Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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Update - 3


सुबह का वक्त था। महल में सब उठ चुके थे। अपना अपना नित्य कर्म करके एक एक करके नाश्ते के टेबल पर बैठते जा रहे थे। महल में सब के लिए एक खाश नियम हैं। सबको सुबह का नाश्ता साथ में ही करना हैं। जिसने भी देर किया उसे उस दिन का नाश्ता नहीं मिलेगा। दिन के खाने पर कोई पाबंदी नहीं हैं वैसे ही रात के खाने में भी ज्यादा पाबंदी नहीं हैं। इसी बात से सुकन्या चिड़ी रहती हैं क्योंकि महारानी जी को देर तक सोने की आदत है। सुकन्या और रावण दोनों साथ में ही आ रहें थे। सुकन्या बोलती हैं…….

सुकन्या….. सुनो जी मुझसे रोज रोज जल्दी उठा नहीं जाएगा। आप कुछ भी करके सुबह साथ में नाश्ते के नियम में कुछ परिवर्तन कीजिए।

रावण…… सुकु डार्लिंग जब तक महल का सारा राज पाट मेरे हाथ नहीं आता तब तक सहन कर लो फिर तुम्हारे मुताबिक सब बदल देंगे।

सुकन्या…... वो दिन कब आयेगी आप सिर्फ़ दिलासा दिए जा रहे हों। आप कुछ करते क्यों नहीं।

रावण….. सुकू डार्लिंग सब होगा और हमारा भाग्य परिवर्तन भी होगा। समय का पहिया ऐसा घूमेगा सारे पत्ते हमारे हाथ में होगा। इक्के की ट्रेल से मैं ऐसी बाजी खेलूंगा, दादाभाई को चल चलने का मौका ही नहीं दुंगा।

सुकन्या…… पाता नहीं अपके समय का पहिया कब घूमेगी। आपका चल कब कमियाब होगी। मुझसे अब ओर प्रतिक्षा नहीं होती। कब तक ओर इस सुरभि के नीचे दब कर रहनी पड़ेगी।

रावण…. प्रतिक्षा तो मुझसे भी नहीं होता लेकिन मैं कर रहा हूं। तुम बोओदी ( भाभी) को कुछ दिन सहन कर लो फिर सब कुछ तुम्हारे हाथ में ही होगी। देखो दादाभाई और बोओदी आ गए हैं। उनके सामने कुछ उटपटांग मत बोलना नहीं तो मैं उनका ही पक्ष लूंगा।

सुकन्या सुरभि को देखकर मुंह भिचकती हैं और मन में बोलती हैं…." कर ले जितनी मन मानी करनी हैं तुझे तो इस घर से मैं धक्के मर कर बाहर निकालूंगी।" रावण जाकर अपनें भईया भाभी की पाव छूता हैं और पूछता हैं…..

रावण….. दादाभाई बोओदी कैसे हों?

राजेंद्र…. मैं ठीक हूं।

सुरभि….. मैं भी ठीक हूं।

सुकन्या खड़ी रहती हैं और अपना मुंह भिचकाती रहती हैं। रावण सुकन्या को देखकर बोलता हैं……

रावण… सूकू तुम क्यो नहीं छूती दादाभाई और बोओदी के पांव तुम्हें रोज कहना क्यों पड़ता हैं।

राजेन्द्र……. भाई जोर जबरदस्ती से कोई काम करवाना ठीक नहीं हैं। जब बहु का मन नहीं हैं तो रहने दो।

सुरभि…. भाईजी (देवर) जो काम मन से होता हैं वह ही शुद्ध होता हैं। छोटी का मन नहीं हैं तो रहने दो जब छोटी का मन करेंगी तब छू लेगी पांव। क्यों छोटी छओगी न पांव…

सुरभि कह कर मंद मंद मुस्कुरा देती हैं। सुरभि को मुस्कुराते हुए देखकर सुकन्या तिलमिला जाती हैं और मन में बोलती हैं….." छुआ ले जितनी पांव छुआनी हैं। कर ले मस्करी जितनी करनी हैं। एक दिन मैं तुझसे अपनी पांव नहीं दवबाया तो सुकन्या मेरी नाम नहीं।" सुकन्या ढिट की तरह खड़ी रहती हैं। रावण आंखो से इशारा करता हैं तब जाकर सुकन्या न चाहते हुए भी दोनों के पांव छूती हैं फिर आकर अपने जगह बैठ जाती हैं। वह का सारा माजरा अपस्यु देख और सुन लेता हैं। अपस्यु मन में सोचे हुए…" साला क्या ड्रामा हैं एक तो सुबह सुबह जल्दी उठा देते हैं। ऊपर से पांव छुते छुते कमर दुख जाता हैं। कब बंद होगा यह सब, चल आपू (अपस्यु) जो चल रहा हैं उसमे भाग लेकर अच्छे होने का ढोंग कर नहीं तो पापा मुझ पर भी चढ़ाई कर देंगे।" आपु जाकर पहले मां बाप के पांव छूता हैं और पांव छुते हुए बोलता हैं……

अपस्यु….. पापा शुभरात्रि के बाद सुबह दिन हों ऐसा आशीर्वाद अपने बेटे को दीजिए।

रावण….. मेरे बेटे की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों मैं मां काली से यहीं प्रार्थना करुंगा।

अपस्यू सुकन्या के पास जाकर उनका भी पांव छूता है। सुकन्या उसके सर पर हाथ रख देता हैं फिर अपस्यु बोलता हैं…….

