Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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ek ajib sa kasmakas chal raha ho apsyu dimag me. akkhir usne apne zameer ki baat suni aur ye decide kiya ke raghu kamla ki shadi ke baad sari gunaho ko kubul karke mafi mang lega sabhi se.
Shadi ,sahnayi , mahandi rashm, sab kuch dala gaya thaupdate me par pata nahi kyu acha nahi laga yeh update. sayad ye jaanke ki aapasyu ke sath bura hone wala he. manti hoo wo bahut bura ladka raha hai apne past life me lekiin ab uske pachatap ke ansu ne ye sochne ko majbur kar diya hai ke uske sath kuch bura na ho.
Bahut bahut shukriya 🙏 ji

Apashyu ke saath bura hoga ye jankar aapko acha nehi lag raha hai. Ye bhi to hosaktaa hai next update me kuch aisa ho jisse aapko dono update abhi tak ke sabhi updates se acha lage.
 
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So raghu ke liye ladki bhi dekhi ja rahi hai aur jaha Pehle log shadi ke liye ha Keh de rahe hai wahi Phir baat mai mukar ja rahe hai ye Keh kar ki raghu ke kai ladkiyon se relation hai shayad in sab ke piche ravan hi hoga jo ki nahi chahta raghu ki shadi ho.
And rajendar ki ek aur pareshani ka karan hai uske guptchar aise gayab hona aur ek bande ne to Pehle adi baat bhi karli thi but uske Baad uska kuch pata nahi ek tarah se ye acha huwa hai ki rajendar ko kuch to bhanak lagi hai ki koi na koi uske khilaf sajish kar raha hai aise mai wo pori koshish karega iske piche ke log ka pata karne ka but samay rehte pata chale ga ya jab tak pata chalega der hojaye gi ye dekhte hai.
Surbhi ko shayad kahi na kahi aone hi logon par shak hai but wo shayad is tarah ki baat rajendar see kar sake kyunki dono ke liye hi pariwar ki ehmiyat bohut hai aise mai shayad ab surbhi khud apne taraf se koshish karegi is sab sajish ke piche shaks ko dhunde ki.
Sukanya ko yu Pehli baar surbhi ke door tak ana and yu batein sunna shayad kahi na kahi surbhi ke maan mai uske prati ek doubt paida karega.
Overall Awesome update
Bahut bahut shukriya 🙏 Badshah Khan ji

Ek baap ke liye isse durbhagy ki baat aur kiya ho sakta hai ki use apne bete jise vo ache sanskaro se nawaja uske wabjud bhi galt bate sunne ko mile.

Shak kisi par bhi kiya ja sakta hai chahe vo apna ho ya paraya. Guptcharo ne jis tarah ki suchna rajendra ko diya tha us adhar par surbhi ka apno par shak karna lajmi hai.
 
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So surbhi ne apne Maan maj jiske prati shak hai unke Naam rajendra ke samne le liye but as usual jis tarah ki personality rajendra ki hai usey apne bhai aur us wakeel par pura bharusa hai but surbhi ke batane ke Baad usne Keh to diya ki wo satark rahega aur sab ko apne shak mai rakhega but kya wo aise karta hai ya nahi.
Ravan ko gupt sampati ka pora gyaan hai aur isliye hi wo itni sab kuch plan ke according kar raha hai wo apne plan ko lekar apne irado ko lekar kitna serious hai wo is baat se pata chalta hai ki jaise hi usey pata chala ki rajendra ko shak hone laga usne kuch Waqt ke apne sabhi kaamo ko rokne ka faisla liya isse pata chalta hai ki wo gupt sampati pane ke liye kuch bhi kar sakta hai.
Yaha to pora ka pora character hi question mark under agaya sukanya akhir kya hai sukanya ka asli vyaktitv ye janne ke liye I am very much interested now.
Overall Awesome Update
Bahut bahut shukriya 🙏 Badshah Khan ji

Rawan siddat se apni mansha ko pura karne me jithod jatan kar raha hai. Ek najar me dekhaa jaye to uska ye jatan karna sahi bhi hai aur galat bhi hai galat isliye kiyi vo khud ke bhai ke saath. Vishvas ghat kar raha hai. Jo rawan par aankhe mund kar vishvas karta hai.

Suknya ko lekar jitna bhi questions mark apke dimag me ban gaya hai aane wale updates me sabhi questions mark savtah hi dhah jayega.
 
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Subah subah apasyu ki class le li gayi jaha rajendra ne usey sahi mai data to wahi ravan ka datna sirf ek natak tha but sukanya ke bole gaye bol sach they ya wo bhi natak hi tha ye pata nahi chala pa raha hai.
Surbhi ne ek Maa ki tarah hi apaysu ko samjhaya bhi aur sath apne pati aur devar ko data bhi ki khane ke samay aise data na kare .
Rajendra ne faisla le liya hai ki ab se raghu hi office sambhalega is faisle se ravan ka reaction kya hoga ye dekhte hai and raghu kis tarah se office ka kaam sambhal tha hai ye bhi dekhne layak hoga.
Rajendra aur surbhi ja rahe Kolkata apni beti se milne and function attend karne shayad yaha hi unki mulakat apni komal se hojaye.
Apasyu ne principal ko dho diya uski shikayat karne ke liye.
Bechara anurag inhe sudharna chahta hai jo ki namumkin sa hai.
Overall Awesome update
Bahut bahut shukriya 🙏 Badshah Khan ji

maa to maa hoti hai suknya ka apashyu ko dantna uske bhale ke liye hi tha. Ha rawan ka vichar aur lahje me thoda antar tha.

Surbhi ke liye sibhi bachhe ek saman hai chaye vo vo raghu ho ya apashyu. Isliye usne pyaar se raghu ko samjhaya saath hi pati aur devar ko dant diya.
 
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Update - 9

अपश्यु प्रिंसिपल की धुनाई कर ऑफिस से निकलकर थोड़ा सा आगे बडा वह अनुराग खड़ा था। अपश्यु को आया देख अनुराग बोला... प्रिंसिपल का काम तमाम करके आ गए अब देखना प्रिंसिपल फिर से तेरे घर शिकायत करेगा फिर से तुझे डांट पड़ेगा। क्यों करता हैं ऐसा छोड़ दे भाई सोच जिस दिन तेरे घर में पाता चलेगा तू क्या क्या करता हैं तब उन पर किया बीतेगा।

अपश्यु…घर पे जब पाता चलेगा तब की तब देखूंगा। अभी तू ओर ज्ञान न दे सुबह से बहुत ज्ञान मिल चुका हैं। अब चल कहीं चलकर बैठते हैं।

अनुराग आगे कुछ नहीं बोला बस अपश्यु के पीछे पीछे चल दिया। सभी जा'कर मेन गेट के सामने खड़े हों गए। एक लड़की फैशनेबल कपड़ो में कॉलेज गेट से एंट्री करती हैं। अपश्यु की नज़र अनजाने में उस पर पड़ गया। लडकी खुबसूरत थी नैन नक्श तीखे थे। साथ ही कपडे भी फैशनेबल पहने हुए थे तो सभी मनचलों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी। अपश्यु भी उन्हीं मनचलों में एक था तो अपश्यु लडकी को देख खो सा गया। कुछ वक्त तक मन भरकर देखने के बाद अपश्यु बोला…अरे ये खुबसूरत बला कौन हैं? जिसने अपश्यु के दिल दिमाग में हल चल मचा दिया। जिसकी सुंदरता का मैं दीवाना हों गया।

अनुराग…ये वो बला हैं जिसके करण कईं मजनू बने कइयों के सिर फूटे कइयों के टांग टूटे अब तू बता सिर फुटवाएगा, टांग तुड़वाएगा या मजनूं बनेगा।

अपश्यु…तोड़ने फोड़ने में, मैं माहिर हूं अब सोच रहा हूं मजनूं बनने का मजा लिया जाएं।

विभान…अरे ओ मजनूं तेरे लिए मजनूं गिरी नहीं हैं तू तो दादागिरी कर, मौज मस्ती कर ओर हमे भी करवा।

अपश्यु…आज से दादागिरी बंद मौज मस्ती बंद ओर मजनूं गिरी शुरू, चलो सब मेरे पिछे पिछे आओ, पाता तो करूं ये खुबसूरत बला हैं कौन?

लडकी अपने धुन में चलते हुए चली गई। अपश्यु दोस्तों को साथ लिए लडकी को ढूंढने चल पड़ा। लडकी कौन से क्लास में गया? ये अपश्यु नहीं देख पाया। इसलिए अपश्यु एक एक क्लॉस रूम में जा'कर लड़की को ढूंढने लग गया। लेकिन लड़की उसे कहीं पर नहीं मिला। थक हर कर अपश्यु अपने क्लास में गया, दरवाजे से एंट्री करते ही अपश्यु रूक गया, सामने वह लडकी खड़ी थीं। अपश्यु लडकी को देखकर दरवाजे से टेक लगकर खड़ा हों गया ओर लडक़ी को मोहित हो'कर देखने लग गया। अपश्यु के दोस्त बातों में मग्न हो'कर एक के पीछे एक चलते हुए आ रहे थे। उनका ध्यान अपश्यु पर न होने के कारण एक के बाद एक अपश्यु से टकरा गए। अपश्यु पर इस टकराव का कोई असर नहीं पड़ा, जैसे का तैसे खड़ा रहा। अचानक सामने आईं बाधा से टकराकर अनुराग बोला…अरे ये दरवाजे पर खंबा किसने गाड़ दिया। उसको पकड़ो ओर खंबा उखड़वाकर कही ओर गड़वाओ।

विभान…अरे ये खंबा नहीं मजनूं खड़ा हैं ओर लैला को देखने में खोया हुआ हैं। सामने से मजनूं को हाटा इसके कारण हमारा सिर फूटते फूटते बचा हैं।

संजय आगे गया फिर अपश्यु के सामने खड़ा हों गया अपश्यु को सामने का नज़ारा दिखना बंद हों गया जिससे अपश्यु का ध्यान भंग हों गया। संजय को सामने खड़ा देख अपश्यु बोला…क्यों तड़ का पेड़ बने खड़ा हैं? हट न सामने से, तुझे दिख नहीं रहा मजनूं लैला से नैन मटका कर रहा हैं।

संजय…अरे ओ दो टाके के मजनूं तेरा दाल नहीं गलने वाला उसके पीछे पहले से ही, कई मजनूं बने फिर रहे हैं।

अपश्यु...कैसे दोस्त हों मैं घर बसाना चाहता हूं तुम उजड़ने कि बात कर रहें हों। साले देख लेना दाल भी गालेगा ओर उससे चोंच भी लडाऊंगा तुम सभी देखते रह जाओगे।

विभान…तू कह घर बसाने वाला, एक बार गुल्ली डंडा खेल लिए, फिर इसे भी ओर लड़कियों की तरह छोड़ देगा।

अपश्यु…नहीं यार ये दिल में बस गया हैं। अब तो इसके साथ घर ही बसाना है। घर बसाने के बाद तो गुल्ली डंडा खेलना ही हैं।

अनुराग…देख लेंगे तू कौन सा घर बसता हैं अब चल बैठा जाए खड़े खड़े मेरा टांग दुख रहा हैं।

सारे दोस्त एक के पिछे एक आगे बढ़ गए। लडक़ी भी बैठने के लिए सीट के पास जा'कर खड़ी हों गई। तब तक अपश्यु लडक़ी के पास पहुंच गया। अपश्यु लडक़ी से कन्नी काट निकल रहा था कि उसका पैर अड़ गया जिससे अपश्यु खुद को संभाल नहीं पाया ओर लडक़ी पर गिर गया। अपश्यु को लडकी पर गिरता देख क्लास में मौजूद सभी लडके लडकियां खिलखिला कर हंस पड़े, जैसे अपश्यु का खिल्ली उड़ा रहे हों।

अपश्यु गिरे हुए ही सभी को एक नाराज़ देख बस अपश्यु का देखना ही काफ़ी था पल भर में ही क्लास में सन्नाटा पसर गया। लडकी ने अपश्यु को गुस्से में देख ओर परे धकेल दिया फिर उठकर खड़ी हों गई। अपश्यु लडकी की ओर देखते हुए खड़ा हुआ। जैसे ही अपश्यु खड़ा हुआ पूरा क्लास chatakkk chatakkk की आवाज़ से गूंज उठा ये देख पुरा क्लॉस अचंभित हों गया ओर लङकी के हिम्मत को दाद देने लग गए क्योंकि कॉलेज में किसी में इतना हिम्मत नहीं था कि अपश्यु पर हाथ उठा सके सभी जानते थे अपश्यु कितना कमीना हैं। थप्पड पड़ते ही अपश्यु भी चौक गया उसे यकीन नहीं हों रहा था किसी लङकी ने भरे क्लास में उसे थप्पड मरा। इसलिए लङकी को घूरकर देखने लग गया। अपश्यु का घूरना लङकी से बर्दास्त नहीं हुआ। लडकी खिसिया गई ओर chatakkk chatakkk दो थप्पड ओर जड़ दिया फिर बोली...अरे ओ रतौंधी के मरीज दिन में भी दिखना बंद हों गया। जो मुझ पर आ'कर गिरा। तुम जैसे लड़कों को मैं अच्छे से जानती हूं खुबसूरत लडकी देखते ही लार टपकाते हुए आ जाते हों। मजनूं कहीं के।

लडकी की बाते सून अपश्यु गाल को सहलाते हुए मुस्कुरा दिया। लडकी पहले से ही गुस्से में थी अपश्यु को मुस्कुराते देख गुस्सा ओर बढ़ गया। लडकी कुछ कर पाती उससे पहले ही अपश्यु के दोस्त अपश्यु को पकड़कर पिछे ले गया फिर विभान बोला...अरे ओ मजनूं होश में आ पूरे क्लॉस के सामने नाक कटवा दिया, जा जा'कर बता दे तू कौन हैं?

अपश्यु…कितने कोमल कोमल हाथ हैं कितना मीठा बोलती हैं। मैं तो गया कम से कोई मुझे डॉक्टर के पास ले चलो ओर प्रेम रोग का इलाज करवाओ।

मनीष…लगाता हैं थप्पड़ों ने तेरे दिमाग के तार हिला दिया, तू बावला हों गया हैं। वो लडकी कोई मीठा बिठा नहीं बोलती तीखी मिर्ची खाकर तीखा तीखा बोलती हैं। उसके हाथ कोमल हैं तो हार्ड किसे कहेगा देख अपने गालों को पांचों उंगलियां छप गया हैं।

अपश्यु…सालो तुम सब ने एक बात गौर नहीं किया आज तक किसी ने भरे क्लॉस में मुझ पर हाथ नहीं उठाया इस लड़की में कुछ तो बात हैं ये लडक़ी मेरे टक्कर की हैं अब ये तुम सब की भाभी बनेगी।

अनुराग…जब तूने तय कर लिया तुझे आगे भी इस लङकी से पीटना हैं तो बोलना पड़ेगा भाभी। हम कर भी क्या सकते हैं

अपश्यु बैठें बैठे लड़की को ताड़ रहा था। सामने बैठा लडके का सिर बीच में आ रहा था। लडके सिर को दाएं बाएं कर रहा था इससे अपश्यु परेशान हों लडके को धक्का दे नीच गिरा दिया। लड़का उठकर चुप चाप दूसरे सीट पर जा बैठ गया।

लडक़ी थाप्पड़ मरने के बाद सीट पर बैठ गई ओर बार बार अपस्यू को पलट पलट कर देख रहीं थीं। अपश्यु भी लड़की को देख रहा था तो लड़की ने आंख मार दिया फिर बगल मे बैठी लड़की जो उसकी सहेली हैं। उससे बोली...सुगंधा देख कैसे घूर रहा हैं मन कर रहा हैं जाकर एक किस कर दूं।

सुगंधा...वो तो घुरेगा ही तुझ पर फिदा जो हों गया। जा कर ले किस, तू तो हैं ही बेशर्म, कहीं भी शुरु हों जाती हैं। डिंपल तू जानती नहीं किसे थप्पड़ मारा हैं?

डिंपल…कौन हैं ? बहुत बड़ा तोप हैं जो मैं उसे थप्पड़ नहीं मार सकती। मैं तो किसी को भी थप्पड मार दू ओर जिसे मन करे उसे किस भी कर दू।

सुगंधा…हमारे कॉलेज के कमीनों का सरदार महाकमीना अपश्यु हैं। उससे कॉलेज के स्टूडेंट के साथ साथ टीचर और प्रिंसिपल बहुत डरते हैं ओर तूने उसके ही गाल लाल कर दिया जिसने भी उस पर हाथ उठाया वो सही सलामत घर नहीं पहुंचा। अब तेरा क्या होगा?

डिंपल…मुझे कुछ भी नहीं होगा देखा न तूने कैसे देख रहा था जैसे पहली बार लडकी देख रहा हों। ये महाकमिना हैं तो मैं भी महाकमिनी हूं।

सुगंधा…वो तो तू हैं ही लेकिन देर सवेर ये महाकमिना इस महाकमिनी से आपमान का बदला लेकर रहेगा। तब किया करेगी?

