Erotica अनैतिक (hindi edition)- प्रियांशी जैन

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अनैतिक (hindi edition)- प्रियांशी जैन

अश्विनी कुछ महीनों की होगी की कुछ ऐसा भयानक हुआ जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता. अश्विनी की माँ और गोपाल भैया में जरा भी नहीं बनती थी. गोपाल भैया हर छोटी छोटी बात पर अश्विनी की माँ पर हाथ छोड़ दिया करता था. अश्विनी के जन्म के बाद तो भाभी की हालत और भी ख़राब हो गई. गोपाल भैया उससे ढंग से बोलते-बतियाते भी नहीं थे. इसका कारन ये था की उन्हें लड़के की चाहत थी ना की लड़की की. अश्विनी को उन्होंने कभी अपनी गोद में भी नहीं उठाया था प्यार करना तो दूर की बात थी.
मेरी (सागर) उम्र उस समय पांच छे साल की थी और तभी एक अनहोनी घटी! भाभी को हमारे खेतों में काम करने वाले एक लड़के से प्रेम हो गया.और प्रेम इस कदर परवान चढ़ गया की एक दिन वो लड़का भाभी को भगा के ले गया.जब ये बात सुबह सबको पता चली तो तुरंत सरपंचों को बुलाया गया और सरपँच ने गाँव के लठैतों को बुलावा भेजा. 'बाहू' उन लठैतों का सरगना था और जब उसे सारी बात बताई गई तो उसने एक हफ्ते का समय माँगा और अपने सारे लड़के चारों दिशाओं में दौड़ा दिये. किसी को उस लड़के के घर भेजा जो भाभी को भगा के ले गया था तो किसी को भाभी के मायके.सारे रिश्तेदारों से उसने सवाल-जवाब शुरू कर दिए ताकि उसे किसी तरह का सुराग मिले इधर अश्विनी को इस बात का पता भी नहीं था की उसकी अपनी माँ उसे छोड़ के भाग गई है और वो बेचारी अकेली रो रही थी. वो तो मेरी माँ थी जिन्होंने उसे अपनी गोद में उठाया और उसका ख़याल रखा.
छः दिन गुजरे थे की बाहू भाभी और उनके प्रेमी उस लड़के को उठा के सरपंचों के सामने उपस्थित हो गया.बाहु अपनी गरजती आवाज में बोला; 'मुखिया जी दोनों को लखनऊ से दबोच के ला रहा हु. ये दोनों दिल्ली भागने वाले थे! पर ट्रैन में चढ़ने से पहले ही दबोच लिया हमने. भाभी को देख के गोपाल भैया का गुस्सा फुट पड़ा और उसने एक जोरदार तमाचा भाभी के गाल पर दे मारा. पंचों ने गोपाल भैया को इशारे से शाँत रहने को कहा. मुखिया जी उठे और उन्होंने जो गालियाँ देनी शुरू की और उस लड़के के खींच-खींच के तमाचे मारे की उस लड़के की हालत ख़राब हो गई. भाभी हाथ जोड़ के मिन्नतें करने लगी की उसे छोड़ दो पर अगले ही पल मुखिया का तमाचा भाभी को भी पडा.
'तेरी हिम्मत कैसे हुई हमारे गाँव के नाम पर थूकने की? घर से बहार तूने पैर निकाला तो निकाला कैसे?” ये देख के सभी सर झुका के खड़े हो गए! मुखिया ने बाहु की तरफ देखा और जोर से चिल्ला कर बोले; 'बाहु ले जाओ दोनों को और उस पेड़ से बाँध कर जिन्दा जला दो!' ये सुन के सभी मुखिया को हैरानी से देखने लगे पर किसी की हिम्मत नहीं हुई कुछ कहने की.
बाहु ने दोनों को जोरदार तमाचा मारा. भाभी और वो लड़का जमीन पर जा गिरे. फिर वो दोनों को जमीन पर घसींट के खेत के बीचों-बीच लगे पेड़ की और चल दिया. दोनों ने बड़ी मिन्नतें की पर बाहु पर उसका कोई फर्क नहीं पडा. उसके बलिष्ठ हाथों की पकड़ जरा भी ढीली नहीं हुई. उसने दोनों को अलग अलग पेड़ों से बाँध दिया. फिर अपने चमचों को इशारे से लकड़ियाँ लाने को कहा. चमचों ने सारी लकड़ियाँ भाभी और उस लड़के के इर्द-गिर्द लगा दी और पीछे हट गये. बाहु ने मुड़ के मुखिया के तरफ देखा तो मुखिया ने हाँ में अपनी गर्दन हिलाई और फिर बाहु ने अपने कुर्ते की जेब से माचिस निकाली और एक तिल्ली जला के लड़के की ओर फेंकी.
कुछ दो मिनट लगे होंगे लकड़ियों को आग पकड़ने में और इधर भाभी और वो लड़का दोनों छटपटाने लगे. फिर उसने भाभी की तरफ देखा और एक और तिल्ली माचिस से जला कर उनकी और फेंक दी. भाभी और वो लड़का धधकती हुई आग में चीखते रहे ... चिलाते रहे.... रोते रहे ... पर किसी ने उनकी नहीं सुनी. सब हाथ बाँधे ये काण्ड देख रहे थे. ये फैसला देख और सुन सभी की रूह काँप चुकी थी और अब किसी भी व्यक्ति के मन में किसी दूसरे के लिए प्यार नहीं बचा था.
जब आग शांत हुई तो दोनों प्रेमियों की राख को इकठ्ठा किया गया और उसे एक सूखे पेड़ की डाल पर बांध दिया गया.ये सभी के लिए चेतावनी थी की अगर इस गाँव में किसी ने किसी से प्यार किया तो उसकी यही हालत होगी. मैं चूँकि उस समय बहुत छोटा था तो मुझे इस बात की जरा भी भनक नहीं थी. अश्विनी तो थी ही इतनी छोटी की उसकी समझ में कुछ नहीं आने वाला था. इस वाक्या के बाद सभी के मन में मुखिया के प्रति एक भयानक खौफ जगह ले चूका था. कोई भी अब मुखिया से आँखें मिला के बात नहीं करता था. सभी का सर उनके सामने हमेशा झुका ही रहता था.
पूरे गाँव में उनका दबदबा बना हुआ था जिसका उन्होंने भरपूर फायदा भी उठाया. आने वाले कुछ सालों में वो चुनाव के लिए खड़े हुए और भारी बहुमत से जीत हासिल की. सभी को अपने जूते तले दबाते हुए क्षेत्र के विधायक बने. बाहु लठैत उनका दाहिना हाथ था और जब भी किसी ने उनसे टकराने की कोशिश की तो उसने उस शक़्स का नामो-निशाँ मिटा दिया गया.
इस दर्दनाक अंत के बाद घरवालों ने गोपाल भैया की शादी दुबारा करा दी और जो नई दुल्हन आई वो बहुत ही काइयाँ निकली! अश्विनी उसे एक आँख नहीं भाति थी और हमेशा उसे डाँटती रहती थी. बस कहने को वो उसकी माँ थी पर उसका ख्याल जरा भी नहीं रखती थी. मैं अब बड़ा होने लगा था और अश्विनी के साथ हो रहे अन्याय को देख मुझे उस पर तरस आने लगता. मैं भरसक कोशिश करता की उसका मन बस मेरे साथ ही लगा रहे.तो कभी मैं उसके साथ खेलता, कभी उसे टॉफी खिलाता और अपनी तरफ से जितना हो सके उसे खुश रखता.
जब वो स्कूल जाने लायक हुई तो उसकी रूचि किताबों में बढ़ने लगी. जब भी मैं पढ़ रहा होता तो वो मेरे पास चुप चाप बैठ जाती और मेरी किताबों के पन्ने पलट के उनमें बने चित्र देख कर खुश हो जाया करती. मैंने उसका हाथ पकड़ के उसे उसका नाम लिखना सिखाया तो उन अक्षरों को देख के उसे यकीन ही नहीं हुआ की उसने अभी अपना नाम लिखा हे. अब चूँकि घर वालों को उसकी जरा भी चिंता नहीं थी तो उन्होंने उसे स्कूल में दाखिल नहीं कराया.पर वो रोज सुबह जल्दी उठ के बच्चों को स्कूल जाते हुए देखा करती. मैंने घर पर ही उसे ए बी सी डी पढ़ना शुरू किया और वो ख़ुशी-ख़ुशी पढ़ने भी लगी.
एक दिन पिताजी ने मुझे उसे पढ़ाते हुए देख लिया परन्तु कुछ कहा नहीं.रात में जब हम खाना खाने बैठे तो उन्होंने मुझसे कोई बात नहीं की. मुझे लगा शायद पिताजी को मेरा अश्विनी को पढ़ाना अच्छा नहीं लगा. अगली सुबह में स्कूल में था तभी मुझे पिताजी और अश्विनी स्कूल में घुसते हुए दिखाई दिये. मैं उस समय अपनी क्लास से निकल के पानी पीने जा रहा था और पिताजी को देख मैं उनकी तरफ दौडा. पिताजी ने मुझसे हेडमास्टर साहब का कमरा पूछा और जब मैंने उन्हें बताया तो बिना कुछ बोले वहाँ चले गये. पिताजी को स्कूल में देख के डर लग रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे वो यहाँ मेरी कोई शिकायत ले के आये हैं और मैं मन ही मन सोचने लगा की मैंने पिछले कुछ दिनों में कोई गलती तो नहीं की? मैं इसी उधेड़-बुन में था की पिताजी मुझे हेडमास्टर साहब के कमरे से निकलते हुए नज़र आये और बिना कुछ बोले अश्विनी को लेके घर की तरफ चले गये.
जब मैं दोपहर को घर पहुँचा तो अश्विनी बहुत खुश लग रही थी और भागती हुई मेरे पास आई और बोली; 'चाचू... दादा जी ने मेरा स्कूल में दाखिला करा दिया!' ये सुनके मुझे बहुत अच्छा लगा और फिर इसी तरह हम साथ-साथ स्कूल जाने लगे.
अश्विनी पढ़ाई में मुझसे भी दो कदम आगे थी. मैंने जो झंडे स्कूल में गाड़े थे वो उनके भी आगे निकल के अपने नाम के झंडे गाड़ रही थी. स्कूल में अगर किन्हीं दो लोगों की सबसे ज्यादा तारीफ होती तो वो थे मैं और अश्विनी. जब में दसवीं में आया तब अश्विनी पाँचवीं में थी और इस साल मेरी बोर्ड की परीक्षा थी. मैं मन लगाके पढ़ाई किया करता और इस दौरान हमारा साथ खेलना-कूदना अब लगभग बंद ही हो गया था. पर अश्विनी ने कभी इसकी शिकायत नहीं की बल्कि वो मेरे पास बैठ के चुप-चाप अपनी किताब से पढ़ा करती. जब मैं पढ़ाई से थक जाता तो वो मेरे से अपनी किताब के प्रश्न पूछती जिससे मेरे भी मन थोड़ा हल्का हो जाता.
दसवीं की बोर्ड की परीक्षा अच्छी गई और अब मुझे उसके परिणाम की चिंता होने लगी. पर जब भी अश्विनी मुझे गुम-सुम देखती वो दौड़ के मेरे पास आती और मुझे दिलासा देने के लिए कहती; 'चाचू क्यों चिंता करते हो? आप के नंबर हमेशा की तरह अच्छे आयेंगे. आप स्कूल में टॉप करोगे!' ये सुन के मुझे थोड़ी हँसी आ जाती और फिर हम दोनों खेलने लगते. आखिरकार परिणाम का दिन आ गया और मैं स्कूल में प्रथम आया था. परिणाम से घर वाले सभी खुश थे और आज घर पर दावत दी गई.
अश्विनी मेरे पास आई और बोली; 'देखा चाचू बोला था ना आप टॉप करोगे!' मैंने हाँ में सर हिलाया और उसके माथे को चुम लिया. फिर मैंने अपनी जेब से चॉकलेट निकाली और उसे दे दी. चॉकलेट देख के वो बहुत खुश हुई और उछलती-कूदती हुई चली गई.ग्यारहवीं में मेरे मन साइंस लेने का था परन्तु जानता था की घर वाले आगे और पढ़ने में खर्चा नहीं करेंगे और ना ही मुझे कोटा जाने देंगे. इसलिए मैंने मन मार के कॉमर्स ले ली और फिर पढ़ाई में मन लगा लिया. स्कूल में मेरे दोस्त ज्यादा नहीं थे और जो थे वो सब के सब मेरी तरह किताबी कीड़े! इसलिए प्यार आदि के बारे में मुझे कोई ज्ञान नहीं मिला और किसी लडकी से पूछने की हिम्मत भी नहीं थी. कौन जा के लड़की से बात करे? और कहीं उसने थप्पड़ मार दिया तो सारी इज्जत का भाजी-पाला हो जायेगा. इसी तरह दिन गुज़रने लगे और मैं बारहवीं में आया और फिर से बोर्ड की परीक्षा सामने थी. खेर इस बार भी मैंने स्कूल में टॉप किया.इस खुशी मे पिताजी ने शानदार जलसा किया जिसे देख घर के सभी लोग बहुत खुश थे. जलसा ख़तम हुआ तो अगले दिन से ही मैंने कॉलेज देखने शुरू कर दिये. कॉलेज घर से करीब ४ घंटे दूर था तो आखिर ये तय हुआ की मैं हॉस्टल में रहूँगा पर हर शुक्रवार घर आऊँगा और रविवार वापस हॉस्टल जाना होगा. जब ये बात अश्विनी को पता चली तो वो बेचारी बहुत उदास हो गई.
मैं: क्या हुआ आशु? (मैं अश्विनी को प्यार से आशु बुलाया करता था.)
अश्विनी: आप जा रहे हो? मुझे अकेला छोड़ के?
मैं: पागल... मैं बस कॉलेज जा रहा हूँ ... तुझसे दूर थोड़े ही जाऊँगा? और फिर मैं हर शुक्रवार आऊँगा ना.
अश्विनी: आपके बिना मेरे साथ कौन बात करेगा? कौन मेरे साथ खेलेगा? मैं तो अकेली रह जाऊँगी?
मैं: ऐसा नहीं है आशु! सिर्फ चार दिन ही तो मैं बहार रहूँगा ... बाद में फिर घर आ जाऊंगा.
अश्विनी: पक्का?
मैं: हाँ पक्का ... मे तुम्हे वचन देता हू..
अश्विनी को किया ये ऐसा वादा था जिसे मैंने कॉलेज के तीन साल तक नहीं तोडा. मैं हर शुक्रवार घर आ जाया करता और रविवार दोपहर हॉस्टल वापस निकल जाता. जब मैं घर आता तो अश्विनी खुश हो जाया करती और रविवार दोपहर को जाने के समय फिर दुखी हो जाया करती थी.
इधर कॉलेज के पहले ही साल मेरे कुछ 'काँड़ी' दोस्त बन गए जिनकी वजह से मुझे गांजा मिल गया और उस गांजे ने मेरी जिंदगी ही बदल दी. रोज रात को पढ़ाई के बाद में गांजा सिग्रेटे में भर के फूँकता और फ़ूँकते-फ़ूँकते ही सो जाया करता. सारे दिन की टेंशन लुप्त हो जाती और नींद बड़ी जबरदस्त आती. पर अब दिक्कत ये थी की गांजा फूँकने के लिए पैसे की जरुरत थी और वो मैं लाता कहाँ से? घर से तो गिनती के पैसे मिलते थे, तभी एक दोस्त ने मुझे कहा की तू कोई पार्ट टाइम काम कर ले!
आईडिया बहुत अच्छा था पर करूँ क्या? तभी याद ख्याल आया की मेरी एकाउंट्स बहुत अच्छी थी. सोचा क्यों न किसी को टूशन दूँ? पर इतनी आसानी से छडे लौंडे को कोई काम कहाँ देता है? एक दिन मैं दोस्तों के साथ बैठ चाय पी रहा था की मैंने अखबार में एक इश्तिहार पढ़ा: 'जरुरत है एक टीचर की' ये पढ़ते ही मैं तुरंत उस जगह पहुँच गया और वहाँ मेरा बाकायदा इंटरव्यू लिया गया की मैं कहाँ से हूँ और क्या करता हूँ? जब मैंने उन्हें अपने बारे में विस्तार से बताया और अपनी बारहवीं की मार्कशीट दिखाई तो साहब बड़े खुश हूये. फिर उन्होंने अपनी बेटी, जिसके लिए वो इश्तिहार दिया गया था उससे मिलवाया. एक दम सुशील लड़की थी और कोई देख के कह नहीं सकता की उसका बाप इतने पैसे वाला हे.
उसका नाम शालिनी था. उसने आके मुझे नमस्ते कहा और सर झुकाये सिकुड़ के सामने सोफे पर बैठ गई. उसके पिताजी ने उससे से मेरा तार्रुफ़ करवाया और फिर उसे अंदर से किताबें लाने को कहा. जैसे ही वो अंदर गई उसके पिताजी ने मेरे सामने एक शर्त साफ़ रख दी की मुझे उनकी बेटी को उनके सामने बैठ के ही पढ़ाना होगा. मैंने तुरंत उनकी बात मान ली और उसके बाद उन्होंने मुझे सीधे ही फीस के लिए पूछा! अब मैं क्या बोलूं क्या नहीं ये नहीं जानता था. वो मेरी इस दुविधा को समझ गए और बोले; १००/- प्रति घंटा. ये सुन के मेरे कान खड़े हो गए और मैंने तुरंत हाँ भर दी. इधर उनकी बेटी किताब ले के आई और मेरे सामने रख दी. ये किताब एकाउंट्स की थी जो मेरे लिए बहुत आसान था.
उस दिन के बाद से मैं उसे रोज पाँच बजे पढ़ाने पहुँच जाता और एक घंटा या कभी कभी डेढ़-घंटा पढ़ा दिया करता. वो पढ़ने में इतनी अच्छी थी की कभी-कभी तो मैं उसे डेढ़-घंटा पढ़ा के भी एक ही घंटा लिख दिया करता था. शालिनी के पहले क्लास टेस्ट में उसके सबसे अच्छे नंबर आये और ये देख उसके पिताजी भी बहुत खुश हुए और उसी दिन उन्होंने मुझे मेरी कमाई की पहली तनख्वा दी, पूरे ३०००/- रुपये! मेरी तनख्वा मेरे हाथों में देख मैं बहुत खुश हुआ और अगले दिन चूँकि शुक्रवार था तो मैंने सबसे पहले कॉलेज से बंक मारा और अश्विनी के लिए नए कपडे खरीदे.उसके बाद एक चॉकलेट का बॉक्स लेके मैं बस में चढ़ गया.
चार घंटे बाद में घर पहुँचा तो चुपचाप अपना बैग कमरे में रख दिया ताकि कोई उसे खोल के ना देखे. इधर दबे पाँव में अश्विनी के कमरे में पहुँचा और उसे चौंकाने के लिए जोर से चिल्लाया; 'सरप्राइज'!!! ये सुनते ही वो बुरी तरह डर गई और मुझे देखते ही वो बहुत खुश हुई. जैसे ही वो मेरी तरफ आई मैंने उसे कस के गले लगा लिया और बोला; 'जन्मदिन मुबारक हो आशु'!!! ये सुनके तो वो और भी चौंक गई और उसने आज कई सालों बाद मेरे गाल पर चुम लिया और 'शुक्रिया' कहा.
मैंने उसे अपने कमरे में भेज दिया और मेरा बैग ले आने को कहा. जब तक वो मेरा बैग लाइ मैं उसके कमरे में बैठा उसकी किताबें देख रहा था. उसने बैग ला के मेरे हाथ में दिया और मैंने उसमें से उसका तोहफा निकाल के उसे दिया. तोहफा देख के वो फूली न समाई और मुझे जोर से फिर गले लगा लिया और मेरे दोनों गालों पर बेतहाशा चूमने लगी. उसे ऐसा करते देख मुझे बहुत ख़ुशी हुई! घर में कोई नहीं था जो उसका जन्मदिन मनाता हो. मुझे याद है जब से मुझे होश आया था मैं ही उसके जन्मदिन पर कभी चॉकलेट तो कभी चिप्स लाया करता और उसे बधाई देते हुए ये दिया करता था और वो इस ही बहुत खुश हो जाया करती थी. जब की मेरे जन्मदिन वाले दिन घर में सभी मुझे बधाई देते और फिर मंदिर जाया करते थे. मुझे ये भेद-भाव कतई पसंद ना था परन्तु कुछ कह भी नहीं सकता था.
खेर अपना तौफा पा कर वो बहुत खुश हुई और मुझसे पूछने लगी;
अश्विनी: चाचू मैं इसे अभी पहन लूँ?
मैं: और नहीं तो क्या? इसे देखने की लिए थोड़ी ही दिया है तुझे?!
वो ये सुन के तुरंत नीचे भागी और बाथरूम में पहन के बहार आके मुझे दिखाने लगी. नारंगी रंग की जैकेट के साथ एक फ्रॉक थी और उसमें अश्विनी बहुत ही प्यारी लग रही थी. उसने फिर से मेरे गले लग के मुझे धन्यवाद दिया. परन्तु उसकी इस ख़ुशी किसी को एक आँख नहीं भाई. अचानक ही अश्विनी की माँ वहाँ आई और नए कपड़ों में देखते ही गरजती हुई बोली; 'कहाँ से लाई ये कपडे?' जब वो कमरे में दाखिल हुई और मुझे उसके पलंग पर बैठा देखा तो उसकी नजरें झुक गई. 'मैंने दिए हैं! आपको कोई समस्या है कपड़ों से?' ये सुन के वो कुछ नहीं बोली और चली गई. इधर अश्विनी की नजरें झुक गईं और वो रउवाँसी हो गई. “आशु .... इधर आ.” ये कहते हुए मैंने अपनी बाहें खोल दी और उसे गले लगने का निमंत्रण दिया. आशु मेरे गले लग गई और रोने लगी. 'चाचू कोई मुझसे प्यार नहीं करता' उसने रोते हुए कहा.
'मैं हूँ ना! मैं तुझसे प्यार नहीं करता तो तेरे लिए गिफ्ट क्यों लाता? चल अब रोना बंद कर और चल मेरे साथ. आज हम बाजार घूम के आते हैं.' ये सुन के उसने तुरंत रोना बंद किया और नीचे जा के अपना मुंह धोया और तुरंत तैयार हो के आ गई. मैं भी नीचे दरवाजे पर उसी का इंतजार कर रहा था. तभी मुझे वहाँ माँ और पिताजी दिखाई दिये. मैंने उनका आशीर्वाद लिया और उन्हें बता के मैं और अश्विनी बाजार निकल पडे. बाजार घर से करीब घंटा भर दूर था और जाने के लिए सड़क से जीप करनी होती थी. जब हम बाजार आये तो मैंने उससे पूछना शुरू किया की उसे क्या खाना है और क्या खरीदना है? पर वो कहने में थोड़ा झिझक रही थी. जबसे मैं बाजार अकेले जाने लायक हुआ था तब से मैं अश्विनी को उसके हर जन्मदिन पर बाजार ले जाया करता था. मेरे अलावा घर में कोई भी उसे अपने साथ बाजार नहीं ले जाता था और बाजार जाके मैंने कभी भी अपने मन की नहीं की.हमेशा उसी से पूछा करता था और वो जो भी कहती उसे खिलाया-पिलाया करता था. पर आज उसकी झिझक मेरे पल्ले नहीं पड़ी इसलिए मैंने उस खुद पूछ लिया; 'आशु? तू चुप क्यों है? बोलना क्या-क्या करना है आज? चल उस झूले पर चलें?' मैंने उसे थोड़ा सा लालच दिया. पर वो कुछ पूछने से झिझक रही थी.
मैं: आशु... (मैं उसे लेके सड़क के किनारे बनी टूटी हुई बेंच पर बैठ गया.)
अश्विनी: चाचू .... (पर वो बोलने से अभी भी झिझक रही थी.)
मैं: क्या हुआ ये तो बता? अभी तो तू खुश थी और अभी एक दम गम-सुम?
अश्विनी: चाचू... आपने मुझे इतना अच्छा ड्रेस ला के दिया..... इसमें तो बहुत पैसे लगे होंगे ना? और अभी आप मुझे बाजार ले आये ...और.... पैसे....
मैं: आशु तूने कब से पैसों के बारे में सोचना शुरू कर दिया? बोल?
अश्विनी: वो... घर पर सब मुझे बोलेंगे...
मैं: कोई तुझे कुछ नहीं कहेगा! ये मेरे पैसे हैं, मेरी कमाई के पैसे.
ये सुनते ही अश्विनी आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगी.
अश्विनी: आप नौकरी करते हैं? आप तो कॉलेज में पढ़ रहे थे ना? आपने पढ़ाई छोड़ दी?
मैं: नहीं पगली! मैं बस एक जगह पार्ट टाइम में पढ़ाता हु.
अश्विनी: पर क्यों? आपको तो पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए? दादाजी तो हर महीने पैसे भेजते हैं आपको! कहीं आपने मेरे जन्मदिन पर खर्चा करने के लिए तो नहीं नौकरी की?
मैं: नहीं .... बस कुछ ... खर्चे पूरे करने होते हे.
अश्विनी: कौन से खर्चे?
मैं: अरे मेरी माँ तुझे वो सब जानने की जरुरत नहीं हे. तू अभी छोटी है....जब बड़ी होगी तब बताऊँगा| अब ये बता की क्या खायेगी?(मैंने हँसते हुए बात टाल दी.)
अश्विनी ने फिर दिल खोल के सब बताया की उसे पिक्चर देखनी हे. मैं उसे ले के थिएटर की ओर चल दिया और दो टिकट लेके हम पिक्चर देखने लगे और फिर कुछ खा-पी के शाम सात बजे घर पहुंचे.
सात बजे घर पहुँचे तो ताऊ जी और ताई जी बहुत नाराज हूये.
ताऊ जी: कहाँ मर गए थे दोनों?
मैं: जी वो... आज आशु का जन्मदिन था तो.....(आगे बात पूरी होती उससे पहले ही उन्होंने फिर से झड़ दिया.)
ताऊ जी: जन्मदिन था तो? इतनी देर तक बहार घूमोगे तुम दोनों? कुछ शर्म हया है दोनों में या शहर पढ़ने जा के बेच खाई?
इतने में वहाँ पिताजी पहुँच गए और उन्होंने थोड़ा बीच-बचाव करते हुए डांटा.
पिताजी: कहा था ना जल्दी आ जाना? इतनी देर कैसे लगी?
मैं: जी वो जीप ख़राब हो गई थी. (मैंने झूठ बोला.)
ताऊ जी: (पिताजी से) तुझे बता के गए थे दोनों?
पिताजी: हाँ
ताऊ जी: तो मुझे बता नहीं सकता था?
पताजी: वो भैया मैं तिवारी जी के गया हुआ था वो अभी-अभी आये हैं और आपको बुला रहे हे.
ये सुनते ही ताऊ जी कमर पे हाथ रख के चले गए और साथ पिताजी भी चले गये. उनके जाते ही मैंने चैन की साँस ली और अश्विनी की तरफ देखा जो डरी-सहमी सी खड़ी थी और उसकी नजरें नीचे झुकी हुई थी.
मैं: क्या हुआ?
अश्विनी: मेरी वजह से आपको डाँट पड़ी!
मैं: अरे तो क्या हुआ? पहली बार थोड़े ही है? छोड़ ये सब और जाके कपडे बदल और नीचे आ.
अश्विनी सर झुकाये चली गई और मैं आंगन में चारपाई पर बैठ गया.तभी वहाँ माँ आई और उन्होंने भी मुझे डाँट लगाई. वो रात ऐसे ही बित गयी.
अगली सुबह मैं अपने दोस्त से मिलने गया. ये वही दोस्त है जिसके पिताजी यानि तिवारी जी कल रात को आये थे.
प्रकाश चौबे: और भाई सागर! क्या हाल-चाल? कब आये?
मैं: अरे कल ही आया था. और तू सुना कैसा है?
प्रकाश चौबे: अरे अपना तो वही है! लुगाई और ठुकाई!
मैं: साले तू नहीं सुधरा! खेर कम से कम तू अपने पिताजी के कारोबार में ही उनका हाथ तो बटाने लगा! अच्छा ये बता यहाँ कहीं माल मिलेगा?
प्रकाश चौबे: हाँ है ना! बहुत मस्त वाला और वो भी तेरे घर पर ही है!
मैं: क्या बकवास कर रहा है?
प्रकाश चौबे: अबे सच में! तेरी भाभी.... हाय-हाय क्या मस्त माल है!
मैंने: (उसका कॉलर पकड़ते हुए) हरामी साले चुप करजा वरना यहीं पेल दूँगा तुझे!
प्रकाश चौबे: अच्छा-अच्छा.......... माफ़ कर दे यार.... सॉरी!
मैं ने उसका कॉलर छोड़ा और जाने लगा तभी उसने आके पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखा और कान पकड़ के माफ़ी माँगने लगा.
प्रकाश चौबे: भाई तेरी बचपन की आदत अभी तक गई नहीं है! साला अभी भी हर बात को दिल से लगा लेता हे.
मैं: परिवार के नाम पर कोई मजाक बर्दाश्त नहीं है मुझे! और याद रखिओ इस बात को दुबारा नहीं समाझाऊंगा.
प्रकाश चौबे: अच्छा यार माफ़ कर दे! आगे से कभी ऐसा मजाक नहीं करुंगा. चल तुझे माल पिलाता हूँ!
खेत पर एक छप्पर था जहाँ उसका टूबवेल लगा था. वहीँ पड़ी खाट पर मैं बैठ गया और उसने गांजा जो एक पुटकी में छप्पर में खोंस रखा था उसे निकला और फिर अच्छे से अंगूठे से मला. फिर वही मला हूअा गांजा सिगरेट में भर के सिगरेट मेरी ओर बढ़ा दी. मैंने सिगरेट मुंह पर लगाईं और सुलगाई. पहला कश मारते ही दिमाग सुन्न पड़ने लगा और मैं उसकी चारपाई पर लेट के मधोष होणे लगा. सिगरेट आधी हुई तो उसने मेरे हाथ से सिगरेट ले ली और वो भी फूँकने लगा.
प्रकाश चौबे: और बता ... कोई लड़की-वड़की पटाई या नही ?
मैं: साले फर्स्ट ईयर में हूँ ...अभी घंटा कोई लड़की नहीं मिली जिसे देख के दिल से आह निकल जाए!
प्रकाश चौबे: अबे तेरा मन नहीं करता पेलने का? हरामी स्कूल टाइम से देख रहा हूँ साला अभी तक हथ्थी लगाता हे.
मैं: अबे यार किससे बात करूँ.सुन्दर लड़की देख के लगता है की पक्का इसका कोई न कोई बॉयफ्रेंड होगा. फिर खुद ही खुद को रिजेक्ट कर देता हु.
प्रकाश चौबे: अबे तो शादी कर ले!
मैं: पागल है क्या? शादी कर के खिलाऊँगा क्या बीवी को?
प्रकाश चौबे: अपना हथियार और क्या?
मैं: हरामी तू नहीं सुधरेगा!!!
प्रकाश चौबे: अच्छा ये बता ये माल कब फूँकना शुरू किया?
मैं: यार कॉलेज के पहले महीने में ही कुछ दोस्त मिल गए और फिर घर की याद बहुत आती थी. इसे फूँकने के बाद दिमाग सुन्न हो जाता और मैं चैन से सो जाया करता था.
प्रकाश चौबे: अच्छा ये बता, रंडी पेलेगा?
मैं: पागल हो गया है क्या तू?
 
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प्रकाश चौबे: अबे फट्टू साले! तेरे बस की कुछ नहीं है!
मैं: हरामी मैं तेरी तरह नहीं की कोई भी लड़की पेल दूँ! प्यार भी कोई चीज होती है?!
प्रकाश चौबे: ओये चिरांद ये प्यार-व्यार क्या होता है बे? हरामी पता नहीं तुझे तेरी भाभी के बारे में?
मैं: (चौंकते हुए) क्या बोल रहा है तू?
और फिर प्रकाश ने मुझे सारी कहानी याद दीलाई. जिसे सुन के सारा नशा काफूर हो गया.खेत में खड़ा वो पेड़ जिसमें दोनों प्रेमियों की अस्थियां हैं जहाँ पिताजी कभी जाने नहीं देते थे वो सब याद आने लगा. ये सब सुन के तो बुरी तरह फट गई और दिल में जितने भी प्यार के कीड़े थे सब के सब मर गए! मैंने फैसला कर लिया की चाहे जो भी हो जाये प्यार-व्यार के चक्कर में नहीं पडूँगा! खेर उस दिन के बाद मेरे मन में प्यार की कोई जगह नहीं रह गई थी. मैंने खुद का ध्यान पढ़ाई और पार्ट-टाइम जॉब में लगा दिया और जो समय बच जाता उसमें मैं अश्विनी के साथ कुछ खुशियां बाँट लेता.
दो साल और निकल गए और मैं थर्ड ईयर में आ गया और अश्विनी भी दसवीं कक्षा में आ गई. अब इस साल उसके बोर्ड के पेपर थे और उसका सेंटर घर से कुछ दूर था तो अब घर वालों को तो कोई चिंता थी नही. उनकी बला से वो पेपर दे या नहीं पर मैं ये बात जानता था इसलिए जब उसकी डेट-शीट आई तो मैं ने उससे उसके सेंटर के बारे में पूछा. वो बहुत परेशान थी की सेंटर कैसे जाएगी? उसकी एक-दो सहलियां थी पर उनका सेंटर अलग पड़ा था!
मैं: आशु? क्या हुआ परेशान लग रही है?
अश्विनी: (रोने लगी) चाचू ... मैं....कल पेपर नहीं दे पाऊँगी! सेंटर तक कैसे जाऊँ? घर से अकेले कोई नहीं जाने दे रहा और पापा ने भी मना कर दिया? दादाजी भी यहाँ नहीं हैं!
मैं: (आशु के सर पर प्यार से एक चपत लगाई) अच्छा ?? और तेरे चाचू नहीं हैं यहाँ?
अश्विनी: चाचू ... पेपर तो सोमवार को है और आप तो रविवार को चले जाओगे?
मैं: पागल ... मैं नहीं जा रहा! जब-जब तेरे पेपर होंगे मैं ठीक एक दिन पहले आ जाऊंगा.
और हुआ भी यही .... मैं पेपर के समय अश्विनी को सेंटर छोड़ देता और जब तक वो बहार नहीं आती तब तक वहीँ कहीं घूमते हुए समय पार कर लेता और फिर उसे ले के घर आ जाता. रास्ते में हम उसी के पेपर को चर्चा करते जिससे उसे बहुत ख़ुशी होती. सारे पेपर ख़तम हुए और आप रिजल्ट का इंतजार था. इधर घर वालों ने उसकी शादी के लिए लड़का ढूँढना शुरू कर दिया. जब ये बात अश्विनी को पता चली तो उसे बहुत बुरा लगा क्योंकि वो हर साल स्कूल में प्रथम आया करती थी. पर घर वाले हैं की उनको जबरदस्ती उसकी शादी की पड़ी थी.
अश्विनी अब मायूस रहने लगी थी और मुझसे उसकी ये मायूसी नहीं देखि जा रही थी. परन्तु मैं कुछ कर नहीं सकता था. शुक्रवार शाम जब मैं घर पहुँचा तो अश्विनी मेरे पास पानी ले के आई पर उसके चेहरे पर अब भी गम का साया था. रिजल्ट रविवार सुबह आना था पर घर में किसी को कुछ भी नहीं पड़ी थी. मैंने ताई जी और माँ से अश्विनी के आगे पढ़ने की बात की तो दोनों ने मुझे बहुत तगड़ी झड़ लगाईं! ''इसकी उम्र में लड़कियों की शादी हो जाती है!' ये कह के उन्होंने बात खत्म कर दी और मैं अपना इतना सा मुंह ले के ऊपर अपने कमरे में आ गया.कुछ देर बाद अश्विनी मेरे पास आई और बोली; ''चाचू... आप क्यों मेरी वजह से बातें सुन रहे हो? रहने दो... जो किस्मत में लिखा है वो तो मिलके रहेगा ना?'
'किस्मत बनाने से बनती है, उसके आगे यूँ हथियार डालने से कुछ नहीं मिलता.' इतना कह के मैं वहाँ से उठा और घर से निकल गया.
शनिवार सुबह मैं उठा और फिर घूमने के लिए घर से निकल गया.शाम को घर आया और खाना खाके फिर सो गया.रविवार सुबह मैं जल्दी उठा और नाहा-धो के तैयार हो गया.मैंने अश्विनी को आवाज दी तो वो रसोई से निकली और मेरी तरफ हैरानी से देखने लगी; 'जल्दी से तैयार होजा, तेरा रिजल्ट लेने जाना हे.' पर मेरी इस बात का उस पर कोई असर ही नहीं पड़ा वो सर झुकाये खड़ी रही. इतने में उसकी सौतेली माँ आ गई और बीच में बोल पड़ी; 'कहाँ जा रही है? खाना नहीं बनाना?'
'भाभी मैं इसे ले के रिजल्ट लेने जा रहा हूँ!' मैंने उनकी बात का जवाब हलीमी से दिया.
'क्या करोगे देवर जी इसका रिजल्ट ला के? होनी तो इसकी शादी ही है! रिजल्ट हो या न हो क्या फर्क पड़ता है?' भाभी ने तंज कस्ते हुए कहा.
'शादी आज तो नहीं हो रही ना?' मैंने उनके तंज का जवाब देते हुए कहा और अश्विनी को तैयार होने को कहा. तब तक मैं आंगन में ही बैठा था की वहाँ ताऊ जी, पिताजी, माँ और ताई जी भी आ गए और मुझे तैयार बैठा देख पूछने लगे;
ताऊ जी: आज ही वापस जा रहा है?
मैं: जी नहीं! वो आशु का रिजल्ट आएगा आज वही लेने जा रहा हूँ उसके साथ|
पिताजी: रिजल्ट ले के सीधे घर आ जाना, इधर उधर कहीं मत जाना. पंडितजी को बुलवाया है अश्विनी की शादी की बात करने के लिए.
मैंने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया की तभी अश्विनी ने ऊपर से सारी बात सुन ली.उसका दिल अब टूट चूका था. मैंने उसे जल्दी आने को कहा और फिर अपनी साईकिल उठाई और उसे पीछे बिठा के पहले उसे मंदिर ले गया और वहाँ उसके पास होने की प्रार्थना की और फिर सीधे बाजार जा के इंटरनेट कैफ़े के बहार रुक गया.
मैं: रिजल्ट की चिंता मत कर, तू फर्स्ट ही आएगी देख लेना!
अश्विनी: क्या फायदा! (उसने मायूसी से कहा)
मैं: तेरी शादी कल नहीं हो रही! समझी? थोड़ा सब्र कर भगवान् जरूर मदद करेगा|
पर अश्विनी बिलकुल हार मान चुकी थी और उसके मन में कोई उम्मीद नहीं थी की कुछ अच्छा भी हो सकता हे. करीब दस बजे रिजल्ट आया और दूकान में भीड़ बढ़ने लगी. मैंने जल्दी से अश्विनी का रोल नंबर वेबसाइट में डाला और जैसे ही उसका रिजल्ट आया मैं ख़ुशी से उछल पड़ा! उसने ९७% अंक स्कोर किये थे. ये जब मैंने उसे बताया तो वो भी बहुत खुश हुई और मेरे गले लग गई. हम दोनों ख़ुशी-ख़ुशी दूकान से मार्कशीट का प्रिंट-आउट लेके निकले और मैं उसे सबसे पहले मिठाई की दूकान पर ले गया और रस मलाई जो उसे सबसे ज्यादा पसंद थी खीलाई. फिर मैंने घर के लिए भी पैक करवाई और हम फिर घर पहुंचे.
घर पहुँचते ही देखा तो पंडित जी अपनी आसान पर बैठे थे और कुछ पोथी-पत्रा लेके उँगलियों पर कुछ गिन रहे थे. उन्हें देखते ही अश्विनी के आँसूं छलक आये और जो अभी तक खुश थी वो फिर से मायूस हो के अपने कमरे में घुस गई. मुझे भी पंडित जी को देख के घरवालों पर बहुत गुस्सा आया.कम से कम कुछ देर तो रुक जाते.आशु कुछ दिन तो खुश हो लेती! इधर अश्विनी के हेडमास्टर साहब भी आ धमके और सब को बधाइयाँ देने लगे पर घर में कोई जानता ही नहीं था की वो बधाई क्यों दे रहे हैं?
'अश्विनी के ९७% आये हैं!!!' मैंने सर झुकाये कहा.
'सिर्फ यही नहीं भाई साहब बल्कि, अश्विनी ने पूरे प्रदेश में टॉप किया है! उसके जितने किसी के भी नंबर नहीं हैं!' हेडमास्टर ने गर्व से कहा.
'अरे भाई फिर तो मुँह मीठा होना चाहिए!' लालची पंडित ने होठों पर जीभ फेरते हुए कहा.
मैंने भाभी को रस मलाई से भरा थैला दीया और सब के लिए परोस के लाने को कहा. इतने में हेड मास्टर साहब बोले; 'भाई साहब मानना पढ़ेगा.पहले आपके लड़के ने दसवीं में जिले में टॉप किया था और आपकी पोती तो चार कदम आगे निकल गई! वैसे है कहाँ अश्विनी?' मैंने अश्विनी को आवाज दे कर बुलाया और वो अपने आँसुंओं से ख़राब हो चुके चेहरे को पोंछ के नीचे आई और हेडमास्टर साहब के पाँव छुए.उन्होंने उसके सर पर हाथ रख के आशीर्वाद दिया. फिर उसने मुझे छोड़के सभी के पाँव छुए और सब ने सिर्फ उसके सर पर हाथ रख दिया. पर कुछ बोले नही. आज से पहले ऐसा कुछ नहीं हुआ था!
इससे पहले की रस मलाई परोस के आती पंडित बोल पड़ा; 'जजमान! एक विकट समस्या है लड़की की कुंडली में!' ये सुनते ही सारे चौंक गए पर अश्विनी को रत्ती भर भी फर्क नहीं पडा. वो बस हाथ बंधे और सर झुकाये मेरे साथ खड़ी थी. पंडित ने आगे अपनी बात पूरी की; 'लड़की की कुंडली में ग्रहों और नक्षत्रों की कुछ असामान्य स्थिति है जिसके कारन इसका विवाह आने वाले पाँच साल तक नामुमकिन है!'
ये सुन के सब के सब सुन्न हो गए.पर अश्विनी के मुख पर अभी भी कोई भाव नहीं आया था. 'परन्तु कोई तो उपाय होगा? कोई व्रत, कोई पूजा पाठ, कोई हवन? कुछ तो उपाय करो पंडित जी?' ताऊ जी बोले.
'नहीं जजमान! कोई उपाय नहीं! जब तक इसके प्रमुख ग्रहों की दशा नहीं बदलती तब तक कुछ नहीं हो सकता? जबरदस्ती की गई तो अनहोनी हो सकती है?' पंडित ने सबको चेतावनी दी! ये सुन के सब के सब स्तब्ध रह गये. करीब दस मिनट तक सभी चुप रहे! कोई कुछ बोल नहीं रहा था की तभी मैंने चुप्पी तोड़ते हुए कहा; 'तो अश्विनी को आगे पढ़ने देते हैं? अब पाँच साल घर पर रह कर करेगी भी क्या? कम से कम कुछ पढ़ लिख जाएगी तो परिवार का नाम रोशन होगा!'
ये सुनते ही ताई जी बोल पड़ी; 'कोई जरुरत नहीं है आगे पढ़ने की? जितना पढ़ना था इसने पढ़ लिया अब चूल्हा-चौका संभाले! पाँच साल बाद ही सही पर जायेगी तो ससुराल ही? वहाँ जा के क्या नाम करेगी?'
इतने में ही हेडमास्टर साहब बोल पड़े; 'अरे भाभी जी क्या बात कर रहे हो आप? वो ज़माना गया जब लड़कियों के पढ़े लिखे होने न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता था! आजकल तो लड़कियां लड़कों से कई ज्यादा आगे निकल चुकी हैं! शादी के बाद भी कई सास-ससुर अपनी बहु को नौकरी करने देते हैं. जिससे न केवल घर में आमदनी का जरिया बढ़ता है.बल्कि पति-पत्नी घर की जिम्मेदारियाँ मिल के उठाते हे. हर जगह कम से कम ग्रेजुएट लड़की की ज्यादा कदर की जाती है! वो घर के हिसाब-किताब को भी संभालती हे. अगर कल को अश्विनी के होने वाले पति का कारोबार हुआ तो ये भी उसकी मदद कर सकती है और ऐसे में सारा श्रेय आप लोगों को ही मिलेगा.आपके समधी-समधन आप ही को धन्यवाद करेंगे की आपने बच्ची को इतने प्यार से पढ़ाया लिखाया है!'
''और अगर इतनी पढ़ाई लिखाई के बावजूद इस के पर निकल आये और ये ज्यादा उड़ने लगी तो? या मानलो कल को इसके जितना पढ़ा लिखा लड़का न मिला तो?' ताऊ जी ने अपना सवाल दागा!
'आपको लगता है की आपकी इतनी सुशील बेटी कभी ऐसा कुछ कर सकती है? मैंने इसे आज तक किसी से बात करते हुए नहीं देखा. सर झुका के स्कूल आती है और सर झुका के वापस! ऐसी गुणवान लड़की के लिए वर न मिले ऐसा तो हो ही नहीं सकता' आप देख लेना इसे सबसे अच्छा लड़का मिलेगा!' हेडमास्टर साहब ने छाती ठोंक के कहा.
'पर...' पिताजी कुछ बोलने लगे तो हेडमास्टर साहब बीच में बोल पडे. 'भाई साहब मैं आपसे हाथ जोड़ के विनती करता हूँ की आप बच्ची को आगे पढ़ने से न रोकिये! ये बहुत तरक्की करेगी, मुझे पूरा विश्वास है इस पर!'
'ठीक है... हेडमास्टर साहब!' ताऊ जी बोले और भाभी को मीठा लाने को बोले.
ताऊ जी का फैसला अंतिम फैसला था और उसके आगे कोई कुछ नहीं बोला. इतने में भाभी रस मलाई ले आई. पर उनके चेहरे पर बारह बजे हुए थे. सभी ने मिठाई खाई और फिर पंडित जी अपने घर निकल गए और हेड मास्टर साहब अपने घर. साफ़ दिखाई दे रहा था की अश्विनी के आगे पढ़ने से कोई खुश नहीं था और इधर अश्विनी फूली नहीं समां रही थी. घर के सारे मर्द चारपाई पर बैठ के कुछ बात कर रहे थे और इधर मैं और अश्विनी दूसरी चारपाई पर बैठे आगे क्या कोर्स सेलेक्ट करना है उस पर बात कर रहे थे. अश्विनी साइंस लेना चाहती थी पर मैंने उसे विस्तार से समझाया की साइंस लेना उसके लिए वाजिब नहीं क्योंकि ग्यारहवीं की साइंस के लिए उसे कोचिंग लेना जरुरी हे. अब चूँकि कोचिंग सेंटर घर से घंटा भर दूर है तो कोई भी तुझे लेने या छोड़ने नहीं जायेगा. ऊपर से साइंस लेने के बाद या तो उसे इंजीनियरिंग करनी होगी या डॉक्टरी और दोनों ही सूरतों में घर वाले उसे घर से दूर कोचिंग, प्रेपरेशन और टेस्ट के लिए नहीं जाने देंगे! अब चूँकि एकाउंट्स और इकोनॉमिक्स उसके लिए बिलकुल नए थे तो मैंने उसे विश्वास दिलाया की इन्हें समझने में मैं उसकी पूरी मदद करुंगा.
अब अश्विनी निश्चिन्त थी और उसके मुख पर हँसी लौट आई थी. वो उठ के अपने कमरे में गई. अगले महीने मेरे पेपर थे तो मैं उन दिनों घर नहीं जा सका और जब पहुँचा तो अश्विनी के स्कूल खुलने वाले थे. मैं पहले ही उसके लिए कुछ हेल्पबूक्स ले आया था. उन हेल्पबूक्स की मदद से मैंने उसे एकाउंट्स और इकोनॉमिक्स के टिप्स दे दिये. अब मेरे कॉलेज के रिजल्ट का इंतजार था और मैं घर पर ही रहने लगा था. पार्ट टाइम वाली टूशन भी छूट चुकी थी तो मैंने घर पर रह के अश्विनी को पढ़ना शुरू कर दिया.अब वो एकाउंट्स में बहुत अच्छी हो चुकी थी. जब मेरे रिजल्ट आया तो घरवाले बहुत खुश हुए क्योंकि मैंने कॉलेज में टॉप किया था.
मैं घर लौटा तो घर वालों ने उस दिन गाँव में सबको पार्टी दे डाली.क्योंकि खानदान का मैं पहले लड़का था जो ग्रेजुएट हुआ था. पार्टी ख़तम हुई और अगले दिन से ही ताऊ जी ने शादी के लिए जोर डालना शुरू कर दिया.पर मैं अभी शादी नहीं करना चाहता था. उन्हें शक हुआ की कहीं मेरा कोई चक्कर तो नहीं चल रहा, इस पर मैंने उन्हें आश्वस्त किया की ऐसा कुछ भी नहीं हे. मैं बस नौकरी करना चाहता हूँ, अपने पाँव पर खड़ा होना चाहता हु. पर वो मेरी बात सुन के भड़क गए की मुझे भला नौकरी की क्या जरुरत है? भरा-पूरा परिवार है और इसमें नौकरी करने की कोई जरुरत नहीं, वो चाहें तो उम्र भर मुझे बैठ के खिला सकते हे. पर मेरे लिए उन्हें समझाना बहुत मुश्किल था फिर मैंने उन्हें वादा कर दिया की ४० साल की उम्र तक मुझे नौकरी करने दें उसके बाद में घर की खेती-बाड़ी संभाल लूंगा और साथ ही ये भी वचन दे डाला की तीन साल बाद में शादी भी कर लुंगा. खेर बड़ी मुश्किल से हाथ-पाँव जोड़ के मैंने सब को मेरे नौकरी करने के लिए मना लिया पर अश्विनी बहुत उदास थी. मैंने मौका देख के उससे बात की.
मैं: आशु तू खुश नहीं है?
अश्विनी: चाचू... आप नौकरी करोगे तो घर नहीं आओगे? फिर मैं दुबारा अकेली रह जाऊँगी! पहले तो आप २-३ दिन के लिए घर आया करते थे पर अब तो वो भी नहीं! सिर्फ त्यौहार पर ही मिलोगे?
मैं: बाबू... ऐसा नहीं बोलते! मैं घर आता रहूँगा फिर अब अगले साल से तो तू भी बिजी हो जाएगी! बोर्ड्स हैं ना अगले साल!
अश्विनी: पर ..... (वो जैसे कुछ कहना चाहती हो पर बोल न रही हो)
मैं: तू चिंता मत कर मैं हर सेकंड शनिवार घर पर ही रहूँगा| ठीक है? और हाँ अगर तुझे कुछ भी चाहिए किताब, कपडे या कुछ भी तू सीधा मुझे फोन कर देना. मैं तुझे अपने ऑफिस का नंबर दे दूंगा.
अश्विनी: तो आप कहाँ नौकरी करने जा रहे हो? कहीं से कोई ऑफर आया है?
मैं: नहीं अभी तो नहीं .... कल जा के एक दो जगह कोशिश करता हु.
मैंने कोशिश की और आखिर एक दफ्तर में नौकरी मिल ही गई. रहने के लिए कमरा ढूँढना तो उससे भी ज्यादा मुश्किल निकला! ऑफिस से करीब घंटाभर दूर मुझे एक किराये का कमरा मिल गया.शुरू का एक महीना मेरे लिए काँटों भरा था! घर से दफ्तर और दफ्तर से घर आते जाते हालत ख़राब हो जाती! जैसे ही पहली तनख्वा हाथ आई मैंने सबसे पहले अपने लिए ई एम आई पर बुलेट खरीदी......! घरवालों के लिए कुछ कपडे खरीदे और अश्विनी के लिए कुछ किताबें और एक सूंदर सी ड्रेस ली! जब सबसे अंत में मैंने उसे ये तौफा दिया तो वो ख़ुशी से झूम उठी और मुझे थैंक्स बोलते हुए उसकी जुबान नहीं थक रही थी.
खैर दिन बीतने लगे और ऑफिस में मुझे एक सुंदरी पसंद आई.परन्तु कभी हिम्मत नहीं हुई की उससे कुछ बात करूँ! बस काम के सिलसिले में जो बात होती वो होती. इसी तरह एक साल और निकला और अब अश्विनी बारहवीं कक्षा में थी और इसी साल उसके बोर्ड के पेपर थे. सेंटर घर से काफी दूर था और इस बार भी मुझे अश्विनी को पेपर के लिए लेके जाना था. मैं आज जब उसे सेंटर छोड़ने गया तो उसकी सहेलियां मुझे देख के कुछ खुस-फुसाने लगी और हँसने लगी. मैंने उस समय कुछ नहीं कहा और निकल गया और वापस दो घंटे बाद पहुँचा और बहार उसका इंतजार करने लगा. जब वो वापस आई तो हमने पहले पेपर चर्चा किया और फिर मैंने उससे सुबह हुई घटना के बारे में पूछा. तब उसने बताया की उसकी सहेलियों को लगा की मैं उसका बॉयफ्रेंड हूँ! 'क्या? और तूने क्या कहा?' मैंने चौंकते हुए पूछा. 'मैंने उन्हें बताया की आप मेरे चाचू हो और ये सुनके उनके होश उड़ गए!' और ये कहते हुए वो हँसने लगी. मैंने आगे कुछ नहीं कहा और उसे घर वापस छोड़ा और मैं फिर से दफ्तर निकल गया.दफ्तर पहुँचते-पहुँचते देर हो गई और बॉस ने मेरी एक छुट्टी काट ली! खेर मुझे इस बात का इतना अफ़सोस नहीं था.
आज अश्विनी का आखरी पेपर था और मैं जानता था की उसके सारे पेपर जबरदस्त गए हैं! पर आज जब वो पेपर दे कर निकली तो उसने सर झुका के एक ख्वाइश पेश की; 'चाचू.... आज मेरा पिक्चर देखने का मन है!' अब चूँकि मैं उसका दिल तोडना नहीं चाहता था सो मैंने उससे कहा; 'आज तो देखना मुश्किल है क्योंकि अगर हम समय से घर नहीं पहुंचे तो आज बवाल होना तय है! तू ऐसा कर कल का प्रोग्राम रख, कल दूसरा शनिवार भी है और मेरी ऑफिस की भी छुट्टी हे.'
'पर कल तो कोई पेपर ही नहीं है?' उसने बड़े भोलेपन से कहा. 'अरे बुधु! ये तू जानती है, मैं जानता हूँ पर घर पर तो कोई नहीं जानता ना?' मेरी बात सुन के वो खुश हो गई. हम घर पहुँचे तो अश्विनी बहुत चहक रही थी और आज रात की रसोई उसी ने पकाई. मुझे उसके हाथ का बना खाना बहुत पसंद था. क्योंकि उसे पता था की मुझे किस तरह का खाना पसंद हे. इसलिए जब भी मैं घर आता था तो वो बड़े चाव से खाना बनाती थी और मैं उसे खुश हो के 'बक्शीश' दिया करता था! अगले दिन दुबारा स्कूल ड्रेस पहन के नीचे आई तो भाभी ने उससे पूछा; 'कहाँ जा रही है?' इससे पहले की वो कुछ बोलती मैं खुद ही बोल पड़ा; 'पेपर देने और कहाँ?' मेरा जवाब बहुत रुखा था जिसे सुन के भाभी आगे कुछ नहीं बोली.
हम दोनों घर से बहार निकले और बुलेट पर बैठ के सुबह का शो देखने चल दिये. थिएटर पहुँच के मैंने उसे पिक्चर दिखाई और फिर हमने आराम से बैठ के नाश्ता किया. फिर वो कहने लगी की मंदिर चलते हैं तो मैं उसे एक मंदिर ले आया. दिन के बारह बजे थे और मंदिर में कोई था नहीं, यहाँ तक की पुजारी भी नहीं था. हम अंदर से दर्शन कर के बहार आये और अश्विनी मंदिर की सीढ़ियों पर बैठने की जिद्द करने लगी. तो उसकी ख़ुशी के लिए हम थोड़ी देर वहीँ बैठ गए, तभी अचानक से अश्विनी ने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया और मेरा हाथ अपने दोनों हाथों के बीच दबा दिया. मैंने कुछ नहीं कहा पर मन ही मन मुझे अजीब लग रहा था. पर मैं फिर भी चुप रहा और इधर-उधर देखने लगा की हमें इस तरह कोई देख ना ले.तभी मुझे कोई आता हुआ दिखाई दिया तो मैंने हड़बड़ा के अश्विनी को हिला दिया और मैं अचानक से खड़ा हो गया.मैं जल्दी से नीचे उतरा और बुलेट स्टार्ट की और अश्विनी को बैठने को कहा पर ऐसा लगा मानो वो वहाँ से जाना ही ना चाहती हो. वो अपना बस्ता कंधे पर टंगे खडी मुझे देख रही थी. 'क्या देख रही है? जल्दी बैठ घर नहीं जाना?' मैंने फिर से उसे कहा तो जवाब में उसने सर ना में हिलाया तो मैंने जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ा और बैठने को कहा और वो बैठ ही गई. हम वहाँ से चल पड़े इधर अश्विनी ने पीछे बैठे हुए अपना सर मेरी पीठ पर रख दिया. शुरू के पंद्रह मिनट तो मैं कुछ नहीं बोला पर अंदर ही अंदर मुझे अजीब लगने लगा. घर करीब २० मिनट दूर होगा की मैंने बाइक रोक दी और अश्विनी से पूछा:
मैं: क्या हुआ पगली? तू कुछ परेशान लग रही है?
अश्विनी: हम्म
मैं: क्या हुआ? बता ना मुझे?
वो बाइक से उत्तरी और मेरे सामने सर झुका के खड़ी हो गई. मैं अभी भी बाइक पर बैठा था और बाइक स्टैंड पर नहीं थी.
अश्विनी: मुझे आपसे एक बात कहनी हे.
मैं: हाँ-हाँ बोल|
अश्विनी: वो... वो.... मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ!
मैं: अरे पगली मैं जानता हूँ तू मुझसे प्यार करती हे. इसमें तू ऐसे परेशान क्यों हो रही है?
अश्विनी: नहीं-नहीं आप समझे नहीं! मैं आपसे सच-मुच् में दिलों जान से प्यार करती हूँ!
मेरा ये सुनना था की मैंने एक जोरदार थप्पड़ उसके बाएँ गाल पर रख दिया. मैं सोच रहा था की ये मुझसे चाचा-भतीजी वाले प्यार के बारे में बात कर रही है पर इसके ऊपर तो इश्क़ का भूत सवार हो गया था!
'तेरा दिमाग ख़राब है क्या? जानती भी है तू क्या कह रही है? और किसे कह रही है? मैं तेरा चाचा हूँ! चाचा! तेरे मन में ऐसा गन्दा ख्याल आया भी कैसे? नशा-वषा तो नहीं करने लगी तू कहीं?' मैंने गरजते हुए कहा.
अश्विनी की आँखें भर आईं थी पर वो अपने आँसू पोंछते हुए बोली; 'प्यार करना कोई गन्दी बात है? आपसे सच्चा प्यार करती हूँ! प्यार उम्र, रिश्ते-नाते कुछ नहीं देखता! प्यार तो प्यार होता है!' अश्विनी की आवाज जो अभी कुछ देर पहले डरी हुई थी अब उसमें जैसे आत्मविश्वास भर आया हो. उसका ये आत्मविश्वास मेरे दिमाग में गुस्से को निमंत्रण दे चूका था इसलिए मैं चिल्लाते हुए बाइक से उतरा और बाइक छोड़ दी और वो जाके धड़ाम से सड़क पर गिरी. मैंने एक और थप्पड़ अश्विनी के दाएँ गाल पर दे मारा और जोर से चिल्ला के बोला; 'कहाँ से सीखा तूने ये सब? हाँ?.... बोल? इसीलिए तुझे पढ़ाया लिखाया जाता है की तू ये ऊल-जुलूल बातें करे? तुझे पता भी है प्यार क्या होता है?'
अश्विनी की आँखों से आंसुओं की धरा बहे जा रही थी पर वो उसका आत्मविश्वास आज पूरे जोश पर था इसलिए वो भी मेरे सामने तन के जवाब देने लगी; 'प्यार या प्रेम एक अहसास है. प्यार अनेक भावनाओं का, रवैयों का मिश्रण है जो पारस्परिक स्नेह से लेकर खुशी की ओर विस्तारित हे. ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना हे. किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को प्यार कहते हे. प्यार वह होता है जो आपके दुख में साथ दें सुख में तो कोई भी साथ देता हे. प्यार होता है तो हमारी ज़िन्दगी बदल जाती हे. प्यार तो एक-दूसरे से दूर रहने पर भी खत्म नहीं होता जब किसी इंसान के बिना आपको अपना जीवन नीरस लगे! एक दिन वह दिखाई न दे तो दिल बुरी तरह से घबराने लगे. आपको भूख कम लगने लगे या खाने-पीने की सुध न रहे. अखबार में पहले उसकी, फिर अपनी राशि देखें.जब भी वह उठकर कहीं जाए तो आपकी निगाहें उसका पीछा करती रहें.मेरे लिए तो यही प्यार है!' उसने खुद पर गर्व करते हुए जवाब दिया.
इधर अश्विनी के प्रेम की परिभाषा सुन के मेरे तो होश ही उड़ गए! 'तुझे किसने कहा मैं तुझसे प्यार करता हूँ?' मेरे पास उसकी परिभाषा का कोई जवाब नहीं था तो मैंने उससे सवाल करना ही बेहतर समझा. 'बचपन से ले के आज तक ऐसा क्या है जो आपने मेरे लिए नहीं किया? मेरा स्कूल जाना, मुझे पढ़ाना, मेरे लिए नए कपडे लाना, मेरा जन्मदिन मनाना वो भी तब घर में कोई मेरा जन्मदिन नहीं मनाता. मुझे अनगिनत दफा आपने डाँट खाने से बचाया, जब जब मैं रोइ तो आप होते थे मेरे आँसूं पोछने! और भी उदाहरण दूँ?' उसने फ़टाक से अपना जवाब दिया.
'मैंने ये सब इसलिए किया क्योंकि मुझे तुझ पर तरस आता था. घर में हर कोई तुझे झिड़कता रहता था और तुझे उन्हीं झिड़कियों से बचाना चाहता था.' मेरा जवाब सुन वो जरा भी हैरान नहीं लगी. 'प्यार किसी की दया, भावना और स्नेह प्रस्तुत करने का तरीका भी हे. किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को भी प्यार कहते हे. ये आपका प्यार ही था जो हमेशा मेरा हित और भला चाहता था. आप बस इस सब से अनजान हो!'
साफ़ था की अश्विनी के ऊपर मेरी किसी भी बात का असर नहीं पड़ने वाला था तो मैंने सोच लिया की इसे अब सब सच बता दूंगा. 'ये सभी किताबें बातें हैं! तुझे नहीं पता की असल जिंदगी में प्यार करने वालों के साथ क्या होता है?!' ये कहते हुए मैंने उसे उसकी माँ और उनके प्रेमी के साथ गाँव वालों ने क्या किया था सब सुना दिया और इसे सुनने के बाद वो एक दम सन्न रह गई और उसके चेहरे से साफ़ पता चल गया था की उसके पास इसका कोई भी जवाब नहीं हे. अगले दस मिनट तक वो भूत बनी खड़ी रही और इधर मेरी नजर मेरी बाइक पर गई जो नीचे पड़ी थी.उसकी इंडिकेटर लाइट टूट गई थी जिसे देख मुझे और गुस्सा आने लगा. मैंने गुस्से से अश्विनी को बाइक पर बैठने को कहा और इस बार उसने एक ही बार में मेरी बात सुनी और डरी-सहमी सी वो पीछे आ कर बैठ गई. मैंने फटा-फ़ट बाइक दौड़ाई और घर के दरवाजे पर उसे छोड़ा और वहीँ से बाइक घुमा के वापस शहर लौट आया.
शहर आते-आते शाम हो गई और जैसे ही घर में घुसा पिताजी का फोन आया तो मैंने उन्हें झूठ बोल दिया की बॉस ने कुछ जरुरी काम दिया था इसलिए जल्दी वापस आ गया.उस रात दो बजे तक माल फूँका और दिमाग में रह-रह के अश्विनी की बातें गूँज रही थी!
एक हफ्ता बीत गया.शुक्रवार के दिन माँ का फ़ोन आया और उन्होंने जो बताया वो सुन के मेरे पाँव-तले जमीन खिसक गई. मैंने बॉस से अर्जेंट छुट्टी माँगी ये कह के की माँ बीमार हैं और मैं वहाँ से धड़-धडाते हुए बाइक चलते हुए घर पहुँचा! भागता हुआ घर में घुसा और सीधा अश्विनी के कमरे में घुसा तो वो जैसे अध्-मरी वहाँ पड़ी थी. उसके कपड़ों से बू आ रही थी और जब मैंने उसे उठाने के लिए उसका हाथ पकड़ा तो पता चला की उसका पूरा जिस्म भट्टी की तरह तप रहा था. मैंने पानी की बूँदें उसके चहेरे पर छिडकी तो भी उसकी आँखें नहीं खुली. मैं भागता हुआ नीचे आया तो आँगन में माँ बेचैन खड़ी मिली. उन्होंने बताया की घर पर कोई नहीं है सिवाय उनके और अश्विनी के. सब किसी ने किसी काम से बहार गए हैं, बीते ६ दिन से अश्विनी ने कुछ खाया नहीं है, ना ही वो अपने कमरे से बहार निकली थी. १-२ दिन तो सबको लगा की बुखार है अपने आप उतर जायेगा पर उसने खाना-पीना भी छोड़ दिया! ये सुन के तो मेरी हालत और ख़राब हो गई और मैं घर से भागता हुआ निकला और बाइक स्टार्ट की और भगाते हुए बाजार पहुँचा और वहाँ जाके डॉक्टर से मिन्नत कर के उसे घर ले के आया. उसने अश्विनी का चेक-उप किया और मुझे तुरंत ड्रिप चढाने को कहा और अपने पैड पर बहुत सारी चीजें लिख दीं जिसे मैं दुबारा बाजार से ले के आया. मेरे सामने डॉक्टर ने अश्विनी को ड्रिप लगाईं और मुझे खडी हिदायत देते हुए समझाया की ड्रिप कैसे निकालना हे. उनकी बातें सुन के तो मेरी और फ़ट गई की ये मैं कैसे करूँगा!
पहली बोतल तो करीब डेढ़ घंटे में चढ़ी पर उसके बाद वाली चढ़ने में ३ घंटे लगे! मैं सारा टाइम अश्विनी के कमरे में बैठा था और मेरी नजरे उसके मुख पर टिकी थीं और मन कह रहा था की अब वो आँखें खोलेगी! माँ ने खाने के लिए मुझे नीचे बुलाया पर मैं खाना ऊपर ले के आगया और उसे ढक के रख दिया. रात के एक बजे अश्विनी की आँख खुली और मैंने तुरंत भाग के उसके बिस्तर के पास घुटने टेक कर उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा; 'ये क्या हालत बना ली तूने?' उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कराहट आई और उसने पानी पीने का इशारा किया. मैंने उसे सहारा देके बैठाया और पानी पिलाया फिर उससे खाने को कहा तो उसने ना में गर्दन हिला दी. 'देख तू पहले खाना खा ले, उसके बाद हम इत्मीनान से बात करते हैं.' पर वो अब भी मना करने लगी. 'अच्छा... तू जो कहेगी वो मैं करूँगा ... बस तू खाना खा ले! देख मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ! मैं तुझे इस हालत में नहीं देख सकता!' ये सुन के वो फिर से मुस्कुराई और बैठने की लिए कोशिश करने लगी और मैंने उसे सहारा दे के बैठाया और फिर अपने हाथ से खाना खिलाया और फिर दवाई दे के लिटा दिया.
मैं सारी रात उसी के सिरहाने बैठा रहा और जागता रहा. सुबह के ४ बजे उसका बुखार कम हुआ और उसने अपना हाथ मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया और सोने लगी. सुबह ८ बजे पिताजी और ताऊ जी शादी से लौटे और तब तक मैं अश्विनी के कमरे में बैठा ऊंघ रहा था. मुझे उसके सिरहाने बैठा देख वो दोनों बहुत गुस्सा हुए और जोर से गरजे; 'उतरा नहीं इसका बुखार अभी तक?' ताऊ जी ने बहुत गुस्से में कहा. 'ऐसा हुआ क्या था इसे? एक हफ्ते से खाना पीना बंद कर रखा है?' पिताजी ने गुस्से से कहा. 'वो पिताजी.... दरअसल पेपर ... आखरी वाला अच्छा नहीं गया था! इसलिए डरी हुई है! कल मैं डॉक्टर को लेके आया था उन्होंने दवाई दी है, जल्दी अच्छी हो जायेगी.' मैंने अश्विनी का बचाव किया. थोड़ी देर बाद ताई जी और माँ भी ऊपर आ गए और मुझे अश्विनी के सिरहाने बैठे उसके सर पर हाथ फेरते हुए देख के ताई जी बोली; 'तूने सर पर चढ़ा रखा है इसे! अब तू अपना काम धंधा छोड़ के इसके पास बैठा है! ये नौकरी आखिर तूने की ही क्यों थी?'
'नौकरी छूट गई तो अच्छा ही होगा, आखिर ताऊ जी भी तो ये ही चाहते हैं!' मैंने उनके ताने का जवाब देते हुए कहा. ताई जी ने मुझे घूर के देखा और फिर नीचे जाने लगी. इधर माँ ने आके मेरे गाल पर एक चपत लगा दी और कहा; 'बहुत जुबान निकल आई है तेरी!' इतना कह के वो भी नीचे चलीं गई. अश्विनी ये सब आंखें मीचे सुन रही थी. माँ के नीचे पहुँचते ही अश्विनी ने आँख खोली और कहा; 'अब भी सबुत चाहिए आपको?' मैं उसकी बात समझ नहीं पाया. 'मैं कुछ समझा नहीं?'
अश्विनी: 'मेरी बीमारी सुनते ही आप अपना सारा काम छोड़ के मेरे सिरहाने बैठे हो! सबसे मेरा बीच-बचाव कर रहे हो! दवा-दारू के लिए भाग दौड़ कर रहे हो, और तो और कल रात से एक पल के लिए भी सोये नहीं! अगर ये प्यार नहीं है तो क्या है?'
मैं: पगली! मैं तुझे कैसे समझाऊँ? मेरे मन में ऐसा कुछ नहीं है!
अश्विनी: आप चाहे कितनी भी कोशिश कर लो छुपाने की, पर मेरा दिल कहता है की आप मुझसे प्यार करते हो.
मैं:अच्छा ... चल एक पल को मैं ये मान भी लूँ की मैं तुझसे प्यार करता हूँ, पर आगे क्या?
अश्विनी: शादी!!! (उसकी आँखें चमक उठी थी.)
मैं: इतना आसान नहीं है पागल! ये दुनिया... ये समाज ... ये नहीं हो सकता! ये नहीं हो सकता. (ये कहता हुए मेरी आँखें भीग आईं थीं और मैंने अपना सर झुका लिया.)
अश्विनी: कुछ भी नामुमकिन नहीं है! हम घर से भाग जायेंगे, किसी नई जगह अपना संसार बनाएंगे| (उसने मेरे सर को उठाते हुए आशावादी होते हुए कहा.)
मैं: नहीं... तू समझ नहीं रही.... ये सब लोग हम दोनों को मौत के घाट उतार देंगे. मैं अपनी चिंता तो नहीं करता पर तू……….. प्लीज मेरी बात मान और ये भूत अपने सर से उतार दे. (मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा पर मेरी बात उस पर रत्ती भर भी असर नहीं दिखा रही थी.)
अश्विनी: ऐसा कुछ नहीं होगा! आप विश्वास करो मुझ पर, कोई भी हमें नहीं ढूंढ पायेगा.
मैं: ये नामुमकिन है! तेरी माँ को इन्होने ६ दिन में ढूंढ निकाला था और तब ना तो मोबाइल फ़ोन थे ना ही इंटरनेट. आज के जमाने में मोबाइल, इंटरनेट, जीपीएस सब कुछ है.इन्हें हमें ढूंढने में ज्यादा समय नहीं लगेगा.
अश्विनी: बस एक मौका .... एक मौका मुझे दे दो की मैं आपके मन में मेरे लिए प्यार पैदा कर सकूँ! वादा करती हूँ की अगर मैं नाकामयाब हुई तो फिर कभी आपको दुबारा नहीं कहूँगी की मैं आपसे प्यार करती हूँ और वही करुँगी जो आप कहोगे.
मैं: ठीक है ... पर अगर मेरे मन में तुम्हारे लिए प्यार पैदा नहीं हुआ तो तुम्हें मुझे भूलना होगा और समय आने पर एक अच्छे से लड़के से शादी करनी होगी!
अश्विनी: मंजूर है...... पर मेरी भी एक शर्त है! आप मुझसे झूठ नहीं बोलोगे!
मैं: कैसा झूठ?
अश्विनी: वो समय आने पर आपको पता चल जायेगा. पर अभी आपको मेरे सर पर हाथ रख के कसम खानी होगी.
मैं: मैं कसम खाता हूँ की मैं कभी भी तुमसे झूठ नहीं कहूँगा! अब तू आराम कर ... मैं थोड़ा नहा लेता हु.
ये कहते हुए मैंने एक जोरदार अंगड़ाई ली और फिर नीचे आके ठन्डे-ठन्डे पानी से नहाया और तब जा के मुझे तारो तजा महसूस हुआ. दोपहर के बारह बज गए थे और भाभी ने मुझे आवाज देके रसोई में बुलाया; 'ये लो सागर जी, जा के अपनी चाहिती को खिला दो.' ये कहते हुए उन्होंने एक थाली में खाना भर के मेरी ओर बढ़ा दी! मैंने चुप-चाप थाली उठाई और बिना कुछ बोले वापस ऊपर आ गया.अश्विनी जाग चुकी थी और भाभी की बात सुन के मंद-मंद मुस्कुरा रही थी. मैंने उसे उठा के बिठाया और वो दिवार से टेक लगा के बैठ गई पर वो प्यारी सी मुस्कान उसके होठों पर अब भी थी! 'बड़ी हँसी आ रही है तुझे?' मैंने उसे छेड़ते हुए कहा. जवाब में उसने कुछ नहीं कहा और शर्माने लगी. मैंने दाल-चावल का एक कोर उसे खिलाने के लिए अपनी उँगलियों को उसके होठों के सामने लाया तो उसने बड़ी नज़ाकत से अपने होठों को खोला और पहला कोर खाया 'आपके हाथ से खाना आज तो और भी स्वाद लग रहा हे.'
'अच्छा? पहली बार तो नहीं खिला रहा मैं तुझे खाना!' मैंने उसे उस के बचपन के वाक्य याद दिलाये! 'याद है.... पर अब बात कुछ और हे.' और ये कह के वो फिर से मुस्कुराने लगी. उसकी बात सुन के मैं झेंप गया और उससे नजरें चुराने लगा. अब आगे बढ़ के अश्विनी ने भी थाली से एक कोर लिया और मुझे खिलाने के लिए अपनी उँगलियाँ मेरी और बढ़ा दी. मैंने भी उसके हाथ से एक कोर खाया और उसे रोक दिया ये कह के; 'बस! पहले तू खा ले फिर मैं खा लुंगा.'
'नहीं... आप मुझे एक कोर खिलाओ और मैं आपको एक कोर खिलाऊँगी!' उसने बड़े प्यार से मेरी बात का विरोध किया. 'तू बहुत जिद्दी हो गई है!' मैंने उसे उल्हना देते हुए कहा. 'अब आपकी चहेती हूँ तो थोड़ा तो जिद्दी बन ही जाऊंगी.' उसने भाभी की बात प्यार से दोहराई.मैंने आगे कुछ नहीं कहा और हम एक दूसरे को इसी तरह खाना खिलाते रहे. खाने के बाद मैंने उसे दवाई दे के लिटा दिया और मैं नीचे जाने को हुआ तो वो बोली; 'आप भी यहीं लेट जाओ.' मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखा और थोड़ा गुस्से से कहा: 'आशु...' बस वो मेरी बात समझ गई की ऐसा करने से घरवाले कुछ गलत सोचेंगे. अश्विनी के बगल वाला कमरा मेरा ही था तो मैं उसमें जा के अपने बिस्तर पर पड़ गया और सो गया.
शाम पाँच बजे मेरी आँख खुली और मैं आँखें मलता हुआ अश्विनी के कमरे में घुसा तो देखा वो वहाँ नहीं हे. मैंने नीचे आँगन में झाँका तो वो वहाँ भी नहीं थी! तभी मुझे छत पर उसका दुपट्टा उड़ता हुआ नजर आया और मैं दौड़ता हुआ छत पर जा चढा. वो मुंडेर पर बैठी दूर कहीं देख रही थी. 'आशु यहाँ क्या कर रही है?' मेरी आवाज सुनके जब उसने मेरी तरफ देखा तो उसकी आँखें नम थी. मैं तुरंत ही आपने घुटनों पर आ गया और उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में ले के बोला; 'क्या हुआ आशु? तू रो क्यों रही है? किसी ने कुछ कहा?' मेरे चेहरे पर शिकन की रेखा देख कर वो मेरे गले आ लगी और रोने लगी और रोते हुए कहा; 'आप......आप....कल ......चले ......जाओगे!'
'अरे पगली! मैं सरहद पर थोड़े ही जा रहा हूँ! अब काम है तो जाना पड़ेगा ना? काम तो छोड़ नहीं सकता ना?! पर तू मुझे प्रॉमिस कर की तू अपना अच्छे से ख्याल रखेगी और दुबारा बीमार नहीं पडेगी.' मैंने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा.
'पहले आप वादा करो की आप अगले शुक्रवार आओगे!' उसने अपने आँसूँ पोछते हुए कहा.
'आशु.... सॉरी पर मैं नहीं आ पाउँगा! अगले शनिवार मेरी एक डेडलाइन है और बॉस भी इतनी छुट्टी नहीं देंगे. इस बार भी मैं ये झूठ बोल के आया की माँ बीमार हैं.' मैंने उसे समझाया.
'तो मेरा..... मैं कैसे....' आगे कुछ बोलना चाह रही थी पर उसके आँसूँ उसे कुछ कहने नहीं दे रहे थे.
'देख... पहले तू रोना बंद कर फिर मैं तुझे एक तरीका बताता हु.' उसने तुरंत रोना बंद कर दिया और अपने आँसूँ पोछते हुए बोली; 'बोलिये'
'ये देख मेरा नया मोबाइल! मंगलवार को ही लिया था मैंने और ये ले मेरा कार्ड, ये मुझे बॉस ने बनवा के दिया था. इसमें लिखे मोबाइल पर तू रोज १ बजे फ़ोन करना माँ के मोबाइल से. माँ हर रोज दोपहर को १ बजे सो जाती है तो तेरे पास कम से कम एक घंटा होगा मुझसे बात करने का, ठीक है?' ये सुन के वो थोड़ा निश्चिन्त हुई फिर मैंने अपने मोबाइल से हम दोनों की एक सेल्फी खींची और उसी दिखाई तो वो बहुत खुश हुई. घर में सिर्फ मेरे और गोपाल भैया के पास ही स्मार्टफोन था बाकी सब अब भी वही बटन वाला फ़ोन इस्तेमाल करते थे. खेर अश्विनी का मन थोड़ा बहलाने के लिए मैं उसकी फोटो खींचता रहा और उसे स्मार्टफोन के बारे में कुछ बताने लगा और उसे एक-दो गेम भी खेलनी भी सीखा दी.
जब तक अश्विनी छत पर गेम खेलने में बिजी थी तब तक मैं छत पर टहलने लगा और बीते ४८ घंटों में जो कुछ हुआ उसके बारे में सोचने लगा. तभी अचानक से अश्विनी ने फुल आवाज में एक गाना बजा दिया और मेरे ध्यान उसकी तरफ गया; 'ऐसे तुम मिले हो, जैसे मिल रही हो, इत्र से हवा, काफ़िराना सा है इश्क है या क्या हे.' उसने गाने की कुछ पंक्तियों में अपने दिल के जज्बात प्रकट किये. मैं कुछ नहीं बोला पर मुस्कुराता हुआ उसकी सामने मुंडेर पर बैठ गया.'ख़ामोशियों में बोली तुम्हारी कुछ इस तरह गूंजती है, कानो से मेरे होते हुए वो दिल का पता ढूंढती हे.' अश्विनी ने फिर से कुछ पंक्तियों से मेरे मन को टटोला. मैं खड़ा हुआ और अपना बायाँ हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया और उसने उसे थाम लिया और हम धीरे-धीरे इसी तरह हाथ पकड़े छत पर टहलने लगे और तभी; 'संग चल रहे हैं, संग चल रहे हैं, धुप के किनारे छाव की तरह..|' मैंने गाने की कुछ पंक्तियों को दोहराया.
'हम्म.. ऐसे तुम मिले हो, ऐसे तुम मिले हो, जैसे मिल रही हो इत्र से हवा, काफ़िराना सा है, इश्क हैं या, क्या है??' मैंने इश्क़ है या क्या है उसकी आँखों में देखते हुए कहा और ये मेरा उससे सवाल था. उसने कोई जवाब नहीं दिया बस मुस्कुरा के नीचे चली गई और मैं कुछ देर के लिए चुप-चाप मुंडेर पर बैठ गया और उसे नीचे जाते हुए देखता रहा. थोड़ी देर बाद मैं भी नीचे आ गया और अश्विनी के कमरे में देखा तो वो अपने पलंग पर लेटी हुई थी और छत की ओर देख रही थी. मैं आगे अपने कमरे की तरफ जाने लगा तो वो मुझे देखते हुए बोली; 'सुनिए'.उसकी आवाज सुनके मैं रुका और उसके कमरे की दहलीज पर से उसके कमरे में झांकते हुए बोला; 'बोलिये'ये सुनते ही उसके चेहरे पर फिर से मुस्कराहट आ गई और उसने इशारे से मुझे उसके पास पलंग पर बैठने को कहा.
मैं अंदर आया और उसके पलंग पर बैठ गया.अश्विनी अभी भी लेटी दुइ थी और उसने लेटे-लेटे ही अपना हाथ आगे बढ़ा के मेरा दाहिना हाथ पकड़ लिया और बोली; 'अगर मैं आपसे कुछ माँगू तो आप मुझे मना तो नहीं करोगे?' मैंने ना में सर हिला के उसे आश्वासन दिया. 'मैं आपको किस करना चाहती हु.' उसने बहुत प्यार से अपनी इच्छा व्यक्त की. पर मैं ये सुनके एकदम से हक्का-बक्का रह गया! मैंने ना में सर हिलाया और बिना कुछ कहे उठ के जाने लगा तो अश्विनी ने मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया. 'अच्छाआई एम सॉरी!!!' वो ये समझ चुकी थी की मुझे उसकी ये बात पसंद नहीं आई.
अश्विनी ने मेरा हाथ छोड़ा और मैं अपने कमरे में आ कर पलंग पर लेट गया और गहरी सोच में डूब गया.ये जो कुछ भी हो रहा था वो सही नहीं था! जिस रास्ते पर वो जा रही थी वो सिर्फ और सिर्फ मौत के पास खत्म होता था. मन में आया की मैं उसकी बातों को इसी तरह दर-गुजर करता रहूँ और शायद धीरे-धीरे वो हार मान ले, पर अगर वो उसका दिल टूट गया तो? उसने कोई ऐसी-वैसी हरकत की जिससे उसके जान पर बन आई तो? कुछ समझ नहीं आ रहा था .... अगर कहीं से माल मिल जाता तो दिमाग थोड़ा शांत हो जाता' इसलिए मैं एक दम से उठा और घर से बाहर निकल के तिवारी के घर जा पहुंचा. वो समझ चूका था तो वो एक कमरे में घुसा और कुछ अपनी जेब में डाल के चुप-चाप मेरे साथ चल दिया. उसके खेत पर आके हम चारपाई पर बैठ गए और फिर इधर-उधर की बातें हुई और माल फूँका! माल फूँकने के बाद मेरे दिमाग शांत हुआ और में आठ बजे तक उसी के खेत पर चारपाई पर पड़ा रहा और आसमान में देखता रहा. तभी अचानक घड़ी पर नजर गई तो एकदम से उठा और घर की तरफ तेजी से चलने लगा. घर पहुँचा तो सभी मर्द आँगन में बैठे खाना खा रहे थे और मुझे देखते ही ताई जी बोली; 'आ गया तू? खाने का समय हो गया है! ये ले खाना और दे आ उस महरानी को.' मैं अश्विनी का खाना ले कर उसके कमरे में पहुँचा तो वो सर झुकाये जमीन पर बैठी थी. मेरी आहट सुन के उसने दरवाजे की तरफ देखा और मेरे हाथ में खाने की थाली देख के वो उठ के पलंग पर बैठ गई. मैंने उसे खाना दिया और मुड़ के जाने लगा तो वो बोली; 'आप भी मेरे साथ खाना खा लो' मैंने बिना मुड़े ही जवाब दिया; 'मेरा खाना नीचे हे.' इतना कह के मैं नीचे आ गया और खाना खाने लगा. खाना खा के मैं ऊपर आया की चलो अश्विनी को दवाई दे दूँ तो वो दरवाजे पर नजरे बिछाये मेरा इंतजार कर रही थी.
मैंने कमरे में प्रवेश किया और कोने पर रखे टेबल पर से उसकी दवाई उठाने लगा की तभी अश्विनी पीछे से बोली; 'नाराज हो मुझसे?' मैंने जवाब में ना में सर हिलाया और फिर दवाई ले कर अश्विनी की तरफ मुड़ा.मेरे एक हाथ में दवाई और एक हाथ में पानी का गिलास था. ''पहले आप कहो की आप मुझसे नाराज नहीं हे. तभी मैं दवाई लूँगी!' अश्विनी ने डरते हुए कहा. 'हमारा रिश्ता अभी नया-नया है, और ऐसे में जल्दबाजी मुझे पसंद नहीं! अपनी शर्त याद है ना?' मैंने दवाई और पानी का गिलास अश्विनी के हाथ में देते हुए कहा. 'मुझे माफ़ कर दीजिये! आगे से मैं ऐसा नहीं करुंगी.' उसने दुखी होते हुए कहा और दवाई ले ली और फिर चुप-चाप अपने पलंग पर लेट गई. मुझे बुरा लगा पर शायद ये उस समय के लिए सही था. अगले दिन मुझे जाना था तो मैं जल्दी उठा और नीचे आया तो देखा अश्विनी नहाके तैयार आंगन में बैठी मेरा इंतजार कर रही थी. मुझे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई. मैंने भी उसकी मुस्कराहट का जवाब मुस्कराहट से दिया और नहाने घुस गया.जब बहार आया तो अश्विनी रसोई में बैठी पराठे सेक रही थी. 'तुझे चैन नहीं है ना?' मैंने उसे थोड़ा डांटते हुए कहा. 'अभी जरा सी ठीक हुई नहीं की लग गई काम में.' ये सुन के वो थोड़ा मायूस हो गई की तभी ताई जी बोल पड़ी; 'हो गई जितना ठीक होना था इसे. इतने दिनों से खाट पकड़ रखी है और काम हमें करना पड़ रहा हे.'
'क्यों भाभी कहाँ गई?' मैंने थोड़ा अश्विनी का बीच-बचाव किया. इतने में पीछे से भाभी कमरे से निकली और बोली; 'ये रही भाभी! मुझसे सारे घर का काम-धाम नहीं होता! एक सहारा था की जब तक इसकी शादी नहीं होती तो कम से कम ये हाथ बंटा देगी पर तुम्हें तो इसे आगे और पढ़ाना है और तो और जब से आये हो तब से इसी की तीमारदारी में लगे हो. कभी बैठते हो हमारे पास?' भाभी ने अच्छे से खरी-खोटी सुनाई और मैं जवाब देने को बोलने ही वाला था की अश्विनी मेरे पास आ गई और बुदबुदाते हुए बोली; 'छोड़ दो, आप ऊपर जा के नाश्ता करो.' मैं ऊपर आकर अपने कमरे में बैठ गया और प्लेट दूसरी तरफ रख दी. इधर अश्विनी भी ऊपर आ गई और प्लेट दूर देख के एकदम से अंदर आई और प्लेट उठाई और पराठे का एक कोर उसने अचार से लगा के मुझे खिलने को हाथ आगे बढाया. 'भाभी की वजह से ही तुम नीचे गई थी ना काम करणे.' अश्विनी ने कोई जवाब नहीं दिया बस मूक भषा में मुझे खाने को कहा. मैंने उसके हाथ से एक निवाला खा लिया फिर उसके हाथ से प्लेट ले कर उसे नीचे जाने को कहा. वो भी सर झुकाये हुए नीचे चली गई और कुछ देर बाद मेरी लिए एक कप में चाय ले आई. 'तुने नाश्ता किया?' उसने हाँ में सर हिला दिया और जाने लगी की मैंने दुबारा पूछा; 'झूठ तो नहीं बोल रही ना?' तो वो मुड़ी और ना में सर हिलाया. 'और दवाई?' तब जाके वो बोली; 'अभी नहीं ली, थोड़ी देर में ले लुंगी.'
'रुक' इतना कह कर मैं उठा और उसके कमरे से दवाई ले आया और उसे दवाई निकाल के दी और अपनी चाय भी उसने मेरे हाथ से दवाई ली और एक घूँट चाय पि कर कप मुझे वापस दे दिया. जैसे ही वो नीचे जाने को पलटी मैंने उसके कंधे पर हाथ रख के उसे रोका और उसे आँखें बंद करने को कहा. उसने धीरे-धीरे अपनी आँखें मीचली और सर नीचे झुका लिया. मैंने आगे बढ़ कर उसके मस्तक को चूमा! मेरा स्पर्श पाते ही वो आके मुझसे लिपट गई और उसकी आँखों में जो आंसुओं के कतरे छुपे थे वो बहार आ गये. मैंने भी उसे कस के अपने जिस्म से चिपका लिया और उसके सर पर बार-बार चूमने लगा.
'बस अब रोना नहीं.... और मेरे पीछे अपना ख़याल रखना. समय पर दवाई लेना और मुझे रोज फ़ोन करना.' इतना कह के मैंने अश्विनी को खुद से अलग किया और उसके आँसूं पोछे और मैं नीचे उतर आया. नीचे पिताजी और ताऊ जी भी आ चुका था.. मुझे नीचे उतरता देख वो समझ गए की मैं वापस जा रहा हु. मैंने सब के पाँव छुए की तभी अश्विनी भागती हुई मेरे पीछे जाने लगी तो मैं रुक गया और उसे फिर से चेतावनी देता हुआ बोला; 'दुबारा अगर बीमार पड़ी ना तो बहुत मारूँगा|' उसने मुस्कुरा के हाँ में सर हिलाया और मुझे हाथ उठा के 'बाए' कहने लगी. मैं बाइक स्टार्ट की और शहर लौट गया.ठीक एक बजे मुझे अश्विनी फ़ोन आया, उस समय मैं रास्ते में ही था तो मैंने बाइक एक किनारे खड़ी की और उससे बात करने लगा.
इसी तरह दिन बीतने लगे और हम रोज एक से दो बजे तक बातें करते. वो मुझे हर एक दिन मुझे यही कहती की आप कैसे हो? आपने खाना खाया? आपकी बहुत याद आती है और आप कब आओगे? पर मैं हर बार उसकी बात को घुमा देता की उसका दिन कैसा था? घरवाले कैसे हैं आदि! वो भी मुझे आस-पड़ोस में होने वाली सभी घटनाएं बताती और कभी-कभी ये भी पूछती की ऑफिस में क्या चल रहा है? एक दिन की बात है की अश्विनी ने मुझे फ़ोन किया पर मैं उस समय मीटिंग में था तो उसका फ़ोन उठा नहीं सका. उसी रात उसने मुझे ग्यारह बजे फ़ोन किया. समय देखा तो मैं एक दम से घबरा गया की कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं हो गई! पर अश्विनी को लगा की मैं उससे नाराज हूँ इसलिए मैंने उसका फ़ोन नहीं उठाया. खेर मैंने उसे समझा दिया की मैं मीटिंग में था इसलिए फ़ोन नहीं उठा पाया और आगे भी अगर मैं उसका फ़ोन न उठाऊँ तो वो परेशान ना हो! इधर मेरी छुटियों से बॉस बहुत परेशान थे इसलिए उन्होंने मुझे आखरी चेतावनी दे दी. इसलिए मेरा घर जाना दूभर हो गया और उधर अश्विनी ने मुझसे घर ना आने का कारन पुछा तो मैंने उसे सारी बात बता दी. वो थोड़ा मायूस हुई पर मैंने उसे ये कह के मना लिया की हम रोज फ़ोन पर तो बात करते ही हे. वहाँ आने से तो हम खुल के बात भी नहीं कर पायेंगे. पर वो उदास रहने लगी और इधर मैं भी मजबूर था!
