Thriller पता, एक खोये हुए खज़ाने का(completed)

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Ek din hamari mehnat Ko bhi like air comments milenge hum bhi kisi ki nazron me aajayen shayad
 
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जब तक वे याट पर पहुँचे तब तक साम हो गई थी. उन्होंने अब तै किया कि अब वे पूरे साजो सामान के साथ चलेंगे और मेघनाथजी की बताई खोह की तलाश करेंगे. साथ ही साथ उन भेदी सायों, अलग दिखने वाली तलहटी और आग का रहस्य पता करने की भी कोशिश करेंगे. इस दौरान कुछ दिन जंगल में ही रहेंगे, तभी कोई काम बन सकता है. वर्ना यूँ ही आने जाने में वक्त बर्बाद होता रहेगा.
मेघनाथजी की रची शिलपरिरक्षक वाली तीसरी पहेली उन्होंने याद की. जिसमे कहा था, एक खोहद्वार की रक्षा उत्तर, दक्षिण और पूर्व में एक एक शिलपरिरक्षक कर रहे हैं. ये शिलपरिरक्षक कौन हैं? यह तो उनकी समझ में न आया. पर इससे कुछ संकेत अवश्य मिल रहे थे कि उस खोह का मुहाना पूर्व में खुलता होना चाहिए. मतलब उन्हें हर पहाड़ी को पूर्व से जांचना है. दूसरा यह कि खोह के उत्तर, दक्षिण और पूर्व में एक जैसी समान चीज होनी चाहिए. यह दो संकेत उन्हें उस खोह तक पहुंचा सकते थे.
दूसरे दिन वे फिर से पहाड़ी की चोटी पर पहुँचे. और आगे की तलाशी शुरू की. पिछले दिन हिरेन की दिखाई दक्षिण दिशा में वे बढ़े. ख़ास तो वे उस साये, आग और अलग दिखाई देने वाली तलहटी का भेद पता करना चाहते थे. वे जंगल और पहाड़ी का चप्पा चप्पा छान मारते जा रहे थे. मार्ग में आने वाली हर पहाड़ी और खोहों की बारीक जांच करते जा रहे थे. पर अब तक उन्हें ऐसा कोई खोह का मुहाना न दिखाई दिया था. जिसके अगल बगल और सामने कोई समान चीज हो.
अभी भी वे तालाब और अलग दिखने वाली घाटी से थोड़े दूर थे. पर तब तक सूरज ढलने को हुआ. उन्हें अब यहीं कहीं अपना डेरा डालना था. इसलिए वे उपयुक्त जगह की तलाश करने लगे. उन्हें ऐसी जगह चाहिए थी, जिसके नजदीक में ही कहीं पानी का तालाब या ज़र्रा हो. यूँ तो वे किसी पहाड़ी पर मध्य ऊँचाई पर ही थे. उस स्थान पर उन्हें पानी मिलने की सम्भावना पूरी थी. पानी की तलाश में वे थोड़े और नीचे उतरे. यहाँ उन्हें थोड़े दूर ही एक ज़र्रा बहता दिखाई दिया. अब उन्होंने उसी स्थान पर डेरा डालने की तैयारी शुरू कर दी.
इस बार वे दो टेंट भी साथ लाए थे. सो उन्होंने एक उपयुक्त स्थान देखकर जगह साफ़ की. और टेंट लगा दिए.
इतना करते रात्रि का अंधकार पूरी तरह से ढल गया. उन्होंने टॉर्च सुलगा कर रोशनी कर ली.
वे अपने साथ काफी मात्रा में तैयार खाना लाए थे. इसलिए खाने की कोई चिंता नहीं थी. उपरान्त रफिक्चाचा और दीपक ने दिन में सूअर और खरगोश का शिकार भी किया था. और रास्ते में से जलावन की लकड़ियाँ भी इकठ्ठा कर लाए थे. सो आसपास की जमीन साफ़ कर भूनने के लिए आग सुलगाने लगे. जेसिका और प्रताप ज़र्रे से पानी लाने गए हुए थे.
आग के चारों और सब गोला बनाकर बैठे थे. हवा में गोश्त भूनने की गंध फ़ैल रही थी. अब उनको एक और चिंता ने घेरा. कहीं इस गोश्त की गंध से आकर्षित हो कर कोई जंगली हिंसक पशु यहाँ न आ पहुँचे. वे थोड़े सावधान हुए. तभी ज़र्रे की और से किसी की चीख सुनाई दी. चीख सुनकर सब दहशत में आ गए. थोड़ी देर में बंदूक से गोली चलने की भी आवाज़ सुनाई दी. सब कुछ छोड़ कर वे अपनी अपनी बंदूक लिए ज़र्रे की और भागे.
रास्ते में ही प्रताप और जेसिका भागते हुए मिले. वे बहुत गभराए हुए थे. अपने साथियों को आता देख वे रुके. जेसिका तो वहां हाँफते हुए बैठ ही गई. दोनों दहशत के मारे कांप रहे थे.
राजू और अन्य साथी: "क्या हुआ!?"
दोनों की साँसे फूली हुई थी. अतः, भीमुचाचा ने ज़रा देर के लिए सब को शांत रहने के लिए कहा.
थोड़ी देर बाद जब दोनों की साँसे कुछ शांत हुई, तब प्रताप बोला.
"राक्षस!"
"क्या?" जैसे सुनाई न दिया हो ऐसे सब ताज्जुब और प्रश्न दृष्टि से उसे देखने लगे.प्रताप: "राक्षस है!"
"कहाँ?" सब एक साथ बोले.
वहां...!" प्रताप ने ज़र्रे की दिशा में पेड़ों के पीछे हाथ से इशारा किया. अब भी वह बहुत गभराया हुआ था. उनकी सांस फूल रही थी और उसे बोलने में दिक्कत आ रही थी.
सब ने उनकी दिखाई दिशा में देखा, पर वहां कुछ नहीं दिखाई दिया.
राजू संजय को लेकर पता लगाने के इरादे से ज़र्रे की और जाने लगा. भीमुचाचा भी उनके साथ चले. बाकी के टीम मेम्बर्स जेसिका और प्रताप को साथ लिए पड़ाव की और निकले.
ज़र्रे के पास पेड़ों के पीछे राजू , भीमुचाचा और संजय पहुँचे ही थे कि पीछे से दीपक और हिरेन की आवाज़ सुनाई दी. वे उन्हें आवाज़ लगा रहे थे.
हिरेन और "दीपक: "भीमुचाचा... राजू... वापस चलो."
उनकी आवाज़ सुन तीनों ने पीछे मुड़कर देखा. दीपक और हिरेन दौड़ते हुए उन्ही की और आ रहे थे.
संजय: "अब क्या हुआ!"
राजू: "क्या जाने अब कौन सी नई मुसीबत आ गई."
तीनों तेजी से वापस लौटे. उन्हें लौटता देख दीपक और हिरेन भी मुड़कर वापस टेंट की और भागे. मार्ग में जेसिका और प्रताप के हाथ से गिरे हुए पानी के केन भी वे उठाते चले.
जब वे अपने पड़ाव पर पहुँचे, तो वहां का हाल देखकर तीनों की आंखें फटी की फटी रह गई. जो उन्होंने आग सुलगाई हुई थी, वह बूझ गई थी. उसकी लकड़ियों को कि सीने इधर उधर फेंक मारा था. उस पर भूनने रखे मांस के टुकड़े भी यहाँ वहां मिट्टी में बिखरे पड़े थे. ज्यादा वक्त तक आग पर रह जाने से वे अब जल चुके थे. और उनकी तीव्र कड़वी बास ने आस पास की हवा को कसैला बना दिया था.
तीनों ने प्रश्न दृष्टि से अन्य मेम्बर्स की और देखा.
पिंटू ने उन्हें टेंट में अन्दर जाकर देखने का इशारा किया.
पिंटू का इशारा पा कर वे जल्दी से टेंट में दौड़े. वहां का नज़ारा भी कुछ ऐसा ही था. सारा सामान बिखरा पड़ा था. जैसे यहाँ किसी ने तलाशी ली हो! टेंट की नीव भी किसी ने हिला दी थी. हाँ, एक अच्छी बात थी कि उनका कोई सामान गायब नहीं हुआ था.
अब तक उनके सामने कई घटनाएँ भेद बनकर खड़ी थी. इन में एक और भेद खड़ा हो गया. यह हुल्लड़ मचा जाने वालों का पता लगाने राजू और भीमुचाचा टॉर्च लिए टेंट के बाहर निकले.
जेसिका अभी भी दरी हुई थी. संजय, प्रताप, पिंटू और रफीकचाचा मिलकर सारा सामान एवं टेंट ठीक करने में लगे. दीपक और हिरेन फिर से लकड़ियाँ इकठ्ठा कर आग सुलगाने में लगे. सब कुछ ठिकाने लगाने में काफी देर हो गई.
भीमुचाचा और राजू आसपास की मिट्टी में किसी के पैरों के निशान धुंध रहे थे. उनकी टीम मेम्बर्स के जूतों के निशान के अलावा उन्हें किसी और के आने जाने के पैरों के निशान भी दिखाई दिए. ये निशान लगते तो इंसानों के पैरों के निशान जैसे ही थे, पर थोड़े से अलग और छोटे थे. उनकी उँगलियों के निशान जरा बड़े थे.
"ये तो बन्दर के पैरों के निशान जैसे लगते हैं." भीमुचाचा ने अनुमान लगाया.
वे और कोई सुराग पाने की उम्मीद में निशान का पीछा करने लगे. ये निशान उनके पड़ाव से उत्तर पूर्व की और जा रहे थे. वे टॉर्च लेकर उनके पीछे पीछे गए. पर जरा दूर जाकर घाँस लताओं कि वजह से वे निशान गायब हो गए थे. चारों दिशा में और ऊपर पेड़ों पर टॉर्च की रोशनी डाली. रोशनी पड़ते ही ऊपर पेड़ पर कुछ हिलचाल हुई. पर घने पत्तों की वजह से साफ़ कुछ मालूम न पड़ा.
वहां से अब वे अपने पड़ाव की और आने वाले पैरों के निशान का पीछा करते हुए लौटे. ये निशान उन्होंने जहां आग झलाई थी वहां तक आते थे. फिर वे निशान उनके टेंट तक गए थे.
राजू और भीमुचाचा आपस में मसलत करने लगे.
मतलब सबसे पहले वे आग तक आये. फिर आग की लकड़ियों और भूनने रखे मांस को बिखेर दिया. फिर टेंट में घूसे. जहां उसने वह धमाल मचाई. और उनके लौटने से पहले वे भाग गए.
पर उनके सामने एक सवाल था. अगर किसी प्राणी को छेड़ा नहीं जाता तब तक ये ऐसा बर्ताव तो नहीं करते? हाँ, अगर कोई खाने की चीज हो तो वे खा जरूर लेते हैं. फिर उनके छिड़े जाने की वजह क्या हो सकती है?
दोनों ने दिमाग पर जोर डाला.
उन्हें याद आया कि जब वे लौटे तब मांस जल जाने से हवा कसैली हो गई थी. अब वे हवा के रुख को परखने लगे. हवा दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की और बह रही थी. मतलब जहां से ये धमाली आये हुए थे उसी दिशा में.
अब कुछ कुछ तस्वीर साफ़ होने लगी. जब वे प्रताप और जेसिका की चीख सुनकर भागे तब मांस आग पर ही रह गया था. और ज्यादा वक्त तक मांस आग पर रह जाने से जलने लगा. इसकी तीव्र बदबू ने इस हुल्लड़बाजों की नाक में घुसकर सुरसुरी की होगी. इसी लिए उनको गुस्सा आ गया और तभी वे आकर ये सारा फसात मचा गए.
दोनों ने बंदरों का सुराग पाने का काम सुबह तक स्थगित कर यह जांच पड़ताल यहीं रोक दी. और अपनी टीम मेम्बर्स को यह बतला दिया कि ये सारा कांड बंदरों का मचाया हुआ है. इसके समर्थन में जो जो सुराग उन्हें मिले थे वे भी कह सुनाए. इससे टीम मेम्बर्स को तसल्ली हुई और उनकी गभराहट हुई.
अब प्रताप और जेसिका का मामला सुलझाना था. पर उनकी बात सुनने से पहले उन्होंने भोजन कर लेना उचित समझा. मांस सारा नष्ट हो गया था, इसलिए साथ लाए तैयार भोजन से ही उन्हें चलाना पड़ा.
भोजन समाप्त करने के बाद उन्होंने अपने टेंट के आसपास तीन चार जगह आग जला दी. आसाम के जंगल से लायी हुई मच्छर भगाने वाली पत्तियाँ भी उन्होंने आग में दाल दी. जिससे मच्छरों से बचा जा सके. फिर वे प्रताप और जेसिका का हाल सुनने बैठे.
प्रताप और जेसिका का हाले बयान आरम्भ हुआ.
प्रताप ने कहना शुरू किया.
जब हम ज़र्रे से पानी भरकर वापस लौट रहे थे, तब मार्ग में हमें पंद्रह बीस मीटर के फासले पर पेड़ों के पीछे से किसी प्राणी के ग़ुर्राने की आवाज़ सुनाई दी. हम यह जानने के लिए जरा बगल में हटे कि वहां क्या है. और वहां टॉर्च की रोशनी डाली. तभी रोशनी पड़ने से एक भयंकर राक्षस ने पेड़ के पीछे से चेहरा निकालकर झांका. उनका भयंकर रूप देखकर हम दोनों ठिठक गए. जेसिका तो जोर से चीख कर लड़खड़ा पड़ी.
क्रमशः
वह टेंट में धमाल मचाने वाले क्या सचमुच में बन्दर ही थे? या इनका कोई और ही राज़ निकल कर सामने आता है? प्रताप और जेसिका को दिखाई देने वाले राक्षस का भेद क्या है? जानने के लिए पढ़ते रहे... कहानी अब रोचक दौर में प्रवेश कर गई है.
 
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जब हम ज़र्रे से पानी भरकर वापस लौट रहे थे, तब मार्ग में हमें पंद्रह बीस मीटर के फासले पर पेड़ों के पीछे से किसी प्राणी के ग़ुर्राने की आवाज़ सुनाई दी. हम यह जानने के लिए जरा बगल में हटे कि वहां क्या है. और वहां टॉर्च की रोशनी डाली. तभी रोशनी पड़ने से एक भयंकर राक्षस ने पेड़ के पीछे से चेहरा निकालकर झांका. उनका भयंकर रूप देखकर हम दोनों ठिठक गए. जेसिका तो जोर से चीख कर लड़खड़ा पड़ी.
पूरा काला बदन. बड़ा सर. लाल लाल आँख. और बड़े बड़े नुकीले सफेद दांत. पूरे सात आठ फूट लम्बा होगा वह.
मैं भी उनका हुलिया देखकर कांप उठा. मगर मुश्किल से हिम्मत इकठ्ठा कर मैंने बंदूक से गोली चलाई. गोली कहाँ लगी यह तो पता नहीं चला, पर वह राक्षस पेड़ के पीछे छिप गया. तभी मैंने जेसिका को उठाया और उसका हाथ पकड़े भागा. और सामने से आप लोगों को आते हुए देखा.
प्रताप का हाल सुन, और उस राक्षस के हुलिये की कल्पना कर सब कांप उठे. फिर से मेघनाथजी की हजारों बरस पहले वाले प्राणी की बात उन्हें याद आ गई. वे उसी संदर्भ में बात करने लगे.
फिर सब इस मामले की जांच पड़ताल सुबह करना तै कर सोने चले. इस बार भी उन्होंने टुकड़ियों में रात्रि चौकी करना तै किया था.
