Incest Paap ne Bachayaa written By S_Kumar

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Notes:- iss story ko maine nahi likha iss story ko s_kumar ji ne likha isliye iss story ka sabhi credit s_kumar ji ko jata hai.
 
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Update- 33

अगले दिन उठते ही उदयराज को ऐसा महसूस हुआ कि जैसे नया युग आरंभ हो चुका हो, मन और तन में अद्भुत खुमारी का अहसास हो रहा था, मन इतना खुश था कि मानो संसार की सारी खुशियाँ आज उसकी झोली में हो, जैसे कोई ऐसा कठिन युद्ध जीत लिया हो जो असंभव था, उसने अपने हांथों को देखा और सोचने लगा बीती रात को किस चीज़ को छुआ था इन्होंने uuuuffff, मानो अभी भी बूर पर रेंग रहे हों, वो नरम नरम बूर की फांकें, उसकी गंध, सुबह उठते ही जैसे उसके नथुनों से वही गंध हवा में मिलकर टकरा रही हो। पाप का आगाज हो चुका था।

रजनी तो वहीं कोठरी में पड़ी पड़ी सिसकते हुए सो गई थी, सुबह 5 बजे करीब उसकी आंख खुली तो ऐसा लगा जैसे नई दुनियां में आ गयी हो, सब कुछ वही था, वही घर, वही आंगन, पेड़, पशु, सब वही था पर फिर भी सब नया नया सा लगने लगा, उसके साथ उसके अपने ही पिता ने रात को क्या किया?, कैसे किया? ये सोचते ही सुबह सुबह ही उसकी बूर फिर तड़प उठी, बहुत बेचैन हो गयी वो, फिर जैसे तैसे उठी, और आज फिर होने वाले उसी पापकर्म को सोचकर मुस्कुराते हुए घर के काम में लग गयी।

उदयराज कल की तरह आज भी जल्दी नाश्ता करके खेतों में चला गया।

दोपहर हुई, दोपहर से शाम हुई और शाम से रात, खाना खा के उदयराज आज फिर बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था, जैसे ही घड़ी की सुई ने 11:45 बजाए, वो तुरंत उठा और घर की तरफ चल दिया, दरवाजा कल की तरह खाली भिड़ाया हुआ था, धीरे से दरवाजा खोलकर अंदर गया, तेल की शीशी उठायी और कोठरी की तरफ चल दिया, सामने कोठरी के दरवाजे पर आकर रजनी को देखा तो वो आज भी कल की तरह पूरा चादर ओढ़े लेटी तो थी पर कुछ खास तरीके से, दरअसल रजनी बायीं तरफ करवट होकर लेटी थी, उसके नितम्ब दरवाजे की ओर थे, उसके पैर घुटनो तक मुड़े हुए थे जिससे उसकी भारी मदमस्त गांड उभरकर पीछे को निकल आयी थी।

अपने बाबू की आहट पाकर वो हल्का सा कसमसाकर हिली।

रजनी का दरवाजे की तरफ गांड करके लेटने का अर्थ उदयराज को समझ आते ही उसके चेहरे पर कामुक मुस्कान आ गयी वो समझ गया कि उसकी बेटी चाहती है कि वो आज उसकी बूर को पीछे से हाथ डाल के सहलाये।

उदयराज ने देखा कि ठीक कल की तरह आज भी रजनी ने कोठरी को नए फूलों से सजा रखा था और फूल तथा कपूर की खुशबू से कोठरी महक उठी थी।

उदयराज धीरे से आ के रजनी की गांड के पास बैठ गया, और अपना हाथ धीरे धीरे नाभी की ओर बढ़ाया, साड़ी के अंदर हाथ डालकर उसने नाड़े को खींचकर खोल दिया, साड़ी और साये की पकड़ अब ढीली हो गयी थी, रजनी सिसक उठी aaaahhhhhhh, उसकी बूर तो आज पहले ही रस छोड़ रही थी।

फिर उदयराज ने वहां से अपना हाथ निकालकर गांड की तरफ से गांड को न छूते हुए अपना हाथ सीधा बूर पर रख दिया, रजनी oooooohhhhh bbbaabbuuu कहकर चिहुँक उठी, उसका पूरा बदन थरथरा और गनगना उठा, उदयराज को हाथ लगाते ही ये महसूस हुआ कि उसकी बेटी की बूर तो पहले से ही भट्ठी की तरह जल रही है, मदहोश हो गया वो इतनी नरम और गरम बूर को छूकर, बूर तो फूलकर अपने सामान्य आकार से काफी ज्यादा बड़ी हो चुकी थी पर उसका प्यारा सा नरम नरम संकरी छेद वैसे ही कसा हुआ था, बूर की फांकें संभोग की आग में गरम होकर जल रही थी। उदयराज अपनी सगी बेटी की
पूरी बूर को हथेली में भरकर मीजने लगा, फांकों पर तर्जनी उंगली से दबाने लगा, पूरी बूर का मानो मुआयना कर रहा हो, कभी अपनी बीच वाली उंगली को बूर की दरार में डुबोता तो कभी फांकों पर हल्के हल्के बालों को सहलाता।

रजनी का बदन अब थरथराने लगा, उत्तेजना चरम सीमा तक इतनी जल्दी चढ़ जाएगी ये रजनी को विश्वास नही था, उसकी बूर नदी की तरह बहकर कामरस छोड़ने लगी।

रजनी हाय हाय करने लगी, उसको असीम आनद की अनुभूति होने लगी, काफी देर उदयराज अपनी सगी बेटी की बूर को छेड़ता, सहलाता, और भींचता रहा, कभी वो cliteries को दो उंगलियों से पकड़कर सहलाता, कभी अपनी तर्जनी उंगली cliteries पर गोल गोल घुमाता और फिर कभी उँगलियों से बूर के मदमस्त नरम नरम छोटे से छेद को छेड़ता। जैसे ही उदयराज अपनी सगी शादीशुदा बेटी की बूर के भागनाशे को छेड़ता रजनी बुरी तरह थरथरा जाती, उसका पूरा बदन ऐंठ जाता और उसके मुंह से
aaaaaahhhhhhh, hhhhaaaaaiiiiiiiii, uuuuuuuuuuffffffffff, bbbaaaaabbbbbuuuuu, धीरे धीरे सिसकारियों के साथ निकलने लगता। रजनी को इतना मजा अभी तक कभी नही आया था वो तो जैसे जन्नत में पहुँच गयी थी।

रजनी के काम रस से उदयराज की पूरी उंगली काफी पहले ही भीख चुकी थी, उदयराज ने अपना हाथ साड़ी के अंदर से निकाला और दिव्य तेल को हाथ पर उड़ेला, फिर हाथ को बड़ी सावधानी से बचाते हुए की वो भारी नितंबों को न छू जाए, बूर तक ले गया और सारा तेल बूर पर उड़ेलकर मर्दन करने लगा, उदयराज कुछ पल तक कस कस के बूर का मर्दन करता रहा, रजनी को एकाएक लगा कि वो अब झड़ जाएगी, इतना उनसे बर्दाशत नही हो पायेगा अब, तो एकदम से उसने चादर के अंदर से ही अपने बाबू का हाथ पकड़ लिया और कुछ देर पकड़े रही, अपनी उखड़ती सांसों को काबू करती रही। वो नही चाहती थी कि वो यूँ ही सिर्फ हाथ से सहलाने से झड़े, कई वर्षों से वो चुदी नही थी, वो अपने बाबू का लंड खाकर उसकी जबरदस्त झड़ना चाहती थी।

उदयराज रजनी के इस तरह उसका हाथ पकड़ने से समझ गया कि रजनी क्या बोल रही है, उसने अपना हाथ कुछ देर रोककर बूर पर रखे रहा फिर उंगलियों को अपनी नाक के पास लाके सूंघा और कामरस को चाटने लगा

रजनी ने अपना हाथ वहां से हटा लिया और पीठ के बल लेट गयी, उसने महसूस किया कि उसके बाबू बड़े चाव से कामांध होकर उसकी बूर का रस चाट रहे हैं, कोठरी में बहुत कम रोशनी थी और चादर के अंदर से तो बिल्कुल दिख नही रहा था, वह खाली आवाज से ये महसूस कर रही थी कि उसके बाबू उसकी बूर का मक्ख़न चाट रहे हैं, वह मुस्कुरा उठी, उदयराज ने फिर अपना हाथ नाभी की तरफ से साड़ी के अंदर डाला और फूली हुई बूर की दरार में तर्जनी उंगली डालकर मक्ख़न निकाला, जैसे ही उदयराज ने तर्जनी उंगली को बूर की दरार में डुबोया, रजनी के मुंह से फिर से एक बड़ी ही aaaaaaaaahhhhhhhhhh निकल गयी।

