Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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Bahut hi khubsurat update diya jaha ek aur masuka ko mane ki jatan me ashish laga hua hai lekin koyi vajiv rasta nahi dikh raha vahi dusri aur ek maa ke man ka dar hamesha hamesha ke liye samapt ho gaya ab dekhte hai ashish kaise pushpa ko manata hai.

Bahut bahut dhanyawad ji
 
Punjabi Doc
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Update - 50

कमला जब कमरे में जा रहीं थीं तब उसके चहरे से दुनियां भर की खुशियां जल प्रपात की तरह अविरल बहे जा रहीं थीं। एक एक कदम का फैसला तय करते हुए कमला रूम में पहुंची, रूम में पहुंचते ही "ahhhhh" एक गहरी स्वास छोड़ा, मानो वो मिलो दौड़कर आई हों, किंतु उसके चहरे से ऐसा नहीं लग रहा था। चहरे से तो सिर्फ़ कभी न खत्म होने वाली सुखद अनुभूति झलक रहीं थीं।

अंतर मन में उपज रही सुखद अनुभूति कमला पर इतना हावी थी कि बिना कुछ लिए बाथरूम में चली गईं। जिस्म में मौजूद एक एक वस्त्र इतनी शोखी से उतर रहीं थीं कि कोई पुरुष देख ले तो कमला की अदाओं को देखकर भाव विहीन होकर बस देखता ही रहें।

बाथरूम में एक से बढ़कर एक इत्र युक्त साबुन और शैंपू रखा था किंतु कमला निर्धारित नहीं कर पा रहीं थीं कि नहाने में किस साबुन या शैंपू का इस्तेमाल किया जाए। एक को हाथ में लेती "नहीं नहीं ये नहीं" फिर दूसरे को हाथ में लेती, न न बोलकर उसे भी वापस रख देती। कई बार उठाया रखा, उठाया रखा करने के बाद अंतः एक साबुन और शैंपो उसे पसन्द आया। उसी से नहाने लग गईं।

साबुन की खुशबू बदन के साथ साथ पूरे बाथरूम को भी महका दिया। बरहाल कुछ ही देर में नहाने की क्रिया सम्पन्न हुआ। बदन को पोछने के लिए तौलिया ढूंढा तो तौलिया कहीं मिली नहीं तब याद आया कि तौलिया तो लाई नहीं तो कमला बोलीं... अब क्या करूं तौलिया तो लाया नहीं क्या मैं ऐसे ही बहार चली जाऊं।

उसी वक्त कमरे में किसी के आने का आहट हुआ जिसे सुनकर कमला खुद से बोलीं... लगाता हैं कोई आया हैं कौन आया होगा….।

कमला ने सिर्फ इतना ही बोला था की आने वाले ने बोला... कमला तुम अभी तक बाथरूम में हों। तुम्हें तो अब तक तैयार हों जाना चाहिए था।

कमला…हां! बस मुझे थोडा वक्त दीजिए मैं जल्दी से तैयार हों जाऊंगी। क्या आप मुझे तौलिया लाकर देंगे मैं तौलिया लाना भूल गई।

रघु... तुम दरवाजा खोलो मैं अभी देता हूं।

इतना बोलकर रघु तौलिया लिया फ़िर दरवाजा थपथपाया कमला ने थोडा सा दरवाजा खोला और हाथ बढ़ाकर बोला... लाइए जल्दी से तौलिया दीजिए

बाथरूम का दरवाजा खोलने से साबुन की सुगंध बहार निकल आया। जिसे सूघते ही रघु के मुंह से "ahaaa" की एक ध्वनि निकला फिर तौलिया कमला के हाथ में देते हुए उसका हाथ थाम लिया। जिसका असर ये हुआ की दोनों का बदन झनझना उठा और कमला हाथ खींचते हुए बोली... क्या करते हो जी मेरा हाथ छोड़िए।

रघु मुस्कुराते हुए कमला का हाथ छोड़ दिया फ़िर कुछ पल बिता था की कमला तौलिया लपेट कर बहार निकल आई। बीबी का ऐसा अवतार देखकर रघु बस एक टक देखता रह गया। देखने का नजरिया क्या था कहना मुस्कील हैं हवस था की प्यार था या फ़िर कुछ ओर ये बस रघु ही जानें परंतु रघु के चहरे की मुस्कान बता रहा था कि रघु कमला के इस रूप से बहुत प्रभावित हुआ हैं।

