Adultery किस्सा कामवती का

Member
105
75
30
अपडेट -76

रात का अंधेरा छा गया था, विषरूप ठाकुर की हवेली मे सभी लोग खा पी के सोने को तैयारी मे थे.
आज शाम से ही कामवती चहक रही थी क्यूंकि ठाकुर साहेब ने उसे अगले दिन घुमाने ले जाने का वादा जो किया था.
रतिवती अपने कमरे मे ख़ुश थी, उसने जब से ठाकुर ज़ालिम सिंह से नातेदारी की है तभी से उसके दिन फिर गए थे राज जीवन का आनंद ले रही थी.
ऊपर से कल रात की ताबड़तोड़ चुदाई से उसका अंग अंग महक रहा था, उसका बदन खिल के पूरी तरह गुलाब जैसा महक रहा था.बिल्लू रामु कालू को सांसर्ग उसे पसंद आया था इतना की वो डॉ.असलम को भी भूल गई थी.
अपने कमरे मे आदम कद शीशे के सामने लगभग अर्धनग्न अवस्था मे खड़ी वो हाथ मे थामे उस हिरे को घूर रही थी जो की उसे जंगल मे मिला था.
20210903-215421.jpg

"मै कितनी भाग्यशाली हूँ मेरी बेटी का ब्याह एक ऊँचे ठाकुर खानदान मे हो गया ऊपर से मुझे ये बेशकीमती हिरा भी मिल गया"
नागमणि को हाथ मे लिए रतिवती इतरा रही थी, नागमणि की चमक से रतिवती का कामुक बदन चमक रहा था रतिवती सिर्फ साड़ी लपेटे खड़ी थी उसकी चूचियाँ एक तंग ब्लाउज मे कैद बाहर निकलने को आतुर थी.
परन्तु नागमणि से ज्यादा चमक उसकी आँखों मे थी लालच की चमक और ज्यादा पाने की चमक,लेकिन कहते है ना लालच बुरी बला है..
रतिवती खुली आँखों से हसीन सपने देखते हुए नागमणि को वापस से साड़ी के पल्लू मे बांध लेती है और वही बिस्तर पे धाराशाई हो जाती है.
सुखद सपने उसे अपने आगोश मे ले लेते है.


वही दूर गांव कामगंज मे रतिवती का पति रामनिवास दारू के अड्डे पे एक के बाद एक जाम गटकाये जा रहा था अब उसके पास खूब पैसा था.

images-10.jpg

images-10.jpg

"देख साले रामनिवास को इसके तो दिन ही फिर गए खूब माल पिटा है इसने अपनी बेटी की शादी कर के "
दारू के अड्डे पे किसी कोने मे बैठे 3आदमी आपस मे फुसफुसा रहे थे.
ये तीनो अव्वल दर्जे के जुआरी है,जुए के महान खिलाडी, कामगंज के ही रहने वाले थे.
जेल मे आना जाना लगा रहता था,आज 2 महीने बाद जेल से रिहा हो के दारू चूसक रहे थे.
इन तीनो के मात्र तीन शौक है जुआ,औरत और दारू

एक असरफ
20210919-112216.jpg

ऊँचे कद का, बालो से भरी चौड़ी छाती, मुँह मे तम्बाकू, किसी औरत को चोदने मे आ जाये तो चुत का सत्यानाश कर देता है.
हमेशा मुस्लिम टोपी पहने रहता है इसे सब उस्ताद कहते है
बातो से किसी को भी फसा लेने मे माहिर


दूसरा सत्यनारायण मिश्रा
images-9.jpg

जन्म से जनेऊधारी ब्राह्मण,दिमाग़ से चतुर बनिया, शरीर से सादहरण
परन्तु ना जाने कैसे जुए और ठगी के धंधे मे आ गया.
दिखने मे गिरा चिट्टा साफ सुथरा कोई कह ही नहीं सकता की ये ठग है. पत्ते बाटने और फेटने मे इसकी कलाकारी है.
दिमाग़ ऐसा की खड़े खड़े किसी को ठग ले.
इसे इसके असली नाम से कोई नहीं जनता सब इसे सत्तू ही कहते है.

तीसरा करतार सिंह
images-8.jpg

पगड़ीधारी सरदार इसे सिर्फ एक ही काम आता है मार पिटाई का इतना तगड़ा की एक हाथ रख भी दे तो आदमी ढेर हो जाये.
इसका काम वसूली का है जुए मे हारा हुआ खिलाडी पैसे देने से मना तो कर के देखे उसकी खाल खिंच लेता है.
सत्तू : उस्ताद ये रामनिवास के जलवे देख रहे हो,बहुत माल पीटा है इसने ठाकुर से.
करतार :- हाँ यार सत्तू बोलता तू सही है पहले उधारी दारू पीता था आजकल अंग्रेज़ों वाली पीता है ऊपर से पिलाता भी है.
उस्ताद :- तो फिर सोचना कैसा इसे ही बना लेते है बकरा बेचारा बुढ़ापे मे इतने पैसो का करेगा क्या.
हाहाहाहा....तीनो हस पड़ते है.
करतार :- लेकिन क्या वो हमारे साथ जुआ खेलेगा?
सत्तू :- क्यों नहीं खेलेगा? पैसा है उसके पास और मै किस खेत की मूली हूँ.
मै अभी आया....इशारा करू तो तुम लोग आना.
बोल के सत्तू रामनिवास की टेबल की और बढ़ जाता है.
रामनिवास एक बोत्तल दारू गटका चूका था और उसकी गन्दी आदत थी की पिने के बाद उसे सब दोस्त ही नजर आते थे.
सत्तू :- अरे रामनिवास बहुत दिन बाद दिखा, सत्तू कुर्सी पे बैठता हुआ बोला.
रामनिवास :- कौन भाई? मैंने पहचाना नहीं?
नशे मे चूर आंखे मीचमीछाते हुए रामनिवास बोला.
सत्तू :- साले तू दारू पीने के बाद हमेशा भूल जाता है तेरा बचपन का दोस्त सत्तू.
रामनिवास :- अरे सत्तू तुम आओ आओ बैठो, ये लो तुम भी पियो.
दारू से भरी गिलास सत्तू की और बड़ा दी.
सत्तू :- अरे राम निवास इस कदर कब तक पियेगा? आगे कुछ सोचा भी है या नहीं?
रामनिवास :- मतलब मै समझा नहीं?
सत्तू :- देख मै तेरा बचपन का दोस्त हूँ इसलिए समझा रहा हूँ.
नशे मे चूर रामनिवास को सत्तू के अंदर अपना हितेषी नजर आने लगा.
"ऐसे ही पीता रहा तो पैसा एक ना एक दिन ख़त्म हो जायेगा फिर क्या करेगा?"
रामनिवास इस बार वाकई गहरी सोच मे डूब गया.
रामनिवास :- बात तो तेरी सही है मेरी बीवी भी यही बोलती है
सत्तू :- तो तूने कुछ सोचा
रामनिवास :- मुझे तो खेतो मे काम करने के अलावा कुछ नहीं आता दोस्त
सत्तू :- तू गधा ही रहेगा, मजदूर ही रहेगा कुछ बड़ा मत सोचना
रामनिवास :- तो तू ही बता क्या करू मै?
सत्तू :- देख तेरे पास पैसा है और मेरे पास दिमाग़
हम जल्दी से जल्दी ज्यादा पैसे कमा सकते है ताश खेल के.
रामनिवास ने पहले भी खाली टाइम पे जुआ खेला था छोटी मोटी रकम का यूँ ही समय काटने के लिए.
गांव की चौपाल पे कुछ दोस्त जुआ खेल लिया करते थे दारू पिलाने की शर्त पे जिसमे रामनिवास लगभग हमेशा जीत ता था.
रामनिवास :- चेहक के...अरे वाह ताश का जुआ खेलने मे तो मै उस्ताद हूँ इस से पहले ये विचार मेरे दिमाग़ मे क्यों नहीं आया पैसा कमाने का.
सत्तू :- तेरे मुँह से ये दारू की बोतल निकले तब ना कुछ सोचेगा, चल मेरे साथ आज पैसे पीटते है.
रामनिवास को अपने ऊपर खूब भरोसा था ऊपर से दारू और पैसे की गर्मी वो जल्द ही सत्तू के जाल मे फस गया.
और सत्तू के साथ दारू के अड्डे के बाहर निकाल लिया
सत्तू ने इशारे से उस्ताद और करतार को भी बता दिया की बकरे ने चारा खा लिया है
रामनिवास :- हम कहाँ जा रहे है?
सत्तू :- मेरी नजर मे दो आदमी है जिनके पास मोटा माल है उनसे ही जुआ खेलेंगे.
गांव के बाहर झोपडी मर ही रहते है.
रामनिवास लालच के नशे मे चूर सत्तू के पीछे पीछे चल पडा. मन ही मन पैसो के ख्याब देख रहा था "रतिवती मुझे हमेशा गाली देती रहती है अब उसे भी पैसे कमा के दिखा दूंगा मै "

गांव घुड़पुर
टप टप टप...तिगाड़ तिगाड़
घोड़े की कदम ताल सुन के ठकुराइन रूपवती अपनी भीमकाय काया के साथ कमरे से बाहर आई.
वीरा...वीरा....आ गए तुम?कैसा है हमारा भाई?
लेकिन जैसे ही वो वीरा को देखती है हैरानी से उसकी आंखे फटी रह जाती है.
"ये....ये...कौन है वीरा?"
वीरा रुखसाना को अपनी पीठ से नीचे उतरता है और खुद मानव रूप मे आ जाता है.
रुखसाना जो अभी अभी सर्पटा के खौफ से बाहर भी नहीं आई थी की ये नजारा देख उसका दिल मुँह को आ जाता है उसके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी.
रुखसाना :- ये सब क्या हो रहा है? कौन हो तुम लोग?
रूपवती :- ये लड़कियों कौन है वीरा? मेरा भाई कहाँ है?
वीरा :- रुखसाना डरो मत अब तुम सुरक्षित हो मेरी बहन.
मालकिन मै सब बताता हूँ अंदर चलिए.
अंदर पहुंच वीरा रूपवती को सर्पटा से मुड़भेड़ का सारा किस्सा कह सुनाता है.
रुखसाना जो अब तक बैचैन थी वो आश भरी निगाहो से कभी रूपवती को देखती कभी वीरा को.
वीरा रुखसाना को पिछले जन्म की कहानी सुना देता है की कैसे उसकी मौत हुई थी,सर्पटा ने घुड़वती का बलात्कार कर मार डाला था..

रुखसाना :- इसलिए वो मेरे पीछे पडा है, सर्पटा से बदला लेने ही निकली थी मै
रुखसाना की आँखों मे अंगार थे परन्तु वीरा के लिए आदर भी था उसे बरसो बाद कोई अपना मिल गया था.

पति पत्नी दोनों ही लालच के आगोश मे समा रहे थे देखना होगा की लालच कहाँ जाता है
क्या रामनिवास जीतेगा या फिर युधिष्ठिर की तरह सब कुछ हार बैठेगा?
बने रहिये कथा जारी है...
 
Member
105
75
30
अपडेट -77

आअह्ह्ह.....आअह्ह्ह....और तेज़ मारो हरामियों नामर्द हो क्या सब के सब.
मुर्दाबाड़ा काबिले मे रात के सन्नाटे को चिरती कामरूपा की आवाज़ गूंज रही थी,कामरूपा किसी घायल शेरनी की तरह खूंखार वहांशी हो उठी थी.
सेवक के लंड पे अपनी गांड पटकते पटकते उसे काफ़ी समय बीत चूका था परन्तु वो अपने चरम पे नहीं पहुंच पा रही थी यही खीज और बदन की गर्माहट उसे चैन नहीं लेने दे रही थी गुस्से और हवस मे वो जो मन मे आता बके जा रही थी.
नीचे लेता सेवक अपने प्राण की खेर मना रहा था उस से अब रुका नहीं जा रहा था.
gif-sexy-ass-riding-bbc-5f023db7e5f1c.gif

पास बैठा सरदार भुजंग ये कामुक नजारा देख बेकाबू होता जा रहा था उसका लंड वापस अकड़ने लगा था.
"साली बहुत बड़ी छिनाल है " भुजंग अपनी जगह से उठ खड़ा होता है उसका हाहाँकारी लंड जांघो के बीच झूल रहा था.
कामरूपा उस देत्य को अपनी और बढ़ता देख ख़ुश हुई की शायद अब उसकी प्यास बुझ जाये.
कामरूपा ने उन्माद मे भर अपने स्तनों को भींच लिया जैसे भुजंग का हौसला बढ़ा रही हो.
भुजंग कामरूपा की बड़ी गांड को ही घूर रहा था सेवक के लंड पे अपनी गांड पटक पटक के लाल कर ली थी.
भुजंग चलता हुआ कामरूपा के पीछे आ चूका था जहाँ उसकी गांड का लाल चिद्र चुत रस और थूक से सना हुआ चमक रहा था गुहा छिद्र की चमक भुजंग की आँखों मे साफ देखि जा सकती थी.
भुजंग घुटने के बल बैठता चला गया उसका काला भयानक लंड कामरूपा की गरम सुलगती गांड मे पडा तो कामरूपा के मुँह से एक सुखद आनंदमयी आअह्ह्हम्मम..निकल गई.
भुजंग का लंड किसी काले सांप की भांति कामरूपा की गोरी मखमली बड़ी गांड पे लौट रहा था,
कामरूपा को कुछ कुछ अंदाजा हो चला था की क्या होने वाला है परन्तु वो इस कदर काम अग्नि मे जल रही थी की उसे अंजाम को परवाह नहीं थी उसे सिर्फ हवस मिटानी थी अपनी चुत की गर्मी को बाहर निकालना था अब चाहे गांड के रास्ते निकले या फिर चुत के रास्ते.
भुजंग अपने लिंग को पकड़ कामरूपा की गांड की दरार मे चलाने लगा,कमरे मे सन्नाटा छा गया था नीचे से चुत मे लंड घुसए सेवक भू शांत था सिर्फ कामरूपा की मदहोशी से भरी सांसे चल रही थी नाथूने फूल पिचक रहे थे.
की तभी आआआ.....अअअअअ....हहहहहह....की आवाज़ ने सन्नाटा को चिर दिया पास खड़े दर्शक गण खुशी से झूम उठे इस चीख मे हवस का जायका था.
भुजंग का लंड कामरूपा की बड़ी गांड के छोटे छेद मे आधा घुस चूका था.
पिच...करती एक खून की पतली धार ने भुजंग के लंड का तिलक अभिषेक कर दिया.
कामरूपा की गांड फैलती चली गई....आआहहहह.....आअह्ह्ह..... दर्द इतना भीषण था की कामरूपा की चुत से फर फ्रा के पेशाब छूट गया.
पेशाब इस कद्र दबाव से निकला की चुत मे घुसा सेवक का लंड बाहर को फिक गया.
"आअह्ह्ह....सरदार आअह्ह्ह....रुकना नहीं और अंदर " कामरूपा मदहोशी मे चीख उठी.
ये क्या....जिस सरदार भुजंग के लंड से औरते मर जाया करती थी,पानी मांगने लगती थी आज वो ही लंड ये कामरूपा और अंदर डालने की बात कर रही है.
वहा मौजूद सभी आदमी आश्चर्य चकित रह गए किस तरह की औरत है ये.
कामरूपा जो कामवासना से घिरी हुई थी उसे क्या लेना देना था उनके आश्चर्य से उसे सिर्फ अपने शरीर की गर्मी निकालनी थी.
कामरूपा के ये शब्द भुजंग के अभिमान पे चोट की तरह था,उसकी मर्दानगी पे सवाल था.
भुजंग :- साली छिनाल.....ये ले बोलते हुए भुजंग ने एक ही झटके मे अपना पूरा राक्षसी लंड कामरूपा की गांड मे घुसेड़ दिया.
फिर क्या था.....धचा धच धचा धच..... गांड मे लंड जाने लगा.
unnamed.gif

सुपडे तक बाहर आता फिर टट्टो तक अंदर चला जाता.
कामरूपा :- आअह्ह्ह....आअह्ह्ह.... सरदार और जोर से आअह्ह्ह..... फाड़ मेरी गांड...आअह्ह्ह... और अंदर और अंदर
कामरूपा पागल हो चुकी थी उस से उसका बदन नहीं संभाल रहा था
पास खड़े मरखप और बाकि सेवक भी कामरूपा पे टूट पड़े
सामूहिक हमला हो चूका था कभी किसी का लंड मुँह मे तो कभी चुत मे तो कभी गांड मे....
कामरूपा अकेले ही 7 मर्दो से मुकाबला कर रही थी.
मारे लज्जात हवस के आंखे बंद होती तो कभी खुलती.
kagney-lynn-karter-blacked-out-dp-blowjob.gif


इधर रामनिवास सत्तू के पीछे पीछे चलता जा रहा था.
नजदीक ही झपड़ी दिखाई देती है
सत्तू :- आओ रामनिवास
उस्ताद :- अरे सत्तू ये किसे ले आया?
सत्तू :- उस्ताद ये अपना पुराना यार है आज दारू खाने पे मिल गया था सोच साथ ले आउ खेल लेगा ये भी.
जैसा उन्होने प्लान किया था रामनिवास के सामने वैसे ही बात चल रही थी.
रामनिवास झोपडी मे अंदर आ गया सभी का आपस मे परिचय हुआ.
और जिस काम के लिए रंगमंच सेट हुआ था वो काम भी शुरू हो गया.
चारो के पत्ते बट चुके थे,पहला दवा रामनिवास आसानी से जीत गया.
उस्ताद :- अरे वाह कमाल खेलते हो तुम तो
सब मुझे उस्ताद बोलते है लेकिन असली उस्ताद तो तुम निकले.
रामनिवास अपनज तारीफ और जीते हुए पैसे देख गदगद हो गया.
उसे लगने लगा वो वाकई मे जुए का उस्ताद है.
जबकि ये सब उन तीनो ठगों की योजना का हिस्सा था.
दूसरा दाँव खेला गया ये भी राम निवास जीत गया,तीसरा खेला गया ये भी रामनिवास जीत गया.
ऐसे ही और कुछ दाँव खेले गए और सभु रामनिवास जीतता गया.
तीनो के मुँह लटक गए, रामनिवास तो खुशी के मारे हवा मे उड़ रहा था.
सत्तू :- यार रामनिवास तूने तो हम सबको एक बार मे नंगा कर दिया, सत्तू लगभग रोते हुए बोला.
रामनिवास :- दिल छोटा मत कर सत्तू ये तो खेल का हिस्सा है हार जीत होती रहती है.
ये ले कुछ पैसे दारू प लेना, रामनिवास ने सत्तू की और पैसे फेंक दिए.
रामनिवास को अपनी किस्मत पैसे का घमंड हो चूका था
उसे लगता था की लक्ष्मी माँ उस पे मेहरबान है इसी गुरुर मे छाती चौड़ी किये वो झपड़ी से बाहर निकल चला

पीछे....
उस्ताद :- हाहाहाहा....बकरे ने चारा खा लिया है.
सत्तू :- हाँ उस्ताद देखि आपने उसकी आँखों की चमक साला लगता था की जैसे कोई पक्का जुआरी हो.हाहाहाहाबा....
करतार :- कल आएगा अब बकरा खुद हलाल होने.
उस्ताद :- हाहाहाहा.... ला भाई दारू पीला.

सुबह होने मे अभी वक़्त था
रामनिवास को आज रात भर नींद ही नहीं आई थी उसकी आँखों के सामने पैसे नाच रहे थे बेशुमार दौलत जो वो जुआ खेल के कमा सकता था.
लेकिन जुए मे ज्यादा पैसे कमाने के लिया पैसे भी ज्यादा चाहिए और सभी पैसो पे तो रतिवती कब्ज़ा कर के बैठी थी.
"रतिवती को कैसे मनाऊंगा?" ऐसे तो पैसा रखे रखे खत्म भी ही जायेगा.
रामनिवास अपनी किस्मत पर गुरुर करता हुआ काफ़ी कुछ सोचे जा रहा था आखिर कार निर्णय ले ही लिया उसने.
"भौर होने वाली है विषरूप जा के रतिवती को ले आता हूँ मना लूंगा जैसे तैसे आखिर मुफ्त मे मिले पैसे किसे अच्छे नहीं लगते"
रामनिवास लालच मे सुध बुध गवा चूका था उसे सिर्फ ढेर सारी दौलत दिख रही थी.
इसी उद्देश्य से वो रतिवती को लेने निकल पडा.
क्या वाकई रामनिवास की किस्मत तेज़ है या फिर लालच मे अंधा हो गया है.
कथा जारी है....
 
