Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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अनुराग घर से निकला और सीधा जा पंहुचा डिंपल के घर गेट पर खड़े गार्ड से बोला...क्या आप'के मेम साहब डिंपल घर पर हैं।

"आप'का नाम क्या हैं? मेम साहब से आप'को क्या काम है?"

अनुराग...जी मेरा नाम अनुराग हैं।हम एक ही कॉलेज में पढ़े है कुछ काम था इसलिए मिलने आया हूं।

"ठीक है मैं मेम साहब से पूछकर बताता हूं"

गार्ड ने फोन करके कुछ देर बात किया फिर अनुराग को अंदर जानें दिया। अनुराग दरवाजे तक पहुंच पाता उसे पहले ही डिंपल दरवाजे पर आ गई। अनुराग के दरवाजे पर पहुंचते ही बोली... कैसे हों अनुराग?

अनुराग... ठीक हूं भाभी जी

डिंपल होंटो पर उंगली रखकर बोली...issss भाभी नहीं मम्मी घर पर हैं सुन लिया तो बेफजूल में डांट पड़ जाएगी। तुम चाहते हों मैं मम्मी से डांट सुनूं।

अनुराग आगे कुछ बोलता उससे पहले अंदर से एक आवाज आई…डिंपल दरवाजे पर खडी होकर किससे बाते कर रहीं हों अंदर लेकर आओ दरवाजे पर खडी होकर बाते नहीं करना चाहिएं।

अंदर से बोलने वाली डिंपल की मां सुरेखा घोष थी। मां की आवाज़ सुनकर डिंपल बोली... मां मेरे कॉलेज के दोस्त हैं कुछ काम था तो मिलने आया हैं। फिर अनुराग से बोली...आओ अनुराग अंदर चलकर बात करते हैं।

इतना कहकर डिंपल अन्दर को चल दिया। डिंपल के पीछे पीछे अनुराग भी चल दिया। दोनों जा पहुंचे बैठक में जहां सुरेखा बैठी थी। अनुराग को सुरेखा पहली बार देख रहीं थीं तो उनके मन में अनुराग के बारे में जानने की जिज्ञासा जागा इसलिए बोली...बेटा आप'का नाम क्या है, कहा रहते हों, किस काम से आए हों? आप'को पहले तो कभी नहीं देखा।

इतने सारे सवाल एक साथ सुनकर अनुराग मन में बोला... कहा फस गया यार इतने सारे सवाल एक साथ साला आना ही नहीं चाहिए था फोन पर ही बात कर लेना चाहिए था।

अनुराग को कुछ बोलता न देखकर डिंपल बोली...मां ये अनुराग है। हम एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं। कुछ काम था इसलिए मैंने ही घर पर बुला लिया।

डिंपल के कथन की पुष्टि करते हुए अनुराग बोला...हां आंटी मैंने फोन किया था तो डिंपल ने कहा घर आ जाओ इसलिए मैं आ गया।

सुरेखा ठहरी सरल स्वभाव की महिला जो बेटी ने बोला मान लिया फिर बोली... ठीक हैं तुम दोनों बात करों मैं चाय नाश्ता लेकर आती हूं।

अनुराग...आंटी रहने दीजिए बाद में फिर कभी पी लूंगा।

सुरेखा कुछ बोलती उससे पहले डिंपल बोली…ऐसा नहीं होगा पहली बार मेरे घर आए हों चाय तो पीना पड़ेगा। फिर सुरेखा से बोली... मां आप इसकी एक न सुनना आप जाओ चाय लेकर आओ।

सुरेखा...हां हां सभी काम मां से ही करवाएगी ये नहीं की दोस्त घर आया है खुद ही जाकर ले आऊं।

इतना बोलकर सुरेखा कीचन की और चली गई। मां के जाते ही डिंपल बोली... अब बताओं बात क्या है? जो बिना सूचना दिए सीधा आ धमके।

अनुराग धीमी आवाज़ में बोला... भाभी बहुत जरुरी बात करना हैं यहां नहीं बोल सकता कही ओर चले आंटी ने सुन लिया तो कोई बखेड़ा खडा न कर दे।

डिंपल…ऐसा है तो चलो छत पर चलकर बात करते हैं। फिर सुरेखा से बोली... मां हम छत पर जा रहे हैं चाय बन जाए तो आवाज दे देना।

इतना बोलकर दोनों छत पर चल दिये। वहा पहुंचते ही डिंपल बोली...अब बोलो बात क्या हैं?

