Thriller पता, एक खोये हुए खज़ाने का(completed)

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अरे! ये तो मर गया! इसकी हत्या किसने की!?" हसमुख चीख पड़ा.
तुरंत हम सब की नजर उस लाश पर पड़ी.
"ओ...ह गोद...!" एक उद्गार के साथ सब की आंखें आश्चर्य से फट गई.
वह लाश उस मनहूस आदमी की थी. जो हमारा पीछा किया करता था. और जिसने हमें अब तक बहुत डराकर रखा था. पर अब वह हमारे सामने मरा पड़ा था.
इन सब लाशों को देख हमारे बदन दहशत से कांपने लगे. वह बेट हमें मौत का घर लगने लगा.
इसकी हत्या किसने की? यह सवाल सब के मन में था. पर उत्तर किसी के पास नहीं था.
मेथ्यु की भी लाश मिलने की उम्मीद में हमने हिम्मत करके उन दोनों लाशों को पलट कर उनके चेहरे देखे, पर उसमे मेथ्यु नहीं था.
नजदीक में ही एक खुला हुआ बक्सा एवं घाँस और लताओं में बिखरा हुआ सामान भी पड़ा था. लगता था जैसे किसी ने उस सामान की तलाशी ली हो.
हम उस सामान को देखने लगे. हमारे आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा! उस सामान में हमारी चुराई हुई तस्वीर और नक्शा भी था, पर चाबी का पता न था. उस बीहड़ में चाबी मिलना भी मुश्किल था, इसलिए हमने कोई कोशिश भी न की. हमने वह नक्शा और तस्वीर उठा ली.
तो क्या! मेथ्यु हमारा पीछा करने वाले उस मनहूस आदमी से मिला हुआ था? फिर मेथ्यु अब कहाँ है? और इन लोगों की हत्याएँ किसने की? क्या वह हत्यारा भी इस नक्शे, तस्वीर और चाबी के पीछे पड़ा हुआ था, इसलिए इन लोगों की हत्या की? फिर वह हत्यारा नक्शा और तस्वीर ले क्यूँ नहीं गया? पर चाबी वहां न थी, तो क्या वह हत्यारे को सिर्फ चाबी की ही जरूरत थी? वह मनहूस आदमी इसी टापू पर ही क्यूँ आया? क्या हसमुख के दादाजी के द्वारा धन छिपाए जाने के बारें में यह मनहूस आदमी कुछ जानता था? क्या यह वहीँ टापू है जिस पर हसमुख के दादाजी ने धन छिपाया है? फिर उस चर्च वाली तस्वीर और इस टापू में कोई समानता क्यूँ दिखाई न पड़ रही है? तो क्या उस तस्वीर का मतलब कुछ और है? ढेर सारे प्रश्न हमारे मन में उबल रहे थे. जिनके कोई उत्तर हमारे पास नहीं थे.
हमने उस हत्यारे का पीछा करने की सोची. पर इस बीहड़ में उनके मिलने की संभावना बिलकुल कम थी.
प्रिय पाठक मित्रों, इस कहानी में आगे चलकर आपको वह मनहूस आदमी कौन था? मेघनाथजी से उनका क्या रिश्ता था? और उनकी हत्या किसने की थी? इन प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे.
आगे हमने थोड़ा सा ऊँचाई वाला स्थान देखा. जैसे कोई छोटी पहाड़ी हो. हम उसी और बढ़े. सायद ऊँचाई से हमें इस टापू पर होने वाली कोई गतिविधि मालूम पड़े! मुश्किल से हम ऊपर पहुँचे. इस चढ़ाई में बहुत वक्त गुजर गया था. पर आखिर में ऊँचाई से भी पेड़ों के अलावा हमें कुछ हाथ न लगा. और न कुछ हाथ लगने की उम्मीद दिख रही थी.
हाँ, दूसरी और एक तालाब नजर जरूर आया. पर अब हम में वहां तक पहुँचने की ताकत रही न थी. हम बहुत थक चुके थे. इसलिए एक बड़े से पेड़ की मोती टहनियों के सहारे सुस्ताने बैठे. जो थोड़ा सा ड्राई फूड हमारे पास था, वह खाया और बोटल से पानी पिया. थोड़ी देर सुस्ताने के बाद हम लौटने के लिए उठे. और किनारे की और बढ़ना आरम्भ किया.
मार्ग में हम कई पशु प्राणियों को देख रहे थे, पर किसी बड़े हिंसक पशु को न देखा. इसलिए हमें राहत थी. कहीं कहीं पेड़ पर लटकते हुए सर्प दिखाई दे जा रहे थे.
लौटते वक्त भी हम वे लाशें दिखने की उम्मीद कर रहे थे, पर इस बार हमें वें लाशें कहीं नजर न आई. हमने सोचा सायद हम थोड़ा इधर उधर हो गए हैं, इसलिए वे लाशें नजर नहीं आ रही हैं.
हम देर तक चलते रहे पर हमें किनारा नजर नहीं आया. अब हम गभराए. आकाश की और देखा तो सूरज पेड़ों के पीछे छिपने ही वाला था. हमने दिशा सूचक यंत्र में देखा तो सूरज जिस दिशा में था, वह पश्चिम दिशा ही थी. हम दर गए. साम होने को आई थी, पर किनारे का कोई पता न था. जब हम किनारे से चले थे तो इतना भी दूर निकल गए न थे, की इतनी देर तक चलने पर भी किनारे तहमने जल्दी जल्दी पाँव बढ़ाना शुरू किया. पर थोड़ी ही देर में सूरज ढल गया. चारों और गहरा अंधकार फैलने लगा. रात हो गई थी. पर हम उस बीहड़ से बाहर नहीं निकल पाए थे. सायद हम उस बीहड़ी भूलभुलैया में खो कर रह गए थे. अब तो यह तै हो गया था की रात हमें इसी जंगल में बितानी पड़ेगी.
इस बीहड़ में एक पाँव रखने लायक भूमि भी न दिखाई दे रही थी. इसलिए हम एक विशाल पेड़ को देखकर उसकी मोती मोती टहनियों पर जा बैठे. अब तो इसी पेड़ के सहारे रात काटनी थी. टॉर्च सुलगाई. नाश्ता किया. अचानक मच्छरों का झुंड आया और भिनभिनाते हुए हमें काटने लगा. बहुत से कीड़े मकोड़े भी हमारे बदन पर चढ़ जाते और काटने लगते. क्या करें! आग सुलगाने की भी संभावना न थी. क्यूंकि चारों और सिर्फ और सिर्फ पेड़ पौधे ही थे. अगर हम आग सुलगाते तो आग पूरे जंगल में फ़ैल सकती थी. और उस आग में हम ही जल मरते.
अब हम सोच में पड़े. रात को कोई हिंसक पशु आ गया तो क्या करेंगे? इस दर में सब जागते बैठे रहे. सोचने लगे: कौन सी मनहूस घड़ी में निकले थे? यहाँ हमें आना ही नहीं चाहिए था. हमारा धैर्य जवाब देने लगा.
जैसे जैसे रात बढ़ती चली, तरह तरह के जंगली जीवों की सरसराहट एवं पशु पंखियों की डरावनी आवाजें आनी शुरू हो गई. थोड़ी देर तक हम वह आवाजें सुनते बैठे रहे.
तभी हमें अपने सर के ऊपर ही सरसराहट सुनाई दी. हम दर गए. तुरंत टॉर्च की रोशनी ऊपर की तो हमारी सांस हलक में ही अटक गई. हमारे सामने स्वयं काल आकर खड़ा हो गया था.
ऊपर वाली टहनी पर करीब चार पांच मीटर लम्बा एक भयंकर काला और मोटा साँप सरक रहा था. हम लोगों ने गभराहट में तुरंत ही अपनी बंदूकें उस और तान दी. पर वह साँप दूसरी और बढ़ गया.
अचानक परिंदों की फरफराहट और चीख़ों से रात का सन्नाटा टूट गया. हमारे बदन में सिहरन दौड़ गई. उस साँप ने किसी परिंदे के घोंसले पर धावा बोला था. जिनका यह सब शोर शराबा था.
थोड़ी देर में फिर चारों और शांति हो गई. अब वह साँप भी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. हमने राहत की सांस ली.
पर थोड़ी थोड़ी देर में कहीं न कहीं से ऐसी ही आवाजें आती रहती थी. हमें अगल बगल में कोई न कोई साँप दिखाई दे जा रहा था. दिन में हमने यहाँ इतने साँप होंगे ऐसी कल्पना भी नहीं की थी. पर रात बीतते तो ऐसा लग रहा था जैसे इस टापू पर सिर्फ साँप का ही बसेरा हो. सिर्फ साँप अन्य जीवों का ही शिकार नहीं कर रहे थे, हमारे बगल वाले पेड़ पर एक शिकारी साँप हमारे देखते खुद ही दूसरे बड़े साँप का शिकार हो गया. साँप भी ऐसे, की फुफकार भी लग गई तो प्राण बदन का बैरी हो जाए.
हमने इसके इलाज के लिए कुछ टहनियां काट ली. और उसे पेड़ के तने एवं टहनियों पर पटक कर आवाज़ पैदा करने लगे. जिससे की वें हमसे दूर रहे. यह तरीका काम कर गया. फिर हमारे नजदीक कोई सर्प दिखाई न दिया.
वक्त वक्त पर किसी न किसी प्राणी या रेंगने वाले जीवों की गतिविधि से घाँस, लताओं, पौधों और बिखरे पड़े कूड़े में खलबली मच जाती थी. उल्लूओं और अन्य निशाचर पक्षियों की आवाज़ें रात को और भयावह बना रही थी. और ऐसे माहौल में वहां की बड़ी बड़ी और मोटी मोटी बिल्लियों की चमकती हुई आंखे हंे दहशत की लहर दौड़ा देती थी. ऐसी ही एक मोती काली बिल्ली ने हमें डरा दिया था. वह चुपके से हमारी सामने वाली दाल पर आ बैठी और हमें घूरकने लगी. पर हमने कोई हिलचाल करना उचित न जाना. सायद उसने किसी इंसान को पहली बार देखा था. वह देर तक हमें घूरकने के बाद हमारी कोई प्रतिक्रिया न पाकर हमारी उपर वाली दाल पर कूद आई. तब विनु ने दर कर बंदूक तानी. वह इस नवीन चीज को देखकर दरी, पीछे हटी और भाग चली.रात के सन्नाटे में दूर से एक और घोर गंभीर आवाज सुनाई देनी शुरू हुई. वह समुद्र की लहरों की आवाज थी. इस आवाज़ से एक बात तो तै थी, की हम समुद्र से ज्यादा दूर नहीं थे. पर दिन भर वहीँ घूमते भटकते रहे थे.
रात को एक और अचरज की बात हुई. हमें कहीं से रोशनी आती हुई दिखाई दी. हमने जरा देर के लिए टॉर्च क्या बुझाई, हमारी दिमाग की बत्ती जल उठी. हम लोगों से कितनी बड़ी भूल हो गई थी, इस बात का एहसास हुआ. उस नक्शे में जो आकृतियों की चमकीली किनारियाँ थी, वह जुगनू की रोशनी का संकेत कर रही थी. जो हम अभी इस टापू पर भी देख रहे थे. वास्तवमें इन सभी टापुओं के किनारे पर समुद्री वनस्पतियां इस जुगनू का बसेरा थी. और इसलिए टापुओं की किनारियाँ चमकीली नजर आ रही थी. इससे हमसे जो नक्शे का अर्थघटन करने में ग़लतियाँ हुई थी वह भी समझ में आ गई.
हम बहुत थक चुके थे. नींद भी आ रही थी. पर दर के मारे सो नहीं पा रहे थे. लगता था, जैसे चारों और मौत अपनी जाल फैलाए खड़ी हो! जरा सी लापरवाही और जान से हाथ धोया.
रात बीतते ठंड भी बहुत बढ़ने लगी. हमारे पास काँपते हुए बैठे रहने के अलावा कोई चारा न था. आग सुलगा न सकते थे. थकान से हाल भी बहुत बुरा था. मुझे और हसमुख को तो बुखार भी चढ़ आया. अब हम यहाँ आने पर बहुत पछता रहे थे. क्या करें? कैसे यहाँ से निकले? हम एक दूसरे पर गुस्सा हो रहे थे. आपस में ही झगड़ने लगे. एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे थे. धन की खोज का खयाल भी अब तो मन से बिलकुल निकल गया था. बस, कैसे भी कर के अब तो यहाँ से निकलना था.
जैसे तैसे डरते काँपते रात बीती. सवेरा हुआ. हम में जैसे प्राणों का संचार हुआ. सूरज की पहली किरण निकलते ही नए जोश के साथ हम पेड़ से कूद पड़े. दिशा सूचक यंत्र से दिशा का पता लगाया और फिर किनारे तक पहुँचने की कोशिश में निकल पड़े.
पर हम इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ थे की सिर्फ रात बीत जाने से शिकारियों का खतरा जाता नहीं रहा. यह सवेरा हमारी जिन्दगी में सब से बड़ा मनहूस सवेरा बन कर जिंदगी भर के लिए एक काले साए की तरह दर्ज हो जाने वाला था.
