Update- 34
तीसरी रात जब उदयराज ने अपनी सगी बेटी की बूर का मर्दन करके और बूर का मक्ख़न खा के कर्म को पूरा किया तो वह अपने साथ लाये एक कागज पर कुछ लिखने लगा और लिखकर रजनी के सर के पास रखकर कोठरी से निकल गया, दिन में ये बात उसके दिमाग में आई थी कि कर्म के अनुसार एक दूसरे को देख नही सकते, एक दूसरे से बोल नही सकते पर लिखकर बयां तो कर ही सकते हैं। इसलिए उदयराज ने कागज पर कुछ लिखा और रजनी के पास रखकर चला गया। रजनी को उस वक्त ज्यादा साफ न दिखने से ठीक से पता नही चल पाया कि उसके बाबू क्या कर रहे हैं, उसे ये लगा कि पिछली रात की तरह वो अपने दहाड़ते हुए लन्ड को समझा रहे हैं कि थोड़ा सा और सब्र कर ले, और यह सोचकर वो मुस्कुराकर सिसकते हुए सो गई थी, पर चौथे दिन जब वो सुबह 4 बजे उठी तब उसे वो कागज मिला, रात का दिया तो बुझ चुका था, झट से उसने दिया जलाया और कागज खोला-
"मेरी प्रिय बेटी इतना सुख मुझे जीवन में कभी नही मिला....कभी नही, तू इतनी सुंदर है, तेरा वो अंग इतना कोमल और नरम नरम है कि मैं होश खो देता हूँ, इन तीन दिनों में मैंने जो तेरा काम रस चखा है, उससे मुझे कभी दूर मत करना, तुझे पाकर मैं धन्य हूँ, तेरे हुस्न से, तेरी अदा से मैं कायल हो गया हूँ तू सिर्फ मेरी है सिर्फ मेरी।
तीन रात तो बीत गयी अब चौथी रात होगी, उस रात का मुझे बहुत ही बेसब्री से इंतज़ार है, तब मैं तेरी वो देखूंगा.....वो, जिसको मैं तीन दिन से छू कर महसूस कर रहा था, चौथी रात मेरे जीवन की एक बहुत ही अनमोल रात है। ऊपर के रसीले होंठ को तो मैंने हमेशा देखा है जो कि दुनियाँ में सबसे रसीले हैं पर अब मैं नीचे के भी रसीले और नशीले होंठ देखूंगा, मैं तो दीवाना हो गया हूँ, जैसे कोई दूल्हा अपनी दुल्हन को उसकी मुँह दिखाई पर कुछ उपहार देकर या उसकी कोई मनोकामना पूरी कर उसके तन मन का सम्मान करता है वैसे ही मेरे मन में भी आवाज उठ रही है कि मैं अपनी बेटी को उसकी वो दिखाई पर उसकी मनोकामना पूर्ण कर उसका सम्मान करूँ, बोल मेरी रानी बिटिया मैं तेरी क्या मनोकामना पूर्ण करूँ?"
