Adultery चन्डीमल हलवाई की दो बीवियाँ और नौकर (सम्पूर्ण)

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बेला को चोदने के बाद सोनू सामान लाने के शहर चला गया और बेला अपने घर चली गई।
दूसरी तरफ रजनी अपने कमरे में कान्ति देवी के साथ बैठी बातें कर रही थी।
ऊपर से तो भले ही वो कान्ति देवी के साथ हंस-हंस कर बातें कर रही थी, पर मन ही मन वो उससे गालियाँ दे रही थी।
‘और सुना बहू, नई दुल्हन लाने के बाद बेटा चन्डीमल तेरी तरफ ध्यान देता है कि नहीं?’ कान्ति देवी ने बातों-बातों में रजनी से पूछा। रजनी बेचारा सा मुँह लेकर बैठ गई।
‘ये सारे मर्द ना.. एक ही जात के होते हैं.. पर तू फिकर ना कर, भगवान के घर देर है.. अंधेर नहीं..’
रजनी ने उदास होते हुए कहा- पर मुझे तो लगता है भगवान ने मेरे लिए अंधेरा ही रखा है, अब तो वो मुझसे सीधे मुँह बात भी नहीं करते।
कान्ति- बोला ना.. सब मर्दों की एक ही जात होती है.. अपने अनुभव से बोल रही हूँ। कुछ दिन उसको नई चूत का चाव रहेगा, देखना बाद मैं सब ठीक हो जाएगा.. अच्छा चल मैं एक बार घर भी हो आती हूँ.. वहाँ की खबर भी ले लूँ।
उधर सोनू बाज़ार से सामान खरीद कर वापिस गाँव आ चुका था।
अब दोपहर के 12 बज चुके थे।
जैसे ही सोनू घर में दाखिल हुआ, वो सीधा रजनी के कमरे में चला गया।
बेला भी आ चुकी थी और खाना बना रही थी।
सोनू ने रजनी के कमरे में जाकर कहा- मालिकन सामान ले आया हूँ।
रजनी- इतनी देर कहाँ लगा दी।
सोनू- वो मालकिन ये जगह मेरे लिए नई है ना…इसलिए देर हो गई।
रजनी- अच्छा ठीक है, जा रसोई में सामान रख दे और कुछ देर आराम कर ले।
सोनू जैसे ही रसोई में जाने लगा।
रजनी भी उसके साथ रसोई में आ गई।
वो किसी भी कीमत पर सोनू और बेला को एक पल के लिए अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी।
सोनू सामान रख कर पीछे अपने कमरे में चला गया।
बेला खाना बना कर अपना और अपनी बेटी का खाना साथ लेकर अपने घर वापिस चली गई।
अब रजनी घर पर अकेली थी और सोनू पीछे अपने कमरे में था।
भले ही रजनी के पास ज्यादा समय नहीं था, पर रजनी ये वक्त भी बर्बाद नहीं करना चाहती थी।
वो जानती थी कि चाची कान्ति किसी भी वक्त टपक सकती है।
रजनी ने सबसे पहले मैं दरवाजा बंद किया और फिर घर के पीछे चली गई।
सोनू के कमरे में पहुँच कर उसने देखा कि सोनू अन्दर पलंग पर लेटा हुआ सो रहा था।
रजनी ने एक बार उसे अपनी हसरत भरी आँखों से ऊपर से नीचे तक देखा, फिर उसके पास जाकर उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसे आवाज़ दी।
सोनू ने अपनी आँखें खोलीं, तो रजनी को अपने ऊपर झुका हुआ पाकर वो एकदम से हड़बड़ा गया और उठ कर बैठ गया।
सोनू- क्या हुआ मालकिन आप आप यहाँ?
रजनी- उठो.. खाना तैयार है, आकर खाना खा ले।
रजनी ने एक बार फिर से सोनू के बालों में प्यार से हाथ फेरा और पलट कर बाहर चली गई।
सोनू को ये सब कुछ अजीब सा लगा, पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और उठ कर घर के आगे की तरफ आ गया।
पूरे घर मैं सन्नाटा छाया हुआ था, बस रसोई से बर्तन की आवाज़ आ रही थी।
सोनू रसोई में गया, यहाँ पर रजनी एक प्लेट मैं खाना डाल रही थी- आ गया तू.. चल बाहर जाकर बैठ.. मैं खाना लेकर आती हूँ।
सोनू- रहने दीजिए ना मालकिन.. मैं खुद ले लेता हूँ।
रजनी- हाँ मैं जानती हूँ, तू बड़ा होशियार है.. सब खुद ले लेता है।
सोनू रजनी के दोअर्थी बात सुन कर थोड़ा सा झेंप गया।
उसे भी शक हो गया कि हो ना हो रजनी को उसके और बेला के रंगरेलियों के खबर लग चुकी है।
वो चुपचाप बाहर आकर बैठ गया, थोड़ी देर बाद रजनी रसोई से बाहर आई।
उसने अपनी साड़ी के पल्लू को कमर पर लपेट रखा था और उसकी 38 साइज़ की चूचियां उसके ब्लाउज में ऐसे तनी हुई थीं, जैसे हिमालय की चोटियाँ हों।
इस हालत में सोनू के सामने आने मैं रजनी को ज़रा भी झिझक महसूस नहीं हो रही थी।
रजनी- अरे नीचे क्यों बैठ गया तू.. उठ ऊपर उस कुर्सी पर बैठ जा.. नीचे फर्श बहुत ठंडा है, सर्दी लग जाएगी।
सोनू- नहीं मालकिन.. मैं यहीं ठीक हूँ।
रजनी- अरे घबरा मत.. ऊपर बैठ जा.. घर पर कोई नहीं है।
सोनू बिना कुछ बोले कुर्सी पर बैठ गया, रजनी ने उससे खाना दिया और खुद सामने पलंग पर जाकर बैठ गई।
सोनू सर झुकाए हुए खाना खाने लगा, रजनी उसकी तरफ देख कर ऐसे मुस्करा रही थी..जैसे शेरनी अपने शिकार होने वाले बकरे को देख कर खुश होती है।
सोनू तो ऐसे सर झुकाए बैठा था, जैसे वहाँ और कोई हो ही ना।
रजनी जानती थी कि इस उम्र के लड़कों को कैसे लाइन पर लिया जाता है।
वो पलंग पर लेट गई, उसने अपनी टाँगों को घुटनों से मोड़ कर पलंग के किनारे पर रख दिया और अपनी साड़ी और पेटीकोट को अपने घुटनों तक चढ़ा लिया, ताकि सोनू उसकी चिकनी चूत का दीदार कर सके।
टाँगों के फैले होने के कारण साड़ी में इतनी खुली जगह बन गई थी कि सामने बैठे सोनू को रजनी की चूत साफ़ दिखाई दे सके, पर सोनू को तो जैसे साँप सूँघ गया था, वो सर झुकाए हुए खाना खा रहा था।
‘अबे गांडू.. मादरचोद.. थाली में तेरी माँ चूत खोल कर बैठी है.. जो तेरी नज़रें वहाँ से हट नहीं रही हैं.. यहाँ मैं अपनी चूत खोल कर बैठी हूँ।’
रजनी ने मन ही मन सोनू को कोसा, पर सोनू तक रजनी के मन की बात नहीं पहुँची।
उसने खाना खत्म किया और उठ कर अपनी प्लेट रखने के लिए रसोई में चला गया।
जब सोनू रसोई में प्लेट रखने के लिए जा रहा था, तब रजनी को सोनू के जेब में से कुछ खनकने की आवाज़ सुनाई दी।
जिससे रजनी थोड़ी चौंक गई।
सोनू जब प्लेट रख कर वापिस आया तो रजनी ने उससे अपने पास बुला लिया।
रजनी पलंग पर बैठते हुए- अरे सोनू इधर आ.. क्या है तेरी जेब में?
