- 16
- 0
- 1
मैं आगे कुछ नहीं बोला और चुप-चाप चाय पीने लगा. चूँकि हम अयोध्या वासी हैं तो दशहरे पर बहुत धूम-धाम होती हे. हमारे गाँव के मुखिया हर साल इन दिनों में रामलीला का आयोजन जोर-शोर से करते हे. रावण का एक बहुत बड़ा पुतला बना कर फूँका जाता है, पर हमारे घर का हाल ये था की कोई भी सम्मिलित नहीं होता था. मैं जब छोटा था तब आशु को अपने साथ ले जाया करता था और वो भी जैसे ही रावण के पुतले में आग लगती तो भाग खडी होती! बाकी बचीं घर की औरतें तो वो छत पर खडी हो जातीं और पटाखों का शोर सुन लिया करती. इस बार मैंने पहल की थी तो ताऊ जी मान ही गए, ताई जी. माँ और भाभी खुश थीं और मैं इसलिए खुश था की मेरा आशु को मनाने का प्लान कामयाब होने वाला था.
शाम ४ बजे सारे मैदान में पहुँच गए जो की घर से करीब १० मिनट ही दूर था. मैंने प्रकाश को इशारे से बुलाया तो उसने पिताजी, ताऊ जी और गोपाल भैया को आगे की लाइन में बिठा दिया. मुझे, आशु, भाभी, माँ और ताई जी को उसने पीछे वाली लाइन में बिठा दिया अपनी बीवी और माँ के साथ. इस बार के दशहरे की तैयारी उसी के परिवार ने की थी इसलिए वहाँ सिर्फ उसी का हुक्म चल रहा था. रामलीला शुरू हुई और मैंने सब की नजर बचाते हुए आशु का हाथ पकड़ लिया. पहले तो आशु हैरान हुई पर जब उसे एहसास हुआ की ये मेरा हाथ है तो वो मुस्कुरा दी और फिर से रामलीला देखने लगी. मैं धीरे-धीरे उसके हाथ को दबाता रहा और उसे इसमें बहुत आनंद आ रहा था. हम दोनों रामलीला के खत्म होने के दौरान ऐसे ही चुप-चाप एक दूसरे के हाथ को बारी-बारी दबाते रहे. जब रामलीला खत्म हुई तो बारी है रावण दहन की तो सभी उठ के उस तरफ चल दिये. पर घरवाले सभी वहीँ खड़े हो गए जहाँ हम बैठे थे, इधर आशु को उसकी कुछ सहेलियाँ मिल गईं और वो उनके साथ थोड़ा नजदीक चली गई जहाँ बाकी सब गाँव वाले थे. मैं आशु के पीछे धीरे-धीरे उसी तरफ बढ़ने लगा, 'अश्विनी तू तो शहर जा कर मोटी हो गई है!' आशु की एक दोस्त ने कहा. 'चल हट!' अश्विनी ने उस लड़की को कंधा मरते हुए कहा. 'सच कह रही हूँ, ये देख कितना बड़े हो गए हैं तेरे!' ये कहते हुए उसने आशु के कूल्हों को सहलाया. 'तेरी स्तन भी पहले से बढ़ गईं हैं...और तेरे होंठ! क्या करती है तू वहाँ शहर में? कोई यार ढूँढ लिया क्या?' आशु ने गुस्से से दोनों को कंधे पर घुसा मारा. 'ज्यादा बकवास ना कर मुँह नोच लूँगी दोनों का!' तीनों खड़े-खड़े हँस रहे और उनकी बात सुन कर मैं भी मन ही मन हँस रहा था. जैसे ही दहन शुरू हुआ और पटाखों की आवाज तक हुई मैंने आशु का हाथ पीछे से पकड़ा और उसे खींच कर ले जाने लगा. आशु पहले तो थोड़ा हैरान थी की आखिर कौन उसे खींच रहा है पर जब उसने मुझे देखा तो मेरे साथ चल पडी. भीड़ में कुछ भगदड़ मची क्योंकि सब लोग बहुत नजदीक खड़े थे और ऐसे में जिस किसी ने भी हमें वहाँ से जाते देखा वो यही सोच रहा होगा की ये दोनों शोर सुन कर जा रहे हे.
मैं आशु को घर की बजाये दूर प्रकाश के खेतों में ले गया, वहाँ प्रकाश के खेतों में एक कमरा बना था जहाँ वो अपना माल छुपा कर रखता था. उस कमरे में आते ही मैंने दरवाजा बंद कर दिया और कमरे में घुप अँधेरा छा गया.मैंने फ़ोन की टोर्च जला कर उसे चारपाई पर रख दिया और आशु के चेहरे को थाम कर उसके होठों को बेतहाशा चूमने लगा. समय कम था. इसलिए मैं जमीन पर घुटनों के बल बैठा गया और आशु को अभी भी दरवाजे के बगल में खड़ा रखा. उसके कुर्ते में हाथ डाल कर उसकी पजामी का नाडा खोला और उसे जल्दी से नीचे सरकाया फिर आशु की योनी पर अपने होंठ रखे. पर तभी उसकी कच्छी बीच में आ गई! मैंने जल्दी से उसे भी नीचे सरकाया और अपनी लपलपाती हुई जीभ से आशु की योनी को चाटा. मिनट भर में ही उसकी योनी पनिया गई और उसने मुझे ऊपर खींच कर खड़ा किया. मैंने उसे गोद में उठाया और चारपाई पर लिटा दिया. में आशु के ऊपर छा गया, दोनों की सांसें धोकनी की तरह चल रही थी. मैंने और देर न करते हुए अपने लिंग को आशु की योनी में ठेल दिया. लिंग सरसराता हुआ आधा अंदर चला गया और इधर आशु ने जोश में आते हुए अपने दोनों हाथों से मुझे अपने जिस्म से चिपका लिया. मैंने नीचे से कमर को और ऊपर ठेला और पूरा का पूरा लिंग जड़ समेत उसकी योनी में उतार दिया. आशु ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में थामा और मेरे होठों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगी. मैंने नीचे से तेज-तेज झटके मारने शुरू किये और ७-८ मिनट में ही दोनों का छूट गया! साँसों को दुरसुत कर दोनों खड़े हुए और अपने-अपने कपडे ठीक किये. आशु और मैं दोनों तृप्त हो चुका थे.उसके चेहरे पर वही ख़ुशी लौट आई थी. बाहर निकलने से पहले उसने फिर से मुझे अपनी बाहों में कैद किया और मेरे होंठों को अपने मुँह में भर के चूसने लगी. मुझे फिर से जोश आया और मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और दिवार से सटा कर उसके निचले होंठ को अपने मुँह में भर के चूसने लगा. मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और आशु उसे चूसने लगी. तभी मेरा फ़ोन वाइब्रेट करने लगा तो हम दोनों अलग हुए पर दोनों की साँसे फिर से तेज हो चली थीं, प्यार की आग फिर भड़क गई थी. पर समय नहीं था इसलिए मैंने आशु से कहा; 'आज रात!' इतना सुनते ही आशु खुश हो गई. मैंने दरवाजा खोला और बाहर आ कर देखा की कोई है तो नहीं, फिर आशु को बाहर आने का इशारा किया. आशु को घर की तरफ चल दी और मैं दूसरे रास्ते से घूमता हुआ घर पहुंचा. घर पर सब आ चुके थे. और बाहर अभी भी थोड़ी आतिशबाजी जारी थी. 'कहाँ रह गया था तू?' माँ ने पूछा. 'वो में प्रकाश के साथ था.' इतना कह कर मैं आंगन में मुँह-हाथ धोने लगा तो नजर आशु पर गई जो अब बहुत खुश थी! रात को खाना खाने के समय भी आशु के चेहरे से उसकी ख़ुशी टप-टप टपक रही थी जो वहाँ किसी से देखि ना गई;
भाभी: तू बड़ी खुश है आज?
ये सुनते ही आशु की ख़ुशी काफूर हो गई.
मैं: इतने दिनों बाद अपनी सहेलियों के साथ समय बिताया है, खुश तो होना ही है!मैंने आशु का बचाव किया, पर भाभी को ये जरा भी नहीं जचा और इससे पहले की वो कुछ बोलती ताई जी बोल पड़ी;
ताई जी: इस बार का दशहेरा यादगार था! वैसे तुम दोनों कहाँ गायब हो गए थे?
भाभी: हाँ...मैंने फ़ोन भी किया पर तुमने उठाया ही नहीं?
ताई जी ने मुझसे और आशु से पुछा, अब बेचारी आशु सोच में पड़ गई की बोले तो बोले क्या? ऊपर से भाभी के कॉल वाली बात से तो आशु सुलगने लगी थी. इसलिए मुझे ही बचाव करना पड़ा;
मैं: आशु तो अपनी सहेलियों के साथ आगे चली गई थी और मैं प्रकाश के साथ था. भाभी का फ़ोन आया था पर शोर-शराबे में सुनाई ही नहीं दिया!
ताई जी: अच्छा... वैसे बिटवा तूने आज बड़े सालों बाद रामलीला दिखाई.
अब ताई जी क्या जाने की मेरा असली प्लान क्या था इसलिए मैं बस मुस्कुरा दिया. खाना खाने के बाद मैं छत पर टहल रहा था. तभी आशु ऊपर आई और मुझसे कुछ दूरी पर खड़ी हो गई; 'आज रात का वादा याद है ना?' आशु ने मुझे मेरा किया वादा याद दिलाया, मन तो कर रहा था की थोड़ा और मजाक करूँ ये कह के की कौन सा वादा पर जानता था की ये सुन कर आशु बिदक जाएगी! मैंने बस हाँ में सर हिलाया और फिर आशु मुस्कुराती हुई नीचे चली गई. अभी सब लोग आंगन में ही बैठे थे की पिताजी ने मुझे नीचे से आवाज दे कर बुलाया. मैं नीचे आया तो कुछ जरुरी बातें हुई जमीन को ले कर और फिर मुझसे पुछा गया की मैं वापस कब जा रहा हूँ? 'कल सुबह' मैंने बस इतना कहा और फिर सब अपने-अपने कमरों में जाने को चल दिये. मैं भी अपने कमरे में आ गया और कुछ देर बाद आशु भी ऊपर आ गई. वो मेरे दरवाजे की चौखट पर हाथ रख खड़ी हो गई; 'बारह बजे मैं आपका इंतजार करूँगी!' मैंने बस मुस्कुरा कर हाँ कहा और वो अपने कमरे में चली गई और मुझे उसके दरवाजा बंद करने की आवाज आई. रात बारह बजे तक मैं जागा रहा और फ़ोन में कुछ मैसेज देखने लगा. ठीक बारह बजे मैं उठा और आशु के कमरे का दरवाजा धीरे से खोला, आशु पलंग पर बैठी थी:
आशु मुस्कुराती हुई मेरा ही इंतजार कर रही थी. उसके कमरे में एक लाल रंग का जीरो वाट का बल्ब जल रहा था. उसे ऐसे देखते ही मैं एक पल के लिए दरवाजे पर ही रूक गया और चौखट से सर लगा कर उसे निहारने लगा. मैं धीरे से उसके नजदीक पहुँचा पर नजरें उस पर से हट ही नहीं रही थी. आशु ने अपना दायाँ हाथ बढ़ा कर मुझे अपने पास बुलाना चाहा. मैंने उसका हाथ थाम लिया और फिर उसके पास पलंग पर बैठ गया.मैंने आशु के चेहरे को थामा और उसे किस करने ही जा रहा था की नीचे से मुझे बड़ी जोर की खाँसने की आवाज आई. ये आवाज ताऊ जी की थी जिसे सुनते ही हम दोनों के तोते उड़ गए! मैं छिटक कर आशु के पलंग से खड़ा हुआ और आशु भी बहुत घबरा गई थी और मेरी तरफ डर के मारे देख रही थी. मैंने उसे ऊँगली से छुपा रहने का इशारा किया और धीरे से दरवाजे की तरफ बढ़ा, बाहर झाँका तो वहाँ कोई नहीं था. मैंने चैन की साँस ली, फिर थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए मैंने नीचे आंगन में झाँका तो पाया की ताऊ जी बाथरूम में घुस रहे थे. मैं वापस आशु के कमरे में आया और उसे बताया की ताऊ जी बाथरूम में घुसे हे. अब ये तो साफ़ था की अब कुछ नहीं हो सकता इसलिए मैं दबे पाँव अपने कमरे में आ गया और लेट गया.
रात के एक बजे थे और मुझे झपकी लगी थी की आशु मेरे कमरे में आई और और झुक कर मेरे होठों को चूसने लगी. मैंने तुरंत आँख खोली और जब नजरें आशु पर पड़ीं तो मैं निश्चिंत हो गया और उसके होठों को चूसने लगा. दरअसल मैं दरवाजा बंद करना भूल गया था. इसलिए आशु चुप-चाप अंदर आ गई थी. इधर आग दोनों के जिस्म में भड़क चुकी थी पर कुछ भी करना खतरे से खाली नहीं था! मैंने आशु को रोका और उठ बैठा; 'जान! मेरा भी बहुत मन है पर यहाँ घर पर कुछ भी करना ठीक नहीं है! कल कॉलेज की छुट्टी कर ले और फिर वो पूरा दिन हम दोनों एक साथ होंगे!' ये सुन कर आशु का मुंह फीका पड़ गया और वो मुड़ कर जाने लगी. अब मुझसे उसका ये उदास चेहरा देखा नहीं गया, मैं पलंग से उतरा और आशु का हाथ पकड़ कर खींच कर उसे छत पर ले गया.छत की पैरापेट वाल थोड़ी ऊँची थी. करीब ४ फुट की होगी, मैं वहाँ नीचे बैठ गया और आशु को भी अपने पास बिठा लिया. हम दोनों कुछ इस तरह बैठे थे की अगर कोई ऊपर चढ़ कर आता तो हमें साफ़ दिखाई दे जाता पर वो हमें नहीं देख पाता.उससे हमें इतना समय तो मिल जाता की हम एक दूसरे से अलग हो कर बैठ जाये. हाँ वो इंसान जब छत पर आ जाता तो ये सवाल जरूर आता की तुम दोनों छत पर अकेले क्या कर रहे हो? ये वो एक सवाल था जिसका हमारे पास कोई जवाब नहीं होता, पर जब प्यार किया है तो रिस्क तो लेना ही पड़ता हे. सवाल के जवाब में झूठ बोलने के अलावा कोई और चारा नहीं था हमारे पास. खेर मे नीचे बैठा था और अपनी दोनों टांगें 'वी' के अकार में खोल रखी थी. मैंने आशु को ठीक बीच में बैठने को कहा, आशु बैठ गई और अपना सर मेरे सीने से टिका दिया. हम दोनों ही आसमान में देख रहे थे. चांदनी रात में टीम-टिमाते तारे देखने का मजा ही कुछ और था. ऊपर से चारों तरफ सन्नाटा और हलकी-हलकी हवा ने समा बाँध रखा था.
