Romance प्रेम तपस्या ( रहस्य और रोमांच से ओत प्रोत एक अविस्वशनीय, अनोखी प्रेम कथा )

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प्रेम तपस्या
( रहस्य और रोमांच से ओत प्रोत एक अविस्वशनीय, अनोखी प्रेम कथा )

दोनों में काफी देर तक इस बात को लेकर चर्चा होती रही...और फिर दोनों के बीच ख़ामोशी छा गयी। ये ख़ामोशी कही दोनों के जीवन में आने वाले किसी तूफ़ान का संकेत तो नहीं ?

उसके बाद साधना ड्राइवर के साथ वापिस कानपूर लौट आयी। ऐसे ही लगभग एक महीना निकल गया। राहुल ने साधना ग्रुप ऑफ़ कम्पनीज का आर्डर समय पर पूरा कर दिया था। जिससे राहुल की कंपनी को काफी मुनाफा हुआ। इस ख़ुशी में राहुल ने आखिर एक बार फिर से कोसानी जाने का प्लान बनाया। जब साधना ने ये सुना तो वो ख़ुशी से झूम उठी।

"साधना, हम कल कोसानी घूमने चलेंगे" राहुल ने कहा।

"क्या...सच में ? " साधना ने खुश होते हुए पूछा।

"हाँ...इस बार बिलकुल पक्का " राहुल ने उसकी शंका पर पूर्ण विराम लगाते हुए कहा।

अगले दिन सुबह ही दोनों जाने के लिए तैयार हो गए और कार में बैठ गए। पिंक साड़ी में साधना का हुस्न बिजलियाँ गिरा रहा था। राहुल सुध बुध भूल कर उसे ही एकटक देखने में खो गया।

" ऐसे क्या देख रहे हो ? चलना नहीं है क्या ? " साधना ने उसकी तन्द्रा तोड़ते हुए कहा।

" आज तुम बहुत सुन्दर लग रही हो, कसम से " राहुल उसकी तारीफ किये बिना नहीं रह पाया।

वह जोर से खिलखिला कर हंस दी। तभी उसकी नज़र साइड शीशे पर पड़ी। जिसमे वो बेहद खूबसूरत दिखाई दे रही थी। पिंक कलर की साड़ी उस पर बहुत सुन्दर लग रही थी, ऊपर से इस ख़ुशी ने उसके चेहरे की सुंदरता को दुगुना कर दिया था। अचानक ही उसके मुरझाते चेहरे पर गजब का निखार आ गया था। ख़ुशी से लबरेज़ होती हुयी, उसकी ख़ुशी का तो आज ठिकाना ही नहीं था।

सच ही कहा गया है की किस्मत के खेल निराले होते हैं। कब, किसकी किस्मत पलटा मार जाये, कहा नहीं जा सकता। ये किस्मत ही तो होती है जो एक रंक को राजा और राजा को रंक बना देती है। मेहनत अपनी जगह पर है और किस्मत अपनी जगह। साधना भी राहुल के साथ शादी होने के बाद खुद को बहुत खुश नसीब समझ रही थी।

अभी दोनों निकल ही रहे थे की तभी राहुल के मोबाइल पर किसी का कॉल आ गया तो वह उससे बात करने में व्यस्त हो गया। कॉल ख़तम होने के बाद उसके चेहरे पर कई तरह के भाव थे।

" क्या हुआ ? किसका फ़ोन था ? " साधना ने उसे थोड़ा चिंतित देख कर पूछा।

"वो..साधना...दिल्ली से फ़ोन था, साधना ग्रुप ऑफ़ कंपनी ने मेरे काम से खुश हो कर मुझे एक करोड़ का नया आर्डर दे रही है, उसी सिलसिले में उन्होंने बात करने के लिए मुझे आज दिल्ली हेड ऑफिस बुलाया है " राहुल ने वजह बताई।

" और कोसानी जाने का फैसला ? " साधना ने प्रश्न वाचक दृष्टि से पूछा।

" वो, जाना बहुत जरुरी है...कोसानी हम फिर कभी चलेंगे साधना " राहुल ने हिचकते हुए कहा।

