Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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Fabulous update dear. jo halat hai apashyu ki use is waqt kisiki madad ki jarurat hai. Varna usko panic attacks bhi a sakte hai. bato ko jitna apne andr samet kar dabane ki kosis karega utna hi khatarnak hoga uske health ke liye.
Mahesh ji manorama ji , shalu aur chanchal ye charo darjeeling a rahe hai . par rajendr ji surprise dena chahte hai apni bahu ko. kamla ke liye ye surprise sabse khubsurat toufa hoga.

अपश्यु की हालत गंभीर होता जा रहा हैं। लेकिन उसके इस हालत का जिम्मेदार वो खुद ही हैं।

बहुत बहुत शुक्रिया ऐसे ही साथ बने रहिएगा
 
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Update - 45



अचानक अपश्यु के सिर में दर्द होने लगा दर्द जितना तेज होता जाता उतना ही अपश्यु के बर्दास्त की सीमा पर करता जा रहा था। दो चार बार चीख भी निकल गया पर कोई सुनने वाला पास न था। अंतः किसी तरह खुद को संभालकर बेड के सिराने वाली दराज को खोला फ़िर उसमे से दवाई निकलकर खाया दवाई खाने के कुछ देर बाद दवाई के असर से सो गया।

उधर डिंपल फोन रखने के बाद रूम में इधर से उधर टहल रहीं थीं। कभी मुस्कुरा देती तो कभी खुद पर ही गुस्सा करने लगती। कुछ देर टहलने के बाद डिम्पल ने एक फोन किया पर फ़ोन किसी ने रिसीव नहीं किया। एक बार दो बार तीन बार एक के बाद एक कई बार कॉल किया पर कॉल रिसीव नहीं हुआ तो गुस्से में रिसीवर को पटक दिया फ़िर बेड पर जाकर बैठ गईं और बोला...क्या जरूरत थी इतनी जिद्द करने की जब कह रहा था मैं बाद में बता दुंगा पर नही मुझे अभी के अभी जानना था। अब देखो किया हुआ अपश्यु मुझसे रूठ गया। पर ऐसी क्या बात है जिसे बताने में अपश्यु आनाकानी कर रहा था। क्या इसके बारे मे अनुराग जनता हैं? पूछना पड़ेगा उससे पहले अपश्यु को मनाना पड़ेगा।

इतना बोलकर डिंपल फ़िर से फ़ोन करने लगी पर नतीजा कुछ हाथ न लगा। हताश निराश होकर खुद को गाली देने लगीं। जो मन में आया वो गली खुद के दिया फ़िर भी शांति नहीं मिली तो दुबारा फोन करने जा ही रही थी की उसके रूम का दरवाजा खटखटाया गया। डिंपल कॉल करने की मनसा को परे रख, जाकर दरवाजा खोला। दरवाजे पर डिंपल की मां सुरेखा थी। दरवाजा खुलते ही तुरंत बोली... ये किया डिंपल तू अभी तक तैयार नहीं हुई। जल्दी तैयार हों ले हमे देर हों रहीं हैं।

डिंपल...मां मेरा मान नहीं हैं आप चली जाओ !

सुरेखा... कल ही तो हां कहा था। अब क्या हों गया जो तेरा मन बादल गया। ज्यादा बहाने न कर जल्दी से तैयार होकर बाहर आ।

डिंपल…कुछ नहीं हैं बस जानें का मेरा मन नहीं हों रहा। एक दो दिन की बात होती तो चली जाती पर आप चार पांच दिन के लिए लेकर जा रहे हैं। इसलिए माना कर रहीं हूं।

सुरेखा…किसी दोस्त के साथ जाना होता तो पल भार में तैयार होकर चल पड़ती चाहें महीने भार का टूर क्यों न होता। चार पांच दिन के लिए मां के साथ जानें में तूझे दिक्कत हों रही हैं। होगा भी क्यों नहीं मां से ज्यादा दोस्तों से प्यार जो हैं।

डिंपल…मां इमोशनल ब्लैकमेल करना छोड़ो और ये बताओं मैं कब आप'के साथ नहीं गई। जब भी जहां भी आप लेकर गई हों वहां मैं आप'के साथ गई हूं। बस इस बार जानें का मन नहीं कर रहा हैं।

सुरेखा...बूढ़ी मां के साथ जानें में तूझे शर्म आती है इसलिए हर बार ऐसे ही बहाना करने के बाद ही जानें को तैयार होती हैं। आज भी वैसा ही कर रहीं हैं।

डिंपल…मां जितना आप कह रहीं हों इतना बहना तो नहीं करती हूं हां थोड़ा आनाकानी जरूर करती हुं।

सुरेखा...जा फिर जल्दी से तैयार होकर आ।

डिंपल... ठीक हैं जा रहीं हूं।

इतना कहकर डिंपल तैयार होने लग गईं। तैयार होने के बाद डिंपल एक बार फिर से अपश्यु को फ़ोन लगाया पर किसी ने कॉल रिसीव नही किया तो एक के बाद एक कई बार ट्राई किया पर नतीजा कॉल रिसीव नहीं किया गया। अंत में निराश होकर कॉल करना बंद किया फ़िर बोला... पहले मैं छोटी सी बात का बतंगड़ बना दिया अब अपश्यु भी वोही पैंतरा अपना रहा हैं। मेरा ही किया लौटकर मुझे वापस मिल रही हैं। क्या करूं फ़ोन रिसीव कर लेता तो कम से कम बता तो देती कि मैं मां के साथ मौसी के घर जा रहीं हूं। अपश्यु तो फ़ोन रिसीव नहीं कर रहा हैं। अनुराग को कॉल करती हूं।

डिंपल ने दुबारा कॉल किया इस बार कॉल किसी ने रिसीव किया। कॉल रिसीव होते ही डिंपल बोला... हैलो अनुराग!

"जी आप कौन बोल रहे हों। अनुराग साहब तो घर पर नहीं हैं।"

डिंपल... जी मैं डिंपल बोल रही हूं। अनुराग से कुछ काम था पर वो घर पर नहीं है तो मैं रखती हूं।

इतना बोलकर डिंपल रिसीबर रख दिया। डिंपल आने में देर लगा रहीं थीं इसलिए सुरेखा ने डिंपल को आवाज दिया। मां के बुलाने से डिंपल जल्दी से रूम से बहार आया और मां के पास पहुंचा फ़िर उनके साथ चल दिया।

डिंपल कहा गई क्यों गई इस की जानकारी अपश्यु तक नहीं पूछा वो तो दवा के असर से मस्त सोता रहा। दोपहर के खाने पर उसे आवाज दिया तब कहीं जाकर उठा, उठाकर हाथ मुंह धोया फ़िर सभी के साथ खान खाकर फिर से रूम में जाकर खुद को बंद कर लिया।

यूं ही एक एक पल बीतता गया दिन ढाला शाम हुआ शाम से रात हुआ। रात्रि भोजन के समय सभी एक साथ भोजन में मिले भोजन करने के बाद सभी अपने अपने रूम में चले गए।

रात बिता सुबह सभी ने नाश्ता किया। नाश्ते के बाद रावण ऑफिस जानें के लिए रूम में गया तो सुकन्या भी जल्दी से रावण के पीछे पीछे रूम में पहूंच गईं और दरवाजा बंद कर दिया। सुकन्या को दरवाजा बंद करते देख रावण मुस्कुरा दिया फिर बोला...सुकन्या मुझसे बात करने में आनाकानी करती हों लेकिन आज तुम्हारा इरादा किया हैं जो सुबह सुबह रूम का दरवाजा बन्द कर रहीं हों।

