Erotica अनैतिक (hindi edition)- प्रियांशी जैन

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मैं आगे कुछ नहीं बोला और चुप-चाप चाय पीने लगा. चूँकि हम अयोध्या वासी हैं तो दशहरे पर बहुत धूम-धाम होती हे. हमारे गाँव के मुखिया हर साल इन दिनों में रामलीला का आयोजन जोर-शोर से करते हे. रावण का एक बहुत बड़ा पुतला बना कर फूँका जाता है, पर हमारे घर का हाल ये था की कोई भी सम्मिलित नहीं होता था. मैं जब छोटा था तब आशु को अपने साथ ले जाया करता था और वो भी जैसे ही रावण के पुतले में आग लगती तो भाग खडी होती! बाकी बचीं घर की औरतें तो वो छत पर खडी हो जातीं और पटाखों का शोर सुन लिया करती. इस बार मैंने पहल की थी तो ताऊ जी मान ही गए, ताई जी. माँ और भाभी खुश थीं और मैं इसलिए खुश था की मेरा आशु को मनाने का प्लान कामयाब होने वाला था.
शाम ४ बजे सारे मैदान में पहुँच गए जो की घर से करीब १० मिनट ही दूर था. मैंने प्रकाश को इशारे से बुलाया तो उसने पिताजी, ताऊ जी और गोपाल भैया को आगे की लाइन में बिठा दिया. मुझे, आशु, भाभी, माँ और ताई जी को उसने पीछे वाली लाइन में बिठा दिया अपनी बीवी और माँ के साथ. इस बार के दशहरे की तैयारी उसी के परिवार ने की थी इसलिए वहाँ सिर्फ उसी का हुक्म चल रहा था. रामलीला शुरू हुई और मैंने सब की नजर बचाते हुए आशु का हाथ पकड़ लिया. पहले तो आशु हैरान हुई पर जब उसे एहसास हुआ की ये मेरा हाथ है तो वो मुस्कुरा दी और फिर से रामलीला देखने लगी. मैं धीरे-धीरे उसके हाथ को दबाता रहा और उसे इसमें बहुत आनंद आ रहा था. हम दोनों रामलीला के खत्म होने के दौरान ऐसे ही चुप-चाप एक दूसरे के हाथ को बारी-बारी दबाते रहे. जब रामलीला खत्म हुई तो बारी है रावण दहन की तो सभी उठ के उस तरफ चल दिये. पर घरवाले सभी वहीँ खड़े हो गए जहाँ हम बैठे थे, इधर आशु को उसकी कुछ सहेलियाँ मिल गईं और वो उनके साथ थोड़ा नजदीक चली गई जहाँ बाकी सब गाँव वाले थे. मैं आशु के पीछे धीरे-धीरे उसी तरफ बढ़ने लगा, 'अश्विनी तू तो शहर जा कर मोटी हो गई है!' आशु की एक दोस्त ने कहा. 'चल हट!' अश्विनी ने उस लड़की को कंधा मरते हुए कहा. 'सच कह रही हूँ, ये देख कितना बड़े हो गए हैं तेरे!' ये कहते हुए उसने आशु के कूल्हों को सहलाया. 'तेरी स्तन भी पहले से बढ़ गईं हैं...और तेरे होंठ! क्या करती है तू वहाँ शहर में? कोई यार ढूँढ लिया क्या?' आशु ने गुस्से से दोनों को कंधे पर घुसा मारा. 'ज्यादा बकवास ना कर मुँह नोच लूँगी दोनों का!' तीनों खड़े-खड़े हँस रहे और उनकी बात सुन कर मैं भी मन ही मन हँस रहा था. जैसे ही दहन शुरू हुआ और पटाखों की आवाज तक हुई मैंने आशु का हाथ पीछे से पकड़ा और उसे खींच कर ले जाने लगा. आशु पहले तो थोड़ा हैरान थी की आखिर कौन उसे खींच रहा है पर जब उसने मुझे देखा तो मेरे साथ चल पडी. भीड़ में कुछ भगदड़ मची क्योंकि सब लोग बहुत नजदीक खड़े थे और ऐसे में जिस किसी ने भी हमें वहाँ से जाते देखा वो यही सोच रहा होगा की ये दोनों शोर सुन कर जा रहे हे.
मैं आशु को घर की बजाये दूर प्रकाश के खेतों में ले गया, वहाँ प्रकाश के खेतों में एक कमरा बना था जहाँ वो अपना माल छुपा कर रखता था. उस कमरे में आते ही मैंने दरवाजा बंद कर दिया और कमरे में घुप अँधेरा छा गया.मैंने फ़ोन की टोर्च जला कर उसे चारपाई पर रख दिया और आशु के चेहरे को थाम कर उसके होठों को बेतहाशा चूमने लगा. समय कम था. इसलिए मैं जमीन पर घुटनों के बल बैठा गया और आशु को अभी भी दरवाजे के बगल में खड़ा रखा. उसके कुर्ते में हाथ डाल कर उसकी पजामी का नाडा खोला और उसे जल्दी से नीचे सरकाया फिर आशु की योनी पर अपने होंठ रखे. पर तभी उसकी कच्छी बीच में आ गई! मैंने जल्दी से उसे भी नीचे सरकाया और अपनी लपलपाती हुई जीभ से आशु की योनी को चाटा. मिनट भर में ही उसकी योनी पनिया गई और उसने मुझे ऊपर खींच कर खड़ा किया. मैंने उसे गोद में उठाया और चारपाई पर लिटा दिया. में आशु के ऊपर छा गया, दोनों की सांसें धोकनी की तरह चल रही थी. मैंने और देर न करते हुए अपने लिंग को आशु की योनी में ठेल दिया. लिंग सरसराता हुआ आधा अंदर चला गया और इधर आशु ने जोश में आते हुए अपने दोनों हाथों से मुझे अपने जिस्म से चिपका लिया. मैंने नीचे से कमर को और ऊपर ठेला और पूरा का पूरा लिंग जड़ समेत उसकी योनी में उतार दिया. आशु ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में थामा और मेरे होठों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगी. मैंने नीचे से तेज-तेज झटके मारने शुरू किये और ७-८ मिनट में ही दोनों का छूट गया! साँसों को दुरसुत कर दोनों खड़े हुए और अपने-अपने कपडे ठीक किये. आशु और मैं दोनों तृप्त हो चुका थे.उसके चेहरे पर वही ख़ुशी लौट आई थी. बाहर निकलने से पहले उसने फिर से मुझे अपनी बाहों में कैद किया और मेरे होंठों को अपने मुँह में भर के चूसने लगी. मुझे फिर से जोश आया और मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और दिवार से सटा कर उसके निचले होंठ को अपने मुँह में भर के चूसने लगा. मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और आशु उसे चूसने लगी. तभी मेरा फ़ोन वाइब्रेट करने लगा तो हम दोनों अलग हुए पर दोनों की साँसे फिर से तेज हो चली थीं, प्यार की आग फिर भड़क गई थी. पर समय नहीं था इसलिए मैंने आशु से कहा; 'आज रात!' इतना सुनते ही आशु खुश हो गई. मैंने दरवाजा खोला और बाहर आ कर देखा की कोई है तो नहीं, फिर आशु को बाहर आने का इशारा किया. आशु को घर की तरफ चल दी और मैं दूसरे रास्ते से घूमता हुआ घर पहुंचा. घर पर सब आ चुके थे. और बाहर अभी भी थोड़ी आतिशबाजी जारी थी. 'कहाँ रह गया था तू?' माँ ने पूछा. 'वो में प्रकाश के साथ था.' इतना कह कर मैं आंगन में मुँह-हाथ धोने लगा तो नजर आशु पर गई जो अब बहुत खुश थी! रात को खाना खाने के समय भी आशु के चेहरे से उसकी ख़ुशी टप-टप टपक रही थी जो वहाँ किसी से देखि ना गई;
भाभी: तू बड़ी खुश है आज?
ये सुनते ही आशु की ख़ुशी काफूर हो गई.
मैं: इतने दिनों बाद अपनी सहेलियों के साथ समय बिताया है, खुश तो होना ही है!मैंने आशु का बचाव किया, पर भाभी को ये जरा भी नहीं जचा और इससे पहले की वो कुछ बोलती ताई जी बोल पड़ी;
ताई जी: इस बार का दशहेरा यादगार था! वैसे तुम दोनों कहाँ गायब हो गए थे?
भाभी: हाँ...मैंने फ़ोन भी किया पर तुमने उठाया ही नहीं?
ताई जी ने मुझसे और आशु से पुछा, अब बेचारी आशु सोच में पड़ गई की बोले तो बोले क्या? ऊपर से भाभी के कॉल वाली बात से तो आशु सुलगने लगी थी. इसलिए मुझे ही बचाव करना पड़ा;
मैं: आशु तो अपनी सहेलियों के साथ आगे चली गई थी और मैं प्रकाश के साथ था. भाभी का फ़ोन आया था पर शोर-शराबे में सुनाई ही नहीं दिया!
ताई जी: अच्छा... वैसे बिटवा तूने आज बड़े सालों बाद रामलीला दिखाई.
अब ताई जी क्या जाने की मेरा असली प्लान क्या था इसलिए मैं बस मुस्कुरा दिया. खाना खाने के बाद मैं छत पर टहल रहा था. तभी आशु ऊपर आई और मुझसे कुछ दूरी पर खड़ी हो गई; 'आज रात का वादा याद है ना?' आशु ने मुझे मेरा किया वादा याद दिलाया, मन तो कर रहा था की थोड़ा और मजाक करूँ ये कह के की कौन सा वादा पर जानता था की ये सुन कर आशु बिदक जाएगी! मैंने बस हाँ में सर हिलाया और फिर आशु मुस्कुराती हुई नीचे चली गई. अभी सब लोग आंगन में ही बैठे थे की पिताजी ने मुझे नीचे से आवाज दे कर बुलाया. मैं नीचे आया तो कुछ जरुरी बातें हुई जमीन को ले कर और फिर मुझसे पुछा गया की मैं वापस कब जा रहा हूँ? 'कल सुबह' मैंने बस इतना कहा और फिर सब अपने-अपने कमरों में जाने को चल दिये. मैं भी अपने कमरे में आ गया और कुछ देर बाद आशु भी ऊपर आ गई. वो मेरे दरवाजे की चौखट पर हाथ रख खड़ी हो गई; 'बारह बजे मैं आपका इंतजार करूँगी!' मैंने बस मुस्कुरा कर हाँ कहा और वो अपने कमरे में चली गई और मुझे उसके दरवाजा बंद करने की आवाज आई. रात बारह बजे तक मैं जागा रहा और फ़ोन में कुछ मैसेज देखने लगा. ठीक बारह बजे मैं उठा और आशु के कमरे का दरवाजा धीरे से खोला, आशु पलंग पर बैठी थी:
आशु मुस्कुराती हुई मेरा ही इंतजार कर रही थी. उसके कमरे में एक लाल रंग का जीरो वाट का बल्ब जल रहा था. उसे ऐसे देखते ही मैं एक पल के लिए दरवाजे पर ही रूक गया और चौखट से सर लगा कर उसे निहारने लगा. मैं धीरे से उसके नजदीक पहुँचा पर नजरें उस पर से हट ही नहीं रही थी. आशु ने अपना दायाँ हाथ बढ़ा कर मुझे अपने पास बुलाना चाहा. मैंने उसका हाथ थाम लिया और फिर उसके पास पलंग पर बैठ गया.मैंने आशु के चेहरे को थामा और उसे किस करने ही जा रहा था की नीचे से मुझे बड़ी जोर की खाँसने की आवाज आई. ये आवाज ताऊ जी की थी जिसे सुनते ही हम दोनों के तोते उड़ गए! मैं छिटक कर आशु के पलंग से खड़ा हुआ और आशु भी बहुत घबरा गई थी और मेरी तरफ डर के मारे देख रही थी. मैंने उसे ऊँगली से छुपा रहने का इशारा किया और धीरे से दरवाजे की तरफ बढ़ा, बाहर झाँका तो वहाँ कोई नहीं था. मैंने चैन की साँस ली, फिर थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए मैंने नीचे आंगन में झाँका तो पाया की ताऊ जी बाथरूम में घुस रहे थे. मैं वापस आशु के कमरे में आया और उसे बताया की ताऊ जी बाथरूम में घुसे हे. अब ये तो साफ़ था की अब कुछ नहीं हो सकता इसलिए मैं दबे पाँव अपने कमरे में आ गया और लेट गया.
रात के एक बजे थे और मुझे झपकी लगी थी की आशु मेरे कमरे में आई और और झुक कर मेरे होठों को चूसने लगी. मैंने तुरंत आँख खोली और जब नजरें आशु पर पड़ीं तो मैं निश्चिंत हो गया और उसके होठों को चूसने लगा. दरअसल मैं दरवाजा बंद करना भूल गया था. इसलिए आशु चुप-चाप अंदर आ गई थी. इधर आग दोनों के जिस्म में भड़क चुकी थी पर कुछ भी करना खतरे से खाली नहीं था! मैंने आशु को रोका और उठ बैठा; 'जान! मेरा भी बहुत मन है पर यहाँ घर पर कुछ भी करना ठीक नहीं है! कल कॉलेज की छुट्टी कर ले और फिर वो पूरा दिन हम दोनों एक साथ होंगे!' ये सुन कर आशु का मुंह फीका पड़ गया और वो मुड़ कर जाने लगी. अब मुझसे उसका ये उदास चेहरा देखा नहीं गया, मैं पलंग से उतरा और आशु का हाथ पकड़ कर खींच कर उसे छत पर ले गया.छत की पैरापेट वाल थोड़ी ऊँची थी. करीब ४ फुट की होगी, मैं वहाँ नीचे बैठ गया और आशु को भी अपने पास बिठा लिया. हम दोनों कुछ इस तरह बैठे थे की अगर कोई ऊपर चढ़ कर आता तो हमें साफ़ दिखाई दे जाता पर वो हमें नहीं देख पाता.उससे हमें इतना समय तो मिल जाता की हम एक दूसरे से अलग हो कर बैठ जाये. हाँ वो इंसान जब छत पर आ जाता तो ये सवाल जरूर आता की तुम दोनों छत पर अकेले क्या कर रहे हो? ये वो एक सवाल था जिसका हमारे पास कोई जवाब नहीं होता, पर जब प्यार किया है तो रिस्क तो लेना ही पड़ता हे. सवाल के जवाब में झूठ बोलने के अलावा कोई और चारा नहीं था हमारे पास. खेर मे नीचे बैठा था और अपनी दोनों टांगें 'वी' के अकार में खोल रखी थी. मैंने आशु को ठीक बीच में बैठने को कहा, आशु बैठ गई और अपना सर मेरे सीने से टिका दिया. हम दोनों ही आसमान में देख रहे थे. चांदनी रात में टीम-टिमाते तारे देखने का मजा ही कुछ और था. ऊपर से चारों तरफ सन्नाटा और हलकी-हलकी हवा ने समा बाँध रखा था.
आशु: जानू! आपको पता है आज क्या हुआ?
मैं: क्या हुआ? (मैंने आशु के गाल को चूमते हुए कहा)
आशु: ससस... मेरी सहेलियाँ कह रही थी की मैं मोटी हो गई हूँ? मेरी नितंब , स्तन और मेरे ओंठ मोटे हो गए हैं, और ये सब आपकी वजह से हुआ है?
मैं: शिकायत कर रही हो या कॉम्पलिमेंट दे रही हो?
आशु: कॉम्पलिमेंट
मैं: आई फील यू आर रेडी टू बी अ मदर!
आशु: सच? तो कब बंद करूँ वो प्रेगनेंसी वाली गोली लेना? (उसने मजाक में कहा.)
मैं: पागल! (मैंने आशु के दूसरे को गाल को चूमते हुए कहा.)
आशु: ससस... सच्ची जानू! आपने मेरे बदन को तराशने में बड़ी मेहनत की है!
मैं: हम्म्म... (मैं आशु की जुल्फों की महक सूंघते हुए बोला.)
अब आशु ने अपने दाहिने हाथ को मेरी जाँघ पर रख उसे सहलाने लगी जिसका सीधा असर मेरे लिंग पर हुआ. उसे फूल कर खड़ा होने में सेकंड नहीं लगा और वो आशु की कमर पर अपनी दस्तक देने लगे. आशु मेरी तरफ घूमी और प्यासी नजरों से मुझे देखने लगी. पर वहाँ कुछ भी कर पाना बहुत बड़ा रिस्क था! पर प्यास तो लगी थी. और उसे बुझाना तो था ही! मैंने आशु को ऐसे ही बैठे रहने को कहा और मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी पजामी के नाड़े को खोलना शुरू कर दिया. नाडा खोल कर मैंने अपना दाहिना हाथ अंदर डाला तो पाया की आशु ने पैंटी नहीं पहनी, मतलब वो पहले से ही तैयारी कर के बैठी थी! मैंने अपनी बीच वाली ऊँगली को आशु की योनी में सरकाया तो पाया की वो तो पहले से ही गीली हे. 'मेरी जान को प्यार चाहिए?' मैंने पुछा तो आशु ने सीसियाते हुए 'हाँ' कहा. मैंने अपनी ऊँगली से आशु की योनी की फांकों को सहलाना शुरू कर दिया और आशु ने अपने आप को मेरी छाती से दबाना शुरू कर दिया. मैंने अपनी तीनों उँगलियों से आशु की योनी की फाँकों को धीरे-धीरे मनसलना शरू कर दिया. और आशु का कसमसाना शुरू हो गया.मैंने अपनी दो उँगलियाँ उसके योनी में डाली और उन्हें आशु की योनी में गोल-गोल घुमाने लगा. अब आशु ने अपनी कमर को मेरे लिंग पर और दबाना शुरू कर दिया. 'जानू...ससस....!!!! आपको नहीं पता ये नौ दिन मैंने कैसे तड़प-तड़प के निकाले हैं!' मुझे आशु की प्यास का अंदाज हो चला था तो मैंने अपनी दोनों उँगलियाँ उसकी योनी में तेजी से अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी. 'उम्ममम ...ससस... और कितना ...स..ससस...तड़पाओगे?' आशु ने धीमी आवाज में सिसकते हुए कहा. 'जान! प्लीज आज रात इसी से काम चला लो कल शहर पहुँच कर कपडे फाड़ के संभोग करेंगे!' मैंने अब भी आशु की योनी में अपनी ऊँगली अंदर-बाहर किये जा रहा था. आशु की आँखें बंद हो चलीं थी और उसके दोनों हाथ मेरी जाँघ पर थे. 'ससस...जानू!! ....ससस...पिछले कुछ दिनों से में डरी हुई थी...स्स्स्साहह... मुझे लगा ....मेरे जिस्म का जादू आप पर से उतर गया!' आशु के मुँह से अनायास शब्दों ने मेरा ध्यान खींचा, अब मुझे जानना था की आशु किस जादू की बात कर रही है इसलिए मैंने और तेजी से उसकी योनी की ठुकाई अपनी उँगलियों से शुरू कर दी!| आशु इस आनंद से फिसल कर आगे की ओर जाने लगी तो मैंने अपने बाएँ हाथ को उसके पेट पर रखा और उसे आगे फिसलने नहीं दिया. 'ममममममम.... उस सससस....हरामजादी .....ने मुझे एक बात सिखाई थी.... की अपने बंदे को अपने काबू में रखना है तो उसे अपनी योनी से बाँध कर रख! आअह..सससस....' अब मुझे सब कुछ समझ आने लगा था! आशु का अचानक से संभोग में इतना 'निपुण' हो जाना सिर्फ उसकी इनसिक्युरीटी को छुपाने के लिए एक पर्दा था. मैं उसे छोड़ कर किसी और के पास ना जाऊँ इसलिए आशु इस तरह मुझसे चिपकी रहती थी. मैंने उसे इतनी बार भरोसा दिलाया, कसमें खाईं पर उसे क्यों यक़ीन नहीं होता की मैं बस उसका हु. उसका ये पजेसिव होना अब सारी हदें पार कर रहा है, अगर इसने अपनी जलन और इनसिक्युरीटी के चलते किसी के सामने कुछ बक दिया तो? वो दिन हम दोनों का अंत होगा! पर आखिर कारन क्या है की आशु इस कदर इनसिक्युअर है? मैंने ऐसा क्या कर दिया की उसे ये इनसिक्युरीटी होती है? वेट अ मिनिट ..... ये मुझसे प्यार भी करती है या फिर ये सिर्फ इसकी संभोग की भूख है?!! मैं यही सब सोच रहा था और अपनी उँगलियों को आशु की योनी में तेजी से अंदर-बाहर किये जा रहा था. अब आशु छूटने वाली थी और उसने अपने नाखून मेरी जाँघ में गाड़ दिए थे जिससे मैं अपने ख्यालों से बाहर आया और अगले ही पल आशु झड़ गई और निढाल हो कर मेरी छाती पर सर रखे हुए लेटी रही.
ये तो साफ़ था की मैं चाहे कुछ भी कह लूँ या भले ही अपना दिल निकाल कर आशु के सामने रख दूँ ये मानने वाली नहीं हे. अगर इससे प्यार न करता तो अब तक इसे छोड़ देता पर साला अब करूँ क्या ये नहीं पता! ऊपर से मैं भी बावला हो चला था जो आशु के चक्कर में एक से बढ़कर एक बावलापे करने लगा था? क्या जरुरत थी तुझे हरामी यहाँ छत पर खुले में ये सब करने की? पर अगर ये ना करता तो मुझे ये सब कैसे पता चलता? तुझे जरा भी डर नहीं लगा की तू इस तरह आशु को अपने लिंग से चिपटाये पड़ा है? भूल गया वो खेत के बीचों बीच पेड़ की डाल पर लटक रहे भाभी और उनके प्रेमी की अस्थियाँ? वहीँ जा कर मरना है तुझे? और ये क्या तूने आशु को अपने सर पर चढ़ा रखा है? हरामी उसकी हर एक ख्वाइश पागलों की तरह पूरी करता है और बदले में उसे ही तेरे ऊपर विश्वास नहीं! ये कैसा प्यार है?
आशु की सांसें दुरुस्त होने तक मेरा ही दिमाग मेरे दिल को गरिया रहा था. 'जानू! क्या सोच रहे हो?' आशु ने मुझे झिंझोड़ा तो मैं अपने 'मन की अदालत' से बाहर आया. मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया बल्कि अपनी टांगें मोड़ कर आशु के इर्द-गिर्द से हटाईं और उठ खड़ा हुआ. आशु फटाफट खडी हुई और मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया; 'क्या हुआ? कहाँ जा रहे हो?' मैं अब भी कोई जवाब नहीं दिया और उसके हाथों की गिरफ्त से अपना हाथ छुड़ाया और आंगन में आ गया.आशु छत पर से नीचे झाँकने लगी और फिर उसे मैं बाथरूम में जाता हुआ नजर आया. आशु छत पर खडी नीचे देखती रही और इंतजार करने लगी की मैं बाथरूम से कब निकलुंगा. मैंने निकल कर ऊपर देखा तो वो अब भी वहीँ खड़ी थी और मेरे ऊपर आने का इंतजार कर रही थी. मैं अगर उस समय ऊपर जाता तो वो मुझसे पूछती की मेरे उखड़ जाने का कारन क्या है और तब मेरा कुछ भी कहना बवाल खड़ा कर देता, ऐसा बवाल जिसे सुन आज काण्ड होना तय था. इसलिए में आंगन में पड़ी चारपाई पर ही लेट गया पर आशु अपनी जगह से टस से मस ना हुई और टकटकी बांधे मुझे देखती रही. मैंने अपनी आँखें बंद की और सोने की कोशिश करने लगा, जो बात मेरे दिम्माग में चल रही थी वो ये थी की मुझे अपने दिल पर काबू रखना होगा वरना आशु मुझे कहीं फिर से अपनी जिस्म के जरिये पिघला ना ले.
पिछले नौ दिनों से जो हम दोनों के बीच जिस्मानी दूरियाँ आई थी उससे कुछ तो काम आसान हो गया था पर आज उस कर्म वाले काण्ड ने फिर से उस दबी हुई आग को हवा दे दी थी. शायद इस तरह उससे दूरियाँ बनाने से आशु को कुछ अक्ल आये, अब क्योंकि उसकी हर ख़ुशी पूरी करने के चक्कर में मैं अपनी और नहीं लगवाना चाहता था. शादी के बाद चाहे वो मुझसे जो करवा ले पर उससे पहले तो हम दोनों को म्याचुरिटी दिखानी होगी. पर दिमाग जानता था की कुछ होने वाला नहीं है...काण्ड तो होना ही है! इधर आशु की हिम्मत नहीं हो रही थी की वो नीचे आ कर मुझसे पूछ सके की मैं क्यों उसके साथ ऐसा बर्ताव कर रहा हूँ? वो पैरापिट वाल पर अपनी कोहनियाँ टिकाये मुझे बस देखती रही! वो पूरी रात मैं बस करवटें बदलता रहा और बार-बार आशु को खुद को देखते हुए नोटीस करता रहा.
सुबह हुई तो ताई जी उठ के आंगन में आईं; 'अरे बिटवा? तू यहाँ क्या कर रहा है?' उन्होंने पूछा. उन्हें देखते ही आशु नीचे आ गई; 'ताई जी..वो रात को पेट ख़राब हो गया था इसलिए मैं नीचे ही लेट गया.' मैंने झूठ बोला. ताई जी मेरे पास बैठ गईं और आशु बाथरूम में नहाने घुस गई और फ्रेश हो कर चाय बनाने लगी. मैं भी उठा और नहा धो के तैयार हो गया और अब तो घर वाले सब बारी-बारी नाहा के नाश्ते के लिए तैयार बैठे थे. 'सागर, गोपाल भैया तुम लोगों के साथ जायेगा.' ताऊ जी ने कहा और मैंने बस 'जी' कहा. पर ये सुनते ही आशु को बहुत गुस्सा आया, वो सोच रही थी की वो शहर जा कर मुझसे कल रात के उखड़ेपन का कारन पूछेगी पर गोपाल भैया के साथ जाने से उसके प्लान पर पानी फिर गया था. पर मुझे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा था. नाश्ता कर के हम तीनों निकले और बस स्टैंड तक पैदल चल दिये. आशु पीछे थी और आगे-आगे मैं और गोपाल भैया थे. वो अपनी बातें किये जा रहे थे और मैं बस हाँ-हुनकुर ही कर रहा था. बस आई और हम तीनों चढ़ गए, आशु तो एक अम्मा के साथ बैठ गई. हम दोनों खड़े रहे और कुछ देर बाद हमें सीट मिल गई. मुझे नींद आ रही थी तो मैं खिड़की से सर लगा कर सो गया पर आशु के मन में उथल-पुथल मची थी. बस स्टैंड पहुँच कर गोपाल भैया को तहसीलदार के जाना था और उसे वहाँ का कुछ पता नहीं था तो हमने एक ऑटो किया और उसमें बैठ गये. सबसे पहले आशु हुई, फिर मैं और आखरी में गोपाल भैया घुसा. मैं आशु की तरफ ना देखकर सामने देख रहा था. अब आशु मुझसे बात करने को मरे जा रही थी पर अपने बाप के डर के मारे कुछ कह नहीं पा रही थी. आशु ने चुपके से मेरा दाहिना हाथ पकड़ लिया पर मैंने किसी तरह हाथ छुड़ा लिया और गोपाल भैया से बात करने लगा. पहले आशु का कॉलेज आया और उसे वहाँ उतारने लगे तो लगा जैसे वो जाना ही ना चाहती हो! 'जा ना?' मैंने कहा तो आशु सर झुकाये कॉलेज के गेट की तरफ चली गई और हमारा ऑटो तहसीलदार के ऑफिस की तरफ चल दिया. गोपाल भैया को वहाँ छोड़ कर मैं घर आ गया और मेल देखने लगा की शायद कोई जॉब ओपनिंग आई हो. एक मेल आई थी तो मैं वहाँ इंटरव्यू के लिए चल दिया. शाम को ४ बजे घर पहुँचा और आ कर ऐसे ही लेट गया.ठीक ५ बजे दरवाजे पर दस्तक हुई और मैंने जब दरवाजा खोला तो सामने आशु खड़ी थी.
आशु बिना कुछ कहे अंदर आई और दरवाजा उसने लात मार कर मेरी आँखों में देखते हुए बंद किया. फिर अगले ही पल उसकी आँखें छल-छला गईं और उसने मेरी कमीज का कालर पकड़ लिया और मुझे पीछे धकेलने लगी. 'क्या कर दिया मैंने जो आप मुझसे इस तरह उखड़े हुए हो? कल रात से ना कुछ बोल रहे हो न कुछ बात कर रहे हो? ऐसा क्या कर दिया मैंने? कम से कम मुझे मेरा गुनाह तो बताओ? आपके अलावा मेरा है कौन और आप हो की मुझसे इस तरह पेश आ रहे हो?' आशु एक साँस में रोते-रोते बोल गई पर उसका मुझे पीछे धकेलना अब भी जारी था. मैंने पहले खुद को पीछे जाने से रोका और फिर झटके से उसके हाथों से अपना कालर छुड़ाया और बोला; 'गलती पूछ रही है अपनी? तूने मुझे समझ क्या रखा है? तुझे क्या लगता है की तू मुझे अपने जिस्म की गर्मी से पिघला लेगी? तुझे इतना समझाया, इतनी कसमें खाईं की मैं तुझसे प्यार करता हूँ और सिर्फ तेरा हूँ पर तेरी ये इनसिक्युरीटी खत्म होने का नाम ही नहीं लेती? इसी लिए जयपुर से आने के बाद मुझसे इतना चिपक रही थी ना? मैं तो साला तेरे चक्कर में पागल हो गया था. तुझे गाँव छोड़ के उल्लू की तरह जागता रहता था. तेरे जिस्म ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा था. वो तो शुक्र है की मैंने व्रत रखे और खुद पर काबू पाया वरना मैं भी तेरी तरह हरकतें करता! क्या-क्या नहीं किया मैंने तेरे प्यार में और तुझे ये सब मज़ाक लग रहा है? तुझे मनाने के लिए क्या-क्या नहीं किया मैंने? इतना जोखिम उठा कर कल पहले तुझे खेतों में ले गया और फिर पहले तेरे कमरे में आना और वो रात को छत पर बैठना? पर तुझे तो बस अपने जिस्म की आग बुझानी है मुझसे! एक दिन अगर तुझे मैं ना छुओं तो तेरे बदन में आग लग जाती है! तुझे पता भी है की तू अपनी इस जलन के मारे कब क्या बोल देती है की तुझे खुद नहीं पता होता. क्या जरुरत थी तुझे आंटी जी से कहने की कि मेरी जॉब चली गई? अगर मैं बात नहीं पलटता तू तो वहाँ सब कुछ बक देती!
निशा को तू जानती है ना, वो मुँहफ़ट है पर दिल की साफ़ हे. वो जानबूझ कर मुझसे मज़ाक करती है और ये सुन कर तुझे किस बात का गुस्सा आता है? भाभी को भी तू अच्छे से जानती है ना? उसके मन में क्या-क्या है वो सब जानती है तू और तूने ही मुझे उनके बारे में आगाह किया था पर आज तक मैंने कभी उनकी तरफ आँख उठा के नहीं देखा. जब मैं बिमारी में गाँव गया था तो उसने क्या-क्या नहीं किया मुझे उकसाने के लिए. पर तेरे प्यार की वजह से मैं नहीं बहका, इससे ज्यादा तुझे और क्या चाहिए?
देख मैं तुझे आज एक बात आखरी बार बोल देता हूँ, आज के बाद अगर मुझे ये तेरी इनसिक्युरीटी दिखाई दी तो दिस विल् बी दीं एंड ऑफ अवर रिलेशनशिप!” मेरी बातें सुन आशु फफक के रोने लगी और अपने घुटनों के बल बैठ गई और हाथ जोड़ कर मिन्नत करते हुए बोली; 'मुझे माफ़ कर दो! प्लीज ....मेरा आपके अलावा और कोई नहीं! ये सच है की मैं इनसिक्युअर हूँ आपको ले कर पर ये भी सच है की मैं आपसे सच्चा प्यार करती हु. मैंने आपसे प्यार संभोग के लिए नहीं किया, बल्कि इसलिए किया क्योंकि इस दुनिया में सिर्फ एक आप हो जो मुझसे प्यार करते हो.'
'तो तुझे ये बात समझ में क्यों नहीं आती की मैं सिर्फ तुझसे प्यार करता हूँ? मैंने आज तक तेरे सामने कभी किसी से फ्लर्ट नहीं किया तो ये काहे बात की इनसिक्युरीटी है?! तुझे ऐसा क्यों लगता है की तुझ में कुछ कमी है? मैं तुझे छोड़ कर किसके पास जाऊँगा? बोल???'
'मुझे नहीं पता...बस डर लगता है की कोई आपको मुझसे छीन लेगा!' आशु ने अपने दोनों हाथों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया.
'कोई और नहीं....तू खुद ही मुझे अपने से दूर कर देगी.' मैंने खुद को उसकी गिरफ्त से आजाद करते हुए कहा.
'नहीं ...प्लीज ऐसा मत कहिये!'
'तुझे पता है मैं कितनी परेशानियों से जूझ रहा हूँ? कितनी जिम्मेदारियाँ मेरे सर पर हैं? जॉब नहीं है, सेविंग्स नहीं हैं और दो साल बाद हमें भाग कर शादी करनी है! क्या-क्या मैनेज करूँ मैं? मैंने तुझसे आजतक कुछ माँगा है? नहीं ना? फिर? '
'एक लास्ट चांस दे दो!आई प्रॉमिस ... अब ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी!आई प्रॉमिस ...!!!' आशु ने अपने आँसू पोछे और सुबकते हुए कहा. पर में जानता था की इसके मन की ये सोच कभी नहीं जा सकती. पर सिवाए कोशिश करने के मैं कुछ कर भी नहीं सकता था. प्यार जो करता था उस डफर से! मैं उसके सामन घुटनों पर बैठा और अपने बाएं हाथ से उसके बाल पकडे और उन्हें जोर से खींचा की आशु की गर्दन ऊपर को तन गई और उसकी नजरें ठीक मेरे चेहरे पर थीं;
'मैं बस तेरा हूँ...समझी?' आशु ने सुन कर हाँ में सर हिलाया पर मैं उससे 'हाँ' सुनने की उम्मीद कर रहा था. उसके कुछ न बोलने और सिर्फ सर हिलाने से मुझे गुस्सा आया और मैंने उसके बाएँ गाल पर एक चपत लगाईं और अपना सवाल दुबारा पुछा; 'मैंने कुछ पुछा तुझसे? मैं सिर्फ तेरा हूँ.... बोल हाँ?' तब जा कर आशु के मुँह से हाँ निकला.
'तू सिर्फ मेरी है!' मैंने कहा.
'ह...हाँ!' आशु ने डर के मारे कहा.
'मैं किस्से प्यार करता हूँ?' मैंने आशु के गाल पर एक चपत लगाते हुए पूछा.
'म....मु...मुझसे!'
'तू किससे प्यार करती है?'
'आपसे!'
'और हम दोनों के बीच में कभी कोई नहीं आ सकता!' आशु ने ये सुन कर हाँ में गर्दन हिलाई पर मुझे ये जवाब नहीं सुनना था तो मैंने फिर से उसके गाल पर एक चपत लगाईं और तब जा कर आशु को समझ आया की मैं क्या सुनना चाहता हु.
'ह...हम दोनों के बीच...कोई नहीं आ सकता!' आशु ने घबराते हुए कहा.
आशु की आँखें रोने से लाल हो चुकी थीं और अब मुझे उस पर तरस आने लगा था. इसलिए मैंने उसके बाल छोड़ दिए और अपनी दोनों बाहें खोल दी. आशु घुटनों के बल ही मेरे सीने से लिपट गई और फिर से रोने लगी. मैंने आशु के बालों में हाथ फेरना शुरू किया ताकि उसका रोना काबू में आये; 'बस ...बस... हो गया! और नहीं रोना!' ये सुन आशु ने धीरे-धीरे खुद पर काबू किया और रोना बंद किया. मैंने उसे अपने सीने से अलग किया और उसके आँसू पोछे फिर मैं खड़ा हुआ और उसे भी सहारा दे कर खड़ा किया. 'जाके मुँह धो के आ फिर मैं तुझे हॉस्टल छोड़ देता हु.' आशु मुँह-धू कर आई और फिर से मेरे गले लग गई; 'आपने मुझे माफ़ कर दिया ना?' मैंने उसके जवाब में बस हाँ कहा और फिर उसे खुद से दूर किया और दरवाजा खोल कर बाहर उसके आने का इंतजार करने लगा. आशु बेमन से बाहर आई और शायद उसके मन में अब भी यही ख़याल चल रहा था की मैंने उसे माफ़ नहीं किया हे. मैंने पहले उसे उसका फ़ोन वापस किया और फिर नीचे से ऑटो कर उसे हॉस्टल छोडा. घर पहुँचा ही था की मेरा फ़ोन बज उठा, ये किसी और का नहीं बल्कि आशु का ही था. उसने सुमन के फ़ोन से मुझे कॉल किया था. ये सोच कर की मैं शायद उसका कॉल न उठाऊँ. मैंने कॉल उठाया' जानू! आपकी एक मदद चाहिए!'
'हाँ बोल' मैंने सोचा कहीं कोई गंभीर बात तो नहीं? पर अगर ऐसा कुछ होता तो वो उस वक़्त क्यों नहीं बोली जब वो यहाँ थी? 'वो कॉलेज के असाइनमेंट्स में एक प्रोजेक्ट मिला था. बाकी साब तो हो गया बस एक वही प्रोजेक्ट बचा हे.तो कल आप मेरा प्रोजेक्ट शुरू कर व दोगे?' मैं समझ गया की ये कॉल बस उसका ये चेक करना था की मैंने उसे माफ़ किया है या नहीं? 'कल शाम ५ बजे मुझे राम होटल पर मिल' अभी बात हो ही रही थी की मुझे पीछे से सुमन की आवाज आई; 'अश्विनी तेरी बात हो जाए तो मुझे फ़ोन दियो.' आशु ने बड़े प्यार से कहा; 'मेरी बात हो गई दीदी!' और उसने फ़ोन सुमन को दे दिया. 'सागर जी! मैं तो आपको अपना दोस्त समझती थी और अपने ही मुझे पराया कर दिया?'
'अरे! मैंने क्या कर दिया?' मैंने चौंकते हुए कहा.
'आप ने अपनी जॉब के बारे में क्यों नहीं बताया?' सुमन ने सवाल दागा.
'अरे...वो...याद नहीं रहा?' मैंने बहाना मारा.
'क्या याद नहीं रहा? वो तो माँ ने मुझे बताया तब जाके मुझे पता चला. मैं देखती हूँ कुछ अगर होता है तो आपको बताती हु.'
'थैंक यू' मैंने कहा. बस इसके बाद उसने मुझसे कहा की मैं उसे अपना रिज्यूमे भेज दूँ और वो एक बार अपनी कंपनी में बात कर लेगी. रात को बिना कुछ खाये-पीये ही लेट गया, आज जो मैं कहा और किया वो मुझे सही तो लग रहा था पर शायद मेरा आशु के साथ किया व्यवहार मुझे ठीक नहीं लग रहा था. मेरा उस पर गुस्सा निकालना ठीक नहीं था....शायद!
अगली सुबह उठा पर आज मुझे कहीं भी नहीं जाना था तो मैं घर के काम निपटाने लगा, झाडू-पोछा कर के घर बिलकुल चकाचक साफ़ किया फिर खाना खाया और फिर से सो गया.शाम को पाँच बजे मैं राम होटल पहुँचा तो देखा की आशु वहां पहले से ही खड़ी हे. हम दोनों पहले की ही तरह मिले और फिर उसने मुझे प्रोजेक्ट के बारे में बताया और हम दोनों उसी में लग गये. घण्टे भर तक हम उसी पर चर्चा करते रहे और थोड़ा हंसी मजाक भी हुआ जैसे पहले होता था. आगे कुछ दिनों तक इसी तरह चलता रहा, हमारा प्यार भरा रिश्ता वापस से पटरी पर आ गया था पर आशु अब मुझे नार्मल लग रही थी. मतलब अब उसका वो पजेसिवनेस और इनसिक्युअर होना कम हो गया था. मुझे नहीं पता की सच में वो खुद को काबू कर रही थी या फिर नाटक, मैंने यही सोच कर संतोष कर लिया की कम से कम अब वो पहले की तरह तो बीह्याव नहीं कर रही.
करवाचौथ से दो दिन पहले की बात थी और आशु मुझे कुछ याद दिलाना चाहती थी. पर झिझक रही थी की कहीं मैं उस पर बरस न पडूँ| मैंने फ़ोन निकाला और घर फ़ोन किया; 'नमस्ते पिताजी! एक बात पूछनी थी. दरअसल ऑफिस में काम थोड़ा ज्यादा है और बॉस ज्यादा छुट्टी नहीं देगा.तो अगर मैं करवाचौथ की बजाये दिवाली पर छुट्टी ले कर आ जाऊँ तो ठीक रहेगा?' मैंने जान बूझ कर बात बनाते हुए कहा, कारन साफ़ था की कहीं कोई यहाँ आशु को लेने ना टपक पडे. 'तूने वैसे भी करवाचौथ पर आ कर क्या करना था? शादी तो तूने की नहीं! पर दिवाली पर अगर यहाँ नहीं आया तो देख लिओ!' पिताजी ने मुझे सुनाते हुए कहा. 'जी जरूर! दिवाली तो अपने परिवार के साथ ही मनाऊँगा!' बस इतना कह कर मैंने फ़ोन रखा. आशु जो ये बातें सुन रही थी सब समझ गई और उसका चेहरा ख़ुशी से जगमगा उठा. 'कल सुबह मैं लेने आऊँगा, तैयार रहना!' मैंने मुस्कुराते हुए कहा और ये सुनके आशु इतना चिहुँकि की मुझे गले लगना चाहा, पर फिर खुद ही रूक गई क्योंकि हम बाहर पार्क में बैठे थे. मैंने मन ही मन सोचा की शायद आशु को अक्ल आ गई है!
अगली सुबह मैं जल्दी उठा और अपनी बुलेट रानी की अच्छे से धुलाई की, आयल चेक किया और फिर नाहा-धो कर आशु को लेने चल दिया. आशु पहले से ही अपना बैग टाँगे गेट पर खड़ी थी. मेरी बाइक ठीक हॉस्टल के सामने रुकी और वो मुस्कुराती हुई आ कर पीछे बैठ गई. मैंने बाइक सीधा हाईवे की तरफ मोड़ दी और आशु हैरानी से देखने लगी; 'हम घर नहीं जा रहे?' उसने पीछे बैठे हुए पूछा. तो मैंने ना में गर्दन हिलाई और इधर आशु का मुँह फीका पड़ गया, उसे लगा की हम गाँव जा रहे हे. एक घंटे बाद मैंने हाईवे से गाडी स्टेट हाईवे १३ पर गाडी मोडी तो आशु फिर हैरान हो गई की हम जा कहाँ रहे हैं? आखिर आधे घंटे बाद जब बाइक रुकी तो हम एक शानदार साडी की दूकान के सामने खड़े थे. आशु बाइक से उत्तरी और सब समझ गई और मेरी तरफ हैरानी से देखने लगी; 'जानू! आप.... थैंक यू!' वो कुछ कहने वाली थी पर फिर रूक गई. मैंने बाइक पार्क की और हम दूकान में घुसे और वहाँ आज बहुत भीड़भाड़ थी. ये दूकान मेरे कॉलेज के दोस्त की थी और मैं यहाँ से कई बार ताई जी और माँ के लिए साडी ले गया था.
मुझे देखते ही प्रसाद (मेरा दोस्त) काउंटर छोड़ कर आया और हम दोनों गले मिले 'अरे भाभी जी! आइये-आइये!' उसने आशु से हँसते हुए कहा. 'यार अभी शादी नहीं हुई है, होने वाली है!' मैंने कहा. 'तभी मैं सोचूँ की तूने शादी कर ली और मुझे बुलाया भी नहीं!' ये सुन कर हम तीनों हँसने लगे, प्रसाद ने अपने एक लड़के को आवाज दी: 'भाई और भाभी को साड़ियाँ दिखा और रेट स्पेशल वाले लगाना.'
'यार एक हेल्प और कर दे, स्टिचिंग कल तक करवा दे यार जो एक्स्ट्रा लगेगा मैं दे दूँगा!' मैंने कहा और वो ये सुन कर मुस्कुरा दिया.
'हुस्ना भाभी के पास माप दिलवा दिओ और बोलिओ प्रसाद भैया के भाई हैं.' मैंने उसे थैंक्स कहा, फिर वो वापस कॅश काउंटर पर बैठ गया और हम दोनों को वो लड़का साड़ियाँ दिखाने लगा. आज पहलीबार था की आशु अपने लिए साडी ले रही थी और बार-बार मुझसे पूछ रही थी की ये ठीक है? आखिर मैंने उसके लिए साडी पसंद की और फिर हम माप देने के लिए उस लड़के के साथ चल दिये. हुस्ना आपा बड़ी खुश मिज़ाज थीं और उन्होंने बड़ी बारीकी से माप लिया और ब्लाउज के कट के बारे में भी आशु को अच्छे से समझाया. जब मैंने पैसे पूछे तो उन्होंने २०००/- बोले जिसे सुनते ही आशु मेरी तरफ देखने लगी. पैसे ज्यादा थे पर साडी भी तो कल मिल रही थी. मैंने जेब से पैसे निकाल के उन्हें दिए और कल १२ बजे का टाइम फिक्स हुआ! हम वापस दूकान आये और कॅश काउंटर पर प्रसाद ने जबरदस्ती हमें बिठा लिया और चाय मँगा दी. मैंने जब उससे पैसे पूछे तो उसने २,५००/- कहा, जब की साडी पर ३,५००/- लिखा था. वो हमेशा जी मुझे होलसेल रेट दिया करता था. पर आशु के लिए तो ये भी बहुत था वो फिर से मेरी तरफ देखने लगी. मैंने पेमेंट कर दी और हम बाहर आ गए; 'जानू! आपने इतने पैसे क्यों खर्च किये?' आशु ने पुछा तो मैंने उसके दोनों गाल उमेठते हुए कहा; 'क्योंकि ये मेरी जान का पहला करवाचौथ है! इसे स्पेशल तो होना ही है?' आशु की आँखें भर आईं थी. मैंने उसके आँसू पोछे और हम घर के लिए निकल पडे. घर के पास ही बाजार था वहाँ मुझे मेहँदी लगाने वाली औरतें दिखीं तो मैंने आशु को मेहँदी लगवाने को कहा. मेहँदी लगवाने के नाम से ही वो खुश हो गई और फिर उसने अपने पसंद की मेहँदी लगवाई और मुझे दिखाने लगी. आखिर हम घर आ गए और अब भूख बड़ी जोर से लगी थी. इस सब में मैं कुछ खाने को लेना ही भूल गया, मैंने कहा की मैं खाना ले कर आता हूँ तो आशु मना करने लगी; 'मेरा मन आज मैगी खाने का हे.' आशु बोली और मैं समझ गया की वो क्यों मना कर रही है, मैं और पैसे खर्चा न करूँ इसलिए. मैंने मैगी बनाई और आशु को अपने हाथ से खिलाया क्योंकि उसके तो हाथों में मेहँदी लगी थी.
खाना खाने के बाद मैंने लैपटॉप पर एक पिक्चर लगा दी, आशु ने कहा की हम नीचे फर्श पर बैठें.मैं नीचे बैठा और अपनी दोनों टांगें वी के आकार में खोलीं और आशु मुझसे सट कर बीच में बैठ गई. लैपटॉप सेंटर टेबल पर रखा था. आशु ने अपना सर मेरी छाती पर रख दिया. अपने दोनों हाथ मेरी टांगों पर खोल कर रखे और सामने मुँह कर के पिक्चर देखने लगी. पिक्चर देखते-देखते आशु को नींद का झोंका आने लगा और उसकी गर्दन इधर-उधर गिरने लगी. मैंने अपने दोनों हाथों को आशु की गर्दन के इर्द-गिर्द से घुमाते हुए उसके होठों के सामने लॉक कर दिया. आशु ने मेरे हाथ को चूमा और फिर मेरी दाहिने बाजू का सहारा लेते हुए सो गई. शाम होने को आई थी और अब चाय बनाने का समय था. पर आशु ने बड़ी मासूमियत से अपने हाथ मुझे दिखाते हुए तुतला कर कहा: 'जानू! मेरे हाथों में तो मेहँदी लगी है! आप ही बना दो ना!' उसके इस बचपने पर ही तो मैं फ़िदा था! मैंने मुस्कुराते हुए चाय बनाई और अब बारी थी उसे चाय पिलाने की. हम दोनों फिर से वैसे ही बैठ गए और मैंने फूँक मार के उसे चाय पिलाई. सात बज गए पर आशु जानबूझ कर अब भी अपने हाथ नहीं धो रही थी. उसे मुझसे काम कराने में मजा आ रहा था. जब मैंने उससे पुछा की रात में क्या बनाऊँ तब वो हँसने लगी और बाथरूम में जा कर हाथ धोये और नहा कर आ गई. 'आप हटिये, मैं बनाती हूँ!' पर मेरी नजरें उसके हाथों पर थीं जिन पर मेहँदी फ़ब रही थी. मैंने उसके दोनों हाथों को पकड़ा और उन्हें चूम लिया. आशु शर्मा गई और फिर आशु ने भिंडी की सब्जी और उर्द दाल बनाई. खाना तैयार हुआ और हम दोनों बैठ गए खाने, पर इस बार खाना आशु ने मुझे खिलाया. पेट भर के खाना खाया और अब बारी थी सोने की पर आशु बस अपने मेहँदी वाले हाथ देखने में मग्न थी. 'क्या देख रही है?' मैंने मुस्कुराते हुए पूछा. उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपने पास बिठा लिया, फिर अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेट कर मेरे कंधे पर सर रखते हुए बोली; 'आज मैं बहुत खुश हूँ! आपने बिना मेरे मांगे मेरी हर इच्छा पूरी कर दी! मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की मुझे आज का दिन देखना नसीब होगा! साडी खरीदना... मेहंदी लगवाना...ये सब मेरे लिए लिए एक सपने जैसा हे. थैंक यू! फॉर मेकिंग दिस डे सो मेमोरेबल!' मैंने आशु के सर को चूमा और हम दोनों लेट गए, पर आज कमरे का वातावरण बहुत शांत था. पहले आशु लेटते ही जैसे अपना आपा खो देती थी और मुझसे चिपक कर चूमना शुरू कर देती थी. पर आज वो बस मुझसे कस कर लिपटी रही और सो गई. मैं इस उम्मीद में की आशु कोई पहल करेगी कुछ देर जागता रहा पर जब मुझे लगा वो सो चुकी है तो मैं भी चैन से सो गया.
अगली सुबह आशु पहले ही जाग चुकी थी और बाथरूम में नहा रही थी. मैं उठा और खिड़की से पीठ टिका कर हाथ बंधे आशु के बाहर निकलने का इंतजार करने लगा. १० मिनट बाद आशु निकली, टॉवल अपने स्तनों के ऊपर लपेटे हुए और उसके गीले बाल जिन से अब भी पानी की बूँदें टपक रही थी. साबुन और शैम्पू की खुशबू पूरे कमरे में भर गई थी और मैं बस आशु को देखे जा रहा था. मुझे खुद को देखते हुए आशु थोड़ा शर्मा गई और शर्म से उसके गाल लाल हो गये. 'क्या देख रहे हो आप?' उसने नजरें झुकाते हुए पूछा. 'यार या तो शायद मैंने कभी गौर नहीं किया या फिर वाक़ई में आज तुम्हें पहली बार इस तरह देख रहा हूँ! मन कर रहा है की तुम्हें अपनी बाहों में कस लूँ और चूम लूँ!' मैंने कहा तो आशु हँसने लगी; 'रात भर का सब्र कर लो, उसके बाद तो मैं आपकी ही हूँ!' 'हाय! रात भर का सब्र कैसे होगा!' मैंने कहाँ और आशु की तरफ बढ़ने लगा, पर मैंने उसे छुआ नहीं बल्कि बाथरूम में घुस गया.आशु उम्मीद कर रही थी की मैं उसे अपनी बाहों में भर लूँगा पर जब मैं उसकी बगल से गुजर गया तो वो थोड़ा हैरान हुई. जब मैं नहा कर निकला तो आशु अपने बाल सूखा रही थी. मैं बाहर आया और आशु से बोला; 'जल्दी से तैयार हो जाओ!'
'क्यों? अब कहाँ जाना है?' आशु ने रुकते हुए पूछा.
'पार्लर' ये सुन के आशु आँखें फाड़े मुझे देखने लगी!
'पर ...वहाँ....' आगे उसे समज ही नहीं आया की क्या बोलना हे.
'अरे बाबा! आज के दिन औरतें पार्लर जाती हैं और पता नहीं क्या-क्या करवाती हैं, तो तुम्हें भी तो करवाना होगा न?!' आशु ने तो जैसे सोचा ही नहीं था की उसे ऐसा भी करना होगा.
'पर ...मुझे तो पता नहीं...वहाँ क्या...' आशु ने डरी हुई आवाज में कहा क्योंकि वो आजतक कभी पार्लर नहीं गई थी. हमारे गाँव में तो कोई पार्लर था नहीं जो उसे ये सब पता होता.
'जान! वहाँ कोई एक्सपेरिमेंट नहीं होता जो तू घबरा रही है! जो सजने का काम तू घर पर करती है वही वो लोग करेंगे.' अब पता तो मुझे भी ज्यादा नहीं था तो क्या कहता.
'तो मैं यहीं पर तैयार हो जाऊँगी, वहाँ जा कर पैसे फूँकने की क्या जरुरत है?'
मैंने थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा. 'अच्छा? कहाँ है तेरे मेक-अप का सामान? ये एक नेल पोलिश....और ये एक फेसवाश....ओह वेट ये...ये फेस क्रीम...बस?! फाउंडेशन कहाँ है? और...वो क्या बोलते हैं उसे...मस्कारा कहाँ है?' ये एक दो नाम ऐसे थे जो मैंने कहीं सुने थे तो मैंने उन्हीं को दोहरा दिया. ये सुन कर तो आशु भी सोच में पड़ गई क्योंकि उसके पास कोई सामान था ही नहीं, वो मुझे सिंपल ही बहुत अच्छी लगती थी पर आज तो उसका पहला करवाचौथ था तो सजना-सवर्ना तो बनता था.
'पर वहाँ जा कर मैं बोलूं क्या? की मुझे क्या करवाना है? मुझे तो नाम तक नहीं पता की वो क्या-क्या करते हैं.' आशु ने पलंग पर बैठते हुए कहा.
'वहाँ जा कर पूछना की पायथ्यागोरस थ्योरम क्या होती है?' मैंने थोड़ा मजाक करते हुए कहा.
'वो तो मुझे आती है“ ये कहते हुए आशु हँसने लगी.
'तू ऐसे नहीं मानेगी ना? रुक अभी बताता हूँ तुझे मैं' इतना कह कर मैं आशु को पकड़ने को उसके पीछे भागा और हम दोनों पूरे घर में भागने लगे. मैं चाहता तो आशु को एक झटके में पकड़ सकता था पर उसके साथ ये खेल खलेने में मजा आ रहा था. वो कभी पलंग पर चढ़ जाती तो कभी दूसरे कोने में जा कर मुझे चीढाने की कोशिश करती.आखिर मैंने उस का हाथ पकड़ लिया और उसे बिस्तर पर बिठा दिया और उसके सामने मैं अपने घुटनों पर बैठ गया; 'देख...पार्लर जा और वहाँ जा कर मेनीक्योर, पेडीक्युर, ब्लिचिंग, फेशियल, थ्रीडिंग वगैरह-वगेरा करवा| फिर भी कुछ समझ ना आये तो अपना दिमाग इस्तेमाल कर और जो भी तुझे वहाँ पर ऑल - इन वन पैक मिले उसे करवा ले| वहाँ जो भी आंटी या दीदी होंगी उनसे पूछ लिओ और ये जो तेरे फ़ोन में गूगल बाबा हैं इनमें सर्च कर ले.अब मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ प्लीज चली जा!' मैंने आशु के आगे हाथ जोड़े और वो ये देख कर खिलखिलाकर हँस पडी. 'ठीक है जी! पर पार्लर तक तो छोड़ दो, मुझे थोड़े पता है यहाँ पार्लर कहाँ हे.' आशु ने हार मानते हुए कहा.
'इतने दिनों से या आती है तुझे ये नहीं पता की पार्लर कहाँ है?' मैंने आशु को प्यार से डांटा.
'आपके लिए चाय बना देती हूँ फिर चलते हैं.' आशु ने कहा पर मेरा प्लान तो उसके साथ व्रत रखने का था.
'बिलकुल नहीं! मेरी बीवी भूखी-प्यासी बैठी है और मैं खाना खाऊँ?' मेरे मुँह से बीवी सुनते ही आशु का चेहरे ख़ुशी से दमकने लगा.
'आप प्लीज फास्टिंग मत करो! ये फ़ास्ट तो औरतें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए करती हैं, ना की आदमी!'
'यार ये क्या बात हुई? मैं इतनी लम्बी उम्र ले कर क्या करूँगा अगर तुम ही साथ न हुई तो? बैलेंस बना कर रखना चाहिए ना?' मेरे तर्क के आगे उसका तर्क बेकार साबित हुआ पर फिर भी आशु ने बड़ी कोशिश की पर मैं नहीं माना और मैं भी ये व्रत करने लगा. आशु को पार्लर छोड़ा और मैं उसकी साडी लेने चल दिया.
हुस्ना आपा का शुक्रिया किया की उन्होंने इतने कम समय में काम पूरा किया और फिर वापस निकल ही रहा था की प्रसाद मिल गया.उससे कुछ बातें हुई और मुझे वापस आने में देर हो गई. दोपहर के ३ बजे थे और आशु का फ़ोन बज उठा. 'जान! मैं बाहर ही खड़ा हु.' ये सुनकर ही आशु ने फ़ोन काट दिया और जब वो बाहर निकली तो मैं उसे बस देखता ही रह गया.उसके चेहरे की दमक १००० गुना बढ़ गई थी. होठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक देख मन बावरा होने लगा था. आज पहली बार उसने आई लायनर लगाया था जिससे उसकी आँखें और भी कातिलाना हो गई थी. उसकी भवें चाक़ू की धार जैसी पतली थीं और मैं तो हाथ बाँधे बस उसे देखता रहा. आशु शर्म से लाल हो चुकी थी और ये लालिमा उसके चेहरे पर चार-चाँद लगा रही थी. 'जल्दी से घर चलिए!' आशु ने नजरें झुकाये हुए ही कहा.
'ना ...पहले मुझे आई लव यू कहो और एक किस दो!' मैंने आशु के सामने शर्त रखी.
'प्लीज ...चलो न...घर जा कर सब कुछ कर लेना...पर अभी तो चलो! मुझे बहुत शर्म आ रही है!'
'ना...मेरी गाडी बिना आई लव यू और 'किस' के स्टार्ट नहीं होगी.' माने अपनी बुलेट रानी पर हाथ रखते हुए कहा.
'सब हमें ही देख रहे हैं!' आशु ने खुसफुसाते हुए कहा.
 
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'तो? यहाँ तुम्हें जानने वाला कोई नहीं हे. किसी चाहिए मुझे!' मैंने अपने दाएँ गाल पर ऊँगली से इशारा करते हुए कहा. आशु जानती थी की मैं मानने वाला नहीं हूँ इसलिए हार मानते हुए उसने थोड़ा उचकते हुए मेरे गाल को जल्दी से चूम लिया और शर्म के मारे मेरे सीने में अपना चेहरा छुपा लिया. 'अच्छा बस! इतनी मेहनत लगी है इस चाँद से चेहरे को निखारने में, इसे खराब ना कर.' मैंने आशु को खुद से अलग किया. हम वापस बाइक से घर पहुँचे और बाइक से उतरते ही आशु भाग कर घर में घुस गई. मैं बस हँस के रह गया, बाइक खड़ी कर मैं ऊपर आया तो आशु शीशे में खुद को निहार रही थी उसे खुद यक़ीन नहीं हो रहा था की वो इतनी सुंदर हे. '१,२००/- लग गए! पर सच में जानू मैंने कभी सोचा नहीं था की मैं इतनी सूंदर हूँ!' आशु ने कहा. 'अब तो मुझे इनसिक्युरीटी होने लगी है!' मैंने हँसते हुए कहा और आशु भी ये सुन कर खिलखिलाकर हँसने लगी. मैंने आशु को उसकी साडी दी और तैयार होने को कहा क्योंकि हमें मंदिर जाना था जहाँ की कथा होनी थी. इधर मैं भी तैयार होने लगा, पर जब आशु पूरी तरह से तैयार हो कर आई तो मेरे चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी.
दो मिनट तक जब मैं कुछ नहीं बोला तो आशु ने ही मेरा ध्यान भंग किया; 'जानू???' उसके बुलाते ही मेरे मुँह से ये शेर निकला;
'उस हसीन चेहरे की क्या बात है
हर दिल अज़ीज़, कुछ ऐसी उसमें बात है
है कुछ ऐसी कशिश उस चेहरे में
के एक झलक के लिए सारी दुनिया बर्बाद हे.'
ये सुनते ही आशु को उसकी खूबसूरती का एहसास हुआ और शर्म से उसके गाल फिर लाल हो गये. पर आज मेरा मेरे ही दिल पर काबू नहीं था आज तो उसने बगावत कर दी थी;
'जब चलती है गुलशन में बहार आती है
बातों में जादू और मुस्कराहट बेमिसाल है
उसके अंग अंग की खुश्बू मेरे दिल को लुभाती है
यारो यही लड़की मेरे सपनो की रानी हे.'
एक शेर तो जैसे आज उसके हुस्न के लिए काफी नहीं था.
'नज़र जब तुमसे मिलती है मैं खुद को भूल जाता हूँ
बस इक धड़कन धड़कती है मैं खुद को भूल जाता हूँ
मगर जब भी मैं तुमसे मिलता हूँ मैं खुद को भूल जाता हु.'
आज तो वो शायर बाहर आ रहा था जो आशिक़ी की हर हद को फाँद सकता था.
'तेरे हुस्न का दीवाना तो हर कोई होगा लेकिन मेरे जैसी दीवानगी हर किसी में नहीं होगी.'
मेरी एक के बाद एक शायरी सुन आशु का शर्म के मारे बुरा हाल था. उसके गाल और कान पूरे लाल हो गए थे. वो बस नजरें झुकाये सब सुन रही थी और अपने आप को मेरी बाहों में बहक जाने से रोक रही थी. वो कुछ सोचती हुई मेरे नजदीक आई और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; 'हमे कहाँ मालूम था की ख़ूबसूरती क्या होती है? आज आपने हमारी तारीफ कर हमें हसीन बना दिया.' उसके इस शेर पर मेरा मन किया की उसके हसीन लबों को चूम लूँ पर फिर खुद पर काबू पाया. 'पहली बार के लिए शेर अच्छा था!' मैंने आशु के शेर की तारीफ करते हुए कहा. मैंने आशु का दाहिना हाथ पकड़ा और टेबल पर से चूड़ियाँ उठा कर उसे पहनाने लगा, साइज थोड़ा बड़ा था पर चूँकि इमीटेशन जेवेलरी थी तो वो फिर भी अच्छी लग रही थी. 'ये तो मैं लेना भूल ही गई थी!' आशु ने कहा पर मैंने तो इस दिन की प्लानिंग पहले से ही कर रखी थी. बस एक चीज बची थी वो था सिन्दूर! मैंने आते समय वो भी ले लिया था. डिब्बी से एक चुटकी सिन्दूर निकाल के मैंने आशु की मांग में भरा तो आशु ने अपनी आँखें बंद कर लीन और आसूँ के एक बूँद निकल कर नीचे जा गिरी. 'हे??? क्या हुआ मेरी जान?' आशु ने खुद को रोने से रोका और फिर बोली; 'आज से मैं आपकी पर्मनंट वाइफ बन चुकी हूँ!' उसने थोड़ा माहौल हल्का करने के लिए कहा. पर मैं उसका मतलब समझ गया था. उसका मतलब था की आज से हम दोनों का प्यार पुख्ता रूप ले चूका है और अब हम पति-पत्नी बन चुके हे. 'नो...देर इज समथिंग मिसिंग!' मेरे मुँह से ये सुन आशु सोच में पड़ गई. पर जब मैंने जेब से उसके लिए लिया हुआ मंगलसूत्र निकाला तो वो सब समझ गई. 'ये तो नया है! वो पुराना कहाँ गया?' आशु ने पूछा. 'जान वो तो नकली था! ये असली वाला हे.' ये सुन कर आशु चौंक गई और अपने होठों पर हाथ रखते हुए बोली; 'ये सोने का है? पर पैसे?' मैं जवाब देने से पहले ही आशु के पीछे आया और उसे अपने हाथों से मंगलसूत्र पहनाते हुए कहा; 'मेरी जान से तो महँगा नहीं हो सकता ना?' आशु ये सुन कर चुप हो गई और आगे कुछ नहीं बोली, वो जानती थी की आगे अगर कुछ बोली तो मैं नाराज हो जाऊंगा. वो फिर से मुस्कुराने लगी; 'टेकनिकली नाऊ वी आर हसबंड अँड वाइफ!!!' ये सुन कर आशु बहुत-बहुत खुश हुई और हम दोनों का कतई मन नहीं था की ये समां कभी खत्म हो पर पूजा के लिए तो जाना ही था!
ख़ुशी-ख़ुशी आशु ने पूजा का सारा सामान एक बड़ी थाली में इकठ्ठा किया और हम घर से निकले| किसी संस्था ने एक मंदिर के बाहर बहुत बड़ा पंडाल लगाया था और वहीँ पर पूजा होनी थी. हम दोनों भी वहाँ पहुँच गए, वहीँ पर हमें कल्पना भाभी मिलीं जिससे आशु को एक कंपनी मिल गई. पूरे विधि-विधान से पूजा और कथा हुई और रात ८ बजे हम घर लौटे. अब एक दिक्कत थी. वो ये की चंद्र उदय होने के समय बिल्डिंग की सभी औरतें और आदमी वहाँ इकठ्ठा होने वाले थे और ऐसे में हम दोनों का वहाँ जाना शायद किसी न किसी को खलता.मैं अभी ये सोच ही रहा था की कल्पना भाभी ने दरवाजा खटखटाया; 'अरे अश्विनी तू यहाँ क्या कर रही है, चल जल्दी से ऊपर.' अब आशु तो कब से ऊपर जाना चाहती थी पर मैंने ही उसे मना कर दिया था; 'भाभी वो... अभी वहाँ सब होंगे तो.... हम दोनों को देख कर कहीं कुछ ऐसा वैसा बोल दिया तो मुझे गुस्सा आ जायेगा!' मैंने अपनी चिंता जताई.
'कोई कुछ नहीं कहेगा, मैं बोल दूँगी ये मेरी बहन है और तुम तो मेरे छोटे देवर जैसे हो. पापा भी ऊपर ही हैं कोई कुछ बोला तो जानते हो ना पापा कैसे बरस पड़ते हैं?' भाभी की बात सुन कर मन को चैन आया की पुरुषोत्तम अंकल तो सब जानते ही हैं की हम दोनों की शादी होने वाली हे. इसलिए हम तीनों ऊपर आ गए और यहाँ तो लोगों का ताँता लगा हुआ हे. एक-एक कर सब हम दोनों से मिले, इधर आशु ने जा कर पुरुषोत्तम अंकल जी के पैर छुए और उनका आशीर्वाद लिया. काफी लोगों से तो मैं आज पहली बार मिल रहा था इसका कारन था की मेरे पास कभी किसी से घुलने-मिलने का समय ही नहीं होता था. आशु के कॉलेज से पहले भी मैं घर पर बहुत कम ही रहता था. अकेले रहने से तो बाहर घूमना अच्छा था इसलिए मैं अक्सर फ्री टाइम में खाने-पीने निकल जाता और रात को आ कर सो जाया करता था. आज जब सब से मिला तो सब यही कह रहे थे की एक ही बिल्डिंग में रह कर कभी मिले नही. इधर आशु भाभी के साथ बाकी सब से मिलने में व्यस्त थी. भाभी सब को यही कह रही थी की हम दोनों की शादी होने वाली है और ये आशु का पहला करवाचौथ हे. सब हैरान थे की भला ये क्या बात हुई की शादी के पहले ही करवाचौथ तो भाभी ही बीच-बचाव करते हुए बोली; 'जब दिल मिल गए हैं तो ये रस्में निभानी ही चाहिए.'
खेर आखिर कर चाँद निकल ही आया और सब आदमी अपनी-अपनी बीवियों के पास जा कर खड़े हो गये. आज पहलीबार था की हम दोनों यूँ सबके सामने प्रेमी नहीं बल्कि पति-पत्नी बन के विधि-विधान से पूजा कर रहे हे. शर्म से आशु पूरी लाल हो चुकी थी और इधर थोड़ी-थोड़ी शर्म मुझे भी आने लगी थी. आशु ने जल रहे दीपक को छन्नी में रख के पहले चाँद को देखा और फिर मुझे देखने लगी. उस छन्नी से मुझे देखते ही उसकी आँखें बड़ी होगी ऐसा लगा जैसे वो मुझे अपनी ही आँखों में बसा लेना चाहती हो. उस एक पल के लिए हम दोनों बस एक दूसरे को देखे जा रहे थे, बाकी वहाँ कौन क्या कर रहा है उससे हमें कोई सरोकार नहीं था. आखिर भाभी ने हँसते हुए ही हम दोनों की तन्द्रा भंग की; 'ओ मैडम! देखती रहोगी की आगे पूजा भी करोगी?' तब जा कर हम दोनों का ध्यान भंग हुआ, मैं तो मुस्कुरा रहा था और आशु शर्म से लाल हो गई! भाभी के बताये हुए तरीके से उसने पूजा की और अंत में मेरे पाँव छुए. अब ये पहली बार था की आशु मेरे पाँव छू रही थी और मुझे समझ नहीं आया की मैं उसे क्या आशीर्वाद दूँ? मैंने बस अपना हाथ उसके सर पर रख दिया और दिल ही दिल में कामना करने लगा की मैं उसे एक अच्छा और सुखद जीवन दू. बाकी सब लोग अपनी पत्नियों को पानी पिला रहे थे तो मैंने भी पानी का गिलास उठा कर आशु को पानी पिलाया और उसके बाद उसने भी मुझे पानी पिलाया. अब ये देख कर भाभी फिर से दोनों की टांग खींचने आ गई; 'अच्छा जी!!! सागर ने भी व्रत रखा था? वाह भाई वाह!' जिस किसी ने भी ये सुना वो हँसने लगा, पुरुषोत्तम अंकल बोले; 'बेटा यूँ ही हँसते-खेलते रहो और जल्दी से शादी कर लो.'
'बस अंकल जी २ साल और फिर तो शादी ...!!!' मैंने भी हँसते हुए कहा. आशु का शर्माना जारी था.... सारे लोग एक-एक कर नीचे आ गये.
नीचे आ कर मैंने सबसे पहले आशु के लिए दूध बनाया, ये पहलीबार था की उसने ऐसा व्रत रखा हो और मुझ उसके स्वास्थ्य की बहुत चिंता थी. आशु ने बहुत मना किया की इसकी कोई जरुरत नहीं पर मैंने फिर भी उसे जबरदस्ती दूध पिला दिया. 'आप भी पियो न, व्रत तो आपने भी रखा था ना?' आशु ने कहा. 'जान! मैं अभी अगर दूध पी लूँगा तो खाना नहीं खाऊँगा, इसलिए मेरी चिंता मत कर. अब ये बता की खाना क्या खाओगी?' मैंने खाना आर्डर करने के इरादे से कहा पर आशु एक दम से उठ खडी हुई; 'कोई आर्डर-वॉर्डर करने की जरुरत नहीं है, मैं बनाऊँगी खाना!' आशु ने लाजवाब खाना बनाया और फिर हमेशा की तरह हमने एक दूसरे को अपने हाथों से खिलाया. अब बारी थी सोने की और आशु को सुबह से देख कर ही मेरा मन मचल रहा था. कुछ यही हाल आशु का भी था जो कब से मेरी बाहों में सिमट जाना चाहती थी.
आशु अपनी साडी उतारने लगी. उसका ध्यान मेरी तरफ नहीं था पर मेरी आँखें तो उसके बदन से चिपकी हुई थी. आशु ने साडी उतारी और उसे फोल्ड करने लगी. पेटीकोट और ब्लाउज में आज वो कहर ढा रही थी. मुझसे रुका न गया तो मैं उठा और जा कर उसके पीछे उससे सट कर खड़ा हो गया.मेरे जिस्म का एहसास पाते ही आशु सिंहर गई और उसके हाथ साडी फोल्ड करते हुए रूक गये. मैंने अपन दोनों हाथों से आशु की कमर को थामा और उसकी गर्दन को चूमा और फिर जैसे मुझे कुछ याद आया और मैं आशु को छोड़ कर किचन में गया.इधर आशु हैरान-परेशान से खड़ी अपने सवालों का जवाब ढूँढने लगी. की आखिर क्यों मैं उसे ऐसे छोड़ कर किचन में चला गया.मैं जब किचन से लौटा तो मेरे हाथ में एक पानी का गिलास था और आशु की आँखों में सवाल.'आज दवाई नहीं ली ना?' मैंने आशु को उसकी प्रेगनेंसी वाली दवाई की याद दिलाई और उसने फटाफट अपने बैग से दवाई निकाली और पानी के साथ खा ली. अब और कोई भी काम नहीं बचा था. आशु ने साडी आधी ही फोल्ड की थी और जब वो उसे दुबारा फोल्ड करने को झुकी तो मैंने उसका हाथ पकड़ के झटके से अपनी तरफ खिंचा. आशु सीधा मेरे सीने से आ लगी और अपन असर मेरे सीने में छुपा लिया. अब तो मेरे लिए सब्र कर पाना मुश्किल था. मैंने आशु को गोद में उठाया और उसे पलंग पर लिटा दिया. आशु ने भी फटाफट अपना ब्लाउज खोलना शुरू किया और इधर मैंने उसके पेटीकोट का नाडा खोल दिया. ब्लाउज आशु ने निकाला तो उसका पेटीकोट मैंने निकाल कर कुर्सी पर रख दिया. अब आशु सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी और मैं अभी भी पूरे कपड़ों में था. मैंने एक-एक कर सारे कपडे निकाल कर कुर्सी पर रखे. आशु उठ के बैठी और अपनी ब्रा का हुक खोल उसे निकाल दिया. अभी मैं ये कपडे कुर्सी पर रख ही रहा था की आशु ने मेरे कच्छे के ऊपर से मेरे लिंग को चूम लिया और अपनी दोनों हाथों की उँगलियों को मेरे कच्छे की इलास्टिक में फँसा कर नीचे सरका दिया. आगे का काम मैंने खुद ही किया और कच्छा निकाल कर कुर्सी पर रख दिया.
'क्या बात है जानू! आज तो सारे कपडे आप कुर्सी पर रख रहे हो?'
'कल मेरी जान को उठा के ना रखने पड़े इसलिए कुर्सी पर रख रहा हु.' ये कहते हुए मैं आशु की बगल में लेट गया.आशु ने एकदम से मेरी तरफ करवट ली और मेरे होठों को किस करने लगी. 'आज पार्लर के बाहर आप बहुत नौटी हो गये थे?' आशु ने मेरे ऊपर वाले होंठ को चूमते हुए कहा. 'पहले तुम नौटी हो जाए करती थी अब मैं हो जाता हूँ!' मैंने जवाब दिया और आशु को अपनी योनी मेरे मुँह पर रख कर बैठने को कहा. आशु बैठी तो सही पर उसका मुँह मेरे लिंग की तरफ था और इससे पहले की मैं उसकी योनी को अपनी जीभ से छु पाता वो आगे को झुक गई और तब मुझे एहसास हुआ की आशु ने अब भी पैंटी पहनी हुई थी. हम दोनों इतना बेसब्र हो गए थे की आशु की पैंटी उतारने के बारे में भूल गए थे. मेरा मन आज उसकी योनी का स्वाद चखने का था. ऐसा लग रहा था जैसे एक अरसा हुआ उसकी योनी का स्वाद चखे! मैंने आशु को सीधा बैठने को कहा, तो वो अपनी योनी मेरे मुँह पर टिका कर बैठ गई.
फिर मैंने उसे अपनी पैंटी को उसके योनी के छेद के ऊपर से हटाने को कहा ताकि मैं उसे अच्छे से चाट सकू. आशु ने अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से अपनी पैंटी को इस कदर साइड किया की मुझे आशु के योनी के द्वार साफ़ नजर आये. मैंने अपनी जीब निकाल कर आशु की योनी को चाटना शुरू किया, 'ससससस...आह...सस्म्ममं मममम मममम' की आवाज मेरे कमरे में गूँजने लगी. मस्ती आकर आशु ने अपनी योनी को मेरे मुँह पर आगे-पीछे रगड़ना शुरू कर दिया. उसके ऐसा करने से मेरे होठों और उसकी योनी की पंखड़ियों में घर्षण पैदा होता और आशु सिस्याने लगती! अगले पांच मिनट तक आशु अपनी योनी को इसी तरह अपनी योनी को मेरे मुँह पर घिसती रही पर अब भी एक अड़चन थी.
आशु अब भी अपनी पैंटी पकड़ के बैठी थी जिससे उसे वो स्पीड हासिल नहीं हो रही थी जो वो चाहती थी. आशु उठी और गुस्से से अपनी पैंटी निकाल फेंकी और दुबारा मेरे मुँह पर बैठ गई. इस बार आसन दूसरा ग्रहण किया, इस बार वो मेरी तरफ मुँह कर के बैठी, उसका दायाँ हाथ मेरे मस्तक पर था और बाएं हाथ को उसने मेरे पेट पर रख कर सहारा लिया ताकि वो गिर ना जाये.
मैंने अपनी जीभ निकल के आशु की योनी के अंदर प्रवेश कराई की आशु की सिसकारी निकल पड़ी और उसने अपनी कमर को पहले की तरह आगे-पीछे चलाना शुरू कर दिया. ऐसा लग रहा था जैसे मेरी जीभ मेरे लिंग का काम कर रही है और आशु की योनी छोड़ रही हे. आशु की नजर मेरे चेहरे पर टिकी थी और वो ये देख रही थी की मुझे इसमें कितना मज़ा आ रहा हे. दस मिनट तक आशु बिना रुके लय बद्ध तरीके से अपनी कमर को मेरे होठों पर आगे-पीछे करती रही और मैं उसकी योनी को किसी आइस-क्रीम की तरह चाटता रहा. 'ससाह...ममः...मममममम...अअअअअअअअ ...!!!' कर के आशु ने पानी छोड़ा जो बहता हुआ मेरे मुँह में भर गया.
आशु मेरे ऊपर से लुढ़क कर लेट गई. इधर मेरा लिंग पूरी तैयारी में खड़ा था और इंतजार कर रहा था की उसका नंबर कब आएगा? आशु कुछ तक गई थी इसलिए वो अपनी साँसों को काबू कर रही थी पर उसकी नजर मेरे लिंग पर थी. मैंने अपने लिंग को पकड़ा और उसे हिला कर उसे उसके दर्द का एहसास दिलाया. थोड़ा प्यार तो उस बिचारे को भी चाहिए था.....
आशु को भी मेरे लिंग पर तरस आ गया, या ये कहे की उसके मुँह में पानी आ गया.वो उठ के बैठी मेरे लिंग को अपने मुट्ठी में पकड़ के उसका अच्छे से दीदार करने लगी. उसके हाथ लगते ही प्री-कम की एक बूँद लिंग के छेद से बाहर आई, आशु ने लिंग की चमड़ी पकड़ के उसे एक बार ऊपर-नीचे किया तो उस प्री-कम की बूँद ने पूरे लिंग को गीला कर दिया.
आशु ने अपने गर्म-गर्म साँस का भभका मेरे लिंग पर मारा तो उसमें खून का प्रवाह तेज हो गया.आशु ने आधा लिंग अपने मुँह भरा और अपने मुँह को मेरे लिंग पर ऊपर-नीचे करना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे आशु मेरे लिंग को जितना हो सके उतना अपने मुँह में और अंदर लेती जा रही थी. फिर कुछ पलों के लिए आशु ने जोश में आ कर मेरा पूरा लिंग अपने गले तक उतार लिया और कुछ सेकण्ड्स के लिए रूक गई. जब उसे लगा की उसकी सांस रूक रही है तो उसने पूरा लिंग अपने मुँह से निकाला. मेरा पूरा लिंग उसके थूक से सन गया था और चमकने लगा था. पर उसका मन अभी भरा नहीं था. आशु ने अपने हाथ से चमड़ी को आगे-पीछे किया और फिर अपनी जीभ से पूरे लिंग को जड़ से ले कर छोर तक चाटने लगी. अगले पल उसने वो किया जिसकी उम्मीद मैंने कभी नहीं की थी. उसने झुक कर मेरे अंडकोष को अपने मुँह में भर के चूसा! मैं आँखें फाड़े उसे देखने लगा और आशु बस मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा दी. आशु ने फिर से मेरे लिंग को अपने मुँह में लिया और अपने मुँह को फिर से ऊपर-नीचे करते हुए लिंग चूसने लगी. आज तो मुझे बहुत मजा आ रहा था और लग रहा था की मैं छूट जाऊँगा इसलिए मैंने आशु को रोका और लिटा दिया. उसकी टांगों को चौड़ा कर मैं बीच में आ गया.लिंग को उसकी योनी पर सेट किया और एक झटका मार के अंदर ठेल दिया. चूँकि मेरा लिंग पहले से ही आशु के थूक और लार से भीगा हुआ था इसलिए मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडी. एक धक्का और आधे से ज्यादा लिंग अंदर पहुँच गया!