आशु: जानू! आपको पता है आज क्या हुआ?
मैं: क्या हुआ? (मैंने आशु के गाल को चूमते हुए कहा)
आशु: ससस... मेरी सहेलियाँ कह रही थी की मैं मोटी हो गई हूँ? मेरी नितंब , स्तन और मेरे ओंठ मोटे हो गए हैं, और ये सब आपकी वजह से हुआ है?
मैं: शिकायत कर रही हो या कॉम्पलिमेंट दे रही हो?
आशु: कॉम्पलिमेंट
मैं: आई फील यू आर रेडी टू बी अ मदर!
आशु: सच? तो कब बंद करूँ वो प्रेगनेंसी वाली गोली लेना? (उसने मजाक में कहा.)
मैं: पागल! (मैंने आशु के दूसरे को गाल को चूमते हुए कहा.)
आशु: ससस... सच्ची जानू! आपने मेरे बदन को तराशने में बड़ी मेहनत की है!
मैं: हम्म्म... (मैं आशु की जुल्फों की महक सूंघते हुए बोला.)
अब आशु ने अपने दाहिने हाथ को मेरी जाँघ पर रख उसे सहलाने लगी जिसका सीधा असर मेरे लिंग पर हुआ. उसे फूल कर खड़ा होने में सेकंड नहीं लगा और वो आशु की कमर पर अपनी दस्तक देने लगे. आशु मेरी तरफ घूमी और प्यासी नजरों से मुझे देखने लगी. पर वहाँ कुछ भी कर पाना बहुत बड़ा रिस्क था! पर प्यास तो लगी थी. और उसे बुझाना तो था ही! मैंने आशु को ऐसे ही बैठे रहने को कहा और मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी पजामी के नाड़े को खोलना शुरू कर दिया. नाडा खोल कर मैंने अपना दाहिना हाथ अंदर डाला तो पाया की आशु ने पैंटी नहीं पहनी, मतलब वो पहले से ही तैयारी कर के बैठी थी! मैंने अपनी बीच वाली ऊँगली को आशु की योनी में सरकाया तो पाया की वो तो पहले से ही गीली हे. 'मेरी जान को प्यार चाहिए?' मैंने पुछा तो आशु ने सीसियाते हुए 'हाँ' कहा. मैंने अपनी ऊँगली से आशु की योनी की फांकों को सहलाना शुरू कर दिया और आशु ने अपने आप को मेरी छाती से दबाना शुरू कर दिया. मैंने अपनी तीनों उँगलियों से आशु की योनी की फाँकों को धीरे-धीरे मनसलना शरू कर दिया. और आशु का कसमसाना शुरू हो गया.मैंने अपनी दो उँगलियाँ उसके योनी में डाली और उन्हें आशु की योनी में गोल-गोल घुमाने लगा. अब आशु ने अपनी कमर को मेरे लिंग पर और दबाना शुरू कर दिया. 'जानू...ससस....!!!! आपको नहीं पता ये नौ दिन मैंने कैसे तड़प-तड़प के निकाले हैं!' मुझे आशु की प्यास का अंदाज हो चला था तो मैंने अपनी दोनों उँगलियाँ उसकी योनी में तेजी से अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी. 'उम्ममम ...ससस... और कितना ...स..ससस...तड़पाओगे?' आशु ने धीमी आवाज में सिसकते हुए कहा. 'जान! प्लीज आज रात इसी से काम चला लो कल शहर पहुँच कर कपडे फाड़ के संभोग करेंगे!' मैंने अब भी आशु की योनी में अपनी ऊँगली अंदर-बाहर किये जा रहा था. आशु की आँखें बंद हो चलीं थी और उसके दोनों हाथ मेरी जाँघ पर थे. 'ससस...जानू!! ....ससस...पिछले कुछ दिनों से में डरी हुई थी...स्स्स्साहह... मुझे लगा ....मेरे जिस्म का जादू आप पर से उतर गया!' आशु के मुँह से अनायास शब्दों ने मेरा ध्यान खींचा, अब मुझे जानना था की आशु किस जादू की बात कर रही है इसलिए मैंने और तेजी से उसकी योनी की ठुकाई अपनी उँगलियों से शुरू कर दी!| आशु इस आनंद से फिसल कर आगे की ओर जाने लगी तो मैंने अपने बाएँ हाथ को उसके पेट पर रखा और उसे आगे फिसलने नहीं दिया. 'ममममममम.... उस सससस....हरामजादी .....ने मुझे एक बात सिखाई थी.... की अपने बंदे को अपने काबू में रखना है तो उसे अपनी योनी से बाँध कर रख! आअह..सससस....' अब मुझे सब कुछ समझ आने लगा था! आशु का अचानक से संभोग में इतना 'निपुण' हो जाना सिर्फ उसकी इनसिक्युरीटी को छुपाने के लिए एक पर्दा था. मैं उसे छोड़ कर किसी और के पास ना जाऊँ इसलिए आशु इस तरह मुझसे चिपकी रहती थी. मैंने उसे इतनी बार भरोसा दिलाया, कसमें खाईं पर उसे क्यों यक़ीन नहीं होता की मैं बस उसका हु. उसका ये पजेसिव होना अब सारी हदें पार कर रहा है, अगर इसने अपनी जलन और इनसिक्युरीटी के चलते किसी के सामने कुछ बक दिया तो? वो दिन हम दोनों का अंत होगा! पर आखिर कारन क्या है की आशु इस कदर इनसिक्युअर है? मैंने ऐसा क्या कर दिया की उसे ये इनसिक्युरीटी होती है? वेट अ मिनिट ..... ये मुझसे प्यार भी करती है या फिर ये सिर्फ इसकी संभोग की भूख है?!! मैं यही सब सोच रहा था और अपनी उँगलियों को आशु की योनी में तेजी से अंदर-बाहर किये जा रहा था. अब आशु छूटने वाली थी और उसने अपने नाखून मेरी जाँघ में गाड़ दिए थे जिससे मैं अपने ख्यालों से बाहर आया और अगले ही पल आशु झड़ गई और निढाल हो कर मेरी छाती पर सर रखे हुए लेटी रही.
ये तो साफ़ था की मैं चाहे कुछ भी कह लूँ या भले ही अपना दिल निकाल कर आशु के सामने रख दूँ ये मानने वाली नहीं हे. अगर इससे प्यार न करता तो अब तक इसे छोड़ देता पर साला अब करूँ क्या ये नहीं पता! ऊपर से मैं भी बावला हो चला था जो आशु के चक्कर में एक से बढ़कर एक बावलापे करने लगा था? क्या जरुरत थी तुझे हरामी यहाँ छत पर खुले में ये सब करने की? पर अगर ये ना करता तो मुझे ये सब कैसे पता चलता? तुझे जरा भी डर नहीं लगा की तू इस तरह आशु को अपने लिंग से चिपटाये पड़ा है? भूल गया वो खेत के बीचों बीच पेड़ की डाल पर लटक रहे भाभी और उनके प्रेमी की अस्थियाँ? वहीँ जा कर मरना है तुझे? और ये क्या तूने आशु को अपने सर पर चढ़ा रखा है? हरामी उसकी हर एक ख्वाइश पागलों की तरह पूरी करता है और बदले में उसे ही तेरे ऊपर विश्वास नहीं! ये कैसा प्यार है?
आशु की सांसें दुरुस्त होने तक मेरा ही दिमाग मेरे दिल को गरिया रहा था. 'जानू! क्या सोच रहे हो?' आशु ने मुझे झिंझोड़ा तो मैं अपने 'मन की अदालत' से बाहर आया. मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया बल्कि अपनी टांगें मोड़ कर आशु के इर्द-गिर्द से हटाईं और उठ खड़ा हुआ. आशु फटाफट खडी हुई और मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया; 'क्या हुआ? कहाँ जा रहे हो?' मैं अब भी कोई जवाब नहीं दिया और उसके हाथों की गिरफ्त से अपना हाथ छुड़ाया और आंगन में आ गया.आशु छत पर से नीचे झाँकने लगी और फिर उसे मैं बाथरूम में जाता हुआ नजर आया. आशु छत पर खडी नीचे देखती रही और इंतजार करने लगी की मैं बाथरूम से कब निकलुंगा. मैंने निकल कर ऊपर देखा तो वो अब भी वहीँ खड़ी थी और मेरे ऊपर आने का इंतजार कर रही थी. मैं अगर उस समय ऊपर जाता तो वो मुझसे पूछती की मेरे उखड़ जाने का कारन क्या है और तब मेरा कुछ भी कहना बवाल खड़ा कर देता, ऐसा बवाल जिसे सुन आज काण्ड होना तय था. इसलिए में आंगन में पड़ी चारपाई पर ही लेट गया पर आशु अपनी जगह से टस से मस ना हुई और टकटकी बांधे मुझे देखती रही. मैंने अपनी आँखें बंद की और सोने की कोशिश करने लगा, जो बात मेरे दिम्माग में चल रही थी वो ये थी की मुझे अपने दिल पर काबू रखना होगा वरना आशु मुझे कहीं फिर से अपनी जिस्म के जरिये पिघला ना ले.
पिछले नौ दिनों से जो हम दोनों के बीच जिस्मानी दूरियाँ आई थी उससे कुछ तो काम आसान हो गया था पर आज उस कर्म वाले काण्ड ने फिर से उस दबी हुई आग को हवा दे दी थी. शायद इस तरह उससे दूरियाँ बनाने से आशु को कुछ अक्ल आये, अब क्योंकि उसकी हर ख़ुशी पूरी करने के चक्कर में मैं अपनी और नहीं लगवाना चाहता था. शादी के बाद चाहे वो मुझसे जो करवा ले पर उससे पहले तो हम दोनों को म्याचुरिटी दिखानी होगी. पर दिमाग जानता था की कुछ होने वाला नहीं है...काण्ड तो होना ही है! इधर आशु की हिम्मत नहीं हो रही थी की वो नीचे आ कर मुझसे पूछ सके की मैं क्यों उसके साथ ऐसा बर्ताव कर रहा हूँ? वो पैरापिट वाल पर अपनी कोहनियाँ टिकाये मुझे बस देखती रही! वो पूरी रात मैं बस करवटें बदलता रहा और बार-बार आशु को खुद को देखते हुए नोटीस करता रहा.
सुबह हुई तो ताई जी उठ के आंगन में आईं; 'अरे बिटवा? तू यहाँ क्या कर रहा है?' उन्होंने पूछा. उन्हें देखते ही आशु नीचे आ गई; 'ताई जी..वो रात को पेट ख़राब हो गया था इसलिए मैं नीचे ही लेट गया.' मैंने झूठ बोला. ताई जी मेरे पास बैठ गईं और आशु बाथरूम में नहाने घुस गई और फ्रेश हो कर चाय बनाने लगी. मैं भी उठा और नहा धो के तैयार हो गया और अब तो घर वाले सब बारी-बारी नाहा के नाश्ते के लिए तैयार बैठे थे. 'सागर, गोपाल भैया तुम लोगों के साथ जायेगा.' ताऊ जी ने कहा और मैंने बस 'जी' कहा. पर ये सुनते ही आशु को बहुत गुस्सा आया, वो सोच रही थी की वो शहर जा कर मुझसे कल रात के उखड़ेपन का कारन पूछेगी पर गोपाल भैया के साथ जाने से उसके प्लान पर पानी फिर गया था. पर मुझे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा था. नाश्ता कर के हम तीनों निकले और बस स्टैंड तक पैदल चल दिये. आशु पीछे थी और आगे-आगे मैं और गोपाल भैया थे. वो अपनी बातें किये जा रहे थे और मैं बस हाँ-हुनकुर ही कर रहा था. बस आई और हम तीनों चढ़ गए, आशु तो एक अम्मा के साथ बैठ गई. हम दोनों खड़े रहे और कुछ देर बाद हमें सीट मिल गई. मुझे नींद आ रही थी तो मैं खिड़की से सर लगा कर सो गया पर आशु के मन में उथल-पुथल मची थी. बस स्टैंड पहुँच कर गोपाल भैया को तहसीलदार के जाना था और उसे वहाँ का कुछ पता नहीं था तो हमने एक ऑटो किया और उसमें बैठ गये. सबसे पहले आशु हुई, फिर मैं और आखरी में गोपाल भैया घुसा. मैं आशु की तरफ ना देखकर सामने देख रहा था. अब आशु मुझसे बात करने को मरे जा रही थी पर अपने बाप के डर के मारे कुछ कह नहीं पा रही थी. आशु ने चुपके से मेरा दाहिना हाथ पकड़ लिया पर मैंने किसी तरह हाथ छुड़ा लिया और गोपाल भैया से बात करने लगा. पहले आशु का कॉलेज आया और उसे वहाँ उतारने लगे तो लगा जैसे वो जाना ही ना चाहती हो! 'जा ना?' मैंने कहा तो आशु सर झुकाये कॉलेज के गेट की तरफ चली गई और हमारा ऑटो तहसीलदार के ऑफिस की तरफ चल दिया. गोपाल भैया को वहाँ छोड़ कर मैं घर आ गया और मेल देखने लगा की शायद कोई जॉब ओपनिंग आई हो. एक मेल आई थी तो मैं वहाँ इंटरव्यू के लिए चल दिया. शाम को ४ बजे घर पहुँचा और आ कर ऐसे ही लेट गया.ठीक ५ बजे दरवाजे पर दस्तक हुई और मैंने जब दरवाजा खोला तो सामने आशु खड़ी थी.
आशु बिना कुछ कहे अंदर आई और दरवाजा उसने लात मार कर मेरी आँखों में देखते हुए बंद किया. फिर अगले ही पल उसकी आँखें छल-छला गईं और उसने मेरी कमीज का कालर पकड़ लिया और मुझे पीछे धकेलने लगी. 'क्या कर दिया मैंने जो आप मुझसे इस तरह उखड़े हुए हो? कल रात से ना कुछ बोल रहे हो न कुछ बात कर रहे हो? ऐसा क्या कर दिया मैंने? कम से कम मुझे मेरा गुनाह तो बताओ? आपके अलावा मेरा है कौन और आप हो की मुझसे इस तरह पेश आ रहे हो?' आशु एक साँस में रोते-रोते बोल गई पर उसका मुझे पीछे धकेलना अब भी जारी था. मैंने पहले खुद को पीछे जाने से रोका और फिर झटके से उसके हाथों से अपना कालर छुड़ाया और बोला; 'गलती पूछ रही है अपनी? तूने मुझे समझ क्या रखा है? तुझे क्या लगता है की तू मुझे अपने जिस्म की गर्मी से पिघला लेगी? तुझे इतना समझाया, इतनी कसमें खाईं की मैं तुझसे प्यार करता हूँ और सिर्फ तेरा हूँ पर तेरी ये इनसिक्युरीटी खत्म होने का नाम ही नहीं लेती? इसी लिए जयपुर से आने के बाद मुझसे इतना चिपक रही थी ना? मैं तो साला तेरे चक्कर में पागल हो गया था. तुझे गाँव छोड़ के उल्लू की तरह जागता रहता था. तेरे जिस्म ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा था. वो तो शुक्र है की मैंने व्रत रखे और खुद पर काबू पाया वरना मैं भी तेरी तरह हरकतें करता! क्या-क्या नहीं किया मैंने तेरे प्यार में और तुझे ये सब मज़ाक लग रहा है? तुझे मनाने के लिए क्या-क्या नहीं किया मैंने? इतना जोखिम उठा कर कल पहले तुझे खेतों में ले गया और फिर पहले तेरे कमरे में आना और वो रात को छत पर बैठना? पर तुझे तो बस अपने जिस्म की आग बुझानी है मुझसे! एक दिन अगर तुझे मैं ना छुओं तो तेरे बदन में आग लग जाती है! तुझे पता भी है की तू अपनी इस जलन के मारे कब क्या बोल देती है की तुझे खुद नहीं पता होता. क्या जरुरत थी तुझे आंटी जी से कहने की कि मेरी जॉब चली गई? अगर मैं बात नहीं पलटता तू तो वहाँ सब कुछ बक देती!