राजू की बारी अंत में थी. इसलिए वह भी सोने चला. उनके दिमाग में अभी भी राक्षस की बात चल रही थी. राक्षस की बात को लेकर उनके मन में संदेह था. वह हकीकत का पता लगाना चाहता था. मन में ही वह सोचने लगा. उनके पास जो टॉर्च है, वह पंद्रह बीस मीटर तक तो ठीक से रौशनी फेंक नहीं सकती! इसलिए जो कुछ जेसिका और प्रताप ने देखा होगा, वह साफ़ तो बिलकुल नहीं दिखाई दिया होगा. मतलब राक्षस की बात पर संदेह करना संभव है. फिर क्या हो सकता है? उनके मन में एक खयाल आया. उसने मन में ही कहा: हाँ, यह हो सकता है. फिर इसका पता सुबह ही लगाया जा सकता है, सोच कर वह सो गया.
मध्य रात्रि के दौरान जिस टुकड़ी की चौकी करने की बारी थी, उसमे संजय, पिंटू और दीपक थे. वे अभी थोड़ी देर पहले ही गहरी नींद से उठे थे. इसलिए उनका सर भारी हो रहा था. अतः, उन्होंने जरा हल्का होने के इरादे से चाय बनाई. और प्याला हाथ में लिए, टेंट के बाहर निकल चाय की चुस्कियां लेते हुए हंसी मजाक करते टहलने लगे.
चारों और रात्रि का गहरा अंधकार छाया हुआ था. निशाचर प्राणी एवं पंखियों की हरकत कान में दस्तक दे रही थी. तभी उनके कानों में एक ऐसी आवाज़ पड़ी, जिनको सुनकर उनकी सारी हंसी ठिठोली हवा में उड़ गई. पाँव से सर तक वे सिहर उठे.
उनके कान में साफ़ आवाज़ पड़ रही थी. कहीं दूर कोई बच्चा रो रहा था. और साथ ही साथ जंगली कुत्ते और भेड़ियों के रोने की भी आवाज़ आ रही थी.
इस जंगल में इतनी रात को कोई बच्चा! ये कौन होगा? और क्यूँ रो रहा होगा? उनके मन में प्रश्न थे.
उन्होंने दिन भर में यहाँ अगल बगल कोई मानव बस्ती नहीं देखी थी. फिर ये क्या होगा? यह कोई सचमुच इंसानी बच्चा होगा या कोई भूत प्रेत? वे सोच में पड़े. उनकी हिम्मत नहीं पड़ी कि आवाज़ का पीछा करे और पता लगाए कि वास्तव में वह क्या है. फिर उनके दिमाग में जेसिका और प्रताप को राक्षस दिखाई जाने की बात भी ताजा थी ही. और बचपन में ऐसे भूत प्रेतों की कहानियां भी सुन रखी थी, जो रात्रि के दौरान बच्चे का रूप लेकर धोखा देते हैं. रात्रि के अंधकार व अकेलेपन में तार्किक विचार के बदले यह सब नकारात्मक पुरानी यादें अब उनके दिमाग पर कब्जा करने लगी. थोड़ी देर के लिए तो उन्हें अन्य टीम मेम्बर्स को जगाने का खयाल भी आया. पर फिर मजाक बनने के दर से सब चुप रहे. और डरते काँपते अपनी बारी खत्म होने का इंतज़ार करते रहे.
जब उनकी चौकी करने की बारी खत्म हुई और राजू की अंतिम टुकड़ी की बारी आई तब उन्हें सारी बीना कह सुनाई. जिसे राजू ने गौर से सुना. और उन्हें अब सो जाने के लिए कहा.
सुबह राजू ने अपनी टीम को बताया कि वह रात्रि की घटनाओं का पता लगाना चाहता है. और बिना पता लगाए आगे बढ़ना नहीं चाहता. क्यूंकि इस भेद का बिना पता चले वे भविष्य के ख़तरों से सावधान नहीं हो सकते. जिसका भीमुचाचा और रफिक्चाचा ने भी समर्थन किया.सुबह की चाय जब तक तैयार होती, राजू और भीमुचाचा हुल्लड़बाजों के पैरों के निशान जहाँ गायब हो जाते थे, वहां तक पहुँच गए. उन्हें वह संदेहास्पद बंदरों का सबूत चाहिए था. जो उन्हें तुरंत मिल गया. वहां पेड़ों पर कई बन्दर एक डाली से दूसरी डाली कूद रहे थे. रात्रि को जो उन्होंने अनुमान लगाया था, वह सच साबित हुआ था. लौटकर उन्होंने अन्य टीम मेम्बर्स को भी इस डंगलबाज़ बंदरों के बारें में बताया. बाकी के मेम्बर्स भी उन धमालियों का हुलिया मुसकुराते हुए देख आये. जो रात को इतनी सारी आफत मचा गए थे. और उनके मन को संदेह और दर से भर गए थे.
अब वह राक्षस और रोने की आवाज़ की गुत्थी सुलझानी थी. चाय नाश्ता करने के बाद रफिक्चाचा और हिरेन शिकार को निकले. दीपक और संजय टेंट को संभालने रुके. एवं राजू, भीमुचाचा, पिंटू, प्रताप और जेसिका राक्षस की जांच पड़ताल करने निकले.
वे संदिग्ध राक्षस के स्थान पर पहुँचे. जेसिका और प्रताप ने राक्षस किस पेड़ के पीछे और कहाँ खड़ा था, वह बताया. अपने अपने हथियार संभाले वे जेसिका और प्रताप की दिखाई दिशा में सावधानी से आगे बढ़े. पर अब वहां कुछ नहीं था. जो कुछ था वह सायद रात्रि को ही निकल गया था.
राजू और भीमुचाचा ने अगल बगल निरीक्षण शुरू किया.
जिस पेड़ को जेसिका और प्रताप ने बताया था, उस पेड़ के पास वाली घाँस और बेल पट्टियाँ बुरी तरह कुचली हुई थी. कुछ कुछ मिट्टी भी निकल आई थी. जिसका मतलब साफ़ था, यहाँ जरूर कुछ तो था. उनका शरीर भी बहुत भारी रहा होगा. तभी घांस पट्टीयां और मिट्टी का यह हाल हुआ है. पर दृश्य तो यह कह रहा है कि यहाँ लड़ाई हुई थी.
उन्होंने पेड़ पर नजर डाली. पेड़ के टने पर कुतरे जाने के निशान थे.
"यह किसी मजबूत और तीक्ष्ण नाखून से कुतरा गया होगा." राजू बोला.
ऊपर देखा. दाल पर एक मधुमक्खी का टूटा हुआ छज्जा लटक रहा था. उसके कुछ छोटे छोटे टुकड़े नीचे भी बिखरे पड़े थे. और उनपर मक्खियाँ और अन्य की टक अब भिनभिना रहे थे. राजू ने बड़े ध्यान से जमीन का निरीक्षण किया. वहां कुछ बाल भी पड़े मिले. जो राजू ने उठा लिए.
आस पास की जमीन और पेड़ों का मुआयना किया. बगल के एक पेड़ पर बंदूक की गोली का निशान था. वह भी दोनों ने गौर से देखा. जरा दूर पर एक पेड़ के नीचे भी घाँस पट्टियाँ दबी हुई थी. पर वहां यहाँ जैसा हाल नहीं था. लगता था, जैसे कोई प्राणी यहाँ बैठा हो. आसपास सूखे हुए लहू के निशान भी थे. वहां से भी कुछ बाल प्राप्त हुए.
राजू और भीमुचाचा ने वे दोनों बालों के सेंपल को देखा. भीमुचाचा का अनुभव कह रहा था कि यह किसी भालू के बाल हैं. दोनों ने आपस में मशवरा कर यह तै किया कि यह कोई जंगली भालू का काम है. और जेसिका और प्रताप ने जिस राक्षस को देखा था, वह भी यह भालू ही था. उन्होंने अपने अनुमान के समर्थन में प्रमाण भी दिए.
भालू कई बार पेड़ के टने के सहारे दो पैरों पर खड़ा हो जाता है. और अपने नाखून से पेड़ के टने को कुरेदता भी है. उनके दांत भी लम्बे होते हैं. भालू को शहद भी बहुत प्रिय है. और वह मधुमक्खियों के छज्जे को अपने घने बालों की वजह से आसानी से खा भी लेता है.
दोनों ने सारे घटनाक्रम का बयान कुछ यूँ दिया.
पेड़ पर लटके मधुमक्खी के छज्जे को कोई एक भालू खा रहा होगा. तभी दूसरा भालू आ गया होगा. मधुमक्खी के छज्जे को लेकर दोनों के बीच लड़ाई हो गई होगी. जिसके फलस्वरूप ये घाँस पट्टियाँ कुचली गई है. फिर कमजोर भालू हार कर वहां उस दूसरे पेड़ के नीचे जाकर बैठा होगा. वह थोड़ा बहुत घायल भी हुआ होगा. जिसके खून के निशान भी वहां है. वह बैठे बैठे कराह रहा होगा. जिसको जेसिका और प्रताप ने सुना होगा. और जिसको दोनों देखना चाह रहे होंगे.
लड़ाई के बाद दूसरा भालू अपने पिछले दो पैरों पर खड़े होकर मधुमक्खी का शहद खा रहा होगा. तभी जेसिका और प्रताप ने टॉर्च की रोशनी फेंकी होगी. जिसको देखकर वह दूसरे भालू ने पेड़ से झांका होगा. उसी को टॉर्च की कम रौशनी में देखकर दोनों को लगा होगा कि यह कोई सात आठ फूट लम्बा राक्षस है. जिसके नाखून से कुतरे जाने के निशान भी यहाँ इस पेड़ पर मौजूद है. प्रताप ने उस वक्त गोली चलाई. मगर निशान चुक जाने से वह गोली बगल के पेड़ में लगी. जिसका निशान भी उस पेड़ पर मौजूद है. और रात्रि को संजय, दीपक और पिंटू को जो बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी थी, वह भी उस घायल भालू की ही होगी. क्यूंकि भालू भी कई बार इंसानों जैसी आवाज़ में रोता है. खासकर तब, जब वह किसी परेशानी में होता है.राजू और भीमुचाचा के खुलासे से जेसिका, प्रताप और पिंटू को संतोष हुआ. सब मुसकुराते हुए अपने पड़ाव पर लौटे. राजू ने अन्य सदस्यों को भी सारा घटनाक्रम खुलासे के साथ कह सुनाया. वे बाल भी दिखलाये. उन्हें भी इस खुलासे से संतोष हुआ.
पर राजू और भीमुचाचा ने अब सबको सावधान किया. "देखो, यहाँ इस जंगल में भालू भी बसते हैं. जो हमारे लिए कभी भी खतरा बन सकते हैं. इसलिए अब हमें बड़ी सावधानी रखनी होगी. और अकेले तो कभी पड़ना ही नहीं हैं.
यह सारा मामला सुल्जा तब तक दोपहर हो गई. अब ज्यादा आगे बढ़ना संभव नहीं था. अतः, यह तै हुआ कि साम होने से पहले सामने वाली पहाड़ी पर पहुंचा जाए. इसलिए रफिक्चाचा, संजय, दीपक और प्रताप को टेंट और अन्य सामान लेकर सीधे ही उस पहाड़ी पर भेजा. और उसे वहां अगला पड़ाव डालने को कहा. बाकी की टीम आसपास में जो भी खोह होंगी, उसकी तहक़ीक़ात करते हुए साम तक पहाड़ी पर पहुँच जाएगी.
संध्या होने तक दूसरी टुकड़ी पहाड़ी पर पहुंची. तब तक पहली टुकड़ी ने टेंट लगा दिए थे. दिन रहते पानी भी भर लाए थे. और खाना भी तैयार कर दिया था. इसलिए रात्रि का अंधकार छाने से पहले ही सब फ्री हो गए. पिछली रात के मुकाबले इस रात उनके पास आराम का ज्यादा वक्त था. इस रात बीती रात जैसा कोई हंगामा भी नहीं हुआ था. अतः, सब खुश थे. वे सब टेंट के बाहर आग के पास गोलाई में बैठे बातें कर रहे थे. साथ साथ खाना भी चल रहा था. इस दिन भी उनके हाथ कुछ नहीं लगा था. जैसी खोह की उन्हें तलाश थी, वैसी खोह इस दिन भी उनकी नजर को न पड़ी थी. न तो वे साए और आग का भेद कुछ मालूम हुआ था.
भोजन समाप्त करने के बाद भीमुचाचा और रफीकचाचा खाना पचाने के उद्देश्य से टेंट के अगल बगल टहलने लगे. टहलते हुए वे टेंट की पीछे की साइड को निकले. तभी रफिक्चाचा की नजर को कहीं से हलकी हलकी रौशनी आती दिखाई दी. शुरू में उसे जुगनू की रौशनी का अंदाज़ा हुआ. पर ध्यान से देखने पर पता चला कि यह अलग रौशनी है. उसने भीमुचाचा को इस रौशनी से अवगत किया. दोनों सोच मे पड़े. रौशनी कहीं दूर से आ रही थी. साफ़ कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. उन्होंने राजू और अन्य टीम को भी यह रौशनी दिखाई. पर किसी को इस रौशनी का भेद मालूम न पड़ा. क्यूंकि उन लोगों की झलाई आग की रौशनी में यह रौशनी दब जा रही थी. उन्हें एक विचार यह आया कि पेड़ पर चढ़ कर रौशनी का भेद मालूम किया जाए. पर रात्रि के दौरान पेड़ पर चढ़ना उचित न जान यह विचार छोड़ना पड़ा. काफी सोच विचार के बाद यह तै किया कि थोड़ी देर के लिए अपनी बाली आग को बूझा दिया जाए.
गहरा अंधकार होते ही वह रौशनी कुछ साफ़ हुई. दूरबीन से देखने पर पता लगा कि यह भी किसी आग की ही रौशनी है. उनके मन में प्रश्न पैदा हुआ. तो क्या यह वहीँ आग है, जिसका प्रतिबीम उन्होंने दो दिन पहले देखा था?
देर तक सोच विचार किया. पर आगे कुछ मालूम न चला.
फिर से आग जला ली गई और सब सोने की तैयारी में पड़े.
चौकी करने वाली शुरूआती टुकड़ी में भीमुचाचा, हिरेन और रफिक्चाचा शामिल थे. जब उनकी बारी खत्म होने में थोड़ा वक्त शेष रह गया था, तब एक नई घटना घटित होनी आरम्भ हुई.
क्रमशः
वह रौशनी का राज़ क्या है? क्या अब उन लोगों के लिए कोई नयी मुसीबत पैदा होने वाली है? कहानी अब रोचक दौर में प्रवेश कर चुकी है. जानने के लिए पढ़ते रहे.
 
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चौकी करने वाली शुरूआती टुकड़ी में भीमुचाचा, हिरेन और रफिक्चाचा शामिल थे. जब उनकी बारी खत्म होने में थोड़ा वक्त शेष रह गया था, तब एक नई घटना घटित होनी आरम्भ हुई.
वे दूरबीन से उस रौशनी की दिशा में वक्त वक्त पर नज़र बनाए हुए थे. इस उम्मीद में कि वहां कुछ घटित हो. हिरेन के हाथों में दूरबीन थी. अचानक वह अचंभे में पड़ गया. उसने देखा, वह रौशनी चलने लगी थी. उसने रफिक्चाचा और भीमुचाचा को भी इस अचरज की बात दिखलाई. वे भी अजूबे में पड़े. पेड़ों की वजह से कभी कभार वह रौशनी कम होकर गायब हो जा रही थी, तो कभी कभी पूरी तरह से साफ़ हो जा रही थी. तुरंत उन्होंने अपनी आग बूझा दी. और गौर से देखने लगे. वह रौशनी उनकी और ही आ रही थी.
तब तक दूसरी टुकड़ी भी जाग गई थी. उन्होंने अंतिम टुकड़ी को भी जगा दिया. और यह अद्भुत दृश्य दिखाया. सब को कोई नई मुसीबत की बू आई. वे अपने अपने हथियार संभाले सावधान हो गए.
पर फिर उस रौशनी ने अपना रुख मोड़ा. वह दाहिनी और मुड़कर पहाड़ी के पीछे तलहटी में गायब हो गई.
