Thriller रिस्की लव

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अंजन के बहुत ज़िद करने पर डॉक्टर मेहरा ने पंकज को खबर कर दी कि अंजन उससे मिलना चाहता है। खबर मिलने के कुछ ही देर बाद पंकज हॉस्पिटल पहुँच गया। डॉक्टर मेहरा ने हिदायत दी कि सावधानी बरतते हुए बात करे। मरीज को अधिक देर परेशान ना करे।
डॉक्टर मेहरा के जाने के बाद अंजन ने पंकज से पहला सवाल किया कि मीरा कैसी है ? उसके इस सवाल पर पंकज ने उस दिन जो घटा वह बता दिया। उसकी बात सुनकर अंजन परेशान हो गया। उसने पंकज से पूँछा,
"कुछ पता चला कि उस दिन बीच हाउस पर किसने हमला करवाया था ?"
पंकज ने जवाब देने की जगह अपनी नज़रें झुका लीं। अंजन समझ गया कि अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है। उसने कहा,
"अस्पताल में मुझे वक्त का भी पता नहीं चलता है। कितने दिन हो गए उस घटना को ?"
"भाई पाँच दिन हो गए।"
अंजन कुछ गुस्से में बोला,
"इतने दिनों में तुम कुछ भी पता नहीं कर पाए। मैं अभी इस लायक नहीं हूँ। पर तुम तो कुछ कर सकते हो।"
पंकज ने सफाई दी,
"भाई आप परेशान ना हों। मैं कोशिश कर रहा हूँ। जल्दी ही पता चल जाएगा।"
"तो पता करो... मुझे जानना है कि वह कौन है जो मीरा को ले गया।"
"भाई बहुत जल्दी ही पता करता हूँ।"
"मुकेश कहाँ है ?"
"उस दिन के बाद उसका भी कोई पता नहीं है।"
अंजन उत्तेजित होकर ऊँची आवाज़ में बोला,
"तो जाओ पता करो। जल्दी ही आकर मुझे सारी खबर दो।"
उसकी आवाज़ सुनकर बाहर खड़ी नर्स अंदर आ गई। उसने कहा,
"डॉक्टर मेहरा ने आपसे ज्यादा स्ट्रेस लेने को मना किया है।"
अंजन ने उसे इशारे से बाहर जाने को कहा। नर्स के जाने के बाद वह बोला,
"चाहें जैसे हो इस बात का पता जल्द से जल्द लगाओ। डॉक्टर मेहरा चाहे जो कहें। तुम आकर मुझसे मिलते रहो। मैं खुद भी यहाँ से जल्दी निकलने की कोशिश करता हूँ।"
पंकज चला गया। उसके जाने के बाद नर्स ने आकर उसे दवाएं दीं और आराम करने को कहकर चली गई।
बेड पर लेटा हुआ अंजन मीरा के बारे में सोच रहा था।
करीब एक साल पहले वह किसी काम से लंदन गया था। वह मौज मस्ती के इरादे से लंदन के मशहूर नाइट क्लब में गया था। अपना मनपसंद ड्रिंक पीते हुए वह डांस फ्लोर पर थिरकते लोगों को देखने लगा। वह खुद को एक अच्छा डांसर नहीं मानता था इसलिए डांस फ्लोर से दूर रहता था। लेकिन उस दिन लोगों के बीच डांस करते हुए एक चेहरे ने उसकी निगाहों को अपनी तरफ खींच लिया। ना जाने क्या सोचकर वह भी डांस फ्लोर पर चला गया और अपने अंदाज़ में थिरकने लगा।
नाचते हुए वह उस लड़की के नज़दीक चला गया जिसके चेहरे ने उसे अपनी तरफ आकर्षित किया था। वह अपने ही तरीके से नाच रहा था। तभी उस लड़की की नज़र उस पर पड़ी। वह उसे देखकर मुस्कुरा दी। उसका मुस्कुराना अंजन को अच्छा लगा।
कुछ देर में वह लड़की डांस फ्लोर छोड़कर एक टेबल पर जाकर बैठ गई। अंजन भी डांस छोड़कर उसके पास चला गया। उससे इजाज़त लेकर उसकी टेबल पर बैठ गया। उस लड़की ने एक बार फिर मुस्कुरा कर कहा,
"अच्छा डांस कर लेते हो।"
अंजन ने कहा,
"मुझे पता है कि मैं बहुत खराब डांसर हूँ। इसलिए डांस फ्लोर से दूर रहता हूँ। पर आज आपको डांस करते हुए देखा तो खिंचा चला गया।"
उसकी बात सुनकर वह लड़की ज़ोर से हंस दी। इससे हिम्मत पाकर अंजन ने अपना परिचय देते हुए कहा,
"अंजन विश्वकर्मा.... मुंबई से हूँ। कंस्ट्रक्शन्स बिज़नेस है...कावेरी कंस्ट्रक्शन्स..."
अंजन ने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया। उस लड़की ने हाथ मिलाते हुए कहा,
"मीरा आसवानी... यहीं की हूँ। आर्टिस्ट हूँ।"
अंजन ने कुछ संकोच के साथ कहा,
"क्या मैं आपके लिए एक ड्रिंक मंगा सकता हूँ।"
मीरा मुस्कुरा दी। अंजन उसके जवाब का इंतजार कर रहा था। मीरा ने कहा,मैं शराब नहीं पीती हूँ।"
अंजन का चेहरा उतर गया। मीरा ने कहा,
"पर इस जगह नॉन एल्कोहलिक ड्रिंक्स भी सर्व होते हैं। आप मेरे लिए मंगा सकते हैं।"
अंजन का चेहरा खिल उठा। उसने कहा,
"ठीक है... मैं हम दोनों के लिए कोई सॉफ्ट ड्रिंक मंगाता हूँ।"

"आप जो चाहे पी सकते हैं।"
"ओके..."
अंजन ने अपने लिए व्हिस्की और मीरा के लिए आइस्ड टी मंगवाई। दोनों चुपचाप अपना ड्रिंक पीने लगे। अंजन बात करना चाहता था पर समझ नहीं पा रहा था कि क्या कहे। वह चाहता था कि मीरा कुछ कहे। लेकिन मीरा अपनी आइस्ड टी पीते हुए ना जाने किन खयालों में खोई हुई थी। अंजन बात तो नहीं कर पा रहा था लेकिन लगातार मीरा की तरफ देख रहा था।
इस वक्त वह मीरा की खूबसूरती को नज़दीक से देख रहा था। उसकी आँखें काली और बड़ी थीं। अंजन को उसकी आँखों में अजीब सी कशिश नज़र आ रही थी। उनकी ओर देखते हुए वह उनकी तरफ खिंचा जा रहा था।
तभी डांस फ्लोर पर नाचती हुई मीरा की सहेली टेबल के पास आकर बोली,
"मीरा लेट्स गो। देर हो रही है। कल तुम्हारे लिए कितना महत्वपूर्ण दिन है। कल जल्दी उठना है।"
मीरा अपने खयालों से बाहर आ गई। उठते हुए बोली,
"मिस्टर अंजन थैंक्यू फार ड्रिंक।"
अंजन भी उठकर खड़ा हो गया। उसकी बात का जवाब देता उससे पहले ही मीरा वहाँ से चली गई।

मीरा के जाने के कुछ ही देर बाद अंजन भी नाइट क्लब से निकल गया। वह लंदन में अपने एक दोस्त सागर खत्री के बंगले पर ठहरा हुआ था। पंकज भी उसी बंगले के आउट हाउस में था।
अंजन अपने बिस्तर पर लेटा हुआ करवटें बदल रहा था। नींद उससे कोसों दूर थी। उसकी आंखों में बस मीरा का चेहरा बसा हुआ था। वह अजीब सी बेचैनी महसूस कर रहा था।‌ उसका मन कर रहा था कि कोई जादू हो जाए और वो मीरा के पास पहुँच जाए।
वह बिस्तर से उठकर कमरे में टहलने लगा। अब उसे इस बात का पछतावा हो रहा था कि उस समय चुपचाप बैठकर मीरा को निहारते रहने की जगह अगर उसने कुछ और बातचीत की होती तो शायद उसके बारे में और बातें पता चल जाती जिससे उसे खोजना आसान होता। उसे तो उसके नाम के अलावा कुछ भी नहीं पता था।
वह यह सोचकर हैरान था कि एक छोटी सी मुलाकात में मीरा ने उस पर कौन सा जादू कर दिया है। वह एक पल के लिए भी उसके खयाल को अपने मन से नहीं निकाल पा रहा था। वह जाकर अपने बिस्तर पर लेट गया।‌ कोशिश करने लगा कि शायद उसे नींद आ जाए।‌ पर आँखों में मीरा की छवि ऐसी बस गई थी कि नींद उनमें प्रवेश ही नहीं पा रही थी।
अंजन की सारी रात करवटें बदलते ही कट गई।‌ सुबह जब वह नाश्ते के लिए अपने दोस्त सागर के साथ था तो उसकी आँखों से पता चल रहा था कि वह सो नहीं पाया।‌ सागर ने उससे पूँछा,
"क्या बात है ? कोई तकलीफ थी। लगता है कि रात में सोए नहीं हो।"
अंजन ने कहा,
"हाँ तकलीफ तो थी।"
"तो बताना चाहिए था। मैं तुम्हारी तकलीफ दूर कर देता।"
"काश कि तुम कर पाते।"
अंजन ने आह भरकर कहा। सागर को उसकी बात समझ नहीं आई। उसने कहा,
"ऐसा क्या हो गया है तुम्हें ? खुलकर बताओ।"
अंजन ने नाइट क्लब में मीरा से हुई मुलाकात के बारे में बताया। सब सुनकर सागर हंस कर बोला,
"तो इश्क का चक्कर है। तब तो तुम्हारा भगवान ही मालिक है।"
अंजन को लगा था कि सागर उसकी मदद करने की बात करेगा। लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं कहा। अंजन बोला,
"क्या यार.... मुझे लगा था कि तुम मेरी मदद करने की बात कहोगे। तुमने तो भगवान पर डाल दिया।"
"तुम तो बस उसका नाम पता कर पाए। इतने बड़े लंदन में एक मीरा आसवानी को तलाशना आसान है क्या।"
"पर यह लंदन है। मीरा आसवानी नाम इतना कॉमन नहीं होगा यहाँ। वह कह रही थी कि आर्टिस्ट है। कुछ करो यार।"
सागर ने महसूस किया कि अंजन इस मामले में बहुत गंभीर है। उसने कहा,
"ठीक है... तुम्हारे लिए कोशिश करता हूँ। दौड़ता हूँ अपने आदमियों को। पर तुम देवदास ना बन जाना।"
सागर के आश्वासन से अंजन को तसल्ली हुई। वह नाश्ता करने लगा।

