Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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Aik romantic / love story sab ko achhee lagatee he padhana… kyun ke har vyakti life mein puberty aane ke baad opposite gender mein attraction feel karta he… aur phir iss "prem" ke adhbut anubhaav se guzarta he… who payaar karta to kabhee to who saphal rehata he aur kabhee who payar zindagee bhar ka rog ban jata he…

Mein khud 25 saal ka ho chukaa hun… aur payaar ke saare hee roop dekh chukka hun… dost soch rahe honge ke kayaa paya ke bhee roop hote hein… haan dosto payaar ke bhee roop hote hein… parents ka apne bachon se payar… bhai behan ka payaar… doston ka iak doosre ke liye payaar… doosre rishton ka payaar… jitney bhee payaar ke roop hein un sab kee koi na koi seema hotee… magr aik ladkee aur ladke ke payaar kee koi seema nahee hotee… yeh payar jitna gehra aur shakeesaalee hota he utanaa he naram aur naazuk…

Ab dekhna yeh he ke hamare dost priy Destiny kee rachnaa kesi he… :loveboat:

Itna khubsuraat prtiktiya dene ke liye bahut bahut shukriya 🙏🙏

Rog ka kya hi kahna sabhi rogo me prem rog vo ghatak vimari hai jiska ilaj kisi bhi vaidhya ke paas nehi hai agar hai to sirf aur sirf prem karne walo ke paas hi.

Ha sahi kaha prem ke anek roop hota hai. Aor hmare jivan me prem sabhi roopon me aata hai par tarjih sirf aur sirf ladke aur ladki ke prem ko diya jata hai kyu to is kyu ka jab aaj tak mai jaan hi nehi paya.

Sadharan sa rachnakar hi simit soch ke dayre me jo samjh aaya vo apke samne pesh hai read kare dekhiye kaisi rachna hai.
 
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Update - 21


अगले दिन सुबह दस बजे के टाइम पर राजेंद्र पारंपरिक लिवास में तैयार हो'कर बैठक में बैठे हुए सुरभि का wait करने लगा। बहुत देर हो गया पर सुरभि आई नहीं तो राजेंद्र बार बार सीढ़ी की ओर देखने लग गया। लेकिन उधर से कोई आ ही नही रहा था। इसलिए राजेंद्र मन ही मन बोला…ये सुरभि भी ना,तैयार होने में कितना वक्त लगती हैं। इतना भी क्या श्रृंगार करना। जिसने भी श्रृंगार का सामान बनाया वो मिल जाता तो उसे कला पानी की सजा दे देता।

राजेंद्र ऐसे ही अकेले अकेले बड़बड़ाने लगा ओर सुरभि का wait करने लग गया। लेकिन सुरभि फिर भी नहीं आई तो राजेंद्र बोला…सुरभि ओर कितना वक्त लगाना हैं। कब से wait कर रहा हूं ओर तुम हों कि आ ही नहीं रहीं हों। जल्दी आओ हम लेट हों रहे हैं।

सुरभि पर तो जैसे पति के बुलाने का कोई असर न हुआ। अपने ही धुन में खुद को सजाने संवारने में लगी रहीं ओर बोली…इनसे तो वेट भी नही होता। सजने संवरने का रोज रोज कहा मौका मिलता है। कितना भी आवाजे दे लो जब तक मैं मन मुताबिक सज संवर न लूं तब तक नहीं आने वाली।

खैर कुछ वक्त में सज संवरकर सुरभि नीचे आई। सजी संवरी सुरभि को देख राजेंद्र बोला…सुरभि बेटे की शादी की तारिक तय करने जा रहे हैं। तुम तो ऐसे तैयार हो'कर आई हो जैसे हम दोनो फिर से शादी करने जा रहें हो।

सुरभि…जानती हूं लेकिन क्या करू औरत हूं सजना संवरना हमारी प्रकृति हैं इसे भुला थोड़ी सकती हूं।

राजेंद्र...बातों में समय गवाने से बेहतर हमे चलना चहिए।

राजेंद्र पुष्पा और रघु को आवाज दिया। दोनों के आने पर उन्हें बताकर दोनों चल दिए। कुछ ही पल में दोनों महेश के घर पहुंच गए। जहां उन्हें आदर सत्कार से अंदर ले जाया गया। राजेंद्र महेश से बातों में लग गया। लेकिन सुरभि की नजर किसी को ढूंढने में लगी रहीं, जब वो नजर नहीं आई तब बोली…बहन जी हमारी होने वाली बहु नहीं दिख रही हैं। कहीं गई हैं क्या?

