Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

Dramatic Entrance
854
1,308
123
Update - 47

भाभी को साथ लिए पुष्पा बैठक में पहुंच गई। मां और चाची की पूरी बाते तो नहीं सुनी पर चाची के अंत में बोली बाते सुन लिया था। इसलिए पूछा था। बेटी और बहू को देखकर सुकन्या पुष्पा की बातों का जवाब देते हुए बोली... हैं कुछ बाते तुम बताओं ननद भाभी की बाते हों गई।

पुष्पा भाभी को साथ लिए जा'कर खाली सोफे पर बैठ गई फ़िर बोलीं...हां हों गई।

सुरभि... बड़ी जल्दी बाते खत्म हों गई। चलो अच्छा हुआ अब ये बताओं बहू चीखा क्यों था और किन बातों को सोचकर वावलो जैसी मुस्कुरा रहीं थीं।

पुष्पा... मां वो बाते बाद में बता दूंगी पहले आप ये बताओं मैं आप'की क्या लगती हूं?

बेटी का ऐसा सवाल पूछना सुरभि को खटका सिर्फ सुरभि ही नहीं सुकन्या को भी खटका इसलिए अचंभित भाव से पुष्पा की ओर देखते हुऐ बोली...पुष्पा ये कैसा सवाल है? तुम नहीं जानती तुम मेरी क्या लगती हों?

पुष्पा... मां मैं जानती हूं। फ़िर भी आप'के मुंह से सुनना चाहती हूं।

इतना सुनते ही सुरभि आगे कुछ बोलती उससे पहले कमला बोलीं... ननद रानी….।

भाभी को इससे आगे कुछ बोलने ही नहीं दिया। बीच में रोककर पुष्पा बोलीं... भाभी अभी आप'के बोलने का वक्त नहीं आया जब आप'से पूछा जाए तब बोलना। फिर सुरभि कि ओर देखकर बोली... मां बोलों न चुप क्यों हों?

सुकन्या... हुआ क्या पहले ये तो बताओं?

सुरभि... हां पुष्पा ऐसा क्या हुआ? जो आते ही ऐसा सवाल पूछने लग गईं।

पुष्पा... कुछ खास नहीं आप बस इतना बताओं! मैं आप'की क्या लगती हूं , फिर बताती हूं क्या हुआ?

सुरभि को लगा शायद कोई बात हों गई होगी इसलिए पुष्पा ऐसा सवाल पूछ रही हैं। इसलिए सुरभि बोलीं…सभी जानते हैं। मैंने तुम्हे जन्म दिया हैं। इस नाते तुम मेरी बेटी हों। ये बात सभी जानते हैं।

पुष्पा...hunuuu ठीक कहा अपने! अब आप ये बताओं, अगर मैं अपने मन की कुछ करू तो क्या आप मुझे टोकने वाले हों?

सुरभि... तुम ऐसा क्या करने वाली हों? जिसके लिए पहले से ही पूछ रहीं हों।

पुष्पा...Oooo hooo मां बताओ ना।

सुरभि... ये तो इस बात पर निर्भर करता हैं। तुम करने क्या वाली हों? अगर तुम्हारे कुछ करने से हमारे मन सम्मान में कोई आंच न आए तो मैं तुम्हें टोकने वाली नहीं हूं।

पुष्पा... मां ये समझलो मैं कही घूमने जाना चाहती हूं तो क्या आप मुझे जानें से माना करने वाले हों।

सुरभि...humuuu अकेले जाना चाहा तो माना कर सकती हूं अगर किसी के साथ जा रहीं हों तो किसके साथ जा रही हों वो शख्स कौन हैं? भरोसे मंद हुआ तो जानें से नहीं रोकूंगी ।

पुष्पा... मां अब ये बताओं भाभी से आप'का क्या संबंध हैं।

सुरभि... पुष्पा आज तुझे क्या हों गया? जो अनाप शनाप सवाल पूछ रहीं हैं।

सुकन्या...दीदी लगता है आज महारानी जी का दिमाग फीर गया हैं जो बिना सिर पैर के सवाल पूछ पूछ कर हमें परेशान कर रहीं हैं।

पुष्पा... मां मैं अनाप शनाप सवाल नहीं बिल्कुल जायज़ सवाल पूछ रहीं हूं। सुकन्या की ओर देखकर बोला... चाची मेरा दिमाग सही ठिकाने पर हैं और मेरा सवाल सिर पैर वाला है बस आप समझ नहीं पा रहीं हों।

सुकन्या…pushpaaaa...।

सुकन्या को आगे बोलने से रोककर सुरभि बोलीं…छोटी रूक जा पहले मुझे पुष्पा के सवाल का जवाब दे लेने दे इसके बाद जो तू बोलना चाहें बोल लेना। पुष्पा की ओर देखकर बोला… हां तो, पुष्पा तुम जानना चाहती हों न बहू के साथ मेरा क्या संबंध हैं। तो सुन कमला मेरे बेटे की पत्नी हैं इस नाते मेरी बहू हुई पर ये रिश्ता सिर्फ़ दुनिया वालों के नजर में हैं। जैसे तू मेरी बेटी हैं वैसे ही बहू, मेरी बहू, बहू नहीं बल्कि बेटी हैं।

पुष्पा के बोलने से माना करने के बाद कमला सिर्फ चुप चाप बैठे तीनों की बाते सुन रहीं थीं। सास की अंत में कहीं बाते सुनकर एक पल को कमला की आंखें डबडबा गईं पर कमला ने खुद को संभाल लिया और रूहानी शांति देने वाली एक मुस्कान बिखेर दिया। मां की बाते सुनने के बाद पुष्पा भाभी की ओर देखकर बोली... सुना भाभी मां ने क्या कहा। इसके बाद आप क्या कहना चाहोगी?

ननद के पूछे गए सवाल का कमला कुछ जवाब दे पाती उससे पहले सुरभि बोलीं... पुष्पा क्या हुआ तुम दोनों में किसी बात को लेकर कोई अनबन हुआ है?

पुष्पा... नहीं मां वो क्या हैं की भाभी को आज भईया घूमने ले जाना चाहते थे। कहीं आप बुरा न मान जाओ इसलिए भाभी ने माना कर दिया और भईया को ऑफिस भेज दिया।


बहू की मनसा जानकर सुरभि मन ही मन गदगद हों उठी और गौरांबित अनुभव करने लग गई कि एक ऐसी लड़की को बहू बनकर घर लाई जो बिना उसकी अनुमति के कहीं जाना नहीं चाहती हैं। ये ख्याल मन में आते ही सुरभि मन ही मन मुस्कुरा दिया और सुरभि अब तक पुष्पा द्वारा पूछे गए सवाल का आशय समझ गईं कि पुष्पा अपने सवालों के जरिए क्या जानना चाहती थी। इसलिए सुरभि बोली...पुष्पा इसके लिए तुम्हें मुझसे इतने सारे सवाल पूछने की जरूरत ही नहीं था। तुम सीधे सीधे पूछ लेती कि रघु के साथ बहू कहीं जाना चाहती हैं तो क्या मैं बहु को जानें देता या फिर माना कर देता।

मां के बातों का जबाव पुष्पा दे पाती उससे पहले कमला बोलीं... मम्मी जी मैने कहा कहीं जानें की बात कहीं थीं। वो तो आप'का बेटा खुद से ही मुझे घूमने लेकर जा रहें थे।

पुष्पा…भईया के साथ घूमने जानें का मन आप'का भी किया होगा। अगर ऐसा न हुआ होता तो आप यूं ख्यालों में खोए वावलों की तरह मुस्कुरा ना रहें होते।

ननद द्वारा मन की बाते बोल देने पर कमला सिर झुका कर मंद मंद मुस्कुराने लग गईं। बहू के सिर झुका लेने से सुरभि भी बहू की मन की बाते जान गई इसलिए बोलीं...बहू मन था तो रघु के साथ घूमने चली जाती मै थोडी न तुम्हें रोकती ओर रोकती भी क्यों तुम तो अपने पति के साथ घूमने जा रहीं थीं।