सागर ने अपने आदमी उन इलाकों में भेजे जहाँ भारतीय मूल के लोगों की संख्या अधिक थी। उसके आदमियों के पास तलाश के लिए सिर्फ दो ही आधार थे। एक नाम और दूसरा यह कि मीरा एक आर्टिस्ट ‌थी।
अंजन बहुत बेचैन था। उसका मन मीरा के बारे में जानने के लिए तड़प रहा था। अगले दिन दोपहर को सागर ने अंजन से कहा कि वह उसे कहीं ले जाना चाहता है। अंजन का मन कहीं भी जाने का नहीं हो रहा था। पर वह सागर को मना नहीं कर पा रहा था। वह सागर के साथ चला गया। लेकिन पंकज को साथ नहीं ले गया। क्योंकी सागर के साथ उसके आदमी थे।
सागर अंजन को एक आर्ट गैलरी में ले गया। वहाँ स्कल्पचर्स की एक प्रदर्शनी लगी हुई थी। गैलरी में घूमते हुए अंजन की निगाह मीरा पर पड़ी। वह एक स्कल्पचर के सामने खड़ी थी और लोगों को कुछ समझा रही थी। अंजन का चेहरा चमक उठा। उसने सागर की ओर देखा। वह उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था। सागर ने कहा,इसी मीरा की बात कर रहे थे ना तुम ?"
"हाँ यार.... थैंक्यू। पर तुमने कैसे ढूंढ़ा ?"
सागर ने जवाब दिया,
"कल तुमने बताया था कि मीरा की सहेली उससे कह रही थी कि कल तुम्हारे लिए खास दिन है। एक आर्टिस्ट के लिए खास दिन वही होता है जब वह पब्लिक के सामने आए। मैंने पता कराया कि लंदन में मीरा नाम की किसी कलाकार का कोई स्टेज शो या कोई प्रदर्शनी है। पता चला कि निसडन में मीरा आसवानी नाम की एक स्कल्पचरिस्ट की प्रदर्शनी है। मैं तुम्हें यहाँ ले आया। अब मौका तुम्हारे पास है। मीरा से मिलकर बात आगे बढ़ाओ।"
अंजन ने सागर को गले लगाकर धन्यवाद किया और मीरा की तरफ बढ़ गया।
 
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उस दिन आर्ट गैलरी में हुई मुलाकात के बाद अंजन और मीरा के बीच मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया। अंजन के इंडिया लौटने तक दोनों एक दूसरे के अच्छे दोस्त बन चुके थे।
अंजन का मन मीरा को छोड़कर इंडिया आने का नहीं कर रहा था। लेकिन उसका लौटना ज़रूरी था। अंजन के लौटने से एक रात पहले मीरा ने उसे अपने घर पर डिनर के लिए बुलाया। उस दिन डिनर करते हुए उसने बताया कि उसके एक रिश्तेदार भारत में रहते हैं। दो महीने बाद उनके घर शादी है। वह शादी अटेंड करने भारत आएगी। उसकी बात सुनकर अंजन खुश हो गया। उसने मीरा से कहा कि ‌जब वह भारत आए तो उसे मेहमाननवाज़ी करने का मौका दे। मीरा ने खुशी खुशी उसका न्यौता कबूल कर लिया।

अंजन भारत लौट आया था पर मीरा का खयाल हमेशा उसके ज़ेहन में रहता था। उसका मन किसी काम में नहीं लगता था। हफ्ते में दो बार तो वह मीरा से फोन पर बात कर ही लेता था। दो महीने का इंतज़ार उसके लिए कठिन हो रहा था।
दो महीने बाद मीरा भारत आई। अपने रिश्तेदार के घर शादी के फंक्शन में शामिल होने के बाद वह अपना वादा निभाने के लिए अंजन के घर रहने आई। मीरा करीब एक हफ्ते उसके घर पर रही। उस दौरान अंजन ने उसकी खूब आवभगत की।
मीरा के लंदन लौट कर जाने के बाद अंजन को यकीन हो गया कि वह उसके प्यार में पूरी तरह से डूब चुका है। लेकिन मीरा भी उसे चाहती है या नहीं यह बात वह नहीं समझ पाया था। हालांकि जितने दिन वह अंजन के साथ रही थी उसके साथ खुलकर पेश आती थी। उसकी तारीफ करती थी। पर अंजन असमंजस में था। सही तरह से नहीं कह सकता था कि उसके व्यवहार का खुलापन दोस्ती की निशानी है या प्यार की।
वह मीरा को सच्चे दिल से चाहता था। इसलिए उसके मन में एक डर था कि अगर मीरा उससे प्यार ना करती हो, उसे सिर्फ अपना अच्छा दोस्त मानती हो तो क्या होगा। कैसे वह इस बात को बर्दाश्त कर पाएगा। इसलिए वह सच्चाई जानने से डर भी रहा था।
अंजन उसके बाद जल्दी जल्दी कई बार लंदन गया। हर बार जब वह लौटकर आता तो उसका विश्वास पक्का हो जाता था कि मीरा भी उसे चाहती है।
अंजन ने 600 एकड़ की जमीन हासिल कर ली थी जो वन के लिए संरक्षित थी। उसने उस जमीन पर एक लग्जरी रिज़ार्ट बनाने की योजना बनाई थी। आवश्यक कार्यवाही के बाद उसने रिज़ार्ट का काम शुरू करने से पहले भूमि पूजन का कार्यक्रम रखा था।‌ इस कार्यक्रम के लिए मीरा को खासतौर पर आमंत्रित किया था।
मीरा भी उसके आमंत्रण को स्वीकार कर लंदन से भूमि पूजन में भाग लेने आई थी।‌ मीरा को अगले दिन सुबह जल्दी लंदन के लिए फ्लाइट पकड़नी थी। पर इस बार अंजन सच जाने बिना मीरा को जाने नहीं देना चाहता था।
मीरा अपने कमरे में आराम कर रही थी। अंजन ने उसके कमरे के दरवाज़े पर दस्तक दी। मीरा ने उठकर दरवाज़ा खोल दिया। सामने अंजन को देखकर वह बोली,
"अंजन.... प्लीज़ कम इन।"
अंजन कमरे में जाकर बैठ गया। मीरा उसके पास बैठकर इंतज़ार करने लगी कि वह अपने आने का कारण बताए। लेकिन वह कुछ कहना चाह कर भी कह नहीं पा रहा था। मीरा ने गौर किया कि अंजन अच्छी तरह से ड्रेस अप होकर आया है। जैसे कहीं बाहर जाना हो। उसने कहा,
"क्या बात है अंजन ? कहाँ जाने की तैयारी है ?"
अंजन ने कहा,
"अकेले नहीं.... तुम्हें साथ लेकर जाना चाहता हूँ।"
मीरा को आश्चर्य हुआ। उसने कहा,
"मुझे..?? कहाँ ले जाना है ?"
"तुम्हें पता है मेरा एक बीच हाउस है शिमरिंग स्टार्स। मेरे साथ चलोगी ?"
मीरा ने घड़ी पर नज़र डाली। उसके बाद बोली,
"अंजन तुम जानते हो कि सुबह तड़के मुझे लंदन के लिए फ्लाइट पकड़नी है। आई एम वेरी टायर्ड। बट नेक्स्ट टाइम पक्का चलूँगी।"
उसकी बात सुनकर अंजन के चेहरे पर निराशा का भाव आ गया। वह शायद मीरा से छिप नहीं सका। उसने कहा,
"बहुत मन है तुम्हारा ?"
अंजन ने एक छोटे बच्चे की तरह उदास होकर कहा,
"था तो....पर कोई बात नहीं। तुम आराम करो।"
उसकी बात सुनकर मीरा हंसकर बोली,
"ठीक है चलती हूँ। मुझे कुछ वक्त दो तैयार होने के लिए।"
यह सुनकर अंजन के चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह बोला,
"तुम तैयार हो जाओ। मैं बाहर इंतज़ार कर रहा हूँ।"
यह कहकर वह कमरे से बाहर चला गया।

