Adultery किस्सा कामवती का

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अपडेट -66

हवस का परचम तो ठाकुर की हवेली मे भी फैला हुआ था
रतिवती अपनी टांगे फैलाये बिल्लू,कालू,रामु को आमंत्रण दे रही थी की आओ और जीतना रस पी सकते हो पियो.
तीनो के लंड रतिवती की चुत से निकले पेशाब मिली दारू पी के तन टना गए थे,लंड ऐसा नजारा देख के फटने को आतुर थे.
रतिवती अपनी साड़ी को कमर तक उठा चुकी थी रस टपकाती चुत,चिकनी बाल रहित मुँह बाये तीनो का इंतज़ार कर रही रही.
तीनो का सब्र करना मुश्किल था बिल्लू सीधा घुटनो के बल बैठ मुँह रतिवती की जांघो के बीच घुसा देता है रतिवती इस हमले से दोहरी हो जाती है पीछे बिस्तर पे कोहनी टिका के सर पीछे कर लेती है.
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आअह्ह्हह्ह्ह्ह.....उम्म्म्म....बिल्लू
बिल्लू जीभ निकाले चुत से टपकते रस को पी रहा था कुरेद रहा था,
इस मादक छत्ते से शहद निकलना बिल्लु के अकेले के बस की बात नहीं थी, रामु और कालू भी सब्र छोड़ टूट पड़ते है.
कालू रामु रतिवती को एक एक जाँघ को चाटने लगते है.
रतिवती को ऐसा सुख ऐसा आनन्द कभी नहीं मिला था हालांकि उसने खूब चुत चाटवाई थी परन्तु आज तीन तीन तगड़े मर्द उसकी चुत चाटने की कोशिश मे थे.
बिल्लू लगातार अपनी खुर्दरी जबान से चुत के महीन रास्ते के अंदर प्रहार कर रहा था.
वही कालू रामु उसकी जाँघ को चाट चाट के गिला कर चुके थे.
रतिवती उत्तेजना के मारे कभी सर उठा के तीनो को देखती तो कभी सर पीछे पटक लेती.
बिल्लू तो सुख भोग रहा था,परन्तु कालू रामु अछूते थे उनसे रहा नहीं जा रहा था ऊपर से बिल्ला हटने नाम ही नहीं ले रहा था.
तभी रामु गुस्से मे आ के रतिवती को पकड़ के आगे की और धक्का दे देता है.
रतिवती पलंग से आगे को गिरती हुई सीधा फर्श पे पेट के बल गिर पड़ती है उसके साथ ही बिल्लू भी पीछे को पलट जाता है,
परन्तु वो इस कदर दीवाना था ऐसा मगन था चुत चाटने मे की अभी तक मुँह नहीं हटाया था.
उसका सर रतिवती की चुत के नीचे था साड़ी पूरी तरह कमर तक चढ़ गई थी.
रतिवती के पेट के बल होने से उसकी उन्नत फूली हुई बड़ी गांड खुल्ले मे आ गई.
रामु कालू को खजाना मिल गया था फिर होना क्या था दोनों एक साथ गांड के एक एक हिस्से पे टूट पडे.
रतिवती इस आक्रमण से बिकाबू हो के किसी कुतिया की तरह ऊपर मुँह उठाये चीख पडी...
आअह्ह्हह्म....उम्म्म्म.....हरामियों धीरे.
कालू :- साली रांड हमें हरामी बोलती है चाटकककक.... चाटककक...दो थप्पड़ उसकी गांड पे पड़ते है.
थप्पड़ पड़ते ही गोरी गांड लाल पड़ गई.गांड के दोनों हिस्से आपस मे कदम ताल करने लगे.
कभी गांड एक दूसरे से दूर होती तो कभी आपस मे चिपक जाती.
इस बढ़ चालू के खेल मे गांड का कामुक छिद्र कभी दिखता कभी छुपता.
ये लुका छुपी दोनों को आनंदित कर दे रही रही थी.
कालू से रहा नहीं गया वो अपनी नाक गांड के छेद मे घुसा देता है और शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....जोर दार सांस खींचता हुआ मुँह उठता है.
आअह्ह्ह....रामु क्या महक है....नीचे बिल्लू को कोई मतलब नहीं था की ऊपर क्या ही रहा है वो लगातार चुत रुपी कुए खोदे जा रहा था.
इस बार रामु भी रतिवती की गांड के दोनों पहाड़ो के बिछे सर घुसा देता है.....
आआहहहह.....कालू सच कहाँ तूने कमाल की औरत है ये.
इसी के साथ रामु अपना मुँह खोले एक बार मे ही गुदा छिद्र को मुँह मे भर छुबलाने लगता है.
रतिवती तो पागल हुए जा रही उसके आनंद की कोई सीमा ही नहीं थी.
आअह्ह्हममममममम......उम्म्म्म... चाटो खाओ घुस जाओ अंदर, फाड़ो इसे और अंदर से चाटो.
रतिवती अतिउन्माद मे ना जाने क्या क्या बड़बड़ाए जा रही थी.
रामु जब गांड से मुँह हटाता है दो देखता है की गांड का छेद गोलाई मे बाहर को आ गया है.
अब कालू भी उस छेद को अपने होंठो मे कैद कर लेता है.और जबरजस्त तरीके से अंदर ही अंदर जबान चलाने लगता है.
रतिवती की चुत ये हमला सहन ना कर सकी उसका बदन जलने लगा, शरीर कंपने लगा.
आअह्ह्ह......बिल्लू....कालू....रामु...पियो
रतिवती फट से उठ बैठी,टांगे पूरी खुली हुई थी, आअह्ह्ह...
मै गई..इतना बोलते है उसकी चुत ने फववारा छोड़ दिया फच फचम्..की आवाज़ के आठ तेज़ धार मे चुत का रस निकलने लगा पहली कुछ धार सीधा सामने बैठे तीनो के मुँह पे पड़ती..बाकि नीचे जमीन पे गिरने लगी.
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इस से भी रतिवती की गर्मी शांत ना हुई तो उसने अपना चूडियो से भरा हाथ अपनी चुत मे हथेली तक दे मारा...और जोर जोर से अन्दर बाहर करने लगी..तीनो मर्द स्त्री का ये ये रूप देख के हैरान थे.
की तभी....आअह्ह्ह.....एक तेज़ धार फिर से उन तीनो के चेहरे से टकरा जाती है,लगता था जैसे रतिवती हाथ से पकड़ पकड़ के कामरस को बाहर निकाल रही है.
चाटो इसे सालो....चाटो....
ये आदेश सुनना था की तीनो जमीन पे फैले कामरस को पिने लगे,चाटने लगे अपनी लम्बी जबान निकाल निकाल के जैसे कोई कुत्ता चाट रहा हो...
तीनो कुत्ते चूतरस को चाटते चाटते झरने के मुख्य स्त्रोत तक जा पहुचे.
वापस से तीनो एक साथ चुत पे टूट पडे आअह्ह्ह........रतिवती धम..से फर्श पे बेदम गिर पडी उसका रस ख़त्म हो गया था.
वही बिल्लू कालू रामु को इस से फर्क नहीं पड़ता था,तीनो अमृत को चाटने मे लगे थे कुछ ही वक़्त पे सब तरफ फैले अमूल्य चुत शहद बिलकुल साफ हो गया था.
रतिवती की साड़ी कमर मे फांसी थी,उसकी सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी
उसके बड़े भरी स्तन उठ गिर रहे थे...ये नजारा देख तीनो का जोश और हवस आसमान मे पहुंच गई.
अब उन्हें भी अपना कामरस निकलना था.
तीनो के हाथ नीचे लेती रतिवती के स्तनों की एयर बढ़ जाते है....

हाथ तो ठाकुर ज़ालिम सिंह भी बड़ा चूका था हवस का हाथ.
रुखसाना का हाथ थामे उसे अपने करीब बिस्तर पे बैठा देता है.
रुखसाना :- ये आप क्या कर रहे है ठाकुर साहेब?
ठाकुर :- तुम्हारी खूबसूरती की कद्र कर रहा हूँ.
ऐसा बोल ठाकुर रुखसाना के चेहरे को ऊपर कर जी भर के देखता है.
लेकिन रुखसाना इतनी आसानी से कैसे फस जाती.वो ठाकुर का हाथ झटक देती है.
रुखसाना :- ये गलत है ठाकुर साहेब हमें जाने दे. वो उठ खड़ी होती है और अपनी चुन्नी लेने के बहाने झुक जाती है
जैसे ही झुकती है उसका छोटा सा लहंगा पीछे से ऊँचा हो जाता है जिस से उसकी चुत और गांड की दरार ठाकुर को दिख जाती है,यही तो चाहती थी रुखसाना..
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नशे मे मदहोश ठाकुर ऐसा कामुक ललचाया नजारा देख बेकाबू हो गया उसके ईमान और लंड दोनों ने बगावत कर दी अब भले आसमान टूटे या जमीन फटे इस हुस्न को तो पाना ही है.
रुखसाना के खूबसूरती के जान मे ठाकुर बुरी तरह फंस चूका था.
आव देखा ना ताव ठाकुर उठा खड़ा होता है और झुकी हुई रुखसाना को पीछे से पकड़ के अपनी छोटी से लुल्ली को पाजामे के ऊपर से ही उसकी बड़ी गांड ने फ़साने लगता है और आगे पीछे होने लगता..
रुखसाना चौंक जाती है....और आगे को भागती है "ये मुर्ख तो अतिउत्तेजित हो गया ऐसे तो ये पजामे मे ही झड जायेगा फिर कहाँ से मिलेगा वीर्य? कुछ सोचना होगा.
ठाकुर की आंखे गुस्से और हवस मे लाल थी उसे बस कैसे भी अपनी आग बुझानी थी ठाकुर था ही नीरा बेवकूफ सम्भोग करना भी नहीं जनता था.
रुखसाना :- क्या कर रहे है ठाकुर साहेब
ठाकुर :- देखो चमेली तुम हमें पसंद आ गई ही जो कर रहा हूँ करने दो वरना वापस नहीं जा पाओगी इस हवेली से.
रुखसाना:-..मै...मैम.....ठाकुर साहेब...वो...वो.....ठीक है जैसे आप चाहे लेकिन मेरी एक शर्त है?
रुखसाना खूब डरने का नाटक कर रही थी,लेकिन वो जानती थी ये उल्लू का चरखा उसमे काबू मे है सम्भोग सुख के लिए मारा जा रहा है.
वैसे भी इस भाग दौड़ मे रुखसाना का दिल भी मचल उठा था उसे भी कामसुःख चाहिए था
ठाकुर :- बोलो चमेली क्या शर्त है तुम्हारी?
रुखसाना :- शर्त ये है की जैसा मै चाहु आप वैसे ही करेंगे मेरे साथ अपनी मर्ज़ी नहीं चलाएंगे.
ठाकुर :- इस मे क्या दिक्कत है जैसा तुम कहो, ठाकुर को तो सिर्फ अपनी लुल्ली को चमेली की चुत मे डालने से मतलब था अब जैसे चाहे वैसे जाये.
"हमें मंजूर है "
 
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रुखसाना अपना खेल खेल चुकी थी,ठाकुर उसकी हर बात मानने के लिए मजबूर था.
ठाकुर :- जैसा तुम कहो चमेली हमें तुम्हारी सभी शर्त मंजूर है बस अपने इस हुस्न की बारिश हम ले कर दो.
रुखसाना :- जैसा आप कहे ठाकुर साहेब बोल के रुखसाना ने अपना हाथ पीछे ले जा के अपनी चोली की डोरी एक बार मे ही खिंच दी वो भी अब और इंतज़ार नहीं करना चाहती थी.
चोली की डोरी खुलते ही चोली ऐसे गिर पडी जैसे पता नहीं उसके ऊपर क्या बोझ था,पल भर मे ही चमेली की चोली नीचे जमीन चाट रही थी.
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और कमरे दो खरबूजे के आकर के होरे दूधिया स्तन चमक पडे थे स्तन की चमक सीधा ठाकुर के बदन पे प्रहार कर रही थी ऐसा हुस्न ऐसी मदकता देख ठाकुर खुद का ना संभाल सका धड़ाम से बिस्तर पे गिर पडा.
आजतक उठने कभी अपनी बीवी चाहे रूपवती हो या कामवती किसी के भी स्तन देखने की जहामात नहीं उठाई थी और ना ही उन दोनों ने कभी अनपे कातिल मादक बदन को खुल के दिखाया था.
परन्तु यहाँ तो रुखसाना अपने जानलेवा बदन को दिखा ही नहीं रही थी अपितु उसका भरपूर इस्तेमाल भी कर रही थी.
ठाकुर की लुल्ली के तो हाल ही मत पूछी जिंदगी मे पहली बार वो इस तरह का तनाव महसूस कर रहा था उसकी लुल्ली मे भयंकर पीड़ा हो रही थी उसे बस चुत चाहिए थी किसी भी कीमत पे.
रुखसाना बड़ी अदा से चलती हुई ठाकुर के नजदीक आने लगती है उसकी बड़ी भरी चूचियाँ हिल हिल के भूकंप पैदा कर रही थी कमर बल कहा रही थी पल पल ठाकुर घायल होता चला जा रहा था.
उसका नाम ज़ालिम था लेकिन इस वक़्त रुखसाना ज़ालिम बानी हुई थी..
रुखसाना पास आ के सीधा धोती के ऊपर से ही ठाकुर के छोटे से लंड को दबोच लेती है टट्टो सहित.
ठाकुर दर्द और उत्तेजना से व्याकुल हो जाता है.
"क्या कर रही हो चमेली,जल्दी से अपनी चुत दो ना "
रुखसाना :- शर्त भूल गए ठाकुर साहेब आओ को कुछ करना या बोलना नहीं है जो भी होगा मै करूंगी,लगातार मसले जा रही थी ठाकुर के लंड को..
ठाकुर फटाफट अपनी धोती खोलने लगता है और तुरंत उसे अलग फेंक देता है उसका छोटा सा लंड फंफना रहा था,इधर उधर झटके मार रहा था.
रुखसाना उस लंड को देख के अफ़सोस करने लगी "हाय रे नाम ठाकुर ज़ालिम सिंह और लंड से नामर्द "
वो अब अपने कोमल हाथ से ठाकुर के लंड को पकड़ लेती है जो कि उसकी पूरी मुट्ठी मे समय गया था.
ठाकुर तो बस पागल हो गया था इतने मे ही वो अपना सर इधर उधर पटकने लगा.
रुखसाना को समझते देर ना लगी की ये हिजड़ा ज्यादा नहीं ठीक सकता इसका कुछ करना होगा वरना कही वीर्य ना फेंक दे अभी ही..
रुखसाना अपने सुलगते होंठ को ठाकुर के लंड पे टिका देती है....
उसके गरम होंठ का स्पर्श पाते ही ठाकुर तिलमिला जाता है.
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"ये क्या कर रही हो चमेली हमें तो आज तक ऐसा नहीं किया ना देखा "
रुखसाना मन मे साले तेरा तो करना बनता भी नहीं है.
लेकिन रुखसाना सर ऊपर उठाये अपने हाथ को ठाकुर की छाती ले फेरने लगती है "आप सिर्फ मजे लीजिये ठाकुर साहेब आपकी दासी सब संभाल लेगी.
रुखसाना अपनी जबान बाहर निकाल पुरे लंड को चाट लेती है, और मुँह खोल पुरे लंड को एक ही बार मे मुँह मे भर लेती है.
"आआहहहह.....चमेली ये क्या है " ठाकुर तो इतने मे ही चित्कार उठा उसे ऐसा आनन्द ऐसी तड़प कभी ना हुई थी नतीजा तुरंत मिला
ठाकुर के लंड ने मात्र एक चुसाई मे ही वीर्य की बौछार कर दी सारा वीर्य रुखसाना के मुँह मे धकेलने लगा
आअहब्ब.....चमेली हम गए...आअह्ह्ह...उम्ममममम
ठाकुर रुखसाना की उम्मीद से भी पहले झड़ गया था,
रुखसाना का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा उसे ऐसी उम्मीद नहीं थी क्यकि अंदर वो भी गर्म हो रही थी उसकी चुत भी सुलग रही थी परन्तु ये क्या ठाकुर तो वीर्य निकलते ही खर्राटे की आवाज़ गूंजने लगी....
"साला....हिजड़ा "
रुखसाना के मुँह से भद्दी गाली निकाल पडी उसने अपने मुँह से वीर्य को अपने हाथ पे थूका
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और उसे एक शीशी मे डाल लिया और अपनी चोली और दुपट्टा हाथ मे लिए ही बाहर को निकाल गई.
उसका बदन कामअग्नि मे जल रहा था चेहरा गुस्से से लाल था क्या करे कुछ समझ नहीं आ रहा था.
रुखसाना को ठाकुर का वीर्य तो मिल गया था लेकिन अपने बदन की मदकता हवस का क्या मरे जी इन सन चक्कर मे उफान पे थी
"ठहरो रुखसाना,मै तुम्हे पहचान गया हूँ "
पीछे से गरज़ दार आवाज़ ने रुखसाना के कदम रोक लिए रुखसाना की पीठ पीछे स्वागत पूरी नंगी थी,बड़ी गांड छोटे से लहंगे मे उछाल रहे थे.
आवाज़ सुनते ही रुखसाना का हलक सुख गया भला यहाँ कौन है जो उसका राज जनता था.
रुखसाना पीछे पलट के देखती है तो उसके होश ही उड़ जाते है.....

