Incest Paap ne Bachayaa written By S_Kumar

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Notes:- iss story ko maine nahi likha iss story ko s_kumar ji ne likha isliye iss story ka sabhi credit s_kumar ji ko jata hai.
 
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Update-10

उदयराज रोज की तरह सुबह जल्दी उठा जाता है आज उसको अपना एक दूर वाला खेत जोतना था तो वो खेतों में जुताई के लिए अपने बैलों को तैयार करने लगता है।

रजनी और काकी भी जल्दी उठकर नाश्ता तैयार करती है।

इतने में उदयराज का दोस्त बिरजू उनके घर आता है, रजनी और काकी घर में होती है, उदयराज बाहर बैलों को तैयार कर रहा होता है, बिरजू को आते हुए देखता है।

बिरजू- "जय राम जी की उदय भैया" (बिरजू उदयराज का मित्र था वो उदयराज को भैया कहकर ही बोलता था, उदयराज का मुखियागीरी का ज्यादातर काम बिरजू ही देखता था)

उदयराज- "जय राम जी की बिरजू" अरे आओ बिरजू! बैठो, कहो कैसे आना हुआ इतने सवेरे सवेरे, सब ठीक तो है, 3 4 दिन से दिखे ही नही, कहाँ हो भई।

बिरजू- अरे भैया! आपको तो पता ही है गांव में कितना काम है, फुरसत ही नही मिलती। (कहते हुए खाट पे बैठ जाता है)

उदयराज- अरे तू नही होता...तो मैं तो पागल ही हो जाता, कितना काम संभालता है तू मेरा।

उदयराज काकी को जोर से आवाज लगता है- काकी, अरे बिरजू आया है, चाय-वाय बन गयी हो तो ले आओ जरा!

काकी की घर के अंदर से हल्की आवाज आती है - हाँ, ला रहे हैं, उनको बोलो की बैठें खाट पे।

बिरजू- अरे! ये तो मेरा फ़र्ज़ है भैया, आपके प्रति भी और गांव वालों के प्रति भी।, अरे आज सुबह सुबह बैलों को तैयार कर लिया, खेतो की जुताई करनी है क्या?

उदयराज- हां, वो नदी के पास वाला खेत है न, सोच रहा हूँ इस बार धान की फसल वहीं लगाऊंगा।

बिरजू- हां ठीक रहेगा, उधर नदी की वजह से पानी भी भरपूर रहेगा, जुताई तो मुझे भी अपने खेत की करनी थी, पर क्या करूँ, वक्त ही नही मिल पा रहा है।

उदयराज- अरे तो तू परेशान क्यों होता है, मैं कर दूंगा भई। बता देना जब करना हो।

बिरजू- ठीक है भैया, अच्छा देखो मैं बातों बातों में जिस काम के लिया आया था वो ही भूल गया कहना।

इतने में काकी दोनों के लिए चाय और पोहा लेके आती है और बिरजू को देखके बोलती है-अरे बिरजू कैसा है, आज इतनी सुबह सुबह?

बिरजू- नमस्ते काकी! अरे हां वो कुछ काम था उदय भैया से, तो सोचा सुबह ही मिल लूं फिर कहीं किसी काम से न निकल जाए कहीं, और आ के देख रहा हूँ तो बैल तैयार ही कर रहे थे।

काकी- अच्छा! ले चाय पी, और सब ठीक है न?

बिरजू- हाँ काकी सब ठीक है।

काकी चाय रखके अंदर घर में जाने लगती है ये बोलते हुए की तुम दोनों चाय पियो मैं जरा रजनी का हाँथ बंटा लूं काम में।

इतना सुनते ही बिरजू बोला

बिरजू- अरे रजनी बिटिया आयी हुई है क्या, कब आयी?