महीने बीते और उसके बारहवीं के रिजल्ट का समय आ गया.उसके रिजल्ट से एक दिन पहले मैं रात को घर पहुँच गया.वो मुझे देख के बहुत खुश हुई और मुझे गले लगना चाहा पर मैंने उसे इशारे से मन कर दिया और फिर मैं अपने कमरे में सामान रख के नीचे आ गया.आज रात तो उसने जबरदस्त खाना बनाया जिसे खा के आत्मा तृप्त हो गई. अब चूँकि घरवाले सामने थे तो हम दोनों ने ज्यादा बात नहीं की और मैं पिताजी और ताऊ जी के साथ ही बैठा रहा. घर में सब जानते थे की कल अश्विनी का रिजल्ट है पर कोई भी उत्साहित या चिंतित नहीं था. उन्हें तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था. जब सोने का समय हुआ तो मैं अपने कमरे में आकर लेट गया और दरवाजा बंद कर लिया. रात के दस बजे होंगे की मेरे दरवाजे पर एक बहुत हलकी सी दस्तक हुई! मैं जानता था ये दस्तक किसकी है इसलिए मैंने उठ के दरवाजा खोला और सामने अश्विनी ही खड़ी थी. मैं वापस आ के अपने पलंग पर बैठ गया और वो उसी दरवाजे पर खड़ी रही. घर में अभी भी सभी जाग रहे थे इसलिए वो अंदर नहीं आई थी. 'तो मैडम जी! कल रिजल्ट है?! क्या चल रहा है मन में? डर लग रहा है की नहीं?' मैंने उसे छेड़ते हुए पूछा.
'डर? बिलकुल नहीं! मैं तो बस ये सोच रही हूँ की मेरे पास होने पर आप मुझे क्या दोगे?' उसने पूरे आत्मविश्वास से कहा.
'क्या चाहिए तुझे?' मैंने उत्सुकता से पूछा.
'पहले वादा करो की आप मना नहीं करोगे?' उसका जवाब सुन मैं सोच में पड़ गया, क्योंकि मैं जानता था की वो किस की ख्वाइश करेगी जो मैं पूरा नहीं कर सकता. अगर वो मुझसे पैसे मांगती, कपडे मांगती, या कुछ भी मांगती तो मैं उसे मना नहीं करता. मुझे चुप देख के शायद वो समझ गई की मैं क्या सोच रहा हु.
अश्विनी: क्या सोच रहे हो?
मैं: जानता हूँ की तू क्या माँगने वाली है और मैं वो नहीं दे सकता. (मैंने थोड़े रूखेपन से जवाब दिया.)
अश्विनी: अच्छा? ठीक है! अभी नहीं बाद में दे देना! अब तो ठीक है?
मैं: समय लगेगा.
अश्विनी: हम इंतज़ार करेंगे... हम इंतज़ार करेंगे...क़यामत तक
खुदा करे कि क़यामत हो, और तू आए
हम इंतज़ार करेंगे ...
न देंगे हम तुझे इलज़ाम बेवफ़ाई का
मगर गिला तो करेंगे तेरी जुदाई का
तेरे खिलाफ़ शिकायत हो और तू आए
खुदा करे के कयामत हो, और तू आए
हम इंतज़ार करेंगे ...
ये ज़िंदगी तेरे कदमों में डाल जाएंगे
तुझी को तेरी अमानत सम्भाल जाएंगे
हमारा आलम-ए-रुखसत हो और तू आए...
बुझी-बुझी सी नज़र में तेरी तलाश लिये
भटकते फिरते हैं हम आज अपनी लाश लिये
यही ज़ुनून यही वहशत हो और तू आए|
(बहु बेगम फिल्म का गाना कह कर वो जाने लगी तो मैंने भी उसके गाने को पूरा कर दिया.)
मैं: ये इंतज़ार भी एक इम्तिहां होता है
इसीसे इश्क़ का शोला जवां होता है
ये इंतज़ार सलामत हो
ये इंतज़ार सलामत हो और तू आए
ख़ुदा करे कि क़यामत हो, और तू आए
हम इंतज़ार करेंगे...
(ये सुन के वो पलटी और आगे की पंक्तियाँ गाने लगी.)
अश्विनी: बिछाए शौक़ से, ख़ुद बेवफ़ा की राहों में
खड़े हैं दीप की हसरत लिए निगाहों में
क़बूल-ए-दिल की इबादत हो
क़बूल-ए-दिल की इबादत हो और तू आए
ख़ुदा करे कि क़यामत हो, और तू आए
हम इंतज़ार करेंगे...
मैं: वो ख़ुशनसीब है जिसको तू इंतख़ाब करे
ख़ुदा हमारी....
(इतना कहते हुए मैं रुक गया क्योंकि आगे के शब्द मैं बोलना नहीं चाहता था. पर अश्विनी ने उन अधूरी पंक्तियों को खुद पूरा किया.)
अश्विनी: …. ...
मोहब्बत को क़ामयाब करे
जवां सितारा-ए-क़िस्मत हो
जवां सितारा-ए-क़िस्मत हो और तू आए
ख़ुदा करे कि क़यामत हो, और तू आए
हम इंतज़ार करेंगे.
 
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गाना पूरा कर के वो मुस्कुराई और पलट के चली गई. मैं जानता था की अश्विनी को गाना गुन-गुनाना बहुत अच्छा लगता था. जब हम छोटे थे तब हम दोनों अक्सर अंताक्षरी खेलते थे और वो सभी गानों को पूरा गाय करती थी और मैं कभी उसका साथ देता और कभी कभी उसका गाना सुनता रहता था. खेर रात में हम दोनों चैन से सोये और जब मैं सुबह उठा तो अश्विनी पहले से ही तैयार खड़ी थी और नीचे आंगन में मेरा इंतजार कर रही थी. मुझे देखते ही वो इशारे से कहने लगी की आप लेट हो गए हो! मैंने भी ऊपर खड़े-खड़े ही अपने कान पकडे और उसे सॉरी कहा और तुरंत नीचे आ कर नाहा-धो के तैयार हो गया और फिर हम दोनों ही नाश्ता कर के बाइक पर बैठ के निकल गये.
हम साइबर कैफे पहुंचे तो आज वहाँ और भी ज्यादा भीड़ लगी थी. मैंने अश्विनी का हाथ पकड़ा और भीड़ के बीचों-बीच से होता हुआ अंदर जा पहुँचा और फ़टाफ़ट अश्विनी का रोल नंबर डाल के उसके रिजल्ट के लोड होने का वेट करने लगा. जैसे-जैसे पेज लोड हो रहा था दोनों की धड़कनें तेज हो चली थी. आखिर जब पेज पूरा लोड हुआ तो उसके नंबर देख दोनों की आँखों में खुशियाँ उमड़ चुकी थी. ९८.५% देख के वो ख़ुशी से चिल्ला पड़ी और मेरे गले लग गई. वहाँ खड़े सब हमें ही देख रहे थे और जब उन्होंने देखा की उसके ९८.५% आये हैं तो वहां भी हल्ला मच गया! वहाँ आये की माता-पिता उसे बधाइयाँ देने लगे और वो सब को धन्यवाद करने लगी. आज अश्विनी के मुख पर बहुत ख़ुशी थी. पहले मैंने उसे अच्छा सा नाश्ता कराया और फिर मिठाई ली और हम घर की तरफ चल दिये. घर आते-आते थोड़ी देर हो गई. करीब बारह बजे होंगे की जैसे ही हम घर के नजदीक पहुंचे तो वहाँ बहुत सी गाड़ियाँ खड़ी थी. दो लाल बत्ती वाली और बाकी डिश एंटेना वाली.
मैने बाइक खड़ी कर के अश्विनी की तरफ देखा तो वो हैरान थी; 'लो भाई ... अब तो तुम सेलिब्रिटी हो गई हो!' मैंने ऐसा कह के उसे छेड़ा और शर्म से अश्विनी के गाल लाल हो गए और उसने अपना सर झुका लिया. जब हम घर के दरवाजे के पास पहुंचे तो वहाँ गाँव के सभी लोग खड़े अंदर झाँक रहे थे. हम दोनों को देखते ही सब हमें अंदर जाने के लिए जगह देने लगे और हमारे कदम अंदर पड़ते ही ताऊ जी ने हँसते हुए हम दोनों को गले लगने के लिए बुलाया. तब जा के पता चला वहाँ तो मीडिया वालों का जमावड़ा लगा था. आखिर अश्विनी पूरे प्रदेश में प्रथम आई थी! आज तो ताऊ जी समेत सब ने उसे बहुत प्यार किया और सब उसे मुबारकबाद और आशीर्वाद दे चुके तब मंत्री जी आगे आये.उस ने भी आगे आते हुए अश्विनी को आशीर्वाद दिया और फिर उसके बाद कैमरे की तरफ देख के लम्बा-चौड़ा भाषण दिया की कैसे हमें लड़कियों को आगे पढ़ाना चाहिए और वो ही इस देश का भविष्य हैं! ये सुन के तो मैं भी दंग था क्योंकि ये वही शक़्स था जिसने अश्विनी की माँ और उसके प्रेमी को पेड़ से बाँध के जिन्दा जलाने का फरमान सुनाया था.जैसे ही मंत्री जी का भाषण खत्म हुआ सब ने तालियाँ बजा दी और फिर रिपोर्टर ने हेडमास्टर साहब से भी अश्विनी की इस उपलब्धि के बारे में पुछा तो वो कहने लगे;
'अरे भाई मैं क्या कहूँ! मुझे तो गर्व है की मैं ऐसे स्कूल का हेडमास्टर हूँ जहाँ सागर और अश्विनी जैसे विद्यार्थी पड़ते हैं! पहले सागर ने जिल्हे में टॉप किया था और अब देखो उसकी भतीजी ने भी पूरे प्रदेश में टॉप किया.'
ये सुन के सारे रिपोर्टर और कैमरा मैन मेरी तरफ घूम गये. 'तो बताइये सागर जी पहले आपने टॉप मारा और अब आपकी भतीजी ने भी पूरे प्रदेश में टॉप किया है,आपको कैसा लग रहा है?' एक रिपोर्टर ने पूछा.
मेरे कुछ कहने से पहले ही ताऊ जी बोल पड़े; 'जी हमारे घर के दोनों बच्चे ही बहुत समझदार है और दिल लगा के पढ़ते हैं.'
'तो आगे आप अश्विनी को कॉलेज पढ़ने भेजेंगे?' एक रिपोर्टर ने उनसे सवाल पूछा. पर उसका जवाब मंत्री जी ने खुद दिया; 'इसमें पूछने की क्या बात है? शहर के कॉलेज में बच्ची का दाखिला होगा और आप देखना ये वहाँ भी टॉप ही करेगी!' ये सुन के तो अश्विनी बहुत खुश हुई और उसके चेहरे से उसकी ख़ुशी साफ झलक रही थी.
मंत्री की बात सुन सभी चमचे ताली बजाने लगे और उनकी जय-जयकार शुरू हो गई. खेर ये ड्रामा दो घंटों तक चला और शाम होने तक सभी चले गए और घर में जितने भी लोग थे सब आज टी.वी. में आने से बहुत खुश थे. रात के खाने के समय ताऊ जी ने अश्विनी को सभी मर्दों के सामने बिठा दिया और मेरी तरफ देख के सवाल किया;
ताऊ जी: हाँ भाई सागर तू बता, ये कॉलेज कहाँ है और कितनी दूर है?
मैं: जी शहर में दो ही कॉलेज हे. एक रेलवे फाटक के पास है और एक वो जिसमें मैंने पढ़ाई की थी. फाटक वाले के पास कोई हॉस्टल नहीं है तो सबसे उत्तम मेरा वाला कॉलेज ही रहेगा.बल्कि मेरी ही कक्षा में पढ़ने वाली एक लड़की की माँ एक लड़कियों का हॉस्टल चलाती हैं.जो की कॉलेज से करीब १० मिनट की दूरी पर हे. हॉस्टल में रहना-खाना और एक पुस्तकालय भी हे. (मैंने उन्हें सारी डिटेल बताई|)
ताऊ जी: वो तो ठीक है ... पर ... वहाँ अगर ये इधर-उधर कहीं चली गई तो?
मैं: जी हॉस्टल के कानून सख्त होते हे. शाम को ७ बजे के बाद वो किसी को भी बहार जाने नहीं देते..खाने का समय भी निर्धारित है और कहीं भी जाने से पहले वार्डन को बताना जरुरी होता है और अगर कोई बिना बताये कहीं आये-जाए तो उसकी खबर घरवालों को की जाती हे. रहना, खाने, नहाने, कपडे धोने की सब की व्यवस्था हॉस्टल के अंदर में होती हे. अश्विनी को सिर्फ कॉलेज जाना है और वहाँ से हॉस्टल वापस.
ताऊ जी: ठीक है परसों मैं, गोपाल भैया और तेरे पिताजी तुझे शहर में मिलेंगे. वहाँ जा के देखता हूँ!
उनकी बात से साफ़ था की अगर उन्हें मंत्री का डर ना होता तो वो अश्विनी को कतई कॉलेज पढ़ने नहीं जाने देते. इसलिए मरते क्या न करते. उन्हें उनकी बात का मान तो रखना ही था. खेर खाने के बाद मैं छत पर आ गया और कान में हेडफोन्स लगा के गाना सुनते हुए टहलने लगा. रात को ठंडी-ठंडी हवा चलने के कारन छत पर टहलने में मजा आ रहा था. तभी अश्विनी दबे पाँव ऊपर गई और पीछे से आके उसने मुझे अपनी बाहों में जकड लिया. उसके स्पर्श से ही मैं हड़बड़ा गया पर अश्विनी ने अपना सर मेरी पीठ पर रख दिया पर मैं चुप-चाप खड़ा रहा. ठंडी हवा के झोंकें मेरे चेहरे पर आज बहुत अच्छे महसूस हो रहे थे. करीब ५ मिनट बाद मैंने अश्विनी को खुद से अलग किया और मुंडेर पर जा बैठा. इधर वो भी मुझसे थोड़ा दूर हो कर बैठी, क्योंकि घर पर हम दोनों अकेले तो नहीं थे.
अश्विनी: मैं सोच रही हूँ की हम कलकत्ता भाग जाते हैं!
मैं: (उसकी बात सुन के चौंकते हुए) क्या?
अश्विनी: हाँ! वहाँ हमें कोई नहीं जानता!
मैं: अच्छा? और वहाँ जा के रहेंगे कहाँ? खाएंगे क्या? और करेंगे क्या?
अश्विनी: रहना और खाना तो मुझे नहीं पता पर करेंगे तो प्यार ही! एक नई जन्दगी की शुरुरात करेंगे.
मैं: नई जिंदगी शुरू करना इतना आसान नहीं हे. उसके लिए पैसे चाहिए! मेरे पास कुछ पैसे हैं पर उसमें हमें सर ढकने की जगह भी नहीं मिलेगी खाने और रहने की तो बात ही छोड़ दो. फिर तेरी पढ़ाई का क्या? अगर भागना ही था तो इतना पढ़ाई क्यों की?
अश्विनी: मेरे जीवन का लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ आपसे शादी करना हे.
मैं: पागल मत बन! इतनी मेहनत की है, इसे मैं बर्बाद नहीं होने दूंगा.
अश्विनी: (अपना सर पीटते हुए) तो अभी और पढ़ना है? घर में आपकी शादी की बात चलने लगी हे.
मैं: जानता हूँ पर तू चिंता मत कर मैं अभी शादी नहीं कर रहा.
अश्विनी: जबरदस्ती कर देंगे तो क्या करोगे और वैसे भी आपकी कुंडली मैं कौनसे ग्रहों की दशा ख़राब है की आपकी शादी टल जाएगी.
मैं: तो तेरी कुंडली में कौनसा ग्रहों की दशा ख़राब थी. (ये सुनते ही अश्विनी के पाँव तले जमीन खिसक गई.)
अश्विनी: तो.....वो..... (अश्विनी के मुँह से बोल नहीं फुट रहे थे.)
मैं: मैंने उस लालची पंडित को पैसे खिला के झूठ बुलवाया था. तेरे स्कूल और कॉलेज का टाइम कैलकुलेट कर के ही मैंने उसे पाँच साल बोला था. (अश्विनी ये सुन के उठ खड़ी हुई और आके मेरे सीने से लग कर रोने लगी.)
अश्विनी: मैं गलत नहीं थी! आप मुझसे बहुत प्यार करते हो बस कभी जताते नहीं हो! आपने मेरे लिए इतना सब कुछ किया.....
इसके आगे मैंने उसे कुछ कहने नहीं दिया और उसे खुद से अलग किया और घडी देखते हुए ऐसे जताया की बहुत लेट हो गया है और मैं वहाँ से जाने लगा तो अश्विनी बोल पड़ी;
अश्विनी: कहाँ जा रहे हो आप? आप ने कहा था की आप मुझे गिफ्ट दोगे?
मैं: आशु ... मैंने ....
अश्विनी: (मेरी बात बीच में काटते हुए) घबराओ मत मैं ऐसा कुछ नहीं माँगूँगी जो आपको देने में दिक्कत हो. ये तो बहुत आसान है आपके लिए!
मैं: अच्छा? क्या चाहिए?
अश्विनी: आपको याद है जब हम छोटे थे और रात को कभी अगर माँ मुझे डाँट देती तो आप कैसे मुझे अपने सीने से लगा के सुलाते थे? आज भी वैसे ही सोने का मन है मेरा!
मैं: (मुस्कुराते हुए) तब हम छोटे थे और अब.....
अश्विनी: (मेरी बात बीच में काटते हुए) सारी रात ना सही तो कुछ घंटों के लिए? प्लीज! आप तो जानते हो की मुझे नींद जल्दी आ जाती है, फिर आप चले जाना! प्लीज.. प्लीज.. प्लीज.. प्लीज!!!
उसकी बात सुनके मन नहीं हुआ की उसका दिल तोडूं इसलिए मैंने हाँ में सर हिलाया और वो ख़ुशी से उठ खड़ी हुई और भागती हुई अपने कमरे में भाग गई. करीब १० मिनट बाद में आया तो पाय की वो कुर्सी पर बैठी दरवाजे पर टकटकी बाँधे मेरा इंतजार कर रही हे. जैसे ही मैं अंदर आया वो दौड़ के दरवाजे के पास गई और चिटकनी लगाईं फिर मेरे पास आई और मेरे सीने से लग गई. उसकी साँसों की गर्माहट मुझे मेरे सीने पर महसूस हो रही थी और इधर अश्विनी के हाथ मेरी पूरी पीठ पर चलने लगे थे और मेरे भी हाथ स्वतः ही उसकी पीठ पर आ गए और उसकी बैकलेस कुर्ती पर आज मुझे पहली बार उसकी नग्न पीठ का एहसास हुआ. ये एहसास इतना ठंडा था की मैं छिटक कर उससे अलग हो गया.उसकी नग्न पीठ के एहसास ने मेरे अंदर वासना की चिंगारी ना जला दे इसलिए मैं उससे छिटक कर दूर हो गया था और उससे नजरें चुराने लगा था. वो फिर भी धीरे-धीरे मेरी तरफ बढ़ी और मेरा हाथ पकड़ के अपने पलंग की तरफ ले जाने लगी और फिर वो लेट गई और मुझे धीरे से अपने पास लेटने को खिंचा.
मैं लेट गया पर मेरी नजरें छत पर टिकी थी की तभी अश्विनी ने मेरे दाएं हाथ को खींच के अपनी तरफ करवट लेटने को मजबूर किया.फिर बाएं हाथ को सीधा किया और उसे अपना तकिया बनाया. फिर वो दुबारा मेरी छाती में समां गई. फिर मेरे बाएं हाथ को उठाके उसने अपनी कमर पर रखा.अपना हाथ मेरी कमर पर रख कर खुद को मेरे सीने से समेट लिया. उसकी गर्म-गर्म सांसें मेरे दिल पर महसूस होने लगी थी. जितनी भी सख्ती मेरे दिल में थी जो मुझे उसके करीब नहीं जाने देती थी आज वो पिघलने लगी थी. मेरे मन में आज बहुत जोरों की उथल-पुथल हो रही थी! दिमाग कह रहा था की ये गलत है, तेरे साथ इस लड़की की भी जिंदगी तबाह हो जाएगी! पर दिल था की वो बहकने लगा था और कह रहा था की जो होगा वो देखा जायेगा! प्यार के लिए जान भी देनी पड़ी तो कोई गम नही. तभी दिमाग बोला की आशु का क्या होगा? तेरे साथ तो वो भी मौत के घाट उतार दी जाएगी! इसी जद्दोजहत के चलते मन बेचैन होने लगा की तभी अश्विनी ने मेरी छाती को चूमा! उसके नरम होठों के स्पर्श से ही दिल ने दिमाग पर जीत हासिल कर ली और मैंने अश्विनी को और कस के अपने सीने से चिपका लिया.मेरे इस दबाव के चलते उसने भी अपनी गिरफ्त मेरे इर्द-गिर्द सख्त कर ली. कब आँख बंद हुई ये पता ही नहीं चला और जब पता चला तो घडी में पोन तीन हुए थे. मैंने धीरे से खुद को अश्विनी की गिरफ्त से छुड़ाया और मैं दबे पाँव उठ के उसके कमरे से अपने कमरे में आ गया.पर नींद अब उचाट हो गई थी और मन में फिर से वहीँ जंग छिड़ चुकी थी. मैं खुद को तो किस्मत के हवाले छोड़ सकता था पर आशु को नहीं! दिमाग और दिल दोनों ने ही एक मत बना लिया की चाहे कुछ भी हो मैं आशु के प्यार को अपना लूँ! मैंने दृढ निश्चय कर लिया था की मैं कैसे न कैसे उसे भगा ले जाऊँगा. कब कहाँ और कैसे इस पर मुझे अब घोर विचार करना था.
सुबह पाँच बजे तक सोचते-सोचते एक जबरदस्त प्लान बना के तैयार कर लिया था. ऐसा प्लान जिसमें बाल भर भी कोई गड़बड़ नहीं थी. हर एक बात का ध्यान रखा था मैंने और अपने इस प्लान पर मुझे फक्र था. मैं इस प्लान के बारे में सोच-सोच के मुस्कुरा रहा था की तभी अश्विनी मेरे दरवाजे को खोल के अंदर आई और मुझे इस तरह बैठ के मुस्कुराते हुए देख कर बोली; 'गुड मॉर्निंग!' उसे देखते ही मैं उठ के खड़ा हो गया और उसे गले लगाने को अपनी बाहें खोल दी. वो भी बिना कुछ बोले आके मेरे सीने से लग गई.
'आई लव यू !!!' मैंने आँखें मूंदें हुए कहा तो वो जैसे अपने कानों पर विश्वास कर ही नहीं पाई और मुझसे थोड़ा अलग हुई और मेरे मुख पर देखने लगी की कहीं मैं उसके साथ मजाक तो नहीं कर रहा. पर उसे मेरी आँख में सचाई और उसके लिए वो प्यार नजर आया तो वो फिर से मेरे गले लग गई और बोली; 'आई लव यू टू !!! मैं जानती थी आप मेरा प्यार एक ना एक दिन कबूल कर लोगे.' आज हम दोनों की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था पर घर की बंदिश भी थी इसलिए हम अलग हुए. पर हाथ अभी थामे हुए थे फिर मैंने जब अश्विनी के चेहरे पर नजर डाली तो आज उसका चेहरा दमक रहा था.
नीचे से भाभी की आवाज आई तो मैंने उसका हाथ छोड़ दिया और वो मुस्कुराते हुए नीचे जाने लगी. वो नीचे पहुँची ही थी की मैंने अपने फोन पर गाना फुल आवाज में चला दिया और खुद भी उसी गाने के अल्फाज गाने लगा;
'हसता रहता हूँ तुझसे मिलकर क्यूँ आजकल....
बदले बदले हैं मेरे तेवर क्यूँ आजकल....
आखें मेरी हर जगह ....
ढूंढे तुझे बेवजह...
ये मैं हूँ या कोई और है मेरी तरह..
कैसे हुआ.. कैसे हुआ..
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ
कैसे हुआ.. कैसे हुआ..
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ ....
मैं बारिश की बोली समझता नहीं था
हवाओं से मैं यूँ उलझता नहीं था..
है सीने में दिल भी कहाँ थी मुझे ये खबर
कहीं पे हो रातें कहीं पे सवेरा
आवारगी ही रही साथ मेरे
ठहर जा ठहर जा ये कहती है तेरी नज़र
क्या हाल हो गया है ये मेरा..
आखें मेरी हर जगह ढूंढे तुझे बेवजह
ये मैं हूँ या कोई और है मेरी तरह..
कैसे हुआ.. कैसे हुआ..
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ
कैसे हुआ.. कैसे हुआ.. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ. हम्म्म ममममम मममम… '
जब ये गाना खत्म हुआ तो मैं अपने कपडे ले कर नीचे आय. सभी के सभी आंगन में बैठे चाय पी रहे थे और मेरा गाना सुन रहे थे. मैं जब नीचे आया तो पिताजी बोले; 'हो गया तेरा गाना?' मैं बुरी तरह झेंप गया और आशु की तरफ देखने लगा और उम्मीद करने लगा की वो मेरे गाने का मतलब समझ गई हो. वो मुझे देख के मंद-मंद मुस्कुरा रही थी जो ये प्रकाश था की वो समझ चुकी हे. मैं सीधा बाथरूम में घुस के नहाने लगा पर गाना अब भी गुनगुना रहा था. नाहा धो के, चाय नाश्ता कर के मैं निकलने को हुआ तो बहार ना जाके ऊपर गया, ये बहाना कर के की मैं कुछ भूल गया हु. दो मिनट बाद आशु भी ऊपर आ गई और कमरे की चौखट पर कंधे के सहारे खड़ी हो गई.
आशु: क्या भूल गए?
मैं: वो....वो.... कुछ तो भूल गया हूँ!
आशु चल के आगे आई और मेरे दिल पर अपनी ऊँगली रखते हुए बोली;
आशु: ये तो नहीं?
मैं: नहीं... ये तो तुम्हारे पास है!
ये सुन के अश्विनी मुस्कुराने लगी और मेरे सीने से लग गई.
आशु: तो अब कब भेंट होगी आपसे?
मैं: अब शहर में ही मिलेंगे.
आशु: हाय! उसमें तो कम से कम एक महीना लगेगा!
मैं: 'बिरहा' के बाद मिलन का दोहरा मजा होता हे.
ये सुन कर आँसूं के दो कतरे आशु की आँखों से छलक आये और मेरी कमीज को भीगोने लगे.
आशु: तो क्या बीच में एक भी दिन नहीं आ सकते मुझे मिलने?
मैं: कोशिश करूँगा पर वादा नहीं कर सकता. बॉस बहुत नाराज है मेरी छुटियों को लेकर!
आशु: ठीक है ... पर मैं फिर भी इंतजार करुँगी आपका!
मैंने आशु को खुद से अलग किया और वो अपने आँसू पोछने लगी. मैंने उसके चेहरे को अपने हथेलियों में लिया और उसके दाएँ गाल पर अपने होंठ रख दिये. मेरे होठों के स्पर्श से जैसे वो सिंहर उठी और पंजों पर खड़ी होके मेरे होठों को चूमना चाहा. पर मैंने उसके होठों पर ऊँगली रख के उसे रोक दिया; 'अभी नहीं! कोई आ जाएगा.' ये सुन कर वो झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाने लगी. मैंने पुनः उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसके बाएँ गाल को चूम लिया. तब जाके उसका गुस्सा शांत हुआ और वो मेरे सीने से फिर लग गई.
इसी मीठी याद को लिए मैं घर से निकला और ऑफिस पहुँचा.बॉस अगले दिन की आधी छुट्टी दे दे इसलिए देर रात तक मैं ऑफिस में बैठा काम निपटाता रहा. अगले दिन पिताजी, ताऊजी और गोपाल भैया सब मुझे बस स्टैंड पर मिले. वहाँ से कॉलेज करीब आधा घंटा दूर था तो हम ऑटो से कॉलेज पहुंचे. कॉलेज के गेट पर ही रहीम भैया मिल गए और मुझे देखते ही सलाम करने लगे. कॉलेज के दिनों में मैंने उनकी थोड़ी मदद की थी तो वो तब से मेरी बहुत इज्जत किया करते थे. मुझे सलाम करता देख सभी हैरान थे. रहीम भैया से दुआ-सलाम कर के जब हम अंदर आये तो पिताजी बोले; 'तेरा तो बड़ा रुतबा है यहाँ? पढ़ाई करता था की दंगाई!' मैंने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और उन्हें कॉलेज दिखाने लगा. चूँकि सुबह का टाइम था तो विद्यार्थी क्लास में थे.अगर सब बाहर मटर गश्ती करते दिख जाते तो आशु का कॉलेज में पढ़ने का सपना तोड़ दिया जाता.
आखिर में मैं पिताजी को हेडमास्टर साहब के पास ले गया तो मुझे देख वो फूले नहीं समाय और तुरंत गले से लगा लिया.आखिर उनके कॉलेज का टॉपर जो था. फिर जब उन्हें पता चला की आशु भी मेरी तरह टॉपर है तो वो बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने सभी को अपने पैसों से मिठाई मंगवा के खिलाई! मंत्री का नाम लेने की जरुरत ही नहीं पड़ी और कॉलेज में अश्विनी का एडमिशन पक्का हो गया.हेडमास्टर साहब ने जबरदस्ती चाय-नाश्ता कराया और फिर हमने वहाँ से विदा ली और १० मिनट पैदल चल के हॉस्टल के बाहर पहुंचे. हॉस्टल के गार्ड ने मुझे देखते ही सलाम ठोका और ये देख के तो सभी अचरज करने लगे. गार्ड हमें अंदर ले के आया और सुमन मैडम को बुलाया. ये सुमन मैडम वहीँ जो कॉलेज में मेरे साथ पढ़ती थी. नाम बिलकुल रंग-रूप से मेल खाता था उसी की माँ ये हॉस्टल चलाती थी.
सुमन मुझे देखते ही मुस्कुराती हुई आई; 'अरे सागर जी! इतने सालों बाद कैसे याद आई हमारी?' पिताजी समेत सभी हैरान था क्यों की आजतक उनके सामने मुझे कभी किसी ने 'सागर जी' कह के नहीं बुलाया था.
'हाँ वो दरअसल मेरे भाई की लड़की अश्विनी....' आगे मेरे कुछ बोलने से पहले ही वो बोल पड़ी; 'मुबारक हो जी आपको! चाचा की तरह उसने भी टॉप मारा!' इतना कहते हुए वो मेरे गले लग गई. पर मैंने उसे अभी तक छुआ नहीं था और ये नजारा देख सभी मुँह बाय हैरान थे.दरअसल सुमन बहुत ही मुँहफट और अल्हड सवभाव की थी. जब वो बात करती थी तो उसे दुनियादारी की कतई चिंता नहीं होती थी और वो अपने मन की बात बोलने से कभी नहीं हिचकती थी. खेर मुझे उसे रोकना था की कहीं वो कुछ और ना बक दे; 'ये मेरे पिताजी, ताऊ जी और गोपाल भैया हैं! वैसे आंटी जी कहाँ हैं?' मैंने उससे पूछा तो उसे मेरे परिवार वालों का ध्यान आया और उसने पहले सब को हाथ जोड़ कर नमस्ते की फिर शर्मा कर अंदर भाग गई. उसके जाते ही मैं ने सब की तरफ देखा तो वो सब अब भी हैरान थे की उनका सीधा साधा लड़का जो कभी किसी लड़की से बात नहीं करता था वो इतना बड़ा हो चूका है की एक लड़की उसके गले लग रही है वो भी उसके परिवार के सामने.
'जी वो...' मेरे कुछ कहने से पहले ही आंटी जी आ गई. 'अरे भाईसाहब आप सब खड़े क्यों हैं? बैठिये-बैठिये! ये लड़की भी न बिलकुल बुधु है!' मैंने आगे बढ़ कर आंटी जी के पाँव छुए तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और फिर हम सभी उनके घर की बैठक में बैठ गये. मैंने उनका परिचय सब से कराया और हमारे आने का कारन भी बताया. उन्हें सुन के बड़ी ख़ुशी हुई और उन्होंने तुरंत सुमन को आवाज दे कर चाय-नाश्ता मंगवाया. ताऊ जी और पिता जी ने बड़ी ना-नुकुर की पर आंटी जी नहीं मानी; 'अरे भाई साहब आज पहली बार तो आप सभी से मुलाकात हुई है और ये तो घर की बात है! आपका लड़का सागर बहुत मन लगा कर पढता था. और इसी की वजह से मेरी बुधु लड़की पास हुई हे. आप अश्विनी की कतई चिंता ना करो ये उसके लिए उसका दूसरा घर है.यहाँ उसे किसी चीज की कोई दिक्कत नहीं होगी! मेरी बेटी की तरह रहेगी वो यहाँ!' तभी वहाँ सुमन चाय-नाश्ता ले कर आ गई और सब को परोस कर खुद अपनी माँ की बगल में हाथ बंधे खड़ी हो गई.
'सुन लड़की तेरे कमरे में एक अलग से पलंग डलवा और कल से अश्विनी भी तेरे ही कमरे में रहेगी.' आंटी की बात सुन उसने बस 'जी' कहा.
'बहनजी ... वो ... पैसे.....' ताऊ जी ने बस इतना ही कहा था की वो बोल पड़ी; 'भाई साहब मैं अब क्या बोलूं...घर की बात है!'
इस पर पिताजी भी तपाक से बोले; 'देखिये बहनजी, एक-आध दिन की बात होती तो बात कुछ और थी! पर उसे तीन साल यहाँ रहना हे. जो पैसे आप बाकी सभी लड़कियों के घरवालों से ले रही हैं वो हम भी दे देंगे.'
तभी गोपाल भैया भी बोल पड़ा; 'बाकी लड़कियों के घरवाले आपको कितने पैसे देते हैं?' ये सुन के मुझे, पिताजी और ताऊ जी को बहुत गुस्सा आया और ताऊ जी गोपाल भैया को घूर के देखने लगे पर तभी मेरी नजर दिवार पर लगे बोर्ड पर पड़ी जिस पर सब कुछ लिखा था. मैंने इशारे से पिताजी को वहाँ देखने को कहा और उन्होंने ताऊ जी को कहा. 'चलिए जी ये लीजिये ६०००/-' उन्होंने अपनी जेब में हाथ डाला और २००० के नोट निकाले और आंटी जी को देने लगे पर आंटी जी ने मना कर दिया. वो समझ चुकी थी को हम सबने बोर्ड पढ़ लिया हे. 'मैं आपकी बात का मान रखती हूँ पर आपको भी मेरी बात का मान रखना होगा. ये पैसे जो बोर्ड पर लिखे हैं वो औरों के लिए है और आप सब तो अपने हैं इसलिए आप मुझे केवल ४०००/- दिजिये.' उन्होंने केवल २००० के दो नोट लिए और सुमन को रजिस्ट्रेशन की किताब लाने को कहा. सुमन ने तुरंत वो किताब और बिल बुक उन्हें ला के दी. आंटी जी ने रजिस्ट्रेशन की किताब मुझे दे दी और खुद ४,०००/- के बिल बनाने लगी. 'पर बहन जी आप हमारे लिए २०००/- का नुकसान क्यों सह रही हैं?' ताऊ जी ने कहा.
'नुकसान कैसा जी? अब आपका लड़का मेरी बेटी को पढ़ाता था तब तो उसने कभी नहीं कहा की उसका नुकसान हो रहा है?' आंटी ने बिल की कॉपी ताऊ जी को देते हुए कहा. 'पर आंटी जी उसमें मेरा नुकसान थोड़े ही था? मेरा भी तो रिविजन हो जाता था!' मैंने उनकी बात का उत्तर दिया. 'अब बताइये बहनजी?' पिताजी ने मेरी बात का समर्थन किया. 'भाई साहब जिस २,०००/- की बात आप कर रहे हैं वो हमारा मुनाफा होता हे. अब आप बताइये की कोई अपनों से मुनाफा कमाता है?' आंटी की इस बात का किसी के पास भी जवाब नहीं था इसलिए उनकी बात मान कर ताऊ जी ने उनसे वो बिल ले लिया और इधर मैंने रजिस्ट्रेशन वाली बुक में अश्विनी की सभी जानकारी लिख दी बस मोबाइल नंबर की जगह कुछ नहीं लिखा. जब आंटी जी ने मोबाइल नंबर माँगा तो ताऊ जी ने कहा; 'बहन जी अश्विनी के पास मोबाइल नहीं हे. उसे इन सब चीजों का कोई शौक नहीं हे.' ये सुन के आंटी जी ने सुमन को ताना मारा; 'सीख इनकी लड़की से कुछ? ये तो सारा दिन मोबाइल में घुसी रहती हे.' ये सुन कर उस बेचारी का सर शर्म से झुक गया अब उसे बचाने के लिए मैंने चलने की इजाजत माँगी तो सारे उठ खड़े हुए और आंटी हमें बाहर छोड़ने आई और मुझसे बोली; 'अरे सागर बेटा तुम क्या कर रहे हो आज कल?' तभी सुमन बीच में बोल पड़ी; 'शादी-वादी कर ली होगी!' 'नहीं आंटी जी वो मैं फिलहाल बाईपास के पास जो बड़ी सी बिल्डिंग हूँ वहाँ जॉब कर रहा हु.'
'कमाल है? इतने सालों से तुम यहीं पर जॉब कर रहे हो पर हमें कभी मिलने नहीं आये!?' उन्होंने थोड़ा गुस्सा दिखते हुए कहा.
'जी वो... समय नहीं मिलता ... शनिवार और इतवार मैं घर चला जाता हूँ... इसलिए....' मैंने सफाई दी.
'ये सब मैं नहीं जानती ... एक शहर में हो कर कभी तो आ जाया करो! ये तो तुम्हारा अपना घर हे.' उन्होंने मेरे कान पकड़ते हुए कहा.
'जी ....ठीक... है... आऊँगा....आऊँगा!!!' मैंने हँसते हुए कहा जैसे की वो मेरा कान मरोड़ रही हों और ये देख के सभी खिल-खिला के हंस पडे. खेर हँसी-ख़ुशी मैंने सब को बस स्टैंड छोड़ा और मैं विदा ले कर अपने ऑफिस आ गया.
ठीक १ बजे आशु का फ़ोन आया और मैंने उसे बता दिया की उसके कॉलेज और हॉस्टल दोनों जगह बात हो गई हे. ये सुन कर वो बहुत खुश हो गई और पूछने लगी की सब लोग कहाँ है? तो मैंने उसे बता दिया की वो सब बस में बैठे हैं और ५ बजे तक घर पहुचेंगे. इसके बाद वही प्यार भरी बातें हुई और फिर मेरे बॉस ने आवाज दे दी तो मुझे जल्दी ही जाना पडा.
रात के ग्यारह बजे मेरा फ़ोन बजा तो मैंने घडी देखि, चिंता हुई की सब ठीक तो है?
आशु: ये सुमन कौन है? (उसने बहुत गुस्से में कहा.)
मैं: क्या...? (अभी भी नींद से ऊंघते हूये.)
आशु: वही छमक छल्लो जो आपसे गले लगी थी आज?
मैं: (उबासी लेते हुए) वो... दोस्त ... हे.
आशु: दोस्त है तो दोस्त की तरह रहे! गले लगने की क्या जरुरत है उसे?
मैं: अरे बाबा! वो इतने साल बाद मिले ना तो ....
आशु: (बीच में बात काटते हुए) ऐसी भी क्या दोस्ती है की होश तक नहीं उसे की आपके साथ घर के बड़े लोग भी हैं! और आप को भी बहुत मज़ा आ रहा था जो उसे अपने सीने से चिपकाये हुए थे!
मैं: अरे मेरी बात तो सुनो! वो दरअसल थोड़ा मुँहफट है!
आशु: (बीच में बात काटते हुए) वो सब मैं नहीं जानती, आप उससे दूर रहो वरना मैं उसका मुँह नोच लुंगी!
इतना कह के आशु ने फ़ोन काट दिया. तो मैंने दुबारा फ़ोन घुमाया पर उसने फिर काट दिया. तीसरी बार... चौथी बार... पाँचवी बार... छठी बार...सातवीं बार...आठवीं बार...नौंवी बार... इस बार उसने फ़ोन उठाया.
मैं: आशु... मेरी बात तो सुन लो एक बार?
आशु: (सुबकते हुए) हम्म...
मैं: जैसा तू सोच रही है वैसे कुछ नहीं हे. कॉलेज के दिनों में मैं उसे पढ़ाया करता था वो भी उसके घर जा कर. बस इसके अलावा कुछ नहीं है!
आशु: घरवाले... आपकी शादी की बात कर रहे हैं! (उसने सुबकते हुए कहा.)
मैं: अरे तो करने दे ... मैं कौन सा शादी कर रहा हूँ! तू चिंता मत कर!
आशु: मैं.... आपसे अलग... नहीं रह सकती!.... मैं जान दे दूँगी!
मैं: शट अप!!! दुबारा ऐसी कोई बात कही तो मैं तुझसे कभी बात नहीं करुंगा. अब बेधड़क आराम से सो जा... मैं कोशिश करता हूँ की घर एक चक्कर लगा लु.
ये सुन कर उसका सुबकना बंद हुआ और उसने आई लव यू कह के फ़ोन काटा. अब मुझे उससे कैसे भी मिलने जाना था पर जाऊँ कैसे? बॉस छुट्टी देगा नहीं! पर उन दिनों किस्मत मुझ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी. जो चाह रहा था वो मिल रहा था. इसलिए जब घर जाने का मौका चाहने लगा तो अगले दिन वो भी मिल गया.बॉस ने कुछ फाइल पहुँचाने के लिए मुझे कहा. बीच रस्ते में मेरा गाँव था और बॉस जानते थे की मैं घर जरूर जाऊँगा इसलिए मेरी ख़ुशी पढ़ते हुए बोले; 'कल लंच तक आ जाना.' मैंने ख़ुशी से हाँ कहा और तुरंत निकल पड़ा.पहले फाइल पहुँचाई और फिर वापसी में घर पहुंचा. बुलेट की आवाज सुनते ही आशु भागती हुई बाहर आई और मुझे देखते ही उसकी आँखें चमक उठी. उसने आगे बढ़ के मुझे गले लगाना चाहा पर बाहर पिताजी और ताऊ जी बैठे थे इसलिए अपना मन मार के चुपचाप खड़ी हो कर मुझे उनसे बात करता हुआ देखने लगी. जब तक मेरी बात खत्म नहीं हुई वो वहाँ से हिली नहीं, शायद उसे डर था की मैं कहीं बहार से ही ना चला जाऊ. जैसे ही मेरी बात खत्म हुई वो भागती हुई अंदर चली गई पर जब मैंने अंदर घुस के देखा तो वो मुझे कहीं नहीं मिली. आंगन में माँ, ताई जी और भाभी बैठी सब्जी काट रही थी. 'अचानक कैसे आना हुआ?' भाभी ने पूछा.
'कुछ काम से पास के गाँव आना हुआ था.' मैंने रुखा सा जवाब दिया और अपने कमरे की तरफ चल दिया. जैसे ही सीढ़ी चढ़ के ऊपर पहुँचा तो आशु अपने कमरे में घुस गई और इशारे से मुझे अंदर आने को कहा. मैं उसके कमरे में घुसा और उसने मेरा हाथ पकड़ के मुझे अपने पलंग पर बिठा दिया. फिर अपने दुपट्टे से मेरा पसीना पोछने लगी. उसकी ख़ुशी उसके चेहरे से साफ़ झलक रही थी. वो मुड़ी और टेबल से पानी की गिलास और गुड़ उठा के मुझे दिया. मैंने गुड़ खाया और फिर पानी पिया और उसकी तरफ प्यार से देखने लगा. 'आपको भूख लगी होगी? उसने मुस्कुरा कर कहा और मुड के जाने लगी तो मैंने उसकी कलाई थाम ली और बैग से गुलाब निकाल के अपने घुटनों पर आते हुए कहा; 'मेरी जान के लिए!' आशु ने मेरे हाथ से गुलाब ले लिया और फिर उसे अपने होठों से चूमा. फिर वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुराई और झुक कर मेरे माथे को चूमा. मैं खड़ा हुआ और उसे अपने सीने से जकड़ लिया. इससे पहले की आगे कुछ बात हो पाती नीचे से मेरा बुलावा आ गया और मुझे आशु को छोड़ के नीचे जाना पडा. खेर वो शाम मुझे नीचे सब के बीच बैठ के बितानी पड़ी पर रात को खाने के समय ताऊ जी ने मेरी शादी की बात छेड़ी;
ताऊ जी: तो बरखुरदार! शादी के बारे में क्या विचार है?
मैं: जी अभी नहीं!
पिताजी: क्यों भला? लड़की तो तूने पहले ही पसंद कर रखी है ना?!
मैं: कौनसी लड़की?
गोपाल भैया: अरे वही जो शहर में मिली थी. जिसने तुम्हें देखते ही गले लगा लिया था?
मैं: (खीजते हुए) वो खुद गले लग गई थी. मैंने उसे गले नहीं लगाया था. और आप सब से किसने कहा की मैं उससे शादी करना चाहता हूँ? मैं बस उसे कॉलेज टाइम में पढ़ाया करता था इससे ज्यादा और कुछ नहीं है!
ताऊ जी: अरे हम अंधे-बहरे थोड़े ही हैं जो हमें उसकी माँ का बार बार 'अपना' कहना सुनाई नहीं देता! कितनी बार उन्होंने तुझे घर आने को कहा था?
मैं: वो सब इसलिए कह रही थी क्योंकि मैं उनकी बेटी को मुफ्त में पढ़ाता था. हॉस्टल का खाना कितना वाहियात होता था.इसलिए वो बदले में मुझे घर का खाना खिलाया करती थी और इसी कारन उनका अपनापन मेरे प्रति थोड़ा ज्यादा हे. इससे ज्यादा उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा.
पिताजी: तो कब करेगा तू शादी?
मैं: पिताजी एक बार नौकरी पक्की हो जाये, पैसा अच्छा कमाने लगूँ तो मैं शादी कर लुंगा.
ताऊ जी: तुझे पैसे की क्यों चिंता है? इतना बड़ा खेत.....
मैं: (उनकी बात काटते हुए) मुझे अपने पाँव पर खड़ा होना हे. जब मुझे लगेगा की मैं अपने पाँव पर खड़ा हो गया हूँ तो मैं आपको खुद बता दूँगा और शायद आप भूल रहे हैं की आपने वादा किया था!
मेरा इतना कहना था की उन्हें अपना वादा याद आ गया और उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा. बस गुस्से से मुझे एक बार देखा और फिर खाना खाने लगे. खाने के बाद मैं ऊपर आ गया और छत पर चक्कर लगाने लगा. घंटे भर बाद आशु भी खाना खा के ऊपर आ गई और मुझे इस तरह गुम-सुम छत पर टहलते हुए देखने लगी. जब मेरी नजर उस पर पड़ी तो मैं ने पाया की वो बड़ी गौर से मुझे देख रही थी और मन ही मन कुछ सोच रही थी. 'क्या हुआ जान?' मेरी आवाज सुन कर वो होश में आते हुई बोली; 'कुछ नहीं... बस ऐसे ही आपको देख रही थी. आपके जितना प्यार करने वाले को पा कर आज मुझे खुद पर बहुत गर्व हो रहा हे.” आगे कुछ बोलने से पहले ही भाभी आ गई और उन्होंने आशु को बिस्तर लाने को कहा. आज सभी औरतें छत पर सोने वाली थीं सो मैं उतर के अपने कमरे में लेट गया.अगली सुबह मुझे जल्दी जाना था तो मैं बिना नाश्ता किये जाने लगा तो आशु भाग के मेरे पास आई और परांठे जो की उसने पैक कर दिए थे मुझे दे दिए और नीचे चली गई.
कुछ दिन बीते और आखिर वो दिन आ ही गया जब आशु को कॉलेज ज्वाइन करना था. शनिवार को घर आते-आते रात हो गई. घर के सभी लोग खाना खा चुका था.. मुझे देखते ही आशु ने तुरंत खाना परोस के मुझे दे दिया और खुद अपने कमरे में चली गई. मैं खाना खा के ऊपर आया तो देखा उसने अपने कमरे में सारा सामान समेट रखा था. एक बैग जिसमें उसके कपडे थे वो तैयार रखा था. पूरे कमरे को उसने अच्छे से साफ़ किया था. जब उसकी नजर मुझ पर पड़ी तो उसके चेहरे ने उसकी सारी खुशियों को बयान कर दिया. उसने मुझे गले लगाना चाहा पर तभी पीछे से ताई जी आ गई और कमरे को देखते हुए आशु को ताना मारते हुए बोली; 'चलो शुक्र है तू ने अपने कमरे को साफ़ कर दिया वरना ये भी हमें ही करना पडता.'
'समझदार है!' मैंने उनके ताने का जवाब दिया और फिर अपने कमरे में आ कर लेट गया.मेरे जाते ही ताई जी आशु को ज्ञान देने लगी की शहर में उसे किन-किन बातों का ध्यान रखना हे. मैं अपने कमरे से उनकी सारी बातें सुन रहा था. ये ज्ञान कम और ताने ज्यादा थे! मैं चुप-चाप करवट लेके लेट गया और सुबह पाँच बजे के अलार्म के साथ उठ बैठा. मैं बाहर आया और अंगड़ाई लेने लगा तो देखा आशु नीचे घर के काम कर रही हे. मुझे देखते ही वो मुस्कुरा दी और फिर अपने काम में लग गई. मैं जल्दी से नाहा-धो के तैयार हुआ और फिर सभी ने नाश्ता किया.
ताऊ जी: देख आशु शहर जा के कहीं मटर-गश्ती शुरू न कर देना! तेरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई में रहना चाहिए और हर शनिवार-इतवार को दोनों घर आते रहना.
मैं; जी ... आप तो जानते ही हैं की मुझे दूसरे और आखरी शनिवार की छुट्टी मिलती है..... तो....
पिताजी: ठीक है... पर ख्याल रखिओ आशु का और हमें तुम दोनों की कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए!
मैं: जी... वैसे भी हमारा मिलना कहाँ हो पायेगा?
ताई जी: क्यों?
मैं: मेरे पास समय ही नहीं होता! एक रविवार मिलता है तो उसमें भी कपडे धो ना और खाना बनाने में समय निकल जाता हे. शाम को फ्री होता हूँ पर हॉस्टल में ६ बजे के बाद मनाही हे.
ताई जी: तो इसे (आशु) कोई दिक्कत हुई तो?
ताऊ जी: अरे कुछ दिक्कत नहीं होगी. सब देखा है हमने, तू चिंता मत कर.
मैंने आगे कुछ और नहीं कहा और फटाफट नाश्ता किया और अपनी बुलेट रानी को कपडा मारने बाहर चला गया.सब कुछ अच्छे से साफ़ कर के जब मैंने पीछे पलट के देखा तो आशु अपना बैग कंधे में टाँगे खड़ी थी. मैंने आगे बढ़ कर उससे बैग लिया और बाइक पर बैठ गया और बैग को पेट्रोल की टंकी पर रख लिया. एक स्टाइल वाली किक मारी और भड़भड़ करती हुई बुलेट स्टार्ट हुई, मैंने पलट के आशु को पीछे बैठने को कहा. तो वो सम्भल के बैठ गई और अपना दायाँ हाथ मेरे कंधे पर रख लिया. सारे घर वाले बाहर आ कर खड़े हो चुका था. और आशु की कुछ सहेलियां भी बुलेट की आवाज सुन कर वहाँ आ कर खड़ी हो गईं और हाथ हिला कर उसे बाय कहने लगी. ताऊ जी ने फिर से कहा; 'सम्भल के जाना और वहाँ जा के हमें फ़ोन करना.' अब उन्हें भी तो थोड़ा बहुत दिखावा तो करना था ना! गाँव से करीब दो किलोमीटर दूर पहुंचे होंगे की मैंने बाइक रोक दी और आशु से दोनों तरफ टांग कर के बैठने को कहा. उसने ठीक वैसे ही किया और अपने दोनों हाथों को मेरी बगल से ले कर सामने की तरफ लाइ और मेरी छाती को कस के पकड़ लिया. उसका सर मेरी पीठ में धंसा हुआ था और आँखें बंद थी. आशु की गर्म सांसें मुझे मेरी पीठ पर महसूस हो रही थी. मैं बाइक को चालीस की स्पीड में ही चला रहा था ताकि इस सफर का जितना हो सके उतना आनंद ले सकू.
दो घंटे की ड्राइव के बाद अब थकावट होने लगी तो मैंने बाइक एक ढाबे की तरफ मोड़ दी जहाँ की मैं अक्सर रुका करता था. जब भी घर जाता या आता था. बाइक रुकते ही आशु जैसे अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आई. 'चलो चाय पीते हैं.' मैंने उसे कहा तो वो बाइक से उतरी और मैंने बाइक पार्क की.हम दोनों ढाबे में घुसे. मुझे देखते ही वेटर ने तपाक से नमस्ते की और आशु को मेरे साथ देखते ही वो समझ गया की वो प्रियतमा है और उसने नमस्ते दीदी कहा! आशु ने उसकी नमस्ते का जवाब दिया और फिर हम खिड़की के पास वाले टेबल पर बैठ गये. 'आपको पता है मैं क्या सोच रही थी?' आशु ने मुझसे पुछा तो मैंने ना में सर हिला दिया. 'मुझे ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों इस नर्क से भाग के कहीं अपनी छोटी सी दुनिया बसाने जा रहे हे. इन दो घंटों में मैं जो कुछ भी सोच सकती थी वो सब सोच लिया की हमारा घर कैसा होगा, बच्चे कितने होंगे!' आशु ने बड़े भोलेपन से कहा और मैंने सोचा की मुझे उसे अब अपने प्लान से अवगत करा देना चाहिए.
मैं: घर से भागना इतना आसान नहीं है जितना तुम सोच रही हो. जैसे ही हम घर से भागेंगे उसके कुछ घंटों में ही लठैतों को बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन भेजा जायेगा हमें रोकने के लिए. हर बस को रोक कर चेकिंग की जाएगी और हमें पकड़ के मौत के घाट उतार दिया जायेगा. इसलिए हमें जो कुछ भी करना है वो बहुत सोच समझ कर करना होगा और किसी भी हालात में घर पर या किसी भी इंसान को हमारे इस रिश्ते के बारे में कुछ पता नहीं चलना चाहिए! सबसे जरुरी चीज जो हमें चाहिए वो है पैसा. इस डेढ़ साल की नौकरी में मैं कुछ दस हजार ही जोड़ पाया हु. मेरी नौकरी के बारे में घर में सब जानते हैं और मुझे भी कुछ पैसे घर भेजने पड़ते हे. पर अब तुम चूँकि शहर आ चुकी हो तो अगले साल से तुम्हें भी कुछ पार्ट टाइम नौकरी करनी होगी. ये वही पैसे हैं जिससे हम बचा सकते हैं और जिनकी मदद से दूसरे शहर में हमें घर किराये पर लेना, बर्तन-भांडे आदि खरीदने में मदद करेंगे.
आशु: और हम भागेंगे कैसे?
मैं: तुम्हारे थर्ड ईयर के पेपर होने के अगले दिन ही हम भागेंगे. मैं घर पर फ़ोन कर दूँगा की हम घर आ रहे हैं, अब चूँकि घर पहुँचने में ४ घंटे लगते हैं और घर वाले कम से कम ६ से ८ घंटे तक हमें नहीं ढूंढेंगे तो हमारे पास इतना टाइम होगा की हम ज्यादा से ज्यादा दूरी तय कर सके. यहाँ से हम सीधा बनारस जायेंगे और वहाँ से बैंगलोर!
आशु: बैंगलोर?
मैं: हाँ... वो बड़ा शहर है और वहाँ तक हमें ढूँढना इतना आसान नहीं होगा. मोबाइल फेंकना होगा, बैंक अकाउंट बंद करना होगा और तुम्हारे नए कागज बनवाने होंगे.
आशु: कागज?
मैं: आधार कार्ड और पॅन कार्ड.
आशु: वो तो घर में कभी बनाने नहीं दिये.
मैं: जानता हूँ और वही हमारे काम आयेगा. नए कागजों का कोई पेपर ट्रेल नहीं होगा.
आशु मेरी सारी बातें हैरानी से सुन रही थी की मैंने इतनी सारी प्लानिंग कर रखी हे. इतने में सुमन का फ़ोन आ गया, जिसे देख कर आशु को बहुत गुस्सा आया. उसने दरअसल पूछने के लिए फ़ोन किया था की हम दोनों कब तक पहुँच रहे हे. 'ये क्यों फोन कर रही थी आपको?' उसने गुस्सा दिखाते हुए पूछा. 'जान, वो पूछ रही थी कब तक हम दोनों हॉस्टल पहुंचेंगे. अब गुस्सा छोडो और चाय पियो और हाँ याद रहे उसे भूले से भी हमारे बारे में शक़ नहीं होना चाहिए.' ये सुन कर आशु कुछ बुदबुदाई और फिर चाय पीने लगी. उसकी इस अदा पर मुझे हँसी आ गई जिसे देख के वो भी थोड़ा मुस्कुरा दी. खेर हम चाय पी कर निकले और दो घंटे बाद शहर पहुँच गये. रास्ते भर आशु मुझसे उसी तरह चिपकी रही जैसे मुझे छोड़ना ही ना चाहती हो. जैसे ही हम शहर में दाखिल हुए मैंने आशु को ढंग से बैठने को कहा और वो पहले की तरह बायीं तरफ दोनों पैर कर के बैठ गई और उसका दाहिना हाथ मेरे दाएं कंधे पर था.
बुलेट रानी हॉस्टल की गेट पर रुकी तो गार्ड ने आगे आ कर मुझे नमस्ते की और आशु का बैग लेना चाहा तो मैंने उसे मना कर दिया. बाइक पार्क कर मैं आशु के साथ अंदर आया. दरवाजे पर नॉक की तो दरवाजा सुमन ने खोला और उसके चेहरे पर हमेशा की तरह ख़ुशी साफ़ झलक रही थी. 'अरे हमारी टॉपर आशु भी आई है!' उसने आशु को छेड़ते हुए कहा. आशु ने सुमन को नमस्ते कहा और फिर हम बैठक में बैठ गए .तभी आंटी जी भी आ गईं. मैने आगे बढ़ कर उनके पाँव छुए और मेरे पीछे-पीछे आशु ने भी उसके पैर छुए. आंटी जी ने सुमन ख़ास हिदायत दी की वो आशु का अच्छे से ख्याल रखे और इसी के साथ मेरे जाने का समय हो गया तो मैं उठ के खड़ा हुआ और नमस्ते कर के जैसे ही बाहर जाने को मुड़ा की आशु रोने लगी और मेरे सीने से लग गई. उस पगली ने ये भी नहीं देखा की वहाँ सुमन और आंटी जी भी हे.
'वो दरअसल पहली बार घर से बाहर कहीं रुकी है, इसलिए घबरा रही हे.' मैंने जैसे तैसे बात को सँभालने की कोशिश की. 'अरे बेटी रोने की क्या बात है? ये भी तो तेरे घर जैसा ही हे. सुमन अंदर ले जा आशु को.' आंटी जी ने आशु के सर पर हाथ फेरते हुए कहा. जैसे-तैसे मैंने आशु के हाथों को जो मेरी पीठ पर कस चुका था. उन्हें खोला और आशु के आँसू पोछे; 'बस अब रोना नहीं है! मैं कल सुबह ०९:३० आऊँगा तैयार रहना. तब जा कर उसका रोना बंद हुआ और फिर सुमन आशु का हाथ पकड़ के अंदर ले गई. 'अरे बेटा तुम क्यों तकलीफ करते हो? सुमन कल छोड़ आएगी इसे कॉलेज' आंटी ने कहा.
'आंटी जी वो पहला दिन है और मैं साथ रहूँगा तो इसे डर कम लगेगा.' मेरी बात सुन के आंटी ने और कुछ नहीं कहा और मैं उनसे विदा ले कर घर आ गया.मेरा घर और ऑफिस हॉस्टल से १ घंटे दूर था. घर लौट कर कपडे वगैरह धो कर, खाना खाया और जल्दी सो गया.
सूबह फटाफट तैयार हो कर मैं हॉस्टल पहुँच गया और मेरी बुलेट रानी की आवाज सुनते ही आशु भागती हुई बाहर आई और उसके पीछे-पीछे सुमन भी आई और आशु की इस भागने की हरकत पर मुस्कुराने लगी. 'चलो भाई बेस्ट ऑफ लक पहले दिन के लिए. अगर कोई तकलीफ हो तो मुझे बताना.' सुमन ने मुस्कुराते हुए कहा.
'हाँ ... ये कॉलेज की गुंडी थी. आज भी बहुत चलती है इनकी.' मैंने हँसते हुए कहा और फिर हम कॉलेज के लिए चल पडे. मुझे कॉलेज गेट पर देखते ही रहीम भैया दौड़ कर आये और सलाम किया. मेरे साथ आशु को देख वो समझ गए की वो मेरी प्रियतमा हे. हम दोनों को देख कर कोई नहीं कह सकता था की मैं आशु का चाचा हूँ, ५ साल का अंतर् तो कोई पकड़ ही नहीं सकता था. खुद को मैं अच्छे से मेन्टेन रखता था. एक दम क्लीन-शैवेन रहता था. कपडे ब्रांडेड जिससे की लगे ही ना की मैं गाँव-देहात का रहने वाला हु.
'अगर कोई भी परेशानी हो तो रहीम भैया को कह देना.' मैंने आशु से कहा ताकि उसके मन का डर कम हो. कॉलेज पूरा घुमा के उसे उसकी क्लास की तरफ छोड़ने जा रहा था की उसकी नजर उस दिवार पर पड़ी जहाँ मेरी तस्वीर लगी थी और वो मुझे खींच के उस तरफ ले जाने लगी. मेरी तस्वीर देख कर उसे काफी गर्व महसूस हो रहा था. 'मैं चाहता हूँ तुम्हारी भी तस्वीर मेरी बगल में लगे.' मेरी बात सुन कर आशु का आत्मविश्वास लौट आया और उसने हाँ में सर हिलाया. 'शाम को ५ बजे मुझे गेट पर मिलना. इतना कह के मैंने उसे उसकी क्लास में भेज दिया.
ऑफिस आने में घंटा भर लग गया और बॉस बहुत गुस्सा हो गए. पर मुझे तो शाम को जल्दी जाना था और ये बात कैसे कहूँ उनको?! मैंने उनकी डाँट का जरा भी विरोध नहीं किया और सर झुकाये सुनता रहा. एक कंपनी का पूरा फाइनेंसियल डाटा मेरे पास पेंडिंग पड़ा था इसलिए उनकी डाँट खत्म होते ही मैं सिस्टम पर बैठ गया और काम करने लगा. लंच के समय भी सभी कहते रहे पर मैं नहीं गया और बड़ी मुश्किल से केशबूक कम्पलीट की. बॉस ने जब देखा तो खुद ही मुझे खाने के लिए बोलने लगे तब मैंने उनसे जल्दी जाने की बात कही तो वो भड़क गये. 'गर्लफ्रेंड का चक्कर है ना?' उन्होंने डाँटते हुए कहा. 'जी मेरे भाई की लड़की का आज कॉलेज में पहला दिन है वो कहीं इधर-उधर न चली जाए इसलिए उसे हॉस्टल छोड़ के मैं वापस आ जाऊंगा.' मैंने उनसे आखरी बार विनती की तो थोड़ी ना-नुकुर के बाद मान गए और बोल दिया की कल सुबह तक सारा डाटा उन्हें किसी भी हालत में कम्पलीट चाहिए. जैसे ही चार बजे मैं फ़टाफ़ट अपनी बुलेट रानी को ले के कॉलेज के लिए निकला और ठीक पाँच बजे मैं कॉलेज गेट पर रुका, मुझे देखते ही आशु रोती हुई भाग के मेरे पास आई.
मैं: क्या हुआ रो क्यों रही हो?
आशु: वो....वो....कैंटीन में.... रैगिंग .... उसने... मुझे .... डांस..... करने को.....|
मैं: (बीच में बोलते हुए) क्या नाम है उसका?
आशु: तोमर
बस आशु का इतना कहना था की मैं बाइक से उतरा और उसका हाथ पकड़ के तेजी से कैंटीन में घुसा. मैने देखा वहाँ कुछ लड़कियां डांस कर रही हैं और सेकंड और थर्ड ईयर के बच्चे खड़े देख कर हँस रहे हे. मैंने आशु का हाथ छोड़ा और भीड़ के बीचों-बीच होता हुआ सामने जा पहुंचा. ५ लड़कों का एक झुण्ड सब की रैगिंग कर रहा था और मुझे देखते ही उनमें से एक बोला; 'ये लो एक और बच्चा आ गया.'
'तुम में से तोमर कौन है?' मैंने गरजते हुए कहा. ये सुन कर उनका हीरो लड़का सामने आया और बोला; 'मैं हूँ बे!' उसकी आँखें पूरी लाल थी. जिसका मतलब था उसने अभी-अभी गांजा फूंका हे. 'इस कॉलेज में रैगिंग अलाउड नहीं है, जानता है ना तू?' मैंने उसकी आँखों में आँखें डाल के कहा. 'तू कौन है बे? प्रिंसिपल का चमचा!?' ये सुनते ही मैंने एक जोरदार तमाचा उसके बाएं गाल पर रख दिया और वो मिटटी चाट गया.उसके सारे चमचे आ कर उसे उठाने लगे. जिन बच्चों की रैगिंग हो रही थी वो सब डरे-सहमे से एक तरफ खड़े हो गए और पूरी कैंटीन में शान्ति छ गई!
'तेरी ये हिम्मत साले!' ये कहते हुए वो तोमर नाम का लड़का अपने होठों पर लगे खून को साफ़ करते हुए बोला और अपना मोबाइल निकाल कर अपने भाई को फ़ोन करने लगा. 'भाई....भाई....एक लड़के ने... मुझे बहुत मारा...मेरा खून निकाल दिया... आप जल्दी आओ भाई!' ये कहके उसने फ़ोन काट दिया और मुझे बोला; 'रुक साले ...तू यहीं रुक.... एक बाप की औलाद है तो यहीं रुक|'
'यहीं बैठा हूँ.... बुलाले जिसे बुलाना हे.' ये कह कर मैंने पास पड़ी कुर्सी उठाई और उसे उस लड़के की तरफ घुमा कर रख कर बैठ गया.तभी पीछे से आशु आ गई और इससे पहले वो कुछ कहे मैंने उसे इशारा कर के वापस भेज दिया.
तोमर: अच्छा ... ये तेरी बंदी है ना?! कौन से क्लास में है तू?
मैं: वो प्रिंसिपल रूम के बाहर जो दिवार है न उस पर सबसे ऊपर वाली तस्वीर मेरी है!
तोमर: वही तस्वीर तेरी कल अखबार में भी छपेगी!
मैं: आने दे तेरे भाई को फिर पता चलेगा किसकी तस्वीर छपेगी कल!
तोमर: हाँ-हाँ देख लेंगे.... और तुम लोग भी सुन लो सालों! जो कोई भी मेरे खिलाफ जाता है उसका क्या हाल होता है!
मैं: चुप-चाप बैठ जा अब! वरना दूसरे झापड़ में यहीं हग देगा!
तोमर: तेरी तो.....
इसके आगे वो कुछ कहता की उसका भाई पीछे से आ गया.मेरी पीठ अभी भी उस शक़्स की तरफ थी की तभी आवाज आई; 'हाँ भई किसने पेल दिया तुझे?' ये सुन कर जैसे ही मैं पलटा तो देखा ये तो सिद्धू भैया हे. उन्होंने भी देखते ही मुझे पहचान लिया और आगे बढ़ कर सीधे गले लगा लिया. 'अरे सागर इतने साल बाद! कैसा है तू?' ये कहते हुए सिद्धू भइया मुस्कुरा कर मुझसे बात कर रहे थे और वो तोमर को भूल ही गये.
'ओ भैया? इसे क्या गले लगा रहे हो इसी ने तो मारा है मुझे!' तोमर बोला.
'अरे? तू तो पढ़ाकू लड़का था. तूने कैसे हाथ छोड़ दिया?!'
'भैया .... आपका भाई लड़कियों की रैगिंग कर रहा था. उन्हें यहाँ आइटम नंबर वाले गानों पर डांस करवा रहा था.' ये सुनते ही उनका चेहरा तमतमा गया और वो बड़ी तेजी से उसके पास गए और एक जोरदार तमाचा उसके बाएं गाल पर दे मारा. ठीक उसी समय उन्हें गांजे की महक आई तो उन्होंने उसे उठा के एक और तमाचा मारा और वो फिर नीचे जा गिरा| 'हरामजादे!!! तेरी हिम्मत कैसे हुई लड़कियों की रैगिंग करने की? ये कॉलेज हमारी माँ के नाम पर है और तू उन्हीं के नाम को गन्दा कर रहा है! समझाया था ना तुझे की कॉलेज की लड़कियों का सम्मान करना, पर तू....कुत्ते! बहुत चर्बी चढ़ी है न तुझे, अभी उतारता हूँ तेरी चर्बी!' ये कहते हुए सिद्धू भैया ने अपनी बेल्ट निकाल ली और एक जोर दार चाप उसके कंधे पर पड़ी.मैंने भाग कर उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोका; 'छोड़ दे मुझे सागर! इस कुत्ते ने हमारे खानदान की इज्जत पर कीचड़ उछाला है!'
'भैया....' मैंने बस इतना ही कहा था की उन्होंने अपना हाथ छुड़ाया और एक बेल्ट और चाप दी! अब मैंने जैसे तैसे उन्हें पीछे से पकड़ लिया और पीछे की तरफ खींचने लगा पर मुझे बहुत ताकत लगानी पढ़ रही थी. भैया थे ही इतने बलिष्ट! उधर तोमर जमीन पर पड़ा दर्द से करहा रहा था और उसके चमचे हाथ बांधे पीछे खड़े सब कुछ देख रहे थे.
सिद्धू भैया: तेरी तो मैं जान ले लूँगा कुत्ते!
मैं: भैया.. छोड़ दो ... तमाशा मत खड़ा करो... हम बैठ कर बात करते हैं!'
सिद्धू भैया: कोई बात-वात नहीं करनी मुझे! छोड़ तू मुझे!
मैं: भैया मैं आपके आगे हाथ जोड़ के विनती कर रहा हूँ! आप घर चलो ... वहाँ आप जो चाहे इसे सजा दे देना.
तब जा कर भैया का गुस्सा कुछ काबू में आया और उन्होंने बेल्ट छोड़ दी. 'तुम सब लोग सुन लो! आज के बाद यहाँ किसी ने भी रैगिंग की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा. रैगिंग करनी है तो उस फाटक वाले कॉलेज में पढ़ो, इस कॉलेज में प्यार, मोहब्बत, आशिक़ी, नशे के लिए कोई जगह नहीं हे. सागर जैसे स्टूडेंट्स ने इस कॉलेज की जो शान बनाई है वो बनी रहनी चाहिए और इस शान पर अगर किसी ने कलंक लगाने की कोशिश की तो वो जान से जायेगा!' सिद्धू भैया ने गरज के साथ अपना फरमान सुनाया. '....और सागर, इस कुत्ते की गलती के लिए मैं तुझसे हाथ जोड़ कर माफ़ी माँगता हु.' ये कहते हुए भैया ने हाथ जोड़े तो मैंने उनके हाथ पकड़ लिए; 'ये क्या कर रहे हो भैया? लड़का भटक गया है, आप इस समझाओगे तो समझ जायेगा.'
 
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'सुना तूने कुत्ते! चल माफ़ी माँग सागर से.' भैया ने गरजते हुए तोमर से कहा. वो बेचारा रोता हुआ खड़ा हुआ और हाथ जोड़ के माफ़ी मांगने लगा तो मैंने भी उसे माफ़ कर दिया. 'आज के बाद तूने किसी को भी परेशान किया ना तो देख फिर! और आप सभी को भी बता दूँ, इसका नाम राकेश है और आज के बाद आप में से किसी भी स्टूडेंट को इससे डरने की जरुरत नहीं है, कोई भी इसे तोमर नहीं कहेगा. साले कुत्ते! हमारी जात का नाम ले कर ऐसे डरा रखा है जैसे की कोई तोप हो! घर चल तू अब, जरा पिताजी को भी पता चले तेरे खौफ के बारे में.' ये कहते हुए भैया ने उसके पिछवाड़े पर लात मारी और वो बेचारा शर्म के मारे सर झुका कर निकल लिया. भैया से कुछ बातें हुई और फिर हम दोनों गेट पर पहुँचे, पीछे पीछे आशु भी आ रही थी तो भैया ने उससे पूछा: 'हाँ भई तुम क्यों हमारे पीछे आ रही हो? कुछ काम है क्या मुझसे?'
'जी....वो.....' इतना कहते हुए आशु ने मेरी तरफ इशारा कर दिया और ये सुनके भैया हँसते हुए बोले; 'अच्छा जी... तो यही हैं जिनकी वजह से तुम ने राकेश को पेल दिया.'
'भैया वो....'
'अरे छोडो भाई! हम सब समझ गए!' ये कहते हुए वो मुझे छेड़ने लगे. 'चलो बढ़िया है! खुश रहो!' इतना कह कर भैया अपनी गाडी में बैठ के निकल गये.
उनके जाते ही डरी-सहमी सी आशु मेरे सीने से लग गई और रोने लगी. उस ने आज पहली बार ऐसा कुछ देखा था जो उसके लिए पूरी तरह नया नितुभव था. मैंने उसे पुचकार के चुप कराया और उसके माथे को चूमा तो वो कुछ शांत हुई. फिर उसे बाइक पर बिठा कर हॉस्टल छोड़ा.कल की मुलाक़ात का समय भी तय हुआ और इसी तरह रोज़ कॉलेज के बाद एक घंटे के लिए मिलना, घूमना-फिरना, प्यार भरी बातें करना... ऐसे करते हुए दिन बीते.. बस मेरे लिए ऑफिस और पर्सनल लाइफ को बैलेंस करना मुश्किल हो रहा था जिसका पता मैंने आशु को कभी चलने नहीं दिया.... और फिर वो दिन आया जब आशु का जन्मदिन था.
मैंने आज पूरे दिन की छुट्टी ले रखी थी. आशु को भी मैंने बता दिया था की वो आज आधे दिन के बाद बंक मार के मेरे साथ चले. सबसे पहले तो मैं उसे एक अच्छी सी रोमांटिक मूवी दिखाने ले गया और फिर उसके बाद उसे आज पहली बार अपने घर पर लाया. कमरे में दाखिल होते ही वो कमरे की सजावट देख कर दंग रह गई. फ्रिज से केक निकाल के जब मैंने रखा तो उसकी आँखों में ख़ुशी के आँसूं छलक आये. केक पर लगी मोमबत्ती बुझा कर सबसे पहला टुकड़ा उसने मुझे खिलाया और फिर वही आधे टुकड़ा मैंने आशु को खिला दिया. मैंने उसे कस के अपने सीने से लगा लिया पर अगले ही पल वो मुझसे थोड़ा दूर हुई और नीचे जमीन की तरफ देखने लगी. फिर मेरी आँखों में देखा और अपने पंजों पर खड़ी हो कर मेरे होठों को चूम लिया. मैं उसके इस अचानक हुए हमले से थोड़ा हैरान था. जो उसने साफ़ पढ़ ली और शर्म से सर झुका लिया. पर आज मैं अपनी जान को कैसे नाराज करता सो मैं आगे बढ़ा और आशु के चेहरे को अपने दोनों हाथों में थामा और उसे गुलाबी होठों को चूमा. मेरे स्पर्श से आशु के जिस्म में हलचल शुरू हो चुकी थी और उसने अपने दोनों होठों को मेरे होठो पर रख दिया. इधर मैंने अपने होठों को थोड़ा खोला और आशु के निचले होंठ को अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा. ५ सेकंड के बाद मैंने ऐसा ही उसके ऊपर वाले होंठ के साथ भी किया. आशु ने कभी ऐसा चुम्बन महसूस नहीं किया था इसलिए वो मदहोश होने लगी थी. उसका जिस्म हल्का होने लगा था और उसके जिस्म का वजन मुझ पर आने लगा था. इधर मैं बारी-बारी उसके दोनों होठों को चूसने में लगा था की तभी मेरे लिंग में तनाव आने लगा और दिमाग ने जैसे बहुत तेज करंट मुझे मारा और मैंने आशु को खुद से अलग किया. हम दोनों की सांसें भारी हो चली थी और मेरे तन और दिमाग में जंग छिड़ चुकी थी. तन संभोग चाहता था और दिमाग उसके परिणाम से डरता था. आशु को आ रहे आनंद में जैसे ही विघ्न पड़ा उसने अपनी आँखें खोली और फिर मेरी तरफ हैरानी से देखने लगी की भला क्यों मैंने ये चुंबन तोडा?! पर उसके ऊपर जैसे कुछ फर्क पड़ा ही नही. इसलिए वो धीरे-धीरे कदमों से मेरे पास आई और मैं धीरे-धीरे पीछे हटने लगा और पलंग पर जा बैठा. वो मेरे पास आकर खड़ी हो गई और फिर घुटने मोड़ के नीचे बैठ गई और मेरे चेहरे को अपने हाथ में थामा और फिर से अपने गुलाबी होंठ मेरे होठों पर रखे और मेरे नीचले होंठ को अपने मुँह में भर के चूस ने लगी. आशु मेरे कश्मक़श को समझ नहीं रही थी और बस मेरे होठों को बारी-बारी से चूस रही थी. इधर मेरा काबू भी खुद के ऊपर से छूटने लगा था और हाथ अपने आप ही उठ के उसके दोनों गालों पर आ चुका था., मेरी जीभ भी अब कोतुहल करने को तैयार थी. जैसे ही आशु ने मेरे ऊपर के होंठ को छोड़ के नीचले होंठ को पकड़ने के लिए अपना मुँह खोला मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में सरका दी और मैं ये महसूस कर के हैरान था की उसने तुरंत ही मेरी जीभ को मुँह में भर के चूसना शुरू कर दिया. अब तो मेरी हालत ख़राब हो चुकी थी. लिंग कस के खड़ा हो चूका था और पैंट में तम्बू बना चूका था. हाथ नीचे आ कर आशु के वक्ष को छूना चाहते थे पर अभी भी दिमाग में थोड़ी ताक़त थी इसलिए उसने हाथों को नीचे सरकने नहीं दिया.
इधर आशु को तो जैसे मेरी जीभ इतनी पसंद आ रही थी की वो उसे छोड़ ही नहीं रही थी और सांसें रोक कर उसे चूस-चूस के निचोड़ना चाहती थी. आशु के हाथ भी हरकत करने लगे थे और उस ने मेरी शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए थे. बस तीन ही बटन खुले थे की मैंने उसके हाथों को रोक दिया. तभी आशु ने मेरी जीभ की चुसाई छोड़ी और अपनी जीभ मेरे मुँह में सरका दी तो मैंने उसकी जीभ को चूसना शुरू कर दिया. इधर आशु के हाथों ने फिर से मेरी कमीज के बटन खोलना शुरू कर दिया था और मेरे हाथों ने उसके चेहरे को थामा हुआ था. अब लिंग की हालत यूँ थी की वो पैंट फाड़ के बाहर आने को मचल रहा था और दिमाग में फिर से घंटी बजने लगी थी की कहीं कुछ हो ना जाए! मैंने आशु की जीभ को चूसना बंद किया और इससे पहले की मैं कुछ कहूं उसने पुनः अपने होठों से मेरे निचले होंठ को अपने मुँह की गिरफ्त में ले लिया. जैसे-तैसे कर के मैंने इस चुंबन को तोडा और आशु के होठों पर ऊँगली रखते हुए कहा; 'बस! बाकी...शादी के बाद!' ये सुन के वो ऐसे मुँह बनाने लगी जैसे किसी छोटे बच्चे के हाथ से लॉलीपॉप छीन ली हो!
'आऊच.... मेरा छोटा बच्चा|' ये कह के मैंने उसे गले लगा लिया और फिर खाने ले लिए कुछ आर्डर किया. मैं बाथरूम में घुसा ताकि अपने लिंग को शांत कर लूँ, कहीं आशु देख लेती तो पता नहीं क्या सोचती?!
दस मिनट में मैं मुँह धो कर बहार लौटा तो देखा आशु पलंग पर बैठी हे. उसकी पीठ दिवार से लगी थी और दोनों पाँव पलंग पर सीधे थे. उसने अपनी दोनों बाहें खोल के मुझे पलंग पर बुलाया. मैं उसके गले लगने के बजाये उसकी गोद में सर रख कर लेट गया.आशु के उँगलियाँ मेरे बालों में चलने लगी;
आशु: ये बर्थडे अब तक का बेस्ट बर्थडे था. थैंक यू जानू!
मैं: हम्म...
आशु: एक और थैंक यू आपको!
मैं: एक और? किस लिए?
आशु: किस करना सिखाने के लिए. (ये कह के आशु हँसने लगी.) वैसे आप तो काफी माहीर निकले? और कितनी बार कर चुके हो?
मैं: पागल फर्स्ट टाइम था!
आशु: अच्छा? इतना परफेक्ट कैसे?
मैं: वीडियो देख-देख के सीख गया.
आशु: अच्छा? मुझे भी दिखाओ!
मैं: नहीं... उसमें 'और' भी कुछ है! 'वो सब' अभी नहीं!
आशु: स्कूल और कॉलेज में बहुत सी लड़कियां हैं जिन्होंने 'वो सब' कर रखा है और वो सब मज़े ले कर सुनाती हे. इसलिए थेअरी तो मुझे अच्छे से पता हे.
मैं: अच्छा? चलो प्रैक्टिकल शादी के बाद कर लेना?
आशु: इतना इंतजार करना पड़ेगा? आप भी ना?! आप की उम्र के लड़के तो लड़कियों के पीछे पड़े रहते हैं इन सब के लिए और एक आप हो की.....
मैं: अब कुछ तो फर्क होगा न मुझ में और बाकियों में, वरना तुम मुझिसे प्यार क्यों करती?
आशु: आपका मन नहीं करता?
मैं: करता है.... पर जिम्मेदारियां भी हैं! घर से भागना आसान काम नहीं है!
आशु: हम प्रोटेक्शन इस्तेमाल करते हे.
मैं: तुम सच में चाहती हो की पहली बार में मैं कॉन्डम इस्तेमाल करूँ?
आशु: नहीं....(कुछ सोचते हुए) मैं गर्भनिरोधक गोली ले लुंगी.
मैं: ऐसा कुछ नहीं करना ... थोड़ा सब्र करो! (मैंने थोड़ा डाँटते हुए कहा.)
आशु: सॉरी! पर आप वीडियो तो दिखा दो ना प्लीज? देखने से तो कुछ नहीं होगा.
मैं: तुम बहुत जिद्दी हो! ये लो...
ये कहते हुए मैंने उसे अपने फ़ोन में रखी एक ब्लू-फिल्म लगा के दे दी और तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. खाना आ चूका था तो मैंने खाना लिया और आशु के हाथ से फ़ोन छीन लिया और कहा; 'पहले खाना ... बाद में देख ना.' ये कहते हुए मैंने उसे पहली बार पिज़्ज़ा दिखाया और बताया की ये है क्या| आशु को पिज़्ज़ा बहुत पसंद आया और हम दोनों ने खाना खाया और वापस पलंग पर बैठ गए पर इस बार आशु ने अपना सर मेरी गोद में रखा था और वो वही ब्लू-फिल्म देखने लगी. ब्लू-फिल्म से उसके जिस्म का तो पता नहीं पर मेरे लिंग में हरकत होने लगी थी. वो तन के खड़ा होना चाहता था पर आशु का सर ठीक उसी के ऊपर था. मैंने थोड़ा हिलना चाहा की मैं उसका सर हटा दूँ पर वो ये सब समझ चुकी थी और उसने कुछ इस कदर करवट ले ली अब उसका बायां गाल ठीक मेरे लिंग के ऊपर था. वो मुझ से कुछ नहीं बोली बस बड़ी गौर से ब्लू-फिल्म देखती रही. इधर लिंग बगावत पर उत्तर आये और अपने आप ही पैंट के ऊपर से आशु के गाल पर थाप देने लगे जिसे आशु ने शायद महसूस भी किया. अब मैंने उठ के खड़े होने की कोशिश की तो आशु ने वीडियो रोक दी और हँसते हुए कहा; 'अच्छा बाबा! अब तंग नहीं करुँगी!' मतलब वो मेरे लिंग को साफ़ महसूस कर रही थी और जान बुझ कर मेरे साथ ऐसा कर रही थी. 'तू बदमाश हो गई हे.' ये कहते हुए मैंने उसके गाल पर हलकी सी थपकी लगाई. मैं वापस दिवार से पीठ लगा कर बैठ गया और उसने भी अपना सर अब मेरे सीने से टिका लिया और वीडियो देखने लगी. ठुकाई का सीन शुरू हुआ ही था की आशु का हाथ मेरे लिंग पर आगया और ऐसा लगा जैसे वो नाप के देख रही हो के मेरा लिंग उस आदमी के लिंग के मुकाबले कितना बड़ा हे. मैंने धीरे से उसका हाथ अपने लिंग से हटा दिया और वापस उसका हाथ अपनी छाती पर रख दिया. तीस मिनट की वीडियो को उसने बिना काटे देखा और उसका जिस्म पूरा गर्म हो चूका था' उसने वीडियो पूरी होते ही फ़ोन रखा और खड़ी हो गई और मेरा हाथ पकड़ के मुझे खींच के लेटने को कहा और फिर खुद मेरी बगल में लेट गई. अपने दाएं हाथ को मेरे गाल पर रखा और मुझे किस करने लगी. शुरू-शुरू में मैंने भी उसकी किस का जवाब बहुत अच्छे से दिया पर जब लिंग फिर से खड़ा हो गया तो मैंने उसे रोक दिया; 'बस जान!' और फिर घडी देखि तो सवा पांच बजे थे. 'कुछ देर और रुक जाते हैं ना?' आशु ने मेरा हाथ पकड़ के मुझे उठने से रोकते हुए कहा. 'आने-जाने में १ घंटा लगेगा, फिर हॉस्टल में क्या बोलोगी?' मैंने तुरंत अपने कपड़े ठीक किये पर आशु का तो जैसे जाने का मन ही नहीं था. 'कल भी बंक मारूँ?' उसने खुश होते हुए कहा.
'दिमाग ख़राब है? यही सब करने के लिए यहाँ आई थी? फर्स्ट सेमेस्टर में फ़ैल हो गई तो घर वाले फिर घर पर बिठा देंगे. समझी? कॉलेज पढ़ने के लिए होता है समय बर्बाद करने के लिए नहीं और आज के बाद कभी मुझे बिना बताये बंक मारा ना तो सोच लेना!' मैंने आशु को थोड़ा झड़ते हुए कहा. डाँट सुन के उसका सर झुक गया; 'पढ़ाई के मामले में कोई मस्ती नहीं! समझी?' उसने हाँ में सर हिलाया और फिर मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ के ऊँची की और उसके होठों को चूमा. तब जा के वो फिर से खुश हो गई और अपने कपडे ठीक किये और मुँह हाथ धो के हम घर से निकले और मैंने आशु को हॉस्टल छोडा. आशु को मैं कभी भी कॉलेज के गेट से पिकअप नहीं करता था बल्कि चौक पर बत्ती के पास मेरी बाइक हमेशा खड़ी होती थी और हॉस्टल भी मैं उसे कुछ दूरी पर छोड़ता था ताकि कोई भी हमें एक साथ न देखे.
आशु बाइक से तो उत्तर गई पर उस का हॉस्टल जाने का मन कतई नहीं था इसलिए उसे खुश करने के लिए मैंने अपने बैकपैक से उसके लिए एक गिफ्ट निकाला और उसे दे दिया. गिफ्ट देख कर वो खुश हो गई. गिफ्ट में एक फ़ोन था और एक सिम-कार्ड भी. वो ख़ुशी से उछलने लगी और अचानक से मेरे गले लग गई और थैंक यू कहते हुए उसकी जुबान नहीं थक रही थी. 'इसका पता किसी को भी नहीं चलना चाहिए? न कॉलेज में न हॉस्टल में?' मैंने उसे थोड़ा सख्त लहजे में कहा और जवाब में उसने हाँ में सर हिलाया पर उसके चेहरे की ख़ुशी अब भी कायम थी. जाने से पहले उसने अचानक से मेरे होठों को चूमा और फिर हॉस्टल की तरफ भागती हुई घुस गई. मैंने भी बाइक घुमाई और ऑफिस आ गया और काम करने लगा. ये मेरा रोज का काम था की शाम को जल्दी आशु को मिलने पहुँचो और आशु को हॉस्टल छोड़ के ऑफिस देर तक बैठो और फिर देर रात घर पहुँचो और बिना खाये-पीये सो जाओ! बॉस इसलिए कुछ नहीं कहता था की उसे काम कम्पलीट मिलता था पर मेरी कई बार रेल लग जाती थी!
जो बदलाव अब मैं आशु में देख रहा था वो ये था की वो अब उसका प्यार मेरे लिए अब कई गुना बढ़ चूका था. जब भी उसे टाइम मिलता तो वो कहीं छुप कर मुझे फ़ोन करती, व्हाट्स ऍप पर मैसेज करती रहती. रोज सुबह-सुबह उसका प्यार भरा मैसेज देख कर मैं उठता. तरह-तरह के हेयर स्टाइल बना कर उसका सेल्फी भेजना और मेरे पीछे पड़ जाना की मैं उसे सेल्फी भेजूँ! जब भी हम मिलते तो वो मेरा हाथ थाम लेती, और तरह-तरह की फोटो खीचती. कभी मुझे किस करते हुए तो कभी पॉउट करते हुए और बहाने से मुझे किस करती. कभी इस पार्क में, कभी उस पार्क में, कभी किसी कैफ़े में और यहाँ तक की एक दिन उसने एक पुराने खंडर जाने की भी फरमाइश कर दी. ये खंडर प्रेमी जोड़ों के लिए जन्नत था क्योंकि यहाँ कोई आता-जाता नहीं था. जब हम वहाँ पहुँचे तो वहाँ कोई जगह खाली नहीं थी पर आशु मेरा हाथ थामे मुझे खींच के अंदर और अंदर ले जा रही थी. उसे तो जैसे भूत-प्रेत का कोई डर ही नहीं था. अंदर पहुँच कर वो मेरी तरफ मुड़ी और अपनी बाहें मेरे इर्द-गिर्द लपेट ली. फिर वो अपने पंजो पर खड़ी हो गई और मेरे होठों पर किस कर दी. मेरे दोनों हाथ उसकी पीठ पर घूमने लगे थे और इधर आशु ने अपनी बाहें मेरे गले में डाल ली. हम अपने किस में इतना मग्न थे की आस-पास की कोई खबर ही नहीं थी. जब जेब में फ़ोन बजा तब जा के होश आया, फोन आशु के हॉस्टल से था जिसे देखते ही हम तुरंत बाहर आये और फटाफट हॉस्टल पहुंचे.
इस शनिवार हमें घर जाना था तो मैं सुबह-सुबह आशु को लेने हॉस्टल पहुंचा. रास्ते भर आशु मेरी पीठ से चिपकी रही और हमारा एक मात्र हॉल्ट वो ढाबा ही था जहाँ रुक कर हम चाय पीने लगे.
आशु: तो अब हम अपने रिश्ते को आगे कब ले कर जा रहे हैं?
मैं: आगे? मतलब?
आशु: 'वो'
मैं: वो सब शादी के बाद
आशु: पर क्यों?
मैं: तुम प्रेग्नेंट हो गई तो?
आशु: ऐसा कुछ नहीं होगा.
मैं: आशु! मैं इस बारे में अब कोई बात नहीं करूँगा! नहीं मतलब नहीं! (मैंने गुस्से से कहा)
आशु: अच्छा ठीक है! पर आप आज रात को मेरे कमरे में तो आओगे आज? कितने दिनों बाद आज मौका मिला हे.
मैं: पागल हो गई हो क्या? किसी ने देख लिया तो क्या होगा जानती हो ना?
आशु: कोई नहीं देखेगा. आप सब के सोने के बाद आ जाना.
मैं: नहीं!
आशु: मैं इंतजार करुँगी!
इतना कह कर वो टेबल से उठ गई और बाइक के पास जा कर खड़ी हो गई. मैं बिल भर के बाहर आया और बिना उससे कुछ बोले बाइक स्टार्ट की और हम फिर से हवा से बातें करते हुए घर की ओर चल दिये. रास्ते में आशु उसी तरह मुझसे चिपकी रही पर मैंने उससे और कोई बात नहीं की. हम घर पहुँचे और आशु ने सब के पैर छू के आशीर्वाद लिया और मैं सीधा अपने कमरे में घुस गया और बिस्तर पर पड़ गया.कुछ देर बाद आशु ऊपर आई और मेरे कमरे में झांकते हुए निकल गई. वो समझ गई थी की मैं उससे नाराज हु. उसी ने घर पर आज खाना बनाया और फिर सब के साथ बैठ के यहाँ-वहाँ की बातें चल ने लगी. हमेशा की तरह आशु भी कोने में बैठी बातें सुनती रही पर मेरा सर भन्ना रहा था सो मैं उठ के बाहर चला गया.कुछ ही दूर गया हूँगा की पीछे से प्रकाश की आवाज आई और फिर उस के साथ खेत पर बैठ कर माल फुंका. रात साढ़े आठ बजे घर घुसा तो घरवालों ने ताने मारने शुरू कर दिए की इतने दिन बाद आया है, ये नहीं की कुछ देर सब के साथ बैठ जाये. मैं बिना कुछ कहे ऊपर गया और तौलिया ले कर नीचे आ कर नहाया और ऊपर कमरे में टी-शर्ट डालने ही वाला था की मेरे नंगे जिस्म पर मुझे आशु ने पीछे से जकड लिया. उसकी उँगलियाँ मेरी छाती पर घूमने लगी थी. मैंने तुरंत ही उसे खुद से दूर किया; 'दिमाग ख़राब है तेरा?' गुस्से से लाल मैंने टी-शर्ट पहनी और नीचे जा कर सब के साथ बैठ गया और बातों में ध्यान लगाने लगा.
