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Awesome update.प्रेम तपस्या
( रहस्य और रोमांच से ओत प्रोत एक अविस्वशनीय, अनोखी प्रेम कथा )
दोनों में काफी देर तक इस बात को लेकर चर्चा होती रही...और फिर दोनों के बीच ख़ामोशी छा गयी। ये ख़ामोशी कही दोनों के जीवन में आने वाले किसी तूफ़ान का संकेत तो नहीं ?
उसके बाद साधना ड्राइवर के साथ वापिस कानपूर लौट आयी। ऐसे ही लगभग एक महीना निकल गया। राहुल ने साधना ग्रुप ऑफ़ कम्पनीज का आर्डर समय पर पूरा कर दिया था। जिससे राहुल की कंपनी को काफी मुनाफा हुआ। इस ख़ुशी में राहुल ने आखिर एक बार फिर से कोसानी जाने का प्लान बनाया। जब साधना ने ये सुना तो वो ख़ुशी से झूम उठी।
"साधना, हम कल कोसानी घूमने चलेंगे" राहुल ने कहा।
"क्या...सच में ? " साधना ने खुश होते हुए पूछा।
"हाँ...इस बार बिलकुल पक्का " राहुल ने उसकी शंका पर पूर्ण विराम लगाते हुए कहा।
अगले दिन सुबह ही दोनों जाने के लिए तैयार हो गए और कार में बैठ गए। पिंक साड़ी में साधना का हुस्न बिजलियाँ गिरा रहा था। राहुल सुध बुध भूल कर उसे ही एकटक देखने में खो गया।
" ऐसे क्या देख रहे हो ? चलना नहीं है क्या ? " साधना ने उसकी तन्द्रा तोड़ते हुए कहा।
" आज तुम बहुत सुन्दर लग रही हो, कसम से " राहुल उसकी तारीफ किये बिना नहीं रह पाया।
वह जोर से खिलखिला कर हंस दी। तभी उसकी नज़र साइड शीशे पर पड़ी। जिसमे वो बेहद खूबसूरत दिखाई दे रही थी। पिंक कलर की साड़ी उस पर बहुत सुन्दर लग रही थी, ऊपर से इस ख़ुशी ने उसके चेहरे की सुंदरता को दुगुना कर दिया था। अचानक ही उसके मुरझाते चेहरे पर गजब का निखार आ गया था। ख़ुशी से लबरेज़ होती हुयी, उसकी ख़ुशी का तो आज ठिकाना ही नहीं था।
सच ही कहा गया है की किस्मत के खेल निराले होते हैं। कब, किसकी किस्मत पलटा मार जाये, कहा नहीं जा सकता। ये किस्मत ही तो होती है जो एक रंक को राजा और राजा को रंक बना देती है। मेहनत अपनी जगह पर है और किस्मत अपनी जगह। साधना भी राहुल के साथ शादी होने के बाद खुद को बहुत खुश नसीब समझ रही थी।
अभी दोनों निकल ही रहे थे की तभी राहुल के मोबाइल पर किसी का कॉल आ गया तो वह उससे बात करने में व्यस्त हो गया। कॉल ख़तम होने के बाद उसके चेहरे पर कई तरह के भाव थे।
" क्या हुआ ? किसका फ़ोन था ? " साधना ने उसे थोड़ा चिंतित देख कर पूछा।
"वो..साधना...दिल्ली से फ़ोन था, साधना ग्रुप ऑफ़ कंपनी ने मेरे काम से खुश हो कर मुझे एक करोड़ का नया आर्डर दे रही है, उसी सिलसिले में उन्होंने बात करने के लिए मुझे आज दिल्ली हेड ऑफिस बुलाया है " राहुल ने वजह बताई।
" और कोसानी जाने का फैसला ? " साधना ने प्रश्न वाचक दृष्टि से पूछा।
" वो, जाना बहुत जरुरी है...कोसानी हम फिर कभी चलेंगे साधना " राहुल ने हिचकते हुए कहा।
" हर बार का तुम्हारा ऐसा ही रहता है, जब भी मेरी ख़ुशी का पल आता है तो ये साधना कंपनी बीच में न जाने कहाँ से मेरी खुशियों में आग लगाने आ जाती है, लेकिन मुझे जाना है इस बार, क्या तुम बाद में उनसे नहीं मिल सकते ? " साधना ने निराश होकर कहा।
"नहीं साधना, जाना जरुरी है, समझा करो "
"पहले वाले राहुल और शादी के बाद वाले राहुल में कितना फर्क है...जिस राहुल को मैं जानती थी, वो शायद कही पैसे की चकाचौंध में खो सा गया है...मैं हर बार एक नए विश्वास और उमंग के साथ तैयार होती हु और हर बार मेरा विश्वास टूट जाता है...कहने के लिए तो ये बहुत छोटी छोटी बाते हैं, लेकिन इन्ही छोटी छोटी बातो से किसी का भरोसा टूटता है, और जब विश्वास टूटता है तो दिल में कितना दर्द, कितनी तकलीफ होती है, मैं बता नहीं सकती " साधना ने दुखी मन से कहा।
