेरा है कौन और आप हो की मुझसे इस तरह पेश आ रहे हो?" ऋतू एक साँस में रोते-रोते बोल गई पर उसका मुझे पीछे धकेलना अब भी जारी था| मैंने पहले खुद को पीछे जाने से रोका और फिर झटके से उसके हाथों से अपना कालर छुड़ाया और बोला; "गलती पूछ रही है अपनी? तूने मुझे समझ क्या रखा है? तुझे क्या लगता है की तू मुझे अपने जिस्म की गर्मी से पिघला लेगी? तुझे इतना समझाया, इतनी कसमें खाईं की मैं तुझसे प्यार करता हूँ और सिर्फ तेरा हूँ पर तेरी ये fucking insecurity खत्म होने का नाम ही नहीं लेती? इसी लिए जयपुर से आने के बाद मुझसे इतना चिपक रही थी ना? मैं तो साला तेरे चक्कर में पागल हो गया था, तुझे गाँव छोड़ के उल्लू की तरह जागता रहता था| तेरे जिस्म ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा था, वो तो शुक्र है की मैंने व्रत रखे और खुद पर काबू पाया वरना मैं भी तेरी तरह हरकतें करता! क्या-क्या नहीं किया मैंने तेरे प्यार में और तुझे ये सब मज़ाक लग रहा है? तुझे मनाने के लिए क्या-क्या नहीं किया मैंने? इतना जोखिम उठा कर कल पहले तुझे खेतों में ले गया और फिर पहले तेरे कमरे में आना और वो रात को छत पर बैठना? पर तुझे तो बस अपने जिस्म की आग बुझानी है मुझसे! एक दिन अगर तुझे मैं ना छुओं तो तेरे बदन में आग लग जाती है! तुझे पता भी है की तू अपनी इस जलन के मारे कब क्या बोल देती है की तुझे खुद नहीं पता होता| क्या जर्रूरत थी तुझे आंटी जी से कहने की कि मेरी जॉब चली गई? अगर मैं बात नहीं पलटता तू तो वहाँ सब कुछ बक देती!


काम्य को तू जानती है ना, वो मुँहफ़ट है पर दिल की साफ़ है| वो जानबूझ कर मुझसे मज़ाक करती है और ये सुन कर तुझे किस बात का गुस्सा आता है? भाभी को भी तू अच्छे से जानती है ना? उसके मन में क्या-क्या है वो सब जानती है तू और तूने ही मुझे उनके बारे में आगाह किया था पर आज तक मैंने कभी उनकी तरफ आँख उठा के नहीं देखा| जब मैं बिमारी में गाँव गया था तो उसने क्या-क्या नहीं किया मुझे उकसाने के लिए| पर तेरे प्यार की वजह से मैं नहीं बहका, इससे ज्यादा तुझे और क्या चाहिए?


देख मैं तुझे आज एक बात आखरी बार बोल देता हूँ, आज के बाद अगर मुझे ये तेरी insecurity दिखाई दी तो this will be the end of our relationship!” मेरी बातें सुन ऋतू फफक के रोने लगी और अपने घुटनों के बल बैठ गई और हाथ जोड़ कर मिन्नत करते हुए बोली; "मुझे माफ़ कर दो! प्लीज ....मेरा आपके अलावा और कोई नहीं! ये सच है की मैं insecure हूँ आपको ले कर पर ये भी सच है की मैं आपसे सच्चा प्यार करती हूँ| मैंने आपसे प्यार सेक्स के लिए नहीं किया, बल्कि इसलिए किया क्योंकि इस दुनिया में सिर्फ एक आप हो जो मुझसे प्यार करते हो|"

"तो तुझे ये बात समझ में क्यों नहीं आती की मैं सिर्फ तुझसे प्यार करता हूँ? मैंने आज तक तेरे सामने कभी किसी से flirt नहीं किया तो ये काहे बात की insecurity है?! तुझे ऐसा क्यों लगता है की तुझ में कुछ कमी है? मैं तुझे छोड़ कर किसके पास जाऊँगा? बोल???"

"मुझे नहीं पता...बस डर लगता है की कोई आपको मुझसे छीन लेगा!" ऋतू ने अपने दोनों हाथों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया|

"कोई और नहीं....तू खुद ही मुझे अपने से दूर कर देगी|" मैंने खुद को उसकी गिरफ्त से आजाद करते हुए कहा|

"नहीं ...प्लीज ऐसा मत कहिये!"

"तुझे पता है मैं कितनी परेशानियों से जूझ रहा हूँ? कितनी जिम्मेदारियाँ मेरे सर पर हैं? जॉब नहीं है, सेविंग्स नहीं हैं और दो साल बाद हमें भाग कर शादी करनी है! क्या-क्या मैनेज करूँ मैं? मैंने तुझसे आजतक कुछ माँगा है? नहीं ना? फिर? "

"एक लास्ट चांस दे दो! I promise ... अब ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी! I promise ...!!!" ऋतू ने अपने आँसू पोछे और सुबकते हुए कहा| पर में जानता था की इसके मन की ये सोच कभी नहीं जा सकती| पर सिवाए कोशिश करने के मैं कुछ कर भी नहीं सकता था, प्यार जो करता था उस डफर से! मैं उसके सामन घुटनों पर बैठा और अपने बाएं हाथ से उसके बाल पकडे और उन्हें जोर से खींचा की ऋतू की गर्दन ऊपर को तन गई और उसकी नजरें ठीक मेरे चेहरे पर थीं;

"मैं बस तेरा हूँ...समझी?" ऋतू ने सुन कर हाँ में सर हिलाया पर मैं उससे 'हाँ' सुनने की उम्मीद कर रहा था, उसके कुछ न बोलने और सिर्फ सर हिलाने से मुझे गुस्सा आया और मैंने उसके बाएँ गाल पर एक चपत लगाईं और अपना सवाल दुबारा पुछा; "मैंने कुछ पुछा तुझसे? मैं सिर्फ तेरा हूँ.... बोल हाँ?" तब जा कर ऋतू के मुँह से हाँ निकला|

"तू सिर्फ मेरी है!" मैंने कहा|

"ह...हाँ!" ऋतू ने डर के मारे कहा|

"मैं किस्से प्यार करता हूँ?" मैंने ऋतू के गाल पर एक चपत लगाते हुए पुछा|

"म....मु...मुझसे!"

"तू किससे प्यार करती है?"

"आपसे!"

"और हम दोनों के बीच में कभी कोई नहीं आ सकता!" ऋतू ने ये सुन कर हाँ में गर्दन हिलाई पर मुझे ये जवाब नहीं सुनना था तो मैंने फिर से उसके गाल पर एक चपत लगाईं और तब जा कर ऋतू को समझ आया की मैं क्या सुनना चाहता हूँ|

"ह...हम दोनों के बीच...कोई नहीं आ सकता!" ऋतू ने घबराते हुए कहा|

ऋतू की आँखें रोने से लाल हो चुकी थीं और अब मुझे उस पर तरस आने लगा था, इसलिए मैंने उसके बाल छोड़ दिए और अपनी दोनों बाहें खोल दी| ऋतु घुटनों के बल ही मेरे सीने से लिपट गई और फिर से रोने लगी| मैंने ऋतू के बालों में हाथ फेरना शुरू किया ताकि उसका रोना काबू में आये; "बस ...बस... हो गया! और नहीं रोना!" ये सुन ऋतू ने धीरे-धीरे खुद पर काबू किया और रोना बंद किया| मैंने उसे अपने सीने से अलग किया और उसके आँसू पोछे फिर मैं खड़ा हुआ और उसे भी सहारा दे कर खड़ा किया| "जाके मुँह धो के आ फिर मैं तुझे हॉस्टल छोड़ देता हूँ|" ऋतू मुँह-धू कर आई और फिर से मेरे गले लग गई; "आपने मुझे माफ़ कर दिया ना?" मैंने उसके जवाब में बस हाँ कहा और फिर उसे खुद से दूर किया और दरवाजा खोल कर बाहर उसके आने का इंतजार करने लगा| ऋतू बेमन से बाहर आई और शायद उसके मन में अब भी यही ख़याल चल रहा था की मैंने उसे माफ़ नहीं किया है| मैंने पहले उसे उसका फ़ोन वापस किया और फिर नीचे से ऑटो कर उसे हॉस्टल छोड़ा| घर पहुँचा ही था की मेरा फ़ोन बज उठा, ये किसी और का नहीं बल्कि ऋतू का ही था| उसने मोहिनी के फ़ोन से मुझे कॉल किया था, ये सोच कर की मैं शायद उसका कॉल न उठाऊँ| मैंने कॉल उठाया" जानू! आपकी एक मदद चाहिए!"

"हाँ बोल|" मैंने सोचा कहीं कोई गंभीर बात तो नहीं? पर अगर ऐसा कुछ होता तो वो उस वक़्त क्यों नहीं बोली जब वो यहाँ थी? "वो कॉलेज के असाइनमेंट्स में एक प्रोजेक्ट मिला था| बाकी साब तो हो गया बस एक वही प्रोजेक्ट बचा है|तो कल आप मेरा प्रोजेक्ट शुरू कर व दोगे?" मैं समझ गया की ये कॉल बस उसका ये चेक करना था की मैंने उसे माफ़ किया है या नहीं? "कल शाम 5 बजे मुझे राम होटल पर मिल|" अभी बात हो ही रही थी की मुझे पीछे से मोहिनी की आवाज आई; "रितिका तेरी बात हो जाए तो मुझे फ़ोन दियो|" ऋतू ने बड़े प्यार से कहा; "मेरी बात हो गई दीदी!" और उसने फ़ोन मोहिनी को दे दिया| "मानु जी! मैं तो आपको अपना दोस्त समझती थी और अपने ही मुझे पराया कर दिया?"