रात के खाने के बाद मैं छत पर टहल रहा था और आशु में आये बदलावों के बारे में सोच रहा था. उसके जिस्म में भूख की ललक मुझे साफ़ नजर आ रही थी.तभी वहाँ आशु चुप-चाप आ कर खड़ी हो गई. नजरें झुकी हुई, हाथ बाँधे वो जैसे अपने जुर्म का इकरार कर रही हो. बचपन में जब भी उससे कोई गलती हो जाती थी तो वो इसी तरह खड़ी हो जाती थी और उस समय जब तक मैं उसे गले लगा कर माफ़ न कर दूँ उसके दिल को चैन नहीं आता था. 'आशु.... तू ये सब क्यों कर रही है? खुद पर काबू रखना सीख प्लीज! वरना सब कुछ खत्म हो जायेगा!' ये कहते हुए मैंने उसके सामने हाथ जोड़ दिये. जिसे देख उसकी आँख से आँसूं गिरने लगे. इस बात की परवाह किये बिना की हम घर पर हैं और कोई हमें देख लेगा मैंने आशु को कस कर अपने गले लगा लिया. मेरी बाहों में आते ही वो टूट के सुबकने लगी और बोली; 'जानू.... मैं क्या करूँ? मुझसे ये दूरी बर्दाश्त नहीं होती. हम एक शहर में हो कर भी कभी दिल भर के मिल नहीं पाते. हमेशा हॉस्टल की घंटी या कोई साथ न देख ले वाला डर हमें एक दूसरे के करीब नहीं आने देता. आप जी तोड़ कोशिश करते हो की हम ज्यादा से ज्यादा साथ रहे पर आपको अपनी नौकरी भी देखनी हे. आप जब भी मिलते हो तो वो पल मैं आपके साथ जी भर के जीना चाहती हूँ इसलिए उन कुछ पलों में मैं सारी हदें तोड़ देती हु. जन्मदिन वाले दिन के बाद से तो आपके बिना एक पल को भी चैन नहीं आता! रात-रात भर तकिये को खुद से चिपकाए सोती हूँ, ये सोच कर की वो तकिया आपका जिस्म है जिसकी गर्मी से शायद मेरा जिस्म थोड़ा ठंडा पद जाए पर ऐसे कभी नहीं होता. पढ़ाई में भी मन नहीं लगता, किताब खोल कर बस आप ही के ख्यालों में गुम रहती हु. आपके जिस्म की गर्माहट को महसूस करने को हरपल बेताब रहती हु. प्लीज-प्लीज हम अभी क्यों नहीं भाग जाते? मैं आप के साथ एक पेड़ के नीचे रह लूँगी पर अब और आप से दूर नहीं रहा जाता.' उसकी बातें सुन कर उसके दिल का हाल मैं जान चूका था पर इस कोई इलाज नहीं था. अगर मेरा खुद के शरीर पर काबू है इसका मतलब ये तो नहीं तो की दूसरे का भी उसके शरीर पर काबू हो?
'जान! मैं समझ सकता हूँ तुम कैसा महसूस करती हो, और यक़ीन मानो मेरा भी वही हाल है पर हम दोनों को एक दूसरे पर काबू रखना होगा! हम अभी नहीं भाग सकते, बिना पैसों के हम बनारस तो क्या इस जिले के बहार नहीं जा सकते. हमें बहुत बड़ी लड़ाई लड़नी है और उसके लिए खुद पर काबू रखना होगा. मैं ये नहीं कहता की हम मिलना बंद कर दें, पर हमें जिस्मानी रिश्ते को रोकना होगा. ये किस करणा, ये गले लगणा ..... इन सब पर काबू रखना होगा. जब मौका मिलेगा तब हम ये सब करेंगे और प्लीज संभोग अभी नहीं! वो शादी के बाद!'
इसके आगे मेरे कुछ कहने से पहले ही आशु मुझसे अलग हो गई और सर झुकाये हुए बोली; 'इससे तो अच्छा है की मैं जान ही दे दूँ!' आशु की आँखें से आँसूं थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे, मैंने आगे बढ़ कर उसके आँसू पोछने चाहे पर वो एकदम से मुड़ी और नीचे अपने कमरे में चली गई. मैं कुछ देर तक और छत पर टहलता रहा और सोचता रहा. घडी पर नजर डाली तो बारह बज रहे थे. मैं अपने कमरे की तरफ जाने लगा तो आशु के कमरे का दरवाजा खुला था. अंदर झाँका तो पाया आशु अब भी रो रही थी और अपने तकिये को अपनी छाती से चिपकाये हुए थी. पता नहीं क्यों पर बार-बार वो तकिये को चुम रही थी. शायद ये सोच रही होगी की वो तकिया मैं हु. तभी उसने करवट बदली पर इससे पहले वो मुझे देख पाती मैं दिवार की आड़ में छुप गया और वो करवट बदल के फिर से उसी तकिये को खुद से चिपकाये हुए प्यार करती रही. १५ मिनट तक मैं छुप कर उसे यूँ तकिये से लिपटे रोता देखता रहा पर मजबूर था क्योंकि अगर कोई घरवाला देख लेता तो?!!! मन मार के जैसे ही अपने कमरे में जाने को मुड़ा की नीचे से ताऊ जी की आवाज आई; 'इतनी रात गए क्या कर रहा है?' ये सुनते ही मैं हड़बड़ा गया, शुक्र है की मैं आशु के कमरे में नहीं घुसा वरना आज सब कुछ खत्म हो जाता.
'जी वो.... नींद नहीं आ रही थी इसलिए छत पर टहल रहा था.' मेरी आवाज सुनते ही आशु उठ के बहार आ गई और बिना कुछ बोले ही मेरे मुँह पर दरवाजा बंद कर दिया. मैं भी उसके इस बर्ताव से चौंक गया और समझ गया की उसे बहुत बुरा लगा हे. मैं अपना इतना सा मुँह ले कर अपने कमरे में आ गया और बिस्तर पर लेट गया पर नींद तनिक भी नहीं आई. घड़ियाँ गिन-गिन कर रात गुजारी और सुबह जब चलने का समय हुआ तो आशु अब भी खामोश थी.
गाँव से कुछ दूर आने के बाद मैंने बाइक रोक दी और आशु को दोनों तरफ पैर कर के बैठने को कहा तो उसने मेरी ये बात भी अनसुनी कर दी. मजबूरन मुझे ऐसे ही बाइक चलानी पड़ी, ढाबे पर पहुँच कर मैंने बाइक रोकी और आशु को चाय पीने चलने को कहा तो उसने फिर से मना कर दिया. अब मैंने जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ के खींचा और उसे ढाबे में ले गया और जबरदस्ती चाय पिलाई.
'जान!आई एम सॉरी!!! प्लीज मुझे माफ़ कर दो! मैं तुम्हें दुःख नहीं पहुँचाना चाहता था. तुम जो सजा दोगी वो मंजूर है पर प्लीज मुझसे बात करो!'
मैंने आशु से की मिन्नतें की पर वो कुछ नहीं बोली. हमने चुप-चाप चाय पी और फिर हम वापस हाईवे पर आ गए, पर मैंने बाइक बजाये हॉस्टल की तरफ ले जाने के अपने घर की तरफ मोड़ दी. घर पहुँचने से पहले मैंने बाइक एक मेडिकल स्टोर के पास रोकी और कुछ दवाइयाँ ले कर वापस आया. 'आपकी तबियत ख़राब है?' आशु ने चिंता जताते हुए पूछा. तो मैंने मुस्कुरा कर नहीं कहा और बाइक घर की तरफ घुमा दी. जैसे ही घर पहुँच कर मैंने बाइक रोकी तो आशु बड़ी हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी. मैंने उसे ऊपर कमरे की तरफ चलने को कहा और कमरे की चाभी भी उसे दे दी. मैंने बाइक नीचे पार्क की और घर फ़ोन कर दिया की हम घर पहुँच गए हैं, और साथ ही आशु के हॉस्टल में फ़ोन कर दिया की गाँव में कुछ काम है इसलिए मैं उसे कल हॉस्टल छोड़ दूंगा. फिर खाने के मैगी ली और सारा सामान ले कर मैं कमरे में आया. आशु खड़ी हो कर पीछे वाली खिड़की से बाहर कुछ देख रही थी. मुझे देखते ही वो बोली; 'मुझे हॉस्टल कब छोड़ोगे?' मैंने आशु का हाथ पकड़ा और उसे खींच के पलंग के पास ले आया और बोला: 'आज की रात और कल की दोपहर आप मेरे साथ गुजारोगे!' ये सुन के आशु बोली: 'क्यों?'
'आपने कहा था ना आप का मन मेरे बिना नहीं लगता तो मैंने सोचा की क्यों न आपको इतना प्यार करूँ की आपको मेरी कमी कभी महसूस न हो.'
ये सुन कर आशु ने मेरी तरफ पीठ कर दी और बोली; 'मैं जानती हूँ ये आप सिर्फ मुझे खुश करने के लिए कर रहे हो. आपको ऐसा कुछ भी करने की जरुरत नहीं जिसके लिए आपका मन गवाही ना देता हो.'
मैं ने आशु को पीछे से अपनी बाँहों में जकड़ा और उसके कान में फुसफुसाता हुआ बोला; 'दिल से कह रहा हु.' इतना कह कर मैंने उसे गोद में उठा लिया और बिस्तर पर ला कर लिटा दिया और झुक कर आशु के होठों को चूम लिया. मेरे होंठ के स्पर्श से उसकी सारी कठोरता खत्म हो गई और उसने अपनी बाहें मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द डाल दी और मेरे किस का जवाब देने लगी. मैंने अपने होंठ खोले के अपनी जीभ से उसके होठों को रगड़ा और फिर अपने दोनों होठों के भीतर उसके नीचे होंठ को भर के चूसने लगा. तभी आशु ने धीरे से मुझे खुद से दूर किया और बोली; 'आप .... मुझे धोका तो नहीं दोगे ना?' मैंने ना में सर हिलाया. 'पर एक शर्त है! वादा करो की तुम पढ़ाई में ध्यान लगाओगी.'
'वादा करती हूँ जानू! पढ़ाई को ले कर आपके पास कोई शिकायत नहीं आयेगी.' इतना कह के आशु ने अपनी बाहें फिर से मेरी गर्दन पर जकड़ दी और मुझे खींच के अपने ऊपर झुका लिया और अपनी जीभ से मेरी जीभ को छूने व चूसने लगी. उसके हाथ मेरी पीठ पर घूम रहे थे पर मेरे हाथ अभी भी मेरे वजन को संभाले हुए थे. मैं उठा और आशु की आँखों में देखते हुए अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा और वो भी उठ बैठी पर पलंग पर घुटनों के बल बैठ के मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से थामा और फिर से मेरे होठों को बारी-बारी से चूसने लगी. मैंने अपनी कमीज उतारी पर आशु ने एक पल के लिए भी मेरे होठों को अपने मुँह से आजाद नहीं किया.
मैंने ही अपने होठों को उससे छुड़ाया और कहा; 'जान कपडे तो उतारो' ये सुनते ही उसके गाल शर्म से लाल हो गये. मैं समझ गया की वो क्यों शर्मा रही हे. मैंने खुद उसके सूट को उतारने के लिए हाथ आगे बढाए तो उसकी नजरें झुक गई. मैंने धीरे से उसका सूट उतरा और आशु ने इसमें मेरा पूरा सहयोग दिया. अब वो मेरे सामने सिर्फ एक ब्रा में थी और शर्म से अब भी उसकी नजरें झुकी हुई थी. मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ के ऊपर की और उसके गुलाबी होठों को चूमा और धीरे-धीरे उसे फिर से लिटा दिया और उसके ऊपर आ कर उसके होठों को चूसने लगा. उसका निचला होंठ बहुत फूला हुआ था. और हो भी क्यों ना पिछले कुछ महीनों से मैं जो उसका रसपान कर रहा था.लिंग पूरे जोश में आ कर बहार आने को बेताब थे पर आशु को तो जैसे किस करने से फुरसत ही नहीं थी. मैं भी कोई जल्दी नहीं दिखाना चाहता था इसलिए हम दोनों पिछले पंधरा मिनट से बस एक दूसरे को होठों को चूस और चाट ही रह थे. शायद आशु को भी मेरे लिंग का एहसास होने लगा तो उसके हाथ अपने आप ही मेरे लिंग पर आ गए और वो धीर-धीरे से उसे सहलाने लगी. लिंग को मिल रहे स्पर्श से उसमें तनाव बढ़ता ही जा रहा था और अब पैंट में कैद होने से दर्द हो रहा था. मैंने धीरे-धीरे अपने हाथ को सरका कर आशु की पायजामे के नाड़े पर रख दिया और अपनी उँगलियों से नाड़े का छोर ढूंढने लगा. आशु भी मेरी उँगलियों को अपनी नाभि के आस पास महसूस करने लगी थी और उसका जो हाथ अभी तक लिंग को सहला रहा था वो अब मेरी बनियान के अंदर जा घुसा था और जैसे कुछ ढूंढ रहा था. आखिर मुझे नाड़े का छोर मिल ही गया और मैंने उसे धीरे-धीरे खींचना शुरू कर दिया. आखिर कार वो खुल गया और आशु की पजामी अब ढीली हो चुकी थी. मैंने अपना हाथ धीरे-धीरे अंदर सरकना शुरू कर दिया और इधर आशु के जिस्म में सिहरन शुरू हो गई थी. फिर मैं एक पल के लिए रुक गया और आशु के होठों को अपने होठों की पकड़ से आजाद करते हुए कहा; 'जान! पहली बार बहुत दर्द होगा! मुझे कम पर तुम्हें बहुत ज्यादा होगा, खून भी निकलेगा!' ये सुन कर आशु थोड़ा डर गई.
'आपसे दूर रहने के दर्द से तो कम होगा ना?' ये कह कर उसने मुझे अपनी सहमति दी और मैंने मुस्कुरा कर उसके माथे को चूमा. मेरा हाथ उसकी पैंटी पर आ चूका था और मुझे उसके ऊपर से ही उस की योनी की गर्मी महसूस होने लगी थी. मैंने अपनी बीच वाली ऊँगली को आशु की पैंटी के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया जिसके परिणाम स्वरुप आशु की सीत्कार निकल गई. आनंद से उसकी आँखें बंद हो चली थी. मैंने अब अपना हाथ उसकी पैंटी से बहार निकाला और उसकी पजामी को पकड़ कर नीचे सरकाने लगा पर अब भी आशु ने अपनी आँख नहीं खोली थी. पजामी तो निकाल दी मैंने पर आशु की गुलाबी रंग की पैंटी ने मेरा मन मोह लिया. उसे देखते ही मन ही नहीं कर रहा था की उसे निकालूँ, ऊपर से आशु की माँसल जांघें मेरे लिंग में कोहराम मचाने लगी थी. मैंने नीचे झुक कर आशु की नाभि के नीचे चूम लिया और अपने दोनों हाथों की उँगलियों को उसकी पैंटी में फँसा कर के उसे निकाल दिया और अब जो मेरे सामने थी उसे देख तो मेरा कलेजा धक कर के रह गया.एक दम गुलाबी और चिकनी योनी! उसके गुलाबी पट बंद थे और योनी की रक्षा कर रहे थे, उन्हें देखते ही मेरे मुँह में पानी आ गया! मैं उनपर झुक कर उन्हें चूमना चाहता था पर जैसे ही मेरी गर्म साँस आशु को अपने योनी पर महसूस हुई उसने ने अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को थामा और अपने ऊपर आने को कहा. 'जानू वो सब बाद में! पहले आप…..' उसने बात अधूरी छोड़ दी पर मैं समझ गया की उसे संभोग करना है ना की फोरप्ले! 'जान… फोरप्ले अगर नहीं किया तो बहुत दर्द होगा. तुम बस रिलैक्स करो और इतने बरसों से जो मैं वीडियो देख कर जो ज्ञान अर्जित किया है उसे इस्तेमाल करने दो.'
मेरी बात सुन कर हम दोनों के चेहरे पर मुस्कान आ गई. तभी मैंने गौर किया की आशु की ब्रा तो मैंने निकाली ही नही. अब ये ऐसा काम था जो मैंने कभी किया नहीं था और ना ही इसके बारे में कोई ज्ञान मुझे वीडियो देखने से मिला था. मैंने आशु का हाथ पकड़ के उसे उठा के बिठाया और उसके होठों को चूसने लगा और अपने हाथ उसके पीछे ले जाकर ब्रा के हुक ढूंढने लगा. जब उँगलियों ने उन्हें ढूंढा तो ये दिक्कत थी की उन्हें खोलने के लिए उसका सिरा कहाँ है? आशु मेरी ये नादानी समझ गई और उसने मेरे होठों से अपने होंठ छुड़ाए और अपने दोनों हाथ पीछे ले जा कर ब्रा के हुक खोल दिये. ब्रा ढीली हो गई पर अभी भी आशु के जिस्म से चिपकी हुई थी. मैंने धीरे से आशु की ब्रा को उसके सुनहरे जिस्म से अलग किया और पलंग से नीचे गिरा दिया. अपनी ब्रा को नीचे गिरते देख आशु कसमसाने लगी थी. मेरी नजर जब उसकी छाती पर पड़ी तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गई. आशु के कोमल वक्ष मुझे उसे छूने को कह रहे थे, वो गुलाबी अरेओला ....सससस.....हाय! मैंने थोड़ा सा झुक कर आशु के बाएं वक्ष को अपने होठों से छुआ और अपनी जीभ से उसके छोटे से प्यार से स्तनाग्र को छेड़ा तो आशु के मुँह सिसकारी निकल पडी. मैंने आशु के चेहरे पर देखा तो उसकी गर्दन पीछे की ओर झुकी हुई थी और आँखें बंद थी.
मैं उठ कर खड़ा हुआ और अपनी बेल्ट खोली और फिर पैंट के हुक खोलते ही वो नीचे जा गिरी, मेरे कच्छे पर बने उभार को आशु टकटकी बांधे देखती रही. मैं पलंग से उतरा और अपनी पैंट कुर्सी पर फेंकी और बैग से कुछ निकाल कर वापस आशु के पास आ गया.जब मैं लौटा तो आशु मुझे थोड़ी डरी सी दिखी; 'क्या हुआ जान?!' मैंने उसके दाएं गाल को छूते हुए कहा. 'आप उठ कर गए तो मुझे लगा आप मुझे छोड़के जा रहे हो!' ये कहते हुए उसकी आँखें नम हो गई.
'जान मैं तो बस ये लेने गया था.' ये कहते हुए मैंने उसे कंडोम दिखाया. पहले तो आशु को समझ ही नहीं आया की मेरे हाथ में आखिर है क्या फिर जब उसने डिब्बे पे लिखा पढ़ा तो वो नाराज होते हुए बोली; 'नहीं! आप इसे यूज़ नहीं करोगे! ये हमारा.... पहलीबार है.... और मुझे फील करना है....सब कुछ! मैं बाद में गर्भनिरोधक गोली ले लुंगी.' ये कहते हुए उसने मेरे हाथ से कंडोम का डिब्बा छीन लिया और दूर फेंक दिया. मैंने आगे उससे बहस करना ठीक नहीं समझा उल्टा मैं फिर से आशु के ऊपर आ गया और आशु की नाभि पर अपने होंठ रखे और आशु के मुँह से फिर से 'सससस...'' आवाज निकली. अगला चुम्बन मैंने आशु की गुलाबी योनी की फाँकों पर किया तो उसके पूरे जिस्म में करंट दौड़ गया और उसके मुँह से फिर से सीत्कार फूट पडी. मैंने अपनी जीभ से आशु की योनी की फाँकों को कुरेदना शुरू कर दिया. ऐसा लगा मानो जीभ की नोक अपने लिए अंदर जाने का रास्ता बना रही हो. पर योनी के गुलाबी होंठ खुल ही नहीं रहे थे, तो मैंने जितना हो सके उतना मुँह खोला और आशु की योनी के ऊपर रख दिया. अपनी जीभ से मैंने फाँकों को जोर से कुरेदना शुरू कर दिया. आखिर फाँकों को मुझ पर तरस आ गया और अंगड़ाई लेते हुए मुझे योनी का छेद दिखाई दिया. बस फिर क्या था मैंने उस अध्खुली फाँक को अपने मुँह में भर के मैं चूसने लगा. इधर आशु पर इसका बहुत मादक असर हुआ और उसके मुँह से बस सिसकारियाँ ही सिसकारियाँ फूटने लगी.....'स्स्सस्स्स्स...स्स्सस्स्स्स.... ससससस आए ससससस हहहह स्स्सस्स्स्स!!!' आशु की सिसकारियाँ मेरे लिए प्रोत्साहन का काम कर रही थी और मैंने अपनी पूरी जीभ से योनी के द्वार को चाटना...चूसना...कुरेदना...शुरू कर दिया.
आशु के दोनों हाथ मेरे सर के ऊपर थे और वो मेरे बालों में अपने हाथ फिराने लगी. अब मैंने अपने दोनों हाथ की उँगलियों से आशु के योनी के द्वार को खोला और अपनी जीभ जितनी हो सके उतनी अंदर डाल दी. जैसे ही जीभ अंदर घुसी आशु चिहुँक पड़ी; 'सीईई ...!!!!' मैंने अपनी जीभ से आशु की योनी ठुकाई शुरू कर दी और मेरे इस प्रहार से उसकी हालत ख़राब होने लगी थी. वो बार-बार मेरे सर का दबाव अपनी योनी पर बढ़ाती जा रही थी. 'सससससस...ीसीसीसीसीसिस..... सीईई..... सीईई.... ईईई .... आआह्ह्हह्ह्ह्ह!!!' करते हुए वो झड़ गई और हाँफते हुए निढाल हो कर रह गई. उसका सारा रस मैंने अपनी जीभ से चाट-चाट कर पी लिया था! आखिर मैं भी उसके ऊपर से उठ कर उसकी बगल में लेट गया.पिछले पाँच मिनट से मुँह खोल कर आशु की योनी चाटने से मुँह दर्द करने लगा था.
दो मिनट बाद जब आशु की सांसें नार्मल हुई तो वो करवट ले कर मेरी छाती पर अपना सर रख कर लेट गई. 'जानू! आज मुझे पता चला की चरम सुख क्या होता है! थैंक यू!!!!' मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि उसे तो तृप्ति मिल गई थी पर मैं तो अभी भी प्यासा था. आशु शायद समझ गई तो उसका हाथ मेरे लिंग पर आ गया और वो उसे सहलाने लगी. अपने मुँह को खोल आशु ने मेरे दाएं स्तनाग्र को मुँह में भर लिया जैसे शिकायत कर रही हो की क्यों मैंने अभी तक उसके स्तनों को प्यार नहीं किया? मैंने आशु के दाएं गाल को अपनी उँगलियों से सहलाया और उसके मुँह से अपने स्तनाग्र को छुड़ाया और उसकी आँखों में देखते हुए कहा; 'जान.......' मेरा बस इतना कहना था की वो मेरी बात समझ गई और मुझे उसके चेहरे पर डर की रेखा दिखने लगी. 'डर लग रहा है?!' मैंने पूछा तो जवाब में आशु ने बस हाँ में सर हिला दिया. 'मैं पूरी कोशिश करूँगा की मेरी जान को कम से कम दर्द हो.' सबसे पहले मैंने अपना कच्छा उतारा और आशु की टांगों को खोल कर उनके बीच घुटने मोड़ कर बैठ गया.मेरे फनफनाते हुए लिंग को आशु एक टक बांधे घूर रही थी. जैसे की सोच रही हो की ये दानव मेरी छोटी सी योनी में कैसे घुसेगा?! मैंने बहुत सारा थूक अपने लिंग पर चुपेड़ा और उसे धीरे से आशु की योनी के होठों पर छुआया. इतने भर से ही उसने अपनी आँखें कस के भीँचलि जैसे की उसे बहुत दर्द हुआ हो! इसलिए मैं बिना लिंग अंदर डाले उसके ऊपर छा गया और उसके होठों को एक बार चूमा, तब जाके उसकी आँखें खुली. मैं समझ गया की लिंग अंदर डालने से पहले मुझे आशु को थोड़ा उत्तेजित करना होगा. इसलिए मैं उसके जिस्म को चूमता हुआ उसके स्तनों पर आ गया और गप्प से उसके दाएं स्तन को अपने मुँह में भर लिया और अपनी जीभ से उसके स्तनाग्र से छेडने लगा. अपने दाएं हाथ से मैंने आशु के बाएं स्तन को धीरे से दबाना शुरू कर दिया. अपनी उँगलियों से मैं आशु के बाएं स्तनाग्र को दबाने लगा और उसके दाएं स्तनाग्र को तो मैं ऐसे चूसने लगा था जैसे उस में से दूध निकल रहा हो. पाँच मिनट की चुसाई के बाद मैंने आशु के बाएं स्तन को भी ऐसे ही चूसा उसके छोटे से स्तनाग्र को मैं दांतों से खींच रहा था और बीच-बीच में काट भी रहा था. आशु बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गई थी और अपना हाथ नीचे ले जा कर मेरा लिंग पकड़ के अपनी योनी की तरफ खींचने में लगी थी. मैंने जब उसके बाएं वक्ष को छोड़ा तो देखा उसके दोनों स्तन लाल हो चुका था. और उनपर मेरे दांतों के निशाँ साफ़ नजर आ रहे थे. मैंने और समय गँवाय बिना अपना लिंग उसकी योनी के द्वार पर रखा और धीरे से अंदर धकेला. मेरे लिंग की चमड़ी चूँकि अभी भी बंद थी तो लिंग अंदर नहीं गया पर इससे आशु को दर्द बहुत हुआ और उसने अपनी सर को बायीं तरफ झटक दिया. मैंने सोचा की बिना दम लगाए तो लिंग अंदर जायेगा नहीं इसलिए मैंने अपनी कमर को पीछे किया और एक झटका मार के लिंग अंदर डाला.मेरी इस हरकत से मेरी और आशु दोनों की जान पर बन आई! मेरे लिंग की चमड़ी एकदम से खुली और जलन से मेरी नितंब फ़ट गई और उधर आशु के मुँह से जोरदार चींख निकली!
'आआआअह्ह्ह्हह्ह्ह्ह.....मममममअअअअअ.....!!!' दर्द से दोनों का बुरा हाल था. मन तो कर रहा था की लिंग बहार निकाल के लेट जाऊँ पर ये जानता था की अगलीबार और दर्द होगा. इसलिए मैंने आशु के होठों को अपने मुँह में भर लिया और उसकी पीड़ा उसके गले में ही रोक दी. आशु ने दर्द के मारे अपने नाखून मेरी नग्न पीठ में धंसा दिए और उनमें से खून भी निकल आया. नीचे लिंग में दर्द और पीठ में जलन से मैं तड़प उठा. मैं इसी तरह से आशु के ऊपर अपना वजन दाल आकर लेटा रहा और उसके होठों को चुस्ता रहा और उसके मुँह में अपनी जीभ घूमाता रहा. करीब पाँच मिनट हुए और आशु ने अपने नाखून मेरी पीठ से निकाल दिए और अपने हाथ वापस पलंग पर रख दिये. उसी वक़्त मुझे मेरे लिंग पर गर्म पानी का एहसास हुआ, मतलब की आशु झड़ चुकी थी और वो निढाल होकर बिना कुछ बोले ही बिस्तर पर लाश की तरह पड़ी थी. मैंने आशु के होठों को छोड़ा और आशु के चेहरे की तरफ देखने लगा, आशु की आँखें बंद थी और उसके मस्तक पर पसीने की बूँदें थी. मैंने आशु के गाल को चूमा और उसे पुकारा; 'जान!' तो जवाब में बस उसके मुँह से 'हम्म...' निकला|
'बहुत दर्द हो रहा है?' मैंने उसके माथे को चूमते हुए पूछा तो जवाब में बस उसके मुँह से 'हम्म' निकला और दर्द की एक लकीर चेहरे पर आ गई. मेरा दिल भी उसके दर्द को महसूस कर रहा था इसलिए मैं आशु के ऊपर से हटने लगा, की तभी उसने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन में डाल के हटने नहीं दिया. 'जान... आपको दर्द हो रहा है! रूक जाते हैं!' मैंने चिंता जताते हुए कहा. 'नहीं....' वो बस इतना ही बोल पाई और मुझे अपने ऊपर से हटने नहीं दिया. मैंने आशु के माथे फिर से चूम लिया और उसने अपनी गर्दन ऊँची कर के अपने होंठ मेरे सामने कर दिए जैसे कह रही हो की आप गलत जगह को चूम रहे हो. मैंने आशु के होठों को चूसना शरू कर दिया. इसका असर अब आशु पर दिखने लगा था और जिस्म में अब हरकत होने लगी थी. उसका दर्द कुछ कम होने लगा था और उसकी उँगलियाँ अब मेरे सर के बालों में घूमने लगी थी. मैंने उसके होठों को छोड़ा और आशु के चेहरे पर देखा तो उसने अपनी आँख खोली और उसकी आँखें मुझे नम दिखाई दे रही थी. उसकी मूक सहमति से मैंने अपने लिंग को धीरे से बाहर निकाला और फिर धीरे से अंदर किया तो आशु की कमर कांपने लगी और उसने कस के मुझे अपने आलिंगन में जकड लिया. उसकी दोनों टांगें मेरी कमर के इर्द-गिर्द लिपट चुकी थी और उनके दबाव से ये साफ़ था की आशु अब भी पूरी तरह तैयार नहीं हे. पर मेरा सब्र अब जवाब देने लगा था. मेरे लिंग में अब तनाव बहुत बढ़ चूका था ऊपर से चमड़ी खींचने की वजह से लिंग में दर्द अभी था. मैंने फिर से आशु की तरफ देखा तो उसकी आँखें अब भी दर्द के मारे मीच राखी थी. 'जान! प्लीज!!!!' मेरा इतना कहाँ था की उसने आँखें बंद किये हुए ही हाँ में गर्दन हिला दी. मैंने धीरे से अपनी कमर को पीछे खींचा और धीरे उसे अंदर-बहार करने लगा. आशु की योनी की गर्माहट बढ़ रही थी और उस गर्माहट से मेरे लिंग को काफी आराम मिल रहा था. इसी तरह धीरे-धीरे करते हुए करीब दस मिनट हुए होंगे की मेरा ज्वालामुखी फूटने को तैयार था और मैं उसे बहार खींचने वाला था की आशु ने कस के अपने जिस्म को मेरे जिस्म से चिपका लिया और मुझे ऐसा करने नहीं दिया और हम दोनों ही साथ-साथ झड़े! झड़ते ही मैं पस्त हो कर आशु के ऊपर गिरा और उसका भी हाल ख़राब ही था. करीब पाँच मिनट बाद मैं उसके ऊपर से उठ के उसकी बगल में लेट गया और अपने लिंग और उसकी योनी की तरफ देखा. दोनों ही खून और हमारे कामरस से सने थे, खून तो काफी निकला था और दोनों ही की यौन अंग सूझ चुका था.. मेरे लिंग के सुपडे के इर्द-गिर्द सूजन थी तो आशु की योनी मुझे सूजी हुई दिख रही थी. दस मिनट बाद में उठा और बाथरूम जा कर अपने लिंग को पानी से हलके हाथ से धोया और वापस आकर जमीन पर नंगा ही बैठ गया.जमीन की ढंडक चप से नितंबो को ठंडा कर गई. मैं दिवार का सहारा ले कर दोनों टांगें खोल कर बैठ गया.आशु की तरफ देखा तो वो अब भी सो रही थी और इधर मेरे पेट में आवाजें आने लगी थी. इसलिए में उठा और बैग से मैगी का पैकेट निकाला और बनाने लगा. मैगी की खुशबु से आशु की नींद खुल गई और उसने धीरे से आकर मुझे पीछे से अपनी बाँहों में जकड लिया. उसका नंगा जिस्म मेरी नग्न पीठ पर मह्सूस होते ही मैं पीछे मुड़ा और आशु के होंठों को चूम लिया. मैंने नोटिस किया की उसके होंठ भी थोड़े सूजे लग रहे थे.
आशु: जानू! आप क्यों बना रहे हो, मुझे बोल दिया होता तो मैं बना देती.
मैं: आज मैंने अपनी जान को बहुत दर्द दिया है, इसलिए सोचा आज मैं ही तुम्हें अपने हाथ से बना हुआ कुछ खिला दू.
आशु: दर्द तो आपको भी हुआ होगा ना? पर सच कहूँ तो आज अपने मुझे दुनिया भर की ख़ुशी एक साथ दे दी है! इसलिए आज तो मुझे आपकी सेवा करनी है, आखिर आज से आप मेरे पति जो हो गए हो!
मैं: चलो मुँह-हाथ धो कर आओ.
आशु हँसते हुए बाथरूम में चली गई और मैंने मॅगी एक ही प्लेट में परोस ली और प्लेट ले कर जैसे ही बिस्तर की तरफ घुमा की मुझे उस पर खून और हमारे कामरस का घोल पड़ा हुआ मिला. मैंने प्लेट टेबल पर रखी और चादर को बिस्तर से हटाया पर तब तक अभूत देर हो चुकी थी. मेरा गद्दा भी बीच में से लहू-लुहान हो चूका था! मैंने पंखा तेज चालु किया और जमीन पर ही प्लेट ले कर बैठ गया.आशु जब बाथरूम से आई तो मुझे नीचे बैठा देख हैरान हुई पर इससे पहले वो कुछ बोलती उसकी नजर बिस्तर पर पड़ी और वहां खून देख कर उसकी आँखें फटी की फटी रह गई.
'हाय! इतना सारा खून! कुछ बचा भी मेरे जिस्म में या सब निकल गया?' ये सुन कर मुझे हँसी आ गई और मुझे हँसता देख आशु भी खिलखिलाकर हँस पडी. आशु भी मेरे सामने ही नग्न फर्श पर बैठ गई और ठन्डे फर्श की चपत जब उसके नितंबो पर लगी तो वो 'आह' कर के फिर हँसने लगी. हमने मैगी खाई और फिर आशु बर्तन उठा कर किचन में रखने चली गई और मैं उठ कर बाथरूम में हाथ-मुँह धोने चला गया.मैंने बाथरूम से ही आशु को आवाज दे कर दूसरी चादर बिछाने को कहा. आशु ने जैसे ही अलमारी से चादर निकाली उसे मेरी गांजे की पुड़िया दिखाई दे गई. उसे जरा भी देर नहीं लगी ये समझते हुए की ये गांजा है. जैसे ही मैं बाथरूम से निकला वो मुझे पुड़िया दिखाते हुए बोली; 'ये क्या है?' उसके हाथ में पुड़िया देखते ही मेरी हवा खिसक गई. अब उससे झूठ तो बोल नहीं सकता था.
मैं: वो....गा...गांजा है! (मैंने सर झुकाये हुए कहा.)
आशु: आप गांजा पीते हो? (उसने हैरानी से पूछा.)
मैं: कभी-कभी...
आशु: क्यों पीते हो? (उसने गुस्सा करते हुए पूछा.)
मैं: वो... वो... कभी...टेंशन होती है तो.... थोड़ा....
आशु: टेंशन तो दुनियाभर में सब को है, तो क्या सब ये पीते हैं?
मैं: सॉरी!
आशु: कब से पी रहे हो आप?
मैं: कॉलेज...के ...
आशु: और इसके लिए पैसे कहाँ से आते थे?
मैं: वो... टूशन....देता... था...तो....
आशु: तो इस काम के लिए आप कॉलेज के दिनों में जॉब करते थे?
मैं:हाँ ...
आशु: मुझे कभी कुछ बताया क्यों नहीं? अगर आपको कोई बिमारी लग जाती तो?
मैं: सॉरी....मैं...मैं....
आशु: आज के बाद आप कभी भी इसे हाथ नहीं लगाओगे! समझे?
मैं: हाँ ...
आशु: खाओ मेरी कसम? (आशु मेरे पास आई और मेरा हाथ अपने सर पर रख कर मेरे जवाब का इंतजार करने लगी.)
मैं: मैं तुम्हारी कसम खाता हूँ... आज के बाद कभी इसे हाथ नहीं लगाऊँगा!
ये सुन कर आशु ने वो पुड़िया कूड़े में फेंक दी और नाराज हो कर बिस्तर पर दूसरी चादर बिछाने लगी. मैं अपने हाथ बांधे सर झुकाये उसे देखता रहा. जब चादर बिछ गई तो आशु मेरे पास आई और मेरी ठुड्डी ऊपर उठाई और मेरी आँख में देखते हुए बोली; 'और क्या-क्या शौक हैं आपके?'
'जी...कभी-कभी दारु भी पीता हूँ!' ये सुनते ही आशु की आँखें चौड़ी हो गईं और उसका गुस्सा फिर से लौट आया.
'मतलब अपनी जान देने की पूरी तैयारी कर रखी है आपने? आपको कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा? ये कभी सोचा आपने?' ये कहते हुए उसकी आँखें नम हो आईं थी.
'अरे जानू... मैं कोई रोज-रोज थोड़ी ही पीता हूँ? वो तो कभी कभार किसी पार्टी में या किसी के बर्थडे पर! चलो आई प्रॉमिस आज के बाद ये सब बंद! अब तो मुस्कुरा दो मेरी जान!' ये सुन कर आशु को तसल्ली हुई और उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आई. घडी में २:३० बजे थे, पेट भरा था और संभोग से दिल भी भरा हुआ था तो अब बारी थी सोने की. मैंने हम दोनों के पहनने के लिए अलमारी से दो टी-शर्ट निकाली तो आशु कहने लगी; 'क्या जरुरत है? हम दोनों ही तो हैं यहाँ!' तो मैंने टी-शर्ट वापस अंदर रख दी और हम दोनों एक दूसरे के आगोश में लेट गये.
मैं: जान! अब भी दर्द हो रहा है?
आशु: हम्म्म...थोड़ा-थोड़ा ... और आपको?
मैं: थोड़ा...
आशु का हाथ अपने आप ही मेरे लिंग पर आ गया और वो अपनी उँगलियों से उसे सहलाने लगी. ठुकाई की थकावट आशु पर असर दिखाने लगी थी आँखें बोझिल होने लगी और वो सो गई. पर मेरा मन अब भी प्यासा था. अब उसे उठाने का मन नहीं किया और इधर नींद में उसने अपने को और कस कर मेरे जिस्म से चिपका लिया और सो गई. मैं उसके दाएं गाल को सहलाता हुआ कब सो गया पता ही नहीं चला. जब आँख खुली तो साँझ हो चुकी थी और घडी सात बजा रही थी. मैं उठा तो आशु भी उठ गई और अपनी बाहें खोल कर उसने अंगड़ाई ली. आशु के स्तन अंगड़ाई लेने से आगे को निकल आये और मुझसे कण्ट्रोल नहीं हुआ तो मैंने उसके दाएं स्तन को चूम लिया. आशु की 'सीईई' निकल गई और उसने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को अपने स्तन पर दबा दिया. मैंने अपनी जीभ से उसके पूरे स्तन को चाटा और उससे अलग हो कर खड़ा हो कर अंगड़ाई लेने लगा. मेरा मुँह ठीक आशु के सामने था और अभी आशु के स्तनपान के बाद लिंग खड़ा हो गया था जो अंगड़ाई लेते समय आशु के सामने बिलकुल सीधा खड़ा था और उसे अपने पास बुला रहा था. मैंने जब आशु की तरफ देखा तो पाया वो मंत्रमुग्ध सी मेरे ही लिंग को देख रही थी. मैंने एक चुटकी बजा कर उसकी तन्द्रा को भंग किया और जैसे वो किसी ख्यालों की दुनिया से बाहर आई हो वैसे मुझे देख कर मुस्कुरा दी. मैंने उसे अपना तौलिया दिया और नहाने को कहा तो उसने अदा के साथ वो तौलिया लिया और मेरा हाथ पकड़ के अंदर बाथरूम में खींच के ले जाने लगी. 'जान! वहाँ इतनी जगह नहीं है की हम दोनों एक साथ नहा सके.'
'जगह बन जाएगी, आप आओ तो सही.' उसने फिर से मेरा हाथ खींचा और मैं भी उसके साथ अंदर घुस गया.उसने इशारे से मुझे कमोड पर बैठने को कहा, खुद शावर का मुँह मेरी तरफ कर के चालु किया और आ कर मेरी गोद में बैठ गई. लिंग आशु के योनी के सम्पर्क में आते ही अकड़ के खड़े हो गये.पानी की बूंदें आशु के जिस्म पर ज्यादा और मेरे ऊपर कम पढ़ रही थी. आशु टकटकी बंधे मुझे देखे जा रही थी की तभी पानी की एक धार आशु के बालों से बहती हुई ठीक उसके निचले होंठ पर आ गई. आशु के गुलाबी होंठ उस पानी से पूरी तरह भीग पाते उससे पहले ही मैंने उसके निचले होंठ को अपने मुँह में भर के चूसा. आशु की उँगलियाँ मेरे बालों में चलने लगी थी और उसके भीतर भी आग दहकने लगी थी. मेरे लिंग ने भी नीचे से धीरे-धीरे उसकी योनी पर थाप देना शुरू कर दिया था. आशु ने अपने होठों को मेरे होठों की गिरफ्त से छुड़ाया और सिधी खडी हो गयी. उसने मेरे लिंग को अपनी योनी के नीचे सेट किया और धीरे-धीरे अपनी योनी को मेरे लिंग पर दबाने लगी पर जैसे ही थोड़ा सूपड़ा अंदर गया उसे दर्द होने लगा. दरअसल उसकी योनी अभी अंदर से सूखी थी इसलिए वो फिर से खडी हो गई और अपने दाहिने हाथ में ढेर सारा थूक उसने योनी और मेरे लिंग के सुपाड़ी पर अच्छे से लगा दिया और फिर धीरे-धीरे मेरे लिंग पर अपनी योनी को रगडणे लगी. इस बार लिंग अंदर जाने लगा पर दर्द तो उसे अभी भी हो रहा था. वासना हम दोनों ही के अंदर भड़क चुकी थी और मुझसे उसका ये 'स्लो ट्रीटमेंट' बर्दाश्त नहीं हो रहा था. इसलिए मैंने भी नीचे से कमर को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाना शुरू कर दिया ताकि लिंग जल्दी से अंदर चला जाये. लिंग अभी आधा ही अंदर गया था की वो दर्द के मारे रूक गई और मेरी हालत तो ऐसे हो गई हो जैसे किसी ने गला दबा कर साँस रोक दी हो.
आशु की योनी ने कस के लिंग को जकड लिया और जैसे वो उसे अंदर जाने से रोक रही हो और लिंग था जो और अंदर जाना चाहता था. 'जान?!' मैंने आशु से मिन्नत करते हुए कहा तो उसने हाँ में गर्दन हिला कर मुझे खुद ही आगे बढ़ने की इज्जाजत दे दी. मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँ की आशु को ज्यादा दर्द न हो पर ये कमबख्त जिस्म वासना से जल रहा था इसलिए मैंने कुछ ज्यादा ही जोर से लिंग अंदर पेल दिया और आशु की एक जोरदार चीख निकली; 'आअह', उसने अपनी गर्दन दर्द के मारे पीछे की तरफ झटक दी. मैंने अपने दोनों हाथों को उसकी नग्न पीठ पर फिराया और उसे अपने जिस्म से चिपका लिया. दर्द के मारे उसकी आँख बंद हो चुकी थी और आंसुओं की लकीर बह निकली थी. पर लिंग इधर योनी की गर्मी में पिघलने लगा था.मेरी कमर ने अपने आप ही आशु को ऊपर झटका देना शुरू कर दिया. आशु ने कस कर मेरे सर को अपनी छाती से दबा लिया और अपने हाथों को लॉक कर दिया जिससे मेरा सर हिल भी नहीं सकता था. दो-चार सेकंड बाद जब साँस लेने में दिक्कत होने लगी तो हाथों ने आशु की पीठ पर चलना शुरू किया और जैसे ही उँगलियों में उसके बाल आये तो मैंने उन्हें पीछे की तरफ खिंचा. आशु की गर्दन पीछे की तरफ खींच गई और उसकी गिरफ्त मेरे सर के इर्द-गिर्द ढीली पडी. मैंने उसके बालों को अपनी ऊँगली से ढीला छोड़ा तब आशु ने अपनी आँखें खोली और मेरी आँखों में देख कर उसे जैसे होश आया हो. इधर मेरी कमर फिर से नीचे से धक्के देने लगी पर आशु ऊपर ज्यादा नहीं उठ रही थी. जब उसे इस बात का एहसास हुआ तो उसने खुद ही मेरे लिंग पर धीरे-धीरे ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया. 'ससससीई' कहते हुए उसने अपनी गति बढ़ा दी थी. माने अपने दोनों हाथों को उसकी कमर के इर्द-गिर्द कस रखा था की कहीं वो गिर ना जाये. आशु पर अब ठुकाई की खुमारी चढ़ने लगी थी और उसने अपने दोनों हाथों को अपने बालों में अदा के साथ फिराना शुरू कर दिया था. ऐसा करने से उसके स्तन उभर के बाहर आ गए थे और उन्हें देख मेरा सब्र जवाब देने लगा था.
पाँच मिनट के बाद आशु ने पानी बहाना शुरू कर दिया और वो थककर मेरे सीने से लगने को आई. पर मैंने उसके दाहिने स्तन को पकड़ लिया और चूसने लगा. आशु ने मेरे सर को फिर से अपने स्तन पर दबाना शुरू कर दिया. उसकी उँगलियाँ फिर से मेरे सर पर रास्ता बनाने लगी और मैंने बारी-बारी से उसके दोनों स्तनों को चूसना और काटना शुरू कर दिया. मेरा लिंग अब अकड़ कर चीखने लगा था और आशु तो जैसे थक कर अपना सारा वजन मुझ पर डाल कर पड़ी थी और अपने स्तनों को चुसवा कर मजे ले रही थी. मैंने अपने दोनों हाथों से आशु की कमर को कस कर पकड़ा और मैं उठ खड़ा हो गया और उसे दिवार से सटा कर अपने लिंग को जोर से अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया. आशु की दोनों टांगें मेरी कमर के इर्द-गिर्द टाइट हो चुकी थी और वो मेरे और दिवार के बीच दबी हुई थी. मेरी रफ़्तार बहुत तेज थी. इतनी तेज की आशु एक बार फिर झड़ गई और उसने फिर से मुझे कस कर अपने से चिपका लिया पर मैंने अपने धक्के चालु रखे और अगले ही क्षण मैंने अपना सारा गाढ़ा रस उसकी योनी में बहा दिया और उसके ऊपर ही लुढ़क गया.शावर से आ रहे ठन्डे पानी मेरे सर पर पड़ रहा था जिसके कारण जिस्म ज्यादा थका नहीं था. मिनट भर बाद मैंने आशु की आँखों में देखा तो मुझे उसकी आँखों में संतुष्टि नजर आई, उसने धीरे से अपने पैरों को नीचे फर्श पर टिकाया और मैं उससे दूर हुआ. पर अगले ही पल उसने मेरा हाथ थामा और अपने पंजों पर खड़े हो कर मेरे होठों को चूम लिया और मुस्कुरा दी. फिर हम साथ नहाये, उसने मुझे और मैंने उसे साबुन लगाया और फिर शावर के नीचे नहा के हम दोनों बाहर आये. अब तो बड़ी जोर से भूख लगी थी इसलिए मैंने खाना आर्डर करना चाहा तो आशु ने मना कर दिया और खुद ही बिना कपडे पहने किचन में खाना बनाने लगी. मैंने ही एक टी-शर्ट निकाल कर उसे दी;
मैं: जान इसे पहन लो.
आशु: क्यों? मुझे बिना कपडे के देखना आपको पसंद नहीं?
मैं: तुम्हें ऐसे देख कर मेरा ईमान डोल रहा हे.
आशु: हाय! सच्ची?
मैं: हाँजी!
आशु: डोलने दो! मैं तो आपकी ही हु. (आशु ने मुझे आँख मारते हुए कहा.)
आशु ने मेरी बात नहीं मानी खाना बनाने में लगी रही पर मेरा मन कहाँ मानने वाला था. मैं भी उसके पीछे सट के खड़ा हो गया और अपने दोनों हाथों को उसकी कमर से ले जाते हुए उसकी नाभि के ऊपर कस दिया. उसकी सुराही सी गर्दन मुझे चूमने के लिए बुला रही थी. मेरे दहकते होठों ने जैसे ही छुआ की आशु के मुँह से मादक सी सिसकारी निकल गई. 'सससस...sssss .... आप जान ले कर रहोगे मेरी!' उसने मेरे हाथों को खोल कर आजाद होने की एक नाकाम कोशिश की पर मैं कहाँ मानने वाला था. मैं उसी तरह उसे अपनी बाँहों में कैसे हुए अपनी कमर को दाएँ-बाएँ हिलाने लगा और धीरे-धीरे नाचने लगा. आशु भी मेरा साथ देने लगी और उसने शेल्फ पर रखे अपने फ़ोन पर गाना चला दिया.
'तुझको मैं रख लूँ वहाँ
जहाँ पे कहीं है मेरा यकीं
मैं जो तेरा ना हुआ
किसी का नहीं
किसी का नहीं'
 
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गाना सुनते-सुनते हम थिरकते रहे और आशु साथ-साथ खाना भी बनाती रही. रात नौ बजे तक मैं यूँ ही उसके जिस्म से अटखेलियाँ करता रहा और वो कसमसा कर रह जाती. आखिर खाना बना और आशु ने एक ही थाली में दोनों के लिए खाना परोसा और मुझे फर्श पर ही बैठने को कहा. मैं फर्श पर दिवार से सर लगा कर बैठा था. वो थाली पकडे मेरे सामने बैठ गई और मुझे अपने हाथ से कोर खिलाने लगी. मैंने भी उसे अपने हाथ से खिलाना शुरू कर दिया. खाना खा कर दोनों ही पलंग पर लेट गये. नींद तो आने वाली थी नहीं तो आशु ने कहा की उसे अश्लील मूवी देखनी है इसलिए मैंने उसे एक मूवी फ़ोन में चला कर दी. मैं दिवार का सहारा ले कर बैठा था और वो मेरे सीने पर सर रख कर बैठी थी. उस मूवी में लड़की के स्तन बहुत बड़े थे जिन्हें देख आशु को अपने स्तनों के अकार से निराशा हुई. उसके स्तनों का साइज छोटा था और अब चूँकि मैं उसकी निराशा ताड़ गया था इसलिए मैंने मूवी रोक दी. 'क्या हुआ जान?' तो उसने जवाब में अपना सर झुका लिया और अपने स्तनों को देखते हुए बोली; 'आपको तो बड़े...... पसंद हैं.... और मेरे.... तो छोटे!' उसने अटक-अटक कर कहा. 'मैंने तुमसे प्यार तुम्हारे इनके (उसके स्तनों को छूते हुए) लिए नहीं किया.'
'सच?' उसकी आँखें चमक उठी. 'इन लड़कियों के बड़े इसलिए होते हैं क्योंकि इन्होने सर्जरी कराई हे.' इतना कह के मैंने उसे थोड़ा ज्ञान बाँटा, पर सर्जरी का नाम सुन के जैसे वो हैरान हो गई. उसने फ़ोन साइड में रखा और और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; 'मैं भी कराऊँ?'
'बेबी! आपको ऐसा कुछ भी कराने की कोई जरुरत नहीं है! मैंने आपसे कहा ना की मैं आपसे प्यार करता हु. भगवान ने आपको जैसा भी बनाया है सुन्दर बनाया है और ये सर्जरी वगैरह करके इसकी सुंदरता ख़राब मत करो.' मेरा जवाब सुन कर वो संतुष्ट हो गई. उसे विश्वास होगया की मेरा प्यार सिर्फ उसके जिस्म तक सीमित नहीं हे.
मैंने फिर से आशु को अपने आगोश में ले लिया और हम दोनों लेट गये. मैं पीठ के बल लेटा था और आशु मेरी तरफ करवट किये हुए थी. उसका बायाँ हाथ मेरी छाती पर था और वो मेरी शेव की हुई छाती पर अपनी उँगलियाँ चला रही थी. तभी उसने अपनी बायीं टांग उठा कर मेरे लिंग पर रख दी और अचानक ही उसके मुँह से दर्द भरी 'आह' निकल गई. 'क्या हुआ जान?!' मैंने चिंता जताते हुए उससे पूछा तो उसने मुस्कुरा कर ना में गर्दन हिला दी. मैं उठ बैठा और लाइट जला कर उसकी योनी की तरफ देखा तो पाया की वो बहार से सूज गई हे. उसके कोमल पट सूजे हुए दिखे. जिस लड़की से मैं इतना प्यार करता हूँ, आज उसी को मैंने इतना दर्द दे दिया वो भी सिर्फ अपनी वासना में जल कर? ग्लानि से मेरा सर झुक गया तो आशु उठ बैठी और मेरे सर को अपने दोनों हाथों में थाम के ऊपर उठाया और बोली; 'आपको क्या हुआ?'
'सॉरी! मेरी वजह से तुम्हें इतना दर्द हो रहा हे.' इतना कह के मैंने शर्म से सर फिर झुका लिया. उसने फिर से मेरा सर ऊपर किया और मेरी आँखों में आँखें डाले बोलने लगी;'जानू! ये तो बस १-२ दिन में ठीक हो जायेगा, आप खामखा अपने को दोष ना दो.'
'ठीक है! अब तुम्हें दर्द दिया है तो दवा भी मैं ही करुंगा.' इतना कह कर मैं उठा और किचन में पानी गर्म करने लगा.
आशु: आप क्या कर रहे हो?
मैं: पानी गर्म कर रहा हूँ, उससे सेक देने से आराम मिलेगा
आशु: रहने दो ना,आप मेरे पास लेटो.
मैं: आ रहा हु.
पानी थोड़ा गर्म हो चूका था. मैंने एक छोटा तौलिया लिया और रुई का एक टुकड़ा ले कर मैं वापस पलंग पर लौट आया. तौलिये को मैंने आशु की कमर के नीचे रख दिया ताकि पानी से बिस्तर गिला न हो जाये और फिर रुई को गर्म पानी में भिगो कर आशु के योनी की सिकाई करने लगा. इस सिकाई से उसे बहुत आराम मिला और उसने की बार मुझे रोका, ये कह के की उसे आराम मिल गया पर मैं फिर भी करीब दस मिनट तक उसकी योनी की सिकाई करता रहा. 'बस बहुत हो गई सिकाई, अब मेरे पास आओ.' ये कहते हुए आशु ने अपनी बाहें खोल दीं और मैंने बर्तन नीचे रखा, उसे अपनी बाहों में भर कर लेट गया.हम इसी तरह सो गए पर रात के ग्यारह बजे होंगे की आशु चौंक कर उठ गई और हाँफने लगी. 'क्या हुआ जान? कोई बुरा सपना देखा?' मैंने आशु से पूछा तो जवाब में वो कुछ नहीं बोली बल्कि अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढक कर रोने लगी. मैंने उसके दोनों हाथों को उसके चेहरे से हटाया और उसके माथे पर चूमा और उसे अपने सीने से लगा लिया. करीब दो मिनट बाद उसका रोना बंद हुआ और उसने सुबकते हुए जो कहा उसे सुन मेरे होश उड़ गए; 'आप.... मैंने ... बहुत बूरा....सपना....' आशु ने सुबकते हुए कहा. मैं तुरंत उससे अलग हुआ, कमरे की लाइट जलाई और उसके लिए पानी ले कर आया. पानी पीने के बाद उसने एक गहरी साँस ली और बोली;
आशु: मैंने सपना देखा की माँ मुझसे बदला लेने के लिए आपके साथ संभोग कर रही हे.
मैं: (चौंकते हुए) क्या? क्या बकवास कर रही है? तेरी माँ मतलब मेरी भाभी और भला हम दोनों ऐसा!? छी!
आशु: आपको नहीं पता पर एक रात मैं और माँ छत पर सो रहे थे. वो नींद में आपका नाम बड़बड़ा रही थी और तकिये को अपने से चिपकाए हुए कसमसा रही थी.
मैं: ये नहीं हो सकता?! पर .... पर ... हमारे बीच तो सीधे मुँह बात भी नहीं होती. तो संभोग......
आशु: मुझे नहीं पता.
इतना कह कर आशु फिर से रोने लगी. 'ऐसा कभी नहीं होगा! मैं तुझसे प्यार करता हूँ और भाभी मेरे साथ कभी भी वो सब करने में कामयाब नहीं होगी.' मैंने आशु को फिर से अपने गले लगा लिया और उसकी पीठ सहला कर उसे चुप कराने लगा.आशु का सुबकना कम हुआ तो हम दोनों लेट गए पर अगले ही पल वो मुझसे कस के चिपक गई. जैसे की उसे डर हो के सच में कोई मुझे उससे चुरा लेगा. इधर मेरे दिमाग में उथल-पुथल मची हुई थी की भाभी भला मेरे बारे में ऐसा कैसे सोच सकती हैं? मैंने तो कभी भाभी को इस नजर से नहीं देखा? हम दोनों के बीच तो कभी सीधे मुँह बात भी नहीं हुई? तभी मुझे प्रकाश की बात याद आई जब उसने भाभी को 'माल' कहा था. क्या भाभी के गैर मर्दों के साथ रिश्ते हैं? ये सभी सोचते-सोचते दिमाग जोर से चलने लगा था. अब अगर आशु नहीं होती तो मैं गांजा पीता और इस टेंशन से बाहर निकल जाता. पर अब तो उसे वादा कर चूका था तो तोड़ता कैसे? इसलिए ऐसे ही चुप-चाप बिस्तर पर पड़ा रहा. न जाने कैसे शायद आशु ने मेरी चिंता भाँप ली और उसने अपनी गर्दन मेरे बाजू पर से उठाई और मेरे होठों को चूम लिया. उसके इस चुंबन से मेरा ध्यान भाभी से हटा, पर ये बहुत छोटा सा चुंबन था. शायद आज की दमदार संभोग के बाद वो काफी थक चुकी थी. मेरे आगोश में आते ही उसकी आँख लग गई और वो चैन की नींद सो गई. इधर आशु के जिस्म की भीनी खुशबु और उसे आज सकूँ से प्यार करने के बाद मैं भी सो गया.
रात के एक बजे थे.खिड़की से आ रही चांदनी की रौशनी कमरे में फैली हुई थी की तभी आशु बाथरूम से आई तो उसने पाया की मेरा लिंग एक दम कड़क हो चूका है और छत की तरफ मुँह कर के सीधा खड़ा है और फुँफकार रहा हे. दरअसल मैं उस समय कोई हसीन सपना देख रहा था जिस कारन लिंग अकड़ चुका था.. पता नहीं उसे क्या सूजी की वो मेरी टांगों के बीच आ गई और घुटने मोड़ के बैठ गई. मेरे लिंग को निहारते हुए वो ऊपर झुकी और धीरे-धीरे अपना मुँह खोले हुए वो नीचे आने लगी. सबसे पहले उसने अपनी जीभ की नोक से मेरे लिंग को छुआ और मेरी प्रतिक्रिया जानने के लिए मेरी तरफ देखने लगी. जब मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसने अपने मुँह को थोड़ा खोला और आधा सुपाड़ा अपने मुँह में भर के चूसा| ''सससससस''' नींद में ही मेरे मुँह से सिसकारी निकल गई. उसने धीरे-धीरे पूरा सुपाड़ा अपने मुँह के भीतर ले लिया और रुक गई. 'ससस...अह्ह्ह...' अब आशु से और नीचे जाय नहीं रहा था तो उसने आधा सूपड़ा ही अपने मुँह के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया. इधर मैं नींद में था और मेरे सपने में भी ठीक वही हो रहा तह जो असल में आशु मेरे साथ कर रही थी. पर आशु को अभी ठीक से लिंग चूसना नहीं आया था. उसके मुँह में होते हुए भी मेरा लिंग अभी तक सूखा था. जबकि उसे तो अभी तक अपने थूक और लार से मेरे लिंग को गीला कर देना चाहिए था. पूरे दस मिनट तक वो बेचारी बस इसी तरह अपने होठों से मेरे लिंग को अपने मुँह में दबाये हुए ऊपर-नीचे करती रही और अंत में जब मेरा गर्म पानी निकला तो मेरी आँख खुली.आशु को देख मैं हैरान रह गया.मेरा सारा रस उसके मुँह में भर गया था और वो भागती हुई बाथरूम में गई उसे थूकने. मैं अपनी पीठ सिरहाने से लगा कर बैठ गया और जैसे ही आशु बहार आई उसकी नजरें झुक गई. तो जान! ये क्या हो रहा था? आपके साथ तो मैं बिना कपडे के भी नहीं सो सकता?!' मैंने आशु को छेड़ते हुए कहा. वो एक दम से शर्मा गई और पलंग पर आ कर मेरे सीने पर सर रख कर बैठ गई. 'वो न..... जब मैं उठी तो..... आपका वो...... मुझे देख रहा था!' आशु ने शर्माते हुए मेरे लिंग की तरफ ऊँगली करते हुए कहा.
मैं: देख रहा था मतलब? इसकी आँख थोड़े ही है?
आशु: ही..ही...ही... पता नहीं पर उसे देखते ही मैं .... जैसे मैं अपने आप ही ..... (इसके आगे वो कुछ बोल नहीं पाई और शर्मा के मेरे सीने में छुप गई.)
मैं: चलो अब सो जाओ वरना अभी थोड़ी देर में फिर से आपको देखने लगेगा.ये सुनते ही आशु के गाल लाल हो गए और हम दोनों फिर से एक दूसरे की बाहों में लेट गए और चैन से सो गये.
सुबह मेरी नींद चाय की खुशबु सूंघ कर खुली और मैंने उठ के देखा तो आशु किचन में चाय छान रही थी. मैं पीछे से उसके जिस्म से सट कर खड़ा हो गया और अपनी बाँहों को उसके नंगे पेट पर लोच करते हुए उसकी गर्दन पर चूमा. 'गुड मॉर्निंग जान!'
'सससस....आज तो वाकई मेरी मॉर्निंग गुड हो गई.' आशु ने सिसकते हुए कहा.
आशु: काश की रोज आप मुझे ऐसे ही गुड मॉर्निंग करते?
मैं: बस जान.... कुछ दिन और
आशु: कुछ साल ...दिन नही.
मैं: ये साल भी इसी तरह प्यार करते हुए निकल जायेंगे.
आशु: तभी तो ज़िंदा हु.
इतना कह कर आशु मेरी तरफ मुड़ी और अपनी दोनों बाहें मेरे गले में डाल दी और अपने पंजों पर खड़ी हो कर मेरे होंठों को चूम लिया. मैंने अपनी दोनों हाथों से उसकी कमर को जकड़ लिया और उसे अपने जिस्म से चिपका लिया.
मैंने घडी देखि तो नौ बज गए थे और मुझे ११ बजे आशु को हॉस्टल छोड़ना था तो मैंने उससे नाश्ते के लिए पूछा. आशु उस समय बाथरूम में थी और उसने अंदर से ही कहा की वो बनायेगी. जब आशु बहार आई तो वो अब भी नग्न ही थी;
मैं: जान अब तो कपडे पहन लो?
आशु: क्यों? (हैरानी से)
मैं: हॉस्टल नहीं जाना?
ये सुनते ही आशु का चेहरा उतर गया और उसका सर झुक गया.मुझसे उसकी ये उदासी सही नहीं गई तो मैंने जा कर उसे अपने गले से लगा लिया और उसके सर को चूमा.
आशु: आज के दिन और रुक जाऊँ? (उसने रुनवासी होते हुए कहा.)
मैं: जान! समझा करो?! देखो आपको कॉलेज भी तो जाना है?
आशु: आप उसकी चिंता मत करो मैं सारी पढ़ाई कवर अप कर लुंगी.
मैं: और मेरे ऑफिस का क्या? आज की मुझे छुट्टी नहीं मिली.
आशु के आँख में फिर से आँसूँ आ गए थे. अब मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और उसे पलंग पर लिटाया और मैं भी उसकी बगल में लेट गया.
मैं: अच्छा तू बता मैं ऐसा क्या करूँ की तुम्हारे मुख पर ख़ुशी लौट आये?
आशु: आज का दिन हम साथ रहे.
मैं: जान वो पॉसिबल नहीं है, वरना मैं आपको मना क्यों करता?
आशु फिर से उदास होने लगी तो मैंने ही उसका मन हल्का करने की सोची;
मैं: अच्छा मैं अगर तुम्हें अपने हाथ से कुछ बना कर खिलाऊँ तब तो खुश हो जाओगी ना?
आशु: (उत्सुकता दिखाते हुए) क्या?
मैं: भुर्जी खाओगी?
आशु: छी.... छी...आप अंडा खाते हो? घर में किसी को पता चल गया न तो आपको घर से निकाल देंगे!
मैं: मेरे हाथ की भुर्जी खा के तो देखो!
आशु: ना बाबा ना! मुझे नहीं करना अपना धर्म भ्रष्ट.
मैं: ठीक है फिर बनाओ जो बनाना हे. इतना कह कर मैं बाथरूम में घुस गया और नहाने लगा. नाहा-धो के जब तक मैं ऑफिस के लिए तैयार हुआ तब तक आशु ने प्याज के परांठे बना के तैयार कर दिये. पर उसने अभी तक कपडे नहीं पहने थे, मुझे भी दिल्लगी सूझी और मैं ने उसे फिर से पीछे से पकड़ लिया और उसकी गर्दन को चूमने लगा.
आशु: इतना प्यार करते हो फिर भी एक दिन की छुट्टी नहीं ले सकते. शादी से पहले ये हाल है, शादी के बाद तो मुझे टाइम ही नहीं दोगे.
मैं: शादी के बाद तो तुम्हें अपनी पलकों अपर बिठा कर रखुंगा. मजाल है की तुम से कोई काम कह दूँ!
आशु: सच?
मैं: मुच्!
हमने ख़ुशी-ख़ुशी नाश्ता खाया और वही नाश्ता आशु ने पैक भी कर दिया. फिर मैंने उसे पहले उसके कॉलेज छोड़ा और उसके हॉस्टल फ़ोन भी कर दिया की आशु कॉलेज में हे. फ़टाफ़ट ऑफिस पहुँचा और काम में लग गया.शाम को फिर वही ४ बजे निकला, आशु के कॉलेज पहुँचा और मुझे वहाँ देख कर वो चौंक गई. वो भाग कर गेट से बाहर आई और बाइक पर पीछे बैठ गई. हमने चाय पी और फिर उसे हॉस्टल के गेट पर छोडा.
अगले दिन सुबह-सुबह ऑफिस पहुँचते ही बॉस ने मुझे बताया की हमें शाम की ट्रैन से मुंबई जाना हे. ये सुनते ही मैं हैरान हो गया; “सर पर महालक्ष्मी ट्रेडर्स की जी. एस. टी. रिटर्न पेंडिंग है!'
'तू उसकी चिंता मत कर वो अंजू (बॉस की बीवी) देख लेगी.' बॉस ने अपनी बीवी की तरफ देखते हुए कहा. ये सुन कर मैडम का मुँह बन गया और इससे पहले मैं कुछ बोलता की तभी आशु का फ़ोन आ गया और मैं केबिन से बाहर आ गया.
मैं: अच्छा हुआ तुमने फ़ोन किया. मुझे तुम्हें एक बात बतानी थी. मुझे बॉस के साथ आज रात की गाडी से मुंबई जाना हे.
आशु: (चौंकते हुए) क्या? पर इतनी अचानक क्यों? और.... और कब आ रहे हो आप?
मैं: वो पता नहीं... शायद शनिवार-रविवार....
ये सुन कर वो उदास हो गई और एक दम से खामोश हो गई.
मैं: जान! हम फ़ोन पर वीडियो कॉल करेंगे... ओके?
आशु: हम्म...प्लीज जल्दी आना.
आशु बहुत उदास हो गई थी और इधर मैं भी मजबूर था की उसे इतने दिन उससे नहीं मिल पाउंगा. मैं आ कर अपने डेस्क पर बैठ गया और मायूसी मेरे चेहरे से साफ़ झलक रही थी. थोड़ी देर बाद जब नितु मैडम मेरे पास फाइल लेने आईं तो मेरी मायूसी को ताड़ गई. 'क्या हुआ सागर?' अब मैं उठ के खड़ा हुआ और नकली मुस्कराहट अपने चेहरे पर लाके उनसे बोला; 'वो मैडम ... दरअसल सर ने अचानक जाने का प्लान बना दिया. अब घर वाले ...' आगे मेरे कुछ बोलने से पहले ही मैडम बोल पड़ीं; 'चलो इस बार चले जाओ, अगली बार से मैं इन्हें बोल दूँगी की तुम्हें एडवांस में बता दें. अच्छा आज तुम घर जल्दी चले जाना और अपने कपडे-लत्ते ले कर सीधा स्टेशन आ जाना.' तभी पीछे से सर बोल पड़े; 'अरे पहले ही ये जल्दी निकल जाता है और कितना जल्दी भेजोगे?' सर ने ताना मारा. 'सर क्या करें इतनी सैलरी में गुजरा नहीं होता. इसलिए पार्ट टाइम टूशन देता हु.' ये सुनते ही मैडम और सर का मुँह खुला का खुला रह गया.सर अपना इतना सा मुँह ले कर वापस चले गए और मैडम भी उनके पीछे-पीछे सर झुकाये चली गई. खेर जैसे ही ३ बजे मैं सर के कमरे में घुसा और उनसे जाने की नितुमति मांगी. 'इतना जल्दी क्यों? अभी तो तीन ही बजे हैं?' सर ने टोका पर मेरा जवाब पहले से ही तैयार था. 'सर कपडे-लत्ते धोने हैं, गंदे छोड़ कर गया तो वापस आ कर क्या पहनूँगा?' ये सुनते ही मैडम मुस्कुराने लगी क्योंकि सर को मेरे इस जवाब की जरा भी उम्मीद नहीं थी. 'ठीक है...तीन दिन के कपडे पैक कर लेना और गाडी ८ बजे की है, लेट मत होना.' मैंने हाँ में सर हिलाया और बाहर आ कर सीधा आशु को फ़ोन मिलाया पर उसने उठाया नहीं क्योंकि उसका लेक्चर चल रहा था. मैं सीधा उसके कॉलेज की तरफ चल दिया और रेड लाइट पर बाइक रोक कर उसे कॉल करने लगा. जैसे ही उसने उठाया मैंने उसे तुरंत बाहर मिलने बुलाया और वो दौड़ती हुई रेड लाइट तक आ गई.
बिना देर किये उसने रेड लाइट पर खड़ी सभी गाडी वालों के सामने मुझे गले लगा लिया और फूट-फूट के रोने लगी. मैंने अब भी हेलमेट लगा रखा था और मैं उसकी पीठ सहलाते हुए उसे चुप कराने लगा. 'जान... मैं कुछ दिन के लिए जा रहा हु. सरहद पर थोड़े ही जा रहा हूँ की वापस नहीं आऊँगा?! मैं इस रविवार आ रहा हूँ... फिर हम दोनों पिक्चर जायेंगे?' मेरे इस सवाल का जवाब उसने बस 'हम्म' कर के दिया. मैंने उसे पीछे बैठने को कहा और उसे अपने घर ले आया, वो थोड़ा हैरान थी की मैं उसे घर क्यों ले आया पर मैंने सोचा की कम से कम मेरे साथ अकेली रहेगी तो खुल कर बात करेगी. वो कमरे में उसी खिड़की के पास जा कर बैठ गई और मैं उसके सामने घुटनों के बल बैठ गया और उसकी गोद में सर रख दिया. आशु ने मेरे सर को सहलाना शुरू कर दिया और बोली;
आशु: रविवार पक्का आओगे ना?
मैं: हाँ ... अब ये बताओ क्या लाऊँ अपनी जानेमन के लिए?
आशु: बस आप आ जाना, वही काफी है मेरे लिए.
उसने मुस्कुराते हुए कहा और फिर उठ के मेरे कपडे पैक करने लगी. मैंने पीछे से जा कर उसे अपनी बाँहों में जकड़ लिया. मेरे जिस्म का एहसास होते ही जैसे वो सिंहर उठी. मैंने आशु की नग्न गर्दन पर अपने होंठ रखे तो उसने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे ले जा कर जकड़ लिया. हालाँकि उसका मुँह अब भी सामने की तरफ था और उसकी पीठ मेरे सीने से चुपकी हुई थी. आगे कुछ करने से पहले ही मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी और मैं आशु से थोड़ा दूर हो गया.जैसे ही मैं फ़ोन ले कर पलटा और 'हेल्लो' बोला की तभी आशु ने मुझे पीछे से आ कर जकड़ लिया. उसने मुझे इतनी जोर से जकड़ा की उसके जिस्म में जल रही आग मेरी पीठ सेंकने लगी. 'सर मैं आपको अभी थोड़ी देर में फ़ोन करता हूँ, अभी मैं ड्राइव कर रहा हु.' इतना कह कर मैंने फ़ोन पलंग पर फेंक दिया और आशु की तरफ घूम गया.उसे बगलों से पकड़ कर मैंने उसे जैसे गोद में उठा लिया. आशु ने भी अपने दोनों पैरों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द जकड़ लिया और मेरे होठों को चूसने लगी. मैंने अपने दोनों हाथों को उसके कूल्हों के ऊपर रख दिया ताकि वो फिसल कर नीचे न गिर जाये. आशु मुझे बेतहाशा चुम रही थी और मैं भी उसके इस प्यार का जवाब प्यार से ही दे रहा था. मैं आशु को इसी तरह गोद में उठाये कमरे में घूम रहा था और वो मेरे होठों को चूसे जा रही थी. शायद वो ये उम्मीद कर रही थी की मैं उसे अब पलंग पर लेटाऊंगा, पर मेरा मन बस उसके साथ यही खेल खेलना चाहता था.
आशु: जानू...मैं आपसे कुछ माँगूँ तो मन तो नहीं करोगे ना? (आशु ने चूमना बंद किया और पलकें झुका कर मुझ से पूछा.)
मैं: जान! मेरी जान भी मांगोंगे तो भी मना नहीं करुंगा. हुक्म करो!
आशु: जाने से पहले आज एक बार... (इसके आगे वो बोल नहीं पाई और शर्म से उसने अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया.)
मैं: अच्छा जी??? तो आपको एक बार और मेरा प्यार चाहिए???
ये सुन कर आशु बुरी तरह झेंप गई और अपने चेहरे को मेरी छाती में छुपा लिया. अब अपनी जानेमन को कैसे मना करूँ?
मैंने आशु को गोद में उठाये हुए ही उसे एक खिड़की के साथ वाली दिवार के साथ लगा दिया. आशु ने अपने हाथ जो मेरी पीठ के इर्द-गिर्द लपेटे हुए थे वो खोल दिए और सामने ला कर अपने पाजामे का नाडा खोला. मैंने भी अपने पैंट की ज़िप खोली और फनफनाता हुआ लिंग बाहर निकाला. आशु ने मौका पाते ही अपनी दो उँगलियाँ अपने मुँह में डाली और उन्हें अपने थूक से गीला कर अपनी योनी में डाल दिया. मैंने भी अपने लिंग पर थूक लगा के धीरे-धीरे आशु की योनी में पेलने लगा. अभी केवल सुपाड़ा ही गया होगा की आशु ने खुद को मेरे जिस्म से कस कर दबा लिया, जैसे वो चाहती ही ना हो की मैं अंदर और लिंग डालु. दर्द से उसके माथे पर शिकन पड़ गई थी. इसलिए मैं ने उसे थोड़ा समय देते हुए उसके होठों को चूसना शुरू कर दिया. जैसे ही मैंने अपनी जीभ आशु के मुँह में पिरोई की उसने अपने बदन का दबाव कम किया और मैं ने भी धीरे-धीरे लिंग को अंदर पेलना शुरू किया. आशु ने मेरी जीभ की चुसाई शुरू कर दी थी और नीचे से मैंने धीरे-धीरे लिंग अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया था. पाँच मिनट हुए और आशु का फव्वारा छूट गया और उसने मुझे फिर से कस कर खुद से चिपटा लिया. पाँच मिनट तक वो मेरे सीने से चिपकी रही और अपनी उखड़ी साँसों पर काबू करने लगी. मैंने उसके सर को चूमा तो उसने मेरी आँखों में देखा और मुझे मूक नितुमति दी. मैंने धीरे-धीरे लिंग को अंदर बहार करना चालू किया और धीरे-धीरे अपनी रफ़्तार बढ़ाने लगा. आशु की योनी अंदर से बहुत गीली थी इसलिए लिंग अब फिसलता हुआ अंदर जा रहा था. दस मिनट और फिर हम दोनों एक साथ झड़ गये. आशु ने फिर से मुझे कस कर जकड़ लिया और बुरी तरह हाँफने लगी. उसे देख कर एक पल को तो मैं डर गया की कहीं उसे कुछ हो ना जाये. मैंने उसे अपनी गोद से उतारा और कुर्सी पर बिठाया और उसके लिए पानी ले आया. पानी का एक घूँट पीते ही उसे खाँसी आ गई तो मैंने उसकी पीठ थप-थापाके उस की खाँसी रुक वाई.'क्या हुआ जान? तुम इतना हाँफ क्यों रही हो? कहीं ये आई-पिल का कोई रिएक्शन तो नहीं?' मैंने चिंता जताते हुए पूछा.
'ओह्ह नो! वो तो मैं लेना ही भूल गई!' आशु ने अपना सर पीटते हुए कहा.
'पागल है क्या? वो गोली तुझे ७२ घंटों में लेनी थी! कहाँ है वो दवाई?' मैंने उसे डाँटते हुए पूछा तो उसने अपने बैग की तरफ इशारा किया. मैंने उसका बैग उसे ला कर दिया और वो उसे खंगाल कर देखने लगी और आखिर उसे गोलियों का पत्ता मिल गया और मैंने उसे पानी दिया पीने को.पर मेरी हालत अब ख़राब थी क्योंकि उसे ७२ घंटों से कुछ ज्यादा समय हो चूका था. अगर गर्भ ठहर गया तो??? मैं डर के मारे कमरे में एक कोने पर जमीन पर ही बैठ गया.आशु उठी अपने कपडे ठीक किये और मेरे पास आ गई और मेरी बगल में बैठ गई. 'कुछ नहीं होगा जानू! आप घबराओ मत!' उसने अपने बाएं हाथ को मेरे कंधे से ले जाते हुए खुद को मुझसे चिपका लिया.
मेरी आँखें नम हो चलीं थीं, पर आंसुओं को मैंने बाहर छलकने नहीं दिया और खुद को संभालते हुए मैं उठ के खड़ा हुआ और बाथरूम में मुँह धोने घुसा. जब बाहर आया तो आशु मायूस थी; 'जानू! आप मुझसे नाराज हो?' मैंने ना में सर हिलाया तो वो खुद आ कर मेरे गले लग गई. आगे हम कुछ बात करते उससे पहले ही बॉस का फ़ोन आ गया और वो मुझसे कुछ पूछने लगे. इधर आशु ने मेरे बैग में कपडे सेट कर के रख दिए थे और खाने के लिए सैंडविच बना रही थी. बॉस से बात कर के मैं वहीँ पलंग पर बैठ गया और मन ही मन ये उम्मीद करने लगा की आशु अभी गर्भवती ना हो जाये. मेरी चिंता मेरे चेहरे से झलक रही थी तो आशु मेरे सामने हाथ बांधे खडी हो गई और मेरी तरफ बिना कुछ बोले देखने लगी. मैं अपनी चिंता में ही गुम था और जब मैंने पाँच मिनट तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो वो मेरे नजदीक आई, अपने घुटने नीचे टिका कर बैठी और मेरी ठुड्डी ऊपर की. 'क्यों चिंता करते हो आप? कुछ नहीं होगा! आप बस जल्दी आना, मैं यहाँ आपका बेसब्री से इंतजार करुंगी.' इतना कह कर उसने मेरे होठों को चूमा और मेरे निचले होंठ को चूसने लगी. मैंने जैसे-तैसे खुद को संभाला और आशु के होठों को चूसने लगा. दो मिनट बाद मैं उठ खड़ा हुआ, अपने कपडे बदले और फिर ऑटो कर के पहले आशु को हॉस्टल छोडा. फिर उसी ऑटो में मैं स्टेशन आ गया, पर आशु मेरी चिंता भाँप गई थी इसलिए उसने आधे घंटे बाद ही मुझे कॉल कर दिया. पर ये कॉल उसने अपने मोबाइल से नहीं बल्कि सुमन के नंबर से किया था;
मैं: हेल्लो?
आशु: आप पहुँच गए स्टेशन?
मैं: हाँ... बस अभी कुछ देर हुई.
आशु: अकेले हो? कुछ बात हो सकती है?
मैं: हाँ बोलो?
आशु: वो मुझे आपसे कुछ पूछना था. एकाउंट्स को ले कर.
और फिर इस तरह उसने मुझसे सवाल पूछना शुरू कर दिये. पार्टनरशिप एकाउंट्स में उसे जे एल पी पर डाउट थे. हम दोनों बात ही कर रहे थे की वहाँ सर और मैडम आ गये. अब चूँकि वो मेरे पीछे से आये थे तो उन्होंने मेरी जे एल पी को लेके कुछ बातें सुन ली थी और वो ये समझे की मैं अपने स्टूडेंट से बात कर रहा हु. जिस बेंच पर मैं बैठा था उसी पर जब उन्होंने सामान रखा तो मैं चौंक गया और आशु को ये बोलके फ़ोन काट दिया की मैं थोड़ी देर बाद कॉल करता हु.
नितु मैडम: अरे! तुम तो ऑन-कॉल भी पढ़ाते हो?
ये सुन कर मैं और मैडम दोनों हँसने लगे पर सर को ये हँसी फूटी आँख न भाई.
सर: अच्छा सागर सुनो, मैं नहीं जा पाउँगा तो ऐसा करो तुम और नितु चले जाओ. वहाँ से तुम्हें अँधेरी वेस्ट जाना है, वहाँ तुम्हें रियान इन्फोटेक जाना है जहाँ पर एक टेंडर के लिए मीटिंग रखी गई हे. पी. पी. टी. मैं तुम दोनों को ईमेल कर दूँगा, ठीक है? राखी तुम दोनों को वहीँ मिलेगी.
मैंने जवाब में सिर्फ हाँ में गर्दन हिलाई और सर ने मुझे टिकट का प्रिंटआउट दे दिया. इतना कह कर सर चले गए और मैडम और मैं उसी बेंच पर बैठ गये. मैडम ने तो कोई किताब निकाल ली और वो उसे पढ़ने लगी और इधर आशु ने फिर से फ़ोन खनखा दिया और मैं थोड़ी दूर जा कर उससे बात करने लगा. जब मैंने उसे बताया की मैडम और मैं एक साथ जा रहे हैं तो वो नाराज हो गई.
आशु: आपने तो कहा था सर जा रहे हैं तो ये मैडम कहाँ से आईं?
मैं: यार वो बॉस की वाइफ हैं, कुछ काम से वो नहीं जा रहे इसलिए उन्हें भेजा हे.
आशु: उनका नाम क्या है?
मैं: नितु मैडम
आशु: उम्र?
मैं: मुझे नही पता… शायद ३०, ३५… मुझे नही पता! (मैंने झुंझलाते हुए कहा.)
आशु: वो दिखती कैसे है?
मैं: क्या?
आशु: मेरा मतलब, उसकी कदकाठी कैसी हे. जवान हे क्या....?
मैं: तुम पागल हो? वो मेरे बॉस की बिवी हे.
आशु: वो सब मुझे नहीं पता, दूर रहना उससे.
मैं: ओह हेल्लो मैडम! मैं उनके साथ ऑफिस ट्रिप पर जा रहा हूँ घूमने नहीं जा रहा.
आशु: जा तो उसी के साथ रहे हो ना?
मैं: पागल जैसे तुम सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं हे. वो बस मेरी बॉस है!
आशु आगे कुछ बोलने वाली थी पर फिर चुप हो गई और फ़ोन रख दिया. साफ़ था वो जल भून कर राख हो गई थी. मैं वापस बेंच पर बैठने जा रहा था की उसने मुझे वीडियो कॉल कर दिया. मैंने क्योंकि हेडफोन्स पहने थे तो मैंने कॉल उठा लिया.
आशु: मुझे देखना है आपकी नितु मैडम को?!
मैं: तू पागल है क्या? किसी ने देख लिया तो?
आशु: आपको मेरी कसम!
मैंने हार मानते हुए चुपके से दूर से आशु को नितु मैडम का चेहरा दिखाया. ठीक उसी समय आशु ने मेरी तरफ देखा और हड़बड़ी में मैंने कॉल काट दिया. पर मैडम को लगा की मैं सेल्फी ले रहा हूँ इसलिए उन्होंने बस मुस्कुरा दिया.आशु ने आग बबूला हो कर दुबारा कॉल किया और मुझ पर बरस पड़ी;
आशु: ये किस एंगल से मैडम लग रही हैं? ये तो मॉडल हैं मॉडल! मैं ना..... आह! (आशु गुस्से में चीखी|)
मैं: जान! एक टेंडर के लिए....
आशु: (मेरी बात काटते हुए) उससे दूर रहना बता देती हूँ! वरना उसका मुँह नोच लुंगी!
इतना कह कर उसने फ़ोन काट दिया. मुझे उसकी इस नादानी पर प्यार आ रहा था और मैंने उसे दुबारा फ़ोन किया और उसके कुछ बोलने से पहले ही मैंने उसे फ़ोन ओर एक जोरदार 'उउउउम्मम्मम्मम्माआआअह्ह्ह्हह' दिया. ये सुनते ही वो पिघल गई और मैंने उसे यक़ीन दिला दिया की उसे चिंता करने की कोई जरुरत नहीं हे. मुझ पर सिर्फ और सिर्फ उसका अधिकार है!
आशु से बात करके मैं वापस बेंच पर बैठ गया और फ़ोन में गेम खेलने लगा. मेरे और मैडम के बीच अब भी कोई बातचीत नहीं हो रही थी. कुछ देर बाद ट्रैन आ गई और प्लेटफार्म पर लग गई. पर दिक्कत ये थी की मेरी टिकट कन्फर्म नहीं थी और मैडम वाली टिकट कन्फर्म तो हुई पर वो सर के नाम पर थी. कंजूस सर ने स्लीपर की टिकट बुक की थी. जबकि फर्स्ट ऐ.सी. में टिकट्स खाली थी. लखनऊ से मुंबई की ३२ घंटे की यात्रा वो भी बिना कन्फर्म टिकट के, ये सोच कर ही थकावट होने लगी थी मुझे. जैसे-तैसे मैंने मैडम का बैग तो उनकी सीट पर रख दिया और मैं इधर-उधर जा कर कोई खाली सीट खोजने लगा. दूसरे कोच में मुझे एक सीट खाली मिली और मैं उधर ही अपना बैग ले कर बैठ गया.करीब पंद्रह मिनट बाद मुझे मैडम का कॉल आया;
नितु मैडम: सागर? कहाँ हो तुम?
मैं: जी...मैं S२ में हूँ, वहाँ कोई सीट खाली नहीं थी इसलिए.
नितु मैडम: अरे गाडी चलने वाली है, आप जल्दी आओ यहाँ!
मुझे बड़ा अजीब लगा पर मैंने उनसे कोई बहस नहीं की और उठ कर चल दिया. अब मैं जहाँ बैठा था वहाँ शायद मुझे बर्थ मिल भी जाती पर मैडम ने बुलाया तो मुझे अपनी विंडो सीट छोड़के मैडम के पास वापस जाना पडा. जब में S१ कोच में पहुँचा तो देखा वहाँ दो हट्टे-कट्टे आदमी मैडम की बर्थ पर बैठे हैं, तब मुझे समझ आया की वो क्या कह रहीं थी. मैं वहाँ पहुँचा तो मुझे देखते ही वो दोनों आदमी समझे की मैं मैडम का बॉयफ्रेंड हूँ और उनमें से एक उठ कर कहीं चला गया.में ठीक मैडम की बगल में बैठ गया पर मेरे और उनके जिस्म के बीच गैप था. 'ये बैग आप सीट के नीचे रख दो.' मैडम ने कहा तो मैंने वैसा ही किया और चुप-चाप दूसरी खिड़की से बाहर देखने लगा. ट्रैन चल पड़ी और इधर मैडम मेरे बिलकुल नजदीक आ गईं और मेरे कान में खुसफुसाईं; 'आपकी सीट कन्फर्म हुई?' मैं उनकी इस हरकत से चौंक गया और मैंने ना में सर हिलाया.
'टी टी ई से बात करें?' मैडम ने कहा तो मैंने हाँ में सर हिलाया. मैडम के इतना करीब आने से मुझे उनके परफ्यूम की महक आने लगी थी और वो बहुत जबरदस्त थी. मदहोश कर देने वाली, पर ये आशु का प्यार था जो मुझे बहकने नहीं दे रहा था. कुछ देर बाद टी टी ई आया और उसे देखते ही वो आदमी जो मेरी बगल में बैठा था उठ के भाग खड़ा हुआ. मैडम ने चुपके से मेरे हाथ में ५०० के चार नोट पकड़ा दिए थे और मुझे ये देख कर बहुत हैरानी हो रही थी. इधर टी टी ई ने जब हम से टिकट माँगी तो मैंने उसे टिकट दिखाई तो वो बोला की; 'सागर कौन है?' मैंने हाँ में सर हिला कर बताया. फिर उसने कहा; 'आप मैडम किसी और की टिकट पर सफर कर रही हैं?' अब मुझे कैसे भी बात संभालनी थी. तो मैंने ही कहा; 'सर वो दरअसल एक गड़बड़ हो गई थी. मैंने मैडम की जगह सर का नाम लिख दिया था? आप चाहे तो देख लीजिये मैडम का पॅन कार्ड उसमें इनके हस्बैंड का नाम वही है जो टिकट में लिखा हे.”
वो तुरंत मेरी चालाकी भाँप गया और बोला; 'बेटा, चलो तुमने नाम गलत भरा पर लिंग भी गलत भर दिया? महिला को पुरुष लिख दिया?' अब ये सुन कर तो सब हँस पडे. उन्होंने हँसते हुए कहा; 'कोई बात नहीं, पति की टिकट पर पत्नी ही तो सफर कर रही हे.' अब वो जाने लगा तो मैडम ने ही उन्हें रोका; 'सर दो मैं से एक ही टिकट कन्फर्म हुई है आप प्लीज देख लीजिये एक और टिकट कन्फर्म हो जाए?'
'सॉरी मैडम पर सिवाए फर्स्ट ऐ.सी. के सारे फुल हे. कहो तो मैं फर्स्ट ऐ.सी. की दो टिकट बना दूँ?' अब ये सुन के तो मैं ने सोचा की भाई ये ३२ घंटे बैठे-बैठे ही निकलेंगे. पर मैडम तपाक से बोलीं; 'ठीक है टी टी ई साहब आप दो टिकट बना दिजिये.' अब ये देख मैं हैरानी से मैडम को देखने लगा. उसने मैडम से ७८००/- माँगे, तो मैडम ये सुन कर थोड़ा सोच में पड़ गई. अब मैं उठ खड़ा हुआ और टी टी ई साहब को थोड़ा मस्का लगाने लगा और उन्हें थोड़ा दूर ले जा कर कहा; 'सर प्लीज थोड़ा रहम करो! देखो यही टिकट लेनी होती तो मैं बुक करा देता. कुछ तो कन्सेशन करो? मैं अयोध्या रहता हूँ, आपको कुछ भी काम हो तो आप कहना. प्लीज सर!' अब ये सुन कर वो थोड़ा तो नरम हो गया.'अरे तुम तो हमारे गाँव वाले निकले!' ये कहते हुए हमारी बातें शुरू हुई, फिर मैने उसकी बात अपनी पिताजी से करवाई और तब पता चला की ये मेरे दोस्त प्रकाश चौबे के छोटे चाचा हे. उन्होंने मुझसे मेरा मोबाइल नंबर लिया और अपना नंबर भी दिया और फिर दो टिकट भी बना दिए जब पैसे की बात आई तो उन्होंने कहा है जो मन करे वो दे दो. मैंने दो हजार मैडम वाले और हजार अपनी जेब से उन्हें दे दिए और वो आगे चले गये.