पेशाब की महक में सना वो बूर का मक्ख़न उदयराज मदहोश होकर चाट गया, अपनी सगी शादीशुदा बेटी के पेशाब की महक उदयराज को इतनी अच्छी लग रही थी कि उसका मन कर रहा था कि वो बस अपनी बेटी के बूर पर मुँह लगा के उससे निकलने वाला पेशाब जी भरके पी ले, वो देखना चाहता था कि उसकी बेटी की बूर से पेशाब कैसे निकलता है, जब वो बैठ कर मूतती है तो उसकी बूर देखने में कैसी लगती है, वो दृश्य कितना मादक होगा।

पर अभी उसमे कुछ वक्त बाकी था जल्दी ही वो अपना ये ख्वाब पूरा करेगा। यही सब सोचते हुए उसने पांच बार अपनी बेटी की बूर से काम रस रूपी मक्ख़न अपनी तर्जनी उंगली से निकलकर चाटा।

फिर उसने कल की तरह रजनी की ही बूर का मक्ख़न अपनी उंगली में लगा के उसके होंठो तक ले गया, रजनी उसकी महक से फिर मदहोश हो गयी और लब खोल दिये, उदयराज ने उंगली उसके मुँह में डाल दी और वो चाटने लगी जैसे बरसों की प्यासी हो, उदयराज कभी उसके होंठों पर अपनी उंगली से वो रस लिपिस्टिक की तरह लगाता और रजनी जीभ होंठों पर फिरा फिरा के चाटती तो कभी अपनी पूरी उंगली उसके मुँह में घुसेड़ देता और रजनी लॉलीपॉप की तरह चूसती, ऐसे ही उसने पांच बार बूर का रस अपनी बेटी को चटाया।

देखते ही देखते लगभग दस मिनट से ऊपर हो गए थे, उदयराज को अब बेमन से उठकर जाना था, जैसे ही उसने साड़ी की अंदर से अपना हाथ निकाला और तेल की शीशी बंद करने लगा रजनी समझ गयी कि अब बाबू चले जायेंगे, वो मन ही मन बहुत तड़प उठी, जैसे कह रही हो कि बाबू न जाओ, न जाओ मुझे तड़पता हुआ छोड़कर, आपकी छुवन से मेरी बूर में आग लग गयी है इसमें अपना मोटा मूसल जैसा लन्ड डालकर इसको रात भर चोदो, फाड़ डालो इसे बाबू, बहुत प्यासी है ये, अभी न जाओ बाबू, आपकी बेटी आपसे चुदना चाहती है, उसकी बूर सिर्फ आपकी है चोदो उसे।

पर जो कर्म लिखा था उसका पालन तो करना ही था, उदयराज भी बेमन से उठा और एक नज़र उसने रजनी को देखा और वहीं उसी के सामने खड़े खड़े ही, उसे दिखाते हुए उसने अपना मूसल जैसा बलशाली लंड धोती के ऊपर से ही adjust किया, रजनी को साफ साफ तो नही दिखा पर इतना तो जरूर दिखा की उसके बाबू का हाथ उनके लन्ड पर था, ये समझकर उसकी हल्की सी सिसकी निकल गयी कि उसके बाबू का लंड उसकी बूर में जड़ तक घुसने के लिए दहाड़े मार कर खड़ा हो चुका है।

उदयराज कोठरी से बाहर निकल गया और रजनी तड़पती रही।

इसी तरह एक रात और बूर की सहलाई और छुआई में निकल गयी।

उदयराज और रजनी को बेसब्री से इंतज़ार था अब चौथी रात का जिसमे होना था- "नग्न"

कमर से नीचे तक नग्न होकर अपना अनमोल खजाना अपने बाबू की आंखों के सामने लाने के लिए रजनी बेसब्र हो रही थी तो वहीं उदयराज भी अपनी बेटी की मक्ख़न जैसी बूर को देखने के लिए पागल हुआ जा रहा था, वह बार बार ये सोचकर सिरह उठता था कि जब वो रात को कमर से नीचे का जिस्म साड़ी उतारकर पूर्ण नग्न कर देगा तो उस वक्त उसकी अपनी सगी शादीशुदा बेटी का नंगा जिस्म देखने में कैसा लगेगा, उसकी बूर कैसी होगी, बूर की बनावट कैसी होगी, उसकी जाँघे कैसी होंगी, उसकी गांड कैसी और कितनी बड़ी होगी, देखकर कैसा लगेगा, अभी तक तो उसने सिर्फ बूर को ही छुआ था पर अब वो कमर से नीचे का सारा जिस्म नंगा करके देखेगा। यही सब सोचकर वह वासना में गनगना जाता। अब उसे और रजनी को इंतज़ार था तो बस बूर दिखाई की रात का।
 
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Update- 34

तीसरी रात जब उदयराज ने अपनी सगी बेटी की बूर का मर्दन करके और बूर का मक्ख़न खा के कर्म को पूरा किया तो वह अपने साथ लाये एक कागज पर कुछ लिखने लगा और लिखकर रजनी के सर के पास रखकर कोठरी से निकल गया, दिन में ये बात उसके दिमाग में आई थी कि कर्म के अनुसार एक दूसरे को देख नही सकते, एक दूसरे से बोल नही सकते पर लिखकर बयां तो कर ही सकते हैं। इसलिए उदयराज ने कागज पर कुछ लिखा और रजनी के पास रखकर चला गया। रजनी को उस वक्त ज्यादा साफ न दिखने से ठीक से पता नही चल पाया कि उसके बाबू क्या कर रहे हैं, उसे ये लगा कि पिछली रात की तरह वो अपने दहाड़ते हुए लन्ड को समझा रहे हैं कि थोड़ा सा और सब्र कर ले, और यह सोचकर वो मुस्कुराकर सिसकते हुए सो गई थी, पर चौथे दिन जब वो सुबह 4 बजे उठी तब उसे वो कागज मिला, रात का दिया तो बुझ चुका था, झट से उसने दिया जलाया और कागज खोला-

"मेरी प्रिय बेटी इतना सुख मुझे जीवन में कभी नही मिला....कभी नही, तू इतनी सुंदर है, तेरा वो अंग इतना कोमल और नरम नरम है कि मैं होश खो देता हूँ, इन तीन दिनों में मैंने जो तेरा काम रस चखा है, उससे मुझे कभी दूर मत करना, तुझे पाकर मैं धन्य हूँ, तेरे हुस्न से, तेरी अदा से मैं कायल हो गया हूँ तू सिर्फ मेरी है सिर्फ मेरी।

तीन रात तो बीत गयी अब चौथी रात होगी, उस रात का मुझे बहुत ही बेसब्री से इंतज़ार है, तब मैं तेरी वो देखूंगा.....वो, जिसको मैं तीन दिन से छू कर महसूस कर रहा था, चौथी रात मेरे जीवन की एक बहुत ही अनमोल रात है। ऊपर के रसीले होंठ को तो मैंने हमेशा देखा है जो कि दुनियाँ में सबसे रसीले हैं पर अब मैं नीचे के भी रसीले और नशीले होंठ देखूंगा, मैं तो दीवाना हो गया हूँ, जैसे कोई दूल्हा अपनी दुल्हन को उसकी मुँह दिखाई पर कुछ उपहार देकर या उसकी कोई मनोकामना पूरी कर उसके तन मन का सम्मान करता है वैसे ही मेरे मन में भी आवाज उठ रही है कि मैं अपनी बेटी को उसकी वो दिखाई पर उसकी मनोकामना पूर्ण कर उसका सम्मान करूँ, बोल मेरी रानी बिटिया मैं तेरी क्या मनोकामना पूर्ण करूँ?"