"अरे! मैंने क्या कर दिया?" मैंने चौंकते हुए कहा|

"आप ने अपनी जॉब के बारे में क्यों नहीं बताया?" मोहिनी ने सवाल दागा|

"अरे...वो...याद नहीं रहा?" मैंने बहाना मारा|

"क्या याद नहीं रहा? वो तो माँ ने मुझे बताया तब जाके मुझे पता चला| मैं देखती हूँ कुछ अगर होता है तो आपको बताती हूँ|"

"थैंक यू" मैंने कहा| बस इसके बाद उसने मुझसे कहा की मैं उसे अपना रिज्यूमे भेज दूँ और वो एक बार अपनी कंपनी में बात कर लेगी| रात को बिना कुछ खाये-पीये ही लेट गया, आज जो मैं कहा और किया वो मुझे सही तो लग रहा था पर शायद मेरा ऋतू के साथ किया व्यवहार मुझे ठीक नहीं लग रहा था| मेरा उस पर गुस्सा निकालना ठीक नहीं था....शायद! खेर अगली सुबह उठा पर आज मुझे कहीं भी नहीं जाना था तो मैं घर के काम निपटाने लगा, झाड़ू-पोछा कर के घर बिलकुल चकाचक साफ़ किया फिर खाना खाया और फिर से सो गया| शाम को पाँच बजे मैं राम होटल पहुँचा तो देखा की ऋतू वहां पहले से ही खड़ी है| हम दोनों पहले की ही तरह मिले और फिर उसने मुझे प्रोजेक्ट के बारे में बताया और हम दोनों उसी में लग गए| घण्टे भर तक हम उसी पर डिसकस करते रहे और थोड़ा हंसी मजाक भी हुआ जैसे पहले होता था| आगे कुछ दिनों तक इसी तरह चलता रहा, हमारा प्यार भरा रिश्ता वापस से पटरी पर आ गया था पर ऋतू अब मुझे नार्मल लग रही थी, मतलब अब उसका वो possessiveness और insecure होना कम हो गया था| मुझे नहीं पता की सच में वो खुद को काबू कर रही थी या फिर नाटक, मैंने यही सोच कर संतोष कर लिया की कम से कम अब वो पहले की तरह तो behave नहीं कर रही|


करवाचौथ से दो दिन पहले की बात थी और ऋतू मुझे कुछ याद दिलाना चाहती थी, पर झिझक रही थी की कहीं मैं उस पर बरस न पडूँ| मैंने फ़ोन निकाला और घर फ़ोन किया; "नमस्ते पिताजी! एक बात पूछनी थी, दरअसल ऑफिस में काम थोड़ा ज्यादा है और बॉस ज्यादा छुट्टी नहीं देगा| तो अगर मैं करवाचौथ की बजाये दिवाली पर छुट्टी ले कर आ जाऊँ तो ठीक रहेगा?" मैंने जान बूझ कर बात बनाते हुए कहा, कारन साफ़ था की कहीं कोई यहाँ ऋतू को लेने ना टपक पड़े| "तूने वैसे भी करवाचौथ पर आ कर क्या करना था? शादी तो तूने की नहीं! पर दिवाली पर अगर यहाँ नहीं आया तो देख लिओ!" पिताजी ने मुझे सुनाते हुए कहा| "जी जर्रूर! दिवाली तो अपने परिवार के साथ ही मनाऊँगा!" बस इतना कह कर मैंने फ़ोन रखा| ऋतू जो ये बातें सुन रही थी सब समझ गई और उसका चेहरा ख़ुशी से जगमगा उठा| "कल सुबह मैं लेने आऊँगा, तैयार रहना!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और ये सुनके ऋतू इतना चिहुँकि की मुझे गले लगना चाहा, पर फिर खुद ही रूक गई क्योंकि हम बाहर पार्क में बैठे थे| मैंने मन ही मन सोचा की शायद ऋतू को अक्ल आ गई है!


अगली सुबह मैं जल्दी उठा और अपनी बुलेट रानी की अच्छे से धुलाई की, आयल चेक किया और फिर नाहा-धो कर ऋतू को लेने चल दिया| ऋतू पहले से ही अपना बैग टाँगे गेट पर खड़ी थी| मेरी बाइक ठीक हॉस्टल के सामने रुकी और वो मुस्कुराती हुई आ कर पीछे बैठ गई| मैंने बाइक सीधा हाईवे की तरफ मोड़ दी और ऋतू हैरानी से देखने लगी; "हम घर नहीं जा रहे?" उसने पीछे बैठे हुए पुछा| तो मैंने ना में गर्दन हिलाई और इधर ऋतू का मुँह फीका पड़ गया, उसे लगा की हम गाँव जा रहे हैं| एक घंटे बाद मैंने हाईवे से गाडी स्टेट हाईवे 13 पर गाडी मोदी तो ऋतू फिर हैरान हो गई की हम जा कहाँ रहे हैं? आखिर आधे घंटे बाद जब बाइक रुकी तो हम एक शानदार साडी की दूकान के सामने खड़े थे| ऋतू बाइक से उत्तरी और सब समझ गई और मेरी तरफ हैरानी से देखने लगी; "जानू! आप.... थैंक यू!" वो कुछ कहने वाली थी पर फिर रूक गई| मैंने बाइक पार्क की और हम दूकान में घुसे और वहाँ आज बहुत भीड़भाड़ थी| ये दूकान मेरे कॉलेज के दोस्त की थी और मैं यहाँ से कई बार ताई जी और माँ के लिए साडी ले गया था| मुझे देखते ही अंशुल (मेरा दोस्त) काउंटर छोड़ कर आया और हम दोनों गले मिले| "अरे भाभी जी! आइये-आइये!" उसने ऋतू से हँसते हुए कहा| "यार अभी शादी नहीं हुई है, होने वाली है!" मैंने कहा| "तभी मैं सोचूँ की तूने शादी कर ली और मुझे बुलाया भी नहीं!" ये सुन कर हम तीनों हँसने लगे, अंशुल ने अपने एक लड़के को आवाज दी: "भाई और भाभी को साड़ियाँ दिखा और रेट स्पेशल वाले लगाना|"

"यार एक हेल्प और कर दे, स्टिचिंग कल तक करवा दे यार जो एक्स्ट्रा लगेगा मैं दे दूँगा!" मैंने कहा और वो ये सुन कर मुस्कुरा दिया|

"हुस्ना भाभी के पास माप दिलवा दिओ और बोलिओ अंशुल भैया के भाई हैं|" मैंने उसे थैंक्स कहा, फिर वो वापस कॅश काउंटर पर बैठ गया और हम दोनों को वो लड़का साड़ियाँ दिखाने लगा| आज पहलीबार था की ऋतू अपने लिए साडी ले रही थी और बार-बार मुझसे पूछ रही थी की ये ठीक है? आखिर मैंने उसके लिए साडी पसंद की और फिर हम माप देने के लिए उस लड़के के साथ चल दिए| हुस्ना आपा बड़ी खुश मिज़ाज थीं और उन्होंने बड़ी बारीकी से माप लिया और ब्लाउज के कट के बारे में भी ऋतू को अच्छे से समझाया| जब मैंने पैसे पूछे तो उन्होंने 2,000/- बोले जिसे सुनते ही ऋतू मेरी तरफ देखने लगी| पैसे ज्यादा थे पर साडी भी तो कल मिल रही थी| मैंने जेब से पैसे निकाल के उन्हें दिए और कल 12 बजे का टाइम फिक्स हुआ! हम वापस दूकान आये और कॅश काउंटर पर अंशुल ने जबरदस्ती हमें बिठा लिया और चाय मँगा दी| मैंने जब उससे पैसे पूछे तो उसने 2,500/- कहा, जब की साडी पर 3,500/- लिखा था| वो हमेशा जी मुझे होलसेल रेट दिया करता था, पर ऋतू के लिए तो ये भी बहुत था वो फिर से मेरी तरफ देखने लगी| मैंने पेमेंट कर दी और हम बाहर आ गए; "जानू! आपने इतने पैसे क्यों खर्च किये?" ऋतू ने पुछा तो मैंने उसके दोनों गाल उमेठते हुए कहा; "क्योंकि ये मेरी जान का पहला करवाचौथ है! इसे स्पेशल तो होना ही है?" ऋतू की आँखें भर आईं थी, मैंने उसके आँसू पोछे और हम घर के लिए निकल पड़े| घर के पास ही बाजार था वहाँ मुझे मेहँदी लगाने वाली औरतें दिखीं तो मैंने ऋतू को मेहँदी लगवाने को कहा| मेहँदी लगवाने के नाम से ही वो खुश हो गई और फिर उसने अपने पसंद की मेहँदी लगवाई और मुझे दिखाने लगी| आखिर हम घर आ गए और अब भूख बड़ी जोर से लगी थी| इस सब में मैं कुछ खाने को लेना ही भूल गया, मैंने कहा की मैं खाना ले कर आता हूँ तो ऋतू मना करने लगी; "मेरा मन आज मैगी खाने का है|" ऋतू बोली और मैं समझ गया की वो क्यों मना कर रही है, मैं और पैसे खर्चा न करूँ इसलिए| मैंने मैगी बनाई और ऋतू को अपने हाथ से खिलाया क्योंकि उसके तो हाथों में मेहँदी लगी थी|

खाना खाने के बाद मैंने लैपटॉप पर एक पिक्चर लगा दी, ऋतू ने कहा की हम नीचे फर्श पर बैठें| मैं नीचे बैठा और अपनी दोनों टांगें V के अकार में खोलीं और ऋतू मुझसे सट कर बीच में बैठ गई| लैपटॉप सेंटर टेबल पर रखा था, ऋतू ने अपना सर मेरी छाती पर रख दिया, अपने दोनों हाथ मेरी टांगों पर खोल कर रखे और सामने मुँह कर के पिक्चर देखने लगी| पिक्चर देखते-देखते ऋतू को नींद का झोंका आने लगा और उसकी गर्दन इधर-उधर गिरने लगी, मैंने अपने दोनों हाथों को ऋतू की गर्दन के इर्द-गिर्द से घुमाते हुए उसके होठों के सामने लॉक कर दिया| ऋतू ने मेरे हाथ को चूमा और फिर मेरी दाहिने बाजू का सहारा लेते हुए सो गई| शाम होने को आई थी और अब चाय बनाने का समय था, पर ऋतू नेबड़ी मासूमियत से अपने हाथ मुझे दिखाते हुए तुतला कर कहा: "जानू! मेरे हाथों में तो मेहँदी लगी है! आप ही बना दो ना!" उसके इस बचपने पर ही तो मैं फ़िदा था! मैंने मुस्कुराते हुए चाय बनाई और अब बारी थी उसे चाय पिलाने की| हम दोनों फिर से वैसे ही बैठ गए और मैंने फूँक मार के उसे चाय पिलाई| सात बज गए पर ऋतू जानबूझ कर अब भी अपने हाथ नहीं धो रही थी, उसे मुझसे काम कराने में मजा आ रहा था| जब मैंने उससे पुछा की रात में क्या बनाऊँ तब वो हँसने लगी और बाथरूम में जा कर हाथ धोये और नहा कर आ गई| "आप हटिये, मैं बनाती हूँ!" पर मेरी नजरें उसके हाथों पर थीं जिन पर मेहँदी फ़ब रही थी| मैंने उसके दोनों हाथों को पकड़ा और उन्हें चूम लिया| ऋतू शर्मा गई और फिर ऋतू ने भिंडी की सब्जी और उर्द दाल बनाई| खाना तैयार हुआ और हम दोनों बैठ गए खाने, पर इस बार खाना ऋतू ने मुझे खिलाया| पेट भर के खाना खाया और अब बारी थी सोने की पर ऋतू बस अपने मेहँदी वाले हाथ देखने में मग्न थी| "क्या देख रही है?" मैंने मुस्कुराते हुए पुछा| उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपने पास बिठा लिया, फिर अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेट कर मेरे कंधे पर सर रखते हुए बोली; "आज मैं बहुत खुश हूँ! आपने बिना मेरे मांगे मेरी हर इच्छा पूरी कर दी! मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की मुझे आज का दिन देखना नसीब होगा! साडी खरीदना... मेहंदी लगवाना...ये सब मेरे लिए लिए एक सपने जैसा है| थैंक यू! Thank you for making this day so memorable!" मैंने ऋतू के सर को चूमा और हम दोनों लेट गए, पर आज कमरे का वातावरण बहुत शांत था| पहले ऋतू लेटते ही जैसे अपना आपा खो देती थी और मुझसे चिपक कर चूमना शुरू कर देती थी| पर आज वो बस मुझसे कस कर लिपटी रही और सो गई| मैं इस उम्मीद में की ऋतू कोई पहल करेगी कुछ देर जागता रहा पर जब मुझे लगा वो सो चुकी है तो मैं भी चैन से सो गया|


