Fantasy रहस्यमयी टापू MAGIC Adventure (Completed)

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भाग(१)

काला घना अंधेरा, समुद्र का किनारा, लहरों का शोर रात के सन्नाटे में कलेजा चीर कर रख देता है, तभी एक छोटी कस्ती किनारे पर आकर रूकती है, उसमें से एक सख्स फटेहाल, बदहवास सा नीचे उतरता है, समुद्र गीली रेत में उसके पैर धसे जा रहे हैं,उसके पैरों में जूते भी नहीं है, लड़खड़ाते से कदम,उसकी हालत देखकर लगता है कि शायद कई दिनों से उसने कुछ भी नहीं खाया है, उसके कपड़े भी कई जगह से बहुत ही जर्जर हालत में हैं।।
उसे दूर से ही एक रोशनी दिखाई देती है और आशा भी बंध जाती है कि यहां कोई ना कोई तो मिलेगा ही।।
वो धीरे धीरे उस रोशनी वाली दिशा की ओर बढ़ने लगता है,आकाश में तारे भी इक्का-दुक्का ही नजर आ रहे हैं और चांद भी बादलों में कभी छुपता है तो कभी निकलता है,वो सख्स बस उस रोशनी की ओर बढ़ा चला जा रहा है।।
कुछ टीलों को पार करके वो आगे बढ़ा,बस अपनी धुन में बेखबर उसे तो बस उस रोशनी तक पहुंचना है,इधर जंगल की ओर झींगुरों की झाय-झाय और उधर समुद्र में उठ रही लहरों का शोर, बहुत ही भयावह दृश्य हैं, तभी उसने देखा उस रोशनी की ओर अंदर जंगल की तरफ एक पतली सी पगडंडी जा रही है जो अगल-बगल घनी झाड़ियों से ढकी हुई है,उस सख्स का ध्यान सिर्फ उस रोशनी की ओर है तभी उसे महसूस हुआ कि उसके पैर ने शायद किसी को कुचल दिया, उसने नीचे की ओर देखा तो एक कीड़े को उसने कुचल दिया था, जिसमें से कुछ सफ़ेद, गाढ़ा और लिबलिबा सा पदार्थ निकल रहा था, उसने अपने पैर को देखा तो उसके पैर में वो लिबलिबा पदार्थ लग गया था जिससे उसका मन घिना गया, उसने अपने पैर को सूखी रेत में रगड़ा जिससे वो पदार्थ पैर से छूट गया,अब उसका ध्यान फिर रोशनी की ओर गया और वो फिर से उस ओर बढ़ने लगा।।
वो उस रोशनी तक बस पहुंचने ही वाला था,वो चलता ही चला जा रहा था,बस रोशनी अब उससे ज्यादा दूर नहीं थी,उसे अब एक घर दिखाई दे रहा था और वो रोशनी,उस घर के आगे लगे लैंपपोस्ट में जल रही मोटी सी मोमबत्ती की थी,अब उसके दिल को कुछ राहत थी कि चलो ठहरने के लिए एक छत तो मिली, इतना सोचते सोचते वो घर तक जा पहुंचा।।
इसने डरते डरते दरवाजे को खटखटाया,साथ में पूछा भी कि कोई हैं?
तभी किसी ने दरवाज़ा खोला__
वह देखते ही चौंक पड़ा,एक बूढ़ी, बदसूरत सी बुढ़िया दरवाजे पर खड़ी थीं___घबराओ नहीं,कौन हो तुम? बुढ़िया ने पूछा।।
मैं एक व्यापारी हूं, मेरा नाम मानिक चंद है ,जहाज से सफर कर रहा था,कम से कम एक साल से बाहर हूं, व्यापार के सिलसिले में, पन्द्रह सालों से मेरा जीवन जहाज पर ही व्यतीत हो रहा है,एक दिन समुद्र में बहुत बड़ा तूफ़ान आया,पूरा जहाज डूब गया लेकिन पता नहीं मुझे कहां से एक छोटी कस्ती मिल गई और मैं उस पर सवार हो गया,दो तीन से ऐसे ही समुद्र की लहरों के साथ थपेड़े खा रहा हूं,दो तीन दिन का भूखा प्यासा हूं,आज इस किनारे पर कस्ती खुद-ब-खुद रूक गई,तब आपके घर के सामने लगे लैंप पोस्ट की रोशनी दिखाई दी और मैं उसी के सहारे यहां तक चला आया,मानिक चंद बोला।।
मैं चित्रलेखा इस घर की मालकिन, वर्षों से यहां अकेले रह रही हूं,हर रोज किसी का इंतज़ार करती हूं लेकिन वो आता ही नहीं,आज तुमने दरवाजे पर दस्तक दी तो लगा वो आया है,चलो अंदर आओ मैं तुम्हें कुछ खाने को देती हूं।।
चित्रलेखा ने कुछ भुना मांस और पीने का पानी मानिक चंद को दिया।‌
मानिक बोला, लेकिन मैं मांसाहारी नहीं हूं!!
लेकिन यहां तो यही मिल सकता,जंगल में जो मिलता है, खाना पड़ता है,घर के पीछे एक कुआं है लेकिन उसका पानी पीने लायक नहीं है, पीने का पानी भी मैं एक झरने से लाती हूं।।
मानिक बोला, कोई बात नहीं!!
और दो तीन से भूखा रहने के कारण उसने वो भुना हुआ मांस खा लिया और पानी पीकर चित्रलेखा का धन्यवाद किया।।
चित्रलेखा ने मानिक को एक बिस्तर दिया और बोली__
तुम यहीं सो जाओ और कोई भी आवाज हो,ध्यान मत देना, मैं तुम्हें विस्तार से तो नहीं बता सकतीं लेकिन कुछ भी हो खिड़की से मत झांकना, फिर मत कहना कि मैं ने आगाह नहीं किया।‌
मानिक बोला, ऐसा भी क्या होता है रात को यहां?
