Adultery चन्डीमल हलवाई की दो बीवियाँ और नौकर (सम्पूर्ण)

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सोनू ने अपने मुरझाए हुए लण्ड की ओर देखा, वो जया की चूत की कामरस से एकदम भीगा हुआ था।
उसने कमरे में इधर-उधर नज़र दौड़ाई..
तो उसे जया की शाल दरवाजे के पास टंगी हुई नज़र आई.. वो शाल के पास गया और उसके एक छोर को पकड़ कर उससे अपना लण्ड साफ़ करने लगा.. तभी रजनी अचानक से कमरे में आ गई।
उसने सोनू के लण्ड की तरफ देखा।
जो शिकार करने के बाद लटक रहा था।
रजनी- क्यों कैसी लगी मेरे माँ की चूत?
सोनू रजनी की बात सुन कर एकदम से हैरान रह गया.. उससे यकीन नहीं हो रहा था कि रजनी उससे अपनी माँ की चूत की बारे में पूछ रही है।
'आज रात वो तेरे पास ही लेटेगी.. साली की चूत सुजा दे चोद-चोद कर.. इतना चोद कि सुबह चल भी ना पाए।'
सोनू रजनी की ऐसे बातें सुन कर मुँह फाड़े बुत की तरह खड़ा था.. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि रजनी ये सब कह रही है।
'जा देख कर साली नीचे मूतने गई है। अगर तुम मुझे अपनी मालकिन मानते हो तो जहाँ मिले वहीं पटक कर चोद देना..'
सोनू रजनी की बात का जवाब दिए बिना अपना पजामा पहने नंगा ही नीचे चला गया.. जब वो आँगन में पहुँचा तो उसे गुसलखाने से कुछ आवाज़ सुनाई दी।
वो धीरे-धीरे गुसलखाने के तरफ बढ़ा और जया के मूतने की सुरीली सी आवाज़ उसके कानों में पड़ी…
सोनू गुसलखाने के दरवाजे के पास खड़ा होकर अन्दर झाँकने लगा।
अन्दर का नज़ारा देख कर एक बार फिर से सोनू का लण्ड पूरे उफान पर आ चुका था।
जया मूतने के बाद झुक कर अपनी चूत को एक कपड़े से साफ़ कर रही थी.. पीछे खड़े सोनू के सामने जया के बड़े-बड़े चूतड़ों के बीच लबलबा रही चूत का गुलाबी छेद उस पर कहर बरपा रहा था।
जया को इस बात का पता नहीं था कि सोनू उसके पीछे खड़े होकर उसकी बड़ी गाण्ड को देख रहा है।
अगले ही पल सोनू का 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लण्ड किसी सांप की तरह फुंफकार रहा था।
गुसलखाने के अन्दर एक बड़ा सा पुराना मेज रखा हुआ था.. जिस पर कुछ पानी के मटके और लालटेन रखी हुई थी।
जया अपनी चूत की फांकों को अपनी उँगलियों से सहला रही थी, उसके होंठों पर ख़ुशी से भरी हुई मुस्कान फैली हुई थी।
अचानक से उससे अपनी चूत पर एक बार फिर से सोनू के लण्ड के मोटे और गरम सुपारे का अहसास हुआ.. जिसे महसूस करते ही.. उसके पूरे बदन में मस्ती की कंपकंपी दौड़ गई।
'आह क्या कर रहा है ओह्ह..छोड़ मुझे!'