आशु की योनी अंदर से बहुत गीली हो चुकी थी और वो मेरा पूरा लिंग खाना चाहती थी. इसलिए अगले धक्के से पूरा लिंग अंदर चला गया 'आह! ममममम ममममममममम ...ससस..!!!' अंदर की गर्माहट पा कर लिंग प्रफुल्लित हो उठा और मैंने अब अपने लिंग को जड़ तक अंदर पेलना शुरू कर दिया. जब लिंग अंदर पूरा पहुँचता तो आशु की योनी अंदर से टाइट हो जाती और लिंग बाहर निकालते ही उसकी योनी अंदर से ढीली हो जाती. अगले पाँच मिनट तक मैं इसी तरह आशु की योनी ठुकाई करता रहा. आशु की आँखों में मुझे कभी न खत्म होने वाली प्यास नजर आ रही थी इसलिए मैं उस पर झुका और उसके होठों को किस किया, मैंने वापस खड़ा होना चाहा पर आशु ने अपने अपनी एक बाँह को मेरे गले में डाल दिया और मुझे अपने ऊपर ही झुकाये रखा.
मैं उसके ऊपर झुके हुए ही अपनी कमर को चलाता रहा और आशु की योनी से पूछ-पूछ की आवाज आती रही. 'स्सम्म्म हहहह ...मामामा..आह!' कहते हुए आशु उन्माद से भरने लगी! उसकी योनी में घर्षण बढ़ चूका था और वो किसी भी वक़्त छूट सकती थी पर मुझे अभी और समय चाहिए था. इतने दिनों से जो प्यासा था! मैं रूका और आशु को पलट के उसे घुटनों के बल आगे को झुका दिया. आशु के घुटने मुड़ के उसकी छाती से दबे हुए थे, मैंने पीछे से आशु के कूल्हों को पकड़ के उसके योनी के सुराख को उजागर किया और अपना लिंग अंदर पेल दिया!
हमला इतना तीव्र था की आशु दर्द से तड़प उठी; 'अअअअअअअहहहहहहहह !!!' चिल्लाते हुए उसने बिस्तर की चादर को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया. मेरा पूरा लिंग आशु की योनी में उतर चूका था इसलिए मैंने बिना रुके धक्के मारने शुरू कर दिये. हर धक्के से आशु का जिस्म कांपने लगा था और आनंद और दर्द के मिले जुले एहसास ने उसे छूटने के कगार पर पहुँचा दिया. मैं भी स्खलित होने के बहुत नजदीक था इसलिए मेरे धक्कों की गति और बढ़ गई थी! अगले कुछ पलों में पहले मैं और फिर आशु एक साथ स्खलित हुए और एक दूसरे से अलग हो कर पस्त हो गये. सांसें दुरुस्त हुई तो मैंने आशु को देखा, उसके चेहरे पर संतुष्टि की ख़ुशी दिखी| 'कभी-कभी जान निकाल देते हो आप!' आशु ने प्यार भरी शिक़ायत की तो जवाब मैंने अपने दोनों कान पकडे और उसे सॉरी कहा. 'पर मज़ा भी तभी आता है!' आशु ने शर्माते हुए कहा. मैंने उठ के आशु को अपने ऊपर खींच लिया और उसके गालों को चूमा और हम दोनों ऐसे ही सो गये.
अगली सुबह हुई तो हम अब भी उसी तरह लेटे हुए थे. आशु की आँख खुली और उसने मेरी गर्दन को चूमा तब मेरी आँख खुली. मैंने आशु के सर को चूमा और तब आशु उठ के बाथरूम में घुस गई. मैं भी अंगड़ाई लेता हुआ उठा और अपना फ़ोन देखा तो उसमें एक मेल आई थी. मुझे एक इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था. मेरे पास बस दो घंटों का समय था इसलिए जैसे ही आशु बाथरूम से निकली मैं तुरंत बाथरूम में घुस गया.१० मिनट में नहा कर बाहर आया, आशु मेरी टी-शर्ट पहने हुए चाय बना रही थी. 'जान! प्लीज जल्दी से कपडे पहनो, आई हॅव एन इंटरव्ह्यू टू कॅच!' ये सुनते ही आशु ने फटाफट चाय बनाई और मेरे लिए टोस्ट भी बना दिये. मैंने कपडे पहने और खड़े-खड़े ही नाश्ता किया और दोनों साथ निकले, आशु को मैंने हॉस्टल छोड़ा; 'बेस्ट ऑफ लक!!!' आशु ने कहा और मैंने मुस्कुरा कर थैंक यू कहा. फिर मैं इंटरव्यू के लिए पहुँच गया, वहाँ गिनती के लोग थे और जब मेरा नंबर आया तो उन्होंने मेरा रिज्यूमे देखा और फाइनली मैं सेलेक्ट हो गया! आज जितनी ख़ुशी मुझे पहले कभी नहीं हुई थी! मैंने तुरंत आशु को कॉल किया और उसे कॉलेज के बाहर बुलाया, वो भी मेरी आवाज से मेरी ख़ुशी समझ चुकी थी. मैं ख़ुशी से इतना बावरा हो गया था की मुझे कोई होश नहीं था. जैसे ही आशु कॉलेज के गेट से बाहर आई मैंने उसे गोद में उठा लिया और गोल-गोल घूमने लगा. 'आई एम सो हॅपी!' कहते हुए मैंने आशु को नीचे उतारा, कॉलेज का गार्ड मुझे ऐसा करते हुए देख रहा था. जब मेरा ध्यान उस पर गया तो मैंने आशु का हाथ पकड़ा और उसे खींच कर पार्क की तरफ भागा.आशु भी मेरे साथ ऐसे भाग रही थी जैसे मैं उसे लिटरली घर से भगा कर ले जा रहा हु. आस-पास जो भी कोई था वो हम दोनों को इस तरह भागते हुए देख रहा था. आखिर हम पार्क पहुँचे और वहाँ बेंच पर बैठ कर अपनी साँसों को काबू करने लगे.
'आई ..... गोट दीं जॉब!' मैंने उखड़ी-उखड़ी साँसों को काबू में करते हुए कहा. इतना सुनना था की आशु मेरी तरफ मुड़ी और कस कर मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया. '४०,००० पर मंथ स्याटर्डे इज हाल्फ डे!'
'थयांक गॉड!' आशु ने भगवान् को शुक्रिया करते हुए कहा.
'हाँ बस एक दिक्कत है, हेड ऑफिस उन्नाओ में हे. तो हफ्ते में एक दिन अप-डाऊन करना पडेगा.' मैंने कहा.
'कोई बात नहीं!' एक-आध दिन सब्र कर लेंगे!' आशु ने मुस्कुराते हुए कहा.
'जान! सब कुछ सेट हो गया है अब! ४०००० ... उफ्फ्फ!! मुझे तो यक़ीन नहीं हो रहा!”
'तो चलो एक बार हिसाब कर लेते हैं की आपके क्या-क्या एक्सपेंसेस हैं?' आशु ने बैग से कॉपी पेन निकालते हुए कहा. ये हरकत बचकानी थी पर मैं तो पहले से ही सब हिसाब किये बैठा था. मैंने अपना फ़ोन निकला और आशु को एक मैसेज भेजा जिसमें सारा हिसाब पहले से ही लिखा था. जब आशु ने वो पढ़ा तो वो हैरानी से मुझे देखने लगी:
१. घर का किराया: ८,५००/- (इस महीने से बढ़ रहा हे.)
२. राशन (मैक्सिमम): ३,०००/-
३. बाइक की मेंटेनेंस: ३,०००/- जिसमें १,०००/- रीइमबर्स होगा.
४. अतिरीक्त खर्चा: ४,०००/- (प्रोव्हिजन फॉर एनी अनएक्सपेकटेड एक्सपेंस)
हर महीने बचत: (कम से कम) २२,५००/- इस हिसाब से ३१ महीने (आशु के थर्ड ईयर के पेपर देने तक) के हुए ६,९७,५००/
आशु ने जब ६ लाख की फिगर देखि तो उसकी आँखें छलक आईं; 'जान ये फिगर और भी बढ़ेगी क्योंकि ये जो मैंने अतिरिक्त खर्चा रखा है ये भी कभी न कभी बचेगा! तो कम से कम ये मान कर चलो की हमारे पास ७ लाख होंगे! इतने पैसों से हम नई जिंदगी आराम से शुरू कर सकते हे. अगर मैंने इन पैसों की एफडी करा दी तो ब्याज और भी मिलेगा!” उस समय मेरे दिमाग में जो अकाउंटेंट वाला दिमाग था वो बोलने लगा था और सारी प्लानिंग कर के बैठा था. आशु रोती हुई मुझसे लिपट गई; 'जानू! मुझसे इन ३१ महीनों का सब्र नहीं होता!'
'जान! मैं हूँ ना तेरे साथ, ये ३१ महीने मैं अपने प्यार से भर दूँगा!' मैंने आशु के सर को चूमते हुए कहा.
'जोइनिंग कब से है?' आशु ने पूछा.
'नेक्स्ट मंथ से! शुरू में तुम्हें थोड़ी दिक्कत होगी, क्योंकि काम समझने में थोड़ा टाइम लगेगा.'
'कोई बात नहीं! कम से कम आधा शनिवार और पूरा रविवार तो होगा हमारे पास!' आशु ने मुस्कुराते हुए कहा.
अब ये ख़ुशी सेलिब्रेट करनी तो बनती थी. इसलिए हम दोनों पिक्चर देखने गए और पिक्चर के बाद मैंने खुद हॉस्टल आंटी जी को फ़ोन कर दिया ये बोल कर की आशु मेरे साथ है और मैं उसे डिनर के बाद छोड़ दूंगा. हमने अच्छे से डिनर किया और फिर मैंने एक मिठाई का डिब्बा लिया और आशु को हॉस्टल छोड़ने चल दिया. वहाँ पहुँच के आंटी जी के पाँव छुए और उनका मुँह मीठा कराया की मेरी जॉब लग गई हे. तभी सुमन भी आ गई और वो भी खुश हुई की मेरी नौकरी लग गई है और पूरा का पूरा मिठाई का डिब्बा ले कर खाने लगी.
इसी तरह दिन गुजरने लगे और दिवाली का दिन भी जल्द ही आ गया.मैं आशु को हॉस्टल से लेकर सीधा प्रसाद की दूकान पर पहुँचा और माँ, ताई जी और भाभी के लिए साड़ियां खरीदी. एक साडी मैंने आशु के लिए भी खरीदी पर किसी तरह नजर बचा कर ताकि वो देख न ले, ताऊ जी, पिताजी और गोपाल भैया के लिए सूट का कपडा लिया. वैसे तो मैं गोपाल भैया और भाभी के लिए कुछ लेना नहीं चाहता था पर मजबूरी थी वरना सब कहते की इनके लिए क्यों कुछ नहीं लाया. ख़ुशी-ख़ुशी हम दोनों घर पहुँचे तो देखा घर का रंग-रोगन कराया जा चूका था. आशु तो सीधा घर घुस गई और में बाईक खडी कर पिताजी से मिला और उनके पाँव को हाथ लगाए. फिर उन्हें और ताऊ जी को ले कर मैं आँगन में आ गया और चारपाई पर बिठा दिया.
'आशु, दरवाजा बंद कर दे!' मैंने आशु से कहा और फिर सभी को आवाज दे कर मैंने आंगन में बिठा दिया. एक-एक कर सब को उनके तौह्फे दिए तो सभी खुश हुए, सबसे ज्यादा अगर कोई खुश हुआ तो वो थी आशु जब मैंने उसे सबके सामने साडी दी. घर में उसने आज तक कभी साडी नहीं पहनी थी पर ये बात हमेशा की तरह भाभी को खटकी; 'इसे साडी पहनना भी आता है?' उन्होंने कहा तो मुझे बड़ी मिर्ची लगी और मैंने उन्हें सुनाते हुए कहा; 'आप कौन सा माँ के पेट से सीख कर आये थे? इसी दुनिया में सीखा ना? आप चिंता ना करो आशु आपको तंग नहीं करेगी की उसे साडी पहना दो, ताई जी हैं और माँ हैं वो सीखा देंगी' अब ये बात भाभी को चुभी पर ताई जी ने बीच में पड कर बात आगे बढ़ने नहीं दी वरना ताऊजी से डाँट पड़ती! 'ये बता की तुम दोनों ने कुछ खाया भी था?' ताई जी पूछा. मैंने बस ना में गर्दन हिलाई तो ताई जी ने खुद देसी घी के परांठे बनाये और मैंने डट के खाये!
चूँकि आज धनतेरस थी तो शाम को खरीदारी करने जाना था. हर साल पिताजी और ताऊ जी जाय करते थे पर इस बार मैं बोला; 'ताऊ जी सारे चलें?' अब ये सुन कर वो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगे. अब बाजार घर के इतने नजदीक तो नहीं था की सारे एक साथ पैदल चले जाये. बाइक से ही मुझे आधा घंटा लगता था. जब कोई कुछ नहीं बोला तो मुझे ही रास्ता सुझाना था. 'गोपाल भैया आपका वो दोस्त है ना ...क्या नाम है...अशोक! उसे बुला लो ना?' ये सुनते ही वो मुस्कुरा दिए और फ़ोन निकाल कर उसे आने को कहा. अशोक का भाई मेरा दोस्त था और शादी-ब्याह में वो अपने ट्रेक्टर-ट्राली बारातियों के लाने-लेजाने के लिए किराये पर देते थे. 'तू ज्यादा होशियार नहीं हो गया?' पिताजी ने प्यार से मेरे कान पकड़ते हुए कहा. ताऊ जी हँस दिए और उन्होंने सब को तैयार होने का आदेश दे दिया. सब तैयार हुए पर अब भी एक दिक्कत थी. वो ये की ट्रेक्टर चलाएगा कौन? गोपाल भैया को तो आता नहीं था. इसलिए मैंने ही पहल की. जब स्कूल में पढता था तब कभी-कभी मस्ती किया करता था और हम दो-चार दोस्त मिल कर अशोक भैया का ट्रेक्टर खेतों में घुमाया करते थे. 'तुझे ट्रेक्टर चलाना आता है?' ताऊ जी ने पूछा. मैंने हाँ में गर्दन हिलाई; 'अरे तो पहले क्यों नहीं बताया? हम बेकार में ही दूसरों को इसके पैसे देते थे, इतने में तो नया ट्रेक्टर आ जाता.' ताऊ जी बोले. 'पर सागर भैया घर पर होंगे तब तो?' पीछे से भाभी की आवाज आई अब मन तो किया की उन्हें कुछ सुना दूँ पर चुप रहा ये सोच कर की आज त्यौहार का दिन है क्यों खामखा सब का मूड ख़राब करू.
मैं ड्राइविंग सीट पर बैठा था और मेरे दाहिने हाथ पर ताऊ जी बैठ थे, बाईं तरफ पिताजी बैठ थे और बाकी सब एक-एक कर पीछे ट्राली में बैठ गये. इतने दिनों बाद ट्रेक्टर चला रहा था तो शुरू में बहुत धीरे-धीरे चलाया, फिर जैसे ही मैं रोड पकड़ा तो जो भगाया की एक बार को तो ताऊ जी बोल ही पड़े; 'बेटा! धीरे!' तब जाके मैंने स्पीड कम की और हम सही सलामत बाजार पहुँच गए! बाजार में पिताजी के जान पहचान की एक दूकान थी और मैंने वहीँ ट्रेक्टर रोका और एक-एक कर सब उतरने लगे. सबसे आखरी में आशु रह गई थी और मुझे आज कुछ ज्यादा ही रोमांस चढ़ रहा था. जब वो उतरने लगी तो मैंने जानबूझ कर उसे कमर से पकड़ लिया और नीचे उतारा.हालाँकि इसकी कोई जरुरत नहीं थी पर आशिक़ी आज कुछ ज्यादा ही सवार थी. भाभी ने मुझे ऐसे करते हुए देखा तो बोली; 'हाय! कभी मुझे भी उतार दो ऐसे!' ये सुनते ही आशु को मुँह फीका पड़ गया.'आप बहुत मोटे हो!!! आपको उठाने जाऊँगा तो मेरी कमर अकड़ जाएगी!' ये सुन कर माँ और ताई जी हँसने लगे और बेचारी भाभी शर्म से नीचे देखने लगी. पिताजी, गोपाल भैया और ताऊ जी तो आगे चल दिए और इधर माँ, ताई जी, भाभी और आशु को साड़ियों का माप देना था. तो उनके साथ रहने की जिम्मेदारी मुझे दे दी गई. पिताजी एंड पार्टी तो अपने जान पहचान वाले दूकान दारों से मिलने लगे तो मैंने सोचा की हम सारे कुछ खा-पी लेते हे. पर पहले माप देना था. सब एक-एक कर अपना माप लिखवा रहे थे और मैं बाहर खड़ा था और मोहित-प्रफुल के मैसेज पढ़ रहा था.
माप दे कर सबसे पहले ताई जी आईं और उन्होंने पुछा की ताऊ जी कहाँ हैं तो मैंने कह दिया वो तो आगे चले गए सब से मिलने. 'तो बेटा उन्हें फ़ोन कर.' ताई जी ने कहा. 'छोडो ना ताई जी, चलो चल के कुछ खाते हैं.' ताई जी मुस्कुरा दी और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं; 'बाकियों को आने दे, फिर चलते हैं.' इतने में माँ आ गई और ताई जी ने हँसते उन्हें कहा; 'तेरा लड़का समझदार हो गया हे. इसके लिए समझदार बहु लानी होगी.' मैं ये सुन कर हँस पड़ा, क्योंकि मैं जानता था की मेरी पसंद थोड़ी नासमझ है! पीछे से भाभी और आशु भी आ गये. फिर हम एक जगह बैठ के चाट खाने लगे, तभी गोपाल भैया हमें ढूँढ़ते हुए आ गए और हमें मज़े से चाट खाते हुए देख बोले; 'वहाँ पिताजी आप सब को ढूँढ रहे हैं और आप सारे यहाँ बैठे चाट खा रहे हो?'
'अरे भूख लगी है तो कुछ खाये नहीं?!' ताई जी गोपाल भैया को डाँटते हुए कहा. इतने में हम सबका खाना हो गया और हम सारे के सारे उठ के चल दिए, ताऊ जी ने जब पुछा तो ताई जी ने कह दिया की भूख लगी थी तो कुछ खा रहे थे. ताऊ जी ने फिर कुछ नहीं कहा और हमने खरीदारी की. पर इस बार ताई जी बहुत ज्यादा ही खुश थीं इसलिए वो माँ, भाभी और आशु को ले कर एक सुनार की दूकान में घुस गई. ये हमारी खानदानी जान पहचान की दूकान थी तो सारा परिवार अंदर जा कर बैठ गया.हम सब की बड़ी आव-भगत हुई और मालिक ने खुद सब औरतों को जेवर दिखाये. आशु बेचारी चुप-चाप पीछे बैठी थी. इस डर से की कहीं कोई उसे डाँट ना दे.पर डाँट तो उसे फिर भी पड़ी, प्यार भरी डाँट! 'अश्विनी! तू वहाँ पीछे क्या कर रही है? यहाँ तेरे लिए ही आये हैं और तू है की पीछे बैठी है? चल जल्दी आ और बता कौनसी अच्छी है तेरे लिए?' ये सुन कर आशु का सीना गर्व से चौड़ा हो गया.वो उठ के आगे आई और बोली; 'दादी ... आप ही बताइये...मुझे तो कुछ पता नहीं!' ताई जी ने उसे माँ और अपने बीच बिठाया और उसे समझाते हुए बालियाँ पहनने को कहा. उसने एक-एक कर सब पहनी पर वो अब भी कन्फ्युज थी तो मुझे उसकी मदद करनी थी... पर कैसे? मैं इधर-उधर देखने लगा फिर सामने नजर शीशे पर पडी. आशु की नजर अब भी सामने आईने पर नहीं थी बल्कि वो ताई जी और माँ की बात सुनने में व्यस्त थी. मैं बस इंतजार करने लगा की आशु उस आईने में देखे ताकि मैं उसे बता सकूँ की कौन सी बाली बढिया हे.आखिर में उसने देख ही लिया, उसके दोनों हाथों में एक-एक डिज़ाइन था. मैंने उसे आँख के इशारे से बाएँ वाले को ट्राय करने को कहा, पर वो मुझे इतना नहीं जचा तो मैंने गर्दन के इशारे से दूसरे ट्राय करने को कहा. ये वाला मुझे बहुत पसंद आया तो मैंने हाँ में गर्दन हिला कर अपनी स्वीकृति दी! माँ ने मुझे आशु की मदद करते हुए देख लिया और बोल पड़ीं; 'क्या बात है? तेरी पसंद बड़ी अच्छी है इन चीजों में?' माँ ने मजाक करते हुए कहा पर पता नहीं कैसे मेरे मुँह से निकला; 'माँ कल को शादी होगी तो बीवी को इन सब चीजों में मदद करनी पड़ेगी ना? इसलिए अभी से प्रैक्टिस कर रहा हूँ!' ये सुनते ही सारे लोग जो भी वहाँ थे सब हँस पडे. आशु के गाल भी शर्म से लाल हो गए थे क्योंकि वो समझ गई थी की ये बात मैंने उसी के लिए कही हे. हँसते-खेलते हम घर लौटे और रात को खाने के बाद ताऊ जी, गोपाल भैया और पिताजी सोने चले गये. मैं अब भी आंगन में बैठा था. ताई जी और सभी औरतें खाना खा रहीं थी. थकावट हो रही थी सो मैं अपने कमरे में आ कर सो गया, रात को आशु ने मेरा दरवाजा खटखटाया पर मैं बहुत गहरी नींद में था इसलिए मुझे पता नहीं चला.
अगली सुबह जब मैंने आशु से गुड मॉर्निंग कहा तो वो मुँह फूला कर रसोई में चली गई. मैं सोचता रह गया की अब मैंने क्या कर दिया? जब वो चाय देने आई तो बोली; 'मुझे कल रात को आपसे कितनी बातें करनी थी. पर आपको तो सोना है!' ये सुन कर मेरे मुँह से 'उपसस....' निकला! पर आगे कुछ कहने से पहले ही वो चली गई. इधर पिताजी आये और मुझे अपने साथ चलने को कहा. मैंने अपनी बुलेट उठाई और पिताजी के साथ निकल पड़ा, दिन भर पिताजी ने जाने किस-किस को मिठाई देनी थी? कितनों के यहाँ बैठ के चाय पि शाम को घर आते-आते पेट में गैस भर गई! घर आते ही मैं पिताजी से बोला: 'कान पकड़ता हूँ पिताजी! आज के बाद मैं आपके साथ दिवाली पर किसी के घर नहीं जाऊँगा!' ये सुन कर सारे हँस पडे. 'क्यों?' पिताजी ने अनजान बनते हुए पुछा; 'इतनी चाय...इतनी चाय! मैंने ऑफिस में कभी इतनी चाय नहीं पि जितनी आपके जानने वालों ने पिला दी! मुझे तो चाय से नफरत हो गई.' तभी आशु जान बूझ कर एक कप में पानी ले कर आई और मुझे ऐसा लगा जैसे उसमें चाय हो, मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा; 'ले जा इस कप को मेरे सामने से नहीं तो आज बहुत मारूँगा तुझे!' ये सुन कर आशु और सभी लोग खिल-खिला कर हँस पड़े! रात को खाना खाने की बिलकुल इच्छा नहीं थी. इसलिए मैं ऊपर छत पर चूरन खा रहा था.
सब के खाना खाने तक मुझे नींद आ गई और मैं छत पर ही पैरापेट वॉल से टेक लगा कर सो गया.आशु ने आ कर मुझे जगाया तब मेरी नींद खुली, मैंने अंगड़ाई लेते हुए उसे देखा; 'आप यहाँ क्यों सो रहे हो?' उसने पूछा.
'कल बिना बात किये सो गया था ना, इसलिए मैं यहाँ तेरा इंतजार कर रहा था. पता नहीं कब नींद आ गई! अब बता क्या बात करनी थी?'
'कल बात करेंगे, अभी आप सो जाओ.' आशु ने कहा तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपने सामने आलथी-पालथी मार के बैठने को कहा.
'कल दिवाली है और कल टाइम नहीं मिलेगा, बोल अब!' मैंने कहा.
'कल.... मेरे पास शब्द नहीं....दादी ने मेरे लिए पहली बार बालियाँ खरीदी ....सब आपकी वजह से!!!' आशु का गला भर आया था इसलिए उसने बस टूटे-फूटे शब्द कहे...
'अरे पागल! मैंने कुछ नहीं किया! देर से ही सही ये खुशियाँ तुझे मिलनी थी और तुझे तो खुश होना चाहिए ना की रोना चाहिए!' मैंने उठ के आशु के आँसू पोछे.
'नहीं.... इस घर में एक बस आप हो जो मुझे इतना प्यार करते हो, हर बात पर मेरा बचाव करते हो. आपके इसी बर्ताव के कारन दादी का और बाकी सब का दिल मेरे लिए पसीजा हे. आप अगर नहीं होते तो कोई मेरे बारे में कभी नहीं सोचता, पहले सब यही चाहते थे की मेरी शादी हो जाए और मैं इस घर से निकल जाऊँ पर आपके प्यार के कारन अब सब मुझे इस घर का हिस्सा समझने लगे हैं.' आशु ने अब रोना शुरू कर दिया था.
'अच्छा मेरी माँ! अब बस चुप हो जा!' मैंने आशु को अपने सीने से चिपका लिया तब जा कर उसका रोना बंद हुआ.
'तू ना...जितना हँसती नहीं उससे ज्यादा तो रोती हे. ग्लोबल वाटर क्राईसीस सोल्व करना है क्या तूने?' मैंने मजाक में कहा तो आशु की हँसी निकल गई. इस तरह हँसते हुए मैंने उसे उसके कमरे के बाहर छोड़ा और मैं अपने कमरे में घुस गया.सुबह हुई और मैं जल्दी उठ गया, एक तो भूख लगी थी और दूसरा आज सुबह काम थोड़े ज्यादा बचे थे. सारा काम निपटा के आते-आते दोपहर हो गई और फिर सब ने एक साथ खाना खाया और रात की पूजा के लिए तैयारियाँ शुरू हो गई. वही लालची पंडित आया और हम सब पूजा के लिए बैठ गये. सबसे आगे माँ-पिताजी और ताई जी-ताऊ जी थे, उनके पीछे गोपाल भैया-भाभी और उनकी बगल में मैं और आशु बैठे थे. पूजा सम्पन्न हुई और पंडित अपनी दक्षिणा ले कर चला गया, इधर मैंने और आशु ने पूरी छत दीयों से सजा दी और सारा घर जगमग होगया.नीचे आ कर सब ने खाना खाया और फिर सब छत पर आ गए और आतिशबाजी देखने लगे. मैं नीचे से सब के लिए फूलझड़ी और अनार ले आया, फूलझड़ियां मैंने आशु, माँ, ताई जी और भाभी को जला कर दी तथा अनार जलाने का काम गोपाल भैया और मैं कर रहे थे. 'सागर अगर बम ले आता तो और मजा आता' गोपाल भैया ने कहा तो ताऊ जी ने मना कर दिया; 'बिलकुल नहीं! वो बहुत आवाज करते हैं, यही काफी है!' गोपाल भैया अपना मुँह झुका कर अनार जलाने लगे.
रात के नौ बजे थे और सब थके हुए थे इसलिए जल्दी ही सो गये. रात बारा बजे मैं उठा क्योंकि मुझे मिठाई खानी थी. तो मैं दबे पाँव नीचे आया और मिठाई का डिब्बा खोल कर मिठाई खाने ही जा रहा था की आशु आ गई. दोनों हाथ कमर पर रखे वो प्यार भरे गुस्से से मुझे देखती रही. मुझे उसे ऐसा देख कर कॉलेज की टीचर की याद आ गई और हँस पडा. 'टीचर जी! सॉरी!' मैंने कान पकड़ते हुए कहा तो आशु मुस्कुराती हुई मेरे पास आई और मिठाई के डिब्बे से मिठाई निकाल कर खाने लगी. अब तो हम दोनों मुस्कुरा रहे थे और मिठाई खा रहे थे, दोनों ने मिल कर आधा डिब्बा साफ़ कर दिया और फिर पानी पी कर दोनों ऊपर आ गये. मैंने झट से आशु का हाथ पकड़ा और उसे अपने कमरे में खींच लिया. दरवाजे के साथ वाली दिवार से उसे सटा कर खड़ा किया और उसके गुलाबी होठों को मुँह में भर कर चूसने लगा. आशु ने तुरंत अपने हाथ मेरी पीठ पर फिराने शुरू कर दिये. मेरा मन तो उसके निचले होंठ को पीने पर टिका था इधर आशु का जिस्म जलने लगा था. उसका हाथ अब मेरे लिंग पर आ गया और वो उसे दबाने लगी. अब उस समय संभोग करना बहुत बड़ा रिस्क था इसलिए मैं रुक गया; 'जान! ये नहीं प्लीज! शहर जा कर!' आशु का दिल टूट गया और उसने अपना हाथ मेरे लिंग के ऊपर से हटा लिया. मैं मजबूर था इसलिए मैंने उसे बस 'प्लीज!!!' कहा तो शायद वो समझ गई और धीमे से मुस्कुराई! अब आगे अगर मैं उसे किस करता तो फिर वही आग सुलग जाती इसलिए मैं रूक गया और उसे गुड नाईट कहा. मैं समझ गया था की आशु को बुरा लगा है पर उसने अगले ही पल पलट कर पंजों पर खड़े होते हुए मेरे होठों को चूम लिया और खिल-खिलाती हुई अपने कमरे में भाग गई. मैं भी खड़ा-खड़ा कुछ पल मुस्कुराता रहा और फिर सो गया.
अगली सुबह मैं उठा और जैसे ही नीचे आया की आशु ने मुझे चिढ़ाना शुरू कर दिया. 'दादी जी...आपको पता है, रात को एक चोर आया था और देखो आधी मिठाई साफ़ कर दी!' ये सुन कर सारे लोग हँसने लगे और मैं भी मुस्कुराता हुआ चारपाई पर बैठ गया.'ताई जी, चोर अकेला नहीं था! एक चोरनी भी थी उसके साथ!' ये सुन के तो सब ने ठहाका मार के हँसना शुरू कर दिया. 'तुम दोनों की बचपन की आदत गई नहीं?' माँ ने मेरे कान पकड़ते हुए कहा. 'ये दोनों जब छोटे थे तब ऐसे ही रात को रसोई में घुस जाते थे और मिठाई चुरा कर खाते थे!' माँ ने कहा. तभी भाभी बोली; 'अरे! तो घर में चोरी कौन करता है? मांग कर खा लेते?' ये बात सब को बुरी लगी क्योंकि वहां तो बस मजाक चल रहा था. ताई जी को गुस्सा आया और वो भाभी को झिड़कते हुए बोलीं; 'भक! ज्यादा बकवास की ना तो मारब एक कंटाप!'
'चुप कर जा हरामजादी!' गोपाल भैया ने भी उन्हें झिड़क दिया और भाभी मुँह फूला कर चली गईं! पता नहीं क्यों पर भाभी से इस परिवार की ख़ुशी देखि नहीं जाती थी और मुझसे तो उनका ३६ का आंकड़ा था! पर फिर वो क्यों मुझे अपने जिस्म की नुमाइश किया करती थीं? ये ऐसा सवाल था जिसका जवाब जानने में मुझे कटाई रूचि नहीं थी. इसलिए मैं बस इस सवाल से बचता रहता था.
शाम को मंदिर में पूजा थी सो सब वहाँ चले गए, मुझे तो रास्ते में प्रकाश मिल गया तो मैं उससे बात करने में लग गया.उससे मिल कर मैं मंदिर पहुँचा पर वहाँ तो बहुत भीड़ थी. इसलिए मैं बाहर ही खड़ा रहा. सारी शाम भगवान के दर्शन मे बीत गयी. रात को खाने के बाद मैं छत पर टहल रहा था की आशु मिठाई का डिब्बा ले कर आ गई और मुझे डिब्बा खोल कर देते हुए गंभीर हो गई. 'क्या हुआ?' मैंने पुछा तो वो सर झुकाये हुए बोली; 'कल भाई-दूज है, घर में सब कह रहे थे की चूँकि मेरा कोई भाई नहीं इसलिए कल आपको तिलक....' इतना कहते हुए वो रुक गई! अब ये सुन कर तो मैं सन्न रह गया! मैं अपना सर पकड़ के खड़ा आशु को देखता रहा की शायद वो आगे कुछ और बोले पर वो सर झुकाये खामोश खड़ी रही. मैं नीचे जा कर भी कुछ नहीं कह सकता था वरना सब उसका 'सही' मतलब निकालते! 'सही' मेरे नितुसार होता, उनके नितुसार तो ये 'गलत' ही होता! मैं बिना आशु को कुछ कहे नीचे आ गया और फिर घर से बाहर निकल गया.कुछ देर बाद मैं घर आया तो माँ ने पुछा की कहाँ गया था. तो मैंने झूठ बोल दिया की ऐसे ही टहलने गया था. कुछ देर बाद मुझे प्रकाश का फ़ोन आया और मैं उससे जूठ-मूठ की बात करने लगा. मैंने घर में सब को ऐसे दिखाया जैसे की मेरा ऑफिस से कॉल आया हो और मैं झूठ-मूठ की बात करते हुए कल सुबह ही निकलने का प्लान बनाने लगा. बात खत्म हुई तो मुझे कैसे भी ये बात घर में सब को बतानी थी पर ये भी ध्यान रखना था की कहीं भाई-दूज के चक्कर में फँस जाऊ. 'पिताजी कल कुछ ऑफिस के काम से मुझे बरेली निकलना होगा.' मैं झूठ बोला.
'कुछ दिन के लिए आता है और उसमें भी ये तेरे ऑफिस वाले तेरा पीछा नहीं छोड़ते!' पिताजी ने थोड़ा डाँटते हुए कहा.
'दरअसल पिताजी प्रमोशन का सवाल है, इसलिए जा रहा हु. कल सुबह जल्दी निकल जाऊँगा और रात तक लौट आऊँगा.' इतना कह कर मैं अपने कमरे में भाग लिया ताकि कहीं वो ये ना कह दें की सुबह तिलक लगवा के निकलिओ! कमरे में आते ही मैंने दरवाजा बंद किया और औंधे मुँह बिस्तर पर लेट गया.मुझे कैसे भी कर के खुद को इस भाई-दूज के दिन से बचाना था. सुबह मैं ३ बजे उठ गया, अभी तक आशु नहीं उठी थी. मैं फटाफट नहाया और तैयार हो कर नीचे आ गया.सुबह के चार बजे थे और अभी सिर्फ ताई जी जगी थीं, मुझे तैयार देख कर वो समझ गईं और चाय बनाने जाने लगी तो मैंने उन्हें मना कर दिया. इस डर से की कहीं आशु जाग गई तो फिर फँस जाऊंगा. घर से तो निकल लिया पर अब समय भी तो काटना था. इसलिए में सीधा मंदिर चला गया और वहाँ जा कर बैठ गया.५ घंटे बाद मुझे प्रकाश का फ़ोन आया और उसने मुझे बजार से पिक करने बुलाया, मैं बुलेट रानी के संग बाजार पहुँचा और प्रकाश को पिक किया. प्रकाश को दरअसल कुछ काम से लखनऊ जाना था तो मैंने उसे ये झूठ बोल दिया की पिताजी कुछ काम से मुझे रिश्तेदारों के भेज रहे हैं, अब मैं वहाँ गया तो फिर वही शादी का रोना होगा. ये था तो बकवास बहाना पर प्रकाश को जरा भी शक नहीं हुआ. पूरा दिन उसके साथ ऐसे ही घुमते-फिरते बीता बस फायदा ये हुआ की मुझे खेती-बाड़ी के काम के बारे में कुछ सीखने को मिल गया की बीज कहाँ से लेते हैं, यूरिया कौन सा अच्छा होता है और मंडी कहाँ है, आदि.
शाम हुई तो प्रकाश ने कहा की चल दारु पीते हैं, पर मैं तो वचन बद्ध था! तो मैंने उसे ये बोल कर टाल दिया की मैं त्योहारों में दारु नहीं पीता! पर उसे तो पीनी थी. वो भंड हो के पीने लगा और रात ११ बजे तक पीता रहा. पीने के बाद उसे याद आई उसके जुगाड़ की! तो उसने मुझे उसकी गर्लफ्रेंड के घर ले चलने को कहा. ये कोई लड़की नहीं बल्कि एक विधवा भाभी थी जो उसी के रिश्ते में थी. नैन-नक्श से तो बड़ी कातिल थी और उसकी जवानी उबाले मार रही थी. जब बाइक उसके घर रुकी तो वो बाहर आई और हम दोनों को देख कर जैसे खुश हो गई. उसे लगा की आज तो उसे दो-दो लिंग मिलने वाले हैं, पर भैया हम तो पहले से ही आशु के हो चुका था.! मैंने जैसे-तैसे प्रकाश को उतारा और अंदर ले गया, बिस्तर पर छोड़ कर मैं पलट के बाहर आने लगा तो भाभी बोली; 'आपका नाम सागर है ना? प्रकाश ने आपके बारे में बहुत बताया हे.' अब मैं उनसे बात करने के मूड में कतई नहीं था इसलिए मैं बिना कुछ कहे साइड से निकलने लगा; 'रुक जाओ ना आज रात!' भाभी ने बड़ी अदा से कहा पर मैंने अपना भोला सा चेहरा बनाया और कहा: 'भाभी घर जाना है, सब राह देख रहे होंगे.'
'अरे तो कौन सा तुम्हारी लुगाई है जिसके पास जाने को उतावले हो रहे हो? तनिक रूक जाओ आज रात, कुछ बात करेंगे!' भाभी इठलाते हुए बोली.
'अरे दो प्रेमियों के बीच मेरा क्या काम? खामखा कबाब में 'हड्डा' लगूँगा'
'अरे काहे के प्रेमी! ई सार बस साडी उठात है और चढ़ी जात है!' भाभी ने प्रकाश पर गुस्सा निकालते हुए कहा.
'अब जउन बोओ है, सो काटो! इतना कह कर मैंने बाइक स्टार्ट की और घर के लिए निकल पडा. मेरे घर पहुँचते-पहुँचते १ बज गया था. सब सो चुका था. एक बस मेरी प्यारी जान थी जो जाग रही थी. रात के सन्नाटे में बुलेट की आवाज सुन उसने दरवाजा खोला. मैं अंदर आया तो उसने उदास मुखड़े से पुछा: 'आपने खाना खाया?' तो मैंने हाँ कहा, फिर इस डर से की कहीं कोई जाग ना जाये मैं चुपचाप ऊपर आ गया और अपने कपडे उतारने लगा. तभी आशु ऊपर आ गई और मेरे लिए दूध ले आई, ये दूध वो मेरी परीक्षा लेने के लिए लाइ थी! दरअसल मेरे कपड़ों से दारु की महक आ रही थी और आशु को मुझसे ये सीधा पूछने में डर लग रहा था. मैं समझ गया की क्या माजरा है इसलिए मैंने दूध का गिलास उठाया और आशु को दिखते हुए गटागट पी गया.आशु को तसल्ली हो गई की मैंने शराब नहीं पि हे. 'जानू!.... एक बात कहूँ? आप नाराज तो नहीं होंगे?' आशु ने सर झुकाये हुए कहा. मैने बस हाँ में सर हिलाया और आशु को अपनी नितुमति दी.
'मैं कल ....आपसे मजाक किया था .....की भाई-दूज के लिए .....' आशु इतना बोल कर चुप हो गई. ये सुन कर मुझे बहुत हँसी आई! पर अब मेरी बारी थी आशु से मजाक करने की. मैंने गुस्से से आशु को देखा, पर उसकी गर्दन झुकी हुई थी तो वो मेरा गुस्से से तमतमाता हुआ चेहरा देख नहीं पाई| मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर की और तब उसकी नजर मेरी गुस्से से लाल आँखों पर पड़ी; 'तू पागल है क्या? तेरी वजह से में दिनभर मारा-मारा फिरता रहा! तुझे मजाक करने के लिए यही टॉपिक मिला था?' मैंने गुस्से से दबी हुई आवाज में दाँत पीसते हुए कहा. आशु बेचारी शं गई और लघभग रोने ही वाली थी की मैंने हँसते हुए अपनी छाती से चिपका लिया और उसके सर को सहलाते हुए कहा; 'जान! मैं मजाक कर रहा था! आप मुझसे मज़ाक कर सकते हो तो मैं नहीं कर सकता?' ये सुन कर आशु को इत्मीनान हुआ की अभी मैं सिर्फ मज़ाक कर रहा था. 'जानू! आप न बड़े खराब हो! मेरी तो जान ही निकाल दी थी आपने? दो मिनट आप और ये ड्रामा करते ना तो सच्ची में मैं रोने लगती!' आशु ने थोड़ा सिसकते हुए कहा. मैंने आशु के सर को चूमा और उसे जा कर सोने को कहा.
अगली सुबह हमें शहर वापस जाना था तो दोनों समय से उठ गए और नाहा-धो के नाश्ता कर के निकल लिए. कुछ दूर जाते ही आशु ने अपना बैठने का पोज़ बदल लिया और मुझसे कस कर चिपक गई. दोनों ही के मन में तरंगें उठ रहीं थी. क्योंकि शहर पहुँचते ही दोनों एक दूसरे में खो जाना चाहते थे. मैंने बाइक ढाबे के पास स्लो की तो आशु बोली; 'प्लीज मत रुको! सीधा घर चलते हैं!' उसकी बात सुन के उसकी बेसब्री साफ़ जाहिर हो रही थी. मन तो मेरा भी उसे पाने को व्याकुल था. इसलिए मैंने बाइक फिर से हाईवे पर दौड़ा दी! घर पहुँच कर मैं बाइक खडी कर रहा था और आशु फटाफट ऊपर भागी, दरअसल उसे बाथरूम जाना था! मैं ऊपर पहुँचा तो आशु बाथरूम से निकल रही थी. मैंने दरवाजा बंद किया और हाथ धो ने के लिए बाथरूम जाने लगा. 'कहाँ जा रहे हो?' आशु ने पुछा और मेरा हाथ पकड़ के मुझे बिस्तर पर खींच लिया. 'जान! हाथ-मुँह तो धो लूँ?' मैंने कहा पर आशु के बदन की आग भड़कने लगी थी. 'क्या करना है हाथ-मुँह धो के? बाद में अच्छे से नहा लेना, अभी तो आप मेरे पास रहो! बहुत तड़पाया है आपने!'
मैं ने आशु को पलट कर अपने नीचे किया और उसके ऊपर आ कर उसके थर-थर्राते होटों को देखा. मैंने नीचे झुक कर उन्हें चूमना शुरू किया और आशु ने मेरा पूरा सहयोग दिया.
हम दोनों अभी होठों से एक दूसरे के दिल की आग को भड़का रहे थे की आशु का फ़ोन बड़ी जोर से बज उठा.आशु को तो जैसे उस फ़ोन की कोई परवाह ही नहीं थी पर मेरे लिए उस फ़ोन की रिंगटोन बड़ी कष्टदाई थी! मैं आशु के ऊपर से उठ गया और आशु का फ़ोन उठा के उसे दिया. 'क्या जानू? बजने देना था न?' आशु ने नाराज होते हुए कहा. 'यार मुझसे ये शोर बर्दाश्त नहीं होता! इसे जल्दी से निपटा तब तक मैं हाथ-मुँह धो लेता हु.' मैं इतना कह कर बाथरूम में घुस गया और इधर गुस्से में कॉल करने वाली पर बिगड़ गई! 'तुझे ये नंबर दिया किसने? उस कुतिया की तो.....!!! हाँ ...ठीक है....बोला ना आ रही हूँ! तू फ़ोन रख!' मैं बाहर आया तो देखा आशु गुस्से में तमतमा रही हे. 'क्या हुआ?' मैंने पुछा तो आशु गुस्से में बोली; 'उस हरामज़ादी ने मेरा नंबर सब लड़कियों को बाँट दिया! ऊपर से प्रोफेसर ने आज असाइनमेंट्स सबमिट करने की लास्ट डेट कर दी है! नहीं जमा करने पर पेनल्टी लगा रहे है!'
'पर तेरे तो सारे असाइनमेंट्स पूरे हैं? फिर क्यों गुस्सा हो रही है?'
 
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'पर मुझे आज का दिन आपके साथ बिताना करना था! कल से आपका ऑफिस है, फिर हम कब मिलेंगे?' मैंने अपनी बाहें खोलीं और आशु एक दम से मेरे गले लग गई. मैंने उसके सर को चूमते हुए कहा; 'जान! मैं चाँद पर नहीं जा रहा की तुम से मिलने आ न सकूँ?! शुरू-शुरू थोड़ी दिक्कत होगी, पर तुम जानती हो ना मैंने तुम्हें कभी नाराज नहीं करता? फिर क्यों चिंता करती हो?'
हम दोनों ऐसे ही एक दूसरे से लिपटे कुछ देर खड़े रहे और फिर मैंने आशु को उसके हॉस्टल ड्राप किया. 'आप प्लीज कहीं जाना मत, मैं अपने असाइनमेंट्स ले कर आती हु.' ये कह कर आशु हॉस्टल में भागती हुई घुसी और फिर अपना बैग ले कर आ गई. फिर मैंने उसे उसके कॉलेज छोड़ा और मैं अपने घर वापस आ गया.चूँकि अगले दिन ऑफिस था तो मैंने अपने कपडे वगैरह सब प्रेस कर के तैयार किये, बैग धो कर रेडी किया, थोड़ी बहुत घर की साफ़-सफाई की और दोपहर और रात का खाना बना लिया. शाम ४ बजे मैं आशु से मिलने निकल पड़ा, ठीक ५ बजे मैं उसके कॉलेज के गेट के सामने खड़ा था. तभी वहाँ अक्षय आ गया और आ कर मेरे पास खड़ा हो गया.उसे देखते ही मुझे याद आ गया की साले ने जो निशा से चुगली की थी!
मैं: तूने निशा से क्या कहा था मेरे बारे में?
अक्षय: क...क्या बोल रहे हो आप?
मैं: क्या बोल रहा था तू की मेरा किसी मैडम के साथ अफेयर चल रहा है और मेरे कारन उनका डाइवोर्स हो गया?
अक्षय: न....नहीं तो!
मैं: अगर बोला है तो कबूल करने का गूदा भी रख! (मैंने आवाज ऊँची करते हुए कहा.)
अक्षय: ब्रो...वो मैंने तो बस...
मैं: अबे तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे बारे में ऐसी बात करने की? तूने मुझसे पुछा भी था की ये बात सच है या नहीं? लौंडा है तो जनानियों जैसी हरकत न कर! कहने को मैं भी कह सकता हूँ जो तेरी गर्लफ्रेंड ने जयपुर में रायता फैलाया था! (मैंने गुस्से से आशु के एक दम नजदीक जाते हुए कहा.)
अक्षय: तेरा बहुत ज्यादा हो रहा है अब?
अक्षय ने अपनी अकड़ दिखाते हुए कहा और ये सुन कर मेरा पारा और भी चढ़ गया.मैंने उसका कालर पकड़ लिया.
मैं: अपनी ये गर्मी मुझे मत दिखा, जा कर अपनी गर्लफ्रेंड को दिखा जिसकी आग तू बूझा नहीं पाता और वो इधर-उधर मुँह मारना चाहती हे. उस दिन जयपुर में उसने आशु से कहा था की वो एक रात मेरे साथ गुजारना चाहती है, तभी तो आशु गुस्से में निकल पड़ी थी.
अक्षय: य...ये झूठ है!
तभी पीछे से आशु आ गई;
आशु: ये सच है! तेरे साथ तो वो बस पैसों के लिए घूमती हे. पैसों के बिना तो वो तेरे जैसों को घास ना डाले!
आशु ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मैंने थोड़ा धक्का देते हुए उसका कालर छोडा.
मैं: आज के बाद दुबारा हम दोनों के बारे में कुछ बकवास की ना तो तेरे लिए अच्छा नहीं होगा!
इतना कह कर मैंने बुलेट को जोर से किक मारी और उसे बिना बोले ही चेतावनी दी! फिर हम दोनों अपनी पसंदीदा जगह पर आ गए और चाय पीने लगे. पता नहीं क्यों पर आशु को खुद पर गर्व महसूस हो रहा था और वो मंद-मंद मुस्कुरा रही थी. जब मैंने कारन पुछा तो वो बोली; 'आज जब मैंने आपके कंधे पर हाथ रखा तो आपने उसे छोड़ दिया. आज मुझे पहली बार लगा जैसे मैं आपको कण्ट्रोल कर सकती हूँ!' ये सुन कर मैं मुस्कुरा दिया. क्योंकि मैंने अक्षय को इसलिए छोड़ा था क्योंकि मैं वहाँ कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाहता था. पर मैं चुप रहा ये सोच के की आशु को इस खुशफैमी में रहने दिया जाए! अगले दिन मैं समय से उठा और तैयार हो कर दस मिनट पहले ही ऑफिस पहुँच गया.सबसे मेरा इंट्रो हुआ और यहाँ का स्टाफ मेरी उम्र वाला था. कोई भी शादीशुदा आदमी या लड़की मुझे यहाँ नहीं दिखाई दी. एकाउंट्स में मेरे साथ एक लड़का और था. पहले दिन तो काम समझते-समझते निकल गया.लंच टाइम में आशु का फ़ोन आया और मैं उससे बात करते हुए बाहर आ गया.शाम को मिलना मुश्किल था पर मैंने उसे कहा की मैं हॉस्टल आऊँगा उसे पढ़ाने के बहाने, तो आशु खुश हो गई. शाम को साढ़े पाँच मैं निकला और आशु के हॉस्टल पहुंचा. आंटी जी के पाँव हाथ लगाए और फिर आशु अपनी किताब ले कर आ गई और मैं उसे पढ़ाने लगा, वो पढ़ाना कम और अपनी आँखें ठंडी करना ज्यादा था. फिर मैं घर लौटा और खाना खा कर सो गया.
ये पूरा हफ्ता मेरा और आशु का मिलना कुछ कम हो गया, ऑफिस से मुझे दो बार बरैली जाना पड़ा और डेढ़ घंटे की ये ड्राइव वो भी एक तरफ की बड़ी कष्टदाई होती थी. अब रोजो-रोज आशु से मिलने हॉस्टल भी नहीं जा सकता था. इसलिए अब हमारे लिए बस वीडियो कॉल ही एक सहारा था. एक दूसरे को बस वीडियो कॉल में ही देख लिया करते और दिल को सुकून मिल जाता. शनिवार आया तो आशु उम्मीद करने लगी थी की आज मैं हाफ डे में आऊँगा पर ये क्या उस दिन बॉस ने मुझे फिर बरैली जाने को कहा. मेरा बॉस खड़ूस तो था पर इज्जत से बात करता था. उसका दिया हर काम मैं निपटा देता था तो वो मुझसे खुश था. जब मैंने आशु से कहा की मैं आज नहीं आ पाऊँगा तो वो उदास हो गई पर मैंने उसे रविवार का प्लान पक्का करने को कहा, तब जा कर आशु मानी.उस रात जब मैं घर पहुँचा तो आशु ने कॉल किया: 'कल पक्का है ना? कहीं आप फिर से तो कंपनी के काम से कहीं नहीं जा रहे ना?'
'जान! कल बस मैं और तुम! कोई काम नहीं, कोई ऑफिस नहीं!' मेरी बात सुन कर आशु को इत्मीनान हुआ उसके आगे बात हो पाती उससे पहले ही किसी ने उसे बाथरूम के बाहर से पुकारा इसलिए आशु फ़ोन काट कर चली गई. मैंने भी खाना खाया और जल्दी सो गया, सुबह उठा और ब्रश किया, चूँकि ठंड शुरू हो चुकी थी इसलिए मन नहीं किया की नहाऊँ! ठीक नौ बजे आशु ने दरवाजा खटखटाया, ये दस्तक सुनते ही दिल में मौजें उठने लगी. मैने दरवाजा खोला, आशु का हाथ पकड़ के उसे अंदर खींचा और दरवाजा जोर से बंद कर दिया. आशु को दरवाजे से ही सटा कर खड़ा किया और उसके होठों पर ताबड़तोड़ चूमना-चूसना शुरू कर दिया. आशु भी कामुक हो गई और उसने भी मेरी किस का जवाब अपनी किस से देना शुरू कर दिया. दो मिनट बाद ही हम दोनों का वहाँ खड़े रहना दूभर हो गया और मैं आशु को खींच कर बिस्तर पर ले आया. उसे धक्का देने से पहले उसके सारे कपडे उतारे, बस उसकी ब्रा और पेंटी ही बची थी. फिर उसे धक्का दे कर बिस्तर पर गिराया और मैं उसके जिस्म पर टूट पडा. उसके सारे नंगे जिस्म को मैंने चूमना शुरू कर दिया और इधर आशु का सीसियाना शुरू हो गया.मेरे हर बार उसके जिस्म को होंठों से छूने भर से उसकी; 'सससस' निकल जाती. टांगों से होता हुआ मैं उसके पेट और फिर उसके स्तनों के बीच की घाटी पर पहुँचा तो आशु ने अपने दोनों हाथों से मेरे गालों को पकड़ा और अपने होठों के ऊपर खींच लिया. हम फिर से बेतहाशा एक दूसरे को चूमने लगे, एक दूसरे के होठों को चूसने लगे. हमारी जीभ एक दूसरे से लड़ाई करने लगी थीं, और नीचे मेरे लिंग ने आशु की योनी के ऊपर चुभना शुरू करा दिया था.
आशु ने अपने दोनों हाथों को मेरे सीने पर रख कर मुझे अपने ऊपर से बगल में धकेल दिया. वो उठ के बैठी और मेरे कच्छे को निकाल कर फेंक दिया. फिर आलथी-पालथी मार के मेरे लिंग के पास बैठ गई और अपने दाहिने हाथ से उसने लिंग की चमड़ी को नीचे किया, प्री-कम से गीला मेरा सुपाड़ा आशु की आँखों के सामने चमचमाने लगा. पर आज उसके मन में कुछ और था. आशु ने मेरे लिंग को चूसा नहीं बल्कि आज तो वो उसके साथ खेलने के मूड में थी. उसने अपने दोनों हाथों की उँगलियों से मेरे लिंग को पकड़ा और सिर्फ लिंग के सुपाड़ी को अपने मुँह में ले कर उसे चूसने लगी. मुझे ऐसा लगा मानो वो मेरे सुपाडे को टॉफ़ी समझ रही हो! उसका ऐसा करने से मेरी सिसकारियां कमरे में गूंजने लगी; 'सससससस....आह!!!' मेरी सिकारियाँ सुन आशु को जैसे और मजा आने लगा और आशु ने अपने जीभ से मेरे सुपाडे की नोक को कुरेदना शुरू कर दिया. अब तो मेरा मजा दुगना हो गया था और मैं स्वतः ही अपनी कमर नीचे से उचकाने लगा ताकि मेरा लिंग पूरा का पूरा आशु के मुँह में चला जाये.
पर ना जी ना! आशु तो सोच कर आई थी की वो आज मुझे ऐसा कतई नहीं करने देगी. पर लिंग को तो गर्मी चाहिए थी. आशु के मुँह से ना सही तो उसकी योनी से ही सही! मैंने आशु के मुँह से अपना लिंग छुड़ाया और उसे लेटने को कहा.
आशु मेरी जगह लेट गई और मैं उसकी टांगों के बीच आ गया, अब मैंने सोचा जितना आशु ने मुझे तड़पाया है उतना उसे भी तो तड़पाया जाए! इसलिए मैंने आशु की टांगें चौड़ी कीं और लिंग को उसकी योनी पर मिनट भर रगड़ने लगा. आशु बेचारी सोच रही थी की अब ये अंदर जायेगा...अब अंदर जायेगा...पर मैं बस रगड़-रगड़ के उसके मजे ले रहा था. “ऊँह..उन्हह ..उम्!!!' आशु प्यार भरे गुस्से बोली और मैं उठ कर बिस्तर से नीचे आ गया.आशु एक दम से अवाक मुँह फाड़े मुझे देखती रही और सोचने लगी की मैं क्यों नाराज हो गया? पर अगले ही पल मैंने उसे पकड़ के खींचा और बिस्तर से उठा के उसे कुर्सी पर बिठा दिया. फिर मुस्कुराते हुए उसकी टांगें चौड़ी कीं और अपना लिंग उसके योनी में ठेल दिया.
आशु की योनी इतनी पनियाई हुई थी की एक ही धक्के में पूरा लिंग अंदर पहुँच गया, पर आशु चूँकि इस धक्के के लिए मेंटली प्रेपरेड़ नहीं थी तो उसकी 'आह!' निकल गई. शुरू-शुरू में मैंने पूरे धक्के मारे, जिससे मेरा लिंग पूरा का पूरा उसकी योनी में उत्तर जाता और फिर पूरा बाहर आता. पर शायद इतने दिन से हमने संभोग नहीं किया था तो आशु को इसकी आदत नहीं रही थी इसलिए वो कुछ ज्यादा ही कराह रही थी. जबकि मेरा मानना ये था की अब तक तो आशु की योनी को मेरे लिंग का आदि हो जाना चाहिए था! पर मैं फिर भी लगा रहा और करीब ५ मिनट बाद ही आशु ने पानी छोड़ दिया. अब मेरा लिंग अंदर अच्छे से विचरण कर सकता था और मैंने जोर-जोर से धक्के मारने शरू किये, पूरी कुर्सी मेरे धक्कों से हिलने लगी थी और आशु अपने दूसरे चरम-आनंद पर खुसंह गई थी! अगले धक्के के साथ हम दोनों साथ ही फारिग हुए और अपना सारी पानी उसकी योनी में भर कर मैं पलंग पर बैठ गया.कुर्सी पर टांगें चौड़ी कर के बैठी आशु की योनी से हम दोनों का रस टप-टप कर गिरने लगा और आशु इससे बेखबर अपनी साँसों पर काबू पाने लगी.
कुछ देर बाद मैं उठा और बाथरूम में फ्रेश होने लगा, इधर आशु ने चाय-नाश्ता बनाना शुरू कर दिया था. मेरे नहा के आते-आते आशु ने नाश्ता तैयार कर दिया था और फिर हमने बैठ के एक साथ नाश्ता किया. नाश्ते के बाद आशु ने बर्तन सिंक में रखे और मुझे खींच कर बिस्तर पर बिठा लिया; 'जानू! मैं है ना....वो...मुझे है न....कुछ...मेकअप का समान खरीदना था...जैसे वो...मस्कारा ...ऑय लाइनर...काजल...और वो..एक टैंक टॉप (शर्माते हुए)....और...एक जीन्स....एक स्लीवलेस वाला टॉप...!!' आशु ने अपनी ये फरमाइश किसी बच्चे की तरह की.
'मेले जान को मॉडर्न दिखना है?!' मैंने तुतलाते हुए आशु से पुछा तो जवाब में आशु ने शर्म से गर्दन हाँ में हिला दी. 'अच्छा...तो अभी ना...मेरे पास न...ज्यादा पैसे नहीं हैं! नेक्स्ट मंथ सैलरी आएगी ना ...तब आप ले लेना...ओके?' मेने भी आशु की तरह बच्चा बनते हुए सब कहा, ये सब सुन कर आशु मुस्कुराने लगी और फिर मेरे गले लग गई. 'तो जानू! हम फ़ोन पर प्रोडक्ट्स देखें?' आशु ने पुछा तो मैंने फटाफट अपना फ़ोन निकाला और हम अमेज़न पर उसकी पसंद के प्रोडक्ट्स देखने लगे और सब के सब कार्ट में एड कर दिये. अगले महीने सैलरी आते ही मैं वो आर्डर करने वाला था. हम दोनों ऐसी ही कुछ और प्रोडक्ट्स देख रहे थे की आशु का फ़ोन बज उठा और जो नाम और नंबर स्क्रीन पर फ़्लैश हो रहा था उसे देख वो तमतमा गई; 'क्या है? मना किया था न की मुझे कॉल मत करिओ, फिर क्यों कॉल किया तूने?.... मैंने क्या किया? सब तेरी करनी है!.... बहुत खुजली थी ना तुझे? अब भुगत!!! ....अच्छा? क्यों न कहूँ? तू क्यों मरी जा रही है उसके लिए, तेरे लिए बंदे फंसाना कोई मुश्किल काम है?! पहले उसके साथ सोइ थी अब किसी और के साथ सो जा!!!' इतना कह कर आशु ने फ़ोन काट दिया. अब मुझे थोड़ा-थोड़ा तो समझ आ गया था की ये कौन है और क्या बात आ रही है, तो मैंने इस बात का ना कुरेदना ही ठीक समझा.
पर आशु को ये बात कहनी थी; 'निशा का फ़ोन था! कह रही थी की तूने क्यों अक्षय को सब बोल दिया? उस कामिनी को दर्द हो रहा है की अच्छा ख़ासा बकरा उसके हाथ से निकल गया.हरामजादी!'
'बस मैडम! आपके मुँह से गालियाँ अच्छी नहीं लगती!' मैंने आशु को टोका!
'सॉरी जी! पर उसका नाम सुनते ही मुझे बहोत गुस्सा आता है!'
'अच्छा छोड़ उसे, और सुन मुझे इस कमिंग वीक में रोज बरैली जाना है इसलिए अब नेक्स्ट मुलाक़ात रविवार को ही होगी!' मैंने कहा.
'आऊच.... !!!! फिर .....???' आशु एक दम से उदास हो गई.
'जान! थोड़ा टाइम दो मुझे ताकि ये नई जॉब संभाल सकूँ!' मैंने आशु के गाल को सहलाते हुए कहा.
'हम्म!' आशु ने मुस्कुराते हुए कहा.
उस दिन के बाद पूरे एक महीने तक हमारा मिलना बस रविवार तक के लिए सीमित हो गया.हम फ़ोन पर रोज बात किया करते, और रात में सोने से पहले आशु मुझसे बाथरूम में छुपकर वीडियो कॉल पर बात करती. फिर जब हम रविवार को मिलते तो पूरे हफ्ते की कसर निकाल देते. हम एक दूसरे को बेतहाशा चूमते और प्यार करते मानो जैसे जन्मों के प्यासे हों! आखिर सैलरी वाला दिन आ गया और मैं उस दिन अपनी सैलरी अकाउंट में देख कर बहुत खुश हुआ. मैंने बिना आशु को बताये उसके सेलेक्ट किये हुए सारे सामान का आर्डर दे दिया और रविवार को उसकी डिलीवरी भी होनी थी. आशु इस सब से अनजान थी और जब वो रविवार को आई तो प्यासी हो कर मुझ पर टूट पड़ी पर मैं जानता था की आज हमें एक दूसरे को प्यार करने का समय नहीं मिलेगा इसलिए मैंने उसे रोकते हुए कहा; 'जान! आज नहीं!' ये सुन कर आशु परेशान हो गई और बोली; 'क्यों क्या हुआ? आपकी तबियत तो ठीक है ना?'
'मैं ठीक हूँ जान! बस आज कोई आने वाला हे.' मैंने बात बनाते हुए कहा.
'कौन आ रहा है? और आपने क्यों बुलाया उसे? एक तो दिन मिलता है उस दिन भी आपके दोस्त हमें अकेला नहीं छोड़ते?' आशु ने नाराज होते हुए कहा. ठीक उसी वक़्त दरवाजे पर दस्तक हुई और आशु का गुस्सा आसमान छूने लगा, मैंने उसे दरवाजा खोलने को कहा तो आशु ने गुस्से से दरवाजा खोला' सामने डिलीवरी बॉय खड़ा था और उसने कहा; 'अश्विनी जी का आर्डर है!' ये सुनते ही आशु का गुस्सा काफूर हो गया और उसने हँसते हुए डिलीवरी ली और दरवाजा बंद कर के मेरे पास आ गई और गले लग गई. 'थैंक यू जानू!!!' कहते हुए आशु ने पंजों पर खड़े होते हुए मेरे होठों को चूम लिया. एक-एक कर तीन लोग और आये....फाइनली आशु का सारा सामान आ गया.अब आशु उन सबको पहन कर मुझे दिखाने को आतुर हो गई.
सबसे पहले उसने टी-शर्ट और जीन्स पहनी, आज लाइफ में पहलीबार वो जीन्स पहन रही थी. जीन्स बहुत टाइट थी जिसके कारन उसका पिछवाड़ा बहुत ज्यादा उभर कर दिख रहा था. उसे देखते ही मेरे मुँह से निकला; 'दंगे करवाएँगी क्या आप?'
ये सुन कर जब आशु का ध्यान अपनी उभरी हुई नितंब पर गया तो वो बुरी तरह शर्मा गई! 'इसे रिटर्न कर दो!' आशु ने शर्माते हुए कहा और मैंने भी उसकी बात मान ली क्योंकि ये जीन्स उसके लिए कुछ ज्यादा ही कामुक थी! बाकी बचे हुए टॉप्स उसने एक-एक कर पहने और मुझे दिखाने लगी.
वो सब अच्छे थे पर जो उसने स्लीवलेस पहना तो मेरी आँखें उस पर गड़ गई. आशु ने आज पहली बार स्लीवलेस पहना था और मैं उसे बस देखे ही जा रहा था. 'आपको ये वाली पसंद आई ना?' उसने पुछा और मैंने हाँ में गर्दन हिलाते हुए मुस्कुरा दिया.
मुझे ये जान कर ख़ुशी हुई की आशु अब अपनी खूबसूरती को पहचानने लगी है पर एक अजीब सा एहसास भी दिल में होने लगा था. वो ये की मेरी गाँव की भोली-भाली आशु जिसे मैं बहुत प्यार किया करता था वो अब शहरी रंग में रंगने लगी है! चलो अच्छा है.... जमाने के साथ बदलना ही चाहिए! ये सोच कर मैंने इत्मीनान कर लिया....
दिन बीतते गए और क्रिसमस का दिन आया, पर ऑफिस की छुट्टी तो थी नहीं और ना ही मैं छुट्टी ले सकता था. हरसाल मैं आज के दिन चर्च जाया करता था और वहाँ प्रेयर अटेंड किया करता था. वापसी में वहाँ से केक खरीद लेता और फिर घर आ जाता था. अब अकेला इंसान था तो टाइम पास हो जाता था और इसी बहाने गॉड जी से भी मन ही मन कुछ बातें कर लिया करता था. पर इस बार मेरे पास प्रेयर करने का कारन था. मैं ऑफिस से सीधा आशु के पास हॉस्टल पहुंचा. आज आंटी जी घर पर ही थीं, मैंने उनसे आशु को थोड़ी देर ले जाने को कहा तो उन्होंने पुछा की कहाँ जा रहे हो? तो मैंने उन्हें सच बता दिया; 'वो आंटी जी दरअसल मैं हरसाल क्रिसमस पर चर्च जाता हूँ, सोचा इस बार आशु को भी ले जाऊँ?' ये सुन कर आंटी अचरज करने लगीं; 'चर्च? पर क्यों?' उनका इशारे मेरे धर्म से था; 'आंटी जी मैं सब धर्मों को मानता हु. भगवान् तो एक ही हैं ना?' मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो आंटी जी ने हाँ में सर हिला दिया. उन्होंने आशु को आवाज दी और आशु मुझे देखते ही खिल गई. 'चल जल्दी से तैयार हो जा, चर्च जाना है!' मैंने कहा तो आशु तुरंत तैयार होने चली गई. 'मैं आधे-पौने घंटे में आशु को छोड़ जाऊंगा.' मैंने आंटी जी से कहा. 'कोई बात नहीं बेटा! तेरे साथ जा रही है इसलिए जाने दे रही हूँ!' आंटी जी ने मुस्कुराते हुए कहा. आशु तुरंत तैयार हो कर आ गई और हम दोनों चर्च की तरफ चल दिये. जब मैंने बाइक चर्च के पास रोकी और उसे उतरने को कहा तो आशु भी अचरज से मुझे देखने लगी. 'मुझे तो लगा की आपने ये झूठ सिर्फ इसलिए बोलै ताकि हम बाहर मिल सकें? पर आप तो सच में चर्च ले आये!'
'तुम्हें पता नहीं है पर कॉलेज के दिनों से मैं साल में एक बार आज ही के दिन यहाँ आता हु. याद है तेरा वो दसवीं का रिजल्ट वाला काण्ड? तेरा रिजल्ट आने से पहले ही मैं जानता था की कोई तुझे आगे पढ़ने नहीं देंगे, तब यहीं मैंने तेरे लिए प्रेयर किया था की तुझे आगे अच्छे से पढ़ने को मिले और देख दुआ क़बूल भी हुई. आज के दिन तुझे साथ इसलिए लाया हूँ ताकि आज तू भी गॉड को शुक्रिया अदा कर दे|'
आशु का चेहरा ख़ुशी से दमकने लगा, उसने अपने दुपट्टे से अपना सर ढका जैसे की वहाँ सब लड़कियों और औरतों ने ढक रखा था और हम चर्च में घुसे. आशु को कुछ नहीं पता था की वहाँ कैसे पूजा की जाती थी. इसलिए अंदर जाने से पहले ही वो चर्च के बाहर अपनी चप्पल उतारने लगी. पर मैंने उसे मना किया और हम दोनों ही अंदर घुसे, अब आशु को बस मुझे देख रही थी. हम दोनों वहाँ सबसे पीछे वाली लाइन में सब के साथ बैठ गये. आगे की तरफ था स्टैंड था जहाँ लोग अपने घुटने मोड़ कर टिका कर प्रेयर करते थे. आशु मुझे देखते हुए वैसे ही करने लगी. पता नहीं कैसे पर उस दिन वहाँ उस तरह बैठे हुए प्रेयर करते हुए मेरी आँख से आँसू बह निकले. आशु ये देख रही थी पर वो उस समय खामोश रही, प्रेयर कर के हम दोनों बाहर आये और मैंने वहाँ से कँडल खरीदीं और बाहर मदर मैरी के पास जलाने लगा, आशु ने भी ठीक वैसे ही किया. जब हम बाहर आये तो वहाँ से मैंने केक खरीदा और आशु को खाने को दिया.
आज पहलीबार आशु ने ऐसा केक खाया था और उसे ये बहुत टेस्टी भी लगा था. 'एक और करना था तुझे यहाँ लाने का, वो ये की तुझे आज तक पता नहीं होगा की क्रिसमस पर होता क्या है? पर आज तुझे एटलीस्ट आईडिया हो गया की आज के दिन की रेलीवंस क्या है?'
'आज तक मैंने क्रिसमस ट्री मैंने सिर्फ किताब में देखा था पर आज पता चला की वो कितना सुंदर होता है! चर्च को किस तरह सजाया जाता है और वो जो वहाँ बच्चों ने जीसस क्राइस्ट के बचपन को दिखने के लिए खिलौने सजाया था उसे देख कर मुझे मेरे बचपन की याद आ गई जब मैं गुड़ियों के साथ खेलती थी.'
'चलो अब तुझे हॉस्टल छोड़ दू.' ये कहते हुए मैंने जैसे ही बाइक स्टार्ट की तो आशु बोली: 'थोड़ी देर और रुकते हैं ना?'
'यार मैंने आंटी जी को बोला था की मैं आधे-पौने घंटे में आ जाऊँगा, ज्यादा देर रुकना ठीक नही. कहीं आंटी जी कुछ सोचने लगीं तो?
'आपके बारे में उनके मुँह से सिर्फ तारीफ ही निकलती हे. इतने महीनों में मैंने बस ये ही सुना है की सागर बेटा ऐसा है सागर बेटा वैसा है, ईमानदार है, मेहनती है और पता नहीं क्या-क्या! कई बार तो लगता है की वो आपको दमाद बनाने के चक्कर में हे. पर सुमन दीदी का शायद कोई चक्कर चल रहा है, तभी तो वो हर बार अपनी शादी की बात टाल जातीं हे. कुछ दिन पहले तो वो शराब पी कर आईं थीं, मैंने दरवाजा खोला और वो चुप-चाप अपने कमरे में जा कर सो गई.'
'उसे आंटी जी से प्रॉब्लम है, आंटी जी उस पर रोक-टोक लगतीं हैं और इसे तो अपनी लाइफ एन्जॉय करनी हे.'
हम दोनों ऐसे ही बात करते हुए हॉस्टल पहुंचे और मैं अंदर आ गया और आंटी जी को केक दिया. हैरानी की बात ये थी की जहाँ वो कुछ देर पहले कह रहीं थीं की मैं क्यों क्रिसमस पर चर्च जा रहा हूँ वहीँ अब बड़े चाव से केक खा रही थी. तभी सुमन भी आ गई; 'अरे सागर जी आप?! और केक!!!!! वाओ!!! ये आप ही लाये होंगे.... माँ तो....' वो आगे आंटी जी के डर से कुछ नहीं बोली और केक खाने लगी.
'सागर जी एक बात सच-सच बताना, आप मुझ से ही रोज-रोज मिलने के लिए बहाना कर के आते हो ना?' सुमन बोली. उस समय आंटी जी किचन में थी और हम तीनों बैठक में बैठे केक खा रहे थे. उसके ये कहते ही मुझे खाँसी आ गई और आशु को शायद गुस्सा आने लगा था.
आशु भाग कर गई और मेरे लिए पानी ले आई. एक घूँट पानी पीने के बाद मैं बोला; 'यार क्या कुछ भी बोल देते हो आप? इसने (आशु ने) अगर घर में बता दिया ना तो गाँव वाले भाला ले कर यहाँ आ जायेंगे. बताया था न आपको हमारे गाँव में प्यार करना पाप है!' ये सुन कर सुमन चुप हो गई. तभी आंटी जी खाना परोस कर ले आईं और बिना खाये उन्होंने जाने नहीं दिया. चलो इसी बहाने घर जा कर खाना बनाने से तो छुट्टी मिली! कुछ दिन और बीते और २९ दिसंबर आ गया, ऑफिस वाले लड़कों ने पार्टी का प्लान बनाया और मुझे भी उसमें शामिल होना था. सब लड़के अपनी-अपनी बीवियों या गर्लफ्रेंड के साथ आने वाले थे तो जाहिर था की मैं भी आशु के ले जाने वाला था. इसी बहाने आशु को आज पता चल जाता की न्यू इअर की पार्टी में क्या होता है?!
मैंने आशु को सारा प्लान समझा दिया. ३० दिसंबर की शाम को मैं आशु के कॉलेज पहुँचा और उसे वहाँ से पिक कर के घर ले आया. उस दिन पुरुषोत्तम अंकल के घर जन्मदिन की पार्टी थी तो मैं और आशु उसमें शरीक हो गए, पार्टी के बाद हम घर आये और एक दुसरे पर टूट पडे.
दरवाजा बंद होते ही आशु मेरी गोद में चढ़ गई और उसका निशाना मेरे होंठ थे. मैंने भी आशु के कूल्हों को कस कर पकड़ लिया और खुद से चिपका लिया. मैं उसके होठों को चूसते हुए पलंग पर आया और उसे अपनी गोद से उतार कर बिस्तर पर पटक दिया. मैंने फटाफट अपने कपडे निकाल फेंके और आशु ने भी लेटे-लेटे अपने कपडे उतार दिये. मैं उस पर चढ़ने लगा तो आशु ने अपने हाथ के इशारे से मुझे रोक दिया. वो उठ कर बिस्तर पर खड़ी हुई, अपने थूक से चुपड़ी उँगलियाँ अपनी योनी पर मलने लगी. फिर अगले ही पल वो मेरी गोद में चढ़ गई. मैंने बाएँ हाथ को उसके कूल्हे के नीचे ले जा कर उसे सपोर्ट दिया और दाएँ हाथ से अपने लिंग को पकड़ के उसकी योनी से सटा दिया. मेरे झटका मारने से पहले ही आशु ने अपनी योनी मेरे लिंग पर दबानी शुरू कर दी. कुछ ही सेकंड में लिंग पूरा का पूरा आशु की योनी में समा गया पर मुझसे नीचे से झटके लगाना मुश्किल हो रहा था. मैं बिस्तर की तरफ पीठ कर के खड़ा हो गया, जिससे आशु को अपने पंजे टिकाने का सहारा मिल गया.आशु ने अपने पंजों को गद्दे से टिकाया और अपनी बाहों को मेरे गर्दन से लपेटे उसने अपनी योनी उछालनी शुरू की. अब मेरा लिंग बड़े आराम से सटा-सट अंदर बाहर होने लगा. हम दोनों ही लय से लय मिलाते हुए अपनी कमर आगे-पीछे हिला रहे थे. आशु की योनी पनियाती चली गई और मेरा लिंग अंदर बड़े आराम से फिसलने लगा था. “आईईईईईईई ....आहनननननन...धीरे....जानू....!!!!” आशु कराही|
मेरी गति इस कदर तेज थी की आशु के लिए सहन कर पाना मुश्किल हो गया था. वो ज्यादा देर टिक न पाई और झड़ने लगी; “सससस...आह!...मााााााााााा ...हम्म्म.....नननन” पर मैं अभी और देर तक उसे भोगना चाहता था. मैंने उसे अपनी गोद से उतारा और उसे पलट दिया. मैं उसके पीछे आ कर खड़ा हो गया, आशु को आगे की तरफ झुकाया जिससे उसकी योनी उभर कर पीछे आ गई. मैंने पहले तो दोनों हाथों को आशु के लव ह्यांडल पर जमा दिया और फिर अपना लिंग पीछे से आशु की योनी में पेल दिया और तेजी से झटके मारने लगा. मेरी गति इतनी तेज थी की हर झटके से आशु का बुरा जिस्म बुरी तरह हिलने लगा था. उसके स्तन तेजी से झूलने लगे थे.
आशु से ये सब बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था क्योंकि उसके झड़ने के बाद मैंने उसे जरा सा समय भी नहीं दिया था की वो अपनी सांसें तक दुरुस्त कर ले.आशु अब मेरी पकड़ से छूटने के लिए कुलबुलाने लगी थी. 'ससस...जााााााााााााााााााााआनननन नननननननुउउउऊऊऊऊऊऊऊऊऊ..... प्लीज...ईइइइइइ ...रुक्खक्क....!!!' इससे आगे उससे बोला ही नहीं गया! अपने आखरी झटके के साथ मैंने अपना वीर्य आशु की योनी में भर दिया और लिंग बाहर खींच कर मैं पीछे कुर्सी पर फैल गया.आशु भी औंधे मुँह बिस्तर पर गिर गई और अपनी साँसों पर काबू करने लगी. दोनों ही पिछले कुछ दिनों से बहुत प्यासे थे तो ये तूफ़ान आना तो तय था. पर इस तूफ़ान के शांत होने के बाद जब मैं उठा तो आशु ने कराहते हुए कहा; 'आह! हहहहमममम... जानू! मेरी कमर!!!!' तब मुझे एहसास हुआ की आशु की कमर में मोच आ चुकी हे. मैंने किसी तरह से आशु को सीधा कर के उसे बिठाया; 'सॉरी...सॉरी....सॉरी....सॉरी यार ....' मैंने कान पकड़ते हुए आशु से कहा, पर वो मुस्कुराते हुए बोली; 'जान निकाल दी थी आपने मेरी! पर.......... मजा बहुत आया!!!!' ये कहते हुए आशु की हँसी निकल गई. मैंने तुरंत पानी गर्म करने को रखा और आशु की पीठ पर लगाने के लिए आयोडेक्स निकाली. आशु को बाथरूम जाना था तो उसे बड़ी मुश्किल से मैंने सहारा दे कर खड़ा किया और उसे बाथरूम ले गया.सहारा दे कर मैंने आशु को कमोड पर बिठाया, पिशाब की पहली धार के साथ मेरा और आशु का माल बाहर आया और फिर आशु की योनी हलकी हुई. मैंने पानी से खुद उसकी योनी को धीरे-धीरे साफ़ किया, पर आशु की योनी को छूते ही आशु ने सिसीकी ली; 'स्स्स्सस्साः!!!' आशु मुस्कुराती हुई मुझे अपनी आँखों से इशारे करने लगी की उसे अब अंदर जाना हे.