काकी- हाँ आयी है यही कोई 5 6 दिन हुए, अभी जरा व्यस्त है नही तो आती बाहर।

बिरजू- चलो कोई बात नही फिर कभी मिल लूंगा, ठीक तो है न वो।

काकी- हाँ ठीक है (इतना कहकर काकी घर में चली जाती है)

उदयराज और बिरजू चाय पीने लगते है और पोहा खाने लगते हैं

उदयराज- हां बोल तू क्या बोल रहा था, किस काम से आया था।

बिरजू- अरे हाँ! भैया मैं ये कहने आया था कि पश्चिम की तरफ जो नहर, नदी से निकलकर हमारे गांव की सरहद से होते हुए जा रही है, जिससे हमारे गांव के खेतों और बगल वाले गांव के खेतों की सिंचाई भी होती है उसको थोड़ा चौड़ा करने की सोच रहा था ताकि ज्यादा पानी आ सके, उसी का मुआयना करने के लिए जरा चलना पड़ेगा आपको। गांव वालों का भी यही कहना है कि एक बार मुखिया जी को दिखा कर उनकी सहमती लेनी होगी।

उदयराज- हम्म, ये तो अच्छी बात है, नहर चौडी हो जाएगी तो पानी भी ज्यादा आएगा और अतिरिक्त मिट्टी पड़ने से उसके दोनों किनारे के बांध और मजबूत हो जायेगें।

बिरजू- हां वही तो! पर एक बार आपको चलकर देखना होगा।

उदयराज- हाँ हाँ क्यों नही! अभी तो मैं खेत पर जा रहा हूँ, वहां से फुरसत होके मैं नहर के पास आ जाऊंगा दोपहर तक तुम वहीं मिलना।

बिरजू- ठीक है भैया, मैं और हरिया, परशुराम वगैरह वही मिलेंगे आपको।

उदयराज- ठीक है

उदयराज और बिरजू चाय पी चुके थे, इतना कहकर बिरजू चला गया, फिर उदयराज ने भी काकी को बुला कर सारी बात बताई और ये बोलकर की वो दोपहर को खाना खाने आएगा और फिर नहर के काम के सिलसिले में फिर जाएगा, रजनी को बोल देना की वो चिंता न करे और बैल लेके चला जाता है।

रजनी और काकी घर का सारा काम निपटा के अपना नाश्ता ले के बाहर द्वार में बैठी नीम के पेड़ के नीचे नाश्ता कर रही होती है, उस वक्त सुबह के 8 बज चुके थे सुबह के सूरज की रोशनी पेड़ों के पत्तों से छनकर हल्की हल्की आ रही थी, सुबह का बहुत ही मनमोहक वातावरण था, कि इतने में शेरु सामने कुएं की तरफ से आता हुआ दिखाई देता है।

रजनी- काकी देखो सामने! शेरु आ गया।

काकी- हां! लो आज आ ही गया, वो देख इधर ही आ रहा है। इत्तेफ़ाक़ देखो अभी कल ही इसकी चर्चा हो रही थी आज आ ही गया।

शेरु ने नजदीक आके जैसे ही रजनी को देखा तो कूं कूं कूं करके रजनी के पैर चाटने लगा, रजनी को गुदगुदी हुई तो वो हंसते हुए उसके सर को सहलाते हुए बोली- अरे मेरे शेरु! कैसा है तू? कमजोर तो हो गया है काकी पहले से।

काकी- हाँ कमजोर तो हो ही गया है, बिचारा

रजनी उसकी पीठ और सर सहलाते हुए बोली- तेरी बेटी बीना कहाँ रह गयी? हम्म

शेरु काफी कूं कूं करता हुआ रजनी के आगे पीछे गोल गोल घूमता फिर उसके पैर चाटने लगता, कभी हाँथ चाटता।

काकी- वो भी आती होगी पीछे पीछे

रजनी- अच्छा तू रुक, तू भूखा होगा न, तेरे लिए खाना लाती हूँ।

इतना कहकर रजनी घर में गयी और दूध और बिस्किट मिक्स करके ले आयी।

पर शेरु खा ही नही रहा था, बार बार खाने की तरफ ललचाई नज़रों से देखता फिर कूं कूं करके रजनी के पैरों में इधर उधर गोल गोल घूमता।

रजनी बोली- काकी देखो भूख इसको लगी है फिर भी खा नही रहा, खा न क्या हुआ?