रजनी की बात सुन कर सोनू का रंग उड़ गया।
जब वो शहर गया था.. तो वहाँ से वो बेला के लिए पायल खरीद कर लाया था, पर बेला को देने का मौका नहीं मिला था।
अब वो बेचारा क्या कहता कि जो पैसे रजनी ने उस रात सोनू को दिए थे, उसमें से वो बेला के लिए पायल ले आया है।
सोनू को यूँ चुप खड़ा देख कर रजनी ने फिर से सोनू से पूछा, पर अब सोनू कर भी क्या सकता था, चारों तरफ से फँस चुका था।
‘वो मालकिन.. वो पायल है..’
 
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रजनी थोड़ा परेशान होते हुए- पायल कहाँ से लाया तू.. दिखा निकाल कर..
सोनू ने पायल निकाल कर रजनी की तरफ बढ़ा दी।
‘क्यों रे, कहाँ से लाया और क्या करेगा इसका?’
सोनू- वो मालकिन जब मैं शहर गया था ना.. तब खरीदी थी।
सोनू के हाथ-पैर डर के मारे काँप रहे थे।
रजनी गुस्से से सोनू की ओर देखते हुए- सच-सच बोल.. किसने कहा था.. पायल लाने के लिए?
रजनी की कड़क आवाज़ सुन कर सोनू की तो मानो जैसे गाण्ड फट गई हो।
उसका चेहरा ऐसे लटक गया जैसे अभी रो पड़ेगा।
‘किसी ने नहीं कहा मालकिन..’
रजनी- तो फिर किसके लिए लाया था और बोल तुम्हारे पास पैसे कहाँ से आए?
सोनू- वो.. वो.. मालकिन..!
यह कहते-कहते सोनू एकदम चुप हो गया और सर झुका कर रजनी के सामने खड़ा हो गया, जैसे उसने बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो।
रजनी- देख.. मैं कहती हूँ, अगर तू अपनी भलाई चाहता है, तो सब सच-सच मुझे बता दे.. वरना अगर सेठ जी को मैंने बता दिया तो तेरी खैर नहीं.. बोजया क्यूँ नहीं.. बोल?
सोनू- वो मालकिन आपने उस रात को मुझे रुपये दिए थे ना..
रजनी को याद आया कि रात को उसने सोनू को रुपए दिए थे।
‘हाँ तो.. तू उससे जाकर ये पायल ले आया.. चल ठीक है.. अब ये भी बता किसके लिए लाया था?’
सोनू- वो.. वो.. मालकिन…
रजनी- अब ये ‘वो.. वो..’ बंद कर.. सच-सच बता दे मुझे?
सोनू- आपके लिए मालकिन।
गाण्ड फ़टती देख कर सोनू ने अपना पासा पलट दिया।
सोनू की बात सुन कर रजनी के चेहरे पर हैरानी और खुशी के भाव उमड़ पड़े।
उसके होंठों पर लंबी मुस्कान फ़ैल गई।
‘तू सच बोल रहा है ना?’ रजनी ने आँखें टेढ़ी करते हुए पूछा।
सोनू ने बस ‘हाँ’ में सर हिला दिया।
रजनी- मेरे लिए लाया था ये पायल?
सोनू- हाँ मालकिन।
यूँ तो रजनी को गहनों की कमी नहीं थी। वो हर समय सोने के जेवरों से लदी रहती थी, पर आज चाँदी की ये पायल जो सोनू लाया था, उसे पाकर आज उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
‘पर मेरे लिए क्यों खरीदा? वो पैसे तो मैंने तुम्हें खुश होकर दिए थे।’
सोनू- वो मालकिन.. आप मेरा कितना ख्याल रखती हैं.. मुझे कभी महसूस नहीं होने देती कि मैं एक नौकर हूँ.. इसलिए आपके लिए लाया था।
रजनी- झूठ.. तुम झूठ बोल रहे हो.. मैं नहीं मानती।
रजनी ने जानबूझ कर सोनू को ऐसा कहा।
सोनू- नहीं मालकिन.. कसम से आपके लिए ही लाया था।
रजनी- अच्छा तो फिर जेब में लेकर क्यों घूम रहा था.. मुझे दी क्यों नहीं?
सोनू- वो मालकिन वो वो.. मैं मुझे शरम आ रही थी।
रजनी- ना.. मैं तो तभी मानूँगी, जब तू ये पायल मुझे खुद पहनाएगा.. कि तू मेरे लिए ही ये लाया था।
यह कह कर रजनी ने अपनी साड़ी को घुटनों तक ऊपर कर लिया।
अब सोनू के पास और कोई चारा नहीं था, वो नीचे पैरों के बल बैठ गया, रजनी ने बड़ी ही अदा के साथ अपना एक पैर सोनू की जांघ के ऊपर रख दिया।
सोनू उस पैर में पायल पहनाने लगा।
सोनू की नजरें बार-बार रजनी की मांसल और चिकनी टाँगों की तरफ जा रही थीं।
यह सब देख कर रजनी के होंठों पर मुस्कान बढ़ती जा रही थी।
जैसे ही रजनी के एक पैर में पायल पड़ी, रजनी ने वो पैर सरका कर दूसरा पैर भी उसकी जांघ पर रख दिया।
‘ले अब इसमें भी पहना दे..’
पहले वाले पैर की ऊँगलियाँ सीधा सोनू के लण्ड से जा टकराईं। अब तक बेजान पड़े.. सोनू के लण्ड को जैसे करेंट लगा हो और उसमें जैसे जान आ गई हो, उसका लण्ड पजामे में फूलने लगा। जिसे रजनी महसूस कर सकती थी..
उसके लण्ड से उठ रही गर्मी को अपने पाँव के तलवों में महसूस करते ही.. उसकी चूत में सरसराहट होने लगी।
‘अरे रुक क्यों गया.. ‘डाल’ ना..’