सुकन्या…मेरा इरादा नेक हैं पर आप'के इरादे में मुझे खोट नजर आ रही हैं।

रावण…khotttt दरवाजा तुम बंद कर रहीं हों और खोट मुझमें नजर आ रहा हैं। मुझे तो लग रहा हैं तुम्हारे मन में कुछ ओर चल रहा हैं दिखाना कुछ और चाहती हों।

सुकन्या...सही कहा अपने पर आप'का ये कथन मुझपर नहीं आप पर साठीक बैठता हैं। पल पल रंग आप बदलते हों। आप'के मन में कुछ होता हैं। चेहरे से कुछ ओर दर्शाते हों।

रावण...सुकन्या ये दुनिया बहुत ज़ालिम हैं। यहां अपना वर्चशप कायम करना हैं तो पल पल रंग बदलना पड़ता हैं। तुम्हे आगर लगता हैं की मैं पल पल रंग बदलता हूं। तो सुनो हा मैं रंग बदलता हूं क्यूंकि दुनिया में मुझे अपना वर्चशप कायम करना हैं।

सुकन्या... माना की दुनिया जालिम हैं और रहेंगे। दुनियां वालो ने आप पर जुल्म नहीं ढाया बल्कि आप खुद निरीह लोगों पर जुल्म ढाया किस लिए सिर्फ इसलिए आप'को अपना वर्चशप कायम करना हैं। वर्चशप कायम करने की राह पर चलते चलते आप अपना नाम रुतबा सब खोते जा रहे हों। एक ही परिवार के दो भाईयों पर लोगों की अलग अलग राय हैं देखने का नजरिया अलग अलग हैं। एक से बेशुमार प्यार इज्जत और स्नेह करते हैं। वहीं दूसरे भाई से सिर्फ घृणा करते हैं।

रावण...लोगों के नजरिए का क्या वो तो वक्त के साथ बदलता रहता हैं। जो आज घृणा कर रहे हैं। कल को यही लोग अपना नजरिया बादल लेंगे मान सम्मान देंगे प्यार और स्नेह करेगें।

सुकन्या...उन्हीं लोगों में आप भी हों। आप अपना नजरिया बदल क्यों नहीं लेते। सिर्फ आप'के कारण लोग आप'के साथ साथ हमारे बेटे अपश्यु से भी घृणा करते हैं।

रावण... मुझसे या मेरे बेटे से कोई घृणा नहीं करता हैं। हा वो सभी डरते हैं। उनके डर को घृणा का रूप नहीं दिया जा सकता।

सुकन्या…आप अपने आंखो पर पट्टी बांध कर चलते है इसलिए आप'को लोगों की नजरों में अपने और अपश्यु के लिए घृणा नहीं डर दिखता हैं। शायद लोगों की नज़रों में आपको घृणा दिखता होगा पर आप देखना नही चाहते लेकिन मैंने देखा हैं। लोगों की नज़रों में जितना प्यार रघु और जेठ जी के लिए है। उससे कहीं ज्यादा घृणा आप'के और अपश्यु के लिए हैं।

सुकन्या के इस कथन के बाद रावण निरूत्तर हों गया उसके पास कहने को कुछ था नहीं क्या कहता आज सुकन्या ने वो कह दिया जो सच हैं जिसका प्रमाण रावण को पल पल मिलता रहता हैं। उसने खुद ही देखा था लोग कितनी घृणा उससे करता हैं। लोग रावण से घृणा करता है इसका इल्म रावण को था पर रावण ये नहीं जनता था की उसके साथ साथ लोग अपश्यु से भी घृणा करते हैं।

अपश्यु से घृणा लोग अपश्यु के कर्मो के कारण करते हैं। सुकन्या की बात सुनकर रावण सोचने लगा कि उसके कर्मो के कारण लोग उसके एकमात्र बेटे अपश्यु से घृणा करने लगें हैं। रावण चुप रहा पति को चुप देखकर सुकन्या बोली... आप इतना क्यों सोच रहे हैं। आप'को इतना सोचने की जरूरत नहीं हैं। क्योंकि आप'को अपना वर्चशप कायम करना हैं। करिए जितना वर्चशप कायम करना हैं करिए पर इतना जरूर सोचिएगा आप अपने बेटे के लिए विरासत में क्या छोड़कर जाएंगे लोगों की घृणा या फ़िर प्यार। और हा एक बात ओर मुझे ख़ुशी है की आप रघु के शादी की रिसेप्शन का जिम्मा अपने कंधे पर लिया हैं। मैं बस इतना चाहूंगा की बिना किसी साजिश के रिसेप्शन को अच्छे से संपन्न होने देना। आगर अपने कोई साजिश किया तो जीवन भार आप मुझसे बात करने को तराश जाएंगे सिर्फ बात ही नहीं मेरा चेहरा देखने को भी तराश जायेंगे।

इतना कह कर सुकन्या दनदनाते हुए दरवाजे तक गई। सुकन्या को जाते देख रावण बोला…सुकन्या मेरी बात तो सुनो तुम्हें जो कहना था कह दिया कम से कम मेरी बाते तो सुनती जाओ।

सुकन्या दरवाजा खोल चुकी थीं। रूम से बाहर पहला कदम रखा ही था कि रावण की बाते सुनकर रूक गई और पलट कर बोली... अब तक अपने जो कहा उसे सुनकर मैं आप'की मनसा समझ गई। फिर भी आप कुछ कहना चाहते हों तो अभी आप'को कुछ कहने की जरूरत नहीं हैं जरूरत है तो बस करने कि अच्छे मन से बिना कोई साज़िश किए रिसेप्शन को संपन्न कीजिए उसके बाद आप जितना कहना चाहें कह लेना मैं सुन लूंगी।

इतना कह कर सुकन्या बाहर चली गई। रावण सिर्फ सुकन्या को जाते हुए देखता रहा गया। सुकन्या के जाने के बाद रावण बोला…सुकन्या तुम मुझे समझाने की कोशिश ही नहीं कर रहीं हों मुझे समझ पाती तो कभी ऐसा नहीं कहते। मैं पहले से ही इतना उलझा हुआ हूं तुम मुझे ओर उलझा रही हैं। ऐसा न करों कम से कम मेरा साथ छोड़ने की बात तो न करो तुम मुझे छोड़कर चली गईं तो फिर मैं कुछ भी कर बैठूंगा। हे प्रभु मैं कैसे इन उलझनों से बाहर निकलूं कोई तो रस्ता दिखा।

सुकन्या सिर्फ रावण को दिखने के लिए रूम से बाहर गई थीं। असल में सुकन्या रूम से बाहर आकर छुपकर रावण को देख रही थीं। रावण की बाते सुनने के बाद सुकन्या बोली... अपने मेरे लिए ओर कोई रस्ता ही नहीं छोड़ा आप'को सुधरने के लिए मुझे आप'से दूर जाना पड़ेगा तो चाली जाऊंगी कहा जाऊंगी मुझे नहीं पता ।