काकी बोली- मैंने बताया नही था ये बिना अपनी बेटी के खाने को सूंघेगा तक नही।

रजनी- अरे हां काकी, सच में, देखो तो कैसे भूख से तड़प रहा है पर सूंघ तक नही रहा खाने को, अभी तक दूसरा कुत्ता होता तो साफ कर चुका होता, आखिर ये मेरा कुत्ता है, मुझे नाज़ है इसपे। कितना प्यार करता है अपनी बेटी से देखो।

और ऐसा कहते हुए बैठकर शेरु को अपनी गोद में लेकर उसकी पीठ सहलाने लगती है

काकी- अरे अभी उसको ज्यादा मत छू, न जाने कहाँ कहाँ किस किस के घर घूम फिर के आया है, किसी को भी प्यार करेगी तो ढंग से ही करने लगेगी।

रजनी- काकी कोई बात नही कितने बरसों बाद तो मिली हूँ अपने शेरु से, अभी मैं नहाने जाउंगी तो इसको भी पकड़कर नहला दूंगी, और फिर इसको कहीं जाने नही दूंगी।

काकी- हाँ अब देखना ये खुद ही कहीं जाएगा नही, तुझे देख लिया है न।

तभी रजनी को बीना का ध्यान आता है- काकी ये बीना कहाँ मर गयी, आप तो बोल रही थी कि अपने बाप के पीछे पीछे ही लगी रहती है अभी तक तो मुझे दिखी नही, कोई आशिक मिल गया क्या उसको रास्ते में जो अपने बाप को भूल गयी।

इतना कहकर रजनी जोर से हंस दी।

काकी- अरे आशिक तो उसका....खुद उसका बाप ही है, किसी और को तो वो घास भी न डाले। इसलिये ही तो उसे बड़े प्यार से सूंघने देती है

इस बात पर रजनी ने शर्माते और मुस्कुराते हुए काकी को देखा, और उसे कल रात की बात याद आ गयी।

रजनी बोली- हाँ तो क्यों न दे सूंघने आखिर उसका पिता उसका इतना ख्याल रखता है, इनाम तो देगी न उनको (रजनी ने शर्माते हुए कहा)

काकी ने तपाक से कहा- ख्याल तो उदयराज भी तेरा बहुत रखता है, हम्म्म्म

रजनी शर्म से जैसे जमीन में गड़ गयी, बोली- धत्त! काकी, बहुत बेशर्म हो तुम।

काकी (मंद मंद मुस्कुराते हुए)- आखिर इनाम तो मिलना ही चाहिए, न

रजनी तो शर्म से बिल्कुल लाल हो गयी, कुछ देर कुछ बोल न पाई।

फिर बोली- आप बहुत गंदी हो, (और मुस्कुराने लगी।)

इतने में ही बीना भी दिखाई दी आती हुई, वो भी आके काकी के आस पास घूमने लगी क्योंकि रजनी को वो पहचानती नही थी, फिर रजनी ने जब खाने की कटोरी आगे बढ़ाई तो दोनों बाप बेटी खाने लगे रजनी अंदर जा के रोटी भी ले आयी और दोनों को पेट भर खाना खिलाया।

फिर रजनी मन में ही मंद मंद मुस्कुराते हुए, काकी की बात सोचते हुए नहाने चली गयी, और शेरु और बीना को भी पकड़कर नहला दिया, दोनों साफ सुथरे हो गए।

दोपहर को उदयराज आया तो रजनी ने नहाकर आज जो पहना था उसे देखकर मन्त्रमुग्ध सा हो गया, रजनी ने नीले रंग की साड़ी और काले रंग का ब्लाउज पहन रखा था, उसका गोरा रंग अलग ही चमक रहा था, गोरे गोरे सुंदर चेहरे पर जो तेज था उसे देखकर ही आज उदयराज को नशा सा हो गया, बड़े बड़े उन्नत स्तन बड़ी मुश्किल से ही ब्लॉउज में समा रहे थे, अनायास ही उदयराज की नज़र बार बार अपनी ही सगी बेटी की चुचियों पर जा रही थी और वो बार बार अपने आप को गंदे ख्याल से बाहर निकलता।