इसके पहले कि जया कुछ संभल पाती.. सोनू का लण्ड उसकी चूत की फांकों को फैला कर चूत के छेद पर जा लगा।
'ओह्ह आह सीईईई..' जया के मुँह से मस्ती भरी 'आह' निकल गई।
जया ने एक बार अपनी गर्दन पीछे घुमा कर सोनू की तरफ अपनी वासना से भरी मस्त आँखों से देखा और मुस्करा कर फिर से आगे देखते हुए.. अपने दोनों हाथों को उस पुराने मेज पर टिका कर झुक गई।
फिर बड़ी ही अदा के साथ अपने पैरों को फैला कर पीछे से अपनी गाण्ड ऊपर की तरफ उठा लिया।
अब सोनू का लण्ड बिल्कुल जया की चूत के सामने था।
सोनू ने जया के चूतड़ों को दोनों तरफ से पकड़ कर फैला दिया और अपने लण्ड को चूत के छेद पर टिका दिया।
इससे पहले कि सोनू अपना लण्ड जया की चूत में पेलने के लिए धक्का मारता.. जया ने कामातुर होकर अपनी गाण्ड को पीछे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया।
सोनू के लण्ड का मोटा सुपारा जया की चूत के छेद को फ़ैलाता हुआ अन्दर घुस गया।
जया अपनी चूत के छेद के छल्ले को सोनू के लण्ड के मोटे सुपारे पर कसा हुआ साफ़ महसूस कर पा रही थी।
कामवासना का आनन्द चरम पर पहुँच गया।
चूत ने एक बार फिर से अपने कामरस का खजाना खोल दिया।
जया की मस्ती का कोई ठिकाना नहीं था, उसकी चूत में सरसराहट बढ़ गई थी और वो सोनू के लण्ड को जड़ तक अपनी चूत में लेने के लिए मचल रही थी।
'ओह्ह आह.. घुसाआ.. दे रे.. छोरे ओह फाड़ दे.. मेरी चूत ओह्ह आह… और ज़ोर से मसल मेरे गाण्ड को ओह्ह हाँ.. ऐसे ही…'
सोनू बुरी तरह से अपने दोनों हाथों से जया की गाण्ड को फैला कर मसल रहा था। उसके लण्ड का सुपारा जया की चूत में फँसा हुआ, जया को मदहोश किए जा रहा था।
सोनू को भी अपने लण्ड के सुपारे पर जया की चूत की गरमी साफ़ महसूस हो रही थी।
उसने जया के चूतड़ों को दबोच कर दोनों तरफ फैला लिया और अपनी गाण्ड को तेज़ी से आगे की तरफ धकेला। सोनू के लण्ड का सुपारा जया की चूत की दीवारों को चीरता हुआ आगे बढ़ गया, जया के मुँह से एक घुटी हुई चीख निकल गई।
जो गुसलखाने के दीवारों में ही दब कर रह गई।
सोनू का आधे से अधिक लण्ड जया की चूत में समा चुका था।
'ओह्ह आपकी चूत बहुत कसी हुई है.. बड़ी मालकिन… ओह्ह मेरा लण्ड फँस गया है.. ओह्ह..'
जया ने पीछे की तरफ अपनी गाण्ड को ठेल कर अपनी चूत में सोनू का मोटा लण्ड लेते हुए कहा- आहह.. आह जालिम मेरी चूत.. ओह फाड़ दी… ओह्ह ओह तेरे इस मूसल लण्ड की तो मैं आह.. आह.. कायल हो गई उह्ह.. ओह्ह चोद दे.. मुझे.. और तेज धक्के मार..
सोनू भी अब नौकर और मालिक की मर्यादाओं को भूल कर जया के चूतड़ों को फैला कर अपने लण्ड को उसकी चूत में अन्दर-बाहर कर रहा था।
जया का ब्लाउज अभी भी आगे से खुला हुआ था और सोनू के हर जबरदस्त धक्के के साथ उसकी चूचियाँ तेज़ी से हिल रही थीं।
'ओह रुक छोरे.. ज़रा ओह्ह ओह्ह.. मैं खड़ी-खड़ी थक गई हूँ..ओह्ह ओह्ह आह्ह..'
सोनू ने अपने लण्ड को जया की चूत से बाहर निकाल लिया.. जया सीधी होकर उसकी तरफ पलटी और सोनू के होंठों पर अपने रसीले होंठों को रखते हुए उसे से चिपक गई।
सोनू ने उसकी कमर से अपनी बाँहों को पीछे ले जाकर उसके चूतड़ों को दबोच-दबोच कर मसलना शुरू कर दिया।
सोनू का विकराल लण्ड जया के पेट के निचले हिस्से पर रगड़ खा रहा था।
'चल छोरे दूसरे कमरे में चलते हैं।' जया ने चुंबन तोड़ते हुए कहा और फिर अपने कपड़ों की परवाह किए बिना गुसलखाने से निकल कर एक कमरे में आ गई, यहाँ पर अब वो अकेली सोती थी।
सोनू उसके पीछे अपना पजामे को थामे कमरे में दाखिल हुआ और जया ने उसे पकड़ कर बिस्तर पर धक्का दे दिया।
फिर अपने ब्लाउज को अपने जिस्म अलग कर एक तरफ फेंक दिया और फिर पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया।
नाड़ा खुलते ही पेटीकोट सरक कर नीचे आ गया और फर्श की धूल चाटने लगा। जया ने अपनी हथेली में थूका और अपनी चूत के लबों पर लगाते हुए, किसी रंडी की तरह सोनू के ऊपर सवार हो गई।
सोनू जया का ये रूप देख कर भावविभोर हो रहा था। उसने अपनी जिंदगी में कभी कल्पना भी नहीं की थी, उसे इतने कम समय में तीन चूतें चोदने को मिल जायेंगी।
जया ने सोनू के ऊपर आते ही उसका लण्ड पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर लगा कर.. उस पर अपनी चूत को दबाना चालू कर दिया।
जया की चूत पहले से सोनू के लण्ड के आकार के बराबर खुल चुकी थी, चूत को लण्ड पर दबाते ही सोनू का लण्ड जया की चूत की गहराईयों में उतरने लगा।
'ऊहह माआ.. ओह्ह रजनी सच कह रही थी.. तेरे लौड़े के बारे में.. ओह क्या कमाल का लण्ड पाया है तूने.. ओह्ह…' जया ने अपने चूतड़ों को ऊपर-नीचे उछालते हुए कहा।
सोनू- आह्ह.. बड़ी मालकिन.. आपकी चूत भी बहुत गरम है.. कितना पानी छोड़ रही है.. पर आपने थूक क्यों लगाया?