अपस्यु…… मां अपने तो मुझे कुछ आशीर्वाद दिया ही नहीं।

सुकन्या…… तुमने कुछ मांगा ही नहीं।

अपस्यू…. अपने मेरे सर पे हाथ रख दिया मेरे लिए बहुत हैं।

सुरभि और राजेन्द्र देखकर मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं। अपस्यु राजेन्द्र के पास गया। उनके पांव छुते हुए मन में बोला…. "बड़े पापा मुझे आशीर्वाद दीजिए जल्दी ही सारा राज पाट आपसे छीनकर मैं अपने कब्जे में कर लूं।" राजेन्द्र अपस्यु के सर पर हाथ रख कर बोलते हैं……

राजेन्द्र… मैं मां कली से प्रार्थना करुंगा तुम्हारा सभी मनोकामना पूर्ण हों तुम हमेशा नेक रस्ते पर चलो।

अपस्यु मुस्कुराते हुए सुरभि के पास जाता हैं। उनका पांव छुते हुए मन में बोलता हैं……"बडी मां मुझे आशीर्वाद करों आपसे रानी का खिताब छीनकर मां को दे पाऊं।" सुरभि सर पर हाथ रखते हुए बोलते हैं……

सुरभि…. मेरी लाडले को मां काली सभी बुरी बलाओं से बचाकर रखें साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।

अपस्यु मुस्कुराते हुए अपने जगह जाकर बैठ जाता हैं। उसी वक्त रघु आता हैं। रघु के मन में न छल कपट होता हैं न ही बैर होता हैं। इसलिए सबसे आशीर्वाद लेते हुए अपने अच्छे भविष्य की कामना करता हैं। रघु जब सुरभि की पांव छूता हैं सुरभि रघु को उठाकर गले से लगकर अपना सारा स्नेह और ममता लुटाते हुए सुकन्या की और देखकर बोलती हैं…….

सुरभि……. मेरा बेटा जल्दी से एक परी सी सुंदर बहु लाए। जो अपनी खूबसूरती से महल की सुंदरता में चार चांद लगा दे।

रघु कुछ नहीं कहता सिर्फ़ मुस्कुराते हुए अपनी जगह जाकर बैठ जाता हैं। सुरभि सुकन्या की ओर देखकर मुस्कुरता हैं। सुकन्या मुंह भिचकाते हुए मन में बोलती हैं….."तू क्या लायेगी सुंदर बहु सुंदर बहु तो मैं अपनी लाडले के लिए लाऊंगी और उससे तुझे इतनी बेइज्जत करवाऊंगी तू खुद ही महल छोड़ कर भाग जायेगी।" सुकन्या को मुंह भिकाते हुए देखकर सुरभि मन में बोलती हैं…." छोटी तू भले ही मेरे बारे में कितना भी बुरा सोच ले या मेरे साथ कितना भी बुरा व्यवहार कर ले, मैं चाहकर भी तेरे लिए बुरा नहीं सोच सकती न ही कर सकती हूं, नहीं तो तुझमें और मुझमें फर्क क्या रह जायेगी। लेकिन एक दिन कोई ऐसा महल में आएगी जो तेरी ईट का जवाब पत्थर से देगी और मैं बैठकर तमाशा देखूंगी।" इसके बाद सब नाश्ता करने लगते हैं नाश्ता होने के बाद सब एक एक करके अपने आपने कमरे में चले जाते हैं। सुकन्या कमरे में जाकर रावण पर ही भड़क जाती हैं और बोलती हैं…….

सुकन्या….. वो सुरभि क्या काम थी। अब आप भी सब के सामने मुझे बेइजात करने लगे।

रावण….. अरे सूकु डार्लिंग तुम बिना करण भड़क रहीं हों। मैं तुम्हें पहले ही कहा था मेरे किसी भी बात का बुरा मत मानना।

सुकन्या….. आप जानते हैं मुझे उनका पैर छुना अच्छी नहीं लगती खाश कर उस सुरभि की फिर भी आपने जबरदस्ती किया और उसकी पैर छुने पर मुझे मजबूर किया। सुना नहीं अपने वो सुरभि कैसे मुझे तने मार रहीं थीं।

रावण….. मुझे भी कौन सा अच्छा लगता हैं फिर भी मैं उनके नजरों में अच्छे होने का ढोंग कर रहा हु। तुम्हें भी करना पड़ेगा।

सुकन्या……. देखो जी मुझसे ये ढोंग बोंग नही होगी। उस सुरभि के सामने तो बिल्कुल भी नहीं।

रावण….. सुकू़ डार्लिंग तुम्हें महल की रानी बना हैं न, तो यह सब करना ही होगा।

सुकन्या……. बनना तो हैं लेकिन इसके लिए मुझे उस सुरभि के सामने झुकना कतई मंजूर नहीं।

रावण…. अभी उनके सामने झुकोगी तभी तो उन्हें झुका पाओगी। इसलिए तुम्हें बोओदी के साथ अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा। सिर्फ बोओदी ही नहीं महल में मौजुद सभी नौकर चाकर के साथ तुम्हें अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा।

