Kamlesh badla lena chahta hai apni baap ki maut ka ravan se par filhal jo jazbati hai agar usne badla lena ki than hi liya hai to usey sab hi chiz sonch samajh kar karna chahiye kyunki jisse badla leni ki wo sonch raha hai wo sirf Naam Ka ravan nahi kaam se bhi ravan hai Phir uske pass ek dalal bhi jiska dimag kuch zyada hi chalta hai.
Pushpa ashish ek dusre se pyaar karte hai but unhe kya pata tha ki unke pyaar ki khabar surbhi aur rajendra ko yu lagegi but ashish ne ek sache jiwan sathi ki tarah pushpa ke sath dat kar khada raha ab rajendra aur surbhi ka kya faisla hoga ye dekhte hai.
Overall Nice update
Update - 12
राजेंद्र और सुरभि पुष्पा के कॉलेज से चल दिए थे जाते वक्त रास्ते में सुरभि बोली...अपने उन दोनों पर कुछ ज्यादा ही गर्म तेवर दिखा दिया। अपने देखा न पुष्पा की रोने जैसी सूरत हों गई थीं।
राजेन्द्र…सुरभि मुझे अपना तेवर गर्म करना पडा मैं ऐसा नहीं करता तो उस लड़के को कैसे परख पाता जो हमारे बेटी से प्यार करता हैं।
सुरभि…लड़के को परखना ही था तो आज ही परखना जरूरी था आप बाद में भी परख सकते थें। आज प्यार से बात करके दोनों की राय जान लेते तो अच्छा होता।
राजेंद्र…बाद में परखते तो शायद लड़का दिखावा करता लेकिन आज अचानक ऐसा करने से लड़के को दिखावा करने का मौका नहीं मिला आज उसने वही किया जो उसके दिल ने कहा। उसके अंदर छुपे प्यार जो वो हमारे बेटी से करता हैं, करने को कहा।
सुरभि…आप क्या कोई अंतरयामी हों? जो बिना कहे ही उसके मन की बातों को जान लिया।
राजेंद्र…इसमें अंतरयामी होने की जरूरत ही नहीं था। जो कुछ भी हुआ आंखों के सामने दिख रहा था। तुमने गौर नहीं किया लेकिन मैं दोनों के हाव भव को गौर से देख रहा था।
सुरभि...कितना गौर से देखा ओर क्या देखा? मैं जान सकता हूं।
राजेंद्र...जब हम अचानक दोनों के सामने गए। तब लड़के के प्यार में कोई खोट होता तो हमे देखकर भाग जाता लेकिन भागा नहीं खड़ा रहा सिर्फ खड़ा ही नहीं रहा पुष्पा का हाथ पकड़े रहा जो यह दर्शाता हैं। परिस्थिती कैसी भी हो वो पुष्पा का हाथ कभी नहीं छोड़ेगा।
सुरभि…मैं तो इन सब पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया अब आगे किया करना हैं।
राजेंद्र…करना क्या हैं? ये पुष्पा ही बता सकती है। पुष्पा जो चाहेगी मैं वहीं करुंगा।
सुरभि...इसका तो सीधा मतलब यहीं निकलता हैं आप हमारे बेटी के प्रेम को मंजूरी दे रहें हैं।
राजेंद्र…हमारी बेटी ने कोई जूर्म नहीं, प्रेम किया हैं मैं प्रेम का दुश्मन नहीं हूं जो मेरी बेटी और उसके प्रेम के बीच दीवार बनकर खड़ा रहूं। फिर ड्राइवर से बोला…कल हम जिस कॉलेज में गए थे उस कॉलेज में लेकर चलो।
ड्रावर…जी साहब।
सुरभि…हम कल वाली कॉलेज क्यों जा रहें हैं?
