एक अधूरी प्यास

Expert Member
9,202
3,960
143
अद्भुत संभोग के ऐहसास से निर्मला और शुभम दोनों भर चुके थे। शुभम अपनी मां की एक बार और जबरदस्त चुदाई करने के बाद वहां रुका ही नहीं अपने कपड़े ठीक कर के वह सीधा रसोई घर के बाहर आ गया।

निर्मला तो कुछ देर तक उसी स्थिति में खड़ी रही उसके दोनों हाथ किचन फ्लोर पर थे और वो थोड़ा सा झुकी हुई हांफ रही थी। उसका पूरा बदन आनंदित होकर फुदकने लगा था। और उसका मन पुलकित क्यों ना होता बरसों से किस प्यार के लिए जिस गरमा गरम रगड़ के लिए तरस रही थी उसे एक ही दिन में तीन बार उसके ही बेटे ने अपने दमदार मूसल से उसकी बुर को रगड़ चुका था। सब्र का फल मीठा होता है यह कथन निर्मला के लिए बराबर बैठ रहा था। उसने आधी जिंदगी सब्र कर के ही बीता दी थी लेकिन अब लग रहा था कि उसके सब्र का फल उसे मिलने लगा था।

निर्मला रसोईघर में उसी स्थिति में हाॅप रही थी उसके माथे से पसीने की बूंदें मोतियों की बूंदें बन कर नीचे फर्श पर गिर रही थी। उसे मन ही मन बेहद खुशी हो रही थी कि उसे कर्म का फल मिला था पसीना बहाने का प्रतिफल मिला था इसलिए निर्मला को आया पसीना बहाना बेकार नहीं गया था। उसके चेहरे पर उत्तेजना की लालिमा पूरी तरह से छाई हुई थी। ब्लाउज के बटन कुछ हद तक टाइट हो चुके थे उत्तेजना के मारे उसके चुचियों का आकार अपने आकार से कुछ हद तक बढ़ चुके थे।

निर्मला की बुर से शुभम के साथ साथ खुद उसका भी मदन रस नीचे टपक कर उसकी जांघों को भीगो रहा था। कुछ ही मिनटों में निर्मला की सांसें पूर्वरत हुई तो वह अपनी साड़ी जो कि अभी भी उसकी कमर तक चढ़ी हुई थी और उसकी गोलाकार नितंबं ट्यूबलाइट की रोशनी में चमक रही थी,, मखमली पेंटी का जो घुटनों में अभी तक सिमट कर रहना निर्मला की स्थिति का बयान कर रही थी।
निर्मला के बदन में आया वासना का तूफान गुजर चुका था। वह अपनी पेंटी को ऊपर सरका कर साड़ी को नीचे कर ली और खाना बनाने लगी।


अपने कमरे में शुभम भी बहुत खुश नजर आ रहा था। तीन तीन बार अपनी मां से संभोग करने के बाद भी उसे यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि उसने अपनी मां के साथ संभोग किया है। खुशी के मारे उसके पैर जमीन पर नहीं पढ़ रहे थे उसके हाथों में खूबसूरती का पूरा खजाना लग चुका था। जब से वह औरतों की ताक झांक में लगा था तब से अपनी मां के खूबसूरत बदन का दीवाना हो चुका था। दिन रात अपनी मां की खूबसूरत बदन की कल्पना करके अपने आप को संतुष्ट करता रहता था लेकिन वह यह नहीं जानता था कि उसकी कल्पना हकीकत में बदल जाएगी। जो भी हो रहा था उसे रोक पाना अब दोनों के बस में नहीं था।


रात का खाना तैयार हो चुका था खाना तैयार करके निर्मला नीचे से ही शुभम को आवाज लगाई और शुभम भी अपनी मां की आवाज सुनकर हाथ मुंह धो कर फ्रेश हो कर के खाना खाने नीचे आ गया।
 
Expert Member
9,202
3,960
143
दोनों खाना खा रहे थे लेकिन फिर से सुबह की ही तरह दोनों के बीच किसी भी प्रकार की वार्तालाप नहीं हो रही थी बस एक दूसरे को कनखियों में देखे जा रहे थे। दोनों के बीच सब कुछ हो जाने के बावजूद भी वार्तालाप की त्रुटि दोनों के बीच एक तरह की दूरी बनाए हुए थी।