इतना पढ़ते ही रजनी तो सातवें आसमान में उड़ने लगी, गदगद हो गयी वो, उसने भी जल्द ही एक कागज कलम उठाया और मुस्कुराते हुए कुछ लिखने लगी। जब काकी घर में आई तो उनको देकर बोली- काकी ये पर्ची बाबू के तकिए के नीचे चुपचाप रख देना, कर्म से संबंधित कुछ है।

काकी समझ गयी कि इसको खोलना नही है और तुरंत ही जाकर उदयराज के तकिए के नीचे धीरे से रखकर चली आयी।

अभी थोड़ा अंधेरा था उदयराज सो ही रह था 5 बज चुके थे फिर 5:15 हुए, थोड़ा थोड़ा उजाला होने लगा, उदयराज उठा, आज कौन सा दिन था उठते ही सबसे पहले ये ख्याल उसके मन में आते ही ख़ुशी से पगला गया।

बिस्तर समेटने के लिए जैसे ही तकिए को उठाया, सामने कागज fold कर पड़ा हुआ था, मन मयूर झूम उठा उसका ये जानकर की बेटी ने उसकी उसकी छोड़ी हुई पर्ची पढ़ ली है और ये उसका जवाब है, हो न हो जरूर उसने ये काकी के हाथ रखवाया होगा, मन में तो उसके हुआ कि घर में जाके रजनी को बाहों में भरकर ताबड़तोड़ चूमने लगे, पर वासना और खुशी का घूंट पीकर रह गया। उस पर्ची को उसने उठाकर धोती में ये सोचते हुए खोंस लिया कि खेत में जाके तसल्ली से पढ़ेगा।

जल्दी जल्दी वो तैयार होकर खेतों में हल और बैल लेकर निकल गया, आज उदयराज को अपने दूर वाले खेत की मेड़ पर मिट्टी भी चढ़ानी थी, एक खेत तो उसका कुल वृक्ष के पास भी था पर वो खाली जोतकर छोड़ा हुआ था उस खेत के बाद नदी थी तो उसमें अक्सर वो धान की फसल लगाता था।

उदयराज ने जल्दी से खेत में पहुँचकर वो कागज खोला-

मेरे बाबू, मेरे दिल के राजा, मैं भी आपके बिना अब नही जी सकती, मेरा सिर्फ काम रस ही क्या, सबकुछ आपका है, और आजीवन रहेगा जितना जी भरके चाहो उतना चखो, मैं तो खुद आपकी दीवानी हूँ, मैं सिर्फ आपकी हूँ सिर्फ आपकी, मेरी हर चीज़ आपकी है, मेरे हर अंग पर सिर्फ आपका हक़ है, ऐसा यौन सुख एक बेटी को सिर्फ अपने बाबू से ही मिल सकता है और किसी से नही, और बाबू आज रात को जो आप देखोगे न उसको बूर कहते हैं, बताया तो था अभी कुछ दिन पहले धीरे से आपके कान में मेरे भोले बाबू जी। कितना शर्माते हो आप, अपनी ही बेटी से कोई इतना झिझकता है पगलू कहीं के। बेटी तो अपने बाबू के दिल में बसी होती है छुप छुप कर अपने पिता के दिल में रहती है मां से भी ज्यादा।

आपकी बेटी सिर्फ आपकी है और उसकी बूर सिर्फ आपके लिए है, एक बात बोलूं बाबू, मैं अभी भी कुंवारी जैसी ही हूँ कई वर्षों से, बस आप समझ जाइये की अब आपको मुझे कैसे और कितना प्यार देना है, आज रात का मुझे भी बहुत बेसब्री से इतंज़ार है, मैं आज लाल रंग की साड़ी पहनूँगी और अपने बगल में एक और घी का दिया बिना जलाए रखे रहूँगी क्योंकि बाहर वाले दिये से अच्छे से दिखेगा नही आप जब आना तो वो दिया जला लेना।

और मुझे आपसे जो चाहिए वो है सिर्फ आपका साथ और बस आपका प्यार, लेकिन फिर भी आपका मान रखने के लिए जब वक्त आएगा तब मैं मांग लूंगी अपने बाबू से क्योंकि अभी मुझे सिर्फ आपका प्यार पाने के सिवा कुछ सूझ नही रहा, और आपने ये जो तरीका निकाला है बात करने का उस पर तो मैं वारी वारी जाऊं मेरे बाबू मैं भी आपसे बात करना चाहती थी पर बेबस थी। आज की रात आपकी बेटी बहुत बेसब्री से आपका इंतजार करेगी।"

उदयराज ये पढ़ते ही झूम उठा किसी तरह उसने दिन भर सारा काम किया और शाम को जल्दी ही घर आ गया, काकी द्वार पर बैठी उसका इंतजार कर रही थी, उठकर गयी और पानी लायी, उदयराज ने पानी पिया और जाकर नहा लिया।

रजनी ने जल्दी जल्दी खाना बनाया और काकी ने उदयराज को बाहर ही नीम के पेड़ के नीचे खाना दिया और घर में रजनी और काकी ने भी खाना खा लिया, आज रजनी की बेटी थोड़ा रो रही थी रजनी ने उसे दूध पिलाया फिर काकी उसे काफी देर बाहर घुमाती रही और वो सो गई, काकी उसको लेकर अपनी खाट पर लेट गयी थोड़ी देर बाद उसकी भी आंख लग गयी। जैसे ही वक्त हुआ उदयराज अपनी खाट से उठा, रोज की तरह धीरे धीरे कदमों से चलता हुआ दरवाजे तक पहुँचा, जैसे ही हल्के दरवाजे की खुलने की आवाज हुई उधर कोठरी में लेटी रजनी ने नशे में अपनी आंखें मूंद ली, सांसे तेज चलने लगी, दिल धक धक करने लगा।

उदयराज ने आज तेल की शीशी नही ली बस कागज और कलम लिया।

आज कोठरी से लाल गुलाब की अत्यंत मनमोहक खुशबू आ रही थी जिसमे कपूर की खुशबू भी मिली हुए थी।

उदयराज कोठरी के दरवाजे के सामने आकर खड़ा हो गया, रजनी का दिल रोमांच से भर गया, उसने रोज की तरह कसमसा के अपने बाबू को ये आभास कराया कि वो उनका बेसब्री से इंतज़ार कर रही है।

आज दिये कि मध्यम रोशनी में लाल गुलाब से सजी कोठरी काम वासना को चरम पर पहुँचा रही थी, उदयराज अपनी बेटी की मेहनत पर गदगद हो गया, आखिर रोज रजनी हमारे इस प्यार को और सुखमय बनाने के लिए कितनी मेहनत कर रही है, मैं कसम खाता हूं कि अपनी बेटी के एक एक अंग को चरम सुख की प्राप्ति कराऊंगा, इतना प्यार दूंगा उसे की रोम रोम पुलकित हो उठेगा उसका। उदयराज ने एक संकल्प किया और एक भरपूर नज़र कोठरी में सजे फूलों पर डाली और उसमे से एक गुलाब तोड़कर हाथ में ले लिया।

उदयराज ने देखा रजनी ने बगल में एक छोटा दिया और माचिस रख दिया था, रजनी आंखें मूंदें चादर ओढ़े अपने बाबू की हर हरकत को भांप रही थी उसके दिमाग में बस अब एक ही बात थी कि अब आगे बाबू क्या करेंगे, अब क्या करेंगे, सारी दुनियां भूल चुकी थी वो।

उदयराज ने एक भरपूर नज़र अपनी बेटी के बदन पर डाली और उसके घुटनों के पास दायीं ओर बैठ गया, कागज और कलम बगल में रखकर कागज के ऊपर फूल जो उसने तोड़ा था उसको रख दिया।

रजनी से बर्दाश्त नही हो रहा था वो बार बार कसमसा के अपने बाबू को यह इशारा कर रही थी कि बाबू खोलो न।

उदयराज ने रजनी के पैरों से दबे चादर को पकड़कर ऊपर की तरफ हटाना शुरू किया जैसे ही रजनी के पैर बाहर दिखे उदयराज अपनी बेटी के गोरे गोरे दोनों पैर देखकर ही सम्मोहित सा हो गया, आज तीन दिन के बाद वो रजनी के पैर देख रहा था, रजनी ने अपने पैर के अंगूठे और उंगलियों को आपस में रगड़कर अपने बाबू को रिझाया।

पैरों में पड़ी पायल और दोनों पैर की उंगलियों में पड़ी बिछिया ने उदयराज का मन मोह लिया, लाल रंग की नेल पॉलिश उस गोरे गोरे पैर पर कयामत ही लग रही थी, कोठरी में हल्की रोशनी थी पर फिर भी रजनी का गोरा बदन चमक रहा था।

उदयराज ने पैरों को घूरते हुए चादर को खींचकर पूरा कमर तक पलट दिया, रजनी की सांसें तेज तेज चलने लगी, उदयराज ने देखा कि रजनी ने लाल साड़ी पहनी हुई थी आज वो दुल्हन की तरह लाल साड़ी पहनकर लेटी थी, चादर खिंचने से रजनी की साड़ी थोड़ा ऊपर चढ़ गई थी जिससे उसके गोरे गोरे पैर और उसपर भूरे भूरे रोएं देखकर उदयराज का लन्ड हरकत करने लगा।

पहले तो उदयराज ने पैर की तरफ से साड़ी ऊपर करने की सोची पर उसने इरादा बदलकर अपना हाथ ऊपर की तरफ बढ़ाया। रजनी समझ गयी और उसने साड़ी का पल्लू जो पीठ के नीचे दबा हुआ था उसको खींचकर लेकर कमर के पास रख दिया ताकि उसके बाबू को दिक्कत न हो, उदयराज ने चादर को और ऊपर तक किया अब रजनी की नाभि दिखने लगी, रजनी की गहरी नाभि देखकर उदयराज मदहोश हो गया एकदम से उसके दिमाग में आया कि योनि चुम्बन की रात तो कल है पर मैं नाभि तो चूम ही सकता हूँ और एकदम उसने नाभि पर एक गर्म जोरदार चुम्बन जड़ दिया।