पुष्पा... मां कैसे चली जाती भाभी को इस बात का भी तो ख्याल रखना हैं कि उन्होंने अपने मन का कुछ किया तो लोग क्या सोचेंगे, भाभी बिल्कुल भईया की तरह कुछ भी करने से पहले कुछ सोचे या न सोचो पर इतना जरूर सोचते हैं कि उन्होंने अपने मन का क्या तो लोग क्या सोचेंगे, हैं न भाभी।

कमला हल्का सा मुस्कुराया फिर बोला... ननद रानी शादी से पहले इतना नहीं सोचती थी कि मेरे कुछ करने से लोग क्या सोचेंगे लेकिन अब वक्त बदल गया हैं मेरे कंधे पर दो परिवार की जिम्मेदारी हैं एक मायके का दूसरा ससुराल का इसलिए मुझे कुछ भी करने पहले दोनों और से सोचना पड़ता हैं।

एक बार फिर सुरभि का मन हर्ष से भर गया ओर मन ही मन बोली... बहू आज एक बार फ़िर तुमने मुझे गौरांवित होने का मौका दिया मैंने तुम्हारे बारे में जीतना सोचकर मेरी बहू चुना था। तुम मेरे सोच को सोलह आना सच सिद्ध कर रहीं हों।

सुकन्या मन में बोलीं... सही कहा बहू शादी के बाद जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं। तुम सभी जिम्मेदारियों का वहन सही तरीके से करना मैं प्रभु से प्रार्थना करूंगी की तुम बेटी, बहू, पत्नी और एक मां का कर्तव्य निर्वहन करने में समर्थ प्राप्त कर सको। मेरी तरह एक जिम्मेदारी निभाने के लिए दूसरे जिम्मेदारियों से मुंह न मोड़ना।

सुरभि और सुकन्या ख़ुद से बाते करने में लगीं रहीं किंतु भाभी की बाते सुनकर पुष्पा बोलीं...भाभी आप इतनी जिम्मेदारियों का बोझ कैसे उठा पाओगी मुझे तो डर हैं कहीं आप इन जिम्मेदारियों के बोझ तले दबकर खुद का जीवन जीना न भूल जाओ।

कमला...ummmm ऐसा हों भी सकता हैं अगर ऐसा हुआ तो मुझे खुशी होगी कि मैंने अपने जिम्मेदारियों का निर्वहन ठीक ढंग से कर पाया।

बहू की बाते सुनकर सुरभि खुश हुईं पर मन के एक कोने में यहां भी चल रहा था कि ये फूल सी बच्ची अपने जिम्मेदारी को बखूबी समझता हैं और उसे निभाने के लिए वचनवध हैं। कहीं इसकी यहीं वचनवधता उसके जीवन में आने वाली खुशियों को छीन बिन्न न कर दे। इसलिए सुरभि बोलीं... बहू तुम्हारी बातें सुनकर अच्छा लगा कि तुम अपने जिम्मेदारियों को लेकर सजग हों। हमारे जीवन में जिम्मेदारियां कभी कम नहीं होगी बल्कि समय के साथ ओर बढ़ता जायेगा। लेकिन हमें इस बात का भी ध्यान रखना हैं कि जिम्मेदारियों के बोझ तले हमारे जीवन में आने वाली हसीन पल दबकर न रह जाएं। इस बात का हमेशा ध्यान रखना।

कमला मुस्कुराते हुऐ हां में सिर हिला दिया। ये देखकर सुकन्या बोलीं... सिर्फ हां थोडा खुलकर बोलों या फ़िर हमारे सामने बोलने से तुम्हें भय लगता हैं।

कमला... नहीं छोटी मां, मां ने सिखाया था बड़ो के सामने सिर्फ़ उतना ही बोलों जीतना जरूरी हों।

सुरभि…समधन जी ने तुम्हें अच्छी बातें सिखाया हैं। अब जरा इतना बता दो क्या तुम समधन जी से भी हां हूं में बात करती थीं।

कमला... नहीं मम्मी जी मैं तो मां से इतनी बाते करती थी, इतनी बाते करती थीं कि वो परेशान होकर मेरा मुंह दवाके पकड़ लेती थी।

मां की बात बोलते ही कमला के जहन में मां के साथ बिताए यादें ताजा हों गई। इसलिए सिर झुका लिया। सिर झुकाते ही आंखे बह निकली, आंखो को मिचकर आसूं बहने ने रोकना चाही पर बहते पानी को जीतना भी रोकना चाहो वो रुकती नहीं, कमला की कोशिशें भी निराधार रहा वो जीतना आंसू बहनें से रोक रहीं थीं उतना ही बहता जा रहा था। अंतः साड़ी का अंचल उठाकर कमला ने बहते आंसू को पोंछ लिए। कमला के इस हरकत पर सुरभि, पुष्पा और सुकन्या की नजर पड़ गया तो पुष्पा बोलीं... भाभी क्या हुआ?

सुरभि समझ गई क्या हुआ होगा इसलिए उठकर कमला के पास जाकर बैठ गई ओर उसके कंधे पर हाथ रख दिया। कांधे पर स्पर्श का आभास होते ही कमला उस ओर देखा जिस कंधे पर सुरभि ने हाथ रखा था। बस फ़िर क्या "मां" शब्द मुंह से निकला ओर सास से लिपटकर फुट फुट कर रोने लगीं। सिर सहलाते हुए "नहीं रोते, नहीं रोते" बोलती रहीं पर कमला का रोना रुक नहीं रहीं थीं। तो सुरभि बोलीं... ये क्या बहू? तुम समधन जी को बातों से परेशान करती थीं और मुझे रो रोकर परेशान कर रहीं हों। मैंने तो सोचा था पार्टी के बाद तुम्हें मायके भेजूं दूंगी। लेकिन कह देती हूं तुम ऐसे रोती रहीं तो मायके कभी नहीं भेजने वाली।

सास के इतना बोलते ही कमला नजर उठकर सास की ओर ऐसे देखा जैसे जानना चाहती हों "क्या आप सही बोल रहीं हों" बहू के आंखो की भाषा समझकर सुरभि भी पलके झुकाकर हां का इशारा किया। सास की सहमति पाकर कमला के रूवासा चहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। ये देखकर सुरभि बोलीं... बहू या तो रो लो या फ़िर मुस्कुरा लो, दोनों कम एक साथ करोगे तो कैसे चलेगा।

सास की बाते सुनकर कमला समझ नहीं पाई कि अब क्या करें पर उसी वक्त दरवाजे से आवाज आया... ये किया भाभी आप रो रहीं हों। मैंने तो सोचा था आज भाभी के हाथ का बना हुआ खाना खाऊंगा लेकिन आप ऐसे रोते हुए खाना बनाया तो खाने का स्वाद खराब हों जायेगा।

बोलने वाला अपश्यु था। वो जब बैठाक के द्वार तक आया। तब उसने देखा कमला सुरभि से लिपट कर रो रहीं हैं और सुरभि उसे समझा रहीं हैं। बड़ी मां की बाते सुनकर आपश्यु मन ही मन बोला... भाभी तो मायके को याद करके रो रहीं हैं। मुझे कुछ करना चाहिए जिसे भाभी मुस्कुरा दे, रोते हुऐ भाभी बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती हैं।

अपश्यु की बाते सुनकर कमला रोना भूलकर एक टक देवर को देखने लगीं और समझने की कोशिश करने लगीं देवर ने ऐसा कह तो कहा क्यों ओर पुष्पा बोलीं... ओ मेरे भुक्कड़ भईया आप'को खाने के अलावा कुछ और सूझता हैं। देखो खुद को खां खांकर मोटा हों गए हों।

अपश्यु जाकर बैठते हुए बोला… अरे कहा मोटा हुआ। देख कितना दुबला पतला हूं। लेकिन हां भाभी ने स्वादिष्ट पकवान बनाकर खिलाया तो तेरी ये इच्छा भी पूरा हों जायेगा।

ननद और देवर की बाते सुनकर कमला मुस्कुरा दिया फिर मुस्कुराते हुऐ बोलीं... अरे ननद रानी क्यों मेरे अच्छे खासे तंदरुस्त दिखने वाले देवर को मोटा कह रहें हों।

भाभी को मुस्कुराते देखकर अपश्यु बोला... ये हुई न बात! अब बोलो भाभी अपने देवर को खाना बनाकर खिलाओगी?