अनुराग...अपश्यु कह रहा था तुम उसका कॉल रिसीव नहीं कर रहे हों ऐसा क्यों?

डिंपल...क्यों रिसीव करू? कलकत्ता से कब का आया हुआ है पर एक बार भी मिलने नहीं आया खुद फ़ोन करके बुलाया फिर भी नहीं आया तो तुम ही बताओं मैं फोन क्यों रिसीव करूं।

अनुराग...एक बार बात तो कर लेती अपश्यु क्या कह रहा हैं सुन तो लेती। काल वो खुद आना चाहता था लेकिन उसके बड़े पापा अपश्यु को किसी काम से अपने साथ ले गया था। इसलिए नहीं आ पाया। आज सुबह तुम्हारे यहां भी आया था लेकिन तुम घर से बहार नहीं निकली तब घर जाकर मुझे फोन किया।

डिंपल...Oooo ऐसा क्या? तो तुम अपने दोस्त की पैरावी करने आए हों। मैंने देखा था पुरा सड़क छाप रोमियों लग रहा था। यहीं छत पर खड़ी होकर उसे देख रहीं थीं।

अनुराग...kyaaa तुमने उसे देखा फ़िर भी उससे बात नहीं किया। वो विचारा बात करने के लिए कितना तड़प रहा हैं और तुम उसे तड़पा रहीं हों। मेरे दोस्त के साथ तुम ठीक नहीं कर रहीं हों।

डिंपल...मेरा भी मन करता हैं मैं उससे बात करूं फिर भी जान बूझकर उसे तड़पा रहीं हूं साथ ही खुद भी तड़प रहीं हूं। सिर्फ इसलिए की मुझे जानना हैं अपश्यु मुझ'से कितना प्यार करता हैं। आज जब उसे रोमियो की तरह इधर उधर चक्कर कटते हुए देखा तब लग रहा था शायद अपश्यु भी मुझ'से प्यार करने लगा हैं फिर भी मुझे एक डर खाए जा रहा है….।

डिंपल को बीच में रोककर अनुराग बोला... डर कैसा डर जब तुम्हें दिख रहा है अपश्यु भी तुम'से प्यार करने लगा हैं तो तुम्हें डरना नहीं चाहिए।

डिंपल... तुम न पूरा का पूरा डफर हों जानते सब हों फिर भी अंजान बन रहे हों। मुझे बस इस बात का डर हैं कहीं मैं आगे बढ़ गई फिर अपश्यु ने कह दिया मैं तो सिर्फ तुम्हारे साथ टाईम पास कर रहा था। तब मैं क्या करुंगी?

अनुराग...अजीब धर्मसंकट में फस गया हूं। क्या कहूं क्या करु कुछ समझ ही नहीं आ रहा हैं? एक की जिंदगी सवरने के लिए दूसरे से हेल्प मांगा जिससे हेल्प मांगा वो हेल्प करते करते ख़ुद उसके प्यार में पड़ गई। अब तो ऐसा लग रहा हैं मुझे तुम'से हेल्प मांगना ही नहीं चाहिए था। मेरे ही कारण कहीं तुम्हारी लाईफ अस्त व्यस्त न हों जाएं। ऐसा हुआ तो मैं खुद को माफ़ नहीं कर पाऊंगा।

डिंपल...इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं हैं। तुम तो दोस्ती का फर्ज निभा रहें हों। तुम जैसा दोस्त बहुत क़िस्मत वाले को मिलता हैं। रहीं बात प्यार की तो प्यार किया नहीं जाता हों जाता हैं तो मुझे भी अपश्यु से प्यार हो गया।

अनुराग...हां जानता हूं प्यार किया नहीं जाता हों जाता हैं लेकिन तुम दोनों के प्यार की कोई मंजिल नज़र ही नहीं आ रहा हैं।

डिंपल...मेरी और अपश्यु का प्यार मंजिल तक पहुंचे इसलिए मैं ऐसा कर रहीं हूं बस तुम थोड़ा साथ देना।

अनुराग... मुझे साथ तो देना ही होगा। इन सब की वजह मैं ही हूं। मैं नहीं चाहता मेरे करण किसी की लाईफ बरबाद हों।

डिंपल...ईश्वर पर भरोसा रखो किसी की लाईफ बरबाद नहीं होगा। अब नीचे चलो नहीं तो मां कुछ ओर ना सोच बैठें, ओर एक बात का ध्यान रखना अपश्यु को मत बताना तुम मुझ'से मिलने आए थे।