हमने किनारे की तलाश में प्रयाण शुरू किया. घंटा भर बीता होगा. मैं और जगो सब से पीछे चल रहे थे.
अचानक जगा की जोर जोर की कान फोड़ने वाली चीखें वातावरण में गूंज उठी. हम सब दहशत से थरथरा गए.
क्या हो गया? सब के मन में एक ही प्रश्न था.
क्रमशः
जगा के साथ क्या हुआ? हसमुख और उनके दोस्तों के साथ क्या होने वाला है? क्या इन सब दुर्घटनाओं की वजह वह अभिशाप है? जिसने मेघनाथजी के नौकरों की बुरी वले की थी? जानने के लिए पढ़ते रहिए. .
 
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अचानक जगा की जोर जोर की कान फोड़ने वाली चीखें वातावरण में गूंज उठी. हम सब दहशत से थरथरा गए.
क्या हो गया? सब के मन में एक ही प्रश्न था.
मैंने तुरंत मुड़कर जगा की और देखा! उनके चेहरे पर मौत का दर साफ़ दिखाई दे रहा था. तुरंत मेरी नजर नीचे गई.
वहां दो बड़ी बड़ी आँखों वाला एक विकराल जबड़ा था. जो जगा के पाँव को नुकीले दांतों में जकड़े हुए था. और जगो उससे पीछा छुड़ाने की नाकाम कोशिश कर रहा था.
वह एक ज़मीं पर रेंगने वाला घड़ियाल था. जो इस झाड़ियों में कहीं छिपकर बैठा हुआ था. और जगो अब उसके जबड़े में फँस चूका था.
मैंने तुरन ही अपनी बंदूक से गोलियां चलाई, पर उसकी मोटी चमड़ी में जैसे कुछ हुआ ही नहीं.
उसी वक्त विनु उस पर हमला करने के इरादे से जरा सा पीछे क्या हटा, तुरंत जैसे कि सीने उसे जोर से उठाकर फेंक दिया. विनु एक पेड़ के साथ टकरा कर गिरा. वह भी बहुत घायल हो गया. उठ ही नहीं पा रहा था.
उस घड़ियाल ने अपनी पूंछ से विनु पर जोरदार प्रहार किया था.
कृष्णा और हसमुख विनु की मदद के लिए दौड़े.
यहाँ मैं टहनी से उस घड़ियाल की ठुड्डी पर जोर जोर से प्रहार करने लगा. तुरंत ही वह जगा के पाँव को छोड़ कर पीछे हटा. हरी ने मौका न गँवाते हुए जगा को संभालकर उसके जबड़े से खिंच लिया.
वह घड़ियाल जबड़ा फाड़े फिर से हमले की तैयारी करने लगा.
संकर को मौका मिला. घड़ियाल का मुंह खुला देख, उसने तुरंत ही अपनी बंदूक से घड़ियाल के खुले मुख में गोलियां दाग दी. वह वहीँ तड़प ने लगा.
अब हमारा ध्यान जगा और विनु की और गया. वे दोनों गंभीर रूप से घायल थे. हमने दोनों को उठाया और दूर भागे.
अब हमारे लिए मुश्किलियाँ बढ़ गई थी. दोनों को उठाकर हमें चलना पड़ रहा था. विनु की सायद हड्डी टूट गई थी और जगा का बहुत खून बह रहा था. दोनों को गंभीर चोटें आई थी. थोड़े दूर निकल कर हमने अपने अपने रूमाल उनके घावों पर कसकर बाँध दिए.
इस बार हमारा नसीब खुल गया था. हमें समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई देने लगी. हम जोश से भर गए और जल्दी जल्दी आवाज़ की दिशा में बढ़े. थोड़ी ही देर में हम बीहड़ से निकल गए और सामने ही किनारा दिखाई देने लगा. हमारी आंखें चमक उठी. हमने ईश्वर को शुक्रिया कहा.
किनारे पर पहुंचकर अपनी बोट को ढूंढने लगे. पर हमें अपनी बोट कहीं दिखाई नहीं दे रही थी. न वो नाव दिखाई दे रही थी. फिर गभराए. मुसीबत ने अब तक हमारा पीछा न छोड़ा था. सायद हम किसी और जगह निकल आये थे. इधर उधर देखने लगे. कोई संकेत दिखाई नहीं दे रहा था की हम कहाँ निकल आये है.
तभी हमारा ध्यान समुद्र में खड़े एक छोटे खड़क पर पड़ा. जो हमने बोट से भी देखा था. बोट से वह खड़क पश्चिम में दूर दिखाई दे रहा था, पर अब वह हमें नजदीक दिखाई दे रहा था. इससे तै हो गया की हम जहां से चले थे वहां से पश्चिम में निकले है.
हम पूर्व की और चले. करीब घंटे भर चलने के बाद हमें अपनी बोट दिखाई दी. वह नाव भी वहीँ खड़ी थी. बोट के नजदीक पहुंचकर हम पानी में उतरे. अब तैरते हुए बोट पर जाना था.
मैंने और संकर ने जगा को और कृष्णा - हसमुख ने विनु को अपनी अपनी पीठ पर लादा. हरी सबसे पीछे हमें सहारा देने के लिए रहा. हम पानी में उतरे. बोझ को पीठ पर लादे तैरना मुश्किल हो रहा था, इसलिए हम धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे. समुद्री वनस्पतियां भी हमारी गति अवरुद्ध कर रही थी. फिर भी हम धीरे धीरे बोट के नजदीक पहुँचे. हम बोट से बस, थोड़े ही दूर थे, तभी हमारी जिन्दगी की सबसे मनहूस घड़ी आ पहुंची.
हमें पानी में सफेद सा तैरता हुआ कुछ दिखाई दिया. वह चीज और ऊपर आई. और हरी की चीख निकल गई. हमारी दृष्टि पड़ी. जैसे हमने स्वयं यमदूत को देख लिया हो, वैसे हम जम से गए. वहां साक्षात् मौत खड़ी थी. वह एक शार्क थी. जगा के पैर से रिसते खून की महक पा कर वह यहाँ आ पहुंची थी.
हमने चीख पुकार मचा दी. जोर जोर से हाथ पैर मारकर बोट की और भागे. बोट पर लटकती हुई रस्सियाँ थाम कर हमने अपने बदन को तेजी से ऊपर की और खींचा. आखिर में हम जैसे तैसे बोट पर पहुँच गए. पर इस हड़बड़ी में हमसे एक बहुत बड़ी गलती हो गई थी.
जब हमने ऊपर चढ़ कर देखा तो विनु और जगा को न पाया. हम को अपने प्राण बचाने के चक्कर में उन दोनों का खयाल ही नहीं रहा था. वह दोनों हमसे सदा के लिए बिछड़ चुके थे.पानी में जब देखा तो वहां एक बड़े लाल रंग के धब्बे के अलावा कुछ न था. न तो जगा या विनु का कोई निशान था न वह बैरी शार्क का.
यह दृश्य याद करते ही संकरचाचा, हरीचाचा और लखन अंकल फिर से रो पड़े. थोड़ी देर रुकने के बाद लखन अंकल ने फिर शुरू किया.
हम पांचों वहीँ बोट पर गिर पड़े. जोर जोर से रोते रहे. हम पुरी तरह से टूट चुके थे. न जाने कब तक रोते बिलखते पड़े रहे. फिर किसी को कोई सुद्धबुद्ध न रही. कब तक ऐसे ही पड़े रहे, यह भी पता न चला. जब मुझे हरी ने जगाया तब रात्रि होने को आई थी. मुश्किल से हम सब उठे. और वहां से चले.
जब हम घर पहुँचे तब हमने सिर्फ इतना ही बताया की तैरने के दौरान एक शार्क के हमले में वे दोनों मारे गए. पर हम कायरों की यह बताने की हिम्मत आज तक नहीं हुई की वास्तव में हम उस टापू पर क्यूँ गए थे. और वहां जगा और विनु के साथ क्या हुआ था.
इस दुर्घटना के बाद हम भी समझने लगे कि मेघनाथजी का वह धन सचमुच शापित है. इसलिए हम सब ने तै किया कि अब इस बात का जिक्र जिंदगी में किसी से नहीं करेंगे. और अपनी भावी पीढ़ी को भी इस मेघनाथजी के छिपे धन के बारें में कुछ न बताएँगे. जिस से कि वे इस धन को प्राप्त करने की कोशिश में हमारी तरह कोई जान का जोखिम न उठाये.
इस तरह मेघनाथजी के उस धन को जमाने के लिए सदा सदा के लिए लापता कर दिया गया.
पर आज तुम्हारे समक्ष इस राज़ का इजहार कर हम अपने गुनाहों पर शर्मिन्दगी प्रगट करते हैं."
इतना कह, लखन अंकल ने अश्रु भरी आँखों के साथ अपनी कथा समाप्त की.
यह वितक कथा सुन, राजू भी दुःख से विह्वल हो उठा. वह सबको आश्वासन देने लगा:
"देखो अंकल, यह तो एक अकस्मात् था. आप लोगों ने जानबूझकर तो कुछ नहीं किया. आप लोगों की जगह और कोई भी होता तो उनसे भी यहीं गलती होती. इसलिए जो कुछ हो चूका, उसे ईश्वर की मरज़ी ही समझे."
और राजू ने वादा भी किया कि वह भी इस बात को राज़ ही रखेगा.
जब लखन अंकल ने अपनी बात पुरी की तब तक रात्रि के ढाई बज चुके थे. राजू ने सब को अपने अपने घर पर छोड़ा. और स्वयं घर पहुंचकर लेट गया.
पर उसके दिमाग से अपने प्रदादाजी के धन और वह दुर्घटना के विचारों ने पीछा न छोड़ा था. वह सोच रहा था. उसके पापा इस धन को क्यूँ प्राप्त न कर पाए.
तभी उनके दिमाग में बिजली चमकी. उसके होंठों पर एक मुस्कुराहट उभर आई. फिर वह गहरी सोच में डूब गया. ऐसे सोचते सोचते ही वह सो गया.
उसके दिमाग में मेघनाथजी की रची इस पहेली घर कर गई थी. जो अब उनका पीछा नहीं छोड़ने वाली थी.
दूसरे दिन उसने सारा माजरा जेसिका को कह सुनाया. और ताकीद भी की कि इस बात का ज्यादा प्रचार न हो और राज़ ही बना रहे.
"क्या तुम इस धन तक पहुँचने की कोशिश करोगे?" जेसिका ने पूछा.
"मैं सोच रहा हूँ, मुझे भी एक कोशिश अवश्य करनी ही चाहिए. आखिर मेरे प्रदादाजी की भी आखरी इच्छा यही थी कि उनके परिवार का कोई वारिस इस धन तक पहुँचे." राजू ने अपनी मनसा जाहिर की.
"हाँ, मेरी भी यहीं राय है. पर क्या उस अकस्मात् के बाद आंटी तुम्हें मंजूरी देगी?" जेसिका ने अहम संदेह प्रगट किया.
"तुम्हारी बात तो सही है. मेरे लिए भी यह एक बड़ा प्रश्न है. पर कोई न कोई तरीका तो ढूँढना ही पड़ेगा न!" राजू कुछ सोचते हुए बोला.
"फिर तो यह अकस्मात् की बात जहां तक छिपी रहे उतना ही बेहतर रहेगा." जेसिका ने बताया.
"मैं भी यहीं चाहता हूँ. और अब तो मेरे पास सफल होने की वजहें भी ज्यादा हैं. क्यूंकि इस पर मैंने बहुत कुछ पता लगाया है. राजू ने कहा.
"अच्छा! वो क्या!?" जेसिका ने खुश होते हुए बड़ी बेताबी से पूछा.
क्रमशः
राजू को ऐसी कौन सी बात पता चली थी की वह धन को प्राप्त कर लेने के सपने देखने लगा था? क्या वह धन को प्राप्त कर पाएगा? जानने के लिए पढ़ते रहे.
 
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अच्छा! वो क्या!?" जेसिका ने खुश होते हुए बड़ी बेताबी से पूछा.
इसके उत्तर में राजू कहने लगा.
"जब नानू ने उस तस्वीर, चाबी और नक्शे को देखा, तभी वह इसके नकली होने के बारें में समझ गया था. और तुरन ही उसने मदद करने से इंकार भी कर दिया. वह सही भी तो था! क्यूंकि कोई भी ऐसी नकली चीजें बनाकर ला सकता था. और मेरे प्रदादाजी ने भी इस बारें में कुछ न कुछ विचार तो अवश्य ही किया होगा न! इसलिए इस मामले में असली चीजों के बिना काम नहीं निकल सकता था. पर पापा असल सब चीजें घर पर ही छोड़ गए थे. ये उनकी पहली गलती थी."