पति का ऐसे भाव विहीन और मन्द्र मुग्ध होकर खुद को देखता देखकर कमला मुस्कुराते हुए बोलीं…ऐसे क्या देख रहें हो जी मुझे देखना छोड़िए और जाकर जल्दी से नहा कर आइए हमे देर हों रहा हैं।

पत्नी का इतना बोलना था की रघु मंद मंद मुस्कान लवो पर लिए बाथरूम में घुस गया और कमला अलमारी के पास जाकर वस्त्र को उलट पुलट कर देखने लगीं की पहने तो क्या पहनें कमला के कपड़ो का तांता लगा हुआ था उनमें से कौन सा पहनें ये फैसला कमला नहीं कर पा रही थीं। बहरहाल कमला यूं ही वस्त्रों में उलझी रहीं और इतने वक्त में रघु भी बाथरूम से बहार आ गया। पत्नी को यूं वस्त्रों में उलझा देखकर रघु बोला... कमला ये क्या? तुम अभी तक तैयार नहीं हुई अभी तक वस्त्रों में उलझी हुई हों जल्दी करो हमे देर हों रहा हैं।

कमला…क्या करूं जी! पूरा अलमारी वस्त्रों से भरा पड़ा हैं मै फैसला नहीं कर पा रहीं हूं कौन सा पहनु एक हाथ में लेती हूं तो दूसरा पहनें का मन करता हैं दूसरा उठती हूं तो तीसरा पहनें का मन करता हैं। आप ही बता दीजिए न कौन सा पहनू।

रघु…कमला तुम इतनी खूबसूरत हों की जो भी पहनोगी तुम पर अच्छा लगेगा फ़िर भी आगर तुम मेरे पसन्द का पहना चहती हों तो तुम उसी गाउन को पहन लो जो तुमने सगाई वाले दिन पहना था। मैं एक बार फिर से तुम्हें उन्हीं कपड़ों में देखना चाहता हूं।

पति से इतना सुनने ही कमला के चहरे पर मुस्कान आ गई और कमला उस वस्त्र को बहार निकल लिया फ़िर रघु के लिए भी एक जोड़ी वस्त्र निकल कर रघु को दिया और खुद का वस्त्र लेकर बाथरूम में घुस गई। कुछ ही वक्त में दोनों तैयार होकर एक दूसरे का हाथ थामे कमरे से बहार निकलकर आए फ़िर बैठक में जाकर रघु सुरभि से बोला…मां हम लोग जा रहें हैं।

सुरभि... जा लेकिन संभाल कर जाना और बहू का ध्यान रखना ये जगह बहू के लिए नया है ओर हां मैंने कुछ लोगों को तुम्हारे साथ जानें को कह दिया हैं उनको भी साथ लेते जाना।

रघु... मां इसकी क्या जरूरत थीं?

सुरभि…सुरक्षा के लिए किसी का साथ रहना इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी हैं। तू जानता है तेरी शादी से पहले कितना कुछ हुआ था। इतनी अडंगा लगाने के बाद भी तेरी शादी हों गईं तो जाहिर सी बात हैं वो लोग खीसिया गए होंगे और एक खीसियाए हुए लोग कभी भी कुछ भी कर सकते हैं।

सुकन्या.. रघु जब दुश्मन अनजान हों तो हमारा फर्ज बनता हैं कि हम सतर्क रहें क्योंकि ऐसे लोग इंसान की खाल में छिपा हुआ भेड़िया हैं जो मौका मिलते हैं घात कर देते हैं। तू और बहू रात के वक्त बहार जा रहा हैं इसलिए हम चाहते है की कोई अनहोनी न हों तू बस चुप चाप दीदी ने जिनको तैयार रहने को कहा उन्हें साथ लेकर जा।