अंजन और मीरा उस कार में थे जिसे मुकेश चला रहा था। उसके मना करने के बावजूद भी पंकज दो और आदमियों के साथ दूसरी कार में था। जिसे वह खुद ड्राइव कर रहा था। अंजन ने केयर टेकर को पहले ही इंतज़ाम करने को कह दिया था।
वह मीरा के साथ बीच हाउस के हॉल में था। पंकज दोनों आदमियों के साथ बाहर था।
मीरा बहुत खूबसूरत लग रही थी। अंजन ने शैंपेन खोलकर दो गिलासों में डाली। उसने एक गिलास मीरा को पकड़ा दिया। चियर्स करने के बाद ‌दोनों शैंपेन पीने लगे। अंजन बार बार मीरा की ओर देख रहा था। मीरा मुस्कुराई और पूँछा,
"क्या बात है ?"
"कुछ नहीं। तुम पिओ।"
शैंपेन पीते हुए मीरा ने महसूस किया कि गिलास की तली में कुछ है। उसने गौर से देखा तो एक अंगूठी थी। मीरा ने प्रश्न भरी नज़र से अंजन को देखकर कहा,
"यह क्या है अंजन ?"
मीरा ने जिस तरह से पूँछा था अंजन सकपका गया।
"तुम जानते हो कि यह मेरे गले में जाकर अटक सकती थी।"
अंजन घबरा गया। माफी मांगते हुए बोला,
"आई एम सॉरी। वो फिल्मों और टीवी पर देखा था।"
"क्या देखा था ?"
"यही कि प्रपोज़ करने के लिए हीरो गिलास में इसी तरह अंगूठी डाल देता है।"
मीरा ने कुछ गुस्से से कहा,
"तो ये सब करने के लिए तुम यहाँ लाए थे।"
अंजन ने अपनी नज़रें झुका लीं। वह कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। तभी मीरा की हंसी उसके कान में पड़ी। उसने नज़रें उठाकर देखा। मीरा बोली,
"लाए थे तो कहो ना।"
अंजन का मन खिल उठा। वह बोला,
"मीरा आई लव यू.... तुम्हें अपनी जान से भी अधिक चाहता हूँ।"
अंजन ने देखा कि मीरा भावुक हो गई है। अपनी पलकों में अपने आंसू रोकने की कोशिश कर रही है। फिर भी आंसू उसके गालों तक लुढ़क कर आ गए थे। अंजन ने उसके दोनों गालों को चूम लिया। मीरा ने कहा,
"आई लव यू टू अंजन...."
यह कहकर वह उसके गले से लग गई। दोनों कुछ देर वैसे ही बैठे रहे। कुछ देर बाद मीरा ने कहा,
"अंगूठी क्या सिर्फ शैंपेन में डालने के लिए लाए थे ?"
अंजन ने गिलास से अंगूठी निकाली। इधर उधर निगाह दौड़ाई। कुछ ना मिलने पर अपने सूट पर रगड़ कर पोंछ दिया। उसकी इस हरकत को देखकर मीरा ने कहा,
"ओ माई बेबी...."
अंजन उसके सामने घुटने के बल बैठ गया। उसका हाथ पकड़ कर चूमा। उसे अंगूठी पहनाने जा रहा था तभी एक गोली आकर वाज़ पर लगी। उसे खतरा भांपते देर नहीं लगी। मीरा का हाथ पकड़कर उसे सोफे के पीछे खींचकर ले गया। अपनी गन निकाली और गोली चलाने लगा।
गोली चलाते हुए उसकी नज़र डरी सहमी मीरा पर पड़ी। वह समझ नहीं पा रही थी कि अचानक यह क्या हुआ। उसकी आँखें अंजन के चेहरे पर टिकी थीं। अंजन समझ गया कि वह उसका यह रूप देखकर सकते में है। लेकिन वह समय कोई सफाई देने का नहीं था। ज़रा सी चूक उसकी और मीरा की जान ले सकती थी।
अंजन ने मीरा से कहा कि वह सोफे के पीछे बैठी रहे। इधर उधर होने की कोशिश ना करे। वह चाहता था कि आगे बढ़कर देखे कि हमला करने वाले कौन और कितने हैं। पंकज और उसके साथी क्या कर रहे हैं। मीरा को वहीं छोड़कर वह सोफे के पीछे से निकला। कुछ कदम आगे आया होगा कि घबराया हुआ पंकज अंदर आया। उसने बताया कि उनके दोनों आदमी मारे गए हैं। वह नहीं जानता कि अचानक किसने हमला किया है। वह उसे बचाने के लिए अंदर आया है।
सब सुनकर अंजन सोच में पड़ गया। उसे मीरा की फिक्र थी। वह उसे यहाँ लेकर आया था। अगर उसे कुछ हो जाता तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाता। उसने पंकज से कहा,
"तुम मेरी चिंता मत करो। मैं यहाँ संभालता हूँ। तुम मीरा को सुरक्षित यहाँ से निकाल कर ले जाओ।"
पंकज कुछ कहने जा रहा था। अंजन ने उसे रोक कर कहा,
"मेरी बात मानो। मीरा को लेकर निकलो यहाँ से।"
उसकी बात मानकर पंकज मीरा को लेकर निकल गया।
अंजन उसे कवर देने के लिए बाहर निकल रहा था कि कोई उसके सामने आ गया। चेहरे पर नकाब था। उसने उसकी छाती में गोली मार दी।
उसकी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा। होश खोने से पहले उसने किसी की धुंधली सी झलक देखी थी।

हॉस्पिटल के बेड पर लेटे हुए वह याद करने की कोशिश कर रहा था कि वह कौन हो सकता था। उसे ऐसा लग रहा था कि वह जो कोई भी था जाना पहचाना लग रहा था। वह अपने दिमाग पर ज़ोर डाल रहा था कि कुछ याद आ जाए। लेकिन उसकी हर कोशिश नाकाम हो रही थी।
बहुत देर तक कोशिश करने के बाद भी उसे कुछ याद नहीं आया।
उसका मन उस शख्स के बारे में जानने के लिए तड़प उठा। वह वही शख्स हो सकता था जिसने उस पर हमला किया था।
उसके लिए यह भी जानना ज़रूरी था कि मीरा का अपहरण कर कौन उसे अपने साथ ले गया है ?
इन सवालों का जवाब जानने के लिए आवश्यक था कि वह हॉस्पिटल से निकल कर इस काम की बागडोर अपने हाथ में ले ले।
उसने तय कर लिया कि डॉक्टर मेहरा चाहे कुछ भी कहे पर अब वह और अधिक हॉस्पिटल में नहीं रहेगा।
 
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पुरानी खबरों को खंगालते हुए नफीस के हाथ एक छोटी सी खबर लगी।
'शूटिंग में माहाराष्ट्र स्टेट स्तर के खिलाड़ी को गैर इरादतन हत्या के प्रयास में तीन साल की सजा।'
यह खबर 2011 की थी। जिस खिलाड़ी को सजा मिली थी वह तरुण काला था। नफीस को याद आया कि उन दिनों वह मुंबई के मराठी दैनिक शहर च्या दर्पण में ही था। उन दिनों अंजन ने तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ना शुरू किया था।
नफीस ने अब पुराने अखबारों से तरुण काला के बारे में और खबरें खंगालनी शुरू कीं। काफी खोजने के बाद उसे तरुण से संबंधित एक और खबर मिली।
2015 के एक मराठी अखबार में एक छोटा सा लेख था। इस लेख में बताया गया था कि तरुण काला को अच्छे बर्ताव के कारण डेढ़ साल की जेल के बाद ही छोड़ दिया गया था। उसके बाद तरुण ने एक नई पारी शुरू की। उसने फिश एक्सपोर्ट के बिज़नेस में कदम रखा। कुछ ही समय में इस बिज़नेस में अच्छी सफलता प्राप्त कर ली।
इसके अलावा नफीस को तरुण काला के बारे में कोई और खबर नहीं मिली।

कावेरी हॉस्पिटल के वॉर्ड ब्वॉय ने कहा था कि पंकज किसी तरुण काला के साथ बात कर रहा था। नफीस अब अंजन, पंकज और तरुण काला के बीच की डोर को पहचानने की कोशिश कर रहा था।
बहुत सोचने पर केवल एक बात उसकी समझ में आई। जिस अवधि में तरुण ने फिश एक्सपोर्ट के बिज़नेस में कदम रखा था उसी अवधि में अचानक रघुनाथ परिकर और उसके छोटे भाई यदुनाथ परिकर की रहस्यमय तरीके से हादसे में मौत हो गई थी। नफीस का क्राइम रिपोर्टर वाला दिमाग सक्रिय हो गया। उसने इन दो अलग अलग बातों को जोड़ने वाली डोर का पता लगाने का निश्चय किया।