"दूसरी बात यह की नानू के घर से भी एक तस्वीर चोरी हुई थी. उस चोरी के इल्जाम में नानू ने उनके पापा और उनके दोस्तों पर ही पहला शक किया. और जब मेथ्यु के द्वारा बोट से चाबी, तस्वीर और नक्शे चुराए जाने की बात सुनी तो वह बड़ी सोच में पड़ गया. और कुछ सोचकर वहां से वापस लौट गया. इन सब बातों से एक बात तै होती है कि नानू के पास वाली तस्वीर की भी इस मामले में बड़ी भूमिका अवश्य होनी चाहिए. इसलिए उस तस्वीर के बिना इस पहेली को सुलझाया नहीं जा सकता. जो नानू की मदद के बिना नहीं मिल सकती."
"तीसरी बात यह की जैसे लखन अंकल ने बताया, सर्प की आकृति की बताई दिशा में वे गए और ऐसे टापू पर पहुँच गए, जहां बहुत सर्प थे. यानी वह सर्प की आकृति सिर्फ भुलावा देने के लिए थी. और वह आकृति का गलत अर्थघटन हुआ था."
"चौथी बात यह की वे सब आकृतियों की किनारियाँ चमकीले रंगों से बनी हुई थी. और लखन अंकल के मुताबिक वह चमक जुगनू की रोशनी का संकेत करती थी. पर जुगनू की रौशनी तो सिर्फ रात को ही दिखाई देती है! मतलब रात के वक्त ही उस पहेली को सुलझाया जा सकता था. पर पापा और उनके दोस्तों ने तो बैठे बैठे ही इसे सुल्जाने की कोशिश की थी. ऐसे तो पहेली कैसे सुलज सकती थी?"
"देखो, यह चार वजहों से पापा को विफलता मिली है."
इतना कहते हुए राजू चुप हुआ.
"यह तो बढ़िया बात हुई! और फिर तुमने सी कप्तान की तालीम भी तो ली है, जो तुम्हारे लिए बेनिफीट का काम करेगी." जेसिका बोली.
"हाँ, यह भी है!" राजू ने कहा. और आगे दोहराया.
"पर सच्चाई तो यह है कि मैंने उस नक्शे, चाबी और तस्वीर को कभी नहीं देखा. और वे सब चीजें अभी कहाँ है वह भी मैं नहीं जानता." राजू ने दुविधा में पड़ते हुए अपना अज्ञान प्रगट किया.
"ओह! तो तुम उसके बारें में कुछ नहीं जानते!?" जेसिका ने आश्चर्य प्रगट किया.
"तब तो तुम्हें सब से पहले वे सारी चीजें धुंध निकालनी होंगी. उसके बाद ही बात कुछ आगे बढ़ सकती है." जेसिका ने आगे बताया.
"हाँ, पर वे सारी चीजें आखिरकार घर में ही कहीं होनी चाहिए." राजू बोला.
दोनों की बात समाप्त होती है.
फिर राजू उन सब चीजों के बारें में सोचने लगा. थोड़ी देर बाद वह खड़ा हुआ. और घर में पुराना सामान जहां पड़ा रहता था, उस तहखाने में पहुंचा.
वहां काफी सारा पुराने जमाने का सामान पड़ा हुआ था. इन सामान में ज्यादातर उनके दादाजी का समुद्र और नौका में काम आने वाला सामान ही था. उस सामान में कुछ पुरानी संदूकें भी थी. इन सब सामान और संदूकों को वह पहले भी कई बार घर की सफाई के दौरान देख चूका था, पर उसने कभी किसी नक्शे, तस्वीर, चाबी इत्यादि को नहीं देखा था. वह फिर से एक के बाद एक हर संदूकों को देखने लगा. पर उस संदूकों में ऐसा कुछ नहीं था, जो वह धुंध रहा था.
तभी उसका ध्यान एक संदूक पर गया. उस संदूक पर हरदम एक ताला लगा रहता था,. उसने कई बार अपने पापा को उस संदूक खोलने के लिए कहा था, पर चाबी नहीं है, यह कहकर उसके पापा हरदम बात को ताल दिया करते थे. इसलिए उस संदूक में क्या है, वह कभी देख नहीं पाया था.उसने संदूक को देखा. उस पर पीतल का पुराने जमाने का एक मजबूत ताला लगा हुआ था. पर अब वह धूल मिट्टी लग जाने से काला पड़ चूका था, मगर आज भी साबुत था.
उसने एक अन्य संदूक खोला. और उसमे से पुरानी चाबियों का एक जुड़ा निकाला. वह एक के बाद एक चाबी लगाता जा रहा था. काफी मेहनत के बाद आखिरकार एक चाबी से वह ताला खोलने में सफल हो गया. संदूक में बहुत सा पुराना सामान भरा हुआ था. जिन पर काफी दस्त जमा हो गई थी. वह एक के बाद एक सब सामान को निकालकर देखने लगा. धीरे धीरे उनके लबों पर मुस्कुराहट फैलने लगी. वह जिस चीज को धुंध रहा था, वे सब उसमे से एक एक करते निकलती गई. उनके परदादा के लिखे हुए वें पत्र, वह नक्शा, तस्वीर, चाबी इत्यादि सारी चीजें उसमे सलामत थी. सारी आवश्यक चीजों को उसने अपने पास रखा. और बाकी सामान को वापस संदूक में बंध कर दिया.
रात को उसने सारा सामान का पता मिल जाने के बारें में बहुत उत्साह से जेसिका को अवगत कराया. वह भी बहुत खुश हुई. फिर तो आगे क्या किया जाना चाहिए इस पर दोनों के बीच बहुत विचारों का आदान प्रदान हुआ.
"जेसिका : "तुमने इस आपरेशन में तुम्हारा साथ दे सके ऐसे लोगों के बारें में क्या सोचा है?"
राजू: "अभी तक तो इस बारें में कुछ नहीं सोचा, पर मेरे कई दोस्त इसमें जुड़ना पसंद करेंगे."
जेसिका: क्या तुम्हारी किसी से बात हुई?"
राजू: "नहीं अभी तो इसका पूरा मुसद्दा ही कहाँ तैयार हुआ है!"
जेसिका को भी इस आपरेशन का हिस्सा बनने की तीव्र इच्छा थी. आखिर उसने राजू को पूछ ही लिया कि "क्या वह इस अभियान में शामिल हो सकती है?" और राजू ने भी बहुत खुशी से उसे वेलकम किया. आगे बताया कि वह उसके आपरेशन में जुड़ने वाली पहली सदस्य हुई है. और अभी मुझे आगे कई साथिओं की आवश्यकता रहेगी.
पर राजू को जेसिका को अंकल आंटी से अनुमति मिलने में संदेह था, इसलिए उसने पूछा.
राजू: "मगर जेसिका, क्या अंकल आंटी तुम्हें अनुमति देंगे?"
जेसिका: "देखो मैं (Biological anthropology) में PHD कर रही हूँ. और फिलहाल केरेबियन सागर के द्वीपों पर आदिवासियों की बस्ती में मेरा रिसर्च चल रहा है. इसलिए मुझे तुमसे जुड़ने में कोई ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी. और मैं तुम्हारा काम भी आसान कर सकती हूँ. क्यूंकि मैं अपने रिसर्च की वजह से जितनी आसानी से कहीं भी पहुँच सकती हूँ, उतनी आसानी से तुम सायद न पहुँच पाओ."
जेसिका का कहना अहम था. उनकी बात ने राजू को सोच में दाल दिया. जेसिका की बात को बिलकुल नकारा नहीं जा सकता था. अब बहुत से इलाकों में जाने के लिए उस क्षेत्र की सरकार से पूर्व अनुमति लेनी पड़ती है. ऐसे में वे किस बहाने से ऐसे क्षेत्रों में प्रवेश कर सकते है?
"हाँ, तुम्हारी बात तो बिलकुल सही है." राजू ने कहा.
दोनों की बात ख़त्म हुई.
फिर राजू बाकी की तैयारियों में लग गया. वह अब इस आपरेशन का नेतृत्व कर रहा था. उसने अपनी टीम के सदस्यों की तलाश शुरू कर दी. इस संदर्भ में अपने कुछ ख़ास ख़ास दोस्तों से बात भी की. कुछ भरोसेमंद लोगों को भी वेतन पर रखने की सोची.गोवा में रहनेवाले अपने दोस्त के पिताजी, जिनका टूरिस्टों को किराए पर याट देने का व्यवसाय था, उनसे बात कर एक याट की भी व्यवस्था कर ली. अपने पिताजी की तरह हर ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए सब आवश्यक सामान की भी पूर्ति कर ली, जो आपरेशन के दौरान काम आ सकती थी. याट पर कुछ आपातकालीन नौका की भी व्यवस्था रखी. और अगर कहीं रानी पशुओं से पाला पड़ जाए तो उसे डरा कर भगाने के लिए पटाखे एवं अश्रु गोले की भी सुविधा रखी. घुटनों तक के बूट एवं हेलमेट भी बसा लिए. राजू ने एक और बुद्धिमानी का काम यह किया कि उसने कुछ टेंट फौजी के कपड़ों के रंग वाले बना लिए, जिससे कि जंगल में इसे लगाया जाए तो आसानी से किसी की नजर में न पड़े. और जंगल में आग जलाने की जरूरत पड़ी और वह अनियंत्रित हो कर फैलने लगे तो उसे बुझाने के लिए कार्बन डायऑक्साइड के गोले भी ले लिए. बहुत सोच समझकर वह बेहद बारीकियों से तैयारी कर रहा था.
इस दौरान राजू के सामने सबसे बड़ी दिक्कत अपनी मम्मी और रिश्तेदारों को राजी करने में आई. पर मेघनाथजी की अंतिम इच्छा की बात कहकर उसने सब को रजामंद कर लिया. मेघनाथजी की आखरी इच्छा के नाम पर सब के मुंह सिल जाते थे.
इस आपरेशन में समुद्री लुटेरों एवं अन्य दुश्मनों से भेंट होने की संभावना भी पुरी थी. उसके लिए बंदूकों, गोलियों और अन्य हथियारों की आवश्यकता रहती थी, पर वह अब आसानी से प्राप्त नहीं हो सकता था. इस बारें में उसने अपने दोस्तों से भी बात की, पर कोई हल न मिला.
क्रमशः
अब राजू जरूरी हथियार कैसे प्राप्त करेगा? क्या वह हथियार आसानी से प्राप्त कर लेगा? उनके सामने क्या क्या दिक्कतें आएगी? जानने के लिए पढ़ते रहे...
 
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इस आपरेशन में समुद्री लुटेरों एवं अन्य दुश्मनों से भेंट होने की संभावना भी पुरी थी. उसके लिए बंदूकों, गोलियों और अन्य हथियारों की आवश्यकता रहती थी, पर वह अब आसानी से प्राप्त नहीं हो सकता था. इस बारें में उसने अपने दोस्तों से भी बात की, पर कोई हल न मिला.
इसी मनोमंथन में एक सुबह कुछ सोचकर उसने अपना कंप्यूटर शुरू किया. गूगल पर टॉर ब्राउज़र सर्च कर उसे इंस्टोल कर लिया. फिर डार्कवेब खँगालने बैठा. दो तीन दिनों तक उसे कोई सफलता न मिली. पर चौथे दिन उसके हाथों एक वेबसाइट लगी. जिन पर गैरकानूनी चीज़वस्तुएं उपलब्ध करवाने वालों की सूची थी. उसने कई लोगों से कॉन्टेक्ट किए और अपनी ज़रूरतें बताई. आखिर एक से सौदा पक्का हुआ, जो उसकी ज़रूरतें पुरी कर सकता था. सौदे के मुताबिक वेपन्स का पार्सल दो हफ्तों में उसके घर पहुंच जाने वाला था. और बदले में उसे बिट कोइन में एडवांस पेमेंट करना था. उसने सौदा मंजूर रखा और पेमेंट कर दिया.
पेमेंट के बाद राजू बेताबी से पार्सल की इंतजारी करने लगा. उस बात को एक महीना होने को हुआ, पर उसकी इंतजारी खत्म नहीं हो रही थी. अब तो धीरे धीरे उसकी इंतजारी चिंता में बदलने लगी.
तभी एक साम को उसकी डोरबेल बजी. उसने दरवाजा खोला. उसके नाम का कोई कूरियर था. यूँ तो कई बार वह ऑनलाइन शॉपिंग के ज़रिये सामान मँगवाता था, इसलिए हर डिलीवरी बॉय को वह जानता पहचानता भी था. पर इस बार उसे खुशी के साथ ताज्जुब भी हुआ, क्यूंकि इस बार डिलीवरी बॉय नया और अपरिचित था. उसने कूरियर रिसीव कर लिया. अपने कमरे में आकर जब उसने पार्सल खोला, तो उनकी आंखें चौंधिया गई! उसके ऑर्डर के हर हथियार चमचमाते हुए उसमे मौजूद थे. एक के बाद एक सब को निकालकर देखा और जांचा परखा. सब कुछ ठीक था. अब उसके पास हर जरूरत का सामान मौजूद था.
बीते महीने वह बैठे नहीं रहा था. इस दौरान वह आपरेशन पर बहुत कुछ मंथन कर चूका था. आपरेशन में आने वाली हर छोटी छोटी चुनौतियों पर उसने बहुत गौर किया था. उसने महसूस किया कि इस अभियान के दौरान जेसिका की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रहने वाली है. इसलिए जेसिका को उसने इस आपरेशन में अहम हिस्सा बना लिया. और हर योजना के आयोजन में जेसिका की राय भी लेता रहा. जेसिका के साथ मिलकर उसने अपनी टीम भी पक्की कर ली.
