Adultery चन्डीमल हलवाई की दो बीवियाँ और नौकर (सम्पूर्ण)

LEGEND NEVER DIES................................
Moderator
17,462
29,755
173
बेला को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। वो तो एकदम से फँस गई थी, ये सोचते हुए बेला सेठ के घर की तरफ चली गई। दूसरी तरफ रघु चारपाई पर बैठा हुआ आने वाले पलों के बारे में सोच रहा था, तभी बाहर से बिंदिया अन्दर आ गई। उसने घर का मुख्य दरवाजा बंद किया और पीछे वाले कमरे में आ गई।
जैसे ही वो पीछे वाले कमरे में पहुँची, तो वो रघु को देख कर एकदम से सहम गई, रघु अपने लण्ड को पजामे के ऊपर से ही बुरी तरह मसल रहा था, अन्दर आते ही बिंदिया के पाँव मानो उसी जगह थम गए हों। रघु ने बिंदिया की तरफ देखा और कड़क आवाज़ में बोला।
रघु- तू क्या सारा दिन इधर-उधर घूमती रहती है। ज़रा मेरे पास भी बैठ लिया कर… चल इधर आ मेरे पास बैठ..।
रघु की आवाज़ सुन कर जैसे बिंदिया के बदन से जान निकल गई हो। वो अपने सर को झुकाए हुए रघु के पास आकर बैठ गई, जैसे ही बिंदिया रघु के पास बैठी, रघु ने उससे अपने ऊपर खींच लिया और उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा। बिंदिया का बदन ऐसे काँप गया। जैसे उसे करेंट लग गया हो। मस्ती में उसकी आँखें बंद हो गईं।
रघु अपने दोनों हाथों से उसके बदन को सहलाने लगा, उसके हाथ बिंदिया के बदन के हर अंग कर मर्दन कर रहे थे। बिंदिया मस्त होकर पिछले दिनों में हुई बातें भूल कर रघु की बाँहों में सिमटने लगी। रघु ने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपने पजामे का नाड़ा खोल कर लण्ड बाहर निकाल लिया और बिंदिया का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रख दिया।
बिंदिया का दिल एकदम से धड़कना बंद हो गया, उसे ऐसा लगा मानो जैसे उसका हाथ किसी गरम लोहे के सलाख पर आ गया हो। उसने चौंकते हुए
अपने होंठों को रघु के होंठों से अलग किया और अपने हाथ की तरफ देखा। सामने रघु का फनफनाता हुआ लण्ड देख कर उसकी चूत की फाँकें कुलबुला उठीं।
"पकड़ ना साली… सोच क्या रही है।"
ये कहते हुए, रघु ने बिंदिया के हाथ को पकड़ कर अपने लण्ड पर कस लिया और अपने हाथ से बिंदिया के हाथ को हिलाते हुए अपने लण्ड पर मुठ्ठ मरवाने लगा।
"आह ऐसे ही हिला.. आह्ह.. बहुत मज़ा आ रहा है..।"
ये कहते हुए रघु ने अपना हाथ बिंदिया के हाथ से हटा लिया। बिंदिया अब गरम हो चुकी थी और उसका हाथ अपने आप ही रघु के लण्ड के ऊपर-नीचे होने लगा।
रघु ने एक बार फिर से बिंदिया के होंठों को अपने होंठों में भर लिया और उसके होंठों को चूसते हुए, अपना एक हाथ ऊपर ले जाकर बिंदिया की चूचियों पर रख दिया। बिंदिया के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई। उसका हाथ और तेज़ी से रघु के लण्ड को हिलाने लगा। रघु पहले से ही बहुत गरम था, ऊपर से बिंदिया के कोमल हाथ उस पर और कहर ढा रहे थे।
बिंदिया अपनी हथेली में रघु के लण्ड की नसों को फूजया हुआ साफ़ महसूस कर रही थी और फिर रघु के लण्ड से वीर्य के पिचकारियाँ निकल पड़ीं, जिससे बिंदिया का हाथ पूरी तरह से सन गया। रघु झड़ कर निढाल हो कर पसर गया, बिंदिया रघु से अलग हुई। उसने एक बार रघु के सिकुड़ रहे लण्ड पर नज़र डाली। उसके चेहरे पर शरम और मुस्कान दोनों एक साथ उभर आए।
वो चारपाई से खड़ी हुई और शरमाते हुए बाहर की तरफ भाग गई। बाहर जाकर उसने अपने हाथ साफ़ किए और फिर से अन्दर आ गई, रघु अपने पजामा को ठीक करके पहन चुका था। जैसे ही बिंदिया अन्दर आई, रघु उसकी तरफ देख मुस्कुरा दिया। बिंदिया भी शरमा गई और सर झुका कर मुस्कुराने लगी।
 
LEGEND NEVER DIES................................
Moderator
17,462
29,755
173
441_1000.jpg
 
LEGEND NEVER DIES................................