अगली सुबह ऋतू पहले ही जाग चुकी थी और बाथरूम में नहा रही थी| मैं उठा और खिड़की से पीठ टिका कर हाथ बंधे ऋतू के बाहर निकलने का इंतजार करने लगा| 10 मिनट बाद ऋतू निकली, टॉवल अपने स्तनों के ऊपर लपेटे हुए और उसके गीले बाल जिन से अब भी पानी की बूँदें टपक रही थी| साबुन और शैम्पू की खुशबू पूरे कमरे में भर गई थी और मैं बस ऋतू को देखे जा रहा था| मुझे खुद को देखते हुए ऋतू थोड़ा शर्मा गई और शर्म से उसके गाल लाल हो गए| "क्या देख रहे हो आप?" उसने नजरें झुकाते हुए पुछा| "यार या तो शायद मैंने कभी गौर नहीं किया या फिर वाक़ई में आज तुम्हें पहली बार इस तरह देख रहा हूँ! मन कर रहा है की तुम्हें अपनी बाहों में कस लूँ और चूम लूँ!" मैंने कहा तो ऋतू हँसने लगी; "रात भर का सब्र कर लो, उसके बाद तो मैं आपकी ही हूँ!" "हाय! रात भर का सब्र कैसे होगा!" मैंने कहाँ और ऋतू की तरफ बढ़ने लगा, पर मैंने उसे छुआ नहीं बल्कि बाथरूम में घुस गया| ऋतू उम्मीद कर रही थी की मैं उसे अपनी बाहों में भर लूँगा पर जब मैं उसकी बगल से गुजर गया तो वो थोड़ा हैरान हुई| जब मैं नहा कर निकला तो ऋतू अपने बाल सूखा रही थी, मैं बाहर आया और ऋतू से बोला; "जल्दी से तैयार हो जाओ!"

"क्यों? अब कहाँ जाना है?" ऋतू ने रुकते हुए पुछा|

"पार्लर" ये सुन के ऋतू आँखें फाड़े मुझे देखने लगी!

"पर ...वहाँ...." आगे उसे समज ही नहीं आया की क्या बोलना है|

"अरे बाबा! आज के दिन औरतें पार्लर जाती हैं और पता नहीं क्या-क्या करवाती हैं, तो तुम्हें भी तो करवाना होगा न?!" ऋतू ने तो जैसे सोचा ही नहीं था की उसे ऐसा भी करना होगा|
"पर ...मुझे तो पता नहीं...वहाँ क्या..." ऋतू ने दरी हुई आवाज में कहा क्योंकि वो आजतक कभी पार्लर नहीं गई थी| हमारे गाँव में तो कोई पार्लर था नहीं जो उसे ये सब पता होता|

"जान! वहाँ कोई एक्सपेरिमेंट नहीं होता जो तू घबरा रही है! जो सजने का काम तू घर पर करती है वही वो लोग करेंगे|" अब पता तो मुझे भी ज्यादा नहीं था तो क्या कहता|

"तो मैं यहीं पर तैयार हो जाऊँगी, वहाँ जा कर पैसे फूँकने की क्या जर्रूरत है?"
मैंने थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा| "अच्छा? कहाँ है तेरे मेक-अप का सामान? ये एक नेल पोलिश....और ये एक फेसवाश....ओह वेट ये...ये फेस क्रीम...बस?! फाउंडेशन कहाँ है? और...वो क्या बोलते हैं उसे...मस्कारा कहाँ है?" ये एक दो नाम ऐसे थे जो मैंने कहीं सुने थे तो मैंने उन्हीं को दोहरा दिया| ये सुन कर तो ऋतू भी सोच में पड़ गई क्योंकि उसके पास कोई सामान था ही नहीं, वो मुझे सिंपल ही बहुत अच्छी लगती थी पर आज तो उसका पहला करवाचौथ था तो सजना-सवर्ना तो बनता था|

"पर वहाँ जा कर मैं बोलूं क्या? की मुझे क्या करवाना है? मुझे तो नाम तक नहीं पता की वो क्या-क्या करते हैं|" ऋतू ने पलंग पर बैठते हुए कहा|

'वहाँ जा कर पूछना की Pythagoras थ्योरम क्या होती है?" मैंने थोड़ा मजाक करते हुए कहा|

"वो तो मुझे आती है, a2 + b2 = c2“ ये कहते हुए ऋतू हँसने लगी|
"तू ऐसे नहीं मानेगी ना? रुक अभी बताता हूँ तुझे मैं|" इतना कह कर मैं ऋतू को पकड़ने को उसके पीछे भागा और हम दोनों पूरे घर में भागने लगे| मैं चाहता तो ऋतू को एक झटके में पकड़ सकता था पर उसके साथ ये खेल खलेने में मजा आ रहा था| वो कभी पलंग पर चढ़ जाती तो कभी दूसरे कोने में जा कर मुझे dodge करने की कोशिश करती| आखिर मैंने उस का हाथ पकड़ लिया और उसे बिस्तर पर बिठा दिया और उसके सामने मैं अपने घुटनों पर बैठ गया; "देख...पार्लर जा और वहाँ जा कर manicure, pedicure, bleaching, facial, threading वगैरह-वगेरा करवा| फिर भी कुछ समझ ना आये तो अपना दिमाग इस्तेमाल कर और जो भी तुझे वहाँ पर all - in one पैक मिले उसे करवा ले| वहाँ जो भी आंटी या दीदी होंगी उनसे पूछ लिओ और ये जो तेरे फ़ोन में गूगल बाबा हैं इनमें सर्च कर ले| अब मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ प्लीज चली जा!" मैंने ऋतू के आगे हाथ जोड़े और वो ये देख कर खिलखिलाकर हँस पड़ी| "ठीक है जी! पर पार्लर तक तो छोड़ दो, मुझे थोड़े पता है यहाँ पार्लर कहाँ है|" ऋतू ने हार मानते हुए कहा|

"इतने दिनों से या आती है तुझे ये नहीं पता की पार्लर कहाँ है?" मैंने ऋतू को प्यार से डाँटा|

"आपके लिए चाय बना देती हूँ फिर चलते हैं|" ऋतू ने कहा पर मेरा प्लान तो उसके साथ व्रत रखने का था|

"बिलकुल नहीं! मेरी बीवी भूखी-प्यासी बैठी है और मैं खाना खाऊँ?" मेरे मुँह से बीवी सुनते ही ऋतू का चेहरे ख़ुशी से दमकने लगा|

"आप प्लीज फास्टिंग मत करो! ये फ़ास्ट तो औरतें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए करती हैं, ना की आदमी!"

"यार ये क्या बात हुई? मैं इतनी लम्बी उम्र ले कर क्या करूँगा अगर तुम ही साथ न हुई तो? बैलेंस बना कर रखना चाहिए ना?" मेरे तर्क के आगे उसका तर्क बेकार साबित हुआ पर फिर भी ऋतू ने बड़ी कोशिश की पर मैं नहीं माना और मैं भी ये व्रत करने लगा| ऋतू को पार्लर छोड़ा और मैं उसकी साडी लेने चल दिया|


हुस्ना आपा का शुक्रिया किया की उन्होंने इतने कम समय में काम पूरा किया और फिर वापस निकल ही रहा था की अंशुल मिल गया| उससे कुछ बातें हुई और मुझे वापस आने में देर हो गई| दोपहर के 3 बजे थे और ऋतू का फ़ोन बज उठा| "जान! मैं बाहर ही खड़ा हूँ|" ये सुनकर ही ऋतू ने फ़ोन काट दिया और जब वो बाहर निकली तो मैं उसे बस देखता ही रह गया| उसके चेहरे की दमक 1000 गुना बढ़ गई थी, होठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक देख मन बावरा होने लगा था| आज पहलीबार उसने eyeliner लगाया था जिससे उसकी आँखें और भी कातिलाना हो गई थी| उसकी भवें चाक़ू की धार जैसी पतली थीं और मैं तो हाथ बाँधे बस उसे देखता रहा| ऋतू शर्म से लाल हो चुकी थी और ये लालिमा उसके चेहरे पर चार-चाँद लगा रही थी| "जल्दी से घर चलिए!" ऋतू ने नजरें झुकाये हुए ही कहा|

"ना ...पहले मुझे I love you कहो और एक kiss दो!" मैंने ऋतू के सामने शर्त रखी|

"प्लीज ...चलो न...घर जा कर सब कुछ कर लेना...पर अभी तो चलो! मुझे बहुत शर्म आ रही है!"