निशा को तू जानती है ना, वो मुँहफ़ट है पर दिल की साफ़ हे. वो जानबूझ कर मुझसे मज़ाक करती है और ये सुन कर तुझे किस बात का गुस्सा आता है? भाभी को भी तू अच्छे से जानती है ना? उसके मन में क्या-क्या है वो सब जानती है तू और तूने ही मुझे उनके बारे में आगाह किया था पर आज तक मैंने कभी उनकी तरफ आँख उठा के नहीं देखा. जब मैं बिमारी में गाँव गया था तो उसने क्या-क्या नहीं किया मुझे उकसाने के लिए. पर तेरे प्यार की वजह से मैं नहीं बहका, इससे ज्यादा तुझे और क्या चाहिए?
देख मैं तुझे आज एक बात आखरी बार बोल देता हूँ, आज के बाद अगर मुझे ये तेरी इनसिक्युरीटी दिखाई दी तो दिस विल् बी दीं एंड ऑफ अवर रिलेशनशिप!” मेरी बातें सुन आशु फफक के रोने लगी और अपने घुटनों के बल बैठ गई और हाथ जोड़ कर मिन्नत करते हुए बोली; 'मुझे माफ़ कर दो! प्लीज ....मेरा आपके अलावा और कोई नहीं! ये सच है की मैं इनसिक्युअर हूँ आपको ले कर पर ये भी सच है की मैं आपसे सच्चा प्यार करती हु. मैंने आपसे प्यार संभोग के लिए नहीं किया, बल्कि इसलिए किया क्योंकि इस दुनिया में सिर्फ एक आप हो जो मुझसे प्यार करते हो.'
'तो तुझे ये बात समझ में क्यों नहीं आती की मैं सिर्फ तुझसे प्यार करता हूँ? मैंने आज तक तेरे सामने कभी किसी से फ्लर्ट नहीं किया तो ये काहे बात की इनसिक्युरीटी है?! तुझे ऐसा क्यों लगता है की तुझ में कुछ कमी है? मैं तुझे छोड़ कर किसके पास जाऊँगा? बोल???'
'मुझे नहीं पता...बस डर लगता है की कोई आपको मुझसे छीन लेगा!' आशु ने अपने दोनों हाथों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया.
'कोई और नहीं....तू खुद ही मुझे अपने से दूर कर देगी.' मैंने खुद को उसकी गिरफ्त से आजाद करते हुए कहा.
'नहीं ...प्लीज ऐसा मत कहिये!'
'तुझे पता है मैं कितनी परेशानियों से जूझ रहा हूँ? कितनी जिम्मेदारियाँ मेरे सर पर हैं? जॉब नहीं है, सेविंग्स नहीं हैं और दो साल बाद हमें भाग कर शादी करनी है! क्या-क्या मैनेज करूँ मैं? मैंने तुझसे आजतक कुछ माँगा है? नहीं ना? फिर? '
'एक लास्ट चांस दे दो!आई प्रॉमिस ... अब ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी!आई प्रॉमिस ...!!!' आशु ने अपने आँसू पोछे और सुबकते हुए कहा. पर में जानता था की इसके मन की ये सोच कभी नहीं जा सकती. पर सिवाए कोशिश करने के मैं कुछ कर भी नहीं सकता था. प्यार जो करता था उस डफर से! मैं उसके सामन घुटनों पर बैठा और अपने बाएं हाथ से उसके बाल पकडे और उन्हें जोर से खींचा की आशु की गर्दन ऊपर को तन गई और उसकी नजरें ठीक मेरे चेहरे पर थीं;
'मैं बस तेरा हूँ...समझी?' आशु ने सुन कर हाँ में सर हिलाया पर मैं उससे 'हाँ' सुनने की उम्मीद कर रहा था. उसके कुछ न बोलने और सिर्फ सर हिलाने से मुझे गुस्सा आया और मैंने उसके बाएँ गाल पर एक चपत लगाईं और अपना सवाल दुबारा पुछा; 'मैंने कुछ पुछा तुझसे? मैं सिर्फ तेरा हूँ.... बोल हाँ?' तब जा कर आशु के मुँह से हाँ निकला.
'तू सिर्फ मेरी है!' मैंने कहा.
'ह...हाँ!' आशु ने डर के मारे कहा.
'मैं किस्से प्यार करता हूँ?' मैंने आशु के गाल पर एक चपत लगाते हुए पूछा.
'म....मु...मुझसे!'
'तू किससे प्यार करती है?'
'आपसे!'
'और हम दोनों के बीच में कभी कोई नहीं आ सकता!' आशु ने ये सुन कर हाँ में गर्दन हिलाई पर मुझे ये जवाब नहीं सुनना था तो मैंने फिर से उसके गाल पर एक चपत लगाईं और तब जा कर आशु को समझ आया की मैं क्या सुनना चाहता हु.
'ह...हम दोनों के बीच...कोई नहीं आ सकता!' आशु ने घबराते हुए कहा.
आशु की आँखें रोने से लाल हो चुकी थीं और अब मुझे उस पर तरस आने लगा था. इसलिए मैंने उसके बाल छोड़ दिए और अपनी दोनों बाहें खोल दी. आशु घुटनों के बल ही मेरे सीने से लिपट गई और फिर से रोने लगी. मैंने आशु के बालों में हाथ फेरना शुरू किया ताकि उसका रोना काबू में आये; 'बस ...बस... हो गया! और नहीं रोना!' ये सुन आशु ने धीरे-धीरे खुद पर काबू किया और रोना बंद किया. मैंने उसे अपने सीने से अलग किया और उसके आँसू पोछे फिर मैं खड़ा हुआ और उसे भी सहारा दे कर खड़ा किया. 'जाके मुँह धो के आ फिर मैं तुझे हॉस्टल छोड़ देता हु.' आशु मुँह-धू कर आई और फिर से मेरे गले लग गई; 'आपने मुझे माफ़ कर दिया ना?' मैंने उसके जवाब में बस हाँ कहा और फिर उसे खुद से दूर किया और दरवाजा खोल कर बाहर उसके आने का इंतजार करने लगा. आशु बेमन से बाहर आई और शायद उसके मन में अब भी यही ख़याल चल रहा था की मैंने उसे माफ़ नहीं किया हे. मैंने पहले उसे उसका फ़ोन वापस किया और फिर नीचे से ऑटो कर उसे हॉस्टल छोडा. घर पहुँचा ही था की मेरा फ़ोन बज उठा, ये किसी और का नहीं बल्कि आशु का ही था. उसने सुमन के फ़ोन से मुझे कॉल किया था. ये सोच कर की मैं शायद उसका कॉल न उठाऊँ. मैंने कॉल उठाया' जानू! आपकी एक मदद चाहिए!'
'हाँ बोल' मैंने सोचा कहीं कोई गंभीर बात तो नहीं? पर अगर ऐसा कुछ होता तो वो उस वक़्त क्यों नहीं बोली जब वो यहाँ थी? 'वो कॉलेज के असाइनमेंट्स में एक प्रोजेक्ट मिला था. बाकी साब तो हो गया बस एक वही प्रोजेक्ट बचा हे.तो कल आप मेरा प्रोजेक्ट शुरू कर व दोगे?' मैं समझ गया की ये कॉल बस उसका ये चेक करना था की मैंने उसे माफ़ किया है या नहीं? 'कल शाम ५ बजे मुझे राम होटल पर मिल' अभी बात हो ही रही थी की मुझे पीछे से सुमन की आवाज आई; 'अश्विनी तेरी बात हो जाए तो मुझे फ़ोन दियो.' आशु ने बड़े प्यार से कहा; 'मेरी बात हो गई दीदी!' और उसने फ़ोन सुमन को दे दिया. 'सागर जी! मैं तो आपको अपना दोस्त समझती थी और अपने ही मुझे पराया कर दिया?'
'अरे! मैंने क्या कर दिया?' मैंने चौंकते हुए कहा.
'आप ने अपनी जॉब के बारे में क्यों नहीं बताया?' सुमन ने सवाल दागा.
'अरे...वो...याद नहीं रहा?' मैंने बहाना मारा.
'क्या याद नहीं रहा? वो तो माँ ने मुझे बताया तब जाके मुझे पता चला. मैं देखती हूँ कुछ अगर होता है तो आपको बताती हु.'
'थैंक यू' मैंने कहा. बस इसके बाद उसने मुझसे कहा की मैं उसे अपना रिज्यूमे भेज दूँ और वो एक बार अपनी कंपनी में बात कर लेगी. रात को बिना कुछ खाये-पीये ही लेट गया, आज जो मैं कहा और किया वो मुझे सही तो लग रहा था पर शायद मेरा आशु के साथ किया व्यवहार मुझे ठीक नहीं लग रहा था. मेरा उस पर गुस्सा निकालना ठीक नहीं था....शायद!
अगली सुबह उठा पर आज मुझे कहीं भी नहीं जाना था तो मैं घर के काम निपटाने लगा, झाडू-पोछा कर के घर बिलकुल चकाचक साफ़ किया फिर खाना खाया और फिर से सो गया.शाम को पाँच बजे मैं राम होटल पहुँचा तो देखा की आशु वहां पहले से ही खड़ी हे. हम दोनों पहले की ही तरह मिले और फिर उसने मुझे प्रोजेक्ट के बारे में बताया और हम दोनों उसी में लग गये. घण्टे भर तक हम उसी पर चर्चा करते रहे और थोड़ा हंसी मजाक भी हुआ जैसे पहले होता था. आगे कुछ दिनों तक इसी तरह चलता रहा, हमारा प्यार भरा रिश्ता वापस से पटरी पर आ गया था पर आशु अब मुझे नार्मल लग रही थी. मतलब अब उसका वो पजेसिवनेस और इनसिक्युअर होना कम हो गया था. मुझे नहीं पता की सच में वो खुद को काबू कर रही थी या फिर नाटक, मैंने यही सोच कर संतोष कर लिया की कम से कम अब वो पहले की तरह तो बीह्याव नहीं कर रही.
करवाचौथ से दो दिन पहले की बात थी और आशु मुझे कुछ याद दिलाना चाहती थी. पर झिझक रही थी की कहीं मैं उस पर बरस न पडूँ| मैंने फ़ोन निकाला और घर फ़ोन किया; 'नमस्ते पिताजी! एक बात पूछनी थी. दरअसल ऑफिस में काम थोड़ा ज्यादा है और बॉस ज्यादा छुट्टी नहीं देगा.तो अगर मैं करवाचौथ की बजाये दिवाली पर छुट्टी ले कर आ जाऊँ तो ठीक रहेगा?' मैंने जान बूझ कर बात बनाते हुए कहा, कारन साफ़ था की कहीं कोई यहाँ आशु को लेने ना टपक पडे. 'तूने वैसे भी करवाचौथ पर आ कर क्या करना था? शादी तो तूने की नहीं! पर दिवाली पर अगर यहाँ नहीं आया तो देख लिओ!' पिताजी ने मुझे सुनाते हुए कहा. 'जी जरूर! दिवाली तो अपने परिवार के साथ ही मनाऊँगा!' बस इतना कह कर मैंने फ़ोन रखा. आशु जो ये बातें सुन रही थी सब समझ गई और उसका चेहरा ख़ुशी से जगमगा उठा. 'कल सुबह मैं लेने आऊँगा, तैयार रहना!' मैंने मुस्कुराते हुए कहा और ये सुनके आशु इतना चिहुँकि की मुझे गले लगना चाहा, पर फिर खुद ही रूक गई क्योंकि हम बाहर पार्क में बैठे थे. मैंने मन ही मन सोचा की शायद आशु को अक्ल आ गई है!
अगली सुबह मैं जल्दी उठा और अपनी बुलेट रानी की अच्छे से धुलाई की, आयल चेक किया और फिर नाहा-धो कर आशु को लेने चल दिया. आशु पहले से ही अपना बैग टाँगे गेट पर खड़ी थी. मेरी बाइक ठीक हॉस्टल के सामने रुकी और वो मुस्कुराती हुई आ कर पीछे बैठ गई. मैंने बाइक सीधा हाईवे की तरफ मोड़ दी और आशु हैरानी से देखने लगी; 'हम घर नहीं जा रहे?' उसने पीछे बैठे हुए पूछा. तो मैंने ना में गर्दन हिलाई और इधर आशु का मुँह फीका पड़ गया, उसे लगा की हम गाँव जा रहे हे. एक घंटे बाद मैंने हाईवे से गाडी स्टेट हाईवे १३ पर गाडी मोडी तो आशु फिर हैरान हो गई की हम जा कहाँ रहे हैं? आखिर आधे घंटे बाद जब बाइक रुकी तो हम एक शानदार साडी की दूकान के सामने खड़े थे. आशु बाइक से उत्तरी और सब समझ गई और मेरी तरफ हैरानी से देखने लगी; 'जानू! आप.... थैंक यू!' वो कुछ कहने वाली थी पर फिर रूक गई. मैंने बाइक पार्क की और हम दूकान में घुसे और वहाँ आज बहुत भीड़भाड़ थी. ये दूकान मेरे कॉलेज के दोस्त की थी और मैं यहाँ से कई बार ताई जी और माँ के लिए साडी ले गया था.
मुझे देखते ही प्रसाद (मेरा दोस्त) काउंटर छोड़ कर आया और हम दोनों गले मिले 'अरे भाभी जी! आइये-आइये!' उसने आशु से हँसते हुए कहा. 'यार अभी शादी नहीं हुई है, होने वाली है!' मैंने कहा. 'तभी मैं सोचूँ की तूने शादी कर ली और मुझे बुलाया भी नहीं!' ये सुन कर हम तीनों हँसने लगे, प्रसाद ने अपने एक लड़के को आवाज दी: 'भाई और भाभी को साड़ियाँ दिखा और रेट स्पेशल वाले लगाना.'
