Incest नई दुल्हन by deeply

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नई दुल्हन

काका की दुल्हन भाग-5




हाये ससुरजी आप चाहोगे तो मेरा सगा बाप भी इस बुर को चोदेगा, आप जहाँ चाहोगे उसके सामने यह बुर खुल जायेगी ससुरजी



तभी काका ने स्पीड बढा दी रबड़ी भी चुतड़ पटकने लगी तभी रबड़ी ने पैरो हाथ से काका के कस कर पकड़ लिया उसकी बुर ने पानी छोड़ दिया मगर काका की स्पीड जारी रही





हाये काका हाये ससुरजी चोद लो इस रांड को हाय ससुरजी अपना बच्चा दे दो, इस बुर मे अपना बीज वो दो, एक और हराम की जनी पैदा कर दो इस बुर से



तभी काका ने भी अपना वीर्य उतार दिया रबड़ी की बुर वीर्य से भर गई और वीर्य बुर से निकलता हुआ इसके गाड की ओर बहने लगा जैसे उसमे भी भर जाना चहाता हो



अब आगे



दोनो थक चुके थे आपस मे चुपके हुये बुर पानी से भर चुका था और पानी लुड़कते लुड़कते चुतड़ो से होते हुये गांड मे समा रहा था तो कुछ धरती पर टपक रहा था लंड मुरझा गया था मगर बुर मे एक चौथाई लंड अब भी फंसा हुआ था
रबड़ी काका के बालो से घने सीने से हलका मुम्का मारती हुई बोली
हाये बाबूजी आज आपने अपनी बहु की बुर फाड डाली

काका सच रबड़ी बड़ी मस्त बुर है तेरी जी चहाता है तेरी बुर मे दिन रात लंड डाले पड़े रहूँ

रबड़ी हाये ससुरजी जल्दी से मेरा हाथ घर वालो से माॅग लो फिर तो तेरी बुर है, सच कहती हूँ बाबूजी कभी मना नही करूगी, तु कहेगा तो तेरे बेटे के आगे बुर खोल तुझसे चटवाऊ

काका वो तो मै चटूंगा ही, मेरा बेटा दोनो मिलकर चाटेंगे, तेरे हाथ परसो माँगने आऊँगा, मै, तेरा असली वाप आयेगे सगुन लेकर समझी

रबड़ी हाये बाबूजी अब अपना मोटा लंड निकाल लो पेशाब लग रही है जोर से

काका हाये तो कर ले

रबड़ी हाये ससुर जी आपके ऊपर

काका तो क्या हुआ अभी तो थोड़ी देर पहले मेरे मुँह पर की थी

रबड़ी हाये वो तो भूल से हो गई थी

काका तो अब जानबूझ कर कर ले मगर थोड़ा मुझे पिला और थोड़ा इसे( लंड) चटा दे

रबड़ी ने थोड़ी कमर उठाई जिससे बुर मे फँसा लंड पोप की आवज करते हुआ बाहर आ गया रज वीर्य का मिलजुला रूप बचा खुचा भी बाहर निकल आया, रबड़ी उठते हुये बुर काका के मुॅह को ओर लाई काका अपने मुंह के ऊपर गोरी बुर की खुली फुत्तियो को देख मुंह लार से भर गया क्या गजब की बुर थी बुर की फुत्तियो की किनारे पर जमे लाल रंग गवाही दे रहा था कि उसने ही इस बुर को चुत बनाया है उसने झट से बुर मे मुंह सटा दिया

रबड़ी कितना हरामी ससुर मिला है बहु की बुर फाड़ने के बाद मूत तक चाट जा रहा है हाये, ले चाट ले अपनी बहु की बुर, शादी के बाद तेरा बेटा, तेरे यार इसको चाटेंगे, देख कितनी टाईट है, देख किनारी इसकी यह लाल रंग, तेरे इस नालायक ने बाहाया है

रबड़ी काका के मुरझाये लंड को कस के एक चपत लगाती है काका दर्द से तड़प उठते है और बुर के एक होठ पर दॉत गड़ा देते है

रबड़ी उई करके मुंह से होठ दबाते हुये उस दर्द को पी जाती है

चल उठ हरामी अब सोया पडा है मेरी बुर फाड के, तभी रबड़ी काका के मुरझाये लंड को पकड के चमड़ी खीच देती है लाल सुपड़ा बाहर निकल आता है
कितना मासूस लग रहा है कमीना, तेरी बहु की बुर इसने कितनी बेदर्दी से फाड़ी, अब इसके ख्याब है तेरे बेटे के सामने मेरी गाड फाड़ने का, बाप रे इतना मोटा कितना दर्द देगा, बेचारा तेरा बेटा मेरे चुतड पकड़के फैलायेगा, मुझे रोते देखेयेगा

काका बुर चाटते हुये चिंता ना कर तेरे संगे बाप को बुला लुंगा वो लंड तेरे मुँह मे डालेगा जिससे तु जादा चिल्लाये ना, मेरा बेटा तेरे चुतड फैलायेगा और ये तेरी कमसीन गांड फाड़ेगा

रबड़ी हाये बड़े खतरनाक इरादे है इस कमीने के, बड़ा दर्द देगा फिर तु मुझे, मगर खेर तेरा काम ही है
गाड़ फाड़ना दर्द देना वैसे भी बिना दर्द के गाड नही मारी जाती, फिर बच्चा भी तेरे बीज देगा तो बीज बोना तो गहराई तक तो खुदाई करनी पड़ेगी ही, मगर कितना हरामी है बेटे से बेटे की महरारू( पत्नी) का चुतड फैलवा कर उसकी महरारू की गाड मरेगा
हलका हलका काका के लंड पर तनाव आना चालू हुआा था कि रबड़ी ने एक जोरदार तमाचा फिर मार दिया
हरामी मेरी माॅ की गाड मारी फिर अपनी बहु की गाड भी मरेगा

काका दर्द से बुर के होठ को काट लिया

रबड़ी दर्द से चिल्ला उठी उई मार डाला सी ईई ई.. और इसके साथ उसका मूत निकल गया जो काका के मुंह से जाते हुये हलक मे पहुंचने लगा, नमकीन सुनहला पानी की धार इतनी जादा थी कि काका का पुरा मुॅह नहा रहा था इस गर्म पानी से तभी अचानक रबड़ी ने मूत रोक लिया

काका क्या हुआ रानी हो गया बस इतना

रबड़ी अरे ससुर जी थोड़ा इस बेचारे को नहला दूँ बेचारा लाल रंग से सना है
रबड़ी उठ कर काका के घुटनो पर बैठते हुये मुरझाये लंड को बुर की दरार पर रगड़ने लगी फिर मूतने लगी लंड गर्म मूत के एहसास से झनझना उठा और मूत खत्म होते होते वो बुर पर ठोकरे मारने लगा

रबड़ी बेचारा फिर बुर चोदने के लिए मुंह उठा रहा है

काका क्या करे बेचारा पहली बार बहु की बुर पाया है ना

चल झोपड़े मे चल, काका रबड़ी को बाग मे बने अपने झोपडे मे ले आया

पेशाब और कामरस की महक काका के नथुनों तक पहुंची तो काका का लंड बूर में घुसने के लिए हल्का हल्का ठुमकने से लगा था, झोपडे मे पहुंचते ही काका रबड़ी के ऊपर चढ़ गया और उसका लंड सीधा रबडी की बूर पर जा लगा, दोनों की सिसकियाँ निकलने लगी, रबड़ी ने पहले तो जानबूझकर अपनी बूर को जांघों के बीच भींचकर छुपा रखा था पर जैसे जैसे लंड की हल्की हल्की ठोकरें बूर के ऊपरी हिस्से पर लगती गयी, रबडी बेसुध होकर सिसकते हुए उस दहकते लंड को अपनी बूर की फांकों के बीच महसूस करने के लिए लालायित होकर धीरे धीरे अपनी जांघे खोलकर अपने पैर हवा में फैलती चली गयी, जैसे जैसे जांघे खुलती गयी, लंड जो पहले ऊपर चिकनी बुर पर रगड़ रहा था जैसे ही महकती बूर की फाँकों पर लगा, दोनों मानो जन्नत में पहुंच गए, "आआआआआआआआ हहहहहहह.... हाय.... मेरे ससुर जी.... मेरे साजन.....कितना प्यारा अहसाह है ये"



"ओओह..... बहु क्या बूर है तेरी....मेरा लंड पागल हो गया है तेरी बूर में घुसने के लिए.....कितनी नरम नरम फांकें हैं .....बूर भी क्या चीज़ है और वो भी अपनी बहु की"



काका मदहोशी में पागल होकर अपना लंड धीरे धीरे बूर की फाकों पर रगड़ रहा था जिससे रबड़ी का बदन रह रहकर थरथरा जाता, वो बार बार जोर जोर से सिसकते हुए अपनी बूर को थोड़ा नीचे करती ताकि लंड उसके छेद पर न पड़े, काका कराहते हुए बहुत संभाल संभाल के अपना लंड अपनी बहु की बूर की फाँकों के बीच रगड़ रहा था ताकि जल्दबाजी मे झड ना जाए, पर तभी रबड़ी धीरे से सिसकी "आह ससुर... धीरे धीरे"।



कुछ देर बाद काका रबड़ी की जांघों के बीच उठ कर बैठ गया रबड़ी ने मदहोशी से भरी बोझिल आंखों से काका को देखा फिर उसकी नज़र काका के लंड पर गयी जो बूर के रस से चमकते हुए रह रहकर अति उत्तेजना में हल्की हल्की ठुमकी मार रहा था, रबड़ी ने बड़ी वासना भरी नजरों से काका को देखा और मुस्कुराते हुए पास ही पड़े ऊन के गोले को उठाया उसमें से लगभग तीन बित्ता ऊन तोड़ा, थोड़ा उठकर बैठ गयी, काका सिसकता हुआ थोड़ा और आगे आ गया, अल्का ने लंड पर बड़े प्यार से हाँथ फेरा और धीरे से सहलाया, लंड इतना सख्त हो चुका था कि उसका सुपाड़ा अलग ही दिख रहा था, सुपाड़ा फूलकर अपने आकार से थोड़ा और ही बड़ा हो गया उसकी चमड़ी उसे पूरी तरह अब ढक पाने में असमर्थ हो रही थी, अल्का ने चमड़ी को पकड़कर हल्का सा खींचकर आगे इकठ्ठा किया, काका बस रबड़ी को निहारे ही जा रहा था, लंड की चमड़ी को थोड़ा आगे इकट्ठा करके रबड़ी ने उसे ऊन से इस कदर बांधा की बचे हुए ऊन को पकड़कर खींचने पर गांठ खुल जाए, गाँठ बांध लेने के बाद दोनों ने एक दूसरे के होंठों को चूमा और रबड़ी बड़ी मादकता से पलंग पर लेट गयी, काका ने जैसे ही तकिया उठाया रबड़ी समझ गयी और उसने खुद ही अपनी गांड को ऊपर उठ लिया काका ने तकिया इस कदर गांड के नीचे रखा कि रबड़ी की मखमली महकती हुई बूर पूरी तरह खुलकर काका के सामने आ गयी, बूर उत्तेजना में फूलकर पावरोटी की तरह हो चुकी थी, ऊपर से रबड़ी ने मचलते हुए अपनी जांघे फैलाकर अपनी प्यासी बूर को पूरी तरह अपने ससुर को खाने के लिए परोस दिया। जांघे फैलाने से बूर मुस्कुराती हुई खुलकर बाहर आ गयी। रबड़ी ने मस्ती में आंखें बंद कर ली।



काका ने रबड़ी का दाहिना पैर ऊपर उठाया और अपने कंधे पर रख लिया, शर्म के मारे रबड़ी ने एक हाँथ से अपना चेहरा ढँक लिया पर अपने ससुर को रिझाने के लिए एक हाँथ से धीरे से अपनी बूर की फांकों को चीरकर हल्का सा खोल दिया, बूर का महकता हुआ गुलाबी छेद पूरी तरह दिखने लगा, काका ने एक हाँथ रबड़ी की मांसल गांड के नीचे लगाया और हल्का सा उठाकर तकिए को और मोड़ा अब रबड़ी की गांड थोड़ा और उठ गई, रबड़ी ने हल्का सा सिसकी ली और रबड़ी ने बूर को थोड़ा और फैला दिया, रबड़ी की इस अदा और सहयोग को देखकर काका इस कदर उत्तेजित हो गया कि मानो उसका लंड अब बगावत कर देगा और बांधा हुआ ऊन टूटकर खुल जायेगा, किसी तरह खुद को संभाला, जब रबड़ी ने बूर को और चीरा और मुस्कराते हुये हाये मजा ले लो ससुरजी अपनी बहु का काका ने फिर उसने अपने लंड को पकड़ा और कसमसाती हुई अपनी बहु की बूर के छेद पर भिड़ाया, जैसे ही हल्का सा दबाया रबड़ी सिसकी, बूर के छेद की तुलना में लंड का सुपाड़ा चार गुना मोटा होने की वजह से आसानी से घुस पाना असंभव था ये बात दोनों जानते थे, भले अभी चुदी है मगर नई बुर है काका ने जब थोड़ा और जोर लगाया तो रबड ी थोड़ा जोर से कराह पड़ी, "ऊऊऊऊऊईईईईईई माँ.....आह, धीरे धीरे ससुरजी, काका झट से उठा और थोड़ी दूर पर रखा नारियल का तेल उठा लाया, नारियल का तेल थोड़ा ठंड होने की वजह से जम गया था पर जैसे ही काका ने उंगली से निकालकर लंड पर लगाया झट से तेल गरम लंड की चमड़ी पर पिघल गया, लंड के मुहाने पर अच्छे से नारियल का तेल लगाया और थोड़ा सा रबड़ी की बूर के छेद पर लगाया, काका ने अच्छे से पोजीशन ली और एक बार फिर कोशिश करने लगा, लंड को दहकती बूर के छेद से लगाया और थोड़ा जोर लगाकर रबड़ी की गांड को हथेली से थामकर थोड़ा उठाते हुए लंड का दबाव बूर पर लगाया तो लंड ठेलता हुआ बूर की रसीली फांखों को फैलता हुआ छेद में घुसने लगा। रबड़ी का हाँथ बूर पर से हट गया और वो जोर से कराही "आआआआआआह आआममम्मा.....आआआह मईया....आआआह धीरे से.....कितना मोटा है ससुर जी आपका.....आआआह मेरी बूर"



तेल की फिसलन से धीरे धीरे लंड अंदर जाने लगा, बूर फैलते हुए लंड को लीलने लगी कराहते हुए एक बार तो रबड़ी ने काका की कमर को थाम लिया, आज पहली बार काका का लंड बूर चख रहा था, बूर कैसी होती है, क्या चीज़ होती है, अंदर कैसा महसूस होता है आज पहली बार उसे अहसाह हो रहा था, दोनों को ही मानो होश नही था, काका हल्का सा रबड़ी पर झुका और उसकी चूचीयों को दबाने और सहलाने लगा, कड़क हो चुके निप्पलों को मुंह मे भर भरकर पीने लगा, रबड़ी का दर्द कम हुआ और वो सिसकने लगी, अपने ससुर की पीठ और गांड को सहलाने लगी, लंड एक चौथाई बूर में घुसा हुआ था।