इतना पढ़ते ही रजनी तो सातवें आसमान में उड़ने लगी, गदगद हो गयी वो, उसने भी जल्द ही एक कागज कलम उठाया और मुस्कुराते हुए कुछ लिखने लगी। जब काकी घर में आई तो उनको देकर बोली- काकी ये पर्ची बाबू के तकिए के नीचे चुपचाप रख देना, कर्म से संबंधित कुछ है।
काकी समझ गयी कि इसको खोलना नही है और तुरंत ही जाकर उदयराज के तकिए के नीचे धीरे से रखकर चली आयी।
अभी थोड़ा अंधेरा था उदयराज सो ही रह था 5 बज चुके थे फिर 5:15 हुए, थोड़ा थोड़ा उजाला होने लगा, उदयराज उठा, आज कौन सा दिन था उठते ही सबसे पहले ये ख्याल उसके मन में आते ही ख़ुशी से पगला गया।
बिस्तर समेटने के लिए जैसे ही तकिए को उठाया, सामने कागज fold कर पड़ा हुआ था, मन मयूर झूम उठा उसका ये जानकर की बेटी ने उसकी उसकी छोड़ी हुई पर्ची पढ़ ली है और ये उसका जवाब है, हो न हो जरूर उसने ये काकी के हाथ रखवाया होगा, मन में तो उसके हुआ कि घर में जाके रजनी को बाहों में भरकर ताबड़तोड़ चूमने लगे, पर वासना और खुशी का घूंट पीकर रह गया। उस पर्ची को उसने उठाकर धोती में ये सोचते हुए खोंस लिया कि खेत में जाके तसल्ली से पढ़ेगा।
जल्दी जल्दी वो तैयार होकर खेतों में हल और बैल लेकर निकल गया, आज उदयराज को अपने दूर वाले खेत की मेड़ पर मिट्टी भी चढ़ानी थी, एक खेत तो उसका कुल वृक्ष के पास भी था पर वो खाली जोतकर छोड़ा हुआ था उस खेत के बाद नदी थी तो उसमें अक्सर वो धान की फसल लगाता था।
उदयराज ने जल्दी से खेत में पहुँचकर वो कागज खोला-
मेरे बाबू, मेरे दिल के राजा, मैं भी आपके बिना अब नही जी सकती, मेरा सिर्फ काम रस ही क्या, सबकुछ आपका है, और आजीवन रहेगा जितना जी भरके चाहो उतना चखो, मैं तो खुद आपकी दीवानी हूँ, मैं सिर्फ आपकी हूँ सिर्फ आपकी, मेरी हर चीज़ आपकी है, मेरे हर अंग पर सिर्फ आपका हक़ है, ऐसा यौन सुख एक बेटी को सिर्फ अपने बाबू से ही मिल सकता है और किसी से नही, और बाबू आज रात को जो आप देखोगे न उसको बूर कहते हैं, बताया तो था अभी कुछ दिन पहले धीरे से आपके कान में मेरे भोले बाबू जी। कितना शर्माते हो आप, अपनी ही बेटी से कोई इतना झिझकता है पगलू कहीं के। बेटी तो अपने बाबू के दिल में बसी होती है छुप छुप कर अपने पिता के दिल में रहती है मां से भी ज्यादा।
आपकी बेटी सिर्फ आपकी है और उसकी बूर सिर्फ आपके लिए है, एक बात बोलूं बाबू, मैं अभी भी कुंवारी जैसी ही हूँ कई वर्षों से, बस आप समझ जाइये की अब आपको मुझे कैसे और कितना प्यार देना है, आज रात का मुझे भी बहुत बेसब्री से इतंज़ार है, मैं आज लाल रंग की साड़ी पहनूँगी और अपने बगल में एक और घी का दिया बिना जलाए रखे रहूँगी क्योंकि बाहर वाले दिये से अच्छे से दिखेगा नही आप जब आना तो वो दिया जला लेना।