इतना बोलते ही सुकन्या के आंखो से आंसू छलक आया। साड़ी के अंचल से बहते आंसू को पोछा फ़िर छुपकर रावण को देखने लगा रावण बहुत देर तक मन ही मन सोचता रहा जितना सोच रहा था उतना ही इसके हाव भाव बदलता जा रहा था। बरहाल रावण सोच को विराम देकर जैसे ही उठा रावण को उठता देखकर सुकन्या बिना कोई आहट किए खिसक लिया। रावण तैयार होकर अनमने मन से ऑफिस के लिए चल दिया।

इधर रघु नाश्ते के बाद वहीं बैठा रह एक एक कर सभी उठकर चले गए पर रघु बैठा रहा। रघु को बैठा देखकर कमला बोली... आप'को ऑफिस नहीं जाना।

रघु…जाना हैं

कमला...जाना है तो बैठें क्यों हों जाओ जाकर तैयार होकर ऑफिस जाओ।

रघु... जी मालकिन जी अभी जाता हूं। फ़िर धीर से बोला…अजीब बीबी मिला हैं। अभी अभी शादी हुआ है ये नहीं की पति के साथ थोड़ा वक्त बिताए पर नहीं जब देखो ऑफिस भेजने पर तुली रहती हैं।

कमला... धीरे धीर क्यों बुदबुदा रहे हो जो बोलना हैं स्पष्ट और थोड़ा तेज बोलिए ताकि मैं भी सुन पाऊं मेरा पति क्या कह रहा हैं।

रघु... मैं तो धीरे से ही बोलूंगा तुम्हें पति की बाते सुनना है तो सुनने की क्षमता बढ़ना होगा।

इतना कह कर रघु मुस्कुराते हुए रूम कि ओर चल दिया। कमला भी रघु के पीछे पीछे रूम की ओर चल दिया। जैसे ही कमला रूम में पहुंची रघु ने कमला को बाहों में भार लिया। छुटने की प्रयास करते हुए कमला बोली...क्या कर रहे हो कोई देख लेगा छोड़िए न।

रघु... छोड़ दुंगा लेकिन पहले तुम मुझे ये बताओं की तुम मुझे प्यार करती हों की नहीं।

कमला...ये कैसा सवाल हैं। चलो अपने पूछ ही लिया तो आप खुद ही बताइए आप'को किया लगाता है।

रघु...वाहा जी वाहा सवाल मैंने पूछा जवाब देने के जगह उल्टा सवाल पूछ लिया। ठीक हैं जब पूछ ही लिया तो सुनो मुझे लगाता हैं तुम मुझसे बिल्कुल भी प्यार नहीं करती हों।

इतना सुनते ही कमला झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली… छोड़िए मुझे आप'को लगाता है न मैं आप'से प्यार नहीं करती हूं तो ठीक है मै आज ही कलकत्ता चली जाऊंगी फिर कभी लौट कर नहीं आऊंगी।

रघु...आज जाने की बात कहा हैं फ़िर कभी नहीं कहना। तुम मुझे छोड़कर जाना भी चाहोगे तब भी मैं तुम्हें जानें नहीं दुंगा।

कमला...क्यों जानें नहीं देंगे जब आप'को लगाता है मैं आप'से प्यार नहीं करता तो फ़िर...।

कमला की बात बीच में काटकर रघु बोला... कमला मैंने बस इसलिए कहा जब भी मैं तुम्हारे साथ थोड़ा ज्यादा वक्त बिताना चाहता हू तब ही तुम मुझे खुद से दूर कर देती हों।

कमला हल्का सा मुस्कान चेहरे पर सजाकर रघु के गले में बांहों का हार डालकर बोला...एक दूसरे के साथ वक्त बिताने के लिए हमारे पास पुरी जिंदगी पड़ी हैं। समझें पति देव जी।

रघु...हां जनता हूं पर मैं तुम्हारे साथ वक्त बिताकर तुम्हें और अच्छे से जानना चाहता हू। इसलिए सोचा था। आज ऑफिस न जाकर तुम्हें कही घूमने ले जाऊंगा।

कमला... घूमने जानें के लिए ऑफिस से छुट्टी लेनी की जरूरत ही किया हैं। हम इतवार को घूमने जा सकते हैं। इसलिए आप अभी ऑफिस जाओ हम इतवार को घूमने चलेंगे।

रघु... तुम कहती हों तो ठीक हैं। चलो फिर एक kiss 😘 दो।

कमला रघु को आंखें में देखने लगीं तो रघु ने इशारे से फिर से kiss देने को बोला तो कमला ने रघु के माथे पर kiss कर दिया। तो रघु बोला... ये किया कमला मैं तुम्हें kiss होंठों पर देने को कहा तुम तो माथे पर kiss दिया।

कमला... अपने तो सिर्फ kiss देने को कहा था। ये थोड़ी न कहा कहां देना हैं।

रघु... अब तो कहा न चलो होंठों पर kiss दो।

कमला थोड़ा आनाकानी करने के बाद रघु के होंठों से अपने होंठों को जोड़ दिया। एक तरंग दोनों के जिस्म में जगा जिसने दोनो के जिस्म को झनझना दिया। कुछ वक्त तक दोनों एक दूसरे को kiss करते रहें फिर कमला ने पहल करते हुए खुद को रघु से अलग कर लिया और रघु को जल्दी से ऑफिस जानें को कहा। रघु कमला का कहना मानकर ऑफिस जानें के लिए तैयार होने लग गया। तैयार होने के बाद कमला ने रघु को ब्रीफकेस दिया और रघु ऑफिस को चला गया।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिय बहुत बहुत शुक्रिया।🙏🙏🙏
 
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अचानक अपश्यु के सिर में दर्द होने लगा दर्द जितना तेज होता जाता उतना ही अपश्यु के बर्दास्त की सीमा पर करता जा रहा था। दो चार बार चीख भी निकल गया पर कोई सुनने वाला पास न था। अंतः किसी तरह खुद को संभालकर बेड के सिराने वाली दराज को खोला फ़िर उसमे से दवाई निकलकर खाया दवाई खाने के कुछ देर बाद दवाई के असर से सो गया।

उधर डिंपल फोन रखने के बाद रूम में इधर से उधर टहल रहीं थीं। कभी मुस्कुरा देती तो कभी खुद पर ही गुस्सा करने लगती। कुछ देर टहलने के बाद डिम्पल ने एक फोन किया पर फ़ोन किसी ने रिसीव नहीं किया। एक बार दो बार तीन बार एक के बाद एक कई बार कॉल किया पर कॉल रिसीव नहीं हुआ तो गुस्से में रिसीवर को पटक दिया फ़िर बेड पर जाकर बैठ गईं और बोला...क्या जरूरत थी इतनी जिद्द करने की जब कह रहा था मैं बाद में बता दुंगा पर नही मुझे अभी के अभी जानना था। अब देखो किया हुआ अपश्यु मुझसे रूठ गया। पर ऐसी क्या बात है जिसे बताने में अपश्यु आनाकानी कर रहा था। क्या इसके बारे मे अनुराग जनता हैं? पूछना पड़ेगा उससे पहले अपश्यु को मनाना पड़ेगा।

इतना बोलकर डिंपल फ़िर से फ़ोन करने लगी पर नतीजा कुछ हाथ न लगा। हताश निराश होकर खुद को गाली देने लगीं। जो मन में आया वो गली खुद के दिया फ़िर भी शांति नहीं मिली तो दुबारा फोन करने जा ही रही थी की उसके रूम का दरवाजा खटखटाया गया। डिंपल कॉल करने की मनसा को परे रख, जाकर दरवाजा खोला। दरवाजे पर डिंपल की मां सुरेखा थी। दरवाजा खुलते ही तुरंत बोली... ये किया डिंपल तू अभी तक तैयार नहीं हुई। जल्दी तैयार हों ले हमे देर हों रहीं हैं।

डिंपल...मां मेरा मान नहीं हैं आप चली जाओ !