अनुराग...चलो मुझे भी घर जाना है बहुत देर हों गया हैं। बस तुम मेरे दोस्त को कम तड़पना मैं उसे इतना तड़पते हुए नहीं देख सकता।

डिंपल...Ooo hooo दोस्त की तड़प दिख रहा हैं भाभी की नहीं अब चलो देवर जी।

इतना बोलकर डिंपल हंसते हुए निचे को चल दिया पीछे पीछे अनुराग भी चल दिया। सीढ़ी से नीचे उतरते ही उन्हें सुरेखा मिल गई। जो दोनों को बुलाने आ रहीं थीं। दोनों को देकर सुरेखा बोली... अच्छा हुआ जो तुम दोनों नीचे आ गए वरना खामाखा मुझे सीढियां चढ़ना पड़ता। चलो आओ चाय पी लो।

तीनों बैठकर चाय पिया फिर अनुराग घर को चल दिया।

शाम का समय हो रहा था महल में सुरभि, सुकन्या पुष्पा और कमला बैठक में बैठें एक दूसरे से मसखरी कर रहे थें। पुष्पा की आदत से सभी परिचत थे। अब कमला भी जानने लग गई उसकी एक मात्र ननद कितनी नटखट हैं। भाभी का मन उदास न रहें इसलिए तरह तरह की आठखेलिया कर भाभी को हंसा रही थी। कमला सभी से हांस बोल रहीं थी पर बार बार नजर दरवाजे की ओर जा रहीं थीं। जैसे उसे किसी का इंतेजार हों जिसके आने की आस में पलके बिछाए बैठी हैं पर उधर से कोई आ नहीं रहा था।

रघु की कार महल के चार दिवारी में प्रवेश किया। बहार हुए आहट से कमला उठकर दरवाजे की तरफ गई। दरवाजे से बहार देखी उसे रघु आता हुआ दिखा पति को देखकर कमला के लवों पर खिला सा मुस्कान आ गई। मुस्कुराते हुए कमला पीछे पलटकर कीचन की ओर चली गई।

रघु अंदर आकर बैठक में जाकर बैठ गया फ़िर बोला... मां कमला कहा हैं।

इतना सुनते ही पुष्पा की दिमाग में खुराफाती विचार आया। एक नटखट मुस्कान लवों पर लाकर किसी के बोलने से पहले पुष्पा बोली... भईया आप'को भाभी ने कुछ भी नहीं बताया बिना बताए ही मायके चली गई। Oooo कितना बूरा किया। भाभी ने जानें से पहले पति को बताना जरुरी भी नहीं समझा।

इतना बोलकर पुष्पा मां और चाची को इशारे से मुंह बन्द रखने को कहा तो सुरभि ने आंखें मोटी कर थप्पड दिखाया पर पुष्पा ने मां को ही इशारे से बोली आप'को तो बाद में देखूंगी।

पुष्पा के मस्करी वाले लहजे में बोली बातों को रघु समझ नही पाया। अचंभा जताते हुए रघु बोला…kyaaa तभी बहला फुसला कर सुबह कमला ने मुझे ऑफ़िस भेजा। कमला ने बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया।

रघु की बाते सूनकर मां चाची और बहन को जोरो की हंसी आया पर किसी तरह खुद को हंसने से रोक लिया। किंतु रघु खुद को नहीं रोक पाया तुरन्त उठकर खडा हुआ फिर दरवाजे की ओर चल दिया। रघु को बाहर जाते देखकर सुरभि बोली...अभी तो ऑफिस से आया फ़िर कहा चल दिया।

रघु... मां कमला को लेने कलकत्ता जा रहा हूं।

इतना बोलकर रघु सरपट दरवाजे की ओर चल दिया ओर सुरभि बोली... रघु रूक तो बहू कहीं नहीं गई है घर पर ही हैं। फिर पुष्पा से बोली... क्या जरूरत थीं ऐसा बोलने की जा जाकर रघु को रोक नहीं तो सच में कलकत्ता चला जाएगा।

पुष्पा... जाती हूं ही ही ही...।

इतना बोलकर पुष्पा रघु को रोकने चल दिया। इधर कमला एक प्लेट में पानी का गिलास लिए कीचन से बहार निकली ही थी कि रघु बहार की ओर जाता हुआ दिखा। तो कमला थोड़ा तेज आवाज़ में बोली... ऑफिस से आते ही फिर कहा चल दिए।