" हर बार का तुम्हारा ऐसा ही रहता है, जब भी मेरी ख़ुशी का पल आता है तो ये साधना कंपनी बीच में न जाने कहाँ से मेरी खुशियों में आग लगाने आ जाती है, लेकिन मुझे जाना है इस बार, क्या तुम बाद में उनसे नहीं मिल सकते ? " साधना ने निराश होकर कहा।

"नहीं साधना, जाना जरुरी है, समझा करो "

"पहले वाले राहुल और शादी के बाद वाले राहुल में कितना फर्क है...जिस राहुल को मैं जानती थी, वो शायद कही पैसे की चकाचौंध में खो सा गया है...मैं हर बार एक नए विश्वास और उमंग के साथ तैयार होती हु और हर बार मेरा विश्वास टूट जाता है...कहने के लिए तो ये बहुत छोटी छोटी बाते हैं, लेकिन इन्ही छोटी छोटी बातो से किसी का भरोसा टूटता है, और जब विश्वास टूटता है तो दिल में कितना दर्द, कितनी तकलीफ होती है, मैं बता नहीं सकती " साधना ने दुखी मन से कहा।

" मैं मजबूर हूँ साधना, बिज़नेस भी तो जरुरी है, मैं परिवार को जिस हालात से निकाल कर लाया हूँ, दुबारा वैसे हालात नहीं बनने देना चाहता, इस दुनिया में पैसा ही सब कुछ है, ये मैंने कई बार देखा है " राहुल ने समझाने की कोहिश की।

लेकिन इस बार साधना जाने की जिद पर अड़ गयी। कुछ देर तक दोनों के बीच गहन ख़ामोशी छा गयी। राहुल अपने पास आये इस सुनहरी मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहता था लेकिन वो साधना को दुखी भी नहीं देख पा रहा था।

"ठीक है, अगर तुम्हे जाना ही है तो ये गाड़ी ले जाओ, मैं ड्राइवर को बोल देता हु " राहुल ने बीच का रास्ता निकाला।

"नहीं, मैं बस से जाउंगी " साधना ने जवाब दिया।

"ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी "

राहुल दिल्ली निकल गया और साधना बस से कोसानी के लिए रवाना हो गयी। ड्राइवर ने उसे बस स्टैंड तक छोड़ दिया था। बस में बैठे हुए वो अपनी जिंदगी के बारे में सोचती जा रही थी।

उसने अपना ध्यान बाहर की तरफ लगा दिया। चढ़ते, उतरते पहाड़ी रास्तो पर चलते हुए उसके मन में अनेको भाव आ जा रहे थे। बाहर से बहुत ठंडी हवाएं आ रही थी। पहाड़ियों से टकराकर आती हुयी वे हवाएं बड़ी शीतल थी, जो मन में शीतलता के साथ साथ ख़ुशी का एहसास भी करा रही थी।

शाम होते होते वो कोसानी पहुंच गयी। वहां की जमीन पर कदम रखते ही उसे बेहद अपनापन सा महसूस हुआ। उसने वहां के एक रिसोर्ट में रूम बुक किया और फिर रूम में पहुंच कर सफर की थकान मिटाने हेतु नहाने के लिए बाथरूम में घुस गयी।

चूंकि दिन भर के सफर से वो थक चुकी थी तो डिनर करने के बाद जल्दी ही सो गयी। सुबह उठ कर नहा धोकर फ्रेश होकर वो बाथरूम से बाहर निकल कर बालकनी की तरफ बढ़ गयी।

साधना ने बालकनी तक पहुँचने के लिए फर्श तक लटकते लम्बे, रेशमी पर्दो को सरका दिया। कांच के स्लाइडिंग डोर से बाहर निकलते हुए उसने अपने भीगे बालों के बंधे जूड़े को खोला और बालकनी में आ गयी। वैसे तो इस बालकनी की बाहरी रेलिंग ठोस लकड़ी के लट्ठों से बनी है जिसके बीच की नक्कासी का काफी हिस्सा एकदम खाली और दूरी पर है जहाँ से पतला-दुबला व्यक्ति आसानी से नीचे गिर सकता है। ये बात अलग है की वह पुरानी होने के बावजूद बड़ी मजबूत है फिर भी वहां से खायी को देखना बड़ा ही रोमांच और भय पैदा करता है।