"ना...मेरी गाडी बिना I love you और 'Kissi' के स्टार्ट नहीं होगी|" माने अपनी बुलेट रानी पर हाथ रखते हुए कहा|

"सब हमें ही देख रहे हैं!" ऋतू ने खुसफुसाते हुए कहा|

"तो? यहाँ तुम्हें जानने वाला कोई नहीं है| Kissi चाहिए मुझे!" मैंने अपने दाएँ गाल पर ऊँगली से इशारा करते हुए कहा| ऋतू जानती थी की मैं मानने वाला नहीं हूँ इसलिए हार मानते हुए उसने थोड़ा उचकते हुए मेरे गाल को जल्दी से चूम लिया और शर्म के मारे मेरे सीने में अपना चेहरा छुपा लिया| "अच्छा बस! इतनी मेहनत लगी है इस चाँद से चेहरे को निखारने में, इसे खराब ना कर|" मैंने ऋतू को खुद से अलग किया| हम वापस बाइक से घर पहुँचे और बाइक से उतरते ही ऋतू भाग कर घर में घुस गई| मैं बस हँस के रह गया, बाइक खड़ी कर मैं ऊपर आया तो ऋतू शीशे में खुद को निहार रही थी उसे खुद यक़ीन नहीं हो रहा था की वो इतनी सुंदर है| "1,200/- लग गए! पर सच में जानू मैंने कभी सोचा नहीं था की मैं इतनी सूंदर हूँ!" ऋतू ने कहा| "अब तो मुझे insecurity होने लगी है!" मैंने हँसते हुए कहा और ऋतू भी ये सुन कर खिलखिलाकर हँसने लगी| मैंने ऋतू को उसकी साडी दी और तैयार होने को कहा क्योंकि हमें मंदिर जाना था जहाँ की कथा होनी थी| इधर मैं भी तैयार होने लगा, पर जब ऋतू पूरी तरह से तैयार हो कर आई तो मेरे चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी|


दो मिनट तक जब मैं कुछ नहीं बोला तो ऋतू ने ही मेरा ध्यान भंग किया; "जानू???" उसके बुलाते ही मेरे मुँह से ये शेर निकला;

"उस हसीन चेहरे की क्या बात है

हर दिल अज़ीज़, कुछ ऐसी उसमें बात है

है कुछ ऐसी कशिश उस चेहरे में

के एक झलक के लिए सारी दुनिया बर्बाद है|"


ये सुनते ही ऋतू को उसकी खूबसूरती का एहसास हुआ और शर्म से उसके गाल फिर लाल हो गए| पर आज मेरा मेरे ही दिल पर काबू नहीं था आज तो उसने बगावत कर दी थी;


"जब चलती है गुलशन में बहार आती है

बातों में जादू और मुस्कराहट बेमिसाल है

उसके अंग अंग की खुश्बू मेरे दिल को लुभाती है

यारो यही लड़की मेरे सपनो की रानी है|"


एक शेर तो जैसे आज उसके हुस्न के लिए काफी नहीं था|


"नज़र जब तुमसे मिलती है मैं खुद को भूल जाता हूँ

बस इक धड़कन धड़कती है मैं खुद को भूल जाता हूँ

मगर जब भी मैं तुमसे मिलता हूँ मैं खुद को भूल जाता हूँ|"


आज तो वो शायर बाहर आ रहा था जो आशिक़ी की हर हद को फाँद सकता था|


"तेरे हुस्न का दीवाना तो हर कोई होगा लेकिन मेरे जैसी दीवानगी हर किसी में नहीं होगी।"

मेरी एक के बाद एक शायरी सुन ऋतू का शर्म के मारे बुरा हाल था, उसके गाल और कान पूरे लाल हो गए थे| वो बस नजरें झुकाये सब सुन रही थी और अपने आप को मेरी बाहों में बहक जाने से रोक रही थी| वो कुछ सोचती हुई मेरे नजदीक आई और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "हमे कहाँ मालूम था की ख़ूबसूरती क्या होती है? आज आपने हमारी तारीफ कर हमें हसीन बना दिया|" उसके इस शेर पर मेरा मन किया की उसके हसीन लबों को चूम लूँ पर फिर खुद पर काबू पाया| "पहली बार के लिए शेर अच्छा था!" मैंने ऋतू के शेर की तारीफ करते हुए कहा| मैंने ऋतू का दाहिना हाथ पकड़ा और टेबल पर से चूड़ियाँ उठा कर उसे पहनाने लगा, साइज थोड़ा बड़ा था पर चूँकि imitation जेवेलरी थी तो वो फिर भी अच्छी लग रही थी| "ये तो मैं लेना भूल ही गई थी!" ऋतू ने कहा पर मैंने तो इस दिन की प्लानिंग पहले से ही कर रखी थी| बस एक चीज बची थी वो था सिन्दूर! मैंने आते समय वो भी ले लिया था, डिब्बी से एक चुटकी सिन्दूर निकाल के मैंने ऋतू की मांग में भरा तो ऋतू ने अपनी आँखें बंद कर लीन और आसूँ के एक बूँद निकल कर नीचे जा गिरी| "Hey??? क्या हुआ मेरी जान?" ऋतू ने खुद को रोने से रोका और फिर बोली; "आज से मैं आपकी permanent wife बन चुकी हूँ!" उसने थोड़ा माहौल हल्का करने के लिए कहा| पर मैं उसका मतलब समझ गया था, उसका मतलब था की आज से हम दोनों का प्यार पुख्ता रूप ले चूका है और अब हम पति-पत्नी बन चुके हैं| "No...there's something missing!" मेरे मुँह से ये सुन ऋतू सोच में पड़ गई, पर जब मैंने जेब से उसके लिए लिया हुआ मंगलसूत्र निकाला तो वो सब समझ गई| "ये तो नया है! वो पुराना कहाँ गया?" ऋतू ने पुछा| "जान वो तो नकली था! ये असली वाला है|" ये सुन कर ऋतू चौंक गई और अपने होठों पर हाथ रखते हुए बोली; "ये सोने का है? पर पैसे?" मैं जवाब देने से पहले ही ऋतू के पीछे आया और उसे अपने हाथों से मंगलसूत्र पहनाते हुए कहा; "मेरी जान से तो महँगा नहीं हो सकता ना?" ऋतू ये सुन कर चुप हो गई और आगे कुछ नहीं बोली, वो जानती थी की आगे अगर कुछ बोली तो मैं नाराज हो जाऊँगा| वो फिर से मुस्कुराने लगी; "Technically now we're husband and wife!!!" ये सुन कर ऋतू बहुत-बहुत खुश हुई और हम दोनों का कतई मन नहीं था की ये समां कभी खत्म हो पर पूजा के लिए तो जाना ही था!


ख़ुशी-ख़ुशी ऋतू ने पूजा का सारा सामान एक बड़ी थाली में इकठ्ठा किया और हम घर से निकले| किसी संस्था ने एक मंदिर के बाहर बहुत बड़ा पंडाल लगाया था और वहीँ पर पूजा होनी थी| हम दोनों भी वहाँ पहुँच गए, वहीँ पर हमें रिंकी भाभी मिलीं जिससे ऋतू को एक कंपनी मिल गई| पूरे विधि-विधान से पूजा और कथा हुई और रात 8 बजे हम घर लौटे| अब एक दिक्कत थी, वो ये की चंद्र उदय होने के समय बिल्डिंग की सभी औरतें और आदमी वहाँ इकठ्ठा होने वाले थे और ऐसे में हम दोनों का वहाँ जाना शायद किसी न किसी को खलता| मैं अभी ये सोच ही रहा था की रिंकी भाभी ने दरवाजा खटखटाया; "अरे रितिका तू यहाँ क्या कर रही है, चल जल्दी से ऊपर|" अब ऋतू तो कब से ऊपर जाना चाहती थी पर मैंने ही उसे मना कर दिया था; "भाभी वो... अभी वहाँ सब होंगे तो.... हम दोनों को देख कर कहीं कुछ ऐसा वैसा बोल दिया तो मुझे गुस्सा आ जायेगा!" मैंने अपनी चिंता जताई|

"कोई कुछ नहीं कहेगा, मैं बोल दूँगी ये मेरी बहन है और तुम तो मेरे छोटे देवर जैसे हो| पापा भी ऊपर ही हैं कोई कुछ बोला तो जानते हो ना पापा कैसे बरस पड़ते हैं?" भाभी की बात सुन कर मन को चैन आया की सुभाष अंकल तो सब जानते ही हैं की हम दोनों की शादी होने वाली है| इसलिए हम तीनों ऊपर आ गए और यहाँ तो लोगों का ताँता लगा हुआ है| एक-एक कर सब हम दोनों से मिले, इधर ऋतू ने जा कर सुभाष अंकल जी के पेअर छुए और उनका आशीर्वाद लिया| काफी लोगों से तो मैं आज पहली बार मिल रहा था इसका कारन था की मेरे पास कभी किसी से घुलने-मिलने का समय ही नहीं होता था| ऋतू के कॉलेज से पहले भी मैं घर पर बहुत कम ही रहता था, अकेले रहने से तो बाहर घूमना अच्छा था इसलिए मैं अक्सर फ्री टाइम में खाने-पीने निकल जाता और रात को आ कर सो जाया करता था| आज जब सब से मिला तो सब यही कह रहे थे की एक ही बिल्डिंग में रह कर कभी मिले नहीं| इधर ऋतू भाभी के साथ बाकी सब से मिलने में व्यस्त थी, भाभी सब को यही कह रही थी की हम दोनों की शादी होने वाली है और ये ऋतू का पहला करवाचौथ है| सब हैरान थे की भला ये क्या बात हुई की शादी के पहले ही करवाचौथ तो भाभी ही बीच-बचाव करते हुए बोली; "जब दिल मिल गए हैं तो ये रस्में निभानी ही चाहिए|"


खेर आखिर कर चाँद निकल ही आया और सब आदमी अपनी-अपनी बीवियों के पास जा कर खड़े हो गए| आज पहलीबार था की हम दोनों यूँ सबके सामने प्रेमी नहीं बल्कि पति-पत्नी बन के विधि-विधान से पूजा कर रहे हैं| शर्म से ऋतू पूरी लाल हो चुकी थी और इधर थोड़ी-थोड़ी शर्म मुझे भी आने लगी थी| ऋतू ने जल रहे दीपक को छन्नी में रख के पहले चाँद को देखा और फिर मुझे देखने लगी| उस छन्नी से मुझे देखते ही उसकी आँखें बड़ी होगी ऐसा लगा जैसे वो मुझे अपनी ही आँखों में बसा लेना चाहती हो| उस एक पल के लिए हम दोनों बस एक दूसरे को देखे जा रहे थे, बाकी वहाँ कौन क्या कर रहा है उससे हमें कोई सरोकार नहीं था| आखिर भाभी ने हँसते हुए ही हम दोनों की तन्द्रा भंग की; "ओ मैडम! देखती रहोगी की आगे पूजा भी करोगी?" तब जा कर हम दोनों का ध्यान भंग हुआ, मैं तो मुस्कुरा रहा था और ऋतू शर्म से लाल हो गई! भाभी के बताये हुए तरीके से उसने पूजा की और अंत में मेरे पाँव छुए| अब ये पहली बार था की ऋतू मेरे पाँव छू रही थी और मुझे समझ नहीं आया की मैं उसे क्या आशीर्वाद दूँ? मैंने बस अपना हाथ उसके सर पर रख दिया और दिल ही दिल में कामना करने लगा की मैं उसे एक अच्छा और सुखद जीवन दूँ| बाकी सब लोग अपनी पत्नियों को पानी पिला रहे थे तो मैंने भी पानी का गिलास उठा कर ऋतू को पानी पिलाया और उसके बाद उसने भी मुझे पानी पिलाया| अब ये देख कर भाभी फिर से दोनों की टांग खींचने आ गई; "अच्छा जी!!! मानु ने भी व्रत रखा था? वाह भाई वाह!" जिस किसी ने भी ये सुना वो हँसने लगा, सुभाष अंकल बोले; "बेटा यूँ ही हँसते-खेलते रहो और जल्दी से शादी कर लो|"