निर्मला एक परीपकव महिला थी, भले ही वह खुलकर शारीरिक सुख का मजा भोग नहीं पाई थी लेकिन इतना तो जरूर जानती थी कि औरत और मर्द के बीच का रिश्ता किस तरह से एकदम खुलकर सामने आता है। तीन बार अपने बेटे से संभोग सुख का आनंद उठा चुकी थी लेकिन तीनों बार खुद निर्मला ने ही पहल की थी।

उसकी दिली ख्वाहिश यह थी कि शुभम पहल करें वह खुद उसे अपनी बाहों में लेकर उसे प्यार करे के चुमे चाटे उसके गुलाबी होठों को अपने होठों में भरकर चुसे, उसकी बुर में खुद ही उसकी जांघों को फैला कर अपना लंड डाल कर चोदे,, लेकिन वह अच्छी तरह से देख चुकी थी कि शुभम पहल नहीं कर पा रहा था। अगर शुभम की जगह कोई और लड़का होता तो निर्मला को इतनी जहेमत उठाने की जरूरत ही नहीं पड़ती।

लड़के तो इसी ताक में रहते हैं कि कब औरत का इशारा मिले और वह कब शुरु पड़ जाए। निर्मला खाना खाते समय यही सब सोच रही थी और शुभम पर अपनी नजर गड़ाए हुए थी।

फिर वह खाना खाते समय यह सोचे कि शुभम को अगर पूरी तरह से खोलना है तो उससे बात करनी होगी वरना वह अपनी तरफ से कुछ भी नहीं कर पाएगा हो सकता है कि वह अपनी मां के साथ खुलकर कुछ नहीं कर पा रहा है अगर उसकी जगह कोई और औरत होती तो,,, वह भी सिर्फ उसका इशारा मिलने का इंतजार करता और इशारा मिल जाने पर खुद ही उसके ऊपर चढ़ बैठता।

यह बात निर्मला के मन में एक दम पर बैठ गई कि सच में वह रिश्तो की कदर करते हुए खुल नहीं पा रहा है क्योंकि जिस तरह का उसके पास हथियार था वहां किसी भी औरत को अपना दीवाना बना सकने में पूरी तरह से सक्षम था। शुभम उसके साथ रिश्तो की व्याख्या को देखते हुए अभी भी शर्मा रहा था।

निर्मला उससे बातचीत करना चाहती थी उसकी सहानुभूति हासिल करना चाहती थी क्योंकि जिस उम्र के दौर से वह गुजर रहा था,, ऐसे में तो ही वहां अपनी मां के प्रति मन में गलत धारणा बांध लिया तो दोनों का रिश्ता उलझ कर रह जाएगा। इसलिए वह मन में सोच ली कि शुभम से बातचीत करना बेहद जरूरी है खास करके उनके बीच इस नए रिश्ते के बारे में उसकी सहानुभूति भी हासिल करना बेहद जरुरी है लेकिन शुरुआत कहां से करें यह उसे समझ में नहीं आ रहा था घर में दोनों अकेले थे। अशोक घर पर लोटेगा भी या नहीं लौटेगा या नक्की नहीं था। निर्मला यही मन में सोचते सोचते खाना खा ली शुभम भी खाना खा चुका था। जैसे ही खाना खा कर शुभम कुर्सी पर से उठने वाला था वैसे ही निर्मला बोली


बेटा थोड़ा पानी देना तो

निर्मला शुभम से कुछ और बोलना चाहती थी लेकिन हड़बड़ाहट में उसके मुंह से कुछ और निकल गया उसे समझ में नहीं आया कि क्या बोले कहां से शुरुआत करें। तब तक शुभम पानी का जग उठा कर जग से निर्मला की गिलास को पानी से भरने लगा।

शुभम भी बेहद शर्म महसूस कर रहा था इसलिए अपनी मां से ठीक से नजर भी नहीं मिला पा रहा था वह जल्दी से गिलास में पानी भरकर अपने कमरे की तरफ चला गया।
 
