Romance मै सिर्फ तुम्हारा हूँ

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अस्वीकरण
इस कहानी के सभी पात्र , घटनाए , स्थान सब कुछ लेखक के दिमाग की बिना परिवार नियोजन वाली प्रजनन प्रक्रिया का नतिजा है ।
इसे अन्यथा ना ले क्योकि लेखक बहुत ही ढीठ और बेशरम है , टिप्पणिओं मे ही आपकी ले लेगा और आप किंकर्तव्यविमूढ़ होकर रह जायेंगे ।
धन्यवाद
 
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आयुष जी ज़रा संभल कर चलो
मीरा खड़ी यहाँ मीरा खड़ी
नैनों में चिंगारियाँ , गोरा बदन शोलों की लड़ी
उसकी नज़रों में प्यास, दिल में तलाश
होंठों में हैं बंद नर्मी
उसकी चुनरी में दाग, सीने में आग
साँसों में हैं कैद गर्मी
छूने से जल जाओगे , समझो ना खुलेगा फुलझड़ी
बिजली गिरेगी बिजली 🤭
अरे वाह !!!!
कोह्बर वाली गीत :hehe:

आपके इस मनमोहक प्रतिकृया के लिए धन्यवाद
 
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Wonderful update. meera bhabhi ne charu ki shadi ayush se karane ke liye ek alag strategy bana li hai. juice dene wala plan chopat hone bad meera samjh gayi ke aise kam nahi banne wala. therefore pure parivar se chupke ab meera charu ko training de rahi hai. uska brain bhi watch kar rahi hai.

shukla family ki bahu banne ki kabil hai wo. thodi kam akal hai par uska man saaf aur nirmal hai. padhi likhi bhi hai .
Bahut bahut shukriya
Dekhate hai mira bhabhi ki private tution kaise aage badhti hai
 
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mast fadu update tha bhai.
Kya tarif karu meera ki jisko dremboy bhai ne banaya :D
kitni akalmandi hai usme :shy: khade khade hi har muskil ka hal nikal leti hai meri janu :kiss4:
lekin iin dino meera janu aur sommtee tension me hai. mujhe phone laga deti . tab to itna kuch tension palne ki jarurat bhi nhi padti . dono ki tension dur kar deta , khyal bhi rakhta.
raaj ke style me ayus aur santi devi ko bhi mast topi pehna ke apne jhanse me le leta aur charu se shadi kara deta 😘
:D bahut tez ho rhe ho hmm

Well apki is manmohak PRATIKRIYA ke liye DHANYWAAD bhai
 
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UPDATE 002


अब तक आपने पढा कि 3D अपने मित्र यानी कहानी के नायक को अपने ड्रामा कम्पनी मे एक रोल करने के लिए अपने पुराने कालेज , जहा वो दोनो बचपन से साथ पढे थे ।
मिस मनोरमा इंटरमीडियट कालेज , नवाबगंज , कानपुर
वहा आयुष को उसके पिता का घर आने का बुलावा आता है , तो वो जल्दी से 3D को घर चलने के लिये बोलता है और वो दोनो घर के लिए निकल जाते है ।
अब आगे


रास्ते मे
आयुष - अरे अरे घाट की ओर ले ना भाई , बाऊजी की स्कूटी लेनी है

3D - अबे हा बे , तुम्हाये बप्पा की सवारी तो हाईबे पे है

फिर वो जल्दी से वापस अटल घाट हाईवे पर जाते है और वहा से आयुष अपनी स्कूटी लेके घर की ओर निकल जाता है ।

वैसे तो दोनो का घर एक ही मुहल्ले मे था , मजह 100 मीटर की दुरी जान लो । वही उस्से ठीक 200 मीटर पहले बाजार के मुहाने पर आयुष के भैया आशीष शुक्ला की मिठाई की दुकान है । जो आयुष की माता जी के नाम पर है
शान्ति देवी मिष्ठान्न भण्डार

घर जाते जाते हुए रास्ते मे ही 3D ने अपनी बुलेट शान्ति देवी मिष्ठान्न भंड़ार के बाहर पार्क कर दी । फिर आयुष की स्कूटी पर बैठ कर आ गया शुक्ला भवन


भईया इस कहानी मे इंसानी किरदारो के साथ साथ शुक्ला भवन भी एक अहम किरदार है ।
अब कुछ महानुभाव अपनी खोपड़ी खुरचेन्गे कि आखिर अइसा का है इ शुक्ला भवन मे

तो आओ अब इस घर की भी खतौनी पढ लेते है ।

सटीक 2400 स्कवायर फुट का क्षेत्रफल का घेराव लिये कानपुर के नवाबगंज थाना क्षेत्र के शिवपुरी कालोनी का मकान नं 96 है हमारा शुक्ला भवन ।

शुक्ला भवन की डेट ऑफ बर्थ उसके सामने की दिवार पर खुदी हुई है - 10 मई 1970
वैसे तो इस भवन के कर्ता धर्ता और मुखिया श्री मनोहर शुक्ला ही है । लेकिन औपचारिकता के तौर पर जब इस भवन का कुछ साल पहले फिर से मरम्मत करवायी जा रही थी तब बड़े मोह मे श्री मनोहर शुक्ला ने भवन के गेट पर एक संगमरमर की प्लेट लगवा कर अपने स्वर्णवासी पिता श्री का नाम खुदवाया ।


शुक्ला भवन
स्व. श्री राधेश्याम शुक्ला
शिवपूरी 23/96 , नवाबगंज

ये तो हो गया शुक्ला भवन का बाह्य चरित्र जो दुनिया जमाने को दिखाने के लिए है
अब थोडा इनके भीतर के
आगन - कमरे कितने आचार × विचार × संस्कार मे बने है और एकान्त विचरण का स्थान यानी शौचालय कितना स्वच्छ और सामाजिक गन्दगी से दूर है ।
ये है शुक्ला भवन का जमीनी हकीकत यानी की ग्राउंड फ्लोर का नक्शा जो मनोहर शुक्ला जी के स्व. पिता श्री राधेश्याम शुक्ला जी द्वारा बनवाया गया था ।