रजनी ने बड़ी सी अदा से मुस्कुराते हुए कहा।
जैसे कह रही हो..अपना लण्ड मेरी चूत में डाल दे, बेचारा सोनू दूसरे पाँव में पायल डालने लगा।
जो तोहफा वो बेला के लिए लाया था.. वो रजनी की हवस का शिकार होकर उसके पाँव में आ चुका था।
तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी।
रजनी बुदबुदाते हुए- आ गई बुढ़िया कवाब में हड्डी बनने…
सोनू- क्या मालकिन?
रजनी- कुछ नहीं.. अब तू जाकर आराम कर.. शहर से आकर थक गया होगा।
सोनू उठ कर पीछे चला गया और रजनी खिसयाते हुए बाहर आकर दरवाजा खोला.. बाहर कान्ति देवी खड़ी थी। रजनी को उस पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर वो उसके समय कर भी क्या सकती थी।
 
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कान्ति देवी अन्दर आते हुए- बाहर बहुत ठंड है ना..?
रजनी झूठी मुस्कान अपने होंठों पर लाते हुए- जी चाची जी।
कान्ति- दरअसल मैं तुम्हें ये बताने आई थी कि मैं आज सुषमा के घर जा रही हूँ, उसके पोते की शादी है ना कल.. तो मैं आज रात नहीं रुक पाऊँगी.. ठीक है.. अब मैं चलती हूँ।
रजनी- जी चाची जी.. आप मेरी फिकर ना करें।
जैसे ही कान्ति के जाने के बाद रजनी ने दरवाजा बंद किया, रजनी ख़ुशी से उछल पड़ी, जैसे उसे मुँह-माँगी मुराद मिल गई हो।
अभी शाम के 4 बज चुके थे.. अब रजनी अपने और सोनू के बीच किसी को नहीं आने देना चाहती थी।
बेला के आने का वक्त भी हो रहा था।
बेला और रजनी दोनों एक-दूसरे को खूब अच्छी तरह से जानती थी। इसलिए रजनी के मन में ये शंका थी कि बेला हो ना हो बीच में अपनी टाँग जरूर अड़ाएगी।
तभी रजनी कुछ ऐसा सूझा, जिससे उसके होंठों की मुस्कान और बढ़ गई।
वो घर के पीछे बने सोनू के कमरे की तरफ गई और बाहर से ही सोनू को आवाज़ दी। रजनी की आवाज़ सुन कर सोनू बाहर आया।
सोनू- जी मालकिन।
रजनी- सुन.. तू ऐसा कर आज शहर चला जा दुकान पर.. तुम्हें तो पता है कि सेठ जी नहीं है, आज वहाँ जाकर थोड़ा काम देख ले कि वहाँ के लोग ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं.. दुकान बंद होते ही घर आ जाना और हाँ.. वहाँ शहर में ही कुछ खा लेना, लौटने में तुम्हें देर हो जाएगी।
सोनू- जी मालकिन.. मैं अभी चला जाता हूँ।
सोनू घर से निकल कर शहर की तरफ चल दिया।
शहर गाँव से कोई 3-4 किलोमीटर दूर था, पैदल चल कर भी वहाँ 20-25 मिनट में पहुँचा जा सकता था।
उधर सोनू के जाने के बाद बेला घर पर आ गई और घर के छोटे-मोटे काम करने लगी।
रजनी- बेला सुन।
बेला- जी दीदी।
रजनी- बेला.. वो आज सोनू का खाना मत बनाना, वो शहर गया है.. आज रात वो दुकान पर ही रुकेगा.. खाना भी वहीं खा लेगा।
बेला रजनी की बात सुन बेला उदास हो गई- जी दीदी।
आज बेला का मन भी काम में नहीं लग रहा था।
उसे रह-रह कर सोनू की याद आ रही थी।
उसने बेमन से खाना तैयार किया और अपनी बेटी और अपना खाना लेकर घर वापिस चली गई।
रात के 8 बजे सोनू दुकान बंद होने के बाद सोनू घर वापिस आने के लिए शहर से गाँव की ओर चला..
चारों तरफ घना कोहरा छाया हुआ था।
रात के अंधेरे और सन्नाटे की सरसराहट से उसकी गाण्ड फट रही थी। सुनसान रास्ते पर चलते हुए.. मानो उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो।
वो बार-बार पीछे मुड़ कर देखता.. पर पीछे कोई नहीं होता।
सोनू की हालत खराब होती जा रही थी। सड़क के दोनों तरफ खेत थे.. गन्ने की फसल में हवा चलने से अजीब से सरसराहट हो रही थी। ऐसा लगता मानो अभी खेतों में से कोई निकल कर उसे धर दबोचेगा..
पर यह सिर्फ़ सोनू का वहम था।
डर के मारे उसके हाथ-पैर थरथर काँप रहे थे।
फिर अचानक से खेतों में से एक नेवला बड़ी तेज़ी से सड़क पार करके दूसरे तरफ के खेतों में गया।
सोनू तो डर के मारे चीख पड़ा, पर इतने सुनसान रास्ते पर उसकी चीख सुनने वाला भी नहीं था।
उसे ऐसा लग रहा था कि उसके दिल के धड़कनें रुक जाएंगी।
जैसे-तैसे सोनू किसी तरह गाँव पहुँचा और चैन की साँस ली। उसने सोच लिया था कि वो रजनी को बोल देगा कि वो आगे से रात को शहर अकेला नहीं जाएगा, वो बुरी तरह से डरा हुआ था।
उसने दरवाजे पर दस्तक दी।
रजनी तो जैसे उसके ही इंतजार में बैठी थी।
रजनी- कौन है बाहर?
सोनू- जी.. मैं हूँ सोनू।
सोनू की आवाज़ सुनते ही, रजनी के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
उसने जल्दी से दरवाजा खोला।
जैसे दरवाजा खुला सोनू ऐसे अन्दर आया..जैसे उसकी मौत उसके पीछे लगी हो, उसका डरा हुआ चेहरा देख रजनी भी घबरा गई।
सोनू सीधा अन्दर चला गया.. रजनी ने दरवाजा बंद किया और सोनू के पीछे आँगन में आ गई।
‘क्या हुआ रे इतना घबराया हुआ क्यों है?’
सोनू नीचे चटाई पर बैठ गया, वो सच में बहुत डरा हुआ था। भूत देखा तो नहीं पर उसने भूतों के बारे में सुना ज़रूर था।
‘वो.. वो.. मैं मुझे रास्ते में डर लग रहा था।’ सोनू ने घबराहट में हड़बड़ाते हुए कहा।
रजनी- डर लग रहा था.. किससे?
सोनू- वो रास्ते में बहुत अंधेरा था, मैं आगे से रात को नहीं जाऊँगा।
रजनी को सोनू के भोलेपन पर हँसी आ गई।
 
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मैं आज यहीं सो जाऊँ मालकिन.. मुझे आज बहुत डर लग रहा है?’ सोनू ने रजनी की तरफ देखते हुए कहा।
सोनू की बात सुन कर रजनी को ऐसा लगा.. मानो आज उसकी मन की मुराद पूरी होने को कोई नहीं रोक सकता।
रजनी खुश होते हुए- हाँ.. हाँ.. क्यों नहीं.. यहाँ क्यों तू मेरे कमरे में सो जाना। इसमें डरने की क्या बात है.. खाना तो खाया ना तूने?