डिंपल…करना कुछ नहीं हैं ये तो मुझ पर लट्टू हों ही गया अब सोच रहीं हूं मैं भी डोरे डाल देती हूं फिर मजनूं बना आगे पीछा गुमाती रहूंगी।

सुगंधा...तेरा दिमाग तो ठीक हैं पहले से ही इतने सारे मजनूं पाल रखी हैं अब एक ओर कहा जाकर रुकेगी।

डिंपल…सारे मजनूं को रिटायरमेंट देकर अपश्यु पर टिक जाती हूं ओर परमानेंट मजनूंं बना लेती हूं।

सुगंधा...हां हां बना ले ओर मजे कर तुझे तो बस मौज मस्ती करने से मतलब हैं।

डिंपल…यार इस अपश्यु नाम के मजनूं को आज पहली बार देख रहीं हूं न्यू एडमिशन हैं।

सुगंधा...कोई न्यू एडमिशन नहीं हैं ये तो पुरानी दाल हैं जो आज ही कॉलेज आय हैं। कॉलेज आते ही तूने उसके गाल सेंक दिया।

दोनों बात करते करते चुप हों गए क्योंकि क्लॉस में टीचर आ गया था। टीचर क्लॉस का एटेंडेंस लेने लग गया जब अपश्यु का नाम आया ओर कोई ज़बाब नहीं मिला तो टीचर बोला...आज भी नहीं आया लगाता हैं फिर से प्रिंसिपल से शिकायत करना पड़ेगा।

टीचर कि बात सुन अपश्यु का दोस्त विभान बोला...सर अपश्यु आज कॉलेज आया हैं। फ़िर अपश्यु से बोला अरे लङकी ताड़ना छोड़ ओर मुंह खोल नहीं तो फ़िर से शिकायत कर देगा

अपश्यु…पार्जेंट सर।

टीचर…ओ तो आप आ गए आज क्यों आए हों सीधा रिजल्ट लेने आ जाते।

अपश्यु...सर अब से रोज कॉलेज आऊंगा एक भी दिन बंक नहीं करूंगा।

टीचर…कुछ फायदा नहीं होने वाला अगले हफ्ते से एग्जाम शुरू होने वाला हैं। पढ़ाई तो कुछ किया नहीं तो लिखोगे क्या? जब लिखोगे कुछ नहीं तो नंबर न मिलकर बड़ा बड़ा अंडा मिलेगा। उन अंडो का आमलेट बनाकर खा लेना।

टीचर कि बात सुन क्लॉस में मौजूद सभी लडके और लड़किया ठाहाके मारने लग गए। उन सभी को डांटते हुए टीचर बोला….मैंने कोई जॉक नहीं सुनाया जो सब ठाहाके मार रहें हों। पढ़ने पर ध्यान दो नहीं तो अपश्यू की तरह आधार में लटक जाओगे।

टीचर कि बाते सुन अपश्यु मन ही मन बोला...ये तो सरासर बेइज्जती हैं तुझे तो बाद में देखूंगा एक ही दिन में सभी को धो दिया तो पढ़ाने के लिए कोई नहीं बचेगा।

टीचर पढ़ना शुरू कर दिया ऐसे ही रेसेस टाईम तक पढ़ाई चलता रहा। फिर रेसेस होने पर सब कैंटीन में चले गए अपश्यु भी दोस्तों के साथ कैंटीन में जा'कर बैठ गया और चाय कॉफी पीने लग गए तभी डिंपल और सुगंधा कैंटीन में आई। डिंपल अपश्यु के पास गया फिर बोला...सॉरी मैंने अपको पूरे क्लॉस के सामने थाप्पड मारा

अपश्यु एक खाली कुर्सी कि ओर इशारा किया डिंपल उस पर बैठ गईं फिर अपश्यु बोला…अपके लिए इतना बेइज्जती तो सह ही सकता हूं।

डिंपल खिला सा मुस्कान बिखेर दिया जिसे देख अपश्यु भी मुस्कुरा दिया फिर डिम्पल बोला...क्या हम दोस्त बन सकते हैं।

अपश्यु…आप'से दोस्ती नहीं करना है आप'को गर्लफ्रेंड बनना चाहता हू। गर्लफ्रेंड बननी हैं, तो बोलो।

डिंपल मुस्कुरा दिया फिर मन ही मन बोली...ये तो सीधा सीधा ऑफर दे रहा हैं मैं तो ख़ुद ही इसे बॉयफ्रेंड बाना चाहती हूं चलो अच्छी बात हैं बकरा खुद हलाल होना चाहता हैं तो मैं किया कर सकती हूं लेकिन अभी हां कहूंगी तो कहीं ये मुझे गलत न समझ बैठें।

डिंपल…हम आज ही मिले हैं ओर आज ही गर्लफ्रेंड बनने का ऑफर दे रहे हों, ऑफर तो अच्छा हैं लेकिन मुझे सोचने के लिए कुछ टाइम चाहिए।

अपश्यु…दिया टाइम लेकिन ज्यादा नहीं तीन दिन इतना काफी हैं सोचने के लिए।

डिंपल…हां इतना काफी हैं।

बातों बातों में रेसेस टाईम खत्म हों गया फिर सभी अपने अपने क्लॉस में चले गए। अपश्यु क्लास में आया ओर दोस्तों को छोड़ डिम्पल के साथ बैठ गया फिर बीच बीच में बात करते हुए क्लास अटेंड करने लग गए।

घर पर सुरभि तैयार होकर बहार आई सुरभि को सजा धजा देख सुकन्या बोली... कहीं जा रहे हों।

सुरभि... हां छोटी कलकत्ता जा रही हूं तू घर का ध्यान रखना।

सुकन्या... ठीक हैं! आते वक्त पुष्पा को लेकर आना। उससे मिले हुए बहुत दिन हों गया।

सुरभि हां बोला फिर दूसरी बाते करने लग गए। राजेंद्र घर आया फिर दोनों सभी को बोल कलकत्ता के लिए चल दिया। रस्ता लंबा था तो दोनों पति पत्नि बातों में मग्न हों टाइम काट रहे थें। बातों बातों में राजेंद्र बोला...सुरभि आज रघु को ऑफिस का सारा कार्य भर सोफ दिया हैं।

सुरभि…रघु को एक न एक दिन सब जिम्मेदारी अपने कंधो पर लेना ही था अपने सही किया लेकिन एक शुभ मूहर्त पर करते तो अच्छा होता।

राजेन्द्र...अभी सिर्फ कार्य भर सोफ़ा हैं उसके नाम नहीं किया हैं। रघु के शादी के बाद एक शुभ मूहर्त देखकर बहू और रघु के नाम सब कुछ कर दुंगा।

सुरभि…पता नहीं कब बहु के शुभ कदम हमारे घर पड़ेगी। कब मुझे बहु को गृह प्रवेश करवाने का मौका मिलेगा।

राजेन्द्र...वो शुभ घडी भी आयेगा। मैंने फैसला किए हैं अब जो भी लङकी देखने जाऊंगा उसके बारे में किसी को नहीं बताऊंगा।

सुरभि…ये आपने सही सोचा।

दोनों ऐसे ही बाते करते हुए सफर के मंजिल तक पहुंचने की प्रतिक्षा करने लग गए। उधर कलकत्ता में कमला घर पर मां बाप के साथ नाश्ता कर रही थीं। नाश्ता करने के बाद कमला बोली...पापा आज आप और मां टाइम से कॉलेज आ जाना नहीं आए तो फिर सोच लेना।

महेश…ऐसा कभी हुए हैं हमारी लाडली ने किसी प्रतियोगिता मे भाग लिया हों ओर हम उसे प्रोत्शाहीत करने न पहुंचे हों।

मनोरमा…हम जरूर आयेंगे लेकिन तु ने हमे बताया नहीं तू भाग किस प्रतियोगिता में ले रहीं हैं। इस बार भी हर बार की तरह चित्रकलां प्रतियोगिता में भाग लिया हैं क्या?

कमला…हां मां इस बार भी चित्रकलां प्रतियोगिता में भाग लिया ओर एक अच्छा सा चित्र बनाया हैं।

महेश…तो फिर हमे भी दिखा दो, हम भी तो देखे हमारी चित्रकार बेटी ने कौन सा चित्र बनाया हैं?

कमला…वो तो आप को वार्षिक उत्सव में आने के बाद ही देखने को मिलेगा अब मैं चलती हूं आप समय से आ जाना।

कमला रूम में गई एक फोल्ड किया हुए पेपर बंडल उठाकर नीचे आई। नीचे उसकी सहेली चंचल और शालु बैठी हुई थीं। उनको देखकर कमला बोली...तम दोनों कब आए?

शालु...हम अभी अभी आए हैं जल्दी चल हमे देर हों रहीं हैं।

मनोरमा…अरे रूको चाय बन गई हैं। तुम दोनों चाय तो पीती जाओ।

चंचल…आंटी हम चाय बाद में पी लेंगे हमे देर हों जायेगी।

इतना कह तीनों चल दिया जाते हुए तीनों एक दूसरे से मजाक कर रहे थे। मजाक मजाक में चंचल बोली...कमला अगले हफ्ते से पेपर हैं फिर कॉलेज खत्म हों जायेगी। उसके बाद का कुछ सोचा हैं क्या करेंगी?

शालु…मुझे पाता हैं कमला किया करेंगी। कॉलेज खत्म होने के बाद कमला शादी करेंगी और पति के साथ दिन रात मेहनत करके ढेरों बच्चे पैदा करेंगी।

ये कहकर शालू दौड़ पड़ी कमला भी उसके पीछे पीछे उसे मरने दौड़ पड़ी कुछ दूर दौड़ने के बाद शालू को कमला पकड़ लिया ओर दे तीन धाप पीठ पर जमा दिया फिर बोली...शालु बेशर्म कहीं कि कुछ भी बोलती हैं थोड़ा तो शर्म किया कर।

शालु…मैं बेशर्म कैसे हुआ शादी के बाद पति के साथ मेहनत करके ही तो बच्चे पैदा होगा तुझे कोई और तरीका पता हों तो बता।

कमला…बच्चे पैदा करने की तुझे बड़ी जल्दी पड़ी हैं तो तू ही शादी कर ले मुझे अभी शादी नहीं करनी हैं न ही बच्चे पैदा करने हैं।

तब तक चंचल भी उनके पास पहुंच गई कमला की बाते सुन चंचल बोली...अभी तो न न कर रहीं हैं जब कोई हैंडसम लड़का शादी की प्रस्ताव ले'कर आएगा तब तेरे मुंह से न नहीं निकलेगा।

कमला…जब ऐसा होगा तब की तब देखेंगे अभी अपना मुंह बंद कर ओर चुप चाप कॉलेज चल।

शालु…ओ हो अभी से शादी के लड्डू फूट रहे हैं लगता हैं अंकल आंटी को बताना पड़ेगा आप'की बेटी से जवानी का बोझ ओर नहीं ढोया जा रहा हैं। जल्दी से इसके हाथ पीले कर दो।

शालु कहकर भाग गई ओर कमला पीछे पीछे भागते हुए बोली...रूक शालू की बच्ची तुझे अभी बताती हूं? किसे उसकी जवानी बोझ लग रहीं हैं।

ऐसे ही तीनों चुहल करते हुए कॉलेज पहुंच गए कॉलेज को बहुत अच्छे से सजाया गया था। कॉलेज के मैदान में टेंट लगाया गया था। जहां एक मंच बना हुआ था। मंच के सामने पहली कतार में विशिष्ट अतिथिओ के बैठने के लिए जगह बनाया गया था ओर पीछे की कतार में स्टूडेंट और उनके पेरेंट्स के बैठने के लिए कुर्सीयां लगाई गई थीं। टेंट के एक ओर एक गैलरी बना हुआ था। कमला उस गैलरी में चली गई वह जाकर कमला एक टीचर से मिली टीचर कमला को लेकर बहार की तरफ आई ओर एक रूम में लेकर गई कुछ वक्त बाद कमला हाथ में एक स्टेंड ओर एक चकोर गत्ते का बोर्ड जो कवर से ढका हुआ था, ले'कर टीचर के साथ बहार आई फिर गैलरी में जा'कर स्टेंड को खड़ा किया। गत्ते के बोर्ड को स्टेंड पर रख दिया फिर पास में ही खड़ी हों गई। दूसरे स्टुडेंट आते गए अपने साथ लाए स्टेंड को खड़ा कर उस पर गत्ते का बोर्ड रखकर पास में खड़े हों गए। कुछ वक्त सारे बोर्डो पर से कवर हटा दिया गया कवर हटते ही पूरा गैलरी आर्ट गैलेरी में परिवर्तित हों गया जहां विभिन्न पाकर की चित्रों का मेला लगा हुआ था फिर निरीक्षण करने वाले कुछ लोग आए जिनके हाथ में पेन और नोट बुक था। स्टैंड के पास गए ओर चित्र की बारीकी से परीक्षण किया फिर बगल में खड़े स्टुडेंट से कुछ सवाल पूछा फिर नोट बुक में कुछ नोट किया ओर अगले वाले के पास चले गए। कुछ ही वक्त में सभी चित्रों का परीक्षण करने के बाद सभी चले गए।

कुछ समय बाद स्टुडेंट के पेरेंट्स आने लग गए ओर आर्ट गैलरी में जा'कर आर्ट गैलरी में लगे चित्र का लुप्त लेने लगे उन्हीं में कमला के मां बाप भी थे जो एक एक करके सभी चित्रों को देख रहे थें ओर चित्र बनाने वाले स्टूडेंट को प्रोत्शाहित कर रहे थें। एक एक कर चित्र देखते हुए कमला के पास पहुंचे कमला के बनाए चित्र को देखकर मनोरमा कमला को गले से लगा लिया ओर बोली…कमला तूने तो बहुत अच्छा चित्र बनाया हैं तेरे चित्र ने मेरे अंदर के ममता को छलका दिया हैं।

कहने के साथ ही मनोरमा की आंखे छलक आई। जब दोनों अलग हुए मां के आंखों में आंसू देख, दुपट्टे के पल्लू से आंसू पोछा फिर कमला बोली...मां आप रो क्यों रहीं हों? मैंने कुछ गलत बना दिया जिसे आप'का दिल दुखा हों अगर ऐसा हैं तो मुझे माफ कर देना।

मनोरमा कमला की बात सुन मंद मंद मुस्कुरा दिया ओर फिर से कमला को गले से लगा लिया ओर बोली...कमला तूने कुछ भी गलत नहीं बनाया हैं तूने तो मां की ममता, वात्सल्य और स्नेह को इतनी सुंदरता से वर्णित किया हैं कि जिस मां के मन में अपर ममता, वात्सल्य और स्नेह होगी इस चित्र को देखने के बाद प्रत्येक मां रो देगी। मैं भी एक मां हूं तो मैं ख़ुद को रोने से कैसे रोक पाती।

कमला खुश होते हुए बोली…सच मां! आप'को मेरी बनाई चित्र इतनी पसंद आई।

मनोरमा…हां मेरी लाडली

कमला…मां आप'को खुशी मिली इससे बढ़कर मुझे ओर कुछ नहीं चाहिएं मेरा इस प्रतियोगिता में भाग लेने का फल मिल चुका हैं अब मुझे कुछ नहीं चाहिएं।

महेश…तुम्हें पुरुस्कार नहीं चाहिएं जिसके लिए तूमने इतनी मेहनत किया।

कमला…आप लोगों की खुशी से बढ़कर मेरे लिए ओर किया पुरुस्कार हों सकता हैं मुझे मेरी पुरुस्कार मिल चूका है अब मुझे ये दिखवे का पुरस्कार नहीं चाहिएं।

महेश….ठीक हैं जैसा तुम कहो हम टेंट में बैठने जा रहे हैं तुम चल रहीं हों।

कमला…नहीं पापा अभी मुख्य अथिति आने वाले हैं उनके देखने के बाद ही मैं आ पाऊंगी।

कमला के मां बाप खुशी खुशी चले गए। इसके बाद ओर भी बहुत लोग आए। कमला के चित्र को देखने वाले अधिकतर महिलाएं जो चित्र के आशय को समझ पाए उनकी आंखे छलक आई। कुछ वक्त बाद मंच से मुख्य अतिथि के पधारने की घोषणा हुआ फिर एक एक कर कई गाडियां कॉलेज प्रांगण में आ'कर रुके, बहुत से जानें माने लोग गाडियों से उतरे उनमें राजेंद्र और सुरभि भी थे फिर सभी एक के बाद एक टेंट के अंदर जा'कर अपनें अपने निर्धारित जगह पर बैठ गए। कुछ वक्त बैठने के बाद सभी एक एक करके उठे ओर आर्ट गैलरी की ओर चल दिया। उनके साथ कॉलेज के प्रिंसिपल और कुछ टीचर हो लिए जो उन्हें एक एक चित्र के पास जा'कर चित्र दिखाए ओर उनके बारे में बताते गए। ऐसे ही चित्र देखते देखते राजेंद्र और सुरभि कमला के बनाए चित्र के पास पहुंचे, तो सुरभि की नजर सब से पहले कमला पर पड़ी। कमला को देख सुरभि मन ही मन बोली...कितनी खुबसूरत लङकी हैं अगर ये लडक़ी मेरे घर में बहु बनकर आ गई तो मेरे घर को स्वर्ग बना देगी।

कमला को देख सुरभि मन ही मन कमला को बहु बनाने की सोच रही थीं ओर कमला की धडकने बढ़ी हुई थीं। राजेंद्र भी कमला को देख मन ही मन बोला...अरे ये लडक़ी तो मेरे देखे सभी लड़कियों से खुबसूरत हैं इसके घर वाले राजी हों गए तो मुझे रघु के लिए ओर लडक़ी देखना नहीं पड़ेगा।

कमला से नज़र हटा तब दोनों ने कमला के बनाएं चित्र को देखा। चित्र देख सुरभि कभी कमला को देख रहीं थी तो कभी चित्र को देख रही थीं। राजेंद्र भी कभी कमला को देख रहा था तो कभी चित्र को देख रहा था। चित्र को देखते देखते सुरभि की आंखे छलक आयी। कमला भी इन दोनों को देख मंद मंद मुस्करा दिया। सुरभि चित्र को बहुत गौर से देखा। जीतना गौर से चित्र को देखती उतना ही सुरभि की आंखों से आंसू छलक आ रहीं थीं।

कमला के चित्र में ऐसा क्या हैं? जो एक मां के आंखो को छलकने पर मजबूर कर दिया जानेंगे अगले अपडेट में यह तक साथ बाने रहने के लिए सभी रिडर्स को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏
Apasyu ko pyaar hogayga but jis ladki se huwa wo to bohut hi chalu lag rahi hai ab dekhna hoga ki uska swabhav bas chanchalta se bhara huwa ya Phir sach mai hi wo ek chali kism ki ladki hai.
Rajendra aur surbhi pahunch gaye Kolkata aur kamla ko dekhte hi unke Maan usey bahu banane ka khayal aya hai and uski painting mai aisa kya jisse surbhi aur rajendra aur zyada prabhivit hogaye hai.
Overall Nice update
 
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एक खेत जिसमे फसलों की बुवाई का काम चल रहा था। कईं मजदूर काम कर रहें थे। चिल चिलाती धूप की असहनीय तपिश जो देह को झुलसा दे, धूप की तपीश इतनी ज्यादा थी कि भूमि में मौजूद पानी ऊष्मा में परिवर्तीत हो'कर हल्की हल्की धुंए का बादल बना रहा था। इतनी चिलचिलाती धूप में खेत के मेढ़ पर लगा एक पेड़ जिसकी टहनियों में नाम के पत्ते लगे हुए थे। जो धूप को रोकने में असमर्थ थे। उसके नीचे एक महिला जिसके तन पे लिपटा साड़ी काई जगह से फटी हुईं, गोद में एक शिशु को लिऐ बैठी हुईं थीं। महिला शिशु को स्तन पान करा कर शिशु की भूख को शांत कर रहीं थीं। महिला अपनें फटे हुए अचल से शिशु को ढक रखा था ओर नजरे ऊपर की ओर कर, सूर्य देवता को आंख दिखाकर कह रहीं थीं "अपनी तपिश को कुछ वक्त के लिए काम कर ले मैं अपने शिशु को दूध पिला रहीं हूं। तेरी तपिश मेरे अबोध शिशु को विरक्त कर रहीं हैं। मेरी फटी अंचल तेरी तपिश को रोक पाने में असमर्थ हैं। "

कमला का बनाया यह चित्र जो एक मां को अपनें शिशु के भूख को मिटाने की प्राथमिकता को दर्शा रही थीं। कैसे एक मां धूप की तपिश को भी सहते हुए अपने अबोध शिशु के भूख को शांत करने के लिए काम छोड़कर शिशु को स्तन पान करा रहीं थीं। इस चित्र को देखकर समझकर सुरभि ख़ुद के अंदर की मातृत्व को रोक नहीं पाई जो उसके आंखो से नीर बनकर बाह निकला, सुरभि अंचल से बहते नीर को पोंछकर कमला के पास गई ओर सिर पर हाथ फिराते हुईं बोली… बहुत ही खुबसूरत और मां के ममता स्नेह को अपने इस चित्र मैं अच्छे से दृश्या हैं। इससे पता चलता हैं आप एक मां की मामता और स्नेह को कितने अच्छे से समझती हों।

कमला…धन्यवाद मेम मैंने तो सिर्फ़ मेरी कल्पना को आकृति का रूप दिया हैं जो देखने वालो के हृदय को छू गई हैं।

राजेंद्र…आप'की कल्पना शक्ति लाजवाब हैं ओर आप'की बनाई चित्र अतुलनीय हैं। मैं आप'का नाम जान सकता हूं।

कमला…जी मेरा नाम कमला बनर्जी हैं।

राजेंद्र…आप'के जन्म दात्री माता पिता बहुत धन्य हैं। क्या मैं उनका नाम जान सकता हूं?