सुकन्या….. अब आप मुझे उन कीड़े मकोड़ों के सामने भी झुकने को कह रहें हों। अपको मेरे मन सम्मान की जरा भी फिक्र नहीं हैं। मैं ऐसा करूंगी तो उनके सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी।

रावण….. मैं नहीं चाहता कि हमारे बनाई योजना में कोइ भी चूक हों। इसलिए तुम्हें ऐसा करना होगा नहीं तो सब कुछ हमारे हाथ से निकल जायेगा।

सुकन्या…… ( बेमन से) ठीक हैं आप कहते हों तो मैं मान लेती हूं लेकिन मैं ज्यादा दिन तक ऐसा नहीं कर पाऊंगी।

रावण….. मैं जैसा जैसा कहता हु तूम करती जाओ फिर देखना जल्दी ही सब कुछ हमारे हाथ में होगा। अब तुम आराम करों मैं बाहर का कुछ कम निपटा कर आता हूं फिर अपनी सुकू डार्लिंग को बहुत सारा प्यार करूंगा।

सुकन्या मुस्करा देती हैं और रावण अपने कम करने चला जाता हैं। राजेन्द्र भी मुंशी को साथ लेकर बाहर चला जाता हैं। रघु बच्चों को पढ़ाने चला जाता हैं। अपस्यु भी कही मौज मस्ती करने निकल जाता हैं। कालकाता में कमला महेश मनोरमा नाश्ता कर रहे हैं। नाश्ता करते हुए महेश जी बोलते हैं……..

महेश….. कमला बेटी आज कोई भी थोड़ फोड़ मत करना। कल अपने सब तोड़ दिया हैं। पहले अब कुछ खरीद लू फिर जितना मन करे तोड़ फोड़ कर लेना।

मनोरमा….. वाह जी वाह इसे टोकने के वजह आप इसे ओर बड़वा दे रहें हों। कमला तू एक काम कर रोज रोज तोड़ फोड़ करने के वजह तू यह घर ही गिरा दे इससे दो काम होंगे हम झोपड़ी में रहने लगेंगे और तोड़ फोड भी नहीं होगी।

कमला….. आप कहती हों तो किसी दिन यह भी कर दूंगी फिर आप ये मत कहना मेरी ही बेटी मेरी सजाई हुई घर ही तोड़ दिया।

मनोरमा कमला की बात सुनाकर कुछ ढूंढें लगते हैं। उसे कुछ नहीं मिलती तो एक प्लेट उठाकर बोलती हैं…" तू तो आज मेरे हाथों बहुत पिटेगी मेरी ही घर तोडने पे तुली हैं।" कमला उठा कर महेश के पीछे छिपती हैं और बोलती हैं…….

कमला….. पापा मुझे बचाओ आज तक मैं ही तोड़ फोड़ करती थी आज मां मुझे तोड़ने पर उतारू हों गई।

मनोरमा….. आज तूझे कोई नहीं बचाएगी बहुत तोड़ फोड़ करती हैं न तू, आज तेरा हड्डी पसली टूटेगी तब तूझे पाता चलेगी।

कमला….. पापा आप मम्मी को रोकते क्यों नहीं और मम्मी मैं कौन सा अपकी हड्डी पसली तोड़ती हूं मैं तो सिर्फ घर का समान तोडती हूं वो भी गुस्सा होने पर जब मैं गुस्से में नहीं होता हूं तो कितनी मासूम और प्यारी बच्ची बनकर रहती हूं।

महेश उठकर मनोरमा को रोकता हैं। मनोरमा छूटने के लिए जाद्दो जेहद करती हैं लेकिन महेश के पकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पाती फीर बोलती हैं……

मनोरमा….. देखो जी आप इसके बहकावे में मात आओ ये कोई मासूम और प्यारी बच्ची नहीं हैं पुरा का पुरा चांडी अवतार हैं इसलिए कहती हूं आप मुझे छोडो नहीं तो इस प्लेट से आपका ही सर फोड़ दूंगी।

कोमल... ही ही ही ही….. पापा मम्मी तो मुझे छोड़कर अपका सर फोड़ने पर उतारू हों गईं। आप मम्मी को सम्हालिए तब तक मैं हैलमेट लेकर आती हूं।

कमला भागकर किचन जाती है वह से दो भगोना लेकर आती हैं एक अपनी सर पर रखती हैं दूसरा अपने हाथ में लेकर कहती हैं…….

कमला…… आओ मम्मी अब दोनों मां बेटी

में जामकर मुकाबला होगी।

मनोरमा जो गुस्से का दिखावा कर रहीं थीं। कमला को देखकर पेट पकड़ कर हॅंसने लगाती हैं। महेश भी हॅंसने से खुद को रोक नहीं पाता हैं। कमला दोनों को हॅंसते हुए देखकर बोलती हैं…….

कमला…… वाह जी वाह अभी तो झांसी की राना बानी हुईं थीं और अब पेट पाकर कर हॅंस रही हों। मैंने क्या कोई जोक सुना दिया?

पर मनोरमा और महेश हॅंसे ही जा रहें थे। कमल को कुछ समझ ही नहीं आ रही थीं। कमल कभी आपने हाथ वाले भगोने को देखती तो कभी अपने सर वाले भागने को हाथ मे लेकर देखती फिर सर पर रख देती। कमला के ऐसा करने से दोनों ओर जोर जोर से हॅंसने लगते हैं फिर मनोरम कमला के पास आकर उसके हाथ से और सर से भगोना लेकर निचे रखती हैं और बोलती….