मनोरमा...वो रूम में हैं। अभी बुलाकर लाती हूं कहकर जाने लगी तब सुरभि रोकते हुए बोली...मै भी चलती हूं यहां बुलाने की जरुरत नहीं हैं वही पर बात कर लूंगी।

दोनों कमला के रूम की ओर चल दिया। मनोरमा कमला को आवाज दे'कर दरवाजा खुलवाई कमला दरवाजा खोलकर सुरभि को देखा फिर साइन करते हुए दांत दिखा दिया। प्रतिउत्तर में सुरभि भी अपनी बत्तीसी दिखा दिया। लें देख मेरे दांत भी कम चमकीला नहीं हैं। दोनों के चमकीले दांतों के प्रदर्शन को देख मनोरमा कब तक खुद को रोक पाती तो उन्होंने भी बत्तीसी दिखा दी। तीनों के चमकीली दांत दिखाने की जो प्रदर्शनी चल रहा था वो खत्म हुआ और मनोरमा चली गईं फिर कमला बोली... कैसी हो आंटी आओ बैठो।

कमला की बाते सुन सुरभि आंखे मोटी करते हुए बोली…बहु अब मां, माजी मम्मीजी कहने की आदत डाल लो जल्दी ही इस घर से तुम्हारी विदाई होने वाली हैं।

कमला चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराई फिर कान पकड़कर थोड़ी सी झुकी ओर बोली... sorryyy मम्मी जी!

सुरभि लावो को खोली फिर मुस्कुराई ओर बोली...आज माफ करती हूं लेकिन आगे नहीं करूंगी।

इतना कह सुरभि बारीकी से रूम का निरीक्षण umnnnn umnnnn करते हुए सिर को हिलाकर करने लग गई। रूम में एक एक समान सालीखे से सजा कर रखा हुआ था। रूम की सजावट और चमक धमक देख सुरभि गदगद हो गईं फिर रूम में रखी कुर्सी पर बैठ गई ओर बोली...हमारी बहु जितना अच्छा खाना बनाती हैं उतना ही गुस्से वाली हैं। कुटाई करने में बिल्कुल झांसी की रानी हैं। तोड़ फोड़ करने में भी महारत हासिल हैं और चीजों को सहेज कर रखने की कला काबिले तारीफ हैं। मतलब हमने सर्व गुण संपन्न लड़की को अपने घर की बहु चुना हैं।

कमला थोड़ी डरी फ़िर सहमी अंत में कहीं बातों से शर्मा गई और फर्श को पैर की ऊंगुठी से खुरेदने लग गई। ये देख सुरभि मोती समान दांतों की चमक फिर बिखेर दिया ओर बोली…फर्श में ऊंगली से गड्ढा नहीं कर पाओगी कहो तो धातु का एक टुकड़ा ला दूं उससे गड्ढा जल्दी खुद जाएगा ओर तुम्हे ज्यादा मेहनत भी नहीं करना पड़ेगा।

कमला बिल्कुल सीधी सावधान मुद्रा में खड़ी हों गई फिर सुरभि की ओर देख खिला सा मुस्कान बिखेर दिया। बस शुरू हों गई दोनों सास बहू के चमकीले दांतों की प्रदर्शनी कुछ क्षण तक दोनों का यह प्रदर्शनी चलता रहा फिर सुरभि कुर्सी से उठकर कमला के पास गई उसे ले'कर बेड पर बैठ गईं फिर शुरू हों गई महिलाओं वाली गॉसिप देने वाले ने भी थोक के भाव इनके पेट में बाते डाला इतना डाला जो कभी खत्म ही नहीं होता। दोनों सास बहू बातों में लग गई। इधर सुरभि और मनोरमा के जाते ही राजेंद्र बोला...महेश बाबू हमारी बहु का exam खत्म हों गया हैं। इसलिए सोच रहा हूं एक शुभ मूहर्त देखकर बहू को घर ले जाऊ।

महेश...हां मैं भी यही सोच रहा था। मैने आप'के बहू को बहुत सम्भाल लिया अब आप'की बारी है। आप ही संभालो अपनी अमानत को।

महेश बाबू के कहने का तात्पर्य क्या था? दोनों भलीभांति समझा गए ओर दहाड़े मार मार के हंसने लग गए। मर्द भी गजब प्राणी हैं। हंसी में भी मर्दानगी झलकता हैं। जहां महिलाओं की हसीं में फूल झड़ते हैं। वहीं इन दो मर्दों की हसी से ऐसा लग रहा हैं जैसे बड़े बड़े पत्थर जान बुझ कर फेका जा रहा हों। इनका हंसना या कहो दहड़ना चल रहा था उसी क्षण मनोरमा वहा आई। दहाडो वाली हंसी सुन थोडा सहम गई फिर पास आ'कर महेश को बोली…क्यों दहाड़े मारकर लोगों को डरा रहे हों? हंसना है तो ठीक से हसो वरना रहने दो।