"बस अंकल जी 2 साल और फिर तो शादी ...!!!" मैंने भी हँसते हुए कहा| ऋतू का शर्माना जारी था.... सारे लोग एक-एक कर नीचे आ गए|
 
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नीचे आ कर मैंने सबसे पहले ऋतू के लिए दूध बनाया, ये पहलीबार था की उसने ऐसा व्रत रखा हो और मुझ उसके स्वास्थ्य की बहुत चिंता थी| ऋतू ने बहुत मना किया की इसकी कोई जर्रूरत नहीं पर मैंने फिर भी उसे जबरदस्ती दूध पिला दिया| "आप भी पियो न, व्रत तो आपने भी रखा था ना?" ऋतू ने कहा| "जान! मैं अभी अगर दूध पी लूँगा तो खाना नहीं खाऊँगा, इसलिए मेरी चिंता मत कर| अब ये बता की खाना क्या खाओगी?" मैंने खाना आर्डर करने के इरादे से कहा पर ऋतू एक दम से उठ कड़ी हुई; "कोई आर्डर-वॉर्डर करने की जर्रूरत नहीं है, मैं बनाऊँगी खाना!" ऋतू ने लाजवाब खाना बनाया और फिर हमेशा की तरह हमने एक दूसरे को अपने हाथों से खिलाया| अब बारी थी सोने की और ऋतू को सुबह से देख कर ही मेरा मन मचल रहा था| कुछ यही हाल ऋतू का भी था जो कब से मेरी बाहों में सिमट जाना चाहती थी|

ऋतू अपनी साडी उतारने लगी, उसका ध्यान मेरी तरफ नहीं था पर मेरी आँखें तो उसके बदन से चिपकी हुई थीं| ऋतू ने साडी उतारी और उसे फोल्ड करने लगी, पेटीकोट और ब्लाउज में आज वो खर ढा रही थी| मुझसे रुका न गया तो मैं उठा और जा कर उसके पीछे उससे सट कर खड़ा हो गया| मेरे जिस्म का एहसास पाते ही ऋतू सिंहर गई और उसके हाथ साडी फोल्ड करते हुए रूक गए| मैंने अपन दोनों हाथों से ऋतू की कमर को थामा और उसकी गर्दन को चूमा और फिर जैसे मुझे कुछ याद आया और मैं ऋतू को छोड़ कर किचन में गया| इधर ऋतू हैरान-परेशान से खड़ी अपने सवालों का जवाब ढूँढने लगी, की आखिर क्यों मैं उसे ऐसे छोड़ कर किचन में चला गया| मैं जब किचन से लौटा तो मेरे हाथ में एक पानी का गिलास था और ऋतू की आँखों में सवाल| "आज दवाई नहीं ली ना?" मैंने ऋतू को उसकी प्रेगनेंसी वाली दवाई की याद दिलाई और उसने फटाफट अपने बैग से दवाई निकाली और पानी के साथ खा ली| अब और कोई भी काम नहीं बचा था, ऋतू ने साडी आधी ही फोल्ड की थी और जब वो उसे दुबारा फोल्ड करने को झुकी तो मैंने उसका हाथ पकड़ के झटके से अपनी तरफ खींचा| ऋतू सीधा मेरे सीने से आ लगी और अपन असर मेरे सीने में छुपा लिया| अब तो मेरे लिए सब्र कर पाना मुश्किल था, मैंने ऋतू को गोद में उठाया और उसे पलंग पर लिटा दिया| ऋतू ने भी फटाफट अपना ब्लाउज खोलना शुरू किया और इधर मैंने उसके पेटीकोट का नाडा खोल दिया| ब्लाउज ऋतू ने निकाला तो उसका पेटीकोट मैंने निकाल कर कुर्सी पर रख दिया| अब ऋतू सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी और मैं अभी भी पूरे कपड़ों में था, मैंने एक-एक कर सारे कपडे निकाल कर कुर्सी पर रखे| ऋतू उठ के बैठी और अपनी ब्रा का हुक खोल उसे निकाल दिया, अभी मैं ये कपडे कुर्सी पर रख ही रहा था की ऋतू ने मेरे कच्छे के ऊपर से मेरे लंड को चूम लिया और अपनी दोनों हाथों की उँगलियों को मेरे कच्छे की इलास्टिक में फँसा कर नीचे सरका दिया| आगे का काम मैंने खुद ही किया और कच्छा निकाल कर कुर्सी पर रख दिया|

"क्या बात है जानू! आज तो सारे कपडे आप कुर्सी पर रख रहे हो?"

"कल मेरी जान को उठा के ना रखने पड़े इसलिए कुर्सी पर रख रहा हूँ|" ये कहते हुए मैं ऋतू की बगल में लेट गया| ऋतू ने एकदम से मेरी तरफ करवट ली और मेरे होठों को Kiss करने लगी| "आज पार्लर के बाहर आप बहुत naughty हो गये थे?" ऋतू ने मेरे ऊपर वाले होंठ को चूमते हुए कहा| "पहले तुम naughty हो जाए करती थी अब मैं हो जाता हूँ!" मैंने जवाब दिया और ऋतू को अपनी बुर मेरे मुँह पर रख कर बैठने को कहा| ऋतू बैठी तो सही पर उसका मुँह मेरे लंड की तरफ था और इससे पहले की मैं उसकी बुर को अपनी जीभ से छु पाता वो आगे को झुक गई और तब मुझे एहसास हुआ की ऋतू ने अब भी पैंटी पहनी हुई थी| हम दोनों इतना बेसब्र हो गए थे की ऋतू की पैंटी उतारने के बारे में भूल गए थे| मेरा मन आज उसकी बुर का स्वाद चखने का था, ऐसा लग रहा था जैसे एक अरसा हुआ उसकी बुर का स्वाद चखे! मैंने ऋतू को सीधा बैठने को कहा, तो वो अपनी बुर मेरे मुँह पर टिका कर बैठ गई|
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फिर मैंने उसे अपनी पैंटी को उसके बुर के छेद के ऊपर से हटाने को कहा ताकि मैं उसे अच्छे से चाट सकूँ| ऋतू ने अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से अपनी पैंटी को इस कदर साइड किया की मुझे ऋतू के बुर के द्वार साफ़ नजर आये| मैंने अपनी जीब निकाल कर ऋतू की बुर को चाटना शुरू किया, "ससससस...आह...सस्म्ममं मममम मममम" की आवाज मेरे कमरे में गूँजने लगी| मस्ती आकर ऋतू ने अपनी बुर को मेरे मुँह पर आगे-पीछे रगड़ना शुरू कर दिया| उसके ऐसा करने से मेरे होठों और उसकी बुर की पंखड़ियों में घर्षण पैदा होता और ऋतू सिस्याने लगती! अगले पांच मिनट तक ऋतू अपनी बुर को इसी तरह अपनी बुर को मेरे मुँह पर घिसती रही पर अब भी एक अड़चन थी|

ऋतू अब भी अपनी पैंटी पकड़ के बैठी थी जिससे उसे वो स्पीड हासिल नहीं हो रही थी जो वो चाहती थी, ऋतू उठी और गुस्से से अपनी पैंटी निकाल फेंकी और दुबारा मेरे मुँह पर बैठ गई| इस बार आसन दूसरा ग्रहण किया, इस बार वो मेरी तरफ मुँह कर के बैठी, उसका दायाँ हाथ मेरे मस्तक पर था और बाएं हाथ को उसने मेरे पेट पर रख कर सहारा लिया ताकि वो गिर ना जाए|
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मैंने अपनी जीभ निकल के ऋतू की बुर के अंदर प्रवेश कराई की ऋतू की सिसकारी निकल पड़ी और उसने अपनी कमर को पहले की तरह आगे-पीछे चलाना शुरू कर दिया| ऐसा लग रहा था जैसे मेरी जीभ मेरे लंड का काम कर रही है और ऋतू की बुर छोड़ रही है| ऋतू की नजर मेरे चेहरे पर टिकी थी और वो ये देख रही थी की मुझे इसमें कितना मज़ा आ रहा है| दस मिनट तक ऋतू बिना रुके लय बद्ध तरीके से अपनी कमर को मेरे होठों पर आगे-पीछे करती रही और मैं उसकी बुर को किसी आइस-क्रीम की तरह चाटता रहा| "ससाह...ममः...मममममम...अअअअअअअअ ...!!!" कर के ऋतू ने पानी छोड़ा जो बहता हुआ मेरे मुँह में भर गया|