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और ये है उपरी मंजिल जो स्वयं मनोहर शुक्ला जी ने कुछ सालो पहले तब बनवाया था जब उनके बड़के ब्च्चु अशीष शुक्ला की शादी तय हुई थी ।

Pics-Art-11-09-09-08-47

अब इस घर के ग्राउंड फ्लोर पर मनोहर शुक्ला अपनी धर्मपत्नी शान्ति शुक्ला के साथ रहते है और बाकी ऊपर उनके बड़े बेटे और बहू के लिए बाल्किनी से लगा कमरा था । एक कमरा हमारे आयुष बाबू का था और एक गेस्टरूम ।

वापस कहानी पर
आयुष शुक्ला तेज धडकते दिल के साथ फटाफट गाड़ी को शुक्ला भवन के सामने पार्क करते है और जल्दी से स्कूटी के शिसे मे खुद को निहार कर बाल वाल सवार कर 3D की ओर घूमते है और उनका पारा चढ़ जाता है

कारण ये थे अभी थोडी देर पहले 3D भैया ने जो पान खाई वो उगल तो दिया रास्ते मे लेकिन होठो से उसकी लाली और गाल से छीटे ना साफ किए

आयुष 3D का गम्छा जो उसके गले मे था उसका किनारा पकड के 3D के होठ पर दर कर साफ करते हुए - अबे ये क्या बवासीर बहा रहे हो बे ,,, जल्दी से कुल्ला करो , साले अपने साथ हमको भी पेलवा दोगे ।

3D मुस्कुरा कर मुह पोछता हुआ गेट खोल कर अन्दर शुक्ला भवन मे घुसते हुए - भैया बस दु मिंट

फिर 3D फटाक से शुक्ला भवन के बाहरी परिसर के दाई तरफ बने एक बेसिन के पास फटाफट
कुल्ला गरारा कर मुह पोछते हुए वापस आता और वो दोनो हाल मे प्रवेश करते है ।

हाल मे एक बैठक लगी है
जहा आयुष के पिता जी , उसके मामाजी और उसकी माता जी बैठी हुई है और वही बगल मे आयुष की भाभी खड़ी है अपनी सास के बगल मे सर पर पल्लु काढ़े
सास और बडकी बहू दोनो की नजरे जीजा-साले यानी आयुष के पापा-मामा के बीच पास हो रही तस्वीरो और उससे जुडी जानकारी पर जमी हुई थी ।

जी हा आज फिर आयुष के मामा जी श्री बांकेलाल जी , आयुष के लिये शादी का रिश्ता लेके आये थे ।

हाल मे प्रवेश करते ही आयुष मामा को नमसते करता है और अंदर का माजरा जानने समझने की कोशिस करता है

इतने मे 3D आयुष के मामा और पिता को प्रणाम करता है । फिर आयुष के मा के पैर छुए हुए - अम्मा आशीर्वाद

शान्ति मुस्कुरा कर - हा खुश रहो बच्चा
तभी 3D की नजर आयुष की भाभी मीरा पर जाती है

3D हाथ खड़ा कर मीरा से हस कर - औ भौउजी चौकस!!!!

मीरा तुनक के - कहा लिवाय गये थे तुम ब्च्चु को सबेरे सबेरे ,,ना चाय ना कुल्ला

वही आयुष की माता शान्ति भी मीरा की बात पर 3D को ऐसे देखती है कि मानो उसके सवाल मे उनकी भी हा हो

3D आयुष की मा के पाव के पास जमीन के पास बैठ कर - उ का है अम्मा , आज हमाये स्कूल मा है अनुयल पोरिग्राम, तो वही घुमाये के लिए लियाय गये थे ।

3D एक नजर जीजा साले की ओर देख कर वापस शान्ति से - इ का हो रहा है

शांति मुस्कुरा कर - अरे ब्च्चु के लिए रिश्ता आया है ,, ले तुहू देख

उधर आयुष अपनी शादी की बात सुन कर तनमना गया लेकिन बाऊजी के डर से अम्मा से बात करते हुए - अम्मा इ का है सब, फिर से

शान्ति कुछ बोलती उससे पहले आयुष नाराज होकर उपर चला जाता है ।

ये नया नही था आयुष के लिए जब रिश्ता आया था । हा लेकिन जॉब मिलने के बाद शान्ति की जल्दीबाजी आयुष की शादी को लेके ज्यादा ही होने लगी
हालाकि आयुष के पिता जी बहुत ही खुले विचार वाले थे और वो खुद चाहते थे कि आयुष खुद की पसंद और जब उसकी मर्जी हो तब ही शादी करे । लेकिन शुक्ला भवन की मैनेजर श्रीमती शान्ति शुक्ला को इस बात के लिए ऐतराज था और क्या कारण था इसका ये तो वो ही जाने ।

इधर आयुष बाबू अपना मुह फुलाए छत पर कमरे मे चले आये ।
मुह इसलिये फुला था कि उनकी दिली इच्छा थी कि वो भी फिल्मो के हीरो की तरह कोई अच्छी सी लड़की पटाये और उसके साथ समय बिता , मिल कर कुछ नये ख्वाब सजाये और फिर शादी करे ।

ऐसा नही था कि आयुष अपने पिता से डरता था , बस वो उनका सम्मान बहुत करता था क्योकि मुन्शी जी थे बडे गंभीर इन्सान , भले ही मानसिकता अच्छी थी लेकिन एक भारतीय मध्यम वर्गीय बाप का प्यार जताने का अपना तरीका होता है । वो कभी आपको आपके अच्छे काम के लिए सामने से शाबासी नही देगा ।
यही हाल आयुष बाबू के साथ भी था कि आईआईटी पास करने से लेके डेढ़ करोड़ का सालाना पैकेज की नौकरी मिलने के बाद भी आज तक मनोहर शुक्ला ने कभी उनकी पीठ नही थपथपाई ।
जिसका कचोट आयुष के मन मे हमेशा रहता था । काफी समय से उम्मीद का दिया लिये थक गये थे तो पिता से सम्मुख नही होते थे ज्यादा ।
इतना सब होने के बाद भी आयुष ने कभी भी अपने पिता को तिरसकार की दृष्टी से नही देखा ।