'यार एक हेल्प और कर दे, स्टिचिंग कल तक करवा दे यार जो एक्स्ट्रा लगेगा मैं दे दूँगा!' मैंने कहा और वो ये सुन कर मुस्कुरा दिया.
'हुस्ना भाभी के पास माप दिलवा दिओ और बोलिओ प्रसाद भैया के भाई हैं.' मैंने उसे थैंक्स कहा, फिर वो वापस कॅश काउंटर पर बैठ गया और हम दोनों को वो लड़का साड़ियाँ दिखाने लगा. आज पहलीबार था की आशु अपने लिए साडी ले रही थी और बार-बार मुझसे पूछ रही थी की ये ठीक है? आखिर मैंने उसके लिए साडी पसंद की और फिर हम माप देने के लिए उस लड़के के साथ चल दिये. हुस्ना आपा बड़ी खुश मिज़ाज थीं और उन्होंने बड़ी बारीकी से माप लिया और ब्लाउज के कट के बारे में भी आशु को अच्छे से समझाया. जब मैंने पैसे पूछे तो उन्होंने २०००/- बोले जिसे सुनते ही आशु मेरी तरफ देखने लगी. पैसे ज्यादा थे पर साडी भी तो कल मिल रही थी. मैंने जेब से पैसे निकाल के उन्हें दिए और कल १२ बजे का टाइम फिक्स हुआ! हम वापस दूकान आये और कॅश काउंटर पर प्रसाद ने जबरदस्ती हमें बिठा लिया और चाय मँगा दी. मैंने जब उससे पैसे पूछे तो उसने २,५००/- कहा, जब की साडी पर ३,५००/- लिखा था. वो हमेशा जी मुझे होलसेल रेट दिया करता था. पर आशु के लिए तो ये भी बहुत था वो फिर से मेरी तरफ देखने लगी. मैंने पेमेंट कर दी और हम बाहर आ गए; 'जानू! आपने इतने पैसे क्यों खर्च किये?' आशु ने पुछा तो मैंने उसके दोनों गाल उमेठते हुए कहा; 'क्योंकि ये मेरी जान का पहला करवाचौथ है! इसे स्पेशल तो होना ही है?' आशु की आँखें भर आईं थी. मैंने उसके आँसू पोछे और हम घर के लिए निकल पडे. घर के पास ही बाजार था वहाँ मुझे मेहँदी लगाने वाली औरतें दिखीं तो मैंने आशु को मेहँदी लगवाने को कहा. मेहँदी लगवाने के नाम से ही वो खुश हो गई और फिर उसने अपने पसंद की मेहँदी लगवाई और मुझे दिखाने लगी. आखिर हम घर आ गए और अब भूख बड़ी जोर से लगी थी. इस सब में मैं कुछ खाने को लेना ही भूल गया, मैंने कहा की मैं खाना ले कर आता हूँ तो आशु मना करने लगी; 'मेरा मन आज मैगी खाने का हे.' आशु बोली और मैं समझ गया की वो क्यों मना कर रही है, मैं और पैसे खर्चा न करूँ इसलिए. मैंने मैगी बनाई और आशु को अपने हाथ से खिलाया क्योंकि उसके तो हाथों में मेहँदी लगी थी.
खाना खाने के बाद मैंने लैपटॉप पर एक पिक्चर लगा दी, आशु ने कहा की हम नीचे फर्श पर बैठें.मैं नीचे बैठा और अपनी दोनों टांगें वी के आकार में खोलीं और आशु मुझसे सट कर बीच में बैठ गई. लैपटॉप सेंटर टेबल पर रखा था. आशु ने अपना सर मेरी छाती पर रख दिया. अपने दोनों हाथ मेरी टांगों पर खोल कर रखे और सामने मुँह कर के पिक्चर देखने लगी. पिक्चर देखते-देखते आशु को नींद का झोंका आने लगा और उसकी गर्दन इधर-उधर गिरने लगी. मैंने अपने दोनों हाथों को आशु की गर्दन के इर्द-गिर्द से घुमाते हुए उसके होठों के सामने लॉक कर दिया. आशु ने मेरे हाथ को चूमा और फिर मेरी दाहिने बाजू का सहारा लेते हुए सो गई. शाम होने को आई थी और अब चाय बनाने का समय था. पर आशु ने बड़ी मासूमियत से अपने हाथ मुझे दिखाते हुए तुतला कर कहा: 'जानू! मेरे हाथों में तो मेहँदी लगी है! आप ही बना दो ना!' उसके इस बचपने पर ही तो मैं फ़िदा था! मैंने मुस्कुराते हुए चाय बनाई और अब बारी थी उसे चाय पिलाने की. हम दोनों फिर से वैसे ही बैठ गए और मैंने फूँक मार के उसे चाय पिलाई. सात बज गए पर आशु जानबूझ कर अब भी अपने हाथ नहीं धो रही थी. उसे मुझसे काम कराने में मजा आ रहा था. जब मैंने उससे पुछा की रात में क्या बनाऊँ तब वो हँसने लगी और बाथरूम में जा कर हाथ धोये और नहा कर आ गई. 'आप हटिये, मैं बनाती हूँ!' पर मेरी नजरें उसके हाथों पर थीं जिन पर मेहँदी फ़ब रही थी. मैंने उसके दोनों हाथों को पकड़ा और उन्हें चूम लिया. आशु शर्मा गई और फिर आशु ने भिंडी की सब्जी और उर्द दाल बनाई. खाना तैयार हुआ और हम दोनों बैठ गए खाने, पर इस बार खाना आशु ने मुझे खिलाया. पेट भर के खाना खाया और अब बारी थी सोने की पर आशु बस अपने मेहँदी वाले हाथ देखने में मग्न थी. 'क्या देख रही है?' मैंने मुस्कुराते हुए पूछा. उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपने पास बिठा लिया, फिर अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेट कर मेरे कंधे पर सर रखते हुए बोली; 'आज मैं बहुत खुश हूँ! आपने बिना मेरे मांगे मेरी हर इच्छा पूरी कर दी! मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की मुझे आज का दिन देखना नसीब होगा! साडी खरीदना... मेहंदी लगवाना...ये सब मेरे लिए लिए एक सपने जैसा हे. थैंक यू! फॉर मेकिंग दिस डे सो मेमोरेबल!' मैंने आशु के सर को चूमा और हम दोनों लेट गए, पर आज कमरे का वातावरण बहुत शांत था. पहले आशु लेटते ही जैसे अपना आपा खो देती थी और मुझसे चिपक कर चूमना शुरू कर देती थी. पर आज वो बस मुझसे कस कर लिपटी रही और सो गई. मैं इस उम्मीद में की आशु कोई पहल करेगी कुछ देर जागता रहा पर जब मुझे लगा वो सो चुकी है तो मैं भी चैन से सो गया.
अगली सुबह आशु पहले ही जाग चुकी थी और बाथरूम में नहा रही थी. मैं उठा और खिड़की से पीठ टिका कर हाथ बंधे आशु के बाहर निकलने का इंतजार करने लगा. १० मिनट बाद आशु निकली, टॉवल अपने स्तनों के ऊपर लपेटे हुए और उसके गीले बाल जिन से अब भी पानी की बूँदें टपक रही थी. साबुन और शैम्पू की खुशबू पूरे कमरे में भर गई थी और मैं बस आशु को देखे जा रहा था. मुझे खुद को देखते हुए आशु थोड़ा शर्मा गई और शर्म से उसके गाल लाल हो गये. 'क्या देख रहे हो आप?' उसने नजरें झुकाते हुए पूछा. 'यार या तो शायद मैंने कभी गौर नहीं किया या फिर वाक़ई में आज तुम्हें पहली बार इस तरह देख रहा हूँ! मन कर रहा है की तुम्हें अपनी बाहों में कस लूँ और चूम लूँ!' मैंने कहा तो आशु हँसने लगी; 'रात भर का सब्र कर लो, उसके बाद तो मैं आपकी ही हूँ!' 'हाय! रात भर का सब्र कैसे होगा!' मैंने कहाँ और आशु की तरफ बढ़ने लगा, पर मैंने उसे छुआ नहीं बल्कि बाथरूम में घुस गया.आशु उम्मीद कर रही थी की मैं उसे अपनी बाहों में भर लूँगा पर जब मैं उसकी बगल से गुजर गया तो वो थोड़ा हैरान हुई. जब मैं नहा कर निकला तो आशु अपने बाल सूखा रही थी. मैं बाहर आया और आशु से बोला; 'जल्दी से तैयार हो जाओ!'
'क्यों? अब कहाँ जाना है?' आशु ने रुकते हुए पूछा.
'पार्लर' ये सुन के आशु आँखें फाड़े मुझे देखने लगी!
'पर ...वहाँ....' आगे उसे समज ही नहीं आया की क्या बोलना हे.
'अरे बाबा! आज के दिन औरतें पार्लर जाती हैं और पता नहीं क्या-क्या करवाती हैं, तो तुम्हें भी तो करवाना होगा न?!' आशु ने तो जैसे सोचा ही नहीं था की उसे ऐसा भी करना होगा.
'पर ...मुझे तो पता नहीं...वहाँ क्या...' आशु ने डरी हुई आवाज में कहा क्योंकि वो आजतक कभी पार्लर नहीं गई थी. हमारे गाँव में तो कोई पार्लर था नहीं जो उसे ये सब पता होता.
'जान! वहाँ कोई एक्सपेरिमेंट नहीं होता जो तू घबरा रही है! जो सजने का काम तू घर पर करती है वही वो लोग करेंगे.' अब पता तो मुझे भी ज्यादा नहीं था तो क्या कहता.
'तो मैं यहीं पर तैयार हो जाऊँगी, वहाँ जा कर पैसे फूँकने की क्या जरुरत है?'
मैंने थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा. 'अच्छा? कहाँ है तेरे मेक-अप का सामान? ये एक नेल पोलिश....और ये एक फेसवाश....ओह वेट ये...ये फेस क्रीम...बस?! फाउंडेशन कहाँ है? और...वो क्या बोलते हैं उसे...मस्कारा कहाँ है?' ये एक दो नाम ऐसे थे जो मैंने कहीं सुने थे तो मैंने उन्हीं को दोहरा दिया. ये सुन कर तो आशु भी सोच में पड़ गई क्योंकि उसके पास कोई सामान था ही नहीं, वो मुझे सिंपल ही बहुत अच्छी लगती थी पर आज तो उसका पहला करवाचौथ था तो सजना-सवर्ना तो बनता था.
'पर वहाँ जा कर मैं बोलूं क्या? की मुझे क्या करवाना है? मुझे तो नाम तक नहीं पता की वो क्या-क्या करते हैं.' आशु ने पलंग पर बैठते हुए कहा.
'वहाँ जा कर पूछना की पायथ्यागोरस थ्योरम क्या होती है?' मैंने थोड़ा मजाक करते हुए कहा.
'वो तो मुझे आती है“ ये कहते हुए आशु हँसने लगी.
'तू ऐसे नहीं मानेगी ना? रुक अभी बताता हूँ तुझे मैं' इतना कह कर मैं आशु को पकड़ने को उसके पीछे भागा और हम दोनों पूरे घर में भागने लगे. मैं चाहता तो आशु को एक झटके में पकड़ सकता था पर उसके साथ ये खेल खलेने में मजा आ रहा था. वो कभी पलंग पर चढ़ जाती तो कभी दूसरे कोने में जा कर मुझे चीढाने की कोशिश करती.आखिर मैंने उस का हाथ पकड़ लिया और उसे बिस्तर पर बिठा दिया और उसके सामने मैं अपने घुटनों पर बैठ गया; 'देख...पार्लर जा और वहाँ जा कर मेनीक्योर, पेडीक्युर, ब्लिचिंग, फेशियल, थ्रीडिंग वगैरह-वगेरा करवा| फिर भी कुछ समझ ना आये तो अपना दिमाग इस्तेमाल कर और जो भी तुझे वहाँ पर ऑल - इन वन पैक मिले उसे करवा ले| वहाँ जो भी आंटी या दीदी होंगी उनसे पूछ लिओ और ये जो तेरे फ़ोन में गूगल बाबा हैं इनमें सर्च कर ले.अब मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ प्लीज चली जा!' मैंने आशु के आगे हाथ जोड़े और वो ये देख कर खिलखिलाकर हँस पडी. 'ठीक है जी! पर पार्लर तक तो छोड़ दो, मुझे थोड़े पता है यहाँ पार्लर कहाँ हे.' आशु ने हार मानते हुए कहा.
'इतने दिनों से या आती है तुझे ये नहीं पता की पार्लर कहाँ है?' मैंने आशु को प्यार से डांटा.
'आपके लिए चाय बना देती हूँ फिर चलते हैं.' आशु ने कहा पर मेरा प्लान तो उसके साथ व्रत रखने का था.
'बिलकुल नहीं! मेरी बीवी भूखी-प्यासी बैठी है और मैं खाना खाऊँ?' मेरे मुँह से बीवी सुनते ही आशु का चेहरे ख़ुशी से दमकने लगा.
'आप प्लीज फास्टिंग मत करो! ये फ़ास्ट तो औरतें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए करती हैं, ना की आदमी!'
'यार ये क्या बात हुई? मैं इतनी लम्बी उम्र ले कर क्या करूँगा अगर तुम ही साथ न हुई तो? बैलेंस बना कर रखना चाहिए ना?' मेरे तर्क के आगे उसका तर्क बेकार साबित हुआ पर फिर भी आशु ने बड़ी कोशिश की पर मैं नहीं माना और मैं भी ये व्रत करने लगा. आशु को पार्लर छोड़ा और मैं उसकी साडी लेने चल दिया.
हुस्ना आपा का शुक्रिया किया की उन्होंने इतने कम समय में काम पूरा किया और फिर वापस निकल ही रहा था की प्रसाद मिल गया.उससे कुछ बातें हुई और मुझे वापस आने में देर हो गई. दोपहर के ३ बजे थे और आशु का फ़ोन बज उठा. 'जान! मैं बाहर ही खड़ा हु.' ये सुनकर ही आशु ने फ़ोन काट दिया और जब वो बाहर निकली तो मैं उसे बस देखता ही रह गया.उसके चेहरे की दमक १००० गुना बढ़ गई थी. होठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक देख मन बावरा होने लगा था. आज पहली बार उसने आई लायनर लगाया था जिससे उसकी आँखें और भी कातिलाना हो गई थी. उसकी भवें चाक़ू की धार जैसी पतली थीं और मैं तो हाथ बाँधे बस उसे देखता रहा. आशु शर्म से लाल हो चुकी थी और ये लालिमा उसके चेहरे पर चार-चाँद लगा रही थी. 'जल्दी से घर चलिए!' आशु ने नजरें झुकाये हुए ही कहा.