तब उनका ध्यान पड़ा कि वह रौशनी, जो उन्होंने शुरुआत में देखी थी, वह तो वहीँ है. तो यह रौशनी कोई और रौशनी थी, जो उनकी और आ रही थी और अब पहाड़ी के पीछे गायब हो गई थी. अब वे सोच में पड़े. वह रौशनी क्या थी और क्यूँ कर चल रही थी.
रात्रि को अन्य कोई अजूबे की बात पैदा न हुई. अतः, शेष टीम सो गई. और जिनकी बारी थी वह टुकड़ी चौकी करती रही. सुबह तक सब कुछ शांत रहा.
सूरज की किरण निकलने पर सब फ्रेश हुए, चाय नाश्ता किया और अपना डेरा उठाया. वे आगे बढ़ने लगे. हर छोटी बड़ी पहाड़ियों के पूर्व में एक एक खोह की तह लेते वे आगे बढ़ रहे थे. ऐसे वे एक पहाड़ी पर पहुँचे. अब उन्हें वह तालाब और वह अलग सी दिखने वाली घाटी नजदीक दिखाई दे रही थी. दोपहर हो गई थी. अब वे थके थे. अतः, बिछावन बिछाया और बैठे. नाश्ता किया. पानी पिया. फिर सुसताते पड़े.
पिंटू, संजय और हिरेन लघुशौच के लिए पेड़ों के पीछे गए हुए थे. यहाँ से पहाड़ी की तलहटी साफ़ दिख रही थी. तभी संजय की नजर तलहटी में होने वाली गतिविधि पर पड़ी. उसने गले में लटकी दूरबीन आँख पर लगाई.
"ओह! इंसान...!" वह चिल्लाया.
"क्या?" पिंटू और हिरेन ने उनकी और नजर की. संजय को दूरबीन लगाए घाटी में देखते देख दोनों ने तुरंत अपनी अपनी दूरबीन आँख को लगाई.
"अरे! ये तो आदमी हैं!" दोनों के मुंह से निकल पड़ा.
तुरंत हिरेन दौड़ा. उसने दूर से ही अपने टीम मेम्बर्स को चीख कर और हाथ के इशारे से आने को कहा. उनके चेहरे के भाव देखकर टीम मेम्बर्स को कोई नयी चीज घटित होने की भनक लगी. सभी जल्दी जल्दी उस और दौड़े. सब वहां पहुँचे, जहां संजय और पिंटू थे. पहुँचकर सभी ने अपनी अपनी दूरबीन निकाली और देखा. इस वीरान भूमि पर इंसान को देखकर वे भी हैरान रह गए.
तुरंत राजू ने कहा. "चलो आगे बढ़ते हैं. नजदीक पहुँचकर देखें. वे कौन हैं और क्या कर रहे हैं?"
सारा सामान उठाया और निकल पड़े. वे पहाड़ी की ढलान उतर रहे थे. छीपते छिपाते और सावधानी से वे तोह लेते बढ़ते जा रहे थे. पहाड़ी की मध्य ऊँचाई तक वे उतर आये. अब वे इंसान दूरबीन की मदद से साफ़ दिख रहे थे.
उनका हुलिया देख वे दंग रह गए. बदन का रंग काला था. औरत मर्द सब बिना कपड़ों के बिलकुल नंगे थे. नीचे पहाड़ी की तलहटी में कई गुफा जैसे मुहाने थे. और वे उनमें अन्दर बाहर आया जाया करते थे.
तो क्या वे गुफा निवासी थे? उनके मन में प्रश्न पैदा हुआ.मेघनाथजी की बात अब उन्हें समझ में आने लगी. जो उन्होंने हजारों बरस पीछे जाने वाली बात कही थी, वह सायद इन्हीं गुफा निवासी आदिवासियों के सम्बन्ध में ही कही होगी. आखिर उनके दिमाग में यह बात रही ही होगी की हजारो साल पहले हमारे शुरुआती पुरखें गुफाओं में ही बसते थे. ऐसा सब अपनी स्कूली किताबों से ही पढ़ते आ रहे हैं. तभी उन्होंने हजारो बरस पीछे लौट जाने की बात कही होगी.
उन्होंने एक त्वरित निर्णय लिया. वे उस स्थान से थोड़े बगल में हटे. और उन इंसानों की नजर में न पड़े ऐसे पेड़ों के पीछे अच्छी जगह देखकर अपने टेंट गाड़ दिए. अब उन्होंने उस इंसानों की तोह लेना तै किया था. उन्होंने सोचा, सायद उनकी तलाश का पता इन्हीं लोगों से होकर निकलता हो!
इन इंसानों के मिलने से जेसिका इतनी ज्यादा खुश हुई कि इन लोगों पर से उनकी नजर हट ही नहीं रही थी. क्यूंकि उनका रिसर्च का सब्जेक्ट भी आदिवासियों पर ही था. और इसमें भी ये तो अति आदिम मनुष्य! जो अभी भी बिलकुल अपनी प्राकृतिक अवस्था में ही बस रहे थे. वह अपनी तरह से उन लोगों का अभ्यास कर रही थी. उनकी हर गतिविधि पर वह नजर बनाए हुए थी. इधर उधर होते हुए वह आगे ही आगे उन आदिम लोगों के नजदीक पहुँच रही थी. और निरिक्सं करती हुई अपनी डायरी में नोट्स लिखती जा रही थी. वह अपने टेंट में भी नहीं गई थी. अपने कार्य में वह इतनी मग्न हो गई थी कि उसे वह कहाँ है और कहाँ जा रही है यह भी पता नहीं चल रहा था. वह दूरबीन से देखती जा रही थी और डायरी में लिखती जा रही थी. इस क्रिया में उन्हें यह भी ज्ञान न रहा की उनके प्राणों पर संकट आ पड़ा है.
जब उसने अपने बगल में कोई आवाज़ सुनी, तब वह वास्तविक दुनियाँ में लौटी. उसने बगल में देखा. उसके होश उड़ गए. स्वयं मौत जबड़ा फैलाए उनकी और बढ़ रही थी.
दूसरी और देखा. वहां भी काल उनकी और ललचाई नजर गड़ाए खड़ा था.
तभी पीछे से किसी ने उनको धक्का दिया. और वह गिर पड़ी.
***************
सब कार्य से निवृत्त हुए तब राजू की टीम को जेसिका की गैरहाजिरी का पता चला. रात्रि होने को हुई थी पर जेसिका अभी तक लौटी नहीं थी. तुरंत उनको बुलाने दीपक और रफिक्चाचा को भेजा. वे जहाँ उसे छोड़ गए थे, वहां वे पहुँचे. पर वहां अब जेसिका नहीं थी. वे गभराए. चारों और दोड़ कर दूर तक खोजबीन की. जेसिका के नाम की आवाज़ भी लगाई. पर सब व्यर्थ! उनकी साथी, जो अभी तक उनके साथ थी, अब वह नहीं थी. उनका कोई अतापता भी नहीं था.
वे जेसिका के लापता होने की खबर देने के लिए पड़ाव की और मुड़ रहे थे. तभी उनके कानों में जंगली भेड़ियों की आवाज़ पड़ी. उनके दिमाग में तुरंत एक खयाल पैदा हुआ कि कहीं इस भेड़ियों की वजह से जेसिका कोई संकट में न पड़ गई हो!
पड़ाव की और जाने का खयाल छोड़ वे आवाज़ की दिशा में दौड़े. अचानक उनको रुकना पड़ा. आगे मार्ग में करीब पंद्रह फीट नीचे कि और खड़ी चट्टान थी. वे यहाँ से आगे जा नहीं सकते थे. पर सामने का दृश्य देख उनके रोंगटे खड़े हो गए.यहाँ पड़ाव में दीपक और रफिक्चाचा को गए लम्बा वक्त गुजर गया था. उनके और जेसिका के न लौटने से अन्य टीम मेम्बर्स को कुछ अनहोनी होने की दहशत पैदा हुई. वे जल्दी से खड़े हुए. और तीनों की तलाश में निकले. चारों और उनको ढूंढा. पर कोई न दिखाई दिया. तीनों के नाम की पुकार भी लगाई. पर कोई उत्तर न पाकर वे उनकी तलाश में आगे बढ़े. तभी उन्होंने एक कानफोड़ु धमाका सुना. साथ ही एक तेज रोशनी का गोला भी देखा. उन्हें कोई बड़े संकट की भनक लगी. वे गभराए. और धमाके की दिशा में भागे.
क्रमशः
जेसिका के साथ क्या हुआ? उनके अगल बगल में ऐसा क्या था की वह गभरा गई? दीपक और रफीकचाचा ने ऐसा क्या देख लिया था की उनके रोंगटे खड़े हो गए? राजू और उनकी शेष टीम को सुनाई देने वाले धमाके और रौशनी का क्या राज़ था? इन सब का हाल पता करने के लिए अगले हप्ते तक इन्तेजार करें.
कहानी अब अत्यंत रोचक दौर में प्रवेश कर चुकी है, अतः जानने के लिए पढ़ते रहे.
 
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यहाँ पड़ाव में दीपक और रफिक्चाचा को गए लम्बा वक्त गुजर गया था. उनके और जेसिका के न लौटने से अन्य टीम मेम्बर्स को कुछ अनहोनी होने की दहशत पैदा हुई. वे जल्दी से खड़े हुए. और तीनों की तलाश में निकले. चारों और उनको ढूंढने लगे. पर कोई न दिखाई दिया. तीनों के नाम की पुकार भी लगाई. पर कोई उत्तर न पाकर वे उनकी तलाश में आगे बढ़े.
तभी उन्होंने एक कानफोड़ु धमाका सुना. साथ ही एक तेज रोशनी का गोला भी देखा. उन्हें कोई बड़े संकट की भनक लगी. वे गभराए. और धमाके की दिशा में भागे.
***
दीपक और रफिक्चाचा एक खड़ी चट्टान के ऊपर खड़े थे. उनके सामने ही दस बारह भेड़ियों का झुंड हमले की फिराक में था. दूसरी और से दो भालू भी अपने शिकार पर टूट पड़ने की तैयारी में थे. और बीच में जेसिका इन सब से बेखबर आँखों में दूरबीन लगाए देखे जा रही थी. दोनों के पास वक्त बिलकुल नहीं था. अगर वे बंदूक का इस्तेमाल करते तब भी एक दो भेड़ियों को ही मार सकते. पर तब गभराए हुए दूसरे भेड़िये बिफर कर जेसिका को नुकसान पहुंचा सकते थे. और वे भालू तो उनकी बंदूक की रेंज में भी नहीं थे. ऊपर से पेड़ों की वजह से बंदूक का निशाना चुक जाने की ज्यादा संभावना थी. उनके पास हथगोले भी थे. पर उसके इस्तेमाल से जेसिका को भी नुकसान पहुँच सकता था. क्यूंकि जेसिका और भेड़ियों के बीच अंतर बहुत कम था.
तुरंत दीपक ने एक त्वरित निर्णय लिया. उसने अपने पास रखे हथगोले रफिक्चाचा के हाथ में थमाते हुए कहा, "देखो, जैसे ही मैं जेसिका को पेड़ के पीछे धक्का दूँ, तुरंत आप भेड़ियों के पीछे ये हथगोले फोड़ना." रफिक्चाचा कुछ कहते, उससे पहले दीपक दौड़ा. और नीचे के एक पेड़ की मजबूत दाल पर कूदा. यह भी खयाल न किया की उस दाल पर कई सर्प हैं. और जान जाने का जोखिम है. उसने दोनों हाथों से एक अन्य दाल को पकड़ा और लटक पड़ा. वह दाल दीपक के बोझ से नीचे की और झुकी. अब दीपक दाल के सहारे इतनी ऊँचाई पर लटकने लगा था, जहां से जमीन पर कूद पड़ना आसान था.
तभी जेसिका को होश आया और उसने अगल बगल देखा. दोनों और मौत को पाकर वह गभराई.
उसी वक्त दीपक ने दाल से सीधे नीचे जंप लगाई और तुरंत जेसिका के पास पहुंचकर उसे पीछे से धक्का दिया. जेसिका इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी. वह नीचे गिरी और साथ ही दीपक भी गिरा. दीपक ने रेंगते और लुढ़कते हुए उसे पेड़ के पीछे किया.
अपने शिकार पर दूसरे को कब्जा करते देख, वे भेड़िये बिफर पड़े. और उन्होंने हमला कर दिया.
पर एन वक्त पर रफिक्चाचा ने कमाल कर दिया. भेड़ियों के पीछे उनके छोड़े हुए हथगोले का बड़ा धमाका हुआ. जैसे आकाश में बिजली चमकी और बादल फटा. धुल मिट्टी का गुब्बार उठा. पेड़ पौधे सारे हिल गए.
अपने पीछे इतना बड़ा धमाका और रौशनी का गोला देख, वे भेड़िये गभरा कर हमले का खयाल छोड़ आगे की और भागे. जहां उनके मार्ग में वे भालू खड़े थे. भेड़ियों और भालू के बीच गुत्थमगुत्थी हो गई.
जेसिका और दीपक को मौका मिला. दोनों खड़े हुए. दीपक को देखकर जेसिका उससे लिपट कर रो पड़ी. दीपक ने उसकी पीठ ठपठपाई और जल्दी से उसका हाथ थाम भागने लगा. वे सुरक्षित स्थान पर पहुँच गए. तभी रफिक्चाचा भी उनसे आ मिले.
वह दोनों का हालचाल पूछ ही रहे थे, उसी वक्त सामने से उनके अन्य साथी आते दिखाई दिए.
रफिक्चाचा और दीपक ने सारा माजरा उन्हें कह सुनाया. सभी ने दोनों की तारीफ की. और जेसिका को इस जंगल में आगे से सावधान रहने की सलाह दी. जेसिका भी अपनी इस बेवकूफाना हरकत पर शर्मिंदा हुई. उसने सबसे माफी मांगी. और अपनी जान बचाने के लिए दीपक एवं रफिक्चाचा के प्रति दिल से आभार प्रगट किया.
सभी अपने पड़ाव पर पहुँचे. तभी रौशनी के गोले नीचे तलहटी से उपर की और आते दिखाई दिए. उनको यह पता लगते देर न लगी कि ये रौशनी के गोले वास्तव में मशाल हैं. और वे आदि मनुष्य ही मशाल लेकर पहाड़ी पर आ रहे हैं. सायद वह हथगोले के धमाके की आवाज़ उन तक भी पहुंची थी. और वे उसी की तोह लेने आ रहे थे. ये लोग देर रात तक धमाके का पता लगाने पहाड़ी पर इधर से उधर घूमते रहे.
राजू की टीम ने अपनी झलाई हुई सभी आग और टॉर्च की रौशनी बूझा दी. उन्हें इस बात का अंदेशा था कि अगर उन मनुष्यों को उनका पता चला, तो उसे दुश्मन जानकर नया बवाल खड़ा कर सकते हैं. उन लोगों से मिलने पर ये आदि मनुष्य कैसा बर्ताव करेंगे, ये तो उन्हें नहीं पता था. पर अंडमान में बसने वाले सेंटाइन्लीस आदिमानवों के बर्ताव से उन्हें यह अंदाजा था कि ये लोग किसी बाहरी इंसान के आगमन को सहन नहीं करते. इसलिए वे चुपचाप अपने टेंट में पड़े रहे. पर वे लगातार इन मनुष्यों की हिलचाल पर निगाह रखे हुए थे. इस दौरान वे मनुष्य पास से भी गुज़रे. पर रात्रि के अंधकार एवं पेड़ों के झुरमुट में छिपे होने की वजह से उन्हें इन लोगों की हाजिरी का पता न चल पाया.
