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पिशाच की वापसी – 10
“शीट, नेटवर्क नहीं है"
बोलते हुए जावेद जंगल से बाहर निकाला इस उम्मीद में की शायद सिग्नल मिल जाए, लेकिन बाहर निकल के भी सिग्नल नहीं आया, जावेद की परेशानी फिर बढ़ गयी,
"शीट, यहाँ भी नहीं है, रघु सिग्नल नहीं आ रहा है"
"साहब, मुझे वहां कुछ मिला भी है, आप चल कर देख लीजिए एक बार, क्या पता वहां आपको सिग्नल मिल जाए"
रघु ने वहीं खड़े आवाज़ लगाई.
"नहीं, रघु में वहां नहीं जाना चाहता, फिर से नहीं"
जावेद अपनी बात पे अटल रहा
"में समझता हूँ साहब, लेकिन मुख्तार साहब को सबूत दिखाना पड़ेगा उन्हें मनाने के लिए और शायद मुझे जो मिला है वह आपके काम आ जाए"
रघु ने आराम से समझाया.
"हाँ ये बात भी है, रघु ठीक कह रहा है, मुख्तार साहब को दिखाने के लिए सबूत चाहिये, हाँ पर, पर में दुबारा नहीं जाना चाहता, मुझे यहाँ से निकलना है, पर कैसे, कैसे निकलूं यहाँ से, शायद रघु के सहारे ही निकल पाऊ, हाँ, शायद मुझे रघु की बात माननी चाहिये"
जावेद कुछ मिनट अपने आपसे ही बातें करता रहा,
"ठीक है रघु चलो"
बोलते हुए उसने फोन पे टाइम देखा तो 3 बज रहे थे, फिर भारी मान से जंगल के अंदर उसे खामोशी भरे अंधेरे में खो गया.
कुछ देर दोनों यूँ ही चलते रहे, रघु आगे था और जावेद पीछे, दोनों में से किसी की कोई बात नहीं हुई कुछ देर, आख़िर चलते चलते काफी देर हो गयी तब जावेद अपने आप को नहीं रोक पाया.
“कितनी देर लगेगी हमें, बहुत देर से चल रहे हैं"?
"बस पहुंचने ही वाले हैं साहब"
रघु ने इतना कहा और एक बार दोनों चलने लगे.
"रास्ता खत्म क्यों नहीं हो रहा है, हम दोनों कब से चले जा रहे हैं"?
जावेद अपने आप से इतना ही कह पता है की तभी उसे कुछ महसूस होने लगता है, उसे बड़ी जलन सी होने लगती है, उसका बदन अजीब तरीके से हिलने लगा, चेहरे पे परेशानी सी आने लगी, उसे ऐसा लगने लगा मानो कोई चीज़ जल रही हो.
“आ… ये क्या हो रहा है.. बहुत जल रहा है आआहह"
फिर एक ज़ोर दार चीख उसके मुंह से निकली और उसने बिना वक्त गंवाए जल्दी से अपना पहना हुआ कोट उतार के नीचे फेंक दिया, उसकी साँसें तेज चल रही थी उसे अपने बदन के कुछ हिस्सों में जलन महसूस होने लगी, जब उसने अपनी अंदर पहनी हुई शर्ट हटाई तो देखा की उसके शोल्डर का कुछ हिस्सा जला हुआ है, वह इस बात को समझता की उससे पहले जब उसने सामने देखा तो उसका सारा दर्द गायब हो गया, सामने फेंका हुआ उसका कोट भल भला के जल उठा. तभी उसके सामने नज़र गई तो उसे रघु भी दिखाई नहीं दिया, वह कुछ कदम आगे चला ही की उसे.
"आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआअ……"
एक दर्दनाक आवाज़ कानो में पडी.
"ये तो रघु के चिल्लाने की आवाज़ है"
जावेद बुरी तरह से घबरा गया, उसे समझ नहीं आ रहा था की अब क्या करना है."