राजेंद्र…कॉलेज से कमला के घर का पता लेकर उसके घर जायेंगे और उसके मां बाप से रिश्ते की बात करेंगे।
सुरभि…अपको क्या लगाता हैं? वो लोग रिश्ते के लिए राजी हो जाएंगे।
राजेंद्र…हमे लड़की पसंद हैं ये सूचना उन तक पहुंचना हमारा काम हैं। राजी होना न होना ये तो उनका फैसला होगा।
बातो बातों में कॉलेज आ गया। दोनों उतरकर प्रिंसिपल के ऑफिस कि ओर चल दिया। बाहर खड़ा पिओन दोनों को देखकर तुरंत दरवजा खोलकर बोला…सर कल के मुख्य अथिति आए हैं आप कहें तो उन्हें अंदर भेजूं।
ये सुन प्रिंसिपल बाहर आय। दरवाज़े पर किसी को न देख पिओन से पूछता तभी उससे सामने से राजेंद्र और सुरभि आते हुए दिखाई दिया। प्रिंसिपल जल्दी से दोनों के पास गए फ़िर हाथ जोड़कर दोनों को प्रणाम किया। राजेंद्र और सुरभि भी प्रिंसिपल को प्रणाम किया फिर प्रिंसिपल के साथ चल दिया, अंदर आने से पहले प्रिंसिपल पिओन को चाय लाने को बोल दिया ओर अंदर आ गए। प्रिंसिपल सुरभि और राजेंद्र को बैठने को कहा, दोनों के बैठते ही प्रिंसिपल बोला...राजा जी आपके आने का करण जान सकता हूं।
राजेंद्र…हम कुछ जरुरी काम से आए हैं। जिसमे आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।
प्रिंसिपल…आप बताइए मेरे बस में हुआ तो मैं बेशक आप'की मदद करूंगा।
राजेंद्र…कल जिस लडक़ी ने आर्ट में प्रथम पुरस्कार विजेता बनी थीं। मुझे उस लडक़ी कमला के घर का पाता चाहिए उसके मां बाप से मिलना हैं।
प्रिंसिपल…ओ तो आप'को कमला के घर का पाता चाहिएं मैं अभी कमला को बुलाता हूं। वो खुद ही आप'को अपने घर लेकर जाएगी। फिर पिओन को बुलाकर बोला…कमला को बुलाकर लाओ।
पिओन कमला को बुलाकर लाया कमला बाहर से ही पूछा…सर मैं अंदर आ सकती हूं।
प्रिंसिपल के कहने पर कमला अंदर आ गई। राजेंद्र और सुरभि को देखकर दोनों को प्रणाम किया फिर प्रिंसिपल से पूछा…सर अपने मुझे बुलवा भेजा था कुछ जरुरी काम था।
प्रिंसिपल राजेंद्र की ओर इशारा करते हुए बोला…कमला इन्हे तो तुम जानती ही हों। इन्हें तुम्हारे घर जाना हैं इसलिए तुम इन्हें अपने घर ले'कर जाओ।
कमला…सर ये तो कल के मुख्य अथिति हैं। मैं इन्हें मेरे घर लेकर जा सकता हूं लेकिन मेरा क्लास चल रहा हैं।
प्रिंसिपल…कमला ज्यादा समय नहीं लगेगा तुम इन्हें अपने घर पहुंचाकर आ जाना फिर क्लास कर लेना।
कमला…जी सर फिर राजेंद्र से बोला…चलिए सर और मैडम।
राजेंद्र प्रिंसिपल से फिर मिलने को बोलकर कमला के साथ चल दिया। कार के पास आ'कर राजेंद्र आगे बैठ गया और सुरभि के साथ कमला पीछे बैठ गई। ड्राइवर कमला के बताए दिशा में कार चला दिया। सुरभि कमला से उसके बारे में बहुत सी जानकारी लेती रहीं। कमला किस क्षेत्र की पढ़ाई कर रहीं हैं उसके घर में कौन-कौन हैं। ऐसे ही बाते करते हुए कमला का घर आ गया। कमला के कहने पर ड्राइवर कार को अंदर ले गया। कार से उतरकर कमला दरवाज़े पर लटक रहीं घंटी को बजाया। कुछ देर में कमला की मां ने दरवजा खोला ओर कमला को देखकर बोली…कमला तू इस वक्त, यह क्या कर रहीं हैं। तेरी स्वस्थ खराब हों गई जो तू इस वक्त घर आ गईं।