एक तरफ जहा आयुष बाबू अपने भविषय की चिन्ता मे लिन और थोडा तुनमुनाये थे वही निचे हाल मे

3D शान्ति के हाथ से तस्वीर लेते हुए - लाओ अम्मा दिखाओ हमको ,, आयुष का ब्याह ना SSC का रीजल्ट हो गया है , फाइनल ही नही होई रहा है

शांति हस कर - धत्त ,,,हे लल्ला जरा कौनौ परसन्द कर ना एक इ दुनो म से

3D दो लड़कियो की फ़ोटो देख रहा था - एकदम चऊकस अम्मा ,,,इका हमसे कराये देओ और इका अपने बच्चु से

3D की बात सुन कर सब हसने लग जाते है
इन सब के बीच मनोहर शुक्ला काफी गंभीर रहे और कुछ सोचने के बाद अपने साले साहब यानी आयुष के मामा से कहते हैं- ऐसा है बाँकेलाल तुम आज आराम करो कल सुबह तड़के निकल जाना मथुरा और ये दोनो रिश्ते के बारे में हम आयुष से बात कर बताते है फिर ।

अब घर मे भले जोर जबरदस्ती शान्ति शुक्ला चला ले , लेकिन मुन्शी जी के फैसले की इज्जत तो वो भी करती थी ।
थोडी देर मे आयुष के मामा ने अपना तान्ता बांता पोथी-पतरा समेटा और बैग मे रख लिये ।
थोडी देर बाद खाना की बैठक हुई और 3D अपने काम से निकल गया था ।
आयुष बाबू अभी भी मुह फुलाये अपने कमरे मे रहे ।
खाने के वक़्त घर मे उपस्थित सभी को आयुष की खाली टेबल पर खटक हुई और मुरझाये चेहरे से एक दुसरे को देखा लेकिन इस पर कोई चर्चा नही हुई ।

माहौल ठण्डा होता देख मीरा ने पहल कर खुद से सबको खाना परोसा और थोडी जोर जबरदस्ती कर खाना खिलाया और खुद से एक प्लेट मे खाना लेके उपर आयुष के कमरे मे जाती है ।
जहा आयुष किसी मित्र से फोन पर बातो मे व्यस्त होता है और दरवाजे पर दस्तक पाते ही फोन रख कर दरवाजा खोलता है ।

आयुष - अरे भाऊजी आप ,,,आओ
मीरा थोडा आयुष का मूड ठीक करने के अंदाज मे कुछ मुस्कुरा कर कुछ इतरा कर - हा , हम , अब चलो जगह दो

आयुष दरवाजे पर खडे होकर अपनी भाऊजी का मुस्कुराता चेहरा देख कर सब भूल गया , अपना दर्द तकलीफ , भविष्य की चिन्ता ।

आखिर कुछ ऐसा ही तो था हमारा हीरो एक दम मासूम भोला और प्यारा
उसको लाख तकलीफ हो , हजार चिन्ताये घेरे हो लेकिन कोई उससे प्यार से मुस्करा कर बात कर ले वो अपना सब कुछ भूल कर उसकी खुशी मे शामिल हो जाता था ।

आयुष मुस्कराते हुए आंखो से खाने की थाली दिखाते हुए - का भाऊजी आज भैया का बखरा (हिस्सा ) हमको देने आई हो का हिहिहिही

मीरा थोडा शर्मायी और आयुष को धकेल कर कमरे मे घुसते हुए - जे एक बात तो तुम समझ लो देवर बाबू ,,,जे दोहरी बातो वाला मजाक हमसे तभी करना जब भईया के सामने भी हक जमा सको ,,,, जे चोरी चोरी नैन मटक्का अपनी मुड़ी से करवाना

आयुष मीरा के तीखे तेवर से थोडा सहमा लेकिन उसे पता था ये उसके और उसकी भाभी के बीच की प्यारी सी नोक झोक थी जो समान्य थी और उसे अपनी भाभी को छेड़ कर तुनकाने मे मजा आता था आखिर उनका स्वभाव था ही कुछ ऐसा
आयुष उनको थोड़ा शांत करने और अपने दिल का हाल बताने के लिये मीरा का हाथ पकड कर बेड पर बिठाता है

आयुष थोड़ा परेशान होकर - भाऊजी काहे आप समझा नही रही हो अम्मा बाऊजी को कि अबही हम ब्याह नाही करना चाहते है ,

मीरा थोडा मुस्कुरा कर - अरे अभी कर कौन रहा है ,, तुम देख लेयो , समझ लेयो , मिल लेयो ,,, वैसे भी खुशी मनाओ तुम्हाये जितना हमको भेरायिटी नही मिला था परसन्द के लिए

आयुष मीरा की बाते सुन कर थोडा मुस्कुराता है फिर कुछ सोच कर उदास हो जाता है कि शायद उसकी बाते उसकी भाभी भी नही समझ पा रही है

मीरा आयुष को चुप देख कर - अरे बाबू ,,चिन्ता ना करो कोय तुमको जबरदस्ती ना करोगो ।
अब जोका किस्मत मे लिखो होगो वाई इ शुक्ला भवन की जूनियर इंचार्ज हैगी ।

आयुष थोडा उलझन और उत्सुकता से - जूनियर इंचार्ज
मीरा हस कर - हा अब आयेगी तो हम सीनियर इंचार्ज हो जायेंगे ना हिहिहिही

आयुष अपनी भाभी की बात सुन कर हस देता है और फिर खाना खाता है ।

उसी शाम को 5 बजे आयुष शुक्ला सो रहे होते है कि उनके मोबाईल की घंटी बज उठी और फोन पर 3D होता है