जब दर्द थोड़ा कम हुआ तो काका फिर उठा और लंड को बूर से बाहर निकाला, रबडी अच्छे से अपनी जांघों को फिर फैलाया, काका ने रबड़ी की गांड को थोड़ा उठाते हुए पोजीशन बनाई और लंड को बूर की छेद पर रखा, हल्का हल्का धक्का देना शुरू किया, तेल की फिसलन और बूर के रस से लंड इस बार थोड़ा आसानी से फांकों को फैलता हुआ फल को ठेलता हुआ अंदर घुसने लगा, दोनों के मुंह से एक साथ मस्ती भरी सिसकारी निकली, काका ने रबड़ी के ऊपर झुककर उसके नरम नरम होंठो को मुँह में भर लिया, रबड़ी की आंखें मस्ती में बंद होने लगी, धीरे धीरे लंड बूर में घुसता चला गया, अल्का परम आनंद में सिसकते हुए कस के काका से लिपट गयी, अपने ससुर का लंड अपनी बूर में पाकर रबड़ी के बदन में मस्ती की तरंगें उठने लगी, इतना आनंद उसे कभी नही आया था, काका ने अभी तक पूरा लंड अपनी बहु की बूर में नही पेला था, बस लंड धीरे धीरे सरकता हुआ आधे से थोड़ा ज्यादा ही बूर में समाया हुआ था, दोनों एक दूसरे को पाकर बेसुध हो गए, एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगे, परम उत्तेजना में रबड़ी का चेहरा गुलाबी हो चुका था, आज एक ससुर अपनी बहु को पलंग पर नंगी करके चोदने जा रहा था।



दोनों ने उत्तेजना में बोझिल आंखों से एक दूसरे को देखा, रबड़ी शर्माते हुए मुस्कुरा उठी।



काका हल्का सा रबड़ी के ऊपर से उठा और झुककर अपने दहकते लंड को देखने लगा, की वो कैसे रसीली बूर में आधे से ज्यादा समाया हुआ है रबड़ी ने भी हल्का सा सर उठा कर नीचे देखा, लंड का एक चौथाई भाग बाहर दिख रहा था बाकी का तो बूर लील चुकी थी, बूर की फांके किसी रबर के छल्ले की तरह फैल गयी थी, काला सा ऊन का धागा बाहर निकला हुआ था, दोनों बूर और लंड को देख रहे थे कि तभी काका ने लंड को बड़े प्यार से बाहर खींचा और उसे देखते हुए की वो बहु की बूर में कैसे जा रहा है धीरे धीरे सिस्कारते हुए बूर में पेलने लगा,रबड़ी मस्ती में मचल उठी, काका की कमर और गांड को मस्ती में सहलाने लगी वो भी अपनी गांड को जब भी लंड बूर में सरकता ऊपर को उठाकर ताल से ताल मिलाती, काका ने ऐसे ही कई बार किया, जब भी लंड सरककर रबड़ी की रसभरी बूर की गहराई में उतरता वो हर बार गनगना कर कभी काका को बाहों में भींच लेती, कभी पीठ को सहलाते हुए मस्ती में नाखून ही गड़ा देती, कभी काका की गांड को सहलाने लगती, कुछ देर ऐसा करने के बाद काका ने रबड़ीसे कहा-



काका - बहु



रबड़ी - हम्म्म्म



काका- कितनी रसीली तेरी ये....


रबड़ी- "आआआह.......क्या मेरे राजा?



काका - तेरी बूर...मेरी रानी...कितनी नरम नरम और मखमली फांकें है.....आआआह ह ह ह ह।


रबड़ी
- हाय.. तो चोदिये न...अपनी बहु की बूर...कितना तरसी है तुम्हारी बहु लंड के लिए मेरे ससुर जी..... कितना तगड़ा और मोटा है आपका लंड.... आज अपनी बहु की प्यासी बूर को चोद दीजिए।

रबड़ी
आंखे बंद किये मस्ती में ये बोलती गयी पर जब हल्का सा मदहोशी में अपनी आँखें खोली तो काका उसे निहारे जा रहा था, रबड़ी शर्माकर उससे लिपट गयी।



काका- बहु...देख कैसे तेरी बूर मेरा लंड खा रही है, जैसे कोई भूखा बच्चा डंडी वाली कुल्फी को मुँह में भरकर लपक लपक के चूसता है।


काका रबड़ी की आंखों में देखकर बोल रहा था और रबड़ी मारे शर्म से अपना गुलाबी चेहरा उसकी छाती में छुपा लेती, काका ने उसके चेहरे को ऊपर उठाया और होंठों को चूमते हुए बोला- बोल न बहु...चुप क्यों हो गयी।


रबड़ी
- लंड के लिए बरसों से तरसी है तो आज जब उसे मिला है तो निचोड़ निचोड़ कर खाएगी न....कितना मस्त लंड है आपका।



काका- मेरी बहु को पसंद आया अपने ससुर का लंड?


रबड़ी
फिर शर्माते हुए- आपकी बहु अब बस आपके लंड की दीवानी हो चुकी है... अब यह रंडी है आपकी



काका ने थोड़ा जोर से लंड बूर में और पेल दिया


रबड़ी
- "आआआह ह ह ह....ऊऊई....



कुछ देर ऐसे ही चलता रहा फिर



कुछ देर बाद रबड़ी ने धीरे से हाँथ नीचे किया तो काका ने अपनी कमर को हल्का सा उठाया और नीचे देखने लगा, काका ने ऊन को पकड़ा और हल्का सा खींचा तो वो खुल गया, धीरे से रबड़ी ने ऊन को खींचकर बाहर निकाला और अपनी बूर के अंदर से सरसराता हुआ ऊन बाहर निकलता हुआ महसूस कर उसे गुदगुदी हुई तो वो हल्का सा गनगना गयी, रबड़ी ने फिर अपने ससुर के आंड़ को हाँथ में लिया और हल्का हल्का सहलाने लगी, काका रबड़ी के गालों को झुककर चूमने लगा, रबड़ी ने फिर जितना लंड बूर से बाहर था उस पर हाँथ लगाया और उसकी चमड़ी को धीरे धीरे ऊपर को सरकाने लगी, पांच छः बार ऊपर को चमड़ी खिंचने से बूर के अंदर घुसे सुपाड़े की चमड़ी खुलने लगी और अपनी बूर के अंदर लंड के सुपाड़े पर से उसकी चमड़ी को हटता हुआ महसूस कर अल्का की आँखे मदहोशी में बंद हो गयी, किस तरह उसके ससुर के लंड का चिकना सुपाड़ा उसकी बूर के अंदर ही पड़े पड़े खुल रहा था, एक अजीब सी गुदगुदी के अहसाह से अल्का और सत्तू दोनों ही सिसक उठे।



पांच छः बार पीछे की ओर चमड़ी खिंचने से चमड़ी सुपाड़े पर से उतर गई और अल्का अपनी बूर में अपने ससुर का मोटा चिकना सा सुपाड़ा अच्छे से महसूस कर मस्ती में तड़प गयी, काका ने लंड को थोड़ा तिरछा करके सुपाड़े से एक जोर की दबिश बूर की किनारे की दीवारों पर दी तो रबड़ी ने जोर से सिसकारी लेते हुए काका को चूम लिया "ऊऊऊऊऊईईईईईई ससुर जी..... धीरे से पेलो",

बहु के मुंह से "पेलो" शब्द को सुनकर काका और उत्तेजित होता जा रहा था और हर बार रबड़ी भी "पेलो" और "चोदो" शब्द बड़ी मादकता से बोलने लगी।



काका ने कई बार हौले हौले ऐसे ही लंड को तिरछा करके बूर की रसीली दीवारों पर रगड़कर दबिश दी, हर बार रबड़ी मस्ती में कराहते हुए सिसक सिसक कर इस रगड़ाई का आनंद लेते हुए अपनी गांड को ताल से ताल मिलाते हुए मचल उठती, हर बार जब भी लंड बूर की दीवारों से रगड़ता वो कराह कर हर बार "आआआह ससुर जी धीरे से पेलो....धीरे से घुसेडो....हौले हौले डालो....हौले हौले रगड़ो....धीरे धीरे चोदो...मस्ती में जानबूझकर बोलने लगी, हर बार इतना मजा आता कि वो काका की गांड को पकड़कर जोर से भींच देती।



मस्ती और वासना चरम पर थी, रबड़ी को असीम आनंद और गुदगुदी का अहसास होता और वो हर बार मस्ती में कराह उठती, एक अलग ही रोमांचकारी अहसाह हो रहा था, एक तो दहकता हुआ बलशाली लंड बूर को चीरकर उसमें आधा घुसा हुआ था जो उसे जन्नत की सैर कर ही रहा था ऊपर से काका किसी बच्चे की भाँति दूध को चुभला रहे थे जो बहुत गुदगुदी पैदा कर रहे थे, जिससे उसके बदन में वासना की मस्ती, गुदगुदाहट, उत्तेजना, मीठी मीठी तरंगे, थरथराहट, हल्का हल्का मीठा मीठा दर्द, सब एक साथ उठ रही थी,रबड़ी को होश ही नही था कि अब वो कहाँ है, दोपहर के वक्त वो बाग मे बने कमरे में पलंग पर एकदम नंगी लेटी अपने ससुर का लंड अपनी बूर में घुसवाये हुए उनसे चुदवा रही थी।


रबड़ी
ने अपने दोनों पैर उठाकर काका की कमर पर लपेट दिए जिससे बूर और खुल गयी बस एक चौथाई ही लंड बहु की बूर से बाहर था, दोनों एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे को ऐसे चूम रहे थे जैसे अब दुनियां की कोई ताकत उन्हें अलग नही कर सकती।



काका ने धीरे से रबड़ी के कान में कहा- और बोल न...और गंदा बोल न बहु,


रबड़ी
- आह....बोला तो...मेरे लंडराज



काका ने लंड को हल्का सा बूर में रगड़ते हुए बोला- और बोल मेरी बहु


रबड़ी
ने कुछ देर के लिए मस्ती में आँखे बंद की फिर काका के कान में धीरे से बोला- पाप करो न ससुर जी....



काका- आह!


रबड़ी
- दुनिया वाले इसे पाप कहते हैं न.....?


काका- हां मेरी प्यारी बहु... न जाने क्यों?


रबड़ी
- बहु को चोचोचोदददनननना पाप है न...



काका- दुनियां की नज़र में तो है मेरी बहु!


रबड़ी
- पर इसमें मजा कितना आ रहा है....आ रहा है न?



काका- बहुत...बहुत...ऐसा मजा आजतक नही आया.....आह बहु की बूर!


रबड़ी हल्का सा सिसकते हुए- तो...अपनी बहुको अब चोदकर उसको पाप का मजा दो न मेरे प्यारे ससुर...अब पाप करो न...मजा दो न...आपकी बहु प्यासी है....बूर चोदो न, बच्चा दे दो, शादी से पहले बुर भोसड़ा बना दो



इतना सुनते ही काका बेकाबू हो गया, रबड़ी मारे शर्म से उससे बुरी तरह सिसकते हुए लिपट गयी, काका ने दोनों हांथों से रबड़ी की मस्त मांसल गांड को हल्का सा उठाया और एक जोर का धक्का मारकर अपना समूचा लंड एक ही बार मे उसकी दहकती बूर में घुसेड़ दिया, रबड़ी जोर से कराहते हुए सीत्कार उठी, "आआआआआआआआ हहहहहहह..... ससुर जी...... हाय मेरी बूबूबूबूबूरररररररर.......ओओह..... ऊऊऊऊऊईईईईईई माँ...



पूरा बदन उसका ऐंठ गया, धनुष की भांति उसकी चूचीयाँ ऊपर तो तन गयी। लंड जड़ तक पनियानी बूर में घुस गया। काका ने हथेली से थामकर रबड़ी की गांड को अच्छे से थोड़ा ऊपर उठा रखा था


रबड़ी
मीठे मीठे दर्द और उत्तेजना में मचलते हुए सिस्कारने लगी, पूरा कमरा अब उसकी लगातार सिसकी से गूंज रहा था, काका अपनी बहु को अब धीरे धीरे धक्के मार मार कर चोदने लगा, रबड़ी का दर्द कम होने लगा, और वो मस्ताने लगी,


रबड़ी ने और अच्छे से अपनी दोनों जांघे खोलकर अपने भैया की कमर पर लपेट दी और खुद भी अपनी गांड को काका के लंड की ठोकर की दिशा में ताल से ताल मिलाकर गांड उछाल उछाल कर सिस्कारते हुए अपने ससुर का सहयोग करने लगी, कुछ देर ऐसे ही चलता रहा दोनों सिसक सिसक कर धक्के लगाते रहे काका ने रबड़ी की बूर में तेज तेज धक्के लगाते हुए उसकी बूर चोदना शुरू कर ही दिया, रबड़ी मस्ती में जोर जोर से कराहते हुए अपने ससुर से चुदने लगी, उसने अपनी जांघों को बिल्कुल खोल दिया ताकि उसके ससुर उसे अच्छे से चोद सकें, पूरे कमरे में मस्ती भरी चुदाई की सिसकारियां गुजने लगी, चुदाई की फच फच की आवाज बखूबी कमरे में गुजने लगी, काका ने रबड़ी को चोदते हुए उसकी गांड की छेद को हल्का सा सहलाया तो वो और मचल उठी, वो उसे चोदते चोदते उसकी गांड की छेद पर उंगली से सहलाता जा रहा था जिसकी वजह से अल्का मस्ती के सातवें आसमान पर पहुंच चुकी थी, बूर पूरी तरह खुल चुकी थी लंड का आवागमन इतना परम सुख देने वाला था जिसकी कल्पना नही की जा सकती थी।



काका का लंड बुर रस से पूरी तरह सन चुका था और रस अब बाहर रिसने लगा, वो रिसकर काका की उंगलियों और रबड़ी की गांड के छेद तक जा पहुंचा, जैसे ही गीला गीला महसूस हुआ काका ने रस को रबड़ीकी गांड पर मसल दिया, रबड़ीमस्ती में सिस्कारते हुए अपनी गांड उछाल उछाल कर काका से चुदवाने लगी, लंड जब जब उसके बच्चेदानी से टकराता वो जोर से कराह उठती, मस्ती से मचल जाती, तेज तेज धक्कों से पलंग चर्र चर्र करने लगा, काका ने अब काफी तेज तेज लंबे लंबे धक्के अपनी बहु की बूर में लगाने लगा, हर बार जब लंड भट्टी की तरह दहकती बूर की दीवारों को चीरता हुआ गहराई में उतरता रबड़ी कराह उठती, "आआआआआआह ह ह ह ह ह ह.......हाय.....दैय्या..... चोदो मेरी बूर..... आआआह......ऊऊई..... ओओओहह ह.... मैया..... कितना मजा आ रहा है....कितना अच्छा चोदते हो आप.....आह मेरे सैया ससुर.... मेरे राजा....मेरे सैयां...... चोद दो मेरी बूर को आज अच्छे से......आआआह.... फाड़ दो आज अपनी बहु की बूर.....बहुत तड़पाती है ये मुझे.......आज अच्छे से चोदो इसे..... ऊऊई माँ.....