मनोरम…. छोड़ ये सब ओर जल्दी से नाश्ता कर और कॉलेज जा


सब फिर से नाश्ता करने बैठ जाते हैं। कमला नाश्ता करके कॉलेज को चल देते हैं और महेश आपने ऑफिस आज की लिऐ इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट में साथ बने रहने के लिए आप अब को बहुत बहुत धन्यवाद।
Mast update h bhai
 
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Update - 4

अपर धन संपत्ति राज परिवार का बडा बेटा होने के बाद भी न जानें राजेंद्र को किया सूझा जो रघु को स्कूल में बिना किसी शुल्क के छोटे छोटे बच्चों को पढ़ाने के काम में लगा रखा था। रघु जब से कॉलेज छोड़ा तभी से ही छोटे छोटे बच्चों को पढ़ाने जा रहें थें। आज भी रघु नाश्ते से निपट कर स्कूल जा रहा था रस्ते में लोगों का भीड देख कार को रोका फिर भीड़ की ओर बढ़ गया। उचक उचक कर देखने की कोशिश कर रहा था कि इतनी भीड़ जामा होने का करण क्या हैं? लेकिन कुछ दिखाई नहीं दे रहा था इसलिए आगे जानें की सोच कर भीड़ में से होकर आगे बढ़ने लगा। लेकिन भीड़ हटने का नाम ही नहीं ले रहा था। भीड़ में से निकलने की जद्दोजेहद में एक नौजवान लड़के को धक्का लगा। नौजवान तिलमिलाकर बोला...कौन हैं वे जो धक्का दे रहा हैं।

बोलकर पीछे मुड़ा, रघु को देख हाथ जोड़ लिया फिर सफाई देते हुए बोला…मालिक आप! माफ करना मैं किसी अन्य को समझ बैठा था।

मुस्कुराते हुए रघु नौजवान को देखा फिर जोड़े हाथ को खोलते हुए बोला…भाई भीड़ में अक्षर एक दूसरे को धक्का लग ही जाता हैं। इसमें आप'का कोई गलती नहीं हैं। गलती तो मुझ'से हुआ, धक्का आप'को मैंने मारा और माफी आप मांग रहे हों जबकि माफ़ी मुझे मांगना चाहिए। माफ करना भाई।

माफ़ी शब्द सुन नौजवान दाएं बाएं देखने लग गया, कोई देख तो नहीं रहा जब उसे लगा कोई देख नहीं रहा तब बोला...मालिक माफी मांगकर आप मुझे शर्मिंदा न करें।

रघु आगे कुछ कहता तभी भीड़ पार से कोई तेज तेज चीखते हुए बोला…इस भीड़ में ऐसा कोई नहीं हैं जो मुझे इन जालिमों से बचा सके, कोई तो मुझे बचाओ नहीं तो ये जालिम मुझे मार डालेंगे।

आवाज आई दिशा की ओर भीड़ को चीरते हुए रघु बढ़ने लग गया आगे जानें में रघु को दिक्कत हों रहा था। इसलिए नौजवान चीख कर बोला…हटो हटो रास्ता दो मालिक आए हैं।

भीड़ में से कुछ लोग पीछे पलट कर देखा रघु को देख वो लोग सक्रिय हो गए और आगे जाने के लिए रस्ता बनाने लग गए, पल भर में खचा खच भरी भीड़ में एक गलियारा बन गया। गलियारे से हो'कर रघु आगे बढ़ गया। नौजवान भी रघु के पीछे पीछे चल दिया। आगे जा ही रहे थे तभी एक ओर आवाज सुनाई दिया…बुला जिसे बुलाना हैं आज तुझे कोई नहीं बचा पाएगा। इन नामर्दों के भीड़ में से तो कोई नहीं!

जल्दी जल्दी कदम तल करते हुए रघु भीड़ के सामने पहुंचा वहा एक बुजुर्ग बहुत घायल अवस्था में लेटा हुआ था एक नकाब पोश बंदा बुजुर्ग के छीने पर लाठी टिकाए खड़ा था। आस पास तीन बंदे ओर हाथ में लाठी लिए खडे थे। इस मंजर को देख रघु का पारा चढ़ गया फिर दहाड़ कर बोला…एक बुजुर्ग को चार लोग मिलकर मार रहे हों और ख़ुद को मर्द बोल रहे हो। मुझे तो तू सब से बड़ा नामर्द लग रहा हैं।

अचानक रघु की दहाड़ सुन नकाब पोश बंदे और वह मौजुद सभी लोग रघु की ओर देखने लगे रघु को वहा देख सभी अचंभित हो गए। बुजुर्ग रघु की ओर दयनीय दृष्टि से देख रहे थे जैसे कह रहा हों…मालिक मुझे बचा लो नहीं तो ये जालिम मुझे मार डालेंगे।

नकाब पोश बंदे रघु को पहली बार देख रहे थे इसलिए पहचान नहीं पाए, उनमें से एक अटाहास करते हुए बोला...देखो देखो नामर्दों के भीड़ में एक मर्द पैदा हों गया। जब तू मर्द बन ही रहा हैं तो अपना परिचय खुद ही बता दे, तू कौन हैं?