Expert Member
9,202
3,960
143

निर्मला भी उसे रोक नहीं पाई और शुभम को अपने कमरे की तरफ जाते हुए बेबस होकर देखती रही लेकिन यह बात उसके लिए बड़ी ही संतोष कारक थी कि शुभम को इस नए रिश्ते से बिल्कुल भी एतराज नहीं था। उसने अभी तक उससे इस तरह के रिश्ते के बारे में जरा भी बात नहीं किया था और ना ही उसके चेहरे से कुछ ऐसा प्रतीत होता था कि निर्मला की हरकत की वजह से वह दुखी है या उसे यह सब अच्छा नहीं लगा तुम कि वह तो चेहरे से बेहद खुश नजर आ रहा था बस उसके अंदर अभी भी शर्म थी जिसकी वजह से वो खुलकर सामने नहीं आ पा रहा था। और कुछ होता भी क्यों नहीं आखिरकार लड़कों को चाहिए भी क्या वह तो दिन रात लड़कियों और औरतों के बारे में ही सोच कर मुठ मारते रहते हैं। उनको तो बस लड़कियों और औरतों की बुर से ही मतलब रहता है कि कब मौका मिले और अपना लंड उसमें डाल कर ठंडा हो जाए।

और शुभम भी तो मन में यही चाहता था तभी तो जब उसे मौका मिला तो कैसी पागलों की तरह बुर में लंड डालकर बिना रूके एक वहीं रफ्तार से उसे चोद डाला और तीनों बार ऐसा नहीं लगा कि वह अपनी मां को चोदने में जरा भी ऐतराज कर रहा हो बल्कि वह तो जैसे पहले से ही तैयार रहता था तभी तो उसके पैंट के अंदर ही उसका लंड पूरी तरह से तना हुआ होता था। वह यही सब सोचकर एकदम मस्त हुए जा रही थी,, वो फिर सोचने लगी कि तभी तो रसोई घर में वह प्यार की नजरों से उसे घूर रहा था। और उसे देख देख कर उसके पजामे में तंबू बन गया था।

निर्मला यह सोच कर मन ही मन बहुत खुश होने लगी वह समझ गई थी कि उसे शुभम की तरफ से किसी भी प्रकार का खतरा नहीं है।वह शुभम को पूरी तरह से अपने हुस्न का दीवाना बना देगी, वह उसे इतना सुख देगी कि वह कभी भी मां-बेटे के रिश्ते के बारे में किसी को कुछ भी नहीं कहेगा क्योंकि इसमें भी तो उसका ही फायदा है रोज उसे चोदने को मदमस्त बुर मिलेगी,,, दबा दबा कर पीने को बड़े बड़े दो खरबूजे मिलेंगे। एक बेहद खूबसूरत मदमस्त बदन वाली और अपने प्यार में मस्त कर देने वाली उसे औरत मिलेगी और क्या चाहिए उसे उसकीे तो दसो की दश उंगलियां घी में ही रहेंगी।


यह सब बातें सोच कर तो निर्मला का खुद का बदन उत्तेजना से गनगना गया। निर्मला कुछ देर तक वहीं बैठ कर आगे के प्लान के बारे में सोचती रही और यह सोच कर उठी कि जब वह अपने कमरे में जाएगी तो किसी न किसी बहाने से शुभम को अपने कमरे में बुला लेगी क्योंकि फिर से एक बार निर्मला उत्तेजित हो चुकी थी एक बार फिर से ऊसकी बुर में चीटियां रेंगने लगी थी। वह खुशी खुशी टेबल पर से उठी और जल्दी जल्दी साफ सफाई का काम निपटाकर अपने कमरे में पहुंच गई। और जल्दी जल्दी अपने कपड़े बदल कर एक खूबसूरत गाउन पहन कर तैयार हो गई। वह अपने बिस्तर पर बैठ कर कुछ समय बीतने का इंतजार करने लगी।
 
Expert Member
9,202
3,960
143

निर्मला आज पहली बार अशोक का इंतजार किए बिना अपने कमरे में आ गई थी। वह शुभम के साथ इतने अंतरंग पल बिता चुकी थी कि उसे अशोक का ख्याल ही नहीं रहा। वह तो अशोक को बिल्कुल भी भूल चुकी थी उसे याद ही नहीं आ रहा कि उसका पति अशोक भी है उसे तो चारों तरफ बस शुभम ही शुभम नजर आता था।