इसी तरह रबड़ी मदहोशी में सिसकते हुए बोले जा रही थी और काका भी उसे लगातार चूमते हुए लंबे लंबे धक्के लगाते हुए उसे चोदे जा रहा था, तेज तेज धक्कों से रबड़ी का पूरा बदन हिल जा रहा था, दोनों चूचीयाँ खरबूजे की तरह धक्के की ताल में इधर उधर हिल रही थी, निप्पल तनकर खड़े हो चुके थे, पैर हवा में हिलने की वजह से पायल अलग ही झंकार पैदा कर रही थी, बहु की बूर चोदने में इतना परम आनंद आएगा ये काका ने सोचा नही था, हर धक्के पर दोनों की उत्तेजना और बढ़ती जा रही थी, करीब 15 मिनट की लगातार चुदाई से कमरा मस्ती भरी सिसकारियों से भर गया, तभी काका ने फिर से रबड़ी की गांड के नीचे हाँथ लेजाकर उसकी गांड को सहला सहला कर उसे चोदने लगा, अचानक उसने पूरा पूरा लंड बूर से निकाल कर एक ही बार में कस कस के बूर की गहराई में तेज तेज घुसा घुसा कर धक्के मारने लगा और इस मस्ती भरी रगड़ को रबड़ी अब झेल नही पाई और जोर से सिस्कारते हुए काका से कस के लिपटते हुए अपनी गांड को उछाल उछाल कर झड़ने लगी, "आआआआआआआआआआआ हहहहहहहह हहहहहहहह...... ससुर.......मैं गयी........हाय मेरी बूर......



काफी देर तक रबड़ी अपनी गांड को उछाल उछाल कर अपनी बूर में अपने ससुर का लंड पेलवाते हुए झड़ती रही, उसकी बूर की गहराई में काम रस का फव्वारा फुट पड़ा, ऐसा लगा वो आसमान में उड़ रही है, इतना सुखद चरमसुख उसे आज पहली बार मिला था, मस्ती में काका की नंगी पीठ पर उसके नाखून धंस गए, रसीली बूर काफी देर तक संकुचित होते हुए झड़ती रही, और वो असीम अद्भुत आनंद की अनुभूति में काका को ताबड़तोड़ चूमने लगी, काका अभी भी अपनी बहु की बूर में घच-घच लंड पेले जा रहा था, धक्कों की रफ्तार कुछ देर के लिए रुकी जरूर थी पर काका अब पागल हो चुका था, वो फिर से तेज तेज धक्के मारने लगा और रबड़ी फिर जोर जोर कराहने लगी, फच फच की आवाज से दोनों और उत्तेजित हो रहे थे, बूर के मखमली अहसाह को अब काका झेल नही पाया और एक जोरदार धक्का मरता हुआ अपना पूरा लंड अपनी बहु की बूर में जड़ तक गाड़ता हुआ जोर से कराहते हुए थरथरा कर बूर में झड़ने लगा, ससुर के वीर्य की मोटी मोटी गरम धार जैसे ही रबड़ी को अपने बच्चे दानी पर महसूस हुई वो फिर एक बार गनगना कर झड़ने लगी, अब दोनों सिस्कारते हुए एक साथ झड़ रहे थे, काका ने रबड़ी के पूरे बदन को रगड़ रगड़ कर तोड़कर रख दिया था, उसका रोम रोम ससुर के लंड की चुदाई से पुलकित हो चुका था, काफी देर तक दोनों सिस्कारते हुए एक दूसरे को चूमते सहलाते झड़ते रहे, काका रबड़ी पर ढेर हो चुका था, वीर्य और बूर के रस के साथ बहकर तकिए पर रिस रहा था, तकिया गीला हो चुका था, रबड़ी और काका हांफते हुए एक दूसरे को चूमने लगे, काका रबड़ी पर ढेर हो गया, लंड अभी भी पूरा बूर में घुसा हुआ था,रबड़ी अपने ससुर को अपने ऊपर लिटाकर बड़े प्यार से उसे चूम चूम कर उसके सर को सहलाने लगी। अपनी जाँघो को फैला कर दिखाते हुये

रबड़ी हाये देखो ससुर जी एक दिन मे ही कितनी फैला दी बुर देख रहे हो कितना पानी डाला है आपने
 
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नई दुल्हन

बाप रे बाप भाग-1

काका ने रबड़ी के पूरे बदन को रगड़ रगड़ कर तोड़कर रख दिया था, उसका रोम रोम ससुर के लंड की चुदाई से पुलकित हो चुका था, काफी देर तक दोनों सिस्कारते हुए एक दूसरे को चूमते सहलाते झड़ते रहे, काका रबड़ी पर ढेर हो चुका था, वीर्य और बूर के रस के साथ बहकर तकिए पर रिस रहा था, तकिया गीला हो चुका था, रबड़ी और काका हांफते हुए एक दूसरे को चूमने लगे, काका रबड़ी पर ढेर हो गया, लंड अभी भी पूरा बूर में घुसा हुआ था,रबड़ी अपने ससुर को अपने ऊपर लिटाकर बड़े प्यार से उसे चूम चूम कर उसके सर को सहलाने लगी। अपनी जाँघो को फैला कर दिखाते हुये

रबड़ी हाये देखो ससुर जी एक दिन मे ही कितनी फैला दी बुर देख रहे हो कितना पानी डाला है आपने

अब आगे

इधर सवित्रा रबड़ी की कहानी सुनते सुनते मस्टर अपने चरम पर आ गये थे बाहर बरसात भी तेज हो चुकी थी उन्होने लंड से तुंरत अपना हाथ हटा लिया जानते थे अब यह पूरे गुस्से मे है अब इसे हाथ लगाया तो पानी फेक देगा रबड़ी इस बात को जान गई

रबड़ी मास्टर जी इतना ही मोटा है काका जी का अपका थोड़ा जादा मोटा है इतना कहते ही रबडी ने अपने दोनों हाथो से मास्टर जी का लंड पकड़ लिया कितना प्यारा है यह गोरा मेरे जैसा, क्यो नटखट हमारी बुरे चोदेगा तभी रबड़ी ने झटके से लंड की चमड़ी पीछे कर दी और लाल टमाटर जैसा सुपाड़ा बाहर आ गया, तभी रबड़ी ने इशारा किया कविता को कविता मुस्काराती हुई रबड़ी के पीछे आई और झुकी हुई रबड़ी की स्कर्ट उठा उसकी चड्डी उतार दी तभी एक टॉग उठा कर कुर्सी पर रख दी, अधखुली बुर मास्टर के सामने थी उधर सवित्रा और कविता ने भी अपनी अपनी चड्डी उतार दी और मास्टर के सामने अपनी चिकनी बुर सहलाने लगी तभी रबड़ी ने कस के पकड़ कर लंड आगे खीचा क्यो नटखट चोदेगा इन बुरो को, मास्टर का लंड बरदास्त ना कर पाया और उसने पानी छोड दिया पानी की कुछ छीटे रबड़ी पर भी पड़ी, तीनो हॅस दी

सवित्रा बैचारा बुरो के नजारे मे ही यह झड गया,

कविता काका की कहानी मे मास्टर जी का हाल है तो इसके बाप और इसके करनामे सुनेगे तो क्या होगा
रबड़ी तु कौन सा धुली है बुर नही चुदी मगर गांड तो तेरी तेरे बाप ने फाडी है ही कुछ दिन मे वो तेरी बुर भी चोदेगा

मास्टर क्या तु इतनी छो... क्या ऐसा हो सकता है असम्भव और इतनी कमसीन गांड तेरे बाप ने कैसे मारी

कविता शर्म से सर झुका ली

मास्टर रबड़ी तुने बताया नही मुझे बता क्या किया तेरे बाप ने तेरे साथ

रबड़ी आप तो जानते है मास्टर साहब मेरा बाप असल मे गाँव का बनिया है
मास्टर रुको ऐसा करो रबड़ी तुम मेरी गोद मे बैठ कर काहनी सुनाओ और सवित्रा कविता दोनों मेरे सामने मे मेज पर बैठ जाओ

उन तीनो ने बैसे ही किया जैसा मास्टर ने बोला रबड़ी के नंगे चुतड मास्टर की नंगी जाँघ पर थे मास्टर की धोती फर्श पर थी लंड बुर की मुँह के सामने था जो मुरझा चुका था
रबड़ी हॉ तो मेरा असल बाप बनिया था खडूस बनिया इतना तो जानती थी वो एक नम्बर का ठरकी है उसकी निगाह कब से मेरे पर है पर उस दिन जान पायी वो मेरा असल बाप है जैसा वो ठरकी वैसे ही मै और शायद वैसा ही मेरा सौतेला भाई भी हो जो उसका जायज बेटा है जो हमेशा ढोडे के साथ रहता है उसका चमचा है ढोड़े असल मे वो दोनों स्कूल मे गुडागर्दी मे कम नही किसी से लड़किया का डरती ही है घर जब पहुंची तो लंगड़ा कर चल रही थी माॅ ने पुछा तो सोचा बोल दूँ जिसने तेरी गांड मारी थी उसने आज मुझे चोद दिया मगर बोल ना सकी बस मुँह से निकला बाग मे गई थी पेड से फिसल गई
माॅ गुस्से मे बोली बुरचोदी कितनी बार कहा है उस बाग मे मत जा हरामी है एक से बढ़कर एक, फटा आयेगी तो मुँह दिखाने लायक नही रहेगी जल्दी तेरे हाथ पीले हो जाये वरना कब कोई चढ जाये तेरे ऊपर पेट फुला दे तो कहाँ जायेंगे,

जा दाल ले आ दुकान से

रबड़ी काका रास्ते मे मिले थे

कौन काका

रबड़ी वही बगिया वाले बोल रहे थे परसो तेरे घर आऊंगा तेरी माँ से बोल देना

काका का नाम सुनते ही माॅ अपने चुतड़ो को सहलाने लगी, सकपका के बोली

किस लिये

रबड़ी पता नही किस लिये बोले थे दुकान वाले चाचा के साथ आयेंगे,

जा चाचा के यहाँ से दाल ले आ, और हॉ दस रुपये का कडुवा तेल भी ले आना, हरामी ना जाने किस लिये आ रहे है और इतनी छोटी स्कर्ट ना पहना कर जमाना बहुत खराब है
रबड़ी दो साल से पहन रही हूँ कहाँ तो ला दे
ठीक है ला दूंगी चड्डी तो पहनी है

नही

क्या

नही फट गई

हरामजली नंगी घूम रही है गॉंव मे,

नंगी कहाँ स्कर्ट तो पहनी हूँ, दो तो है वो सुखी नही कहा तो कई बार ला दे

ठीक है ठीक अबकी सीजन मे ला दूंगी जा जल्दी से दाल ले आ तेरा बेबड़ा बाप पीकर आता ही होगा, हरामी से कुछ होता है नही आकर भी क्या करेगा, जा तु
दुकान की तरफ चल दी मगर आज दुकानदार मेरा बाप बन गया था और मेरे ससुर का यार, इतना तो है ठरकी ससुर अपनी बहु को जरूर परोसेगा इस यार के आगे
 
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नई दुल्हन

बाप रे बाप भाग-2

हरामजली नंगी घूम रही है गॉंव मे,

नंगी कहाँ स्कर्ट तो पहनी हूँ, देती तो हो नही वो सुखी नही कहा तो कई बार ला दे

ठीक है ठीक अबकी सीजन मे ला दूंगी जा जल्दी से दाल ले आ तेरा बेबड़ा बाप पीकर आता ही होगा, हरामी से कुछ होता है नही आकर भी क्या करेगा, जा तु
दुकान की तरफ चल दी मगर आज दुकानदार मेरा बाप बन गया था और मेरे ससुर का यार, इतना तो है ठरकी ससुर अपनी बहु को जरूर परोसेगा इस यार के आगे


अब आगे


नई बुर एक बार चुद जाये तो हमेशा पनियाये रहती है बस कोई चढता रहे दिन रात मगर समाज की मर्यादा से यह सब बोलने नही देती मगर मुंह भले कुछ ना बोले बुर का रिसाता पानी बता देता है नई बुर की तड़पन, अभी रबड़ी धमाकेदार चुदी है वो भी पहली बार बुर के होठ सुज से गये है वो चलती है तो सुजे हुये होठ आपस मे रगड मार के दर्द का एक मीठा एहसास भर देते है जिसे वो बता तो नही सकती मगर बुर पानी बहा कर बता देती है मन नही है मगर कोई चढ कर जबरदस्त हुमचे की यह हरजाई होठ और सुज जाये चलते वक्त भूल से भी कदम सट जाये तो बुर के होठो की रगड एक जलन परपराहट वा दर्द से भर जाती की रबड़ी के मुंह से सिसकी निकल जाती इसलिये चलते वक्त वो ध्यान देती उसकी चाल मे दोनो टाँगे ना सटे वा मन मे सोचती सही रहा कक्षी नही पहनी वरन रगड़ से चल ना पाती दुकान गाँव के कोने मे थी जो लगभग गाँव से अलग एक सुनसान खेत मे बनी थी जिस तक जाने की मात्र एक मेढ रूपी पतली सड़क का सहारा था अक्सर वहाँ तसेणीयो का जमघट लगा रहता मगर गेहूँ के बुराई का समय है तो इतनी फुरसत नही किसान को ऊपर से दोपहरी के समय सब कमाने पास के कस्बे मे चले जाते है तो लाला एकदम अकेले थे
रबड़ी मस्ती मे दुकान की तरफ बढ रही थी आज पहली बार चुदाई का स्वाद चखा था तो इस आंनद मे हमेशा खो जाना चहाती थी सोचती थी कितनी मूर्ख है वो जो अब तक ना चुदी, लंड का बुर मे घुसने वा ठाप मारने का एहसास उसके जहन मे घुम रहा था उस एहसास की याद मे उसके बुर के होठ भीग गये थे वा चासनी की भाँति तार की महीन बूँद कभी कभी लटकती हुई जाँघो से चिपक जाती थी,
वो स्कर्ट के ऊपर बुर पर हाथ मारते अरे मुई शांत हो और कितना दर्द देगी तो मुझे आज इतना फटी तब भी सुधरी नही अब भोसड़ा बनेगी एक दिन मे
तभी वो दुकान पर पहुंची एक छोटा सा कमरा जो बांस के पेड से घिरा गॉव से लगभग 500 मीटर दूर था मगर रबड़ी ने देखा दुकान पर कोई नही तो उसने आवाज लगाई चाचा ओ सेठ चाचा, चाचा कहाँ गये मगर कोई आवाज ना आई उसने झाँका तो दुकान पर कोई ना था
बगल मे एक सपेद छोटी सी प्यारी कुक्तिया घुम रही थी इतनी मासूम की कुछ पुछो मत मगर थोडी देर मे एक भयानक बड़ा काला कुत्ता वहाँ आया जिसे देख रबड़ी डर गई और उसके कदम डर के मारी दुकान के अंदर हो गये कुत्ता सीधे कुत्तीया के पास आ गया

काला कुत्ता उस छोटी सी कुत्तिया के उपर अचानक चढ़ गया और वह कुत्तिया बार बार टियाउ टियाउ करती आगे बढ़ रही थी. यह सब देख कर रबड़ी के मन से एक ही आवाज़ आती है...

( रबड़ी मन में),,,,,,छी इतनी छोटी सी कुत्तिया इतने बड़े कुत्ते को कैसे संभाल सकती है और यह कुत्ता भी कितना कमीना है उसे छोड़ ही नहीं रहा है.