रजनी को इसका आभास बिल्कुल नही था वह oooohhhhhhh bbbbaabbbuuuu कहकर चिहुँक उठी, उदयराज ताबड़तोड़ किसी बरसों के प्यासे की तरह नाभि और उसके आस पास कई चुम्बन अंकित करने लगा फिर उसने अपनी जीभ रजनी की गहरी नाभि में डाल दिया और डालकर काफी देर घुमाता रहा, कभी चूमता कभी घुमाता, रजनी uuuuuuuuffffffffff bbbbaaaaabbbbuuuuu करते हुए सिसक उठी।

उदयराज ने कुछ देर नाभि और उसके आस पास चूमने के बाद साड़ी के अंदर हाथ डालकर नाड़े की डोर खींचकर नाड़ा खोल दिया, साड़ी ढीली हो गयी और साया भी ढीला हो गया।

रजनी ने खुद ही अब सिसकते हुए अपने दोनों पर फैला कर अपने बाबू को जैसे पैरों के बीच आने का इशारा किया, उदयराज तुरंत समझ गया और उठकर दोनों पैरों के बीच आ गया।

और फिर वो हुआ जिसका बड़ी बेसब्री से इंतज़ार केवल उदयराज और रजनी को ही नही बल्कि नियति को भी था।

उदयराज ने अपने दोनों हांथों से रजनी की साड़ी को कमर से दोनों ओर से पकड़ा और धीरे धीरे नीचे की ओर सरकाने लगा, रजनी ने सिसकते हुए स्वयं ही अपने भारी नितंबों को उठाकर साड़ी को साये सहित नीचे खींचे जाने में अपने बाबू की मदद की, जैसे जैसे साड़ी नीचे सरकती गयी वैसे वैसे रजनी का निचला दूधिया बदन उजागर होता गया, रजनी की लाल रंग की पैंटी जो आज उसने जानबूझकर पहनी थी धीरे धीरे उदयराज की आंखों के सामने आती गयी, मोटी मोटी केले के तने के समान मांसल जांघे और उसमे फंसी छोटी सी लाल रंग की पैंटी ने उदयराज के होशो हवास उड़ा दिए।
जाँघों के बीच पैंटी के अंदर रजनी की फूली हुई बूर का आकार, दिये कि माध्यम रोशनी में साफ दिख रहा था, पैंटी उसकी बूर की फांकों में कुछ अंदर तक धंसी हुई थी और बूर जो वासना में काम रस छोड़े जा रही थी उससे बूर की जगह पर पैंटी गीली हो चुकी थी।

अभी साड़ी और साये को उदयराज ने घुटनों तक नीचे सरकाया था और उसकी नज़र अपनी सगी बेटी की माँसल मोटी मोटी कसी हुई जाँघों से हट ही नही रही थी, बहुत ही कामुक और बेशर्मी से आंखें फाड़े वो अपनी बेटी की टांगें, जांघ, पैंटी और नाभि को निहारता रहा फिर अचानक झुककर उसने दोनों जांघों को चूम लिया, उदयराज के होंठ अपनी जांघों पर लगते ही रजनी के जिस्म में गहराई तक कामुक तरंगे दौड़ गयी, वह सिरह उठी, तन और मन गनगना उठा, "उफ्फ बाबू" की हल्की आवाज निकालते हुए उसका बदन थरथराया।

वो डर भी रही थी कि कहीं बाबू बदहवासी में उसकी बूर को न चूम लें, क्योंकि बूर को चूमने और चाटने की रात कल है आज तो केवल दर्शन और सूंघने की रात है।


उदयराज बदहवासी में जांघों को चूमे जा रहा था और रजनी भी पागलों की तरह छटपटा रही थी, उसके मुंह से धीरे धीरे लगातार uuuuuiiiiimmmmmaaaaaaa........hhhhhhaaaaiiiiiiiiii.....bbbbbbbaaaabbbuuuuuuu, uuuuufffffffff....dddddaaaiiiiiyyyyyaaaaaa
निकले जा रहा था
उसका मन कर रहा था कि वो अपने पैरों की उंगलियों को आपस में रगड़े पर दोनों पैर के बीच उदयराज बैठा था, एकाएक उदयराज ने उठकर उसकी साड़ी को साये समेत खींचकर दोनों पैर से निकालकर बगल में रख दिया, रजनी ने भी अपने दोनों पैर अच्छे से उठाकर साड़ी को पूरा निकलने में अपने बाबू की मदद की। रजनी के बदन पर अब कमर से नीचे सिर्फ लाल रंग की पैंटी रह गयी थी, उदयराज रजनी के दोनों पैरों के बीच खड़ा मंत्र मुग्द होकर अपनी बेटी की मांसल गोरी गोरी जांघे और घुटने फिर नीचे के पैर घूरता रहा कुछ देर देखता रहा, उसका लन्ड फौलाद की तरह तनकर खड़ा हो चुका था, एक पल को उसे लगा कि वो अपना कंट्रोल खो देगा पर जैसे तैसे अपने को संभाला, रजनी ने चादर के अंदर से अपने बाबू को जब अपनी जांघे और पैंटी के ऊपर से बूर को घूरते देखा तो शर्म से अपने हांथों से अपने चेहरे को ढक लिया जबकि उसने चादर ओढा हुआ था फिर भी लज़्ज़ा वश वह सिरह उठी।

उदयराज पागलों की तरह रजनी के नंगे बदन को घूरे जा रहा था, इतनी सुंदर तो उसकी पत्नी भी नही थी जितनी उसकी बेटी थी, क्या मोटी मोटी गोरी गोरी मांसल जाँघे थी, तभी उदयराज नीचे बैठ गया और अपने दोनों हाथ से पैंटी को पकड़ा जैसे ही रजनी को अपने बाबू की उंगलियां अपनी पैंटी पर कमर के दोनों ओर महसूस हुई उसके बदन में हलचल हुई और सांसे और भी उखड़ने लगी, उदयराज ने पैंटी को नीचे सरकाना चालू किया, एक बार फिर रजनी ने धीरे से oooohhhhh mmmeerrrrreeee bbbbbbaaaabbbuuu बोलते हुए अपने भारी मांसल गुदाज नितम्ब को धीरे धीरे ऊपर ऊठाकर पैंटी को आसानी से निकल जाने में अपने बाबू की भरपूर मदद की

और......

उदयराज ने पैंटी को खींचकर नीचे घुटनों तक उतार दिया और जो उसने देखा उससे उसका मन मयूर और झूम उठा, रजनी ने पैंटी के अंदर भी गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों से अपनी प्यारी सी मक्ख़न जैसी मादक कसी हुई जवान बूर को छुपा रखा था। जब उदयराज ने पैंटी को घुटनों तक नीचे उतार दिया तो उसने देखा कि रजनी की बूर पर गुलाब के फूलों की पंखुड़ियां रखी हुई है जिससे उसको देख पाना मुश्किल है, उदयराज अपनी बेटी की इस नटखट अदा पर फिदा हो गया और ताबड़तोड़ उसकी जाँघों और नाभि, कमर के आस पास, और पैरों को चूमने लगा, रजनी hhhhaaaaaiiiiiii, hhhhaaaaaiiiiii करती हुई मादक सिसकारी लेने लगी, अपनी इस शरारत पर वो मुस्कुरा भी रही थी। उदयराज को तो होश ही नही था उसको तो जैसे जन्नत मिल चुकी थी जन्नत।

उदयराज ने जब मदहोशी की हालत में चूमकर उठा तो पास रखे घी के दिये को जलाकर थोड़ा पास रख लिया, अब कोठरी में थोड़ा ज्यादा उजाला हो गया, फिर उदयराज धीरे से रजनी की बूर पर झुका और गुलाब की एक एक पंखुड़ी को अपने होंठों से पकड़कर हटाने लगा, जैसे ही उदयराज की सांसें रजनी के बूर पर लगी, वो तो aaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh.....hhhhhhhhhaaaaiiiiiiiiiiiiii............bbbbbbbaaaaaaaabbbbbbbuuuuu बोलते हुए अपने होंठों को दांतों से दबाकर मचल उठी, उसका निचला बदन हल्का सा थरथरा उठा।

उदयराज ने एक एक करके सारी गुलाब की पंखुड़ियों को हटाकर बूर को पा ही लिया। अब बूर का अंतिम आवरण भी हट चुका था। एक सगी बेटी की बूर उसके पिता के सामने खुल चुकी थी, नियति भी इस महापाप की शुरुवात पर मुस्कुरा उठी।