सुरेखा... कल ही तो हां कहा था। अब क्या हों गया जो तेरा मन बादल गया। ज्यादा बहाने न कर जल्दी से तैयार होकर बाहर आ।

डिंपल…कुछ नहीं हैं बस जानें का मेरा मन नहीं हों रहा। एक दो दिन की बात होती तो चली जाती पर आप चार पांच दिन के लिए लेकर जा रहे हैं। इसलिए माना कर रहीं हूं।

सुरेखा…किसी दोस्त के साथ जाना होता तो पल भार में तैयार होकर चल पड़ती चाहें महीने भार का टूर क्यों न होता। चार पांच दिन के लिए मां के साथ जानें में तूझे दिक्कत हों रही हैं। होगा भी क्यों नहीं मां से ज्यादा दोस्तों से प्यार जो हैं।

डिंपल…मां इमोशनल ब्लैकमेल करना छोड़ो और ये बताओं मैं कब आप'के साथ नहीं गई। जब भी जहां भी आप लेकर गई हों वहां मैं आप'के साथ गई हूं। बस इस बार जानें का मन नहीं कर रहा हैं।

सुरेखा...बूढ़ी मां के साथ जानें में तूझे शर्म आती है इसलिए हर बार ऐसे ही बहाना करने के बाद ही जानें को तैयार होती हैं। आज भी वैसा ही कर रहीं हैं।

डिंपल…मां जितना आप कह रहीं हों इतना बहना तो नहीं करती हूं हां थोड़ा आनाकानी जरूर करती हुं।

सुरेखा...जा फिर जल्दी से तैयार होकर आ।

डिंपल... ठीक हैं जा रहीं हूं।

इतना कहकर डिंपल तैयार होने लग गईं। तैयार होने के बाद डिंपल एक बार फिर से अपश्यु को फ़ोन लगाया पर किसी ने कॉल रिसीव नही किया तो एक के बाद एक कई बार ट्राई किया पर नतीजा कॉल रिसीव नहीं किया गया। अंत में निराश होकर कॉल करना बंद किया फ़िर बोला... पहले मैं छोटी सी बात का बतंगड़ बना दिया अब अपश्यु भी वोही पैंतरा अपना रहा हैं। मेरा ही किया लौटकर मुझे वापस मिल रही हैं। क्या करूं फ़ोन रिसीव कर लेता तो कम से कम बता तो देती कि मैं मां के साथ मौसी के घर जा रहीं हूं। अपश्यु तो फ़ोन रिसीव नहीं कर रहा हैं। अनुराग को कॉल करती हूं।

डिंपल ने दुबारा कॉल किया इस बार कॉल किसी ने रिसीव किया। कॉल रिसीव होते ही डिंपल बोला... हैलो अनुराग!

"जी आप कौन बोल रहे हों। अनुराग साहब तो घर पर नहीं हैं।"

डिंपल... जी मैं डिंपल बोल रही हूं। अनुराग से कुछ काम था पर वो घर पर नहीं है तो मैं रखती हूं।

इतना बोलकर डिंपल रिसीबर रख दिया। डिंपल आने में देर लगा रहीं थीं इसलिए सुरेखा ने डिंपल को आवाज दिया। मां के बुलाने से डिंपल जल्दी से रूम से बहार आया और मां के पास पहुंचा फ़िर उनके साथ चल दिया।

डिंपल कहा गई क्यों गई इस की जानकारी अपश्यु तक नहीं पूछा वो तो दवा के असर से मस्त सोता रहा। दोपहर के खाने पर उसे आवाज दिया तब कहीं जाकर उठा, उठाकर हाथ मुंह धोया फ़िर सभी के साथ खान खाकर फिर से रूम में जाकर खुद को बंद कर लिया।

यूं ही एक एक पल बीतता गया दिन ढाला शाम हुआ शाम से रात हुआ। रात्रि भोजन के समय सभी एक साथ भोजन में मिले भोजन करने के बाद सभी अपने अपने रूम में चले गए।

रात बिता सुबह सभी ने नाश्ता किया। नाश्ते के बाद रावण ऑफिस जानें के लिए रूम में गया तो सुकन्या भी जल्दी से रावण के पीछे पीछे रूम में पहूंच गईं और दरवाजा बंद कर दिया। सुकन्या को दरवाजा बंद करते देख रावण मुस्कुरा दिया फिर बोला...सुकन्या मुझसे बात करने में आनाकानी करती हों लेकिन आज तुम्हारा इरादा किया हैं जो सुबह सुबह रूम का दरवाजा बन्द कर रहीं हों।

सुकन्या…मेरा इरादा नेक हैं पर आप'के इरादे में मुझे खोट नजर आ रही हैं।

रावण…khotttt दरवाजा तुम बंद कर रहीं हों और खोट मुझमें नजर आ रहा हैं। मुझे तो लग रहा हैं तुम्हारे मन में कुछ ओर चल रहा हैं दिखाना कुछ और चाहती हों।

सुकन्या...सही कहा अपने पर आप'का ये कथन मुझपर नहीं आप पर साठीक बैठता हैं। पल पल रंग आप बदलते हों। आप'के मन में कुछ होता हैं। चेहरे से कुछ ओर दर्शाते हों।

रावण...सुकन्या ये दुनिया बहुत ज़ालिम हैं। यहां अपना वर्चशप कायम करना हैं तो पल पल रंग बदलना पड़ता हैं। तुम्हे आगर लगता हैं की मैं पल पल रंग बदलता हूं। तो सुनो हा मैं रंग बदलता हूं क्यूंकि दुनिया में मुझे अपना वर्चशप कायम करना हैं।

सुकन्या... माना की दुनिया जालिम हैं और रहेंगे। दुनियां वालो ने आप पर जुल्म नहीं ढाया बल्कि आप खुद निरीह लोगों पर जुल्म ढाया किस लिए सिर्फ इसलिए आप'को अपना वर्चशप कायम करना हैं। वर्चशप कायम करने की राह पर चलते चलते आप अपना नाम रुतबा सब खोते जा रहे हों। एक ही परिवार के दो भाईयों पर लोगों की अलग अलग राय हैं देखने का नजरिया अलग अलग हैं। एक से बेशुमार प्यार इज्जत और स्नेह करते हैं। वहीं दूसरे भाई से सिर्फ घृणा करते हैं।

रावण...लोगों के नजरिए का क्या वो तो वक्त के साथ बदलता रहता हैं। जो आज घृणा कर रहे हैं। कल को यही लोग अपना नजरिया बादल लेंगे मान सम्मान देंगे प्यार और स्नेह करेगें।

सुकन्या...उन्हीं लोगों में आप भी हों। आप अपना नजरिया बदल क्यों नहीं लेते। सिर्फ आप'के कारण लोग आप'के साथ साथ हमारे बेटे अपश्यु से भी घृणा करते हैं।

रावण... मुझसे या मेरे बेटे से कोई घृणा नहीं करता हैं। हा वो सभी डरते हैं। उनके डर को घृणा का रूप नहीं दिया जा सकता।