"या अल्लाह मदद कर, कोई तो रास्ता दिखा इस मुसीबत से निकलने की, बक्ष दे अपने इस बच्चे को, कोई तो रास्ता होगा, फोन हाँ, फोन, फोन देखता हूँ"
जावेद ने अपने आप से कहा और जेब में से फोन निकाला, पर आज शायद अल्लाह की कोई रहमत नहीं थी, फोन में सिग्नल नहीं था.
“शीट, सिग्नल अभी तक नहीं मिल रहा है"
बोलते हुए जावेद ने अपने हाथ को झटका, तभी उसे कुछ महसूस हुआ, मानो उसने कुछ देखा हो और उसपर ध्यान ना दिया हो, उसने फौरन अपना फोन देखा, फोन की स्क्रीन को देखते ही उसकी रूह, उसकी अंतर आत्मा हिल गयी, जब फोन की स्क्रीन पे टाइम देखा तो उसेपर 2 बज रहे थे, जबकि वह जंगल में घुसा तब 3 बज रहे थे, वह आगे कुछ सोच पता की तभी उसे सामने से कुछ आता हुआ दिखाई दिया..
सामने से आती हुई चीज़ को देख के जावेद के हाथ से फोन गिर गया, सामने उस आग की रोशनी में जो अभी तक थी उस जॅकेट के जलने की वजह से उसे रोशनी में जो सामने जावेद ने देखा वह बस देखता ही रह गया, सामने से हवा में उड़ता हुआ रघु का शरीर उस की तरफ आ रहा था, जावेद वहां से हट पाता इतनी देर में वह शरीर उसके उपर आ गिरा, ढम्म्म्म ज़ोर से आवाज़ आई और दोनों ज़मीन पे गिरे हुए थे, एक पल के लिए जावेद की आँखें बंद हो गयी, उसने जैसे ही आँखें खोली तो उसके सामने रघु की लाश उसके उपर पडी थी, जिसका सर बीच में से कटा हुआ था, एक हिस्सा एक साइड पे तो दूसरा एक साइड पे था, अंदर के मास में खून रिस रहा था, इतना ही नहीं जावेद के देखते देखते उसे चेहरे से एक आँख निकल के नीचे गिर गयी, जिसे देख के जावेद अपनी चीख नहीं रोक पाया
"आआआआआआआआआ…."
चिल्लाता हुआ उसने लाश को साइड में फैंक दिया, वह उठता उससे पहले उस खामोश पड़े जंगल में फोन बज उठा.
जावेद फोन की आवाज़ सुन के चौंक गया, उसने फौरन फोन उठाया, देखा तो उसपर मुख्तार का नाम फ्लश हो रहा था, उसने बिना वक्त गंवाए आन्सर किया.
"हेलो, हेलो मुख्तार साहब, यहाँ बहुत बड़ी गड़बड़ है यहाँ कोई है, जो जो"
जावेद इतना ही कह पाया की दूसरी बढ़ से आवाज़ आई.
"कोई नहीं, में हूँ, में, खीखीखीखीखीखीखीखी"
भारी और भयानक आवाज़ जावेद के कानों में पडी जिसे सुन के उसका दिल धड़कना बंद हो गया और उसके हाथ से फोन नीचे गिर गया, उसके चेहरे से ये साफ हो गया था की अब उसे समझ आ चुका है की उसकी जिंदगी, शायद मौत में बदलने वाली है.
उसने लाश को साइड में फैंक दिया, वह उठता उससे पहले उस खामोश पड़े जंगल में फोन बज उठा.
"सिग्नल नहीं मिला, चचचच"
फिर से वह भारी खौफनाक आवाज़ सुन के जावेद का कलेज़ा मुंह को आ गया, क्यों की इस बार ये आवाज़ उसे बहुत करीब से महसूस हो रही थी.
