अद्भुत संभोग के ऐहसास से निर्मला और शुभम दोनों भर चुके थे। शुभम अपनी मां की एक बार और जबरदस्त चुदाई करने के बाद वहां रुका ही नहीं अपने कपड़े ठीक कर के वह सीधा रसोई घर के बाहर आ गया।
निर्मला तो कुछ देर तक उसी स्थिति में खड़ी रही उसके दोनों हाथ किचन फ्लोर पर थे और वो थोड़ा सा झुकी हुई हांफ रही थी। उसका पूरा बदन आनंदित होकर फुदकने लगा था। और उसका मन पुलकित क्यों ना होता बरसों से किस प्यार के लिए जिस गरमा गरम रगड़ के लिए तरस रही थी उसे एक ही दिन में तीन बार उसके ही बेटे ने अपने दमदार मूसल से उसकी बुर को रगड़ चुका था। सब्र का फल मीठा होता है यह कथन निर्मला के लिए बराबर बैठ रहा था। उसने आधी जिंदगी सब्र कर के ही बीता दी थी लेकिन अब लग रहा था कि उसके सब्र का फल उसे मिलने लगा था।
निर्मला रसोईघर में उसी स्थिति में हाॅप रही थी उसके माथे से पसीने की बूंदें मोतियों की बूंदें बन कर नीचे फर्श पर गिर रही थी। उसे मन ही मन बेहद खुशी हो रही थी कि उसे कर्म का फल मिला था पसीना बहाने का प्रतिफल मिला था इसलिए निर्मला को आया पसीना बहाना बेकार नहीं गया था। उसके चेहरे पर उत्तेजना की लालिमा पूरी तरह से छाई हुई थी। ब्लाउज के बटन कुछ हद तक टाइट हो चुके थे उत्तेजना के मारे उसके चुचियों का आकार अपने आकार से कुछ हद तक बढ़ चुके थे।
निर्मला की बुर से शुभम के साथ साथ खुद उसका भी मदन रस नीचे टपक कर उसकी जांघों को भीगो रहा था। कुछ ही मिनटों में निर्मला की सांसें पूर्वरत हुई तो वह अपनी साड़ी जो कि अभी भी उसकी कमर तक चढ़ी हुई थी और उसकी गोलाकार नितंबं ट्यूबलाइट की रोशनी में चमक रही थी,, मखमली पेंटी का जो घुटनों में अभी तक सिमट कर रहना निर्मला की स्थिति का बयान कर रही थी।
निर्मला के बदन में आया वासना का तूफान गुजर चुका था। वह अपनी पेंटी को ऊपर सरका कर साड़ी को नीचे कर ली और खाना बनाने लगी।
अपने कमरे में शुभम भी बहुत खुश नजर आ रहा था। तीन तीन बार अपनी मां से संभोग करने के बाद भी उसे यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि उसने अपनी मां के साथ संभोग किया है। खुशी के मारे उसके पैर जमीन पर नहीं पढ़ रहे थे उसके हाथों में खूबसूरती का पूरा खजाना लग चुका था। जब से वह औरतों की ताक झांक में लगा था तब से अपनी मां के खूबसूरत बदन का दीवाना हो चुका था। दिन रात अपनी मां की खूबसूरत बदन की कल्पना करके अपने आप को संतुष्ट करता रहता था लेकिन वह यह नहीं जानता था कि उसकी कल्पना हकीकत में बदल जाएगी। जो भी हो रहा था उसे रोक पाना अब दोनों के बस में नहीं था।
रात का खाना तैयार हो चुका था खाना तैयार करके निर्मला नीचे से ही शुभम को आवाज लगाई और शुभम भी अपनी मां की आवाज सुनकर हाथ मुंह धो कर फ्रेश हो कर के खाना खाने नीचे आ गया।
निर्मला तो कुछ देर तक उसी स्थिति में खड़ी रही उसके दोनों हाथ किचन फ्लोर पर थे और वो थोड़ा सा झुकी हुई हांफ रही थी। उसका पूरा बदन आनंदित होकर फुदकने लगा था। और उसका मन पुलकित क्यों ना होता बरसों से किस प्यार के लिए जिस गरमा गरम रगड़ के लिए तरस रही थी उसे एक ही दिन में तीन बार उसके ही बेटे ने अपने दमदार मूसल से उसकी बुर को रगड़ चुका था। सब्र का फल मीठा होता है यह कथन निर्मला के लिए बराबर बैठ रहा था। उसने आधी जिंदगी सब्र कर के ही बीता दी थी लेकिन अब लग रहा था कि उसके सब्र का फल उसे मिलने लगा था।
निर्मला रसोईघर में उसी स्थिति में हाॅप रही थी उसके माथे से पसीने की बूंदें मोतियों की बूंदें बन कर नीचे फर्श पर गिर रही थी। उसे मन ही मन बेहद खुशी हो रही थी कि उसे कर्म का फल मिला था पसीना बहाने का प्रतिफल मिला था इसलिए निर्मला को आया पसीना बहाना बेकार नहीं गया था। उसके चेहरे पर उत्तेजना की लालिमा पूरी तरह से छाई हुई थी। ब्लाउज के बटन कुछ हद तक टाइट हो चुके थे उत्तेजना के मारे उसके चुचियों का आकार अपने आकार से कुछ हद तक बढ़ चुके थे।
निर्मला की बुर से शुभम के साथ साथ खुद उसका भी मदन रस नीचे टपक कर उसकी जांघों को भीगो रहा था। कुछ ही मिनटों में निर्मला की सांसें पूर्वरत हुई तो वह अपनी साड़ी जो कि अभी भी उसकी कमर तक चढ़ी हुई थी और उसकी गोलाकार नितंबं ट्यूबलाइट की रोशनी में चमक रही थी,, मखमली पेंटी का जो घुटनों में अभी तक सिमट कर रहना निर्मला की स्थिति का बयान कर रही थी।
निर्मला के बदन में आया वासना का तूफान गुजर चुका था। वह अपनी पेंटी को ऊपर सरका कर साड़ी को नीचे कर ली और खाना बनाने लगी।
अपने कमरे में शुभम भी बहुत खुश नजर आ रहा था। तीन तीन बार अपनी मां से संभोग करने के बाद भी उसे यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि उसने अपनी मां के साथ संभोग किया है। खुशी के मारे उसके पैर जमीन पर नहीं पढ़ रहे थे उसके हाथों में खूबसूरती का पूरा खजाना लग चुका था। जब से वह औरतों की ताक झांक में लगा था तब से अपनी मां के खूबसूरत बदन का दीवाना हो चुका था। दिन रात अपनी मां की खूबसूरत बदन की कल्पना करके अपने आप को संतुष्ट करता रहता था लेकिन वह यह नहीं जानता था कि उसकी कल्पना हकीकत में बदल जाएगी। जो भी हो रहा था उसे रोक पाना अब दोनों के बस में नहीं था।
रात का खाना तैयार हो चुका था खाना तैयार करके निर्मला नीचे से ही शुभम को आवाज लगाई और शुभम भी अपनी मां की आवाज सुनकर हाथ मुंह धो कर फ्रेश हो कर के खाना खाने नीचे आ गया।