चित्रलेखा बोली, मैंने जो कहा,उस पर ध्यान दो ज्यादा बहस मत करो।।
मानिक बोला,ठीक है जो आप कहें।।
और मानिक बिस्तर बिछाकर आराम से हो गया।।
करीब आधी रात को कुछ आवाजें सुनकर उसकी नींद खुली, कोई मीठी धुन में मस्त होकर गाना गा रहा था फिर उसे चित्रलेखा की बात याद आई लेकिन अब उससे रहा नहीं गया और उसने पीछे वाली खिड़की खोलकर देखने की कोशिश की।।
क्या देखता हैं कि एक खूबसूरत सा लड़का,चार सफेद घोड़ों के रथ पर सवार हवा में आसमान से उतर कर गाना गाते हुए चला आ रहा,नीला आसमान तारों से जगमगा रहा और चांद की खूबसूरती भी देखने लायक है।
लड़के की पोशाक देखकर लग रहा है कि जेसे वो कोई राजकुमार हो और घर के पीछे के कुएं से एक खूबसूरत सी लड़की गाना गाते हुए निकली, देखकर ये लग रहा था कि दोनों प्रेमी और प्रेमिका हैं लेकिन जैसे ही उनलोगों ने मानिक को देखा तो देखते ही देखते राख में परिवर्तित होकर उड़ गए और उसी राख का एक झोंका जोर से मानिक के चेहरे पर लगा जिससे मानिक दर्द से चींख उठा।
मानिक की आवाज सुनकर चित्रलेखा भागकर हाथों में लैंप लेकर आई और पूछा___
कि क्या हुआ?
मानिक फर्श पर मुंह के बल पड़ा था, चित्रलेखा ने मानिक को सीधा किया और बोली।।
मना किया था ना कि किसी भी आवाज पर ध्यान मत देना,अब भुगतो,उस राख ने तुम्हारा सारा चेहरा झुलसा दिया,मना करने के बाद भी तुम नहीं माने।
अब चलो मेरे साथ,तुम्हारा इलाज करती हूं___
और चित्रलेखा ने रसोईघर से कुछ लेप लाकर मानिक के चेहरे पर लगा दिया जिससे मानिक को कुछ राहत हुई__
 
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भाग(२)

मानिक ने चित्रलेखा से पूछा,
आखिर ऐसा क्या राज है ?और वो लोग कौन थे,?कोई भटकती रूहें या कोई अंजानी ताकतें,जो इंसानों को देखकर इस क़दर वार करती है,कौन सी सच्चाई छुपी है इस जगह में जो आप मुझसे छुपाने की कोशिश कर रही हैं।।
चित्रलेखा बोली, रहने दो, बहुत लम्बी कहानी है,सुनोगे तो तुम्हारा दिल दहल जाएगा,राज जब तक राज रहे तो अच्छा है।।
अभी तुम सो जाओ,रात का तीसरा पहर खत्म होने वाला है और सुबह होते ही तुम अपनी कस्ती को देखो, अपनी जगह हैं कि नहीं और वापस लौट जाओ, बाक़ी बातें सुबह करेंगे।।
सुबह सुबह नाश्ते में चित्रलेखा ने किसी पौधे की कुछ भुनी हूं जड़ें,मानिक के सामने खाने को रख दी।।
मानिक ने वो जड़ें खा लीं और चला समुद्र के किनारे जहां उसकी कस्ती थी,वो धीरे धीरे बढ़ता चला जा रहा था, रास्ते में उसे नारियल के ऊंचे ऊंचे पेड़ दिख रहे थे, उसने जमीन पर से एक कच्चा नारियल उठाया और अपने पास मौजूद चाकू की मदद से उसमे सुराख करके पानी पी लिया।
मौसम बहुत ही खूबसूरत लग रहा था,रात को जो रास्ता भयानक और डरावना लग रहा था,दिन के उजाले में वही रास्ता शांतप्रिय लग रहा था____
वो अब जंगल पार करके समुद्र किनारे की रेत पर आ पहुंचा था, नीचे कुनकनी रेत,आसमान से आ रही सूरज की सुनहरी धूप, आसमान में घूम रहे परिंदे और दूर दूर तक फैला नीले समुद्र का खारा पानी, समुद्र में उठती हुई लहरें मन को एक अजीब सी तसल्ली दे रही थी।।
मानिक समुद्र तट पर नज़ारों का आनन्द उठा रहा था तभी उसकी नज़र बहुत दूर एक टीले पर पड़ी___
मानिक वो नज़ारा देखकर हैरान रह गया, उसे दूर से बस यही दिख रहा था कि कोई लड़की अपने घने भूरे बालों को अपनी पीठ की तरफ करके टीले पर बैठी है।।
अब मानिक ने सोचा,इस सुनसान टापू पर भला कौन हो सकता है? फिर उसने सोचा क्यो नही हो सकता,जब उस सुनसान जंगल में बिना किसी सुविधा के चित्रलेखा रह सकती है तो यहां इस सुनसान टापू पर इस लड़की का होना कौन सी बड़ी बात है?
मानिक ने सोचा जरा पास जाकर देखूं तो आखिर वो लड़की कौन है भला!!
अब मानिक उस दिशा में चल पड़ा जहां उसे वो सुनहरे बालों वाली लड़की चट्टान पर बैठी दिखाई दे रही थीं,वो धीरे धीरे चट्टानों पर चढ़ता हुआ चलता चला जा रहा था।
वो उस लड़की तक बस पहुंचने ही वाला था कि वो लड़की पीछे की ओर मुड़ी और उसने जैसे ही मानिक को देखा तो समुद्र के पानी में उतर गई।।
अब मानिक भागकर गया कि शायद उसे रोक पाएं, उससे मिल पाएं, उससे पूछ पाएं कि आखिर वो कौन है? अब मानिक उस दिशा में चल पड़ा जहां उसे वो सुनहरे बालों वाली लड़की चट्टान पर बैठी दिखाई दे रही थीं,वो धीरे धीरे चट्टानों पर चढ़ता हुआ चलता चला जा रहा था।
वो उस लड़की तक बस पहुंचने ही वाला था कि वो लड़की पीछे की ओर मुड़ी और उसने जैसे ही मानिक को देखा तो समुद्र के पानी में उतर गई।।
अब मानिक भागकर गया कि शायद उसे रोक पाएं, उससे मिल पाएं, उससे पूछ पाएं कि आखिर वो कौन है?