वापस आ कर मैंने मैडम से कहा की हमें आगे जाना है, इधर मैडम भी होशियार निकली उन्होंने ५००/- में अपनी टिकट एक आंटी को बेच दे दी. हम फर्स्ट ऐ.सी में अपने कम्पार्टमेंट में घुसे तो अंदर घुसते ही मैडम घबरा गई. अंदर दो लौंडे बैठे थे और शक्ल से ही चरसी लग रहे थे. मैडम की घबराहट उनके चेहरे से ही झलक रही थी तो मुझे ही आगे आना पडा. मैंने मैडम को बहार रुकने का इशारा किया और सामान उठा कर सीट के नीचे डाला और फिर उन्हें अंदर आने को कहा. जैसे ही दोनों ने मैडम को देखा तो ठरकपना उनके चेहरे पर आ गया और उनकी शक़्लें देख मैं गंभीर हो गया.'आप दोनों झाँसी जा रहे हैं?' उनमें से एक ने बात शुरू की तो मैंने जवाब देते हुए नहीं कहा और बात आगे बढे उसके पहले ही मैडम मुझसे सट कर बैठ गईं और खिड़की के बाहर देखने लगी. फिर मेरी तरफ मुँह कर के धीमी आवाज में बोलीं की उन्हें भूक लगी हे. उनका व्यवहार अचानक से गर्लफ्रेंड वाला हो गया था और मुझसे इससे बहुत अनकम्फर्टेबल महसूस हो रहा था. मैंने बैग से आशु के पैक किये हुए सैंडविच निकाला और उन्हें दे दिया. वो बाहर मुँह कर के खाने लगीं, इधर उन दोनों कमीनों की नजर अभी भी उन पर टिकी हुई थी. मैं समझ सकता था की उन्हें कितना अनकम्फर्टेबल महसूस हो रहा है पर मैं इस समय कुछ नहीं कर सकता था. बस हर थोड़ी-थोड़ी देर में उन दोनों की हरकत पर नजर रखे हुए था. वो दोनों भी कभी फ़ोन में कुछ देखते, कभी एक दूसरे से बात करते और मेरी नजर बचा-बचा के नितु मैडम को देखते. मैडम उनकी सारी हरकतें कनखी नजरों से देख रही थी और गुस्सा उनके चेहरे पर झलक रहा था. उनमें से एक ने मैडम की तरफ देखते हुए अपने लिंग पर हाथ रख दिया और उसे दबाने लगा. इससे पहले की मैं उसे कुछ कहता मैडम को अचानक से क्या सुझा की उन्होंने अपना सर मेरी जांघ पर रख दिया और उन दोनों की तरफ पीठ कर के लेट गई. इससे पहले की वो मैडम को पीछे से देख पाते मैंने उनपर एक चादर डाल दी. पर मेरी हालत ख़राब हो गई थी. मैडम का सर मेरे लिंग से कुछ ही दूर था और उनकी सांसें मुझे उस पर साफ़ महसूस हो रही थी. लिंग अब फुल ताव में अकड़ने लगा था और मुझे डर लग रहा था की अगर मैडम को ये महसूस हो गया तो वो मेरे बारे में क्या सोचेंगी. मैं मन ही मन उन कमीनों को गाली दे रहा था. न वो हरामी यहाँ होते और ना ही मैं इस परिस्थिति में फँसता.मुझे समझ नहीं आ रहा था की मैं अपने दोनों हाथों को कहाँ रखूँ? दायाँ हाथ तो मैंने अपने दायीं तरफ सीट पर रख लिया पर बायाँ हाथ कहाँ रखूँ? मैडम के सर पर रख नहीं सकता था और न ही उसे अपने बाएं घुटने पर रख सकता था. तो मैंने उसे मोड़ के अपने सर के पीछे रख लिया और पीछे तक लगा कर बैठ गया.मेरे मन में मैडम के लिए कोई गंदे विचार नहीं थे पर लिंग का दिमाग तो होता नहीं, उसे गर्मी मिली नहीं की वो टनटनाते हुए अकड़ गया.इधर ये दोनों जल भून के राख हो चुका था. और मन ही मन मुझे गाली दे रहे होंगे की क्यों मैंने मैडम के जिस्म को ढक दिया.
थोड़ी देर में आशु का फ़ोन आया और अब मैं अजब दुविधा में फँस गया था! अगर उठ के जाऊँ तो मैडम अकेली रह जाएँगी और ये भूखे भेड़िये कोई बदसलूकी न करें उनके साथ और यहाँ बैठा रहा तो फ़ोन पर बात कैसे करूँ आखिर मैंने फ़ोन उठा लिया और हेडफोन्स कान में लगाए हुए ही उससे बात करने लगा, पर वो मेरी हालत समझ गई और पूछने लगी की मैं क्या कर रहूँ? मैंने बस 'कुछ नहीं' कहा, पर वो समझ गई और जोर देने लगी की मैं उसे बताऊँ तो मैंने उसे बस ये कह के टाल दिया की मैं 'बाद में कॉल करता हु.' उसने फिर से मुझे कॉल कर दिया पर मैंने उठाया नही.
नौ बजे एक रेल कर्मचारी आया और उसने मुझसे खाने को पूछा तो मैंने उसे दो थाली बोल दी और सामने वाले एक लड़के ने भी दो थाली बोल दी. उनमें से एक बाहर गया हुआ था और जब वो आया तो उसकी आँखें सुर्ख लाल थी. मतलब साफ़ था की वो अभी माल फूँक कर आया हे. मैंने अभी तक मैडम को छुआ नहीं था पर जब अटेंड खाना ले कर आया तो मुझे उन्हें उठाना था. अब मैं उनका नाम नहीं ले सकता था. भले ही वो उन दोनों को ये जता रहीं हों की हम दोनों पति-पत्नी हे. उन्हें छू भी नहीं सकता था अब हार मानते हुए मैंने सोचा की उनकी दायीं बाजू को छू कर उन्हें उठाऊँ की तभी टी टी ई वहाँ से गुजरे और उन्होंने हम दोनों को इस हालत में देख लिया. मेरी बुरी तरह फटी की अब मैं गया काम से पर उन्होंने कुछ नहीं कहा बस मुस्कुरा दिए और चले गये. मैंने मैडम के बाजू को थोड़ा हिलाया और उन्हें उठा दिया. वो उठीं और अपने होठों को पोछने लगी. मैंने अपनी पैंट पर देखा तो मेरे लिंग के पास से गीली हो चुकी थी. सोते समय मैडम के मुँह से लार निकली थी जिसने मेरे लिंग के पास गीला निशान बना दिया था. जब उनकी नजर वहाँ पड़ी तो वो बुरी तरह झेंप गईं और नजर चुरा कर बाथरूम चली गई. इधर उन दोनों छिछोरों ने जब ये देखा तो वो भी गन्दी हंसी हँसने लगे. मैंने मैडम वाली चादर ही उठा ली और पैंट के ऊपर डाल ली. जब मैडम आ गईं तो मैं हाथ धोने जाने लगा तो मैडम मुझे देख कर फिर से शर्मा गईं और वापस सीट पर सर झुका कर बैठ गई. मैं हाथ धो कर आया तो देखा वो दोनों हरामी खुसफुसा रहे थे; 'देख रहा है?! मियाँ-बीवी का प्यार? इसीलिए कह रहा था की तू भी शादी कर ले!' मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही मैडम ने इशारे से मुझे अपने पास बैठने को कहा और हम दोनों खाना खाने लगे.
खाना खाने के बाद भी उन कमीने लड़कों की नजरें मैडम पर बनी हुई थी और मैडम बस खिड़की से बाहर देखे जा रही थी. मुझे अब उन पर तरस आने लगा था और मैं मन ही मन सोचने लगा की क्या करूँ? मैंने अपने बैग से लैपटॉप निकाला और उसमें हेडफोन्स कनेक्ट कर के उन्हें दिया. वो हैरानी से मुझे देखने लगी पर जब मैंने उन्हें मूवी देखने को कहा तो वो मुस्कुरा दीं और मूवी प्ले करके देखने लगी. मैंने ऊपर से दो तकिये उतार के उनको दे दिए जिन्हें मैडम ने अपनी गोद में एक के ऊपर एक रख लिया और सबसे ऊपर उन्होंने लैपटॉप रख लिया. इतनी ऊंचाई होगई थी की मैडम आराम से मूवी देख सकें और उन लड़कों की आँखों से अपने जिस्म को बचा सके. अब तो वो दोनों मुझे देखने लगे की क्यों मैंने उनके हुस्न के दीदार में बाधा डाल दी. मैडम भी मेरी चालाकी समझ चुकी थी और उन्होंने मुझे नजर बचा के दबी आवाज में थैंक यू कहा और मैंने बस हाँ में गर्दन हिला दी. मैं भी पाँव ऊपर कर के बैठ गया और आशु को मैसेज करने लगा. मैंने उसे अभी जो भी कुछ हुआ उसके बारे में कुछ नहीं बताया था वरना वो फिर कोई काण्ड कर देती. मैंने उसे सॉरी कहा की दरअसल मैं उस समय मैडम से बात कर रहा था इसलिए फ़ोन नहीं उठा पाया पर वो मुझसे रूठ चुकी थी और थोड़ी ही देर में ऑफलाइन चली गई.
मूवी देख कर मैडम हँस रही थी और उनकी हंसी मन्त्र-मुग्ध करने वाली थी पर मेरा दिल तो अब किसी और का हो चूका था. इतने साल से ऑफिस में काम कर रहा था पर मैडम को कभी इस तरह मैंने मुस्कुराते हुए नहीं देखा था. वो हमेशा ही ऑफिस में काम करती रहती थी और शायद ही कभी मुस्कुराईं हो! खेर अब चूँकि आशु मुझसे नाराज थी तो बात करने वाला कोई था नहीं मेरे पास, तो मैं बैठे-बैठे ऊबने लगा था. मैडम ने मेरी परेशानी भाँप ली और वो मेरे कंधे पर सर रख चिपक गईं और लैपटॉप को थोड़ा टेढ़ा कर लिया, हेडफोन्स का एक सिरा उन्होंने मुझे दे दिया. आज तक सिर्फ एक आशु थी जिसने कभी मेरे कंधे पर अपना सर रखा हो अब ऐसे में मैडम के सर रखने से मुझे बहुत ही अजीब महसूस हो रहा था. वो दोनों लड़के मैडम के इस तरह से बैठने से आहें भरने लगे और मैंने गौर किया तो पाया की मैडम की एक जाँघ उन्हें दिखने लगी थी. अब चूँकि मैडम ने चूड़ीदार पहना था और उनकी कुर्ती शॉर्ट थी तो उनके जिस्म का उभार उन्हें साफ़ दिख रहा था. मैंने मेरे बगल में पड़ी चादर को उठा के उन पर डाला और तब मैडम को एहसास हुआ की वो लौंडे क्या देख रहे थे और उन्हें बहुत मायूसी होने लगी. मैंने मूवी को फ़ास्ट-फॉरवर्ड कर के हँसी वाला सीन लगा दिया जिसे देख कर मैडम मुस्कुरा दी. वो समझ गईं थीं की मैंने ये सिर्फ उन्हें खुश करने के लिए किया था. रात के बारह बजे होंगे और अब मुझ पर नींद हावी होने लगी थी.मुझे बड़ी जोर से नींद आ रही थी. मेरी उबासी सुन कर वो समझ गईं और उन्होंने मुझे अपनी गोद में सर रख कर लेटने को कहा तो मैं फिर से हैरान हो गया.मैंने ना में सर हिलाया और वैसे ही बैठा रहा, जेब से एक च्युइंग गम निकाली और चबाने लगा. रैपर मैंने जेब में डाल लिया, फिर मैडम ने भी एक गम माँगी तो मैंने उन्हें भी दे दी. उनका ध्यान मूवी में लगने से उनका अनकंफर्टेबल लेवल कम हो चूका था.
रात एक बजे गाडी झाँसी पहुँची और ये दोनों लौंडे अपना सामान ले कर उत्तर गए और तब जा कर मैडम का सर मेरे कंधे से उठा. उनके जाते ही दो ऑन्टी केबिन में घुसीं और सामने वाली बर्थ पर बैठ गईं और अपना सामान सेट करने लगी. मैंने भी मैडम से ऊपर जा के सोने की इजाजत माँगी तो उन्होंने हँसते हुए इजाजत दे दी. सामने वाली एक आंटी भी हँसने लगी. मैंने चादर बिछाई और लेट गया और घोड़े बेच के सो गया.पौने तीन बजे मैडम ने मुझे उठाया तो मैं चौंक कर उठ गया; 'सॉरी सागर! वो मुझे ....जाना हे.' मैं तुरंत समझ गया की उन्हें वाशरूम जाना है और इतनी रात को ट्रैन में उन्हें अकेले जाने से डर लग रहा हे. मैं जूते पहनके उनके साथ बाथरूम तक गया और फिर वापस उन्ही के साथ आ गया.वापस आने के रास्ते में वो शर्मिंदा महसूस कर रहीं थीं पर मैंने ''इट्स ऑल राईट मॅडम, आई कॅन अंडर स्टँड.” कह के बात खत्म कर दी.
सुबह ८ बजे मैं उठा और अभी इटारसी स्टेशन आया था और रेल कर्मचारी चाय ले कर आया था. मैडम ने उसे रात के खाने और चाय के पैसे दिए और मैं भी नीचे उतर आया और फ्रेश हो कर मैं चाय पीने लगा;
नितु मैडम: वो टिकट कितने की थी?
मैं: ३०००/- की. (मैंने चाय की चुस्की लेते हुए कहा.)
नितु मैडम: वो तो ८०००/- माँग रहा था?
मैं: वो दरअसल उनसे बात की तो पता चला की वो मेरे ही गाँव के हैं और मेरे ही दोस्त के चाचा हे.
नितु मैडम: आपका गाँव कहाँ है?
मैं: अयोध्या
नितु मैडम: अरे वाह! कभी बताया नहीं आपने?
मैं: जी कभी टॉपिक ही नहीं छिड़ा. पर मैडम सर को पता चला तो वो बहुत गुस्सा होंगे?
नितु मैडम: उन्हें बोलने की कोई जरुरत नही. उन्हें जरा भी समझ नहीं है, बस सारा टाइम हुक्म चलाते रहते हे. अचानक से मुझे कहा की तुम चली जाओ, भला ये कोई बात हुई?
उन्हें सर पर बहुत गुस्सा आ रहा था और मैं उनकी किसी भी बात का जवाब हाँ या नहीं में दे रहा था.बस चुप-चाप सुने जा रहा था. दस मिनट तक उनके मन की भड़ास निकलती रही और मैं सर झुकाये सुनता रहा की तभी वो दोनों आंटी आ गईं जो फ्रेश होने गईं थी. उनके आते ही मैडम चुप हो गईं और मेरा सर झुका होने से उन्हें लगा की मैडम मुझे डाँट रही हे. 'अरे बेटा क्या हुआ? काहे झगड़ रहे हो?' पहली आंटी बोली.
'अरे मियाँ-बीवी तो ये खट-पट चलती रहती हे.' ये कह के दूसरी आंटी हँसने लगी. और ठीक उसी समय वही टी टी ई आ गया और उसने ये मियाँ-बीवी वाली बात सुन ली. अब इससे पहले मैं कुछ बोलता मैडम ही बोल पड़ी; 'आंटी मैं झगड़ नहीं रही थी. आपके आने से पहले यहाँ दो छिछोरे बैठे थे और वो बस मुझे घूरे ही जा रहे थे.' इसी बात पर हम बात कर रहे है
मैं बिना कुछ बोले ही वहाँ से उठ के बाहर आ गया और आशु को फ़ोन करने लगा.
मैं: गुड मॉर्निंग जान!
आशु: जा के अपनी नितु मैडम को बोलिये.
मैं: यार... प्लीज .... बात तो....
आशु: बात भी आप जाके नितु मैडम से करिये. मुझे कॉलेज जाना हे.
इतना बोल कर उसने कॉल काट दिया. मैं जानता था की वो फ़ोन पर नहीं मानने वाली. टी टी ई ने पीछे से मेरी बातें सुन ली थी और वो आ कर मुझसे चुटकी लेने लगे; 'लगे रहो!' मेरा जवाब सुनने से पहले ही वो आगे चले गये. खेर रात दस बजे ट्रैन मुंबई छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस पहुँची और मैं दोनों का सामान ले कर उतर गया.टैक्सी वाले से अँधेरी वेस्ट के लिए पूछा तो कोई भी जाने को तैयार नहीं था. मैंने ओला पर ढूंढा तो एक मिल गया पर अब स्टे की दिक्कत थी. टैक्सी वाले ने अपने जान-पहचान के ६-७ होटल दिखाए पर कहीं भी रूम खाली नहीं था और जहाँ था भी वो सिर्फ सिंगल रूम था. बड़ी मुश्किल से एक होटल मिला और मैडम वहाँ पूछताछ करने गईं और मैं बाहर ही रुक गया टैक्सी वाले के पास.
मैडम ने अंदर से मुझे आवाज दी; 'सागर जी आ अाइये.' मैंने शुक्र मनाया की कम से कम कमरा मिल गया वरना रात के १ बजे कहाँ मारे-मारे फिरते| टैक्सी वाले को पैसे दे कर मैं उनके पास आया तो उन्होंने मुझे रजिस्टर में साइन करने को कहा. जब मैंने डिटेल पढ़ी तो मैं हैरान रह गया.मैडम ने मिस्टर सागर मौर्य अँड मिसेस नितु मौर्य लिखा था. अब ये देख कर मैंने मैडम की तरफ देखा तो वो बड़ी नार्मल लगीं मुझे! मैंने साइन तो कर दिया पर दिल अंदर से धक-धक करने लगा था. कमरे के अंदर पहुँचा तो लाइट्स मध्यम थीं, बिलकुल रोमांटिक वाली. मैंने तुरंत ही कमरे की ट्यूब लाइट जला दी और जब मैडम की तरफ देखा तो उनकी सांसें बहुत तेज थी. वो सीधा बाथरूम में घुस गईं और आधे घंटे तक वहीँ रही. अब ज्यादा सोचने की जरुरत नहीं थी की वो वहाँ क्या कर रहीं हैं, मैंने इस मौके का फायदा उठाया और तुरंत अपने कपडे चेंज कर लिए. फिर मैं सोफे पर अपना बिस्तर लगाने लगा. जब मैडम बाहर आईं तो वो मुझसे नजरें चुरा रहीं थीं और मेरी तरफ पीठ किये हुए ही बोलीं; 'आप यहाँ बेड पर सो जाओ वहाँ सोफे पर कैसे सोओगे?'
'इट्स ऑल राईट मॅडम! आई विल म्यानेज.” मैंने भी उनकी तरफ देखे बिना ही कहा.
“ऊम्म.. अॅक्च्युअली ..... इनके पास बस एक ही कमरा बचा था और देखो न हम पिछले एक घंटे से हॉटेल धुंढ रहे हे.... रात भी बहोत हुई हे....... इसलिये.... मैडम को आगे बोलने में बहुत हिचकिचाहट हो रही थी.
“आई कॅन अंडर स्टँड मॅडम!” इतना कह कर मैंने कमरे की लाइट बंद की और लेट गया.कुछ देर बाद मैडम उठीं और कपडे बदलने के लिए बाथरूम में घुस गईं, लाइट के स्विच की आवाज से मैं चौंक कर उठ गया और देखा तो मैडम अभी बाहर आईं थीं और वो सिल्क की शॉर्ट नाइटी जो उनके जिस्म से इस कदर चिपकी हुई थी की क्या कहूँ? उनके कंधे नंगे थे और उन पर बस एक पतली सी स्ट्रिंग थी. डीप कट जिससे उनकी वक्षो की घाटी साफ़ दिख रही होगी. अब चूँकि मैं दूर था तो वो घाटियाँ नहीं देख सकता था. अब ये सब देखते ही मेरे लिंग में तनाव आने लगा था और मैं मुँह दूसरी तरफ कर के खुद पर काबू करने लगा. मैंने आशु के बारे में सोचना शुरू कर दिया. उसका मासूम चेहरा याद करने लगा, पर उसे याद करते ही मुझे कल शाम का वाक्य याद आ गया.अब तो लिंग अकड़ के पूरा खड़ा हो गया और मैंने जान बुझ कर दूसरी तरफ करवट ली और मैं लिंग की अकड़न छुपाने लगा. दस मिनट बाद मुझे कमरे में शराब की महक आने लगी और ये ऐसी महक थी जिसने मेरे दिमाग में कोहराम मचा दिया. मन बेचैन होने लगा और मैं उस खुशबु का पीछा करते हुए उठ बैठा.
मैडम बिस्तर पर बैठीं थी और उनके हाथ में एक पेग था! अब ये देखते ही मुझे डर लगने लगा की कहीं कुछ गलत न हो जाये. मैडम ने जब मुझे बैठे हुए देखा तो वहीँ से मुझसे पूछा; 'आप पियोगे?' मैंने ना में सर हिलाया पर कमरे में इतनी रौशनी नहीं थी की वो मेरी गर्दन हिलती हुई देख सके. इसलिए उन्होंने दुबारा पूछा पर मेरे जवाब देने से पहले ही मेरे क़दमों में जैसे जान आ गई और वो अपने आप ही उनकी तरफ चल पडे. पर दिमाग ने जैसे अंतर् आत्मा को झिंझोड़ा और अपना वादा याद दिलाया. मैंने “नंही, शुक्रिया मॅडम” कहा और बाथरूम में घुस गया, वाशबेसिन के सामने खड़े हो कर अपने आप को देखने लगा और अपने मन पर काबू करने लगा' बार-बार खुद को आशु को किया वादा याद दिलाने लगा, पर मन शर्म की खुशबु से बावरा हो गया था. मन कह रहा था की एक बार चीट करने में दिक्कत ही क्या है?! मैंने अपने मुँह पर पानी मारना शुरू कर दिया ताकि खुद को किसी तरह संभाल सकू. एक दृढ निश्चय कर मैं बाहर आया और वापस सोफे पर लेट गया और चादर ओढ़ ली पर मन साला काबू में नहीं आ रहा था. मैंने करवटें बदलनी शुरू कर दी. मैडम ने इसका कुछ अलग ही मतलब निकाला, 'सागर दीं काउच इज नॉट कंफर्टेबल.कम अँड स्लीप ऑन दीं अदर साइड, इट्स नॉट लाईक आई निड दीं व्होल बेड टू माय सेल्फ! वी आर ग्रोनअप अँड नो अवर लिमिट. नो निड टू बी अफ्रेड ऑफ मी!”
“नो मॅडम, इट्स ओके… इट्स अ न्यू प्लेस….उमम्म्म...….” मुझसे बोला नहीं जा रहा था.
“देन कम वी विल टॉक.” उन्होंने बात शुरू करने के लिए कहा.
अब मैं उठा और जा कर उनके सामने खड़ा हो गया तो उन्होंने अपने पास बैठने को कहा तो मैंने पास पड़ी कुर्सी उठा ली और उसे घुमा कर बैठ गया.
नितु मैडम: आप बहुत फॉर्मेलिटी दिखाते हो?
मैं: उमम्म्म...… यू आर माई बॉस, आई एम योवर इम्प्लोयी. हाऊ कॅन आई सीट ऑर स्लीप नेक्स्ट टू यू ऑन अ बेड?
नितु मैडम: शीवरली ???
मैं: येस मॅडम!
नितु मैडम: दॅट इज दीं फर्स्ट टाइम….. फॉर मी! (उन्होंने एक सिप लिया.)
मैं अब उनसे नजरें चुरा के इधर-उधर देख रहा था.
नितु मैडम: सो डू यू ह्याव अ गर्लफ्रेंड?
मैं: नो
नितु मैडम: वाव! हाऊ कम यू आर सिंगल? यू आर सच अ जेंटलमन?
मैं: उमम्म्म...… आई डोन्ट गेट टाइम!
नितु मैडम: आई नो… आई नो…. दॅट ऐसहोल हसबंड ऑफ माईन इज अल्वेज येलिंग ऑन यू! आई नो….. ब्लडी बास्तर्ड! रुईनिंग एवरीवंस लाइफ…. बट I…(हिक्‍कक्कक..) … वॉन्ट लेट… (हिक्‍कक्कक..)
शराब अब मैडम पर अपने जादू दिखाने लगी थी और उन्होंने हिचकी लेना शुरू कर दिया था.
मैं: उमम्म्म... म्या… मॅडम… इट्स गेटिंग लेट… वी विल टॉक टूमोरो!
पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और आखरी घूँट जैसे तैसे पिया और बाथरूम जाने को उठीं और लड़खड़ाने लगी. मैंने कमरे की लाइट्स जला दी ताकि उन्हें ठीक से दिखाई दे. तब मैंने उन्हें ठीक से देखा. जो शराब का जादू मेरे मन पर हावी था वो खत्म हो गया और लिंग अकड़ने लगा. मैडम अब बाथरूम में घुस गईं थीं, तो मैंने एक गहरी साँस ली और अपने जज्बातों पर काबू करने लगा और सोफे की तरफ घुमा और तभी मेरी नजर बोतल पर पडी. मैडम ने कम से कम तीन पेग मारे थे व्हिस्की के वो भी नीट! अब तो मुझे डर लगने लगा की आज रात जरूर कुछ होगा? ये सोचते हुए मैं एक कदम चला हूँगा की मुझे मैडम के बाथरूम से बाहर आने की आवाज आई और वो गिरने लगी. मैंने भाग कर उन्हें तुरंत थाम लिया पर अब तो गजब ही सीन था! मैंने मैडम को कमर से पकड़ रखा था और वो नीचे को झुकी हुई थी. उनकी नाइटी बिलकुल उनके शरीर से चिपकी हुई थी. जिससे उनके सारे के सारे उभार दिखने लगे थे. उनके वो फुले वक्ष! नाजूक कमर मुझे उनकी तरफ खींचने लगी थी. लिंग तो फूल चूका था और पूरी तैयारी में था की आज उसे कुछ नया मिलेगा चखने को.मगर मेरा मन मेरे काबू में था. मैंने उन्हें सहारा दे कर खड़ा किया, पर मैडम के मन में मेरे लिए कुछ गंदे विचार नहीं थे इसलिए उन्होंने किसी भी तरह की पहल नहीं की थी. मुझे लग रहा था की वो शायद इतने होश में तो हैं की सही और गलत पहचान सके. खेर मैं उन्हें पलंग तक ले आया और उन्हें लिटा दिया और उनके ऊपर चादर डाल दी और वापस आ कर अपने पलंग पर लेट गया.
मे लेटे-लेटे सोचने लगा की ये आखिर हो क्या रहा था मेरे साथ? मेरे मन में उनके लिए कोई गंदे विचार नहीं हैं फिर भी किस्मत क्यों मेरे साथ ऐसा कर रही थी? ट्रैन में उनका मुझे पति बनाने का नाटक! मेरी गोद में सर रख लेट जाना वो भी बिना मुझसे पूछे? ठीक है की उन्हें उन लड़कों की गन्दी नजरों से बचना था पर एटलीस्ट मुझसे पूछा तो होता? फिर होटल के रजिस्टर में मिस्टर सागर मौर्य अँड मिसेस नितु मौर्य लिखना? मुझे अपने साथ बिस्तर पर लेटने को कहना? फिर भले ही वो इसलिए कहा हो की मैं आराम से सो सकूँ! पर हूँ तो मैं पराया ही ना? ऑफिस में उन्होंने सिवाए काम के कभी मुझसे कोई बात नहीं की, प्लेटफार्म पर भी वो कुछ नहीं बोल रहीं थी. पर ट्रैन में बैठते ही वो इतना कैसे बदल गईं? हम दोनों में तो दोस्ती भी नहीं है की मैं इस साब को ये मान कर टाल दूँ की दोस्तों में ये सब चलता हे. ये सोचते-सोचते मैं सो गया और सुबह ८ बजे उठा और देखा तो मैडम अब भी सो रही हे. मैं नाहा-धो के तैयार हो गया.पर मैडम अब भी नहीं उठीं थी.
मैंने एक ब्लैक कॉफ़ी आर्डर की और मैडम को उठाने के लिए उनके कन्धर पर दो उँगलियों से ना चाहते हुए छुआ. पर मैडम नहीं उठीं तो मजबूरन मुझे उन्हें थोड़ा हिलाना पड़ा और वो थोड़ा कुनमुनाने लगीं और अपनी आँखें खोलीं जो ठीक से खुल भी नहीं रही थीं; “ गुड मॉर्निंग मॅडम!” मेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा देख कर उन्हें होश आया और उन्होंने साइड टेबल पर पड़ी अपनी घडी उठाई और टाइम देखा. मैं तुरंत घूम गया क्योंकि मुझे पता था उन्होंने बहुत तंग नाइटी पहनी है और उन्हें इस हालत में शर्म आना तय हे. मेरे घूमते ही मैडम तुरंत बाथरूम में घुस गईं और मैं अपने बैग में लैपटॉप और कुछ फाइल रखने लगा. मेरी पीठ अब भी बाथरूम की तरफ थी. मैडम फटाफट बहार आईं और अपने कपडे ढूंढने लगी. मैं बिना उनकी तरफ मुड़े ही दरवाजा खोल कर बाहर चला गया.
दस मिनट ही मैडम की ब्लैक कॉफ़ी आ गई जिसे मैंने चुप-चाप कमरे में रख दिया और बाहर लॉबी में बैग ले कर आगया.आधे घंटे बाद मैडम भी अपना बैग और लैपटॉप ले कर बाहर आ गईं और मुझसे नजरें चुराती हुई बाहर आ गईं और फ़ोन कर के राखी से पूछने लगीं की वो कहाँ हे. मैडम ने इस समय बिज़नेस सूट पहन रखा था और वो बहुत सुन्दर लग रहीं थी. पर मुझे क्या? मेरे पास तो मेरा प्यार था; आशु! उसके आगे सब फीका था! मैंने ओला बुला ली थी और उसने हमें रियान इन्फोटेक छोडा. वो एक बहुत बड़ी बिल्डिंग थी. जैसे की फिल्मों में दिखाया जाता हे. दसवीं मंजिल पर पहुँचे तो वहां का नजारा बिलकुल कॉर्पोरेट वाला था. सभी लोग वहाँ बिज़नेस सूट पहने थे, एक मैं ही था जो वहाँ सिर्फ टाई पहने आया था. मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे की मैं वहाँ इंटरव्यू दे ने आया हु. मैं अभी उस कॉर्पोरेट कल्चर को महसूस करने में बिजी था की पीछे से राखी ने आ कर मेरी पीठ पर हाथ रखा और मैं एक दम से पलटा.
 
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ये राखी वही लड़की थी जो पहले मेरे ऑफिस में काम करती थी और जिसे मैं आशु से प्यार होने से पहले पसंद करता था. 'हाई सागर! हाऊ आर यू?”
“आई एम फाइन, हाऊ यू डूयिंग? हाऊ'ज योवर न्यू जॉब?” मैंने पूछा.
“आई ऑलरेडी रिजाईन, आई विल बी जोईनिंग सर अगैन!” उसने कहा पर आगे कुछ बात होने से पहले ही मैडम आ गईं और वो अब भी मुझसे नजरें चुरा रही थी.
'सागर....अ...आप... यहीं वेट करो!' इतना कह कर मैडम और राखी दोनों अंदर चले गये. मैं सोचने लगा की ये सब हो क्या रहा है? मुझे अगर मीटिंग में शामिल ही नहीं करना था तो मुझे यहाँ लाये ही क्यों? पर फिर मुझे समझ आया की सबने बिज़नेस सूट पहना है और ऐसे में मैं ही सब से अलग दिख रहा था? मुझे ये सोच कर बड़ी निराशा हुई की मेरे पास कोई बिज़नेस सूट नहीं हे. मैं वहीँ वेटिंग एरिया में चुप-चाप बैठ गया और आशु को फ़ोन किया पर उसने फ़ोन काट दिया! मुझे लगा की शायद क्लास में होगी, पर जब वो क्लास में होती तो कॉल काटते समय वो मैसेज कर देती थी. इसबार उसका कोई मैसेज नहीं आया था. मतलब साफ़ था की वो बहुत नाराज हे. पर मैंने जब वहाँ लड़के-लड़कियों को आपस में खुल कर बातें करते देखा तो मैं सोचने लगा की जब वो जॉब करेगी तभी ये सब समझेगी. खेर मीटिंग ३ घंटे चली और मैं बुरी तरह बोर हो चूका था. जब मैडम और राखी बाहर आये तो वो काफी खुश दिखे पर मुझे मायूस देख राखी ने पूछा; 'क्या हुआ सागर?' मैडम फिर से नजरें चुरा कर दूसरी तरफ मुँह कर के जाने लगी. 'कुछ नहीं यार, आज पता चला की इंसान की जिंदगी में कपड़ों की क्या वैल्यू होती है!' ये मैडम ने सुन लिया पर वो कुछ नहीं बोलीं और रिसेप्शन की तरफ चली गई. राखी मेरे पास आ कर बैठ गई और डिटेल पूछने लगी पर मैंने उसकी बात टाल दी. उसने बताया की प्रेजेंटेशन सक्सेसफुल रही और शायद कॉन्ट्रैक्ट हमें ही मिलेगा तभी मैडम आ गईं और उन्होंने हमें कैफेट्रेरिअ चलने को कहा. वहाँ जा कर उन्होंने खाना आर्डर किया पर मेरा मन अब भी बुझा हुआ.
मैडम और राखी मीटिंग के बारे में बात कर रहे थे और मैं बस खिड़की से बाहर देख रहा था. वैसे भी मैं क्या इनपुट देता जब मुझे ये ही नहीं पता था की वहाँ हुआ क्या है? मैं अपनी कॉफ़ी ले कर चुप-चाप उठा और एक काँच की खिड़की के पास आ कर खड़ा हो गया.मेरा बायां हाथ मेरी पैंट की पॉकेट में था और मैं बस वो हरा-भरा नजारा देख रहा था. उम्मीद कर रहा था की शायद आशु कॉल कर दे, उसकी आवाज सुने हुए बहुत टाइम हो गया था. मैंने फ़ोन निकाला और दुबारा मिलाया पर एक घंटी बजते ही उसने फ़ोन काट दिया. आगे मैं कुछ सोचता उससे पहले ही राखी आ गई;
'सागर! कम यार! लेट्स सेलिब्रेट?” मैडम ने लंच आर्डर कर दिया था. मैं वापस आ कर बैठ गया और फिर राखी ने अपनी बातों से मेरा ध्यान लगाए रखा. मैं बस हाँ-ना में मुस्कुरा कर जवाब दे रहा था. लंच के बाद राखी की ट्रैन थी तो वो निकल गई. पर मेरी और मैडम की ट्रैन रात ११ बजे की थी जो हमें लखनऊ अगले दिन रात ३ बजे छोडती. राखी के जाने के बाद हम दोनों अकेले उसी टेबल पर बैठे थे, मैडम अब भी मुझसे नजरें चुरा रही थीं और मुझे रह-रह कर आशु की याद आ रही थी. अब वापस होटल भी नहीं जा सकते थे क्योंकि वहाँ एक कमरे में हम दोनों ही ऑक्वर्ड हो जाते.
बात शुरू करते हुए मैंने मैडम से कहा; “काँग्राचूलेशन मॅडम … फॉर दीं कॉन्ट्रॅक्ट!” जवाब में उन्होंने बस मुस्कुरा दिया और 'शुक्रिया' कहा. “सो मॅडम….शुड वी जस्ट सीट हिअर…. ऑर गो आऊट?” मैडम ये सुन कर हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी. “गो आऊट? व्हेअर?” उन्होंने पूछा. “उमम्म्म... म्म… हाऊ अबाउट बीच?” मैंने थोड़ा उत्साह दिखते हुए कहा. तो उन्होंने वही प्यारी सी मुस्कान दी और वो उठ खडी हुईं. उनकी आवकर्डनेस अब खत्म हो गई थी. मैंने ओला बुक की और और उसने हमें जुहू बीच छोडा.
वहाँ पहुँच कर मैं एक्सपेक्ट कर रहा था की बिलकुल खाली जगह होगी पर ये तो भीड़-भाड़ वाली जगह निकली. मैडम तो जा कर रेत में लगे पाँव बैठ गईं और मैं इधर-उधर टहलता रहा और फोटो क्लिक करता रहा, कुछ सेल्फी भी ली और सब फोटो आशु को भेज दी. उसने सब फोटो देख ली पर जवाब कुछ नहीं दिया. मैं वापस मैडम के पास आया तो वो ढलते हुए सूरज को देख रही थीं और मंद-मंद मुस्कुरा रही थी. मैंने दो नारियल लिए और मैडम की तरफ बढ़ाया, मैडम एक दम से चौंक गईं पर बोली कुछ नही. एक सिप नारियल पानी पीने के बाद मुझे इशारे से वहीँ रेट में बैठने को कहा. मैं भी उन्हीं के साथ बैठ गया पर थोड़ी दूर और ढलते हुए सूरज को देखने लगा. फिर बैठे-बैठे कुछ फोटो खींची और उन्हें एडिट करने लगा. मैडम ने ये देख लिया पर कुछ बोली नहीं, फिर वो कुछ सोचने लगी और अपना मुँह झुका लिया.
“सागर… आई….आई एम सॉरी फॉर व्हॉटएवर हॅपेंड लास्ट नाईट? आई मिसबीहेव…” उन्होंने सर झुकाये हुए कहा, पर इससे पहले वो कुछ आगे कहती मैंने उनकी बात काट दी. 'बट नथिंग हॅपेंड मॅडम! आई मीन वी हेड अ लिटल चाट अँड देन यू वेयर किंडा ड्रंक अँड सेड अ लॉट ऑफ थिंग्ज अबाउट सरअँड देन आई सेड गुड नाईट. दॅट इज इट…. वेल यू दिड अल्मोस्ट फेल डाऊन.” ये सुन कर मैडम के मन से गिलटी वाली फीलिंग खत्म हुई और वो गिरने वाली बात से तो वो थोड़ा हँस भी दी.
“थयांक गॉड! आई ह्यावं बिन लिव्हिंग इन गिल्ट सिन्स मॉर्निंग. आई थोट ...आई मे ह्याव डन समथिंग विच.. अा वाज…..” वो आगे कहते-कहते रुक गई. उन्हें डर था की नशे की हालत में शायद हम दोनों ने संभोग किया होगा.
“आई ह्यावं अनादर कंफेशन टू मेक, आई किंडा टूक ऍडवांटेज ऑफ योवर शीवरली इन दीं पास्ट ४८ अवर! आई मीन दॅट ट्रेन इंसीडेंट, राईटींग अवर नेम एज मिस्टर अँड मिसेस मौर्य… आई एम रियली सॉरी! आई वाज सो स्केअर्ड इन ट्रेन… आई ह्यावं नेवर ट्रॅव्हल अलोन इन माई इंटायर लाइफ अँड ….” उन्होंने सर झुकाये हुए कहा.
“इट्स ओके मॅडम… आई कॅन अंडर स्टँड… आई नो इट वाजंट इंटेंशनल ऑर एनीथिंग.”
“मेरा इरादा तुम्हें छूने का कतई नहीं था. उस समय तुम मेरे लिए सहारा थे और मुझे तुम पर भरोसा था की तुम मेरा कोई गलत फायदा नहीं उठाओगे. वैसे ही भरोसा जो एक दोस्त को दूसरे दोस्त पर होता हे.' ये सुनने के बाद मुझे मेरे रात वाले सवालों का जवाब मिल गया था. मैडम मुझे अपना दोस्त समझती थीं पर ये सब शुरू कैसे हुआ ये जानने को मन बेचैन था. “उमम्म्म...… मॅडम इफ यू डोन्ट माईंड मी आस्किंग, इन ऑफिस वी बेयरली स्पोक! आई मीन वी ओन्ली ह्याड कंवरसेशन रिगार्डींग वर्क. सो अ.. अ... हाऊ दिड वी बीकम फ्रेंड्स?” मैंने थोड़ा झिझकते हुए पूछा.
“वेल आई डोन्ट थिंक अ कंवरसेशन इज रीकवायर्ड टू स्टार्ट अ फ्रेंडशिप.” मैडम का ये जवाब मुझे बहुत ही अटपटा लगा क्योंकि बिना बात किये कोई दोस्त कैसे बन सकता है? पर मैंने आगे उनसे इस बारे में कोई बात नहीं की और चुप-चाप सूरज को ढलते हुए देखने लगा. अचानक ही मैडम खडी हुईं और मुझे अभी अपने साथ चलने को कहा. मुझे लगा की उनका मन भर गया होगा इसलिए वो अब जाना चाहती हैं पर फिर मेरी नजर उनके पैरों पर पडी. मैडम अब भी नंगे पाँव थीं.मतलब वो चाहती थी की मैं उनके साथ वॉक करू. मैंने भी अपने जूते उतारे और नंगे पाँव हम दोनों रेत पर चलने लगे.
“दीं जनरल त्रेट ऑफ अ फ्रेंडशिप इनक्लूड सिमीलर इंटरेस्ट, म्युचुअल रिस्पेक्ट अँड एन अट्याचमेंट टू इच अदर….” ये कहते हुए मैडम एकदम से रुक गईं, ऐसा लगा जैसे वो कुछ ऐसा बोल गईं जो उन्हें नहीं बोलना चाहिए था. मैं अब कुछ-कुछ समझने लगा था की आखिर मैडम के मन में क्या चल रहा है पर कुछ भी कहने से डर रहा था. डर इसलिए रहा था की कहीं मैं गलत निकला तो मैडम के नजर में जो मेरी इज्जत है वो चली जाएगी और एक डर ये भी था की कहीं मेरे कुछ कहने से उनका दिल न टूट जाये. मैंने सोचा की मैं अपनी बात कुछ इस तरह से रखूँगा की उन्हें ये समझ आ जाये की मैं प्यार क्यों नहीं कर सकता.
“यू आर एवन गिविंग मी कंपनी इन वॉकिंग!” इतना कह कर वो हँसने लगी. “सो नाऊ वीआर फ्रेंड्स राईट?” अब मैं इसका जवाब ना तो नहीं दे सकता था. इसलिए मैंने हाँ में सर हिलाया और मैडम ने हाथ मिलाने के लिए अपना दायाँ हाथ आगे बढाया. मैंने अभी उनसे हाथ मिलाया और मुस्कुरा दिया.
हम वॉक करते-करते करीबन एक किलोमीटर दूर आ गए तो मैडम ने चाय पीने के लिए कहा. टपरी वाली मस्त चाय पी कर मैडम में शॉपिंग के लिए बोला और हम जुहू मार्किट आ गए वहाँ मैडम ने कुछ बालियाँ खरीदी और खरीदते वक़्त वो बार-बार मुझसे पूछती की ये कैसी हे. मैंने भी पूरा इंटरेस्ट लेते हुए उन्हें एक बालियाँ उठा के दीं जो उन पर बहुत जच रही थी. उन्हें पहन के तो मैडम खुश हो गईं और मेरी पसंद की तारीफ करने लगी. मेरा मन किया की मैं आशु के लिए भी एक बाली खरीदूं पर मैडम से क्या कहूँगा ये सोच कर रह गया.कुछ दूर आ कर मैडम ने मॉल जाने के लिए कहा और हम एक मॉल में घुसे. वहाँ एक शोरूम में मैडम ने मुझे एक बिज़नेस सूट दिया और ट्राय करने को कहा. अब ये देख कर तो मेरी आँख फटी की फटी रह गई. 'आई एम सॉरी मॅडम! आई कान्ट टेक दिस.”
'क्यों?' मैडम ने सवाल पूछा. “मॅडम इट्स वे टू कोस्टली! I …आई कान्ट अफ्रेड इट!” मैंने दबी हुई आवाज में कहा. “ओह कम ऑन! इट्स अ गिफ्ट… फ्रॉम अ फ्रेंड टू अनादर.”
“नो…नो…नो… मॅडम… आई कान्ट… प्लीज” मैंने उन्हें मना करते हुए कहा. पर उन्होंने जबरदस्ती करते हुए कहा;'इसका मतलब की हम दोस्त नहीं हैं?'
'जी मैंने ऐसा तो कुछ नहीं कहा. दोस्ती में जरुरी तो नहीं की इतना महँगा गिफ्ट दिया जाए?' मैंने उन्हीं की बात उन पर डालते हुए कहा. 'पर मैं अपनी ख़ुशी से दे रही हूँ!'
'जानता हूँ मॅडम पर मैं इतना महँगा गिफ्ट अभी डीजर्व नहीं करता!' मैंने बात खत्म करना चाहा पर मैडम तो जैसे अड़ ही चुकी थी की वो मुझे गिफ्ट दे कर रहेगी. 'क्या डीजर्व नहीं करता?' उन्होंने गुस्से में मेरा हाथ पकड़ के मुझे एक तरफ खड़ा किया और गुस्से में बोली; 'एक लड़का जो पिछले दो दिन से मेरा इतना ख्याल रख रहा है, ट्रैन में मुझे उन लफंगों की गन्दी नजरों से बचाता है! होटल के एक कमरे में मैं नशे में थी फिर भी जिसने मेरा कोई गलत फायदा नहीं उठाया वो ये सूट डीजर्व नहीं करता तो फिर इस दुनिया में शीवरली की कोई कीमत ही नहीं हे.'
'मॅडम तो आप मुझे ये सब करने की कीमत दे रहे हो? अभी तो आप ने कहा की हम दोस्त हैं और अभी आप कीमत की बात कर रहे हैं?'
'मेरा वो मतलब नहीं था..... उस टाइम आपने राखी से कहा था ना की आज पता चला की इंसान की जिंदगी में कपड़ों की क्या वैल्यू होती है, मुझे बहुत बुरा लगा.'
'मॅडम वो....' आगे बोलने के लिए मेरे पास शब्द नहीं थे. मैं बहुत ही गैरतमंद इंसान हूँ और उनसे ऐसा कोई भी तोहफा नहीं लेना चाहता था. शायद वो ये समझ गईं थीं इसलिए वो बोलीं; 'अच्छा एक शर्ट तो ले लो?' अब मुझे बुरा लग रहा था की मैं भला कब तक उन्हें ऐसे मना करू. 'ठीक है पर पैसे मैं दूंगा.'
'अरे ये क्या बात हुई? ठीक है! पसंद मैं करुंगी.' उन्होंने हँसते हुए कहा और मैंने भी और मना नहीं किया. फिर मैडम ने एक नेवी ब्लू कलर की एक शर्ट पसंद की जिसे मैंने उन्हें ट्राय करके दिखाया और पैसे मैंने दिये.
शाम के ६ बजने लगे थे तो मैडम ने पावभाजी खाने के लिए कहा. मैं इधर सोच रहा था की आशु के लिए क्या खरीदूँ, आखिर मुझे याद आया की उसने एक बार मुझसे डायरी माँगी थी. तो पावभाजी खाने के बाद मैंने एक डायरी ली.मैडम ने मुझे वो डायरी लेते देखा तो खुद को पूछने से रोक न पाईं; 'आप शायरी करते हो क्या?' अब मुझे कुछ तो जवाब देना ही था सो मैंने हाँ में सर हिला दिया और ये सुन करते वो मुझसे और भी ज्यादा इम्प्रेस हो गई. तो एक शेर हमें भी सुनाइए! मैडम की फरमाइश पर मुझे आशु की याद आ गई और फिर मुझे गुलाम अली जी का एक शेर याद आ गया;
'फासले ऐसे भी होंगे,
ये कभी सोचा ना था.
सामने बैठा था मेरे,
और वो मेरा ना था.'
ये सुनते ही मैडम एक दम से चुप हो गईं. एक पल के लिए मेरे सामने आशु का चेहरा आ कर ठहर गया.'आप शायरी इस डायरी में जरूर लिखना.' इतना कह कर मैडम ने अपनी चुप्पी तोड़ दी और मैंने भी सोचा की इसे पढ़ कर आशु भी खुश हो जायेगी. शायद उसे उसकी बेरुखी भी याद आ जाये! खेर हम थोड़े दूर वहीँ घूमें. मैंने मैडम की कुछ तसवीरें लीं उन्हींके फ़ोन से और फिर खाना खा कर होटल ८ बजे पहुंचे. वहाँ से चेक-आउट किया और स्टेशन पहुँच गए. हम वहाँ एक बेंच पर बैठ गये. ट्रैन आई और हम अपनी-अपनी बर्थ पर लेट गये. इस बार हमारी टिकट्स कन्फर्म हो गई थीं.नाम वाली दिक्कत अब भी हुई तो फिर मैंने कैसे ना कैसे कर के बात संभाल ली.
आज रात मैं चैन से सोया इस ख़ुशी में की शनिवार को मुझे देख कर आशु खुश हो जायेगी. हालाँकि मैडम ने दो बार मुझे उठाया था क्योंकि उन्हें वाशरूम जाना था और मैंने इसका कोई माइंड नहीं किया. अगले दिन आठ बजे मैडम ने मुझे उठाया. फ्रेश हो कर हम ने चाय-नाश्ता किया. सर का फ़ोन आया और मुझे नहीं पता की उनकी क्या बात हुई क्योंकि मैं डायरी में वही शेर लिख रहा था. सर से बात कर के मैडम ने बात शुरू की; 'इजंट इट स्ट्रेंज, अ हँडसम गाय फिल विद सो मच ऑफ शीवरली इज सिंगल?” उन्होंने शीवरली शब्द पर बहुत जोर दे कर कहा. ये सुन कर मेरे मन में जो पहले विचार आया था की शायद मैडम मुझसे प्यार करती हैं, क्यों ना उस विचार का गला घोट दू.
मैंने बहुत गंभीर होते हुए कहा; 'मॅडम माई विलेज इज फेमस फॉर ऑनर किलिंग! माई कजन्स वाइफ वाज बर्न अलाईव बिकाज ऑफ दिस!” ये सुनते ही मैडम के हालत देखने लायक थी.उनका मुँह खुला का खुला रह गया.उनका हँसता-खेलता हुआ चेहरा मायूस हो गया और तभी उनको याद आय की वो ट्रैन वाला हादसा और जो होटल में हुआ वो; 'आई….आई एम रियली सॉरी! दॅट टी. टी. ई. सॉ अस…अँड…ह…हाऊ…. आर यू गोइंग टू टेल देम?”
उनकी घबराहट उनके चेहरे से झलक रही थी और मैं भी अंदर ही अंदर जानता था की जब ये बात सामने आएगी तो काण्ड होना तय हे. क्योंकि कोई भी मेरी बात पर ऐतबार नहीं करता की जो कुछ हुआ उसमें मेरी कोई गलती नहीं थी. मैंने नकली मुस्कराहट अपने चेहरे पर लाते हुए कहा; “हावेंट थोट अबाउट इट! बट डोन्ट वरी .आई वॉन्ट ड्राग यू इन दॅट मेस!” मैंने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा. पर वह बिलकुल मायूस हो गईं और फिर से गिलटी महसूस करने लगी. अब उस समय मैं अगर ज्यादा कुछ बोलता तो शायद उसका कुछ गलत मतलब निकलता, उन्हें कहीं ये ना लगे की मेरे मन में भी उनके लिए कोई प्यार-व्यार है इसलिए मैं चुप-चाप फिर से लेट गया.पर मैडम बहुत उदास थीं!
अब एक हँसता-खेलता इंसान मेरे कारन गुम- सुम हो गया था और रह-रह कर मैं गिलटी महसूस करने लगा था. 'मॅडम यू डोन्ट ह्याव टू वरी, दीं लिजीट पनिशमेंट आई विल गेट इज इदर म्यारिज ऑर किक फ्रॉम होम. अँड ट्रस्ट मी आई एम रियली हॅपी फॉर दीं पनिशमेंट!” मैंने थोड़ा हँसते हुए कहा ताकि उनका कुछ मन हल्का हो पर वो अब भी गुम-सुम थी.
'मॅडम आपके इस तरह गुम-सुम होने से इसका कोई हल तो निकलेगा नही. जब ये बात सामने आएगी तब मैं इसका कोई ना कोई हल निकाल लुंगा.' पर मैडम अब भी चुपचाप थीं, इससे ज्यादा मैं उन्हें कुछ कह नहीं सकता था. पूरा सफर वो इसी तरह गुम-सुम रहीं और मुझसे कोई भी बात नहीं की.
रात दो बजे हम स्टेशन पहुँचे और अब वहाँ से घर जाना था. सर कार ले कर हम दोनों को लेने आये और मुझे घर छोडा. जब मैं जाने लगा तो मैडम ने मुस्कुराते हुए कहा; 'कल की छुट्टी ले लेना, सी यू ऑन मंडे!' ये सुन कर मेरी लाटरी निकल गई और मैंने उन्हें 'शुक्रिया मॅडम' कहा और ऊपर चला गया.सर की उस टाइम जली जरूर होगी पर वो कुछ बोले नही.
घर आकर मे बिस्तर पर ऐसे ही पड़ गया और सो गया.अगली सुबह ७ बजे उठ कर तैयार हुआ और आशु के कॉलेज के लिए निकल गया.उसके कॉलेज के गेट पर बाइक रोक कर उसका इंतजार करने लगा, जैसे ही उस की नजर मुझ पर पड़ी वो भाग कर आई और मेरे गले लग गई और उसकी आँखों से गंगा-जमुना बहने लगी. 'ये तीन मैंने कैसे काटे मैं ही जानती हूँ!' उसने रोते-रोते कहा.
'तीन दिन से मेरे कॉल 'काट' ही तो रही थी.' मैंने उसे छेड़ते हुए कहा. ये सुन कर आशु फिर से गुस्सा हो गई पर उसे मनाने के लिए मैंने उसे उसका तौहफा दिया. डायरी देख कर तो वो खुश हो गई और उस पर छपे गेटवे ऑफ़ इंडिया की तस्वीर देख कर वो और भी खुश हो गई. अंदर खोल कर देखा तो दूसरे पैन पर मैंने वही शेर लिखा था जिसे पढ़ कर उसे मेरे दिल के दर्द के बारे में एहसास हुआ पर वो कान पकड़ के माफ़ी माँगने लगी. इतने में उसकी एक सहेली भी आ गई और मुझे देखते ही वो समझ गई की मैं उसका बॉयफ्रेंड हु. हालाँकि मैं ये नहीं चाहता था और उम्मीद कर रहा था की आशु बोलेगी की मैं उसका चाचा हु. पर आशु के कुछ कहने से पहले ही वो बोल पड़ी; 'ओह! तो ये ही हैं वो जिनकी वजह से तू इतने दिन गुम-सुम थी?' ये सुन कर वो शर्मा गई और मेरी बाजू पर अपना सर रख दिया. 'हाई' मैंने इतना कहा और उसने अपना हाथ आगे करते हुए कहा; 'माय सेल्फ निशा.मैंने उससे हाथ मिलाया और 'सागर' कहा. निशा ने मेरा हाथ बहुत जोर से दबा रखा था और वो हाथ छोड़ ही नहीं रही थी इसे देख आशु जल गई और उसने दोनों का हाथ छुड़वा दिया. 'हेल्लो मैडम आप जा कर अपने वाले से हाथ मिलाओ' ये सुन कर हम दोनों हँस पडे.
'तो चलें?' मैंने आशु से कहा तो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी. 'क्या कोई जरुरी लेक्चर है?' वो खुश हो गई और ना में सर हिलाया और फ़ौरन बाइक पर पीछे बैठ गई. निशा और जोर से हँसने लगी और फिर बाय बोल कर चली गई. आशु हमेशा की तरह मेरी पीठ से चिपक कर बैठ गई. जैसे की तीन दिन से उसका जिस्म बर्फ बन गया था और मेरे बदन की तपिश से वो सारी बर्फ पिघलना चाहती थी. 'तो जान! बताओ की जाना कहाँ है?' मैंने उससे पूछा.
'घर और कहाँ?' आशु तपाक से बोली. मैं समझ गया था की उसे घर क्यों जाना था तो मैंने रास्ते से खाने के लिए कुछ पैक करवाया और फिर हम दोनों घर आ गये.
ऊपर आ कर जैसे ही मैंने दरवाजा बंद किया की आशु ने मुझे पीछे से कस कर अपनी बाहों में भर लिया. 'हम्म्म्म....आप के बिना इतना दिन मैं अधूरी हो गई थी.' आशु ने मेरी पीठ पर कमीज के ऊपर से किस करते हुए कहा. मैं उसकी तरफ घुमा और उसे गोद में उठा कर पलंग पर लिटाया और जूते उतार के मैं भी उसकी बगल में पाँव ऊपर कर के लेट गया.उसने मेरे बाएं हाथ को अपना तकिया बनाया और मुझसे मुंबई के बारे में सब पूछने लगी. मैंने पहले तो उसे मेरे कॉर्पोरेट वर्ल्ड का एक्सपीरियंस बताया जिसे सुन कर वो दंग रह गई. मेरे बिज़नेस सूट वाली बात पर वो भी मायूस हुई और कहने लगी की जब उसे पहली सैलरी मिलेगी तो वो मुझे ये सूट दिलायेगी. ये सुन कर मुझे उस पर बहुत प्यार आने लगा. वहाँ खींची तसवीरें देख आशु का मन वहाँ जाने का कर रहा था और वो कहने लगी की शादी के बाद जब हमारी लाइफ सेटल हो जाएगी तो वो मुंबई मेरे साथ जरूर जायेगी. इसी तरह से हम दोनों बातें करते रहे और फिर मैंने सोचा की उसे सच-सच बता दूँ जो भी कुछ हुआ, क्योंकि मैं उससे कुछ भी नहीं छुपाना चाहता था. तो मैंने उसे शुरू से लेकर आखिर तक सारी बात बता दी और ये सब सुनते ही वो छिटक कर मुझसे दूर खडी हो गई.
आशु: तो इसलिए गए थे ना आप उस मैडम के साथ? (उसने गुस्से में कहा)
मैं: यार मैंने क्या किया? बॉस ने लास्ट मोमेंट पर बोला की उनकी जगह मॅडम जाएँगी तो मैं क्या करता?
आशु: उसकी हिम्मत कैसे हुई आपको छूने की?
मैं: यार कुछ गलत इंटेंशन नहीं था उनका... वो बस....
आशु: (मेरी बात काटते हुए) आपको कैसे पता की इंटेंशन सही थी या गलत? और आप ने उसे खुद को छूने कैसे दिया? (आशु ने चीखते हुए कहा.)
मैं: आशु बात को समझने की कोशिश कर! वो दोनों लड़के उन्हें घूर-घूर के देख रहे थे! शी वाज स्केअर्ड! वो मुझे ट्रस्ट करती थीं इसलिए उन्होंने सिर्फ मेरी गोद में सर रखा. मैंने उन्हें जरा भी नहीं छुआ?
आशु: ये देखने के लिए मैं तो नहीं थी ना? एक होटल में दोनों पति-पत्नी के नाम से रहे रहे थे! आपने उसे जरा भी नहीं कहा की मॅडम आप ये गलत कर रहे हो?
मैं: रात के तीन बज रहे थे, कहीं भी कमरा नहीं मिल रहा था! हर कोई गलत ही सोच रहा था तो ऐसे में उन्हें मजबूरन झूठ लिखना पडा. मेरा विश्वास कर उस रात मैं सोफे पर सोया था और वो पलंग पर! हमारे बीच कुछ भी नहीं हुआ था. एक पल भी मेरे मन में कोई गलत विचार नहीं आया! उन्होंने तो मुझे दारु भी ऑफर की पर मैंने सिर्फ इसलिए मना कर दिया क्योंकि मैंने तुमसे वादा किया था., इतना प्यार करता हूँ तुम से!
आशु: मैं कैसे मान लूँ? एक कमरे में एक आदमी और एक औरत हैं और फिर भी उन दोनों के बीच कुछ नहीं हुआ! ये सतयुग है क्या?
मैं: .....
आशु: (मेरे कुछ कहने से पहले ही आशु बोल पडी.) आपको कैसा लगता अगर ये सब मेरे साथ हुआ होता? क्या आप मेरी बात पर भरोसा करते?
मैं: (उसकी आँखों में देखते हुए) हाँ ... मैं तुम्हारी बात का विश्वास करता क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ, तुम पर आँख मूँद कर विश्वास करता हु.
आशु: वेल मैं आप पर विश्वास नहीं कर सकती! उस जैसी बला की खूबसूरत औरत के साथ आप रहे और फिर भी उसे छुआ तक नही.
ये सुन कर मेरा दिल बहुत दुख की वो मुझ पर जरा भी भरोसा नहीं करती. पर मैंने जैसे-तैसे खुद को संभाला.
आशु: जब मैंने उसे वीडियो कॉल पर देखा था तभी से मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था! मुझे पता था वो आपको मुझसे छीन लेगी. (ये बोलते हुए रोने लगी. मैंने उसके आँसूँ पोछने चाहे तो उसने मेरा हाथ झिटिक दिया.)
मैं: जान मेरी बात को समझो! प्लीज ... प्लीज मेरा विश्वास करो! (मैंने उसके आगे हाथ जोड़े पर उसका उसक पर कोई असर नहीं पडा.)
आशु: आप एक बात का जवाब दो, जब आपके बॉस ने कहा की मेरी जगह आप मेरी बीवी के साथ चले जाओ तो आप मना नहीं कर सकते थे?
मैं: यार वो बॉस है मेरा, उसका कहा मानने के पैसे मिलते हैं मुझे.
आशु: कल को वो कहेगा की उसकी बीवी के साथ सो जाओ तो आप सो जाओगे?
ये सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने आशु पर हाथ छोड़ दिया.
मैं: बस! अब बहुत हो गया, इतनी देर से मैं मिन्नतें कर रहा हूँ और तुम्हें उस पर विश्वास ही नहीं हो रहा हे. मैं बुद्धू था जो मैंने तुम्हें सब कुछ बता दिया. ये विश्वास कर के की तुम्हें सच पता होना चाहिए. पर नहीं तुम्हें तो बेकार का बखेड़ा खड़ा करना है?
आशु रोने लगी और रोते हुए बोली; 'आपके मन में उस के लिए प्यार है, उसकी इज्जत प्यारी है आपको? मेरी कोई वैल्यू नहीं?' इतना कह कर वो रोती हुई चली गई. मैं भी उसके पीछे-पीछे भागा और उसे आवाज दे कर रोकना चाहा पर वो नहीं रुकी और ऑटो कर के चली गई. मुझे उसकी चिंता हुई तो मैंने जल्दी से ऑटो का नंबर नोट किया और घर वापस आ गया.मैं जमीन पर बैठा सोचता रहा की अभी जो कुछ हुआ उसमें मेरी गलती थी क्या? आशु को सच बताना गलती थी? या उस दिन मौके का फायदा नहीं उठाना गलती थी? या फिर मैंने आशु पर हाथ उठाया, वो गलत था? पर मैंने हाथ इसलिए उठाया क्योंकि नितु मैडम के चरित्र पर ऊँगली उठा रही थी! दिमाग में जैसे उधेड़-बुन शुरू हो गई थी. दिमाग कहता था की तुझे आशु को बताने की जरुरत नहीं थी. पर दिल कह रहा था की तूने इसलिए बताया क्योंकि आगे चल कर हमारे रिश्ते में कोई गाँठ ना पड़ जाये. ये आशु का बचपना है, कुछ देर में शांत हो जायेगा. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, मैं उसे कॉल करता रहा पर उसने फ़ोन बंद कर दिया. मैंने उसके कॉलेज के चक्कर लगाना शुरू कर दिया पर अब उसने मुझे वहाँ भी इग्नोर करना शुरू कर दिया. एक दिन मैं उसके हॉस्टल भी गया उससे मिलने पर वहाँ भी उसने मुझसे कोई बात नहीं की, बस हाँ-ना में जवाब देती रही. अब चूँकि वहाँ आंटी जी थीं तो मैं ज्यादा कुछ कह भी नहीं पाया. वो भी उठ कर चली गई ये बहाना कर के उसे असाइनमेंट पूरा करना हे. पूरे दो हफ्ते तक आशु इसी तरह करती रही, फोन बंद रखती और मैं यहाँ उसे रोज फ़ोन करता इस आस में की शायद अब वो फ़ोन उठा ले! इधर ऑफिस में मैडम अब मुझसे हँसते हुए बात करने लगी थीं, पर सिर्फ तब जब सर नहीं होते थे. मैं उनके सामने बस उसी तरह जवाब देता जैसे पहले देता था उससे ज्यादा मैंने कुछ रियेक्ट नहीं किया. जब की मेरे मन का दुःख सिर्फ मैं ही जानता था.
एक दिन मैं ऑफिस मीटिंग में था की तभी कुछ हुआ. आशु मेरे ऑफिस आई और उसने जानबूझ कर नितु मैडम से बात शुरू की;
आशु: हेल्लो मॅडम!
नितु मैडम: हाई ... सॉरी लेकीन मैंने आपको पहचाना नहीं!
आशु: अॅक्च्युअली मॅडम मुझे ये डायरी ट्रैन में मिली. किसी मिस्टर सागर की डायरी हे. इसमें यहाँ का एड्रेस लिखा था तो मैं एड्रेस ढूंढते हुए यहाँ आ गई. (ये एड्रेस उसने खुद ही लिखा था.)
नितु मैडम: ओह! हाँ... ये तो सागर की ही डायरी हे. थँक्यू सो मच!
आशु: इज ही योवर हसबंड?
नितु मैडम: ओह नो नो नो… ही वर्क हिअर, ही इज इन अ मीटिंग राईट नाऊ.
आशु: आई एम रियली सॉरी… आई दिडंत मीन टू….. सॉरी!
नितु मैडम: इट्स ओके!
तभी सर ने मैडम को बात करते हुए देख लिए और अंदर बुलाया; 'दॅट इज माई हसबंड! आई…आई एम सॉरी आई ह्यावं टू गो. व्हाय डोन्ट यू वेट हिअर अँड वी कॅन ह्याव अ कप ऑफ कॉफी.”
“ओह नो..नो.. मॅडम आई ह्यावं टू लिव्ह… आई ह्यावं टू रश बॅक टू माई हॉस्टेल.”
“देन प्लीज गिव मी योवर नंबर, आई विल कॉल यू अँड देन वी कॅन ह्याव अ... अ.. कप ऑफ कॉफी, माई ट्रीट!!”
आशु ने उन्हें अपना नंबर दिया और मैडम ने उन्हें अपना फ़ोन नंबर दिया. इधर सर हमें नए एज (अकाउंटिंग स्टॅंडर्ड) पर ज्ञान दे (पेल) रहे थे. मैडम अंदर आईं और उन्होंने मेरी तरफ डायरी बढ़ा दी. ये वही डायरी थी जो मैंने आशु को दी थी! उसे देखते ही मेरे चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी और मैं बाहर जाने को बेचैन हो गया.'एक्स्क्युज मी सर' इतना कह कर मैं बाहर भागा पर वहाँ कोई भी नहीं था. मैं सोचने लगा की अभी हुआ क्या? ये डायरी मैडम तक कैसे पहुँची? अभी मैं ये सोच ही रहा था की मैडम ने पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखा और मेरी उधेड़-बुन समझते हुए उन्होंने मुझे सारी बात बताई|
मैडम की बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया की आशु यहाँ तक आई सिर्फ डायरी वापस करने! अपना गुस्सा मैं काम पर उतारने लगा और देर रात तक ऑफिस में बैठा रहा. कई बार फ़ोन मिलाया पर आशु का फ़ोन बंद ही था. तब मुझे लगा की आशु ने मेरा नम्बर ब्लॉक तो नहीं कर दिया. इसलिए मैंने ऑफिस के लैंडलाइन से फ़ोन किया तो इस बार घंटी गई. ५-७ घंटी के बाद उसने फ़ोन उठा लिया; 'तो मेरा नंबर ब्लॉक कर रखा था ना?' ये सुन कर वो कुछ नहीं बोली. फिर मन नहीं किया की आगे उसे कुछ कहूं, इसलिए मैंने फ़ोन रख दिया और अपना बैग उठा के चल दिया. घर आया और बिना कुछ खाय-पीये ही सो गया.
उस रात मुझे बुखार चढ़ गया पर फिर भी सुबह मैं नाहा-धो के ऑफिस निकल गया.पर दोपहर होने तक हालत बहुत ज्यादा ख़राब हो गई. कमजोरी ने हालत बुरी कर दी. मैंने एक चाय पि पर तब भी कोई आराम नहीं मिला, नजाने कैसे पर मैडम को मेरी ख़राब तबियत दिख गई और वो मेरे पास आईं.मेरे माथे पर हाथ रख उन्हें मेरे जलते हुए शरीर का एहसास हुआ और उन्होंने मुझे डॉक्टर के पास जाने को बोला. मैं ऑफिस से निकला और बड़ी मुश्किल से घर बाइक चला कर पहुंचा. घर आते ही मैं बिस्तर पर पड़ा और सो गया.रात ८ बजे आँख खुली पर मेरे अंदर की ताक़त खत्म हो चुकी थी. मैंने खाना आर्डर किया ये सोच कर की कुछ खाऊँगा तो ताक़त आएगी पर खाना आने तक मैं फिर सो गया.जब से मैं शहर आ कर पढ़ने लगा था तब से मैं अपना बहुत ध्यान रखता था. जरा सा खाँसी-जुखाम हुआ नहीं की मैं दवाई ले लिया करता था. मैं जानता था की अगर मैं बीमार पड़ गया तो कोई मेरी देखभाल करने वाला नहीं है, पर बीते कुछ दिनों से मैं बहुत मटूस था. ऐसा लगता था जैसे मैं चाहता ही नहीं की मैं ठीक हो जाऊ. खाना आने के बाद उसे देख कर मन नहीं किया की खाऊँ, दो चम्मच दाल-चावल खाये और फिर बाकी छोड़ दिया और बिस्तर पर पड़ गया.रात दस बजे मैडम का फ़ोन आया और उन्होंने मेरा हाल-चाल पूछा तो मैंने झूठ बोल दिया; 'मॅडम मुझे कुछ दिन की छुट्टी चाहिए ताकि मैं घर चला जाऊँ, यहाँ कोई है नहीं जो मेरी देखभाल करे.' मैडम ने मुझे छुट्टी दे दी और मैं फ़ोन बंद कर के सो गया.वो रात मुझ पर बहुत भारी पड़ी, रात २ बजे मेरा बुखार १०३ पहुँच गया और शरीर जलने लगा. प्यास से गाला सूख रहा था और वहाँ कोई पानी देने वाला भी नहीं था. आशु को याद कर के मैं रोने लगा. फिर मैं कब बेहोश हो गया मुझे पता ही नही चला.
जब चेहरे पर पानी की ठंडी बूंदों का एहसास हुआ तो धीरे-धीरे आँखें खोलीं, इतना आसान काम भी मुझसे नहीं हो रहा था. पलकें अचानक ही बहुत भारी लगने लगी थीं, खिड़की से आ रही रौशनी के कारन मैं ठीक से देख भी नहीं पा रहा था. कुछ लोगों की आवाजें कान में सुनाई दे रही थी जो मेरे आँख खोलने पर खेर मना रहे थे. 'उठो ना?' आशु ने मुझे हिलाते हुए कहा और तभी उसकी आँख से आँसू का एक कतरा गिरा जो सीधा मेरे हाथ पर पडा. अपने प्यार को मैं कैसे रोता हुआ देख सकता था. मैंने उठने की जी तोड़ कोशिश की और बाकी का सहारा आशु ने दिया और मुझे दिवार से पीठ लगा कर बिठा दिया. अब जा के मेरी आँखों की रौशनी ठीक हो पाई और मुझे अपने कमरे में ३-४ लोग नजर आये. मेरे मकान मालिक अंकल, उनका लड़का और उनकी बहु और बगल वाले मिश्रा जी. मेरे मुँह से बोल नहीं फुट रहे थे क्योंकि गला पूरी तरह से सूख चूका था. आशु ने मुझे पीने के लिए पानी दिया और जब गला तर हुआ तो थोड़े शब्द बाहर फूटे; 'आप सब यहाँ?'
पुरुषोत्तम जी (मकान मालिक) बोले; 'अरे बेटा तेरी तबियत इतनी ख़राब थी तो तूने हमें बताया क्यों नहीं? ये लड़की भागी-भागी आई और इसने बताया की तू दरवाजा नहीं खोल रहा, पता है हम कितना डर गए थे की कहीं तुझे कुछ हो तो नहीं गया?' अब मुझे सारी बात समझ आ गई. पर हैरानी की बात ये थी की आशु यहाँ आई क्यों? पर आशु को रोते हुए देख उसपर जो कल तक गुस्सा आ रहा था वो अब भड़कने लगा था.
'चलिए डॉक्टर के पास.' आशु ने सुबकते हुए कहा. मैंने ना में सर हिलाया;
'इतनी कोई घबराने की बात नहीं है, दवाई खाऊँगा तो ठीक हो जाऊंगा.'
'आपका पूरा बदन बुखार से जल रहा है और आप इसे हलके में ले रहे हैं?' आशु ने अपने आँसूँ पोछते हुए कहा.
पर मैं अपनी जिद्द पर अड़ा रहा और डॉक्टर के पास नहीं गया.मैं जानता था की मुझे इस तरह देख कर आशु को बहुत दर्द हो रहा था और यही सही तरीका था उसे सबक सिखाने का! मुझ पर भरोसा नहीं करने की कुछ तो सजा मिलनी थी उसे! चूँकि मेरा सर दर्द से फट रहा था तो मैंने उसे चाय बनाने को कहा. चाय बना के वो लाई तो सबने चाय पि पर मेरे लिए वो चाय इतनी बेस्वाद थी की क्या बताऊँ! मेरी जीभ का सारा स्वाद मर चूका था. इतना बुखार था मुझे. सब ने मुझे कहा की मैं डॉक्टर के पास चला जाऊँ पर मैंने कहा की आज की रात देखता हूँ! आखिर सब चले गए और आशु मुझे दूर किचन काउंटर से देख रही थी. १ बजा था तो मैंने उसे हॉस्टल लौटने को कहा पर अब वो जिद्द पर अड़ गई. 'जब तक आप ठीक नहीं हो जाते मैं कहीं नहीं जा रही!' उसने हक़ जताते हुए कहा.
'हेल्लो मैडम! आप यहाँ किस हक़ से रुके हो?' मैंने गुस्से से कहा. जो गुस्सा भड़का हुआ था वो अब धीरे-धीरे बाहर आने लगा था.
'आपकी जीवन संगनी होने के रिश्ते से रुकी हूँ!' उसने बड़े गर्व से कहा.
' काहे की जीवन संगनी? जिसे अपने पति पर ही भरोसा नहीं वो काहे की जीवन संगनी?' मैंने एक ही जवाब ने उसका सारा गर्व तोड़ कर चकना चूर कर दिया.
'जानू! प्लीज!' उसने रोते हुए कहा.
'तुम्हारे इस रूखे पन से मैं कितना जला हूँ ये तुम्हें पता है? वो तुम्हारे कॉलेज के बाहर रोज आ कर रुकना इस उम्मीद में की तुम आ कर मेरे सीने से लग जाओगी! अरे गले लगना तो छोडो तुमने तो एक पल के लिए बात तक नहीं की मुझसे! ऐसे इग्नोर कर दिया जैसे मेरा कोई वजूद ही नहीं है! जैसे की मैं तुम्हारे लिए कोई अनजान आदमी हूँ! मैं पूछता हूँ आखिर ऐसा कौन सा पाप कर दिया था मैंने? तुम्हें सब कुछ सच बताया सिर्फ इसलिए की हमारे रिश्ते में कोई गाँठ न पड़े और तुमने तो वो रिश्ता ही तार-तार कर दिया. जानता हूँ एक पराई औरत के साथ था पर मैंने उसे छुआ तक नहीं.उसके बारे में कोई गलत विचार तक नहीं आया मेरे मन में और जानती हो ये सब इसलिए मुमकिन हुआ क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हु. पर तुम्हें तो उस प्यार की कोई कदर ही नहीं थी. जब मुंबई गया था तब तुमने एक दिन भी मेरा कॉल उठा कर मुझसे बात नहीं की, सारा टाइम फ़ोन काट देती थी. पिछले दो हफ़्तों से तुम ने मेरा नंबर ब्लॉक कर दिया!!! किस गलती की सजा दे रही थी मुझे?' मेरे शूल से चुभते शब्दों ने आशु के कलेजे को छन्नी कर दिया था और वो बिलख-बिलख कर रोने लगी.
'आई एम …रियली ….वेरी वेरी…. सॉरी! मैंने आपको बहुत गलत समझा. आशु ने रोते हुए कहा. फिर उसने अपने आँसूँ पोछे और हिम्मत बटोरते हुए कहा; 'उस दिन मैं आपके ऑफिस जान बुझ कर आई थी नितु मैडम से मिलने. मुझे देखना था ... जानना था की आखिर उसमें ऐसा क्या है जो मुझ में नहीं! पर उनसे बात कर के मुझे जरा भी नहीं लगा की उनका या आपका कोई चक्कर है! मैंने उनसे पूछा क्या आप उनके पति हो तो उनके चेहरे पर मुझे कोई शिकन या गिल्ट नहीं दिखा. मुझे वो बड़ी सुलझी और सभ्य लगीं, उस दिन मुझे खुद पर गुस्सा आया की मैंने उनके बारे में ऐसा कुछ सोचा. वो तो आपको सिर्फ अपना दोस्त मानती हैं! मुझे बहुत गिल्ट हुई की मेरे इस बचपने की वजह से मैंने आपको इतना तड़पाया,इतना दुःख दिया. आप चाहते तो वो सब उनके साथ कर सकते थे और मुझे इसकी जरा भी भनक नहीं होती. पर आपने सब सच बताया और यही सोच-सोच कर मैं शर्म से मरी जा रही थी. मुझे माफ़ कर दीजिये! मैं वादा करती हूँ की मैं आज के बाद कभी आप पर शक नहीं करुंगी.”
मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और बिस्तर से उठ के बाथरूम जाने को उठा तो एहसास हुआ की मुझे बहुत कमजोरी हे. आशु तेजी से मेरे पास आई और मुझे सहारा दे कर उठाने लगी. बाथरूम से वापस भी उसी ने मुझे पलंग तक छोडा. मैं लेटा और लेटते ही सो गया और करीब घंटे भर बाद आशु ने मुझे खाना खाने को उठाया. 'मैं खा लूँगा, तुम हॉस्टल वापस जाओ.' इतना कह के मैं उठ के बैठ गया, पर मेरी बातों से झलक रहे रूखेपन को आशु मेहसूस कर रही थी. वो दरवाजे तक गई और दरवाजे की चिटकनी लगा दी और मेरी तरफ देखते हुए अपनी कमर पर दोनों हाथ रख कर खडी हो गई; 'मैं कहीं नहीं जाने वाली! जब तक आप तंदुरुस्त नहीं हो जाते मैं यहीं रहूँगी, आपके पास!'
'बकवास मत कर! हॉस्टल में क्या बोलेगी की रात भर कहाँ थी और घर पर ये खबर पहुँच गई ना तो तुझे घर बिठा देंगे, फिर भूल जाना पढ़ाई-लिखाई!' ये कहते-कहते मेरे सर में दर्द होने लगा तो मैं अपने दोनों हाथों से अपना सर पकड़ के बैठ गया.मेरा सर झुका हुआ था तो आशु मेरे नजदीक आई और मेरी ठुड्डी पकड़ के ऊपर उठाई और बोली; 'मैंने आपके फोन से आंटी जी को फ़ोन कर दिया और उन्हें आपकी तबियत के बारे में सब बता दिया. उन्होंने कहा है की मैं यहाँ रुक सकती हु.”
ये सुनते ही मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने अपनी गर्दन घुमा ली; “तेरा दिमाग ठिकाने है की नहीं?!” मैंने उसे गुस्से से डाँटा पर उसका उस पर कोई असर नहीं पड़ा, वो बस सर झुकाये वहीँ खड़ी रही. 'तू क्यों सब कुछ तबाह करने पर तुली है? तुझे यहाँ आने के लिए किसने कहा था? कॉलेज में भी तेरी दोस्त का हमारे रिश्ते के बारे में तूने सब बता दिया और यहाँ भी सब को हमारे बारे में सब पता चल गया है, अब तू हॉस्टल नहीं जाएगी तो वो सब क्या सोचेंगे?' मैंने उसे समझाया, जो शायद उसके दिमाग में घुसा या फिर वो मुझे मैनिपुलेट करते हुए बोली; 'आज आपकी तबियत बहुत ख़राब है! मुझे बस आज का दिन रुकने दो, कल आपकी तबियत ठीक हो जाएगी तो मैं वापस चली जाउंगी. प्लीज....' आशु ने हाथ जोड़ कर मुझसे मिन्नत करते हुए कहा.
अब मैं थोड़ा पिघल गया और उसे रुकने की इजाजत दे दी. वो खुश हो गई और थाली में दाल-चावल परोस के लाई और खुद ही मुझे खिलाने लगी. मैंने मना किया की मैं खा लूँगा पर वो नहीं मानी. पहला कौर खाते ही मुझे एहसास हुआ की खाने में कोई टेस्ट ही नहीं है! बिलकुल बेस्वाद खाना! मेरी शक्ल से ही आशु को पता चल गया की खाने में कुछ तो गड़बड़ है तो उसने एक कौर खा के देखा और बोली; 'नमक-मिर्च सब तो ठीक है?!' पर मैं समझ गया की बुखार के कारन ही मेरे मुँह से स्वाद चला गया है और इसलिए खाने का मन कतई नहीं हुआ. पर आशु ने प्यार से जोर-जबरदस्ती की और मुझे खाना खिला दिया. मैं बस खाने को पानी के साथ निगल जाता की कम से कम पेट में चला जाए तो कुछ ताक़त आये.
खाना खा कर आशु ने मुझे क्रोसिन दी और मैं फिर से लेट गया और फिर सीधा शाम ५ बजे उठा. बुखार उतरा तो नहीं था बस कम हुआ था. तो मैंने आशु से कहा की वो हॉस्टल चली जाये. 'आपका बुखार कम हुआ है उतरा नहीं हे. रात में फिर से चढ़ गया तो?' उसने चिंता जताते हुए कहा. फिर वो पानी गर्म कर के लाई और उसने मुझे 'स्पंज बाथ' दिया और दूसरे कपडे दिए पहनने को. फिर वही बेस्वाद चाय पि.हम दोनों में अब बातें नहीं हो रही थी. आशु बीच-बीच में कुछ बात करती थी पर मैं उसका जवाब हाँ या ना में ही देता था. फिर वो रात का खाना बनाने लगी. पर मेरा मन अब कमरे में कैद होने से उचाट हो रहा था. मैं खिड़की पास खड़ा हो गया और ठंडी हवा का आनंद लेने लगा. आशु ने मुझे बैठने को एक कुर्सी दी और कुछ देर बाद वहाँ सुमन आ गई.
'अरे सागर जी! क्या हालत बना ली आपने?' उसकी आवाज सुनते ही मैं चौंक कर गया और उसकी तरफ हैरानी से देखने लगा. 'दीदी ये तो बेहोश हो गए थे मकान मालिक से डुप्लीकेट चाभी ली और घर खोला तब ....' आशु के आगे बोलने से पहले ही मैं बोल पड़ा; 'अब पहले से बेहतर हूँ, वैसे अच्छा हुआ तुम आ गई. जाते समय इसे साथ ले जाना.'
'अरे अभी तो आई हूँ? और आप जाने की बात आकर रहे हो? बड़े रूखे हो गए आप तो? कहाँ गए आपकी शीवरली???' सुमन मुझे छेड़ते हुए बोली.
'शीवरली से तौबा कर ली मैंने! खाया-पीया कुछ नहीं गिलास तोडा बारह आना.' मैंने आशु को ताना मारते हुए कहा. ये सुन कर आशु ने सुमन से नजर बचा कर कान पकडे और दबे होठों से सॉरी बोला.
'ऐसा क्या होगया की हमारे शीवरली के राजा ने तौबा कर ली? बैठ इधर आशु मैं तुझे एक किस्सा सुनाती हु. बात तब की है जब हम दोनों कॉलेज में थे.पढ़ाई में मैं जीरो थी, हाँ उसके आलावा कल्चरल प्रोग्राम में मैं हमेशा आगे रहती थी. बाकी सारे सब्जेक्ट्स तो मैं जैसे-तैसे संभाल लेती पर एकाउंट्स मेरे सर के ऊपर से जाता था और तुम्हारे चाचू ठहरे एकाउंट्स के महारथी. मेरी माँ ने इन्हें मुझे पढ़ाने के लिए बोला वो भी घर आ कर. तो जनाब हमेशा मुझे २ फुट की दूरी से पढ़ाते थे. ऐसा नहीं था की माँ का डर था बल्कि वो तो ज्यादातर बहार ही होती थीं पर मजाल है की कभी इन्होने वो दो फुट की दूरी बाल भर भी कम की हो! अब मुझे इनके मज़े लेने होते थे तो मैं जानबूझ कर कभी-कभी इनके नजदीक खिसक कर बैठ जाती और ये एक दम से पीछे सरक जाते. इनकी मेरे नजदीक आने से इतनी फटती थी की पूछ मत! पूरे कॉलेज को पता था की जनाब मुझे पढ़ाते हैं और वो सब पता नहीं क्या-क्या बोलते थे इन्हें.कइयों ने इन्हें चढ़ाया की आज तू सुमन का हाथ पकड़ ले और बोल दे उसे की तू उससे प्यार करता है, उसे मिनट नहीं लगेगा पिघलने में पर आज तक इन्होने कभी मुझसे कुछ नहीं कहा.'
आशु ये सब सुन कर हैरान थी क्योंकि मैंने उसे ये सब कभी नहीं बताया था. पर ये सुनने के बाद उसे बहुत बुरा लग रहा था की क्यों उसने मुझे पर शक किया. खेर चाय पीना और कुछ गप्पें मारने के बाद सुमन हँसती हुई बोली; 'चलो आपके बीमार पड़ने से एक तो बात अच्छी हुई, की इसी बहाने पता तो चल गया की आप रहते कहाँ हो?! अब तो आना-जाना लगा रहेगा.'
'अगर एक बार पूछ लेते तो मैं वैसे ही बता देता.' मैंने भी हँसते हुए बता दिया.
'अच्छा जी? चलो आगे से ध्यान रखुंगी.चल भाई अश्विनी?'
'दीदी प्लीज मैं आज यहीं रुक जाऊँ? अभी बुखार सिर्फ कम हुआ है उतरा नहीं है, रात को तबियत ख़राब हो गई तो कौन यहाँ देखने वाला?' आशु ने मिन्नत करते हुए कहा.
'कोई जरुरत नहीं है, मैं ठीक हु.' मैंने उसी रूखेपन से जवाब दिया.
'कोई बात नहीं तू रुक जा यहाँ' सुमन ने आशु के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा. फिर मेरी तरफ देख कर बोली; 'आप ना ज्यादा उड़ो मत! वरना मैं भी यहीं रुक जाउंगी. वैसे भी अब तो आपने शीवरली से तौबा कर ही ली है, तो अब तो कोई दिक्कत नहीं होगी आपको?!' सुमन ने मुझे छेड़ते हुए कहा.
'यार आप अब भी नहीं सुधरे!' मैंने हँसते हुए कहा.
'जो सुधर जाए वो सुमन थोड़े ही हे.' इतना कह कर वो मुस्कुराते हुए चली गई. ये सब सुन कर अब तो जैसे आशु के मन में प्यार का सागर उमड़ पडा. उसने बड़े प्यार से खाना बनाया पर नाक बंद थी और जो थोड़ी-बहुत खुशबु मैं सूँघ पाया उससे लगा की खाना जबरदस्त बना होगा, पर जब आशु ने मुझे पहला कौर खिलाया तो वही बेस्वाद! जैसे -तैसे खाना निगल लिया और फिर आशु को खाने के लिए बोला. वो अपना खाना ले कर मेरे सामने बैठ गई और खाने लगी. खाने के बाद उसने मुझे फिर से क्रोसिन दी और हम दोनों लेट गये. रात के एक बजे मुझे फिर से बुखार चढ़ गया और मैं बुरी तरह कँप-कँपाने लगा. आशु शायद जाग रही थी तो उसने मेरी कँप-कँपी सुनी और तुरंत लाइट जलाई और उठ कर मुझे पीठ के बल लिटाया. जैसे ही उसने मेरे माथे को छुआ तो वो चीख पड़ी; 'हाय राम! अ...अ....आपका बदन तो भट्टी की तरह जल रहा है!' सबसे पहले उसने मुझे थोड़ा बिठाया और एक क्रोसिन की गोली दी फिर उसने आननफानन में सारी चादरें उठाई और एक-एक कर मुझ पर डाल दी. पर मैं अब भी काँप रहा था. आशु की आँखों से आँसूँ बहने लगे और जोर-जोर से मेरे हाथ और पाँव मलने लगी. जब उसे कुछ और नहीं सुझा तो वो उठी और आ कर मेरी बगल में लेट गई और मुझे उसने अपनी तरफ करवट करने को कहा. उसने मेरा मुँह अपनी छाती में दबा दिया और खुद मुझसे इस कदर लिपट गई जैसे की कोई जंगली बेल किसी पेड़ से लिपट जाती हे. मैंने भी उसे कस कर जकड लिया और अपने ऊपर भी उसने वो चादरें डाल ली और मेरी पीठ रगड़ने लगी. उसकी सांसें तेज चलने लगी थी. वो घबरा रही थी की कहीं मैं मर गया तो? उसने बुदबुदाते हुए कहा; 'मैं आपको कुछ नहीं होने दुंगी. प्लीज.....प्लीज... मुझे छोड़ कर मत जाना. आपके बिना मेरा कौन है? कैसे जीऊँगी मैं?' करीब एक घंटा लगा मेरे जिस्म पर दवाई का असर होने में और मेरी कँप-कँपी थम गई. आशु के सारे कपडे मेरे माथे और उसके जिस्म के पसीने से भीग चुका था.! धीरे-धीरे हम दोनों इसी तरह एक दूसरे की बाहों में सो गये.
सुबह पाँच बजे मेरी आँख खुली और मैंने खुद को उसकी गिरफ्त से धीरे से छुड़ाया और उसके मस्तक पर चूमा. बुखार अब कम था पर मेरे होठों के एहसास से आशु जाग गई और मुझे जागता हुआ पा कर मेरी आँखों में देखते हुए पूछा; 'अब आपकी तबियत कैसी है?' मैने मुस्कुरा कर हाँ में गर्दन हिलाई और वो समझ गई की मैं ठीक हु. उसने मेरा माथा छुआ तो घबरा गई और बोली; 'बुखार खत्म नहीं हुआ आपका! आज आपको मेरे साथ डॉक्टर के पास चलना होगा.' मैंने जवाब में बस हाँ कहा. कल तक मुझे जो गुस्सा आशु पर आ रहा था वो अब प्यार में बदल गया था. अब मैं उससे अब अच्छे से बात कर रहा था और वो भी अब पहले की तरह खुश थी. नाश्ता कर के वो मेरे साथ हॉस्पिटल के लिए निकली पर मेरे जिस्म में ताक़त कम थी तो नीचे आ कर हमने फ़ौरन ऑटो किया और हॉस्पिटल पहुंचा. डॉक्टर ने चेक-अप किया और डेंगू का टेस्ट कराने को कहा. ये सुनते ही आशु बहुत घबरा गई. मानो की जैसे डॉक्टर ने कहा हो की मुझे कैंसर हे. खेर ब्लड सैंपल देने के टाइम जब नर्स ने सुई लगाईं तो आशु से वो भी नहीं देखा गया और मुझे होने वाला उसके चेहरे पर दिखने लगा, उसका बचपना देख नर्स भी हँस पडी. हम दवाई ले कर घर लौटे और रिपोर्ट कल सुबह आने वाली थी.
आशु बहुत घबराई हुई थी और मुझे उसकी घबराहट दूर करनी थी; 'जान!' इतना सुनना था की वो भागती हुई आई और मेरे सीने से लग गई और फफक का करो पडी. 'कान तरस गए थे आपके मुँह से ये सुनने को' उसने रोते हुए कहा. 'आपको कुछ हो जाता तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं करती. प्लीज मुझे माफ़ कर दो!' मैंने उसके सर को चूमा और उसे कस के अपनी छाती से चिपका लिया, तब जा कर उसका रोना कम हुआ. तभी नितु मैडम का फ़ोन बज उठा और फ़ोन आशु के हाथ के पास था और उसी ने मुझे फ़ोन उठा कर दिया. पर इस बार उसके मुँह पर जलन या कोई दुःख नहीं था. मैडम ने मेरा हालचाल पूछा पर मैंने उन्हें ये नहीं बताया की मैं यहीं शहर में हूँ वरना वो घर आती और फिर आशु को देख के हजार सवाल पूछती. जब उन्हें पता चला की मुझे डेंगू होने के चांस हैं तो वो भी घबरा गईं पर मैंने उन्हें ये झूठ बोल दिया की यहाँ सब परिवार वाले हैं मेरी देख-रेख करने को! आशु ये सब बड़ी गौर से सुन रही थी और जैसे ही मेरी बात खत्म हुई तो उसने पूछा की मैंने झूठ क्यों बोला; 'मॅडम यहाँ आ जाती तो तुम कहाँ छुपती?' ये सुन कर आशु को समझ आ गया और वो कुछ खाने के लिए बनाने लगी. फिर आस-पडोसी भी आये और मेरा हाल-चाल पूछने लगे. पुरुषोत्तम जी तो आशु की तारीफ करते नहीं थक रहे थे!
भाई ऐसा जीवन साथी तो बड़ी मुश्किल से मिलता है, जो लड़की शादी से पहले इतना ख्याल रखती हो वो भला शादी के बाद कितना ख्याल रखेगी?! ये सुन आशु के गाल शर्म से लाल हो गये.
'तुम दोनों जल्दी से शादी कर लो इसी बहाने बिल्डिंग में थोड़ी रौनक बनी रहेगी.' मिश्रा जी ने कहा.