रजनी की वो प्यारी प्यारी नरम नरम मदहोश कर देने वाली गोरी गोरी बूर उदयराज के आंखों के सामने थी, रजनी अब नीचे से मदरजात नग्न अपने बाबू के सामने पड़ी थी। ऊऊफफ बूर की वो मक्ख़न जैसी फांकें, क्या मस्त बूर थी रजनी की, गोरी गोरी मोटी मोटी मांसल जाँघों के बीच वो बड़ी सी फांकों वाली अपनी सगी बेटी की बूर को देखकर उदयराज बदहवास हो गया, उसे मानो होश ही नही, इतनी सुंदर बूर है उसकी अपनी ही सगी बेटी की, वो फूला नही समा रहा था, उत्तम श्रेणी की बूर थी रजनी की, बड़ी बड़ी नरम नरम फांकें थी बूर की, बूर की फांकों के बीच से हल्का काम रस रिस रहा था, दोनों फांकों पर हल्के हल्के बाल थे और फांकों के बीच प्यारा सा भगनासा हल्का हल्का दिख रहा था, रजनी ने लज़्ज़ा से अपने चेहरे को अपने हांथों से ढक लिया।
बूर के ऊपर हल्के हल्के काले काले बाल थे, बूर के नीचे जाँघों के बीच चटाई पर गुलाब की पंखुड़ियां गिरी हुई थी।

एकएक उदयराज ने बगल में रखा दिया उठा लिया और उसको बूर के पास बूर को अच्छे से देखने के लिए लाया, बूर को दिए कि रोशनी में नजदीक से देखते ही उदयराज ने नशे से एक पल के लिए आंखें बंद कर ली, सांसे उसकी भी उखड़ने लगी, लन्ड ने धोती में हाहाकार मचा रखा था, जैसे अभी इजाजत मिले तो फाड़कर बाहर आ जाये।

एकएक जब रजनी ने देखा कि उसके बाबू दिया उठाकर उसकी बूर नजदीक से देख रहे हैं तो उसने खुद ही अपने दोनों पैर को फैलाने की कोशिश की पर पैंटी अभी घुटनों में फंसी थी।

उदयराज ने ये देखते ही दिया रखकर पैंटी को खींच कर पूरा पैर से बाहर निकाल दिया और बगल में साड़ी के ऊपर रखने ही वाला था कि अपनी सगी शादीशुदा बेटी की काम रस और पेशाब से सनी पैंटी से आती भीनी भीनी महक ने उसका ध्यान खींचा लिया और उसने रजनी को दिखाते हुए उसकी पैंटी को अपनी नाक से लगा के कस के उसे सूंघा और नशे से उसकी आंखें बंद हो गयी, रजनी भी धीरे से खिलखिला के हंस पड़ी पर उसने जल्द ही अपनी आंखें बंद कर ली क्योंकि दो दिए कि रोशनी में अब उसके बाबू चादर के अंदर से हल्के हल्के दिख रहे थे।

उदयराज ने जी भरके पैंटी को सूंघा मानो जैसे को वो अपनी बेटी की कोई भी चीज़ छोड़ना नही चाहता हो, रजनी भी ये सोचकर मुस्कुरा रही थी कि उनकी बेटी की नंगी बूर सामने खुली हुई है और मेरे बाबू अपनी बेटी की कच्छी में उलझे हैं।

पैंटी निकल जाने के बाद रजनी ने धीरे धीरे पैरों को फैलाते हुए घुटनों को मोड़कर अपनी जाँघों को खोलकर फैला दिया, उदयराज ने दिया फिर से उठाकर रजनी की बूर के पास किया।

जाँघों के फैलने से रजनी की बूर फ़ैलती और खुलती चली गयी दोनों फांकों के फैलने से वो प्यारा सा गुलाबी संकरी, छोटा सा बूर का छेद उदयराज की आंखों के सामने आ गया, बूर की cliteries खिलकर बाहर आ गयी और दोनों फांकों के हल्का खुलने से उनके बीच रिस रहे लिसलिसे काम रस से हल्के दो तीन तार बन गए, रजनी की बूर काम रस से सराबोर हो चुकी थी।

बूर की ये आभा देखकर उदयराज से अब बर्दाश्त नही हुआ और कुछ देर बूर को निहारने के बाद झट से उसने दिया बगल में रखा और अपनी नाक अपनी सगी शादीशुदा बेटी के बूर की फांकों के बीच लगा कर एक गहरी सांस खींचकर उसको सूंघा, कामरस और पेशाब की भीनी भीनी गंध उसके रोम रोम तक समाती चली गयी, बूर पर नाक लगाते ही रजनी की जोरदार सिसकी निकल गयी और मचलकर aaaahhhhhhhhhh mmmeeeerrrrreeeee pppppyyyaaaaarrrrrreeeeee bbbaaaaabbbbuuuuuu कहते हुए उसने तड़पकर अपनी कमर से ऊपर का हिस्सा धनुष की तरह ऊपर को मोड़ लिया, जिससे उसकी दोनों विशाल चूचीयाँ ऊपर को उठ गई। उसकी आंखें नशे में बंद हो गयी, एकएक रजनी के हाथ अपने बाबू के सर को पकड़कर अपनी दहकती बूर पर और दबाने तथा बालों को सहलाने के लिए उठे पर कर्म के नियम का ध्यान आते ही वो मन मकोसकर रह गयी और अपनी मुट्ठी भींच कर हाय हाय करने लगी।

उदयराज ने पांच छः मिनट तक रजनी की बूर को खूब जी भरके सूंघा, दोनों हांथों से कभी नरम नरम फांकों को खोलकर सूंघता, और कभी फांकों के बगल, ऊपर, नीचे और भागनाशे को सूंघता, कभी अपनी नाक से भागनाशे को रगड़ता और जब जब ऐसा करता रजनी हाय हाय करने लगती और उसका बदन पूरी तरह हिल जाता, उदयराज का बहुत मन कर रहा था कि वो अपनी सगी बेटी की बूर चाट चाट के खा जाए पर आज रात उसकी इजाजत नही थी। रजनी भी यही चाहती थी पर क्या करे। रजनी की बूर तड़प तड़प कर लिसलिसा काम रस छोड़ने लगी, जो पूरी तरह से उदयराज की नाक और मुँह पर लग चुका था, उदयराज ने बूर से मुँह हटा के काम रस को जीभ निकल कर होठों पे लगे काम रस को चाट लिया, क्योंकि वो आज रात बूर पर न तो जानबूझ कर होंठ लगा सकता था और न ही जीभ।

काफी देर बूर सूंघने के बाद उठकर बैठ गया, मस्त हो चुका था वो अपनी बेटी की बूर सूंघकर, रजनी ने तड़पकर अब अपने पैर सीधे किये और उदयराज पैरों के बीच से उठकर खड़ा हो गया, रजनी ने अपने पैरों को सटा कर बड़ी अदा से एक बार फिर अपनी मदमस्त बूर अपने बाबू के सामने कर दी, खड़े होकर उदयराज ने रजनी की फूली हुए मदमस्त चौड़ी और लंबी बूर को ललचाई नज़रों ने एक बार फिर घूरा, पर अब वक्त पूरा होने वाला था या हो सकता था ज्यादा भी हो गया हो, आज वो अपनी बेटी की बूर देखकर धन्य हो चुका था और अब आगे आने वाले असीम आनंद की कल्पना कर वो वासना से भर गया।

रजनी भी समझ गयी कि अब बाबू जाने वाले हैं वह चाहती तो थी कि अपने बाबू को अपने नितम्ब भी दिखाऊँ पर ये उसने फिर "बाद" पर छोड़ दिया, उदयराज ने बगल में जलता हुआ दिया बुझा दिया और एक बार फिर अपनी बेटी की बूर को झुककर जल्दी से जोर से सूंघा रजनी एकदम से चिहुँक उठी, उदयराज ने फिर बगल में कागज के ऊपर रखे गुलाब की पंखुड़ियों को तोड़ा और और बूर को उससे ढक दिया, रजनी अपने बाबू के इस सम्मान पर गदगद हो गयी, और उदयराज ने साड़ी और साये से रजनी के निवस्त्र हिस्से को ढक दिया फिर चादर उसके ऊपर डाल दी और कागज लेकर वहीं बैठकर कुछ लिखा और अपने खड़े लन्ड को adjust करता हुआ पर्ची को बगल में रखकर कोठरी से बाहर निकल गया।

रजनी काफी देर तक लेटी सिसकती रही उसकी बूर रह रहकर अब भी काम रस छोड़ रही थी।

वो सोचने लगी कि आज आखिर उसके बाबू ने उसकी बूर देख ही ली, एक बाप ने अपनी सगी बेटी की बूर को देख लिया, छू लिया और सूंघ भी लिया, कितना मादक है ये महापाप, ये व्यभिचार, मेरे बाबू मुझे पहले क्यों नही मिले? खैर आखिर मिल तो गए देर से ही सही, कितना मजा आएगा जब वो मुझे तृप्त करेंगे।