अशोक का ख्याल मन में आते ही उसके चेहरे का रंग फीका पड़ गया उसके रंग में भंग पड़ता नजर आने लगा वह अपने बिस्तर पर ही बैठी रही। वहां बैठे बैठे निर्मला को काफी समय हो गया और जैसे-जैसे समय बीत रहा था उसके चेहरे की रंगत वापस आ रही थी। क्योंकि उसे अब लगने लगा था कि अशोक आज घर नहीं आएगा।

दूसरी तरफ शुभम का भी यही हाल था उसकी आंखों से भी नींद कोसों दूर थीे वह भी अपनी मां के ख्यालों में खोया हुआ था।


निर्मला से रहा नहीं गया और वहां बैठकर अपने कमरे से बाहर आ गई वह कुछ देर तक वहीं खड़े होकर सोचने लगी कि वह अपने बेटे के कमरे में जाए या ना जाए,, कहीं वह सो ना गया हो। फिर भी वह कमरे की तरफ चल दी।

निर्मला की बुर में गुदगुदी हो रही थी। उसके मन में गुब्बारे फूट रहे थे क्योंकि शुभम का कमरा कुछ ही दूरी पर था और वहां पहुंचते ही वह उसकी बाहों में सिमट जाना चाहती थी उसकी लंबी चौड़ी छातीयों में सो जाना चाहती थी उसके मर्दाना हथियार से अपनी बुर की अंदरूनी दीवारों को पसीज देना चाहती थी।

वह बड़े ही उत्सुकता से अपने बेटे की कमरे की तरफ चले जा रही थी। वह चलते हुए अपने बेटे से चुदने के ख्याल से ही मस्त हुए जा रही थी। उसकी बुर की गुलाबी फांके उत्तेजना के मारे कंपकपा रही थी।


तकरीबन 11:30 का समय हो रहा था वह पूरी तरह से निश्चिंत हो गई थी कि अब शायद अशोक नहीं आएगा इसलिए वह चुदवासी होकर अपने बेटे के कमरे की तरफ आगे बढ़ रही थी। जब एक औरत पर कामवासना हावी हो जाती है तो वह कुछ भी करने पर उतारू हो जाती है।

वासना की चिंगारी सोला का रूप धारण कर चुकी थी। जिसके तपन में निर्मला और शुभम दोनों ही तप रहे थे। जो हाल निर्मला का था वही हाल शुभम का भी था वह भी अपने कमरे में करवटें बदल रहा था उसके जेहन में बस उसकी मा ही बसी हुई थी जिसके खूबसूरत बदन की कल्पना करके पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था और अपने हाथ से ही अपने लंड को हिला रहा था उसके मन में भी ढेर सारे सवाल और जवाब खुद-ब-खुद उमड़ रहे थे। वह इतना तो समझ गया था कि उसकी मां पूरी तरह से चुदवाती हो चुकी हे तभी तो एक ही दिन में तीन तीन बार अपने ही बेटे के लंड से चुद चुकी थी।

वह यह भी जान चुका था कि उसकी मां बेहद प्यासी औरत है लेकिन यह उसे समझ में नहीं आ रहा था कि पहले वह इस तरह की नहीं थी कुछ दिन में ऐसा क्या हुआ कि वह बदल गई। पहले वह अपने बदन का एक भी अंग खुला नहीं रखती थी बड़े सलीके से कपड़े पहना करती थी लेकिन कुछ दिनों से उसके पहरावे और रहन सहन में भी बदलाव आ चुका था और यह बदलाव कुछ हद तक सीमित ना रहकर अपना विस्तार फैला चुका था और यही मर्यादा भंग करने में कारण रूप भी था।


