Update - 3
सुबह का वक्त था। महल में सब उठ चुके थे। अपना अपना नित्य कर्म करके एक एक करके नाश्ते के टेबल पर बैठते जा रहे थे। महल में सब के लिए एक खाश नियम हैं। सबको सुबह का नाश्ता साथ में ही करना हैं। जिसने भी देर किया उसे उस दिन का नाश्ता नहीं मिलेगा। दिन के खाने पर कोई पाबंदी नहीं हैं वैसे ही रात के खाने में भी ज्यादा पाबंदी नहीं हैं। इसी बात से सुकन्या चिड़ी रहती हैं क्योंकि महारानी जी को देर तक सोने की आदत है। सुकन्या और रावण दोनों साथ में ही आ रहें थे। सुकन्या बोलती हैं…….
सुकन्या….. सुनो जी मुझसे रोज रोज जल्दी उठा नहीं जाएगा। आप कुछ भी करके सुबह साथ में नाश्ते के नियम में कुछ परिवर्तन कीजिए।
रावण…… सुकु डार्लिंग जब तक महल का सारा राज पाट मेरे हाथ नहीं आता तब तक सहन कर लो फिर तुम्हारे मुताबिक सब बदल देंगे।
सुकन्या…... वो दिन कब आयेगी आप सिर्फ़ दिलासा दिए जा रहे हों। आप कुछ करते क्यों नहीं।
रावण….. सुकू डार्लिंग सब होगा और हमारा भाग्य परिवर्तन भी होगा। समय का पहिया ऐसा घूमेगा सारे पत्ते हमारे हाथ में होगा। इक्के की ट्रेल से मैं ऐसी बाजी खेलूंगा, दादाभाई को चल चलने का मौका ही नहीं दुंगा।
सुकन्या…… पाता नहीं अपके समय का पहिया कब घूमेगी। आपका चल कब कमियाब होगी। मुझसे अब ओर प्रतिक्षा नहीं होती। कब तक ओर इस सुरभि के नीचे दब कर रहनी पड़ेगी।
रावण…. प्रतिक्षा तो मुझसे भी नहीं होता लेकिन मैं कर रहा हूं। तुम बोओदी ( भाभी) को कुछ दिन सहन कर लो फिर सब कुछ तुम्हारे हाथ में ही होगी। देखो दादाभाई और बोओदी आ गए हैं। उनके सामने कुछ उटपटांग मत बोलना नहीं तो मैं उनका ही पक्ष लूंगा।
सुकन्या सुरभि को देखकर मुंह भिचकती हैं और मन में बोलती हैं…." कर ले जितनी मन मानी करनी हैं तुझे तो इस घर से मैं धक्के मर कर बाहर निकालूंगी।" रावण जाकर अपनें भईया भाभी की पाव छूता हैं और पूछता हैं…..
रावण….. दादाभाई बोओदी कैसे हों?
राजेंद्र…. मैं ठीक हूं।
सुरभि….. मैं भी ठीक हूं।
सुकन्या खड़ी रहती हैं और अपना मुंह भिचकाती रहती हैं। रावण सुकन्या को देखकर बोलता हैं……
रावण… सूकू तुम क्यो नहीं छूती दादाभाई और बोओदी के पांव तुम्हें रोज कहना क्यों पड़ता हैं।
राजेन्द्र……. भाई जोर जबरदस्ती से कोई काम करवाना ठीक नहीं हैं। जब बहु का मन नहीं हैं तो रहने दो।
सुरभि…. भाईजी (देवर) जो काम मन से होता हैं वह ही शुद्ध होता हैं। छोटी का मन नहीं हैं तो रहने दो जब छोटी का मन करेंगी तब छू लेगी पांव। क्यों छोटी छओगी न पांव…
सुरभि कह कर मंद मंद मुस्कुरा देती हैं। सुरभि को मुस्कुराते हुए देखकर सुकन्या तिलमिला जाती हैं और मन में बोलती हैं….." छुआ ले जितनी पांव छुआनी हैं। कर ले मस्करी जितनी करनी हैं। एक दिन मैं तुझसे अपनी पांव नहीं दवबाया तो सुकन्या मेरी नाम नहीं।" सुकन्या ढिट की तरह खड़ी रहती हैं। रावण आंखो से इशारा करता हैं तब जाकर सुकन्या न चाहते हुए भी दोनों के पांव छूती हैं फिर आकर अपने जगह बैठ जाती हैं। वह का सारा माजरा अपस्यु देख और सुन लेता हैं। अपस्यु मन में सोचे हुए…" साला क्या ड्रामा हैं एक तो सुबह सुबह जल्दी उठा देते हैं। ऊपर से पांव छुते छुते कमर दुख जाता हैं। कब बंद होगा यह सब, चल आपू (अपस्यु) जो चल रहा हैं उसमे भाग लेकर अच्छे होने का ढोंग कर नहीं तो पापा मुझ पर भी चढ़ाई कर देंगे।" आपु जाकर पहले मां बाप के पांव छूता हैं और पांव छुते हुए बोलता हैं……