'जी अभी पहले ये अपनी पढ़ाई तो पूरी कर ले!' मैने मुस्कुरा कर जवाब दिया तो आशु ने भाभी के कंधे पर अपना मुँह छुपा लिया, ये देख सब हँस पडे. चाय पी कर सब गए तो आशु ने खाना बनाया और खुद अपने हाथ से मुझे खिलाया. मैंने भी उसे अपने हाथ से उसे खाना खिलाया. खाना खा कर आशु ने मुझे अपना सर उसकी गोद में रख कर लेटने को कहा. थोड़ी देर बाद दोनों की आँख लग गई और फिर जब मैं उठा तो आशु चाय बना के लाइ. चाय की चुस्की लेते हुए मैंने अपनी चिंता उस पर जाहिर की;
मैं: आशु....चीजें वैसे नहीं हो रही जैसी होनी चाहिए!
आशु: क्यों?? क्या हुआ?
मैं: मैं चाहता था की हमारा प्यार एक राज़ रहे तब तक जब तक की तुम अपने फाइनल ईयर के पेपर नहीं दे देती. पर यहाँ तो सबको पता चल चूका है!
आशु: कल जब मैं आपसे मिलने आई तो मैं २० मिनट तक आपका दरवाजा खटखटाती रही, आपको दसियों दफा कॉल किया पर आप ने कोई जवाब ही नहीं दिया. मेरा मन अंदर से कितना घबरा रहा था ये आप सोच भी नहीं सकते! कलेजा मुँह को आ गया था. लगता था की हमारा साथ छूट गया और वो भी सिर्फ मेरी वजह से! मैंने हार कर पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने कहा की मकान मालिक के पास डुप्लीकेट चाभी हे. मैंने उनसे ये कहा की मैं आपकी मंगेतर हूँ और आपसे मिलने आई हूँ, तब जा कर उन्हें मेरी बात का भरोसा हुआ. कॉलेज में मेरी सिर्फ और सिर्फ एक दोस्त है निशा, वो भी आपके बारे में ज्यादा नहीं जानती. मैंने उसे बस इतना बताया की आप एक ऑफिस में जॉब करते हो. इससे ज्यादा जब भी वो पूछती है तो मैं बात टाल जाती हु. उस दिन सिद्धू भैया भी शायद जान या समझ चुके हों, क्योंकि उनका भाई तो अब हमारे कॉलेज में नहीं पढता. हॉस्टल में मैं किसी से ज्यादा बात नहीं करती.जी लगा कर पढ़ती हूँ तो इसलिए किसी को हमारे रिश्ते के बारे में भनक तक नही. हम एक समाज में रहते हैं, अब मिलेंगे तो लोग देखेंगे ही और बिना मिले तो मैं आपसे रह नहीं सकती!
मैं: और तुम्हारी पढ़ाई का क्या?
आशु: आपसे किया वादा मुझे याद है!
ये सुन कर मैं थोड़ा निश्चिन्त हुआ पर फिर भी एक डर तो था की अगर बात खुल गई तो आशु की पढ़ाई ख़राब हो जाएगी. पर फिर सोचा की जो होगा देखा जायेगा! वो रात बड़े प्यार से बीती, सोने के समय आज भी आशु ने मुझे कल की तरह अपने सीने से चिपका लिया और गहरी सांसें लेते हुए सो गई. मैं समझ रहा था की मेरे इतने करीब होने से उसके जिस्म में क्या उथल-पुथल मची हुई है पर मैं अभी इतना स्वस्थ नहीं हुआ था की उसके साथ संभोग कर सकूँ! आज दो बार दवाई लेने से ये फायदा हुआ था की अब बुखार नहीं था. बॉडी अब भी रिकवर कर रही थी. अगले दिन रिपोर्ट आई और हुआ भी वही जो डॉक्टर ने कहा था. डेंगू! डॉक्टर ने खूब सारी दवाइयाँ लिख दी, बुखार रोकने से ले कर मल्टी विटामिन तक! गोलियां भी रिवाल्वर के कारतूस के साइज की! अगले तीन दिन तक आशु ने मेरी बहुत देखभाल की और मेरे कई बार उसे हॉस्टल जाने के आग्रह करने के बाद भी उसने मेरी बात नहीं मानी.बुखार अब नहीं था पर कमजोरी बहुत थी मेरा प्लेटलेट काउंट काफी गिर चूका था. ये तो आशु चार टाइम खाना बना कर मुझे खिला रही थी तो ज्यादा घबराने वाली बात नहीं थी. रात में सोने के समय रोज आशु मुझे अपने सीने से चिपका कर सोती, रोज रात को मेरी आँखों के सामने उसके स्तनों की घाटी होती और सुबह आँख खुलते ही मुझे फिर वही घाटी दिखती.
सुमन भी मुझे से मिलने रोज आती और अपने साथ फ्रूट्स लाती और वही हँसी-मज़ाक चलता रहा. तीसरे दिन तो आंटी जी भी आ गईं और उन्होंने भी आशु की बहुत तारीफ की; 'भाई भतीजी हो तो आशु जैसी की अपने चाचा का इतना ख़याल रखती हे.' ये सुन कर आशु को उतना अच्छा नहीं लगा जितना पुरुषोत्तम अंकल की तारीफ करने से हुई थी. अब उन्होंने तो आशु को मेरी मंगेतर माना था और आंटी जी ने उसे भतीजी!
'माँ सेवा करेगी ही, इसके चाचू ने भी इसका कम ख्याल रखा है? स्कूल से लेकर एक ये ही तो हैं जो इसे पढ़ा रहे हैं.'
सुमन की बात सुन कर आशु खुद को बोलने से नहीं रोक पाई; 'आंटी जी घर में सिर्फ और सिर्फ ये ही हैं जिन्होंने मुझे बचपन से लेकर अब तक पढ़ाया हे. दसवीं और बारहवीं मैं इन्हीं की वजह से पढ़ पाई वरना घरवाले तो सब पीछे पड़े थे की ब्याह कर ले.'
नोट करने वाली बात ये थी की आशु ने मुझे एक बार भी 'चाचू' नहीं बोला था और मैं ये बात समझ चूका था पर डर रहा था की आंटी ये बात पकड़ न लें. शुक्र है की उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया! उनके जाने के बाद मुझे ध्यान आया की घर में मेरी तबियत के बारे में किसी को पता है या नहीं? क्या आशु ने किसी को बताया?
'आशु, तूने घर में फ़ोन किया था?' मैंने आशु से घबराते हुए पूछा.
'नहीं... मुझे याद नहीं रहा.' आशु का जवाब सुन कर मैं गंभीर हो गया.मैंने तुरंत फ़ोन घर मिला दिया ये जानने के लिए की कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है? पर शुक्र है की कोई घबराने की बात नहीं थी. मैं ने राहत की साँस ली और आशु को बताया की आगे से ये बात कभी मत भूलना. मुझे जरूर याद दिला देना वरना वो लोग अगर हॉस्टल पहुँच गए तो बखेड़ा खड़ा हो जायेगा. उसने हाँ में सर हिलाया उसने भी चैन की साँस ली. आज रात सोने के समय भी उसने ठीक वही किया, मेरा सर अपने सीने से लगा कर वो लेट गई. मैं इतने दिनों से उसके जिस्म की गर्मी को महसूस कर पा रहा था. पर मजबूर था की कुछ कर नहीं सकता था. आज मैंने ठान लिया था की इतने दिनों से आशु मेरी खातिरदारी में लगी है तो उसे थोड़ा खुश करना तो बनता हे.
मैंने आशु के स्तनों की घाटी को अपने होठों से चूमा तो उसकी सिसकारी फुट पड़ी; 'ससससस...अ..ह...हह' और वो हैरत से मेरी तरफ देखने लगी. मुझे ऐसा लगा जैसे वो मुझसे मिन्नत कर रही हो की मैं उसकी इस आग का कुछ करू. मैंने थोड़ा ऊपर आते हुए उसके गुलाबी होठों को चूम लिया, आगे मेरे कुछ करने से पहले ही आशु के अंदर की आग प्रगाढ़ रूप धारण कर चुकी थी. उसने गप्प से अपने होठों और जीभ के साथ मेरे होठों पर हमला कर दिया. उसकी जीभ अपने आप ही मेरे मुँह में घुस गई और मेरी जीभ से लड़ने लगी. मैंने भी अपने दोनों हाथों से उसके चेहरे को थामा और अपने होठों से उसके निचले होंठ को मुँह में भर चूसने लगा. ये मेरा सबसे मन पसंद होंठ था और मैं हमेशा उसके नीचले होंठ को ही सबसे ज्यादा चूसता था. दो मिनट तक मैं बस उसके निचले होंठ को चुस्ता रहा और जब जी भर गया तो अपनी जीभ और निचले होठ की मदद से उसके ऊपर वाले होंठ को मुँह में भर के चूसने लगा. जीभ से मैं उसके ऊपर वाले मसूड़ों को भी छेड़ दिया करता. इधर आशु के हाथों ने अपनी हरकतें शुरू कर दी, सबसे पहले तो वो मेरी टी-शर्ट को उतारने की जद्दोजहद करने लगे. पर मैंने अपने हाथों से उसे रोक दिया और वापस उसके चेहरे को थाम लिया और अपनी जीभ और होठों से उसके होठों को बारी-बारी चुस्ता रहा. आशु को इसमें बहुत मजा आ रहा था पर उसे चाहिए था मेरा लिंग, जो मैं उसे दे नहीं सकता था! मैंने उसके होठों को चूसना रोका और उसके चेहरे को थामे हुए ही कहा; 'अपना पाजामा निकाल और जो मैं कह रहा हूँ वो करती जा.'
मेरी बात सुन उसने लेटे-लेटे अपनी पजामी का नाडा खोल दिया और उसे अपनी नितंब से नीचे करते हुए उतार फेंक दिया और बेसब्री से मेरे अगले आदेश का इंतजार करने लगी. मैं सीधा लेट गया,पीठ के बल उसे और मेरे दोनों तरफ टांग कर के मेरे पेट पर बैठने को कहा. आशु तुरंत उठ कर वैसे ही बैठ गई. फिर मैंने उसके कूल्हों पर अपना हाथ रखा और उसे धीरे-धीरे सरक कर मेरे सर की तरफ आने को कहा. वो भी धीरे-धीरे कर के ठीक मेरे मुँह के ऊपर आ कर उकडून हो कर बैठ गई. कमरे में अँधेरा था इसलिए न तो मैं और न वो मेरी शक्ल और भावों को देख पा रही थे. जैसे ही मेरी जीभ ने उसकी योनी के कपालों को छुआ तो वो चिंहुँक उठी और ऊपर की ओर हवा में उचक गई.
मैंने उसकी जांघ पर हाथ रख कर उसे मेरे मुँह पर बैठने को कहा और तब जा कर वो नीचे वापस मेरे मुँह पर बैठ गई. मैंने अपने हाथों से उसकी जांघों को पकड़ लिया ताकि वो और न उचक जाये. मैंने फिर से आशु के योनी के कपालों को जीभ से छेड़ा पर इस बार वो ऊपर नहीं उचकी. अब मैंने अपने होठों से उन कपालों को पकड़ लिया और नीचे की तरफ खींचने लगा, आशु को हो रहे मीठे दर्द के कारन उसके मुँह से 'आह' निकल गई. उसने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को थाम लिया और दबाव देकर अपने योनी को मेरे मुँह पर रगड़ना चाहा' पर मैंने उसे ऐसा करने से रोक दिया. अपने दोनों हाथों को मैं उसकी जांघ से हटा कर उसके योनी के इर्द-गिर्द इस कदर सेट किया की मेरे दोनों हाथों के बीच उसकी योनी थी. आशु का उतावलापन बढ़ने लगा था और मैं उसे रोक रहा था ताकि वो ज्यादा से ज्यादा मजा ले सके. मैंने आशु के कपालों को होठ से चूसना शुरू कर दिया था और इधर आशु अपनी कमर मटका रही थी ताकि वो अपनी योनी को और अंदर मेरे मुँह में घुसा दे!
मैंने जितना हो सके उतना अपना मुँह खोला. आशु की योनी को जितना मुँह में भर सकता था उतना मुँह में भरा और अपनी जीभ उसके योनी में घुसा दी. मेरी जीभ उसके योनी के कपालों के बीच से अपना रास्ता बना कर जितना अंदर जा सकती थी उतना चली गई. 'स्स्स्सस्स्स्स...आअह्ह्ह्हह' इस आवाज के साथ आशु ने मेरी जीभ का अपनी योनी में स्वागत किया. मैंने अपनी जीभ अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी और इधर आशु बेकाबू होने लगी. उसने अपनी कमर इधर-उधर मटकाना शुरू कर दी और अपने हाथों से मेरे सर के बाल पकड़ के खींचने लगी. इधर मेरी जीभ अंदर-बहार हो रही थी और उधर आशु ने अपनी कमर को आगे-पीछे हिलाना शुरू कर दिया. हम दोनों एक ऐसे पॉइंट पर पहुँच गए जहाँ मेरी जीभ और आशु की कमर लय बद्ध तर्रेके से आगे-पीछे हो रहे थे. ५-७ मिनट और आशु की योनी से रस निकल पड़ा जो मेरे मुँह में भरने लगा. आशु ने अपनी दोनों टांगें चौड़ी की और अपने योनी को मेरे मुँह पर दबा दिया और सारा रस मेरे मुँह में उतर गया.अपना सारा रस मुझे पिला कर वो नीचे खिसकी और अपनी योनी को ठीक मेरे लिंग पर रख कर वो मेरे ऊपर लुढ़क गई. उसकी सांसें तेज हो चुकी थी और पसीनों की बूंदों ने उसके मस्तक पर बहना शुरू कर दिया था. दस मिनट बाद जब उसकी सांसें नार्मल हुई तो वो बोली; 'शुक्रिया!!!' मैंने उसके मस्तक को चूम लिया और उसे अपनी बाहों में भर लिया. उसके बाद तो आशु को बड़ी चैन की नींद आई, ऐसी नींद की वो सारी रात मेरी छाती पर सर रख कर ही सोई.सुबह मैंने ही उसे जगाया वो भी उसके सर को चूम कर.
'हाय! क्या शुरुवात हुई है सुबह की!' आशु ने मेरी छाती पर लेटे हुए ही अंगड़ाई लेते हुए कहा. फिर वो उठी और उसकी नजर अपनी पजामी पर पड़ी जो फर्श पर पड़ी थी. उसने वो उठा कर पहना और बाथरूम में नहाने चली गई. सुमन ने उसके कुछ कपडे ला दिए थे जिन्हें पहन कर आशु बाहर आई. आज तो मेरा भी मन नहाने का था पर ठन्डे पानी से नहाने के बजाये आज मुझे गर्म पानी मिला नहाने को.जब मैं नहा कर बाहर निकला तो आशु गुम- सुम दिखी, मैंने उसे हमेशा की तरह पीछे से पकड़ लिया और अपने हाथ को उसके पेट पर लॉक कर दिया.
मैं: क्या हुआ मेरी जानेमन को?
आशु: मैं बहुत सेल्फिश हूँ!
मैं: क्यों? ऐसा क्या किया तुमने?
आशु: कल रात को..... आपने तो मुझे सटिस्फाय कर दिया.... पर मैंने नहीं.... (आशु ने शर्माते हुए कहा.)
मैं: अरे तो क्या हुआ? दिन भर मेरा ख्याल रखती हो, थक गई थी इसलिए सो गई. इसमें मायूस होने की क्या बात है?
आशु: नहीं... मैं....
मैं: पागल मत बन! अभी मेरी तबियत पूरी तरह ठीक नहीं है, जब ठीक हो जाऊँगा ना तब जितना चाहे उतना सटिस्फाय कर लेना मुझे!
मैंने उसे छेड़ते हुए कहा और आशु भी हँस पडी.
मैं: तू इतने दिनों से कॉलेज नहीं जा रही है, तेरी पढ़ाई का नुकसान हो रहा होगा इसलिए कल से कॉलेज जाना शुरू कर.
आशु: आप पढ़ाई की चिंता मत करो! मैं सारा कवर-अप कर लूँगी!
मैं: आशु... बात को समझा कर! तकरीबन एक हफ्ता होने को आया है, आंटी जी और सुमन क्या सोचते होंगे? मेरी बात मान और कल से कॉलेज जाना शुरू कर और मेरी चिंता मत कर मैं घर चला जाता हु. वैसे भी पिताजी को मेरी तबियत के बारे में कुछ मालूम नहीं है, ऐसे में कुछ दिन वहाँ रुकूँगा तो बात बिगड़ेगी नही.
आशु ने बहुत ना-नुकुर की पर मैंने उसे मना ही लिया. शाम को जब सुमन आई तो मैंने उसे आशु को साथ ले जाने को कहा;
सुमन: अरे आशु चली गई तो आपका ध्यान कौन रखेगा?
मैं: मैं कल सुबह घर जा रहा हूँ वहाँ सब लोग हैं मेरा ख्याल रखने को. मैं तो रविवार ही निकल जाता पर तबियत बहुत ज्यादा ख़राब थी! आशु अपना मन मारकर चली गई और उसने जो खाना बनाया था वही खा कर मैं सो गया.
मैने पीताजी को फ़ोन कर दिया था और वो मुझे लेने बस स्टैंड आ रहे थे. चार घंटों का थकावट भरा सफर तय कर मैं गाँव के बस स्टैंड पहुँचा जहाँ पिताजी पहले से ही मौजूद थे. उन्हें नहीं पता था की मेरी तबियत इतनी खराब है की बस स्टैंड से घर तक का रास्ता जो की पंधरा मिनट का था उसे मैंने पांच बार रुक-रुक कर आधे घंटे में तय किया. घर जाते ही मैं बिस्तर पर जा गिरा.
कमजोरी इतनी थी की बयान करना मुश्किल था. आशु ने मुझे शाम को फ़ोन किया पर मैं दोपहर को खाना खा कर सो रहा था. मेरे फ़ोन ना उठाने से वो बहुत परेशान हो गई और धड़ाधड़ मैसेज करने लगी. इंटरनेट बंद था इसलिए मैसेज भी सीन नहीं थे. वो बेचैन होने लगी और दुआ करने लगी की मैं ठीक-ठाक हु. रात को आठ बजे मैं उठा तब मैंने फ़ोन देखा और फटाफट आशु को फ़ोन किया. 'मैंने कहा था न की मैं आपकी देखभाल करुँगी, पर आपने जबरदस्ती मुझे खुद से दूर कर दिया! देखो आपकी तबियत कितनी ख़राब हो गई! आपने फ़ोन नहीं उठाया तो मैंने मजबूरन घर फ़ोन किया और तब मुझे पता चला की आपकी कमजोरी और बढ़ गई है!' आशु ने रोते-रोते खुसफुसाते हुए कहा.
'जान! मैं ठीक हूँ! उस टाइम थकावट हो गई थी. पर अब खाना खा कर दवाई ले चूका हु. तुम मेरी चिंता मत करो!' मैंने उसे तसल्ली देते हुए कहा.
'आपने जान निकाल दी थी मेरी! जल्दी से ऑनलाइन आओ मुझे आपको देखना है!' इतना कह कर आशु ने फ़ोन रख दिया और मैंने अपने हेडफोन्स लगाए और ऑनलाइन आ गया.आशु हमेशा की तरह बाथरूम में हेडफोन्स लगाए हुए मुझसे वीडियो कॉल पर बात करने लगी.बहुत सारे किसेस मुझे दे कर उसे चैन आया और फिर रात को चाट करने के लिए बोल कर चली गई. रात दस बज़े से वो मेरे साथ चाट पर लग गई और बारा बजे मैंने ही उसे सोने को कहा ताकि उसकी नींद पूरी हो. इधर मैं फ़ोन रख कर सोने लगा की तभी पेशाब आ गया.मैंने सोचा बजाये नीचे जाने के क्यों न छत पर ही चला जाऊ. जब मैं छोटा था तो कभी-कभी रात को छत की मुंडेर पर खड़ा हो जाता और अपने पेशाब की धार नीचे गिराता. यही बचपना मुझे याद आ गया तो मैं भी मुस्कुराते हुए छत पर आ गया और अपना लिंग निकाल कर मुंडेर पर चढ़ गया और पेशाब करने लगा. जब पेशाब कर लिया तो मैं पीछे घुमा और वहाँ जो खड़ा था उसे देखते ही मेरी सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई.
 
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तुझसे बढ़कर नहीं कोई नशा' और हम सारे नाचने लगे. अब बारी थी मेरी की मैं भी अपना पेग खत्म कर दूँ तो मैं तीनों को नाचता हुआ छोड़ के अपना पेग पीने लगा.
तभी वहां नेक्स्ट गाना लगा; “शेप ऑफ यू” मैं जल्दी से वपस डांस फ्लोर पर आ गया और चारों जोश से भर के नाचने लगे, 'आई एम इन लव विद योवर बॉडी…
ओह—I—ओह—I—ओह—I—ओह—I' ये लाइन चारों एक साथ चीखते हुए गा रहे थे. इस गाने के खत्म होने के बाद चारों चूँकि थक चुके थे. इसलिए सारे वापस आ कर काउच पर 'फ़ैल' गए! जब सबकी सांसें दुरुस्त हुईं तो राखी ने कहा की उसे एक और बियर चाहिए और आशु ने कहाँ मुझे कोई हार्ड ड्रिंक ट्राय करना हे. मैं हैरानी से आशु की तरफ देखने लगा, मैंने सोचा की मुझे उसे समझाना चाहिए तो मैंने बात बदलते हुए कहा; 'आप में से किसी को ब्रेवरी ट्यांक देखना है?' आशु ने जल्दी से अपना हाथ उठाया पर उसके अलावा किसी ने कोई जोश नहीं दिखाया. मैडम ने भी कहा की बाद में देखेंगे अभी मैं ड्रिंक्स का आर्डर दे दू. 'अश्विनी जी, आप आज लाईट ट्राय कर के देखो|' मैंने कोशिश की कि आशु हार्ड ड्रिंक ना ले वरना वो आज क्या रायता फैलाती ये मैं जानता था. 'ये हार्ड ड्रिंक है?' आशु ने फटक से पूछा. 'नहीं... इट्स लाँग आई ल्यांड आइस टी'
'पर बियर के बाद चाय कौन पीता है!' आशु ने बड़े भोलेपन से पूछा.
आशु की बात सुन कर मैं बहुत जोर से हँसा, राखी और यहाँ तक कि मैडम को भी नहीं पता था कि लाईट क्या होती है! 'ये कोई चाय नहीं है बल्कि दो-तीन तरह कि हार्ड ड्रिंक्स को मिला कर बनाया जाता हे. टेस्ट में ये मीठी होती है पर नशा बियर के मुकाबले थोड़ा ज्यादा होता हे.' ये सुन कर तीनों ने ट्राय करने की हामी भरी और मैंने तीनों के लिए ये मंगाई और अपने लिए 'एल बिअर' मंगा.| जब आर्डर सर्व हुआ तो तीनों मेरी तरफ देखने लगे और पूछने लगे की मैंने क्या मंगाया है? 'ये 'एल बिअर' हे. ये थोड़ी स्ट्रांग है, टेस्ट में हलकी सी कॉफ़ी की महक आती हे.' ये सुनना था की सबसे पहले मैडम ने एक सिप लिया और दूसरा सिप आशु ने लिया और लास्ट सिप राखी ने लिया.
'ये तो थोड़ी कड़वी है!' आशु ने मुँह बनाते हुए कहा. उसके इस बचकानेपन पर मुझे हँसी आ गई. आधी बियर खत्म कर मैं वाशरूम के लिए उठा और आशु भी उठ खड़ी हुई और फिर हम दोनों वाशरूम आ गये. अंदर घुसने से पहले ही मैंने आशु का हाथ पकड़ लिया और उसके कान में बोला; 'हार्ड ड्रिंक मत लेना!' उसने सवालियां नजरों से पूछा की आखिर क्यों नहीं लेना तो मैंने उसे समझाया; 'नशे में अगर तुमने कुछ बक दिया तो काण्ड हो जायेगा!' पर उसने मेरी बात को अनसुना किया और वाशरूम में घुस गई. मैं भी वाशरूम में घुस गया पर मन ही मन तैयारी कर चूका था की बेटा आज तो काण्ड होना तय है! वापस आया तो मैडम ने कहा की सब ब्रेवरी ट्यांक देखना चाहते हे. मैं उन्हें काउंटर के पीछे ले गया और उन्हें स्टेनलेस स्टील से बने टैंक दिखाये. तीनों वो देख कर खुश हो गए, दरअसल ये तो दारु थी जिसका थोड़ा-थोड़ा नशा सब पर छाने लगा था. हम वापस आ कर बैठे ही थे की डी.जे. ने गाना लगाया 'साइको सैयां'.अब ये सुन के तो तीनों पागल हो गए और मुझे खींच कर डांस फ्लोर पर ले आये और तीनों मेरे से चिपक कर नाचने लगे. मैं भी शराब के सुरूर में तीनों के साथ कदम से कदम मिला कर डांस करना शुरू कर दिया. उसके बाद तो डी.जे ने एक के बाद ऐसे गाने बजाये की हम चारों ने बिना रुके आधा घंटा डांस किया. आखिर कर थक कर हम चारों काउच पर बैठे और मैडम ने लास्ट राउंड खुद आर्डर किया. चिवागे के २ ३० मिली पेग और मेरे और अपने लिए मैडम ने ६० मिली लार्ज पेग मंगाया. मेरा कोटा सबके मुकाबले काफी बड़ा था इसलिए मैं अब भी होश में था. जबकि आशु और राखी तो ढेर हो चुका था., दोनों को बहुत तगड़ा नशा हो चुका था.
मैंने मैडम से चलने को कहा तो उन्होंने बिल मंगवाया और बिल ८,०००/- का आया. अब मैं और मैडम बिल भरने के लिए जिद्द करने लगे पर मैडम ने बात नहीं मानी और खुद ही बिल भरा. जब मैडम उठ कर खड़ी हुईं तो नशा उन पर जोर दिखाने लगा और वो लडख़ड़ाईं, मैंने उन्हें संभालना चाहा तो मेरा हाथ सीधा उनकी कमर पर जा पहुंचा.फिर मैडम ने जैसे-तैसे खुद को संभाला, पर आशु और राखी तो काउच पर ऐसे फैले हुए थे जैसे की कोई लाश! मैंने दोनों को उठाया और चलने को कहा तो दोनों से खड़ा नहीं हुआ जा रहा था. मैडम ये देख कर हँसने लगी. अब मैंने दोनों को जैसे-तैसे सहारा देकर उठाया और दोनों ने अपनी एक-एक बाँह मेरे गले में डाल दी. मैं दोनों के बीच में था और मैंने दोनों को उनकी कमर से संभाला हुआ था. आशु और राखी का सर मेरे सीने पर था और मैडम ने इस मौके का फायदा उठा कर अपना फ़ोन निकला और मेरी इस हालत में फोटो खींची और फिर हम चारों की सेल्फी भी ली. जैसे-तैसे मैं दोनों को बाहर ले कर आया और मैडम भी लड़खड़ाते हुए बहार आ कर खड़ी हो गई.
'सागर जी ई ई ई ई ई ई ई ई ई ई ई ई !!! कैब बुला..... लो ..... नाआ....' मैडम ने शब्दों को खींच-खींच कर बोलना शुरू कर दिया. पर मैं कैब बुलाऊँ कैसे? आशु और राखी दोनों मेरे सीने से चिपकी हुई थी. मैंने दोनों को हिला- डुला कर होश में लाना चाहा, जैसे ही दोनों को थोड़ा होश आया की दोनों ने उलटी करनी शुरू कर दी. दोनों ही मुझसे अलग हो कर अलग-अलग दिशा में जा कर उलटी करने लगी. अब मैंने फटाफट फ़ोन निकाला और कैब बुक कर दी. मैंने पानी की बोतल ला कर आशु और राखी को दी और तभी कैब आ गई. अब तो मुझ पर भी दारु का असर चढ़ना शुरू हो गया था पर उतना नहीं था जितना मैडम और आशु पर था. मैं आगे बैठा और बाकी तीनों बड़ी मुश्किल से पीछे बैठे.किसी का हाथ किसी पर था तो किसी का मुँह किसी की गोद में! ड्राइवर भी हँस रहा था और कह रहा था साहब कैसे छोड़ोगे सब को? मैंने उसे पहले मैडम को घर छोड़ने के लिए कहा और गाडी उस तरफ चल पडी. मैडम का घर आया तो मैंने मैडम को जगाया, उनकी तो आँख भी नहीं खुल रही थी. कुनमुनाते हुए वो उठीं और शायद उनको थोड़ा होश था तो वो बोलीं की आज रात सब उन्हीं के घर सो जाते हे. मैंने मना किया तो मैडम ने कहा की आशु को हॉस्टल इस हालत में कैसे छोड़ोगे? और राखी को उसके घर कैसे छोड़ोगे? उसके घर वाले बवाल करेंगे. आखिर मैडम ने राखी के घर फ़ोन कर के बोल दिया की राखी उन्हीं के घर रुकेगी रात और कल सुबह आ जायेगी घर.
मैं और मैडम पहले गाडी से उतरे पर बाकी दोनों देवियाँ बेसुध पड़ी थी. मैंने आशु को खींच कर बाहर निकला और मैडम ने राखी को, आशु को मैंने गोद में उठा लिया और जैसे ही उसे मेरे जिस्म का एहसास हुआ उसने अपने दोनों हाथों को मेरे गले में डाल दिया. मैडम ने मुझे जब इस तरह से आशु को उठाये हुए देखा तो वो आँखें चढ़ा कर मुझे छेड़ते हुए बोली; 'क्या बात है सागर जीईईईईईईईईई !!!' मैंने बस मुस्कुरा दिया और आगे कहता भी क्या.मैडम ने राखी को अपने शरीर का सहारा दे रखा था और उसका दाएं हाथ मैडम के गले में था. मैडम आगे और मैं पीछे था. दरवाजा खोल कर मैडम अंदर आईं और मुझे एक कमरे की तरफ इशारा किया, मैं वहीँ पर आशु को ले कर घुस गया.मैडम भी मेरे पीछे-पीछे राखी को ले कर आईं और राखी तो बेड पर औंधी पड़ गई (कुछ इस तरह)|
पर आशु ने अपनी बाहों को मेरे गले में कस रखा था. जब मैं उसे लिटाने लगा तो वो मुझे किस करने के लिए इशारा करने लगी. ये मैडम ने देखा तो वो दरवाजे का सहारा ले कर खड़ी हो गईं और देखने लगीं की क्या मैं उसे किस करूँगा या नहीं?! चाहता तो मैं भी आशु को चूमना था पर मैडम के होते हुए ये नहीं हो सकता था. मैंने मैडम की तरफ मुँह घुमा लिया ताकि आशु मुझे किस न कर सके.मैडम ये देख कर हँस पड़ी और मैं भी हँस दिया. जैसे-तैसे मैंने आशु के हाथों को अपनी गर्दन से छुड़ाया और मुड़ के जाने लगा तो वो बुदबुदाते हुए बोली; 'जानू!...उम्म्म... ममम.... प्लीज...!!!' अब मैं क्या कहूं क्या करूँ कुछ समझ नहीं आया पर शुक्र है की मैडम ने इसका कोई गलत मतलब नहीं निकाला और बोली; 'आज कुछ ज्यादा ही नशा हो गया अश्विनी को, ये भी होश नहीं है की वो कहाँ है और किसके साथ हे.' मैंने बस जवाब में 'जी' कहा और हम बाहर हॉल में आ गए, अब बात ये थी की मैं सोऊँगा कहाँ? पर मैडम तो आज कुछ ज्यादा ही मूड में थी. उन्होंने १००० पाईपर की बोतल निकाली और दो पेग बना कर ले आई.
मैं तो आज जैसे सातों जन्म की दारु की प्यास बुझा लेना चाहता था क्योंकि जानता था की कल से आशु मुझे पीने नहीं देगी. इसलिए मैंने पेग लिया और खड़ा-खड़ा ही पीने लगा और मैडम के घर को देखने लगा. उनसे नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी इसलिए मैं बस नजरें चुरा रहा था. 'सागर जीईईईईईई!!! आप मेरे रूम में सो जाइये मैं यहाँ हॉल में काउच पर सो जाऊंगी.' अब भला मैं ये कैसे मान सकता था; 'नहीं मॅडम आप अंदर सो जाइये मैं यहाँ सो जाऊंगा.'
'आज तो आप बर्थडे बॉय हैं, आज तो आपका ज्यादा ख्याल रखना चाहिए.' मैडम ने सिप लेते हुए कहा.
'मॅडम अब तो १२:३० बज गए, मेरा दिन ख़त्म! अब तो मैं वापस से पहले वाला सागर ही हु.' मैंने अपने पेग का आखरी घूँट पीते हुए कहा.
'चलिए ना आपकी न मेरी, हम दोनों ही सो जाते हैं!' मैडम ने थोड़ा दबाव बनाते हुए कहा और मेरा हाथ पकड़ के मुझे कमरे की तरफ ले जाने लगी. पर मैं वहीँ रूक गया और बोला; 'मॅडम अच्छा नहीं लगता! आशु...मेरा मतलब अश्विनी और राखी भी हैं घर पर... वो कल सुबह उठेंगी तो कुछ गलत न सोचें.इसलिए प्लीज मॅडम आप अंदर सो जाइये मैं बहार सो जाता हु.' मैंने मैडम से विनती की तो मैडम मेरी आँखों में देखने लगी; 'सच्ची सागर जी! आप ..... कुछ ज्यादा ही .... खय... (ख़याल)… सोचते हो.' मैडम ने किसी तरह से बात को संभालते हुए कहा. वो जानती थी की मेरे मन में उनके लिए प्रेमियों वाल प्यार नहीं बल्कि एक अच्छे दोस्त जैसे मान-सम्मान हे. इसलिए वो मुस्कुरा दीं और मुझे अंदर से तकिया ला कर दिया और फिर सोने चली गई. मैं भी काउच पर जूते-मोजे उतार के लेट गया और फ़टक से सो गया.शराब का नशा अब दिमाग पर बहुत चढ़ रहा था.
रात के करीब २ बजे होंगे की मुझे किसी के हाथ का स्पर्श अपने होठों पर हुआ.ये कोई और नहीं बल्कि आशु थी जो अभी भी नशे में थी और अपने बिस्तर से उठ कर मेरे सिरहाने खड़ी थी. पर मुझ पर तो दारु का नशा सवार था इसलिए मैं बस उस हसीं पल का लुत्फ़ उठा रहा था. जिसमें आशु मेरे होठों को बारी-बारी चूस रही थी. उसके हाथों ने मेरी कमीज के बटन खोलने शुरू कर दिए थे और मैं अब भी होश में नहीं आया था. सारे बटन खोल कर आशु मेरी टांगों की तरफ आई और झुक कर मेरी पैंट की ज़िप खोली, फिर बेल्ट खोलने की कोशिश में उसने मुझे थोड़ा हिला दिया जिसके कारन मेरी नींद टूटी और मैं कुनमुनाया; 'उम्म्म...ममम' पर आशु को जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ा और वो फिर से मेरी बेल्ट खोलने लगी. पर चूँकि बेल्ट बहुत टाइट थी तो उसे खोलने में आशु को कठनाई हो रही थी. उसने हार मानते हुए मुझे ही हिलाना शुरू कर दिया. ३-४ बार हिलाते ही मेरी आँख खुल गई. पर हॉल में कम रौशनी थी जिससे मैं ये नहीं देख पाया की कौन है और खुसफुसाते हुए पूछ बैठा; 'कौन है?' जवाब में आशु ने मेरे होठों को फिर से अपने मुँह में भर लिया और मेरे ऊपर के होंठ को चूसने लगी. अब मुझे समझते देर न लगी की ये आशु है, पर दिमाग नशे से इतना सुन्न था की मैं जल्दी रियेक्ट नहीं कर पाया. पर फिर भी इतनी सुद्ध तो थी की मैं अपने घर नहीं बल्कि मैडम के घर पर हूँ और वहाँ मेरे और आशु के अलावा दो लोग और हे. मैंने बड़ी मुश्किल से आशु के होठों से अपने होठों को छुड़वाया और खुसफुसाते हुए बोला; 'जान! क्या कर रहे हो? हम मॅडम के घर पर हैं! कोई आ जायेगा....' पर मेरी बात पूरी होने से पहले ही आशु मेरे ऊपर लेट गई और फिर से अपने होठों से मेरे होठों को कैद कर लिया. अब तो मुझे भी जोश आ ने लगा था पर खुद को काबू करने लगा. दो मिनट मेरे होंठ चूसने के बाद आशु ने खुद ही उन्हें छोड़ दिया और मेरी छाती पर सर रख कर बोली; 'जानू! आज बहुत मन कर रहा है! बड़े दिन हुए आपने मुझे प्यार नहीं किया?!'
'जान! हम मॅडम के घर पर हैं, कोई आगया तो?' मैंने आशु को समझाते हुए कहा.
'कोई नहीं आएगा जानू! मॅडम और राखी दोनों गहरी नींद में हैं और मैंने मॅडम के कमरे का दरवाजा बंद कर दिया हे. प्लीज मान जाओ ना!' अब मेरा प्यार मुझसे इतने प्यार से मिन्नत कर रहा है तो मैं भला उसका दिल कैसे तोड़ सकता था. 'तो आप नहीं मानने वाले ना?!' मैंने आशु के बालों में हाथ फेरा और उसे उठ कर खड़ा होने को कहा. मैंने एक बार खुद इत्मीनान किया की मैडम और राखी सो रहे हैं ना?! फिर दोनों कमरों के दरवाजे को मैंने धीरे से बंद कर दिया. वापस आया तो आशु काउच पर लेटी थी और उसने अपने डिवाइडर का नाडा खोल कर नीचे खिसका दिया था. उसकी पैंटी भी घुटनों तक उतरी हुई थी. अब मैंने भी जल्दी से अपनी पैंट खोल दी और कच्छा नीचे किया और लिंग पर खूब सारा थूक चुपेड़ा.अपने घुटने मोड़ कर मैं आशु के ऊपर छा गया और हाथों से पकड़ के लिंग उसकी योनी के द्वार से भीड़ा दिया. मैं जानता था की जैसे ही मैं लिंग आशु की योनी में पेलुँगा वो दर्द से चिल्लायेगी इसलिए मैंने सबसे पहले उसके होठों को अपने मुँह से ढक दिया. मैंने अपनी जीभ उसके मन में डाल दी और आशु उसे चूसने लगी. इसका फायदा उठाते हुए मैंने नीचे से अपने लिंग को उसकी योनी में उतार दिया. सिर्फ सुपाड़ा ही अंदर गया था की आशु ने मेरी जीभ को दर्द महसूस होने पर काट लिया. अब 'आह' कहने की बारी मेरी थी पर वो आवाज निकल नहीं पाई, जोश आया तो मैंने नीचे से एक और झटका मारा और आधा लिंग योनी में पहुँच गया.आशु ने मेरी जीभ छोड़ दी और उसकी सीत्कारें मेरे मुँह में ही दफन हो कर रह गई. कुछ 'गुं..गुं..गुं..!!!' की आवाजें बाहर आ रहीं थी.
आशु का दर्द मुझसे कभी बर्दाश्त नहीं होता था. इसलिए मैं तुरंत रूक गया.मैंने उसके होठों के ऊपर से अपना मुँह हटा लिया, मेरे हटते ही कुछ पल में आशु की सांसें सामान्य हुई और वो बोली; “जानू! प्लीज ... रुको मत! पूरा अंदर कर दो!!!!' आशु की बात सुन उसका मेरे लिए प्यार मैं समझ गया और वापस उस पर झुक गया.धीरे-धीरे बिना रुके मैंने अपना पूरा लिंग उसकी योनी में पहुँचा दिया. अब मैंने धीरे-धीरे अपने लिंग को अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया. आशु से ये सुख बिना आवाज किये बयान करना मुश्किल था. उसने अपने दाहिने हाथ की कलाई अपने मुँह पर भर ली और उसे काटने लगी. उसकी सीत्कार उसके मुँह में ही कैद होने लगी और इधर मेरी रफ़्तार तेज होने लगी थी. १० मिनट तक ही आशु टिक पाई और फिर वो झड़ने लगी. पर इससे पहले की मैं झड़ता राखी के कमरे का दरवाजा खुला और वो बाहर आई. उसपर नजर सबसे पहले आशु की पड़ी और उसने मुझे एकदम से अपने ऊपर से ढकेल दिया. जब मेरी नजर आशु की नजर के पीछे-पीछे गई तो राखी मुझे वाशरूम जाती हुई दिखी और मैं भी हड़बड़ा कर उठा और फटाफट अपनी पैंट पहनने लगा. आशु ने भी अपने कपडे ठीक किये और अंदर कमरे में भाग गई. ये तो शुक्र था की हॉल में रौशनी कम थी और काउच जिस पर हम दोनों थे वो दरवाजे के साथ वाली दिवार के साथ था. राखी ने हम दोनों को नहीं देखा और वो सीधा ही वाशरूम में घुस गई थी. जब वो बाहर आई तो मैं चुप-चाप ऐसे लेटा था जैसे सो रहा हूँ, उसने आ कर मेरी टाँग हिला कर मुझे उठाया; 'अश्विनी कहाँ है?' ये सुन कर तो मैं अवाक रह गया, मुझे लगा की उसने मुझे और आशु को संभोग करते हुए देख लिया! मैंने फिर भी अनजान बनते हुए, कुनमुनाते हुए कहा; 'प....पता नहीं!'
'अंदर तो नहीं है? आप लोग उसे वहीँ तो नहीं छोड़ आये ना?' ये सुन कर मुझे सुकून हुआ की उसने कुछ देखा नहीं! मैं तुरंत उठ के बैठ गया और ऐसे दिखाने लगा की मुझे सच में नहीं पता की वो कहाँ हे. मैंने हॉल की लाइट जलाई; 'आप ने वाशरूम देखा?' पर तेज लाइट से जैसे ही कमरे में रौशनी हुई हम दोनों की आँखें चौंधिया गईं और राखी ने अपनी आँखों पर हाथ रखा और बोली; 'मैं अभी वहीँ से तो आ रही हु.' मैं जान बुझ कर उसी कमरे में घुसा और देखा आशु वहीँ सो रही है; 'अरे ये तो रही!' मैंने फिर से चौंकने का नाटक करते हुए कहा. राखी अंदर आई और एक दम से चौंक गई; 'ये यहाँ कैसे आई? मैं जब उठी तब तो यहाँ कोई नहीं था?' उसने जा कर आशु को छू कर देखा और फिर उसे जगाने लगी तो आशु चौंक कर उठ गई और हैरानी से हम दोनों को देखने लगी. 'तू यहाँ तो नहीं थी जब मैं उठी?' राखी ने आशु से पूछा.
'मैं किचन में थी पानी पीने, जब वापस आई तो आप यहाँ नहीं थे. क्या हुआ?' आशु की बात सुन कर राखी की हँसी छूट गई.
'यार तुमने सच में डरा दिया मुझे! मुझे लगा की कोई भूत-प्रेत है यहाँ!' अब ये सुन कर हम तीनों हँस पडे.वो दोनों वापस लेट गए और मैं पहले बाथरूम में घुसा और जा कर लिंग हिलाया और पानी निकाल कर सो गया.
सुबाह सात बजे मैडम ने मुझे उठाया और हमारी गुड मॉर्निंग हुई फिर उन्होंने कॉफ़ी का मग मुझे दिया. 'नींद तो आई नहीं होगी आपको?' मैडम ने मुझसे पूछा.
'मॅडम नींद तो जबरदस्त आई पर राखी ने रात को भूत देख लिया!' मेरी बात सुन कर मैडम एक दम से हैरान हो गई. फिर मैंने उन्हें सारी बात बताई तो मैडम हँस पडी. हमारी हँसी सुन कर आशु और राखी दोनों बाहर आ आ गये. मैडम ने उन्हें भी कॉफ़ी दी और हमारी कल रात के बारे में बातें शुरू हुईं. जब मैडम ने आशु को बताया की वो नशे में मुझे मैडम के सामने किस करने वाली थी तो वो बुरी तरह झेंप गई! 'आय-हाय! शर्मा गई लड़की! अब तो नाम बता दे की कौन है वो लड़का?' आशु की नजरें झुकी हुई थी और उसने बस इतना ही कहा; 'है एक....' बस इसके आगे वो कुछ नहीं बोली और कॉफ़ी का कप रख कर वाशरूम चली गई.
राखी: वैसे सागर जी, आपके शराब के ज्ञान को सलाम! (राखी ने मुझे छेड़ते हुए कहा.)
नितु मैडम: सब तरह शराब चखी है आपने. (मैडम ने राखी की बात में अपनी बात जोड़ दी.)
मैं: मॅडम कॉलेज के दिनों में ...... ये सब ट्राय की थी. (मैंने थोड़ा झिझकते हुए जवाब दिया.)
राखी: पर पैसे कहाँ से लाते थे तब?
मैं: पार्ट टाइम में टूशन पढ़ाता था. उससे जो पैसे कमाता था उससे ये शौक़ पूरे होते थे.
नितु मैडम: अरे वाह! तभी से इनडीपेंडनट हो आप!
राखी: और भी कोई शौक़ है इसके अलावा?
अब मैं सोच में पड़ गया की कुछ बोलूँ या नहीं पर तभी आशु आ गई और उसने जाने की इज्जाजत मांगी.
नितु मैडम: अरे पहले नाश्ता तो करो!
फिर मैडम, राखी और आशु सब एक साथ किचन में घुस गए और मैं भी फ्रेश हो कर मैडम की बालकनी में खड़ा हो गया और सुबह की धुप का मजा लेने लगा. नाश्ता कर के हम सब को निकलते-निकलते ९ बज गये. मैडम ने आज मुझे और राखी को छुट्टी दे दी और ये सुनते ही आशु की आँखें चमक उठी. मैंने कैब बुक की और सबसे पहले राखी का ड्राप पॉइंट डाला और फिर लास्ट में मेरा और आशु का. राखी जब उतरी तो वो मेरे पास आई और मुझे कान पकड़ के सॉरी बोला. मैं भी बड़ा हैरान था की ये मुझे क्यों सॉरी बोल रही हे. 'कल रात शायद नशे में मैंने आपसे कोई बदसलूकी की हो तो उसके लिए सॉरी.'
'पर आपने कुछ नहीं किया! रिलैक्स!' मैंने उसे आशवस्त किया की कुछ भी नहीं हुआ. फिर जब हम घर पहुँचे तो आशु फुल मूड में थी. दरवाजे बंद होते ही आशु ने मुझे जोर से खींचा और पलंग के सामने खड़ा कर दिया और फिर जोर से धक्का दे कर मुझे पलंग पर गिरा दिया. मैं अभी सम्भल भी नहीं पाया था की आशु मेरे ऊपर कूद पड़ी और मेरे पेट पर बैठ गई. फिर झुक कर उसने मेरे होठों को अपने होठों से मिला दिया फिर अपना मुँह खोला और अपनी जीभ से मेरे ऊपर वाले होंठ को सहलाया. उसे अपने मुँह में भर के चूसने लगी. मेरे हाथों ने उसकी पीठ को सहलाना शुरू कर दिया. अब बारी थी मेरी, मैंने भी थोड़ा जोश दिखाया और उस के किस का जवाब देने लगा. मैंने अपने हाथों से उसे कास के अपने से चिपका लिया और पलट कर अपने नीचे ले आया. नीचे आ कर मैंने उसके डिवाइडर को निकाल कर फेंक दिया और उसकी कच्छी उतार के पहले उसे सूँघा, फिर उसे भी फेंक दिया. आशु की नग्न योनी मेरे सामने थी और ऐसा नहीं था की मैं वो पहली बार देख रहा था. बल्कि जब भी देखता था तो सम्मोहित हो जाता था.
मेरा मुँह अपने आप ही आशु की योनी पर झुकता चला गया और जोश आते ही मैंने अपने मुँह को जितना खोल सकता था उतना खोल कर आशु की योनी को अपने मुँह से ढक दिया. जीभ सरसराती हुई अंदर चली गई और आशु के योनी में लपलपाने लगी. इतने भर से ही आशु की योनी ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया और उसने मेरे कमीज के कॉलर को पकड़ के ऊपर खींच लिया. अब मैंने तो अभी भी पैंट पहनी थी पर आशु इतनी बेसब्री थी की उसने पैंट की ज़िप खोली और मेरे लिंग को टटोलने लगी. लिंग पकड़ में आते ही उसने उसे बहार निकाला और अपनी योनी के मुख से भिड़ा दिया. आशु के योनी का पानी बहके मेरे लिंग के सुपाडे से टच हुआ था मेरे जिस्म में झुरझुरी छूट गई. मैंने पूरी ताक़त से एक झटका मारा और लिंग फिसलता हुआ और चीरता हुआ आशु के योनी में पहुँच गया.'माँ...आ..आ..आ..आ ..आ..आ...आ..मम...आह....हह..हहा...आय....!!' आशु के मुँह से जोरदार चीख निकली और उसने अपने दाँत मेरे कंधे पर गड़ा दिए! तब जा कर मुझे आशु के दर्द का एहसास हुआ. आशु के दाँत अब भी मेरे कंधे पर गड़े हुए थे और मैं बिना हिले-डुले ही उसपर पड़ा रहा. पॉंच मिनट तक हम दोनों इस तरह बिना हिले-डुले पड़े रहे, फिर धीरे-धीरे आशु ने अपने दाँत मेरे कंधे पर से हटाये और नीचे से उसने अपनी योनी को सिकोड़ा. ये मेरे लिए प्रकाश था. मैंने धीरे-धीरे लिंग अंदर-बाहर करना शुरू किया और अगले दो मिनट में ही मेरी स्पीड बढ गई और आशु फिर से झड़ गई! उसके झंडने से मेरे लिंग की स्पीड और भी ज्यादा बढ़ गई. पर आशु ने मुझे रोकना चाहा और मेरी छाती पर दबाव दे कर मुझे खुद से दूर करने लगी. पर मैं फिर भी लगा रहा, शायद आशु से ये बर्दाश्त नहीं हो रहा था और उसने मुझे बहुत जोर से झटका दे कर खुद से अलग कर दिया. मुझे उसके इस बर्ताव से बड़ी खीज हुई और मैं उसके ऊपर से हट गया और दूर जा कर खड़ा हो गया.मेरी सांसें तेज थी और गुस्से से चेहरा तमतमा रहा था. आशु की नजर मुझ पर पड़ी तो वो शर्मा गई और दूसरी तरफ मुँह कर के लेटी रही.
दरअसल आशु के जल्दी छूट जाने से और मुझे बीच मजधार में छोड़ देने से मैं बहुत गुस्से में था.
मेरा गुस्सा अब बेकाबू होने लगा था और मुझे कैसे भी शांत करना था. मैंने अपनी कमीज, पैंट सब उतार फेंकी, नंगा बाथरूम में घुस गया और शावर चला कर उसके नीचे खड़ा हो गया.पानी की ठंडी-ठंडी बूँदें सर पर पड़ीं तो गुस्सा थोड़ा कम हुआ और लिंग 'बेचारा' सिकुड़ कर बैठ गया.दस मिनट तक मैं शावर के नीचे आँखें मूंदें खड़ा रहा, पर गुस्सा पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था. बदन का पानी पोंछ कर जब बहार निकला तो सामने आशु सर झुकाये खड़ी थी. मैं उसके बगल से निकल गया और अपने कपडे पहनने लगा. आशु पीछे से आई और मुझे अपनी बाहों में भर कर बोली; 'सॉरी!' मैंने उसके हाथ अपने जिस्म से अलग किये और बोला; 'क्यों मेरे जिस्म में आग लगा रही है, जब उसे बुझा नहीं सकती! मैंने तो नहीं कहा था न की आके मेरे से चिपक जा?' मैंने बड़े रूखे तरीके से उसे दुत्कारा.आशु ने सर झुकाये हुए ही अपने कान पकडे और फिर से सॉरी बोला. मैंने आगे कुछ नहीं बोला और आशु का बैग उठाया और उसे रेडी होने को कहा पर वो वहाँ से हिली ही नही. 'सॉरी जानू! आज के बाद कभी ऐसा नहीं करुँगी!' आशु ने फिर से कान पकड़ते हुए कहा. अब तक जिस गुस्से को मैंने रोक रखा था वो आखिर फुट ही पड़ा;
'क्या दुबारा नहीं करुँगी? हाँ? बोल??? कल रात को मना किया था न मैंने? बोला था ना की हम मॅडम के घर पर हैं, पर तुझे चैन नहीं था! आखिर मुझे क्या मिला? तू तो जा कर सो गई और मैं बाथरूम में जा कर हस्तमैथुन कर के सो गया.अभी भी, मैंने तुझे छुआ तक नहीं और तू ही आ कर मुझसे चिपकी थी ना? तेरी तो जिस्म की आग बुझ गई. पर मेरा क्या? अगर मुझे हस्तमैथुन ही करना था तो संभोग क्यों? अगर तुझे कोई बिमारी होती तो मैं फिर भी समझता, ये तो तेरा उतावलापन है जिसके कारन प्यासा मैं रह जाता हु. उस दिन तो बड़े गर्व से कह रही थी की डॉक्टर ने ये सिखाया है, वो सिखाया है अब क्या हुआ उस सब का? कितने महीनों से कर रहे हैं हम ये? बोल??? ६ महीने से!!! और इन ६ महिनों में कितनी बार संभोग देखा तूने मेरे फ़ोन में? उससे कुछ नहीं सीखा? और तेरी वो दोस्त निशा जो तुझे अपने संभोग के किस्से बड़ी डिटेल में बताया करती थी? उससे कभी कुछ नहीं सीखा तूने?
आशु सर झुकाये सब सुनती रही और फिर आकर मेरे सीने से लग गई. उसकी आँखें छलछला गईं और मेरे अंदर जो गुस्सा था वो अब शांत हो गया.मैंने उसे अब भी नहीं छुआ था और मैं उससे कुछ बोलता उससे पहले ही बॉस का फ़ोन आ गया.मैंने आशु को खुद से अलग किया और फ़ोन उठाया.
आशु ने अपने कपडे बदले और मेरी फ़ोन पर बात खत्म होने तक वो फिर से सर झुकाये खड़ी हो गई. बात कर के मैंने आशु को उसके हॉस्टल छोड़ा और मैं वापस ऑफिस आगया.मुझे ऑफिस में देखते ही मैडम का पारा चढ़ गया और वो बॉस पर बरस पड़ी; 'मैंने सागर जी को छुट्टी दी थी फिर क्यों बुलाया उन्हें?' ये सुन कर बॉस एक दम से उनका चेहरा देखने लगा. मैं उस समय बॉस के साइन कराने खड़ा था और मैं भी थोड़ा हैरान था. सर इससे पहले की मैडम पर बरसते मैंने उन्हें अपनी उपस्थिति से अवगत कराते हुए कहा; 'मॅडम वो सिलिकॉन ट्रेडर्स की जी. एस. टी. की लास्ट डेट थी!' सर चुप हो गए बस मैडम को घूर के देखने लगे. मैंने जल्दी से फ़ोन निकाला और मैडम को कॉल मिला कर फ़ोन वापस जेब में डाल लिया. मैडम का फ़ोन बजा और उन्होंने देख लिया की मेरा ही कॉल है इसलिए बिना कुछ बोले फ़ोन कान से लगा कर बाहर चली गई. कुछ देर बाद मैडम मेरे डेस्क पर आईं और सामने बैठ गईं और बोलीं; 'सागर जी आप कहीं और जॉब ढूँढ लो! यहाँ रहोगे तो अपने बॉस की तरह हो जाओगे.' मैडम का मूड बहुत ख़राब था तो मैंने उन्हें हँसाने के लिए कहा; 'मॅडम फिर तो आपका प्रोजेक्ट अधूरा रह जायेगा और फिर हमारी फ्रेंडशिप का क्या?'
'दूसरी जॉब से हमारी फ्रेंडशिप थोड़े ही खत्म होगी? और रही प्रोजेक्ट की तो जाए चूल्हे में!' मैडम ने मुस्कुराते हुए कहा.
'इतनी मेहनत की है आपने मॅडम की उसे वेस्ट करना ठीक नही. इस प्रोजेक्ट के बाद मैं कोई और ऑप्शन ढूँढता हु.' मैंने मैडम की बात का मान रखते हुए कहा.
'अच्छा एक बात बताओ, अगर मैंने अपनी अलग कंपनी शुरू की तो मुझे ज्वाइन करोगे?' मैडम ने उत्सुकता वश पूछा.
'बिलकुल मॅडम ये भी कोई कहने की बात है?! कम से कम आप सैलरी तो अच्छी दोगे!' मैंने हँसते हुए कहा और मैडम ये सुन कर हँस दी. शाम को मैं निकलने वाला था की आशु का फ़ोन आया; 'जानू! अब भी नाराज हो?' आशु ने तुतलाते हुए पूछा. मुझे उसके इस बचपने पर हँसी आ गई. 'नहीं' बस इतना बोला की मैडम मुझे आती हुई दिखाई दी. मैंने आशु को कहा की बाद में बात करता हूँ और फ़ोन काट दिया. 'सागर जी! मुझे मार्केट ड्राप कर दोगे?' मैं फिर से हैरान था और मेरी हैरानी भांपते हुए मैडम बोली; 'आपके बॉस गाडी ले गए!' अब ये सुन कर मुझे थोड़ा इत्मीनान हुआ और मैडम मेरे पीछे एक तरफ दोनों पैर रख कर बैठ गई.
नितु मैडम: वैसे सागर जी आप बुरा न मानो तो एक बात कहूँ?
मैं: जी मॅडम कहिये.
नितु मैडम: आप इतना डरते क्यों हो?
मैं: डरता हूँ? मैं कुछ समझा नहीं मॅडम?
नितु मैडम: अभी मैंने आप से लिफ्ट मांगी तो आप हैरान थे? कल भी जब मैंने आपको बर्थडे विश किया तब भी, डांस करने के समय भी! आपके बॉस से भी जब मैंने कंप्लेंट की कि उन्होंने क्यों आपको आज बुलाया जब कि मैंने आपको छुट्टी दी है तब भी आप बहुत हैरान थे! दोस्ती में तो ये सब चलता है ना?
मैं: मॅडम आप विश्वास नहीं करेंगे पर पिछले कुछ महीनों से मेरे साथ जो कुछ हो रहा है वो मेरे साथ कभी नहीं हुआ. बचपन से मैं बहुत सीधा-साधा लड़का था....
नितु मैडम: (मेरी बात काटते हुए) वो तो अब भी हो.
मैं: शायद! एनी वे... मेरे दोस्त सब लड़के ही रहे हैं और लड़कियों से मेरी फ़ट.... आई मीन डर लगता था. फिर आप मेरे गाँव कि हिस्ट्री तो जानते ही हैं, अब ऐसे में मैंने कभी किसी लड़की से सिवाय किसी काम ...आई मीन वर्क रीलेटेड बात ही की हे. मुझे डर इसलिए लगता है की सर आपकी और मेरी दोस्ती को कभी नहीं समझ सकते. हम रहते ही ऐसे समाज में हैं जहाँ एक लड़का और एक लड़की दोस्त नहीं हो सकते. तो ऐसे में आपका मेरी साइड लेना किसी को सही नहीं लगेगा.
नितु मैडम: तो इसका मतलब हमें सिर्फ वही करना चाहिए जो सब को अच्छा लगे? अपनी ख़ुशी के लिए कुछ भी नहीं?
मैं: मैडम प्लीज मुझे गलत मत समझिये, बट आई फियर फॉर यू! आई डोन्ट वांट टू कौज एनी ट्रबल इन योवर म्यारीड लाइफ.
नितु मैडम: आई कॅन अंडर स्टँड! अँड दॅट इज वेरी स्वीट ऑफ यू! बट आई इंशुअर यू....यू आर नॉट दीं रिजन ….. एनी वे….. उमम्म्म...…. लेट्स ह्याव सम पानी के बताशे!
मैंने बाइक एक चाट वाले के पास रोकी और मैडम और मैंने कंपिट करते हुए पानी के बताशे खाये. विनर मैडम ही निकलीं और हारने की सजा मैडम ने ये रखी की इस रविवार को मैं उन्हें 'टुंडे कबाबी' खीलाऊ. इस तरह हँसते हुए मैं उन्हें बाजार छोड़ कर घर निकल गया.घर पहुँचते ही आशु का फ़ोन आया और उसने पूछा; 'पानी के बताशे कैसे लगे?'
ये सुन कर मैं हैरान तू हुआ पर मैंने जवाब ऐसा दिया की आशु और चिढ जाये. 'लाजवाब थे! इतना स्वाद तो मुझे आज तक कभी आया ही नहीं!' मेरी ये डबल मीनिंग वाली बात आशु समझ गई. 'जानूउउ उउउउउउउउउउउउ!!! मैं आप पर शक़ नहीं कर रही! मैं आप पर खुद से ज्यादा भरोसा करती हु. दरअसल निशा ने आपको मार्किट में बताशे खाते हुए देखा और मुझे फोन कर के चीढाने लगी की तेरा 'बंदा' यहाँ किसी और लड़की के साथ बताशे खा रहा है!' आशु के मुँह से 'बंदा' शब्द सुन कर मुझे बहुत जोर से हँसी आ गई. 'क्या हुआ? हँस क्यों रहे हो?' आशु ने थोड़ा हैरान हो कर पूछा. 'मैं तुम्हारा 'बंदा' हूँ?' मैंने आशु को छेड़ते हुए पूछा. 'वो कॉलेज में बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड को बंदा-बंदी कहते हैं.'
'जानता हूँ! मैं भी उसी कॉलेज में पढ़ा हूँ!' मैंने हँसते हुए कहा.
'हाँ...तो ... वो मुझे चीढाने लगी की आप किसी और को घुमा रहे हो! तो ये सुन कर पहले तो मुझे बड़ी हँसी आई फिर मैंने उसे डाँट दिया ये कह कर की मैं अपने प्यार पर पूरा भरोसा करती हु. वो मुझे कभी धोका नहीं दे सकते! तू चुप-चाप अपना काम कर! इतना कह कर मैंने फ़ोन रख दिया.'
'अच्छा जी? बहुत भरोसा करते हो मुझ पर?'
'हाँ जी! इतने दिन आपके साथ ऑफिस में काम कर के देख लिया की कैसे आप खुद को सँभालते हो. आजतक आपने कभी राखी या नितु मैडम से कोई गलत तरह की बात नहीं की. हमेशा उनसे अदब से बात करते हो, कल भी पार्टी में आप नशे में थे तब भी आप खुद को संभाले हुए थे. ये आपका मेरे लिए प्यार नहीं तो क्या है? आजतक कभी मुझे राखी ने नहीं कहा की आपने कभी उसे किसी गलत नजर से देखा हो या उस से कोई अभद्र बात कही हो. एक बार आप पर शक़ करने की गलती कर चुकी हूँ पर अब चाहे भगवान् भी आ कर मुझे कह दें की आपने किसी लड़की के साथ कुछ गलत किया है तो भी मैं नहीं सागरँगी.' आशु की बात सुन कर मैं समझ गया था की आशु राखी के जरिये मेरा बैकग्राउंड चेक करवा रही थी. ठीक है भाई कर लो जितनी चेकिंग करनी हो आपने!इस तरह वो दिन सिर्फ बात करते हुए निकला. हम मिलते तो रोज थे पर सिर्फ बातें ही होती थीं ना तो आशु मुझे छूने की कोशिश करती और न ही मैं उसे छूता था. मैंने ये सोच कर ही संतोष कर लिया की शादी के बाद आशु को संभोग की अच्छी से 'कोचिंग' दूँगा, उसे सब सिखाऊँगा की कैसे अपने पार्टनर को खुश किया जाता हे.
दिन गुजरते गए और आखिर वो दिन आ गया जब राखी कि शादी थी. शाम को हम सब को जाने का न्योता था और मैंने आशु को लेने और छोड़ने की जिम्मेदारी ली. अब पहले तो उसे लेहंगा-चोली खरीदवाया और अपने लिए मैंने बस एक ब्लैज़र लिया. हॉस्टल वाली आंटी जी ने आशु को थोड़ी ज्यादा छूट दे रखी थी. उसका कारन ये था की आशु हॉस्टल में सिर्फ और सिर्फ अपने काम से काम रखती थी और पढ़ाई में मन लगाती थी. कुछ उन्हें मेरा भी ख़याल था इसलिए आशु ने जब कहा की वो लेट आएगी तो आंटी जी ने मना नहीं किया. उसके हॉस्टल की लड़की आशु से बहुत जलती थी की इतने कम समय में वो आंटी जी की चहेती बन गई. आशु को पिक करने के लिए मैं थोड़ा जल्दी निकला और उसे चौक पर बुला लिया. मैं पहले से ही वहाँ उसका इंतजार कर रहा था. जैसे ही मेरी नजर आशु पर पड़ी मैं उसे बस देखता ही रह गया!
वहाँ पर जो कोई भी खड़ा था वो बस आशु को ही ताड़े जा रहा था. 'क्या देख रहे हो आप?' आशु ने शर्माते हुए पूछा. 'हाय! आज तो क़हर ढा रही हो! दुल्हन से ज्यादा तो लोग तुम्हें ही देखेंगे!' मेरी बात सुन कर आशु के गाल शर्म से लाल हो गए और वो आ कर पीछे बैठ गई और बोली; 'आप तैयार क्यों नहीं हुए? ऐसे ही जाने वाले हो क्या?' मैंने सोचा थोड़ा मजाक कर लेता हूँ तो मैंने कह दिया की; 'हाँ मैं ऐसे ही जाऊँगा, सैलरी नहीं बची इसलिए अपने लिए कुछ नहीं खरीदा'
'पर आपने तो कहा था की आपने ब्लैज़र लिया है?' आशु ने चौंकते हुए कहा.
'झूठ बोला था वरना तुम लेहंगा-चोली नहीं लेती.' अब ये सुन कर आशु को बहुत गुस्सा आया. 'गाडी रोको! मुझे नहीं जाना कहीं! वापस छोड़ दो मुझे हॉस्टल!'
'अरे बाबू शांत हो जाओ, मैं मज़ाक कर रहा था. हम अभी घर जा रहे हैं वहाँ मैं चेंज करूँगा तब निकलेंगे.' मैंने आशु को प्यार से समझाया. घर पहुँच कर आशु ने अपने लहंगे को थोड़ा नीचे बाँधा जिससे उसका नैवेल दिखने लगा. छरहरा बदन पर उसका अपना ये नैवेल दिखाना आज नजाने कितनो की जान लेने वाला था. अब मैं सबसे पहले नहाने गया, नहा के बहार सिर्फ कच्छे में आया और अलमारी से अपनी शर्ट निकाली. मुझे ऐसे देख कर आशु ने अपनी ऊँगली दाँतों तले दबा ली और सिसक कर रह गई. मैंने सोचा की अभी जाने में बहुत समय है तो अभी से क्या कपडे पहनने पर आशु जिद्द करने लगी की मुझे अभी पहन के दिखाओ. अब उसकी बात मानते हुए मैंने वाइट शर्ट, पैंट, ब्लैज़र और लोफ़र्स पहन के उसे दिखाया.
मुझे पूरा तैयार देख कर आशु की आँखें फ़ैल गईं; 'जानू! मानना पड़ेगा की आप की पसंद कपड़ों के मामले में बहुत बढ़िया हे. आई एम सो लकी टू ह्याव यू एज माई हसबंड!”
'रियली??? वेल शुक्रिया मॅडम मोसेल!” मेरी बात सुन कर आशु शर्मा गई और आ कर मेरे सीने से लग गई. 'एक बात कहूँ जानू?' आशु ने मेरे सीने से लगे हुए ही कहा, जवाब में मैंने बस; 'हम्म' कहा.
'आज हम दोनों कहीं कैंडल लाइट डिनर करने चलें? उसके बाद शादी में चले जायेंगे.' आशु मेरे आँखों में देखते हुए कहा. अब भला मैं अपने प्यार को कैसे मना करता. मैंने फटाफट कैब बुक की और आशु को मैं 'विवांता ताज ' ले आया. ये लखनऊ का सब से बड़ा ५ स्टार रेस्टरंट है, वहाँ की चमक देख कर आशु की आँखें जगमगा उठी. मेरे कॉलेज के दिनों में मैं यहाँ से कई बार गुजरा था और यही सोचता था की शादी होगी तब यहाँ जरूर आऊँगा.एक वेटर हमें हमारे टेबल तक ले जाने को आया. मैं और आशु किसी प्रेमी जोड़े की तरह बाँहों में बाहें डाले चल रहे थे. टेबल पर पहुँच कर मैंने आशु की कुर्सी खींची और फिर उसे बिठाया और फिर मैं उसके ठीक सामने बैठ गया.खुला गार्डन था और वहाँ बहुत सारे टेबल लगे हुए थे, हमारी तरह वहाँ कुछ प्रेमी जोड़े थे और बाकी सब फोरिनर और कुछ अमीर आदमी आये थे. आशु आज पहली बार इतनी महंगी जगह आई थी और उसकी आँखें वहाँ की चकाचौंध में खो गईं और वो सब कुछ देखने लगी. वेटर मेनू ले कर आया पर आशु की आँखें तो अब भी वहाँ के नज़ारे देखने में लगी थी. धीमी-धीमी आवाज में वहाँ म्यूजिक गूँज रहा था. मैंने आशु का हाथ पकड़ा तो उसकी आँखें भर आईं थी. मैं उठ कर खड़ा हुआ और उसे अपने सीने से लगा लिया.
' ... शुक्रिया !!!!' आशु ने रोते-रोते कहा. 'बट बेबी व्हाय आर यू क्रायींग?” मैंने उससे पूछा तो आशु ने अपने आँसूँ पोछे और बोली; 'मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की मैं कभी ऐसी जगह आ पाऊंगी. ऐसी जगह जहाँ के मेन गेट के अंदर घुसने की भी मेरी औकात नहीं है, वहाँ आप मुझे डिनर के लिए लेके आये हो! शुक्रिया!'
'मेरी जानेमन इससे भी कई ज्यादा कीमती है!'
अगले ही पल मैंने अपनी दायीं टाँग मोड़ी और घुटने को जमीन से टिकाया, बायीं बस मोड़ी और आशु का बयां हाथ अपने बाएं हाथ में लेते हुए उससे पूछा; ' मैंने तुम पर बहुत बार चीखा हूँ, चिल्लाया हूँ यहाँ तक की तुम पर हाथ भी उठाया है पर ये सच है की मैं प्यार सिर्फ और सिर्फ तुम्हीं से करता हु. उस दिन जब मैंने तुम्हें पहलीबार दिल से गले लगाया था उसी दिन मैंने तुम्हें अपना दिल दे दिया था. मैं वादा करता हूँ की तुम्हें जिंदगी भर खुश रखूँगा, तुम्हें कभी कोई तकलीफ नहीं दूँगा, तुम्हें पलकों पर बिठा कर रखुंगा. (एक लम्बी साँस लेते हुए) विल् यू म्यारी मी???' ये सुन कर आशु की आँखें छलक आईं और उसने हाँ में गर्दन हिलाई और बैठे-बैठे ही मेरे गले लग गई. वहाँ मौजूद सभी लोगों ने तालियाँ बजाई और तब जा कर हम दोनों को होश आया की हम दोनों बाहर आये हे. आशु ने शर्म के मारे अपना मुँह दोनों हाथों से छुपा लिया. तभी वहाँ एक अंकल आये और मुझसे बोले; 'कम ऑन मेन लेट्स पुट अ रिंग ऑन हर!”
“बट आई डोन्ट ह्याव एनी रिंग विदमी! आई दिडंट प्लॅन दिस फार!” मैंने उन्हें बताया तो उन्होंने फ़ौरन वेटर को बुलाया और उसके कान में कुछ खुसफुसाये. उसके बाद आशु से बोले; “मे दीं लव यू शेअर टूडे ग्रो स्ट्रोंगर एज यू ग्रो ओल्ड टूगेदर.” इतने में वही वेटर वापस आ गया और उसने उन्हें एक छोटी सी डिब्बी दी जिसमें एक वाइट सिल्वर की वेडिंग रिंग थी! उन्होंने मुझे वो डिब्बी दे दी और आशु को पहनाने को कहा. मैं और आशु हैरानी से उन्हें देखने लगे; 'अ गिफ्ट फॉर दीं ब्युटीफुल कपल.” उन्होंने कहा.
“सॉरी सर, बट आई कान्ट टेक दिस!” मैंने उन्हें मना किया.
“ओह कमऑन डिअर! इट्स जस्ट अ स्मॉल गिफ्ट! टेक इट!” उन्होंने जबरदस्ती करते हुए वो डिब्बी मेरे हाथ में पकड़ा दी.
“नो..नो..सर… आई विल पे यू फॉर दिस!”
वो मुस्कुराने लगे और अपनी जेब में से एक कार्ड निकाला और मुझे दे दिया;'ये लो...जब टाइम हो तब आ कर पैसे दे जाना पर अभी तो ये मोमेंट ख़राब मत करो.'
मैंने उनके हाथ से कार्ड ले कर रख लिया और वापस प्रोपोज़ करने का पोज़ बनाया और आशु से पूछा; 'विल् यू म्यारी मी?” आशु ने शर्मा कर हाँ कहा और फिर मैंने उसे वो रिंग पहना दी और आशु कस कर मेरे सीने से लग गई. मैंने उसके सर को चूमा और पूरा गार्डन तालियों से गूँज उठा.
अंकल ने फिर से हमें आशीर्वाद दिया और वापस अपने टेबल पर अपने दोस्तों के साथ बैठ कर शराब एन्जॉय करने लगे. आशु बहुत खुश थी और उसकी ये ख़ुशी देख कर मैं भी बहुत खुश था. हमने खाना खाया और फिर मैं उन अंकल को दुबारा शुक्रिया बोल कर निकल आया. अब बारी थी राखी की शादी अटेंड करने की, मैने कैब बुक की और उसके आने तक आशु मुझसे चिपकी खड़ी रही. कैब में जब हम बैठे तो आशु मेरे बाएं कंधे पर सर रख कर बैठ गई और उसी रिंग को देखे जा रही थी. 'अब इसे उतार दो, वरना सब पूछेंगे की किसने दी?' मेरी बात सुन कर आशु जैसे अपनी ख्यालों की दुनिया से बाहर आई. 'ना! मैंने नहीं उतारने वाली!' उसने मुँह बनाते हुए कहा. 'तो सब से क्या कहोगी?' मैंने पूछा. 'कह दूँगी मेरे लवर ने दी हे.' ये कह कर वो मुस्कुराने लगी. 'और जब उस लड़के का नाम पूछेंगे तब?'
'वो सब मैं देख लूँगी! आप उसकी चिंता मत करो.' इतना कह कर आशु फिर से उसी रिंग को देखने लगी. मैंने भी सोचा की अपने आप संभालेगी, मैं तो कुछ कह भी नहीं सकता और रायता फैलना है तो फ़ैल ही जाए! जो होगा देख लूँगा! ये सोच कर मैं भी इत्मीनान से बैठ गया.बैंक्वेट हॉल आने लगा तो मैंने आशु से कहा की वो अपना मेक-अप ठीक कर ले, फिर हम दोनों जब कैब से उतरे तो आशु ने फिर से मेरी बाहों में बाहें डाल ली. हम दोनों कपल लग रहे थे और ये अभी के लिए थोड़ा ज्यादा था. मैंने आशु के कान में खुसफुसाते हुए कहा; 'जान! यहाँ बॉस भी आएंगे तो थोड़ा सा डिस्टेंस मेन्टेन करो.' ये सुन कर आशु ने नकली गुस्सा दिखाया और मेरा हाथ छोड़ दिया. अभी अंदर घुसे भी नहीं थे की मुझे मेरे ऑफिस के कलिग मिल गए और बेशर्मों की तरह आशु को घूरे जा रहे थे. 'बॉस और नितु मॅडम आ गये?' मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने बताया की वो अंदर हैं इसलिए मैंने आशु को अंदर जाने को कहा. पर उसका मन अंदर जाने को कतई नहीं था. मैंने उसे आँखों से इशारा कर के समझाया की ये लोग मुझे छोड़ने वाले नहीं हैं, तब जा कर आशु मानी. उसके जाते ही सब मेरे ऊपर टूट पड़े, 'साले कैसे फँसा लिया तूने?' मैं उनकी सारी बातें बस टालता रहा ये कह की मैंने ऐसा कुछ नहीं किया बस कैब शेयर की थी हमने.पर कमीने तो कमीने ही होते हैं, मैं किसी तरह से उनसे बच के अंदर आ गया.अंदर आ कर देखा तो एक टेबल पर सर, नितु मैडम और आशु बैठे हुए बात कर रहे थे. मुझे देखते ही सर बोल उठे; 'तुम दोनों साथ आये हो फिर आगे-पीछे क्यों एंटर हुए? हम क्या बेवक़ूफ़ बैठे हैं यहाँ?'
'सर वो बाहर रस्तोगी जी मिल गए थे उन्होंने रोक लिया. वैसे साथ आने में कैसे शर्म?' इतना कह कर मैं वहीँ बैठ गया पर मन ही मन आशु को कोसने लगा की उसे कोई और जगह नहीं मिली बैठने को?! इधर सर उठ कर कुछ खाने के लिए गए और नितु मैडम को मेरी तारीफ करने का मौका मिल गया; 'सागर जी! आज तो बहुत हैंडसम लग रहे हो!'
'शुक्रिया मॅडम!' मैंने शर्माते हुए कहा. 'आपको तो रोज ऐसे ही रेडी हो कर ऑफिस आना चाहिए.' आशु ने मज़ाक करते हुए कहा.
'हाय!! फिर हम दोनों (नितु मैडम और आशु) काम कैसे करेंगे?' नितु मैडम ने ठंडी आह भरते हुए कहा. ये सुन कर हम तीनों हँस पड़े, इतने में सर कुछ खाने को ले आये और सीधा आशु को ऑफर कर दिया. ये देख कर मैं थोड़ा हैरान हुआ पर फिर मैं समझ गया की आज आशु लग ही इतनी सुन्दर रही है की हर एक की नजर सिर्फ उसी पर हे. मैं अपने लिए कुछ खाने के लिए लेने को उठा तो मेरे पीछे-पीछे नितु मैडम भी उठ गई. जब मैंने मैडम को ढंग से सजा-सांवरा देखा तो मैंने भी उनकी तारीफ करते हुए कहा; 'वैसे मॅडम यू आर लूकिन फ्याबुलस टूडे! ये सुन कर मैडम भी शर्मा गईं और बोलीं; 'उतनी सुंदर तो नहीं जितनी आज अश्विनी लग रही हे. उसका लेहंगा तुम ने ही सेलेक्ट किया था ना?' मैंने बिलकुल अनजान बनते हुए कहा; 'नहीं तो मॅडम!' मैडम ने शायद मेरी बात मान ली या फिर उन्होंने जानबूझ कर उस बात को और ज्यादा नहीं कुरेदा.
खेर मैं और मैडम खाने-पीने की सभी चीजों का मुआइना कर रहे थे, की तभी उनकी नजर मसाला डोसे पर गई और वो मुझे खींच कर वहाँ ले गई. मैं एक्स्ट्रा बटर डलवा कर उनके लिए डोसा बनवाया और अपने लिए मैं आलू-चीज पफ ले आया. जब मैंने उन्हें ऑफर किया तो उन्होंने एक पीस खाया और बोलीं; 'सागर जी आपकी पसंद का जवाब नहीं! हर चीज में आपकी पसंद ओसम है!' मैंने बस उन्हें शुक्रिया कहा और फिर उनके डोसा खत्म होने के बाद वापस आ कर बैठ गये. चूँकि हमें आने में थोड़ा समय लगा था तो सर पूछने लगे; 'कहाँ रूक गए थे तुम दोनों?' मेरे कुछ बोलने से पहले ही मैडम बोल पड़ीं; 'डोसा खा रहे थे!' अब ये सुन कर सर चुप हो गये.
दूल्हे की बारात आई और तभी खाना खुल गया और सभी लोग लाइन में लग गये. सर सबसे पहले और उनके पीछे नितु मैडम, फिर मैं और मेरे पीछे आशु. आज पहली बार आशु इतनी बड़ी और महंगी शादी में आई थी और खाने के लिए जो चीजें रखी थीं वो उसके नई थी. उसने वो कभी चखी भी नहीं थी. आशु ने कहा की उसे दाल-चावल खाने हैं तो मैंने उसे हँसते हुए समझाया की वो सब यहाँ नहीं मिलता. मैंने उसे पहले दाल महारानी, पनीर लबाबदार और २ रोटी दिलवाई और मैंने अपने लिए चिकन और नान लिया. हम वापस बैठ कर खा रहे थे, मैडम ने भी चिकन लिया था और सर ने वेज लिया था. 'तुम सारे नॉन-वेज यहाँ बैठो मैं और अश्विनी कहीं और बैठेंगे' अब ये सुन कर मुझे बुरा लगा क्योंकि मैं नहीं चाहता था की आशु कहीं और जाये. इसका जवाब खुद आशु ने ही दिया; 'पर सर सारे टेबल फुल हैं! ' ये सुन कर मैडम के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई पर उन्होंने जैसे-तैसे अपनी हँसी छुपाई. नितु मैडम ने मुझे इशारा किया और मैं उनका ईशारा समझ गया.
हम दोनों ने एक-एक लेग पीस उठाया और जंगलियों की तरह खाने लगे. हमें ऐसा करते हुए देख सर मुँह बिदकाने लगे और बोले; 'ढंग से खाओ! ये क्या जंगलियों की तरह खा रहे हो?' इतना कह कर वो उठ के चले गए और इधर मैं, मैडम और आशु हँसने लगे. मैडम की नजर आखिर रिंग पर चली गई और उन्होंने आशु से पूछ लिया; 'अश्विनी ये रिंग आपको किसने दी?' अब ये सुनते ही मैंने अपनी आँखें फेर ली और ऐसे दिखाया जैसे मैंने सुना ही ना हो. 'वो मॅडम ......' इसके आगे वो कुछ नहीं बोली और शर्माने लगी. 'अच्छा जी! उसने तुम्हें प्रोपोज़ कर दिया? और तुमने हाँ भी कर दी?' मैडम ने थोड़ा जोर से बोला ताकि मैं भी उनकी बात सुन लु. 'प्रोपोज़? किसने किसे किया?' मैंने जान बुझ कर ऐसे जताया जैसे मुझे कुछ पता ही नही. 'सागर जी! आपका पत्ता तो कट गया!' मैडम ने मेरे मज़े लेते हुए कहा. मैं जान बुझ कर जोर से हँसा ताकि उन्हें ये इत्मीनान हो जाए की मेरे और आशु के बीच में कुछ नहीं चल रहा.
खाने के बाद आखिर दुल्हन का आगमन हुआ, दुल्हन के जोड़े में राखी बहुत ही प्यारी लग रही थी. फिर शुरू हुआ नाच गाने का मौका और डी.जे ने एक के बाद एक गाना बजा कर माहौल में जान डाल दी. मैडम ने सर से नाचने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया. मैं उठ के खड़ा हुआ और आशु और मैडम को अपन साथ जबरदस्ती डांस के लिए ले गया और हम तीनों ने बड़े जोर-शोरों से नाचा. सर से हमारी ये ख़ुशी देखि नहीं गई और उन्होंने हमें इशारे से हमें वापस बुलाया और कहा की अब हमें चलना चाहिए. निकलने से पहले हमें शगुन तो देना था इसलिए हम सारे स्टेज के ऊपर चढ़ गये. दूल्हे से मैंने हाथ मिलाया और फिर राखी से मैंने हाथ जोड़ कर नमस्ते की पर वो हमेशा की तरह ही मुझसे गले लग गई. उसके पति को थोड़ा अटपटा सा लगा पर उसने कहा कुछ नही. इधर राखी ने खुद ही माहौल को हल्का करने के लिए कहा; 'सागर जी इतने हैंडसम लग रहे हो की मैं तो सोच रही हूँ की दूल्हा चेंज कर लु.' ये सुन कर सारे हँस दिए और इधर राखी का दूल्हा भी राखी के मज़े लेने लगा और बोला; 'सही है! तू अपने सागर जी से शादी कर ले और मैं उनकी गर्लफ्रेंड से!' ये सुन कर मैं और आशु दोनों एक दूसरे को देखने लगे और बाकी सब हँसने लगे. मैं और आशु ये सोच रहे थे की ये लोग अपनी शादी छोड़ कर हमारे पीछे पड़े हैं!
शगुन दे कर, और फोटो खिचवा के हम जाने लगे तो राखी ने सब को रोक दिया और सर से बोली; 'सर अभी तो १२ ही बजे हैं! प्लीज थोड़ी देर और रुक जाइये!' उसका दूल्हा भी बोल पड़ा; 'सर अभी तो ड्रिंक्स भी चालु नहीं हुई हैं!' अब फ्री की ड्रिंक्स और मेरे सर उसे छोड़ दें, ऐसा तो हो ही नहीं सकता.
ड्रिंक्स का राउंड शुरू हुआ पर ना तो आशु ने पी और न ही मैडम ने.मैं भी नहीं पीना चाहता था पर हमारे ऑफिस के सारे कलिग आ कर बैठ गये. रस्तोगी जी बोले; 'अरे भाई सागर ऑफिस में तो तुम्हारा ग्रुप दूसरा सही पर यहाँ तो हमारे साथ शामिल हो जाओ.' अब उनकी बात सुन कर मुझे मजबूरन उनके साथ बैठना पड़ा और इधर सर ने व्हिस्की आर्डर कर दी. वेटर ५ गिलास व्हिस्की के लार्ज ले आया. लार्ज पेग देख कर आशु हैरान हो गई और मन ही मन डरने लगी की पता नहीं आज क्या होगा. पर वो लार्ज पेग पीने के बाद मेरा सिस्टम उतना नहीं हिला जितना की आमतौर पर लोगों का हिल जाता था. प्रफुल (मेरा कलिग) का तो एक पेग में ही बंटाधार हो गया और उसने साफ़ मना कर दिया.
रस्तोगी जी, मैं, मोहित (मेरा कलिग) और सर अब भी टिके हुए थे. हम चारों पर ही जैसे असर नहीं हुआ था. रस्तोगी जी ने वेटर को बुलाया और उसे देसी लाने को कहा. वेटर ने साफ़ मना कर दिया की उनके पास देसी नहीं हे. 'बेटा हमें इन महंगी शराबों से नहीं चढ़ती, हमें तो देसी चाहिए. तू ये ले पैसे, एक बोतल ले आ और बाकी पैसे तू रख ले.' रस्तोगी जी का ये बर्ताव देख कर मैडम और आशु का मुँह बन गया पर सर उनकी तारीफ करने लगे.
'सॉरी! रस्तोगी जी मैं अब और नहीं पीयूँगा.' मैंने कहा पर रस्तोगी जी तो आज फुल मूड में थे. 'अरे भाई! क्या तुम एक देसी से घबरा गए? मर्द बनो!' रस्तोगी जी की बात सुन कर आशु और नितु मैडम मेरे बचाव में एक साथ कूद पडे. 'शराब पीने से कब से मर्दानगी आने लगी?' मैडम ने कहा. 'रहने दीजिये न सर फिर घर भी तो जाना हे.' आशु बोली पर तभी सर बोल पड़े; 'अरे भाई! कौन सा रोज-रोज पीते हे. आज इतना अच्छा दिन है और रही बात घर छोड़ने की तो मैं छोड़ दूंगा.' अब मैं अगर पीने से पीछे हट जाता तो रस्तोगी जी और बाकी के सभी लोग मुझे जिंदगी भर मैडम और आशु के नाम से छेड़ते रहते इसलिए मैं भी कूद पड़ा; 'चलो देखते है रस्तोगी जी आपकी देसी कितनी दमदार हे.' ये सुन कर तो रस्तोगी जी हैरान हो गए, आखिर देसी आई और मैंने जान-बुझ कर लार्ज पेग बनाये.
मैं समझ गया था की ये सब रस्तोगी जी का ही प्लान है ताकि मैं पी कर लुढक़ जाऊँ और वो मुझे उम्र भर इस बात का ताना देते रहे. पर वो नहीं जानते थे की सागर का कोटा बहुत बड़ा है! देसी के पहले पेग के बाद ही मोहित और सर ने हाथ खड़े कर दिए और अब बस मैं और रस्तोगी जी ही बचे थे. बाकी बची आधी बोतल को मैंने बराबर-बराबर दोनों के गिलास में डाल दिया. 'आशु ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे रोकना चाहा पर मुझपर तो शराब का सुरूर छाने लगा था. मैंने आशु की तरफ देखा और ऐसे दिखाया जैसे मैं अभी भी पूरे होश में हु. इधर डी.जे. ने भी हमारा ये कॉम्पिटिशन होते हुए देख लिया और उसने गाना लगा दिया; दारु बदनाम कर दी! अब ये सुनते ही रस्तोगी जी फुल जोश में आ गए और खड़े हो गए और बाकी बची पूरी दारु एक साँस में पी गये.ये देख कर दूल्हा-दुल्हन और बाकी सब वहीँ आ गए की यहाँ कौन सी प्रतियोगिता हो रही है! सारे के सारे हमें घेर कर खड़े हो गए पर ये क्या रस्तोगी जी तो ५ मिनट बाद ही ढेर हो गए! अब बचा सिर्फ मैं, मैंने भी जोश में आते हुए पूरी की पूरी दारु एक साँस में गटक ली! सब के सब ये सोचने लगे की मैं अब गिरा..अब गिरा...पर मैं टिका रहा. गाने की आवाज और तेज हो गई और डी.जे. माइक पर जोर से चिल्लाया; 'गिव अ बिग ह्यांड फॉर दिस जेंटलमन!” सारे तालियाँ बजाने लगे और मैंने भी सर झुका कर सबका अभिवादन स्वीकार किया. उस समय मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मुझे कोई अवार्ड मिल रहा हो! पर ठीक तभी मेरे बॉस ने एक चाल चली, उन्होंने डी.जे. से माइक लिया और मेरे पास ले कर आ गए और बोले; 'सागर आज तो इस मौके पर तुम्हारी शायरी बनती हे.' शायरी का नाम सुनते ही सब ने शोर मचाना शुरू कर दिया. राखी ने भी बड़े प्यार से रिक्वेस्ट की और सर ने इसी का फायदा उठाते हुए मुझ पर और दबाव डाल दिया; 'भाई अब तो दुल्हन ने भी रिक्वेस्ट कर दि.अब तो सुना दो, कम से कम उसका दिल तो मत तोड़ो.' अब मेरी हालत ऐसी थी की शराब दिमाग पर चढ़ चुकी थी. मैं ये तो जानता था की मैं कहाँ हूँ पर क्या शेर बोलना है उस पर मेरा काबू नहीं था. अब दिल और जुबान के तार एक साथ जुड़ गए और मैंने अपनी आँख बंद की और और बोला;
हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने में,
ज़रूरी बात कहनी हो कोई वादा निभाना हो,
उसे आवाज़ देनी हो उसे वापस बुलाना हो,
हमेशा देर कर देता हूँ मैं,
मदद करनी हो उस की यार की ढांढस बंधाना हो,
बहुत देरीना रास्तों पर किसी से मिलने जाना हो,
हमेशा देर कर देता हूँ मैं,
बदलते मौसमों की सैर में दिल को लगाना हो,
किसी को याद रखना हो किसी को भूल जाना हो,
हमेशा देर कर देता हूँ मैं,
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो,
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो,
हमेशा देर कर देता हूँ मैं ....हर काम करने में.....
ये गजल किस के लिए थी वो सब समझ चुका था. और माहौल को हल्का करते हुए राखी का दूल्हा बोला; 'सागर जी! वैसे अभी देर नहीं हुई है!' मैं बस मुस्कुरा दिया और मैं जा कर उसके गले लगा और उसे बोला; ‘यू आर अ लकी गाय, शी इज अ किपर! बेस्ट विशेस फ्रॉम मी अँड विश यू अ वेरी हॅपी म्यारीड लाइफ!” मैंने उसे दिल से बधाई दी और माहौल हल्का हो गया.दूल्हा-दुल्हन के माँ-बाप को ये बाद जरूर लगी होगी इसलिए मैंने बस हाथ जोड़कर माफ़ी मांगी और मैं निकल आया. मेरे पीछे-पीछे ही सर मैडम और आशु भी आ गये. मैंने कैब बुला ली थी और सर और मैडम तो अपनी कार से ही जाने वाले थे. मैंने उन्हें गुड नाईट बोला और हम दोनों चल दिये. कैब में बैठ कर हम दोनों खामोश थे, अब मुझे अपनी सफाई देनी थी पर जब दिमाग और जुबान का कनेक्शन टूट चूका था तो अब सिर्फ सच ही बाहर आना था.
'आशु...तुझे कुछ कहना नहीं है?' मैंने आशु से बात शुरू करते हुए पूछा.
'कहना नहीं पूछना हे.' आशु ने मेरी तरफ मुँह करते हुए कहा और फिर अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को थाम लिया. नशे के कारन मेरी आँखें थोड़ी बंद होने लगी थी पर आशु ने मुझे थोड़ा झिंझोड़ा और मैं कुछ होश में आया.
'आप अब भी उससे प्यार करते हो?' आशु ने मुझसे पूछा पर आज जो भी जवाब आना था वो दिल से ही आना था.
'नहीं! मैं....बस....तुमसे...प्यार करता हु.' मैंने जवाब दिया और मेरा जवाब सुन कर आशु कस कर मेरे सीने से लग गई. मैंने भी आँखें बंद कर लीं और दिल को इत्मीनान हो गया की आशु और मेरे बीच में अब कोई भी गलतफैमी नहीं बची. कुछ देर ऐसे ही मेरे सीने से लगे हुए रहने के बाद आशु ने पूछा; 'सर को सब पता था ना?' पर मैं तो जैसे सो ने लगा था पर आशु ने फिर मुझे नींद से उठाते हुए झिंझोड़ा और तब मेरे मुँह से टूटे-फूटे शब्द निकलने लगे; 'मैंने....कभी...उन्हें नहीं....बताया.'