उदयराज अंदर बरामदे में बैठा था काकी उस वक्त बाहर थी

रजनी पानी और गुड़ लेकर आई, तो उदयराज बोला- आज तो बहुत ही खूबसूरत लग रही है मेरी बिटिया।

रजनी मुस्कुरा दी और बोली- हाँ, आपकी बेटी हूँ न तो लगूंगी ही, पर आप मुझसे सुबह मिले नही न, चले गए ऐसे ही (रजनी ने शिकायत वाले लहजे से कहा)

उदयराज- अरे मेरी बिटिया रानी, मुझे लगा कि तुम काम में व्यस्त हो तो मैं काकी को बता कर चला गया, क्या मेरी बिटिया नाराज़ हो गयी क्या मुझसे?

रजनी- ऐसा कभी हो सकता है क्या, की मैं अपने बाबू जी से नाराज हो जाऊं, मैं चाहे कितनी भी व्यस्त रहूँ पर अपने बाबू जी के लिए हमेशा मेरे पास वक्त है।

उदयराज- इतना प्यार करती हो अपने पिता से।

रजनी- बहुत, आपके बिना मैं जी नही सकती बाबू।

उदयराज ने उठकर रजनी को बाहों में भर लिया, रजनी भी जल्दी से अपने बाबू की बाहों में समा गई।

एक बार फिर रजनी के गुदाज मदमस्त बदन ने उदयराज को मचलने पर मजबूर कर दिया, रजनी को बाहों में लेते वक्त तो उसकी मंशा भावनात्मक प्रेम की थी पर जैसे ही वो अपनी सगी बेटी के जवान, मदमस्त मांसल बदन से चिपका, वो अपने आप को संभाल न पाया और रजनी के कामुक बदन से मदहोश हो गया, एक बार फिर रजनी की उन्नत, कठोर चुचियाँ उदयराज के सीने से दब गई और मसल उठी।

कुछ देर रजनी उसको और वो रजनी को देखते रहे फिर उदयराज थोड़ा भारी आवाज से बोला- तो मैं कौन सा तेरे बिना अब रह सकता हूँ, तू तो जान है मेरी।

पर वो जल्द ही अपने आप को संभाल ले गया ये सोचकर कि कहीं रजनी कुछ और न समझ बैठे और अनर्थ हो जाये

परंतु उसे इतना तो अहसास हो रहा था कि रजनी भी उसकी बाहों में आने में जरा भी देर नही करती, वो भी कुछ अनजाना सा सुख उसकी बाहों में तलाशती है।

इतने में काकी के कदमों की आवाज सुनाई थी तो वो अलग हो गए।

रजनी ने उदयराज के लिए खाना परोसा और फिर उदयराज खाना खा के नहर के काम के सिलसिले में रजनी को बताकर चला गया ये बोलकर की वो शाम तक आएगा।

रजनी और काकी ने भी खाना खाया और रजनी ने फिर शेरु और बीना को भी खाना दिया।
 
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Update-11

एक दो दिन ऐसे ही बीत गए

एक दिन रजनी कुएं के पास फूल तोड़ रही थी तो सामने से जाती हुई नीलम जो उसकी बचपन की सहेली थी उसने आश्चर्य से देखा तो बोली- अरे रजनी तू कब आयी?

रजनी- अरे नीलम तू कैसी है? मुझे तो आये कुछ दिन हो गए।

नीलम- बड़ा गदरा गयी है तू, जीजा जी खूब मेहनत कर रहे हैं क्या?

नीलम बहुत मजाकिया किस्म की थी, बेबाक कुछ भी बोल देती थी।

रजनी- उनके बस का है जो करेंगे? मुझसे मतलब होता तो लापता ही क्यों होते?

नीलम- क्या... लापता?