चारों तरफ फैली रंग बिरंगे फूलों की भीनी-भीनी सुगंध उसकी नाक से लेकर रूह तक में अपना अधिकार ज़माने लगी है। बालों से टपकती बूंदों का कंधे को छूना झुरझुरी पैदा कर रहा है, प्राकृतिक रंगो में जड़ा अद्भुत, अविस्मरणीय नज़ारा किसी ख्वाब गाह की तरह है, जो कल्पना से भी परे है। बालकनी के ठीक सामने खामोश चादर में लिपटी मंद-मंद मुस्काती ऊंची पहाड़ियां हैं जो खिले हुए फूलों से समूची लदी हैं। लाल, बैगनी, सफ़ेद, गुलाबी रंगों की छटा ऐसी प्रतीत होती है जैसे किसी कलाकार ने उसे अपने हस्तकौशल की कूची से उकेरा हो, जिसको देखते ही वह अनायास ही ख़ुशी से झूम उठी-

" अहा ! ...कितना सुन्दर दृश्य है ? ...हाऊ मच ब्यूटीफुल ....मैं खो न जाऊं यहाँ ? माय गॉड ! मुझे पहले क्यों नहीं पता था की कोसानी इतना खूबसूरत है ? अगर पता होता तो मैं कब की यहाँ आ गयी होती ? अब कैसे वापिस जाउंगी यहाँ से ?”

अपने दोनों हाथो को फैला कर उसने आंखे बंद कर ली हैं। वह उसे अपने भीतर तक उतारना चाहती है, उसकी खूबसूरती में डूब रही है। कल्पनाओं के अनगिनत चाँद वास्तविकता के आकाश पर जड़े हैं। ऐसा लग रहा है जैसे की वह खुद को ही भूलती जा रही हो। शरीर ढीला पड़ता जा रहा है और पैर जकड़ने लगे हैं। अगर बालकनी की रेलिंग न होती तो वह उड़ कर उन वादियों में घुल गयी होती।

अभी वह अपने बस में नहीं है, उन नज़ारों में गहरे डूबी हुई है की यकायक उसकी आँखों के सामने कुछ टूटी फूटी सफ़ेद काली तस्वीरें घूमने लगी।

एक के बाद एक कई तस्वीरों का उलझा सा जाल है जिसमे कुछ अधूरी, कुछ धुंधली हैं और कुछ बार बार आकर लुप्त हो रही हैं। कई तस्वीरों के सिर्फ नेगेटिव बन कर उभरे हैं। एक अजीब सी बेचैनी होने लगी थी साधना के दिल में। दिल की धड़कने सहसा ही तेज़ होने लग गयी थी। पैरों की जकड़न बढ़ती जा रही थी।

अभी तक जिन मनोहरम दृश्यों का ऑंखें रसपान कर रही थी, अब वही ऑंखें व्याकुल होने लगी थी। अक्सर ऐसा होता है जब आप टेलीविज़न पर कोई फिल्म या वीडियो देख रहे होते हैं और वह आपके दिल को छू जाती है तो वह न चलते हुए भी आपके दिमाग में हलचल मचाये रहती है। कही ये उनमे से तो कुछ नहीं ? साधना तमाम सवालों से खुद ही जूझ रही है लेकिन यह उन सबसे अलग है।

सोचते हुए वह बालकनी में फिजूल की चहल कदमी करने लगी। उसे समझ में नहीं आ रहा था की उसके साथ ये क्या हो रहा है ? इन अजीब सी तस्वीरों से उसका क्या लेना देना है ? और फिर ये उसकी ज़िंदगी का हिस्सा भी नहीं हैं, फिर ये कहाँ से आईं ? और कौन है इन तस्वीरों में ?.. सब कुछ धुंधला धुंधला सा है, कुछ भी तो साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था।

ये कैसी व्याकुलता है ? कैसी अकुलाहट है ? जिसने पल भर में ही ह्रदय की तरंगों का रूप ही बदल दिया ?
Awesome update.
Ek naya mod aa gaya hai rahul edhar business me jyada hi busy ho gaya hai deal to uska bhai bhi kar sakata tha ab saadhna ko drishy aate hai uska natiza nikalta hai ?
 