'ना ...पहले मुझे आई लव यू कहो और एक किस दो!' मैंने आशु के सामने शर्त रखी.
'प्लीज ...चलो न...घर जा कर सब कुछ कर लेना...पर अभी तो चलो! मुझे बहुत शर्म आ रही है!'
'ना...मेरी गाडी बिना आई लव यू और 'किस' के स्टार्ट नहीं होगी.' माने अपनी बुलेट रानी पर हाथ रखते हुए कहा.
'सब हमें ही देख रहे हैं!' आशु ने खुसफुसाते हुए कहा.
शाम ४ बजे सारे मैदान में पहुँच गए जो की घर से करीब १० मिनट ही दूर था. मैंने प्रकाश को इशारे से बुलाया तो उसने पिताजी, ताऊ जी और गोपाल भैया को आगे की लाइन में बिठा दिया. मुझे, आशु, भाभी, माँ और ताई जी को उसने पीछे वाली लाइन में बिठा दिया अपनी बीवी और माँ के साथ. इस बार के दशहरे की तैयारी उसी के परिवार ने की थी इसलिए वहाँ सिर्फ उसी का हुक्म चल रहा था. रामलीला शुरू हुई और मैंने सब की नजर बचाते हुए आशु का हाथ पकड़ लिया. पहले तो आशु हैरान हुई पर जब उसे एहसास हुआ की ये मेरा हाथ है तो वो मुस्कुरा दी और फिर से रामलीला देखने लगी. मैं धीरे-धीरे उसके हाथ को दबाता रहा और उसे इसमें बहुत आनंद आ रहा था. हम दोनों रामलीला के खत्म होने के दौरान ऐसे ही चुप-चाप एक दूसरे के हाथ को बारी-बारी दबाते रहे. जब रामलीला खत्म हुई तो बारी है रावण दहन की तो सभी उठ के उस तरफ चल दिये. पर घरवाले सभी वहीँ खड़े हो गए जहाँ हम बैठे थे, इधर आशु को उसकी कुछ सहेलियाँ मिल गईं और वो उनके साथ थोड़ा नजदीक चली गई जहाँ बाकी सब गाँव वाले थे. मैं आशु के पीछे धीरे-धीरे उसी तरफ बढ़ने लगा, 'अश्विनी तू तो शहर जा कर मोटी हो गई है!' आशु की एक दोस्त ने कहा. 'चल हट!' अश्विनी ने उस लड़की को कंधा मरते हुए कहा. 'सच कह रही हूँ, ये देख कितना बड़े हो गए हैं तेरे!' ये कहते हुए उसने आशु के कूल्हों को सहलाया. 'तेरी स्तन भी पहले से बढ़ गईं हैं...और तेरे होंठ! क्या करती है तू वहाँ शहर में? कोई यार ढूँढ लिया क्या?' आशु ने गुस्से से दोनों को कंधे पर घुसा मारा. 'ज्यादा बकवास ना कर मुँह नोच लूँगी दोनों का!' तीनों खड़े-खड़े हँस रहे और उनकी बात सुन कर मैं भी मन ही मन हँस रहा था. जैसे ही दहन शुरू हुआ और पटाखों की आवाज तक हुई मैंने आशु का हाथ पीछे से पकड़ा और उसे खींच कर ले जाने लगा. आशु पहले तो थोड़ा हैरान थी की आखिर कौन उसे खींच रहा है पर जब उसने मुझे देखा तो मेरे साथ चल पडी. भीड़ में कुछ भगदड़ मची क्योंकि सब लोग बहुत नजदीक खड़े थे और ऐसे में जिस किसी ने भी हमें वहाँ से जाते देखा वो यही सोच रहा होगा की ये दोनों शोर सुन कर जा रहे हे.
मैं आशु को घर की बजाये दूर प्रकाश के खेतों में ले गया, वहाँ प्रकाश के खेतों में एक कमरा बना था जहाँ वो अपना माल छुपा कर रखता था. उस कमरे में आते ही मैंने दरवाजा बंद कर दिया और कमरे में घुप अँधेरा छा गया.मैंने फ़ोन की टोर्च जला कर उसे चारपाई पर रख दिया और आशु के चेहरे को थाम कर उसके होठों को बेतहाशा चूमने लगा. समय कम था. इसलिए मैं जमीन पर घुटनों के बल बैठा गया और आशु को अभी भी दरवाजे के बगल में खड़ा रखा. उसके कुर्ते में हाथ डाल कर उसकी पजामी का नाडा खोला और उसे जल्दी से नीचे सरकाया फिर आशु की योनी पर अपने होंठ रखे. पर तभी उसकी कच्छी बीच में आ गई! मैंने जल्दी से उसे भी नीचे सरकाया और अपनी लपलपाती हुई जीभ से आशु की योनी को चाटा. मिनट भर में ही उसकी योनी पनिया गई और उसने मुझे ऊपर खींच कर खड़ा किया. मैंने उसे गोद में उठाया और चारपाई पर लिटा दिया. में आशु के ऊपर छा गया, दोनों की सांसें धोकनी की तरह चल रही थी. मैंने और देर न करते हुए अपने लिंग को आशु की योनी में ठेल दिया. लिंग सरसराता हुआ आधा अंदर चला गया और इधर आशु ने जोश में आते हुए अपने दोनों हाथों से मुझे अपने जिस्म से चिपका लिया. मैंने नीचे से कमर को और ऊपर ठेला और पूरा का पूरा लिंग जड़ समेत उसकी योनी में उतार दिया. आशु ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में थामा और मेरे होठों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगी. मैंने नीचे से तेज-तेज झटके मारने शुरू किये और ७-८ मिनट में ही दोनों का छूट गया! साँसों को दुरसुत कर दोनों खड़े हुए और अपने-अपने कपडे ठीक किये. आशु और मैं दोनों तृप्त हो चुका थे.उसके चेहरे पर वही ख़ुशी लौट आई थी. बाहर निकलने से पहले उसने फिर से मुझे अपनी बाहों में कैद किया और मेरे होंठों को अपने मुँह में भर के चूसने लगी. मुझे फिर से जोश आया और मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और दिवार से सटा कर उसके निचले होंठ को अपने मुँह में भर के चूसने लगा. मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और आशु उसे चूसने लगी. तभी मेरा फ़ोन वाइब्रेट करने लगा तो हम दोनों अलग हुए पर दोनों की साँसे फिर से तेज हो चली थीं, प्यार की आग फिर भड़क गई थी. पर समय नहीं था इसलिए मैंने आशु से कहा; 'आज रात!' इतना सुनते ही आशु खुश हो गई. मैंने दरवाजा खोला और बाहर आ कर देखा की कोई है तो नहीं, फिर आशु को बाहर आने का इशारा किया. आशु को घर की तरफ चल दी और मैं दूसरे रास्ते से घूमता हुआ घर पहुंचा. घर पर सब आ चुके थे. और बाहर अभी भी थोड़ी आतिशबाजी जारी थी. 'कहाँ रह गया था तू?' माँ ने पूछा. 'वो में प्रकाश के साथ था.' इतना कह कर मैं आंगन में मुँह-हाथ धोने लगा तो नजर आशु पर गई जो अब बहुत खुश थी! रात को खाना खाने के समय भी आशु के चेहरे से उसकी ख़ुशी टप-टप टपक रही थी जो वहाँ किसी से देखि ना गई;
भाभी: तू बड़ी खुश है आज?
ये सुनते ही आशु की ख़ुशी काफूर हो गई.
मैं: इतने दिनों बाद अपनी सहेलियों के साथ समय बिताया है, खुश तो होना ही है!मैंने आशु का बचाव किया, पर भाभी को ये जरा भी नहीं जचा और इससे पहले की वो कुछ बोलती ताई जी बोल पड़ी;
ताई जी: इस बार का दशहेरा यादगार था! वैसे तुम दोनों कहाँ गायब हो गए थे?
भाभी: हाँ...मैंने फ़ोन भी किया पर तुमने उठाया ही नहीं?
ताई जी ने मुझसे और आशु से पुछा, अब बेचारी आशु सोच में पड़ गई की बोले तो बोले क्या? ऊपर से भाभी के कॉल वाली बात से तो आशु सुलगने लगी थी. इसलिए मुझे ही बचाव करना पड़ा;
मैं: आशु तो अपनी सहेलियों के साथ आगे चली गई थी और मैं प्रकाश के साथ था. भाभी का फ़ोन आया था पर शोर-शराबे में सुनाई ही नहीं दिया!
ताई जी: अच्छा... वैसे बिटवा तूने आज बड़े सालों बाद रामलीला दिखाई.
अब ताई जी क्या जाने की मेरा असली प्लान क्या था इसलिए मैं बस मुस्कुरा दिया. खाना खाने के बाद मैं छत पर टहल रहा था. तभी आशु ऊपर आई और मुझसे कुछ दूरी पर खड़ी हो गई; 'आज रात का वादा याद है ना?' आशु ने मुझे मेरा किया वादा याद दिलाया, मन तो कर रहा था की थोड़ा और मजाक करूँ ये कह के की कौन सा वादा पर जानता था की ये सुन कर आशु बिदक जाएगी! मैंने बस हाँ में सर हिलाया और फिर आशु मुस्कुराती हुई नीचे चली गई. अभी सब लोग आंगन में ही बैठे थे की पिताजी ने मुझे नीचे से आवाज दे कर बुलाया. मैं नीचे आया तो कुछ जरुरी बातें हुई जमीन को ले कर और फिर मुझसे पुछा गया की मैं वापस कब जा रहा हूँ? 'कल सुबह' मैंने बस इतना कहा और फिर सब अपने-अपने कमरों में जाने को चल दिये. मैं भी अपने कमरे में आ गया और कुछ देर बाद आशु भी ऊपर आ गई. वो मेरे दरवाजे की चौखट पर हाथ रख खड़ी हो गई; 'बारह बजे मैं आपका इंतजार करूँगी!' मैंने बस मुस्कुरा कर हाँ कहा और वो अपने कमरे में चली गई और मुझे उसके दरवाजा बंद करने की आवाज आई. रात बारह बजे तक मैं जागा रहा और फ़ोन में कुछ मैसेज देखने लगा. ठीक बारह बजे मैं उठा और आशु के कमरे का दरवाजा धीरे से खोला, आशु पलंग पर बैठी थी:
आशु मुस्कुराती हुई मेरा ही इंतजार कर रही थी. उसके कमरे में एक लाल रंग का जीरो वाट का बल्ब जल रहा था. उसे ऐसे देखते ही मैं एक पल के लिए दरवाजे पर ही रूक गया और चौखट से सर लगा कर उसे निहारने लगा. मैं धीरे से उसके नजदीक पहुँचा पर नजरें उस पर से हट ही नहीं रही थी. आशु ने अपना दायाँ हाथ बढ़ा कर मुझे अपने पास बुलाना चाहा. मैंने उसका हाथ थाम लिया और फिर उसके पास पलंग पर बैठ गया.मैंने आशु के चेहरे को थामा और उसे किस करने ही जा रहा था की नीचे से मुझे बड़ी जोर की खाँसने की आवाज आई. ये आवाज ताऊ जी की थी जिसे सुनते ही हम दोनों के तोते उड़ गए! मैं छिटक कर आशु के पलंग से खड़ा हुआ और आशु भी बहुत घबरा गई थी और मेरी तरफ डर के मारे देख रही थी. मैंने उसे ऊँगली से छुपा रहने का इशारा किया और धीरे से दरवाजे की तरफ बढ़ा, बाहर झाँका तो वहाँ कोई नहीं था. मैंने चैन की साँस ली, फिर थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए मैंने नीचे आंगन में झाँका तो पाया की ताऊ जी बाथरूम में घुस रहे थे. मैं वापस आशु के कमरे में आया और उसे बताया की ताऊ जी बाथरूम में घुसे हे. अब ये तो साफ़ था की अब कुछ नहीं हो सकता इसलिए मैं दबे पाँव अपने कमरे में आ गया और लेट गया.
रात के एक बजे थे और मुझे झपकी लगी थी की आशु मेरे कमरे में आई और और झुक कर मेरे होठों को चूसने लगी. मैंने तुरंत आँख खोली और जब नजरें आशु पर पड़ीं तो मैं निश्चिंत हो गया और उसके होठों को चूसने लगा. दरअसल मैं दरवाजा बंद करना भूल गया था. इसलिए आशु चुप-चाप अंदर आ गई थी. इधर आग दोनों के जिस्म में भड़क चुकी थी पर कुछ भी करना खतरे से खाली नहीं था! मैंने आशु को रोका और उठ बैठा; 'जान! मेरा भी बहुत मन है पर यहाँ घर पर कुछ भी करना ठीक नहीं है! कल कॉलेज की छुट्टी कर ले और फिर वो पूरा दिन हम दोनों एक साथ होंगे!' ये सुन कर आशु का मुंह फीका पड़ गया और वो मुड़ कर जाने लगी. अब मुझसे उसका ये उदास चेहरा देखा नहीं गया, मैं पलंग से उतरा और आशु का हाथ पकड़ कर खींच कर उसे छत पर ले गया.छत की पैरापेट वाल थोड़ी ऊँची थी. करीब ४ फुट की होगी, मैं वहाँ नीचे बैठ गया और आशु को भी अपने पास बिठा लिया. हम दोनों कुछ इस तरह बैठे थे की अगर कोई ऊपर चढ़ कर आता तो हमें साफ़ दिखाई दे जाता पर वो हमें नहीं देख पाता.उससे हमें इतना समय तो मिल जाता की हम एक दूसरे से अलग हो कर बैठ जाये. हाँ वो इंसान जब छत पर आ जाता तो ये सवाल जरूर आता की तुम दोनों छत पर अकेले क्या कर रहे हो? ये वो एक सवाल था जिसका हमारे पास कोई जवाब नहीं होता, पर जब प्यार किया है तो रिस्क तो लेना ही पड़ता हे. सवाल के जवाब में झूठ बोलने के अलावा कोई और चारा नहीं था हमारे पास. खेर मे नीचे बैठा था और अपनी दोनों टांगें 'वी' के अकार में खोल रखी थी. मैंने आशु को ठीक बीच में बैठने को कहा, आशु बैठ गई और अपना सर मेरे सीने से टिका दिया. हम दोनों ही आसमान में देख रहे थे. चांदनी रात में टीम-टिमाते तारे देखने का मजा ही कुछ और था. ऊपर से चारों तरफ सन्नाटा और हलकी-हलकी हवा ने समा बाँध रखा था.
आशु: जानू! आपको पता है आज क्या हुआ?
मैं: क्या हुआ? (मैंने आशु के गाल को चूमते हुए कहा)
आशु: ससस... मेरी सहेलियाँ कह रही थी की मैं मोटी हो गई हूँ? मेरी नितंब , स्तन और मेरे ओंठ मोटे हो गए हैं, और ये सब आपकी वजह से हुआ है?
मैं: शिकायत कर रही हो या कॉम्पलिमेंट दे रही हो?