इसी दौरान एक बेहद चौंकाने वाली खबर जेसिका ने

यहाँ पड़ाव में दीपक और रफिक्चाचा को गए लम्बा वक्त गुजर गया था. उनके और जेसिका के न लौटने से अन्य टीम मेम्बर्स को कुछ अनहोनी होने की दहशत पैदा हुई. वे जल्दी से खड़े हुए. और तीनों की तलाश में निकले. चारों और उनको ढूंढने लगे. पर कोई न दिखाई दिया. तीनों के नाम की पुकार भी लगाई. पर कोई उत्तर न पाकर वे उनकी तलाश में आगे बढ़े.
तभी उन्होंने एक कानफोड़ु धमाका सुना. साथ ही एक तेज रोशनी का गोला भी देखा. उन्हें कोई बड़े संकट की भनक लगी. वे गभराए. और धमाके की दिशा में भागे.
***
दीपक और रफिक्चाचा एक खड़ी चट्टान के ऊपर खड़े थे. उनके सामने ही दस बारह भेड़ियों का झुंड हमले की फिराक में था. दूसरी और से दो भालू भी अपने शिकार पर टूट पड़ने की तैयारी में थे. और बीच में जेसिका इन सब से बेखबर आँखों में दूरबीन लगाए देखे जा रही थी. दोनों के पास वक्त बिलकुल नहीं था. अगर वे बंदूक का इस्तेमाल करते तब भी एक दो भेड़ियों को ही मार सकते. पर तब गभराए हुए दूसरे भेड़िये बिफर कर जेसिका को नुकसान पहुंचा सकते थे. और वे भालू तो उनकी बंदूक की रेंज में भी नहीं थे. ऊपर से पेड़ों की वजह से बंदूक का निशाना चुक जाने की ज्यादा संभावना थी. उनके पास हथगोले भी थे. पर उसके इस्तेमाल से जेसिका को भी नुकसान पहुँच सकता था. क्यूंकि जेसिका और भेड़ियों के बीच अंतर बहुत कम था.
तुरंत दीपक ने एक त्वरित निर्णय लिया. उसने अपने पास रखे हथगोले रफिक्चाचा के हाथ में थमाते हुए कहा, "देखो, जैसे ही मैं जेसिका को पेड़ के पीछे धक्का दूँ, तुरंत आप भेड़ियों के पीछे ये हथगोले फोड़ना." रफिक्चाचा कुछ कहते, उससे पहले दीपक दौड़ा. और नीचे के एक पेड़ की मजबूत दाल पर कूदा. यह भी खयाल न किया की उस दाल पर कई सर्प हैं. और जान जाने का जोखिम है. उसने दोनों हाथों से एक अन्य दाल को पकड़ा और लटक पड़ा. वह दाल दीपक के बोझ से नीचे की और झुकी. अब दीपक दाल के सहारे इतनी ऊँचाई पर लटकने लगा था, जहां से जमीन पर कूद पड़ना आसान था.
तभी जेसिका को होश आया और उसने अगल बगल देखा. दोनों और मौत को पाकर वह गभराई.
उसी वक्त दीपक ने दाल से सीधे नीचे जंप लगाई और तुरंत जेसिका के पास पहुंचकर उसे पीछे से धक्का दिया. जेसिका इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी. वह नीचे गिरी और साथ ही दीपक भी गिरा. दीपक ने रेंगते और लुढ़कते हुए उसे पेड़ के पीछे किया.
अपने शिकार पर दूसरे को कब्जा करते देख, वे भेड़िये बिफर पड़े. और उन्होंने हमला कर दिया.
पर एन वक्त पर रफिक्चाचा ने कमाल कर दिया. भेड़ियों के पीछे उनके छोड़े हुए हथगोले का बड़ा धमाका हुआ. जैसे आकाश में बिजली चमकी और बादल फटा. धुल मिट्टी का गुब्बार उठा. पेड़ पौधे सारे हिल गए.
अपने पीछे इतना बड़ा धमाका और रौशनी का गोला देख, वे भेड़िये गभरा कर हमले का खयाल छोड़ आगे की और भागे. जहां उनके मार्ग में वे भालू खड़े थे. भेड़ियों और भालू के बीच गुत्थमगुत्थी हो गई.
जेसिका और दीपक को मौका मिला. दोनों खड़े हुए. दीपक को देखकर जेसिका उससे लिपट कर रो पड़ी. दीपक ने उसकी पीठ ठपठपाई और जल्दी से उसका हाथ थाम भागने लगा. वे सुरक्षित स्थान पर पहुँच गए. तभी रफिक्चाचा भी उनसे आ मिले.
वह दोनों का हालचाल पूछ ही रहे थे, उसी वक्त सामने से उनके अन्य साथी आते दिखाई दिए.
रफिक्चाचा और दीपक ने सारा माजरा उन्हें कह सुनाया. सभी ने दोनों की तारीफ की. और जेसिका को इस जंगल में आगे से सावधान रहने की सलाह दी. जेसिका भी अपनी इस बेवकूफाना हरकत पर शर्मिंदा हुई. उसने सबसे माफी मांगी. और अपनी जान बचाने के लिए दीपक एवं रफिक्चाचा के प्रति दिल से आभार प्रगट किया.
सभी अपने पड़ाव पर पहुँचे. तभी रौशनी के गोले नीचे तलहटी से उपर की और आते दिखाई दिए. उनको यह पता लगते देर न लगी कि ये रौशनी के गोले वास्तव में मशाल हैं. और वे आदि मनुष्य ही मशाल लेकर पहाड़ी पर आ रहे हैं. सायद वह हथगोले के धमाके की आवाज़ उन तक भी पहुंची थी. और वे उसी की तोह लेने आ रहे थे. ये लोग देर रात तक धमाके का पता लगाने पहाड़ी पर इधर से उधर घूमते रहे.
राजू की टीम ने अपनी झलाई हुई सभी आग और टॉर्च की रौशनी बूझा दी. उन्हें इस बात का अंदेशा था कि अगर उन मनुष्यों को उनका पता चला, तो उसे दुश्मन जानकर नया बवाल खड़ा कर सकते हैं. उन लोगों से मिलने पर ये आदि मनुष्य कैसा बर्ताव करेंगे, ये तो उन्हें नहीं पता था. पर अंडमान में बसने वाले सेंटाइन्लीस आदिमानवों के बर्ताव से उन्हें यह अंदाजा था कि ये लोग किसी बाहरी इंसान के आगमन को सहन नहीं करते. इसलिए वे चुपचाप अपने टेंट में पड़े रहे. पर वे लगातार इन मनुष्यों की हिलचाल पर निगाह रखे हुए थे. इस दौरान वे मनुष्य पास से भी गुज़रे. पर रात्रि के अंधकार एवं पेड़ों के झुरमुट में छिपे होने की वजह से उन्हें इन लोगों की हाजिरी का पता न चल
 
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सुनाई. उसने कहा.
"हम जिस मनुष्यों को देख रहे हैं, ये सायद दुनियाँ के लिए हमारी नई खोज हो सकती है. जहां तक मैं जानती हूँ, ये आदि मनुष्यों की प्रजाति अपने आप में अनोखी है. इसके बारें में अब तक दुनियाँ कुछ नहीं जानती. और अब तक ये हमारी पहुँच से बाहर ही रही है. इसलिए यह हमारे लिए एक खुशी की खबर हो सकती है."
जेसिका की बात सुनकर सभी चकित रह गए. उन्हें इस बात का ज्ञान ही नहीं था कि वे जिस इंसानों को देख रहे हैं, उससे दुनियाँ अब तक अपरिचित ही रही है. वे इस बात का एहसास करते अभिभूत हो गए कि वे सब अनजाने में ही इस खोज अभियान का हिस्सा बन गए थे. और उनके ह्रदय में उन आदि मनुष्यों के प्रति विशेष आदर और बंधुत्व की भावना उभर आई.
इसी दौरान उन्हें एक और भेद का पता चला. उन्होंने जो पिछली रातों को चलती हुई रोशनी देखी थी, वह इन्हीं मनुष्यों की हरकतें थी. ये मनुष्य हाथों में मशाल लिए पहाड़ियों पर घूम रहे थे. जो उन लोगों ने पिछली रात में देखि थी.
अगली सुबह जब दीपक और जेसिका आमने सामने हुए. दोनों की आंखें चार हुई. वे एक दूसरे को देखते ही रह गए. दीपक मुसकुराया और आँखों ही आँखों से उसकी छेड़खानी की. जेसिका हंसी. और शर्मा कर भाग गई. दीपक लाचार होकर उसे दूर जाते देखता रहा.
अब इन लोगों को इतना तो पता चल ही गया था कि इस टापू पर कोई मनुष्य आबादी है. पर वे अब सीधे उनके नजदीक नहीं जा सकते थे. क्यूंकि अनजाने में ही हथगोले के धमाके की वजह से वे उनके दुश्मन बन बैठे थे. अब इन्हें कोई ठोस रणनीति बनानी थी और आगे की योजना पर कार्य करना था.
अब उन्होंने यह तै किया कि जेसिका उन इंसानों की खोज खबर लेने जाएगी. और इनके साथ एक दो साथियों को भेज दिया जाए. और अन्य मेम्बर्स खोह की तलाश में निकलेंगे. टेंट को नजदीक की पहाड़ी पर ही लगा देंगे. जहां सभी को साम होने से पहले पहुँच जाना था. इतना तै कर वे अलग हुए.
जेसिका के साथ दीपक ने जाना पसंद किया था. उन दोनों ने आदि मनुष्यों के कार्यकलापों की तोह लेना तै किया. इसलिए सुबह को वे पहाड़ी से नीचे तलहटी में उतर आये. और वे आदि मनुष्य क्या कर रहे हैं, छिपकर देखने लगे. वे अलग अलग स्थानों पर जा कर उनकी हिलचाल की नोंद ले रहे थे.
वे मनुष्य तरह तरह की प्रवृति में व्यस्त दिखाई दे रहे थे. कई मर्द जंगल से शिकार कर ला रहे थे. तो कुछ लोग शिकार किए हुए प्राणियों की चमड़ी उतार कर सुखा रहे थे. कोई इस चमड़ी से किसी प्रकार के साधन बना रहे थे, तो कोई मछलियों, पंखियों, प्राणियों की हड्डियाँ, सींग, पंखे, इत्यादि का इस्तेमाल कर कोई न कोई वस्तु या साधन बना रहे थे. उनके कन्धों पर तीर कमान भी लटक रहे थे. जिनका इस्तेमाल वे शिकार के लिए करते होंगे.
उनके बातचीत के तरीके में शब्द मर्यादित महसूस हो रहे थे. वाक्य भी छोटे छोटे थे. कई बार तो वे अपने संवाद में शब्द के बजाय सिर्फ विचित्र ध्वनि से ही चला रहे थे. और उन ध्वनियों में कई ध्वनि तो प्राणी एवं पंखियों की आवाज़ और प्रकृति की ध्वनि से प्रेरित थी.
उनकी औरतें सायद किसी चीज की तैयारी कर रही थी. वे जंगल से लाए हुए फूल फल, सफेद लाल काली मिट्टी, पेड़ पौधों, इत्यादि को पीसकर अलग अलग रंग का पाउडर बनाकर लकड़ी से बने बर्तन में भर रही थी.
कुछ बच्चों ने अपने पूरे बदन पर इस पाउडर को मल कर अपना हाल कुछ ऐसा बना रखा था कि असल हुलिया पहचानना मुश्किल हो रहा था. सफेद काले, लाल पीले, हरे रंगों और चेहरे पर भिन्न भिन्न प्राणियों के मुखौटे पहन ये बच्चे जैसे होली खेल रहे थे. एक दूसरे को रंग, और धूल मिट्टी उड़ा रहे थे.
उन बच्चों को देख कर दीपक के दिमाग में शरारत सूजी. वह बोला: "चलती है क्या होली खेलने?"
जिसके उत्तर में जेसिका सिर्फ हंसी.
कुछ वक्त गुजरने पर वे औरतें, कुछ मर्द और बच्चे मिलकर उस चमड़ी, हड्डियों, सींग से बने साधन और रंग भरे लकड़ी के बरतनों एवं जंगल से लाए फल फूल को उठाये कहीं जाने की तैयारी करने लगे. जेसिका को यह समझ नहीं आया कि वे इस साधनों, फल फूल और रंगों को लिए कहाँ और क्यूँ जा रहे हैं.
"सायद ये कोई त्यौहार मना रहे हैं या उसके कोई देवता की पूजा करने जा रहे हैं." जेसिका ने बगल में छिपकर बैठे हुए दीपक को धीरे से कहा.
यह सुनते ही दीपक के चेहरे पे कोई रहस्यमय सी चमक आ गई. जो जेसिका ने न देखी.
दीपक ने एक्साईट होकर जेसिका की पीठ थपथपाते हुए कहा. "तब तो हमें उनका पीछा करना ही पड़ेगा!"
क्रमशः
वे आदिम मनुष्य कहाँ जा रहे थे? दीपक के एक्साईट होने का राज़ क्या है? क्या वे आदिम लोगों का पीछा करेंगे? वहां उसे क्या मिलता है? अगले हप्ते इस राज़ से पर्दा उठेगा.
कहानी अब अत्यंत रोचक दौर में प्रवेश कर चुकी है
 
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यह सुनते ही दीपक के चेहरे पे कोई रहस्यमय सी चमक आ गई. जो जेसिका ने न देखी.
दीपक ने एक्साईट होकर जेसिका की पीठ थपथपाते हुए कहा. "तब तो हमें उनका पीछा करना ही पड़ेगा!"
जेसिका: "क्यूँ?" दीपक का मकसद उनकी समझ में न आया.
दीपक: "तुम चलो तो सही! देखते हैं, क्या होता है."
जेसिका भी इन लोगों की हर हरकत को नोट करना चाहती थी. इसलिए वह भी तैयार हो गई.
दोनों पहाड़ी पर थोड़े ऊपर चढ़े. और उन आदि मनुष्यों से तै दूरी रखकर उनका पीछा करने लगे.
*******
रात्रि का अँधेरा घिर आया था. राजू की टीम के अन्य मेम्बर्स ने दिन भर भटक कर खोहों की तलाशी ली थी. और साम होने से पहले तक तै की हुई पहाड़ी पर उन्होंने अपना पड़ाव भी दाल लिया था. वे दिन भर भटके थे. पर उन्हें आज भी मेघनाथजी की कही खोह का पता न चल पाया था. अब वे जेसिका और दीपक के लौटने की ही बात देख रहे थे. उन दोनों को सूरज ढलने से पहले ही लौटना था. पर अब तो रात्रि हो चुकी थी. लेकिन जेसिका और दीपक का कोई पता नहीं था.
अब वे चिंता में पड़े. सायद दीपक और जेसिका किसी आफत में पड़ गए न हो! इस संदेह में वे उन दोनों की तलाश में निकले.
पर तभी दीपक और जेसिका को तेजी से लौटते हुए देखा. इस प्रकार दोनों को तेज तेज लौटते देखकर उनके मन में किसी मुसीबत का संदेह पैदा हुआ. पर जब वे दोनों पास आए और उनके चेहरे पर खुशी की चमक देखी, तो उनका यह संदेह जाता रहा.
"ये दोनों हर रोज़ कोई न कोई अकस्मात् करके आते हैं. पर आज कोई खुशियों वाला अकस्मात् कर लौट रहे हैं." हिरेन ने कोमेंट किया.
दोनों पास आ पहुँचते हैं.
राजू: "क्यूँ. उन्होंने तुम्हें पार्टी दी थी क्या? जो इतने खुश हो रहे हो?"
दीपक: "अरे पार्टी तो क्या! उससे भी बढ़कर बात है!"
हिरेन हस्ते हुए: "तब तो ये भाई जरूर अपनी शादी पक्की कर आए हैं!"
दीपक: "क्यूँ? तुम्हें करनी है? मेरी कई सालियाँ हैं! कहो तो अभी बात चलाऊ."
प्रताप: "जब यहाँ सब दिल वाले हैं, तो क्यूँ दुल्हनियां लेते न चले! हिरेन अकेले की ही क्यूँ! दीपक की एक थोड़ी ही साली होंगी!"