मानिक जब तक उस ओर पहुंचा,वो बस उसकी एक झलक ही देख पाया, समुद का पानी बहुत ही साफ और पारदर्शी था उसने जो देखा,वो देखकर मानिक आश्चर्य में पड़ गया,उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था कि जो उसने देखा वो सच था या सपना, मतलब उसे समझ नहीं आ रहा था कि जो उसने अभी देखा वो सच में एक जलपरी थी वो भी असली की,जो कि अब तक उसने सिर्फ किस्से और कहानियों में ही सुनी थी।।
उसने उसे आस पास के और भी चट्टानों पर जाकर ढूंढा लेकिन वो कहीं नहीं मिली।मानिक दिनभर बदहवास सा समुद्र के किनारे टहलता रहा फिर उसे भूख लगी उसने कुछ मछलियां पकड़ी और कुछ लकड़ियां इकट्ठी करके पत्थरों की मदद से आग जलाई फिर मछलियां भूनी और पत्तो पर रख कर खा लीं, नारियल में चाकू की मदद से सुराख करके पानी पिया।।
उसने सोचा,क्या करूं, कहां जाऊं, मेरे पास तो छोटी सी कस्ती है,इस पर लम्बी यात्रा नहीं हो सकती,शाम को फिर से चित्रलेखा के घर पर ही रूकना पड़ेगा।।
शाम होते ही मानिक उदास मन से फिर से चित्रलेखा के घर लौट चला,वो सोच रहा था,क्या कहेगा चित्रलेखा से कि अभी कुछ दिन यहां रहने दो,अगर किसी दिन कोई जहाज समुद्र किनारे दिखाई दिया तो उसी जहाज से चला जाएगा।।
पगडंडी वाले रास्ते से मानिक फिर से चित्रलेखा के घर चला, सामने देखा तो चित्रलेखा ऊपर के माले की बालकनी पर खड़ी होकर लैंपपोस्ट की मोटी मोमबत्ती को जलाकर उसे शीशे से ढ़क रही थी,मानिक को देखकर बोली__
ठहरो, नीचे आती हूं!!
और नीचे आकर उसने दरवाज़ा खोला।।
मानिक बोला,माफ कीजिए, मुझे आज रात फिर से आपके यहां रूकना होगा लेकिन आप मेरे खाने की चिंता ना करें, मैं अपने साथ कुछ भुनी हुई मछलियां लाया हूं अगर आपको जरूरत है तो आप भी ले सकतीं हैं।।
चित्रलेखा बोली, कोई बात नहीं,ये जगह ही ऐसी है जो एक बार यहां आ जाता है वो आसानी से फिर यहां से जा नहीं पाता, कोई भी साधन नहीं है ना! यहां से वापस जाने का।।
मानिक अंदर पहुंचकर चित्रलेखा से बोला,क्या हर रात वो दोनों यहां आकर गाना गाते हैं?क्या आज रात भी आएंगे?
चित्रलेखा बोली, हां !! सालों से हर रात यहीं होता आया है,इसके पीछे एक कहानी है ‌‌।।
मानिक बोला तो आप सुनाइए वो कहानी मुझे भी सुननी है।।
सुनना चाहते हैं तो सुनो, चित्रलेखा ने कहा ,और चित्रलेखा ने कहानी सुनाना शुरू किया।।
तभी जोर की बिजली कड़की और बारिश शुरू हुआ गई।।
चित्रलेखा बोली,वो लोग आज रात नहीं आएंगे क्योंकि बारिश हो रही है,ऐसी ही तूफ़ानी रात थीं जब उस रात राजकुमार शुद्धोधन यहां नीलाम्बरा से मिलने आया तो था लेकिन मृत अवस्था में ,नीलाम्बरा उस रात बहुत दुखी हुई।।
राजकुमार शुद्धोधन, नीलगिरी राज्य का राजकुमार था,एक दिन घोड़े पर सवार वो अपने राज्य का मुआयना करने निकला,तभी उसे अपने राज्य में जाकर पता चला कि उसके राज्य के लोग बहुत बड़े संकट से जूझ रहे हैं और उस संकट का कारण था एक जादूगरनी,जो वहां के पुरूषों को अपने जादू के दम पर अपने झूठे प्यार में फंसा लेती थीं फिर उस जगह ले जाती थीं जहां वो जादू सीखा करतीं थीं, वहां उन पुरुषों को ले जाकर उनके हृदय निकाल लेती थी फिर कुछ जादू करके उन सबके हृदयों को अपनी उम्र बढ़ाने में इस्तेमाल करतीं थीं।।
अब राजकुमार शुद्धोधन ने अपने राज्य को उस जादूगरनी से मुक्त कराने की सोची और वो जादूगरनी को ढूंढने निकल पड़ा,जंगल में जादूगरनी को खोजते हुए उसकी मुलाकात नीलाम्बरा से हुई और वो उसे प्यार करने लगा,नीलाम्बरा भी शुद्धोधन को पसंद करने लगी थी फिर एक दिन शुद्धोधन को पता चला कि नीलाम्बरा ही उस जादूगरनी की बेटी है।।
रोज रात को शुद्धोधन,नीलाम्बरा से मिलने आने लगा,नीलाम्बरा भी हर रात शुद्धोधन का बेसब्री से इंतज़ार करती लेकिन एक ऐसी ही तूफ़ानी बारिश की रात थीं,उस दिन भी नीलाम्बरा , शुद्धोधन का इंतज़ार कर रही थी,उस दिन शुद्धोधन घोड़े पर सवार आया तो लेकिन मृत अवस्था में,नीलाम्बरा ने इस बात से दुखी होकर कुएं में कूदकर जान दे दी।।
तब उन दोनों की आत्माएं ऐसे ही भटक रहीं हैं।।
कहानी सुनकर मानिक को बहुत डर लगा और उसने चित्रलेखा से पूछा कि उस जादूगरनी का क्या हुआ?
चित्रलेखा बोली, फिर एक रोज राजकुमार शुद्धोधन का छोटा भाई सुवर्ण अपने भाई को खोजते हुए उस जादूगरनी तक पहुंच गया और उसने जादूगरनी को मार दिया।।
फिर मानिक ने चित्रलेखा से कहा कि आज मुझे चट्टान पर एक जलपरी बैठी हुई दिखी लेकिन जब तक मैंने उससे बात करनी चाही उसने तब तक पानी में छलांग लगा दी।।
ये बात सुनकर चित्रलेखा थोड़ी डर सी गई और मानिक से बोली,कभी भूलकर भी उससे बात मत करना,हो सकता है वो कोई छलावा हो।।
चित्रलेखा की बात सुनकर मानिक ने सोचा,वो कहां आकर फंस गया है, यहां से जाने का कोई रास्ता भी नहीं दिख रहा, जहां देखो वहीं छलावा दिख रहा है।।
 
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भाग(३)

मानिक चंद को लग रहा था कि वो कौन सी अजीब जगह आकर फंस गया,जो है नहीं वो दिखता है और जो दिखता है वो है नहीं, समुद्र के किनारे वो यहीं बैठा सोच रहा था।।
फिर उसने सोचा ऐसे बैठने से काम चलने वाला नहीं है चलो कुछ करता हूं,तभी यहां से निकल पाऊंगा, तभी उसे दूर पत्थरों के पीछे एक बड़ी सी नाव दिखी, उसने पास जाकर देखा तो अभी नाव की हालत इतनी खराब नहीं थी कुछ ना कुछ मरम्मत करके उसे ठीक किया जा सकता था।।
तभी उसे लगा कि दूर चट्टान पर कल की तरह आज भी कोई बैठा है उसने सोचा अगर ये वहीं कल वाली जलपरी है तो आज तो मैं इसे पकड़ कर ही रहूंगा,हो सकता है इससे मुझे कुछ सवालों के जवाब भी मिल जाएं।।
और मानिक आज फिर उस चट्टान की ओर बढ़ चला,आज मन में ठान कर बैठा था कि चाहे जो भी हो आज तो वो पता लगाकर रहेगा कि आखिर वो जलपरी ही है या के छलावा,मानिक के कदमों की रफ़्तार तेज थी और वो जल्द से जल्द उस जगह पहुंचना चाहता था।।
वो जल्द ही उस जगह पहुंच गया और कल की तरह उस जलपरी ने उसे देखते ही पानी में फिर छलांग लगा दी लेकिन मानिक ने तो जैसे आज ठान ही ली थी उसे पकड़ने की और उसने भी पानी में छलांग लगाकर उस जलपरी को पकड़ लिया और चट्टानों पर ले आया।।
चट्टान पर पहुंच कर मानिक ने सवालों की झड़ी सी लगा दी, उसने पूछा__
तुम कौन हो?