सोनू- हाँ मालकिन.. खाना खा लिया था।
रजनी- तू चल मेरे कमरे में.. मैं अभी आती हूँ।
यह कह कर रजनी रसोई में आ गई।
सोनू को अब भी ऐसा लग रहा था, जैसे उसके पीछे कोई हो।
वो डरता हुआ रजनी के कमरे में आ गया, वो सहमा हुए खड़ा था।
थोड़ी देर बाद अचानक रजनी के अन्दर आने की आहट सुन कर सोनू बुरी तरह हिल गया, पर जब रजनी को उसने देखा.. तो उसकी साँस में साँस आई।
रजनी हाथ में गिलास लिए खड़ी थी।
उसने गिलास को मेज पर रखा और मुड़ कर दरवाजा बंद कर दिया।
दरवाजा बंद करने के बाद उसने ओढ़ी हुई शाल को उतार कर टाँग दिया।
सोनू की हालत का अंदाज़ा रजनी को हो चुका था, अब वो इस मौके को जाया नहीं होने देना चाहती थी।
वो गिलास को मेज पर से उठाते हुए बोली- तू अभी तक खड़ा है, चल बैठ जा पलंग पर.. और ये ले पी ले।
रजनी ने हाथ में पकड़ा हुआ गिलास सोनू की तरफ बढ़ा दिया।
सोनू- यह क्या है मालकिन?
रजनी- दूध है.. गरम है.. पी ले.. ठंड कम हो जाएगी।
सोनू- इसकी क्या जरूरत थी… मालकिन?
रजनी- ले पकड़ और पी जा..अब ज्यादा बातें ना बना।
सोनू ने रजनी के हाथ से गिलास ले लिया और खड़े-खड़े पीने लगा।
रजनी बिस्तर के सामने खड़ी हो गई और अपनी साड़ी उतारने लगी.. सोनू दूध का घूँट भरते हुए उसके गदराए बदन को देख रहा था, कमरे में लालटेन की रोशनी चारों तरफ फैली हुई थी।
रजनी ने होंठों पर कामुक मुस्कान लिए हुए अपने मम्मे उठाते हुए सोनू से कहा- आराम से बैठ कर ठीक से ‘दूध’ पी, ऐसे कब तक खड़ा रहेगा।
जो रजनी बोलने वाली थी, सोनू को कुछ-कुछ समझ में आ गया था, पर सोनू ने उस तरफ़ ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
रजनी ने अपनी साड़ी उतार कर रख दी।
अब उसके बदन पर महरून रंग का ब्लाउज और पेटीकोट ही शेष था।
रजनी उसमें में बला की खूबसूरत लग रही थी।
सोनू अपनी नज़रें रजनी पर से हटा नहीं पा रहा था।
रजनी बिस्तर पर आकर बैठ गई और सोनू के सर को सहलाते हुए बोली- अरे अंधेरे से क्या डरना.. तू रोज रात पीछे अकेला ही सोता है ना.. फिर आज कैसे डर गया तू?
सोनू- वो मालकिन मैं लालटेन जला कर सोता हूँ।
रजनी- अच्छा ठीक है, आगे से कभी तुझे रात को नहीं भेजूँगी.. चल अब आराम से ‘दूध’ पी ले।
सोनू- मालकिन वो मुझसे पिया नहीं जा रहा है।
रजनी- क्यों क्या हुआ?
सोनू- आपने इसमें घी क्यों डाल दिया? मुझे दूध मैं घी पसंद नहीं है।
रजनी- तेरे लिए अच्छा है घी.. पी जा मुझे पता है.. आज कल तू बहुत ‘मेहनत’ करता है।
रजनी की बात सुन कर सोनू एकदम से झेंप गया।
सोनू ने दूध खत्म किया और गिलास को मेज पर रख दिया।
जैसे ही सोनू ने गिलास को मेज पर रख कर मुड़ा तो उसने देखा कि रजनी रज़ाई के अन्दर घुसी हुई उसकी तरफ खा जाने वाली नज़रों से देख रही है।
‘अब वहाँ खड़ा क्या है… सोना नहीं है क्या?’
रजनी ने सोनू से कहा..
पर सोनू को समझ में नहीं आ रहा था कि वो सोएगा कहाँ? क्योंकि वो रजनी के साथ बिस्तर पर तो सोने के बारे में सोच भी नहीं सकता था।
सोनू- पर मालकिन मैं कहाँ लेटूँगा?
रजनी- अरे इतना बड़ा पलंग है.. यहीं सोएगा और कहाँ?
सोनू- आपके साथ मालकिन.. पर..!
रजनी- चल कुछ नहीं होता.. आ जा।
यह कह कर रजनी ने एक तरफ से रज़ाई को थोड़ा सा ऊपर उठा लिया, सोनू काँपते हुए कदमों के साथ बिस्तर पर चढ़ गया और रजनी के साथ रज़ाई में घुस गया।
जैसे ही वो रजनी के पास लेटा… रजनी के बदन से उठ रही मंत्रमुग्ध कर देने वाली खुश्बू ने उससे पागल बना दिया। रजनी उसके बेहद करीब लेटी हुई थी।
दोनों एक-दूसरे के जिस्म से उठ रही गरमी को साफ़ महसूस कर पा रहे थे।
रजनी- सोनू बेटा.. मेरी जाँघों में बहुत दर्द हो रहा है, थोड़ी देर दबा देगा?
सोनू- जी मालकिन.. अभी दबा देता हूँ।
रजनी (पेट के बल उल्टा लेटते हुए)- सच सोनू तू कितना अच्छा है.. मेरा हर दिया हुआ काम कर देता है… चल ये रज़ाई हटा दे और मेरी जाँघों की अच्छे से मालिश कर दे।
जैसे ही रजनी ने सोनू को मालिश की बात बोली, उससे उस रात की घटना याद आ गई, जब रजनी ने अपनी जाँघों की मालिश करवाते हुए अपनी चूत का दीदार सोनू को करवाया था।
‘मालकिन.. तेल से मालिश करूँ?’ सोनू ने उत्सुक होते हुए पूछा।
रजनी- हाँ.. तेल ले आ और अच्छे से मालिश कर दे।
 
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सोनू बिस्तर से उतर कर सामने रखी तेल की बोतल उठा कर जैसे ही पलटा तो उसका कलेजा हलक में आ गया।
सामने रजनी उल्टी लेटी हुई थी.. पीछे से उसके भारी चूतड़ महरून रंग के पेटीकोट में पहाड़ की तरह उभरे हुए थे, जिसे देख कर सोनू का लण्ड फड़फड़ाने लगा और वहीं उसके पैर जम गए।
रजनी- वहाँ क्यों रुक गया.. चल आजा, बहुत सर्दी है।
सोनू- वो मालकिन मुझे बहुत तेज पेशाब आ रहा है।
रजनी- तो जाकर कर आ.. मैंने कहाँ रोक रखा है तुझे?