3D - हा बाबू तुम फटाफट तैयार हो जाओ हम 10 मिंट म पहुच रहे है

आयुष को शायद याद नही था कि उसे आज रात की ड्रामा मे रोल करना था तो वो हुआअस भरते हुए - क्याआआ हुआआआ 3D कोई बात है क्या

3D - अरे जाना नही है क्या ड्रामा सेट पर
आयुष को याद आता है तो वो झट से दीवाल पे टंगी घड़ी को देखता है और बोलता है - हा यार ,,ठीक है तुम आओ हम तैयार हो रहे है ।

फिर फोन कटता है और आयुष बाबू मस्त तैयार होकर निचे हाल मे आते है और किचन मे लगी अपनी भाऊजी को आवाज देते है ।

इस वक़्त शाम के समय घर मे अकसर कोई होता नही है
क्योकि शान्ति जी अपने सत्संग के लिए निकल जाती है और मनोहर जी अपने डिपार्ट वालो से मिलने जुलने और थोडा घूमने पार्क की ओर निकल जाते है

मीरा हाथ मे कल्चुल लिये बाहर आती है ,,शायद किचन मे कुछ भुन रही थी - हा बाबू बोलो का हयगो

आयुष बाबू अपनी बाजू फ़ोल्ड करते हुए जल्दी मे - भाऊजी फटाक से एक कप चाय बना दो ,,नाही दो ,वो 3D भी आई रहा है

मीरा एक नजर टिप टॉप तैयार हुए आयुश को देखती है और मुस्कुरा कर -- हाय हाय हाय ,, आज कहा गिरी इ बिजली

आयुष थोडा सिरिअस होते हुए - भाऊजी अबही कुछ ना ,,लेट होई रहा है प्लीज चाय बना दो ना

मीरा अपने मुताबिक जवाब ना पाकर तुनक जाती है और बड़बड़ाते हुए किचन मे घुस जाती है

आयुष बाबू अपना जुता जो हाल के एक किनारे दरख्त मे रखा था वहा से निकालते है और उसे साफ कर रहे होते है एक गंदे कपड़े से कि 3D हाल मे घुसता है

3D मुह पर हाथ रख कर थोडा खासते हुए - उह्ह्हुऊऊऊ ,,, का गरदा मचाये हो शुक्ला तुम

आयुष मुस्कुरा कर जुता साफ कर उसे लेके हाल मे लगी कुर्सी पर बैठ जाता है और पहनने लगता है

तभी किचन से मीरा दो कप चाय लेके आती है

3D चाय देख के - अरे भाऊजी दो ही कप ,,हमसे फिफ्टी फिफ्टी करेक ह का

मीरा जो थोडी देर पहले ही आयुष के जवाब से भड़की थी - का फिफ्टी फिफ्टी 3D भैया का फिफ्टी फिफ्टी ,, औ जे तुम फिर से जर्दा वाला पान खाये हो का


3D तुरंत मुह पर हाथ रख लेता है और एक नजर आयुष की ओर देखता है ।
मीरा - उका ना देखो तुम खाली हमका जवाब देओ ,,,औ कहा लिया जा रहे अब ब्च्चु को इतना टाईम फिर से

3D को उसका मजाक उसी पर भारी पड़ गया था तो वो बनावती हसी लाते हुए - अरे भाऊजी हेहेहेहे ,,कहा पान खाये है हम औ हम तो आयुष को अपने कालिज वाले पोरिग्राम मा लिवा जा रहे है

मीरा एक नजर आयुष को देखी और फिर अपनी कमर पर हाथ रख कर - औ वापस कब ला कर छोडोगे इका घर

3D चाय का सिप लेते हुए ह्स कर - इहे कोई 11 12 बजे तक

आयुष ना मे सर हिलाता है तो
3D हड़बड़ा कर - मतलब 11 बजे से पहीले ही , हा पहिले ही लेते आयेंगे

मीरा थोडी सोच कर - ठीक है, लेकिन 11 बजे से कान्टा एक सूत भी आगे ना जाये , नाही तो यहा दुसरी नौटंकी शुरु करवा देंगे हम इ जान लेओ ।

तबतक आयुश अपनी आधी खतम चाय छोड कर 3D को लेके बाहर जाता हुआ - हा भाऊजी हम आ जायेन्गे समय से आप अम्मा बाऊजी को खाना खिला देना ।

इससे पहिले मीरा अपनी कोई बात कहती वो दोनो फटाफट निकल जाते है ।

रास्ते मे गाड़ी पर
आयुष 3D के सर पर मारता है
आयुष - साले कितनी बार कहे है तुमसे की भाउजि से ना अझुराया करो ,, औ साले तुम ये पनवाड़ी बनना कब छोड़ोगे

3D - अरे कम कर दिया है यार, अब आदित बदलन मा टाईम तो लागि ना


ऐसे ही बाते करते हुए आयूष और 3D कालेज पहुच जाते है और अपनी तैयारियो मे जुड़ जाते है , रात 8 बजे का शो शुरु होने का समय होता है ।
एक एक प्रोग्राम शुरु किये जाते है बारी बारी लेकिन अपने हीरो की एन्ट्री मे समय था ।

इधर शुक्ला भवन मे मीरा खाने परोसने की तैयारी मे थी । शान्ति देवी भी अपने सतसंग से वापस आ चुकी थी । हाल मे आयुष के पिता जी और उसके भईया बैठे थे ।

आशीष - मीराआआआ ,,, इ ब्च्चु कहा है दिखाई नही दे रहा है
मीरा किचन से - हा ऊ 3D भैया के साथ अपने कालिज गये है । आज कोई फनसन है उहा

आशीष मीरा के जवाब से सन्तुष्ट होता है और अपने पिता से कुछ बोलना चाहता है कि उसकी नजर गम्भिर और शांत होकर किसी गहरी सोच मे डुबे हुए अपने पिता पर जाती है ।

उसे अपने पिता का ऐसे सोच मे डूबा होना थोडा खटक जाता है
वो अपने पिता के पास होकर - बाऊजी क्या सोच रहे है

