- 17,457
- 29,376
- 173
बेला: (शरमाते हुए) आप जान के बात कर रही हैं दीदी……….ऐसा मुन्सल सा लंड आज तक मेने अपनी जिंदगी में कभी नही देखा………कम से कम 9 इंच लंबा और 3 इंच मोटा होगा, उस छोरे का…..
रजनी: (हैरान होते हुए) चल हट ऐसा भी होसकता है क्या…..वो तो अभी बच्चा है…..अभी तो उसकी मून्छे भी नही निकली…….देखा नही क्या ?
बेला: दीदी आप कह तो सही रही हैं…….पर जब मेने उसका औजार देखा तो , मुझे भी यकीन नही हो रहा था…..पर सच तो यही है कि, उसका लंड इतना ही बड़ा है……..
बेला की बात सुन कर रजनी का दिल जोरों से धड़कने लगा…..उसके दिमाग़ मे भी सोनू के लंड की छवि से बन गयी…….”सच कह रही है बेला तू” रजनी ने अपनी सारी के ऊपेर से अपनी बुर को खुजाते हुए कहा..
बेला भी रजनी के हालत ताड़ गयी…..”हां दीदी सच उसके लंड का सुपाडा तो जैसे किसी छोटे सेब के बराबर था…एक दम गुलाबी रंग…….दिल कर रहा था…अभी जाकर मुट्ठी मे भर कर उसके लंड के सुपाडे को जी भर कर चुसू……..” बेला तिरिछि नज़रों से रजनी की तरफ देख रही थी…….
रजनी: चल हट जाने दे……….तू अपना काम कर, और सुन उस छोरे से दूर ही रहना….कुछ उल्टा सीधा मत करना……..
रजनी ने बेला की आँखों में झाँका….दोनो के होंटो पर कामुकता से भरी मुस्कान फैली हुई थी….रजनी बाहर चली गयी……
रात को बेला ने सब के लिए खाना लगा दिया……..और खुद अपना और बेटी का खाना लेकर घर चली गयी…..चांदीमल तो मानो जैसे खाना जल्दी से खा कर अपने कमरे मे जाना चाहता था….रात के करीब 10 बजे तक सब अपने अपने कमरों में घुस चुके थे……रजनी अपनी कमरे में लेटी हुई, करवटें बदल रही थी……..रजनी के कमरे की पीछे वाली खिड़की, घर के पिछवाड़े में खुलती थी. पर खिड़की पर लोहे की सलाखें लगी हुई थी…………
पर उस खिड़की की लकड़ी को नीचे की तरफ घुन लग चुका था……जिससे उसकी एक लोहे के सलाख ढीली हो गयी थी………और उसे आसानी से निकाला जा सकता था. एक सलाख को निकालने के बाद इतना गॅप तो बन ही जाता था कि, उसमे से कोई पतला शख्स आसानी से निकल सके……..
मैं इस खिड़की के बारे मे आप को इस लिए बता रहा हूँ क्योंकि इस खिड़की का इस कहानी मे बहुत बड़ा योगदान है…..अब तक आप समझ ही गये होंगे, कि मैं किस तरफ इशारा कर रहा हूँ.
रजनी के दिमाग़ मे शाम से बेला की बातें ही घूम रही थी……वो भी तो कामज्वाला में कब से जल रही थी………वो उठ कर अपने कमरे से बाहर आई………चारो तरफ सन्नाटा फेला हुआ था….रजनी धीरे-2 आगे बढ़ाते हुए घर के पीछे की तरफ बढ़ने लगी….वो खुद नही जानती थी, कि आख़िर वो इतनी रात को पीछे करने क्या जा रही है……….रजनी का दिल सोनू के रूम की तरफ बढ़ते हुए जोरों से धड़क रहा था………जब वो घर के पीछे पहुची, तो चारो तरफ घना कोहरा छाया हुआ था….सर्दी अपने सबाब पर थी………..
रजनी: (हैरान होते हुए) चल हट ऐसा भी होसकता है क्या…..वो तो अभी बच्चा है…..अभी तो उसकी मून्छे भी नही निकली…….देखा नही क्या ?
बेला: दीदी आप कह तो सही रही हैं…….पर जब मेने उसका औजार देखा तो , मुझे भी यकीन नही हो रहा था…..पर सच तो यही है कि, उसका लंड इतना ही बड़ा है……..
बेला की बात सुन कर रजनी का दिल जोरों से धड़कने लगा…..उसके दिमाग़ मे भी सोनू के लंड की छवि से बन गयी…….”सच कह रही है बेला तू” रजनी ने अपनी सारी के ऊपेर से अपनी बुर को खुजाते हुए कहा..
बेला भी रजनी के हालत ताड़ गयी…..”हां दीदी सच उसके लंड का सुपाडा तो जैसे किसी छोटे सेब के बराबर था…एक दम गुलाबी रंग…….दिल कर रहा था…अभी जाकर मुट्ठी मे भर कर उसके लंड के सुपाडे को जी भर कर चुसू……..” बेला तिरिछि नज़रों से रजनी की तरफ देख रही थी…….
रजनी: चल हट जाने दे……….तू अपना काम कर, और सुन उस छोरे से दूर ही रहना….कुछ उल्टा सीधा मत करना……..
रजनी ने बेला की आँखों में झाँका….दोनो के होंटो पर कामुकता से भरी मुस्कान फैली हुई थी….रजनी बाहर चली गयी……
रात को बेला ने सब के लिए खाना लगा दिया……..और खुद अपना और बेटी का खाना लेकर घर चली गयी…..चांदीमल तो मानो जैसे खाना जल्दी से खा कर अपने कमरे मे जाना चाहता था….रात के करीब 10 बजे तक सब अपने अपने कमरों में घुस चुके थे……रजनी अपनी कमरे में लेटी हुई, करवटें बदल रही थी……..रजनी के कमरे की पीछे वाली खिड़की, घर के पिछवाड़े में खुलती थी. पर खिड़की पर लोहे की सलाखें लगी हुई थी…………
पर उस खिड़की की लकड़ी को नीचे की तरफ घुन लग चुका था……जिससे उसकी एक लोहे के सलाख ढीली हो गयी थी………और उसे आसानी से निकाला जा सकता था. एक सलाख को निकालने के बाद इतना गॅप तो बन ही जाता था कि, उसमे से कोई पतला शख्स आसानी से निकल सके……..
मैं इस खिड़की के बारे मे आप को इस लिए बता रहा हूँ क्योंकि इस खिड़की का इस कहानी मे बहुत बड़ा योगदान है…..अब तक आप समझ ही गये होंगे, कि मैं किस तरफ इशारा कर रहा हूँ.
रजनी के दिमाग़ मे शाम से बेला की बातें ही घूम रही थी……वो भी तो कामज्वाला में कब से जल रही थी………वो उठ कर अपने कमरे से बाहर आई………चारो तरफ सन्नाटा फेला हुआ था….रजनी धीरे-2 आगे बढ़ाते हुए घर के पीछे की तरफ बढ़ने लगी….वो खुद नही जानती थी, कि आख़िर वो इतनी रात को पीछे करने क्या जा रही है……….रजनी का दिल सोनू के रूम की तरफ बढ़ते हुए जोरों से धड़क रहा था………जब वो घर के पीछे पहुची, तो चारो तरफ घना कोहरा छाया हुआ था….सर्दी अपने सबाब पर थी………..