,, कुत्ता कुत्तिया को इस तरह चीखता देख उसके उपर से उतर जाता है.

,, रबड़ी अपने मन में एक राहत की सांस लेती है और फिर हे भगवान शुक्र है बेचारी बच गई,,
,, अचानक से कुत्ते को क्या सुझता है की वह कुत्तिया के पीछे जाकर उसकी पुंछ के नीचे सुघने लगता है.

,, ये सब देख कर रबड़ी का दिमाग चकरा जाता है. वह ये सब देखना तो नहीं चाहती थी मगर उसका मन था कि उसे यह सब देखने के लिए विवश कर रहा था,,

,, (रबड़ी मन में ) यह इसके पीछे क्या कर रहा है??

,, रबड़ी इधर उधर नजर घुमाकर देखती है कि कोई उसको देख तो नहीं रहा है. और किसी को भी वहाँ न पाकर वह फिर से कुत्ते की ओर देखने लगती है,,

,, कुत्ता उस छोटी सी कुत्तिया की योनी को सुघनता हुआ चाटने लगता है. और वह कुत्तिया भी अव वहाँ से हिल नहीं रही थी,,

,, अचानक रबड़ी की नजर कुत्ते के लिंग पर जाती है जो की बित्ते भर का गाजर के समान लाल सुर्ख वाहर को निकला हुआ था और कुत्ते के चाटने की वजह से हिल रहा था,,

,, रबड़ी को यह देख कर पसीना आने लगता है और उसे अपनी योनी मे चीटिया सी रेंगती महसूस होती हैं,,

,अब रबड़ी का मन वहाँ से जाने का विलकुल नहीं था और वह बड़े ध्यान से उन्हें देख रही थी,,,

,,रबड़ी मन में कितना गंदा है यह कुत्ता उसे चाट क्यों रहा है ये,, छी.. छी,,
,, कुत्तिया की योनी चाटने के बाद कुत्ता फिर से हाँफते हुए उस छोटी सी कुत्तिया के उपर चढ़ जाता है और इस बार कुत्तिया ज्यादा हिलती नहीं और एक दो झटके मे कुत्ते का लिंग कुत्तिया की योनी के कुवारे पन को चिरता हुआ अंदर घुस जाता है.

,, कुत्तिया जोर से चिलाती है टीआउ .... टीओ टीआउ टीआउ...,,

अभी कुत्ता का आधा लंड गया था की छोटी कुत्तिया जमीन पर गिर सी जाती है मगर चुतड उठे रहते है, रबड़ी मन मे औरत कितना बचे कितना भागे मगर कमरजली बुर चुतड उठावा ही देती है तभी कुत्ते के एक दबरदस्त धक्के के साथ लंड चीरता हुआ बुर मे घुस गया

, यह सब देख रबड़ी के मुह अचानक निकल जाता है.

,, रबड़ी हाय री.. मैय्या री.. मर जायेगी वो छोड़ दे उसे निर्दयी. छोड़ दे...,

कुत्ता लगातार झटके लगा रहा था और हर झटके के साथ कुत्तिया के मुह से चिल्लाने की आवाज आ रही थी लेकिन वह भागने की कोशीश नहीं कर रही थी..
,, रबड़ी को भी यह ना जाने कयों अब अच्छा लगता है. और उसकी योनी मे बहुत तेज़ खुजली सुरु हो जाती है मन मे सोचती है औरत कितना भी चिल्लाये रोये यह बहरेहम मर्द बुर फाड कर ही मजा देते है और फिर फाडे काहे नाही जब फटना ही इसकी गति है
तभी अचानक लाला धोती सभलाते आये
अरे रबड़ी तु कब आई मै मूतने गया था जादा देर तो नही हुई
 
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नई दुल्हन

बाप रे बाप भाग-3



कुत्ता लगातार झटके लगा रहा था और हर झटके के साथ कुत्तिया के मुह से चिल्लाने की आवाज आ रही थी लेकिन वह भागने की कोशीश नहीं कर रही थी..

,, रबड़ी को भी यह ना जाने कयों अब अच्छा लगता है. और उसकी योनी मे बहुत तेज़ खुजली सुरु हो जाती है मन मे सोचती है औरत कितना भी चिल्लाये रोये यह बहरेहम मर्द बुर फाड कर ही मजा देते है और फिर फाडे काहे नाही जब फटना ही इसकी गति है

तभी अचानक लाला धोती सभलाते आये

अरे रबड़ी तु कब आई मै मूतने गया था जादा देर तो नही हुई



अब आगे



नही चाचा मै तो अभी अभी ही आई हूँ

अच्छा अच्छा बेटी
अपनी धोती के ऊपर लंड मसलते हुये वो थोड़ा पेशाब करने चला गया था तु बोल कैसे आई



रबड़ी : ''लाला जी, लालाजी , दाल तेल दे दो और 1 चॉकलेट का पैकेट , पैसे बाबू जी शाम को देंगे...''

काहे झूठ बोलती है वो शराबी पैसा देगा अपनी माॅ को भेजती तो भले कुछ चुकता करती

लाला जी ने नज़र भर कर रबड़ी को देखा

उनके सामने पैदा हुई ये फूलों की कलि पूरी तरह से पक चुकी थी

उसकी छोटी-2 स्कर्ट के साथ - साथ कसी हुई टी शर्ट पहनी हुई थी..जिसके नीचे ब्रा भी नही थी..



उसके उठते-गिरते सीने को देखकर

और उनकी बिना ब्रा की छातियो के पीछे से झाँक रहे नुकीले गुलाबी निप्पल्स को देखकर

उन्होने अपने सूखे होंठो पर जीभ फेरी..



अब तु आई ही गई है तो ले जा जो लेना है रबड़ी, बैसे पैसे कौनसा भागे जा रहे है तेरी माँ या तु कभी तो उधार चुकता कर ही देगी वैसे तु भी सयानी हो गई है ... चल जा , अंदर से निकाल ले चॉकलेट जो चाहिये ..''



उन्होने दुकान के पिछले हिस्से में बने एक दूसरे कमरे में रखे फ्रिज की तरफ इशारा किया..



रबड़ी मुस्कुराती हुई अंदर चल दी



इस बात से अंजान की उस बूढ़े लाला की भूखी नज़रें उनके थिरक रहे नितंबो को देखकर, उनके आकार प्रकार का मुआयना कर रहे है

पर उसमे भरी जवानी की चर्बी को वो सही से तोल भी नही पाए थे की उनके दिल की धड़कन रोक देने वाला दृश्य उनकी आँखो के सामने आ गया..



रबड़ी ने जब झुककर फ्रीज में से चाकलेट निकाली तो उसकी नन्ही सी स्कर्ट उपर खींच गयी, और उसकी बिना चड्डी की गांड लाला जी के सामने प्रकट हो गयी...
गोरी चुतड़ो मे छुपा भूरा गांड का छेद जो एकदम कसा था और उसके नीचे चुत के दबे आधे छोठ साफ झलक रहे थे,



कोई और होता तो वहीं का वहीं मर जाता

पर लाला जी ने बचपन से ही बादाम खाए थे

उनकी वजह से उनका स्ट्रॉंग दिल फ़ेल होने से बच गया..



पर साँस लेना भूल गये बेचारे ...

फटी आँखो से उन नंगे कुल्हो को देखकर उनका हाथ अपनी घोती में घुस गया...

और अपने खड़े हो चुके लंड की कसावट को महसूस करके उनके शरीर का रोँया-2 खड़ा हो गया..लंड से निकल रहा प्रीकम उनके हाथ पर आ लगा



उन्होने झट्ट से सामने पड़े मर्तबान से 1 क्रीम रोल निकाल और उसे अपनी धोती में घुसा कर अपने लंड पर रगड़ लिया

उसपर लगी क्रीम लाला जी के लंड पर चिपक गयी और लाला जी के लंड का पानी का धार क्रीम रोल पर.. पानी इतना की क्रीम रोल के चारों तरफ बहकर कोन को एक हिस्से को भिगाते टपकने लगा



जब रबड़ी बाहर आई तो लाला जी ने तेल के पैकेट के साथ वो क्रीम रोल भी उसे थमा दिए



और बोले : "ये लो , ये स्पेशल तेरे लिए है...मेरी तरफ से एकदम ताजा है सेलर अभी दे गया



रबड़ी उसे देखते ही खुश हो गयी, ये उनका फेवरेट जो था, उसने तुरंत वो अपने हाथ में लिया और उस रोल

को मुँह में ले लिया...
लाला सच तेरे यह नमकीन मीठा क्रीम रोल तेरे अलावा कोई नही बेचता बड़ा मस्त है





लाला जी का तो बुरा हाल हो गया



जिस अंदाज से उसने उसे मुँह में लिया था

उन्हे ऐसा लग रहा था जैसे वो उनका लंड चूस रही है



लालाजी के लंड का प्रीकम उन्होंने अपनी जीभ से समेट कर निगल लिया

उन्हे तो कुछ पता भी नही चला पर उस को अपने लंड का पानी चाटते देखकर लाला जी का मन आज कुछ करने को मचल उठा.. .


लालाजी की नज़रें एक बार फिर से उसके कूल्हों पर चिपक कर रह गयी...

और हाथ अपने लंड को एक बार फिर से रगड़ने लगा
रुक थोड़ा हिसाब कर लूँ फिर तेरी दाल तोलता हूँ

कोई बात नही चाचा मुझे भी कोई जल्दी नही तेरा यह क्रीम रोल बड़ा मस्त है

अरे हाये रबड़ी तु भी तो कम मस्त नही

हाये चाचा मै तेरी बेटी समान हूँ

तभी बगल चुदाई करते कुत्ते ने शायद तेजी से धक्का मारा की छोटी कुत्तीया चिल्ला उठी

तभी लाला ने कागज का गोला बना कुत्ते को मारा

चल भाग बेटीचोद अपनी बेटी को चोद रहा है चल भाग साला, तेरी जनी है उसी पर चढ़ा है

इतना सुनते ही रबड़ी की बुर ने पानी फेक दिया रबड़ी ने दोनों पैरो को आपस मे भिड़ा लिया

साला कुत्ता अपनी बिटिया पर ही चढ़ा है, क्या जमाना आ गया है जानवर तक अपनी बिटिया को हचक कर चोद रहे है


हॉ बिटिया तो तेरी दाल ले आऊ और कहते हुये वो अंदर चला गया

रबड़ी तो बुत बनी थी वो समझ रही थी लाला का इशारा किधर है रबड़ी पूरी तरह गरमा गई थी

लाला जब आये तो हाथ मे दाल थी वो तोलने लगे मगर उनका एक हाथ कमर पर था

रबड़ी- क्या हुआ चाचा

लाला : "देख ना..कल रात से तबीयत ठीक नही है...पूरी पीठ दुख रही है...वैध जी से दवाई भी ली..उन्होने ये तेल दिया है...बोले पीठ पर लगा लेना, आराम मिलेगा...अब अपनी पीठ तक मेरा हाथ तो जाएगा नही....इसलिए किसी को मेरी मदद करनी पड़ेगी...'' तु तो जानती है मै रंडवा हूँ, तु बेटी मेरी मदद कर सकती है, फिर तु समान ले जा



लालाजी तो ऐसे हक़ जता कर बोल रहे थे जैसे पूरे गाँव में कोई और है ही नही जो उनकी मदद कर सके..

और उनके कहने का तरीका ठीक वैसा ही था, कि वो मदद कर रहे है पैसो वा समान से तो उस भी कुछ तो करना पड़ेगा ...

इसलिए वो भी समझ गयी की उसे भी लालाजी की मदद करनी ही पड़ेगी...



रबड़ी ने सिर हिला कर हामी भर दी..



लालजी ने तुरंत शटर आधा गिरा दिया और रबड़ी को लेकर दुकान के पिछले हिस्से में बने अपने घर में आ गए...



रबड़ी का दिल धाड़ -2 कर रहा था...

ये पहला मौका था जब वो यहाँ घर मे लालाजी के पास आई थी...

और धूर्त लाला ने मौका देखते ही उसे अपने झाँसे में ले लिया..




अंदर जाते ही लालजी ने अपना कुर्ता उतार दिया..

उनका गठीला बदन देखकर रबड़ी के रोँये खड़े हो गये...

जाँघो के बीच रसीलापन आ गया और आँखों में गुलाबीपन..







लालाजी अपने बिस्तर पर उल्टे होकर लेट गये और रबड़ी को एक छोटी सी शीशी देकर पीठ पर मालिश करने को कहा...



रबड़ी ने तेल अपने हाथ में लेकर जब लालाजी के बदन पर लगाया तो उनके मुँह से एक ठंडी आह निकल गयी...



''आआआआआआआआअहह ...... वाााहह रबड़ी..... तेरे हाथ कितने मुलायम है.... मज़ा आ गया.... ऐसा लग रहा है जैसे रयी छुआ रही है मेरे जिस्म से....आआआअहह शाबाश..... थोड़ा और रगड़ के कर ....आहह''



लालाजी उल्टे लेटे थे और इसी वजह से उन्हे प्राब्लम भी हो रही थी...

उनका खूँटे जैसा लंड खड़ा हो चुका था...

लालाजी ने अपना हाथ नीचे लेजाकर किसी तरह से उसे एडजस्ट करके उपर की तरफ कर लिया...

उनके लंड का सुपाड़ा उनकी नाभि को टच कर रहा था...

पर अभी भी उन्हे खड़े लंड की वजह से उल्टा लेटने में परेशानी हो रही थी...







रबड़ी ये सब नोट कर रही थी...

और उसे लालाजी की हालत पर हँसी भी आ रही थी.



उसने उन्हे सताने का एक तरीका निकाला..



वो बोली : "लालाजी ..ऐसे हाथ सही से नही पड़ रहा...क्या मैं आपके उपर बैठ जाऊं ..''



लालाजी की तो आँखे फैल गयी ये सुनकर...

नेकी और पूछ -2...

लालाजी ने तुरंत लंबी वाली हाँ कर दी...



बस फिर क्या था, रबड़ी किसी बंदरिया की तरह उछल कर उनके कूल्हों पर बैठ गयी...



लालाजी तो जैसे जीते-जागते स्वर्ग में पहुँच गये...

ऐसा गद्देदार एहसास तो उन्हे अपने जीवन में आजतक नही मिला था...

ये रबड़ी के वही कूल्हे थे जिन्हे इधर-उधर मटकते देखकर वो अपनी आँखे सेका करते थे...

आज उसी डबल रोटी जैसी गांड से वो उनके चूतड़ों पर घिसाई कर रही थी...

रबड़ी ने अपनी टांगे मोड़ कर साइड में लगा दी और दोनो हाथो से उनकी पीठ को उपर से नीचे तक उस तेल से रगड़ने लगी..



लालाजी को एक तरफ मज़ा तो बहुत आ रहा था पर उनकी वो तकलीफ़ पहले से ज़्यादा बढ़ चुकी थी...

उनका लंड नीचे दबकर पहले ही फँसा हुआ सा पड़ा था, उपर से रबड़ी का भार आ जाने की वजह से उसका कचुंबर सा निकालने को हो गया था...जैसे कोई मोटा अजगर किसी चट्टान के नीचे दब गया हो



रबड़ी भी अपना पूरा भार अपने कुल्हो पर डालकर लालाजी के चूतड़ों की चटनी बनाने पर उतारू थी...