मनोरमा के कहते ही बिल्कुल सन्नाटा छा गया। दोनों समझ नहीं पाए ऐसा क्यों कहा गया? जब समझ आया तो दोनों के दहाड़े मार हसी फिर से शुरू हों गया ओर मनोरमा मुस्कुराते हुए किचन में चली गईं। कुछ क्षण दोनों के दहाड़े मार हसी चलता रहा फिर शान्त हों गया। शांत होते ही राजेन्द्र बोला...शुभ काम में ओर देर करना ठीक नहीं होगा इसलिए आप पुरोहित जी को बुला लीजिए।

महेश जी उठकर थोडा दूर गया। वहा टेलीफोन चुप चाप विराजमान था। कब कोई आए ओर उनके साथ थोड़ी छेड़ छाड़ करे। महेश जी ने उंगली का कमाल दिखाया रिसीवर को कान में लगा टेलीफोन के साथ छेड़ छेड़ किया। कुछ क्षण मुंह हिलाया और आ'कर बैठ गए फिर बोला…राजा जी पुरोहित जी से बात हों गया हैं। उनको आने में कुछ वक्त लगेगा तब तक हम कुछ ओर बाते कर ले।

राजेन्द्र...हां क्यों नहीं नया रिश्ता जोड़ रहे है जितनी बातें करेंगे उतना ही घनिष्ट होगा।

महेश...वो तो होगा ही तो क्यों न हम लेने देन के विषय में कुछ बाते कर ले।

राजेन्द्र...लेन देन के विषय में कोई बात हुआ ही नहीं था न ही आप'के सामने कोई मांग रखा गया था।

महेश...अपने भले ही कोई मांग न रखा हों लेकिन पूछना मेरा फर्ज हैं आखिर हैं तो एक लड़की के पिता, तो आप बोलिए आप'की मांग क्या हैं? मै अपनी सामर्थ अनुसार पूरा करने की कोशिश करुंगा।

राजेन्द्र...मेरी कोई मांग नहीं हैं बस आप'से एक विनती हैं। दार्जलिंग के निवासी और कुछ अति विशिष्ट अतिथि बारात में आयेंगे उनके आदर सत्कार में कोई कमी न रखना।

दार्जलिंग के निवासी कोई एक दो तो हैं नही, महेश बाबू वहां की जनसंख्या से अवगत थे। तो दार्जलिंग निवासी सुनते ही महेश बाबू मानसिक गणित लगाने लग गए। जोड़ घटाओ गुणा भाग करने के बाद महेश के मानसिक केलकुलेटर ने अपना डाटा महेश के समक्ष पेश किया। डाटा इतना अधिक था। उसका अनुमान होते ही महेश बाबू पर मानो पहाड़ टूट पड़ा हों। उनका खिला हुआ चेहरा बुझ गया। मन तो कह रहा था न कह दे। लेकिन कही रिश्ता न टूट जाएं, ऐसा हुआ तो इतना अच्छा परिवार नहीं मिलेगा। एक ही बेटी है खुश रहेगी तो उन्हे भी खुशी मिलेगा। तरह तरह के विचार महेश के दिमाग में चलने लग गया। खुद ही में विचार विमर्श करने के बाद महेश बाबू बोले...राजा जी मुझे माफ़ करना मैं आप'के इस मांग को पूरा नहीं कर सकता इसके अलावा जो भी आप कहेंगे मैं मान लुंगा।

राजेंद्र...महेश बाबू मेरे इस मांग में ऐसा क्या हैं? जो आप मान नहीं सकते मैंने तो कोई भारी मांग नहीं रखा बस कुछ बाराती की सेवा करना है इतना भी नहीं कर सकते।

महेश...आप'के ये कुछ बाराती मेरा कामर तोड़ने के लिए काफी हैं। आप समझ नहीं पा रहे हैं आप समस्त दार्जलिंग बसी को बारात में लाने की बात कर रहें हैं। दार्जलिंग में कोई एक दो लोग तो रहते नहीं हैं। मैं इतने लोगों का आदर सत्कार नहीं कर पाऊंगा। ये मेरे क्षमता से परे हैं।

राजेंद्र…महेश बाबू आप मेरे स्तिथि को समझने की कोशिश कीजिए हम राज परिवार से हैं। वहा हमारी कुछ शान हैं। मुझे मेरी शान बनाए रखना हैं ओर मेरे शान को बनाए रखने में आप'को मेरा ये मांग मानना ही होगा।

महेश…राजाजी मैं आप'के कहने का मतलब समझ रहा हूं पर आप जो कह रहे हैं उसे पूरा करने का मुझ'में सामर्थ नहीं हैं।

कमला से बात कर सुरभि बहार आई दोनों को बाते करते देख सुरभि उनके पास आई ओर राजेंद्र से बोली...आप'ने ऐसा क्या मांग रख दिया जो महेश बाबू माना कर रहे हैं।

राजेंद्र...मैंने बस इतना ही कहा की सभी दार्जलिंग बसी बारात में आएंगे तो महेश बाबू माना कर रहे है वो कह रहें हैं उनका आदर सत्कार नहीं कर पाएंगे।

सुरभि...सही तो कह रहे है इतनों लोगों का आदर सत्कार महेश बाबू कैसे कर पाएंगे इतने लोगों को बारात में लाने की जरूरत नहीं हैं। जो सबसे खास हैं उन्हें ही बारात में आने का निमंत्रण देंगे।

राजेंद्र...सुरभि तुम ज़रा सोचो जो शान हमारे खानदान ने बना रखा है। आगर हमने ऐसा किया तो उस शान का क्या होगा?