मैंने उसे इस बार गोद में उठाया पर बहुत संभाल कर! मैंने आशु को बहुत आहिस्ते से बिस्तर पर लिटाया और उसे पेट के बल लेटने को कहा. फिर मैंने उसकी कमर पर आयोडेक्स लगाई और गर्म पानी की बोतल रख कर उसे सेंक देने लगा. कमरे में ब्लोअर चल रहा था जिससे कमरे गर्म था. मैं आशु की बगल में लेट गया और हम दोनों के ऊपर रजाई डाल ली. आशु ने औंधे लेटे हुए ही मेरी तरफ गर्दन घुमा ली, माने भी आशु की तरफ करवट ले ली; 'सो सॉरी जान!' आशु ने प्यार से अपने निचले होंठ को दांतों तले दबाते हुए कहा; 'इस कमर दर्द को छोड़ दो तो मजा बहुत आया!'
'तू सच में पागल है!' मैंने आशु के गाल को चूमा और हम दोनों सो गये.
अगली सुबह मैं जल्दी उठ गया क्योंकि मुझे ऑफिस जाना था. मैं उठ कर तैयार होने लगा तो आशु आँख मलते-मलते उठी: 'आप कहाँ जा रहे हो?'
'ऑफिस और कहाँ?'
'आह! पर आज तो ३१ तारीख है? आज तो छुट्टी होती है?' आशु ने सम्भल कर बैठते हुए कहा.
'जान आज कोई सरकारी छुट्टी नहीं है? ये सब छोडो और ये बताओ की तुम्हारा कमर का दर्द कैसा है?'
'पहले से ठीक है.... मैं चाय बना देती हु.' आशु उठी पर चाय तो पहले से ही तैयार थी. बस उसे कप में छानना था. आशु ने चाय छनि और मुझे कप दे कर फ्रेश होने चली गई. मैं कपडे पहनने लगा तो उसने नाश्ता बनाना शुरू कर दिया. 'अरे छोडो ये नाश्ता!' मैंने कहा.
'रोज आप बिना खाये ऑफिस जाते हो?' आशु ने हैरानी से पूछा.
'हाँ! कभी-कभी कुछ बना लेता हु.'
'तभी इतने कमजोर हो रहे हो! आप बैठो मैं नाश्ता बनाती हु.' ये कह कर आशु बेसन घोलना शुरू किया. पर मैं कहाँ चैन लेने वाला था. मैंने आशु को पीछे से जा कर पकड़ लिया और अपनी ठुड्डी को में आशु की गर्दन पर रखे हुए उसके गाल को चूम रहा था. आशु ने फटाफट ब्रेड पकोड़े बनाये और मैंने ऐसे ही खड़े-खड़े उसे भी खिलाये और खुद भी खाये. नाश्ता कर के चलने को हुआ तो आशु बोली; 'आप कुछ भूल नहीं रहे?' मैंने फटाफट अपना रुमाल, पर्स और मोबाइल चेक किया पर वो मुझे प्यार भरे गुस्से से घूरने लगी. 'ओह! सॉरी!' मैंने आशु को अपने आगोश में लिए और उसके होंठों को चूम लिया. आशु ने तुरंत अपने हाथों को मेरी गर्दन पर लॉक कर दिया और मेरे होठों को चूसने लगी. मेरा उस वक़्त बहुत मन था की मैं उसे गोद में उठा लूँ और बिस्तर पर लिटा कर खूब प्यार करूँ, पर जानता था की उसकी कमर का दर्द उसे और परेशान करेगा.दो मिनट तक इस प्यार भरे चुंबन के बाद तो जैसे मन ही नहीं था की कहीं जाऊँ की तभी फ़ोन बज उठा. मेरा कलिग मेरा बस स्टैंड पर इंतजार कर रहा था. जैसे मैंने जाने के लिए मुदा की आशु ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली; 'जानू! वो....मुझे कुछ पैसे चाहिए थे!' मैंने फ़ौरन बटुए में हाथ डाला और आशु की तरफ देखते हुए पुछा; 'कितने?' आशु झट से बोली; '१,०००/-' और मैंने उसे २०००/- दे दिए और फटाफट निकल गया.
ऑफिस पहुँच कर मैंने आशु को कॉल किया और उसे वोलीनी स्प्रे लगा कर गर्म पानी का सेक करने को कहा वरना हम रात को पार्टी में नहीं जा पाते. वो दिन कैसे बीता कुछ पता ही नहीं चला, शाम को जब निकलने का समय हुआ तो सारे लड़के बाहर इकठ्ठा हो गये. सर ने सब का जमावड़ा देखा तो वो भी वहीँ आ गए और पूछने लगे की हम सब यहाँ खड़े क्या कर रहे हे. हम सब में जो सबसे ज्यादा 'चटक बावला' था वो बोला; 'सर वो रात को हम सारे पार्टी कर रहे थे तो उसी की बात हो रही थी की कहाँ जाना है?' अब हमारे सर ठहरे चटोरे तो वो कहने लगे की ब्रेक पॉइंट ढाबा चलते हे. अब सब उस गधे को मन ही मन गाली देने लगे, कहाँ तो सब सोच रहे थे की पब जायेंगे मस्ती करेंगे और कहाँ सर ने ढाबे जाने का सुझाव दे दिया. 'सर बारबेक्यू नेशन चलते हैं, पर हेड १,५००/- आएगा और अनलिमिटेड खाना मिलेगा” मैंने कहा. अब सब का मन फीका हो गया क्योंकि वो सब दारु पीना चाहते थे और सब मेरी ही तरफ देख रहे थे. मैंने आँख मारते हुए हाँ में गर्दन हिलाई तो वो समझ गए. अब उसी चटक गधे की ड्यूटी लगाईं गई की वो हम सब के लिए टेबल बुक करेगा. सब के दबाव में आ कर उसने हाँ कर दी और ऑफिस से सीधा वहीँ चला गया और बाकी सब अपने-अपने घर चल दिये.
मैं अभी आधे रस्ते पहुँचा था की आशु का फ़ोन आ गया, वो पूछने लगी की मैं कबतक आ रहा हूँ? मैंने उसे कहा की मैं अभी रास्ते में हूँ तो उसने कॉल काट दिया. मैंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और बाइक स्टार्ट कर फिर से चल पडा. जैसे ही मैं घर पहुँचा और दरवाजा खटखटाने लगा की दरवाजा अपने आप खुल गया, मैं धीरे से अंदर आया और सोचा शायद की कहीं आशु दरवाजा बंद करना तो नहीं भूल गई?! पर जब नजर सामने खिड़की पर पड़ी तो मैं अपनी आँख झपकना ही भूल गया.
अब मुझे समझ आ गया की आशु ने वो पैसे क्यों मांगे थे? आशु इठला कर चलते हुए मेरे पास आई और बोली; 'क्या देख रहे हो जानू?!' मेरे मुंह से बस; 'वाव!!!' निकला और आशु मुस्कुराने लगी. 'ये मैंने उसी दिन आर्डर किया था जब आपने मुझे बताया था की थर्टी फर्स्ट को पार्टी में जाना हे. आज अगर मुझे देख कर आपके सारे कलिग आपसे जलने ना लगें तो कहना?' मैं हैरानी से आशु की बात सुनता रहा, कहाँ तो ये लड़की इतनी शर्मीली थी और कहाँ ये आज इस कदर मॉडर्न हो गई है? मुझे आशु वाक़ई में सूंदर लग रही थी पर मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी की वो इस कदर के कपड़े भी पहन सकती हे. मैं अपने ख्यालों में गुम था की आशु ने मुझे वो शादी वाला ब्लैज़र और शर्ट उठा के दी; 'और ये आप पहनोगे? मेरे हबी को देख आज उन सारी लड़कियों की जलनी चाहिए.' अब मरते न क्या करते मुझे वो पहनना ही पड़ा क्योंकि अगर मैं वो कपडे न पहनता तो सब कहते हूर के संग लंगूर! मैं जानता था की कल ऑफिस में मेरी बहुत खिचाई होगी! पर आशु ये भूल गई थी की ये दिसंबर का महीना है और बाहर ठंड है, उसने इस ड्रेस के चलते कोई गाउन तो आर्डर किया नहीं था! 'मैडम जी! बहार की ठंडी हवा में ये पहन के जाओगी तो 'कुक्कड़' बन जाओगी!' ये सुन कर आशु सोच में पड़ गई. मैंने फ़ोन निकाला और कैब बुक करी और अपना ब्लैज़र उसे उतार के दिया. 'पर ये इसके साथ कैसे चलेगा?' आशु ने मायूस होते हुए कहा. 'अरे बुद्धू! ये बस कैब आने तक अपने कन्धों पर रख ले और वहाँ पहुँच कर मुझे दे दिओ, वापसी में फिर ऐसे ही करेंगे.' ये सुन कर उसका चेहरा फिर से खिल गया.
आखिर कैब आई और हम बारबेक्यू नेशन पहुँचे और जैसा की होना चाहिए था सब आशु को देख कर ताड़ने लगे. सब के सब मुझे आँखों से इशारे कर के पूछने लगे की ये कौन है? 'माई गर्लफ्रेंड आशु!' ये कहते हुए मैंने उसका इंट्रो एक-एक कर सबसे कराया.तभी पीछे से सर और मैडम आये और उन्होंने भी आशु से हाई-हॅलो की! वहाँ पर कोई बड़ा फॅमिली टेबल नहीं था बल्कि चार लोगों के लिए बैठने वाले छोटे बूथ थे. मैंने फटाफट आशु का हाथ पकड़ा और खाली बूथ में बैठ गया, सब ने फटफट बूथ पकडे और सर के साथ उसी चटक गधे को अपनी बंदी के साथ बैठना पडा. सारे लौंडे अपनी-अपनी बंदियों को साथ बैठ गए, मेरे सामने वही लड़का बैठा जो मेरे साथ एकाउंट्स में था. उस हरामी की नजर आशु पर उसकी बंदी की नजर मुझ पर थी. मेरा बायाँ हाथ और आशु का दायाँ हाथ टेबल के नीचे था और हम एक दूसरे के हाथ को सहला रहे थे. खाने के लिए जब वेटर आया तो उसने हम से पुछा की हम वेज या नॉन-वेज लेंगे? हमने तीन नॉन-वेज और एक वेज का आर्डर दिया. फिर दूसरा बंदा एक मिनी तंदूर ले कर आया और हमारे सामने टेबल के बीचों बीच बने छेड़ में फिट कर दिया. ये आशु के लिए फर्स्ट टाइम था और वो हैरानी से देख रही थी. फिर एक-एक कर 'सीकें' लगनी शुरू हो गईं फिर मैं और वो लड़का बारी-बारी से उन सीकों को रोल करते और उस पर चटनी लगाने लगे. मैंने वहाँ रखे झंडे को ऊँचा कर दिया; 'ये क्यों किया?' आशु ने पूछा. 'अब जबतक हम इस झंडे को नीचे नहीं करते ये लोग तंदूरी आइटम सर्व करते रहेंगे.' ये सुन कर मेरे सामने बैठी लड़की बोली; 'मतलब हम अनलिमिटेड खा सकते हैं?'
'हाँ जी! पर इसी से पेट न भर लीजियेगा, वहाँ मेन कोर्स का बुफे लगा है और वो भी अनलिमिटेड हे.' ये सुन कर वो लड़की और आशु एक को देखने लगे और उनके चेहरे से वही लड़कियों ख़ुशी झलकने लगी. ये वही ख़ुशी है जो लड़कियों को फ्री के खाने को देख कर होती हे. वेटर फिर से आया और ड्रिंक्स के लिए पूछने लगा पर मैंने मना कर दिया. उन दोनों ने बहुत फाॅर्स किया पर मैं और आशु अड़े रहे की हम नहीं पीयेंगे.शायद आशु जान गई थी की मेरा खींचाव नशे की तरफ कुछ ज्यादा है! मैं अपनी लिमिट जानता था पर पिछले कुछ महीनों में ये दारु मेरी आदत बनने लगी थी. वैसे भी थर्टी फर्स्ट को ड्रिंक्स बहुत ज्यादा ही महंगी थीं तो ना पीना ही इकोनोमिकॅल था! खेर अच्छे से दबा कर खाना पीना हुआ और समय हुआ विदा लेने का तो सब को हॅपी न्यू इअर कह कर हम दोनों कैब कर के घर लौट आये.
रात के ग्यारह बजे थे और हम अपने कपडे बदल रहे थे. आशु ने हमेशा की तरह मेरी टी-शर्ट पहनी और नीचे उसने सिर्फ अपनी पैंटी पहन राखी थी.मैं पजामा और टी-शर्ट पहन कर रजाई में घुस गया.फिर मुझे याद आया की आशु को दवाई लगा देता हूँ तो मैं वापस उठा और आशु की कमर पर आयोडेक्स लगा दिया. आशु सेधी लेटी थी पीठ के बल, और मैं उसकी तरफ करवट ले कर लेटा था. आशु ने मेरा बायाँ हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और वो छत की तरफ देखते हुए कुछ सोच रही थी.
'क्या हुआ? क्या सोच रही है?' मैंने आशु से पूछा.
'गाँव में रहते हुए ना तो कभी मुझे ये पता था की क्रिसमस क्या होता है और ना ही की थर्टी फर्स्ट दिसंबर की पार्टी क्या होती है! आप की वजह से मैं यहाँ आई और ये सब देखने को मिला, एक नई जिंदगी जीने का मौका मिला. वरना अब तक तो मेरी शादी हो गई होती और मैं वहां तिल-तिल मर रही होती!'
'बस! नए साल का आगाज इस तरह रोते हुए नहीं करना!' ये कहते हुए मैंने आशु के गाल को चूम लिया. आशु मेरी तरफ पलटने लगी तो उसकी कमर का दर्द उसे परेशान करने लगा, मैं उठ कर पानी गर्म करना चाहता था पर आशु ने मुझे रोक दिया और मेरा सर अपने सीने पर रख कर मेरे बालों में उँगलियाँ फेरने लगी. मैं आशु के दिल की बेकाबू धड़कनें सुन पा रहा था और उसके मन में उठ रहे प्यार को महसूस कर पा रहा था. 'कल सुबह पहले डॉक्टर के चलेंगे फिर मैं तुम्हें कॉलेज छोड़ दूँगा और वहाँ से मैं ऑफिस निकल जाऊंगा.' मैंने कहा और आशु ने बस 'हम्म्म' कहा. घडी ने टिक-टिक कर रात के बारह बजाये और मैं उठ कर बैठा, पर आशु की आँखें बंद थी. मैंने झुक कर आशु के होठों को बड़ा लम्बा किस किया और कहा; 'हॅपी न्यू इअर मेरी जान!' आशु ने अपने दोनों हाथ मेरी गर्दन के पीछे ले जाकर लॉक कर दिया और मुस्कुराते हुए बोली; 'हॅपी न्यू इअर जानू! आई लव यू!!!' पर उसे मेरा जवाब सुनने की जरुरत नहीं थी. उसने मुझे अपने ऊपर झुका लिया और मेरे होठों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगी.हम इसी तरह एक दूसरे को चूमते हुए सो गये.
सुबह उठ कर मैंने आशु के माथे को चूमा और उसे नए साल की नई सुबह की मुबारकबात दी. आशु अब भी लेटी हुई थी. मैंने उठ कर सबसे पहले उसके लिए बेड टी बनाई और फिर उसे प्यार से जगाया. आशु आँखें मलते हुए उठी और उसने जब मेरे हाथ में चाय का कप देखा तो मुस्कुराने लगी. 'मुझे लगा था की ये सब आप शादी के बाद करोगे!' आशु ने कहा. 'अरे हम तो साल के पहले दिन से ही आपके गुलाम हो गए!' मैंने हँसते हुए कहा. 'इस गुलाम को तो मैं अपने दिल में बसा कर रखुंगी.!' आशु ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा. आशु उठ कर फ्रेश होने चली गई और मैं उसके लिए ऑमलेट बनाने लगा. आशु ऑमलेट की खुशबु सूंघ कर फटाफट बाहर आ गई और कुर्सी पर बैठ गई. मैंने उसे गर्म-गर्म ऑमलेट परोस कर दिया और उसके सर को चूम कर मैं बाथरूम फ्रेश होने चला गया.तैयार हो कर, खा-पी कर हम दोनों निकले.मैंने बाहर से ऑटो किया और पहले आशु को एक डॉक्टर के पास ले गया.डॉक्टर ने बताया की कोई गंभीर बात नहीं है, मोच ही है पर चूँकि सर्दी है इसलिए ज्यादा दर्द कर रही हे. उसने एक पैन किलर दी और गर्म पानी की सिकाई करने को कहा. फिर आशु को मैंने उसके कॉलेज छोड़ा और मैं ऑफिस निकल गया.ऑफिस मैं पहले ही कॉल कर के बता चूका था की में थोड़ा लेट होजाऊंगा इसलिए बॉस ने कुछ नहीं कहा.
समय बीतने लगा और मार्च आ गया... कुछ दिन बाद कॉलेज का एनुअल डे था! आशु को जैसे ही ये पता चला उसने मुझे तुरंत फ़ोन किया; 'जानू! नेक्स्ट वीक हमारा एनुअल डे है!' मैंने थोड़ा मजाक करते हुए कहा; 'हमारा एनुअल डे?' ये सुन कर रितु की भी हँसी निकल गई; 'मेरा मतलब...कॉलेज का एनुअल डे! तो नेक्स्ट वीक आप छुट्टी ले लेना.' अब चूँकि मैंने अभी तक एक भी छुट्टी नहीं ली थी तो मुझे पता था की बॉस छुट्टी दे देंगे, उसी दिन मैंने शाम को सर से बात की तो उन्होंने हाँ कह दिया. इधर आशु ने अपने लिए और मेरे लिए ड्रेस सेलेक्ट करना शुरू कर दिया और मुझे मैसेज करना शुरू कर दिया. ऑफिस में हर कुछ मिनट मेरा फ़ोन बजता रहता और सब कहते की 'क्या बात है? गर्लफ्रेंड बड़ी बेचैन हो रही हे.' आशु ने अपनी ड्रेस फाइनल करने से पहले मेरे कपडे फाइनल कर दिए और मुझे बता कर आर्डर भी कर दिये. उसने अपना आर्डर अपने फ़ोन से किया ताकि मुझे पता न चल जाए की उसने क्या आर्डर किया है, लेकीन डिलीवरी एड्रेस मेरा घर ही था. रविवार को उसका आर्डर डिलीवर हुआ पर मेरे वाले में और टाइम लगना था. आशु ने मुझे अपने कपडे दिखाए भी नहीं और शाम को अपने साथ हॉस्टल ले गई.
आखिर एनुअल डे का दिन आ ही गया, मैं रेडी हो कर आशु के हॉस्टल पहुँचा क्योंकि मुझे उसे वहीँ से पिक करना था. आशु जब मेरे सामने आई तो मैं हाथ बाँधे प्यार से उसे देखने लगा.
उसकी वो लट जो उसके चेहरे पर आ गई थी. वो उसकी साडी.... हाय मन करने लगा की आशु को अभी मंदिर ले जाऊँ और उससे अभी शादी कर लु. इधर आशु की नजर मुझ पर जम गई थी और मुँह खोले मुझे देखते हुए नजदीक आई.
“यार अभी मेरे साथ भागना है?' मैंने आशु से पुछा तो उसने एक दम से अपनी मुंडी हाँ में हिलाई, उसका ये उतावलापन देख मैं हँसने लगा. 'आज तो आप मुझे जहाँ कहो वहाँ चलने को तैयार हूँ?' आशु ने इतराते हुए कहा. आशु को पीछे बिठा कर आज मानो ऐसा लग रहा था की एक नव-विवाहित जोड़ा किसी शादी में जा रहा हो. जैसे ही हम कॉलेज के नजदीक पहुँचे तो हमें लाऊड म्युजिक की आवाज आने लगी. बाइक पार्क कर के हम दोनों अंदर आये तो मेरी नजर सबसे पहले सिद्धू भैया पर पडी. सबसे पहले उनसे जा कर गले लगे और हाई-हॅलो हुई! उन्हीं के पास मेरे साथ के सभी दोस्त मिले और तब मुझे ध्यान आया की यहाँ तो सुमन भी आई होगी! मैं मन ही मन तैयारी करने लगा की उससे क्या कहूँगा? आशु को समझ नहीं आया की मैं अचानक से इतना गंभीर क्यों हो गया.फिर वही हुआ जिसका मुझे डर था. सुमन जो की हम दोनों से पहले ही आ चुकी थी वो प्रसाद के मुँह से मेरे और आशु के बारे में सब सुन चुकी थी. हमारी ही तरफ चल कर आ रही थी.
आशु अब भी समझ नहीं पाई थी की भला मैं क्यों परेशान हूँ?!
आज पहलीबार मैं किसी शक़्स के चेहरे को नहीं पढ़ पा रहा था! शायद ये घबराहट थी या फिर आशु को खो देने का डर! सुमन मेरे सामने आकर खड़ी हुई और कुछ बोलने को हुई पर उसे एहसास हुआ की हमारे इर्द-गिर्द बहुत से लोग हैं इसलिए उसने मेरा और आशु का हाथ पकड़ा और हमें एक कोने में ले आई. अभी उसने कुछ कहा नहीं था और इधर मेरा दिल कह रहा था की आज रात ही मैं आशु भगा कर ले जाऊंगा.
'सागर जी! ये सच है की आप अश्विनी से प्यार करते हो?' सुमन की बात सुन आशु घबरा गई और जल्दीबाजी में बीच-बचाव करने को कूद पडी.
'हाँ दीदी...ये...ये तो सब जानते हैं!'
'मैं उस प्यार की बात नहीं कर रही?' सुमन ने गंभीर होते हुए कहा. सुमन का ये रूप देख आशु का सर झुक गया तो मैंने एक गहरी साँस ली और पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा; 'हाँ! बहुत प्यार करता हूँ मैं आशु से?'
'ये जानते हुए की आपका उससे रिश्ता क्या है?' सुमन की आँखों मुझे अब एक चिंगारी नजर आने लगी थी.
'खून के रिश्ते से बड़ा प्यार का रिश्ता होता है!' मैंने कहा.
'और आगे क्या करोगे?' सुमन ने पूछा.
'शादी और क्या?!' मैंने सरलता से जवाब दिया.
'रियली? भाग कर? क्योंकि यहाँ तो ये सुनने के बाद आप दोनों को कोई जिन्दा नहीं छोड़ेगे' सुमन ने ताना मारते हुए कहा.
'हम दोनों यहाँ से दूर अपनी नई जिंदगी बसायेंगे' आशु ने भी आत्मविश्वास दिखते हुए कहा.
'रहोगे तो इसी दुनिया में ना? भूल गए आपने ही बताया था की आपके गाँव वाले प्रेमियों को जिन्दा जला देते हैं!' सुमन ने आशु को डाँटते हुए कहा.
'सब याद है, वो आशु की ही माँ थी जिन्हें खेत के बीचों बीच जिन्दा जला दिया गया था.' मैंने सुमन की आँखों में देखते हुए कहा. अब ये सुन कर तो सुमन के होश ही उड़ गए!
'क्या? और फिर भी आप?' सुमन ने हैरान होते हुए कहा.
'प्यार होना था. हो गया कोई इसे जमाना माने या ना माने हम तो इस प्यार पर विश्वास करते हैं ना?! जानता हूँ ये लड़ाई बहुत लम्बी है और शायद भागते-भागते जमीन भी कम पड़े पर हम अलग होने से रहे! ज्यादा से ज्यादा हमें मार ही देंगे ना? इससे ज्यादा तो कुछ नहीं कर सकते?'
'आपको ये इतना आसान लग रहा है? दिमाग-विभाग है या इसके (आशु के) प्यार में पड़ कर सब खो दिया आपने? तुझमें (आशु में) अक्ल नहीं है क्या? क्यों अपनी अच्छी खासी जिंदगी ख़राब करना चाहते हो? क्या अच्छा लगता है तुम्हें एक दूसरे में? रोमांस करो खत्म करो! ये शादी-वादी का क्या चक्कर है?!' सुमन की ये बात मुझे बहुत बुरी लगी. ऐसा लगा मानो उसने मेरे प्यार को गाली दी हो.
मैंने उसकी कलाई पखडी और उसे गुस्से से दिवार के सहारे खड़ा करते हुए उसकी आँखों में आँखें डालते हुए कहा; 'तुझे क्या लगता है की मैं इसके जिस्म का भूखा हूँ? या फिर ये सिर्फ मेरे साथ रोमांस करना चाहती है और इसलिए हम शादी कर रहे हैं? शादी हम इसलिए नहीं कर रहे ताकि दिन रात बस रोमांस कर सकें, शादी हम इसलिए कर रहे हैं ताकि ताउम्र हम एक दूसरे के साथ गुजार सके. अपना परिवार बसा सकें, जहाँ हमें एक साथ देख कर कोई हमारे रिश्ते को नहीं प्यार की तारीफ करे. अगर रोमांस ही करना होता तो ये प्यार नहीं वासना होती! हमारे अंदर वासना कतई नहीं, सिर्फ एक दूसरे के लिए प्यार हे.हम दोनों एक घर में पैदा हुए क्या ये मेरी गलती है? या फिर ये मेरी भतीजी बन कर पैदा हुई ये इसकी गलती है? हम अपनी मर्जी से अपने माँ-बाप नहीं चुनते और अगर चुन सकते तो कभी एक परिवार में पैदा नहीं होते.आई डोन्ट गिव फक .... व्हॉट दिस सोयाईटी थिंक ऑफ दिस रिलेशनशिप...व्हॉट मॅटर टू मी इज व्हॉट शी थिंक ऑफ दिस रिलेशनशिप..... अँड शी इज ब्लडी ड्याम प्राउड ऑफ इट!!!!!. थरूआऊट हर चाइल्डहुड शी ह्याज सफर अ लॉट, यू ह्याव नो आईडिया व्हॉट इट फील टू बी दीं अनवॉन्टेड चाइल्ड इन अ फॅमिली. जब ये अपना दर्द भरा बचपन काट रही थी तब तो किसी ने आ कर इसके दिल पर मरहम नहीं लगाया. अगर मेरे प्यार से इसके जख्मों को आराम मिलता है तो दुनिया को कोई हक़ नहीं की वो हमें अलग करे. मेरा प्यार सच्चा है और तुझे कोई हक़ नहीं की मेरे प्यार को गाली दे!” मेरी बातें सुन कर सुमन हैरान थी और जब वो बोली तो बातें बहुत हद्द तक साफ़ हो गई.
“आई एम सॉरी! मेरा वो उदेश्य नहीं था.....मैं बस जानना चाहती थी की आप कितना प्यार करते हो आशु को....आई एम हॅपी फॉर यू गाईज!” सुमन ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर आशु का हाथ पकड़ कर उसे अपने गले लगा लिया. आशु रउवाँसी हो गई थी और उसे ये चिंता सता रही थी की अगर ये राज सुमन ने खोल दिया तो क्या होगा? पर उसकी चिंता का निवारण सुमन ने खुद ही कर दिया; 'अश्विनी रो मत! योवर सिक्रेट इज सेफ विद मी. पर हाँ शादी में जरूर बुलाना!” सुमन ने हँसते हुए कहा. आशु की आँख से आँसू की एक धार बह निकली थी. सुमन ने खुद उसके आँसू पोछे और उसे वाशरूम जाने को कहा. आशु के जाने के बाद सुमन बोली; 'वैसे मैंने आज एक बहुत बड़ा सबक सीखा है! अगर किसी से प्यार करो तो उसे बता देना चाहिए, ज्यादा इंतजार करने से वो शक़्स आपसे बहुत दूर चला जाता है!' वो इतना कह कर जाने लगी.
मुझे ऐसा लगा जैसे उसके अंदर कोई दर्द छुपा है और वो उसे छुपा रही हे. मैंने उसका हाथ थामा और उसे अपनी तरफ घुमाया तो पाया की उसकी आँखें नम हैं! मुझे उससे पूछना नहीं पड़ा की उसकी बात का मतलब क्या है क्योंकि उसके आँसू सब बयान कर रहे थे. पर सुमन अपने मन में कुछ रखना नहीं चाहती थी इसलिए बोल पड़ी; 'कॉलेज के लास्ट ईयर मुझे आपसे प्यार हुआ पर कहने की हिम्मत नहीं पडी. फिर हमारा साथ छूट गया और शायद मैं भी आपको भूल गई थी. फिर उस दिन आपने मेरे दिल में दुबारा एंट्री ली और क्या एंट्री ली! वो सोया हुआ प्यार फिर जाग गया पर फिर हिम्मत नहीं हुई आपसे कहने की और जब कहना चाहा तो आपने ये बोल कर डरा दिया की आपके गाँव में प्यार करने वालों को मार दिया जाता हे. जैसे-तैसे खुद को संभाल लिया ये सोच कर क्या पता की आगे चल कर हालात सुध जाएं और तब मैं आपसे अपने प्यार का इजहार करूँ! पर सच्ची मैंने बहुत देर कर दी!!!'
'प्यार तो फर्स्ट ईयर से मैं तुम्हें करता था पर लगता था की तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड होगा ही. फिर जब टूशन पढ़ाने आया तो पता चला की तुम तो वेल्ली हो पर कुछ कह पाता उससे पहले ही मुझे मेरे ही घर की ये बात पता लगी और फिर रही सही हिम्मत भी टूट गई! फिर आशु से प्यार हुआ और मैंने ये रिस्क लेने की सोची!' मैंने सुमन को सब सच बता दिया.
'तो ये सब आपके गाँव वालों की वजह से हुआ! कोई बात नहीं ....शायद मेरे नसीब में प्यार था ही नहीं!' सुमन ने नकली हँसी हँसते हुए कहा. मेरे आगे कुछ कहने से पहले ही आशु आ गई और ठीक उसी समय स्टेज पर से सिद्धू भैया ने मेरे नाम की अनाउंसमेंट की और मुझे स्टेज पर बुलाया. हम तीनों स्टेज की तरफ चल दिए; 'भाई आज तक हमारे वो गुमनाम शायर जिन्होंने आजतक हमारे कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर टोपर की शोभा बढाई है उनसे दरख्वास्त करूँगा की वो कुछ लाइन आपको सुनायें.मैं स्टेज पर चढ़ा और सिद्धू के कान के पास जा कर बोलै; 'कहाँ फँसा दिया भैया आपने!' मैंने ये ध्यान नहीं दिया की उनके हाथ में जो माइक है वो ऑन हे. जब सब ने मेरी ये बात सुनी तो सब लोग हँसने लगे.
'दोस्तों एक शायर की चंद लाइन्स याद आती हैं.....
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
कहीं ज़मीं कहीं आसमान नहीं मिलता.
तमाम शहर में ऐसा नहीं खुलूस न हो,
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता.
कहाँ चिराग जलाएं कहाँ गुलाब रखें,
छतें तो मिलती हैं लेकिन माकन नहीं मिलता.
ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं,
ज़बान मिली है मगर हम-ज़बान नहीं मिलता.
चिराग जलते ही बिनाई बुझने लगती है,
खुद अपने घर में ही घर का निशान नहीं मिलता......
ये लाइन्स सिर्फ और सिर्फ सुमन के लिए थीं ताकि उसे उसकी कही बात का जवाब मिल जाये. तालियों की गड़गड़ाहट और सीटियों से सब ने अपनी ख़ुशी जाहिर की. मैं स्टेज से उतरा और अब मेरा मन शांत था और कोई डर नहीं था पर शायद आशु को अब भी घबराहट थी. मैं उसके और सुमन के पास पहुंचा और तभी सुमन हम दोनों को छोड़ कर अपनी किसी दोस्त के पास चली गई. 'वो किसी से कुछ नहीं कहेगी! मुँह-फ़ट है पर चुगली करना उसकी आदत नही.' मैंने कहा और फिर आशु को सारी बात बता दी. वो सब सुन कर उसे इत्मीनान हुआ और वो मुस्कुरा दी. कुछ देर में गाने फिर से बजने लगे, हम दोनों एक चाट वाले स्टाल के पास खड़े थे की तभी वहाँ रक्षित नाम का एक लड़का आया. ये आशु की क्लास में कुछ महीने पहले ही ट्रांसफर ले कर आया था. साल के बीचों बीच आया है मतलब जरूर कोई नामी बाप की औलाद होगा. पहनावा उसका बिलकुल अमीरों जैसा पर वो अक्षय की तरह बावला नहीं था. स्टाइलिश था और जब से हम आये थे उसकी नजर आशु पर ही टिकी थी. रक्षित ने आते ही आशु से पुछा; 'शाल वी डांस?' पर आशु ने एक दम से जवाब दिया; 'नहीं!' वो हैरानी से उसकी तरफ देखने लगा और इससे पहले की कुछ बोलता आशु ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे डांस फ्लोर पर ले आई.
'क्या हुआ?' मैंने पूछा.
'आई हेट दॅट गाय! ये उसी मंत्री का बेटा है जो उस दिन हमारे घर पर आया था.' आशु ने चिढ़ते हुए कहा. अब पहले से ही उसका मूड थोड़ा ऑफ था और मैं उसे और ख़राब नहीं करना चाहता था. मैंने आशु को उसकी कमर से पकड़ा और अपने जिस्म से सटा कर थिरकने लगा.
'जानू! अगर दीदी (सुमन) ने आपसे पहले इजहार किया होता तो?' आशु ने पूछा. अब मैं उससे इस बारे में बात नहीं करना चाहता था. शायद आशु खुद समझ गई; 'तो आज आप उनके साथ होते .... और मैं अपनी किस्मत को कोस रही थी!' मैंने आशु के सर को चूमा और कहा; 'जान! हमारी किस्मत में एक होना लिखा था. इसलिए आज हम यहाँ हैं.' आशु को मेरी बात से इत्मीनान हुआ और अब वो फिर से मुस्कुराने लगी. उस दिन मुझे इस बात का एहसास हुआ की मेरे अंदर इस जमाने से लड़ने की कितनी शक्ति है और आशु भी जान गई की मैं उससे कितना प्यार करता हु. प्रोग्राम खत्म हुआ तो मैं और आशु बाहर आये और अभी मैं बाइक को किक कर ने वाला था की आशु के कुछ दोस्त आये और मुझे हाई बोल कर उससे कुछ बात करने लगे. उनकी बात होने तक मैंने बाइक घुमा ली थी. फिर आशु को हॉस्टल छोड़ कर मैं अपने घर आ गया.
समय का चक्का घूमने लगा और आशु के एक्झाम आ गए, मुझे कहने की जरुरत नहीं की उसने फर्स्ट ईयर में टॉप किया. घर वाले उसकी इस उपलब्धि से बहुत खुश थे और रिजल्ट ले कर हम घर पहुँचे तो उसे इस बार बहुत प्यार मिला. परिवार के प्यार की खुशियाँ देर से ही सही पर उसे अब मिलने लगीं थी.
रिजल्ट की ख़ुशी मना कर मैं और आशु शहर वापस जा रहे थे की रास्ते में मेरी बाइक ख़राब हो गई. बाइक को धक्का लगाते-लगाते हम एक मैकेनिक तक पहुँचे और मैं वहाँ उससे बाइक बनवाने लगा.आशु बोर हो रही थी और ऐसे ही चलते-चलते कुछ आगे चली गई. वहाँ उसने एक झोपडी देखि जहाँ एक बच्चा धुल में खेल रहा था. उसके पास ही उसकी माँ बैठी थी जो सर झुका कर कुछ सोच रही थी. उसका ध्यान जरा भी अपने बच्चे पर नहीं था. उसका पति कहीं मजदूरी करने गया था. चूल्हा ठंडा था और शायद उन बेचारों के पास खाने को भी कुछ नहीं था. आशु वहीँ खडी उस बच्चे और उसकी माँ को देख रही थी. माँ की उम्र आशु से कुछ १-२ साल ही ज्यादा थी और बच्चा करीब १ साल का होगा. बाइक ठीक होने के बाद मैं आशु को ढूँढता हुआ आया तो मैंने देखा की आशु वहाँ उस बच्चे की माँ से बात कर रही हे. मुझे वहाँ खड़ा देख उसने मुझसे पैसे मांगे और उस औरत को देने लगी. कुछ न-नुकुर के बाद उसने पैसे ले लिए उसके बाद जब आशु मेरे पास चल के आई तो उसकी आँखें नम थी. वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे कुछ दूर लाई और आ कर मेरे गले लग गई. आज पहली बार उसने गरीबी देखि थी. गाँव में उसका घर से निकलना कम होता था और जो गरीबी उसने गाँव में देखि थी वो थी मिटटी के घर और हमारे खेतों में काम करने वाले मजदूर!! आशु के लिए तो जिसका घर मिटटी का है या जो दूसरों के खेतों में काम करता है वही गरीब और जिसका घर पक्का बना है या जो अपने खेतों में दूसरों से काम करवाता है वो अमीर.शहर आ कर उसने जब लोगों को भीख मांगते हुए देखा तो उसने सोचा की शायद ये गरीबी होती है पर जब उसे पता चला की इनमें से ज्यादातर एक 'रैकेट' का हिस्सा हैं तो उसके मन के विचार बदलने लगे. भला कोई काम न कर के जानबूझ कर भीक मांगे तो वो काहे का गरीब? पर आज जब उसने उस औरत से उसकी कहानी सुनी तो उसे एहसास हुआ की गरीबी क्या होती हैं!
उसका नाम फुलवा है, वो एक बंजारन हे. उसे एक दूसरे कबीले के लड़के से प्यार हुआ और जब उसने ये बात अपने घर में बताई तो उन्होंने उसे और उस लड़के को कबीले से निकाल दिया. तब से दोनों दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, इसी बीच उसका ये बेटा पैदा हुआ और अब इन दोनों की जिंदगी तबाह हो गई. उसका पति काम के तलाश में रोज निकलता है और शाम को खाली हाथ लौटता हे. क्या प्यार करने वालों के साथ ऐसा ही होता है? क्यों ये लोग उन्हें चैन से जीने नहीं देते? और हमारा क्या होगा? अगर हमारे साथ ऐसा हुआ तो?' आशु ने रोते-रोते पूछा.
'हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं होगा! मैंने सब कुछ प्लान कर रखा हे. मैं ये जॉब क्यों कर रहा हूँ? इसीलिए ना की जब हम घर से भागें तो हम एक नई जिंदगी शुरू कर सके. हाँ मैं मानता हूँ की ये इतना आसान नहीं होगा पर फेलर इज नॉट अन ऑप्शन फॉर अस! वी हॅव टू फाइट टील दीं लास्ट ब्रीथ अँड वी विल् सक्सिड! तुझे बस मुझ पर विश्वास रखना हे.' मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा. उस टाइम तो आशु ने मेरी बात मान ली पर अब उसके मन में ये चिंता पैदा हो चुकी थी.
उस दिन के बाद से आशु में अचानक ही बहुत बदलाव आने लगे, उसने बिना मुझे पूछे-बताये एक जॉब ढूँढी और रविवार को मुझे चौंकाते हुए बोली; 'जानू! मैंने एक पार्ट टाइम जॉब ढूँढ ली है! नेक्स्ट शनिवार से ज्वाइन कर रही हु.' अब ये सुन कर मैं चौंक गया; 'क्या? क्या जरुरत है तुझे जॉब करने की?'
'जरुरत है.... बहुत जरुरत है!' आशु ने कुछ सोचते हुए कहा.
'किस बात की जरुरत है?' मैंने आशु से प्यार से पूछा.
'आप कहते हो ना की हमें फ्यूचर के बारे में सोचना चाहिए, तो मैं भी वही कर रही हु. इस पार्ट टाइम जॉब से मुझे ऑफिस का एक्सपीरियंस मिलेगा, कल को जब मैं फुल टाइम जॉब के लिए जाऊँगी तो ये एक्सपीरियंस वहाँ मेरे काम आयेगा.' जो वो कह रही थी वो सही भी था.
'पर कॉलेज और जॉब कैसे मैनेज करेगी?' मैंने चिंता जताते हुए कहा.
'वो सब मैं देख लूँगी! आपको कोई शिकायत नहीं मिलेगी.' आशु ने आत्मविश्वास से कहा.
'अच्छा एक बात बता, तेरे जॉब ज्वाइन करने के बाद हम शनिवार-रविवार कैसे मिलेंगे?' मैंने पूछा. आशु के पास मेरी इस बात का कोई जवाब नहीं था!
“वी विल फिगर आऊट समथिंग?” आशु बोली.
“नो यू हॅव टू फिगर आऊट समथिंग!” मैंने हँसते हुए सारी बात आशु पर डाल दी, आशु भी मुस्कुराने लगी और उसने जिम्मेदारी ले ली.
मैंने आशु का माथा चूमा और उसने मुझे कस कर अपनी बाहों में जकड़ लिया. मैं खुश था की वो अब जिम्मेदारी उठाना चाहती है, पर वो ये नही जानती थी की ये फैसला इतना आसान नहीं जितना वो सोच रही हे. पिछली बार जब उसने नितु मैडम का प्रोजेक्ट ज्वाइन किया था तब वहाँ मैं भी काम करता था और आशु के लिए मैं सहारा था. पर नए ऑफिस में नए लोगों के साथ एडजस्ट करना इतना आसान नहीं था. कम से कम आशु के लिए तो बिलकुल आसान नहीं होगा, मैं चाहता तो ये बात मैं आशु को समझा सकता था पर वो शायद इस बात को नहीं मानती.जब खुद एक्सपीरियंस करेगी तब मानेगी!
उसके ऑफिस का पहले दिन मैं उसे खुद छोड़ने गया, मेन गेट पर उसे 'ऑल दीं बेस्ट' कहा और आशु मुस्कुराते हुए अंदर चली गई. उस दिन आशु ने मुझे १०० बार फ़ोन किया, कुछ न कुछ पूछने के लिए. वो बहुत नर्व्हस थी और छोटी-छोटी चीजें जैसे की फाईलकैसे सेव्ह करते हैं पूछने लगी. मैं उसकी नर्व्हसनेस समझ सकता था और मैं उससे आज बहुत ज्यादा ही प्यार से बात कर रहा था. ४-५ दिन लगे आशु की नर्व्हसनेस खत्म होने में, पर अब हमारा शनिवार-रविवार मिलने का प्रोग्राम कम होने लगा था. आशु कई बार वीकडेज में भी ऑफिस जाने लगी थी. हमारा प्यार बस फ़ोन कॉल और वीडियो कॉल तक ही सिमट कर रह गया था. अब इसका कोई न कोई इलाज तो निकालना ही था तो मैंने सर से रिक्वेस्ट की ओवरटाइम करने की. पर उन्होंने साफ़ मना कर दिया.
इधर महीना भर हुआ की आशु का मन मुझे मिलने के लिए बेचैन होने लगा था. एक दिन की बात थी हम दोनों रात को वीडियो कॉल कर रहे थे, आशु अचानक से रो पडी. 'जानू! मुझसे नहीं हो रहा ये सब! आपके बिना मेरा हाल बहुत बुरा है... काम करने का मन नहीं कर रहा. मैं सच में इडियट हूँ, आपने कहा था की हम नहीं मिल पाएंगे पर फिर भी मैंने जिद्द की! प्लीज जानू!....मुझे ये जॉब नहीं करनी....प्लीज......'
'अरे जान तो छोड़ दो ना!' मैंने कहा.
'पर....?' आशु कुछ सोच में पड़ गई.
'यार कोई भी बहाना बना दे और रिजाइन कर दे!' मैंने सरलता से कहा और आशु का चेहरा फिर से खिल गया.अगले ही दिन उसने ऑफिस में ये कह दिया की उसकी शादी तय हो गई है और इसलिए उसे जॉब छोड़ने पड़ रही हे. शाम को जब उसने मुझे ये बात बताई तो मुझे बड़ी हँसी आई. चलो आशु को ये बात समझ आ गई की जिंदगी में कोई भी फैसला लेने से पहले उसके नफा और नुकसान सोच लेने चाहिए. उस दिन के बाद से आशु ने अपना ध्यान पढ़ाई में लगा दिया. शनिवार-रविवार हम दोनों के लिए होते थे. इस डेढ़ दिन में हम एक दूसरे को खूब प्यार करते और दिन बस एक दूसरे की बाहों में ही बीतता.
दीन महिने बीतते गए और फिर आशु का जन्मदिन आ गया.मैंने तो छुट्टी के लिए पहले से ही बोल चूका था इसलिए कोई दिक्कत नहीं हुई. इस बार हम लॉन्ग ड्राइव पर निकले और फिर बाहर ही खाना-पीना हुआ, फिर घर वालों से बात कराई और सब ने इस बार बड़े प्यार से उसे आशीर्वाद दिया. अगले दिन चूँकि ऑफिस था तो इसलिए हम वो रात साथ नहीं गुजार पाए पर आशु को इसका जरा भी गिला नहीं था क्योंकि उसने पूरा दिन बहुत एन्जॉय किया था.
कुछ महीने और बीते फिर मेरा जन्मदिन आया और इस दिन की तैयारी आशु ने करनी थी. रात को ठीक बारह बज कर एक मिनट पर उसने मुझे कॉल किया और बर्थ डे विश किया, फिर अगली सुबह मैं उसे लेने पहुँचा और आशु ने सीधा शॉपिंग जाने को कहा. आशु ने अपनी पूरी एक महीने की सैलरी बचाई थी. थी तो वो चिल्लर ही पर उसका मन था मेरे लिए कुछ खरीदने को इसलिए हम दोनों मॉल आ गये. शर्ट की प्राइस देख कर आशु को उसकी सैलरी पर हँसी आ गई और वो बोली; 'इतने में तो मुश्किल से एक शर्ट-पैंट आयेगी.'
'वो भी नहीं आएगी!' मैंने हँसते हुए कहा. आशु ने पर्स से एक लॉलीपॉप निकाली और उसे चूसते हुए बोली; 'हाँ पर एक तरीका है? आप मुझे उधार दे दो, मैं आपको उसके बदले कुछ देकर कर्जा वापस कर दूँगी!' आशु ने मुझे आँख मारते हुए कहा.
मैं आशु का मतलब समझ गया की घर जा कर मुझे कर्जे के बदले में क्या मिलेगा उसने मुझे २ शर्ट और पैंट ट्राय करने को दीए.इधर मेरा ध्यान उसके लॉलीपॉप चूसते होठों से हट ही नहीं रहा था. आशु भी समझ गई थी की मैं क्या देख रहा हूँ.उसने जबरदस्ती मुझे ट्रायल रूम में धकेल दिया और शर्ट ट्राय कर के दिखाने को कहा. मैंने पहले एक शर्ट और पैंट ट्राय कर के आशु को दिखाई तो वो लॉलीपॉप चूसते हुए नॉटी तरीक से बोली; 'हाय!!!!' अब मुझसे उसका ये रूप बर्दाश्त नहीं हो रहा था. मैंने इधर-उधर देखा की कोई हमें देख तो नहीं रहा और फिर आशु का हाथ पकड़ कर उसे अंदर खींच लिया. आशु ने अपने मु से लॉलीपॉप निकाल दी और मैंने अपने दोनों हाथों से उसका चेहरा थामा और उसके गुलाबी होठों को चूम लिया. आशु के मुंह से मुझे स्ट्रॉबेर्री की खुशबु आ रही थी. मैंने अपनी जीभ को आशु के मुंह में दाखिल किया और स्ट्रॉबेर्री फ्लेवर को चखने लगा. पर मेरा लिंग नीचे बेकाबू होने लगा और उसमें दर्द हो रहा था. आशु का हाथ अपने आप ही उस पर आ गया और वो उकडून हो कर नीचे बैठ गई. उसने पैंट की ज़िप खोली और मैंने पैंट का बटन खोला. फिर आशु ने अपनी पतली-पतली उँगलियों से मेरे लिंग को कच्छे से आजाद किया और चमड़ी पीछे खींच कर सुपाडे को मुँह में भर लिया. जैसे ही सुपाडे ने आशु के मुँह में प्रवेश किया और वो आशु के ऊपर वाले तालु से टकराया मेरी सिसकारी निकल गई; 'स्स्सस्स्स्स....आशु!!!' और इधर आशु ने अपने मुँह को आगे-पीछे करना शुरू कर दिया. मैं अपने दोनों हाथ पीछे बांधे अपनी कमर आगे-पीछे करने लगा. मैं और आशु बिलकुल एक लय के साथ काम में लगे थे. जब आशु अपना मुँह पीछे खींचती ठीक उसी समय मैं अपनी कमर पीछे खींचता और फिर जैसे ही आशु अपना मुँह आगे लाती मैं भी अपनी कमर उसके मुँह की तरफ धकेल देता. फिर आशु को क्या सूझा की उसने मेरा लिंग अपने मुँह से निकाला और उसके हाथ में जो लॉलीपॉप थी उसे चूसने लगी. फिर अगले ही पल उस लॉलीपॉप को निकाल उसने फिर से मेरा लिंग अपने मुँह में भर लिया. अब वो मेरे लिंग को चूसने लगी जैसे की वो लॉलीपॉप हो, अब मेरी हालत ख़राब होने लगी थी. मैंने अपना लिंग उसके मुँह से निकला और हिलाते हुए अपना सारा माल उसके मुँह में उतार दिया.
घी सा गाढ़ा मेरा माल उसकी जीभ पर निकला और साथ-साथ थोड़ा उसके होठों और नाक पर फ़ैल गया.आशु सब चाट कर पी गई और फिर अपने पर्स से टिश्यू निकाल कर अपना मुँह साफ़ किया.
'नाऊ वी आर एवन!' आशु ने मुस्कुराते हुए कहा. मैंने आशु के गाल पर प्यार से चपत लगाईं और फिर वो मेरे गले लग गई. अपने कपडे दुरुस्त कर हम दोनों बाहर आये, वो तो शुक्र है किसी ने हमें देखा नही. वो शर्ट और पैंट खरीद कर हम दोनों घर आ गये.
घर पहुँचे ही थे की आशु ने किसी को फ़ोन कर के बुला लिया. 'कुछ नहीं, बस आपके लिए एक सरप्राइज है!' आशु ने मुझसे पर्स लिया और उसमें से ५०० रूपए निकाल कर पर्स वापस दे दिया. इतने में घर से फ़ोन आ गया और सब ने बड़े बधाइयाँ दी और ऊपर से ताई जी ने शादी की भी बात छेड़ दी! जैसे-तैसे उन्हें टाल कर मैंने कॉल काटा की दरवाजे पर दस्तक हुई. आशु ने खुद दरवाजा खोला और पैसे दे कर कुछ बॉक्स जैसा ले लिया. फिर उस बॉक्स को टेबल पर रख कर बोली; 'हॅपी बर्थ डे जानू!' उस बॉक्स में केक था और केक पर भी हैप्पी बर्थडे जानू लिखा था! मैंने कैंडल बुझा कर एक पीस काटा और आशु को खिलाया, आशु ने केक के ऊपर की क्रीम अपनी ऊँगली से निकाली और मेरे होठों पर लगा दी और उचक कर मेरी गोद में चढ़ कर मेरे होठों को चूसने लगी. केक का स्वाद अब मुझे आशु के मुँह से आ रहा था.
आशु की योनी की हालत अब खराब होने लगी थी. मैंने आशु को नीचे उतारा और हम दोनों ने अपने-अपने कपडे निकाल फेंके! आशु पलंग पर अपनी टांगें खोल कर
बैठ गई और तब मुझे उसकी योनी से रस टपकता हुआ दिखाई दिया.
इससे पहले की मैं आगे बढ़ कर वो रस चख पाता, आशु पलट गई और अपनी नितंब मेरी ओर घुमा दी. अब उसकी नितंब देख कर तो लिंग नाचने लगा और ठुमके मार के मुझे उस तरफ चलने को कहने लगा. इधर आशु नीचे को झुक गई और अपनी नितंब ओर ऊपर की तरफ उठा दी.
अब तो मुझे उसकी नितंब और भी बड़ी दिखने लगी. मैंने पीछे से अपना लिंग उसकी योनी में पेल दिया ओर पूरे-पूर धक्के मारने लगा. हर धक्के के साथ लिंग जड़ समेत पूरा अंदर उतर जाता, मेरे हर धक्के से आशु की कराह निकलने लगी थी. 'आह...जानू!...उम्म्म...आअह्ह्ह!!!!' दस मिनट की दमदार ठुकाई और आशु के साथ मैं उसकी योनी में ही झड़ गया.
'थैंक यू जान! ये वाला बर्थडे सबसे बेस्ट था!' मैंने सांसें कण्ट्रोल करते हुए कहा. आशु उठी और मेरे पास आ कर मेरे ऊपर चढ़ कर लेट गई. हम घंटे भर तक ऐसे ही पड़े रहे और तब उठे जब पेट में 'गुर्र्ररर' की आवाज आई. आशु ने कुछ खाने के लिए आर्डर किया और हम दोनों मुँह-हाथ-लिंग-योनी धो कर, कपडे पहन कर फिर से एक दूसरे के आगोश में बैठ गये. कुछ देर बाद आशु बोली; 'जानू! आपकी 'नितु' का फ़ोन आया था?' मैं ये सुन कर थोड़ा हैरान हुआ क्योंकि वाक़ई में इतने महीनों में उन्होंने मुझे कोई कॉल या मैसेज नहीं किया था. मैं चुप रहा क्योंकि उस टाइम मैं क्या कहता?!
'यही दोस्ती होती है क्या? जब उनकी इज्जत उस ट्रैन के डिब्बे में खतरे में थी तब आप उनके साथ थे ना? उनके डाइवोर्स के वक़्त में आप उनके साथ थे ना? उनके कारन ही आपका नाम कोर्ट केस में घसींटा गया और उन्हीं के कारन आपने वो जॉब छोड़ी और उन्होंने आज तक आपको कभी कॉल या मैसेज किया? वो तो बैंगलोर चली गईं और वहाँ मजे कर रहीं हैं, ते देखो...' ये कहते हुए आशु ने अपने फ़ोन में उनकी फेसबुक प्रोफाइल दिखाई जिसमें वो कहीं घूमने गईं थीं और अपने दोस्तों के साथ 'चिल' कर रहीं थी. 'जब इंसान का काम निकल जाता है तो वो उस इंसान को भूल जाता है जो उसके बुरे वक़्त में उसके साथ था.' आशु ने बहुत गंभीर होते हुए मुझे कहा ऐसा लगा जैसे वो मुझे जिंदगी का पाठ पढ़ा रही हो!
'यार! मैं मानता हूँ जो तुम कह रही हो वो सही है पर मैंने सिर्फ दोस्ती निभाई थी उसके बदले में अगर उन्होंने मुँह मोड़ लिया तो इसमें मेरी क्या गलती है?' मैंने कहा
पर आशु आज मेरी क्लास लेने के चक्कर में थी; 'इसका मतलब ये तो नहीं की लोग आपका फायदा उठाते रहे? मिस्टर कुमार को एक बलि का बकरा चाहिए था तो उन्होंने आपको चुना, इनको अपने पति से प्यार नहीं मिला तो आपसे दोस्ती कर ली और जब दोनों का काम निकल गया तो आप को छोड़ गए! ये कैसी दोस्ती?' आशु की बात सुन मैं मुस्कुरा दिए और मेरी ये मुस्कराहट देखते ही आशु पूछने लगी; 'आप क्यों मुस्कुरा रहे हो?'
'जान! मैंने सिवाय तुम्हारे कभी किसी से कुछ एक्सपेक्ट् ही नहीं किया! राखी, सुमन, नितु सब जानती थीं की आज मेरा जन्मदिन है पर मुझे इनके कॉल नहीं आने का जरा भी दुःख नही. हाँ तुमने जो कहा वो सही है और मैं मानता हूँ की मैं लोगों की कुछ ज्यादा ही मदद कर देता हूँ या ये कहूँ की मैं उन्हें ना नहीं कह पाता. आज से मैं खुद को चेंज करूँगा और किसी की भी मदद करने से पहले देख लूँगा की कहीं उसके चक्कर में मेरा नुकसान ना हो जाये.' ये सुन कर तो जैसे आशु को लगा की उसका पढ़ाया हुआ सबक मेरे पल्ले पड़ गया और वो खुश हो गई. तभी खाना आ गया और हमने पेट भर के खाया और शाम को मैं आशु को हॉस्टल छोड़ आया.
कुछ दिन बीते और फिर पता चला की कुमार की कंपनी बंद हो गई और मेरे दो कलिग मोहित और प्रफुल की जॉब छूट गई. प्रफुल ने तो नई जॉब जुगाड़ से ढूँढ ली थी पर मोहित के पास अब भी जॉब नहीं थी. मैंने अपनी कंपनी में बात की और सर से उसकी थोड़ी सिफारिश की और सर मान गए पर उसे पोस्टिंग बरेली में मिली.
फिर एक दिन पता चला की सुमन की शादी तय हो गई है, शायद अब उसने मुव्ह ऑन करने का तय किया था. उसकी शादी बड़े धूम-धाम से हुई, पता नहीं मुझे ऐसा लगा की कहीं मेरे सामने जाने से सुमन का जख्म हरा न हो जाये. पर चूँकि शादी का बुलावा हमारे पूरे घर को गया था तो मजबूरन मुझे भी सब के साथ जाना ही पडा. अब सब के सब सबसे पहले मेरे घर आने वाले थे तो एक दिन पहले मुझे और आशु को मिल कर ढंग से सफाई करनी पडी. आशु की सारी चीजें मैंने उसे दे दी, उसकी पैंटी, ब्रा, टॉप्स, एयरिंग्स, कंघी, मंगलसूत्र, चूड़ियाँ, साड़ियाँ सब! पूरे घर को इस कदर साफ़ किया की वहाँ आशु का एक डी एन ए तक नहीं बचा. 'हाय! मेरे जिस्म की पूरी महक आपने भगा दी!' आशु मुझे छेड़ते हुए बोली. मैंने आशु को बाहों में भरा और कहा; 'घर से ही गई है ना? मेरे जिस्म से तो तेरी महक नहीं गई ना?' ये सुन कर आशु शर्मा गई और मेरे सीने में अपना सर छुपा लिया. जब सब लोग घर आये तो चकाचक घर को देख कर सब ने बड़ी तारीफ की, माँ और ताई जी तो घूम-घूम कर निरक्षण करने लगीं की कहीं कोई गलती निकाल सके. फिर वहाँ से सब आशु के हॉस्टल पहुँचे और वहाँ आंटी जी ने बड़े अच्छे से सब का स्वागत किया. वो पूरा दिन ना तो मैं सुमन से मिल पाया ना ही कोई मौका मिला था.
रात को जब बरात आई और खाना-पीना हुआ उसके बाद सब लोग एक-एक कर अपनी फोटो खिंचवाने स्टेज पर चढ़ने लगे. अब हमें भी चढ़ना था और शगुन देना था. मैं सबसे आखिर में खड़ा था पर सुमन ने फोटो खींचने के बाद मुझे आवाज दे कर बुलाया; 'अरे सागर जी! आप कहाँ जा रहे हो? मेरे हस्बैंड से तो मिल लो?' ये कहते हुए उसने मेरा इन्ट्रो अपने हस्बैंड से करवाया| 'ये हैं मेरे गुरु जी! कॉलेज में यही मुझे 'एकाउंट्स की शिक्षा देते थे!!!'' सुमन ने हँसते हुए कहा. उसके पति को लगा की मैं उसका टीचर हूँ; 'यार इतना भी बुड्ढा मत बना, अभी तो मेरी शादी भी नहीं हुई?' ये सुन कर हम तीनों हँस दिये.
'एनीथिंग स्पेशल दॅट आई शुड नो?' सुमन के पति ने पूछा.
 
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'बहुत बोलती है ये... प्लीज इसे बोलने मत देना वरना ये ऐसा रेडियो है जो शुरू हो जाए तो बंद नहीं होता.' मैंने सुमन का मजाक उड़ाते हुए कहा. सुमन ने मुझे प्यार से एक घूँसा मारा. 'देख लिया मारती भी है! इन्शुरन्स करवाया है ना अपना? कहीं टूट-फूट जाओ तो!' हम तीनों खूब हांसे और मुझे ये जान कर ख़ुशी हुई की सुमन इस शादी से बहुत खुश हे. पूरी शादी में आशु मुझसे दूर रही थी और माँ और ताई जी के साथ बैठी रहती. एक पल के लिए तो मैं भी सोच में पड़ गया की इतनी समझदार कैसे हो गई?
शादी अच्छे से निपट गई और घर वाले अगले दिन वापस गाँव चले गये. फिर वही त्योहारों की झड़ी और इस बार घर वालों ने जबरदस्ती हमें घर पर बुला लिया तो सारे त्यौहार उन्हीं के साथ हँसी-ख़ुशी मनाये गये. अब घर पर थे तो अकेले में बैठने का समय नहीं मिलता था. इसलिए मैं कई बार देर रात को आशु के पास जा कर बैठ जाता और वो कुछ देर हम एक साथ बैठ कर बिताते. घर से बाजार जाने के समय मैं कोई बहाना बना देता और आशु को साथ ले जाता. दिवाली की रात हम सारे एक साथ बैठे थे तो ताऊ जी ने मुझे अपने पास बैठने को बुलाया;
ताऊ जी: वैसे मुझे तेरी तारीफ तेरे सामने नहीं करनी चाहिए पर मुझे तुझ पर बहुत गर्व हे. इस पूरे परिवार में एक तू है जो अपनी सारी जिम्मेदारियाँ उठाता हे. मुझे तुझ में मेरा अक्स दिखता है....!
ये कहते हुए ताऊ जी की आँखें नम हो गई.
पिताजी: भाई साहब सही कहा आपने.पिताजी के गुजरने के बाद सब कुछ आप ने ही तो संभाला था.
ताऊ जी: सागर बेटा, जब तूने घर लेने की बात कही तो मैं बता नहीं सकता की मुझे कितना गर्व हुआ तुझ पर.तू अपनी मेहनत के पैसों से अपना घर लेना चाहता है, सच हमारे पूरे खानदान में कभी किसी ने ऐसा नहीं सोचा.
मेरी तारीफ ना तो गोपाल भैया के गले उतर रही थी और ना ही भाभी के और वो जैसे-तैसे नकली मुस्कराहट लिए बैठे थे. पर मेरे माता-पिता, ताई जी और ख़ास कर आशु का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था.
पिताजी: बेटा थोड़ा समय निकाल कर खेती-किसानी भी सीख ले ताकि बाद में तुम और गोपाल भैया ये सब अच्छे से संभाल सके. तेरी और अश्विनी की शादी हो जाए तो हम सब तुझे और गोपाल भैया को सब दे कर यात्रा पर चले जायेंगे.
ताई जी: बेटा मान भी जा हमारी बात और कर ले शादी!
मैं: माफ़ करना ताई जी मैं कोई जिद्द नहीं कर रहा बस घर खरीदने तक का समय माँग रहा हु.
ताऊ जी: ठीक है बेटा!
तो इस तरह मुझे पता चला की आखिर घर वाले क्यों मुझे अचानक इतनी छूट देने लगे थे. अगले दिन मैं और आशु वापस शहर लौट आये.......
फिर दिन बीतने लगे. मे अपनी नौकरी में व्यस्त था. ऐसे ही समय बितता गया. दिसंबर का महिना आ चुका था. शहर के चर्च मे क्रिसमस की तयारी जोरदार थी.क्रिसमस पर हम दोनों सुबह चर्च गए और वो पूरा दिन हम ने घूमते हुए निकाला. पर अगले दिन घर से खबर आई की ताऊ जी की तबियत ख़राब है, ये सुन कर आशु ने कहा की उसे घर जाना हे. उसकी अटेंडेंस का कोई चक्कर नहीं था तो मैं उसे घर छोड़ आया. उसके यहाँ ना होने के कारन मैंने थर्टी फर्स्ट दिसंबर नहीं मनाया और घर पर ही रहा. जब मैं उसे लेने घर पहुँचा तो आशु बोली; 'जानू! जब से मैं पैदा हुई हूँ तब से हमने कभी होली नहीं मनाई|'
'जान! दरअसल वो .... 'काण्ड' होली से कुछ दिन पहले ही हुआ था. इसलिए आज तक इस घर में कभी होली नहीं मनाई गई. पर कोई बात नहीं मैं बात करता हूँ की अगर ताऊ जी मान जाये.'
'ठीक है! पर अभी नहीं, अभी उनकी तबियत थोड़ी सी ठीक हुई है और वैसे भी अभी तो दो महीने पड़े हैं.' आशु ने कहा. ताऊ जी की तबियत ठीक होने लगी थी इस लिए उन्होंने खुद आशु को वापस जाने को कहा था.
जनवरी खत्म हुआ और फिर कॉलेज का एनुअल डे आ गया.पर मुझे दो दिन के लिए बरेली जाना था. जब मैंने ये बात आशु को बताई तो वो रूठ गई और कहने लगी की वो भी नहीं जाएगी. मैंने बड़ी मुश्किल से उसे जाने को राजी किया ये कह कर की; 'ये कॉलेज के दिन फिर दुबारा नहीं आयेंगे.' आशु मान गई और मैंने ही उसके लिए एक शानदार ड्रेस सेलेक्ट की. आशु ये नहीं जानती थी की मेरा प्लान क्या है! मोहित चूँकि पहले से ही बरेली में था तो मैंने उससे मदद मांगी की वो काम संभाल ले और मैं एक ही दिन में अपना बचा हुआ काम उसे सौंप कर वापस आ गया.एनुअल डे वाले दिन आशु कॉलेज पहुँच गई थी. मैंने गेट पर से उसे फ़ोन किया और पुछा की वो गई या नहीं? आशु ने बताया की वो पहुँच गई हे. ये सुनने के बाद ही मैं कॉलेज में एंटर हुआ और आशु को ढूंढता हुआ उसके पीछे खड़ा हो गया.मैंने उसकी आँखे मूँद लीं और वो एक दम से हड़बड़ा गई और कहने लगी; 'प्लीज... कौन है?... प्लीज…छोड़ो मुझे!' मैंने उसकी आँखों पर से अपने हाथ उठाये और वो मुझे देख कर हैरान हो गई.
हैरान तो मैं भी हुआ क्योंकि आशु आज लग ही इतनी खूबसूरत रही थी. मैं उम्मीद करने लगा की वो आ कर मेरे गले लग जाएगी पर ऐसा नहीं हुआ. मुझे लगा शायद आशु शर्मा रही है पर तभी रक्षित अपने दोनों हाथों में कोल्ड-ड्रिंक लिए वहाँ आ गया.उसने एक कोल्ड ड्रिंक आशु की तरफ बढ़ाई और आशु ने संकुचाते हुए वो कोल्ड-ड्रिंक ले ली. मुझे देख कर रक्षित बोला; 'हाई!' पर मैंने उसकी बात को अनसुना कर दिया.
तभी आशु ने मेरा हाथ पकड़ा और रक्षित को 'एक्स्क्युज अस' बोल कर मुझे एक तरफ ले आई.
'आज तो बड़े ड्याशिंग लग रहे हो आप?' आशु बोली.
'थैंक यू ... बट .... आई थोट यू दिडंत लाईक हिम!” मैंने कहा क्योंकि फर्स्ट ईयर के एनुअल डे पर आशु ने यही कहा था.
“आई…रिअलाईज दॅट वी शुड नोट ब्लेम चीलड्रन बिकाज ऑफ देअर प्यारेंट. इट वाजंट हिज फॉल्ट?” आशु ने सोचते हुए कहा.
“फेयर इनफ…. एनी वे यू आर लूकिन फ्याबुलास टूडे!” मैंने आशु को कॉम्पलिमेंट देते हुए कहा.
“शुक्रिया! वैसे आपने तो कहा था की आपको बहुत काम है और आप नहीं आने वाले?' आशु ने मुझसे शिकायत करते हुए कहा.
'भाई अपनी जानेमन को मैं भला कैसे उदास करता?' मैंने आशु का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.
'मैंने सोच लिया था की मैं आप से बात नहीं करुँगी!' आशु ने कहा.
'इसीलिए तो भाग आया!' मैंने हँसते हुए कहा और आशु भी ये सुन कर मुस्कुरा दी. इस बार कुछ डांस पर्फॉर्मन्सेस थीं तो मैं और आशु खड़े वो देखने लगे और लाउड म्यूजिक के शोर में एन्जॉय करने लगे. आशु की कुछ सहेलियाँ आई और वो भी हमारे साथ खड़ी हो कर देखने लगी. ये देख कर मैंने सोचा की चलो आशु ने नए दोस्त बना लिए हैं. निशा के जाने के बाद आशु की जिंदगी में दोस्त ही नहीं थे!
खेर दिन बीते और होली आ गई....
हर साल की तरह इस साल भी हम दोनों होली से एक दिन पहले ही घर आ गये. शाम को होलिका दहन था. जिसके बाद सब घर लौट आये. रात का खाना बन रहा था और आंगन में मैं, गोपाल भैया, पिताजी और ताऊ जी बैठे थे.
मैं: ताऊ जी...आप बुरा ना मानें तो आपसे कुछ माँगूँ? (मैंने डरते हुए कहा.)
ताऊ जी: हाँ-हाँ बोल!
मैं: ताऊ जी ... इस बार होली घर पर मनाएँ?
मेरे ये बोलते ही घर भर में सन्नाटा पसर गया, कोई कुछ नहीं बोल रहा था और मैं मन ही मन सोचने लगा की मैंने कुछ ज्यादा ही माँग लिया क्या? ताऊ जी उठे और छत पर चले गए और पिताजी मुझे घूर कर देखने लगे और फिर वो भी ताऊ जी के पीछे छत पर चले गये. कुछ देर बाद मुझे ताऊ जी ने ऊपर से आवाज दी, मैं सोचने लगा की कुछ ज्यादा ही फायदा उठा लिया मैंने घर वालों की छूट का. छत पर पहुँच कर मैं पीछे हाथ बांधे खड़ा हो गया.
ताऊ जी: तुझे पता है की हम क्यों होली नहीं मनाते?
मैंने सर झुकाये हुए ना में गर्दन हिलाई, कारन ये की अगर मैं ये कहता की मुझे पता है तो वो मुझसे पूछते की किस ने बताया और फिर प्रकाश और उसके परिवार के साथ हमारे रिश्ते बिगड़ जाते.
ताऊ जी: तुझे नहीं पता, गोपाल भैया की पहली बीवी अश्विनी जिससे हुई वो किसी दूसरे लड़के के साथ घर से भाग गई थी. उस टाइम बहुत बवाल हुआ था. गाँव में हमारी बहुत थू-थू हुई. उस समय गाँव के मुखिया जो आजकल हमारे मंत्री साहब है उन्होंने ......फरमान सुनाया की दोनों को मार दिया जाये. इसलिए हम ....होली नहीं मनाते.(ताऊ जी ने मुझे बडी नैतिकता पूर्ण तरीके से बात बताई.
मैं: तो ताऊ जी हम बाकी त्यौहार क्यों मनाते हैं?
पिताजी: ये घटना होली के आस-पास हुई थी इसलिए हम होली नहीं मनाते. (पिताजी ने ताऊ जी की बात ही दोहराई और 'होली नहीं मनाते' पर बहुत जोर दिया.)
मैं: जो हुआ वो बहुत साल पहले हुआ ना? अब तो सब उसे भूल भी गए हैं! गाँव में ऐसा कौन है जो हमारी इज्जत नहीं करता? हम कब तक इस तरह दब कर रहेंगे? ज़माना बदल रहा है और कल को मेरी शादी होगी तो क्या तब भी हम होली नहीं मनाएँगे?
शायद मेरी बात ताऊ जी को सही लगी इसलिए उन्होंने खुद हा कहा;
ताऊ जी: ठीक है...लड़का ठीक कह रहा हे. कब तक हम उन पुरानी बातों की सजा बच्चों को देंगे. तू कल जा कर बजार से रंग ले आ.
मैं उस समय इतने उत्साह में था की बोल पड़ा; 'जी कलर तो मैं शहर से लाया था.' ये सुन कर ताऊ जी हंस दिए और मुझे पिताजी से डाँट नहीं पडी.
मुझे उस रात एक बात क्लियर हो गई की मुझ पर और आशु पर जो बचपन से बंदिशें लगाईं गईं थीं वो भाभी (आशु की असली माँ) की वजह से थी. आशु को तो उसकी माँ के कर्मों की सजा दी गई थी. उसकी माँ के कारन ही आशु को बचपन में कोई प्यार नहीं मिला. घर वालों को डर था की कहीं हम दोनों ने भी कुछ ऐसा काण्ड कर दिया तो? पर काण्ड तो होना तय था. क्योंकि ताऊ जी के सख्त नियम कानूनों के कारन ही मैं और आशु इतना नजदीक आये थे.
जब ताऊ जी का फरमान घर में सुनाया गया तो सबसे ज्यादा आशु ही खुश थी. इधर भाभी को मुझसे मजे लेने थे; 'मेरी शादी के बाद इस बार मेरी पहली होली है, तो सागर भैया मुझे लगाने को कौन से रंग लाये हो?'
'काला' मैंने कहा और जोर से हँसने लगा. आशु भी अपना मुँह छुपा कर हँसने लगी. ताई जी की भी हंसी निकल गई और माँ ने हँसते हुए मुझे मारने के लिए हाथ उठाया पर मारा नही.
'तो सागर, पहले से प्लानिंग कर के आया था लगता है?' गोपाल भैया ने खीजते हुए कहा.
'मैंने कोई प्लानिंग नहीं बल्कि रिक्वेस्ट की है ताऊ जी से, जो उन्होंने मानी भी हे. कलर्स तो मैं इसलिए लाया था की अगर ताऊ जी मान गए तो होली खेलेंगे वरना इन से हम दिवाली पर रंगोली बनाते' ये सुन कर वो चुप हो गये. अब मुझे कोई और बात छेड़नी थी ताकि माहौल में कोई तनाव न बने. 'ताई जी ये कलर्स प्रकर्तिक हैं, इनमें जरा सा भी केमिकल इस्तेमाल नहीं हुआ हे. हमारे त्वचा के लिए ये बहुत अच्छे हैं.' मैंने कलर्स की बढ़ाई करते हुए कहा.
'हे राम! इसमें भी मिलावट होने लगी?' ताई जी ने हैरान होते हुए कहा.
'दादी जी आजकल सब चीजों में मिलावट होती है, खाने की हो या पहनने की.' आशु ने अपना 'एक्सपर्ट ओपिनियन' देते हुए कहा.
'सच्ची ज़माना बड़ा बदल गया, लालच में इंसान अँधा होने लगा हे.' माँ ने कहा. घर की औरतों को बात करने को एक टॉपिक मिल गया था इसलिए मैं चुप-चाप वहाँ से खिसक लिया. मैं छत पर बैठ कर सब को होली के मैसेज फॉरवर्ड कर रहा था की गोपाल भैया ऊपर आ गया और मुझसे बोला; 'अरे रंग तो ले आये! भांग का क्या?'
'ताऊ जी को पता चल गया ना तो कुटाई होगी दोनों की!' मैंने कहा.
'अरे कुछ नहीं होगा? सब को पिला देते हैं थोड़ी-थोड़ी!' गोपाल भैया ने खीसें निपोरते हुए कहा.
'दिमाग खराब है आपका ?' मैंने थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा.
'अच्छा अगर पिताजी ने हाँ कर दी फिर तो पीयेगा ना?' गोपाल भैया ने कुछ सोचते हुए कहा.
मैंने मना कर दिया क्योंकि एक तो मैं आशु को वादा कर चूका था और दूसरा कॉलेज में एक बार पी थी और हम चार लौंडों ने जो काण्ड किया था की क्या बताऊँ.पर गोपाल भैया के गंदे दिमाग में एक गंदा विचार जन्म ले चूका था.
अगले दिन सब जल्दी उठे और जैसे मैं नीचे आया तो सब से पहले ताऊ जी ने मेरे माथे पर तिलक लगाया और मैंने उनके पाँव छुए.फिर पिताजी, उसके बाद ताई जी और फिर माँ ने भी मुझे तिलक लगाया और मैंने उनके पाँव छुए.गोपाल भैया घर से गायब थे तो भाभी भी मुट्ठी में गुलाल लिए मेरे सामने खड़ी हो गई. पर इससे पहले वो मुझे रंग लगाती आशु एक दम से बीच में आ गई और फ़टाफ़ट मेरे दोनों गाल उसने गुलाल से चुपड़ दिये. वो तो शुक्र है की मैंने आँख बंद कर ली थी वरना आँखों में भी गुलाल चला जाता. मुझे गुलाल लगा कर वो छत पर भाग गई. मैंने थाली से गुलाल उठाया और छत की तरफ भागा.आशु के पास भागने की जगह नहीं बची थी तो वो छत के एक किनारे खड़ी हुई बस 'सॉरी..सॉरी...सॉरी' की रट लगाए हुए थी. मैं बहुत धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा और दोनों हाथों को उसके नरम-नरम गालों पर रगड़ कर गुलाल लगाने लगा. मेरे छू भर लेने से आशु कसमसाने लगी थी और उसकी नजरें नीचे झुकी हुई थी. छत पर कोई नहीं था तो मेरे पास अच्छा मौका था आशु को अपनी बाहों में कस लेने का.मैंने मौके का पूरा फायदा उठाया और आशु को अपनी बाहों में भर लिया. आशु की सांसें भारी होने लगी थी और वो मेरी बाहों से आजाद होने को मचलने लगी. तेजी से सांस लेते हुए आशु मुझसे अलग हुई, मानो जैसे की उसके अंदर कोई आग भड़क उठी हो जिससे उसे जलने का खतरा हो. मैं आशु की तेज सांसें देख रहा था की तभी भाभी ऊपर आ गईं; 'अरे सागर भैया! हम से भी गुलाल लगवा लो!' पर मेरा मुँह तो आशु ने पहले ही रंग दिया था तो भाभी के लगाने के लिए कोई जगह ही नहीं बची थी. 'तुम्हारे ऊपर तो अश्विनी का रंग चढ़ा हुआ है, अब भला मैं कहाँ रंग लगाऊँ?' भाभी ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा.
'माँ ...गर्दन पर लगा दो?' आशु हंसती हुई बोली और ये सुन कर भाभी को मौका मिल गया मुझे छूने का.उन्होंने मेरी टी-शर्ट के गर्दन में एकदम से हाथ डाला और उसे मेरे छाती के स्तनाग्रों की तरफ ले जाने लगी. मुझे ये बहुत अटपटा लगा और मैंने उनका हाथ निकाल दिया. भाभी समझ गई की मुझे बुरा लगा है और आशु भी ये सब साफ़-साफ़ देख पा रही थी. मैं उस वक़्त कहने वाला हुआ था की ये क्या बेहूदगी है पर आशु सामने खड़ी थी इसलिए कुछ नहीं बोला. मैं वापस नीचे जाने लगा तो भाभी पीछे से बोली; 'अरे कहाँ जा रहे हो? मुझे तो रंग लगा दो? आज का दिन तो भाभी देवर से सबसे ज्यादा मस्ती करती है और तुम हो की भागे जा रहे हो?' मैंने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और प्रकाश से मिलने निकल पडा. उसके खेत में जमावड़ा लगा हुआ था और वहां सब ठंडाई पी रहे थे और पकोड़े खा रहे थे. मुझे देखते ही वो लड़खड़ाता हुआ आया और गले लगा फिर तिलक लगा कर मुझे जबरदस्ती ठंडाई पीने को कहा. अब उसमें मिली थी भाँग और मैं ठहरा वचन बद्ध! इसलिए फिर से घरवालों के डर का बहाना मार दिया. कुछ देर बाद ताऊ जी और पिताजी भी आ गए और वो ये देख कर खुश हुए की मैंने भाँग नहीं पि! पर ताऊ जी और पिताजी ने एक-एक गिलास ठंडाई पि और फिर हम तीनों घर आ गये. गोपाल भैया का अब भी कुछ नहीं पता था. घर पहुँच कर सबसे पहले भाभी मुझे देखते हुए बोली; 'सारे गाँव से होली खेल लिए पर अपनी इकलौती भाभी से तो खेले ही नहीं?'
'छत पर आशु के सामने मेरी पूरी गर्दन रंग दी आपने और कितनी होली खेलनी है आपको?' मैंने जवाब दिया. फिर मैंने अचानक से झुक कर उनके पाँव छूए और भाभी बुदबुदाते हुए बोली; 'पाँव की जगह कुछ और छूते तो मुझे और अच्छा लगता!' मैं उनका मतलब समझ गया पर पिताजी के सामने कहूँ कैसे? इसलिए मैं नहाने के लिए जाने को आंगन की तरफ मुड़ा तो भाभी ने लोटे में घोल रखा रंग पीछे से मेरे सर पर फेंका. ठंडा-ठंडा पानी जैसे शरीर को लगा तो मेरी झुरझुरी छूट गई. 'अब तो गए आप?' कहते हुए मैंने ताव में उनके पीछे भागा, भाभी खुद को बचाने को इधर-उधर भागना चाहती थी पर मैंने उनका रास्ता रोका हुआ था. इतने में उन्होंने आशु का हाथ पकड़ा और उसे मेरी तरफ धकेला, मैंने आशु के कंधे पर हाथ रख कर उसे साइड किया और भाभी का दाहिना हाथ पकड़ लिया और उन्हें झटके से खिंचा. भाभी को गिरने को हुईं तो मैंने उन्हें गिरने नहीं दिया और गोद में उठा लिया. उनका वजन सच्ची बहुत ज्यादा था ऊपर से वो मुझसे छूटने के लिए अपने पाँव चला रही थीं तो मेरे लिए उन्हें उठाना और मुश्किल हो गया था. आंगन में एक टब में कुछ कपडे भीग रहे थे मैंने उन्हें ले जा कर उसी टब में छोड़ दिया. जैसे ही भाभी को ठन्डे पानी का एहसास अपनी नितंब और कमर पर हुआ वो चीख पड़ी; 'हाय दैय्या! सागर तुम सच्ची बड़े खराब हो! मर गई रे!' उन्हें ऐसे तड़पता देख मैं और आशु जोर-जोर से हँसने लगे और भाभी की चीख सुन माँ और ताई जी भी उन्हें टब में ऐसे छटपटाते हुए देख हँसने लगे. इससे पहले की माँ कुछ कहती मैंने खुद ही उन्हें सारी बात बता दी; 'शुरू इन्होने किया था मेरे ऊपर रंग डाल कर, मैंने तो बस इनके खेल अंजाम दिया हे.' इधर भाभी उठने के लिए कोशिश कर रहीं थीं पर उनकी बड़ी नितंब जैसे टब में फँस गई थी. आखिर मैंने और आशु ने मिल कर उन्हें खड़ा किया और भाभी की चेहरे पर मुस्कराहट आ गई क्योंकि आज जिंदगी में पहली बार मैंने उन्हें इस कदर छुआ था.