मनोहर - कुछ नही आशीष , सोच रहे है बच्चु को हमसे का नाराजगी है जो ऊ हमसे बात नहीं कर रहा है

आशीष ऐसे भावुक बाते सुन कर थोडा माहौल हसनुमा करता हुआ -- अरे नाही बाऊजी , कोनो नाराजगी ना हयगी , ऊ तो बचपन से शर्मीला है और आपके सामने आने मे हिचक करता है ।

मनोहर अपने दिल की भड़ास निकालते हुए - अरे वही तो ,,,काहे ऊ अइसा करी रहा है , अगर ऊ का मन मे कोई बात हो तो एक बार हमसे कहे का चाहि ,

तब तक हाल मे शान्ति जी प्रवेश करती है - अगर ऊ बात नाही करत हय तो तुम्हू कौन सा पहिल कर लेत हो ,, तुम्हू तो बात नाही करत ब्च्चु से

शान्ति मनोहर को समझाते हुए -- चुप्पी रिश्तन की अहमियत को खोखला कर देतो है आशीष के बाऊजी

शान्ति - समय है अबही पहिल कर लो, इक बार ब्च्चु नौकरी के लिए निकल गवा तो यो मौका भी निकल जायोगो

मनोहर थोडा सोच विचार कर - ए आशिष जरा बहू को पुछ,, आयुष अब तक अयोगो

आशिष -- ए मीराआआ ,, इ ब्च्चु कब तक आने को बोलो है

मीरा किचन से बाहर आकर - इहे कोऊ दस इगारह बजे तक

मनोहर मुस्कुरा कर - ठीक है कल सुबह उका हम बात कर लेंगे ,, चलो खाना खा लेओ सब


फिर आशिष को थोडा राहत होती है और सारे लोग खाना खाने चले जाते है


जारी रहेगी
आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा
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UPDATE 004

रिवीजन

अब तक आप सभी ने पढा कि कहानी ने जहा आयुष बाबू अपनी समान्य जीवन मे मस्तियाँ और रोमांच के मजे ले रहे हैं ।
वही पुरा शुक्ला भवन का स्टाफ अपनी चुलबुली और तुनकमिजाजी इंचार्ज मीरा के इरादो से बेखबर है । जो अपने बुआ की एक बक्लोल सी लड़की को आयुष के पल्ले बान्धने के फिराक मे अपने ताने बाने बुन रही है ।
अब आगे,,,



सेम डे सेम होमवर्क

रोज की दिनचर्या के हिसाब दोपहर के भोजन के लिए आशिष , आयुष को लिवा कर घर आता है ।

हाल की चौकी पर मुन्शी जी आराम कर रहे थे और बगल के कमरे से टीवी पर किसी सत्संग के प्रसारण की आवाजे आ रही थी ।

आशिष हाल मे घुसते हुए कुर्सी पकड कर बैठते है और मीरा को आवाज देते है

आशिष - मीराआआआ ये मिराआआ

मनोहर आंखे मुंदे ही - जरा सीढ़ी पर जाय के आवाज देओ ,,, चौबेपुर वाली मिश्राइन आई है

आशिष अचरज से - बुआ इहा , उ कौन काम से

मनोहर करवट बदलते हुए - अरे उका मुड़ी के इहा नवाबगंज मे कालिज मिला है उका लिये हैगी

आशिष कुछ सोचते हुए उठा और सीढि से फिर से मीरा को आवाज दी तो मीरा दौडते हुए निचे आई

मीरा हाफते हुए - आ गये का आप,,ऊ चौबेपुर वाली बुआ आई ना तो

आशिष कुछ मुह बनाते हुए - हा ठीक है खाना लगाओ और ब्च्चु के लिए भी ,,,
आशिष इधर उधर देख कर - इ ब्च्चु कहा गया

आशिष - आयुष ये आयुष
तभी आयुष बाहर से हाल मे प्रवेश करता है - जी भैया

आशिष - कहा गये रहे , खाना नाही खाना का

आयुष अपना मोबाईल जेब मे रखते हुए - खाना है ना भैया , वो कम्पनी से फोन आया था

फिर दोनो खाने के टेबल पर खाना खा रहे होते है इसी दौरान

आशिष- अच्छा, का कौनौ खास बात थी का आयुष

आयुष मुस्कुरा कर - हा भैया , कम्पनी ने हमारा फ्लाइट का टिकट बुक कर दिया है , उसी के लिए फोन आया था ।


आयुष की बाते आशिष के साथ मीरा भी बडे ध्यान से सुन रही थी और उसके मन की छ्टपटाहट बढ़ रही थी ।

अशीष खाने के प्लेट मे चावल मे चम्मच घुमाते हुए - अच्छा कब की है टिकट

आयुष मुसकुराते हुए- भैया शुक्रवार को

अशीष - औ वहा रहे के कोई इन्तेजाम है कि नाही
आयुष खाना खाते हुए - भैया कम्पनी की तरफ से फ्लैट मिल रहा है

आशिष थोडा निश्चिंत होकर - हा वही मतलब अगर कोई दिक्कत हो तो बताओ , सुशीला बुआ है उही नोएडा मे ,,वही बात कर लेंगे बाऊ जी

आयुष , आशिष को आस्व्श्त करते हुए - अरे नाही भैया कोनो दिक्कत नही होगा


लंच ओवर क्लास स्टार्ट

खाना खतम कर आयुष बाबू अपने कमरे मे चले गये जबकि अशीष का खाना जारी था

मीरा - ये जी ,, हमको तो आयुष बाबू को लेके टेनशन हो रहा है

अशीष - काहे , का हुआ
मीरा तुनक कर - जे आप को तो कोनो टेन्सन ही ना हैगी ,, जे ना सोच रहे छोटकन भाई है , नया शहिर मे अकेले रहने जा रहा है , भगवान ना करे कोनो करमजली फास ले उको तो

आशिष मुस्कुरा कर - अरे काहे टेनसनीया रही हो ,, ब्च्चु अब बड़ा होई गवा है और अपना भला बुरा खुद समझ सकता है