यह सब सोचते हुए शुभम हैरान भी बहुत था और जो उन दोनों के बीच तीन तीन बार घटित चुका था उस बात को लेकर जब उसके सिर से वासना का भुत ऊतरता तो बहुत पछतावा महसूस करता था। उस बात को लेकर उसके अंदर का मर्द दूर-दूर तक नजर नहीं आता था और एक उसके अंदर का बेटा जाग जाता था। यह ख्याल उसके मन में कई बार आया कि वह अपनी मां को इस बात को लेकर जरुर समझाएगा क्योंकि जिसके साथ वह इस तरह के शारीरिक संबंध बना चुका था वह उसकी खुद की मां थी और अपनी मां के साथ इस तरह के संबंध बनाना पाप की श्रेणी में आता है इस बात का ज्ञात होते ही वह बहुत परेशान हो जाता था

और उसके मन में ढेर सारे सवाल पैदा होने लगते थे कि आखिरकार वह उसका बेटा होने के बावजूद भी क्यों अपनी ही मां के साथ संबंध बनाया यह ख्याल मन में आते ही वह बेहद परेशान और अंदर से टूटने लगता था लेकिन जब उसके जेहन में उसकी मां की खूबसूरत बदन उसकी मखमली काया का एहसास होता। उसके खूबसूरत बदन के उभार और कटाव की रेखा कृति उसकी आंखों के सामने आती और वह मखमली एहसास जब उसका हथियार उसकी मां की खूबसूरत और बेहद नरम अंग के अंदर प्रवेश करता और उसके खूबसूरत गोल गोल बड़ी-बड़ी मखमली गद्देदार नितंब जब ऊसकी जांघों से रगड़ खाती तो उसके अंदर का बेटा मरकर एक मर्द जाग जाता था जो कि अपनी मां को बेटे की नजर से नहीं बल्कि एक मर्द की नजर से उसके अंदर एक औरत को ही ढूंढता रहता था। यह सब ख्याल उसके अंदर से सारे वाद-विवादों को एक तरफ करके जो एक मर्द और औरत के ही रिश्ते को कायम करने की सोचने लगता और यही सब सोचते हुए अपने कमरे में वह अपने लंड को हिला रहा था।
 
Expert Member
9,202
3,960
143

दूसरी तरफ निर्मला पूरी तरह से कामातुर होकर अपने पति की गैरहाजिरी में अपने बेटे से चुदने की आतुरता लिए उसके कमरे की तरफ बढ़ रही थी और अगले ही पल वह शुभम के कमरे के बाहर खड़ी थी। उसका दिल जोरो से धड़क रहा था वह अपने बेटे के साथ पूरी तरह से निश्चिंत होकर के अपनी रात रंगीन करना चाहती थी।

बुर का इस तरह से कामोत्तेजित हो कर फुदकना उसे अच्छे संकेत लग रहे थे वह पूरी तरह से आश्वस्त थी कि कमरे के अंदर उसका बेटा आज उसको जी भर के रगड़ेगा। जैसा वह चाहती है उसका बेटा वैसा ही उसके साथ करेगा। यही सोचकर धड़कते दिल के साथ वह अपने बेटे के दरवाजे पर दस्तक देने के लिए हाथ उठा रही थी कि तभी दरवाजे की बेल बज गई।


दरवाजे पर बेल बजते ही वह पूरी तरह से चौंक गई,,, उसका हाथ जोकि अपने बेटे के दरवाजे पर दस्तक देने के लिए उठा था वह उठा का उठा ही रह गया और उसके सारे अरमान बूर के नमकीन पानी में बह गए,, उसके अंदर ही अंदर बेहद क्रोध की प्रतीति होने लगी। वह समझ गई कि उसका नाशपिटा पति अशोक वापस आ गया है। आज निर्मला के मन में ऐसी इच्छा हो रही थी कि वह अपने पति को आज जी भर के गालियां दे लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती थी बस मन में ही दो चार गाली देकर अपना मन मार कर अपने बेटे के कमरे के बाहर से दरवाजे की तरफ दरवाजा खोलने के लिए जाने लगी जब तक वह दरवाजे पर पहुंचती अशोक बार-बार बेल बजाए जा रहा था।


हां हां दरवाजा खोल रहीे हुं इतना बजाने की जरूरत नहीं है। ( वह मन ही मन में बड़बड़ाते हुए दरवाजा खोली और दरवाजा के खुलते ही अशोक घर में प्रवेश करते हुए बोला