वो एक लय बनाकर लालाजी के बदन की मालिश कर रही थी...

जिस वजह से लालाजी का शरीर उपर से नीचे तक हिचकोले खाने लगा...

रबड़ी भी लालाजी की शरीर नुमा नाव पर बैठकर आगे पीछे हो रही थी...



और इस आगे-पीछे का स्वाद लालाजी को भी मिल रहा था...

उनके लंड पर घिस्से लगने की वजह से वो उत्तेजित हो रहे थे...

ये एहसास ठीक वैसा ही था जैसे वो किसी की चूत मार रहे हो अपने नीचे दबाकर...



अपनी उत्तेजना के दौरान एक पल के लिए तो लालाजी के मन में आया की पलटकर रबड़ी को अपने नीचे गिरा दे और अपना ये बोराया हुआ सा लंड उसकी कुँवारी चूत में पेलकर उसका कांड कर दे...

पर उन्हे ऐसा करने में डर भी लग रहा था की कहीं उसने चीख मारकर सभी को इकट्ठा कर लिया तो उनकी खैर नही...

इसलिए उन्होंने अपने मन और लंड को समझाया की पहले वो रबड़ी के मन को टटोल लेंगे...

थोड़े टाइम बाद जब उन्हे लगेगा की वो उनसे चुदने के लिए तैयार है और वो इसका ज़िक्र किसी से नही करेगी, तभी उसे चोदने में मज़ा आएगा...



और वैसे भी, अभी के लिए भी जो एहसास उन्हे मिल रहा था वो किसी चुदाई से कम नही था...

उपर से रबड़ी के बदन का स्पर्श भी उन्हे उनकी उत्तेजना को पूरा भड़काने में कामगार सिद्ध हो रहा था...



इसलिए वो उसी तरह, अपने लंड को बेड पर रगड़कर , अपने ऑर्गॅज़म के करीब पहुँचने लगे..



और अंत में आकर , ना चाहते हुए भी उनके मुँह से आनंदमयी सिसकारियाँ निकल ही गयी..



''आआआआआआहह रबड़ी.......मज़ा आ गया.......हायययययययययी..............''



रबड़ी को तो इस बात की जानकारी भी नही थी की लालाजी पुरे ताव मे आ चुके थे....

वो तो उनके अकड़ रहे शरीर को देखकर एक पल के लिए डर भी गयी थी की कहीं बूड़े लालाजी को कुछ हो तो नही गया...

पर जब लालाजी ने कुछ बोला तो उसकी जान में जान आई..



लालाजी : "शाबाश रबड़ी...शाबाश....ऐसी मालिश तो मेरी आज तक किसी ने नही की है.....



पर रबडी शायद उनके खड़े लंड को देखना चाहती थी...



'थोड़ा पलट भी जाइए लालाजी , आपकी छाती पर भी मालिश कर देती मैं ...''

लाला को तो जैसे मन माँगी मुराद पूरी हो गई हो
 
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नई दुल्हन

बाप रे बाप भाग -4

पर जब लालाजी ने कुछ बोला तो उसकी जान में जान आई..



लालाजी : "शाबाश रबड़ी...शाबाश....ऐसी मालिश तो मेरी आज तक किसी ने नही की है.....



पर रबडी शायद उनके खड़े लंड को देखना चाहती थी...



'थोड़ा पलट भी जाइए लालाजी , आपकी छाती पर भी मालिश कर देती मैं ...''

लाला को तो जैसे मन माँगी मुराद पूरी हो गई हो

अब आगे

रबड़ी की तरफ लाला ने जैसे ही मुँह किया लाला का विशाल 10 इंची लंड विकराल अवस्था मे धोती के अंदर लहरा रहा था
रबड़ी का कलेजा जैसे धक सा हो गया बाप रे धोती मे इतना विशाल है तो बाहर निकलते ही क्या वबाल मचायेगा मेरी माॅ ने कैसे सहा होगा उसके माथे पर पसीना आ गया

लाला क्या हुआ बेटी मालिश कर पहले मेरे जाँघो की कर दे बडा दर्द होता है बेटी यहाँ


रबड़ी ने सोचा की अब लाला जी को उसके नितम्बों के दर्शन कराने का वक्त आ गया है। रबड़ी जानती थी की उसके नितम्ब मर्दों पर क्या असर करते हैं। उसने जांघों से नीचे की ओर मालिश करने के बहाने अब अपना मुंह लाला जी के पैरों की ओर और अपने विशाल चूतड़ लाल जी के मुंह की ओर कर दिये। मालिश करते हुए उसने अपने चूतड़ों बड़े ही मादक ढंग से पीछे की ओर उभार दिया। लाला के दिल पे तो मानो छुरी चल गयी। स्कर्ट के महीन कपड़े में से रबड़ी के चुतड़ का अकार वा बीच की गहराई झांक सी रही थी।

लाला रबड़ी के विशाल चूतड़ों को ललचायी नज़रों से देखता हुआ बोला, "अरे बेटी ऐसे मालिश करने में परेशानी होगी। हमारे ऊपर आ जाओ।"

"हाय जी आपके ऊपर कैसे आ सकते हैं?"

"अरे इसमें शर्माने की क्या बात है? अपनी एक टांग हमारे एक तरफ़ और दूसरी टांग दूसरी तरफ़ कर लो।"

"जी आपको परेशानी तो नहीं होगी?"

रबड़ी लाला के ऊपर आ गयी। अब उसका एक घुटना लाला जी के कमर के एक तरफ़ और दूसरा घुटना कमर के दूसरी तरफ़ था। स्कर्ट घुटनों तक ऊपर पड़ा था। इस मुद्रा में रबड़ी के विशाल चूतड़ लाला के मुंह के ठीक सामने थे। घुटनों से नीचे रबड़ी के गोरे गोरे पैर नंगे थे। रबड़ी लाला के पैरों की ओर मुंह करके उसकी जांघों से नीचे की ओर मालिश कर रही थी। लाला का मन कर रहा था की रबड़ी के चूतड़ों के बीच मुंह दे दे। वो स्कर्ट के महीन कपड़े में से रबड़ी के विशाल चूतड़ों गहराई को देख रहा था। वा अनुमान लगा रहा था चुत वा गांड के छेद कहा होगे

" रबड़ी तुम जितनी समझदार हो उतनी ही सुन्दर भी हो।"

"सच चाचा जी? कहीं आप हमें खुश करने के लिये तो नहीं बोल रहे हैं।"

"तुम्हारी कसम बेटव हम झूठ क्यों बोलेंगे? तभी तो हमनें तुम्हें एकदम ढोड़े के लिये पसन्द कर लिया है। तेरे काका कम ससुर ने मुझे खबर दे दी है वैसे तुम्हारे पीछे बहुत लड़के चक्कर लगाते होगे

"जी वो तो सभी लड़किओं के पीछे चक्कर लगाते हैं।"

"नहीं बेटी सभी लड़किआं तुम्हारी तरह सेक्सी नहीं होती। बोलो, लड़कें बहुत तंग करते थे क्या?"

"हां चाचा जी करते तो थे।"

"क्या करते थे बहु?"

"अब हम आपको वो सब कैसे बता सकते हैं?"

"अरे फिर से वही शर्माना। चलो बताओ। हमें चाचा नहीं, अपना दोस्त समझो।"

"जी सीटियां मारते थे। कभी कभी तो बहुत गन्दे गन्दे कमैन्ट भी देते थे। बहुत सी बातें तो हमें समझ ही नहीं आती थी।"

"क्या बोलते थे बेटी?"

"उनकी गंदी बात हमें समझ नहीं आती थी। लेकिन इतना ज़रूर पता था की हमारी छातिओं और नितम्बों पे कमैन्ट देते थे। कैसे खराब होते हैं लड़के। घर में मां बहन नहीं होती क्या?"

"और क्या क्या करते थे?"

"जी, क्लास में भी लड़कें जान बूझ के अपनी पेन्सिल हमारे पैरों के पास फेंक देते थे और उसे उठाने के बहाने हमारी स्किर्ट के अन्दर टांगों के बीच में झान्कने की कोशिश करते थे। स्कूल की ड्रेस स्किर्ट है नहीं तो हम सलवार कमीज़ ही पहन के स्कूल जाते। लड़कें लोग होते ही बहुत खराब हैं।"

"नहीं बेटी लड़कें खराब नहीं होते। वो तो बेचारे तुम्हारी जवानी से परेशान रहते होंगे।"

"लेकिन किसी लड़की पे गंदे गंदे कमैन्ट देना और उसकी टांगों के बीच में झांकना तो बदतमीज़ी होती है ना पिताजी?"

अब चौकने की बारी लाला की थी उसे एक धक्का लगा, मगर जल्द सभल बोला

पिताजी यह क्या बोल रही हो

रबड़ी जी पिताजी मुझे मालूम हो गया काका ने बताया कि आप ही मेरे असल पिता है

हॉ सच तेरी माॅ भी कम माल नही और तु उससे भी बडी माल

थोड़ी देर शांती छा गई इस शांती को लाला ने तोड़ा

" वैसे बेटी लड़के बदतमीज नही होते फिर इसमें बदतमीज़ी की क्या बात है बेटी। बचपन से ही हर मर्द के मन में औरत की टांगों के बीच में झान्कने की इच्छा होती है और जब वो बड़ा हो जाता है तब तो औरत की टांगों के बीच में पहुंचना ही उसका लक्ष्य बन जाता है।"

"हाय! ये भी क्या लक्ष्य हुआ? मर्द लोग तो होते ही ऐसे हैं।"

"लेकिन बेटी लड़कियां भी तो कम नहीं होती। देखो ना आज कल तो गाँव की ज्यादातर लड़कियां शादी से पहले ही अपना सब कुछ दे देती हैं। तुम भी तो गाँव की हो बहु।"

लीजिये पिताजी वहां भी मालिश कर दी।"

" बेटी वहां तो अभी और भी बहुत कुछ है।"

"और तो कुछ भी नहीं है।"

"ज़रा लंगोट के नीचे तो देखो बहुत कुछ मिलेगा।"

"हाय.....! लंगोट के नीचे! वहां तो आपका वो है। हमें तो बहुत शरम आ रही है।"

"शरम कैसी बेटी? तुम तो ऐसे शर्मा रही हो जैसे कभी मर्द का लंड नहीं देखा। काका ने बताया जो उसने तेरे साथ किया"

"जी किसी पराए मर्द का तो नहीं देखा ना काका तो मेरे ससुर हुये।"

"अच्छा तो तुम हमें पराया समझती हो?"

"नहीं नहीं पिता जी ऐसी बात नहीं है।"

"अगर ऐसी बात नहीं है तो इतना शर्मा क्यों रही हो? वो तुम्हें काटेगा नहीं। चलो लंगोट खोल दो ओर वहां की भी मालिश कर दो।"

"जी हम तो आपकी बेटी हैं। हम आपके उसको कैसे हाथ लगा सकते हैं?"

"ठीक है बेटी कोई बात नहीं, हम समझ गये चल तेरी मॉ से ही करवा लेंगे, तु मेरी अपनी कहाँ जो मेरा दर्द समझे।"

"नहीं नहीं पिताजी ये आप क्या कह रहे हैं? अच्छा है हम ही वहां की मालिश कर दें।"

"तो फिर शर्मा क्यों रही हो बेटी?" ये कहते हुए लाला ने रबड़ी का हाथ पकड़ के लंगोट पे रख दिया। लंगोट के ऊपर से लाला जी के मोटे लंड की गर्माहट से रबड़ी कांप गयी। कांपते हुए हाथों से रबड़ी लाला जी का लंगोट खोलने की कोशिश कर रही थी। आखिर आज लाला जी का लंड देखने की मुराद पूरी हो ही जाएगी। जैसे ही लंगोट खुला लाला का लंड लंगोट से अज़ाद होके एक झटके के साथ तन के खड़ा हो गया। ११ इन्च के लम्बे मोटे काले लंड को देख के रबड़ी के मुंह से चीख निकल गयी।

"ऊइई माआआआ....ये क्या है..?"

"क्या हुआ बेटी...?"

"जी..इतना लम्बा..."

"नहीं पसन्द आया?"

"जी वो बात नहीं है। मर्द का इतना बड़ा भी हो सकता है? सच पिताजी ये तो बिकुल उस गधे के जैसा है। अब समझी मां आपको क्यों गधा कहती हैं।"

"घबराओ नहीं बेटी हाथ लगा के देख लो। काटेगा नहीं।" रबड़ी मन ही मन सोचने लगी काटेगा तो नहीं लेकिन मेरी चूत ज़रूर फाड़ देगा। बाप का लंड तो काका के लंड से कहीं ज़्यादा तगड़ा निकला कन्चन उस फौलादी लौड़े को सहलाने के लिये बेचैन तो थी ही। उसने ढेर सारा तेल अपने हाथ में ले के लाला के तने हुए लौड़े पे मलना शुरु कर दिया। ना जाने कितनी चूतों का रस पी के इतना मोटा हो गया था। क्या भयन्कर सुपाड़ा था। मोटा लाल हथोड़े जैसा। कुन्वारी चूत के लिये तो बहुत खतरनाक हो सकता था। रबड़ी को दोनों हाथों का इस्तेमाल करना पड़ रहा था, फिर भी लाला का लौड़ा उसके हाथों में नहीं समा रहा था। इतना मोटा था कि दोनों हाथों से उसकी मोटाई नापनी पड़ी। जब जब रबड़ी का हाथ लंड पे मालिश करते हुए नीचे की ओर जाता, लंड का मोटा लाल सुपाड़ा और भी ज़्यादा भयन्कर लगने लगता।

पिता जी एक बात पूछुं? बुरा तो नहीं मानेंगे?"

"नहीं बेटी ज़रूर पुछो।"

"जी सेठानी तो आपसे बहुत खुश होंगी?"

"वो क्यों?" लाला अन्जान बनता हुआ बोला।

"इतना लम्बा और मोटा लौड़ा पा कर के कौन औरत खुश नहीं होगी?"

"अरे नहीं बेती ये ही तो हमारी बदकिस्मती है। बस एक गलती कर बैठे, उसका फल अभी तक भुगत रहे हैं।"

"कैसी गलती पिताजी?"

"अरे बेटी सुहाग रात को जोश जोश में कुछ ज़्यादा ज़ोर से धक्के मार दिये और पूरा लंड तुम्हारी सौत मां की चूत में पेल दिया। तुम्हारी सेठानी मां तो कुन्वारी थी। झेल नहीं सकी। बहुत खून खराबा हो गया था। बेचारी बेहोश हो गयी थी। बस उसके बाद से मन में इतना डर बैठ गया की तक चुदवाने से डरती थी। बड़ी मिन्नत करके ६ महीने में एक बार चोद पाते थे, उसके बाद भी आधे से ज़्यादा लंड नहीं डालने देती थी। पूरा डालने का ख्याब लिये वो चलती बनी, वो तो तेरी मॉ है जो इसे झेल पाती है"

"ये तो गलत बात है। पति की ज़रूरत पूरी करना तो औरत का धर्म होता है। कोशिश करती तो कुछ दिनों में सेठानी मां की आदत पड़ जाती जैसे मेरी माँ की पड गई"

अरे तेरी माॅ भी गांड मराने मे धिक्कत कर रही थी वो तो तेरे काका ने उसकी गांड फैलाई तब मे मार पाया

हॉ काका ने बताया उसने बागिया मे उसकी गॉड मारी थी

"

"हां बेटी। तेरी सेठानी मां को तो हमारा पसन्द नहीं आया लेकिन तुम्हें हमरा लंड पसन्द आया या नहीं?"