भीमुचाचा: "इस सब दिल वालों में मुझे बाकात ही रखो. हाँ, रफीक चाहे तो उनका घोड़ी चढ़ने का बंदोबस्त कर दो. बाकी, मेरे घर में जो जोगन बैठी है, उससे तो मुझे अकेले को भी घर में पाँव रखने में दर लगता है."
रफिक्चाचा: "हाँ, तभी कहो नाव! कई बार आप को घर के बाहर ही रात गुजारनी पड़ती है. सायद वह तुम पर तुम्हारी जोगन की कृपा ही होगी!"
रफिक्चाचा की बात सुन, सब हंस पड़ते हैं. फिर बातें करते अपने पड़ाव की और पैर उठाते हैं.
राजू: "पर बात तो बताओ! असल मामला क्या है?"
दीपक: "इतनी जल्दी क्या है? सुबह तक इंतज़ार कीजिए! अपने आप पता चल जाएगा." "
दीपक की बात सुन, सब की बेचैनी बढ़ने लगी.
हिरेन: "ये दीपक तो बड़ा भाव खा रहा है! देखो. अब सब मेरी भी बात सुन लो. जब तक दीपक अपना हाल नहीं कहेगा, मैं खाना नहीं खाऊंगा. और बिना खाए अगर मुझे कुछ हुआ, तो इसका जिम्मेदार दीपक को ही ठहराना."
दीपक: "अरे ब्रधर! अगर तुम्हें कुछ हुआ तो तू मेरी जिंदगी हेल्लो ब्रधर जैसी बना देगा. इसलिए तू सुन ले."
इतना कहते हुए दीपक ने हिरेन के कान में कुछ कहा. जिसको सुनते ही दो घड़ी तो हिरेन भौचक्का ही रह गया. फिर दीपक को गोद में उठाकर घुमाते हुए चिल्लाया.
"यार! क्या खबर लाया है! तूने तो जी खुश कर दिया."
हिरेन का हाल देखकर सब की बेताबी और बढ़ गई.
पिंटू: "अरे यार! क्यूँ सस्पेंस खड़ा कर रहा है. जल्दी से बता भी दो ना!"
भीमुचाचा: "क्यूँ जेसिका, खज़ाने का पता मिल गया क्या?"
जेसिका हंस देती है. जिसको देखकर सब को दीपक का इतना सस्पेंस खड़ा करने का मतलब समझ में आ जाता है. दीपक आंखें फाड़ जेसिका को धमकाता है.
राजू बड़ी उत्सुकता से: "मिल गया क्या? कहाँ?"
जेसिका: "वो जो अलग दिखने वाली तलहटी है न! वहीँ."
जेसिका की बात सुन सब लोग चिल्ला उठे. उन लोगों का खुशी का कोई ठिकाना न रहा. वे अब अपने पड़ाव पर पहुँच गए थे. और खाना खाने लगे थे. इस दौरान भी बातों का सिलसिला जारी रहा. शेष टीम मेम्बर्स जानना चाहते थे की उन्हें वह खोह का ठिकाना कैसे मिला.
जिसके उत्तर में दीपक और जेसिका सुबह से साम तक उन्होंने जो जो किया और देखा, वह सारा हाल बताने लगे.
*****
जेसिका और दीपक दोनों उन आदिम मनुष्यों का पीछा करते हुए उनके पीछे पीछे जाने लगे थे.
जेसिका: "पर तुम इनका पीछा क्यूँ कर रहे हो? यह बताया नहीं."
दीपक: "देखो, ये लोग यह सब चीजें लेकर कहाँ जा रहे होंगे? उनके देव स्थान ही न? और हम किस चीज की खोज कर रहे है? एक खोह की. जो एक देवी का निवास स्थान हैं. हो सकता है इनकी और हमारी मंजिल एक ही हो!"
जेसिका अवाक् हो कर. "अरे हाँ! यह बात तो मेरे खयाल से ही निकल गई!"
उन आदिम लोगों की टोली पहाड़ी की तलहटी से गुजरते हुए आगे जा रही थी. दीपक और जेसिका भी पेड़ों, झाड़ियों के पीछे छिपते छिपाते उनका पीछा कर रहे थे. बीच मार्ग में एक तालाब भी आया.
जेसिका: "क्या ये वहीँ तालाब है, जिसमें उस दिन हमने आग का प्रतिबीम देखा था?"
दीपक ध्यान से देखते हुए: "लगता तो कुछ ऐसा ही है."
दोनों ने आसपास देखा. पर कहीं जलती हुई आग दिखाई न दी.
थोड़े आगे चलने पर जेसिका: "हाँ, ये देखो! आग का प्रतिबीम दिखाई देने लगा! ये वहीँ है!"
दीपक चारों और देखकर: "अरे हाँ! और ये देखो! हम तो उस अलग रंग की दिखने वाली तलहटी के नजदीक आ पहुँचे! ये यहाँ से ज्यादा दूर नहीं लगती."
जेसिका खुश होते हुए: "सच कहा तुमने. आज तो हम इस तलहटी और तालाब की आग का राज़ सुल्जा ही लेंगे."
जेसिका फिर से: "अरे! पर इनका रंग तो देखो! ये तो वैसा ही है, जो ये लोग ले जा रहे हैं!"
दीपक: "मतलब ये लोग इन रंगों से वहां जा कर कोई रंगोली करते होंगे?"
जेसिका: "ऐसा ही होगा! तभी तो ये लोग रंग ले जा रहे होंगे न!"
अब वे मनुष्यों की टोली तालाब को पार कर उस रंगीन तलहटी की और बढ़ी.
जेसिका: "ये देखो! वे लोग वहीँ जा रहे हैं!:
दीपक और जेसिका भी उनका पीछा करते हुए तलहटी की और बढ़े. वे अब उस तलहटी के सामने आ पहुँचे थे. अब आगे जाना मुश्किल था. क्यूंकि वहां अब बहुत औरत मर्द जमा थे और ज्यादा आगे बढ़ने पर पकड़े जाने का दर था. वे छिपकर देखने लगे. तभी उनकी नजर सामने जलती आग की धुनी पर पड़ी.
दीपक: "ये देखो! वह आग! जिसका प्रतिबीम तालाब में पड़ता है."
वहां एक खोह का मुहाना था. उनके सामने एक बड़ी आग जल रही थी. और वे मनुष्य वहां किसी क्रिया में लिप्त थे. यह सायद उनका कोई धार्मिक अनुष्ठान था.
जेसिका ने भी देखा. फिर अपनी डायरी निकालकर नोट करने लगी. वह आसपास निरीक्षण करती जा रही थी और नोट्स लिखती जा रही थी.
वे मनुष्य अपने साथ लाए रंगों से वहां विविध चित्र एवं आकृतियाँ बना रहे थे. पहले से बनी आकृतियों और चित्रों में ताजा रंग भरकर उन्हें नयापन दे रहे थे. अपने साथ लाए चमड़े, सींग, हड्डियों से बने साधनों को एक हरोर में विशिष्ट तरीके से सजाते जा रहे थे. आग में वे फल फूल अर्पित कर रहे थे. और आग के सामने बैठे बैठे एवं खड़े खड़े विशिष्ट शारीरिक मुद्राएं बना रहे थे.
वहां बलि कर्म की जगह भी थी. कोई कोई मनुष्य वहां किसी न किसी प्राणी की बलि भी चढ़ा रहे थे. जब किसी प्राणी की बलि चढ़ाई जाती थी तब वहां बहुत से लोग इकठ्ठा हो जाते थे. और मुंह से विचित्र सी आवाज़ निकालते थे. फिर वे खोह के अन्दर चले जाते थे.
खोह के अन्दर क्या था और वे मनुष्य अन्दर जाकर क्या करते थे यह जेसिका और दीपक देख नहीं पा रहे थे. क्यूंकि वे दोनों खोह के मुहाने से काफी दूर थे.
जेसिका की पैनी नज़र चारों और घूम घूम कर निरीक्षण कर रही थी. अचानक वह चीखते रह गई. उसने अपने मुंह पर हाथ लगाकर अपनी आवाज़ को मुश्किल से दबाया. दीपक भारी अजूबे के साथ उसे ऐसा करते देखता रहा.
जेसिका: "तुमने कुछ देखा!?"
दीपक दुविधा में पड़ कर इधर उधर नजर दौड़ाते हुए: "क्या? तुम किसकी बात कर रही हो?"
जेसिका ने दीपक को अपनी उंगली से इशारा करते हुए कुछ देखने को कहा.दीपक: "ओ माई गोद! शिलपरिरक्षक! क्या यही शिलपरिरक्षक हैं!"
जेसिका: "सायद यही हो! जिनकी हमें तलाश है!"
दीपक: "और हम उनके सामने खड़े हैं!"
जेसिका: "हाँ, वहीँ! पता, एक खोये हुए खज़ाने का! जिनकी तलाश में हम आये हुए हैं."
अब दीपक का मन उन आदि मनुष्यों की प्रवृतियों में नहीं लग रहा था. वह इतना एक्साईट हो गया था कि वह जल्दी से जल्दी अपने अन्य मेम्बर्स को इस खुशी की खबर देना चाहता था. उसने जेसिका को लौटने के लिए कहा. पर जेसिका इन आदिम मनुष्यों की हर हरकत को नोट करना चाहती थी. इसलिए उसने दीपक को भी रोका.
मन मारकर दीपक को भी रुकना पड़ा. अब वह मन्नत करने लगा कि जेसिका का निरीक्षण जल्दी खत्म हो और वे जल्दी से अपने पड़ाव पर पहुँचे. और उसके अन्य टीम मेम्बर्स को यह खबर सुनाए.
जब संध्या होने को आई, तब कुछ आदिम मनुष्य लौटने लगे. दीपक ने भी जेसिका को लौटने का आग्रह किया. अब जेसिका ने भी ज्यादा रुकना उचित न समझा. अतः दोनों उन लौटते हुए आदि मनुष्यों के पीछे पीछे लौटने लगे.
पर जब तक वे दोनों उनकी तै की हुई पहाड़ी तक पहुंचे, दिन पूरी तरह से ढल चूका था. और सामने से उन्होंने अपने साथियों को आते हुए पाया. वे सब सायद हमारी खोज में ही निकले हैं. यह जान वे दोनों तेजी से उनकी और चले. और उनके पास पहुँचने पर दीपक ने वह सारा सस्पेंस पैदा किया.
जेसिका और दीपक की बातों को टीम मेम्बर्स बड़े गौर और उत्सुकता से सुन रहे थे. जब तक दोनों ने अपनी बात ख़त्म की, तब तक अन्य सभी साथी भी उस खोह को देखने के लिए बड़े बेचैन हो उठे थे.
क्रमशः
जब सभी साथी वहां पहुंचेंगे तो क्या होगा? क्या वे उस खोह में घुस पाएंगे? या उनके सामने कोई नयी मुसीबत पैदा हो जाएँगी?
कहानी अब अत्यंत रोचक दौर में प्रवेश कर चुकी है, अतः जानने के लिए पढ़ते रहे.
 
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जेसिका और दीपक की बातों को टीम मेम्बर्स बड़े गौर और उत्सुकता से सुन रहे थे. जब तक दोनों ने अपनी बात ख़त्म की, तब तक अन्य सभी साथी भी उस खोह को देखने के लिए बड़े बेचैन हो उठे थे.
जेसिका: "अब आप सब जब सुबह को चलेंगे और देखेंगे, तभी हम तै कर पाएंगे कि यह वहीँ खोह है, जिसकी हमें तलाश थी."
राजू: "पर तुम लोग जो बता रहे हो, उससे तो यह पक्का हो जाता है कि यह वहीँ खोह होगी. क्यूंकि मेघनाथजी ने भी ऐसा ही संकेत दिया है कि वह खोह एक देवी का निवास स्थान हैं. और तुम लोगों ने जो खोह देखी, वह इन आदिम इंसानों का देव स्थान है."
राजू की बात का अन्य सभी टीम मेम्बर्स ने समर्थन किया. अब उनकी तलाश का अंत आया था. इसलिए सभी बहुत खुश थे. रात को देर तक सब गुफ्तगू करते रहे. फिर सोने गए. पर खुशी के उन्माद में मुश्किल से नींद आई.
अगली सुबह वे सब उस खोह तक पहुँच गए. और छिपकर देखने लगे. वे निरीक्षण कर सब कुछ पक्का कर लेना चाहते थे.
खोह का मुहाना सच में पूर्व में ही था. जैसा मेघनाथजी ने संकेत किया था. और मुहाने के अगल बगल और सामने मतलब पूर्व दिशा में तीन अत्यंत विशाल शिलाएं थी. जो देखने में ऐसी लगती थी, मानो तीन प्रहरी बैठे हों. और गुफा द्वार की रक्षा कर रहे हों.
अब उनको मेघनाथजी की शिलपरिरक्षक वाली पहेली समझ में आ गई थी. शील मतलब शिला. और परिरक्षक मतलब प्रहरी. अर्थात, शिला रूपी प्रहरी.
पर अब उनके सामने एक नई मुसीबत खड़ी हो गई थी. इन आदिम मनुष्यों की नज़रों में पड़े बिना इस खोह में घुसा कैसे जाए? अगर सीधे ही घूसेंगे तो पकड़े जायेंगे. फिर ये लोग उनका क्या हाल करेंगे? इश्वर ही जाने.
उस गुफा के मुख्य मुहाने के अलावा भी बगल में जरा हटके एक छोटा मुहाना था. पर उस मुहाने पर भी इंसानों का आना जाना लगातार जारी था. इसलिए उस मुहाने से भी छिपकर घुसने की संभावना बिलकुल नहीं थी. पूरे दिन वे खोह के अन्दर घुसने के रास्तों और सम्भावनाओं की तलाश करते रहे. पर उन्हें यह दो मुहाने के अलावा खोह के अन्दर प्रवेश करने का और कोई रास्ता न दिखा. आखिर साम को वे अपने ठिकाने पर लौटे.
रात को वे इसी के बारें में सोच विचार करते रहे. आखिर दूसरे दिन अपने ठिकाने को उस खोह वाली पहाड़ी के आसपास ले जाकर वहीँ डेरा डालना तै किया. और वहीँ से वह खोह वाली पहाड़ी पर रास्ते की खोजबीन करना भी तै हुआ.
अगली सुबह उन्होंने उस खोह वाली पहाड़ी के पीछे ही पेड़ों के झुरमुट में अपना डेरा दाला. और वहां से अपना खोजी अभियान चलाया. उस खोह में रात को भी घुसने का कोई मौका हो तो वह भी जांच लेना निर्धारित किया. इसी संभावना की खोज में उनके चार साथी सारी रात खोह के मुहाने के आगे छिप कर बैठे रहे. पर वे आदिम मनुष्य रात्रि को भी वहां से हटे नहीं. सिर्फ उनकी संख्या दिन के मुकाबले कम रही.
दुसरे दिन भी यही हाल रहा. लगातार दो दिन और दो रात ऐसे ही जाया हुए. पर तीसरे दिन एक अजूबा घटित हुआ.
रोज के मुताबिक जेसिका इस दिन भी आदिम मनुष्यों की गतिविधि का निरीक्षण करने गई हुई थी. उनके साथ और दो साथी भी थे. वे वहां पहुंचकर क्या देखते हैं? जैसे वहां मेला लगा हो. द्वीप के सारें निवासियों ने जैसे वहीँ डेरा डाला हो. गिनती में वे दो हजार से ज्यादा ही लगते थे. पर उस दिन उन्हें वहां किसी आदमी की असल सूरत दिखाई न दी. औरत मर्द,, बच्चे बूढ़े, सब अपने अपने चेहरों पर किसी न किसी प्राणी या पक्षी के मुहाने लगाए हुए थे. कई ने तो अपने सर पर भेड़ बकरियों के सींग भी लगा रखे थे. इतना ही नहीं, अपने बदन पर विविध रंग लगाकर बदन का असली रंग भी छिपा दिया था. बदन पर प्राणी के चमड़े एवं घाँस पत्तियों को लपेट कर बदन का घेराव और कद को भी छिपाने की सफल कोशिश की गई थी. हाल तो यहाँ तक था कि उन आदिम मनुष्यों को भी एक दूसरे को पहचानना मुश्किल हो रहा था. जैसे वे कोई होली जैसा त्यौहार मना रहे हों. और अपनी असल सूरत छुपाना उनके धर्म की परम्परा हो.