सोनू- पर वो मालकिन पीछे अंधेरा होगा।
रजनी (अपने सर को झटके हुए)- चल मैं तेरे साथ चलती हूँ।
जब दोनों कमरे से निकल कर घर के पीछे की तरफ आए तो उन्होंने देखा.. बाहर जोरों से बारिश हो रही है।
‘जा तू मूत के आ.. मैं यहीं खड़ी हुई हूँ.. नहीं तो मैं भी भीग जाऊँगी।’
सोनू ने ‘हाँ’ में सर हिलाया और गुसलखाने की तरफ भागते हुए गया.. पर बारिश से बच ना पाया, उसके कपड़े एकदम गीले हो गए।
जब सोनू वापस आया तो रजनी ने देखा वो पूरी तरह से भीगा हुआ है।
रजनी- तू यहीं रुक.. मैं तेरे लिए कुछ लाती हूँ.. अगर गीले कपड़े अन्दर लेकर गया तो सारा घर गीला कर देगा।
यह कह कर रजनी अन्दर चली गई।
बारिश के कारण सर्दी और बढ़ गई थी। थोड़ी देर बाद जब रजनी वापिस आई.. तो उसके हाथ में एक लुँगी थी।
‘और तो कुछ मिला नहीं.. अब यही पहन ले..’ रजनी ने उसकी तरफ वो लुँगी बढ़ा दी और पलट कर कमरे के तरफ जाने लगी।
‘सारे कपड़े निकाल दे और इसे पहन कर अन्दर आ जा… बाहर बहुत सर्दी है।’
रजनी के जाने के बाद सोनू ने अपने गीले कपड़े उतारे और वो लुँगी पहन कर कपड़ों को वहीं टाँग दिया और कमरे के तरफ चल पड़ा।
जब सोनू रजनी के कमरे में पहुँचा तो रजनी बिस्तर पर लेटी हुई थी।
‘दरवाजा बंद कर दे।’ रजनी ने सोनू के बदन को घूरते हुए कहा।
उसकी नज़र सोनू के मांसल और चिकने बदन पर से हट नहीं रही थी, सोनू ने दरवाजा बंद किया और तेल की बोतल उठा कर रजनी के बिस्तर की तरफ बढ़ा।
रजनी ने देखा सोनू बुरी तरह से काँप रहा है, उसे सोनू पर तरस आ गया।
रजनी- अरे तू तो बहुत काँप रहा है.. चल छोड़ ये मालिश-वालिश आज.. लेट जा।
यह कह कर रजनी ने रज़ाई को एक तरफ से उठा कर अन्दर आने के लिए इशारा किया।
सोनू को यकीन नहीं हो रहा था कि वो पेटीकोट और ब्लाउज में लेटी हुई हुस्न की देवी रजनी के बेहद करीब सोने वाला है।
यह देखते और सोचते ही सोनू के बेजान लण्ड में जान पड़ने लगी और खड़ा होकर उसकी पहनी हुई लुँगी को आगे से उठाने लगा, जिस पर रजनी की नज़र पड़ते ही, रजनी के होंठों पर कामुक मुस्कान फ़ैल गई।
सोनू घबराते हुए रजनी के पास जाकर रज़ाई में घुस गया।
दोनों करवट के बल लेते हुए एक-दूसरे के बेहद नज़दीक लेटे हुए थे।
रजनी की गरम साँसें सोनू अपने चेहरे पर महसूस करके मदहोश हुआ जा रहा था, सर्दी और उत्तेजना के कारण उसका पूरा बदन थर-थर काँप रहा था, सोनू की हालत देख कर रजनी भी थोड़ा परेशान हो गई।
जो रजनी कुछ देर पहले वासना की आग में जल रही थी, सोनू की हालत देख कर उसकी वासना जैसे हवा हो गई।
अब तो उसे सच में सोनू की चिंता होने लगी थी.. उसने सोनू के दोनों हाथों को अपने हाथों में लेकर रगड़ना शुरू कर दिया।
रजनी ने सोनू के पास सरकते हुए कहा- तुम्हारे हाथ तो बरफ जैसे ठंडे पड़ गए हैं।
अब दोनों के बदन एक-दूसरे को छू रहे थे, रजनी के बदन की गरमी महसूस करते ही सोनू के बदन में जैसे आग लग गई हो.. उसके बदन से उठ रही मादक खुशबू से सोनू बेताब होता जा रहा था।
उसने अपने चेहरे को ब्लाउज से बाहर झाँक रही रजनी की चूचियों के पास ले गया।
रजनी जो आँखें बंद किए हुए सोनू के हाथों की हथेलियों को रगड़ कर गरम करने के कोशिश कर रही थी.. सोनू की गरम साँसों को अपनी चूचियों पर महसूस करते ही सिहर उठी।
रजनी ने अपनी आँखें खोल कर सोनू की तरफ देखा, सोनू अपनी अधखुली आँखों से रजनी की गुंदाज चूचियों की तरफ देख रहा था और उसके नकुओं से गरम हवा निकल कर उसकी चूचियों से टकरा रही थी, जिससे एक बार फिर वासना अपना असर रजनी के दिमाग़ पर दिखाने लगी।
वो एकटक सोनू के भोले-भाले चेहरे की तरफ देख रही थी।
उसके मासूम चेहरे को देख कर रजनी के दिल के अन्दर जो प्यार उमड़ रहा था, उसको बयान करना तो सिर्फ़ रजनी के बस की ही बात है।
रजनी ने सोनू के हाथों को छोड़ कर अपनी एक बाजू को उसकी कमर में डालते हुए सोनू को अपनी तरफ खींचा, जिससे सोनू जो कि अपनी अधखुली आँखों से रजनी की चूचियों को देख रहा था… वो होश में आया और अपनी आँखों को ऊपर करके रजनी की तरफ देखने लगा।
बदले में रजनी ने एक प्यार भरी मुस्कान के साथ उसके सर पर हाथ ले जाकर उसके बालों को सहलाते हुए उसके चेहरे को अपनी चूचियों से सटा लिया.. सोनू के लिए ये सीधा-सीधा संकेत था।
सोनू के दहकते हुए होंठ रजनी के फड़फ़ड़ाती हुई चूचियों के ऊपर वाले हिस्से पर जा लगे और अपनी चूचियों पर सोनू के होंठों को पा कर रजनी के बदन में करेंट सा दौड़ गया।
‘आह सोनू…’ कहते हुए उसने सोनू को और अपने से सटा लिया।
 
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सोनू भी अब पूरे जोश में था। रजनी अपनी चूचियों को ऊपर-नीचे करने लगी, जिससे सोनू के होंठ रजनी के चूचियों पर रगड़ खाने लगे।
रजनी की साँसें अब बहुत तेज चल रही थीं।
अचानक से सोनू ने अपना हाथ रजनी की जांघ पर रख दिया, सोनू को उस समय बहुत बड़ा झटका लगा, रजनी का पेटीकोट उसकी जाँघों से काफ़ी ऊपर चढ़ा हुआ था।
सोनू का हाथ जांघ पर पड़ते ही रजनी के बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई ‘हय.. सीईईई सोनू..’