Member
105
75
30
अपडेट -78
images-3.jpg

सुबह कि हलकी रौशनी क्षितिज पे दिखने लगी थी. कामरूपा किसी वहसी पागलो कि तरह गुर्रा रही थी, उठो सालो प्यास बुझाओ मेरी नामर्दो...
आस पास सातों काले रक्षस जैसे मुर्दाबाड़ा काबिले के लोग थके हारे हांफ रहे थे,किसी मे भी उठने का साहस नहीं बचा था,
कामरूपा पूरी तरह वीर्य और पसीने से भीगी गुर्रा रही थी कभी सरदार का मुरझाया लंड टटोलती तो कभी बाकि सेवको का.
images-4.jpg

परन्तु मजाल कि किसी का लंड हरकत कर जाये, अपने लंड से जान ले लेने वाले आज खुद जमीन पे धाराशाई पड़े थे जैसे उनके शरीर मे जान ही ना बची हो.
लगभग मुरछित अवस्था मे थे सारे के सारे.
कामरूपा भी बुरी तरह थक चुकी थी उसकी हालात भी नहीं थी कि अपने पैरो ले खड़ी हो सके फिर भी वो अपनी जान देने पे उतारू थी उसकी चुत से पानी लगातार रिस रहा था साथ मे वीर्य कि धार भी रह रह के निकल पड़ रही थी जो कि रात भर चली चुदाई मे काबिले वालो ने उसकी चुत मे उड़ेला था.
images-5.jpg

कामरूपा अपनी काम अग्नि मे जल रही थी जार जार करती तांत्रिक उलजुलूल को गालिया दे रही थी कभी अपनी गलती पे पछताती.
काम अग्नि हवस और आत्मगीलानी से भरी हुई थी.
उसे अब कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था....पास रखी चट्टान पे नजर पड़ी तो उसकी बांन्छे खिल गई उसे रास्ता नजर आ गया था इस हवस भरी जिंदगी से मुक्त होने का रस्ता.
वो पागलो कि तरह उस चट्टान पे सर पटकने को ही थी कि... छापपाक....छपाक...एक ठन्डे पानी को बौछार ने उसके तन बदन को भिगो दिया.
"आआहहहहह........छप्पआकककक......आअह्ह्ह...." कामरूपा को ठन्डे पानी को बौछार से कुछ राहत मिली.
आंखे पोछती हुई जैसे ही उसने सर ऊपर उठा के देखा "त्तत्त.....तुम....म....ममम....मंगूस....चोर मंगूस ?"
मंगूस :- हां मै भूरी काकी मेरे दुश्मन इतनी आसानी से मर जाये ये मुझे गवारा नहीं, तू तो आम स्त्री है यदि खुद यमराज भी मेरे चोरी का माल छीन के भागता तो उस तक भी पहुंच जाता मै,
चोर मंगूस कभी कोई चोरी अधूरी नहीं छोड़ता ना मरता है.
ये ले कपडे पहन इसे और चल मेरे साथ "
मंगूस ने कपडे कामरूपा कि तरफ उछाल दिए.
कामरूपा जो कि अभी काम अग्नि से बेबस हो जान देने पे उतारू थी अचानक से मगूस को सामने पा के ठंडी होने लगी. क्यूंकि वो मंगूस को मरणासन्न हालात मे छोड़ के आई थी,उसके मुताबिल तो चोर मंगूस मर जाना चाहिए था.
घोर आश्चर्य से उसकी हवस उतरने लगी रही सही हवस ठन्डे पानी ने उतार दी.
मंगूस :- जल्दी निकल भूरी काकी यहाँ से वरना इन काबिलो वालो मे किसी एक का भी लंड जागने लगा तो तेरे बदन कि आग फिर भड़क जाएगी, इनको ऐसा ही वरदान मिला हुआ है.
भल्रे मौत आ जाये परन्तु सम्भोग करना ही है.
देखते है देखते दोनों काबिले से दूर बहुत दूर निकल चुके थे.

सूरज कि पहली किरण फुट पड़ी थी.
गांव विष रूप मे
अरे समधी जी आओ...आओ....इतनी सुबह सुबह कैसे आना हुआ.
रामनिवास :- ठाकुर साहेब वो कामवती कि माँ को लिवाने आये है.
कैसे है कामवती बिटिया? अंदर आते हुए रामनिवास ने अभिवादन किया.
ठाकुर ज़ालिम :- सब ठीक है समधी जी.
कुछ और दिन रहने देते समधिन जी को आज तो पहाड़ी वाले मंदिर पे घूमने जाने का प्लान भी था.
अपने पति कि आवाज़ सुन रतिवती और कामवती भी बाहर आ गई.
"बापू......बापू....बोलती हुई कामवती रामनिवास के गले लग गई "
रामनिवास ने भी अपनी बेटी को खूब स्नेह किया, रामनिवास भले ही निक्क्मा शराबी था परन्तु अपनी बेटी से खूब प्यार करता था.
वही रतिवती जरा भी ख़ुश नजर नहीं आ रही थी उसके लिए तो रामनिवास कबाब मे हड्डी सामान था,यहाँ वो खूब राजसी लुत्फ़ उठा रही थी,जम के सम्भोग सुख भोग रही थी.
"ये कहाँ से आ टपका" मन मे कुनमूनाते हुए रतिवती बोली.
"क्यों जी मेरे बिना मन नहीं लगा क्या?"
रतिवती कि बात सुन सभी हस पड़े.
ठाकुर :- बिल्लू ओह.... बिल्लू...कुछ खाने पिने का इंतेज़ाम कर और डॉ.असलम को बुला ला
सभी लोग मेहमान खाने मे बैठ गए.
कामवती कुछ नाश्ते पानी के इंतज़ाम मे जुट गई.
बिल्लू:-.मालिक...मालिक...डॉ.असलम तो घर पे नहीं है.
मैंने आस पास पता किया किसी को बोल के भी नहीं गए.
ठाकुर :- कोई बात नहु आस पास किसी गांव मे गए होंगे.
ठाकुर बोल तो रहा था परन्तु उसे चिंता भी थी क्यूंकि डॉ.असलम किसी मरीज को देखने भी जाता था तो किसी ना किसी को बोल के ही जाता था "
खेर उसने इस बात पे ध्यान नहीं दिया.
कुछ देर बाद
"अरे समझा करो भाग्यवान आज ही चलना जरुरी है " रामनिवास रतिवती को घर चलने के लिए समझा रहा था परन्तु रतिवती ये ऐशो आराम छोड़ने को तैयार ही नहीं थी.
रतिवती :- तुम समझते क्यों नहीं कामवती के बापू आज तो मंदिर घूमने जा रहे थे हम लोग,ऐसा करो तुम भी साथ चलो फिर कल कामगंज चल देंगे.
रामनिवास को अपनी डाल गलती ना देख अपने कुर्ते मे हाथ डाल नोटों का बंडल निकल रतिवती के सामने पटक दिया.
"हे भगवान ये क्या " रतिवती कि आंखे ख़ुशी और आश्चर्य से चौड़ी हो गई.
रतिवती :- "इतने पैसे कहाँ से लाये तुम? कही चोरी तो नहीं कि ना?
रामनिवास :- कैसी बात करती हो मुझमे चोरी कि हिम्मत कहाँ? ये तो मैंने कमाए है वो भी एक ही रात मे.
अब तो और ज्यादा हैरान थी रतिवती,जिस इंसान ने आज तक एक ढेला भी नहीं कमाया वो आज इतने पैसे कमा लाया वो भी एक ही रात मे रतिवती ने सोचते हुए तुरंत नोटों का बंडल अपनी साड़ी मे बांधते हुए रामनिवास कि तरफ प्यार से देखा.
रतिवती :- अच्छा जी एक रात कमा लिए? मै भी तो जानू कैसे कमा लिए.
रामनिवास :- बताता हूँ भग्यावान सब बताता हूँ बस तुम तो ये बताओ कि और पैसे कमाने का मौका है अपने पास.
लेकिन उस के किये और पैसे चाहिए,जो कि तुम्हारे पास है,वो मुझे चाहिए.
बाकि बात रास्ते मे बताता हूँ समय नहीं है जल्दी से जल्दी वापस भी जाना है.
रतिवती तो वैसे ही लालची औरत थी ऊपर से इतने पैसे एक बार मे देख उसकी अक्ल पे पत्थर पड़ गया था.उसे अब घूमने जाने कि कोई फ़िक्र नहीं थी.
लालच है ही ऐसी चीज.

दोनों मियाँ बीवी ठाकुर साहेब से इज़ाज़त ले के चल पड़े अपने गांव कि ओर.
images-6.jpg

पीछे ठाकुर साहेब होने वादे के मुताबिक कामवती को मंदिर घूमनेबले जाने के लिए तैयार थे.
ठाकुर :- बिल्लू रामु कालू तांगा तैयार करो समय हो रहा है, आज ठकुराइन को घुमा लाते है.
बोल के ठाकुर ने प्यार से कामवती कि और देखा,कामवती मारे शर्म के घनघना गई.

विष रूप पुलिस चौकी मे
रामलखन :- अरे काम्या बेटी आप यहाँ? कोई काम था तो हुने बुलावा भेज देती आप खुद क्यों चली आई.
काम्या :- रामलखन अब से ये थाना ही मेरा घर है.
रामलखन :- मै कुछ समझा नहीं बिटिया?
बहादुर जो पीछे से सामान ले के चला आ रहा था " अबे ढक्कन ये ही है यहाँ कि नयी थाना इंचार्ज "इंस्पेक्टर काम्या "
इनकी जोइनिंग है आज.
रामलखन:- वो...वो....मै...मै....क्या....क्या....आप इंस्पेक्टर है,
रामलखन को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि दरोगा विरप्रताप कि बेटी ही थाने कि नयी इंचार्ज है
काम्या :- हौरान ना हो रामलखान काका मेरे बारे मे पिताजी ने कभी किसी को नहीं बताया था क्यूंकि वो होने परिवार को इन सब मुसीबतों से दूर ही रखना चाहते थे, किन्तु किस्मत देखो मुझे पिताजी कि ड्यूटी के लिए ही भेजा गया.
उनकी नाकामी को भुगतने के लिए भेजा गया, जानते हो क्यों?
काम्या ने अपनी कुर्सी संभाले हुए कहा.
रामलखन :- नहीं....नहीं...मैडम...क्यों?
काम्या :- क्यूंकि किस्मत भी चाहती है कि मै अपने बाप के सर पे लगा कलंक धो सकूँ.
अब मुझे सच सच और पूरी बात बताओ हुआ क्या था? पिताजी ने किस तरह पकड़ा था रंगा बिल्ला को?
काम्या अब " इंक्पेक्टर काम्या" के रूप मे आ चुकी थी उसके चेहरे पे वही रोब, वही दहाशत दिख रही थी जो आम तौर पे होती है.
उसे सिर्फ रंगा बिल्ला चाहिए थे वो भी जिन्दा.
रामलखन :- तो सुनिए मैडम....हुआ यूँ कि.... रामलखन ठाकुर कि शादी से अभी तक कि सभी बात सुनाता चला गया.


जंगल मे चोर मंगूस और कामरूपा काफ़ी दूर आ चुके थे.
मंगूस :- अब बता भूरी काकी कि वो नागमणि कहाँ है?
कामरूपा :- मुझे नहीं पता वो कही गिर गई थी मुझसे.
मंगूस :- चटटक.....साली झूठ बोलती है,मंगूस ने एक थप्पड़ रसीद कर दिया और बालो को पकड़ के खिंच दिया.
सच बोल वरना वापस मुर्दाबाड़ा काबिले मे फेंक आऊंगा तुझे.
कामरूपा :- नहीं नहीं.....वहा नहीं मै सब बताती हूँ मेरा यकीन करो सब सच बोल रही हूँ
और सारी कहानी कह सुनाई कि कैसे वो बेहोश हो गई थी और काबिले वालो के हाथ लग गई थी.
मंगूस :- गहरी सोच मे डूब गया
सोच मे डूबे हुए मंगूस का दुखी चेहरा देख कामरूपा का दिल पिघला क्यूंकि अब उसके मन मे कोई पाप नहीं थी वो अपने कर्मो को भुगत रही थी.
कामरूपा :- लेकिन एक शख्स बता सकता है कि वो नागमणि कहाँ है?
मंगूस चहक उठा "कौन कहाँ? कौन है वो?
कामरूपा :- तांत्रिक उलजुलूल, वो अन्तर्यामी है वो मदद कर सकता है
उलजुलूल का नाम.लेते हुए कामरूपा के चेहरे पे गुस्सा पछतावा दोनों एक साथ था.
दोनों ही अपनी अगली मंजिल कि और बढ़ चले,काली पहाड़ी पे स्थित तांत्रिक उलजुलूल कि गुफा.

मंगूस और कामरूपा अभी कोसो दूर थे परन्तु कोई शख्स कम्बल मे लिपटा हुआ काली पहाड़ी मे स्थित रंगा बिल्ला के अड्डे पे पहुंच चूका था.
रंगा :-आओ सरकार आओ....आप आये है तो जरूर कोई महत्वपूर्ण बात होंगी
अजनबी :- हाँ मेरे दोस्तों बात हम तीनो के लिए ही फायदेमंद है.
बिल्ला :- जल्दी बताओ क्या बात है?
अजनबी :- ठाकुर ज़ालिम सिंह अपनी नयी बीवी कामवती के साथ पहाड़ी पे स्थित मंदिर भर्मण पे निकलने वाला है.
बस ठाकुर को उठा लेना है मोटा माल पीटना है उस से
रंगा बिल्ला का चेहरा ख़ुशी से झूम उठा क्यूंकि ठाकुर ज़ालिम से बदला लेने कि फिराक मे वो कब से थे.जो भी हुआ सब ठाकुर ज़ालिम सिंह कि वजह से ही हुआ था.
अजनबी :- लेकिन ध्यान रहे ठकुराइन कामवती को एक भी खरोच नहीं आनी चाहिए. वो अब मेरी बीवी बनेगी.
वादे कि मुताबिक हवेली मेरी और आधा धन तुम्हारा.
तीनो एक साथ हस पड़े काली पहाड़ी अठाहसो से गूंज उठी.

सूरज पूरी तरह निकल चूका था

ठाकुर ज़ालिम सिंह और कामवती तांगे मे बैठे मंदिर कि और निकल चुके थे.
कालू और बिल्लू तांगा चला रहे थे.
साथ मे एक जीव और सवार हो गया था "इच्छाधारी सांप नागेंद्र " उसे भी अपने मौके कि तलाश थी.

यहाँ सब अपनी अपनी बिसात बिछा चुके थे,
कौन है ये अजनबी जो ठाकुर को मरवाना चाहता है और कामवती को पाना चाहता है?
रतिवती और रामनिवास का लालच उन्हें कहाँ ले जायेगा?
क्या मंगूस वापस नागमणि ले पायेगा?
बने रहिये कथा जारी है.....
 
Member
105
75
30
अपडेट -79

सूरज सर ले चढ़ आया था.
गांव कामकंज
रामनिवास और रतिवती अपने घर पहुंच चुके थे.
रास्ते मे रामनिवास सारी बाते समझा चूका था,रतिवती ने शुरू मे ना नुकुर किया परन्तु पैसो के लालाच ने उस से हामी भरवा ही ली.
लेकिन जुआ रामनिवास अपने घर पे ही खेले उसकी मौजूदगी मे ऐसा उसने मनवा लिया था

अब भला राम निवास को क्या समस्या थी उसे तो जुए का लालच दिख रहा था सिर्फ.
रामनिवास रतिवती को घर पंहुचा के सत्तू कि खोज मे निकल पडा, सत्तू और उसके दोस्त उसे वही दारू के अड्डे पे ही मिले

रामनिवास :- और भाई सत्तू क्या हाल है? कुछ पैसा है या उधारी ही पी रहा है
रामनिवास घमंड मे आ के बोला
सत्तू :- क्या रामनिवास भाई मज़ाक बनाते हो हमारा एक तो पुरे पैसे लूट लिए हम सब के
उस्ताद और करतार ने भी दुखी मुँह बना के रामनिवास कि तरफ देखा.
रामनिवास :- अरे ये ले पैसे मेरी तरफ से पी दारू आज कि.
उस्ताद :- काफ़ी चाहक रहे हो राम निवास क्या बात है?
रामनिवास :- कुछ नहीं सोच रहा था कि आज कहाँ जुआ खेलु? रामनिवास उन तीनो को जुए के लिए उकसा रहा था परन्तु उसे क्या पता था कि उल्टा वो ही फस रहा है इन तीनो के साथ
उस्ताद :- ढूँढना क्या है मेरे साथ खेल लेना बहुत पैसा है मेरे पास.
रामनिवास :- देखना संभल के कही हार गए तो सत्तू जैसे हालात हो जायेंगे हाहाहाबाबहम.....
उस्ताद :- अब जो किस्मत मे होगा सो होगा.
सत्तू :- तो उस्ताद आप ही खेल लो ना रामनिवास के साथ जुआ किसी अजनबी के साथ खेलेगा तो लूटने का डर रहेगा आप तो अपने ही आदमी हो.
रामनिवास तो यही करने आया था अपने मन कि बात पूरी होता देख उसने झट से हामी भर दी.
उस्ताद :- अच्छा तो रामनिवास आज रात आ हाना हमारी झोपडी पर.
रामनिवास :- नहीं नहीं...वहा नहीं...ऐसा करो तुम तीनो आज रात मेरे ही घर आ जाना दारू मेरी तरफ से और खाना मेरी बीवी बना देगी क्या कहते हो?
तीनो ही एक दूसरे कि तरफ देख रहे थे कि क्या करे.
सत्तू :- आ तो जायेंगे लेकिन ऐसा ना हो कि तुम्हारी बूढी बीवी ना नुकुर करे बाद मे, सत्तू को लगा कि उसकी बीवी भी रामनिवास जैसे ही मरियल बूढी लटकी हुई होंगी इसलिए ऐसा बोल गया.
अब बेचारा सत्तू क्या जाने कि रतिवती क्या बला है.
रामनिवास :- ऐसा कुछ नहीं होगा दोस्त मेरी बीवी बिलकुल गाय है, संस्कारी है कुछ नहीं कहेगी.
इस बात पे तीनो राजी हो गए और रात का कार्यक्रम निश्चित हो गया.
रामनिवास दारू कि कुछ बोत्तल ले के वहा से निकल गया
उस्ताद :- बकरा तो खुद ही हलाल होना चाहता है,हाहाहाहाहा...
करतार :- तो देर कैसे आज रात पूरा लूट लेते है.
सत्तू :- आज रात के नाम ले लगाओ फिर जाम.

वही काली पहाड़ी पर
"स्वामी मुझे माफ़ कर दे,ये क्या किया आपने? अपनी पत्नी को ऐसा शाप दे दिया " कामरूपा लगभग बिलखती हुई तांत्रिक उलजुलूल के पैरो मे गिर पड़ी.
चोर मंगूस और कामरूपा तांत्रिक कि गुफा पहुंच चुके थे.
मंगूस गुफा के द्वार ले ही खड़ा सब देख रहा था

तांत्रिक :- आओ कामरूपा आओ.... देख लिया अपनी काम वासना और सदा जवान बने रहने का अंजाम? उलजुलूल जो कि ध्यान मुद्रा मे बैठा था उसने आंखे खोलते हुए बोला.
कामरूपा :- हाँ स्वामी मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई परन्तु अपने ऐसा क्या कर दिया मै तो आपको अतिप्रिय थी, आप मेरे लिए कुछ भी कर सकने को तैयार थे फिर भी आपने मुझे ऐसा घिनोना श्राप दे दिया कैसे पति है आप?
मै बहक गई थी परन्तु आप तो मुझसे प्यार करते थे प्यार तो देने का नाम है लेकिन आप ने मुझसे छीन लिया मुझे हवस कि जीती जगती मूर्ति बना दिया.

कामरूपा को याचना और प्यार भरी बाते सुन उलजुलूल का दिल भर आया उसे आपने पुराने दिन याद आने लगे जब वो कामरूपा पर मोहित हो गया था, कोई भी मर्द होता तो कामरूपा जैसी औरत पे मोहित हो जाता.
तांत्रिक :- हमें माफ़ कर दो कामरूपा परन्तु तुम्हारे व्यवहार से मै गुस्से से भर गया था,तुम्हारी हालात कि जिम्मेदार तुम खुद हो तुमने अपनी शक्ति का दुरूपयोग किया,तुमने अपनी हवस को मिटाने के लिए शैतान सर्पटा को जिन्दा कर दिया.
और एक मासूम असहाय नाग नागेंद्र कि मणि चुरा ली सिर्फ आपने स्वार्थ के लिए.
कामरूपा :- मै जानती हूँ स्वामी और अपनी गलती भी स्वीकार करती हूँ लेकिन अब मेरी कोई इच्छा नहीं है मुझे इस शाप से मुक्ति दिलाओ.
तांत्रिक :- मेरा शाप झूठा नहीं हो सकता कामरूपा लेकिन तुम्हारी याचना को देखते हुए एक उपाय जरूर बता सकता हूँ, आगे कि राह बहुत कठिन है समझ लो जो पाप तुमने आज तक किया है उसका प्रयाचित करना है तुम्हे.
ध्यान से सुनो "आज रात मुर्दाबाड़ा काबिले वाले तुम्हारी मूर्ति बना तुम्हारा मंदिर बनाने जा रहे है,कामरूपा देवी के नाम से जानी जाओगी तुम.
images-9.jpg

क्यूंकि मुर्दाबाड़ा काबिले को जो वरदान प्राप्त था वो तुमने तोड़ दिया है वो तुम्हे सख्तलित नहीं करा पाए,तुमसे हार गए, तुम्हे वो लोग देवी मान रहे है जो उन्हें जंगल मे मिली और अचानक गायब हो गई.
जाओ उस मूर्ति मे समाहित हो जाओ,जब भी कभी तुम्हारे सामने कोई अभागी स्त्री अपनी इज़्ज़त बचाने कि गुहार करेगी तुम्हारा ये शाप उस स्त्री मे चला जायेगा और तुम मुक्त हो जाओगी.
अब ये कब और कैसे होगा इसका इंतज़ार तुम्हे मूर्ति रूप मे ही करना होगा,मूर्ति रूप मे रहने से तुम्हरी कामवासना नहीं भड़केगी.
जाओ तथास्तु....
कामरूपा अपनी आँखों मे पश्चात्याप के आँसू लिए मुर्दाबड़ा काबिले कि ओर चल पड़ी.
आज कामरूपा का अंत हो गया था.
तांत्रिक :- महान चोर मंगूस तुम वहा क्यों खड़े हो नजदीक आओ.
मंगूस थोड़ा सहमते हुए तांत्रिक के नजदीक पंहुचा.
मंगूस :- प्रणाम स्वीकार करे तांत्रिक, ऐसा बोल हाथ झुका के तांत्रिक के सामने बैठ गया.
तांत्रिक :- हम स्वीकार करते है मंगूस तुमसे भेंट हो पाना मेरा भी सौभाग्य है.
मंगूस कुछ समझ नहीं पाया क्या वाकई उसकी महारत इतनी प्रसिद्ध है.
तांत्रिक :- इतना मत सोचो मंगूस मेरा मतलब कुंवर विचित्र सिंह हम सब जानते है.
तुम एक नेक काम के लिए निकले हो तुम्हे वो मणि नागेंद्र को वापस लौटानी है. तुम भले ही चोर हो लेकिन एक नेक दिल के लड़के हो.
मंगूस :- आप तो सब जानते है महात्मा फिर....
तांत्रिक :- जाओ तुम्हारी नाग मणि गांव कामगंज मे रतिवती के पास है वहा से हासिल कर लो.
मंगूस पूरी तरह हौरान था...कि इतनी आसानी से कैसे उसका काम बन गया ऐसा क्या था उसमे कि इतना महान तांत्रिक भी उसकी तारीफ कर उठा.
तांत्रिक :- इतना मत सोचो मंगूस ये तो नियति है और इस नियति के सूत्रधार भी तुम ही हो जाओ अब....
मंगूस अपनी ही सोच मे सर झुकाये द्वार कि और बढ़ चला
तभी पीछे से आवाज़ आई " ध्यान रहे महान चोर मंगूस ये नागमणि कभी तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेगी "
मंगूस चौक के पीछे पलटता है तब तक तांत्रिक उलजुलूल ध्यान मे जा चूका था.
तांत्रिक कि बात का क्या मतलब था लाख सोचने पर भी उसे समझ नहीं आया.
वो चल पडा गांव कामगंज कि और जहाँ जुआ खेला जाना था.
ऐसा जुआ जहाँ सब कुछ दाँव पे लगना था.
क्या नागमणि भी दाँव पे लगेगी?
बने रहिये कथा जारी है.....
 