अपस्यु….. पापा शुभरात्रि के बाद सुबह दिन हों ऐसा आशीर्वाद अपने बेटे को दीजिए।
रावण….. मेरे बेटे की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों मैं मां काली से यहीं प्रार्थना करुंगा।
अपस्यू सुकन्या के पास जाकर उनका भी पांव छूता है। सुकन्या उसके सर पर हाथ रख देता हैं फिर अपस्यु बोलता हैं…….
अपस्यु…… मां अपने तो मुझे कुछ आशीर्वाद दिया ही नहीं।
सुकन्या…… तुमने कुछ मांगा ही नहीं।
अपस्यू…. अपने मेरे सर पे हाथ रख दिया मेरे लिए बहुत हैं।
सुरभि और राजेन्द्र देखकर मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं। अपस्यु राजेन्द्र के पास गया। उनके पांव छुते हुए मन में बोला…. "बड़े पापा मुझे आशीर्वाद दीजिए जल्दी ही सारा राज पाट आपसे छीनकर मैं अपने कब्जे में कर लूं।" राजेन्द्र अपस्यु के सर पर हाथ रख कर बोलते हैं……
राजेन्द्र… मैं मां कली से प्रार्थना करुंगा तुम्हारा सभी मनोकामना पूर्ण हों तुम हमेशा नेक रस्ते पर चलो।
अपस्यु मुस्कुराते हुए सुरभि के पास जाता हैं। उनका पांव छुते हुए मन में बोलता हैं……"बडी मां मुझे आशीर्वाद करों आपसे रानी का खिताब छीनकर मां को दे पाऊं।" सुरभि सर पर हाथ रखते हुए बोलते हैं……
सुरभि…. मेरी लाडले को मां काली सभी बुरी बलाओं से बचाकर रखें साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।
अपस्यु मुस्कुराते हुए अपने जगह जाकर बैठ जाता हैं। उसी वक्त रघु आता हैं। रघु के मन में न छल कपट होता हैं न ही बैर होता हैं। इसलिए सबसे आशीर्वाद लेते हुए अपने अच्छे भविष्य की कामना करता हैं। रघु जब सुरभि की पांव छूता हैं सुरभि रघु को उठाकर गले से लगकर अपना सारा स्नेह और ममता लुटाते हुए सुकन्या की और देखकर बोलती हैं…….
सुरभि……. मेरा बेटा जल्दी से एक परी सी सुंदर बहु लाए। जो अपनी खूबसूरती से महल की सुंदरता में चार चांद लगा दे।
रघु कुछ नहीं कहता सिर्फ़ मुस्कुराते हुए अपनी जगह जाकर बैठ जाता हैं। सुरभि सुकन्या की ओर देखकर मुस्कुरता हैं। सुकन्या मुंह भिचकाते हुए मन में बोलती हैं….."तू क्या लायेगी सुंदर बहु सुंदर बहु तो मैं अपनी लाडले के लिए लाऊंगी और उससे तुझे इतनी बेइज्जत करवाऊंगी तू खुद ही महल छोड़ कर भाग जायेगी।" सुकन्या को मुंह भिकाते हुए देखकर सुरभि मन में बोलती हैं…." छोटी तू भले ही मेरे बारे में कितना भी बुरा सोच ले या मेरे साथ कितना भी बुरा व्यवहार कर ले, मैं चाहकर भी तेरे लिए बुरा नहीं सोच सकती न ही कर सकती हूं, नहीं तो तुझमें और मुझमें फर्क क्या रह जायेगी। लेकिन एक दिन कोई ऐसा महल में आएगी जो तेरी ईट का जवाब पत्थर से देगी और मैं बैठकर तमाशा देखूंगी।" इसके बाद सब नाश्ता करने लगते हैं नाश्ता होने के बाद सब एक एक करके अपने आपने कमरे में चले जाते हैं। सुकन्या कमरे में जाकर रावण पर ही भड़क जाती हैं और बोलती हैं…….