ऋतू मेरे ऊपर से लुढ़क कर लेट गई, इधर मेरा लंड पूरी तैयारी में खड़ा था और इंतजार कर रहा था की उसका नंबर कब आएगा? ऋतू कुछ तक गई थी इसलिए वो अपनी साँसों को काबू कर रही थी पर उसकी नजर मेरे लंड पर थी| मैंने अपने लंड को पकड़ा और उसे हिला कर उसे उसके दर्द का एहसास दिलाया| थोड़ा प्यार तो उस बिचारे को भी चाहिए था.....
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ऋतू को भी मेरे लंड पर तरस आ गया, या ये कहे की उसके मुँह में पानी आ गया| वो उठ के बैठी मेरे लंड को अपने मुट्ठी में पकड़ के उसका अच्छे से दीदार करने लगी| उसके हाथ लगते ही प्री-कम की एक बूँद लंड के छेद से बाहर आई, ऋतू ने लंड की चमड़ी पकड़ के उसे एक बार ऊपर-नीचे किया तो उस प्री-कम की बूँद ने पूरे लंड को गीला कर दिया|
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ऋतू ने अपने गर्म-गर्म साँस का भभका मेरे लंड पर मारा तो उसमें खून का प्रवाह तेज हो गया| ऋतू ने आधा लंड अपने मुँह भरा और अपने मुँह को मेरे लंड पर ऊपर-नीचे करना शुरू कर दिया| धीरे-धीरे ऋतू मेरे लंड को जितना हो सके उतना अपने मुँह में और अंदर लेती जा रही थी| फिर कुछ पलों के लिए ऋतू ने जोश में आ कर मेरा पूरा लंड अपने गले तक उतार लिया और कुछ सेकण्ड्स के लिए रूक गई| जब उसे लगा की उसकी सांस रूक रही है तो उसने पूरा लंड अपने मुँह से निकाला| मेरा पूरा लंड उसके थूक से सन गया था और चमकने लगा था| पर उसका मन अभी भरा नहीं था, ऋतू ने अपने हाथ से चमड़ी को आगे-पीछे किया और फिर अपनी जीभ से पूरे लंड को जड़ से ले कर छोर तक चाटने लगी| अगले पल उसने वो किया जिसकी उम्मीद मैंने कभी नहीं की थी, उसने झुक कर मेरे टट्टों (अंडकोष) को अपने मुँह में भर के चूसा! मैं आँखें फाड़े उसे देखने लगा और ऋतू बस मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा दी| ऋतू ने फिर से मेरे लंड को अपने मुँह में लिया और अपने मुँह को फिर से ऊपर-नीचे करते हुए लंड चूसने लगी| आज तो मुझे बहुत मजा आ रहा था और लग रहा था की मैं छूट जाऊँगा इसलिए मैंने ऋतू को रोका और लिटा दिया, उसकी टांगों को चौड़ा कर मैं बीच में आ गया| लंड को उसकी बुर पर सेट किया और एक झटका मार के अंदर ठेल दिया| चूँकि मेरा लंड पहले से ही ऋतू के थूक और लार से भीगा हुआ था इसलिए मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी| एक धक्का और आधे से ज्यादा लंड अंदर पहुँच गया!
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ऋतू की बुर अंदर से बहुत गीली हो चुकी थी और वो मेरा पूरा लंड खाना चाहती थी| इसलिए अगले धक्के से पूरा लंड अंदर चला गया "आह! ममममम ममममममममम ...ससस..!!!" अंदर की गर्माहट पा कर लंड प्रफुल्लित हो उठा और मैंने अब अपने लंड को जड़ तक अंदर पेलना शुरू कर दिया| जब लंड अंदर पूरा पहुँचता तो ऋतू की बुर अंदर से टाइट हो जाती और लंड बाहर निकालते ही उसकी बुर अंदर से ढीली हो जाती| अगले पाँच मिनट तक मैं इसी तरह ऋतू की बुर चुदाई करता रहा| ऋतू की आँखों में मुझे कभी न खत्म होने वाली प्यास नजर आ रही थी इसलिए मैं उस पर झुका और उसके होठों को Kiss किया, मैंने वापस खड़ा होना चाहा पर ऋतू ने अपने अपनी एक बाँह को मेरे गले में डाल दिया और मुझे अपने ऊपर ही झुकाये रखा|
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मैं उसके ऊपर झुके हुए ही अपनी कमर को चलाता रहा और ऋतू की बुर से पूछ-पूछ की आवाज आती रही| "स्सम्म्म हहहह ...मामामा..आह!" कहते हुए ऋतू उन्माद से भरने लगी! उसकी बुर में घर्षण बढ़ चूका था और वो किसी भी वक़्त छूट सकती थी पर मुझे अभी और समय चाहिए था, इतने दिनों से जो प्यासा था! मैं रूका और ऋतू को पलट के उसे घुटनों के बल आगे को झुका दिया| ऋतू के घुटने मुड़ के उसकी छाती से दबे हुए थे, मैंने पीछे से ऋतू के कूल्हों को पकड़ के उसके बुर के सुराख को उजागर किया और अपना लंड अंदर पेल दिया!
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हमला इतना तीव्र था की ऋतू दर्द से तड़प उठी; "अअअअअअअहहहहहहहह !!!" चिल्लाते हुए उसने बिस्तर की चादर को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया| मेरा पूरा लंड ऋतू की बुर में उतर चूका था इसलिए मैंने बिना रुके धक्के मारने शुरू कर दिए| हर धक्के से ऋतू का जिस्म कांपने लगा था और आनंद और दर्द के मिले जुले एहसास ने उसे छूटने के कगार पर पहुँचा दिया| मैं भी स्खलित होने के बहुत नजदीक था इसलिए मेरे धक्कों की गति और बढ़ गई थी! अगले कुछ पलों में पहले मैं और फिर ऋतू एक साथ स्खलित हुए और एक दूसरे से अलग हो कर पस्त हो गए| सांसें दुरुस्त हुई तो मैंने ऋतू को देखा, उसके चेहरे पर संतुष्टि की ख़ुशी दिखी| "कभी-कभी जान निकाल देते हो आप!" ऋतू ने प्यार भरी शिक़ायत की तो जवाब मैंने अपने दोनों कान पकडे और उसे सॉरी कहा| "पर मज़ा भी तभी आता है!" ऋतू ने शर्माते हुए कहा| मैंने उठ के ऋतू को अपने ऊपर खींच लिया और उसके गालों को चूमा और हम दोनों ऐसे ही सो गए|
 
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अगली सुबह हुई तो हम अब भी उसी तरह लेटे हुए थे| ऋतू की आँख खुली और उसने मेरी गर्दन को चूमा तब मेरी आँख खुली| मैंने ऋतू के सर को चूमा और तब ऋतू उठ के बाथरूम में घुस गई| मैं भी अंगड़ाई लेता हुआ उठा और अपना फ़ोन देखा तो उसमें एक मेल आई थी| मुझे एक इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था, मेरे पास बस दो घंटों का समय था इसलिए जैसे ही ऋतू बाथरूम से निकली मैं तुरंत बाथरूम में घुस गया| 10 मिनट में नहा कर बाहर आया, ऋतू मेरी टी-शर्ट पहने हुए चाय बना रही थी| "जान! प्लीज जल्दी से कपडे पहनो, I've an interview to catch!" ये सुनते ही ऋतू ने फटाफट चाय बनाई और मेरे लिए टोस्ट भी बना दिए| मैंने कपडे पहने और खड़े-खड़े ही नाश्ता किया और दोनों साथ निकले, ऋतू को मैंने हॉस्टल छोड़ा; "Best of luck!!!" ऋतू ने कहा और मैंने मुस्कुरा कर थैंक यू कहा| फिर मैं इंटरव्यू के लिए पहुँच गया, वहाँ गिनती के लोग थे और जब मेरा नंबर आया तो उन्होंने मेरा रिज्यूमे देखा और फाइनली मैं सेलेक्ट हो गया! आज जितनी ख़ुशी मुझे पहले कभी नहीं हुई थी! मैंने तुरंत ऋतू को कॉल किया और उसे कॉलेज के बाहर बुलाया, वो भी मेरी आवाज से मेरी ख़ुशी समझ चुकी थी| मैं ख़ुशी से इतना बावरा हो गया था की मुझे कोई होश नहीं था| जैसे ही ऋतू कॉलेज के गेट से बाहर आई मैंने उसे गोद में उठा लिया और गोल-गोल घूमने लगा| "I'm so happy!" कहते हुए मैंने ऋतू को नीचे उतारा, कॉलेज का गार्ड मुझे ऐसा करते हुए देख रहा था| जब मेरा ध्यान उस पर गया तो मैंने ऋतू का हाथ पकड़ा और उसे खींच कर पार्क की तरफ भागा| ऋतू भी मेरे साथ ऐसे भाग रही थी जैसे मैं उसे literally घर से भगा कर ले जा रहा हूँ| आस-पास जो भी कोई था वो हम दोनों को इस तरह भागते हुए देख रहा था| आखिर हम पार्क पहुँचे और वहाँ बेंच पर बैठ कर अपनी साँसों को काबू करने लगे|


"I ..... got the job!" मैंने उखड़ी-उखड़ी साँसों को काबू में करते हुए कहा| इतना सुनना था की ऋतू मेरी तरफ मुड़ी और कस कर मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया| "40K per month, Saturday is half day!"

"Thank God!" ऋतू ने भगवान् को शुक्रिया करते हुए कहा|

"हाँ बस एक दिक्कत है, हेड ऑफिस उन्नाओ में है| तो हफ्ते में एक दिन up-down करना पड़ेगा|" मैंने कहा|

"कोई बात नहीं!" एक-आध दिन सब्र कर लेंगे!" ऋतू ने मुस्कुराते हुए कहा|

"जान! सब कुछ सेट हो गया है अब! 40K ... उफ्फ्फ!! मुझे तो यक़ीन नहीं हो रहा!”
"तो चलो एक बार हिसाब कर लेते हैं की आपके क्या-क्या expenses हैं?" ऋतू ने बैग से कॉपी पेन निकालते हुए कहा| ये हरकत बचकानी थी पर मैं तो पहले से ही सब हिसाब किये बैठा था| मैंने अपना फ़ोन निकला और ऋतू को एक मैसेज भेजा जिसमें सारा हिसाब पहले से ही लिखा था| जब ऋतू ने वो पढ़ा तो वो हैरानी से मुझे देखने लगी:

1. घर का किराया: 8,500/- (इस महीने से बढ़ रहा है|)

2. राशन (मैक्सिमम): 3,000/-

3. बाइक की मेंटेनेंस: 3,000/- जिसमें 1,000/- reimburse होगा|

4. अतिरीक्त खर्चा: 4,000/- (provision for any unexpected expense)

हर महीने बचत: (कम से कम) 22,500/- इस हिसाब से 31 महीने (ऋतू के थर्ड ईयर के पेपर देने तक) के हुए 6,97,500/-


ऋतू ने जब 6 लाख की फिगर देखि तो उसकी आँखें छलक आईं; "जान ये फिगर और भी बढ़ेगी क्योंकि ये जो मैंने अतिरिक्त खर्चा रखा है ये भी कभी न कभी बचेगा! तो कम से कम ये मान कर चलो की हमारे पास 7 लाख होंगे! इतने पैसों से हम नई जिंदगी आराम से शुरू कर सकते हैं| अगर मैंने इन पैसों की FD करा दी तो ब्याज और भी मिलेगा!” उस समय मेरे दिमाग में जो अकाउंटेंट वाला दिमाग था वो बोलने लगा था और साड़ी प्लानिंग कर के बैठा था| ऋतू रोती हुई मुझसे लिपट गई; "जानू! मुझसे in 31 महीनों का सब्र नहीं होता!"