शाहीन ने जॉर्ज एसोसिएट्स में दोबारा फाइल क्लर्क का जॉब शुरू कर दिया था। वैसे रोज़ सात बजे तक घर आ जाती थी। पर आज उसने फोन करके बता दिया था कि अपने अम्मी अब्बू से मिलने घर जा रही है। कुक खाना बनाकर रख जाएगी। उसे देर हो सकती है इसलिए खाने के लिए उसका इंतज़ार ना करे। खाना खा ले।
कुक टेबल पर खाना रख गई थी। नफीस को भूख लग रही थी। फ्रेश होने के बाद वह खाना खाने लगा। खाते हुए वह शाहीन के बारे में सोच रहा था। जबसे उसने दोबारा काम शुरू किया था नफीस से उसे वक्त ना देने की शिकायत करना बंद कर दिया था। अब वह खुद ही व्यस्त हो गई थी। वैसे बात सिर्फ इतनी नहीं थी। वह खुद भी प्रयास करता था कि समय मिलने पर उसके साथ वक्त बिताए। कहीं घुमाने के लिए ले जाय।‌ वह शाहीन को खुश रखने की कोशिश करता था।
खाना खाकर वह प्लेट रखने किचन में गया था तभी उसका फोन बजा। उसने आकर फोन उठाया तो विनोद का फोन था। विनोद ने बताया कि उसने अपने खबरियों को काम में लगा दिया है। कोशिश कर रहा है कि जल्दी ही मुकेश के बारे में कुछ पता चल जाए।‌
विनोद से बात करने के बाद नफीस अपने स्टोररूम में गया। यहाँ एक कबर्ड था जिसमें उसने अपनी कुछ पुरानी फाइलें रखी हुई थीं।‌ इन फाइलों में पुरानी खबरों के बारे में जानकारियां थीं। उसने वह फाइल निकाली जिसमें रघुनाथ परिकर और उसके भाई की मौत की खबर थी। उसने खबर पढ़नी शुरू की।
'मशहूर उद्योगपति रघुनाथ परिकर और उनके छोटे भाई यदुनाथ परिकर की एक हादसे में मौत हो गई। कंस्ट्रक्शन बिज़नेस में अपना अहम स्थान रखने वाले रघुनाथ परिकर अपने भाई के साथ अपने पैतृक गांव में कुलदेवी की पूजा करके लौट रहे थे। हाईवे पर अचानक उनकी कार अनियंत्रित होकर सामने से आ रही एक ट्रक से टकरा गई। दोनों भाइयों की घटना स्थल पर ही मौत हो गई। गाड़ी का ड्राइवर भी मारा गया।'
नफीस ने खोजकर देखा। सिर्फ एक और खबर थी। उसमें बताया गया था कि अंजन ने रघुनाथ और यदुनाथ का अंतिम संस्कार किया। अंजन परिकर बंधुओं की छोटी बहन मानवी का पति है। अंजन ने बड़े दुखी स्वर में बताया कि वह बड़े भाई रघुनाथ परिकर को अपने गुरु की तरह मानता था। अभी कुछ ही महीनों पहले उन्होंने अपना आशीर्वाद देकर उसे अपना बहनोई बनाया था। लेकिन अचानक उनके परिवार पर इतना बड़ा दुख आ पड़ा।

नफीस ने उस वक्त को याद करने का प्रयास किया। लगभग हर अखबार और न्यूज़ चैनल में सिर्फ हादसे की बात कही गई थी। हादसे की कोई जांच हुई हो ऐसा नहीं हुआ था। हाँ कुछ लोगों ने दबी जुबान से इस विषय में बात ज़रूर की थी कि दाल में कुछ काला है। पर कोई खुलकर सामने नहीं आया था।
उस समय नफीस ने भी इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया था।‌ पर अब उसे भी दाल में कुछ काला नज़र आ रहा था।

दो दिन और बीत गए थे लेकिन पंकज अभी तक कोई नई खबर लेकर नहीं आया था।‌ अंजन के लिए हॉस्पिटल में टिकना मुश्किल हो रहा था।‌ उसने डॉक्टर मेहरा को बुलाकर कहा कि उसे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज दे दें। डॉक्टर मेहरा ने समझाना चाहा कि अभी घाव गहरा है। कुछ दिन और हॉस्पिटल में रहना आवश्यक है।‌अंजन ने फैसला सुनाते हुए कहा,
"मेरे लिए अब और अधिक यहाँ रहना कठिन हो रहा है। आप ऐसा इंतजाम करें कि आगे की देखभाल मेरे बंगले पर हो सके।"
डॉक्टर मेहरा ने बहुत कोशिश की लेकिन अंजन नहीं माना। डॉक्टर मेहरा ने उसे डिस्चार्ज दे दिया। लेकिन साथ ही हीदायत दी कि जब तक घाव पूरी तरह भर नहीं जाता है उसे दवाएं लेते रहना पड़ेगा। उसे जो भी करना है अपने घर में रहकर करे। कहीं बाहर ना जाए। यह भी इंतजाम किया गया कि एक नर्स उसकी देखभाल के लिए उसके घर पर रहेगी। एक डॉक्टर आकर उसका चेकअप कर जाया करेगा।
इन सब इंतजामों के साथ अंजन अपने बंगले पर आ गया। आते ही उसने अपना काम संभाल लिया। इधर पंकज का व्यवहार उसे सही नहीं लग रहा था। इस मामले में वह जिस तरह की ढिलाई बरत रहा था वह शक पैदा करने वाली थी। पंकज उसका खास साथी रहा था। अंजन जानता था कि अगर वह चाहे तो कुछ ही समय में सब पता कर सकता था। लेकिन अभी वह पंकज पर किसी तरह का शक जाहिर नहीं करना चाहता था।
पंकज के अलावा भी कई ऐसे लोग थे जो अंजन के लिए काम करते थे। जिन पर वह भरोसा कर सकता था। उनमें से एक था एंथनी जैकब। एंथनी पेशे से एक जासूस था। वह पहले भी कुछ मामलों में उसके लिए जासूसी कर चुका था। अंजन ने एंथनी से संपर्क किया।
एंथनी उसके बंगले पर आकर उससे मिला। अंजन ने उसे सारी बात बताई। उसने एंथनी से कहा कि जितनी जल्दी हो सके उसे सच का पता लगाकर बताए।

अंजन अपनी बीती हुई ज़िंदगी में झांककर उस शख्स को तलाशने की कोशिश कर रहा था जो उसका दुश्मन हो सकता था।

मानवी से शादी करने के पीछे उसका मकसद रघुनाथ परिकर की बराबरी तक पहुँचना ही था।
लेकिन शुरू से ही वह इस मंसूबे के साथ मानवी की ओर बढ़ा हो ऐसा नहीं था। उस दिन जब पार्टी के बाद मानवी ने उसे मिलने के लिए बुलाया था तब उसके इतने नज़दीक रहते हुए वह उसकी खूबसूरती का दीवाना हो गया था। उस अवसर की तलाश में था जब वह मानवी से नज़दीकी बढ़ा सके।
जब उसे पता चला कि नवीन सौरांग मज़ागाओं में यॉट पर पार्टी कर रही मानवी का अपहरण करना चाहता है तो उसके हाथ अच्छा मौका लगा। फिल्मी हीरो की तरह वहाँ पहुँच कर उसने मानवी को नवीन के चंगुल से बचा लिया।
मानवी उसे दिल दे बैठी। दोनों एक दूसरे से मिलने लगे। अंजन जानता था कि मानवी अपने भाइयों की लाडली है। खासकर रघुनाथ परिकर उसे अपनी बेटी की तरह मानता है। वह कभी भी उसके और मानवी के रिश्ते को कबूल नहीं करेगा। यही हुआ भी। उसके और मानवी की रिश्ते की भनक पड़ते ही रघुनाथ परिकर ने उसे बुलाकर धमकाया और मानवी से दूर रहने को कहा।
अंजन अब तक विपरीत परिस्थितियों से लड़कर ही आगे बढ़ा था। रघुनाथ की इस धमकी से डरने की जगह उसके मन में आया कि मानवी रघुनाथ की कमज़ोरी है। उसके माध्यम से वह रघुनाथ के बिज़नेस और उसकी ज़िंदगी में दखल बना सकता है।
उसने अपनी चाल चलनी शुरू की। मानवी को फोन करके कहा कि वह उसे दिल की गहराई से चाहता है। लेकिन उनका रिश्ता आगे नहीं बढ़ सकता है।‌ मानवी का भाई रघुनाथ ऐसा नहीं होने देगा। इसलिए वह बहुत दूर चला जाएगा। मानवी भी उसे भूल जाए। मानवी ने बताया कि उसके भाई ने उससे भी ऐसी ही बात की थी। लेकिन वह उसे नहीं भूल सकती है।
अंजन समझ गया था कि मानवी उसके प्यार में अपने भाई से बगावत भी कर सकती है। उसने मानवी को अपने प्लान में शामिल कर लिया। उसके कहने पर मानवी ने दबाव बनाने के लिए खुद को कमरे में बंद कर लिया। खाना पीना छोड़ दिया। आखिरी दांव अपने हाथ की नस काट कर खेला। उसने वह वक्त चुना जब नौकर खाना लेकर आता था।
मानवी को बचा लिया गया। अंजन ने डॉक्टर के साथ मिलकर उसके प्रैगनेट होने की बात कही। मानवी ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया।
रघुनाथ परिकर के लिए मानवी ही सबकुछ थी। वह झुक गए। अंजन को अपने बिज़नेस में हिस्सेदारी दी और उसकी शादी मानवी से करा दी।अंजन बड़ी चालाकी से रघुनाथ परिकर का बहनोई बन गया। ना सिर्फ उसके परिवार में बल्कि उसके बिज़नेस में भी उसने अपना दखल बना लिया था। उसे वह सीढ़ी मिल गई थी जिसे चढ़कर वह उस ऊँचाई को छू सकता था जिसके वह सपने देखता था।
उसने मिले हुए अवसर का पूरा लाभ भी उठाया। रघुनाथ परिकर के सहारे तेज़ी से आगे बढ़ना शुरू कर दिया।
अपनी इस यात्रा में वह मानवी को एकदम भूल गया था। वह उससे शिकायत करने लगी। अपने सपनों को पूरा करने में व्यस्त अंजन को यह अच्छा नहीं लगता था।
उसके और मानवी के बीच झगड़े होने लगे।
 