नकाबपोश की बात सुन भीड़ में से कुछ लोग सिर पर हाथ मरते हुए मन ही मन बोले…अरे नासपीटे जिनकी जागीर में खडे हो कुकर्म कर रहा हैं। उनसे ही उनका परिचय पुछ रहा हैं।

नकाबपोश कि बात सुन रघु मुस्कुरा दिया फिर दहाड़ कर बोला…तुझे मेरा परिचय जानना हैं तो सुन तू जिस जागीर पर खडे हो मर्दानगी दिखा रहा है। मैं उस जागीर के मालिक राजेंद्र प्रताप राना का बेटा रघु वीर प्रताप राना हूं। मिल गया मेरा परिचय।

रघु से परिचय सुन नकाब पोश बंदे आपस में ही खुशर पुशर करते हुए बोला…अरे ये तो राजाजी का बेटा हैं मैं कहता हू निकल लो नहीं तो सूली पे टांगना तय हैं।

"अरे ये कहा से आ गया भाई भागो नहीं तो पक्का आज मारे जाएंगे"

"अब्बे भागेंगे कैसे अपने हाथ में लठ हैं बंदूक नहीं जो डरा धमका के निकल जाएंगे"

"अब्बे सालो डरा क्यों रहें हों जान बचाना हैं तो सब से पहले रघु को ही निपटा देते हैं नहीं तो पकड़े जाएंगे। पकड़े गए तो हमारा भांडा फुट जायेगा ऐसा हुआ तो छोटे मालिक हमे और हमारे परिवार वालों को जिंदा ही दफन कर देंगे"

खुशार पुशार करते देख रघु बोल...क्या हुआ परिचय पसंद नहीं आया नहीं आय तो कोई बात नहीं, जान की सलामती चहते हों तो काका को छोड़ दो और घुटनो पर बैठ जाओ फिर भीड़ से बोला….सुनो तुम सब भीड़ में खडे खडे तमाशा क्या देख रहे हों पकड़ो इन जालिमों को।

रघु की बात सुन भीड़ में से कुछ नौजवान बाहर आने लग गए। भीड़ में हलचल होता देख नकाब पोश अपने अपने जगह से हिले, रघु की ओर बढ़ते हुए लीडर बोला...कोई अपने जगह से नहीं हिलेगा नहीं तो रघु की हड्डी पसली तोड़ देंगे।

नकाबपोश लीडर की धमकी सुन भीड़ में हों रहा हलचल रूक गया। नकाब पोश बंदे रघु की ओर बड़ने लगे तभी गोली चलने कि आवाज आया फिर वादी में एक आवाज गूंजा...कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा जो जहां खड़ा है वही खडे रहे नहीं तो तुम्हारे धड़ से प्राण को आजाद कर दुंगा।

भीड़ को चीरते हुए एक शख्स हाथ में दो नाली लिए आगे आ रहा था, पीछे पीछे चार पांच बंदे दो नाली लिए आ रहे थे उनको देख भीड़ ने रस्ता बाना दिया। जब रघु की नज़र उन'पे पडा तो मुस्कुराते हुए बोला…वाह काका बिल्कुल सही टाइम पर एंट्री मारे हों देखो ये गुंडे आप'के भतीजे की हड्डी पसली तोड़ना चाहते हैं।

रावण तब तक उनके नजदीक पहुंच चुका था। रावण को देख नकाब पोश बंदे लठ छोड़ घुटनों पर बैठ गए। नकाबपोशों को बैठते देख रावण बोला…रघु बेटा ये तो ख़ुद थर थर कांप रहे हैं ये किया हड्डी पसली तोडेंगे। फिर अपने आदमियों से...तुम लोग खडे खडे मेरा मुंह क्या देख रहे हों इनके भेजे में एक एक गोली दागों ओर इनके पापी प्राण को मुक्त कर दो।

चार गोली चली ओर चारों नकाब पोश ढेर हों गए। तब रघु बोला…ये क्या काका मारने की इतनी जल्दी क्या थी पहले इनसे पता तो कर लेते बजुर्ग काका को मार क्यो रहें थे?

रावण…रघु बेटा इन सभी ने तुम्हारे हड्डी पसली तोड़ने की बात कहीं। मैं इन्हे कैसे छोड़ देता अब जो होना था हों गया। फिर भीड़ से बोला…तुम सभी खडे खडे तमाशा क्या देख रहे हों जाओ सब अपना अपना काम करो कभी किसी को मरते हुए नहीं देखा।

भीड़ पाल भर में ही तीतर बितर हों गया रावण और रघु बुजुर्ग के ओर बढ़े, दोनों को पास आते देख बुजुर्ग डर से कांपने लग गए। रावण बुर्जुग को देख मंद मंद मुस्कुरा रहा था मुस्कान साधारण नहीं था। उसके मुस्कान को देख लग रहा था जैसे बड़ा कुछ होते होते टाल गया। दोनों बुजुर्ग के पास पहुंचे रावण खडे खडे मुस्कुरा रहा था और रघु बुजुर्ग के पास बैठ गया। बुजुर्ग डर कर पीछे को खिसक रहें थें। तब रघु बुजुर्ग का हाथ पकड़ रोक लिया फिर बोला…काका आप डर क्यों रहे हों। आप को कुछ नहीं होगा। देखो आप'को चोट पहुंचाने वाले मुर्दा बन जमीन पर लेटे हैं। चलिए आप'को डॉक्टर के पास ले चलते हैं आप'को बहुत चोट लगा हैं।