होश तो दरोगा वीरप्रताप के भी उड़े हुए थे उसकी आँखों के सामने ही रंगा बिल्ला ने उसकी खूबसूरत बीवी के हलक मे अपना गन्दा पेशाब उतार दिया था,पूरी साड़ी एयर ब्लाउज गीले हो चुके थे,पेशाब की अजीब गंध से कमरा महक रहा था.
सुलेमान और दरोगा इस गंध से नाक मुँह सिकोड रहे थे.
परन्तु कालावती को एक अजीब सी खुमारी चढ़ रही थी,उसे ये अजीब कैसेली गंध मादक लग रही थी इतनी बुरी तरह से उसे कभी किसी ने बेइज़्ज़त नहीं किया था.
रंगा :- और पीना है रानी कालावती
रंगा बिल्ला को इस से अच्छा मौका नहीं मिल सकता था दरोगा को बेइज़्ज़त करने का.
कालावती अभी भी मुँह बाये बैठी थी सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी, ब्लाउज मे कैद स्तन का आकर बढ़ता मालूम पड़ रहा था उसकी छातिया कभी भी ब्लाउज फाड़ के बाहर आ सकती थी. कालावती का बदन धीरे धीरे गरम होने लगा उसकी आँखों मे हवस साफ दिख रही थी.
अभी सब लोग अचंभित ही थे की बिल्ला अपनी कमर को आगे की तरफ धक्का दे देता है,बिल्ला का लंड सीधा कालावती के खुले मुँह मे प्रवेश कर जाता है.
ग्गुऊऊऊ.....गुगगगगऊऊऊ....की आवाज़ के साथ कालावती का पूरा मुँह भर गया हालांकि लंड अभी पूरी तरह खड़ा भी नहीं था.
"ले साली रांड...और पी.मेरा पानी.....चूस इसे "
परन्तु कालावती सिर्फ आंख ऊपर किये सिर्फ बिल्ला को देखे जा रही थी.
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उसे अभी भी थोड़ी शर्म थी.
तभी रंगा अपने दोनों हाथो से कालावती के ब्लाउज के ऊपर से ही उसके निप्पल पकड़ के जोरदार तरीके से उमेड देता है.
कालावती का मुँह और ज्यादा खुल जाता है बिल्ला अपने लंड को और अंदर धकेल देता है उसके टट्टे कालावती के गुलाबी होंठो को छू रहे थे.
अब सांस लेना मुश्किल था कालावती की नाक मे झांट के बाल जा फसे ना चाहते हुए भी कालावती ने अपना सर पीछे किया लंड थोड़ा सा बाहर ही आया था की बिल्ला ने वापस धक्का मार दिया
कालावती ने फिर सर पीछे किया बिल्ला ने फिर से धक्का मार दिया.
नीचे रंगा लगातार गीले ब्लाउज ऊपर से ही निप्पल से खेल रहा था परिणाम निपल कड़क और नुकले हो गए जिनकी नुमाइश ब्लाउज के ऊपर से ही हो रही थी.
रंगा :- देख दरोगा तेरी रंडी बीवी को कैसे चूस रही है,तेरा चूसा है क्या कभी?
दरोगा को याद ही नहीं आ रहा था की कभी कालावती ने उसका लंड चूसा हो,"नहीं कभी नहीं " ना चाहते हुए भी दरोगा के मुँह से निकल गया.
हाहाहाःहाहा.....बिल्ला हस पडा साला नामर्द
मर्द के लंड हो तब ना बीवी चूसेगी...दरोगा शर्मिंदगी से मुँह झुका लेता है.
उसे आज खुद पे कालावती पे गुस्सा आ रहा था उसे अपनी ईमानदारी और फर्ज़ का क्या सिला मिला?
इधर कालावती के मुँह से थूक रिसने लगा,बिल्ला के टट्टे थूक से लिस्लिसा गए, कालावती की हवस अपना काम कर रही थी इना मोटा और बड़ा लंड उसे पहली बार मिला था मन लगा के चूसे जा रही थी जैसे तो कोई रस निकल रहा ही उसमे से.
खुल के बाहर आ चुकी थी कालावती शर्म का क्या फायदा परन्तु दिखा ऐसे रही थी जैसे मज़बूरी मे कर रही हो.
दृश्य ऐसा कामुक था की कमरे मे सबके लंड खड़े हो गए थे,बिल्ला का लुंड लगातार फच फच फच....गुगुगु.....गुगुम....की आवाज़ के साथ अंदर जाता और ढेर सारा थूक ले के बाहर आता थूक होंठो से टपकता सीधा स्तन रुपी घाटी मे लुप्त ही जा रहा था.
रंगा भी अब नजदीक आ गया था,और अपने लंड को पकडे कालावती के गाल पे मार देता है.इस मार से कालावती सिहर उठती है उसकी चुत रस छोड़ ही देती है.
ना जाने किस आग मे जल रही थी कालावती की खुद ही अपने हाथ आगे कर रंगा का लंड पकड़ लेती है और बिल्ला के लंड को बाहर निकाल रंगा के लंड को एक ही बार मे मुँह मे घुसा लेती है,उसके गुलाबी होंठ रंगा के काले मैले गंदे लंड को सहला रहे थे.
दरोगा और सुलेमान इस रंडीपना को देख हैरान रह गए सुलेमान तो अपने कुंड को पाजामे के ऊपर से ही रगड़ने लगा ,वही दरोगा का भी बुरा हाल था उसे कालावती के रंडीपने से नफरत हो रही थी उसके इस कृत्य पे घिन्न आ रही थी परन्तु उसका लंड ये सब नहीं जनता था उसका लंड भी खड़ा हो कालावती के खेल को सलामी देने लगा.
दरोगा हैरान था की उसे क्या हो रहा है...
की तभी कालावती ने वो कर दिखाया जो एक रंडी भी ना करती,कालावती ने दोनों के लंड को हाथ से पकड़ एक साथ मुँह मे भर लिया,लंड मोटा था मुँह छोटा परन्तु जीतना हो सकता था कालावती उतना बड़ा मुँह खोले दोनों के लंड को एक साथ चूस रही थी..
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अब दरोगा की नजर मे कालावती सिर्फ रंडी थी सिर्फ एक रंडी....

बने रहिये कथा जारी है....
 
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रुको रुखसाना....मर्दाना आवाज़ ने रुखसाना के पैर थाम लिए थे,रुखसाना का कलेजा कांप गया था इतनी रात को ठाकुर के कमरे से अर्धनग्न अवस्था मे बाहर जो निकली थी,.
रुखसाना कलेजा थामे पसीने से सनी हुई पीछे पालटती है तो हैरानी से आंखे फटी रह जाती है.
"अ...अस....डॉ.असलम आप?"
असलम :- हाँ मै..रुखसाना मै पहचान गया हूँ तुम्हे,मैंने अंदर देख लिया है जो तुम कर आई हो बेचारे ठाकुर साहेब को अपने हुस्न के जाल मे फसा लिया जैसे मुझे फसाया था उस दिन रात मे और दवाई ले गई थी मुझसे.
उस समय मै समझ ही नहीं पाया था की तुम्हारा चेहरा कही देखा है फिर आज जब तुम्हे वापस ठाकुर साहेब के कमरे मे देखा तो याद आ गया तुम मौलवी साहेब की ही लड़की हो ना? कामवती की शादी मे भी आई थी.
रुखसाना को काटो तो खून नहीं,डर और पकडे जाने से उसका कामुक चेहरा सफ़ेद पड़ गया था अभी भी वो अपने स्तन दिखाए खड़ी थी.
असलम पास आता है और जोर से दोनों स्तन पकड़ के जोर से भींच देता है.
आआहहहह.....डॉ.असलम आप गलत समझ रहे है.
असलम :- चुप साली मुझे चुतिया समझती है तेरे ये बड़े बड़े तरबूजो को कैसे भूल सकता हूँ.
बता क्या कर रही है? क्या खेल है तेरा?
और ठाकुर साहेब का वीर्य मुँह से निकाल के शीशी मे क्यों भरा.
रुखसाना चुप खड़ी थी
आअह्ह्ह.....असलम रुखसाना के बाल खींचता हुआ अपने कंधे पे उठा कमरे मे ले जाता है
रुखसाना अर्ध नंगन अवस्था मे दर्द से करहाती बेबस चली जाती है.
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रुखसाना का खेल ख़त्म हो चूका था.


वही ट्रैन मे चारो लफंगे अपना खेल खेलने पे उतारू थे.
काम्या बेचती बेबस लाचार सिमटी हुई से हरिया और कालिया के बीच बैठी थी उसके सामने पीलिया और धनिया बैठे थे.
हरिया चाकू निकाल चूका था जो की काम्या की जाँघ पे रगड़ रहा था

हरिया :- नाम क्या है रे लड़की तेरा?
"जी...जी....काम्या "
मधुर आक़ाज़ चारो के कानो मे घुल गई थी.
"ये जो ठिगना सा तेरे साथ है वो तेरा पति है?" कालिया ने पूछा.
काम्या :- जी...जी...मेरे पति है

चारो हस पड़ते है हाहाहाब्बा....वो चूहें जैसा और तू कटीली जवान खूबसूरत औरत तेरी प्यास बुझा देता है.
मम्ममम्म.... काम्या मुँह मे ही जबान कुलबुलाती रही परन्तु कुछ बोली नहीं.
धनिया :- बोल साली तेरी प्यास बुझा देता है बोल के काम्या की जाँघ को दबा देता है.
काम्या :-जी...जी....नहीं पता
कालिया :- क्या नहीं पता? देखने से तो लगता है की तुझे 5 आदमी भी कम पड़ जाये ये चूहा तो तेरी चुत मे भी नहीं घुस पाता होगा
चारो लगातार गन्दी बाते कर काम्या को उकसा रहे थे और उसका असर हो भी रहा था
काम्या का बदन धीरे धीरे गरम हो रहा था उसे ये गन्दी बाते अच्छी लग रही थी,उत्तेजना और घबराहट मे उसकी सांसे तेज़ चल रही थी उसके स्तन टॉप को फाड़ देने पे उतारू थे...
"बोल ना साली रंडी तेरा पति तेरी लेता तो है ना? प्यास बुझाता है क्या?"
काम्या :- ऐसा मत करो मेरे साथ मै शादी सुदा हूँ.
हरिया :- तभी तो हम चारो का ले पायेगी वरना तो कुंवारी लड़की तो मर ही जाती है हमारे नीचे आ के.
हाहाहाबा......भयानक हसीं गूंज गई.
काम्या अंदर ही अंदर ख़ुश हो रही थी "खेल का मजा आएगा आज "
लेकिन बाहर से घबरा रही थी.
मुझे छोड़ दो
पीलिया :- चुप साली वरना पूरा पेट मे डाल दूंगा पीलिया ने चाकू दिखाते हुए कहा.
और जो पूछा जाये उसका सही जवाब दे.
काम्या की घिघी बांध गई थी उसने हाँ मे सर हिला दिया.
एक खूबसूरत गद्दाराई कोमल नाजुक बदन की मालकिन चार हवसी कुत्तो के बीच फस गई थी.
"तो बता तेरा मर्द तेरी चुत की प्यास बुझा पता है?"
काम्या:-न...नन...नहीं काम्या को भी खेल का मजा आ रहा था और यही अंदाज़ भी था काम्या के शिकार करने का
जो करती थी मजे से,ऊपर से अपनी हवस मिटाने को मिले तो बुरा ही क्या है
वैसे भी उसकी चुत हवस मे हमेशा तड़पती ही रहती थी.
हरिया :- तो क्या करती है फिर चुत की खुजली मिटाने के लिए.
काम्या :- ककककक....कुछ भी नहीं
हरिया :- एक थप्पड दूंगा साली हमें बेवकूफ समझती है,तेरा ये गाडराया बदन तो बोल रहा है की तू जम के चुत मरवाती है.
काम्या :- वो...वो.....मै...कभी कभी घर पे मूली,खीरा या ऊँगली कर लेती हूँ.
चारो काम्या की बात सुन हैरान रह जाते है.
पीलिया :- साली आजकल की मॉर्डन लड़किया कुछ भी चुत मे डाल लेती है
हरिया :- मर्द जो प्यास बुझा सकता है वो खीरा नहीं.
कालिया :- आज तेरी हवस उतार देंगे हम आज के बाद तू कभी ऊँगली नहीं डालेगी जब भी इच्छा होगी हमें ही याद करेगी.
काम्या अब खुल के मैदान मे आ गई थी
काम्या :- जी...जी....मै ख़ुश हूँ अपने पति से.
धनिया :- वो तो अभी मालूम पड़ जायेगा साली
चल कपडे खोल
काम्या चौंक जाती है गुस्से से चारो को देखती है "मै..मै ऐसा नहीं कर सकती "
पीलिया चाकू की नौकरी काम्या की टीशर्ट ले टिका स
देता है.
काम्या अभी कुछ समझ पति की चाकू टीशर्ट को आगे से काटता चला गया.
धम से...दो गोलाकार भारी स्तन चारो के सामने उजागर हो गए
काम्या तुरंत अपने दोनों हाथो से स्तन ढकने ही वाली थी की रास्ते मे ही कालिया और हरिया उसके हाथ पकड़ लेती है और टीशर्ट बदन से अलग हो जाती है.
चारो मुँह बाये उसके गोलाकार सुडोल गोरे स्तन को ही घूरे जा रहे थे
ऐसा खूबसूरत नजारा उन्होंने कभी देखा ही नहीं था उन चारो के लंड स्तन देखते है पाजामे मे खड़े हो गए.
एक साथ सभी ने अपने अपने लंड के पकड़ के संभाला वरना तो लंड वीर्य उगल के दम ही तोड़ देता.
काम्या चारो की हालत देख ख़ुश थी उसका जादू और तरीका बरकरार था, जवान जिस्म खुद अपने आप मे हथियार होता है.
काम्या भी उत्तेजना महसूस कर रही थी उसके स्तन फूल के और मोटे हो गए थे निप्पल बाहर को निकाल आये थे.
पीलिया :- साली रांड तू तो बोल रही थी की तू अपने पति से ख़ुश है लेकिन तेरे दूध तो कुछ और ही बोल रहे है ऐसा बोल पीलिया काम्या के स्तन को भींच देता है
आअह्ह्हहै....उम्म्म्म...एक कामुक सिसकारी निकल पड़ती है काम्या के मुँह से पीलिया का खुर्दरा हाथ के असर से सीधा कर्रेंट चुत तक जाता है चुत भीग जाती है.
लेकिन काम्या पीलिया की बात का कोई जवाब नहीं देती शर्मिंदा हो सर नीचे झुका लेती है
हरिया :- हमसे क्या शर्माना रानी हम तो तुम्हारे बदन के कदरदान है.
चारो ही अव्वल दर्जे के कमीने थे कोई भी लड़की पकड़ते तो उसे खूब तड़पाते खूब मसलते थे.
कालिया :- साला आज तक जितनी भी लड़किया पकड़ी है हमने उसमे सबसे कातिल तू ही है.
आज पहली बार किसी मॉर्डन शहर की रांड चोदेगे.
काम्या के चेहरे पे एक मुस्कान आ जाती है उसे भी अपनी तारीफ पसंद आ रही थी.
धनिया :- चल रानी हमें वो कर के दिखा की कैसे तू अपनी प्यास बुझाती है.
काम्या चौंक जाती है..."नहीं...नहीं....ऐसा मत करवाओ "
धनिया :- क्यों साली हमारे सामने शर्म आ रही है चल उतार अपनी पैंट वरना चाकू अंदर डाल दूंगा.
काम्या डरती हुई खड़ी हो जाती है वो चार मर्दो के सामने सिर्फ जीन्स पहने नंगी खड़ी थी शर्म और हवस का मिला जुला असर उसके बदन को हिला रहा था.
ट्रैन अपनी रफ़्तार पे थी और हवस उस से भी तेज़ दौड़ रही थी
काम्या को अब समर्पण कर देना ही सही लगा.
काम्या धीरे से अपनी जीन्स का बटन खोल देती है
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....टाक...टाक...एक एक बटन के खुलने की आवाज़ चारो के सीने मे तूफान पैदा कर रही थी,चारो की आंखे इस अनमोल खजाने को देख लेना चाहती थी.
काम्या दोनों सीट के बीच खड़ी थी पीछे हरिया कालिया बैठे थे और आगे पीलिया धनिया.
काम्या जीन्स के पुरे बटन खोल चुकी थी और जीन्स उतारने को नीचे झुकती चली गौ उसके झुकने से गांड पीछे को होती चली गई बिलकुल हरिया और कालिया के एक दम मुँह के सामने
दोनों यदि जीभ भी निकाल लेते तो गांड चाट लेते.
दोनों की नाम एक मादक मदहोश कर देने वाली खुसबू से सराबोर होती चली गई अंग अंग झूम उठा दोनों का.
इतनी बड़ी गोरी चिकनी गांड तो सपने मे भी नहीं देखि थी उन दोनों ने,गांड को अलग करती एक लकीर थी सिर्फ इसी लकीर मे दो अनमोल खजाने थे.
काम्या दोनों को अपनी गांड म दर्शन कर सीधी हो जाती है जीन्स आज़ाद हो चुकी थी, अब धाराशयी होने की बारी पीलिया और धनिया की थी उन के सामने जन्नत का नजारा था
बिलकुल नंगी कामुक गद्दाराये बदन लिए परी खड़ी थी.
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चुत के नाम पे सिर्फ लकीर कही कोई दाग नहीं कही कोई बाल नहीं एक दम साफ सुथरी.
काम्या बड़ी अदा के साथ कमर पे हाथ रखे खड़ी थी
चारो को देख के लगता था जैसे वो मूर्ति बन गए हो उनका लंड फट जायेगा किसी भी छण
तभी काम्या की मधुर आवाज़ गूंज उठती है "आप दोनों भी सामने ही बैठ जाइये ना ताकि मै आप लोगो को दिखा सकूँ की मै क्या करती हूँ "
काम्या की आवाज़ से हरिया कालिया का ध्यान टूटता है वो किसो मशीन के भांति खड़े हो सामने बैठ जाते है.
काम्या का लहजा अब मादक भरा था पल पल अपनी मादक अदा और कामुक बदन से वो चारो का क़त्ल कर रही थी
काम्या धममम...से अपनी बड़ी गांड सीट पे टिका देती है.
चारो लोग बस काम्या की हर एक अदा को देखते ही जा रहे थे आने वाले पर्दाशन के लिए खुद को मजबूत बना रहे थे.
काम्या सीट पे गांड जमा चुकी थी और धीरे से अपने दोनों पैरो को अलग कर देती है,
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आआहहहह...इस्स्स्स....
चारो के मुँह से एक सतब सिसकारी निकल.जाती है.
काम्या की कोमल नाजुक गुलाबी चुत चारो के सामने उजागर थी चुत क्या सिर्फ एक लकीर थी दो जांघो के बीच.
उन चारो की मौत पक्की लगती थी...चारो ने हूँ तुरंत अपने पाजामे उतार फेंके और अपने अपने काले लम्बे गंदे बदबू मारते लंड हाथ मे ले सहलाने लगे.
लंड से निकलती गर्मी और गंध काम्या को प्रेरणा दे रहे थे की वो खेले अपनी चुत से.
काम्या भी अब हवस की कैद मे थी उसे अपना बदन दिखाना अच्छा लग रहा था,काम्या का हाथ धीरे धीरे अपनी चुत को सहलाने लगा,चुत रुपी लकीर थोड़ी खुलने लगी
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अंदर का लाल लाल मांस नजर आने लगा.
चारो लफंगे सिर्फ नजरें टिकाये अपने लंड को मसाले जा रहे थे.
आअह्ह्ह......इसससस......क्या लड़कि है यारों.
काम्या होसला हाफजाई पा के ख़ुश थी.
काम्या की चुत गीली हो चुकी थी उसकी उंगलियां फिसल जा रही थी कभी चुत के दाने को छुती तो कभी निचले हिस्से को
काम्या से भी गर्मी बर्दास्त नहीं हो रही थी अपने एक हाथ को स्तन पे रख देती है और भींचने लगती है