जया ने तेज़ी से सिस्याते हुए, सोनू के लण्ड पर अपनी चूत पटकती है, 'आह्ह.. आह्ह.. तेरे मूसल लण्ड के लिए तो जवान लड़की की चूत का पानी भी कम पड़ जाए.. हाय.. ओह सीई. मेरी तो फिर उमर हो गई है।'
सोनू ने नीचे से अपनी कमर को उछाल कर जया की चूत में लण्ड अन्दर-बाहर करते हुए कहा- आ आह.. पर तुम्हारी चूत सच में बहुत पानी बहा रही है.. मालकिन ओह.. ओह्ह।
जया- हाँ मेरे राजा.. ओह आह्ह.. ओह्ह तेरे लण्ड का कमाल है रे.. बहुत गहरी टक्कर मार कर चूत को खोदता है रे..ईई तेरा लण्ड आह.. आह्ह.. ओह्ह देख ना एक बार फिर से झड़ने वाली हूँ…ओह्ह चोद मुझे.. और ज़ोर से चोद आह्ह.. ओह्ह सीईइ मैं गइई… ओह ओह।
जया का बदन एक बार फिर से अकड़ गया और उसकी चूत से पानी का सैलाब बह निकला.. सोनू भी जया की चूत में झड़ गया।
 
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उस रात सोनू ने जया की दो और बार जम कर चुदाई करके उससे बेहाल कर दिया।
चलिए अब ज़रा बेला के घर की तरफ रुख़ करते हैं।
यहाँ अगली सुबह बड़ी चहल-पहल से भरी हुई थी, गाँव भर की लड़कियाँ और औरतें बेला के घर में हँसी ठिठोली कर रही थीं.. आज बिंदया की शादी है।
अब शादी के बारे में ज्यादा लिखना वक्त बर्बाद करने जैसा होगा.. रघु की शादी बिंदया से हुई और रघु बिंदया को साथ लेकर अपने गाँव आ गया।
वहाँ बिंदया की सास कमला ने उससे घर के बाकी सदस्यों से मिलवाया.. जैसे उसकी चाची सास, नीलम और उसके बच्चों से.. और घर आए हुए कुछ मेहमानों से भी मिलवाया।
दिन का समय तो यूँ ही गुजर गया।
बिंदया की ससुराल के माली हालत उसके मायके से कहीं बेहतर थे।
सभी के लिए अपने-अपने कमरे थे।
कुछ तो सिर्फ़ मेहमानों के लिए थे.. जैसे कि मैं पहले ही बता चुका हूँ कि रघु की चाची नीलम विधवा है और उसके दो बच्चे हैं, पर नीलम के चेहरे को देखने से ऐसा नहीं लगता कि वो एक विधवा है, उसके होंठों पर सदा मुस्कान फैली रहती है, जैसे उसने अपनी जिंदगी में सब कुछ पा लिया हो।
रात के वक़्त रघु के घर पर आए हुए मेहमान और बाकी घर के सभी लोग खाना खा कर सोने की तैयारी कर रहे थे।
उधर बिंदया थोड़ी घबराई हुई सी सेज पर दुल्हन के रूप में बैठी.. रघु के अन्दर आने का इंतजार कर रही थी।
इतने में रघु भी कमरे में दाखिल हुआ, अन्दर आते ही दरवाजे की कुण्डी लगा कर वो चारपाई पर बिंदया के पास आकर बैठ गया।
बिंदया सहमी सी सर झुका कर बैठी हुई थी।
'अरे जान.. अब मुझसे क्या परदा..?' रघु ने बिंदया की चुनरी उसके चेहरे से हटाते हुए कहा।
बिंदया ने शरमा कर अपने चेहरे को दोनों हाथों से ढक लिया।
फिर रघु ने उसे कंधों से पकड़ कर चारपाई पर लिटा दिया, बिंदया के दिल की धडकनें एकदम से बढ़ गईं.. उसके हाथ-पैर आने वाले पलों के बारे में सोच कर रोमांच से काँप रहे थे।
रघु अपने सामने लेटी उस कच्ची कली के हुश्न को देख कर तो जैसे पागल हो गया।
कमसिन बिंदया का जिस्म एकदम गदराया हुआ था, आप उसे मोटी तो नहीं कह सकते, पर उसका पूरा बदन भरा हुआ था।
एकदम मोटी-मोटी जाँघें.. मांसल और एकदम कड़क गुंदाज चूचियाँ… रघु के लिए इतना हुश्न देखना बर्दाश्त से बाहर था।