इतना कहने के बाद सुकन्या मन में बोली... रघु मैं जानता हूं इंसान की खाल में छिपा हुआ भेड़िया कौन कौन हैं पर मैं बता नहीं सकती, बताऊं भी तो कैसे बताऊं तेरे अपने ही अपनो की खुशियों को डसने में लगे हुए हैं।

मां और चाची की बाते सुनकर रघु को लगा उनका कहना भी सही है इसलिए न चाहते हुए भी रघु हां में सिर हिलाकर बहार को चल दिया, रघु की मानो दासा से सुरभि और सुकन्या भलीभाती परिचित थी। इन दोनों ने भी उम्र के इस पड़ाव से होकर गुजारे हैं शादी के शुरुवाती दिनों में शादीशुदा जोड़ा अपने एकांत पालो में किसी की दखलंदाजी बर्दास्त नहीं करते परन्तु इस वक्त परिस्थिति बिल्कुल बदला हुआ हैं।

रघु बहार आकर देखा कुछ अंगरक्षक तैयार खड़े हैं तो रघु ने उन्हें कुछ समझाया फ़िर चल दिया। रघु खुद कार चला रहा था और बगल वाली सीट पर कमला बैठी थीं। उनके पीछे पीछे कुछ दूरी बनाकर अंगरक्षकों का जीप चल रहा था। जो मुस्तैदी से आस पास और सामने चल रहे रघु की कार पर नज़र बनाए हुए थे।

कार को रघु सामान्य रफ्तार से चला रहा था और बार बार कमला के चहरे को देख रहा था। जहां उसे सिर्फ़ कमला का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिख रहा था। बीबी को इतनी खुश देखकर रघु भी अंदर ही अंदर खुश हों रहा था। अचानक कमला रघु से बोला... हम कहा जा रहे हैं।

रघु... घर पर बोला तो था फिर भी पूछ रहीं हों।

कमला…बोला था पर हम जहां जा रहे है वहां का कुछ नाम तो होगा मैं बस नाम जानना चहती हूं।

रघु... नाम तो नहीं बताऊंगा पर इतना जान लो वो जगह यहां का सबसे मशहूर जगह हैं।

कमला….मुझे पसन्द नहीं आया तो पहले ही कह देती हू मै वहां एक पल नहीं रुकने वाली।

रघु...न पसन्द आए ऐसा हों ही नहीं सकता देख लेना तुम ख़ुद ही वाह वाह करने लग जाओगी।

कमला... ऐसा हैं तो देर क्यों कर रहें हों कार को थोडा तेज चलाओ और मुझे वहां जल्दी पहुचाओ मैं भी देखूं ऐसी कौन सी जगह हैं जिसकी तारीफ में मेरे पति कसीदे पढ़े जा रहें हैं।

रघु...जैसी आप की मर्जी मालकिन जी मैं तो आपका गुलाम हूं आपकी हुक्म मानना मेरा परम कर्तव्य हैं ही ही ही।

इतना कहकर रघु कार की रफ्तार थोडी ओर बडा देता हैं और कमला मुस्कुराते हुए बोलीं…कौन गुलाम यह तो कोई गुलाम नहीं हैं यहां बस मेरा पति हैं। कहीं आपकी इशारा मेरे पति की ओर तो नहीं हैं ही ही ही।

इतना कहकर कमला खिलखिला कर हंस दिय। रघु बस मुस्कुराकर हा में सिर हिला दिया। कुछ ही वक्त में दोनों मसखरी करते हुए। माल रोड पर मौजूद एक भोजनालय के सामने पहुंच गए। हालाकि रात का वक्त था फिर भी लोगों की अजवाही हों रहा था। भोजनालय की भव्यता देखकर ही कहा जा सकता है की ये भोजनालय सिर्फ और सिर्फ रसूक दार लोगों के लिए बना हैं। कार के रूकते ही कुछ लोग दौड़कर आए और कार के पास खड़े हों गए। रघु के साथ आए अंगरक्षक भी तुरंत दौड़कर आए और रघु और कमला को घेरकर खड़े हों गए। उसी वक्त सूट बूट में एक बंदा आया और रघु को प्रणाम करते हुए बोला... प्रणाम युवराज आपका हमारे इस भोजनालय में स्वागत हैं।