कमला... हां बिलकुल बनाऊंगी और अपने हाथ से परोसकर खिलाऊंगी।

अपश्यु... ध्यान रखना नमक ज्यादा न हों जाएं नहीं तो खाने का स्वाद बिगड़ जायेगा।

कमला... मैं तो खाने में नमक स्वादानुसार डालती हूं फिर नमक के कारण खाने का स्वाद क्यों खराब होगा।

अपश्यु... माना की आप खाने में नमक नाप तोलकर डालती हों। लेकिन आप रोते हुए खाना बनाया तो आपके आंसुओ का नमक खाने में मिलकर खाने में नमक की मात्रा को बड़ा देगा।

देवर की बाते सुनकर पहले तो कमला समझ नहीं पाई पर बाद में जब समझ आया तो खिलखिला कर हंस दिया। सिर्फ कमला ही नहीं वहां मौजूद सभी हंस दिया। कुछ वक्त तक हंसने के बाद कमला बोलीं... देवर जी आपको अगर लगता हैं खाने में नमक ज्यादा हों जायेगा तो मैं आज खाने में नमक ही नहीं डालूंगी।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले भाग से, यहां तक साथ बने रहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।🙏🙏🙏
Behatareen update bhai, meri category to nahi hai par phir bhi mast likha hai...
 
Will Change With Time
Moderator
Top Poster Of Month
8,775
16,974
143
Badhiya update bahu beti me koi farak nai lekin bahu bhi shaas ko ma jaise apna le to sab sahi rahta hai update padhkar thoda immosnol hui gawa mai :cry2:
Bahut bahut sukriya Rahul ji bidambana to yehi hai ki sabhi bahuye sas ko ma jaisa samjhna hi nahi chahti. Dosh unka bhi nahi hai kyuki bahut se saas bhi bahu ko beti manti hi nahi par kahani me saisa nahi hoga
 
Will Change With Time
Moderator
Top Poster Of Month
8,775
16,974
143
Shandar update hai bhai
Ek saas ka apni bahu ko yu beti ke saman aadar or adhikar dena dil ko chu gaya.... sukanya or surbhi dono ka hi apni bahu ke prati beti jaisa swabhav ek naye or behtar samaj banane ki or ek acha prayas hai....
Kamla, pushpa, or apshyu ke beech itna manmohak drishya pariwar ke swasth or khushhal vatavaran ko darshata hai....
Bhagwan kare in sab ka ek dusre ke prati ye pyar nirantar bana rahe....
Agle bhag ki pratiksha rahegi bhai
Apka rovo bhi utna hi manmohak tha jitna ki update bahut bahut shukriya itna khubsurat man mohak revo dene ke liye.

Agla update jaldi hi kal nahi to parsho post karta hoon.
 
Will Change With Time
Moderator
Top Poster Of Month
8,775
16,974
143
Update - 48

एक बार फ़िर से हसी और ठहको का शमा बंद गया। अभी अभी जो मां को याद करके रो रहीं थी। वो कमला अब रोना धोना भूलकर देवर के किए गए मस्करी का लुप्त ठहाके लगाकर हंसकर ले रहीं हैं। कुछ वक्त तक हसीं ठहाके चलता रहा फिर अपश्यु बोला...भाभी आप न ऐसे ही हंसते मुस्कुराते रहा करो आप'का रोता हुआ चेहरा बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता और रोने धोने वाला काम इस महारानी पुष्पा के जिम्मे छोड़ दिया करो क्योंकि पुष्पा के रोने का ढंग बहुत अलग हैं जिसे देखकर सिर्फ हंसी आती हैं।

पुष्पा humhuuu की स्वर निकलकर घुर्राते हुए बोला… bhaiyaaa...।

अपश्यु... गुस्सा करने का कोई फायदा नहीं तुझे शायद याद नहीं तू बचपन में रोते हुए कितनी अजीब लगती थी यकीन न हों तो बड़ी मां से ही पूछ ले। फ़िर सुरभि की और देखकर बोला…बड़ी मां आप'को तो याद होगा बचपन में पुष्पा के रोने का ढंग कितना अलग था। जिसे देखने के लिए बार बार मैं उसे रुलाया करता था।

भाई के इतना बोलते ही पुष्पा मां की ओर आंखे मोटी करके देखने लग गई जैसे कह रही हों बिल्कुल भी भईया के हां में हां न मिलना नहीं तो अच्छा नहीं होगा। बेटी की हरकते देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली... हां हां मुझे अच्छे से याद हैं पहले तू पुष्पा को रुलाता था बाद में छोटी तुझे रूलाती थी फ़िर दोनों भाई बहन में होड़ लग जाती थीं कौन कितना तेज रो सकता हैं। छोटी पुष्पा को मना लेता था लेकिन तू किसी के मानने से नहीं मानता था। रोते हुऐ पूरे घर में लोट पोट करने लग जाता था।

भाभी के सामने बचपन का भेद खुलते देखकर अपश्यु बुरा सा मुंह बनाते हुए बोला... बडी मां क्या जरूरत थी मेरे बचपन का भेद खोलने कि, भाभी के सामने अपने मेरे इज्जत का फालूदा बना दिया।

पुष्पा... अभी कहा आपके इज्ज़त का फालूदा बना हैं फालूदा तो अब बनेगा। भाभी भईया जब बचपन में रोते थे तब न उनका नाक बहता था। सिर्फ नाक बहता तो ठीक था भईया surupppp जीभ निकालकर चाट लेते थे। छी गंदे भईया आप'को घिन्न नहीं आती थीं।

पुष्पा के suruppp कहने का ढंग इतना निराला था की अपश्यु को छोड़कर बाकी सभी हंस दिया और अपश्यु मुंह लटकाकर बैठ गया। देवर का मुंह लटका हुआ देखकर कमला बोलीं...ननद रानी सिर्फ देवर जी का नाक बहता था कि तुम्हारा भी नाक बहता था। बोलों बोलों अपनी बात क्यों छुपा लिया।

पुष्पा…नहीं बिल्कुल नहीं आप मेरी नाक बहने की बात कर रहीं हों, मेरी नाक छोड़ो आंसू भी नहीं निकलते थे और अजीब सा मुंह बनाकर रोती थीं तभी तो भईया मुझे बार बार रुलाते थे।

भाई का भेद खोलते खोलते पुष्पा ने ख़ुद का भेद ख़ुद ही खोल दिया जिसे सुनकर सभी हंसने लग गए और पुष्पा मुंह पर हाथ रखकर बोलीं...ahaaa ये क्या किया बोला दिया।

एक बार फ़िर से सभी ओर जोर जोर से ठहाके लगाकर हंसने लग गए और अपश्यु मौके का फायदा उठाते हुए अजीब अजीब सा मुंह बनाकर पुष्पा को चिड़ने लग गया। जिसे देखकर पुष्पा बोलीं... भईया आप मुझे चिड़ा रहें हों देखना मैं आपकी शिकायत कर दूंगी। किससे करू शिकायत हां रघु भईया से करूंगी, नहीं नहीं रघु भईया नहीं वो तो आपको कुछ नहीं कहेंगे। हा पापा से करूंगी, नहीं नहीं पापा से भी नहीं वो तो आपकी गलती मानेंगे ही नहीं, हां चाचा से करूंगी और चाचा जब आपको कूटेंगे तब मैं भी ऐसे ही मुंह बनाकर आपको चिड़ाऊगी।

अपश्यु... हां हां कर देना तब मुझे बचाने के किए बड़े पापा और दादा भाई होंगे तेरे शिकायत करने का कोई फायदा नहीं होगा ही ही ही।

इसके बाद दोनों भाई बहन में एक जंग जैसा छिड़ गया और दोनों भाई बहन एक दूसरे के बारे में तरह तरह की बाते बताने लग गए। जिसका नतीजा ये होता कभी पुष्पा चीड़ जाती तो कभी आपश्यू चीड़ जाता। कभी पुष्पा खिल्ली उड़ाता तो कभी आपश्यू खिल्ली उड़ता।