कमला की आवाज़ सुनकर रघु रूक गया फिर पलटकर आवाज आई दिशा की तरफ देखा कमला को देखते ही रघु को एक झटका जैसा लगा उससे उभरकर बोला...कमला तुम तो यहां हों फ़िर पुष्पा क्यों बोली की तुम कलकत्ता चली गई हों।

रघु के बोलते ही कमला मुस्कुरा दिया फ़िर बोली...लगता हैं ननद रानी ने आप'की फिरकी लिया हैं। मैं कलकत्ता गई होती तो आप'के सामने खडी न होती और चली भी जाती तो आप'को बता कर ही जाती।

उधर से पुष्पा भी खिलखिलाते हुए वहा पहुंच गई ओर बोली... बुद्धू भईया! मेरे बोलते ही उठकर भाग आए कम से कम इतना तो सोच लेते भाभी आप'को बिना बताए कलकत्ता क्यों जाएगी।

इतना बोलकर पुष्पा खिलखिलाकर हंस दिया। रघु समझ गया उसका पोपट बन गया। तो झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोला... पुष्पा तूने ठीक नहीं किया तूझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।

पुष्पा...मैं कुछ भी कर सकती हूं आप'की इकलौती बहन जो हूं पर आप'को तो समझना चाहिए था बुद्धू भईया।

रघु आगे कुछ नहीं बोला बस बहन को खुश देखकर खुद भी खुश हों लिया। कमला पानी का गिलास लेकर पास आई। पुष्पा झट से पानी का गिलास उठा लिया ओर एक घुट में पी गई फिर बोली...अच्छा किया भाभी जो आप पानी ले आई बड़ी जोरो की प्यास लगीं थीं। ऐसे ही ननद और महल की महारानी का ख्याल रखना ही ही ही...।

कमला आगे कुछ बोली नहीं बस मुस्कुरा कर रह गई और पलटकर पानी लेने कीचन को चली गई। पुष्पा रघु को बैठक में जानें को कहाकर खुद भी कीचन की तरफ चल दिया। कीचन पहुचकर पुष्पा बोली...भाभी आप'को बूरा तो नहीं लगा आप पानी भईया के लिए लेकर गई थी और पी मैं गई।

कमला...मैं भला क्यू बुरा मानने लगीं। तुम मेरी एकलौती ननद कम बहन ज्यादा हों। इसलिए बहन की बातों का बूरा नहीं माना जाता।

पुष्पा…देखो भाभी मुझे खुली छूट दे रही हों। अब तक आप जान ही गए होंगे मैं कैसी हूं। कहीं ऐसा न हों आप परेशान होकर बोलो….।

पुष्पा की बातों को बीच में काटकर कमला बोली...यहीं न की मेरी ननद रानी बहुत नटखट है। तुम एक बात भुल रही हों तुम्हारे इसी नटखटपन की वजह से सभी का मन लगा रहता हैं। उन्हीं में से मैं भी एक हूं। समझे ननद रानी जी।

पुष्पा...अब चलो ज्यादा बाते न बनाओ वहा भईया का गला प्यास के मरे सुख रहा हैं आप यहां बातों में मझी हुई हों। पति का जरा सा भी ध्यान नहीं रखती कैसी बीबी हों ही ही ही...।

इतना बोलकर पुष्पा खिलखिलाकर हंस दिया कमला प्यार से एक चपत पुष्पा के सिर पर मारी तो पुष्पा झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली...umhhhh आप महारानी को मार रही हूं। Theekkkk haiiii आप मर सकती हों।

इतना बोलकर पुष्पा फिर से खिलखिलाकर हंस दिया पुष्पा के देखा देखी कमला भी खिलखिलाकर हंस दिया फिर पानी लेकर दोनों ननद भाभी बैठक की तरफ चल दिए।


आज के लिए इतना ही यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।
🙏🙏🙏🙏
 
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Ab jaise bhi ho sukriya aapka yahan aapki jarurat hai :hug:
Jarurat.... Kisko kiski hai ye kahna muskil hai. Kyuki bina froum aur readers ke writer ki koyi pahchan nehi. Vaise hi bina writers aur readers ke froum nehi chal payega. Islye froum, writers aur readers teeno ek dusre ke purak hai. Isliye kisi ek ko thank you kahna mere najar me shobha nehi deta. Thank you ke hakdar sabhi hai.
 

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