मैंने उनकी इस मुस्कराहट को नजरअंदाज किया और अपने कपडे ले कर नहाने घुस गया.करीब पाँच मिनट हुए होंगे की गोपाल भैया घर आया और उसके हाथ में मिठाई का डिब्बा था. उसने सब को डिब्बे से लड्डू निकाल कर दिए और मुझे भी आवाज दी की मैं भी खा लूँ पर मैं तो बाथरूम में था तो मैने कह दिया की आप रख दो मैं नहा कर खा लुंगा. मेरे नहा के आने तक सबने लड्डू खा लिए थे और पूरा डिब्बा साफ़ था. जैसे ही मैं नहा के बाहर आया तो पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था.... आंगन में चारपाई पर ताई जी और माँ लेटे हुए थे, भाभी शायद अपने कमरे में थीं और आशु रसोई के जमीन पर बैठी थी और दिवार से सर लगा कर बैठी थी. ताऊ जी और पिताजी अपने-अपने कमरे में थे और गोपाल भैया आंगन में जमीन पर पड़ा था. सब की आँखें खुलीं हुईं थीं पर कोई कुछ बोल नहीं रहा था. ये देखते ही मेरी हालत खराब हो गई. मुझे लगा कहीं सब को कुछ हो तो नहीं गया? मैंने एक-एक कर सब को हिलाया तो सब मुझे बड़ी हैरानी से देखने लगे. अब मुझे शक हुआ की जरूर सब ने भाँग खाई है और खिलाई भी उस कुत्ते गोपाल भैया ने है!!! मैं पिताजी के कमरे में गया तो उन्हें भी बैठे हुए पाया और उन्हें जब मैंने हिलाया तो वो शब्दों को बहुत खींच-खींच कर बोले; 'इसमें.....भांग.....थी.....!!!' अब मैं समझ गया की गोपाल भैया ने भाँग के लड्डू सब को खिला दिए हैं! मैंने पिताजी को सहारा दे कर लिटाया और वो कुछ बुदबुदाने लगे थे. मैं ताऊ जी के कमरे में आया तो वो पता नहीं क्यों रो रहे थे, मैं जानता था की इस हालत में मैं उन्हें कुछ कह भी दूँ तब भी उनका रोना बंद नहीं होगा. मैंने उन्हें भी पुचकारते हुए लिटा दिया. इधर जब मैं वापस आंगन में आया तो माँ और ताई जी की आँख लग गई थी और गोपाल भैया भी आँख मूंदें जमीन पर पड़ा था. मैंने भाभी के कमरे में झाँका तो वहां तो अजब काण्ड चल रहा था. वो अपनी योनी को पेटीकोट के ऊपर से खुजा रही थीं और मुँह से पता नहीं क्या बड़बड़ा रही थी. मैंने फटाफट उनके कमरे का दरवाजा बंद किया और कुण्डी लगा कर मैं आशु के पास आया, तो पता नहीं वो उँगलियों पर क्या गिन रही थी? मैंने उसे हिलाया तो उसने मेरी तरफ देखा और फिर पागलों की तरह अपनी उँगलियाँ गिनने लगी. 'जानू! I लव ......'इतना बोलते हुए वो रुक गई. अब मेरी फटी की अगर किसी ने सुन लिया तो आज ही हम दोनों को जला कर यहीं आंगन में दफन कर देंगे. मैंने उसे गोद में उठाया और ऊपर उसके कमरे में ला कर लिटाया. मैं उसे लिटा के जाने लगा तो उसने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया और इशारे की आकृति बना कर मुझे किस करना चाहा. मैं उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ा रहा था क्योंकि मैं जानता था की अगर कोई ऊपर आ गया तो हम दोनों को देख कर सब का नशा एक झटके में टूट जायेगा! पर आशु पर तो प्यार का भूत सवार हो गया था. पता नहीं उसे आज मेरे अंदर किसकी शक्ल दिख रही थी की वो मुझे बस अपने ऊपर खींच रही थी. 'आशु मान जा...हम घर पर हैं! कोई आ जाएगा!' मैंने कहा पर उसने मेरी एक न सुनी और अपने दोनों हाथों के नाखून मेरे हाथों में गाड़ते हुए कस कर पकड़ लिए. आशु के गुलाबी होंठ मुझे अपनी तरफ खींच रहे थे और अब मेरा सब्र भी जवाब देने लगा था. मैंने हार मानते हुए उसके होठों को अपने होठं से छुआ पर इससे पहले की मैं अपनी गर्दन ऊपर कर उठता आशु ने झट से अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे लॉक कर दिया और अपने होठों से मेरे होंठ ढक दिये. आशु पर नशा पूरे शबाब था और वो बुरी तरह से मेरे होंठ चूसने लगी. मेरे हाथ उसके जिस्म की बजाये बिस्तर पर ठीके थे और मैं अब भी उसकी गिरफ्त से छूटने को अपना जिस्म पीछे खींच रहा था.
मुझे डर लग रहा था की अगर कोई ऊपर आ गया तो, इसलिए मैंने जोर लगाया और आशु के होठों की गिरफ्त से अलग हुआ. पर ये क्या आशु ने 'आई लव यू' रटना शुरू कर दिया. वो तो अपनी आँख भी नहीं झपक रही थी बस लेटे हुए मुझे देख रही थी और आई लव यू की माला रट रही थी. मैंने उस के कमरे को बाहर से कुण्डी लगाईं और रसोई में गया और वहाँ से कटोरी में आम का अचार निकाल लाया. आशु के कमरे की कुण्डी खोली तो छत पर देखते हुए अब भी आई लव यू बड़बड़ा रही थी. मैंने कटोरी से एक आम के अचार का पीस उठाया और आशु के सिरहाने बैठ गया.मुझे अपने पास देखते ही उसने मुझे अपनी बाहों में कस लिया. मैंने आम का पीस उसकी तरफ बढ़ाया तो अपने होंठ एक दम से बंद कर लिए. पर मैंने भी थोड़ा उस्तादी दिखाते हुए पीस वापस कटोरी में रखा और अपनी ऊँगली आशु को चटा दी. ऊँगली में थोड़ा अचार का मसाला लगा था. आशु ने खटास के कारन अपना मुँह खोला और मैंने फटाफट अचार का टुकड़ा उसके मुँह में डाल दिया. आशु एक दम से मुँह बनाते हुए उठ बैठी और उसने वो अचार का पीस उगल दिया. मुझे उसका ऐसा मुँह बनाते हुए देख बहुत हँसी आई पर वो मेरी तरफ सड़ा हुआ मुँह बना कर देखने लगी. 'सो जा अब!' मैंने आशु को कहा और उठ कर नीचे आ गया.बारी-बारी कर के सब को अचार चटाया और सब के सब आशु की ही तरह मुँह बना रहे थे और मुझे बहुत हँसी आ रही थी. सबसे आखिर में मैंने गोपाल भैया को अचार चटाया तो उस पर जैसे फर्क ही नहीं पड़ा, वो तो अब भी बेसुध से पड़ा था. अब मैं इससे ज्यादा कुछ कर नहीं सकता था तो उसे ऐसे ही छोड़ दिया. बाकी सब के सब नशा होने के कारन सो रहे थे, इधर मुझे भूख लग गई थी. वो तो शुक्र है की घर पर पकोड़े बने थे जिन्हें खा कर मैं अपने कमरे में आ कर सो गया.
शाम को चार बजे उठा तो पाया की घर वाले अब भी सो रहे हे. मैंने अपने लिए चाय बनाई और फिर रात के लिए खाना बनाने लगा. मैं यही सोच रहा था की हरामी गोपाल भैया ने ऐसी कौन सी भाँग खिला दी की सब के सब सो रहे हैं? पर फिर जब मुझे अपने कॉलेज वाला किस्सा याद आया तो मुझे याद आया की जब पहली बार मैंने भाँग खाई थी तो मैंने सुबह तक क्या काण्ड किया था! खेर खाना बन गया था और मेरे उठाने के बाद भी कोई नहीं उठा था. सब के सब कुनमुना रहे थे बस.एक बात तो तय थी की कल गोपाल भैया की सुताई होना तय है!
मैंने अपना खाना खाया और ऊपर आ गया, रात के १ बजे होंगे की मुझ नीचे से आवाज आई; 'सागर!' मैं फटाफट नीचे आया तो देखा ताई जी और माँ चारपाई पर सर झुकाये बैठे हे. मैंने उन्हें पानी दिया और फुसफुसाते हुए पुछा; 'ताई जी भूख लगी है?' उन्होंने हाँ में सर हिलाया तो मैं माँ और उनके लिए खाना परोस लाया. फिर मैंने पिताजी और ताऊ जी को उठाया और उन्हें भी खाना परोस कर दिया. इधर आशु भी नीचे आ गई और उसे देखते ही मैं मुस्कुराया और उसे माँ के पास बैठने को कहा. उसका खाना ले कर उसे दिया और मैं सीढ़ियों पर बैठ गया.तभी भाभी ने दरवाजा खटखटाया, क्योंकि उनके कमरे का दरवाजा मैंने बंद कर दिया था इस डर से की कहीं ताऊ जी और पिताजी उठ गए और उन्हें ऐसी आपत्तिजनक हालत में देख लिया तो! भाभी बाहर आईं और सीधा बाथरूम में घुस गई. वो वापस आईं तो उन्हें भी मैंने ही खाना परोस के दिया. सब ने फटाफट खाना खाया और कोई एक शब्द भी नहीं बोला. खाना खाने के बाद ताऊ जी अपने कमरे से बाहर आये और उन्होंने गोपाल भैया को जमीन पर पड़े हुए देखा तो उनका खून खौल गया.उन्होंने ठन्डे पानी की एक बाल्टी उठाई और पूरा का पूरा पानी उस पर उड़ेल दिया. इतना पानी अपने ऊपर पड़ते ही गोपाल भैया बुदबुदाता हुआ उठा और ताऊ जी ने उसे एक खींच कर थप्पड़ मारा. गोपाल भैया जमीन पर फिर से जा गिरा; 'हरामजादे! तेरी हिम्मत कैसे हुई सब को भाँग के लड्डू खिलाने की? वो तो सागर यहाँ था तो उसने सब को संभाल लिया वरना यहाँ कोई घुस कर क्या-क्या कर के चला जाता किसी को पता ही नहीं चलता. तुझे जरा भी अक्ल नहीं है की घर में औरतें हैं, तेरी बीवी है, बच्ची है?” पर गोपाल भैया को तो जैसे फर्क ही नहीं पड़ रहा था. मैंने भाभी को कहा की इन्हें अंदर ले कर जाओ, तो भाभी ने उन्हें सहारा दे कर उठाया और कमरे में ले गई. इधर पिताजी ताऊ जी की गर्जन सुन कर बाहर आये और मुझे इशारे से अपने पास बुलाया. मैं उनके पास गया और पिताजी का शायद सर घूम रहा था इसलिए मैंने उन्हें सहारा दे कर बैठक में बिठा दिया. सब के सब बैठक में आ कर बैठ गए और मुझसे पूछने लगे की आखिर हुआ क्या था? मैंने उन्हें सारी बात विस्तार से बता दी और अचार वाली बात पर सारे हँसने लगे. पर तभी पिताजी ने पुछा; 'तुझे कैसे पता की अचार चटाना है?' अब ये सुन कर मैं फँस गया था. पहले तो सोचा की झूठ बोल दूँ, फिर मैंने सोचा की मेरा किस्सा सुन कर सब हंस पड़ेंगे और घर का माहौल हल्का हो जायेगा इसलिए मैंने अपना किस्सा सुनाना शुरू किया.....
'कॉलेज फर्स्ट ईयर था और होली पर घर नहीं आ पाया था क्योंकि असाइनमेंट्स पूरे नहीं हुए थे. होली के दिन सुबह दोस्त लोग आ गए और मुझे अपने साथ कॉलेज ले आये जहाँ हमने खूब होली खेली! फिर दोपहर को हम वापस हॉस्टल पहुँचे और नाहा धो कर खाना खाने आ गये. आज हॉस्टल में पकोड़े बने थे जो सब ने पेट भर कर खाये. जब वापस कमरे में आये तो मेरा एक दोस्त कहीं से भाँग की गोलियाँ ले आया था. उसने सब को जबरदस्ती खाने को दी ये कह कर की ये भगवान का प्रसाद हे. अब प्रसाद को ना कैसे कहते, जब सब ने एक-एक गोली खा ली तो वो सच बोला की ये भाँग की गोली हे. हम टोटल ४ दोस्त थे, अमन, मनीष और कुणाल. कुणाल को छोड़ कर बाकी तीनों डर गए थे की अब तो हम गए, पता नहीं ये भाँग का नशा क्या करवाएगा.हम ने सुना था की भाँग का नशा बहुत गन्दा होता है और आज जब पहलीबार खाई तो डर हावी हो गया. १५ मिनट तक जब किसी ने कोई उत-पटांग हरकत नहीं की तो हम तीनों ने चैन की साँस ली! हमें लगा की किसी ने बेवकूफ बना कर कुणाल को मीठी गोलियाँ भाँग की गोलियाँ बोल कर पकड़ा दी. ये कहते हुए अमन ने हँसना शुरू किया और उसकी देखा-देखि मैं और मनीष भी हँसने लगा. कुणाल को ताव आया की हम तीनों उसे बेवकूफ कह रहे हैं तो उसने हमें चुनौती दी; 'हिम्मत है तो एक-एक और खा के दिखाओ|' हम तीनों ने भी जोश-जोश में एक-एक गोली और खा ली. और फिर से उस पर हँसने लगे. हम तीनों ये नहीं जानते थे की भाँग का असर हम पर शुरू हो चूका था. तभी तो हम हँसे जा रहे थे. उधर कुणाल बिचारा छोटे बच्चे की तरह रोने लगा था और उसे देख कर हम तीनों पेट पकड़ कर हँस रहे थे. १५ मिनट तक हँसते-हँसते पेट दर्द होने लगा था और बड़ी मुश्किल से हँसी रोकी और तब मनीष ने सब को डरा दिया ये कह कर की हमें भाँग चढ़ गई हे. अब ये सुन कर हम चारों एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे की अब हम क्या करेंगे? अमन तो इतना डर गया था की कहने लगा मुझे हॉस्पिटल ले चलो, मैं मरने वाला हु. तो कुणाल बोला की कुछ नहीं होगा थोड़ी देर सो ले ठीक हो जायेगा, पर मनीष को बेचैनी सोने नहीं दे रही थी. इधर मनीष को गर्मी लगने लगी और वो सारे कपडे उतार कर नंगा हो गया और उसने पंखा चला दिया. मुझे भी डर लगने लगा की कहीं मैं मर गया तो? इसलिए मैंने सोचा की ये हॉस्पिटल जाएँ चाहे नहीं मैं तो जा रहा हु. अभी मैं दरवाजे के पास पहुँचा ही था की कुणाल ने हँसते हुए रोक लिया और बोला; 'कहाँ जा रहा है? बड़ी हँसी आ रही थी ना तुझे? और खायेगा?' मैं उस हाथ जोड़ कर मिन्नत करने लगा की भाई माफ़ कर दे, आज के बाद कभी नहीं खाऊँगा ये भाँग का गोला! मैं जैसे-तैसे बाहर आया और घडी देखि ये सोच कर की कहीं हॉस्पिटल बंद तो नहीं हो गया? उस वक़्त बजे थे रात के २, यानी हम चारों शाम के ४ बजे से रात के दो बजे तक ये ड्रामा कर रहे थे. अब हमारा कमरा था चौथी मंजिल पर, इसलिए मैं हमारे कमरे के दरवाजे के सामने लिफ्ट और सीढ़ियों के बीच खड़ा हो कर सोचने लगा की नीचे जाऊँ तो जाऊँ कैसे? अगर लिफ्ट से गया और दरवाजा नहीं खुला तो मैं तो अंदर मर जाऊँगा? और सीढ़ियों से गया तो पता नहीं कितने दिन लगे नीचे उतरने में? मैं खड़ा-खड़ा यही सोच रहा था की हमारे हॉस्टल के वार्डन का लड़का आ गया और मुझे ऐसे सोचते हुए देख कर मुझे झिंझोड़ते हुए पुछा की मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? मैंने उसे बताया की मैं हिसाब लगा रहा हूँ की सिढीयोंसे जाना सही है या लिफ्ट से? ये सुन कर वो बुरी तरह हँसने लगा. क्योंकि वहाँ लिफ्ट थी ही नहीं और जिसे मैं लिफ्ट समझ रहा था वो एक पुरानी शाफ़्ट थी जिसमें बाथरूम की पाइपें लगी थी. पर मैं अब भी नहीं समझ पाया था की हुआ क्या है और ये क्यों हँस रहा है? वो मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे कमरे में ले आया और अंदर का सीन देख कर हैरान हो गया.मनीष पूरा नंगा था और उसने अपने गले में तौलिया बाँध रखा था जैसे की वो सुपरमैन हो और एक पलंग से दूसरे पर कूद रहा था. अमन बिचारा एक कोने में बैठा अपना सर दिवार में मार रहा था और बुदबुदाए जा रहा था; 'अब नहीं खाऊँगा....अब नहीं खाऊँगा....अब नहीं खाऊँगा...' कुणाल फर्श पर उल्टा पड़ा था और चूँकि उसे मछलियां बहुत पसंद थी तो वो खुद को मछली समझ कर फड़फड़ा रहा था और मैं रात के २ बजे से सुबह के ६ बजे तक बाहर खड़ा हो कर हिसाब लगा रहा था की सीढ़यों से जाऊँ या फिर लिफ्ट से!
उसी लड़के ने एक-एक कर हमें आम चटाया और हमारा नशा उतारा.इसलिए उस दिन से कान पकडे की कभी भाँग नहीं खाऊँग.|'
मेरी पूरी राम-कहानी सुन कर सारे घर वाले खूब हँसे और शुक्र है की किसी ने मुझे भाँग खाने के लिए डाँटा नहीं! बात करते-करते सुबह के चार बज गए थे इसलिए ताऊ जी ने कहा की सब कुछ देर आराम कर लें पर मुझे तो सुबह ही निकलना था. पर ताऊ जी ने कहा की आराम कर लो और ७ बजे उठ जाना, इसलिए सारे लोग सो गए और सुबह सात बजे जब मैं उठा तो ताई जी, भाभी और माँ रसोई में नाश्ता बना रहे थे. फ्रेश हो कर नाश्ता किया और ताई जी ने रास्ते के लिए भी बाँध दिया की भूख लगे तो खा लेना. शहर हम ११ बजे पहुँचे और पहले आशु को कॉलेज छोड़ मैं ऑफिस पहुंचा. सर ने थोड़ा डाँटा ... फिर जाने दिया क्योंकि आधा दिन लेट था मैं!
दिन गुजरते गए और आशु के एक्झाम आ गए और उसने फिर से क्लास में टॉप किया! ये ख़ुशी सेलिब्रेट करना तो बनता था. तो रविवार को मैं उसे लंच पर ले जाना चाहता था पर उसके कॉलेज के दोस्त भी साथ हो लिए और सब ने कॉन्ट्री कर के लंच किया.कुछ महीने और बीते और आशु का जन्मदिन आया, मैंने उसे पहले ही बता दिया था की एक दिन पहले ही मैं उसे लेने आऊंगा पर आशु कहने लगी की उसके असाइनमेंट्स पेंडिंग हैं और अपने दोस्तों के साथ उसने कुछ क्लास बंक की थीं तो वो भी कवर करना है उसे! तो मेरा प्लान फुस्स हो गया! पर वो बोली की शाम को उसके सारे दोस्त उसके पीछे पड़े हैं की उन्हें ट्रीट चाहिए तो हम शाम को मिलते हे. अब कहाँ तो मैं सोच रहा था की उसका बर्थडे हम अकेले सेलिब्रेट कर्नेगे और कहाँ उसके दोस्त बीच में आ गये. पर मैं ये सोच कर चुप रहा की कॉलेज के दोस्त कभी-कभी करीब होते हैं और मुझे आशु को थोड़ी आजादी देनी चाहिए वरना उसे लगेगा की मैं पजेसिव हो रहा हूँ! अब मैं भी इस दौर से गुजरा था इसलिए दिमाग का इस्तेमाल किया और आशु के बर्थडे को खराब नहीं किया, बल्कि उसी जोश और उमंग से मनाया जैसे मनाना चाहिए. आशु के चेहरे की ख़ुशी सब कुछ बयान कर रही थी और मेरे लिए वही काफी था.
दिन बीतने लगे और आशु के कॉलेज के दोस्तों ने कोई ट्रिप प्लान कर लिया, मुझे लगा की शायद मुझे भी जाना है पर मुझे तो इनवाईट ही नहीं किया गया क्योंकि वैसे भी मैं कॉलेज वाला नहीं था. आशु ने मुझसे मिन्नत करते हुए जाने की इज्जाजत मांगी तो मैंने उसे मना नहीं किया. इस ट्रिप पर बनने वाली यादें उसे उम्र भर याद रहेगी. जितने दिन वो नहीं थी उतने दिन मैं रोज उसे सुबह-शाम फ़ोन करता और उसका हाल-चाल लेता रहता.जब वो वापस आई तो बहुत खुश थी और मुझे उसने ट्रिप की सारी पिक्चर दिखाईं और वो रविवार मेरा बस आशु की ट्रिप की बातें सुनते हुए निकला. दिन बीत रहे थे और काम की वजह से कई बार मुझे शनिवार को बरेली जाना पड़ता और इसलिए हम शनिवार को मिल नहीं पाते पर रविवार मेरा सिर्फ और सिर्फ आशु के लिए था. उस दिन वो आती तो मेरे लिए खाना बनाती और कॉलेज की सारी बातें बताती और कई बार तो हम रविवार को पढ़ाई भी करते!
दिन बीते...महीने बीते...और सब कुछ सही चल रहा था...... कम से कम मुझे तो यही लग रहा था! मेरे अकाउंट में लाख रुपये कॅश और बाकी के ४ लाख की मैंने एफ डी करा दी थी जो अगले साल मार्च में म्याचूअर होने वाली थी. इधर मैंने बैंगलोर में लोकैलिटी फाइनल कर ली थी. आशु के डाक्यूमेंट्स जैसे पॅन कार्ड, आधार कार्ड और इलेक्शन कार्ड सब मेरे ही एड्रेस से तैयार हो गए थे. आशु का बैंक अकाउंट भी खोला जा चूका था जिसके बारे में मेरे और आशु के आलावा किसी को कोई भनक नहीं थी. हमारे गायब होते ही सब मेरा अकाउंट चेक करते पर किसी को तो पता नहीं की आशु का भी कोई बैंक अकाउंट है! मुझे बस भागने से कुछ दिन पहले अपने अकाउंट से सारे पैसे निकाल कर आशु के बैंक में कॅश जमा करने थे. बस एक ही काम बचा था वो था ट्रैन की टिकट, जिसे मैंने पहले बुक नहीं कर सकता था. कारन ये की जिस दिन हम भागते उस दिन के चार्ट में हमारा नाम होता और सब को पता चल जाता की ये दोनों कहाँ भागे हे. इसलिए जिस दिन भागना था उससे एक दिन पहले मुझे तत्काल टिकट लेनी थी. वो भी कुछ इस तरह की लखनऊ से वाराणसी पहुँचने के बाद आधे घंटे के अंदर ही दूसरी ट्रैन चाहिए थी जो हमें मुंबई उतारती और वहाँ से फिर आधे घंटे में दूसरी टिकट जो बैंगलोर छोड़ती! मैंने एक बैक-आप प्लान भी बना रखा था की अगर ट्रैन लेट हो गई तो हमें बस लेनी होगी. लखनऊ में कहाँ से ट्रैन पकड़नी थी वी जगह भी तय थी. स्टेशन से ट्रैन पकड़ना खतरनाक था क्योंकि सब सबसे पहले हमें ढूंढते हुए वहीँ आते.इसलिए मैंने रेलवे फाटक देख रखा था. इस फाटक पर हमेशा जाम रहता था और हरबार ट्रैन यहाँ स्लो होती और फिर करीब मिनट भर बाद ही आगे जाती थी. किसी भी हालत में कोई भी हमें ढूंढता हुआ यहाँ नहीं आ सकता था! मतलब प्लान बिलकुल सेट था और मैंने उसमें कोई भी लूपहोल नहीं छोड़ा था!!!!
खेर ये तो रही प्लान की बात, पर अब तो मेरा जन्मदिन आ ने वाला था और क्योंकि इस बार जन्मदिन वीकडे पर पड़ना था तो मैंने पहले ही छुट्टी ले ली थी. प्लान तो था की आशु को में एक दिन पहले ही उसके हॉस्टल से ले आऊंगा पर जब उसने बताया की उसके असाइनमेंट्स पेंडिंग हैं और कुछ लेक्चर भी हैं तो मैंने उससे कहा की अगले दिन वो हाल्फ डे में इधर भाग आये.
दो तारिख आई.मेरा जन्मदिन अगले दिन था और घडी में रात के साढ़े बारह बजने को आये थे पर अभी तक आशु ने मुझे कॉल करके विश नहीं किया था. हर साल वो ठीक बारह बज कर एक मिनट पर मुझे काल किया करती थी पर इस बार इतनी लेट कैसे हो गई?! फिर मैंने सोचा की शायद कॉलेज से थक कर आयी होगी और सो गई होगी, कोई बात नहीं कल विश कर देगी ये सोचते हुए मैंने फ़ोन को तकिये के नीचे रख दिया और तभी मेरे फ़ोन पर बर्थडे के विश वाला मैसेज आया जिसे देख कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई और मैंने जवाब में उसे ढेर सारी चुम्मियों वाली स्माइली के साथ थैंक यू का मैसेज भेजा पर उसके बाद वो ऑफलाइन हो गई. मैंने बात को दरगुज़र किया और मुस्कुराते हुए सो गया.
सुबह से ऑफिस के सभी दोस्तों के मैसेज आने लगे थे, घर से भी फ़ोन पर बधाइयाँ आने लगी थी. आशु के आने तक मैं बस यही सोच रहा था की घर से भागने से पहले ये मेरा आखरी जन्मदिन होगा और फिर अगले जन्मदिन पर मैं और आशु एक साथ बैंगलोर में अपनी नई जिंदगी शुरू कर रहे होंगे.मोहित और प्रफुल ने इस बार जरूर कहा था की पार्टी करते हैं पर मैंने उन्हें ये कह कर टाल दिया की अगर आशु को पार्टी दिए बिना तुम्हारे साथ पार्टी की तो वो नराज हो जायेगी. दोनों ने मिल कर मेरा बड़ा मजाक उड़ाया की देखो शादी से पहले ये हाल है तो शादी के बाद क्या होगा?!
मैं फ्रेश हो कर नाश्ता बना रहा था की तभी आशु का मैसेज आया की वो बारह बजे आएगी और मैं इस ख़ुशी में अपने फोन पर गाने लगा कर कुछ ख़ास बनाने की तैयारी करने लगा और नाचता हुआ इधर से उधर घर में घूम रहा था. साढ़े बारह बजे दरवाजे पर दस्तक हुई, तो मैंने मुस्कुराते हुए दरवाजा खोला और आशु को प्यार से घर के अंदर आने का निमंत्रण दिया. आशु भी अंदर आ गई और उसने मेरे फ़ोन में बज रहे गानों को एकदम से बंद कर दिया. मैंने आगे बढ़ कर उसे गले लगाना चाहा तो उसने अपने हाथ को मेरी छाती पर रख के रोक दिया. मुझे उसका ये व्यवहार बड़ा अजीब लगा पर जब उसके चेहरे पर नजर गई तो वो बहुत सीरियस थी.
'आपसे कुछ बात करनी हे.' इतना कह कर उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ कर मुझे पलंग पर बिठाते हुए कहा. वो ठीक मेरे सामने खड़ी हो गई और मेरी आँखों में देखते हुए बोली;
आशु: मैंने बहुत सोचा… ह....हमारा ये....घर से भागने .....का प्लान सही नहीं!
आशु ने बहुत डरते-डरते कहा, पहले तो मुझे बहुत गुस्सा आया पर फिर मुझे एहसास हुआ की जब हम कोई खतरनाक कदम उठाते हैं तो दिल में एक डर होता है और मुझे आशु के इसी डर का निवारण करना होगा.
मैं: अच्छा पहले ये बता की तुझे क्यों लगता है की ये फैसला गलत है? (मैंने बहुत प्यार से पूछा.)
आशु: कोई स्टेबल लाइफ नहीं होगी हमारी.... दरबदर की ठोकरें खाना... और फिर हर पल डर के साये में जीना....
मैं: जान! थोड़ा स्ट्रगल है पर वो हम मिल कर एक साथ करेंगे! लाइफ में हर इंसान को थोड़ा-बहुत स्ट्रगल तो करना ही पड़ता है ना? फिर तु अकेली नहीं हो, मैं हूँ ना तुम्हारे साथ.
आशु: पर मुझसे ये स्ट्रगल नहीं होगा! एक महीने की जॉब में मेरा मन ऊब गया और मैं ही जानती हूँ की ये पार्ट टाइम जॉब मैंने कैसे किया, तो फुल टाइम जॉब कैसे करुँगी?
मैं: तुझे कोई जॉब करने की जरुरत नहीं हे. मैंने तुम्हें जब शादी के लिए उस दिन प्रोपोज़ किया था. तब तुमसे वादा किया था की मैं तुझे पलकों पर बिठा कर रखूँगा, कभी कोई तकलीफ नहीं होने दूँगा! ये देख ४ लाख की एफ डी और आज की डेट में मेरे पास १ लाख रुपया कॅश में है, हमारे भागने तक अकाउंट में कम से कम ७ लाख होंगे! इतने पैसों से हम नै जिंदगी शुरू कर सकते हैं!
मैंने आशु को एफ डी की रिसीप्ट और बैंक की पास बुक दिखाई पर उसे तसल्ली अब भी नहीं हुई थी.
मैं: अच्छा ये देख, बैंगलोर में हमें किस लोकैलिटी में रहना है, वहाँ तक कैसे पहुँचना है और जॉब ऑफर्स सब लिखे हैं इसमें.
ये कहते हुए मैंने आशु को अपनी डायरी दिखाई जिसमें मैंने सब कुछ फाइनल कर के रेडी कर रखा था. पर मुझे ये जानकर हैरानी हुई की आशु का डायरी देखने में जरा भी इंटरेस्ट नहीं था. मतलब की बात कुछ और थी और अभी तक वो बस बहाने बना रही थी.
मैं: देख आशु, तो कुछ छुपा रही है मुझसे.यूँ बहाने मत बना और सच-सच बता की बात क्या है? (मैंने आशु के चेहरे को अपने दोनों हाथों में थामते हुए कहा.)
आशु की नजरें झुक गई और उसने सच बोलने में पूरी शक्ति लगा दी;
आशु: मैं किसी और को चाहने लगी हूँ?
अब ये सुनते ही मेरा खून खोल गया और मैंने आशु के चेहरे पर से अपने हाथ हटाए और एक जोरदार तमाचा उसके बाएँ गाल पर मारा.
मैं: कौन है वो हरामी?
मैंने गरजते हुए कहा, पर आशु डर के मारे सर झुकाये रोने लगी और कुछ नहीं बोली. मैंने आशु के दोनों कन्धों को पकड़ कर उसे झिंझोड़ा और उससे दुबारा पुछा;
मैं: बोल कौन है वो?
आशु सहम गई और डरते हुए बोली;
आशु: र....रक्षित
ये नाम सुन कर मैंने उसके कन्धों को अपनी पकड़ से आजाद कर दिया और सर झुका कर बैठ गया.मेरा मन मान ही नहीं रहा था की ये सब हो रहा है! तभी आशु ने हिम्मत बटोरी और बोली;
आशु: वो भी मुझसे बहुत प्यार करता है और शादी करना चाहता है!
ये सुन कर मैंने आशु की आँखों में देखा तो मुझे उसकी आँखों में वही आत्मविश्वास नजर आया जो उस दिन दिखा था जब आशु ने मुझसे अपने प्यार का इजहार किया था. मेरी आँखों में आँसू आ गए थे क्योंकि मेरे सारे सपने चकना चूर हो चुका था. और रह-रह कर मेरे दिल में गुस्सा भरने लगा था. ऐसा गुस्सा जो कभी भी फुट सकता था. पर आशु इस बात से अनजान और मेरी आँखों में आँसू देख उसमें हिम्मत आने लगी थी. आज तो जैसे उसने इस रिश्ते को हमेशा से खत्म कर देने की कसम खा ली थी इसलिए वो आगे बोली; 'कॉलेज ट्रिप पर हम बहुत नजदीक आ गए! उसने मुझसे ना केवल अपने प्यार का इजहार किया बल्कि मुझे शादी के लिए भी प्रोपोज़ किया! मैं उसे मना नहीं कर पाई क्योंकि वो मुझे एक स्टेबल लाइफ दे सकता है! फिर आप ये भी तो देखो की आपकी और मेरी उम्र में कितना फासला है?!
आशु को एहसास नहीं हुआ की जोश-जोश में वो असली सच बोल गई जिसे सुनते ही मेरा गुस्सा फुट पड़ा और मैंने एक जोरदार झापड़ उसके गाल पर मारा और उसे जमीन पर धकेल दिया. मैं बहुत जोर से उस पर चिल्लाया; 'ये था ना तेरा प्यार? तुझे सिर्फ ऐशों-आराम की जिंदगी जीनी थी ना? मन भर गया न तेरा मुझसे? तो साफ़-साफ़ बोल देती ये उम्र का फासला कहाँ से आ गया? ये तब याद नहीं आया था जब मुझसे पहली बार अपने प्यार का इज़हार किया था तूने?हरामी! मैं ही बावला था जो तेरे चक्कर में पड़ गया.” आशु का बायाँ हाथ उसके गाल पर था और वो सर झुकाये वहीँ खड़ी थी. पर उसे देख कर मेरा गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था. मैंने एक आखरी बार कोशिश की और अपने दोनों हाथों से उसके चेहरे को थामा, उसकी आँखों में झांकते हुए कहा: 'प्लीज बोल दे तू मजाक कर रही थी? प्लीज .... प्लीज .... मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हु.' पर उसकी आँखों में आँसूँ बह निकले थे और उसकी आंखें सब सच बता रहीं थी की अब तक जिस दिल पर मेरा नाम लिखा था उसे तो वो कब का अपने जिस्म से निकाल कर कचरे में डाल चुकी हे. 'तू...तू जानती है वो लड़का किसका बेटा है? और उसके बाप ने तेरे.....' मेरे आगे कहने से पहले ही आशु ने हाँ में सर हिलाया और अपने आँसूँ पोछते हुए बोली; 'जानती हूँ... उसके पापा ने पंचायत में मेरी माँ को मौत की सजा सुनाई थी.'
'और ये जानते हुए भी तू उससे प्यार करती है?'
'गलती मेरी माँ की थी. उसने शादीशुदा होते हुए भी किसी और से प्यार किया.' आशु ने सर झुकाये हुए कहा, जैसे की उसे अपनी माँ के किये पर शर्म आ रही थी.
'गलती? और जो तूने की वो क्या थी?' मेरा मतलब हम दोनों के प्यार से था.
'उसी गलती को तो सुधारना चाहती हु.' उसका जवाब सुनते ही मेरे तन बदन में आग लग गई और मैंने उसके गाल पर एक और तमाचा जड़ दिया.
'तो ये प्यार तेरे लिए गलती था? उस टाइम तो तू मरने के लिए तैयार थी और अब तुझे वही प्यार गलती लग रहा है?' आशु फिर चुप हो गई थी. अब मेरे अंदर कुछ भी नहीं बचा था. मैं हार मानते हुए अपने घुटनों के बल आ गिरा और अपने दोनों हाथों से अपने सर को पकड़ा. मेरी आँखों से खून के आँसूँ बह निकले थे; 'क्यों? .... क्यों किया तूने ऐसा मेरे साथ? क्यों मुझ जैसे पत्थर दिल को प्यार करने पर मजबूर किया और जब तेरा दिल भर गया तो मुझे छोड़ दिया. मैंने मना किया था...कहा था ....पर...' मैंने फूटफूटकर रोते हुए कहा.
आशु खड़ी होकर मेरे पास आई मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोली; 'हम अच्छे दोस्त तो रह सकते हैं?' ये सुनते ही मैंने उसका हाथ झिड़क दिया; 'फक यू अँड फक योवर दोस्ती! नाऊ गेट दीं फक आऊट ऑफ माई हाऊस! अँड आई कर्स यू…. आई कर्स यू दॅट यू विल बी नेवर बी हॅपी… यू विल सफर… सो ब्याड दॅट एवरी डे… एवरी फकिंग डे विल् बी लाईक हेल फॉर यू! यू विल बिग फॉर दिस मिजरी टू एंड बट इट विल गेट वॉर्स ….वॉर्स टील एवरीथिंग यू लव इज लॉस्ट फॉरएवर!” इतना सुन के आशु रोती-बिलखती हुई दरवाजा जोर से बंद कर के चली गई.
उसके जाने के बाद तो जैसे मेरे जिस्म में अब जान ही नहीं बची थी और मैं निढाल होकर उसी जमीन पर गिर पड़ा और रोता रहा. रह-रह कर आशु की सारी बातें याद आने लगी जिससे दिमाग में और गुस्सा आता और गुस्से में आ कर मैं जमीन में मुक्के मारने लगता पर मेरे दिल का दर्द बढ़ता ही जा रहा था. शाम ५ बजे तक मैं जमीन पर पड़ा हुआ यूँ ही रोता रहा, पर जब फिर भी दिल का दर्द कम नहीं हुआ तो मैं उठा और अपने दिल के दर्द को कम करने के लिए दारु लेने निकल पडा.
जेब में जितने पैसे थे सबकी दारु खरीद ली और घर लौट आया. जैसे ही दारु की बोतल खोलने लगा तो वो दिन याद आया जब आशु से वादा किया था की मैं कभी शराब को हाथ नहीं लगाऊँगा. जैसे ही आशु की याद आई अंदर गुस्सा भरने लगा और जोश में आ कर मैंने बोतल सीधा मुँह से लगाईं और एक बड़ा घूँट भरा, जैसे ही घूँट गले से निकला तो गला जलने लगा. पर ये जलन उस दर्द से तो कम थी जो दिल में हो रहा था. अगला घूँट भरा तो वो दिन याद आने लगा जब आशु से मैंने अपने दिल की बात की कही, वो हमारा रोज फ़ोन पर बात करना ... उसका बार-बार मेरी बाहों में सिमट जाना.... उसका बार-बार मुझे किस करना और बेकाबू हो जाना.... वो हर एक पल जो मैंने उसके साथ बिताया था उसे याद कर के मैं पूरी की पूरी बोतल गटक गया और फिर बेसुध वहीँ जमीन पर लेट गया.मुझे कोई होश-खबर नहीं थी की मैं कहाँ पड़ा हूँ, सुबह कब हुई पता ही नहीं चला. सुबह के ग्यारह बजे मेरे फ़ोन की घंटी ताबड़तोड़ बजने लगी और मैं कुनमुनाता हुआ उठा और बिना देखे ही फ़ोन अपने कान पर लगा लिया;
मैं: हम्म्म...
बॉस: कहाँ पर है?
मैं: ममम...
बॉस: ग्यारह बज रहे हैं! तू अभी तक घर पर पड़ा है? शर्मा जी की फाइल कौन देगा? जल्दी ऑफिस आ!
ये सुनकर मुझे थोड़ा होश आया पर सर दर्द से फटा जा रहा था और बॉस की जोरदार आवाज कानों में दर्द करने लगी थी. इसलिए मैंने उनका फ़ोन ऐसे ही जमीन पर रख दिया और अपनी ताक़त बटोर के उठने को हुआ तो लड़खड़ा गया.फिर मैंने दुबारा उठने की कोशिश नहीं की और फिर से सो गया.करीब १ बजे फिर से बॉस का फ़ोन आया पर मैं ने फ़ोन नहीं उठाया और फ़ोन ही बंद कर दिया. उस समय मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था बस मुझे नशे में सोना था और ये भी होश नहीं था की मैं फर्श पर ही नींद में पेशाब रहा हु. ५ बजे आँख खुली और मैं उठा, कमर से नीचे के सारे कपडे मेरे ही पेशाब से गीले थे. मैं उठा और जैसे-तैसे खड़ा हुआ और बाथरूम में गया और अपने सारे कपडे उतार दिए और बाल्टी में फेंक दिए और नंगा ही कमरे में आया. अलमारी की तरफ गया और उसमें से एक कच्छा निकाला और एक बनियान निकाली और उसे पहन के किचन से वाइपर उठा के फर्श पर पड़े अपने पिशाब को बाथरूम की तरफ खींच दिया और वाइपर वहीँ पटक दिया. कमरे की खिड़कियाँ खोली और तभी याद आया की आशु वहीँ खड़ी हो कर बहार झाँका करती थी. फिर से मन में गुस्सा भरने लगा और शराब की दूसरी बोतल निकाली पर इससे पहले की उसे खोलता बाजु वाले अंकल ने घंटी बजाई. मैंने दरवाजा खोला तो उन्होंने मुझसे अपने घर की चाभी माँगी और मेरी हालत देख कर समझ गए की मैंने बहुत पी रखी हे. उनहोने कुछ नहीं कहा बस 'एन्जॉय' कहते हुए निकल गये. मैंने दरवाजा ऐसे ही भेड़ दिया पर दरवाजा लॉक नहीं हुआ.
मैं आकर उसी खिड़की के सामने जमीन पर बैठ गया, पीठ दिवार से लगा कर दारु की बोतल खोली और सीधा ही उसे अपने होठों से लगाया और एक बड़ा से घूँट पी गया.आज मुझे उतनी जलन नहीं हुई जितनी कल हुई थी. पास ही फ़ोन पड़ा था उसे उठाया, फिर याद आया की सुबह बॉस ने कॉल किया था और फिर फ़ोन वापस स्विच ऑफ ही छोड़ दिया. अगला घूँट पीते ही दरवाजा खुला और मेरे ऑफिस का कलिग मोहित अंदर आया और मुझे जमीन पर बैठे दारु पीते देख बोला; 'अबे साले! बॉस की वहाँ जली हुई है तेरी वजह से और तू यहाँ दारु पी रहा है?' मैंने उसकी तरफ देखा पर बोला कुछ नहीं.बस दारु का एक और घूँट पिया.'अबे दिमाग ख़राब हो गया है क्या तेरा?' उसने मुझे झिंझोड़ते हुए कहा पर मैं अब भी कुछ नहीं बोल रहा था बस एक-एक घूँट कर के दारु पिए जा रहा था. मोहित मुझे बहुत अच्छे से जानता था की मैं कभी इतनी नहीं पीता, हमेशा लिमिट पि है मैंने और आज इस तरह मुझे बिना रुके पीता हुआ देख वो भी परेशान होगया.मेरे हाथ से बोतल छीन ली और बोला; 'अबे रुक जा! हरामी पिए जा रहा है, बता तो सही क्या हुआ?' मैंने अब भी उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया बस उससे बोतल लेने लगा तो उसने बोतल नहीं दी और दूर खिड़की के पास खड़ा हो कर पूछने लगा. जब मैं कुछ नहीं बोला तो वो समझ गया की ये दिल का मामला हे. इधर मैं भी ढीठ था तो मैं उठ के उससे जबरदस्ती बोतल छीन के ले आया और वापस नीचे बैठ के पीने लगा. 'यार पागल मत बन! उस लड़की के चक़्कर में ऐसा मत कर! बीमार पढ़ जायेगा.'उसने फिर से मेरे हाथ से बोतल खींचनी चाही तो मैं बुदबुदाते हुए बोला: 'मरूँगा तो नहीं ना?'
'पागल हो गया है तू?' उसने गुस्से से मुझे डाँटते हुए कहा. 'ये सब छोड़... ये बता ... माल है तेरे पास?' मैंने मोहित से पूछा तो वो गुस्सा करने लगा. 'यार है तो दे दे वरना मैं बहार से ले आता हु.' ये कह कर मैं उठा तो मोहित ने मुझे संभाला. वो जानता था ऐसी हालत में मैं बाहर गया तो पक्का कुछ न कुछ काण्ड हो जायेगा. 'ये ले' इतना कह कर उसने मुझे एक गांजे की पुड़िया दी और मैंने उसी से सिगरेट माँगी और लग गया उसे भरने.पहला कश लेते ही मैं आँखें बंद कर के सर दिवार से लगा कर बैठ गया.'बॉस को कह दियो की मैं तुझे घर पर नहीं मिला.' मैंने आँखें बंद किये हुए ही कहा.
'अबे तेरी सटक गई है क्या? साले एक लड़की के चक्कर में आ कर कुत्ते जैसे हालत कर ली तूने अपनी! हरामी पूरे घर से बदबू आ रही है और तू चढ्ढी में बैठा शराब पिए जा रहा है? अबे होश में आ साले गधे?!' वो सब गुस्से में कहता रहा पर मेरे कान तो ये सब सुनना ही नहीं चाहते थे, वो तो बस उसी की आवाज सुन्ना चाहते थे जिसने मेरा दिल तोडा था. अगर अभी वो आ कर एक बार मुझे आई लव यू कह दे तो मैं उसे फिरसे सीने से लगा लूँगा और उसके सारे गुनाह माफ़ कर दूँगा, पर नहीं.... उसे तो अब कोई और प्यारा था! जब मोहित का भाषण खत्म हुआ तो उसने मेरे हाथ से सिगरेट ले ली और कश लेने लगा; 'तू साले....छोड़ हरामी! अच्छा ये बता कुछ खाया तूने?' मैंने अभी भी उसकी बात का जवाब नहीं दिया और वो दिन याद किया जब वो मेरे कॉल न करने से नाराज हो जाया करती थी और मैं उसे कॉल कर के पूछता था की कुछ खाया?' ये याद करते हुए मेरी आँख से आँसूँ बह निकले, उन्हें देखते ही मोहित को मेरे दिल के दर्द का एहसास हुआ और उसने मेरे कंधे पर थपथपाया और मुझे ढांढस बँधाने लगा.मैंने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया और बोला; 'थैंक्स भाई!!!' फिर अपने आँसूँ पोछे; 'अब तू घर जा, भाभी चिंता कर रही होंगी.कल मैं ऑफिस आ जाऊंगा.' उसे मेरी बात पर भरोसा हो गया पर जाते-जाते भी वो मेरे लिए खाना आर्डर कर गया.
अगली सुबह उठा और सबसे पहले माल फूँका! फिर मुँह धोया और अपनी लाश को ढोता हुआ ऑफिस आया. मुझे देखते ही बॉस ने इतना सुनाया की पूछो मत पर मैंने उसकी किसी बात का जवाब नहीं दिया. जवाब देता भी कैसे गांजे के नशे से मेरा होश गायब था और मैं बस सर झुकाये सब सुनने का दिखावा कर रहा था. जब उसका गुस्सा हो गया तो वो अपने केबिन में चला गया और मैं अपने टेबल पर आ कर बैठ गया.मोहित मेरे पास आया और मेरे कंधे पर हाथ रखा, जब मैंने सर उठाया तो मेरी आँखों की लाली देख कर वो समझ गया की मैंने गांजा पी रखा है और वो हँस दिया. उसे हँसता देख मेरी भी हँसी निकल गई. खेर इसी तरह दिन निकलने लगे, रोज बॉस की गालियाँ सुनना और फिर घर आकर दारु पीना और सो जाना. हर शुक्रवार घर से फ़ोन आता की मैं आशु को ले कर घर आ जाऊँ पर मैं कोई न कोई बहाना बना के बात टाल देता.
पूरा एक महीना निकल गया और अब हालातों ने मुझे एक मुश्किल दोराहे पर ला कर खड़ा कर दिया. फ़ोन बजा जब देखा तो पिताजी का नंबर था और उन्होंने मुझे और आशु को कल घर बुलाया था. आशु की शादी के लिए मंत्री साहब के लड़के का रिश्ता आया था. ये सुन कर खून तो बहुत उबला पर मैं कुछ कह नहीं सका. 'आप आशु.............अश्विनी के हॉस्टल फोन कर दो वो मुझे कॉल कर लेगी.' इतना कह कर मैंने कॉल काट दिया. मैं ऑफिस की छत पर चला गया और सिगरेट जला कर फूँकता रहा और ये सोचता रहा की कल कैसे उस बेवफा की शक्ल बर्दाश्त करूँगा! रात को अश्विनी का कॉल आया और उसका नंबर स्क्रीन पर फ़्लैश होते ही गुस्सा बाहर आ गया.पर मुझे अपना गुस्सा थोड़ा काबू करना था; 'कल सुबह दस बजे बस स्टैंड|' इतना कह कर मैंने फ़ोन काट दिया. उस रात २ बजे तक मैं पीता रहा और मन ही मन उसे कोसता रहा और सुबह मेरी आँख ही नहीं खुली. सुबह १०:३० बजे अश्विनी के धड़ाधड़ कॉल आये तब नींद खुली पर आँखें अब भी नहीं खुल रही थी.मैंने बिना देखे ही फ़ोन अपने कान पर लगा दिया; 'आप कहाँ हो?' ये जानी पहचानी आवाज सुन कर आँख खुली और याद आया की मुझे तो दस बजे बस स्टैंड पहुँचना था. 'आ रहा हूँ!' इतना कह कर मैंने फोन काटा और बिना मुँह धोये ही निकल गया.बाल बिखरे हुए, दाढ़ी बढ़ी हुई और जिस्म से ही दारु की तेज महक आ रही थी. जब मैं बस स्टैंड पहुँचा तो मुझे आशु इंतजार करती हुई दिखी, आज पूरे एक महीने बाद देख रहा था और मन में जिस प्यार को मैं दफना चूका था वो अब उभर आया था. मैंने जेब से फ्लास्क निकला और दारु का एक घूँट पिया और फिर अश्विनी की तरफ चलने लगा. अश्विनी की नजर जब मुझ पर पड़ी तो वो आँखें फाड़े बस मुझे ही देखे जा रही थी. आज तक उसने मुझे जब भी देखा था तो क्लीन शेवन और वेल ड्रेस देखा था और आज मुझे इस कदर देख उसका अचरज करना लाजमी था. उसके पास आ कर मैं रुका और जेब में हाथ डाल कर सिगरेट निकाली और जला कर उसका धुआँ उसके मुँह पर फूँका! वो थोड़ा खांसते हुए बोली; 'आपने तो कसम खाई थी की आप कभी दारु और सिगरेट को हाथ नहीं लगाओगे?'
'तुमने भी तो कसम खाई थी की मेरा साथ कभी नहीं छोड़ोगी?! बट हिअर वी आर!' ये कह कर मैंने उसे ताना मारा और फिर नजरें इधर-उधर घुमाने लगा. मैं टिकट काउंटर पर पहुँचा तो पता चला की आखरी बस जा चुकी है जो शायद अश्विनी भी जानती थी. बस एक लेडीज स्पेशल बस थी जो अभी आने वाली थी. मैंने मन ही मन सोचा की इसे अकेले ही भेज देता हु. इसलिए मैं टहलता हुआ वापस उसके पास आया; 'लेडीज स्पेशल बस आने वाली है, उसमें चली जा! मैं घर फोन कर देता हूँ कोई आ कर ले जाएगा.'
'अकेले...पर ...मैं तो....' वो नजरें झुकाये डरते हुए बोलने लगी.
'तो बुला ले अपने 'रक्षित' को! वो छोड़ देगा तुझे गाँव.' मेरा फिर से ताना सुन कर वो चुप हो गई और तभी मुझे फैजल नजर आया. ये फैजल उन्ही रहीम भैया का छोटा भाई था और वो मुझे अच्छे से जानता था. उसने मुझे देखते ही हाथ दिखा कर रुकने को कहा और मेरे पास ही बाइक दौड़ाता हुआ आ गया.
फैजल: अरे साब! आप यहाँ कैसे?
मैं: बस गाँव जा रहा था. पर बस निकल गई.
फैजल: अरे तो क्या हुआ साब, ये रही बस मैं भी उसी रास्ते जा रहा हु.
फैजल एक प्राइवेट बस का कंडक्टर था और अपने भाई की ही तरह मेरी बहुत इज्जत करता था. अश्विनी ने हम दोनों की सारी बातें सुन ली थी और वो थोड़ा हैरान भी थी की मैं कैसे फैजल को जानता था. मैंने उसे बैठने का इशारा किया और खुद बाहर ही रुक गया और दूकान से एक परफ्यूम की बोतल ली और एक काला चस्मा.घर पर कोई नहीं जानता था की मैं दारु पीता हूँ और इस हालत में घर जाता तो काण्ड होना तय था. मैंने परफूम अच्छे से लगाया और फैजल से माल माँगा उसने भी मुस्कुराते हुए अपनी भरी हुई सिगरेट मुझे दे दी और बदले में मैंने उसे पैसे दे दिये. बस के पीछे खड़ा मैं चुप-चाप सिगरेट पीता रहा और जब बस भर गई तो मैं बस में चढ़ गया.आशु खिडक़ीवाली सीट पर बैठी थी और उसकी साथ वाली सीट खाली थी पर मैं वहाँ नहीं बैठा बल्कि लास्ट वाली सीट पर पहुँच गया जो अभी भी खाली थी. मैंने उस पर पाँव पसार के लेट गया और सोने लगा. गांजे ने दिमाग तो पहले ही सन्न कर दिया था. एक बजा होगा और मुझे पेशाब आ रहा था तो मैं उठ कर बैठ गया.बस रुकने वाली थी और मैं ने उठ कर देखा तो अब भी आशु के बगल वाली सीट खाली ही थी. इतने में एक लड़का जो मेरे दाईं तरफ बैठा था वो उठा और जा कर अश्विनी के साथ बैठ गया और उसके साथ बदसलूकी करने लगा. वो जानबूझ कर उससे चिपक कर बैठा था और जबरदस्ती उससे बात करने लगा. अश्विनी उसके साथ बहुत अनकंफर्टेबल थी और बार-बार उससे कह रही थी की; 'मुझे आपसे बात नहीं करनी!' पर वो हरामी बाज़ ही नहीं आ रहा था.
मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ा और उस लड़के की गद्दी पर जोरदार थप्पड़ मारा. मेरा थप्पड़ लगते ही वो पलट के मुझे देखने लगा, मैंने ऊँगली के इशारे से उसे उठने को कहा: 'निकल हरामी!' मैंने गरजते हुए कहा और ये सुनते ही फैजल पीछे की तरफ देखने लगा और उसे समझते देर न लगी की माजरा क्या हे. उसने एक कंटाप उस लड़के के मारा और लात मार के बस से उतार दिया और चिल्लाता हुआ बोला; 'मंदबुद्धी कहिके दुबारा अगर दिख गया न तो गंडिया काट डालब!' आशु की आँखें भर आईं थीं और उसने मेरी तरफ देखा और 'थैंक यू' कहना चाहा पर मैंने उससे नजर ऐसे फेर ली जैसे की वो यहाँ थी ही नहीं! मैं आगे चला गया और कंडक्टर के बाजू वाली सीट पर बैठ गया.नशे का झोंका आ रहा था और मुझे नींद आ रही थी तो मैं बैठे-बैठे ही सोने लगा. दस मिनट बाद बस रुकी और मैं पेशाब कर आ गया और वापिस पीछे की सीट पर लेट गया.जब हमारा बस स्टैंड आया तो फैजल मुझे जगाने आया और वापस जाते समय अश्विनी से माफ़ी माँगने लगा; 'दीदी...वो माफ़ करना आपको उस हरामी की वजह से तकलीफ हुई.' अश्विनी ये सुन के सन्न रह गई और मेरी तरफ देखने लगी पर मैंने कुछ नहीं कहा और बस से नीचे उतर आया. बस स्टैंड से हम दोनों गज भर की दूरी पर चल रहे थे, मैंने जेब से फ्लास्क निकला और शराब पीने लगा. मन में बहुत दुःख था और घर जाने से मैं कतरा रहा था. दरअसल मैं अश्विनी का रिश्ता अपने सामने होते हुए नहीं देखना चाहता था और इसीलिए जब घर दूर से नजर आने लगा तो मैंने अश्विनी से अकेले जाने को कहा. 'आप घर नहीं....' वो बस इतना ही बोल पाई की में बोल पड़ा; 'घर में बोल दिओ कल मेरा ऑफिस था इसलिए मैं यहीं से चला गया.' इतना कह कर मैं पलट कर वापस बस स्टैंड की तरफ चल पडा. अश्विनी मेरे दर्द को महसूस कर रही थी पर उसने कहा कुछ नहीं और चुप-चाप सर झुकाये घर चली गई. मैं बस स्टैंड पहुँचा और वहाँ बैठा बस का इंतजार करने लगा, अगली बस आने में आधा घंटा था तो मैं वहीँ लेट गया और कैसे भी कर के अपने दर्द को कम करने की सोचने लगा. अश्विनी की शादी में मैं खुद को कैसे सम्भालूंगा बस यही सोच रहा था की बस आ गई और मैं फिर से सबसे पीछे वाली सीट पकड़ के लेट गया.तभी घर से फ़ोन आया और पिताजी चिल्लाने लगे की मैं घर क्यों नहीं आया, मैंने फ़ोन उठा कर सीट पर दूसरी तरफ रख दिया और खुद खिड़की की से बाहर देखने लगा. जब मैंने फ़ोन देखा तो कॉल कट चूका था पर इसका मुझे जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा, मैंने फिर से जेब से फ्लास्क निकाली और आखरी घूँट पिया और शहर आने का इंतजार करने लगा.
सात बजे मे शहर पहुँचा और उतरते ही पेट में दारु की ललक जाग गई. ठेके से दारु ली और एक सब्जी वाले से कखडी ली और घर आ गया और पीने लगा. आज अश्विनी की शक्ल देख कर कोफ़्त हो रही थी पर मुझे मेरी समस्या का अब तक कोई रास्ता नहीं मिला था. जमाने से तो विश्वास उठ चूका था मेरा, मेरा दिमाग कह रहा था की सब के सब मतलबी हैं यहाँ! सब मुझसे कुछ न कुछ चाहते थे, सुमन पढ़ना चाहती थी तो राखी ऑफिस के काम में मेरी हेल्प और तो और नितु मैडम ने भी मेरे जरिये अपना डाइवोर्स ले लिया था. ये डाइवोर्स फायनल वाली बात मुझे मोहित ने ही बताई थी और अब ये सब बातें मुझे कचोटने लगी थी. क्या मैं इस दुनिया में सिर्फ दूसरों के लिए जीने आया हूँ? क्या मुझे मेरी ख़ुशी का कोई हक़ नहीं? क्या माँगा था मैंने जो भगवान से दिया न गया? बस एक अश्विनी का प्यार ही तो माँगा था और उसने भी मुझे धोका दे दिया! ये सब सोचते-सोचते मेरी आँख से आँसू बहने लगे और मैं अपनी आँख से बहे हर एक कतरे के बदले शराब को अपने जिस्म में उतारता चला गया.कब नींद आई मुझे कुछ होश नहीं था. आँख तब खुली जब सुबह का अलार्म तेजी से बज उठा.
मैं कुनमुनाया और अलार्म बंद कर दिया पर ठीक पांच मिनट बाद फिर अलार्म बजा और मैं बड़े गुस्से के साथ उठा और जमीन पर फिर से बैठ गया.खिड़की से आ रही ठंडी हवा और उजाले ने मेरी नींद थोड़ी तोड़ दी थी. मेरा मन अब ये जॉब करने का बिलकुल नहीं था. क्योंकि अब मुझे इसकी कोई जरुरत नजर नहीं आ रही थी. ऊपर से ये घर जिसमें अश्विनी के लिए मेरा प्यार बस्ता था अब मुझे अंदर ही अंदर खाने लगा था. मैं उठा और नहाने चला गया, फिर बाहर आते ही मैंने लैपटॉप पर रेंट पर मकान देखने शुरू किये और तब मुझे याद आया की कहाँ तो मैं अपने और अश्विनी के लिए बैंगलोर में मकान ढूँढ रहा था और कहाँ लखनऊ में ढूंढने लगा. मन में एक खेज सी उठी .....
लिस्ट में जो नाम सबसे ऊपर था उसी पर कॉल किया और अपनी रिक्वायरमेंट और बजेट उसे बता दिया. उसने ग्यारह बजे मुझे मिलने बुलाया. मैंने तुरंत बॉस को फ़ोन किया की मुझे घर शिफ्ट करना है इसलिए मैं आज नहीं आ पाउँगा, ये बोल कर मैं दलाल के पास चल दिया. एक-एक कर उसने मुझे ३-४ ऑप्शन दिखाए पर मुझे जो जच्चा वो था ठेके के पास. एक सोयाईटी थी और रेंट १५,०००/- था. २ बीएचके था बस ऑफिस से बहुत दूर था. पर हाईवे के पास था. वैसे भी मुझे कौन सा ऑफिस जाना था अब, मुझे तो जल्द से जल्द उस घर से निकलना था जहाँ अब मेरा दम घुटने लगा था. मकान मालिक ने मुझसे मेरे काम-धंधे के बारे में पुछा तो मैंने उसे सब कुछ बता दिया और अपने डॉक्युमेंट भी दिखा दिये. सब बात फाइनल कर मैं ने उनकी बैंक डिटेल्स ले ली और उसी वक़्त उन्हें सारी पेमेंट कर दी. दलाल ने सारे कागज बनवाने थे, मैं सीधा घर आया और दो स्युटकेस में अपना समान भरा और घर की चाभी पुरुषोत्तम अंकल जी को देने चल दिया. उन्हें मैंने ये कहा की मेरी पोस्टिंग अब बरेली में ज्यादा रहती है इसलिए मैंने नया घर हाईवे के पास लिया है ताकि आने-जाने में आसानी हो. घर की जाहिरात मैंने ऑनलाइन डाल दी है और नंबर उन्हीं का डाला हे. तो वो खुश हुए की उन्हें नया किरायदार ढूंढने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडेगी.
अपनी बुलेट रानी पर पीछे सारा समान बाँध कर मैं नए फ्लैट पर आ गया और समान रख कर सीधा कुछ समान खरीदने निकल पडा. ग्लास का एक सेट, दारु की बोतल और कुछ चखना ले कर मैं घर लौट आया. अभी मैंने सोचा ही था की मैं पीना शुरू करूँ की दलाल और मकान मालिक कागज ले कर आ गये. उन्होंने देख लिया की बिस्तर पर शराब की बोतल रखी है पर किसी ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि उनका मुँह-माँगा रेंट जो दे रहा था. कागज साइन कर के उन्होंने एक काम करने वाली दीदी से मिलवाया जो सब के यहाँ झाडू-पोछा और बाकी के काम करती थी. मेरे लिए तो ये ऐसा था जैसे अंधे को आँखें मिल गई हों. मैंने उनसे सारे काम की बात कर ली, झाडू-पोछा, कपडे, बर्तन और दिन में एक बार खाना बनाना. उन्होंने डरते हुए १,०००/- कहा. मैं जानता था की ये कम है पर मैंने इस डर से कुछ नहीं कहा की कहीं मकान मालिक इससे कमिशन में पैसे ना लेता हो. मैंने सोचा जब ये काम करने आएँगी तो मैं इन्हें पैसे बढ़ा कर दे दूंगा. मकान मालिक ने जाते-जाते बस इतना कहा; 'बेटा प्लीज कोई बखेड़ा खड़ा मत करना.' मैं उनका मतलब समझ गया.'अंकल जी मैं बहुत शांत स्वभाव का आदमी हूँ, यहाँ किसी से मेरी कोई बात-चीत नहीं होगी और न ही आपको कोई शिकायत आयेगी.' मैंने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा. दीदी भी कह गईं की वो कल सुबह ७ बजे आएँगी, अब मुझे तंग करने वाला कोई नहीं था. मैंने अपना पेग बनाया और बालकनी में फर्श पर बैठ गया और सड़क को देखते-देखते घूँट भरने लगा. आज पता नहीं पर मेरा मन कह रहा था की शायद....शायद कुछ अच्छा हो जाए!पर नहीं ..... ऊपर वाला तो मुझसे आज कल बहुत खफा था. पास में पड़ा फ़ोन जिसमें अभी नुसरत फ़तेह अली का गाना बज रहा था वो अचानक से बंद हुआ और पिताजी का कॉल आ गया.
मैं: जी
पिताजी: बेटा अश्विनी का रिश्ते पक्का हो गया है, दिवाली के दूसरे दिन ही शादी है!
पिताजी ने हँसते हुए कहा और ये सुन कर मेरा हाल बेहाल था! आँख से एक कतरा एक आँसूँ निकला और बहता हुआ मेरी गोद में गिरा. जिसके दिल पर मेरा नाम लिखा था आज वो किसी और के नाम की मेहँदी रचवाने वाली थी! जो कल तक मेरा नाम लिया करती थी वो अब किसी और की होने जा रही थी. मैं अपने इन्हीं ख्यालों में गुम था और इधर पिताजी उम्मीद कर रहे थे की मैं ख़ुशी से उछाल जाऊंगा.
पिताजी: हेल्लो? सागर? हेल्लो?
मैं: हाँ जी! इधर ही हूँ मैं|
पिताजी: बेटा हम लोगों को तुझसे बात करनी है तू कल के आ जा.
अब में घर जा कर उस बेवफा की सूरत नहीं देखना चाहता था. उससे मेरा गम बढ़ना ही था कम नहीं होना था!
मैं: जी...वो....मैं नहीं आ पाऊँगा.आप बताइये की क्या काम था?
पिताजी: बेटा इतनी ख़ुशी की बात है और तू वहाँ अकेला है? देख भाई साहब भी कह रहे थे की तू कल आ जा वरना हम तुझे लेने आ जाते हे.
मैं: मैं लखनऊ में नहीं हूँ! मैं.....नॉएडा में हूँ!
पिताजी: क्या? पर क्यों?
मैं: जी वो काम....काम के सिलिसिले में आना पडा.
पिताजी: तो कब वापस आ रहा है?
मैं: जी टाइम लगेगा.... २०-२५ दिन....
उस टाइम मेरे मुँह में जो झूठ आ रहा था मैं वो सब बोले जा रहा था. मेरी शायद ये बात ताऊ जी भी सुन रहे थे इसलिए अगली आवाज उनकी थी जो बहुत गुस्से में थी;
ताऊ जी: सागर! अश्विनी के लिए इतना अच्छा रिश्ता आया है और तू बहाने बनाने में लगा है! मैं कहे देता हूँ की ये रिश्ता हाथ से जाना नहीं चाहिए, मंत्री जी सामने से रिश्ता ले कर आये हैं! अश्विनी की शादी से पहले मैं चाहता हूँ की तेरी शादी हो जाये. अच्छा लगता है की चाचा कुंवारा बैठा है और भतीजी की शादी हो रही है?! कल पहुँच यहाँ!
मैं: ताऊ जी मैं आपको पहले ही कह चूका ही की मुझे अभी शादी नहीं करनी तो फिर आप बार-बार मेरे पीछे क्यों पड़ जाते हैं? जिसका रिश्ता आया है उसकी चिंता करिये पहले! शादी के लिए वो मरी जा रही है मैं नहीं!
मैंने थोड़ा गुस्से में कहा क्योंकि कोई नहीं जानता था की मेरे दिल में क्या आग लगी है! हर किसी को अपनी करनी है तो करो, मैं भी अब वही करूँगा जो मुझे करना हे.
ताऊ जी: जुबान लड़ाता है? तुझे जरा सी छूट क्या दी तू तो हमारे सर पर नाचने लगा?
मैं: आप को ये रिश्ता अपने हाथ से नहीं जाने देना ना तो आप करो उसकी शादी. मेरे लिए कौन सा प्रधान मंत्री का रिश्ता आया है जो आप एक दम से शादी-शादी करने लगे?
दारु का नशा अब मुझसे सब बुलवा रहा था.
पिताजी: (चिल्लाते हुए) तू होश में है? क्या बोले जा रहा है? नशा-वषा किया है क्या? ऐसे बदतमीजी से बात करेगा तू भाई साहब से?
मैं: मैं इतनी बार तो आप सब से कह चूका हूँ की मुझे अभी शादी नहीं करनी तो फिर हर ६ महीने बाद आप लोग क्यों मेरे पीछे पड़ जाते हैं? आपको समाज की क्यों इतनी चिंता है? शादी के बाद बीवी को खिलाऊँगा क्या? या ये दुनिया वाले रोज ३ टाइम का खाना देने आएंगे मुझे?
शायद ताऊ जी को मेरी बात समझ आई और वो नरम होते हुए बोलने लगे;
ताऊ जी: ठीक है, तुझे शादी नहीं करनी ना? पर अपनी भतीजी की शादी में तो आ जा!
उनकी नरमी देख मुझे मेरी गलती का एहसास हुआ की उन्होंने तो मेरा दिल नहीं तोडा ना?
मैं: ताऊ जी मुझे माफ़ कर देना, मुझे आपसे इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी! मैं अभी शहर में नहीं हूँ, नॉएडा आया हूँ काम के सिलसिले में. कम्पनी के कुछ वीकनेसेस का काम है, इसलिए उसमें टाइम लगेगा. रही अश्विनी की शादी की बात तो मैं आ जाऊँगा, आप निश्चिन्त रहिये.अभी तो तकरीबन २ महीने हैं ना हमारे पास?
मैंने बड़ी हलीमी से बात की और ताऊ जी मान भी गये. फ़ोन कटते ही मैंने एक लार्ज पेग बनाया और उसे एक सांस में गटक गया.मैं कैसे उसकी शादी में जाऊँगा? कैसे उसे अपनी आँखों के सामने विदा होते हुए देखूंगा? काश ये सब देखने से पहले मैं मर जाता! ये सोचते-सोचते मैं पूरी बोतल पी गया पर कोई हल नहीं मिला. दिल और दिमाग को चैन नहीं मिल रहा था. अब तो दारु भी खत्म हो गई थी तो कुछ तो चाहिए था मुझे? मैं लड़खड़ाता हुआ उठा और गाँजा ढूँढने लगा, सारा समान उथल-पुथल करने के बाद मुझे वो मेरी ही पैंट की जेब में मिला. ठीक से दिख भी नहीं रहा था. इसलिए बड़ी मुश्किल से उसे सिगरेट में भरा और पहला कश लेते ही मैं वापस जमीन पर बैठ गया.दारु की खाली बोतल में मुझे एक आखरी बूँद दिखाई दी, मैंने उसे मुँह से लगाया और वो आखरी बूँद भी पी गया.ऐसा लगा मानो सबसे ज्यादा स्वाद उसी आखरी बूँद में था. फटाफट मैंने सिगरेट पी ताकि उसका नशा मेरा दिमाग जल्दी से सुन्न कर दे और मैं चैन से सो सकू. हुआ भी वही अगले दस मिनट में ही मेरी आँख लग गई और फिर सुबह खुली जब दीदी ने बेल्ल बजा-बजा कर मेरी नींद तोड़ी. मैंने बड़ी मुश्किल से उठ कर दरवाजा खोला, दरवाजा खुलते ही दीदी को दारु का एक बहुत तेज भभका सूंघने को मिला. उन्होंने ने एक दम से अपनी नाक सिकोड़ ली और मुझे ये देख कर एहसास हुआ की मैंने क्या छीछालेदर किया है! मैं बिना कुछ कहे बाथरूम में घुसा और नहा-धो कर तैयार हुआ, अब घर में बर्तन तो थे नहीं की मुझे चाय मिलती| घर की सफाई हो चुकी थी और मुझे तैयार देख दीदी कहने लगीं की वो कपडे शाम को कर देंगी| मुझसे उन्होंने पुछा की मैं कितने बजे लौटूँगा तो मैंने उन्हें ६ बजे बोल दिया और फिर मैं ऑफिस के लिए निकल गया.आज मैंने सोच लिया था की सर को अपना रेसिग्नेशन दे दूंगा. ऑफिस आ कर जब मैंने जॉब छोड़ने की बात कही तो सर ने मुझे अपने सामने बिठाया और पुछा;
बॉस: पहले तो तू ये बता की ये क्या हालत बना राखी है अपनी? और क्यों ये जॉब छोड़ना चाहता है? कहीं कोई और जॉब मिल गई?
मैं: सर कुछ पर्सनल कारन हैं!
बॉस: जॉब छोड़ने के लिए पर्सनल कारन है या फिर ये दाढ़ी उगाने की वजह पर्सनल है?
सर बार-बार कारन जानने के लिए कुरेदते रहे क्योंकि पिछले कुछ महीनों में उन्होंने अंडर स्टाफिंग की थी और एकाउंट्स में सिर्फ दो ही लोग बचे थे, यानी मैं और मोहित और हम दोनों ही पूरा एकाउंट्स का काम देख रहे थे, हेडोफ़्फ़िस का भी और यहाँ ब्राँच का भी. अब मुझे सर को कुछ न कुछ बहाना मारना था तो मैंने कहा;
मैं: सर मैं बोर हो गया हूँ! इतनी दूर से आना पड़ता है!
बॉस: अरे भाई अभी तो तुम्हारी उम्र ही क्या है जो बोर हो गए? अभी तो सारी उम्र पड़ी है! दूर से आना पड़ता है तो यहाँ कहीं नजदीक घर देख ले!
मैं: सर यहाँ कहाँ बजट में घर मिलेगा?
बॉस: तो अब तो मेट्रो शुरू हो गई उससे आ जाया कर!
पर मैं तो मन बना चूका था की मुझे जॉब छोड़नी है इसलिए सर ने कहा;
बॉस: ठीक है यार अब तेरा मन बन ही चूका है तो, पर देख एक महीना रुक जा और ये काम निपटा दे फिर बाकी का मोहित संभाल लेगा.
मैं: जी ठीक है पर सर सुबह के टाइम में थोड़ा रिलॅक्ससेशन दे दो! रात को आप जितनी देर बोलो उतनी देर बैठ जाऊँगा!
सर मान गए और मैंने सोचा की अब महीना तो शुरू हो ही चूका है तो रो-पीट कर दिन पार कर लेता हूँ! इधर जब ये खबर मोहित को पता चली तो उसने चुप-चाप प्रफुल को फ़ोन कर दिया और शाम को जबरदस्ती मेरे साथ मेरा घर देखने के बहाने से मेरे साथ आ गया.रास्ते में ही उसने प्रफुल को भी पिक करने को कहा. जैसे ही प्रफुल ने मेरी हालत देखि तो वो गाली देते हुए कहने लगा; 'हरामी क्या हालत बना राखी है अपनी?' पर मेरे जवाब देने से पहले ही मोहित बोल पड़ा; 'साहब आज कल मजनू हो गए हैं!' मैं बस झूठी हँसी हँस कर रह गया, दोनों को एक मिनट छोड़ कर मैं कुछ लेने चला गया, वापस आया तो मेरे पास चिप्स, नमकीन और सोडे की बोतल थी.
हम तीनों दारु लेते हुए घर आ गए, बालकनी में तीनों जमीन पर बैठ गए और मैंने तीनों के लिए स्मॉल-स्मॉल पेग बनाये.इधर प्रफुल ने खाना आर्डर कर दिया. उन दोनों ने एक सिप ही ली थी और मैं एक साँस में गटक गया.'अबे साले! आराम से, तू तो कतई देवदास हो रखा!' प्रफुल बोला पर आगे बात होने से पहले ही दीदी आ गईं और मैंने दरवाजा खोला. वो चुप-चाप बाथरूम में कपडे धोने लगी. मोहित ने बात शुरू करते हुए कहा; 'जनाब नौकरी छोड़ रहे हैं!' ये सुनते ही प्रफुल चौंक पड़ा और बोला; तू पागल हो गया क्या? एक लड़की के चक्कर में पड़ कर इतनी अच्छी नौकरी छोड़ रहा है? होश में आ और लाइफ में प्रॅक्टिकल बन जा. देख तुझे मैं एक शुअर शॉट तरीका बताता हूँ उस लड़की को भूलने का. घर के अंदर बैठेगा तो इसी तरह ऊल-जुलूल हरकतें करेगा, घर से बाहर निकल और पेल दे किसी लड़की को! मेरे ऑफिस में है एक लड़का मैं उससे किसी लड़की का नंबर माँगता हूँ, उससे मिल और घपा-घप्प कर और मुव्ह- ऑन कर! वो भी लड़की तो मुव्ह-ऑन कर गई होगी तू क्यों उसके चक्कर में अपना नास कर रहा है!
'देख भाई, तेरे ये आईडिया तू अपने पास रख. मेरा गम बस मैं ही जानता हूँ और उसका ये इलाज तो कतई नहीं हे.' मैंने दूसरा पेग बनाते हुए कहा.
'अच्छा तू ये बता की हुआ क्या एकज्याक्टली?' मोहित ने पूछा.
'कुछ नहीं यार, उसे कोई और पसंद आ गया.पैसे वाला था और वो उसे अच्छी जिंदगी दे सकता था.' मैंने ज्यादा डिटेल ना देते हुए कहा.
'तो गोल्ड डिगर थी वो?' प्रफुल ने पूछा.
'ऐसी थी तो नहीं पर ......छोड़ ना! तू देख आर्डर कहाँ पहुंचा.' मैंने बात बदलते हुए कहा क्योंकि अब मुझे अश्विनी के बारे में कोई बात नहीं करनी थी. प्रफुल भी समझ गया और उसने आगे कुछ नहीं बोला पर मोहित पर शराब का नशा चढ़ने लगा था और अब उसके मन में 'भाई के लिए प्यार' जाग गया था.
'हरामी! साला अगर उसने तुझे छोड़ा है तो वो किसी की सगी नहीं हो सकती! साले १...२...३...४...५ साल से जानता हूँ तुझे!
मोहित ने उँगलियों पर गिनते हुए कहा और उसे ऐसा करता देख मैं और प्रफुल हँस दिये.
'इसे और मत दे! साला रास्ते में ड्रामे छोड़ेगा और घर पर भाभी हमारी खाट खड़ी कर देगी!' प्रफुल ने मोहित को और पेग देने से मना किया, मैंने उसका पेग हम-दोनों में आधा-आधा बाँटना चाहा तो उसने एकदम से पेग छीन लिया और गटक गया.
'ओ मंदबुद्धी कहिके!' प्रफुल चिल्लाया पर तब तक मोहित पेग पी चूका था और हम दोनों फिर से हँसने लगे. तभी खाना आ गया, मैं दरवाजा खोलने गया तो दीदी भी कपडे धो कर निकल आईं, अब उन्हें कपडे डालने थे बालकनी में और वहां तो हम महफ़िल जमा कर बैठे थे.
'दीदी रहने दो मैं डाल दूँगा बाद में! अच्छा आप नॉन-वेज खाते हो ना?' मैंने पुछा तो वो एक दम से हैरान हो गईं और हाँ में गर्दन हिलाई.मैंने उनके लिए भी एक प्लेट नूडल मंगाए थे जो मैंने उन्हें दे दिये. पहले तो वो मना करने लगीं फिर मैंने थोड़ी जबरदस्ती कर के उन्हें दे दिया. वो मुस्कुरा कर चली गईं और मैं हम तीनों के लिए खाना ले कर बालकनी में बैठ गया.एल्युमीनियम के डिब्बे में नूडल्स आये थे तो प्लेट की जरुरत नहीं थी. हम तीनों ने खाना शुरू किया पर मोहित मियाँ पर नशा फूल शबाब पे था; 'साला लड़कियाँ होती ही ऐसी हैं? मेरे गऊ जैसे दोस्त को छोड़ कर चली गई.... तू...तू चिंता मत कर....मैं...हरामी....तेरी शादी कराऊँगा.... उससे भी अच्छी लड़की से.... रुक अभी तेरी भाभी को कॉल करता हु.' इतना कह कर वो फ़ोन मिलाने को हुआ तो मैंने उसके हाथ से फ़ोन छीन लिया.