सुकन्या….. वो सुरभि क्या काम थी। अब आप भी सब के सामने मुझे बेइजात करने लगे।
रावण….. अरे सूकु डार्लिंग तुम बिना करण भड़क रहीं हों। मैं तुम्हें पहले ही कहा था मेरे किसी भी बात का बुरा मत मानना।
सुकन्या….. आप जानते हैं मुझे उनका पैर छुना अच्छी नहीं लगती खाश कर उस सुरभि की फिर भी आपने जबरदस्ती किया और उसकी पैर छुने पर मुझे मजबूर किया। सुना नहीं अपने वो सुरभि कैसे मुझे तने मार रहीं थीं।
रावण….. मुझे भी कौन सा अच्छा लगता हैं फिर भी मैं उनके नजरों में अच्छे होने का ढोंग कर रहा हु। तुम्हें भी करना पड़ेगा।
सुकन्या……. देखो जी मुझसे ये ढोंग बोंग नही होगी। उस सुरभि के सामने तो बिल्कुल भी नहीं।
रावण….. सुकू़ डार्लिंग तुम्हें महल की रानी बना हैं न, तो यह सब करना ही होगा।
सुकन्या……. बनना तो हैं लेकिन इसके लिए मुझे उस सुरभि के सामने झुकना कतई मंजूर नहीं।
रावण…. अभी उनके सामने झुकोगी तभी तो उन्हें झुका पाओगी। इसलिए तुम्हें बोओदी के साथ अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा। सिर्फ बोओदी ही नहीं महल में मौजुद सभी नौकर चाकर के साथ तुम्हें अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा।
सुकन्या….. अब आप मुझे उन कीड़े मकोड़ों के सामने भी झुकने को कह रहें हों। अपको मेरे मन सम्मान की जरा भी फिक्र नहीं हैं। मैं ऐसा करूंगी तो उनके सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी।
रावण….. मैं नहीं चाहता कि हमारे बनाई योजना में कोइ भी चूक हों। इसलिए तुम्हें ऐसा करना होगा नहीं तो सब कुछ हमारे हाथ से निकल जायेगा।
सुकन्या…… ( बेमन से) ठीक हैं आप कहते हों तो मैं मान लेती हूं लेकिन मैं ज्यादा दिन तक ऐसा नहीं कर पाऊंगी।
रावण….. मैं जैसा जैसा कहता हु तूम करती जाओ फिर देखना जल्दी ही सब कुछ हमारे हाथ में होगा। अब तुम आराम करों मैं बाहर का कुछ कम निपटा कर आता हूं फिर अपनी सुकू डार्लिंग को बहुत सारा प्यार करूंगा।
सुकन्या मुस्करा देती हैं और रावण अपने कम करने चला जाता हैं। राजेन्द्र भी मुंशी को साथ लेकर बाहर चला जाता हैं। रघु बच्चों को पढ़ाने चला जाता हैं। अपस्यु भी कही मौज मस्ती करने निकल जाता हैं। कालकाता में कमला महेश मनोरमा नाश्ता कर रहे हैं। नाश्ता करते हुए महेश जी बोलते हैं……..