और मुझे आपसे जो चाहिए वो है सिर्फ आपका साथ और बस आपका प्यार, लेकिन फिर भी आपका मान रखने के लिए जब वक्त आएगा तब मैं मांग लूंगी अपने बाबू से क्योंकि अभी मुझे सिर्फ आपका प्यार पाने के सिवा कुछ सूझ नही रहा, और आपने ये जो तरीका निकाला है बात करने का उस पर तो मैं वारी वारी जाऊं मेरे बाबू मैं भी आपसे बात करना चाहती थी पर बेबस थी। आज की रात आपकी बेटी बहुत बेसब्री से आपका इंतजार करेगी।"
उदयराज ये पढ़ते ही झूम उठा किसी तरह उसने दिन भर सारा काम किया और शाम को जल्दी ही घर आ गया, काकी द्वार पर बैठी उसका इंतजार कर रही थी, उठकर गयी और पानी लायी, उदयराज ने पानी पिया और जाकर नहा लिया।
रजनी ने जल्दी जल्दी खाना बनाया और काकी ने उदयराज को बाहर ही नीम के पेड़ के नीचे खाना दिया और घर में रजनी और काकी ने भी खाना खा लिया, आज रजनी की बेटी थोड़ा रो रही थी रजनी ने उसे दूध पिलाया फिर काकी उसे काफी देर बाहर घुमाती रही और वो सो गई, काकी उसको लेकर अपनी खाट पर लेट गयी थोड़ी देर बाद उसकी भी आंख लग गयी। जैसे ही वक्त हुआ उदयराज अपनी खाट से उठा, रोज की तरह धीरे धीरे कदमों से चलता हुआ दरवाजे तक पहुँचा, जैसे ही हल्के दरवाजे की खुलने की आवाज हुई उधर कोठरी में लेटी रजनी ने नशे में अपनी आंखें मूंद ली, सांसे तेज चलने लगी, दिल धक धक करने लगा।
उदयराज ने आज तेल की शीशी नही ली बस कागज और कलम लिया।
आज कोठरी से लाल गुलाब की अत्यंत मनमोहक खुशबू आ रही थी जिसमे कपूर की खुशबू भी मिली हुए थी।
उदयराज कोठरी के दरवाजे के सामने आकर खड़ा हो गया, रजनी का दिल रोमांच से भर गया, उसने रोज की तरह कसमसा के अपने बाबू को ये आभास कराया कि वो उनका बेसब्री से इंतज़ार कर रही है।
आज दिये कि मध्यम रोशनी में लाल गुलाब से सजी कोठरी काम वासना को चरम पर पहुँचा रही थी, उदयराज अपनी बेटी की मेहनत पर गदगद हो गया, आखिर रोज रजनी हमारे इस प्यार को और सुखमय बनाने के लिए कितनी मेहनत कर रही है, मैं कसम खाता हूं कि अपनी बेटी के एक एक अंग को चरम सुख की प्राप्ति कराऊंगा, इतना प्यार दूंगा उसे की रोम रोम पुलकित हो उठेगा उसका। उदयराज ने एक संकल्प किया और एक भरपूर नज़र कोठरी में सजे फूलों पर डाली और उसमे से एक गुलाब तोड़कर हाथ में ले लिया।
उदयराज ने देखा रजनी ने बगल में एक छोटा दिया और माचिस रख दिया था, रजनी आंखें मूंदें चादर ओढ़े अपने बाबू की हर हरकत को भांप रही थी उसके दिमाग में बस अब एक ही बात थी कि अब आगे बाबू क्या करेंगे, अब क्या करेंगे, सारी दुनियां भूल चुकी थी वो।
उदयराज ने एक भरपूर नज़र अपनी बेटी के बदन पर डाली और उसके घुटनों के पास दायीं ओर बैठ गया, कागज और कलम बगल में रखकर कागज के ऊपर फूल जो उसने तोड़ा था उसको रख दिया।
रजनी से बर्दाश्त नही हो रहा था वो बार बार कसमसा के अपने बाबू को यह इशारा कर रही थी कि बाबू खोलो न।
उदयराज ने रजनी के पैरों से दबे चादर को पकड़कर ऊपर की तरफ हटाना शुरू किया जैसे ही रजनी के पैर बाहर दिखे उदयराज अपनी बेटी के गोरे गोरे दोनों पैर देखकर ही सम्मोहित सा हो गया, आज तीन दिन के बाद वो रजनी के पैर देख रहा था, रजनी ने अपने पैर के अंगूठे और उंगलियों को आपस में रगड़कर अपने बाबू को रिझाया।