तुम चित्रलेखा को जानती हो?
ये कैसी जगह?
वो जादूगरनी कौन थीं?
शुद्धोधन और नीलाम्बरा को जानती हो?
वो जलपरी हैरान होकर मानिक को देखते रह गई लेकिन किसी भी सवाल के जवाब ना दे सकीं।।
तभी पता नहीं एक बहुत बड़ा सा पंक्षी वहां आ पहुंचा और जलपरी को दबोचकर पानी में छोड़कर ना जाने कहां उड़ गया।।
ये सब देखकर मानिक चंद के तो जैसे होश ही उड़ गए, एकाएक उसके दिमाग ने तो जैसे काम करना ही बंद कर दिया था,उसकी समझ से सबकुछ परे था।।
लेकिन मानिक ने अपने होश खोए बिना ही एकाएक फिर से पानी में छलांग लगा कर उस जलपरी को दोबारा पकड़ लिया और इस बार, समुद्र के पानी से बहुत दूर ले आया ताकि ये दोबारा वापस पानी में ना जा सकें।।अब तक मानिक का दिमाग बिल्कुल चकराया हुआ था, उसने फिर से सवालों की झडियां लगा दी।।
जलपरी फिर से परेशान अब तो उसके भागने के लिए कोई रास्ता भी नहीं बचा था,वो हैरान-परेशान सी चट्टान पर बैठी थी और सोच विचार में थी क्या उत्तर दे।।
मानिक ने फिर पूछा___
बताओ! कौन हो तुम? कुछ बोलोगी! कोई जवाब दोगी?
मेरा नाम नीलकमल हैं और ये जो मेरा हाल है किसी ने जादू से किया हैं, जलपरी बोली।।
वहीं तो मैं जानना चाहता हूं कि ये सब क्या हो रहा है और यहां सब इतना अजीब क्यो है? मानिक चंद की बातों में एक अजीब सी खिझाहट थीं।।
कृपया मुझे मेरे सवालों के जवाब दो, उलझकर रह गया हूं, मैं यहां, निकलना चाहता हूं इस जंजाल से और तुम ही कोई रास्ता सुझा सकती हो,मानिक चंद ने परेशान होकर नीलकमल से कहा।।
तुम्हारी तरह मैं भी यहां बस उलझी हुई हूं और ना जाने कब से इस क़ैद से आजाद होना चाहती हूं लेकिन तुम्हारे बिना मेरा आजाद होना सम्भव नहीं है,तुम ही कुछ मदद कर सकते हो, नीलकमल बोली।।
ये तो तभी सम्भव होगा ना,जब तुम मेरे सवालों के सही सही जवाब दोगी,मानिक ने नीलकमल से कहा।।
हां,पूछो,सब बताती हूं, नीलकमल बोली।।
क्या तुम सच में जलपरी हो,या कोई छलावा,मानिक चंद बोला।।
बहुत लम्बी कहानी है, शुरू से सुनाती हूं, नीलकमल बोली।।
तो सुनाओ,मानिक चंद बोला।।
नीलकमल ने कहानी कहना शुरू किया____
बहुत समय पहले की बात है, पहले इस जगह बहुत ही रौनक हुआ करती थी, यहां एक मछुआरा रहता था उसकी बहुत खूबसूरत सी दो बेटियां थीं।।
वो साल के छ: महीने इस जगह रहता था बाकी छ: महीने वो अपने गांव में रहा करता था,उसकी पत्नी नहीं थी, किसी बीमारी से चल बसी थीं,मछवारा बहुत ही अच्छे दिल और अच्छे स्वभाव का था,हर किसी पर आसानी से भरोसा कर लेता था।।
तभी एक दिन उसे इसी जगह एक सुंदर लड़की दिखी,जिसे वो प्रेम करने लगा और बाद में उससे विवाह भी कर लिया लेकिन बाद में पता चला कि वो औरत अच्छी नहीं थी, पता नहीं आधी रात को उठकर कौन कौन से टोने-टोटके करती थीं,एक रोज मछुआरे ये पता चल गया कि वो कोई साधारण औरत नहीं कोई जादूगरनी थीं।।
अब मछुआरे ने उसकी जासूसी शुरू कर दी, मछुआरे को पता चला कि वो तो कोई जादूगरनी हैं,अब मछुआरा उससे जल्द से जल्द छुटकारा पाना चाहता था लेकिन एक दिन मछुआरे की लाश यहीं समुद्र किनारे मिली।।
और मछुआरे की दोनों बेटियों का क्या हुआ,मानिक ने पूछा।
मछुआरे की दोनों लड़कियों को उस जादूगरनी ने घर में गुलाम बना कर कैद कर लिया,वो उन्हें कहीं भी नहीं जाने देती किसी से भी नहीं मिलने देती।।
अब लड़कियां जवान हो चुकी थीं लेकिन जादूगरनी को तो और ही कुछ मंशा थीं,वो तो बस उन्हें क़ैद करके खुद के काम निकलवाना चाहती थीं।।
वो चाहती थी कि वो हमेशा जवान और खूबसूरत रहें, इसके लिए उसे जवान पुरुषों के दिलों की आवश्यकता होती थीं, जिससे वो एक तरह का तरल तैयार करती थी और पीकर हमेशा जवान बनी रहना चाहती थीं।।
 
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भाग(४)

उस जादूगरनी ने बहुत से पुरुषों के साथ ऐसा किया था,सब कहते थे कि उसने अपनी आत्मा को कहीं और कैद कर रखा था,शायद किसी गिरगिट में,उसे ऐसे तहखाने में कैद कर रखा था जहां के दरवाज़े पर कई बड़े सांप उसकी रक्षा करते थे ।।
इस तरह से पुरूषों के गायब होने की ख़बर से लोग परेशान होने लगे थे लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि बात क्या है?