"जान! मैं हूँ ना तेरे साथ, ये 31 महीने मैं अपने प्यार से भर दूँगा!" मैंने ऋतू के सर को चूमते हुए कहा|

"जोइनिंग कब से है?" ऋतू ने पुछा|

"नेक्स्ट मंथ से! शुरू में तुम्हें थोड़ी दिक्कत होगी, क्योंकि काम समझने में थोड़ा टाइम लगेगा|"

"कोई बात नहीं! कम से कम आधा सैटरडे और पूरा संडे तो होगा हमारे पास!" ऋतू ने मुस्कुराते हुए कहा|

अब ये ख़ुशी सेलिब्रेट करनी तो बनती थी, इसलिए हम दोनों पिक्चर देखने गए और पिक्चर के बाद मैंने खुद हॉस्टल आंटी जी को फ़ोन कर दिया ये बोल कर की ऋतू मेरे साथ है और मैं उसे डिनर के बाद छोड़ दूँगा| हमने अच्छे से डिनर किया और फिर मैंने एक मिठाई का डिब्बा लिया और ऋतू को हॉस्टल छोड़ने चल दिया| वहाँ पहुँच के आंटी जी के पाँव छुए और उनका मुँह मीठा कराया की मेरी जॉब लग गई है| तभी मोहिनी भी आ गई और वो भी खुश हुई की मेरी नौकरी लग गई है और पूरा का पूरा मिठाई का डिब्बा ले कर खाने लगी| खेर इसी तरह दिन गुजरने लगे और दिवाली का दिन भी जल्द ही आ गया| मैं ऋतू को हॉस्टल से लेकर सीधा अंशुल की दूकान पर पहुँचा और माँ, ताई जी और भाभी के लिए साड़ियां खरीदी| एक साडी मैंने ऋतू के लिए भी खरीदी पर किसी तरह नजर बचा कर ताकि वो देख न ले, ताऊ जी, पिताजी और चन्दर के लिए सूट का कपडा लिया| वैसे तो मैं चन्दर और भाभी केलिए कुछ लेना नहीं चाहता था पर मजबूरी थी वरना सब कहते की इनके लिए क्यों कुछ नहीं लाया| ख़ुशी-ख़ुशी हम दोनों घर पहुँचे तो देखा घर का रंग-रोगन कराया जा चूका था| ऋतू तो सीधा घर घुस गई और मेंबीके कड़ी कर पिताजी से मिला और उनके पाँव हाथ लगाए| फिर उन्हें और ताऊ जी को ले कर मैं आँगन में आ गया और चारपाई पर बिठा दिया| "ऋतू, दरवाजा बंद कर दे!" मैंने ऋतू से कहा और फिर सभी को आवाज दे कर मैंने आंगन में बिठा दिया, एक-एक कर सब को उनके तौह्फे दिए तो सभी खुश हुए, सबसे ज्यादा अगर कोई खुश हुआ तो वो थी ऋतू जब मैंने उसे सबके सामने साडी दी| घर में उसने आज तक कभी साडी नहीं पहनी थी पर ये बात हमेशा की तरह भाभी को खटकी; "इसे साडी पहनना भी आता है?" उन्होंने कहा तो मुझे बड़ी मिर्ची लगी और मैंने उन्हें सुनाते हुए कहा; "आप कौन सा माँ के पेट से सीख कर आये थे? इसी दुनिया में सीखा ना? आप चिंता ना करो ऋतू आपको तंग नहीं करेगी की उसे साडी पहना दो, ताई जी हैं और माँ हैं वो सीखा देंगी|" अब ये बात भाभी को चुभी पर ताई जी ने बीच में पद कर बात आगे बढ़ने नहीं दी वरना ताऊजी से डाँट पड़ती! "ये बता की तुम दोनों ने कुछ खाया भी था?" ताई जी पुछा| मैंने बीएस ना में गर्दन हिलाई तो ताई जी ने खुद देसी घी के परांठे बनाये और मैंने डट के खाये!


चूँकि आज धनतेरस थी तो शाम को खरीदारी करने जाना था, हर साल पिताजी और ताऊ जी जाय करते थे पर इस बार मैं बोला; "ताऊ जी सारे चलें?" अब ये सुन कर वो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगे| अब बाजार घर के इतने नजदीक तो नहीं था की सारे एक साथ पैदल चले जाएँ| बाइक से ही मुझे आधा घंटा लगता था, जब कोई कुछ नहीं बोला तो मुझे ही रास्ता सुझाना था| "चन्दर भैया आपका वो दोस्त है ना ...क्या नाम है...अशोक! उसे बुला लो ना?" ये सुनते ही वो मुस्कुरा दिए और फ़ोन निकाल कर उसे आने को कहा| अशोक का भाई मेरा दोस्त था और शादी-ब्याह में वो अपने ट्रेक्टर-ट्राली बारातियों के लाने-लेजाने के लिए किराये पर देते थे| "तू ज्यादा होशियार नहीं हो गया?" पिताजी ने प्यार से मेरे कान पकड़ते हुए कहा| ताऊ जी हँस दिए और उन्होंने सब को तैयार होने का आदेश दे दिया| सब तैयार हुए पर अब भी एक दिक्कत थी, वो ये की ट्रेक्टर चलाएगा कौन? चन्दर को तो आता नहीं था, इसलिए मैंने ही पहल की| जब स्कूल में पढता था तब कभी-कभी मस्ती किया करता था और हम दो-चार दोस्त मिल कर अशोक भैया का ट्रेक्टर खेतों में घुमाया करते थे| "तुझे ट्रेक्टर चलाना आता है?" ताऊ जी ने पुछा| मैंने हाँ में गर्दन हिलाई; "अरे तो पहले क्यों नहीं बताया? हम बेकार में ही दूसरों को इसके पैसे देते थे, इतने में तो नया ट्रेक्टर आ जाता|" ताऊ जी बोले| "पर मानु भैया घर पर होंगे तब तो?" पीछे से भाभी की आवाज आई अब मन तो किया की उन्हें कुछ सुना दूँ पर चुप रहा ये सोच कर की आज त्यौहार का दिन है क्यों खामखा सब का मूड ख़राब करूँ|


मैं ड्राइविंग सीट पर बैठा था और मेरे दाहिने हाथ पर ताऊ जी बैठ थे, बाईं तरफ पिताजी बैठ थे और बाकी सब एक-एक कर पीछे ट्राली में बैठ गए| इतने दिनों बाद ट्रेक्टर चला रहा था तो शुरू में बहुत धीरे-धीरे चलाया, फिर जैसे ही मैं रोड पकड़ा तो जो भगाया की एक बार को तो ताऊ जी बोल ही पड़े; "बेटा! धीरे!" तब जाके मैंने स्पीड कम की और हम सही सलामत बाजार पहुँच गए! बाजार में पिताजी के जान पहचान की एक दूकान थी और मैंने वहीँ ट्रेक्टर रोका और एक-एक कर सब उतरने लगे| सबसे आखरी में ऋतू रह गई थी और मुझे आज कुछ ज्यादा ही रोमांस चढ़ रहा था| जब वो उतरने लगी तो मैंने जानबूझ कर उसे कमर से पकड़ लिया और नीचे उतारा| हालाँकि इसकी कोई जर्रूरत नहीं थी पर आशिक़ी आज कुछ ज्यादा ही सवार थी, भाभी ने मुझे ऐसे करते हुए देखा तो बोली; "हाय! कभी मुझे भी उतार दो ऐसे!" ये सुनते ही ऋतू को मुँह फीका पड़ गया| "आप बहुत मोटे हो!!! आपको उठाने जाऊँगा तो मेरी कमर अकड़ जाएगी!" ये सुन कर माँ और ताई जी हँसने लगे और बेचारी भाभी शर्म से नीचे देखने लगी| पिताजी, चन्दर और ताऊ जी तो आगे चल दिए और इधर माँ, ताई जी, भाभी और ऋतू को साड़ियों का माप देना था, तो उनके साथ रहने की जिम्मेदारी मुझे दे दी गई| पिताजी एंड पार्टी तो अपने जान पहचान वाले दूकान दारों से मिलने लगे तो मैंने सोचा की हम सारे कुछ खा-पी लेते हैं| पर पहले माप देना था, सब एक-एक कर अपना माप लिखवा रहे थे और मैं बाहर खड़ा था और अरुण-सिद्धार्थ के मैसेज पढ़ रहा था|

माप दे कर सबसे पहले ताई जी आईं और उन्होंने पुछा की ताऊ जी कहाँ हैं तो मैंने कह दिया वो तो आगे चले गए सब से मिलने| "तो बेटा उन्हें फ़ोन कर|" ताई जी ने कहा| "छोडो ना ताई जी, चलो चल के कुछ खाते हैं|" तै जी मुस्कुरा दी और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं; "बाकियों को आने दे, फिर चलते हैं|" इतने में माँ आ गई और ताई जी ने हँसते उन्हें कहा; "तेरा लड़का समझदार होगया है| इसके लिए समझदार बहु लानी होगी|" मैं ये सुन कर हँस पड़ा, क्योंकि मैं जानता था की मेरी पसंद थोड़ी नसमझ है! पीछे से भाभी और ऋतू भी आ गए| फिर हम एक जगह बैठ के चाट खाने लगे, तभी चन्दर भैया हमें ढूँढ़ते हुए आ गए और हमें मज़े से चाट खाते हुए देख बोले; "वहाँ पिताजी आप सब को ढूँढ रहे हैं और आप सारे यहाँ बैठे चाट खा रहे हो?"