कमला…मां मैं ठीक हूं। सुरभि और राजेंद्र को दिखते हुए बोली….इन्हें हमारे घर आना था इसलिए इन्हें लेकर आई हूं।
राजेंद्र और सुरभि को देखकर मनोरमा दोनों को प्रणाम किया फिर सभी अंदर गए, अंदर आ'कर राजेंद्र और सुरभि बैठ गए ओर कमला किचन में गई पानी ला'कर दोनों को दिया फिर बोली…मां आप लोग बात करों मैं कॉलेज जा रहीं हूं।
मनोरमा...ठीक हैं संभाल कर जाना।
सुरभि…बेटी रुको।
सुरभि कमला को ले'कर बाहर गई ओर ड्राइवर को बोली…जग्गू तुम इनको कॉलेज छोड़ कर आओ।
कमला…मैं चली जाऊंगी। इनको परेशान होने की जरुरत नहीं हैं।
सुरभि...बेटी चली तो जाओगी लेकिन जाने में आप'को देर हों जायेगी। इसलिए आप उसके साथ जाओ जल्दी कॉलेज पहुंच जाओगी।
कमला सिर हिलाकर हां बोल कार में बैठ कर कॉलेज को चल दिया। सुरभि अंदर गई फिर बोली...बहुत प्यारी बच्ची हैं।
मनोरमा…जी हां। आप दोनों कल मुख्य अथिति बनकर आए थे न।
सुरभि...जी हां।
मनोरमा…आप मुझे कुछ वक्त दीजिए मैं आप के लिए चाय नाश्ते की व्यवस्था करके लाती हूं फ़िर बात करेंगे।
सुरभि…रहने दीजिए हम अभी चाय नाश्ता करके आए हैं।
मनोरमा…जी नहीं आप दोनों पहली बार हमारे घर आए हैं मैं आप'की एक भी नहीं सुनने वाली आप दोनों बैठिए मैं अभी आई।
मनोरमा ये कहकर किचन की ओर चल दिया। सुरभि रोकना चाहा पर मनोरमा नहीं रूकी तब सुरभि भी उठाकर किचन की ओर चल दिया। सुरभि को किचन में आया देख मनोरमा बोली…आप क्यो आ गई? आप जा'कर बैठिए मैं अभी चाय बनाकर लाती हूं।
सुरभि…जब अपने मेरी नहीं सुनी तो मैं आप'की क्यों सुनूं । दोनों मिलकर काम करेंगे तो चाय जल्दी बन जायेगा।
मनोरमा…जी बिलकुल नहीं आप मेरे मेहमान हैं और मेहमानों से कम नहीं करवाया जाता।
सुरभि आगे कुछ नहीं बोली बस मुस्कुरा दिया फिर मनोरमा चाय बनाने लग गई। चाय बनते ही तीन काफ में चाय डाला और कुछ नमकीन एक प्लेट में डालकर चाय का काफ एक प्लेट में रखकर उठा लिया, सुरभि नमकीन की प्लेट उठा लिया फिर दोनों आ'कर चाय और नमकीन रखकर बैठ गए। मनोरमा एक काफ उठा कर राजेंद्र को, एक काफ सुरभि को और एक काफ ख़ुद लिया फ़िर चाय पीते हुए सुरभि बोली….बहन जी आप'के पति कहा हैं।
मनोरमा…जी वो तो ऑफिस गए हैं।
सुरभि…बहनजी हम आप'से कुछ मांगने आए हैं क्या आप हमारी मांगे पुरी कर सकते हों।
मनोरमा...मैं आप'को क्या दे सकती हूं। आप तो राज परिवार से ताल्लुक रखते हों। आप'को किस चीज की कमी है जो आप मुझ'से मांग रहीं हों।
सुरभि…हम राज परिवार से हैं तो किया हुआ। राज परिवार हों या सामान्य परिवार से हों उनको कभी न कभी दूसरो के सामने हाथ फैलाकर मांगना ही पड़ता हैं। क्योंकि उनके परिवार में जिस शख्स की कमी होती हैं उसे दूसरे परिवार से मांगकर ही भरा जा सकता हैं।
मनोरमा…आप'के परिवार की कमी को पूर्ति करने के लिए आप मुझ'से मांग कर रही हो। बोलिए आप किया मांगना चहते हैं। मेरी क्षमता में हुआ तो मैं जरूर आप'की मांग पूरा करूंगा। ये तो मेरा सौभाग्य होगा। राज परिवार से मेरे पास कुछ मांगने आया और मैं उनका मांग पूरा कर पाया।
सुरभि…जी हम आप'के सुपुत्री का हाथ हमारे सुपुत्र रघु प्रताप राना के लिए मांगने आए हैं। क्या आप हमारी इस मांग को पूरा कर सकती हो?
