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बेला को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। वो तो एकदम से फँस गई थी, ये सोचते हुए बेला सेठ के घर की तरफ चली गई। दूसरी तरफ रघु चारपाई पर बैठा हुआ आने वाले पलों के बारे में सोच रहा था, तभी बाहर से बिंदिया अन्दर आ गई। उसने घर का मुख्य दरवाजा बंद किया और पीछे वाले कमरे में आ गई।
जैसे ही वो पीछे वाले कमरे में पहुँची, तो वो रघु को देख कर एकदम से सहम गई, रघु अपने लण्ड को पजामे के ऊपर से ही बुरी तरह मसल रहा था, अन्दर आते ही बिंदिया के पाँव मानो उसी जगह थम गए हों। रघु ने बिंदिया की तरफ देखा और कड़क आवाज़ में बोला।
रघु- तू क्या सारा दिन इधर-उधर घूमती रहती है। ज़रा मेरे पास भी बैठ लिया कर… चल इधर आ मेरे पास बैठ..।
रघु की आवाज़ सुन कर जैसे बिंदिया के बदन से जान निकल गई हो। वो अपने सर को झुकाए हुए रघु के पास आकर बैठ गई, जैसे ही बिंदिया रघु के पास बैठी, रघु ने उससे अपने ऊपर खींच लिया और उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा। बिंदिया का बदन ऐसे काँप गया। जैसे उसे करेंट लग गया हो। मस्ती में उसकी आँखें बंद हो गईं।
रघु अपने दोनों हाथों से उसके बदन को सहलाने लगा, उसके हाथ बिंदिया के बदन के हर अंग कर मर्दन कर रहे थे। बिंदिया मस्त होकर पिछले दिनों में हुई बातें भूल कर रघु की बाँहों में सिमटने लगी। रघु ने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपने पजामे का नाड़ा खोल कर लण्ड बाहर निकाल लिया और बिंदिया का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रख दिया।
बिंदिया का दिल एकदम से धड़कना बंद हो गया, उसे ऐसा लगा मानो जैसे उसका हाथ किसी गरम लोहे के सलाख पर आ गया हो। उसने चौंकते हुए
अपने होंठों को रघु के होंठों से अलग किया और अपने हाथ की तरफ देखा। सामने रघु का फनफनाता हुआ लण्ड देख कर उसकी चूत की फाँकें कुलबुला उठीं।
"पकड़ ना साली… सोच क्या रही है।"
ये कहते हुए, रघु ने बिंदिया के हाथ को पकड़ कर अपने लण्ड पर कस लिया और अपने हाथ से बिंदिया के हाथ को हिलाते हुए अपने लण्ड पर मुठ्ठ मरवाने लगा।
"आह ऐसे ही हिला.. आह्ह.. बहुत मज़ा आ रहा है..।"
ये कहते हुए रघु ने अपना हाथ बिंदिया के हाथ से हटा लिया। बिंदिया अब गरम हो चुकी थी और उसका हाथ अपने आप ही रघु के लण्ड के ऊपर-नीचे होने लगा।
रघु ने एक बार फिर से बिंदिया के होंठों को अपने होंठों में भर लिया और उसके होंठों को चूसते हुए, अपना एक हाथ ऊपर ले जाकर बिंदिया की चूचियों पर रख दिया। बिंदिया के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई। उसका हाथ और तेज़ी से रघु के लण्ड को हिलाने लगा। रघु पहले से ही बहुत गरम था, ऊपर से बिंदिया के कोमल हाथ उस पर और कहर ढा रहे थे।
बिंदिया अपनी हथेली में रघु के लण्ड की नसों को फूजया हुआ साफ़ महसूस कर रही थी और फिर रघु के लण्ड से वीर्य के पिचकारियाँ निकल पड़ीं, जिससे बिंदिया का हाथ पूरी तरह से सन गया। रघु झड़ कर निढाल हो कर पसर गया, बिंदिया रघु से अलग हुई। उसने एक बार रघु के सिकुड़ रहे लण्ड पर नज़र डाली। उसके चेहरे पर शरम और मुस्कान दोनों एक साथ उभर आए।