अब उनकी टीम में जेसिका के अलावा उनके हाईस्कूल के दौरान NCC के साथी दो दोस्त पिंटू और संजय भी शामिल हुए. कुछ भरोसेमंद लोगों को भी अच्छे वेतन पर जोड़ा गया. जिसमे हिरेन, दीपक, प्रताप, भिमुचाचा और रफीकचाचा थे.
हिरेन एक गेरेज में हेल्पर का काम करता था और थोड़ा बहुत इलेक्ट्रिश्यन का काम भी जानता था. जब कि दीपक एक ऑफिस केंटिन में चाय नाश्ता बनाने एवं वेइटर के रूप में काम करता था. प्रताप यूँ तो पढ़ा लिखा था,, पर नौकरी न मिलने से फिलहाल उसने एक लोहार के यहाँ अस्थाई नौकरी स्वीकार कर ली थी. भिमुचाचा निवृत्त फ़ौजी थे और बैंकों के ATM की चौकी किया करते थे. पर पिछले दिनों मंदी और बैंक मर्जर की वजह से ATM बंध हो गए थे, इसलिए उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा था. राजू ने भिमुचाचा को ख़ास करके उनके फ़ौजी की नौकरी के दरम्यान के अनुभवों की वजह से शामिल करना उपयुक्त समझा था. जब कि रफीकचाचा भी एक प्राइवेट स्कूल में गेटकीपर की नौकरी किया करते थे. राजू ने सभी को अच्छे वेतन पर रख लिया.ये सब या तो राजू के रिश्तेदार थे या फिर उनके अगल बगल में रहते थे. और राजू की सब लोगों से अच्छी जान पहचान भी थी. उसने अपनी योजना और उसमे आने वाली समस्याओं से सब को अवगत किया. और उनकी मरज़ी पाकर ही उन्हें शामिल किया. इस तरह कुल मिलाकर नौ लोगों की टीम तैयार हो गई. राजू उनका कप्तान था. सब के पासपोर्ट एवं C1/D वीज़ा की औपचारिक प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई.
आपरेशन में जंगली जीवों एवं पशु पंखियों से पाला पड़ने की पुरी संभावना थी. अतः, राजू ने अरुणाचल प्रदेश के घने जंगलों में तीन दिवसीय एक केम्प का आयोजन किया. जहां उन्हें इन चुनौतियों से निपटने का अभ्यास करना था. इस केम्प में उन्हें अपनी ज़रूरतों को सीमित रखते हुए कम से कम संसाधन के साथ दिन गुज़ारने थे.
इससे पहले राजू, पिंटू और संजय ने अपने अपने फैमिली डाक्टर की मदद से थोड़े बहुत इलाज एवं छोटी मोती सर्जरी की तालीम ले ली. जिससे आकस्मिक परिस्थिति में उपयुक्त बन सके.
तै दिन रिसर्च के बहाने केम्प में शामिल होने के लिए जेसिका ने दिल्ली के एयरपोर्ट पर टेक ऑफ किया. उसी दिन बाकी के आठ लोग भी मुंबई से दिल्ली पहुँच गए. आगे अरुणाचल प्रदेश तक की यात्रा सभी ने ट्रेन में साथ साथ की. सब की टिकट राजू ने पहले ही बुक करवा ली थी.
अरुणाचल प्रदेश पहुंचकर उन्होंने जंगल में केम्पेइनिंग एवं ट्रेकिंग के लिए आवश्यक परमिट प्राप्त की. और डेरा डालने में जुट गए.
चार टेंट लगा दिए गए. जिसमे एक जेसिका ने अपने लिए आरक्षित रखा था. बाकि के तीन टेंट में राजू सहित अन्य साथी रहे.
टेंट लगाने का काम पूरा होने पर सारी टीम भोजन के लिए प्राणियों का शिकार करने चली. इस दौरान पेड़ों पर चढ़कर फल तोड़ने का अभ्यास भी किया. मार्ग में से सूखे पेड़ों की टहनियों को काट कर और रास्ते में पड़ी लकड़ियों को बिन कर इंधन भी इकठ्ठा किया.
यह सब क्रिया उनकी तालीम का ही हिस्सा थी. जो उन्हें वास्तविक प्रयाण के दौरान उपयोगी होने वाली थी.
जेसिका को अपने रिसर्च की वजह से दूरवर्ती इलाकों में जाने की जरूरत पड़ती थी, इसलिए उसने करांटे की तालीम ली हुई थी. जिसका थोड़ा बहुत परिचय उसने केम्प के दौरान टीम मेम्बर्स को करवाया.
भिमुचाचा ने भी अपनी फ़ौजी की नौकरी के दौरान जंगल और जंगली जीवों के साथ हुए अनुभव बांटे. इस केम्प के दौरान उनका अनुभव सब को बहुत काम आया. बल्कि यूँ कहिए, इस केम्प में वह पूरी टीम का हीरो बना रहा.
राजू, पिंटू और संजय को NCC केम्प के दरम्यान थोड़ी बहुत बंदूक चलाने की तालीम मिली हुई थी. पर यहाँ भिमुचाचा ने सब को विशेष तालीम दी. भिमुचाचा से लाठी से कैसे अपनी सुरक्षा की जा सकती है, वह भी पाठ पढ़ा.
इस केम्प के दौरान जंगल में उसकी टीम ने पेड़ों की टहनियों और बेल पत्तों की मदद से झोपड़ी बनाकर रात गुजारी. खाना भी जंगली फल फूल और प्राणियों का शिकार कर प्राप्त किया. वहां मिलने वाले विशेष पौधों की पत्तियों को बदन पर मल कर और जलाकर मच्छरों से सुरक्षा का पाठ भी भिमुचाचा से पढ़ा. विशेष वनस्पतियों की जड़ों, पत्तों और बीज को उबालकर काढ़ा बनाने का ज्ञान भी अर्जित किया. जिसको पीने से हमारी रोग प्रतिकारक सकती में वृद्धि की जा सकती थी. जो ऐसे बीहड़ में जरूरी भी था. इन जड़ों और पत्तियों को इकठ्ठा कर वे अपने साथ भी लेते आये. जो उन्हें सायद भविष्य में उपयुक्त हो सकता था.भीमुचाचा ने जंगल में पायी जाने वाली एक और ऐसी वनस्पति का परिचय भी उन्हें करवाया, जो उनके काम की तो थी नहीं. पर उनका गुण जानकर सब को अजूबा हुआ. इस वनस्पति का विशेष गुण यह था कि इसके सूँघने पर कुछ वक्त के लिए नाक की सूँघने की शक्ति जाती रहती थी. जिसका सबने स्वयं अनुभव भी किया. पर संजय ने इस वनस्पति की पत्तियों को इकठ्ठा कर अपने पास रख लिया. भले ही यह उनके कोई काम की न थी, पर उनका गुण जानकर वह आकर्षित हुआ था.
इस तरह यह केम्प बहुत सफल रहा. जिसमे टीम मेम्बर्स ने आने वाली चुनौतियों से कैसे निपटा जाए, इस बारें में बहुत ही महत्वपूर्ण पाठ पढ़े थे.
आखिर सब लौटे. अब उन्हें अपने अंतिम लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करना था. जेसिका सीधे ब्रिटिश वर्जिन आयरलैंड पहुँचने वाली थी, जहां से उसका केरेबियन क्षेत्र में आदिवासियों पर रिसर्च चल रहा था. बाकी की टीम को याट से पहुँचना था.
जेसिका का रिसर्च और UK की नागरिक होने की वजह से उसे मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा था. उसने एक बहुत महत्वपूर्ण काम को आसान कर दिया था. उसने खुद को एक रिसर्चर और अन्य टीम मेम्बर्स को अपने सहायक के रूप में रजिस्टर करवा लिया. और इस सम्बन्धी दस्तावेज भी प्राप्त कर लिए. वह सीधे ही ब्रिटिश वर्जिन आयरलैंड पहुँच गई और बाकी की टीम का इंतज़ार करने लगी.
अब तक राजू के अन्य टीम मेम्बर्स के पासपोर्ट एवं वीज़ा भी आ गए थे. अतः, उन्होंने भी इंडिया से याट लेकर केरेबियन सागर तक की अपनी जर्नी शुरू कर दी. राजू के माथे पर कप्तान की जिम्मेदारी थी. दीपक को चाय नाश्ता एवं खाना बनाने का कार्य दिया गया था. इंजन की जिम्मेदारी संजय एवं पिंटू के सर थी. भीमुचाचा, रफिक्चाचा, हिरेन और प्रताप के हिस्से संजय, पिंटू एवं दीपक की सहायता करना और याट का अन्य काम देखना था.
यह पूरा क्षेत्र केरेबियन और उत्तरी एटलान्टिक महासागर से घिरा हुआ है. जिनमे करीब सात सो से ज्यादा द्वीप हैं. और ज्यादातर द्वीपों पर मानव बस्ती नहीं हैं. उत्तरी अमेरिका के इन द्वीपों की विशेषता यह हैं की यहाँ किसी एक राष्ट्र का नियंत्रण नहीं पाया जाता, बल्कि यह पूरा क्षेत्र कई स्वतंत्र देशों, अमेरिका और यूरोपियन देशों की सरकारों के आधीन हैं.
राजू की टीम के ब्रिटिश वर्जिन आयरलैंड पहुँचने पर जेसिका भी उनसे जुड़ गई. अब वे मिलकर जेन्गा बेट के लिए निकल पड़े, जहां उसे नानू को मिलना था.
जेन्गा बेट पर उनकी याट देर साम पहुंची. इसलिए उन्होंने तै किया की अब सुबह ही नानू से मिलने चलेंगे. पर यहाँ पहुंचकर उन लोगों को एक बड़ी चिंता सताने लगी कि नानू अब ज़िन्दा होगा भी या नहीं!? क्यूंकि अब तक उसको बहुत साल हो गए थे. और अगर वह ज़िन्दा भी होगा तब भी क्या वह उन लोगों का मार्गदर्शन करने की हालत में होराजू के पापा और उनके दोस्तों की यात्रा के अनुभवों से नानू के घर का पता लगाने में उन्हें कोई ज्यादा दिक्कत नहीं आई. सेंट लुबरतो चर्च पहुंचकर मछ्वारों के मार्गदर्शन से वें नानू के घर तक पहुँच गए. नानू का घर भी अब नया बन चूका था. राजू ने डोरबेल बजाई. तुरंत एक अधेड़ उम्र की औरत ने दरवाजा खोला.
अपरिचित लोगों को दरवाजे पर खड़े देखकर उनके चेहरे पर प्रश्न भाव उभर आए.
क्रमशः
क्या नानू अब जिन्दा होगा? और अगर जिन्दा भी है तो क्या वह राजू की मदद करने की हालत में होगा? यदि नानू जिन्दा नहीं हैं तब क्या होगा? आगे आगे क्या होता है, पढ़ते रहे...
 
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अपरिचित लोगों को दरवाजे पर खड़े देखकर उनके चेहरे पर प्रश्न भाव उभर आए.
राजू: "नमस्ते आंटीजी! क्या हम नानू से मिल सकते हैं?"
औरत: "जी. आप घर में आइए."
उनका उत्तर सुनकर राजू को खुशी हुई कि नानू ज़िन्दा तो है. वे घर में जा कर बैठे.
औरत: "आप बैठिये; थोड़ी देर में दादा आ जायेंगे. वे चर्च गए हैं. अब लौटते ही होंगे.
औरत की बात से राजू की टीम को इतना यकीन हो गया कि नानू स्वस्थ भी है और चर्च आया जाया करते हैं. इसलिए उनकी उम्मीदें भी बढ़ गई. वें बेताबी से इंतजारी करते हुए बैठे.
घंटे भर बाद उनकी इंतजारी खत्म हुई. एक बहुत बड़ी उम्र के बुज़ुर्ग ने घर में पाँव रखे. आँखों में मोटे मोटे चश्मे थे. कानों में सुनने वाली मशीन लगी हुई थी. गाल पिचक गए थे और माथे पर बालों का निशान नहीं था.
खेर, उस बुज़ुर्ग की उम्र चाहे कितनी भी बढ़ गई हो, चाहे उसका हुलिया कितना ही बदल गया क्यूँ न हो, मगर उसके माथे का निशान और मुड़ा हुआ पैर उनके नानू होने की साक्षी देते थे.
उनको देखकर राजू खुशी से खड़ा हो गया. उनके पाँव छुए और हाथ पकड़ कर उन्हें सॉफे पर बिठाया. बाकी के सबों ने भी नमस्ते कहा और हालचाल पूछे.
फिर राजू ने मेघनाथजी के परपोते के रूप में अपना परिचय दिया. दो तीन कोशिश के बाद वह सुन और समज पाया.