जावेद ने घबराते हुए अपने पैर पीछे की बढ़ मोडे और पीछे का नज़ारा देख के उसके पैर लडखड़ा गये और वह नीचे गिर गया, आज से पहले ऐसा नज़ारा उसने सपने में कभी नहीं देखा था वह नज़ारा आज उसके सामने था, एक ऐसा खौफनाक दृश्य जो उस काली अंधेरी रात में और भी ज्यादा भयानक लग रहा था
“शीट, नेटवर्क नहीं है"
बोलते हुए जावेद जंगल से बाहर निकाला इस उम्मीद में की शायद सिग्नल मिल जाए, लेकिन बाहर निकल के भी सिग्नल नहीं आया, जावेद की परेशानी फिर बढ़ गयी,
"शीट, यहाँ भी नहीं है, रघु सिग्नल नहीं आ रहा है"
"साहब, मुझे वहां कुछ मिला भी है, आप चल कर देख लीजिए एक बार, क्या पता वहां आपको सिग्नल मिल जाए"
रघु ने वहीं खड़े आवाज़ लगाई.
"नहीं, रघु में वहां नहीं जाना चाहता, फिर से नहीं"
जावेद अपनी बात पे अटल रहा
"में समझता हूँ साहब, लेकिन मुख्तार साहब को सबूत दिखाना पड़ेगा उन्हें मनाने के लिए और शायद मुझे जो मिला है वह आपके काम आ जाए"
रघु ने आराम से समझाया.
"हाँ ये बात भी है, रघु ठीक कह रहा है, मुख्तार साहब को दिखाने के लिए सबूत चाहिये, हाँ पर, पर में दुबारा नहीं जाना चाहता, मुझे यहाँ से निकलना है, पर कैसे, कैसे निकलूं यहाँ से, शायद रघु के सहारे ही निकल पाऊ, हाँ, शायद मुझे रघु की बात माननी चाहिये"
जावेद कुछ मिनट अपने आपसे ही बातें करता रहा,
"ठीक है रघु चलो"
बोलते हुए उसने फोन पे टाइम देखा तो 3 बज रहे थे, फिर भारी मान से जंगल के अंदर उसे खामोशी भरे अंधेरे में खो गया.
कुछ देर दोनों यूँ ही चलते रहे, रघु आगे था और जावेद पीछे, दोनों में से किसी की कोई बात नहीं हुई कुछ देर, आख़िर चलते चलते काफी देर हो गयी तब जावेद अपने आप को नहीं रोक पाया.
“कितनी देर लगेगी हमें, बहुत देर से चल रहे हैं"?
"बस पहुंचने ही वाले हैं साहब"
रघु ने इतना कहा और एक बार दोनों चलने लगे.
"रास्ता खत्म क्यों नहीं हो रहा है, हम दोनों कब से चले जा रहे हैं"?
जावेद अपने आप से इतना ही कह पता है की तभी उसे कुछ महसूस होने लगता है, उसे बड़ी जलन सी होने लगती है, उसका बदन अजीब तरीके से हिलने लगा, चेहरे पे परेशानी सी आने लगी, उसे ऐसा लगने लगा मानो कोई चीज़ जल रही हो.
“आ… ये क्या हो रहा है.. बहुत जल रहा है आआहह"
फिर एक ज़ोर दार चीख उसके मुंह से निकली और उसने बिना वक्त गंवाए जल्दी से अपना पहना हुआ कोट उतार के नीचे फेंक दिया, उसकी साँसें तेज चल रही थी उसे अपने बदन के कुछ हिस्सों में जलन महसूस होने लगी, जब उसने अपनी अंदर पहनी हुई शर्ट हटाई तो देखा की उसके शोल्डर का कुछ हिस्सा जला हुआ है, वह इस बात को समझता की उससे पहले जब उसने सामने देखा तो उसका सारा दर्द गायब हो गया, सामने फेंका हुआ उसका कोट भल भला के जल उठा. तभी उसके सामने नज़र गई तो उसे रघु भी दिखाई नहीं दिया, वह कुछ कदम आगे चला ही की उसे.
"आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआअ……"
एक दर्दनाक आवाज़ कानो में पडी.
"ये तो रघु के चिल्लाने की आवाज़ है"
जावेद बुरी तरह से घबरा गया, उसे समझ नहीं आ रहा था की अब क्या करना है."