सुरभि...किसी को दबा कर अपनी शान बढ़ाना कहा की समझदारी हैं। हम अपनी शान का ख्याल बहु को घर ले जानें के बाद रख लेंगे। महेश बाबू आप ये बताए कितने लोग बारात में आए तो आप उनका आदर सत्कार अच्छे से कर पाएंगे।

राजेंद्र...महेश बाबू रानी साहेबा ने फैसला सूना दिया हैं तो ये फैसला मैं भी बादल नहीं सकता निसंकोच बताइए आप जीतना कहेंगे हम उतना ही बाराती लेकर आएंगे।

महेश मन ही मन गणित लगाने लग गया। कितने लोग बारात में आने पर महेश और राजेंद्र के मान सम्मान को क्षति नहीं पहुंचेगा। जब महेश को गणित मिल गया तो बोले...राजा जी आप xyz बाराती लेकर आएंगे तो मैं उनका आदर सत्कार अच्छे से कर पाऊंगा।

सुरभि...मुझे लगता है आप बहुत सोच विचार करने के बाद ही ये अकड़ा दिया हैं। इसलिए हम इसके आधे बाराती ही लेकर आएंगे।

महेश...मैंने बिल्कुल सही अकड़ा दिया हैं। आप इतना ही बाराती लेकर आ सकते हैं।

सुरभि...महेश बाबू आप एक बात जान लीजिए इस शादी से सिर्फ कमला और रघु का रिश्ता ही नहीं जुड़ रहा है। बल्की दो परिवारों का रिश्ता जुड़ रहा हैं। दो परिवार एक हों रहें हैं। ऐसे में हमें एक दूसरे का ख्याल रखना हैं। न की किसी पर दबाव डालकर कोई काम करवाना हैं। इसलिए जो मैंने कहा वोही मेरा आखरी फैसला है जो बदलने वाला नहीं!

राजेंद्र...महेश बाबू आप ज्यादा न सोचे जो सुरभि ने कहा वैसा ही होगा और आप'को ये मानना ही होगा।

महेश ने हां कहा दिया फ़िर पुरोहित जी का wait करने लग गए वक्त बहुत हों गया पर पुरोहित जी आ ही नहीं रहें थें। तो महेश दुबारा फोन करने के लिए उठे ही थे की इन पर तरस खा'कर पुरोहित जी आ ही गए। उन्हे देखकर महेश बोला…कितना देर कर दिया कह रह गए थे? हम कब से आप का wait कर रहे हैं?

पुरोहित...जजमान क्या ही बोलूं जब आ रहा था तो रास्ते में एक निर्लाज बालक मिल गया था। इतना निर्लज हैं मेरा धोती छीनकर भाग गया। तो अब आप ही बताइए मैं जल्दी कैसे आ पाता।

पुरोहित की बाते सुन दोनों का मन किया बत्तीसी फाड़कर हंसे लेकिन किसी तरह खुद को रोक लिया ये सोचकर कहीं पुरोहित जी नाराज न हों जाए। हसने से तो खुद को रोक लिया लेकिन बोलने से राजेंद्र खुद को न रोक पाया इसलिए राजेंद्र बोला…फिर तो आप'का इज्जत सरेआम नीलाम हों गया होगा।

पुरोहित…मैंने नीचे लंबे नाडे वाला पहन रखा था। इसलिए मेरी इज्जत नीलाम होने से बच गया। राम राम कैसे कैसे लोग हैं? जो पुरोहित की भी इज्जत नहीं करते। इस निर्लाज लड़के की कुंडली मुझे मिल जाए तो मैं उसकी कुंडली में राहु, केतू, शनि, मंगल का वास करवा दूं ओर उसके अच्छे दिन को दूर दिन में बदल दूं।

आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
 
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अगले दिन सुबह दस बजे के टाइम पर राजेंद्र पारंपरिक लिवास में तैयार हो'कर बैठक में बैठे हुए सुरभि का wait करने लगा। बहुत देर हो गया पर सुरभि आई नहीं तो राजेंद्र बार बार सीढ़ी की ओर देखने लग गया। लेकिन उधर से कोई आ ही नही रहा था। इसलिए राजेंद्र मन ही मन बोला…ये सुरभि भी ना,तैयार होने में कितना वक्त लगती हैं। इतना भी क्या श्रृंगार करना। जिसने भी श्रृंगार का सामान बनाया वो मिल जाता तो उसे कला पानी की सजा दे देता।