मेघनाथजी का नाम सुनते ही उनके लबों पर हंसी और आँखों में पानी उमड़ आया. उसने चश्मा उतार कर आंखें पोंछी और राजू को पास बुलाकर बगल में बिठाया. उनके माथे पर हाथ फेरा और बड़े प्यार से हालचाल पूछे. राजू ने भी भावुक हो कर उनका हाथ पकड़ लिया और सहलाने लगा.
नानू: "बरसों पहले भी एक लड़का अपने दोस्तों को लेकर यहाँ आया था. वह मालिक का धन प्राप्त करना चाहता था, पर वह अपने को मालिक का वारिस साबित न कर पाया था."
राजू: "जी वे मेरे पिताजी ही थे."
नानू: "क्या वह तेरा बाप था?"
राजू: "जी. अब वे इस दुनियाँ में नहीं रहे."
नानू: "बहुत दुख की बात है."
राजू: "जी. कुछ माह पूर्व ही वह चल बसे."
नानू: "वह आया था. पर नकली सामान लेकर आया था."
राजू: " हाँ, उसने बात बताई थी."
नानू: "क्या तुम वो सारा सामान लाए हो?"
राजू: "हाँ."
इस बार राजू ने सब असली नक्शा, चाबी और तस्वीर अपने पास ही रखी थी. उसने अपनी बेग खोलकर सब सामान निकाला. नानू ने नक्शे चाबी पर तो कोई ध्यान न दिया, पर तस्वीर को लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाया. राजू ने वह तस्वीर नानू के हाथ में रख दी.
नजर कमजोर हो जाने से वह तस्वीर को अपने चेहरे के नजदीक ले जाकर बड़े ध्यान से देखने लगा. थोड़ी देर तक आगे पीछे घूमा कर देखता रहा. धीरे धीरे उसके चेहरे पर हंसी और होंठों पर मुस्कान फैलने लगी. यह दृश्य देखकर राजू और उनकी टीम के चेहरे भी खुशी से खिल उठे. उनकी टीम के लिए यह एक शुभ संकेत था.
फिर राजू के हाथ में वह तस्वीर थमाते हुए नानू आगे बोला.
नानू राहत की सांस लेते हुए: "यह ठीक है. लड़के, तुमने मेरे सर से एक बड़ा बोझ हटा लिया. मैं कब से मालिक के घर से किसी सही आदमी के आने की बात देख रहा था! बरसों से तो उम्मीद भी जाती रही थी. अब तो मेरी उम्र भी पूरी होने को आई. पर आज तुमने आकर मुझे मालिक का कर्ज उतारने का मौका दे दिया. अच्छा हुआ जो तुम मेरे जीते जी आ गए. वर्ना मैं इस कर्ज को लिए ही उपरि दरबार में चला जाता."
नानू की आँखों में आंसू आ गए. उसको देखकर सब ज़मीं की और देखने लगे. सब भावुक हो उठे थे. सभी के ह्रदय भर आये थे.
नानू बात को आगे बढ़ाता है.
नानू: "उस वक्त मेरे घर से कोई चीज की चोरी हुई थी. और मैं तुम्हारे बाप पर संदेह कर उसकी बोट पर जा पहुंचा था. मैंने उन लोगों को मारा पिटा भी था. और पूरी बोट को छान मारा था. क्यूंकि उस चीज की जरूरत उसे ही पड़ सकती थी, जिन्हें मालिक के धन की खोज हो. और वह अपने को मालिक का सच्चा वारिस भी साबित नहीं कर पाया था." इतना कहते हुए नानू ने लम्बी सांस ली.
राजू: "हाँ, यह बात भी बताई थी. उस वक्त आप के घर से कोई तस्वीर की चोरी हुई थी. और उसी वक्त मेरे पापा की बोट से भी एक मेथ्यु नाम के लड़के ने वो चाबी, नक्शा और तस्वीर चुराई थी."नानू हँसते हुए : "हाँ, ठीक बताया तुमने! उस वक्त एक तस्वीर की ही चोरी हुई थी मेरे घर से."
राजू: "फिर क्या वह तस्वीर वापस मिली?"
नानू: "हाँ, वह मैंने बड़ी मुसीबत से वापस पाई थी."
राजू: "वह चोर का पता चला था कुछ?"
नानू: "था एक चोर. मेरी ही रिश्तेदारी में था वह शैतान."
राजू: "फिर आपने वह तस्वीर कैसे वापस पाई?"
नानू: "किनारे जाते वक्त तुम्हारे बाप ने मुझे अपनी बोट से चोरी होने की बात बताई थी. कोई नीरा बेचने वाले ने वह चोरी की थी. तब मुझे संदेह हुआ. और मेरा वह संदेह सच्चा भी साबित हुआ. मैंने जिसके बारें में सोचा था वहीँ चोर निकला. मैंने उसका पीछा किया और बड़ी मुश्किल से वह तस्वीर वापस पाई."
राजू: "तो क्या आप के घर से भी मेथ्यु ने ही चोरी की थी?"
नानू: "उसका नाम मेथ्यु नहीं, पर फ्रेड था. जो किनारे पर नीरा बेचता था. मेरे घर से सायद उसने या उसके बाप ने चोरी की होगी. पर वह पूरा कारस्तान उसके बाप डेविड का ही था. "
राजू: "इसका मतलब मेथ्यु ने अपना नाम गलत बताया था!"
नानू: "हाँ, ऐसा ही था."
राजू: "ये डेविड कौन है? क्या मेरे पापा का पीछा करनेवाला आदमी ही डेविड था?"
नानू आश्चर्य से: "हैं! क्या तुम्हारे बाप का कोई पीछा कर रहा था?"
राजू: "हाँ, पापा ने बताया था, पहली बार जब वे जेन्गा बेट पर पहुँचे थे तब से कोई मनहूस शकल वाला आदमी उसका पीछा कर रहा था. और जब वे आप को मिलकर निकले तब भी उन्होंने उस मनहूस शकल वाले आदमी को आप के घर के पिछवाड़े से निकलते हुए देखा था."
नानू: "मनहूस शकल तो डेविड की भी थी! तब तो वहीँ होगा. मगर इस बात का मुझे पता नहीं था. वर्ना मैं उस मामले को आगे बढ़ने ही नहीं देता."
राजू: "फिर पापा मेथ्यु का पीछा करते हुए कोई अनजान टापू तक पहुँच गए थे. जहां उन लोगों ने तीन लोगों की लाश देखी थी. उसमे एक वह मनहूस शकल वाला भी था. और वहां उसे चुराई हुई वह तस्वीर और नक्शा भी मिला था. पर चाबी नहीं मिली थी."
नानू फिर से आश्चर्य प्रगट करते हुए: "क्या तुम्हारा बाप वहां तक पहुंचा था?"
राजू: "हं."
नानू: "मगर मैंने वहां किसी को नहीं देखा था! और हाँ, उन लोगों को मैंने ही मारा था. जब मुझे तुम्हारे बाप ने नीरा बेचने वाले की बात बताई तो मुझे पूरी बात समझ में आ गई. मैंने तुरंत ही उसका पीछा किया. और उस बेट पर उन्हें दबोच लिया."
राजू: "तो क्या डेविड भी यह राज़ जानता था? और क्या उनकी मेरे प्रदादाजी से कोई जान पहचान थी?"
नानू" "मैं तुम्हें मालिक की पुरी बात बताता हूँ." डेविड का मेघनाथजी से कोई वास्ता है या नहीं? और किस तरह उसने यह राज़ जाना.
नानू अपनी कहानी आरम्भ करता है.
यह तब की बात है जब दूसरा विश्वयुद्ध अपने चरम पर था. व्यापार धंधे में बहुत हानि हो रही थी. व्यापार करना मुश्किल हो गया था. चारों और लूटपाट हो रही थी. सुरक्षा के प्रबंध सारे नष्ट हो चुके थे. चोर लुटेरे पूरी स्वतंत्रता से अपना काम कर रहे थे. कई बेईमान लश्करी सिपाही और अफसर भी इस मौके का बड़ा फायदा उठा रहे थे. कई व्यापारियों के जहाज़ो को लूट लिया गया था या डुबो दिया गया था. बहुत से व्यापारी इस तरह कंगाली की हालत में आ गए थे. जो बच गए थे, वे भी अपना व्यापार समेटने लगे थे.
तुम जानते ही होंगे की मेरे मालिक और तुम्हारे परदादा भी गोवा के एक बड़े सेठ के यहाँ नौकरी ही किया करते थे. उस सेठ का एक लड़का और एक लड़की थी. लड़की ने तो किसी पोर्तुगीस से भागकर शादी रचा ली थी. फिर उसका अपने बाप से नाता टूट गया था. उस सेठ की लड़की के इस तरह से भाग जाने से और उम्र की वजह से तबियत ठीक नहीं रहती थी. इसलिए उसका सारा कारोबार उसका लड़का ही देखता था.
उस वक्त वह सेठ का लड़का अपने बीवी बच्चों को अफ्रीका घुमाने के लिए लाया हुआ था. पर तभी लड़ाई बहुत फ़ैल जाने की वजह से वे लौट न पाए. फिर उसके बच्चे की तबियत बिगड़ गई. डाक्टर से बहुत इलाज करवाया, पर कोई कायमी फायदा नहीं हो रहा था. उसके बच्चे ने भी दादा दादी के पास जाने की जिद पकड़ ली थी.
एक तरफ व्यापार मंदा था और दूसरी तरफ बच्चे की तबियत बिगड़ी रहने से वह भी किसी तरह घर पहुंचना चाहता था. उसने मालिक को यह बात बताई. तब मालिक ने भी व्यापार समेट कर बाल बच्चों के पास घर पहुँच जाना उचित जानकर लौटने की तैयारी करनी शुरू कर दी.फिर सारा कारोबार समेट लिया गया. जो भी मालिक का धन था वह एक जहाज में और सेठ के धन को दूसरे जहाज में लादा गया. उस वक्त मालिक के दो जहाज और उसके सेठ के सोलह जहाज हुआ करते थे. कुल मिलाकर अठारह जहाज़ो का पूरा काफिला था. बीच में वे दोनों जहाज़ो को रखकर उसके अगल बगल बाकी के धान, कपड़ा और मसाले लदे जहाज लौटने लगे. मालिक खुद सब से आगे एक जहाज पर थे. मालिक ने सभी जहाज़ो को एक दूसरे से थोड़ी थोड़ी दूरी पर रखा था, जिससे की कोई लुटेरे आ पहुँचे तो कुछ जहाज़ो को बचकर भाग निकलने का मौका मिल जाए. हमारे साथ दूसरे व्यापारियों के जहाज भी आगे पीछे सफर कर रहे थे.
तब मैं छोटा था और मेरा भी वहां कोई न था. जो भी भली वारिस था वह मालिक ही था. मैं भी मालिक को दिल से मानता था. इसलिए मालिक ने मुझे भी साथ ले लिया. मैं भी मालिक वाले जहाज पर ही था.
उस दिन हम बीच मार्ग में ही थे, जब मालिक की बायीं आँख सुबह से ही फरकने लगी थी. वे किसी अमंगल की दहसत से व्याकुल हो उठे थे. और उसी दोपहर को सेठ के पौत्र की हालत फिर बहुत बिगड़ गई. सेठ के लड़के ने मालिक को बुलाया और कहा कि बच्चे को डाक्टर की जरूरत होगी. इसलिए नजदीक वाले बन्दर पर जाना पड़ेगा. सबसे नजदीक वाला बन्दर तो पीछे छूट गया था. तब सेठ के लड़के ने सारे जहाज़ो और ख़ास उसके धन वाले जहाज का जिम्मा मालिक के हवाले किया. कहा कि आगे के बन्दर पर राह देखे. और खुद एक जहाज में उसके बीवी बच्चे और थोड़े से आदमी को साथ लिए पीछे लौटने की तयारी करने लगा.
मालिक और दूसरें बुजुर्ग खलासियों ने सेठ के लड़के को बहुत समजाया था कि वह वापस न लौटे. आगे वाला जो बन्दर है, वह सिर्फ एक दिन ज्यादा की दूरी पर है. वहां भी डाक्टर मिल जायेगा. पर वह न माना. और लौट पड़ा.
पर उसे यह कहाँ पता था, कि उसने इस तरह वापस पलट कर बहुत बड़ी गलती कर दी थी! जैसे वह पलता नहीं था! उसके नसीब ने ही पलती मारी थी. उसका यह निर्णय सारे काफिले का नसीब ही बदल देने वाला था.
क्रमशः
सेठ के लड़के ने पीछे लौटकर क्या गलती कर दी? क्या वह पिछले बन्दर पर पहुँच पाया? या उसके साथ कोई दुर्घटना हो गई? दुर्घटना हुई तो क्या हुई? इससे सारे काफिले के नसीब पर कैसे फरक पड़ने वाला था? जानने के लिए पढ़ते रहे...
 
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पर सेठ के लड़के को यह कहाँ पता था, कि उसने इस तरह वापस पलट कर बहुत बड़ी गलती कर दी थी! जैसे वह पलता नहीं था! उसके नसीब ने ही पलती मारी थी. उसका यह निर्णय सारे काफिले का नसीब ही बदल देने वाला था.