रजनी की मादक सिसकी सुनकर सोनू को जैसे होश आया।
उसने अपना हाथ उसकी जांघ से हटा लिया, इससे पहले के सोनू अपना हाथ पीछे करता…
रजनी ने सोनू का हाथ पकड़ अपनी दोनों जाँघों के बीच में दबा लिया।
सोनू को ऐसे लगा मानो उसका हाथ किसी दहक रही भट्टी के अन्दर चला गया हो, इतनी गरम जगह तो और कहीं हो नहीं सकती।
सोनू भी अब रजनी के रंग में रंगने लगा था, उसका लण्ड अब लुँगी में पूरी तरह से तन चुका था और उसको पता भी नहीं चला कि कब उसका लण्ड लुँगी के कपड़े को हटा करके बाहर आ चुका था और रजनी की चूत पर पेटीकोट के ऊपर से रगड़ खाने लगा।
रजनी की चूत में मानो आग लग गई हो, अब उससे बर्दाश्त करना मुश्किल होता जा रहा था।
रजनी ने सोनू के हाथ को जो कि उसने अपनी जाँघों में दबा रखा था, उससे बाहर निकाल दिया और अपनी ऊपर वाली टाँग को उठा कर सोनू की कमर पर रख कर अपना पेटीकोट कमर तक उठा दिया।
सोनू के 8 इंच के लण्ड का मोटा सुपारा सीधा रजनी की चूत की फांकों पर जा लगा… उसकी आँखें मदहोशी के आलम में बंद होने लगीं।
सोनू के हाथ-पैर कामुकता के कारण कांप रहे थे।
रजनी की चूत की फांकों ने सोनू के लण्ड के सुपारे को चूम कर स्वागत किया और सुपारे के चारों तरफ फ़ैल गईं।
‘ऊंह ओह सोनू..’ मादक सिसकी भरते हुए रजनी ने उसे और ज़ोर से अपने से चिपका लिया और अपनी कमर को धीरे आगे की तरफ करते हुए सोनू के लण्ड पर अपनी चूत दबाने लगी, सोनू के लण्ड का सुपारा अब सीधा रजनी की चूत पर टिका हुआ था।
सोनू अपने लण्ड के सुपारे पर रजनी की चूत से बह रहे गरम लिसलिसे पानी को महसूस करके और उत्तेजित हो गया और उसने भी अपनी कमर को आगे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया।
सोनू के लण्ड का सुपारा रजनी की कसी चूत के छेद को फ़ैलाता हुआ अन्दर घुसने लगा।
रजनी को सोनू के मोटे लण्ड का सुपारा अपनी चूत की दीवारों पर रगड़ ख़ाता हुआ महसूस हुआ, तो वो पागलों की तरह सोनू के चेहरे पर चुम्बनों की बारिश करने लगी।
रजनी- ओह्ह.. सोनू मेरे राजा… ओह उम्ह्ह ओह.. मेरी जान.. हाँ चोद डाल मुझे.. कब से तरस रही है.. ये तेरी मालकिन.. ओह.. सोनू।
यह कहते हुए रजनी ने सोनू को बाँहों में भरते हुए अपने ऊपर खींच लिया..
इस खींचा-तानी में सोनू की लुँगी उसके बदन से अलग हो गई।
अब सोनू का सारा वजन रजनी के ऊपर आ चुका था।
रजनी ने सोनू की कमर को दोनों तरफ से पकड़ कर अपनी गाण्ड को ऊपर की तरफ उछाला।
सोनू का मोटा लण्ड रजनी की कसी चूत में रगड़ ख़ाता हुआ आधे से ज्यादा अन्दर चला गया.. रजनी की आँखें मस्ती में बंद हो गईं। अपने होंठों को दाँतों में चबाते हुए उसने अपनी टाँगों को फैला लिया, ताकि सोनू आराम से उसकी चूत में अपना लण्ड अन्दर-बाहर कर सके।
रजनी का बदन पूरा ऐंठ चुका था। अभी तक कोई बच्चा ना होने के कारण और सेठ से बहुत कम चुदी हुई रजनी की चूत किसी जवान लड़की की चूत की तरह कसी हुई थी।
सोनू को उसकी चूत अपनी लण्ड पर कसी हुई महसूस हो रही थी..
जो कि बेला की चूत से कहीं ज्यादा कसी थी।
इसलिए सोनू वासना के सागर में गोते खा रहा था, पर रजनी की चूत जिस हिसाब से पानी छोड़ रही थी..
उससे सोनू का लण्ड बिना किसी दिक्कत के अन्दर की ओर बढ़ता जा रहा था।
रजनी- ओह सोनू हाँ.. डाल दे धीरे-धीरे पूरा अन्दर कर दे… ओह सी ओह।
सोनू का लण्ड पूरा का पूरा रजनी की चूत में समा गया..
रजनी की चूत के छेद का छल्ला पूरी तरह फैला हुआ था और रजनी अपनी आँखें बंद किए हुए सिसया रही थी।
सोनू के लण्ड की सख्ती को महसूस करके, उसकी चूत लगातार पानी बहा रही थी।
सोनू ने रजनी के कामुक चेहरे की ओर देखा, सोनू का लण्ड जड़ तक रजनी की चूत में समाया हुआ था।
रजनी ने भी अपनी अधखुली आँखों से सोनू की आँखों में देखा, जैसे कह रही हो ‘अब रुक क्यों गए?’