कमला…जी मां श्रीमती मनोरमा बनर्जी और पापा श्री महेश बनर्जी, मां गृहणी हैं और पापा एक कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत हैं।

सुरभि…आप से मिलकर और बात करके बहुत अच्छा लगा अब हम चलते हैं बाद में फिर आप'से मुलाकात करेंगे।

सुरभि और राजेंद्र आर्ट गैलरी में लगे दूसरे चित्र को, आपस में बातें करते हुए देखते रहे फिर जा'कर अपने जगह बैठ गए । गैलरी से मुख्य अतिथियों के जानें के बाद सभी स्टुडेंट अपने अपने पैरेंट्स के पास जा'कर बैठ गए। मंच में रंगारंग कार्यक्रम शुरू हों गया था। जिसमे भाग लेने वाले स्टुडेंट अपने अपने प्रस्तुति से देखने वालों का मन मोह लिया। रंगा रंग कार्यक्रम कुछ वक्त तक चला। जैसे सभी शुरुवात का अंत होता हैं वैसे ही रंगा रंग कार्यक्रम का अंत हुआ और पुरुस्कार वितरण आरंभ किया गया। मुख्य अतिथियों के हाथों सभी स्टुडेंट को उनके प्रस्तुति अनुसार पुरुस्कृत किया गया। अंत में आर्ट प्रतियोगित में भाग लेने वाले सभी स्टुडेंट में से विजेताओं को पुरुस्कृत किया गया। पहले तृतीय स्थान पाने वाले प्रतिभागी को पुरस्कार दिया गया फिर द्वितीय स्थान को ओर अंत में प्रथम स्थान पाने वाले को पुरुस्कृत करने के लिए राजेंद्र और सुरभि को मंच पर बुलाया गया। राजेंद्र, सुरभि के साथ मंच पर गए जहां उनका परिचय मंच संचालक ने दिया फिर बोला...प्रथम स्थान पाने वाले प्रतिभागी को चुनना निरीक्षण कर्ताओ के लिए संभव नहीं था फिर भी उन्होंने एक नाम को चुना हैं। जो मात्र 0.50 अंक के अंतर से प्रथम स्थान को प्राप्त किया हैं। उस प्रतिभागी का नाम कमला बनर्जी हैं कमला मंच पर आए और हमारे मुख्य अथिति राजेंद्र प्रताप राना जी के हाथों पुरस्कार प्राप्त करें।

प्रथम पुरस्कार पाने वालो में खुद का नाम सुन कमला खुशी से उछल पड़ीं खुशी के आंसु कमला के आंखो से छलक आई। महेश और मनोरमा का आशीर्वाद ले'कर कमला मंच की ओर चल दिया। मंच पर पहुंचकर राजेंद्र और सुरभि के हाथों पुरस्कार लिया फिर अभिनंदन स्वरुप राजेंद्र और सुरभि का पैर छू आशीर्वाद लिया ओर अपने जगह पर लौट गई। कुछ वक्त बाद वार्षिक उत्सव को खत्म करने का ऐलान किया गया पहले मुख्य अथिति एक एक कर गए। उनको छोड़ने प्रिंसिपल कार तक साथ गए। राजेंद्र प्रिंसिपल से कमला के बारे में कुछ जानकारी लिया फिर चल दिया। इधर कमला भी मां बाप के साथ घर को चल दिया जाते हुए महेश ने कहा

महेश…प्रथम पुरस्कार पा'कर कैसा लग रहा हैं।

कमला…पापा आज मैं कितनी खुश हूं, बता नहीं सकती, जीवन में पहली बार मुझे पुरस्कार मिला हैं। पापा आप खुश हों न!

महेश…आज मैं बहुत खुश हूं मेरी तोड़ू फोड़ू बेटी आज वो कर दिखाया जिसकी उम्मीद सभी मां बाप करते हैं लेकिन नसीब किसी किसी को होता हैं। उन नसीब वालो में आज मैं भी सामिल हों गया।

मनोरमा...हां कमला आज तो हमारी खुशी की कोई सीमा नहीं हैं। हमारी खुशियों ने सारी सीमाएं तोड़ दिया हैं।

ऐसे ही बाते करते हुए कमला मां बाप के साथ घर पहुंच गए। उधर राजेंद्र और सुरभि की कार एक आलीशान बंगलों के सामने रुका दरवान उनको देख सलाम किया फिर गेट खोल दिया। ड्राइवर कार को अदंर ले गया कार के रुकते ही, राजेंद्र और सुरभि कार से उतरकर दरवाज़े तक गए दरवाज़े पर लगे घंटी को हिलाया, दो तीन बार हिलाने के बाद दरवजा एक नौकर ने खोला, राजेंद्र और सुरभि को देख सलाम किया फिर अंदर चले गए। अंदर आकार राजेंद्र बोला...पुष्पा कहा हैं दिख नहीं रहीं?

"मालिक छोटी मालकिन अपने कमरे में हैं आप लोग बैठिए, मैं मालकिन को बुलाकर लाती हूं।"

सुरभि…चंपा तुम रहने दो हम खुद जा'कर अपनी लाडली से मिल लेते हैं।

इतना कह दोनों पुष्पा के रूम की ओर चल दिया। दरवाजा बन्द देख सुरभि मुंह पर उंगली रख राजेंद्र को चुप रहने का इशारा किया फिर दरवाजा पीटने लग गईं। दरवाजे पर हों रही ठाक ठाक को सुन पुष्पा बोली...चंपा दीदी मुझे परेशान न करों मैं अभी पढ़ रहीं हूं। बाद में आना।

ये सुन दोनों एक दूसरे को देख मुस्कुरा दिया ओर सुरभि फिर से दरवाजा पीटने लग गई। अबकी बार पुष्पा परेशान हों गई ओर "क्या मुसीबत है एक बार में सुनते ही नहीं" बोल किताबे रख उठकर दरवाजे की ओर चल दिया ओर दरवाजा खट से खोल दिया। मां बाप को सामने देख पुष्पा सिर को झटका दिया फिर आंखो को मला, इतना करने के बाद भी उसे बही सकल दिखाई दिया तो मुसकुराते हुए सुरभि के गले लग गई फिर बोली...मां आप कैसे हैं और कब आएं?

सुरभि…मैं ठीक हू मेरी बच्ची कैसी हैं कितनी दुबली हों गई हों कुछ खाती पीती नहीं थीं।

पुष्पा…कहा दुबली हों गई हूं। मैं तो पहले से ओर मोटी हों गई हूं वो आप मुझे बहुत दिनों बाद देख रही हों इसलिए मोटी लग रहीं हूं।

बेटी की बाते सून सुरभि मुस्कुरा दिया ओर पुष्प पापा के पास जा पापा के पाव छू आर्शीवाद लिया फिर बोला...पापा आप कैसे हों?

राजेंद्र...मैं जैसी भी हूं तुम्हारे सामने हूं देख लो!

इतना कह राजेंद्र कमर पर हाथ रखकर खड़ा हों गया। ये देख सुरभि और पुष्प मुस्करा दिया फ़िर पुष्पा दोनों का हाथ पकड़ कमरे के अन्दर ले'कर गई। कमरे में जहां तहां किताबे बिखरे पड़े थे। पुष्पा किताबो को समेट कर रखने लग गई। बिखरे किताबों को देख सुरभि बोली...तूने तो कमरे को पुस्तकालय (लाइब्रेरी ) बना रखा हैं। जहां तहां किताबे बिखेर रखी हैं।

इतना बोला सुरभि भी किताबे समेटने लग गई। मां को किताबे समेटते देख पुष्पा बोली...मां आप छोड़ो न मैं अभी रख देती हूं आप बैठो।

पुष्पा की बात माने बिना सुरभि किताबे समेटती रहीं। किताबों को समेट सही जगह रखने के बाद सुरभि और राजेंद्र बैठ गई फिर पुष्पा को दोनों के बीच बिठा लिया ओर तीनों मां बाप बेटी बातों में मग्न हों गए। पुष्पा घर के बचे सदस्यों का हल चाल पूछा फिर मां बाप को रेस्ट करने को कह पुष्पा दुबारा पढ़ने बैठ गई। सुरभि ओर राजेंद्र दूसरे रूम में जा फ्रेश हुआ फिर बैठे बैठे बाते करने लग गए बाते करते करते सुरभि बोली...बच्चो ने कितना अच्छा प्रोग्राम किया मुझे तो बहुत अच्छा लगा अपको कैसा लगा।

राजेंद्र….मुझे भी बहुत अच्छा लगा। आर्ट गैलरी में लगे चित्र मुझे सबसे अच्छा लगा। जिसे बच्चों ने कितनी परिश्रम से बनाया था।

सुरभि…मुझे भी बहुत अच्छा लगा। मुझे उन चित्रों में सबसे अच्छा चित्र वो लगा जिसे प्रथम पुरस्कार विजेता लडक़ी का kyaaa naammm हां याद आया कमला ने बनाई थीं।

राजेन्द्र…मूझे भी वो चित्र बहुत अच्छा लगा। जितनी खुबसूरत लडक़ी हैं उतनी ही खुबसूरत और मन मोह लेने वाली उसकी कल्पना हैं।

सुरभि…मुझे भी उस लडक़ी की सोच बहुत अच्छी लगी ओर बात चीत करने का तरीका भी बहुत सभ्य था। क्यों न हम उसके मां बाप से रिश्ते की बात करें?

राजेंद्र…मैं भी यही सोच रहा हूं कल सुबह चलते हैं कॉलेज से उसके घर का एड्रेस लेकर उसके मां बाप से मिलकर बात करते हैं।

सुरभि…ठीक हैं अब चलो खाना खा'कर पुष्पा से कुछ वक्त ओर बात कर लेते हैं।

दोनों पुष्पा के कमरे में गये उसे साथ ले'कर खाना खाने चल दिया। खाना खाते हुऐ तीनों बाते करते रहे। अचानक बिना सूचना दिए मां बाप के आने का कारण पूछा तो राजेंद्र ने आने का करण बता दिया फिर कल वापस जानें की बात कहा तो पुष्पा रूठते हुए बोली...आप दोनों को मेरी बिलकुल भी परवाह नहीं हैं मैं यह अकेले रहकर पढ़ाई कर रही हूं। मुझे आप सभी की कितनी याद आती हैं ओर आप हों की आते ही नहीं जब आते हों एक दिन से ज्यादा नहीं रुकते पर इस बार ऐसा नहीं होना चाहिए। आप दोनों को साफ साफ कह देती हू दो तीन दिन नहीं रुके तो अच्छा नहीं होगा hannnn।

सुरभि…अरे नाराज क्यों होती हैं। हमारा भी मन करता हैं कि हम तेरे पास रहे लेकिन बेटी दार्जलिंग का काम भी तो देखना होता है। वैसे भी कुछ दिनों में पेपर हैं उसके बाद तो तू हमारे साथ ही रहेगी।

पुष्पा…तब की तब देखेंगे लेकीन आप दोनों दो तीन दिन नहीं रुके तो अच्छा नहीं होगा। आप दोनों महारानी की बाते नहीं माने तो आप जानते ही हो महारानी की आज्ञा न मानने पर क्या होता है?

राजेंद्र…अच्छा अच्छा महारानी जी हम आप'की आदेश मान कर दो तीन दिन अपने लाडली के पास रूक जाएंगे। अब खुश हों न महारानी जी!

पुष्पा...महारानी बहुत खुश हुआ ओर आप दोनों को सजा न देखकर बक्श दिया।

पुष्पा की नाटकीय अंदाज में कहीं बाते सून राजेंद्र और सुरभि खिल खिला दिए फिर खाना खाने लग गए। इधर रावण देर से ऑफिस गया था इसलिए देर तक काम किया फिर चल दिया। एक आलिशान घर के सामने कार को रोका घर को बाहर से देखने पर ही जाना जा सकता हैं। यहां रहने वाले रसूकदार और शानो शौकत से लवरेज हैं। रावण को आया देख दरवान ने गेट खोला फ़िर रावण अदंर आ'कर दरवाजे पर लटकी घंटी को बजाया थोड़ी देर में दरवाजा खुला रावण को देख नौकर बोला...मालिक आप'के दोस्त रावण जी आए हैं। फिर रावण से बोला "अंदर आइए मालिक!

इतना बोल दरवाज़े से किनारे हट गया रावण अदंर गया अदंर का माहौल देख रावण बोल….दलाल कैसा हैं मेरे दोस्त। आज बडी जल्दी शुरू कर दिया क्या बात ?

दलाल…मैं ठीक हूं मेरे दोस्त बैठ?

रावण बैठ गया फिर दलाल एक ओर गिलास में रंग बिरंगा पानी डाला ओर रावण की ओर बडा दिया फिर बोला…तुझे देखकर लग रहा हैं तू बहुत प्यासा हैं ले इसे पीकर प्यास मिटा ले।

रावण मुस्कुराते हुए बोला…साले घर आए मेहमान की प्यास पानी से मिटाया जाता हैं न की शराब और कबाब से !

दलाल पहले मुस्कुराया फिर आवाज देते हुए बोला…सम्भू एक गिलास पानी लाना लगाता हैं आज मेरा दोस्त मेहमान बनकर आया हैं दोस्त नहीं!

ये सुन रावण मुस्कुरा दिया फ़िर गिलास उठाकर एक घुट में पी गया ओर चखना खाते हुए बोला…अरे तू मेरा जिगरी यार हैं तेरे साथ मजाक भी नहीं कर सकता। यार भाभी जी नहीं दिख रही हैं कहीं गईं हैं और बिटिया रानी कहा हैं वो भी नहीं दिख रहीं हैं। ही ही ही

दलाल गिलास हाथ में लेकर एक घुट पिया फिर बोला…तेरी भाभी गई है मायके ओर बेटी की बात पूछकर जले पर नमक क्यों छिड़क रहा हैं।

रावण आपने गिलास में शराब लोटते हुए बोला…जला तो तू खुद ही हैं किसने कहा था दामिनी भाभी ओर बच्ची को घर से निकाल दे।

दलाल... मैंने कब निकाला बो खुद ही घर छोड़कर गई हैं ओर तू मुझे ही दोष दे रहा हैं। वैसे जाकर अच्छा ही किया उससे अच्छा दूसरी लेकर आया हूं हां हां हां...।

रावण…आरे छोड़ उन बातों को क्या हुआ था कुछ कुछ मैं भी जनता हूं। मैं उस पर बात करने नहीं आया हूं बल्कि कुछ जरूरी बात करने आया हूं। तू सांभू को बाहर भेज दे फिर बताता हू।

दलाल…अरे यार संभू से किया डरना संभू मेरा विश्वास पात्र बांदा हैं। इसके मुंह पर लगा ताला इतना मजबूत है कि एक बार लग जाएं तो दुनिया में ऐसी चाबी ही नहीं बनी जो उसके मूंह के ताले को खोल सके

रावण…मैं जानता हूं संभू किसी के आगे मुंह नहीं खोलेगा फिर भी तू उसे बहार भेज दे मैं नहीं चाहता की इस बारे में किसी को भी पाता चले।

रावण संभू को आवाज दिया। सुंभू कीचन से आया फिर दलाल बोला…संभू अभी तू जा मुझे कुछ चाहिएं होगा तो मैं ख़ुद ही ले लूंगा।

संभू जी मालिक कहकर चला गया ओर बाहर जा'कर रुक गया फिर खुद से बोला... ये दोनों आज भी किसी षड्यंत्र पर बात तो नहीं करने वाले आगर ऐसा हुआ तो मैं कैसे जान पाऊंगा कैसे भी करके मुझे इनकी बाते सुनना होगा लेकिन सुनूं कैसे किसी रूम में बैठे होते तो सुन लेता पर दोनों तो बैठक में बैठे हैं। बैठक में होने वाले बातों को सुनने का कोई न कोई रस्ता ढूंढना होगा।

सुंभु रावण और दलाल के बीच होने वाले बातों को सुनने का जरिया ढूंढने लग गया लेकिन उसे कहीं से कहीं तक कोई रस्ता नहीं मिला तो पीछे बने सर्वेंट रूम में चला गया। इधर संभू के जानें के कुछ देर बाद रावण बोला…कल सुकन्या ने दादाभाई और भाभी को बात करते हुए सुन लिया जो बाद में मुझे बता दिया ओर जो सुकन्या ने सूना वो बाते…...।

रावण की बाते सून दलाल पहले तो चौका फिर खुद को संभाल लिया ओर बोला….तू ने तो उस गुप्तचर बृजेश को और उसके परिवार को मार दिया तो अब न साबुत मिलेगा न ही हमारा राज राना जी जान पायेंगे इसलिए डरने की जरूरत नहीं है। रहीं बात रघु की शादी की तो उसके बारे में मैं पहले से ही सोच रखा था। कभी ऐसा हुआ तो हमें क्या करना होगा?