"अरे भूख लगी है तो कुछ खाये नहीं?!" ताई जी चन्दर को डाँटते हुए कहा| इतने में हम सबका खाना हो गया और हम सारे के सारे उठ के चल दिए, ताऊ जी ने जब पुछा तो ताई जी ने कह दिया की भूख लगी थी तो कुछ खा रहे थे| ताऊ जी ने फिर कुछ नहीं कहा और हमने खरीदारी की| पर इस बार ताई जी बहुत ज्यादा ही खुश थीं इसलिए वो माँ, भाभी और ऋतू को ले कर एक सुनार की दूकान में घुस गईं| ये हमारी खानदानी जान पहचान की दूकान थी तो सारा परिवार अंदर जा कर बैठ गया| हम सब की बड़ी आव-भगत हुई और मालिक ने खुद सब औरतों को जेवर दिखाए| ऋतू बेचारी चुप-चाप पीछे बैठी थी, इस डर से की कहीं कोई उसे डाँट ना दे| पर डाँट तो उसे फिर भी पड़ी, प्यार भरी डाँट! "रितिका! तू वहाँ पीछे क्या कर रही है? यहाँ तेरे लिए ही आये हैं और तू है की पीछे बैठी है? चल जल्दी आ और बता कौनसी अच्छी है तेरे लिए?" ये सुन कर ऋतू का सीना गर्व से चौड़ा हो गया| वो उठ के आगे आई और बोली; "दादी ... आप ही बताइये...मुझे तो कुछ पता नहीं!" ताई जी ने उसे माँ और अपने बीच बिठाया और उसे समझाते हुए बालियाँ पहनने को कहा| उसने एक-एक कर सब पहनी पर वो अब भी confuse थी तो मुझे उसकी मदद करनी थी... पर कैसे? मैं इधर-उधर देखने लगा फिर सामने नजर शीशे पर पड़ी| ऋतू की नजर अब भी सामने आईने पर नहीं थी बल्कि वो ताई जी और माँ की बात सुनने में व्यस्त थी, मैं बीएस इंतजार करने लगा की ऋतू उस आईने में देखे ताकि मैं उसे बता सकूँ की कौन सी बाली बढिये है| आखिर में उसने देख ही लिया, उसके दोनों हाथों में एक-एक डिज़ाइन था| मैंने उसे आँख के इशारे से बाएँ वाले को try करने को कहा, पर वो मुझे इतना नहीं जचा तो मैंने गर्दन के इशारे से दूसरे try करने को कहा| ये वाला मुझे बहुत पसंद आया तो मैंने हाँ में गर्दन हिला कर अपनी स्वीकृति दी! माँ ने मुझे ऋतू की मदद करते हुए देख लिया और बोल पड़ीं; "क्या बात है? तेरी पसंद बड़ी अच्छी है इन चीजों में?" माँ ने मजाक करते हुए कहा पर पता नहीं कैसे मेरे मुँह से निकला; "माँ कल को शादी होगी तो बीवी को इन सब चीजों में मदद करनी पड़ेगी ना? इसलिए अभी से प्रैक्टिस कर रहा हूँ!" ये सुनते ही सारे लोग जो भी वहाँ थे सब हँस पड़े| ऋतू के गाल भी शर्म से लाल हो गए थे क्योंकि वो समझ गई थी की ये बात मैंने उसी के लिए कही है| हँसते-खेलते हम घर लौटे और रात को खाने के बाद ताऊ जी, चन्दर और पिताजी सोने चले गए| मैं अब भी आंगन में बैठा था, ताई जी और सभी औरतें खाना खा रहीं थीं| थकावट हो रही थी सो मैं अपने कमरे में आ कर सो गया, रात को ऋतू ने मेरा दरवाजा खटखटाया पर मैं बहुत गहरी नींद में था इसलिए मुझे पता नहीं चला| अगली सुबह जब मैंने ऋतू से Good morning कहा तो वो मुँह फूला कर रसोई में चली गई| मैं सोचता रह गया की अब मैंने क्या कर दिया? जब वो चाय देने आई तो बोली; "मुझे कल रात को आपसे कितनी बातें करनी थी, पर आपको तो सोना है!" ये सुन कर मेरे मुँह से 'oops' निकला! पर आगे कुछ कहने से पहले ही वो चली गई, इधर पिताजी आये और मुझे अपने साथ चलने को कहा| मैंने अपनी बुलेट उठाई और पिताजी के साथ निकल पड़ा, दिन भर पिताजी ने जाने किस-किस को मिठाई देनी थी? कितनों के यहाँ बैठ के चाय पि शाम को घर आते-आते पेट में गैस भर गई! घर आते ही मैं पिताजी से बोला: "कान पकड़ता हूँ पिताजी! आज के बाद मैं आपके साथ दिवाली पर किसी के घर नहीं जाऊँगा!" ये सुन कर सारे हँस पड़े| "क्यों?" पिताजी ने अनजान बनते हुए पुछा; "इतनी चाय...इतनी चाय! मैंने ऑफिस में कभी इतनी चाय नहीं पि जितनी आपके जानने वालों ने पिला दी! मुझे तो चाय से नफरत हो गई|" तभी ऋतू जान बूझ कर एक कप में पानी ले कर आई और मुझे ऐसा लगा जैसे उसमें चाय हो, मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा; "ले जा इस कप को मेरे सामने से नहीं तो आज बहुत मारूँगा तुझे!" ये सुन कर ऋतू और सभी लोग खिल-खिला कर हँस पड़े! रात को खाना खाने की बिलकुल इच्छा नहीं थी, इसलिए मैं ऊपर छत पर चूरन खा रहा था|

सब के खाना खाने तक मुझे नींद आ गई और मैं छत पर ही पैरापेट वॉल से टेक लगा कर सो गया| ऋतू ने आ कर मुझे जगाया तब मेरी नींद खुली, मैंने अंगड़ाई लेते हुए उसे देखा; "आप यहाँ क्यों सो रहे हो?" उसने पुछा|

"कल बिना बात किये सो गया था ना, इसलिए मैं यहाँ तेरा इंतजार कर रहा था| पता नहीं कब नींद आ गई! अब बता क्या बात करनी थी?"

"कल बात करेंगे, अभी आप सो जाओ|" ऋतू ने कहा तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपने सामने आलथी-पालथी मार के बैठने को कहा|

"कल दिवाली है और कल टाइम नहीं मिलेगा, बोल अब!" मैंने कहा|

"कल.... मेरे पास शब्द नहीं....दादी ने मेरे लिए पहली बार बालियाँ खरीदी ....सब आपकी वजह से!!!" ऋतू का गला भर आया था इसलिए उसने बस टूटे-फूटे शब्द कहे|

"अरे पागल! मैंने कुछ नहीं किया! देर से ही सही ये खुशियाँ तुझे मिलनी थी और तुझे तो खुश होना चाहिए ना की रोना चाहिए!" मैंने उठ के ऋतू के आँसू पोछे|

"नहीं.... इस घर में एक बस आप हो जो मुझे इतना प्यार करते हो, हर बात पर मेरा बचाव करते हो| आपके इसी बर्ताव के कारन दादी का और बाकी सब का दिल मेरे लिए पसीजा है| आप अगर नहीं होते तो कोई मेरे बारे में कभी नहीं सोचता, पहले सब यही चाहते थे की मेरी शादी हो जाए और मैं इस घर से निकल जाऊँ पर आपके प्यार के कारन अब सब मुझे इस घर का हिस्सा समझने लगे हैं|" ऋतू ने अब रोना शुरू कर दिया था|

"अच्छा मेरी माँ! अब बस चुप हो जा!" मैंने ऋतू को अपने सीने से चिपका लिया तब जा कर उसका रोना बंद हुआ|

"तू ना...जितना हँसती नहीं उससे ज्यादा तो रोती है| Global water crisis solve करना है क्या तूने?" मैंने मजाक में कहा तो ऋतू की हँसी निकल गई| इस तरह हँसते हुए मैंने उसे उसके कमरे के बाहर छोड़ा और मैं अपने कमरे में घुस गया| सुबह हुई और मैं जल्दी उठ गया, एक तो भूख लगी थी और दूसरा आज सुबह काम थोड़े ज्यादा बचे थे| सारा काम निपटा के आते-आते दोपहर हो गई और फिर सब ने एक साथ खाना खाया और रात की पूजा के लिए तैयारियाँ शुरू हो गई| वही लालची पंडित आया और हम सब पूजा के लिए बैठ गए| सबसे आगे माँ-पिताजी और ताई जी-ताऊ जी थे, उनके पीछे चन्दर भैया-भाभी और उनकी बगल में मैं और ऋतू बैठे थे| पूजा सम्पन्न हुई और पंडित अपनी दक्षिणा ले कर चला गया, इधर मैंने और ऋतू ने पूरी छत मोमबत्तियों से सजा दी और सारा घर जगमग होगया| नीचे आ कर सब ने खाना खाया और फिर सब छत पर आ गए और आतिशबाजी देखने लगे| मैं नीचे से सब के लिए फूलझड़ी और अनार ले आया, फूलझड़ियां मैंने ऋतू, माँ, ताई जी और भाभी को जला कर दी तथा अनार जलाने का काम चन्दर और मैं कर रहे थे| "मानु भैया अगर बम ले आते तो और मजा आता|" चन्दर ने कहा तो ताऊ जी ने मना कर दिया; "बिलकुल नहीं! वो बहुत आवाज करते हैं, यही काफी है!" चन्दर भैया अपना मुँह झुका कर अनार जलाने लगे| रात के नौ बजे थे और सब थके हुए थे इसलिए जल्दी ही सो गए| रात ब्रह बजे मैं उठा क्योंकि मुझे िठाइ खानी थी, तो मैं दबे पाँव नीचे आया और मिठाई का डिब्बा खोल कर मिठाई खाने ही जा रहा था की ऋतू आ गई| दोनों हाथ कमर पर रखे वो प्यार भरे गुस्से से मुझे देखती रही| मुझे उसे ऐसा देख कर कॉलेज की टीचर की याद आ गई और हँस पड़ा| "टीचर जी! सॉरी!" मैंने कान पकड़ते हुए कहा तो ऋतू मुस्कुराती हुई मेरे पास आई और मिठाई के डिब्बे से मिठाई निकाल कर खाने लगी| अब तो हम दोनों मुस्कुरा रहे थे और मिठाई खा रहे थे, दोनों ने मिल कर आधा डिब्बा साफ़ कर दिया और फिर पानी पी कर दोनों ऊपर आ गए| मैंने झट से ऋतू का हाथ पकड़ा और उसे अपने कमरे में खींच लिया| दरवाजे के साथ वाली दिवार से उसे सटा कर खड़ा किया और उसके गुलाबी होठों को मुँह में भर कर चूसने लगा| ऋतू ने तुरंत अपने हाथ मेरी पीठ पर फिराने शुरू कर दिए| मेरा मन तो उसके निचले होंठ को पीने पर टिका था इधर ऋतू का जिस्म जलने लगा था, उसका हाथ अब मेरे लंड पर आ गया और वो उसे दबाने लगी| अब उस समय सेक्स करना बहुत बड़ा रिस्क था इसलिए मैं रुक गया; "जान! ये नहीं प्लीज! शहर जा कर!" ऋतू का दिल टूट गया और उसने अपना हाथ मेरे लैंड के ऊपर से हटा लिया| मैं मजबूर था इसलिए मैंने उसे बस "प्लीज!!!" कहा तो शायद वो समझ गई और धीमे से मुस्कुराई! अब आगे अगर मैं उसे kiss करता तो फिर वही आग सुलग जाती इसलिए मैं रूक गया और उसे good night कहा| मैं समझ गया था की ऋतू को बुरा लगा है पर उसने अगले ही पल पलट कर पंजों पर खड़े होते हुए मेरे होठों को चूम लिया और खिल-खिलाती हुई अपने कमरे में भाग गई, मैं भी खड़ा-खड़ा कुछ पल मुस्कुराता रहा और फिर सो गया|
 

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