पर आशु को तो अब सारी बात सुननी थी. आशु ने अपने पर्स से एक सेंटर शॉक निकाली और मेरे मुँह में डाल दी. दाँतों तले जैसे ही मैंने उस च्युइंग गम का दबाया की खटास के झटके से मेरी आँख खुल गई. मैंने अजीब सा मुँह बनाते हुए आशु को देखा, ठीक वैसा ही मुँह जैसे की आप किसी नन्हे से बच्चे को नीम्बू चटा दो. आशु खिलखिला कर हँस दी और फिर बोली; 'अब बताओ, सर को पता था की आप राखी से प्यार करते थे?'
मैंने कभी उन्हें इस बारे में नहीं बताया, बल्कि उन्हें क्या किसी को नहीं बताया. जब मैंने ऑफिस ज्वाइन किया था तो मेरे आने से कुछ महीने पहले ही राखी ने ज्वाइन किया था. हम दोनों के बीच में कभी कोई बात नहीं हुई, जो भी बात हुई वो काम से रिलेटेड थी. अब चूँकि मैं नया जोइनी था और थोड़ा नौसिखिया तो सर ने मुझे और राखी को एक साथ एक कंपनी का डाटा दे दिया. लंच ब्रेक में भी हम दोनों साथ ही बैठे होते पर बातें बहुत कम ही होती. चाय पीने के समय मैं अकेला ही जाता और एक दिन राखी ने मुझे सिगरेट पीते हुए देख लिया और तब से हमारी थोड़ी बहुत बात शुरू हुई. बातें बड़ी साधारण ही होती, थोड़ी बहुत कॉलेज की बातें बस! अब ऑफिस के सारे मेल एम्प्लाइज को तो तुम जानती हो उन हरामियों ने हम दोनों के बारे में बातें करना शुरू कर दिया. शायद सर ने सुन लिया और उन्हें ये लगा की हम दोनों का कोई चक्कर चल रहा हे. इसीलिए उन्होंने हम दोनों को अलग-अलग डाटा दे कर दूर कर दिया. काम का लोड ज्यादा था तो अब हमारी बातें सिर्फ लंच टाइम में होती या कभी कभार वो मुझे चाय पीते हुए मिल जाती.' आशु मेरी बातें बड़े इत्मीनान से सुन रही थी. और जब मैंने बोलना बंद किया तो वो बोली; 'ये सब रस्तोगी जी और सर ने मिल के किया है! ये उन्हीं का प्लान था की कैसे आपको बदनाम करें! पहले रस्तोगी जी ने आपको जबरदस्ती चढ़ा दिया की शराब पीनी है और लास्ट का दांव सर ने चला. छी! कितने गंदे लोग हैं!' आशु ने गुस्से से तिलमिलाते हुए कहा.
'वेलकम टू दीं कॉर्पोरेट कल्चर!!! यहाँ कोई भी किसी को तरक्की करता हुआ देख कर खुश नहीं होता. अब मुझे सैलरी में रेज मिला तो रस्तोगी जी की किलस गई!' मैंने कहा. बातों-बातों में आशु का हॉस्टल आ गया और मैंने उसे गेट पर छोड़ा और वापस उसी कैब में अपने घर निकल गया.घर आया ही था की दो मैसेज फ़ोन में आये, पहला आशु का की वो हॉस्टल पहुँच गई और आंटी जी ने उसे कुछ नहीं कहा और दूसरा नितु मैडम का; 'सागर जी! रियली सॉरी! आज जो कुछ हुआ उसके लिए मैं इनकी तरफ से माफ़ी माँगती हु. अभी इन्होने मुझे अपना सारा घटिया प्लान बताया!' एक पल को तो मन किया की कल ही जा कर अपना रेसिग्नेशन बॉस के मुँह पर मार आता हूँ पर फिर ये सोच कर चुप हो गया की अभी कुछ महीनों के लिए आशु के साथ इस प्रोजेक्ट पर और काम कर लेता हूँ बाद में छोड़ दूंगा. यही सोचते हुए मुझे कब नींद आई पता ही नहीं चला.
सुबह बहुत देर से उठा करीब आठ बजे होंगे, जल्दी-जल्दी तैयार हुआ और ऑफिस पहुंचा. जाहिर है ऑफिस पहुँचने में थोड़ी देर हो गई पर आज बॉस ने मुझे कुछ नहीं कहा. बाकी दिन जब मैं लेट हो जाता तो बॉस कुछ न कुछ सुना देता था पर आज चुप था. जब मैं केबिन में गुड मॉर्निंग करने घुसा तब भी बस गुड मॉर्निंग का जवाब दिया पर कोई भी फाइल उठा कर मुझे नहीं दी. मैं भी वापस आ कर अपनी डेस्क पर बैठ गया और अपना सिस्टम चालु किया, सोचा की मैडम वाले प्रोजेक्ट पर ही थोड़ा काम कर लेता हु. तभी मेरी नजर रस्तोगी जी पर पड़ी.और दिन तो उनके टेबल पर एक-आधी ही फाइल होती थी पर आज तो ढेर सारी थी! मैं समझ गया की मेरी फाइल्स भी सर ने उन्हें दे दी है तो अब बारी मेरी थी उनके मज़े लेने की! मैं उठा और उनके टेबल पर पहुँच गया;
मैं: अरे प्रफुल भाई, आपने रस्तोगी जी को ब्लैक कॉफ़ी नहीं मँगवा के दी? उनका हैंगओवर कैसे उतरेगा?
ये सुनते ही मोहित और प्रफुल हँसने लगे अब रस्तोगी जी को भी ढोंग करते हुए झूठी हँसी हसनी पडी.
मैं: क्या रस्तोगी जी आप मेरे जैसे बच्चे से हार गए? वो भी देसी पीने में? बॉस से हारे होते तो मैं फिर भी मान लेता!
रस्तोगी: अरे भाई....वो ....दरअसल ...खाली पेट थे ना?
मैं: खाली पेट? वो भी शादी में? काहे?
मोहित: अरे रस्तोगी जी काहे झूठ बोल रहे हो? सबसे ज्यादा खाना तो आप ही दबाये हो! (ये सुनते ही हम सारे हँसने लगे.)
प्रफुल: रस्तोगी जी ने पूरे शगुन के पैसे वसूल किये हे.
मैं: रस्तोगी जी महराज धन्य हो आप! मुझे लुढ़काने के चक्कर में खुद लुढ़क गए!
रस्तोगी: बिटवा थोड़ा ज्यादा उड़ रहे हो!
उन्होंने मुझे टोंट मारना चाहा पर उनके आगे बोलने से पहले ही मैं बरस पड़ा;
मैं: मैं कहाँ उड़ रहा हूँ जी! मुझे उड़ाने का प्लान तो आप लोग बनाये थे, पर आप जानते नहीं हो मुझे ठीक से! जितनी आपकी उम्र है उतने घाटों का पानी पी चूका हु. अगली बार खुंदस निकालनी हो तो थोड़ा ढंग का प्लान बनाना.
मेरी आवाज ऊँची हो चली थी जो बॉस ने भी सुनी पर वो सिर्फ मुझे देख कर ही चुप हो गये. ठीक उसी समय मैडम एंटर हुईं और उन्होंने शायद मेरी बात सुन ली थी इसलिए अपने दाहिने हाथ की छोटी ऊँगली से मेरे हाथ को चलते हुए पकड़ा और मुझे अपने साथ अपने केबिन की तरफ ले आईं और बोलीं; 'सागर जी क्यों अपना मुँह गन्दा करते हो? ये छोटे लोग हैं और इनकी सोच भी छोटी है, किसी की तरक्की इनसे देखि नहीं जाती.' मैंने मैडम की बात का जवाब नहीं दिया बल्कि मुड़ के अपने डेस्क की तरफ जा रहा था की उन्हें लगा जैसे मैं उनसे नाराज हु. मैडम मेरे टेबल के नजदीक आईं और मुझसे पूछने लगीं; 'मुझसे नाराज हो?'
'नहीं तो मॅडम! आपसे भला किस बात की नाराजगी?! मुझे बदनाम करने का प्लॅन आपने थोड़े ही बनाया था.' मैंने तपाक से जवाब दिया.
'वैसे सागर जी! हीरे पर धुल गिराने से उस की चमक कम नहीं होती!' मैं मैडम के बात का मतलब समझ गया इसलिए मैंने आगे उनसे इस बारे में कुछ नहीं कहा. मैडम वापस अपने केबिन में चलीं गईं और मैं प्रोजेक्ट के काम में लग गया.कुछ देर बाद मैडम आईं और बोलीं; 'सागर जी आप मुझे हज़रतगंज छोड़ दोगे? वहाँ जी. एस. टी. ऑफिस में मुझे कुछ काम हे.'
'मॅडम आप मुझे बोल दीजिये मैं चला जाता हु.' मैंने कहा.
'नहीं मैं ही जाऊँगी, यहाँ रहूँगी तो इनकी (बॉस की) शक्ल देखनी पडेगी.' मैडम ने मुँह बनाते हुए कहा. पर मुझे दिक्कत ये थी की बॉस का क्या सोचेंगे पर तभी मैडम बोलीं; 'क्या सोच रहे हो?'
अब मैं क्या बोलता, मैं था और मैडम को चलने के लिए कहा. मैडम अपने केबिन में कुछ फाइल्स लेने गईं और मैं नीचे उतर आया, पार्किंग से बाइक निकाल के बाहर आया और इतने में मैडम भी नीचे आ गई. मैडम ने पिट्ठू बैग टाँगा हुआ था. वो आज बाइक पर दोनों तरफ टांगें कर के बैठ गईं और उनके दोनों हाथ मेरे सीने से आ चिपके.आज तो उन्होंने ब्रा भी नहीं पहनी थी और नंगे स्तन बस एक कुर्ते के पीछे से मेरी कमीज में गड़े हुए थे. उनके इस स्पर्श से मेरे जिस्म में करंट दौड़ गया, मेरे लिए ये बहुत अनकंफर्टेबल हो रहा था पर हिम्मत नहीं हो रही थी की मैडम को बोल सकू. मैं जानबूझ कर आगे को झुका ये ड्रामा करने को की मैं बुलेट के इंजन को छू कर कुछ ढूँढ रहा हु. इससे मैडम की पकड़ थोड़ी ढीली हो गई और हम दोनों के बीच थोड़ा सा गैप आ गया.मैडम भी समझ गईं की मैं नाटक कर रहा हूँ इसलिए उन्होंने खुद से 'सॉरी!!!' बोला. मैं उन्हें ज्यादा ऑक्वर्ड फील नहीं करवाना चाहता था इसलिए मैंने बाइक स्टार्ट की और हम हज़रतगंज के लिए निकले.
पूरे रास्ते मैडम ने मुझसे कोई बात नहीं की, आधे घंटे का रास्ता चुप-चाप निकला. जी. एस. टी. ऑफिस पहुँच कर मैडम ने कहा की मैं ऑफिस वापस चला जाऊ. पर वो आज बहुत उदास महसूस कर रहीं थीं, अब उनका दोस्त था तो उन्हें ऐसे अकेला छोड़ना सही नहीं लगा. 'मॅडम आपकी टुंडे कबाब की ट्रीट बाकी है! आज खाएं?' मेरी बात सुनते ही मैडम की चेहरे पर ख़ुशी लौट आई. उन्होंने बताया की उन्हें कम से कम आधे घंटे का काम है और तब तक मैंने भी सोचा की अपना एक काम निपटा लूँ, इसलिए मैंने उनसे इज्जाजत मांगी और निकल आया. जेब से उन अंकल जी का कार्ड निकाला जिन्होंने कल मुझे वो रिंग दी थी. एड्रेस आस-पास का ही था तो मैं उनकी दूकान जा पहुँचा, दूकान क्या वो तो शोरूम था! अब मुझे लगा की बेटा जितनी सेविंग थी सब गई! एंकल जी कॅश काउंटर पर खड़े थे और मुझे देखते ही मेरे पास आये और मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे काउच पर बिठा दिया और आ के मेरे बगल में ही बैठ गये. मेरे बारे में पूछा की मैं कहाँ का रहने वाला हूँ, यहाँ कब से हूँ, क्या जॉब करता हूँ वगैरह-वगैरह... मैंने भी उन्हें सब बता दिया और फिर बात आई रिंग की कीमत की! 'बेटा मैं अब भी कह रहा हूँ की तुम्हें पैसे देने की कोई जरुरत नहीं!' अंकल जी ने बड़े प्यार से कहा.
'अंकल जी मैं बड़ा गैरतमंद इंसान हूँ! आपसे इस तरह से इतनी महंगी चीज लेना ठीक नहीं! फिर मैं नहीं चाहता की आपको मेरी वजह से नुकसान हो!' मैंने भी बड़े प्यार से उन्हें अपनी मजबूरी समझाई.
'ठीक है बेटा! वो रिंग ज्यादा महंगी नहीं थी. वाइट सिल्वर की थी. वो दरअसल किसी और क्लाइंट के लिए बनाई थी पर उस रात को तुम-दोनों को देख कर मुझे मेरी जवानी के दिन याद आ गये. अब तुमसे पैसे लेने को दिल नहीं करता पर तुम बहुत गैरतमंद हो इसलिए तुम मुझे बस लागत दे दो: ७,०००/-, चाहो तो बाद में दे देना इतनी भी कोई जल्दी नहीं हे.'
'अंकल जी मैं कार्ड लाया था तो ....आपके पास मशीन हो तो?!' मैंने थोड़ा डरते हुए पूछा की खाएं वो कुछ गलत न समझें पर वो निहायती शरीफ थे उन्होंने तुरंत मशीन मंगवाई और पेमेंट होने के बाद मुझे बिल भी देने लगे तो मैंने मना कर दिया. उनसे बिल ले कर मैं उनकी बेज्जत्ती नहीं करना चाहता था. 'तो बेटा शादी कब कर रहे हो?' अंकल ने पूछा.
'जल्द ही अंकल जी!' इतना कह कर मैंने उनसे विदा ली और वापस जी. एस. टी. ऑफिस के बाहर पहुंचा. मैडम को बिठा कर सीधा आझाद बाग पहुँचा और हमने टुंडे कबाब खाये. पर मैडम को अभी भी भूख लगी थी और वो कहने लगीं की किसी रेस्टरंट चलते हैं जहाँ बैठ कर खाना खा सके. हम दोनों एक रेस्टरंट में आये और बैठ गए, मैडम का मुँह अब पहले की तरह खिला-खिला था इसलिए खाना भी उन्हीं ने आर्डर किया.
खाने में मैडम ने बस एक थाली ही आर्डर की थी. दरअसल उन्हें मुझसे कुछ बात करनी थी जो खड़े-खड़े कबाब खाते हुए मुमकिन नहीं थी. आर्डर आने से पहले ही मॅडम ने अपनी बात शुरू की;
नितु मैडम: मैं अपनी इस शादी में पिछले २ साल से घुट रहीं हूँ! कॉलेज खत्म होने के बाद मेरा मन शादी करने का कतई नहीं था. बल्कि मैं तो घूमना-फिरना चाहती थी पर मेरे परिवार वालों की सोच बड़ी रूढ़िवादी थी. मेरा घूमना-फिरना उन्हें कतई पसंद नहीं था इसलिए मेरी शादी जबरदस्ती कर दी गई. कुमार (मेरे बॉस का मिडिल नाम) बहुत बोर और लालची इंसान है, उसके दिमाग में हर वक़्त पैसे ही पैसा घूमता हे. दहेज़ के लालच में शादी की और इतने सालों में हम ने कभी प्यार के हसीन पल साथ नहीं बिताये! अपना अकेलापन दूर करने को मैंने पीना शुरू कर दिया और खुद उसी मायूसी में घुटती रही. ये घुटन दिन पर दिन बढ़ने लगी थी और मैं सोचने लगी थी की सुसाइड कर लूँ, पर फिर वो मुंबई वाला ट्रिप हुआ और मुझे तुम्हारे रूप में एक अच्छा दोस्त मिल गया.
इतने में वेटर एक थाली ले कर आ गया.
 
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मैं: मॅडम आपने सर से इस बारे में बात की? आई मीन इफ यू टेल हिम, ही माईट चेंज हिमसेल्फ …… (मैडम मेरी बात काटते हुए बोलीं)
नितु मैडम: आई दिड बट ही इज टू ड्याम एडमिट टू एकसेप्ट हिज बिहेवियर अँड इंस्टेड ब्लेम मी फॉर इट अँड एक्सपेक्ट मी टू चेंज! दिस रिलेशनशिप इज बियोंड रीपेयरेबल …अँड आई एम गोना एंड इट सोऑन! आई कान्ट लिव्ह विद दिस ऐसहोल एनीमोर!
अब ये सुन कर मुझे बुरा लगने लगा और मैं कुर्सी पर पीठ टिका कर बैठ गया, मैडम ने पूरी का एक कौर खाया और मेरी तरफ देखते हुए बोलीं;
नितु मैडम: डोन्ट ब्लेम योवरसेल्फ फॉर इट, यू आर नॉट रिस्पॉनसिबल फॉर एनी ऑफ दिस! आई टोल्ड यू ऑल दिस कौज आई वॉन्टेड टू आस्क यू अ क्वशन?
अब ये सुन कर मेरी फटी पड़ी थी. मुझे लग रहा था की मैडम मुझे कहीं आई लव यू न बोल दें!
नितु मैडम: डू यू सपोर्ट मी इन दिस डिसिजन …... एज अ फ्रेंड?
मैं: आई डू मॅडम! ….. एज अ फ्रेंड ...आई डू!
नितु मैडम: शुक्रिया! इन केस आई निड टू क्रॅश अ डे ऑर टू, आई विल लेट यू नो!
ये कहते हुए मैडम हँसने लगीं और मैं भी झूठी हँसी हँसने लगा. मन ख़राब था पर मैं अपने चेहरे पर नकली हँसी बनाये हुए था. मैं नहीं चाहता था की मैडम का घर टूटे! हम अभी बाइक पर बैठ ही थे की किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मैंने पलट के देखा तो ये सुमन थी!
'कहाँ घूम रहे हो?' उसने हँस कर पूछा. पर मेरे कुछ बोलने से पहले ही वो बोल पड़ी; 'अच्छा जी! गर्लफ्रेंड घुमा रहे हो!!!!' उसकी बात सुन कर मैडम हँस पड़ीं और मैंने उसे प्यार भरे गुस्से से डांटते हुए कहा; 'पागल! ऑफिस मॅडम हैं मेरी!'
'ओह..सॉरी...सॉरी..सॉरी..!!!' सुमन ने कान पकड़ते हुए कहा.
'इट्स ओके डिअर !!!' मैडम ने भी हँसते हुए कहा.
'तो यहाँ क्या कबाब खाने आये थे आप लोग?' सुमन ने पूछा.
'हाँ जी! जी. एस. टी. ऑफिस से काम निपटा कर सोचा की चलो कबाब ही खा लें.' मैडम ने जवाब दिया.
'आप यहाँ क्या कर रही हो? बॉयफ्रेंड का इन्तेजार??' मैंने सुमन को छेड़ते हुए कहा.
'अरे कहाँ बॉयफ्रेंड! सारे अच्छे लड़के तो आपकी तरह ब्रह्मचारी हो गए हैं!' सुमन ने पलट कर मुझे ही छेड़ दिया.
'किसने कहा मैं ब्रह्मचारी हूँ? इतने साल टूशन पढ़ने के टाइम तो कभी मुझे कुछ कहा नहीं? बल्कि तब तो मेरे मजे लेती थी?!' मैंने कहा और मेरी बात सुन कर मैडम हैरानी से मुझे देखने लगी.
'अरे तब माँ होती थी ना! पर अब आपके पास टाइम ही नहीं है!' सुमन ने कहा.
हमारी इस हँसी-ठिठोली के मजे मैडम ने बहुत लिए और वो जी भर के हँस रही थी. फिर मुझे याद आया की कहीं सुमनं आशु के बारे में कहीं न बक दे, इसलिए मैंने उससे विदा ली.
मैडम और मैं बस हलकी-फुलकी बातें करते हुए ऑफिस पहुँचे, मैंने अपना बैग उठा कर सर को; 'मैं जा रहा हु.' बोल कर निकल गया.सीधा अपनी जानेमन से मिलने उसके कॉलेज वाली लाल बत्ती पर उसका इन्तेजार करने लगा. आशु हमेशा की तरह मुस्कुराती हुई आई और पीछे बैठ गई. हम एक कैफ़े में पहुँचे और फिर मैंने उसे आज की सारी घटना बता दी. मेरी बात सुन कर उसे जरा भी हैरानी नहीं हुई और वो भी पूरे जोश में मैडम का सपोर्ट करते हुए बोली; 'मॅडम ने जो भी कहा वो सही कहा! खुश रहने का हक़ सब को है, अब अगर बॉस उन्हें खुश नहीं रख पाते तो वो अपना जीवन क्यों बर्बाद करें? और इस सब में आपकी बिलकुल भी गलती नहीं है, आप नहीं होते तो मैडम सुसाइड कर लेतीं! भगवान् ने आपको उनकी जिंदगी में भेजा ही इसलिए था की आप उन्हें एक अच्छे दोस्त की तरह संभाल सकें!' मैं आगे कुछ बोल न सका, आशु का भरोसा खुल कर मेरे सामने आ रहा था. 'अच्छा एक जरूरी बात! परसों निशा का जन्मदिन है और उसने हम दोनों को रात की पार्टी में इन्वाइट किया हे. इसलिए आपको अच्छे से तैयार हो कर आना हे.' आशु ने जोश में आते हुए कहा.
'आजकल पार्टी कुछ ज्यादा नहीं हो रही? मेरी बर्थडे पार्टी, फिर राखी की शादी और अब ये निशा का बर्थडे?! थोड़ा पढ़ाई में भी ध्यान दो! वैसे आंटी जी को क्या बोलोगी?' मैंने आशु को थोड़ा डाँटते हुए कहा.
'उन्हें मैंने पहले ही बता दिया है की घर पर पूजा है इसलिए आप और मैं ३ दिन के लिए जा रहे हैं.' आशु ने बड़ी सरलता से कहा.
'पागल हो क्या? तीन दिन? कहाँ है ये पार्टी?' मैंने हैरानी से पूछा.
'जयपुर!!!' आशु ने उत्साह से भरते हुए कहा. मैं अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से आशु को घूरने लगा की ये लड़की पागल तो नहीं हो गई.
'आशु तुझे हो गया है? तेरे कुछ ज्यादा पर निकल आये हैं? कहाँ तो गाँव में चुप-चाप रहने वाली लड़की आज शहर की फूलझड़ी बन गई है!' मैंने आशु को थोड़ा डाँटते हुए कहा. ये सुन कर आशु का सारा उत्साह फुर्र हो गया और उसकी गर्दन झुक गई.
'गाँव में मैं 'जी' कहाँ रही थी? वहाँ जो भी खुशियां मिली वो सिर्फ आपने दी, वो खुशियाँ बस तरीकों के साथ आती थी. एक लिमिटेड टाइम के लिए, कुछ भी करने से पहले दस बार सोचना की कहीं घर वाले नाराज न हो जाएँ और मेरी शादी न कर दें! पर यहाँ आ कर मुझे पता चला की लाइफ को जिया कैसे जाता है! आप अगर मुझे यहाँ ना लाते तो मैं वही गाँव की गंवार बन के रह जाती. मानती हूँ की कई बार मैं अपनी सारी हदें पार कर देती हूँ, शायद इसलिए की ये खुशियाँ मेरे लिए बाकी थीं और बड़ी लेट मिलीं.' आशु ने सर झुकाये हुए ही दबी आवाज में कहा.
मैं आशु का दर्द समझ सकता था पर ये जो वाईल्ड हरकतें वो कर रही थी वो हमारे प्लान पर पानी फेर देतीं. 'आशु देख मैं समझ सकता हूँ पर तू जिस स्पीड पर भाग रही है वो हमारे आने वाले जीवन के लिए खतरनाक है! अगर घर में बात जारा सी भी लीक हो गई तो बवाल खड़ा हो जायेगा.' मैंने आशु को समझाया. आशु ने बस सर झुकाये हुए ही हाँ में गर्दन हिलाई और मैं उठ कर उसके बगल में बैठ गया और उसे अपने सीने से लगा लिया. ५ बजने वाले थे तो मैं उसे ले कर निकल पड़ा और उसे हॉस्टल छोड़ा और फिर अपने घर आ गया.
रात के करीब दस बजे होंगे और मैं अंडे की भुर्जी बना रहा था की मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई. मैंने दरवाजा खोला तो सामने निशा खड़ी थी. मुझे देखते ही वो 'हाई!!!' बोली. मैं उसे यहाँ देख कर भौंचक्का रह गया और हकलाते हुए 'ह ... ...हाई!!!' निकला...
“कॅन आई कम इन?” निशा ने पूछा तो मैंने दरवाजे पर से हाथ हटाया और उसे अंदर आने दिया और खुद दरवाजे पर ही खड़ा रहा. वो अंदर आ कर मेरे घर को देखने लगी और तब उसका ध्यान अंडा भुर्जी पर गया और उसने फटाफट किचन सिंक में हाथ धोये और खुद ही एक प्लेट में अपने लिए भुर्जी निकाल ली और ब्रेड का पैकेट खोलने वाली थी तो मैंने उसे बताया की टिफ़िन में परांठा हे. उसने फ़ौरन वो निकाला और बिना कुछ आगे बोले खाने लगी. मैं चौखट से अपनी पीठ टिका कर खड़ा हो गया और उसे खाते हुए देखने लगा. आधा परांठा खाने के बाद उसे याद आया की वो किस काम के लिए आई थी; 'सागर जी! प्लीज चलो ना मेरे बर्थडे पार्टी पर जयपुर? आप नहीं जाओगे तो अश्विनी भी नहीं जायेगी!'
'सॉरी जी! पर ऑफिस से छुट्टी नहीं मिलेगी.' मैंने कहा पर वो आज पूरा मन बना कर आई थी.
निशा: ओह कम ऑन! ये बस एक कपल गेट टूगेदर है! आप दोनों के बिना हमें कैसे मजा आएगा?
मैं: नो ऑफेंस, बट आई डोन्ट एवन नो यू! आई मीन एक्सेप्त दॅट यू आर हर फ्रेंड?
निशा: दॅट इज दीं बेस्ट पार्ट, यू अँड मी… आई मीन… वी कॅन गेट टू नो इच अदर!
मुझे निशा की बात बहुत अजीब लगी!
मैं: आई एम सॉरी, बॉस छुट्टी नहीं देगा.
निशा: अरे ऐसे कैसे? इतनी मेहनती आदमी को छुट्टी नहीं मिलेगी तो कैसे चलेगा? मैं बात करती हूँ आपके बॉस से!' निशा ने भुर्जी खाते हुए कहा.
मैं: ओह प्लीज! डोन्ट बी अ कीड!
निशा: ओह! समझी.... आप जानबूझ कर जाना नहीं चाहते! ठीक है मैं यहाँ से तब तक नहीं हिलूँगी जब तक आप हाँ नहीं कहते.
मैं: एज यू विश!
मैंने सोचा की ये कर भी क्या लेगी, कुछ देर बाद तो इसे जाना ही होगा वरना अपने घर में क्या बोलेगी? मैंने इधर आशु को फ़ोन मिलाया पर उसने उठाया नहीं, शायद वो सो चुकी थी. आधे घंटे तक मैं चौखट से अपनी पीठ टिकाये खड़ा रहा और निशा मेरे पलंग पर आलथी-पालथी मारे बैठी रही.
निशा: सागर जी! मुझे घर भी जाना है! प्लीज मान जाओ, मेरे लिए न सही पर आशु के लिए. उस बेचारी ने कभी जयपुर नहीं देखा वो थोड़ा घूम लेगी तो आपका क्या जायेगा? मैं उसे साथ ले जाती पर वो सिर्फ आपके साथ जाना जाती हे.
अब मैं सोच में पड़ गया की ये खतरा कैसे उठाऊँ? घर पर ये बात खुलती तो काण्ड होना तय था! तभी आशु का फ़ोन आया और उसने मुझे फ़ोन स्पीकर पर करने को कहा; ' निशा? तेरी हिम्मत कैसे हुई उनको तंग करने की? मैंने तुझे बोला था न की हम नहीं जा रहे तू चली जा? फिर तू इतनी रात गए वहाँ क्या कर रही है?' आशु निशा पर बरस पडी.
'आशु बस! .... शांत हो जा! हम दोनों जा रहे हैं.' मेरी बात सुन कर निशा खुश हो गई तो आशु खामोश हो गई. मैंने फ़ोन स्पीकर मोड से हटाया और अपने कान से लगाया. 'अपनी जानेमन की ख़ुशी के लिए कुछ भी!' आशु को अब भी यक़ीन नहीं हो रहा था; 'उस इडियट ने तो आपको तंग नहीं किया ना? मैंने उसे आपके पास जाने को नहीं बोला. मुझे तो पता भी नहीं था की वो आपके घर पर आई हुई हे. अभी उसका मैसेज पढ़ा की वो आपके घर पर आपको मनाने आई है और आप मान नहीं रहे. इसलिए मैंने अभी कॉल किया!'
'जान! मैं किसी दबाव में नहीं कह रहा, बस इस पागल लड़की की बात से एहसास हुआ की मैं तुम्हारे साथ कितनी ज्यादती कर रहा था.' मैंने कहा और मेरे निशा को पागल लड़की कहने पर वो हँस दी!
'पर घर का क्या?' आशु ने चिंता जताई.
'क्यों तुमने तो पहले ही बहाना ढूँढ रखा है?!' मैंने थोड़ा प्यार भरा टोंट मारा. 'थैंक यू जानू! आई लव यू!!!' आशु की ख़ुशी लौट आई और मुझे नहीं लगता की वो उस रात सोइ भी होगी! इधर रात के पोन ग्यारह हो रहे थे और अभी इस पागल लड़की को घर भी जाना था. 'चलो आपको घर छोड़ दू.' मैंने आशु का फ़ोन काटते ही निशा से कहा. “शुक्रिया… शुक्रिया… शुक्रिया… शुक्रिया… शुक्रिया” कहते हुए वो मेरे नजदीक आ गई और मेरे गले लग गई पर मैंने उसे छुआ भी नही. 'अच्छा बस मैडम! चलिए!' इतना कह कर मैंने खुद को उससे छुड़वाया और उसे घर छोड़ने निकला.मेरे घर से उसका घर करीब २० मिनट दूर था. अब रात में कहीं कुत्ते पीछे न पड़ जाएँ इसलिए मैंने बाइके निकाली और उसे उसके घर के सामने छोडा. वो मुझे बाय बोल कर उछलती-कूदती हुई चली गई. मैं भी घर लौट आया और ब्रेड और ठंडी भुर्जी खा कर सो गया.
अगले दिन मैं उठ कर, नाहा धो कर ऑफिस पहुँचा और बॉस के सामने अपनी छुट्टी की अर्जी रख दी. 'सर मुझे ४ दिन की छुट्टी चाहिए, घर पर पूजा-पाठ है! मैं मंडे ज्वाइन कर लुंगा.' सर ने मुझे देखे बिना ही ठीक है कह दिया. मैं भी वापस बाहर आ कर डेस्क पर पहले से ही रखी फाइल्स निपटाने लगा. लंच टाइम मैं उठ कर बाहर जा रहा था की नितु मैडम आ गईं और मुझसे बोलीं; 'सागर जी! आपके सर ने बताया की आप कल गाँव जा रहे हो? कोई इमरजेंसी तो नहीं?'
'नहीं मॅडम, वो घर में पूजा है इसलिए जा रहा हु. अँड सॉरी इस रविवार प्रोजेक्ट पर काम नहीं कर पाउँगा, मैं रविवार शाम तक लौटूँगा. आज मैं पी. पी. टी. फाइनल कर दूँगा और वो आपने उन्हें पिछले पाँच साल के फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स मँगवा लिए?' पर मैडम का तो जैसे मेरी बातों पर ध्यान ही नहीं था. उनकी आँखें मुझ पर टिकी थीं पर ध्यान कहीं और था! मैं ने हवा में मैडम के चेहरे के सामने हाथ हिला कर मैडम की तन्द्रा भंग करते हुए पूछा; 'क्या हुआ मॅडम?'
उन्होंने बस कुछ नहीं कहा और वो अपने केबिन की तरफ चली गईं मैं भी कुछ सोचते हुए नीचे आ गया और चाय पी रहा था. मैंने जेब से फ़ोन निकाला और घर फ़ोन किया ये जानने के लिए की वहाँ सब कुछ कैसा है? कहीं पता चले की वहाँ से कोई शहर आ टपके और काण्ड हो जाए! पिताजी ने फ़ोन उठाया तो वो मुझ पर ही बरस पड़े; 'तुम दोनों के पास इतना भी समय नहीं की घर आ जाओ? पढ़ाई और काम-धंधे में इतने व्यस्त हो की घर की कोई चिंता ही नहीं? पहले तो हफ्ते में दो दिन के लिए तुम्हारी शक्ल दिख जाती थी अब तो महीने होंने को आये तुम्हें देखे हुए? तुम लोगों की सूरत तो छोडो आवाज सुनने को कान तरस गए और तुम लोग हो की बस अपनी मस्ती में मस्त हो! इसीलिए तुम दोनों को शहर भेजा था?' पिताजी की बात जायज थी पर यहाँ आशु और मेरे काम के कारन हम गाँव नहीं जा आ रहे थे.
'पिताजी आपसे हाथ जोड़ कर माफ़ी माँगता हूँ! मैं या आशु आप सब की दी हुई आजादी का गलत फायदा नहीं उठा रहे, दरअसल मेरे ऑफिस में आज कल एक नया प्रोजेक्ट चल रहा है और इसलिए मैं शनिवार-रविवार ओवरटाइम कर रहा हु. कुछ महीनों में वो खत्म हो जायेगा तो मैं फिर से शनिवार-रविवार आ जाऊंगा. बल्कि मैं इस रविवार ऑफिस के कुछ काम से आ रहा हूँ और आशु को घर छोड़ जाऊँगा, उसके कॉलेज की छुट्टियाँ हे. मैं ताऊ जी से भी माफ़ी मांग लूँगा, पर पहले आप तो माफ़ कर दिजिये.' मेरी सेंटीमेंटल बातें सुन कर पिताजी को तसल्ली हुई और उनका गुस्सा शांत हो गया.अभी मैंने कॉल रखा ही था की आशु का फ़ोन आ गया.
'जानू! मुझे बहुत डर लग रहा है! अगर हमारे पीछे से घर से कोई यहाँ आ गया तो?' आशु ने डरते हुए कहा.
'ये सब पहले नहीं सोचा था?' मैंने आशु को ताना मारते हुए कहा. 'मैं तो साफ़ कह दूँगा की ये लड़की (आशु) मुझे बरगला कर ले गई थी!' मेरी बात सुनते ही आशु के मुंह से 'आव्वव्वव्वव्व!!! ' निकला और में जोर से हँस दिया. मिनट भर तक पेट पकड़ के हँसने के बाद मैं बोला; 'तू चिंता मत कर, मैंने अभी घर कॉल किया था और घरवाले अभूत गुस्सा हो रहे थे. बड़ी मुश्किल से मैंने पिताजी को समझाया है और वादा किया है की इस रविवार तुझे घर छोड़ दूँगा कुछ दिनों के लिए, क्योंकि तेरे कॉलेज की छुट्टी हे.' ये सुनते ही आशु बोली; 'ये अच्छा है! मुझे ही फंसा दो आप?! मैं वहाँ अकेली इतने दिन आपके बिना क्या करुँगी?!'
'जयपुर का प्लान किसने बनाया था?' मैंने पूछा और आशु समझ गई की ये उसकी गलती की सज़ा हे. 'अगली बार अगर इस तरह का पन्गा खड़ा किया न तो देख ले फिर?!' मैंने आशु को सचेत करते हुए कहा.
'आई प्रॉमिस अगलीबार कुछ भी करने से पहले आप से पूछूँगी.वैसे आज कितने बजे मिल रहे हैं?'
'आज मुश्किल है, प्रोजेक्ट की पी. पी. टी. पूरी करनी है वरना मैडम अकेले कैसे करेंगी और हाँ.... याद से मैडम को कल फ़ोन कर के बता देना की तुम इस रविवार नहीं आने वाली और प्लीज ये मत कहना की घर पर पूजा है! वो बहाना मैंने मारा हे.' मेरी बात खत्म हुई और आशु वापस कॉलेज लेक्चर अटेंड करने चली गई. मैं भी चाय पी कर वापस आ गया और डेस्कटॉप पर काम करने लगा.
उस दिन मैडम से मेरी बात सिर्फ मेल पर ही हो रही थी क्योंकि मैडम लंच के बाद निकल गईं थी. अगले दिन सुबह जब मैं ऑफिस पहुँचा तो बॉस और मैडम को लगा की मेरा जाना कैंसिल हो गया; 'जी शाम की बस है और वो पी. पी. टी. वाला काम फाइनल करना था इसलिए आ गया.' इतना कह कर मैं कल वाली पी. पी. टी. में मैडम के बता हुए करेक्शन कर रहा था. लंच के बाद मैं सर को बोल कर निकल गया, मैडम पहले ही जा चुकी थी. मैं घर पहुँच कर तैयार हो कर एक बैग में अपने कुछ कपडे ले कर निकला और आशु के हॉस्टल पहुंचा. आंटी जी चूँकि वहीँ थीं तो उन्होंने जबरदस्ती रोक लिया और चाय पिलाई और पूछने लगी; 'क्या घर में सत्य नारायण की पूजा है?' अब मैं बड़ा ही धार्मिक आदमी हूँ इसलिए मैं जान बुझ कर चुप रहा और आशु की तरफ देखते हुए मैंने चाय का कप अपने होठों से लगा लिया; 'जी आंटी जी!' आशु बोली. चाय पी कर हम निकले और एक ऑटो में बैठ गये. 'भगवान् के नाम से झूठ बोला है तूने, इस पाप की भागीदार तू ही हे.' मैंने आशु को छेड़ते हुए कहा. 'कोई नहीं जी! आपके प्यार के लिए ये पाप भी सर आँखों पर.' आशु ने जवाब दिया.
हम दोनों ही बस स्टॉप पहुँच गए पर निशा और उसका बंदा अभी तक नहीं आये थे. बस आने में अभी करीब आधा घंटा था और मैं और आशु आराम से बैठे बातें कर रहे थे. इतने में मैडम का फ़ोन आया और मैं उनका कॉल लेने के लिए बाहर आ गया और हमारी बातें कुछ मेल वगैरह की हो रही थी. तभी निशा और उसका बंदा आ गए और सीधा आशु के पास बैठ गये. मेरी नजर अभी उन पर नहीं पड़ी थी. इतने में मेरी तरफ एक लड़का चलता हुआ आया. आँखों पर काला चस्म, लेदर जैकेट और मुँह में च्युइंग गम खाते हुए वो मेरे पास रूक गया.मैंने मैडम से एक मिनट होल्ड करने को कहा, उनका कॉल होल्ड पर डालते हुए उसकी तरफ देखते हुए सवालियां नजरों से देखने लगा और तभी वो खुद बोल पड़ा; 'हाय! आई एम अक्षय!' उसने हाथ मिलाने को आगे बढ़ाया पर मैं अब भी सोच में था की ये कौन है? मेरी उलझन समझ कर वो खुद बोला; 'आई एम निशा बॉयफ्रेंड!' ये सुन कर मैं उसे ऊपर से नीचे फिर से देखने लगा और उसे कहा; 'जस्ट ए सेक! मॅडम आई विल कॉल यू बॅक.” और मैंने मैडम का कॉल काटा और उस अजीब से भेष को देख कर मेरी हँसी बाहर आने को बेचैन हो गई. ठण्ड अभी शुरू नहीं हुई थी ये मंदबुद्धी लेदर जैकेट पहन के आया था. 'यू मस्टबी सागर?! अश्विनी बॉयफ्रेंड.” उसने बड़े अमेरिकन एक्सेंट के साथ कहा और मेरी हँसी मेरे चेहरे पर झलकने लगी पर मैंने वो फिर भी जैसे-तैसे दबाई और हाँ में सर हिलाया. इतने में निशा आगई और उसके कंधे पर हाथ रख कर खड़ी हो गई और बड़ी अकड़ से मेरी तरफ देखने लगी; 'हाऊ दिड यू लाईक हिम?” मैं जानता था की मैंने कुछ कहने के लिए मुँह खोला तो मेरे मुँह से हँसी निकल जायेगी इसलिए मैंने बस थम्ब्स अप का निशाँ दिखाया और जाने लगा.
तभी अक्षय मुझे रोकते हुए बोला; 'आई एम गोइंग टू गेट सम मिनरल वाटर, वुड यू लाईक सम?” मैंने बस ना में सर हिलाया और आशु के पास आ कर बैठ गया.
ने मेरी तरफ देखा और पूछा; 'कैसा लगा अक्षय?'
'नजाने क्या मजबूरी रही होगी निशा की!' मेरे मुँह से बस इतना निकला की आशु और मैं दहाड़े मार के हँसने लगे. वहाँ बैठे सारे लोग हमें देख रहे थे और तभी निशा भी आ गई. उसे देख हमें और भी हँसी आ रही थी और वो बेचारी अनजान हमसे हँसी का कारन पूछ रही थी. आशु ने बात घुमा दी और ये बोल दिया की ऑफिस की बात थी!
थोड़ी देर में अक्षय पानी की बोतल ले आया और हमारे सामने बैठ गया.तभी उसकी नजर आशु की रिंग पर गई और उसने पूछ ही लिया, अपनी अमेरिकन एक्सेंट में; 'दॅट इज अ नाइस रिंग, हु गेव यू?' आशु के जवाब देने से पहले ही निशा ने उसकी पीठ पर थपकी दी और बोली; 'डफर सागर जी ने दी और किस की हिम्मत है जो अश्विनी को रिंग देगा?' इतना कहते हुए निशा ने कॉलेज के पहले दिन वाला काण्ड दोहरा दिया जिसे सुन कर अक्षय चुप हो गया.बेचारा कॉम्प्लेक्स फील करने लगा तो मैंने सोचा की कोई और टॉपिक छेड़ा जाए; 'सो गाईज व्हॉट इज दीं प्लॅन? व्हेअर आर वी स्टेयींग अँड व्हॉट आर वी डूयिंग?”
“चील..ब्रो! आई गोट इट!” अक्षय ने कूल बनते हुए कहा.
“ओह रियली? बट कॅन यू शेअर इट विद अस?” मैंने कहा तो अक्षय बड़े ऐटिटूड में बोला; 'वन्स वी रीच जयपूर वीआर गोना चेक इन इन टू हॉटेल, रेस्ट अँड ह्याड आऊट फॉर पार्टी एट नाईट!”
“ओके! बट व्हॉट इज दीं नेम ऑफ दीं हॉटेल वीआर चेकिंग इंटो? अँड व्हॉट आर वी डूयिंग फॉर ३ डेज?” मैंने अक्षय की गलती निकालते हुए पूछा.
'रोमांस …रोमांस…. रोमान्स” उसने बड़े क्याजूअली जवाब दिया. पर ये सुन कर अश्विनी और निशा गुस्से में उसे देखने लगी.
“क्या? आई थोट वीआर गोइंग फॉर रोमांस?” ये सुनते ही निशा ने अपना पर्स उठाया और उस के मुँह पर मारा.
“मंदबुद्धी कहिके मेरा बर्थडे मनाने जा रहा है या हनीमून?' निशा के मुँह से गाली सुनते ही मेरी तगड़ी वाली हँसी छूट गई और आशु आँख फाड़े मुझे देखने लगी.
“यार आई वाज जोकिंग!” अक्षय ने हँसते हुए कहा पर निशा का गुस्सा खत्म नहीं हुआ; 'कमीने तुझे बोला था न अश्विनी के सामने जुबान संभाल के बात करिओ, पर नहीं तूने तो अपनी ..... मरवानी है! सारे बनाये हुए इम्प्रैशन की माँ बहेन एक दी तूने हरामी!'
'तू कभी नहीं सुधरेगी!' आशु ने निशा को गुस्से से देखते हुए अपने दाँत पीसते हुए कहा. मेरा हँसनाबंद हो चूका था. अब मुझे सब समझ आने लगा था. कॉलेज ज्वाइन करने से पहले मैंने आशु को समझाया था की अपने दोस्त सोच समझ कर बनाना. नशेड़ी,गंजेड़ियों, लौंडियाबाजों से दूर रहना और अगर लड़की से दोस्ती की तो कम से कम वो गाली न देती हो! निशा गाली देती थी और आशु मुझसे ये बात छुपाना चाहती थी. मैंने आशु की तरफ देखा और दबी हुई आवाज में कहा; 'सिरीयसली??!' आशु ने कान पकडे और मुझे सॉरी कहा पर अब कुछ हो भी क्या सकता था.
'जोक्स अ पार्ट, होटल कौन सा बुक हुआ है?' मैंने पूछा.
'वहाँ पहुँच कर देखते हैं!' अक्षय अब भी बड़ा निश्चिन्त था. मैने आगे कुछ नहीं कहा और चुप-चाप अपना फ़ोन निकाला और ओयो पर दो रूम बुक किये. फिर फ़ोन दोनों की तरफ घुमाया और उन्हें दिखाते हुए बोला; 'रूम बुक हो गये हैं.'
'देख कमीने और सीख सागर जी से!' निशा ने अक्षय को घुसा मारते हुए कहा.
बस के आने का टाइम हो चूका था और गनीमत है की उसकी टिकट्स निशा ने बुक करा दी थी. हमारे सामने व्होल्व्हो आ कर खड़ी हुई और हम चारों अपनी-अपनी सीट्स पर बैठ गये. निशा और अक्षय ठीक हमारे सामने वाली सीट्स पर थे.खिड़की पर आशु बैठी थी. मैं एसल सीट में और उधर अक्षय खिड़की पर और निशा एसल सीट पर.१० मिनट बाद ही बस चल पड़ी और अक्षय ने मुझे देखते हुए अपना हाथ निशा के कन्धों पर रख दिया. पर मुझे कोई दिखावा करने की जरुरत नहीं थी. आशु खुद ही मेरे कंधे पर सर रख चुकी थी और अपने दोनों हाथों से उसने मेरे दाएँ हाथ को पकड़ लिया. “दिड यू प्लॅन ऑल दिस?” मैंने आशु से बड़े प्यार से पूछा. पर वो मेरी बात समझ नहीं पाई और बोली; 'मैं कुछ समझी नहीं?'
'निशा को मेरे घर मुझे मनाने के लिए भेजना?'
'बिलकुल नहीं!' आशु ने चौंकते हुए कहा.
'तो फिर वो मेरे घर कैसे आई? किसने एड्रेस दिया उसे मेरा?'
'उसने बाजार में आपको कई बार देखा था और एक आध-बार वो आपके घर के पास से गुजरी तब उसने आपको घर में घुसते-निकलते हुए देखा था. जब मैंने उसे आपसे इंट्रोडस करवाया था तब बाद में उसने बताया की वो तो आपको जानती है, मेरा मतलब की आप कहाँ रहते हो ये जानती है!'
'अच्छा जी?!' मैंने आशु को चिढ़ाते हुए कहा और आशु फिर से मेरे सीने पर सर रख कर बैठ गई.
मुझे नींद का झौंका आ रहा था और आशु अपने बाएं हाथ से मेरे दाएँ हाथ को लॉक कर मेरे कंधे पर सर रख बैठी थी. उसकी ख़ुशी उसके चेहरे से झलक रही थी और दूसरी तरफ अक्षय और निशा जी भर के शो ऑफ करने में लगे थे, एक दूसरे को छेड़ रहे थे, हँसी-ठिठोली कर रहे थे. पर आशु बहुत शांत थी और मन ही मन जैसे इस सब के लिए भगवान् को शुक्रिया कर रही थी. अभी मेरी आँख बंद ही हुई थी की उसने मुझे जगा दिया और बोली' 'जानू! मुझे भूख लग रही है!' मैंने घडी देखि तो अभी शाम के ६ बजे थे, फिर उसे ऊपर रखे हुए चिप्स और थम्ब्स अप निकाल के दी. मैं हाथ मोड़ के बैठ गया, आशु ने पहला चिप्स मुझे खिलाया और फिर खुद खाने लगी. इतने में निशा का ध्यान हमारी तरफ आया तो वो भी खाने के लिए उसी चिप्स के पैकेट पर टूट पडी. 'सागर जी आप मेरी सीट पर बैठ जाओ.' निशा बोली.
'हेल्लो मैडम! मैं आपके बॉयफ्रेंड के साथ बैठने यहाँ नहीं आया.' मैंने मजाक करते हुए कहा. तभी अश्विनी ने अपना चिप्स का पैकेट उसे दे दिया; 'ये ले खा मोटी!' ये सुन कर हम चारों हँस पडे. इतने में नितु मैडम का फ़ोन आ गया; 'तो सागर जी बस मिल गई?'
'जी मॅडम मिल गई. इनफैक्ट मैं बस में ही हु. सॉरी उस टाइम आपसे बात नहीं कर पाया.'
'अरे कोई बात नहीं, वो दरअसल मैं कंपनी को मेल किया था तो उसने सारा डाटा भेज दिया हे. शनिवार अश्विनी आएगी तो मैं उसके साथ बैठ कर काम खत्म करती हु.' मैडम की बात सुन कर मैं आशु की तरफ हैरानी से देखने लगा. आशु ने अभी तक मैडम को नहीं बताया था की वो शनिवार-रविवार नहीं आ पायेगी! मैडम से बस इतनी ही बात हुई और फिर उन्होंने फ़ोन काट दिया. 'आशु तूने मैडम को कॉल करके नहीं बताया?' मैंने आशु से पूछा तो वो अपनी जीभ दाँतों तले दबाते हुए बोली; 'भूल गई! सॉरी! अभी कॉल करती हु.'
'पागल न बन! कल सुबह कॉल करिओ और बहाना अच्छा मारिओ वरना मैडम जबरदस्ती बुला लेंगी' मैंने आशु को समझाया. खेर रात आठ बजे बस ने एक हॉल्ट लिया और हमारा खाना-पीना हुआ. मैं बस की यात्रा में कुछ ज्यादा खाता-पीता नहीं, चिप्स या बिस्किट और कोल्ड ड्रिंक्स, इससे ज्यादा कुछ नहीं लेता. निशा और अक्षय ने तो दबा कर पेला और पेट भर खाना खाया. आशु ने भी बस दो रोटी खाई और मुझे भी खाने को कहा पर मैंने मना कर दिया. रात के दस बजे होंगे, सारी लाइट्स ऑफ हो गईं और निशा और अक्षय का बस मे रोमांस चालु हो गया.
दोनो ने एक दूसरे को चूमना शुरू कर चुका था.आशु ये सब देख रही थी और मेरी नजर आशु पर थी. आशु बेचैन होने लगी थी पर जानती थी की हम बस में हैं और यहाँ कुछ भी करना पॉसिबल नहीं हे. आशु ने अपने बाएँ हाथ को मेरी कमर में डाला और मेरी तरफ झुक कर मेरे सीने पर अपना सर रख लिया. उसका दाहिना हाथ मेरे पेट पर था और ध्यान अब भी निशा और अक्षय के चूमने पर था. वो दोनों ज्यादा तो कुछ नहीं कर रहे थे बस एक दूसरे को किस ही कर रहे थे और इतने से ही आशु की सांसें भारी होने लगी थी. जिस दिन मैंने आशु का गुस्से से डाँटा था उस दिन से मैंने उसे जरा भी नहीं छुआ था और उसकी ये बेताबी फिर से बाहर आने लगी थी. मैने झुक कर आशु के सर को चूमा ताकि वो अपने जज्बातों को काबू में कर ले.पर मेरा ये किस ऐसा था मानो जैसे किसी ने गर्म तवे पर पानी का छींटा मारा हो. मेरे आशु के सर पर किस करते ही वो मेरी आंखों में प्यास भरी आँखों से देखने लगी. वो आँखों ही आँखों में मुझसे मिन्नत करने लगी. मानो जैसे कह रही हो की बस एक किस! उसकी मासूम आँखों को देख कर मैं पिघलने लगा और झुक कर उसके होटो पर अपने होठों को रख दिया. मैंने अपना मुँह थोड़ा सा खोला और उसके नीचले होंठ को धीरे से अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा.
आशु का दायाँ हाथ मेंरे बाएँ गाल पर आ चूका था. आशु ने अपनी रस भरी जीभ मेरे मुँह में दाखिल कर दी थी और वो मेरी जीभ से समागम करने लगी थी. मैंने अपने दोनों हाथों से आशु के मुँह को थाम लिया था. और उसकी जीभ को अपने मुँह में चूसने लगा था. कुछ सेकंड बाद मैंने उसकी जीभ छोड़ दी और अपनी जीभ को धीरे से उसके मुँह में सरका दिया. मेरी जीभ का गर्म जोशी से स्वागत हुआ, अश्विनी के होठों ने उसे अपने दबाव से पकड़ लिया और आशु उसे चूसने लगी. इसी तरह हम दोनों बारी-बारी से एक दूसरे के होठों को चूस रहे थे और ये सब हम बिना किसी आवाज के और धीरे-धीरे कर रहे थे. जब हम रुके और अलग हुए तो हमारे रस की एक तार हम दोनों के होठों के बीच थी. हम दोनों उस कुछ देर के लिए ये भी भूल चुका था. की हम घर पर नहीं बल्कि बस में हे. जब हम अलग हुए तो आशु की नजर बगल वाली सीट जिस पर निशा और अक्षय बैठे थे उस पर पड़ी और वो एक दम से शर्मा कर मेरे सीने पर दोनों हाथों से अपना मुँह छुपा कर बैठ गई. मैंने जब उस तरफ देखा तो पाया की वो दोनों हमें ही देख रहे थे! हमारे किस से अगर कोई संतुष्ट था तो वो थे निशा और अक्षय! हैरानी बात ये थी की मैं बिलकुल नहीं शरमाया बल्कि मुझे तो जैसे गर्व महसूस हो रहा था. ऐसा लगा जैसे मैं कोई टीचर हूँ और उन दोनों को किस करना सीखा रहा हु. मैंने अपने दोनों हाथों से आशु को अपने सीने से चिपकाया और हाथों को लॉक कर ऐसे जताया की वो मेरे पहलु में सुरक्षित हे. मेरे ऐसा करने से आशु भी संतुष्ट हो गई की वो सुरक्षित है और उसने अपने दोनों हाथों से मुझे कस कर जकड़ लिया. कुछ देर बाद निशा और अक्षय एक दूसरे से कुछ खुसर-फुसर करते हुए सो गये. मुझे ऐसा लगा जैसे निशा अक्षय से कह रही हो की; 'सीख सागर जी से कुछ! कितना प्याशनेटली किस करते हैं वो अश्विनी को?' और वो बेचारा जल-भुन के रह गया.
बस मे सब सो चुका थे. एक अकेला मैं ही जाग रहा था. हाईवे में हवा से बातें करती हुई बस, वो साईरन बजाते हुए ट्रकों का गुजरना,वो जगमगाती हुई ढाबों की लाइट्स, वो दूर कहीं किसी के घर की लाइट्स आदि को देखना. मुझे यही देखने में बड़ा मजा आ रहा था और मैं अपनी सोच में गुम था. बारह बजे आशु जागी और उसने मुझे इस तरह से जागा हुआ पाया तो पूछने लगी; 'जानू! क्या हुआ? आप जाग क्यों रहे हो?'
'कुछ नहीं जान! मैं रात को बस में सोता नहीं हूँ, ये शान्ति और लाइट्स देखना मुझे अच्छा लगता हे.' मैंने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा.
'एक बात कहूँ जानू? आपको पता है मुझे अभी कैसा लग रहा है?'
'कैसा?' मैंने पूछा.
'ऐसा लग रहा है जैसे हम दोनों घर से भाग रहे हैं और कल से हमारी एक नयी जिंदगी शुरू होगी. जहाँ हमें इन समाज के बंधनों की कोई जरुरत या परवाह नहीं होगी. कोई रोक-टोक नहीं! हम आजाद परींदे होंगे! वो फिल्मों वाली फीलिंग आ रही है, जिसमें हीरो अपनी हेरोइन को इसी तरह अपने पहलु में छुपाये घर से भगा कर ले जा रहा हो.'
'हम्म... वो दिन भी आएगा मेरी जान! अब आप सो जाओ!' मैंने आशु के सर को चूमते हुए कहा.
'हम जयपुर कब पहुँचेंगे?' आशु ने फिर से मेरे सीने पर सर रखते हुए पूछा.
'सुबह ४ बजे!'
'तो आप भी सो जाओ थोड़ी देर|' आशु ने मुझे उसकी गोद में सर रख कर सोने का निमंत्रण देते हुए कहा.
'आप सो जाओ जान! मुझे ये लाइट्स देखने में आनंद आ रहा हे.'
'ठीक है तो मैं भी आपके साथ जागुंगी. मैं भी तो देखूँ की आप किस आनंद की बात कर रहे हो.' पर आशु कुछ देर ही मैं बोर हो गई और मेरे कंधे पर सर रख कर सो गई. मैंने धीरे से अपनी जेब से फ़ोन निकाला और अपनी एक सेल्फी ली. आशु मेरे कंधे पर सर रख कर सोते हुए बड़ी प्यारी लग रही थी. फिर मैं फ़ोन से स्लो मोशन वीडियो बनाने लगा, फिर फ़ोन से हेडफोन्स लगाए और गाने सुनने लगा, इसी तरह से मैंने सारी रात पार की. सुबह पौने चार बजे मैंने आशु को उठा दिया.साथ ही निशा और अक्षय को भी उठा दिया. ठीक ४ बजे हमारा स्टैंड आ गया.अपना सामान ले कर हम चारों उतरे और मैंने फटफट ऑटो किया, अब बैठने की बारी आई तो निशा बोली; 'अक्षय तू आगे बैठ जा!' आगे का मतलब था ड्राइवर के साथ और ये सुन कर वो निशा की तरफ सवलिया नजरों से देखने लगा. मुझे हँसी तो बहुत आई पर मैं कुछ नहीं बोला और हम तीनों पीछे बैठ गये. मैंने नेविगेशन ऑन कर दी थी की कहीं ऑटो वाला होशियारी न करे और मैं ऑटो वाले को ऐसे बता रहा था जैसे मैं इस इलाके से परिचित हु. वो भी मुझसे पूछ रहा था की; 'बाबू आप यहीं के रहने वाले हो?' मैंने भी जवाब में हाँ कहा और उसे आगे ज्यादा बात करने का मौका नहीं दिया. पर अक्षय तो मंदबुध्दी ही निकला वो पूछने लगा; 'सागर आप जयपुर के हो?'
अब उसकी बात सुन कर मैं निशा की तरफ देखने लगा और वो अपना सर पीटते हुए बोली; 'ही इज ब्लफिंग यू मोरोन' तब जा कर उसे समझ आया और वो चुप कर गया.होटल पहुँच कर मैंने अपनी रिजर्वेशन दिखाई और हम अपने-अपने कमरे में आ गये. सामान रख कर मेरा जासूसी दिमाग चालु हो गया और मैं अपना और आशु का फ़ोन ले कर कमरे घूमना शुरू कर दिया.
ये ओयो का होटल था और हाल ही में इसके बारे में छूपा था की यहाँ पर रूम्स के अंदर हिडन कैमरा लगे होते हे. आशु बड़ी हैरानी से मुझे ये जासूसी करते हुए देख रही थी और जब मेरी तहक़ीक़ात पूरी हो गई तो वो बोली; 'ये आप क्या कर रहे थे?' तब मैंने आशु को सारी बात बताई और वो कहने लगी की हम कहीं और चलते हे. 'जान! किस होटल में कैमरा लगा है ये किसी को नहीं पता, पर अपनी तरफ से चेक कर लेना बेहतर हे. इस कमरे में कहीं कोई कैमरा नहीं हे. सो रिलॅक्स! ओके?!' मेरी बात से आशु आश्वस्त हो गई और हम अपने कपडे बदल कर लेट गये.मुझे लग रहा था की आशु संभोग के लिए आतुर हो गई पर उसके ठीक उलट वो तो बस मेरे सीने पर सर रख कर, अपने बाएँ हाथ से मुझे जकड़ और अपनी बायीं टाँग मेरे पेट पर रख कर सो गई. मैंने आशु के सर को चूमा और मैं भी सो गया.
सुबह १० बजे मेरी आँख खुली और आशु अब भी मेरे से उसी तरह चिपकी हुई थी. मैं उठने लगा तो उसकी भी आँख खुल गई पर फिर भी लेटी रही. में फ्रेश हो कर आपस आ गया और तब तक आशु भी उठ गई थी और टी.वी चालु कर रही थी. मुझे देखते ही वो आ कर मेरे से लिपट गई; 'जानू! आज कौन सा आपको ऑफिस जाना है जो उठ गए?' मैंने प्यार से आशु के सर को चूमा और कहा; 'क्या करें? आदत है उठने की और वैसे भी भूख लग आई थी.' फिर मैंने अपने और आशु के लिए नाश्ता मँगवाया जो की कॉम्प्लिमेंट्री था. नाश्ता खा कर आशु फिर से बिस्तर में बैठ गई पर मैं तैयार होने लगा. मुझे ऐसे तैयार होता हुआ देख वो बोली; 'कहाँ जा रहे हो आप?'
'यहाँ कमरे में सोने थोड़े ही आये हैं? चलो रेडी हो जाओ यहाँ इतनी सारी जगह है घूमने की और हाँ याद है नितु मैडम को भी इन्फॉर्म कर दो.' तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, मैंने दरवाजा खोला और निशा अंदर आ गई. 'आप कहीं जा रहे हो सागर जी?' उसने पूछा.
'मैं तो आप दोनों को जगाने आ रहा था. की कहीं घूम कर आते हैं.' मेरी बात सुन कर निशा खुश हो गई और रेडी होने चली गई. इधर आशु ने भी तैयार होना शुरू कर दिया. आज आशु ने पहलीबार जीन्स और एक टॉप पहना था और उसे जब देखा तो मेरी आँखें उस पर से हट ही नहीं रही थी.
'क्या कहूँ तेरी सूरत-ए-तारीफ में मेरे हमदम,
अल्फाज खत्म हो गए हैं तेरी अदाएं देख-देख के!'
ये शेर सुनते ही आशु भागती हुई आई और मेरे गले लग गई. शर्म से गाल लाल हो चुका था.. हम ऐसे ही दूसरे में खोये हुए थे, निशा की आवाज ने हमें वापस रियलिटी में खींच लिया. 'ओ लव-बर्ड्स चलो' उसने हँसते हुए कहा. हाथों में हाथ लिए मैं और आशु कमरा लॉक कर के होटल से निकले और हमने ऑटो किया, सबसे पहले हम हवा महल पहुंचे और उसके पास वाली मार्केट में घूमने लगे. निशा तो वहाँ की दुकानें देख कर शॉपिंग करने को कूद पड़ी और आशु को भी अपने साथ खींच के ले गई. दोनों एक पटरी वाले के पास झुमके देख रहे थे और मैं अपनी जेब में हाथ डाले खड़ा उन्हें देख रहा था. अचानक से निशा ने एक झुमका आशु को दिया और ट्राय करने को कहा पर आशु ने मना कर दिया. मुझसे नजर बचा कर उसने खुसफुसाती हुए निशा से कहा; 'मेरी सैलरी जीन्स और टॉप में खत्म हो गई... तू ले ले!' निशा भी खुसफुसाती हुए कहने लगी; 'अरे मुझे बाद में दे दियो!' पर आशु नहीं मानी और उसने वो झुमका निशा को वापस दे दिया. निशा बहुत होशियार थी उसने हाथ हिला कर मुझे अपने पास बुलाया और वो झुमके का पैकेट मुझे दिया और इशारे से कहा की मैं आशु को खरीद कर दू. मैंने वो झुमके को पैकेट को गौर से देखा और वापस नीचे रख दिया. मेरा ऐसा करने से निशा का मुँह बन गया.वो सोचने लगी की कितना कंजूस बॉयफ्रेंड है अश्विनी का, पर अगले ही पल मैंने एक रॉयल ब्लू कलर का झुमका उठाया और उसे आशु को ट्राय करने को कहा. मेरा ऐसा करने से निशा की ख़ुशी लौट आई पर आशु ने ना में सर हिला कर मना कर दिया. 'अच्छा लगेगा अगर मैं यहाँ तुझे एक खींच कर चमाट मार दूँ?' मैंने आशु को थोड़ा प्यार से डराते हुए कहा. उसने चुप चाप वो झुमके मुझे पहन के दिखाए और जब उसने खुद को आईने में देखा तो ख़ुशी से उछाल पड़ी और आ कर मेरे सीने से लग गई. निशा ने भी इसका फायदा उठाया और हम दोनों की तस्वीर खींच ली! भरी-पूरी मार्किट में एक प्रेमी जोड़ा सब कुछ भूल कर बस एक दूसरे के गले लगा हुआ हे. हम तो जैसे अलग होना ही नहीं चाहते थे पर इस मंदबुध्दी अक्षय ने एक्साइटमेट में शोर मचा दिया और हम दोनों अलग हो गये. मैंने अपना वॉलेट निकाला और आशु को १०००/- रुपये दे दिए इतने में अक्षय ने मुझे स्मोक करने का इशारा किया. आशु ने ये देख लिया और हाँ में सर हिला कर मुझे इजाज़त दी.
'दो गोल्ड फ्लैक' अक्षय ने कहा तो मैंने उसे मना कर दिया और अपने लिए एक अल्ट्रा ली, मुझे अल्ट्रा फूँकते देख उसे मेरी रईसी भा गई. २ मिनट बाद ही आशु और निशा दोनों ही हमारे पास आ गई. अक्षय ने सिगरेट निशा की तरफ बढ़ाई और उनसे काश लेते हुए आशु को भी पीने का इशारा किया. आशु मेरी तरफ देखने लगी और मैंने नहीं में सर हिलाया और उसे सिगरेट नहीं दी. 'तू स्मोक करती है?' मैंने आशु से पूछा तो उसने ना में सर हिलाया. 'खा मेरी कसम!' मैंने कहा तो आशु ने झट से मेरी कसम खाई और बोली; 'मैंने आज तक कभी सिगरेट नहीं पि आपके साथ उस दिन पार्टी में जो पिया था उसके बाद कुछ भी नहीं पिया या खाया.'
'गिव हरसम फ्रीडम मेन!' अक्षय ने बीच में बोलते हुए कहा.
'शी ह्याज ऑल दीं फ्रीडम शी वांट बट स्मोकिंग इजंट अलो!” मैंने हुक्म से बोला.
'दॅट इज नॉट फेयर! यू स्मोक टू!' निशा बोली.
'बिकाज आई गेव हिम परमिशन!' आशु बोली और ये सुन कर वो दोनों चुप हो गये. सिगरेट खत्म हो चुकी थी तो हम पैदल चलते हुए हवा महल पहुँचे और वहाँ टिकट ले कर घूमे, ऊपर चढ़ कर हमने बहुत सी पिक्चर खींची! ३ बजे हम वहाँ से निकले और खाना खाने एक रेस्टरंट में बैठ गये. खाना आज आशु ने आर्डर किया, दाल बाटी, राजस्थानी कढ़ी, बाजरे की रोटी, गट्टे का पुलाव और मीठे में घेवर. 'रिसर्च कर के आई हो?' मैंने आशु की तारीफ करते हुए कहा और वो मुस्कुराते हुए बोली; 'आपसे सीखा हे.' खाना खा कर हम उठे थे की नितु मैडम का फ़ोन आ गया; 'सागर जी! आप क्या गए यहाँ तो सब के सब मुझे अकेला छोड़ के चले गए?' ये सुन कर मैं थोड़ा हैरान हुआ और समझ नहीं आया की मैडम का कहने का मतलब क्या है; 'मैं कुछ समझा नहीं मॅडम?'
'अरे अश्विनी भी छुट्टी मार रही है! उसके घर पर किसी की डेथ हो गई हे.' ये सुनते ही मेरी आँखें बड़ी हो गई और मैं हैरानी से आशु को देखने लगा.
'ओह! मॅडम किसकी डेथ हो गई कुछ बताया नही अश्विनी जी ने?' मैंने आशु की तरफ देखते हुए कहा और तब वो समझी की क्या माजरा हे.
'उसके नाना जी की डेथ हो गई. बेचारे उम्रदराज जो थे!' मैं चुप रहा और मुझे आशु का बहाना सुन कर हँसी भी आ रही थी और गुस्सा भी. आशु के नाना की मृत्यु कुछ साल पहले ही हो चुकी थी और मुझे बुरा लगा की उसने ऐसा झूठ बोला. मैडम ने कुछ काम जे जुडी बातें की और फिर उन्होंने बाय बोल कर कॉल रख दिया. 'तुझे मारने के लिए कोई और नहीं मिला?' मैंने आशु से हँसते हुए पूछा. ये सुन कर निशा पूछने लगी तो आशु ने खुद ही सारी बात बताई.ये उन कर वो और अक्षय दोनों हँसने लगे पर आशु जानती की मुझे उसकी ये बात बुरी लगी हे.
हम होटल लौटे और रात को पब जाने का प्लान बना था. मैंने अपने कपडे उतारे और अंडर गारमेंट्स में ही लेट गया.आशु ने भी अपने कपडे बदले और पलंग पर चढ़ गई. फिर अपने दोनों कान पकडे और घुटनों के बल बैठ गई; 'जानू! आई एम रियली सॉरी! मैं ऐसा झूठ नहीं बोलना चाहती थी. पर मुझे कोई और बहाना नहीं सूझा. आई एम रियली सॉरी!” मैंने अपनी बाहें खोल दीं और आशु आ कर मेरे सीने से चिपक गई. मैंने उसे माफ़ कर दिया. पर निशा की दोस्ती में आशु कुछ ज्यादा ही बिगड़ने लगी थी. कल रात जागने की वजह से मुझे नींद आ रही थी और हम ऐसे ही सो गये. शाम के ७ बजे होंगे की निशा हमें उठाने आई. आशु दरवाजा खोलने गई और मैं बाथरूम जा रहा था. निशा ने मुझे कच्छे में बाथरूम घुसते देख लिया और वो आशु को छेड़ने लगी. हम तैयार हो कर निकले तो आशु और निशा को भूख लगी थी और उन्हें चाहिए था खाना. अक्षय ने उन्हें समझाया की जो खाना है वो पब में ही खाना हे. हम पब पहुँचे और अक्षय ने हमारे लिए एक बूथ ले लिया. लड़कियों ने खाना मंगाया और अक्षय ने ड्रिंक्स मेनू मेरी तरफ बढ़ा दिया. वो जानता था की मेरी पसंद बढ़िया है! अपने, आशु और निशा के लिए हेनिकेन्स मंगवाई और अक्षय को शो-ऑफ करना था तो उसने अपने लिए कोरोना मंगाई! म्यूजिक अभी बहुत स्लो था. लोग भी ज्यादा नहीं थे. तो बियर पीते हुए बातें शुरू हुईं;
अक्षय: सो हाऊ दिड यू गाईज मिट?
अब इस बारे में आशु मुझे पहले ही बता चुकी थी की उसने निशा को क्या झूठ बोला हे. मैंने भी आशु की बात को दोहरा दिया;
मैं: वी मिट इन अ बस.
निशा: ओह कम ऑन सागर जी! आई विल टेल यू दीं व्होल स्टोरी. सो अक्च्युअली इट वाज अ संडे मॉर्निंग अँड शी वाज ऑन हरवे टू समव्हेअर. शी वाज सिटिंग अलोन ऑन दीं बस स्टँड अँड दॅट इज दीं फर्स्ट टाइम ही (सागर) सॉ हर. देन दीं बस केम अँड दे बोथ टूक अ सिट बट नॉट टूगेदर बट अट सम दिस्टांस. सागर जी वाज सिटिंग अ सिट अगदी ऑफ हर अँड शी वाज बिजी लूकिन आऊटसाइड. देन अन ओल्ड अंकल केम अँड ही (सागर) ऑफर हिज सिट टू देम अँड स्टूड. दॅट इज दीं फर्स्ट टाइम शी सॉ हिम अँड दे वेयर कोंस्टांटली सियींग इचअदर. दे गोट डाऊन यट दीं सेम बस स्टँड अँड ही (सागर) सेड ‘हाई’ टू हर अँड शी जस्ट स्माइल. देन दे सिंपली मूव इंटो दिफरंट डीरेक्शन.
अक्षय: व्हॉट दीं हेल? व्हाय दिडंत यू गाईज टॉक? दिडंत एवन एक्सचेंज नंबर?
निशा: स्टोरी इज नॉट ओव्हर, यू डफर! देन आफ्टर फ्यू डेज दे मिट अगैन ऑन दीं सेम बस स्टँड अँड दिस टाइम दे वेयर सिटिंग नेक्स्ट टू इच अदर ऑन दीं बस. ही (सागर) स्टारटेड दीं कंवरसेशन अदरवाइज दिस डंबो (आशु) वूड नोट ह्याव अतर्ड अ वर्ड. अँड दॅट इज हाऊ दे केम क्लोज!
आशु ये सब मुस्कुराती हुई मेरे बाएँ कंधे पर सर रख कर सुन रही थी. सच में बड़ी डिटेल में कहानी बना कर सुनाई थी उसने निशा को.
धीरे-धीरे म्यूजिक लाउड हो रहा था और नौजवान लोगों का ताँता लगना शुरू हो गया था. बातें करते-करते कब चारों ने तीन-तीन बियर की बोतल ख़त्म कर दी पता ही नहीं चला. चूँकि हेनिकेन्स बड़ी स्मूथ बियर होती है तो हम चारों में से कोई भी नशे में नहीं था. एक हल्का सा सुरूर जरूर था. अभी सिर्फ १० ही बजे थे और डी.जे ने अंग्रेजी गाने बजाने शुरू कर दिए थे और हमारे अक्षय को बस एक ही सिंगर का नाम था और एक ही गाना पसंद था. वो गाना था जस्टिन बिबेर का; 'बेबी...इन्होने अपनी फरमाइश कर दी और डी.जे. भाई ने बजा दिया... गाना! ये भाईसाहब अकेले थे जो खड़े हो कर झूम रहे थे! आशु ने मुझे कोहनी मारी और दिखाया की बाकी सब अक्षय पर हँस रहे थे! हंसी तो मुझे भी आ रही थी पर मैं जैसे-तैसे हँसी झेल गया.इधर निशा ने गुस्से में अपने लिए स्कॉच मँगा ली, मैं समझ गया की आज रायता जरूर फैलना हे. अब स्कॉच देख कर आशु ने मेरी देखा, अब उसे मन नहीं कर सका. मैंने हम दोनों के लिए भी स्कॉच मंगाई पर आशु के ३० मिली को अपनी ड्रिंक में डाल कर १० मिली कर दिया! वो प्यार भरे गुस्से से मुझे देखते हुए बोली; दॅट इज नॉट फेयर!' मैंने प्यार से उसके गाल को चूमा और कहा; 'अब हो गया न फेयर?' आशु खुश हो गई और पूरा ड्रिंक एक बार में गटक गई. मैं हैरानी से उसे देखता रह गया पर उसके चेहरे पर प्राउड वाली फीलिंग थी. मानो जैसे इस तरह एक घूँट में सारा ड्रिंक पी कर उसने कोई तीर मारा हो. मुझे उसके ऐसा करने पर प्यार आ गया और आशु मेरे सीने से सर लगा कर बैठी रही.
इधर निशा हम दोनों को देख-देख कर जल रही थी. उसने आधा ड्रिंक पिया, खड़ी हो कर डांस फ्लोर पर चली गई और अक्षय के साथ नाचने लगी. मैं और आशु अब भी ऐसे ही बैठे थे और मैं धीरे-धीरे ड्रिंक कर रहा था. आशु बहुत शांत थी और स्कॉच का हल्का-हल्का असर उस पर आने लगा था. 'जानू! आज मैं भी चिकन विंग्स खाऊँ?' उसने पूछा तो मैंने सीधा वेटर को बुलाया और चिकन विंग्स आर्डर कर दिये. इधर निशा और अक्षय थक कर वापस आ कर बैठ गये. अक्षय ने भी अपने लिए स्कॉच मँगाई और धीरे-धीरे पीने लगा. १० मिनट बाद चिकन विंग्स आ गए और सबसे पहले आशु ने एक पीस उठाया. मैंने आशु वाले पीस पर आधा निम्बू और निचोड़ दिया. पहली बाईट लेते ही आशु को मजा आ गया.निम्बू की खटास थी तो आशु को उबकाई नहीं आई वरना मुझे डर था कहीं वो उलटी न कर दे.
'वाव! इट्स सो यमी....! मैंने अपने जीवन ले १९ साल बिना इसे खाय कैसे निकाल दिए?' आशु ने चटकारा लेते हुए कहा. आशु को चिकन खाता देख निशा आँखें फाड़े देख रही थी. 'सागर जी! आपने क्या जादू कर दिया अश्विनी पर? जिसे नॉन-वेज देख कर उलटी आती थी वो आज चिकन खा रही हे.' निशा ने मुझसे पूछा. 'मैंने कुछ नहीं किया. मैडम जी को आज खुद खाने का मन किया.' मैंने सफाई देते हुए कहा. खेर हम तीनों का ड्रिंक खत्म हो चूका था और किसी ने डी.जे. से रोमांटिक गाने की फरमाइश कर दी. 'दिल दियां गल्लां' जैसे ही बजा निशा मुझे और आशु को खींच कर डांस फ्लोर पर ले आई. आशु को स्कॉच की थोड़ी-थोड़ी खुमारी चढ़ने लगी थी और डांस फ्लोर पर सभी कपल्स को देख उसने भी ठीक वैसे ही डांस करना शुरू कर दिया. शुरुआत में आशु मेरी तरफ मुँह कर के खड़ी थी और मेरे दोनों हाथ उसके कमर पर थे, आशु के भी दोनों हाथ मेरे दोनों कन्धों पर थे. हम दोनों बस धीरे-धीरे दाएँ से बाएँ हिल रहे थे.
मैं आशु की आँखों में खुमारी साफ़ देख पा रहा था और आशु मेरी आँखों में अपने लिए प्यार|.
'दिल दियां गल्लां
करांगे नाल नाल बह के
आँख नाले आँख नू मिला के
दिल दियां गल्लां…'
मैं और दोनों ही गाने को लिप सिंक कर रहे थे और एक दूसरे की आँखों में खो गए थे. उस पूरे गाने के दौरान ना तो हमें किसी की परवाह थी न खबर. बस एक आशु और एक मैं.....
डी.जे. ने गाना खत्म होने के बाद जो गाना लगाया उससे तो माहौल और भी रोमैंटिक हो गया.अगला गाना था; ऑल ऑफ मी - जॉन लेजंड का.गाना चेंज होते ही मैंने और आशु ने अपने डांस स्टाइल भी चेंज कर दिया.
मेरा बायाँ हाथ आशु की कमर पर था और उसका दाहिना हाथ मेरी कमर पर था. मेरे दाहिने हाथ में आशु का बायाँ हाथ था और अब हम अपने पैरों को लेफ्ट-राइट के साथ आगे-पीछे भी कर रहे थे. आशु इस गाने के बोल नहीं जानती थी इसलिए वो बस मेरी आँखों में देख रही थी. पर मैं गाने के सारे बोल जानता था और मैं वो गाते हुए आशु की आँखों में देख रहा था.
मेरा हाथ आशु की गर्दन से लेकर कमर और फिर उसके कूल्हे तक गाने के बोल के साथ फिसलते हुए आ गया था. आशु उस गाने को समझते हुए अपने पंजों पर खड़ी हो गई मुझे किस करने को और मैं भी उस गाने में इतना खो गया था की मैंने आशु के होठों को पहले चूमा और फिर हमने फ्रेंच किस की पर बहुत ही स्लो! हमें इस तरह किस करते हुए देख वहां सारे लौंडों और निशा ने हल्ला मचा दिया. डी.जे. ने भी माइक पर अन्नोउंस कर दिया; 'गिव अ चीयर फॉर दिस ब्युटीफुल कपल.' ये सुन कर सब ने चिल्लाना शुरू कर दिया पर मैं और आशु उसी तरह प्याशनेटली एक दूसरे को किस करते रहे. १० सेकंड बाद जब दोनों पर नशा कुछ कम हुआ और याद आया की हम बाहर हैं तो आशु शर्मा गई और मेरा हाथ पकड़ के मुझे खींच के वापस बूथ पर ले आई. वहाँ बैठते ही उसने अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपा लिया और मेरे सीने से लग गई. मैं आशु के सर को चूमने लगा और उससे पूछा; 'बियर चाहिए?' आशु ने बिना मेरी तरफ देखे हाँ में सर हिलाया. मैंने उसके लिए बियर और अपने लिए ६०मिली स्कॉच मँगाई! तभी निशा और अक्षय भी आ गए और निशा आशु को गुदगुदी करते हुए छेड़ने लगी. आशु खिलखिला के हँसने लगी. अक्षय ने भी अपने और निशा के लिए ड्रिंक्स आर्डर की और खाने के लिए ड्रम्स ऑफ़ हेवन आर्डर किये. हम सब का आर्डर साथ ही आया, ड्रम्स ऑफ़ हेवन देख कर आशु मुझसे पूछने लगी की ये क्या है; 'चिल्ली पोटैटो वाली सॉस में चिकन विंग्स को बनाया है बस|' ये सुनते ही आशु ने पीस उठा लिया और खुद ही उस पर नीम्बू निचोड़ा और बाईट ली. स्वाद उसे तो बहुत आया और बच्चों की तरह मुँह बनाने लगी. उसे इस तरह देख कर मैं बहुत खुश था और दुआ कर रहा था की हमारी इन खुशियों की किसी की नजर न लगे.
मैं उठ कर वाशरूम चला गया और वापस आया तब मुझे छत पर जाती हुई सीढ़ियाँ नजर आई. मैं ने पहले तो एक बड़ा घूँट स्कॉच का पिया और फिर आशु का हाथ पकड़ के उसे खींच के उस तरफ चल दिया. निशा और अक्षय भी मुझे देख रहे थे की मैं और आशु कहाँ जा रहे हे. हम दोनों सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर पहुँचे तो वहाँ सारे कपल बैठे थे और नीचे के उलट यहाँ माहौल बिलकुल शांत था. वहाँ पर एक जगह थी जहाँ पर शीशे की एक रेलिंग थी और मैं और आशु वहीँ खड़े हो गये. रात की ठंडी-ठंडी हवा हमारे माथे को छू कर सुकून दे रही थी. आशु मेरे सामने खड़ी थी और मेरी बाहें उसके सीने पर लॉक थी. आशु ने अपने दोनों हाथों से मेरे बाजुओं को पकड़ रखा था. हम दोनों ही खामोश खड़े थे और सड़क पर आते-जाते ट्रैफिक को देख रहे थे.
दस मिनट बाद अक्षय हमें नीचे बुलाने आया, नीचे आ कर देखा तो निशा डांस फ्लोर में नाच रही थी और उसने हमे फिर से अपने साथ डांस करने के लिए खींच लिया. तभी डी.जे.ने गाना लगाया; 'मर्सी' - बादशाह वाला और हम चारों पागलों की तरह नाचने लगे. 'ह्याव मर्सी ऑन मी' वाली लाइन पर अक्षय निशा को कान पकड़ के गाने लगता. मैंने घडी पर नजर डाली तो रात के बारह बज गए थे, तो मैं वहाँ से धीरे से निकला और डी.जे को बताया की निशा का बर्थडे हे. “गाईज, वी ह्याव अ बर्थ डे गर्ल इन दीं हाऊस!” डी.जे. ने अनाउंसमेंट की और सब जोर से 'हॅपी बर्थ डे!!!' चिल्लाने लगे. पहले अक्षय ने गले लग कर और किस कर के निशा को हॅपी बर्थ डे बोला. उसके बाद आशु ने गले लग कर उसे बर्थ डे विश किया. अब मेरी बारी थी तो वो खुद ही आ कर मेरे गले लग गई और मैंने भी उसे हॅपी बर्थ डे विश किया. हम चारों बूथ में बैठने जा रहे थे की अक्षय हम तीनों को अपने साथ बार काउंटर पर ले आया और उसने चार शॉट्स आर्डर किये. बारटेंडर ने उन ग्लासों में वोडका डाली और फिर चारों गिलास में उसने १-१ गोली डाल दी जो एक दम से घुल गई. 'ये क्या है?' मैंने अक्षय से पूछा तो उसने बोला; 'एन्जॉय!!!' और उसने शॉट मारा, फिर निशा ने मारा और इससे पहले की मैं आशु को रोकता उसने भी शॉट मारा और अब तीनों मुझे भी जबरदस्ती उकसाने लगे और मैंने भी शॉट मारा. पर अक्षय बाज नहीं आया उसने फिर से रिपीट करवा दिया पर इस बार बारटेंडर ने सिर्फ मेरे और अक्षय के गिलास में वो गोली डाली. इस बार में भी जोश में आ गया और चारों ने एक साथ शॉट मारा. मैंने वेटर को हाथ से इशारा कर के बिल मंगवाया और हम चारों अपने बूथ में बैठ गये. वहाँ अब भी मेरी आधी ड्रिंक रखी थी. जिसे आशु ने एक दम से उठाया और थोड़ा ही पी पाई थी की मैंने उसके हाथ से ड्रिंक ले ली और खुद एक साँस में खींच गया.वेटर बिल ले कर आया तो वो १० हजार का निकला! बिल सुन कर तो आशु के कान खड़े हो गए पर बिल निशा, मैंने और अक्षय ने मिल कर बाँट लिया.
बिल पे हो चूका था पर हम चारों पर दारु की खुमारी चढ़ चुकी थी. उठने को जैसे जी ही नहीं चाह रहा था. कोई घर छोड़ दे बस यही दुहाई कर रहे थे सारे और ठहाके मार के हँस रहे थे. पाँच मिनट बैठे रहने के बाद मेरे दिल की धड़कन अचानक से तेज हो गई. अंदर एक अजीब सी फीलिंग हो रही थी. माथे पर पसीना आ गया और मैं हैरानी से आशु की तरफ देखने लगा. उसने वेटर से अपने लिए पानी मंगाया, प्यास से उसका गला सूख रहा था. इधर मेरे जिस्म में तूफ़ान खड़ा हो चूका था. लिंग अचानक से अकड़ चूका था और मैं अपने आप ही आशु की तरफ झुक रहा था. मेरा मन अब उसे कस कर किस करने को कह रहा था. इससे पहले की मैं उसे किस करता निशा ने मेरा हाथ पकड़ के मुझे डांस फ्लोर पर खींच लिया. उस समय गाना चल रहा था; 'तेरे लक दा हुलारा' और निशा मेरे से चिपक गई और मुझे बहकाने के लिए अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन में डाल कर कस लिया. वो मुझे किस करने ही वाली थी की मैंने उसकी कमर को पकड़ा और उसे खुद से दूर कर दिया और मुड़ कर जाने लगा. पर उसने मेरा हाथ थाम लिया और अपने दाहिने हाथ से अपने कान को पकड़ के सॉरी कहने लगी. में रूक गया और तभी आशु आ गई और उसने मेरे करीब आ कर नाचना शुरू कर दिया. मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी कमर को पकड़ लिया और खुद से चिपका लिया. गर्दन झुका कर उसके निचले होंठ को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा. आशु ने अभी अपनी दोनों बाहें मेरी पीठ पर चलानी शुरू कर दी. हम दोनों ही बेकाबू होने लगे थे और उधर हमारे आस-पास जो भी लोग थे सब चीख रहे थे; 'गाईज गेट अ रूम!' पर हम दोनों पर इसका कोई असर ही नहीं पड़ रहा था.
निशा ने हम दोनों का हाथ पकड़ा और बाहर की तरफ खींचने लगी. अब एक तो शराब का नशा और ऊपर से जिस्म की आग! किसी तरह हम चारों लड़खड़ाते हुए बाहर आये और अक्षय बुरी तरह चीखने लगा; 'ओये!! ऑटो!!! हरामी!' अब उसकी इस हालत को देख कोई भी रूक नहीं रहा था. इधर निशा की उलटी शुरू हो गई और वो एक नाली के पास झुकी उलटी करने लगी. आशु से भी खड़ा हो पाना मुश्किल हो चूका था. मैं लड़खड़ाते हुए अक्षय के पास आया और उसके इस तरह गाली देने से कोई ऑटो रूक नहीं रहा था तो मुझे उस पर गुस्से आ गया.मैंने उसकी गुद्दी पर एक चमाट मारी; 'मंदबुद्धी कहिके! ऐसे गाली देगा तो कौन रुकेगा?' मैंने जेब से फ़ोन निकाला पर उसमें कुछ ठीक से दिखे ही नही रहा था! फिर भी जैसे-तैसे उबर एप खोला अब ये ऍप अपडेट मांग रही थी और मेरा गुस्सा और बढ़ता जा रहा था. मेरा मन था की हम जल्दी से होटल पहुँचे और मैं आशु को बिस्तर पर पटक कर उस पर चढ़ जाऊँ! जब तक ऍप अपडेट हुआ मैं जी भर के गाली बकता रहा; दो मिनट लिए उस ऍप ने अपडेट होने में और फिर बड़ी मुश्किल से राइड बुक हुई.
मैंने फ़ोन जेब में डाला और वापस आशु के पास जाने को मुड़ा, मैंने अक्षय का कॉलर पकड़ा और खींच कर उसे दोनों के पास ले आया. निशा की उलटी अब बंद हो चुकी थी. वो और आशु एक खम्बे का सहारा ले कर खड़े थे. आशु तो मुझे देखते ही बेकाबू हो गई और लड़खड़ाते हुए मेरे पास आई और फिर से मेरे सीने से लग गई. इधर मेरा लिंग बेकाबू होने लगा था. मैंने आशु को अपनी गोद में उठाया. आशु ने अपनी दोनों टांगें मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट ली और मेरे ऊपर वाले होंठ को अपने मुँह में भर के चूसने लगी. मैं भी बेतहाशा उसके होंठों को चूस रहा था और अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी. हमारी देखा-देखि निशा को भी जोश आ गया और वो अक्षय से चिपक गई और दोनों बुरी तरह किस करने लगे. इधर हमारी कैब आ गई और ड्राइवर ने कॉल किया. 'सर मैं लोकेशन पर हूँ, आप कहाँ हैं?' ड्राइवर ने पूछा.
'एक मिनट!' इतना बोलते हुए मैं आशु को इसी तरह गोद में लिए बाहर आया और पीछे ही निशा और अक्षय भी आये. मैंने पीछे का दरवाजा खोला और सब से पहले निशा घुसी और फिर मैं जैसे-तैसे आशु को गोद में लिए बैठ गया.अक्षय आगे बैठा था पर ड्राइवर की नजर मेरे पर थी. 'चलो भैया' मैंने उसे कहा तो वो आगे चला. इधर निशा मेरे नजदीक आ कर बैठ गई और अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया. आशु पर तो संभोग सवार हो चूका था और वो मेरी गर्दन के बायीं तरफ चूम रही थी. निशा भी बहकने लगी थी और वो मेरी गर्दन के दाएं तरफ चूमना चाहती थी पर मैंने उसे ऊँगली से इशारा कर के मना कर दिया. मेरे दोनों हाथ आशु की पीठ पर चल रहे थे और लिंग नीचे से आशु की नितंब पर दस्तक दे रहा था. मैंने भी आशु की गर्दन की बायीं तरफ धीरे से काट लिया और आशु बस सिसक रह गई. होटल पहुँचने तक मैं बस उसकी गर्दन को चूमता रहा और आशु भी मेरी गर्दन को चूम रही थी. मुझे तो फिर भी थोड़ी शर्म थी की मेरे अलावा वहाँ तीन और लोग हैं पर आशु पूरी तरह बेकाबू थी और वो धीरे-धीरे मेरी गर्दन को चूमे जा रही थी. ट्रैफिक नहीं था तो हम जल्दी ही होटल पहुँच गए, ड्राइवर ने अक्षय को हिला कर जगाया.निशा दूसरी तरफ से उतरी और आशु भी मेरी गोद से उत्तरी और मैंने ड्राइवर को पैसे दिए और थोड़े एक्स्ट्रा भी दे दिए! लॉबी से कमरे तक हम चारों लड़खड़ाते हुए चल के पहुंचे.