सुकन्या…आप अपने आंखो पर पट्टी बांध कर चलते है इसलिए आप'को लोगों की नजरों में अपने और अपश्यु के लिए घृणा नहीं डर दिखता हैं। शायद लोगों की नज़रों में आपको घृणा दिखता होगा पर आप देखना नही चाहते लेकिन मैंने देखा हैं। लोगों की नज़रों में जितना प्यार रघु और जेठ जी के लिए है। उससे कहीं ज्यादा घृणा आप'के और अपश्यु के लिए हैं।

सुकन्या के इस कथन के बाद रावण निरूत्तर हों गया उसके पास कहने को कुछ था नहीं क्या कहता आज सुकन्या ने वो कह दिया जो सच हैं जिसका प्रमाण रावण को पल पल मिलता रहता हैं। उसने खुद ही देखा था लोग कितनी घृणा उससे करता हैं। लोग रावण से घृणा करता है इसका इल्म रावण को था पर रावण ये नहीं जनता था की उसके साथ साथ लोग अपश्यु से भी घृणा करते हैं।

अपश्यु से घृणा लोग अपश्यु के कर्मो के कारण करते हैं। सुकन्या की बात सुनकर रावण सोचने लगा कि उसके कर्मो के कारण लोग उसके एकमात्र बेटे अपश्यु से घृणा करने लगें हैं। रावण चुप रहा पति को चुप देखकर सुकन्या बोली... आप इतना क्यों सोच रहे हैं। आप'को इतना सोचने की जरूरत नहीं हैं। क्योंकि आप'को अपना वर्चशप कायम करना हैं। करिए जितना वर्चशप कायम करना हैं करिए पर इतना जरूर सोचिएगा आप अपने बेटे के लिए विरासत में क्या छोड़कर जाएंगे लोगों की घृणा या फ़िर प्यार। और हा एक बात ओर मुझे ख़ुशी है की आप रघु के शादी की रिसेप्शन का जिम्मा अपने कंधे पर लिया हैं। मैं बस इतना चाहूंगा की बिना किसी साजिश के रिसेप्शन को अच्छे से संपन्न होने देना। आगर अपने कोई साजिश किया तो जीवन भार आप मुझसे बात करने को तराश जाएंगे सिर्फ बात ही नहीं मेरा चेहरा देखने को भी तराश जायेंगे।

इतना कह कर सुकन्या दनदनाते हुए दरवाजे तक गई। सुकन्या को जाते देख रावण बोला…सुकन्या मेरी बात तो सुनो तुम्हें जो कहना था कह दिया कम से कम मेरी बाते तो सुनती जाओ।

सुकन्या दरवाजा खोल चुकी थीं। रूम से बाहर पहला कदम रखा ही था कि रावण की बाते सुनकर रूक गई और पलट कर बोली... अब तक अपने जो कहा उसे सुनकर मैं आप'की मनसा समझ गई। फिर भी आप कुछ कहना चाहते हों तो अभी आप'को कुछ कहने की जरूरत नहीं हैं जरूरत है तो बस करने कि अच्छे मन से बिना कोई साज़िश किए रिसेप्शन को संपन्न कीजिए उसके बाद आप जितना कहना चाहें कह लेना मैं सुन लूंगी।

इतना कह कर सुकन्या बाहर चली गई। रावण सिर्फ सुकन्या को जाते हुए देखता रहा गया। सुकन्या के जाने के बाद रावण बोला…सुकन्या तुम मुझे समझाने की कोशिश ही नहीं कर रहीं हों मुझे समझ पाती तो कभी ऐसा नहीं कहते। मैं पहले से ही इतना उलझा हुआ हूं तुम मुझे ओर उलझा रही हैं। ऐसा न करों कम से कम मेरा साथ छोड़ने की बात तो न करो तुम मुझे छोड़कर चली गईं तो फिर मैं कुछ भी कर बैठूंगा। हे प्रभु मैं कैसे इन उलझनों से बाहर निकलूं कोई तो रस्ता दिखा।

सुकन्या सिर्फ रावण को दिखने के लिए रूम से बाहर गई थीं। असल में सुकन्या रूम से बाहर आकर छुपकर रावण को देख रही थीं। रावण की बाते सुनने के बाद सुकन्या बोली... अपने मेरे लिए ओर कोई रस्ता ही नहीं छोड़ा आप'को सुधरने के लिए मुझे आप'से दूर जाना पड़ेगा तो चाली जाऊंगी कहा जाऊंगी मुझे नहीं पता ।

इतना बोलते ही सुकन्या के आंखो से आंसू छलक आया। साड़ी के अंचल से बहते आंसू को पोछा फ़िर छुपकर रावण को देखने लगा रावण बहुत देर तक मन ही मन सोचता रहा जितना सोच रहा था उतना ही इसके हाव भाव बदलता जा रहा था। बरहाल रावण सोच को विराम देकर जैसे ही उठा रावण को उठता देखकर सुकन्या बिना कोई आहट किए खिसक लिया। रावण तैयार होकर अनमने मन से ऑफिस के लिए चल दिया।

इधर रघु नाश्ते के बाद वहीं बैठा रह एक एक कर सभी उठकर चले गए पर रघु बैठा रहा। रघु को बैठा देखकर कमला बोली... आप'को ऑफिस नहीं जाना।

रघु…जाना हैं

कमला...जाना है तो बैठें क्यों हों जाओ जाकर तैयार होकर ऑफिस जाओ।

रघु... जी मालकिन जी अभी जाता हूं। फ़िर धीर से बोला…अजीब बीबी मिला हैं। अभी अभी शादी हुआ है ये नहीं की पति के साथ थोड़ा वक्त बिताए पर नहीं जब देखो ऑफिस भेजने पर तुली रहती हैं।

कमला... धीरे धीर क्यों बुदबुदा रहे हो जो बोलना हैं स्पष्ट और थोड़ा तेज बोलिए ताकि मैं भी सुन पाऊं मेरा पति क्या कह रहा हैं।

रघु... मैं तो धीरे से ही बोलूंगा तुम्हें पति की बाते सुनना है तो सुनने की क्षमता बढ़ना होगा।

इतना कह कर रघु मुस्कुराते हुए रूम कि ओर चल दिया। कमला भी रघु के पीछे पीछे रूम की ओर चल दिया। जैसे ही कमला रूम में पहुंची रघु ने कमला को बाहों में भार लिया। छुटने की प्रयास करते हुए कमला बोली...क्या कर रहे हो कोई देख लेगा छोड़िए न।

रघु... छोड़ दुंगा लेकिन पहले तुम मुझे ये बताओं की तुम मुझे प्यार करती हों की नहीं।

कमला...ये कैसा सवाल हैं। चलो अपने पूछ ही लिया तो आप खुद ही बताइए आप'को किया लगाता है।

रघु...वाहा जी वाहा सवाल मैंने पूछा जवाब देने के जगह उल्टा सवाल पूछ लिया। ठीक हैं जब पूछ ही लिया तो सुनो मुझे लगाता हैं तुम मुझसे बिल्कुल भी प्यार नहीं करती हों।

इतना सुनते ही कमला झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली… छोड़िए मुझे आप'को लगाता है न मैं आप'से प्यार नहीं करती हूं तो ठीक है मै आज ही कलकत्ता चली जाऊंगी फिर कभी लौट कर नहीं आऊंगी।