मीरा मुह बना कर - जे कौनौ गड़बड़ हुई तो ,,,हम तो कही रहे हैं कि उका जल्दी से शादी तय करा देओ और कोनो मुड़ी पठाये दो ,,, अझुराया रहोगो उसी मा


अशीष खाना खतम कर हाथ धुलता हुआ - तुम झूठहे टेन्सनियाय रही हो मीरा ,,, आयुष समझदार है

फ़िलहाल तो मीरा के लेक्चर का आशिष पर कोई असर नही हुआ
अशीष शुक्ला खाने के बाद वापस दुकान की ओर निकल गये और मीरा अपनी बात न मनवा पाने पर भनभना कर रह गई और कुछ सोच कर उपर अपने बुआ के पास गयी ।


टेस्ट विदआउट नोटिस

कमरे मे
सोनमती - जे का हुआ , का बात हुई जमाई बाऊ से

मीरा भन्नाते हुए - अरे का होगा बुआ , 4 दिन मा आयुष की फ्लाइट है और इनको हमाये बात को जू तक ना रेंगो

सोनमती चिंतित होके - हे भोलेनाथ , अब ???

मीरा कुछ सोच कर थोडा आत्मविश्वासी होकर - जे अब तो नयो खेल खेलनो पडोगो बुआ

सोनमती परेशान होकर - जे हमको टेनसन हो रहा है औ तुम खेल खेलन जा रही हो

मीरा झल्ला कर - इ पगलीया के साथ रह के तुम्हू पगलाये गयी हो का बुआ

मीरा - अरे हम कुछ प्लान करने की बात कही रहे हैं और तुम

सोनमती हस कर - हेहेहेहे अच्छा अच्छा सोच सोच

मीरा कुछ सोच कर चारु से , जो कि बिस्तर पर लेटे हुए मोबाइल मे रिल्स स्पाईप कर रही थी और हस रही थी

मीरा - हे पगली उठ ,, इधर आओ

मीरा - निचे किचन मे फिरीज मा , संतरा वाला जूस होगो जग मा , उका एक ग्लास मे लेके आओ

चारु मुह बनाते हुए उठी और निचे से एक ट्रे मे संतरे का जूस लेके उपर आई और वही टेबल पर रखा और वापस बिस्तर की ओर जाने लगी

मीरा - उधर का जा रही है ये मोटासी , इधर आ ,,

चारु तुनक कर बुदबुदाते हुए - हा जीजी बोलो

मीरा उसके पास खड़ी होकर एक बार उसके बाल थोडे सवारे और एक तरफ से कुछ बाल निकाल कर सामने कर दिये ।
फिर उसके दुपट्टा पीछे से खिच कर गले से चिपका दिया ताकि उसका क्लिवेज दिखे

फिर निचे झुक के उसके पैजामी की चूडिया सेट की और खड़ी हो गयी ।

चारु अपने गले स चिपके दुपट्टे को खीचते हुए - ऐसे काहे कर रही ही जीजी सब खुला खुला दिख रहा है

मीरा उसे समझाते हुए वापस उसका दुपट्टा गले पर चढा देती है
मीरा- भक्क पगली , जे इतना सुन्दर गले का डिजाईन का करने के लिए बनवाई है ,,दिखेगा नही तो पैसे बर्बाद ही है ना क्यू बुआ

सोनमती मजबूरी बस मीरा की हा मे हा मिलाती है क्योकि मीरा की हरकत तो उसे भी पसंद नही आती है

फिर मीरा चारु को वही जूस वाला ट्रे थामा देती है

मीरा - जा , आयुष बाबू को ये जूस देके आ

चारु को अटपटा सा लगता है , वो जानती है कि मीरा और उसकी मा जबरदस्ती उसकी शादी करवाना चाहते है लेकिन वो भी क्या कर सकती थी ।
ये सब उसके लिए ठीक वैसा ही था जैसे स्कूल मे टीचर हमे बिना कोई अग्रिम सूचना दिये अपने मूड के हिसाब से टेस्ट के लिए बोल देते थे ।


वो भी ट्रे लेके आयुष के कमरे का दरवाजा खटखटाती है ।
वही मीरा और सोनमती अपने कमरे के दरवाजे से बाहर झाक रहे होते है

इधर आयुष उठ कर आता है और दरवाजा खोलता है

चारु एक नजर आयुष को देखती है और फिर नजरे नीची कर लेती है

आयुष चारु को देख के - अरे चारु तुम ??

चारु नजरे नीची किये हुए थी और उसे अपने दुपट्टे के लिए बहुत ही शर्म आ रही थी
चारु दबी हुई आवाज - जूस
आयुष मुस्कुरा कर - अरे आओ आओ ,,, भाभी नही थी क्या

चारु अब क्या बोलती की सारी करतुत भाभी की ही तो है
आयुष कमरे मे आकर बिस्तर पर टेक लेके बैठ जाता है और बगल मे लगी चेयर पर चारु को बैठने को कहता है ।


चारु बहुत घबरा रही थी और टेबल पर जूस का ट्रे रख कर कुर्सी पर बैठ जाती है ।

इधर ये दोनो कमरे मे जाते है तो वही मीरा फटाक से दौड़ कर आयुष के दरवाजे से कान लगा कर खड़ी हो जाती है और उसके पीछे सोनमती भी

अन्दर आयुष इस समय एक बुक लेके बैठा था जो कि उसके बिस्तर पर पडा था ।
चारु कुछ सोच विचार दबे स्वर मे - आप अब भी पढाई करते है क्या

आयुष हस कर - नही , ये तो नावेल है ,,वैसे तुम्हारी पढाई कैसी चल रही है

चारु उदास मन से- मेरी पढाई तो खतम हो गयी ,, BA कर ली है मैने

आयूष - ओह फिर आगे
चारु उखड़े मन से - अम्मा आगे नही पढने दे रही है ,

आयुष को थोडा अजीब सा लगा चारु के जवाब मे लेकिन वो समझ रहा था कि दुनिया समाज की दकियानुसी सोच को जो आज भी कही न कही लड़का और लडकी के लिए अलग अलग भावना रखे हुए थे ।