अक्षय और निशा का कमरा पहले था और मेरा और अश्विनी कमरा आखिर में था. अंदर घुसते ही मैंने दरवाजे की चिटकनी लगाईं और आशु मुझ पर टूट पडी. वो फिर से मेरी गोद में चढ़ गई और सीधा अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल दी. आशु को अपने दोनों हाथों से थामे मैंने उसे बिस्तर पर ला कर पटक दिया. उसकी आँखों में देखते हुए मैंने अपनी कमीज के बटन जल्दी-जल्दी खोलने शुरू किये, फिर पैंट भी निकाल के फेंक दी और पूरा नंगा हो कर आशु के कपडे उतारने का वेट करने लगा. आशु ने भी फटाफट अपना टॉप उतार फेंका, फिर अपनी ब्रा भी निकाल फेंकी. उसने अपनी जीन्स के बटन खोले और मैंने उसकी जीन्स खींच के निकाल दी और उस पर कूद पडा. आशु का जिस्म मेरी दोनों टांगों के बीच था और मैं उसके चेहरे को थामे उसके होंठ चूसने लगा. मेरे पास सब्र करने का बिलकुल समय नहीं था. इसलिए मेंने अगला हमला आशु की गर्दन पर किया. अपने दाँतों को आशु की गर्दन पर गाड़ के मैंने उसे जोर से काट लिया. 'आअह!' कहते हुए आशु ने अभी अपने नाखून मेरी पीठ में गाड़ दिये. दर्द से आशु सीसिया रही थी पर मुझे तो जैसे उसके दर्द की कोई परवाह ही नहीं थी. मैं नीचे को आया और उसके बाएँ स्तन को अपने मुंह में भर कर अपने दाँत गड़ा दिये. अपने बाएं हाथ से मैंने आशु के दाएँ स्तन को मुट्ठी में भर कर उसे निचोड़ने लगा और उसके बाएँ स्तन को दाँतों से काट और चूसने लगा. मेरी उँगलियाँ आशु के दाएँ स्तन पर छप चुकीं थीं और मेरे दाँतों ने आशु के बाएँ स्तन को लाल कर दिया था. मैं नीचे आया तो पाया की उसकी पैंटी अब भी उसकी योनी को ढके हुए हे. मैंने अपने दाएँ हाथ से उसकी कच्ची को पकड़ के खींचा पर वो फटी नहीं, मुझे गुस्सा आया और मैं ने जोर से उसकी पैंटी खींच कर निकाल फेंकी. आशु की पहले से गीली योनी मेरे आँखों के सामने थी. मैं जितना मुंह खोल सकता था उतना खोला और जीभ निकाल कर आशु की योनी को अपनी जीभ से ढक दिया. गर्म जीभ का स्पर्श मिलते ही आशु कसमसाने लगी. उसने अपने दोनों हाथों की उँगलियों से मेरे बाल पकड़ लिए और मेरे मुंह को अपनी योनी पर दबाने लगी. मैंने भी जीभ से पहले आशु के क्लीट को छेड़ा और फिर उसके योनी के कपालों को चूसने लगा. पर नीचे मेरे लिंग की हालत बहुत खराब थी. खून का बहाव मेरे लिंग पर बहुत तेज था और मेरे लिंग में जलन होने लगी थी. लघभग १ मिनट योनी चुसाई और फिर मैं आशु के ऊपर आ गया और अपने दाहिने हाथ से अपने लिंग को पकड़ के आशु की योनी पर दबाने लगा. अभी सिर्फ लिंग का सुपाड़ा ही अंदर गया था की आशु अपनी गर्दन को दाएँ-बाएँ पटकने लगी. पर मैं इस बार उसके दर्द की परवाह नहीं कर रहा था और धीरे-धीरे अपना लिंग दबाते हुए उसकी योनी में पेल दिया.
लिंग धीरे-धीरे पूरा अंदर चला गया और आशु की बच्चेदानी से टकराया. अब मेरे लिंग को आराम मिल रहा था और मैं कुछ देर ऐसे ही आशु पर पड़ा रहा. इसी टाइम में आशु की योनी ने भी खुद को मेरे लिंग के नितुसार एडजस्ट कर लिया. दो मिनट बाद ही मेरे लिंग में ताक़त आ गई और मैंने धक्के मारने शुरू कर दिये. आज मेरे धक्कों में पहले के मुक़ाबले बहुत तीव्रता थी और हर धक्के के साथ आशु के स्तन हिल रहे थे. आशु ने अपने दोनों हाथों के नाखून मेरी पीठ में गाड़ दिए थे जिससे मेरी गति और तेज हो चली थी. दस मिनट तक मैंने कस कर आशु को निचोड़ डाला था और हम दोनों ही पसीने से तर थे.पर दोनों में से कोई भी अभी तक झडा नहीं था. मैं बिना अपना लिंग आशु की योनी से निकाले आशु के बगल में लेट गया और उसे अपने ऊपर खींच लिया. आशु ने अपने हाथों से अपने बाल बांधे और तेजी से मेरे लिंग पर उछलने लगी. पाँच मिनट में वो तक गई और मेरे सीने पर सर रख कर साँस लेने लग गई. पर उसके रूकते ही जैसे मेरे लिंग ने उसकी योनी में फड़कना शुरू कर दिया था. मैंने अपने दोनों कूल्हे हवा में उठाये और नीचे से धक्के लगाने शुरू कर दिये. आशु के स्तन थोड़े लटक गए थे और वो मेरे हर धक्के के साथ हिल रहे थे. पाँच मिनट से ज्यादा मैं भी इस पोजीशन पर नहीं टिक पाया और तक कर अपने कूल्हे नीचे टिका दिये. हैरानी की बात ये थी की आशु और मैं दोनों अब भी टिके थे!
अब मैने आशु को अपने ऊपर से धकेल के दूसरी तरफ फेंक दिया और मैं बिस्तर से उठ खड़ा हुआ. जिस तरफ आशु के पाँव थे मैं उस तरफ पहुँचा और उसके पाँव पकड़ के उसे नीचे की तरफ खिंचा. आशु उठ के बैठ गई और उसकी नजरों के सामने मेरा लिंग लहरा रहा था. लिंग थोड़ा चमक रहा था क्योंकि उस पर आशु के योनी का रस लगा हुआ था. मुझे आगे आशु को कुछ कहना नहीं पड़ा और उसने गप्प से मेरा लिंग अपने मुँह में भर लिया. कुछ ही सेकंड में उसने अपने मुँह में थूक इकठ्ठा कर लिया और मेरा पूरा लिंग उसके गर्म थूक से नहा गया.आशु ने धीरे-धीरे मेरे लिंग को निगलना शुरू कर दिया. उसके मुँह की गर्माहट मेरे लिंग में हो रहे दर्द को आराम दे रही थी और मेरे हाथ अपने हाथ उसके सर पर आ चुका था.. धीरे-धीरे आशु मेरा पूरा लिंग अपने मुँह में ले गई और ये देख कर मेरी आँखों के आगे सुकून से भरा अँधेरा छा गया.अब आशु ने धीरे-धीरे अपने मुँह को मेरे लिंग पर आगे-पीछे करना शुरू कर दिया. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था और मैं आँखें बंद किये इस मजे का आनंद ले रहा था. मुझे तो अपनी कमर भी नहीं हिलानी पड रही थी क्योंकि आशु इतनी शिद्दत से मेरे लिंग को चूस रही थी. पाँच मिनट तक मैं उसके मुँह का आनंद अपने लिंग पर लेता रहा. फिर मैंने खुद ही लिंग बाहर निकाला और आशु को ऊँगली के इशारे से पलटने को कहा. आशु पलंग के ऊपर अपने घुटने मोड़ कर घोड़ी बन गई! मैंने अपने दाहिने हाथ की चार उँगलियों पर खूब सारा थूक निकाला और आशु की योनी में सारी उँगलियाँ एक साथ घुसा दि.आशु की योनी अंदर से गीली हो चुकी थी और मैंने अपने दोनों हाथों से आशु के दोनों नितंबो को पकड़ के एक दूसरे से दूर किया और उसकी योनी के छेद पर अपना लिंग टिका दिया. मैंने एक जोरदसार शॉट मारा और पूरा लिंग अंदर तक चीरता हुआ चला गया; 'आह...हहहह…ममम...आअअ अ अ अ अ अ अ अ अह्ह्म्म मम ममममम' कर के आशु करहाने लगी. उसकी करहाने की आवाज सुन के मुझे थोड़ा होश आया और मैंने दायीं तरफ टेढ़ा हो कर उसके चेहरे की तरफ देखा तो वो गर्दन नीचे झुका कर सिसक रही थी.
मेरा लिंग तो पहले ही पूरा का पूरा उसकी योनी में समां चूका था तो मैंने उसकी पीठ पर झुक कर उसके दोनों स्तनों को पकड़ लिया और अपने दोनों हाथ से मींजने लगा. मेरा ऐसा करने से दस सेकंड में ही आशु का दर्द कम हो गया और उसने अपने कूल्हों को पीछे धकेलना शुरू कर दिया. मैं उसका सिग्नल समझ गया और अपना लिंग धीरे से बाहर निकाला और फिर धीरे से अंदर पेल दिया. २-३ मिनट तक मैं ऐसे ही धीरे-धीरे धक्के मारता रहा पर आशु ने खुद कहा; 'जानू!....स.स.स.स.स.स.स... तेज...और तेज!' उसकी बात मानते हुए मैंने अपनी रेल गाडी तेज कर दी और लिंग तेजी से अंदर पेलना शुरू कर दिया. मेरे धक्कों की रफ़्तार बहुत तेज हो गई थी; 'अ.स.स.स.स.स्सा..अ.अ.अ.अ.हहह...नं.म.म..' की आवाज पूरे कमरे में गूँजने लगी थी. १० मिनट की ताबड़तोड़ ठुकाई और अब आशु की हालत खराब होने लगी थी. उसकी टांगें कांपने लगी थी और मेरे अगले धक्के के साथ ही वो बिस्तर पर पस्त हो कर गिर पडी. मेरा लिंग उसकी योनी से फिसल कर बाहर आ गया था पर लिंग की कसावट कम नहीं हुई थी. मैं बिस्तर वापस चढ़ा और आशु को पलट कर सीधा किया, वो बुरी तरह हाँफ रही थी पर झड़ी वो भी नहीं थी. पर मेरा लिंग इतना अकड़ चूका था की उसका दर्द कम ही नहीं हो रहा था. मैं आशु की टांगें चौड़ी की और अपना लिंग फिर से उसकी योनी में पेल दिया. अपनी कमर को फुल स्पीड से आगे-पीछे कर रहा था. मेरा लिंग तो जैसे आशु की योनी में अपनी जगह बना चूका था और बड़ी आसानी से अंदर-बाहर हो रहा था. अगले २० मिनट मैंने आशु की फुल स्पीड ठुकाई की, आशु के मुँह से तो जैसे शब्द निकलने ही बंद हो गए थे. वो मेरे हर झटके के साथ बस हिल भर रही थी. २० मिनट बाद आशु के अंदर का ज्वालमुखी फटा; 'आह..हहह...ननन...मममम...' करहाते हुए वो उठ के मेरे सीने से चिपक गई ताकि मैं और झटके ना मारु. पूरे एक मिनट तक वो चिपकी रही मुझसे और उसकी योनी से सारा रस बिस्तर पर टपक रहा था. पसीने से तरबतर हम दोनों एक दूसरे से चिपटे रहे, झड़ने के एक मिनट बाद आशु धड़ाम से वापस गिर गई. पर मेरे लिंग को चैन नहीं मिला था. मैंने इतनी तेजी से झटके मारने शुरू किये की पूरा पलंग हिलने लगा था और १० मिनट बाद मैं भी उस की योनी में झड़ गया और पस्त हो कर बगल में गिर गया.साँस इतनी तेज चल रही थी की पूछो मत, पसीने से हाल बुरा था और बेचारी आशु में तो जान ही नहीं बची थी वो तो बेसुध हो चुकी थी.
घडी में ३:३० बजे थे, मतलब हम करीबन १ घंटे भर से ताबड़तोड़ संभोग कर रहे थे! अब तो इतनी भी जान नहीं थी की उठ के अपना लिंग साफ़ कर सकू. आँखें कब बंद हुईं और कब सुबह हुई कुछ पता नहीं चला. सुबह ११ बजे नींद खुली जब भूख से पेट में 'गुर्रर' होने लगी. मैं उठा पर सर बहुत भारी था और आँखें तो जैसे खुल ही नहीं रही थी. मैंने उठ के आशु को देखा तो वो अब भी दोनों टांगें चौड़ी कर के पड़ी थी जैसे रात को मैंने उसे आखरी बार देखा था. मैंने उसका साँस चेक किया तो पाया की वो जिन्दा है!
मैं उसकी तरफ करवट ले कर लेट गया, अपनी उँगलियों से आशु के बाएँ गाल को सहलाने लगा. उँगलियाँ सहलाते हुए मैं उसकी गर्दन तक ले आया और फिर धीरे-धीरे उस के स्तनों के ऊपर. आशु के दोनों स्तन लाल थे, मैंने आगे बढ़ कर आशु के दाएँ स्तन को मुंह में ले लिया और धीरे-धीरे प्यार से उसे चूसने लगा. मैं बहुत आहिस्ते-आहिस्ते आशु के स्तन को निचोड़ कर पी रहा था और अब आशु के जिस्म में हरकत शुरू हो गई थी. 'उम्..ममम...हम्म्म...अह्ह..!!!' कराहते हुए उसने अपने दाएँ हाथ को मेरे सर पर रख दिया और अपनी उँगलियाँ मेरे बालों में फिरानी शुरू कर दी. मैं रूका और आशु की तरफ देखने लगा, उसकी आँखें अभी भी बंद थी. मैं ऊपर की तरफ आया और उसकी पलकों को धीरे से चूम लिया. फिर नीचे को आया और उसके अध् खुले अधरों को चूम लिया, तब जा कर आशु की आँख धीरे-धीरे खुली. आशु बहुत धीरे से बुदबुदाते हुए बोली; 'जानू!' मुझे तो ऐसा लगा जैसे उसमें शक्ति ही नहीं बची कुछ बोलने की. मैं अपने बाएं कान को उसके होठों के पास ले गया, तब आशु बुदबुदाते हुए बोली; 'जानू! सर दुःख रहा है! बदन टूट रहा हे.' मैं समझ गया की मुझे क्या करना हे. मैं उठ के खड़ा हुआ और आशु को अपनी गोद में उठाया और उसे बाथरूम में ले आया. कमोड पर आशु को बिठाया और गर्म पानी का शावर चालु किया. जैसे ही गर्म पानी की बूँदें हमारे शरीर पर पड़ीं, जिस्म को चैन आया. आशु अब भी आँखें बंद किये हुए गर्दन पीछे किये हुए बैठी थी. पानी की बूँदें उसके चेहरे से होती हुई उसके स्तन पर गिर रही थी. धीरे-धीरे आशु की आँखें खुलीं और मुझे खुद को इस तरह देखते हुए वो शर्मा गई और मुस्कुराते हुए दूसरी तरफ मुँह कर लिया. मैंने अपने दाहिने हाथ से आशु की ठुड्डी को पकड़ के अपनी तरफ घुमाया, आशु ने अपनी आँखें मूँद ली थी और मुझे उस पर बहुत प्यार आ रहा था.
शर्म भी इक तरह की चोरी है…
वो बदन को चुराए बैठे हैं…
ये शेर सुन कर आशु ने आँखें खोलीं और बैठे-बैठे ही मेरी कमर को अपने हाथ से थाम लिया. 'अच्छा मेरी जानेमन! अब आपको कैसा लग रहा है?' मैंने आशु से पूछा तो वो मेरा हाथ पकड़ कर खड़ी हुई और बोली; 'बेहतर लग रहा हे.' मैंने साबुन उठाया और अपने और आशु के ऊपर वाले बदन पर लगाया, नीचे लगाने के लिए जब मैं झुका तो उसने मुझे रोक लिया और खुद अपने और मेरी टांगों में साबुन लगाया. फिर उसने साबुन से मेरे लिंग को साफ़ किया और फिर अपनी योनी को.
अच्छे से नाहा-धो कर हम दोनों बाहर आये और अब काफी तरो-ताजा महसूस कर रहे थे. आशु की नजर जब बिस्तर पर पड़ी तो उसे जैसे रात का एक-एक वाक्य याद आ गया और वो खुद हैरानी से मुझे देखने लगी. उसे और मुझे खुद यक़ीन नहीं हो रहा था की कल रात को हम दोनों को आखिर हुआ क्या था जो हम संभोग के लिए इस तरह पागल हो गए थे.
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, मैंने दरवाजा खोला तो बाहर निशा और अक्षय खड़े थे. हालाँकि मैंने उनका रास्ता रोका हुआ था पर फिर भी निशा मजाक-मजाक में मुझे अंदर की तरफ धकेलते हुए अंदर आ गई और बिस्तर की हालत देख कर अपने दाएँ हाथ से अपने माथे को पीटा.पीछे से अक्षय भी अंदर आ गया और मेरी पीठ थपथपाने लगा. मैं हैरानी से उसकी तरफ देख रहा था की तभी निशा बोली; 'सागर जी! आप तो सच्ची बड़े बेदर्दी हो! मेरी फूल सी दोस्त की रात भर में हालत ख़राब कर दी आपने?'
'इसका क्रेडिट मुझे जाता है?' अक्षय बड़े गर्व से बोला और हम तीनों उसकी तरफ देखने लगे.
'क्या मतलब?' निशा बोली.
'मैंने बारटेंडर से रोमांस ऑन दा रॉक्स बनाने को कहा था. उसने हमारी ड्रिंक्स में वायग्रा डाल दी थी.' उसने हँसते हुए कहा, अब ये सुन कर तो मैंने अपना सर पीट लिया और मैं सोफे पर बैठ गया.'मेरी और आपकी ड्रिंक्स में तो डबल डोज था!' उसने ठहाका मारते हुए कहा.
'तेरा दिमाग ख़राब है हरामी!' मैंने उसे डाँटते हुए कहा. 'बावला हो गया है क्या? वियाग्रा कभी ड्रिंक्स के साथ लेते हैं? वो भी डबल डोज़?' मैंने उसे गुस्सा करते हुए कहा.
'सॉरी ब्रो! मैं तो बस मजे के लिए....'
'अबे काहे के मजे? तेरे मजे के चक्कर में बेचारी आशु बेहोश हो गई थी! साले उसे कुछ हो जाता न तो सोच नहीं सकता की मैं तेरा क्या हाल करता!' मैंने सोफे से उठते हुए अक्षय को आँखें दिखाते हुए कहा. तभी निशा मेरे पास आई और हाथ जोड़कर माफ़ी माँगते हुए बोली; 'सागर जी! माफ़ कर दो! मैं इसकी तरफ से आपसे माफ़ी मांगती हु.' अब चूँकि आज उसका जन्मदिन था तो मैंने बस हाँ में गर्दन हिलाई और आशु की तरफ देखा जो डर के मारे गर्दन झुका कर खड़ी थी.
मैं चल कर आशु के पास पहुँचा और उसे गले लगा लिया, उसे बुरा लग रहा था की उसने ऐसे नासमझ दोस्त बनाये जिस के कारन आज मुझे इतना गुस्सा आया. 'सॉरी सागर जी! मेरा कोई गलत मकसद नहीं था.....आई एम एक्स्ट्रेमली सॉरी!” आशु की वजह से मैंने बात को ज्यादा नहीं खींचा और उसे माफ़ कर दिया. “लेट्स ऑर्डर सम ब्लॅक कॉफी; दिस हेडएक इज किलिंग मी!” सब ने ब्लैक कॉफ़ी के लिए हाँमि भरी और मैंने साथ में आलू के परांठे भी मंगाए.अब चूँकि हमारा कमरा पहले से ही तहस-नहस था तो हम अपना खाना ले कर निशा वाले कमरे में चले गये. उनका कमरा हमारे कमरे के ठीक उलट था. वहाँ तो सब कुछ ठीक-ठाक था. लग ही नहीं रहा था की वहाँ कोई ठुकाई हुई है! खेर मैंने इस बारे में कुछ नहीं कहा और सोफे पर बैठ के नाश्ता करने लगा. आशु ने टी.वी. पर गाने लगा दिए और हम चुप-चाप बैठ के खाने लगे. खाने के बाद नितु मैडम का फ़ोन आया और मैं उनका कॉल लेने के लिए बाहर चला गया.आज मैडम का मूड बिलकुल ऑफ था और वो काफी मायूस लग रही थी. मैंने पूछा भी पर उन्होंने टाल दिया और बात घुमा दी. मैंने उन्हें कुछ मेल फॉरवर्ड किये और एक लास्ट मेल में उन्हें सीसी करते हुए अंदर आया. मेरी नजर अब भी फ़ोन में थी और जब मैं अंदर घुसा तो निशा बोली; 'क्या सागर जी? यहाँ भी काम? यहाँ तो हम एन्जॉय करने आये हैं.'
 
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पीछे भाभी खड़ी थी और उनकी नजर मेरे लिंग पर टिकी थी. जब मेरी नजरें उनकी नजरों का पीछा करते हुए मेरे ही लिंग तक आई तो मैंने फट से लिंग पाजामे में डाला और मुंडेर से नीचे आ गया.मैं बुरी तरह से झेंप गया था और वापस अपने कमरे की तरफ जा रहा था. इतने में पीछे से भाभी बोली; 'मुझे तो लगा था की तुम आत्महत्या करने जा रहे हो, पर तुम तो पेशाब कर रहे थे! बचपना गया नहीं तुम्हारा देवर जी!' ये सुन कर मैं एक पल को रुका पर पलटा नहीं और सीधा आँगन में आ गया, हाथ-मुँह धोया और वापस कमरे में जाने लगा की तभी भाभी आशु वाले कमरे के बाहर अपनी कमर पर हाथ रखे मेरा इंतजार कर रही थी.
'तन से तो जवान हो गए, पर मन से अब भी बच्चे हो! उन्होंने हँसते हुए कहा. मैं अब भी शर्मा रहा था तो सर झुका कर अपने कमरे में घुस गया और वो आशु वाले कमरे में घुस गई. लेटते ही मुझे आशु की वो बात याद आई जिसमें भाभी मेरे बारे में सोच के नींद में मेरा नाम बड़बड़ा रही थी. आज उन्होंने ने जिस तरह से मुझे 'देवर जी' कहा था वो भी बहुत कामुक था! मैं सचेत हो चूका था और मेरा मन भाभी के जिस्म की प्यास को महसूस करने लगा था. पर आशु का प्यार मुझे गलत रास्ते में भटकने नहीं दे रहा था. अगले कुछ दिन तक भाभी मेरे साथ यही आँख में चोली का खेल खेलती रही और सबकी नजरें बचा कर मुझे अपने जिस्म की नुमाइश आकृति रही.जब भी मैं अपने कमरे में अकेला होता तो वो झाड़ू लगाने के बहाने आती और अपने पल्लू को अपने स्तनों पर से हटा के अपनी कमर से लपेट लेती.
उनके स्तनों की वो घाटी इतनी गहरी थी जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल था.भाभी के स्तन दूध से भरे लगते थे. सैतीस की उम्र में भी उनकी वक्षो में बहुत कसावट थी. झाडू लगाते हुए वो मेरे पलंग के नजदीक आ गई और इतना झुक गई की मुझे उनके स्तनाग्र लग-भग दिख ही गये. मैं उठ के जाने को हुआ तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया; 'कहाँ जा रहे हो देवर जी?!' मैंने कोई जवाब नहीं दिया और मुँह फेर लिया. 'मेरा तो काम हो गया!' इतना कह कर उन्होंने मेरा हाथ छोड़ दिया और अपनी कातिल हंसी हँसते हुए चली गई. उनकी ये डबल मीनिंग वाली बात मैं समझ चूका था. वो तो बस मुझे अपने स्तन दिखाने आई थीं! कमरा तक ठीक से साफ़ नहीं किया था उन्होंने, पहले तो सोचा की उन्हें टोक दूँ पर फिर चुप रहा और वापस लेट गया.वो पूरा दिन भाभी मुझे देख-देखकर हँसती रही और मेरे जिस्म में आग पैदा हो इसकी कोशिश करती रही.
अगले दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ, मैं आँगन में लेटा हुआ था और वो हैंडपंप के पास उकडून हो कर बैठी कपडे धो रही थी. मैं जहाँ लेटा था वहाँ मेरे बाएं तरफ रसोई और दाएं तरफ गुसलखाना था जहाँ पर हैंडपंप लगा था. मैं पीठ के बल लेटा हुआ था और अपने फ़ोन में कुछ देख रहा था की मैंने 'गलती' से दायीं तरफ करवट ली. करवट लेते ही मेरी नजर अचानक से भाभी पर पड़ी जो मेरी तरफ देख रही थी और उनका निचला होंठ उनके दाँतों तले दबा हुआ था. उनकी दायीं टाँग सीधी थी और उन्होंने उसके ऊपर से अपने पेटीकोट ऊपर चढ़ा रखा था. भाभी मेरी तरफ प्यासी नजरों से देख रही थी और सोच रही थी की मैं उठ कर आऊँगा और उन्हें गोद में उठा कर ले जाऊंगा.
भाभी ने अपना पेटीकोट और ऊपर चढ़ा दिया और उनकी माँसल जाँघ मुझे दिखने लगी. ये देखते ही मुझे झटका लगा और मैंने तुरंत दूसरी तरफ करवट आकर ली और ये देखकर भाभी खिलखिलाकर हँस पडी. रात खाने के बाद मैं छत पर थोड़ा टहल रहा था की तभी आशु का फ़ोन आ गया और मैं उससे बात करने लगा. बात करते-करते रात के ११ बज गए, मैंने आशु को बाय कहा और फ़ोन पर एक लम्बी सी किस दी और फ़ोन रखा. मौसम अच्छा था. ठंडी-ठंडी हवाएँ जिस्म को छू रही थी और मजा बहुत आ रहा था. मैंने सोचा की आज यहीं सो जाता हूँ, पास ही एक चारपाई खड़ी थी तो मैं ने वही बिछाई और मैं दोनों हाथ अपने सर के नीचे रख सो गया.रात के एक बजे मेरे कान में भाभी की मादक आवाज पड़ी; 'देवर जी!!!' ये सुनते ही मैं चौंक कर उठ गया और सामने देखा तो भाभी दिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में मेरे सामने खड़ी हे. पूनम के चाँद की रौशनी में उनका पूरा बदन जगमगा रहा था. मांसल कमर और उनके कसे हूये स्तन मेरे ऊपर कहर ढा रहे थे! मेरी नजरें अपने आप ही उनकी ऊपर-नीचे होती वक्षो पर गड़ी हुई थी. भाभी जानती थी की मैं कहाँ देख रहा हूँ इसलिए वो और जोर से सांसें लेने लगी. दिमाग में फिर से झटका लगा और मैं ने उनकी मन्त्र-मुग्ध करती वक्षो से अपनी नजरें फेर ली. 'यहाँ क्या कर रहे हो देवर जी?' भाभी ने फिर से उसी मादक आवाज में कहा.
'वो मौसम अच्छा था इसलिए ....' मैंने उनसे मुँह फेरे हुए ही कहा. 'हाय!!!...सच कहा देवर जी! सससस...ठंडी-ठंडी हवा तो मेरे बदन पर जादू कर रही हे. मैं भी यहीं सो जाऊँ?' भाभी की सिसकी सुन मैं उठ खड़ा हुआ और नीचे जाने लगा. 'आप चले जाओगे तो मैं कहाँ सोऊँगी?' भाभी बोलती रही पर मैं रुका नहीं और अपने कमरे में आ कर दरवाजा बंद कर के लेट गया.भाभी का मुझे रिझाने का काम पूरे पांच दिन और चला और इन्हीं दिनों मैं इतना तंदुरुस्त हो गया की अपना ख्याल रख सकूँ! घर के असली दूध-दही-घी की ताक़त से जिस्म में जान आ गई थी. अब मुझे वहाँ से जल्दी से जल्दी निकलना था वरना भाभी मेरे लिंग पर चढ़ ही जाती!
एक हफ्ते बाद में वापस शहर पहुँचा तो मेरा प्यार मुझे लेने के लिए बस स्टैंड आया था. आशु मुझे देखते ही मेरे गले लग गई और उसकी पकड़ देखते ही देखते कसने लगी. 'जानू! पूरे दस दिन आप मुझसे दूर रहे हो! आगे से कभी बीमार पड़े ना तो देख लेना! मैं भी आपके ही बगल में लेट जाऊँगी!' ये सुन कर मैं हँस पड़ा. हम घर पहुँचे और आशु के हाथ का खाना खा कर मन प्रसन्न हो गया.मैंने जान कर आशु को भाभी द्वारा की गई हरकतों के बारे में कुछ नहीं बताया वरना फिर वही काण्ड होता! इन पंद्रह दिनों में मैं बहुत कमजोर हो गया था इसीलिए उस दिन आशु ने मेरे ज्यादा करीब आने की कोशिश नहीं की. अगले दिन मैंने ऑफिस ज्वाइन किया तो मेरी कमजोरी नितु मैडम से छुपी नहीं और वो कहने लगी की मुझे कुछ और दिन आराम करना चाहिए.अब तो राखी ने भी ज्वाइन कर लिया था और भी मैडम की बात को ही दोहराने लगी. सिर्फ एक मेरा बॉस था जो मन ही मन गालियाँ दे रहा था.
उस दिन मैं शाम को आशु से मिल नहीं पाया क्योंकि काम बहुत ज्यादा था और राखी मैडम से बैलेंस शीट फाइनल नहीं हो रही थी तो मुझे उसकी मदद करनी पडी. शाम को देर हो गई थी इसलिए मैंने ही उसे घर ड्राप किया था. अगले दिन मुझे आशु का फ़ोन आया तो वो बहुत घबराई हुई थी!
मैं: क्या हुआ? तू घबराई हुई क्यों है?
आशु: आई…. आई…. आई थिंक आई एम प्रेग्नंट!!!
मैं: क्या???!!!! ह….हाऊ…. दिस … हॅपेंड?!
आशु: आई मिस …..माई पिरियड!
ये सुन कर दोनों खामोश हो गए, मेरा दिमाग तो जैसे सुन्न हो चूका था.
आशु: जानू! हेल्लो???? जानू????
आशु की आवाज सुन कर मैं अपनी सोच से बाहर निकला;
मैं: मैं आ रहा हूँ तेरे कॉलेज, मुझे लाल बत्ती पर मिल.
इतना कह कर मैं ऑफिस से भागा.मैडम ने मुझे भागते हुए देखा तो तुरंत मुझे कॉल कर दिया. मैं अभी बाइक के पास ही पहुँचा था. मैंने उन्हें झूठ बोल दिया की परिवार के किसी लड़के को हॉस्पिटल लाये हे. मैं बाइक भगाता हुआ कॉलेज पहुँचा और आशु वहीँ इंतजार कर रही थी. मैं उसे ले कर शहर के दवाखाने नहीं जा सकता था वरना कल को कोई काण्ड अवश्य होता. इसलिए मैं उसे ले कर बाराबंकी आ गया.दो घंटे के रास्ते में हमारी कोई भी बात नहीं हुई, आशु मेरे जिस्म से चिपकी बस सुबक रही थी. उसकी आँख के आँसू मेरी कमीज पीछे से भीगा रहे थे. शहर में घुसते ही पहले मैंने आशु को एक मंगलसूत्र खरीद कर दिया और साथ ही मैं सिंदूर की एक डिब्बी.आशु हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी;
आशु: हम शादी कर रहे हैं? (उसने खुश होते हुए कहा.)
मैं: नहीं! ये सिन्दूर लगा ले और मंगलसूत्र पहन ले अगर डॉक्टर पूछे तो कहना की हमारी शादी को ५ महीने ही हुए हे.
ये सुन कर आशु मायूस हो गई. पर मेरा ध्यान अभी सिर्फ इस बात को जानने में था की क्या वो प्रेग्नेंट है? दिमाग तैयारी करने लगा था की अगर वो प्रेग्नेंट है तो मुझे उसके साथ जल्द से जल्द भागना होगा! एक महंगे से हॉस्पिटल के बाहर मैंने बाइक रोकी और फिर हम दोनों अंदर पहुंचे. कार्ड बनवा कर हम भितर गए.डिटेल में मैंने अपना नंबर डाला और आशु का नाम बदल कर प्रिया कर दिया. कुछ देर इंतजार करने के बाद हम डॉक्टर के केबिन में घुसे और डॉक्टर ने हम दोनों का नाम पूछा तो मैंने उन्हें अपना नाम रितेश बताया.ये सुन कर आशु थोड़ा हैरान हुई क्योंकि मैं आशु को नकली नाम बताना भूल गया था. मैंने आशु का हाथ दबा कर उसे समझा दिया.
डॉक्टर: तो बताइये मिस्टर शुभम क्या समस्या है?
मैं: जी मॅडम ... मुझे लगता है की प्रिया प्रेग्नेंट है... और अभी हम दोनों ही जॉब कर रहे हैं तो.... आई होप यू कॅन अंडर स्टँड!
डॉक्टर: हा ... हा .... प्रिया आप चलो मेरे साथ.
आशु उठ कर उनके साथ चली गई और करीब १५ मिनट बाद डॉक्टर और आशु साथ आये.
डॉक्टर: यू शुड ह्याव युज प्रिकॉशन!
मैं: मॅडम ... वो... सॉरी! पर आशु ने आई पिल तो ली थी.
डॉक्टर: ७२ घंटों के अंदर ली थी?
मैं: नहीं मॅडम .... थोड़ा लेट हो गई थी!
डॉक्टर: देखो इस समय आशु के साथ थोड़ी कम्प्लीकेशन है! शी इज नॉट फिजिकली फिट टू बी a मॉम! अल्सो, यू कान्ट चुस दीं अबोर्शन… कौज देन शी वॉन्ट बी एबल टू कन्सिव …एवर!
ये सुन कर हम दोनों के दूसरे को देखने लगे और हमारी परेशानियाँ हमारी शक्ल से दिख रही थी.
डॉक्टर: सी आई विल राईट सम मेडिकेशन विच.. शी ह्याज टू टेक ऑन अ डेली बेसिस, दिस विल् ओन्ली डीले दीं प्रेग्नानसी. इफ शी स्टॉप दीं मेडिकेशन, देन शी विल ह्याव टू कन्सिव दीं बेबी. शी अल्सो निड मल्टी व्हिटॅमिन टू बी फिजिकली फिट इन ऑर्डर टू … यू नो… बी अ मॉम. वन मोर थिंग आई ह्याड लाईक टू आस्क, हाऊ लाँग ह्याव यू बिन म्यारीड?
मैं: ५ मंथ ! बट व्हाय?
डॉक्टर: यू दिडंत टेल मी एनीथिंग अबाउट योवर वाइफ ऑर्गास्म?
अब ये सुन कर तो मैं दंग रह गया!
मैं: I थोट दे आर नॅचरल…..आई…. आई...ह्याड नो आईडिया…. इट्स …अ डीसिज?!!
डॉक्टर: इट्स नॉट अ डीसिज … येस शी रीचेस ऑर्गस्म a बीट अर्ली बट डोन्ट वरी आई ह्यावं टोट हर अ टेकनिक टू लास्ट लाँगर!
ये कहते हुए उन्होंने आशु को आँख मारी! हम दवाई ले कर बाहर आये और दोनों भूखे थे तो मैंने आशु को एक रेस्टरंट में चलने को कहा. वहाँ खाना आर्डर कर ने के बाद हमने बात शुरू की;
मैं: घबराओ मत! सब कुछ ठीक हो जायेगा.
आशु: सब मेरी गलती थी. मैं अगर दवाई टाइम पर ले लेती तो ये सब नहीं होता!
मैं: जो हो गया सो हो गया! अब ये दवाई टाइम से खाना और ये बताओ की तुम अंदर से कमजोर कैसे हो? खाना ठीक से नहीं खाती?
आशु: नहीं तो... मैं तो ठीक से खाती-पीती हूँ!
मैं: और ये ओर्गास्म???
आशु: जब भी हम प्यार कर रहे होते थे तो मैं सबसे पहले..... मतलब वो.... और आप हमेशा देर तक....तो मैं.... (आशु को ये कहने में बड़ा संकोच हो रहा था.)
मैं: पगली! छोड़ ये सब और खाना खा| (मैंने उसका ध्यान उन बातों से हटाया और खाने में लगा दिया.)
खाना खा कर निकले तो बॉस का फ़ोन आ गया पर मैं चूँकि उस समय ड्राइव कर रहा था इसलिए फ़ोन नहीं उठा पाया. पहले मैंने आशु को हॉस्टल छोड़ा क्योंकि अब शाम के ४ बज रहे थे और मुझे ऑफिस पहुँचते-पहुँचते ५ बज गये. बॉस मुझे देखते ही जोर से चिल्लाया; 'कहाँ था सारा दिन?' ये सुन कर मैडम अपने केबिन से बाहर आईं और मेरे बचाव में कूद पड़ी; 'मुझे बता कर 'गए थे'! कजिन को एक्सीडेंट हो गया था और वो हॉस्पिटल में एडमिट था.' ये सुन कर बॉस ने मैडम को घूर के देखा और फिर बिना कुछ कहे अंदर केबिन में चला गया.मैं जानता था की आज तो मैडम को ये बहुत सुनाएगा इसलिए मैंने मैडम से दबे शब्दों में कहा; 'मॅडम! मेरी वजह से सर आपको बहुत डाटेंगे! आप को....' आगे मेरे कुछ भी कहने से पहले उन्होंने मेरी बात काट दी; 'दोस्त को बचाना तो धर्म है!' इतना कह कर मैडम हँस पड़ी और मैं भी मुस्कुरा दिया. पर मन ही मन जानता था की मॅडम को आज बहुत सुनना पडेगा.
खेर काम तो करना ही था और मैडम को कम डाँट पड़े इसलिए थोड़ी देर बैठ कर काम निपटाया और घर पहुँच गया.घर आते ही आशु को फ़ोन किया और उसे याद दिलाया की उसने गोली खाई या नहीं?! मैंने तो फ़ोन में भी रिमाइंडर डाल लिया ताकि मैं कभी भूलूँ नही. अगले दिन जब आशु से शाम को मिला तो वो मुझे थोड़ी गुम-सुम लगी. पूछने पर उसने कहा;'क्या मैं ये बेबी कंसीव नहीं कर सकती?' ये सुन कर पहले तो सोचा की उसे झिड़क दूँ पर फिर सोचा की उसे ठीक से समझाता हूँ; 'जान! अगर आप ये बेबी कंसीव करते हो तो हमें जल्दी शादी करनी पडेगी. जल्दी शादी करने के लिए हमें जल्दी भागना होगा, और भाग तो हम जाएंगे पर भाग कर जाएंगे कहाँ? कहाँ रहनेगे? क्या खाएंगे? सिर्फ प्यार से पेट नहीं भरता ना?' ये सुन कर आशु कुछ सोचने लगी और फिर बोली; 'मैं भी जॉब करूँ?'
'जान! आप जॉब करोगे तो पढ़ाई कब करोगे? दोनों चीजें आप एक साथ मैनेज नहीं कर सकते और फिर आप जॉब करोगे तो हम रोज मिलेंगे कैसे? पर आशु का दिमाग इन सवालों के जवाब पहले ही सोच लिया था. 'मैं पार्ट टाइम जॉब करुँगी, वो भी आप ही की कंपनी में' ये सुन कर मैं हैरान हो गया और हैरानी से आशु को देखने लगा. 'नहीं!!!' मैंने बस इतना ही जवाब दिया और बात को वहीँ दबा दिया. आशु ने भी डर के मारे आगे कुछ नहीं बोला.
कुछ दिन और बीते, हम इसी तरह रोज मिलते पर जॉब के लिए आशु ने मुझसे आगे कोई बात नहीं की. रविवार आया तो आशु ने जिद्द कर के मेरे घर आ गई. और आज तो वो बहुत ज्यादा ही खुश लग रही थी. आज वो पहली बार स्कर्ट पहन के आई थी और अपनी कुर्ती ऊपर उठा कर आशु ने मुझे अपनी नैवेल दिखाई. मेरी नजर उसकी नैवेल पर पड़ी तो मैं टकटकी बांधें उसी को देखता रहा. 'क्या बात है आज तो मेरी जान मेरी जान लेने के इरादे से आई है!!!' ये कहते हुए मैंने आशु को अपनी छाती से चिपका लिया.
'वो प्रेगनेंसी वाले दिन के बाद मुझे तो लगा था की आप मुझे अब शादी तक छुओगे ही नहीं! आपको रिझाने को ही इतना सज-धज कर आई हूँ! सससस.....आ...आ...ह...नं... सच्ची कितने दिनों से आपके लिए प्यार के लिए तड़प रही थी.' आशु ने कसमसाते हुए कहा.
'पागल! तुझे प्यार किये बिना तो मैं भी नहीं रह सकता! उस दिन जब तूने मुझे प्रेगनेंसी की बात बताई तो मैं मन ही मन सोच कर बैठा था की अब जल्दी ही तुझे भगा कर ले जाऊ.' मैंने आशु को बाएं गाल को चूमते हुए कहा.
'सच्ची?' आशु ने खिलखिलाते हुए कहा.
'हाँ जी! बहुत प्यार करता हूँ मैं अपनी आशु से.' ये कहते हुए मैंने आशु के होंठों को चूम लिया.
मेरे होठों के सम्पर्क में आते ही आशु मचलने लगी और उसने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे ले जाके लॉक कर दिया. आशु उचक कर मेरे होठों को चूस रही थी और मुझे उसकी इस हरकत पर बहुत प्यार आ रहा था. मैंने उसे गोद में उठा लिया और किचन कॉउंटर पर ला कर बिठा दिया. आशु अब बिलकुल मेरे बराबर थी. और उसका मेरे होठों को चूमना जारी था. आशु के होंठ तो आज मुझ पर कुछ ज्यादा ही कहर डाल रहे थे, वो अपने होठों से मेरे होठों को बारी-बारी निचोड़ रही थी. इधर मेरे दिलों-दिमाग में उसकी नाभि ही छाई हुई थी. हाथ अपने आप ही उसकी नाभि के ऊपर थिरकने लगे थे. एक अजीब सी खुमारी थी. उस पर आशु की जिस्म की महक मुझे बहका रही थी. मैंने फिर से आशु को गोद में उठाया और पलंग पर ला कर लिटा दिया और खुद भी उसके ऊपर छा गया.अब मैंने अपने निचले होंठ और जीभ के साथ उसके निचले होंठ को अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा. आशु की उँगलियाँ मेरे बालों में रास्ते बनाने लगी थी. निचले होंठ कर रस निचोड़ कर मैंने उसके ऊपर वाले होंठ को भी ऐसे ही निचोड़ा.मेरे हाथ अब नीचे आ कर उसके कुर्ते के ऊपर से स्तनों को दबाने लगे थे. उन्हें धीरे-धीरे मसलने लगे. मैं रुका और अपने घुटनों पर बैठ गया और आशु का हाथ पकड़ के उसे बिठाया. मुझे आगे उसे कुछ कहना नहीं पड़ा और उसने खुद ही अपना कुरता निकाल के फेंक दिया. मैं ने भी ताव में आकर अपनी टी-शर्ट निकाल फेंकी और फिर से आशु के ऊपर चढ़ गया और उसके होठों को अपने होठों में भींच कर चूसने लगा.
आशु ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और उसने भी अपनी जीभ से हमला कर दिया.मेरे मुँह में दाखिल हुई उसकी जीभ मेरी जीभ से लड़ने लगी थी. मैं ने अपने दाँतों से उसकी जीभ पकड़ ली और आशु थोड़ा छटपटाने लगी! इधर मेरी उँगलियों ने आशु की ब्रा के स्ट्राप को नीचे खिसका दिया. मैंने किस तोडा और आशु के कंधे को चूम लिया, जवाब में आशु ने अपनी उँगलियों को मेरे बालों में फँसा दिया. मैंने अपनी उँगलियों से अब उसकी ब्रा को उसके कंधे से होते हुए नीचे लाना शुरू कर दिया. आशु ने अपनी पकड़ मेरे बालों पर ढीली की और अगले ही पल उसकी ब्रा उसके सीने से अलग हो कर जमीन पर पड़ी थी. आशु मेरी आँखों में प्यास देख रही थी और मैं भी उसकी आँखों में वही प्यास देख रहा था. मैंने झुक कर आशु के बाएँ स्तन को अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा. और आशु ने फिर से अपनी उँगलियाँ मेरे बालों में फँसा दी.
'काश...ससस..ससस...आ.आ..ननहहह....मैं आपको अपना दूध पिला सकती' ये कहते हुए आशु सिसकारियां लेने लगी! उसकी टांगें भी हरकत करने लगीं और मेरी टांगों से लिपटने लगी. आशु की बात आज मुझे बहुत उत्तेजक लग रही थी और मुझे ऐसा लगने लगा की वो मुझे जान-बुझ कर उत्तेजित कर रही हे. 'ससस...आ..आ..ह...ह....न...न... जानू! एक बार काट लो ना!' उसका कहना था और मैंने उसके बाएँ स्तन को काट लिया; 'आआह्ह्ह्ह.....हहह...स..ससससस...ननन... न!!!!!' उसकी दर्द भरी कराह सुन मुझे और उत्तेजना हुई और मैंने आशु का दायाँ स्तन मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा. 'ससस....आ...न.....ह... इसे भी...काटो....ना...प्लीज!' ये सुनते ही मैंने उसके दाएँ वक्ष को दात से काट लिया; 'ईईई....माँ....आह....ससस...आ..न..हह...!!!' उसकी कराह निकली और मैं उत्तेजना से भर गया और वापस बाएँ वक्ष को भी काट लिया. 'ईईई...माँ......ाआनंनं.....ससस!!!! जानऊउउउउउउउ!!!!' आशु ने अपना दबाव मेरे सर पर और बढ़ा दिया.
अगले दस मिनट तक मैं यूँ ही कभी उसके एक स्तन को चूसता तो कभी दूसरे स्तन को! आशु ने धीरे-धीरे अपनी पकड़ मेरे सर पर से कम की तो मैं नीचे खिसका और उसकी नैवेल पर रूक गया.अपने होठों से मैंने उसकी नैवेल को चूमा, अगले ही पल मैंने अपनी जीभ उसमें डाल दी' इसके परिणाम स्वरुप आशु का पूरा जिस्म ऊपर की तरफ उठ गया.मैंने अपने निचले होंठ को उसकी नैवेल पर ऊपर से नीचे रगड़ना शुरू कर दिया. जीभ से मैं उसकी नैवेल को कुरेदने लगा, आशु से अब ये दोहरा हमला बर्दाश्त नहीं हो रहा था और वो छटपटाने लगी थी. पाँच मिनट तक उसकी नैवेल की चुसाई कर मैं और नीचे खिसका तो वहां तो अभी स्कर्ट का कब्ज़ा था. आशु ने तुरंत ही नाडा खोला और स्कर्ट अपनी नितंब से नीचे खिसका दी और बाकी का काम मैंने किया. अब तो सिर्फ आशु की पैंटी बची थी. पैंटी देख कर मैं उस पर झुका और आशु की योनी को चूमना चाहा. पर आशु ने मुझे रोक दिया और अपनी पैंटी निकाल कर अपनी दोनों टांगें खोल दी. उसकी ये हरकत देख मेरे मुख पर मुस्कराहट छ गई और मुझे देख आशु ने अपने दोनों हाथों से अपने मुँह को ढक लिया. मैं झुक कर आशु की योनी को चूमने लगा तो उसने फिर मुझे रोक दिया. वो उठ के बैठी और मुझे अपने ऊपर खींच लिया.
'आज मेरे जानू को और इंतजार नहीं करवाऊँगी' इतना कह कर उसने मुझे अपने ऊपर से धकेल दिया और मुझे नीचे लिटा कर मेरे ऊपर चढ़ गई. अपनी चारों उँगलियों को आशु ने अपने थूक से योनी और अपनी योनी की फांकों को गीला करने लगी. अपनी दो उँगलियों से उसने अपनी ही थूक से अपनी योनी को अंदर से गीला कर दिया.उसने अपने थूक से सने हाथों से मेरा पाजामा बुरी तरह खींचना शुरू कर दिया. वासना उस पर इस कदर हावी थी की वो तो मेरा पाजामा फाड़ने को भी तैयार थी. आखिर पाजामा निकालते ही उसने उसे दूर फेंक दिया और मेरे कच्छे को देख कर बोली; 'सच्ची आज के बाद मेरे होते हुए आप कभी कच्चा मत पहनना! नहीं तो मैं आपके सारे कच्छे फाड़ दूँगी!' आशु का उतावलापन आज साफ़ दिख रहा था. मेरा कच्छा तो उसने नोच कर निकाला और गुस्से से कमरे के दूसरे कोने में फेंक दिया. फिर से उसने अपना गाढ़ा थूक अपनी चारों उँगलियों पर निकाला और पहले मेरे लिंग पर चुपड़ने लगी और फिर बाकी का अपनी योनी में घुसेड़ दिया! आशु का ये रूप देख कर मैं हैरान था!
आशु अब धीरे-धीरे अपनी योनी को मेरे लिंग के ठीक ऊपर ले आई और धीरे-धीरे योनी को नीचे मेरे लिंग पर दबाने लगी. मेरा सुपाड़ा पूरा अंदर जा चूका था और आशु के योनी की गर्मी मुझे अपने लिंग पर महसूस होने लगी थी. मैं जानता था की अगर मैंने नीचे से जरा भी झटका मारा तो आशु की हालत दर्द के मारे खराब हो जायेगी, इसलिए में बिना हिले-डुले पड़ा रहा.
आशु ने बहुत हिम्मत दिखाई और धीरे-धीरे और नीचे आने लगी और मेरा लिंग और अंदर जाने लगा. जब आधा लिंग अंदर चला गया तो आशु रुक गई और मुझे लगा जैसे इसके आगे वो नहीं बढ़ेगी.आशु की चेहरे पर दर्द की लकीरें थीं और मुँह से दर्द भरी आह निकल रही थी. 'स..आह...हम्म....मम...हह...आअह्ह्ह...अंह..!!!' आशु की योनी में उठ रहा दर्द उसकी जुबान से बाहर आ रहा था. जितना लिंग अंदर गया था उतना ही अंदर लिए उसने ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया और मैं मन मार कर रह गया की वो मेरा पूरा लिंग अंदर न ले सकी. अगले पांच मिनट तक आशु मेरे पेट पर अपना हाथ रख कर अपनी नितंब ऊपर नीचे करती रही और मेरा बेचारा आधा लिंग ही उसकी योनी की गर्मी की सिकाई पा रहा था. आशु को मेरे चेहरे से मेरी प्यास दिख रही थी और वो जानती थी की मेरा पूरा लिंग उसकी योनी की गर्माहट चाहता है तो उसने ऊपर-नीचे होना रोक दिया और मेरे ऊपर लेट गई. 'मुझे लगा की वो स्खलित हो गई है इसलिए आराम कर रही है पर उसने मुझे चौंकाते हुए पुछा; 'जानू! आप ऐसे क्यों हो? अपना दर्द मुझसे क्यों छुपाते हो? मैं जानती हूँ की मैं आपको संभोग में वो सुख नहीं दे पाती जो आप चाहते हो पर आपने कभी मुझसे क्यों कुछ नहीं कहा? आपके छूटने से पहले मैं स्खलित हो जाती हूँ पर आप हैं की.....क्या पराया समझते हो मुझे?'
ये सुन कर मुझे एहसास हुआ की मैं आशु से संभोग में उसका पूरा साथ ना देने से थोड़ा दुखी था पर कभी उससे कहने की हिमत नहीं जुटा पाया. 'जान! ऐसा नहीं है! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, मेरे लिए तुम्हारे दिल का प्यार जरुरी है! संभोग मेरे लिए मायने नहीं रखता! तुम्हें उससे ख़ुशी मिलती है और तुम्हें खुश देख मैं भी खुश हो लेता हु. बचपन से ले कर जब तक मैं घर पर था तब तक हम साथ खेले-खाये, बड़े हुए पर मेरे कॉलेज के वजह से मुझे शहर आना पड़ा और तब शायद तुमने खुद का ख़याल रखना बंद कर दिया. या शायद घर पर सब के तानों के दुःख के कारन तुम अच्छे से खाना नहीं खाती थी. इसीलिए तुम्हारा शरीर अंदर से कमजोर है और शायद इसीलिए तुम संभोग में ज्यादा देर तक नहीं साथ दे पाती! पर उससे मेरा प्यार तुम्हारे लिए कभी कम नहीं हुआ! हाँ कुछ दिन पहले तुम ने मेरे दिल को बहुत ठेस पहुँचाई थी. पर उस किस्से के बाद तो हम और नजदीक ही आये हैं ना?
मेरी बात सुन कर आशु मेरी आँखों में देखते हुए बोली; 'मैं जानती हूँ आप मुझसे कितना प्यार करते हो और मेरे दिल को चोट न पहुंचे इसलिए आप ने मुझे कभी ये नहीं बताया. पर उस दिन जब में उस डॉक्टर के साथ अंदर गई चेक-अप के लिए तब मैंने उन्हें सारी बात बताई और उन्होंने मुझे कुछ बातें बताई! मैं वादा करती हूँ की आज के बाद मैं आपका पूरा साथ दूँगी!'
''आपको वादा करने की कोई जरुरत नहीं है!' ये सुन कर आशु मुस्कुराई और मेरे होठों को चूम लिया. मेरे लिंग अभी भी आधा आशु की योनी में था और आशु ने धीरे-धीरे अपनी कमर को मेरे लिंग पर दबाना शुरू किया. धीरे-धीरे ...धीरे-धीरे ...धीरे-धीरे ...धीरे-धीरे और आखिर में पूरा लिंग आशु की योनी में समां गया.दर्द के मारे आशु की आँखें बंद हो चुकी थी और आँसूँ की धरा बह निकली थी. 'ससससस.....आअह्ह्ह्ह......मा....म...म.म.म.म....मममम.....ंन्न......ह्ह्ह्हह्ण....!!!' आशु का दर्द देख कर मन दुखी होने लगा था और लिंग अंदर योनी की गर्मी पा कर मचलने लगा था. 'जान! दर्द हो रहा है तो मत करो!' मैंने आशु से कहा पर उसने अपनी ऊँगली मेरे होठों पर रख दी. 'ससस...आज...मेरे जानू.....को....सब....ससस...आअह्ह्ह..हहह्णणम्म्म....ममम...!!' आशु की दर्द भरी सिसकारियाँ अचानक ही मादक सिसकारियाँ बन चुकी थी. दो मिनट तक वो बिना हिले-डुले मेरे लिंग को पानी योनी में भरे, आँखें मूंदे हुए बैठी रही. फिर उसने अपने दोनों हाथों को मेरी छाती पर रखा और अपनी कमर धीरे-धीरे ऊपर लाई, लिंग का सुपाड़ा भर अंदर रहा गया था और फिर आशु धीरे-धीरे अपनी कमर को वापस नीचे लाई! दो मिनट में ही उसकी योनी ने रस छोड़ दिया. और वो गर्म-गर्म रस मेरे लिंग को और भी गर्म करने लगा. आशु जैसे ही ऊपर उठी उसका रस बहता हुआ बाहर आया पर इस बार आशु रुकी नहीं और उसने लय-बद्ध तरीके से अपनी कमर ऊपर-नीचे करनी शुरू कर दी. ५ मिनट और फिर आशु उकड़ूँ हो कर बैठ गई और तेजी से उसने अपनी नितंब ऊपर नीचे करने शुरू कर दी. अब तो मेरा लिंग बड़ी आसानी से फिसलता हुआ उसकी योनी में अंदर-बाहर हो रहा था और आशु को भी बहुत जोश चढ़ आया था. अगले दस मिनट तक वो बिना रुके ऐसे ही ऊपर-नीचे करती रही और मेरी और मेरे लिंग की हालत खराब कर दी. मेरे जिस्म में एक ऐठन आई और वही ऐठन आशु के जिस्म में भी आई और दोनों एक साथ अपना रस बहाने लगे, वो रस आशु के योनी में पहले भरा और काफी-कुछ रिस्ता हुआ बहार आने लगा.
आशु थक कर पस्त हो गई और मेरे ऊपर ही लुढ़क गई. हम दोनों की सांसें बहुत तेज थी. और लिंग अब भी आशु की योनी के अंदर फँस पडा था. पाँच मिनट के बाद जब दोनों की सांसें सामान्य हुई तो आज मेरे चेहरे की संतुष्टि देख आशु को खुद पर गर्व होने लगा. मैंने करवट ले कर उसे अपने ऊपर से उतारा और अपनी बगल में लिटा दिया. इसी बीच मेरा लिंग भी बहार आया. आशु की योनी से चम्मच भर गाढ़ा तरल बहंता हुआ बाहर आया जिसे देख कर मुझे बहुत आनंद आया. मैं वापस आशु की बगल में लेट गया, आशु ने मेरी तरफ करवट की और अपनी बायीँ टांग उठा कर मेरे लिंग पर रख दी. वो अब भी उस गाढ़े तरल से अनजान थी!
हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे और दस मिनट बाद मैंने आशु से बात शुरू की;
मैं: मेरी जान ने बड़े मन से डॉक्टर की सारी टिप्स फॉलो की, ऐसी क्या टिप्स दी थी उन्होंने?
आशु: (शर्माते हुए) उन्होंने कहा था की अपने पति को एक्साइट करो! कुछ मर्दों को बातों से एक्साइटमेन्ट होती है तो, किसी को नोचने-काटने से, किसी को चूमने-चूसने से होती है!
मैं: अच्छा?
आशु: हाँ जी! मुझे ये भी बताया की जल्दी स्खलित नहीं होना चाहिए बल्कि जितना रोक सको उतना बेहतर है! जब लगे की क्लाइमेक्स होने वाला है, तभी रुक जाओ और अपने पार्टनर को किस करते रहे. थोड़ा सब्र से काम लो और जल्दीबाजी मत दिखाओ! और तो और मुझे उन्होंने प्राणायाम भी करने को कहा और हस्तमैथुन नहीं करने को कहा.
मैं: तुम हस्थमैथुन करती थी?
आशु: जब आप नहीं होते थे तब करती थी! पर उस दिन के बाद मैंने बंद कर दिया. आपको पता है कितना मुश्किल होता है? आप को तो पता नहीं क्या सिद्धि प्राप्त है की आप खुद को इतना काबू में रखते हो! मुझे तो आपके पास आते ही आपके जिस्म की महक बहकाने लगती हे. मन करता है आपके सीने से चिपक जाऊँ!!!!
मैं: जानू! सब तुम्हारे प्यार का असर है, वही मुझे कहीं भटकने नहीं देता.
अब तक आशु को बिस्तर पर गीलापन महसूस हो गया था. इसलिए वो उठ बैठी और हम दोनों का गाढ़ा-गाढ़ा रस देख कर बुरी तरह शर्मा गई. वो उठी और थोड़ा बहुत रस उसकी योनी से बहता हुआ उसकी जाँघों तक पहुँच गया था. आशु बाथरूम से मुँह-हाथ और योनी धो कर आई और फिर मैंने भी मुँह-हाथ और लिंग धोया! जब में बहार आया तो आशु चाय बना रही थी और जैसे ही मैंने कच्छा उठाया पहनने को तो आशु आँखें बड़ी कर के देखने लगी. मैंने मुस्कुरा कर कच्छा वापस जमीन पर पड़ा रहने दिया. 'क्यों कपडे पहन रहे हो? मेरे सामने शर्म आती है?' आशु ये कह कर हँसने लगी. मैं उसके पीछे आया और उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड लिया. मेरा सोया हुआ लिंग आशु की नितंब से चिपका और मैं उसके कान में खुसफुसाते हुए बोला; 'सॉरी जान!'
'अच्छा आप खिड़की के नीचे बैठो, में चाय ले कर आती हु.' मैं वापस खिड़की के नीचे बिना कपडे पहने ही बैठ गया.आशु ने मुझे चाय दी और पलंग से चादर उठा कर धोने डाल दी और फिर मेरी गोद में नग्न ही बैठ गई. आशु की नितंब ठीक मेरे लिंग के ऊपर थी;
आशु: अच्छा ...मुझे आपसे ...एक बात कहनी थी. (आशु ने बहुत सोचते-सोचते हुए कहा.)
मैं: हाँ जी कहिये. (मैंने आशु के बालों में ऊँगली फिराते हुए कहा.)
आशु: मुझसे अब आपसे दूर रहा नहीं जाता. आपका कहाँ की नई जिंदगी शुरू करने के लिए पैसों की जरुरत है वो सच है पर ये तो कहीं नहीं लिखा होता की ये सारा बोझ आप ही उठाएंगे? मैं भी आपका ये बोझ बाँटना चाहती हूँ, मैं भी जॉब करुँगी! ताकि जल्दी पैसे इक्कट्ठा हों और मैं और आप जल्दी से यहाँ से भाग जाएँ.
आशु की बात सुन कर मैं हैरान था क्यों की वो बेसब्र हो रही थी और इस समय मेरा उसपर चिल्लाना ठीक नहीं था. तो मैंने उसे समझते हुए कहा;
मैं: जान! मैं बिलकुल मना नहीं करता की आप जॉब मत करो! मैंने तो आपको अपना प्लान बताया था ना? अगले साल से आप भी पार्ट टाइम जॉब शुरू करना! फिलहाल मैं कल ही सर से अपनी सैलरी बढ़ाने की बात करूँगा नहीं तो मैं जॉब स्विच कर लुंगा.
आशु: प्लीज जानू!
मैं: जान! समझा करो! आप पढ़ाई और जॉब एक साथ नहीं संभाल पाओगे! कॉलेज की अटेंडेंस भी जरुरी है ना? फिर हॉस्टल के टाइमिंग भी तो इशू हे.
आशु: मैं सब संभाल लूँगी, शनिवार और रविवार करुँगी तो कॉलेज की अटेंडेंस में भी कुछ फर्क नहीं पडेगा. हॉस्टल की टाइमिंग के लिए मैं आंटी जी से बात कर लूँगी और उन्हें मना भी लुंगी. प्लीज मुझसे अब ये दूरी बर्दाश्त नहीं होती!
मैं: जॉब करोगी तो शनिवार-रविवार हम दोनों कैसे मिलेंगे? तब कैसे रहोगी मुझसे बिना मिले? और ये मत भूलो की हमें कभी-कभी शनिवार-रविवार घर भी जाना होता है, उसका क्या? रास्ते में अकेले आना-जाना कैसे मैनेज करोगी?
आशु: मैं आप ही की कंपनी में जॉब करुँगी तो हम एक साथ और भी टाइम बिता पाएंगे और रही घर जाने की बात तो आपके बस इतना बोलने से की आप ऑफिस के काम में बिजी हो तो कोई कुछ नहीं कहेगा. आप बोल देना की मेरे एग्जाम है...कुछ भी झूठ बोल देना...ज्यादा हुआ तो कभी-कभी चले जायेंगे. एटलीस्ट मुझे एक बार कोशिश तो करने दीजिये, एक बार नितु मैडम से बात तो करने दीजिये!
मैं: अच्छा जी तो सब सोच कर आये हो?! मेरे ऑफिस में जॉब करोगे तो मेरे साथ-आना जाना तो छोडो वहां मुझसे बात भी नहीं कर सकती तुम!
आशु: क्यों भला?
मैं: वहाँ किसी ने पूछा तो क्या कहूँ? ये मेरी भतीजी है! या फिर तुम मुझे सब के सामने 'चाचा' कह पाओगी?
आशु: तो हम वहाँ बिलकुल अजनबी होंगे?
मैं जी हाँ!
आशु: हाय! ये तो बेस्ट हो गया फिर! दुनिया की नजर से छुप-छुप कर मिलना, बातें करना बिलकुल फिल्मों की तरह.
मैं: फिल्मों का कुछ ज्यादा ही भूत नहीं चढ़ गया?
आशु: नहीं ...आपके प्यार का भूत है...जो सर से उतरता ही नही.
मैं: आशु ...देख कल को ये बात खुल गई तो ...सब कुछ खत्म हो जायेगा, प्लीज बात को समझ! (मैंने गंभीर होते हुए आशु के सर को चूमा.)
आशु: मैंने आज तक आपसे जो माँगा है आपने दिया है, एक आखरी बार मेरी ये जिद्द पूरी कर दो और मैं वादा करती हूँ की आगे से कभी कोई जिद्द नहीं करुंगी.
मैं: ठीक है, पर आपको मुझसे एक और वादा करना होगा.
आशु: बोलिये
मैं: कॉलेज खत्म होने से पहले हम शादी नहीं करेंगे. तुम अपनी पढ़ाई को हरगिज़ दाव पर नहीं लगाओगी.
आशु: ओफ्फो!!! जानू आप ना सच में बहुत सोचते हो! किस ने कहा की मैं अपनी ग्रेजुएशन कम्पलीट नहीं करुँगी?! मैं शादी के बाद भी तो कॉरेस्पोंडेंस से पढ़ सकती हूँ ना? फिर तो आप कहोगे तो मैं पोस्ट ग्रेजुएशन भी कर लुंगी. एक्चुअली करना ही पड़ेगा वरना आगे जॉब कहाँ मिलेगी!
आशु ने बड़ी सरलता से ये बात कही पर ये बात मेरे गले नहीं उत्तर रही थी.
मैं: तुमने वादा किया था ना की कॉलेज की नेक्स्ट टोपर तुम बनोगी! मेरी तस्वीर के साथ तुम्हारी तस्वीर लगेगी... भूल गई? (ये कह कर मैं उठ खड़ा हुआ और हाथ बाँधे खिड़की से बहार देखने लगा.)
आशु: (मुझे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ते हूये.) ठीक है जान! जब तक मेरी ग्रेजुएशन पूरी नहीं होती तब तक हम शादी नहीं करेंगे. पर उससे एक दिन भी ज्यादा नहीं रुकूंगी मैं!
ये कहते हुए आशु ने मेरी नग्न पीठ को चूमा. उसके स्तन मेरी पीठ में गड रहे थे, मैं आशु की तरफ घूमा और उसके होठों को चूम लिया. उसका निचला होंठ मैंने अपने होठों और जीभ से चूसना शुरू कर दिया था.अगले दिन मैंने सर से अपनी सैलरी को ले कर बात करने की ठानी;
मैं: गुड-मॉर्निंग सर!
बॉस: गुड- मॉर्निंग! महालक्ष्मी ट्रेडर्स के नए इनवॉइस आये हैं, उन्हें चढ़ा देना.
मैं: जी...आपसे कुछ बात करनी थी.
बॉस: हाँ बोलो.
मैं: सर मुझे सैलरी में रेज चाहिए.
बॉस: क्यों?
मैं: सर मुझे आपके पास काम करते हुए तकरीबन ३ साल हो गए हैं और इन सालों में मेरी सैलरी में एक भी बार रेज नहीं हुआ.
बॉस: पहले तुम रेगुलर तो बनो.आये-दिन छुट्टी मारते हो, शाम को ऑफिस खत्म होने से पहले ही चले जाते हो. ऐसे थोड़े ही चलेगा!
मैं: सर मेरी छुट्टियाँ पहले से कम हो गई हैं, आखरी बार छुट्टी तब ली थी जब मुझे डेंगू हो गया था. वो छुट्टियाँ भी विथाउट पे थी! शाम को जल्दी जाता हूँ तो बाद में वापस आ कर काम भी तो खत्म कर देता हु. आज तक आपको किसी भी काम के लिए मुझे दो बार नहीं कहना पड़ा है, इसलिए सर प्लीज सैलरी रेज कर दिजिये.
बॉस: देखते हैं...अभी जा कर महालक्ष्मी ट्रेडर्स का डाटा चढ़ाओ.
मैं: सॉरी सर, पर अगर आप सैलरी रेज नहीं करना चाहते तो मैं रिजाइन कर देता हु.
मैंने सर को अपना रेसिग्नेशन लेटर दे दिया.
में: सर इसमें १ महीने का नोटिस पीरियड है, अगले महीने से मैं जॉब छोड़ देता हु.
इतना कह कर मैं चला गया.बॉस बहुत हैरान था क्योंकि उसे ऐसी जरा भी उम्मीद नहीं थी. तकरीबन ३ साल का एक्सपीरियंस था मेरे पास और कहीं भी जॉब कर सकता था. इसलिए मुझे जरा भी परवाह नहीं थी. इधर बॉस की फटी जरूर होगी क्योंकि ऐसा मेहनती 'मजदूर' उसे कहाँ मिलता जो एक आवाज में उसका सारा काम कर देता था. मैंने दोपहर को लंच भी नहीं किया और बिल एंटर करता रहा. लंच के बाद मैडम आईं और जब उन्हें सर से ये पता चला की मैं रिजाइन कर रहा हूँ तो पता नहीं उन्होंने सर को क्या समझाया की सर खुद मुझे बुलाने के लिए आये. मैं उनके केबिन में हाथ बंधे खड़ा हो गया, मैडम और सर मेरे सामने ही बैठे थे;
बॉस: अच्छा ये बताओ की रेज क्यों चाहिए तुम्हें? पार्ट टाइम टूशन तो तुम पढ़ा ही रहे हो और अभी सिंगल हो तो तुम्हारा खर्चा ही क्या है?
मैं: सर २०,०००/- की सैलरी में ८,०००/- तो रेंट है, घर का खर्चा जिसमें खाना-पीना, बिजली-पानी सब जोड़-जाड कर ६-७ हजार हो जाता हे. बाइक का तेल-पानी और मेंटेनेंस १५००/-,तो बचे ३,५००/-! तीन साल में मेरी सेविंग कुछ ६०-६५ हजार ही हुई हे. घर तो मैं ने पैसे भेजना बंद कर दिए! अब आप ही बताइये की आगे शादी करूँगा तो घर कैसे चलेगा मेरा?
मेरा जवाब सुन कर मैडम के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई पर सर के पास कोई जवाब नहीं बचा था.
बॉस: ठीक है मैं २०००/- बढ़ा देता हूँ!
मैं: सॉरी सर! एटलीस्ट मुझे ५,०००/- का रेज चाहिए. (अब मैं बार्गेन करने पर उत्तर आया तो मैडम के चेहरे पर और मुस्कराहट छा गई.)
बॉस: क्या? मैं इतना रेज नहीं कर सकता.
मैं: सर मार्किट में ३०,०००/- का ऑफर मिल रहा है मुझे, मैं तो फिर भी आपसे २५,०००/- मांग रहा हूँ, वो भी ३ साल बाद! हर साल अगर २०००/- भी बढ़ाते तो भी अभी आपको ६,०००/- बढ़ाने पड़ते!
बॉस: नहीं! ३,०००/- बढ़ा दूँगा इससे ज्यादा नहीं!
मैं: सर आप रस्तोगी जी को ३५,०००/- देते हैं, ना तो वो ऑफिस से बहार का काम करते हैं ना ही ऑफिस के अंदर रह कर कोई काम करते हे. जब तक आप उन्हें चार बार न कह दें वो फाइल खत्म करते ही नही.
बॉस: उनकी फॅमिली है, बच्चे हैं!
मैं: तो सर काबिलियत का कोई मोल नहीं? अगर फॅमिली का ही मोल है तो मैं अपने सारे परिवार को यहीं बुला लेता हूँ! फिर तो मुझे ज्यादा पैसे मिलेंगे ना?
बॉस: क्या करोगे ५,०००/- बढ़वा के? तुम्हारे परिवार के पास इतनी जमीन है!
मैं: सर मैं उनके टुकड़ों पर नहीं पलना चाहता, अपना अलग स्टैंड है मेरा. अगर जमीन ही देखनी होती तो मैं यहाँ २०,०००/-की नौकरी क्यो करता?
बॉस: चलो अगर मैं सैलरी बढ़ा दूँ तो तुम्हें ये शाम को जल्दी जाना बंद करना होगा!
मैं: सर मैं अगर जल्दी जाता हूँ तो वापस आ कर सारा काम खत्म कर देता हूँ और अगले दिन आपको फाइल टेबल पर मिलती हे. बाकी ऑफिस में सोमवार से शुक्रवार काम होता है मैं तो फिर भी ६ दिन आता हु.
बॉस ने ना में सर हिलाया और मैंने भी आगे कुछ नहीं कहा और वापस अपने डेस्क पर बैठ गया और काम करने लगा. शाम को मैंने इनवॉइस की फाइल सर को कम्पलीट कर के दी और आशु से मिलने निकल पडा. आशु को जब ये सब बताया तो वो ये सुन कर मायूस हो गई. उसने अभी तक नितु मैडम से अपनी जॉब की बात नहीं की थी वरना बॉस मेरी सैलरी कतई रेज नहीं करता.क्योंकि उसे आशु का स्टिपेन्ड भी देना पड़ता और मेरी सैलरी रेज भी करनी पड़ती.
'लगता है आपके साथ ऑफिस में काम करना सपना रह जायेगा.' उसने मायूस होते हुए कहा. मैंने आशु की ठुड्डी पकड़ के ऊपर उठाई और उसकी आँखों में ऑंखें डाले कहा; 'ये अकेला ऑफिस तो नहीं है ना जहाँ हम दोनों साथ काम कर सकते हैं, ये नहीं तो कोई दूसरा ऑफिस सही.'
पर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. करीबन एक हफ्ते बाद एक और एम्प्लोयी ने बॉस के काइयाँपन से तंग आ कर रिजाइन कर दिया. उसी दिन सर ने मुझे अपने केबिन में बुलाया और कहा;
बॉस: सागर मैं तुम्हारी सैलरी रेज कर रहा हूँ, लेकिन अगले महीने से!
मैं: ठीक है सर...थैंक यू!
मैं ख़ुशी-ख़ुशी बहार आया और अपना काम करने लगा की तभी मैडम आ गईं; 'अरे पार्टी कब दे रहे हो?'
'अगले महीने मॅडम ... सैलरी अगले महीने से बढ़ेगी!'
'ये ना!! सच्ची बहुत कंजूस हैं! चलो कोई बात नहीं अगले महीने पार्टी पक्की! अच्छा सुनो...वो प्रोजेक्ट के डिटेल आ गई हैं मेरे पास तो उस पर डिस्कशन करना है, लंच के बाद| ठीक है?
'जी मॅडम'
मैडम के जाते ही मैंने आशु को कॉल किया और उसे खुशखबरी दी और उसे नए प्रोजेक्ट के बारे में भी बताया. 'अभी के अभी मैडम को कॉल कर और कॉफ़ी पीने के बहाने कॉलेज के आस-पास बुला और उनसे जॉब की बात छेड़ और जैसे समझाया था वैसे ही बात करना.' ये सुन कर आशु बहुत खुश हुई और उसने तुरंत ही मैडम को फ़ोन मिलाया और उसके कुछ देर बाद मैडम भी निकल गई. आगे जो कुछ हुआ उसके बारे में आशु ने मुझे खुद बताया;
आशु: हाई मॅडम!
नितु मैडम: हाई!!!
दोनों एक टेबल पर बैठ गए और मॅडम ने दो कॉफ़ी आर्डर की.
आशु: आई एम सॉरी टू बोदर यू मॅडम!
नितु मैडम: ओह नो नो नो… दॅट इज ओके! I अल्वेज लूक फॉर रिजन टू इस्केप फ्रॉम ऑफिस! सो व्हॉट डू यू डू? व्हेअर डू यू स्टे?
आशु: आई एम a बी कॉम स्टूडेंटअँड आई लिव्ह इन दीं हॉस्टेल नियरबाय. आई अक्च्युअली निड योवर हेल्प. उमम्म्म...…आई एम अक्च्युअली लूकिन फॉर सम वर्क. अक्च्युअली…उमम्म्म...…. आई डोन्ट वांट टू बी a बरडन ऑन माई फॅमिली…आई थोट आई कॅन … यू नो अर्न समथिंग…. अँड आई अर्न फ्रॉम दीं एक्सपिरियंस… कॅन यू हेल्प मी फाइन अ पार्ट टाइम जॉब? लाईक स्यातर्डे अँड संडे… शायद इन योवर कंपनी? हिअर इज माई १० अँड १२ मार्कशिट! (आशु ने बहुत सोच-सोच कर और घबराते हुए बोला.)
ये सुन कर मैडम कुछ सोच में पड़ गईं और फिर बोलीं;
नितु मैडम: ओके जॉईन मी फ्रॉम स्याटर्डे! आई ह्यावं a प्रोजेक्ट अँड I वाज थिंकइनg ऑफ समवन ऑफ योवर क्यालीबर टू वर्क विद. बट, स्टीपेंड विल् बी १,०००/- ओन्ली, सिन्स यू आर नॉट जोईनिंग अस फॉर ६ डे अ वीक!
आशु: नो प्रॉब्लेम मॅडम, दॅट इज नॉट एन इशू. शुक्रिया मॅडम! शुक्रिया!!!!
लंच के बाद जब मैडम आईं तो वो बहुत खुश लग रहीं थीं, उन्होंने मुझे और रेखा को अपने केबिन में बुलाया.
नितु मैडम: एक लड़की और हमें ज्वाइन कर रही है, पर वो सिर्फ शनिवार और रविवार ही आ पायेगी.
रेखा: क्यों मॅडम?
नितु मैडम: यार! काम ज्यादा है और यहाँ कोई भी नहीं है जो पी. पी. टी. और एक्सेल पर फटाफट काम करता हो. ये लड़की अभी स्टूडेंट है और कुछ काम सीखना चाहती हे. सागर जी आप रविवार आ पाओगे? क्योंकि मंडे टू शनिवार तो ऑफिस का काम ही चलेगा पार्ट टाइम में आप दोनों काम करो तो मैं आपको कम्पेन्सेट भी करवा दुंगी.
मैं: ठीक है मॅडम ... नो प्रॉब्लेम.
राखी: ठीक है मॅडम ... कोई दिक्कत नही.
शाम को जब मैं और आशु मिले तो आज मैंने उसे कस कर अपनी बाहों में भर लिया. आशु को समझते देर ना लगी की उसकी नौकरी पक्की हो गई हे. मैंने उसे कुछ बातें साफ की, सब के सामने उसे मुझसे मेरा नाम ले कर बात करनी है और किसी को जरा भी शक नहीं होना चाहिए की हम दोनों एक दूसरे को जानते हैं.ये सुन कर आशु बहुत एक्साइट हो गई! कुछ दिन और बीते और आखिर शनिवार आ ही गया. आशु ने अपने हॉस्टल में आंटी जी से बात कर ली और उन्हें वही तर्क दिया जो उसने नितु मैडम को दिया था. आंटी जी ने बात कन्फर्म करने के लिए मुझे कॉल भी किया और मैंने उन्हें विश्वास दिला दिया की आशु कोई गलत काम नहीं कर रही है.पर उन्हें ये नहीं बताया की वो मेरी ही कंपनी में काम करेगी. शनिवार सुबह मैं जल्दी से ऑफिस पहुँच गया.ठीक १० बजे आशु की एंट्री हुई. नारंगी रंग के सूट में आज आशु क़यामत लग रही थी.
आशु को देखते ही ये बोल अपने आप मेरे मुँह से निकलने लगे;
'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, जैसे
खिलता गुलाब, जैसे
शायर का ख्वाब, जैसे
उजली किरन, जैसे
बन में हिरन, जैसे
चाँदनी रात, जैसे
नरमी बात, जैसे
मन्दिर में हो एक जलता दिया. हो!'
मेरी बगल में ही राखी खड़ी थी और ये गाना सुनते ही मुझे कोहनी मारते हुए बोली; 'क्या बात है सागर जी?!!' अब मुझे कैसे भी बात को संभालना था तो मैंने बात बनाते हुए कहा; 'सच में यार ये हूर-परी कौन है?'
'पता नहीं! चलो न चल के इंट्रो लेते हैं इसका.' राखी ने खुश होते हुए कहा.
'ना यार! कहीं बॉस की कोई रिश्तेदार निकली तो सर क्लास लगा देंगे दोनों की.' अभी हम दोनों ये बात कर ही रहे थे की आशु के ठीक पीछे से नितु मैडम और सर आ गये. और उन्हें देख कर हम दोनों अपने-अपने डेस्क पर चले गये. मैडम ने बॉस से आशु का इंट्रो कराया और बताया की प्रोजेक्ट के लिए आशु ने 'एज अ ट्रेनी' ज्वाइन किया हे. फिर मैडम ने मुझे और राखी को बुलाया और आशु से इंट्रो कराया; 'आशु ये दोनों आपके टीम मेट्स हैं, राखी और सागर' आशु ने राखी से हाथ मिलाया और मुझे हाथ जोड़ कर नमस्ते कहा. ये देख कर राखी के चेहरे से हँसी छुप नहीं पाई और उसे हँसता देख मैडम ने उससे पूछा भी की वो क्यों हँस रही है पर वो बात को टाल गई. 'और सागर ये हैं अश्विनी, फर्स्ट ईयर कॉलेज स्टूडेंट हैं.' अब मैंने भी अपनी हँसी किसी तरह छुपाई और बस 'नमस्ते' कहा. ये देख कर आशु के चेहरे पर भी मुस्कराहट आ गई. 'अरे हाँ..आपकी डायरी इन्हीं ने लौटाई थी.' मैडम ने मुझे डायरी वाली बात याद दिलाई| 'ओह्ह! रियली!!! शुक्रिया अश्विनी जी!!' मैंने मुस्कुरा कर आशु को थैंक यू कहा.
मेरा आशु को अश्विनी कहने से उसे थोड़ा अटपटा सा लगा जो उसके चेहरे से साफ़ झलक रहा था.खेर मैडम ने आशु को ब्रीफ करने के लिए हम दोनों तीनों को अपने केबिन में बुलाया और आशु को राखी के साथ प्लानिंग और एनालिसिस में लगा दिया और मेरा काम इनकी प्लानिंग और एनालिसिस के हिसाब से पी. पी. टी. और एक्सेल शीट तैयार करना था. अभी चूँकि मुझे पहले बॉस का काम करना था तो मैं उसी काम में लगा था. पर मेरी नजरें काम में कम और आशु पर ज्यादा थी. आशु को वादा करने से पहले मैं कभी-कभी चाय-सुट्टा पीता था. उसी वक़्त राखी भी आ जाया करती थी पर वो सिर्फ चाय ही पीती थी. आज भी वही हुआ, राखी खुद भी आईं और साथ में आशु को भी ले आई.
राखी: अरे मुझे क्यों नहीं बोला की आप चाय पीने जा रहे हो?
मैं: आप लोग बिजी थे! (मैंने आशु की तरफ देखते हुए कहा और मुझे अपनी तरफ देखता हुआ पा कर आशु का सर शर्म से झुक गया.)
राखी: अच्छा?? (मेरे आशु को देखते हुए राखी ने जान कर अच्छा शब्द बहुत खींच कर बोला. जिसे सुन आशु की हँसी छूट गई.)
मैं: और बाताओ क्या-क्या सीखा रहे हो आप अश्विनी जी को? (मैंने इस बार राखी की तरफ देखते हुए कहा.)
राखी: घंटा! मैडम तो बोल गई की प्लानिंग करो एनालिसिस करो पर साला करना कैसे है ये कौन बताएगा? (राखी के मुँह से 'घंटा' शब्द सुन आशु हैरान हो गई.)
मैं: तो २ घंटे से दोनों कर क्या रहे थे?
राखी: कुछ नहीं.... कुछ इधर-उधर की बातें.आपकी बातें!!! (राखी ने मुझे छेड़ते हुए कहा.)
मैं: मेरी बातें?
राखी: और क्या? जब मैं पहलीबार ज्वाइन हुई तब मुझसे तो आपने कभी बात नहीं की? और अश्विनी को देखते ही गाना निकल गया मुँह से?
ये सुन कर मैं जानबूझ कर शर्मा गया और आशु हैरानी से आँखें बड़ी करके मुझे देखने लगी.
आशु: कौन सा गाना गए रहे थे सर?
राखी: एक लड़की को देखा तो....
मैं कुछ नहीं बोला और एक घूँट में सारी चाय पी कर वापस ऊपर आ गया, और मुझे जाता हुआ देख राखी ठहाके मार के हँसने लगी. आज आशु के मुझे 'सर' कहने पर मुझे एक अजीब सी ख़ुशी हुई और वो भी शायद समझ गई थी. लंच के बाद मैं दोनों के साथ रिसर्च, प्लानिंग और एनालिसिस में उनके साथ लग गया.मैंने दोनों को पुराना डाटा दिखाया और उसकी मदद से रेश्यो निकालना बता कर मैं अपने डेस्क पर वापस आ गया.कुछ देर बाद नितु मैडम भी आईं और वो भी मेरे इस बदले हुए बर्ताव से थोड़ा हैरान थी. उन्होंने मुझे दोनों की मदद करते हुए देख लिया था इसलिए मेरी सराहना करने से वो नहीं चूँकि; 'अरे भैया तुम दोनों से ज्यादा होशियार है सागर! कुछ सीखो इनसे, अपना काम तो करते ही हैं साथ-साथ दूसरों की मदद भी करते हैं.' ये बात मैडम ने रस्तोगी जी को सुनाते हुए कही.
शाम को जब जाने का नंबर आया तो मैं सोचने लगा की कैसे आशु को घर छोड़ूँ? अब मैं सामने से जा कर तो पूछ नहीं सकता था इसलिए मुझे कुछ न कुछ तो सोचना ही था! तभी मैडम ने उसे खुद ही लिफ्ट ऑफर कर दी और मैं बस आशु और मैडम को जाता हुआ देखता रहा. राखी पीछे से आई और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोली; 'आज लिफ्ट मिलेगी?' मैंने बस मुस्कुरा कर हाँ कहा और फिर आशु की जगह राखी को अपने पीछे बिठा कर उसके घर छोडा. मेरे घर पहुँचने के घंटे भर बाद आशु का वीडियो कॉल आया, वो बाथरूम में बैठे हुए खुसफुसाई;
आशु: आई लव यू जानू! उम्म म्म्म म...... मा....!!!!
मैं: क्या बात है बहुत खुश है आज?
आशु: जानू! बर्थडे के बाद आज का दिन मेरे लिए सबसे जबरदस्त था! कल के दिन के लिए सब्र नहीं कर सकती मैं|
मैं: अच्छा जी? जब मुझसे नाराज हुई थी और हमने पहली बार 'प्यार' किया था वो दिन जबरदस्त नहीं था? (मैंने आशु को छेड़ते हुए कहा.)
आशु: वो दिन तो मेरे जीवन का वो स्वरनािम दिन था जिसका बयान मैं कभी कर ही नहीं सकती. उस दिन तो हमने एक दूसरे को समर्पित कर दिया था. हमारा अटूट रिश्ता उसी दिन तो पूरा हुआ था.
मैं: वैसे आज मुझे तुम्हारे 'सर' कहने पर बड़ी अजीब सी फीलिंग हुई! पेट में तितलियाँ उड़ने लगी थी!
आशु: आपका नाम ले कर आपको पुकारने का मन नहीं हुआ, इसलिए मैंने आपको 'सर' कहा. एक बात तो बताइये, आपने सच में मुझे देख कर गाना गाय था?
मैं: हाँ, तू लग ही इतनी प्यारी रही थी की गाना अपने आप मेरे मुँह से निकल गया.
ये सुन कर आशु मुस्कुराने लगी. फिर इसी तरह हँसी-मजाक करते-करते खाने का समय हो गया और खाना मुझे ही बनाना था पर बुरा आशु को लग रहा था. 'हमारी शादी जल्दी हुई होती तो मैं आपके लिए खाना बनाती.' आशु ने नाराज होते हुए कहा. 'जान! शादी के बाद जितना चाहे खाना बना लेना पर तब तक थोड़ा-बहुत एडजस्ट तो करना पड़ता हे.' मैंने आशु को मनाते हुए कहा.
'वैसे कितना रोमांटिक होगा जब आप और मैं एक साथ एक ही ऑफिस जायेंगे?! स्टाफ के सारे लोग हमें देख कर जल-भून जायेंगे!' आशु की बात सुन कर मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गई.
'लोगों को जलाने में बहुत मजा आता हैं तुम्हें?' मैंने पूछा.
'अब आपके जैसा प्यार करने वाला हो तो जलाने में मजा तो आएगा ही.' आशु ये कहते हुए हँसने लगी. तभी बहार से सुमन की आवाज आई; 'अरे अब क्या बाथरूम में बैठ कर एकाउंट्स के सवाल हल कर रही है?! जल्दी बहार आ, खाना लग गया हे.' आशु ने हड़बड़ा कर कॉल काटा और मुझे बहुत जोर से हँसी आ गई. बाद में उसका मैसेज आया; 'बहुत मजा आता है ना आपको मेरे इस तरह छुप-छुप कर आपसे बात करने में?!' मैंने भी जवाब में हाँ लिखा और फ़ोन रख कर खाना बनाने लगा. खाना खा कर बड़ी मीठी नींद सोया और सुबह जल्दी से तैयार हो गया, सोचा की आज आशु को मैं ही ऑफिस ड्राप कर दूँ पर फिर याद आया की किसी ने देख लिया तो? तभी दिमाग में प्लान आया की मैं आशु को बस स्टैंड पर छोड़ दूँगा वहाँ से वो पैदल आ जायेगी. पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. आशु को मैडम ही लेने आ रही थी. मैं अपना मन मार के ऑफिस पहुँचा, पर वहां कोई नहीं था तो मैं नीचे चाय पीने लगा, तभी वहां राखी आ गई और वो भी मेरे साथ चाय पीने लगी.
नितु मैडम और आशु एक साथ गाडी से निकले और हमारे पास ही आ कर खड़े हो गए और चाय पीने लगे. चाय पी कर हम सब एक साथ ऊपर आये और सीधा मैडम के केबिन में बैठ गये. कल के काम पर डिस्कशन के बाद मैडम ने तीनों को अलग-अलग बिठा दिया और राखी को प्लानिंग और आशु को एनालिसिस का काम दे दिया. मैं बैठा कुछ पी. पी. टी. स्टडी कर रहा था. मैडम भी मेरे पास आ गईं और कल जो कुछ थोड़ा बहुत काम हुआ था उसके ग्राफ्स बनाने में मदद करने लगी. मैडम को पमरे साथ बैठा देख आशु को अंदर से जलन होने लगी थी. वो बहाने से बार-बार आ रही थी और मैडम से कुछ न कुछ पूछ रही थी. हालाँकि आशु बहुत कोशिश कर रही थी की उसकी जलन मुझ पर जाहिर ना हो पर मैं उसकी जलन महसूस कर पा रहा था. आखरी बार जब आशु मैडम से कुछ पूछने आई तो मैडम उठ खड़ी हुई; 'सागर आप ये पी. पी. टी. का आर्डर ठीक करो मैं जरा अश्विनी को एक बार सारा काम समझा दूँ वरना बेचारी सारा टाइम इधर-उधर भटकती रहेगी.”
आशु को आधा घंटा समझाने के बाद मैडम ने मुझे उसकी हेल्प करने को कहा और खुद बाहर चली गई. अब मैंने आशु के साथ बैठ कर उसे कुछ फाइल्स वगैरह के बारे में बताया, क्योंकि उसे कंप्यूटर उसे थोड़ा-बहुत ही आता था जो भी उसने अभी तक कॉलेज में सीखा था. आज मैंने उसे माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस के बारे में बताया और टाइप करने के लिए कुछ शॉर्टकट बताये. ये सब आशु ने ध्यान से सुना और अपने राइटिंग पैड में लिख लिया. जब मैं उठ के जाने लगा तो आशु ने मेरा हाथ चुपके से पकड़ लिया और मुझे खींच कर बिठा दिया. वो खुसफुसाती हुई बोली; 'कहाँ जा रहे हो आप? बैठो ना थोड़ी देर और!' मैं भी बैठ गया पर हम दोनों में कोई बात नहीं हो रही थी. बस एक दूसरे को देख रहे थे. आशु ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया था और उसके हाथों की तपिश मुझे मेरे ठन्डे हाथों पर होने लगी थी. उसके होंठ थर-थरा रहे थे और मेरा मन भी उन्हें चूमने को व्याकुल था! आज अगर ऑफिस नहीं होता तो हम दोनों मेरे घर पर एक दूसरे के पहलु में होते!
'यहाँ कोई एकांत जगह नहीं है जहाँ आप और मैं थोड़ा टाइम.....' आशु इतना कहते हुए रुक गई. मुझे उसका उतावलापन देख कर हँसी आ रही थी; 'जान! ये ऑफिस है मेरा! यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता, किसी ने देख लिया ना तो ???'
ये सुन कर आशु का दिल टूट गया, 'अच्छा चाय पियोगी?' ये सुन कर आशु की आँखों में चमक आ गई. हम दोनों उठ के नीचे आये और मैंने आशु को मेरी वाली स्पेशल चाय पिलाई. हम अभी चाय पी ही रहे थे की राखी आ गई; 'अच्छा जी! मेरे से चोरी-छुपे चाय पी जा रही है?' उसने हम दोनों को छेड़ते हुए कहा.
'मैंने सोचा की आज अश्विनी जो को सागर वाली स्पेशल चाय पिलाई जाये.' मैंने बात बनाते हुए कहा.
'वो तो बिना सिगेरट के पूरी नहीं होती!' ये कहते हुए राखी ने चाय के साथ एक सिगरेट ली और कश ले कर मेरी तरफ बढ़ा दी. ये देख कर आशु हैरान हो गई. उसे लगा शायद मैंने उससे किया वादा तोड़ दिया हे.
'सॉरी! मैंने छोड़ दी.' मेरा जवाब सुन कर राखी हैरान हो गई?
'हैं??? आप ही ने तो इलाइची वाली चाय के साथ ये कॉम्बो बनाया था और अब खुद ही नहीं पी रहे?' राखी की बात सुन कर आशु दुबारा हैरान हो गई.
'पर अब छोड़ दी. अब जीने की आदत हो गई हे.' ये मैंने आशु को देखते हुए कहा. इस बार तो राखी ने मेरी चोरी पकड़ ही ली; 'अच्छा जी!!! अश्विनी जी को खुश करने को कह रहे हो!' ये सुन कर हम तीनों ठहाका लगा कर हँसने लगे. बस इसी तरह हँसी-मजाक में वो दिन निकला और मैडम ने ही राखी और आशु को घर छोड़ा और मैं अकेला घर वापस आ गया.