रावण…बृजेश को मार दिया लेकिन बड़ी मुस्कील से उस दिन मैं थोडा सा भी लेट पहुंचा होता तो बृजेश सारा राज रघु को बता दिया होता। लेकिन मैंने बृजेश के परिवार को नहीं मारा उनको डरा धमका कर यहां से भागा दिया।

दलाल...कर दिया न मूर्खो वाला काम तुझे उसके परिवार को भी मार देना चाहिए था लेकिन अब जो हों गया सो हों गया अब मुझे मेरी बनाई हुई दूसरी योजना शक्रिय करना होगा।

रावण दोनों के गिलास में शराब लोटते हुऐ बोला…दूसरी कौन ‌सी योजना बना रखी थीं जो तूने मुझे नहीं बताया।

दलाल…क्यों न रघु की शादी मेरी बेटी से करवा दे इससे हमारा ही फायदा होगा। हमारा राज, राज ही रहेगा और वसियत के मुताबिक इन दोनों के पहली संतान जब बालिग होगा तब मेरी बेटी वसियत को अपने नाम करवा लेगी मेरी बेटी के जरिए गुप्त संपत्ति पर हम कब्जा कर लेंगे।

रावण…देख तू मेरे साथ कोई भी चल बाजी करने की सोचना भी मत नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

दलाल...मैं तेरे साथ छल क्यों करूंगा तेरे साथ छल करना होता तो मैं तुझे वसीयत का राज क्यों बताता।

रावण…मुझे तो यही लग रहा हैं तू मेरे साथ छल करने की सोच रहा हैं क्योंकि तेरी बनाई योजना से सब तेरे और तेरी बेटी के हाथ में आ जाएगा। मुझे क्या मिलेगा घंटा।

दलाल…घंटा नहीं माल मिलेगा माल ओर इतना माल मिलेगा की तू गिनते गिनते थक जाएगा। एक बात कान खोल कर सुन ले तू मेरा लंगोटिया यार हैं मैं तेरे साथ धोखे बाजी क्यो करूंगा तू ये बात अपने दिमाग से निकाल दे।

रावण…कुछ कहा नहीं जा सकता जब मैं भाई होकर भाई से दागा कर सकता हूं। तू तो मेरा दोस्त हैं तू क्यों नहीं कर सकता। मैं तेरा लंगोटिया यार कैसे हुआ बचपन में तेरा मेरा बनता ही कहा था हम तो जवानी में आ'कर दोस्त बने।

दलाल…तुझे लगाता हैं मैं तेरे साथ दगा करूंगा तो तू ही कोई रास्ता बता जिससे हमारा भेद भी न खुले और हमारा काम भी बन जाएं।

रावण…अभी तो मुझे न कुछ सूझ रहा हैं न कोई रास्ता नजर आ रहा हैं ।

दलाल…होगा तभी न नज़र आएगा अभी तो यहीं एक रास्ता हैं। मेरी बेटी की शादी रघु से करवा दिया जाएं जिससे हमारा भेद छुपा रहेगा ओर माल हमारे पास ही आयेगा।

रावण…मन लिया तेरी बेटी की शादी रघु से करवा दिया लेकिन फिर भी एक न एक दिन हमारा भेद खुल ही जाएगा क्योंकि तू दादाभाई को जानता हैं वो जीतना शांत दिखते हैं उससे कही ज्यादा चतुर हैं दादाभाई आज नहीं तो कल कुछ भी करके हम तक पहुंच जायेंगे फिर हमारे धड़ से सिर को अलग कर देंगे।

दलाल…तू सिर्फ नाम का रावण हैं दिमाग तो तुझमें दो कोड़ी की भी नहीं हैं। मेरी बेटी की शादी इसलिए करवाना चाहता हु कि कभी अगर हमारा भेद खुल भी जाए तो मैं मेरी बेटी के जरिए उन पर दवाब बनाकर खुद को और तुझे बचा सकू।

रावण…ओ तो ये बात हैं तेरा भी जवाब नहीं हैं कल किया होगा उसके बारे में आज ही सोच कर योजना बना लिया मस्त हैं यार।

दलाल…मस्त कैसे हैं तुझे तो लगता हैं मैं तेरे साथ धोका करके सब अकेले ही गटक जाऊंगा और डकार भी नहीं लूंगा।

रावण…गटक भी गया तो मैं तेरे हलक में हाथ डाल निकाल लुंगा। ही ही ही तुझे जो ठीक लगें कर ओर मुझे बता देना। चल एक दो पैग ओर पिला फिर घर भी जाना हैं। बहुत देर हों गया हैं।

हंसते मुसकुराते ओर मस्कारी करते हुए दो तीन पैग ओर पिया फिर रावण घर को चल दिया रावण के जानें के बाद दलाल बोला...मेरे दिमाग में क्या चल रहा हैं। रावण तू भी नहीं जनता जिस दिन तुझे पाता चलेगा तू सदमे से ही मार जायेगा। चलो अब चल कर सोया जाए दामिनी से कल बात करता हू नहीं मानी तो कुछ भी करके मानना पड़ेगा।

इतना बोला दलाल लड़खड़ाते हुए जाकर सो गया इधर रावण भी नशे में धुत घर पहुंचा थोड़ा बहुत खाना खाया ओर सो गया। कलकत्ता में राजेंद्र और सुरभि देर रात तक पुष्पा के साथ बाते करते रहे फिर जाकर सो गए।

आज के लिए इतना ही आगे की कहानी जानेंगे अगले अपडेट से साथ बाने रहने के लिए आप सभी रीडर्स को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
Kamla ki painting ne kamal kardiya aur usey first prize bhi dila diya
Surbhi aur rajendra ne to pakka Maan bana liya hai kamla ko bahu banane ka par kya kamla razi hogi aur uske mata pita ye dekhte hai.
Pushpa apne Maa Baap ko dekh kar khush hogayi aur unhe 2-3 din rukne ke liye mana bhi liya.
Yaha ye dalal to ek alag hi gane khel raha hai wo damini ko rajendra ki bahu bana kar kuch bada karne ke plan mai hai ravan ko to us par bharusa nahi hai but jis tarah se wo chal raha hai aise mai lagta nahi ki ravan ko bhanak bhi lagne dega apne mansubo ki.
Overall Awesome update
 
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रात्रि भोजन का समय हों रहा था दार्जलिंग से कोसो दूर एक घास फूस की बनी झोपड़ी में तीन लोग जिसमे दो महिलाएं और एक जवान लड़का जमीन पर बिछावन बिछाए भोजन कर रहें थे। भोजन करते हुए जवान लड़का बोला…मां हम अपना घर वार अपने लोगों को छोड़कर इतनी दूर इस अंजान जगह पर कब तक रहेगें।

सोमलता...कमलेश तू इतना न समझ तो हैं नहीं जो कुछ भी समझ नहीं पा रहा हैं हम क्यों अपना बसेरा छोड़ इस अंजान जगह सिर छुपाने को मजबूर हुए।

कमलेश…मां मैं सब समझ रहा हु। लेकिन हम कब तक अंजान जगह पर रहेगें और कब तक डर के छाएं में जीते रहेगें हम राजा जी से मिलकर उन्हें बता क्यों नहीं देते।

सोमलता निवाला बनाकर मुंह में ले रही थीं। कमलेश की बातों को सुनकर निवाला वापस थाली में रख दिया फिर बोली…कमलेश तूने सुना था न राजा जी के भाई रावण ने किया कहा था। उसने तेरे बापू को मार दिया मेरा सुहाग उजड़ दिया तेरे सिर से बाप का छाया छिन लिया और धमकी भी दिया अगर हम में से किसी ने राजा जी से मिला या उनको कुछ भी बताया तो वो हम सब को मार देगा। मैं कैसे जीते जी अपने परिवार को उजड़ते हुए देख सकती हूं।

कमलेश…मां मैंने सुना था लेकिन मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं उस कमीने रावण ने बापू को मरा क्यों और हमे राजा जी से मिलने को मना किया फिर गांव छोड़कर दूर जानें को कहा मुझे लगाता हैं आप कुछ जानते हों अगर आप जानती हों तो मुझे बता दो।

सोमलता…बेटा ये एक राज हैं जो तेरे बापू जानते थे ओर अब मैं जानता हूं जो तेरे बापू मरने से कुछ दिन पहले मुझे बताया था। ये राज रावण से जुड़ा हैं इसलिए रावण ने तेरे बापू को मार दिया और हमे धमका कर गांव से भगा दिया।

कमलेश…मां ये राज रावण से जुड़ा हैं तो हमें राजा जी को बता देना चाहिए था न की ऐसे कायरों की तरह मुंह छुपा कर भाग आना चाइए था।

सोमलता…हम भाग कर नहीं आते तो रावण जैसा धूर्त और क्रूर आदमी जिसके अदंर दया का लेस मात्र भी भाव नहीं हैं। मेरे वंश का समूल नाश कर देता ।

कमलेश…मां रावण के जुल्म को हम कब तक सहते रहेंगे, किसी न किसी को उसके खिलाफ आवाज़ तो उठाना ही होगा। आप मुझे वो राज बता दो जिसके कारण पिता जी को मार दिया गया और हमे अपना घर अपना माटी छोड़ने पर मजबुर किया गया।

सोमलता…वो राज मेरे छीने मे दफन हैं और हमेशा हमेशा के लिए दफन रहेगा।

कमलेश…मां जिस राज के कारण मेरे सिर से बाप का छाया उठ गया। उस राज को जानने का हक मुझे हैं।

सोमलता…बेटा जानने का हक तुझे हैं लेकिन वो राज बता कर मैं ओर कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती। इसलिए तू जिद्द न कर ओर चुप चाप खाना खा।

कमलेश…मां आप राज बताना नहीं चाहती तो मत बताओ मैं आप'से जिद्द नहीं करूंगा। लेकिन मैं आप'को एक बात साफ़ साफ़ कह देता हूं। जिसके कारण मेरे बाप की मौत हुआ। उस रावण से बाप के मौत का बदला मैं लेकर रहूंगा।

कमलेश की बात सुनकर सोमलता अचंभित हों गईं। सोमलता मुंह में अभी अभी निवाला ढाला था जो उसके गाले में अटक गई जिससे उसे धसका लग गया ओर सोमलता खांसने लग गई। मां को खंसते देखकर कमलेश पानी का गिलास आगे बढाकर सोमलता को दिया फिर जा'कर सोमलता के पीठ को सहलाने लग गया। सोमलाता दो घुट पानी पिया पानी पीने के कुछ देर बाद ही सोमलता की खासी कम हो गया। तब कमलेश बोला…मां आप ठीक हों न।

सोमलता…अभी तो ठीक हू लेकिन लगाता है ज्यादा दिन तक ठीक नही रहूंगी।

कमलेश…मां क्या कह रहीं हों आप भली चांगी तो हों फिर कोई दिक्कत हैं तो कल ही डॉक्टर के पास ले'कर चलता हूं।

सोमलता…डॉक्टर के पास जानें की जरूरत नहीं है बस तू बदला लेने की बात दिमाग से निकल दे फिर मुझे कुछ नहीं होगा।

कमलेश…तो किया मैं वह सब भूल जाऊ जो हमारे साथ हुआ। मां मैं नहीं भूल सकता न ही भुल पाऊंगा। मैं जब तक बदला नहीं ले लेता तब तक मैं चैन से नहीं बैठ पाऊंगा।

सोमलता…कमलेश मैं तुझे भूलने को नहीं कह रहा हूं क्योंकि मैं खुद नहीं भुला सकती हूं। मैं बस इतना कहना चाहती हूं तू जिन लोगों से बदला लेना चाहता हैं वो लोग बहुत ताकतवर हैं तू अकेले उनका कुछ नहीं बिगड़ सकता। इसलिए तू बदले की भावना को छोड़ दे।

कमलेश…मां आप एक बात भूल रहीं हों हाथी दुनियां के बड़े जीवों में से एक हैं और ताकतवर भी हैं लेकिन चींटी जैसा एक छोटा जीव जब उसके नाक में घुसता हैं तो हाथी से तांडव करवा कर अपनी मौत मरने पर मजबूर कर देता हैं।

सोमलता…बेटा मैं जानता हूं लेकिन तु ये क्यों भुल रहा हैं। चींटी का हाथी से
तांडव करवाने के कारण बहुत से निरीह प्राणी को नुकसान पहुंचता हैं। इसलिए तू रावण जैसे धुर्त व्यक्ति से टकराने का विचार त्याग दे ओर जो हों गया उसे भूल कर बिखरी हुईं हमारी जिन्दगी को संवारने मे लग जा।

कमलेश…मां रावण धुर्त हैं जुल्मी हैं। उसने बहुत से निरीह लोगों पर जुल्म किया हैं। उसके जुल्मों को बहुत सह लिया लेकिन अब नहीं उसके जुल्मों का प्रतिकार होना चाहिए। किसी एक ने विरोध किया तो देखना कड़ी से कड़ी जुड़ता चला जायेगा फिर लोगों का हुजूम उसके विरोध में खड़ा हों जायेंगे।

सोमलता…रावण के जुल्मों का प्रतिकार बहुत से लोग करना चाहते हैं लेकिन हिम्मत नहीं जूठा पा रहे हैं क्योंकि रावण के जुल्मों का प्रतिकार करने के लिए उसके जैसा धुर्त होना होगा और उससे एक कदम आगे चलना होगा तभी रावण को मात दिया जा सकता हैं।

कमलेश…मैं रावण जीतना धुर्त नहीं हूं लेकिन मेरा आत्मबल बहुत ज्यादा हैं और आत्मबल से बडे़ से बडे़ बाहुबली को भी मत दिया जा सकता हैं।

सोमलता...तेरा आत्मबल इस वक्त बड़ा हुआ हैं इसमें कोई दो राय नहीं हैं लेकिन जिस रस्ते पर तू चलना चाहता हैं वह जीत की उम्मीद कम और हार की ज्यादा हैं ओर जब बर बर पराजय का सामना करना पड़ेगा तब आत्मबल ख़ुद वा ख़ुद काम हों जायेगा।

कमलेश…मां मेरा आत्मबल कभी कम नहीं होगा। मैं धीर्ण संकल्प के साथ आगे बढूंगा ओर रावण को मात दे'कर रहूंगा।

सोमलता…तूने बदले की रस्ते पर चलने का फैसला ले लिया तो मैं तुझे नहीं रोकूंगा। तू आगे बढ़ने से पहले मेरे और तेरी गर्ववती बीबी के बारे में सोच लेना क्योंकि तुझे कुछ हों गया तो हम बेसहारा हों जायेंगे।

कमलेश…ठीक हैं मां कुछ भी करने से पहले मैं अच्छे से विचार कर लूंगा।

दोनों मां बेटे के बीच तर्क वितर्क खत्म हुआ फिर सोमलता हाथ धो'कर विस्तार पर जा'कर लेट गई। कमलेश की बीबी झूठे बर्तन उठाकर धोने ले गई। कमलेश भी उसके पीछे पीछे गया और बर्तनों को धोने में मदद करने लग गया । बर्तन धुलने के बाद दोनों पति पत्नी सोने गए लेटकर कामलेश बोला…संध्या रावण से बदला लेने का जो फैसला मैंने लिया हैं। तुम्हें क्या लगता हैं मैने सही फैसला लिया हैं।

संध्या…आप एक बेटे का फर्ज निभा रहे हैं तो आप'का लिया फैसला गलत कैसे हों सकता हैं।

कमलेश…एक बेटे की नजरिए से मेरा लिया फैसला सही हैं। लेकिन एक पति और होने वाले बाप की नजरिए से क्या मैंने सही फैसला लिया हैं?

संध्या…मैं सिर्फ़ खुद के और हमारे आने वाले बच्चे के बारे में सोचूं तो आप'का लिया हुआ फैसला गलत होगा। लेकिन उन लोगों के बारे में सोचूं जो रावण का अत्याचार सह रहे हैं तो आप'का लिया हुआ फैसला सही हैं इसलिए आप अपने फ़ैसले पर अडिग रहे।

कमलेश…सांध्य तुम जो कह रहीं हों वो सही हैं और मां जो कह रहे थे वो भी सही हैं इसलिए मैं समझ नहीं पा रहा हु मै करू तो क्या करूं।

संध्या…आप इस वक्त असमंजस की स्थिति में हों इसलिए आप इस वक्त कोई निर्णय न लें तो बेहतर ही होगा।

कमलेश…ठीक हैं संध्या मैं इस मुद्दे पर अच्छे से सोच समझकर फैसला लुंगा।

संध्या...हां यहीं सही होगा। अब सो जाइए।

अगले दिन पुष्पा कॉलेज जानें की तैयारी कर निचे आई। नीचे सुरभि और राजेंद्र बठे अखबार में छपे आज के घटनाओं का जायजा ले रहे थे। उनको अखबार पढ़ते देखकर पुष्पा बोली…मां मैं कॉलेज जा रही हूं आप लोग चाहो तो कहीं घूम आओ।

सुरभि…हमे अभी कहीं जाना हैं वह का काम निपटाकर हमे दार्जलिंग वापस जाना हैं।

वापस जानें की बात सुनकर पुष्पा उदास हो गई फ़िर बोली…मां अपने तो कहा था आप दो तीन दिन रुकने वाले हैं फिर अचानक जानें की बात क्यों कर रहें हों। मां बस आज रूक जाओ कल चले जाना।

सुरभि…बेटा तुम्हारे पापा को दार्जलिंग का काम भी देखना होता हैं इसलिए हमे जाना पड़ेगा।

पुष्पा…मां एक दिन रुकने से कोई आफ़त नहीं आ जायेगी फिर भी अगर आप जाना चाहती हों तो जाओ मैं नहीं रोकूंगी।

इतना कहकर पुष्पा पैर फटकते हुए बहार निकाल गई ओर सुरभि आवाज देती रह गई पर पुष्पा रुकी ही नहीं, पुष्पा के जानें के बाद राजेंद्र बोला…हमारे जानें की बात बोलने की क्या जरूरत थीं। खमाखा मेरी लाडली को नाराज कर दिया। सुरभि तुमने अच्छा नहीं किया।

सुरभि…अच्छा मैंने सही नहीं किया तो क्या आप रुक जाते?