सुरभि सुकन्या और कमला दोनों भाई बहनों को रोकने के जगह सिर्फ हंसी और ठहके लगा रहे थे। हर मानने को दोनों में से कोई राजी नहीं हों रहा था। लंबे वक्त तक दोनों भाई बहन में लड़ाई कहो या मजाक चलता रहा। अचानक कमला की नज़र घड़ी की ओर गया। घड़ी इस वक्त दोपहर के एक बजे का समय दिखा रहा था। यहां देखकर कमला बोली... अरे बाप रे एक बाज गया ओर मुझे ध्यान ही नहीं रहा। अच्छा देवर जी आप अपना पसंद बता दो जिससे की मैं आपके पसंद का भोजन बना दूं।

सुरभि... बहू अभी रहने दो अब तक रतन दादा भाई ने भोजन बना लिया होगा तुम शाम को बना लेना।

अपश्यु... हां भाभी आप शाम को भोजन बना लेना मैं तब तक प्रतीक्षा कर लूंगा।

पुष्पा... भाभी अपने बीच में टोककर अच्छा नहीं किए आपके इस गलती के लिए आपको सजा मिल सकता है पर मेरा मन अभी आपको सजा देने का नहीं कर रहा हैं। मेरे मन अभी विश्राम करने को कर रहा हैं। इसलिए मैं चली विश्राम करने जब भोजन लग जाए तो मुझे बुला लेना।

इतना बोलकर पुष्पा अंगड़ाई लेते हुए उठी ओर अपने रूम की ओर चल दिया। पुष्पा को जाते देखकर अपश्यु कुछ बोलने ही वाला था की सुकन्या उसे रोकते हुए बोला... बस बस बहुत हो गया अब एक लावज भी नहीं बोलना। मेरी बच्ची को बहुत परेशान कर लिया अब जा तू भी थोडा विश्राम कर ले जब भोजन लग जायेगा तब तुझे बुला लूंगी।

अपश्यु... अच्छा अच्छा जाता हूं।

इतना बोलकर अपश्यु चला गया। उसके बाद तीनों महिलाएं भी अपने अपने रूम में चले गए। सभी के गए अभी घंटा भर ही बीता था कि वाबर्ची रतन का बुलावा सभी के पास पहुंच गया कि आकर भोजन कर लीजिए भोजन लगा दिया हैं। एक एक कर सभी अपने अपने कमरे से निकलकर आए और डायनिंग मेज पर बैठ गए। बस भोजन परोसने की देर थी थाली साफाचट होने में समय नहीं लगना था। बरहाल भोजन परोसा गया और बातों में मशगूल होकर सभी ने भर पेट भोजन कर लिया। तत्पश्चात सभी अपने अपने रूम में विश्राम करने चले गए।

जहां दूसरे कमरे में सभी दोपहर की मीठी नींद लेने की तैयारी में थे वहीं अपश्यु शांत बैठे टेलीफोन बाबू को उंगली कर करके परेशान करने में लगा हुआ था। दरअसल अपश्यु किसी को फोन कर रहा था पर उधर से कोई जवाब ही नहीं आ रहा था। अंतः थक हार कर अपश्यु ने कॉल करना बंद कर दिया ओर बोला... क्या मुसीबत हैं एक तो पहले से ही बैड बाजी पड़ी हैं ऊपर से ये डिंपल भी छोटी छोटी बातों पर नाराज हों जाती हैं। जब कहा था बाद में बता दूंगा पर नहीं उसे तो अभी के अभी जाना हैं। चलो देखते है डिंपल कब तक मुझसे नाराज रहती हैं।

इतना बोलकर अपश्यु दोपहर की मीठी नींद लेने की तैयारी में लग गया। अपश्यु की नींद कितना मीठा होगा ये सिर्फ ऊपर वाला ही जानता हैं। यहां महल में सभी दोपहर की नींद ले रहें थे। उधर रावण और राजेंद्र ऑफिस पहुंचकर कुछ वक्त तक आने वाले इतवार को महल में होने वाली पार्टी पर कुछ विशेष चर्चा किया फ़िर दोनों भाई आगे की तैयारी करने चल पड़े।

जब से रघु ऑफिस पहुंचा तभी से वो फाइलों में उलझ कर रह गया। हालही में मिला नया कांट्रेक्ट को समय रहते कैसे पूरा किया जाएं उसी का रोड मैप तैयार कर रहा था। ये बांदा भी अजीब है सुबह ऑफिस आने को राजी नहीं हों रहा था लेकिन अब देखो काम में इतना मगन हों गया की कुछ सूद ही नहीं रहा। दोपहर के खाने का समय हों चुका हैं पर लगाता है रघु की भूख प्यास मार चुका हैं।

ऑफिस में काम करने वाले सभी वर्कर दोपहर के खाने का लुप्त ले रहे हैं। ऐसे समय में किसी को ध्यान रहे या न रहें कि उनके मालिक ने खाना खाया की नहीं खाया पर मुंशी को इस बात का ध्यान था। तभी वो बैठे बैठे रघु का इंतेजार कर रहा था की कब रघु आए और साथ में दोनों भोजन करना शुरू करें। लांच का समय खत्म होने को आया पर रघु अभी तक नहीं आया। "रघु कहा रह गया" इतना बोलकर मुंशी वहा से चल दिया। रघु के ऑफिस रूम तक पहुंचकर मुंशी ने दरवाजा खटखटाया, दरवाजे पर हुई खटपट सुनकर रघु बोला... कौन हैं बाहर?

मुंशी... रघु बेटा मैं मुंशी!

रघु…अरे काका आप आइए अंदर आइए।

मुंशी अंदर पहुंचा ही था की रघु के सामने रखा टेलीफोन बज उठा, मुंशी को बैठने का इशारा कर रघु ने टेलीफोन रिसीवर को उठाकर कान से लगा लिया दूसरे ओर से कुछ बोला गया जिसके जवाब में रघु बोला... हां कमला बोलों मैं सुन रहा हूं।

जी हा ये फोन करने वाली कमला ही थी। जब रतन ने महल में सभी को भोजन करने बुलाया था। तब भोजन करने जाने से पहले कमला ने रघु को फोन किया था। रघु के बात का जवाब देते हुए कमला बोलीं... जी आपने भोजन कर लिया।

रघु...kyaaa दोपहर के भोजन का समय हों चुका ओर मुझे ध्यान ही नहीं रहा।

कमला... आप भी न निराले हों सुबह ऑफिस जा नहीं रहे थे और ऑफिस जाते ही काम में इतना खो गए की आपको सूद ही नहीं रहा दोपहर के भोजन का समय हों गया हैं। जाइए पहले भोजन कर लीजिए।

रघु... मैं भले ही भूल जाऊ पर तुम तो नहीं भूलती और मुझे ध्यान रखने की जरूरत ही क्या है जब तुम समय से फोन करके अगाह कर देती हों कि भोजन का समय हों गया है जाइए भोजन कर लीजिए। अच्छा ये बताओं तुमने भोजन कर लिया।

कमला...जी नहीं! मैं अभी भोजन करने जा ही रहीं हूं। आप भी भोजन कर लीजिए।

रघु... अच्छा बाबा जा रहा हूं। बाय शाम को मिलते है।

दोनों ने एक दूसरे को बाय बोलकर फोन रख दिया और मुंशी दोनों की बाते सुनकर मन ही मन मुस्कुरा रहा था। फोन रखने के बाद रघु बोला... काका कुछ काम था।

मुंशी... हां काम तो था पर मेरे बोलने से पहले बहू रानी ने बोला दिया अब चलो भोजन कर लेते हैं।

रघु... Oooo तो आपने भी भोजन नहीं किया चलिए फिर जल्दी से भोजन कर लेते हैं।

दोनों साथ में भोजन करने चल देते हैं। कुछ ही वक्त में दोनों भोजन करके अपने अपने जगह पहुंच जाते हैं। रघु अपने ऑफिस रूम में पहुंचकर किसी मुद्दे पर कुछ वक्त तक सोच विचार करता हैं फ़िर एक फोन करके कुछ देर बात करता हैं और मुस्कुराते हुए काम में लग जाता हैं। रघु एक बार फिर से काम करने में मग्न हों जाता है। काम करने में इतना मगन हों जाता हैं कि उसे ध्यान ही नहीं रहता की शाम के 7 बज चुका हैं। मुंशी इस वक्त घर जा रहा था जाने से पहले रघु के पास आया। रघु को ऑफिस में काम करता हुआ देखकर मुंशी बोला... रघु बेटा 7 बज गए है कब तक ओर काम करना है। घर नहीं जाना है।