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o shadhna cosani pahunch gayi uski bachpan ki yaden uske samne aa rahi sayad..idhar rahul paise ka gulaam ban gawa hai kya hota agar ek din time le leta wo khair jane do jo ho raha sab fix hai kismat me pahle se..wonderfull update Anand bhai ji
 
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प्रेम तपस्या
( रहस्य और रोमांच से ओत प्रोत एक अविस्वशनीय, अनोखी प्रेम कथा )

ये कैसी व्याकुलता है ? कैसी अकुलाहट है ? जिसने पल भर में ही ह्रदय की तरंगों का रूप ही बदल दिया ? साधना का मन जब ज्यादा व्याकुल होने लगा तो वह बालकनी से अंदर आ गयी और एकदम बेजान सी होकर सोफे के एक किनारे पर सर रख कर लेट गयी।

लेकिन उन अनजान तस्वीरों की आवा जाही अब भी उसके दिमाग पर जारी थी। दिमाग पर जोर डालने पर भी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। जब सोचते सोचते उसका दिमाग थक गया तो उसने खुद को रिलैक्स करने के लिए रूम में लगे इण्टरकॉम फ़ोन की मदद से एक कप कॉफ़ी के लिए आर्डर कर दिया। और फिर वह जिस तरह से यहां पहुंची या उसने यहां पहुंचने तक जो महसूस किया था, उसकी यादों में खो गयी।

कोसानी का ये सबसे खूबसूरत, पुराना और आरामदायक रिसोर्ट था। आरामदायक और खूबसूरत से मतलब यहां आधुनिक सुविधाओं से नहीं है, बल्कि कहने का तात्पर्य वहां के नैसर्गिक सौंदर्य और उसकी अद्भुत छटा से है। जो इसके चारों तरफ रचा बसा है, जिसे हाथ बढ़ा कर छुआ जा सकता है। आराम पसंद लोग इस रिसोर्ट में बिलकुल नहीं आते थे, यहां तो वही आता है जिसका दिल प्रकृति से जुड़ा हो या फिर डॉक्टर के द्वारा शुद्ध ऑक्सीजन लेने की सलाह दी गयी हो। अगर आसमान से खड़े होकर देखा जाये तो लगेगा की हरे मखमली लिहाफ में कोई बालक दुबक गया है और इन वादियों का आनंद ले रहा है।

साधना कुछ दिन आउटिंग के इरादे से यहां आयी है। वैसे इस जगह के बारे में सबसे पहले उसने एक किताब में पढ़ा था जिसमे यहाँ की अद्भुत सुंदरता के बारे में बताया गया था। बस तभी से साधना के मन में कोसानी आने की तीव्र लालसा पैदा हो गयी थी। कोसानी का जिक्र होते ही उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी होने लगती थी। इस बेचैनी के पीछे क्या वजह है, ये तो वह खुद भी नहीं जानती थी।

अगर प्रकृति के वास्तविक सौंदर्य को मन की आँखों से देखना है तो यही वह जगह है जहां पत्ते पत्ते में रोमांस को महसूस किया जा सकता है। अद्भुत नज़ारों से खुद को रु-ब-रु किया जा सकता है। बिलकुल पहाड़ियों की गोंद में बसा यह छोटा सा क़स्बा अपने अंदर बहुत सी कहानियों को समेटे हुए है। और उस पर भी ये 'साधना रिसोर्ट', जो अधिकांशतः काठ से बना है, इसका आधुनिकीकरण आज भी नहीं हुआ है, फिर भी सबसे सुन्दर जगह है।

अब यहां सुविधाओं के आभाव में ज्यादा लोग नहीं ठहरते। कृत्रिम उपकरणों से दूरी बनाये हुए, पुरानी विरासत को समेटे इसमें अपना ही आकर्षण है। रिसोर्ट मालिक इसकी प्राकृतिक सुंदरता को यूं ही रखना चाहता होगा या फिर इसके पीछे कोई दूसरी वजह भी हो सकती है जिसके चलते इसका अभी तक आधुनिकीकरण नहीं किया गया था। यहां वही आकर ठहरते हैं जो प्रेमी हैं। बहुत सारे प्रेमी जोड़े छुपते छुपाते यहां दिखाई पड़ जायेंगे।

इस कसबे में आने के बाद बेहद संकरे और ढलानदार रास्ते से होते हुए साधना 'साधना रिसोर्ट' तक पहुंची थी। एक तरफ गहरी खाई और उसके सहारे चलते इक्का दुक्का टेम्पो हैं जो यहां तक पहुंचाने को तैयार होते हैं। उसका एक कारण यह भी है कि यहां की ज्यादा सवारियां उन्हें नहीं मिलती इसलिए मुंह मांगे पैसे लेकर ही यहां छोड़ते हैं।