पैरों में पड़ी पायल और दोनों पैर की उंगलियों में पड़ी बिछिया ने उदयराज का मन मोह लिया, लाल रंग की नेल पॉलिश उस गोरे गोरे पैर पर कयामत ही लग रही थी, कोठरी में हल्की रोशनी थी पर फिर भी रजनी का गोरा बदन चमक रहा था।
उदयराज ने पैरों को घूरते हुए चादर को खींचकर पूरा कमर तक पलट दिया, रजनी की सांसें तेज तेज चलने लगी, उदयराज ने देखा कि रजनी ने लाल साड़ी पहनी हुई थी आज वो दुल्हन की तरह लाल साड़ी पहनकर लेटी थी, चादर खिंचने से रजनी की साड़ी थोड़ा ऊपर चढ़ गई थी जिससे उसके गोरे गोरे पैर और उसपर भूरे भूरे रोएं देखकर उदयराज का लन्ड हरकत करने लगा।
पहले तो उदयराज ने पैर की तरफ से साड़ी ऊपर करने की सोची पर उसने इरादा बदलकर अपना हाथ ऊपर की तरफ बढ़ाया। रजनी समझ गयी और उसने साड़ी का पल्लू जो पीठ के नीचे दबा हुआ था उसको खींचकर लेकर कमर के पास रख दिया ताकि उसके बाबू को दिक्कत न हो, उदयराज ने चादर को और ऊपर तक किया अब रजनी की नाभि दिखने लगी, रजनी की गहरी नाभि देखकर उदयराज मदहोश हो गया एकदम से उसके दिमाग में आया कि योनि चुम्बन की रात तो कल है पर मैं नाभि तो चूम ही सकता हूँ और एकदम उसने नाभि पर एक गर्म जोरदार चुम्बन जड़ दिया।
रजनी को इसका आभास बिल्कुल नही था वह oooohhhhhhh bbbbaabbbuuuu कहकर चिहुँक उठी, उदयराज ताबड़तोड़ किसी बरसों के प्यासे की तरह नाभि और उसके आस पास कई चुम्बन अंकित करने लगा फिर उसने अपनी जीभ रजनी की गहरी नाभि में डाल दिया और डालकर काफी देर घुमाता रहा, कभी चूमता कभी घुमाता, रजनी uuuuuuuuffffffffff bbbbaaaaabbbbuuuuu करते हुए सिसक उठी।
उदयराज ने कुछ देर नाभि और उसके आस पास चूमने के बाद साड़ी के अंदर हाथ डालकर नाड़े की डोर खींचकर नाड़ा खोल दिया, साड़ी ढीली हो गयी और साया भी ढीला हो गया।
रजनी ने खुद ही अब सिसकते हुए अपने दोनों पर फैला कर अपने बाबू को जैसे पैरों के बीच आने का इशारा किया, उदयराज तुरंत समझ गया और उठकर दोनों पैरों के बीच आ गया।
और फिर वो हुआ जिसका बड़ी बेसब्री से इंतज़ार केवल उदयराज और रजनी को ही नही बल्कि नियति को भी था।
उदयराज ने अपने दोनों हांथों से रजनी की साड़ी को कमर से दोनों ओर से पकड़ा और धीरे धीरे नीचे की ओर सरकाने लगा, रजनी ने सिसकते हुए स्वयं ही अपने भारी नितंबों को उठाकर साड़ी को साये सहित नीचे खींचे जाने में अपने बाबू की मदद की, जैसे जैसे साड़ी नीचे सरकती गयी वैसे वैसे रजनी का निचला दूधिया बदन उजागर होता गया, रजनी की लाल रंग की पैंटी जो आज उसने जानबूझकर पहनी थी धीरे धीरे उदयराज की आंखों के सामने आती गयी, मोटी मोटी केले के तने के समान मांसल जांघे और उसमे फंसी छोटी सी लाल रंग की पैंटी ने उदयराज के होशो हवास उड़ा दिए।