राजेंद्र…मेरे लिए मेरी बेटी की खुशी सबसे बड़ी हैं। उसकी खुशी के लिए मुझे एक दिन क्या दस दिन भी रुकना पड़ेगा तो मैं रुकने के लिए तैयार हूं।

सुरभि…तो क्या मुझे मेरी लाडली की खुशी प्यारी नहीं हैं मेरे लिए मेरी बेटी की इच्छाएं सबसे अधिक मायने रखती हैं। मैं तो बस आप'के काम को सोचकर बोल रही थीं।

राजेंद्र…इस बहस को यह विराम देते हैं ओर जल्दी से तैयार हो'कर पुष्पा के कॉलेज चलते हैं नहीं तो मेरी लाडली का आज का दिन खराब हों जाएगा।

दोनों तैयार होकर पुष्पा के कॉलेज को चल दिया। इधर पुष्पा खराब मूढ़ के साथ कॉलेज पहुंच गईं, कही मन नहीं लगा तो क्लास में जा'कर बैठी ही थी। तभी एक लड़का क्लास में आया, पुष्पा को गुमसुम बैठा देखकर बोला…क्या हुआ पुष्पा? गुमशुम क्यों बैठी हैं।

पुष्पा…मुझे कुछ नहीं हुआ मैं ठीक हू। आशीष तुम कैसे हो?

आशीष…मैं बिल्कुल ठीक हूं लेकिन मेरी जानेमन का मूड कुछ उखड़ा उखड़ा लग रहा हैं। बताओ न बात किया हैं?

पुष्पा…तुम्हारे जानेमन का आज कॉलेज में मन नहीं लग रहा हैं। इसलिए मुड़ उखड़ा उखड़ा हैं।

आशीष…ऐसा हैं तो बोलों तुम्हारा मुड़ कैसे सही होगा। तुम्हारा मुड़ सही नहीं हुआ तो मेरा भी आज का दिन खराब हों जाएगा। पुष्पा चलो घूम कर आते हैं।

पुष्पा…मेरा कहीं जानें का मन नहीं हैं। जहां जाना हैं तुम अकेले ही जाओ।

आशीष…इतनी खुबसूरत गर्लफ्रेंड को छोड़कर मैं अकेले क्यों जाऊंगा। बोलों न बात किया हैं जो तुम्हरा मुड़ उखड़ा उखड़ा हैं।

पुष्पा…कल मां और पापा आए हैं और आज ही जानें की बात कर रहें हैं इसलिए मेरा मूड खराब हैं।

आशीष बेखयाली में बोला…ओ मेरे होने वाले ससुरा और सासु मां आए हैं। बेखयाली में आशीष क्या सुना और क्या बोला ध्यान नहीं दिया जब ध्यान दिया तो चौंककर बोला…क्या तुम्हारे मम्मी पापा आए हैं तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया मैं आज कॉलेज ही नहीं आता उन्होंने आगर मुझे तुम्हारे साथ देख लिया तो मेरा क्या हाल करेंगे मुझे ही नहीं पता।

पुष्पा…तुम उनके नाम से इतना क्यो डर रहे हों वो कॉलेज थोड़ी न आने वाले इतना डरोगे तो मेरे पापा से मेरा हाथ कैसे मांग पाओगे।

आशीष…कैसे न डरूं तुम्हारे पापा ने मुझे तुम्हारे साथ देख लिया तो वो कहेंगे मेरी राजकुमारी की ओर देखने की दुस्साहस कैसे किया चल तुझे शूली पर लटका देता हूं। मुझे शूली पर नहीं लटकना, मुझे तुम्हारे साथ शादी करके बची हुई जिंदगी जीना हैं।

पुष्पा…मेरे साथ बाकी की जिन्दगी जीने की इच्छा रखते हों फ़िर भी मेरे बाप से इतना डरते हों। मेरे बाप से इतना डरोगे तो मेरे साथ जिन्दगी जीने का सपना देखना छोड़ दो।

आशीष…ऐसी बाते करके मेरा दिल न दुखाओ मैं तुम्हारे बगैर जीने की सोच भी नहीं सकता। मैं तुम्हारे साथ जीने की सपने को साकार होते हुए देखना चाहता हूं।

पुष्पा…सपना हकीकत तब बनेगा जब तुम पापा से मेरा हाथ मांगोगे वरना तुम्हारा सपना और हमारा प्यार अधूरा रह जाएगा।

आशीष…कोई अधूरा बधुरा नहीं रहेगा। तुम्हारा हाथ मैं क्यों मांगने जाऊंगा तुम्हारा हाथ तो मेरे मां बाप मांगने जायेंगे। अच्छा छोड़ो इन बातों को तुम्हारा मुड़ सही करने के चाकर में मेरा ही सिर भरी हो गया चलो कुछ वक्त बहार टहलकर आते हैं।

दोनों बाहर आ'कर गार्डन में बैठे बाते करने लग गए। राजेंद्र और सुरभि दोनों कॉलेज पहुंचे फिर पुष्पा से मिलने के लिए प्रिंसिपल के ऑफिस की ओर चल दिया। दोनों गार्डन से हो'कर जा रहे थें तभी राजेंद्र की नजर गार्डन में बैठी पुष्पा पर पड़ गया। पुष्पा के साथ बैठे लड़के को देखकर राजेंद्र सुरभि को कोहनी मार कर पुष्पा की ओर दिखाया। पुष्पा की हाथ पकड़कर आशीष कुछ कहा रहा था।ये देखकर सुरभि मंद मंद मुस्कुरा दिया फ़िर राजेंद्र को देखा फ़िर पुष्पा की ओर चल दिया पुष्पा के पास पहुंच कर राजेंद्र कड़क मिजाज में बोला…पुष्पा तुम कॉलेज पढ़ने आते हों या लडको से बतियाने। तुम ऐसा करोगे मैंने कभी सोचा नहीं था।

पापा को सामने देखकर पुष्पा सकपका गई। क्या बोले समझ नहीं पा रही थीं। बस मूर्ति बाने ऐसे खड़ी हों गई मानो जान ही न हों ओर आशीष की आशिंकी उड़ान छूं हों गया। हाथ पाओ थर थर कांपने लग गया। जैसे अभी अभी भूकंप आया हों ओर जमीन पर मौजुद सभी चीजों को हिलने पर मजबूर कर दिया हो। दोनों का हल देखकर राजेंद्र और सुरभि को हंसी आने लगा लेकिन खुद को रोककर राजेंद्र कड़े तेवर में बोला…ये लड़का तू भाग यह से मुझे तुझसे कोई शिकवा नहीं हैं। मुझे तो मेरी बेटी से शिकवा हैं। जो भी पुछना हैं पुष्पा से पूछूंगा। जो भी कहूंगा पुष्पा को कहूंगा।

पापा ने इतना ही कहा था कि पुष्पा की आंखे डबडबा गई। चहरे से लग रहा था। अब रो दे तब रो दे। पापा से नज़रे मिलाने की हिम्मत पुष्पा नहीं कर पा रही थीं। आशीष एक नज़र पुष्पा की ओर देखा फ़िर पुष्पा का हाथ पकड़ लिया। आशीष की ओर देख पुष्पा इशारे से हाथ छोड़ने को कहा लेकिन आशीष हाथ नहीं छोड़ा बल्कि ओर कस'के पकड़ लिया। हाथ छुड़ाने के लिए पुष्पा कलाई को मरोढने‌ लग गई। दोनों की हरकतों को देखकर राजेंद्र बोला…ये लड़के पुष्पा का हाथ क्यों पकड़ रखा हैं? छोड़ उसका हाथ ,बाप के सामने बेटी का हाथ पकड़ते हुऐ तुझे डर नहीं लग रहा।

राजेंद्र के कहने पर भी आशीष हाथ नहीं छोड़ा बस नजर निचे की ओर रखकर बोला…आप'के सामने पुष्पा का हाथ पकड़ा इससे आप'को बुरा लगा हों, तो मुझे माफ़ कर देना। मैं पुष्पा से बहुत प्यार करता हूं। पुष्पा का हाथ छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा जिन्दगी में चाहें कैसा भी मोड़ आए मैं पुष्पा का हाथ ऐसे ही पकड़े रहना चाहता हुं।

आशीष की बाते सुनकर पुष्पा आशीष को एक टक देखने लग गईं । सुरभि और राजेंद्र को आशीष की बाते सून मुस्कुराने का मन किया पर मुस्कुराए नहीं बस आस पास नज़रे घुमा कर देखा फिर राजेंद्र बोला…देखो बहुत से लोग हमारे ओर ही देख रहे हैं इसलिए तुम पुष्पा का हाथ छोड़ो और अपने क्लॉस में जाओ।

आशीष फिर भी पुष्पा का हाथ नहीं छोड़ा न ही पुष्पा को छोड़कर गया ये देख सुरभि बोली…बेटा कम से कम हमारे उम्र का लिहाज करके हमारी बात मान लो।

सुरभि के कहते ही आशीष पुष्पा का हाथ छोड़ दिया ओर पुष्पा को इशारे से साथ चलने को कहकर चल दिया। चुप चाप नज़रे झुकाए पुष्पा भी आशीष के पीछे पीछे चल दिया। दोनो को जाते हुए देखकर राजेंद्र मंद मंद मुस्करा दिया फ़िर राजेंद्र और सुरभि प्रिंसिपल के ऑफिस ओर चल दिया । कुछ वक्त प्रिंसिपल से बात करने के बाद राजेंद्र और सुरभि कॉलेज से चले गए। पुष्पा और आशीष क्लास में पहुंचे ओर अपने अपने सीट पर बैठ गए। पुष्पा के दिमाग में अभी हुई घटनाएं घूम रहा था। तो पुष्पा सोच में ही घूम थी ये देख अशीष बोला...पुष्पा क्या सोच रहीं हों?

पुष्पा…मुझे डर लग रहा हैं। जो नहीं सोचा था आज वो हों गया। अब मैं पापा का सामना कैसे करूंगा पापा ने आज जिस तरीके से मुझसे बात किया ऐसे कभी बात नहीं किया था।

आशीष…जो हुआ अच्छा ही हुआ एक न एक दिन उनको पाता चलना ही था तो आज ही चल गया।

पुष्पा…पाता तो चलना ही था लेकिन ऐसे पाता चलेगी मैंने सोचा नहीं था मैं आज खुद को उनके नजरों में गिरा हुआ महसूस कर रही हूं। पाता नहीं मां और पापा मेरे बारे में क्या सोच रहे होगे।

आशीष…जो सोच रहें हैं वो तो बाद में पाता चल ही जाएगा। इस बरे में अभी सोचकर हम क्यों सर दर्द ले हम एक दूसरे से प्यार करते हैं। ऐसे ही प्यार करते रहेगें चाहे कुछ भी हों जाए।

आगे इन दोनों में कुछ ओर बाते हो पता उससे पहले ही क्लास में टीचर आ गया इसलिए दोनों बातों को विराम देकर क्लास में ध्यान देने लग गए।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे, साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
Kamlesh badla lena chahta hai apni baap ki maut ka ravan se par filhal jo jazbati hai agar usne badla lena ki than hi liya hai to usey sab hi chiz sonch samajh kar karna chahiye kyunki jisse badla leni ki wo sonch raha hai wo sirf Naam Ka ravan nahi kaam se bhi ravan hai Phir uske pass ek dalal bhi jiska dimag kuch zyada hi chalta hai.
Pushpa ashish ek dusre se pyaar karte hai but unhe kya pata tha ki unke pyaar ki khabar surbhi aur rajendra ko yu lagegi but ashish ne ek sache jiwan sathi ki tarah pushpa ke sath dat kar khada raha ab rajendra aur surbhi ka kya faisla hoga ye dekhte hai.
Overall Nice update
 
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Update - 11


रात्रि भोजन का समय हों रहा था दार्जलिंग से कोसो दूर एक घास फूस की बनी झोपड़ी में तीन लोग जिसमे दो महिलाएं और एक जवान लड़का जमीन पर बिछावन बिछाए भोजन कर रहें थे। भोजन करते हुए जवान लड़का बोला…मां हम अपना घर वार अपने लोगों को छोड़कर इतनी दूर इस अंजान जगह पर कब तक रहेगें।

सोमलता...कमलेश तू इतना न समझ तो हैं नहीं जो कुछ भी समझ नहीं पा रहा हैं हम क्यों अपना बसेरा छोड़ इस अंजान जगह सिर छुपाने को मजबूर हुए।

कमलेश…मां मैं सब समझ रहा हु। लेकिन हम कब तक अंजान जगह पर रहेगें और कब तक डर के छाएं में जीते रहेगें हम राजा जी से मिलकर उन्हें बता क्यों नहीं देते।

सोमलता निवाला बनाकर मुंह में ले रही थीं। कमलेश की बातों को सुनकर निवाला वापस थाली में रख दिया फिर बोली…कमलेश तूने सुना था न राजा जी के भाई रावण ने किया कहा था। उसने तेरे बापू को मार दिया मेरा सुहाग उजड़ दिया तेरे सिर से बाप का छाया छिन लिया और धमकी भी दिया अगर हम में से किसी ने राजा जी से मिला या उनको कुछ भी बताया तो वो हम सब को मार देगा। मैं कैसे जीते जी अपने परिवार को उजड़ते हुए देख सकती हूं।

कमलेश…मां मैंने सुना था लेकिन मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं उस कमीने रावण ने बापू को मरा क्यों और हमे राजा जी से मिलने को मना किया फिर गांव छोड़कर दूर जानें को कहा मुझे लगाता हैं आप कुछ जानते हों अगर आप जानती हों तो मुझे बता दो।

सोमलता…बेटा ये एक राज हैं जो तेरे बापू जानते थे ओर अब मैं जानता हूं जो तेरे बापू मरने से कुछ दिन पहले मुझे बताया था। ये राज रावण से जुड़ा हैं इसलिए रावण ने तेरे बापू को मार दिया और हमे धमका कर गांव से भगा दिया।

कमलेश…मां ये राज रावण से जुड़ा हैं तो हमें राजा जी को बता देना चाहिए था न की ऐसे कायरों की तरह मुंह छुपा कर भाग आना चाइए था।

सोमलता…हम भाग कर नहीं आते तो रावण जैसा धूर्त और क्रूर आदमी जिसके अदंर दया का लेस मात्र भी भाव नहीं हैं। मेरे वंश का समूल नाश कर देता ।

कमलेश…मां रावण के जुल्म को हम कब तक सहते रहेंगे, किसी न किसी को उसके खिलाफ आवाज़ तो उठाना ही होगा। आप मुझे वो राज बता दो जिसके कारण पिता जी को मार दिया गया और हमे अपना घर अपना माटी छोड़ने पर मजबुर किया गया।

सोमलता…वो राज मेरे छीने मे दफन हैं और हमेशा हमेशा के लिए दफन रहेगा।

कमलेश…मां जिस राज के कारण मेरे सिर से बाप का छाया उठ गया। उस राज को जानने का हक मुझे हैं।

सोमलता…बेटा जानने का हक तुझे हैं लेकिन वो राज बता कर मैं ओर कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती। इसलिए तू जिद्द न कर ओर चुप चाप खाना खा।

कमलेश…मां आप राज बताना नहीं चाहती तो मत बताओ मैं आप'से जिद्द नहीं करूंगा। लेकिन मैं आप'को एक बात साफ़ साफ़ कह देता हूं। जिसके कारण मेरे बाप की मौत हुआ। उस रावण से बाप के मौत का बदला मैं लेकर रहूंगा।

कमलेश की बात सुनकर सोमलता अचंभित हों गईं। सोमलता मुंह में अभी अभी निवाला ढाला था जो उसके गाले में अटक गई जिससे उसे धसका लग गया ओर सोमलता खांसने लग गई। मां को खंसते देखकर कमलेश पानी का गिलास आगे बढाकर सोमलता को दिया फिर जा'कर सोमलता के पीठ को सहलाने लग गया। सोमलाता दो घुट पानी पिया पानी पीने के कुछ देर बाद ही सोमलता की खासी कम हो गया। तब कमलेश बोला…मां आप ठीक हों न।

सोमलता…अभी तो ठीक हू लेकिन लगाता है ज्यादा दिन तक ठीक नही रहूंगी।

कमलेश…मां क्या कह रहीं हों आप भली चांगी तो हों फिर कोई दिक्कत हैं तो कल ही डॉक्टर के पास ले'कर चलता हूं।

सोमलता…डॉक्टर के पास जानें की जरूरत नहीं है बस तू बदला लेने की बात दिमाग से निकल दे फिर मुझे कुछ नहीं होगा।

कमलेश…तो किया मैं वह सब भूल जाऊ जो हमारे साथ हुआ। मां मैं नहीं भूल सकता न ही भुल पाऊंगा। मैं जब तक बदला नहीं ले लेता तब तक मैं चैन से नहीं बैठ पाऊंगा।

सोमलता…कमलेश मैं तुझे भूलने को नहीं कह रहा हूं क्योंकि मैं खुद नहीं भुला सकती हूं। मैं बस इतना कहना चाहती हूं तू जिन लोगों से बदला लेना चाहता हैं वो लोग बहुत ताकतवर हैं तू अकेले उनका कुछ नहीं बिगड़ सकता। इसलिए तू बदले की भावना को छोड़ दे।