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#23
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एक दिन रघुनाथ परिकर ने अंजन को बात करने के लिए बुलाया। अंजन समझ गया था कि वह क्या बात करेगा। इसलिए वह सब सोचकर गया था कि क्या करना है। जब वह रघुनाथ परिकर के पास पहुँचा तो वह बहुत गुस्से में था। उसने अंजन से कहा,
"धोखेबाज़ तूने मेरी बहन को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल किया। उसे अपने झूठे प्यार के जाल में फंसाकर मेरे खिलाफ साजिश की। मुझे सब पता चल गया है। मानवी की प्रैगनेंसी की झूठी खबर तुमने मुझ पर दबाव बनाने के लिए गढ़ी थी। मानवी को भी अपने साथ मिला लिया। उससे शादी करके मेरे बिज़नेस तक पहुँच गए।"
रघुनाथ परिकर की बातें सुनकर अंजन ज़रा भी परेशान नहीं हुआ। वह बड़े इत्मीनान से पैर पर पैर रखकर उसके सामने बैठ गया। उसके इस आचरण से रघुनाथ परिकर और नाराज़ हो गया। लेकिन इतनी बात करते हुए ही वह हांफ गया था।‌ कुछ दिनों से उसकी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी। वह ऑफिस भी नहीं जा पा रहा था। पर उसे अंजन की कुछ गड़बड़ियों के बारे में पता चला था। उसने खुद को संभालते हुए कहा,
"पहले मेरे सामने नज़रें झुका कर खड़े रहते थे। आज इतनी हिम्मत कि मैं खड़ा हूँ और तुम बैठ गए। ऑफिस में तुम्हारे कारनामों की भी जानकारी मिली है मुझे।‌ मैं बीमार हूँ। यदुनाथ शराब में ही डूबा रहता है। उसका फायदा उठा रहे हो। पर मैं तुम्हें कामयाब नहीं होने दूँगा। मेरे हितैषी हैं ऑफिस में। मैं भी जल्दी ही ठीक होकर काम पर ध्यान दूँगा।"
अंजन अभी भी बड़े इत्मीनान से बैठा था। रघुनाथ ने कहा,
"तुम्हें लगता है कि मेरी बहन के पति होने का फायदा उठा लोगे तो तुम भूल कर रहे हो।‌ अब मानवी भी तुम्हें पहचान चुकी है।"
अब तक चुप बैठा हुआ अंजन उठकर खड़ा हो गया। कुछ पल रघुनाथ को देखता रहा। उसके बाद बोला,
"दूसरों पर पैर रखकर आगे बढ़ने का हुनर आपसे ही सीखा है। एक बार आपने कहा था कि तुम्हारे अंदर आगे बढ़ने की आग है। वही आग अब आपको जला रही है। बच सकें तो बचा लीजिए खुद को।"
यह कहकर वह चला गया।

दरवाज़े पर दस्तक हुई। अंजन ने देखा कि नर्स आई है। उसके साथ अंजन का एक नौकर था। उसके हाथ में एक ट्रे थी जिसमें ड्रेसिंग का सामान था। नर्स ने कहा,
"सर ड्रेसिंग करवा लीजिए।"
अंजन तैयार हो गया। नर्स नौकर की मदद से ड्रेसिंग करने लगी। ड्रेसिंग के बाद नर्स ने उसे दवाइयां खाने को दीं। सब करने के बाद जाते हुए वह कह गई कि कुछ देर में डॉक्टर आकर उसका चेकअप कर जाएगा।
नर्स के जाने के बाद वह फिर सोचने लगा।

अंजन ने अपने सारे मोहरे बहुत सोच समझकर चले थे। सब उसके प्लान के हिसाब से ही चल रहा था। रघुनाथ परिकर का बीमार पड़ना भी उसके प्लान का हिस्सा था। जो दवाएं वह ले रहा था उनमें मिलावट की जा रही थी।
पहले से ही शराब के आदी यदुनाथ का पूरी तरह उसमें डूब जाना ऐसा था जैसे कि किस्मत खुद उसका साथ देने की ज़िद पकड़े बैठी हो।
यदुनाथ परिकर हमेशा अपने भाई के साए में रहा था। रघुनाथ की बात उसने हुक्म की तरह मानी थी। वह एक औरत से शादी करना चाहता था। रघुनाथ इस बात के लिए राज़ी नहीं था। नतीजा यह हुआ कि यदुनाथ ने किसी से भी शादी नहीं की। लेकिन मानवी के समय रघुनाथ का नरमी बरतना उसे ‌अच्छा नहीं लगा। वह कुछ कह नहीं पाया। उसने अपने आप को शराब की बोतल का गुलाम बना दिया।
उस दिन जब रघुनाथ ने उसे बुलाकर बताया कि वह उसकी चाल समझ रहा है तो उसने अपनी राह के कांटों को हटाने का मन बना लिया।
हर ग्रीष्मकालीन नवरात्रि में रघुनाथ परिकर यदुनाथ और मानवी के साथ अपनी कुलदेवी के दर्शन के लिए जाता था। अंजन के लिए यह मौका हो सकता था। लेकिन समस्या यह थी कि परिवार का दामाद होने के नाते उसे भी जाना पड़ रहा था। यह उसके प्लान के लिए ठीक नहीं था।
अंजन ने सोचकर इसका उपाय निकाल लिया। वह मानवी के साथ अलग घर में रहता था। जिस दिन रघुनाथ को कुलदेवी की पूजा के लिए जाना था अंजन ने जानबूझकर अपने घर पर हवन पूजा रखवा लिया। उसने कहा कि उस हवन में पत्नी होने के नाते मानवी का उसके साथ बैठना ज़रूरी है। रघुनाथ को बुरा लगा पर वह मानवी और उसे छोड़कर यदुनाथ के साथ चला गया।
लौटते समय अंजन ने उनके एक्सीडेंट की व्यवस्था कर रखी थी।

दोनों भाइयों के जाने के बाद अंजन अब उनकी हर एक चीज़ का अकेला मालिक बन चुका था। एक अपराधी से सफेदपोश बिज़नेस मैन। पहले जो काम वह रघुनाथ के लिए किया करता था अब वही काम दूसरों से करवाता था। तेज़ी से वह कंस्ट्रक्शन बिज़नेस में आगे बढ़ने लगा था।
कंस्ट्रक्शन बिज़नेस के अलावा और कई बिज़नेस में उसने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पैसा लगाया था। उनका प्रयोग समय समय पर अपने लिए करता था।
अपने आप को सफेदपोश बनाए रखने के लिए वह कुछ ऐसे कार्य भी करता था जिनसे समाज का भला हो।

एक बार फिर उसे वर्तमान में लौटना पड़ा। डॉक्टर हॉस्पिटल से उसका चेकअप करने के लिए आया था। चेकअप के लिए ज़रूरी उपकरणोकी व्यवस्था घर पर पहले ही हो चुकी थी। वह उठकर उस कमरे में गया जहाँ चेकअप की व्यवस्था थी। डॉक्टर ने उसे टेबल पर लिटा दिया। उसके बाद कुछ देर तक आवश्यक चीज़ॉ की जांच करता रहा।
चेकअप के बाद डॉक्टर ने कहा,
"सबकुछ कंट्रोल में है। कुछ दिन इसी तरह एहतियात बरतिए। दवाइयां वक्त पर लेते रहिए।"
हिदायत देकर डॉक्टर चला गया।‌ उसके जाने के बाद नौकर ने आकर कहा,
"सर खाने का समय हो गया है। कमरे में ही ले आऊँ।"
अंजन कमरे में बैठे हुए ऊब रहा था। उसने कहा,
"डाइनिंग टेबल पर ही लगाओ। मैं आता हूँ।"
नौकर ने कहा,
"मैं ले चलूँ..."
अंजन ने कहा,
"तुम जाओ....इतनी दूर चल लूँगा।"
नौकर चला गया। अंजन ने पंकज को फोन करके मिलने के लिए बुलाया। कुछ देर बाद अंजन डाइनिंग टेबल पर पहुँच गया।

अंजन खाना खा रहा ‌था जब पंकज उससे मिलने आया। अंजन ने उसे बैठकर साथ खाने के लिए कहा। पंकज टेबल पर बैठ गया। नौकर ने एक प्लेट लगाकर उसे दी। पंकज खाना खाने लगा। अंजन ने कहा,
"क्या बात है पंकज ? मैं हॉस्पिटल से डिस्चार्ज लेकर आया लेकिन तुम मिलने नहीं आए।"
खाते हुए पंकज रुक गया। पानी पिया फिर बोला,
"भाई वो आपके ‌काम में लगा था। इसलिए नहीं ‌आ पाया। पर सोचा था कि ‌शाम तक आऊँगा।"
पंकज बात करते हुए नज़र नहीं मिला रहा था। अंजन ने कहा,
"तो क्या पता चला ? उस दिन बीच हाउस पर किसने हमला किया था ?"
"भाई वो अभी कोशिश कर रहा हूँ...."
अंजन ने बीच में ही टोकते हुए कहा,
"लगता है कि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं रहती है। कभी इतने ढीले तो नहीं रहे तुम। कोई बात हो तो बताओ। हम दोनों बरसों से एक दूसरे को जानते हैं।"
पंकज ने धीरे से कहा,
"नहीं भाई कोई बात नहीं है। मैं जल्दी ही पता करता हूँ।"
"ठीक है। अब आराम से खाना खाओ।"
पंकज खाना खाने लगा। अंजन चुपचाप उसके चेहरे के भावों को देख रहा था।