"जी ये तो बहुत प्यारा है। इतना बड़ा तो औरत को बड़े नसीब से मिलता है। सच, हमें तो अपनी मां से जलन हो रही है।" रबड़ी बड़े प्यार से लाला के लौड़े को सहलाते हुए बोली। उसने फिर से अपना मुंह लाला की टांगों की ओर और चूतड़ रामलाल के मुंह की ओर कर रखे थे। लंड और टांगों की मालिश करने के बहाने वो आगे की ओर झुकी हुई थी और चूतड़ लाला की ओर उचका रखे थे।

"अरे इसमें जलन की क्या बात है? आज से ये तुम्हारा हुआ।" लाला रबड़ी के चूतड़ों पे हाथ फेरता हुआ बोला।

"जी मैं आपका मतलब समझी नहीं।"

"देखो बेटी, हमसे तुम्हारी मदमस्त होती ये जवानी देखी नहीं जाती। हमारे रहते हमारी प्यारी बेटी तड़पती रहे ये तो हमारे लिये शर्म की बात है। आखिर हम भी तो मर्द हैं। हमारे पास भी वो सब है जो तुम्हारे उस नालायक काका के पास है। अब हमें ही अपनी बेटी की प्यास बुझानी पड़ेगी।" लाला का हाथ स्कर्ट के ऊपर से ही बहु के विशाल चूतड़ों की दरार में से होता हुआ उसकी चूत पे आ गया।

"हाय....! पिता जी ये आप क्या कह रहे हैं? आपका मतलब आप हमें....अपनी बेटी को..?"

"हां बेटी हम अपनी बेटी को चोदेंगे। उस कुत्ते की तरह, तुम्हारी इस जवानी को एक मोटे तगड़े लौड़े की ज़रूरत है। हमारी टांगों के बीच में अब भी बहुत दम है।" लाला का हाथ अब धीरे धीरे रबड़ी की टांगों के बीच उसकी फुली हुई चूत को स्कर्ट के ऊपर से ही सहला रहा था।

"पिता जी..! प्लीज़..! ऐसा नहीं कहिये। हम आपके जज्बात समझते हैं लेकिन आखिर हम आपकी बेटी हैं। भले जायज नही मगर इस लंड के बीज से ही हम पैदा हुये यह लंड मेरा भगवान है मेरा जन्मदाता मै समाज मे भले अपकी बेटी नही मगर असल आपकी बेटी हूँ।" रबड़ी लाला के बड़े बड़े टट्टों को सहलाती हुई बोली। इस लंबे मोटे लंड ने कभी मेरी मॉ को चोद रहा होगा और इन टट्टो का जमा वीर्य माॅ की बुर से होता हुआ गर्भ मे गया होगा जिससे मेरा जन्म हुआ तेजी से लंड को अपने दोनों हाथों से सरका मारते हुये इसके दर्शन मेरे लिए भगवान है यह मेरी बुर मे नही जा सकता

क्या हुआ पिता जी आप कहां जा रहे हैं?"

"कहीं नहीं बेटी, अब तुम ठीक से सब जगह तेल लगा दो।"

लाला के खड़े होते ही उसकी धोती और लंगोट नीचे गिर गये। अब वो बिल्कुल नंगा बेटी के सामने खड़ा था। उसका तना हुआ ११ इन्च का मोटा काला लंड बहुत भयन्कर लग रहा था। ये नज़ारा देख के रबड़ी की तो सांस ही गले में अटक गयी। उसने खड़े हुए लाला जी की टांगों में तेल लगाना शुरु किया। लाला जी का तना हुआ लौड़ा उसके मुंह से सिर्फ़ कुछ इन्च ही दूर था। रबडी का मन कर रहा था की उस मोटे मूसल को चूम ले।

" बेटी थोड़ा हमारी छाती पे भी मालिश कर दो।"

लाला जी की छाती पे मालिश करने के लिये रबड़ी को भी खड़ा होना पड़ा। लेकिन लाला जी का तना हुआ लंड उसे नज़दीक नहीं आने दे रहा था।

वो लाला जी को छेड़ते हुए हंसती हुई बोली, "पिता जी, आपका गधे जैसा वो तो हमें नज़दीक आने ही नहीं दे रहा, आपकी छाती पे कैसे मालिश करें?"

"तुम कहो तो काट दें इसे बेटी?"

"हाय पिताजी! ये तो इतना प्यारा है। इसे नहीं काटने देंगे हम।" रबड़ी लाला के लौड़े को बड़े प्यार से सहलाती हुई बोली।

"तो फिर हमें कुछ और सोचना पड़ेगा।"

"हां पिताजी कुछ करिये ना। आपका ये तो बहुत परेशान कर रहा है।"

"ठीक है बेटी, हम ही कुछ करते हैं।" ये कहते हुए दूसरे ही पल लाला ने बेटी की बगलों में हाथ डाल के उसे ऊपर उठा लिया और खींच के अपनी बाहों में जकड़ लिया। इससे पहले की रबड़ी की कुछ समझ में आता, उसने अपने आप को लाला जी की छाती से चिपका पाया। वो सिर्फ़ कमीज और स्कर्ट में थी। उसका स्कर्ट घुटनो से ऊपर आ चुका था। लाला जी का विशाल लंड उसकी टांगों के बीच ऐसे फंसा हुआ था जैसे वो उसकी सवारी कर रही हो।

"ऊई माआआ... पिताजीईईई..... ये आपने क्या किया? छोड़िये ना हमें।" रबड़ी अपने आप को छुड़ाने का नाटक करती हुई बोली।

"तुम ही ने तो कहा था की हमारा लंड तुम्हें नज़दीक नहीं आने दे रहा है। देखो ना अब प्रोब्लम दूर हो गयी।"

"सच आप तो बड़े खराब हैं। अपनी बेटी का स्कर्ट कोई ऐसे ऊपर करता है?"

"मजबूरी थी बेटी ऊपर करना पड़ा। तुम्हारा स्कर्ट तुम्हें नज़दीक नहीं आने देता। लेकिन अब देखो ना तुम हमारे कितनी नज़दीक आ गयी हो।" लाला दोनों हाथों से रबड़ी के विशाल चूतड़ों को दबा रहा था। बेचारी छोटी सी कसी स्कर्ट मोटे मोटे चूतड़ों की दरार में घुसी जा रही थी। लाला के मोटे लौड़े ने रबड़ी की चूत की दोनों फांकों के बीच में घुसेड़ दिया था। रबड़ी को लाला के लंड की गर्माहट बेचैन कर रही थी। इतने दिनों से जिस लंड के सपने ले रही थी वो आज उसकी जांघों के बीच फंसा हुआ उसकी चूत से रगड़ खा रहा था।

"आय हाय! कितने मजबूर हैं आप जो आपको अपनी बेटी का स्कर्ट ऊपर करना पड़ा। लेकिन ऐसे चिपके हुए हम आपकी छाती की मालिश कैसे कर सकते हैं? छोड़िये ना हमें प्लीज़।"

"कोई बात नहीं बेटी छाती पे नहीं तो पीठ पे तो मालिश कर सकती हो।" रबडी लाला जी के बदन से बेल लता की तरह लिपटी हुई थी। उसका सिर लाला जी की छाती पे टिका हुआ था। उसने दोनों हाथों से पीठ की मालिश शुरु कर दी। र लाला भी बेटी की पीठ और चुतड़ों पे हाथ फेर रहा था। रामलाल के लौड़े से रगड़ खा के रबडी की चूत बुरी तरह गीली हो गयी थी और चुत के साथ गांड भी बिल्कुल उसके रस में भीग गयी थी। लाला के लंड का ऊपरी भाग बेटी की चूत के रस में भीगा हुआ था। रबड़ी का सारा बदन वासना की आग में जल रहा था।
लोहा गरम था। लाला ने अब देर करना ठीक नहीं समझा। बस एक बार किसी तरह बेटी की चूत में लंड फंसा ले, फिर सब ठीक हो जाएगा। उसने एक झटके में बेटी की स्कर्ट पकड़ के नीचे खिसका दी। अब रबड़ी बिल्कुल नंगी थी।

लाला ने बेटी को अपनी बाहों में जकड़ लिया और अपने होंठ बेटी के रसीले होंठों पे रख दिये। रबडी भी लाला जी से लिपटी हुई थी। उसकी चूत बुरी तरह गिली थी। चूत के रस में सनी स्कर्ट उसके पैरों में पड़ी हुई थी। रबड़ी ने पैरों पे उचक के लाला के तने हुए लंड को अपनी टांगों के बीच में इस तरह स्थापित किया कि वो उसकी चूत पे ठीक से रगड़ सके। लाला बेटी की चूत की गर्मी अपने लौड़े पर और रबड़ी लाला जी के विशाल लंड की गर्मी अपनी चूत पे महसूस कर रही थी। काफ़ी देर बेती के होंठों का रसपान करने के बाद लाला रबड़ी से अलग हो गया और थोड़ी दूर से उसकी मस्त जवानी को निहारने लगा। क्या बला की खूबसूरत थी रबड़ी। गोरी गोरी मांसल चूचिआं। पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए विशाल चूतड़। तराशी हुई मांसल जांघों के बीच में हलके मुलायम बाल जैसे रोये हो। रामलाल ने आज तक किसी औरत की चूत पे इतने छोटे और रोयेदार बाल नहीं देखे थे जो शायद अभी उगना ही चालू किये थे। ऐसी जवानी देख के लाला मदहोश हो गया।

"ऊफ.. पिता जी अपनी बेटी को नंगी करते आपको ज़रा भी शरम नहीं आई। अब ऐसे घूर घूर के क्या देख रहे हैं?" रबड़ी शर्मा कर एक हाथ से अपनी चूत और एक हाथ से अपनी चूचिओं को ढकने की नाकामयाब कोशिश करती हुई बोली।

"सच बेटी आज तक हमनें इतनी मस्त जवानी नहीं देखी। इस बेचारे लंड को निराश ना करो, थोड़ा सा तो अपनी चूत का रस पिला दो। चलो अगर तुम हमें नहीं देना चाहती हो तो कोई बात नहीं, हम सिर्फ़ लंड का सुपाड़ा तुम्हारी चूत में डाल के निकाल लेंगे। बेचारा थोड़ा सा पानी पी लेगा। अब तो ठीक है ना?"

"ठीक है पिताजी। हमें चोदेंगे तो नहीं ना?" रबड़ी जान बूझकर चोदने जैसे शब्द का इस्तेमाल कर रही थी। उसके मुंह से ये सुन के लाला और भी पागल हुआ जा रहा था। देखो पिताजी काका ने आज ही चोदा है देखो कैसी सुजी है और आपका तो इतना बड़ा मोटा है काका से दुगना

"नहीं चोदेंगे बेटी। तुम्हारी इज़ाज़त के बिना तुम्हें कैसे चोद सकते हैं।"

ये कहते हुए लाला ने नंगी रबड़ी को अपनी बलिश्ठ बाहों में उठा लिया और बिस्तर पे पटक दिया। अब वो पागलों की तरह बेटी के पूरे बदन को चूमने लगा। फिर उसने बेटी की मोटी जांघें फैला दी। बेटी के जांघों के बीच का नज़ारा देख के उसका कलेजा मुंह को आ गया। मुलायम झांटों के बीच में से बेटी की सुजी चूत के खुले हुए गुलाबी होंठ झांक रहे थे मानों बर्सों से प्यासे हों। नंगी रबड़ी अपने पिता के सामने टांगें फैलाये पड़ी हुई थी। शर्म के मारे उसने दोनों हाथों से अपना मुंह ढक लिया।
ऐसे क्या देख रहे हैं पिताजी...?"

"हमें भी तो इस जन्नत का नज़ारा देखने दो बेटी। सच कह रहा था तेरा ससुर बेटी तुमने तो टांगों के बीच में खजाना छिपा रखा है। इतनी खूबसूरत चूत को यों मुलायम बाल कहर ढा रहे है इस पर काला टिका लगाया करो

"इसलिये कि कहीं किसी की नज़र ना लग जाए।"

हाये आप की नजर कम खतरनाक है पिताजी, आप तो इसे नजरो से ही चोद दे रहे है

"आए हाय! बेटी तुम्हारी इसी अदा ने तो हमें मार डाला है।"

अब लाला से ना रहा गया। उसने बेती की मादक चूत को आगे झुक के चूम लिया। धीरे धीरे वो उसकी चूत चाटने लगा। रबड़ी के मुंह से अब सिसकारियां निकल रही थी।

इस्स्स..आअआआआअह....इइइइइस्स्स्स्स....उउंहह। लाला की जीभ बेटी की चूत के अन्दर बाहर हो रही थी। ऊऊप्फ....आआआह....पिताआआजी...आह...आइइइइई। बेटी की चूत बुरी तरह रस छोड़ रही थी। उसकी लम्बी मुलायम झांटें भी भीग गयी थी। रबड़ी वासना की आग में उत्तेजित हो के, चूतड़ उचका उचका के अपनी चूत लाला जी के मुंह पे रगड़ रही थी।


सच मर्द हो या कुत्ता बुर चटोरे ही होते है चाटो पिताजी आहे हाये हाये


लाला का पूरा मुंह बेटी की चूत के रस में सन गया। अब बेटी को चोदने का टाईम आ गया था। लाला ने रबड़ी के टांगें मोड़ के उसकी छाती से लगा दी। रबड़ी की चूत उभर आयी थी और मुंह फाड़े लंड का इन्तज़ार कर रही थी। लाला ने अपने फौलादी लंड का सुपाड़ा बहु की खुली हुई चूत के मुंह पे टिका दिया और धीरे धीरे दोनों फांकों के बीच में रगड़ने लगा। रबड़ी से अब और सहन नहीं हो रहा था।

"इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स.... पिताजी क्यों तंग कर रहे हैं? आपका वो तो हमारी उसका रस पीना चाहता है ना। अब डाल भी दीजिये अन्दर"। रबड़ी का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था। लंड का मोटा सुपाड़ा रबड़ी की चूत के दरवाज़े पे दस्तक दे रहा था। जो कभी उसकी माँ की चुत मे सैर करता था

" बेटी तुम्हारी चूत तो बिल्कुल डबल रोटी की तरह फूली हुई है।"

"आपको अच्छी लगी?"

"बहुत।"

"तो फिर ले लीजिये ना..अब डालिये ना प्लीज़..." रबड़ी अपने चूतड़ उचका के लंड अपनी चूत में लेने की कोशिश करते हुए बोली। लाला ने लंड के सुपाड़े को बेटी की चूत की दोनों फांकों के बीच के कटाव में थोड़ा और रगड़ा और फिर हल्का सा धक्का लगा दिया। चूत इतनी गीली थी कि लंड का मोटा सुपाड़ा गुप्प से अन्दर घुस गया।

"आऐइइइई.......आआह पिता जी.....आआह......आअआपका तो बहुत.....आआ मोटाआआआआ है। मैं मर जाउंगी।"

"कुछ नही होगा बेटी।" लाला ने बेटी की चूचिआं मसलते हुए इस बार एक करारा सा धक्का लगा के एक चौथाई लंड अन्दर कर दिया।

"ऊई...माआं...आआअह....आआआइइइइइइई इइइइइइइइइइइइइई........ आआहहहह। पिताजी आप तो आह... हमें चोद रहे हैं। इस्स्स्स..."