'अबे बावला हो गया है क्या? चुप-चाप खाना खा.' मैंने कहा और आगे किसी को भी पीने नहीं दी. आज बहुत दिनों बाद मुझे खाना खाने में मजा आ रहा था. खाना खाने के बाद प्रफुल बोला; 'देख यार! मेरी बात मान जा और ये जॉब मत छोड़| मैं मानता हूँ तुझे थोड़ा टाइम लगेगा और तू उसे भूल जायेगा.' मैंने बस हाँ में सर हिलाया पर ये तो मेरा मन ही जानता था की मैं अंदर से बिखरने लगा हु.
 
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घडी में अभी बस १० बजे थे और मोहित भैया तो लौटने लगे थे और अब उन्हें घर छोड़ना अकेले प्रफुल के बस की बात नहीं थी. मैंने कैब बुलाई और फिर हम ने मिलकर मोहित को कैब में बिठाया और पहले उसे घर छोड़ा और भाभी से माफ़ी भी मानगी की मेरे बर्थडे ट्रीट की वजह से भाई को थोड़ी ज्यादा हो गई. फिर प्रफुल को छोड़ मैं उसी कैब में वापस आया और रास्ते में ठेके से एक और बोतल ली. घर आते ही मैं बालकनी में बैठ गया और फिर से उसी दर्द की आगोश में चला गया.लार्ज बना के जैसे ही होठों से लगाया तो अश्विनी की शक्ल याद आ गयी और उसी के साथ गुस्सा भी खूब आया. एक सांस में पूरा पेग खींच गया और फटाफट दूसरा पेग बनाया, तभी याद आया की माल भी तो तैयार है! मैंने जेब से फेमस मलना की क्रीम की छोटी सी पुड़िया निकाली और लग गया पूरा सेटअप बनाने. पूरी गंजेडी वाली फीलिंग आ रही थी और मैं अपने इस बचकाने ख्याल पर मुस्कुराने लगा. आज पहली बार था की मैं अपने ही इस तरह के बचकाने ख्याल पर हँस रहा था. पर मेरे मन ने मुझे ये ख़ुशी ज्यादा देर तक एन्जॉय नहीं करने दी और मुझे अचानक से अश्विनी का हँसता हुआ चेहरा याद आ गया, मैं ने तैयार सिगरेट वहीँ जमीन पर छोड़ दी क्योंकि मेरा मन मुझे इस गम से बाहर नहीं जाने देना चाहता था. मैं पेग ले कर उठा और बालकनी में खड़ा हो कर ऊपर आसमान में देखने लगा. एक पल के लिए आँख मूँदि तो अश्विनी मुझे शादी के जोड़े में दिखी और फिर मेरी आँख से आँसू बह निकले और एक कतरा मेरे ही पेग में गिरा. मैंने सोचा की चलो आज अपने आंसुओं का स्वाद भी चख के देखूँ! झूठ नहीं कहूँगा पर ये वो स्वाद था जिसने दिल को अंदर तक छू लिए था! पेग खत्म हुआ और मैं वापस आ कर निचे बैठ गया पर अब दिल बगावत करने लगा था. उसे अब बस आशु चाहिए थी! चाहे जो करना पड़े वो कर पर उसे अपने पास ले आ! और अगर तू इतना ही बुजदिल है की अपने प्यार को ऐसे छोड़ देगा तो धिक्कार है तुझ पर! मर जाना चाहिए तुझे!!! मन ने ये सुसाईडल ख्याल पैदा करना शुरू कर दिए थे. आशु को अपने पास ला सकूँ ये मेरे लिए नामुमकिन था और मरना बहुत आसान था! तभी नजर कमरे में घूम रहे पंखे पर गई.....
पर जान देना इतना आसान नहीं होता...वरना कितने ही दिल जले आशिक़ मौत की नींद सो चुके होते! मैं कुछ लड़खड़ाता हुआ उठा और रस्सी ढूँढने लगा, नशे में होने के कारन सामने पड़ी हुई रस्सी भी नजर नहीं आ रही थी. जब आई तो उसे उठाया और फिर पंखे की तरफ फेंकी और फंदा बना कर पलंग पर चढ़ गया.गले में डालने ही वाला था की दिमाग ने आवाज दी; 'अबे बुज़दिल! ऐसे मरेगा? दुनिया क्या कहेगी? मरना है तो ऐसे मर की अश्विनी की रूह तुझे देख-देख कर तड़पे!' ये बात दिल को लग गई और मैं बिस्तर से नीचे उतरा और वापस जमीन पर बैठ गया. सामने भरी सिगरेट भरी पड़ी थी. वो उठाई और पीने लगा. घडी में १२ बजे थे और नशे ने मुझे दर्द के आगोश से खींच कर अपने सीने से चिपका लिया था और मैं चैन की नींद सो गया.
सूबह दीदी के आने के बाद आँख खुली और मैं आँख मलता हुआ बाथरूम में घुस गया, जब बाहर आया तो दीदी घर से चाय ले आईं थी. मैंने उन्हें शुक्रिया कहा और उनसे कहा की वो मेरी मदद करें ताकि मैं कुछ घर का समान खरीद सकू. पुराना समान तो मैं पुराने वाले घर में छोड़ आया था. दीदी की मदद से ऑनलाइन कुछ बर्तन मँगाए और कुछ कपडे अपने लिए मंगाए. दीदी उठ कर कमरे में सफाई करने गईं तो उन्हें वहाँ पंखे से लटकी रस्सी दिखाई दी और वो चीखती हुईं बाहर आई.
'आप खुदखुशी करने जा रहे थे साहब?' दीदी ने हैरानी से पुछा, तो मैंने बस ना में सर हिला दिया. 'तो फिर ये रस्सी अंदर पंखे से झूला झूलने को लटकाई थी?!' दीदी ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा, पर मेरे पास कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं चुप रहा.
'क्यों अपनी जिंदगी बर्बाद करने पर तुले हो?' दीदी ने खड़े-खड़े मुझे अपनापन दिखाते हुए कहा. मैं उस समय फर्श पर दिवार का सहारा ले कर बैठा था और वहीँ से बैठे-बैठे मैंने दीदी की आँखों में देखा और उनसे पुछा; 'आपने कभी प्यार किया है?'
'जिससे शादी की उसी से प्यार करना सीख लिया.' दीदी ने बड़ी आसानी से जवाब दिया. उनका जवाब सुन कर एहसास हुआ की मजबूरी में इंसान हालात से समझौता कर ही लेता हे.
'फिर आप मेरा दुःख नहीं समझ सकते!' मैंने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा.
'शराब पीने से ये दर्द कम होता है?' दीदी ने पूछा.
'कम तो नहीं होता पर उस दर्द को झेलने की ताक़त मिलती है और चैन से सो जाता हूँ!'
'कल आपका दोस्त कुछ कह रहा था ना की आप.........' इसके आगे उनकी बोलने की हिम्मत नहीं हुई और उन्होंने अपना सर झुकाया और अपने सीने पर से साडी का पल्लू खींच कर नीचे गिरा दिया. उनका मतलब कल रात प्रफुल की कही हुई बात की कोई लड़की पेल देने से था. इधर मेरी नजर जैसे ही उनके स्तनों पर पड़ी मैं तुरंत बोला:
'प्लीज ऐसा मत करो दीदी! मैं आपको सिर्फ जुबान से दीदी नहीं बोलता!' इतना सुनते ही दीदी जमीन पर घुटनों के बल बैठ गईं और अपना चेहरा अपने हाथों में छुपा लिया और रोने लगी. मैं अब भी अपनी जगह से हिला नहीं था. मेरा उन्हें सांत्वना देना और छूना मुझे ठीक नहीं लग रहा था. 'साहब.....' वो आगे कुछ बोलतीं उससे पहले ही मैं बात काटते हुए बोला; 'दीदी आपसे छोटा हूँ कम से कम 'भैय्या' ही बोल दो!' ये सुन कर वो मेरी तरफ आँखों में आँसू लिए देखने लगी और अपनी बात पूरी की; 'भैय्या.... मैंने आज तक ऐसा कुछ नहीं किया! पर आप से मिलने के बाद कुछ अपनापन महसूस हुआ और आपकी ये हालत मुझसे देखि नहीं गई इसलिए मैंने.....' आगे वो शर्म के मारे कुछ नहीं बोली.
'दीदी प्लीज कभी किसी के भी मोह में आ कर फिर कभी अपनी इज्जत को यूँ न गिरा देना! मेरा दोस्त तो पागल है!' आगे मेरा कुछ कहने का मन नहीं हुआ क्योंकि उससे दीदी और शर्मिंदा हो जातीं. मैं तैयार हुआ और तब तक दीदी ने पूरा घर साफ़ कर दिया था और वो मेरे कल के बिखेरे हुए कपडे संभाल रहीं थी.
'दीदी वो...बर्तन तो कल आएंगे ... आप कल से खाना बना देना!' इतना कह कर मैं ने अपना बैग उठाया, दीदी समझ गईं की मेरे जाने का समय है तो वो पहले निकलीं और मैं बाद में निकल गया.वो पूरा दिन ऐसे ही बीता और रात को १० बजे मैं घर पहुंचा. फिर वही पेग बनाया और बालकनी में बैठ गया.पर आज सुसाईडल खयाल पैदा नहीं हुईं क्योंकि दिमाग में कुछ और ही चल रहा था और जबतक सो नहीं गया तब तक पीता रहा. सुबह वही दीदी के आने के बाद उठा, वो आज भी मेरे लिए चाय ले आईं थी. चाय पीता हुआ मैं अभी भी सर झुकाये बैठा था. दीदी भी चुप-चाप अपना काम कर रही थी. बात शुरू करते हुए मैंने पुछा; 'दीदी आपके घर में कौन-कौन हैं?'
'मैं, मेरा पति और एक बेटा.' दीदी ने बड़ा संक्षेप में जवाब दिया. वो अब भी कल के वाक्या के लिए शर्मिंदा थी.
'कितने साल का है बेटा?' मैंने बात को आगे बढ़ाने के लिए पूछा.
'साल भर का' दीदी के जवाब से लगा की शायद वो और बात नहीं करना चाहतीं, इसलिए मैंने उठ खड़ा हुआ और बाथरूम जाने लगा. तभी दीदी को पता नहीं क्या सूझी वो आ कर मेरे गले लग गईं और बिफर पड़ीं; 'भैया ....मुझे .... गलत ......न समझना.' उन्होंने रोते-रोते कहा. मैंने उन्हें अपने सीने से अलग किया और उनके आँसू पोछते हुए कहा; 'दीदी मैं आपके जज्बात महसूस कर सकता हूँ और मैं आपके बारे में कुछ भी बुरा नहीं सोच रहा. जो हुआ उससे पता चला की आपका मेरे लिए कितना मोह हे. अब भूल भी जाओ ये सब. जिंदगी इतनी बड़ी नहीं होती की इतनी छोटी-छोटी बातों को दिल से लगा कर रखो.'
मेरी बात सुन कर उन्हें इत्मीनान हुआ और वो थोड़ा मुस्कुराईं और मैं बाथरूम में फ्रेश होने चला गया.मेरे रेडी होने तक उनका काम खत्म हो चूका था. मेरे बाहर आते ही वो बोल पड़ीं; 'भैया आप सुबह मेरे बारे में पूछ रहे थे, मेरे पति सेठ जी के यहीं पर ड्राइवर हैं, माता-पिता की मृत्यु मेरे बचपन में ही हो गई थी. फिर मैं यहाँ अपनी मौसी के पास आ गई और उनके साथ रह कर मैंने घर-घर काम करना शुरू किया. दो साल पहले मेरी शादी हुई और शादी के बाद मेरे पति दुबई निकल गए पर कुछ ही महीनों में उनकी नौकरी चली गई. मौसी की जानकारी निकाल कर यहाँ नौकरी मिली और सेठ जी ने भी मुझे पूरी सोसाइटी का काम दे दिया. अब यहाँ के सारे घरों का काम मेरे जिम्मे हे.' दीदी ने बड़े गर्व से कहा.
'सारी सोसाइटी का काम आप अकेली कर लेती हो?' मैंने मुस्कुराते हुए पूछा.
'यहाँ २० फ्लैट हैं और अभी बस १० में ही लोग रहते हे. एक आपको छोड़ कर सब शादी-शुदा हैं और वहाँ पर सिर्फ झाडू-पोछा या कपडे धोने का ही काम होता हे.'
'आप तो यहाँ सारा दिन होते होंगे ना? तो बेटे का ख्याल कौन रखता है?'
'भैया मैं तो यही रहती हूँ पीछे सेठ जी ने क्वार्टर बना रखे हे. दिन में २० चक्कर लगाती हूँ घर के ताकि देख सकूँ की मुन्ना क्या कर रहा है? कभी-कभी उसे भी साथ ले जाती हु.'
'तो मुझे भी मिलवाओ छोटे साहब से!' मैंने हँसते हुए कहा.
'रविवार को ले आऊँगी' उन्होंने हँसते हुए कहा.
उसके बाद दीदी निकल गईं और मैं भी अपने काम पर चला गया.शाम का वही पीना और नशे से चूर सो जाना. ऐसे करते-करते रविवार आ गया और आज मैं तो जैसे उस नन्हे से दोस्त से मिलने को तैयार था. सुबह जल्दी उठा और तैयार हो कर बैठ गया, शराब की सारी बोत्तलें एक तरफ छुपा दी. दीदी आईं तो दरवाजा खुला हुआ था और वो मुझे तैयार देख कर हैरान हो गई. उनकी गोद में उनका बेटा था जो बड़ी हैरानी से मुझे देख रहा था. 'मुन्ना ...देखो तेरे मामा' दीदी ने हँसते हुए कहा.
पर वो बच्चा पता नहीं क्यों मुझे टकटकी बांधे देख रहा था. जैसे की अपने नन्हे से दिमाग में आंकलन कर रहा हो और जब उसे लगा की हाँ ये 'दाढ़ी वाला' आदमी सही है तो वो मेरी तरफ आने को अपने दोनों पँख खोल दिये. मैंने उस बच्चे को जैसे ही गोद में लिया वो सीधा मेरे सीने से लग गया.जिस सीने में नफरत की बर्फ जम गई थी वो आज इस बच्चे के प्यार से पिघलने लगी थी. मेरी आँखें अपने आप ही बंद होती गईं और मैं अश्विनी के प्यार को भूल सा गया.... या ये कहे की उस बच्चे ने अपने बदन की गर्मी से अश्विनी के लिए प्यार को कहीं दबा दिया था. उसका सर मेरे बाएँ कंधे पर था और वो अपने नन्हे-नन्हे हाथों से जैसे मुझे जकड़ना चाहता था. उसकी तेज चलती सांसें ...वो फूल जैसी खुशबु.... उनके नन्हे-नन्हे हाथों का स्पर्श.... उस छोटे से 'पाक़' दिल की धड़कन... वो फ़रिश्ते सी आभा.... इन सब ने मेरे मन में जीने की एक ख्वाइश पैदा कर दी थी. मन इतना खुश कभी नहीं हुआ था. की आज मुझे अपने अंदर एक नई ऊर्जा महसूस होने लगी थी. मन ने जैसे एक छोटी सी दुनिया बना ली थी जिसमें बस मैं और वो बच्चा था.
इस बात से बेखबर की दीदी मुस्कुराती हुई मुझे अपने बच्चे को सीने से लगाए देख रही हे. मुझे होश तब आया जब उस बच्चे ने 'डा...डा..डा' कहना शुरू किया. मैंने आँखें खोलीं और दीदी को मेरी तरफ देख कर मुस्कुराते हुए पाया. मैंने उसे नीचे उतारा तो वो अपने चरों हाथों-पैरों पर रेंगता हुआ बालकनी की तरफ जाने लगा. 'भैया सच्ची तुम मुन्ना के साथ कितने खुश थे! ऐसे ही खुश रहा करो!'
'तो फिर आप रोज मुन्ना को यहाँ ले आया करो.' मैंने मुस्कुराते हुए कहा और फिर मुन्ना के पीछे बालकनी की तरफ चल दिया. वो बालकनी के शीशे के सहारे खड़ा हुआ और नीचे देखने लगा. उसके चेहरे की ख़ुशी बयान करने लायक थी. उस नन्ही से जान को किसी बात की कोई चिंता नहीं थी. वो तो बस अपनी मस्ती में मस्त था! कितना बेबाक होता है ना बचपन! दीदी काम करने में व्यस्त हो गईं और मैं मुन्ना के साथ खेलने लगा. कभी वो रेंगता हुआ इधर-उधर भागता... कभी हम दोनों ही सर से सर भिड़ा कर एक दूसरे को पीछे धकेलने की कोशिश करते, में जानबूझ कर गिर जाता और वो आ कर मेरे ऊपर चढ़ने की कोशिश करता. मैं उसे उठा कर अपने सीने पर बिठा लेता और उसके नन्हे-नन्हे हाथों से खुद को मुके पढ़वाता.कभी उसे गोद में ले कर पूरे कमरे में दौड़ता तो कभी उसे अपनी पीठ पर बिठा के उसे घोड़े की सवारी कराता. पूरा घर मुन्ना की किलकारियों से गूँज रहा था और आज इस घर में जैसे जानआ गई हो, छत-दीवारें सब खुश थे!
काम खत्म कर दीदी मुन्ना को मेरे पास ही छोड़ कर चली गईं, फिर कुछ देर बाद आईं और तब तक दोपहर के खाने का समय हो गया था. उसे उन्होंने दूध पिलाया और मेरे लिए गर्म-गर्म रोटियाँ सेंकीं जो मैंने बड़े चाव से खाईं! आज तो खाने में ज्यादा स्वाद आ रहा था इसलिए मैं दो रोटी ज्यादा खा गया.मेरे खाने के बाद दीदी ने भी खाना खाया और वो काम करने चलीं गई. मुन्ना सो गया था तो मैं उसकी बगल ही लेट गया और उसे बड़ी हसरतें लिए देखने लगा और फिर से अपने छोटी सी ख़्वाबों की दुनिया में खो गया.मुन्ना के चेहरे पर कोई शिकन कोई चिंता नहीं थी. उसके वो पाक़ चेहरा मुझे सम्मोहित कर रहा था. कुछ घंटों बाद मुन्ना उठा तो मुझे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई. मैंने उसे गोद में लिया और फिर पूरे घर में घूमने लगा. उसने बालकनी में जाने का इशारा किया तो मैं उसे ले कर बालकनी में खड़ा हो गया और वो फिर से सब कुछ देख कर बोलने लगा. अब उसके मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे पर मेरा मन उसकी आवाजों को ही शब्दों का रूप देने लगा. मैंने भी उससे बात करना शुरू कर दिया जैसे की सच में मैं उसकी बात समझ पा रहा हु. घर का दरवाजा खुला ही था और जब दीदी ने मुझे पीछे से मुन्ना से बात करते हुए देखा तो वो बोलीं; 'सारी बातें मामा से कर लेगा? कुछ कल के लिए भी छोड़ दे?' मैं उनकी तरफ घूमा और हँसने लगा. मैं समझ गया था की वो मुन्ना को लेने आईं है पर मन मुन्ना से चिपक गया था और उसे जाने नहीं देना चाहता था. बेमन से मैंने उन्हें मुन्ना की तरफ बढ़ाया पर वो तो फिर से मेरे सीने से चिपक गया.मैंने उसके माथे को चूमा और तुतलाते हुए उससे कहा; 'बेटा देखो मम्मी आई हैं! अभी आप घर जाओ हम कल सुबह मिलेंगे!' पर उसका मन मुझसे अलग होने को नहीं था. ये देख दीदी भी मुस्कुरा दीं और बोलीं; 'भैया सच ये आपसे बहुत घुल-मिल गया हे. वरना ये किसी के पास ज्यादा देर नहीं ठहरता, मुझे देखते ही मेरे पास भाग आता हे.' तभी उनका पति भी आ गया और उसने दीदी की बातें सुन भी लीं.अरे चल भी साहब को क्यों तंग कर रही है!' दीदी उसकी आवाज सुन चौंक गईं और मेरे हाथ से जबरदस्ती मुन्ना को लिया और घर चली गई.
अब मैं फिर से घर में अकेला हो गया था. पर मन आज की खुशियों से खुश था इसलिए आज मैंने नहीं पीने का निर्णय लिया और खाना खा कर लेट गया.पर नींद आँखों से गायब थी. गला सूखने लगा और मन की बेचैनी बढ़ने लगी. मैंने करवटें लेना शुरू किया ताकि सो सकूँ पर नींद कम्भख्त आई ही नही. कलेजे में जलन महसूस होने लगी जो दारू ही बुझा सकती थी. मैं एक दम से खड़ा हुआ और दारु की बोतल निकाली और उसे अपने होठों से लगा कर पीने लगा. पलंग पर पीठ टिका कर धीरे-धीरे सारी बोतल पी गया और तब जा कर नींद आई. एक बात अच्छी हुई थी. वो ये की मुन्ना के प्यार ने मुझे उस दर्द की जेल से बाहर निकाल लिया था.
सुबह जल्दी ही आँख खुल गई. शायद मन में मुन्ना से मिलने की बेताबी थी! मैं फ्रेश हो कर कपडे बदल कर बैठ गया की तभी बैल बजी.मैंने दरवाजा खोला और मुझे देखते ही मुन्ना मेरी बाहों में आने को मचलने लगा. उसे गोद में लेते ही जैसी बरसों पुराणी प्यास बुझ गई और मैं उसे ले कर ख़ुशी-ख़ुशी बालकनी में आ गया और वहाँ कुर्सी पर बैठ उससे फिर से बातें करने लगा. फिर मैंने अपना फ़ोन उठाया और मुन्ना को कुछ कपडे दिखाने लगा और उससे 'नादानी' में पूछने लगा की उसे कौन सी ड्रेस पसंद है? अब वो बच्चा क्या जाने, वो तो बस फ़ोन से ही खेलने लगा. वो अपने नन्हे-नन्हे हाथों से फ़ोन को पकड़ने लगा. आखिर मैंने उसके लिए एक छोटा सा सूट आर्डर किया और अर्ली डिलिव्हरी सिलेक्ट कर मैंने उसे अगले दिन ही मँगवा लिया. दीदी को इस बारे में कुछ पता नहीं था. इधर मोहित का फ़ोन आया और वो पूछने लगा की मैं कब आ रहा हूँ? अब मन मारते हुए मुझे ऑफिस जाना पड़ा और मुझे जाते देख मुन्ना रोने लगा. दीदी ने उसे बड़े दुलार से चुप कराया और मैं उसके माथे को चूम कर ऑफिस निकला.
मेरी ख़ुशी मेरे चेहरे से झलक रही थी जिसे देख मेरा दोस्त मोहित खुश था. सर दोपहर को ही निकल गए थे और मैं शाम को जल्दी भाग आया, सोसाइटी के गेट पर ही मुझे दीदी और मुन्ना मिल गए और मुझे देखते ही वो मेरी गोद में आने को छटपटाने लगा. दीदी ने हँसते हुए उसे मुझे दिया और खुद बजार चली गईं.इधर मैं गार्ड से कल का आर्डर किया हुआ पार्सल ले कर घर आ गया.मैंने मुन्ना को खुद वो कपडे पहनाये जो उसे बिलकुल परफेक्ट फिट आये, कहीं उसे नजर न लग जाए इसलिए मैंने उसे एक काला टीका लगाया. ये काला टीका मैंने तवे के पेंदे से कालक निकाल कर लगाया था. फिर उसे गोद में लिए हुए मैंने बहुत सारी फोटो खींची.कुछ देर बाद जब दीदी आईं तो अपने बच्चे को इन कपड़ों में देख उनकी आँखें नम हो गई. उन्होंने अपनी आँख से काजल निकल कर उसे टिका लगाना चाहा तो देखा की मैं पहले ही उसे टिका लगा चूका था. 'भैया ये टिका तुमने कैसे लगाया?' उन्होंने अपने आँसू पोछते हुए पूछा. 'दीदी मुझे डर लग रहा था की कहीं मेरी ही नजर न लग जाए मुन्ना को तो मैंने तवे के पेंदे से कालक निकाल कर ये छोटा सा टिका लगा दिया.' मैंने जब ये कहा तो दीदी हँस दी.
'पर भैया ये तो बहुत महँगा होगा?'
'मेरे भांजे से तो महँगा नहीं ना?!' फिर मैं मुन्ना को ले कर बालकनी में बैठ गया.रात होने तक मुन्ना मेरे साथ ही रहा, फिर दीदी उसे लेने आईं और मुन्ना फिर से नहीं जाने की जिद्द करने लगा. पर इस बार मैंने उसे बहुत प्यार से दुलार किया और उसे दीदी के हाथों में दे दिया. दीदी जाने लगी तो मैं हाथ हिला कर उसे बाय-बाय करने लगा और वो भी मुझे देख कर अपने नन्हे हाथ हिला कर बाय करने लगा. में खाना खा कर लेटा पर शराब ने मुझे सोने नहीं दिया. अब तो मेरे लिए ये आफत बन गई थी! मैंने सोच लिया की धीरे-धीरे इसे छोड़ दूँगा क्योंकि अब मेरे पास मुन्ना का प्यार था. पर उन दिनों मेरी किस्मत मुझसे बहुत खफा थी. क्यों ये मैं नहीं जानता पर मुझे लगने लगा था की जैसे वो ये चाहती ही नहीं की मैं खुश रहूँ! अगली सुबह मैं फटाफट उठा और फ्रेश हो कर दरवाजे पर नजरे टिकाये मुन्ना के आने का इंतजार करने लगा. आमतौर पर दीदी ७ बजे आ जाये करती थीं और अभी ९ बजने को आये थे उनका कोई अता-पता ही नहीं था. मन बेचैन हुआ और मैं उन्हें ढूँढता हुआ नीचे आया तो देखा की वहाँ पुलिस खड़ी है, गार्ड से पुछा तो उसने बताया की आज सुबह दीदी का पति उन्हें और मुन्ना को ले कर भाग गया.उसने रात को सेठजी के पैसे चुराए थे और उन्ही ने पुलिस बुलाई थी.
मुझे सेठ के पैसों से कोई सरोकार नहीं था मुझे तो मुन्ना के जाने का दुःख था! भारी मन से मैं ऊपर आया और दरवाजा जोर से बंद किया. शराब की बोतल निकाली और उसे मुँह से लगा कर गटागट पीने लगा. एक साँस में दारु खींचने के बाद मैंने बोतल खेंच कर जमीन पर मारी और वो चकना चूर हो गई. कांच सारे घर में फ़ैल गया था! मैं बहुत जोर से चिल्लाया; 'आआआआआआआआआआआआआ!!' और फिर घुटनों के बल बैठ कर रोने लगा. 'क्या दुश्मनी है तेरी मुझसे? मैंने कौन सा सोना-चांदी माँगा था तुझसे? तुने 'आशु' को मुझसे छीन लिया मैंने तुझे कुछ नहीं कहा, पर वो छोटा सा बच्चा जिससे प्यार करने लगा था उसे भी तूने मुझसे छीन लिया? जरा सी भी दया नहीं आई तेरे मन में? क्या पाप किया है मैंने जिसकी सजा तू मुझे दे रहा है? सच्चा प्यार किया था मैंने!!!! कम से कम उस बच्चे को तो मेरे जीवन में रहने दिया होता! दो दिन की ख़ुशी दे कर छीन ली, इससे अच्छा देता ही ना!' मैं गुस्से में फ़रियाद करने लगा.
अल्लाह तुझसे, बंदा पूछे..
राह तू दे दे जाना कहा है जाना
अल्लाह तुझसे, बंदा पूछे..
राह तू दे दे जाना कहा है जाना
जाना कहा है जाना
जाना कहा है जाना...
तय थे दिल को ग़म जहाँ पे
मिली क्यों खुशियां वहीँ पे
हाथों से अब फिसले जन्नत
हम तो रहे न कही के
होना जुदा अगर
है ही लिखा
यादों को उसकी
आके तू आग लगा जा
अल्लाह तुझसे, बंदा पूछे..
राह तू दे दे जाना कहा है जाना
अल्लाह तुझसे, बंदा पूछे
तेरी ही मर्ज़ी सारे जहाँ में
तोह ऐसा क्यों जतलाये
ख्वाबों को मेरे छीन कैसे
तू खुदा कहलाये
माँग बैठा
चाँद जो दिल
भूल की इतनी
देता है कोई सजा किया?
अल्लाह तुझसे, बंदा पूछे..
राह तू दे दे जाना कहा है जाना
जाना कहा है जाना…
जाना कहा है जाना....
पर वहाँ मेरी फ़रियाद सुनने वाला कोई नहीं था. थी तो बस शराब जो मेरे दिल को चैन और राहत देती थी. एक वही तो थी जिसने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा था! कुछ देर बाद पोलिस और मकान मालिक घर आये और मेरी हालत देख कर पोलिस वाला कुछ पूछने ही वाला था की मकान मालिक बोला; 'इंस्पेक्टर साहब ये तो अभी कुछ दिन पहले ही आया हे. सीधा-साधा लड़का है!'
'हाँ वो तो इसे देख कर ही पता लग रहा है?! क्या नाम है?' पोलिस वाले ने पूछा. अब मैं इतना भी नशे में नहीं था; 'सागर' मैंने बड़ा संक्षेप में जवाब दिया क्योंकि ज्यादा बोलता तो वो पता नहीं और कितने सवाल पूछता.
'तुम संजय या उसकी पत्नी को जानते थे?' उसने सवाल दागा.
'संजय से बस एक बार मिला था और उसकी पत्नी मेरे यहाँ काम करती थी.'
'उसका कोई फ़ोन नंबर है तुम्हारे पास?'
'जी नहीं!'
'दिन में क्यों पीते हो?'
'पर्सनल रिजन है!' ये सुन कर वो मुझे घूरता हुआ बाकियों से पूछताछ करने लगा.
मैंने दरवाजा भेड़ा और बिस्तर पर लेट गया, इधर मेरा फ़ोन बज उठा. मैंने फ़ोन उठाया तो मोहित पूछने लगा की कब आ रहा है? मैंने बस इतना बोला की तबियत ठीक नहीं है और वो समझ गया की मैंने पी हुई हे. शाम को वो धड़धड़ाता हुआ मेरे घर आ पहुँचा और जब मैंने दरवाजा खोला तो वो मेरी शक्ल देख कर समझ गया.मैं हॉल में बैठ गया और वो मेरे सामने बैठ गया, 'भाई क्या हो गया है तुझे? दो दिन तो तू चहक रहा था और अब फिर से वापस उदास हो गया? क्या हुआ?' मैंने कोई जवाब नहीं दिया बस सर झुकाये बैठा रहा. तभी उसकी नजर कमरे में बिखरे काँच पर पड़ी और वो बोला; 'वो आई थी क्या यहाँ?' मैंने ना में सर हिलाया. 'तो ये बोतल कैसे टूटी?' उसने पुछा और तब मुझे ध्यान आया की घर में काँच फैला हुआ हे. वो खुद उठा और झाडू उठा कर साफ़ करने लगा, मुझे खुद पर बड़ा गुस्सा आया इसलिए मैंने उससे झाडू ले लिया और खुद झाडू लगाने लगा. 'तू ने खाया कुछ?' मोहित ने पुछा तो मैने फिर से ना में सर हिलाया और उसने खुद मेरे लिए खाना आर्डर किया.
'देख तू कुछ दिन के लिए घर चला जा! मैं भी कुछ दिन के लिए गाँव जा रहा हु.' मैं उसकी बात समझ गया था. उसे चिंता थी की उसकी गैरहजरी में मैं यहाँ अकेला रहूँगा तो फिर से ये सब करता रहूँगा और तब मुझे टोकने वाला कोई नहीं होगा. 'देखता हूँ!' मैं बस इतना बोला और वापस उसके सामने बैठ गया.'मेरी सास की तबियत खराब है, तेरी भाभी तो पहले ही वहाँ जा चुकी है पर वो अकेले संभाल नहीं पा रही इसलिए कुछ दिन की छुट्टी ले कर जा रहा हु.' मोहित ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा. 'कुछ ज्यादा सीरियस तो नहीं?' मैंने पुछा और इस तरह से हमारी बात शुरू हुई. मैंने उसे अपनी बाइक की चाभी दी ताकि वो समय से घर पहुँच जाए वरना बस के सहारे रहता तो कल सुबह से पहले नहीं पहुँचता.'अरे! मैं बस से चला जाऊंगा.' मोहित ने चाबी मुझे वापस देते हुए कहा. अब मुझे बात बनानी थी इसलिए मैंने कहा; 'यार तू ले जा वरना यहाँ कहाँ खड़ी रखूँगा?' मेरी बात सुन कर उसे विश्वास हो गया की मैं भी घर जा रहा हूँ और उसने चाभी ले ली. फिर मैं उसे नीचे छोड़ने के बहाने गया और रात की दारु का जुगाड़ कर वापस आ गया.वापस आया तो खाना भी आ चूका था. अब किसका मन था खाने का पर उसे वेस्ट करने का मन नहीं किया. मैं वापस से बालकनी में अपना खाना और पेग ले कर बैठ गया.
मेरे मन में अब जहर भर चूका था. प्यार का नामोनिशान दिल से मिट चूका था. मन ने ये मान लिया था की इस दुनिया में प्यार-मोहब्बत सब दिखावा है, बस जरुरत पूरी करने का नाम है! पर अभी मेरी परेशानियाँ खत्म नहीं हुई थी. अश्विनी की शादी होनी थी और मुझे घर जाना था. घर अगर नहीं गया तो सब मुझे ढूंढते हुए यहाँ आ जायेंगे और फिर पता नहीं क्या काण्ड हो! घर जा कर मैं ये भी नहीं कह सकता की मैं शादी में शरीक ही नहीं होना चाहता! क्योंकि फिर मुझे उसका कारन बताना पड़ता जो की अश्विनी के लिए घातक साबित होता. ये ख्याल आते ही दिमाग ने बदला लेने की सोची, 'जा के घर में सब सच बोल दे!' मेरे दिमाग ने कहा पर फिर उसका परिणाम सोच कर मन ने मना कर दिया. भले ही मेरा दिमाग अश्विनी से नफरत करता था पर मन तो अभी अपनी आशु का इंतजार कर रहा था. दिमाग और दिल में जंग छिड़ चुकी थी और आखिर नफरत ही जीती! इस जीत को मनाने के लिए मैंने एक लार्ज पेग बनाया और उसे गटक गया.नफरत तो जीत गई पर मेरा दिल हार गया और अब वो अंदर से बिखर चूका था. बस एक लाश ही रह गई थी जिसमें बस दर्द ही दर्द बचा था और उस दर्द की बस एक ही दवा थी वो थी शराब! अब तो बस इसी में डूब जाने का मन था शायद ये ही मुझे किसी किनारे पहुँचा दे.
अगली सुबह में देर से उठा और ऑफिस पहुँचा क्योंकि मोहित के गैरहाजरी में काम देखने वाला कोई नहीं था. अगले दो दिन तक मैंने देर रात तक बैठ कर काम निपटाया और फिर तीसरे दिन मैंने सर से बात की; 'सर आई एम सॉरी पर मैं अब और ऑफिस नहीं आ सकता! टैक्स रिटर्न्स फाइनल हो चुकी हैं और मोहित वापस आ कर जमा कर देगा.इसलिए प्लीज मैं कल से नहीं आ पाउंगा.' सर ने बहोत कोशिश की पर मैं नहीं माना और उसी वक़्त सर से अपनी बैलेंस पेमेंट का चेक ले कर पहले बैंक पहुँचा और उसे जमा किया फिर घर आ कर सो गया.जब उठा तो पहले नहाया और जब खुद को आज मैने आईने में देखा तो मुझे यक़ीन ही नहीं हुआ की ये शक़्स कौन है? मैं आँखें बड़ी कर के हैरानी से खुद को ही आईने में देखने लगा. वो सीधा-साधा लड़का कहाँ खो गया? उसकी जगह ये कौन है जो आईने में मुझे ही घूर रहा है? मेरी दाढ़ी के बाल इतने बड़े हो गए थे की मैं अब बाबा लगने लगा था. सर के बाल झबरे से थे और जब नजर नीचे के बदन पर गई तो मुझे बड़ा जोर का झटका लगा. गर्दन से नीचे का जिस्म सूख चूका था और मैं हद्द से ज्यादा कमजोर दिख रहा था. मेरी पसलियाँ तक मुझे दिखने लगीं थी! ये क्या हालत बना ली है मैंने अपनी? क्या यही होता है प्यार में? अच्छा-खासा इंसान इस कदर सूख जाता है?! अब मुझे समझ आने लगा था की क्यों मेरे दोस्त मुझे कहते थे की मैंने अपनी क्या हालत बना ली है?! दिमाग कहने लगा था की सुधर जा और ये बेवकूफियां बंद कर, वो कमबख्त तो तेरा दिल तोड़ चुकी है तू क्यों उसके प्यार के दर्द में खुद को खत्म करना चाहता हे. पर अगले ही पल मन ने मुझे फिर से पीने का बहाना दे दिया. 'अभी तो उसकी शादी भी होनी है? तब कैसे संभालेगा खुद को?' और मेरे लिए इतनी वजह काफी थी फिर से पीने के लिए. 'पुराना वाला सागर अब मर चूका है!' ये कहते हुए मैंने किचन काउंटर से गिलास उठाया और उसमें शराब डाल कर पीने लगा. दोपहर से रात हुई और रात से सुबह.... पर मेरा पीना चालु रहा. जब नींद आ जाती तो सो जाता और जब आँख खुलती तो फिर से पीने लगता, इस तरह से करते-करते रविवार आया.
सुबह मेरी नींद पेट में अचानक हुए भयंकर दर्द से खुली, मैं तड़पता हुआ सा उठा और उठ कर बैठना चाहा. बैठने के बाद मैं अपने पेट को पकड़ कर झुक कर बैठ गया की शायद पेट दर्द कम हो पर ऐसा नहीं हुआ. दर्द अब भी हो रहा था और धीरे-धीरे बढ़ने लगा था. मैं उठ खड़ा हुआ और किचन में जा कर पानी पीने लगा. मुझे लगा शायद पानी पीने से दर्द कम हो पर ऐसा नहीं हुआ. मैं जमीन पर लेट गया पर पेट से अब भी हाथ नहीं हटाया था. बल्कि मैं तो लेटे-लेटे ही अपने घुटनों को अपनी छाती से दबाना चाह रहा था ताकि दर्द कम हो पर उससे दर्द और बढ़ रहा था. फिर अचानक से मुझे उबकाई आने लगी. मैं फटाफट उठा और बाथरूम में भागा और कमर पकड़ कर उल्टियाँ करने लगा. मुँह से सिर्फ और सिर्फ दारु ही बाहर आ रही थी. खाने के नाम पर सिर्फ चखना या खीरा-टमाटर ही अंदर गए थे जो दारु के साथ बाहर आ गये. करीब १० मिनट मैं कमोड पर झुक कर खड़ा रहा ताकि और उलटी होनी है तो हो जाये. पर उलटी नहीं आई और अब पेट का दर्द धीरे-धीरे कम हो रहा था. मुँह-हाथ धो कर आ कर मैं जमीन पर बैठ गया, मेरे हाथ-पैर काँपने लगे थे और निगाह शराब की बोतल पर थी. पर दिमाग कह रहा था की और और पीयेगा तो मरेगा! उठ और डॉक्टर के चल.
मैं उठा कपडे बदले और परफ्यूम छिड़क कर घर से निकला. ऑटो किया और डॉक्टर के पास पहुँचा, मेरा नम्बर आने तक मैं बैठा-बैठा ऊँघता रहा. जब आया तो डॉक्टर ने मुझसे बीमारी के बारे में पूछा. 'सर आज सुबह मेरे पेट में बड़े जोर से दर्द हुआ, उसके कुछ देर बाद उल्टियाँ हुई और अब मेरे हाथ-पैर काँप रहे हैं!' उसने पुछा की मैं कितना ड्रिंक करता हूँ तो मैंने उन्हें सब सच बता दिया. उन्होंने कुछ टेस्ट्स लिखे और सामने वाले लैब में भेज दिया. वहाँ मेरा अल्ट्रा साऊंड हुआ, इ. सी. जी. हुआ और एक्स रे भी हुआ और भी पता नहीं क्या-क्या ब्लड टेस्ट किये उन्होंने! मैं पूरे टाइम यही सोच रहा था की शरीर में कुछ है ही नहीं तो टेस्ट्स में आएगा क्या घंटा! पर जब रिपोर्ट्स डॉक्टर ने देखि तो वो बहुत हैरान हुआ. 'इट्स अ क्लिअर केस ऑफ फ्याटी लीवर! यू विल ह्याव टू स्टॉप ड्रिंकिंग अदरवाइज यू आर वेरी क्लोज टू डेवलप क्रायहोसिस ऑफ लीवर अँड थिंग्ज विल् गेट कॉम्पलीकेटेड फ्रॉम देयर. योवर प्रेजेंट कंडीशन कॅन बी कंट्रोल अँड इमप्रुव्ह.” डॉक्टर ने बहुत गंभीर होते हुए कहा. पर उसकी बात का अर्थ जो मेरे दिमाग ने निकला वो ये था की मैं जल्द ही मरने वाला हूँ पर कितनी जल्दी ये मुझे पूछना था! 'सर इफ यू डोन्ट माईंड मी आस्किंग, हाऊ मच टाइम डू आई ह्याव?” ये सवाल सुन कर डॉक्टर को मेरे मानसिक स्थिति का अंदाजा हुआ और वो गरजते हुए बोला; 'आर यू आऊट ऑफ योवर माईंड? दिस कंडीशन ऑफ यूअर कॅन बी कंट्रोलd यू आर नॉट गोना डाई!”
“बट व्हॉट इफ आई डोन्ट स्टॉप ड्रिंकिंग? देन आई एम गोना डाई राईट?”
“टेल मी व्हाय डू यू वाना डाई? इज दॅट अ सोल्युशन टू व्हॉटएवर क्राईसीस यू आर गोइंग थरु? डेथ इजंट अ सोल्युशन, लाइफ इज!”
मैं खामोश हो गया क्योंकि उसके आगे मेरे कान कुछ सुनना नहीं चाहते थे. डॉक्टर को ये समझते देर न लगी की मे डिप्रेशन से गुजर रहा था.इसलिए वो अपनी कुर्सी से उठा और मेरी बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए मुझे सांत्वना देने लगा.
“डू यू ह्याव अ फॅमिली?” मैंने हाँ में सर हिलाया.
“कॉल देम हिअर, यू निड देअर लव अँड अफेक्षण. यू हॅव टू अंडर स्टँड, यू आर स्लीपिंग इंटो डिप्रेशन अँड इट्स नॉट गुड! यू निड प्रोपर मेडिकल केयर, डोन्ट थरो योवर लाइफ दॅट इजीली!” मेरा दिमाग जानता था की डॉक्टर मेरे भले की कह रहा था पर अश्विनी की बेवफाई मुझे बस अन्धकार में ही रखना चाहती थी. 'शुक्रिया डॉक्टर!' इतना कह कर मैं उठ गया और उन्होंने मुझे मेरी केस फाइल दे दी. पर हॉस्पिटल से बाहर आते ही शराब की ललक जाग गई और मैं ऑटो पकड़ कर सीधा घर के पास वाले ठेके पर आ गया.वहाँ दारु ले ही रहा था की मेरी नजर एक बोर्ड पर पड़ी, कोई नया पब खुला था जिसका नाम 'मैखाना' था! ये नाम ही मेरे मन उस जगह के बारे में उत्सुकता जगाने के लिए काफी था. ऊपर से जब मैंने नीचे देखा तो वहाँ लिखा था १ + १ ऑन आई एम फी एल ड्रिंक्स आफ्टर ८ पिएम अब ये पढ़ते ही मेरे मन में आया की आज रात तो कुछ नया ब्रांड ट्राय करते हैं! वहाँ से मेरा घर करीब २० मिनट दूर था तो मैंने ऑटो किया और घर आ गया.
शराब पीने लगा ही था की पिताजी का फ़ोन आ गया.'कब आ रहा है तू घर?' उन्होंने डाँटते हुए कहा. मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही उनका गुस्सा फुट पड़ा; 'मुश्किल से महीना रह गया है, घर पर इतना काम है और तू है की घर तक नहीं भटकता? क्या तकलीफ है तुझे? यहाँ सब बहुत खफा हैं तुझसे!'
'पिताजी .... काम....' आगे कुछ कहने से पहले ही वो फिर से बरस पड़े; 'हरबार तेरी मनमानी नहीं चलेगी! तूने कहा तुझे नौकरी करनी है हमने तुझे जाने दिया. तूने कहा मुझे शादी नहीं करनी हम वहां भी मान गए.पर अब घर में शादी है और तू वहाँ अपनी नौकरी पकड़ कर बैठ है? छोड़ दे अगर छुट्टी नहीं देता तेरा मालिक तो! बाद में दूसरी पकड़ लिओ!'
'पिताजी इतनी आसानी से नौकरी नहीं मिलती! ये मेरी दूसरी नौकरी है, पहली वाली मैंने छोड़ दी क्योंकि वो बॉस तनख्वा नहीं बढ़ाता था. मैंने आप को इसलिए नहीं बताया क्योंकि आप मुझे वापस बुला लेते! अब नई नौकरी है तो इतनी जल्दी छुट्टी नहीं माँग सकता! मैं कल बात करता हूँ बॉस से और फिर आपको बताता हु.' मैंने बड़े आराम से जवाब दिया.
'ठीक है! पर जल्दी आ यहाँ बहुत सा काम है!' उन्होंने बस इतना कहा और फ़ोन काट दिया. अब मैने बहाना तो बना दिया था पर कल क्या करूँगा यही सोचते-सोचते शाम हो गई. जो जाम मैंने पहले बनाया था उसे पीया और फिर गांजा फूंका और फिर बालकनी में बैठ गया.बैठे-बैठे आँख लग गई और जब खुली तो रात के नौ बज रहे थे. मुझे याद आया की आज तो 'मैखाने' मे जाना है, मैंने मुँह-हाथ धोया, कपडे पहने और परफ्यूम छिड़क कर ही पैदल वहाँ पहुँच गया.ज्यादा लोग नहीं आये थे, मैं सीधा बार स्टूल पर बैठा और बारटेंडर से ६० मिली सिंगल माल्ट मांगी! वहाँ के म्यूजिक को सुन कर मुझे अच्छा लग रहा था. अकेले में शराब पी कर सड़ने से तो ये जगह सही लगी मुझे. मरना ही तो थोड़ा ऐश कर के मरो ना! ये ख्याल आते ही मैंने भी गाने को एन्जॉय करना शुरू कर दिया. एक-एक कर मैंने १० ड्रिंक्स खत्म की और अब बजे थे रात के बारह और बारटेंडर ने और ड्रिंक सर्वे करने से मना कर दिया. कारन था की मैं बहुत ज्यादा ही नशे में था और मुझसे ठीक से खड़ा ही नहीं जा रहा था. बारटेंडर ने बाउंसर को बुलाया जिसने मुझे साहरा दे कर बाहर छोड़ा और खुद अंदर चला गया.मैं वहाँ ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था और ऑटो का इंतजार कर रहा था पर कोई ऑटो आ ही नहीं रहा था और जो आया भी वो मेरी हालत देख कर रुका नही. अब मुझे एहसास हुआ की घर में पीने का फायदा क्या होता है, वहाँ पीने के बाद कहीं भी फ़ैल सकते हो! मैंने हिम्मत बटोरी और पैदल ही जाने का सोचा, पर अभी मुझे एक सड़क पार करनी थी जो मेरे लिए बहुत बड़ा चैलेंज था. रात का समय था और ट्रक के चलने का टाइम था इसलिए मैं धीरे-धीरे सड़क पार करने लगा. नशे में वो दस फूट रोड भी किलोमीटर चौड़ी लग रही थी. आधा रास्ता पार किया की एक ट्रक के हॉर्न की जोरदार आवाज आई और मैं जहाँ खड़ा था वहीँ खड़ा हो गया.नशे में आपके बॉडी के रेफ्लेक्सेस काम नहीं करते इसलिए मैं रूक गया था. पर उस ट्रक वाले ने मेरे साइड से बचा कर अपना ट्रक निकाल लिया. आज तो मौत से बाल-बाल बचा था. पर मैं तो पलट के उसे ही गालियाँ देने लगा; 'अबे! मंदबुद्धी कहिके मार देता तो दुआ लगती मेरी हरामी साइड से निकाल कर ले गया!' पर वो तो अपना ट्रक भगाता हुआ आगे निकल गया.मैं फिर से धीरे-धीरे अपना रास्ता पार करने लगा. जैसे-तैसे मैंने रास्ता पार किया और सड़क किनारे खड़ा हो गया, कोई ऑटो तो मिलने वाला था नहीं, न ही फ़ोन में बैटरी थी की कैब बुला लूँ और अब चल कर घर जाने की हिम्मत थी नही. मैंने देखा तो कुछ दूर पर एक टूटा हुआ बस-स्टैंड दिखा, सोचा वहीँ रात काट लेता हूँ और सुबह घर चला जाऊंगा. धीरे-धीरे वहाँ पहुँचा पर वहाँ लेटने की जगह नहीं थी बस बैठने भर को जगह थी. मैं अपनी पीठ टिका कर और सड़क की तरफ मुँह कर के बैठ गया और सोने लगा. वहाँ से जो कोई भी गाडी गुजरती उसकी हेडलाइट मेरे मुँह पर पड़ती, पर मैं गहरी नींद सो चूका था. कुछ देर बाद मेरे पास एक गाडी रुकी, गाडी से कोई निकला जिसने मेरा नाम पुकारा; 'सागर!' पर मैं तो गहरी नींद में था तो मैंने कोई जवाब नहीं दिया. फिर वो शक़्स मेरे नजदीक आया और अपने फ़ोन की रौशनी मेरे मुँह पर मार कर मेरी पहचान करने लगा. जब उसे यक़ीन हुआ की मैं ही सागर हूँ तो उसने मुझे हिलना शुरू कर दिया. मेरे जिस्म से आती दारु की महक से वो शक्स समझ गया की मैं नशे में टुन हु. बड़ी मेहनत से उसने मुझे अपनी गाडी की पिछली सीट पर लिटाया और मेरे पाँव अंदर कर के वो शक़्स चल दिया.
अगली सुबह जब मेरी नींद खुली तो मेरी आँखों के सामने छत थी और मैंने खुद को एक कमरे में बिस्तर पर लेटा हुआ पाया. मैं जैसे ही उठा वो शक़्स जो मुझे उठा कर लाया था वो मेरे सामने था. 'आप?' मेरे मुँह से इतना निकला की उन्होंने मेरी तरफ एक कॉफ़ी का मग बढ़ा दिया. ये शक़्स कोई और नहीं बल्कि नितु मैडम थी.
'क्या हालत बना रखी है अपनी?' उन्होंने मुझे डाँटते हुए पूछा. पर मैं उन्हें अपने पास देख कर थोड़ा सकपका गया था. मेरा इस वक़्त उनके घर में होना ठीक नहीं था. इसलिए मैं उठा और कॉफ़ी का मग साइड में रखा और जाने लगा. उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और बोलीं; 'कहाँ जा रहे हो? बैठो यहाँ और कॉफ़ी पियो!'
'मॅडम मेरा आपके घर रुकना सही नहीं हे. आपके प्यारेंट क्या सोचेंगे?' इतना कह कर मैं फिर उठने लगा तो उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोलीं; 'ये मेरी फ्रेंड का घर हे. तुम जरा भी नहीं बदले अब भी बिलकुल जेंटलमैन हो!' उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा और कॉफ़ी वाला मग मुझे दुबारा पकड़ा दिया. मैं चुप-चाप कॉफ़ी पीने लगा और इधर वो कुछ सोचने लगीं की कुछ तो माजरा है जो मेरी ये हालत हो गई है!
'अच्छा अब बताओ क्या बात है? क्यों इस तरह अपनी हालत बना रखी है?' पर मैं खामोश रहा और कॉफ़ी पीने लगा. 'ओह! सायलेंट ट्रीटमेंट!!!! नाराज हो मुझसे?' मॅडम ने फिर से पुछा और मैंने ना में गर्दन हिला दी. फिर मैंने अपना फ़ोन ढूंढ़ने के लिए हाथ मारा तो उन्होंने मेरा 'चार्ज' फ़ोन मुझे दिया. 'कभी फ़ोन भी चार्ज कर लिया करो! या काम में इतने मशरूफ रहते हो की चार्ज करने का टाइम नहीं मिलता.' उन्होंने कहा और अचानक ही मेरे मुँह से निकला; 'जॉब छोड़ दी मैंने!' ये सुनते ही वो चौंक गईं और मुझसे पूछने लगीं; 'क्यों?' मैं जाने के लिए उठ के खड़ा हुआ तो उन्होंने एक बार फिर मुझे जबरदस्ती बिठा दिया; 'जॉब क्यों छोड़ी?' अब मैं उन्हें कुछ भी नहीं कहना चाहता था क्योंकि मेरी बात सुन कर वो मुझे अपनी हमदर्दी देना चाहती जो में कतई नहीं चाहता था.
'मन नहीं था! ... बोर हो गया था!' मैंने झूठ बोला पर उन्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ, वो मेरे अंदर की झुंझलाहट समझ चुकीं थीं की अगर वो कुछ और पूछेंगी तो मैं उन्हीं पर बरस पडूँगा.इसलिए वो कुछ देर खामोश रही. मैं फिर उठा और जाने के लिए बाहर आया ही था की उन्होंने पीछे से कहा; 'मुझे कॉल क्यों नहीं किया?' अब ये ऐसा सवाल था जिसके कारन मेरा गुस्सा बाहर आने को उबल पड़ा और मैं बड़ी तेजी से उनकी तरफ पलटा और चिल्लाने को हुआ ही था की मैंने अपने दाहिने हाथ की मुट्ठी तेज बंद की और खुद को चिल्लाने से रोका और दाँत पीसते हुए कहा; 'आपने कॉल किया मुझे बैंगलोर जा कर?' ये सुन कर नितु मॅडम का सर झुक गया.'और मैं कॉल करता भी तो किस नंबर पर?' ये कहते हुए मैंने उन्हें अपना व्हाटस अप्प खोल कर दिखाया जिस पर मेरे आखरी के दो हॅपी बर्थ डे वाले मैसेज अब भी उन्हें रिसीव नहीं हुए थे क्योंकि उन्होंने वहाँ जा कर अपना नंबर बदल लिया था.
जब मॅडम ने ये मैसेज देखे तो उनकी आँखों में आँसू छलक आये और उन्हें एहसास हुआ की उन्होंने मुझे मेरे बर्थडे तक पर विश नहीं किया था. दरअसल जब मैं उनके पति कुमार के ऑफिस में काम करता था तो मैं और राखी उन्हें उनके जन्मदिन पर हॅपी बर्थ डे बोला करते थे और उनके बैंगलोर जाने के बाद भले ही मैंने उन्हें कोई कॉल करने की कोशिश नहीं की पर उनके बर्थडे वाले दिन उन्हें मैसेज जरूर कर दिया करता था. पहली बार जब मैसेज भेजा तो काफी दिन तक वो उन्होंने रीड नहीं किया. मैंने सोचा की शायद वो बिजी होंगी या नंबर चेंज कर लिया होगा. फिर भी मैंने उन्हें वो दूसरा मैसेज उन्हें भेजा था ये सोच कर की इतनी दोस्ती तो निभानी चाहिए.
'आई एम सॉरी सागर! मैं वहाँ जा कर अपनी दुनिया में खो गई और तुम्हें कॉल करना ही भूल गई.' मॅडम ने सर झुकाये हुए कहा.
'इट्स ओके मॅडम...एनी वे थॅन्क्स फॉर ... व्हॉट यू दिड लास्ट नाईट ...... आई होप आई दिड नॉट मिस बीहेव लास्ट नाईट.' मैंने झूठी मुस्कराहट का नक़ाब पहन कर कहा और दरवाजे के पास जाने लगा तो मॅडम ने आ कर मेरे कंधे पर हाथ रख कर फिर से रोक लिया. 'ये मॅडम - मॅडम क्या लगा रखा है? पिछली बार मैंने तुम्हें कहा था न की मुझे नितु बोला करो!' मॅडम ने मुस्कुराते हुए कहा.
'मॅडम दो साल में तो लोग शक़्लें भूल जाते हैं, मैं तो फिर भी आपको इज्जत दे कर मॅडम बुला रहा हूँ!' मेरे तीर से पैने शब्द मॅडम को आहत कर गए पर वो सर झुकाये सुनती रही. उन्हें ऐसे सर झुकाये देखा तो मुझे भी एहसास हुआ की मैंने उन्हें ज्यादा बोल दिया; 'सॉरी!!!' इतना बोल कर मैं वपस जाने को निकला तो वो बोलीं; 'चलो मैं तुम्हें ड्रॉप कर देती हु.' इस बार उनके चेहरे पर वही मुस्कान थी जो अभी कुछ देर पहले थी.
'इट्स ओके मॅडम ... मैं चला जाऊंगा.'
'कैसे जाओगे? ऑटो करोगे ना?'
'हाँ'
'तो ऐसा करो वो पैसे मुझे दे देना.' मॅडम ने फिर से मुस्कुराते हुए कहा. मैंने मजबूरन उनकी बात मान ली और उनके साथ गाडी में चल दिया. 'दो दिन पहले मैं यहाँ अपने मम्मी-डैडी से मिलने आई थी. पर उन्होंने तो मुझे घर से ही निकाल दिया! अब कहाँ जाती, तो अपनी दोस्त को फ़ोन किया और उससे मदद मांगी.वो बोली की वो कुछ दिनों के लिए बाहर जा रही है और मैं उसकी गैरहाजरी में रह सकती हु. कल रात उसे एयरपोर्ट छोड कर आ रही थी जब तुम मुझे उस टूटे-फूटे बस स्टैंड पर बैठे नजर आये. पहले तो मुझे यक़ीन नहीं हुआ की ये तुम हो इसलिए मैंने दो-तीन बार गाडी की हेडलाइट तुम्हारे ऊपर मारी पर तुमने कोई रियेक्ट ही नहीं किया. हिम्मत जुटा कर तुम्हारे पास आई और तुम्हारा नाम लिया पर तुम तब भी कुछ नहीं बोले, फिर फ़ोन की फ्लॅश लाईट से चेक करने लगी की ये तुम ही हो या कोई और है! ५ मिनट लगा मुझे तुम्हारी इन घनी दाढ़ी और बालों के जंगल के बीच शक्ल पहचानने में, फिर बड़ी मुश्किल से तुम्हें गाडी तक लाई और फिर हम घर पहुंचे.'
'आपको इतना बड़ा रिस्क नहीं लेना चाहिए था.' मैंने कहा.
'कोई और होता तो नहीं लेती, पर वहाँ तुम थे और तुम्हें इस तरह छोड़ कर जाने को मन नहीं हुआ. ' मॅडम ने नजरें चुराते हुए अपने मन की बात कह डाली थी. पर मेरा दिमाग उस टाइम जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहता था ताकि मैं फिर से अपनी मेहबूबा को अपने होठों से लगा सकूँ! लेफ्ट-राइट करते हुए हम आखिर सोसाइटी के मैन गेट पर पहुँचे और मैन सीट बेल्ट निकाल कर जाने लगा तो मॅडम बोलीं; 'अरे! घर के नीचे से ही रफा-दफा करोगे?' अब ये सुन कर मैं फिर से बैठ गया और उनकी गाडी पार्क करवा कर घर ले आया. घर का दरवाजा खुलते ही उसमें बसी गांजे और दारु की महक मॅडम को आई और उन्होंने जल्दी से बालकनी ढूँढी और दरवाजा खोल दिया ताकि फ्रेश हवा अंदर आये. मैन खड़ा हुआ उन्हें ऐसा करते हुए देख रहा था और मुझे इसका जरा भी अंदाजा नहीं था की घर में ऐसी महक भरी हुई है, क्योंकि मेरे लिए तो ये महक किसी इत्र की सुगंध के समान थी. जब मॅडम ने मुझे अपनी तरफ देखते हुए पाया तो मैंने उनसे नजर बचा कर अपना सर खुजलाना शुरू कर दिया. 'यार! सच्ची तुम तो बड़े बेगैरत हो! मेहमान पहली बार घर आया है और तुम उसे चाय तक नहीं पूछते!' मॅडम ने प्यार भरी शिकायत की. मैन सर खुजलाता हुआ बाथरूम में गया और हाथ-मुँह धो कर उनके लिए चाय बनाने लग गया.इसी बीच मॅडम ने घर का मोआईना करना शुरू कर दिया और मोआईना करते-करते वो मेरे कमरे में जा पहुँची जहाँ उन्हें मेरी मेडिकल रिपोर्ट सामने ही पड़ी मिली. उन्होंने वो सारी रिपोर्ट पढ़ डाली और उनकी आँखें नम हो गईं, तभी मैंने उन्हें किचन से आवाज दी; 'मॅडम चाय!' नितु मॅडम ने अपने आँसू पोछे और वो बाहर आ गईं और अपने चेहरे पर हँसी का मुखौटा पहन कर बैठ गई. 'चाय तो बढ़िया बनाई है?' उन्होंने मेरी झूठी तारीफ की.
'बुराइयाँ कितनी भी बुरी हों, सच्ची होती हैं...
झूठी तारीफों से तो अच्ची होती हैं!'
मेरे मुँह से ये सुन कर मॅडम मेरी तरफ देखने लगीं और अपने दर्द को छुपाने के लिए बोलीं; 'क्या मतलब?'
'मतलब ये की चाय में दूध तक नहीं और आप चाय अच्छी होने की तारीफ कर रही हैं!'
'चाय, शायरी, और तुम्हारी यादें....
भाते बहुत हो, दिल जलाते बहुत हो'
मॅडम के मुँह से ये सुन कर मैन आँखें फाड़े उन्हें देखने लगा की तभी उन्होंने बात घुमा दी; 'अच्छा… एक अरसा हुआ लखनऊ घूमे हुए! चलो आज घूमते हैं!'
'मॅडम मैं तो यहीं रहता हूँ, बाहर से तो आप आये हो! आप घूमिये मैं तो यहाँ सब देख चूका हूँ, यहाँ के हर रंग से वाक़िफ़ हूँ!'
'ओह कम ऑन यार! मैं अकेली कहाँ जाऊँगी? तुम सब जगह जानते हो तो आज मेरे गाईड बन जाओ, घर बैठ कर ऊबने से तो बेहतर हे.'
'मॅडम मेरा जरा भी मन नहीं है, मुझे बस सोना है!' मैंने मुँह बनाते हुए कहा पर वो मानने वाली तो थी नहीं!
'जब तक यहाँ हूँ तब तक तो मेरे साथ घूम लो, मेरे जाने के बाद जो मन करे वो करना.' मैंने मना करने के लिए जैसे ही मुँह खोला की वो जिद्द करते हुए बोली; 'प्लीज...प्लीज...प्लीज....प्लीज...प्लीज....प्लीज!!!' मैं सोच में पड़ गया क्योंकि मन मेरा शराब पीना चाहता था और दिमाग कह रहा था की बाहर चलते हे. एक बार तो मन ने कहा की एक पेग पी और फिर मॅडम के साथ चला जा पर दिमाग कह रहा था की ये ठीक नहीं होगा! आखिर बेमन से मैंने मॅडम को बाहर बैठने को कहा और मैं नहाने चला गया.ठन्डे-ठन्डे पानी की बूँदें जब जिस्म पर पड़ी तो जिस्म में अजीब सी ऊर्जा का संचार हुआ एक पल के लिए लगा जैसे वही पुराना सागर ने जागने के लिए आँख खोली हैं पर दर्द ने उसे पिंजरे में कैद कर रखा था और उसे बाहर नहीं जाने देना चाहता था. मैं आज रगड़-रगड़ कर नहाया साबुन की खुशबु से नहाया हुआ मैं बाहर निकला. मैंने बनियान और नीचे टॉवल लपेटा हुआ था और मेरे सामने मॅडम शर्ट-जीन्स ले कर खड़ी थी. मुझे ये देख कर थोड़ी हैरानी हुई की मॅडम ने मेरे लिए खुद कपडे निकाले थे पर मैंने उस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि मुझे अब ज्यादा चीजें अफेक्ट नहीं करती थीं! मैं तैयार हुआ, दाढ़ी में कंघी मार कर उसे सीधा किया और बाल चूँकि बहुत लम्बे थे तो उन्हें पीछे की तरफ किया. जैसे ही बाहर आया तो मॅडम मुझे बड़े गौर से देख रहीं थी. उनका मुझे इस तरह देखने से पता नहीं कैसे मेरे चेहरे पर मुस्कराहट ले आया;
“माई आईज वेयर ऑन हिम, व्हेन हिज शाईनी ब्लॅक हेयर, थिक..... ब्लॅक बीअर्ड, ब्युटीफुल ब्राऊन आईज, रेड चिक अँड दीं प्लीजन्ट स्माईल मेड मी रियलाईज हाऊ कलरफूल ही वाज!”
मॅडम के मुँह से अपनी ये तारीफ सुन कर मैं चौंक गया था क्योंकि मेरी नजर में मैं अब वो सागर नहीं रहा था जो पहले हुआ करता था.
'धीरे-धीरे ज़रा ज़रा सा निखरने लगा हूँ मैं
लगता हैं उस बेवफ़ा के जख्मों से उबरने लगा हूँ मैं'
मुझे नहीं पता उस समय क्या हुआ की ये शब्द मेरे मुँह से अपने आप ही निकले. मॅडम ने इन शब्दों को बड़े घ्यान से सुना था पर उन्होंने इसे कुरेदा नहीं, क्योंकि वो जानती थी की मैं उदास हो कर बैठ जाऊँगा और फिर कहीं नहीं जाऊंगा. उन्होंने ऐसे जताया जैसे की कुछ सुना ही ना हो और बोली; 'चलो जल्दी!' मैंने भी उनकी बात का विश्वास कर लिया और उनके साथ चल दिया. 'तो पहले थोड़ा नाश्ता हो जाए?' मॅडम ने कहा, पर मुझे भूख नहीं थी इसलिए मैंने सोचा वहाँ जा कर मैं खाने से मना कर दूंगा. मॅडम ने सीधा आझाद बाग का रुख किया, गाडी पार्क की और टुंडे कबाबी खाने के लिए चल दी. पूरे रस्ते वो पटर-पटर बोलती जा रही थीं, मेरा ध्यान आस-पास की दुकानों और लोगों पर बंट गया था. दूकान पहुँच कर मैं उनके लिए एक प्लेट टुंडे कबाबी और रुमाली रोटी लाया तो वो मेरी तरफ हैरानी से देखने लगीं और बोलीं: 'ये तो मैं अकेली खा जाऊँगी! तुम्हारी प्लेट कहाँ है?'
'मेरा मन नहीं है...आप खाओ' मैंने मना करते हुए कहा.
'ठीक है.... मैं भी नहीं खाऊँगी!' ऐसा कहते हुए उन्होंने एकदम से मुँह बना लिया.
'मॅडम प्लीज मत कीजिये ऐसा!' मैंने रिक्वेस्ट करते हुए कहा.
'अगर मुझे अकेले खाने होते तो मैं तुम्हें यहा क्यों लाती? इंसान को कभी-कभी दूसरों की ख़ुशी के लिए भी कुछ करना चाहिए!' मॅडम ने उदास होते हुए कहा. 'अच्छा एक बाईट तो ले लो.' इतना कहते हुए मॅडम ने अपनी प्लेट मेरी तरफ बढ़ा दी. मैंने हार मानते हुए एक बाईट ली और बाकी का उन्होंने ख़ुशी-ख़ुशी खाया.
'नेक्स्ट स्टॉप रेजीडेंसी!' ये कहते हुए मॅडम ने गाडी स्टार्ट की, पूरी ड्राइव के समय मैं बस इधर-उधर देखता रहा क्यों की मन में शराब की ललक भड़कने लगी थी. जब भी कोई ठेका दिखता तो मन करता की यहीं उतर जाऊ और शराब ले आऊ पर मॅडम के साथ होने की वजह से मैं खामोश रहा और अपनी ललक को पकड़ के उसे शांत करने लगा. शायद मॅडम भी मेरी बेचैनी भाँप गई थी इसलिए अब जब भी मेरी गर्दन ठेके की तरफ घूमती तो वो मेरा ध्यान भंग करने के लिए कुछ न कुछ बात शुरू कर देतीं. किसी तरह से हम रेजीडेंसी पहुँचे और वहाँ घूमने लगे और वहाँ भी मॅडम चुप नहीं हुईं और मुझे अपने बैंगलोर के घर के बारे में बताने लगी. बैंगलोर का नाम सुनते ही मेरा मन दुखने लगा और एक बार फिर अनायास ही मेरे मुँह से कुछ शब्द निकले;
'इन अंधेरों से मुझे कहीं दूर जाना था...
तुम्हारे साथ मुझे अपना एक सुन्दर आशियाना बसना था...'
ये सुन कर मॅडम एक दम से चुप हो गईं और मुझे भी एहसास हुआ की मुझे ये सब नहीं कहना चाहिए था. मैने इधर-उधर देखना शुरू किया और मजबूरन बहाना बनाना पड़ा; 'मॅडम ... भूख लगी है!' ये सुनते ही उनके चेहरे पर ख़ुशी आ गई; 'नेक्स्ट स्टॉप बिरयानी!!!' दोपहर के दो बजे हम बिरयानी खाने पहुँचे और मैंने अपने लिए हाफ और मॅडम के लिए फुल प्लेट बिरयानी ली. मेरा तो फटाफट खाना हो गया पर मॅडम अभी भी खा रही थी. मैं पानी की बोतल लेने गया और मेरे जाते ही वहाँ प्रफुल अपने ऑफिस के कलिग के साथ वहाँ आ गया.
प्रफुल: हाई मॅडम!!!
नितु मॅडम: हाई प्रफुल, सो गुड टू सी यू! यहाँ लंच करने आये हो?
प्रफुल: जी मॅडम!!!
नितु मॅडम: और अब भी वहीँ काम कर रहे हो?
प्रफुल: नहीं मॅडम ...सर ने काम बंद कर दिया था. मैंने दूसरी जगह ज्वाइन कर लिया और सागर ने अपने ही ऑफिस में मोहित को लगा लिया.
अब तक प्रफुल का कलिग आर्डर करने जा चूका था और मॅडम को उससे बात करने का समय मिल गया.
नितु मॅडम: प्रफुल ... इफ यू डोन्ट माईन ....., सागर को क्या हुआ है? मैं उससे कल रात मिली और उसकी हालत मुझसे देखि नहीं जाती! वो बहुत बीमार है, फ्याटी लीवर, डिप्रेशन,पेन, लॉस ऑफ एपेटाईट... आई होप तुमने उसे देखा होगा? वो बहुत कमजोर हो चूका है!
प्रफुल: मॅडम वो बावला हो गया है!
प्रफुल ने गुस्से में कहा और फिर उसे एहसास हुआ की उसने मॅडम के सामने ऐसा बोला इसलिए उसने उनसे माफ़ी मांगते हुए बात जारी रखी;
प्रफुल: सॉरी मॅडम .... मुझे ऐसा...
नितु मॅडम: इट्स ओके प्रफुल, आई कॅन अंडर स्टँड! (मॅडम ने प्रफुल की बात काटते हुए कहा.)
प्रफुल: ही वाज इन लव विद अश्विनी, अब पता नहीं दोनों के बीच में क्या हुआ? ये साला देवदास बन गया! मैंने और मोहित ने इसे बहुत समझाया पर किसी की नहीं सुनता, सारा दिन बस शराब पीता रहता है, अच्छी खासी जॉब थी वो भी छोड़ दी! अब आप बता रहे हो की ये इतना बीमार है, अब ये किसी की नहीं सुनेगा तो पक्का मर जायेगा.
नितु मॅडम: तो उसके घर वाले?
प्रफुल: उन्हें कुछ नहीं पता, ये घर ही नहीं जाता बस उनसे फ़ोन पर बात करता हे. मोहित बता रहा था की बीच में दो दिन ये बहुत खुश था पर उसके बाद फिर से वापस दारु, गाँजा!
इतने में मैं पानी की बोतल ले कर आ गया.
प्रफुल: और देवदास?
ये सुनते ही मैं उसे आँखें दिखाने लगा की मॅडम के सामने तो मत बोल ऐसा.पर वो मेरे बहुत मजे लेता था;
प्रफुल: तू मॅडम के साथ आया है?
मैं: हाँ... आजकल मैं गाइड की नौकरी कर ली हे.
मैंने माहौल को हल्का करते हुए कहा, पर वो तो मॅडम के सामने मेरी पोल-पट्टी खोलने को उतारू था;
प्रफुल: चलो अच्छा है, कम से कम तू अपने जेलखाने से तो बाहर निकला
मैंने उसे फिर से आँख दिखाई तो वो चुप हो गया.
मैं: चलें मॅडम?!
नितु मॅडम: चलते हैं.... पहले जरा तुम्हारी रिपोर्ट तो ले लूँ प्रफुल से!
पर तभी उसका कलिग आ गया और प्रफुल ने मुझे उससे पहचान कराया;
प्रफुल: ये है मेरा भाई जो साला इतना ढीढ है की मेरी एक नहीं सुनता!
ये सुन कर सारे हंस पड़े पर अभी उसका मुझे धमकाना खत्म नहीं हुआ था;
प्रफुल: बेटा सुधर जा वरना अब तक मुँह से समझाता था. अब मार-मार के समझाऊँगा?'
मैं: छोटे भाई पर हाथ उठाएगा?
और फिर सारे हँस पडे. मॅडम का खाना खत्म होने तक हँसी-मजाक चलता रहा और मैं भी उस हँसी-मजाक में हँसता रहा. काफी दिनों बाद मेरे चेहरे पर ख़ुशी दिखाई दे रही थी जिसे देख प्रफुल खुश था.
विदा ले कर मैं और मॅडम चलने को हुए तो प्रफुल ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और अचानक से मेरे गले लग गया.भावुक हो कर वो कुछ बोलने ही वाला था की मॅडम ने पीछे से अपने होठों पर ऊँगली रख कर उसे चुप होने को कहा. प्रफुल ने बात समझते हुए धीरे से मेरे कान में बुदबुदाते हुए कहा; 'भाई ऐसे ही मुस्कुराता रहा कर! तेरी हँसी देखने को तरस गया था!' उसकी बात दिल को छू गई और मैं भी थोड़ा रुनवासा हो गया; 'कोशिश करता हूँ यार!' फिर हम अलग हुए और वो ऑफिस की तरफ चल दिया और मैं अपने आँसुओं को पोछने के लिए रुमाल ढूँढने लगा, तो एहसास हुआ की मेरी आँखों का पानी मर चूका हे. दर्द तो होता है बस वो बाहर नहीं आता और अंदर ही अंदर मुझे खाता जा रहा हे.
मॅडम ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे बिना कुछ बोले पार्किंग की तरफ ले जाने लगी. मैं भी बिना कुछ बोले अपने जज्बातों को फिर से अपने सीने में दफन कर उनके साथ चल दिया. अब मॅडम भी चुप और मैं भी चुप तो मुझे कुछ कर के उन्हें बुलवाना था ताकि मेरे कारन उनका मन खराब न हो. 'तो नेक्स्ट स्टॉप कहाँ का है मॅडम?' मैंने पुछा तो वो कुछ सोचने लगी और बोलीं; 'हज़रतगंज मार्किट!!!'
इस तरह हम शाम तक टहलते रहे, रात हुई और मॅडम ने जबरदस्ती डिनर भी करवाया.फिर हम वापस गाडी के पास आ रहे थे की मेरे पूरे जिस्म में बगावत छिड़ गई! मेरे हाथ-पैर कांपने लगे थे और उन्हें बस अपनी दवा यानी की दारु चाहिए थी. मैं मॅडम से अपनी ये हालत छुपाते हुए चल रहा था. गाडी में बैठ कर अभी कुछ दूर ही गए होंगे की मॅडम को शक हो गया; 'आर यू ऑल राईट?' उन्होंने पुछा तो मैंने ये कह कर टाल दिया की मैं बहुत थका हुआ हु. फिर आगे उन्होंने और कुछ कहा नहीं और मुझे सोसाइटी के गेट पर छोड़ा; 'अच्छा मैं तो तुम्हें एक बात बताना ही भूल गई. रियान इन्फोटेक याद है ना?”
मैंने हाँ में सर हिलाया. 'मेरी उनसे एक प्रोजेक्ट पर बात चल रही थी जिसके सिलसिले में 'हमें' न्यूयॉर्क जाना हे.'
'हम?' मैंने चौंकते हुए कहा.
'हाँ जी... हम! लास्ट प्रोजेक्ट पर तुमने ही तो सारा काम संभाला था!'
'पर मॅडम....' मेरे आगे कुछ कहने से पहले ही उन्होंने मेरे सामने हाथ जोड़ दिए;
'सागर प्लीज मान जाओ! देखो मैं इतना बड़ा प्रोजेक्ट नहीं संभाल सकती!'
'मॅडम .... मैं सोच कर कल बताता हु.'
'ओके ... तो कल सुबह १० बजे तैयार रहना!'
'क्यों?' मैंने फिर से चौंकते हुए पूछा.
'अरे यार! लखनऊ घुमाना है ना तुमने!' इतना कह कर वो हँसने लगी. मैं भी उनके इस बचपने पर हँस दिया और गुड नाईट बोल कर घर आ गया.घर घुसते ही मैंने सबसे पहले बोतल खोली और उसे अपने मुँह से लगा कर पानी की तरह पीने लगा, आधी बोतल खींचने के बाद मैं अपनी पसंदीदा जगह, बालकनी में बैठ गया.अब मेरा जिस्म कांपना बंद हो चूका था और अब समय था अभी जो मॅडम ने कहा उसके बारे में सोचने की. आज ३१ अक्टूबर था. २५ नवंबर को दिवाली और २७ नवंबर को अश्विनी की शादी थी. मुझे कैसे न कैसे इस शादी में शरीक नहीं होना था! तो अगर मैं मॅडम की बात मान लूँ तो मुझे विदेश जाना पड़ेगा और मैं इस शादी से बच जाऊँगा! ...... पर घर वाले मानेंगे? ये ख़याल आते ही मैं सोच में पड़ गया.इस बहाने के अलावा मेरे जहन में कोई और बहाना नहीं था. जो भी हो मुझे इसी बहाने को ढाल बना कर ये लड़ाई लड़नी थी. मन को अब थोड़ा चैन मिला था की अब मुझे इस शादी में तो शरीक नहीं होना होगा इसलिए उस रात मैंने कुछ ज्यादा ही पी.
अगली सुबह किसी ने ताबड़तोड़ घंटियां बजा कर मेरी नींद तोड़ी! मैं गुस्से में उठा और दरवाजे पर पहुँचा तो वहाँ मैंने नितु मॅडम को खड़ा पाया. उनके हाथों में एक सूटकेस था और कंधे पर उनका बैग, मुझे साइड करते हुए वो सीधा अंदर आ गईं और मैं इधर हैरानी से आँखें फाड़े उन्हें और उनके बैग को देख रहा था. 'मेरी फ्रेंड और उसके हस्बैंड आज सुबह वापस आ गए तो मुझे मजबूरन वहाँ से निकलना पडा. अब यहाँ मैं तुम्हारे सिवा किसी को नहीं जानती तो अपना समान ले कर मैं यहीं आ गई.' मैं अब भी हैरान खड़ा था क्योंकि मैं नहीं चाहता था की मेरे इस प्लेस ऑफ सोलीटुड में फिर कोई आ कर अपना घोंसला बनाये और जाते-जाते फिर मुझे अकेला छोड़ जाये. 'क्या देख रहे हो? मैंने तो पहले ही बोला था न की इफ आई एवर निड अ प्लेस टू क्रॅश, आई विल्ल लेट यू नो! ओह! शायद मेरा यहाँ आना तुम्हें अच्छा नहीं लगा?' इतना कह कर वो जाने लगीं तो मैंने उनके सूटकेस का हैंडल पकड़ लिया. 'आप मेरे वाले कमरे में रुक जाइये मैं दूसरे वाले में सो जाऊंगा.' फिर मैंने उनके हाथ से सूटकेस लिया और अपने कमरे में रखने चल दिया. मुझे जाते हुए देख कर मॅडम पीछे से अपनी चतुराई पर हँस दीं उन्होंने बड़ी चालाकी से जूठ जो बोला था!