वो भूल चुकी थी की उसके सामने चार लफंगे आवारा किस्म के लोग बैठे है
वो बराबर चारो के मोटे लंड को निहार रही थी और वो चारो उसकी पानी छोड़ती चुत को
आआहहहह....हहहह...उम्म्म्म....फच फच फच....गीली चुत अब आवाज़ करने लगी थी ये चुत से निकला मधुर संगीत चारो लफंगो के लंड को निचोड़ने के लिए काफ़ी था.
काम्या उत्तेजना मे अपना सर इधर उधर पटक रही थी कभी एक ऊँगली डालती तो कभी दो
फच फचा फच....करता पानी ट्रैन के फर्श को भीगा रहा था

काम्या मदहोश अपने स्तन रगड़े जा रही थी उसे अब बर्दास्त करना मुश्किल लग रहा वो अपनी गांड को आगे की और सरका देती है उन चारो के लंड के करीब उसकी कमर सीट पे नीचे ठीक गई थी पैरो के बल पे अपनी गांड को संभाले थी.
रह रह के अपनी गांड को उछाल दे रही थी जैसे लंड मे गांड मार रही हो.
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काम्या की कामुक गांड और रस छोड़ती चुत से उन चारो की हालत ख़राब होने लगी थी.
की तभी काम्या अपनी एक ऊँगली गांड मे डाल देती है,उसकी एक ऊँगली चुत मे थी और दूसरी ऊँगली गांड मे
ऐसा दृश्य किसी को देखने को मिलता है भला, ऐसे दृश्य देखने के लिए तो आदमी मरना भी पसंद करे...
काम्या आंखे बंद किये फच फच फच...ऊँगली मारे जा रही थी की तभी
आआआआहहहहह....रांड साली आअह्ह्ह...पिच पिचक....पिचाक.फच....करती आवाज़ के साथ चारो के लंड ने अपना वीर्य छोड़ दिया.
पिच...गरम गरम वीर्य काम्या के बदन ले पड़ते ही काम्या की आंखे खुल जाती है
चारो सामने बैठे अपना वीर्य काम्या के बदन पे गिरा रहे थे.
अभी उन चारो वीर्य पूरी तरह निकला भी नहीं था की....धाय...धाय...धाय...धाय...
चार गोली चली और चारो के बदन नीचे फर्श ले लहूलुहान पडे थे.वीर्य निकलने से पहले उनके प्राण निकल गए थे.

"साले नामर्द कही के खुद की हवस निकाल ली मेरी कौन निकलेगा?"
भुगतो सालो...काम्या का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था.
गोली की आवाज़ से ऊपर सोते बहादुर की नींद खुली तो नीचे देखते ही उसके होश फकता हो गए

नीचे काम्या बिलकुल नंगी हाथ मे पिस्तौल लिए खड़ी थी और फर्श पे लंड हाथ मे पकड़े चार लाश थी
"मैडम...मैडम.....ये क्या किया...जैसे ही बहदुर नीचे उतरा काम्या के कामुक बदन को देखता ही रह गया
उसका लंड भी हिलोरे मरने लगा लेकिन था तो डरपोक ही उसकी घिघी बँधी हुई थी लाश देख के.
काम्या :- साले कभी लड़कियों नहीं देखि क्या हरामी चल इन लाशो को उठा के ट्रैन के बाहर फेंक दे,मै बचा हुआ काम पूरा कर लू.
बोल के काम्या वापस सीट पे बैठ जाती है और उसी पिस्तौल की नाल को चुत मे डाल देती है.
आआहहहहह....उम्म्म.....अभी अभी गोली चलने की वजह से पिस्तौल की नाल गरम थी,परन्तु इस गर्मी मे भी काम्या को मजा था.
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आआहहहह.....फच फच....फचक....फच....काम्या अपनी प्यास बुझा रही थी.
बेचारा बहादुर लाशें उठा उठा के ट्रैन से बाहर फेंक रहा था.
ये तो सिर्फ इंस्पेक्टर काम्या का आगाज था.
बने रहिये....कथा जारी है...
 
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ट्रैन पूरी रफ़्तार से धुआँ उगलती हुई विष रूप की और दौड़े जा रही थी
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वही विष रूप मे दरोगा के घर पर रंगा बिल्ला हवस की ट्रैन मे सवार कालावती को रोंदने मे लगे थे.
कालावती भी अपने पुरे रंडीपना पे उतर आई थी,पसीने थूक से सनी हुई कालावती चमक रही थी.
कालावती की चुत लगातार पानी छोड़ रही थी,दरोगा और सुलेमान इस नज़ारे से भाव विभोर हुए जा रहे थे.
सुलेमान तो कालावती को भोग चूका था फिर भी वो हैरान था की कोई स्त्री इस कदर कैसे कर सकती है.
दरोगा तो पल पल मरे जा रहा था अपनी बीवी का ये रूप देख उसे मन ही मन लानत महसूस हो रही थी परन्तु उसका लंड बगावत पे उतर चूका था.वो खड़ा हो कालावती के रंडीपन को सलामी दे रहा था.
रंगा :- देख दरोगा देख अपनी रंडी बीवी को कैसे खेल रही है वो मर्दो के साथ.
काश तू भी मर्द होता.
रंगा लगातार दरोगा की मर्दानगी पे चोट कर रहा था.
बिल्ला :- दरोगा तू कसमसा क्यों रहा है?
रंगा :- लगता है अपनी रांड बीवी का खेल देख के उत्तेजित हो रहा है.
बिल्ला :- अच्छा ये बात अभी देख लेते है.
ऐसा कह रंगा बिल्ला दोनों अलग हो गए, कालावती तो दोनों के हटने से हैरान हो गई उसे कोई आवाज़ नहीं सुनाई दे रही थी वो सिर्फ लंड चूसने और चाटने मे बिजी थी.
दोनों के अलग हट जाने से उसके चेहरे पे व्याकुलता साफ देखि जा सकती थी.
उसका चेहरा ऐसा था जैसे किसी ने बच्चे के हाथ से लॉलीपॉप छीन ली हो.
लेकिन क्या बोलती कालावती?
बिल्ला :- उदास मत हो रांड अभी तो खेल शुरू हुआ है,बिल्ला ने कालावती के चेहरे का भाव पढ़ लिया था.
रंगा बिल्ला दोनों दरोगा की और बढ़ चले उसका एक हाथ खोल दिया परन्तु कमर और पैर कुर्सी से बंधे हुए ही छोड़ दिए.
रंगा :- ले भाई दरोगा तेरे पे दया करते है ताकि तू अपनी बीवी के कारनामें देख लंड हिला सके,इतने भी खूंखार,बेदर्द नहीं है हम की लंड भी ना हिलाने दे तुझे,हाहाहाहाहा..... दोनों हस पड़ते है
दरोगा तो शर्मिंदगी से मरा ही जा रहा था.
बिल्ला :- रंगा पहले देख तो ले की इसका लंड हिलाने लायक है भी की नहीं.
रंगा :- चल बे सुलेमान खोल इसकी पैंट
सुलेमान हक्का बक्का खड़ा था रंगा का आदेश हुआ नही की वो किसो मशीन के भांति दरोगा के आगे आया और उसकी पैंट की बेल्ट खोल पैंट को तुरंत कमर से नीचे सरका दिया...
कमरे मे मौजूद हर शख्श हैरान रह गया,
बिल्ला :- वाह दरोगा तेरी लुल्ली तो खड़ी है हाहाहाहा...
रंगा :- साला हिजड़ा अपनी बीवी को लंड चूसते देख लंड खड़ा कर के बैठा है
देख रांड तेरा पति तुझे देख उत्तेजित हो रहा है.
कालावती की नजर भी दरोगा के लण्ड पे पड़ती है कालावती उसे देख मुँह फैर लेती है जैसे तो दरोगा ने अपराध कर दिया हो वो कैसे अपनी पत्नी को गैर मर्द के लंड चूसते देख उत्तेजित हो सकता था.
परन्तु अब क्या कर सकते थे जो सच था वो था.
रंगा कालावती के पास जा उसे बाल से पकड़ खड़ा कर देता है,और उसके पीछे जा उसके सीने पे हाथ रख देता है.
अभी कोई कुक्सह समझ पता उस से पहले ही रंगा ने ब्लाउज के दोनों हिस्से पकड़ फड़ाक से अलग कर दिए..
सामने बैठे तीनो मर्दो के सामने दो गोरे बड़े गोरे स्तन छलक उठे...एक दम सुडोल बेदाग.
कालावती तो इस कृत्य से सिहर उठी उसका रोम रोम खड़ा हो गया ऐसा उन्माद ऐसी बेइज़्ज़ती उसे मजा दे रही थी.
पल पल होने पति के सामने नंगा होना उसे मदहोश कर रहा था
हर स्त्री की एक दबी छुपी वासना होती है जो की आज रंगा बिल्ला के दुवारा पूरी हो रही थी.
इसी वासना और उन्माद मे कालावती खोटी जा रही थी