नीलगिरी राज्य के लोगों का इस क़दर गायब होना, वहां के राजा को कुछ अजीब लग रहा था, उन्होंने इस विषय में अपने बड़े बेटे राजकुमार शुद्धोधन से चर्चा की, राजकुमार ने कहा पिताश्री आप चिंता ना करें मैं जल्द ही उस कारण का पता लगाकर रहूंगा और एक रोज राजकुमार शुद्धोधन उस कारण का पता लगाने अपने राज्य से निकल पड़ा।।
शुद्धोधन उस जगह एक लकड़हारे का वेष बनाकर पहुंचा, उसने उस जगह का मुआयना किया और जादूगरनी के विषय में कुछ जानकारी हासिल कर ली,अब उसने सोचा कुछ ना कुछ करके जादूगरनी के रहने वाली जगह का पता लगाना होगा।।
शुद्धोधन को ये तो पता चल गया था कि उस जादूगरनी की दो जवान और खूबसूरत बेटियां हैं लेकिन वो उसकी खुद की नहीं है उसके स्वर्गवासी पति की पहली पत्नी से हैं, शुद्धोधन ने सोचा,अगर मैं उनमें से किसी एक से प्रेम का अभिनय करूं तो उनसे कुछ जानकारी हासिल हो सकती है।।
और शुद्धोधन चल पड़ा अपने मक़सद को पूरा करने के लिए, उसने दूर झाड़ियों से छुपकर देखा था एक खूबसूरत सी लड़की हाथों में मटका लेकर चली आ रही थी,शायद वो पास के झरने से पीने का पानी भरने आ रही थी।
शुद्धोधन ने कभी इतनी खूबसूरत लड़की नहीं देखी थी,नीली बड़ी बड़ी आंखें,कमर से नीचे घने बाल,पतली कमर और उजला रंग, शुद्धोधन उसे देखते ही उसकी खूबसूरती का कायल हो गया।।।
और उसे दिखाने के लिए कुल्हाड़ी लेकर लकड़ी काटने का अभिनय करने लगा,वो लड़की आई उसने भी शुद्धोधन को अनदेखा कर झरने से जल भरा और सामने से एक नज़र शुद्धोधन को देखा और निकल गई।।।
शुद्धोधन को लगा कि लगता है ये तो बात करने वाली नहीं है, मुझे ही इसे टोकना पड़ेगा और उसने उस लड़की को टोकते हुए कहा___
जरा सुनो, शुद्धोधन बोला।।
क्या है? उस लड़की ने शुद्धोधन से पूछा।।
मुझे जरा प्यास लगी है, पानी पिला दोगी, शुद्धोधन बोला।।।
झरना बह रहा है, वहां जाकर पानी क्यों नहीं पी लेते, मुझे क्यो परेशान कर रहे हो,उस लड़की ने उत्तर दिया।।।
पानी तो मैं पी लूंगा झरने से लेकिन तुम्हें देख कर तुमसे बात करने का मन हुआ इसलिए दिमाग में ये बहाना आ गया, शुद्धोधन ने अपने सर पर हाथ फेरते हुए कहा।।।
वो तो मैं जानती थी और ये सुनो...सुनो....क्या लगा रखा है,मेरा नाम नीलाम्बरा है और मुझे मेरा नाम लेकर ही पुकारो,नीलाम्बरा बोली।।
‌ ठीक है,जैसा तुम कहो! शुद्धोधन बोला।।
तुम भी क्या इस जंगल में रहते हो?क्या नाम है तुम्हारा? नीलाम्बरा ने पूछा!!
हां, मैं यही जंगल में रहता हूं, शुद्धोधन नाम है मेरा, लकड़ियां काटकर पास वाले गांव में बेचता हूं, शुद्धोधन बोला।।
अरे,नाम तो ऐसा है तुम्हारा, जैसे कि तुम कोई राजकुमार हो,नीलाम्बरा बोली।।
बस, ऐसा ही कुछ समझ लो, शुद्धोधन बोला।।
अच्छा, तो तुम खुद को किसी राजकुमार से कम नहीं समझते, है ना!नीलाम्बरा बोली।।
और क्या?इस जंगल में मैं अकेला लकड़हारा,तो हुआ मैं यहां का राजकुमार, शुद्धोधन बोला।।
हां.. हां.. बड़े आए राजकुमार,कभी शकल देखी है,नीलाम्बरा बोली।।
हां,देखी है ना !!शकल, मुझे पता है मैं सुंदर हूं, शुद्धोधन बोला।।वाह!!अपने मुंह से खुद की तारीफ,बड़े ही घमंडी लगते हो और इतना कहकर नीलाम्बरा जाने लगी।।
अरे,प्यासे को पानी तो पिलाती जाओ,भला होगा तुम्हारा, शुद्धोधन बोला।।
झरने से पी लो,नीलाम्बरा बोली।।
तुम पिला देती तो बात ही कुछ और होती, शुद्धोधन बोला।।
इतना कहने पर नीलाम्बरा बोली__
अच्छा!!लो पिओ पानी और बेमतलब की बातें मत करो।।
नीलाम्बरा ने अपने मटके से शुद्धोधन की अंजलि में पानी डाला, शुद्धोधन ने पानी पीकर कहा___
धन्यवाद!!प्यासे को तृप्ति मिल गई।।
नीलाम्बरा मुस्कराई, फिर से मटका भरा और जाने लगी।।
शुद्धोधन बोला___
कल फिर मिलोगी।।
नीलाम्बरा मुस्कराते हुए बोली__
कह नहीं सकती!!
और नीलाम्बरा चली गई।।
शुद्धोधन के गुप्तचर भी उस जंगल में थे जो समय समय पर शुद्धोधन को सभी आने जाने वालों की सूचना देते रहते थे, शुद्धोधन ने अपने रहने के लिए एक गुप्त गुफा भी ढूंढ ली थी जहां जीवन यापन के साधन भी थे,उसके सैनिक भी समय समय पर उसके राज्य में सूचनाएं पहुंचाते रहते थे।।
उस रात शुद्धोधन आराम करने अपनी गुफा में पहुंचा लेकिन उसकी आंखों से तो जैसे नींद ही गायब थीं,बस एक ही चेहरा उसकी आंखों में घूम रहा था,वो नीलाम्बरा को पसंद करने लगा था और यही हाल नीलाम्बरा का भी था, सालों बाद उसके चेहरे पर आज मुस्कुराहट आई थी, शुद्धोधन को देखकर।।
नीलाम्बरा को देखकर उसकी छोटी बहन ने पूछा भी__
कि दीदी बड़ी खुश नजर आ रही हो ।।क्या बात है?