मैं अपना समान बटोरने लगा था की तभी मॅडम अंदर आईं और बोलीं; 'कपडे ही तो हैं? पड़े रहने दो.... हाँ अगर कुछ अश्लील वाली चीजें हैं तो अलग बात है!' मॅडम ने जिस धड़ल्ले से अश्लील कहा था उसे सुन कर मेरी हवा टाइट हो गई! मुझे ऐसे देख कर मॅडम ने ठहाका मार के हँसना शुरू कर दिया. इसी बहाने से मेरी में हँसी निकल गई. मैंने अपने कपडे छोड़ दिए बस शराब की बोतले उठा कर बाहर निकलने लगा. मेरे हाथ में बोतल देख कर मॅडम की हँसी गायब हो गई और उदासी फिर से उनके चेहरे पर लौट आई. पर मैं इस बात से अनजान दूसरे कमरे में आ गया.इस कमरे में बस एक गद्दा पड़ा था. मैंने सारी खाली बोतलें डस्टबिन में डालीं और दो खाली बोतलें अपने सिरहाने रखी.इधर मॅडम ने किचन में खाने लायक चीजें देखनी शुरू कर दी, मैं अपने गद्दे पर चादर बिछा रहा था की मॅडम दरवाजे पर अपनी कमर पर हाथ रख कर खड़ी हो गईं; 'तुम कुछ खाते-वाते नहीं हो? किचन में चायपत्ती और कुछ नमकीन के आलावा कुछ है ही नहीं!' अब में उन्हें क्या कहता की मैं तो सिर्फ दारु पीता हूँ! 'चलो गेट रेडी, कुछ ग्रोसरी का समान लाते हैं.' अब मेरा मन घर से बाहर जाने का कतई नहीं था. तो मैंने अपने फ़ोन में एप खोल कर उन्हें दे दिया और मैं करवट ले कर लेट गया.मैंने ये तक नहीं सोचा की उस फ़ोन में मेरी और अश्विनी की तसवीरें हैं! मॅडम फ़ोन ले कर बाहर चली गईं और ग्रोसरी का समान आर्डर कर दिया. फिर उन्होंने फ़ोन गैलरी में फोटो देखनी शुरू कर दी. मेरा फोन मैने आज तक कभी किसी को नहीं दिया था इसलिए फ़ोन में किसी भी ऍप पर लॉक नहीं था. मॅडम ने सारी तसवीरें देखि, इधर जैसे ही मुझे होश आया की मॅडम फोटोज न देख लें तो में फटाफट बाहर आया और देखा मॅडम ग्रोसरी की पेमेंट वाले पेज पर पिन नंबर एंटर कर रहीं थी. मैं उनके पीछे चुप-चाप खड़ा रखा और जब उन्होंने पेमेंट कर दी तो मैंने उनसे फ़ोन माँगा. 'क्यों डर रहे हो? फ़ोन में अश्लील छुपा रखा है क्या?' मॅडम ने मजाक करते हुए कहा तो फिर से मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गई. मैं दुबारा सोने जाने लगा तो मॅडम ने रोक लिया; 'यार कितना सोओगे? रात में कहीं चौकीदारी करते हो? चलो बैठो यहाँ मैं चाय बनाती हु.' मैं चुप-चाप बालकनी में फर्श पर बैठ गया.ठंड का आगाज हो चूका था और हवा में अब हलकी-हलकी ठंडक महसूस की जा सकती थी और मैं इसी ठंडक को महसूस कर हल्का सा मुस्कुरा दिया. मैंने दोनों हाथों से कप पकड़ा और मॅडम भी मेरे सामने ही अपनी चाय ले कर बैठ गई. 'तो क्या सोचा न्यूयॉर्क जाने के बारे में?' मॅडम ने चाय की चुस्की लेते हुए पूछा. ये याद आते ही मैं बहुत गंभीर हो गया और मॅडम समझ गईं की मैं मना कर दूँगा, इसलिए मॅडम का चेहरा मुरझा गया; 'कब जाना है?' मैंने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा तो मॅडम के चेहरे पर ख़ुशी फिर से लौट आई. '२० नवंबर को पहले बैंगलोर जाना है, वहाँ से मुझे अपना समान लेना है और फिर वहाँ से मुंबई और फिर फाइनल स्टॉप न्यूयॉर्क!' मॅडम ने एक्साईटेड होते हुए कहा और उनके चेहरे की ख़ुशी मुझे सुकून देने लगी थी. ऐसा लगा मानो किसी अपने को ख़ुशी दे रहा हूँ और उनकी ख़ुशी से मुझे भी ख़ुशी होने लगी.
कुछ देर बाद ग्रोसरी का सारा समान आ गया, इतना समान अपने सामने मैं कई दिनों बाद देख रहा था. मैं उठ कर नहाने गया और मॅडम ने किचन संभाल लिया, नहा के आते-आते उन्होंने नाश्ता बना लिया था. मॅडम ने एक प्लेट में आधा परांठा मुझे परोस कर दिया. 'मॅडम मुझे भूख नहीं लगती, आप क्यों मेरे लिए तकलीफ उठा रहे हो! आप खाइये!'
'क्या भूख नहीं लगती? अपनी हालत देखि है? अच्छी खासी बॉडी थी और तुमने उसकी रैड मार दी है! कहीं मॉडलिंग करने जाना है जो वेट लॉस कर रहे हो?!' मॅडम ने प्यार से मुझे डाँटा और एक बार फिर मेरी हँसी निकल गई. दरअसल ये मॅडम का गेम प्लान था. मुझे इस तरह छेड़ना और प्यार से डाँटना ताकि मैं थोड़ा मुस्कुराता रहूँ, पर मैं उनके इस गेम प्लॅन से अनविज्ञ था! मैंने परांठे का आधा हिस्सा मॅडम को दे दिया और बाकी का हिस्सा ले कर मैं वापस बालकनी में बैठ गया.मॅडम भी अपना परांठा ले कर मेरे पास बैठ गईं और मुझे प्रोजेक्ट के बारे में बताने लगी. इस बार मैं बड़े गौर से उनकी बातें सुन रहा था. 'वैसे हम जा कितने दिन के लिए रहे हैं?' मैंने पुछा तो उन्होंने २० दिन कहा और मैं उसी हिसाब से सोचने लगा की घर पर मुझे कितने दिन का बताना हे. 'और एक्सपेंसेस?' मैंने पुछा क्योंकि मेरे पास सवा चार लाख बचे थे, और बाकी मैं शराब और नए फ्लैट के चक्कर में फूँक चूका था! 'उसकी चिंता मत करो वो सब रीइमबर्स हो जायेगा!'
इसके अलावा मैंने उनसे कुछ नहीं पूछा. नाश्ते के बाद हम इधर-उधर की बातें करते रहे और लैपटॉप पर कुछ डिस्कशन करने लगे. तभी मॅडम के लैपटॉप की बैटरी डिस्चार्ज हो गई और उन्होंने मुझसे मेरा लैपटॉप माँगा और उस पर वो मुझे कुछ साइट्स दिखाने लगीं जिनके साथ उन्होंने थोड़ा-थोड़ा काम किया था. मैं दो मिनट के लिए गया तो मॅडम ने मेरा लैपटॉप सारा चेक कर मारा और उन्हें वो सब बुकमार्क चेक कर लिए जो मैंने मार्क किये थे रेंट पर घर लेने के लिए, साथ ही उन्होंने जॉब ओपनिंग भी देख ली थीं और वो अब धीरे-धीरे सब समझने लगी थी. जो वो नहीं समझ पाईं थी वो था मेरा और आशु का रिश्ता! मेरे वापस आने तक उन्होंने सारी विंडोज क्लोज कर दी थी और उन्हें हिस्ट्री से भी डिलीट कर दिया था! जब मैं वापस आया तो मॅडम ने फिर से मेरी टाँग खींचते हुए कहा; 'यार तुम तो बढ़िया वाली अश्लील फिलमे देखते हो?' ये सुनते ही मैं चौंका क्योंकि कई महीनों से अश्लील फिलमे देखा ही नहीं था. 'नहीं तो! बड़े दिन हुए......' इतना मुंह से निकला और मुझे एहसास हुआ की मैंने कुछ ज्यादा बोल दिया. मॅडम मेरा रिएक्शन देख कर जोर-जोर से हँसने लगी. उनकी देखा-देखि मेरी भी हँसी निकल गई. दोपहर हुई और मॅडम ने खाना बना दिया और मुझे आवाज दी, हम दोनों अपनी-अपनी प्लेट ले कर फिर वहीँ बैठ गये. मैंने बड़ी मुश्किल से एक रोटी खाई और जैसे ही मैं उठने को हुआ तो मम ने मेरा हाथ पकड़ कर वापस बिठा दिया. 'हेल्लो मिस्टर इतनी मन मनाई नहीं चलेगी, चुप कर के दो रोटी और खाओ! सुबह भी आधा परांठा खाया है और अब बस एक रोटी?!' मॅडम ने फिर से प्यार से मुझे डांटा.
'मॅडम क्या करूँ इतना प्यार भरा खाना खाने की आदत नहीं है!' मुझे नहीं पता की मेरे मुँह से ये क्यों निकला, शायद ये मॅडम का असर था जो मुझ पर अब दिखने लगा था.
'तो आदत डाल लो!' मॅडम ने हक़ जताते हुए कहा और मैं भौएं सिकोड़ कर हैरानी से उनकी तरफ देखने लगा. उनका ये कहना की आदत डाल लो का मतलब क्या था? तभी मॅडम ने मेरा ध्यान भंग करने को एक रोटी और परोस दी. चूँकि मैंने अभी पी नहीं थी इसलिए अब दिमाग बहुत ज्यादा अलर्ट था और आज सुबह से जो हो रहा था उसका आंकलन करने लगा था. मैं सर झुका कर चुप-चाप खाना खाने लगा, मॅडम का खाना हो चूका था इसलिए वो मुझसे नजरें चुराती हुई चली गई. मेरा दिल अब किसी और को अपने नजदीक नहीं आने देना चाहता था. फिर न्यूयॉर्क वाले ट्रीप के बाद उन्होंने बैंगलोर चले जाना था और मैंने फिर वापस यहीं लौट आना था तो फिर इतनी नजदीकियाँ क्यों? ये दूसरीबार था जब मॅडम मेरे नजदीक आना चाहती थीं, पहली बार तब था जब हम मुंबई में थे और मैंने उन्हें अपने गाँव के रीती-रिवाज के डर की आड़ में उन्हें अपने नजदीक नहीं आने दिया था. इस बार भी मुझे फिर उसी डर का सहारा लेना था ताकि वो मेरे चक्कर में अपनी जिंदगी बर्बाद ना करें और मैं यहाँ अकेला चैन से घुट-घुट कर मरता रहु. मैंने सोचा अगली बार उन्होंने मुझे ऐसा कुछ कहा तो मैं उन्हें समझा दूंगा. अगर मुन्ना मेरी जिंदगी में नहीं आया होता तो शायद मैं मॅडम की तरफ बह जाता पर मुन्ना के आने के बाद मैंने एक बहुत जरुरी सबक सीखा था! मैं अभी इसी उधेड़-बन में था की मॅडम मेरी प्लेट लेने आ गई. पर मैंने उन्हें अपनी प्लेट नहीं दी बल्कि खुद उठा कर किचन में चल दिया. वहाँ से निकल कर मैंने देखा तो मॅडम बालकनी में बैठीं थी और उनकी आँखें बंद थी. मुझे लगा वो सो रही हैं, इसलिए मैं अपने कमरे में चला गया.कमरे में मेरे सिरहाने पड़ी बोतल पर ध्यान गया तो सोचा की एक घूँट पी लेता हूँ पर ख्याल आया की मॅडम यहाँ हैं, ऐसे में मेरा पीना उन्हें अनकंफर्टेबल महसूस करवाएगा.पर अब कुछ तो नशा चाहिए था. क्योंकि मेरे हाथ-पैर थोड़ा कांपने लगे थे! इसलिए मैंने सिगेरट और माल उठाया और चुप-चाप छत पर आ गया.वहाँ बैठ कर मैंने माल भरा और तसल्ली से सिगरेट पी और वहीँ दिवार से पीठ लगा कर बैठ गया.शाम के ४ बजे मैं नीचे आया तो मॅडम अब भी वैसे ही सो रही थीं बस ठंड के कारण वो थोड़ा सिकुड़ीं हुई थी. मैंने अंदर से एक चादर निकाली और उन पर डाल दी, फिर मैं चाय बनाने लगा. चाय की खुशबु सूंघ कर मदत अंगड़ाई लेते हुए उठी. जाने क्यों पर उन्हें ऐसे अंगड़ाई लेते देख मुझे अश्विनी की याद आ गई. मैं दोनों हाथों में चाय का कप पकडे वहीँ रुक गया, अब तक मॅडम ने मुझे देख लिया था इसलिए वो खुद आईं और मेरे हाथ से चाय का कप ले लिया.
शायद मॅडम ये भाँप गई थीं की मैं उनकी दोपहर की बात का बुरा मान चूका हूँ, इसलिए हम दोनों में फिलहाल कोई बात नहीं हो रही थी. रात का खाना बनाने के बहाने से मॅडम ने बात शुरू की; 'सागर रात को खाने में क्या बनाऊँ?'
'बाहर से मंगा लेते हैं!' मैंने कहा और फ़ोन पर देखने लगा की उनके लिए क्या मँगाऊँ? पर मॅडम बोलीं; 'क्यों मेरे हाथ का खाना पसंद नहीं आया तुम्हें?'
'ऐसी बात नहीं है मॅडम .... आप यहाँ खाना बनाने थोड़े ही आये हो!' मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा.
'पर मैंने लोबिया भिगो दिए थे!' मॅडम ने मुँह बनाते हुए कहा, ये सुनकर मैं जोर से हँस पडा. उन्हें समझ नहीं आया की मैं क्यों हँस रहा हूँ पर मुझे हँसता हुआ देख वो बहुत खुश थी.
'मॅडम जब आपने पहले से लोबिया भिगो दिए थे तो आपने पुछा क्यों की क्या बनाऊँ?' ये सुन कर मॅडम को पता चला की मैं क्यों हँस रहा था और अब उन्होंने अपना माथा पीटते हुए हँसना शुरू कर दिया.
'बिलकुल मम्मी की तरह!' इतना कहते हुए उनकी हँसी गायब हो गई और सर झुका कर वो उदास हो गई. उनकी आँख से आँसू का एक कतरा जमीन पर पड़ा, मैं एक दम से उठा और उनके कंधे पर हाथ रख कर उन्हें सांत्वना देने लगा. फिर मैंने उनका हाथ पकड़ा और उन्हें कुर्सी पर बिठाया.
“क्या किसी इंसान को खुश होने का हक़ नहीं है? स्कूल से ले कर शादी तक मैंने वो हर एक चीज की जो मेरे मम्मी-डैडी ने चाही. दसवी के बाद मुझे साइंस लेनी थी पर मम्मी-डैडी ने कहा कॉमर्स ले लो, फिर मुझे डी.यु. जाना था तो मुझे करेकपॉन्डेंस में एडमिशन दिलवा दिया ये बोल कर की कौन सा तुझे जॉब करनी है! उसके बाद सीधा शादी के लिए मेरे सामने एक लड़का खड़ा कर दिया और कहा की ये तेरा जीवन साथी हे. मैंने वो भी मान लिया पर वो ही अगर धोकेबाज निकला तो इसमें मेरा क्या कसूर है? वो मुझे कैसे कह सकते हैं की निभा ले?! जब मैंने मना किया और डाइवोर्स ले लिया तो मुझे जलील कर दिया! इतनी जल्दी माँ-बाप अपने जिगर के टुकड़े को खुद से काट कर अलग कर देते हैं?' ये कहते हुए मॅडम रोने लगीं, मुझसे उनका ये दुःख देखा नहीं गया तो मैं उनके साथ बैठ गया और उनके कंधे पर हाथ रख कर उन्हें शांत करने लगा. उन्होंने अपना मुँह मेरे कंधे से लगाया और रोने लगी. मैं बस उनका कन्धा सहलाता रहा ताकि वो शांत हो जाये. मेरा मन कहने लगा था की हम दोनों ही चैन से जीना चाहते है, एक को माँ-बाप ने छोड़ दिया तो दूसरे को उसकी मेहबूबा ने छोड़ दिया. हालाँकि तराजू में मॅडम का दुःख मेरे दुःख से की ज्यादा बड़ा था पर कम से कम उन्होंने अपनी जिंदगी दुबारा शुरू तो कर ली थी और वहीँ मैं अपने गम में सड़ता जा रहा था.
कुछ देर बाद वो चुप हुईं और मेरे कंधे से अपना चेहरा हटाया, जहाँ उनका मुँह था वो जगह उनके आंसुओं से गीली हो गई थी. अब उन्हें हँसाने की जिम्मेदारी मेरी थी. पर जो इंसान खुद हँसना भूल गया हो वो भला दूसरों को क्या हसायेगा? 'मॅडम मैने आपको पहले भी कहा था न की आप के चेहरे पर हँसी अच्छी लगती है, आँसू नहीं!' मॅडम ने तुरंत मेरी बात मान ली और अपने आँसू पोछ कर मुस्कुरा दी. फिर मॅडम ने खाना बनाया और उनका दिल रखने के लिए मैंने दो रोटी खाईं, कुछ देर तक हम दोनों बालकनी में खड़े रहे और फिर सोने चले गये. बारह बजे तक मैंने सोने की बहुत कोशिश की, बड़ी करवटें ली पर नींद एक पल के लिए नहीं आई. मॅडम की मौजूदगी में मेरा दिमाग मुझे पीने नहीं दे रहा था पर मन बेचैन होने लगा था. हाथ-पाँव फिर से कांपने लगे थे और अब तो बस दारु चाहिए थी.
हार मान कर मैं उठा और सोचा की ज्यादा नहीं पीयूँगा, जैसे ही मैंने अपने सिरहाने देखा तो वहाँ से बोतलें गायब थी. मैं समझ गया की ये मॅडम ने ही हटाईं हैं, मैं गुस्से में बाहर आया और मॅडम के कमरे में झाँका तो पाया वो सो रही हे. किसी तरह मैंने गुस्सा कण्ट्रोल किया और किचन में बोतले ढूँढने लगा. अभी २४ घंटे हुए नहीं इन्हें आये और इन्होने मेरी जिंदगी में उथल-पुथल मचाना शुरू कर दिया. ये शराब की ललक थी जो मेरे दिमाग पर हावी हो कर बोल रही थी! मेरा दिमाग भी यही चाह रहा था की मॅडम ने वो बोतलें फेंक दी हों ताकि आज मैं दारु पीने से बच जाऊँ, ये तो कम्बख्त मन तो जिसे दारु का सहारा चाहिए था! सबसे ऊपर की शेल्फ पर मुझे बोतल मिल ही गई और मैंने फटाफट गिलास में डाली और उसे पीने ही जा रहा था की पीछे से एक आवाज मेरे कान में पड़ी; 'प्लीज.... मत पियो....' इस आवाज में जो दर्द था उसने जाम को मेरे होठों से लगने नहीं दिया. मैंने सबसे पहले लाइट जलाई और पलट कर देखा तो मॅडम आँखों में आँसू लिए मेरी तरफ देख रही थी. उन्होंने ना में गर्दन हिलाई और मुझे पीने से मना करने लगी. ऐसा लगा जैसे बहुत हिम्मत कर के वो मुझे रोक रहीं हों, उनके हाव-भाव से मुझे डर भी साफ़ दिख रहा था. एक शराबी को दारु पीने से रोकना इतना आसान नहीं होता, क्योंकि शराब की ललक में वो कुछ नहीं सुनता और किसी को भी नुकसान पहुँचा सकता हे. पर मैं अभी उस हद्द तक नहीं गिरा था की उन पर हाथ उठाऊँ!
मैंने चुप-चाप गिलास किचन स्लैब पर रख दिया और सर झुका कर अपने अंदर उठ रही शराब पीनी की आग को शांत करने लगा. मेरा ऐसा करने का करना था मॅडम के आँसू, जिन्होंने मेरे जलते हुए कलेजे पर राहत के कुछ छींटें मारे थे. मॅडम डरती हुई मेरे नजदीक आईं और मेरे कांपते हुए दाएं हाथ को पकड़ कर धीरे से मुझे हॉल की कुर्सी पर बिठाया. फिर मेरे सामने वो अपने घुटनों के बल बैठ गईं और आँखों में आँसू लिए हिम्मत बटोर कर बोलीं; 'सागर....मैं जानती हूँ तुम अश्विनी को कितना प्यार करते थे!' ये सुनते ही मैंने हैरानी से उनकी आंखों में देखा, पर इससे पहले मेरे लब कोई सवाल पूछते उन्होंने ही सवाल का जवाब दे दिया; 'मुझे प्रफुल ने कल बताया. मैं नहीं जानती की क्यों तुम दोनों अलग हुए पर इतना जरूर जानती हूँ की उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं हो सकती. वो ही तुम्हें समझ नहीं सकी, इतना प्यार करने वाला उसे कहाँ मिलेगा? पर वो तो मुव्ह ऑन कर गई ना? फिर तुम क्यों अपनी जान देना चाहते हो? मैंने तुम्हारी सारी मेडिकल रिपोर्ट्स पढ़ी हैं, तुम ने अगर पीना बंद नहीं किया तो मैं अपना सबसे प्यारा दोस्त खो दूँगी!' मॅडम ने मेरे दोनों गालों को अपने दोनों हाथों के बीच रखते हुए कहा. ये सब सुन कर मैं फिर से टूट गया; 'मॅडम ... अगर नहीं पीयूँगा तो वो और याद आएगी और मैं सो नहीं पाऊँगा. चैन से सो सकूँ इसलिए पीता हूँ!' मैंने ने रोते हुए कहा. ये सब मेरे दिमाग की उपज थी जो मुझे पीना नहीं छोड़ने देना चाहती थी और मॅडम ये जानती थी.
'तुम इतने भी कमजोर नहीं हो! ये तुम्हारे अंदर का डिप्रेशन है जो तुम्हें खुल कर साँस नहीं लेने दे रहा. फिर मैं हूँ ना यहाँ पर? आई प्रॉमिस मैं तुम्हें इस बार छोड़ कर कहीं नहीं जाउंगी. एक बार गलती कर चुकी हूँ पर दुबारा नहीं करुँगी! हम दोनों साथ-साथ ये लड़ाई लड़ेंगे और जीतेंगे भी.' मॅडम ने मेरी आँखों में देखते हुए कहा और ना चाहते हुए भी मैं उनकी बातों पर विश्वास करने लगा. वैसे भी मेरे पास खोने के लिए बस मेरी एक जान ही रह गई थी!
मॅडम ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे उठा कर अपने साथ अपने कमरे में ले गईं, वो पलंग के सिरहाने बैठ गईं और मुझे उनकी गोद में सर रखने को कहा. मैं उस वक़्त अंदर से इतना कमजोर था की मुझे अब किसी का साथ चाहिए था जो मुझे इस दुःख के सागर से निकाल कर किनारे लाये. मॅडम की वो गोद मेरे लिए कश्ती थी. ऐसी कश्ती जिसका सहारा अगर मैं ना लिया तो मैं पक्का डूब जाऊंगा. जब इंसान डूबने को होता है तो उसकी फायटींग स्पिरीट सामने आती है जो उसे आखरी सांस तक लड़ने में मदद करती है और यही वो स्पिरीट थी जिसने मुझे मॅडम की गोद में सर रखने को कहा. मैं भी उनकी गोद में सर रख कर सिकुड़ कर लेट गया.मेरी आँखें अब भी खुली थीं और वो सामने दिव्वार पर टिकी थी. दिल पिघलने लगा था और उसमें से आँसू का कतरा बहा और बिस्तर पर गिरा. मॅडम जिनकी नजर मुझ पर बनी हुई थी. उन्होंने मेरे आँसू पोछे और बोलीं; 'सागर एक रिक्वेस्ट करूँ?'मैंने हाँ में सर हिलाया. 'प्लीज मुझे मेरे नाम से बुलाया करो, तुम्हारे मुँह से 'मॅडम' सुनना मुझे अच्छा नहीं लगता.' मैंने फिर से हाँ में सर हिलाया.
'नितु' ने मेरे बालों में हाथ फेरना शुरू किया, ये एहसास मेरे लिए जादुई था. मन शांत हो गया था और आँखें भारी होने लगी थीं, धीरे-धीरे मैं नींद के आगोश में चला गया.पर जिस्म को नशे की आदत हो गई थी इसलिए तीन बजे मेरी आँख फिर खुल गई. कमरे में अँधेरा था और इधर मेरा गला शराब की दरक़ार करने लगा था. दिल की धड़कनें अचानक ही तेज हो गई थीं, हाथ-पैर फिर से कांपने लगे थे अब बस दारु चाहिए थी ताकि मैं खुद को काबू में कर सकू. मैं धीरे से उठा और कमरे से बाहर आया और किचन स्लैब पर देखा जहाँ मेरा जाम मुझे देख रहा था और अपनी तरफ बुला रहा था. मेरे कदम अपने आप ही उस दिशा में बढ़ने लगे, काँपते हाथ अपने आप ही जाम को थाम कर उठा चुका था. पर कहते हैं ना की जब हम कोई गलत काम करते हैं तो हमारी अंतर्-आत्मा हमें एक बार रोकती जरूर हे. मैं एक पल के लिए रुका और मेरी अंतर्-आत्मा ने मुझे गाली देते हुए कहा; 'वहाँ नितु तुझे इस गम से निकालने के लिए इतना त्याग कर रही है और तू उसे ही धोका देने जा रहा है? भला तुझमें और अश्विनी में फर्क ही क्या रहा?' ये ख़याल आते ही मुझे खुद से नफरत हुई, क्योंकि मेरे लिए सिर्फ और सिर्फ अश्विनी ही दोषी थी और मेरी इस हालत की जिम्मेदार भी वही थी! मेरा कुछ भी ऐसा करना जिसके कारन मैं उसके जैसा बन जाऊँ उससे अच्छा था की मर जाऊ. मैंने वो गिलास किचन सिंक में खाली कर दिया. पता नहीं क्यों पर मुझे ऐसा लगा जैसे नाली में गिरती वो दारु मुझे गालियाँ दे रही हो और कह रही हो; 'जब कोई नहीं था तेरे पास तब मैं थी! आज जब नितु आ गई तो तू मुझे नाली में बहा रहा है? जब ये भी छोड़ कर जायेगी तब मेरे पास ही आएगा तू!'
'कभी नहीं आऊँगा तेरे पास, मर जाऊँगा पर नहीं आऊँगा! बहुत तिल-तिल कर मर लिया अब फिर तुझे कभी अपने मुँह नहीं लगाऊँगा. तूने सिर्फ मुझे जलाया ही है, कोई एहसान नहीं किया मुझ पर! एक इंसान मुझे सहारा दे कर संभालना चाहता है और तू चाहती है मैं भी उसे धोका दूँ?' मैं जोश-जोश में ऊँची आवाज में बोल गया इस बात से अनजान की नितु ने पीछे खड़े हो कर ये सब देख और सुन लिया हे. जब मैं पलटा तो नितु की आँखें भरी हुई थीं, उन्होंने मेरे काँपते हुए हाथों को पकड़ा और आ कर मेरे सीने से लग गईं और बोलीं; 'शुक्रिया!!!' इसके आगे वो कुछ नहीं बोलीं, फिर मुझे वापस पलंग पर ले गईं और मुझे अपने गोद में सर रख कर लेटने को कहा. एक बार फिर मैं उस प्यार की गर्माहट में लेट गया पर नींद आना इतना आसान नहीं था. 'आई एम प्राउड ऑफ यू!” ये कहते हुए उन्होंने मेरे माथे को चूमा और मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ फेरने लगी. नितु का ये किस मेरे पूरे शरीर को झिंझोड़ गया, पुराना सागर अब जाग गया था और वो अब वापस आने को तैयार था! पर अंदर से मेरा पूरा जिस्म काँप रहा था और नितु बस मन ही मन प्रार्थना कर रही थीं की ये रात कैसे भी पार हो जाए ताकि वो कल सुबह मुझे हॉस्पिटल ले जा सके. जागते हुए दोनों ने रात गुजारी और सुबह होते ही उन्होंने मुझे फ्रेश होने को कहा, उन्होंने चाय और नाश्ता बनाया. मेरा शरीर अब बुरी तरह कांपने लगा था. जिस्म से पसीना आने लगा था और मुझे थकावट भी बहुत लग रही थी. नहाने का जैसे कोई असर ही नहीं पड़ा था मुझ पर, मुझसे तो ठीक से बैठा भी नहीं जा रहा था. नितु ने बड़ी मुश्किल से मुझे नाश्ता कराया और कटोरी से धीरे-धीरे चाय पिलाई. घर से निकलना आफत हो गई थी ऐसा लगा जैसे की कोई भूत-बाधा वाला मरीज भगवान के डर से बाहर नहीं आना चाहता हो.
'एम्बुलेंस बुलाऊँ?' नितु ने पुछा तो मैंने ना में सर हिला दिया और कहा; 'इतनी जल्दी हार नहीं सागरँगा! आप कैब बुला लो!' कैब आई और मैं सीढ़ियों पर बैठते-बैठते नीचे उतरा और आखिर हम हॉस्पिटल पहुंचे. नितु ने वहाँ इमरजेंसी में मुझे उसी डॉक्टर से मिलवाया और वो मेरी ये हालत देख कर समझ गया.'सी आई टोल्ड यू!' उसने फटाफट जो औपचारिकताएं थी वो पूरी कीं और वही टेस्ट दुबारा दोहराये. रिपोर्ट आने तक उसने मुझे आराम करने को कहा और एक बेड दे दिया. पर मैंने मना कर दिया; 'सर आई एम अ फायटर! अभी इस पर लेटने का समय नहीं आया. मैं बाहर वेट करता हूँ!' डॉक्टर और नितु मेरे अंदर ये पॉजिटिव चेंज देख कर बहुत खुश थे. रिपोर्ट्स आने के बाद डॉक्टर ने हमें वापस अंदर बुला लिया और बिठा कर बताने लगा; 'सागर आई एम अफ्रेड रिपोर्ट आर नॉट गुड! योवर लीवर इज ड्यामेज ….. यू हॅव क्रायहोसिस ऑफ लीवर!!! यू कान्ट गो बॅक टू ड्रिंकिंग ऑर एल्स यू आर गोना डाई!” ये बात नितु के लिए बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था इसलिए वो रो पडी. मैंने उनके कंधे पर हाथ रखा; 'हे! आई एम डाईंग!' मैंने थोड़ा मजाक करते हुए कहा.
'इज शी यू आर वाइफ?” डॉक्टर ने पूछा. तो मैंने मुस्कुराते हुए कहा; 'शी इज दीं वन हु किपिंग मी अलाईव!”
“देन मॅडम इट्स गोना बी वन फाइट फॉर यू! एज यू कॅन सी दीं कोंस्टांट शिवरिंग, इट्स बिकाज हिज बॉडी इज एडिक्टेड टू दीं इनटॉक्सीकेशन ही इज बिन टेकिंग फॉर सच अ लाँग टाइम. नाऊ दॅट ही इज स्टॉप, हिज बॉडी इज क्रेविंग फॉर इट! हिज बॉडी विल् रिजेक्ट एनी मेडिकेशन वी गिव बट, यू हॅव टू मेक शुअर ही टेक मेडीसिन ऑन टाइम. अल्सो, वेरी सो ऑन.... यू विल सी दीं विड्रावल सिंपटम! ही इज गैनिंग टू रियाक्ट अँड बाय रियाक्ट.आई मीन ...!ही माईट बीकम वायलंट. कीप एन आय ऑन हिम कौज आई नो ही विल् स्टार्ट ड्रिंकिंग अगैन! यू हॅव टू कीप अल्कोहोल अवे फ्रॉम हिम एट एनी कॉस्ट ऑर यू विल लूज योवर बेस्ट फ्रेंड! ही अल्सो निड अ थेरेपिस्ट सो ही कॅन इज दीं प्रेशर ऑन हिज ह्याड, ही सिम अ वेरी इमोशनल पर्सन अँड ही विल एवेनचुअली ह्याव अ नर्व्हस ब्रेकडाऊन! एट दॅट टाइम डू टेक केयर ऑफ हिम, दीं थेरेपिस्ट विल् राईट सम मेडिकेशन टू इज हिज मेंटल प्रेशर अँड कीप हिम इन चेक. आई एम राईटींग सम सिरप अँड क्यापसुल फॉर हिज लीवर एज वेल एज हिज एपेटाईट. होम कुक फूड ओन्ली! नो ओयली फूड, फास्ट फूड ऑर एनीथिंग. नॉर्मल होम कुक फूड ओन्ली. अल्सो, ही कंपलेन अबाउट स्लीप डेप्रीवेशन सो आई एम राईटींग वन स्लीपिंग पिल, डू नॉट इंक्रिज दीं डोज अंडर एनी कंडीशन!” डॉक्टर ने बड़ी ही सख्त हिदायतें दी थीं और ये सुन कर ही पालन करने से डर लगने लगा था.
'कितना टाइम लगेगा इस में?' मैंने पुछा तो डॉक्टर ऐसे हैरान हुआ जैसे मैं कोई तुर्रमखाँ हु.
'इट वॉन्ट बी इजी! इफ यू फॉलो माई एडव्हाइस प्रोपरली देन एट लिस्ट अ इअर!” डॉक्टर ने गंभीर होते हुए कहा. पर मुझे अपने ऊपर पूरा विश्वास था की मैं ये कर लूँगा..... ब्लडी ओव्हरकॉन्फिडन्स!
हॉस्पिटल से लौटते-लौटते शाम के ४ बज गए थे, नितु ने आते ही चाय बनानी शुरू कर दी और मैं उनसे बात करने लगा. जब से नितु आई थी वो बस घर में खाना ही बना रही थी. मुझे बड़ा बुरा लग रहा था की मेरी वजह से उन्हें ये तकलीफ उठानी पड़ रही हे. मैंने सिक्योरिटी गार्ड को फ़ोन कर के कहा की वो कोई काम करने वाली भेज दे, नितु ने जब ये सुना तो वो बोली; 'क्या जरुरत है? मैं कर रही हूँ ना सारा काम?'
'खाना बनाने तक तो ठीक है पर ये बर्तन धोना, झाडू-पोछा और कपडे धोना मुझे पसंद नहीं, ये काम कोई और कर लेगा. आप बस टेस्टी-टेस्टी खाना बनाओ!' मैंने हँसते हुए कहा.
'अच्छा मेरे हाथ का खाना इतना पसंद है? ठीक है तो फिर आज से एक रोटी एक्स्ट्रा खानी होगी!' नितु की बात सुन कर मैं अपनी ही बात में फँस गया था. मैं मुस्कुरा दिया और अपने कमरे में जा कर लेट गया.लेटे-लेटे मैं सोच रहा था की मुझे घर भी जाना है ताकि वहाँ जा कर मैं विदेश जाने का कारन बता कर शादी से अपनी जान बचा सकूँ! पर इस हालत में जाना, मतलब वो लोग मुझे कहीं जाने नहीं देंगे. दिन कम बचे थे और मुझे जल्द से जल्द ठीक होना था. रात को खाने के बाद नितु ने मुझे दवाई दी और मैं थोड़ा वॉक करने के बाद अपने कमरे में सोने जाने लगा. 'वहाँ कहाँ जा रहे हो?' नितु ने पुछा, मैंने इशारे से उन्हें कहा की मैं सोने जा रहा हु. 'नहीं....रात में तबियत खराब हुई तो?' नितु ने चिंता जताते हुए कहा.
'कुछ नहीं होगा? अगर तबियत खराब हुई तो मैं आपको उठा दूंगा.'
'तुम्हें क्या प्रॉब्लम है मेरे साथ इस कमरे में सोने में?' नितु ने अपनी कमर पर दोनों हाथ रखते हुए पूछा.
'यार! अच्छा नहीं लगता आप और मैं एक ही रूम में, एक ही बेड पर!'
'ओ हेल्लो मिस्टर! आई एम सिंगल समझे! अपनी ये सभ्यता है न अपने पास रखो!' नितु ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा.
'तभी तो दिक्कत है? आप सिंगल, मैं सिंगल फिर .... यू नो ... शादी हुई होती तो बात अलग होती!' मैंने भी नितु की टाँग खींची!
'अच्छा? चलो अभी करते हैं शादी?' नितु ने मेरा हाथ पकड़ा और बाहर जाने के लिए तैयार हो गई. हम दोनों ने इस बात पर खूब जोर से ठहाका लगाया! ५ मिनट तक नॉन-स्टॉप हँसने के बाद नितु बोली; 'चलो सो जाओ!' उन्होंने जबरदस्ती मुझे अपने कमरे में सोने के लिए कहा. मैं भी मान गया और जा कर एक तरफ करवट ले कर लेट गया और नितु दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गई. दवाई का असर था तो मैं कुछ देर के लिए बड़े इत्मीनान से सोया पर असर ज्यादा देर तक नहीं रहा और २ बजे मेरी आँख खुल गई और उसके बाद करवटें बदलते-बदलते सुबह हुई.
सुबह नितु ने उठते ही देखा की मैं आँखें खोले छत को देख रहा हूँ; 'गुड मॉर्निंग! सोये नहीं रात भर?'
'दो बजे के बाद नींद नहीं आई, इसलिए जागता रहा.' मैंने उठ के बैठते हुए कहा. तभी नितु की नजर मेरे काँपते हुए हाथों पर पड़ी और उनकी चिंता झलकने लगी. मैं धीरे-धीरे उठा क्योंकि मुझे लग रहा था की कहीं चक्कर आ गया तो! फ्रेश हो कर मैं बालकनी में कुर्सी पर बैठ गया और नितु चाय बना कर ले आई. 'अच्छा थेरेपिस्ट के पास कब जाना है?' नितु ने पूछा. ये सुनते ही मेरी आंखें चौड़ी हो गईं, मैं जानता था की थेरेपिस्ट के पास जाने के बाद मुझे उसे सब बातें बतानी होंगी और ये सब बताना मेरे लिए आसान नहीं था. 'प्लीज...मुझे थेरेपिस्ट के पास नहीं जाना!' मैंने मिन्नत करते हुए कहा. 'पर क्यों?' नितु ने चिंता जताते हुए कहा.
'प्लीज...मैं नहीं जाऊँगा.... तुम जो कहोगी वो करूँगा पर वहाँ नहीं जाऊंगा.' मैं किसी भी हालत में ये सच किसी के सामने नहीं आने देना चाहता था क्योंकि ये सुन कर डॉक्टर और नितु दोनों ही मेरे बारे में गलत सोचते और मैं खुद को गलत साबित होने नहीं देना चाहता था. अब मुझमें इतनी ताक़त नहीं थी की मैं किसी को अपनी सफाई दूँ पर उनकी सोच मुझे जरूर चुभती!
'ठीक है...मैं एक बार डॉक्टर से बात करती हूँ!'
नाश्ता बनाने का समय हुआ तो नितु ने एक पतला सा परांठा बनाया, जैसे ही उन्होंने मुझे परोस कर दिया मैंने तुरंत उसके दो टुकड़े किये और आधा टुकड़ा उठा लिया. पर नितु को मुझे डराने का स्वरनािम मौका मिल चूका था. उन्होंने आँखें तर्रेर कर कहा; 'थेरेपिस्ट के जाना है?' ये सुनते ही मैं डरने का नाटक करते हुए ना में सर हिलाने लगा. 'तो फिर ये पूरा खाओ!' मैंने डरे सहमे से बच्चे की तरह वो बचा हुआ टुकड़ा उठा लिया, मेरा बचपना देख उन्हें बहुत हँसी आई. उनके चेहरे की हँसी मेरे दिल को छू गई. ऐसा लगा जैसे बरसों बाद उन्हें हँसता हुआ देख रहा हु. नाश्ते के बाद गार्ड एक काम करने वाली को ले आया और नितु ने चौधरी बनते हुए उससे सारी बात की और उसे आज से ही काम पर रख लिया. उसने काम शुरू कर दिया था और मुझे अचानक से दीदी और मुन्ना की याद आ गई. मैं एक पल के लिए खमोश हो गया और मुन्ना को याद करने लगा. उस नन्हे से बच्चे ने मुझे दो दिन में ही बहुत सी खुशियाँ दे दी थीं, पता नहीं वो कहा होगा और किस हाल में होगा? नितु ने जब मुझे गुमसुम देखा तो वो मेरे बगल में बैठ गईं और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोलीं; 'क्या हुआ?' उनका इतना प्यार से बोलना था की मैंने उन्हें मुन्ना और दीदी के बारे में सब बता दिया. वो मेरा दुख समझ गईं और मुझे संत्वना देने लगी.... दोपहर हुई और फिर वही उनका मुझे थेरेपिस्ट के नाम से डराना जारी रहा. शाम को उन्होंने बताया की डॉक्टर बोल रहा है की मुझे थेरेपिस्ट के पास जाना पडेगा. पर मेरे जिद्द करने पर वो कुछ सोचने लगीं और बोलीं की हफ्ते भर के लिए वो जो-जो कहें मुझे करना होगा, मेरे लिए तो थेरेपिस्ट के बजाए यही सही था. मैं तुरंत मान गया पर मुझे नहीं पता था की वो मुझसे क्या करवाने वाली हैं!
रात हुई और खाना खाने के बाद नितु ने मुझे अपने पास जमीन पर बैठने को कहा. वो मेरे पीछे कुर्सी ले कर बैठीं और मेरे सर की अच्छे से मालिश की ताकि मुझे अच्छे से नींद आये. 'बाल बड़े रखने हैं तो ठीक से बाँधा भी करो!' ये कहते हुए नितु ने मेरे बालों का बून बनाया.बाल बहुत बड़े नहीं थे वरना और भी अच्छे लगते.
दवाई खा कर मैं नितु वाले कमरे में लेट गया.मैं इस वक़्त सीधा लेटा था की नितु ने झुक कर मेरे माथे को चूमा. कल की ही तरह ये किस मेरे पूरे शरीर को झिंझोड़ कर चला गया.'कल सुबह ६ बजे उठना है! कल से हम योग करेंगे!' ये कहते हुए नितु बिस्तर के अपने साइड सो गई. पर रात के दो बजते ही मेरे नींद खुली और मेरे पेट में बहुत जोर से दर्द होने लगा. दर्द इतनी तेज बढ़ रहा था की ऐसा लग रहा था की मेरे प्राण अब निकले! मैं जितना हो सके उतना अपनी कराह को दबा कर सिकोड़ कर लेटा हुआ था. पर नितु को मेरे दर्द का एहसास हो ही गया और उन्होंने तुरंत कमरे की लाइट जला दी. मैं अपने घुटने अपने छाती से चिपकाए लेटा कसमसा रहा था. माथे पर ढेर सारा पसीना, जिस्म में कंपकंपाहट! मेरी हालत देख कर नितु घबरा गई और किसी तरह खुद को संभाल कर मेरे माथे पर हाथ फेरने लगी. पसीने से उनके हाथ गीले हो गए, तो वो बाहर से एक टॉवल ले आईं और मेरे चेहरे से पसीने पोछने लगी और तभी उनकी आँखों से आँसू निकलने लगे. वो खुद को लाचार महसूस कर रही थी और चाह कर भी मेरा दर्द कम नहीं कर पा रहीं थी. उनका रोना मुझसे देखा नहीं गया तो मैंने उनसे पानी माँगा, वो दौड़ कर पानी ले आई. दो घुट पानी पिया था की मुझे उबकाई आ गई. किसी तरह से मैं अपनी उबकाई को कण्ट्रोल करता हुआ बाथरूम पहुँचा और वहाँ मैं कमोड पकड़ कर बैठ गया और जो कुछ भी पेट में अन्न था वो सब बाहर निकाल दिया. मेरे उलटी करने के दौरान नितु मेरी पीठ सहला रही थी. पेट खाली हुआ थो कंपकपी और बढ़ गई. मुझे सहारा दे कर नितु ने मुझे वापस पलंग पर लिटाया; 'मैं एम्बुलेंस बुलाती हूँ!' ये कहते हुए नितु फ़ोन नंबर ढूँढने लगी.
'नहीं.... !!! सुबह तक .... वेट करो प्लीज!' मैंने कांपते हुए कहा. उस समय मुझे एहसास हुआ की मैं किस कदर कमजोर हो चूका हु. अश्विनी के चक्कर में मैं मौत के मुँह में पहुँच चूका हु. नितु उस वक़्त बहुत ज्यादा घबराई हुई थी. वो मेरे सिरहाने बैठ गई और मेरा सर अपनी गोद में रख लिया. पूरी रात वो मेरे सर पर हाथ फेरती रहीं, जिस कारन मेरी थोड़ी आँख लगी.
सुबह ६ बजते ही मेरी आँख खुल गई क्योंकि नितु मेरा सर धीरे से अपनी गोद से हटा रही थी. 'चाय' मैंने कांपती हुई आवाज में कहा. नितु ने तुरंत चाय बनाई, मैंने बहुत ताक़त लगाई और बेड से टेक लगा कर बैठा. अपने हाथों को देखा तो वो काँप रहे थे. नितु कप में चाय लाइ और एक कप को पकड़ने के लिए हम दोनों ने अपने दोनों हाथ लगाए थे. चाय अंदर गई तो जिस्म को लगा की कुछ ताक़त आई हे. मैं इतना तो समझ गया था की अगर मैंने खाना नहीं खाया तो मुझे सलाईन चढ़ाना पड़ेगा इसलिए मैंने नितु से टोस्ट खाने को मांगे.ये सुन कर उन्हें थोड़ी तसल्ली हुई की मेरी तबियत में कुछ सुधार आ रहा हे. नाश्ता करते-करते दस बज गए थे, मैं खुद ही बोला की हॉस्पिटल चलते हे. बड़ी मुश्किल से हम हॉस्पिटल पहुँचे और जब डॉक्टर ने चेक किया तो उसने कहा; 'सागर की बॉडी दवाइयाँ रिजेक्ट कर रहीं हैं, मैं दवाइयाँ बदल रहा हु. इसके खाने का भी ध्यान रखो हल्का खाना दो, सूप दो, खिचड़ी, फ्रूट्स ये सब दो. एक बार में नहीं खाता तो थोड़ा-थोड़ा दो!'
'डॉक्टर साहब प्लीज कोई भी दवाई दो पर कल वाला हादसा फिर से ना हो!' मैंने कहा.
'दवाई चेंज की है मैंने, होपफुली अब नहीं होगा.' डॉक्टर ने और दवाइयाँ लिख दी.
'सर इस कंपकंपी का भी कुछ कर दीजिये!' मेने कहा.
'इसकी कोई दवाई नहीं है, ये तुम्हारा जिस्म जिसे तुमने नशे का आदि बना दिया था वो रियेक्ट कर रहा हे. इसे ठीक होने में समय लगेगा!' तभी नितु ने इशारे से थेरेपी वाली बात छेड़ी और डॉक्टर ने मेरी क्लास ले ली! 'ये बताओ तुम्हें थेरेपी लेने से क्या प्रॉब्लम है?'
'सर मैं जिन बातों को भूलना चाहता हूँ वो डॉक्टर को फिर से बता कर उस दुःख को दुबारा फेस नहीं करना चाहता.' मैंने गंभीर होते हुए कहा.
'ये बातें फिलहाल दबीं हैं पर कभी न कभी ये बाहर आएंगी और फिर तुम्हें बहुत दर्द देंगी, फिर तुम दुबारा से पीना शुरू कर दोगे! इसलिए आज चले जाओ डॉक्टर अभी यहीं हे.' डॉक्टर की बात थी तो सही पर मैं उन बातों को किसी के सामने दोहराना नहीं चाहता था और उससे बचने के लिए मैं बहाने बनाने लगा. कभी योग का बहाना करता तो कभी मॉर्निंग वॉक करने का बहाना करता. पर डॉक्टर पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा और मुझे मजबूरन थेरेपिस्ट के पास जाना पडा. पर मैंने भी होशियारी दिखाई और उसे आशु और मेरे रिश्ते की बात छोड़ कर सब बता दिया. उसे लगा की एक और आशिक़ आ गया और उसने मुझे १० मिनट का लेक्चर दिया और कहा की मैं ज्यादा सोचूं न, जो हो चूका है उसे भूल जाऊँ, हँसी-ख़ुशी रहूँ, तबियत सुधरने के बाद एक हेलथी लाइफ स्टाइल जिऊँ और जल्दी से शादी कर लु. घर की जिम्मेदारियाँ पड़ेंगी तो ये सब धीरे-धीरे भूल जाऊंगा. चलो आज नितु को भी आधा सच जानने को मिल गया की आखिर हुआ क्या था!
हम घर आये तो एक बात जो मैंने नोटिस की वो थी की नितु को शादी की बात से कुछ ठेस पहुँची हो. शायद उन्हें अपनी शादी याद आ गई. खेर ये बचा हुआ दीं बहुत ही शान्ति से गुजरा.| रात में वही कंपकंपी और फिर जागते हुए सुबह का इंतजार करना.
सुबह उठते ही मैंने नितु से कहा की वो मुझे योग करना सिखाये. नितु की योग में महारथ हासिल थी. उन्होंने चुन-चुन कर मुझे वो ही आसन कराये जो मेरे लिए करना आसान था. कोई भी एकजरसाइज करने वाला आसन नहीं करवाया क्योंकि शरीर अभी भी बहुत कमजोर था. वो बस मुझे मेरी साँस पर नियंत्रण करना और फोकस करने के लिए प्राणायाम सीखा रही थी. योग के बाद हमने चाय पी और तभी उनका फ़ोन बज उठा. वो फ़ोन ले कर कमरे में चली गईं और मैं उठ कर बाथरूम जाने लगा की तभी मुझे इतना सुनाई दिया; 'मैं अभी नहीं आ सकती, जो भी है अपने आप संभाल लो!' मैं उस टाइम कुछ नहीं बोला. नाश्ते के बाद हम बैठे थे और नौकरानी काम कर रही थी. मेरा ध्यान अब भी मेरे कांपते जिस्म पर था और मुझे अपनी इस हालत पर गुस्सा आ रहा था. 'मेरी वजह से आप क्यों अपना बिज़नेस खराब कर रहे हो?' मैंने नितु की तरफ देखते हुए कहा और उन्हें समझ आ गया की मैंने उनकी बात सुन ली हे.
'अभी मेरा तुम्हारे साथ रहना जरुरी है!'
'१-२ दिन की बात होती तो मैं कुछ नहीं कहता, पर इसे ठीक होने में बहुत टाइम लगेगा और तब तक आपका ऑफिस का काम कौन देखेगा? आप चले जाओ, मैं अपना ध्यान रखूँगा!' मैंने कहा.
'बोल दिया न नहीं!' इतने कहते हुए वो गुस्से में उठ कर चली गई. मुझे भी इस बात पर बहुत गुस्सा आया, मैं जोश में उठा और अपने कमरे में जा कर लेट गया.मैं नहीं चाहता था की कोई मेरी वजह से किसी भी तरह का नुकसान सहे और यहाँ तो नितु के बिज़नेस की बात थी तो मैं कैसे उन्हें ये नुकसान सहते हुए देखता. मैंने अपने गद्दे के नीचे से सिगरेट का पैक निकाला और पीने लगा. अभी दो कश ही पीये थे की नितु धड़धड़ाते हुए अंदर आईं और मेरे हाथ से सिगरेट छीन कर फेंक दी. इतना काफी था मेरे अंदर के गुस्से को बाहर निकलने के लिए; 'डॉक्टर ने सिगरेट पीने से तो मना नहीं किया ना?'
'इसकी भी आदत लगानी है? लीवर तो खराब कर ही लिया है अब क्या लंग्ज भी खराब करने हैं?' उन्होंने गुस्से में कहा.
'कुछ तो रहने दो मेरी जिंदगी में? शराब छोड़ दी अब क्या ये सिगरेट भी छोड़ दूँ? तो जियूँ किसके लिए? ये उबला हुआ खाना खाने के लिए?' मैंने गुस्से से कहा.
'सिर्फ शराब और सिगरेट के लिए ही जीना है तुम्हें?' नितु ने पूछा. मेरे पास उनकी इस बात का कोई जवाब नहीं था. तो आँसू ही सच बोलने को बाहर आ गये.
'आप क्यों अपनी लाइफ मुझ जैसे लूज़रके लिए बर्बाद कर रहे हो? आपको तक़रीबन एक हफ्ता हो गया मेरी तीमारदारी करते हुए? क्यों कर रहे हो ये सब? क्या मिलेगा आपको ये सब कर के? छोड़ दो मुझे अकेला और मरने दो!' मैंने बिलखते हुए कहा. ये था वो नर्व्हस ब्रेकडाऊन जो डॉक्टर ने कहा था की होगा. क्योंकि दिमाग को अब शराब पीने के लिए बहाना चाहिए था और इस समय उसने ये बहाना बनाया की नितु की लाइफ मेरे कारन खराब हो रही हे. नितु भी जानती थी की वो मुझे चाहे कितना भी प्यार से समझा ले पर मेरे पल्ले कुछ नहीं पडेगा. उन्हें मुझे जीने के लिए एक वजह देनी थी. एक ऐसी वजह जिसके लिए मैं ये लड़ाई जारी रखूँ और फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊ. उन्हें मुझे अपनी दोस्ती का एहसास दिलाना था. पर सख्ती से ताकि मेरे दिमाग में उनकी बात घुसे!
वो मेरे गद्दे पर घुटनों के बल बैठीं और मेरे टी-शर्ट के कालर को पकड़ा और मुझे बड़े जोर से झिंझोड़ा, फिर गरजते हुए मेरी आँसुओं से लाल आँखों में देखती हुई बोलीं; 'लूक एट मी! तुम्हारी जगह मैं पड़ी होती तो क्या मुझे छोड़ कर चले जाते?..... बोलो? ..... नहीं ना?.... फिर मैं कैसे छोड़ दूँ तुम्हें?! ..... तुम्हें जीना होगा....मेरे लिए....मेरी दोस्ती के लिए..... तुम्हें ऐसे मरने नहीं दूँगी मैं! मेरी लाइफ में तुम वो अकेले इंसान हो जिसे मैंने अपना माना है और तुम मरने की बात करते हो? अब मर्द बनो और इस लड़ाई को जारी रखो!' नितु की ये बातें मेरे लिए ऐसी थीं जैसे काली गुफा में रौशनी की एक किरण, मैं धीरे-धीरे इस रौशनी की तरफ बढ़ ही रहा था की नितु ने मुझे एक बार फिर से झिंझोड़ा और पुछा; 'समझे? फाइट!!!!' मैंने हाँ में गर्दन हिलाई और तब जा कर उन्होंने मेरा कालर छोडा. कुछ टाइम तक वो मेरी तरफ प्यार से देखने लगीं जैसे मुझसे माफ़ी माँग रही हों की उन्होंने मेरे साथ सख्ती दिखाई और इधर मेरा पूरा जिस्म दहल गया था. नितु की आँखें नम हो चली थीं तो मैंने उनके आँसू पोछे और गद्दे के नीचे से सिगरेट का पैक उन्हें निकाल कर दे दिया. नितु ने वो पैक लिया और बिना कुछ बोले चली गईं और मैं दिवार से सर लगा कर बैठा रहा और अपने दिल को तसल्ली देता रहा और हिम्मत बटोरता रहा की नितु ने ने इतनी मेहनत की है मुझे ठीक करने में तो मैं इसे बर्बाद जाने नहीं दूंगा. कुछ देर बाद मैं खुद बाहर आया और देखा तो नितु किचन में खाना बना रही हे. मैं चुप-चाप हॉल में बैठ गया की तभी उन्होंने कहा की मैं उनका लैपटॉप ऑन करू. मैंने वैसा ही किया और उन्होंने मुझे पासवर्ड बताया और मेल एकसेस करने को बोला. मेल में एक कंपनी का कुछ डाटा था जिसे उन्हें सॉर्ट करना था. आगे उन्हें कुछ नहीं कहना पड़ा और मैं खुद ही लग गया.इतने दिनों बाद माउस पकड़ कर बड़ा अजीब सा लग रहा था. दिक्कत ये थी की हाथ कांपने की वजह से माउस इधर-उधर क्लिक हो रहा था तो मैं उसे बड़े धीरे चला रहा था. जब टाइप करने की बारी आई तो लैपटॉप की बटण दब जाती. मुझे नहीं पता था की नितु मुझे इस तरह जूझते देख मुस्कुरा रही थी. खाना बनने के बाद वो दोनों का खाना एक थाली में परोस कर लाईं.मैंने चुप-चाप लैपटॉप बंद कर दिया. थोड़ा डरा-सहमा था की कहीं नितु फिर से न डाँट दे. पर नहीं इस बार उन्होंने मुझे अपने हाथ से खाना खिलाना शुरू कर दिया. मुझे खिलने के बाद उन्होंने भी वही बेस्वाद खाना खाया.'आप क्यों ये खाना खा रहे हो? आप बीमार थोड़े हो?' मैंने कहा. 'बहुत मोटी हो गई हूँ मैं, इसी बहाने मैं भी थोड़ा वजन कम कर लुंगी.' उन्होंने मजाक करते हुए कहा.
'कौन से ब्युटी पिजन में हिस्सा ले रहे हो?' मैंने उनका बहाना पकड़ते हुए कहा. 'आप पहले ही मेरा इतना 'ख्याल' रख रहे हो ऊपर से ये बेस्वाद खाना भी खा रहे हो! प्लीज ऐसा मत करो!' मैंने रिक्वेस्ट करते हुए कहा.
'दो बार खाना मुझसे नहीं बनता!' नितु ने फिर से बहाना मारा.
'कोई दो बार खाना नहीं बनाना, दाल में तड़का लगाने से पहले मेरे लिए निकाल दो और तड़के वाली आप खा लो.' मैंने उन्हें सोल्युशन दिया पर वो कहाँ मानने वाली थीं तो मुझे बात घुमा कर कहनी पड़ी; 'ओके! ऐसा करो मेरे मुंह का स्वाद बदलने के लिए मुझे १-२ चम्मच तड़के वाली दाल दे दो. फिर तो ठीक है? इतने से खाने से कुछ नहीं होगा!' बड़ी मुश्किल से वो मानी.
खेर खाना हुआ और उसके बाद हमने लैपटॉप पर ही एक मूवी देखि, मूवी देखते-देखते नितु सो गई. शाम को मैंने चाय बनाई और बड़ी मुश्किल से बनाई क्योंकि हाथ कांपते थे! रात को खाने के बाद मैंने फिर से बात शुरू की; 'आप मेरे लिए इतना कर रहे हो की मेरे पास आपको शुक्रिया कहने को भी शब्द नहीं हैं.'
'लगता है सुबह वाली डाँट से अक्ल ठिकाने नहीं आई तुम्हारी?' उन्होंने फिर से चेहरे पर गुस्सा लाते हुए कहा.
'आ गई बाबा! पर एक बार बात तो सुन लो! काम ही पूजा होती है ना? तो आपका यूँ ऑफिस के काम ना करना ठीक है?' मैंने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा.
'ठीक है...तुम्हें मेरे काम की इतनी ही चिंता है तो चलो मेरे साथ बैंगलोर! तुम मुझे वहाँ जॉईन कर लो एज एन इम्प्लोयी नहीं बल्कि एज अ बिजिनेस पार्टनर!' ये सुनते ही मैं चौंक गया?
'बिजिनेस पार्टनर? ...इम्पॉसिबल!'
'क्यों इम्पॉसिबल? तुम काम इतने अच्छे से जानते हो, वो प्रोजेक्ट याद है ना? वो सब तुम ने ही तो संभाला था. इस वक़्त मेरी टीम में बस दो ही लोग हैं और हम दोनों आसानी से काम कर सकते हैं.'
'पर बिजिनेस पार्टनर क्यों? इम्प्लोयी क्यों नहीं? मैंने पूछा.
'हेल्लो सैलरी कौन देगा? पहले ही दो लोगों को सैलरी देनी पड रही है ऊपर से तुम्हें तो सबसे ज्यादा सैलरी देनी पड़ेगी आखिर सबसे एक्सपिरियंस हो तुम!' नितु ने हँसते हुए कहा.
'अच्छा? यार आप तो बड़े कल्क्यूलेटिव निकले!' मैंने हँसते हुए कहा.
'बिजिनेस संभालती हूँ तो इतना तो सीख गई हूँ, वैसे भी हम दोनों दोस्त हैं और ऑफिस में वो एमप्लोयर - इम्प्लोयी का ड्रामा मुझसे नहीं होगा!' आखिर सच उनके मुँह से बाहर आ ही गया.
'ओके .... न्यूयॉर्क से आने के बाद मैं वहीं शिफ्ट हो जाऊंगा.' ये सुनते ही नितु खामोश हो गई.
'नहीं...हम न्यूयॉर्क नहीं जा रहे... अभी तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है!'
'हेल्लो...मैडम मुझे नहीं पता .... अगर न्यूयॉर्क नहीं जाना तो मैं कहीं नहीं जा रहा.' मैंने रूठते हुए कहा.
'बट तुम्हारी तबियत....' नितु ने चिंता जताते हुए कहा पर मैंने उनकी बात काट दी;
'कम ऑन यार! ऐसी अपोर्चूनिटी कोई छोड़ता है क्या? हमारे पास अभी काफी टाइम है अँड आई प्रॉमिस मैं ठीक हो जाऊंगा. मुझे भी थोड़ा चेंज चाहिए! प्लीज....प्लीज...प्लीज...' मेरा जबरदस्ती करने का कारन था की नितु ये गोल्डन अपोर्चूनिटी वेस्ट करे. अगर मैं उन्हें ना मिला होता तो वो ये अपोर्चूनिटी कभी मिस नहीं करती, आखिर वो मान ही गईं और तुरंत लॅपटॉप से एक मेल कर दिया.
अगली सुबह से मेरे अंदर बहुत से बदलाव आने लगे, जितनी भी नकारात्मकता थी वो सब नितु की केयर के कारन निकल चुकी थी और मेरी जिंदगी की नई शुरुआत हो चुकी थी. अब मैंने रोज सुबह समय पर उठना, योग करना और फिर नितु के साथ मॉर्निंग वॉक करना शुरू कर दिया था. खाने में मैं वही उबला हुआ खाना खा रहा था और साथ में फ्रूट्स और स्प्राउट वगैरह खाने लगा था. नितु के ऑफिस का सारा काम मैंने लॅपटॉप से करना शुरू कर दिया था. नितु का काम बस खाना बनाना और मुझे दवाई देने तक ही रह गया था. हाथ-पैर अब भी कांपते थे पर पहले जितने नहीं! कुछ दिन बाद मोहित और प्रफुल मुझसे मिलने आये और नितु को वहाँ देख कर दोनों थोड़ा हैरान थे और शक करने लगे थे की हम दोनों का कुछ चल तो नहीं रहा पर मैंने उन्हें नितु की चोरी से सब सच बता दिया. वो खुश थे की मेरी सेहत में दिन पर दिन सुधार आ रहा था और दोनों ने नितु को बहुत-बहुत शुक्रिया किया. दिन कैसे गुजरे पता ही नहीं चला और १५ तारीक आ गई. इन बीते दिनों में घर से बहुत से फ़ोन आये और मुझे बहुत सी गालियाँ भी पड़ीं क्योंकि लगभग ३ महीने हो गए थे मुझे घर अपनी शक्ल दिखाए और ऊपर से शादी भी थी जिसके लिए मैंने एक ढेले का काम नहीं किया था. १६ तारीक को आने का वादा कर के मैं जाने को तैयार हुआ तो नितु ने कहा की वो भी साथ चलेंगी, पर उन्हें साथ ले जाना मतलब बवाल होना! इसलिए मैंने उन्हें समझाते हुए कहा; 'बस एक दिन की बात है, मैं बस घर जा कर न्यूयॉर्क जाने की बात कर के अगले दिन आ जाऊंगा.' पर उन्हें चिंता ये थी की अगर वहाँ जा कर मैंने फिर से पी ली तो? 'आई प्रॉमिस मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा!' बड़ी मुश्किल से उन्हें समझा-बुझा कर मैं निकला पर अंदर ही अंदर अश्विनी की शक्ल देखने से दिल में टीस उठना और फिर खुद को फिर से गिरा देने का डर लग रहा था. पर कब तक मैं इसी तरह डरूँगा ये सोच कर दिल मज़बूत किया और बस में बैठ गया.
बस में बैठा ही था की नितु का फ़ोन आ गया, ये कॉल उन्होंने मेरा हाल-चाल पूछने को किया था. 'यार अभी तो निकला हूँ, बस में बैठा हूँ....आप चिंता मत करो!' पर उन्होंने मेरी एक ना सुनी और अगले ४ घंटे तक हम बात करते रहे. उनके पास जैसे बात करने के लिए आज सब कुछ था. जब और कुछ नहीं मिला तो उन्होंने वेब सीरीज की ही बात छेड़ दी और मैं भी उनसे इस मुद्दे पर बड़े चाव से बात करने लगा. जैसे ही ग्यारह बजे तो मुझे नाश्ता करने को कहा, रास्ते के लिए उन्होंने थोड़ा नाश्ता बाँधा था वो मैंने खाया और मेरे साथ-साथ उन्होंने भी फ़ोन पर बात करते हुए खाया.जब बस एक जगह हॉल्ट पर रुकी तो मैंने केले खरीदे ताकि बाहर का खाने की बजाए फ्रूट्स खाऊँ. आखिर एक बजे मैं बस से उतरा और घर की तरफ चल दिया. मेरी दाढ़ी बढ़ी हुई, बालों का बून बना हुआ और दोनों हाथ जीन्स में घुसेड़ कर मैं बात करता हुआ चलता रहा. हाथ जीन्स की जेब में डालने का करण ये था की मैं अपने हाथों की कंपकंपी छुपा सकूँ, वरना घर वाले सब चिंता करते और मुझे वापस नहीं जाने देते.
अगर नितु ने फ़ोन कर के मुझे बातों में व्यस्त ना रखा होता तो घर की तरफ बढ़ते हुए मेरे मन में फिर वही दुखभरे ख्याल आने शुरू हो जाते. घर से दस कदम की दूरी पर मैंने उन्हें ये कह दिया की घर आ गया मैं आपको थोड़ी देर में कॉल करता हु. कॉल काटते ही मेरे अंदर गुस्सा भरने लगा, मैं मन ही मन मना रहा था की अश्विनी मेरे सामने ना आये वरना पता नहीं मेरे मुँह से क्या निकलेगा. शुक्र है की घर का दरवाजा खुला था. माँ और ताई जी आंगन में बैठीं थी. घर दुबारा रंगा जा चूका था. टेंट वगैरह का समान घर के बाहर और आंगन में पड़ा था. देख कर साफ पता चलता था की ये शादी वाला घर हे. जैसे ही माँ और ताई जी ने मुझे देखा तो दस सेकंड तक वो दोनों मुझे पहचानने की कोशिश में लगी रही. जब उन्हें तसल्ली हुई तो ताई जी ने डांटते हुए पुछा; 'ये क्या हालत बना रखी है? बाबा-वाबा बन गया है क्या?' मैं कुछ कहता उसके पहले ही माँ भी बरस पड़ी; 'सूख कर कांता हुआ है, इतना भी क्या काम में व्यस्त रहता है की खाने-पीने का ध्यान नहीं रहता?'
'बीमार हो गया था!' मैंने बस इतना ही कहा क्योंकि मैं जो सोच रहा था उसके विपरीत मेरे साथ हो रहा था. मुझे लगा था मेरी ये हालत देख कर वो रोयेंगे, चिंता करेंगे पर यहाँ तो मुझे और डाँटा जा रहा है! माना मैंने इतने महीने घर न आने की गलती की पर मेरी ये हालत देख कर तो माँ का दिल पसीज जाना चाहिए था! 'माँ, पिताजी और ताऊ जी कहाँ हैं?' मैंने पूछा.
 
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'तुझसे तो शादी के काम करने के लिए छुट्टी ली नहीं जाती तो अब किसी को तो काम करना होगा ना? वो तो शुक्र है की अश्विनी को तू घर छोड़ गया था वरना चूल्हा-चौका भी हमें फूँकना पड़ता! न्योता बाँटने गए हैं, कल आएंगे!' माँ के मुँह से अश्विनी का नाम सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं पाँव पटकता हुआ ऊपर कमरे में चला गया.मेरे पास एक पिट्ठू बैग था जिसे मैंने अपने बिस्तर पर रखा और मैं धुप में छत की तरफ जा रहा था की तभी नितु का फ़ोन आ गया; 'बात हो गई?'
'नहीं.... ताऊ जी और पिताजी घर से बाहर गए हैं! कल आएंगे उनसे बात कर के कल आ जाऊंगा.' मैंने मुंडेर पर बैठते हुए कहा.
'किसी से लड़ाई मत करना, आराम से बात करना और अगर जाने से मना करें तो कोई बात नहीं!' नितु ने प्यार से मुझे समझाते हुए कहा. मैंने उन्हें जान बुझ कर अभी जो हुआ उस बारे में नहीं बताया क्योंकि मैं उम्मीद कर रहा था की शायद ताऊ जी का दिल जरूर पसीज जाएगा.अभी मैं बात कर ही रहा था की अश्विनी मुझे मेरी तरफ आती हुई दिखाई दी, मैंने गुस्से से उसे देखा और हाथ के इशारे से वापस लौट जाने को कहा पर वो नहीं मानी और मेरी तरफ आती गई. 'मैं आपको थोड़ी देर में कॉल करता हूँ!' इतना कह कर मैंने कॉल काटा.
'ये क्या हालत बना रखी है आपने?' आशु ने चिंता जताने का नाटक करते हुए कहा. शुरू से ही वो कभी इस तरह का नाटक नहीं कर पाई तो अब क्या कर पाती.
'ज्यादा नाटक मत पेल! मेरी इतनी ही फ़िक्र होती तो मुझे यूँ छोड़ नहीं देती!' मैंने उसे झड़ते हुए कहा. पर उसके पर निकल आये थे इसलिए वो भी मेरे ऊपर बरसने लगी;
'अगर अपनी लाइफ के बारे में सोच कर एक डिसिजन लिया तो क्या गलत किया? तुम मुझे कभी स्टेबिलिटी नहीं दे सकते थे, रक्षित दे सकता है!' आज उसने पहली बार मुझे आप की जगह 'तुम' कहा था और उसका ये कहना था की मेरा गुस्सा उबल पड़ा;
'तुझे पहले दिन से ही पता था की हमारे रिलेशनशिप में कितना खतरा है पर तब तो तुझे सिर्फ प्यार चाहिए था मुझसे?! अगर तूने मुझे ये बहाना दे कर छोड़ा होता और फिर घरवालों की मर्जी से शादी आकृति तो शायद कम खून जलता मेरा पर तूने मुझे सिर्फ और सिर्फ इसलिए छोड़ा क्योंकि तुझे एक अमीर घर का लड़का मिल गया जो तुझे दुनिया भर के ऐशों-आराम दे सकता है! तूने मुझे धोका सिर्फ और सिर्फ पैसों के लिए दिया है!' ये सच सुन कर वो चुप हो गई और सर झुका कर खड़े हो गई.
'अब बोल क्या लेने आई थी यहाँ?' मैंने गुस्से में पूछा.
मेरा गुस्सा देख उसका बुरा हाल था. फिर भी हिम्मत करते हुए वो बोली; 'आप ...शादी तक प्लीज मत रुकना...कॉलेज से रक्षित के दोस्त आएंगे और वो आपको देखेंगे तो.....' अश्विनी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.
'मुझे यहाँ देख कर वो कहेंगे की ये तो चाचा-भतीजी हैं और कॉलेज में तो लवर्स बन कर घुमते थे!' मैंने आशु को ताना मारते हुए कहा. 'ओह! तूने उसे मेरे बारे में कुछ नहीं बताया ना?' मैंने अश्विनी का मजाक उड़ाते हुए कहा.
'अगर चाहूँ तो मुझे मिनट नहीं लगेगा सब सच बोलने में और फिर वो खेत में खड़ा पेड़ दिख रहा है ना?!' मैंने उस पेड़ की तरफ ऊँगली करते हुए उसे फिर ताना मारा. 'पर मैं तेरी तरह गिरा हुआ इंसान नहीं हूँ! तुझे क्या लगा मैं यहाँ तेरी शादी में 'चन्ना मेरेया' गाने आया हूँ?!' इतना कह कर मैं नीचे जाने को पलटा तो अश्विनी को यक़ीन हो गया की मैं उसकी शादी में शरीक नहीं हूँगा और उसने मुझे; 'थैंक यू' कहा पर मेरे मन में तो उसके लिए सिर्फ नफरत थी जो गाली के रूप में बाहर आ ही गई; 'फक ऑफ!!!' इतना कह कर मैं नीचे आ गया.
मैंने अश्विनी को नितु के बारे में कुछ नहीं बताया, क्यों नहीं बताया ये मैं नहीं जानता. शायद इसलिए की उसे ये जानकर जलन और दुःख होगा या फिर शायद इसलिए की कल को वो सबसे मेरे और नितु के बारे में कुछ न कह दे, या फिर इसलिए की उसका गंदा दिमाग इस सब का गंदा ही मतलब निकालता और फिर मेरा गुस्सा उस पर फूट ही पडता.!
मैं नीचे आया तो सब मुझे ही देख रहे थे क्योकि छत पर जब मेरी आवाज ऊँची हुई तो वो सब ने सुनी थी पर मैं कहा क्या ये वो सुन नहीं पाए थे! उनके लिए तो मैं अश्विनी को झाड़ रहा था. भाभी ने कहा की मैं खाना खा लूँ पर मैं बिना खाये ही बाहर चल दिया. भूख तो लगी थी पर मन अब घर में रहने को नहीं कर रहा था. मैं ने बाहर से फ्रूट चाट खाया और नितु को फ़ोन किया. उसे मैंने जरा भी भनक नहीं होने दी की अभी क्या हुआ! बात करते-करते मैं एक बगीचे में बैठ गया, कुछ देर बाद मुझे प्रकाश मिला और मेरी हालत देख कर वो समझ गया की लौंडा इश्कबाजी में दिल तुड़वा चूका है! उसने मुझसे लड़की के बारे में बहुत पुछा और मैं उसे टालता रहा ये कह कर की उस बेवफा को क्या याद करना!
मैं शाम को घर आया तो किसी ने मुझसे कोई बात नहीं की, चाय पी और आंगन में लेटा रहा. तभी वहाँ गोपाल भैया आ गया और मुझे ताना मारते हुए बोला; 'मिल गई छुट्टी?' मैं एकदम से उठ बैठा और उसे सुनाते हुए कहा; 'मुझे तो छुट्टी नहीं मिली पर आपकी तो बेटी की शादी है आपने कौन से झंडे गाड़ दिए?! अभी भी तो कहीं से पी कर ही आ रहे है!' वो कुछ बोलने को आया पर ताई जी को देख कर चुप हो गया.वो चुप-चाप अपने कमरे में घुसा और भाभी को आवाज दे कर अंदर बुलाया.
रात के खाने के समय ताई जी ने फिर मुझे बात सुनाने के लिए बोली; 'भाई क्या जमाना आ गया है, चाचा की शादी हुई नहीं और हमें भतीजी की शादी करनी पड़ रही है!'
'दीदी क्या करें, बाहर जा कर इसके पर निकल आये हैं, तो ये हमारी क्यों सुनेगा?!' माँ ने कहा. मैंने चुप-चाप खाना खाया और अपने कमरे में आ गया.सर्दी शुरू हो चुकी थी इसलिए मैं दरवाजा भेड़ कर लेटा था की भाभी हाथ में दूध का गिलास ले कर आई. आते ही उन्होंने शाल उतार कर रख दी, उन्होंने साडी कुछ इस तरह पहनी थी की उनका एक स्तन उभर कर दिख रहा था. ब्लाउज के दो हुक खोल कर वो मुझे अपना क्लीवेज दिखाते हुए गिलास रखने लगी. फिर मेरी तरफ अपनी नितंब कर के वो नीचे झुकीं और कुछ उठाने का नाटक करने लगी. पर मेरा दिमाग तो उनकी सौतेली बेटी के कारन पहले से ही आउट था! मैं एक दम से उठ बैठा और उनका हाथ पकड़ कर अपने पास खींच कर बिठाया. भाभी के चेहरे पर बड़ी कातिल मुस्कान थी. वो सोच रहीं थी की आज उन्हें मेरा लिंग मिल ही जायेगा जिसके लिए वो इतना तड़पी हैं!
'क्यों करते हो ये सब?' मैंने उन्हें थोड़ा डाँटते हुए कहा.
'मैंने क्या किया?' भाभी ने अपनी जान बचाने के लिए कहा.
'ये जो अपने जिस्म की नुमाइश कर के मुझे लुभाने की कोशिश करते रहते हो!' मैंने भाभी के ब्लाउज के खुले हुए हुक की तरफ ऊँगली करते हुए कहा. ये सुन कर उनकी शर्म से आँखें झुक गई;
'बोलो भाभी? क्यों करते हो आप? आपको लगता है की इस सबसे मैं पिघल जाऊँगा और आपके साथ संभोग करूँगा?!' अब भाभी की आँख से आँसू का एक कतरा उनकी साडी पर गिरा. ये देख कर मैं पिघल गया और समझ गया की बात कुछ और है जो भाभी मुझे बता नहीं रही;
'मुझे अपना देवर नहीं दोस्त समझो और बताओ की बात क्या है? क्यों आपको ये जिल्लत भरी हरकत करनी पड़ती है?' ये सुन कर भाभी एकदम से बिफर पड़ीं और रोने लगी. रोते-रोते उन्होंने सारी बात कही; 'तुम जानते हो न अपने भैया को? बताओ मुझे और कुछ कहने की जरुरत है? इतने साल हो गए शादी को और मैं आज तक माँ बन नहीं पाई, बताओ क्यों? सारा दिन नशा कर-कर अपना सारा किस्म खराब कर लिया तो ऐसे में मैं क्या करूँ? कहीं बाहर इसलिए नहीं जाती की पिछली बार की तरह बदनामी हुई तो ये सब मुझे मौत के घाट उतार देंगे! इसलिए मैंने तुम्हारी तरफ आस से देखना शुरू किया! तुम्हारी तरफ एक अजीब सा खिचाव महसूस होता था. तुम्हें बचपन से बड़े होते देखा है, भले ही अब माँ बनने की उम्र नहीं मेरी कम से कम तुम्हें एक बार पा लूँ तो दिल को सकून मिले!'
“भाभी जो आपके साथ हुआ वो बहुत गलत है पर ये सब करना इसका इलाज तो नहीं? आप डाइवोर्स ले लो और दूसरी शादी कर लो!' मैंने भाभी को दिलासा देते हुए कहा.
'नहीं सागर! ये मेरी दूसरी शादी है और अब तीसरी शादी करना या करवाना मेरे परिवार के बस की बात नहीं! मेरे लिए तो तुम ही एक आखरी उम्मीद हो, रहम खाओ मुझ पर! तुम्हारा क्या चला जायेगा अगर मुझे दो पल की खुशियाँ मिल जायनेंगी?!' उन्होंने फिर रोते हुए कहा.
'नहीं भाभी मैं ये सब नहीं कर सकता!' मैंने उनसे दूर होते हुए कहा.
'क्यों?' भाभी ने अपने आँसू पोछते हुए कहा.
'क्योंकि मैं आपसे प्यार नहीं करता!'
'तो थोड़ी देर के लिए कर लो!' उन्होंने मिन्नत करते हुए कहा.
'नहीं भाभी ....मेरे साथ जबरदस्ती मत करो!'
'एक बार सागर! बस एक बार....'
'भाभी प्लीज चले जाओ!' मैंने उन्हें थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा क्योंकि उनकी आँखों में मुझे वासना नजर आ रही थी. भाभी की बातों से उनका दर्द मैं समझ सकता था पर एक उलझन थी. उन्हें बच्चा चाहिए या फिर अपने तन की आग मिटानी हे. मेरा उनके साथ कुछ भी करना बहुत गलत होता इसलिए मैंने उनके साथ कुछ नहीं किया. भाभी उठ के जाने लगी तो मैंने कहा; 'भाभी.... ताई जी से कहो की गोपाल भैया को नशा मुक्ति केंद्र भेजे, थोड़ी तकलीफ होगी पर वो धीरे-धीरे सम्भल जायेगा. फिर हो सकता है की आपके रिश्ते उसके साथ सुधर जाएँ और प्लीज किसी और के साथ कुछ गलत करने की सोचना भी मत.आपकी इज्जत का बहुत मोल है, सिर्फ आपके लिए ही नहीं बल्कि इस घर के लिए भी. मैं भी दुआ करूँगा की आप को अपने पति से वो प्यार मिले जिस पर आपका हक़ हे.' भाभी ने पहले हाथ जोड़ कर मूक माफ़ी माँगी और फिर हाँ में सर हिलाया और वो चली गई. उनके जाने के बाद मुझे खुद पर गर्व हुआ क्योंकि मैं आज चाहता तो गलत रास्ते पर जा सकता था पर मैंने ऐसा नहीं किया, मैं लेट गया और गोपाल भैया के बारे में सोचने लगा.
गोपाल भैया बचपन से ही गलत संगत में रहा, पढ़ाई-लिखाई में उसका मन नहीं था क्योंकि वो जानता था की आगे उसे जमींदारी का काम संभालना हे. उसे सुधरने के लिए घरवालों ने उसकी शादी जल्दी करा दी, ये सोच कर की वो सुधर जायेगा और वो कुछ सुधरा भी. पर फिर भाभी को वो प्यार नहीं दे पाया जो उसे देना चाहिए था. दिन भर खेत के मजदूरों के साथ गांजा फूकना शुरू किया तो भाभी पर से उसका ध्यान हटता रहा. फिर भाभी पेट से हुई, घर वाले लड़के की उम्मीद करने लगे और जब लड़की पैदा हुई तो सब ने उन्हें ही दोषी मान लिया. अब ऐसे में उन्हें खेत में काम करने वाले एक लड़के से प्यार हुआ और फिर वो काण्ड हुआ! उस काण्ड के बाद गोपाल भैया के दोस्तों ने उसका बड़ा मजाक उड़ाया और इसी के चलते उसकी शादी फिर से करा दी. नई वाली भाभी का पति गौना होने से पहले ही मर गया था तो उनके लिए तो ये अच्छा मौका था पर उन्हें क्या पता की उन्हें एक चरसी के गले बाँधा जा रहा है, पता नहीं उसने नई भाभी को कितना प्यार दिया. या दिया भी की नहीं! बचपन से ही उसे इतने छूट दी गई थी जिसके कारन वो ऐसा हो गया.मेरे पैदा होने के बाद ना चाहते हुए भी घर में उसका और मेरा कंप्यारिजन शुरू हो गया और शायद इसी के चलते उसने किसी की परवाह नहीं की. खेतों में जाना छोड़ दिया. जो काम मेरे पिताजी को संभालना पडा. शहर वो सिर्फ और सिर्फ एक ख़ास 'माल' लेने जाता था. इस बहाने अगर किसी ने उसे कोई काम दे दिया तो वो करता या कई बार वो भी नहीं करता. ताऊ जी और पिताजी मजबूरी में सारा काम सँभालते थे क्योंकि उन्हें गोपाल भैया से अब कोई उम्मीद नहीं थी.