मनोरमा चाय पीते पीते रूक गई और अचंभित हो'कर देखने लग गईं मनोरमा को यकीन ही नहीं हों रहा था राज परिवार जिनके सामने वो निम्न है फिर भी कितने विनम्र भाव से उनके बेटी का हाथ मांग रहे हैं। मनोरमा को ऐसे देखते देखकर राजेंद्र बोला…आप हमे ऐसे क्यों देख रहे हों सुरभि ने कुछ गलत बोल दिया हैं तो आप हमे माफ कर दीजिएगा।
मनरोमा…नहीं नहीं इन्होंने कुछ गलत नहीं बोला। मेरे घर एक बेटी ने जन्म लिया हैं तो कभी न कभी उसका हाथ मांगने कोई न कोई आएगा। हम आप'के राजशाही ठाठ बांट के आगे सामान्य परिवार है फिर भी आप मेरी बेटी का हाथ मांगने आए इसलिए मैं अचंभित हों गया।
राजेंद्र…राजशाही ठाठ बांट हैं तो क्या हुआ हमे आप'की बेटी पसंद आया इसलिए हम आप'की बेटी का हाथ मांगने आ गए। आप साधारण परिवार से हैं या असाधारण हमे उससे कोई लेना देना नहीं हैं।
मनोरमा…आप का कहना सही हैं लेकिन मैं अकेले फैसला नहीं ले सकती मेरा पति होता तो ही कुछ कह पाता।
सुरभि…हम आप'से सिर्फ अपनी बात कहने आए थे अगर आप कहें तो हम कल फिर आ जायेंगे।
मनोरमा…मैं कल कमला के पापा को रुकने को कह दूंगी आप कल फिर आ जाना तब बात आगे बढ़ाएंगे।
राजेंद्र…ये ठीक रहेगा। मैं भी रघु को यह बुला लेता हु आप भी रघु को देख लेना। रघु और कमला भी एक दूसरे को देख लेंगे, अगर दोनों की हा हुआ और आप'को रघु पसंद आया तो ही हम बात आगे बढ़ाएंगे।
मनोरमा…हां ये ठीक रहेगा। हमारी पसंद, नापसंद मायने नहीं रखता जिन्हें ज़िंदगी भर साथ रहना हैं उनकी पसंद न पसंद मायने रखता हैं।
राजेंद्र…तो ये तय रहा कल हम हमारे बेटे के साथ आयेगे।
इसके बाद दोनों मनोरमा से विदा ले'कर चल दिया। घर आ'कर राजेंद्र ऑफिस में फोन लगा रघु को आज ही कलकत्ता आने को कहा तो रघु आने का कारण जानना चाहा तो राजेंद्र सच न बताकर जरूरी काम का बहाना बना दिया और अभी के अभी चल देने को कहा। रघु फोन रखकर मुंशी के पास गया ओर बोला...काका मैं कलक्तता जा रहा हू कुछ जरुरी काम से पापा बुला रहे हैं।
इतना कह रघु घर पंहुचा फिर तैयार हो'कर नीचे आया। रघु को देख सुकन्या बोली... बेटा अभी तो ऑफिस से आए हों फ़िर कहा चल दिया।
रघु...छोटी मां पापा का फ़ोन आया था। जरूरी काम से कलकत्ता बुला रहे हैं। इसलिए कलकत्ता जा रहा हूं।
सुकन्या...अकेले मत जाना साथ में ड्राइवर को लेकर जाना ओर हां वह पहुंचकर फोन कर देना।
रघु... छोटी मां मैं बच्चा नहीं हूं जो अकेले नहीं जा सकता।
सुकन्या... जितना कहा उतना कर नहीं तो मैं कलक्तता फ़ोन कर कह दूंगी रघु को नहीं भेज रहीं हूं।
रघु...ठीक हैं छोटी मां अपने जैसा कहा वैसा ही करूंगा अब तो आप खुश हों ना!
सुकन्या... हां खुश हूं ओर सुन ड्राइवर को कहना कार ज्यादा तेज न चलाए आराम आराम से जाना।
रघु...ठीक हैं छोटी मां अब मैं जाऊ।
इतना कह रघु चल दिया। इधर पुष्पा किसी तरह कॉलेज में अपना समय काट रहीं थी। सुबह की घटना से दिल दिमाग में खलबली मची हुई थी। कॉलेज की छुट्टी होने पर आशीष... पुष्पा चलो तुम्हें घर छोड़ देता हूं
पुष्पा...रहने दो अशीष मैं चली जाऊंगी।
अशीष...ज्यादा बाते न बनाओ चुप चाप कार में बैठो।
पुष्पा के बैठते ही दोनों चल दिया। पुष्पा गुमसुम बैठी थीं ये बात अशीष को खल रहा था तो अशीष बोला...पुष्पा क्या हुआ? आज इतने खामोश क्यों बैठी हों? कॉलेज में भी गुमसुम रही ओर अब भी, सुबह की घटना को लेकर इतना परेशान क्यों हों रही हों? जो हुआ अच्छा ही हुए।