" मैं मजबूर हूँ साधना, बिज़नेस भी तो जरुरी है, मैं परिवार को जिस हालात से निकाल कर लाया हूँ, दुबारा वैसे हालात नहीं बनने देना चाहता, इस दुनिया में पैसा ही सब कुछ है, ये मैंने कई बार देखा है " राहुल ने समझाने की कोहिश की।
लेकिन इस बार साधना जाने की जिद पर अड़ गयी। कुछ देर तक दोनों के बीच गहन ख़ामोशी छा गयी। राहुल अपने पास आये इस सुनहरी मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहता था लेकिन वो साधना को दुखी भी नहीं देख पा रहा था।
"ठीक है, अगर तुम्हे जाना ही है तो ये गाड़ी ले जाओ, मैं ड्राइवर को बोल देता हु " राहुल ने बीच का रास्ता निकाला।
"नहीं, मैं बस से जाउंगी " साधना ने जवाब दिया।
"ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी "
राहुल दिल्ली निकल गया और साधना बस से कोसानी के लिए रवाना हो गयी। ड्राइवर ने उसे बस स्टैंड तक छोड़ दिया था। बस में बैठे हुए वो अपनी जिंदगी के बारे में सोचती जा रही थी।
उसने अपना ध्यान बाहर की तरफ लगा दिया। चढ़ते, उतरते पहाड़ी रास्तो पर चलते हुए उसके मन में अनेको भाव आ जा रहे थे। बाहर से बहुत ठंडी हवाएं आ रही थी। पहाड़ियों से टकराकर आती हुयी वे हवाएं बड़ी शीतल थी, जो मन में शीतलता के साथ साथ ख़ुशी का एहसास भी करा रही थी।
शाम होते होते वो कोसानी पहुंच गयी। वहां की जमीन पर कदम रखते ही उसे बेहद अपनापन सा महसूस हुआ। उसने वहां के एक रिसोर्ट में रूम बुक किया और फिर रूम में पहुंच कर सफर की थकान मिटाने हेतु नहाने के लिए बाथरूम में घुस गयी।
चूंकि दिन भर के सफर से वो थक चुकी थी तो डिनर करने के बाद जल्दी ही सो गयी। सुबह उठ कर नहा धोकर फ्रेश होकर वो बाथरूम से बाहर निकल कर बालकनी की तरफ बढ़ गयी।
साधना ने बालकनी तक पहुँचने के लिए फर्श तक लटकते लम्बे, रेशमी पर्दो को सरका दिया। कांच के स्लाइडिंग डोर से बाहर निकलते हुए उसने अपने भीगे बालों के बंधे जूड़े को खोला और बालकनी में आ गयी। वैसे तो इस बालकनी की बाहरी रेलिंग ठोस लकड़ी के लट्ठों से बनी है जिसके बीच की नक्कासी का काफी हिस्सा एकदम खाली और दूरी पर है जहाँ से पतला-दुबला व्यक्ति आसानी से नीचे गिर सकता है। ये बात अलग है की वह पुरानी होने के बावजूद बड़ी मजबूत है फिर भी वहां से खायी को देखना बड़ा ही रोमांच और भय पैदा करता है।
चारों तरफ फैली रंग बिरंगे फूलों की भीनी-भीनी सुगंध उसकी नाक से लेकर रूह तक में अपना अधिकार ज़माने लगी है। बालों से टपकती बूंदों का कंधे को छूना झुरझुरी पैदा कर रहा है, प्राकृतिक रंगो में जड़ा अद्भुत, अविस्मरणीय नज़ारा किसी ख्वाब गाह की तरह है, जो कल्पना से भी परे है। बालकनी के ठीक सामने खामोश चादर में लिपटी मंद-मंद मुस्काती ऊंची पहाड़ियां हैं जो खिले हुए फूलों से समूची लदी हैं। लाल, बैगनी, सफ़ेद, गुलाबी रंगों की छटा ऐसी प्रतीत होती है जैसे किसी कलाकार ने उसे अपने हस्तकौशल की कूची से उकेरा हो, जिसको देखते ही वह अनायास ही ख़ुशी से झूम उठी-
" अहा ! ...कितना सुन्दर दृश्य है ? ...हाऊ मच ब्यूटीफुल ....मैं खो न जाऊं यहाँ ? माय गॉड ! मुझे पहले क्यों नहीं पता था की कोसानी इतना खूबसूरत है ? अगर पता होता तो मैं कब की यहाँ आ गयी होती ? अब कैसे वापिस जाउंगी यहाँ से ?”