लेकिन नीलाम्बरा हंसते हुए टाल गईं।।
रात भर नीलाम्बरा और शुद्धोधन सुबह होने का इंतज़ार कर रहे थे, दोनों की ही आंखों से नींद गायब थीं।।
अगले दिन दोनों ही उस जगह पहुंचे, शुद्धोधन तो पहले से ही नीलाम्बरा का इंतज़ार कर रहा था,नीलाम्बरा को दूर से देखते ही पेड़ को काटने का बहाना करने।।
नीलाम्बरा भी शुद्धोधन को अनदेखा कर झरने की ओर बढ़ गई, मटके में पानी भरकर जाने लगी।।
शुद्धोधन ने सोचा नीलाम्बरा तो कुछ बोली ही नहीं, मैं ही कुछ बात करूंगा तभी बोलेगी, शायद।।
शुद्धोधन ने नीलाम्बरा को टोकते हुए कहा___
ऐसे ही निकल जाओगी,इस प्यासे को पानी नहीं पिलाओगी।।
नीलाम्बरा ने भी अभिनय करते हुए कहा___
अरे, तुम!!माफ करना मैंने देखा ही नहीं।।
अच्छा!!सच बोल रही हो या ना देखने का अभिनय कर रही हो,
शुद्धोधन ने नीलाम्बरा से कहा।।
लेकिन तुम अभी तक प्यासे क्यो बैठे हो, झरने से पानी पी सकते थे ना,नीलाम्बरा बोली।।
लेकिन तुम्हारे हाथों से ही पानी पीने से ही मेरी प्यास बुझेगी, शुद्धोधन बोला।।
ऐसा भी क्या है,नीलाम्बरा बोली।।
पता नहीं,कौन सा जादू है तुम में और तुम्हारे मटके के पानी में कि देखकर ही प्यास बुझ जाती है, शुद्धोधन बोला।।
चलो हटो!! ज्यादा बातें मत बनाओ, मुझे जाना है देर हो रही है और इतना कहकर नीलाम्बरा चल दी।।
शुद्धोधन ने नीलाम्बरा को जाते हुए देखा तो बोला__
कल फिर से आओगी..!!
नीलाम्बरा ने भी जाते हुए बिना मुड़े जवाब दिया__
पक्का नहीं कह सकती__
और नीलाम्बरा चली गई__
नीलाम्बरा को जाते हुए शुद्धोधन देखता रहा,जब तक वो बिल्कुल ओझल ना हो गई।।
 
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(५)

नीलाम्बरा, शुद्धोधन से बिना बात किए आ तो गई लेकिन अब उसे अफ़सोस हो रहा था कि अगर थोड़ी देर ठहर कर शुद्धोधन से बात कर भी लेती तो क्या बिगड़ जाता,बेचारा कितनी आश लिए बैठा था।।
सारे काम धाम निपटा कर बिस्तर पर गई लेकिन आंखों में नींद कहां थी, आंखें तो बस शुद्धोधन को ही देखना चाहती थी फिर वो चाहे खुली हो या बंद,शायद शुद्धोधन के प्रेम जाल में क़ैद हो चुकी थी नीलाम्बरा।।
उधर शुद्धोधन का भी वही हाल था,हर घड़ी आंखें बस नीलाम्बरा को ही देखना चाहतीं थीं,दिल में बस एक ही नाम बस चुका था और वो था नीलाम्बरा।।
अब धीरे-धीरे नीलाम्बरा और शुद्धोधन के प्रेम ने गहराई का रूप ले लिया था, दोनों एक-दूसरे को देखें बिना,मिले बिना रह नहीं पाते,अब दोनों रोज ही जंगल में मिलने लगे, एक-दूसरे से अपनी भावनाएं व्यक्त करने लगे।।
इसी तरह एक दिन बातों बातों में नीलाम्बरा ने अपनी सौतेली मां का सच, शुद्धोधन से कह सुनाया, शुद्धोधन ने भी अपनी सच्चाई नीलाम्बरा को बता दी,सारी बातें सुनकर नीलाम्बरा बोली,
मां को तुम कहीं क़ैद कर देना लेकिन मारना मत।।
शुद्धोधन बोला,वो तो आगे देखा जाएगा लेकिन मुझे पहले सारा राज तो पता चलने दो,अगर तुम बता दोगी तो कुछ आसान हो जाएगा।।
लेकिन मुझे भी सारी बातें कहां मालूम है,नीलाम्बरा बोली।।
तो मालूम करके मुझे बताओं,मासूम लोगों की जान का सवाल है, मुझे बहुत से लोगों की जान बचानी है, शुद्धोधन बोला।।
ठीक है, मैं कोशिश करती हूं,नीलाम्बरा बोली।।
ऐसे ही नीलाम्बरा और शुद्धोधन रोज रात को मिलते, ढ़ेर सी बातें करते,नीलाम्बरा अपनी सौतेली मां के कुछ राज बताती और शुद्धोधन सुनकर उन पर अमल करता।।
लेकिन नीलाम्बरा को ऐसे खुश देखकर सौतेली मां को कुछ शक़ हुआ और वो इसका पता करने के लिए नीलाम्बरा की जासूसी करने लगी,उसका पीछा करने लगी कि आखिर ऐसी क्या बात है जो नीलाम्बरा इतना खुश रहने लगी है।।
और काफ़ी खोजबीन करने के बाद उसने पता लगा लिया कि नीलाम्बरा किसी से मिलने जाती है उसका नाम शुद्धोधन है,वो नीलगिरी का राजकुमार है और शायद दोनों एक-दूसरे से प्यार भी करते हैं।।
नीलाम्बरा की सौतेली मां को ये शक़ भी हो गया कि ऐसा ना हो नीलाम्बरा ने मेरी सारी सच्चाई उस राजकुमार को बता दी हो और वो मेरे बारे में पता लगाने आया हो।।
अब वो जादूगरनी इसी ताक में रहने लगी कि अच्छा हो अगर मैं उस राजकुमार को ही खत्म कर दूं तो सारी समस्याएं ही खत्म हो जाएगी और एक रोज नीलाम्बरा की सौतेली मां को शुद्धोधन के बारे में सब पता चल गया और उसने मन में ठान लिया कि अब वो शुद्धोधन को जीवित नहीं रहने देगी क्योंकि अब शुद्धोधन से उसकी जान को खतरा है।।