रघु...kyaaa 7 बज गए हैं। क्या काका थोडी देर पहले नहीं बोल सकते थे। कितना लेट हों गया हूं।


इतना बोलकर रघु जल्दी जल्दी से बिखरे पड़े फाइलों को समेटने लग गया। रघु को जल्दी बाजी करता देखकर मुंशी बोला... अरे अचानक तुम्हें क्या हों गया जो इतनी जल्दी बाजी मचा दिया।

रघु... काका आज रात के खाने पर आपके बहू को बाहर लेकर जाना था पर मैं काम मे इतना खो गया की ध्यान ही नहीं रहा।

मुंशी...Oooo तो ये बात हैं। तो फिर तुम जाओ तुम्हें देर हों रहा होगा। सभी फाइलो को मैं समेट देता हू।

रघु हां बोलकर चल दिया और मुंशी बिखरे पड़े फाइलों को करीने से रखने लग गया। सभी फाइलों को सहेज कर करीने से रखने के बाद मुंशी भी घर को चल दिया।

आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले भाग से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।🙏🙏🙏
 
expectations
22,454
14,682
143
Update - 48

एक बार फ़िर से हसी और ठहको का शमा बंद गया। अभी अभी जो मां को याद करके रो रहीं थी। वो कमला अब रोना धोना भूलकर देवर के किए गए मस्करी का लुप्त ठहाके लगाकर हंसकर ले रहीं हैं। कुछ वक्त तक हसीं ठहाके चलता रहा फिर अपश्यु बोला...भाभी आप न ऐसे ही हंसते मुस्कुराते रहा करो आप'का रोता हुआ चेहरा बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता और रोने धोने वाला काम इस महारानी पुष्पा के जिम्मे छोड़ दिया करो क्योंकि पुष्पा के रोने का ढंग बहुत अलग हैं जिसे देखकर सिर्फ हंसी आती हैं।

पुष्पा humhuuu की स्वर निकलकर घुर्राते हुए बोला… bhaiyaaa...।

अपश्यु... गुस्सा करने का कोई फायदा नहीं तुझे शायद याद नहीं तू बचपन में रोते हुए कितनी अजीब लगती थी यकीन न हों तो बड़ी मां से ही पूछ ले। फ़िर सुरभि की और देखकर बोला…बड़ी मां आप'को तो याद होगा बचपन में पुष्पा के रोने का ढंग कितना अलग था। जिसे देखने के लिए बार बार मैं उसे रुलाया करता था।

भाई के इतना बोलते ही पुष्पा मां की ओर आंखे मोटी करके देखने लग गई जैसे कह रही हों बिल्कुल भी भईया के हां में हां न मिलना नहीं तो अच्छा नहीं होगा। बेटी की हरकते देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली... हां हां मुझे अच्छे से याद हैं पहले तू पुष्पा को रुलाता था बाद में छोटी तुझे रूलाती थी फ़िर दोनों भाई बहन में होड़ लग जाती थीं कौन कितना तेज रो सकता हैं। छोटी पुष्पा को मना लेता था लेकिन तू किसी के मानने से नहीं मानता था। रोते हुऐ पूरे घर में लोट पोट करने लग जाता था।

भाभी के सामने बचपन का भेद खुलते देखकर अपश्यु बुरा सा मुंह बनाते हुए बोला... बडी मां क्या जरूरत थी मेरे बचपन का भेद खोलने कि, भाभी के सामने अपने मेरे इज्जत का फालूदा बना दिया।

पुष्पा... अभी कहा आपके इज्ज़त का फालूदा बना हैं फालूदा तो अब बनेगा। भाभी भईया जब बचपन में रोते थे तब न उनका नाक बहता था। सिर्फ नाक बहता तो ठीक था भईया surupppp जीभ निकालकर चाट लेते थे। छी गंदे भईया आप'को घिन्न नहीं आती थीं।

पुष्पा के suruppp कहने का ढंग इतना निराला था की अपश्यु को छोड़कर बाकी सभी हंस दिया और अपश्यु मुंह लटकाकर बैठ गया। देवर का मुंह लटका हुआ देखकर कमला बोलीं...ननद रानी सिर्फ देवर जी का नाक बहता था कि तुम्हारा भी नाक बहता था। बोलों बोलों अपनी बात क्यों छुपा लिया।

पुष्पा…नहीं बिल्कुल नहीं आप मेरी नाक बहने की बात कर रहीं हों, मेरी नाक छोड़ो आंसू भी नहीं निकलते थे और अजीब सा मुंह बनाकर रोती थीं तभी तो भईया मुझे बार बार रुलाते थे।

भाई का भेद खोलते खोलते पुष्पा ने ख़ुद का भेद ख़ुद ही खोल दिया जिसे सुनकर सभी हंसने लग गए और पुष्पा मुंह पर हाथ रखकर बोलीं...ahaaa ये क्या किया बोला दिया।

एक बार फ़िर से सभी ओर जोर जोर से ठहाके लगाकर हंसने लग गए और अपश्यु मौके का फायदा उठाते हुए अजीब अजीब सा मुंह बनाकर पुष्पा को चिड़ने लग गया। जिसे देखकर पुष्पा बोलीं... भईया आप मुझे चिड़ा रहें हों देखना मैं आपकी शिकायत कर दूंगी। किससे करू शिकायत हां रघु भईया से करूंगी, नहीं नहीं रघु भईया नहीं वो तो आपको कुछ नहीं कहेंगे। हा पापा से करूंगी, नहीं नहीं पापा से भी नहीं वो तो आपकी गलती मानेंगे ही नहीं, हां चाचा से करूंगी और चाचा जब आपको कूटेंगे तब मैं भी ऐसे ही मुंह बनाकर आपको चिड़ाऊगी।

अपश्यु... हां हां कर देना तब मुझे बचाने के किए बड़े पापा और दादा भाई होंगे तेरे शिकायत करने का कोई फायदा नहीं होगा ही ही ही।

इसके बाद दोनों भाई बहन में एक जंग जैसा छिड़ गया और दोनों भाई बहन एक दूसरे के बारे में तरह तरह की बाते बताने लग गए। जिसका नतीजा ये होता कभी पुष्पा चीड़ जाती तो कभी आपश्यू चीड़ जाता। कभी पुष्पा खिल्ली उड़ाता तो कभी आपश्यू खिल्ली उड़ता।

सुरभि सुकन्या और कमला दोनों भाई बहनों को रोकने के जगह सिर्फ हंसी और ठहके लगा रहे थे। हर मानने को दोनों में से कोई राजी नहीं हों रहा था। लंबे वक्त तक दोनों भाई बहन में लड़ाई कहो या मजाक चलता रहा। अचानक कमला की नज़र घड़ी की ओर गया। घड़ी इस वक्त दोपहर के एक बजे का समय दिखा रहा था। यहां देखकर कमला बोली... अरे बाप रे एक बाज गया ओर मुझे ध्यान ही नहीं रहा। अच्छा देवर जी आप अपना पसंद बता दो जिससे की मैं आपके पसंद का भोजन बना दूं।

सुरभि... बहू अभी रहने दो अब तक रतन दादा भाई ने भोजन बना लिया होगा तुम शाम को बना लेना।

अपश्यु... हां भाभी आप शाम को भोजन बना लेना मैं तब तक प्रतीक्षा कर लूंगा।

पुष्पा... भाभी अपने बीच में टोककर अच्छा नहीं किए आपके इस गलती के लिए आपको सजा मिल सकता है पर मेरा मन अभी आपको सजा देने का नहीं कर रहा हैं। मेरे मन अभी विश्राम करने को कर रहा हैं। इसलिए मैं चली विश्राम करने जब भोजन लग जाए तो मुझे बुला लेना।