रंगा ने पीछे से ही दोनों स्तन को भींच लिया.
ऐसा भींचा की कालावती की चीख निकल गई.
"आआहहहहहह....धीरे रंगा " ये कामुक शब्द दरोगा ने भी सुने.
ये कामुक और हवस भरी आवाज़ ऐसी थी की एक एक झटका सभी के लंड को लगा.
दरोगा ना चाहते हुए भी अपना हाथ लंड पे रख देता है.
वो इस कामुक दृश्य को सहन नहीं कर पा रहा था.
वही रंगा बिल्ला के चेहरे पे मुस्कान थी आखिर दरोगा अपनी बीवी से ही हार रहा था.
बिल्ला भी कालावती को और बढ़ चला था उसके हाथ मे कालावती साड़ी थी जो धीरे धीरव उसके बदन से अलग होती चली गई,कालावती अब सिर्फ पेटीकोट मे खड़ी थी
पीछे से रंगा लगातार उसके स्तन को भींचे जा रहा था,कालावती की कामुक सिसकारी बता रही थी की उसे किस आनंद की प्राप्ति हो रही थी.
रंगा अपने कठोर हाथो से पुरे स्तन को दबा के ऐसे भींच रहा था कि उसके निप्पल निकल निकल के बाहर आ रहे थे,दूध होता तो पूरा निचोड़ चूका होता रंगा.
ये दृश्य मर्दो के अंग निचोड़ देने के लिए कभी था,अभी ये नजारा ख़त्म हुआ ही नहीं था की बिल्ला ने नाड़ा खिंच दिया,कालावती का पेटीकोट सरसराता पैरो मे जमा हो गया.
सबके सामने एक गोरी गुलाबी रंगत ली हुई चुत हाजिर थी,हालांकि सुलेमान और दरोगा ने ये चुत खूब देखि थी परन्तु आज कुछ ज्यादा ही फूली हुई लग रही थी पानी छोड़ती गुली हुई चुत देख सबके मुँह मे पानी भर गई.
बिल्ला :- आअह्ह्ह..रांड क्या गुलाबी चुत है तेरी बालो का एक भी नामोनिशान नहीं,किसके लिए साफ किये थे झांट के बाल?
दोनों आजु बाजु खड़े थे बीच मे सम्पूर्ण नंगी कामुक बदन लिए कलावती
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कालावती को कोई शर्म नहीं थी दरोगा के मुँह पे ही बोल गई "दरोगा जी के लिए ही किये थे लेकिन ये तो गैर मर्द से चुदती बीवी को देख के ही ख़ुश हो रहे है "
कालावती के शब्दों मे एक व्यंग था एक ताना था जो वो दरोगा को मार रही थी.
रंगा बिल्ला का तो ठीक था परन्तु अब अपनी बीवी के हाथो भी बेइज़्ज़ती पा के दरोगा मरने को हो रहा था फिर भी उसका लंड इस बात की गवाही नहीं दे रहा था वो तो जस का तस खड़ा था खुद दरोगा को समझ नहीं आ रहा था की आखिर ऐसा कैसे हो रहा है.
उसने आज तक अपनी बीवी को गौर से देखा ही नहीं था की कितनी सुन्दर और कामुक काया है सिर्फ लहंगा उठाया और चोद दिया.इसी अधूरी इच्छा ने कलावती की हवस को उन्माद के शिखर पे पंहुचा दिया था
इसी हवस को शांत करने के लिए उसने पहले सुलेमान का सहारा लिया परन्तु ये उन्माद कम ना हो समय के साथ बढ़ता ही चला गया
उसका ही परिणाम था की आना दो गैर मर्दो के सामने नंगी खड़ी कालावती को कोई शर्म नहीं थी जबकि सामने उसका पति और प्रेमी दोनों थे,उसका बदन गरम अंगारो मे जल रहा था,स्तन रगड़े जाने से लाल हो चुके थे,चुत पानी छोड़ छोड़ के अपनी मदकता का सबूत दे रही थी.
कालावती खुद चल के रंगा बिल्ला के पास आती है और दरोगा की और गांड किये झुक जाती है
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कालावती के दोनों कामुक सुराख़ ठीक दरोगा के सामने खुल गए थे,कालावती का बदन अजीब तरह से महक रहा था.
दोनों सुराख़ खुल बंद हो रहे थे,दरोगा के होश उड़ गए थे उसे यकीन ही नहीं हो रहा था की ये उसी की बीवी है.
कालावती गांड बाहर निकाले झुक है दोनों के लंड पकड़ लेती है और मुठियाने लगती है जैसे उसे किसी रस की तलाश हो
दोनों हाथो मे काले भयानक लंड अठखेलिया कर रहे थे लाल.लाल चूड़ी से भरे हाथ एक मधुर संगीत पैदा कर रहे थे.
आज तक चूडियो की खनखानाहट मधुर संगीत ही देती आई थी परन्तु आज इस खन खानाहट मे कामुकता थी,तड़प थी...
इस दृश्य को कोई आम आदमी देख भर लेता तो प्राण त्याग देता,दरोगा अपने बदन की गर्मी को और नहीं दबा सका अपने आज़ाद हाथ से अपने लंड को रागड़ने लगा....."आअह्ह्ह...कालावती"
दरोगा के मुख से कामुक सिसकारी निकल ही पडी लंड को आराम मिला,सामने ऐसी कामुक गांड हिल रही ही तो किसे सब्र होता भला.
दरोगा के पीछे सुलेमान भी कबका अपना पजामा खोल चूका था वो भी इस दृश्य को देख लंड को घिसे जा रहा था.
रंगा बिल्ला को भी सब्र करना अब मुश्किल लग रहा था.
चटक....चटाक....चटाक...रंगा का जोरदार थप्पड़ कालावती की गांड पे पड़ता है.
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आअह्ह्ह......कालावती की गांड पूरी थल थला जाती है.
दरोगा को अहसास हो रहा था की जो थप्पड़ उसने रंगा को मारे थे वो वाकई उसकी बीवी की गांड पे पड़ रहे थे.
फिर से....चटाक....चटाक....चटाक.....क्या गांड है रे तेरी रांड क्या हिल रही है.
कालावती के मुँह से उफ़ भी ना निकली वो सुनी आँखों से पीछे मूड अपने पति को देख रही थी.
दरोगा की नजरें भी कालावती से मिल गई...दरोगा की नजरों मे माफ़ी थी वही कालावती की नजरों मे गुस्सा था जैसा कहना चाह रही हो "आपकी वजह से ही मुझे ये थप्पड़ पड़ रहे है"
चटाक...चटाक...इस बार बिल्ला ने भी दो चपत जमा दी.
दरोगा का हाथ लगातार अपने लंड पे चल रहा था उसे अपनी बीवी किसी रांड की तरह दिख रही थी.
हवस का उन्माद जब चढ़ता है तो आदमी क्या से क्या हो जाता है इसका उदाहरण दरोगा खुद था, कहाँ तो उसे अपनी बीवी की लाज बचानी चाहिए थी कहाँ वो खुद उत्तेजित हो लंड मसल रहा था.
अब ये उन्माद सब्र के बाहर था....बिल्ला अपने खड़े लंड को लिए कालावती के पीछे चला जाता है और खड़े खड़े ही एक ही झटके मे अपना लंड सीधा कालावती की पानी छोड़ती चुत मे डाल देता है.
आआआहहहहह.......मर गई आअह्ह्हहह...ummmm.....
बिल्ला का लंड कालावती की भीगी चुत को चिरता हुआ सीधा बच्चेदानी से जा टकराया था एक कामुक और दर्द भरी लहर उसके चेहरे पे दौड़ गई.
पीछे दरोगा के ठीक आँखों के सामने ये नजारा प्रस्तुत था,उसने साफ देखा था बिल्ला के लंड को कालावती की चुत मे घुसते.
अब देर किस बात की थी बिल्ला ने कमर पीछे खींची और एक धक्का और...

फिर पीछे फिर धक्का....धप धप धप....बिना देरी के बेरहम बिल्ला अपने लंड को दे दनादन पेलने लगा.
कालावती मुँह खोले चिल्ला रही थी....उतने मे ही रंगा ने वापस से अपना लंड कालावती के मुँह मे ठूस दिया "
!साली चिल्लाती है हमें बेवजह का शोर पसंद नहीं मुझे"
कालावती बीच मे घोड़ी बने चुद रही थी पीछे से बेरहम की तरह बिल्ला खूंटा ठोके जा रहा था आगे से रंगा मुँह चोदे जा रहा था.
फच फच फच....धप.. धप धप....कामुक आवाज़ कमरे मे गूंज रही थी सभी अपने अपने लंड को सुकून दे रहे थे.
कालावती की दर्द भरी सिसकरी अब कामुकता से भरी सिसकारी मे तब्दील हो गई थी,गजब का युद्ध चल पडा था जिसमे कोई भी महारथी हारने को तैयार नहीं था.
अब कालावती दरोगा के सामने नीचे रंगा के ऊपर बैठी चुद रही थी रंगा धचा धच उसकी चुत के परखचे उडाने मे लगा था, ऊपर से हर धक्के के साथ गांड पे एक जोरदार थप्पड़ पड़ता
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कलावती की गांड पे उंगलियों के निशान छप गए थे इस मार से उसका बदन उत्तेजना मे कांप रहा था रह रह के अपनी गांड को रंगा के लंड पे पटक देती.
ये नजारा अभी कम ही था की बिल्ला अचानक पीछे आ कालावती की बड़ी गांड को अपने मजबूत हाथो से पकड़ अलग अलग दिशा मे फैला देता है,गांड का सुर्ख लाल छेद चमक उठा.
दरोगा और सुलेमान समझ गए थे की क्या होने वाला है,परन्तु कालावती को कोई भनक नहीं थी वो तो मदहोशी मे अपनी गांड पटक रही थी.
अअअअअअअह्ह्ह्हब्ब......
कालावती को कुछ समझ नहीं आया उसके मुँह से भयानक चीख निकल पडी,उसे अपनी गांड मे कुछ गरमा गर्म मोटा सा सरिया घुसता महसूस हुआ.
अभी वो पीछे मुड़ती की एक धक्का और....आआहहहहह.....माँ.मर गई
रंगा बिल्ला के अंदर का जानवर जग चूका था कोई रहम नहीं आ रहा था उन्हें कालावती पे.
दो जानवरो के बीच पीस रही थी सांसे उखड रही थी,
सुलेमान और दरोगा का भी खून सुख गया था ये नजारा देख के आम औरत होती तो दम तोड़ देती परन्तु कलावती वासना और उत्तेजना से भरपूर स्त्री थी.
धचा धच धचा धच.....रंगा बिल्ला अपने लंड आगे पीछे करने लगे.
कलावती की दर्द भारी सिसकी गूंज उठी दोनों छेद पुरे फट गए थे बिलकुल कस गए थे लंड के ऊपर.
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आआहहहह......छोड़ दो छोड़ दो....
लेकिन उसकी सुनता कौन.
रंगा:- साली तेरे पति ने मुझे थप्पड़ मारा था ये ले....और तेज़ धक्के के साथ जड़ तक लंड घुसेड़ देता है.
बिल्ला :- तेरे पति ने मुझे गोली मारी थी ना ये ले...अपना लंड जड़ तक गांड मे ठेल देता है.
अब आलम ये था की दोनों के लंड एक साथ बाहर निकलते और एक साथ जड़ तक समा जाते.
फच फच फच....कालावती की चुत इस तपन इस घिसाई से वापस चीख उठी पानी फेंकने लगी उसे इस प्रकार का मजा आजतक नहीं आया था,अब वो खुद अपनी गांड को दोनों के लंड पे मार रही थी.
सुलेमान और दरोगा इस कामुक उत्तेजना से भरे दृश्य को ओर ना संभाल सके और झड़ने लगे.
आअह्ह्ह....कालावती दोनो के मुँह से एक साथ निकल गया और भलभला के झड़ने लगे.
लेकिन जैसे ही झडे उनकी चेतना लौटने लगी दरोगा की खुमारी जैसे ही उतरी दरोगा का दिल पछत्याप से भर उठा,उसे यकीन नहीं हो रहा था उत्तेजना वंश वो खुद की बीवी को देख अपना लंड हिला रहा था.
इंसान ऐसा ही होता है जब हवस और वासना सर चढ़ती है तो कुछ सूझता ही नहीं है लेकिन एक बार वीर्य निकला नहीं की सारी मर्यादा वापस आ जाती है.
दरोगा के साथ भी वही हुआ उसकी वासना ख़त्म हुई की उसके फर्ज़ ने उसे आवाज़ लगा दी उसने पीछे मूड के देखा सुलेमान भी सर झुकाये खड़ा था.
रंगा बिल्ला अपनी ही दुनिया मे थे उन्हें कालावती के कामुक बदन को भोगने से ही फुर्सत नहीं थी.
पीछे दरोगा के बंधन खुलते चले गए,सुलेमान ने अपने नमक का फर्ज़ अदा किया था आज.
इधर रंगा बिल्ला लगातार चोदे जा रहे थे तेज़ तेज़ और तेज़...फच फच फचम..कालावती की गांड और चुत सुर्ख लाल हो चुके थे इस घिसावट से अब उनके हवस का भी बांध टूट गया....आआहहहह..कालावती...बोल के दोनों भलभला के झड़ने लगे कलावती के दोनों छेद पूरी तरह सफ़ेद गाढ़े वीर्य से भर गए थे.
वीर्य का गिरना ही था की कालावती की चीख भी निकल गई...आअह्ह्ह.....उम्मम्मम...
बुरी तरह झड़ रही थी कालावती उसकी चुत और गांड मे अभी भी दोनों के लंड फसे पड़े थे,कालावती इस कद्र झड़ी की दोनों के लंड को बाहर फेंक दिया.और खुद नीचे जमीन पे लुढ़क गई उसकी सांसे उखड़ी हुई थी.वो अपने सखलन को संभाल रही थी पूरी नंगी कामुक पसीने मे भीगी काया कमाल लग रही थी जैसे कोई जवान घोड़ी लम्बी दौड़ के बाद सुस्ता रही हो..
की तभी धाय.....एक गोली की आवाज़ गूंज उठी.
रंगा बिल्ला के तोते ही उड़ गए इस आवाज़ से दोनों ने सर उठा के देखा सामने दरोगा गुस्से मे काँपते हाथो से बन्दुक पकड़े खड़ा था.
बिल्ला ने अपना हाथ बगल मे बढ़ाया तो पाया की उसकी बन्दुक नहीं थी.
बिल्ला :- द...द....दरोगा ऐसा मत कर बन्दुक फेंक दे.
"ऐ कालावती देख अपने पति को समझा "
रंगा बिल्ला दोनों कालावती की और पालटते है, लेकिन ये क्या कालावती के ठीक माथे के बीच एक लाल सुराख़ हो गया था दरोगा की चलाई गोली ने सीधा कालावती का माथा चिर दिया था.
दोनों के होश फाकता थे, अभी वो कुछ समझ पाते की दरोगा की आवाज़ गूंज उठी.
दरोगा :- सालो हरामियों तुमने मेरा सब कुछ उजाड़ दिया, सब कुछ बर्बाद कर दिया मेरी ही बीवी को किसी रंडी की तरह रोंदा तुम लोगो ने.
बोलते बोलते दरोगा के आँसू छलक उठे गला भर्रा गया,
मै अपनी पत्नी को गैरमर्द से चुदता देख उत्तेजित हो गया था सबसे बड़ा पापी मे ही हूँ.
और ये मेरी रांड बीवी क्या क्या गुल खिलाती रही मेरे पीछे....धाय....धाय...धाय....तीन गोली फिर चली और इस बार भी तीनो गोली कालावती की नंगी लाश को भेदती चली गई
"आक थू साली छिनाल तू पत्नी बनने के लायक नहीं "
रंगा बिल्ला को कुछ समझ नहीं आ रहा था.
आज दरोगा का सब कुछ लूट गया था उसका मन आत्मग्लानि से भरा हुआ था. उसको जीने की कोई इच्छा नहीं थी, क्या समय आया था की एक फर्ज़ से भरे,ईमानदार इंसान को अपनी बीवी को अपने हाथ से गोली मारनी पडी.
धाय....एक गोली और चली,और दरोगा का बदन किसी कटे पेड़ की तरह कालावती के बगल मे औंधे मुँह गिर पडा.
दरोगा ने खुद के कनपटी पे बन्दुक रख घोड़ा दबा दिया था.
पीछे सुलेमान किसी मूर्ति की तरह खड़ा था उसकी तो सब कुछ समझ से ही परे था.
रंगा बिल्ला के सामने से खतरा टल चूका था, उनका डर ख़त्म हो चूका था.
डर है ही ऐसी चीज मौत सामने हो तो इंसान बिल्ली बन जाता है और जैसे खतरा टला वापस शेर

रंगा :- भाई ये दरोगा तो जिल्लत सहन ही ना कर सका.
बिल्ला :- अंत तो यही करना था साला हमें हाथ लगाएगा.
रंगा :- अब इसका क्या करे सुलेमान को तरफ इशारा कर पूछा,मार दे?
बिल्ला :- नहीं रे ये तो चूहा है जाने दे,कोई तो चाहिए ना जो हमारी कहानी सुना सके
हाहाहाःहाहा.....
हमारी दहाशत की कहानी.

आखिर कार कलावती की अतिहवस,गैर मर्द का सुख उसे ले ही डूबा,फर्ज़ से चूका इंसान दरोगा वीरप्रताप सिंह खुद मौत को गले लगा चूका था.


पाठको दरोगा को मारना नहीं चाहता था मै, दुख हुआ दरोगा के मरने से.
परन्तु यही कहानी का हिस्सा है
😔

बने रहिये कथा जारी है...😪
 
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जरुरत से ज्यादा हवस कामवासना दरोगा और उसकी बीवी को जान ले चुकी थी.
परन्तु ये हवस ठाकुर की हवेली मे चारो तरफ फैली थी.
बिल्लू कालू और रामु को तो आज खजाना मिल गया था वो रतिवती पे पिले पड़े थे कभी कोई मुँह मे लंड डाल देता तो कभी गांड मे तो कभी कोई चुत मे.
आज रतिवती पूरी तरह से तृप्त थी उसके सभी छेद भरे पड़े थे.
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कई बार दो लंड एक साथ चुत मे भी चले जाते और एक गांड मे मजाल की रतिवती उफ़ भी कर दे वो तो इस उन्माद का पूरी तरह मजा उठा रही थी ना जाने कितनी बार उसकी चुत से पानी छलका होगा.