अपने दोनों हाथो को फैला कर उसने आंखे बंद कर ली हैं। वह उसे अपने भीतर तक उतारना चाहती है, उसकी खूबसूरती में डूब रही है। कल्पनाओं के अनगिनत चाँद वास्तविकता के आकाश पर जड़े हैं। ऐसा लग रहा है जैसे की वह खुद को ही भूलती जा रही हो। शरीर ढीला पड़ता जा रहा है और पैर जकड़ने लगे हैं। अगर बालकनी की रेलिंग न होती तो वह उड़ कर उन वादियों में घुल गयी होती।
अभी वह अपने बस में नहीं है, उन नज़ारों में गहरे डूबी हुई है की यकायक उसकी आँखों के सामने कुछ टूटी फूटी सफ़ेद काली तस्वीरें घूमने लगी।
एक के बाद एक कई तस्वीरों का उलझा सा जाल है जिसमे कुछ अधूरी, कुछ धुंधली हैं और कुछ बार बार आकर लुप्त हो रही हैं। कई तस्वीरों के सिर्फ नेगेटिव बन कर उभरे हैं। एक अजीब सी बेचैनी होने लगी थी साधना के दिल में। दिल की धड़कने सहसा ही तेज़ होने लग गयी थी। पैरों की जकड़न बढ़ती जा रही थी।
अभी तक जिन मनोहरम दृश्यों का ऑंखें रसपान कर रही थी, अब वही ऑंखें व्याकुल होने लगी थी। अक्सर ऐसा होता है जब आप टेलीविज़न पर कोई फिल्म या वीडियो देख रहे होते हैं और वह आपके दिल को छू जाती है तो वह न चलते हुए भी आपके दिमाग में हलचल मचाये रहती है। कही ये उनमे से तो कुछ नहीं ? साधना तमाम सवालों से खुद ही जूझ रही है लेकिन यह उन सबसे अलग है।
सोचते हुए वह बालकनी में फिजूल की चहल कदमी करने लगी। उसे समझ में नहीं आ रहा था की उसके साथ ये क्या हो रहा है ? इन अजीब सी तस्वीरों से उसका क्या लेना देना है ? और फिर ये उसकी ज़िंदगी का हिस्सा भी नहीं हैं, फिर ये कहाँ से आईं ? और कौन है इन तस्वीरों में ?.. सब कुछ धुंधला धुंधला सा है, कुछ भी तो साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था।
ये कैसी व्याकुलता है ? कैसी अकुलाहट है ? जिसने पल भर में ही ह्रदय की तरंगों का रूप ही बदल दिया ?
Awesome update.
Ek naya mod aa gaya hai rahul edhar business me jyada hi busy ho gaya hai deal to uska bhai bhi kar sakata tha ab saadhna ko drishy aate hai uska natiza nikalta hai ?
o shadhna cosani pahunch gayi uski bachpan ki yaden uske samne aa rahi sayad..idhar rahul paise ka gulaam ban gawa hai kya hota agar ek din time le leta wo khair jane do jo ho raha sab fix hai kismat me pahle se..wonderfull update Anand bhai ji