राजेंद्र ऐसे ही अकेले अकेले बड़बड़ाने लगा ओर सुरभि का wait करने लग गया। लेकिन सुरभि फिर भी नहीं आई तो राजेंद्र बोला…सुरभि ओर कितना वक्त लगाना हैं। कब से wait कर रहा हूं ओर तुम हों कि आ ही नहीं रहीं हों। जल्दी आओ हम लेट हों रहे हैं।

सुरभि पर तो जैसे पति के बुलाने का कोई असर न हुआ। अपने ही धुन में खुद को सजाने संवारने में लगी रहीं ओर बोली…इनसे तो वेट भी नही होता। सजने संवरने का रोज रोज कहा मौका मिलता है। कितना भी आवाजे दे लो जब तक मैं मन मुताबिक सज संवर न लूं तब तक नहीं आने वाली।

खैर कुछ वक्त में सज संवरकर सुरभि नीचे आई। सजी संवरी सुरभि को देख राजेंद्र बोला…सुरभि बेटे की शादी की तारिक तय करने जा रहे हैं। तुम तो ऐसे तैयार हो'कर आई हो जैसे हम दोनो फिर से शादी करने जा रहें हो।

सुरभि…जानती हूं लेकिन क्या करू औरत हूं सजना संवरना हमारी प्रकृति हैं इसे भुला थोड़ी सकती हूं।

राजेंद्र...बातों में समय गवाने से बेहतर हमे चलना चहिए।

राजेंद्र पुष्पा और रघु को आवाज दिया। दोनों के आने पर उन्हें बताकर दोनों चल दिए। कुछ ही पल में दोनों महेश के घर पहुंच गए। जहां उन्हें आदर सत्कार से अंदर ले जाया गया। राजेंद्र महेश से बातों में लग गया। लेकिन सुरभि की नजर किसी को ढूंढने में लगी रहीं, जब वो नजर नहीं आई तब बोली…बहन जी हमारी होने वाली बहु नहीं दिख रही हैं। कहीं गई हैं क्या?

मनोरमा...वो रूम में हैं। अभी बुलाकर लाती हूं कहकर जाने लगी तब सुरभि रोकते हुए बोली...मै भी चलती हूं यहां बुलाने की जरुरत नहीं हैं वही पर बात कर लूंगी।

दोनों कमला के रूम की ओर चल दिया। मनोरमा कमला को आवाज दे'कर दरवाजा खुलवाई कमला दरवाजा खोलकर सुरभि को देखा फिर साइन करते हुए दांत दिखा दिया। प्रतिउत्तर में सुरभि भी अपनी बत्तीसी दिखा दिया। लें देख मेरे दांत भी कम चमकीला नहीं हैं। दोनों के चमकीले दांतों के प्रदर्शन को देख मनोरमा कब तक खुद को रोक पाती तो उन्होंने भी बत्तीसी दिखा दी। तीनों के चमकीली दांत दिखाने की जो प्रदर्शनी चल रहा था वो खत्म हुआ और मनोरमा चली गईं फिर कमला बोली... कैसी हो आंटी आओ बैठो।

कमला की बाते सुन सुरभि आंखे मोटी करते हुए बोली…बहु अब मां, माजी मम्मीजी कहने की आदत डाल लो जल्दी ही इस घर से तुम्हारी विदाई होने वाली हैं।

कमला चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराई फिर कान पकड़कर थोड़ी सी झुकी ओर बोली... sorryyy मम्मी जी!

सुरभि लावो को खोली फिर मुस्कुराई ओर बोली...आज माफ करती हूं लेकिन आगे नहीं करूंगी।

इतना कह सुरभि बारीकी से रूम का निरीक्षण umnnnn umnnnn करते हुए सिर को हिलाकर करने लग गई। रूम में एक एक समान सालीखे से सजा कर रखा हुआ था। रूम की सजावट और चमक धमक देख सुरभि गदगद हो गईं फिर रूम में रखी कुर्सी पर बैठ गई ओर बोली...हमारी बहु जितना अच्छा खाना बनाती हैं उतना ही गुस्से वाली हैं। कुटाई करने में बिल्कुल झांसी की रानी हैं। तोड़ फोड़ करने में भी महारत हासिल हैं और चीजों को सहेज कर रखने की कला काबिले तारीफ हैं। मतलब हमने सर्व गुण संपन्न लड़की को अपने घर की बहु चुना हैं।