आशु: कॉम्पलिमेंट
मैं: आई फील यू आर रेडी टू बी अ मदर!
आशु: सच? तो कब बंद करूँ वो प्रेगनेंसी वाली गोली लेना? (उसने मजाक में कहा.)
मैं: पागल! (मैंने आशु के दूसरे को गाल को चूमते हुए कहा.)
आशु: ससस... सच्ची जानू! आपने मेरे बदन को तराशने में बड़ी मेहनत की है!
मैं: हम्म्म... (मैं आशु की जुल्फों की महक सूंघते हुए बोला.)
अब आशु ने अपने दाहिने हाथ को मेरी जाँघ पर रख उसे सहलाने लगी जिसका सीधा असर मेरे लिंग पर हुआ. उसे फूल कर खड़ा होने में सेकंड नहीं लगा और वो आशु की कमर पर अपनी दस्तक देने लगे. आशु मेरी तरफ घूमी और प्यासी नजरों से मुझे देखने लगी. पर वहाँ कुछ भी कर पाना बहुत बड़ा रिस्क था! पर प्यास तो लगी थी. और उसे बुझाना तो था ही! मैंने आशु को ऐसे ही बैठे रहने को कहा और मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी पजामी के नाड़े को खोलना शुरू कर दिया. नाडा खोल कर मैंने अपना दाहिना हाथ अंदर डाला तो पाया की आशु ने पैंटी नहीं पहनी, मतलब वो पहले से ही तैयारी कर के बैठी थी! मैंने अपनी बीच वाली ऊँगली को आशु की योनी में सरकाया तो पाया की वो तो पहले से ही गीली हे. 'मेरी जान को प्यार चाहिए?' मैंने पुछा तो आशु ने सीसियाते हुए 'हाँ' कहा. मैंने अपनी ऊँगली से आशु की योनी की फांकों को सहलाना शुरू कर दिया और आशु ने अपने आप को मेरी छाती से दबाना शुरू कर दिया. मैंने अपनी तीनों उँगलियों से आशु की योनी की फाँकों को धीरे-धीरे मनसलना शरू कर दिया. और आशु का कसमसाना शुरू हो गया.मैंने अपनी दो उँगलियाँ उसके योनी में डाली और उन्हें आशु की योनी में गोल-गोल घुमाने लगा. अब आशु ने अपनी कमर को मेरे लिंग पर और दबाना शुरू कर दिया. 'जानू...ससस....!!!! आपको नहीं पता ये नौ दिन मैंने कैसे तड़प-तड़प के निकाले हैं!' मुझे आशु की प्यास का अंदाज हो चला था तो मैंने अपनी दोनों उँगलियाँ उसकी योनी में तेजी से अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी. 'उम्ममम ...ससस... और कितना ...स..ससस...तड़पाओगे?' आशु ने धीमी आवाज में सिसकते हुए कहा. 'जान! प्लीज आज रात इसी से काम चला लो कल शहर पहुँच कर कपडे फाड़ के संभोग करेंगे!' मैंने अब भी आशु की योनी में अपनी ऊँगली अंदर-बाहर किये जा रहा था. आशु की आँखें बंद हो चलीं थी और उसके दोनों हाथ मेरी जाँघ पर थे. 'ससस...जानू!! ....ससस...पिछले कुछ दिनों से में डरी हुई थी...स्स्स्साहह... मुझे लगा ....मेरे जिस्म का जादू आप पर से उतर गया!' आशु के मुँह से अनायास शब्दों ने मेरा ध्यान खींचा, अब मुझे जानना था की आशु किस जादू की बात कर रही है इसलिए मैंने और तेजी से उसकी योनी की ठुकाई अपनी उँगलियों से शुरू कर दी!| आशु इस आनंद से फिसल कर आगे की ओर जाने लगी तो मैंने अपने बाएँ हाथ को उसके पेट पर रखा और उसे आगे फिसलने नहीं दिया. 'ममममममम.... उस सससस....हरामजादी .....ने मुझे एक बात सिखाई थी.... की अपने बंदे को अपने काबू में रखना है तो उसे अपनी योनी से बाँध कर रख! आअह..सससस....' अब मुझे सब कुछ समझ आने लगा था! आशु का अचानक से संभोग में इतना 'निपुण' हो जाना सिर्फ उसकी इनसिक्युरीटी को छुपाने के लिए एक पर्दा था. मैं उसे छोड़ कर किसी और के पास ना जाऊँ इसलिए आशु इस तरह मुझसे चिपकी रहती थी. मैंने उसे इतनी बार भरोसा दिलाया, कसमें खाईं पर उसे क्यों यक़ीन नहीं होता की मैं बस उसका हु. उसका ये पजेसिव होना अब सारी हदें पार कर रहा है, अगर इसने अपनी जलन और इनसिक्युरीटी के चलते किसी के सामने कुछ बक दिया तो? वो दिन हम दोनों का अंत होगा! पर आखिर कारन क्या है की आशु इस कदर इनसिक्युअर है? मैंने ऐसा क्या कर दिया की उसे ये इनसिक्युरीटी होती है? वेट अ मिनिट ..... ये मुझसे प्यार भी करती है या फिर ये सिर्फ इसकी संभोग की भूख है?!! मैं यही सब सोच रहा था और अपनी उँगलियों को आशु की योनी में तेजी से अंदर-बाहर किये जा रहा था. अब आशु छूटने वाली थी और उसने अपने नाखून मेरी जाँघ में गाड़ दिए थे जिससे मैं अपने ख्यालों से बाहर आया और अगले ही पल आशु झड़ गई और निढाल हो कर मेरी छाती पर सर रखे हुए लेटी रही.
ये तो साफ़ था की मैं चाहे कुछ भी कह लूँ या भले ही अपना दिल निकाल कर आशु के सामने रख दूँ ये मानने वाली नहीं हे. अगर इससे प्यार न करता तो अब तक इसे छोड़ देता पर साला अब करूँ क्या ये नहीं पता! ऊपर से मैं भी बावला हो चला था जो आशु के चक्कर में एक से बढ़कर एक बावलापे करने लगा था? क्या जरुरत थी तुझे हरामी यहाँ छत पर खुले में ये सब करने की? पर अगर ये ना करता तो मुझे ये सब कैसे पता चलता? तुझे जरा भी डर नहीं लगा की तू इस तरह आशु को अपने लिंग से चिपटाये पड़ा है? भूल गया वो खेत के बीचों बीच पेड़ की डाल पर लटक रहे भाभी और उनके प्रेमी की अस्थियाँ? वहीँ जा कर मरना है तुझे? और ये क्या तूने आशु को अपने सर पर चढ़ा रखा है? हरामी उसकी हर एक ख्वाइश पागलों की तरह पूरी करता है और बदले में उसे ही तेरे ऊपर विश्वास नहीं! ये कैसा प्यार है?
आशु की सांसें दुरुस्त होने तक मेरा ही दिमाग मेरे दिल को गरिया रहा था. 'जानू! क्या सोच रहे हो?' आशु ने मुझे झिंझोड़ा तो मैं अपने 'मन की अदालत' से बाहर आया. मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया बल्कि अपनी टांगें मोड़ कर आशु के इर्द-गिर्द से हटाईं और उठ खड़ा हुआ. आशु फटाफट खडी हुई और मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया; 'क्या हुआ? कहाँ जा रहे हो?' मैं अब भी कोई जवाब नहीं दिया और उसके हाथों की गिरफ्त से अपना हाथ छुड़ाया और आंगन में आ गया.आशु छत पर से नीचे झाँकने लगी और फिर उसे मैं बाथरूम में जाता हुआ नजर आया. आशु छत पर खडी नीचे देखती रही और इंतजार करने लगी की मैं बाथरूम से कब निकलुंगा. मैंने निकल कर ऊपर देखा तो वो अब भी वहीँ खड़ी थी और मेरे ऊपर आने का इंतजार कर रही थी. मैं अगर उस समय ऊपर जाता तो वो मुझसे पूछती की मेरे उखड़ जाने का कारन क्या है और तब मेरा कुछ भी कहना बवाल खड़ा कर देता, ऐसा बवाल जिसे सुन आज काण्ड होना तय था. इसलिए में आंगन में पड़ी चारपाई पर ही लेट गया पर आशु अपनी जगह से टस से मस ना हुई और टकटकी बांधे मुझे देखती रही. मैंने अपनी आँखें बंद की और सोने की कोशिश करने लगा, जो बात मेरे दिम्माग में चल रही थी वो ये थी की मुझे अपने दिल पर काबू रखना होगा वरना आशु मुझे कहीं फिर से अपनी जिस्म के जरिये पिघला ना ले.
पिछले नौ दिनों से जो हम दोनों के बीच जिस्मानी दूरियाँ आई थी उससे कुछ तो काम आसान हो गया था पर आज उस कर्म वाले काण्ड ने फिर से उस दबी हुई आग को हवा दे दी थी. शायद इस तरह उससे दूरियाँ बनाने से आशु को कुछ अक्ल आये, अब क्योंकि उसकी हर ख़ुशी पूरी करने के चक्कर में मैं अपनी और नहीं लगवाना चाहता था. शादी के बाद चाहे वो मुझसे जो करवा ले पर उससे पहले तो हम दोनों को म्याचुरिटी दिखानी होगी. पर दिमाग जानता था की कुछ होने वाला नहीं है...काण्ड तो होना ही है! इधर आशु की हिम्मत नहीं हो रही थी की वो नीचे आ कर मुझसे पूछ सके की मैं क्यों उसके साथ ऐसा बर्ताव कर रहा हूँ? वो पैरापिट वाल पर अपनी कोहनियाँ टिकाये मुझे बस देखती रही! वो पूरी रात मैं बस करवटें बदलता रहा और बार-बार आशु को खुद को देखते हुए नोटीस करता रहा.
सुबह हुई तो ताई जी उठ के आंगन में आईं; 'अरे बिटवा? तू यहाँ क्या कर रहा है?' उन्होंने पूछा. उन्हें देखते ही आशु नीचे आ गई; 'ताई जी..वो रात को पेट ख़राब हो गया था इसलिए मैं नीचे ही लेट गया.' मैंने झूठ बोला. ताई जी मेरे पास बैठ गईं और आशु बाथरूम में नहाने घुस गई और फ्रेश हो कर चाय बनाने लगी. मैं भी उठा और नहा धो के तैयार हो गया और अब तो घर वाले सब बारी-बारी नाहा के नाश्ते के लिए तैयार बैठे थे. 'सागर, गोपाल भैया तुम लोगों के साथ जायेगा.' ताऊ जी ने कहा और मैंने बस 'जी' कहा. पर ये सुनते ही आशु को बहुत गुस्सा आया, वो सोच रही थी की वो शहर जा कर मुझसे कल रात के उखड़ेपन का कारन पूछेगी पर गोपाल भैया के साथ जाने से उसके प्लान पर पानी फिर गया था. पर मुझे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा था. नाश्ता कर के हम तीनों निकले और बस स्टैंड तक पैदल चल दिये. आशु पीछे थी और आगे-आगे मैं और गोपाल भैया थे. वो अपनी बातें किये जा रहे थे और मैं बस हाँ-हुनकुर ही कर रहा था. बस आई और हम तीनों चढ़ गए, आशु तो एक अम्मा के साथ बैठ गई. हम दोनों खड़े रहे और कुछ देर बाद हमें सीट मिल गई. मुझे नींद आ रही थी तो मैं खिड़की से सर लगा कर सो गया पर आशु के मन में उथल-पुथल मची थी. बस स्टैंड पहुँच कर गोपाल भैया को तहसीलदार के जाना था और उसे वहाँ का कुछ पता नहीं था तो हमने एक ऑटो किया और उसमें बैठ गये. सबसे पहले आशु हुई, फिर मैं और आखरी में गोपाल भैया घुसा. मैं आशु की तरफ ना देखकर सामने देख रहा था. अब आशु मुझसे बात करने को मरे जा रही थी पर अपने बाप के डर के मारे कुछ कह नहीं पा रही थी. आशु ने चुपके से मेरा दाहिना हाथ पकड़ लिया पर मैंने किसी तरह हाथ छुड़ा लिया और गोपाल भैया से बात करने लगा. पहले आशु का कॉलेज आया और उसे वहाँ उतारने लगे तो लगा जैसे वो जाना ही ना चाहती हो! 'जा ना?' मैंने कहा तो आशु सर झुकाये कॉलेज के गेट की तरफ चली गई और हमारा ऑटो तहसीलदार के ऑफिस की तरफ चल दिया. गोपाल भैया को वहाँ छोड़ कर मैं घर आ गया और मेल देखने लगा की शायद कोई जॉब ओपनिंग आई हो. एक मेल आई थी तो मैं वहाँ इंटरव्यू के लिए चल दिया. शाम को ४ बजे घर पहुँचा और आ कर ऐसे ही लेट गया.ठीक ५ बजे दरवाजे पर दस्तक हुई और मैंने जब दरवाजा खोला तो सामने आशु खड़ी थी.
आशु बिना कुछ कहे अंदर आई और दरवाजा उसने लात मार कर मेरी आँखों में देखते हुए बंद किया. फिर अगले ही पल उसकी आँखें छल-छला गईं और उसने मेरी कमीज का कालर पकड़ लिया और मुझे पीछे धकेलने लगी. 'क्या कर दिया मैंने जो आप मुझसे इस तरह उखड़े हुए हो? कल रात से ना कुछ बोल रहे हो न कुछ बात कर रहे हो? ऐसा क्या कर दिया मैंने? कम से कम मुझे मेरा गुनाह तो बताओ? आपके अलावा मेरा है कौन और आप हो की मुझसे इस तरह पेश आ रहे हो?' आशु एक साँस में रोते-रोते बोल गई पर उसका मुझे पीछे धकेलना अब भी जारी था. मैंने पहले खुद को पीछे जाने से रोका और फिर झटके से उसके हाथों से अपना कालर छुड़ाया और बोला; 'गलती पूछ रही है अपनी? तूने मुझे समझ क्या रखा है? तुझे क्या लगता है की तू मुझे अपने जिस्म की गर्मी से पिघला लेगी? तुझे इतना समझाया, इतनी कसमें खाईं की मैं तुझसे प्यार करता हूँ और सिर्फ तेरा हूँ पर तेरी ये इनसिक्युरीटी खत्म होने का नाम ही नहीं लेती? इसी लिए जयपुर से आने के बाद मुझसे इतना चिपक रही थी ना? मैं तो साला तेरे चक्कर में पागल हो गया था. तुझे गाँव छोड़ के उल्लू की तरह जागता रहता था. तेरे जिस्म ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा था. वो तो शुक्र है की मैंने व्रत रखे और खुद पर काबू पाया वरना मैं भी तेरी तरह हरकतें करता! क्या-क्या नहीं किया मैंने तेरे प्यार में और तुझे ये सब मज़ाक लग रहा है? तुझे मनाने के लिए क्या-क्या नहीं किया मैंने? इतना जोखिम उठा कर कल पहले तुझे खेतों में ले गया और फिर पहले तेरे कमरे में आना और वो रात को छत पर बैठना? पर तुझे तो बस अपने जिस्म की आग बुझानी है मुझसे! एक दिन अगर तुझे मैं ना छुओं तो तेरे बदन में आग लग जाती है! तुझे पता भी है की तू अपनी इस जलन के मारे कब क्या बोल देती है की तुझे खुद नहीं पता होता. क्या जरुरत थी तुझे आंटी जी से कहने की कि मेरी जॉब चली गई? अगर मैं बात नहीं पलटता तू तो वहाँ सब कुछ बक देती!