Moderator
17,462
29,755
173
रात हो चुकी थी। बेला अपने घर से वापिस आ चुकी थी। पर आज रात वहाँ पर कुछ ख़ास नहीं होने वाला था। दूसरी तरफ सेठ के घर पर सब लोग खाना खा कर अपने-अपने कमरों में जा चुके थे, पर आज रात रजनी की आँखों से नींद कोसों दूर थी। अपने मायके में जिस तरह उसने चुदाई का खुला आनन्द लिया था, वो अब यहाँ नहीं मिलने वाला था।
यही सोचते हुए रजनी अपनी चूत में सुलग रही आग के बारे में सोच रही थी। दूसरी तरफ सोनू घोड़े बेच कर सो रहा था। पिछले कुछ दिनों से वो रात को कम ही सो पाता था। रात के करीब एक बजे सोनू पेशाब लगने से उठा और कमरे से बाहर आकर गुसलखाने की तरफ बढ़ा। यहाँ अक्सर घर की औरतें नहाती थीं।
जैसे ही सोनू उस गुसलखाने के पास पहुँचा। उसे अन्दर से किसी के क़दमों की आवाज़ आई। उसने सोचा शायद अन्दर कोई है और वो वहीं रुक गया और इंतजार करने लगा।
थोड़ी देर बाद गुसलखाने से दीपा बाहर निकली और सामने खड़े सोनू को देख कर एक बार तो वो घबरा गई, पर जब उसने अंधेरे में सोनू के चेहरे को देखा, तो उसने शरमा कर अपनी नजरें झुका लीं और घर के आगे की तरफ जाने लगी।
सोनू वहीं खड़ा दीपा को घर के आगे की तरफ़ जाता देखता रहा। जब वो अन्दर के तरफ मुड़ने लगी, तो उसने एक बार फिर पीछे पलट कर सोनू की तरफ देखा। अंधेरा होने के कारण दोनों एक-दूसरे को दूर से ठीक से नहीं देख पा रहे थी, पर दोनों के जज़्बात आपस में ज़रूर टकरा रहे थे। दीपा फिर मुड़ कर चली गई।
सोनू पेशाब करने गुसलखाने में चला गया, पेशाब करने के बाद जब वो वापिस अपने कमरे की तरफ जा रहा था, तब उसे रजनी के कमरे की खिड़की जो घर के पीछे की तरफ थी, उसमें से लालटेन की रोशनी अन्दर आती हुई नज़र आई। एक पल के लिए सोनू वहीं रुक गया और फिर कुछ सोच कर उस खिड़की की तरफ बढ़ गया।
जब वो खिड़की के पास पहुँचा, तो उसने अन्दर झाँकने की कोशिश की।
लकड़ी की बनी खिड़की में झिरी होना आम बात है और वो सोनू को आसानी से मिल भी गई। सोनू उस झिरी से अन्दर झाँकने लगा। वो खिड़की रजनी के बिस्तर के बिल्कुल पास थी, मतलब जिसस दीवार से रजनी का बिस्तर सटा हुआ था, उसी में वो खिड़की थी। सबसे पहले उसे रजनी रज़ाई ओढ़े दिखाई दी। उसके बाद उसने पूरे कमरे का मुआयना किया, उसके कमरे में रजनी के अलावा और कोई नहीं था।
सोनू ने चारों तरफ एक बार देखा और फिर धीरे से रजनी को आवाज़ दी। एक-दो बार आवाज़ देने के बाद रजनी के बिस्तर के हिलने की आवाज़ हुई। सोनू चुप हो गया और दिल थामे खिड़की खुलने का इंतजार करने लगा। जैसे ही रजनी ने खिड़की खोली, सामने सोनू को देख उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
रजनी- तू यहाँ क्या कर रहा है.. अभी तक सोया नहीं..?
सोनू- वो मैं पेशाब करने बाहर आया था… आप के कमरे के लालटेन जलती हुई नज़र आई, तो देखने चला आया और वैसे भी अब मुझे आपके बिना नींद नहीं आती।
रजनी ने सोनू की बात सुन कर मन ही मन खुश होते हुए कहा- क्यों.. नींद क्यों नहीं आती..?
सोनू ने खिड़की की सलाखों पर हाथ रखते हुए कहा- अब क्या कहूँ मालकिन… जब तक मेरा लण्ड आपकी चूत का पानी चख नहीं लेता.. साला सोने नहीं देता और वैसे भी आपके बदन की गरमी में कुछ अलग सा नशा है।
रजनी ने उदास होते हुए कहा- हाँ.. मेरे राजा, मुझे अब तुम्हारे बिना नींद नहीं आ रही थी… देख ना.. कब से मेरी चूत में खुजली मची हुई है।
सोनू- तो फिर मालकिन आप कमरे का दरवाजा खोल कर रखो… मैं अभी आता हूँ।
रजनी- अरे नहीं… आगे से नहीं.. अगर किसी ने देख लिया तो..?