रघु...आज जाने की बात कहा हैं फ़िर कभी नहीं कहना। तुम मुझे छोड़कर जाना भी चाहोगे तब भी मैं तुम्हें जानें नहीं दुंगा।

कमला...क्यों जानें नहीं देंगे जब आप'को लगाता है मैं आप'से प्यार नहीं करता तो फ़िर...।

कमला की बात बीच में काटकर रघु बोला... कमला मैंने बस इसलिए कहा जब भी मैं तुम्हारे साथ थोड़ा ज्यादा वक्त बिताना चाहता हू तब ही तुम मुझे खुद से दूर कर देती हों।

कमला हल्का सा मुस्कान चेहरे पर सजाकर रघु के गले में बांहों का हार डालकर बोला...एक दूसरे के साथ वक्त बिताने के लिए हमारे पास पुरी जिंदगी पड़ी हैं। समझें पति देव जी।

रघु...हां जनता हूं पर मैं तुम्हारे साथ वक्त बिताकर तुम्हें और अच्छे से जानना चाहता हू। इसलिए सोचा था। आज ऑफिस न जाकर तुम्हें कही घूमने ले जाऊंगा।

कमला... घूमने जानें के लिए ऑफिस से छुट्टी लेनी की जरूरत ही किया हैं। हम इतवार को घूमने जा सकते हैं। इसलिए आप अभी ऑफिस जाओ हम इतवार को घूमने चलेंगे।

रघु... तुम कहती हों तो ठीक हैं। चलो फिर एक kiss 😘 दो।

कमला रघु को आंखें में देखने लगीं तो रघु ने इशारे से फिर से kiss देने को बोला तो कमला ने रघु के माथे पर kiss कर दिया। तो रघु बोला... ये किया कमला मैं तुम्हें kiss होंठों पर देने को कहा तुम तो माथे पर kiss दिया।

कमला... अपने तो सिर्फ kiss देने को कहा था। ये थोड़ी न कहा कहां देना हैं।

रघु... अब तो कहा न चलो होंठों पर kiss दो।

कमला थोड़ा आनाकानी करने के बाद रघु के होंठों से अपने होंठों को जोड़ दिया। एक तरंग दोनों के जिस्म में जगा जिसने दोनो के जिस्म को झनझना दिया। कुछ वक्त तक दोनों एक दूसरे को kiss करते रहें फिर कमला ने पहल करते हुए खुद को रघु से अलग कर लिया और रघु को जल्दी से ऑफिस जानें को कहा। रघु कमला का कहना मानकर ऑफिस जानें के लिए तैयार होने लग गया। तैयार होने के बाद कमला ने रघु को ब्रीफकेस दिया और रघु ऑफिस को चला गया।



आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिय बहुत बहुत शुक्रिया।🙏🙏🙏
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अचानक अपश्यु के सिर में दर्द होने लगा दर्द जितना तेज होता जाता उतना ही अपश्यु के बर्दास्त की सीमा पर करता जा रहा था। दो चार बार चीख भी निकल गया पर कोई सुनने वाला पास न था। अंतः किसी तरह खुद को संभालकर बेड के सिराने वाली दराज को खोला फ़िर उसमे से दवाई निकलकर खाया दवाई खाने के कुछ देर बाद दवाई के असर से सो गया।

उधर डिंपल फोन रखने के बाद रूम में इधर से उधर टहल रहीं थीं। कभी मुस्कुरा देती तो कभी खुद पर ही गुस्सा करने लगती। कुछ देर टहलने के बाद डिम्पल ने एक फोन किया पर फ़ोन किसी ने रिसीव नहीं किया। एक बार दो बार तीन बार एक के बाद एक कई बार कॉल किया पर कॉल रिसीव नहीं हुआ तो गुस्से में रिसीवर को पटक दिया फ़िर बेड पर जाकर बैठ गईं और बोला...क्या जरूरत थी इतनी जिद्द करने की जब कह रहा था मैं बाद में बता दुंगा पर नही मुझे अभी के अभी जानना था। अब देखो किया हुआ अपश्यु मुझसे रूठ गया। पर ऐसी क्या बात है जिसे बताने में अपश्यु आनाकानी कर रहा था। क्या इसके बारे मे अनुराग जनता हैं? पूछना पड़ेगा उससे पहले अपश्यु को मनाना पड़ेगा।

इतना बोलकर डिंपल फ़िर से फ़ोन करने लगी पर नतीजा कुछ हाथ न लगा। हताश निराश होकर खुद को गाली देने लगीं। जो मन में आया वो गली खुद के दिया फ़िर भी शांति नहीं मिली तो दुबारा फोन करने जा ही रही थी की उसके रूम का दरवाजा खटखटाया गया। डिंपल कॉल करने की मनसा को परे रख, जाकर दरवाजा खोला। दरवाजे पर डिंपल की मां सुरेखा थी। दरवाजा खुलते ही तुरंत बोली... ये किया डिंपल तू अभी तक तैयार नहीं हुई। जल्दी तैयार हों ले हमे देर हों रहीं हैं।

डिंपल...मां मेरा मान नहीं हैं आप चली जाओ !

सुरेखा... कल ही तो हां कहा था। अब क्या हों गया जो तेरा मन बादल गया। ज्यादा बहाने न कर जल्दी से तैयार होकर बाहर आ।

डिंपल…कुछ नहीं हैं बस जानें का मेरा मन नहीं हों रहा। एक दो दिन की बात होती तो चली जाती पर आप चार पांच दिन के लिए लेकर जा रहे हैं। इसलिए माना कर रहीं हूं।

सुरेखा…किसी दोस्त के साथ जाना होता तो पल भार में तैयार होकर चल पड़ती चाहें महीने भार का टूर क्यों न होता। चार पांच दिन के लिए मां के साथ जानें में तूझे दिक्कत हों रही हैं। होगा भी क्यों नहीं मां से ज्यादा दोस्तों से प्यार जो हैं।

डिंपल…मां इमोशनल ब्लैकमेल करना छोड़ो और ये बताओं मैं कब आप'के साथ नहीं गई। जब भी जहां भी आप लेकर गई हों वहां मैं आप'के साथ गई हूं। बस इस बार जानें का मन नहीं कर रहा हैं।

सुरेखा...बूढ़ी मां के साथ जानें में तूझे शर्म आती है इसलिए हर बार ऐसे ही बहाना करने के बाद ही जानें को तैयार होती हैं। आज भी वैसा ही कर रहीं हैं।

डिंपल…मां जितना आप कह रहीं हों इतना बहना तो नहीं करती हूं हां थोड़ा आनाकानी जरूर करती हुं।

सुरेखा...जा फिर जल्दी से तैयार होकर आ।

डिंपल... ठीक हैं जा रहीं हूं।

इतना कहकर डिंपल तैयार होने लग गईं। तैयार होने के बाद डिंपल एक बार फिर से अपश्यु को फ़ोन लगाया पर किसी ने कॉल रिसीव नही किया तो एक के बाद एक कई बार ट्राई किया पर नतीजा कॉल रिसीव नहीं किया गया। अंत में निराश होकर कॉल करना बंद किया फ़िर बोला... पहले मैं छोटी सी बात का बतंगड़ बना दिया अब अपश्यु भी वोही पैंतरा अपना रहा हैं। मेरा ही किया लौटकर मुझे वापस मिल रही हैं। क्या करूं फ़ोन रिसीव कर लेता तो कम से कम बता तो देती कि मैं मां के साथ मौसी के घर जा रहीं हूं। अपश्यु तो फ़ोन रिसीव नहीं कर रहा हैं। अनुराग को कॉल करती हूं।

डिंपल ने दुबारा कॉल किया इस बार कॉल किसी ने रिसीव किया। कॉल रिसीव होते ही डिंपल बोला... हैलो अनुराग!