रास्ते भर एक अद्भुत सा रोमांच रहा। जैसे जैसे वह ऊपर कि तरफ बढ़ रही थी वैसे वैसे वहां कि हवा में घुलती जा रही थी। टेम्पो का ड्राइवर भी समझदार और खुश मिज़ाज़ था। रास्ते भर वो कुछ न कुछ बाते करता रहा, उसका बातूनी होना साधना को अच्छा लग रहा था। साधना भी उससे यहां के बारे में सवाल पर सवाल कर रही थी। जिसका जवाब भी वह सटीक से देता था और फिर सर खुजला कर यह भी कहता कि - "मेम साब, शायद ऐसा ही है...यह कहानी या जानकारी पुख्ता है या नहीं, इसका कोई प्रमाण तो नहीं है लेकिन सुना तो यही है। "

उसके इस तरह मासूमियत से बोलने पर कई बार साधना खिलखिला कर हंस पड़ी।

'साधना रिसोर्ट' के सामने टेम्पो, किर्रर्रर्र कि आवाज़ के साथ रुक गया। टेम्पो से उतर कर साधना ने नज़र उठा कर जब रिसोर्ट कि तरफ देखा तो उसे अपने दिल में कुछ अजीब सा महसूस हुआ। उसके दिल में न जाने क्यों लेकिन वहां रहने कि गुदगुदाहट होने लगी।

वह सोचने लगी कि "अब तक मैंने कई बार राहुल के साथ में फाइव स्टार, लक्ज़री होटल्स में जा कर खाना खाया है, कुछ समय बिताया है, मगर कभी ये गुदगुदाहट नहीं हुयी जैसी कि आज हो रही है, शायद यह शोर, शराबे और आडम्बर से दूर है इसलिए ?"

कानपूर कि भागमभाग और उबाऊ जिंदगी से कुछ पल चुरा कर एकांत वास में आना उसने खुद ही चुना है। इसलिए वह यहां सिर्फ खुद के साथ है। राहुल को घूमने फिरने का कोई ख़ास शौक नहीं है। साधना को कभी कभी लगता कि वह तो अपने बिज़नेस के आगे उसे भी छोड़ दे।

दोनों का स्वाभाव एकदम उलट था, साधना, निहायती भावुक और दिल से सोचने वाली तो राहुल उतना ही प्रैक्टिकल। यूं तो कई बार घूमने का प्रोग्राम बना भी लेकिन हर बार कोई न कोई वजह बन ही गयी कि जिसके चलते वह बिज़नेस को नहीं छोड़ पाया। अगर कुछ एक बार वह साधना को लेकर बाहर लंच या डिनर के लिए गया भी तो वहां भी मोबाइल पर ऑफिस का ही काम करने में व्यस्त रहा।

साधना के अंदर यूं तो खालीपन कि शुरुवात होश सँभालते ही हो गयी थी, वह हमेशा कुछ अधूरापन महसूस करती थी..शादी के बाद उसने सोचा कि शायद अब ये खालीपन ख़तम हो जायेगा लेकिन राहुल कि व्यस्तता कि वजह से ये और भी बढ़ गया। साधना चाहती थी रोमांस में डूब जाना, जी भर के प्यार करना और एक यादगार पल बिताना। अपने जीवन साथी, अपने राहुल के साथ जी भर जीना, कभी बर्फ के गोले बना कर बच्चों कि तरह उछालना, तो कभी सर्द हवाओं से ठिठुर कर राहुल कि बाँहों में समां जाना। घंटो बैठ कर एक दूसरे को देखना, और फिर उस छुवन के एहसास को अपने दिल में भर लेना।

ऐसा नहीं है कि राहुल ने रोमांस नहीं किया या फिर साधना कि किसी तरह कि उपेक्षा की थी। उसने अपना दायित्व ईमानदारी से निभाया। कई यादगार जगहें उनके अंतरंग पलों कि गवाह बनी। लेकिन बस सब एक काम कि तरह था। और साधना यही नहीं चाहती थी, वह चाहती थी कि प्यार में बेईमानी कि जाये, छेड़ छाड़, रूठना मनाना, और बेहिसाब प्यार...जिसकी कोई सीमा ना हो,...बस प्यार करे...अथाह प्यार..और कुछ नहीं।