पुष्पा...तुम्हारे लिए अच्छा हुआ लेकिन मेरे लिए तो बुरा हुआ न, पापा कभी मुझसे इतनी बेरूखी से बात नहीं करते लेकिन आज किया सिर्फ बात ही नहीं किया बल्की गुस्सा भी हों गए। अशीष मुझे डर लग रहा हैं घर जानें पर न जानें कितनी बाते सुनना पड़ेगा।
आशीष…उनका बेरूखी से बात करना स्वाभाविक हैं। सभी मां बाप अपने बेटी को ले'कर चिंतित रहते हैं। क्योंकि दुनिया में सब से पहले उंगली लडक़ी पर उठाया जाता हैं चाहें गलत कोई भी हों ओर हम'ने प्यार किया है हम पर तो उंगली उठेगा ही।
पुष्पा…मुझे इसी बात का ही डर हैं। दुनिया मुझ पर उंगली उठाए मैं सह लूंगी। लेकिन मेरे मां बाप मुझे गलत समझे मैं सह नहीं पाऊंगी। हम दोनों के बारे में उन्हें पहले ही बता देना चाहिए था। बता दिया होता तो आज ऐसा न होता। आशीष मुझे घर नहीं जाना तुम मुझे कही ओर ले चलो मैं उनका सामना नहीं कर पाऊंगी।
आशीष...बबली हो गई हो जो कुछ भी बोले जा रही हो घर नहीं तो ओर कहा जाओगी। तुम घर जाओ, तुम कहो तो मैं भी चलता हूं मैं खुद उनसे बात करूंगा।
पुष्पा…खुद मेरे मां बाप से बात करने से डरते हों ओर कह रहे हों मैं बात करूंगा।
आशीष…पहले डर लगता था अब नही, सुबह ससुरा को जो बोला उसके बाद तो मेरा छीना चौड़ा हों गया हैं। तुम घर जाओ बात ज्यादा बढ़े तो मुझे बता देना मैं मम्मी पापा को कल ही तुम्हारे मां बाप से बात करने भेज दूंगा।
पुष्पा...आशीष फिर भी मुझे डर लग रहा हैं। चलो मुझे घर छोड़ दो जो होगा देखा जाएगा।
आशीष कार चलते हुए बोला…जो भी बात हों मुझे बता देना।
घर से थोड़ी दूर पुष्पा ने कार रुकवा दिया कार रुकते ही पुष्पा उतर गई फिर बोली...अशीष अब तुम जाओ मैं यहां से पैदल घर चली जाऊंगी।
अशीष... ठीक हैं जाओ ओर जो भी बात हो मुझे याद से बता देना।
पुष्पा... ओके बाय कल मिलते है।
अशीष...बाय muhaaa!
पुष्पा धीरे धीर चलते हुए जा रहीं थीं। जैसे जैसे घर नजदीक आता जा रहा था वैसे वैसे पुष्पा बेचैन होती जा रही थीं और मन ही मन दुआं कर रही थीं मां बाप का सामना न करना पड़े। दुआं करते हुए पुष्पा घर पहुंच गई फिर डरते डरते दरवाजे पर टंगी घंटी बजा दिया ओर आंखें बंद कर खड़ी हों गईं। चंपा आ'कर दरवजा खोला फिर बोला…मेम साहब आप आ गई अंदर आइए ऐसे आंखे बंद किए क्यों खड़ी हों।
चंपा की आवाज सुनकर पुष्पा आंखे खोल दिया और बनावटी मुस्कान लवों पर सजा अंदर आ गई फ़िर बोली…मां पापा कहा हैं।
चंपा…जी वो तो विश्राम कर रहे हैं आप कहो तो उन्हे जगा दूं।
पुष्पा…नहीं उन्हें जगाने की जरूरत नहीं हैं।
चंपा…ठीक हैं। आप हाथ मुंह धो लो मैं खाना लगा देती हूं।
पुष्पा…मुझे अभी भूख नहीं हैं तुम जा'कर रेस्ट करों जब भूख लगेगी बता दूंगी।
पुष्पा कमरे में जा'कर लेट गई। बेड पर करवटे बदल बदल कर, आगे क्या होगा सोच सोचकर घबरा रही थी। ज्यादा सोचने से मानसिक थकान के कारण पुष्पा कुछ देर में सो गई।
शाम को सुरभि और राजेंद्र उठाकर हाथ मुंह धोया फिर रूम से बाहर आ बैठक में बैठ गई।
सुरभि...चंपा चाय ले'कर आना।
"अभी लाई" बोल कुछ देर में चंपा चाय ला'कर दोनों को दिया। चाय ले'कर सुरभि बोली...पुष्पा आ गई है।
चंपा…रानी मां पुष्पा मेम साहब आ गई हैं लेकिन उन्होंने अभी तक खाना नहीं खाया।