कमला थोड़ी डरी फ़िर सहमी अंत में कहीं बातों से शर्मा गई और फर्श को पैर की ऊंगुठी से खुरेदने लग गई। ये देख सुरभि मोती समान दांतों की चमक फिर बिखेर दिया ओर बोली…फर्श में ऊंगली से गड्ढा नहीं कर पाओगी कहो तो धातु का एक टुकड़ा ला दूं उससे गड्ढा जल्दी खुद जाएगा ओर तुम्हे ज्यादा मेहनत भी नहीं करना पड़ेगा।

कमला बिल्कुल सीधी सावधान मुद्रा में खड़ी हों गई फिर सुरभि की ओर देख खिला सा मुस्कान बिखेर दिया। बस शुरू हों गई दोनों सास बहू के चमकीले दांतों की प्रदर्शनी कुछ क्षण तक दोनों का यह प्रदर्शनी चलता रहा फिर सुरभि कुर्सी से उठकर कमला के पास गई उसे ले'कर बेड पर बैठ गईं फिर शुरू हों गई महिलाओं वाली गॉसिप देने वाले ने भी थोक के भाव इनके पेट में बाते डाला इतना डाला जो कभी खत्म ही नहीं होता। दोनों सास बहू बातों में लग गई। इधर सुरभि और मनोरमा के जाते ही राजेंद्र बोला...महेश बाबू हमारी बहु का exam खत्म हों गया हैं। इसलिए सोच रहा हूं एक शुभ मूहर्त देखकर बहू को घर ले जाऊ।

महेश...हां मैं भी यही सोच रहा था। मैने आप'के बहू को बहुत सम्भाल लिया अब आप'की बारी है। आप ही संभालो अपनी अमानत को।

महेश बाबू के कहने का तात्पर्य क्या था? दोनों भलीभांति समझा गए ओर दहाड़े मार मार के हंसने लग गए। मर्द भी गजब प्राणी हैं। हंसी में भी मर्दानगी झलकता हैं। जहां महिलाओं की हसीं में फूल झड़ते हैं। वहीं इन दो मर्दों की हसी से ऐसा लग रहा हैं जैसे बड़े बड़े पत्थर जान बुझ कर फेका जा रहा हों। इनका हंसना या कहो दहड़ना चल रहा था उसी क्षण मनोरमा वहा आई। दहाडो वाली हंसी सुन थोडा सहम गई फिर पास आ'कर महेश को बोली…क्यों दहाड़े मारकर लोगों को डरा रहे हों? हंसना है तो ठीक से हसो वरना रहने दो।

मनोरमा के कहते ही बिल्कुल सन्नाटा छा गया। दोनों समझ नहीं पाए ऐसा क्यों कहा गया? जब समझ आया तो दोनों के दहाड़े मार हसी फिर से शुरू हों गया ओर मनोरमा मुस्कुराते हुए किचन में चली गईं। कुछ क्षण दोनों के दहाड़े मार हसी चलता रहा फिर शान्त हों गया। शांत होते ही राजेन्द्र बोला...शुभ काम में ओर देर करना ठीक नहीं होगा इसलिए आप पुरोहित जी को बुला लीजिए।

महेश जी उठकर थोडा दूर गया। वहा टेलीफोन चुप चाप विराजमान था। कब कोई आए ओर उनके साथ थोड़ी छेड़ छाड़ करे। महेश जी ने उंगली का कमाल दिखाया रिसीवर को कान में लगा टेलीफोन के साथ छेड़ छेड़ किया। कुछ क्षण मुंह हिलाया और आ'कर बैठ गए फिर बोला…राजा जी पुरोहित जी से बात हों गया हैं। उनको आने में कुछ वक्त लगेगा तब तक हम कुछ ओर बाते कर ले।

राजेन्द्र...हां क्यों नहीं नया रिश्ता जोड़ रहे है जितनी बातें करेंगे उतना ही घनिष्ट होगा।

महेश...वो तो होगा ही तो क्यों न हम लेने देन के विषय में कुछ बाते कर ले।

राजेन्द्र...लेन देन के विषय में कोई बात हुआ ही नहीं था न ही आप'के सामने कोई मांग रखा गया था।

महेश...अपने भले ही कोई मांग न रखा हों लेकिन पूछना मेरा फर्ज हैं आखिर हैं तो एक लड़की के पिता, तो आप बोलिए आप'की मांग क्या हैं? मै अपनी सामर्थ अनुसार पूरा करने की कोशिश करुंगा।

राजेन्द्र...मेरी कोई मांग नहीं हैं बस आप'से एक विनती हैं। दार्जलिंग के निवासी और कुछ अति विशिष्ट अतिथि बारात में आयेंगे उनके आदर सत्कार में कोई कमी न रखना।