आयुष मुस्कुरा कर चारु को देखता जिसकी नजर उसकी टेबल पर रखे हिन्दी साहित्य के ख्यातिमान लेखक जयशंकर प्रसाद की लिखी एक किताब - तितली पर टिकी हुई थी ।


आयुष - अगर तुम चाहो तो ये ले सकती हो , पढ कर वापस दे देना

चारु को मानो खुशियो की गाड़ी मिल गयी हो और वो लपक कर वो किताब उठा लेती है ।

आयुष को भी अच्छा मह्सूस होता है कि इतने समय मे चारु के चेहरे पर मुस्कान बिखरि थी । जिसमे उसका भोलापन और मासूमियत और बचपना सबकी झलक थी ।

चारु खड़ी हुई और नजरे झुका कर आयुष को किताब के लिए धन्यवाद किया लेकिन इस बार कोई डर का भाव नही था ,, एक मुस्कान थी चेहरे पर

इधर मीरा और सोनमती को आभास हुआ कि चारु वापस आ रही है तो वो वापस कमरे मे आ गयी ।

थोड़ी ही देर मे चारु कमरे मे किताब लेके आई

मीरा लपक कर उसे खिचती हुए - हे पगली,, का बात हुआ उहा

चारु फिर से डर सी गयी - कुछ भी तो नही जीजी , बस ऐसे ही पढाई लिखाई की बाते

मीरा अपना सर पकड कर बैठ जाती है - हे भोलेनाथ,,, का होगो इ पगली का ,

मीरा थोडा चारु पर गरमा कर - हम काहे लिये तुमको भेजे थे उहा

चारु मासूमियत से - जूस के लिये जीजी ,, दे तो आये

मीरा का तो खुन उबल कर रह गया और वो सोनमती को देख कर - का होगा बुआ इ बकलोली का

सोनमती मीरा को परेशान देख कर- अरे इहमे उका का दोष , ऊ तो वाई की जे तुमने कही

मीरा खुद को शांत कर कुछ सोचते हुए एक नया प्लान बनाती है - हमम्म मतलब , इको बहुत कुछ सिखानो पडोगो

इधर मीरा और सोनमती अगले प्लान के लिए अपनी खोपड़ी मे जोर दे रहे थे ,,वही उसी कमरे मे चारु बड़ी मासूमियत से सब कुछ भूल कर किताब खोल कर बैठ गयी थी ।


क्लास बंक प्लान

एक तरफ जहा मीरा अपनी खोपड़ी मे जोर देके कुछ नये की प्लानिंग मे थी
वही आयुष बाबू कमरे मे बैठे बैठे बोर रहे थे और बाहर कही घूमना चाह रहे थे । इसिलिए वो अपने घनिष्ट , लन्गोटिया और एकमात्र मित्र 3D के पास फोन घुमाते है ।

3D बाबू जो नवाबगंज के एक राजनीतिक पार्टी के निजी कार्यालय मे हो रही एक मिटिंग मे व्यस्त थे । पार्टी उनकी खुद की नही थी बल्कि कार्यकर्ता मात्र थे। लेकिन 3D भैया नवाबगंज के पूर्व चेयरमैन के सुपुत्र रह चुके थे तो पार्टी का महामन्त्री इन्हे ही बनाया गया था ।
पैसे की वजह से पार्टी मे रुतबा इतना था कि अध्यक्ष के बाद दुसरी बडी फ़ोटो , पार्टी के हर बैनर पर इनकी होती थी ।

अब ऐसे मे 3D बाबू खुद को पार्टी का खास हिस्सा मानते थे और हमेशा अपनी जिम्मेदारि को समझते थे ।
अब इतने जिम्मेदार व्यक्ति का बीच मिटिंग से उठ कर जाना भी सही नही था , जबकि मिटिंग की अगुवाई खुद अध्यक्ष महोदय कर रहे हो तो ।
लेकिन लेकिन लेकिन ,,,लेकिन 3D भैया इतने भी खुदगर्ज नही थे कि उनके परम मित्र का फोन आये और वो ना उठाये ।

धर्मसंकट आ गया था 3D के लिए , आखिर करे तो क्या करे

एक तरफ आयुष बाबू के फोन की रिंग आ रही थी, वही अध्यक्ष जी पार्टी की योजना को लेके गंभीर चर्चा कर रहे थे ।

कुछ सेकंड की इस मानसिक जद्दोजहद के बाद कि पार्टी जरुरी या दोस्त

आखिरकार दोसती का मान रखते हुए फोन उठा लिया और उठाते हुए बोल पड़े- हा बाऊजी, हम पार्टी मिटिंग मे है ,, कोनो जरुरी काम

आयुष 3D के बहाने पे पहले हसा और बोला - बेटा, हम घर पर जरा बोर रहे है और तुमको कुछ जरुरी बात बतानी है ,,, जल्दी से अनवर पान वाले के यहा पहुचो ।

फिर आयूष हस कर फोन रख देता है ।
बुरे फसे 3D भैया ,, क्योकि आयुष ने उनको बिना कोई सफाई देने का मौका दिये ,सीधे फैसला सुना दिया


इधर पार्टी मिटिंग मे ये सोच कर शान्ति हो गयी कि पूर्व चेयरमैन साहब का फोन आया है । फोन कटते ही

अध्यक्ष - क्या हुआ दुबे ,, चेयरमैन साहब ठीक है ना ,,काहे परसान दिख रहे हो

3D को जैसे मौका मिल गया बहाने का
3D- हा भैया ऊ बाउजी का दस्त नही रुक रहा है सुबह से तो दवाई बदलेक लिये कही रहे है ।

अध्यक्ष बड़ी चिन्ता भाव से - अच्छा ठीक है तो तुम जाओ दवा लेके जल्दी घर फिर फोन करना जैसा हो ,,,,आते है हम शाम तक घर