अत्यधिक प्यार पर पाबन्दी राहुल ने खुद ही लगायी है। साधना जब भी घूमने चलने कि जिद करती तो वह यही कहता कि -' किसी भी चीज़ में इतना मत बहो कि वह तुम्हे भी बहा कर ले जाये ' यही मापदंड बना रखे हैं उसने अपने जीने के।

बेशक यह राहुल को समय कि बर्बादी लगता हो लेकिन उसने कभी साधना को नहीं रोका। उसके और साधना के बीच हमेशा से संतुलित दायरा रहा। इसकी आज़ादी जितनी साधना को है उतनी ही उसे भी है। उसके बिज़नेस टूर्स में साधना ने कभी हस्तक्षेप नहीं किया और न ही कभी साथ चलने कि इच्छा जताई।

लेकिन राहुल ने भी बिज़नेस के आगे कभी ये नहीं सोचा कि पत्नी भी साथ घूमने, रोमांस और प्रेम कि आकांक्षी होगी, इस बात कि फुरसत उसे कभी नहीं रही। जिंदगी के नाज़ुक और अहम् पलों से वह शादी के बाद ज्यादातर बेपरवाह रहा। बैंक बैलेंस, ऐशो आराम, और लक्ज़री लाइफ मुहैया कराने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी, साधना को कुछ भी मांगने कि कभी जरुरत ही नहीं पड़ी।

यहां आते वक़्त भी उसने कहा था कि 'गाड़ी ले जाओ, आराम से पहुंच जाओगी, ड्राइवर छोड़ देगा ' मगर यह सारे जमीनी अनुभव कहाँ से मिलते ? इसलिए साधना ने मना कर दिया। वह यहां कुछ दिन राहुल कि पत्नी नहीं बल्कि सिर्फ साधना बन कर रहना चाहती थी।

राहुल निहायती सभ्य और सीमित बोलने वाला लड़का है। साधना से प्यार भी वह बहुत करता है। लेकिन इसके साथ ही उसे अपने काम से भी उतनी ही मोहब्बत है जिसे उसने कड़ी मेहनत से खड़ा किया है। इस सबका का ताना बाना काफी पहले ही बुन गया था। शायद उसी के तर्ज़ पर उसकी मानसिक ग्रंथियों ने अपना आकार ले लिया होगा।

पहले उसके पिता का बिज़नेस बर्बाद होना, सोफिया द्वारा अपमानित होना, मंगनी का टूटना, एक एक पैसे के लिए मुंहताज़ होना, इन सबकी वजह से राहुल कि सोच में बहुत परिवर्तन आया। ऊपर से उसके पिता बीमार भी रहने लगे थे। ये सब इतना आनन् फानन में हुआ कि उसको संभलने का मौका ही नहीं मिला। बस जुट गया वह अपनी जिम्मेदारियों में।

उसने अपने से दो साल बड़े भाई प्रदीप के साथ मिलकर फिर से बिज़नेस को खड़ा किया। उस वक़्त दोनों भाई एक दूसरे का सहारा बने। अलबत्ता ये कहना सही नहीं होगा कि राहुल भावनाओं को न समझने वाला कठोर व्यक्ति है। कई बार जिम्मेदारियों कि नींव में भावनाएं दबी होती हैं, और व्यक्ति महल पर महल खड़ा करता चला जाता है। पर ये तय है कि वह महल हमेशा लचीला ही होगा, जिसमे तूफानों को पटखनी देने की ताक़त तो होगी, पर भीतर से कठोर नहीं होगा। भावनाओं को देखने कि आंख तो होगी, मगर उसमे डूबने का हौसला नहीं होगा। वह अपने आपको बचाये रखेगा हर ऐसी स्थिति से जो उसे फिर से कमजोर न कर दे।

सो वैसे तो यहां आने का फैसला तो साधना का ही था। मगर इसमें राहुल का कोई ख़ास दखल या विरोध नहीं था। अकसर वह ऐसी स्थिति में न्यूट्रल हो जाता था, साधना के ऊपर अपना फैसला थोपता नहीं था।

साधना ने यहां आने का जब निर्णय लिया तब वह खुद को बहुत खाली और अकेली महसूस कर रही थी। नीरज की भी कोई खोज खबर नहीं मिल रही थी। ऐसे में उसकी जिंदगी उबाऊ लगने लगी थी। होती भी क्यों न ?