"अच्छा नहीं लग रहा तो निकाल लें बेटी।"

"बहुत अच्छा लग रहा है...आअआह.......ऊऊह....आपने तो कहा था की आप चोदेंगे नहीं।"

"कहां चोद रहें हैं बेटी? इसे सिर्फ़ तुम्हारी चूत का रस पिला दें। बिना चूत में जाए ये रस कैसे पियेगा?
लाला ने लंड को सुपाड़े तक बाहर खींचा और फिर एक ज़बर्दस्त धक्का लगा दिया। इस बार करीब ८ इन्च लंड रबड़ी की चूत में समा गया। रबड़ी का दर्द के मारे बुरा हाल था।

"आआआआआआआआआ.................प्लीईईईईईईईईईईज....आआआह. आह.आह...आह ।आह आपका तो बहुत लम्बा है पिताजी। आइइअआह..... हम नहीं झेल पाएंगे। अआ.....आह.....अभी और कितना बाकी है? आह।"

"बस बेटी अब तो बहुत थोड़ा सा ही बाहर है।"

"जी हमारी तो फट जाएगी।"

"नहीं फटेगी बेटी। तुम तो ऐसे कर रही हो जैसे ज़िन्दगी में पहली बार लंड तुम्हारी चूत में जा रहा हो।"

"जी मर्द का तो गया है...आआआह......... लेकिन गधे का तो आज पहली बार जा रहा है.... मॉ...आआआआह"

जिस मॉ को पुकार रही है उसकी भी चुत फाड कर तुझे पैदा किया अब तेरी बारी है फड़वा कर पैदा का एक और छिनाल

हाये पिताजी बहुत दर्द कर रहा है निकाल लो हाये मैया मर जाऊँगी


"बस बेटी थोड़ा सा और झेल लो। उसके बाद तो हम निकाल ही लेंगे।"

यह कह कर लाला ने बेटी की चूत के रस में सना हुआ लंड पूरा बाहर खींच लिया और उसकी मोटी मोटी चूचिआं पकड़ के एक बहुत ही ज़ोर का धक्का लगा दिया। इस बार लाला का ११ इन्च का मूसल बेटी की चूत को बड़ी बेरहमी से चीरता हुआ पूरा जड़ तक अन्दर समा गया। लाला के सांड जैसे बड़े बड़े टट्टे रबड़ी के ऊपर की ओर उठे हुए विशाल चूतड़ों से चिपक गये और गांड के छेद में गुद गुदी करने लगे।

"आआआइइइइइइइई......आअह...आअह... पिताजीईईईई........इस्स्स्स्स......मर गयी मैं.. ऊह, सचमुच फट गई हमारी। प्लीज़ हमें छोड़ दीजिये। आपका तो किसी गधी के लिये ही ठीक है।"

"मेरी जान, अब इतना क्यों चिल्ला रही हो? तुम्हारी चूत ने तो हमारा पूरा लंड खा लिया है।"

"जी इतनी बेरहमी से आपने अन्दर जो पेल दिया। इइइस्स्स्स्स्स्स्स...."

लाला ने हल्के हल्के धक्के लगाने शुरु कर दिये। रबड़ी बिल्कुल मस्त हो गयी थी।

"आआअह्ह्ह... इस्स्स्स्स.....उआआआह....पिताजी...आअह आप तो हमें सचमुच ही चोदने लग गये।"

"कहो तो ना चोदें बेटी।"

"सच आप बहुत ही खराब हैं। औरत को फुसला के चोदना तो कोई आपसे सीखे। अपना गधे जैसा वो पूरा हमारे अन्दर पेल दिया, और अब कह रहे हैं, कहो तो ना चोदें। इसे चोदना नहीं तो और क्या कहते हैं?"

"तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा बेटी?" लाला ने आधा लंड बाहर निकाल के फिर जड़ तक पेलता हुआ बोला।
"आआई...इस्स्स्स। जी बहुत अच्छा लग रहा है। काश आप हमारे पिता ना होते ! तो हम आज जी भर के आपसे चुदवाते॥"

"देखो बेटी तुम्हें मज़ा आ रहा है और हमने भी ऐसी जवान और खूबसूरत लड़की को कभी नहीं चोदा। सिर्फ़ आज चोद लेने दो।"

"सच आप बहुत चालाक हैं। अभी थोड़ी देर पहले आपने हमें बेटी कहा था, औरा अब अपनी बेटी को ही चोद रहे हैं? बोलिये अब भी हम आपकी बेटी हैं ? "

"हां बेटी , तुम अब भी हमारी बेटी हो और हमेशा हमारी बेटी रहोगी।" लाला एक ज़ोर का धक्का मारता हुआ बोला।

"आआआह। ।अच्छाआआआ जी! अपनी बेटी को चोदते हुए आपको ज़रा भी शरम नही आ रही? लेकिन पिताजी आपका बहुत मोटा है। हमारी उसको चौड़ी कर देगा। चौड़ी हो गयी तो ढोडे को पता लग जाएगा। हम कहीं के नहीं रहेंगे की शादी से पहले हाये एक दिन मे कितना चुद गये।"

"किसको चौड़ी कर देगा बेटी?"

"हटिये भी आपको पता तो है। हमारी जिस चीज़ में ये मूसल घुसा हुआ है उसी को तो चौड़ी करेगा ना।" रबड़ी लाला के लौड़े को अपनी चूत से दबाती हुई बोली।

"कितनी नादान हो बेटी, इतनी जल्दी थोड़े ही चौड़ी हो जाती है। अगर हम तुम्हें दो तीन साल चोदें तो शायद चौड़ी हो जाए।"

"फिर ठीक है, अब तो आपने चोदना शुरु कर ही दिया है तो आज चोद लीजिये। लेकिन आज के बाद फिर कभी नहीं चोदने देंगे। ये पाप है। इन्होनें पूछा चौड़ी कैसे हो गयी तो कह देंगे खेत में जाते वक्त एक गधे ने हमें ज़बर्दस्ती चोद दिया। वैसे ये बात झूठ तो है नहीं। इस वक्त हमें एक गधा ही तो चोद रहा है। "

"सच बेटी तुम बातें बहुत मीठी मीठी करती हो॥ आज तो जी भर के चोद लेने दो। ऐसी चूत चोद के तो हम धन्य हो जाएंगे। लेकिन बेटी तुम्हें चुदाई सिखाना भी हमारा धर्म है। बोलो सीखोगी न?"

"जी, आप सिखाइये, हम ज़रूर सिखेंगे।"

"देखो बेटी चुदवाते वक्त औरत को कोई शरम नहीं करानी चाहिये। बस खुल के रंडी की तरह चुदवाओ।"

"हुमें क्या पता रंडिआं कैसे चुदवाती हैं।"

" बेटी रंडिआं चुदवाते वक्त कोई शरम नहीं करती और ना ही अपनी जुबान पे काबू रखती हैं। रंडी सिर्फ़ एक औरत की तरह चुदवाती हई, मर्द से पूरा मज़ा लेती है और मर्द को पूरा मज़ा देती है। बोलो बेटी चोदें तुम्हें रंडी की तरह?"

"आअआ...जी, चोदिये हमें बिल्कुल रंडी बना के चोदिये। इइइइइस्स्स्स्स.... आज ये चूत आपकी है।" रबड़ी ने अब शर्माने का नाटक बन्द कर दिया और बेशर्मी के साथ चोदने की बातें करने लगी।

"शबाश बेटी! ये हुई ना बात, आज हम तुम्हारी चूत की प्यास बुझा के ही दम लेंगे। तब तक चोदेंगे जब तक तुम्हारा दिल नहीं भर जाता।"

"जी हम कब मना कर रहे हैं। चोदिये ना।" रबड़ी चूतड़ उचकाती हुई बोली अब लाला बेटी के नंगे बदन को और मांसल जांघों को सहलाने लगा। धीरे धीरे रबड़ी का दर्द दूर होता जा रहा था और उसकी चूत ने फिर से पानी छोड़ना शुरु कर दिया था। लाला बेटी के रसीले होंठों को चूसने लगा और धीरे धीरे अपना लंड बेटी की चूत के अन्दर बाहर करने लगा। रबड़ी को अब बहुत मज़ा आ रहा था। गधे जैसे लंड से चुदवाने में औरत को कैसा आनंद मिलता है आज उसे पता चला। र लाला के मोटे लौड़े ने रबडी की चूत बुरी तरह चौड़ी कर रखी थी।

"दर्द हो रहा हो तो बाहर निकाल लें बेटी?"

"नहीं नहीं पिता जी हमारी चिन्ता ना किजिये बस हमें इतना चोदिये कि आपके लंड की बर्सों की प्यास शान्त हो जाए। आपके लंड की प्यास शान्त हो जाए तो हमें बहुत खुशी होगी।" रबड़ी चूतड़ उचका के लाला का लौड़ा गुप्प से अपनी चूत में लेती हुई बोली। लाला ने बेटी की टांगों को और चौड़ा किया और हल्के हल्के धक्के लगने लगा। वो नहीं चाहता था की उसका मूसल बेटी की नाज़ुक चूत को फाड़ दे। एक बार बेटी की चूत को उसके लम्बे मोटे लौड़े को झेलने की आदत पर जाए फिर तो वो खूब जम के चोदेगा। रबड़ी ने लाला की कमर में टांगें लपेट ली और अपने पैर की एड़िओं से उनके चूतड़ को धक्का देने लगी। लाला समझ गया की रबड़ी की चूत अब चुदाई के लिये पूरी तरह तैयार है। अब उसने बेटी की चूचिआं पकड़ के लंड को सुपाड़े तक बाहर निकाल के जड़ तक अन्दर पेलना शुरु कर दिया। बेटी की चूत इतनी ज़्यादा गीली थी की पूरे कमरे में बेटी की चूत से फच...फच...फच...फच...फच...फच...फच....फच.....और मुंह से आअआह... इइस्स्स्स..... आऐइइई.... आआह्ह्ह्ह.... आआआअआ.... उइइइइइइई.. आह्ह्ह.... आह.... आह.... आह.... आह का मादक संगीत निकल रहा था।

" बेटी ये फच....फच.... की आवाज़ें कहां से आ रही हैं?" लाला रबड़ी को चिढ़ाता हुआ बोला।

"इस्स....अआह....पिताजी ये तो अपने मूसल से पूछिये।"

"उस बेचारे को क्या पता बेटी?"

"उसे नहीं तो किसे पता होगा पिताजी। इस्स्स....ज़ालिम कितनी बेरहमी से हमारी चूत को मार रहा है, नीचे देखे इसने कितनी बेरहमी से बेचारी चुत को फैला रखा है।"

"तुम्हारी चूत भी तो बहुत ज़ालिम है बेटी। कितने दिनों से हमारी नींद हराम कर रखी थी। ऐसी चूत को चोदने में रहम कैसा? सच इसे तो आज हम फाड़ डालेंगे।" लाला ज़ोर ज़ोर से धक्के मारता हुआ बोला।

"हाय ! पिताजी, हमने कब कहा रहम कीजिये। औरत की चूत के साथ ज़िन्दगी में सिर्फ़ एक ही बार रहम किया जाता है और वो भी अगर चूत कुंवारी हो। उसके बाद अगर रहम किया तो फिर चूत दूसरा लंड ढुंढने लगती है। औरत की चूत तो बेरहमी से ही चोदी जाती है। अगर हमारी चूत ने आपको इतना तंग किया है तो फाड़ डालिये ना इसे। कौन रोक रहा है?"

रबड़ी तो अब बिल्कुल रंडिओं की तरह बातें कर रही थी और हर धक्के का जबाब अपने चूतड़ ऊपर उचका के दे रही थी। अब तो बाप और बेटी के अंगों का मिलन हवा में हो रहा था। लाला जी के धक्के से आधा लंड बेटी की चूत में जाता और बेटी के धक्के से बाकी बचा हुआ लंड जड़ तक बेटी की प्यासी चूत में घुस जाता। रबड़ी ने शर्म हया बिल्कुल छोड़ दी थी और खुल के चुदवा रही थी। फच.... फच....फच.... फच.... अआ....आआह। ..इइइइस्स्स्स.........ऊऊइइइमआं ...फच...फच....... बेटी की चूत से इतना रस निकल रहा था कि उसकी मुलायम झांटें भी चूत के रस से चिपचिपा गयी थी। ससुर जी का मूसल जब जड़ तक बिटिया रानी की चूत में जाता और जब बेटी और बाप की झांटों का मिलन हो जाता तो लाला जी की झांटें भी बे बेटी की चूत के रस में गीली हो जाती। अब लाला पूरा ११ इन्च का लंड बाहर निकाल कर जड़ तक बेटी की चूत में पेल रहा था। रबड़ी ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि इस उम्र में भी लाला जी का लंड जबानो से ज़्यादा तगड़ा और सख्त होगा और उसकी जवान चूत की ये हालत कर देगा। उसकी चूत के चारों तरफ़ चूत के रस में सनी झांटों तो मानो एक दलदल बन गया था। रबड़ी समझ गयी की लाला जी चुदाई की कला में बहुत माहिर थे। हों भी क्यों ना। ना जाने कितनी लड़किओं को चोद चुके थे। अब रबड़ी से रहा नहीं गया और उसने पिता जी से पूछ ही लिया,

"आआहह......इस्स्स......आ....पिता जी, सच सच बताइये, आज तक आपने कितनी लड़किओं को चोदा है?"

"क्यों बेटी तुम ये क्यों पूछ रही हो?" लाला बेटी के विशाल चूतड़ों को सहलाता हुआ बोला।

"आप जिस तरह हमें चोद रहे हैं वैसे तो कोई काम कला में माहिर आदमी ही चोद सकता है। और अगर आपने ज़िन्दगी में सिर्फ़ सेठनी माँ और मां को ही चोदा होता तो आप काम कला में इतने माहिर नहीं हो सकते थे।"

"क्यों बहुत मज़ा आ रहा है बेटी?"

"जी बहुत! काका ने भी हमें ऐसे नहीं चोदा।"

" तुम कितने मर्दों से चुदवा चुकी हो बहु?"

"धत! आप तो बड़े वो हैं पिताजी। बताइये ना प्लीज़। कितनी औरतों को चोद चुके हैं?"

लाला बेटी के रसीले होंठों को चूमता हुआ बोला, "देखो बेटी, तुम्हारी सेठानी मां तो अपनी चूत देती नहीं थी। हमारी जवानी भी वैसे ही बर्बाद हो रही थी। हमें लाचार हो कर अपने बदन की प्यास बुझाने के लिये खेतों में काम करने वाली औरतों का सहारा लेना पड़ा,

"हाय....तो आपने खेतों में काम करने वाली औरतों को चोदा? कितनों को चोदा?" रबड़ी ज़ोर से चूतड़ उचका के लाला जी का लंड अपनी चूत में पेलते हुए बोली।

"ये ही कोई बीस औरतों को,उसमे तुम्हारी माँ, मौसी और गाँव की कुछ औरते है।"

"हाय ! बीस को! उनमें से कुन्वारी कितनी थी?"