Member
105
75
30
अपडेट :-80

ठाकुर ज़ालिम सिंह अपनी नवविवाहित पत्नी के साथ निकल चुके थे,जंगल पार स्थित पहाड़ी पर बने कुलदेवी मंदिर के दर्शन करने.
ठाकुर :- तुम्हे अच्छा तो लग रहा है ना कामवती?
कामवती जो बाहर के नज़ारे ही देख रही थी "हाँ ठाकुर साहेब हम बहुत दिन बाद घर से निकले है,माँ भी होती तो ज्यादा मजा आता "
ठाकुर :- कोई बात नहीं उन्हें फिर कभी ले आएंगे,तुम्हारे पिता का मन नहीं लग रहा होगा उनके बिना " ऐसा बोल ठाकुर एक कामुक मुस्कान दे देता है कामवती को.
कामवती को ये बात सुन वो दृश्य याद आ गया जब डॉ.असलम उसकी माँ कि गांड चाट रहा था.
ठकुट ने कामवती के हाथ को पकड़ दबा दिया.
कामवती झटके से सिहर उठी जैसे किसी सपने से जागी हो.
"हाँ हाँ....वो पिताजी को माँ के बिना खाने पिने को दिक्कत होने लगती है "
ठाकुर सिर्फ मुस्कुरा के रह गए उन्हें कामवती का दिल जीतना था.
सूरज सर पे चढ़ आया था, ठाकुर और कामवती कुलदेवी के दर्शन कर चुके थे और तांगे कि ओर चले आ रहे थे.
images-11.jpg

बिल्लू और रामु जो को तांगे पे ही बैठे थे.
बिल्लू :- बुड्ढे ठाकुर कि किस्मत तो देख क्या लड़की हाथ लगी है,
नयी ठकुराइन का बदन तो इसकी माँ रतिवती से भी जानलेवा है.
कालू :- हाँ यार बात तो सच कही देख कैसे उसके बड़े स्तन ब्लाउज मे समा ही नहीं रहे है,ऐसा लग रहा है कि बाहर को आ के गिर जायेंगे.
बिल्लू :- शशशशश..... धीरे बोल मरवाएगा किसी ने सुन लिया तो
कालू :- यहाँ जंगल मे कौन सुनेगा.
लेकिन कालू गलत था नीचे बैठा नागेंद्र सब सुन रहा था.
नागेंद्र :- साले नासमझ इन्हे तो पता ही नहीं है कि कामवती क्या चीज है अपने पे आ जाये तो इन जैसे 5,6 मर्दो को खड़े खड़े ही निपटा दे.
नागेंद्र तांगे के ही नीचे आराम से सुस्ता रहा था कि तभी उसके सल खड़े होने लगे " ये क्या..... कोई खतरा है,मुसीबत आने वाली है,कही कामवती पे तो कोई आपत्ति नहीं?
अभी नागेंद्र सोच ही रहा था कि एक सरसराता हुआ जाल ठाकुर पे आ के गिरा, कामवती को एक तेज़ झटका लगा वो नीचे खाई कि और लुढ़कती चली गई.
किसी को कुछ समझ ही नहीं आया एकदम से क्या हुआ ये.
कि तभी धाय.....धाय.....कोई नहीं हिलेगा अपनी जगह से.
बिल्लू:- रऱ......रऱ.....रंगा बिल्ला तुम?
बिल्ला :- हाँ हम तुम्हारे ठाकुर को ले जा रहे है, कोई पीछे आने का प्रयास ना करे वरना मारे जाओगे.
हवेली जाओ और ठाकुर के मित्र डॉ.असलम को खबर करो.
ठाकुर अगवा हो गया है.
हाहाहाःहाहा.....भयानक हसीं के साथ ठाकुर को घोड़े पे लाद ले गए.
बिल्लू कालू किसी नामुराद मूर्खो कि तरह देखते ही रह गए.
उन्हें ये भी ध्यान नहीं आया कि कामवती को ठोंकर लगी थी वो कहाँ गई?
दोनों के होश गुम गए थे.
परन्तु नागेंद्र मुसीबत का पहले ही आभास पा चूका था इसलिए वो ठोंकर लगने के साथ ही कामवती कि तरफ लपक लिया था,परन्तु होनी को कौन टाल सकता था,
कामवती नीचे खाई मे लुढ़कती चली गई,नागेंद्र भी उस के पीछे सरसराता जा रहा था.
बिल्लू :- क..कक्क....कालू हे क्या हुआ, ठकुराइन कहाँ है.?
कालू :- जो अभी भी जड़ अवस्था मे था "मममम.....ममम...
.मुझे नहीं पता "
बिल्लू :- साले होश मे आ, चल जल्दी चल ठकुराइन वहा मंदिर क पास ही गिरी थी.
कालू बिल्लू उस दिशा कि और दौड़ पड़े लेकिन वहा तो कुछ नहीं था.
कालू :- हे भगवान ये क्या अनर्थ हो गया सब लूट गया
बिल्लू :- रोना बंद कर अब जल्दी हवेली चल डॉ.असलम ही कुछ बताएगा.मुझे खुद को कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करे.
बिल्लू कालू ने दुर्त वेग से तांगा हवेली कि और दौड़ा दिया.
दोनों क चेहरे सफ़ेद पड़ चुके थे.

शाम ढलने को थी
गांव कामगंज
उस्ताद,सत्तू और करतार अपने शिकार को हलाल करने का पूरा षड़यंत्र रच चुके थे
वही दूसरी ओर रतिवती और रामनिवास भी आने वाले हसीन पलो क सपने देख रहे थे
लालच उन्हें पैसा ही पैसा दिखा रहा था.
ऊपर से रतिवती के पल्लू से इच्छामणी बँधी हुई थी इच्छामणि का काम ही यही होता है कि जो भी इंसान कि इच्छा है उसे प्रबल कर देती है,रतिवती क साथ भी यही हो रहा था लालची तो थी ही नागमणि के प्रभाव से और ज्यादा लालची हो उठी तभी तो वो रामनिवास के जरा सा मनाने मे ही मान गई थी क्यूंकि उसे सिर्फ पैसा अमीरी राजसी ठाट बाँट चाहिए था अब जैसे आये

रामनिवास :- अरे कितना तैयार होंगी? वो लोग जुआ खेलने आ रहे है तुम्हे देखने नहीं
रामनिवास ने चुटकी लेते हुए कहा.
रतिवती :- आज काफ़ी ख़ुश थी "तो क्या हुआ मुझे भी देख लेंगे तो?" वैसे ही मजाकिया अंसाज मे कहते हुए कान मे बाली पहनते हुए बोला.
रामनिवास :- वैसे पहले से ज्यादा खूबसूरत हो गई हो तुम?
20211211-140253.jpg

रतिवती :- धत...बुढ़ापा आ गया फिर भी ऐसी बात करते हो,जानबूझ के ना नुकुर करती रतिवती इठलाती हुई कांच मे खुद को निहारती हुई बोली.
रामनिवास :- हेहेहेहे....अच्छा चलो कुछ खाने मे भी बला लो उन लोगो को यही खाने के लिए बोल दिया था मैंने.
कि तभी ठक ठक ठक......
रामनिवास :- लगता है वो लोग आ गए.
दोनों को आँखों मे चमक थी उन्हें ऐसा लग रहा था कि बकरे आ गए हलाल होने. पति पत्नी एक दूसरे को देख मुस्कुरा दिए
हाय रे लालच
रामनिवास ने जा के दरवाजा खोला "आओ आओ सत्तू उस्ताद करतार आओ तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था मै "
तीनो रामनिवास से इस कद्र मिले जैसे बरसो के जिगरी यार हो वैसे भी जुआरी और शराबीयों मे दोस्ती जल्दी होती है.
सत्तू :- यार रामनिवास तुम्हारा घर तो शानदार है काफ़ी बड़ा भी है.
रामनिवास :- हेहेहेहे....अरे ये सब तो पुशतेनी है आओ अंदर आओ
सभी लोग एक कमरे मे जा बैठे.
उस्ताद :- ये देखो भाई रामनिवास तुम्हारे लिए क्या लाये है विशेष शहर से मंगाई है ऐसा बोल उस्ताद थैले से महँगी अंग्रेजी दारू कि बोत्तल निकालता है.
"अब अंधे को क्या चाहिए दो आंख ही ना" रामनिवास कि आंखे फ़ैल गई वो पक्का शराबी था ऊपर से आज उस्ताद ने उसे महँगी दारू दे के दिल जीत लिया था.
रामनिवास :- उस्ताद इसकी क्या जरुरत थी देशी ही चलती अपने को तो.
उस्ताद :- ऐसे कैसे पहली बार तुम्हारे घर आये है भई. और तुमसे तो भाईचारे का रिश्ता हो गया है तो फिर क्या सस्ता क्या महंगा मौज करो तुम.
उस्ताद ने कमजोर नस पकड़ ली थी रामनिवास कि.
तभी छन छन करती पायल कि आवाज़ सभी के कान मे पड़ी.सभी ने दरवाजे पे नजर उठा के देखा तो दंग रह गए.
सामने रतिवती हाथ मे गुड़ और पानी के साथ खड़ी थी.
तीनो के मुँह खुले के खुले रह गए.
रामनिवास :- आओ भाग्यवन ये है वो तीनो मेरे दोस्त
रतिवती नजदीक आई और झुक के थाली रखी तीनो के आँखों के सामने ही एक सुन्दर सी सुडोल लकीर प्रकट हो गई
जो कि रतिवती के झुकने से उसके ब्लाउज मे बनी थी
20211008-213656.jpg

तीनो इस कदर हक्के बक्के थे कि कभी रामनिवास कि तरफ देखते तो कभी रतिवती को
रामनिवास :- ये मेरी धर्मपत्नी रतिवती
तीनो को कतई उम्मीद नहीं थी कि काले कलूटे मरियल रामनिवास कि पत्नी इस कदर भरे गद्दाराये और कामुक जवान बदन कि मालकिन होगी.
उन्हें तो लगा था कोई काली पिली बुड्ढी ही होंगी.
उस्ताद :- ननणणन....नमस्ते भाभी जी
सत्तू और करतार ने भी काठ के उल्लू कि तरह अभिवादन किया
रतिवती थाली रख वापस चली गई तीनो उस खाली दरवाजे को ही मुँह बाये देखते रह गए

ये जुआ और लालच क्या गुल खिलता है?
कामवती और ठाकुर कि हालात के पीछे कौन है वो अनजान शख्स?
बने रहिये कथा जारी है...
 
Member
105
75
30
अपडेट - 81

शाम ढल चुकी थी अंधेरा पसरने को था
"मालिक मालिक....मालिक....असलम मालिक ह्म्म्मफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ ह्म्म्मफ़्फ़्फ़...." बिल्लू दौड़ता हँफ्ता डॉ.असलम के घर मे दाखिल हुआ.
डॉ.असलम :- क्या हुआ बिल्लू क्या हुआ....ऐसे घबराये हुए क्यों हो? आ गए मंदिर दर्शन के के ठाकुर साहेब?
बिल्लू :- मालिक वो.... मालिक वो.... ठाकुर साहेब ठाकुर साहेब

"जल्दी बोलो भाई क्या बात है " डॉ.असल ने घबराहट भरे लहजे मे बोला.
बिल्लू :- मालिक ठलुर साहेब को रंगा बिल्ला अगवा कर ले गए.
"क्या....क्या....कैसे..कब और और और...कामवती मेरा मतलब ठकुराइन कहा है? "
बिल्लू :- ठकुराइन को बिल्ला ने धक्का दे के गिरा दिया था उसके बाद ना जाने खा गई ठकुराइन,हमने खूब ढूंढा लेकिन मिली ही नहीं.
असलम :- क्या बकते हो ऐसा कैसे हो सकता है " असलम इतने आत्मविश्वास से बोला कि बिल्लू भी चकित रह गया.
बिल्लू :- ऐसा नहीं हो सकता मतलब
असलम :- म...ममम...मतलब कुछ नहीं मै जा रहा हूँ ठकुराइन हो ढूंढ़ने एक काम ठीक से नहीं कर सकते तुम निक्कमे.
डॉ.असलम को यूँ जाता देख बिल्लू कि खोपड़ी घूम गई "डॉ.असलम ठाकुर साहेब के बचपन के दोस्त है लेकिन उन्होने ठाकुर के अगवा होने का कोई खास असर नहीं पड़ा उल्टा कल कि आई नयी नवेली ठकुराइन को ढूंढने चल पड़े"
बिल्लू के मन मे शक का बीच पनप रहा था लाख अक्ल का दुश्मन सही लेकिन था तो ठाकुर का वफादार ही उसे असलम का रेवाइयां कुछ पसंद नहीं आया.
बिल्लू असलम के घर से बाहर निकला
कालू :- क्या करे बिल्लू भाई?
बिल्लू :- पुलिस कि मदद लेनी होंगी
रामु भी आ चूका था तब तक
तीनो वफादर अपने ठाकुर कि हिफाज़त के लिए निकल पड़े विष रूप पुलिस चौकी जहाँ आज ही इंस्पेक्टर काम्या ने चौकी इंचार्ज जोइन किया था.
वही गांव कामगंज मे जुए कि पहली बाजी लग चुकी थी
रामनिवास :- संभल के खेलना उस्ताद आज
उस्ताद :- देखते है किसकी किस्मत आज भारी है.
सत्तू और करतार खेल का हिस्सा नहीं थे उनके मुताबिक उनके पास पैसे ख़त्म हो चुके थे,मोटा माल सिर्फ उस्ताद के पास ही था.
कुछ ही मिनट बाद रामनिवास ये बाजी जीत गया.
रामनिवास :- हाहाहाहा.... कहा था ना संभल के खेलना

उस्ताद ने रामनिवास को उसकी जीत कि दाद दी "कोई बात नहीं भाई हार जीत होती रहती है लेकिन खेल मे कुछ मजा नहीं आ रहा कुछ शराब कबाब हो जाते तो मजा दुगना हों जाता.
अब रामनिवास पहली बाजी तो जीत ही गया था उसे ये बात सामान्य लगी.
लेकिन वो एक पल बहिनीस कमरे से हिलना नहीं चाहता था.
क्यूंकि जुए मे टोटका चलता है कि जो जहाँ बैठा जीत रहा वही बैठा रहे "अरे सत्तू जा अपनी भाभी से 4ग्लास मांग ला " लगभग रामनिवास ने सत्तू को आदेश दिया
अब उसे तो पैसा का गुरुर जो होने लगा था
उन तीनो कि आँखो मे तो वैसे ही रतिवती बस गई थी सत्तू तुरंत कमरे से बाहर निकल रसोई घर कि और चल पड़ा.
अंदर रतिवती चूल्हे पे झुकी हुई उकडू बैठ खाना बना रही थी जिस वजह से उसकी बड़ी गांड उभर के बाहर को निकली हुई थी,जो को अपनी बनावट को साफ झलका रही थी,जिसे देख सत्तू का ईमान डगमगाने लगा वो सिर्फ पैसे ही लूटने आया था परंटी इस कदर जवानी से भरपूर कामुक बदन को सामने देख उसके इरादे बदलने लगे थे. उसने खूब औरतों कि गांड मारी थी परन्तु ऐसी कामुक थार्थरती जवानी नहीं देखि थी. रतिवती कि गोरी पीठ अपनी सुंदरता बिखेर रही थी
20211221-141619.jpg

सत्तू बिना आवाज़ किये धीरे से पीछे जा खड़ा हुआ,इत्मीनान से रतिवती कि हिलती बड़ी सी गांड को देखे जा रहा था.
तभी रतिवती पीछे पड़े बर्तन को हुई कि उसका हाथ सत्तू के पैर को छू गया रतिवती एकदम चौंक के खड़ी हो गई.
बिलकुल सत्तू के सामने "अअअअअ...आप यहाँ "
सत्तू :- वो वो....रामनिवास जी ने चार ग्लास मंगाए है.
रतिवती सत्तू कि घर घराहट सुन थोड़ा हॅस दी क्या हसीं थी एक दम गुलाब खिल गया हो जैसे.
रतिवती :- तो सीधा बोलिये ना डर क्यों रहे है रतिवती को वैसे ही हवस सवार रहती थी ऊपर से तीन तीन मुस्तडे घर मे पा के उसका दिल पहले से ही उमंग से भरा हुआ था.
रतिवती ने ग्लास पकड़ाते हुए अपना हॉट्ज सत्तू को छुआ दिया.
सत्तू तो मानो धन्य हो गया हो पहली बार इतना कोमल स्पर्श पाया होगा उसने
सत्तू :- भाईसाहब के पास इतने पैसे है किसी को खाना बनाने के लिए रख क्यों नहीं लेते आपकी सुंदरता मे दाग़ ना लग जाये

सत्तू कि तारीफ भरी बात सुन रतिवती का कामवासना से भरा दिल डोल गया, उसने एक प्यार भरी नजर से सत्तू को देखा और नजरें नीचे कर ली. जैसे तारीफ का शुक्रिया अदा कर रही हो.
रतिवती :- क्या करे हम औरतों कि जिंदिगी मे यही रसोई झाड़ू ही लिखा है.
सत्तू :- वैसे रामनिवास भाई पहली बाजी जीत गए है

ये सुन तो रतिवती का दिल रोमांच से भर उठा.
उसके दिमाग़ मे पैसा और हवस एक साथ दौड़ गए, उसने होने निचले होंठो को दांतो से दबा एक मुस्कान बिखेर दी. और अपना पल्लू ठीक करने को अपनी साड़ी ऊपर को चढाई तो,सामने पेट से साड़ी हट गई और सत्तू कि आंखे बड़ी होती चली गई

सामने रतिवती का होरा सुडोल पेट दिख रहा था जिसमे कामुक गहरी नाभि अपनी सुदरता खुद बयान कर रही थी.
20211221-141815.jpg

सत्तू तो पहले ही घायल था उसे क्या पता था जुए के साथ साथ ऐसी हसीना के दर्शन भी होंगे

"सत्तू यार जल्दी ला ग्लास " अंदर से रामनिवास कि आवाज़ ने उसका ध्यान भंग कर दिया
"आया " बोल के सत्तू चल पड़ा परन्तु दरवाजे पे पहुंच के पीछे को पलटा "आप जैसे खूबसूरत स्त्री का यहाँ क्या काम " और चल दिया.
रतिवती ठगी सी रह गई उसे इस बात कि बिलकुल भीं उम्मीद नहीं थी परन्तु अपनी सुंदरता कि तारीफ से गदगड हो गइ इतनी कि उसकी जाँघ के बीच झुरझुरी सी दौड़ गई,रतिवती को आदत लग गई थी बाहर मुँह मरने कि और लगे भी क्यों ना ऐसा मादक बदन ले के जाना कहा है.
रामनिवास :- बड़ी देर लगाई भाई ग्लास लाने मे?
सत्तू :- यार मिल ही नहीं रहा था भाभीजी को.
उस्ताद :- अच्छा अब अगली बाजी से पहले एक एक हो जाये रामनिवास तो था ही पक्का शराबी उसे कोई ऐतराज़ नहीं था