यही सब सोचते हुए रजनी काफी देर तक खोई रही फिर सो गई।
 
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अगले दिन रोज की तरह जब रजनी सुबह 4 बजे सोकर उठी तो उसने देखा कि कमर के नीचे के जिस्म चादर के अंदर पूर्ण नग्न था रात में जो उसके पिता ने साड़ी और साया उसके बदन पर रख दिया था वो करवट बदलते हुए इधर उधर गिर गया था, यह देखकर वो अपने आप में ही शर्मा गयी और बगल में पड़ी पैंटी को उठाकर पहले लेटे लेटे ही पैरों में डालकर जाँघों तक चढ़ाया फिर उठ बैठी और पैंटी पहन ली, खड़ी होकर फिर उसने साड़ी और साया भी पहन लिया, चटाई पर ढेर सारी गुलाब की पंखुड़ियां फैली हुई थी जो रात में हुए बाप बेटी के अत्यंत कामुक पापलीला को बयाँ कर रहे थे, रजनी ने उन्हें हाथ में उठाकर बड़े ही मादक ढंग से सूंघा और मुस्कुरा पड़ी।



आज पांचवा दिन था एकाएक रजनी की नज़र बगल में पड़े कागज पर पड़ी, उसने दिया जलाया और कागज खोला, उसमे लिखा था-



"ऐसी वो तो तुम्हारी माँ की भी नही थी मेरी रानी बेटी, मुझे ऐसी ही वो चाहिये थी, धन्य हो गया मैं तुझे पाकर, अब बर्दाश्त नही हो रहा मेरी बिटिया, आज पांचवी रात होगी और हाय मुझे आज अपनी बेटी के नीचे के होंठ खाने को मिलेंगे"



रजनी मन ही मन पढ़कर मुस्कुरा उठी और सोचने लगी बाबू बर्दाश्त तो अब मुझसे भी कहाँ हो रहा है



उसने फिर एक कागज लिया उसमे मुस्कुराते हुए कुछ लिखा और कल की तरह काकी के हाँथ से उदयराज के तकिए के नीचे रखवा दिया, काकी ने आज वो कागज लेते हुए रजनी को मुस्कुराते हुए देखा तो रजनी शर्मा गयी, काकी को ये तो शक था कि कर्म में कुछ तो रसीला लिखा हुआ है, जो ये बाप बेटी कर रहे हैं, पर एक बड़ी बुजुर्ग होने के नाते उसने बस अभी रजनी और उदयराज के कर्म को सुरक्षा देना ही उचित समझा, वो जानती थी कि एक न एक दिन रजनी उसे ये भेद बताएगी।



उदयराज रोज की तरह उठा और अत्यंत खुशी से बिस्तर समेटने लगा तो कल की तरह आज भी उसे तकिए के नीचे कागज मिला, उसने वो कागज आज भी धोती में ये सोचते हुए खोंस लिया को खेत में अकेले में पढ़ेगा एकांत में।



रोज की तरह फटाफट तो फावड़ा लेकर खेत में पहुँच गया, आज बैल का कोई काम नही था तो वो बस गुड़ाई के लिए फावड़ा लेकर खेत चला गया, बड़ी बेसब्री से उसने वो कागज खोला-



मेरे प्यारे बाबू, अम्मा की कैसी थी कैसी नही ये तो मुझे नही पता, पर मैं अम्मा की जगह नही लेना चाहती, मैं आपकी बिटिया हूँ और बेटी रहकर ही आपका वो प्यार पाना चाहती हूं, मैं हमेशा आपको केवल पिता के रूप में ही सोचकर अत्यंत उत्तेजित हुई हूँ, और आप मेरे बाबू है ही, मुझे आपसे बाबू वाला यौनसुख चाहिए तभी तो ये महापाप फलित होगा न बाबू, और हमारे कुल की रक्षा हो पाएगी, हमे पाप करना है बाबू पाप, और मेरे शुग्गु मुग्गु बाबू उसको बूर बोलते है बूर, अभी कल भी बताया फिर भूल गए उसका नाम। आपकी बेटी की बूर है वो जो आज रात आपको खाने को मिलेगी, मैं बेसब्री से इंतज़ार करूँगी अपने बाबू का। आपकी तरह मैं भी पगला गयी हूँ।



उदयराज ने खुश होते हुए वो कागज मोड़कर रख लिया और खड़े होते हुए लंड को संभाला, दिन भर खेतों में काम करके शाम को घर आया और रोज की तरह सबकुछ वैसे ही बीता और देखते देखते रात हो गयी, सब सो चुके थे आखिर वो पल आ ही गया, उदयराज चुपचाप धीरे धीरे घर में पहुँचा, कोठरी के सामने आके खड़ा हुआ, रजनी को आहट लगते ही वो कसमसाई, आज अपनी बेटी उसे और भी गदराई लग रही थी, बगल में आज भी एक और दिया रखा हुआ था, आज उदयराज बहुत बेसब्र था, रोज की तरह आज भी रजनी ने कोठरी को सुहागरात की तरह सजाया हुआ था, गुलाब के फूलों से सुसज्जित कोठरी अलग ही शोभा बढ़ा रही थी और उफ्फ ये गुलाब और कपूर की महक, दिल खुश कर दे रही थी।



उदयराज बेसब्रों की तरह रजनी की कमर के पास दायीं ओर बैठ गया, कोठरी में बाहर जल रहे दिए कि हल्की रोशनी आ रही थी।



उदयराज ने सबसे पहले पैरों की तरफ से चादर को हटाकर कमर तक कर दिया, आज भी रजनी ने दूसरी लाल साड़ी ही पहनी थी, चादर कमर से ऊपर तक हटते ही नाभि और आस पास का हिस्सा दिखने लगा, नाभि खुलते ही किसी भूखे की तरह उदयराज उस पर टूट पड़ा, एकाएक उसने कई चुम्बन ताबड़तोड़ नाभि पर अंकित कर दिए, रजनी चिहुकते हुए हंस पड़ी अपने बाबू की बेसब्री देखकर, और फिर सिसकने भी लगी, कुछ देर नाभि को चूमने के बाद उसने अपनी जीभ नाभि में घुसेड़ दी, रजनी का पूरा शरीर हिल गया, नाभि का रसपान करने के बाद उदयराज ने आज अपनी बेटी की साड़ी को पैरों की तरफ से ऊपर उठाकर उसे नग्न करके उसका यौवन चखने की सोची, उसने अपनी बेटी के पैरों को बहुत प्यार से निहारा और उन्हें ही देखकर इतना मदहोश हो गया की झुककर अपनी बेटी के पैरों की उंगलियों, अंगूठे और एड़ी को चूमने और चाटने लगा, रजनी एक बार फिर अपने बाबू की इस तड़प पर खिलखिलाकर सिसकते हुए हंस दी और अपने पैर की उंगलियों को आपस में वासना से बेकाबू होकर रगड़ने लगी।



फिर जैसे ही उदयराज ने पैर के पास साड़ी को उठाने के लिए पकड़ा, रजनी ने अपने दाहिने पैर के पंजे को "ना" में हिलाते हुए इशारा किया। (जैसे हम सर हिलाकर ना करते हैं)



उदयराज अपनी बेटी की इच्छा को समझ गया की वो चाहती थी कि साड़ी को ऊपर की तरफ से खोलकर कल की तरह खींचकर पूरा निकाल दें ताकि पैर से लेकर नाभि तक का पूरा हिस्सा बिल्कुल नग्न हो जाये और पूरे पैर अच्छे से फैलाये जा सकें, उदयराज अपनी बेटी की इस कामुक इच्छा को भांपते ही बड़े प्यार और दुलार से उसके दाहिने पैर जो की "ना" का इशारा करते हुए हिल रहे थे, ताबड़तोड़ चूमने लगा, रजनी फिर हंस पड़ी अपने बाबू के इस प्यार और दुलार पर।



आख़िरकर उदयराज ने साड़ी को ऊपर से खोलने के लिए हाथ बढ़ाया और साड़ी के अंदर हाथ डालकर नाड़े को खींचकर खोल दिया फिर रजनी के दोनों पैरों के बीच आकर साड़ी को साये समेत कमर से पकड़कर नीचे खींच दिया, आज रजनी ने पैंटी नही पहनी थी। रजनी ने अपने भारी गुदाज नितम्ब उठाकर साड़ी को निकल जाने में अपने बाबू की भरपूर मदद की।