इतना बोलकर पुष्पा अंगड़ाई लेते हुए उठी ओर अपने रूम की ओर चल दिया। पुष्पा को जाते देखकर अपश्यु कुछ बोलने ही वाला था की सुकन्या उसे रोकते हुए बोला... बस बस बहुत हो गया अब एक लावज भी नहीं बोलना। मेरी बच्ची को बहुत परेशान कर लिया अब जा तू भी थोडा विश्राम कर ले जब भोजन लग जायेगा तब तुझे बुला लूंगी।

अपश्यु... अच्छा अच्छा जाता हूं।

इतना बोलकर अपश्यु चला गया। उसके बाद तीनों महिलाएं भी अपने अपने रूम में चले गए। सभी के गए अभी घंटा भर ही बीता था कि वाबर्ची रतन का बुलावा सभी के पास पहुंच गया कि आकर भोजन कर लीजिए भोजन लगा दिया हैं। एक एक कर सभी अपने अपने कमरे से निकलकर आए और डायनिंग मेज पर बैठ गए। बस भोजन परोसने की देर थी थाली साफाचट होने में समय नहीं लगना था। बरहाल भोजन परोसा गया और बातों में मशगूल होकर सभी ने भर पेट भोजन कर लिया। तत्पश्चात सभी अपने अपने रूम में विश्राम करने चले गए।

जहां दूसरे कमरे में सभी दोपहर की मीठी नींद लेने की तैयारी में थे वहीं अपश्यु शांत बैठे टेलीफोन बाबू को उंगली कर करके परेशान करने में लगा हुआ था। दरअसल अपश्यु किसी को फोन कर रहा था पर उधर से कोई जवाब ही नहीं आ रहा था। अंतः थक हार कर अपश्यु ने कॉल करना बंद कर दिया ओर बोला... क्या मुसीबत हैं एक तो पहले से ही बैड बाजी पड़ी हैं ऊपर से ये डिंपल भी छोटी छोटी बातों पर नाराज हों जाती हैं। जब कहा था बाद में बता दूंगा पर नहीं उसे तो अभी के अभी जाना हैं। चलो देखते है डिंपल कब तक मुझसे नाराज रहती हैं।

इतना बोलकर अपश्यु दोपहर की मीठी नींद लेने की तैयारी में लग गया। अपश्यु की नींद कितना मीठा होगा ये सिर्फ ऊपर वाला ही जानता हैं। यहां महल में सभी दोपहर की नींद ले रहें थे। उधर रावण और राजेंद्र ऑफिस पहुंचकर कुछ वक्त तक आने वाले इतवार को महल में होने वाली पार्टी पर कुछ विशेष चर्चा किया फ़िर दोनों भाई आगे की तैयारी करने चल पड़े।

जब से रघु ऑफिस पहुंचा तभी से वो फाइलों में उलझ कर रह गया। हालही में मिला नया कांट्रेक्ट को समय रहते कैसे पूरा किया जाएं उसी का रोड मैप तैयार कर रहा था। ये बांदा भी अजीब है सुबह ऑफिस आने को राजी नहीं हों रहा था लेकिन अब देखो काम में इतना मगन हों गया की कुछ सूद ही नहीं रहा। दोपहर के खाने का समय हों चुका हैं पर लगाता है रघु की भूख प्यास मार चुका हैं।

ऑफिस में काम करने वाले सभी वर्कर दोपहर के खाने का लुप्त ले रहे हैं। ऐसे समय में किसी को ध्यान रहे या न रहें कि उनके मालिक ने खाना खाया की नहीं खाया पर मुंशी को इस बात का ध्यान था। तभी वो बैठे बैठे रघु का इंतेजार कर रहा था की कब रघु आए और साथ में दोनों भोजन करना शुरू करें। लांच का समय खत्म होने को आया पर रघु अभी तक नहीं आया। "रघु कहा रह गया" इतना बोलकर मुंशी वहा से चल दिया। रघु के ऑफिस रूम तक पहुंचकर मुंशी ने दरवाजा खटखटाया, दरवाजे पर हुई खटपट सुनकर रघु बोला... कौन हैं बाहर?

मुंशी... रघु बेटा मैं मुंशी!

रघु…अरे काका आप आइए अंदर आइए।

मुंशी अंदर पहुंचा ही था की रघु के सामने रखा टेलीफोन बज उठा, मुंशी को बैठने का इशारा कर रघु ने टेलीफोन रिसीवर को उठाकर कान से लगा लिया दूसरे ओर से कुछ बोला गया जिसके जवाब में रघु बोला... हां कमला बोलों मैं सुन रहा हूं।

जी हा ये फोन करने वाली कमला ही थी। जब रतन ने महल में सभी को भोजन करने बुलाया था। तब भोजन करने जाने से पहले कमला ने रघु को फोन किया था। रघु के बात का जवाब देते हुए कमला बोलीं... जी आपने भोजन कर लिया।

रघु...kyaaa दोपहर के भोजन का समय हों चुका ओर मुझे ध्यान ही नहीं रहा।

कमला... आप भी न निराले हों सुबह ऑफिस जा नहीं रहे थे और ऑफिस जाते ही काम में इतना खो गए की आपको सूद ही नहीं रहा दोपहर के भोजन का समय हों गया हैं। जाइए पहले भोजन कर लीजिए।

रघु... मैं भले ही भूल जाऊ पर तुम तो नहीं भूलती और मुझे ध्यान रखने की जरूरत ही क्या है जब तुम समय से फोन करके अगाह कर देती हों कि भोजन का समय हों गया है जाइए भोजन कर लीजिए। अच्छा ये बताओं तुमने भोजन कर लिया।

कमला...जी नहीं! मैं अभी भोजन करने जा ही रहीं हूं। आप भी भोजन कर लीजिए।

रघु... अच्छा बाबा जा रहा हूं। बाय शाम को मिलते है।

दोनों ने एक दूसरे को बाय बोलकर फोन रख दिया और मुंशी दोनों की बाते सुनकर मन ही मन मुस्कुरा रहा था। फोन रखने के बाद रघु बोला... काका कुछ काम था।

मुंशी... हां काम तो था पर मेरे बोलने से पहले बहू रानी ने बोला दिया अब चलो भोजन कर लेते हैं।

रघु... Oooo तो आपने भी भोजन नहीं किया चलिए फिर जल्दी से भोजन कर लेते हैं।

दोनों साथ में भोजन करने चल देते हैं। कुछ ही वक्त में दोनों भोजन करके अपने अपने जगह पहुंच जाते हैं। रघु अपने ऑफिस रूम में पहुंचकर किसी मुद्दे पर कुछ वक्त तक सोच विचार करता हैं फ़िर एक फोन करके कुछ देर बात करता हैं और मुस्कुराते हुए काम में लग जाता हैं। रघु एक बार फिर से काम करने में मग्न हों जाता है। काम करने में इतना मगन हों जाता हैं कि उसे ध्यान ही नहीं रहता की शाम के 7 बज चुका हैं। मुंशी इस वक्त घर जा रहा था जाने से पहले रघु के पास आया। रघु को ऑफिस में काम करता हुआ देखकर मुंशी बोला... रघु बेटा 7 बज गए है कब तक ओर काम करना है। घर नहीं जाना है।

रघु...kyaaa 7 बज गए हैं। क्या काका थोडी देर पहले नहीं बोल सकते थे। कितना लेट हों गया हूं।


इतना बोलकर रघु जल्दी जल्दी से बिखरे पड़े फाइलों को समेटने लग गया। रघु को जल्दी बाजी करता देखकर मुंशी बोला... अरे अचानक तुम्हें क्या हों गया जो इतनी जल्दी बाजी मचा दिया।

रघु... काका आज रात के खाने पर आपके बहू को बाहर लेकर जाना था पर मैं काम मे इतना खो गया की ध्यान ही नहीं रहा।

मुंशी...Oooo तो ये बात हैं। तो फिर तुम जाओ तुम्हें देर हों रहा होगा। सभी फाइलो को मैं समेट देता हू।

रघु हां बोलकर चल दिया और मुंशी बिखरे पड़े फाइलों को करीने से रखने लग गया। सभी फाइलों को सहेज कर करीने से रखने के बाद मुंशी भी घर को चल दिया।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले भाग से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।🙏🙏🙏
Badhiya update jab koi kaam me kho jata hai fir usko time ka andaja nai rahta hai
 