सभी के गिलास मे दारू भर दी गई और यहाँ से शुरू हो गया था उन तीनो का प्लान,रामनिवास को इस कदर नशे और दौलत मे अंधा कर देना था कि सत्तू अपने पत्ते बाटने कि कलाकारी को अंजाम दे सके.
दो तीन दारू के दौर चले सभी कि आँखों मे नशा साफ दिख यह था.
"अजी सुनते हो कामवती के बापू " बाहर से रतिवती कि मोहनी आवाज़ ने सभी का ध्यान भंग किया
"हाँ बोलो भाग्यवन " रामनिवास ने अंदर बैठे ही बोला उसकी इच्छा नहीं थी उठ के जाने कि
रतिवती रामनिवास को बाहर ना आता पा के अंदर को चली आई,सभी कि नजर मे नशा था अब इस नशे मे शबाब भी मिल गया था तीनो ही रतिवती को आंखे फाड़ देख रहे थे.
तीनो ने ऐसी सुंदरता कहाँ देखि थी कभी कभी शहर या गांव कि घिसीपीती रंडियो को चोद लिया करते थे.
रतिवती भी उन तीनो कि हालात से वाकिफ हो गई,उसकी नजर रामनिवास के बाजु मे पड़े नोटों के बंडल पे पड़ी तो मारे खुशी के उसका दिल झूम उठा.
उसे पैसो का लालच वैसे ही था इसी लालच वंश उसकी नजर तीनो कि और चली गई जिसमे कि उस्ताद ने अपना लंड पजामे के ऊपर से ही सहला दिया,खुद को कैसे काबू करता कोई मर्द.
Gifs-for-Tumblr-1734.gif

रतिवती इस हरकत से तनिक भी विचलित नहीं हुई बल्कि मुस्कुरा के रह गई.
उसके दिमाग़ मे कुछ तो चल रहा था लेकिन कैसे करे ये समझ नहीं आ रहा था उसे पैसो के साथ साथ तीन तीन मुस्तडे भी दिखाई पड़ रहे थे.
"खाना बन गया है " रतिवती ने अपना ध्यान रामनिवास कि तरफ किया
रामनिवास :- अभी तो एक ही बाजी हुई है भाग्यवान,खाना बाद मे
आओ तुम भी बैठ के खेल देखो अकेले क्या करोगी बाहर

लो रामनिवास ने तो सबकी मन कि हसरत ही पूरी कर दी, रतिवती और उस्ताद और बाकि लोग भी यही चाहते थे.
रतिवती :- मै...मैम...यहाँ कैसे? जानबूझ के हकला रही थी जैसे बता रही हो कि कितनी सती सावित्री है.
उस्ताद :: अरे भाभीजी आपका ही घर है हम तो मेहमान है सिर्फ आज रात के
"आज रात " पे ज्यादा जी जोर था. ऐसा बोला एक बार फिर अपने पाजामे के उभार को सहला दिया.
रतिवती :- ठीक है आप कहते है तो बोल वो रामनिवास को रही थी परन्तु तिरछी नजर से उस्ताद के पाजामे के उभार को देख हिसाब भी लगा लिया कि कैसा हथियार होगा.
मुस्कान के साथ छेल छबिली रतिवती अपने मरियल शराबी पति के बाजु मे बैठ गई.एक कामुक मुस्कान के साथ पतीव्रता संस्कारी नारी
images-1.jpg


पत्ते फिर सामने रखी मेज पर गिर पड़े.
वही दूसरी और कालू रामु बिल्लू दौड़े दौड़े विष रूप चौकी पहुचे.
हवलदार बाबू हवलदार बाबू...गजब हो गया
सामने बैठे रामलखान कि मेज पर सीधा आ धमके तीनो.
रामलखन :- क्या हुआ क्यों मरे जा रहे हो?
बिल्लू :- चल हमारे साथ अभी
रामलखान :- बोलो तो भाई क्या हुआ?
कालू :- साले जनता नहीं हम ठाकुर के आदमी है,बोला ना जल्दी चल साथ मे दो चार हवलदार और ले ले.
रामलखान सकपका गया,पास खड़ा बहादुर जब से तीनो के देख रहा था.
बहादुर :- अरे भाई पुलिस ऐसे काम नहीं करती कोई नियम होता है पहले FIR लिखनी होती है फिर कर्यवाही होती है.
बिल्लू :- तू कौन है बे? नया आया है क्या हमें नहीं जनता ठाकुर ज़ालिम सिंह के आदमी है हम
मुँह बंद रख और साथ चलो हमारे
कि तभी धड़ाक...एक जोरदार लात बिल्लू कि पिछवाड़े पे पड़ी,बिल्लू वही धाराशाई हो गया.
"ये मेरा थाना है यहाँ मेरी मर्ज़ी चलती है " पीछे इंस्पेक्टर काम्या गुस्से से तिलमिलाये खड़ी थी
काम्या :- बहादुर सही कह रहा है पहले FIR दर्ज होंगी

कालू :- साली तू है कौन तेरी इतनी हिम्मत,कालू ने आज तक ऐसा बर्ताव सहन नहीं किया था उसने काम्या का गिरेबान पकड़ दिया.
"आअह्ह्ह......करता कालू जमीन पे धाराशाई हो गया " मदरचोद हरामखोर मेरा गिरेबान पकड़ता है मेरा इंस्पेक्टर काम्या का.
एक लात दोनों जांघो के बीच पड़ गई
कालू के टट्टे मुँह को आ गए.
हरामखोरो सुना नहीं मैंने क्या कहाँ ये थाना मेरा है यहाँ मेरी मर्ज़ी चलेगी.
रामु जो दूर खड़ा था वो अब तक समझ चूका था "वो...वो...दरोगा साहेब हमें पता नहीं था कि आप कौन है?
काम्या :- तो पुलिस को अपने बाप कि जागीर समझ रखा है क्या?
रामु :- माफ़ करना दरोगा मैडम हमारे ठाकुर साहेब को रंगा बिल्ला उठा ले गए है इसलिए ये दोनों आपे से बाहर हो गए.
काम्या :- रंगा बिल्ला ये नाम सुनते ही उसकी आँखों मे ज्वाला उठने लगी.
बहादुर काम्या के इस रोन्द्र रूप को दिल्ली चूका था परन्तु बाकि के लोगो कि ऐसी हालात थी कि पैंट मे मूत देते

काम्या :- वहा बहादुर के पास FIR दर्ज करवा दो और फुट लो यहाँ से कल आना देखते है क्या जो सकता है.
images-2.jpg

तीनो को सारी होशियारी निकल गई थी.
सभी लोग काम्या को जाते देखते रह गए
कालू :- साली क्या चीज थी ये?
रामलखन :- लंड तुड़वा के भी होश नहीं आया तुझे दरोगा वीरप्रताप कि बेटी है ये आज ही जोइन किया है.
काम्या का चेहरा गुस्से से लाल था उसके जहन मे सिर्फ और सिर्फ रंगा बिल्ला ही चल रहे थे,
उसे जल्द से जल्द रंगा बिल्ला तक पहुंचना था.
काम्या को उन दोनों तक पहुंचने मे वक़्त था
परन्तु कोई और शख्स रंगा बिल्ला तक पहुंच चूका था.
"रंगा बिल्ला हुरामखोरो ये क्या किया तुमने " वो अजनबी आते ही बरस पड़ उन दोनों पे
रंगा :- क्या हुआ मालिक जैसा अपने कहाँ था वैसा ही तो किया है ठाकुर ज़ालिम को उठा लिया.
"अबे उल्लू के चरखो "कामवती कहाँ है?
बिल्ला :- वो तो ठाकुर के आदमियों के साथ हवेली पहुंच चुकी होंगी

" सालो मुँह बंद रखो अपना, कामवती को बिल्ला ने ठोकर मेरी वो कही खाई मे गिर गई उसके बाद मिली नहीं, मैंने सख्त हिदायत दी थी कि कामवती को कुछ नहीं होना चाहिए "
रंगा :-.माफ़ करना डॉ.असलम वो...ध्यान ही नहीं रहा हमारा सारा ध्यान ठाकुर और उसके आदमियों पे था
डॉ.असलम :- मैंने ये पूरी योजना कामवती को पाने के लिए ही बनाई थी और तुमने उस पे पानी फेर दिया.
बिल्ला :- आप चिंता ना करे कल सुबह होते है हूँ. खोज लाएंगे आपकी कामवती को

डॉ.असलम :- ऐसा ही हो तो ठीक है वरना तुम्हारी खेर नहीं.
ऐसा बोल असलम वहा से वापस हवेली कि और निकल गया उसे कामवती कि चिंता सता रही थी.
क्या नहीं किया उसने कामवती को पाने के लिए मित्रघात तक कर दिया

तो क्या असलम अपने इरादे मे कामयाब होगा?
रतिवती के दिमाग मे क्या है?
काम्या क्या अपना बदला ले पायेगी?
बने रहिये कथा जारी है...
 
Member
105
75
30
अपडेट -82

शराब का नशा सभी के सर चढ़ के बोल रहा था, रामनिवास तो जीत कि खुशी मे ज्यादा ही धुत्त हो चला.
सत्तू :- रामनिवास भाई ऐसा क्या जादू है आपके पास कि जीतते ही जा रहे हो. सत्तू कि निगाह रतिवती पे ही टिकी हुई थी
"जादू" शब्द बोल के उसका धयान रतिवती के बहार झाँकते स्तन पे ही था.
रतिवती खुद जानबूझ के इस तरह बैठी थी कि उसकी चुचुईया आधे से ज्यादा बहार झाँक रही थी.
पैसे और वासना कि गर्मी से रतिवती का बदन भी जलने लगा.
images-5.jpg


उस्ताद :- दिखता नहीं क्या सत्तू तुझे कितने बड़े बड़े दो जादू है रामनिवास के पास, उस्ताद ने भी रतिवती कि गहरी खाई मे गोता लगाते हुए कहा. वो रतिवती कि निगाह को पहचान रहा था.

रतिवती उन सब कि बातो को भलीभांति समझ रही थी आखिर थी तो वो मझी हुई खिलाडी ही.
उसकी नजर भी उस्ताद और सत्तू के पाजामे से होती हुई झुक गई उसके होंठो पे एक अजीब सी मुस्कान तैर गई थी.

एक बाजी और हुई.....उस्ताद ये दाँव भी हार गया तीनो के चेहरे बुरी तरह उतर गए.
इधर रामनिवास और रतिवती के ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था.
"हाहाहाहाहा......देखा भाग्यवन कहा था ना मैंने किस्मत अपने साथ है देखो हम सब जीत गए " रामनिवास दारू के नशे मे झूम उठा,
उठने को हुआ ही था कि नशे कि अधिकता से वापस पलंग पे गिर पड़ा.
बस यही वो मौका था जिसकी योजना सत्तू ने बनाई थी समय आ गया था योजना को अमलीजमा पहनाने का.
सत्तू रुआसा सा मुँह बना के " क्या रामनिवास तुमने तो हमें नंगा ही कर दिया "
रामनिवास :- क्या करे भाई खेल ही ऐसा है कोई जीतता है तो कोई हारता है.
रामनिवास का कोई ध्यान नहीं था उनकी तरफ वो सिर्फ नोटों के बंडल को देख रहा था.
रतिवती तो इस कदर खुश थी कि उसे अपने कपड़ो का भी ध्यान नहीं था,वो इतने सारे पैसे देख बावरी हो गई थी उसके बदन से साड़ी का पल्लू सरक के जमीन चाट रहा था
bhabhi-saree.gif

तीनो कि निगाह रतिवती के बड़े और उन्नत स्तनों पे ही टिकी हुई थी जिसकी गहरी खाई तीनो को ललचा रही थी.
कि तभी "एक दाँव और हो जाये रामनिवास " उस्ताद ने रतिवती और रामनिवास कि ख़ुशी मे बांधा डालते हुए कहा
रामनिवास :- हाहाहाहा....उस्ताद अब क्या लगाईगे दाँव पे अपनी लंगोट? रामनिवास घमंड और नशे मे चूर बोल रहा था
उसे आज ऐसा अनुभव हो रहा था कि साक्षात् भगवान भी उसके साथ जुआ खेल ले तो हार जाये.
उस्ताद :- रामनिवास सब तो तुम जीत चुके हो हमारा, दाँव पर इस बार हम अपनी गुलामी लगाते है.
ये दाँव तुम जीते तो हम तीनो ताउम्र तुम्हारे गुलाम रहेंगे और यदि हम जीते तो सारे पैसे हमारे होंगे जो भी तुम जीते हो बोलो मंजूर?
उस्ताद,करतार और सत्तू अपने जीवन का आखिरी दाँव खेल रहे थे.
रामनिवास ने एक बार रतिवती कि तरफ देखा,रतिवती कि लालची आँखों मे हाँ थी.

रतिवती को तो सोने पे सुहागा नजर आ रहा था पैसो के साथ उसे तीन तीन मुस्तडे गुलाम भी मील रहे थे जिनके साथ वो अपनी प्यास बुझा सकती थी. उसे अब रामनिवास की कोई जरूरत नहीं थी, वो सिर्फ ये आखरी दाँव जीत लेना चाहती थी.
रामनिवास :- अरे भाई नेकी और पूछ पूछ, मुझे मंजूर है तुम एक बार फिर सोच लो
उस्ताद:- सोचना क्या रामनिवास या तो जीत या फिर गुलामी
उस्ताद और सत्तू खुद को लाचार दिखा रहे थे जिससे कि वह अपने जीवन ही हार गए हो.
इस बार सत्तू ने पत्ते पिसे और उस्ताद और रामनिवास के बीच बट गए.
रामनिवास और रतिवती बेफिक्र थे उन्हें पता था आज किस्मत उनके साथ है वही जीतेंगे.
रामनिवास :- अभी भी सोच लो उस्ताद आखिरी वक़्त है पत्ते एक बार उठा लिए तो फिर खेल नहीं रुकेगा.
उस्ताद :- सोचना क्या है मित्र आज से तुम्हारी गुलामी भी मंजूर है,बोलते हुए उस्ताद ने पत्ते पलट दिये 3-3-3.
"हाहाहाहाहा......रामनिवास जोरो से हॅस पड़ा,क्या उस्ताद ये भी गया तुम्हारा तो.
रामनिवास इतना ज्यादा आत्मविश्वस मे था कि खुद के पत्ते देखे बिना ही अपनी जीत मान बैठा था.
उस्ताद :- अपने पत्ते तो दिखा दो रामनिवास अभी हारा नहीं हू मै.
रामनिवास ने पहला पत्ता पलटा "एक्का..." रतिवती तो खुशी से उछल ही पड़ी,जीत कि खुशी और तीन मुस्तडे गुलामो कि ललक ने उसकी चुत से पानी टपका दिया था.
उसकी खुशी का अंदाजा लगाना मुश्किल था.
भगवान जब देता है छप्पर फाड़ के ही देता है.
सामने बैठे करतार,उस्ताद पसीने पसीने हो चले थे.
दोनों ने सत्तू कि तरफ देखा जैसे पूछना चाह रहे हो "ये क्या कर दिया तूने? यही प्लान था तेरा?
सत्तू सिर्फ मुस्कुरा दिया " रामनिवास अगला पत्ता तो दिखाओ?"
रामनिवास :- देखना क्या है, मै ही जीत...जी...जी.....बोलते हुए रामनिवास ने पत्ता उलट दिया...साथ ही उसके हलक मे जबान अटक गई.
दूसरा पत्ता दुक्की था, रामनिवास के हाथ कंपने लगे,आखिरी पत्ते पलटने मे उसे जोर आ रहा था जैसे पहाड़ से भी भारी हो वो पत्ता.
अब तो खेल से भागा भी नहीं जा सकता था,
रतिवती कि हसीं भी गायब हो गई थी.
सत्तू :- क्या हुआ रामनिवास पलटो पत्ता?
रामनिवास ने कंपते हाथो से पत्ता धीरे से पलटा,उससे पत्ते का बोझ तक नहीं उठाया जा रहा था.
आखिर रामनिवास ने पत्ता पलट ही दिया...जैसे ही पत्ता पलटा कि रामनिवास और रतिवती कि किस्मत भी पलट गई.
"हाहाहाःहाहा.......रामनिवास मै जीता " उस्ताद खुशी के मारे उछल पड़ा सामने एक्का,दुक्की और पंजा था.
रामनिवास तो जैसे मर ही गया उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो अपना सारा पैसा एक बार मे ही हार गया.

चंद लम्हे पहले कि बाते उसे याद आने लगी "ये तो खेल है कोई जीतता है तो कोई हारता है "
वो इतना लालची कैसे हो गया था.
उस्ताद :- सो सुनार कि एक लुहार कि क्यों भाभी जी?
उस्ताद ने रतिवती कि तरफ देखते हुए कहा,
कहाँ रतिवती खुशी से फूली नहीं समा रही थी कहा अब उसकी आँखों मे आँसू थे.
मात्र थोड़े से लालच ने उनके सारे पैसे छीन लिए थे.
"अरे भाभीजी आप रोती क्यों है? एक मौका ओर देते है हम आपको " सत्तू लगभग रतिवती के पास जा बैठा.
रतिवती जो कि अभी तक सुन्दर काम वासनामयी स्वप्न मे डूबी हुई थी,एक पल मे ही उसके सारे सपने चकनाचूर हो चुके थे.
उसके चालक दिमाग़ ने काम.करना ही बंद कर दिया था.
"सब कुछ तो ले चुके हो तुम,अब कुछ नहीं है दाँव लगाने को सुबुक सुबुक....." रतिवती सुबूकते हुए सत्तू कि ओर देखते हुए बोली.
उस्ताद :- अभी तो बहुत कुछ है,क्यों रामनिवास? बात रामनिवास से कर रहा था लेकिन नजरें रतिवती के जिस्म पे ही टिकी हुई थी.

सत्तू :- जैसे हमने खुद को दाँव पे लगाया था,वैसे ही तुम दोनों खुद को दाँव पे लगा सकते हो.
उस्ताद कि बात सुन दोनों के पैरो तले जमीन खिसक गई.
"ये...ये....क्या बोल रहे हो तुम?हमें नहीं खेलना " रामनिवास हार से बिलबिलाया हुआ था
सत्तू :- सोच लो भाभीजी पूरा पैसा और हमारी गुलामी दाँव पे रहेगी
रामनिवास :- नहीं....नहीं....हमें.....
"क्या नहीं नहीं......सब तुम्हारी गलती है जब जीत रहे थे तब ही मान जाते, बिना पैसे के जीने से अच्छा है इनके गुलाम ही बन जाये.
रतिवती तुनक कर खड़ी हो गई और एकाएक रामनिवास पे बरस पड़ी.
" क्या जरुरत थी मुझे विषरूप से लाने कि, लालची हो तुम भुगतो अब, हम तैयार है लेकिन ये आखिरी दाँव होगा "
20211009-204826.jpg

रतिवती ने गुस्से और बेबसी मे हाँ तो भर दि थी.
लेकिन वो नहीं जानती थी इसका अंजाम बहुत बुरा होने वाला है.,इन सब मे वो ये बात तक भूल गई थी कि इस दौलत से कीमती भी एक चीज अभी भी उसके पास ही है
"नागमणि "
पत्ते वापस से बाटे जाने लगे एक आखिरी दाँव के लिए...

इधर रात के सन्नाटे को चिरता चोर मंगूस भी अपनी मंजिल कि और बढ़ा जा रहा था,उसे हर हालात मे नागमणि चाहिए थी.

तो क्या रतिवती खुद को गुलामी से बचा पायेगी?
समय रहते मंगूस रतिवती के घर पहुंच पाएगा?
बने रहिये कथा जारी है...
 
Member
105
75
30
अपडेट -83

विषरूप पुलिस चौकी मे
"बहदुर ओ बहादुर इधर आ" इंस्पेक्टर काम्या अपने केबिन मे बैठी दाँत पीस रही थी चेहरा गुस्से से लाल था
बहादुर :- जी मैडम
काम्या :- मैडम के बच्चे,ठाकुर को अगवा हुए 3 घंटे बीत गए अभी तक क्या झक मार रहा है? कोई खबर?

बहादुर :- मममममम....मैडम...मैडम...वो...वो......
काम्या :- क्या बकरी कि तरह मिमिया रहा है किसी काम का नहीं है तू
कि तभी "चरररर.......करता केबिन का दरवाजा खुलता चला गया "
"मैडम....मैडम....काम्या "
काम्या :- क्यों गला फाड़ रहा है रामलखन अब क्या आफत आ गई.
हवलदार रामलखन हैरान बोखलाया हुआ अंदर दाखिल हो चूका था.
रामलखान :- मैडम....वो..वो....रंगा बिल्ला का पता चल गया है
काम्या :- क्या...क्या....अरे वाह....ये तो तूने लाख रूपए कि बात कही
काम्या अपनी कुर्सी से उछल पड़ी परन्तु उसके चेहरे पे अभी भी गुस्से के ही भाव थे,जैसे कि किसी शेरनी के सामने शिकार रखा हो."कहाँ है वो दोनों हरामखोर?"
रामलखन :- लललल....लेकिन मैडम...
"क्या लेकिन,और ये तेरे चेहरे पे हवाइया क्यों उडी हुई है?" काम्या ने पूछा
रामलखन :- मैडम वो काली पहाड़ी के अपने पुराने अड्डे कि ओर गए है
काम्या :- तो चलो हम भी चलते है,इसमें क्या बात है?
रामलखन :- मैडम वो इलाका बहुत खतरनाक है ऊपर से रात मे वहाँ जाना मौत को दावत देने के बराबर है
वो उनका इलाका है,उनकी इज़ाज़त के बिना वहाँ पंछी भी पर नहीं मारते.
बहादुर कि तो घिघी ही बंध गई थी रामलखन के मुँह से काली पहाड़ी का नाम सुन के

काम्या :- हाहाहाहा.....बस इतनी सी बात,उनकी मौत तो मै साबित होउंगी आज
थाने मे जो भी आदमी है,हथियार है सब ले लो,हम अभी चलेंगे,
बहदुर :- मममम....मैडम सुबह चलते है ना,बहादुर लगभग कंपता हुआ बोला लगता था जैसे अभी पैंट मे ही मूत देगा
रामलखन :- बहादुर सही कह रहा है मैडम
काम्या :- कैसे मर्द हो तुम लोग मै औरत हो के नहीं डर रही तुम लोगो का मूत निकले जा रहा है.
बदुके ले लो जो दिखे सीधा दाग़ देना.
और तू....काम्या बहादुर कि तरफ घूमी "तू सच मे मर्द ही है या कुछ और " बस नाम बहादुर रख लिया है हिजड़ा कही का
काम्या ने बहादुर को दुत्कार दिया "तू यही बैठ थाने ताली पीट हम लोग हो के आते है,चल रामलखन
"आज उन दो डाकुओ का आतंक ही ख़त्म कर दूंगी "
काम्या रामलखन और 3और हवलदारों के साथ जीप मे बैठ काली पहाड़ी कि ओर चल पड़ी.
पीछे रह गया बहादुर डरा सहमा सा लेकिन आज उसके दिन मे एक तूफान सा मचा हुआ था,जैसे किसी ने जोरदार तमाचा मारा हो,उसए हिजड़े कि संज्ञा दे गई थी काम्या

बहादुर वही कुर्सी पे धाराशयी हो के हाफने लगा,वाकई डरपोक था बहादुर.