रावण…रघु बेटा इनको डॉक्टर के पास मैं ले जाता हूं तुम जाओ बच्चे तुम्हारा प्रतिक्षा कर रहे हैं।

रघु…पर

रावण…पर वार कुछ नहीं तुम जाओ मैं इनको अच्छे से अस्पताल पहुंचा दूंगा।

रघु…ठीक हैं काका।

बुजुर्ग रावण के साथ अस्पताल जाने की बात से ओर ज्यादा डर गया। पर कुछ कर नहीं पा रहा था न ही कुछ कह पा रहा था। रावण के आदमी बुजुर्ग को उठा जीप में डाला और रावण के पीछे पीछे चल दिया। रघु भी कार ले मंजिल की ओर चल पड़ा। रावण बुर्जुग को लेकर भीड़ भाड से दूर जंगल की ओर चल दिया। कुछ दूर जाने के बाद एक सुनसान जगह गाड़ी रोका फिर अपने आदमियों को साथ ले जंगल की ओर चल दिया। कुछ दूर अदंर जानें के बाद रावण ने बुजुर्ग को धक्का दे गिरा दिया फिर दो नली बंदूक बुजुर्ग के सिर पे टिका बोला…क्यों रे हरमी तुझे जान प्यारा नहीं जो दादा भाई को हमारे साजिश के बारे में बताने जा रहा था।

बुजुर्ग डर के मारे थर थर कांपने लगा। मुंह जो अब तक सिला हुआ था अचानक खुला फिर बुजुर्ग बोला…मालिक मुझे माफ़ कर दो मैं भूल कर भी ऐसा नहीं करूंगा मुझे बख्श दो।

रावण…बख्श दू तुझे हा हा हा हा मैं कलियुग का रावण हूं मुझमें दया नाम कि कोई चीज नहीं हैं। हां हां हां हां हां

ढिसकाऊऊऊ एक गोली चला फ़िर वादी में एक मरमाम चीख गूंजा और सब शान्त हों गया फिर रावण बोला…चलो रे लाश को पहाड़ी से नीचे फेंक दो जंगली जानवर खाकर भूख मिटा लेगा ।

रावण के आदमियों ने शव को उठाया और कुछ दूर जा पहाड़ी से नीचे खाई में फेक दिया फिर उस जगह को अच्छे से साफ कर दिया फिर चल दिया।

रघु कुछ वक्त कार चलाने के बाद एक स्कूल के अदंर कार रोका और चल दिया एक पेड़ कि ओर जहां बच्चे बैठे हुए थे। रघु बच्चों को पढ़कर दोपहर दो बाजे तक घर पहुंच गया। इस वक्त महल में सब खाना खा कर आराम कर रहे थे। रघु भी खान खाकर आराम करने चला दिया।

आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

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रघु घर से निकला कार लिया और चल दिया बच्चों पढ़ने, रघु कुछ ही दूर गया था कि भीड़ देखकर कार रोका और भीड़ की ओर बड़ गया। रघु उचक उचक कर देखने की कोशिश कर रहा था। इतनी भीड़ जामा होने का करण क्या हैं? रघु को कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था इसलिए रघु आगे जानें की सोच कर भीड़ में से होकर आगे बड़ने लगा। लेकिन भीड़ हटने का नाम ही नहीं ले रहा था। भीड़ में से निकलने की जद्दोजेहद में एक नौजवान लड़के को धक्का लगा नौजवान.... कौन हैं वे जो धक्का दे रहा हैं।

बोलकर पीछे मुड़ा, रघु को देखकर हाथ जोड़कर सफाई देते हुए बोला... मालिक आप माफ करना मैं किसी और को समझ बैठा।

रघु ने नौजवान को मुस्कुराते हुए देखा नौजवान के जोड़े हाथ को खोलते हुए बोला…..भाई भीड़ में अक्षर एक दूसरे को धक्का लग ही जाता हैं। इसमें आपकी गलती नहीं हैं। गलती तो मुझसे हुआ हैं। धक्का अपको मैंने मारा और माफी आप मांग रहे हों जबकि माफ़ी मुझे मांगना चाहिए। माफ करना भाई।

रघु से माफ़ी शब्द सुनाकर नौजवान दाएं बाएं देखता हैं कोई देख तो नहीं रहा जब उसे लगता हैं कोइ नहीं देख रहा तब बोला……. मालिक भीड़ में अपको माफ़ी नहीं मांगना चाहिए ये आपको शोभा नहीं देता।

रघु आगे कुछ कहता तभी भीड़ पार से कोई तेज तेज चीखते हुए बोला… इस भीड़ में ऐसा कोई नहीं हैं जो मुझे इन जालिमों से बचा सके। कोई तो मुझे बचाओ नहीं तो ये जालिम मुझे मार डालेंगे।


रघु आवाज आई दिशा की ओर भीड़ को चीरते हुए बड़ने लगा तभी नौजवान चीख कर बोला……. हटो हटो रास्ता दो मालिक आए हैं।