अंजन के घर से ‌निकल कर पंकज उस जगह के लिए चल पड़ा जहाँ पहले भी तरुण काला से मुलाकात कर चुका था। कार चलाते हुए रास्ते में वह‌ अंजन के बारे में सोच रहा था। उसे महसूस हो रहा था कि भले ही अंजन ने उससे कुछ कहा ना हो पर उसे उस पर शक हो गया है। खाना खाते हुए उसने लगातार घूरती हुई अंजन की निगाहों को महसूस किया था।

जब वह पहुँचा तो तरुण काला उसकी राह देख रहा था। बसंत ने पीने की व्यवस्था करके रखी थी। पंकज के आने पर उसने उसके और तरुण के लिए पेग बनाया। उसके बाद चुपचाप बाहर चला गया। तरुण ने पंकज से कहा,
"तुम्हारे चेहरे पर परेशानी दिखाई पड़ रही है। क्या बात है ?"
"अंजन हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर घर आ गया है। मुझे मिलने के लिए बुलाया था। उसके बात करने के तरीके से लग रहा था कि जैसे उसे मुझ पर शक हो गया है।"
पंकज की बात सुनकर तरुण भी कुछ परेशान हो गया। उसने कहा,
"बात तो परेशान करने वाली है। अंजन बहुत चालाक है।"अपने ड्रिंक से एक सिप लेकर उसने कहा,
"तो क्या सोचा है तुमने ? हमला किसने किया था यह तो हम भी नहीं जानते हैं। क्या बताओगे उसे ?"
"मुझे नहीं लगता है कि वह मेरे कुछ बताने के इंतज़ार में बैठा होगा। ज़रूर उसने अपनी तरफ से पता लगाना शुरू कर दिया होगा।"
"कोई अंदाजा है कि तुम्हारे अलावा और कौन हो सकता है जिसे अंजन यह काम सौंपे।"
पंकज ने कोई जवाब नहीं दिया। वह किसी सोच में डूबा था। तरुण ने आगे कहा,
"खैर जो भी हो... हम क्यों परेशान हों ? हमने तो हमला करवाया नहीं है।"
अपनी बात कहकर तरुण ने पंकज के चेहरे पर अपनी निगाहें टिका दीं। उसे ऐसा लगने लगा था कि पंकज उससे पूरी बात नहीं बता रहा है। इसलिए उसने जानबूझकर यह बात की थी। उसे और कुरेदने के लिए उसने पूँछा,
"डरने वाली कोई बात है ??"
पंकज ने अपना गिलास खाली करते हुए कहा,
"बिल्कुल नहीं...हम तो खुद परेशान हैं कि हमला किसने काराया है। मैं तो यह सोच रहा था कि उसे मेरे और तुम्हारे बारे में ना पता चल जाए।"
उसकी बात सुनकर तरुण भी सोच में पड़ गया।
उस टूटे हुए मकान के बाहर पंकज की कार से टेक लगाकर कोई अंजन को फोन कर रहा था।
अपने घर पर बैठा अंजन फोन पर मिली जानकारी के बारे में सोच रहा था। पंकज पर उसे कुछ शक तो था। लेकिन वह समझने की कोशिश कर रहा था कि आखिर तरुण काला और पंकज एक साथ क्यों आए होंगे।
उसके मन में सवाल उठा। कहीं पंकज और तरुण तो उस हमले के पीछे नहीं हैं ?
उसने फोन करके अपने आदमी को दोनों पर नज़र बनाए रखने के लिए कहा
 
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अंजन अपने कमरे में आराम कर रहा था। लेकिन उसके मन में वही एक सवाल घूम रहा था।
क्या पंकज और तरुण उस पर हुए हमले के ज़िम्मेदार हैं ?
अगर ऐसा है तो ऐसी क्या वजह है कि दोनों उस पर हमला कर उसे मारना चाहते थे। अंजन उस वजह के बारे में सोचने लगा।
पंकज सुर्वे को वह तबसे जानता था जब उसकी उम्र केवल सोलह साल थी।
वह उत्तर प्रदेश के अपने गांव से भागकर मुंबई आ गया था। उसकी माँ कावेरी के मरने के बाद उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी। ना तो उसने अपनी नई माँ को स्वीकार किया और ना ही नई माँ ने उसे। घर में रहना मुश्किल हो गया। वह मुंबई आ गया।
साथ में जो पैसे लेकर आया था वह उसी तरह चुक गए जैसे चिलचिलाती धूप में पत्ते पर पड़ी पानी की चंद बूंदें। घर से भागते हुए उसने कुछ सोचा नहीं था। लेकिन अब उसके सामने पेट पालने की समस्या खड़ी हो गई थी। उसने हाथ पैर मारकर किसी तरह एक ढाबे में नौकरी हासिल कर ली थी।
ढाबे पर उसे दो वक्त का खाना, रात में सोने की जगह और कुछ पैसे मिलने की बात हुई थी। इसके लिए उसे सुबह से देर रात तक काम करना पड़ता था। कोई चारा नहीं था इसलिए वह चुपचाप काम कर रहा था। एक महीना बीतने पर अंजन ने मालिक से अपना पैसा मांगा। पैसे की बात सुनते ही मालिक मुकर गया। उसने कहा कि उसे ढाबे पर दो वक्त खाना मिलता है। रात में सोने की जगह। फिर पैसे किस बात के।
मालिक के इस तरह मुकर जाने पर अंजन भी अकड़ गया कि बात पैसों की भी हुई थी। उसे उसके पैसे चाहिए। उस समय ढाबे में कई लोग मौजूद थे। मालिक को उसका इस तरह अकड़ना अच्छा नहीं लगा। उसने अंजन को थप्पड़ मार दिया। गालियां देते हुए ढाबे से निकल जाने को कहा। यह बात अंजन को बुरी लगी। वह दुबला पतला था। पर उसमें ताकत और हिम्मत की कमी नहीं थी। उसने भी मालिक पर हाथ उठा दिया।
मामला बढ़ गया। मालिक ने ढाबे पर काम करने वाले अपने आदमियों से अंजन को धक्के मार कर बाहर फिंकवा दिया। अपमान और गुस्से में भरा अंजन ढाबे के बाहर सड़क पर बैठा था। तभी एक लड़के ने उसके पास आकर कहा,
"दम है तुम्हारे अंदर। ढाबे के मालिक को अच्छा झापड़ मारा।"
अंजन ने सर उठाकर देखा। उसने उस लड़के को ढाबे पर खाना खाते हुए देखा था। अंजन उस समय कुछ कहने सुनने के मूड में नहीं था। वह चुप रहा। उस लड़के ने अपना हाथ आगे बढ़ाया। अंजन उसे पकड़ कर खड़ा हो गया। उस लड़के ने कहा,
"पंकज सुर्वे नाम है मेरा। अपना गैंग है। तुम्हारे जैसे हिम्मत वाले लड़के मेरे साथ काम करते हैं। तुम भी काम करोगे ?"
अंजन ने अचरज से उसकी तरफ देखा। पंकज उम्र में उससे साल दो साल ही बड़ा होगा। कुछ मोटा सा था। पंकज उसके मन की बात समझ गया। उसने कहा,
"दो लड़के हैं मेरे साथ। अच्छा कमाते हैं। ऐश करते हैं।"
अंजन ने पूँछा,
"काम क्या करते हो ?"
"बड़े हुनर का काम है। कुछ दिन सीखने में लगते हैं। पर तुम जल्दी सीख लोगे।"
अंजन कुछ समझ नहीं पा रहा था। उसने कहा,
"साफ साफ बताओ।"
"पॉकेट मारने का काम...."
उसकी बात सुनकर अंजन ने पीछे हटते हुए कहा,
"ना...ना.... मैं ईमानदारी से काम करूँगा।"
उसकी बात सुनकर पंकज हंसकर बोला,
"तुम्हारी मर्जी। देख तो लिया ईमानदारी से काम करके। सिर्फ यह ढाबेवाला ही नहीं, दुनिया के ज्यादातर लोग ऐसे ही हैं। फिर भी तुम्हारा मन सड़क पर भटकने का है तो भटको।"
अपनी बात कहकर पंकज चला गया।
अंजन ने दोबारा कोशिश शुरू की। कई जगह काम किया। पर हर जगह सबने दबाने की कोशिश की। अंजन को पंकज की बात याद आई कि इस दुनिया में ज्यादातर लोग उस ढाबे के मालिक जैसे ही हैं। लोगों की ज्यादतियों ने उसके मन में गुस्सा भर दिया। वह सोचने लगा कि उस दिन पंकज की बात मान लेता तो अच्छा होता।
ढाबे वाली घटना को दो महीने बीत चुके थे। किस्मत उसे दोबारा पंकज से मिलवाना चाहती थी। एक दिन वह चौपाटी पर एक ठेले पर खड़ा भेलपुरी खा रहा था। तभी पंकज दो लड़कों के साथ वहाँ आया। बड़े स्टाइल से भेलपुरी वाले से बोला,
"मेरे लड़कों के लिए स्पेशल बनाओ।"
उसे देखकर अंजन उसके पास जाकर बोला,
"पंकज भाई...पहचाना ?"
पंकज ने एक उचटती सी नज़र डालकर कहा,
"कौन हो ?"
अंजन ने याद दिलाया।भाई वो ढाबे के मालिक से मेरा झगड़ा हुआ था। मैंने भी उसे थप्पड़ मार दिया था। तब ढाबे के बाहर आप मिले थे। आपने कहा था कि आप मुझे अपने गैंग में मिला लेंगे। तब मैंने मना कर दिया था।"
पंकज ने एक बार फिर उसकी तरफ देखा। फिर बोला,
"तो अब क्या चाहते हो ?"
"भाई उस समय गलती हो गई थी। अब मैं आपके साथ काम करूँगा।"
"तमाशा है क्या ? अपनी मर्जी हुई मना कर दिया। अपनी मर्जी हुई तो हाँ।"
कहकर पंकज अपने लड़कों के पास चला गया। उनसे कुछ बातें करने लगा। अंजन इससे हतोत्साहित नहीं हुआ। वह उसके पास जाकर बोला,
"भाई सुनिए...."
पंकज ने उसे अनसुना कर दिया। अंजन ने एक बार फिर कहा,
"भाई मन लगाकर काम करूँगा।"
पंकज के साथ बात कर रहा एक लड़का उसकी तरफ घूम कर तैश में बोला,
"भाई को परेशान क्यों कर रहा है बे.."
पंकज ने उस लड़के को रोकते हुए अंजन से कहा,
"ईमानदारी का भूत उतर गया तुम्हारा। लेकिन अब मुश्किल है। काम सीखने में समय लगता है।"
"भाई यकीन मानिए। मैं अधिक समय नहीं लूँगा। बस अपने साथ रख लीजिए। आपने सही कहा था कि दुनिया अच्छी नहीं है। सब फायदा उठाने की कोशिश करते हैं।"
पंकज कुछ देर सोचकर बोला,
"ठीक है...पर जब तक सीख नहीं जाते अपना खर्च खुद उठाना।"
अंजन कुछ सोचकर बोला,
"मेरे पास इस समय ना पैसे हैं ना काम। पर भाई मैं जल्दी ही सीख लूँगा। इस बीच खाने पर जो खर्च होगा, बाद में कमाई से उतार दूँगा।"
पंकज ने उसे वहीं रुकने को कहा। अपने साथियों को एक तरफ ले जाकर कुछ बात की। उसके बाद आकर बोला,
"ठीक है...कल सुबह यहीं मिलना। कल से तुम्हारी ट्रेनिंग शुरू।"

