निदा झट से बोली- "ना बाबा, मैं नहीं देने वाली। बाजी से ही बोलो वो ही देंगी।
वैसे अब तो मुझे पता चला है की अम्मी भी दे देती हैं तुम्हें नाश्ता...'
निदा की बात से मैं समझ गया कि बाजी ने निदा को ये भी बता दिया है कि अब अम्मी का भी मेरे साथ कुछ चल रहा है, तो मैंने कहा- "यार जब तुम्हें पता है कि बाजी की तरह अम्मी भी मुझे नाश्ता देती हैं, तो तुम्हें । क्या ऐतराज है? तुम भी दे दो। कसम से बड़े प्यार से करूंगा मैं..."
मेरी बात खतम होते ही मुझे फरी बाजी की आवाज सुनाई दी जो कह रही थी-
"क्या करना है तुमने निदा के साथ, वो भी प्यार से?"
मैं थोड़ा हड़बड़ा गया और सामने देखा तो बाजी मेरे सामने ही खड़ी हुई थी।
बाजी को देखकर मैं हँस दिया और बोला-
"कुछ नहीं बाजी। निदा से नाश्ते के लिए बोल रहा था कि कभी-कभी वो भी दे ही दिया करे।
कब तक आप और अम्मी मुझे देती रहोगी नाश्ता..." और हल्का सा हँस दिया।
बाजी भी हँस दी और बोली- "क्या अब हमारे नाश्ते से मन भर गया है तुम्हारा, जो निदा से बोल रहे हो?"
मैंने कहा- "अरे नहीं बाजी, आप भी क्या बोलती हो। भला ऐसा हो सकता है क्या?"
अभी हम ये बातें कर ही रहे थे कि अम्मी घर वापिस आ गई और सीधा किचेन में चली गई।
तो बाजी भी अम्मी के पीछे ही किचेन की तरफ लपक के गई और नाश्ता तैयार करने में अम्मी का हाथ बटाने लगी।
नाश्ता करने के बाद अम्मी ने फरी से कहा-
"क्या तुम अब ठीक हो चलने में, कोई मसला तो नहीं है?"
फरी बाजी ने कहा- "नहीं अम्मी, अब मैं फिट हैं और कोई खास मसला भी नहीं होता है चलने में..."
अम्मी ने कहा- "तो फिर चलो बाजार से कुछ समान लाना है घर के लिए?"
वैसे अब तो मुझे पता चला है की अम्मी भी दे देती हैं तुम्हें नाश्ता...'
निदा की बात से मैं समझ गया कि बाजी ने निदा को ये भी बता दिया है कि अब अम्मी का भी मेरे साथ कुछ चल रहा है, तो मैंने कहा- "यार जब तुम्हें पता है कि बाजी की तरह अम्मी भी मुझे नाश्ता देती हैं, तो तुम्हें । क्या ऐतराज है? तुम भी दे दो। कसम से बड़े प्यार से करूंगा मैं..."
मेरी बात खतम होते ही मुझे फरी बाजी की आवाज सुनाई दी जो कह रही थी-
"क्या करना है तुमने निदा के साथ, वो भी प्यार से?"
मैं थोड़ा हड़बड़ा गया और सामने देखा तो बाजी मेरे सामने ही खड़ी हुई थी।
बाजी को देखकर मैं हँस दिया और बोला-
"कुछ नहीं बाजी। निदा से नाश्ते के लिए बोल रहा था कि कभी-कभी वो भी दे ही दिया करे।
कब तक आप और अम्मी मुझे देती रहोगी नाश्ता..." और हल्का सा हँस दिया।
बाजी भी हँस दी और बोली- "क्या अब हमारे नाश्ते से मन भर गया है तुम्हारा, जो निदा से बोल रहे हो?"
मैंने कहा- "अरे नहीं बाजी, आप भी क्या बोलती हो। भला ऐसा हो सकता है क्या?"
अभी हम ये बातें कर ही रहे थे कि अम्मी घर वापिस आ गई और सीधा किचेन में चली गई।
तो बाजी भी अम्मी के पीछे ही किचेन की तरफ लपक के गई और नाश्ता तैयार करने में अम्मी का हाथ बटाने लगी।
नाश्ता करने के बाद अम्मी ने फरी से कहा-
"क्या तुम अब ठीक हो चलने में, कोई मसला तो नहीं है?"
फरी बाजी ने कहा- "नहीं अम्मी, अब मैं फिट हैं और कोई खास मसला भी नहीं होता है चलने में..."
अम्मी ने कहा- "तो फिर चलो बाजार से कुछ समान लाना है घर के लिए?"