सेठ का लड़का पीछे लौटा. बाकी के जहाज आगे बढ़े. पर चार पांच घड़ी क्या बीती होगी की आगे से जानेपहचाने जहाज़ो का काफिला आते देखा. वह काफिला हम से एक दिन आगे पर ही निकला था. उससे पता चला की आगे लुटेरों ने धावा किया है और वें वहां से भागकर आ रहे हैं. सब गभराए. हमारे कुछ जहाज़ों पर भी तोपें थी, पर वे लुटेरे की तोपों के आगे टिकने वाली नहीं थी. इसलिए सभी जहाज़ो को वापस मोड़ा गया.
जब हम लौट रहे थे तब हमने कुछ आदमियों को डूबते देखा. वे लकड़ी या किसी और सहारे तैर रहे थे. हम लोगों ने उसे बचाया. जब हमने देखा तो वे आदमी हमारे ही थे. उन लोगों ने बताया कि जब वे सेठ के लड़के के साथ वापस लौट रहे थे तब साथ सफर करने वाले व्यापारी के जहाज जो पीछे छुट गए थे, उन्हें आते देखा. वे जहाज हमारे पास आने लगे. सेठ के लड़के ने समझा की हमें वापस मुड़ता देख मामले का पता लगाने के लिए आते होंगे. इसलिए उन्होंने भी आने दिया. उन पर आदमी भी जानेपहचाने ही थे. पर वे जैसे पास आए, की तुरंत ही उसमे से बहुत से छिपकर बैठे लुटेरे निकल कर हमारे जहाज पर कूद पड़े. और देखते ही देखते जहाज पर कब्जा कर लिया. उन्होंने आते ही मारकाट मचा दी. वे सेठ के लड़के से काफिले के दूसरे जहाज और खज़ाने का पता पूछ रहे थे. फिर क्यूँ कर सेठ के लड़के को भी मार दिया. कुछ नौकरों को बंदी बना लिया. जो बचे हुए थे वे जान बचाकर पानी में कूद पड़े. थोड़ी ही देर में वहां लुटेरों के अन्य जहाज भी आ पहुँचे. सब जहाज मिलकर अब आगे गए हैं. सायद वे आप लोगों के पीछे ही गए हैं.
उनकी बात सुनकर सब दर गए. मालिक ने पूछा की सेठ के लड़के की औरत और बच्चे का क्या हुआ?
इनके उत्तर में उन्होंने बताया कि उनका कुछ पता नहीं चला.
मालिक ने तुरंत एक वफादार आदमी को पूरे काफिले का जिम्मा दे, और उसे कुछ कहकर खुद एक छोटा जहाज ले कर औरत बच्चे की खोज में लौट पड़े. हमारा काफिला फिर दूसरे रास्ते पर चल पड़ा.
चार दिन पर मालिक भी आ पहुँचे. वे बहुत दुखी थे. उसने बताया कि सेठ के लड़के वाला जहाज लावारिस भटकता हुआ मिला. पर बच्चे औरत का पता नहीं. और बाकी के नौकरों की भी लाशें पड़ी मिली. तुरंत ही कुछ जहाज को अलग अलग बन्दर पर सेठ के बहु बच्चे की खोज में भेजा गया. उसके बाद हम अमेरिका की और निकल गए.
उस वक्त मालिक भी बहुत बीमार पड़ गए थे. साथ गए नौकरों ने बताया की जब से बच्चा औरत लापता है तब से मालिक ने रोटी पेट में डाली नहीं है. सब ने मालिक को कुछ खाने के लिए बहुत कहा. मैंने भी बहुत बिनती की. पर मालिक राजी ही नहीं हुए. वह कहता था अब कौन सा मुंह लेकर देश जाऊँ. सेठ को क्या मुंह दिखाऊ. सेठ का लड़का बच्चा मरा, समझो मैं भी मर गया. मेरे बालबच्चे अनाथ हो गए. फिर मैंने भी खाना छोड़ दिया. तब जा के चार दिन पर मालिक ने रोटी खाई.
जब हम केरेबियन सागर में हो कर अमेरिका की और जा रहे थे, तब रास्ते में एक नौका को डूबते पाया. उसके यात्रियों को हमने बचाया. वह नौका किसी खड़क के साथ टकरा गई थी. उसमे एक आर्थर नाम के आदमी का परिवार भी था. जिसमे मारिया नाम की लड़की थी. मालिक ने बाद में उस आदमी से बात कहकर मारिया से मेरी शादी करवा दी. और यह डेविड आर्थर का ही छोटा भाई था. तब उसको भी हमने डूबते हुए बचाया था.
जब हम उन सब को जेन्गा बेट पर छोड़ने के लिए आये, तब मालिक ने मुझे यहाँ रहने को कहा. आर्थर से कहकर घर और मछली पकड़ने की नाव भी दिलवा दी. मैं छोटा था, इसलिए मुझे भी उसके हवाले किया. मालिक फिर यह कहकर निकल गए कि सेठ के बहु बच्चे के पीछे जाऊँगा. उसे किसी भी तरह धुंध निकालूँगा. मैं भी मालिक के साथ रहना चाहता था, पर मालिक राजी न हुए. तब से मैं यहाँ रह रहा हूँ. मैंने आर्थर की मदद से मछली पकड़ना शुरू कर दिया. इससे मेरी घर गृहस्थी भी चलने लगी.आठ दस माह के अंतराल पर मालिक फिर आ पहुँचे. अब तो वे बहुत बीमार हो चुके थे. उसे सेठ के बहु बच्चे का कोई पता नहीं मिला था. उनके साथ सिर्फ दो नौकर थे. बाकी के नौकरों को उसने थोड़ा थोड़ा धन देकर बिदा कर दिया था.
उस रात हम सब बैठे थे. आर्थर और उनका भाई डेविड भी था. मालिक ने आर्थर को कहा कि कुछ ख़ास बात करनी है. मालिक की बात सुनकर आर्थर ने अपने भाई को बाहर भेजा. और दरवाजा बंध कर दिया.
तब मालिक ने आर्थर को मेरे लिए थोड़े पैसे और कुछ सोने चांदी के सिक्के सौंपे. कहा की मुझे जरूरत पड़े तो दें. और मुझे एक तस्वीर देते हुए कहा कि इसे संभालकर रखना. मेरे घर से परबत या कोई आएगा. उसे ये तस्वीर देना. मैंने अपने बाल बच्चे के लिए कुछ धन बचाकर छिपाया है. मैंने उसकी चाबी और इस तस्वीर का एक हिस्सा मेरे घर भिजवाया है. दोनों को मिलाने से पता मिल जाएगा.
तभी बारी का पलड़ा जरा हिला. आर्थर ने देखा तो डेविड था. वह छिपकर हमारी बातें सुन रहा था. उसने सारा सामान देखने के लिए बारी का पलड़ा जरा खोला था. आर्थर ने उसे दांत कर भगा दिया. सायद तभी से वह इस भेद को जान गया था. फिर तो मालिक की बात भी खत्म हो गई थी इसलिए आर्थर भी अपने घर लौटे. और हम सोने चले.
पर दूसरी सुबह मालिक ने निराला पा कर असली और नकली तस्वीर पहचानने का तरीका मुझे बताया. तस्वीर के दूसरे भेद भी बताए. बहुत कुछ मुझे समझाया भी.
एक दो हफ्ता रुकने के बाद मालिक जाने लगे. पर मैंने और आर्थर ने रोका. कहा कि अभी आप की तबियत ठीक नहीं है; थोड़े दिन और रुक जाओ; जब तबियत भली हो जाए तो चले जाना. उनके दोनों नौकरों ने भी यही बात उसे समझाई. इसलिए मालिक रुक गए. वे नौकरों का भी कोई वारिस न था, तो वे भी मालिक के साथ ही रुक गए.
मालिक की तबियत भी दिन ब दिन बिगड़ती ही जा रही थी. डाक्टर को भी दिखाया; दवाई से थोड़ा ठीक रहता था; पर कभी मालिक भले चंगे न हुए. वे कई बार जाने की बात करने लगते, पर मैंने उसे इस हालत में कभी जाने न दिया. क्यूंकि वह सेठ के बहु बच्चे के बिना घर तो जाना ही नहीं चाहते थे! उसके बाद उसने भी जाने की बात कभी न की. फिर तो मालिक मेरे साथ तीन चार साल रहे.
पर एक बरस बहुत कड़ाके की ठंड पड़ी. उस ठंड में मालिक को दमा हो गया. हमने बहुत सेवा की. दवाइयाँ भी की. पर बीस पच्चीस दिनों के बाद दमे ने आखिरकार मालिक की साँसों को हंमेशा के लिए रोक दिया.
मैंने उसके लड़के की तरह उसका दाह संस्कार किया. देश में होता है वैसा क्रिया करम तो नहीं करवा पाया, पर फाधर को बुलवा कर मालिक की आत्मा की शांति के लिए प्रेयर करवाई. उसकी अस्थियां मैंने आज तक संभालकर रखी हैं. सोचा था, जब मालिक के घर से कोई आएगा तब उनके हवाले करूँगा. इसी इंतज़ारी में बरसों बीत गए. अब जा के तुम आए हो. इतना कहते ही नानू की आंखें भर आई.
उनका धैर्य; उनकी स्वामीभक्ति; उनकी निष्ठा और वफादारी के सामने सब नतमस्तक हो गए. राजू नानू का हाथ पकड़े फफक फफक कर रो पड़ा. नानू ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. बाकी के बैठे हुए लोग भी अपने आंसू न रोक पाए.
फिर नानू उठा और घर के अन्दर जा कर पीतल के तीन कलश ले आया. उसमे से एक कलश राजू के हाथ में देते हुए बोला. "यह मालिक की अस्थियां हैं. और ये उन दोनों नौकर की हैं. जो बारी बारी से कुछ साल के अंतर पर चल बसे थे. इसे भी तुम ले जाओ और गंगा में बहाकर सद्गति कर दो.
राजू ने वे तीनों कलश लिए. बारी बारी से सब ने बड़े भक्तिभाव से कलशों को अपने सर से लगाए. फिर राजू ने संभालकर अपनी बेग में रख दिए.
थोड़ी देर तक सब भाव विह्वल होकर बैठे रहे. फिर नानू ने कहना आरम्भ किया.उन दिनों आर्थर के घर से मालिक के दिए हुए वे सोने चांदी के सिक्के की चोरी हुई थी. आर्थर को डेविड पर शक गया. क्यूंकि वह पहले भी ऐसे मामलों में शामिल रह चूका था. आर्थर ने दांत डपट लगाई तो सच बोल गया. फिर तो वे सिक्के वापस पा लिए गए, पर थोड़े सिक्के उसने बेच डाले थे. बाद में आर्थर ने उसकी शादी करवा कर अलग घर में भेज दिया. पर वह कभी सुधरा नहीं. धंधा वंधा तो उसको करना ही नहीं था. ऊपर से घर गृहस्थी का जिम्मा सर आने पर वह और बिगड़ गया. चोरी और जुआ ही उसका धंधा बन गया था.
उसको दो लड़के और तीन लड़कियाँ हुई. फ्रेड उसमे छोटा लड़का था. लड़कियों की शादी तो मैंने और आर्थर ने करवा दी है. पर जब डेविड जहन्नुम में गया, तब अपने बड़े लड़के और एक दोस्त को भी साथ लेता गया. फ्रेड भी डेविड की राह पर चलकर बर्बाद हो गया.
नानू की बात सुनकर राजू की टीम ने अफसोस प्रगट किया.
नानू का बयान अब खत्म हुआ था. वह फिर खड़ा हुआ और अन्दर गया. जब वापस लौटा तो उसके हाथ में एक तस्वीर थी. उसने वह तस्वीर सब को दिखाई. और कहा:
"यह वहीँ तस्वीर है जो मालिक ने मुझे संभालने के लिए दी थी. और जिसकी चोरी हुई थी."
राजू ने तस्वीर हाथ में ली. वह एक निर्जन बेट की तस्वीर थी.
नानू ने आगे बताना शुरू किया.
"तुम्हारे पास जो तस्वीर है, वह सेंत ल्युसिया का एक चित्र है. और मेरी तस्वीर में उसके सामने वाले एक द्वीप का चित्र है. जो बिलकुल निर्जन है. डेविड वहीँ मेरे हाथों मारा गया था. और तुम्हारा बाप भी वहीँ पहुंचा था."
नानू ने आगे जोड़ते हुए कहा: "मालिक ने बहुत उस्तादी का काम करते हुए गलत लोगों को बड़े भरम में डाला. अगर कोई समुद्र को जानने वाला देखे तो वह सीधे सेंत ल्युसिया ही पहुँच जाए."
अब मेघनाथजी के वे नौकरों के भेदी तरह से मारे जाने की बात का भेद खुला. जब वे मेघनाथजी का छिपा धन लेने गए थे. वे भी सायद उसी सेंत ल्युसिया के सामने वाले बीहड़ टापू पर पहुँच गए होंगे. और उसकी भूलभुलैया में फंसकर रह गए होंगे. पर उनके इस तरह से मारे जाने से गाँव में खजाने के अभिशापित होने की अफवा फैली थी. राजू को यह सब बात याद आ गई.