Reading
Moderator
395
672
93
Update - 48

एक बार फ़िर से हसी और ठहको का शमा बंद गया। अभी अभी जो मां को याद करके रो रहीं थी। वो कमला अब रोना धोना भूलकर देवर के किए गए मस्करी का लुप्त ठहाके लगाकर हंसकर ले रहीं हैं। कुछ वक्त तक हसीं ठहाके चलता रहा फिर अपश्यु बोला...भाभी आप न ऐसे ही हंसते मुस्कुराते रहा करो आप'का रोता हुआ चेहरा बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता और रोने धोने वाला काम इस महारानी पुष्पा के जिम्मे छोड़ दिया करो क्योंकि पुष्पा के रोने का ढंग बहुत अलग हैं जिसे देखकर सिर्फ हंसी आती हैं।

पुष्पा humhuuu की स्वर निकलकर घुर्राते हुए बोला… bhaiyaaa...।

अपश्यु... गुस्सा करने का कोई फायदा नहीं तुझे शायद याद नहीं तू बचपन में रोते हुए कितनी अजीब लगती थी यकीन न हों तो बड़ी मां से ही पूछ ले। फ़िर सुरभि की और देखकर बोला…बड़ी मां आप'को तो याद होगा बचपन में पुष्पा के रोने का ढंग कितना अलग था। जिसे देखने के लिए बार बार मैं उसे रुलाया करता था।

भाई के इतना बोलते ही पुष्पा मां की ओर आंखे मोटी करके देखने लग गई जैसे कह रही हों बिल्कुल भी भईया के हां में हां न मिलना नहीं तो अच्छा नहीं होगा। बेटी की हरकते देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली... हां हां मुझे अच्छे से याद हैं पहले तू पुष्पा को रुलाता था बाद में छोटी तुझे रूलाती थी फ़िर दोनों भाई बहन में होड़ लग जाती थीं कौन कितना तेज रो सकता हैं। छोटी पुष्पा को मना लेता था लेकिन तू किसी के मानने से नहीं मानता था। रोते हुऐ पूरे घर में लोट पोट करने लग जाता था।

भाभी के सामने बचपन का भेद खुलते देखकर अपश्यु बुरा सा मुंह बनाते हुए बोला... बडी मां क्या जरूरत थी मेरे बचपन का भेद खोलने कि, भाभी के सामने अपने मेरे इज्जत का फालूदा बना दिया।

पुष्पा... अभी कहा आपके इज्ज़त का फालूदा बना हैं फालूदा तो अब बनेगा। भाभी भईया जब बचपन में रोते थे तब न उनका नाक बहता था। सिर्फ नाक बहता तो ठीक था भईया surupppp जीभ निकालकर चाट लेते थे। छी गंदे भईया आप'को घिन्न नहीं आती थीं।

पुष्पा के suruppp कहने का ढंग इतना निराला था की अपश्यु को छोड़कर बाकी सभी हंस दिया और अपश्यु मुंह लटकाकर बैठ गया। देवर का मुंह लटका हुआ देखकर कमला बोलीं...ननद रानी सिर्फ देवर जी का नाक बहता था कि तुम्हारा भी नाक बहता था। बोलों बोलों अपनी बात क्यों छुपा लिया।

पुष्पा…नहीं बिल्कुल नहीं आप मेरी नाक बहने की बात कर रहीं हों, मेरी नाक छोड़ो आंसू भी नहीं निकलते थे और अजीब सा मुंह बनाकर रोती थीं तभी तो भईया मुझे बार बार रुलाते थे।

भाई का भेद खोलते खोलते पुष्पा ने ख़ुद का भेद ख़ुद ही खोल दिया जिसे सुनकर सभी हंसने लग गए और पुष्पा मुंह पर हाथ रखकर बोलीं...ahaaa ये क्या किया बोला दिया।

एक बार फ़िर से सभी ओर जोर जोर से ठहाके लगाकर हंसने लग गए और अपश्यु मौके का फायदा उठाते हुए अजीब अजीब सा मुंह बनाकर पुष्पा को चिड़ने लग गया। जिसे देखकर पुष्पा बोलीं... भईया आप मुझे चिड़ा रहें हों देखना मैं आपकी शिकायत कर दूंगी। किससे करू शिकायत हां रघु भईया से करूंगी, नहीं नहीं रघु भईया नहीं वो तो आपको कुछ नहीं कहेंगे। हा पापा से करूंगी, नहीं नहीं पापा से भी नहीं वो तो आपकी गलती मानेंगे ही नहीं, हां चाचा से करूंगी और चाचा जब आपको कूटेंगे तब मैं भी ऐसे ही मुंह बनाकर आपको चिड़ाऊगी।

अपश्यु... हां हां कर देना तब मुझे बचाने के किए बड़े पापा और दादा भाई होंगे तेरे शिकायत करने का कोई फायदा नहीं होगा ही ही ही।

इसके बाद दोनों भाई बहन में एक जंग जैसा छिड़ गया और दोनों भाई बहन एक दूसरे के बारे में तरह तरह की बाते बताने लग गए। जिसका नतीजा ये होता कभी पुष्पा चीड़ जाती तो कभी आपश्यू चीड़ जाता। कभी पुष्पा खिल्ली उड़ाता तो कभी आपश्यू खिल्ली उड़ता।

सुरभि सुकन्या और कमला दोनों भाई बहनों को रोकने के जगह सिर्फ हंसी और ठहके लगा रहे थे। हर मानने को दोनों में से कोई राजी नहीं हों रहा था। लंबे वक्त तक दोनों भाई बहन में लड़ाई कहो या मजाक चलता रहा। अचानक कमला की नज़र घड़ी की ओर गया। घड़ी इस वक्त दोपहर के एक बजे का समय दिखा रहा था। यहां देखकर कमला बोली... अरे बाप रे एक बाज गया ओर मुझे ध्यान ही नहीं रहा। अच्छा देवर जी आप अपना पसंद बता दो जिससे की मैं आपके पसंद का भोजन बना दूं।

सुरभि... बहू अभी रहने दो अब तक रतन दादा भाई ने भोजन बना लिया होगा तुम शाम को बना लेना।

अपश्यु... हां भाभी आप शाम को भोजन बना लेना मैं तब तक प्रतीक्षा कर लूंगा।

पुष्पा... भाभी अपने बीच में टोककर अच्छा नहीं किए आपके इस गलती के लिए आपको सजा मिल सकता है पर मेरा मन अभी आपको सजा देने का नहीं कर रहा हैं। मेरे मन अभी विश्राम करने को कर रहा हैं। इसलिए मैं चली विश्राम करने जब भोजन लग जाए तो मुझे बुला लेना।

इतना बोलकर पुष्पा अंगड़ाई लेते हुए उठी ओर अपने रूम की ओर चल दिया। पुष्पा को जाते देखकर अपश्यु कुछ बोलने ही वाला था की सुकन्या उसे रोकते हुए बोला... बस बस बहुत हो गया अब एक लावज भी नहीं बोलना। मेरी बच्ची को बहुत परेशान कर लिया अब जा तू भी थोडा विश्राम कर ले जब भोजन लग जायेगा तब तुझे बुला लूंगी।

अपश्यु... अच्छा अच्छा जाता हूं।

इतना बोलकर अपश्यु चला गया। उसके बाद तीनों महिलाएं भी अपने अपने रूम में चले गए। सभी के गए अभी घंटा भर ही बीता था कि वाबर्ची रतन का बुलावा सभी के पास पहुंच गया कि आकर भोजन कर लीजिए भोजन लगा दिया हैं। एक एक कर सभी अपने अपने कमरे से निकलकर आए और डायनिंग मेज पर बैठ गए। बस भोजन परोसने की देर थी थाली साफाचट होने में समय नहीं लगना था। बरहाल भोजन परोसा गया और बातों में मशगूल होकर सभी ने भर पेट भोजन कर लिया। तत्पश्चात सभी अपने अपने रूम में विश्राम करने चले गए।