जाँघों के बीच पैंटी के अंदर रजनी की फूली हुई बूर का आकार, दिये कि माध्यम रोशनी में साफ दिख रहा था, पैंटी उसकी बूर की फांकों में कुछ अंदर तक धंसी हुई थी और बूर जो वासना में काम रस छोड़े जा रही थी उससे बूर की जगह पर पैंटी गीली हो चुकी थी।
अभी साड़ी और साये को उदयराज ने घुटनों तक नीचे सरकाया था और उसकी नज़र अपनी सगी बेटी की माँसल मोटी मोटी कसी हुई जाँघों से हट ही नही रही थी, बहुत ही कामुक और बेशर्मी से आंखें फाड़े वो अपनी बेटी की टांगें, जांघ, पैंटी और नाभि को निहारता रहा फिर अचानक झुककर उसने दोनों जांघों को चूम लिया, उदयराज के होंठ अपनी जांघों पर लगते ही रजनी के जिस्म में गहराई तक कामुक तरंगे दौड़ गयी, वह सिरह उठी, तन और मन गनगना उठा, "उफ्फ बाबू" की हल्की आवाज निकालते हुए उसका बदन थरथराया।
वो डर भी रही थी कि कहीं बाबू बदहवासी में उसकी बूर को न चूम लें, क्योंकि बूर को चूमने और चाटने की रात कल है आज तो केवल दर्शन और सूंघने की रात है।
उदयराज बदहवासी में जांघों को चूमे जा रहा था और रजनी भी पागलों की तरह छटपटा रही थी, उसके मुंह से धीरे धीरे लगातार uuuuuiiiiimmmmmaaaaaaa........hhhhhhaaaaiiiiiiiiii.....bbbbbbbaaaabbbuuuuuuu, uuuuufffffffff....dddddaaaiiiiiyyyyyaaaaaa
निकले जा रहा था
उसका मन कर रहा था कि वो अपने पैरों की उंगलियों को आपस में रगड़े पर दोनों पैर के बीच उदयराज बैठा था, एकाएक उदयराज ने उठकर उसकी साड़ी को साये समेत खींचकर दोनों पैर से निकालकर बगल में रख दिया, रजनी ने भी अपने दोनों पैर अच्छे से उठाकर साड़ी को पूरा निकलने में अपने बाबू की मदद की। रजनी के बदन पर अब कमर से नीचे सिर्फ लाल रंग की पैंटी रह गयी थी, उदयराज रजनी के दोनों पैरों के बीच खड़ा मंत्र मुग्द होकर अपनी बेटी की मांसल गोरी गोरी जांघे और घुटने फिर नीचे के पैर घूरता रहा कुछ देर देखता रहा, उसका लन्ड फौलाद की तरह तनकर खड़ा हो चुका था, एक पल को उसे लगा कि वो अपना कंट्रोल खो देगा पर जैसे तैसे अपने को संभाला, रजनी ने चादर के अंदर से अपने बाबू को जब अपनी जांघे और पैंटी के ऊपर से बूर को घूरते देखा तो शर्म से अपने हांथों से अपने चेहरे को ढक लिया जबकि उसने चादर ओढा हुआ था फिर भी लज़्ज़ा वश वह सिरह उठी।
उदयराज पागलों की तरह रजनी के नंगे बदन को घूरे जा रहा था, इतनी सुंदर तो उसकी पत्नी भी नही थी जितनी उसकी बेटी थी, क्या मोटी मोटी गोरी गोरी मांसल जाँघे थी, तभी उदयराज नीचे बैठ गया और अपने दोनों हाथ से पैंटी को पकड़ा जैसे ही रजनी को अपने बाबू की उंगलियां अपनी पैंटी पर कमर के दोनों ओर महसूस हुई उसके बदन में हलचल हुई और सांसे और भी उखड़ने लगी, उदयराज ने पैंटी को नीचे सरकाना चालू किया, एक बार फिर रजनी ने धीरे से oooohhhhh mmmeerrrrreeee bbbbbbaaaabbbuuu बोलते हुए अपने भारी मांसल गुदाज नितम्ब को धीरे धीरे ऊपर ऊठाकर पैंटी को आसानी से निकल जाने में अपने बाबू की भरपूर मदद की
और......