यहाँ हवस चरम पे थी वही हवेली के अंदर डॉ.असलम भी रुखसाना के कामुक बदन को देख आपा खो चूका था उसका लंड उसके सुन्दर गोल स्तन को देख के ही थिरकने लगा था.
रुखसाना असलम के सामने अर्धनग्न लेटी थी.
असलम :- बता साली क्या करने आई है यहाँ? और उस दिन मेरे दावखाने मे आने का क्या मकसद था तेरा?
रुखसाना खामोश थी उसे कुछ सूझ नहीं रहा था की क्या बोले
की तभी असलम अपनी लुंगी उतार फेंकता है उसका काला मुसल लंड रुखसाना के सामने नाचने लगता है.
रुखसाना अभी गरम ही थी ठाकुर का वीर्य निकालने के चक्कर मे वो खुद हवस की भट्टी मे अपनी चुत दे बैठी थी.
रुखसाना को अब एक ही उपाय सूझ रहा था की कैसे वो अपने बदन का इस्तेमाल कर सकती है.
रुखसाना तुरंत पलट के अपनी गांड ऊँची कर देती है,उसका छोटा सा लहनेगा ऊपर हो चूका था गांड की दरार साफ दिखने लगी थी और यही निमंत्रण था असलम को.
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पल भर के लिए असलम अपने सवाल भूल गया,वो आगे बड़ा और सूखे लंड को एक ही झटके मे गांड मे उतरता चला गया.
"आआहहहहह.....डॉ.असलम मार दिया"
असलम :- बता साली क्या करने आई थी क्या मकसद है तेरा?
बोल के एक के बाद एक झटके सुखी गांड मे मरने लगता है,रुखसाना खूब चुदी थी परन्तु ऐसे नहीं उसकी तो जान पे बन आई गांड की चमड़ी सिकुड़ के अंदर जाती कभी बाहर आती.
आअह्ह्हह्ह्ह्हम.....बताती हूँ...बताती हूँ..थोड़ा आराम से.
वो मुझे सर्पटा से बदला लेने के लिए शक्तियां चाहिए
और ठाकुर का वीर्य मुझे वो शक्ति देगा.
असलम तो हैरान था की ये क्या चक्कर है कौन सर्पटा कौन सा बदला?
एक जोरदार चोट और मारता है टट्टे चुत से जा टकराते है लंड पूरा गांड मे धस चूका था.
असलम :- अब जब तक तू पूरी बात नहीं बताती वो भी सच तब तक ये खूंटा बाहर नहीं निकलेगा,असलम लंड अंदर गाड़े रुखसाना के बाल पीछे से पकड़ के उसकी गर्दन पीछे खिंच लेता है

रुखसाना के पास अब कोई चारा नहीं था उसे सुबह से पहले यहाँ से निकलना था असलम को सच बताना ही पड़ेगा.
सर्पटा एक इच्छाधारी सांप है उसने मेरे पति परवेज खान को मारा था,
रंगा बिल्ला,कामगंज,मौलवी सब बताती चली जाती है रुखसाना.
बाते सुनते सुनते असलम का दिल ख़ुश होता चला जाता है उसके मन मे तो पहले ही पाप घर चूका था ऊपर से इच्छाधारी सांप होते है ये बात सुन के उसे भी असीम ताकत प्राप्त करने के खुवाब दिखने लगे.
उसे कामवती अपनी बीवी दिखने लगी ये गांव ये हवेली का मालिक वो होगा.
अब उसका लंड और दिमाग़ एक साथ चलने लगे लंड गांड मार रहा था और दिमाग़ अपने दोस्त को मार रहा रहा
घोर पाप,मित्रघात का बीज पूरी तरह रोपित हो गया था उसके सपनो मे.

सब कुछ शांत हो चूका था,किसी की हवस उसे मौत दे गई,किसी का लालच बरकरारा था,तो किसी के मन मे पाप जग गया था.

भूतकाल

इन सब के बीच कामवती अपने कमरे मे सोते हुए भी बेचैन लग रही थी उसका स्मृति पटल उसे बार बार कुछ दिखा रहा था,
कामवती बेचैन सी नदी किनारे बैठी थी,
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लगता था जैसे उसे किसी का इंतज़ार है उसकी आँखों मे दो जवान मर्दो की तस्वीर छपी थी,इस तस्वीर ने उसे आंख बंद करने ही नहीं दिया
रात भर करवट बदलते ही निकल गई. आज सुबह सुबह ही वो उसी नदी किनारे पहुंच गई थी जहाँ उसे डूबने से बचाया गया था.
की तभी पीछे से किसी के सरसराहट की आवाज़ आति है
"सुंदरी कामवती तुम सुबह सुबह यहाँ?!
कामवती चौंक के पीछे पलटती है तो उसके दिल को करार आता है, पीछे सुंदर सा नौजवान गोरा सुडोल कद काठी लिए कोमल नागेंद्र खड़ा था.
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हालांकि वो भी इसी आस मे आया था की कामवती को देख सके मिल सके आखिर उसे अपने अंतहीन जीवन का उजाला जो दिखा था कामवती मे.
नागेंद्र :- हाँ सुंदरी मै!
कामवती :- ये क्या सुंदरी सुंदरी बोल रहे हो मै कोई सुंदरी नहीं कामवती नाम है मेरा.
नागेंद्र :- नाम से भी ज्यादा सुन्दर हो तुम.ऐसा बोल नागेंद्र कामवती के पास बैठ जाता है
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कामवती का दिल जोर जोर से धड़क रहा था जिस पुरुष के ख्याल ने उसे रात भर सोने ना दिया वो उसके करीब बैठा था.
कामवती थोड़ा कसमसाने लगी उसे समझ ही नहीं आ रहा था की क्या बोले क्या करे.
"नाम क्या है तुम्हारा?" जो निकला यही निकला कामवती के मुख से.
नागेंद्र जो की इतने पास से पहली बार दीदार कर रहा था कामवती के हालांकि उसे बचाते वक़्त कामवती के अंगों को छूने का मौका जरूर मिला था परन्तु ये अहसास अलग था आज इस अहसास मे प्यार था चाहत थी.
"नागेंद्र नाम है मेरा पास के गांव विष रूप मे ही रहता हूँ "
नागेंद्र से बड़ी सफाई से खुद को आम आदमी की तरह ही पेश किया,परन्तु था तो जहरीला ही ना, उसके शरीर से आति गंध लहर कामवती के दिमाग़ को झकझोर रही थी.
उसे लग रहा था जैसे आंखे भारी हो रही है, परन्तु उसे मन का अहसास समझें कामवती नजरअंदाज़ करती रही.
"तुम्हारे घर मै कौन कौन है?"
कामवती जैसे होश मे आई "वो...वो...मम्मी पापा और मै " बोलती हुई कामवती ने अपना चेहरा नागेंद्र की और घुमा दिया
दोनी की नजरें मिल गई,कामवती ने जैसे ही नागेंद्र की आँखों मे देखा उसे अजीब सा सम्मोहन हुआ वो नागेंद्र से पहले ही आकर्षित थी परन्तु अब तो जैसे मौसम ही रूहाना लगने लगा दिल की धड़कन थमने लगी.
इस वक़्त नागेंद्र दुनिया का सबसे कामुक पुरुष मालूम होता था.
कामवती ने इतना सुन्दर पुरुष कभी नहीं देखा था वो उन आँखों मे खोने ही लगी की

"कम्मो...ओह..कम्मो...कामवती कहाँ है तू?"
नागेंद्र ने पलट के देखा तो गांव से कुछ लड़किया नदी की ओर ही चली आ रही थी.
"अच्छा कामवती मे चलता हूँ कल फिर यही मिलूंगा "
कामवती को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था वो सिर्फ हूउउ...ही बोल पाई वो एक टक जाते नागेंद्र को देखती ही रह गई.
"कामवती....ऐ कामवती..इतनी सुबह नदी क्यों आ गई?"
विमला ने कामवती को लगभग झंझोड़ते हुए पूछा.
विमला कामवती की खास सहेली है
कामवती जैसे नींद से जागी हो.."वो...वो....कुछ नहीं आज आंख जल्दी खुल गई तो नित्य कर्म के चली आई "
तुम लोग निपटो मै चलती हूँ.
बोल कामवती तुरंत उठ के चल पडी अपने घर की ओर
आज उसका मन दिमाग़ कुछ भी उसके हाथ मे नहीं था उसकी आंखे जैसे पथरा गई थी उसके सामने सिर्फ नागेंद्र की खूबसूरत गहरी आंखे थी.
"कौन है ये नागेंद्र कैसा जादू कर दिया है इसने मुझे पे? कैसे हलचल मची है मुझमे "
कामवती इसी सोच मे डूबी चलती जा रही थी
कामगंज जाने के लिए बीच रास्ते मे छोटा सा जंगल सा पड़ता था कामवती चली जा रही थी धीरे धीरे कुछ सोचती हुई...
की तभी उसका हाथ किसी मजबूत चीज ने पकड़ लिया.
"कामवती यहाँ क्या कर रही हो?"
कामवती एक झटके मे ही अपने ख्यालो से बाहर आई ओर पीछे को पलटी तो पाया की एक मजबूत कद काठी चौड़ी छाती के मर्द ने उसका हाथ पकड़ा हुआ है.
बालो से भरी हुई छाती
एक सच्चा मर्द खड़ा था कामवती के आँखों के सामने
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"तत...त...तुम?" कामवती ऐसे कामुक बलशाली मर्द को अपने इतना नजदीक पा के कांप उठी उसकी आवाज़ हलक से कांपती हुई निकली

"हां मै वीरा....तुम्हे अकेले जाता देखा तो सोचा कुछ बात चीत कर लू."
कामवती की तो बंन्छे ही खिल गई आज उसका हसीन दिन था पहले नागेंद्र जैसा कोमल प्यार के अहसास से भरे मर्द से मिली फिर ये वीरा से जो सम्पूर्ण कठोर मर्दानगी से भरपूर था.
दोनों ही उसके नींद के चोर थे.
कामवती :- अच्छा जी तो मेरा पीछा कर रहे हो तुम?
वीरा :- नहीं कामवती मै तो जंगल घूमने आया था तुम जाती दिखी मैंने आवाज़ भी दी लेकिन पता नहीं कहाँ खोई थी तुम?
सुना ही नहीं मज़बूरी मे तुम्हारा हाथ पकड़ना पडा.
कामवती का ध्यान वीरा के हाथ पे जाता है कितना मजबूत और बड़ा हाथ था कितनी मजबूती से पकड़ा हुआ था.
"हाथ तो छोडो तोड़ोगे क्या?"
वीरा :- ओह माफ़ करना आओ तुम्हे जंगल के बाहर तक छोड़ दू.

कामवती का हाथ तो छूट गया, पर गर्माहट का अहसास नहीं गया " कितने गरम हाथ है इस वीरा के "
कामवती :- अच्छा वीरा तुम कहाँ रहते हो?
वीरा :- यही पास मे घुड़ मे
"अच्छा....की तभी कामवती आगे रखे पत्थर से टकरा गई ओर गिरने ही लगी थी की फिर दो जोड़ी मजबूत कठोर हाथो ने उसे थाम लिया.
वीरा के हाथ पीछे से कामवती को थामे हुए थे "कहाँ ध्यान है तुम्हारा "
वीरा थोड़ा सम्भलता है तो पाता है की उसके हाथ पीछे से कामवती के बड़े बड़े स्तन को भींचे हुए थे उसके कठोर हाथो मे मुलायम अहसास हो रहा था.
और कामवती जो पूरी तरह से आगे को लटक गई थी अपनी छाती इस कदर दबने से सिसक उठी...आअह्ह्ह....वीरा.
वीरा ने स्तन पकडे ही वापस कामवती को पीछे खिंच लिया.
छाती पे पड़ता लगातार दबाव कामवती के बदन मे सिहरन पैदा कर रहा था ना चाहते हुए भी उसके स्तन से निकलता विधुत का झटका सीधा चुत तक गया.
कामवासना के लिए ललायित रहने वाली कामवती को आज पहली बार किसी मर्द के कठोर हाथ से चुत से पानी बहने का अहसास हुआ.
"वो....वो...माफ़..माफ करना गलती से पकड़ लिया "
कामवती तो ये सुन शर्मा गई उसके पास कोई जवाब नहीं था..वो बिना कुछ बोले दौड़ चली...
पीछे वीरा उसकी लहराती बड़ी गांड को देख ही रहा था की कामवती पीछे पलट के एक पल के लिए वीरा को देख मुस्कुरा दी...कामवती बालो से भरी चौड़ी छाती को नजर भर देख लेने के बाद पलट के भाग चली अपने गांव की ओर.
उसके दिल मे प्यार और चुत मे पानी था जिंदगी मे ये अहसास पहली बार था.
प्यार और कामवासना का संचार एक साथ जन्म ले रहा था.
"कामवती....ओह कम्मो...कब तक सोयेगी चल उठ जा"
कामवती कसमसा के आंखे खोल देती है सामने उसकी माँ रतिवती उसे उठा रही थी.
"देख सुबह हो गई है,ठाकुर साहेब भी आ गए है " रतिवती बोल के कमरे से बाहर निकल जाती है.
कामवती अभी भी खोई हुई थी
"ये कैसा सपना था,ये कैसा अहसास था? बिलकुल सच लग रहा था.
तभी उसका ध्यान अपनी जांघो के बीच होती खुजली पे जाता है उसे कुछ अजीब सा गिलापन लगता है वहा.
"ये मेरी योनि गीली कैसे हो गई?"
वो सुन्दर युवक कौन था जिसके आँखों मे देखते ही मुझे ये दुनिया खूबसूरत लगने लगी थी और जंगल मे मिला वो लम्बा चौड़ा आदमी जिसकी एक स्पर्श से ही मेरी योनि गीली हो गई थी?

सुबह हो चुकी थी सब तरफ सब सामन्य था.
रतिवती रात भर चुदी थी तो जल्दी ही नहाने चली गई.
रुखसाना हवेली से जा चुकी थी.
असलम अपनी योजना के साथ सो चूका था रात भर उसने मेहनत की थी.
ठाकुर साहेब अभी भी नंगे ही अपने कमरे मे सोये पड़े थे.
कामवती के मन मे हज़ारो सवाल और कामवासना उठ रही थी जिसका जवाब उसे ढूंढना था.
बने रहिये....कथा जारी है..
 
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गांव घुड़पुर


सुबह की पहली किरण पड़ते है वीरा अपने घुड़ रूप मे तब्दील हो चला वो अपने हिस्से की प्रेम कहानी रूपवती को सुना चूका था.
रूपवती :- वाकई वीरा तुम सच्चे प्रेमी हो लेकिन नागेंद्र ने कामवती की हत्या कर ठीक नहीं किया.
वीरा :- उसे तो मौत मेरे हाथो ही मिलेगी बस कामवती को पा लू एक बार
वीरा की आँखों मे गुस्सा था परन्तु रूपवती के दिल मे चिंता घर कर गई थी अपने भाई विचित्र सिंह के लिए.
रूपवती :- वीरा अब तो हमें अपने भाई की और ज्यादा फ़िक्र होने लगी मैंने भी लालचवस किस खतरनाक जगह भेज दिया है कही नागमणि के चक्कर मे नागेंद्र उसके भी प्राण ना ले ले.
वीरा :- चिंता जायज है आपकी मालकिन, डर मुझे भी है छोटे ठाकुर साहेब की खेर खैरियत के लिए मुझे विष रूप जाना होगा मालकिन
रूपवती :- हाँ वीरा जाओ पता लगाओ कैसा है हमारा भाई?
वीरा तुरंत सरपट...दौड़ चलता है अर्धनग्न रूपवती बस उस तूफ़ान को उड़ता देखती रह जाती है.

यहाँ विष रूप ठाकुर की हवेली के तहखाने मे.

यहाँ नागेंद्र भी अपने हिस्से की प्रेम कहानी मंगूस को सुना चूका था.
मंगूस :- मित्र नागेंद्र तुम सच्चे प्रेमी हो तुमने दिलो जान से चाहा था कामवती को परन्तु उस वीरा ने उसकी हत्या कर तुमसे तुम्हारा प्यार छीन लिया
नागेंद्र :- मित्र मंगूस तुमने मेरी कीमती मणि खो के मुझे अपाहिज कर दिया है.
मंगूस :- माफ़ करना मित्र अब वो मणि तुम्हारी है तुम्हे ही मिलेगी मै ले के आऊंगा वापस भी.
और उस वीरा की मौत तुम्हारे हाथो ही होंगी.
उसने मेरी दीदी को बहका के मणि हासिल करना चाही.
नागेंद्र के आँखों मे भी अंगार थे "लेकिन कामरूपा मिलेगी कहाँ?"
मंगूस :- चिंता मत करो मित्र मेरा नाम भी चोर मंगूस है पाताल आसमान जहाँ होंगी उसे ढूंढ निकलूंगा मै.

रुखसाना भी जल्दी जल्दी दौड़ती चली जा रही थी अपने गांव कामगंज की और जहाँ उसके अब्बा मौलवी साहेब उसका इंतज़ार कर रहे थे.
रुखसाना घने जंगल मे झरने किनारे से निकल रही थी.
"आअह्ह्ह.....फिर वही खुसबू ,वही मादक गंध पास से ही आ रही है " एक विशालकाय आकृति अँधेरी गुफा से बाहर निकल सरसरा गई.
रुखसाना सब से बेखबर जल्दी जल्दी जंगल पार कर लेना चाहती थी.
"इतनी जल्दी भी क्या है घुड़वती?"
रुखसाना के पैर जहाँ थे वही जम गए उसके कान मे खार्खरती भारी आवाज़ पडी उस आवाज़ मे जैसे कोई हुकुम था.
रुखसाना पीछे पलटी तो उसके होश उड़ते चले गए....उसके पीछे भयानक सांप जो की कमर से ऊपर इंसान था और नीचे से सांप...
उसने ऐसा नजारा तो कभी देखा ही नहीं था.
सपने मे भी ऐसी कल्पना नहीं की थी.
रुखसाना का दिल इस भयानक मंजर को देख धाड़ धाड़ करने लगा उसके मुँह से जोरदार चीख गूंज उठी....आआहहहहहह...हहहहहह.......वववववव....
ये आखिरी चीख थी उसका दिल इस भयानक जीव को और ना झेल सका रुखसाना जहाँ थी वही गिरती चली गई.
"लो घुड़वती तो मुझे देखते ही गश खा गई " हाहाहाहाहाहा.
मेरा लंड कैसे झेलेगी
सर्पटा अठ्ठाहस लगा देता है उसकी पूँछ रुखसाना के बदन को लपेटने लगती है.