दार्जलिंग के निवासी कोई एक दो तो हैं नही, महेश बाबू वहां की जनसंख्या से अवगत थे। तो दार्जलिंग निवासी सुनते ही महेश बाबू मानसिक गणित लगाने लग गए। जोड़ घटाओ गुणा भाग करने के बाद महेश के मानसिक केलकुलेटर ने अपना डाटा महेश के समक्ष पेश किया। डाटा इतना अधिक था। उसका अनुमान होते ही महेश बाबू पर मानो पहाड़ टूट पड़ा हों। उनका खिला हुआ चेहरा बुझ गया। मन तो कह रहा था न कह दे। लेकिन कही रिश्ता न टूट जाएं, ऐसा हुआ तो इतना अच्छा परिवार नहीं मिलेगा। एक ही बेटी है खुश रहेगी तो उन्हे भी खुशी मिलेगा। तरह तरह के विचार महेश के दिमाग में चलने लग गया। खुद ही में विचार विमर्श करने के बाद महेश बाबू बोले...राजा जी मुझे माफ़ करना मैं आप'के इस मांग को पूरा नहीं कर सकता इसके अलावा जो भी आप कहेंगे मैं मान लुंगा।

राजेंद्र...महेश बाबू मेरे इस मांग में ऐसा क्या हैं? जो आप मान नहीं सकते मैंने तो कोई भारी मांग नहीं रखा बस कुछ बाराती की सेवा करना है इतना भी नहीं कर सकते।

महेश...आप'के ये कुछ बाराती मेरा कामर तोड़ने के लिए काफी हैं। आप समझ नहीं पा रहे हैं आप समस्त दार्जलिंग बसी को बारात में लाने की बात कर रहें हैं। दार्जलिंग में कोई एक दो लोग तो रहते नहीं हैं। मैं इतने लोगों का आदर सत्कार नहीं कर पाऊंगा। ये मेरे क्षमता से परे हैं।

राजेंद्र…महेश बाबू आप मेरे स्तिथि को समझने की कोशिश कीजिए हम राज परिवार से हैं। वहा हमारी कुछ शान हैं। मुझे मेरी शान बनाए रखना हैं ओर मेरे शान को बनाए रखने में आप'को मेरा ये मांग मानना ही होगा।

महेश…राजाजी मैं आप'के कहने का मतलब समझ रहा हूं पर आप जो कह रहे हैं उसे पूरा करने का मुझ'में सामर्थ नहीं हैं।

कमला से बात कर सुरभि बहार आई दोनों को बाते करते देख सुरभि उनके पास आई ओर राजेंद्र से बोली...आप'ने ऐसा क्या मांग रख दिया जो महेश बाबू माना कर रहे हैं।

राजेंद्र...मैंने बस इतना ही कहा की सभी दार्जलिंग बसी बारात में आएंगे तो महेश बाबू माना कर रहे है वो कह रहें हैं उनका आदर सत्कार नहीं कर पाएंगे।

सुरभि...सही तो कह रहे है इतनों लोगों का आदर सत्कार महेश बाबू कैसे कर पाएंगे इतने लोगों को बारात में लाने की जरूरत नहीं हैं। जो सबसे खास हैं उन्हें ही बारात में आने का निमंत्रण देंगे।

राजेंद्र...सुरभि तुम ज़रा सोचो जो शान हमारे खानदान ने बना रखा है। आगर हमने ऐसा किया तो उस शान का क्या होगा?

सुरभि...किसी को दबा कर अपनी शान बढ़ाना कहा की समझदारी हैं। हम अपनी शान का ख्याल बहु को घर ले जानें के बाद रख लेंगे। महेश बाबू आप ये बताए कितने लोग बारात में आए तो आप उनका आदर सत्कार अच्छे से कर पाएंगे।

राजेंद्र...महेश बाबू रानी साहेबा ने फैसला सूना दिया हैं तो ये फैसला मैं भी बादल नहीं सकता निसंकोच बताइए आप जीतना कहेंगे हम उतना ही बाराती लेकर आएंगे।

महेश मन ही मन गणित लगाने लग गया। कितने लोग बारात में आने पर महेश और राजेंद्र के मान सम्मान को क्षति नहीं पहुंचेगा। जब महेश को गणित मिल गया तो बोले...राजा जी आप xyz बाराती लेकर आएंगे तो मैं उनका आदर सत्कार अच्छे से कर पाऊंगा।

सुरभि...मुझे लगता है आप बहुत सोच विचार करने के बाद ही ये अकड़ा दिया हैं। इसलिए हम इसके आधे बाराती ही लेकर आएंगे।

महेश...मैंने बिल्कुल सही अकड़ा दिया हैं। आप इतना ही बाराती लेकर आ सकते हैं।

सुरभि...महेश बाबू आप एक बात जान लीजिए इस शादी से सिर्फ कमला और रघु का रिश्ता ही नहीं जुड़ रहा है। बल्की दो परिवारों का रिश्ता जुड़ रहा हैं। दो परिवार एक हों रहें हैं। ऐसे में हमें एक दूसरे का ख्याल रखना हैं। न की किसी पर दबाव डालकर कोई काम करवाना हैं। इसलिए जो मैंने कहा वोही मेरा आखरी फैसला है जो बदलने वाला नहीं!