बाहर जलते दिये कि हल्की रोशनी में एक बेटी की मदमस्त फाँकों वाली कसी कसी कमसिन, वासना में फूली हुई, हल्का हल्का काम रस छोड़ती हुई बूर उसके पिता की नज़रों के सामने उजागर हो गयी। उदयराज आंखें फाड़े कुछ देर अपनी सगी बेटी की बूर निहारता रहा, उसकी बनावट और आकार, उसकी आभा देखकर वासना से भर गया, कैसी फूली हुई बूर थी, मोटी मोटी दोनों मांसल जांघों के बीच वो अंग्रेजी के वी "\!/" जैसा आकार लिए करीब पांच पांच इंच लंबे दोनों फांक आपस में सटे हुए थे, मानो बूर के अंदर रखे असीम सुख के खजाने की रक्षा कर रहे हों। हल्के काले काले बालों से बूर हल्की छिपी हुई सी लगती थी।



उदयराज ने अपनी सगी बेटी की बूर को अभी कल ही देखा था आज दूसरा दिन था फिर भी उसे ऐसा लग रहा था जैसे पहली बार देख रहा हो।



आज अपनी बेटी के पैंटी न पहनने पर उदयराज उसकी मंशा जान गया और बेताब होते हुए उसने एक ही झटके में साड़ी और साये हो खींचकर पैर से निकाल कर बाहर कर दिया।



और फिर बिना समय गवाये वासना से वशीभूत शेर की तरह दहाड़ता हुआ अपनी सगी बेटी की बूर पर टूट पड़ा, उसने अपने होंठों से अपनी सगी बेटी की बूर पर एक बहुत जोरदार और कामुक चुम्बन जड़ दिया, खुद आज उसके मुँह से बड़ी ही मादक आवाज में aaaaahhhhhhhhhh bbbbbbeeetttttiiii निकला।



अपने बाबू का अचानक अपने बूर पर जोरदार चुम्बन पा के रजनी का बदन सर से लेकर पाँव तक सरसराहट में हिल गया, अंग अंग थरथरा उठा, बड़ी ही तेज और मादक आवाज में उसने भी aaaaaaaaaahhhhhhhhhh.....bbbbbbbbbaaaaaaaabbbbbbbbuuuuuuu



बोलते हुए अपने पैरों को हवा में जितना हो सके फैलाते हुए अपनी कसी कसी मांसल जाँघों को खुलकर अपने बाबू के लिए खोल दिया, जिससे उनकी बूर उभरकर उदयराज के मुंह के सामने आ गयी और दोनों फांकें खुलकर फैल गयी, हल्के दीये कि रोशनी में उदयराज अपनी सगी बेटी की फैली हुई बूर को देखकर और भी पागल हो गया और उसने अपनी लंबी सी जीभ निकाली, फिर जीभ को बूर के नीचे अंतिम छोर पे गांड की छेद के पास लगाया और सर्रर्रर्रर्रर से पूरी बूर को चाटता हुआ नीचे से एकदम ऊपर तक आया, अपने बाबू के ऐसा करने से रजनी बौखला गयी और मदहोशी में अपनी आंखें बंद करके अपने होंठों को दांतों से काटते हुए बड़ी जोर से सिसकी और uuuuuuiiiiiiiiiiiiii mmmmmaaaaaaaaaaaaaa बोलते हुए

पूरे बदन को धनुष की तरह ऊपर को मोड़ती चली गयी, उसकी विशाल चूचियाँ तनकर ऊपर को उठ चुकी थी और निप्पल तो इतने सख्त हो गए थे कि वो खुद ही उन्हें हल्का हल्का मसल रही थी।



बूर की पेशाब और काम रस की गंध से उदयराज पागल हो चुका था, उसने इसी तरह कई बार पूरी पूरी बूर को नीचे से लेकर ऊपर की तरफ विपरीत दिशा में लप्प लप्प करके चाटा, जब उदयराज बूर के ऊपरी हिस्से पर पहुचता तो बूर के ऊपर बालों में अपनी जीभ फिराता और फिर जीभ को फैलाके गांड की छेद के पास रखता और फिर सर्रर्रर्रर्रर्रर्रर से लपलपाते हुए पुरी बूर पर जीभ फिराते हुए ऊपर की ओर आता और कभी तो वो ऊपर आकर बूर के ऊपर घने बालों पर जीभ फिराता कभी जहां से दरार शुरू होती है वहां पर जीभ को नुकीली बना कर दरार में डुबोता और भगनासे को जी भरकर छेड़ता, फिर भगनासे के किनारे किनारे जीभ को गोल गोल घूमता।



रजनी की पूरी बूर उदयराज के थूक से गीली हो चुकी थी, उसकी बूर से निकलता काम रस उदयराज बराबर अपनी जीभ से चाट ले रहा था, पूरी कोठरी में हल्की हल्की चप्प चप्प की आवाज के साथ दोनों बाप बेटी की सिसकियां गूंजने लगी।



उदयराज ने फिर एक बार अपनी जीभ को नीचे गांड के छेद के पास लगाया और इस बार उसने जीभ को नुकीला बनाते हुए जीभ को अपनी बेटी की बूर की दरार में नीचे की तरफ डुबोया और दरार में ही डुबोये डुबोये नुकीली जीभ को नीचे से खींचते हुए ऊपर तक लाया, पहले तो एक बार जीभ रजनी की बूर के संकरी छेद में घुसने को हुई पर फिर फिसलकर ऊपर चल पड़ी और भगनासे से जा टकराई, फिर उदयराज ने वहां ठहरकर भगनासे को लप्प लप्प करके कई बार चाटा।



रजनी के बदन की एक एक नस आनंद की तरंगों से गनगना उठी, बड़ी ही तेज तेज उसके मुँह से अब सिसकियां निकल रही थी मानो अब लाज, संकोच और डर (की कोई सुन लेगा) जैसे हवा हो चुका था, अपने पैरों को मोड़कर उसने अपने बाबू की पीठ पर रख लिया था, गनगना कर कभी वो अपने बाबू को पैरों से जकड़ लेती कभी ढीला छोड़ देती। बेतहासा कभी अपना सर दाएं बाएं पटकने लगती, कभी अपने हांथों से चूचीयों को कस कस के मीजती, चादर उसका उनके चेहरे से हट चुका था पर वो नीचे की तरफ नही देख रही थी, उसकी आंखें अत्यंत नशे में बंद थी, कभी थोड़ी खुलती भी तो वो हल्का सा कोठरी की छत को देखती।



उनकी सांसे बहुत तेज ऊपर नीचे हो रही थी, लगातार उसके बाबू उसकी बूर को एक अभ्यस्त खिलाड़ी की भांति चाटे जा रहे थे, जीवन में पहली बार ढंग से किसी मर्द की जीभ उसकी बूर पर लगी थी और वो भी खुद उसके सगे पिता की, आज पहली बार वो अपने बाबू से अपनी बूर चटवा रही थी, इतना परम सुख उसे कभी नही मिला। उदयराज की मर्दाना जीभ की छुअन से रजनी नशे में कहीं खो गयी थी।



नियति भी इन बाप बेटी के धैर्य को देखकर चकित थी, दोनों ने ही अपने कामोन्माद को किस तरह काबू किया हुआ था, कोई और होता तो अब तक सब भूल कर संभोग कर चुका होता, क्योंकि सगे बाप बेटी के रिश्ते में छुप छुप के हुए इस व्यभिचार में ख़ुद को इतना संभाले रहना सबके बस की बात नही।



पूरी कोठरी में बूर चाटने की चप्प चप्प आवाज सिसकियों के साथ गूंज रही थी। एकएक उदयराज को कुछ कमी महसूस हुई वो और ज्यादा गहराई से अपनी सगी बेटी की बूर को खाना चाहता था, उसने रजनी के बूर से मुँह हटाया तो उसके होंठों और रजनी की बूर की फाँकों के बीच लिसलिसे कामरस और थूक के मिश्रण से दो तीन तार बन गए, उदयराज ने बड़ी मादकता से उसे चाट लिया और उठने लगा।



रजनी ने झट से चादर चहरे पर डाल लिया और असमंजस में सोचने लगी कि क्या बाबू आज इतनी जल्दी चले जायेंगे? नही नही, इतनी जल्दी नही जाना चाहिए बाबू को, मुझे अभी और चुम्बन चाहिए अपनी बूर पर, वो थोड़ा दुखी हो गयी, उदयराज झट से कोठरी से बाहर गया, रजनी ने उदासी से ये सोचकर अपने पैर नीचे कर लिए की आज बस इतना ही, वो ऐसे ही चटाई पर जांघ फैलाये पैर नीचे किये लेटी रही, लेकिन उसका दिल कह रहा था कि उसके बाबू गए नही हैं, जरूर कोई बात है, क्योंकि जाते तो वो अपनी बेटी की बूर को ढककर जाते, सम्मान दे के जाते, आखिर वो इंतज़ार करने लगी उनके आने का। उसने अपनी बूर को स्वयं ढका भी नही वैसे ही बूर खोले लेटी रही।