सभी अपनी अपनी मंजिल को निकल तो चुके थर लेकिन कामयाबी से दूर थे.
काम्या और मंगूस अपनी अपनी मंजिल के करीब ही थे
परन्तु

गांव कामगंज मे तीनो ठगों ने अपनी मंजिल पा ली थी.
आखरी दाँव के लिए पत्ते बट चुके थे.
पत्ते पलटते ही रामनिवास ने माथा पीट लिया "हे भगवान....ये क्या हुआ?"
हाहाहाहाहाबा......रामनिवास आज से तू और तेरी सुन्दर बीवी हमारी हुई हाहाहाहा
तीनो हॅस रहे थे
सामने बेबस और लाचार रतिवती और रामनिवास मुँह लटकाये बैठे थे,किस्मत ने क्या करवट बदली थी एक लालच उनका सब कुछ ले डूबा था.
उस्ताद :- चल बे छिनाल आ जा हमारी सेवा मे
उस्ताद के मुँह से ये शब्द सुनते है रतिवती हक्की बक्की सी उन तीनो कि ओर देखने लगी,हालांकि उसे इस बात कि पूरी उम्मीद थी कि यही होना है.
सत्तू :- सुना नहीं तूने उस्ताद ने क्या कहाँ?
सत्तू एकाएक चिल्लाया, अभी कुछ समय पहके तीनो किसी सज्जन से कम नहीं लग रहे थे ये अचानक क्या हुआ
रतिवती सोच मे ही थी कि
"सालो ठगों....तुमने बेईमानी कि हमारे साथ " रामनिवास गुस्सै से उस्ताद कि ओर दौड़ पड़ा
कि तभी....तड़ाकककककक......एक जोरदार झापड़ उसके गाल पे पड़ा.
करतार :- साले मालिक का गिरेबान पकड़ने कि कोशिश करता है
करतार के मजबूत हाथो का एक चाटा पड़ते ही रामनिवास रतिवती के बाजु मे ओंधे मुँह जा गिरा.
इस एक झापड़ से ही सभी को सबकुछ समझ आ गया था..
रतिवती का दिल धाड़.धाड़ कर धड़क रहा था,उसे भी सम्भोग सुख चाहिए था लेकिन ऐसे नहीं, ख़ुशी से इत्मीनान से.
लेकिन उसका पैसा,घर,जमीन तो सब जुए मे हार गई थी बचा था तो उसका यौवन,उसका कसा हुआ कामुक बदन जो कि किसी भी वक़्त लूट सकता था.
"मालिक....मालिक....मेरे पति को बक्श तो सब कुछ तो ले ही चुके आप लोग " रतिवती उस्ताद के पैरो मे लौट गई
उसकी ये आखरी कोशिश थी.
करतार :- साली अभी कहाँ सब कुछ लूटा है अभी तो तू बाकि है हेहेहेहे....
करतार ने गन्दी हसीं हसते हुए अपने इरादे उजागर कर दिये.
रतिवती के नीचे झुकने से उसके साड़ी का पल्लू कबका धूल चाट रहा था,उन तीनो बदमाशो के सामने एक दिलकश नजारा था,ये वही नजारा था जिसे वो कुछ देर पहले छुप छुप के देख रहे थे परन्तु अब उनका हक़ था इसपे.
रतिवती क स्तन पसीने कि बूंदो से भीगे हुए थे

20220517-234106.jpg

रतिवती को
जैसे ही इस बात का आभास हुआ उनकी नजरों का उसने तुरंत से अपने पल्लू को सीधा करना चाहा,
परन्तु रास्ते मे उसके हाथो को सत्तू ने थम लिया " अरे भाभाजी अब क्या फायदा अभी थोड़ी देर पहले तो खुद ही उछल उछल के दिखा रही थी हमें,अब तो ये हमारे है "
सत्तू कि बात सुन रतिवती ने धीरे से गर्दन घुमा के पीछे रामनिवास कि तरफ देखा, वही तो एक हया थी,वही तो शर्म थी कि पति के सामने कैसे,आज तक जो भी किया रामनिवास के पीठ पीछे किया.
रामनिवास भी आश्चर्य कि निगाहो से कभी रतिवती को देखता तो कभी उन तीन ठगों को
उस्ताद :- देख क्या रहा है भड़वे ऐसी कामुक औरत तेरे बस कि बात नहीं,आज तक तू कुछ कर भी पाया है?
उस्ताद लगातर काटक्ष कर रहा था.
"इसकी भरी जवानी संभालना तेरे बस का नहीं है बेटा रामनिवास " उस्ताद ने बोलते हुए अपने पाजामे का नाड़ा खोल दिया
पजामा सरसराता पैरो मे इक्क्ठा हो चला और सामने एक कल भुजंग 10" लम्बा और रामनिवास कि कलाई जीतना लंड उजागर हो गया..

सामने फर्श पे बैठे रतिवती और रामनिवास कि आंखे चौड़ी होती चली गई.
रामनिवास ने आज तक ऐसे दृश्य कि कल्पना भी नहीं कि थी परन्तु रतिवती तो पहले से ही काम अग्नि मे जल रही थी उसकी तो कमजोरी ही यही थी,अपने मुँह के सामने ऐसे भयानक लंड को देख उसके पुरे बदन पे सेकड़ो चीटिया रेंगने लगी.
20220511-211901.jpg

जांघो के बीच कुछ लसलसा सा चुने लगा,
फिर भी रतिवती कुछ डरी सहमी सी बैठी थी,या फिर रामनिवास के सामने नाटक कर रही थी.उसकी निगाहेँ नीची हो गई
उस्ताद :- साली अब शर्माने का नाटक कर रही है, अभी तो घूर घूर के हमारे लोडो को देख रही थी क्यों?
सत्तू :- उस्ताद बहुत पहुंची हुई चीज है,ऐसे ही थोड़ी ना ये बदन निखरा हुआ है.
"ये....ये.....कैसी बात कर रहे है आप लोग " बीच मे रामनिवास बोल पड़ा.
कि तभी चटतककककक....करता एक जोरदार झापड़ रामनिवास के गालो से जा टकराया "साले गुलाम हो के मालिक से बहस करता है "
उस एक थप्पड़ से रामनिवास के रहे सहे कस बल भी ढीले पड़ते चले गए,उसे दुख हो रहा था कि उसकी संस्कारी पतीव्रता बीवी इन गीदड़ो के चूंगाल मे फस गई है

बेचारा रामनिवास कौन बताये कि उसकी बीवी के क्या संस्कार है

"सुना नहीं तूने साड़ी खोल " उस्ताद एक बार फिर से गरज उठा.
रतिवती ने एक बार फिर तिरछी निगाहो से रामनिवास कि तरफ देखा,
"मममम....मालिक....मालिक...ऐसा ना करे मै पतीव्रता नारी हूँ,मै...मै...मेरे पति सामने..."
उस्ताद साफ साफ उसके नाटक को ताड़ रहा था

"हाहाहाहा....डर मत तेरा पति वैसे ही नामर्द है आज तके वो तेरे इस कामुक बदन को संतुष्टि भी क्या पहुंचाया होगा?"
उस्ताद खड़ा हो ठीक रतिवती के सामने जा पंहुचा,उसका मोटा काला लिंग उसके माथे पे टच हो रहा था,
रतिवती ने हैरानी से जैसे ही सर ऊपर किया,उसके होंठ उस्ताद के लंड से जा टकराये.
एक भीनी भीनी कैसेली गंध से रतिवती के नाथूने भर गए, सांसे गर्म होने लगी, आँखों मे हवस साफ दिखने लगी आखिर कब तक खुद को रोकती रतिवती,उसका दुख दर्द इस वासना के आहे दम तोड़ता लग रहा था.
जमीन पे बैठी रतिवती के ब्लाउज से उसके स्तन के कमूक दरार दिख रही थी,उस्ताद का लिंग इस दृश्य को देख झटका खाने लगा
.
इतने मे अचानक सत्तू आगे बढ़ा और चररररर.......फररररर......करता हुआ रतिवती का ब्लाउज उसके तन से जुदा हो गया.
दो गोल गोल तने हुए दूध के सामन सफ़ेद स्तन सभी मर्दो के सामने उजागर हो गए.
20220624-143259.jpg

रतिवती जैसे इस हमले के लिए ही तैयार बैठी थी उसने जरा भी अपने स्तन को ढकने के कोशिश ना कि.
रामनिवास का आश्चर्य के मारे बुरा हाल था,रतिवती एक टक उस्ताद के लंड को ही निहारे जा रही थी.
आज रमिनिवास को दिख रहा था कि इसकी लुगाई किस कद्र सुन्दर और कामुक है.
Picsart-22-05-25-19-46-01-349.jpg

"चल मालिक कि सेवा कर " उस्ताद ने अपने लंड कि ओर इशारा कर कहा.
रतिवती भी किसी आज्ञाकारी नौकर कि तरह अपने होंठो को हल्का सा खोल दिया,उस्ताद के लंड का गुलाबी टोपा उसके दांतो से जा लगा
20220530-120906.jpg
हाय......इससससस......बड़ा गरम है रे तेरा मुँह.
रतिवती ने जैसे ही अपनी तारीफ सुनी उसका मुँह खुद से खुलता चला गया,और एक बार मे ही लंड का आगे का गुलाबी हिस्सा रतिवती के मुँह मे गायब हो गया.
"आआहहहहह.......हाय....मर गया, देख रहा है रामनिवास शहर कि रंडिया भी ऐसा नहीं कर पाती" उस्ताद जैसे रामनिवास को चिढ़ा रहा था उसकी मर्दानगी को धिक्कार रहा था.
अपनी तारीफ सुन रतिवती दुगने जोश से भर गई, लंड का कसैला स्वाद उसके मुँह मे घुलने लगा, जिसे रतिवती खूब पसंद किया करती थी,उसके मुँह मे कैद लंड पे अंदर से ही रतिवती जीभ से कुरेदने लगी.
"आआहहहह........क्या करती है रे " उस्ताद कि तो जैसे जान ही निकल गई हो.
"क्या हुआ उस्ताद " सत्तू को जैसे चिंता हुई
"खुद आ के देख लो साली क्या चूसती है " उस्ताद ने अखिर निमंत्रण दे ही दिया
फिर क्या था करतार और सत्तू के पाजामे भी जमीन चाटने लगे.
कुछ ही पल मे रतिवती के दोनों हाथो मे करतार और सत्तू के लंड थे और मुँह मे आगे पीछे होता हुआ उस्ताद का लंड.
साइड मे बैठा रामनिवास हैरान परेशान सबकुछ देखे जा रहा था,उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपनी पत्नी कि काबिलियत कि तारीफ करे ये उस पे रोये.
"कोई स्त्री ऐसा कैंसर कर सकती है " रामनिवास का सारा नशा फुर्र हो चूका था.
रतिवती के मुँह से थूक निकल निकल के उस्ताद के टट्टो को भिगो रहा था,माध्यम रौशनी मे उसके टट्टे किसी कोयले कि तरह चमक रहे थे.
अब रतिवती से भी नहीं रहा जा रहा था,उसकी चुत से एक शहद जैसी धार निकल के उसकी जाँघ भिगो रही थी.
20220507-173638.jpg

गुगुगुगम......आआहहहहह.....आक....आक्क्क.....गऊऊऊ....पट....पट....कि आवाज़ से घर गूंज रहा था
अब हालत ये थे कि रतिवती के मुँह मे लिंग बदल बदल के आने लगे,कभी एक साथ दो भी आ जाते..तीनो बदमाश मौके के फायदा उठाने से चूक नहीं रहे थे.
धचा धच पैले ही जा रहे थे.
इधर रतिवती कामवासना मे डूबती चली जा रही थी,जिस्म मे हवस कि आग दहक रही थी
वही दूसरी तरफ इंस्पेक्टर काम्या का जिस्म भी जल रहा था लेकिन उसमे बदले कि आग थी,आंखे लाल थी लेकिन उसमे गुस्सा था.

काम्या गुस्से और बदले कि भावना से बिना तैयारी के ही मात्र 2 हवलदारों के साथ ही निकल पड़ी थी.
काली अँधेरी रात मे काली पहाड़ी का रास्ता बहुत ही भयानक लग रहा था,रौशनी का एक मात्र सहारा उनकी जीप से निकलती पिली रौशनी ही थी
"ममममम....मैडम वापस चलते है कही लेने के देने ना पड़ जाये " रामलखन भय कि अधिकता से खुद को रोक ना पाया.
"चुप साले हरामी,इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा उन दोनों को पकड़ने का, इतना ही डर है तो यहीं उतर जाओ मै अकेली ठाकुर को छुड़ा लाऊंगी " काम्या जैसे दहाड़ी हो.
एक बार फिर से चुपी छा गई.
कुछ ही देर मे दूर पहाड़ी पे एक गुफानुमा आकृति दिखने लगी जहाँ से हल्की हल्की रौशनी फुट रही थी.
"ससससह्ह्ह्ह....जीप बंद कर...गाड़ी रोक " उनका अड्डा सामने ही है हमें पैदल जाना होगा.
तुम यहीं जीप मे बैठो ड्राइवर, कुछ गड़बड़ हुई तो भागने मे सुविधा रहेगी,तुम मेरे साथ चलो राम लखन.
काम्या और रामलखन दबे पाँव उस पहाड़ीनुमा जगह पे चढ़ने लगे,
रामलखन कि स्थति सांप के मुँह मे छछूनर जैसी थी,ना भाग सकता था ना अंदर जा सकता था.
दोनों ही चढ़ते हुए काफ़ी ऊपर आ गए थे "शश्शाश्शस.....रामलखन सामने दो आदमी है तुम यहीं रुकना मै इशारा करू तो आना " काम्या फुसफुसाते हुए बोली
कुछ ही देर मे गुफा के मुहाने खड़े दोनों डकैत जमीन चाट रहे थे.
काम्या का इशारा पाकर रामलखन भी वहाँ पहुंच चूका था.
पहली क़ामयाबी से रामलखान का डर भी दूर होता चला गया,
"चलो अंदर चलते है जरा संभाल कर "काम्या ने आगे आदेश दिया अब उसके हाथ मे एक पिस्तौल चमक रही थी,इरादे नेक नहीं लग रहे थे काम्या के.
अंदर गुफा मे
"वाह....बिल्ला वाह क्या मटन बना है आज तो मजा आ गया " रंगा बिल्ला चपर चपर मटन तोड़ने मे लगे थे
बिल्ला ::- ये ठाकुर का क्या करना है अब?
रंगा :- करना क्या है अपने को मोटा माल चाहिए,और मालिक को ठकुराइन
कल इसके आदमी मोटा माल ले के आएंगे ना,आज कि रात तो खूब खा पी कल से अपनी गुफा दौलत से भरी होगी हाहाहाःहाहा......
एक भयानक अट्ठाहास से गुफा गूंज उठी.
सामने ठाकुर एक खम्बे से बांधा हुआ था,उसके ठीक पीछे एक चट्टान कि ओट लिए काम्या और उसके पीछे रामलखन खड़े थे.
"मैडम.....यहीं से गोली दाग दीजिये सुनहरा अवसर है " रामलखन ने चिरोरी कि उसे ये काम ख़त्म कर जल्द से जल्द निकलना था..
काम्या :- नहीं रामलखम इन्होने मेरे माँ बाप को मारा है इतनी आसन मौत मिल गई तो यमराज भी नाराज हो जायेंगे.
काम्या का चेहरा गुस्से और बदले कि भावना से तमतमा रहा था,
इंसान गुस्से और बदले कि भावना मे कुछ गलत कदम उठा लेता है वही काम्या भी करने जा रही थी.
अच्छा मौका था एक गोली और काम खत्म लेकिन काम्या को उन्हें तड़पाना था जलील कर कर के मारना था.
धायययययय.......अचानक एक फायर हुआ "कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा,दोनों वही बैठे रहो " काम्या एकाएक दहाड़ उठी और पिस्तौल लहराती हुई किसी यामदूत कि तरह रंगा बिल्ला के सामने प्रस्तुत हो गई.
गोली चलने कि आवाज़ से रंगा बुल्ला हक्के बक्के रह गए,उनकी नजरें जैसे ही ऊपर को उठी सामने काम्या मौत बन के खड़ी थी
"रामलखन ठाकुर साहेब को खोलो,और निकल जाओ यहाँ से " काम्या ने तुरंत आदेश दिया
"लललल...लेकिन...मैडम..आप?" रामलखन ठाकुर साहब को खोल चूका था.
"तुम जाओ मेरा कुछ पुराना हिसाब है " काम्या के चेहरे पे एक वहशी मुस्कान तैर गई.
"आज कि रात तुम्हारी आखरी रात है सालो " काम्या फिर दहाड़ी.
लेकिन इस धमकी का शायद उन दोनों पे कोई असर नहीं हुआ,एक सिकन तक ना आई चेहरे पे.
"तू तो वही है ना दरोगा कि लड़की "रंगा बड़े ही अपेक्षित भाव से बोला
उसे फर्क ही ना पड़ता हो जैसे जबकि पिस्तौल उसी कि तरफ तनी हुई थी.
इतने मे रामलखन ठाकुर को ले के जा चूका था.
बिल्ला :- गलती कर रही है इंस्पेक्टर, अभी भी वक़्त है हमारा शिकार हमें वापस कर दे तुझे जाने देंगे वरना अपने माँ कि तरह ही तेरा भी हश्र होगा.
"साले.....कुत्ते....." काम्या एकाएक चीख पड़ी.
उसकी ऊँगली ट्रिगर ोे दबने ही वाली थी कि "नहीं.....कुत्तो इतनी आसन मौत नहीं दूंगी तुम्हे तड़पा तड़पा के मरूंगी "
रंगा :- जैसे हमने तेरी माँ को तड़पाया था, वैसे क्या चुदवाती थी तेरी माँ
रंगा ऐसे बोला जैसे वो पल याद कर रहा हो उसका हाथ लुंगी के ऊपर से ही अपने लंड को खुजाने लगा.
काम्या का चेहरा नफरत और गुस्से मे लाल हुआ जा रहा था हाथ गोली चलाने के लिए काँप रहे थे
बिल्ला :- इसको देख के तो लगता है ये इसकी माँ से भी बड़ी चुदक्कड़ होंगी.
रंगा बिल्ला लगातर काम्या कि भावनाओं से खेल रहे थे,उसे भड़का रहे थे,
अनुभवी थे दोनों शैतान, जानते थे इंसान गुस्से मे गलती करता ही है.
बिल्ला :- वैसे हमें तेरे माँ बाप को खुद नहीं मारा था हालांकि वजह हम थे वो अलग बात है.
काम्या के नेत्र आश्चर्य से फ़ैलते चले गए,भौहे सिकुड़ गई.
रंगा :- तेरी माँ तेरे नपुंसक बाप के सामने हमसे चुदवा रही थी, हमारे लंड चूस रही थी
ये बात तेरा बाप बर्दाश्त ना कर सका उसने खुद अपनी बीवी को गोली मारी और खुद भी शर्म से जा मरा
हाहाहाहाहा......दोनों शैतान राक्षस कि हसीं हॅस पड़े.
काम्या ये ना सुन पाई...उसका बदन कांप गया,वो दोनों कि तरफ उन्हें मारने दौड़ पड़ी.
कि तभी रंगा ने हाथ मे पकड़ा गिलास,बाजु कि दिवार पे टंगी मशाल पे फेंक दिया.
एक.घुप अंधेरा गुफा मे छा गया.
चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था,हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था,
कि तभी....धापप्पाकककक.....कि आवाज़ से गुफा गूंज उठी....आआआआहहहहहह.......कमीनो एक घुटी सी आवाज़ उत्पन्न हुई और ऐसा लगा जैसे कोई जमीन पे ओंधे मुँह गिरा हो.
चारों ओर अंधेरा था कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यहाँ हुआ क्या है?
वही काली पहाड़ी के किसी हिस्से मे नागेंद्र जैसे तैसे कामवती को घसीटता हुआ एक पत्थर कि ओट मे ले आया था.
"हे नागदेव ये कैसी परीक्षा के रहे है आप इस निपट अंधरे मे बिना मानव शरीर के कैसे मै कामवती कि रक्षा करूंगा, मेरी नागमणि भी ना जाने कहाँ है उसके बिना कितनाा अहसाय हूँ मै." नागेंद्र बिल्कुल बेबस था उसके जीवन मे अंधरे के अलावा कुछ नहीं दिखाई पड़ता था,ना कुछ सूझ रहा था.
बेहोश कामवती के बाजु मे फैन फैलाये बस इधर उधर भटक रहा था.
तभी उसका ध्यान कामवती कि तरफ गया जिसके कपडे अस्त व्यस्त थे, सारी जाँघ टक ऊपर उठी हुई थी,सुन्दर चिकनी मशल जाँघे अपनी छटा बिखेर रही थी.
एक पल को नागेंद्र कि सभी समस्याओ का हल उसे दिखने लगा.
"इस भागदौड़ मे तो मैंने ये सोचा ही नहीं " नागेंद्र प्रसन्नता से भर उठा
उसे अपने पुराने दिन याद आ गए जब वो इन्ही मोती चिकनी जांघो को चाटा करता था.
"मेरी प्रियतमा कामवती वक़्त आ गया है कि तुम्हे सब कुछ याद दिलाया जाये " नागेंद्र सरसराता बेहोश कामवती कि जांघो के बीच सरकता चला गया उसका मुकाम वही कामुक सुगंध भरा छेद था,कामवती कि खूबसूरत चुत.
20220520-203719.jpg