सोनू ने धीरे-धीरे अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उठाना चालू किया।
उसका लण्ड रजनी की चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ बाहर आने लगा। जिससे रजनी के रोम-रोम में मस्ती की लहर दौड़ गई और उसकी आँखें एक बार फिर से बंद हो गईं।
रजनी अपनी चूत पर होने वाले पहले प्रहार के लिए अपने आप को जैसे तैयार कर रही थी।
तेज चलती साँसों के साथ हिलती हुई बड़ी-बड़ी चूचियाँ, जिसे देख कर सोनू पागल हुआ जा रहा था।
अपने लण्ड को सुपारे तक बाहर निकाल कर सोनू एक पल के लिए रुका।
जैसे वो भी पहले झटके के तैयारी कर रहा हो।
रजनी जिसने कि सोनू की कमर को दोनों हाथों से कस कर पकड़ा हुआ था।
उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी, उसके हाथ उसकी कमर पर काँप रहे थे और अपनी टाँगों को घुटनों से मोड़ कर जितना हो सकता था, ऊपर उठा लिया।
सोनू एक पल के लिए और रुका और फिर अपनी गाण्ड को पूरी रफ़्तार के साथ आगे की तरफ धकेला।
पूरे कमरे में ‘ठाप’ की ज़ोर से आवाज़ गूँज उठी।
‘ऊंहह ओह सोनू..’ रजनी ने अपने होंठों को चबाते हुए कहा।
सोनू का लण्ड पूरी रफ़्तार से एक बार उसकी चूत की गहराईयों में खो चुका था।
सोनू के मुँह से भी ‘आहह’ निकल गई।
रजनी ने उसे अपने ऊपर खींच कर अपने से चिपका लिया, सोनू भी पूरी मस्ती में आ चुका था।
उसने एक बार फिर अपने लण्ड को सुपारे तक बाहर निकाला और फिर अपनी गाण्ड को पूरी रफ़्तार से धक्का देते हुए, अपने लण्ड को रजनी की चूत की गहराईयों में उतार दिया, ‘ओह जुग-जुग जियो मेरे लाल..।’
रजनी की ऐसी बातें सोनू को और जोश दिला रही थीं।
रजनी भी सोनू के लण्ड की नसों को अपनी चूत में फूजया हुआ साफ़ महसूस कर पा रही थी।
सोनू के इन दो जबरदस्त धक्कों ने उसकी चूत में और सरसराहट बढ़ा दी।
उससे डर था कि कहीं सोनू जोश में आकर जल्दी ना झड़ बैठे और उससे यूँ ही सुलगता हुआ न छोड़ दे।
सोनू की रफ़्तार को कम करने के लिए.. उसने अपनी टाँगों को उसकी कमर पर कस लिया और अपने दोनों हाथों से अपने ब्लाउज के बटन खोल कर अपनी 38 साइज़ के चूचियों को आज़ाद कर दिया।
आज तो सोनू की किस्मत उस पर मेहरबान हो गई थी।
रजनी की गुंदाज और कसी हुई चूचियों को देख सोनू से रहा नहीं गया और पलक झपकते ही रजनी की बाईं चूची को जितना हो सकता था, मुँह में भर लिया।
अपने चूचुक पर सोनू की गरम जीभ और लार को महसूस करते ही… उसके बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई। उसने अपनी बाँहों को सोनू के पीठ पर कस लिया।
 
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सोनू उसका चूचुक चूसते हुए पूरी रफ़्तार से अपने लण्ड को उसकी चूत के अन्दर-बाहर करने लगा और रजनी अपनी गाण्ड को बिस्तर से ऊपर उठाए हुए उसके धक्कों की रफ़्तार को कम करने की कोशिश करने लगी।
रजनी- ओह्ह रुक ज़ाआअ.. सोनू धीरे-धीरे उफफफफफ्फ़ तू सुन ना… मेरी बात.. ओह्ह कितना मोटा है रे.. तेरा मूसल ओह.. धीरे-धीरे हाँ.. बेटा ऐसे हीई धीरे-धीरे चोद दे अपनी मालकिन को.. ओह्ह बेटा आराम से.. पहले मेरी इन चूचियों को जी भर के चूस.. ओह्ह बेटा.. मैं कहीं भागी थोड़ी जा रही हूँ.. रोज तुझे चुदवाऊँगी.. बेटा ओह्ह धीरे..
सोनू (रजनी के चूचुक को मुँह से निकालते हुए )- सच मालकिन आप रोज मुझ से…
रजनी (अपनी मदहोशी से भरी आँखें खोल कर सोनू की तरफ देखते हुए)- हाँ मेरी जान.. तेरे इस मोटे लौड़े को तो अब रोज अपनी चूत में लूँगी.. अब आराम से चोद.. बोल जल्दबाजी नहीं करेगा ना..
सोनू- नहीं मालकिन आप जैसे कहो.. मैं वैसे ही करूँगा।
रजनी ने दोनों के ऊपर रज़ाई खींच ली, ‘आह्ह… बेटा ले चूस ले बेटा..।’ और ये कहते हुए उसने सोनू के सर को अपनी चूचियों पर दबा दिया।
सोनू भी जैसे इसी पल का इंतजार कर रहा था.. उसने भी फिर से उसकी चूची के चूचुक को मुँह में भर लिया और ज़ोर-ज़ोर से उसकी चूची को चूसते हुए, धीरे-धीरे अपने लण्ड को उसकी चूत में अन्दर-बाहर करने लगा।
सोनू का दूसरा हाथ अब रजनी की दूसरी चूची पर आकर उसे मसलने लगा था। सोनू की इस हरकत से रजनी के होंठों पर कामुक मुस्कान फ़ैल गई।
रजनी- हाँ मेरे सोना.. मसल दे मेरे चूचियों को ओह राजा…आा.. मैं तो कब.. से ओह्ह… धीरे.. बेटा ओह तेरे लण्ड को अपनी फुद्दी में लेने के लिए तड़फ रही थी…ओह्ह आह्ह.. आह्ह.. धीरेए सोनू ओह..
रजनी की चूत से निकल रहे कामरस से सोनू का लण्ड पूरी तरह भीग कर चिकना हो गया था और बिना किसी रोक-टोक के उसकी चूत में अन्दर-बाहर हो रहा था।
सोनू ने अपने होंठों को उसके चूचुक से हटाया और उसकी गर्दन को चाटते हुए उसके गालों पर चुम्बन करने लगा।
रजनी ने भी दोनों हाथों से सोनू के सर को पकड़ लिया और उसके बालों को सहलाने लगी।
‘सीईईईईई ओह.. सोनू चोद मुझे ओह हान्ंणणन् तेरी ये मालकिन बरसों से तरस रही है.. ओह हाँ चोद बेटा ज़ोर से चोद ओह्ह डाल दे अपना पूरा लण्ड ओह..’
रजनी अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी और झड़ने के करीब पहुँच रही थी.. उसने अपने पैरों को.. जो सोनू की कमर के चारों ओर कस रखे थे.. उन्हें हटा कर अपनी जाँघों को पूरा खोल लिया और अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछालने लगी।
सोनू का लण्ड ‘फच-फच’ की आवाज़ के साथ रजनी की चूत में अन्दर-बाहर होने लगा।
रज़ाई में गरमी इस कदर बढ़ गई थी कि दोनों पसीने से तर हो गए।
रजनी ने रज़ाई को एक तरफ पटक दिया और सोनू के सर को पकड़ कर अपने होंठों को उसके होंठों पर लगा दिया।
सोनू भी अब कहाँ रुकने वाला था।
जैसे ही रजनी ने अपने होंठों को उसके होंठों पर रखा, उसने रजनी के दोनों होंठों को चूसना शुरू कर दिया… नीचे अपनी कमर को पूरी रफ़्तार से हिलाते हुए, सोनू अपना लण्ड रजनी की चूत में अन्दर-बाहर करता जा रहा था और रजनी भी अपनी गाण्ड को बिस्तर से ऊपर उठा कर सोनू का लण्ड अपनी चूत में ले रही थी।
फिर तो जैसे रजनी की चूत से सैलाब उमड़ पड़ा।
उसका पूरा बदन अकड़ गया और उसने अपने नाख़ून सोनू की पीठ में गढ़ा दिए।
बेला की खिली हुई के चूत के मुक़ाबले में रजनी की कसी हुई चूत में सोनू का लण्ड भी और टिक नहीं पाया और एक के बाद एक वीर्य की बौछार कर उसकी चूत की दीवारों को भिगोने लगा।
वासना का तूफ़ान ठंडा पड़ चुका था… पर अब भी दोनों एक-दूसरे के होंठों को चूस रहे थे।
 
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रजनी (सोनू के होंठों से अपने होंठों को अलग करते हुए, उखड़ी हुई साँसों के साथ)- सोनू बेटा आज तूने मुझे वो सुख दिया है, जिसके लिए मैं कई सालों से तड़फ रही हूँ। आज से तुम मेरे नौकर नहीं.. मैं तुम्हारी दासी बन कर रहूँगी.. तुझे दुनिया की हर वो चीज़ मिलेगी.. जिस पर तुम हाथ रख दोगे.. ये तुमसे रजनी का वादा है।
सोनू- वो मालकिन मुझे वो..