रघु रूआव दार आवाज में बोला...जैसा मैंने आपसे कहा था बिल्कुल वैसी व्यवस्था हों गया न कुछ कामी रहीं तो सोच लेना।

"आपने खुद फोन करके कहा था तो कैसे कोई कमी रह सकता हैं। मैं दावे से कह सकता हूं आपने जैसा कहा था उससे बेहतर ही होगा। वैसे आपके साथ ये महिला कौन हैं जान सकता हूं।"

रघु...ये मेरी धर्मपत्नी कमला रघु प्रताप राना हैं। इन्हीं के लिए ही सारी व्यवस्था करवाया था मेरा पसन्द आना न आना व्यर्थ हैं इनको पसन्द आना चाहिए।

इतना बोलकर कमला का हाथ थामे अंदर को चल दिया और कमला बस रघु को देख रहा था साथ ही थोडी हैरान भी थीं। क्योंकि पहली बार रघु को किसी से रुआब दार आवाज में बात करते हुए देखा था और भोजनालय का बंदा चापलूसी करते हुए बोला... हमने इनके भी ख्याल का पूरा पूरा ध्यान रख हैं। मैं दावे से कह सकता हूं इन्हे तो हद से ज्यादा पसन्द आने वाली हैं।

बंदे की बात सुनकर कमला और रघु समझ गया मक्खन पेल के लगाया जा रहा है इसलिए रघु मन में बोला… बेटा जीतना मक्खन लगना है लगा ले आगर कमला को पसन्द नहीं आया तो तेरा ये भोजनालय सुबह होने से पहले धराशाई होकर मिटी में मिल जायेगा।

कमला मन में बोली... कितना चापलूस आदमी हैं खुद की बड़ाई ऐसे कर रहा हैं जैसे मेरी पसन्द की इन्हें पूरी जानकारी हैं।

कुछ कदम चलने के बाद बंदे ने एक और इशारा करते हुए बोला " इस ओर चलिए" बंदे के बताते ही कमला और रघु उस और चल दिया। एक गलियारे से होता हुआ सभी एक खुले मैदान में पहुंच गए वहा की सजावट देखते ही कमला अचंभित रह गई और रघु की और देखकर आंखो की भाषा में शुक्रिया अदा करने लग गईं। रघु के लिए बस इतना ही काफी था इसके आगे कुछ भी कहने की जरूरत ही नहीं पड़ा क्योंकि रघु ने जो भी किया सिर्फ कमला के खुशी के लिए ही किया था।

अब जरा हम भी देखे ऐसा किया था जिसे देखते ही कमला अचंभित हो गई। दरअसल ये एक पचास वर्ग मीटर का खुला मैदान था। जिसके चारों और सजावटी पेड़ और पौधे लगे हुए थे। मैदान में भी कही कही छोटे छोटे देवदार के पेड़ लगे थे जिसे करीने से कटकर कुछ को गोलाकार कुछ को शंकुआकर (conical) रूप दिया गया था। इन्हीं पेड़ों पर मोमबत्ती को जलाकर शीशे के चार दिवारी में बंद करके टंगा हुआ था। शीशे के कारण मोमबत्ती की प्रकाश और निखरकर वातावरण को रोशन कर रहा था। ऊपर खुला आसमान जहां टिमटिमाती तारे और नीचे पेड़ों पर टांगे कृत्रिम जुगनू ये सब मिलकर दृश्य को बडा ही लुभावना और रोमांचित कर देने वाला माहौल बना रहा था। इससे भी ज्यादा रोमांचित कर देने वाला दृश्य था बीच में लगा हुआ टेबल जिस पर जगनुओ को छोटे छोटे शीशे की पिटारी में बंद करके जगह जगह रखा हुआ था। जो टिमटिमा कर आसमान में चमकती तारों का एहसास दिला रहा था।


कमला की आंखों की भाषा पढ़कर रघु समझ गया कमला को ये बहुत पसन्द आया फिर भी वो कमला के मुंह से सुनना चाहता था इसलिए बोला…कमला कैसा लगा पसन्द आया की नहीं


आगे की कहानी अगले भाग से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏
Awesome super update
🌟🌟🌟💯💯✔️
 

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