"या अल्लाह मदद कर, कोई तो रास्ता दिखा इस मुसीबत से निकलने की, बक्ष दे अपने इस बच्चे को, कोई तो रास्ता होगा, फोन हाँ, फोन, फोन देखता हूँ"
जावेद ने अपने आप से कहा और जेब में से फोन निकाला, पर आज शायद अल्लाह की कोई रहमत नहीं थी, फोन में सिग्नल नहीं था.
“शीट, सिग्नल अभी तक नहीं मिल रहा है"
बोलते हुए जावेद ने अपने हाथ को झटका, तभी उसे कुछ महसूस हुआ, मानो उसने कुछ देखा हो और उसपर ध्यान ना दिया हो, उसने फौरन अपना फोन देखा, फोन की स्क्रीन को देखते ही उसकी रूह, उसकी अंतर आत्मा हिल गयी, जब फोन की स्क्रीन पे टाइम देखा तो उसेपर 2 बज रहे थे, जबकि वह जंगल में घुसा तब 3 बज रहे थे, वह आगे कुछ सोच पता की तभी उसे सामने से कुछ आता हुआ दिखाई दिया..
सामने से आती हुई चीज़ को देख के जावेद के हाथ से फोन गिर गया, सामने उस आग की रोशनी में जो अभी तक थी उस जॅकेट के जलने की वजह से उसे रोशनी में जो सामने जावेद ने देखा वह बस देखता ही रह गया, सामने से हवा में उड़ता हुआ रघु का शरीर उस की तरफ आ रहा था, जावेद वहां से हट पाता इतनी देर में वह शरीर उसके उपर आ गिरा, ढम्म्म्म ज़ोर से आवाज़ आई और दोनों ज़मीन पे गिरे हुए थे, एक पल के लिए जावेद की आँखें बंद हो गयी, उसने जैसे ही आँखें खोली तो उसके सामने रघु की लाश उसके उपर पडी थी, जिसका सर बीच में से कटा हुआ था, एक हिस्सा एक साइड पे तो दूसरा एक साइड पे था, अंदर के मास में खून रिस रहा था, इतना ही नहीं जावेद के देखते देखते उसे चेहरे से एक आँख निकल के नीचे गिर गयी, जिसे देख के जावेद अपनी चीख नहीं रोक पाया
"आआआआआआआआआ…."
चिल्लाता हुआ उसने लाश को साइड में फैंक दिया, वह उठता उससे पहले उस खामोश पड़े जंगल में फोन बज उठा.
जावेद फोन की आवाज़ सुन के चौंक गया, उसने फौरन फोन उठाया, देखा तो उसपर मुख्तार का नाम फ्लश हो रहा था, उसने बिना वक्त गंवाए आन्सर किया.
"हेलो, हेलो मुख्तार साहब, यहाँ बहुत बड़ी गड़बड़ है यहाँ कोई है, जो जो"
जावेद इतना ही कह पाया की दूसरी बढ़ से आवाज़ आई.
"कोई नहीं, में हूँ, में, खीखीखीखीखीखीखीखी"
भारी और भयानक आवाज़ जावेद के कानों में पडी जिसे सुन के उसका दिल धड़कना बंद हो गया और उसके हाथ से फोन नीचे गिर गया, उसके चेहरे से ये साफ हो गया था की अब उसे समझ आ चुका है की उसकी जिंदगी, शायद मौत में बदलने वाली है.
उसने लाश को साइड में फैंक दिया, वह उठता उससे पहले उस खामोश पड़े जंगल में फोन बज उठा.
"सिग्नल नहीं मिला, चचचच"
फिर से वह भारी खौफनाक आवाज़ सुन के जावेद का कलेज़ा मुंह को आ गया, क्यों की इस बार ये आवाज़ उसे बहुत करीब से महसूस हो रही थी.
जावेद ने घबराते हुए अपने पैर पीछे की बढ़ मोडे और पीछे का नज़ारा देख के उसके पैर लडखड़ा गये और वह नीचे गिर गया, आज से पहले ऐसा नज़ारा उसने सपने में कभी नहीं देखा था वह नज़ारा आज उसके सामने था, एक ऐसा खौफनाक दृश्य जो उस काली अंधेरी रात में और भी ज्यादा भयानक लग रहा था