इतनी देर लगती है दरवाजा खोलते हुए,,, कब से मैं घंटी बजा रहा हूं।


मुझे क्या पता था बस जरा सी आंख लग गई थी। ( निर्मला अपने व्यवहार में नरमी लाते हुए बोली।


आप हाथ मुंह धो कर फ्रेश हो जाइए मैं आपके लिए खाना लगा देती हुं।


कोई जरूरत नहीं है मैं खाना खा चुका हूं और वैसे भी मैं थका हुआ हूं मुझे सोना है।

इतना कहते हुए वह सीढ़ियां चढ़ने लगा और निर्मला वहीं खड़ी होकर अपने पति को जाते हुए देखती रही हो मन ही मन में सोचने लगी कि जो इंसान उसके साथ ठीक से बात भी नहीं कर रहा है वह उसे प्यार क्या खाक करेगा। लेकिन अब उसके लिए अशोक का प्यार कुछ मायने नहीं रखता था एक ही दिन में वह अपने बेटे की दीवानी हो गई थी। क्योंकि आज भले ही यह मौका उसके हाथ से ज्यादा रहा लेकिन अब तो ईस तरह के मौके उसे बार-बार मिलने वाले थे। और उन मौकों का बड़े ही गरम जोशी के साथ स्वागत करने के लिए वह पूरी तरह से तैयार थी।

लेकिन इस समय उसके बदन की गर्मी पूरी तरह से ठंडी हो चुकी थी उसके चुदास पन में तप रहा ऊसका बदन अब उसके पति के ठंडे प्रतिभावं के कारण और इस तरह से आ जाने के कारण ठंडा हो गया था उसका मूड पूरी तरह से ऑफ हो गया था। वह गर्म आहें भरते हुए एक नजर अपने बेटे के कमरे की तरफ घूम आई और सीढ़ियां चढ़ने लगी।बिस्तर पर पहुंचते ही वह करवट लेकर एक हाथ गाउन के ऊपर से ही अपने बुर पर रखकर उसे रगड़ते हुए सो गई।
 
Expert Member
9,202
3,960
143

निर्मला शुभम के कमरे मे चुदाई के इरादे से जा रही थी कि दरवाजे की घंटी बज जाने से उसका मूड खराब हो जाता है और वो अपनी बुर को रगड़ते हुए सो गई।

दूसरे दिन स्कूल में शीतल से मुलाकात होते ही शीतल इस तरह से उससे लिपट गई जैसे कि बहुत दिन बाद मिली हो। अपने शादी की सालगिरह पर ना आने की वजह से वह निर्मला से नाराज थी जबकि निर्मला ने उसे पूरी बात बता भी दी थी।
निर्मला तू मेरी शादी की सालगिरह पर मैं यही मुझे बहुत बुरा लगा।


क्या शीतल तुझे मैं फोन पर बाताई तो थी कि किस तरह से हम लोग बारिश में फंस गए थे।


हां मैं जानती हूं तभी तो मैं बस नाराजगी जाहिर कर रही हूं। वरना मैं तुझ से बात ही नहीं करती।


यार क्या करुं शीतल बरसात ही इतनी तूफानी थी कि मैं ना तो घर वापस लौट सकी और ना ही तेरे घर आ सकी


चल कोई बात नहीं निर्मला लेकिन जिस तरह से क्यों तूफानी बारिश में कार के अंदर फसी हुई थी मुझे तो बड़ा रोमांटिक लग रहा था। सोच एक औरत के लिए कितना मदहोश कर देने वाला मौका होता है जब इस तरह की बारिश हो और वह भी सुनसान जगह पर और कार में केवल एक खूबसूरत औरत (निर्मला की तरफ इशारा करते हुए) और एक जवान हो रहा लड़का जिसका हथियार न जाने कितना तगड़ा होगा (हथियार का जिक्र आते ही निर्मला की आंखों के आगे शुभम का लंबा लंड झुलतें हुए नजर आने लगा।) यार निर्मला तू पूरा का पूरा फायदा उठा सकती थी तु जरा सोच अगर ऐसे हालात में तेरे और तेरे बेटे के बीच में शारीरिक संबंध बन जाता तोभी दुनिया को कहां पता चलने वाला था कि तुम दोनों के बीच क्या है।