कमलेश…मां आप एक बात भूल रहीं हों हाथी दुनियां के बड़े जीवों में से एक हैं और ताकतवर भी हैं लेकिन चींटी जैसा एक छोटा जीव जब उसके नाक में घुसता हैं तो हाथी से तांडव करवा कर अपनी मौत मरने पर मजबूर कर देता हैं।

सोमलता…बेटा मैं जानता हूं लेकिन तु ये क्यों भुल रहा हैं। चींटी का हाथी से
तांडव करवाने के कारण बहुत से निरीह प्राणी को नुकसान पहुंचता हैं। इसलिए तू रावण जैसे धुर्त व्यक्ति से टकराने का विचार त्याग दे ओर जो हों गया उसे भूल कर बिखरी हुईं हमारी जिन्दगी को संवारने मे लग जा।

कमलेश…मां रावण धुर्त हैं जुल्मी हैं। उसने बहुत से निरीह लोगों पर जुल्म किया हैं। उसके जुल्मों को बहुत सह लिया लेकिन अब नहीं उसके जुल्मों का प्रतिकार होना चाहिए। किसी एक ने विरोध किया तो देखना कड़ी से कड़ी जुड़ता चला जायेगा फिर लोगों का हुजूम उसके विरोध में खड़ा हों जायेंगे।

सोमलता…रावण के जुल्मों का प्रतिकार बहुत से लोग करना चाहते हैं लेकिन हिम्मत नहीं जूठा पा रहे हैं क्योंकि रावण के जुल्मों का प्रतिकार करने के लिए उसके जैसा धुर्त होना होगा और उससे एक कदम आगे चलना होगा तभी रावण को मात दिया जा सकता हैं।

कमलेश…मैं रावण जीतना धुर्त नहीं हूं लेकिन मेरा आत्मबल बहुत ज्यादा हैं और आत्मबल से बडे़ से बडे़ बाहुबली को भी मत दिया जा सकता हैं।

सोमलता...तेरा आत्मबल इस वक्त बड़ा हुआ हैं इसमें कोई दो राय नहीं हैं लेकिन जिस रस्ते पर तू चलना चाहता हैं वह जीत की उम्मीद कम और हार की ज्यादा हैं ओर जब बर बर पराजय का सामना करना पड़ेगा तब आत्मबल ख़ुद वा ख़ुद काम हों जायेगा।

कमलेश…मां मेरा आत्मबल कभी कम नहीं होगा। मैं धीर्ण संकल्प के साथ आगे बढूंगा ओर रावण को मात दे'कर रहूंगा।

सोमलता…तूने बदले की रस्ते पर चलने का फैसला ले लिया तो मैं तुझे नहीं रोकूंगा। तू आगे बढ़ने से पहले मेरे और तेरी गर्ववती बीबी के बारे में सोच लेना क्योंकि तुझे कुछ हों गया तो हम बेसहारा हों जायेंगे।

कमलेश…ठीक हैं मां कुछ भी करने से पहले मैं अच्छे से विचार कर लूंगा।

दोनों मां बेटे के बीच तर्क वितर्क खत्म हुआ फिर सोमलता हाथ धो'कर विस्तार पर जा'कर लेट गई। कमलेश की बीबी झूठे बर्तन उठाकर धोने ले गई। कमलेश भी उसके पीछे पीछे गया और बर्तनों को धोने में मदद करने लग गया । बर्तन धुलने के बाद दोनों पति पत्नी सोने गए लेटकर कामलेश बोला…संध्या रावण से बदला लेने का जो फैसला मैंने लिया हैं। तुम्हें क्या लगता हैं मैने सही फैसला लिया हैं।

संध्या…आप एक बेटे का फर्ज निभा रहे हैं तो आप'का लिया फैसला गलत कैसे हों सकता हैं।

कमलेश…एक बेटे की नजरिए से मेरा लिया फैसला सही हैं। लेकिन एक पति और होने वाले बाप की नजरिए से क्या मैंने सही फैसला लिया हैं?

संध्या…मैं सिर्फ़ खुद के और हमारे आने वाले बच्चे के बारे में सोचूं तो आप'का लिया हुआ फैसला गलत होगा। लेकिन उन लोगों के बारे में सोचूं जो रावण का अत्याचार सह रहे हैं तो आप'का लिया हुआ फैसला सही हैं इसलिए आप अपने फ़ैसले पर अडिग रहे।

कमलेश…सांध्य तुम जो कह रहीं हों वो सही हैं और मां जो कह रहे थे वो भी सही हैं इसलिए मैं समझ नहीं पा रहा हु मै करू तो क्या करूं।

संध्या…आप इस वक्त असमंजस की स्थिति में हों इसलिए आप इस वक्त कोई निर्णय न लें तो बेहतर ही होगा।

कमलेश…ठीक हैं संध्या मैं इस मुद्दे पर अच्छे से सोच समझकर फैसला लुंगा।

संध्या...हां यहीं सही होगा। अब सो जाइए।

अगले दिन पुष्पा कॉलेज जानें की तैयारी कर निचे आई। नीचे सुरभि और राजेंद्र बठे अखबार में छपे आज के घटनाओं का जायजा ले रहे थे। उनको अखबार पढ़ते देखकर पुष्पा बोली…मां मैं कॉलेज जा रही हूं आप लोग चाहो तो कहीं घूम आओ।

सुरभि…हमे अभी कहीं जाना हैं वह का काम निपटाकर हमे दार्जलिंग वापस जाना हैं।

वापस जानें की बात सुनकर पुष्पा उदास हो गई फ़िर बोली…मां अपने तो कहा था आप दो तीन दिन रुकने वाले हैं फिर अचानक जानें की बात क्यों कर रहें हों। मां बस आज रूक जाओ कल चले जाना।

सुरभि…बेटा तुम्हारे पापा को दार्जलिंग का काम भी देखना होता हैं इसलिए हमे जाना पड़ेगा।

पुष्पा…मां एक दिन रुकने से कोई आफ़त नहीं आ जायेगी फिर भी अगर आप जाना चाहती हों तो जाओ मैं नहीं रोकूंगी।

इतना कहकर पुष्पा पैर फटकते हुए बहार निकाल गई ओर सुरभि आवाज देती रह गई पर पुष्पा रुकी ही नहीं, पुष्पा के जानें के बाद राजेंद्र बोला…हमारे जानें की बात बोलने की क्या जरूरत थीं। खमाखा मेरी लाडली को नाराज कर दिया। सुरभि तुमने अच्छा नहीं किया।

सुरभि…अच्छा मैंने सही नहीं किया तो क्या आप रुक जाते?

राजेंद्र…मेरे लिए मेरी बेटी की खुशी सबसे बड़ी हैं। उसकी खुशी के लिए मुझे एक दिन क्या दस दिन भी रुकना पड़ेगा तो मैं रुकने के लिए तैयार हूं।

सुरभि…तो क्या मुझे मेरी लाडली की खुशी प्यारी नहीं हैं मेरे लिए मेरी बेटी की इच्छाएं सबसे अधिक मायने रखती हैं। मैं तो बस आप'के काम को सोचकर बोल रही थीं।

राजेंद्र…इस बहस को यह विराम देते हैं ओर जल्दी से तैयार हो'कर पुष्पा के कॉलेज चलते हैं नहीं तो मेरी लाडली का आज का दिन खराब हों जाएगा।

दोनों तैयार होकर पुष्पा के कॉलेज को चल दिया। इधर पुष्पा खराब मूढ़ के साथ कॉलेज पहुंच गईं, कही मन नहीं लगा तो क्लास में जा'कर बैठी ही थी। तभी एक लड़का क्लास में आया, पुष्पा को गुमसुम बैठा देखकर बोला…क्या हुआ पुष्पा? गुमशुम क्यों बैठी हैं।

पुष्पा…मुझे कुछ नहीं हुआ मैं ठीक हू। आशीष तुम कैसे हो?

आशीष…मैं बिल्कुल ठीक हूं लेकिन मेरी जानेमन का मूड कुछ उखड़ा उखड़ा लग रहा हैं। बताओ न बात किया हैं?

पुष्पा…तुम्हारे जानेमन का आज कॉलेज में मन नहीं लग रहा हैं। इसलिए मुड़ उखड़ा उखड़ा हैं।

आशीष…ऐसा हैं तो बोलों तुम्हारा मुड़ कैसे सही होगा। तुम्हारा मुड़ सही नहीं हुआ तो मेरा भी आज का दिन खराब हों जाएगा। पुष्पा चलो घूम कर आते हैं।

पुष्पा…मेरा कहीं जानें का मन नहीं हैं। जहां जाना हैं तुम अकेले ही जाओ।

आशीष…इतनी खुबसूरत गर्लफ्रेंड को छोड़कर मैं अकेले क्यों जाऊंगा। बोलों न बात किया हैं जो तुम्हरा मुड़ उखड़ा उखड़ा हैं।

पुष्पा…कल मां और पापा आए हैं और आज ही जानें की बात कर रहें हैं इसलिए मेरा मूड खराब हैं।

आशीष बेखयाली में बोला…ओ मेरे होने वाले ससुरा और सासु मां आए हैं। बेखयाली में आशीष क्या सुना और क्या बोला ध्यान नहीं दिया जब ध्यान दिया तो चौंककर बोला…क्या तुम्हारे मम्मी पापा आए हैं तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया मैं आज कॉलेज ही नहीं आता उन्होंने आगर मुझे तुम्हारे साथ देख लिया तो मेरा क्या हाल करेंगे मुझे ही नहीं पता।

पुष्पा…तुम उनके नाम से इतना क्यो डर रहे हों वो कॉलेज थोड़ी न आने वाले इतना डरोगे तो मेरे पापा से मेरा हाथ कैसे मांग पाओगे।

आशीष…कैसे न डरूं तुम्हारे पापा ने मुझे तुम्हारे साथ देख लिया तो वो कहेंगे मेरी राजकुमारी की ओर देखने की दुस्साहस कैसे किया चल तुझे शूली पर लटका देता हूं। मुझे शूली पर नहीं लटकना, मुझे तुम्हारे साथ शादी करके बची हुई जिंदगी जीना हैं।

पुष्पा…मेरे साथ बाकी की जिन्दगी जीने की इच्छा रखते हों फ़िर भी मेरे बाप से इतना डरते हों। मेरे बाप से इतना डरोगे तो मेरे साथ जिन्दगी जीने का सपना देखना छोड़ दो।

आशीष…ऐसी बाते करके मेरा दिल न दुखाओ मैं तुम्हारे बगैर जीने की सोच भी नहीं सकता। मैं तुम्हारे साथ जीने की सपने को साकार होते हुए देखना चाहता हूं।

पुष्पा…सपना हकीकत तब बनेगा जब तुम पापा से मेरा हाथ मांगोगे वरना तुम्हारा सपना और हमारा प्यार अधूरा रह जाएगा।

आशीष…कोई अधूरा बधुरा नहीं रहेगा। तुम्हारा हाथ मैं क्यों मांगने जाऊंगा तुम्हारा हाथ तो मेरे मां बाप मांगने जायेंगे। अच्छा छोड़ो इन बातों को तुम्हारा मुड़ सही करने के चाकर में मेरा ही सिर भरी हो गया चलो कुछ वक्त बहार टहलकर आते हैं।

दोनों बाहर आ'कर गार्डन में बैठे बाते करने लग गए। राजेंद्र और सुरभि दोनों कॉलेज पहुंचे फिर पुष्पा से मिलने के लिए प्रिंसिपल के ऑफिस की ओर चल दिया। दोनों गार्डन से हो'कर जा रहे थें तभी राजेंद्र की नजर गार्डन में बैठी पुष्पा पर पड़ गया। पुष्पा के साथ बैठे लड़के को देखकर राजेंद्र सुरभि को कोहनी मार कर पुष्पा की ओर दिखाया। पुष्पा की हाथ पकड़कर आशीष कुछ कहा रहा था।ये देखकर सुरभि मंद मंद मुस्कुरा दिया फ़िर राजेंद्र को देखा फ़िर पुष्पा की ओर चल दिया पुष्पा के पास पहुंच कर राजेंद्र कड़क मिजाज में बोला…पुष्पा तुम कॉलेज पढ़ने आते हों या लडको से बतियाने। तुम ऐसा करोगे मैंने कभी सोचा नहीं था।

पापा को सामने देखकर पुष्पा सकपका गई। क्या बोले समझ नहीं पा रही थीं। बस मूर्ति बाने ऐसे खड़ी हों गई मानो जान ही न हों ओर आशीष की आशिंकी उड़ान छूं हों गया। हाथ पाओ थर थर कांपने लग गया। जैसे अभी अभी भूकंप आया हों ओर जमीन पर मौजुद सभी चीजों को हिलने पर मजबूर कर दिया हो। दोनों का हल देखकर राजेंद्र और सुरभि को हंसी आने लगा लेकिन खुद को रोककर राजेंद्र कड़े तेवर में बोला…ये लड़का तू भाग यह से मुझे तुझसे कोई शिकवा नहीं हैं। मुझे तो मेरी बेटी से शिकवा हैं। जो भी पुछना हैं पुष्पा से पूछूंगा। जो भी कहूंगा पुष्पा को कहूंगा।

पापा ने इतना ही कहा था कि पुष्पा की आंखे डबडबा गई। चहरे से लग रहा था। अब रो दे तब रो दे। पापा से नज़रे मिलाने की हिम्मत पुष्पा नहीं कर पा रही थीं। आशीष एक नज़र पुष्पा की ओर देखा फ़िर पुष्पा का हाथ पकड़ लिया। आशीष की ओर देख पुष्पा इशारे से हाथ छोड़ने को कहा लेकिन आशीष हाथ नहीं छोड़ा बल्कि ओर कस'के पकड़ लिया। हाथ छुड़ाने के लिए पुष्पा कलाई को मरोढने‌ लग गई। दोनों की हरकतों को देखकर राजेंद्र बोला…ये लड़के पुष्पा का हाथ क्यों पकड़ रखा हैं? छोड़ उसका हाथ ,बाप के सामने बेटी का हाथ पकड़ते हुऐ तुझे डर नहीं लग रहा।

राजेंद्र के कहने पर भी आशीष हाथ नहीं छोड़ा बस नजर निचे की ओर रखकर बोला…आप'के सामने पुष्पा का हाथ पकड़ा इससे आप'को बुरा लगा हों, तो मुझे माफ़ कर देना। मैं पुष्पा से बहुत प्यार करता हूं। पुष्पा का हाथ छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा जिन्दगी में चाहें कैसा भी मोड़ आए मैं पुष्पा का हाथ ऐसे ही पकड़े रहना चाहता हुं।

आशीष की बाते सुनकर पुष्पा आशीष को एक टक देखने लग गईं । सुरभि और राजेंद्र को आशीष की बाते सून मुस्कुराने का मन किया पर मुस्कुराए नहीं बस आस पास नज़रे घुमा कर देखा फिर राजेंद्र बोला…देखो बहुत से लोग हमारे ओर ही देख रहे हैं इसलिए तुम पुष्पा का हाथ छोड़ो और अपने क्लॉस में जाओ।

आशीष फिर भी पुष्पा का हाथ नहीं छोड़ा न ही पुष्पा को छोड़कर गया ये देख सुरभि बोली…बेटा कम से कम हमारे उम्र का लिहाज करके हमारी बात मान लो।

सुरभि के कहते ही आशीष पुष्पा का हाथ छोड़ दिया ओर पुष्पा को इशारे से साथ चलने को कहकर चल दिया। चुप चाप नज़रे झुकाए पुष्पा भी आशीष के पीछे पीछे चल दिया। दोनो को जाते हुए देखकर राजेंद्र मंद मंद मुस्करा दिया फ़िर राजेंद्र और सुरभि प्रिंसिपल के ऑफिस ओर चल दिया । कुछ वक्त प्रिंसिपल से बात करने के बाद राजेंद्र और सुरभि कॉलेज से चले गए। पुष्पा और आशीष क्लास में पहुंचे ओर अपने अपने सीट पर बैठ गए। पुष्पा के दिमाग में अभी हुई घटनाएं घूम रहा था। तो पुष्पा सोच में ही घूम थी ये देख अशीष बोला...पुष्पा क्या सोच रहीं हों?