रजनी- हाँ.. बोल मेरे राजा अगर कुछ चाहिए तो…
सोनू- नहीं.. वो मैं कह रहा था कि आप मुझे रोज ये सब करने देंगीं?
रजनी- ओह्ह… मेरे लाल बस इतनी सी बात कहने के लिए इतना परेशान क्यों हो रहा है? सीधा क्यों नहीं कहता कि तू मुझे रोज चोदना चाहता है.. है ना..? बोल..
सोनू (शरमाते हुए)- हाँ.. मालकिन।
रजनी- चोद लेना मेरे राजा.. जब तुम्हारा दिल करे.. पर दिन में थोड़ा ध्यान रखना.. किसी को पता नहीं चलना चाहिए, चल छोड़ ये सब अभी तो आज पूरी रात पड़ी है।
यह कहते हुए रजनी ने सोनू को अपने ऊपर से हटा कर बिस्तर पर लेटा दिया और खुद उसके टाँगों के बीच में जाकर घुटनों के बल बैठ गई।
सोनू का अधखड़ा लण्ड अभी भी काफ़ी लंबा और मोटा लग रहा था, जिसे देख कर रजनी की आँखों में एक बार फिर से वासना जाग उठी।
उसने अपने काम-रस से भीगे सोनू के लण्ड को मुठ्ठी में पकड़ लिया और तेज़ी से हिलाने लगी।
सोनू- ओह्ह मालकिन धीरे ओह्ह..
रजनी ने लंड की तरफ मुस्कुराते हुए सोनू की तरफ देखा और फिर अपनी कमर पर इकठ्ठे हुए पेटीकोट से सोनू के गीले लण्ड को साफ़ किया और फिर झुक कर उसके लण्ड के सुपारे को अपने होंठों के बीच में दबा लिया।
सोनू का पूरा बदन काँप गया, उसने रजनी के सर को दोनों हाथों से कस कर पकड़ लिया।
‘ये क्या कर रही हैं मालकिन आप.. ओह..’
रजनी ने सोनू की बात पर ध्यान दिए बिना.. उसके लण्ड को चूसना शुरू कर दिया।
सोनू मस्ती में ‘आहह ओह्ह’ कर रहा था।
एक बार फिर से सोनू के लण्ड में तनाव आना चालू हो गया था।
जिसे देख कर रजनी की चूत की फांकें एक बार फिर से कुलबुलाने लगीं और वो और तेज़ी से सोनू के लण्ड को चूसते हुए, अपने मुँह के अन्दर-बाहर करने लगी।
उसके हाथ लगातार सोनू के अन्डकोषों को सहला रहे थे और सोनू के हाथ लगातार रजनी के खुले हुए बालों में घूम रहे थे।
रजनी बार-बार अपनी मस्ती से भरी अधखुली आँखों से सोनू के चेहरे को देख रही थी जो आँखें बंद किए हुए अपने लण्ड को चुसवा रहा था।
रजनी ने सोनू के लण्ड को मुँह से निकाला और सोनू के अन्डकोषों को मुँह में भर चूसना चालू कर दिया, ‘ओह्ह बस मालकिन.. ओह्ह..’सोनू को ऐसा लगा मानो उसकी साँस अभी बंद हो जाएगीं, उसका दिल बहुत जोरों से धड़क रहा था।
जब सोनू से बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने रजनी को उसके बालों से पकड़ कर खींच कर अपने ऊपर लेटा लिया। रजनी की चूचियाँ सोनू छाती में आ धँसीं।
दोनों हाँफते हुए एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे, सोनू ने अभी भी रजनी के बालों को कस कर पकड़ा हुआ था, पर रजनी के होंठों पर फिर भी मुस्कान फैली हुई थी।
नीचे सोनू का लण्ड रजनी की चूत के ऊपर रगड़ खा रहा था।
रजनी सोनू की आँखों में देखते हुए अपना एक हाथ नीचे ले गई और सोनू के लण्ड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर टिका दिया और सोनू के आँखों में देखते हुए धीरे-धीरे अपनी चूत को सोनू के लण्ड पर दबाने लगी।
रजनी के थूक से सना हुआ सोनू का लण्ड उसकी चूत के छेद को फ़ैलाते हुए अन्दर घुसने लगा।
सोनू को ऐसे लग रहा था, जैसे उसके लण्ड का सुपारा किसी चूत में नहीं.. बल्कि किसी तपती हुई भट्टी के अन्दर जा रहा हो।
सोनू की आँखें एक बार फिर से बंद हो गईं।
रजनी ने सोनू के दोनों हाथों को पकड़ कर अपनी चूचियों पर रख कर अपने हाथों से दबा दिया और अपनी चूत को तब तक सोनू के लण्ड पर दबाती रही, जब तक कि सोनू का पूरा 8 इंच लंबा लण्ड उसकी चूत की गहराईयों में समा कर उसकी बच्चेदानी के छेद से न जा टकराया।
रजनी (काँपती हुई आवाज़ मैं)- ओह्ह सोनू तेरा लण्ड कितना बड़ा है….ओह.. देख ना कैसे मेरी चूत को खोल रखा है.. ओह सोनू..
रजनी की चूत तो जैसे पहले से एक और जबरदस्त चुदाई के लिए तैयार थी और अपने अन्दर कामरस की नदी बहा रही थी।
सोनू का लण्ड अब जड़ तक रजनी की चूत में घुसा हुआ था और रजनी की चूत से कामरस बह कर सोनू के अन्डकोषों तक आ रहा था।
सोनू आँखें बंद किए हुए.. रजनी की चूचियों को अपने हाथों से मसल रहा था, बीच में वो उसके चूचकों को अपनी उँगलियों के बीच में दबा कर खींच देता, जिससे रजनी एकदम से सिसक उठती और उसकी कमर अपने आप ही आगे की ओर झटका खा जाती।
 

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