सर्पटा अपनी गुफा की और रुखसाना को अपने आगोश मे समेटे चल पडा.

जंगल मे कही....तिगाड़ तिगाड़ तिगाड़.....टप टप टप..वीरा लगातार दौड़े जा रहा था की तभी एक जोरदार चीख गूंज उठी
आआहहहह.....हहहह.....ववववव....
"ये....ये....कैसी आवाज़ है?"
हे भगवान ये आवाज़ पहचानी क्यों लगी मुझे?
ये तो मेरी प्यारी बहन घुड़वती की आवाज़ थी?
परन्तु ये कैसे संभव है... हे घुड़देव क्या हो रहा है ये?
तिगाड़ तिगाड़ तिगाड़ ......वीरा आवाज़ की दिशा मे दुगने वेग से दौड़ पड़ता है.


ये सब क्या चक्कर है नागेंद्र और वीरा ही कामवती के हत्यारे है?
क्या है इन दोनों की प्रेम कहानी जो दोनों ही सुना चुके.
क्या मंगूस और रूपवती भी एक दूसरे के खिलाफ हो जायेंगे?
ये रुखसाना और घुड़वती का क्या सम्बन्ध है?
बने रहिये...कथा जारी है...
और हाँ दोस्तों अब पिछले जन्म की कहानी कामवती की यादो मे ही चलेगी.
आप देखेंगे की कैसे उसे अपने वजूद और प्यार का अहसास होता है.
 
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यात्रिगण कृपया ध्यान दे दिल्ली से चल के ट्रैन संख्या **** विष रूप पहुंच चुकी है.
सुबह की किरण के साथ ही ट्रैन विष रूप शहर आ चुकी थी.
यात्री ट्रैन से उतरने लगे थे, इसी भीड़ मे बहादुर बड़े बड़े भरी बैग थामे जैसे तैसे ट्रैन से उतर गया था पीछे इंस्पेक्टर काम्या अपने चिर परिचित बेफिक्र अंदाज़ मे बहादुर के पीछे पीछे चल रही थी.
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"लगता है कोई विलयती मैम है "
पीछे से आती भीड़ से किसी की कानाफुंसी सुनाई पडी.
"देखो बेशर्म को कैसे कपडे पहने है,नंगी ही आ जाती " दो महिलाये खिसयानी सी हसीं हसती हुई बोली.
कुछ मंचले लड़के "गांड देख साली की "
अंग्रेज़ लोग चले गए अपनी औलादे छोड़ गए.
दूसरा लड़का "काश इसकी नंगी गांड ही देखने को मिल जाये तो जीवन सफल हो जाये "
सबकी निगाहे बलखाती मटकती चाल मे चलती काम्या पे ही थी
तो इस कद्र स्वागत हुआ था काम्या का उस भारत मे जिस के लिए ऐसे परिधान,खुलापन अच्छी बात नहीं समझी जाती थी.
परन्तु काम्या के लिए ये शब्द आम थे उसे मजा आता था अपनी ऐसी तारीफ सुन के,
बहादुर :- मैडम आपके घर से तो कोई लेने ही नहीं आया आपको?
काम्या :- हाँ बहादुर घर पे तार तो भिजवा दी थी ना तूने?
बहादुर :- हाँ मैडम माँ कसम भिजवा दिया था उसी दिन.
बहादुर इतने मासूमपन से बोला की काम्या की हसीं निकल गई.
काम्या :- साले तुझे पुलिस मे किसने रख लिया?
बहादुर काम्या को हसता देखता ही रह गया "कितनी खूबसूरत है मैडम "
मैडम वो मेरी माँ एक साहेब के काम करती थी तो उन्होंने ही जुगाड़ कर के.....
"बस बस रहने दे अपनी माँ की कहानी तू हज़ार बार सुना चूका जा, जा के तांगा ले के आ " काम्या ने बहादुर को बीच मे ही टोकते हुए बोला.
काम्या मन ही मन सोचने लगी "पापा आये क्यों नहीं माँ भी नहीं आई?
पापा के ट्रांसफर के बाद पहली बार विष रूप आई हूँ "
घर कैसे जायेंगे? घर कौनसा है ये तो पता ही नहीं है?
की तभी बहादुर तांगा ले आया.
तांगेवाला:- कहिये बीबी जी कहाँ जाना है?
काम्या :- शहर मे जो पुलिस कॉलोनी बनी है वही.
चलिए 2rs लूंगा पुरे मंजूर हो तो बताओ. तांगेवाला काम्या को ऊपर से लगाई नीचे तक घूरते हुए बोला.
बहादुर सामान रख खुद बैठ गया.
काम्या :- साले अपने ससुराल आया है क्या?
बहादुर को अपनी गलती का अहसास होता है.
"वो...वो....मैडम.....वो..माफ़ करना हीहीही...
तांगा चल पड़ता है..

इधर मंगूस भी हवेली के बाहर निकल चाय की दुकान पे बैठा था उसे समझ नहीं आ रहा था की कामरूपा उर्फ़ भूरी काकी को कहाँ और कैसे ढूंढे?
"यार बिल्लू कल तो मजा ही आ गया " हेहेहे....
बिल्लू,कालू,रामु भी चाय की दुकान की और ही आ रहे थे,
कालू :- 3चाय ला बे नींद आ रही है
चायवाला :- जी मालिक
"मालिक बुरा ना मैने तो बात पुछु?" मंगूस ने बीच मे ही टोकते हुए पूछा
तीनो ने नजर उठाई सामने मैला कुचला सा लड़का बैठा था.
बिल्लू :- क्यों बे लल्ले क्या तकलीफ है?
मंगूस :- मालिक भूरी काकी से काम था?
रामु :- तू कौन? और क्या काम है काकी का?
मंगूस :- मालिक ठाकुर साहेब के खेतो पे काम करता हूँ,काकी से कुछ रुपये उधार लिए थे तो वही वापस करने आया हूँ.
कुछ दिनों से काकी खेतो पे भी नहीं आई?तो सोचा हवेली ही आ जाऊ.
बिल्लू :- लल्ले तूने ठीक किया लेकिन भूरी काकी हवेली मे भी नहीं है.
कालू :- ला पैसे हमें दे दे हम दे देंगे उसे
मंगूस :- नहीं मालिक मै उन्हें ही दूंगा आप बता दे की कहाँ गई है वो?
रामु :- पता नहीं बे कहाँ मर गई?
मंगूस :- मतलब?
रामु :- बिल्लू ने उसे कल शाम जंगल मे देखा था फिर आगे पता नहीं...
"अच्छा " मंगूस सोच मे पड़ जाता है.
"अच्छा मालिक चलता हूँ " मंगूस निकल पड़ता है उसे अपना रास्ता दिख गया था.
बिल्लू :- और सुन बे मिल जाये तो हवेली भी ले आना उसे हाहाहाहाहा....
"जी...जी...मालिक "
मंगूस अपने लक्ष्य की और बढ़ चला था.

इंस्पेक्टर काम्या और बहादुर भी पुलिस कॉलोनी पहुंच गए थे.
बहादुर :- कौनसा घर है मैडम आपका?
काम्या :- पता नहीं पिताजी के ट्रांसफर के बाद मै खुद पहली बार आई हूँ.
अंदर चल के पूछ लेंगे.
बहादुर सामान लिए आगे बढ़ चला.
दोनों जैसे ही आगे बड़े तो एक मकान के बाहर खूब भीड़ जमा थी खुसफुस्स हो रही थी.
"बताओ इतने नेक और शरीफ आदमी को कितनी बेदर्दी से मारा है "
कुछ आदमी औरत आपस मे फुसफुसा रहे थे.
काम्या भी भीड़ की और बढ़ चली उसके दिल मे कुछ अजीब होने लगा की जैसे कुछ टूट गया हो.
अनजानी सी आशंका उसे घेरने लगी.
काम्या भीड़ को चिरती हुई आगे बड़ी सामने सफ़ेद कफन मे लिपटी दो लाश पडी थी.
कुछ पुलिस हवलदार आस पास खड़े थे एक लड़का उन लाशो को देख देख रोये जा रहा था...
काम्या :- हवलदार साहेब क्या हुआ है यहाँ? कौन है ये लोग
ना जाने क्यों ये सवाल पूछते हुए काम्या का दिल लराज जा रहा था हलक सूखता सा महसूस हो रहा था.
की तभी एक हवा का झोंका आता है और दोनों लाशो से लगभग कफन हट जाता है.
वातावरण मे एक जोरदार चीख गूंज उठती है.माँ....माँ......मममम्मा.....पापा....पापाआआआआ.....
काम्या चीखती हुई दोनों लाशो मे धाराशाई हो गई उसके आँसू फुट पड़े चीख चीख के रोने लगी.
सभी लोग हैरान थे,उस रुन्दन को सुन,नजारा देख वहा खड़े सभी लोगो की आँखों मे आँसू आ गए.
बहादुर :- मैडम सम्भालिये खुद को सम्भालिये....
पास खड़ा हवलदार रामलखन "आप ही है दरोगा वीरप्रताप की बेटी?"
काम्या आँखों मे आँसू लिए मुँह ऊपर करती है खूबसूरत काम्या का चेहरा विक्रत हो गया था.
"हाँ मै ही हूँ काम्या आज सालो बाद लौटी तो अपने माँ बाप को देख भी ना सकी?"
किसने किया? कैसे हुआ ये सब?
पास बैठा सुलेमान काम्या के पास आया और सारी कहानी कहता चला गया.
कैसे दरोगा ने रंगा बिल्ला को पकड़ा था और कैसे रंगा बिल्ला ने बदला लिया..
"हे भगवान....हे भगवान.....ये कैसी लीला है तेरी इसका मतलब मुझे मेरे ही बाप की नाकामी को पूरा करने भेजा था.
मेरे पिता ही विष रूप के थानेदार थे "
बस और दुख बर्दास्त ना कर सकी काम्या अपने माँ बाप की लाश के ऊपर ही बेहोश हो गई.
बहादुर और सुलेमान काम्या घर के अंदर ले चले बाहर राम लखन और बाकि हवलदार दरोगा और कालावती के अंतिम संस्कार की तैयारी करने लगे.
कथा जारी है....
 
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दरोगा वीर प्रताप की हत्या की खबर चारो तरफ फ़ैल गई थी और साथ मे फ़ैल गई थी रंगा बिल्ला की दहाशत भी.
दोपहर का समय हो चला था,काम्या भी होश मे आ गई थी लेकिन उसकी आँखों मे सुना पन था.
नदी किनारे अंतिम संस्कार की तैयारी हो चुकी थी
आस पास के गांव के ठाकुर जमींदार और नागरिक भी आये हुए थे इसी भीड़ मे रंगा बिल्ला भी शामिल थे.
तभी काले लिबास मे लिपटी काम्या अग्नि देने आई.
लोगो मे खुसर फुसर शुरू हो गई.
"बताओ बेचारी अनाथ हो गई " क्या करेगी अब ये
रंगा जो कम्बल ओढे खड़ा था "कौन है ये लड़की "?
भीड़ मे खड़े ग्रामीण से पूछा
ग्रामीण :- दरोगा साहेब की अभागी बच्ची है आज ही शहर से पढ़ाई कर लौटी है..
बिल्ला :- देखो भगवान भी कैसे कैसे दुख दिखता है.
दूसरा ग्रामीण :- रंगा बिल्ला से कौन बच पाया है आखिर.
आस पास के गांव वालो ने तो सारा धन अनाज ठिकाने लगाना शुरू कर दिया है.
अन्य ग्रामीण :- भगवान बचाये रंगा बिल्ला से.
अजी मै तो कहता हूँ कभी सामना हो जाये तो जो हो चुप चाप उनके हवाले कर दो, जान है तो जहान है.
रंगा बिल्ला वापस से अपनी दहशत देख के ख़ुश थे, उनकी राह अब आसान थी उनका दबदबा वापस से कायम हो चूका था.
दोनों पलट के भीड़ से बाहर निकलने लगते है की तभी उनके कान मे चित्कार सुनाई देती है.
"तुम जहाँ भी होंगे तुम्हे कुत्ते की मौत दूंगी मै " काम्या अपने माँ पिता की चिता की कसम खाती है और फफ़क़ फफ़क़ के रो पड़ती है..
इस चित्कार मे एक सिहारन थी जो की रंगा बिल्ला को अपने बदन मे महसूस होती है, खुद को संभाल के वो पलट के देखते है परन्तु उन्हें काम्या पीछे से दिखाई देती है उसका चेहरा दुखी नहीं देता.
भीड़ काम्या को धंधास बंधती है.इन सब मे ठाकुर ज़ालिम सिंह भी थे.
"धैर्य रखो बेटी काम्या, और जो मदद चाहिए हो मुझसे मांग लेना, तुम्हारे पिता ने मेरी बीवी की रक्षा की थी.
बहुत बहादुर थे तुम्हारे पिता"
भीड़ धीरे धीरे जाने लगी बवहए थे सिर्फ सुलेमान,रामलखन,बहादुर और आँखों मे अँगारे लिए काम्या....इंस्पेक्टर काम्या.

इन सब से दूर जंगल मे किसी सुनसान कोने मे उत्सव का माहौल था

नरभक्षी काबिला मुर्दाबाड़ा जहाँ भूरी एक पतले से कपडे मे लिपटी किसी देवता की मूर्ति के सामने बंद गुफा मे सर झुकाये बैठी थी उसे अपना अंत नजर आ रहा था उसके लालच,हमेशा जवान बने रहने की चाह ने उसे इस मुकाम पे पंहुचा दिया था.
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सेनापति मरखप :- सरदार सारी तैयारी हो गई है हमें देवता का अहान करना चाहिए.
सरदार भुजंग :- हाँ भाई इंतज़ार तो हमें भी है इस गद्दाराये बदन की मालकिन को भोगने का.
हाहाहाहहह....सारे काबिले के मर्द हस पड़े.
आज भूरी की शामत भरे काबिले के सामने उसका बदन नोचा जायेगा.
भुजंग :- हे देवता हमें काम शक्ति प्रदान कर ताकि इस स्त्री का कामरस का भोग तुझे जल्द से जल्द लगा सके.
ऐसा बोलते ही वहा खड़े सभी मर्दो ने अपना अपना लंगोट उतार फेंका.
कामरूपा ने नजर उठा के देखा तो उसके तोते उड़ गए,काटो तो कहीं नहीं आंखे पथरा गई
उसे अपनी मौत निश्चित दिखाई दी.
7 काले भयानक मर्द उसे घेरे खड़े थे, बिलकुल नंगे सभी के जांघो के बीच लम्बे मोटे काले भयानक गंध छोड़ते लंड लटक रहे थे, उस लंड के पीछे भारी भारी टट्टे लटके थे.
लगता था की किसी स्त्री पे गिर भर जाये तो प्राण निकाल ले.
सातों लोग नीचे बैठी कामरूपा के चारो और चक्कर काटने लगे उस अपने हाथ से चुटकी मे कोई पीला लाल ग़ुलाल जैसा पदार्थ कामरूपा पे छिड़कने लगे.
और कोई मंगल गीत भी गाते जा रहे थे... देवता प्रसन्न हो...देवता प्रसन्न हो.
नीचे बैठी कामरूपा को वैसे ही कुछ समझ नहीं आ रहा था ऊपर से सभी के लंड से निकलती तेज़ गंध उसके बदन को झकझोड़ रही थी, कामरूपा कामवासना से भरी कामुक स्त्री थी खुद को कैसे संभालती.
ऊपर से ग़ुलाल जैसी धूल उस के बदन को लगातार मदहोशी की गहराई मे धकेल रही थी.
सातों नरभक्षी नीचे बैठी कामरूपा के चारो और चक्कर लगाए जा रहे थे कामरूपा के कामुक बदन को देख देख लार टपका रहे थे.
तभी सरदार भुजंग ने अपने लंड का तेज़ प्रहार कामरूपा के गाल पे किया,कामरूपा सिहर उठी उसके हलक से हलकी सी काम भरी सिसकारी निकाल पडी.
"आअह्ह्ह.....ये क्या हो रहा है मुझे मेरा बदन जैसे जल रहा है "
भुजंग :- हाहाहाहा....हे सुन्दर स्त्री आजतक कोई महिला हमारे लिंग से बच नहीं पाई है.
तू तो वैसे भी काम से भरी स्त्री मालूम होती है.
सच ही तो कह रहा था सरदार भुजंग आखिर कामरूपा अपने जवानी अपने यौवन को हमेशा बरकरार रखना चाहती थी ताकि काम सुख का आनंद ले सके.
परन्तु आज यही कामवासना उसे मौत के कगार पे ले आई थी.
यहाँ कामवती अपना वीर्य बहती की उसकी आत्मा भी उसका साथ छोड़ देती.
अजीब रीती रीवाज था मुर्दाबाड़ा काबिले का.
सेनापति मरखप और बाकि के 5 काबिले वाले वाले भी अपने अपने लंड का प्रहार कामरूपा के बदन पे करने लगे.
कामरूपा के बदन की गर्मी बढ़ती ही जा रही थी,वो लाख कोशिश कर रही थी खुद को रोकने की परन्तु माहौल ऐसा कामपूर्ण हो चूका था की बर्दाश्त करना मुश्किल था.
कामरूपा का हाथ ना चाहते हुए भी अपनी जांघो के बीच जा कुछ टटोलने लगता है,जिस बात का डर था हुआ भी वही.
कामरूपा की उंगलियां गीली हो गई उसकी चुत से पानी रिस रहा था,ये सबूत था की उसका बदन सम्भोग के लिए तैयारी कर रहा है उसका जलता बदन इस बात का गांवह था कि उसका स्सखलन नजदीक है.
"नहीं...नहीं....ऐसा नहीं हो सकता " कामरूपा वासना मयी आवाज़ मे चीख पडी.