इसी तरह आशु और मेरे प्यार भरे दिन बीतने लगे, सोमवार से शुक्रवार उससे शाम को मिलना और फिर शनिवार और इतवार साथ-साथ ऑफिस में पूरा दिन गुजारना. घर से फ़ोन आता तो मैं कह देता की मैं नहीं आ पाउँगा क्योंकि बॉस छुट्टी नहीं दे रहा हे. आशु के आने के बाद ऑफिस में एक ग्रुप बन गया था. मैं, नितु मैडम, राखी और आशु का एक ग्रुप और बाकी लोगों का एक ग्रुप! मैडम भी आशु के काम से बहुत खुश थीं और प्रोजेक्ट भी आधा खत्म भी हो गया था. मैडम तो इतनी खुश थीं की उन्होंने कहा की आशु की ग्रेजुएशन के बाद वो हमारा ऑफिस ही ज्वाइन कर ले.पर ये तो मेरा मन जानता था की आशु की ग्रेजुएशन के बाद तो हम दोनों ही यहाँ नहीं होंगे!
आज का दिन बहुत अलग था. चूँकि आज शनिवार था तो आज आशु भी ऑफिस आई हुई थी. ११ बजे राखी ऑफिस में आई और उसके हाथ में मिठाई का डिब्बा था. सबसे पहले बॉस को और फिर मैडम को उसने खुशखबरी दी की उसकी शादी तय हो गई हे. ऑफिस में सब का उसने मुंह मीठा कराया और मेरा नंबर आखरी था. आशु से प्यार होने से पहले मैं राखी को बहुत पसंद करता था. पर कभी उससे काम के इलावा कोई बात नहीं की. हम दोनों ने जो भी थोड़ा बहुत खुल के बातें की वो सब राख के मुंबई मिलने के बाद था. शायद इसीलिए उसकी शादी की बात सुन कर थोड़ा दुःख हुआ! पर अगले ही पल मुझे आशु का हँसता हुआ चेहरा दिखा और मुझे होश आया की मेरे पास तो आशु का प्यार है! मन में ख़ुशी थी इस बात की, की राखी की शादी हो रही है पर दुःख शायद इस बात का था की पिछले कुछ दिनों में हम जो थोड़ा बहुत खुल कर बातें करने लगे थे वो अब कभी नहीं हो पायेगी! मैं अपना ये गम छुपाये हुए था पर शायद आशु समझ चुकी थी. लंच में हम दोनों नीचे चाय पीने गए थे की तभी आशु ने मुझे एक तरफ अकेले में आने को कहा.
आशु: राखी वही लड़की है न जिसे आप बहुत प्यार करते थे?
मैं: पसंद करता था!
आशु: समझ सकती हूँ की आपको कैसा लगा होगा आज!
मैं: आई एम हॅपी फॉर हर!
आशु: आई नो, बट व्हॉट अबाऊट योवर इनर वाऊंड! इट मस्टबी हर्टींग यू फ्रॉम इंसाईड?!
मैं: इट दिड हर्ट, बट देन आई सॉ योवर ब्युटीफुल स्माइलींग फेस अँड रिअलाईज आई ह्यावं दीं मोस्ट लविंग पर्सन विद मी.
ये सुन कर आशु के गाल शर्म से लाल हो गये. आगे हम कुछ बातें करते उससे पहले ही राखी आ गई और उसकी और आशु की बातें शुरू हो गई. दोनों कपड़ों को ले कर कुछ बातें कर रही थीं, मैंने आखरी घूँट चाय का पिया और फिर वहाँ से निकल आया. वो पूरा दिन आशु मेरे आस-पास मंडराती रही, किसी न किसी बहाने से मुझसे कुछ भी पूछने आती और मुझे हँसाती बुलाती रहती. उस दिन आशु को नजाने क्या सूझी की उसने मैडम से जल्दी जाने की बात बोली, अब मैडम तो उसे घर छोड़ने के लिए निकलना चाहती थीं क्योंकि उनको बॉस के सामने काम करना बिलकुल पसंद नहीं था.
बॉस हमेशा उनपर धौंस जमाते और काम करवाते रहते थे. इसलिए मैडम इसी फिराक में रहती की कहीं न कहीं किसी न किसी बहाने से ऑफिस से निकल जाये. पर आशु ने बड़ी शातिर चाल चली; 'मॅडम वो मुझे आझाद बाग मार्किट जाना है! वहाँ आपकी कार कैसे जाएगी? वहाँ तो पार्किंग भी नहीं मिलती? आप अगर सर (मेरी तरफ इशारे करते हुए) से कह दें तो वो मुझे वहाँ छोड़ देंगे?!' आशु ने जब मेरी तरफ इशारा किया तब मैं उसी तरफ देख रहा था पर जैसे मैडम ने मेरी तरफ देखा मैंने तुरंत नजरें फेर ली. मेरी खुशकिस्मती की मैडम समझ नहीं पाईं और उन्होंने मुझे आवाज लगा कर बुलाया; 'सागर जी! जरा हमारी अश्विनी की मदद कर दो. उसे आझाद बाग मार्किट जाना है, आप उसे वहाँ छोड़ दो.'
ये सुन कर बिलकुल हैरान था; 'पर मॅडम वहाँ तो इस वक़्त बहुत भीड़ होती है?'
'हाँ जी तभी तो आपको कह रही हूँ, आप अश्विनी को वहाँ छोड़ कर घर निकल जाना.' मैडम ने कहा.
'पर मॅडम ...वो सर???' मैने थोड़ी चिंता जताई.
'कौन सा आप पहली बार जल्दी निकल रहे हो, मैं कह दूँगी की आज आपकी टूशन क्लास थोड़ा जल्दी थी.' मैडम की बात सुन कर अश्विनी का मन प्रसन्न हो गया और उसकी ख़ुशी उसके चेहरे से झलकने लगी. मैंने अपना बैग उठाया और हम दोनों नीचे आने को उतरने लगे. पर मैं जानबूझ कर चुप रहा ताकि मैडम को ये ना लगे की ये हमारी मिली-भगत हे. नीचे आ कर मैंने आशु से कहा; 'बहुत दिमाग चलने लगा है आज कल तेरा?' आशु बस हँसने लगी और आ कर मेरी बाइक पर पीछे बैठ गई. 'अच्छा जाना कहाँ है?' मैंने पूछा. 'बाज़ार जायेंगे और कहाँ?' आशु ने थोड़ा इठलाते हुए जवाब दिया. मैंने बाइक उसी तरफ भगाई, वहाँ पहुँच कर आशु ने मुझे एक दूकान के सामने रुकने को कहा. मेरा हाथ पकड़ के मुझे वो अंदर ले गई और मेरे लिए शर्ट पसंद करने लगी. पर बेचारी जल्दी ही मायूस हो गई; 'क्या हुआ जान!' मैंने उससे प्यार से पूछा तो उसने बताया की जो स्टिपेन्ड मिला था उससे वो मेरे लिए एक शर्ट लेना चाहती थी पर शर्ट की कीमत १२००/- से शुरू थी. 'अरे पगली! ये तो स्टिपेन्ड है सैलरी थोड़े ही?! जब सैलरी मिलेगी तब ले लेना शर्ट, अभी हम तेरे लिए कुछ बालियाँ खरीदते हे. पर आशु का मन नहीं था इसलिए मैंने उसे बहुत मस्का लगाया और उसके लिए मैंने बहुत सुंदर इमीटेशन वाली जेवेलरी खरीदवाई. पैसे आशु ने ही दिए और अब वो बहुत खुश थी; 'पहली सैलरी जब मिलेगी ना तो आपके लिए मैं बिज़नेस सूट खरीदूँगी!' उसने मुझे चेताया और मैंने भी उसकी बात में हाँ मिला दी. उस दिन उसे मैंने ठीक ६ बजे उसके हॉस्टल छोड़ दिया और घर वापस आ गया.मन अब हल्का था और इसका सारा श्रेय आशु का जाता हे. अगर वो मेरी जिंदगी में ना होती तो मैं अभी कहीं बैठ कर दारु पी रहा होता.
कुछ और दिन बीते और आखिर मेरा जन्मदिन आ गया पर वो आया रविवार के दिन! शुक्रवार को ही आशु ने मुझे कह दिया था की मैं रविवार की छुट्टी ले लूँ पर जब मैंने नितु मैडम से छुट्टी मांगी तो उन्होंने कहा; 'सागर जी! रविवार को तो वीडियो कॉन्फ्रेंस है और हम सबको वहीँ बैठना है और आप ही तो उन्हें ग्राफ्स और पी. पी. टी. समझाओगे! ये (बॉस) तो उस दिन यहाँ होंगे नहीं!' अब मैं आगे क्या कहता इसलिए मैंने उनकी बात मान लीं और आशु को लंच में फ़ोन कर के बता दिया. आशु का तो मुँह बन गया और वो मुझसे 'थोड़ा' नाराज हो गई. अगले दिन जब वो आई तब भी मुझसे कुछ नहीं बोली और मुझे गुस्सा दिखाते हुए मुँह इधर-उधर झटकती रही! उस दिन बॉस ने सारा काम मेरे मत्थे थोप दिया था और खुद रस्तोगी जी और बाकियों को ले कर इलाहबाद निकल गये. मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर यहि सोच कर संतोष कर लिया की कम से कम आशु तो मेरे सामने है ना. अब उसे मनाने के लिए मैं ही उसकी डेस्क के आस-पास मंडराता रहा.
'जान! मेरा प्यार बच्चा! मुझसे नाराज है?' मैंने सबसे नजर बचाते हुए आशु से तुतलाती हुई जुबान में कहा. ये सुन कर आशु के चेहरे पर हँसी छा गई. 'जानू! प्लीज कल छुट्टी ले लो, आपका बर्थडे अच्छे से सेलिब्रेट करना है!' आशु ने बहुत सारा जोर दे कर कहा. 'बाबू! मैडम ने कहा है की कल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग है और हम तीनों आना हे. इसलिए मुझे तो क्या आपको भी छुट्टी नहीं मिलेगी. ऐसा करते हैं की ऑफिस के बाद कहीं बाहर चलते हैं!' मैंने आशु को समझाते हुए कहा. 'पर हॉस्टल में क्या कहूँगी?' आशु ने पूछा. अब इसका तो कोई इलाज नहीं था मेरे पास! 'एक आईडिया है! आज जा के आंटी से कह देना की कल तुम्हें गाँव जाना है, मैं तुम्हें ठीक ७ बजे लेने आऊँगा और फिर तुम अपना छोटा सा बैग मेरे घर पर रख देना. उसके बाद ऑफिस और फिर बाद में पार्टी!' ये सुन कर आशु इतनी खुश हुई की उसने मुझे गले लगाने को अपने हाथ खोल दिया पर जब उसे एहसास हुआ की वो ऑफिस में है तो उसने ऐसे जताया जैसे वो अंगड़ाई ले रही हो.
अगले दिन सारा काम प्लान के हिसाब से हुआ, मैं आशु को लेने अपनी बाइक पर हॉस्टल पहुँचा और वो सुमन को बाय बोल कर मेरे साथ निकल पडी. हमने घर पर आशु का बैग (जिसमें आशु जब गाँव जाती थी तो कुछ किताबें ले जाय करती थी.) रखा और फिर मैंने कपडे बदले और दोनों ऑफिस आ गये. आज मैंने आशु के सामने पहली बार शर्ट और टाई बांधी थी. शर्ट अंदर टक थी और टाई लटक रही थी. आशु का मन बईमान हो रहा था और वो बार-बार सब की नजरें बचा कर मुझे कभी किस करने का इशारा, तो कभी आँख मार देती. जब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग शुरू हुई तो मैडम ने सबसे पहले अपना ओपनिंग स्टेटमेंट दिया और उसके बाद आशु और राखी ने अपने एनालिसिस के बारे में बताया और मैं उन्हीं के साथ खड़ा हो कर ग्राफ्स दिखा रहा था. इसी एनालिसिस और ग्राफ्स के साथ मैंने नितु मैडम के क्लोजिंग स्टेटमेंट की पी. पी. टी. चला दी.
प्रेजेंटेशन के बाद मैडम बहुत खुश थीं और वो राखी और आशु के गले लग कर अपनी ख़ुशी प्रकट कर रही थी. पर मुझसे वो गले नहीं मिलीं बल्कि हैंडशेक किया और बधाई दी! “गाईज आई ह्याड लाईक टू सेलिब्रेट दिस डे, नॉट ओन्ली वी नेल दीं प्रेझेंटेशन बट इट्स अवर बिलवेड सागर'ज बर्थ डे!” मैडम की बातें सुन कर मैं हैरान हो गया और अचरज भरी आँखों से उन्हें देखने लगा.
“यू थोट यू कॅन इस्केप वीदाऊट गिविंग अस ट्रीट?? हम्मंन??” मैं अब भी हैरान था और इधर राखी आ कर मेरे गले लग गई और 'हॅपी बर्थ डे डिअर' बोली. मैं अब भी हैरान था की मैडम को कैसे पता? 'मॅडम, बट हाऊ दिड यू …..” मेरी बात मैडम ने पूरी होने ही नहीं दी और बोल पड़ीं; 'आई एम रियली सॉरी! एक ही जगह काम करते हुए हमें ३ साल होगये पर आज तक मैंने कभी आपको बर्थडे विश नहीं किया, न कभी मैंने आपसे पूछा न कभी इस बारे में सोचा पर उस दिन अचानक से मेरी नजर आपकी फाइल पर पड़ी और आपका रेजुम पढ़ा तब पता चला. सच में हम लोग अपनी जिंदगी में इतने व्यस्त हैं की अपने करीबी लोगों के, अपने कलिग के बर्थडे तक याद नहीं रखते.खेर अब ऐसा नहीं होगा और आज की पार्टी मेरी तरफ से!' मेरा ध्यान अब भी मैडम की बातों पर था और आशु मेरी तरफ देख कर हैरान थी. मैडम मेरे पास आईं और मुझे 'हॅपी बर्थ डे सागर जी!' बोला और गले लग गईं, मैं अब भी कोई रियाक्ट नहीं कर पा रहा था. मेरे मुँह से बस 'शुक्रिया मॅडम' निकला.
नितु मैडम को मेरे गले लगा देख आशु को जलन होने लगी और वो मेरे पास आई 'हॅपी बर्थ डे सर!!!' बोल कर मेरे गले लग गई. मैंने भी बहुत गर्म जोशी से उसे कस के गले लगा लिया और 'शुक्रिया' बोला. “लेट्स गो टू अ पब!” मैडम ने बड़ी गर्म जोशी में कहा और राखी तुरंत तैयार हो गई पर मैं और आशु अब भी खामोश खड़े थे. 'अश्विनी आप ड्रिंक करते हो?' मैडम ने आशु से पूछा. 'किया तो नहीं मैडम पर आज जरूर करुंगी.' आशु ने भी बड़ी गर्म जोशी से जवाब दिया. 'और आप सागर जी, आज तो आपको भी पीनी होगी!' मैडम ने मुझे हुक्म देते हुए कहा. मैंने नजर बचाते हुए आशु की तरफ देखा तो वो पहले से ही मेरी तरफ देख रही थी और जैसे ही हमारी नजर मिली तो उसने सर हिला कर हाँ कहा. मैंने भी मैडम को जवाब सर हिला कर हाँ कहा.
मैडम ने और मैंने अपनी-अपनी गाड़ियाँ ऑफिस के पार्किंग लोट में ही छोड़ दी और मैंने कैब बुलवाई, मैं ड्राइवर के साथ और बाकी तीनों पीछे बैठ गये. पब का चुनाव मैंने ही किया, ये एक ब्रेवरी थी और यहाँ की बियर बहुत ही मशहूर थी. हम चारों ने दो काउच वाला टेबल पकड़ा, अब मैडम एक काउच पर बैठ गईं और राखी दूसरे काउच पर.बचे मैं और आशु, तो आशु तो मैडम के बगल में बैठने से रही. आखिर वो राखी की बगल में बैठ गई और मैं मैडम के बगल में, ड्रिंक्स मेनू मैडम और मैंने उठाया; 'भई मैं तो ३० मिली चिवागे लूँगी आप लोग देख लो क्या लेना हे.' इतना कह कर मैडम ने मेनू रख दिया.
'मॅडम पहले एक-एक लार्जर बिअर लेते हैं, इट्स देअर स्पेशालिटी अँड आई प्रॉमिस यू आर गोना लव इट!” मैडम ने झट से मेरी बात मान ली और मैंने ४ लार्जर बिअर आर्डर की. 'क्या बात है सागर जी? बड़ी नॉलेज है आपको बीयर्स की?' राखी ने मुझे छेड़ते हुए पूछा. 'कॉलेज के दिनों में कभी-कभी दोस्तों के साथ आता था.' मैंने कहा. जब बियर आई, सबने चीयरररर.. स्स किया और एक-एक सिप लिया तो मैडम की आँखें हैरानी से फटी रह गई. 'सागर जी! यू आर अ जिनियस! मानना पड़ेगा की आपकी ड्रिंक्स के मामले में चॉइस बहुत बढ़िया है!'
राखी भी तारीफ करने से नहीं चुकी; 'सीरियसली सागर जी! ना तो ये कड़वी है ना ही इसकी महक इतनी स्ट्रांग है! मैंने आजतक जितनी भी बियर पि ये वाली उनमें बेस्ट हे.'
'अरे अश्विनी तुम्हें अच्छी नहीं लगी?' मैडम ने अश्विनी से पूछा. 'मॅडम पहली बार के लिए ये एक्सपीरियंस बहुत बढ़िया हे. मैं सोच रही थी की ये बदबू मारेगी और मुझे कहीं वोमिट ना हो जाये पर ये तो बहुत स्मूथ हे.' आशु ने मेरी तरफ देखते हुए कहा. अब खाने की बारी आई तो आशु को छोड़ कर हम तीनों नॉन-वेज निकले. हम सब के लिए तो मैंने चिकन विंग्स मंगाए और आशु के लिए हनी चिल्ली पोटैटो, आज पहली बार उसने ये डिश खाई और उसे पसंद भी बहुत आई. बियर का मग खत्म करते ही, सब पर बियर सुरूर चढ़ने लगा. लाउड म्यूजिक का असर राखी और आशु पर छाने लगा, अगला राउंड फिर से रिपीट हुआ. इस बार तो बियर खत्म होते ही राखी उठ खड़ी हुई और डी.जे. के सामने खड़ी होकर झूमने लगी और गाने पर थिरकने लगी.
दो मिनट बाद वो आशु को भी खींच कर ले गई. बियर का नशा आशु पर थोड़ा ज्यादा ही दिखने लगा और दोनों ने झूमना शुरू कर दिया. गाने अभी अंग्रेजी बज रहे थे, मैं और मैडम अकेले बैठे बस गाने को एन्जॉय कर रहे थे.
कुछ देर बाद मैडम ने पूछा की क्या मैं हार्ड ड्रिंक लूँगा तो मैंने हाँ कह दिया. मैडम ने दो चिवागे ३० मिली मंगाई! हमने चियर्स किया और पहला सिप लिया. मैंने आज पहलीबार इतनी महंगी दारु पि थी और उसका स्वाद वाक़ई में बहुत अच्छा था. बिलकुल स्मूथ और गले से उतरते हुए बिलकुल नहीं जल रही थी. टेस्ट भी बिलकुल स्मूथ... मैं तो उसके सुरूर में खोने लगा था. इतने दिनों बाद दारु मेरे सिस्टम में गई थी और पूरा सिस्टम ख़ुशी में नाच रहा था! मैडम को अब अच्छा नशा हो गया था और वो उठ कर खड़ी हुईं और वेटर को बुला कर उसके कान में कुछ कहा और फिर मेरा हाथ पकड़ के मुझे खड़ा किया. मैडम मुझे जबरदस्ती डांस फ्लोर पर ले गईं और उन्होंने थिरकना शुरू कर दिया. डी.जे. ने आखिर मैडम का गाना बजा दिया; 'आजा माहि... आजा माहि...आ सोनिये वे आके ...' ये सुनते ही मैडम ने जो डांस किया की मैं बस देखता ही रह गया, आशु और राखी भी मैडम के साथ डांस करने लगे. मैडम मेरी तरफ देखते हुए डांस कर रही थी और लिप सिंक कर के गा रही थीं; 'आजा माही... आजा माही... आ सोनेया वे आके अज मेरा गल लग जा तू!' ये सुन कर मुझे बड़ी शर्म लग रही थी. पर आशु का ध्यान इस पर नहीं था.
मैंने भी थोड़ा डांस करना शुरू कर दिया था और तीनों के साथ डांस कर रहा था. अगला गाना बजा; 'एंजल...' और फिर तो मैडम और मैंने मिलके साथ डांस किया. मैडम ने आकर मुझे गले लगा लिया और मेरा हाथ उठा कर अपनी कमर पर रख लिया और अपनी बाहें मेरे गले में डाल दि और हम दोनों थिरकने लगे. आशु ने जब ये देखा तो उसने कुछ रियेक्ट नहीं किया बस मुझे आँख मार दी और अपना डांस चालु रखा. 'माई बेबी’ गो टू.....” मैं और मैडम एक साथ लिप सिंक कर के गा रहे थे. फिर गाने की लाइन आई; 'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया, बैठे ही बैठे मैंने दिल खो दिया!' तो मैडम ने मेरी आँखों में आँखें डालते हुए गाने लगी. मैंने मैडम की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. देता भी क्या? मुझे लग रहा की मैडम तो बस गाना गा रही हैं, सच में मुझसे प्यार का इजहार थोड़े ही कर रहीं हैं! वैसे ये सुनने में रोमांटिक तो लग रहा था पर हम तो पहले ही आशु के हो चुका था.!
अगला गाना चेंज हुआ तो मैडम शर्मा गईं और अपना पेग पीने चली गईं और इधर आशु मेरे पास आ कर नाचने लगी. अगला गाना ये प्ले हुआ; 'गज़ब का है दिन सोचो ज़रा ये दीवानापन देखो ज़रा तुम हो अकेले हम भी अकेले मज़ा आ रहा है कसम से.. कसम से..' बस फिर क्या था मैंने और आशु ने किसी की भी परवाह किये बगैर एक दूसरे को कस कर बाहों में भरा और गाने पर थिरकने लगे.
अब मैडम भी अपना पेग खत्म कर के वापस आ चुकी थीं, मैंने भी धीरे-धीरे आशु से दूरी बना ली और मैडम को शक नहीं होने दिया. अगला गाना बजा; 'थोया-थोया' और अब तक राखी जो लड़कियों वाले ग्रुप में नाच रही थी वो मेरे पास आ गई;
'तूने क्या किया मेरी जान-ए-जा
एक नज़र में ही दिल चुरा लिया
मुझको क्या हुआ कोई जाने न
तुझको देखा तोह होश खो दिया' राखी ने ये लाइन मेरी तरफ ऊँगली करते हुए गाई.अब जब मेरी बारी आई तो मैंने भी गाने की आगे की लाइन गाई;
'तेरी हर नज़र तेरी हर अदा
क्या कहु तुमपे दिल है यह फ़िदा
तुझसे है ज़मीन तुझसे आसमान
 
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'ऑफिस का एक प्रोजेक्ट है, बीच में छोड़ के आया हूँ और ऊपर से आशु भी यहीं है! इसलिए कुछ मेल्स फॉरवर्ड करने थे!' मैंने कहा और फ़ोन जेब में रख कर वापस बैठ गया.'तो आज कहाँ का प्रोग्राम है?' निशा ने मुझसे पुछा?
'यहाँ पर किले हैं देखने के लिए, जंतर मंतर है और हाँ जल महल भी हे.' मैंने कहा तो निशा बोली; 'किले देखने कल चलेंगे! कल रात की थकावट अब भी हे.' हम तैयार हो के निकले और पहले जंतर-मंतर गये. आगे-आगे मैं और आशु थे एक दूसरे का हाथ थामे और पीछे अक्षय और निशा. अचानक से निशा आई और आशु के कंधे पर हाथ रख कर उसे मेरे से दूर ले गई. दोनों एक तरफ जा कर सेल्फी खींचने लगी. मैं अकेला था तो मैं चुपचाप चल रहा था और वहाँ जो कुछ लिखा था उसे पढ़ रहा था. तभी पीछे से अक्षय आ गया और मुझे कंपनी देते हुए वो भी पढ़ने लगा. दोनों लडकियां फोटो खींचते हुए बातें कर रहीं थी और मैं और अक्षय बेंच पर चुपचाप बैठे थे.
निशा: अश्विनी....तू और मैं बेस्ट फ्रेंड्स हैं ना?
आशु: हाँ पर क्यों पुछा?
निशा: देख तू ने मेरे लिए इतना कुछ किया, अपने बॉयफ्रेंड के साथ यहाँ मेरा बर्थडे सेलिब्रेट करने आई और....और वो भी कितना अंडरस्टैंडिंग है! तेरी कितनी केयर करता है, तुझे कितना प्यार करता है!
आशु: क्यों अक्षय तुझे प्यार नहीं करता?
निशा: वो तो साला बावला है! कल देख कितना अच्छा मौका था. हरामखोर ने दो-दो वायग्रा खाईं पर साले ने कुछ किया ही नहीं?! कुत्ता मेरे से पहले ही झड़ गया और मैं बेचारी तड़पती रही! जब दुबारा इसका खड़ा हुआ तब मुझे उठाने आया तो मैंने भी इसकी नितंब पर लात मार दी, भोसड़ी का लिंग हिला कर सो गया रात को! पर तेरे तो मजे हैं! पूरी रात सागर जी ने तेरी जी तोड़ कुटाई की! तेरा तो जीवन धन्य हो गया! काश की मुझे भी कोई ऐसा मिला होता!
आशु: अब मैं हूँ तो नसीब वाली पर तू मेरी किस्मत को नजर मत लगा! तू ऐसा कर छोड़ दे इस लड़के को!
निशा: वही तो नहीं कर सकती ना! ये साला बहुत पैसे वाला है और ऊपर से मेरे कण्ट्रोल में है, मेरी उँगलियों पर नाचता है ये!
इतना कह कर निशा कुछ सोचने लगी और फिर बोली;
निशा: सुन? ..... आज मेरा बर्थडे है....मैं अगर तुझसे कुछ माँगू तो तू मना तो नहीं करेगी?
आशु: यार मेरे पास है ही क्या तुझे देने को?
निशा: नहीं तू दे सकती हे.
आशु: अच्छा? चल बोल क्या चाहिए मेरी दोस्त को? (आशु ने निशा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.)
निशा: मुझे बस आज की रात सागर जी के साथ गुजारनी हे.
ये सुनते ही आशु के जिस्म में आग लग गई. उसने जो हाथ अभी तक निशा के कंधे पर रखा था वो झटके से हटाया और उसे जोर से धक्का देते हुए बोली;
आशु: तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसा कहने की?
निशा: देख प्लीज...तू...
आशु: (बीच में बात काटते हुए) मुझे कुछ नहीं सुनना, तेरी गन्दी नियत मुझे आज पता चल गई. आज के बाद मुझे कभी अपनी शक्ल मत दिखाइओ और खबरदार जो तू उनके आस-पास भी भटकी तो, जान ले लूँगी तेरी!
निशा: अरे सुन तो सही....
पर आशु रुकी नहीं और मुझे ढूंढते हुए तेजी से एग्जिट गेट पर पहुँच गई. मैं और अक्षय वहीँ खड़े थे और बात कर रहे थे. मेरी नजर अब तक आशु पर नहीं पड़ी थी;
अक्षय: ब्रो... हेल्प मी .... निशा मुझसे पटती ही नहीं! कल रात भी मैंने उसी के चक्कर में सब को वायग्रा खिलाई थी पर हरमजादी ने मुझे रात में छूने भी नहीं दिया. कुछ तो बताओ मैं क्या करूँ?
मैं: देख ... पहली बात तो ये जो तू अमेरिकन एक्सेंट बकता है इसे बंद कर, तू कतई इसमें बावला लगता है! देसी है देसी बन! उसे ये तेरा अमेरिकन गैंगस्टर लुक नहीं चाहिए... मॉडर्न होना ठीक है पर इतना भी नहीं की गधा दिखो.
अभ हमारी इतनी ही बात हुई थी की रोती-बिलखती आशु मेरे पास आई और मैं उसे इस तरह रोता हुआ देख समझ नहीं पाया की वो रो क्यों रही है; 'चलो आप! हम अभी घर जा रहे हैं.' इतना कह कर वो मुझे खींच कर बाहर ले आई. मैंने कई बार उससे पूछा की बात क्या है पर वो कुछ नहीं बोली और हम सीधा होटल पहुंचे. कमरे में घुसते ही उसने सामान समेटना शुरू कर दिया. 'जान! बताओ तो सही हुआ क्या?' मैंने आशु से प्यार से पूछा.
ये सुनते ही आशु गुस्से में बोली; 'वो कुतिया कह रही थी की उसे आपके साथ सोना है!' ये सुनते ही मुझे भी बहुत गुस्सा आया और इससे पहले की मैं कुछ बोलता आशु ही बोल पड़ी; 'गलती सारी मेरी ही थी. मुझे भी पता नहीं किस कुत्ते ने काटा था की मैंने इसे अपना दोस्त बनाया.आपने इतना समझाया था की दोस्त चुन कर बनाना और मुझे यही कामिनी मिली. ये तो गनीमत है की मैंने इसे हमारे बारे में कुछ भी सच नहीं बताया वरना ये तो मुझे आज ब्लैकमेल कर के आपके साथ सब कर लेती. अच्छा हुआ जो मुझे इस हरामजादी के रंग पहले ही पता चल गये.' इतना कहते हुए आशु पलंग पर बैठ गई और अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपा कर रोने लगी. मैं आशु के सामने घुटनों के बल खड़ा हुआ और उसे चुप कराया.'बस मेरी जान! चलो कपडे पैक करो हम अभी चेकआउट करते हैं.' हम अभी लॉबी में पहुँचे थे की वहाँ अक्षय और निशा मिल गये. निशा ने अक्षय से कुछ भी नहीं कहा था. मेरे हाथ में बैग देखते ही वो समझ गई की क्या माजरा हे. उसने फिर से आशु को रोकने की कोशिश की, इधर मैं रिसेप्शन पर अपने रूम का चेकआउट करवा रहा था. 'क्या हुआ ब्रो?' अक्षय ने पूछा.
'गो अँड आस्क निशा!' मैंने कहा.
'शी इज नॉट टेलींग मी शीट!' उसने जवाब दिया पर मैं आगे कुछ नहीं बोला और अपने रूम की सारी पेमेंट कर दी. उधर निशा ने आशु का हाथ पकड़ा हुआ था और उसे रोक रही थी; 'यार बात तो सुन!' निशा ने मिन्नत करते हुए कहा. आशु ने बड़े जोर से उसका हाथ झटक दिया और बोली; 'स्टे अवे फ्रॉम मी!' इतना कह कर वो तेजी से चल के मेरे पास आई. रिसेप्शन पर जो कोई था वो सब उन दोनों को ही देख रहे थे. बाहर से ऑटो किया और हम बस स्टैंड पहुँचे पर पूरे रास्ते आशु ने मेरा हाथ थामा हुआ था. उसका सर मेरे कंधे पर था. बस स्टैंड पहुँच कर पता चला की अगली बस एक घंटे बाद की है, अब भूख लग आई थी पर आशु बहुत-बहुत उदास थी. जब मैंने उससे कहा की मैं कुछ खाने को लाता हूँ तो वो इस कदर घबरा गई जैसे मैं उसे छोड़के निशा के पास जा रहा हु. आशु मेरे सीने पर सर रख कर बैठी रही और मैं बस उसके सर पर हाथ फेरता रहा. बस आई और हम दोनों बैठ गए, आशु ने अपना फ़ोन निकाला और निशा और अक्षय का नंबर ब्लॉक कर दिया. उसके साथ खींची हर फोटो को उसने डिलीट कर दिया. ऐसा करने से उसे ऐसा लग रहा था मानो की उसने निशा को अपनी जिंदगी से निकाल फेंका हे.
बस आधे रास्ते पहुँची थी. रात के ८ बजे थे तो मैं आशु को अपने साथ ले कर नीचे उतरा और उसे खाने को कुछ कहा. उसके लिए मैंने परांठे मंगाए और मैंने बस एक चिप्स का पैकेट लिया. खाना खा कर हम वापस अपनी सीट पर बैठ गए, आशु ने अपना सर मेरे सेने पर रख दिया था और अपनी बाहें मेरी कमर के इर्द-गिर्द कस ली थी.
मैं: जान! क्यों परेशान हो आप? मैं आपके पास हूँ ना?
आशु: आपको खो देने से डर लगता हे.
मैं: ऐसा कभी नहीं होगा.
अब मुझे कैसे भी कर के आशु की बेचैनी मिटानी थी;
मैं: अच्छा एक बात तो बताओ आप ये रिंग हमेशा पहने रहते हो?
आशु: सिर्फ हॉस्टल के अंदर नहीं पहनती वरना आंटी जी पूछती.
आशु ने बड़े बेमन से जवाब दिया.
मैं: हाई! .... जान! अच्छा एक बात बताओ?
आशु: हम्म
मैं: शादी कब करनी है?
ये सुनते ही आशु की आँखें चमक उठीं और वो मेरी तरफ आस भरी नजरों से देखने लगी.
आशु: आप .... सच?
मैं: मैंने आपको प्रोपोज़ कर दिया और तो और हम दोनों ...यू नो ... बहुत क्लोज आ चुके हैं तो अब बस शादी करना ही रह गया हे.
आशु: (खुश होते हुए) मेरे फर्स्ट ईयर के पेपर हो जाएँ फिर.
मैंने आशु के माथे को चूम लिया और अब आशु की खुशियाँ लौट आईं थी. मैंने आशु से उसका दिल खुश करने को कह तो दिया था पर ये डगर बहुत कठिन थी. मेरे दिमाग बस यही सोच रहा था की कहीं से मुझे कोई ट्रांसफर का ऑप्शन मिल जाए ताकि मैं आशु का कॉलेज कॉरेस्पोंडेंस/ ओपन में ट्रांसफर कर दूँ जिससे उसकी पढ़ाई बर्बाद ना हो. आखरी ऑप्शन ये था की मैं उसकी पढ़ाई छुड़ा दूँ और जब हम दोनों शादी कर के सेटल हो जाएँ तब वो फिर से अपनी पढ़ाई शुरू करे, पर उसमें दिक्कत ये थी की उसे फर्स्ट ईयर से शुरू करना पडता. यही सब सोचते हुए मैं जगा रहा और रात के सन्नाटे में गाड़ियों को दौड़ते हुए देखता रहा.
रात २ बजे बस ने हमें लखनऊ उतारा, मैंने कैब बुक की और हम घर आ गये. मैंने सामान रखा और आशु बाथरूम में घुस गई. इधर मुझे भूख लग रही थी तो मैंने मैगी बनाई और तभी आशु बाहर आ गई. 'मैं भी खाऊँगी!' कहते हुए आशु ने मुझे पीछे से कस कर जकड़ लिया. उसने अभी मेरी एक टी-शर्ट पहनी थी और नीचे एक पैंटी थी बस! मैंने अभी कपडे नहीं उतारे थे, आशु ने पीछे से खड़े-खड़े ही मेरी कमीज के बटन खोलने शुरू कर दिये. फिर वो अपना हाथ नीचे ले गई और मेरी पैंट की बेल्ट खोलने लगी. धीरे-धीरे उसे भी खोल दिया. अब उसने ज़िप खोली और फिर बटन खोला. पैंट सरक कर नीचे जा गिरी, मैं आशु का ये उतावलापन देख रहा था और मुस्कुरा रहा था. आखरी में उसने मेरी कमीज भी निकाल दी और अब बस एक बनियान और कच्छा ही बचा था. उसका ये उतावलापन मेरे अंदर भी आग लगा चूका था. मैंने गैस बंद की और आशु को गोद में उठा कर उसे बिस्तर पर लिटाया.अपनी बनियान निकाल फेंकी और आशु के ऊपर छा गया.आशु ने अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को पकड़ा और मेरे होठों को अपने होठों से मिला दिया. मैंने अपनी जीभ उसके मुह में प्रवेश कराई थी की उसने मुझे धक्का दिया और खुद मेरे पेट पर बैठ गई. अपने निचले होंठ और जीभ के साथ उसने मेरे ऊपर वाले होंठ को अपने मुँह भर लिया. इधर मैंने उसकी टी-शर्ट के अंदर हाथ डाल दिया और उसके स्तनों को धीरे-धीरे मींजने लगा. वो मुलायम एहसास आज मुझे पहली बार इतना सुखदाई लग रहा था. मन कर रहा था की कस कर उन्हें दबोच लूँ और उमेठ लूँ पर आज मैं अपने प्यार को दर्द नहीं प्यार देना चाहता था. दो मिनट में ही आशु की योनी गीली हो गई और मुझे उसका गीलापन अपने पेट पर उसकी पैंटी से महसूस होने लगा. वो अब भी बिना रुके मेरे होठों का रस पान करने में व्यस्त थी. उसके हाथों का दबाव मेरे चेहरे पर बढ़ने लगा था. मैंने आशु को धीरे-धीरे अपने मुँह से दूर करना चाहा पर वो तो जैसे मेरे होठों को छोड़ना ही नहीं चाहती थी. बड़ी मुश्किल से मैंने उससे अपने होंठ छुड़ाए और उसकी आँखों में देखा तो मुझे एक ललक नजर आई. उस ललक को देख मेरा मन बेकाबू होने लगा और इधर आशु के जिस्म में तो संभोग की आग दहक चुकी थी. उसने खड़े हो कर अपनी पैंटी निकाल फेंकी और धीरे-धीरे मेरे लिंग पर बैठने लगी. पहले के मुकाबले आज लिंग धीरे-धीरे अंदर फिसलता जा रहा था. आशु जरा भी नहीं झिझकी और धीरे-धीरे और पूरा का पूरा लिंग उसने अपनी योनी में उतार लिया. शायद कल की जबरदस्त ठुकाई के बाद उसकी योनी मेरे लिंग की आदि हो चुकी थी! पूरा लिंग जड़ तक समां चूका था और आशु बस गर्दन पीछे किये चुप-चाप बैठी थी. दस सेकंड बाद उसने अपनी कमर को घूमना शुरू कर दिया. अब ये मेरे लिए पहली बार था. अंदर से ऐसा लग रहा था जैसे मेरा लिंग आशु की योनी की दीवारों से हर जगह से टकरा रहा हे. फिर पांच सेकंड बाद आशु ने अपनी कमर को उलटी दिशा मे घुमाना शुरू कर दिया. मुझे अब इसमें भी मजा आने लगा था. फिर आशु रुकी और मेरा दोनों हाथ पकड़ के सहारा लिया और उकडून हो कर बैठ गई और मेरे लिंग पर उठक-बैठक शुरू कर दी. लिंग पूरा बाहर आता, बस टिप ही अंदर रहती और फिर आशु झटके से नीचे बैठती जिससे पूरा का पूरा लिंग एक बार में सट से अंदर घुसता.पर बेचारी दो मिनट भी उठक-बैठक नहीं कर पाई और मेरी छाती पर सर रख कर लेट गई. मैंने अपने दोनों हाथो को उसकी कमर पर कसा और अपने कूल्हे हवा में उठाये और जोर-जोर से धक्के नीचे से लगाने शुरू कर दिये. 'ससस..आह...हहह.ह.ह.ह.हह.ह.मम..म..उन्हक!' आशु की आवाजें कमरे में गूंजने लगी. जब आशु मेरे लिंग पर उठक-बैठक कर रही थी तब उसके मुँह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी क्योंकि वो बहुत धीरे-धीरे कर रही थी पर अभी जब मैंने तेजी से उसकी योनी ठुकाई की तो वो सिस्याने लगी थी. पांच मिनट तक पिस्टन की तरह मेरा लिंग आशु की योनी में अंदर-बाहर होने लगा था. आशु ने अपने दाँतों को मेरी कालर बोन में धंसा दिया था. मैंने आसन बदला और आशु के नीचे ले आया और खुद पलंग से नीचे उतर कर खड़ा हो गया.मैंने आशु को खींचा उसकी दोनों टांगों के बीच खड़ा हुआ और आशु की कमर बिलकुल बेड के किनारे तक ले आया. फिर धीरे से अपना लिंग उसकी योनी से भिड़ा दिया और धीरे-धीरे अंदर दबाने लगा. लिंग पूरा का पूरा अंदर चला गया और मैं आशु के ऊपर झुक गया.उसके होठों को चूमा और उसकी आँखों में देखने लगा पर पता नहीं कैसे आशु समझ गई की मैं क्या चाहता हु. 'जानू! फुल स्पीड!' इतना कह कर वो मुस्कुरा दी और उसकी ये बात मेरे लिए उस हरी झंडी की तरह थी जो किसी रेस कार को दिखाई जाती हे. उसके बाद तो मैंने जो ताक़त लगा कर आशु की योनी में लिंग अंदर-बाहर पेला की उसका पूरा जिस्म हिल गया था. आशु के हाथ बिस्तर को पकड़ना चाहते थे की कहीं वो गिर ना जाये पर मेरी रफ़्तार इतनी तेज थी की वो कुछ पकड़ ही नहीं पाई और अगले दस मिनट बाद पहले वो झड़ी और फिर मैं.
झड़ते ही मैं आशु पर जा गिरा और उसने अपनी टांगों को मेरी कमर पर कस लिया, साथ ही अपने हाथों से मेरी गर्दन को लॉक कर दिया. कल रात के बाद ये दूसरा मौका था जब आशु ने मेरा साथ इतनी देर तक दिया था. करीब पाँच मिनट बाद जब दोनों की साँसे दुरुस्त हुईं तो हम अलग हुए और अलग होते ही लिंग आशु की योनी से फिसल आया. लिंग के साथ ही आशु के योनी में जमी मलाई भी नीचे टपकने लगी. मैं भी आशु की बगल में उसी की तरह टांगें लटकाये हुए लेट गया.पहले आशु उठी और जा कर बाथरूम में मुँह-हाथ धो कर आई और फिर मैं उठा. हमने किचन काउंटर पर खड़े-खड़े ही सूख कर अकड़ चुकी मैगी खाई. आशु ने बर्तन धोने चाहे तो मैंने उसे मना कर दिया. उसने फर्श पर से हमारी मलाई साफ़ की और हम दोनों बिस्तर पर लेट गये. सुबह के ४ बजे थे और अब नींद बहुत जोर से आ रही थी. मैं और आशु एक दूसरे से चिपक कर सो गये.
सुबह के ६ बजे आशु बाथरूम जाने को उठी और मेरी भी नींद तभी खुली पर मन नहीं किया की उठूँ. इसलिए मैं सीधा हो कर लेट गया, जब आशु बाथरूम से निकली तो उसकी नजर मेरे मुरझाये हुए लिंग पर पडी. वो बिस्तर पर चढ़ी और मेरी टांगों के पास बैठ गई. मेरी आँख लग गई थी पर जैसे ही आशु ने मेरे लिंग को अपने मुँह में लिया मैं चौंक कर उठा और आशु को देखा तो वो आज बड़ी शिद्दत से मेरे लिंग को चूस रही थी. मेरे सुपाडे को वो ऐसे चूस रही थी जैसे की वो कोई टॉफी हो. अपनी जीभ से वो मेरे पूरे सुपाडे को चाट रही थी और उसके ऐसा करने से मेरे जिस्म के सारे रोएं खड़े हो चुका था.. मैंने अपने हाथों को आशु के सर पर रख दिया और उसे नीचे दबाने लगा. आशु समझ गई और उसने मेरे लिंग को धीरे-धीरे अपने मुँह में उतारना शुरू कर दिया. ५ सेकंड में ही मेरा पूरा लिंग उसके मुँह में उतर गया और आशु ऐसे ही रुकी रही. मेरी तो हालत खराब हो गई. उसकी गर्म सांसें और मुँह की गर्माहट मेरे लिंग को आराम दे रही थी. अब आशु घुटनों के बल बैठी और अपने मुँह को मेरे लिंग के ऊपर अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया. वो जब मुँह नीचे लाती तो लिंग जड़ तक उसके गले में उतर जाता और फिर जब वो अपने मुँह को ऊपर उठाती तो बिलकुल सुपाडे के अंत तक अपने होठों को ले जाती. उसकी इस चुसाई के आगे मैं बस पॉँच मिनट ही टिक पाया और अपना गाढ़ा-गाढ़ा वीर्य उसके मुँह में उगल दिया. मुझे हैरानी तो तब हुई जब वो मेरा सारा का सारा वीर्य पी गई और मैं आँखें फाड़े उसे देख रहा था. वो मुझे देख कर मुस्कुराई और फिर बाथरूम चली गई. मैं उठ कर बैठ गया और दिवार से टेक लगा कर बैठ गया, सुबह से आशु के इस बर्ताव से मेरे जिस्म में खलबली मच चुकी थी. आशु ठीक वैसे ही संभोग में मेरा साथ दे रही थी जैसा मैं चाहता था. जब आशु मुँह धो कर आई तो मेरी जाँघ पर सर रख कर लेट गई;
मैं: जान! एक बात तो बताओ? ये सब कहाँ से सीखा आपने?
आशु: (जान बुझ कर अनजान बनते हूये.) क्या?
मैं: (उसकी शरारत समझते हूये.) ये जो आपने गुड मॉर्निंग कराई अभी मेरी वो? और जो आप इतनी देर तक मेरे साथ टिके रहे वो? आपका संभोग में खुल कर पार्टिसिपेट करना वो सब?
आशु: लास्ट टाइम आपने मुझे डाँटा था ना, तो मुझे एहसास हुआ की अगर मैं आपको खुश न रख सकूँ तो लानत है मेरे खुद को आपकी पत्नी कहने पर. इसलिए उस कुतिया से मैंने बात की और उसे कहा की मैं अपने बॉयफ्रेंड को खुश नहीं कर पाती.तो उसने मुझे बहुत सारी अश्लील वीडियो दिखाई, इतनी तो शायद आपने नहीं देखि होगी!
ये सब बताते हुए आशु बहुत उत्साहित थी और मैं उसके इस भोलेपन को देख मुस्कुरा रहा था.
आशु: बाकी रहा मेरा वो सेल्फ कण्ट्रोल....तो उसके लिए मैंने बहुत एफर्ट किये! मस्टरबैशन बंद किया... थोड़ा योग भी किया...
ये कहते हुए वो हँसने लगी और मेरी भी हँसी निकल गई. सच्ची आशु बहुत ही भोलेपन से बात करती थी...
आशु: मैंने न....वो.... किंकी वाली वीडियो भी देखि.... बहुत मजा आया.... पर वो सब शादी के बाद!
इतने कह कर वो शर्मा गई और मेरी नाभि से अपना चेहरा छुपा लिया और कस के लीपट गई. मैं उसके सर पर हाथ फेरने लगा और हम दोनों ऐसे ही सो गये. हम ११ बजे उठे और अब बड़ी जोर से भूख लगी थी. मैंने आशु से पूछा की क्या वो भुर्जी खायेगी तो उसने हाँ कहा और नहाने चली गई. अब चूँकि उसने कभी अंडा पकाया नहीं था इसलिए मैंने ही भुर्जी बनाई. जब आशु नहा कर आई तो पूरे कमरे में भुर्जी की खुशबु भर गई थी. आशु ने अभ भी मेरी एक टी-शर्ट पहनी हुई थी और नीचे अपनी पैंटी. वो चल कर मेरे पास आई और मैंने उसे ब्रेड से एक कौर खिलाया. पहला कौर खाते ही उसकी आँखें चौड़ी हो गईं और वो बोली; 'वाव!!!' उसकी ख़ुशी छुपाये नहीं छुप रही थी. 'मैंने उस दिन कहा था ना की मेरे हाथ की भुर्जी खाओगी तो याद करोगी!' मैंने आशु को वो दिन याद दिलाया. 'आज से आप जो कहोगे वो हर बात सागरंगी.' आशु ने कान पकड़ते हुए कहा. फिर हमने डट के भुर्जी खाई और लैपटॉप में मूवी देखने लगे.
शाम हुई तो आशु ने चाय बनाई और मैं उसे ले कर छत पर आ गया.छत पर टंकियों के पीछे थोड़ी जगह थी जहाँ मैं हमेशा बैठा करता था. वहाँ से सारा शहर दिखता था और रात होने के बाद तो घरों की छोटी-छोटी टिमटिमाती रौशनी देख के मैं वहीँ चुप-चाप बैठ जाय करता था.अंधेरा होना शुरू हुआ था और हम दोनों वहाँ बैठे थे, आशु का सर मेरे कंधे पर था और वो भी चुप-चाप थी. 'हम बैंगलोर में भी ऐसा ही घर लेंगे जहाँ से सारा शहर दिखता हो. एक बालकनी जिसमें छोटे-छोटे फूल होंगे, रोज वहीँ बैठ कर हम चाय पीयेंग.| जब कभी लाइट नहीं होगी तो हम वहीँ सो जाएंगे, एक छोटा सा डाइनिंग टेबल जहाँ रोज सुबह मैं आपको नाश्ता ख़िलाऊँगी, हमारा बैडरूम जिसमें एक रोशनदान हो और सुबह की पहली किरण आती हो. हमारे प्यार की निशानी के लिए एक पालना... ' आशु बैठे-बैठे हमारे आने वाले जीवन के बारे में सब सोच चुकी थी और सब कुछ प्लान कर चुकी थी.
'वैसे तुम्हे लड़का चाहिए या लड़की?' मैंने पूछा.
'लड़का... और आपको?' आशु ने मुझसे पूछा.
'लड़की.. जिसका नाम होगा 'साक्षी'.' मैंने गर्व से कहा.
'और लड़के का नाम?'
'अनुज'
'आपने तो सब पहले से ही सोच रखा है?' आशु ने खुश होते हुए कहा.
हम दोनों वहीँ बैठे रहे और जब रात के नौ बजे तब नीचे आये. आशु ने रात का खाना बनाया और ठीक ग्यारह बजे हम खाना खाने बैठ गये. आशु मुझे अपने हाथ से खिला रही थी. पर जब मैंने उसे खिलाना चाहा तो उसने १-२ कौर ही खाये. खाने के बाद उसने बर्तन धोये और हम लैपटॉप पर मूवी देखने लगे. मूवी में एक हॉट सीन आया और उसे देख कर आशु गर्म होने लगी. उसका हाथ अपने आप ही मेरे लिंग पर आ गया और वो मेरे बरमूडा के ऊपर से ही उसे मसलने लगी. आशु के छूने से ही मेरे जिस्म में जैसे हलचल शुरू हो चुकी थी. पहले तो मैं खुद को अच्छे से कण्ट्रोल कर लिया करता था पर पिछले दो दिनों से मेरा खुद पर काबू छूटने लगा था. मैंने लैपटॉप पर मूवी बंद कर दी और गाना चला दिया; 'दिल ये बेचैन वे!' आशु मुस्कुरा दी और मुझे नीचे धकेल कर मेरे ऊपर चढ़ गई और मेरे होठों को अपने मुँह में ले कर चूसने लगी. आज वो बहुत धीरे-धीरे मेरे होठों को चूस रही थी और इधर मेरी धड़कनें बेकाबू होने लगी थी. मुझसे आशु का ये स्लो ट्रीटमेंट बरदाश्त नहीं हो रहा था. इसलिए मैंने उसे पलट कर अपने नीचे किया. फिर नीचे को बढ़ने लगा पर आशु ने मुझे नीचे नहीं जाने दिया. उसने ना में गर्दन हिलाई और मुझे उसकी योनी को चूसने नहीं दिया. मेरा बरमूडा उसने नीचे किया पर पूरा निकाला नहीं, लिंग हाथ में पकड़ उसने अपनी पैंटी सामने से थोड़ा सरकाई और मेरे लिंग पकड़ कर उसने अपनी योनी से स्पर्श करा दिया. मैंने अपनी कमर पीछे को की और धीरे से एक झटका मारा और मेरा सुपाड़ा आशु की योनी में दाखिल हो गया.आशु ने अपने दोनों हाथों से मेरे कन्धों को पकड़ लिया, मैंने फिर से कमर पीछे की और अपना लिंग जितना अंदर डाला था वो बाहर निकाल कर फिर से अंदर पेल दिया. इस बार लिंग आधा अंदर चला गया, आशु के मुँह से सिसकारी निकली; 'सससससस स.स..आअह!!!' मैंने एक आखरी झटका मारा और पूरा लिंग अंदर चला गया ठीक उसी समय गाने की लाइन आई;
सावन ने आज तो, मुझको भिगो दिया...
हाय मेरी लाज ने, मुझको डुबो दिया...
सावन ने आज तो, मुझको भिगो दिया...
हाय मेरी लाज ने, मुझको डुबो दिया...
ऐसी लगी झड़ी, सोचूँ मैं ये खड़ी...
कुछ मैंने खो दिया. क्या मैंने खो दिया...
चुप क्यूँ है बोल तू...
संग मेरे डोल तू...
मेरी चाल से चाल मिला...
ताल से ताल मिला...
ताल से ताल मिला...
इस दौरान में बस आशु को टकटकी बांधे देखता रहा और ऐसा महसूस करने लगा जैसे वो अपने दिल की बात कह रही हो. आशु ने जब नीचे से अपनी कमर हिलाई तब जा कर मैंने अपने धक्कों की रफ़्तार पकडी. कुछ ही देर में मेरे हिस्से की लाइन आ गई;
माना अनजान है, तू मेरे वास्ते...
माना अनजान हूँ, मैं तेरे वास्ते...
मैं तुझको जान लूं, तू मुझको जान ले....
आ दिल के पास आ, इस दिल के रास्ते...
जो तेरा हाल है...
वो मेरा हाल है...
इस हाल से हाल मिला...
ताल से ताल मिला हो, हो, हो...
इन लाइन्स को सुन आशु बस मुस्कुरा दी और मैंने इस बार बहुत तेज गति से उसकी योनी में लिंग पेलना शुरू कर दिया. अगले दस मिनट तक एक जोरदार तूफ़ान उठा जिसने हम दोनों के जिस्मों को निचोड़ना शुरू कर दिया और जब वो तूफ़ान थमा तो हम दोनों एक साथ झड़ गये. आशु की योनी एक बार फिर मेरे वीर्य से भर गई और मैं उस पर से हट कर दूसरी तरफ लेट गया.आशु ने मेरी तरफ करवट की और अपना दायाँ हाथ मेरे सीने पर रख कर सो गई. नींद तो मुझे भी आने लगी थी और फिर एक खुमारी सी छाई जिससे मैं भी चैन से सो गया.
आज शनिवार का दिन था. सुबह मैं जल्दी उठ गया पर आशु अब भी मुझसे चिपकी हुई थी. मैंने घडी देखि तो सुबह के ६ बजे थे.मैंने धीरे से अपने आप को आशु से छुड़ाना चाहा तो आशु भी जाग गई. 'सॉरी जान!' मैंने उसे जगाने के लिए माफ़ी मांगी तो मुस्कुराने लगी. उसकी मुस्कराहट देख मेरी मॉर्निंग और भी गुड हो गई. मैंने उसके माथे को चूमा और उठ के बाथरूम में घुस गया.जब वापस आया तो आशु चाय बना रही थी. चाय छान कर उसने मुझे बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए दी और फिर खुद बाथरूम चली गई. फ्रेश हो कर आई तो मैं अब भी कप थामे उसके आने का इंतजार कर रहा था. वो भी समझ गई और हम दोनों अपनी-अपनी चाय लिए खिड़की के पास खड़े हो गये. आशु मेरे आगे थी. और हम दोनों के दाहिने हाथों में हमारे कप थे. मेरा बायाँ हाथ आशु के पेट पर था और आशु ने भी अपने बाएँ हाथ से मेरे हाथ को पकड़ रखा था. 'काश की हम हर रोज इसी तरह खड़ा हो कर चाय पीते?' आशु बोली, मैंने आशु के सर को पीछे से चूम लिया. 'वो दिन भी आयेगा.' मैंने जवाब दिया तो आशु ने उत्सुकता वश पूछा; 'कब?' अब मैं इसका जवाब नहीं जानता था पर फिर भी मैंने आशु को आस बंधाते हुए कहा; 'जल्द' इसके आगे उसने और कुछ नहीं कहा और हम दोनों इसी तरह खड़े खिड़की से बाहर पेड़ों को देखते रहे. आज बरसों बाद मुझे सुबह की ठंडी हवा सुकून दे रही थी.
कुछ देर ऐसे ही खड़े रहने के बाद मुझे याद आया की हमें तो गाँव भी जाना है? 'आशु... आज गाँव चलें?' मैंने आशु से संकुचाते हुए पूछा. तो वो मेरी तरफ पलटी और ऐसे देखने लगी जैसे की मैंने उससे कहा हो की मैं सरहद पर जा रहा हूँ?! 'घर वालों को शक न हो इसलिए कह रहा हु.' मैंने आशु के दाएँ गाल पर आई उसकी लट को ऊँगली से हटाते हुए कहा. 'आपसे दूर जाने को मन नहीं करता.' आशु ने सर झुकाते हुए कहा. मैंने आशु को कस कर अपने सीने से लगा लिया; 'मेरी जानेमन! बस कुछ दिनों की तो बात हे. फिर मैं आपके साथ आज का दिन और कल का दिन वहीँ रुकूँगा और सोमवार को मैं वापस आ जाऊंगा.'
'और मेरा क्या? मुझे कब 'भिगाणे' आओगे?' आशु ने मेरे सीने से अलग होते हुए शर्माते हुए पूछा. पर जब उसने 'भिगाणे' शब्द का इस्तेमाल किया तो मेरे चहरे पर मुस्कुराहट आ गई.
'बुधवार को अपनी दुल्हनिया को भिगाणे आएंगे उसके साजना.' मेरा जवाब सुन आशु बुरी तरह शर्मा गई और कस कर मेरे सीने से चिपक गई.
'एक बात पूछूँ? अगर सब कुछ नार्मल होता, आई मीन ... की हम एक परिवार के ना होते, तो आप मेरा हाथ घरवालों से कैसे माँगते?' आशु का सवाल सुन में कुछ सोच में पड़ गया.फिर मुझे कुछ याद आया और मैंने फ़ोन में एक वीडियो प्ले की, फिर आशु के सामने अपने एक घुटने पर बैठ गया;
स्याटर्डे मॉर्निंग जम्प आऊट ऑफ बेड अँड पुट ऑन माई बेस्ट स्युट...
गोट इन माई कारअँड रेस लाईक अ जेट, ऑल दीं वे टू यू
नौक ऑन योवर डूऑर विद हार्ट इन माई ह्यांड
टू आस्क यू अ क्वशन
'कौज आई नो दॅट यू आर अन ओल्ड फॅशन मेन हा... हा... हा...'
'कॅन आई ह्याव योवर डॉटर फॉर दीं रेस्ट ऑफ माई लाइफ?' से येस.....से येस...!!!
कौज आई निड टू नो
यू से आई विल्ल नेवर गेट योवर ब्लेसिंग टील दीं डे आई डाई
'टफ लक माई फ्रेंड .... बट दीं आंसर इज नो!'
व्हाय यू गोटा बी सो रूढ?
डोन्ट यू नो आई एम ह्यूमन टू
व्हाय यू गोटा बी सो रूढ
आई एम गोना म्यारी हर एनी वे
म्यारी हर एनी वे
हा नो मॅटर व्हॉट यूसे
अँड वुई विलबी अ फॅमिली
ये सुनते ही आशु खिलखिला कर हँस पडी. पर गाने की जब अगली लाइन्स आईं तो आशु आँखें फाड़े मुझे देखने लगी;
आई हेट टू डू दिस, यू लिव्ह नो चॉइस
आई कान्ट लिव्ह वीदाऊट हर
लव मी ऑर हेट मी वी विल् बी बॉय
स्टँडिंग एट दॅट अल्टर
ऑर वी विल् रन अवे
टू अनादर ग्यालेक्सी यू नो
यू नो शी इज इन लव विदमी
शी विल् गो एनीव्हेअर आई गो
कॅन आई ह्याव योवर डॉटर फॉर दीं रेस्ट ऑफ माई लाइफ? से येस, से येस
'कौज आई निड टू नो
यू से आई विल्ल नेवर गेट योवर ब्लेसिंग टील दीं डे I डाई
टफ लक माई फ्रेंड कौज दीं आंसर इज स्टील नो!
व्हाय यू गोटा बी सो रूढ?
डोन्ट यू नो आई एम ह्यूमन टू
व्हाय यू गोटा बी सो रूढ
आई एम गोना म्यारी हरएनी वे
म्यारी दॅट गर्ल, म्यारी हरएनी वे
म्यारी दॅट गर्ल,हा नो मॅटर व्हॉट यूसे
म्यारी दॅट गर्ल, अँड वुई विलबी अ फॅमिली…..
ये सुन कर आशु ने मुझे गले लगा लिया, मेरा मुँह उसके पेट पर था और उसका हाथ मेरे बालों में था. 'मैं सच में बहुत खुशकिस्मत हूँ की मुझे आपके जितना चाहने वाला मिला.' आशु ने मेरे बालों में उँगलियाँ फेरते हुए कहा.
कुछ देर बाद हम नाश्ता कर के तैयार हुए और मेरी प्यारी बुलेट रानी पर सवार हो कर गाँव की तरफ निकल लिए. ठीक दोपहर के खाने पर पहुँचे और हमें वहाँ देख कर किसी को कुछ ख़ास ख़ुशी नहीं हुई. 'तुम दोनों को शहर की हवा लग गई हे.' ताऊजी ने गुस्से में गरजते हुए कहा. कुछ देर पहले मेरी जान जो बहुत खुश थी वो अचानक ही सहम गई. 'आशु...तू अंदर जा.' मैंने आशु को अंदर भेजा. 'उसे क्यों अंदर भेज रहा है?' ताऊ जी ने गरजते हुए कहा.
'ऑफिस में वर्क लोड इतना बढ़ गया है की मैं ही गाँव नहीं आ पा रहा था तो वो बेचारी अकेले तो गाँव आ नहीं सकती ना?' मैंने अपनी सफाई दी.
'आग लगे तेरी नौकरी को.' ताई जी ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा.
'तुझे कहा था न की छोड़ दे ये नौकरी और खेती संभाल, पर नहीं तुझे तो उड़ना हे.' पिताजी ने भी आगे आते हुए ताना मारा. मेरा गुस्सा अब फूटने को था पर तभी नितु मैडम का फ़ोन आया; 'मॅडम मैं आपको दो मिनट में कॉल करता हु.' अभी मैंने कॉल काटा भी नहीं था की ताऊजी चिल्ला कर बोले; 'मिनट भर हुआ नहीं घर में घुसे और तेरे फ़ोन आने चालु हो गए? ऐसी कौन सी तनख्वा देते है तुझे?' मैडम ने सब सुन लिया था और खुद ही फ़ोन काट दिया. अब घर में तो कोई नहीं जानता था की मेरी तनख्वा बढ़ गई है इसलिए मैं बस अपने गुस्से पर काबू करना चाहता था.
'मैं पूछती हूँ तुझे कमी क्या है इस घर में? सब कुछ तो है हमारे पास.सारी उम्र बैठ कर खा सकता है, फिर क्यों तू दूसरों के यहाँ नौकरी करता है?' माँ ने कहा.
'बस बहु बहुत हो गया इसका! इसी साल तेरी शादी कर देते हैं.' ताऊ जी ने अपना फरमान सुनाते हुए कहा.
'आपने वादा किया था ताऊ जी!' मैंने उन्हें उनका वादा याद दिलाया.
'तूने तीन साल मांगे थे और वो इस साल पूरे होते हे. अगले साल जनवरी में ही तेरी शादी होगी और ये मैं तुझसे पूछ नहीं रहा बल्कि बता रहा हु.' ताऊ जी ने आखरी फैसला सुना दिया. अब मुझे कुछ तो बहाना मारना था ताकि इस शादी की लटक रही तलवार से अपनी गर्दन बचा सकू.
मैं: मुझे शहर में घर लेना है!
मैं बस इतना कह कर चुप हो गया और मेरी बात सुन के सब के सब आँखें फाड़े मुझे देखने लगे.
ताऊ जी: क्या?
मैं: मैं शादी के बाद यहाँ रहना नहीं चाहता. मैं नहीं चाहता की मेरा बच्चा उसी स्कूल में जमीन पर बैठ के पढ़े जहाँ मैं पढ़ा था! यहाँ अगर इंसान बीमार हो जाए तो इलाज के लिए एक घंटे दूर बाजार जाना पड़ता हे. न इंटरनेट है न ही ठीक से बिजली आती है, ऐसी जगह मैं अपनी नै जिंदगी शुरू नहीं करना चाहता. शहर में सब सुख सुविधा है, पर यहाँ सिर्फ बीहड़ हे. घर में अगर बाइक न हो तो कहीं भी जाने के लिए सड़क तक पैदल जाना पड़ता है....
ताऊ जी: (बात काटते हुए) ये क्या बोल रहा है तू?
मैं: ताऊ जी, अपने परिवार के बारे में सोचना गलत तो नहीं? आज कल की नई पीढ़ी इस तरह बंध कर नहीं रह सकती. अगर हम गरीब होते और ये सुख-सुविधा नहीं खरीद सकते तो मैं आपसे कुछ नहीं कहता पर हम गरीब तो नहीं?
मेरी बात सुन कर ताऊ जी चुप हो गए पर ताई जी तमतमाते हुए बोलीं;
ताई जी: तो तू क्या चाहता है हम सब खेती-किसानी बेच के तेरे साथ शहर चलें?
मैं: बिलकुल नहीं... मैं बस इतना चाहता हूँ की मैं शहर में अपना घर ले सकूँ, अपनी बीवी-बच्चों के साथ वहां रह सकूँ और उन्हें वो सब सुख सुवुधा दूँ जिसके लिए मुझे घर से दूर जाना पड़ा था.
माँ: तो तू शादी के बाद वहीँ रहेगा? हमें छोड़ के?
मैं: नहीं माँ! बच्चों की छुट्टियों में मैं यहाँ आता रहूँगा और आप सब भी हमसे मिलने वहीँ आ कर मेरे घर में रहना.
ताऊ जी: बस बहुत हो गया! बता कितने पैसे चाहिए तुझे? १० लाख? २० लाख? छोटे (मेरे पिताजी) वो नहर वाली जमीन....
मैं: (बात काटते हुए) ५५ लाख चाहिए मुझे!
ये सुन कर तो ताऊ जी सन्न रह गए!
मैं: मैं आपसे ये पैसे मांग नहीं रहा. मैं अपने पैसों से घर लेना चाहता हूँ, मेरी अपनी मेहनत की कमाई से!
ताऊ जी: अच्छा? तेरी वो चुल्लू भर कमाई से घर खरीदने की सोचेगा तो जिंदगी भर नहीं खरीद पाएगा.
मैं: ताऊ जी मुझे बस दो साल का समय लगेगा ताकि मैं कुछ पैसे जोड़ लूँ, उसके बाद बाकी सारा पैसा में लोन लुंगा.
ताऊ जी: क्या?
पिताजी: तेरा दिमाग ख़राब हो गया है?
मैं: नहीं... मुझे अपने पाँव पर खड़ा होना हे.
पिताजी: तो ये सब जो जमीन जायदाद है वो किसकी है?
मैं: मेरी तो नहीं? मैंने उसे कमाया नहीं है! मुझे मेरे पैसे का घर चाहिए!
पिताजी और ताऊ जी आगे कुछ नहीं बोले.
मैं: मैं शादी से मना नहीं कर रहा, बस आपसे दो साल का समय और माँग रहा हु.
ताऊ जी: ठीक है! पर ये आखरी बार है जब हम तुझे समय दे रहे हैं, अगली बार तू हमें कुछ नहीं बोलेगा और कोई बहाना नहीं करेगा.
मैं: जी
इतना कह कर ताऊ जी और सब खाना खाने बैठ गये. उस समय मुझे ऐसा लगा जैसे की उन्हें मेरे ऊपर गर्व है की मैं खुद कुछ बनना चाहता हु. खाना खाने के समय मैं बस आशु को देख रहा था जो सर झुकाये बेमन से खाना खा रही थी. मेरा मन तो किया की मैं उसे जा के अपने हाथ से खाना खिलाऊँ पर मजबूर था! खाना खा कर मैं अपने कमरे में आ गया और लैपटॉप पर कुछ ढूँढ रहा था. तभी आशु मेरे सामने से अपने कमरे की तरफ बिना कुछ बोले चली गई. मैं उठा और जा के देखा तो वो जमीन पर बैठी सर झुका कर रो रही थी. उसे रोता हुआ देख दिल दुख मैंने जा के जमीन से उसे उठा कर बिस्तर पर बिठाया, आशु आ कर मेरे सीने से लग गई और रोने लगी. 'बस-बस! कोई शादी नहीं हो रही! मुझे जो भी बहाना सूझा वो मैंने बना दिया और देख सब मान भी गए, फिर क्यों रो रही है?' मैंने आशु के आँसूँ पोछते हुए पूछा. पर उसके मन में डर बैठ गया था जिसे निकालने के लिए मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था. घर पर सभी लोगों की मौजूदगी थी और ऐसे में हम दोनों का इस तरह चिपके रहना मुसीबत खड़ी कर सकता था. मैंने एक आखरी कोशिश की; 'तुझे मुझ पर भरोसा है?' आशु ने हाँ में सर हिलाया. 'तो बस मुझ पर भरोसा रख, मैं कोई शादी-वादी नहीं करने वाला. इन लोगों ने ज्यादा जोर-जबरदस्ती की तो हम उसी वक़्त भाग जायेंगे.' अब ये सुन कर आशु को तसल्ली हुई और उसका रोना बंद हुआ. मैंने आशु के माथे को चूमा और बाहर आ गया.फिर याद आया की मैंने मैडम को फ़ोन करना है तो उन्हें कॉल मिला कर मैं छत पर आ गया.घंटी बजती रही पर मैडम ने फ़ोन नहीं उठाया, मुझे लगा शायद बीजी होंगी इसलिए मैंने कॉल काटा और घर से बाहर टहलने को निकल गया.जब शाम को वापस आया तो आशु अब सामन्य दिखी, सब ने बैठ के चाय पी और उस पूरे दौरान मैं चुप रहा. कुछ देर बाद ताऊ जी बोले; 'तूने वहाँ कोई जमीन देखि है?'
'जी ...देखि है... करीब २५० गज हे.' मैंने झूठ बोला.
'कितने की है?' ताऊ जी ने चाय का घूँट पीते हुए पूछा.
'जी...वो... ३५ लाख की हे. घर बनवाई और बाकी के काम जोड़-जाड कर १५ लाख ऊपर से लगेगा.' मैंने बात बनाते हुए कहा. वो चुप हो गए और चाय पी कर पिताजी को अपने साथ ले कर चले गये. आंगन में बस मैं, ताई जी, माँ और भाभी ही बचे थे, आशु रसोई में बर्तन धो रही थी.
'आशु तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है?' मैंने पुछा तो वो रसोई से बाहर आई और बोली; 'ठीक चल रही हे.' फिर मैंने उसे एकाउंट्स की किताब लेने को कहा तो वो चुप-चाप ऊपर के कमरे से अपनी किताब ले आई. मैं उसे जानबूझ कर सब के सामने पढ़ाने लगा ताकि सब को लगे की हम दोनों शहर में एक दूसरे से नहीं मिलते.
आखिर ताई जी ने पूछ ही लिया; 'इतना भी क्या काम रहता है तुझे की तुझसे अपनी प्यारी भतीजी से मिला नहीं जाता?'
'बैंगलोर का एक प्रोजेक्ट है, उसकी वजह से रविवार को भी ऑफिस जाता हु. इसलिए टाइम नहीं मिलता की आशु के हॉस्टल जा सकू.' मैंने जवाब दिया तो ताई जी चुप हो गई. कुछ देर पढ़ने के बाद आशु खुद ही खाना बनाए की तैयारी करने लगी. मुझे इत्मीनान हो गया की आशु पढ़ाई भी करती है ना की सारा टाइम मुझे खुश करने के लिए अश्लील फिल्मे देखती हे.
रात को खाने के बाद मैं छत पर टहल रहा था की आशु आ गई. उसके हाथ में एक कटोरी थी और कटोरी में गुड़! 'आपने मुझसे एक वादा किया था न?' उसने पुछा पर मैं सोच में पड़ गया की वो कौनसे वादे की बात कर रही हे. 'सिगरेट और शराब नहीं पीने का?' जब आशु ने ये कहा तब मुझे याद आया और मैंने हाँ में सर हिलाया. 'तो आज से सब बंद! प्रॉमिस मी???' आशु ने कहा तो मैंने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा; 'आई प्रॉमिस की आज से शराब या सिगरेट को हाथ नहीं लगाऊँगा.' आशु मुस्कुराई और नीचे चली गई.
कुछ देर बाद प्रकाश चौबे आया और माँ ने मुझे नीचे बुलाया. उसके घर पर पतुरिया का प्रोग्राम था और वो मुझे बुलाने आया था. 'चल यार घर पर प्रोग्राम है और तू यहाँ घर पर बैठा है? कम से कम मुझे बता तो देता की तू आया हुआ है?' मुझे माँ को कुछ कहने की जरुरत ही नहीं पड़ी और मैं उसके साथ चला गया.वहाँ पहुँच कर सबसे आगे की चारपाई पर हम दोनों बैठ गए और गाना-बजाना चल रहा था. सारे गाने डबल मीनिंग वाले थे और वहाँ खड़े लौंडे सब चिल्ला रहे थे और पैसे उड़ा रहे थे. वो औरत नाचती हुई आई और मुझे खींच के स्टेज पर ले जाने लगी तो मैंने उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ा लिया और प्रकाश को आगे कर दिया. प्रकाश ने अपने मुँह में एक ५०० का नोट दबाया और अपनी गर्दन उसके मुँह के आगे कर दी, उस औरत ने अपने होठों से प्रकाश के मुँह से वो नोट छुड़ाया और प्रकाश उसे अपनी बाँहों में कस कर नाचने लगा. वो जानती थी की यही मालिक है इसलिए वो उसे ज्यादा से ज्यादा खुश कर रही थी. कभी अपनी कमर यहाँ लचकाती तो कभी वहाँ.. उसने अपने वक्षो से दुपट्टा उतारा और प्रकाश की तरफ फेंक दिया. उसकी बड़ी-बड़ी स्तनो की घाटी साफ़-साफ़ नजर आ रही थी और हो-हल्ला शुरू हो गया था. इसी तरह मैं वहाँ बैठा रहा और रात १ बजे तक ये प्रोग्राम चलता रहा. इस पूरे दौरान मैं आशु के बारे में सोच रहा था और मेरा लिंग बिलकुल अकड़ चूका था. जब प्रोग्राम खत्म हुआ तो प्रकाश ने गांजा भर के चिलम मेरी तरफ बढाई. उस चिलम को देखते ही मेरा मन करने लगा की एक कश मार लूँ पर आशु को वादा जो किया था इसलिए मैंने उसे मना कर दिया.
'ओह हरामी! तू इसे मना कर रहा है? तबियत तो ठीक है ना तेरी?' प्रकाश ने पूछा.
'ना यार ...मन नहीं है!' इतना कह कर मैं घर जाने को उठ खड़ा हुआ.
दरवाजा खटखटाया तो भाभी ने दरवाजा खोला; 'देख आये पतुरिया का नाच?' भाभी ने मुझे छेड़ते हुए कहा, पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप अपने कमरे में आ कर लेट गया.आशु सो चुकी थी पर मुझे आज उसके बिना नींद नहीं आ रही थी. मन कर रहा था की जा कर उसके जिस्म से चिपक जाऊँ पर डरता था की घर में काण्ड ना हो जाये. पूरी रात बस करवटों में निकल गई और सुबह ऊँघता हुआ उठा. आशु ने जब मुझे देखा तो प्यार से बोली; 'जानू! नींद नहीं आई आपको?' मैंने ना में गर्दन हिलाई और कहा; 'कैसे आती? मेरी जानेमन मुझसे दूर थी!' ये सुनते ही वो शर्मा गई और मुझे गले लगना चाहा पर तभी भाभी आ गई; 'और सो लो थोड़ा? पतुरिया को याद कर-कर के सोये तो होंगे नहीं?' ये सुनते ही आशु गुस्सा हो गई; 'भाभी थोड़ी तो शर्म किया करो?! देखती नहीं आशु खड़ी है?' मैंने उन्हें झाड़ते हुए कहा.
'बच्ची थोड़े ही है?' उन्होंने कहा और वहा से चली गई. आशु भी उनके पीछे-पीछे जाने लगी. मैने दौड़ कर उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपने कमरे में खींच लिया. 'मेरे होते हुए आप पतुरिया देखने गए?' आशु ने गुस्से से कहा.
'जान! मुझे नहीं पता था की वो कहाँ बुला रहा है? यक़ीन मानो मैंने कुछ नहीं किया ना ही उसे छुआ, वो मुझे खींच कर ले जा रही थी पर मैंने प्रकाश को आगे कर दी. उसने तो मुझे चिलम भी ऑफर की थी पर मैंने तुम्हारे वादे की खातिर उसे मना कर दिया.' मैंने आशु से ऐसे कहा जैसे की एक छोटा बच्चा अपनी सफाई देता हे. ये सुन कर आशु खिलखिला कर हँस पड़ी और मेरे दोनों गाल पकड़ के खींचते हुए बोली; 'आई नो ...आई वाज जोकिंग!!!' हँसती-खेलती हुई वो नीचे चली गई. मैं भी नहा धो कर अपना लैपटॉप ले कर नीचे आ गया और आंगन में बैठ कुछ पी. पी. टी. पर काम करने लगा. अम्मा और माँ मुझे काम करता हुआ देख रहे थे और पहला ताना माँ ने ही मारा; 'दो दिन के लिए घर आया है, कम से कम यहाँ तो इस डिब्बे को बंद कर दे!'
अब इससे पहले ताई जी मुझे ताना मारें मैंने लैपटॉप बंद किया और उनके पास जा कर बैठ गया.माँ और ताई जी बैठीं मटर छील रही थीं और मैं भी वहीँ बैठ गया और मटर छीलने लगा. मुझे देख कर भाभी जोर से हँस पड़ीं और उनकी देखा-देखि सब हँस पडे.
'क्या हुआ? आपने ही कहा था की डिब्बा बंद कर दो, तो सोचा की आपकी मदद ही कर दू.' ये सुन कर ताई जी बोलीं; 'ये काम करने को नहीं बोला. ये बता वहाँ तू अकेला खाना कैसे बनाता है?'
मैं पहले तो थोड़ा हैरान हुआ क्योंकि आज तक कभी मुझसे इस तरह की बात नहीं की गई थी. 'रात को सात बजे तक पहुँचता हूँ, फिर कुकर में चावल और स्टील वाले में दाल डाल कर गैस पर चढ़ा देता हु. एक साथ दोनों तैयार हो जाते हैं, फिर चॉपर में प्याज-टमाटर और हरी मिर्च डाल कर के ५-७ बार खींचता हूँ और फटफट तड़का मारा... खाना तैयार...जब ज्यादा लेट हो जाता हूँ तो बाहर से मँगा लेता हु.' मैंने कहा.
'ये चापर क्या होता है?' माँ ने पुछा तो मैंने उन्हें बता दिया; 'एक कटोरी जैसे बर्तन होता है उसमें दो ब्लेड लगे होते हैं, उसके ऊपर एक हैंडल होता है और उसे खींचने से नीचे ब्लेड घूमता हे. अगली बार आऊँगा तब आपको ला कर दिखा देता हु.' तभी आशु बोल पड़ी; 'आज आप ही खाना बना कर खिला दो सब को!' पर ताई जी को ये बात नहीं जचि और वो आशु पर बिगड़ पड़ीं; 'पागल हो गई तू? इतने महीनों बाद आया है और तू इससे चूल्हा-चौका करवाएगी?' आशु ने अपना सर झुका लिया.
'ताई जी, आज तो आपको ऐसा खाना खिलाऊंगा की आप उँगलियाँ चाट जाओगे!' मैंने जोश में आते हुए आशु का बचाव किया. मैंने हाथ-मुँह धोये और रसोई में घुस गया, सबसे पहले मैंने फ़ोन में गाना लगाया: 'ना जा न जा' और आशु का हाथ सब के सामने पकड़ा और उसके दाहिने हाथ की ऊँगली पकड़ कर उसे गोल घुमा दिया. आशु इस सबसे बेखबर थी और मेरे अचानक उसे गोल घुमाने से वो गोल घूम गई.
उस एक पल के लिए मैं सब कुछ भूल गया था. मुझे बस आशु के उदास चेहरे को खुशियों से भरना था. आशु डांस करने में बहुत झिझक रही थी पर मैं ही उसे जबरदस्ती नचा रहा था. चूँकि वहाँ सिवाय औरतों के कोई नहीं था तो इसलिए कोई कुछ बोला नही. जब गाना खत्म हुआ तो ताई जी बोलीं; 'देख रही है छोटी (माँ) तू, गाँव में जिस लड़के की आवाज नहीं निकलती थी वो शहर जा आकर नाचने भी लगा हे.' मैंने आशु की तरफ एक टमाटर उछाला जिसे उसने बड़ी मुश्किल से पकड़ा और मैंने उसे काट के देने को कहा. तभी भाभी बोल पड़ी; 'देखो ना चची कितने बेशर्म हो गया है सागर, आशु को नचा रहा है!' अब ये बात मुझे बहुत चुभी; 'अपनी माँ और ताई जी के सामने नचा रहा हूँ बाहर सड़क पर तो नहीं नचा रहा.' ये सुन कर भाभी का मुँह बन गया और माँ कहने लगी; 'कोई बात नहीं बहु, कम से कम इसके आने से घर में थोड़ी रौनक तो आ गई.'
'तू एक बात बता सागर, तू अपनी भाभी से चिढ़ा क्यों रहता है?' ताई जी ने पूछा.
'ताई जी ये जब देखो आशु के पीछे पड़ीं रहती हैं, मैंने आज तक इन्हें कभी हँस कर आशु से बात करते नहीं देखा. हमेशा उसे ताना मरती रहतीं हैं, उससे प्यार से बात करें तो मैं भी इनसे हँस कर बात करू. अगर उसे नचा सकता हूँ तो इनको भी थोड़ा नचा दूंगा.' मैंने माहौल को थोड़ा हल्का करने के लिए कहा. फिर मैं खाना बनाने में लग गया और सारा सब्जी काटने का काम आशु से करवाया; 'अगर सारी चोप्पिंग मुझसे करानी थी तो खाना मैं ही बना लेती.' आशु ने प्यार से मुझे ताना मारते हुए कहा.
'खाना तो बना लेती पर मेरे हाथ का स्वाद कैसे आता?' मैंने आशु को आँख मारते हुए कहा. जब सब दोपहर को खाने बैठे तो खाना वाक़ई में सब को पसंद आया पर पिताजी और ताऊ जी ने कुछ कहा नहीं, हाँ बस ताई जी और माँ ने खाने की तारीफ की थी. भाभी बोलीं; 'चलो भाई एक बात तो तय हुई, शादी के बाद सागर अपनी लुगाई को खुश बहुत रखेगा.' ये सुन आशु मुस्कुराई जैसे खुद पर फक्र कर रही हो.
शाम होने तक मैं सभी के पास बैठा रहा.७ बजे अचानक लाइट चली गई और फ़ोन की बैटरी भी डिस्चार्ज हो गई.लैपटॉप को भी मैं चार्जर पर लगाना ही भूल गया था. इसी बीच रात का खाना भी मैंने ही बनाया. इस बार पिताजी बोल ही पड़े; 'घर में तू तीसरा आदमी है जिसे खाना बनाना आता हे. याद है भाईसाहब जब हम छोटे होते थे तब खेतों में आलू का भरता बनाते थे.'
ताऊजी मुस्कुराये और उन्होंने अपने बचपन की कहानी सुनाई; 'मैं और तेरा बाप माँ के गुजरने के बाद चूल्हा-चौका संभालते थे. कभी-कभी कहते में पहरिदारी करनी होती थी तो घर से रोटी बना कर ले जाते और खेत में कांडों की आग में आलू भूनते और फिर उसमें घर का नून मिला कर रोटी के संग खाते थे.' सब के सब उनकी बातें बड़े गौर से सुन रहा थे, गोपाल भैया ने तो आज तक रसोई में घुस के एक गिलास पानी तक नहीं लिया था.
खाना खा कर मैं और आशु छत पर बैठे थे क्योंकि लाइट अभी तक नहीं आइ थी. तभी सब अपने-अपने बिस्तर ले कर ऊपर आ गये. एक कोने में सारे आदमी लेट गए और दूसरे कोने में सारी औरतें लेट गई. मेरा बड़ा मन कर रहा था की आशु को कस कर अपनी बाहों में प्यार करूँ पर सब के रहते ये नामुमकिन था. करवटें बदलते हुए सो गया और सुबह जल्दी उठ गया.पांच बजे नाहा धो कर तैयार होगया.ठीक ६ बजे में निकलने लगा क्योंकि मुझे सीधा ऑफिस जाना था तो आशु ने मेरे लिए दोपहर का खाना पैक कर दिया. बुधवार को आशु को 'भिगाणे' का वादा कर मैं घर से निकला, आँखों में उसकी वही हँसती हुई तस्वीर थी. सीधा उसी ढाबे पर रुका और अपना फ़ोन चार्जिंग पर लगाया क्योंकि घर में लाइट तो आई नहीं थी. चाय पी कर वहाँ से निकला, घडी में ९ बजे थे की मैडम के ताबड़तोड़ कॉल आने लगे. मैंने बाइक साइड खड़ी की और फ़ोन चेक किया तो मैडम के कल से अभी तक ५० कॉल आये थे. इससे पहले की मैं कॉल करता उनका ही फ़ोन आ गया; 'सागर जी!!!! आप कहाँ हो?' उन्होंने घबराते हुए कहा. 'मॅडम रास्ते में हूँ...' आगे मैं कुछ बोल पाता उससे पहले ही मैडम ने कहा: 'आप सीधा फॅमिली कोर्ट आना, कोर्ट नंबर ५!!!' इतना कह कर उन्होंने फ़ोन काट दिया. ये सुन कर मैं परेशान हो गया की भला उन्होंने मुझे कोर्ट क्यों बुलाया है? मैने उन्हें दुबारा कॉल मिलाया तो फ़ोन स्विच ऑफ बता रहा था. अब मरते क्या न करते मैं कोर्ट की तरफ चल दिया.
बेमन से फॅमिली कोर्ट पहुंचा और मन में हो रही उथल-पुथल को काबू करते हुए मैं कोर्ट नंबर ५ ढूँढने लगा. बहुत पूछने पर पता चला ये तो मेडिएशन वाला कोर्ट है, और उसके बाहर ही मुझे सर और नितु मैडम दिखे. दोनों के घरवाले और वकील वहाँ खड़े थे और सब मुझे ही देख रहे थे. मुझे तो समझ ही नहीं आया की में क्या कहूँ और किसके पास जाऊँ? ये तो मैं समझ ही चूका था की दोनों यहाँ डाइवोर्स के लिए आये हैं पर जाऊँ किसके पास? तभी नितु मैडम मेरे पास आईं और मुझे अपने माँ-पिताजी से मिलवाया; 'डैड ये हैं सागर जी.' मैंने हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्ते की और साथ ही उनकी वाइफ मतलब नितु मैडम की माँ को भी नमस्ते कहा पर दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला. इधर सर के घरवाले मुझे बड़ी कोफ़्त की नजर से देख रहे थे और कुछ बोलने ही वाले थे की अंदर कमरे में सब को बुलाया गया.मैडम ने मुझे भी अपने साथ बुलाया.
अंदर एक लम्बा सा कॉन्फ्रेंस टेबल था. जिसके एक तरफ दो लोग बैठे थे, शायद वो मीडिएटर थे. उनके दाहिने तरफ सर, उनका वकील और उनके परिवार वाले बैठ गए, दूसरी तरफ मैडम, उनकी वकील और उनके माता-पिता बैठ गए, मैं लास्ट वाली कुर्सी पर बैठ गया.सबसे पहले सर के वकील ने मेरी तरफ ऊँगली करते हुए कहा; 'ये लड़का जिसका नाम सागर है, इसका मेरी मुवकिल की पत्नी से नाजायज संबंध हे.' ये सुनते ही मेरे जिस्म में आग लग गई और मैं एक दम से उठ खड़ा हुआ और जोर से बोला; 'ये क्या बकवास है? आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझ पर ऐसा गन्दा इल्जाम लगाने की?' मेरी आवाज सुन कर नितु मैडम की वकील बोल पड़ी; 'सागर .. प्लीज आप चुप हो जाओ.' मैं बाहर जाने लगा तो मैडम ने दबे होठों से 'प्लीज' कहा इसलिए मैं गुस्से में बैठ गया.'सिर्फ यही नहीं ये लड़का इनके (नितु मैडम) साथ मुंबई भी गया था. वो भी अकेला!' सर का वकील बोला अब ये तो मेरे लिए सुनना मुश्किल था इसलिए मैं तमतमाते हुए बोला; 'मुंबई जाने का प्लान इन्होने (सर ने) ही बनाया था और टिकट्स अपनी और मेरे नाम की बुक की थीं, जब मैं स्टेशन पहुंचा तो वहां जा के पता चला की इनकी जगह मॅडम जा रहीं हे. इसमें मैं क्या करता?' मेरा जवाब सुनते ही सर मुझे घूर के देखने लगे और ये मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ; 'क्या घूर रहा है? आई एम नॉट योवर इम्प्लोयी एनीमोर! आई क्वीट!!!” 'सागर...प्लीज चुप हो जाओ!' मैडम की वकील ने मिन्नत करते हुए कहा.
'बहुत पर निकल आये हैं तेरे? तू क्या क्वीट करेगा. मैं तुझे निकालता हूँ जॉब से और देखता हूँ कैसे तुझे कोई जॉब देगा.' सर ने मुझे धमकाते हुए कहा.
'तू मुझे निकालेगा? मेरी जॉब में रोडे अटकाएगा? रुक तू बताता हूँ तुझे! जाता हूँ मैं इनकम टैक्स ऑफिस और बताता हूँ जो तू रस्तोगी से फ़र्ज़ी बिल भरवाता है, अपने ही क्लाइंट्स को ओवरचार्ज करता हे. एक-एक का रिकॉर्ड है मेरे पास.... और जो तू ने इन्वेस्टर्स से अपनी मनमानी कंपनी में पैसे लगवाया है न... उन्हें भी मैं जा के बता के आता हु. ना तू मुझे इसी कोर्ट के चक्कर काटता हुआ मिला ना तो बताइओ.' मैंने सर को करारा जवाब दिया जिससे उनकी बोलती बंद हो गई.
मैडम की वकील साहिबा उठीं और मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे चुप-चाप बैठने को कहा. अब तो उन्हें बोलने के लिए और भी पॉइंट मिल गया था.
सर के वकील ने कुछ फोटोज जज साहब को दिखाईं, ये फोटोज वो थी जब मैंने मैडम को उस दिन बाइक पर जी. एस. टी. ऑफिस तक छोड़ा था और हम जब गलौटी कबाब खा रहे थे. जज साहब ने वो तसवीरें मैडम के वकील को दिखाईं और वो तसवीरें मैडम ने भी देखि. 'इससे क्या साबित होता है? क्या एक लड़का एक लड़की को लिफ्ट नहीं दे सकता? या उसके साथ कुछ खा नहीं सकता?' मैडम की वकील ने पूछा.
'अपनी मैडम को कौन लिफ्ट देता है? और ऑफिस अवर में चाट कौन खाता है?' सर के वकील ने पूछा.
'तो कानून की कौन सी किताब में लिखा है की आप बॉस की बीवी को लिफ्ट नहीं दे सकते? चाट खाने का भी कोई टाइम-टेबल होता है? कैसी छोटी सोच रखते हैं आप?' वकील साहिबा ने पूछा.
'उस दिन मैंने ही सागर जी से कहा था की वो मुझे जी. एस. टी.ऑफिस छोड़ दें और चूँकि लंच टाइम हो गया था तो हम 'कबाब' खा रहे थे. मुझे नहीं पता था की कुमार (सर) ने मेरे पीछे जासूस छोड़ रखे हैं!' मैडम ने सफाई दी. इसी बीच मैंने टेबल पर से एक कोरा कागज उठाया और अपना रेसिग्नेशन लेटर लिखने लगा;
डेट: २१/०९/२०१९
मिस्टर कुमार,
आई एम राईटींग यू टू इंफॉर्म ऑफ माई रेजीगनेशन इफेक्टिव इमेडीयटली. दीं टाइम स्पेंट वर्किंग फॉर यू ह्याज बिन अ कोलोजल वेस्ट ऑफ माई टाइम.योवर बिजिनेस इज दीं मोस्ट करप्ट अँड फ्रोड कंपनी आई कॅन इम्याजिन, अँड इट इज अब्सुलेटली अमेझिंग दॅट इट कंटीन्युअस टू ह्यांग ऑन!प्लीज सेंड माई फायनल पेचेक एट माई होम अड्रेस .
युआर एक्स एमप्लोई
सागर
मैडम की वकील साहिबा कुछ कहने ही वालीं थीं की मैंने अपना रेसिग्नेशन लेटर सर की तरफ सरका दिया. सब के सब उसी कागज की तरफ देखने लगे. मैंने अपने पेन का कैप बंद किया और अपनी जेब में रख लिया. 'ये क्या है?' सर के वकील ने जानबूझ कर पूछा.
'मेरा रेसिग्नेशन लेटर!' मैंने जवाब दिया तो सब के सब मुड़ के मेरी तरफ देखने लगे.
'ये तुम बाद में भी तो दे सकते हो?' सर का वकील बोला.
 

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