निशा को तू जानती है ना, वो मुँहफ़ट है पर दिल की साफ़ हे. वो जानबूझ कर मुझसे मज़ाक करती है और ये सुन कर तुझे किस बात का गुस्सा आता है? भाभी को भी तू अच्छे से जानती है ना? उसके मन में क्या-क्या है वो सब जानती है तू और तूने ही मुझे उनके बारे में आगाह किया था पर आज तक मैंने कभी उनकी तरफ आँख उठा के नहीं देखा. जब मैं बिमारी में गाँव गया था तो उसने क्या-क्या नहीं किया मुझे उकसाने के लिए. पर तेरे प्यार की वजह से मैं नहीं बहका, इससे ज्यादा तुझे और क्या चाहिए?
देख मैं तुझे आज एक बात आखरी बार बोल देता हूँ, आज के बाद अगर मुझे ये तेरी इनसिक्युरीटी दिखाई दी तो दिस विल् बी दीं एंड ऑफ अवर रिलेशनशिप!” मेरी बातें सुन आशु फफक के रोने लगी और अपने घुटनों के बल बैठ गई और हाथ जोड़ कर मिन्नत करते हुए बोली; 'मुझे माफ़ कर दो! प्लीज ....मेरा आपके अलावा और कोई नहीं! ये सच है की मैं इनसिक्युअर हूँ आपको ले कर पर ये भी सच है की मैं आपसे सच्चा प्यार करती हु. मैंने आपसे प्यार संभोग के लिए नहीं किया, बल्कि इसलिए किया क्योंकि इस दुनिया में सिर्फ एक आप हो जो मुझसे प्यार करते हो.'
'तो तुझे ये बात समझ में क्यों नहीं आती की मैं सिर्फ तुझसे प्यार करता हूँ? मैंने आज तक तेरे सामने कभी किसी से फ्लर्ट नहीं किया तो ये काहे बात की इनसिक्युरीटी है?! तुझे ऐसा क्यों लगता है की तुझ में कुछ कमी है? मैं तुझे छोड़ कर किसके पास जाऊँगा? बोल???'
'मुझे नहीं पता...बस डर लगता है की कोई आपको मुझसे छीन लेगा!' आशु ने अपने दोनों हाथों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया.
'कोई और नहीं....तू खुद ही मुझे अपने से दूर कर देगी.' मैंने खुद को उसकी गिरफ्त से आजाद करते हुए कहा.
'नहीं ...प्लीज ऐसा मत कहिये!'
'तुझे पता है मैं कितनी परेशानियों से जूझ रहा हूँ? कितनी जिम्मेदारियाँ मेरे सर पर हैं? जॉब नहीं है, सेविंग्स नहीं हैं और दो साल बाद हमें भाग कर शादी करनी है! क्या-क्या मैनेज करूँ मैं? मैंने तुझसे आजतक कुछ माँगा है? नहीं ना? फिर? '
'एक लास्ट चांस दे दो!आई प्रॉमिस ... अब ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी!आई प्रॉमिस ...!!!' आशु ने अपने आँसू पोछे और सुबकते हुए कहा. पर में जानता था की इसके मन की ये सोच कभी नहीं जा सकती. पर सिवाए कोशिश करने के मैं कुछ कर भी नहीं सकता था. प्यार जो करता था उस डफर से! मैं उसके सामन घुटनों पर बैठा और अपने बाएं हाथ से उसके बाल पकडे और उन्हें जोर से खींचा की आशु की गर्दन ऊपर को तन गई और उसकी नजरें ठीक मेरे चेहरे पर थीं;
'मैं बस तेरा हूँ...समझी?' आशु ने सुन कर हाँ में सर हिलाया पर मैं उससे 'हाँ' सुनने की उम्मीद कर रहा था. उसके कुछ न बोलने और सिर्फ सर हिलाने से मुझे गुस्सा आया और मैंने उसके बाएँ गाल पर एक चपत लगाईं और अपना सवाल दुबारा पुछा; 'मैंने कुछ पुछा तुझसे? मैं सिर्फ तेरा हूँ.... बोल हाँ?' तब जा कर आशु के मुँह से हाँ निकला.
'तू सिर्फ मेरी है!' मैंने कहा.
'ह...हाँ!' आशु ने डर के मारे कहा.
'मैं किस्से प्यार करता हूँ?' मैंने आशु के गाल पर एक चपत लगाते हुए पूछा.
'म....मु...मुझसे!'
'तू किससे प्यार करती है?'
'आपसे!'
'और हम दोनों के बीच में कभी कोई नहीं आ सकता!' आशु ने ये सुन कर हाँ में गर्दन हिलाई पर मुझे ये जवाब नहीं सुनना था तो मैंने फिर से उसके गाल पर एक चपत लगाईं और तब जा कर आशु को समझ आया की मैं क्या सुनना चाहता हु.
'ह...हम दोनों के बीच...कोई नहीं आ सकता!' आशु ने घबराते हुए कहा.
आशु की आँखें रोने से लाल हो चुकी थीं और अब मुझे उस पर तरस आने लगा था. इसलिए मैंने उसके बाल छोड़ दिए और अपनी दोनों बाहें खोल दी. आशु घुटनों के बल ही मेरे सीने से लिपट गई और फिर से रोने लगी. मैंने आशु के बालों में हाथ फेरना शुरू किया ताकि उसका रोना काबू में आये; 'बस ...बस... हो गया! और नहीं रोना!' ये सुन आशु ने धीरे-धीरे खुद पर काबू किया और रोना बंद किया. मैंने उसे अपने सीने से अलग किया और उसके आँसू पोछे फिर मैं खड़ा हुआ और उसे भी सहारा दे कर खड़ा किया. 'जाके मुँह धो के आ फिर मैं तुझे हॉस्टल छोड़ देता हु.' आशु मुँह-धू कर आई और फिर से मेरे गले लग गई; 'आपने मुझे माफ़ कर दिया ना?' मैंने उसके जवाब में बस हाँ कहा और फिर उसे खुद से दूर किया और दरवाजा खोल कर बाहर उसके आने का इंतजार करने लगा. आशु बेमन से बाहर आई और शायद उसके मन में अब भी यही ख़याल चल रहा था की मैंने उसे माफ़ नहीं किया हे. मैंने पहले उसे उसका फ़ोन वापस किया और फिर नीचे से ऑटो कर उसे हॉस्टल छोडा. घर पहुँचा ही था की मेरा फ़ोन बज उठा, ये किसी और का नहीं बल्कि आशु का ही था. उसने सुमन के फ़ोन से मुझे कॉल किया था. ये सोच कर की मैं शायद उसका कॉल न उठाऊँ. मैंने कॉल उठाया' जानू! आपकी एक मदद चाहिए!'
'हाँ बोल' मैंने सोचा कहीं कोई गंभीर बात तो नहीं? पर अगर ऐसा कुछ होता तो वो उस वक़्त क्यों नहीं बोली जब वो यहाँ थी? 'वो कॉलेज के असाइनमेंट्स में एक प्रोजेक्ट मिला था. बाकी साब तो हो गया बस एक वही प्रोजेक्ट बचा हे.तो कल आप मेरा प्रोजेक्ट शुरू कर व दोगे?' मैं समझ गया की ये कॉल बस उसका ये चेक करना था की मैंने उसे माफ़ किया है या नहीं? 'कल शाम ५ बजे मुझे राम होटल पर मिल' अभी बात हो ही रही थी की मुझे पीछे से सुमन की आवाज आई; 'अश्विनी तेरी बात हो जाए तो मुझे फ़ोन दियो.' आशु ने बड़े प्यार से कहा; 'मेरी बात हो गई दीदी!' और उसने फ़ोन सुमन को दे दिया. 'सागर जी! मैं तो आपको अपना दोस्त समझती थी और अपने ही मुझे पराया कर दिया?'
'अरे! मैंने क्या कर दिया?' मैंने चौंकते हुए कहा.
'आप ने अपनी जॉब के बारे में क्यों नहीं बताया?' सुमन ने सवाल दागा.
'अरे...वो...याद नहीं रहा?' मैंने बहाना मारा.
'क्या याद नहीं रहा? वो तो माँ ने मुझे बताया तब जाके मुझे पता चला. मैं देखती हूँ कुछ अगर होता है तो आपको बताती हु.'
'थैंक यू' मैंने कहा. बस इसके बाद उसने मुझसे कहा की मैं उसे अपना रिज्यूमे भेज दूँ और वो एक बार अपनी कंपनी में बात कर लेगी. रात को बिना कुछ खाये-पीये ही लेट गया, आज जो मैं कहा और किया वो मुझे सही तो लग रहा था पर शायद मेरा आशु के साथ किया व्यवहार मुझे ठीक नहीं लग रहा था. मेरा उस पर गुस्सा निकालना ठीक नहीं था....शायद!
अगली सुबह उठा पर आज मुझे कहीं भी नहीं जाना था तो मैं घर के काम निपटाने लगा, झाडू-पोछा कर के घर बिलकुल चकाचक साफ़ किया फिर खाना खाया और फिर से सो गया.शाम को पाँच बजे मैं राम होटल पहुँचा तो देखा की आशु वहां पहले से ही खड़ी हे. हम दोनों पहले की ही तरह मिले और फिर उसने मुझे प्रोजेक्ट के बारे में बताया और हम दोनों उसी में लग गये. घण्टे भर तक हम उसी पर चर्चा करते रहे और थोड़ा हंसी मजाक भी हुआ जैसे पहले होता था. आगे कुछ दिनों तक इसी तरह चलता रहा, हमारा प्यार भरा रिश्ता वापस से पटरी पर आ गया था पर आशु अब मुझे नार्मल लग रही थी. मतलब अब उसका वो पजेसिवनेस और इनसिक्युअर होना कम हो गया था. मुझे नहीं पता की सच में वो खुद को काबू कर रही थी या फिर नाटक, मैंने यही सोच कर संतोष कर लिया की कम से कम अब वो पहले की तरह तो बीह्याव नहीं कर रही.
करवाचौथ से दो दिन पहले की बात थी और आशु मुझे कुछ याद दिलाना चाहती थी. पर झिझक रही थी की कहीं मैं उस पर बरस न पडूँ| मैंने फ़ोन निकाला और घर फ़ोन किया; 'नमस्ते पिताजी! एक बात पूछनी थी. दरअसल ऑफिस में काम थोड़ा ज्यादा है और बॉस ज्यादा छुट्टी नहीं देगा.तो अगर मैं करवाचौथ की बजाये दिवाली पर छुट्टी ले कर आ जाऊँ तो ठीक रहेगा?' मैंने जान बूझ कर बात बनाते हुए कहा, कारन साफ़ था की कहीं कोई यहाँ आशु को लेने ना टपक पडे. 'तूने वैसे भी करवाचौथ पर आ कर क्या करना था? शादी तो तूने की नहीं! पर दिवाली पर अगर यहाँ नहीं आया तो देख लिओ!' पिताजी ने मुझे सुनाते हुए कहा. 'जी जरूर! दिवाली तो अपने परिवार के साथ ही मनाऊँगा!' बस इतना कह कर मैंने फ़ोन रखा. आशु जो ये बातें सुन रही थी सब समझ गई और उसका चेहरा ख़ुशी से जगमगा उठा. 'कल सुबह मैं लेने आऊँगा, तैयार रहना!' मैंने मुस्कुराते हुए कहा और ये सुनके आशु इतना चिहुँकि की मुझे गले लगना चाहा, पर फिर खुद ही रूक गई क्योंकि हम बाहर पार्क में बैठे थे. मैंने मन ही मन सोचा की शायद आशु को अक्ल आ गई है!
अगली सुबह मैं जल्दी उठा और अपनी बुलेट रानी की अच्छे से धुलाई की, आयल चेक किया और फिर नाहा-धो कर आशु को लेने चल दिया. आशु पहले से ही अपना बैग टाँगे गेट पर खड़ी थी. मेरी बाइक ठीक हॉस्टल के सामने रुकी और वो मुस्कुराती हुई आ कर पीछे बैठ गई. मैंने बाइक सीधा हाईवे की तरफ मोड़ दी और आशु हैरानी से देखने लगी; 'हम घर नहीं जा रहे?' उसने पीछे बैठे हुए पूछा. तो मैंने ना में गर्दन हिलाई और इधर आशु का मुँह फीका पड़ गया, उसे लगा की हम गाँव जा रहे हे. एक घंटे बाद मैंने हाईवे से गाडी स्टेट हाईवे १३ पर गाडी मोडी तो आशु फिर हैरान हो गई की हम जा कहाँ रहे हैं? आखिर आधे घंटे बाद जब बाइक रुकी तो हम एक शानदार साडी की दूकान के सामने खड़े थे. आशु बाइक से उत्तरी और सब समझ गई और मेरी तरफ हैरानी से देखने लगी; 'जानू! आप.... थैंक यू!' वो कुछ कहने वाली थी पर फिर रूक गई. मैंने बाइक पार्क की और हम दूकान में घुसे और वहाँ आज बहुत भीड़भाड़ थी. ये दूकान मेरे कॉलेज के दोस्त की थी और मैं यहाँ से कई बार ताई जी और माँ के लिए साडी ले गया था.
मुझे देखते ही प्रसाद (मेरा दोस्त) काउंटर छोड़ कर आया और हम दोनों गले मिले 'अरे भाभी जी! आइये-आइये!' उसने आशु से हँसते हुए कहा. 'यार अभी शादी नहीं हुई है, होने वाली है!' मैंने कहा. 'तभी मैं सोचूँ की तूने शादी कर ली और मुझे बुलाया भी नहीं!' ये सुन कर हम तीनों हँसने लगे, प्रसाद ने अपने एक लड़के को आवाज दी: 'भाई और भाभी को साड़ियाँ दिखा और रेट स्पेशल वाले लगाना.'
'यार एक हेल्प और कर दे, स्टिचिंग कल तक करवा दे यार जो एक्स्ट्रा लगेगा मैं दे दूँगा!' मैंने कहा और वो ये सुन कर मुस्कुरा दिया.