सोनू ने पजामे के ऊपर से अपने लण्ड को मसलते हुए कहा कहा- तो फिर क्या करूँ… मालकिन देखो ना मेरा लण्ड फूल कर तुम्हारी चूत में जाने को बेताब हो रहा है।
रजनी ने सोनू के बेताबी को देख कर मन ही मन मुस्कुराते हुए कहा- हाँ.. वो तो देख रही हूँ.. अच्छा रुक ज़रा…।
ये कह कर रजनी ने खिड़की के बीच वाली
सलाख को ऊपर की और उठाना शुरू कर दिया।
सोनू- ये आप क्या रही हैं मालकिन.. लोहे की सलाख ऐसे थोड़ा टूटेगी।
रजनी- शी.. चुप.. एक पल रुक तो सही.. टूटेगी नहीं.. तो ना सही… इसमें से निकल तो सकती है ना…।
आख़िर कार रजनी ने सलाख को आधा टेढ़ा करके घुन लगी लकड़ी से उसे निकाल दिया, जिससे दो सलाखों के बीच में इतनी जगह तो बन ही गई थी कि सोनू चढ़ कर अन्दर आ सके। जैसे ही वो सलाख खिड़की से निकली.. रजनी और सोनू दोनों के होंठों पर वासना भरी मुस्कान फ़ैल गई और सोनू झट से दोनों सलाखों के बीच से रजनी के कमरे में आ गया।
सोनू के अन्दर आने के बाद रजनी ने उस सलाख को फिर से वहाँ पर हल्का सा अटका दिया। फिर उसने खिड़की बंद करके ऊपर से परदा गिरा दिया। इससे पहले की रजनी पीछे हटती, सोनू ने उसे पीछे से बाँहों में भरते हुए, रजनी की दोनों चूचियों को अपने हाथों में भर कर मसलना शुरू कर दिया।
"आह्ह.. रुक तो सही.. मैं कहीं भागे थोड़ा जा रही हूँ…।"
सोनू ने रजनी की दोनों चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से मसलते हुए कहा- आह.. बस अब और रुका नहीं जाता मालकिन… और आप सबर रखने को कह रही हो.. सोनू ने अपने दहकते हुए होंठों को रजनी की गर्दन पर रख दिया और उसकी गर्दन और ब्लाउज के ऊपर पीठ के खुले हुए हिस्से.. कंधों और बाकी खुली जगह को पागलों की तरह चूमने और चाटने लगा।
रजनी ने मदहोशी भरी आवाज़ में कहा- ओह्ह.. सोनू तूने मुझ पर कौन सा जादू कर दिया है.. ओह्ह ह..इईईई आह्ह.. मैं अब एक पल भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकती।
सोनू ने रजनी की दोनों चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से अपने हाथों में भर कर मसलते हुए कहा- आह मालकिन.. मैं भी तो तुम्हारे बिना एक पल नहीं रह सकता।
ये कहते हुए उसने रजनी को अपनी तरफ घुमा लिया। रजनी के साँसें उखड़ी हुई थीं, उसकी आँखें मस्ती के कारण बंद होती मालूम हो रही थीं और गुलाबी रसीले होंठ कामवासना के कारण थरथरा रहे थे। सोनू ने अपने हाथों को रजनी की कमर में डाल कर उसे अपनी तरफ खींच लिया। रजनी की गुंदाज.. कसी हुई चूचियां.. सोनू की छाती से जा टकराईं।
अगले ही पल दोनों एक-दूसरे के होंठों में होंठों को डाल कर पागलों की तरह चूस रहे थे, रजनी ने अपनी बाहें सोनू की पीठ पर कस रखी थीं और वो सोनू की पीठ को अपने कोमल हाथों से सहला रही थी।
 
LEGEND NEVER DIES................................
Moderator
17,462
29,755
173
सोनू ने रजनी के होंठों को चूमते हुए उसे बिस्तर पर लेटा दिया और खुद उसके ऊपर लेट गया। रजनी की साँसें मस्ती में तेज हो गई थीं और वो अपने होंठों को ढीला छोड़ कर सोनू से अपने होंठों को चुसवा कर मस्त हुई जा रही थी। सोनू उसके होंठों को चूसते हुए, उसके ब्लाउज के बटनों को धीरे-धीरे खोल रहा था। जैसे ही रजनी के ब्लाउज के सारे बटन खुले, उसकी बड़ी-बड़ी गुंदाज चूचियाँ ब्लाउज के क़ैद से बाहर उछल पड़ीं।
सोनू ने अपने होंठों को रजनी के होंठों से अलग किया और रजनी की आँखों में देखा, उसकी आँखें बहुत मुश्किल से खुल पा रही थीं.. जिसमें वासना का नशा छाया हुआ था। रजनी की चूचियां ऊपर-नीचे हो रही थीं.. जिसे देख कर सोनू की आँखों की चमक भी बढ़ गई। वो किसी भूखे कुत्ते की तरह रजनी की चूचियों पर टूट पड़ा और अपने दोनों हाथों में जितना भर सकता था..भर कर.. दोनों चूचियों को मसलते हुए, उसके चूचकों पर अपनी जीभ को फिराने लगा।
रजनी मस्ती में एकदम से सिसक उठी और उसने सोनू को बाँहों में भरते हुए अपने बदन से चिपका लिया। सोनू का लण्ड उसके पजामे को फाड़ कर बाहर आने को बेकरार हुआ जा रहा था।
रजनी ने मस्ती में सिसयाते हुए कहा- आह सोनू से..हइई तूने मुझे क्या कर दिया है.. ओह्ह.. क्यों तेरे लण्ड अपनी फुद्दी में लिए बिना मुझे नींद नहीं आती.. मैं मर जाऊँगी.. तेरे बिना..।