" बेटी लड़की कुन्वारी हो तो इसका मतलब ये नहीं की उसकी चूत भी कुन्वारी है।"

"जी हमारा मतलब है उनमे से कितनों की चूत कुन्वारी थी।"

"तीन की।"

"सच, फाड़ ही डाली होगी आपके इस मूसल ने।"

"नहीं बेटी ऐसा नहीं है। तुम्हारी सेठानी मां की जो हालत हुई थी उसके बाद से हम बहुत सम्भल गये थे। लेकिन फिर भी बहुत खून खराबा हो गया था। बेचारी थी भी कमसीन साल की, तुमसे से भी छोटी। इतना ध्यान से चोदने के बाद भी तीनों ही बेहोश हो गयी थी।"

"उसके बाद से तो उन्होनें आपसे कभी नहीं चुदवायी होगी।"

"नहीं बेटी उनमें से एक ही ऐसी थी जिसे हमने अगले चार साल तक खूब चोदा।"

"कौन थी वो पिताजी?" रबड़ी जानते हुए भी अन्जान बन रही थी।

"देखो बेटी ये राज़ हम आज सिर्फ़ तुम ही को बता रहे हैं। वो तुम्हारी मां की सगी बहन थी।"

"हाय ! पिताजी आपने मौसी तक को नहीं छोड़ा? चार साल में तो चौड़ी हो गयी होगी उसकी चूत।" रबड़ी अपनी चूत से लाला का लंड दबाते हुए बोली।
"उसे तो सिर्फ़ चार साल चोदा था बेटी, और दो बच्चे दिये लेकिन अगर तुम चाहोगी तो हम तुम्हें ज़िन्दगी भर चोद सकते हैं। अपनी जवानी बर्बाद ना करो"

"बर्बाद क्यों होगी हमारी जवानी। अब आपके हवाले जो कर दी है। ज़िन्दगी भर चोद के तो आप का ये गधे जैसा मूसल हमारी चूत को कुआं बना देगा।" रबड़ी बेशर्मी से चूतड़ उचकती हुई बोली। लाला जी को बेटी को चोदते अब करीब एक घन्टा हो चला था। रबड़ी के पसीने छूत गये थे लेकिन लाला झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था।

अचानक लाला बेटी की चूत से लंड बाहर निकालता हुआ बोला, " बेटी अब हम तुम्हें एक दूसरी मुद्रा में चोदेंगे।"

"वो कैसे पिताजी?" रबड़ी लाला के मोटे, काले, चूत के रस में चमकते हुए लंड का भयन्कर रूप देख के कांप उठी।

"तुमने कुत्ते और कुतिआ को तो चुदाई करते देखा था?"

"जी..."

"बुस कुतिआ बन जाओ। हम तुम्हारी चूत कुत्ते की तरह पीछे से चोदेंगे।"

"हाय ! पिता जी...! अपनी बेटी को पहले रंडी और अब कुतिआ भी बन डाला।"

"कभी कुतिआ बन के चुदवाई हो बेटी?"
हाये काका ने चोदा था
लेकिन आज हम आपकी कुतिआ बनेंगे।" ये कह कर रबड़ी कुतिआ बन गयी। उसने अपनी छाती बिस्तर पे टिका दी और घुटनों के बल हो कर टांगें चौड़ी कर ली और बड़े ही मादक ढंग से अपने विशाल चूतड़ों को ऊपर की ओर उचका दिया। इस मुद्रा में बेटी के विशाल चूतड़ों और मांसल जांघों के बीच में से मुलायम झांटों के बीच बहु की फूली हुई चूत साफ़ नज़र आ रही थी। रामलाल के मोटे लंड की चुदाई के कारण चूत का मुंह खुल गया था और बहुत ही सूजी हुई सी लग रही थी। बेटी के गोरे गोरे मोटे मोटे चूतड़ और उनके बीच से झांकता गुलाबी छेद देख कर तो लाला के मुंह में पानी आ गया। लाला से ना रहा गया। उसने अपने मूसल का सुपाड़ा बेटी की चूत के खुले हुए मुंह पे टिका दिया और एक ज़बर्दस्त धक्का लगा दिया। चूत इतनी गीली थी कि एक ही धक्के में ११ इन्च लम्बा लंड जड़ तक बेती की चूत में समा गया।

"आआआआह्ह्ह्ह्ह.....उइइइइइइई माआआआआ...... हाय राम..पिता जी..... मार डाला। इस्स्स्स्स्स्स............कुत्ते भी इतने ही बेरहम होते हैं क्या?"

"हां मेरी जान, तभी तो कुतिआ को मज़ा आता है।"

लाला ने अब बेटी के चूतड़ पकड़ के ज़ोर ज़ोर से धक्के मारना शुरु कर दिया था। बेटी भी चूतड़ उचका उचका के लाला जी के धक्कों का जबाब दे रही थी। इस मुद्रा में बेटी के मुहं और चूत दोनों ही और भी ज़्यादा आवाज़ कर रहे थे। बेटी अपने चूतड़ पीछे की ओर उचका उचका के लाला जी के लंड का स्वागत कर रही थी। बेटी की चूत का रस अब लाला के सांड की तरह लटकते टट्टों को पूरी तरह गीला कर चुका था। रबड़ी अब तक दो बार झड़ चुकी थी लेकिन लाल झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था।
रबड़ी ने अपने चूतड़ ज़ोर से पीछे की ओर उचका के लाल का मूसल जड़ तक अपनी चूत में पेलते हुए पूछा, "पिताजी आप हमें कुतिआ बना के चोद रहे हैं, कहीं चुदाई के बाद कुत्ते की तरह आपका लंड हमारी चूत में तो नहीं फंसा रह जाएगा?"

"फंसा रह भी गया तो क्या हो जाएगा बेटी?"

"हमें तो कुछ नहीं पिताजी, लेकिन यदि मां दुकान पर आके आपको हमारे ऊपर कुत्ते की तरह चढ़ा हुआ देखेंगी और आपका मूसल हमारी चूत में फंसा हुआ देखेंगी तो आपके पास क्या जवाब होगा?"

"कह देंगे की एक कुत्ता तुम्हारी बेटी को चोदने की कोशिश कर रहा था। इससे पहले की वो तुम्हारी बेटी की चूत में अपना लंड पेलता, उस कुत्ते से बचाने के लिये हमें अपना लंड बेटी की चूत में पेलना पड़ा। आखिर जो कुछ किया बेटी को बचाने के लिये ही तो किया।"

"अच्छा जी! और अगर वो पूछें की बेटी नंगी कैसे हो गयी तो?"

"तो क्या? कह देंगे बेटी मूतने जा रही थी कि एक बहुत बड़ा कुत्ता बेटी को नंगी देख के खिड़की से खूद के अन्दर आ गया और उसे गिरा के उसके ऊपर चढ़ कर चोदने की कोशिश करने लगा।"

"और वो पूछें की आपको अपना लंड हमारी चूत में पेलने की क्या ज़रूरत थी, तो?"

"अरे भई ये तो बहुत सिम्पल बात है। अगर बेटी की चूत में लंड पेल के हमने बेटी का छेद बन्द ना किया होता तो वो कुत्ता उस छेद में अपना लंड पेल देता। हमने तो सिर्फ़ अपने घर की इज़्ज़त बचा ली।"

"हां... आपके पास तो सब चीज़ों का जबाब है।" रबड़ी अपने चूतड़ उचका के लाला का पूरा लंड अपनी चूत में लेती हुई बोली।

अब लाला ने रबड़ी के चूतड़ पकड़ के ज़ोर ज़ोर से धक्के मारना शुरु कर दिया। उसने बेटी के गोरे गोरे चूतड़ों को दोनों हाथों में पकड़ के फैला दिया था ताकि उनके बीच में गुलाबी रंग के छोटे से छेद के दर्शन कर सके। आखिर बेटी के इन विशाल चूतड़ों ने ही तो उसकी नींद हराम कर रखी थी। बेटी का गुलाबी छेद देख कर उसके मुहं में पानी आ रहा था। उसका मन कर रहा था की नीचे झुक के उस गुलाबी छेद को चूम ले। लाल जानता था कि यहां बेटी की गांड मारना खतरे से खाली नहीं था। बेटी का चिल्लाना सुन के पूरा मुहल्ला जमा हो सकता था। अगर उसका मूसल नहीं झेल पायी और बेहोश हो गयी तुब तो और भी मुसीबत हो जाएगी। लेकिन उसने सोच लिया था कि वो बेटी को खेतों में ले जा के उसकी गांड ज़रूर मारेगा।

उधर रबड़ी बड़ी अच्छी तरह समझ रही थी कि जिस तरह ससुर जी ने उसके चूतड़ों को फैला रखा था, उन्हें उसकी गांड के दर्शन हो रहे होंगे। उसके सेक्सी चूतड़ों को देख के मर्द के दिल में क्या होता है वो भी वो अच्छी तरह जानती थी। वो मन ही मन सोच रही थी कि लाला जी कभी ना कभी तो उसकी गांड ज़रूर मारेंगे। इतना मोटा और लम्बा मूसल तो उसकी गांड फाड़ ही डालेगा। लाल से अब और नहीं रहा गया। उसने अपना ११ इन्च का लंड बेटी की चूत से बाहर खींच लिया और नीचे झुक के अपना मुंह बेटी के फैले हुए विशाल चूतड़ों के बीच में दे दिया। लाला पागलों की तरह बेटी की गांड के गुलाबी छेद को चाटने लगा और अपनी जीभ कभी कभी छेद के अन्दर घुसेड़ देता।

"इस्स्स्स.........आआआह.......आआअहहहह.........इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स पिता जी ये आप क्या कर रहे हैं? वहां तो गंदा होता है।"

"चुदाई के खेल में कुछ गंदा नहीं होता । तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा बहु?"

"जी अच्छा तो बहुत लग रहा है, लेकिन...."

"लेकिन क्या? मज़ा तो आ रहा है ना? सच तुम्हारी गांड बहुत ही स्वादिष्ट है।"

"हटिये भी पिताजी, वो कैसे स्वादिष्ट हो सकती है? वहां से तो..."

"हमें पता है बहु वहां से तुम क्या करती हो। आज तक इस छेद से तुमने सिर्फ़ बाहर निकालने का काम किया है, कुछ अन्दर नहीं लिया।"

"हाय ! उस छेद से अन्दर क्या लिया जाता है?"

" बेटी जब ये लंड तुम्हारे पीछे वाले छेद में जाएगा तुब देखना कितना मज़ा आएगा।"

"हाय ! पीछे वाले छेद में भी लंड डाला जाता है क्या?" रबड़ी बनती हुई बोली।

"हां बेटी, औरत के तीन छेद होते हैं और तीनों ही चोदे जाते हैं। औरत की सिर्फ़ चूत ही नहीं गांड भी मारी जाती है। औरत को मर्द का लंड भी चूसना चहिये। जिस औरत के तीनों छेदों में मर्द का लंड ना गया हो वो अपनी जवानी का सिर्फ़ आधा ही मज़ा ले पाती है।"

"बाप रे ! ये गधे जैसा लंड उस छोटे से छेद में कैसे जा सकता है? सच ये तो हमारे छेद को फाड़ ही डालेगा। ना बाबा ना हमें नहीं लेना ऐसा मज़ा।"

"अरे बेती इतना घबराती क्यों हो? हम तो सिर्फ़ तुम्हारे इस गुलाबी छेद को प्यार कर रहे हैं, तुम्हारी गांड तो नहीं मार रहे।"

"आअहह बहुत मज़ा आ रहा है। आअह...आआइइइइई... जीभ अन्दर डाल दीजिये, प्लीज़....."

लाला बड़ी तेज़ी से अपनी जीभ बेटी की गांड के अन्दर बाहर कर रहा था और उस गुलाबी छेद के चारों ओर चाट रहा था। रबड़ी अब और नहीं सह पायी और एक बार फिर झड़ गयी।

"पिता जी हम तो अब तक तीन बार झड़ चुके हैं और आप हैं की झड़ने का नाम ही नहीं ले रहे। अब प्लीज़ हमें चोदिये और हमारी प्यासी चूत को अपने वीर्य से भर दीजिये।"

"ठीक है बेटी जैसा तुम चाहो। आज पहले तुम्हारी प्यासी चूत को तृप्त कर दें। बाद में तो तुम्हें काम कला के कई गुर सिखाने हैं।"

"ठीक है गुरु जी! अब तो प्लीज़ हमारी चूत चोदिये और इसकी बरसों की प्यास बुझा दीजिये। हम कहीं भाग तो रहे नहीं, रोज़ आप से चुदाई के नये नये तरीके सीखेंगे।"

लाला ने बेटी की गांड में से अपनी जीभ निकाली और फिर से अपने लंड का सुपाड़ा कुतिआ बनी बेटी की फूली हुई चूत पे टिका दिया और एक ही धक्के में फच की आवाज़ के साथ जड़ तक पेल दिया। अब लाला रबड़ी के दोनों चूतड़ों को पकड़ के ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा। करीब बीस मिनट तक बेटी की चूत की अपने मूसल से पिटाई करने के बाद बरसों से अपने बाल्स में इकट्ठा किया हुआ वीर्य बेटी की चूत में उड़ेल दिया। बेटी को तो जैसे नशा सा आ रहा था। उसकी चूत पिता जी के गरमा गरम वीर्य से लबालब भरी गयी थी और अब तो वीर्य चूत में से निकल कर बिस्तर पे भी टपक रहा था। लाला ने बेटी की चूत में से अपना मूसल बाहर खींचा और बेटी के बगल में लेट गया। बेटी भी निढाल हो के बिस्तर पे लुढ़क गयी थी। तीन घन्टे से चल रही इस भयन्कर चुदाई से उसके अंग अंग में मीठा मीठा दर्द हो रहा था।

लाला ने बहु से पूछा, " बेटी, कुछ शान्ति मिली, मजा आया?"

"जी, आज तो तृप्त हो गयी।"

"चलो उठो, तुम्हारी मां इतजार कर रही होगी, नहा धो लो, कहीं उन्हें शक ना हो जाए।"

"जी ठीक है।"

रबड़ी बिस्तर से उठी और गिरते गिरते बची। वीर्य उसकी चूत से निकल के जांघों पे बह रहा था। उसकी टांगें कांप रही थी। लाला ने जल्दी से उठ के बेटी को सहारा दिया। बेटी तो ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। लाला बेटी को ले के बाथरूम में गया और उसे एक स्टूल पे बैठा दिया। उसके बाद उसने बेटी की टांगें फैला दी और गर्म पानी से चूत की सफ़ाई करने लगा। बेटी की मुलायम झांटें लाला के वीर्य में सनी हुई थी। काका ने उसकी कुंवारी चूत की इतनी दुर्दशा ना की थी जितना आज लाला जी के मूसल ने की, चूत साफ़ करने के बाद लाला ने रबड़ी के ऊपर पानी डाल के उसे नहलाना शुरु कर दिया। ठन्डा गर्म पानी पड़ने से रबड़ी के शरीर में जान आई। रबड़ी ने भी लाला जी के लंड को पानी से साफ़ किया जो उसकी चूत के रस में बुरी तरह सना हुआ था। इस तरह बाप और बेटी ने एक दूसरे को नहलाया।
 

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