'हुस्ना भाभी के पास माप दिलवा दिओ और बोलिओ प्रसाद भैया के भाई हैं.' मैंने उसे थैंक्स कहा, फिर वो वापस कॅश काउंटर पर बैठ गया और हम दोनों को वो लड़का साड़ियाँ दिखाने लगा. आज पहलीबार था की आशु अपने लिए साडी ले रही थी और बार-बार मुझसे पूछ रही थी की ये ठीक है? आखिर मैंने उसके लिए साडी पसंद की और फिर हम माप देने के लिए उस लड़के के साथ चल दिये. हुस्ना आपा बड़ी खुश मिज़ाज थीं और उन्होंने बड़ी बारीकी से माप लिया और ब्लाउज के कट के बारे में भी आशु को अच्छे से समझाया. जब मैंने पैसे पूछे तो उन्होंने २०००/- बोले जिसे सुनते ही आशु मेरी तरफ देखने लगी. पैसे ज्यादा थे पर साडी भी तो कल मिल रही थी. मैंने जेब से पैसे निकाल के उन्हें दिए और कल १२ बजे का टाइम फिक्स हुआ! हम वापस दूकान आये और कॅश काउंटर पर प्रसाद ने जबरदस्ती हमें बिठा लिया और चाय मँगा दी. मैंने जब उससे पैसे पूछे तो उसने २,५००/- कहा, जब की साडी पर ३,५००/- लिखा था. वो हमेशा जी मुझे होलसेल रेट दिया करता था. पर आशु के लिए तो ये भी बहुत था वो फिर से मेरी तरफ देखने लगी. मैंने पेमेंट कर दी और हम बाहर आ गए; 'जानू! आपने इतने पैसे क्यों खर्च किये?' आशु ने पुछा तो मैंने उसके दोनों गाल उमेठते हुए कहा; 'क्योंकि ये मेरी जान का पहला करवाचौथ है! इसे स्पेशल तो होना ही है?' आशु की आँखें भर आईं थी. मैंने उसके आँसू पोछे और हम घर के लिए निकल पडे. घर के पास ही बाजार था वहाँ मुझे मेहँदी लगाने वाली औरतें दिखीं तो मैंने आशु को मेहँदी लगवाने को कहा. मेहँदी लगवाने के नाम से ही वो खुश हो गई और फिर उसने अपने पसंद की मेहँदी लगवाई और मुझे दिखाने लगी. आखिर हम घर आ गए और अब भूख बड़ी जोर से लगी थी. इस सब में मैं कुछ खाने को लेना ही भूल गया, मैंने कहा की मैं खाना ले कर आता हूँ तो आशु मना करने लगी; 'मेरा मन आज मैगी खाने का हे.' आशु बोली और मैं समझ गया की वो क्यों मना कर रही है, मैं और पैसे खर्चा न करूँ इसलिए. मैंने मैगी बनाई और आशु को अपने हाथ से खिलाया क्योंकि उसके तो हाथों में मेहँदी लगी थी.
खाना खाने के बाद मैंने लैपटॉप पर एक पिक्चर लगा दी, आशु ने कहा की हम नीचे फर्श पर बैठें.मैं नीचे बैठा और अपनी दोनों टांगें वी के आकार में खोलीं और आशु मुझसे सट कर बीच में बैठ गई. लैपटॉप सेंटर टेबल पर रखा था. आशु ने अपना सर मेरी छाती पर रख दिया. अपने दोनों हाथ मेरी टांगों पर खोल कर रखे और सामने मुँह कर के पिक्चर देखने लगी. पिक्चर देखते-देखते आशु को नींद का झोंका आने लगा और उसकी गर्दन इधर-उधर गिरने लगी. मैंने अपने दोनों हाथों को आशु की गर्दन के इर्द-गिर्द से घुमाते हुए उसके होठों के सामने लॉक कर दिया. आशु ने मेरे हाथ को चूमा और फिर मेरी दाहिने बाजू का सहारा लेते हुए सो गई. शाम होने को आई थी और अब चाय बनाने का समय था. पर आशु ने बड़ी मासूमियत से अपने हाथ मुझे दिखाते हुए तुतला कर कहा: 'जानू! मेरे हाथों में तो मेहँदी लगी है! आप ही बना दो ना!' उसके इस बचपने पर ही तो मैं फ़िदा था! मैंने मुस्कुराते हुए चाय बनाई और अब बारी थी उसे चाय पिलाने की. हम दोनों फिर से वैसे ही बैठ गए और मैंने फूँक मार के उसे चाय पिलाई. सात बज गए पर आशु जानबूझ कर अब भी अपने हाथ नहीं धो रही थी. उसे मुझसे काम कराने में मजा आ रहा था. जब मैंने उससे पुछा की रात में क्या बनाऊँ तब वो हँसने लगी और बाथरूम में जा कर हाथ धोये और नहा कर आ गई. 'आप हटिये, मैं बनाती हूँ!' पर मेरी नजरें उसके हाथों पर थीं जिन पर मेहँदी फ़ब रही थी. मैंने उसके दोनों हाथों को पकड़ा और उन्हें चूम लिया. आशु शर्मा गई और फिर आशु ने भिंडी की सब्जी और उर्द दाल बनाई. खाना तैयार हुआ और हम दोनों बैठ गए खाने, पर इस बार खाना आशु ने मुझे खिलाया. पेट भर के खाना खाया और अब बारी थी सोने की पर आशु बस अपने मेहँदी वाले हाथ देखने में मग्न थी. 'क्या देख रही है?' मैंने मुस्कुराते हुए पूछा. उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपने पास बिठा लिया, फिर अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेट कर मेरे कंधे पर सर रखते हुए बोली; 'आज मैं बहुत खुश हूँ! आपने बिना मेरे मांगे मेरी हर इच्छा पूरी कर दी! मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की मुझे आज का दिन देखना नसीब होगा! साडी खरीदना... मेहंदी लगवाना...ये सब मेरे लिए लिए एक सपने जैसा हे. थैंक यू! फॉर मेकिंग दिस डे सो मेमोरेबल!' मैंने आशु के सर को चूमा और हम दोनों लेट गए, पर आज कमरे का वातावरण बहुत शांत था. पहले आशु लेटते ही जैसे अपना आपा खो देती थी और मुझसे चिपक कर चूमना शुरू कर देती थी. पर आज वो बस मुझसे कस कर लिपटी रही और सो गई. मैं इस उम्मीद में की आशु कोई पहल करेगी कुछ देर जागता रहा पर जब मुझे लगा वो सो चुकी है तो मैं भी चैन से सो गया.
अगली सुबह आशु पहले ही जाग चुकी थी और बाथरूम में नहा रही थी. मैं उठा और खिड़की से पीठ टिका कर हाथ बंधे आशु के बाहर निकलने का इंतजार करने लगा. १० मिनट बाद आशु निकली, टॉवल अपने स्तनों के ऊपर लपेटे हुए और उसके गीले बाल जिन से अब भी पानी की बूँदें टपक रही थी. साबुन और शैम्पू की खुशबू पूरे कमरे में भर गई थी और मैं बस आशु को देखे जा रहा था. मुझे खुद को देखते हुए आशु थोड़ा शर्मा गई और शर्म से उसके गाल लाल हो गये. 'क्या देख रहे हो आप?' उसने नजरें झुकाते हुए पूछा. 'यार या तो शायद मैंने कभी गौर नहीं किया या फिर वाक़ई में आज तुम्हें पहली बार इस तरह देख रहा हूँ! मन कर रहा है की तुम्हें अपनी बाहों में कस लूँ और चूम लूँ!' मैंने कहा तो आशु हँसने लगी; 'रात भर का सब्र कर लो, उसके बाद तो मैं आपकी ही हूँ!' 'हाय! रात भर का सब्र कैसे होगा!' मैंने कहाँ और आशु की तरफ बढ़ने लगा, पर मैंने उसे छुआ नहीं बल्कि बाथरूम में घुस गया.आशु उम्मीद कर रही थी की मैं उसे अपनी बाहों में भर लूँगा पर जब मैं उसकी बगल से गुजर गया तो वो थोड़ा हैरान हुई. जब मैं नहा कर निकला तो आशु अपने बाल सूखा रही थी. मैं बाहर आया और आशु से बोला; 'जल्दी से तैयार हो जाओ!'
'क्यों? अब कहाँ जाना है?' आशु ने रुकते हुए पूछा.
'पार्लर' ये सुन के आशु आँखें फाड़े मुझे देखने लगी!
'पर ...वहाँ....' आगे उसे समज ही नहीं आया की क्या बोलना हे.
'अरे बाबा! आज के दिन औरतें पार्लर जाती हैं और पता नहीं क्या-क्या करवाती हैं, तो तुम्हें भी तो करवाना होगा न?!' आशु ने तो जैसे सोचा ही नहीं था की उसे ऐसा भी करना होगा.
'पर ...मुझे तो पता नहीं...वहाँ क्या...' आशु ने डरी हुई आवाज में कहा क्योंकि वो आजतक कभी पार्लर नहीं गई थी. हमारे गाँव में तो कोई पार्लर था नहीं जो उसे ये सब पता होता.
'जान! वहाँ कोई एक्सपेरिमेंट नहीं होता जो तू घबरा रही है! जो सजने का काम तू घर पर करती है वही वो लोग करेंगे.' अब पता तो मुझे भी ज्यादा नहीं था तो क्या कहता.
'तो मैं यहीं पर तैयार हो जाऊँगी, वहाँ जा कर पैसे फूँकने की क्या जरुरत है?'
मैंने थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा. 'अच्छा? कहाँ है तेरे मेक-अप का सामान? ये एक नेल पोलिश....और ये एक फेसवाश....ओह वेट ये...ये फेस क्रीम...बस?! फाउंडेशन कहाँ है? और...वो क्या बोलते हैं उसे...मस्कारा कहाँ है?' ये एक दो नाम ऐसे थे जो मैंने कहीं सुने थे तो मैंने उन्हीं को दोहरा दिया. ये सुन कर तो आशु भी सोच में पड़ गई क्योंकि उसके पास कोई सामान था ही नहीं, वो मुझे सिंपल ही बहुत अच्छी लगती थी पर आज तो उसका पहला करवाचौथ था तो सजना-सवर्ना तो बनता था.
'पर वहाँ जा कर मैं बोलूं क्या? की मुझे क्या करवाना है? मुझे तो नाम तक नहीं पता की वो क्या-क्या करते हैं.' आशु ने पलंग पर बैठते हुए कहा.
'वहाँ जा कर पूछना की पायथ्यागोरस थ्योरम क्या होती है?' मैंने थोड़ा मजाक करते हुए कहा.
'वो तो मुझे आती है“ ये कहते हुए आशु हँसने लगी.
'तू ऐसे नहीं मानेगी ना? रुक अभी बताता हूँ तुझे मैं' इतना कह कर मैं आशु को पकड़ने को उसके पीछे भागा और हम दोनों पूरे घर में भागने लगे. मैं चाहता तो आशु को एक झटके में पकड़ सकता था पर उसके साथ ये खेल खलेने में मजा आ रहा था. वो कभी पलंग पर चढ़ जाती तो कभी दूसरे कोने में जा कर मुझे चीढाने की कोशिश करती.आखिर मैंने उस का हाथ पकड़ लिया और उसे बिस्तर पर बिठा दिया और उसके सामने मैं अपने घुटनों पर बैठ गया; 'देख...पार्लर जा और वहाँ जा कर मेनीक्योर, पेडीक्युर, ब्लिचिंग, फेशियल, थ्रीडिंग वगैरह-वगेरा करवा| फिर भी कुछ समझ ना आये तो अपना दिमाग इस्तेमाल कर और जो भी तुझे वहाँ पर ऑल - इन वन पैक मिले उसे करवा ले| वहाँ जो भी आंटी या दीदी होंगी उनसे पूछ लिओ और ये जो तेरे फ़ोन में गूगल बाबा हैं इनमें सर्च कर ले.अब मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ प्लीज चली जा!' मैंने आशु के आगे हाथ जोड़े और वो ये देख कर खिलखिलाकर हँस पडी. 'ठीक है जी! पर पार्लर तक तो छोड़ दो, मुझे थोड़े पता है यहाँ पार्लर कहाँ हे.' आशु ने हार मानते हुए कहा.
'इतने दिनों से या आती है तुझे ये नहीं पता की पार्लर कहाँ है?' मैंने आशु को प्यार से डांटा.
'आपके लिए चाय बना देती हूँ फिर चलते हैं.' आशु ने कहा पर मेरा प्लान तो उसके साथ व्रत रखने का था.
'बिलकुल नहीं! मेरी बीवी भूखी-प्यासी बैठी है और मैं खाना खाऊँ?' मेरे मुँह से बीवी सुनते ही आशु का चेहरे ख़ुशी से दमकने लगा.
'आप प्लीज फास्टिंग मत करो! ये फ़ास्ट तो औरतें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए करती हैं, ना की आदमी!'
'यार ये क्या बात हुई? मैं इतनी लम्बी उम्र ले कर क्या करूँगा अगर तुम ही साथ न हुई तो? बैलेंस बना कर रखना चाहिए ना?' मेरे तर्क के आगे उसका तर्क बेकार साबित हुआ पर फिर भी आशु ने बड़ी कोशिश की पर मैं नहीं माना और मैं भी ये व्रत करने लगा. आशु को पार्लर छोड़ा और मैं उसकी साडी लेने चल दिया.
हुस्ना आपा का शुक्रिया किया की उन्होंने इतने कम समय में काम पूरा किया और फिर वापस निकल ही रहा था की प्रसाद मिल गया.उससे कुछ बातें हुई और मुझे वापस आने में देर हो गई. दोपहर के ३ बजे थे और आशु का फ़ोन बज उठा. 'जान! मैं बाहर ही खड़ा हु.' ये सुनकर ही आशु ने फ़ोन काट दिया और जब वो बाहर निकली तो मैं उसे बस देखता ही रह गया.उसके चेहरे की दमक १००० गुना बढ़ गई थी. होठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक देख मन बावरा होने लगा था. आज पहली बार उसने आई लायनर लगाया था जिससे उसकी आँखें और भी कातिलाना हो गई थी. उसकी भवें चाक़ू की धार जैसी पतली थीं और मैं तो हाथ बाँधे बस उसे देखता रहा. आशु शर्म से लाल हो चुकी थी और ये लालिमा उसके चेहरे पर चार-चाँद लगा रही थी. 'जल्दी से घर चलिए!' आशु ने नजरें झुकाये हुए ही कहा.
'ना ...पहले मुझे आई लव यू कहो और एक किस दो!' मैंने आशु के सामने शर्त रखी.
'प्लीज ...चलो न...घर जा कर सब कुछ कर लेना...पर अभी तो चलो! मुझे बहुत शर्म आ रही है!'
'ना...मेरी गाडी बिना आई लव यू और 'किस' के स्टार्ट नहीं होगी.' माने अपनी बुलेट रानी पर हाथ रखते हुए कहा.
'सब हमें ही देख रहे हैं!' आशु ने खुसफुसाते हुए कहा.