सोनू ने रजनी की चूचियों पर अपने होंठों को रगड़ते हुए कहा- आह.. मालकिन.. मेरा भी तो आप जैसा ही हाल है.. साला ये लण्ड जब तक आपकी चूत का रस नहीं चख लेता… मुझे भी नींद नहीं आती।
रजनी- हट साले.. फिर तड़फा क्यों रहा है.. डाल दे अपना मूसल सा लण्ड मेरी चूत में… और खूब रगड़ कर चोद अपनी मालकिन को..।
ये कहते हुए रजनी बिस्तर पर पीठ के बल लेट गई। उसने अपने पेटीकोट को अपनी कमर तक ऊपर उठा दिया। लालटेन की रोशनी में रजनी की चिकनी चूत कामरस से लबालबा कर चमक उठी। जिसे देखते ही सोनू एकदम से पागल सा हो गया और रजनी की जाँघों के बीच में आकर उस पर सवार हो गया।
ऊपर आते ही सोनू ने रजनी की एक चूची को जितना हो सकता था… मुँह में भर कर चूसना चालू कर दिया। रजनी के पूरे बदन में मानो बिजली सी कौंध गई। उसने सोनू के सर को अपनी बाँहों में जकड़ कर अपनी चूचियों पर दबाना चालू कर दिया।
"आह चूस्स्स.. साले.. चूस्स्स ले.. मेरा दूध सब तेरे लिए है… ओह और ज़ोर से चूस्स्स अह हाआंन्णाणन् काट ले.. ओह धीरेई..।"
सोनू रजनी के चूचुक को अपने होंठों में बीच में दबा कर अपनी जीभ से कुलबुलाने लगा। रजनी का पूरा बदन मस्ती के कारण काँप रहा था। उसकी हल्की सिसकियां उसके कमरे की दीवारों से टकरा कर उसी कमरे में खो कर रहे जा रही थीं।
उसकी चूत में खुजली और बढ़ गई थी, सोनू ने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपने पजामे का नाड़ा खोल कर उसे नीचे सरकाना शुरू कर दिया।
रजनी ने अपनी टाँगों को मोड़ कर सोनू के जाँघों पर पाँव रख कर उसके पजामे में अपने पैर फँसा दिए और फिर उसके पजामे को अपने पैरों से नीचे सरकाते हुए.. उसके पैरों से निकाल दिया। सोनू का फनफनाता हुआ लण्ड.. जैसे ही पजामे की क़ैद से बाहर आया.. वो सीधा रजनी की चूत की फांकों के बीच जा पहुँचा।
जैसे ही सोनू के लण्ड के गरम सुपारे ने रजनी की चूत की फांकों को छुआ.. रजनी की चूत में सरसराहट और बढ़ गई। रजनी मस्त होकर अपनी टाँगों को और फैला कर ऊपर की ओर उठा कर सोनू की कमर पर कस लिया। सोनू का लण्ड का सुपारा रजनी की चूत की फांकों को फैला कर उसकी चूत के छेद पर जा लगा। रजनी ने अपनी मदहोशी से भरी आँखों को खोल कर सोनू की तरफ देखा। रजनी ने मदहोशी और मस्ती भरी आवाज़ में सोनू के आँखों में झाँकते हुए कहा- आह.. ओह्ह.. बहुत गरम है रे… तेरा ये लौड़ा..।
सोनू- हाँ मालकिन.. आप की चूत भी भट्टी की तरह तप रही है..।
रजनी- वो तो कब से फुदक रही है..तेरे लण्ड को अन्दर लेने के लिए..।



ये कहते हुए रजनी ने सोनू की पीठ पर अपनी बाँहों को कस लिया और ऊपर की तरफ अपनी गाण्ड को उठाने लगी। लण्ड पर चूत का दबाव पड़ते ही रजनी की चूत की फाँकें फ़ैलने लगीं और सोनू के लण्ड का मोटा सुपारा रजनी की कसी चूत के छेद को फ़ैलाते हुए.. अन्दर घुसने लगा। रजनी अपनी सांसों को थामे हुए, तब तक अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उठाती रही… जब तक सोनू का लण्ड धीरे-धीरे रजनी की चूत में जड़ तक नहीं समा गया।
जैसे ही सोनू के लण्ड का सुपारा रजनी की बच्चेदानी से जाकर टकराया.. रजनी के होंठों पर संतुष्टि भरी मुस्कान फ़ैल गई… मस्ती अपने चरम पर पहुँच गई। रजनी एकदम कामविभोर हो गई… मानो जैसे वो जन्नत में पहुँच गई हो.. उसने अपने अधखुली और वासना से लिपटी हुई आँखों से सोनू की तरफ देखा, तो उसे ऐसा लगा… मानो जैसे सोनू ही उसकी जिंदगी हो।
उसने अपने दोनों हाथों में सोनू के चेहरे को पकड़ कर कुछ देर के लिए उसकी तरफ़ देखा और फिर अपने थरथरा रहे होंठों को.. सोनू के होंठों पर लगा दिया और उसके होंठों को चूसते हुए, अपना सारा प्यार सोनू पर लुटाने लगी। सोनू भी मस्ती में आकर रजनी के होंठों को चूसते हुए.. धीरे-धीरे अपने लण्ड को रजनी की चूत में अन्दर-बाहर करने लगा।
दोनों एक-दूसरे के होंठों को चूसते हुए अपने प्यार का इज़हार एक-दूसरे से कर रहे थे। जब सोनू अपना लण्ड रजनी की चूत से बाहर निकाल कर दोबारा अन्दर पेजया, तो रजनी अपनी जाँघों को फैला कर अपनी गाण्ड को ऊपर उठा कर फिर से सोनू के लण्ड को अपनी चूत में लेने के लिए आतुर हो उठती।