उदयराज ने पैंटी को खींचकर नीचे घुटनों तक उतार दिया और जो उसने देखा उससे उसका मन मयूर और झूम उठा, रजनी ने पैंटी के अंदर भी गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों से अपनी प्यारी सी मक्ख़न जैसी मादक कसी हुई जवान बूर को छुपा रखा था। जब उदयराज ने पैंटी को घुटनों तक नीचे उतार दिया तो उसने देखा कि रजनी की बूर पर गुलाब के फूलों की पंखुड़ियां रखी हुई है जिससे उसको देख पाना मुश्किल है, उदयराज अपनी बेटी की इस नटखट अदा पर फिदा हो गया और ताबड़तोड़ उसकी जाँघों और नाभि, कमर के आस पास, और पैरों को चूमने लगा, रजनी hhhhaaaaaiiiiiii, hhhhaaaaaiiiiii करती हुई मादक सिसकारी लेने लगी, अपनी इस शरारत पर वो मुस्कुरा भी रही थी। उदयराज को तो होश ही नही था उसको तो जैसे जन्नत मिल चुकी थी जन्नत।
उदयराज ने जब मदहोशी की हालत में चूमकर उठा तो पास रखे घी के दिये को जलाकर थोड़ा पास रख लिया, अब कोठरी में थोड़ा ज्यादा उजाला हो गया, फिर उदयराज धीरे से रजनी की बूर पर झुका और गुलाब की एक एक पंखुड़ी को अपने होंठों से पकड़कर हटाने लगा, जैसे ही उदयराज की सांसें रजनी के बूर पर लगी, वो तो aaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh.....hhhhhhhhhaaaaiiiiiiiiiiiiii............bbbbbbbaaaaaaaabbbbbbbuuuuu बोलते हुए अपने होंठों को दांतों से दबाकर मचल उठी, उसका निचला बदन हल्का सा थरथरा उठा।
उदयराज ने एक एक करके सारी गुलाब की पंखुड़ियों को हटाकर बूर को पा ही लिया। अब बूर का अंतिम आवरण भी हट चुका था। एक सगी बेटी की बूर उसके पिता के सामने खुल चुकी थी, नियति भी इस महापाप की शुरुवात पर मुस्कुरा उठी।
रजनी की वो प्यारी प्यारी नरम नरम मदहोश कर देने वाली गोरी गोरी बूर उदयराज के आंखों के सामने थी, रजनी अब नीचे से मदरजात नग्न अपने बाबू के सामने पड़ी थी। ऊऊफफ बूर की वो मक्ख़न जैसी फांकें, क्या मस्त बूर थी रजनी की, गोरी गोरी मोटी मोटी मांसल जाँघों के बीच वो बड़ी सी फांकों वाली अपनी सगी बेटी की बूर को देखकर उदयराज बदहवास हो गया, उसे मानो होश ही नही, इतनी सुंदर बूर है उसकी अपनी ही सगी बेटी की, वो फूला नही समा रहा था, उत्तम श्रेणी की बूर थी रजनी की, बड़ी बड़ी नरम नरम फांकें थी बूर की, बूर की फांकों के बीच से हल्का काम रस रिस रहा था, दोनों फांकों पर हल्के हल्के बाल थे और फांकों के बीच प्यारा सा भगनासा हल्का हल्का दिख रहा था, रजनी ने लज़्ज़ा से अपने चेहरे को अपने हांथों से ढक लिया।
बूर के ऊपर हल्के हल्के काले काले बाल थे, बूर के नीचे जाँघों के बीच चटाई पर गुलाब की पंखुड़ियां गिरी हुई थी।