पुष्पा…मुझे डर लग रहा हैं। जो नहीं सोचा था आज वो हों गया। अब मैं पापा का सामना कैसे करूंगा पापा ने आज जिस तरीके से मुझसे बात किया ऐसे कभी बात नहीं किया था।

आशीष…जो हुआ अच्छा ही हुआ एक न एक दिन उनको पाता चलना ही था तो आज ही चल गया।

पुष्पा…पाता तो चलना ही था लेकिन ऐसे पाता चलेगी मैंने सोचा नहीं था मैं आज खुद को उनके नजरों में गिरा हुआ महसूस कर रही हूं। पाता नहीं मां और पापा मेरे बारे में क्या सोच रहे होगे।

आशीष…जो सोच रहें हैं वो तो बाद में पाता चल ही जाएगा। इस बरे में अभी सोचकर हम क्यों सर दर्द ले हम एक दूसरे से प्यार करते हैं। ऐसे ही प्यार करते रहेगें चाहे कुछ भी हों जाए।

आगे इन दोनों में कुछ ओर बाते हो पता उससे पहले ही क्लास में टीचर आ गया इसलिए दोनों बातों को विराम देकर क्लास में ध्यान देने लग गए।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे, साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
Kamlesh badla lena chahta hai apni baap ki maut ka ravan se par filhal jo jazbati hai agar usne badla lena ki than hi liya hai to usey sab hi chiz sonch samajh kar karna chahiye kyunki jisse badla leni ki wo sonch raha hai wo sirf Naam Ka ravan nahi kaam se bhi ravan hai Phir uske pass ek dalal bhi jiska dimag kuch zyada hi chalta hai.
Pushpa ashish ek dusre se pyaar karte hai but unhe kya pata tha ki unke pyaar ki khabar surbhi aur rajendra ko yu lagegi but ashish ne ek sache jiwan sathi ki tarah pushpa ke sath dat kar khada raha ab rajendra aur surbhi ka kya faisla hoga ye dekhte hai.
Overall Nice update
Update - 12

राजेंद्र और सुरभि पुष्पा के कॉलेज से चल दिए थे जाते वक्त रास्ते में सुरभि बोली...अपने उन दोनों पर कुछ ज्यादा ही गर्म तेवर दिखा दिया। अपने देखा न पुष्पा की रोने जैसी सूरत हों गई थीं।

राजेन्द्र…सुरभि मुझे अपना तेवर गर्म करना पडा मैं ऐसा नहीं करता तो उस लड़के को कैसे परख पाता जो हमारे बेटी से प्यार करता हैं।

सुरभि…लड़के को परखना ही था तो आज ही परखना जरूरी था आप बाद में भी परख सकते थें। आज प्यार से बात करके दोनों की राय जान लेते तो अच्छा होता।

राजेंद्र…बाद में परखते तो शायद लड़का दिखावा करता लेकिन आज अचानक ऐसा करने से लड़के को दिखावा करने का मौका नहीं मिला आज उसने वही किया जो उसके दिल ने कहा। उसके अंदर छुपे प्यार जो वो हमारे बेटी से करता हैं, करने को कहा।

सुरभि…आप क्या कोई अंतरयामी हों? जो बिना कहे ही उसके मन की बातों को जान लिया।

राजेंद्र…इसमें अंतरयामी होने की जरूरत ही नहीं था। जो कुछ भी हुआ आंखों के सामने दिख रहा था। तुमने गौर नहीं किया लेकिन मैं दोनों के हाव भव को गौर से देख रहा था।

सुरभि...कितना गौर से देखा ओर क्या देखा? मैं जान सकता हूं।

राजेंद्र...जब हम अचानक दोनों के सामने गए। तब लड़के के प्यार में कोई खोट होता तो हमे देखकर भाग जाता लेकिन भागा नहीं खड़ा रहा सिर्फ खड़ा ही नहीं रहा पुष्पा का हाथ पकड़े रहा जो यह दर्शाता हैं। परिस्थिती कैसी भी हो वो पुष्पा का हाथ कभी नहीं छोड़ेगा।

सुरभि…मैं तो इन सब पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया अब आगे किया करना हैं।

राजेंद्र…करना क्या हैं? ये पुष्पा ही बता सकती है। पुष्पा जो चाहेगी मैं वहीं करुंगा।

सुरभि...इसका तो सीधा मतलब यहीं निकलता हैं आप हमारे बेटी के प्रेम को मंजूरी दे रहें हैं।

राजेंद्र…हमारी बेटी ने कोई जूर्म नहीं, प्रेम किया हैं मैं प्रेम का दुश्मन नहीं हूं जो मेरी बेटी और उसके प्रेम के बीच दीवार बनकर खड़ा रहूं। फिर ड्राइवर से बोला…कल हम जिस कॉलेज में गए थे उस कॉलेज में लेकर चलो।

ड्रावर…जी साहब।

सुरभि…हम कल वाली कॉलेज क्यों जा रहें हैं?

राजेंद्र…कॉलेज से कमला के घर का पता लेकर उसके घर जायेंगे और उसके मां बाप से रिश्ते की बात करेंगे।

सुरभि…अपको क्या लगाता हैं? वो लोग रिश्ते के लिए राजी हो जाएंगे।

राजेंद्र…हमे लड़की पसंद हैं ये सूचना उन तक पहुंचना हमारा काम हैं। राजी होना न होना ये तो उनका फैसला होगा।

बातो बातों में कॉलेज आ गया। दोनों उतरकर प्रिंसिपल के ऑफिस कि ओर चल दिया। बाहर खड़ा पिओन दोनों को देखकर तुरंत दरवजा खोलकर बोला…सर कल के मुख्य अथिति आए हैं आप कहें तो उन्हें अंदर भेजूं।

ये सुन प्रिंसिपल बाहर आय। दरवाज़े पर किसी को न देख पिओन से पूछता तभी उससे सामने से राजेंद्र और सुरभि आते हुए दिखाई दिया। प्रिंसिपल जल्दी से दोनों के पास गए फ़िर हाथ जोड़कर दोनों को प्रणाम किया। राजेंद्र और सुरभि भी प्रिंसिपल को प्रणाम किया फिर प्रिंसिपल के साथ चल दिया, अंदर आने से पहले प्रिंसिपल पिओन को चाय लाने को बोल दिया ओर अंदर आ गए। प्रिंसिपल सुरभि और राजेंद्र को बैठने को कहा, दोनों के बैठते ही प्रिंसिपल बोला...राजा जी आपके आने का करण जान सकता हूं।

राजेंद्र…हम कुछ जरुरी काम से आए हैं। जिसमे आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।

प्रिंसिपल…आप बताइए मेरे बस में हुआ तो मैं बेशक आप'की मदद करूंगा।

राजेंद्र…कल जिस लडक़ी ने आर्ट में प्रथम पुरस्कार विजेता बनी थीं। मुझे उस लडक़ी कमला के घर का पाता चाहिए उसके मां बाप से मिलना हैं।

प्रिंसिपल…ओ तो आप'को कमला के घर का पाता चाहिएं मैं अभी कमला को बुलाता हूं। वो खुद ही आप'को अपने घर लेकर जाएगी। फिर पिओन को बुलाकर बोला…कमला को बुलाकर लाओ।

पिओन कमला को बुलाकर लाया कमला बाहर से ही पूछा…सर मैं अंदर आ सकती हूं।

प्रिंसिपल के कहने पर कमला अंदर आ गई। राजेंद्र और सुरभि को देखकर दोनों को प्रणाम किया फिर प्रिंसिपल से पूछा…सर अपने मुझे बुलवा भेजा था कुछ जरुरी काम था।

प्रिंसिपल राजेंद्र की ओर इशारा करते हुए बोला…कमला इन्हे तो तुम जानती ही हों। इन्हें तुम्हारे घर जाना हैं इसलिए तुम इन्हें अपने घर ले'कर जाओ।

कमला…सर ये तो कल के मुख्य अथिति हैं। मैं इन्हें मेरे घर लेकर जा सकता हूं लेकिन मेरा क्लास चल रहा हैं।

प्रिंसिपल…कमला ज्यादा समय नहीं लगेगा तुम इन्हें अपने घर पहुंचाकर आ जाना फिर क्लास कर लेना।

कमला…जी सर फिर राजेंद्र से बोला…चलिए सर और मैडम।

राजेंद्र प्रिंसिपल से फिर मिलने को बोलकर कमला के साथ चल दिया। कार के पास आ'कर राजेंद्र आगे बैठ गया और सुरभि के साथ कमला पीछे बैठ गई। ड्राइवर कमला के बताए दिशा में कार चला दिया। सुरभि कमला से उसके बारे में बहुत सी जानकारी लेती रहीं। कमला किस क्षेत्र की पढ़ाई कर रहीं हैं उसके घर में कौन-कौन हैं। ऐसे ही बाते करते हुए कमला का घर आ गया। कमला के कहने पर ड्राइवर कार को अंदर ले गया। कार से उतरकर कमला दरवाज़े पर लटक रहीं घंटी को बजाया। कुछ देर में कमला की मां ने दरवजा खोला ओर कमला को देखकर बोली…कमला तू इस वक्त, यह क्या कर रहीं हैं। तेरी स्वस्थ खराब हों गई जो तू इस वक्त घर आ गईं।

कमला…मां मैं ठीक हूं। सुरभि और राजेंद्र को दिखते हुए बोली….इन्हें हमारे घर आना था इसलिए इन्हें लेकर आई हूं।

राजेंद्र और सुरभि को देखकर मनोरमा दोनों को प्रणाम किया फिर सभी अंदर गए, अंदर आ'कर राजेंद्र और सुरभि बैठ गए ओर कमला किचन में गई पानी ला'कर दोनों को दिया फिर बोली…मां आप लोग बात करों मैं कॉलेज जा रहीं हूं।

मनोरमा...ठीक हैं संभाल कर जाना।

सुरभि…बेटी रुको।

सुरभि कमला को ले'कर बाहर गई ओर ड्राइवर को बोली…जग्गू तुम इनको कॉलेज छोड़ कर आओ।

कमला…मैं चली जाऊंगी। इनको परेशान होने की जरुरत नहीं हैं।

सुरभि...बेटी चली तो जाओगी लेकिन जाने में आप'को देर हों जायेगी। इसलिए आप उसके साथ जाओ जल्दी कॉलेज पहुंच जाओगी।

कमला सिर हिलाकर हां बोल कार में बैठ कर कॉलेज को चल दिया। सुरभि अंदर गई फिर बोली...बहुत प्यारी बच्ची हैं।

मनोरमा…जी हां। आप दोनों कल मुख्य अथिति बनकर आए थे न।

सुरभि...जी हां।

मनोरमा…आप मुझे कुछ वक्त दीजिए मैं आप के लिए चाय नाश्ते की व्यवस्था करके लाती हूं फ़िर बात करेंगे।

सुरभि…रहने दीजिए हम अभी चाय नाश्ता करके आए हैं।

मनोरमा…जी नहीं आप दोनों पहली बार हमारे घर आए हैं मैं आप'की एक भी नहीं सुनने वाली आप दोनों बैठिए मैं अभी आई।

मनोरमा ये कहकर किचन की ओर चल दिया। सुरभि रोकना चाहा पर मनोरमा नहीं रूकी तब सुरभि भी उठाकर किचन की ओर चल दिया। सुरभि को किचन में आया देख मनोरमा बोली…आप क्यो आ गई? आप जा'कर बैठिए मैं अभी चाय बनाकर लाती हूं।

सुरभि…जब अपने मेरी नहीं सुनी तो मैं आप'की क्यों सुनूं । दोनों मिलकर काम करेंगे तो चाय जल्दी बन जायेगा।

मनोरमा…जी बिलकुल नहीं आप मेरे मेहमान हैं और मेहमानों से कम नहीं करवाया जाता।

सुरभि आगे कुछ नहीं बोली बस मुस्कुरा दिया फिर मनोरमा चाय बनाने लग गई। चाय बनते ही तीन काफ में चाय डाला और कुछ नमकीन एक प्लेट में डालकर चाय का काफ एक प्लेट में रखकर उठा लिया, सुरभि नमकीन की प्लेट उठा लिया फिर दोनों आ'कर चाय और नमकीन रखकर बैठ गए। मनोरमा एक काफ उठा कर राजेंद्र को, एक काफ सुरभि को और एक काफ ख़ुद लिया फ़िर चाय पीते हुए सुरभि बोली….बहन जी आप'के पति कहा हैं।

मनोरमा…जी वो तो ऑफिस गए हैं।

सुरभि…बहनजी हम आप'से कुछ मांगने आए हैं क्या आप हमारी मांगे पुरी कर सकते हों।

मनोरमा...मैं आप'को क्या दे सकती हूं। आप तो राज परिवार से ताल्लुक रखते हों। आप'को किस चीज की कमी है जो आप मुझ'से मांग रहीं हों।

सुरभि…हम राज परिवार से हैं तो किया हुआ। राज परिवार हों या सामान्य परिवार से हों उनको कभी न कभी दूसरो के सामने हाथ फैलाकर मांगना ही पड़ता हैं। क्योंकि उनके परिवार में जिस शख्स की कमी होती हैं उसे दूसरे परिवार से मांगकर ही भरा जा सकता हैं।

मनोरमा…आप'के परिवार की कमी को पूर्ति करने के लिए आप मुझ'से मांग कर रही हो। बोलिए आप किया मांगना चहते हैं। मेरी क्षमता में हुआ तो मैं जरूर आप'की मांग पूरा करूंगा। ये तो मेरा सौभाग्य होगा। राज परिवार से मेरे पास कुछ मांगने आया और मैं उनका मांग पूरा कर पाया।

सुरभि…जी हम आप'के सुपुत्री का हाथ हमारे सुपुत्र रघु प्रताप राना के लिए मांगने आए हैं। क्या आप हमारी इस मांग को पूरा कर सकती हो?

मनोरमा चाय पीते पीते रूक गई और अचंभित हो'कर देखने लग गईं मनोरमा को यकीन ही नहीं हों रहा था राज परिवार जिनके सामने वो निम्न है फिर भी कितने विनम्र भाव से उनके बेटी का हाथ मांग रहे हैं। मनोरमा को ऐसे देखते देखकर राजेंद्र बोला…आप हमे ऐसे क्यों देख रहे हों सुरभि ने कुछ गलत बोल दिया हैं तो आप हमे माफ कर दीजिएगा।

मनरोमा…नहीं नहीं इन्होंने कुछ गलत नहीं बोला। मेरे घर एक बेटी ने जन्म लिया हैं तो कभी न कभी उसका हाथ मांगने कोई न कोई आएगा। हम आप'के राजशाही ठाठ बांट के आगे सामान्य परिवार है फिर भी आप मेरी बेटी का हाथ मांगने आए इसलिए मैं अचंभित हों गया।

राजेंद्र…राजशाही ठाठ बांट हैं तो क्या हुआ हमे आप'की बेटी पसंद आया इसलिए हम आप'की बेटी का हाथ मांगने आ गए। आप साधारण परिवार से हैं या असाधारण हमे उससे कोई लेना देना नहीं हैं।

मनोरमा…आप का कहना सही हैं लेकिन मैं अकेले फैसला नहीं ले सकती मेरा पति होता तो ही कुछ कह पाता।

सुरभि…हम आप'से सिर्फ अपनी बात कहने आए थे अगर आप कहें तो हम कल फिर आ जायेंगे।

मनोरमा…मैं कल कमला के पापा को रुकने को कह दूंगी आप कल फिर आ जाना तब बात आगे बढ़ाएंगे।

राजेंद्र…ये ठीक रहेगा। मैं भी रघु को यह बुला लेता हु आप भी रघु को देख लेना। रघु और कमला भी एक दूसरे को देख लेंगे, अगर दोनों की हा हुआ और आप'को रघु पसंद आया तो ही हम बात आगे बढ़ाएंगे।

मनोरमा…हां ये ठीक रहेगा। हमारी पसंद, नापसंद मायने नहीं रखता जिन्हें ज़िंदगी भर साथ रहना हैं उनकी पसंद न पसंद मायने रखता हैं।

राजेंद्र…तो ये तय रहा कल हम हमारे बेटे के साथ आयेगे।

इसके बाद दोनों मनोरमा से विदा ले'कर चल दिया। घर आ'कर राजेंद्र ऑफिस में फोन लगा रघु को आज ही कलकत्ता आने को कहा तो रघु आने का कारण जानना चाहा तो राजेंद्र सच न बताकर जरूरी काम का बहाना बना दिया और अभी के अभी चल देने को कहा। रघु फोन रखकर मुंशी के पास गया ओर बोला...काका मैं कलक्तता जा रहा हू कुछ जरुरी काम से पापा बुला रहे हैं।

इतना कह रघु घर पंहुचा फिर तैयार हो'कर नीचे आया। रघु को देख सुकन्या बोली... बेटा अभी तो ऑफिस से आए हों फ़िर कहा चल दिया।

रघु...छोटी मां पापा का फ़ोन आया था। जरूरी काम से कलकत्ता बुला रहे हैं। इसलिए कलकत्ता जा रहा हूं।

सुकन्या...अकेले मत जाना साथ में ड्राइवर को लेकर जाना ओर हां वह पहुंचकर फोन कर देना।

रघु... छोटी मां मैं बच्चा नहीं हूं जो अकेले नहीं जा सकता।

सुकन्या... जितना कहा उतना कर नहीं तो मैं कलक्तता फ़ोन कर कह दूंगी रघु को नहीं भेज रहीं हूं।

रघु...ठीक हैं छोटी मां अपने जैसा कहा वैसा ही करूंगा अब तो आप खुश हों ना!

सुकन्या... हां खुश हूं ओर सुन ड्राइवर को कहना कार ज्यादा तेज न चलाए आराम आराम से जाना।

रघु...ठीक हैं छोटी मां अब मैं जाऊ।

इतना कह रघु चल दिया। इधर पुष्पा किसी तरह कॉलेज में अपना समय काट रहीं थी। सुबह की घटना से दिल दिमाग में खलबली मची हुई थी। कॉलेज की छुट्टी होने पर आशीष... पुष्पा चलो तुम्हें घर छोड़ देता हूं

पुष्पा...रहने दो अशीष मैं चली जाऊंगी।

अशीष...ज्यादा बाते न बनाओ चुप चाप कार में बैठो।

पुष्पा के बैठते ही दोनों चल दिया। पुष्पा गुमसुम बैठी थीं ये बात अशीष को खल रहा था तो अशीष बोला...पुष्पा क्या हुआ? आज इतने खामोश क्यों बैठी हों? कॉलेज में भी गुमसुम रही ओर अब भी, सुबह की घटना को लेकर इतना परेशान क्यों हों रही हों? जो हुआ अच्छा ही हुए।

पुष्पा...तुम्हारे लिए अच्छा हुआ लेकिन मेरे लिए तो बुरा हुआ न, पापा कभी मुझसे इतनी बेरूखी से बात नहीं करते लेकिन आज किया सिर्फ बात ही नहीं किया बल्की गुस्सा भी हों गए। अशीष मुझे डर लग रहा हैं घर जानें पर न जानें कितनी बाते सुनना पड़ेगा।

आशीष…उनका बेरूखी से बात करना स्वाभाविक हैं। सभी मां बाप अपने बेटी को ले'कर चिंतित रहते हैं। क्योंकि दुनिया में सब से पहले उंगली लडक़ी पर उठाया जाता हैं चाहें गलत कोई भी हों ओर हम'ने प्यार किया है हम पर तो उंगली उठेगा ही।

पुष्पा…मुझे इसी बात का ही डर हैं। दुनिया मुझ पर उंगली उठाए मैं सह लूंगी। लेकिन मेरे मां बाप मुझे गलत समझे मैं सह नहीं पाऊंगी। हम दोनों के बारे में उन्हें पहले ही बता देना चाहिए था। बता दिया होता तो आज ऐसा न होता। आशीष मुझे घर नहीं जाना तुम मुझे कही ओर ले चलो मैं उनका सामना नहीं कर पाऊंगी।

आशीष...बबली हो गई हो जो कुछ भी बोले जा रही हो घर नहीं तो ओर कहा जाओगी। तुम घर जाओ, तुम कहो तो मैं भी चलता हूं मैं खुद उनसे बात करूंगा।

पुष्पा…खुद मेरे मां बाप से बात करने से डरते हों ओर कह रहे हों मैं बात करूंगा।

आशीष…पहले डर लगता था अब नही, सुबह ससुरा को जो बोला उसके बाद तो मेरा छीना चौड़ा हों गया हैं। तुम घर जाओ बात ज्यादा बढ़े तो मुझे बता देना मैं मम्मी पापा को कल ही तुम्हारे मां बाप से बात करने भेज दूंगा।

पुष्पा...आशीष फिर भी मुझे डर लग रहा हैं। चलो मुझे घर छोड़ दो जो होगा देखा जाएगा।

आशीष कार चलते हुए बोला…जो भी बात हों मुझे बता देना।

घर से थोड़ी दूर पुष्पा ने कार रुकवा दिया कार रुकते ही पुष्पा उतर गई फिर बोली...अशीष अब तुम जाओ मैं यहां से पैदल घर चली जाऊंगी।

अशीष... ठीक हैं जाओ ओर जो भी बात हो मुझे याद से बता देना।

पुष्पा... ओके बाय कल मिलते है।

अशीष...बाय muhaaa!