जब सोनू का लण्ड फिर से रजनी की चूत की गहराईयों में जाता, तो रजनी अपने दोनों हाथों से सोनू के चूतड़ों को दबा कर उसके लण्ड पर अपनी चूत को और दबा देती।
उसकी चूत की दीवारें सोनू के लण्ड को अन्दर ही अन्दर कस कर चोद रही थीं.. मानो जैसे उसके लण्ड को मथ रही हों। रजनी की चूत की गरमी को अपने लण्ड पर महसूस करके सोनू भी मदहोश हुआ जा रहा था। हर धक्के के साथ सोनू की रफ्तार बढ़ रही थी और रजनी भी मस्ती में अपने होंठों को चुसवाते हुए उसकी लय में अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछाल कर सोनू का लण्ड अपनी चूत की गहराईयों में लेने की कोशिश कर रही थी।
अब सोनू पूरे जोश में आ चुका था, उसने अपने होंठों को रजनी के होंठों से अलग किया और उसकी जाँघों के बीच बैठते हुए ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा। सोनू के लण्ड के ताबड़तोड़ धक्कों ने रजनी की चूत की दीवारों को बुरी तरह रगड़ कर रख दिया.. उसके पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।
रजनी ने अपने चूचियों के चूचकों को अपने हाथों से मसलते हुए कहा- आहह.. आह.. सोनू धीरे कर ओह्ह.. मर गइईए रे.. धीरे बेटा.. ओह आह्ह.. ओह्ह और बहुत मज़ा आ रहा है.. सोनू ओह्ह धीरे बेटा आह्ह.. उह चोद मुझे आह्ह..।
सोनू- आह.. चोद तो रहा हूँ..हुन्न्ञणणन् आह्ह.. उह..।
रजनी ने अपनी सिसकारियों को दबाने के लिए अपने होंठों को दाँतों में बीच में दबा लिया और तेज़ी से अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछालते हुए झड़ने लगी। सोनू के लण्ड ने भी उसकी चूत की दीवारों को भिगो कर रख दिया। झड़ने के बाद सोनू रजनी के ऊपर निढाल होकर गिर पड़ा।
 
LEGEND NEVER DIES................................
Moderator
17,462
29,755
173
अगली सुबह जब रजनी उठी, तो उसने पाया कि उसके कमरे के दरवाजे पर कोई दस्तक कर रहा था.. बाहर से बेला की आवाज़ आई। जैसे ही वो उठ कर बैठी तो उससे अपनी हालत का अंदाज़ा हुआ… उसका पेटीकोट अभी भी जाँघों के ऊपर चढ़ा हुआ था और ब्लाउज के सारे बटन खुले हुए थे। सोनू रात को पता नहीं किस समय बाहर चला गया था।
उसका कमरा शामयाना सा लग रहा था, उसने अपने ब्लाउज के बटन बंद किए और बेला को आवाज़ दी, "हाआँ.. आ रही हूँ..तू जा…" उसके बाद रजनी ने साड़ी पहनी और बाहर आ गई। जब वो पीछे गुसलखाने में हाथ-पैर धोने गई तो बेला उससे गुसलखाने के बाहर खड़ी हुई नज़र आई।
रजनी- तू यहाँ क्या कर रही है ?
बेला ने मुस्कुराते हुए धीमे स्वर में कहा- महारानी जी अन्दर नहा रही हैं।
रजनी- क्यों आज कोई ख़ास बात है।
बेला ने रजनी की तरफ देख कर आँख दबाते हुए कहा- माहवारी आई है.. इस बार भी सेठ जी दु:खी हो जाएंगे।
रजनी ने मुस्कुराते हुए कहा- तू अपने काम पर ध्यान दिया कर समझी..।
इतने में सेठ की दूसरी पत्नी सीमा गुसलखाने से बाहर आती है और रजनी के पाँव छू कर अन्दर की तरफ चली जाती है। बेला और रजनी दोनों एक-दूसरे की आँखों में देख कर मुस्कुरा देते हैं। जैसे ही रजनी गुसलखाने में घुसी.. तो उसका दिमाग़ एक पल के लिए घूम गया और वो कुछ हिसाब लगाने लगी। थोड़ी देर सोचने के बाद रजनी के होंठों पर गहरी मुस्कान फ़ैल गई।
रजनी को महीना आए हुए.. आज एक महीने से ज्यादा हो गया था और ये सोच कर कि वो पेट से है वो ख़ुशी से पागल हो गई.. पर अगले ही पल उसके माथे पर सिकन और परेशानी के भाव उभर आए… क्योंकि सेठ के साथ सोए हुए तो उसे एक महीने से भी ज्यादा समय हो गया था। वो जानती थी कि उसके पेट में सोनू का अंश पल रहा है और वो किसी भी कीमत पर इसे इस दुनिया में लाना चाहती थी।
क्योंकि इसे बच्चे की वजह से वो अपना खोया हुआ रुतबा फिर से सेठ के घर में हासिल कर सकती थी, पर वो ये कैसे साबित करे कि ये सेठ का ही बच्चा है। ये सब सोचते हुए उसने कब नहा लिया उसे पता भी नहीं चला और जब वो तैयार होकर घर के आगे की तरफ आई, तो सेठ गेंदामल सीमा से कुछ बात कर रहा था।
सेठ के बातों से साफ़ झलक रहा था कि वो थोड़ा परेशान है। थोड़ी देर बात करने के बाद सीमा अपने कमरे में चली गई, सेठ बाहर आँगन में पलंग पर बैठा हुआ नास्ता कर रहा था। मौका देख रजनी सेठ के पास जाकर बैठ गई।
रजनी- क्या बात है जी.. आप थोड़ा परेशान हो। ?