भीड़ में से कुछ लोग पीछे पलट कर देखते हैं। रघु को देखकर वो लोग सक्रिय होकर रघु के जानें का रस्ता बना देते, पाल भर में खचा खच भारी भीड़ में एक गलियारा बन गया था। रघु गलियारे से आगे बड़ गया। नौजवान भी रघु के पीछे पीछे चल दिया तभी एक आवाज ओर रघु को सुनाई देता यह आवाज रघु ही नहीं सब को सुनाए देता हैं

"बुला जिसे बुलाना हैं आज तुझे कोई नहीं बचा पाएगा। इन नामर्दों के भीड़ में से तो कोई नहीं।"


रघु जल्दी जल्दी कदम तल करते हुए भीड़ के सामने पहुंच गया था। वहा रघु को दिखता एक बुजुर्ग बहुत घायल अवस्ता में लेटा हुआ था। एक नकाब पोश बंदा बुजुर्ग के छीने पर लाठी टिकाए खड़ा था। उसके आस पास तीन बंदे ओर हाथ में लाठी लिए खड़ा था। इस मंजर को देखकर रघु का पारा चढ़ गया था इसलिए दहाड़ कर बोला…. एक बुजुर्ग को चार लोग मिलकर मार रहे हों और ख़ुद को मर्द बोल रहे हो। मुझे तो तू सब से बड़ा नामर्द लग रहा हैं।

अचानक रघु की दहाड़ सुनाकर नकाब पोश बंदे और वह मौजुद सभी लोग रघु की ओर देखते हैं। रघु को अचानक वहा देखकर सब अचंभित हों गए थे। बुजुर्ग रघु की ओर दयनीय दृष्टि से देख रहा था जैसे कह रहा हों…मालिक मुझे बचा लो नहीं तो ये जालिम मुझे मार डालेंगे।

नकाब पोश बंदे जो रघु को पहली बार देख रहे थे इसलिए पहचान नहीं पाए थे, तो उनमें से एक अटाहास करते हुए बोला……. देखो देखो नामर्दों के भिड़ में से एक मर्द पैदा हों गया। जब तू मर्द बन ही रहा हैं तो अपना परिचय खुद ही बता दे तू कौन हैं?

नकाबपोस की बात सुनाकर भीड़ में से कुछ लोग सर पीटते हुए मन में बोले…. ओ रे नासपीटे जिनकी जागीर में खडे होकर कुकर्म कर रहा हैं। उनसे ही उनका परिचय पुछ रहा हैं।

रघू नकाबपोश कि बात सुनकर मुस्कुरा दिया फिर दहाड़ कर बोला…….. तुझे मेरा परिचय जानना हैं तो सुन तू जिस जागीर पर खडे होकर अपनी मर्दानगी दिखा रहा है। मैं उस जागीर के मालिक राजेंद्र प्रताप राना जी का बेटा रघु वीर प्रताप राना हूं। मिल गया मेरा परिचय।

रघु का परिचय सुनकर नकाब पोश बंदे आपस में ही खुशर पुशर करते हुए बोला…..अरे ये तो राजाजी का बेटा हैं मैं कहता हू निकल लो नहीं तो सूली पे टांगना तय हैं।"

"अरे ये कहा से आ गया भाई भागो नहीं तो पक्का आज मारे जाएंगे।"

"अबे भागोगे कैसे अपने हाथ में लठ हैं बंदूक नहीं जो डरा धमका के निकल भागोगे।"

तभी उनका लीडर बोला...अब्बे सालो डरा क्यों रहें हों जन बचाना हैं तो सब से पहले इस रघु को ही निपटा देते हैं नहीं तो पकड़े जाएंगे फिर हमारा भांडा ही फुट जायेगा और छोटे मालिक हमे और हमारे परिवार वालों को जिंदा ही दफना देंगे।"

इनको खुशार पुशार करते हुऐ देखकर रघु बोल……. क्या हुआ परिचय पसंद नहीं आया नहीं आय तो कोई बात नहीं, अपनी जान की सलामती चहते हों तो काका को छोड़कर अपने घुटनो पर बैठ जाओ और सुनो तुम सब भीड़ में खडे खडे तमाशा किया देख रहे हों पकड़ो इन जालिमों को।

रघु की बात सुनाकर भीड़ में से कुछ नौजवान बाहर आने लगे। भीड़ में हलचल होता देखकर नकाब पोश अपने अपने जगह से हिले और रघु की ओर बड़ते हुए लीडर बोला…….. कोई अपने जगह से नहीं हिलेगा नहीं तो इस रघु की हड्डी पसली तोड़ देंगे।

नकाबपोश लीडर की धमकी सुनकर भीड़ में हलचल रूक गया और नकाब पोश बंदे रघु की ओर बड़ने लगे तभी गोली चलने कि आवाज आया और वादी में एक आवाज गूंगा

"कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा जो जहां खड़ा है वही खडे रहे नहीं तो तुम्हारे धड़ से प्राण को आजाद कर दुंगा।"

भीड़ को चीरते हुए एक शख्स हाथ में दो नाली लिए आगे आने लगा उनके पीछे पीछे चार पांच बंदे दो नाली लेकर आ रहे थे उनको देखकर भीड़ ने रस्ता बाना दिया। जब रघु की नज़र उनपे पडा तो मुस्कुराते हुए बोला….. वाह काका बिल्कुल साही टाइम पर एंट्री मारे हों देखो ये गुंडे अपके भतीजे की हड्डी पसली तोड़ना चाहते हैं।