पुष्पा धीरे धीर चलते हुए जा रहीं थीं। जैसे जैसे घर नजदीक आता जा रहा था वैसे वैसे पुष्पा बेचैन होती जा रही थीं और मन ही मन दुआं कर रही थीं मां बाप का सामना न करना पड़े। दुआं करते हुए पुष्पा घर पहुंच गई फिर डरते डरते दरवाजे पर टंगी घंटी बजा दिया ओर आंखें बंद कर खड़ी हों गईं। चंपा आ'कर दरवजा खोला फिर बोला…मेम साहब आप आ गई अंदर आइए ऐसे आंखे बंद किए क्यों खड़ी हों।

चंपा की आवाज सुनकर पुष्पा आंखे खोल दिया और बनावटी मुस्कान लवों पर सजा अंदर आ गई फ़िर बोली…मां पापा कहा हैं।

चंपा…जी वो तो विश्राम कर रहे हैं आप कहो तो उन्हे जगा दूं।

पुष्पा…नहीं उन्हें जगाने की जरूरत नहीं हैं।

चंपा…ठीक हैं। आप हाथ मुंह धो लो मैं खाना लगा देती हूं।

पुष्पा…मुझे अभी भूख नहीं हैं तुम जा'कर रेस्ट करों जब भूख लगेगी बता दूंगी।

पुष्पा कमरे में जा'कर लेट गई। बेड पर करवटे बदल बदल कर, आगे क्या होगा सोच सोचकर घबरा रही थी। ज्यादा सोचने से मानसिक थकान के कारण पुष्पा कुछ देर में सो गई।

शाम को सुरभि और राजेंद्र उठाकर हाथ मुंह धोया फिर रूम से बाहर आ बैठक में बैठ गई।

सुरभि...चंपा चाय ले'कर आना।

"अभी लाई" बोल कुछ देर में चंपा चाय ला'कर दोनों को दिया। चाय ले'कर सुरभि बोली...पुष्पा आ गई है।

चंपा…रानी मां पुष्पा मेम साहब आ गई हैं लेकिन उन्होंने अभी तक खाना नहीं खाया।

सुरभि... कब की आई हुई है ओर अभी तक खाना नहीं खाई, तुम पहले नहीं बता सकती थी। जाओ कुछ खाने को लाओ मैं जा'कर देखती हू।

राजेंद्र…सुरभि मुझे लग रहा हैं पुष्पा सुबह की बातों से परेशान हों गई होगी जल्दी चलो मुझे डर लग रहा हैं। कहीं कुछ कर न बैठी हों।

सुरभि...आप'को कहा था आप कुछ ज्यादा बोल दिए हों लेकिन आप सुने नहीं, मेरी लाडली को कुछ हुआ तो देख लेना अच्छा नहीं होगा।

दोनों जल्दी से पुष्पा के कमरे में गए, दरवजा बंद देखकर सुरभि दरवजा पीटने लग गई और आवाज देने लग गई पर दरवजा नहीं खुला तो सुरभि रोते हुए बोली…देखो न दरवजा नहीं खोल रहीं है आप जल्दी से कुछ कीजिए न कहीं पुष्पा ने कुछ कर न लिया हों।

सुरभि को हटाकर राजेंद्र जोर जोर से दरवजा पीटने लग गया साथ ही आवाजे देने लग गया। शोरशराबे के करण पुष्पा की नींद टूट गया, आंखे मलते हुए पुष्पा उठकर बैठ गई तभी उसे फिर से आवाज सुनाई दिया आवाज सुनकर पुष्पा मन ही मन बोली…न जानें अब किया होगा हे भगवान बचा लेना मां पापा का सामना कैसे करूंगी? उन्हें क्या जवाब दूंगी?

सुरभि रोते हुए बोली…कितनी देर ओर दरवाजा पीटेंगे दरवाजा तोड़ दीजिए न!

दरवजा तोड़ने और सुरभि के रोने की आवाज़ सुनकर पुष्पा मन ही मन बोली...मां रो क्यों रहीं हैं? पापा को दरवजा तोड़ने को क्यो कह रहीं?

इतना बोल पुष्पा जा'कर दरवाज़ा खोल दिया। दरवजा खोलते ही सुरभि अंदर आ'कर पुष्पा को गाले से लगकर बोली…तू ठीक तो हैं न, ओ जी आप जल्दी से डॉक्टर को फोन करों।

पुष्पा…मां मैं ठीक हू डॉक्टर को फोन करने की जरूरत नहीं हैं।

पुष्पा को घुमा फिराकर देखा फिर मूंह के पास नाक ले जा'कर सूंघा ओर सुरभि बोली…तूने कुछ पिया बिया तो नहीं न, देख मुझे सच सच बता दे।

पुष्पा…न मैंने कुछ खाया हैं न कुछ पिया हैं आप ये क्यों पुछ रहें हों?

राजेंद्र पुष्पा को ले जा'कर बेड पर बिठा दिया फिर खुद भी बैठ गया। साथ के साथ सुरभि भी जा'कर पुष्पा के दूसरे तरफ बैठ गई फ़िर पुष्पा के सिर पर हाथ फिराने लग गई ओर राजेंद्र बोला…भूल कर भी ऐसा वैसा कुछ करने के बारे में न सोचना तुम्हें कुछ हुआ तो मेरा और तुम्हारी मां का क्या होगा सोचो जरा, तुमने दरवजा खोलने में देर लगाई उतने वक्त में न जानें मैने और तुम्हारे मां ने किया से किया सोच लिया देखो अपनी मां को कुछ ही वक्त में अपना हल रो रो कर कैसा बना लिया।

पुष्पा ने सुरभि की और गैर से देखा सुरभि की आंखो से नीर बह रहीं थीं। सुरभि के बहते अंशु को पोछकर पुष्पा बोली….मां पापा मुझे माफ कर देना अपने मुझे यह पढ़ने के लिए भेजा ओर मैं यह पढ़ने के साथ साथ कुछ ओर कर बैठी।

सुरभि पुष्पा को छीने से चिपका लिया ओर बोली…तुम दोनों के बीच ये सब कब से चल रहा हैं और लड़के का नाम किया हैं।

पुष्पा अलग होकर सुरभि की आंखो में देखकर समझने की कोशिश करने लग गई, सुरभि डाट रहीं हैं या पुछ रहीं हैं। फिर नजरे झुकाकर बैठ गई और पैर की उंगली से फर्श को कुरेदने लग गई। पुष्पा शर्मा भी रहीं थीं और बताने से डर भी रहीं थीं। ये देख राजेंद्र बोला...बेटी डरने की जरूरत नहीं हैं हम तुम'से नाराज नहीं हैं अब बताओ कब से चल रहा हैं।

पुष्पा कुछ नहीं बोली बस चुप चाप बैठे बैठे हाथ की उंगलियों को मढोरने लग गईं। ये देखकर राजेंद्र मुस्कुरा दिया फ़िर बोला…पुष्पा हम तो सोच रहें थे तुम'से लड़के का आता पता ले'कर उसके घर वालो से मिलकर तुम्हारे शादी की बात करूंगा लेकिन तुम नहीं चहती हों तो हम कोई दूसरा लड़का ढूंढ लेंगे।

"मैं आशीष से बहुत प्यार करती हूं। शादी करूंगी तो आशीष से, नहीं तो किसी से नहीं!" बोलने को तो बोल दिया। जब ख्याल आया क्या बोला दिया तो शर्मा कर हाथो से चेहरा छुपा लिया। बेटी को शर्माते देख राजेंद्र और सुरभि मुस्कुरा दिया फिर राजेंद्र बोला...Oooo Hooo इतना प्यार, तो आगे की भी बता दो कब से चल रहा हैं।

पापा की बाते सून पुष्पा इतना शर्मा गई कि उठकर जानें लगीं तब सुरभि हाथ पकड़ लिया तो पुष्पा शर्मा कर मां से लिपट गई फिर सुरभि बोली...अब शर्माने से कोई फायदा नहीं, हम जो पुछ रहे हैं बता दो नहीं तो हम सच में दूसरा लड़का ढूंढ लेंगे।

पुष्पा नजरे उठाकर सुरभि को देखा फ़िर नज़रे झुका कर बोली…मां आप दोनों मुझ'से नाराज़ तो नहीं हों। आप सच कह रहे हों मेरी शादी आशीष से करवा देंगे।

सुरभि…हां! तुम उससे प्यार करती हों तो हम तुम्हारी शादी उससे ही करवा देंगे हमे हमारी बेटी की खुशियां प्यारी हैं। लड़के का नाम तो बता दिया अब ये भी बता दो कब से तुम दोनों का प्रेम प्रसंग चल रहा हैं। लड़के के घर में कौन-कौन हैं और उसके घर वाले क्या करते हैं?

पुष्पा…आशीष और मेरा प्रेम प्रसंग पिछले चार साल से चल चल रहा हैं। हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। आशीष मेरे साथ ही mba कर रहा हैं। उसके घर में मां बाप एक बहन बडा भाई और भाभी हैं। उनका अपना कारोबार हैं। जिसे आशीष के बड़े भाई और उसके पापा संभालते हैं। लेकिन आशीष का अपने कारोबार में कोई रुचि नहीं हैं वो ips ऑफिसर बना चाहता हैं। तैयारी भी पूरा हो चुका हैं दो महीने बाद पेपर हैं।

राजेंद्र…आशीष ips ऑफिसर बनकर देश सेवा करना चाहता हैं। ये तो अच्छी बात हैं। तुम आशीष को फोन कर बता दो हम उससे और उसके मां बाप से मिलना चाहते हैं। आशीष मां बाप को साथ लेकर कल शाम को हमारे घर आ जाए।

पुष्पा…ठीक हैं पापा मैं बोल दूंगी।

सुरभि…अब जल्दी से हाथ मुंह धोकर निचे आओ और कुछ खा पी लो।

सुरभि और राजेंद्र के जाने के बाद पुष्पा हाथ मुंह धोकर कमरे में रखे टेलीफोन से फोन लगा दिया फ़ोन उठते ही पुष्पा बोली...आशीष मां पापा मुझ'से नाराज नहीं हैं।

अशीष...Oooo thank god मेरा तो सोच सोच कर भूख ही मर गया था।

पुष्पा...भूखा ही रहना कल शाम के खाने पर तुम्हें और मम्मी पापा को बुलाया हैं।

अशीष...Oooo nooo एक बार फिर से तुम्हारे हाथ का जला हुआ खाना ही ही ही..।

पुष्पा…क्या बोला मैं जला हुआ खाना बनाती हूं। आओ इस बार पक्का तुम्हें जला हुआ खाना दूंगी।

अशीष...आरे नाराज़ क्यों होती हों जानेमान मैं तो मजाक कर रहा था।

पुष्पा...मैं भी मजाक कर रही थीं मैं रखती हूं कल टाइम से आ जाना।

दोनों एक दूसरे को बाय बोल कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया फिर पुष्पा नीचे आ'कर मां बाप के साथ चाय नाश्ता किया फ़िर बातों में लग गई।

ऐसे ही बातों बातों में रात हों गया। रघु अभी तक नहीं पहुंचा था इसलिए दोनों चिंतित हो रहे थें। घर के बहार एक कार आ'कर रुका, सुरभि और राजेंद्र राजेंद्र तुरंत उठे ओर बहार को चल दिया। मां बाप को देख रघु दोनों के पैर छुआ फ़िर हल चाल पूछा ओर साथ में अन्दर को चल दिया। अंदर आ'कर पुष्पा को न देखकर बोला…मां पुष्पा कहा हैं?

सुरभि... पुष्पा अभी अभी रुम में गई हैं….।

इतना सुन रघु उठा ओर बहन के रुम की ओर भाग गया। रघु भागते देखकर सुरभि और राजेंद्र मुस्करा दिया। रघु दरवाजे पर पहुंचकर दरवाजा खटखटाया पुष्पा दरवजा खोलकर रघु को देख चीख पड़ी फ़िर बोली…भईया आप कब आए और कैसे हों।

रघु…मैं ठीक हू। अभी अभी आया हु और सीधा तेरे पास आ गया। तू कैसी हैं।

पुष्पा…मैं ठीक हू घर पर सब कैसे हैं।

रघु…सब ठीक हैं तुझे बहुत याद करते हैं।

पुष्पा…मुझे कोई याद नहीं करते, याद करते होते तो मुझ'से मिलने आ जाते आप भी नहीं करते न ही अपने इकलौती बहन से प्यार करते हों।

रघु…किसने कहा मैं तूझ'से प्यार नहीं करता। तुझ'से प्यार नहीं करता तो आते ही तुझ'से मिलने क्यों आता।

पुष्पा…अच्छा अच्छा मानती हूॅं आप मुझ'से बहुत प्यार करते हों अब आप हाथ मुंह धो'कर आओ फिर बहुत सारी बाते करेंगे।

रघु एक कमरे में जा'कर हाथ मुंह धोकर आया फिर सभी के साथ बैठ गया और पुष्पा के साथ नोक झोंक शुरू कर दिया। पुष्पा शिकायतो की झड़ी लगा दिया फिर रूठकर बैठ गई बहन को रूठा देख रघु तरह तरह के लालच देकर माना लिया। ऐसे ही दोनों भाई बहन में रूठने मनाने का दौर चलता रहा ओर मां बाप दोनों भाई बहन के प्यार भरी नोक झोंक देख मंद मंद मुस्कुरा रहे थें। बहन से कुछ वक्त तक बात करने के बाद रघु राजेंद्र से पूछा…पापा इतना क्या जरूर काम था जो अपने मुझे आज ही और जल्दी जल्दी बुला लिया कितना काम पड़ा हैं।

सुरभि…ऑफिस जाना शूरू किए जुम्मा जुम्मा दो दिन नहीं हुआ और काम काम राग अलापने लग गया।

ये सुनकर सभी हंस दिए फिर राजेंद्र बोला…जरूरी काम हैं इसलिए बुलाया, कल हमे कहीं जाना हैं। पुष्पा तुम भी कल कॉलेज मत जाना तुम भी हमारे साथ चलोगी।

रघु और पुष्पा एक साथ बोले…कह जाना हैं।

सुरभि…कल तक वेट करों फिर जान जाओगे।

पुष्पा...मां आप मेरी अच्छी मां हों न, बोलों हों न!

सुरभि...तू कितना भी मस्का लगा ले मैं नहीं बताने वाली।

पुष्पा...आप'से पुछ कौन रहा हैं? Papaaa...।

राजेंद्र... न न महारानी जी मैं भी नहीं बताने वाल।

पुष्पा... भईया सभी रास्ते बंद हों गए अब क्या करूं।

रघु...रात भार की बात हैं। किसी तरह रात कांट लेते हैं सुबह पाता चल जायेगा।

पुष्पा...हां सही कह रहो हों इसके आलावा कोई ओर रस्ता नहीं हैं।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे, यहां तक साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
Rajendra aur surbhi to kamla ke ghar pahunch hi gaye rishta lekar ab kal apni bacho ke sath kamla and uske pita se bhi mil lenge dekhte hai raghu and kamla ki Pehli mulakat kaisi rehti hai aur kya ye dono ek dusre ko pasand karte hai ya nahi.
Pushpa and ashish ke rishte ke liye bhi surbhi and rajendra Maan gaye and ashish ke Maa Baap ko milne ke liye bulwa liya dekhte hai inki gadi kaha tak jati hai.
Update ka best part sukanya ka raghu ke prati yu care karna tha jo usey drivar ke sath Jane aur pahunch kar inform karne ke liye Keh rahi thi.
Overall Nice update
 
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Apasyu ko pyaar hogayga but jis ladki se huwa wo to bohut hi chalu lag rahi hai ab dekhna hoga ki uska swabhav bas chanchalta se bhara huwa ya Phir sach mai hi wo ek chali kism ki ladki hai.
Rajendra aur surbhi pahunch gaye Kolkata aur kamla ko dekhte hi unke Maan usey bahu banane ka khayal aya hai and uski painting mai aisa kya jisse surbhi aur rajendra aur zyada prabhivit hogaye hai.
Overall Nice update
Bahut bahut shukriya 🙏 Badshah Khan ji

Dimpal ka sbhav kaisa hai vo kitni chalu hai ye to aage hi pata chlega.

Apashyu ko pyaar nehi hua bas ek akarshit karne wali shakti ne apashyu ko dimpal ki aur akarshit kar liya hai.
 
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Kamla ki painting ne kamal kardiya aur usey first prize bhi dila diya
Surbhi aur rajendra ne to pakka Maan bana liya hai kamla ko bahu banane ka par kya kamla razi hogi aur uske mata pita ye dekhte hai.
Pushpa apne Maa Baap ko dekh kar khush hogayi aur unhe 2-3 din rukne ke liye mana bhi liya.
Yaha ye dalal to ek alag hi gane khel raha hai wo damini ko rajendra ki bahu bana kar kuch bada karne ke plan mai hai ravan ko to us par bharusa nahi hai but jis tarah se wo chal raha hai aise mai lagta nahi ki ravan ko bhanak bhi lagne dega apne mansubo ki.
Overall Awesome update
Bahut bahut shukriya 🙏 Badshah Khan ji

kud ki beti suhashini se raghu ki shaadi karwane ka mansuba jo dalaal bana raha hai. Uska mansuba pura hoga ki nehi aaage aane wale update me pata chal jayega
 

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