सेठ- नहीं.. कुछ ख़ास बात नहीं है..।
रजनी- चलो… हम भी आपसे बात नहीं करते, मैं देख रही हूँ.. जब से आप इससे ब्याह कर लिए है.. आप मुझसे सीधे मुँह बात भी नहीं करते..।
सेठ- नहीं नहीं.. ऐसी बात नहीं है.. दरअसल उसने कहा है कि उसकी माँ की तबियत बहुत खराब है और वो घर जाना चाहती है.. तुम तो जानती हो.. मैं पहले ही काफ़ी दिनों दुकान से दूर रहा हूँ.. अब फिर से वहाँ जाऊँगा तो चार-पाँच दिन तो लग ही जाएंगे।
रजनी- जी… वो तो है… उसके मायके का घर भी तो दूर है।
सेठ- क्यों ना सोनू और दीपा को उसके साथ भेज दूँ.. इसमें मेरा वक़्त भी बच जाएगा।
जैसे ही सेठ ने सोनू और दीपा को उसके साथ भेजने की बात कही.. रजनी को लगा मानो जैसे भगवान उस पर कुछ ज्यादा ही दयावान हो गया हो।
रजनी- जी.. ये ठीक रहेगा..।
सेठ- तो ठीक है… मैं सीमा को बोल देता हूँ और जाते हुए.. तांगे वाले को भी बोल दूँगा कि वो तीनों को स्टेशन छोड़ आएगा। गाड़ी 11 बजे की है और मुझे भी अब दुकान के लिए निकलना है।
रजनी से अपनी ख़ुशी छुपाए नहीं छुप रही थी। वो उठ कर अपने कमरे में आ गई और बिस्तर पर लेट गई। यही वो समय था, जब वो सेठ के साथ एक रात गुजार कर अपने पेट में पल रहे सोनू के बच्चे को सेठ का नाम दे सकती थी और एक तीर से दो शिकार हो सकते थे। दूसरा ये कि सोनू और दीपा इस दौरान और करीब आ सकते थे।
जिससे वो अपने साथ हुए अन्याय का बदला ले सकती थी। गेंदामल ने जबसे बात सोनू को बताया कि उसे सीमा और दीपा के साथ जाना होगा, तो वो थोड़ा निराश हो गया.. पर वो गेंदामल की बात को टाल नहीं सकता था। इसलिए उसने भी सीमा के मायके जाने की तैयारी शुरू कर दी। जब दीपा को इस बात का पता चला कि सोनू भी उन दोनों के साथ जा रहा है, तो उसके मन के अन्दर हलचल होने लगी।
जिस तरह से सोनू ने पहले ही दिन उसके कुंवारे बदन को मसल कर जवानी का मज़ा चखा दिया था… उस हिसाब से सोनू मौका मिलने पर कुछ भी कर सकता था… यही सोच-सोच कर दीपा के मन में तूफ़ान मचा हुआ था। दीपा भी अपना सामान पैक कर रही थी और दूसरी तरफ सीमा भी… थोड़ी देर बाद बाहर तांगे वाला भी आ गया और तीनों स्टेशन के लिए निकल पड़े। इस बार सेठ गेंदामल ने तीनों को ट्रेन में सीट दिलवा दी थी, ताकि तीनों को किसी तरह की दिक्कत नहीं हो। सोनू दीपा और सीमा के बिल्कुल सामने वाले सीट पर बैठा था।
खैर.. सफ़र में कुछ ख़ास नहीं हो रहा है, तो हम अब बेला के घर का रुख़ करते हैं। आज जब बेला सेठ के घर से काम निपटा कर घर वापिस जा रही थी, तो उसके दिल के धड़कनें भी तेज चल रही थीं। वो मन ही मन यही मना रही थी कि उसकी बेटी बिंदिया भी घर पर हो।
क्योंकि बिंदिया ज्यादातर बाहर अपनी सहेलियों से गप लड़ाती रहती थी और बेला ये भी जानती थी कि आज यहाँ पर रघु और बिंदिया का आख़िरी दिन था, कल दोनों वापिस जा रहे थे।
बेला मन ही मन यही दुआ माँग रही थी किसी तरह ये दिन और रात भी बीत जाए। हालांकि बेला जैसे चुड़ैल औरत रघु के जैसे मूसल लण्ड पर मर मिटी थी, पर वो रिश्तों की मर्योदाओं में बँधी हुई थी।
वो ये भी जानती थी कि अगर ऐसा कुछ हुआ और भूले से ही किसी को इस बारे में पता चला, तो उसकी और उसकी बेटी…. दोनों की जिंदगी नरक बन सकती है। वो अपने सनकी दामाद का क्या करे.. वो तो हर हाल में उसे चोदना चाहता है।
जैसे-जैसे बेला अपने घर के करीब पहुँच रही थी, उसके दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं और उसके हाथ-पैर उसका साथ छोड़ रहे थे। उसके पास घर जाने के सिवाय और कोई चारा भी नहीं था… वो जाती भी कहाँ। थोड़ी ही देर में वो घर पहुँच गई और जब वो घर के अन्दर आई, तो उसकी जान में जान आई.. बिंदिया घर पर ही थी।
रघु ने उसकी तरफ देखते हुए, एक मुस्कान भरी। बेला ने अपना सर झुका लिया और घर के काम में लग गई।
 
LEGEND NEVER DIES................................