एकएक उदयराज ने बगल में रखा दिया उठा लिया और उसको बूर के पास बूर को अच्छे से देखने के लिए लाया, बूर को दिए कि रोशनी में नजदीक से देखते ही उदयराज ने नशे से एक पल के लिए आंखें बंद कर ली, सांसे उसकी भी उखड़ने लगी, लन्ड ने धोती में हाहाकार मचा रखा था, जैसे अभी इजाजत मिले तो फाड़कर बाहर आ जाये।
एकएक जब रजनी ने देखा कि उसके बाबू दिया उठाकर उसकी बूर नजदीक से देख रहे हैं तो उसने खुद ही अपने दोनों पैर को फैलाने की कोशिश की पर पैंटी अभी घुटनों में फंसी थी।
उदयराज ने ये देखते ही दिया रखकर पैंटी को खींच कर पूरा पैर से बाहर निकाल दिया और बगल में साड़ी के ऊपर रखने ही वाला था कि अपनी सगी शादीशुदा बेटी की काम रस और पेशाब से सनी पैंटी से आती भीनी भीनी महक ने उसका ध्यान खींचा लिया और उसने रजनी को दिखाते हुए उसकी पैंटी को अपनी नाक से लगा के कस के उसे सूंघा और नशे से उसकी आंखें बंद हो गयी, रजनी भी धीरे से खिलखिला के हंस पड़ी पर उसने जल्द ही अपनी आंखें बंद कर ली क्योंकि दो दिए कि रोशनी में अब उसके बाबू चादर के अंदर से हल्के हल्के दिख रहे थे।
उदयराज ने जी भरके पैंटी को सूंघा मानो जैसे को वो अपनी बेटी की कोई भी चीज़ छोड़ना नही चाहता हो, रजनी भी ये सोचकर मुस्कुरा रही थी कि उनकी बेटी की नंगी बूर सामने खुली हुई है और मेरे बाबू अपनी बेटी की कच्छी में उलझे हैं।
पैंटी निकल जाने के बाद रजनी ने धीरे धीरे पैरों को फैलाते हुए घुटनों को मोड़कर अपनी जाँघों को खोलकर फैला दिया, उदयराज ने दिया फिर से उठाकर रजनी की बूर के पास किया।
जाँघों के फैलने से रजनी की बूर फ़ैलती और खुलती चली गयी दोनों फांकों के फैलने से वो प्यारा सा गुलाबी संकरी, छोटा सा बूर का छेद उदयराज की आंखों के सामने आ गया, बूर की cliteries खिलकर बाहर आ गयी और दोनों फांकों के हल्का खुलने से उनके बीच रिस रहे लिसलिसे काम रस से हल्के दो तीन तार बन गए, रजनी की बूर काम रस से सराबोर हो चुकी थी।
बूर की ये आभा देखकर उदयराज से अब बर्दाश्त नही हुआ और कुछ देर बूर को निहारने के बाद झट से उसने दिया बगल में रखा और अपनी नाक अपनी सगी शादीशुदा बेटी के बूर की फांकों के बीच लगा कर एक गहरी सांस खींचकर उसको सूंघा, कामरस और पेशाब की भीनी भीनी गंध उसके रोम रोम तक समाती चली गयी, बूर पर नाक लगाते ही रजनी की जोरदार सिसकी निकल गयी और मचलकर aaaahhhhhhhhhh mmmeeeerrrrreeeee pppppyyyaaaaarrrrrreeeeee bbbaaaaabbbbuuuuuu कहते हुए उसने तड़पकर अपनी कमर से ऊपर का हिस्सा धनुष की तरह ऊपर को मोड़ लिया, जिससे उसकी दोनों विशाल चूचीयाँ ऊपर को उठ गई। उसकी आंखें नशे में बंद हो गयी, एकएक रजनी के हाथ अपने बाबू के सर को पकड़कर अपनी दहकती बूर पर और दबाने तथा बालों को सहलाने के लिए उठे पर कर्म के नियम का ध्यान आते ही वो मन मकोसकर रह गयी और अपनी मुट्ठी भींच कर हाय हाय करने लगी।