वो चारपाई से खड़ी हुई और शरमाते हुए बाहर की तरफ भाग गई। बाहर जाकर उसने अपने हाथ साफ़ किए और फिर से अन्दर आ गई, रघु अपने पजामा को ठीक करके पहन चुका था। जैसे ही बिंदिया अन्दर आई, रघु उसकी तरफ देख मुस्कुरा दिया। बिंदिया भी शरमा गई और सर झुका कर मुस्कुराने लगी।
जैसे ही वो पीछे वाले कमरे में पहुँची, तो वो रघु को देख कर एकदम से सहम गई, रघु अपने लण्ड को पजामे के ऊपर से ही बुरी तरह मसल रहा था, अन्दर आते ही बिंदिया के पाँव मानो उसी जगह थम गए हों। रघु ने बिंदिया की तरफ देखा और कड़क आवाज़ में बोला।
रघु- तू क्या सारा दिन इधर-उधर घूमती रहती है। ज़रा मेरे पास भी बैठ लिया कर… चल इधर आ मेरे पास बैठ..।
रघु की आवाज़ सुन कर जैसे बिंदिया के बदन से जान निकल गई हो। वो अपने सर को झुकाए हुए रघु के पास आकर बैठ गई, जैसे ही बिंदिया रघु के पास बैठी, रघु ने उससे अपने ऊपर खींच लिया और उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा। बिंदिया का बदन ऐसे काँप गया। जैसे उसे करेंट लग गया हो। मस्ती में उसकी आँखें बंद हो गईं।
रघु अपने दोनों हाथों से उसके बदन को सहलाने लगा, उसके हाथ बिंदिया के बदन के हर अंग कर मर्दन कर रहे थे। बिंदिया मस्त होकर पिछले दिनों में हुई बातें भूल कर रघु की बाँहों में सिमटने लगी। रघु ने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपने पजामे का नाड़ा खोल कर लण्ड बाहर निकाल लिया और बिंदिया का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रख दिया।
बिंदिया का दिल एकदम से धड़कना बंद हो गया, उसे ऐसा लगा मानो जैसे उसका हाथ किसी गरम लोहे के सलाख पर आ गया हो। उसने चौंकते हुए
अपने होंठों को रघु के होंठों से अलग किया और अपने हाथ की तरफ देखा। सामने रघु का फनफनाता हुआ लण्ड देख कर उसकी चूत की फाँकें कुलबुला उठीं।
"पकड़ ना साली… सोच क्या रही है।"
ये कहते हुए, रघु ने बिंदिया के हाथ को पकड़ कर अपने लण्ड पर कस लिया और अपने हाथ से बिंदिया के हाथ को हिलाते हुए अपने लण्ड पर मुठ्ठ मरवाने लगा।
"आह ऐसे ही हिला.. आह्ह.. बहुत मज़ा आ रहा है..।"
ये कहते हुए रघु ने अपना हाथ बिंदिया के हाथ से हटा लिया। बिंदिया अब गरम हो चुकी थी और उसका हाथ अपने आप ही रघु के लण्ड के ऊपर-नीचे होने लगा।
रघु ने एक बार फिर से बिंदिया के होंठों को अपने होंठों में भर लिया और उसके होंठों को चूसते हुए, अपना एक हाथ ऊपर ले जाकर बिंदिया की चूचियों पर रख दिया। बिंदिया के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई। उसका हाथ और तेज़ी से रघु के लण्ड को हिलाने लगा। रघु पहले से ही बहुत गरम था, ऊपर से बिंदिया के कोमल हाथ उस पर और कहर ढा रहे थे।
बिंदिया अपनी हथेली में रघु के लण्ड की नसों को फूजया हुआ साफ़ महसूस कर रही थी और फिर रघु के लण्ड से वीर्य के पिचकारियाँ निकल पड़ीं, जिससे बिंदिया का हाथ पूरी तरह से सन गया। रघु झड़ कर निढाल हो कर पसर गया, बिंदिया रघु से अलग हुई। उसने एक बार रघु के सिकुड़ रहे लण्ड पर नज़र डाली। उसके चेहरे पर शरम और मुस्कान दोनों एक साथ उभर आए।
वो चारपाई से खड़ी हुई और शरमाते हुए बाहर की तरफ भाग गई। बाहर जाकर उसने अपने हाथ साफ़ किए और फिर से अन्दर आ गई, रघु अपने पजामा को ठीक करके पहन चुका था। जैसे ही बिंदिया अन्दर आई, रघु उसकी तरफ देख मुस्कुरा दिया। बिंदिया भी शरमा गई और सर झुका कर मुस्कुराने लगी।