राजू ने आगे सवाल किया. : "पर पापा ने जो असली तस्वीर की नक़ल बनाई थी, वह भी असल जैसी ही होगी. फिर उनसे कोई काम क्यूँ निकल नहीं सकता था?"
नानू: "ये तस्वीरें तो एक भरम मात्र है. मगर असल बात कुछ और ही है." इतना कहते हुए नानू बड़े रहस्यमय तरीके से हंसा.
नानू की ऐसी भेदभरी हंसी से सब उत्सुकता से उनकी और देखने लगे.
क्रमशः
तस्वीर में ऐसी कौन सी बात है? जो नानू उसे भरम मात्र कहता है? और उनके भेदी तरीके से हंसने की क्या वजह है? जानने के लिए पढ़ते रहे...
 
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नानू: "ये तस्वीरें तो एक भरम मात्र है. मगर असल बात कुछ और ही है." इतना कहते हुए नानू बड़े रहस्यमय तरीके से हंसा.
नानू की ऐसी भेदभरी हंसी से सभी उत्सुकता से उनकी और देखने लगे.
नानू ने सभी पर एक नजर डाली. फिर "यह लो... अभी भेद खोल देता हूँ." इतना कहते हुए उसने एक हाथ में राजू की तस्वीर ली और दूसरे हाथ में अपनी तस्वीर ली. फिर दोनों तस्वीरों को एक दूसरे से लगा दिया. दोनों तस्वीर एक दुसरे से जुड़ गई. नानू वाली तस्वीर में एक छेद था, उसमे राजू की चाबी मिलाकर घूमाई. एक खटके की आवाज हुई. फिर ऊपर की तस्वीर लटकाने वाली पल्ली को खींचा.
अरे ये क्या!? सब की आंखें अचरज से फ़ैल गई. दोनों तस्वीरें जैसे किसी संदूक के पलड़े हो ऐसे खुल गई थी. वे दोनों तस्वीरों में से अन्य एक एक तस्वीर निकल पड़ी, जो हाथों से बनी हुई थी. उन तस्वीरों में से एक में छोटी सी मगर बीहड़ नुमा पहाड़ी और तालाब था. तो दूसरी तस्वीर में एक गुफा का मुहाना बना हुआ था.
दोनों तस्वीरों को राजू के हाथों में रखते हुए नानू बोला: इन तस्वीरों को धूप में सुखाना. यह सारा राज़ जानती है. खुद ब खुद तुम्हें रास्ता बतलाएगी. इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं जानता."
राजू ने वह दोनों तस्वीरों को संभालकर बेग में रख लिया.
साम तक राजू की टीम नानू के घर पर ही रही. दोपहर का भोजन भी वहीँ किया. साम को नानू के साथ चर्च गए. जब तक वे अपनी याट पर पहुँचे, तब तक रात्रि की कालिमा ने आसमान पर कब्जा कर लिया था. अब वक्त था सुबह के सूरज का इंतज़ार करने का. सब ने खाना बनाया, खाया और देर रात तक तस्वीरों के बारें में ही अटकलें लगाते रहे. सब के मन में बड़ी खलबली मची हुई थी.
दूसरी सुबह जैसे ही सूरज के दर्शन हुए, राजू ने वे तस्वीरों को धूप में सुखाने के लिए छोड़ दिया. बारी बारी से सब उस तस्वीरों की चोकी कर रहे थे. जैसे जैसे तस्वीरें सूखती जा रही थी, उन पर बना चित्र धुंधला पड़ता जा रहा था. पर साम को सूरज ढलने तक कुछ भेद न खुला, कि आखिर तस्वीर का राज़ क्या है. हाँ, इतना मालूम पड़ गया कि ये तस्वीरें कोई ऐसे रंगों से बनी हुई थी, जो धूप लगने से भांप बनकर उड़ जाते हैं.
अब एक और सुबह का इंतज़ार शुरू हुआ. दूसरे दिन भी वहीं क्रम दोहराया गया. पर इस बार सब की उम्मीद को बल मिला. साम होने तक तस्वीर पर बना चित्र काफी धुंधला पड़ गया था. और उसके पीछे से कोई लिखावट उभरने लगी थी. पर वह लिखावट क्या थी, पढ़ी नहीं जा सकती थी.
तीसरे दिन चित्र करीब करीब साफ़ हो गया. सूरज के ढलने तक चित्र के पीछे की लिखावट साफ़ पढ़ी जा सकती थी. पर फिर एक परेशानी पैदा हो गई. तस्वीर को पढ़ने से पता चला कि लिखावट का आधा हिस्सा ही गायब है. दूसरी तस्वीर का भी यहीं हाल था. पर जब दोनों तस्वीरों को अगल बगल में रखा गया तो दोनों की लिखावट मिलकर एक हो गई. अब सब कुछ साफ़ हो गया था.
लिखावट का मज़मून कुछ यूँ था.
जब तुम उस आग के गोले के सिराने पर पहुँच जाओ, तो रात होने का इंतज़ार करो. वहां तुम्हें एक दो मुंह वाले सर्प के दर्शन होंगे. जैसे ही तुम उस सर्प के सामने वाले मुंह की दक्षिण वाली आँख को छुओगे, तुरंत ही तुम हजारों बरस पीछे लौट जाओगे. वहां तुम्हें कई परबत दिखेंगे. उस पर्वतों में कई खोह हैं. उसमे से एक परबत में बड़ी खोह है, जो एक देवी का निवास है. उस खोहद्वार की चौकी तीन शिलपरिरक्षक कर रहे हैं. जो एक एक उत्तर दक्खन और एक पूरब में है. वहां तुम्हें इकादसी की भेंट होगी. वह श्रीकृष्ण की बानी सुनेंगी, तब वह राज़ खोलेगी. ध्यान रहे, पल पल जान जाने का जोखिम है, बड़ी सावधानी से आगे बढ़े.मेघनाथजी ने एक और भूलभुलैया खड़ी कर दी थी. राजू की टीम के लिए यह भी एक बड़ी पहेली ही साबित हुई. सोच में पड़ गए सब. सर खुजलाने लगे. यह सर्प की पहेली क्या है? कुछ समझ में नहीं आ रहा था.
आखिर वहीँ पहुंचकर कुछ तै करेंगे, यह सोचकर आगे बढ़ने का फैसला किया.
नक्शे को पृथ्वी के मानचित्र के साथ मिलाने से अब तो यह पक्का था कि आग के गोले वाला स्थान केरेबियन सागर में स्थित फ्रेंच प्रशासित मार्टिनिक प्रदेश है. और वह आग का गोला माउंट पेले ज्वालामुखी है. जिसने 1902 में फट कर करीब करीब पूरी मानव बस्ती को खाक कर दिया था. किसी को कुछ सोचने समझने का मौका ही नहीं दिया था. सिर्फ दो - चार मिनटों में सारा खेल खत्म कर दिया था.
इस भयंकर दैत्य नुमा ज्वालामुखी के परबत पर जाने की बात सोचकर ही सब के रोंगटे खड़े हो गए. पर फिर हिम्मत इकठ्ठा कर जाने की तैयारी करने लगे.
बिना कोई विशेष अनुभव के उन लोगों को माउंट पेले पर पहुँचने में दो दिन लग गए. जब वे ऊपर पहुँचे तब तक थकान के मारे चूर हो गए थे. इसलिए तीन टुकड़ियां बनाकर बारी बारी से जगने का फैसला किया. रात भर इधर उधर देखते रहे. कुछ मालूम नहीं पड़ रहा था. इस प्रकार दो टुकड़ियों की बारी खत्म हो गई. और तीसरी टुकड़ी की बारी आ गई. दूसरी टुकड़ी में राजू शामिल था, उसने तीसरी टुकड़ी को अब तक जो भी निरीक्षण हुआ था, बता दिया.
तीसरी टुकड़ी में भीमुचाचा थे. उसे जंगल, परबत पहाड़, नदी घाटियों का बड़ा अनुभव था. और उसमे फ़ौजी की चौकसी भी थी. उसकी नज़र चारों और निरीक्षण करने लगी. उसकी पैनी नजर ने दूर क्षितिज पर एक घटना को आकार लेते देख लिया. वह उसी पर दूरबीन गड़ाए बैठे रहा.
दूर आकाश में एक तारों का झुंड था. वे सारे तारे मिलकर एक सर्प की आकृति बना रहे थे. पर यह तो एक मुंह वाले सर्प की ही आकृति थी! दूसरा मुख कहाँ? नहीं था.
भीमुचाचा बहुत देर से निरीक्षण कर रहे थे. उसका जी अब बेचैन होने लगा था. वह अब जरा उठ कर टहलने और फ्रेश होने की सोच रहे थे. तभी वो हुआ, जो उसने सोचा नहीं था! इसके साथ ही भीमुचाचा चिल्ला उठे.
"मिल गया..! मिल गया..!"
उसकी चीख पुकार सुनकर उनकी टुकड़ी के अन्य दो साथी भी उन्हें अचरज से देखने लगे. भीमुचाचा ने उन्हें पास बुलाया और वो दृश्य दिखाया. वे भी खुशी से उछल पड़े.
उन लोगों का शोर सुन, बाकी के लोग भी नींद से जाग उठे. दौड़ कर वे वहां जा पहुँचे. अपनी अपनी दूरबीन निकाली और देखने लगे. दृश्य देखकर वे भी ताज्जुब और खुशी से उछल पड़े.
वहां आकाश में एक सितारे का उदय हुआ था और थोड़ा ऊपर पहुंचकर सर्प नुमा सितारों के झुंड में जा मिला था. सितारे के उदय होते ही सर्प की आकृति का दूसरा मुख बन गया था. उस सितारे ने दूसरे मुंह का स्थान ग्रहण किया था. और उसकी आँखों के स्थान पर जुगनू की रोशनी से रोशन होते दो द्वीप थे.
आखिरकार एक पहेली का हल मिल गया था. यह एक बड़ी सफलता थी. बची हुई रात ख़ुशियाँ मनाते बीती. सारी थकान चली गई थी. अब राजू की टीम को उस दक्षिण वाले द्वीप पर पहुंचना था.
हल्का सा उजाला होते ही वे निकल पड़े. वह दक्षिणी द्वीप डॉमिनिका क्षेत्र में आता था. इस क्षेत्र में बहुत से द्वीपों पर मानव आबादी नहीं है. सायद बहुत से द्वीप तो अब तक इंसानी पहुँच से भी बाहर ही रहे हैं.
राजू की टीम सोच रही थी. जैसे मेघनाथजी ने बताया था:जैसे ही हम उस द्वीप पर पहुँचेंगे, वैसे ही हजारों बरस पीछे की दुनियाँ में लौट जाएंगे."
इसका मतलब यह हो सकता है कि वहां अभी भी हजारों बरस पुराने पेड़ पौधे होंगे. और हो सकता है कि वहां हजारों साल पहले पाए जाने वाले पशु प्राणी पंखी भी हो! यानी हम वक्त के गर्क में गोटा लगाने वाले है! मतलब टाइम मशीन! अर्थात हम ऐसे प्राणी पंखियों से भी रूबरू हो सकते हैं, जो बाकी की धरती पर सायद उस अवस्था में न पाए जाते हो! यानी हर पल खतरा भी था! जैसे मेघनाथजी ने सावधान किया था.
वे इस टाइम मशीन की कल्पना से रोमांचित हो उठे. अति कल्पनाशील होते हुए उन्होंने तो डायनासोर से भेंट होने की भी कल्पना कर ली.
पर फिर उनका मन सोच में पड़ा. मेघनाथजी की दूसरी पहेली थी, जिसमे एक देवी का उल्लेख था. उसका क्या मतलब हो सकता है?
क्या वह देवी का मतलब जंगल के किसी शक्तिशाली प्राणी का सूचितार्थ हो सकता है? जो उस खोह में रहता हो? और जिसे हम जंगल की रानी कह सके? फिर वह प्राणी कौन हो सकता है? यह पहेली अनसुलझी ही रही. जिनका उत्तर वहां पहुँचे बिना मिल ही नहीं सकता था.
यहाँ उन्होंने एक अहम फैसला किया. जेसिका ने सब को प्रतिज्ञा करवाई कि अगर कोई अत्यंत जरूरत न पड़े तब तक बिना वजह के कोई भी हिंसा का सहारा नहीं लेंगे. और प्रकृति के तत्वों को भी नुक्सान नहीं पहुँचाएंगे. इस प्रतिज्ञा के साथ वे रवाना हुए.
आखिर वे उस द्वीप के नजदीक पहुँच गए. अभी किनारा काफी अंतर पर था. दूर से देखा, द्वीप घने जंगलों से भरा पड़ा था. लगता था, यह द्वीप मानव पहुँच से दूर ही रहा है. बेट के चारों और पानी ही पानी था. नजदीक में कोई अन्य द्वीप के दर्शन नहीं हो रहे थे. इसका जोड़ी दार उत्तरी द्वीप भी दसियों मील दूर था.
क्रमशः
इस अंजान द्वीप पर उनको क्या मिलेगा? क्या वे हजारो बरस पहले पाए जाने वाले प्राणियों से भेंट कर पायेंगे? जानने के लिए पढ़ते रहे...