जो कि अभी भी एक दम फूली हुई थी,बहार को निकली हुई एकदम साफ चिकनी.
नागेंद्र से रहा नहीं गया,उसका मुँह उस महीन लकीर मे समाता चला गया.
उसकी पतली सी जीभ लपलपा उठी.
बस यहीं तो उस श्राप कि काट थी जो तांत्रिक उलजुलूल के द्वारा दिया गया था.
कामवती का शरीर बेचैनी से हिलने लगा..उसके जहन मे एक के बाद एक कई दृश्य घूमने लगे एक जाते तो दूसरे आते,उसके जीवन कि वो गाथा दोहराई जाने लगी जिससे आज तक वो अनजान थी.
नागेंद्र और वीरा का प्यार उसे भिगो रहा था, सम्भोग सुख का आनंद भोग रही थी कामवती.
जहाँ नागेंद्र का प्यार कोमल था वही वीरा का प्यार वहशी दर्दभार होता,लेकिन दोनी का मजा अलग था.
कामवती निर्णय ही नहीं कर पा रही थी कि वो किसकी है? किस से प्यार करती है?
कि अचानक से उसके सामने दृश्य बदलने लगे....
उसका अचेत जिस्म कंपने लगा,पस बैठा नागेंद्र कामवती के जिस्म कि हलचल को भाँप रहा था.
यह कामवती किसी अँधेरी गुफा मे पूर्णनग्न रस्सीयो से जकड़ी हुई थी.
"तू चरित्र हिन् औरत निकली आखिर,मुझसे शादी कर के भी तूने अपने यारों से मिलना नहीं छोड़ा " उसके समने ठाकुर जलन सिंह गुस्से से लाल पीला हाथ मे तलवार थामे उसकी तरफ ही बढ़ा चला आ रहा था.
कामवती भय से थर थर कांप रही थी.
उसकी दोनों टांगे विपरीत दिशा मे खाम्बो से बँधी थी,जिस वजह से उसकी चुत और गांड का छेद पूरी तरह से ठाकुर जलन सिंह के सामने उजागर था.
"साली रंडी इसी छेद मे अपने आशिको का लंड लेती है ना तू,आज देख कैसे चिर फाड़ के रख देता हूँ मै " ठाकुर जलन सिंह ने तलावार उठा ली और खच्चह्ह्हह्ह्ह्हब्ब..........आआआआहहहहह......एक प्रलयकारी चीख गूंज उठी,
ये चीख विषरूप के बच्चे बच्चे ने सुनी थी ऐसी भयानक चीख जो थी.
ठाकुर जलन सिंह कि तलवार कामवती कि चुत मे समाहित हो चुकी थी,उसके मुँह बे खून कि उल्टी कर दि.
"और ये तेरी मटकती गांड यहाँ भी लेती है ना तू साली रंडी " ठाकुर जलन सिंह ने वापस से तलवार खिंच के इस बार गांड के छेद मे पेवास्त करा दि.
"आआआआह्हःभब्बभ......नाहीईईई.........." कामवती कि सांसे उखड़ चली.
यहाँ पत्थर कि ओट मे कामवती एक जोरदार चीख के साथ उठ बैठी.
"नाहहीईईईई..........लेकिन सामने तो दृश्य बिल्कुल बदल गया था, अचरज भारी निगाहो से वो कभी इधर देखती तो कभी उधर.
"ये....ये... ये....मै कहाँ हूँ " कामवती का प्रश्न सहज़ ही था जैसे वो बरसो के बाद उठी हो.
"तुम सुरक्षित हो कामवती " नागेंद्र कि आवाज़ से उसे जैसे सबकुछ याद आ गया वो ठाकुर ज़ालिम सिंह के साथ मंदिर आई थी.
"मुझे सब यदा आ गया है नागेंद्र सब याद आ गया है,वीरा कहाँ है?"
कामविती ने उठते ही जो प्रश्न किया शायद वो नागेंद्र को मंजूर नहीं था.
"तुम उठते ही मेरे दुश्मन का नाम ले रही हो,शर्म नहीं आयी तुम्हे, जिसने तुम्हारी हत्या कि मेरा प्यार मुझसे छीन लिया उसकी बात मर रही हो तुम " नागेंद्र का गुस्सा जायज था

"नहीं नहीं...नागेंद्र मै तुमसे बहुत प्यार करती हूँ " जैसा तुम सोचते हो वैसा नहीं है
मेरी हत्या वीरा ने नहीं कि थी.
"क्याआआआआआ......." अब चौकने कि बारी नागेंद्र कि थी.
उसके लिए ये बात किसी सदमे से कम नहीं थी.
"क्या हुआ था कामवती "
"अभी वक़्त नहीं है जल्दी घुड़पुर चलाना होगा वीरा के पास कही देर ना हो जाये "
कामवती और नागेंद्र घुड़पुर कि ओर दौड़ चले.

चोर मांगूस भी दौड़ रहा था गांव कामगंज कि और उसकी मंजिल रतिवती का घर थी.
परन्तु रतिवती तो यहाँ कामवासना मे चूर हवस कि आहे भर रही थी.
"आआहहहहह....आहहहह....उफ्फ्फ....जोर से और अंदर आअह्ह्ह......उगफ्फग...." रतिवती घोड़ी बनी हुई थी नीचे से करतार अपना लंड उसकी चुत मे घुसाए था तो पीछे से उस्ताद उसकी गांड मे अपना भयानक लंड घुसाए धचा धच पेले जा रहा था.

सत्तू कबका वीर्य त्याग कर हांफ रहा था.
रामनिवास को आज औरत के असली रूप का ज्ञान हुआ था जो वो अपनी आँखों से आपने सामने देख रहा था.
"आआहहहहह.......और अंदर.....आअह्ह्ह...."
पच पच पच......उफ्फ्फ्फ़.....कि आवाज़ से घर का आंगन गूंज रहा था.
रतिवती कि चुत और गांड बेहिसाब पानी बहा रहे थे लेकिन मजाल कि वो कामदेवी हार मान जाये.
जबकि वो तो और अंदर लेना चाहा रही थी.
"साली छिनाल क्या चीज है तू,आज तक ऐसी गांड नहीं मारी " उस्ताद भी हाफने लगा था.
रतिवती भी अपने चरम पे थी,खुद ही अपनी गांड को पीछे धकेल देती, दोनों लंड बहार को आते ही थे कि रतिवती वापस से उन्हें अपनी काम छेद मे पनाह दे देती.
जैसे लंड बहार जाये उसे मंजूर ही नहीं था.
आखिर मे वो मुकाम आ ही गया जिसके लिए ये खेल खेल गया था.
दोनों ने एक एक जोरदार धक्का मारा....और भलभला के रतिवती कि गांड और चुत मे शहीद हो गए.
आआआहहहहह.......आअह्ह्हह्ह्ह्ह......क्या लुगाई है रे तेरी रामनिवास.सब तरफ सन्नाटा छा गया था,
सिर्फ साँसो कि आवाज़ ही आ रही थी.
रतिवती बेसुध वही जमीन पे पड़ी थी, चुत गांड से वीर्य किसी नदी जैसे बह रहा था.
कि तभी सत्तू के हाथ कुछ चमकती सी चीज लगी " उस्ताद ये क्या है ऐसी चीज तो कभी नहीं देखी "
सभी कि नजरें उस ओर चली गई,सत्तू के हाथ मे एक चमचामाता हिरा था.
"नहीं.....नहीं....वो मेरा है मुझे दो " एकाएक रतिवती चीख उठी.
"जो तुम्हे चाहिए था वो सब तो ले लिया तुम लोगो ने " रतिवती ने एक मरी हुई सी गुहार लगाई.
उस्ताद :- अच्छा तो सारी सम्पति मे ये भी तो आया ना ये भी हमारा हुआ, उस्ताद रतिवती के चीखने से समझ गया था कि ये कोई कीमती चीज है.
रतिवती नग्न ही सत्तू कि ओर दौड़ पड़ी जैसे उस नागमणि को छीन लेना चाहती हो.
रामनिवास किसी मुर्ख कि तरह बैठा सब देख रहा था उसकी तो समझ से ही परे था जो कुछ यहाँ हो रहा था.
सत्तू :- उस्ताद लगता है कोई कीमती चीज है देखो कैसे चमक रही है,इसके तो बहुत पैसे मिल जायेंगे.
"नहीं...नहीं...ये मेरा है हम लोग जुए मे सिर्फ पैसा ये घर और हमारी गुलामी हारे है इसकी कोई बात नहीं हुई थी " रतिवती ने उस नागमणि को छीनन्ने कि बेहिसाब कोशिश कि लेकिन कामयाबी हाथ ना लगी

उस्ताद :- अच्छा तो ठीक है मै तुम्हे गुलामी से मुक्त करता हूँ,ये घर भी वापस ले लो लेकिन ये हिरा तो अब हमारा ही है

रतिवती कि शक्ल रुआसी हो चली,उस से ये गुम सहन के बहार था.
"अरी क्यों उस पत्थर के लिए मरी जा रही है,जो हुए मे हरे थे मिल तो रहा है वापस "इस बार रामनिवास उखड़ गया और रतिवती के पास जा उसे समझने लगा.
कुछ ही समय मे उस घर मे एक ख़ालिस सन्नाटा छा गया,किसी के लिए यकीन करना भी मुश्किल था कि ये वही जगह है जहाँ जुआ और कामक्रीड़ा का खेल खेला गया था.
कि तभी भड़ाक से....रामनिवास के घर का दरवाजा खुल गया.
अचानक आवाज़ से दोनों पति पत्नी का ध्यान उधर गया अभी रतिवती सम्भली भी नहीं थी,वी जमीन पे ही पर्ण नग्न अपने भाग्य को कोष रही थी.
"कहाँ है कहाँ है वो नागमणि बोल साली " चोर मंगूस एकाएक रतिवती के सर पे आ धमका
"ममममम....ममम....मै....कौनसी नागमणि " रतिवती अचानक मंगूस के आ जाने से बोखला गई
"साली भोली मत बन वही मणि जो तूने जंगल से उठाई थी,कहाँ है वो " मंगूस बदहवास था उसकी गिरफत मे रतिवती कि गार्डन थी.
"वो...वो....वो...तो....रतिवती ने घटी सारी घटना मंगूस को सुना दि "
मंगूस ने माथा पकड़ लिया " साली छिनाल औरत तेरी वजह से क्या क्या हो गया तेरा लालच भारी पड़ गया "
"मममम....मुझे माफ़ कर दो मुझे पता नहीं था कि वो क्या चीज है " रतिवती ने गुहार लगाई
"कहाँ मिलेंगे वो तीनो अभी " मंगूस दहाड़ा
"वो अभी अभी यहाँ से निकले है,हो सकता है दारू के ठेके पे मिले " जवाब रामनिवास मे दिया
चोर मांगूस आगे बिना कुछ सुने घर के बहार दौड़ चला.
पीछे रतिवती और रामनिवास एक दूसरे को देखते रह गये.
मंगूस जीतना नागमणि के करीब पहुँचता था,नागमणि उस से उतना ही दूर भाग जाती थी.
मंगूस हासिल कर पायेगा नागमणि को?
रंगा बिल्ला के अड्डे पे क्या हुआ?
इंस्पेक्टर काम्या अकेली ही शेरो कि मांद मे उनका शिकार करने चली गई थी क्या वो खुद शिकार हो जाएगी?
बने रहिये कथा जारी हैँ....
 
Member
105
75
30
अपडेट -84

काली पहाड़ी पे साय साय करती हवा,घुप अंधेरा,उल्लू चमकादडो कि चीखे माहौल मे एक भयानकता पैदा कर रही थी.
आम मनुष्य का तो खुन ही जम जाता ऐसे खौफनाक माहौल मे.
यहीं इसी पहाड़ी क किसी हिस्से मे एक गुफा मे मध्यम रौशनी फैली हुई थी.
images-1.jpg

"आआहहहह.....हरामियों " इंस्पेक्टर काम्या पेट पकड़े जमीन पे कराहा रही थी,मुँह से एक खून कि लकीर निकल जमीन पे निशान बना चुकी थी, आँखों से आँसू बह रहे थे.
रंगा :- बताओ अभी भी हिम्मत नहीं गई इसकी.
बिल्ला : - इसी पिस्तौल क सहारे शेरनी बन रही थी ना? बिल्ला क हाथ मे थमी पिस्तौल काम्या क सामने लहरा दि गई..यहीं पिस्तौल थोड़ी देर पहले काम्या के हाथ मे थी जो कि रंगा बिल्ला कि खोपड़ी पे तनी हुई थी.
रंगा ने काम्या को गुस्से मे बेकाबू कर दिया और मौके का लाभ उठाते हुए मशाल बुझा दि,जब तक मशाल वापस जलती बाजी पलट चुकी थी.
रंगा :- साली तू तो अपनी माँ से भी कही ज्यादा सुन्दर है रे,देख तो बिल्ला कैसा कसा हुआ जिस्म है इसका.
बिल्ला :- हाँ यार सच बोला तू लेकिन क्या ये हमारे लंड झेल पायेगी,इसकी माँ तो खाई खेली घोड़ी थी मजे से हमारे लोड़ो पे उछली थी.
"सालो हरामियों...छोडूंगी नहीं तुम्हे " काम्या ने एक बार फिर से पूरी ताकत समेट रंगा बिल्ला पे झपटना चाहा था कि थापपड़ड़दद्दाकककक....करता हुआ एक झान्नट्टेदार थप्पड़ काम्या के गाल से जा टकराया.
काम्या वापस से जमीन पे लौट गई " साली रस्सी जल गई लेकिन बल नहीं गया "
बिल्ला :- आज तुझे हम समझायेंगे कि रंगा बिल्ला का शिकार छीनने का क्या मतलब होता है.
रंगा :- चाहे तो तुझे एक गोली मार दे लेकिन ये तो नाइंसाफी होंगी ना तेरे साथ इतना कामुक सुन्दर बदन का क्या फायदा.
बिल्ला :- अब तुझे ही हमारे नुकसान कि भरपाई करनी पड़ेगी,आज हम तेरे बदन से तब तक खेलेंगे जब तक कि तेरे ठुल्ले वापस से ठाकुर को हमारे हवाले नहीं कर देते.
काम्या पे इस धमकी का असर साफ दिखाई दिया,एक पल को उसकी आँखों के सामने वो नजारा नाच गया जो अभी होना बाकि था.
हालांकि काम्या भी खूब खेली खाई गद्दाराई लड़की थी लेकिन आजतक जो भी उसने किया अपनी मर्जी से, लगाम हमेशा उसी के हाथ मे रही थी,
लेकिन यहां उल्टा था.
आज काम्या का दिल बेकाबू धड़क रहा था,हालत उसके काबू मे नहीं थे.
बिल्ला :- चल उठ के बैठ जा.
काम्या जैसे तैसे करहाती हुई बैठ गई,शायद उसे अभी यहीं ठीक लगा.
"देखा रंगा मौत का डर कैसे ये खुंखार शेरनी बकरी बन के आदेश मान रही है " बिल्ला ने अपनी शान मे क़सीदे पढ़ दिये.
"कुत्तो मै तुमसे या मौत से नहीं डरती,मौत तो आनी ही है, मुझे जिन्दा रहना है ताकि तुम दोनों कि बोटी बोटी नोच के चील कुत्तो को खिला सकूँ, आआकककम.....थू...." काम्या फिर से दहाड़ उठी उसकी आँखों मे अँगारे थे.
रंगा :- बहुत बोलती है रे तू,अभी देख लेते है सिर्फ तेरे मुँह मे ही जबान है या तेरे जिस्म मे हमें झेलने कि ताकत भी है
काम्या :- तूम जैसे हज़ारो चोर बदमाशों से पाला पड़ता है मेरा,काम्या ने एक उपेक्षित सी मुस्कान दे दि जैसे तो रंगा बिल्ला कि मर्दानगी पे सावल उठा रही हो,
काम्या फिर से गलती कर रही थी वो इन दोनों को कोई मामूली डकैत समझ के चल रही थी
बिल्ला :- हाहाहाहा.....वो तो तुझे अभी मालूम पड़ जायेगा,जब तुझे चोद चोद के अपनी रखैल बनाएंगे
बिल्ला ने बोलते हुए अपनी लुंगी कि गांठ खोल दि,लुंगी सरसराती हुई जमीन पे धाराशाई हो गई.
सामने जो था वो काम्या के जीवन जा सबसे बड़ा अजूबा था.
garyboislave-5f54dc-picsay.jpg

उसकी आंखे चौड़ी होती चाली गई,गगगग....गड़ब.....गला सुख गया उसने थूक निगलने कि कोशिश कि लेकिन गला तो सुख ही गया था.
बिल्ला :- क्या हुआ शहर कि रंडी इतने मे हवा निकल गई,
"ममममम.....ममम....क्या " काम्या एकपल को मीमया सी गई.उसने लंड तो बहुत देखे थे लेकिन वो सब शहरी थे,मामूली चोर उचक्को के.
जमीन पे बैठी काम्या के सामने पूर्ण नग्न जिस्म का मालिक बिल्ला किसी देत्या के सामान खड़ा था, पुरे जिस्म पे बाल ही बाल थे, एकदम शयाह शरीर..
काम्या कि नजर ना चाहते हुए भी उसकी सीने ले जा लगी जो कि उस जिस्म का मुआयना करती हुई नीचे को आनी लगी,.और जहाँ जा के टिकी वहाँ घने बालो के बीच 9"लम्बा मोटा किसी लोकि के सामान लंड झूल रहा था,उसी के नीचे दो भारी भरकम किसी आलू के सामान टट्टे झूल रहे थे.
इन टट्टो के आकर से ही मालूम होता था कि उसमे कितना वीर्य भरा हुआ है.
काम्या का मुँह खुला का खुला रहा गया,ये सब कल्पना से भी बहार कि बात थी.
अजीब सी सिरहन ने उसके जिस्म पे हमला बोल दिया था,गुस्सा उस नज़ारे को देख कम होने लगा.
अभी ये कम ही था कि रंगा ने भी काम्या कि हालत को भपते हुए अपनी लुंगी सरका दि.
एक काला राक्षस और काम्या के सामने उजागर हो गया,
काम्या को काटो तो खून नहीं ऐसी हालत थी,पेट मे होता दर्द अचानक से गुदगुदी मे तब्दील हो चला,गांड का छेद खुद से खुला और सिकुड़ गया इसका अहसास काम्या को हुआ,अब कहना मुश्किल था कि ये डर से हुआ या उस अजीब से अनुभव से जो कि अभी काम्या महसूस कर रही थी.
रंगा का काला लंड लटका हुआ था बिल्ला के बराबर तो नहीं था लेकिन हद से ज्यादा मोटा था,शायद काम्या दोनों हाथ से भी ना पकड़ पाती,मध्यम रौशनी मे रंगा के लंड पे उभरी हुई नसे उसकी मजबूती का प्रमाण दे रही थी.
रंगा :- तेरी माँ कि भी यहीं हालत थी जब उसने पहली बार हमारे लंड देखे थे,
रंगा बिल्ला बार बार उसे जलील कर रहे थे.
बिल्ला ::-तूने आज तक जो भी देखा था उसे लुल्ली कहते है इंस्पेक्टर, आज तुझे असली मर्द मिले है.
रंगा :- यदि तू आज रात हमसे चुदने के बाद भी जिन्दा रही तो बेशक़ यहाँ से चली जाना,तू भी क्या याद रखेगी कि रंगा बिल्ला ने किसी लड़की कि जान बक्श दि.
बिल्ला :- लेकिन पहले बचे तो सही हाहाहाःहाहा.....
दोनों बुरी तरह हॅस पड़े,अपनी मर्दानगी के गुरुर मे हॅस पड़े.
दोनों कि हसीं सुन काम्या का जिस्म सिहर गया,उसका अंग अंग काँप उठा वाकई आजतक उसने ऐसा नजारा नहीं देखा था,
ना जाने कैसे वो इन्हे झेल पायेगी " नहीं नहीं.....मुझे जिन्दा रहना ही है इनकी मौत आने तक मुझे जिन्दा रहना है " काम्या निश्चय कर चुकी थी उसे क्या करना है अब.
काम्या एकाएक मुस्कुरा दि,जैसे वो उसका रोज़ का काम हो ना जाने कितने लंड देखे हो, काम्या ने बड़ी चालाकी से अपने डर पे काबू पाया था.
रंगा बिल्ला दोनों ही अपने अपने लंड को थामे काम्या के नजदीक जा पहुचे,जैसे लंड रूपी पिस्तौल उसके सर पे तान दि हो.
एक कैसेली से गन्दी लेकिन कामुक गंध से काम्या घिर गई,उसके नाथूनो से होती हुई हे कामुक गंध उसके जिस्म मे सामने लगी.
काम्या वैसे भी बहुत कामुक लड़की थी ये कामुकता उसे अपनी माँ से विरासत मे मिली थी
बिल्ला ने अपने लंड को उसके गाल पे खिंच के दे मारा चटाकेककककक......साली देखती ही रहेगी या चूसेगी भी, चूसना तो आता ही होगा ना? तेरी माँ ने तो जम के चूसा था.
काम्या को ये कथन अपनी तोहिन लगी, आखिर अब उसकी तुलना अपनी माँ से होने लगी थी.
"इन्हे तो ऐसे ही निपटा दूंगी " काम्या के मन मे ख्याल तो यहीं था लेकिन उस भयानक लंड को हाथ लगाते भी डर रही थी परन्तु ये खौफ उसने अपने चेहरे पे नहीं आने दिया.