यह हाल देखकर जेसिका और उनके साथियों के दिमाग में जैसे बिजली चमकी. उन्हें खोह के अन्दर घुसने का जैसे मार्ग मिल गया. वे अपना हाल भी उन्हीं लोगों जैसा बनाकर छद्म रूप में खोह में दाखिल हो सकते थे. उससे पहचाने जाने की संभावना भी कम रहती थी. इससे बढ़िया मौका दूसरा नहीं हो सकता, यह जान उन्होंने इस मौके का फायदा उठाना तै किया. तुरंत अन्य साथियों को भी इस बारें में बताया गया. उनके पास अब तैयारी करने का वक्त बिलकुल नहीं था. अतः, सब ने मिलकर त्वरित निर्णय लिए और तुरंत योजना बना ली. और उनपर अमल भी शुरू कर दिया.उसी वक्त चार साथी उस इंसानों की बस्ती की और चले. उन्हें इतना तो पता ही था कि वें सारे आदि मनुष्य उस खोह पर जमा हुए हैं. इसलिए अगर उनकी बस्ती में किसी के अतिरिक्त चमड़े, रंग, मुहाने हो तो उठा ले. और खुद भी भेष बदल उनमें शामिल हो जाए. उम्मीद के मुताबिक उन्हें वहां अपने जरूरत का हर सामान मिल गया. इससे उन्होंने अपने हुलिये बदल लिए. पर अब कोई एक दूसरे को पहचान नहीं पा रहे थे. इसलिए एक दूसरे को पहचानने के लिए कुछ संकेत तै किये. जिसमे ख़ास शारीरिक मुद्राएं तै की, और उनके मतलब भी तै किए. जैसे कोई आकाश की और देखते हुए हवा में अपने दोनों हाथों को हिलाता हैं, तो जो भी साथी उनके नजदीक हो वे पास आ जाए. और किसी को किसी प्रकार की मदद की जरूरत हो, या कोई मुसीबत में फँस गया हो तो वह बंदरों की आवाज़ निकालेगा. इसके अलावा अगर कोई दो उंगली आकाश की और उठाता है तो अगल बगल में जो भी अन्य साथी हो, वे हवा में हाथ से विशिष्ट व्यक्तिगत मुद्रा बनाकर स्वयं की पहचान स्पष्ट करेगा. इत्यादि इत्यादि...
सब से पहले अन्दर क्या है? और मेघनाथजी का छिपाया धन वहां है या नहीं? यह पता लगाना था. अतः, उन्होंने अपने तीन साथियों को अन्दर भेजकर सारा हाल मालूम करना तै किया. इसके लिए स्वयं राजू तैयार हुआ. और अपने साथ प्रताप और संजय को लिया. बाकी के छः लोगों ने तीन टुकड़ियों में बंट कर बाहर अलग अलग स्थान पर अगर कोई मुश्किल हालात पैदा होते है तो उसे बेकप देने के लिए पोजीशन ग्रहण की.
राजू, संजय और प्रताप ने खोह के बाहर वे आदिम लोग जो भी क्रियाएं करते थे, वे सारी क्रियाएं बड़ी सावधानी से पूरी की. फिर खोह के अन्दर घूसे. उन्होंने देखा. वह एक विशाल गुफा थी. जिनकी सामने की दीवार पर एक विचित्र स्त्री का विशाल चित्र बना हुआ था. जिनका चेहरा भालू और इंसान से मिलता जुलता था. पर बाकी का बदन इंसानों जैसा था. और वे मनुष्य फल फूल और प्राणी पंखी का मांस उस देवी को अर्पित कर रहे थे. वे उनके सामने विशिष्ट मुद्राएं भी बना रहे थे. जो सायद उनके पूजा करने का कोई तरीका था. वहां देवी के चित्र के सामने कुछ पत्थर भी रखे हुए थे. जिन पर लाल पीला हरा सफेद रंग लगा हुआ था. और वे मनुष्य इनकी भी पूजा कर रहे थे.
इसके अलावा एक और अजूबे की बात उन्होंने देखी. वहां कई चौकोने पड़े हुए थे. जिन पर भी इन मनुष्यों ने रंग एवं फूल पत्ते लगा रखे थे. जिससे इनका ठीक ठीक हाल मालूम नहीं चल रहा था. पर ध्यान से देखने पर ज्ञात हुआ कि ये तो कोई संदूकें हैं! जो गिनती में कुल मिलाकर ग्यारह थीं. इनपर कारीगरी भी बनी हुई थी. इन मनुष्यों के पास ऐसी संदूकें और उनपर ऐसी कारीगरी निर्माण करने का ज्ञान और साधन हो, इसके प्रमाण राजू की टीम को नहीं मिले थे. इसका मतलब साफ़ था कि ये संदूकें यहाँ के निवासियों द्वारा निर्मित नहीं की गई हैं, पर बाहर से लाई गई हैं. जो मेघनाथजी का ही कार्य हो सकता था. मेघनाथजी ने भी अपनी पहेली में इकादसी की बात की थी. इकादसी मतलब ग्यारह. और ये संदूकें भी ग्यारह ही थी. मतलब ये सारी संदूकें मेघनाथजी की ही थी. मेघनाथजी ने किसी तरह से यह सब संदूकों को यहाँ छिपा दिया हो, पर बाद में इस आदिम मनुष्यों ने इसे देवी की कृपा से स्वतः प्रगट हुआ जान, पूजा करना शुरू कर दिया हो, ऐसा संभव है.
अन्दर का हाल देखने के बाद राजू ने अपने साथियों को अब बाहर चलने का संकेत किया. तीनों बाहर निकल गए. और बाहर खड़े अन्य साथियों को भी निर्धारित किये हुए संकेतो से पास बुला लिए. सब एकांत स्थान पर मिले. राजू ने अन्दर जो देखा था, वह सारा हाल कह सुनाया.अब उन्हें यह तो विश्वास हो गया था कि वे संदूकें मेघनाथजी की ही हो सकती हैं. पर अब उसे यहाँ से निकाले कैसे? अब तो ये संदूकें इन मनुष्यों की आस्था के साथ भी जुड़ गई थीं. ऐसे ही इसे निकालने की कोशिश की, तो इन लोगों से संघर्ष मोड़ लेना पड़ेगा. जो वे बिलकुल नहीं चाहते थे. अब क्या किया जाए? और मेघनाथजी का वह धन अब तक उन संदूकों में मौजूद है भी या नहीं? यह भी तो पता लगाना था. पर वे आदिम मनुष्यों का ध्यान कैसे भटकाया जाएँ? या उन्हें वहां से हटाया कैसे जाएँ? वे कोई तरीका ढूंढने लगे.
तभी राजू का खुराफाती दिमाग डोड़ा. उसकी आँखे चमक उठी. उसने सब को अपने साथ चलने के लिए कहा. और सब को साथ लिए वह कहीं चल पड़ा.
तभी राजू का खुराफाती दिमाग डोड़ा. उसकी आँखे चमक उठी. उसने सब को अपने साथ चलने के लिए कहा. फिर अपने साथियों को साथ लिए वह कहीं चल पड़ा.
*************
वे आदिम मनुष्य अपने उस त्यौहार के उत्सव में व्यस्त थे. अपने देवी देवता एवं पूर्वजों को जंगल में पाए जाने वाले सूअर और अन्य प्राणियों की बलि एवं भोग लगाने के बाद खुद मिज़बानी उड़ा रहे थे.
तभी उनके दो चार बच्चे कहीं से दौड़ते हुए आये और मिज़बानी में मस्त लोगों को कुछ बताया. जिनको सुन, वे कोई गहरी सोच विचार में पड़े. फिर कुछ लोग खड़े हुए और उन बच्चों के पीछे चले. थोड़ी देर बीती, पर जाने वालों में से कोई वापस नहीं हुआ. फिर दूसरे लोग भी खड़े हुए और उन पहले जाने वालों के पीछे चले.
उस बच्चों की बातों ने कुछ ऐसा जादू किया था कि धीरे धीरे सभी लोग एक के पीछे एक करते वहां से चल पड़े. यहाँ तक की देवी की खोह में मौजूद लोग भी खोह से निकल कर उन आगे जाने वालों के पीछे बिदा हो गए.
राजू और उनकी टीम सायद इसी मौके की राह देख रही थी. तुरंत पांच साथी खोह में अन्दर घूसे. अन्य लोग बाहर चौकी करते बैठे. इस बार संघर्ष की संभावना को ध्यान में रखते हुए हर प्रकार के हथियार उन्होंने अपने पास मौजूद रखे थे.
अब खोह के अन्दर उन आदिम इंसानों में से कोई भी नहीं था. यह अच्छा मौका था. वे संदूकों की तोह लेने लपके. सभी संदूकें मजबूत लोहे से बनी हुई थी और उनपर ताला भी मजबूत लगा हुआ था. जिन पर चाबी लगाने की जगह नहीं थी, पर चाबी की जगह नंबरों वाली चक्रियाँ बनी हुई थी. जिनका मतलब था कि ये ताले इन पर लगी चक्रियों को विशेष नंबर में घुमाने से ही खुल सकते थे.
पर ये नंबर कहाँ? नंबर तो नहीं थे. फिर परेशानी की वजह [पैदा हुई. सब सोच में पड़े.
तभी पिंटू को मेघनाथजी की इकादसी और कृष्ण बानी की बात याद आई. जिसमे इकादसी का मतलब तो यह ग्यारह संदूकें थी, फिर तो कृष्ण बानी में ही तालों को खोलने वाले नंबर होने चाहिए. पर कृष्ण बानी का मतलब क्या? पता नहीं.
"अरे! कृष्ण बानी का मतलब तो भगवद् गीता होना चाहिए. जो स्वयं श्रीकृष्ण के मुख से निकली हैं. और जिसमे अठारह अध्याय और सात सो श्लोक हैं." संजय ने अपने दिमाग पर जोर डालते हुए कहा.
सभी के चेहरों पर संजय की बात सुन चमक आ गई. उन्होंने अठारह और सात सो नंबर लगाकर ताला खोलना चाहा. पर कुछ न हुआ. अठारह और सात सो नंबरों को अदल बदल करके भी कोशिश की. पर फिर भी ताला खुला नहीं. फिर सब परेशान हुए. तभी भीमुचाचा के चेहरे पर हलकी हंसी दिखाई दी. सायद उनके दिमाग में कोई खयाल पैदा हुआ था. वह बोला.
"पर इन सात सो श्लोकों में श्रीकृष्ण के मुख से तो सिर्फ पांच सो चौहत्तर श्लोक ही निकले थे!"मतलब इस पांच सो चौहत्तर श्लोकों को ही कृष्ण बानी कही जा सकती हैं!" राजू उत्साह से बोल पड़ा.
अब पांच सो चौहत्तर आंकड़े को सीधे और अदल बदल कर लगाया जाने लगा. सभी के चेहरों पर खुशियाँ चमक उठी. एक संदूक खुल गई थी. ढक्कन उठाकर देखा, सब की आंखें चौंधिया गई. अन्दर चमचमाते हुए सोने और चांदी के सिक्के थे. आहा! पांचों के मुंह से आह निकल गई. एक एक करके सभी संदूकों को खोल लिया गया. अन्य संदूकों में भी हीरा, जवाहरात, मानिक, मोती इत्यादि बहुत कुछ था. हर संदूक में से एक एक पत्र भी मिला. जिसमे वह संदूक में से निकला धन मेघनाथजी का हैं या उनके सेठ का हैं, उस बात का निर्देश था. जो चार साथी बाहर थे, उन्हें भी देखने का मौका दिया गया. वे भी चकित रह गए. सभी ने एक दूसरे को अभिनंदन दिए.
जिस की तलाश में निकले थे, उनका पता मिल गया था. मतलब, पता, एक खोये हुए खज़ाने का!
अब सब इसको यहाँ से निकालने की फिक्र करने लगे. वे आदिम मनुष्य आ पहुँचे इससे पहले वे जल्दी से जल्दी इस धन को निकाल ले जाना चाहते थे.
उन्होंने यह तै किया कि आदिम मनुष्यों की आस्था बन चुकी इन संदूकें भले ही यहाँ पड़ी रहे, पर अन्दर का सारा धन वे उठा ले जायेंगे. इससे उन आदिम लोगों की आस्था को चोट भी नहीं पहुँचेगी. और उन्हें कोई संदेह भी पैदा नहीं होगा कि संदूकों से कोई सामान उठा ले गया है.
अतः, उनके पास जो भी बिछावन, थैले, इत्यादि थे उसे लाने के लिए चार साथियों को भेजा. जाते वक्त वे अपने टीशर्त एवं पेंट में भी जितना बन पड़ा, भरते गए. जल्दी ही वे सारा सामान लेकर लौटे. रात का अँधेरा पूरी तरह छा चूका था. फिर भी उन्होंने यह कार्य कर लेना उचित समझा.
वे सारा धन संदूकों में से निकालकर ले जाते थे और उसे खोह से थोड़ी दूरी पर जहां किसी की नजर आसानी से न पड़े, वहां सारे थैलों और पोटलियों को जमीन में गद्दा खोद, गार दे रहे थे. ऊपर फिर घाँस, पत्ते, लताओं इत्यादि को बिछा कर पहले जैसा हाल बना दे रहे थे. उनकी योजना यह थी कि फिल हाल खोह से सारा धन निकाल लिया जाए. फिर वहां से सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया जाएगा. पर इस कार्य के दौरान उनसे बड़ी गलती हो गई. उन्होंने अपने सभी साथियों को इस कार्य में लगा दिया. और बाहर पहरे को बिलकुल भूल ही गए. जिसका मूल्य उन्हें क्या चुकाना पड़ेगा, वह तो वक्त ही बताएगा.
उपरान्त, यह सारे उपद्रव ने उनके हुलिये को भी पहले जैसा नहीं रहने दिया था. साफ़ पहचाने जा सकते थे कि यह कोई बाहरी लोग हैं.
***उन आदिम मनुष्य जब अपनी मिज़बानी में मग्न थे, तब कुछ बच्चे खेलते हुए इधर उधर निकल गए. तभी उनकी नज़र खोह से थोड़ी दूरी पर एक स्थान पर पड़ी. वहां एक पेड़ के साए में उनकी देवी की मिट्टी से बनी मुखमुद्रा पड़ी हुई थीं. सामने एक छोटे गद्दे में आग सुलग रही थी. बगल में फल फूल पड़े हुए थे और रंगोली भी बनी हुई थी.
यह हाल देखकर उन बच्चों को अजूबा हुआ. और उन्होंने दौड़ते हुए जाकर सारा हाल अपने बड़ों को सुनाया.
बच्चों के मुंह से यह हाल सुनकर उनके बड़ों को भी ताज्जुब हुआ. इसलिए पहले कुछ लोग मामला पता करने बच्चों के पीछे चले. जब वे नहीं लौटे तो फिर दूसरे भी उनके पीछे चले. इस तरह सभी लोग वहां पहुँच गए. यहाँ तक की खोह भी खाली हो गई.
यह सारा पैंतरा राजू के खुराफाती दिमाग की पैदाइश थी. उसने और उनके साथियों ने ही आदिम मनुष्यों को खोह से हटाने के लिए यह सारा उपद्रव मचाया था.
उन्होंने मिट्टी से देवी की एक मुखमुद्रा बनाकर खोह से थोड़े दूर, जहां आसानी से किसी का भी ध्यान पड़ जाए, ऐसा स्थान देखकर एक पेड़ के नीचे वह मुखमुद्रा रख दी. उनके सामने एक छोटा सा गद्दा खोदकर आग भी जला दी. और अगल बगल रंगोली एवं फल फूल भी रख दिए. इतना कर, वे उन मनुष्यों का ध्यान पड़ने और खोह से उसका पलायन होने का इंतज़ार करने लगे.