हर रात नीलाम्बरा और शुद्धोधन जंगल में उसी झरने के पास मिला करते थे,इस बात की भनक सौतेली मां को लग गई और उस रात बहुत बारिश हो रही थी,नीलाम्बरा हर रात की तरह उस रात भी शुद्धोधन का इंतज़ार कर रही थी और शुद्धोधन आया तो लेकिन मृत अवस्था में उसका घोड़ा उसका शव लेकर नीलाम्बरा के पास आया था।।
शुद्धोधन के मृत शरीर को देखकर नीलाम्बरा फूट फूट कर रो पड़ी, तभी उसकी सौतेली मां उसके पास आकर बोली__

इसे मैंने ही मारा है और अगर तुम अपनी भलाई चाहती हो तो अपना मुंह बंद रखना और इसके मृत शरीर को मैं अपने जादू के जोर पर राख में बदल देती हूं।।
और सौतेली मां ने ऐसा ही किया, देखते ही देखते शुद्धोधन का शरीर राख में परिवर्तित हो गया,ये सब देखकर नीलाम्बरा बहुत दुखी हुई,वो घर तो आ गई लेकिन बहुत ही हताश और निराश हालत में, उसने सबकुछ अपनी छोटी बहन से कह दिया,एक दो दिन तक वो रोती रही, फिर उससे दुःख ना सहा गया और एक रात उसने कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी।।
फिर एक रोज शुद्धोधन का छोटा भाई सुवर्ण अपने बड़े भाई को खोजते हुए आया और उसने भी जादूगरनी के विषय में सारी जानकारी इकट्ठी कर ली, फिर से वही कहानी दोहराई गई,इस बार सुवर्ण को नीलाम्बरा की छोटी बहन से प्यार हो गया।।
लेकिन इस बार भी जादूगरनी को सबकुछ पता लग गया और एक रोज सुवर्ण और नीलाम्बरा की छोटी बहन इसी समुद्र के किनारे मिले तभी जादूगरनी आ पहुंची।।
तभी मानिक चंद ने नीलकमल से पूछा___
लेकिन तुम्हें ये सब कैसे पता है?नीलकमल बोली__
अभी बताती हूं__
नीलकमल ने आगे की कहानी बताना शुरू की___
जादूगरनी यहां आ पहुंची और उसने मुझे जलपरी बना दिया और सुवर्ण को एक बड़ा सा पंक्षी।।
तभी मानिक चंद चौंकते हुए बोला__
तो तुम ही नीलाम्बरा की छोटी बहन नीलकमल हो और वो पंक्षी शुद्धोधन का भाई सुवर्ण है।।
हां, नीलकमल बोली।।
रूको..रूको.. पहले मुझे सारी बात समझने दो,मानिक चंद बोला।।
नीलकमल बोली__
इसमें ना समझने लायक तो कुछ भी नहीं!!
है, कैसे नहीं, क्योंकि मुझसे तो चित्रलेखा ने कहा था कि उस जादूगरनी को तो शुद्धोधन के छोटे भाई सुवर्ण ने मार दिया था,इसका मतलब या तो तुम झूठ बोल रही हो या तो चित्रलेखा, मानिक चंद बोला।।
तुम कैसे जानते हो? चित्रलेखा को, नीलकमल बोली।।
तुम्हारे कहने का क्या मतलब है?मानिक चंद ने पूछा।।
पहले तुम बताओ कि तुम चित्रलेखा को कैसे जानते हो, नीलकमल ने फिर से मानिक चंद से पूछा।।
अरे, मैं चित्रलेखा के घर में ही तो रह रहा हूं,मानिक चंद बोला।।
और अब तक जिंदा हो, नीलकमल आश्चर्य से बोली।।
क्यो क्या हुआ? मानिक चंद ने हैरान होकर पूछा।।
तो तुम्हें नहीं मालूम, नीलकमल बोली।।
अरे,क्या? सच सच बताओ, पहेलियां मत बुझाओ, मानिक चंद ने नीलकमल से कहा।।
अरे, चित्रलेखा ही वो जादूगरनी है, नीलकमल बोली।।
मानिक चंद बोला, लेकिन वो तो एकदम बूढ़ी और बदसूरत है।।
नीलकमल बोली, सालों से उसे किसी नवयुवक का हृदय नहीं मिला, जिससे वो जवान और खूबसूरत दिखने वाला अद्भुत तरल बनाती थी, इसलिए अब बूढ़ी और बदसूरत दिखने लगी है।।
अच्छा तो ये बात है,मानिक चंद बोला।।
लेकिन ताज्जुब वाली बात है कि उसने अभी तक तुम्हें मारा क्यो नही, नीलकमल बोली।।
 
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(६)

मानिक चंद ने नीलकमल से पूछा __
तुम्हें और क्या क्या पता है चित्रलेखा के बारे में...
बस, जितना मुझे पता है,वो मैं सब बता चुकी हूं, हां एक बात मुझे भी अब पता चली हैं।।
वो क्या? मानिक चंद ने पूछा।।
चित्रलेखा ने किसी इंसान को वहां कैद कर रखा है, जिस गुफा पहले शुद्धोधन रहा करता था, नीलकमल बोली।।
अच्छा मुझे तुम उस जगह का पता बता सकती हो, आखिर वो जगह कहां है?मानिक चंद ने पूछा।।
हां.. हां..क्यो नही, तुम्हें वहां सुवर्ण लेकर जा सकता है,वो तो उड़कर जाएगा तो किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा, नीलकमल बोली।।
हां,ये अच्छा सुझाव है,मानिक चंद बोला।।
हां,तो कल तैयार रहना और यहां जल्दी आना लेकिन चित्रलेखा को ये भनक ना लगने पाएं कि तुम मुझसे मिल चुके हो, नहीं तो तुम्हारी खैर नहीं, नीलकमल बोली।।
अच्छा ठीक है!! और इतना कहकर मानिक चंद चित्रलेखा के ठिकाने की ओर बढ़ चला।।
मानिक चंद जब चित्रलेखा के घर पहुंचा तब तक अंधेरा गहराने लगा था।
चित्रलेखा ने दरवाज़ा खोला और बोली___
आज बहुत देर कर दी!!