वही जंगल मे चीख की आवाज़ का पीछा करता वीरा झरने के पास पहुंच चूका था.
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"ये तो वही झरना है जहाँ मेरी प्यारी बहन घुड़वती की हत्या की गई थी?" वीरा के सामने उसकी बहन की नंगी खून से लथपथ लाश पडी थी.
वो दृश्य याद कर उसकी आँखों मे आँसू आ गए.
"तो क्या वो चीख मेरा भ्रम थी?"
"नहीं नहीं...मैंने चीखने की साफ आवाज़ सुनी थी.
मुझे आस पास तलाश करना होगा आवाज़ घुड़वती जैसी क्यों थी?
काली गुफा के अंदर सर्पटा रुखसाना के बदन को अपनी कुंडली मे दबाये बैठा था.
रुखसाना को होश आ रहा घर धीरे धीरे....उसकी नाक मे एक अजीब सी गंध आ रही थी ये गंध उसे जानी पहचानी सी लग रही थी.
सर्पटा :- हाहाहाहाहा.....कुदरत का खेल देखो इतने बरसो बाद तुम फिर से वही रंग रूप वही यौवन लिए पैदा हुई हो घुड़वती.
रुखसाना लगभग होश मे आ चुकी थी.
रुखसाना :- कौन...कौन....ही तुम उसके लफ्ज़ो मे साफ खौफ दिखाई पड़ता था.
ऐसा डरावना नजारा उसके दिल की धड़कन रोक रहा था.
सर्पटा :- मुझे नहीं पहचाना घुड़वती?
रुखसाना :- कौन...कौन...घुड़वती मेरा नाम रुखसाना है.
सर्पटा :- अरी मुर्ख..आज टी रुखसाना है कभी घुड़वती थी जवान कच्ची उम्र की घोड़ी.
रुखसाना :- क्या बकते हो? रुखसाना को कुछ समझ नहीं आ रहा था की हो क्या रहा है.
सर्पटा अपना अर्ध सर्प रूप त्याग पूर्ण मानव रूप मे आ जाता है.
रुखसाना का तो आश्चर्य के मारे बुरा हाल था उसने आज तक जो किस्से कहानी मे सुना था वो आज अपनी आँखों के सामने देख रही थी..
सर्पटा :- तू तो ऐसे चौक रही है जैसे इच्छाधारी प्रजाति पहली बार देखि हो
तू खुद भी तो इच्छाधारी ही है.
रुखसाना:- मै...मैम....इच्छाधारी रुखसाना को सब कुछ सपना सा लग रहा था.
सर्पटा :- पिछली बार तू मेरा लंड झेल नहीं पाई थी आज देखते है झेल पाती है या नहीं झेल गई तो मेरी रखैल बनेगी तू
हाहाहाहाहा......भयानक हसीं माँ मंजर गूंज उठा
हसीं इतनी भयानक थी की रुखसाना सर से लेकर पाऊं तक पसीने से नहा गई,उसका कलेजा मुँह को आ गया था.
सर्पटा ने अपनी कमर पे लिपटा कपड़ा एक दम से हटा दिया.
ईई.ईई......आआहहहह.....एक जबरजस्त चीख उसके हलक से निकल गई.
सर्पटा की जांघो के बीच एक काला मोटा भयानक लंड झूल रहा था, लिंग जांघो की जड़ से निकल घुटने तक लटका हुआ था.
सर्पटा :- अभी से चीख पडी घुड़वती? अभी तो यही लंड तेरी चुत और गांड मे जायेगा तब क्या करेगी.
रुखसाना खूब खेली थी खूब चुदी थी परन्तु ऐसे लंड और ऐसे खूंखार इरादा लिए आदमी से कभी नहीं.
वो भागने को हुई परन्तु उसे ऐसा लगा जैसे उसके पैरो मे जान ही नहीं है जैसे ही उठी तुरंत धाराशाई ही गई.
डर है ही ऐसी चीज... पैर को कपकम्पा देता है.
सर्पटा अपने लंड को झूलाता हुआ रुखसाना की और बढ़ चलता है...
की तभी....धाड़.....
दूर हट हरामी मेरी बहन से.
सर्पटा के सीने पे एक जोड़ी मजबूत लात का प्रहार होता है.
वीरा :- तू आज तक जिन्दा कैसे है तुझे तो मैंने अपने हाथो से मारा था? वीरा की आवाज़ मे भरपूर आश्चर्य था.
रुखसाना नीचे जमीन पे पडी हुई आश्चर्य के मारे मरी जा रही थी
"ये क्या ही रहा है आज....पहले ये सांप और अब ये बोलने वाला घोड़ा?
और ये मुझे अपनी बहन क्यों बोल रहा है?"
सर्पटा दूर जा गिरा था पहले से कमजोर सर्पटा वीरा का प्रहार ना झेल सका खुद को सँभालते हुए.
"तुझे मौत देने के लिए ही जिन्दा है ये नागसम्राट सर्पटा "
वीरा जो की शक्तिहिन था अपने घुड़रूप मे था.
"घुड़वती जल्दी बैठो हमें जाना होगा "
रुखसाना :- मै...मै....रुखसाना तो जैसे विक्षिप्त हो गई थी वो जी देख रही थी वो संभव नहीं था.
"उठो घुड़वती,सर्पटा के उठने से पहले उठो मुझमे अभी वो ताकत नहीं है की सर्पटा का मुकाबला कर सकूँ "
रुखसाना को कुछ कुछ बात समझ आने लगी...उधर सर्पटा भी संभल रहा था.
"वक़्त नहीं है घुड़वती जल्दी "
रुखसाना जैसे तैसे वीरा पे सवार हो गई....सऊऊऊऊ....साइईई.....वीरा किसी हवा की तरह वहा से निकाल गया.
पीछे रह गया सर्पटा " आखिर कब तक बचोगे तुम दोनों?"
तगड़ तगड़....टप टप..टप....वीरा भागे जा रहा था उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था.
"मेरी प्यारी बहन "
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वही रुखसाना डरी सहमी वीरा को कस के पकडे बैठी थी,. उसके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी.

तिगाड़ तिगाड़.....ये तो किसी घोड़े की आवाज़ है लगता है कोई इधर ही आ रहा है.
चोर मंगूस जो की कामरूपा की खोज मे जंगल की खाक छान रहा था उसके कानो मे पड़ती घोड़े किआवाज़ से सतर्क हो गया था.
तभी उसके सामने से एक काला लम्बा चौड़ा घोड़ा किसी स्त्री को बैठाये तूफ़ान की तरह दौड़ता निकाल गया

"ये ये....तो वीरा है दीदी रूपवती का वफादार घोड़ा जो की नागेंद्र का दुश्मन है,लेकिन ये जंगल मे क्या कर रहा है और उसकी पीठ पे कौन स्त्री बैठी थी?"
हे भगवान कही मेरी दीदी कुछ हो तो नहीं गया.
मुझे अपने घर जाना होगा,नागमणि जल्दी से जल्दी ढूंढ़नी होंगी सब इसी का चक्कर है.
क्या मंगूस नागमणि ढूंढ़ पायेगा?
कामरूपा की हवस ही उसकी मौत का कारण बनेगी?
बने रहिये कथा जारी है....
 
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शाम हो चली थी,
असलम और ठाकुर साहेब हवेली के आंगन मे बैठे बतिया रहे थे,
असलम बता चूका था की वो चमेली को उसके गांव छोड़ आया है
वही ठाकुर साहेब भी बहुत ख़ुश थे आज से पहले इस तरह की कामक्रीड़ा उन्होंने कभी नहीं की थी.
अब उनके दिल मे कसक उठने लगी की कामवती भी उन्हें यही सुख दे

परन्तु कामवती तो ना जाने किस उलझन मे थी जब से सो के उठी है उसके मन मे हज़ारो सवाल उठ रहे है.
कौन है वो दोनों पुरुष? क्यों सब कुछ हक़ीक़त लगता है?
रह रह के उसका बदन झुरझुरी पैदा कर रहा था.
उसने खुद अपनी आँखों से अपनी माँ रतिवती को यौन सुख लेते देखा था एक बार को तो उसकी योनि भी पसिज गई थी.
वो अपनी ही सोच मे डूबी हुई थी की दरवाजे पे दस्तक होती है.
"किस सोच मे डूबी हो ठकुराइन?"
ठाकुर ज़ालिम सिंह कामवती के प्रति असक्त उसे देखने चले आये थे
"ठाकुर साहेब आप? आइये आइये " बोलती कामवती बिस्तर से उठ गई
ठाकुर :- हम देख रहे है तुम ख़ुश नहीं हो हमसे?
कामवती :-ना...ना....ऐसा नहीं है ठाकुर साहेब वो तो बस तबियत दुरुस्त नहीं है.
लो ठाकुर तो सोच के आया था की कामवती से कुछ प्यार भरी बाते करेगा ताकि रात मे उसके साथ कामक्रीड़ा कर सके परन्तु यहाँ तो कामवती ने तबियत का हवाला दे दिया था.
ठाकुर :- अब तो तुम्हारी माँ भी आ गई है फिर क्यों मन नहीं लग रहा.
माँ का नाम सुनते ही कामवती की आँखों मे वही दृश्य दौड़ गया जब असलम अपना मुँह रतिवती की गांड मे घुसाए चाट रहा था.
कामवती के बदन मे झुरझुरी सी हुई.
"क्या हुआ कामवती?" ठाकुर ने अपना हाथ कामवती के हाथ पे रख के पूछा.
कामवती की तरफ से कोई जवाब नहीं था.
ठाकुर के जहन मे आने लगा की स्त्री का तन पाने के लिए पहले मन जीतना होता है.
"अच्छा चलो कल सेर पे चलते है "
कामवती चहक उठी "कहाँ कहाँ...चलेंगे हम "
जब से कामवती हवेली आई थी उसका तो बचपना ही छीन गया था ना कही घूमना ना किसी से मिलना
आज घूमने की बात आई तो वो किसी बच्ची की तरह उछाल पडी.
ठाकुर साहेब उसे ख़ुश देख के प्रफुल्लित हो गए "कल सुबह ही चलेंगे वो पहाड़ी पे मंदिर है ना वही, अपनी माँ को भी बोल देना वो भी घूम लेंगी "
ठाकुर साहेब एक मुस्कान देते हुए कामवती की हथेली दबा बाहर की ओर निकल जाते है.

मुर्दाबाड़ा काबिले मे
कामरूपा की जीभ ना चाहते हुए भी किसी सांप की तरह बाहर को लप लपा रही थी उसे काबिले के जंगली लोगों के लंड से आती महक उकसा रही थी वो चाहती थी की एक बार इस कामुक महक छोड़ते अंग को चख ले हालांकि उसका दिमाग़ उसे ऐसा करने से रोक रहा था परन्तु हवस कहाँ दिमाग़ की सुनती है वो तो बस नदी का प्रवाह है जो सिर्फ बहना जानती है चाहे मार्ग मे कोई भी रूकावट आ जाये सब कुछ तोड़ के हवस अपने उन्माद पे निकल पड़ती है कामरूपा भी अपने उन्माद रुपी घोड़े पे सवार हो दौड़ चली थी की तभी सरदार भुजंग का गर्म मोटा लंड उसकी जबान से छू गया
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आआहहहह....क्या अहसास था एक दम कसैला गन्दा स्वाद परन्तु ये क्या इस एक छुवन से कामरूपा का बदन कांप गया आंखे बंद हो गई ऐसा कामुक स्वाद उसने अपने इतने लम्बे जीवनकाल मे नहीं चखा था.
भुजंग :- हे सुंदरी ये ही है हमारा जादू कोई भी स्त्री हमारे लंड को देखने के बाद खुद को रोक नहीं पाती जैसे तू नहीं रोक पा रही खुद को.
कामरूपा को ये बात अब समझ आने लगी थी की भुजंग सच बोल रहा है, लाख कोशिश करने के बाद भी वो अपना मुख बंद नहीं कर पा रही थी उसके बदन मे हज़ारो बिजलिया कोंध रही थी वो अब अपने हवस के अंजाम को भी भूलती जा रही थी.
की उसकी हवस ही उसकी मौत है.
जीभ बाहर निकाले किसी कुतिया की तरह लार टपकाती कामरूपा एक टक अपने चारो तरफ घूमते लम्बे काले मोटे लोड़ो को घूरति जा रही थी.कभी एक लंड की तरफ मुँह बढ़ाती तो वो शख्स पीछे हट जाता तो दूसरी तरफ मुँह चलाती परन्तु एक भी लंड मुँह को नहीं आ रहा था बस लंड उसके गाल सर और स्तन पे चोट कर के हट जाते,कामरूपा सिर्फ तड़प के रह जाती
उसे ये तड़प उन्माद सहन नहीं हो रहा था उसके स्तन फूल के गुब्बारा हो गए थे, निप्पल किसी कील की तरह तीखे हो के तन गए थे चुत लगातार पानी बहाये जा रही थी..
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कामरूपा :- सरदार भुजंग और ना तड़पाओ, आआहहहह...... कामरूपा के गले से हवस की चिंगारीया फुट रही थी उसके हाथ उसके बस मे नहीं थे कभी अपने स्तन रगड़ती तो कभी अपनी कोमल मखमली गद्दाराई चुत को कुरेदती.
भुजंग :- देवता प्रसन्न हुए अब भोगने का वक़्त आ गया है.
ऐसा बोल भुजंग अपना भयंकर हाहाकारी लंड कामरूपा के खुले लार टपकाते मुँह मे ठूस देता है
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लंड इतना मोटा था की कामरूपा का मुँह लगभग फट ही गया था होंठों के किनारे से पतली खून की लकीर चल पड़ी थी परन्तु कामरूपा ने उफ़ तक नहीं की जाने क्या उन्माद सवार था उसके सर पे दर्द तकलीफ के आगे हवस वासना निकाल गई थी.
आअह्ह्हम.....गलप गुलप करती कामरूपा हाहाँकारी लंड को निगलने लगी दर्द की टिस को कम करने के लिए उसके हाथ लगातर अपनी रस बहती चुत को कुरेद रहे थे.
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आस पास खड़े काबिले के लोग गुफा मे इस भयंकर मंजर को देख अपने अपने लंडो पे ताव दे रहे थे उनका नम्बर भी आना ही था शिकार शुरू हो चूका था.
सरदार भुजंग का लंड जड़ तक कामरूपा के मुँह मे समा गया था बड़े भारी भरकम टट्टे उसके होंठ से चिपक के लार मे भीग रहे थे,लंड की जड़ मे मौजूद घने बालो के गुछे कामरूपा की नाक मे घुस गए.
सांस लेना भी दुभर था,कामरूपा गु गू करती छटपटाने लगी उसके हाथ भुजंग की जांघो पे कस गए उस से रहा ना गया जोर से सांस अंदर खींची को एक तेज़ कैसेली गन्दी मादक महक उसकी नसीका से होती हुई दिमाग़ मे चढ़ गई जैसे चिलम का नशा खिंचा हो उसने,आंखे सुर्ख लाल,स्तन किसी पर्वत की तरह तन गए निप्पल किसी कील की भांति भुजंग की जांघो मे पेवस्त हो गए.
कामरूपा ने ऐसा अनोखा आनन्द ऐसा उन्माद कभी महसूस नहीं किया था उसका बदन जैसे जल रहा था जल क्या रहा था ज्वालामुखी को तरह फटने को आतुर था,
वो जानती थी की उसकी चुत से ज्वालामुखी फूटा इधर उसके प्राण गए परन्तु इस आग मे तड़पने से अच्छा था की मृत्यु ही आ जाये,हवस है ही ऐसी चीज.
कामरूपा भुजंग के लंड को अंदर ही अंदर जीभ से चुबलाने लगी.
"आअह्ह्ह.....तू तो बड़ी खिलाडी मालूम होती है " भुजंग इस प्रहार से सिसकता हुआ बोला.
कामरूपा अपनी तारीफ सुन आंखे ऊपर कर भुजंग को देखती है एक काला दानव उसके मुँह मे लंड डाले खड़ा था ना जाने क्यों उसे ये सब पसंद आ रहा था वो अपना सर आगे को बड़ा देती है जैसे तो लंड के साथ उन बड़े टट्टो को भी निगल जाएगी.