3D - जी भैया
फिर 3D तुरंत कार्यालय से बाहर आता है और बुलेट लेके निकल जाता है , अनवर पान स्टाल पर



प्राइवेट टयूशन

इधर एक तरफ जहा 3D और आयुष , अनवर पान स्टाल पर मिल कर निकल जाते है घूमने
वही शुक्ला भवन मे मीरा , चारु की प्राइवेट टयूशन ले रही होती है ।

बंद कमरे मे मीरा और चारु अकेले होते है । मीरा, सोनमती को गेस्टरूम मे आराम करने का बोल कर चारु को अपने साथ अपने बेडरूम मे ले जाती है ।


मीरा चारु को समझाते हुए - देख चारु एक बात हमायी तू धियान से समझ

चारु मन उतार कर हा मे सर हिलाती है ।
मीरा - तू ठहरी बक्लोल और दब्बू ,, आज नाही तो कल ससुराल जायेगी ना ,, औ कल को तुमहारो मुड़ा शराबी जुआरि निकल गवो तो का करेगी , उपर से जेठानी ननंद परेशान करोगो सो अलग

चारु चुपचाप मीरा की बातो को सुन रही थी और उससे खुद को जोड़ रही थी ।

मीरा को भी इस बात का बखूबी अह्सास था
ऐसे मे उसने अपना अगला पासा फेका
मीरा - अच्छा इ बताओ ,, आयुष कैसा है

एक पल के लिए चारु को आयुष की सादगी का ख्याल आया और वो अपने आप उसी कमरे मे वापस ले गयी ।
जहा वो अपने दुपट्टे को गलत ढंग से लेने के लिए झिझक मह्सूस कर रही थी वही आयुष ने एक नजर भी उसके बेआबरु हुए सीने को नही देखा था ।

वही सोच कर चारु मुस्कुराई- वो तो अच्छे है जीजी

मीरा चारु से कबूलवाते हुए - शादी करेगी उका से
चारु हस कर - का जीजी , हम इ सब थोडी सोचे है

मीरा चारु को समझाते हुए - तो पगली सोच ना ,, सोच आयुष से ब्याह हो जायोगो तो इहे घर मे रहेगी ,,, जेठानी और ननद से कोनो डर ना रहोगो ,,हमाये जैसे ठाट से रहेगी ।

चारु मीरा की बाते ध्यान से सुन रही थी
मीरा उसको फुसलाते हुए - जे सोच , डेढ़ करोड़ सालाना कमाई है उकी ,,सब कुछ तुमाओ हो जाओगो और गाड़ी मे घुमे के मिलोगो सो अलग

चारु भी धीरे धीरे मीरा के ब्रेन वास वाले बिचार से प्रभावित हो रही थी ।
वो तो थी ही ऐसी , मासूम , शांत और एक बच्चे से दिल वाली
जहा कही भी थोडी सी खुशिया नजर आती उसी मे खो जाती थी । उसी मे अपनी दुनिया बना लेती थी ।


चारु थोडी जिज्ञासा से - लेकिन आयुष जी थोडी ना मानेगे


मीरा एक शरारती मुस्कान के साथ चारु के सर पर हाथ फेर कर - उकी चिन्ता ना कर ,, हम है ना उका लिये

चारु चुप रही और बस अभी अभी मीरा द्वारा सजाये गये एक माया की दुनिया मे खुद को तालाशने लगी ।

जारी रहेगी


शब्दार्थ
उका = उसका
उ = वो
इको = इसको
इहा = यहा
उहा = वहा
बक्लोल = मन्द बुद्धि
मुड़ी = लड़की
मुड़ा = लड़का
हैगी = आई है या आयेगी
ब्च्चु = घर मे सबसे छोटा
टेनसनिया रही = परेशान हो रही
दस्त ना रुकना = पेट खराब होना

क्लिवेज = दरार 😂😂😂 [ DON'T GOOGLE IT ]
पठाय दो = साथ मे रखने के लिए मंजूरी
अझुराना = फसा रहना


इम्पोर्टेंट नोटिस
सभी विद्यार्थीयो को सूचित किया जाता है कि आज का अपडेट पढने के बाद सभी लोग अपने अपने विचार से इस गद्यान्श का सार और उसपे टिप्पणियाँ लिख कर मुझे दिखाएँगे ।।

सभी विद्यार्थियो को उनके प्रर्दशन के अनुसार एमोजी रियेक्शन और प्रतिक्रिया दी जायेगी ।
धन्यवाद
So meera puri jor isi koshish mein ki kaise bhi karke charu ki shaadi aayush se ho jaaye...
Already ek planning kharab ho chuki thi charu ki nadani ke chalte... Iske chalte Meera bahot bharki uspe .. lekin charu bhi bichari kya karti wo thehri nadan..
Well... meera bhali bhaanti jaan chuki hai ki ab jo bhi karna hai ushe hi karna hai wo bhi fully proper planning ke sath.. planning ke first step yaani bholi charu ke dilo dimag mein aayush ke aakarshan paida karna.. jismein wo kamyab rahi.... waise charu ki taraf se ushe koi tension nahi.... tension to aayush ke soch vichaar aur swabhaav se hai....
aayush ko charu ke sath shaadi karne ke liye manana lohe ke chane chabane barabar hai....isliye aayush ke mamle mein meera ko shakuni ki tarah chaale chalni hogi.... taaki aayush maan bhi jaaye aur meera ka naam bhi na aaye kisi ke saamne :devil:
Well ..... waise to agar aayush ki bhabhi ka naam kuch aur hota to.... abhi ke abhi aisi ki taisi kar deti....
lekin ab yahan baat meri favorite one character meera ki khwahish ki hai...
So as a reader main to meera ke sath hi dungi :evillaugh:

waise ek idea hai.... jisse charu se shaadi karne ke liye ek hi jhatke mein raazi ho jaayega aayush.. :D
Khair ...pehle meera koshish kar le.. phir...

Shaandar update, shaandar lekhni shaandar shabdon ka chayan aur sath hi dilkash kirdaaro ki bhumika bhi...

Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :clapping: :clapping:
 

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