यही सब सोचते-सोचते सुबह हुई और मैं जल्दी से उठ गया, छत पर योग किया और वॉक के लिए बाहर निकल गया.मेरे वापस आने तक पिताजी और ताऊ जी भी आ चुके थे..
ताऊ जी: ये क्या हालत बना रखी है अपनी?
उन्होंने भी सब की तरह वही सवाल दोहराया.
मैं: जी बीमार हो गया था.
पिताजी: तो यहाँ नहीं आ सकता था? फ़ोन कर देता हम लेने आ जाते? यहाँ तेरी देखभाल अच्छे से होती.
मैं: आप सब को शादी-ब्याह की तैयारी करनी थी ऐसे में मुझे अपनी तीमारदारी करवाना सही नहीं लगा. अभी मैं ठीक हु.
पिताजी: बहुत अक्ल आ गई तुझ में? ये कुछ पत्रियाँ हैं इन्हें आज बाँट आ और वापसी में टेंट वाले को बोलता आइओ की वो कल आजाये.
पिताजी ने मुझे शादी का काम पकड़ा दिया जो मैं कर नहीं सकता था क्योंकि उस घर में हर एक क्षण मुझे सिर्फ और सिर्फ दर्द दे रहा था.
मैं: पिताजी ....आप सब से कुछ बात करनी हे.
ताऊ जी: बोल? (उखड़ी हुई आवाज में)
मैं: मुझे एक प्रोजेक्ट मिला है जिसके लिए मुझे अमेरिका जाना है और फिर उसी कंपनी ने मुझे बैंगलोर में जॉब भी ऑफर की हे.
मेरा इतना कहना था की ताऊ जी ने एक झन्नाटे दार तमाचा मेरे गाल पर दे मारा.
ताऊ जी: चुप चाप ब्याह के कामों में हाथ बँटा, कोई नहीं जाना तूने अमेरिका!
मैं: ताऊ जी ये मेरी लाइफ का सवाल है!
पिताजी: भाई साहब ने कहा वो सुनाई नहीं दे रहा तुझे? कहीं नहीं जायेगा तू! जितना उड़ना था उतना उड़ लिया तू, अब घर बैठ!
मैं: पिताजी विदेश जाने का मौका सब को नहीं मिलता, मुझे मिला है और मैं इसे गंवाना नहीं चाहता. (मैंने थोड़ा सख्ती दिखते हुए कहा.)
ताऊ जी: तुझे विदेश जाना है ना, तू शादी कर मैं भेजता हूँ तुझे विदेश!
मैं: ताऊ जी आपको पता है की एक तरफ की टिकट कितने की है? ९०,०००/- रूपए है! दो लोगों का आना-जाना ४ लाख रूपए! वहाँ रहना-खाना अलग! एक ट्रिप के लिए सब कुछ बेचना पड़ जायेगा आपको!
ताई जी: तुझे शर्म नहीं आती जुबान लड़ाते?
ताऊ जी: नहीं ...नहीं...नहीं...बात कुछ और है! ये विदेश जाना इसका बहाना है, असल बात कुछ और है?
ताऊ जी कुछ-कुछ समझने लगे थे पर मुझे तो उनसे सच छुपाना था इसलिए मैं बस इसी बात को पकड़ कर बैठ गया.
मैं: नहीं ताऊ जी, मैं आपसे सच कह रहा हु. ये देखिये....
ये कहते हुए मैंने उन्हें फ़ोन में ई-मेल दिखाई जो उनके समझ तो आनी नहीं थी. इसलिए मैंने आशु को इशारे से बुलाया और उसे पढ़ने को कहा. उसने सारी मेल पढ़ी और ये भी की वो मेल नितु ने भेजा हे.
अश्विनी: जी दादा जी.
पिताजी: चल एक पल को मान लेता हूँ पर तू कुछ दिन रुक कर भी जा सकता है ना? अश्विनी क्या तारिख लिखी है इसमें?
अश्विनी: जी २९ तारीख
ताऊ जी: अब बोल?
मैं: (एक गहरी साँस लेते हुए) आपको सच सुनना ही है तो सुनिए, में इस शादी से ना खुश हूँ! इस इडियट को पढ़ाने के लिए मैंने क्या-क्या पापड़ नहीं बेले! वो पंडित याद है ना आपको जिसे आपने इसके दसवीं के रिजल्ट वाले दिन बुलाया था. उसे मैंने पूरे ५,०००/- रुपये खिलाये थे ताकि वो आपके सामने झूठ बोले की इसके ग्रहों में दोष है, वरना आप तो इसकी शादी तब ही करा देते! और ये वहाँ शहर में उस मंत्री के लड़के से इश्क़ लड़ा रही थी! आप सब को पता है न उस मंत्री के बारे में की उसने क्या किया था? यही सब करने के लिए इसे शहर भेजा था आपने? शादी के बाद तो अब इसे वो मंत्री पढ़ने नहीं देगा!
मैंने जानबूझ कर अश्विनी को बलि का बकरा बनाया, इधर मेरी बात सुन आशु का सर शर्म से झुक गया क्योंकि मैंने जो कहा था वो सच ही था! वहीं मेरे मुँह से ये सुनते ही ताऊ जी ने अपना सर पकड़ लिया और पिताजी समेत बाकी सभी लोग मुझे देखने लगे.
ताई जी: तो इसी लिए तो कल अश्विनी पर बरस रहा था. हमने कितना पुछा पर वो कुछ नहीं बोली बस रोती रही!
वो आगे कुछ और बोलतीं पर ताऊ जी ने हाथ दिखा कर उन्हें चुप करा दिया और खुद बोले;
ताऊ जी: तूने हम लोगों से दगा किया?
मैं: दगा कैसा? आप सब को प्यार से जब समझाया की इसे आगे पढ़ने दो तब आप सब ने मुझे ही झाड़ दिया तो मुझे मजबूरन ये करना पडा. मुझे क्या पता था की शहर जा कर इसे हवा लग जायेगी और ये ऐसे गुल खिलाएगी?!
पिताजी: कुत्ते! (पिताजी ने मुझे जीवन में पहली बार गाली दी.)
मैं: आप सब को मैं ही गलत लग रहा हूँ? इसकी कोई गलती नहीं? दो साल पहले तक तो आप सब इसे छोटी सी बात पर झिड़क दिया करते थे और आज अचानक इतना प्यार क्यों?
ताई जी: इसकी हिमायत इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इसके कारन हमें इतने बड़े खानदान से नाम जोड़ने का मौका मिल रहा हे. समाज में हमें वो समान वापस मिलने वाला है जो इसकी माँ के कारन छीन गया था. तूने ऐसा कौन सा काम किया है?
मैं: ताई जी आपको बस घर के मान सम्मान की पड़ी है? कल से आया हूँ आप में से किसी ने भी ये पुछा की मेरी तबियत कैसी है? मुझे आखिर क्या बिमारी हुई थी? दो पल किसी ने प्यार से पुचकारा मुझे? ऐसा कौन सा जादू चला दिया इसने यहाँ रह कर?
ताऊ जी: बस कर! मैं तुझसे बस एक आखरी बार पूछूँगा, तू यहाँ रह कर शादी में शरीक होगा या फिर तुझे विदेश जाना है?
मैं: मैं विदेश जाना चाहता हु.
ताऊ जी: ठीक है, अपना सामान उठा और निकल जा मेरे घर से! दुबारा यहाँ कभी पैर मत रखिओ, मैं तुझे जायदाद से भी बेदखल करता हु.
ताऊ जी का फैसला सुन कर मुझे लगा की मेरे माँ-बाप रोयेंगे या मुझे समझायेंगे पर पिताजी ने गरजते हुए कहा;
पिताजी: सामान उठा और निकल जा!
मैं आँखों में आँसू लिए ऊपर अपना बैग लेने चल दिया. बैग ले कर आया और एक-एक कर सबके पैर छुए पर किसी ने एक शब्द नहीं कहा. जब पिताजी के पाँव छूने आया तो उन्होंने मुझे धक्के मारते हुए घर से निकाल दिया और दरवाजा मेरे मुँह पर बंद कर दिये. मैं अपने आँसू पोछते हुए चल दिया. आज मन बहुत दुखी था और खून के आँसू रो रहा था और इस सब का जिम्मेदार अगर कोई था तो वो थी अश्विनी! ना वो मेरी जिंदगी में जबरदस्ती घुस आती और तबाही मचा कर मेरा हँसता-खेलता जीवन उजाड़ती!
बस स्टैंड पर पहुँचने से पहले मुझे प्रकाश मिला और मैंने उससे मदद मांगते हुए कहा; 'यार एक मदद कर दे! देख मुझे कुछ जरुरी काम से जाना पड़ रहा है तू प्लीज शादी के काम संभाल लिओ!' उस मिनट नहीं लगा कहने में की चिंता मत कर पर वो समझ गया की बात कुछ और हे. पर मैंने उसे कहा की मैं बाद में बता दूंगा, फिलहाल वो मेरे घर में होने वाले कार्यक्रम को संभाल ले! उसकी यहाँ बहुत जान-पहचान थी और मैं जानता था की वो आसानी से सारा काम संभाल लेगा. मैं बस में बैठ कर वापस लौटा, घर आते-आते २ बज गए थे और जैसे ही बैल बजी तो नितु ने ख़ुशी-ख़ुशी दरवाजा खोला. पर जब मेरी आँसुओं से लाल आँखें देखीं तो वो सब समझ गई और एकदम से मेरे गले लग गई और रो पडी. मैंने उसके सर पर हाथ फेरा और हम घर के अंदर आये. मैंने अश्विनी की शादी की बात छोड़ कर उसे सब बता दिया और वो भी बहुत दुखी हुई और कहने लगी की मैंने क्यों जबरदस्ती अमेरिका जाने की जिद्द की!
'वहाँ अब मेरी कोई जरुरत नहीं थी. मुझे अपनी जिंदगी में अब आगे बढ़ना है और वो सब मुझे अब भी इसी तरह बाँध के रखना चाहते हे. मैं उड़ना चाहता हूँ पर उनकी सोच अब भी शादी पर अटकी हुई है! दो पल के लिए प्यार से बात कर के समझाते तो शायद मैं जाने से मना भी कर देता पर सब को मुझ पर सिर्फ गुस्सा ही आ रहा था. कल से किसी ने ये तक नहीं पुछा की मुझे बिमारी क्या हुई थी? मेरी अपनी माँ तक ने मेरा हाल-चाल नहीं लिया. तो अब क्या उम्मीद करूँ? अब या तो उनके हिसाब से चलो और जो वो कहें वो करो तो सब ठीक है पर जहाँ अपनी मर्जी चलानी चाही तो मुझे घर से निकाल दिया. मेरे अपने पिताजी ने मुझे धक्के मार कर घर से निकाल दिया.' ये कहते हुए मेरी आँखें फिर नम हो गई. नितु ने आगे बढ़ कर मेरे आँसू पोछे और मुझे अपने सीने से लगा कर पुचकारा.
अपने ही माँ-बाप के द्वारा दुत्कारे जाने से मैं बहुत उदास था. पर इसमें उनका कोई दोष नहीं था. दोष था तो उस अश्विनी का!
दोपहर का समय था पर खाने का जरा भी मन नहीं था. मन तो नितु का भी नहीं था पर वो जानती थी की खाना खा के मुझे दवाई लेनी है, पहले ही मैं सुबह घर से भूखे पेट निकला जा चूका था. उन्होंने जबरदस्ती खाना परोसा और प्लेट मेरे सामने रख दी. मैंने ना में गर्दन हिला कर मना किया पर वो नहीं मानी, अपने हाथों से एक कौर मेरे होठों के सामने ले आई. मेरा मन नहीं हुआ की मैं उनका दिल तोड़ूँ, इसलिए मैंने मुंह खोला और उन्होंने मुझे वो कौर खिला दिया. खाना खा कर मैं बालकनी में फिर अपनी जगह बैठ गया.मेरा सर चौखट से लगा था और घुटने मेरे सीने से दबे थे. नितु बिना कुछ बोले मेरे साथ बैठ गई और अपना सर मेरे दाएँ कंधे पर रख दिया. हम दोनों ऐसे ही चुपचाप बैठे रहे, मुझे लगा कहीं नितु खुद को इस सब के लिए दोषी न मानने लगे इसलिए मैंने बात शुरू की; 'भगवान का शुक्र है की आप हो मुझे संभालने के लिए वरना पता नहीं मेरा क्या होता!' पर नितु खामोश रही अब उन्हें बुलवाने के लिए मुझे कुछ तो करना ही था.
'मैं तो बस तुझसे ही बना हूँ
तेरे बिन मैं बेवजह हूँ,
मेरा मुझे कुछ भी नही, सब तेरा
सब तेरा, सब तेरा, सब तेरा'
मैंने गाने के बोल गुनगुनाये तो नितु एक दम से मेरी तरफ देखने लगी और उनके होठों पर मुस्कराहट तैरने लगी जो मुझे पसंद थी.गाना सुन कर नितु जोश में आ गई और उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खड़ा किया और अपने फ़ोन पर यही गाना लगा दिया. नितु मेरे सीने से लग कर खड़ी हुई और हम धीरे-धीरे झूमने लगे और गाने के बोल गुनगुनाने लगे. अब दोनों का मूड ठीक हो चूका था तो हमें जाने की प्लानिंग करनी थी. सामान नितु ने पहले से ही पैक कर दिया था. बस अब मेरी एक बाइक बची थी. जिसे बेचने का मन मेरा कतई नहीं था क्योंकि वो मैंने अपने पैसों से खरीदी थी. नितु मेरी परेशानी अच्छे से जानती थी इसलिए वो बोली; 'तुम्हें ये बेचने की कोई जरुरत नहीं हे.' इतना कह कर उन्होंने फटाफट एक फ़ोन घुमाया; 'अक्कू! सुन बेटा मुझे लखनऊ से एक बुलेट भेजनी है बैंगलोर तो जरा पता कर के बताना कैसे भेजेंगे!' उस लड़के ने कुछ कहा होगा की नितु बोली; 'ओये! तेरे लिए नहीं है, मेरे फ्रेंड की हे. हाँ वही वाला!' ऐसे कहते हुए वो हँसने लगी. कॉल खत्म हुआ तो मैंने पुछा; 'वही वाला? और कितने फ्रेंड हैं आपके?'
'पिछले कुछ दिनों से तुम मेल भेज रहे थे ना तो वो पूछ रहा था की वो मेल वाला फ्रेंड' ये सुन कर मैं भी मुस्कुरा दिया. फिर मैंने उनसे उनका बैंक अकाउंट नंबर माँगा तो वो भड़क गईं; 'मुझे पैसे दोगे?'
'अरे बाबा! अब यहाँ से जा रहा हूँ तो बैंक आकउंट यहाँ रख कर क्या फायदा? कौन बार-बार यहाँ आएगा, इसलिए अभी मैं आपके अकाउंट में पैसे ट्रांसफर कर रहा हूँ और बाद में वहाँ अकाउंट खुलने के बाद आप वापस मेरे अकाउंट में डाल देना.' ये सुनने के बाद वो समझीं और डिटेल्स दीं, पर जब अमाउंट ट्रांसफर हुआ और उन्होंने ४ लाख रुपये देखे तो वो आँखें फाड़े मुझे देखने लगी. 'इस तरह आँख मूँद कर कभी किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए!' नितु ने कहा.
'किसी पर नहीं करता, पर आप पर करता हूँ!' इतना कह कर मैं मुस्कुरा दिया.
'थैंक यू इतना विश्वास करने के लिए!' नितु ने मुस्कुराते हुए कहा. हमारे पास मुश्किल से दो दिन ही रह गए थे, मैंने मोहित-प्रफुल को मिलने बुलाया, हम तीनो हॉल में बैठे थे और नितु ने सब के लिए चाय बना दी थी. नितु मेरे साथ बैठी थी और मोहित और प्रफुल मेरे सामने बैठे थे. पता नहीं क्यों पर वो दोनों कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रहे थे; 'यार तुम दोनों को एक खुश खबरि देना चाहता हूँ!' मैंने कहा. इतना सुनते ही उनकी आखे खिल गई. 'बता यार, तेरे मुँह से खुशखबरी सुनने को कान तरस गए थे.' मोहित ने कहा.
'यार नितु को एक प्रोजेक्ट मिला जिसके सिलसिले में हम न्यूयॉर्क जा रहे हैं और उसके बाद वापसी मे मैं नितु को ही बैंगलोर में ज्वाइन करुंगा.' मेरी बात नितु को अधूरी लगी तो उन्होंने उसमें अपनी बात जोड़ दी;
'नॉट एज एन इम्प्लोयी बट एज अ बिजिनेस पार्टनर!!!' ये सुन कर मोहित और प्रफुल दोनों खुश हुए पर ये वो खबर नहीं थी जो वो सुनना चाहते थे.
'अरे वाव!' मोहित ने कहा और प्रफुल ने मुझसे हाथ मिलाया और इस बार उसकी पकड़ थोड़ी कठोर थी और वो मुझे आँखों से कुछ इशारा भी कर रहा था जिसे मैं समझ नहीं पाया था. 'अब तो पार्टी बनती है!' मोहित बोला पर पार्टी सुनते ही नितु का चेहरा थोड़ा फीका पड़ गया क्योंकि मैं बाहर कुछ भी नहीं खा सकता था.
'गाईज, डॉक्टर ने मुझे बाहर से खाने को मना किया है!' मैंने सफाई देते हुए कहा.
'अरे तो क्या हुआ? हम घर पर ही कुछ बना लेते हैं! चल गाजर का हलवा बनाते हैं!' प्रफुल ने पूरे जोश में आते हुए कहा. इतना कह कर हम तीनों उठ खड़े हुए पर नितु बोल पड़ी;
'अरे तो तुम लोग बैठो मैं बनाती हु.'
'अरे मॅडम आप क्यों तकलीफ करते हो, हम तीनों हैं ना!' मोहित बोला.
'ये क्या मॅडम-मॅडम लगा रखा है? यू आर नॉट माई इम्प्लोयी एनीमोर! कॉल मी नितु!' अब ये सुन कर दोनों मेरी तरफ देखने लगे. तभी नितु दुबारा बोली; 'सागर भी तो मुझे नितु कहता है फिर तुम्हें क्या प्रॉब्लम है?'
'मॅडम वो क्या है न हम इसकी तरह बद्तमीज नहीं हैं!' प्रफुल ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा.
'ओह! भाई साहब मुझे भी इन्होने ही बोला था की नाम से बुलाया करो!' मैंने अपनी सफाई दी.
'गाईज, ये बात तो सच है की इससे ज्यादा तमीजदार लड़का मैंने नहीं देखा. शिष्टता तो इनके रग-रग में बसी हे.'
'मॅडम वो...' मोहित कुछ कहने को हुआ तो नितु ने उसकी बात काट दी;
'कम ऑन गाईज!' उनका इतना कहना था की दोनों मान ही गए और एक साथ बोले; 'ओके नितु जी!'
'नितु जी नहीं सिर्फ नितु!' नितु ने कहा तो दोनों ने मुस्कुरा कर हाँ में सर हिलाया. उसके बाद हम तीनों ने किचन में मिलकर गाजर का हलवा बनाया और बनाते-बनाते हमारी बहुत सी बातें हुई, बहुत से राज खोले गए और हँसी मजाक खूब चला.
२० तारीख को हम सुबह एयरपोर्ट के लिए निकले, दिल का एक टुकड़ा अचानक से रो पड़ा और आँखें नम हो गई. हम टैक्सी में बैठे थे और मेरी नजरें खिड़की से चिपकी हुईं थी. हर वो दूकान, हर वो मोहल्ला, हर वो सड़क जहाँ मैंने घूमते हुए इतने साल निकाले आज वो सब मैं पीछे छोड़ कर जा रहा था. कॉलेज से ले कर अब तक करीब ७ साल बिताने के बाद जैसे दिल का एक हिस्सा यहीं रह जाना चाहता था. इस शहर ने मेरी जिंदगी का हर एक पहलु देखा था फिर चाहे वो कॉलेज में पढ़ने वाले स्टूडेंट की आवारागर्दी हो या मोहब्बत में चोट खाये आशिक़ के आँसू! मेरे ये आँसू नितु से छुप नहीं पाए और उन्होंने मेरी ठुड्डी पकड़ के अपनी तरफ घुमाई और आँखों के इशारे से पुछा की क्या हुआ? तो मैंने उन्हें अपने मन के ख्याल सुना दिये. ये सुन कर वो मुस्कुरा दी और मेरे माथे को चूमते हुए बोलीं; 'तुम शहर छोड़ कर नहीं बल्कि इस यादें अपने सीने में बसाये ले जा रहे हो.' मैंने हाँ में सर हिलाया और उनकी बात एकसेप्ट की!
इमोशनल होते हुए हम एयरपोर्ट पहुँचे, ये मेरी लाइफ की पहली हवाई यात्रा थी जो नितु करवा रही थी. कहने को तो ये ढाई घंटे की यात्रा थी पर मेरे लिए ये यादगार यात्रा थी. अपने फ़ोन से मैं जितनी पिक्चर ले सकता था वो लीं, नितु को मुझे ऐसा करता देख एक अजीब सा सुख मिल रहा था और वो बैठी बस मुस्कुराती हुई मुझे देख रही थी. मैं उनके पास आया और उनके साथ बहुत सी सेल्फी खींची. अश्विनी और मेरी सारी सेल्फी तो मैं डिलीट कर चूका था और फ़ोन खाली था. तो सोचा की उसे एक अच्छे दोस्त के साथ फोटो खींच कर भर दू. खेर जब बोर्डिंग शुरू हुई तो हमारी सिट एक साथ नहीं बल्कि दूर-दूर थीं क्योंकि मेरी टिकट लास्ट में बुक हुई थी. पर नितु बहुत होशियार थी. उनकी बगल वाली सीट पर एक लड़की बैठी थी तो उसने उससे कहा; 'एक्स्क्युज मी, मेरे हस्बैंड और मेरी सिट दूर-दूर मिली हैं तो आप प्लीज वहाँ बैठ जाओगे?' उस लड़की ने मुस्कुराते हुए हाँ भरी और मेरे पास आई और मेरे कंधे को छूते हुए कहा; 'आपकी वाइफ बुला रही हैं!' मैं हैरानी से उसे देखने लगा की ये क्या बोल रही है, फिर मैंने पलट कर देखा तो नितु हँस रही थी. मैं समझ गया और उठ कर उनके पास चल दिया. 'यार आपको चैन नहीं है ना?' मैंने हँसते हुए कहा. मैं उनके बगल वाली सीट पर बैठने लगा तो उन्होंने मुझे अपनी खिड़की वाली सीट दे दी. हवाई जहाज में पहलीबार बैठना वो भी खिड़की वाली सीट पर! टेक ऑफ से पहले सीट बेल्ट की अनाऊंसमेंट हुई. आज मैं अपने जीवन में पहली बार अपना फ़ोन 'एअरप्लेन' मोड में डालने को मरा जा रहा था. जब मैंने ये बात नितु को बताई तो वो भी मेरा बचपना सुन हँस पडी.
टेक ऑफ और ल्यांड करते हुए मेरी थोड़ी फटी थी पर नितु ने मेरे बाएँ हाथ पर अपने हाथ रखे हुए थे तो डर कम लगा. हम बैंगलोर पहुँचे और बाहर निकलते ही मैंने उस जमीन को अपनी उँगलियों से छू लिया. 'जब पहलीबार लखनऊ आया था कॉलेज पढ़ने तब भी मैंने ये किया था और आप देखो कितना प्यार दिया उस शहर ने और आज यहाँ नई जिंदगी शुरू करने आया हूँ तो गर्व महसूस हो रहा हे.' मैंने कहा तो नितु ने मेरी पीठ थपथपाई! नितु ने अक्कू को फ़ोन किया तो उसने हमें बाहर बुलाया, बाहर पहुँच कर देखा तो मुझे विश्वास नहीं हुआ, वहाँ अक्कू मेरी बाइक के साथ खड़ा था. मैंने हालाँकि अक्कू को तो नहीं पहचाना पर अपनी बाइक को पहचान गया था. 'तुम्हारा वेलकम गिफ्ट!' नितु ने कहा तो मेरे चेहरे पर खुशियाँ अपने रंग बिखेरने लगी. 'बेटा ये तीन बैग ले कर तू घर निकल हम तुझे वहीँ मिलेंगे.' नितु ने अक्कू को कहा और उसने तुरंत ऑटो कर लिया. मैंने दाहिने हाथ को चूमा और फिर उसी हाथ से बाइक को छुआ और फिर उस पर सवार हो कर बड़े स्टाइल से किक मारी, वो भड़भड़ करते हुए स्टार्ट हुई और ये आवाज नए शहर में सुन मेरे मन में रोमांच भर उठा. नितु पीछे से आ कर मेरे से सट कर बैठ गई. 'सच्ची आज एक अरसे बाद तुम्हारे साथ बाइक पर बैठने का मौका मिला हे.' नितु खुश होती हुई बोली और मुझे पीछे से थाम लिया. नितु मुझे रास्ता बताती रही और मैं बाइके ख़ुशी-ख़ुशी चलाता रहा, रास्ते में पड़ने वाली हर जगह के बारे में मुझे जानकारी दी. अंततः हम घर पहुँचे, नीचे बाइक खड़ी कर के हम ऊपर पहुँचे तो नितु ने घंटी बजाई दरवाजा एक मलयाली लड़की ने खोला जो वहाँ काम करती थी. उसके हाथ में पूजा की थाली थी और मेरे चेहरे पर हैरानी! 'वो दीदी ने बोला की आप आ रे कर के!'
'यार मेरा ग्रह प्रवेश हो रहा है क्या?' मैंने कहा और फिर हम तीनों ठहाका मार के हँसने लगे. खेर अंदर जाने के बाद नितु ने मेरा उस लड़की से इंट्रो करवाया, उसका नाम 'अल्का' था. पर ये घर १ बी.एच.के था और मुझे अल्का के सामने उनके कमरे में जाने में झिझक हो रही थी. इतने में अक्कू समान ले कर आ गया, मैंने फ़ौरन उसके हाथ से सूटकेस लिया. अब अक्कू और अल्का के सामने मैं कैसे सामान अंदर रखूँ?
मैं हॉल में ही बैठ गया और इधर नितु ने अल्का को खाना बनाने के बारे में इंस्ट्रक्शन शुरू कर दिया. अक्कू उर्फ़ आकाश एक ट्रेनी था और उसी की तरह एक और लड़का था जिसका नाम रवि था. दोनों एम बी ए स्टूडेंट्स थे और नितु के पास ट्रेनिंग ले रहे थे. 'तो ऑफिस चलें?' मैंने पुछा तो नितु अक्कू को देखने लगी और फिर ना में सर हिला दिया. 'आज ही तो आये हैं और तुम्हें आज से ही काम स्टार्ट करना है? चलो पहले थोड़ा घूम लो, ऑफिस कल से ज्वाइन कर लेना. मैंने भी सोचा की ठीक ही तो है आज का दिन शहर ही घुमते हे. इसलिए वो पूरा दिन हम शहर घुमते रहे और जब रात को वापस आये तो मुझे नितु के कमरे में मेरा सामान मिला. 'मैं हॉल में ही सो जाता हूँ!' मैंने कहा तो नितु भड़क गई; 'क्या हॉल मैं सो जाता हूँ? इस डबल बेड पर मैं अकेले सोऊँ?'
'यार अच्छा नहीं लगता की हम दोनों एक घर में एक ही रूम में सोएं! आपके इम्प्लोयी और अल्का क्या सोचेगी?'
'सागर ये लखनऊ नहीं है, यहाँ लोग लिव्ह-इन रिलेशनशिप में रहते हैं और तुम हो के बेड शेयर करने से डर रहे हो? हम सिर्फ एक बेड शेयर कर रहे हैं ना और तो कुछ नहीं? सो ग्रो अप!'
लेटते ही नितु को नींद आ गई पर मेरे लिए जगह नई थी तो थोड़ी बेचैनी थी! मैं चुप-चाप उठा और बालकनी में खड़ा हो गया और उस सोते हुए शहर को देखने लगा. मुझे वो शहर भी लखनऊ जैसा ही लगा बस दिन के समय ये लखनऊ से अलग था वरना रात में तो ये अब भी वैसे ही लग रहा था. मैं हाथ बाँधे खड़ा चाँद को निहारता रहा और जब लगने लगा की अब नींद आ रही है तो सोने चला गया.अगले दिन सबसे पहले उठा और चाय बनाने की सोची पर कीचन में क्या कहाँ रखा है उसमें थोड़ा समय लगा. आखिर चाय बन गई और मैं नितु के लिए चाय ले कर पहुँचा तो वो करवट ले कर लेटी हुई थी. मैंने उनके साइड टेबल पर चाय रखी और एक आवाज दी और उन्होंने आँख खोल दी. सामने चाय देख वो उठ बैठीं; 'अरे मुझे बोला होता?'
'जल्दी उठ गया था तो सोचा चाय बना लूँ!' मैंने कहा और उनके सामने बैठ कर चाय की चुस्की लेने लगा. फिर हम रेडी हुए और ऑफिस के लिए निकले, अभी मैं बाइक पार्क ही कर रहा था की नितु ने अक्कू को कॉल कर दिया. मैंने ये नहीं देखा और जब मैं आया तो हम एक बिल्डिंग में दाखिल हुए, मुझे लगा की इतनी बड़ी बिल्डिंग में ऑफिस होना ही बड़ी बात है पर जब हम ऊपर पहुँचे तो ये एक शेयर्ड ऑफिस निकला. दरवाजे पर अक्कू और रवि दोनों प्लेट ले कर खड़े थे, दरवाजे पर वेलकम का स्टीकर था और मैं ये देख कर खुश था. रवि चूँकि ब्राह्मण था तो वो मंत्र पढ़ते हुए उसने तिलक किया और फिर आरती ले कर हम अंदर घुसे. सामने ही एक छोटा सा मंदिर था मैंने वहाँ प्रणाम किया और प्रार्थना की कि भगवान हमें काम में तरक्की देना. नितु का ऑफिस कुल मिला कर बस दो कमरों का ही था. एक बड़ा हॉल जिसमें दो डेस्क थे जिनपर प्रिंटर और दोनों लड़कों के लैपटॉप थे. दूसरा था एक छोटा केबिन जिसमें एक बॉस चेयर, बॉस टेबल और उसके सामने दो चेयर्स नितु ने मुझे अपनी चेयर पर बैठने को कहा पर मैं नहीं माना; 'ये आपकी जगह है!' मैंने कहा पर तभी अक्कू ने पार्टनर हाईप डीड नितु के हाथ में दी. नितु ने वो दीड टेबल पर रखी और मुझे कहा; 'ये लो पार्टनर हाईप डीड इस पर साइन करो और पूरे हक़ से यहाँ बैठो.
'पर इसकी क्या जरुरत है?' मैंने कहा.
'अरे कमाल करते हो? बिना इस पर साइन किये हम अकाउंट कैसे खोलेंगे? और अभी तो और भी जरुरी डाक्यूमेंट्स हैं जिन पर तुम्हें साइन करना है!' उनकी बात सही थी इसलिए मैंने बिना पड़े ही साइन कर दिया. 'पढ़ तो लो?' नितु ने कहा.
'आपने पढ़ लिया था न? तो बस!' मैंने कहा. पर अब नितु फिर से कहने लगी की मैं उसकी सीट पर बैठूँ; 'नहीं...ये आपकी जगह है धीरे-धीरे जब मैं इस ऑफिस में अपनी जगह बना लूँगा तब बैठूंगा, पर फिलहाल तो मुझे बाकियों से मिलवाओ!' इतना कह कर मैंने बात टाल दी और फिर नितु ने मुस्कुराते हुए आस-पड़ोस वाले बोसेस से इंट्रो कराया ये कह के की मैं उनका बिजिनेस पार्टनर हूँ! सबसे मिलकर हम वापस आये, रवि और अक्कू अपने डेस्क पर बैठे काम कर रहे थे. 'अच्छा आकाश आप मुझे क्लायंट की लिस्ट दे दो!' मैंने कहा तो उसने जवाब में 'ओके सर' कहा. उस समय मेरी छाती गर्व से फूल गई. जिस इंसान ने इतने साल से सबको सर कहा हो अचानक से उसे कोई सर कहे तो उसे कितना गर्व होता है ये मुझे उस दिन पता चला. मैं तो काम में लग गया पर नितु ने शॉपिंग शुरू कर दी. लंच टाइम मैंने सबके लिए बाहर से खाना मंगाया और मेरा खाना तो मैं साथ ही लाया था. आकाश और रवि ने पुछा तो मैंने उन्हें बता दिया की मेरी तबियत ठीक नहीं है और डॉक्टर ने मुझे बाहर के खाने से परहेज करने को कहा हे.
शाम होते ही नितु मुझे मॉल ले गई और वहाँ उसने मुझे बिज़नेस सूट दिलवाया, अब चूँकि मुझे न्यूयॉर्क जाना था तो प्रेजेंटएबल तो लगना था. फिर वहीँ एक सेलोन में मुझे एक अच्छा सा हेयर कट और बियर्ड स्टाइल करवाया और अब मैं वाक़ई में हैंडसम लग रहा था. 'हाय! सागर सच्ची बड़े हसीन लग रहे हो!' नितु ने कहा और इधर मेरे गाल शर्म से लाल हो गये. जब मैंने खुद को आईने में देखा तो पाया की कहाँ उस दिन जब मैंने खुद को आईने में देख कर अफ़सोस किया था और कहाँ आज जब मैं वाक़ई में इतना हैंडसम दिख रहा हु.
दूसरे दिन हमारी न्यूयॉर्क की फ्लाइट थी और उत्साह से भरे हम दोनों वहाँ पहुँचे और होटल में चेक-इन किया. वो पूरी रात हमने प्रेझेंटेशन और बाकी की सारी तैयारी में लगा दी. हमारी प्रेजेंटेशन से पहले एक सेमीनार था जहाँ उनहोने कुछ गाईडलाईन दी थीं, मुझे उसके हिसाब से थोड़े चेंजेस करने पड़े और हम तैयार थे. कॉन्फ्रेंस रूम में दो अमेरिकन बैठे थे जिन्हें हमें प्रेजेंटेशन देनी थी. स्टार्ट नितु ने किया और जैसे ही डेटा प्रेजेंट करने की बारी आई तो उन्होंने मुझे पॉइंटर दे दिया. मैंने बड़े ही आराम से उन्हें सारा कुछ समझाया और उसके बाद उन्होंने हमें बाहर बैठने को कहा. हम दोनों ही बाहर बेसब्री से इंतजार कर रहे थे की तभी उन्होंने हमें अंदर बुलाया और कॉन्ट्रैक्ट ऑफर किया. ये सुनते ही नितु ख़ुशी से उछल पड़ी और मेरे गले लग गई और मेरे दाएं गाल को अपनी लिपस्टिक से लाल कर दिया., ये देख वो अंग्रेज भी हँसने लगे और हम दोनों भी हँसने लगे. 'थयांक यू सर फॉर गिविंग अस दिस अपोर्चूनिटी अँड वी प्रॉमिस वी विल डीलीवर व्हॉट वी प्रॉमिस!” मैंने ये कहते हुए उनसे हाथ मिलाया और फिर हम दोनों हँसी-ख़ुशी बाहर आये. बाहर आते ही आशु ने फिर से मुझे अपनी बाहों में कस लिया.
आज दिवाली थी तो वहाँ से निकल कर हम सीधा होटल आये और वहाँ नहा-धो कर हम ने कपडे बदले. मैंने कुरता-पजामा और नितु ने साडी पहनी और हम सीधा मंदिर पहुंचे. उस शहर मे भारतीय लोगो ने मिलकर एक मंदिर बनाया था.ये पहलीबार था की मैं दिवाली पर अपने परिवार के साथ नहीं था और जब हम मंदिर पहुँचे तो वहाँ सब लोगों को उनके परिवार के साथ देख आखिर मेरी आँखें छलक ही आई. नितु ने मेरे आँसू पोछे पर उनका भी वही हाल था जो मेरा था. मैंने उनकी आँखें पोछीं और फिर हमने भगवान के दर्शन किये और अपने लिए तथा अपने परिवारों के लिए भी प्रार्थना की. पूजा के बाद मैंने प्रकाश को फ़ोन किया और उससे हाल-चाल लेने लगा तो उसने जो बताया वो सुन कर मैं हैरान हो गया.मेरे घर में बाकायदा पूजा हो रही थी और खुशियाँ मनाई जा रही थी. किसी को भी मेरे ना होने का गम नहीं था! दिल दुखा की मैं यहाँ सब को इतना मिस कर रहा हूँ और वहाँ किसी को कोई दुःख भी नहीं, पर फिर ये सोचा की मेरी कमी शायद अश्विनी की शादी ने पूरी कर दी होगी. शादी की सारी तैयारियाँ प्रकाश करवा रहा था जिससे पिताजी और ताऊ जी को थोड़ी सहूलत थी. उन्होंने उसे ये भी बता दिया था की मुझे घर से निकाल दिया गया है क्योंकि मैंने भतीजी की शादी की जगह विदेश जाना ज्यादा जरुरी समझा जिस पर प्रकाश ने मुझे डांटा. पर मैं उसे सच नहीं बता सकता था इसलिए जो वो कह रहा था वो सब सुनता रहा. फ़ोन पर बात करने के बाद मैं उदास खड़ा था की तभी नितु ने पीछे से आ कर मेरा दाहिना हाथ थाम लिया. 'क्या हुआ? घर पर सब ठीक है ना?' नितु ने पुछा तो मैंने झूठी मुस्कान के साथ कहा; 'हाँ...सब ठीक है! चलो चल कर कुछ खाते हैं!' अब चूँकि वहाँ घर का खाना नहीं मिल सकता था तो बाहर खाने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था. पर मेरी तबियत में पहले से काफी सुधार था इसलिए मैंने ये रिस्क ले लिया. खाना मैं कम मिर्च और तेल वाला ही खा रहा था ताकि कुछ कम्प्लीकेशन ना बढे.
खा-पी कर हम होटल लौटे और लेट गए, नितु जानती थी की मेरा मन उदास है और कहीं मैं इस दुःख को फिर से अपने सीने से ना चिपका लूँ इसलिए आज लेटते समय उन्होंने मेरी कमर पर हाथ रख दिया. उनका ऐसा करना मेरे लिए बहुत अजीब था क्योंकि मेरे शरीर के सारे रोएं खड़े हो गए थे. पर मैं चुप-चाप पड़ा रहा, कुछ देर लगी सोने में और आखिर नींद आ ही गई. कुछ देर बाद उन्होंने धीरे से हाथ सरका लिया और दूसरी तरफ मुँह कर के सो गई.
अगली सुबह हम दोनों देर से उठे और उठने के बाद भी नींद पूरी नहीं हुई शायद जेट लेग हो गया था. वो पूरा दिन हमने घुमते हुए बिताया और कंपनी के साथ बैठ कर कुछ स्टडी किया. शाम हुई तो आज मन 'चेंज' करने को कर रहा था. सर्दी का आगाज हो चूका था तो कुछ तो चाहिए था! 'आज बियर पीएं?' मैंने एक्ससाईटेड होते हुए पुछा तो नितु चिढ गई; 'बिलकुल नहीं! जरा सा ठीक हुए नहीं की बियर पीनी है!' मैंने आगे कुछ नहीं कहा और मुस्कुरा दिया. उनका इस कदर हक़ जताना मुझे अच्छा लगता था. हम आखिर होटल आ गए तो खाना खा कर जल्दी सो गये. सुबह मैं जल्दी उठ गया और मैंने रवि को कॉल किया और उससे कुछ अपडेट लेने लगा. फिर अचानक से मुझे कुछ याद आया और मैंने कुछ पुरानी कम्पनियाँ जिनके साथ 'कुमार' काम करते थे उन्हें मैंने मेल भेज दिये. चूँकि इन कंपनियों का डेटा मैं ही देखता था तो मेरे लिए ये काम आसान था. ८ बजे नितु भी उठ गई और मुझे ऐसे काम करते देख कर मेरे पास आईं और मेरे हाथ से लैपटॉप छीन लिया. 'थोड़ा आराम भी कर लो!' इतना कहते हुए वो लैपटॉप अपने साथ ले गई. मैंने शाम को घूमने का प्लान बना लिया, और मीटिंग के बाद हम घूमने निकल पडे. हमारे पास दिन बहुत थे इसलिए हमें कोई जल्दी नहीं थी.
दिन निकलते गए और मेरी दोस्ती जेनिफर नाम के एक गोरी से हो गई. पर नितु को वो फूटी आँख नहीं भाति थी! जब भी मैं उससे बात करता तो नितु मेरे पास आ कर बैठ जाती. मुझे नितु को इस तरह सताने में बड़ा मजा आता था और मैं जानबूझ कर उससे लम्बी-लम्बी बातें किया करता था. उसकी रूचि थी इंडिया घूमने की और मैं उसे अलग-अलग जगह के बारे में बताया करता था. नितु को शायद ये डर था की कहीं मैं उस गोरी से प्यार तो नहीं करता? एक दिन की बात है हम दोनों कॉफ़ी पी रहे थे की नितु भी आ कर बैठ गई. जेनिफर को किसी ने बुलाया तो वो एक्स्क्युज मी बोल कर चली गई. उसके जाते ही नितु ने मेरे कान पकड़ लिए; 'इससे शादी कर के यहीं सेटल होने का इरादा है क्या?' ये सुन कर मैं हँस पडा.
'वो मैरिड है!' मैंने हँसते हुए कहा और तब नितु को समझ आया की इतने दिन से मैं उन्हें सताये जा रहा था. वो भी हँसने लगी और फिर एकदम से खामोश हो गई; 'क्या हुआ?' मैंने पूछा.
'तुम्हारी दोस्ती खोने का डर सताने लगा.' नितु ने उदास होते हुए कहा.
'तुम पागल हो? ऐसा कुछ नहीं होगा, मैं भला आपको छोड़ दूँ? मेलि प्याली-प्याली दोस्त को!' मैंने नितु की ठुड्डी पकड़ते हुए कहा. ये सुन कर नितु फिर से मुस्कुराने लगी. उस दिन शाम को जेनिफर और उसका पति भी हमारे साथ घूमने आये और फिर मौका आया पीने का. अब नितु उनके सामने मुझे कैसे मना करती पर फिर मैंने ही मना किया. इस बार नितु ने खुद कहा; 'जस्ट वन बिअर!' हमने बस एक-एक बियर पी और फिर होटल लौट आये.
दिन गुजरते गए और आखिर हमारा काम खतम होने को आया था. हम वापस बैंगलोर आ गए और नितु ने आते ही रवि और आकाश को इस प्रोजेक्ट पर लगा दिया. पर वो अकेले इसे संभाल नहीं सकते थे इसलिए मैंने उनके साथ बैठना शुरू कर दिया. नितु की इनवोलमेंट कम थी क्योंकि ये एडवान्स अकाउंटिंग थी और इंडियन अकाउंटिंग स्टॅंडर्ड की जगह जी. ए. पी. पी. के हिसाब से काम करना था जिसके बारे में मैंने उन कुछ दिनों में सीखा था. बाकी का सब मैंने केस-स्टडी से सीखना शुरू कर दिया. मैंने जो पुरानी कंपनियों को मेल किया था उसमें से १-२ ने रिवर्ट किया था तो मैंने वो काम नितु को दे दिया. वो बहुत हैरान थी की मैंने उन्हें क्यों अप्रोच किया. कुमार ने तो काम बंद कर दिया अब अगर हमें उनके क्लायंट मिल जाते हैं तो अच्छा ही है! वो तो मेरी रेपुटेशन थी की उन लोगों ने १-१ क्वार्टर की रिटर्न का काम हमें दे दिया था. कुल मिला कर काम अच्छा चल पड़ा था. सिर्फ पुराने क्लाइंट्स से ही हमने अच्छा प्रॉफिट कमा लेना था. युएस वाला का काम थोड़ा मुश्किल था पर पैसा बहुत अच्छा था. हालाँकि उन्होंने कॉन्ट्रैक्ट बहुत थोड़े टाइम का दिया था पर मुझे पूरी उम्मीद थी की वो कॉन्ट्रैक्ट आगे एक्सटेंड जरूर करेंगे.
मुश्किल से हफ्ता बीता होगा की नितु का जन्मदिन आ गया था.
१९ को नितु का जन्मदिन था तो मैंने १८ को ही सोच लिया था की मुझे क्या करना हे. १८ का पूरा दिन मैं ऑफिस में ही था. शाम होने को आई तो मैंने नितु को अकेले ही भेज दिया क्योंकि मुझे डेटा फाइनल करना था ताकि कल का पूरा दिन मैं और नितु घुमते रहें! मैं रात को ठीक साढ़े ग्यारह बजे पहुंचा और चूँकि मेरे पास डुप्लीकेट चाभी थी तो मैं दबे पाँव अंदर आया. हॉल में मैंने केक रखा और मोमबत्ती लगाई और मैं पहले चेंज करने लगा, जैसे ही बारह बजे मैंने नितु को आवाज दे कर उठाया. पर वो एक आवाज में नहीं उठी, मैंने साइड लैंप जलाया और फिर पूरा हैप्पी बर्थडे वाला गाना गाया;
'हॅपी बर्थ डे टू यू,
हॅपी बर्थ डे टू यू,
हॅपी बर्थ डे डिअर नितु,
हॅपी बर्थ डे टू यू'
तब जा कर नितु की आँख खुली और उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे देखा. मैंने उनके सामने घुटनों के बल बैठा था.नितु एक दम से उठी और मेरे गले लग गई. 'शुक्रिया' कहते-कहते उनकी आवाज रोने वाली हो गई. मैं समझ गया की वो अपने मम्मी-डैडी को मिस कर रही हे. 'अच्छा अब रोना नहीं है, चलो बाहर आओ एक सरप्राइज है!' ये कहते हुए मैं उन्हें बाहर लाया और केक देख कर वो खुश हो गई. उन्होंने मुझे एक बाद फिर गले लगा लिया. मैंने फ़ौरन मोमबत्ती जलाई और फिर उन्होंने केक काटा. हम दोनों हॉल में ही सोफे पर बैठ गये. 'एक अरसे बाद मैं अपना बर्थ डे सेलिब्रेट कर रही हूँ! पर मुझे लगा की तुम इतना बिजी हो तो शायद भूल गए होगे?'
'इतने साल आप से दूर रहा तब आपको विश करना नहीं भूला तो साथ रह कर भूल जाऊँगा?'
रात में भूख लगी तो मैंने मैगी बनाई और दोनों ने किचन में खड़े-खड़े खाई और फिर सोने चले गये.
अगली सुबह मैं जल्दी उठा और कॉफी बना कर नितु के साइड टेबल पर रखते हुए कहा; 'कॉफी फॉर दीं बर्थ डे गर्ल!' नितु एक दम से उठ बैठी और मेरा हाथ पकड़ कर वहीं बिठा लिया. 'तो आज का क्या प्रोग्राम है?' नितु ने पूछा. मैं एक दम से खड़ा हुआ और दोनों हाथ हवा में उठाते हुए चिल्लाया; 'रोड ट्रीप!!!!' ये सुनते ही नितु भी एक्साईटेड हो गई! 'पर कहाँ?' नितु ने पूछा. 'शिवा समुद्रम फॉल्स!!!!' मैंने कहा और हम दोनों कूदने लगे, मैं जमीन पर नितु पलंग पर! अल्का आई तो नितु ने उसे भी केक खिलाया, मैंने आकाश और रवि को भी बुला लिया था. दोनों ने आ कर नितु को विश किया और सबने केक खाया.रवि ने मना किया क्योंकि उसे लगा की इसमें अंडा होगा पर मैंने उसे बताया की इसमें अंडा नहीं है तो उसने भी तुरंत खा लिया.
हम दोनों तैयार हो कर बाइक से निकले, पूरे १३५ किलो मीटर की ड्राइव थी. पहले ६० किलोमीटर में ही हवा निकल गई इसलिए मैंने बाइक एक रेस्टरंट पर रोकी और दोनों ने एक-एक कप स्ट्रांग वाली कॉफ़ी पी और फिर से चल पडे. कुछ देर बाद रोड खाली आया तो नितु जिद्द करने लगी की उसे ड्राइव करना हे. आजतक उन्होंने स्कूटी ही चलाई थी और ऐसे में ये भारी भरकम बाइक वो कैसे संभालती? उन्हें मना करना मुझे ठीक नहीं लगा, इसलिए मैंने उन्हें आगे आने को कहा. 'ये बहुत भारी है, आप संभाल नहीं पाओगे, मैं आपके नजदीक आ कर बैठ जाऊँ?' मैंने उनसे पूछा. अब थोड़ा दर तो उन्हें भी लग रहा था क्योंकि बुलेट पर बैठते ही उन्हें उसके वजन का अंदाजा मिल गया था. 'प्लीज गिरने मत देना!' इतना कहते हुए उन्होंने मुझे अपने नजदीक बैठने की इजाजत दी. मैंने उन्हें जब बाइक स्टार्ट करने को कहा तो उनसे वो भी नहीं हुई क्योंकि मैंने किक थोड़ी टाइट रखी थी ताकि मैं उसे स्टाइल से स्टार्ट करू. अब इसमें सेल्फ था नहीं जो वो एक बटन दबा कर स्टार्ट कर लेतीं, इसलिए मुझे ही खड़े हो कर बाइक स्टार्ट करनी पडी. अब बुलेट की भड़भड़ आवाज सुन कर ही वो डर गईं और क्लच छोड़ ही नहीं रही थी.
'नो...नो ...नो ...मैं नहीं चलाऊँगी!' नितु ने घबराते हुए कहा.
अब मुझे लगा की अगर इन्होने डर के एक दम से छोड़ दिया तो दोनों टूट-फुट जाएंगे! इसलिए मैंने दोनों हाथ उनके पेट पर लॉक कर दिए और बड़ी धीमी आवाज में उनके कान में कहा; 'क्लच को धीरे-धीरे छोडो जैसे आप स्कूटी चलाते टाइम छोड़ते हो!' मेरे उनके छू भर लेने से नितु की सांसें तेज हो गईं थी पर जब मैंने धीरे से उनके कान में इंस्ट्रक्शन दी तो उन्होंने खुद पर काबू किया और धीरे-धीरे क्लच छोडा. शुरुरात में थोड़े झटके लगे और फिर बाइक चल पडी. अब मुझे भी एहसास हुआ की मुझे उनको ऐसे नहीं छूना चाहिए था. मैंने धीरे-धीरे अपने हाथ उनके पेट से हटा लिए ताकि वो नार्मल हो जाये. नितु का ध्यान अब बाइक पर था और मेरा ध्यान सब तरफ था की कहीं कोई आकर हमें ठोक नहीं दे. कुछ देर बाद आखिर उनका हाथ बैठ ही गया, घंटे भर में ही उनका मन भर गया और उन्होंने फिर मुझे चलाने को कहा. मैंने इस बार कुछ ज्यादा ही तेजी से चलाई जिससे नितु को मुझसे चिपक कर बैठना पडा. साढ़े तीन घंटे की ड्राइव के बाद हम पहुँचे और वहाँ का नजारा देख कर शरीर में और फूर्ति आ गई. पानी का शोर सुन कर ही उसमें कूद जाने का मन कर रहा था. हमने वहाँ मिल कर खूब मौज-मस्ती की और शाम को निकले.घर आते-आते १० बज गए, वो तो शुक्र है की अल्का जाते-जाते खाना बना गई थी वरना आज भूखे ही सोना पडता. खाना खा कर मैं उठा तो नितु बोली; 'शुक्रिया आज का दिन इतना स्पेशल और मेमोरेबल बनाने के लिए!'
'शुक्रिया आपको की आपने पहले वाले सागर को फिर से मरने नहीं दिया!' मैंने मुस्कुराते हुए कहा और हम दोनों सो गये.
अब आया क्रिसमस और हररोज की तरह जब मैं नितु की बेड टी ले कर आया तो नितु बोली; 'रोज-रोज क्यों तकलीफ करते हो?'
'तकलीफ कैसी ये तो मेरा प्यार है!' मैंने हँसते हुए कहा पर नितु के पास इसका जवाब पहले से तैयार था; 'थोड़ा और प्यार दिखा कर खाना भी बना दो फिर!'
'अच्छा चलो आज आपको अपने हाथ का खाना भी खिला देता हु. उँगलियाँ ना चाट जाओ तो कहना. पर अभी तैयार हो जाओ चर्च जाना हे.' मैंने कहा.
'क्यों शादी करनी है?' नितु ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा.
'शादी तो हम रजिस्ट्रार ऑफिस में करेंगे पहले चर्च जा कर गॉड का आशीर्वाद तो ले लें.' ये सुनते ही हम दोनों बहुत जोर से हँसे.नितु और मेरे बीच ऐसा मजाक बहुत होता था. एक तरह से दोनों जानते थे की हमें कैसे दूसरे को हँसाना हे. अब ले-दे कर हम दोनों ही अब एक-दूसरे का सहारा थे! खेर हम तैयार हो कर चर्च आये और वहाँ अपने और अपने परिवार के लिए प्रेयर किया. भले ही उनसब ने हम से मुँह मोड़ लिया था पर हम अब भी अपने परिवार को उतना ही चाहते थे! हम दोनों ही भावुक हो कर चर्च से निकले पर जानते थे की एक-दूसरे को कैसे हँसाना हे.
'तो क्या खिला रहे हो आज?' नितु ने पूछा.
'यार मैं ठहरा देहाती, मुझे तो दाल-रोटी ही बनानी आती हे.' मैंने बाइक स्टार्ट करते हुए कहा.
'प्यार से बनाओगे तो दाल में भी चिकन का स्वाद आजायेगा.' नितु ने पीछे बैठते हुए कहा.
'चलो फिर आज चिकन ही खिलाता हूँ!' मैंने कहा और बाइक सीधा सुपरमार्केट की तरफ ले ली. वहाँ से सारा समान खरीदा और एप्रन पहन कर कीचन में कूद पड़ा, नितु को मैंने दूर ही रखा वरना वो टोक-टोक कर मेरी नाक में दम कर देती. चिकन मेरीनेशन की और सोचा की बटर चिकन बनाऊँ लेकिन फिर मन किया की ग्रिल चिकन बनाते हैं! जब बन गया तो मैंने नितु को चखने को बुलाया, किस्मत से वो टेस्टी बना, पहलीबार के हिसाब से टेस्टी! वो तो शुक्र है की मैंने साथ में दाल बनाई थी जिसमें मेरी महारत हासिल थी तो खाना थोड़ा बैलेंस हो गया, वरना उस दिन अच्छी बेजती हो जानी थी! दिन हँसी ख़ुशी बीत रहे थे और बिजिनेस भी अब अच्छी रफ्तार पकड़ने लगा था.
फिर आया ३१ दिसंबर.आकाश और रवि दोनों ने नितु से कहा की आज तो पार्टी होनी चाहिए. नितु का कहना था की घर पर ही करते हैं, पर मुझे पता था की लड़कों को चाहिए शराब और शबाब और वो सिर्फ पब में मिलता. मैंने जब नितु से जाने को कहा तो वो मना करने लगी. 'प्लीज यार! देखो लड़कों का बड़ा मन है!' पर वो नहीं मानी, मैं जानता था की उनके न जाने का कारन मैं ही हु. 'अच्छा बाबा आई प्रॉमिस १ बियर से ज्यादा और कुछ नहीं लूँगा! फिर ये देखो टीm बिल्डिंग के लिए ये अच्छा भी हे.' मैंने एक बहना और जोड़ा तो नितु मान गई. मेरे साथ तो नितु थी. पर उन लड़कों की पहले से ही गर्लफ्रेंड थी. उन दोनों लड़कियों से हमारा इंट्रोडक्शन हुआ, अब जगह पहले से ही भरी पड़ी थी तो खड़े-खड़े ही हमने पीना शुरू किया. मेरी बियर अभी आधी ही हुई थी की नितु मुझे खींच कर डांस फ्लोर पर ले गई और हम दोनों ने नाचना शुरू किया. हमारी देखा-देखि वो चारों भी डांस करने लगे. लाऊड म्युजिक में डांस करते-करते पता ही नहीं चला की ११ बज गए! नितु ने जैसे ही टाइम देखा वो मुझे अपने साथ ले कर निकलने लगी. हमने सबको बाई बोला और हम घर पहुँच गये. पर नितु ने घर पर सेलिब्रेट करने का प्लान बना रखा था इसलिए वो मुझे शुरू से ही कहीं नहीं जाने देना चाहती थी. मैं चेंज कर रहा था और इधर नितु ने पूरा माहौल बनाना शुरू कर दिया था. बालकनी में गद्दियां लगी थी. ब्लूटूथ पर सारे स्लो ट्रैक्स धीमी आवाज में चल रहे थे और वाइन के दो गिलास रखे हुए थे. साइड में रेड वाइन की एक बोतल रखी थी. जब मैं बाहर वापस आया तो मैं अपने दोनों गालों पर हाथ रख कर आँखें फाड़े देखने लगा. 'आँखें फाड़ कर क्या देख रहे हो, आओ बैठो.' नितु ने कहा और मैं जा कर बालकनी में फर्श पर बैठ गया.नितु ने गिलास में वाइन डाली और फिर हमने चियर्स किया, इधर नितु ने पीना शुरू कर दिया और मैंने उसे सूँघना शुरू किया. 'क्या हुआ? वाइन से बदबू आ रही है?' नितु ने पूछा. मैं उस समय वाइन को गिलास के अंदर गोल-गोल घुमा रहा था; 'इसे वाईन टेस्टिंग कहते हैं!' मैंने कहा और मुस्कुरा दिया. 'सारे शौक अमीरों वाले पाल रखे हैं तुमने?' नितु ने चिढ़ते हुए कहा. 'हाँ...क्योंकि मुझे अमीर बनना है, गरीब और कमजोर आदमी की यहाँ कोई औकात नहीं! याद है वो फर्स्ट टाइम मुंबई जाना और वहाँ मेरा मीटिंग के बाहर वेट करना और फिर अश्विनी का मुझे छोड़ना. आपको पता है जब मैंने पहली बार आपका ऑफिस देखा तो मेरे मन में आया की मुझे इसे दो कमरों से पूरे हॉल पर फैलाना हे.' मेरे ख्याल सुन कर नितु के चेहरे पर मुस्कान आ गई. ये कोई आम मुस्कान नहीं थी. बल्कि ये गर्व वाली मुस्कान थी. ठीक बारह बजते ही पटाखों का शोर शुरू हो गया, नितु खडी हुई और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अंदर लाई| मेरे गले लगते हुए बोली; 'हॅपी न्यू इअर!! आई विश की ये साल तुम्हारे लिए खुशियां ले कर आये और तुम्हें खूब ऊँचाइयों पर ले जाये.'
'करेक्शन: ये साल 'हमारे' लिए ढेर सारी खिशियाँ लाये और 'हमें' खूब ऊँचाइयों पर ले जाये. दुःख में साथ देते हो और खुशियों में पीछे रहना चाहते हो? अब कुछ भी मेरा नहीं बल्कि हमारा है, यो दोस्ती एक नए मुक़ाम तक जाएगी और सब के लिए मिसाल होगी!' मैंने नितु को कस कर गले लगाते हुए कहा. मेरी बात सुन कर नितु की आँखें भर आईं और उन्होंने भी मुझे कस कर गले लगा लिया.
अगले दिन सुबह-सुबह मुझे प्रकाश का फ़ोन आया और नए साल की मुबारकबाद के बाद वो मुझे सॉरी बोलने लगा. 'तेरी भाभी मिली थी उन्होंने बताया की तू आखिर क्यों गया घर छोड़ कर! तेरी इतनी मेहनत के बाद भी अश्विनी ने पढ़ाई पूरी नहीं की और प्यार के चक्कर में पड़ कर शादी कर ली.'
'भाई छोड़ वो सब, ये बता वहाँ सब कैसे हैं? शादी ठीक से निपट गई ना?' मैंने पूछा.
'हाँ सब अच्छे से निपट गया पर यार सच में यहाँ तेरे ना होने से किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पडा. मुझे कहना तो नहीं चाहिए पर तेरे परिवार को तेरी पड़ी ही नहीं! तेरे ताऊ जी तो गाँव में छाती ठोक कर घूम रहे हैं, उन्हें ये नहीं पता की मंत्री ने ये शादी सिर्फ और सिर्फ अपने लड़के की ख़ुशी और अगले महीने होने वाले चुनाव में अपनी इमेज बचाने को की हे.' प्रकाश ने काफी गंभीर होते हुए कहा.'यार छोड़ ये सब, तुझे एक गिफ्ट भेज रहा हूँ शायद तुझे पसंद आये. जब मिले तो कॉल करिओ' मैंने ये कहते हुए बात जल्दी से निपटाई.
नितु को चाय दे कर मैं हॉल में अपना काम ले कर बैठ गया क्योंकि अगर खाली बैठता तो फिर वही सब सोचने लगता. कुछ देर बाद अल्का आ गई और उसने नाश्ता बनाया, 'अरे आज तो साल का पहला दिन है आज भी काम करोगे?' नितु ने अंगड़ाई लेते हुए कहा.
'साल की शुरुआत काम से हो तो सारा साल काम करते रहेंगे!' इतना कह कर मैं फिर से बिजी हो गया.मुझे नितु को अपने परिवार के बारे में कुछ भी कहना ठीक नहीं लगा इसलिए मैं खुद को लैपटॉप में घुसाए रहा. शाम होते-होते वो समझ गई की कुछ तो गड़बड़ है इसलिए उन्होंने मेरा लैपटॉप एक दम से बंद कर दिया जिससे मुझे बहुत गुस्सा आया; 'क्या कर रहे हो?' मैंने चिढ़ते हुए कहा.
'सुबह से इसमें घुसे हो? थोड़ी देर आराम कर लो!' नितु ने एकदम से जवाब दिया जिससे मेरा गुस्सा फूट ही पडा.
'आपको पता भी है की आपके आस-पास क्या हो रहा है? दुनिया चाँद पर जा रही है और आप हो की अब भी वही फाईनांशियल एनालीसिस में लगे हो! सोशल मीडिया पर आपकी प्रेजेंस झिरो है! अपनी फोटो डालते हो, पर मैंने आपको कंपनी प्रोफाईल बनाने को कहा वो बनाई आपने? आपको मैंने सर्व्हिस चार्ज के बारे में मेल भेजा था उस पर बात की आपने मुझसे? सिलिकॉन ट्रेडर्स का डाटा रेडी किया आपने? सारा काम आकाश और रवि पर छोड़ देते हो! सिर्फ कॉन्ट्रॅक्ट लाने से काम नहीं चलता, जो हाथ में काम है उसे भी करना पड़ता है!' मैं बोलता रहा और वो सर झुकाये सुनती रही. मैं आखिर बालकनी में आ कर आँखें बंद कर के बैठ गया.आधे घण्टे तक मुझे कोई आवाज सुनाई नहीं दी, वरना वो सारा दिन घर में इधर से उधर चहल कदमी करती रहती थी. मुझे एहसास हुआ की मैंने अपने घरवालों का गुस्सा उन पर उतार दिया तो मैं उठ कर उन्हें मनाने कमरे में पहुँचा तो नितु बेड पर सर झुका कर बैठी थी.
'आई एम रियली सॉरी! मुझे गुस्सा किसी और बात का था और मैंने वो आप पर उतार दिया! प्लीज फॉरगिव मी.' मैंने घुटने के बल उनके सामने बैठते हुए कहा. पर नितु ने अबतक अपना सर नहीं उठाया था और वो वैसे ही सर झुकाये हुए बोलीं; 'मैं बहुत स्लो हूँ, चीजों को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेती. जरुरी बातों को कई बार नजर अंदाज कर देती हूँ, आजतक मैंने सिर्फ और सिर्फ किसी को गंभीरता से लिया है तो वो तुम हो! मुझे बुरा नहीं लगा की तुमने जो कहा पर बुरा लगा तो ये की तुमने मुझे डाँटा!' नितु ने ये बात 'तुमने मुझे डाँटा' बिलकुल बच्चे की तरह तुतलाते हुए कहा और ये देख कर मुझे उन पर प्यार आ गया; 'आजा मेरा बच्चा!'' कहते हुए मैंने अपनी बाहें खोली और नितु आ कर मेरे गले लग गई.
'अब ये बताओ की क्या बात है की सुबह से इतना गुस्सा हो!' नितु ने पुछा तो मैंने उन्हें सुबह की बात बता दी पर आधी.ये बात सुन कर उन्हें भी बुरा लगा और मैं इस बारे में ज्यादा ना सोचूं इसलिए उन्होंने मजाक में कहा; 'अब सजा के लिए तैयार हो जाओ!' नितु ने कहा और मैंने सरेंडर करते हुए कहा; 'जो हुक्म मालिक!'
'आज रात पार्टी करनी है, जबरदस्त वाली वरना सारा साल मुझे ऐसे ही डाँटते रहोगे.' नितु ने कहा इसलिए हम तैयार हो कर ८ बजे निकले. क्लब पहुँचते ही नितु मस्त हो गई. अब मुझ पर तो पीने की बंदिश थी तो मैं बस एक बियर की बोतल को चुस्की ले-ले कर पीने लगा. देखते ही देखते उन्होंने खूब पी ली और मुझे खींच कर डांस फ्लोर पर ले आई. बारह बजे तक उन्होंने दबा कर पी और मैं बिचारा एक बियर और स्टार्टर्स खाता रहा. बारह बजने को आये तो मैंने उन्हें चलने को कहा पर मैडम जी आज फुल मूड में थी. कैब करके उन्हें घर लाया पर अब वो टैक्सी से उतरने से मना करने लगी और सो गई. 'साहब ले जाओ ना, मुझे घर भी जाना है!' ड्राइवर बोला तो मजबूरन मुझे उन्हें गोद में उठाकर ऊपर लाना पडा. ऊपर ला कर मैंने उन्हें बेड पर लिटाया और मैं चेंज करके लेट गया.करीब घंटे भर बाद ही नितु का हाथ मेरी कमर पर था और मुझे उनकी तरफ खींच रहा था. मैं समझ गया की मैडम जी कोई सपना देख रही हे. अब वहाँ रुकता तो पता नहीं वो नींद में क्या करतीं, इसलिए मैं बाहर हॉल में आ कर लेट गया.
सुबह जब मैं बेड टी ले कर गया तो उनका सर बहुत जोर से घूम रहा था. चाय पी कर वो करहाते हुए बोलीं; 'हम ....घर कब आये?'
'साढ़े बारह!' मैंने चाय की चुस्की लेते हुए कहा और ऐसे जताया जैसे मैं उनसे नाराज हु.
'सॉरी' उन्होंने शर्मिंदा होते हुए कहा.
'मेरी इज्जत लूटने के बाद सॉरी कहती हो?' मैंने ड्रामा जारी रखते हुए गुस्से से कहा.
'क्या?' नितु ने चौंकते हुए कहा.
'हाँ जी! रात में पता नहीं आपको क्या हुआ की आप मेरे ऊपर चढ़ गए और मेरे कपडे नोचने शुरू कर दिए! आपको होश भी है आपने क्या-क्या किया मेरे साथ?' मैंने रोने का नाटक किया. पर नितु समझ गई थी की मैं ड्रामा कर रहा हूँ क्योंकि उन्होंने अभी तक कल रात वाले कपड़े पहने थे.
'सससस....हाय! सागर सच्ची बड़ा मजा आया कल रात! कल रात तुम्हारा ठीक से चीर हरण नहीं हो पाया था. आज मैं जी भर के तुम्हारा चीर हरण करती हूँ!' ये कहते हुए वो खड़ी हुई और मैं भी उठ कर भागा.उनको डॉज करते हुए मैं पूरे घर में भाग रहा था और वो भी मेरे पीछे-पीछे कभी सोफे पर चढ़ जाती तो कभी पलंग पर. अचानक ही उन्हें ठोकर लगीं और वो मेरे ऊपर गिरीं और मैं पलंग पर गिरा. एक पल के लिए दोनों एक दूसरे की आँख में देख रहे थे पर फिर हम दोनों को कुछ अजीब सा एहसास हुआ, वो उठ कर बाथरूम में चली गईं और मैं उठ कर बालकनी में आ गया. मन में अजीब सी तरंगें उठ रही न थी पर मैं उन तरंगों को प्यार का नाम नहीं देना चाहता था इसलिए अपना ध्यान वापस काम में लगा दिया.
दिन हँसी-ख़ुशी से बीत रहे थे और हमारा ये हँसी-मजाक चलता रहता था. मेहनत दोनों बड़ी शिद्दत से कर रहे थे और कामयाबी मिल रही थी. जिन कंपनियों के हमें एक क्वार्टर का ही काम दिया था उन्होंने हमें पूरे साल का काम दे दिया था. युएस वाला प्रोजेक्ट बड़े जोर-शोर से चल रहा था और मैंने नितु को उसकी प्रेजेंटेशन के काम में लगा दिया. मार्च तक हमें एक और इम्प्लोयी चाहिए था तो नितु ने मेरी जिम्मेदारी लगा दी की मैं इंटरव्यू लूँ, आज तक जिसने इंटरव्यू दिया हो उसे आज इंटरव्यू लेने का मौका मिल रहा था. एक्सपिरियंस की जगह मैंने फ्रेशर बुलाये, क्योंकि एक तो सैलरी कम देनी पड़ती और दूसरा वो जोश-जोश में परमानेंट जॉब के चक्कर में काम अच्छा करते हे. नए लड़के को हायर कर लिया गया और उसे काम अच्छे से समझा कर टीम में जोड़ लिया गया.लड़के नितु से शर्मा कर के हँसी-मजाक कम किया करते थे पर मेरे साथ उनकी अच्छी बनती थी और मैं जब उन्हें खाली देखता तो उनकी टांग खिचाई कर देता था. किसी पर भी गुस्सा नहीं करता था. मैं अच्छे से जानता था की काम कैसे निकालना हे. उनकी ख़ुशी के लिए कभी-कभार खाना बाहर से मंगा देता तो वो खुश हो जाया करते. जून में युएस का प्रोजेक्ट फाइनल हुआ और अब मौका था सेलिब्रेट करने का, अब तो मेरी सेहत भी अच्छी हो गई थी तो इस बार जम कर दारु पी मैंने. रात के एक बजे हम दारु के नशे में धुत्त घर पहुँचे, दरवाजा बंद करके हम दोनों एक दूसरे से लिपट कर सो गये. सुबह जब मेरी आँख खुली तो मैंने नितु को खुद से चिपका हुआ पाया और धीरे से खुद को छुड़ाने लगा. पर तभी नितु की नींद खुल गई और वो मेरी आँखों में देखने लगी. फिर मेरे गाल को चूम कर वो बाथरूम में घुस गई. दरअसल उन्होंने मेरा मॉर्निंग वूड देख लिया था. यही वो कारन है की मैं रोज उनसे पहले उठ जाता था ताकि वो मेरा मॉर्निंग वूड न देख लें. उसे देख कर वो मेरे बारे में गलत ही सोचेंगी.
मैं बहुत शर्मा रहा था ये सोच कर की नितु मेरे बारे में क्या सोचती होगी? उन्हें लगता होगा की कैसा ठरकी लड़का है, एक रात साथ चिपक कर क्या सोइ की इसके लिंग खड़ा हो गया! मैं यही सोचता हुआ बालकनी में बैठा था. नितु बाथरूम से बाहर निकलीं और चाय बनाने लगी. मैं अब भी शर्म के मारे बाहर बैठा था. 'क्या हुआ?' नितु ने मुझे चाय देते हुए पूछा. मैं कुछ नहीं बोला बस सर झुकाये उनसे चाय ले ली. पर वो चुप कहाँ रहने वाली थीं, इसलिए मेरे पीछे पड़ गईं तो मैंने हार कर हकलाते-हकलाते कहा: 'व...वो ...सुबह...मैं...वो... हार्ड ...था!' मैं उनसे पूरी बात कहने से डर रहा था. पर वो समझ गईं और हँसने लगी; 'तो क्या हुआ?'
'आपको नहीं देखना चाहिए था!.... आई मीन ... मुझे जल्दी उठना चाहिए था! रोज इसीलिए तो जल्दी उठ जाता हु.' मैंने कहा.
'ये पहलीबार तो नहीं देखा!' नितु ने चाय की चुस्की लेते हुए आँखें नीचे करते हुए कहा. पर ये मेरे लिए शॉक था; 'क्या? आपने कब देख लिया?'
'तुम्हें क्या लगता है की मैं रात को उठती नहीं हूँ? इट्स ओके .... ये तो नार्मल बात है!' नितु ने कहा पर मेरे शर्म से गाल लाल थे! 'आय-हाय! गाल तो देखो, सेब जैसे लाल हो रहे हैं!' नितु ने मेरी खिंचाई शुरू कर दी और मैं हँस पडा.
 
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'मैं दुबारा इनकी शक्ल नहीं देखना चाहता, इसलिए यहीं दे रहा हु. मेरी फाइनल पेमेंट का चेक मुझे भिजवा दीजियेगा' मैंने सर की तरफ देखते हुए कहा.
'मिस्टर सागर बीह्याव योवरसेल्फ!' जज साहब ने मुझे चेतावनी देते हुए कहा और मैं भी चुप हो गया.
'देख रहे है जज साहब, इस लड़के को रत्ती भर भी तमीज नहीं की कोर्ट में कैसे बेहवे किया जाता है!' सर के वकील ने तंज कस्ते हुए कहा.
'ये उसका रोज का काम नहीं है, पहली बार आया है कोर्ट में' मैडम के वकील साहिबा ने मेरा बचाव करते हुए कहा.
'जज साहब मैं आपका ध्यान इन कॉल लिस्ट्स की तरफ लाना चाहती हु.' ये कहते हुए उन्होंने जज साहब को एक कॉल लिस्ट की कॉपी दी और दूसरी कॉपी उन्होंने सर के वकील की तरफ बढ़ा दी. 'इसमें जो नंबर मार्क कर रखा है ये किसका है? किस्से ये घंटों तक बातें करते हैं?' वकील साहिबा ने पूछा.
'वो...क..कुछ बिज़नेस रिलेटेड कॉल था.' सर ने हिचकते हुए जवाब दिया. ये सुन कर मैडम बरस पड़ीं; 'झूठ तो बोलो मत! रात के एक बजे कौन इतनी लम्बी-लम्बी बातें करता है? जज साहब ये नंबर इनकी 'प्रियतमा' का हे. जिसका नाम है यास्मिन! शादी से पहले का इनका प्यार!' अब ये सुनते ही दोनों परिवारों की आँखें चौड़ी हो गई. वकील साहिबा ने फाइल से यास्मिन की पिक्चर निकाल कर सर से पुछा की ये कौन है? उन्होंने बस उस लड़की को पहचाना पर अपने रिश्ते से साफ़ मना करते रहे. 'इस नंबर पर कॉल करो और हम सब से बात कराओ' जज साहब ने सर को डराया तो उन्होंने बात कबुली की वो यास्मिन से बात करते हैं पर उनके वकील ने सर का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की बात नहीं कबूली.
'जज साहब! हमारी शादी को ४ साल हो चुके हैं, पर इन चार सालों में एक पल के लिए भी मुझे इनका साथ या प्यार नहीं मिला. मिलता भी कैसे? इनके मन मंदिर में तो यास्मिन बसी थी. शादी की रात ही इन्होने मुझे अपने और यास्मिन के बारे में बताया. उस दिन से ले कर आज तक प्यार के दो पल मुझे नसीब नहीं हुए, ऐसा नहीं है की मैंने कोई कोशिश नहीं की! पर ये हमेशा ही मुझसे दूर रहते थे, हमेशा फ़ोन पर या ऑफिस के काम में बिजी रहते.मुझे भी इन्होने जबरदस्ती ऑफिस में बुलाना शुरू कर दिया और काम में बिजी कर दिया ताकि मेरा ध्यान इन पर ना जाये. वो लड़की यास्मिन... उसने आज तक इनके लिए शादी नहीं की और मुझे पूरा यक़ीन है की इन दोनों एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर है क्योंकि ...... क्योंकी ....!!!' ये कहते हुए मैडम रो पड़ीं.
पर अभी मैडम की बात पूरी नहीं हुई थी उन्होंने गुस्से से चिल्लाते हुए सर से कहा; 'तुम्हारा मन इतना मैला है की तुमने दो दोस्तों की दोस्ती को गाली दी है! मैं और सागर जी बस अच्छे दोस्त हैं और दोस्ती कोई जुर्म नहीं!' जज साहब ने उन्हें शांत होने को कहा और पानी पीने को कहा.
'जज साहब हमारी माँग बस ये है की एक तो आप प्लीज सागर जी का नाम इस केस से क्लिअर कर दीजिये क्योंकि उनके खिलाफ कुमार के पास कोई भी कनकलूसिव एवीडन्स नहीं हे. दूसरा मेरी मुवकिल को उचित मुआवजा मिले, वो चार साल जो इन्होने मेंटल टोरचर सहा है और ऑफिस में जो काम किया है उसके एवज में! तीसरा आप प्लीज इस डाइवोर्स को जल्द से जल्द फाइनल कीजिये क्योंकि मेरी मुवकिल बहुत ही भावूक स्थिती में हे. बस इससे ज्यादा हमारी और कोई माँग नहीं हे.' मैडम की वकील साहिबा ने कहा.
'देखिये सागर का नाम तो हम क्लिअर कर देते हैं पर इतनी जल्दी हम मुआवजे का फैसला नहीं कर सकते, पहले तो ये यास्मिन को यहाँ ले कर आइये उसके बाद हम फैसला करेंगे.' जज साहब ने अपना फैसला सुनाया और अगली डेट दे दी.
सब के सब बाहर आगये पर मेरा तो खून खोल रहा था पर खुद को काबू कर के मैं अकेला खड़ा था और बस खुंदक भरी नजरों से सर को देख रहा था. मैं अगर कुछ भी बोलता या कहता तो मैडम के लिए बात बिगड़ सकती थी. तभी सर की माँ मेरे पास आईं; 'तू ने हमारे परिवार की खुशियों में आग लगाईं हे.' इससे पहले मैं कुछ जवाब देता मैडम ने तेजी से मेरे पास आईं और उन पर बरस पड़ीं; 'कुछ नहीं किया इन्होने, आप को अपने बेटे की गलती नजर नहीं आती? मैंने जो अंदर कहा वो आपको समझ में नहीं आया ना? आपके बेटे ने शादी के बाद से मुझे छुआ तक नहीं है, यक़ीन नहीं आता तो चलो कौन सा टेस्ट करवाना है मेरा करवा लो!' मैडम गुस्से में चिल्लाते हुए बोलीं और ये सुन कर सर की माँ का सर झुक गया और वो कुछ नहीं बोली. इधर मैडम के आँसूँ निकल आये थे मैंने आगे बढ़ कर उन्हें संभालना चाहा पर उनके माता-पिता आगे आ गये और उनके कंधे पर हाथ रख कर उनको चुप करने लगे. मैडम ने मेरे हाथों को नोटिस कर लिया था जो उन्हें संभालने को आगे बढे थे पर वो कुछ बोलीं नहीं, क्योंकि उनका कुछ भी कहना या करना उनका केस बिगाड़ सकता था.
मैडम ने अपने आँसु पोछे; 'सॉरी सागर! मेरी वजह से तुम्हें कोर्ट तक आना पडा. पिछली हियरिंग में जज साहब ने मेडिएशन के लिए बुलाया था और कुमार के वकील ने तुम्हारा नाम लिया था इसलिए तुम्हें परेशान किया.'