आदिम लोगों के बच्चे खेलते हुए वहां आ पहुंचे. और उन्होंने जा कर अपने बुजुर्गो को यह हाल कह सुनाया.
पर उन मनुष्यों के लिए यह सारा हाल कोई चमत्कार था. देवी की कृपा थी. काफी देर तक सब वहां ठहरे रहे. बड़े अहोभाव से देवी की मुखमुद्रा का पूजन करते रहे. पर फिर किसी काम से कुछ लोग खोह की और लौटे. और जब वे खोह के द्वार पर पहुँचे, तो कुछ लोगों को देवी की संदूकों की खोजख़बर लेते पाया. जैसे ही उनके हुलिये पर ध्यान गया, वे और ज्यादा बिफर पड़े. ये तो उनकी बिरादरी के भी नहीं थे! ये तो किसी और ही दुनियाँ से आये हुए थे.
तुरंत उन्होंने अपने तीर कमान निकाल लिए. और निशाना ले, खड़े हो गए.
किसी ने भागकर अपने अन्य बिरादरी वालों को यह खबर सुनाई. और देखते ही देखते सारे आदिम लोग खोह पर आ धमके.
***
राजू और उनके साथी अपने कार्य में मग्न थे. अभी तो उन्होंने सारे सामान की हेराफेरी भी न की थी. पर इतने में उनके कानों को किसी के आने की आहत लगी. और जब उन्होंने मुड़कर देखा तो वे आदिम मनुष्य तीर कमान निकाल, उनकी और निशाना लगाने की तैयारी में थे. थोड़ी देर में तो अन्य आदिम मनुष्यों का जमावड़ा भी खोह में होने लगा. वक्त बिलकुल नहीं रहा था. तुरंत फैसला करना था.
वे किसी से संघर्ष में उतरना तो बिलकुल भी नहीं चाहते थे, पर अब हालात ऐसे पैदा हो गए थे कि अब बिना टकराव के उनका काम बनने वाला नहीं था. फिर भी उन्होंने तै किया कि वे उन आदिम मनुष्यों को जहां तक हो सके, नुकसान नहीं पहुँचाएंगे.
इस कार्य में भीमुचाचा का अनुभव तुरंत काम आया. बिना वक्त गँवाए उसने अश्रुगैस के गोले निकाल छोड़े.
आदि मनुष्यों की आँखों में जाते ही इस गैस ने अपना करतब दिखाया. वे अपने तीर कमान छोड़, आंखों की फिक्र में पड़े. तब तक दो चार और गोले छुट पड़े. वे आदिम मानुष जैसे ही जायजा लेने आंखें खोलते, और ज्यादा जलन होने लगती. अब तो जो जो आगे खड़े थे, उन्होंने पीछे हटना शुरू कर दिया. फिर तो सब एक दूसरे को धक्का देते हुए भागे. खोह में भगदड़ मच गई. गिरते पड़ते, धक्का देते, बाहर निकलने के लिए होड़ लगा दी. थोड़ी ही देर में सब बाहर. खोह खाली.अब राजू की टीम के लिए रास्ता साफ़ हो गया था. दोनों मुहाने पर आदिम लोगों को बाहर ही रखने में चार लोग रुके. और अन्य साथी धन की हेराफेरी में लगे.
पर बाहर माहौल बड़ा गर्म था. अपनी देवी के स्थान पर कोई और कब्जा कर ले, यह हकीकत वे कैसे स्वीकार कर सकते थे! उन्होंने भी अपनी तरफ से उपद्रव शुरू कर दिया. आगे से पार नहीं पाया जा सका तो पीछे से कोशिश करने लगे.
कुछ आदिम लोग पहाड़ी के पीछे से होते हुए गुफा की दूसरी बाजू आ पहुँचे. जहां से राजू के साथी धन की हेराफेरी में लगे हुए थे. उसी वक्त राजू के साथी खोह से सामान लिए अपने मार्ग पर ही बढ़े थे. तभी घात लगाकर आदिम लोगों ने तीरों से हमला कर दिया. सामान की पोटलियाँ होने से और मोटे जाकेट एवं जींस पेंट की वजह से तीरों से ज्यादा गंभीर चोट तो न आई, पर फिर भी वे थोड़े बहुत घायल हुए. वे भी सामना करने लगे. पर सामान के बोझ तले वे बेबस थे. फिर भी वे अश्रुगैस के गोले छोड़ने लगे.
पर इस बार उन आदिम लोगों ने अश्रुगेस से बचने का तरीका निकाल लिया था. वे इस वक्त दो दो, तीन तीन के झुंड में छितरबितर हो कर लड़ रहे थे. इसलिए अश्रुगैस वाली तरकीब इस बार काम न आई. और राजू की टीम के दो साथियों को आदिम लोगों ने पकड़ लिया. पर बाकी लोग सामान के साथ वापस खोह की और भागने में सफल रहे.
क्रमशः
क्या अब राजू और उनके साथी अपने दो साथियों को आदिम लोगों की चुंगाल से छुड़ा पाएंगे? या उनकी बलि चढ़ा दी जाएगी? वे आदिम लोग उन लोगों के लिए कौन कौन सी नयी मुसीबतें खड़ी करेंगे?
 
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पर इस बार उन आदिम लोगों ने अश्रुगेस से बचने का तरीका निकाल लिया था. वे इस वक्त दो दो, तीन तीन के झुंड में छितरबितर हो कर लड़ रहे थे. इसलिए अश्रुगैस वाली तरकीब इस बार काम न आई. और राजू की टीम के दो साथियों को आदिम लोगों ने पकड़ लिया. पर बाकी लोग सामान के साथ वापस खोह की और भागने में सफल रहे.
उन्होंने खोह पर वापस लौटकर सारा घटनाक्रम अपने साथियों को बताया. और दो लोगों के पकड़े जाने का हाल भी कह सुनाया. पकड़े जाने वालों में पिंटू और दीपक थे. अब उनको कैसे छुड़ाया जाए, इस फिक्र में सब पड़े.
पर तभी वे आदिम लोग पिंटू और दीपक को उठाये खो के सामने आ पहुँचे. उनके हाथ पैर बंधे हुए थे. दोनों को एक ख़ास जगह पर लेटाया गया. साथ ही उनके पास से छीनी गई धन की पोटलियाँ भी बगल में रखी गई.
"ओह! ये तो बलि स्थान है! ये हरामखोर उसे बलि चढ़ा देंगे! जल्दी कुछ करो!" वक्त को भाँपते हुए रफीकचाचा जोर से चिल्ला उठे.
अब बड़े संघर्ष की परिस्थितियाँ पैदा हो चुकी थी. आगे होने वाले टकराव की अगवाई भीमुचाचा ने संभाल ली. वही तो ऐसी विकट परिस्थितियों के लिए एकमात्र काबिल था. वे आदिम लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते थे, पर अब वे वक्त के हाथों मजबूर थे. फिर भी भीमुचाचा ने कुछ सोचकर तुरन सभी को कुछ निर्देश दिए. सब त्वरा से भीमूचाचा के कहे मुताबिक एक्शन में आ गए.
यहाँ तीन चार आदिम लोगों ने चाबुक से पिंटू और दीपक को मारना पीटना आरम्भ कर दिया. और चार लोग कमान पर तीर चढ़ाए सामने खड़े हो गए. अन्य लोग भी तीर कमान, पत्थर, लकड़ी इत्यादि जो भी था, हाथों में थामे तैयार थे.
पिंटू और दीपक के सामने खड़े वे चारों तीरों को छोड़ने की तैयारी में ही थे. पर तभी उन्होंने कुछ ऐसा देखा कि उनके हाथों से तीर फिसल गए. और वे खुद अपनी जान की फिक्र में पड़ गए.
भीमुचाचा का निर्देश पाते ही उनके साथियों ने तुरंत तीर कमान थामे लोगो की और पटाखों के रोकेट छोड़ दिए. इस विचित्र चीज को आग उगलते हुए अपनी और तेजी से बढ़ता देख उन चारों के हाथों से तीर कमान गिर पड़े. और पीछे हटकर मुश्किल से उन्होंने अपने आप को रोकेट से बचाया. दूसरी और अन्य आदिम लोग कुछ करते, इससे पहले ही अश्रुबम के गोले उनके झुंड पर बरस पड़े. काफी लोग अपनी आंखों को मलते रह गए. पर कई आदिम लोग इस बार अश्रुबम की करामात से परिचित थे. अतः, वे छितरे हुए खड़े थे. और इसलिए उनपर अश्रुबम का कोई असर न हुआ.
पर वे कुछ हरकत में आते, इससे पहले एक जबरदस्त धमाका हुआ. और आंखों के सामने धुंध छा गई. कुछ भी देखना मुश्किल हो गया. सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी. और जब धुंध हटी, तो उन्होंने देखा, जिन दो लोगों को वे उठा लाए थे, वे सामान सहित गायब थे. वे सारे भौचक्के रह गए.
यह भीमुचाचा की करामात थी. उसने अपने साथियों को कुछ संकेत करते हुए एक हथगोला मिट्टी के टीले पर पटक दिया. इससे जबरदस्त धूल मिट्टी का गुबार उठा. और इससे हवा बिलकुल छन गई. जब तक हवा साफ़ होती, तुरंत अन्य साथी दौड़ कर पिंटू और दीपक को सामान की पोटलियों सहित उठा लाए. उनके बंधन खोल दिए गए. अब वे भी उठकर आदिम लोगों का सामना करने के लिए तैयार थे.
वे अब खोह में वापस घुस गए. और आगे क्या किया जाए, इसके बारें में सोचने लगे. अभी भी चार संदूकों के सामान की धुलाई बाकी थी. अब इसे कैसे निकाला जाए, सोचने लगे. क्यूंकि धन की धुलाई के दौरान, मार्ग में उनका जो हाल हुआ था, वह भी सोचने योग्य था.
पर तभी खोह के दोनों मुहानों से तीरों की बरसात शुरू हो गई. सारे आदिम लोगों ने मिलकर तीरों की बौछार कर दी थी. सभी नौ साथियों को खोहद्वार से हटकर आड़ में छिपना पड़ गया. अभी तो तीरों की बौछार जारी ही थी कि पत्थरों की भी बौछार होने लगी. थोड़ी देर तक यह हाल जारी रहा. फिर खोह के मुहानों पर कोई भारी चीज गिरने की आवाज़ सुनाई देने लगी.
यह क्या हो रहा है, यह जानने के लिए राजू ने जरा खोह के मुहाने पर झांक कर देखा. "ओह! ये लोग तो बड़े बड़े पत्थरों से खोह का मुहाना बंध कर रहे हैं!" राजू चौंकते हुए चिल्लाया.मतलब ये लोग हमें खोह में ही बंध कर देना चाहते हैं!" भीमुचाचा ने कुछ सोचते हुए कहा.
"कहीं हमने खोह में वापस घुसकर गलती तो नहीं कर दी?" राजू ने चिंतित होते हुए पूछा.
"वो तो वक्त ही बताएगा. पर ये गंवार लोग भी युद्ध कला में बड़े उस्ताद हैं!" भीमुचाचा ने आदिम लोगों की तारीफ में स्वर निकाला.
अब खोह का छोटा मुहाना बिलकुल बंध हो गया था. और बड़ा मुहाना भी सिर्फ ऊपर से थोड़ा खुला था. सभी लोग चिंतित हो गए.
"अब तो जल्दी ही कुछ सोचना पड़ेगा. वर्ना हम यहीं घुट के मर जाएंगे." राजू ने व्यग्र स्वर में कहा.
"देखो, हम सिर्फ नौ लोग हैं. हमें धन की धुलाई करनी हैं. इस दौरान मार्ग में आदिम लोगों से सुरक्षा भी करनी हैं. और खोह पर रहकर उन आदिम लोगों को खोह में दाखिल होने से रोकना भी हैं. यह सभी कार्य हम इतने लोग एक साथ नहीं कर सकते!" भीमुचाचा ने चिंतित होते हुए कहा.
"तो फिर क्या किया जाए?" राजू ने पूछा.
बाकी के मेम्बर्स भी दोनों की बातें बड़ी व्यग्रता से सुन रहे थे.
"पहले तो हम यहाँ से निकलने का कोई बंदोबस्त करते हैं. और ये जो चार संदूकें रह गई हैं, उसे भी सामान सहित खोह से बाहर निकाल लेते हैं. फिर जो होगा सो देखा जाएगा." भीमुचाचा ने कहा.
सब भीमुचाचा के साथ सहमत हुए.
फिर भीमुचाचा ने छोटे मुहाने पर पत्थरों के बीच तीन हथगोले लगा दिए. और सब को खोह में अन्दर की और सुरक्सित दूरी पर कर दिया. फिर एक हथगोला हाथ में ले उस मुहाने के पत्थरों पर दे मारा. वह हथगोला फट पड़ा. इसकी चिंगारी से पहले वाले तीन हथगोले भी फट पड़े. इससे अत्यंत भीषण धमाका हुआ. और काफी पत्थर अन्दर बाहर बिखर गए. पूरी गुफा हिल उठी. सारे साथी भय से कांप उठे. ऐसा लगा, जैसे अभी गुफा की छत गिर पड़ेगी. ऊपर से धूल मिट्टी और कंकरों की भारी बौछार होने लगी. पर इससे छोटे मुहाने का बड़ा हिस्सा खुल गया.
इसके साथ ही बाहर चीख पुकार मच गई. धमाके की वजह से बिखरे पत्थर टॉप के गोले की तरह छुट पड़े थे. और उसने बाहर खड़े कई आदिम लोगों को घायल कर दिया था. मुहाने के नजदीक खड़े लोग ज्यादा चोटिल हुए थे. कई लोग उनके पास इकठ्ठा हो गए. सब का दिमाग सन्न रह गया था. ये क्या हो गया? ये लोग कौन है? और कहाँ से आये है? बड़े आफत की पूड़ियां मालुम हो रहे है? ऐसा ही कुछ वे सोच रहे थे.
फ़ौरन भीमुचाचा ने बाहर निकल कर एक बेकप तैयार किया. उसने पटाखों, फ़व्वारों और चक्रियाँ छोड़ कर बाहर खड़े आदिम मनुष्यों को चौका दिया.
अब आदिम लोगों का ध्यान घूमती और आग बरसाती इस चक्रियों और फ़व्वारों पर जा टिका. वे गभराए. और पीछे हटे. वे बड़े ताज्जुब से इसे देखने लगे. क्या करे क्या न करे, वे इस दुविधा में पड़े हुए थे. तब तक अन्य साथी संदूकों सहित सलामत बाहर निकल आए.
जैसे ही सब बाहर निकले, उन्होंने भी रास्ता रोके खड़े आदि मनुष्यों को मार्ग से हटाने के लिए पटाखों के फ़व्वारे एवं चक्रियाँ छोड़ना आरम्भ कर दिया. फ़व्वारों और चक्रियों से निकलते आग के गोले आदिम लोगों के पैरों और बदन पर गिरने लगे. इस आफत के गोलों ने बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया. बदन पर लगते ही वे आदिम मनुष्य हाथ पैर उछालते पटकते और चीख पुकार मचाते भागे. और थोड़ी दूर जा खड़े रहे.
अब रास्ता साफ़ था. संदूकों को उठाए सब आगे बढ़े.
भीमुचाचा किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार थे. रात भी बहुत हो चुकी थी. और उन आदिम लोगों के कुछ लोग घायल भी थे. अतः, उन्हें उनकी फिक्र ज्यादा थी. और वे उस वक्त ज्यादा प्रतिकार करने की हालत में भी नहीं थे. इसलिए राजू और उनके साथियों को भाग निकलने का मौका मिल गया.