रजनी- हाँ, कुछ पता नही कहाँ गए, एक साल होने को आया, मुझे तो रहना भी नही अब उनके साथ, है न मेरे बाबू अब यहीं रहूंगी हमेशा।

नीलम- अब यहीं रहेगी, मायके में, हाँ ठीक है और क्या, जब उन्हें तेरी कोई कद्र नही तो तू क्यों फिक्र करेगी, तू भी अपनी मनपसंद जिंदगी जी, एक बात बोलूं।

रजनी- हाँ बोल

नीलम- जितना प्यार तुझे तेरे बाबू करते हैं, दुनिया में कोई नही करेगा। वही तेरा ख्याल रखेंगे, वही फिक्र करेंगे और कोई नही।

रजनी- (मन में गदगद होते हुए) मैं भी उनकी सदा सेवा करूँगी, हमेशा उनके पास ही रहूंगी।

इस तरह रजनी और नीलम कुछ देर बात करती रहीं फिर नीलम चली गयी।

रजनी घर में आई तो काकी से बोली- काकी वो जो घर के पीछे बरगद का पेड़ है न वहां क्यारी में सब्जियां लगाई हुई हैं।

काकी- हाँ लगाई तो हैं फिर

रजनी- उसकी निराई गुड़ाई करनी है तो मैं जाती हूँ कर दूंगी।

काकी- रुक मैं भी चलती हूँ, गुड़िया तो सो गई है, मैं भी चलती हूँ।

रजनी - ठीक है चलो।

दोनों घर के पीछे क्यारी में आ जाती है बरगद के पेड़ के नीचे, वहां काफी घनी छाया होती है।

रजनी और काकी दोनों को अभी काम शुरू किये कुछ ही देर हुआ था कि इतने में बीना वहां आ जाती है। कुछ ही देर में शेरु भी पीछे पीछे आ जाता है।

आज तो बहुत ही गर्मी पड़ रही है न काकी, लेकिन यहां बरगद के नीचे काफी राहत है- रजनी ने बोला

शेरु और बीना भी गर्मी से हांफ रहे थे बीना ने पैर से जमीन में थोड़ा गढ्ढा किया, और फिर उसमें बैठ गयी, जमीन में काफी नमी थी तो उसे ठंडक महसूस हो रही थी वहां।

शेरु बीना के आस पास घूम रहा था, बीना आज कुछ ज्यादा ही कूं कूं कर रही थी।

काकी बोली- रजनी देख ये दोनों भी यही आ गए, आज इनका मुझे कुछ गड़बड़ लग रहा है, आज मुझे लग रहा है कि शेरु बीना की बूर सूंघेगा। मौसम आज गरम है लगता है कि बीना को गर्मी बर्दाश्त नही हो रही।

रजनी ने एकदम से काकी की तरफ देखा, उसने नही सोचा था को काकी बूर शब्द बोलेंगी, वो शर्मा गयी और मुस्कुरा दी।

तभी शेरु ने वो किया जिसका काकी को अनुमान था, शेरु पहले तो थोड़ी देर इधर उधर घूमता रहा फिर एकदम से बीना की बूर को सूंघने लगा, बीना खड़ी हो गयी, ताकि शेरु को आराम से अपनी बूर सुंघा सके।

रजनी को अपनी आंखों के सामने ये दृश्य देखकर विश्वास नही हुआ।

रजनी- काकी ये तो सच में अपनी ही बेटी की बूर सूंघ रहा है बेशर्म।

काकी- देख ले अब खुद ही, मैं न कहती थी।

इतने में ही शेरु जीभ निकाल के बीना की बूर को अब चाटने लगा, बीना की बूर से हल्का हल्का पेशाब निकल जाता, और वो थरथरा जाती, पर शेरु को पूरा सहयोग कर रही थी

रजनी को काटो तो खून नही, वो इस बात से चकित थी कि बीना पूरा सहयोग कर रही थी, उसे भी मजा आ रहा था। एक बाप अपनी बेटी की बूर कैसे चाट सकता है, पर अब ये उसके सामने हो रहा था तो उसे विश्वास करना ही था।

रजनी गरम होने लगती है, काकी का भी कुछ ऐसा ही हाल था पर ज्यादा नही।

इतने में नीलम वहां आ जाती है, नीलम का खेत रजनी के घर के पीछे ही था, वो खेत में कुछ घास लेने आयी थी, रजनी और काकी को देखती है तो उनके पास आ जाती है अभी तक नीलम की नजर शेरु पर नही पड़ी थी पर जैसे ही नज़र पड़ती है-

नीलम- हाय दैया! रजनी ये तेरा शेरु तो अपनी बेटी की ही बूर चाट रहा है, उफ्फ्फ!