सुरभि... कब की आई हुई है ओर अभी तक खाना नहीं खाई, तुम पहले नहीं बता सकती थी। जाओ कुछ खाने को लाओ मैं जा'कर देखती हू।
राजेंद्र…सुरभि मुझे लग रहा हैं पुष्पा सुबह की बातों से परेशान हों गई होगी जल्दी चलो मुझे डर लग रहा हैं। कहीं कुछ कर न बैठी हों।
सुरभि...आप'को कहा था आप कुछ ज्यादा बोल दिए हों लेकिन आप सुने नहीं, मेरी लाडली को कुछ हुआ तो देख लेना अच्छा नहीं होगा।
दोनों जल्दी से पुष्पा के कमरे में गए, दरवजा बंद देखकर सुरभि दरवजा पीटने लग गई और आवाज देने लग गई पर दरवजा नहीं खुला तो सुरभि रोते हुए बोली…देखो न दरवजा नहीं खोल रहीं है आप जल्दी से कुछ कीजिए न कहीं पुष्पा ने कुछ कर न लिया हों।
सुरभि को हटाकर राजेंद्र जोर जोर से दरवजा पीटने लग गया साथ ही आवाजे देने लग गया। शोरशराबे के करण पुष्पा की नींद टूट गया, आंखे मलते हुए पुष्पा उठकर बैठ गई तभी उसे फिर से आवाज सुनाई दिया आवाज सुनकर पुष्पा मन ही मन बोली…न जानें अब किया होगा हे भगवान बचा लेना मां पापा का सामना कैसे करूंगी? उन्हें क्या जवाब दूंगी?
सुरभि रोते हुए बोली…कितनी देर ओर दरवाजा पीटेंगे दरवाजा तोड़ दीजिए न!
दरवजा तोड़ने और सुरभि के रोने की आवाज़ सुनकर पुष्पा मन ही मन बोली...मां रो क्यों रहीं हैं? पापा को दरवजा तोड़ने को क्यो कह रहीं?
इतना बोल पुष्पा जा'कर दरवाज़ा खोल दिया। दरवजा खोलते ही सुरभि अंदर आ'कर पुष्पा को गाले से लगकर बोली…तू ठीक तो हैं न, ओ जी आप जल्दी से डॉक्टर को फोन करों।
पुष्पा…मां मैं ठीक हू डॉक्टर को फोन करने की जरूरत नहीं हैं।
पुष्पा को घुमा फिराकर देखा फिर मूंह के पास नाक ले जा'कर सूंघा ओर सुरभि बोली…तूने कुछ पिया बिया तो नहीं न, देख मुझे सच सच बता दे।
पुष्पा…न मैंने कुछ खाया हैं न कुछ पिया हैं आप ये क्यों पुछ रहें हों?
राजेंद्र पुष्पा को ले जा'कर बेड पर बिठा दिया फिर खुद भी बैठ गया। साथ के साथ सुरभि भी जा'कर पुष्पा के दूसरे तरफ बैठ गई फ़िर पुष्पा के सिर पर हाथ फिराने लग गई ओर राजेंद्र बोला…भूल कर भी ऐसा वैसा कुछ करने के बारे में न सोचना तुम्हें कुछ हुआ तो मेरा और तुम्हारी मां का क्या होगा सोचो जरा, तुमने दरवजा खोलने में देर लगाई उतने वक्त में न जानें मैने और तुम्हारे मां ने किया से किया सोच लिया देखो अपनी मां को कुछ ही वक्त में अपना हल रो रो कर कैसा बना लिया।
पुष्पा ने सुरभि की और गैर से देखा सुरभि की आंखो से नीर बह रहीं थीं। सुरभि के बहते अंशु को पोछकर पुष्पा बोली….मां पापा मुझे माफ कर देना अपने मुझे यह पढ़ने के लिए भेजा ओर मैं यह पढ़ने के साथ साथ कुछ ओर कर बैठी।
सुरभि पुष्पा को छीने से चिपका लिया ओर बोली…तुम दोनों के बीच ये सब कब से चल रहा हैं और लड़के का नाम किया हैं।
पुष्पा अलग होकर सुरभि की आंखो में देखकर समझने की कोशिश करने लग गई, सुरभि डाट रहीं हैं या पुछ रहीं हैं। फिर नजरे झुकाकर बैठ गई और पैर की उंगली से फर्श को कुरेदने लग गई। पुष्पा शर्मा भी रहीं थीं और बताने से डर भी रहीं थीं। ये देख राजेंद्र बोला...बेटी डरने की जरूरत नहीं हैं हम तुम'से नाराज नहीं हैं अब बताओ कब से चल रहा हैं।
पुष्पा कुछ नहीं बोली बस चुप चाप बैठे बैठे हाथ की उंगलियों को मढोरने लग गईं। ये देखकर राजेंद्र मुस्कुरा दिया फ़िर बोला…पुष्पा हम तो सोच रहें थे तुम'से लड़के का आता पता ले'कर उसके घर वालो से मिलकर तुम्हारे शादी की बात करूंगा लेकिन तुम नहीं चहती हों तो हम कोई दूसरा लड़का ढूंढ लेंगे।