जल्दी ही अंजन पॉकेट मारने में उस्ताद हो गया। उसकी महारत इतनी थी कि उसने पंकज और दोनों लड़कों को भी इसमें पीछे छोड़ दिया था। लेकिन एक बार उनके साथियों में से एक पॉकेट मारते हुए पकड़ा गया। कुछ दिनों के लिए पॉकेट मारने का काम बंद हो गया।
जुर्म के रास्ते में कदम रख चुका अंजन अब कुछ बड़ा करना चाहता था। ऐसा कुछ जिससे लोगों पर अपना रौब जमा सके। उसकी दोस्ती राजन के गैंग के एक लड़के से हो गईं थी। वह लड़का राजन के लिए रेड़ी खोमचे वालों से वसूली करता था। अंजन ने उसे वसूली करते देखा था। तब सब उसे सलाम करते थे। सत्रह साल के अंजन के लिए यह बड़ी शान की बात थी। उसने अपने दोस्त से कहा कि राजन भाई से उसकी सिफारिश कर दे।
पंकज ने अंजन की मदद की थी इसलिए वह उसे छोड़ना नहीं चाहता था। राजन के गैंग में शामिल होते समय उसने पंकज की भी सिफारिश की। उस समय राजन को नकली शराब की बोतलें एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने के लिए लड़कों की ज़रूरत थी। अंजन की बातचीत से उसे यकीन हो गया कि वह उसके काम आ सकता है।
धीरे धीरे अंजन ने तरक्की कर ली। अब वह वसूली करने व लोगों को धमकाने का काम करता था। पंकज अब उसके पीछे सपोर्ट के लिए रहता था।
जब अंजन राजन के गैंग को छोड़कर रघुनाथ परिकर के लिए काम करने लगा तो वह पंकज को भी अपने साथ ले आया था। अब स्थिति पलट चुकी थी। उन दोनों में अंजन लीडर की भूमिका में था। पंकज उसे भाई कहने लगा था।
मानवी से शादी करने के बाद अंजन जब रघुनाथ परिकर के बिज़नेस का मालिक बन गया तो उसने भी सफेदपोश बिज़नेस मैन का चोला पहन लिया। पंकज को सिक्योरिटी के नाम पर अपने साथ रखता था। पर उससे अपने काले धंधों के काम लेता था।
समय के साथ वह पंकज पर कम भरोसा करने लगा था। बहुत से काम ऐसे थे जिनसे उसने उसे दूर रखा था।

चाहे वह रघुनाथ परिकर और उसके भाई का एक्सीडेंट कराने का काम हो या फिर मानवी को रास्ते से हटाने का काम।
इन दोनों कामों में उसने तरुण काला की सहायता ली थी।

पंकज को दूर रखने के पीछे कारण यह था अंजन अपने सारे राज़ एक ही आदमी को नहीं बताना चाहता था। वह समझ चुका था कि ऐसा करना उसके लिए मुश्किल पैदा कर सकता है। पंकज ने उसके साथ ही सफर शुरू किया था। लेकिन अपनी सूझबूझ से वह तो आगे बढ़ गया था जबकी पंकज वहीं रह गया था।
अंजन को लगता था कि पंकज को अपने मामलों से दूर रखकर वह अपने लिए पैदा होने वाले खतरे को दूर कर रहा है।
पर अब उसे लग रहा था कि उससे चूक हो गई। उसे पंकज को अपने मामलों से दूर रखना चाहिए था पर अपनी नज़रों से दूर नहीं होने देना चाहिए था। अपनी जीत के नशे में डूबा हुआ वह लापरवाह हो गया। उसने पंकज पर ध्यान देना ही छोड़ दिया।
अब उसका ध्यान इस बात पर जा रहा था। उस दिन शिमरिंग स्टार्स जाते हुए अंजन ने पंकज को मना किया था कि वह अकेला चला जाएगा। पर पंकज ने कहा कि वह अपने दो आदमियों के साथ दूसरी गाड़ी में साथ साथ चलेगा। उसके साथ उसकी गाड़ी में नहीं बैठेगा। उसने कहा था कि वह उसे और मीरा को अकेले रहने देना चाहता है। अंजन सोच रहा था कि क्या उसने ही हमलावर को बताया होगा कि वह अपने बीच हाउस जा रहा है। वह उसके साथ केवल इसलिए गया होगा ताकी बाद में कोई उस पर उंगली ना उठाए।
अंजन सही बात जानने के लिए परेशान हो उठा।
 
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तरुण काला फिश एक्सपोर्ट के बिज़नेस में इस समय एक माना हुआ नाम बन गया था। बिज़नेस तरुण काला के नाम पर था लेकिन उसमें पैसा अंजन ने लगाया था।
रघुनाथ परिकर की तरह अंजन भी उन लोगों पर नज़र रखता था जो उसके काम आ सकते थे। जब उसने तरुण के बारे में सुना तो उसे अपने लिए इस्तेमाल करने की योजना बनाई।
एक पार्टी में तरुण की किसी से बहस हो गई थी। बहस इतनी बढ़ गई कि गुस्से में तरुण ने एक ज़ोरदार मुक्का उसकी नाक पर मार दिया। वह लड़का गंभीर रूप से घायल हो गया। पुलिस केस बन गया। उस पर गैर इरादतन हत्या के प्रयास का मामला दर्ज़ किया गया। तीन सालों की सजा हो गई।
तरुण जेल से तो जल्दी छूट गया पर उसका शूटिंग का करियर रुक गया। जब वह हादसा हुआ था उसका चयन राष्ट्रीय टीम के लिए होने की पूरी संभावना थी। लेकिन उसके जेल चले जाने से यह मौका उससे छिन गया। केस के दौरान उसके वकील ने कई बार दलील दी थी कि झगड़ा बढ़ाने में तरुण से अधिक उस दूसरे लड़के का हाथ था। वही तरुण को उकसा रहा था। पर तरुण ने जिस पर वार किया था वह एक ‌अमीर और रसूखदार घर का लड़का था। तरुण के वकील की बात नहीं सुनी गई। तरुण को सजा हो गई।
जेल से बाहर आने के बाद उसका सबकुछ बदल चुका था। रिश्तेदार और दोस्तों ने मुंह फेर लिया था। जो कुछ उसके साथ हुआ उससे उसे समझ आ गया था कि पैसों की क्या अहमियत है। उस समय वह बहुत हताश था।
अंजन ने शुरू से ही उसके केस को फॉलो किया था। उसके जेल से छूटने के बाद उस पर निगरानी रखनी शुरू कर दी। तरुण की हताशा का फायदा उठाकर उसे एक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया। उसने उसे मिलने के लिए बुलाया। पैसों के लिए तरुण उसके हाथ की कठपुतली बन गया।
हाईवे पर रघुनाथ परिकर की कार को रोककर पहले दोनों भाइयों और ड्राइवर को गोली मारी। उसके बाद खड़ी हुई कार को ट्रक से कुचल दिया।
अंजन चाहता था कि रघुनाथ परिकर और उसके भाई का बचना नामुमकिन हो जाए। इसलिए गोलियों से मरवाने के बाद हादसे का रूप देने के लिए ट्रक से कुचलवा दिया। अंजन ने अपनी पैठ दूर तक बना रखी थी। इसलिए पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट उसके अनुकूल आई। सबकुछ जल्दी जल्दी हुआ और दोनों भाइयों और ड्राइवर का दाह संस्कार भी कर दिया गया।