राजेंद्र...महेश बाबू आप ज्यादा न सोचे जो सुरभि ने कहा वैसा ही होगा और आप'को ये मानना ही होगा।

महेश ने हां कहा दिया फ़िर पुरोहित जी का wait करने लग गए वक्त बहुत हों गया पर पुरोहित जी आ ही नहीं रहें थें। तो महेश दुबारा फोन करने के लिए उठे ही थे की इन पर तरस खा'कर पुरोहित जी आ ही गए। उन्हे देखकर महेश बोला…कितना देर कर दिया कह रह गए थे? हम कब से आप का wait कर रहे हैं?

पुरोहित...जजमान क्या ही बोलूं जब आ रहा था तो रास्ते में एक निर्लाज बालक मिल गया था। इतना निर्लज हैं मेरा धोती छीनकर भाग गया। तो अब आप ही बताइए मैं जल्दी कैसे आ पाता।

पुरोहित की बाते सुन दोनों का मन किया बत्तीसी फाड़कर हंसे लेकिन किसी तरह खुद को रोक लिया ये सोचकर कहीं पुरोहित जी नाराज न हों जाए। हसने से तो खुद को रोक लिया लेकिन बोलने से राजेंद्र खुद को न रोक पाया इसलिए राजेंद्र बोला…फिर तो आप'का इज्जत सरेआम नीलाम हों गया होगा।

पुरोहित…मैंने नीचे लंबे नाडे वाला पहन रखा था। इसलिए मेरी इज्जत नीलाम होने से बच गया। राम राम कैसे कैसे लोग हैं? जो पुरोहित की भी इज्जत नहीं करते। इस निर्लाज लड़के की कुंडली मुझे मिल जाए तो मैं उसकी कुंडली में राहु, केतू, शनि, मंगल का वास करवा दूं ओर उसके अच्छे दिन को दूर दिन में बदल दूं।

आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
Mast update dost
 
Eaten Alive
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सुरभि पर तो जैसे पति के बुलाने का कोई असर न हुआ। अपने ही धुन में खुद को सजाने संवारने में लगी रहीं ओर बोली…इनसे तो वेट भी नही होता। सजने संवरने का रोज रोज कहा मौका मिलता है। कितना भी आवाजे दे लो जब तक मैं मन मुताबिक सज संवर न लूं तब तक नहीं आने वाली।
enhhh..... budhiya ki chamak dhamak to dekho.... jaise ladke wale ushe hi dekhne aa rahe ho :laugh1:
Kya baat hai...is umar mein bhi budhiya ko jawani chadhti hai.. :D
 
Eaten Alive
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सुरभि…जानती हूं लेकिन क्या करू औरत हूं सजना संवरना हमारी प्रकृति हैं इसे भुला थोड़ी सकती हूं।
aurat nahi balki budhiya :D
Wah re..itra to aise rahi hai jaise abhi abhi 18 saal mein kadam rakhi ho :D.... Are dekho to budhiya ki chadhti jawani... aaye haye, nazar na lag jaaye surbhi budhiya ko :budha:
 
Eaten Alive
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बहन जी हमारी होने वाली बहु नहीं दिख रही हैं।
Bahan ji :gaylaugh: waise budhiya ko zyada hi chul machi hai bahu ko dekhne ki..
Shayad compare karna chaahti ho ki khud ke saath...after all itni style maarke jo aayi budhiya mahesh ke ghar :laugh1:
 
Eaten Alive
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सुरभि को देखा फिर साइन करते हुए दांत दिखा दिया। प्रतिउत्तर में सुरभि भी अपनी बत्तीसी दिखा दिया। लें देख मेरे दांत भी कम चमकीला नहीं हैं। दोनों के चमकीले दांतों के प्रदर्शन को देख मनोरमा कब तक खुद को रोक पाती तो उन्होंने भी बत्तीसी दिखा दी। तीनों के चमकीली दांत दिखाने की जो प्रदर्शनी चल रहा था .
Lagta hai in teeno ki toothpaste mein namak kuch zyada hi hai :roflol:
 
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enhhh..... budhiya ki chamak dhamak to dekho.... jaise ladke wale ushe hi dekhne aa rahe ho :laugh1:
Kya baat hai...is umar mein bhi budhiya ko jawani chadhti hai.. :D

Ladke wale to nehi par bahu aur bahu ke ghar wale to dekhenge hi.😌

Jawani to kisi pe bhi chad jaye kiya bhudha kya jawan 😃
 

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