Moderator
17,462
29,755
173
बेला घर पर आकर काम में इतनी मसरूफ़ हो गई कि उससे पता ही नहीं चला कब बिंदिया पड़ोस के घर पर चली गई। रघु ने मौका देखते ही बेला से आँख बचाते हुए.. बाहर का दरवाजा बंद कर दिया। जब रघु दरवाजा बंद करके वापिस आया तो बेला भीतर वाले कमरे में झाड़ू लगा रही थी।
अन्दर आते ही रघु बेला की तरफ बढ़ा। अपने पीछे से आते हुए क़दमों की आहट को सुन कर बेला एकदम से चौंक गई.. पर अब तक बहुत देर हो चुकी थी।
जैसे ही बेला ने पीछे मुड़ कर रघु की तरफ देखा.. वो एकदम से सन्न रह गई। रघु नीचे से बिल्कुल नंगा था और ऊपर सिर्फ़ उसने एक बनियान पहन रखी थी।
रघु का फनफनाता हुआ 8 इंच का काला और मोटा लण्ड उसके चलने के कारण इधर-उधर हिल रहा था.. जिसे देख बेला की साँसें मानो उसके हलक में अटक गई हों.. उसके हाथ पैर जैसे वहीं जम गए।
बेला को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर वो करे तो क्या.. उसने रघु की तरफ पीठ करके सर को झुका लिया.. अब बचने को उसको कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था।
रघु ने पलक झपकते ही बेला को पीछे से बाँहों में भर लिया और अपने होंठों को बेला की गर्दन पर लगा दिया। रघु का तना हुआ लण्ड सीधा बेला के चूतड़ों की दरार में जा धंसा। बेला के पूरे बदन में बिजली सी दौड़ गई और वो एकदम से सिसक उठी।
बेला- आह्ह.. सी..इईईई ये ईए क्या कर रहे हैं दामाद जी… बिंदिया….।
रघु ने बेला की चूचियों को मसलते हुए कहा- हाँ.. मेरी रानी.. वो तो कब की चली गई.. उसे ना तो मेरी परवाह है और ना ही मेरे लण्ड की… अब मेरा और मेरे लौड़े का ध्यान रखना आपका फर्ज़ बनता है… क्यों सही कह रहा हूँ ना…?
बेला रघु की बाँहों में मचली जा रही थी और वो रघु के हाथों को अपनी गुंदाज और मस्त चूचियों पर से हटाने के कोशिश कर रही थी… पर रघु ने उसकी चूचियों को बेदर्दी से मसलते हुए फिर से उसकी गरदन को चाटना शुरू कर दिया था। बेला को ऐसा लग रहा था जैसे उसके बदन में जान ही ना बची हो।
रघु के मर्दाना हाथों के आगे उसकी एक नहीं चल रही थी और उसके पैर उसके बदन का साथ छोड़ने लगे। बेला किसी मछली की तरह तड़पती हुई धीरे-धीरे नीचे बैठने लगी.. पर रघु उसकी चूचियों को नहीं छोड़ रहा था। वो लगातार बेला के दोनों चूचियों को मसल रहा था और जैसे-जैसे बेला नीचे को हो रही थी.. वो भी नीचे बैठते हुए उसकी गर्दन.. गालों और कानों के पास अपनी जीभ को घुमा रहा था।
बेला के बदन में ना चाहते हुए भी मस्ती की लहरें उठने लगीं। उसके साँसें अब और तेजी से चल रही थीं। आख़िरकार बेला एकदम से नीचे ज़मीन पर चूतड़ों के बल बैठ गई और रघु उसके पीछे अपने पैरों को बल बैठ गया और उसी तरह अपने तपते होंठों को बेला की गर्दन पर घुमाते हुए, उसकी चूचियों को मसल रहा था।
मस्ती का आलम बेला पर इस कदर हावी हो गया कि वो अपने टाँगों को आगे की और फैला कर अपनी हथेलियों को ज़मीन से रगड़ने लगी और उसकी मस्ती भरी सिसकारियाँ पूरे कमरे में गूंजने लगीं। अब बस बेला सिर्फ़ मुँह से ही रघु को छोड़ देने के लिए कह रही थी। उसके उलट उसके बदन ने रघु का विरोध करना छोड़ दिया।