उदयराज कोठरी से निकलकर अपना दहाड़ता हुआ खड़ा लंड लेकर बरामदे में अंधेरे में तकिया ढूंढने लगा पर उसे वहाँ तकिया मिला नही।



फिर उसे अपने बिस्तर का ध्यान आया कि उसके बिस्तर पर तकिया रखा हुआ है, वो अपना तना हुआ लंड लेकर धीरे से दरवाजा खोलकर बाहर गया, बाहर गुप्प अंधेरा था, दरवाजे की हल्की सी खुलने की आहट से रजनी एक बार फिर पूरी तरह उदास हो गयी उसे लगा कि बाबू तो सच मे चले गए, पर फिर भी उसका मन नही माना और वो इंतज़ार करती रही, उसे विश्वास था कि उसके बाबू ऐसे नही जा सकते।



उदयराज धीरे से अपने बिस्तर से बेहद मुलायम तकिया उठा लाया और घर का दरवाजा खोल अंदर आ गया, रजनी दुबारा दरवाजे के खुलने की आहट से प्रफुल्लित हो उठी और चादर को अच्छे से ओढ़ लिया।



उदयराज ने रजनी के पैर को उठाया तो रजनी ने स्वयं ही पैर हवा में उठा कर जाँघों को पूरा फैलाकर अपनी प्यारी फूली हुई बूर एक बार फिर अपने बाबू के सामने खोलकर परोस दी।



उदयराज ने जब रजनी की गांड के नीचे हाथ लगा के उसे गांड को ऊपर उठाने का इशारा किया तो रजनी ने एकदम से अपनी गांड को ऊपर उठा लिया, उदयराज ने जब गांड के नीचे तकिया लगाया तब रजनी को समझ आया कि उसके बाबू तकिया लेने गए थे ताकि बूर और खिलकर ऊपर को उठ सके, वो मंद मंद मुस्कुरा उठी।



अब वो गांड के नीचे तकिया लगाए अपने दोनों पैर हवा में विपरीत दिशा में फैलाये, अपनी जाँघों को अच्छे से खोले और बूर को एकदम से ऊपर उठाकर अपने बाबू के सामने मदरजात नंगी पड़ी थी, तकिया लगने से उसकी कमर का हिस्सा ऊपर उठ गया था और अब नीचे से उसकी गांड का काफी हिस्सा भी दिख रहा था।



उदयराज ने बगल में पड़े दिए को भी जला दिया



अब तो रजनी ने शर्म की वजह से अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया क्योंकि उसकी बूर अब पूरा उभरकर उसके बाबू के सामने आ गयी थी और अब कोठरी में रोशनी भी ज्यादा हो गयी थी।



दिये कि तेज रोशनी में जब उदयराज ने अपनी बेटी की मोटी मोटी गोरी शख्त फैली हुई जाँघे, पैर, कमर और नाभि तथा नाभि के आस पास का हिस्सा, जाँघों के नीचे तकिए पर भारी भारी उन्नत मांसल नितम्ब का कुछ निचला हिस्सा, और काम रस तथा थूक से सनी, फूली हुई काले काले हल्के बालों वाली गोरी गोरी बूर जिसकी फांकें फैलने की वजह से हल्की खुली हुई थी और भगनासा खिलकर बाहर निकला हुआ था, देखा तो उदयराज दुबारा पागल होने लगा।



उसने दहाड़ते हुए अपनी दो उंगलियों से अपनी बेटी की बूर की फांकों को अच्छे से चीरा, एक तो जांघे फैलने से बूर पहले ही खुली हुई थी ऊपर से उदयराज ने उंगलियों से फांकों को और चीर दिया जिससे बूर का लाल लाल संकरी छेद और भगनासा दीये की रोशनी में चमक उठा, उदयराज लपकते हुए बूर पर बेकाबू होकर टूट पड़ा और जीभ से बूर के लाल लाल कमसिन कसे हुए छोटे से छेद को बेताहाशा चाटने लगा।



रजनी का बदन अचानक ही बहुत तेजी से थरथराया और रजनी ने aaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhhhh, uuuuuuuuuiiiiiiiiiiiiiiiiimmmmmmaaaaaaaaaaaaaaaa कहते हुए बड़ी मुश्किल से अपनी आवाज को सिसकते हुए दबाया।



उदयराज लप्प लप्प जीभ से अपनी बेटी की बूर के छेद को चाटे जा रहा था, रजनी फिर से तड़प तड़प कर अपना सर दाएं बाएं पटकती, पूरा बदन ऐंठती, गनगना जाती, अपनी मुठ्ठियों को कस कस के भीचती, तो कभी अपने स्तन भींच लेती, अपने पैरों को उसने फिर से अपने बाबू की पीठ पर लपेट दिया और जब जब उसका बदन थरथराता वो अपने पैरों से अपने बाबू को जकड़ लेती।



उदयराज ने थोड़ी देर अपनी बेटी की बूर के छेद को चाटा फिर अपनी जीभ को नुकीला किया और बूर के नरम नरम छोटे से लाल लाल छेद के मुहाने पर गोल गोल घुमाने लगा, रजनी अब जोर जोर से काफी तेज तेज छटपटाने और सिसकने लगी, उसे क्या पता था कि उसके बाबू बूर के इतने प्यासे हैं, वो बूर के इतने अच्छे खिलाड़ी हैं, वो बूर चाटने में इतने माहिर है, ऐसा सुख तो उसके पति ने कभी सपने में भी नही दिया, उसे पता लग चुका था कि उसके बाबू अपनी सगी बेटी की बूर के कितने भूखे हैं। कोठरी में काफी तेज तेज सिसकारी गूंजने लगी।



उदयराज ने एक बार फिर से पूरी बूर को नीचे से ऊपर की ओर अपनी जीभ से लपलपा के चाटा, उदयराज का अब इरादा था अपनी जीभ अपनी बेटी के बूर की छेद में डालने का पर इतने भर से ही रजनी अब काफी त्राहि त्राहि करने लगी, उसके मुँह से अब थोड़ी ज्यादा जोर से hhhhhhhhhaaaiiiiiiiiiiiii. bbbbbaaabbbbuuuuu.........uuuuuuuufffffff. bbbbbbaaaaaabbbbbbuuuuuuu, mmmmaaaaarrrrrrr jjjjaaauuungggiii bbaaaabbuuu सिसकते हुए निकलने लगा।



उदयराज को अपनी प्यारी बेटी पर तरस आया, वो सोचने लगा की अगर वो और ज्यादा करता है तो ये उसके साथ अन्याय होगा क्योंकि वो क्या पता बर्दाश्त न कर पाए और कर्म का नियम तोड़ बैठे।



उसकी प्यारी बेटी जब उसे प्यार से अपना यौवन चखा रही है तो उसे उसकी तड़प का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इस वक्त वो उसकी प्यारी सी कमसिन सी दहकती बूर में अपना 9 इंच का फ़ौलादी लंड घुसाके उसे चोद तो सकता नही, और न ही इस वक्त रजनी योनि चुम्बन से झड़ना चाहती है, (वो जानता था कि उसकी सगी बेटी भी कई वर्षों से लंड की प्यासी है और वो झडेगी तो सिर्फ अपने बाबू के लंबे और मोटे लंड की रगड़ से)

तो हद से ज्यादा तड़पाकर उसकी दिमाग की नसों पर ज्यादा जोर डालना अच्छी बात नही।



ये सोचते हुए उसने अपनी बेटी की बूर से धीरे से अपना मुँह हटाया, पर फिर एकदम से सटा कर कुछ देर ऐसे ही लेटा रहा, काम रस रजनी की बूर से रिसता रहा और उदयराज उसे धीरे धीरे चाटता रहा, रजनी की उखड़ती सांसे धीरे धीरे थोड़ी कम हुई, एक अंतिम चुम्बन लेते हुए उदयराज उठ बैठा, रजनी ने अपने पैर चटाई पर अपने बाबू के अगल बगल रख दिये, उदयराज ने रजनी की साड़ी और साया उठाया और अपनी बेटी की बूर को सम्मान पूर्वक ढक दिया, रजनी समझ गयी कि अब उसके बाबू जा रहे हैं, अपने बाबू द्वारा दिये जाने वाले सम्मान से वो गदगद हो गयी, उसकी बूर से अभी भी रस बह रहा था, बदन अभी भी हल्का हल्का कामवेग से थरथरा जा रहा था।



उदयराज ने बगल में रखा दिया बुझा दिया और रजनी की गांड के नीचे से तकिया निकाला और आज कागज पर बिना कुछ लिखे उसको वहीं छोड़कर तकिए पर लगे काम रस को सूंघता हुआ कोठरी से बाहर निकल गया।

 

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