'इट्स ओके मॅडम!!! जस्ट लेट मीनो इफ यू निड माई हेल्प.' अब मैं इससे ज्यादा और क्या कहता इसलिए मैं बस वहाँ से चल दिया. मैं कुछ दूर आया था की मुझे अक्षय मिल गया.अक्षय कोर्ट में किसी वकील के पास असिस्टेंट था. उसने मुझसे वहाँ आने का कारन पुछा तो मैंने ये कह कर बात टाल दी की वो मैडम का केस था. इतना कह कर मैं बाहर आ गया.अब मुझ पर नई जॉब ढूँढने का प्रेशर बन गया था. मैं सीधा घर आया और पहले बैठ कर चैन से सांस ली और सोचने लगा की आगे क्या करूँ? बैंक कितने पैसे बचे हैं ये चेक किया और फिर हिसाब लगाने लगा की कितने दिन इन पैसों से गुजारा होगा. शुक्र है की मेरी बुलेट की इ एम आई खत्म हो चुकी थी! मैं इंटरनेट पर जॉब सर्च करने लगा. इधर मेरे पास जो आशु का फ़ोन था वो बज उठा. आशु जब भी गाँव जाती थी तो अपना फ़ोन मुझे दे देती थी ताकि वहाँ किसी को पता ना चल जाये. ये किसी और का नहीं बल्कि निशा का फ़ोन था. पर मेरे उठाने से पहले ही वो स्विच ऑफ हो गया.आशु जाने से पहले फ़ोन स्विच ऑफ करना भूल गई थी इसलिए बैटरी डिस्चार्ज हो गई. तब मुझे याद आया की मुझे आशु के ये सब बता देना चाहिए पर बताऊँ कैसे? मैंने माँ के फ़ोन पर कॉल किया तो उन्होंने फ़ोन नहीं उठाया. अब मैं और कुछ भी नहीं कर सकता था. न ही घर पर बता सकता था की मैं जॉब छोड़ रहा हूँ वरना वो सब मुझे घर बिठा देते. वो पूरा दिन मैं बस ऑनलाइन जॉब ढूँढता रहा और ऑनलाइन अपने रिज्यूमे पोस्ट करता रहा. रात में एक लिस्ट बनायीं जहाँ सुबह इंटरव्यू के लिए जाना था. टेंशन एक दम से मेरे ऊपर सवार हुआ की मन किया की एक सिगरेट पी लूँ पर आशु को किया हुआ वादा याद आ गया.ब्रेड-बटर खा कर सो गया.
सुबह जल्दी से तैयार हो गया.राम नगर में एक छोटे ऑफिस के लिए निकला. वहाँ पहुँच कर देखा तो दो कमरों का एक ऑफिस जहाँ सैलरी के नाम पर मुझे बस दस हजार मिलने थे. अब ८,०००/- का रेंट भरने के बाद बचता क्या ख़ाक! वहाँ से मायूस लौटा और बिस्तर पर लेट गया.अगले दिन उठा और कुछ प्लेसमेंट एजेंसी गया और वहाँ अपने रिज्यूमे दिया और फिर वापस आया, पर अब दिल बेचैन होने लगा था. आशु की बहुत याद आ रही थी और साथ ही ये एहसास हुआ की शादी के बाद मेरी जिम्मेदारियाँ और भी बढ़ जाएँगी. ये सोच-सोच कर मैं टेंशन में डूब गया, गुम-सुम बैठा मायूस हो गया.दिल ने बहुत हिम्मत बटोरी और होंसला दिया की इस तरह हार मान ली तो आशु का क्या होगा. मुझे पॉजिटिव रहना चाहिए इसी जोश से मैं उठा और नाहा-धो कर तैयार हो गया और आशु को लेने घर के निकल पडा.
घर पहुँचते-पहुँचते रात हो गई. ठीक दस बजे मेरी बुलेट की आवाज सुन कर आशु दौड़ी-दौड़ी आई और उसने दरवाजा खोला. उसे देखते ही मेरी सारी टेंशन्स फुर्र हो गईं.मैंने आँखों के इशारे से उससे पुछा की सब कहाँ हैं तो उसने कहा की सब सो गये. मैंने तुरंत बाइक दिवार के सहारे खड़ी की और जा कर आशु को अपने सीने से लगा लिया. आशु भी कस कर मुझसे लिपट गई; 'आपको बहुत मिस किया मैंने!' आशु ने खुसफुसाते हुए कहा. 'मैंने भी....' बस इससे ज्यादा कहने को मन नहीं किया. हम अलग हुए और मैंने जा कर बाइक को स्टैंड पर लगाया और लॉक कर के अंदर आया. आशु ने दरवाजा बंद किया और बिना कहे ही खाना परोस कर ले आई. वो जानती थी की मैंने खाना नहीं खाया है, मैंने आंगन में पड़ी चारपाई खींची और रसोई के पास ले आया. आशु कुर्सी पर बैठी थी और मैं चारपाई पर बैठा था. खाने में आशु ने मेरे पसंद के दाल-चावल और करेले बनाये थे. वो अपने हाथों से मुझे खिलाने लगी. मुझे खिलाने में उसे जो आनंद आ रहा था ठीक वैसे ही आनंद मुझे उसके हाथ से खाने में आ रहा था. 'तुमने खाया?' मैंने पुछा तो आशु ने बस सर हाँ में हिलाया. मैं समझ गया था की घर में सब के डर के मारे उसने खाना खा लिया होगा. पूरा खाना खा कर आशु बर्तन रखने गई तो थोड़ी आवाज हुई जिससे ताई जी उठ गईं और मुझे आंगन में बैठा देख कर पूछने लगी; 'तू कब आया?' मैंने बताया की अभी २० मिनट हुए आये हूये. उन्होंने आशु को आवाज मारी और आशु रसोई से निकली; 'लड़के को खाना दे.' तो मैंने खुद ही कहा; 'खाना खा लिया ताई जी.' ये सुन कर ताई जी बोलीं; 'चलो इतनी तो अक्ल आ गई इसमें (आशु में).चल अब आराम कर.' इतना कह कर ताई जी सोने चली गईं.
मे और आशु नजरें बचाते हुए हाथ में हाथ डाले ऊपर आ गये. चूँकि मेरा कमरा पहले आता था तो मैं ने आशु को पकड़ के अंदर खींच लिया. मेरे कुछ कहने या करने से पहले ही आशु अपने पंजों के बल खड़ी हुई और मेरे होठों को चूम लिया. मैंने अपने दोनों होठों से आशु के निचले होंठ को मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा. अभी हम किस करते हुए दो मिनट ही हुए की मुझे लगा की कोई आ रहा है तो मैं और आशु दोनों अलग हो गए पर प्यास हमारे चेहरे से झलक रही थी. बेमन से आशु अपने कमरे में गई.मैं भी बिना कपडे बदले बिस्तर पर लेट गया.नींद थी की आने का नाम ही ले रही थी. मैं आधे घंटे बाद उठा और आशु के कमरे के बाहर खड़ा हो गया.पर कमरा अंदर से बंद था. एक बार को तो मन किया की दरवाजा खटखटाऊँ पर फिर रूक गया ये सोच कर की आशु ने दिन भर बहुत काम किया होगा और बेचारी थक कर सो रही होगी. मैं छत पर चला गया और एक किनारे जमीन पर बैठ गया और रात के सन्नाटे में सर झुकाये सोचने लगा. रात बड़े काँटों भरी निकली ...
सुबह की पहली किरण के साथ ही मैं उठ गया और नीचे आकर फ्रेश हो गया.नहाने के समय मैं सोच रहा था की मैं आशु को ये सब कैसे बताऊँ? वो ये सुन कर परेशान हो जाती पर उससे छुपाना भी ठीक नहीं था. सात बजे तक मैंने और घर के सभी लोगों ने खाना खा लिया था और हम दोनों शहर के लिए निकल पडे. हमेशा की तरह घर से कुछ दूर आते ही आशु मुझसे चिपक कर बैठ गई और अपने ख़्वाबों की दुनिया में खो गई. हमेशा ही की तरह हम उस ढाबे पर रुके और चाय पीने बैठ गये. तब मैंने आशु को सारी बातें बता दी और वो अवाक सी मेरी बातें सुनती रही. मेरे जॉब छोड़ने के डिसिजन से वो सहमत थी पर नये जॉब मिलने के बारे में सोच वो भी काफी टेंशन में थी. 'जान! छोडो ये टेंशन ओके? अब ये बताओ की आज शाम का क्या प्लान है?' मैंने बात घुमाते हुए कहा पर आशु का मन जैसे उचाट हो गया था.
फिर कुछ सोचते हुए बोली; 'आपके पास अभी कितने पैसे हैं बैंक में?'
'३५,०००/-' मैंने कहा.
'ठीक है, आज से फ़िज़ूल खर्चे बंद! बाहर से खाना-खाना बंद, आप को बनाने में दिक्कत होती है तो मुझे कहो मैं आ कर बना दिया करूँगी.बाइक पर घूमना बंद! मुझसे मिलने आओगे तो बस से आना! मेरे लिए आप कोई भी खरीदारी नहीं करोगे! जब तक आपको अच्छी जॉब नहीं मिलती तब तक ये राशनिंग चलेगी.' आशु ने किसी घरवाली की तरह अपना हुक्म सुना दिया. मैंने भी मुस्कुराते हुए सर झुका कर उसकी हर बात मान ली. चाय पी कर हम उठे और वापस शहर की तरफ चल दिये. पहले आशु को कॉलेज ड्राप किया और फिर घर आ गया.घर में घुसा ही था की मैडम का फ़ोन आ गया.उन्होंने मुझे मिलने के लिए एक कैफ़े में बुलाया और साथ अपना लैपटॉप भी लाने को कहा. मैंने अपना लैपटॉप बैग उठाया और पैदल ही चल दिया. वो कैफ़े मेरे घर से करीब २० मिनट दूर था तो सोचा पैदल ही चलु. वहाँ पहुँचा तो मैडम ने हाथ हिला कर मुझे एक टेबल पर बुलाया. मेरे बैठते ही उन्होंने मेरे लिए एक कॉफ़ी आर्डर कर दी. 'वो डेड लाइन नजदीक आ रही है और अब तो कोई है भी नहीं मेरी मदद करने वाला, तो प्लीज मेरी मदद कर दो.'
'ओके मॅडम!' मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो मैडम बोलीं; 'अब काहे की मॅडम?! अब ना तो मैं बॉस हूँ और न तुम एम्प्लोयी, मैंने यहाँ तुम्हें फ्रेंड के नाते बुलाया हे. कॉल मी नितु!' अब ये सुन कर तो मैं चुप हो गया और मैडम मेरी झिझक भाँप गईं; 'कम ऑन यार!'
'इतने सालों से आपको मॅडम कह रहा हूँ की आपको नितु कहना अजीब लग रहा है!' मैंने कहा.
'पर अब इस फॉर्मेलिटी का क्या फायदा? हम अच्छे दोस्त हैं और वही काफी है, ख़ामख़ा उसमें फॉर्मेलिटी दिखाना भी तो ठीक नहीं?!'
'ठीक है नितु जी!' मैंने बड़ी मुश्किल से शर्माते हुए कहा.
'नितु जी नहीं...सिर्फ नितु! और मैं भी अब से तुम्हें सागर कहूँगी! और प्लीज अब से मेरे साथ दोस्तों जैसा व्यवहार करना.' मैडम ने मुस्कुराते हुए कहा.
दोपहर तक हम दोनों वहीँ कैफ़े में बैठे रहे और काम करते रहे. दोपहर को खाने के समय नितु ने ग्रिल्ड सैंडविच और कॉफ़ी मंगाई और अब बस प्रेजेंटेशन का काम बचा था. मैं चलने को हुआ तो नितु ने मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया; ' तुम्हें पता है, डाइवोर्स को ले कर किसी ने भी मुझे सपोर्ट नहीं किया. मेरे अपने मोम-डैड ने भी ये कहा की जैसे चल रहा है वैसे चलने दे! बस एक तुम थे जिसने मुझे उस दिन सपोर्ट किया. मेरे लिए तुम कोर्ट तक आये और वहाँ तुम पर कितना घिनोना इल्जाम भी लगाया गया .... यू एवन क्वीट योवर जॉब बिकाज ऑफ मी!' इतना कह नितु रोने लगीं तो मैंने उन्हें सांत्वना देने के लिए उनके कंधे को छुआ और धीरे से दबा कर उन्हें ढाँढस बंधाने लगा. 'अगर अब भी रोना ही है तो डाइवोर्स के लिए क्यों लड़ रहे हो? रो तो आप पहले भी रहे थे ना?' ये सुन कर उन्होंने अपने आँसु पोछे और मेरी तरफ एक रीकमंडेशन लेटर बढ़ा दिया. मैंने उसे पढ़ा और उनसे पूछ बैठा; 'आपने ये कब...आपकी अपनी कंपनी?'
'उस दिन जब तुम मुझे जी. एस. टी. ऑफिस छोड़ने गए थे उस दिन मैं अपनी कंपनी के जी. एस. टी. नंबर के लिए अप्लाई किया था. कुमार के साथ काम कर के इतना तो सीख ही गई थी की पैसे की क्या एहमियत होती है और इस प्रोजेक्ट ने मुझे काफी सेल्फ कॉन्फिडन्स दे दिया. अब तुम अपने रिज्यूमे में मेरी कंपनी का नाम लिख दो और ये रीकमंडेशन लेटर शायद तुम्हारे काम आ जाये.'
'थैंक यू!!!' मैं बस इतना ही कह पाया.
'काहे का थैंक यू? जॉब मिलने के बाद पार्टी चाहिए!' नितु ने हँसते हुए कहा. मैं भी हँस दिया और फिर वहाँ से सीधा आशु से मिलने कॉलेज निकला.
आशु गुस्से से लाल बाहर निकली और उसके पीछे ही निशा भी आती हुई दिखाई दी. गेट पर पहुँच कर आशु मेरे पास आई और निशा दूसरी तरफ जाने लगी तभी आशु चिल्लाते हुए उससे बोली; 'दुबारा मेरे आस-पास भी दिखाई दी ना तो तेरी चमड़ी उधेड़ दूँगी!' ये सुन कर मैं हैरान था की अब इन दोनों को क्या हो गया उस दिन का गुस्सा अब तक निकल रहा है?! 'क्या हुआ?' मैंने आशु से पूछा. 'ये हरामजादी मुझसे हमदर्दी करने के लिए आई और बोली की आपका नितु मैडम से अफेयर चल रहा है और आपके कारन उनका डाइवोर्स हो रहा हे. कुतिया ...कलमुही हरमजादी!' अब ये सुन कर मैं समझ गया की ये लगाईं-बुझाई सब अक्षय की हे. 'बस अभी शांत हो जा...कल बताता हूँ मैं इसे!' मैंने आशु को शांत किया. उस ले कर चाय की एक दूकान पर आ गया और उसे चाय पिलाई ताकि उसका गुस्सा शांत हो. फिर मैंने उसे आज के बारे में सब बताया. जो बात मुझे महसूस हुई वो ये थी की उसे नितु बिलकुल पसंद नहीं, क्योंकि आशु के नितुसार मन ही मन वो ही मेरी नौकरी छोड़ने के लिए जिम्मेदार थी. मैं भी चुप रहा क्योंकि मैं खुद नहीं जानता था की जो हो रहा है वो किसका कसूर है! नितु को डाइवोर्स चाहिए था वो तो ठीक है पर मेरा नाम उसमें क्यों घसींटा गया? ना तो मैंने उनसे दोस्ती करने की पहल की थी ना ही उनके नजदीक जाने की कोई कोशिश की थी. खेर आशु से कुछ बातें कर मैंने उसे हॉस्टल छोड़ा और खुद घर लौटा और खाना बनाने की तैयारी कर रहा था. पर एक तरह की बेचैनी थी. आशु के साथ को मिस कर रहा था.
दो दिन बीते और इन दो दिनों में मेरा और आशु का मिलना बदस्तूर जारी रहा. रात को आशु फ़ोन कर के पूछती की कल सुबह आप कहाँ इंटरव्यू देने जा रहे हो और अगले दिन सुबह मुझे बेस्ट ऑफ लक विश करती, दोपहर को ये पूछती की इंटरव्यू कैसा रहा और शाम को हम मिलते.शुक्रवार को जब मैं उससे मिल कर लौटा तो रात को आशु का फ़ोन आया और मुझसे उसने शनिवार का प्लान पूछा. पर उस दिन मेरा कोई इंटरव्यू नहीं था इसलिए मैं घर पर ही रहने वाला था. मुझसे शाम का मिलने का वादा लिया और आशु खाना खाने चली गई. मैं भी अपना खाना बनाने में लग गया.बीते कुछ दिनों में कम से कम मैं खाना ढंग से खा रहा था. वरना तो रोज कच्चा-पक्का बना कर खा लिया करता था. बस एक बात थी. रात में बड़ी बेचैनी रहती थी!
अगली सुबह मैं देर से उठा क्योंकि रात भर नींद ही नहीं आई. सुबह के दस बज होंगे की दरवाजे पर दस्तक हुई, मैं उठा और दरवाजा खोला. अभी ठीक से देख भी नहीं पाया था की आशु एक दम से अंदर आई और मेरे सीने से कस कर लिपट गई. उसके गर्म एहसास ने मेरी नींद भगा दी और मैं भी उसे कस कर गले लगा कर उसके सर को चूमने लगा. आखिर आशु मुझसे अलग हुई और दरवाजा बंद किया; 'आप बैठो मैं चाय बनाती हु.' ये कह कर वो चाय बनाने लगी. चाय के साथ-साथ वो पोहा भी ले कर आई, ये पोहा उसने नाश्ते में न खा कर मेरे लिए लाई थी. 'तो कोई कॉल आया?' आशु ने पुछा, उसका मतलब था की मैंने जहाँ-जहाँ इंटरव्यू दिए हैं वहां से कोई कॉल आया. 'नहीं.... हाँ एक ऑफर आया हे.' ये सुनते ही आशु खुश हो गई. 'कितनी पे है?' उसने उत्साह से पूछा.
'३५के ... मतलब ३५,०००/-' अब मेरे मुँह से ये सुन कर आशु की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. पर जब मैंने आगे; 'पर यहाँ नहीं बरैली जाना होगा!' कहा तो वो उदास हो गई. 'मेरी जान! मैं नहीं जा रहा अपनी जानेमन को छोड़ कर.' मेरी बात से उसे तसल्ली हुई पर ख़ुशी नही. 'चले जाओ ना! ३५ के... कम नहीं होते!' आशु ने अपने मन को मारते हुए कहा. 'सच में चला जाऊँ?' मैंने थोड़ा मस्ती करने के इरादे से कहा, आशु ने बस जवाब में सर हिला दिया. 'पक्का?' मैंने फिर मस्ती करते हुए पूछा. 'हाँ!!!! कौन सा हमेशा के लिए जाना है? २ साल की ही तो बात है, फिर तो हम दोनों शादी कर लेंगे.' आशु ने बेमन से जवाब दिया और पूरी कोशिश की कि अपने मुँह पर नकली मुखौटा लगा ले.आशु उस समय मेरे सामने कुर्सी पर बैठी थी और मैं उसके सामने पलंग पर बैठा था. मैं उठा और जा के आशु को पीछे से अपने बाजुओं से जकड़ लिया और आशु के कान में होले से खुसफुसाया; 'तुम्हें पता है पिछले कुछ दिनों से मुझे तुम्हारी 'लत' पड़ गई हे. रात को बस तुम्हें ही याद करता रहता हूँ और तुम्हारी ही कमी महसूस करता हूँ, करवटें बदलता रहता हु. ऐसा क्या जादू कर दिया तुमने मुझ पर?' ये कहते हुए मैंने आशु के दाएँ गाल को चूम लिया. आशु उठ खड़ी हुई, मुझे बिस्तर तक खींच कर ले गई और मुझे अपने ऊपर झटके से खींच लिया. हम दोनों ही बिस्तर पर जा गिरे, नीचे आशु और उसके ऊपर मैं. हम दोनों ही की आँखों में प्यास झलक रही थी. मैंने आशु की होठों को अपनी गिरफ्त में लिया और उनको चूसने लगा और इधर आशु के दोनों हाथ मेरी टी-शर्ट उतारने के लिए मेरी पीठ पर चल रहे थे. तभी अचानक से नितु का फ़ोन बज उठा, मैंने आशु को होठों को छोड़ा और स्क्रीन पर किसका नाम है ये देखा. मैंने कॉल साइलेंट किया और आशु की आँखों में देखा तो उसमें एक चिंगारी नजर आई. आशु ने करवट ले कर मुझे अपने बगल में गिरा दिया और खुद मेरे ऊपर चढ़ गई. उसने बहुत तेजी से मेरे होठों पर हमला किया और उसे चूसने लगी. आज उसका मुझे किस करना बहुत आक्रामक था. मैं अपने दोनों हाथों से आशु का चेहरा थामना था पर आशु बार-बार अपनी गर्दन कुछ इस तरह हिला रही थी की मैं उसे थामने में असफल हो रहा था. उसका निशाने पर मेरे होंठ जिसे आज वो चूस के निचोड़ लेना चाहती थी. फिर अगले आशु मुझ पर से उतरी और अपने पटिआला का नाडा खोला और वो सरक कर नीचे जा गिरा, फिर उसने अपनी पैंटी निकाली और फटाफट मेरे लोअर को खींचा और उसे बिना पूरा निकाले बस लिंग को बाहर निकाला. मैं उसे ये सब करता हुआ देख रहा था. वो फिर से मेरे ऊपर चढ़ गई और मेरे लिंग को पकड़ के अपनी योनी पर टिकाया.धीरे-धीरे वो उस पर अपना वजन डालते हुए उसे अपनी योनी में समा ने लगी. दर्द की लकीरें उसके माथे पर छाईं थीं पर आशु अपने होठों को दबा के दर्द को अपने मुँह में होते नीचे आ रही थी. जैसे ही पूरा लिंग अंदर पहुँचा की आशु की आँखें दर्द से बंद हो गईं, उसने अपने दोनों होठों अब भी अपने मुँह में दबा रखे थे और अपनी चीख मुँह में दफन कर चुकी थी. लगभग मिनट भर लगा उसे मेरे लिंग को अपनी योनी में एडजस्ट करने में और फिर अपने दोनों हाथ मेरी छाती पर टिका आशु ने ऊपर-नीचे होना शुरू किया.
अगले पल ही उसकी स्पीड तेज हो चुकी थी और उसकी योनी अंदर ही अंदर मेरे लिंग को जैसे चूसने लगी थी. मैं आशु की योनी का दबाव अपने लिंग पर साफ़ महसूस कर रहा था. मेरा पूरा जिस्म एक दम से गर्म हो गया था मानो जैसे की उसकी योनी मेरे लिंग के जरिये मेरी आत्मा को चूस रही हो. पाँच मिनट तक आशु जितना हो सके उतनी तेजी से मेरे लिंग पर कूद रही थी और मे उसे निचोड़ रही था. फिर अगले ही पल वो मुझ पर लेट गई और अपना सर मेरी छाती पर रख दिया. मैंने उसे नीचे किया, अपने घुटने बिस्तर पर टिकाये और तेजी से कमर हिलाना शुरू कर दिया. हर धक्के के साथ मेरी स्पीड बढ़ने लगी. आशु ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और मेरी आँखों में देखने लगी. आज मैं पहली बार उसकी आँखों में एक आग देख पा रहा था. मुझे ऐसे लगने लगा जैसे वो यही आग मेरे जिस्म लगाना चाहती हो. आशु बिना पलकें झपके मेरी आँखों में देख रही थी. उसके मुँह से कोई सिसकारी नहीं निकल रही थी बस एक टक वो मेरी आँखों में झाँकने में लगी थी. हर धक्के के साथ उसका जिस्म हिल रहा था और नीचे उसकी योनी भी पूरी प्रतिक्रिया दे रही थी पर आशु की आँखें मेरी आँखों में गड़ी थी. पाँच मिनट होने को आये थे और अब आशु छूटने की कगार पर थी. तभी उसने अपनी पकड़ मेरे चेहरे पर खडी कर दी और मेरी आँखों में गुस्से से चिल्लाती हुई बोली; “यू आर ब्लडी माईन!” इतना कहते हुए वो झड़ गई. उसके हाथों से मेरा चेहरा आजाद हुआ और इधर आखरी झटका मारता हुआ मैं भी उसकी योनी में झड़ गया और आशु के ऊपर से लुढ़क कर बगल में गिर गया.
सासें दुरुस्त होने तक मेरे दिमाग बस आशु के वो शब्द ही घूम रहे थे, मैं समझ गया था की उसके मन में अब भी मुझे ले कर इनसिक्युरीटी थी! पर मेरे कुछ कहने से पहले ही आशु मेरी तरफ पलटी और अपना सर मेरी छाती पर रखते हुए बोली; 'जानू....' पर मैं ने उसकी बात काट दी और उसे खुद से दूर धकेला और उसके ऊपर आ गया.अब मेरी आँखों में भी वही आग थी जो कुछ पल उसकी आँखों में थी. 'एक बार बोलूँगा उसे ध्यान से सुन और अपनी दिल और दिमाग में बिठा ले! मैं सिर्फ तेरा हूँ और तू सिर्फ मेरी है, हमारे बीच कोई नहीं आ सकता! समझ आया? आज के बाद फिर कभी तूने इनसिक्युअर फील किया ना तो खायेगी मेरे हाथ से!' मैंने गुस्से से अपने दाँत पीसते हुए कहा और जवाब में आशु ने अपनी दोनों बाहें मेरे गले में डाल दीं और मैंने उसे एक जोरदार किस किया! ये किस इस बात को दर्शा रहा था की मेरा उसके लिए प्यार अटूट है और चाहे कुछ भी होजाये ये प्यार कभी कम नहीं होगा. किस कर के में आशु के ऊपर से हटा और बाथरूम चला गया, मुँह-हाथ धो कर बाहर आया तो आशु खिड़की के सामने अपनी दोनों टांगें अपनी छाती से मोड बैठी बाहर देख रही थी. मैं उसके साथ खड़ा हो कर बाहर देखने लगा और आशु ने अपने बाएँ हाथ को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट कर मुझे अपने और नजदीक खींच लिया. “गो वॉश योवरसेल्फ!” मैंने कहा तो आशु उठी और मेरे सीने पर किस करके बाथरूम चली गई और मैं बाएँ हाथ से खिड़की को पकडे बाहर देखने लगा. आशु पीछे से आई और अपने गीले हाथों को मेरी छाती को जकड़ते हुए मुझसे सट कर खड़ी हो गई. मैं उसे अपने साथ बिस्तर पर ले गया और खींच कर उसे अपना ऊपर गिरा लिया, और हम ऐसे ही लेटे रहे. पूरी रात जिसने बड़ी मुश्किल से काटी हो उसके लिए तो ये पल खुशियों से भरा होगा. मुझे कब नींद आ गई कुछ होश नहीं रहा जब उठा तो कमरे में देसी घी की खुशबु फैली हुई थी. दाल रोटी खा कर हम दोनों खिड़की के सामने जमीन पर बैठे थे. आशु अपनी पीठ मेरे सीने से लगा कर बैठी थी;
आशु: आप वो बरैली वाली जॉब कर लो.
मैं: जान! आप जानते हो बरैली यहाँ से पाँच घंटे दूर है! फिर हम रोज-रोज नहीं मिल पाएंगे, सिर्फ एक रविवार ही मिलेगा और उस दिन भी घर जाना पड़ गया तो?
आशु: थोड़ा एडजस्ट कर लेते हैं?
मैं: जान! एक आध दिन की बात नहीं है? यहाँ पर जॉब ओपनिंग कब खुलेगी कुछ पता नहीं है? और ये बताओ तब तक मेरे बिना आप रह लोगे?
आशु ये सुन कर खामोश हो गई!
मैं: मैं तो नहीं रह सकता आपके बिना. पता है पिछले कुछ दिनों से मेरा क्या हाल है आपके बिना? दिन तो जैसे-तैसे गुजर जाता है पर रात है की कमबख्त खत्म ही नहीं होती. मेरा दिल आपके जिस्म की गर्माहट पाने के लिए बेचैन रहता हे. क्या जादू कर दिया तुमने मुझ पर?
आशु: ये मेरे प्यार का भूत है जो आपके जिस्म से चिपका हुआ है!
आशु ने हँसते हुए कहा. पर कुछ देर चुप रहने के बाद वो मुस्कुराते हुए बोली;
आशु: जानू दशेहरा आने वाला हे.
मैं: हाँ तो?
आशु: फिर करवाचौथ आएगा....
इतना कह के आशु चुप हो गई और उसके पेट में तितलियाँ उड़ने लगी. मैं समझ गया की उसका मतलब क्या है;
मैं: तो क्या चाहिए मेरी जानू को करवाचौथ पर? (मैंने आशु को कस कर अपनी बाहों में जकड़ते हुए कहा.)
आशु: बस आप!
मैं: मैं तो तुम्हारा हो चूका हूँ ना?
आशु: वो पूरा दिन मैं आपके साथ बिताऊँगी और उस दीं उपवास भी रखुंगी.
मैं: जो हुक्म बेगम साहिबा!
ये सुनते ही आशु खिलखिला कर हँस पडी. उसकी ये खिलखिलाती हँसी मुझे बहुत पसंद थी और में आँख मूंदें उसकी इस हँसी को अपनी रूह में उतारने लगा. पर अगले ही पल वो चुप हो गई और मेरी तरफ आलथी-पालथी मार के बैठ गई और मेरी आँखों में देखते हुए बोली;
आशु: आई एम सॉरी जानू! मैंने उस टाइम आपको ..... वो सब कहा!
मैं: हम्म्म... कोई बात नही. आई नो तू मुझे ले कर कितना पजेसिव है बट तेरी इनसिक्युरीटी मुझे बहुत गुस्सा दिलाती हे.
आशु: मैं क्या करूँ? बहुत मुश्किल से मैंने अपनी इस इनसिक्युरीटी को काबू किया था पर कुतिया (निशा) की वजह से सब कुछ खराब हो गया! मुझे आप पर भरोसा है पर मुझे ये डर लगता है की नितु मैडम आपको मुझसे छीन लेगी. अब तो आपने उन्हें नितु भी कहना शुरू कर दिया! आपको पता है मुझे कितनी जलन होती है जब आप उसे नितु कहते हो? प्लीज मेरे लिए उससे मिलना बंद कर दो? मैंने आप से जो भी माँगा है आपने वो दिया है, प्लीज ये एक आखरी बार... प्लीज... मैं आगे से आपसे कुछ नहीं माँगूगी.
आशु ने रोते-रोते सब कहा और फिर आकर मेरे सीने से लग गई और रोती रही.
मैं: नितु के साथ बस एक आखरी प्रेजेंटेशन बाकी है उसके बाद वो अपने रास्ते और मैं अपने रास्ते.
आशु: उसके बाद आप उससे नहीं मिलोगे ना?
मैं: नहीं
आशु: शुक्रिया!
तब जा कर आशु का रोना बंद हो गया.जब सुबह आशु ने मुझसे 'यू आर ब्लडी माईन!' कहा था मैं तब ही समझ चूका था की उसकी इनसिक्युरीटी कभी खत्म नहीं होगी. मैं चाहे उसे कितना भी समझा लूँ वो नहीं समझेगी और फिर कहीं वो कुछ उल्टा-सीधा न कर दे इसलिए मैंने उसकी बात मान ली थी. इतना प्यार करता था आशु से की उसके लिए एक दोस्ती कुर्बान करने जा रहा था! शाम को ठीक ६ बजे मैंने आशु को उसके हॉस्टल छोड़ा और घर आ गया.घर घुसते ही नितु का फ़ोन आ गया, उन्होंने मुझे प्रेजेंटेशन देने के लिए समय माँगा.मंडे का दिन फाइनल प्रेजेंटेशन था और उन्होंने मुझे ठीक ग्यारह बजे उसी कैफ़े में बुलाया. इधर मेरी मेल पर मुझे एक इंटरव्यू के लिए मंडे को बारह बजे बुलाया गया.इसलिए मैंने नितु को फ़ोन कर के प्रेजेंटेशन १० बजे रीशेड्युल करवाई और वो मान भी गई.
अगले दिन रविवार था. मैं जानता था की आशु आज भी आएगी, मैं जल्दी उठा और नहा-धो के तैयार हो गया और उसका इंतजार करने लगा. ठीक दस बजे दरवाजे पर दस्तक हुई और मैंने भाग कर दरवाजा खोला. सामने वही आशु का खिल-खिलाता चेहरा और उसके हाथ में एक थैली जिसमें अंडे थे! आशु सबसे पहले मेरे गले लगी और फिर हम ऐसे ही गले लगे हुए अंदर आये और दरवाजा बंद किया. फिर आशु ने अंडे संभाल कर किचन काउंटर पर रख दिए; 'आज आप मुझे ऑमलेट बनाना सिखाओगे!' उसने बड़ी अदा से कहा. मैंने आशु को पलटा और उसका मुँह किचन काउंटर की तरफ किया, इशारे से उसे प्याज उठाने को कहा और इस मौके का फायदा उठा कर उसकी कमर से होते हुए उसके पेट पर अपने हाथों को लॉक कर के अपने जिस्म से चिपका लिया. आशु की गर्दन को चूमते हुए मैंने उसे प्याज छीलने को कहा, फिर उसके गर्दन की दायीं तरफ चूमा और उसे प्याज काटने को कहा. प्याज काटते समय दोनों ही की आँखें भर आईं थीं! आँखों से जब पानी आने लगा तो हम दोनों हँस दिए और मैंने आशु को अपनी गिरफ्त से आजाद कर दिया. जैसे ही मैं जाने को मुड़ा तो आशु ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली: 'मुझे छोड़ कर कहाँ जा रहे हो आप?' मैंने मुस्कुराते हुए कहा; 'अपनी जानेमन को छोड़ कर कहा जाऊँगा?!' तो वो बोली; 'जैसे पकड़ के खड़े थे वैसे ही खड़े रहो!' अब उसका आदेश मैं कैसे मना कर सकता था. मैं फिर से आशु के पीछे चिपक कर खड़ा हो गया और अपने हाथ फिर से उसके पेट पर लॉक कर लिए. प्याज कट गए थे अब मैंने उसे हरी मिर्च काटने को कहा; 'कितनी मिर्च काटूँ?' आशु ने पुछा तो मैंने उसके दाएँ गाल से अपने गाल मिला दिए और कहा; 'पिछले कुछ दिनों से जितनी तू स्पाइसीहो गई है उतनी मिर्च काट!' ये सुन कर आशु धीरे से हँस पड़ी और उसने ३ मिर्चें काटी. अब बारी थी अंडे तोड़ने की जो आशु को बिलकुल नहीं आता था. मैंने पास ही पड़ी कटोरी खींची और स्पून स्टैंड से एक फोर्क निकाला. फिर मैंने पीछे खड़े-खड़े आशु को अंडा कैसे तोडना है वो सिखाया.फोर्क से धीरे से 'टक' कर के अंडे के बीचों बीच मारा और फिर अपने दोनों अंगूठों की मदद से अंडा तोड़ के कटोरी में डाल दिया. जब अंडे की जर्दी वाला हिस्सा आशु ने देखा तो उसके मुँह में पानी आ गया.'जान! अभी ये कच्चा है, स्मेल आएगी पाक जाने दो फिर खाना.' फिर आशु को अंडा फटने को कहा. पास ही पड़े कपडे से मैंने अपने हाथ पोंछें और फिर से आशु को पेट पर अपने हाथों को लॉक किया.
अब मैने आशु की गर्दन के हर हिस्से को चूमना शुरू कर दिया. हर बार मेरे गीले होंठ उसे छूटे तो वो सिंहर जाती और उसके मुँह से सिसकारी फूटने लगती. अंडा फिट गया था अब उसमें प्याज और मिर्च मिला के आशु ने पुछा की अब और इसमें क्या डालना है. मैंने उसे नमक डालने को कहा तो वो पूछने लगी की कितना डालूँ तो इसके जवाब में मैंने आशु के दाएँ गाल को पाने मुँह में भर उसे चूसा और छोड़ दिया. 'बस इतना डाल!' आशु शर्मा गई और उसने थोड़ा नमक डाला मैंने ऊपर शेल्फ पर पड़ी ऑरेगैनो सीज़निंग उठाई और एक चुटकी उसमें डाल दी. अब मैंने आशु को अपनी गिरफ्त से आजाद किया और गैस जलाई और उस पर फ्राइंग पैन रखा. आशु साइड में खड़ी मुझे देखने लगी. फिर मैंने उससे मख्हन लाने को कहा और वो फ्रिज से मक्खन ले आई. मक्खन फ्राइंग पैन में डाला तो वो तुरंत ही पिघल गया, अब मैंने आशु से कहा की वो गौर से देखे, तो आशु किचन काउंटर पर बैठ गई. अंडे वाला घोल मैंने जैसे ही डाला उसकी खुशबु पूरे घर में फैलने लगी. जब पलटने की बारी आई तो मैंने फ्राइंग पैन को हैंडल से पकड़ा और उसे आगे-पीछे हिलाने लगा. फिर एक झटका दे कर मैंने पूरा ऑमलेट पलटा, थोड़ा बहुत छिटक कर नीचे गिर गया पर आशु इस प्रोफेशनल तरीके को देख खुश हो गई और उसे भी सिखाने को कहने लगी. ऑमलेट बन कर तैयार था; 'पर ये तो मैं ही खा जाऊँगी? आप क्या खाओगे?' आशु ने किसी छोटे बच्चे की तरह कहा. 'फ्रेंच टोस्ट खाओगी?' मैंने आशु से पूछा.
'वो क्या होता है?' आशु ने ऑमलेट की एक बाईट लेते हुए कहा. मैंने उसे ब्रेड और दूध ले के आने को कहा. आशु सब ले कर आ गई और फिर से काउंटर पर बैठ कर ऑमलेट खाने लगी. मैंने दूध और अंडे को मिक्स किया और उसमें हलकी सी चीनी और नमक-मिर्च मिला कर ब्रेड उसमें डूबा कर फ्राइंग पैन पर डाला मीठी सी सुगंध आते ही आशु आँखें बंद कर के सूंघने लगी. 'वाव!!!' ये कहते हुए उसकी आँखें चमक उठी! आधा ऑमलेट उसने मेरे लिए छोड़ दिया और मुँह में पानी भरे वो टोस्ट के बनने का इंतजार करने लगी.
टोस्ट रेडी होते ही मैंने उसे दिया तो उसने जल्दी-जल्दी से उस की एक बाईट ली; 'मममम.....!!!' फिर उसने मेरे कंधे को पकड़ के अपने पास खींचा और मेरे दाएँ गाल को चूम लिया. 'इतना अच्छा खाना बनाते हो आप? फिर बेकार में बाहर से क्यों खाना? आज से आप ही खाना बनाओगे!' आशु ने कहा.
'तुम साथ हो इसलिए इतना अच्छा खाना बन रहा है!' मैंने अगला टोस्ट फ्राइंग पैन में डालते हुए कहा.
'सच? तो शादी के बाद भी आप ही खाना बनोगे ना?' आशु ने मुझे ऑमलेट खिलाते हुए कहा.
'व्हाय नॉट?!!!'
'अच्छा जानू एक बात पूछूँ?'
'हाँ जी पूछो!' मैंने बहुत प्यार से कहा.
'मुझे ये प्रेगनेंसी वाली गोलियां कब तक खानी है?'
'जब तक हम शादी हो कर सेटल नहीं हो जाते तब टक!' मैंने एक और टोस्ट आशु की प्लेट में रखते हुए कहा.
'पर शादी के कितने महीने बाद?' आशु ने अपनी ऊँगली दाँतों तले दबाते हुए कहा. मैंने गैस बंद की और दोनों हाथों से उसके दोनों गाल खींचते हुए पुछा; 'बहुत जल्दी है तुझे माँ बनने की?'
'हम्म...उससे ज्यादा जल्दी आपको पापा बनाने की है!'
'जब तक चीजें सेटल नहीं होती तब तक तो कुछ नहीं! आई नो .... पेनफुल है... बट कोई और चारा भी नहीं! घर से भाग कर नई जिंदगी शुरू करना इतना आसान नही.' इसके आगे मैं कुछ नहीं बोलै क्योंकि फिर आशु का मन खराब हो जाता. उसने भी आगे कुछ नहीं कहा, शायद वो समझ गई थी की बिना नौकरी के अभी ये हाल है तो शादी के बाद तो मेरी जिमेदारी बढ़ जाएगी! खेर हमने किचन में ही खड़े-खड़े नाश्ता किया और फिर कमरे में आ कर बैठ गये. मैंने आशु को चाय बनाने को कहा और मैं बाथरूम में घुस गया.तभी अचानक दरवाजे पर नॉक हुई और इससे पहले की मैं बाथरूम से निकल कर दरवाजा खोलता आशु ने ही दरवाजा खोल दिया.
सामने मोहित और प्रफुल खड़े थे और उन्हें देखते ही आशु की सिटी-पिट्टी गुल हो गई. वो दोनों भी एक दूसरे को हैरानी से देखने लगे? इतने में मैं बाथरूम से बाहर आया और उन दोनों को अपने सामने दरवाजे पर खड़ा पाया और मुँह से दबी हुई आवाज में निकला; 'ओह शीट!' आशु ने दोनों को नमस्ते कही और अंदर आने को कहा. दोनों अंदर आये तो आशु ने अपनई जीभ दांतों तले दबाई और होंठ हिलाते हुए मुझे सॉरी कहा. इधर मोहित और प्रफुल मुझे देख कर हँस रहे थे, हाथ मिला कर हम गले मिले और दोनों बैठ गये. प्रफुल ने मेरी तरफ एक कागज़ का एनवेलप बढ़ाया, मैंने वो खोल कर देखा तो उसमें मेरी सैलरी का चेक था.
'ये सर ने दिया है!' प्रफुल ने कहा और मैंने भी वो एनवेलप देख कर टेबल पर रख दिया.
'और बताओ क्या हाल-चाल?' मैंने पूछा.
'सब बढ़िया, पर तूने क्यों जॉब छोड़ दी?' मोहित ने पूछा.
'कुमार ने कुछ बोला नहीं?' मैंने पुछा तो दोनों ने ना में सर हिलाया.
मैं बस मुस्कुराया और कहा; 'यार ...उस साले की वजह से छोड़ी!' मैंने बात को हलके में लेते हुए कहा. इधर आशु पलट कर किचन में जाने लगी तो प्रफुल ने मजाक करते हुए पुछा; 'अरे अश्विनी जी! आप यहाँ कैसे?' आशु पलटी और शर्म से उसके गाल लाल थे! वो बस मुस्कुराने लगी और मेरी तरफ देखने लगी.
'यार जैसे तुम दोनों को मेरी जॉब का पता चला और तुम मुझसे मिलने आ गए वैसे ही जब 'इनको' पता चला की मैंने जॉब छोड़ दी है तो मुझे मिलने आ गईं!'
'अच्छा???' मोहित ने मेरी टांग खींचते हुए कहा. 'पर हमें तो तेरा घर पता था. अश्विनी जी को कैसे पता चला?' मोहित ने अपनी खिंचाई जारी रखी.
'वो...एक दिन देख लिया था 'इन्होने' मुझे.' मैंने फिर से सफाई दी.
'अबे जा साले!' प्रफुल ने कहा.
'नहीं प्रफुल जी ... वो मेरी एक फ्रेंड यहीं नजदीक रहती है ...उसी से मिलने एक दिन आई थी... तब मैंने ... 'इन्हें'...मतलब सागर जी को देखा!' आशु ने जैसे-तैसे बात संभालते हुए कहा.
'इन्हें ??? क्या बात है?' मोहित ने अब आशु को चिढ़ाने के लिए कहा और ये सुन हम तीनों हँस पड़े और आशु ने शर्म से गर्दन झुका ली.
'शादी-वादी तो नहीं कर लिए हो?' प्रफुल ने मजाक-मजाक में कहा और हम तीनों हँसने लगे.
'यार शादी करते तो तुम दोनों को नहीं बताते? गवाही तो तुम दोनों ही देते!' मैंने आशु का बचाव करते हुए कहा पर ये सुन कर पूरे कमरे में हँसी गूंजने लगी. आशु भी अब हमारे साथ हँसने लगी थी और अब सारी बात खुल ही चुकी थी तो उसे एक्सेप्ट करने के अलावा किया भी क्या जा सकता था. मोहित और प्रफुल भले ही मेरे कलिग थे पर दिल के बहुत अच्छे थे. ऑफिस में कभी भी हमारे बीच किसी भी तरह की होड़ या तीखी बहस नहीं होती थी. कलिग कम और अच्छे दोस्त ज्यादा थे मेरे! आखिर आशु किचन में जा के सब के लिए चाय बनाने लगी.
'तो कब से चल रहा है ये?' मोहित ने पूछा.
'यार जब पहली बार आशु को देखा तो बस.....हाय!' मैंने आवाज ऊँचीं कर के कहा ताकि आशु सुन ले.
'चल अच्छी बात है यार! काँग्राचूलेशन!!!' मोहित ने कहा.
'भाई हमें तो कॉन्फिडेंस में ले लेता! हम कौनसा किसी को बता देते?' प्रफुल ने मुझे मेरी गलती की याद दिलाई.
'यार बताने वाला हुआ था और फिर ये सब हो गया.' मैंने कहा इतने में आशु चाय बना कर ले आई और उसने मोहित और प्रफुल को दी.
'पर तूने जॉब छोड़ी क्यों?' प्रफुल ने जोर दे कर पुछा पर मैं इस टॉपिक को अवॉयड कर रहा हे.
'आपके बॉस ने इन पर इल्जाम लगा दिया की इनका उनकी बीवी के साथ नाजायज संबंध है!' आशु ने तपाक से बोला और ये सुन दोनों उसे आँखें फाड़े देखने लगे.
'क्या बकवास है ये?' मोहित ने कहा.
'तेरा और मैडम के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर? पागल हो गया है क्या वो साला?' प्रफुल बोला.
'कोर्ट में केस है और जब ये बात उस दिन इन्हें पता चली तो इन्होने उसी वक़्त अपना रेसिग्नेशन दे दिया.' आशु बोली.
'ये तो बहुत बड़ी चिरांद निकला!' प्रफुल ने सर पीटते हुए कहा.
'प्रफुल जी आपके बॉस ने खुद गर्लफ्रेंड फंसा रखी है और इल्जाम इन पर लगाते हैं.' आशु ने चाय का कप रखते हुए कहा. ये सुन कर दोनों सन्न थे! 'आप दोनों अपना ध्यान रखना कहीं वो आपको ही न फँसा दे! सब कुछ पहले से प्लान था. पहले वो मुंबई के ट्रिप का बहाना, फिर वो राखी की शादी का काण्ड और फिर बाकी की रही सही कस्र नितु मैडम ने पूरी कर दी!' आशु ने गुस्से से कहा.
'आशु ....मैडम ने क्या किया?' मोहित ने पुछा, तो मैं समझ गया की आशु अब उस दिन होटल की सारी बात बक देगी. इसलिए मैंने ही बात संभाली;
'कुछ दिन पहले मैडम ने मुझसे लिफ्ट मांगी थी. उन्हें जी. एस. टी. ऑफिस जाना था. वहाँ से उन्होंने कहा की कबाब खाते हैं, अब कुमार ने हमारे पीछे जासूस छोड़ रखे थे जिसने हमें देख लिया और फोटो खींच ली.'
मेरी बात सुन कर दोनों हैरान थे और उन्हें कहीं भी मेरी गलती नहीं लगी. खेर थोड़ा हँसी मजाक हुआ और चाय पी कर वो दोनों निकलने को हूये.
'अच्छा भाभी जी! चलते हैं, ये तो शुक्र है की आप यहाँ थे वरना ये साला तो कभी हमें चाय तक नहीं पूछता.' प्रफुल ने मजाक करते हुए कहा. उसके मुँह से 'भाभी जी' सुन कर आशु की खुशियों का कोई ठिकाना नहीं था.
'चल भाई लव बर्ड्स को अकेला छोड़ देते हैं वरना मन ही मन दोनों गाली देते होंगे!' मोहित ने भी टांग खींचते हुए कहा. मैं दोनों के गले मिला और उन्हें छोड़ने नीचे उतरा. नीचे आ कर तो दोनों ने मेरी जम कर खिंचाई की ये बोल-बोल कर की लड़की पटा ली और हमें बताया भी नही. उन्हें छोड़ कर मैं ऊपर आया तो आशु चाय के बर्तन धो रही थी. मैंने दरवाजा बंद कर आशु को फिर पीछे से अपनी बाहों में भर लिया. 'जानू! ये भाभी शब्द सुनने में बहुत अच्छा लगता हे.' आशु ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए कहा. मेरे हाथ आशु के सीने तक पहुँच गए और उसके स्तन मेरी मुट्ठी में आ गये. मैंने उन्हें धीरे-धीरे मसलना शुरू कर दिया. 'अब तो जल्दी से मुझे अपने दोस्तों की भाभी बना दो ना?' आशु ने कसमसाते हुए कहा.
'पहले तुम्हें ढंग से बीवी तो बना लु.' मैंने आशु की गर्दन पर धीरे से काटा. 'ससससस...आह!हह..!!!' इस आवाज के साथ ही आशु ने जल्दी से हाथ धोये और मेरी तरफ पलट गई. 'आप ना? बहुत शरारती हो!' ये कहते हुए आशु मुझसे चिपट गई. मैंने आशु को अपनी गोद में उठाया और उसे पलंग पर लिटा दिया. मैं उसके ऊपर आ कर उसे किस करने वाला था की आशु ने अपने सीधे हाथ की ऊँगली मेरे होंठों पर रख दी. 'सॉरी जान! आज सुबह से मेरे पीरियड्स शुरू हो गए!| आशु ने मायूस होते हुए कहा. मैंने झुक कर उसकी नाक से अपनी नाक लड़ाई और उसके माथे को चूमा. मैं उठा और फ्रिज से डेरी मिल्क चॉकलेट निकाली और उसे दी. 'ये क्यों? आशु ने पूछा. 'यार मैंने इंटरनेट पर पढ़ा था की पीरियड्स के टाइम लड़कियों को चॉकलेट और आइस-क्रीम बहुत पसंद होती हे.'
'अच्छा? और क्या-क्या पढ़ा आपने?'
'ये ही की इन दिनों लड़कियां बहुत चिड़चिड़ी हो जाती हैं.' मैंने आशु को चिढ़ाते हुए कहा.
'मैं कब हुई चिड़चिड़ी?' ये कह कर आशु मुझसे रूठ गई और दूसरी तरफ मुँह कर लिया. मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ के अपनी तरफ घुमाई और कहा; 'हो गई ना नाराज?' ये सुन कर आशु मुस्कुरा दी.
'आपने कब से ये सब पढ़ना शुरू कर दिया? पीरियड्स मुझे पहली बार थोड़े ही हुए हैं?' आशु ने चॉकलेट की बाईट लेते हुए कहा.
'बाप बनना है तो इन चीजों का ख्याल तो रखना ही होगा ना? पहले मैं इतना इंटरेस्ट नहीं लेता था पर जब से घर बैठा हूँ तो रात को यही सब पढता रहता हु.' मैंने कहा.
'प्रेगनेंसी मैं हैंडल कर लूँगी! आप बाकी सब देखो?' आशु ने पूरे आत्मविश्वास से कहा.
'बाकी सब भी देख रहा हु.' ये कहते हुए मैंने अपनी डायरी निकाली और उसमें मैंने बैंगलोर में सेटल होने से जुडी सारी चीजें लिखी थी. नए घर बसाने का सारा जिक्र था उसमें, बर्तन-भांडे से ले कर परदे, बेडशीट सब कुछ. अपने लैपटॉप पर मैंने प्रॉपर्टी वाले जो लिंक बुकमार्क कर रखे तो वो सब मैं आशु की दिखाने लगा. घर का ३६० डिग्री व्यू था और मैं आशु को सब बता रहा था की कौन सा हमारा कमरा होगा और कौन सा किचन होगा. किस फ्लैट का कितना भाड़ा है और कितना डिपाजिट लगेगा सब कुछ लिखा था. आशु मेरी सारी प्लानिंग देख कर हैरान थी और ये सब सुन कर उसकी आँखें भर आई. 'हे!!! क्या हुआ जान?' मैंने आशु के चेहरे को अपने हाथों में थामते हुए कहा. 'आज मुझे मेरे सपनों का संसार दिखाई दिया.... शुक्रिया!!!' मैंने आशु को अपने सीने से लगा लिया और उसे रोने नहीं दिया. 'अच्छा दशहरे की छुट्टियाँ कब से हैं?' मैंने बात बदलते हुए कहा ताकि आशु का ध्यान हटे और वो और न रोये.
'नेक्स्ट टू नेक्स्ट वीक से! फ्रायडे अगर छुट्टी कर लूँ तो फिर सीधा मंडे को कॉलेज ज्वाइन करुंगी.' आशु ने अपने आँसूँ पोछते हुए कहा. दशहरे का कुछ ख़ास प्लान नहीं था बस घर जाना था. हालाँकि आशु मना कर रही थी घर जाने से और कह रही थी की दशहरे हम शेहर में एक साथ मनाते है पर मैंने उसे समझाया की ऐसे घर नहीं जाने से वो लोग कभी भी यहाँ टपक सकते हैं और फिर सारा रायता फ़ैल जायेगा. आशु को बात समझ आ गई और उसने बात मान ली. दोपहर को खाना मैंने और आशु ने मिल कर बनाया और हमारी मस्ती चलती रही, मैं आशु को और वो मुझे बार-बार छूती रहती. खाना खा कर मैंने उसे कल की प्रेजेंटेशन के बारे में याद दिलाया तो उसने फिर से मुझे याद दिलाते हुए कहा; 'कल लास्ट टाइम है!' मैंने बस हाँ में सर हिलाया और फिर ५ बजे उसे हॉस्टल छोड़ आया. घर आ कर दोपहर का खाना गर्म कर खाया, आशु से कुछ देर चैट की और फिर ‘प्यासा’ ही सो गया!
अगली सुबह मैं उठ कर तैयार हुआ और सबसे पहले कैफ़े पहुँचा और वहां नितु पहले से ही मेरा इंतजार कर रही थी. हम बिलकुल कोने में बैठे थे ताकि प्रेजेंटेशन के दौरान कोई हमें डिस्टर्ब न दे. वीडियो कॉल पर प्रेजेंटेशन शुरू हुआ और जल्दी ही सारा काम निपट गया.नितु ने प्रेजेंटेशन के बाद थैंक यू कहा और साथ ही ये भी बताया की वो कल बैंगलोर जा रहीं हे. मैंने उसने आगे और कुछ नहीं पुछा और जल्दी-जल्दी सीधा इंटरव्यू के लिए निकल गया.इंटरव्यू सक्सेसफुल नहीं था क्योंकि वहाँ कोई अपनी जान-पहचान निकाल लाया था! मैं हारा हुआ घर आया और लेट गया, मन में यही बात आ रही थी की ५ दिन में तू ने हार मान ली तो इतनी बड़ी लड़ाई कैसे लड़ेगा? आँखें बंद किये हुए कुछ देर लेटा रहा और फिर अचानक से मुझे भगवान् का ख्याल आया. जब कोई रास्ता दिखाई नहीं देता तो एक भगवान् के घर का ही रास्ता दिखाई देने लगता है, में उठा और मंदिर जा पहुंचा. वहां बैठे-बैठे मन ही मन में मैंने अपने दिल की सारी बात भगवान् से कह दी, कोई जवाब तो नहीं मिला पर मन हल्का हो गया.ऐसा लगने लगा जैसे की कोई कह रहा हो की कोशिश करता रह कभी न कभी तो कामयाबी मिल जायेगी. मंदिर की शान्ति से मन काबू में आने लगा था इसलिए शाम तक मैं मंदिर में ही बैठा रहा.
ठीक ४ बजे मैं आशु के कॉलेज के लिए निकला, जब आशु ने मेरे मस्तक पर टिका देखा तो वो असमंजस में पड़ गई और फिर एक दम से उदास हो गई. हम चलते-चलते एक पार्क में पहुँचे और तब मैंने बात शुरू की; 'क्या हुआ? अभी तो तेरे मुँह खिला-खिला था. अचानक से उदास कैसे हो गई?' आशु ने गर्दन झुकाये हुए कहा; 'आपने नितु से शादी कर ली ना?' ये सुन कर मैं बहुत तेज ठहाका मार के हँसने लगा. उसके इस बचपने पर मुझे बहुत हँसी आ रही थी और उधर आशु मुझे हँसता हुआ देख कर हैरान थी. आशु गुस्से में मुड़ के जाने लगी तो मैंने पहले बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी काबू में की और आशु के सामने जा के खड़ा हो गया.'तू पागल हो गई है क्या? मैं नितु से शादी क्यों करूँगा? प्यार तो मैं तुझसे करता हूँ! मैं मंदिर गया था...' इसके आगे मैंने आशु से कुछ नहीं कहा और उसके चेहरे को हाथों में थामे उसकी आँखों में देखने लगा. आशु भी मेरी आँखों में सच देख पा रही थी और उसे यक़ीन हो गया था की मैं झूठ नहीं बोल रहा. वो आके मेरे सीने से लग गई. और मैं उसके सर पर हाथ फेरता रहा.
कुछ देर में जब उसके जज्बात उसके काबू में आये तो उसने पुछा; 'आप मंदिर क्यों गए थे?' अब मैं इस बात को उससे छुपाना चाहता था की मैं मंदिर इसलिए गया था क्योंकि मैं इंटरव्यू के बाद हारा हुआ महसूस कर रहा था. 'बस ऐसे ही!' मैंने बात को वहीँ खत्म कर दिया. 'आपका इंटरव्यू कैसा था?' आशु ने अपने बैग से टिफ़िन निकालते हुए कहा. 'नॉट गुड! किसी का आलरेडी जुगाड़ फिट था!' मैंने आशु से नजर चुराते हुए कहा. आशु अब सब समझ गई थी की मैं क्यों मंदिर गया था. उसने मेरे ठुड्डी पखडी और अपनी तरफ घुमाई और मेरी आँखों में आँखें डालते हुए बोली; 'मैं हूँ ना आपके पास, तो क्यों चिंता करते हो?' उसका ये कहना ही मेरे लिए बहुत था. मेरा आत्मविश्वास अब दुगना हो गया था और माहौल हल्का करने के लिए मैंने थोड़ा हँसी-मजाक शुरू कर दिया. वो पूरा हफ्ता मैं या तो इंटरव्यू देने के लिए ऑफिसेस के चक्कर काटा या फिर जॉब कंसल्टेंसी वालों के यहाँ जाता था. जहाँ कहीं जॉब मिली भी तो पाय इतनी नहीं थी जितनी मैं चाहता था. पर फिर मुझे कुछ-कुछ समझ आने लगा, दिवाली आने में १ महीना रह गया था तो ऐसे मैं कौन सा मालिक एक एक्स्ट्रा आदमी को हायर कर बोनस देना चाहेगा, इसीलिए व्याकन्सी कम निकल रहीं हे. मैंने ये सोच कर संतोष कर लिया की दिवाली के बाद तो नौकरी मिल ही जायेगी.
मंगलवार का दिन था और आशु सुबह-सुबह ही आ धमकी! मैं तो पहले से ही जानता था की वो आने वाली है इसलिए मैं खिड़की के सामने बैठा चाय पी रहा था. दरवाजा खुला था. इसलिए आशु चुपके से अंदर आई और मेरी आँखों पर अपने कोमल हाथ रख दिए ये सोच कर की मैं कहूँगा की कौन है? मैं तो पहले से ही जानता था की ये आशु है क्योंकि उसकी परफ्यूम की जानी-पहचानी महक मुझे पहले ही आ गई थी. अब समय था उसे जलाने का; 'अरे कल्पना भाभी?!' मैंने जान बूझ कर ये नाम लिया, ये नाम किसी और का नहीं बल्कि मेरे मकान मालिक अंकल की बहु का नाम था. ये सुनते ही आशु गुस्से से तमतमा गई और उसने मेरी आँखों से हाथ हटाए और मेरे सामने गुस्से से खड़ी हो गई; 'कल्पना भाभी के साथ आपका चक्कर है? वो आपके घर में कभी भी बिना बता घुस आती है और आपको ऐसे छूती है? ये सारी औरतें आपके पीछे क्यों पड़ीं हैं? एक नितु मैडम कम थी जो ये कल्पना भाभी भी आपके पीछे पड़ गईं? और आप.... आप बोल नहीं सकते की आप किसी से प्यार करते हो? मैं....मैं.....'
'अरे..अरे..अरे... यार मजाक कर रहा था. तू क्यों इतनी जल्दी भड़क जाती है?' मैंने आशु को मनाते हुए कहा.
'भड़कूं नहीं? आपके मुँह से किसी भी लड़की का नाम सुनते ही मेरे जिस्म में आग लग जाती है! आपको मजाक करने के लिए कोई और टॉपिक नहीं मिलता?' आशु ने गुस्से से कहा.
'अच्छा सॉरी! आज के बाद ऐसा कभी मजाक नहीं करूँगा!' मैंने कान पकड़ते हुए कहा. मेरे ऐसा करने से आशु का दिल एक दम से पिघल गया और वो आ कर मुझसे चिपक गई.
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, मैं और आशु अलग हुए और एक दूसरे को देखने लगे. मैं दरवाजे के पास आया और मैजिक ऑय से देखा तो बाहर सुमन खड़ी थी. मैंने इशारे से आशु को बाथरूम में छुपने को कहा. जैसे ही आशु अंदर घुसी और बाथरूम का दरवाजा सटाया मैंने मैन डोर खोला. 'बड़ी देर लगा दी दरवाजा खोलने में? कोई लड़की-वड़की छुपा रखी है?' सुमनं ने हँसते हुए कहा.
'नंगा था ... कपड़े पहन रहा था.' मैंने भी उसी तरह से जवाब दिया.
'तो मुझसे कैसी शर्म?' सुमन ने फिर से मुझे छेड़ते हुए कहा.
'ओ मैडम जी! आपने कब देख लिया मुझे नंगा?' मैंने थोड़ा हैरानी से कहा.
''अरे मजाक कर रही थी! काहे सीरियस हो जाते हो आप?'
'यही मजाक करना आता है? कउनो और मजाक नहीं कर सकती?' मैं जानता था की आशु अंदर बाथरूम से हमारी सारी बात सुन रही है इसलिए अभी कुछ देर पहले कही उसकी बात उसे सुनाते हुए मैंने कहा. इधर सुमन खिलखिला कर हँस रही थी. कारन ये की हम दोनों कई बार एक दूसरे से इसी तरह देहाती भाषा में बात करते थे!
'चलो जल्दी से तैयार हो जाओ?'
'क्यों?' मैंने पुछा और यही सवाल आशु के मन में भी चल रहा था.
'माँ ने बुलाया है आपको, लंच पर'
'क्यों आज कोई ख़ास दिन है?' मैंने पूछा.
'वो..आज ...मेरा बर्थडे है!' सुमन ने मुस्कुराते हुए कहा.
'अरे सॉरी यार! हैप्पी बर्थडे! सॉरी मैं भूल गया था!' मैंने माफ़ी माँगते हुए उसे विश किया.
'मेरा बर्थडे याद करके रखते हो?'
मे :यार कॉलेज के कुछ 'ख़ास' लोगों का जन्मदिन याद हे.' मेरे ये कहने के बाद मुझे एहसास हुआ की आशु ये सब सुन रही होगी और अभी मुझसे फिर लड़ेगी इसलिए मैंने अपनी इस बात में आगे बात जोड़ दी; 'जैसे छोटू, सिद्धू भैया और मेरे ऑफिस के कलिग के'
'पर विश तो कभी किया नहीं?' सुमन ने सवाल किया.
'कैसे करता? मेरे पास नंबर तो था नहीं, बाकियों को व्हाटस ऍप पर विश कर दिया करता था.' मैंने अपनी सफाई दी, जबकि मेरा उसका बर्थडे याद रखने का कारन मेरा उसके लिए प्यार था जो मैं उससे फर्स्ट ईयर में किया करता था. पर जब मुझे प्रकाश ने आशु की माँ वाले काण्ड के बारे में बताया था तब से मैंने खुद को जैसे-तैसे समझा लिया था की मैं सुमन से प्यार नहीं कर सकता. फिर आशु मिल गई और मेरे मन में सुमन के प्यार की कब्र बन गई.
'चलो कोई बात नहीं, इस बार तो विश कर दिया आपने. चलो चलते हैं... (कुछ सोचते हुए) अच्छा एक बात बताओ अश्विनी सुबह बोल के गई थी की कॉलेज जा रही है पर मुझे तो वो वहाँ मिली नहीं! आपको पता है कहाँ गई है?' मोहनी ने पूछा. मैं जानता था की आशु मेरे ही बाथरूम में छुपी है पर ये मैं उसे कैसे बता सकता था.
'पता नहीं... कहीं दोस्तों के साथ बंक तो नहीं कर रही?' मैंने अनजान बनते हुए कहा.
'हो सकता है, उसके पास फ़ोन भी नहीं की उसे कॉल कर के बुला लु. आप अपने घर में कह दो ना की उसे एक फ़ोन दिलवा दें ताकि कभी जरुरत हो तो उसे कॉल कर लु.'
'आ जाएगी जहाँ भी होगी, लंच तक! आप ऐसा करो आप चलो मुझे एक जरुरी काम है वो निपटा कर मैं आता हु.' मैंने बहाना मारा ताकि सुमन निकले.
'ठीक है पर लेट मत होना.' इतना कह कर वो चली गई. मैंने दरवाजा बंद किया और आशु फिर से गुस्से में बाहर आई और अपनी कमर पर दोनों हाथ रख कर मुझे घूरने लगी.
'सॉरी बाबा ...सॉरी!!!' मैंने कान पकड़ते हुए कहा पर उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ, वो किचन में घुसी और चम्मच और गिलास उठा के फेंकने शुरू कर दिये. 'अरे यार ...सॉरी! ...सॉरी!!!!' पर उसने बर्तन मेरी ओर फेकने जारी रखे, हैरानी की बात है की एक भी बर्तन मुझे लगा नही. मैं धीरे-धीरे उसके नजदीक पहुँचा तभी उसके हाथ में बेलन आ गया.मुझे मारने के लिए उसने बेलन उठाया की तभी कुछ सोचने लगी ओर वो वापस किचन काउंटर पर छोड़ दिया ओर मेरे पास आ कर प्यार से अपने मुक्के मेरे सीने में मारने शरू कर दिये.
अउ..अउ..अउ..आह!' मैंने झूठ-मूठ का करहाना शुरू किया पर वो रुकी नही. मैंने उसे गोद में उठाया ओर पलंग पर ले आया, पर उसने मेरी छाती पर अब भी मुक्के मारने चालु रखे.मैंने दोनों हाथों से उसके दोनों हाथों को पकड़ कर अलग-अलग किया ओर उसके ऊपर झुक कर उसके होठों को चूमा, तब जा कर उसका गुस्सा शांत हुआ. 'बाबू! ये बहुत पुरानी बात है, कॉलेज फर्स्ट ईयर की! पर जब से तुमसे प्यार हुआ मैं सब कुछ भूल गया था. तुम्हारी कसम! अब प्लीज गुस्सा थूक दो!' मैंने बहुत प्यार से कहा ओर आशु के हाथ छोड़ दिये. मैं उसके ऊपर से उठने लगा तो आशु ने मेरे टी-शर्ट के कालर को पकड़ा ओर अपने ऊपर खींच लिया; 'ज्यादा न पुरानी बातें याद ना किया कीजिये, नहीं सच कर रही हूँ जान दे दूंगी मैं!'
'अरे बाप रे बाप! ई व्यवस्था!' मैंने भोजपुरी में कहा तो आशु की हँसी छूट गई. 'अच्छा जान! चलो उठो ओर चलें आपके हॉस्टल!'
हम दोनों उठे और मैंने कपडे बदले और दोनों बस से हॉस्टल पहुंचे. चौराहे पर पहुँच कर मैंने आशु से जाने को कहा और मैं मार्किट की तरफ निकल गया.जन्मदिन पर खाली हाथ जाना सही नहीं लगा, अब अगर तौह्फे के लिए फूल लिए तो आशु जान खा जाएगी इसलिए मैंने एक महंगा पेन खरीदा और उसे गिफ्ट-व्रैप करा कर हॉस्टल पहुंचा. आशु ने दरवाजा खोला और हँसते हुए 'नमस्ते' कहा. अब आखिर सब के समने ये भी तो जताना था की हम दोनों एक साथ नहीं थे! मैंने आंटी जी के पाँव छुए और उन्होंने मुझे बैठे को कहा. वो भी मेरे पास ही बैठ गईं और घर के हाल-चाल पूछने लगी. 'और बताओ जॉब कैसी चल रही है?' आंटी जी ने पुछा, मैंने बात को गोलमोल करना चाहा की तभी आशु बोल पड़ी; 'आंटी जी जॉब तो छोड़ दी इन्होने!' अब ये सुनते ही आंटी जी मेरी तरफ देखने लगीं; 'वो आंटी जी वर्क लोड बहुत बढ़ गया था ऊपर से सैलरी ढंग की देते नहीं थे!' मैंने झूठ बोला और आंटी ने मेरी बात मान भी ली. 'सही किया बेटा, मेरे हिसाब से तो सरकारी नौकरी ही बढ़िया हे. काम कम और सैलरी ज्यादा!' मैं ये सुन कर मुस्कुरा दिया क्योंकि मेरी ऐसी आदत थी नहीं, मुझे तो मेरी मेहनत की कमाई हुई रोटी ही भाति थी!
कुछ देर बाद सुमन आ गई और मैंने उसे उसका तौहफा दिया तो उसने झट से तौहफा ले लिया. आंटी जी ने बड़ा कहा की बेटा क्या जरुरत थी तो मैंने बस इतना ही कहा की आंटी जी बस एक पेन ही तो है, वो बात अलग है की वो पेन पार्कर का था! आशु शांत रही और कुछ नहीं बोली, अब मैं चलने को हुआ तो सुमन कहने लगी की वो मुझे ड्राप कर देगी. मैंने बहुत मना किया पर आंटी जी ने भी कहा की कोई नहीं छोड़ आ. मैं उसकी स्कूटी पर पीछे बैठ गया और दोनों हाथों से पीछे के हैंडल को पकड़ लिया. हम रेड लाइट पर रुके तो सुमन पीछे मुड़ी और बोली; थैंक यू!' मैंने बस इट्स ऑल राईट कहा और तभी ग्रीन लाइट हो गई. फिर पूरे रस्ते वो कुछ न कुछ बोलती रही, उसे अब भी पता नहीं था की मैंने जॉब छोड़ दी हे. जब घर आया तो सुमन बोली; 'सॉरी इस बार आपको घर का खाना खिलाया! नेक्स्ट टाइम मैं पार्टी दूँगी!'
'कोई नहीं!' मैं बाय बोल कर जाने लगा तो वो खुद ही बोलने लगी; 'माँ ना... सच्ची बहुत रोक-टोक रखती है मुझ पर! ऑफिस से घर और घर से ऑफिस, जरा सी लेट हो जाऊँ तो जान खा जाती है मेरी. मैंने कहा मैं बाहर ट्रीट दूँगी तो कहने लगी किसको ट्रीट देनी है? अब अगर ऑफिस वालों का नाम लेती तो वो मना कर देती इसलिए मैंने आपका नाम ले लिया. आपका नाम सुनते ही उन्होंने कहा की सागर को यहीं बुला ले बहुत दिनों से उससे मुलाक़ात नहीं हुई, इसलिए आप को आज के लंच का न्योता दिया. इतनी रोक-टोक तो वो अश्विनी पर भी नहीं रखती!'
'उनकी गलती नहीं है, ये जो आपका मुँहफट पना है न इसी के चलते वो ऐसा करती हे. रही आशु की बात तो वो हमेशा ही शांत रहती है, कम बोलती है और अपने काम से काम रखती है और कुछ-कुछ मेरी वजह से भी आंटी जी उस पर फिदा हैं, इसलिए उसे ज्यादा रोकती-टोकती नहीं!' मैंने आंटी की तरफदारी की.
'अच्छा तो मैं भी अश्विनी की तरह गाय बन जाऊँ?' सुमन ने हँसते हुए कहा.
'नहीं बन सकती! वो बनी ही अलग मिटटी के सांचे की है और फिर ऊपर वाले ने ही वो साँचा तोड़ दिया!' मैंने मुस्कुराते हुए कहा. मैंने आशु की तारीफ कुछ इस ढंग से की ताकि सुमन उसे समझ ही न पाए की मैंने तारीफ की है या उसका मजाक उड़ाया हे. मैं ऊपर आ गया और मोहनी अपनी स्कूटी मोड़ के चली गई. कुछ देर बाद आशु का मैसेज आया पर उसने गिफ्ट के बारे में कुछ नहीं कहा. वो समझ गई थी की मैंने वो गिफ्ट बस खानापूरी के लिए दिया था. थोड़ी इधर-उधर की बातें हुईं फिर मैं घर के कुछ काम करने लगा.
वो दिन बस ऐसे ही निकल गया और फिर आया रविवार और मैं नाहा-धो के पूजा कर के तैयार था. आशु भी समय से आ गई और आते ही मेरे सीने से चिपक गई. पर आज मैंने उसे नहीं छुआ और वो तुरंत ये बदलाव ताड़ गई. 'क्या हुआ? नाराज हो?' उसने मेरी ठुड्डी पकड़ते हुए कहा. नहीं तो.... आज से व्रत हैं!' ये सुनते ही आशु मुझसे छिटक कर खडी हो गई और अपनी जीभ दाँतों तले दबा कर सॉरी बोली. दरअसल मैं हर साल नवरात्रों में व्रत रखता था और पूरे रखता था. 'तब तो मैं आपको छू भी नहीं सकती?!' आशु ने पूछा. 'दिल साफ़ हो तो छू सकती हो, पर वासना भरी हो तो नहीं!' मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो जवाब में आशु बोली; 'आपको देखते ही मेरे जिस्म में आग लग जाती हे. उसे बूझाने ही तो मैं आपके करीब आती हूँ, पर हाय रे मेरी किस्मत! आप तो विश्वामित्र बन गए पर कोई बात नहीं ये मेनका आपकी तपस्या भंग अवश्य कर देगी!'
'बड़ा ज्ञान है तुझे? पर मेरे साथ ऐसा कुछ करने की कोशिश भी मत करना. मार खायेगी मेरे से!' मैंने आशु को चेतावनी दी. उसने बस हाँ में गर्दन हिलाई, वो जानती थी की व्रत के दिनों में मैं बहुत सख्त नियमों का प्लान करता हु. हालाँकि मेरे लिए भी इस बार बहुत मुश्किल था आशु के सामने होते हुए उससे दूर रहना. अब उस दिन चूँकि मैं कुछ खाने वाला नहीं था तो आशु ने भी कुछ खाने से मना कर दिया. मैंने फिर भी उसके लिए फ्रूट चाट बना दी और दोनों बिस्तर पर बैठे मूवी देखते रहे. वो पूरा हफ्ता वही रूटीन चलता रहा, जॉब ढूँढना, शाम को आशु से मिलना और फिर घर आ कर सो जाना. बुधवार को ही घर से बुलावा आ गया और गुरूवार की शाम मैं और आशु गाँव चले गये. घर में सब जानते थे की मेरा व्रत है तो माँ ने मेरे लिए दूध बनाया था जिसे पी कर मैं सो गया.शनिवार को घर में पूजा हुई और मेरा व्रत पूर्ण हुआ, फिर दबा के हलवा-पूरी खाई.
शाम को मैं छत पर बैठा था की आशु आ गई; 'अच्छा अब तो आपको छूने की इज्जाजत है मुझे?'
'घर में सब मौजूद हैं तो ज्यादा मेरे पास भटकना भी मत' मैंने कहा तो आशु मुँह फुला कर चली गई. मैं जानता था की मुझे उसे कैसे मनाना है पर आज नहीं कल!
शाम से ले कर रात तक आशु मुझसे बात नहीं कर रही थी और मुँह फुला कर घूम रही थी. मैंने एक दो बार उससे बात करनी चाही तो वो बिदक कर चली गई. खाना परोस कर मुझे देने के टाइम भी वो अपनी आँखों से मुझे अपना गुस्सा दिखा रही थी. खाना खाने के बाद वो बर्तन धो रही थी. और उसके बर्तन धोना खत्म हो गया था. वो उठने लगी तभी मैंने अपना जूठा गिलास उसे दिया तो वो बुदबुदाते हुए बोली; 'अब घर में आपको सब नहीं दिख रहे जो मुझे गिलास दे रहे हो?' मैं बस मुस्कुराया और वापस आंगन में सबके साथ बैठ गया.रात को सब एक-एक कर अपने कमरों में चले गए बस मैं, भाभी और आशु ही रह गए थे. भाभी का कमरा नीचे था तो वो मेरे सामने से इठलाते हुए गईं जो की आशु ने देख लिया और गुस्से में तमतमाते हुए गिलास नीचे फेंका.भाभी ने उसे ऐसा करते हुए नहीं देखा बस आवाज सुन के उस पर चिल्लाईं; 'हाथ में खून है की नहीं!' आशु कुछ नहीं बोली और मेरे सामने से होती हुई सीढ़ी चढ़ने लगी. मैं मिनट भर आंगन में टहलता रहा और फिर ऊपर अपने कमरे की तरफ चल दिया. मैं अपने कमरे में ना घुस कर आशु के कमरे के दरवाजे पर खड़ा हो कर उसे पलंग पर सर झुकाए बैठा देखने लगा. मैं दो कदम अंदर आया और बोला; 'यार मैं सोच रहा हूँ की शादी के बाद अपने हाथ पर लिखवा लूँ: 'आशु का आदमी!'' ये सुन कर आशु हँस पड़ी फिर अगले ही पल कोशिश करने लगी की मुझे फिर से अपना गुस्सा दिखाए पर उस का चेहरा उसे ऐसा करने नहीं दे रहा था. वो हँसना चाह रही थी पर अपना गुस्सा भी दिखाना चाहती थी. वो उठी और आ कर मेरे सीने से लग गई; 'आपको पता है मैं बार-बार आपके सीने से क्यों लगती हूँ?'
'हाँ...बहुत बार बताया है तुमने!' मैंने कहा.
'आपके सीने की आँच से मेरे दिल में हो रही उथल-पुथल शांत हो जाती हे. जिस गर्मी के लिए मैं तड़पती हूँ वो बस यहीं मिलती हे.' आशु ने फिर से दोहराते हुए कहा.
'चलो अब सो जाओ! सुबह से काम कर कर के थक गए होंगे!' मैंने आशु को खुद से दूर करते हुए कहा.
'ना..आपके सीने से लगते ही सारी थकावट दूर हो जाती हे.' आशु फिर से मेरी छाती से चिपक गई. अब मुझे कैसे भी कर के उसे खुद से दूर करना था वरना अगर कोई आ जाता तो बखेड़ा खड़ा हो सकता था.
'माँ.. आप?!!!' मैंने झूठ बोला जिससे आशु मुझसे एक दम से छिटक कर दूर हो गई. पर जब उसने दरवाजे की तरफ देखा और वहाँ किसी को नहीं पाया तो वो गुस्सा हो गई. 'सॉरी जान! पर कोई हमें देख लेगा तो बखेड़ा खड़ा हो जायेगा.' मैंने उसे मनाते हुए कहा पर वो दूसरी तरफ मुँह कर खड़ी हो गई. मैं पलट के जाने लगा तो वो बोली; 'दरवाजा बंद कर के सोना! माँ प्यासी शेरनी की तरह आपका इंतजार कर रही हे.' मैंने पलट कर देखा तो आशु की आँखों में जलन साफ़ झलक रही थी. मैं उसे गले लगाने को जैसे ही आगे बढ़ा की आशु एक दम से पलट गई. मुझे डर था की कहीं कोई आ ना जाये इसलिए मैं अपने कमरे में आ गया और दरवाजा बंद कर लिया और लेट गया.मुझे पता था की अगली सुबह मुझे क्या करना है?
सुबह फटाफट उठा और नाहा-धो के तैयार हो गया.सब आंगन में बैठे चाय पी रहे थे की मैंने बात शुरू की;
मैं: ताऊ जी शाम को सारे रावण दहन देखने चलें?
ताऊ जी: सारे क्यों? तुझे जाना है तो जा, यहाँ अपनी छत से सब नजर आता हे.
मैं: पर राम-लीला भी तो देखनी है!
ताऊ जी: नहीं..कोई जरुरत नहीं! वहाँ भीड़-भाड़ में कौन जाएगा!
मैं: हमारे लिए भीड़-भाड़ कैसी? आपको बस मुखिया को एक फ़ोन करना है और राम-लीला की आगे वाली लाइन में सीट मिल जाएगी!
पिताजी: इतने से काम के लिए कौन एहसान ले?
मैं: ठीक है एक मुखिया थोड़े ही है?
मैंने अपना फ़ोन निकाला और प्रकाश को फ़ोन किया;
मैं: सुन यार वो राम-लीला की आगे वाली ८ सीटें चाहिए!
संकेत: अबे तू वहाँ आ कर मुझे कॉल कर दीओ सीटें मिल जाएँगी.
मैंने फ़ोन रखा और ताऊ जी और पिताजी मेरी तरफ हैरानी से देख रहे थे.
मैं: होगया जी सीटों का इंतजाम, अब तो सारे चलें?
ताऊ जी: बड़े जुगाड़ लगाने लगा है तू?
पिताजी: शहर में भी यही करता होगा?
 
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सागर घर की छत पर चढ़कर मुंडेर से पेशाब करके वापिस मुडा उसके बाद क्या हुआ
बीच का भाग गायब है कृप्या सुधार करें

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