भुजंग और बाकि के सेवक भी ये दृश्य देख हैरान थे आज तक कोई स्त्री ऐसा नहीं कर पाई थी मुँह मे ही मुश्किल से जाता था भुजंग का लंड यहाँ तो कामरूपा और अंदर लेने का प्रयास कर रही थी.
कामरूपा के होंठ लंड की जड़ पे कस गए और आगे पीछे होने लगे,जैसे ही कामरूपा के होंठ बाहर खींचते हुए लंड के सुपडे तक आते कामरूपा वापस गुलप कर अपने होंठ जड़ तक दे मारती,
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भुजंग के टट्टे कामरूपा के होंठ से टकरा के मधुर कामुक संगीत पैदा करते.
मादक दृश्य मादक संगीत सुन सभी के लंड कामरूपा की वाह वही कर उठे.
चप..चप....आअह्ह्ह....आअह्ह्ह.....फच फच...की आवाज़ के साथ भुजंग का लंड कामरूपा के गले तक गोते लगा के वापस आ जाता,
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थूक से सना लंड चमक पैदा कर रहा था.
कामरूपा अपनी मस्ती मे मस्त लंड को खाये जा रही थी उसके बदन की गर्मी इस कदर बढ़ गई थी की उसकी उंगलियां चुत की दिवार को कुरेद रही थी उसे इस गर्मी को निकलना था.
मुँह से निकलता थूक गले से होता हुआ स्तन को भीगा चूका था, लपा लाप जबान और होंठ भुजंग के काले लंड पे दौड़ रहे थे.
जैसे कामरूपा पूरा ही निगल जाएगी वहा मौजूद सभी मर्द इस रंडीपने पे हैरान थे की कोई औरत इस कदर भी कामुक और मदहोश हो सकती है.
"आअह्ह्ह....आअह्ह्ह..... कामरूपा " बस बस कर
भुजंग का सब्र जवाब देने लगा था आजतक इतनी जल्दी झड़ने की कगार पे नहीं आया था मुर्दाबाड़ा काबिले का सरदार भुजंग.
परन्तु आज उसे ये फिसलन ये गर्माहट बर्दाश्त नहीं हो रही थी उसका पाला आज बला की कामुक औरत से जो पडा था.
इधर कामरूपा को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था वो सिर्फ लंड का स्वाद ले रही थी उसे इस से ज्यादा स्वादिष्ट व्यंजन कभी नहीं मिलना था उसके हाथ लगातार अपनी योनि की गहराइयों को खांघाल रही थी.
जैसे वो अपनी योनि की गहराई मे कुछ ढूंढ रही हो ढूंढ के बाहर निकाल देना चाहती हो परन्तु आज वो इतनी गर्म होने के बावजूद भी नहीं झड़ रही थी कभी लगता था की कामरस का ज्वालामुखी फटने को ही है परन्तु जैसे ही चुत मे ऊँगली डाल के वो उस कामरस को बाहर निकलने की कोशिश करती वो ज्वालामुखी ना जाने कहाँ गायब हो जाता.
कामरूपा तड़प रही थी उसे स्सखालन चाहिए था उसे अपनी आग ठंडी करनी थी इस झुनझूलाहट मे कामरूपा भुजंग के लंड को पूरा जड़ तक निगल लेती है थूक से उसका मुँह और लंड इतना चिकना और बड़ा हो गया था की भुजंग के भरी भरकम टट्टो को भी मुँह मे भर लेती है उसके होंठ भुजंग के पेट से चिपक गए थे.
आह्हः...आह्हः...बस कर भुजंग झड़ने लगा था उसके लंड से निकला ढेर सारा वीर्य सीधा गले मे निकलने लगा और सीधा जा के पेट मे एकत्रित होने लगा.
वीर्य निकलते ही भुजंग धाराशाई हो गया इतनी जल्दी और इतनी बुरी तरह वो कभी नहीं झड़ा था जैसे उसके प्राण लंड के रास्ते निकाल कामरूपा के शरीर मे समा गए हो.
परन्तु ये क्या कामरूपा अभी तक किसी वहशी की तरह लंड को मुँह मे घुसाते चूसती जा रही थी.
भुजंग के लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल था "पीछे हट साली रंडी " बोल के भुजंग लात मर के दूर फेंक देता है.
कामरूपा :- साला नामर्द कही के इतनी जल्दी झड़ गया कोई मर्द है यहाँ पे या सब सरदार की तरह ही नपुंशक है.
आअह्ह्ह...आआहह..... कामरूपा जमीन पे गिरी पैर फैलाये अपनी चुत की धज्जिया उडाने मे लगी थी लगभग उसकी पांचो उंगलियां उसकी चुत मे समा गई थी
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परन्तु उसकी गर्मी कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी.
सारे काबिले के मर्द औरत का ये रूप देख के हैरान थे ऐसा यौवन ऐसा कामुक नजारा कभी किसी ने नहीं देखा था. टांगे फैलाये अपने स्तन दबाती कामरूपा सभी मर्दो के बीच तड़प रही थी हवस की प्रचंड आग मे
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कामरूपा सभी मर्दो की तरफ उम्मीद की नजर से देख रही थी की कोई तो उसकी हवस मिटाये उसकी चुत की खुजली शांत करे की तभी कामरूपा के कानो मे आवाज़ गूंजती है
"जा ये मेरा श्राप है जैसे तूने मुझे सम्भोग के लिए तरसाया है तू भी वैसे ही तरसेगी,तेरी हवस कभी शांत नहीं होंगी "
कामरूपा के मस्तिष्क मे उलजुलूल के द्वारा दिया गया श्राप गूंजने लगा उसे अहसास होने लगा था की तांत्रिक का श्राप सच हो गया है.
बने रहिये कथा जारी है
 
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रात का अंधेरा पसरने लगा था,सुनसान जंगल मे चोर मंगूस अपनी असफलता को मिटाने के लिए भटक रहा था,उसे कैसे भी कर के कामरूपा को ढूंढ निकालना था.
"उफ्फ्फ्फ़...ये भूरी काकी कहाँ मर गई पूरा जंगल छान मारा, हरामी छिनाल मेरे नाम पे धब्बा लगा गई,आज तक कोई भी चोरी का माल मेरे हाथ से नहीं निकला है.
खुद मे ही बड़बड़ता चोर मंगूस एकाएक ठिठक जाता है "ये इतनी सारी माशाले क्यों जल रही है? ये उस पहाड़ी पे रौशनी दिख रही है.
मुझे देखना होगा.. मंगूस को आशा की किरण नजर आ चुकी थी वो उस रौशनी की और बढ़ चला था जो की पहाड़ी मे स्थित गुफा से फुट रही थी
वही गुफा के अंदर कामरूपा अपने ज्वालामुखी मे हाथ डाले फुटना चाहती थी परन्तु उसकी लाख कोशिश के बाद भी वो कामयाब नहीं हो पा रही थी.
सरदार भुजंग अब तक अपनी सांसे दुरुस्त कर चूका था,
"हमफ्फ..हमफ़्फ़्फ़....देख क्या रहे हो कमीनो टूट पढ़ो इस छिनाल पे साली मे बहुत आग है एक एक बोटी नोच लो इसकी "
सरदार का आदेश पाते ही सेनापति मरखप और उसके आदमी टांग फैलाये कामरूपा की और बढ़ चले सभी के काले मोटे भयानक लंड हुंकार भर रहे थे.
कामरूपा को भी अपनी कामअग्नि बुझाने की उम्मीद दिख पड़ी थी.उसे कतई डर नहीं था की 6 मर्द वो भी भयानक लंड के मालिक उसका क्या हाल करेंगे,उसे तो मरना भी मंजूर था अपनी हवस मिटाने के लिए.
सभी मर्दो ने कामरूपा के चारो तरफ घेरा डाल लिया,कामरूपा इतनी ज्यादा गरम थी की लपक के अपने हाथो से दो आदमियों के मोटे लोड़ो पे कब्ज़ा जमा लिया और उन्हें अपने हाथो से मसलने लगी.
आअह्ह्ह....अह्ह्ह....इस कदर रंडीपने से सभी मर्दो की आह निकल गई.
मरखप इस उत्तेजना से भरे दृश्य को देख ना सका कामरूपा को फैली हुई टांगो के बीच अपने घुटने टिका दिए उसके भरी भरकम लंड ने कामरूपा की चुत पर दस्तक दे दी.
मरखप को तो ऐसे लगा जैसे उसने अपना लंड किसी गरम तवे पे रख दिया हो.
"आअह्ह्ह....कितनी गरम छिनाल है रे तू आज तो मजा आ जायेगा "
ऐसा बोल मरखप अपने लंड को कामरूपा की रस बहाती चुत के मुहने पे रख देता है, लंड इतना मोटा था की पूरी चुत ही ढक ली थी.
सभी की निगाहेँ उसी गठजोड़ पे ठीक गई थी एक पल को कामरूपा भी दहशत मे आ गई थी उसने अपने हाथो मे थामे लंड को बुरी तरह भींच लिया था.
चुत पूरी तरह गीली हो रस टपका रही थी कामरूपा की चुत को कोई मतलब नहीं था वो स्वागत के लिए मुँह बाये लार टपका रही थी.
आअह्ह्ह.....फुर्ररररररर.....आअह्ह्ह....कामरूपा की आंखे उलट गई उसकी चुत मे एक जोरदार धमाका हुआ फच कर के अंदर का पानी बाहर को आ गया.
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मरखप का हाहाकारी लंड कामरूपा की गरम रस उगलती चुत मे पेवास्त हो गया था.
लंड था की समाता जी जा रहा था कामरूपा के हाथ दोनों सेवको के लंड पे भींच गए थे जैसे तो वो उखाड़ ही देगी.
"आअह्ह्ह....मै मर जाउंगी बाहर निकालो इसे "
खेली खाई कामरूपा भी चित्कार उठी.
"क्यों बे छिनाल बड़ी रांड बन रही थी क्या हुआ अब?" पास बैठा सरदार खुशी से चहक उठा उसे ऐसा लगा जैसे उसका बदला मरखप ने ले लिया हो.
सरदार :- इसकी चुत फाड़ दे रे मरखप इसका मक्खन तो चखा सबको देखे कितनी ताकत है इस गद्दाराये बदन मे.
मरखप को ये आदेश ना मिलता तब भी वो नहीं रुकने का था.
वो बिना किसी परवाह है जानवर की तरह अपना लंड बाहर खींचता है और वापस एक झटके मे वापस ठेल देता है पूरा जड़ तक उसके टट्टे कामरूपा की गांड से जा टकराये जो इस बात का सबूत था की कामरूपा को बच्चेदानी को भेद के लंड अंदर जा चूका है.
आअह्ह्ह....आअह्ह्ह....मर गई " कामरूपा मारे दर्द के होने बाल नोच रही थी दर्स और तड़प से उसकी चुत सुख गई थी.
लंड इतना टाइट घुसा था थी अंदर और कोई जगह ही नहीं थी पानी की भी नहीं.
मरखप अपनी जीत पे मुस्कुरा उठा जिस औरत ने उसके सरदार भुजंग को भी तारे दिखा दिए थे उस कामुक औरत की चुत फाड़ दी थी सेनापति मरखप ने.
"वाह मरखप वाह....तेरे लंड मे वाकई दम है " सरदार ने उसकी तारीफ करते हुए ताली बजा दी.
मरखप अपनी प्रशंसा सुन जोश मे भर गया इसी जोश मे फिर से लंड को सुपडे तक बाहर निकाला और वापस एक झटके मे बच्चेदानी के अंदर समा गया.
अब ये सिलसिला चल पडा ठप ठप ठप...तड़ तड़ तड़...की आवाज़ केसाथ मरखप के टट्टे कामरूपा की गांड से टकरा रहे थे..
कामरूपा दर्द से बिलबिलाती अपने बाल नोच रही थी.
तभी पास बैठे आदमियों ने भी अपना मोर्चा संभाल लिया किसी ने स्तन पकड़ लिए तो किसी ने अपना लोडा कामरूपा के मुँह मे ठूस दिया.
चारो तरफ से हमला शुरू हो गया था धीरे धीरे दर्द वासना मे बदलने लगा चुत फिर से पानी छोड़ने लगी
पच पच को आवाज़ के साथ मरखप का लंड कामरूपा की गहरी चुत मे ना जाने कहाँ खोता जा रहा था.
"आअह्ह्ह.....ममममम.....और जोर से और अंदर डाल साले ताकत नहीं है क्या " कामरूपा वासना के घोड़े पे चढ़ी मरखप को ललकार रही थी.
मुँह मे एक के बाद एक लंड घुसते जा रहे थे,थूक और पसीने से पूरा बदन चमक रहा था.
सरदार भुजंग कामरूपा को उत्तेजन देख ख़ुश हो रहा था उसे लग रहा था की कामरूपा जल्दी ही स्सखालित होने वाली है "शाबास मरखप मेरे शेर निकाल दे पानी इस छिनाल का, फिर इसका भोग देवता को लगा के पेट पूजा करंगे,देख कितना मांस चढ़ा है इसके बदन पे"
समय ज्यादा नहीं बिता था कामरूपा का बदन ज्वालामुखी जैसे तपने लगा था,लगता था जैसे की उसका शरीर ही फट जायेगा.
इधर मरखप की हालात लगातार ख़राब हो रही थी उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसका लंड जल रहा है उसने किसी दहकती भट्टी मे लंड ठूस दिया हो.
"आअह्ह्ह......सरदार मे गया "बोल के मरखप कामरूपा के ऊपर ही ढेर होता चला गया.मरखप बुरी तरह हंफ रहा था उसके प्राण निकलते प्रतीत हुए थे उसे.
नीचे दबी कामरूपा अपनी गांड को ऊपर की और उछाल रही थी उसे कोई मतलब नहीं था मरखप के झड़ने से उसे तो और अंदर लंड चाहिए था.
इसी आवेश उत्तेजना मे और अंदर लेने की जिद्द मे कामरूपा अपनी कामुक बड़ी गांड ऊपर को उछाल रही थी. उसका जवालामुखी फटते फटते रह गया था.
मरखप :- नहीं नहीं....और नहीं
कामरूपा अपनी हवस से तिलमिला उठी उसके गुस्से का कोई ठिकाना नहीं था ना जाने कैसे उसने मरखप के सीने पे लात मार दी "नामर्द साले इतना ही दम है तुम सब के लोड़ो मे "
सब साले हिजड़े हो.
ना जाने कामरूपा को क्या हो गया था वो कामअग्नि मे जल रही थी पागल हो गई थी.
उसे अपनी चुत मे लंड चाहिए था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करे.
तभी एक सेवक को पकड़ नीचे गिरा देती है और फटाक से अपनी चुत को उसके खड़े लंड पे रख एक दम अपना पूरा वजन डाल बैठ जाती है.
उसकी बड़ी गांड के नीचे सेवक के टट्टे मसल गए थे "चोद साले तू चोद मुझे बहुत शौक है ना तुम्हे चुदाई का चोद साले मिटा मेरी प्यास "
ना जाने क्या क्या बड़बड़ाती कामरूपा किसी वहांशी पागलो की तरह चिल्ला रही थी अपनी गांड जोर जोर से पाटक रही थी.
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कभी अपने बड़े भाटी स्तन को मसलती तो कभी अपने चुत के दाने को,बाकि सेवक स्त्री का ये रूप देख अतिउन्माद मे लंड मसल रहे थे.
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सरदार भुजंग और सेनापति मरखप ये दृश्य देख हैरान थे,कामरूपा के रोन्द्र रूप से डर रहे थे,
आज तक वो खुद को ही सुरमा समझते थे लेकिन यहाँ दाँव उल्टा पड़ गया था.
"जा कामरूपा तू भी हवस मे जलेगी,तेरी हवस कभी शांत नहीं होंगी " कामरूपा के कान मे तांत्रिक उलजुलूल के शब्द गूंज उठे.
कथा जारी है....
 

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