"मैं आशीष से बहुत प्यार करती हूं। शादी करूंगी तो आशीष से, नहीं तो किसी से नहीं!" बोलने को तो बोल दिया। जब ख्याल आया क्या बोला दिया तो शर्मा कर हाथो से चेहरा छुपा लिया। बेटी को शर्माते देख राजेंद्र और सुरभि मुस्कुरा दिया फिर राजेंद्र बोला...Oooo Hooo इतना प्यार, तो आगे की भी बता दो कब से चल रहा हैं।
पापा की बाते सून पुष्पा इतना शर्मा गई कि उठकर जानें लगीं तब सुरभि हाथ पकड़ लिया तो पुष्पा शर्मा कर मां से लिपट गई फिर सुरभि बोली...अब शर्माने से कोई फायदा नहीं, हम जो पुछ रहे हैं बता दो नहीं तो हम सच में दूसरा लड़का ढूंढ लेंगे।
पुष्पा नजरे उठाकर सुरभि को देखा फ़िर नज़रे झुका कर बोली…मां आप दोनों मुझ'से नाराज़ तो नहीं हों। आप सच कह रहे हों मेरी शादी आशीष से करवा देंगे।
सुरभि…हां! तुम उससे प्यार करती हों तो हम तुम्हारी शादी उससे ही करवा देंगे हमे हमारी बेटी की खुशियां प्यारी हैं। लड़के का नाम तो बता दिया अब ये भी बता दो कब से तुम दोनों का प्रेम प्रसंग चल रहा हैं। लड़के के घर में कौन-कौन हैं और उसके घर वाले क्या करते हैं?
पुष्पा…आशीष और मेरा प्रेम प्रसंग पिछले चार साल से चल चल रहा हैं। हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। आशीष मेरे साथ ही mba कर रहा हैं। उसके घर में मां बाप एक बहन बडा भाई और भाभी हैं। उनका अपना कारोबार हैं। जिसे आशीष के बड़े भाई और उसके पापा संभालते हैं। लेकिन आशीष का अपने कारोबार में कोई रुचि नहीं हैं वो ips ऑफिसर बना चाहता हैं। तैयारी भी पूरा हो चुका हैं दो महीने बाद पेपर हैं।
राजेंद्र…आशीष ips ऑफिसर बनकर देश सेवा करना चाहता हैं। ये तो अच्छी बात हैं। तुम आशीष को फोन कर बता दो हम उससे और उसके मां बाप से मिलना चाहते हैं। आशीष मां बाप को साथ लेकर कल शाम को हमारे घर आ जाए।
पुष्पा…ठीक हैं पापा मैं बोल दूंगी।
सुरभि…अब जल्दी से हाथ मुंह धोकर निचे आओ और कुछ खा पी लो।
सुरभि और राजेंद्र के जाने के बाद पुष्पा हाथ मुंह धोकर कमरे में रखे टेलीफोन से फोन लगा दिया फ़ोन उठते ही पुष्पा बोली...आशीष मां पापा मुझ'से नाराज नहीं हैं।
अशीष...Oooo thank god मेरा तो सोच सोच कर भूख ही मर गया था।
पुष्पा...भूखा ही रहना कल शाम के खाने पर तुम्हें और मम्मी पापा को बुलाया हैं।
अशीष...Oooo nooo एक बार फिर से तुम्हारे हाथ का जला हुआ खाना ही ही ही..।
पुष्पा…क्या बोला मैं जला हुआ खाना बनाती हूं। आओ इस बार पक्का तुम्हें जला हुआ खाना दूंगी।
अशीष...आरे नाराज़ क्यों होती हों जानेमान मैं तो मजाक कर रहा था।
पुष्पा...मैं भी मजाक कर रही थीं मैं रखती हूं कल टाइम से आ जाना।
दोनों एक दूसरे को बाय बोल कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया फिर पुष्पा नीचे आ'कर मां बाप के साथ चाय नाश्ता किया फ़िर बातों में लग गई।
ऐसे ही बातों बातों में रात हों गया। रघु अभी तक नहीं पहुंचा था इसलिए दोनों चिंतित हो रहे थें। घर के बहार एक कार आ'कर रुका, सुरभि और राजेंद्र राजेंद्र तुरंत उठे ओर बहार को चल दिया। मां बाप को देख रघु दोनों के पैर छुआ फ़िर हल चाल पूछा ओर साथ में अन्दर को चल दिया। अंदर आ'कर पुष्पा को न देखकर बोला…मां पुष्पा कहा हैं?