जहां दूसरे कमरे में सभी दोपहर की मीठी नींद लेने की तैयारी में थे वहीं अपश्यु शांत बैठे टेलीफोन बाबू को उंगली कर करके परेशान करने में लगा हुआ था। दरअसल अपश्यु किसी को फोन कर रहा था पर उधर से कोई जवाब ही नहीं आ रहा था। अंतः थक हार कर अपश्यु ने कॉल करना बंद कर दिया ओर बोला... क्या मुसीबत हैं एक तो पहले से ही बैड बाजी पड़ी हैं ऊपर से ये डिंपल भी छोटी छोटी बातों पर नाराज हों जाती हैं। जब कहा था बाद में बता दूंगा पर नहीं उसे तो अभी के अभी जाना हैं। चलो देखते है डिंपल कब तक मुझसे नाराज रहती हैं।

इतना बोलकर अपश्यु दोपहर की मीठी नींद लेने की तैयारी में लग गया। अपश्यु की नींद कितना मीठा होगा ये सिर्फ ऊपर वाला ही जानता हैं। यहां महल में सभी दोपहर की नींद ले रहें थे। उधर रावण और राजेंद्र ऑफिस पहुंचकर कुछ वक्त तक आने वाले इतवार को महल में होने वाली पार्टी पर कुछ विशेष चर्चा किया फ़िर दोनों भाई आगे की तैयारी करने चल पड़े।

जब से रघु ऑफिस पहुंचा तभी से वो फाइलों में उलझ कर रह गया। हालही में मिला नया कांट्रेक्ट को समय रहते कैसे पूरा किया जाएं उसी का रोड मैप तैयार कर रहा था। ये बांदा भी अजीब है सुबह ऑफिस आने को राजी नहीं हों रहा था लेकिन अब देखो काम में इतना मगन हों गया की कुछ सूद ही नहीं रहा। दोपहर के खाने का समय हों चुका हैं पर लगाता है रघु की भूख प्यास मार चुका हैं।

ऑफिस में काम करने वाले सभी वर्कर दोपहर के खाने का लुप्त ले रहे हैं। ऐसे समय में किसी को ध्यान रहे या न रहें कि उनके मालिक ने खाना खाया की नहीं खाया पर मुंशी को इस बात का ध्यान था। तभी वो बैठे बैठे रघु का इंतेजार कर रहा था की कब रघु आए और साथ में दोनों भोजन करना शुरू करें। लांच का समय खत्म होने को आया पर रघु अभी तक नहीं आया। "रघु कहा रह गया" इतना बोलकर मुंशी वहा से चल दिया। रघु के ऑफिस रूम तक पहुंचकर मुंशी ने दरवाजा खटखटाया, दरवाजे पर हुई खटपट सुनकर रघु बोला... कौन हैं बाहर?

मुंशी... रघु बेटा मैं मुंशी!

रघु…अरे काका आप आइए अंदर आइए।

मुंशी अंदर पहुंचा ही था की रघु के सामने रखा टेलीफोन बज उठा, मुंशी को बैठने का इशारा कर रघु ने टेलीफोन रिसीवर को उठाकर कान से लगा लिया दूसरे ओर से कुछ बोला गया जिसके जवाब में रघु बोला... हां कमला बोलों मैं सुन रहा हूं।

जी हा ये फोन करने वाली कमला ही थी। जब रतन ने महल में सभी को भोजन करने बुलाया था। तब भोजन करने जाने से पहले कमला ने रघु को फोन किया था। रघु के बात का जवाब देते हुए कमला बोलीं... जी आपने भोजन कर लिया।

रघु...kyaaa दोपहर के भोजन का समय हों चुका ओर मुझे ध्यान ही नहीं रहा।

कमला... आप भी न निराले हों सुबह ऑफिस जा नहीं रहे थे और ऑफिस जाते ही काम में इतना खो गए की आपको सूद ही नहीं रहा दोपहर के भोजन का समय हों गया हैं। जाइए पहले भोजन कर लीजिए।

रघु... मैं भले ही भूल जाऊ पर तुम तो नहीं भूलती और मुझे ध्यान रखने की जरूरत ही क्या है जब तुम समय से फोन करके अगाह कर देती हों कि भोजन का समय हों गया है जाइए भोजन कर लीजिए। अच्छा ये बताओं तुमने भोजन कर लिया।

कमला...जी नहीं! मैं अभी भोजन करने जा ही रहीं हूं। आप भी भोजन कर लीजिए।

रघु... अच्छा बाबा जा रहा हूं। बाय शाम को मिलते है।

दोनों ने एक दूसरे को बाय बोलकर फोन रख दिया और मुंशी दोनों की बाते सुनकर मन ही मन मुस्कुरा रहा था। फोन रखने के बाद रघु बोला... काका कुछ काम था।

मुंशी... हां काम तो था पर मेरे बोलने से पहले बहू रानी ने बोला दिया अब चलो भोजन कर लेते हैं।

रघु... Oooo तो आपने भी भोजन नहीं किया चलिए फिर जल्दी से भोजन कर लेते हैं।

दोनों साथ में भोजन करने चल देते हैं। कुछ ही वक्त में दोनों भोजन करके अपने अपने जगह पहुंच जाते हैं। रघु अपने ऑफिस रूम में पहुंचकर किसी मुद्दे पर कुछ वक्त तक सोच विचार करता हैं फ़िर एक फोन करके कुछ देर बात करता हैं और मुस्कुराते हुए काम में लग जाता हैं। रघु एक बार फिर से काम करने में मग्न हों जाता है। काम करने में इतना मगन हों जाता हैं कि उसे ध्यान ही नहीं रहता की शाम के 7 बज चुका हैं। मुंशी इस वक्त घर जा रहा था जाने से पहले रघु के पास आया। रघु को ऑफिस में काम करता हुआ देखकर मुंशी बोला... रघु बेटा 7 बज गए है कब तक ओर काम करना है। घर नहीं जाना है।

रघु...kyaaa 7 बज गए हैं। क्या काका थोडी देर पहले नहीं बोल सकते थे। कितना लेट हों गया हूं।


इतना बोलकर रघु जल्दी जल्दी से बिखरे पड़े फाइलों को समेटने लग गया। रघु को जल्दी बाजी करता देखकर मुंशी बोला... अरे अचानक तुम्हें क्या हों गया जो इतनी जल्दी बाजी मचा दिया।

रघु... काका आज रात के खाने पर आपके बहू को बाहर लेकर जाना था पर मैं काम मे इतना खो गया की ध्यान ही नहीं रहा।

मुंशी...Oooo तो ये बात हैं। तो फिर तुम जाओ तुम्हें देर हों रहा होगा। सभी फाइलो को मैं समेट देता हू।

रघु हां बोलकर चल दिया और मुंशी बिखरे पड़े फाइलों को करीने से रखने लग गया। सभी फाइलों को सहेज कर करीने से रखने के बाद मुंशी भी घर को चल दिया।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले भाग से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।🙏🙏🙏
बहुत सुंदर लिखा है....

अपश्यु और पुष्पा का अपनी भाभी का इस तरह से खयाल रखना दिल को छू गया....देवर और ननद रानी दोनो के बचपन में घटित घटनाओं के रोचक किस्से कहानियों ने सच में कमला मन हल्का कर दिया.... अभी कुछ देर पहले जो मायूसी उसके चेहरे पर आ गई थी वो तो पूरी तरह गायब ही हो गई.... उपरवाला करे इनका ये प्यार हमेशा यू ही बना रहे...

ओर दूसरी ओर मुंशी काका है...ये भी सच में बहुत ही नेक इंसान है ,रघु के खाने से लेकर उसके घर समय से जाने तक उसका खयाल अपने बच्चे की तरह रखते है...पर अब कमला के आने से उन्हें रघु की चिंता नहीं रहने वाली....कमला का भी खाने के समय अपने पति का ध्यान रखना अपने पतिव्रता संस्कार और प्यार को अच्छे से दर्शाता है…..

लेकिन आखिरकार यहा रघु अपना वादा भूल ही गया...पर अभी भी समय है, देखते है रात्रि का भोजन रघु और कमला कहा करते है....

बहुत ही शानदार लेखनी है भाई....हर भाग अपने आप में बहुत सी बाते समेटे बैठा है.... उम्मीद है अगला भाग और भी रोमांचक होगा....अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी भाई।
 

Top