हर औरत कि तरह उसने भी सपनों के फन्दों को मिठास कि चाशनी से बुना था। मगर किस्मत तो कुछ और ही फैसला लिए बैठी थी। जहां एक एक कर सभी सपने उधड़ने लगे थे। जिंदगी के हर मोड़ पर सामंजस्य बिठाना औरत को बचपन से ही सिखाया जाता है, साधना ने तो ये सब शुरू से ही सीख लिया था। बेशक वह अपने इम्तिहान को पास करने कि जद्दोजहद में लगी थी, मगर उसके लिए तैयारी भी जरुरी है। यह तैयारी भी ख़ास तरह कि होती है जहां किसी से सीखा नहीं जा सकता, अपनी भावनाओं को तौलने के लिए तराज़ू भी नहीं होता...और व्यक्ति बिलकुल अकेला होता है।

ऊर्जा को भरने के लिए और एक बेहतर जिंदगी कि आस के लिए आउटिंग एक बढ़िया साधन है, बशर्ते वह आपको पसंद हो। ख़ास कर आपको जिस काम को करने में मज़ा आता है आप वहीं से अपनी ऊर्जा को पाते हैं।

खैर, साधना यहां पर तब तक है जब तक कि उसका दिल न भर जाये। वैसे तो वह एक हफ्ते का प्लान करके आयी थी लेकिन कुदरत का नज़ारा देख कर लालच बढ़ गया है। अपनी सोच से बाहर आकर उसने ठंडी सांस ली ताकि उन अनचाही तस्वीरों से छुटकारा पाया जा सके।

कुछ ही देर में वेटर ने आकर उसे कॉफ़ी दी और साथ में नास्ते का आर्डर भी ले गया। चूंकि रिसोर्ट बहुत अलग थलग और पुराना है इसलिए कस्टमर यहां ज्यादा नहीं आते, अलबत्ता खाना, नास्ता आर्डर लेने के बाद ही तैयार किया जाता है।

साधना ने कप उठा कर कॉफ़ी पीना शुरू ही किया था कि तभी उन्ही तस्वीरों ने फिर से धमा-चौकड़ी मचानी शुरू कर दी। वह बंद तो पहले भी नहीं हुयी थी। हाँ, साधना ने जरूर खुद को फुसलाने के लिए उधर से अपना ध्यान हटाया था।

अचानक ही साधना के हाथ बड़ी तेज़ी से कांपने लगे और कॉफ़ी का मग हाथ से छूट कर गिर गया और टुकड़े टुकड़े हो गया। कॉफ़ी और कप के टूटे हुए अवशेष फर्श पर बिखर गए।

अभी वो इससे संभल भी नहीं पायी थी कि अगले ही पल उसकी आँखों में एक आकृति उभर आयी जिसे देखते ही साधना बहुत बुरी तरह से घबरा गयी। उसकी आँखों में अभी अभी जो आकृति उभरी थी, वो देखने में बिलकुल उसी कि तरह है, शायद उसकी हमशक्ल ? साधना बुरी तरह से डर कर कांपने लगी।

" ये..ये..कौन है ?? ये..ये तो मैं हूँ…लेकिन मैं...मैं...मैं...कैसे हो सकती हूँ ?? अगर मैं नहीं हूँ तो फिर कौन है ये ?? क्या मेरी जुड़वाँ बहन है कोई ?? नहीं..मुझे तो ऐसा कभी किसी ने कुछ नहीं बताया...फिर कौन है ये ?? मेरा इससे क्या रिश्ता है ?? "
 
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o shadhna cosani pahunch gayi uski bachpan ki yaden uske samne aa rahi sayad..idhar rahul paise ka gulaam ban gawa hai kya hota agar ek din time le leta wo khair jane do jo ho raha sab fix hai kismat me pahle se..wonderfull update Anand bhai ji

Shukriya Rahul bhai iss khubsurat prati kriya ke liye.
Aapne sahi kaha..ye sab kismat ka khel hai
 

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