फिर भी उन्हें ऐसा जरूर लगा कि वे आदिम लोग छिपते छिपाते उनका पीछा कर रहे हैं. पर रात के दौरान नई कोई आफत पैदा न हुई.अब उन्होंने संदूकों से सारा धन निकाल, अन्य धन के साथ जमीन में गाड़ दिया. और अपने पड़ाव पर जाते वक्त मार्ग में खाली संदूकों को जंगल में छोड़ दिया.
उन्हें ऐसा विश्वास था कि वे आदिम लोग इस संदूकों को खोजते हुए जरूर आएँगे. और इस संदूकों को पा, वे उनका पीछा छोड़ देंगे. पर उन्हें क्या पता था कि वे जिसे गंवार मान रहे हैं, वे इतने नादान नहीं थे. और दिमाग के मामले में तो वे उनके भी बाप साबित होने वाले थे. उनसे पीछा छुड़ाना भी उन लोगों के लिए इतना आसान साबित नहीं होने वाला था
 
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अब उन्होंने संदूकों से सारा धन निकाल, अन्य धन के साथ जमीन में गाड़ दिया. और अपने पड़ाव पर जाते वक्त मार्ग में खाली संदूकों को जंगल में छोड़ दिया.
उन्हें ऐसा विश्वास था कि वे आदिम लोग इस संदूकों को खोजते हुए जरूर आएँगे. और इस संदूकों को पा, वे उनका पीछा छोड़ देंगे. पर उन्हें क्या पता था कि वे जिसे गंवार मान रहे हैं, वे इतने नादान नहीं थे. और दिमाग के मामले में तो वे उनके भी बाप साबित होने वाले थे. उनसे पीछा छुड़ाना भी उन लोगों के लिए इतना आसान साबित नहीं होने वाला था.
अपने पड़ाव पर पहुंचकर उन्होंने भोजन किया. और सोने चले. अब तो रात्रि बहुत थोड़ी ही शेष रह गई थी. फिर भी तीन लोगों को निगरानी पर छोड़ बाकी के लोग सो गए. सवेरा होने तक कोई अनहोनी घटित हुई नहीं. वे सुबह को देरी से निवृत्त हुए. फिर भी आंखों में से नींद गई नहीं थी. थकान भी बहुत थी. कुछ साथी थोड़े बहुत घायल भी हुए थे. दोपहर तक वे वहां ठहरे रहे. फिर अपने टेंट उठा, आगे बढ़े.
अब उन्होंने यह तै किया था कि अब पड़ाव को खोह वाली पहाड़ी से कहीं दूर ले जाया जाए. फिर धन को भी यहाँ से निकाल दूर कर दिया जाए. क्यूंकि इस पहाड़ी पर उन आदिम लोगों की आवाजाही लगातार बनी रहती थी. और वे कभी भी उनके लिए परेशानी की वजह बन सकते थे.
पर इससे पहले वे अपने छिपाए धन की खबर प्राप्त कर लेना चाहते थे. क्यूंकि रात्रि के दौरान जल्दी में काम करने से अगर कोई कमी रह गई हो तो पूरा कर लेना चाहते थे. इसलिए वे उस और बढ़े. मार्ग में उन्होंने देखा, जहां उन्होंने वे खाली संदूकें छोड़ी थी, वे गायब थी. वे आदिम लोग जरूर खोजते हुए आये होंगे और उसे उठा ले गए होंगे. उन्होंने सोचा. फिर वे आगे बढ़े.
अभी थोड़े ही दूर निकले होंगे कि कहीं से कुत्तों के भोंकने की आवाज़ सुनाई दी. वे थम गए. और इधर उधर देखने लगे. तभी उनकी नजर कुत्तों को साथ लिए आते आदिम लोगों पर पड़ी. वे जरूर उनकी ही खोज में निकले होंगे. इस बात की दहशत उनके दिलों में पैदा हुई. वे जल्दी से आगे बढ़े. पर तुरंत उन्हें विश्वास हो गया कि वे आदिम लोग उनका ही पीछा कर रहे हैं. उनके कुत्ते दौड़ते हुए राजू और उनके साथियों के नजदीक आ पहुँचे. और उसे भोंकने लगे.
अब भीमुचाचा ने अपनी बंदूक उठाई. और कुत्तों के थोड़े और नजदीक आने का इंतज़ार किया. जैसे ही वे कुत्ते बंदूक की रेंज में आए, भीमुचाचा ने बंदूक चलाई. उनका निशाना अचूक था. तुरंत चार कुत्ते जमीन पर ढेर हो कर गिरे. अन्य कुत्ते अपने साथी कुत्तों की हालत देख भाग खड़े हुए. और दूर जा भोंकने लगे. तब तक वे आदिम लोग भी वहां आ पहुँचे. वे अचरज से अपने मरे कुत्तों की हालत देखने लगे.
राजू और उनके साथियों को वक्त मिल गया. वे उनसे काफी दूर निकल गए.
पर अब उन्हें अपने धन की चिंता सताने लगी. कहीं वे मनुष्य वहां तक तो नहीं पहुँच गए होंगे? उन्हें इस बात की दहशत लगी थी कि वे जरूर उनका पीछा करते हुए पीछे पीछे आएँगे.
पर तभी संजय को जैसे कुछ याद आया. उसने अपनी बेग से अरुणाचल प्रदेश के जंगल से लाई हुई वह विचित्र गुर वाले पौधे की पत्तियाँ निकाली. और उसे मसलकर जहां जहां उनके और उनके साथियों के पैर पड़े थे, वहां मार्ग में दाल दिया.
"तुमने यह बहुत बढ़िया काम किया. अब वे कुत्ते जब इनको सूंघेंगे, तब उन्हें हमारे चमत्कार का पर्चा मिलेगा." राजू ने हस्ते हुए संजय को कहा.
राजू की बात सुन, सब मुस्कुराए. फिर वे आगे बढ़ गए.
अब वे उनके गाड़े धन की जगह तक आ पहुँचे. वहां सब कुछ पहले जैसा था. वे आदिम मनुष्य यहाँ तक नहीं पहुँच पाए थे. फिर भी उन्होंने वहां की हालत थोड़ी बहुत ठीकठाक कर दी. फिर वे नए पड़ाव की तलाश में बढ़ गए.वे पहाड़ी से नीचे उतर, तलहटी में आगे बढ़ रहे थे. तभी उन्होंने दूसरी और से उन आदिम मनुष्यों के झुंड को भी पहाड़ी से नीचे उतरते देखा.
सचमुच उस विचित्र गुर वाले पौधे की पत्तियों ने अपना चमत्कार दिखाया था. उनके कुत्ते पीछा करने में असफल रहे थे. इसलिए वे भटक गए थे.
पर फिर भी वे उनसे पीछा नहीं छुड़ा पाए थे. फिर उनसे पीछा छुड़ाने के लिए क्या किया जाए? सब के मन में एक ही सवाल था.
तभी उन्होंने एक और आदिम लोगों के झुंड को आगे बढ़ते पाया. अब वे तेजी से तलहटी में आगे बढ़े. वे लोग भी उनका पीछा करते हुए आ रहे थे. वे थोड़े आगे बढ़े ही थे कि एक और झुंड को सामने उनका रास्ता रोके खड़े पाया. वे उनकी ही और घूर घूर कर देख रहे थे.
"देखो. ये लोग जितने हम समझते हैं उससे कहीं ज्यादा चालाक हैं. अब रास्ता बदलों." भीमुचाचा ने निर्देश किया.
भीमुचाचा की बात सुनते ही सब दूसरी और चल पड़े. थोड़े आगे बढ़े कि सामने से पंद्रह बीस जंगली भेड़ियों के झुंड को भागते हुए उनकी और आते देखा. उनके पीछे वे आदिम मनुष्य हाथों में जलती हुई लकड़ियाँ लिए दौड़ते हुए आ रहे थे. राजू और उनकी टीम के दिमाग में यह बात समझते देर न लगी कि वे आदिम मानव उस भेड़ियों को पीछे से डरा कर भगा रहे हैं.
"ये भी हमारे खिलाफ उनकी कोई रणनीति का हिस्सा तो नहीं?" राजू ने संदेह प्रगट किया.
"हो भी सकता है! जल्दी करो! तुम सब अपनी अपनी बंदूक संभाल लो! ये देखो, भेड़िये नजदीक आ गए!" भीमुचाचा ने आदेश देते हुए कहा.
तब तक भेड़िये नजदीक आ पहुँचे थे. राजू और उनके साथी भेड़ियों के मार्ग में थे. रास्ते के एक और गहरा खड्डा था, तो दूसरी और कंटीली झाड़ियाँ थी. सुरक्षित स्थान पर हट जाने की संभावना भी नहीं थी. और वापस भागने का मौका भी रहा नहीं था.
वे भेड़िये उनपर हमला करते, इससे पहले भीमुचाचा ने चिल्लाते हुए आदेश दिया. "फायर!" इतना कहते भीमुचाचा ने एक हथगोला भेड़ियों के सामने चला दिया. बड़ा धमाका हुआ. भीमुचाचा का आदेश पाते ही अन्य साथियों की बंदूकें भी गरज उठी. हथगोले का धमाका और बंदूक की गोलियों से पल भर में ही तीन चार भेड़िये ढेर होकर गिरे. और अन्य भेड़िये डरकर वापस मुड़ भागे. वे आदिम लोगों का झुंड उस भेड़ियों के झुंड को जलती हुई लकड़ियों से डरा कर वापस राजू के साथियों की और भगाने लगा. पर खोफ खाए भेड़िये छितरबितर हो कर जहां राह दिखाई दी, भाग खड़े हुए.
"ये जंगली लोग सचमुच में ही बड़े शातिर्द दिमाग मालूम पड़ते हैं. अगर हमारे पास हथियार नहीं होते तो ये लोग कब का हमें जहन्नुम में मिला देते." भीमुचाचा क्रोध से गरज उठे.
आगे भी आदिम लोग थे और पीछे भी आदिम ही थे. अतः, राजू और उनके साथी वापस मुड़े. और पहाड़ी पर चढ़ना आरम्भ कर दिया. उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, वे आदिम लोग तलहटी तक आ पहुँचे थे. उन्होंने तेजी की. वे आधी पहाड़ी तक ऊपर चढ़े थे कि पीछे से उनपर तीरों की बौछार होने लगी. पीछे मुड़कर जानना चाहा, कि तीर कौन चला रहे है? तो पता चला कि तीर पेड़ों के ऊपर से बरस रहे हैं. पर पेड़ों पर कोई दिखाई नहीं दे रहे थे.
वे आदिम लोग पेड़ों पर छिपकर बैठे हुए थे और वहीँ से तीर चला रहे थे. राजू और उनके साथियों ने मोटे जाकेट, हेलमेट, घुटनों तक के जूते इत्यादि पहन रखे थे, फिर भी नुकीले तीर थोड़ी बहुत तो उन्हें चोट पहुंचा ही रहे थे.
उन्होंने तीरों की दिशा में बंदूक से फायर किया. पर कुछ परिणाम न मिला.
अब कोई सुरक्षित स्थान देखना था, जहां से छिपकर वे भी हमले का जवाब दे सके. इधर उधर नजर दौड़ाई. थोड़े दूर एक पेड़ों का झुरमुट नज़र आया. वे तेजी से चले. पर तभी आदिम लोग दिखाई दिए. वे वहीँ पेड़ों पर चढ़ रहे थे.
"ये हरामख़ोरों ने हमें चारों और से घेर लिया हैं. अब तो सालों को मजा चखानि ही पड़ेगी." भीमुचाचा खीज कर बोले.
अब वे रास्ता बदल दूसरी और भागे.
पर तभी उन लोगों की चीख पुकार से जंगल कांप उठा. पेड़ों से उन पर आफत बरस पड़ी थी. और उसका सामना करने के लिए उनके पास कोई हथियार भी नहीं था.
कहीं से दो चार पत्थर आ कर उनके नजदीक के पेड़ों पर लटकते मधुमख्खियों के छज्जों पर गिरे. और बिफरी हुई मधुमख्खियों ने राजू और उनके साथियों पर धावा बोल दिया.उन्होंने मोटे जेकेट, दस्ताने, हेलमेट आदि पहन रखे थे. फिर भी कुछ मधुमख्खियाँ जहां से राह मिली, वहां से उनके कपड़ों में अन्दर घुस गई. और फिर जो हंगामा मचाया, उनका हाल तो वे ही जानते हैं.
वे सब मधुमख्खियों से पीछा छुड़ाने के लिए बदन सहलाते हुए दूसरी और भागे. तभी उनको सामने ही एक गुफा नज़र आई. वे तेजी से वहां पहुँचे. अन्दर दाखिल होना ही चाहते थे कि राजू चिल्लाया: "अरे! रुको. रुको. कहीं वे हमारी दशा उस खोह जैसी न बना दे!"
"नहीं! तुम सब जल्दी चलो! इस बार वे ऐसा करने की हिम्मत नहीं कर सकते. वहां उन लोगों का क्या हाल हुआ था, यह तो वे जरूर जानते ही होंगे!" भीमुचाचा ने चिल्लाते हुए आदेश दिया.
सब गुफा में दाखिल हो गए. अन्दर सब सलामत ही है, यह पक्का कर लिया. फिर हमले का जवाब देने की तैयारी करने लगे.
तभी तीरों की बौछार होने लगी. कई तीर गुफा के बाहर ही दीवार से टकरा कर अटक गए. और कुछ तीर अन्दर आ गए. पर किसी को कोई नुक्सान न हुआ. उन्होंने देखा. वे आदिम लोग कहीं छिपकर हमला कर रहे थे. पर कोई दिखाई न दे रहा था.
"क्या हम भी गोली चलाए?" पिंटू ने गुस्से से पूछा.
"नहीं! अभी नहीं! ऐसे ही कोई गोलियां बर्बाद नहीं करेगा." भीमुचाचा ने आदेशात्मक अंदाज़ में कहा. वह परिस्थिति का मुआइना कर, कोई व्यूहरचना बना रहे थे.
रुक रुक कर तीरों की बरसात जारी थी. पर किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँच रहा था. और कोई आदि मानव दिखाई भी नहीं दे रहे थे. अतः, प्रतिवार करने का मतलब भी न था.
अचानक नजदीक के पेड़ों पर कुछ हलचल हुई. और वे जिस गुफा में घूसे हुए थे, उस गुफा के द्वार पर ऊपर से सूखे घाँस पत्ते एवं लकड़ियाँ गिरने लगी. जरा सी देर में तो मोटा ढेर तैयार हो गया.
और कोई कुछ समझे विचारे, उससे पहले कई सुलगते तीर आ उस ढेर पर गिरे. तुरंत उस ढेर ने बड़ी आग का स्वरूप ले लिया. धुआं उठा. और गुफा में भरता चला गया.
यह सब इतनी जल्दी हो गया कि किसी को सोचने तक का मौका न मिला. अन्दर बैठे सब की साँसों में जहरीला धुआं घुसते ही खांसी चढ़ आई. आंखों में जलन शुरू हो गई. और दिमाग सुन्न पड़ने लगा.
इस अप्रत्याशित हमले से वे चकित रह गए. ऐसे तो दो ही मिनटों में उन सब के प्राण चले जायेंगे. पर किसी के होश ठिकाने ही कहाँ थे? कि कुछ करें!
मौत उनके बदन पर अपना वहशी पंजा पसारने लगी. उन्हें ऐसा लगने लगा जैसे यह गुफा ही उनकी जिंदगी का अंतिम ठिकाना हो. मृत्यु उनकी आंखों के सामने दिखाई देने लगी. वे आखरी बार अपने अपने इश्वर को याद करने लगे.
कहते है; जो हिम्मतवान होते है, उनको तो खुदा भी मदद करता है. फिर इन सब बहादुरों की दुर्दशा खुदा को कैसे मंजूर होती?
तभी नियति ने इन साहसी लोगों की मौत को नामंजूर कर दिया. और वो हो गया; जो अप्रत्यासित था!
 

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