हां,आज नाव की मरम्मत करने बैठ गया, सोचा यहां से जाने का कुछ तो जुगाड़ हो,मानिक चंद बोला।।
अच्छा,ये बताओ कुछ खाओगे या आज फिर से भुनी हुई मछलियां लाए हो, चित्रलेखा ने पूछा।।
नहीं,आज तो समय ही नहीं मिला,नाव की मरम्मत करने में ब्यस्त था,मानिक चंद बोला।।
अच्छा,तो मैं कुछ खाने पीने का प्रबन्ध करती हूं, चित्रलेखा बोली।।
इसी बीच मानिक चंद को मौका मिल गया, उसने पूरे घर की तो नहीं लेकिन इतने कम समय में जितनी भी जगह वो खंगाल सकता था,खंगाल ली और जैसे ही चित्रलेखा की आहट सुनाई दी,वो चुपचाप आकर अपनी जगह बैठ गया।।
चित्रलेखा ने फिर से कुछ भुना मांस और कुछ पत्तेदार चीज़ों के ब्यंजन परोस कर मानिक चंद से बोली__
लो खाओ।।
और मानिक चंद खाने लगा, उसने खाते खाते बातों ही बातों में पूछा__
आप यहां ऐसी जगह कैसे रह लेती है? आपको परेशानी नहीं होती, यहां अकेले रहने में कैसे अच्छा लग सकता है किसी इंसान को ,इस वीरान से सुनसान टापू पर,मेरा तो दम घुटता है लगता है कि कितनी जल्दी यहां से वापस जाऊं।‌‌।
बस, सालों हो गए यहां रहते हुए, मैंने खुद को इस वातावरण में ढा़ल लिया है, मैं यहां से जाने का अब सोच भी नहीं सकतीं, बहुत कुछ जुड़ा है मेरे जीवन का इस जगह से,यह जगह मेरे जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी है, मरते दम तक मैं यहीं रहना चाहूंगी, चित्रलेखा बोली।।
मानिक चंद बोला, ऐसा भी क्या लगाव है आपको इस जगह से,ना खाने को ना पीने को और ना ही लोग देखने को मिलते हैं,मेरी नाव बन जाए, यहां से जाने का जैसे ही कुछ जुगाड़ होता है तो आप भी मेरे साथ चल चलिएगा, यहां क्या करेंगी अकेले रहकर।।
नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकतीं,अभी बहुत से काम करने हैं, मुझे यहां रहकर, बहुत सी चीजें ठीक करनी हैं, पता नहीं कब कैसे ठीक होगा, चित्रलेखा बोली।।
ऐसा क्या सही करना है आपको इस जगह का,मानिक चंद ने चित्रलेखा से पूछा।।
हैं किसी की जिंदगी और मौत का सवाल,जो मुझे ही ठीक करना होगा, चित्रलेखा बोली।।
ऐसा भी क्या है,मानिक ने पूछा।।
फिर कभी बताऊंगी,अब रात काफ़ी हो चली है,नींद आ रही है और इतना कहकर चित्रलेखा सोने चली गई।।
मानिक चंद को चित्रलेखा की बात सुनकर ऐसा लगा,हो ना हो कोई बात जरूर है, मुझे इन सब बातों का पता लगाना होगा कि आखिर उस गुफा में कौन क़ैद है और किसने उसे क़ैद कर रखा है,क्या चित्रलेखा सच में वही जादूगरनी हैं या वो जलपरी नीलकमल ना होकर कोई और है,इन सब बातों को सोचते हुए मानिक को कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला।।
दूसरे दिन सुबह हुई,मानिक चंद यह सोचकर जागा कि आज पक्का उस गुफा की ओर जाएगा, जहां चित्रलेखा ने किसी को क़ैद कर रखा है, उससे मिलकर ही पता चलेगा कि आखिर क्या माजरा है ?और वो उस दिशा में चल पड़ा।।
नीलकमल ने तो कहा कि पंक्षी बने सुवर्ण को भी साथ ले ले क्योंकि रास्ता बताने में ही वो उसकी मदद कर सकता था लेकिन मानिक चंद ने ऐसा नहीं किया, उससे खुद से ज़्यादा किसी पर भी भरोसा नहीं रह गया था।।मानिक चंद जिस दिशा में बढ़ा जा रहा था,वो बहुत ही घना जंगल था, इतना घना कि सूरज की रोशनी भी उधर नहीं पड़ती थी,इतने बड़े बड़े मच्छर जैसे कि कोई मधुमक्खी हो,इतने मोटे मोटे तनों वाली लाताएं,ना जाने कौन-कौन से किस्म के पेड़ वहां दिख रहे थे, उसने अपना चाकू भी साथ में ले रखा था, जहां कहीं कोई अड़चन आती तो वो उन्हें काटकर आगे बढ़ जाता।।
इसी तरह वो शाम तक जंगल पार करके गुफा तक पहुंच ही गया, उसने गुफा के पास जाकर देखा तो गुफा का दरवाज़ा दो तीन बड़े बड़े पत्थरों से बंद था,उसको पत्थर सरकाने में बहुत मेहनत लगी,आखिर काफ़ी मेहनत मसक्कत के बाद वो अपने कार्य में सफल हो गया।।
वो धीरे धीरे गुफा के अंदर बढ़ने लगा,अंदर कुछ अंधेरा भी था लेकिन उतना भी नहीं, वो सब साफ़ साफ़ देख पा रहा था, गुफा काफ़ी लम्बी दिख रही थी,वो चलते चला जा रहा था.....वो चलते चला जा रहा था।।
तभी अचानक सामने से उसे एक मर्दाना आवाज सुनाई दी___
कौन है?
कौन हो तुम?
मानिक चंद डर कर बोला__
मैं!!
मैं कौन? उस आवाज़ वाले व्यक्ति ने पूछा।।
मैं!! मानिक चंद,मानिक ने कहा।।
कौन ?मानिक चंद।।,उस व्यक्ति ने पूछा।।
मैं एक व्यापारी हूं,मानिक चंद बोला।।
ठीक है, पहले तुम मेरे नज़दीक आकर मेरी बेड़ियां खोल दो,उस व्यक्ति ने कहा।।
इतना सुनकर मानिक चंद ने अपना चाकू हाथ में लिया और डर डर कर उस आवाज़ वाली दिशा में बढ़ने लगा।।
नज़दीक जाकर देखा कि सच में कोई बेचारा बेड़ियों में जकड़ा हुआ है।।
मानिक चंद उसके नज़दीक गया , वहीं पड़ा एक बड़ा सा पत्थर उठाकर बेड़ियों में लगा ताला तोड़ा और उसकी बेड़ियां खोलकर पूछा।।
कौन हो भाई?तुम!!
उस व्यक्ति ने अपनी बेड़ियां दूर फेंकते हुए कहा___
मैं नीलगिरी राज्य का छोटा राजकुमार सुवर्ण हूं।।
इतना सुनकर मानिक चंद अचंभित होकर बोला__
तुम सुवर्ण हो तो,वो कौन था?
सुवर्ण बोला__
जरा विस्तार से बताओ,तुम किसकी बात कर रहे हो।
 

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