 
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आखिर वे उस द्वीप के नजदीक पहुँच गए. अभी किनारा काफी अंतर पर था. दूर से देखा, द्वीप घने जंगलों से भरा पड़ा था. लगता था, यह द्वीप मानव पहुँच से दूर ही रहा है. बेट के चारों और पानी ही पानी था. नजदीक में कोई अन्य द्वीप के दर्शन नहीं हो रहे थे. इसका जोड़ी दार उत्तरी द्वीप भी दसियों मील दूर था.
राजू की टीम ने द्वीप पर पाँव रखने से पहले पूरे द्वीप की प्रदक्षिणा कर लेना और द्वीप का मुआइना कर हर तरह से जांच पड़ताल कर लेना उचित समझा. वे धीरे धीरे बेट के किनारों का निरीक्षण करते हुए आगे बढ़ रहे थे.
ज्यादातर किनारा दलदल और खड़ी चट्टानों से भरा पड़ा था. जहां से अगर वे घूसे और कोई संकट आ पड़ा. या किसी जंगली प्राणी का हमला हुआ और उन्हें भागने की जरूरत पड़ी, तो भाग नहीं पाएंगे. फँस कर रह जाते. एक दो जगहों पर बेट से ज़र्रे निकल कर समंदर में मिल रहे थे. पर वहां से घूसे तब भी फायदा मिलने की उम्मीद कम ही थी. क्यूंकि ज़र्रे बहुत संकरे और दलदली थे. और यहाँ से भी भाग निकलना आसान नहीं होता. पर कुछ जगहों पर पहाड़ी ढलान नुमा किनारा था. यूँ तो इस ढलान पर भी घनी झाड़ियाँ एवं पेड़ों का जंगल था. पर सब्जहारी प्राणियों ने बेल पत्तियों को आहार में ग्रहण कर कई जगह जमीन को साफ़ कर रखा था. और यहाँ उपलब्ध रास्तों में यही तो सबसे कम जोखिम वाला रास्ता था! इसलिए राजू की टीम ने यहीं से बेट पर पाँव रखने का फैसला किया.
वे आगे बढ़े. एक जगह पर खाड़ी जैसा स्थान नजर आया. उन्हें यह जगह अपनी याट को ठहराने के लिए उपयुक्त लगी. यहाँ याट को छिपाया भी जा सकता था और यह याट की सुरक्षा के लिए भी अच्छी जगह थी. पूरे द्वीप की प्रदक्षिणा करने के बाद उन्होंने याट को उस खाड़ी में मोड़ दिया.
साम ढल जाने की वजह से अब आगे कुछ किया नहीं जा सकता था. अतः, सभी ने भोजन ग्रहण किया. और पूरी टीम को तीन टुकड़ियों में बाँट कर बारी बारी से चौकी करने का फैसला कर सो गए.
चारों और गहरा सन्नाटा था. इस सन्नाटे में हलके हलके किनारे से समंदर की लहरों के टकराने की मधुर आवाज़ आ रही थी. पवन बेट से किनारे कि और बह रहा था. जो बहुत सुकून दे रहा था. ऐसे में जंगल से एक विचित्र सी आवाज़ आनी शुरू हुई. आवाज़ तो ऐसी थी जैसे बहुत से आदमी हूऊऊऊ... हूऊऊऊ... कर जोर जोर से चिल्ला रहे हो. हवा के जोंको के साथ आवाज़ घटती बढ़ती रही. पर यह आवाज कैसे और किसकी है, पता नहीं चल रहा था. देर रात होते यह आवाज़ आनी बंध हो गई. कभी कभार किसी प्राणी के चित्कारने की भी आवाज़ आती रहती थी.
*********
दूसरे दिन उजाला होने से बहुत पहले ही वे निकल पड़े. सूरज की किरण निकलने तक तो वे पहाड़ी की ढलान तक आ पहुँचे. सब से पहले उन्होंने अपनी लाइफ बोट को बेल पत्तियों से ढंक दिया. जिससे कि किसी की नजर न पड़े. फिर आरोहण आरम्भ किया. उन्होंने घुटनों तक के जूते एवं हेलमेट भी पहन रखे थे. हाथों में दस्ताने थे. इसलिए जंगली छोटे कीट मकोड़ों और साधारण जंगली प्राणी के हमलों से जोखिम नहीं के बराबर था. फिर भी बड़े जीव नुकसान पहुंचा सकते थे. इसलिए वे बड़े डंडों से झाड़ियों पौधों को टटोलते जा रहे थे. अगर वहां कोई बड़ा जीव छिपा हो तो पीछे हट जाए. छिपते छिपाते, इधर उधर नजर डालते वे धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे.
मेघनाथजी की बात उन्हें याद आ रही थी. यहाँ हजारों बरस पहले पाए जानेवाले प्राणी हो सकते थे. पर इस चढ़ाई के दौरान ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा था. हाँ, भिन्न भिन्न प्रकार के पक्षी, बिल्लियाँ, सर्प, जंगली भेड़, बन्दर, सूअर, इत्यादि नजर पड़ रहे थे. कुछ जगहों पर गीधड़ अपनी जमात लगाए मिज़बानी उड़ा रहे थे. कहीं कहीं छोटे छोटे तालाब और ज़र्रे भी नजर आ जा रहे थे. पर उन्हें ये कोई अजूबा नहीं लगा.तो अब उन्हें ऐसा क्या देखने को मिलेगा कि उन्हें ऐसा लगे कि जैसे वे हजारों बरस पीछे की दुनियाँ में लौट गए हैं?
रास्ता आसान नहीं था. पर मुश्किल भी नहीं था. वे किनारे से घंटे भर के करीब आगे बढ़े होंगे, कि मार्ग में एक दस बारह फूट ऊँची खड़ी चट्टान आ गई. इस चट्टान को पार करना अपने बल संभव नहीं था. तुरंत भीमुचाचा का अनुभव काम आया. उसने जंगल में से बड़े और मजबूत तीन चार बांस काट लिए. और उसकी सीढ़ी बना ली. पर ये सीढ़ी भी दो तीन फूट कम पड़ गई. अब उन्हें तीन चार फूट सीढ़ियों से कूदकर चट्टान को पार करना था. सबसे पहले राजू सावधानी से चढ़ा. फिर बारी बारी से सभी सदस्यों ने एक दूसरे की सहायता से चट्टान को पार कर लिया. ऊपर चढ़ने के बाद वह सीढ़ी भी अपने साथ ले ली. अगर रास्ते में ऐसी अन्य चट्टान आ गई तो काम आ जाये.
पहाड़ी के शिखर तक पहुँचे, तब तक दोपहर होने को आई थी. अब आगे पहाड़ी की नीचे की और ढलान शुरू हो जाती थी. इसलिए आगे और ज्यादा आरोहण संभव नहीं था.
सब से पहले वे पूरे बेट का मुआइना करना चाहते थे. पर पहाड़ी की टॉच पर पहुंचकर भी ये काम मुश्किल लग रहा था. यूँ तो यहाँ की जमीन थोड़ी बहुत साफ़ थी, पर फिर भी पेड़ों की वजह से तलहटी में दूर तक देखना संभव नहीं हो पा रहा था. उन्होंने एक बड़ा पेड़ ढूंढा. राजू एवं पिंटू ऊपर चढ़ कर दूरबीन से चारों और नजर दौड़ाने लगे. यहाँ से बेट के एक बड़े हिस्से को देखा जा सकता था.
"अरे ये क्या!?" पिंटू दूर तलहटी में देखकर आश्चर्य से चौंकते हुए जोर से चीखा.
"क्या है?" राजू ने चोंक कर पूछा.
पिंटू: "देखो वहां!"
नीचे खड़े लोग भी दोनों की बातचीत सुन, क्या है, क्या है के सवाल करने लगे.
राजू: "वो तालाब!?"
पिंटू: "जी हाँ, वहीँ तालाब! उसमे देखो!! क्या है!"
राजू: "अरे ये क्या!? पानी में आग!?"
पिंटू: "पानी में आग नहीं! वो आग का प्रतिबीम है."
आग की बात सुन, संजय, दीपक, प्रताप और हिरेन भी अगल बगल वाले पेड़ पर चढ़ते हैं.
राजू: "हाँ, आग का प्रतिबीम ही है."
पिंटू: "तो फिर आग कहाँ होगी?"
राजू: "ये देखो. वहाँ पहाड़ी है, उसकी जरा दायिनी और तालाब पड़ता है. लगता है, पहाड़ी की दूसरी बाजू कहीं आग है! इसलिए हमें यहाँ से दिखाई नहीं दे रही."
पिंटू: "तो क्या जंगल में आग लगी होगी?"
राजू: "अगर जंगल की आग होती तो ये अब तक हमें दिखाई दी जाती. और ये देखो. कोई जंगली प्राणी पक्षी भी भागते दौड़ते दिखाई नहीं देते. अगर ऐसा होता तो अब तक जंगल में हुड़कम मच गया होता."
पिंटू: "हां. सच्ची बात है."
दूसरे पेड़ से दीपक: "तो ये क्या कुदरती जंगल की आग नहीं है?"
राजू: "ऐसा तो नहीं लगता."
प्रताप: "फिर ये आग किसने लगाई होगी?"
राजू: "यहीं तो मैं भी सोच रहा हूँ. ये नियंत्रित आग है. प्राकृतिक आग नहीं!"
नीचे से जेसिका चिल्ला उठती है: "नियंत्रित आग! देखो देखो, वहां कोई इंसान तो नहीं?"
पिंटू: "कोई नहीं दिखाई दे रहा."
तभी हिरेन की नजर पानी में हिलती हुई कोई परछाई पर पड़ती है. "देखो, देखो, वहां कुछ है!"
'ये तो कोई इंसानी साए जैसा लगता है!" पिंटू ने कहा.
राजू: "हाँ! लगता तो कुछ ऐसा ही है!"
दीपक: "तो क्या यहाँ कोई इंसान बसते होंगे?"
हिरेन: "हो सकता है!"
संजय: "पर ये कोई बन्दर भी तो हो सकते हैं?"
दीपक: "पर कोई बन्दर थोड़े ही आग जला सकते हैं!"
राजू: "पर मैंने कहीं पढ़ा हुआ है कि गोरिल्ला और अन्य एक दो किस्म के बन्दर को भी आग जलाते और मांस भुन कर खाते हुए देखा गया हैं. इसलिए हम तै नहीं कह सकते की ये लोग कोई इंसान ही होंगे."
हिरेन: "हा हा हा. मैंने एक वीडियो में एक बन्दर को सिगारेट पीते हुए भी देखा था!"
संजय: "और ये देखो! अब तो बहुत से साए आ गए."
राजू: "ये साए तो कहीं जा रहे हैं!"
पिंटू: "हाँ, ये तो चले!"
अब राजू और पिंटू थक चुके थे. दोनों बहुत देर से पेड़ पर खड़े थे. आगे ज्यादा कुछ मालूम भी नहीं पड़ रहा था. अतः दोनों नीचे उतर आते हैं. पर हिरेन, प्रताप, दीपक और संजय अभी भी ऊपर ही थे.
हिरेन: "ये देखो. जिन पहाड़ियों में हमें खोह की तलाश करनी है, वे इधर दक्षिण और पूर्व में फैली हैं."
संजय: "अरे हाँ! वहां देखो! तालाब के उस पार दूर वाली पहाड़ी की तलहटी दूसरी पहाड़ियों की तलहटी से कुछ अलग मालूम पड़ती है."दीपक: "हाँ! इसका रंग कुछ अलग है."
सब आगे कुछ पता करने की कोशिश करते हैं, पर ज्यादा मालूमात न लगने पर थक कर नीचे उतर आते हैं. तब तक बहुत वक्त भी गुजर चूका होता है.
अब उन लोगों के सामने कुछ पहेलियाँ थी. क्या वे साए किसी इंसान के ही थे या फिर वे कोई बन्दर थे? और वे इंसान ही थे तो वो आग भी क्या उनकी ही लगाई हुई थी?
अब इन सवालों के उत्तर पाने का वक्त नहीं रहा था. इसलिए दूसरे दिन तालाब और उनके भेदों का पता लगायेंगे. इतना तै कर वे लौटे.
जब तक वे याट पर पहुँचे तब तक साम हो गई थी. उन्होंने अब तै किया कि अब वे पूरे साजो सामान के साथ चलेंगे और मेघनाथजी की बताई खोह की तलाश करेंगे. साथ ही साथ उन भेदी सायों, अलग दिखने वाली तलहटी और आग का रहस्य पता करने की भी कोशिश करेंगे. इस दौरान कुछ दिन जंगल में ही रहेंगे, तभी कोई काम बन सकता है. वर्ना यूँ ही आने जाने में वक्त बर्बाद होता रहेगा.
क्रमशः
अगले दिन जब वे धन की खोज में निकलेंगे तो क्या होगा? वे साए कौन थे? क्या वे साए उनके लिए कोई मुसीबत खड़ी करेंगे? अब कहानी अत्यंत रोचक दौर में प्रवेश करने वाली है. जानने के लिए पढ़ते रहे...
 

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