शीतल की इस तरह की बाते सुनकर निर्मला बड़े असमंजस मे थी। वह समझ में नहीं पा रही थी कि शीतल को क्या जवाब दें क्योंकि जिस तरह की शीतल आशंका जताते हुए उस मौके का फायदा उठाने के लिए उसे बोल रही थी ठीक उसी तरह का भरपूर फायदा उसने उठा चुकी थी और तूफानी बारिश में ही नहीं बल्कि घर पर भी दो बार अपने बेटे से शारीरिक संबंध बना चुकी थी। शर्म के मारे निर्मला शीतल से ठीक से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी। वह अपनी आंख चुराते हुए अपनी क्लाश की तरफ बढ़ने लगी और आगे बढ़ते हुए बोली


धत्त,,,,, तू एकदम पागल हो गई है।


क्या पागल हो गई हुं, सच तो कह रही हुं ( शीतल भी उसके पीछे पीछे जाते हुए बोली


शीतल तू चीज मौके का फायदा उठाने के लिए बोल रही है और किसके साथ बोल रही है तो अच्छी तरह से जानती है कि वह मेरे खुद का बेटा है। यह सब जानते हुए भी तो एकदम बेशर्मों की तरह बातें कर रही है। ( निर्मला अपनी आंखें चुराते हुए बोली


अरे क्या बेशर्मों की तरह बातें कर रहीे हुं जो कह रही हूं सच तो कह रही हूं।


तुझे इतना सब कुछ अच्छा लग रहा है तू जो मुझे कह रही है वह तू ही कर ले। ( निर्मला शीतल की तरफ देखते हुए बोली उसे लगा कि ऐसा कहने पर शीतल शांत हो जाएगी लेकिन ऊसका जवाब सुनकर वहां एक दम से दंग रह गई,,, शीतल मुस्कुराते हुए बोली।


तो भेज दे अपने बेटे को मेरे पास पूरा मर्द बना दूंगी ( इतना कहने के साथ ही वह मुस्कुराते हुए अपनी क्लाश की तरफ चली गई।

निर्मला तो उसे आश्चर्य के साथ जाते हुए वहीं खड़ी देखती रह गई वह उसकी बात सुनकर पूरी तरह से दंग रह गई थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह एक शिक्षिका की सोच है। शीतल एक टीचर होने के बावजूद इतनी गंदी बात कैसे बोल गई उसे समझ में नहीं आ रहा था।

हालांकि वह इतना जरूर जानती थी कि शीतल थोड़ा खुले विचारों वाली औरत है लेकिन इस स्तर से वह बात करेगी यह निर्मला को यकीन नहीं हो रहा था। कुछ पल वह क्लास के बाहर खड़ी रही और फिर अंदर चली गई आज उसका मन बिल्कुल भी क्लास में नहीं लग रहा था बार बार उसकी आंखों के सामने अपने बेटे के साथ बिताए वह कामुक पल याद आ रहे थे। रह रह कर वह अपने बेटे के मोटे लंड की रगड़ को अपनी बुर के अंदर महसूस करके उत्तेजित हो जा रही थी।


शीतल की बातें उसे अंदर तक हिलाकर रख दी थी। लेकिन शीतल जो भी कह रही थी वह ठीक ही कह रही थी क्योंकि निर्मला भी अच्छी तरह से जानती थी कि इस तरह के संबंध में किसी को पता चले ईस बात की जरा भी गुंजाईस नही होती।
निर्मला भी अपने रिश्ते को लेकर के थोड़ी बहुत निश्चिंत थी लेकिन फिर भी उसे अपने बेटे को पूरी तरह से विश्वास में लेने के लिए उससे बात करना बहुत जरूरी था।वह क्लास में बैठे-बैठे यही सोच रही थी कि घर पर पहुंचेगी तो इस बारे में वह शुभम से वह पूरी बात करेगी और उसे विश्वास मे लेगी।
 
Expert Member
9,202
3,960
143
23yg23.jpg
 

Top