"जी आप कौन बोल रहे हों। अनुराग साहब तो घर पर नहीं हैं।"

डिंपल... जी मैं डिंपल बोल रही हूं। अनुराग से कुछ काम था पर वो घर पर नहीं है तो मैं रखती हूं।

इतना बोलकर डिंपल रिसीबर रख दिया। डिंपल आने में देर लगा रहीं थीं इसलिए सुरेखा ने डिंपल को आवाज दिया। मां के बुलाने से डिंपल जल्दी से रूम से बहार आया और मां के पास पहुंचा फ़िर उनके साथ चल दिया।

डिंपल कहा गई क्यों गई इस की जानकारी अपश्यु तक नहीं पूछा वो तो दवा के असर से मस्त सोता रहा। दोपहर के खाने पर उसे आवाज दिया तब कहीं जाकर उठा, उठाकर हाथ मुंह धोया फ़िर सभी के साथ खान खाकर फिर से रूम में जाकर खुद को बंद कर लिया।

यूं ही एक एक पल बीतता गया दिन ढाला शाम हुआ शाम से रात हुआ। रात्रि भोजन के समय सभी एक साथ भोजन में मिले भोजन करने के बाद सभी अपने अपने रूम में चले गए।

रात बिता सुबह सभी ने नाश्ता किया। नाश्ते के बाद रावण ऑफिस जानें के लिए रूम में गया तो सुकन्या भी जल्दी से रावण के पीछे पीछे रूम में पहूंच गईं और दरवाजा बंद कर दिया। सुकन्या को दरवाजा बंद करते देख रावण मुस्कुरा दिया फिर बोला...सुकन्या मुझसे बात करने में आनाकानी करती हों लेकिन आज तुम्हारा इरादा किया हैं जो सुबह सुबह रूम का दरवाजा बन्द कर रहीं हों।

सुकन्या…मेरा इरादा नेक हैं पर आप'के इरादे में मुझे खोट नजर आ रही हैं।

रावण…khotttt दरवाजा तुम बंद कर रहीं हों और खोट मुझमें नजर आ रहा हैं। मुझे तो लग रहा हैं तुम्हारे मन में कुछ ओर चल रहा हैं दिखाना कुछ और चाहती हों।

सुकन्या...सही कहा अपने पर आप'का ये कथन मुझपर नहीं आप पर साठीक बैठता हैं। पल पल रंग आप बदलते हों। आप'के मन में कुछ होता हैं। चेहरे से कुछ ओर दर्शाते हों।

रावण...सुकन्या ये दुनिया बहुत ज़ालिम हैं। यहां अपना वर्चशप कायम करना हैं तो पल पल रंग बदलना पड़ता हैं। तुम्हे आगर लगता हैं की मैं पल पल रंग बदलता हूं। तो सुनो हा मैं रंग बदलता हूं क्यूंकि दुनिया में मुझे अपना वर्चशप कायम करना हैं।

सुकन्या... माना की दुनिया जालिम हैं और रहेंगे। दुनियां वालो ने आप पर जुल्म नहीं ढाया बल्कि आप खुद निरीह लोगों पर जुल्म ढाया किस लिए सिर्फ इसलिए आप'को अपना वर्चशप कायम करना हैं। वर्चशप कायम करने की राह पर चलते चलते आप अपना नाम रुतबा सब खोते जा रहे हों। एक ही परिवार के दो भाईयों पर लोगों की अलग अलग राय हैं देखने का नजरिया अलग अलग हैं। एक से बेशुमार प्यार इज्जत और स्नेह करते हैं। वहीं दूसरे भाई से सिर्फ घृणा करते हैं।

रावण...लोगों के नजरिए का क्या वो तो वक्त के साथ बदलता रहता हैं। जो आज घृणा कर रहे हैं। कल को यही लोग अपना नजरिया बादल लेंगे मान सम्मान देंगे प्यार और स्नेह करेगें।

सुकन्या...उन्हीं लोगों में आप भी हों। आप अपना नजरिया बदल क्यों नहीं लेते। सिर्फ आप'के कारण लोग आप'के साथ साथ हमारे बेटे अपश्यु से भी घृणा करते हैं।

रावण... मुझसे या मेरे बेटे से कोई घृणा नहीं करता हैं। हा वो सभी डरते हैं। उनके डर को घृणा का रूप नहीं दिया जा सकता।

सुकन्या…आप अपने आंखो पर पट्टी बांध कर चलते है इसलिए आप'को लोगों की नजरों में अपने और अपश्यु के लिए घृणा नहीं डर दिखता हैं। शायद लोगों की नज़रों में आपको घृणा दिखता होगा पर आप देखना नही चाहते लेकिन मैंने देखा हैं। लोगों की नज़रों में जितना प्यार रघु और जेठ जी के लिए है। उससे कहीं ज्यादा घृणा आप'के और अपश्यु के लिए हैं।

सुकन्या के इस कथन के बाद रावण निरूत्तर हों गया उसके पास कहने को कुछ था नहीं क्या कहता आज सुकन्या ने वो कह दिया जो सच हैं जिसका प्रमाण रावण को पल पल मिलता रहता हैं। उसने खुद ही देखा था लोग कितनी घृणा उससे करता हैं। लोग रावण से घृणा करता है इसका इल्म रावण को था पर रावण ये नहीं जनता था की उसके साथ साथ लोग अपश्यु से भी घृणा करते हैं।

अपश्यु से घृणा लोग अपश्यु के कर्मो के कारण करते हैं। सुकन्या की बात सुनकर रावण सोचने लगा कि उसके कर्मो के कारण लोग उसके एकमात्र बेटे अपश्यु से घृणा करने लगें हैं। रावण चुप रहा पति को चुप देखकर सुकन्या बोली... आप इतना क्यों सोच रहे हैं। आप'को इतना सोचने की जरूरत नहीं हैं। क्योंकि आप'को अपना वर्चशप कायम करना हैं। करिए जितना वर्चशप कायम करना हैं करिए पर इतना जरूर सोचिएगा आप अपने बेटे के लिए विरासत में क्या छोड़कर जाएंगे लोगों की घृणा या फ़िर प्यार। और हा एक बात ओर मुझे ख़ुशी है की आप रघु के शादी की रिसेप्शन का जिम्मा अपने कंधे पर लिया हैं। मैं बस इतना चाहूंगा की बिना किसी साजिश के रिसेप्शन को अच्छे से संपन्न होने देना। आगर अपने कोई साजिश किया तो जीवन भार आप मुझसे बात करने को तराश जाएंगे सिर्फ बात ही नहीं मेरा चेहरा देखने को भी तराश जायेंगे।

इतना कह कर सुकन्या दनदनाते हुए दरवाजे तक गई। सुकन्या को जाते देख रावण बोला…सुकन्या मेरी बात तो सुनो तुम्हें जो कहना था कह दिया कम से कम मेरी बाते तो सुनती जाओ।