सुरभि... पुष्पा अभी अभी रुम में गई हैं….।
इतना सुन रघु उठा ओर बहन के रुम की ओर भाग गया। रघु भागते देखकर सुरभि और राजेंद्र मुस्करा दिया। रघु दरवाजे पर पहुंचकर दरवाजा खटखटाया पुष्पा दरवजा खोलकर रघु को देख चीख पड़ी फ़िर बोली…भईया आप कब आए और कैसे हों।
रघु…मैं ठीक हू। अभी अभी आया हु और सीधा तेरे पास आ गया। तू कैसी हैं।
पुष्पा…मैं ठीक हू घर पर सब कैसे हैं।
रघु…सब ठीक हैं तुझे बहुत याद करते हैं।
पुष्पा…मुझे कोई याद नहीं करते, याद करते होते तो मुझ'से मिलने आ जाते आप भी नहीं करते न ही अपने इकलौती बहन से प्यार करते हों।
रघु…किसने कहा मैं तूझ'से प्यार नहीं करता। तुझ'से प्यार नहीं करता तो आते ही तुझ'से मिलने क्यों आता।
पुष्पा…अच्छा अच्छा मानती हूॅं आप मुझ'से बहुत प्यार करते हों अब आप हाथ मुंह धो'कर आओ फिर बहुत सारी बाते करेंगे।
रघु एक कमरे में जा'कर हाथ मुंह धोकर आया फिर सभी के साथ बैठ गया और पुष्पा के साथ नोक झोंक शुरू कर दिया। पुष्पा शिकायतो की झड़ी लगा दिया फिर रूठकर बैठ गई बहन को रूठा देख रघु तरह तरह के लालच देकर माना लिया। ऐसे ही दोनों भाई बहन में रूठने मनाने का दौर चलता रहा ओर मां बाप दोनों भाई बहन के प्यार भरी नोक झोंक देख मंद मंद मुस्कुरा रहे थें। बहन से कुछ वक्त तक बात करने के बाद रघु राजेंद्र से पूछा…पापा इतना क्या जरूर काम था जो अपने मुझे आज ही और जल्दी जल्दी बुला लिया कितना काम पड़ा हैं।
सुरभि…ऑफिस जाना शूरू किए जुम्मा जुम्मा दो दिन नहीं हुआ और काम काम राग अलापने लग गया।
ये सुनकर सभी हंस दिए फिर राजेंद्र बोला…जरूरी काम हैं इसलिए बुलाया, कल हमे कहीं जाना हैं। पुष्पा तुम भी कल कॉलेज मत जाना तुम भी हमारे साथ चलोगी।
रघु और पुष्पा एक साथ बोले…कह जाना हैं।
सुरभि…कल तक वेट करों फिर जान जाओगे।
पुष्पा...मां आप मेरी अच्छी मां हों न, बोलों हों न!
सुरभि...तू कितना भी मस्का लगा ले मैं नहीं बताने वाली।
पुष्पा...आप'से पुछ कौन रहा हैं? Papaaa...।
राजेंद्र... न न महारानी जी मैं भी नहीं बताने वाल।
पुष्पा... भईया सभी रास्ते बंद हों गए अब क्या करूं।
रघु...रात भार की बात हैं। किसी तरह रात कांट लेते हैं सुबह पाता चल जायेगा।
पुष्पा...हां सही कह रहो हों इसके आलावा कोई ओर रस्ता नहीं हैं।
आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे, यहां तक साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।
Rajendra aur surbhi to kamla ke ghar pahunch hi gaye rishta lekar ab kal apni bacho ke sath kamla and uske pita se bhi mil lenge dekhte hai raghu and kamla ki Pehli mulakat kaisi rehti hai aur kya ye dono ek dusre ko pasand karte hai ya nahi.
Pushpa and ashish ke rishte ke liye bhi surbhi and rajendra Maan gaye and ashish ke Maa Baap ko milne ke liye bulwa liya dekhte hai inki gadi kaha tak jati hai.
Update ka best part sukanya ka raghu ke prati yu care karna tha jo usey drivar ke sath Jane aur pahunch kar inform karne ke liye Keh rahi thi.
Overall Nice update