तरुण ने बड़ी सफाई से अंजन का काम किया था। उसकी काबिलियत समझकर अंजन ने उसका दूसरा उपयोग भी सोच लिया।
अंजन ने उसके नाम पर फिश एक्सपोर्ट बिज़नेस में पैसा लगाया। फिश एक्सपोर्ट बिज़नेस के पीछे मानव तस्करी का कारोबार चल रहा था। मछलियों के साथ इंसानों को खाड़ी देशों में पहुँचाया जाता था।

तरुण को अंजन ने एक और महत्वपूर्ण कार्य सौंपा। मानवी को रास्ते से हटाने का।

अपने दोनों भाइयों की मौत के सदमे से मानवी एकदम चुप हो गई थी। कहीं आना जाना छोड़कर उसने अपने आप को घर में कैद कर लिया था। पहले अंजन से अक्सर झगड़ा करती थी। लेकिन अब ‌अंजन को पता भी नहीं चलता था कि वह उसके साथ उसी घर में रहती है। अंजन इस स्थिति से बहुत खुश था।
पैसा आ गया था। उसके साथ साथ एक क्लास भी आ गया था। अब वह मंहगे डिज़ाइनर कपड़े पहनता था। बड़ी बड़ी पार्टियों में जाता था। जहाँ कई लड़कियां उसका साथ पाने के लिए उसके आगे पीछे तितली की तरह मंडराती थीं। अंजन का कई लड़कियों के साथ अफेयर था। पर किसी के साथ भी रिश्ते को लेकर वह गंभीर नहीं था।
मानवी तो अब उसके लिए घर में पड़े सामान से अधिक हैसियत नहीं रखती थी।मानवी का स्कूल के समय का एक दोस्त था निर्भय वाधवा। अपना कॉलेज पूरा करने के बाद उसने अपने फैमिली बिज़नेस की एक ब्रांच सिंगापुर में खोली थी। लेकिन वहाँ खास सफलता नहीं मिल पाई थी। इसलिए वह सब समेट कर वापस भारत आ गया था। भारत में मुंबई में उसने एक नई शुरुआत की।
निर्भय का स्कूल के समय मानवी पर क्रश था। पर जल्दी ही समझ गया कि उसकी दाल नहीं गलने वाली है। वह पीछे हट गया। बहुत समय तक वह मानवी के संपर्क में रहा। फिर उसके साथ टच छूट गया।
भारत आने के बाद उसने मानवी की खोज खबर ली। उसके बारे में पता करके उससे मिला। निर्भय के मन में अभी भी मानवी के लिए भावना थी। मानवी को उस हाल में देखकर उसे दुख हुआ। उसने उसे दुख से बाहर निकालने की कोशिश शुरू कर दी।
 
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अंजन से मिले धोखे, अपने भाइयों के अचानक चले जाने से मानवी एक तरह के अवसाद में चली गई थी। वह प्यार और अपनेपन के लिए तरस रही थी। निर्भय की दोस्ती में उसे वह सब मिला। धीरे धीरे वह खुलने लगी। उसके साथ घूमने जाती, पार्टी करती थी। वह फिर खुश रहने लगी थी।
अपनी ज़िंदगी में वापस आने के बाद मानवी ने अंजन की हरकतों पर ध्यान देना शुरू किया। उसे गुस्सा आता था कि जो कुछ उसके भाइयों के बाद उसे मिलना था उस पर अंजन ने कब्ज़ा कर लिया है। अब उसकी उपेक्षा करके उसकी दौलत पर ऐश कर रहा है।
मानवी अपना हक पाने के लिए बेचैन हो उठी।
अंजन ने सोचा था कि बिना कोशिश किए ही मानवी नाम का कांटा उसकी राह से हट गया है। मानवी अब सारी ज़िंदगी अपने दुख में घुलती रहेगी और एक दिन इस दुनिया से चली जाएगी। लेकिन मानवी ना सिर्फ अपने दुख से बाहर निकल कर आई बल्की नागिन की तरह फुंफकार कर उससे अपना हक मांग रही थी।
वह रघुनाथ परिकर की वसीयत को आधार बनाकर उससे अपना अधिकार वापस मांग रही थी। वसीयत के अनुसार अगर रघुनाथ परिकर की मृत्यु हो जाती है तो उसकी सारी संपत्ति उसके छोटे भाई यदुनाथ परिकर और बहन मानवी परिकर को बराबरी से मिलेगी। यदुनाथ परिकर की मृत्यु होने पर उसका हिस्सा भी मानवी को ही मिलेगा।
एक क्लॉज़ यह भी था कि यदि मानवी शादी कर लेती है और अगर वह जायदाद की ज़िम्मेदारी अपने पति को देना चाहे तो वह ऐसा कर सकती है।

अंजन को अंतिम बात अपने फायदे की लगी। उसने मानवी की स्थिति का लाभ उठाकर उन कागज़ों पर दस्तखत ले लिए थे जिनके मुताबिक उसने सबकुछ अंजन की देखरेख में छोड़ दिया था।
अब अंजन ने मानवी को भी राह से हटाने का फैसला कर लिया।

मानवी और निर्भय घूमने के लिए लोनावला गए थे। वहाँ उनका कैंपिंग का कार्यक्रम था। उनके पीछे पीछे तरुण भी लोनावला पहुँच गया। तरुण ने सही मौका देखकर दोनों की हत्या कर दी और उनकी लाश इंद्रायणी नदी में बहा दी।
लोगों के पूँछने पर उसने बता दिया कि उन दोनों की पटी नहीं इसलिए वह सबकुछ छोड़कर चली गई।
तरुण के साथ काम करते हुए अंजन समझ गया था कि उसमें इतनी हिम्मत नहीं है कि उसके राज़ का फायदा उठाने की कोशिश करे। उसने अपने तरीके से कई बार तरुण को एहसास दिला दिया था कि उसने अगर कभी भी कोई हिमाकत की तो अंजाम ठीक नहीं होगा।
लेकिन पंकज और तरुण के एकसाथ आने की खबर ने उसे परेशान कर दिया था।तरुण काला को अब पूरा यकीन हो गया था कि पंकज उसके साथ होने की बात तो कर रहा है, लेकिन वह अपनी एक अलग खिचड़ी पका रहा है। उस दिन बीच हाउस में जो घटा उसके बारे में वह उसे पूरी बात नहीं बता रहा है।
अंजन के खिलाफ साजिश रचने के लिए पंकज‌ खुद तरूण के पास आया था। उसका कहना था कि अंजन ‌ने उसका इस्तेमाल किया है। अब काम निकल जाने पर उसे पीछे ढकेल दिया है। वह इस ज्यादिती का बदला लेना चाहता है।
पंकज यह भी जानता था कि तरुण भी अंजन से नाखुश है। अंजन उसके ज़रिए कबूतरबाज़ी करवा रहा था। सारा खतरा केवल तरुण का था क्योंकी कागज़ों पर कहीं भी अंजन का नाम नहीं था। लेकिन जो भी आमदनी होती थी उसका बहुत छोटा सा हिस्सा ही तरुण को मिल पाता था।
तरुण नाखुश तो था पर अंजन से सीधे टकराने की हिम्मत उसके भीतर नहीं थी। वह अंजन की ताकतको जानता था। इसलिए जब पंकज आकर उससे मिला तो उसे इस बात का हौसला मिला कि दोनों मिलकर अंजन से बदला ले सकते हैं।
पंकज और तरुण आपस में मिल गए। दोनों अभी इस बात पर विचार कर रहे थे कि क्या करें तभी अंजन के बीच हाउस शिमरिंग स्टार्स में किसी ने उस पर हमला कर दिया।
हमले के बाद पंकज और तरुण उस टूटे से मकान में मिले। दोनों को ही आश्चर्य हो रहा था कि उन दोनों के अलावा अंजन का तीसरा दुश्मन कौन हो सकता है।
तरुण को पंकज की उस बात पर यकीन नहीं हुआ था कि जब वह मीरा को लेकर जा रहा था तो किसी ने उस पर हमला कर उसे बेहोश कर दिया। वह मीरा को लेकर कहीं चला गया।
आज पंकज के चेहरे के भाव देखकर उसे पूरा यकीन हो गया था कि कुछ ऐसा है जो पंकज उससे छुपाकर कर रहा है।
तरुण ने शुरू से ही पंकज पर पूरा भरोसा नहीं किया था। इसलिए अंजन के जो राज़ उसके पास थे उसे नहीं बताए थे। वह देखना चाहता था कि पंकज अंजन को रास्ते से हटाने की क्या योजना बनाता है। उसका प्लान था कि पहले पंकज के साथ मिलकर अंजन को कमज़ोर करे। उसके बाद उसके राज़ के ज़रिए ब्लैकमेल करे।
तरुण सोच रहा था कि जिसने भी अंजन पर हमला किया है उसने उसका काम आसान कर दिया है। अंजन हमले में बच तो गया है लेकिन कमज़ोर हो गया है। तरुण अब अपना खेल शुरू कर सकता है।
तरुण के पास अंजन के दो महत्वपूर्ण राज़ थे। उसकी इस कमज़ोर हालत का फायदा उठाकर वह अपने सारे नुकसान को पूरा कर सकता है।
वह योजना बनाने लगा कि किस तरह से अंजन को ब्लैकमेल किया जाए।
 

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