काम्या के एक हाथ ने कंपते हुए बिल्ला के लंड को जा दबोचा,जो कि उसकी मुट्ठी मे समाने को ही तैयार नहीं था.
मुँह मे कैसे जाता,लेकिन ये तो करना ही था, जीत के लिए,बदले के लिए ये करना ही था.
काम्या का तन और मन एक विश्वास से भर उठा, उसका मन खुद इस भयानक लंड को चखने के लिए चहक उठा,
ऐसा मौका भला कोई कामुक स्त्री कैसे छोड़ सकती है,ऊपर से काम्या का काम करने का तरीका ही यहीं था वो पहले शिकार को कमजोर करती थी उसके बाद ही कही जा के मारती थी.
काम्या का हाथ बिल्ला के लंड ले रेंगने लगा,बिल्ला अपने लंड पे कोमल सुखद अहसास पा के आहहहह...कर उठा,.वाकई उसने आज से पहले इतने कोमलता का अहसास नहीं लिया था.
बिल्ला :- वाह री दरोगाईन तू तो बड़ी नाजुक सी है,कोमल है लेकिन तेरी बाते तो ऐसी है जैसे किसी को फाड़ खाये.
काम्या को इनसब बातो का कोई फर्क नहीं पड़ता था अब.
उसके हाथ मजबूती से बिल्ला के लंड पे कसते चले और धीरे धीरे पीछे जाने लगे नतीजा काले लंड से चमड़ी पीछे को जाने लगी, एक गुलाबी लाल आकर कि बड़ी गैंद नुमा चीज बहार को आने लगी जैसे जैसे सूपड़ा बहार आता वो कैसेली कामुक गंध का अधिकार भी बढ़ता जाता,
काम्या कि सांसे उत्तेजना से तेज़ होती जा रही थी जितनी तेज़ सांस लेती उतनी ही लंड कि गंध उसके बदन मे समा जाती.
अजीब सा अहसास था नाक से होती गंध सीधा उसकी जांघो के बीच हमला कर रही थी.
उसकी चुत पनिया गई,चिपचिपा सा कुछ उसकी चुत कि दरार मे रेंगने लगा


रंगा पास मे खड़ा काम्या के करतब देख रहा था किसी मांझी हुई खिलाडी कि तरह उसके हाथ बिल्ला के लंड पे चल रहे थे.
काम्या ने एक नजर रंगा को देखा,रंगा उसे ही देख रहा था
काम्या का दूसरे हाथ ने रंगा के लंड पे कब्ज़ा जमा लिया जैसे तो वो रंगा के मन कि बात जान गई हो

"आआहहहहह......." रंगा भी उस कोमल अहसास से करहा उठा.
रंगा का लंड तो काम्या कि हथेली मे समा ही नहीं रहा था,आधे हिस्से को ही पकड़ के आगे पीछे करने लगी,अब आलम ये था कि पुलिस वर्दी मे एक स्त्री,एक दरोगा,जिसने अच्छे अच्छे चोर उचक्को के छक्के छुड़ाए थे वो दो राक्षस रूपी डकैतो के लंड सहला रही थी,वो भी बराबर उनकी आँखों मे झाकते हुए,ना कोई झिझक ना कोई डर.
देखते ही देखते दोनों के लंड और भी ज्यादा फूलने लगे, काम्या के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था उसे तो लगा था कि हे इतने ही होंगे लेकिन ये तो बड़े होते ही जा रहे थे.
बिल्ला से अब सहन नहीं ही रहा था उसने अपनी कमर को जरा आगे धकेल दिया,उसका लंड झटके से काम्या के हाथ से फिसलता हुआ सीधा काम्या के होंठ से जा टकराया,एक चिपचिपे रंगहिन से पानी ने काम्या के होंठ को भिगो दिया,जिसकी गंध ने काम्या को विवश कर दिया कि वो अपनी जीभ बाहर निकलती,हुआ भी ऐसा ही काम्या के ना चाहते हुए भी उसकी जबान अपने होंठो पे फिर गई,एक अजीब से स्वाद से उसका जिस्म नहा गया. लंड से निकली एक पतली सी धार उसके होंठो से जा लगी

20220404-202401.jpg


काम्या का बदन अब उसका साथ छोड़ता महसूस हो रहा था,वो क्या करने आई थी इस काम नशे के सामने वो सब बाते,उसकी प्रतिज्ञा सब धवस्त हुई जा रही थी.
बिल्ला अभी सकते मे ही था कि काम्या कि जीभ बाहर को लपलपा गई,और उस गुलाबी टोपे के पुरे भाग को नीचे से ऊपर कि तरफ चटती चली गई सडडडप्पप्प्प.......लप..लप.....
"आअह्ह्हह्ह्ह्ह......दसरोगाईन तू को किसी पहुंची हुई रंडी को भी मात दे रही है.
ना जाने क्यों काम्या मुस्कुरा के रह गई,या फिर काम मे डूबी स्त्री को ऐसी ही तारीफ पसंद आति हो.
काम्या का रुकना अब मुस्किन था उसकी जीभ ये क्रिया दोहराने लगी,बार बार बिल्ला के लंड को चाट लेती जैसे कोई अमृत टपक रहा हो.
सुड़प सुड़प करती काम्या किसी कुतिया कि तरह उस भयानक लंड को चाट रही थी और दूसरा हाथ रंगा के लंड कि मोटाई को नाप रहा था.
बिल्ला तो इसी मे मस्त हुआ जा रहा था कि घुप्पप्प.....से उसके सुपाडे के ऊपर कोई गरम कोमल सी चीज कसती चली गई,बिल्ला हैरान था जैसे ही नजर नीचे गई उसने पाया कि काम्या के मुँह मे उसके लंड का टोपा समा गया था जिसे काम्या बड़े ही यत्न से चुभला रही थी,जैसे कोई मनपसंद लॉलीपॉप हो.
काम्या के होंठ उतने ही हिस्से पे आगे पीछे हो रहे थे, पच पच पच....करती काम्या का थूक लंड को भिगो रहा था,
लेकिन ना जाने क्यों इस से ज्यादा आगे बढ़ने कि हिम्मत नहीं कर पा रही थी.
बिल्ला ने मौके को भुनाते हुए,अपनी कमर को आगे सरका दिया,नतीजा उसके लंड का आधा हिस्सा काम्या के मुँह मे जा धसा.
गुगुगुगुग......औकककककक......गुगुग.ऑफफ.....ऊऊऊकककक.....कि आवाज़ के साथ काम्या का मुँह चोड़ा होता चला गया,मुँह मे जमा थूक नाक के रास्ते बाहर आ गया था मुँह मे तो जगह ही नहीं थी.
काम्या का जिस्म जो अभी तक हवस से तपने लगा था पलभर मे ही ठंडा पड़ने लगा,उसे समझ आ गया था जिस काम वो चुटकीयों का खेल समझ रही थी वो आसन नहीं है.
काम्या अभी कुछ और सोचती ही कि एक झटका और पड़ा,ये झटका बिल्ला कि बेरहमी का एक छोटा सा नजारा था.बिल्ला का लंड सरसराता हुआ काम्या के गले मे पेवास्त हो गया.
ओकककककक......उउउउउकककककम.....काम्या कि आंखे बाहर को आ गई,आँखों से पानी निकल पड़ा.

काम्या के हाथ बिल्ला कि जांघो पे कसते चले गए जैसे तो दया कि भीख मांग रही हो,लेकिन उन दो रक्षासो मे दया ही तो नहीं थी,
काम्या कि आंखे पीछे को उलटने लगी कि तभी बिल्ला ने एक दम से अपने लंड को पीछे खिंच लिया,
ढेर सारा थूक लंड के साथ साथ बाहर को आ गया, आआहहहहह.....खो...खोम....खोऊ......खाऊ......

काम्या ढेर सारा थूक उगले जा रही थी,जैसे तो सांस मे सांस आई थी कि बिल्ला ने वापस से उसके खुले मुँह मे थूक से सने लंड को ठेल दिया.
काम्या को घिघी बंध गई.....ये दौर अब ऐसे ही शुरू हो गया था काम्या को जितनी तकलीफ होती उन दोनों का मजा दुगना हो जाता..
कुछ ही देर मे सरासर बिल्ला का लंड काम्या के मुँह को रोन्द रहा था, काम्या का गोरा मुँह लाल पड़ गया, थूक से भर गया था,धचा धच बिल्ला बेरहमों कि तह काम्या के मुँह को चोदे जा रहा था कभी गले तक डाल देता तो कभी एक दम से पूरा बाहर खिंच देता.

काम्या कि हालत ख़राब होती जा रही थी,लेकिन ना जाने किस मिट्टी कि बनी थी एकाएक उसके हाथो ने वापस से रंगा बिल्ला के लंड पे कब्ज़ा जमा लिया.
या फिर शायद उसका मुँह उनके लंड के मुताबिक पूरा खुल गया था.
अब आलम ये था कि काम्या खुद से अपने मुँह को बिल्ला के लंड के जड़ मे दे मारती,जांघो के बीच घने बाल उसकी नाक से टकरा जाते, पसीने और थूक से सने बाल उसकी नाक मे घुसते तो जी भार के सांस खींचती और लंड को बाहर निकल फिर से मुँह मे ठेल लेती.
बिल्ला हैरानी से रंगा को देख रहा था.
"अरे कब तक चूसवयेगा,इस रंडी को मेरा भी स्वाद लेने दे " शायद रंगा समझ गया था कि ये दौर ऐसे ही चलता रहा तो बिल्ला यहीं वीर्य त्याग देगा..
बिल्ला पीछे को हटने लगा,परन्तु काम्या भी उसकी के साथ अपना मुँह आगे बढ़ा देती जैसे तो वो इसे ख़त्म कर के ही माननी थी..
"अरे जरा सब्र कर मेरा भी तो चूस ले " रंगा ने बिल्ला को झटके से हटा दिया और खुद उसके जगह आ खड़ा हुआ
काम्या ने उन्हें खा जाने वाली नजरों से घुरा जैसे तो उस से उसकी जान ही छीन ली हो.
रंगा ने देर ना करते हुए एक बार मे ही अपने लंड को काम्या के खुले मुँह मे ठेल दिया.
"उउउउउउम.....गुगुगुगु...........ोकककक....रंगा का लंड ओर भी ज्यादा मोटा था जैसे तैसे तो बिल्ला के लंड के लिए जगह बनाई थी.
परन्तु वो स्त्री ही क्या जो लंड के डर से पीछे हट जाये.
काम्या भी नहु हटी कुछ ही देर मे सटासट रंगा का लंड भी काम्या के मुहबकि सेर कर रहा था.
आआहहहहह.....उफ्फ्फ्फ़.....क्या चूसती है रे तू.
गुफा मे काम्या कि वर्दी उसके ही थूक से सनी हुई थी.
बिल्ला :- ओह बेचारी कि वर्दी गन्दी हो गई, बिल्ला काम्या के पीछे था उसका हाथ उसकी पीठ पे जा लगा और चररररर.......फररररर......करती वर्दी फटती चली गई
मध्यम रौशनी मे काम्या दो हैवानो के सामने कमर से ऊपर नंगी थी.
एकदम से गुफा मे सन्नाटा छा गया,रंगा बिल्ला एकटक उस सुन्दर काया को निहारने लगे,काम्या कि छाती एकदम तनी हुई थी,उसके स्तन कड़क सामने को खड़े थे ना कोई झुकाओ ना कोई लचक,
एक दम गोरे बेदाग,
रंगा बिल्ला के मुँह खुले के खुले रह गए ऐसा कामुक बदन ऐसी जवानी तो कभी देखी ही नहीं थी.
रंगा से राहा नहीं गया उसे अब इस खजाने को पूरा देखना था, रंगा ने आगे बढ़ तुरंत ही काम्या कि पैंट पकड़ उसके बदन को आजाद कर दिया,
काम्या ने जरा भी प्रतिरोध नहीं किया शायद वो भी यहीं चाहती थी,कावासना मे भरे उसके टाइट निप्पल इसी बात कि गवाही दे रहे थे..
आलम ये था कि काम्या इंस्पेक्टर खूंखार काम्या किसी बकरी कि तरह पूर्ण नग्न दो राक्षसों के सामने पड़ी हुई थी.
20220526-073541.jpg

एक सुडोल कामुक काया,स्तन के नीचे गोरा सपाट पेट जाँघे मोटी मोटी किसी ताने के सामान चिकनी,जांघो के बीच एक उभरी हुई लकीर,जहाँ बाल का कोई नामोनिशान नहीं था,.
उसी लकीर को काम्या आजतक चुत कहती आई थी,इसी के भरोसे उसने ना जाने कितने चोर उचक्को को धूल चटाई थी.
20220515-001415.jpg

रंगा बिल्ला का भी वही हाल था,उन्हें ये बदन बेकाबू कर रहा था नतीजा तुरंत सने आया रंगा उसके स्तन पे टूट पड़ा तो बिल्ला ने उसकी जांघो के बीच सर घुसा दिया.
"वाह बिल्ला वाह....क्या किस्मत पाई है हम लोगो ने " रंगा ने काम्या के उभरे हुए स्तन को मुँह मे भर लिया.
बिल्ला :- क्या खुसबू है इसकी चुत कि, आज तक किसी शहर कि रंडी मे भी ये स्वाद नहीं था.
काम्या तो जैसे ये आक्रमण झेलने को तेयर ही नहीं थी" आआहहहहहहह......हरामियों.....हाआआआआहहहहह.....धीरे " काम्या सिसक उठी उसका बदन ऊपर को उठने लगा.
km.gif

उसके हाथ रंगा बिल्ला के सर पर कसने लगे,वो उन्हें और अंदर धकेल रही थी.
काम्या कि कामवासना जोर पकड़ने लगी थी,आखिर ऐसे मर्द मिलते कहाँ है.
रंगा बिल्ला उसके बदन से खेल रहे थे.
काम्या कि चुत से टपकता एक एक शहद कि बून्द बिल्ला चटकारे ले के चाट रहा था,ये अभी कम कम ही था कि बिल्ला ने काम्या कि टांगो को फैला दिया उसकी चुत और गांड उभर के बाहर को आ गए, "वाह क्या बारीक़ छेद है तेरे " बिल्ला ने अपनी जबान गांड के छेद पे लगा दि और वहाँ कुरेदने लगा
"आआहहहह.....नहीं...वहाँ नहीं.....उगगगफ्फफ्फ्फ़.....मार दिया "
काम्या कि सिसकारी से मालूम पड़ चूका था कि वही उसकी कमजोरी है.
रंगा भी ये बात भाँप के नीचे उतर आया,
अब रंगा बिल्ला दोनों कि जबान काम्या कि चुत और गांड पे एक साथ रेंग रही थी.
काम्या का बुरा हाल था वो बिन पानी कि मछली कि तरह तड़प उठी,मुट्ठीया आपस मे भींच गई.
दोनों कि वहशी खुर्दरी जबान,उसके कोमल नाजुक छेदो को घिस रही थी,
काम्या का बदन किसी भट्टी कि तरह सुलगने लगा था उसका सब्र कभी भी जवाब दे सकता था,
उसकी चुत पर पेशाब कि कुछ बुँदे छलछला आई जिसे रंगा ने शरबत समझ के पी गया क्या आनंद था

इस रस मे,एक जवान स्त्री का कामुक रस.
"आअभब......आअह्ह्ह......नहीं...उफ्फफ्फ्फ़.....wwwoooo.... Aaahhhh" इन्ही सिसकारियों से वो गुफा गूंज रही थी.
रंगा वक़्त आ गया है इस शहरी इंस्पेक्टर को दिखाया जाये कि डाकुओ मे क्या ताकत होती है..
रंगा बिल्ला का इशारा समझ के पीछे को हट गया,.
बिल्ला ने काम्या को पकड़ के पीछे को घुमा दिया,काम्या कि गांड उभर के बाहर आ गई थूक से सना गांड का छेद चमक रहा था,
आनन फानन मे ही बिल्ला का लंड उसकी गांड पे दस्तख देने लगा. उसके दोनों छेदो पे अपना हक़ ज़माने लगा.
14399842.webp

अभी काम्या कुछ समझती कि ही एक गगनभेदी चीख माहौल मे गूंज उठी "आआआहहहहहह.......मर गईं..उफ़...म.निकाल बाहर हरामी "
बिल्ला का लंड एक बार ने ही काम्या कि गांड के चीथड़े उडाता हुआ अंदर जड़ तक जा घुसा था.
बिल्ला ने कोई रहम नहीं दिखाया,
काम्या कि गर्दन ऊपर को उठ गई,उसकी सांसे जैसे थम गई थी,आंखे बंद होने के कगार पे थी,
अभी काम्या सांस अंदर खिंचती ही कि बिल्ला का लंड बाहर को खींचने लगा, काम्या को ऐसा लगा जैसे पेट के अंदर से आंते भी गांड के रास्ते बाहर को खींचती चली जा रही है...काम्या का पूरा बदन ही पीछे को सरकने लगा.
बिल्ला ने आव देखा ना ताव वापस धक्के के साथ अपने काले मोटे लंड को जड़ तक घुसेड़ दिया.
"आआआहहहहहह.....नहीं..." काम्या फिर चीख उठी
अब तो ये जैसे दस्तूर हो चला बिल्ला लंड खींचता फिर दुगने जोश के साथ वापस ठेल देता,काम्या के गांड फ़ैल के पूरी तरह से बिल्ला के लंड पे कसी हुई थी गांड के किनारो से लाल लाल रक्त रुपी लकीर उभर आई थी जो सबूत थी कि काम्या कि गांड फट के गुफा बन चुकी है.
रंगा से भी रहा नहीं गया काम्या के खुले चीखते मुँह मे उसने वापस से अपना लंड जा धसाया.
गुगुगुग़म.....ओकककककक......कि आवाज़ के साथ काम्या अपना दर्द बयान कर रही थी,
लेकिन हार मानने को तैयार नहीं थी,
कुछ ही पलो मे काम्या का दर्द छू मंतर हो चला, अब वो भी बिल्ला के लंड पे अपनी गांड को मारे जा रही थी.
तभी रंगा ने एक इशारा किया,और नीचे जमीन मे जा लेता,
बिल्ला उसका इशारा समझ गया,वैसे ही काम्या के बदन को उठा रंगा के ऊपर डाल दिया.
"आआआआहहहहहहह........उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़फ......नाहीई....." काम्या जो अभी वासना मे सिसक रही थी वापस से उसकी सिसकारी दर्दभारी चीख मे तब्दील हो गई.
रंगा मा खड़ा लंड सीधा काम्या कि चुत मे पेवास्त हो गया.
गांड मे बिल्ला के लंड घुसे होने से वैसे ही चुत सिकुड़ी हुई थी ऊपर से ये जानलेवा प्रहार काम्या के होश छीनने के लिए काफ़ी था उसका दिमाग़ बेहोशी के सागर मे गोते लगाने ही वाला था कि नीचे से रंगा ने लंड को पीछे खिंच के वापस से ठेल दिया.
"आआआहहहहब्बब......उफ्फफ्फ्फ़....." क्या का बुरा हाल था दोनों छेद खून कि उल्टी कर रहे थे लेकिन इन राक्षसों को कोई भी दया नहीं थी.
एक प्रतियोगिता शुरू हो गई जिसमे मैदान काम्या का जिस्म था और खिलाडी रंगा बिल्ला.
धचा....धच....धचा...धच.... पच...पच...मुफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....आआहहहह....उफ्फ्फ....कि आवाज से वो सुनसान गुफा चहक रही थी.
काम्या के दोनों छेदो मे दो भयानक मोटे काले लंड धसे हुए थे,जो एक साथ अंदर जाते एक साथ बाहर आते ना जाने अंदर दोनों लंडो मे क्या बात चल रही थी.

गांड और चुत के बीच मात्र एक पतली सी चमड़ी ही तो थी जो उन दोनों को अलग करती थी लेकिन दोनों के धक्क्ओ से ऐसा लगता था जैसे ये परत भी आज हट जानी है गांड और चुत एक हो जाने है आज.
काम्या इन वहशी धक्को को कब तक झेलती आखिर उसे भी इसी कामसागर मे उतरना पड़ा,दर्द ना जाने कहाँ चला गया था अब वो भी इस खेल कि प्रतियोगी थी, अब खेल भी उसका हूँ था और मैदान भी उसका ही

"आआहहहहह.......तेज़ ...तेज़....और अंदर....मारो....फाड़ो.....बस इतनी ही ताकत है " काम्या अब सीधा मुकाबले मे थी दोनों को उकसा रही थी.
रंगा बिल्ला भी जोश मे आ के धचा धाच पैले जा रहे थे.
"आआहहहह......उफ्फ्फग्ग.....इस्स्स्स.....मै गई " काम्या और ज्यादा झेल ना सकी उसकी चुत ने गर्म पानी बाहर को फेंक दिया
सांसे फूल गई बदन बेजान हो चला.
रंगा बिल्ला का भी यहीं हाल था.
पच पच फच.....फचम....फाचक......ककककक.....के साथ दोनों ने एक साथ काम्या के जिस्म के अंदर ही वीर्य त्याग दिया.
"हहहह.....फ़फ़फ़ग्ग.....हहहहफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.......उफ्फ्फ्फ़...क्या औरत है रे तू दोनों राक्षस धाराशाई हो गए.
तीनो के जिस्म वही जमीन पे गिरे पड़े थे.
रंगा बिल्ला आंखे बंद किये हाँफ....रहे थे लेकिन काम्या ने अभी भी जान बाकि थी
पेट के बल लेती काम्या के सने ही उसकी पिस्तौल पड़ी थी.
काम्या ने हिम्मत बटोर उसकी तरफ हाथ बढ़ा दिया.