रजनी की सांसे तो पहले ही तेज़ हो चुकी थी अब नीलम भी एक टक लगा के देखने लगी।

काकी क्यारी में गुड़ाई करती और कनखियों से देख लेती पर रजनी और नीलम एक टक लगा के देख रहे थे।

शेरु बीना के चारो तरफ घूमने लगा, बार बार घमता फिर पीछे आ के बूर को सूंघता फिर चाटने लगता, जैसे ही शेरु बीना की बूर को जीभ लगता रजनी को ऐसा लगता कि जैसे शेरु की जीभ उसकी खुद की बूर पर लग रही हो और वो बैठे बैठे ही अपनी जांघों से अपनी बूर को हल्का सा दबा लेती, और iiisssssshhhhhhh की आवाज उसके मुंह से निकल जाती, नीलम का भी यही हाल हो चला था, वो भी अब वहीं बैठ गयी।

आज विक्रमपुर में ये अनर्थ और महापाप हो रहा था भले ही जानवर के रूप में ही क्यों न हो।

काकी, रजनी और नीलम अब तीनो ये नज़ारा देखने लगी, काकी का तो कम, पर रजनी और नीलम का अब हाल बुरा होने वाला था, क्योंकि उन्होंने कभी कुत्ता कुतिया की चुदाई नही देखी थी

बीना चुपचाप खड़ी थी और शेरु चपड़ चपड़ उसकी बूर चाटे जा रहा था, बीना अब बिल्कुल गरम हो चुकी थी, बूर चाटते चाटते एकदम से ही शेरु का बड़ा सा लंड बाहर आ गया

रजनी की तो अब हालत खराब हो गयी अपने ही शेरु का लाल लाल लंड देखके,

रजनी (फुसफुसाते हुए)- काकी देखो तो इसका कैसा है, कितना लाल और बडा सा है, और हाय! अपनी ही सगी बेटी की बूर चाटने में इसको कितना मजा आ रहा है।

रजनी भी अब बेशर्मी से "बूर" शब्द बोल गयी।

काकी- अपनी बेटी का ख्याल रखता है तो उसकी ये इक्छा भी तो वही पूरी करेगा न, मुझे तो लग रहा है कि अब पक्का चोदेगा बीना को।


नीलम- हे भगवान कितना मजा आ रहा होगा इन दोनों को, रजनी तेरा कुत्ता तो बहुत भाग्यशाली है रे घर में ही मिल गयी इसको तो बूर वो भी अपनी ही बेटी की।

रजनी का शर्म और मजे से बुरा हाल था।

तभी शेरु का पूरा लंड बाहर आ गया, वो करीब 6 इंच तक लंबा और 2 इंच मोटा होगा, रजनी उसे उखड़ी उखड़ी सी देखती रही, उसकी खुद की दबी हुई चुदास को उसके खुद के ही कुत्ते की कामलीला ने जगा दिया था।

तभी शेरु एकदम से उछला और बिना के ऊपर चढ़ गया और अपना लंड बीना की फूली हुई बूर के मुहाने पर लगाने लगा पर असफल हो गया और नीचे खड़ा हो गया, फिर उसने दुबारा सुंघा, चाटा और फिर चढ़ गया, चढ़ते ही वो जोश के मारे तेज तेज धक्के मारने लगा, उसका लंड बार बार कभी बीना की बूर की दायीं फांक पर टकराता कभी बाई फांक पर टकराता, कभी कभी बीना भी थोड़ा हिल जाती, पर तभी एकदम से निशाना सही बैठा और शेरु का लंड बीना की बूर में जड़ तक समा गया।

रजनी और नीलम के मुंह से aaaaahhhhhhhh! uuuuuuuuuiiiiiiiiiimmmaaaaaaaaaannn निकल गया, जैसे शेरु का लंड उनकी ही बूर में घुस गया हो।

