Two Lines Shayari

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क्यों सवारती हो इन ज़ुल्फ़ों को ,
ख़ामख़ा हम बिखर जाते है।
 
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इंतज़ार ज़हर
नज़रअंदाज़ी कहर ,
इश्क़ को यूं ही
कातिल नहीं कहते।
 
दिल से दिल तक
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मेरी निगाहें कातिल हैं ये सभी जानते हैं।।

मुझे देखना पर जरा संभलकर।।
 
दिल से दिल तक
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कसा हुआ तीर हुस्न का,
ज़रा संभल के रहियेगा,
नजर नजर को मारेगी,
तो क़ातिल हमें ना कहियेगा।
बहुत ही बेहतरीन।।
 
दिल से दिल तक
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वो शरमाई सूरत वो नीची निगाहें,
वो भूले से उनका इधर देख लेना।
बहुत ही उम्दा पंक्तियां।।
 
दिल से दिल तक
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मुझे फुर्सत कहां कि मैं मौसम सुहाना देखूँ।।

तेरी यादों से निकलूं तब तो जमाना देखूं।।
 
दिल से दिल तक
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बेशुमार जख्मों की मिसाल हूं मैं।।

फिर भी हंस लेती हूं कमाल हूं मैं।।
 

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