सुकन्या दरवाजा खोल चुकी थीं। रूम से बाहर पहला कदम रखा ही था कि रावण की बाते सुनकर रूक गई और पलट कर बोली... अब तक अपने जो कहा उसे सुनकर मैं आप'की मनसा समझ गई। फिर भी आप कुछ कहना चाहते हों तो अभी आप'को कुछ कहने की जरूरत नहीं हैं जरूरत है तो बस करने कि अच्छे मन से बिना कोई साज़िश किए रिसेप्शन को संपन्न कीजिए उसके बाद आप जितना कहना चाहें कह लेना मैं सुन लूंगी।

इतना कह कर सुकन्या बाहर चली गई। रावण सिर्फ सुकन्या को जाते हुए देखता रहा गया। सुकन्या के जाने के बाद रावण बोला…सुकन्या तुम मुझे समझाने की कोशिश ही नहीं कर रहीं हों मुझे समझ पाती तो कभी ऐसा नहीं कहते। मैं पहले से ही इतना उलझा हुआ हूं तुम मुझे ओर उलझा रही हैं। ऐसा न करों कम से कम मेरा साथ छोड़ने की बात तो न करो तुम मुझे छोड़कर चली गईं तो फिर मैं कुछ भी कर बैठूंगा। हे प्रभु मैं कैसे इन उलझनों से बाहर निकलूं कोई तो रस्ता दिखा।

सुकन्या सिर्फ रावण को दिखने के लिए रूम से बाहर गई थीं। असल में सुकन्या रूम से बाहर आकर छुपकर रावण को देख रही थीं। रावण की बाते सुनने के बाद सुकन्या बोली... अपने मेरे लिए ओर कोई रस्ता ही नहीं छोड़ा आप'को सुधरने के लिए मुझे आप'से दूर जाना पड़ेगा तो चाली जाऊंगी कहा जाऊंगी मुझे नहीं पता ।

इतना बोलते ही सुकन्या के आंखो से आंसू छलक आया। साड़ी के अंचल से बहते आंसू को पोछा फ़िर छुपकर रावण को देखने लगा रावण बहुत देर तक मन ही मन सोचता रहा जितना सोच रहा था उतना ही इसके हाव भाव बदलता जा रहा था। बरहाल रावण सोच को विराम देकर जैसे ही उठा रावण को उठता देखकर सुकन्या बिना कोई आहट किए खिसक लिया। रावण तैयार होकर अनमने मन से ऑफिस के लिए चल दिया।

इधर रघु नाश्ते के बाद वहीं बैठा रह एक एक कर सभी उठकर चले गए पर रघु बैठा रहा। रघु को बैठा देखकर कमला बोली... आप'को ऑफिस नहीं जाना।

रघु…जाना हैं

कमला...जाना है तो बैठें क्यों हों जाओ जाकर तैयार होकर ऑफिस जाओ।

रघु... जी मालकिन जी अभी जाता हूं। फ़िर धीर से बोला…अजीब बीबी मिला हैं। अभी अभी शादी हुआ है ये नहीं की पति के साथ थोड़ा वक्त बिताए पर नहीं जब देखो ऑफिस भेजने पर तुली रहती हैं।

कमला... धीरे धीर क्यों बुदबुदा रहे हो जो बोलना हैं स्पष्ट और थोड़ा तेज बोलिए ताकि मैं भी सुन पाऊं मेरा पति क्या कह रहा हैं।

रघु... मैं तो धीरे से ही बोलूंगा तुम्हें पति की बाते सुनना है तो सुनने की क्षमता बढ़ना होगा।

इतना कह कर रघु मुस्कुराते हुए रूम कि ओर चल दिया। कमला भी रघु के पीछे पीछे रूम की ओर चल दिया। जैसे ही कमला रूम में पहुंची रघु ने कमला को बाहों में भार लिया। छुटने की प्रयास करते हुए कमला बोली...क्या कर रहे हो कोई देख लेगा छोड़िए न।

रघु... छोड़ दुंगा लेकिन पहले तुम मुझे ये बताओं की तुम मुझे प्यार करती हों की नहीं।

कमला...ये कैसा सवाल हैं। चलो अपने पूछ ही लिया तो आप खुद ही बताइए आप'को किया लगाता है।

रघु...वाहा जी वाहा सवाल मैंने पूछा जवाब देने के जगह उल्टा सवाल पूछ लिया। ठीक हैं जब पूछ ही लिया तो सुनो मुझे लगाता हैं तुम मुझसे बिल्कुल भी प्यार नहीं करती हों।

इतना सुनते ही कमला झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली… छोड़िए मुझे आप'को लगाता है न मैं आप'से प्यार नहीं करती हूं तो ठीक है मै आज ही कलकत्ता चली जाऊंगी फिर कभी लौट कर नहीं आऊंगी।

रघु...आज जाने की बात कहा हैं फ़िर कभी नहीं कहना। तुम मुझे छोड़कर जाना भी चाहोगे तब भी मैं तुम्हें जानें नहीं दुंगा।

कमला...क्यों जानें नहीं देंगे जब आप'को लगाता है मैं आप'से प्यार नहीं करता तो फ़िर...।

कमला की बात बीच में काटकर रघु बोला... कमला मैंने बस इसलिए कहा जब भी मैं तुम्हारे साथ थोड़ा ज्यादा वक्त बिताना चाहता हू तब ही तुम मुझे खुद से दूर कर देती हों।

कमला हल्का सा मुस्कान चेहरे पर सजाकर रघु के गले में बांहों का हार डालकर बोला...एक दूसरे के साथ वक्त बिताने के लिए हमारे पास पुरी जिंदगी पड़ी हैं। समझें पति देव जी।

रघु...हां जनता हूं पर मैं तुम्हारे साथ वक्त बिताकर तुम्हें और अच्छे से जानना चाहता हू। इसलिए सोचा था। आज ऑफिस न जाकर तुम्हें कही घूमने ले जाऊंगा।

कमला... घूमने जानें के लिए ऑफिस से छुट्टी लेनी की जरूरत ही किया हैं। हम इतवार को घूमने जा सकते हैं। इसलिए आप अभी ऑफिस जाओ हम इतवार को घूमने चलेंगे।

रघु... तुम कहती हों तो ठीक हैं। चलो फिर एक kiss 😘 दो।

कमला रघु को आंखें में देखने लगीं तो रघु ने इशारे से फिर से kiss देने को बोला तो कमला ने रघु के माथे पर kiss कर दिया। तो रघु बोला... ये किया कमला मैं तुम्हें kiss होंठों पर देने को कहा तुम तो माथे पर kiss दिया।

कमला... अपने तो सिर्फ kiss देने को कहा था। ये थोड़ी न कहा कहां देना हैं।

रघु... अब तो कहा न चलो होंठों पर kiss दो।

कमला थोड़ा आनाकानी करने के बाद रघु के होंठों से अपने होंठों को जोड़ दिया। एक तरंग दोनों के जिस्म में जगा जिसने दोनो के जिस्म को झनझना दिया। कुछ वक्त तक दोनों एक दूसरे को kiss करते रहें फिर कमला ने पहल करते हुए खुद को रघु से अलग कर लिया और रघु को जल्दी से ऑफिस जानें को कहा। रघु कमला का कहना मानकर ऑफिस जानें के लिए तैयार होने लग गया। तैयार होने के बाद कमला ने रघु को ब्रीफकेस दिया और रघु ऑफिस को चला गया।



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Ab ravan pareshan hua jakar khud ki tasveer samne hai uske karan uska beta bhi ghirna pa raha
 

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