महेश….. कमला बेटी आज कोई भी थोड़ फोड़ मत करना। कल अपने सब तोड़ दिया हैं। पहले अब कुछ खरीद लू फिर जितना मन करे तोड़ फोड़ कर लेना।
मनोरमा….. वाह जी वाह इसे टोकने के वजह आप इसे ओर बड़वा दे रहें हों। कमला तू एक काम कर रोज रोज तोड़ फोड़ करने के वजह तू यह घर ही गिरा दे इससे दो काम होंगे हम झोपड़ी में रहने लगेंगे और तोड़ फोड भी नहीं होगी।
कमला….. आप कहती हों तो किसी दिन यह भी कर दूंगी फिर आप ये मत कहना मेरी ही बेटी मेरी सजाई हुई घर ही तोड़ दिया।
मनोरमा कमला की बात सुनाकर कुछ ढूंढें लगते हैं। उसे कुछ नहीं मिलती तो एक प्लेट उठाकर बोलती हैं…" तू तो आज मेरे हाथों बहुत पिटेगी मेरी ही घर तोडने पे तुली हैं।" कमला उठा कर महेश के पीछे छिपती हैं और बोलती हैं…….
कमला….. पापा मुझे बचाओ आज तक मैं ही तोड़ फोड़ करती थी आज मां मुझे तोड़ने पर उतारू हों गई।
मनोरमा….. आज तूझे कोई नहीं बचाएगी बहुत तोड़ फोड़ करती हैं न तू, आज तेरा हड्डी पसली टूटेगी तब तूझे पाता चलेगी।
कमला….. पापा आप मम्मी को रोकते क्यों नहीं और मम्मी मैं कौन सा अपकी हड्डी पसली तोड़ती हूं मैं तो सिर्फ घर का समान तोडती हूं वो भी गुस्सा होने पर जब मैं गुस्से में नहीं होता हूं तो कितनी मासूम और प्यारी बच्ची बनकर रहती हूं।
महेश उठकर मनोरमा को रोकता हैं। मनोरमा छूटने के लिए जाद्दो जेहद करती हैं लेकिन महेश के पकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पाती फीर बोलती हैं……
मनोरमा….. देखो जी आप इसके बहकावे में मात आओ ये कोई मासूम और प्यारी बच्ची नहीं हैं पुरा का पुरा चांडी अवतार हैं इसलिए कहती हूं आप मुझे छोडो नहीं तो इस प्लेट से आपका ही सर फोड़ दूंगी।
कोमल... ही ही ही ही….. पापा मम्मी तो मुझे छोड़कर अपका सर फोड़ने पर उतारू हों गईं। आप मम्मी को सम्हालिए तब तक मैं हैलमेट लेकर आती हूं।
कमला भागकर किचन जाती है वह से दो भगोना लेकर आती हैं एक अपनी सर पर रखती हैं दूसरा अपने हाथ में लेकर कहती हैं…….
कमला…… आओ मम्मी अब दोनों मां बेटी
में जामकर मुकाबला होगी।
मनोरमा जो गुस्से का दिखावा कर रहीं थीं। कमला को देखकर पेट पकड़ कर हॅंसने लगाती हैं। महेश भी हॅंसने से खुद को रोक नहीं पाता हैं। कमला दोनों को हॅंसते हुए देखकर बोलती हैं…….
कमला…… वाह जी वाह अभी तो झांसी की राना बानी हुईं थीं और अब पेट पाकर कर हॅंस रही हों। मैंने क्या कोई जोक सुना दिया?
पर मनोरमा और महेश हॅंसे ही जा रहें थे। कमल को कुछ समझ ही नहीं आ रही थीं। कमल कभी आपने हाथ वाले भगोने को देखती तो कभी अपने सर वाले भागने को हाथ मे लेकर देखती फिर सर पर रख देती। कमला के ऐसा करने से दोनों ओर जोर जोर से हॅंसने लगते हैं फिर मनोरम कमला के पास आकर उसके हाथ से और सर से भगोना लेकर निचे रखती हैं और बोलती….
मनोरम…. छोड़ ये सब ओर जल्दी से नाश्ता कर और कॉलेज जा
सब फिर से नाश्ता करने बैठ जाते हैं। कमला नाश्ता करके कॉलेज को चल देते हैं और महेश आपने ऑफिस आज की लिऐ इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट में साथ बने रहने के लिए आप अब को बहुत बहुत धन्यवाद।