उदयराज ने पांच छः मिनट तक रजनी की बूर को खूब जी भरके सूंघा, दोनों हांथों से कभी नरम नरम फांकों को खोलकर सूंघता, और कभी फांकों के बगल, ऊपर, नीचे और भागनाशे को सूंघता, कभी अपनी नाक से भागनाशे को रगड़ता और जब जब ऐसा करता रजनी हाय हाय करने लगती और उसका बदन पूरी तरह हिल जाता, उदयराज का बहुत मन कर रहा था कि वो अपनी सगी बेटी की बूर चाट चाट के खा जाए पर आज रात उसकी इजाजत नही थी। रजनी भी यही चाहती थी पर क्या करे। रजनी की बूर तड़प तड़प कर लिसलिसा काम रस छोड़ने लगी, जो पूरी तरह से उदयराज की नाक और मुँह पर लग चुका था, उदयराज ने बूर से मुँह हटा के काम रस को जीभ निकल कर होठों पे लगे काम रस को चाट लिया, क्योंकि वो आज रात बूर पर न तो जानबूझ कर होंठ लगा सकता था और न ही जीभ।
काफी देर बूर सूंघने के बाद उठकर बैठ गया, मस्त हो चुका था वो अपनी बेटी की बूर सूंघकर, रजनी ने तड़पकर अब अपने पैर सीधे किये और उदयराज पैरों के बीच से उठकर खड़ा हो गया, रजनी ने अपने पैरों को सटा कर बड़ी अदा से एक बार फिर अपनी मदमस्त बूर अपने बाबू के सामने कर दी, खड़े होकर उदयराज ने रजनी की फूली हुए मदमस्त चौड़ी और लंबी बूर को ललचाई नज़रों ने एक बार फिर घूरा, पर अब वक्त पूरा होने वाला था या हो सकता था ज्यादा भी हो गया हो, आज वो अपनी बेटी की बूर देखकर धन्य हो चुका था और अब आगे आने वाले असीम आनंद की कल्पना कर वो वासना से भर गया।
रजनी भी समझ गयी कि अब बाबू जाने वाले हैं वह चाहती तो थी कि अपने बाबू को अपने नितम्ब भी दिखाऊँ पर ये उसने फिर "बाद" पर छोड़ दिया, उदयराज ने बगल में जलता हुआ दिया बुझा दिया और एक बार फिर अपनी बेटी की बूर को झुककर जल्दी से जोर से सूंघा रजनी एकदम से चिहुँक उठी, उदयराज ने फिर बगल में कागज के ऊपर रखे गुलाब की पंखुड़ियों को तोड़ा और और बूर को उससे ढक दिया, रजनी अपने बाबू के इस सम्मान पर गदगद हो गयी, और उदयराज ने साड़ी और साये से रजनी के निवस्त्र हिस्से को ढक दिया फिर चादर उसके ऊपर डाल दी और कागज लेकर वहीं बैठकर कुछ लिखा और अपने खड़े लन्ड को adjust करता हुआ पर्ची को बगल में रखकर कोठरी से बाहर निकल गया।
रजनी काफी देर तक लेटी सिसकती रही उसकी बूर रह रहकर अब भी काम रस छोड़ रही थी।
वो सोचने लगी कि आज आखिर उसके बाबू ने उसकी बूर देख ही ली, एक बाप ने अपनी सगी बेटी की बूर को देख लिया, छू लिया और सूंघ भी लिया, कितना मादक है ये महापाप, ये व्यभिचार, मेरे बाबू मुझे पहले क्यों नही मिले? खैर आखिर मिल तो गए देर से ही सही, कितना मजा आएगा जब वो मुझे तृप्त करेंगे।
यही सब सोचते हुए रजनी काफी देर तक खोई रही फिर सो गई।