ये देखते हुए रघु ने एकदम से बेला के लहँगे के ऊपर से उसकी चूत को अपनी मुठ्ठी में भर कर ज़ोर से मसल दिया। बेला को एक जोरदार झटका लगा.. मानो उसके पूरे बदन में बिजली सी कौंध गई हो.. उसके आँखें मस्ती में एकदम से बंद हो गईं, "आह.. रघु ये.. तुम ठीक नहीं कर रहे आहह.. ओह्ह छोड़ दो मुझे..।"
रघु ने बेला की चूत को लहँगे के ऊपर से सहलाते हुए कहा- आहह.. सासू जी.. कसम से आपके जैसा गदराया हुआ माल.. आज तक नहीं चोदा.. आज आपकी गदराई हुई चूत चोद कर मेरे लण्ड की किस्मत जाग जाएगी।
बेला ने अपने दामाद के मुँह से अपनी चूत के बारे में ऐसी बातें सुन कर चौंकते हुए कहा- आहह.. छोड़िए ना.. आपको मेरे बेटी की कसम.. आहह.. में.. में. उसके साथ धोखा नहीं कर सकती..।
रघु- साली रांड.. तू उस नौकर के साथ खुले-आम चुदवा सकती है..और इधर तेरा दामाद कब से तरस रहा है तेरी चूत के लिए.. तुझे मेरे लवड़े की परवाह नहीं है..क्या..? आज तो तेरी चूत में अपना लण्ड घुसा कर ही दम लूँगा.. साली एक बार मेरा लण्ड अपनी चूत में ले लेगी तो सब भूल जाएगी।
ये कहते हुए रघु ने एक झटके में बेला के लहँगे को उसकी कमर तक ऊपर उठा दिया। बेला तो जैसे शरम के मारे ज़मीन में गढ़ गई। उसने अपनी इज़्ज़त यानी चूत को छुपाने के लिए अपने जाँघों को आपस में सटा लिया, पर रघु ने अपने ताकतवर हाथों से उसकी जाँघों को फैला दिया।
बेला की चूत उसके कामरस से लबलबा रही थी.. जिसे देख कर पीछे बैठे रघु का लण्ड एकदम से फनफना उठा।
रघु- आह.. क्या कमाल की चूत है रे.. तेरी.. रांड आह.. देख ना साली कैसे पानी बहा रही है और ऊपर से तू नखरे चोद रही है.. चल आज देख.. तेरी चूत कैसे फाड़ता हूँ..।
ये कहते हुए पीछे बैठे रघु ने अपने एक हाथ नीचे ले जाकर अपनी एक ऊँगली को बेला की चूत में घुसा दिया, बेला एकदम से सिसया उठी.. उसकी आँखें मस्ती में बंद होने लगीं।
"आह नहीं छोड़ दो.. ओह्ह आह.. नहीं रघु में. आह्ह.. मुझे कुछ हो रहा है..।"
पर रघु के दिमाग़ पर तो जैसे वासना का भूत चढ़ा हुआ था।
वो तेज़ी से अपनी दो उँगलियों को बेला की चूत की अन्दर-बाहर करने लगा, बेला की चूत में सरसराहट एकदम से बढ़ गई। बेला बुरी तरह छटपटा रही थी, उसे ऐसा लग रहा था…जैसे उसकी चूत से कुछ निकलने वाला है, पर वो झड़ने वाली नहीं थी। रघु अब पूरी रफ़्तार से अपनी उँगलियों को बेला की चूत में अन्दर-बाहर करते हुए.. बेला के गालों को चूस रहा था।
बेला- आह्ह.. ओह नहींईईईई दमाआद्द्ड़ जीईए ओह आह्ह.. आह्ह.. आह्ह.. बसस्स्स्स उफफफफफफफफ्फ़ आह्ह.. से..इईईईईई ओह मार डाला…।
बेला का बदन बुरी तरह से कंपकंपाने लगा, रघु की दोनों ऊँगलियाँ बेला की चूत से निकल रहे रस से एकदम सन गई थीं और नीचे चूतड़ों के बल बैठी बेला की चूत से मूत की धार निकल पड़ी और तेज 'सुर्रसुउउ' की आवाज़ से उसकी चूत से सुनहरे रंग का पानी पेशाब के रूप में निकलने लगा।
बेला की चूत से निकल रहे मूत की धार इतनी तेज थी कि धार 3 फुट दूर तक जा रही थी।
बेला के कमर मूतते हुए लगातार झटके खा रही थी और रघु ने अपनी उँगलियों को चूत से बाहर निकाल कर बेला के चोली के ऊपर से उसकी चूचियों के चूचुकों को मसलना शुरू कर दिया। बेला लगभग एक मिनट तक मूतती रही। वो बुरी तरह से निढाल हो चुकी थी, उसके आँखें मस्ती में पूरी तरह से बंद थीं।
पेशाब की कुछ आख़िरी बूंदे रिस कर उसकी गाण्ड के छेद की तरफ बह निकलीं।
 

Top