यहाँ काम्या वासना पे विजय पा के आखरी लड़ाई के लिए हाथ बढ़ा दिया था,
वही विषरूप चौकी मे बैठा बहादुर खुद से लड़ रहा था.
"हिजड़े कि तरह यहीं बैठ तू " बार बार उसके जहन ने यहीं शब्द मचल रहे थे
"क्या मै वाकई नामर्द हूँ? मै डरपोक हूँ?" बहादुर आज अपने ही अस्तित्व से लड़ रहा था
"नहीं नहीं नहीं.....मै हिजड़ा नहीं हूँ,मै नपुंसक नहीं हूँ मेरा नाम बहादुर है मै हूँ ही बहादुर " बहदुर कुर्सी से उठ खड़ा हुआ उसकी आँखों मे आज अँगारे थे,उसके वजूद को ललकारे जाने के अँगारे, शोले थे उसके जिस्म मे इन शोलो से वो अपने ऊपर नपुंसक नामर्द होने का खीचड़ धूल देना चाहता था
.
ना जाने ये हिम्मत ये साहस कहाँ से आ गया था उसमे,वो जल्दी से कुछ सामान उठा दौड़ पड़ा काली पहाड़ी कि ओर जहाँ उसका लक्ष्य था रंगा बिल्ला का अड्डा.

तिगाड़ तिगाड़ तिगाड़.....टप टप टप......करता एक घोड़ा इस अँधेरी रात को चिरता चला जा रहा था.
घोड़े पर एक साया बैठा था जिसका लक्ष्य वो जंगल का झरना था जो को विष रूप और घुड़रूप के बीच स्थित था.
images-2.jpg

"मेरी जानकारी के अनुसार वो रहस्यमयी जीव यहीं मिलेगा " साया बड़बड़ाए जा रहा था.
बहादुर को काली पहाड़ी पहुंचने मे वक़्त लगने वाला था परन्तु ये शख्स उस झरने टक पहुंच भी चूका था.
"या अल्लाह......बड़ा ही भयानक मंजर है " अकस्मात ही उस आदमी के मुँह से बोल फुट पड़े,पूरा बदन डर और रोमांच से झुरझुरा गया.
"मुझे उस गुफा तक पहुंचना ही होगा " वाह शख्स बहते पानी कि परवाह ना करते हुए बहते झरने को चिरता हुआ ऊपर को चढ़ने लगा.
झरने से गिरता पानी उसे रोक रहा था परन्तु कहते है ना मनुष्य का साहस और हिम्मत एक ताकत पैदा कर देता है.
वो आदमी भी उसी ताकत के बदले लक्ष्य के मुहने ले खड़ा था,
सामने ही एक गुफानुमा आकृति थी, जिसने से एक अजीब गंध आ रही थी ऐसी गंध जैसे कोई जहर हो, सांस लेना भी दुभर था.
कि तभी एक सर्द फुसफुसाती आवाज़ से माहौल गूंज उठा "सससससस......फुस्स्स.....किसने गुस्ताखी कि सर्पटा के महल मे बिना इजाजत घुसने कि "
"मै...मै........मै....डॉ.असलम महान नाग सम्राट सर्पटा कि जय हो " डॉ.असलम अंदर को दाखिल होता चला गया,उसकी जान हथेली पे ही थी.
वो खुद मौत के कुएँ मे चल के आया था लेकिन क्यों?

"ससससस.....सससरररर......फुसससस......"कोई मोटी सी चीज सरकती हुई डॉ.असलम के चारों और घूमने लगी,धीरे धीरे वो चीज उसके बदन को कसने लगी,जैसे कोई अजगर कुंडली मार रहा हो.
"ममममम...महान नागसम्राट सर्पटा मै दुश्मन नहीं हूँ " असलम गिड़गिड़ाया
"लेकिन दोस्त भी तो नहीं है " एक भयानक चेहरा लिए हुए मानव आकृति ठीक असलम के चेहरे के सामने आ गई.
आम इंसान तो तुरंत ही ह्रदय घात से मर जाता ये नजारा देख के.

"शनिफ़्फ़्फ़.... शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.......झूठ झूठ....मुझसे झूठ बोलता है तेरे जिस्म कि गंध तो कुछ और भी बयान कर रही है" सर्पटा एकाएक फनफना उठा,उसकी कुंडली डॉ.असलम के बदन पे कसती चली गई.
"महान सर्पटा मै असलम ही हूँ ठाकुर ज़ालिम सिंह का घनिष्ठ मित्र" असलम भी वैसे ही पूर्ण विश्वास से चिल्लाया.
"हाहाहाहाहा.......दाई से पेट छुपाते हो ठाकुर जलन सिंह " सर्पटा कि पकड़ ढीली होती चली गई.
तुम्हे कैसे भूल सकता हूँ जलन सिंह हमारी विरासत तो तुमने ही संभाली थी.
"वो...वो......अब आप से क्या छुपा रह सकता है महान सर्पटा" डॉ.असलम ने स्वीकार कर लिया
"लेकिन ये जिस्म तो तुम्हारा नहीं है?" सर्पटा ने आश्चर्य प्रकट किया.
"महान सर्पटा आप से क्या छुपा है,मेरी मृत्यु अकाल ही हो गई थी, वीरा और नागेंद्र के संयुक्त वार से.
लेकिन कामरूपा के प्रयासों से मेरी आत्मा उसी महल मे रह गई शरीर नष्ट हो गया,मै कब से उचित अवसर कि तलाश मे था.
बरसो बाद मुझे डॉ.असलम का शरीर ऐसा लगा जो मेरी शैतान शक्तियों के लिए उपयुक्त था या यूँ कहिए, शुरू से ही मै असलम के अंदर कैद था,परन्तु धीरे धीरे उसके मन मे मैंने अपने विचार भरने शुरू कर दिये,और किस्मत देखो कामवती एक बार फिर से हमारे ही महल कि बहु बन के आई अब आप ही बताये ऐसे सुनहरे अवसर को मै कैसे छोड़ सकता था.
"वाह....जलन सिंह मान गए तुम्हे,परन्तु मुझसे क्या चाहते हो तुम?"
" सर्पटा दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है,मै उसी दोस्ती कि कामना से यहाँ आया हूँ हम दोनों के दुश्मन एक ही है क्यों ना हाथ मिला ले एक से भले दो " असलम उर्फ़ जलनसिंह ने अपने खुनी इरादे साफ साफ उजागर कर दिये.
"आज से दूसरे दिन पूर्ण अमावस्या कि रात है उस रात मेरी शक्ति पूर्णरूप से जाग्रत हो जाएगी, डॉ.असलम के शरीर पे पूर्णरूप अधिकार मेरा ही होगा, उस वक़्त मुझे कोई रोक नहीं सकता वही वक़्त है जब आप और मै अपने सभी दुश्मनों को खत्म कर वापस से राज स्थापित कर ले.
सर्पटा जलनसिंह कि योजना सुन फुला ना समया,वो अभी कमजोर था सीधी टक्कर नहीं ले सकता था परन्तु जलनसिंह के आ जाने से उसका हौसला और ताकत लौट आई थी.
"लेकिन आगे क्या करना है वो नागमणि कहाँ मिलेगी,उसी से मेरी शक्तियां है " सर्पटा ने चिंता व्यक्त कि.
"आप चिंता ना करे महान सर्पटा, अब कामवती मेरी और घुड़वाती नागमणि के साथ आपकी हुई " असलम एक धूर्त मुस्कान के साथ गुफा से बाहर निकल चला,उसे अमावस्या कि रात कि तैयारी करनी थी.
निर्णायक रात आने वाली थी.
परन्तु इस रात का फैसला नागमणि ही करती परन्तु वो तो अभी भी मंगूस कि पहुंच से बहुत दूर थी.
आधी रात के सन्नाटे को चिरता चोर मंगूस गांव कामगंज का चप्पा चप्पा छान चूका था.
"कहाँ गए वो तीनो ठग, आसमान खा गया या जमीन निगल गई " पुरे गांव मे तीनो लोग कही नहीं थे.

कि तभी धाककककक.......धमममममम......से कोई शख्स मंगूस से आ टकराया.
"अबे अंधा है क्या इतना बड़ा आदमी दिखता नहीं है " मंगूस ने उस व्यक्ति कि गर्दन थाम ली वो वैसे ही गुस्से से भरा था अपनी नाकामियों से.
"मार लो बाबू आप भी मार लो अब बचा ही क्या है जीवन मे वो तीनो तो पहले ही लूट ले गए मुझे " व्यक्ति नशे मे चूर था.
"कौन...कौन....तीनो " मंगूस को उम्मीद कि किरण नजर आई
"उस्ताद और उसके दोस्त रास्ते मे मिले थे, मेरी घोड़ा गाड़ी और पैसा ले भागे,मै पैदल कब तक पीछा करता हिचह्ह्ह्हह्म.....हिचम्म...."
"कहाँ भागे है वो तीनो? किधर गए है? बोल साले " मंगूस का चेहरा तामत्मा रहा था..
"वो...वो...वो.....हीच.....हिचम....."उसकी आंखे बंद होने लगी
"उठ उठ साले....जल्दी बता " मंगूस ने झकझोड़ दिया
वो...वो.....उधर...उस शराबी ने हाथ उठा के जंगल से निकलते रास्ते कि ओर इशारा कर दिया.
हिचहहहह...... होश कायम ना रख सका वो शराबी.
मांगूस तुरंत ही उस दिशा मे दौड़ पड़ा....हे भगवान ये कैसी परीक्षा है,आज तक मैंने कभी इतनी नाकामयाबी नहीं देखी.
लेकिन मै भी उस नागमणि को हासिल कर के ही मानुगा,नहीं कर पाया तो चोर मंगूस का अस्तित्व मिटा दूंगा.
दृढ़ विचार और प्रतिज्ञा के साथ एक बार फिर चोर मंगूस दौड़ पड़ा.
मंगूस अभी कुछ दूर ही निकला था कि...आआआआहहहहहहहह.......wwwooooooo...... खच....एक वहशी दर्दनाक चीख से वातावरण गूंज उठा.
"ये कैसी दर्दनाक चीख किसकी थी,किसी पुरुष कि मालूम पड़ती है " मंगूस चीख कि दिशा ने दौड़ चला.
दौड़ता हुआ चीख के स्थान.... सामने का नजारा रूह फना कर देने वला था.
सामने खून से सनी, क्षत विक्षात् तीन लाश पड़ी थी. पास मे ही एक मशाल गिरी पड़ी थी जिसने आस पास कि घास को भी अपनी चपेट मे ले लिया था.
तीनो का रंगरूप,चेहरा मोहरा वैसा ही था जैसा रतिवती ने बताया था " इसका...इसका.....मतलब ये तीनो वही ठग है, "
इस बात का आभास होते ही मंगूस ने उन लाशो कि तलाश कि, रामनिवास से जीते हुए पैसे,जेवर सब उनके पास बरामद हुआ " लेकिन....लेकिन...वो कहाँ है नागमणि कहाँ है, उफ्फ्फ...अब कहाँ गई वो "
पैसे और जेवर मांगूस ने समेट लिए " साले ठगों का लालच आखिर उनकी मृत्यु का कारण बन गया "
मंगूस ने आस पास देखना शुरू किया,मशाल कि धुंधली रौशनी मे घोड़े के खुर के निशान एक दिशा मे जा रहे थे " ये....ये रास्ता तो विष रूप कि ओर जाता है इसका मतलब जिसने इनसे नागमणि लूटी है वो विष रूप गया है, परन्तु जरूर वो कोई लुटेरा नहीं होगा, होता तो पैसे जेवर क्यों छोड़ जाता, जरूर इन ठगों ने उस शख्स को भी लूटने कि कोशिश कि होंगी परन्तु अपनी जान ही लूटा बैठे "
"वो...वो....वहां क्या है सफ़ेद सी कोई चीज है " मंगूस को उसी रास्ते पे कुछ गिरा हुआ दिखा.
"ये तो....कोई टोपी है मुस्लिम टोपी " मंगूस ने उस टोपी को उठा लिया,और उसका मुयाना करने लगा.
"ये ऐसी टोपी तो मैंने कही देखी है,कहाँ देखी है? कहाँ देखी है " अचानक कि मंगूस के दिमाग़ मे एक बिजली से कोंधी.
डॉ.असलम.सससससस........धीरे से उसके मुँह से वो नाम निकला, जैसे वो सब समझ गया हो,सारा खेल उसकी समझ आ गया और चेहरे पे मुस्कान छा गई.
जहाँ से आया था सफर वही ख़त्म होना था.
मंगूस ठगों द्वारा लूटी घोड़ा गाड़ी पे सवार हो चल पड़ा विषरूप अब उसे पता था उसका लक्ष्य और ठिकाना.
टप....टप....तिगाड़....तिगाड़.......
इधर उस्ताद,करतार,सत्तू तीनो लालच कि अधिकता मे प्राण त्याग चुके थे.
मंगूस अपने लक्ष्य कि ओर बढ़ गया था
वही दूसरी ओर इंस्पेक्टर काम्या नंगी जमीन पे लेटी थी,बस चंद ही दुरी पे उसकी नीट रखी हुई थी,उसकी पिस्तौल जो कुछ देर पहले बिल्ला के हाथ मे थी.
रंगा बिल्ला बेसुध हांफ रहे थे,काम्या का हाथ उस पिस्तौल को थमने के लिए उठ गया था, थाम ही लिया था कि....आआह्हबबबब.....काम्या वापस से चीख उठी एक भारी भरकम पैर उसकी हथेली पे जम गया..
"इतनी भी क्या जल्दी ह दरोगाईन अभी तो आई हो " रंगा का पैर काम्या कि हथेली पे था..
काम्या को यकीन ही नहीं हुआ कि ये लोग इतनी जल्दी संभाल सकते है, काम्या कि सारी योजना पर पानी फिर गया था.
"अभी तो रात बाकि है,अभी तो ढंग से तुझे चोदा ही नहीं देख अभी तो तू जिन्दा है " बिल्ला गरज उठा
उसने काम्या के बाल पकड़ ऊपर को उठा दिया " चल चूस इस लंड को, तू भाग्यशाली है जो लंड ले ले के मारेगी हाहाहाःहाहा......".
काम्या के जिस्म से तो जैसे प्राण ही निकल गए हो,यहीं तो एकमात्र योजना थी उसकी जो कि बुरी तरह से नाकाम हुई थी.
"तूने अभी तक असली मर्दो के लंड लिए ही कहाँ है,तुझे क्या लगा मामूली चोर उचक्के है जिसे अपनी चुत का रस पीला के काबू मे कर लेगी "इस बार रंगा भी अपने लंड को काम्या के मुँह के पास ले आया.
इस बार काम्या का पहले से भी बुरा हाल था,उसकव जिस्म से ताकत खत्म होती जा रही थी.
रंगा बिल्ला ने एक साथ ही अपने लंड काम्या के मुँह मे घुसेड़ दिये.
उसके बाद तो काम्या कि जो हालत थी कि समझ नहीं आ रहा था कि जिन्दा है या मर गई.
रंगा बिल्ला मनमानी ोे उतर आये थे कभी गांड मे साथ लंड डाल देते तो कभी चुत मे.
मुँह चुत गांड सब कुछ लाल हो चूका था काम्या का.
गांड और चुत तो फाट के गुफा हो गई थी, सूजन से फूल के अंदर का मांस बाहर को आ गया था.
"नहीं....नहीं.....अब नहीं...." काम्या भीख मांग रही थी
अब तक दोनों उसे 3बार रोन्द चुके थे.

बाहर सूरज कि लालिमा छाने लगी थी,अंदर रंगा बिल्ला धचा धच उसकी गांड के छेद मे साथ मे पिले पड़े थे.
पच....ओच....पच.....फच....फच....कि आवाज़ काम्या कि आखिरी सांसे गिन रही थी लगता था अब नहीं बच पायेगी यहीं आखिरी चुदाई थी काम्या कि.उसका बदन निर्जीव हो चला आगे को लटक गया, आंखे बोझिल हो गई थी जो किसी भी वक़्त सदा के लिए बंद हो सकती थी.

फच....द.फच....फच....बस इतना ही दम है तुझने.....पच...पच....
"आअह्ह्हह्....इसससस....नहीं...रंगा बिल्ला झाड़ने के करीब थे और काम्या अपनी मौत के
कि तभी धाआड़ड़ड़ड़ड़आककककक.......फ्फ्फ्फफ्फ्फ़त्तताकककक.....से एक उड़ता हुआ लठ हवा मे सरसराया.
उस लठ कि चोट से बिल्ला के सर भनभना गया,
रंगा कुछ समझता कि फट्टककककम.....धड़ाम्म्म्म....से वो भी जमीन पे धाराशाई हो गया.
"मैडम....मैडम.....उठिये....होश मे आइये....मै आ गया हूँ....उठिये मैडम...."
"बबबबबब......बहा....बहादुर तुम "
"हाँ मैडम मै...ये लीजिये पानी पीजिये " बहादुर ने काम्या के मुँह से पानी लगा दिया.
काम्या का नग्न निचोडा हुआ जिस्म बहादुर के आगोश मे था, उस आगोश मे एक फ़िक्र थी,परवाह थी,असीम दुलार था..कुछ पानी बहादुर ने काम्या के चेहरे पे डाला.
काम्या के होश और हिम्मत वापस से लौटने लगे.
"ये लीजिये मैडम ले लीजिये अपना बदला " बहादुर ने एक पिस्तौल काम्या के हाथ मे थमा दि.
काम्या अब तक संभल गई थी,खड़ी हो गई थी,उसका नंगा जिस्म बाहर से अति सूरज कि किरणों मे चमक रहा था.
"नहीं बहादुर अब मुझे इसकी जरुरत नहीं इतनक आसन मौत इनके नसीब मे कहाँ " काम्या ने पिस्तौल वापस बहादुर को थमा दि और पास पड़े धारदार चौकू को उठा लिया

रंगा बिल्ला अपना सर पकड़े नीचे जमीन पे लौटे पड़े थे.
काम्या को यूँ अपने नजदीक आते देख उनकी रूह फना हो चली,आज पहली बार उनकी आँखों मे मौत का मंजर दिख रहा था,एक दहशत से बदन काँपने लगा,
जिस लंड से उन्होंने अभी अभी काम्या को भोगा था,वो सिकुड़ के जांघो के बीच कही गायब हो गए.
"सालो... इसी को मर्दानगी कहते हो ना तुम " खच.....खचकककक.........काम्या के हाथो ने रंगा बिल्ला के लंड को उनके जिस्म से निकाल फेंका..बहादुर भले ही बहादुरी दिखा के आ गया था लेकिन ये विभत्य नजारा देखना उसके बस कि बात नहीं थी.बहादुर गुफा के बाहर जा खड़ा हुआ.
दर्दभारी......भयानाक चीखो से काली पहाड़ी गूंज उठी.
थोड़ी ही देर बाद...
"चले बहादुर " काम्या का हाथ बहादुर के कंधे पे था.
"ममममम....मैडम....वो.....वो....दोनों " बहादुर कि तो घिघी बँधी हुई थी ऊपर से काम्या उसके सामने सम्पूर्ण नग्न खड़ी थी.
"रंगा बिल्ला का आतंक ख़त्म हूँ हमेशा हमेशा के लिए, ऐसे क्या देख रहा है कभी नंगी लड़की देखी नहीं क्या?
जा अंदर से मेरी वर्दी ले आ "काम्या लड़खड़ाती आगे को बढ़ चली.
बहादुर अंदर को गया एक पल को तो उसे उल्टी ही आ गई ये नजारा देख के.
गुफा मे चारों तरफ मांस के छोटे छोटे टुकड़े फैले पड़े थे, कही आंत तो कही गुर्दे..
"हे भगवान.....क्या औरत है "बहादुर ने जल्दी से वर्दी उठाई और उबकाई लेता बाहर को भागा.
सूरज पूर्णरूप से उग आया था,चिड़िया चहक रही थी.
बहादुर और काम्या लंगडाती हुई चले जा रहे थे विष रूप चौकी कि तरफ.

खूंखार रंगा बिल्ला का अंत बड़ा ही भयानक हुआ..
मंगूस अभी भी लक्ष्य से दूर था.
कामवती को सब याद तो आ गया था लेकिन नागेंद्र बिना नागमणि के बेबस था.
कैसे सामना करेंगे ये लोग सर्पटा और ठाकुर जलन सिंह का?
अमावस आने वाली है.
बने रहिये कथा जारी है.....
अपने अंतिम अध्याय मे.
निर्णायक युद्ध
 
Member
105
75
30
दोस्तों ये कहानी अभी यहीं तक लिखी गई है.
एक अंतिम अध्याय इस उपन्यास को समाप्त कर देगा.
जल्द ही मिलेंगे....निर्णायक युद्ध मे 🥰🤗
 

Top