काकी- आखिर बीना ने अपने बाप को दे ही दिया इनाम, मैंने शेरु को, जबसे बीना की माँ मरी है आजतक किसी दूसरी कुतिया को चोदते नही देखा, और आज देखो अपनी ही बेटी को कैसे घच्छ घच्छ चोद रहा है। आखिर बेटी की बूर का मजा ही कुछ और है।

नीलम - hhhaaaaiiiiiiii काकी क्या क्या बोले जा रही हो, आपको कैसे पता कि बाप को बेटी की बूर चोदने में ज्यादा मजा आता है, आपने चुदवा रखा है क्या अपने बाबू से (नीलम से तपाक से मजे लेते हुए कहा, और रजनी खिलखिला के हंस पड़ी)

काकी- अरी कहाँ रे नीलम, मेरे बाबू अगर मेरा इतना ख्याल रखते होते न जितना तुम लोगों के और खासकर रजनी के बाबू रखते है तो मैं तो सच कह रही हूं उनको घर की चार दिवारी के भीतर छुप छुप के बूर का ऐसा मजा देती की उनका जीवन धन्य हो जाता। पर हाय री किस्मत। खैर अब तो वो हैं ही नही इस दुनियां में।

रजनी और नीलम ये सुनकर दंग रह जाती है, की काकी ने कैसे बड़े ही बेशर्म तरीके से अपने मन में छुपी हुई बात इतने बेबाक तरीके से कह दी।

रजनी को आज काकी के कामुक स्वभाव का आभास हुआ था, काकी की ऐसी बातें सुनकर उसके अंदर की चुदास पूरी तरह खुल गयी, अभी तक वो गंदी बात करने से या अपने अंदर की छुपी हुई कामाग्नि को जाहिर करने से झिझकती थी काकी के सामने, क्योंकि वो उसकी माँ समान थी, उसने उसे बचपन से पाला पोशा था, और रजनी सभ्य भी थी, पर आज खुद जब काकी ऐसी गंदी बात खुलकर उसके ही सामने बोल गयी, तो उसे ऐसा लगा कि उसे एक साथी मिल गया हो, जिससे वो खुलकर गंदी बात कर सकती है, उसने मन में सोचा कि वो काकी से बाद में घर में जाकर इस विषय पर बात करेगी।

नीलम सलवार के ऊपर से ही अपनी बूर को हल्का हल्का सहला रही थी।

रजनी उसे देखकर हंस पड़ी और बोली-, तेरे से बर्दाश्त नही हो रहा तो तू भी चुदवा ले मेरे शेरु से।

नीलम- hhhhhaaaaiiiii चुदवा लेती यार, पर उसे तो अपनी बेटी ही चोदनी है। बेटी चोदने का मजा अलग ही होगा न। और बीना को देखो कैसे मजे से अपने ही बाप के मोटे से लंड से चुद रही है, कैसे गचा-गच लन्ड बूर में जा रहा है, आखिर बाप से चुदने का मजा अलग ही होगा न।

रजनी को नीलम की ये बात अंदर तक झकझोर देती है कि- "बाप से चुदने का मजा ही अलग होगा न" तो उसका चेहरा शर्म से लाल हो जाता है।

रजनी कामुक अंदाज में- तो तू अपने बाबू जी को लाइन मार न क्या पता बात बन जाये (रजनी ने चुटकी लेते हुए कहा)

नीलम- dhatt पगली, बेशर्म, मैं तो ऐसे ही कह रही थी (हालांकि नीलम के बदन में ये सोचकर झुरझुरी सी दौड़ गयी)

शेरु ताबड़तोड़ बीना की बूर में धक्के लगाए जा रहा था, बीना की बूर अब पूरी खुल चुकी थी वो शांत खड़ी थी और अपने ही बाप को अपनी कमसिन बूर चखाने में भरपूर सहयोग कर रही थी
 
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Bhai mein to phle hi bol Chuka hun ki is story ka koi jawab nhi. story to meine bahut bahut padha hai lekin is story ke jaisa aj tak nhi padha isliye is story jaisa koi story nhi
Hoga bhi kaise q ke sab story ko likhne wale s _kumar sir ji nhi hote hain na
Thanks bro update ke liye
 

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