रावण तब तक उनके नजदीक पहुंच चुका था। रावण को देखकर नकाब पोश बंदे लठ छोड़कर घुटनों पर बैठ गए। उनके देखकर रावण बोला….. रघु बेटा ये तो ख़ुद थर थर कांप रहे हैं ये किया हड्डी पसली तोडेंगे। फिर अपने आदमियों से .. तुम लोग खडे खडे मेरा मुंह क्या दिख रहे हों इनके भेजे में एक एक गोली दागों ओर उनके पापी प्राण को मुक्त कर दो।

चार गोली चली ओर चारों नकाब पोश ढेर हों गए। तब रघु बोला….... ये क्या काका इनको मारने की इतनी जल्दी क्या थी पहले इनसे पता तो कर लेते ये बजुर्ग काका को क्यो मार रहें थे?

रावण….. रघु बेटा इन सब ने तुम्हारे हड्डी पसली तोड़ने की बात कहीं तो मैं इन्हे कैसे छोड़ देता अब जो होना था हों गया। फिर भीड़ से बोला… तुम सब खडे खडे तमाशा क्या देख रहे हों जाओ सब अपना अपना काम करो कभी किसी को मरते हुए नहीं देखा।


पाल भर में भीड़ तीतर बितर हों गया रावण और रघु बुजुर्ग के पास जानें लगे। दोनों को अपने पास आते हुए देखकर बुजुर्ग डर से कांपने लगे। रावण बुर्जुग के पास जाते हुए मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। रावण का मुस्कान साधारण नहीं था। उसके मुसकान को देखकर लग रहा था जैसे बड़ा कुछ होते होते टाल गया। दोनों बुजुर्ग के पास पहुंचे रावण खडे खडे मुस्कुरा रहा था और रघु बुजुर्ग के पास बैठ गया। बुजुर्ग डर कर पीछे को खिसकने लगे तब रघु बुजुर्ग का हाथ पकड़कर बोला…… काका आप डर क्यों रहे हों। आप को कुछ नहीं होगा। देखो आपको चोट पहुंचाने वाले मुर्दा बनकर जमीन पर लेटे हैं। अपको चोट लगा हैं चलिए हम डॉक्टर के पास चलते हैं।

रावण… रघु बेटा इनको डॉक्टर के पास मैं ले जाता हूं तुम जाओ बच्चे तुम्हारा प्रतिक्षा कर रहे होंगे।

रघु….. पर……

रावण…... पर वार कुछ नहीं तुम जाओ मैं इनको अच्छे से अस्पताल पहुंचा दूंगा।

रघु….. ठीक हैं काका।

बुजुर्ग रावण के साथ अस्पताल जाने की बात से ओर ज्यादा डर गया था। पर कुछ कर नहीं पा रहा था न ही कुछ कह पा रहा था। रावण के आदमी बुजुर्ग को उठा कर जीप में डाला, रावण अपने कार में बैठ गया। रघु भी अपने कर में बैठ गया और चल दिया अपने मंजिल को। रघु के जानें के बाद रावण अपने आदमियों के साथ बुजुर्ग को लेकर चल दिया। रावण बुर्जुग को लेकर भीड़ भाड से दूर जंगल की ओर जाने लगा। कुछ दूर जाने के बाद एक सुनसान जगह गाड़ी को रोका और अपने आदमियों के साथ जंगल की ओर चल दिया। कुछ दूर अदंर जानें के बाद रावण ने बुजुर्ग को धक्का देकर गिरा दिया फिर दो नली बुजुर्ग के सर पे टिकाकर बोला….. क्यों रे हरमी तुझे जान प्यारी नहीं जो दादा भाई को हमारे साजिश के बारे में बताने जा रहा था।

बुजुर्ग डर के मारे थर थर कांपने लगा। बुजुर्ग का मुंह जो अब तक सिला हुआ था अचानक बोल पडा….. मुझे माफ़ कर दो मालिक मैं अब भूल कर भी ऐसा नहीं करूंगा मुझे बख्श दो।

रावण…… बख्श दू तुझे हा हा हा हा हा मैं कलियुग का रावण हूं मुझमें दया नाम कि कोई चीज नहीं हैं। हां हां हां हां हां….

ढिढिढिसससकाकाकाऊऊऊ एक गोली चला और वादी में एक मरमाम चीख गूंज उठा फिर सब शान्त हों गया। शान्त होते ही रावण बोला….. चलो रे लाश को पहाड़ी से नीचे फेंक दो जंगली जानवर इससे अपना भूख मिटा लेंगे।

रावण के आदमियों ने शव को उठाया और कुछ दूर जाकर पहाड़ी से नीचे खाई में फेक दिया फिर उस जगह को अच्छे से साफ कर दिया और चल दिया अपने मंजिल को।

रघु कुछ वक्त कार चलाने के बाद एक स्कूल के अदंर जाकर अपनें कार के रोका और चल दिया एक पेड़ कि ओर जहां बच्चे बैठे हुए थे। रघु बच्चों को पढ़कर दोपहर दो बजे तक घर पहुंच गया था। इस वक्त महाल में सब खाना खा कर आराम कर रहे थे। रघु भी खान खाकर आराम करने चला गया। आगे की कहानी अगले अपडेट में बताऊंगा। साथ बाने रहने के लिए आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद🙏🙏🙏🙏
supreb update
 

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