Two Lines Shayari

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अभी इस तरफ़ न निगाह कर
मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ,
मेरा लफ़्ज़-लफ़्ज़ हो आईना
तुझे आईने में उतार लूँ।
 
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कसा हुआ तीर हुस्न का,
ज़रा संभल के रहियेगा,
नजर नजर को मारेगी,
तो क़ातिल हमें ना कहियेगा।
 
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हुस्न वालों को संवरने की क्या जरूरत है,
वो तो सादगी में भी क़यामत की अदा रखते हैं।
 
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हैं होंठ उसके किताबों में लिखी तहरीरों जैसे,
ऊँगली रखो तो आगे पढ़ने को जी करता है।
 
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वो शरमाई सूरत वो नीची निगाहें,
वो भूले से उनका इधर देख लेना।
 
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साथ शोखी के कुछ हिजाब भी है,
इस अदा का कहीं जवाब भी है?
 
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वो कुछ मुस्कुराना वो कुछ झेंप जाना,
जवानी अदाएँ सिखाती है क्या क्या।
 
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अच्छे लगे तुम सो हम ने बता दिया,
नुकसान ये हुआ कि तुम मगरूर हो गए।
 
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अब आ भी जाओ ना बाहों में मेरे,
तुम्हे चलना ही कितना है
बस मेरी धड़कनों से गुज़रकर,
इस दिल में ही तो उतरना है।
 
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तुम्ही ने छूआ होगा

हवा तो बेवजह यूं ही नहीं महकती।
 

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