उसने एक ही झटके में आँखें बंद करके लेटी हुई बिंदया के लहँगे को उसकी कमर तक चढ़ा दिया।
बिंदया इस तरह के बरताव से एकदम सहम गई, सब कुछ उसके उलट हो रहा था.. जैसा कि उसने अपनी ब्याही हुई सहेलियों और पड़ोस के भाभियों से सुना था।
रघु ने ना कोई प्यार भरी बातें की और ना ही रघु ने उसके अंगों को सहलाया और ना ही चूमा और उसके दिल के धड़कनें और ज़ोर से बढ़ गईं।
ये सोच कर अब वो नीचे उसके जिस्म पर केवल एक चड्डी ही बची है जो उसकी चूत को ढके हुए थी।
पर रघु तो जैसे उस कामरूपी कच्ची कली को देख कर पागल हो गया था।
उसने दोनों तरफ से बिंदया की चड्डी को पकड़ कर खींचते हुए उसके पैरों से निकाल दिया।
बिंदया का पूरा बदन काँप गया.. उसकी साँसें मानो जैसे थम गई हों और उसका दिल, जो थोड़ी देर पहले जोरों से धड़क रहा था… मानो धड़कना ही भूल गया हो।
लाज और शरम के मारे, बिंदया ने अपना लहंगा नीचे करना चाहा, तो रघु ने उसके दोनों हाथों को पकड़ कर झटक दिया।
अब उसके सामने मांसल जाँघों के बीच कसी हुई कुँवारी चूत थी, जिसे देख कर रघु का लण्ड उसकी धोती के ऊपर उठाए हुए था।
वो चारपाई से खड़ा हुआ और अपनी धोती और बनियान उतार कर एक तरफ फेंकी।
अब उसका विकराल लण्ड हवा में झटके खा रहा था।
अपने पास रघु की कोई हरकत ना पाकर बिंदया ने अपनी आँखों को थोड़ा सा खोल कर देखा, तो उसके रोंगटे खड़े हो गए।
रघु अपने कपड़े उतार चुका था और उसकी चूत की तरफ देखते हुए.. अपने 7 इंच के लण्ड को तेज़ी से हिला रहा था।
ये देख कर बिंदया ने अपनी आँखें बंद कर लीं और रघु चारपाई के ऊपर घुटनों के बल बैठ गया।
उसने बेरहमी से बिंदया की टाँगों को फैला दिया और टांगों को घुटनों से मोड़ कर ऊपर उठा कर फैला दिया.. जिससे बिंदया की कुँवारी चूत का छेद खुल कर उसकी आँखों के सामने आ गया।
'आह धीरे…'
बिंदया ने अपने साथ हुई उठापटक के कारण कराहते हुए कहा, पर रघु तो जैसे अपने होश गंवा बैठा था.. उसने अपने लण्ड को बिंदया की चूत के छेद पर लगा दिया और बिंदया की चोली के ऊपर से ही उसकी गुंदाज चूचियों को पकड़ते हुए.. एक ज़ोरदार झटका मारा।
कसी चूत के छोटे से छेद में लण्ड जाने की बजाए, रगड़ ख़ाता हुआ एक तरफ निकल गया।
भले ही पहले झटके में बिंदया की चूत की सील नहीं टूटी, पर सील पर दबाव ज़रूर पड़ा और बिंदया दर्द से तिलमिला उठी.. उसके मुँह से चीख निकल गई।
'हाए माँ.. दर्द होता.. है…'
रघु- चुप कर बहन की लौड़ी.. चिल्ला कर सारे गाँव को इकठ्ठा करेगी क्या..? पहली बार तो दर्द होता ही है।
अपने पति रघु के मुँह से ऐसे अपमानजनक शब्द सुन कर बिंदया की आँखों में आँसू आ गए, जिसे देख कर रघु गुस्से से आग-बबूला हो गया।
उसने एक बार फिर से बिंदया की परवाह किए बिना अपने लण्ड के सुपारे पर ढेर सारा थूक लगाकर उसकी चूत के छेद पर लगाया और एक बार फिर से जोरदार धक्का मारा, पर लण्ड फिर बिंदया की चूत की सील नहीं तोड़ पाया और सरक कर बाहर आ गया।
बिंदया एक बार फिर से दर्द से चीख उठी।
रघु- चुप साली बहन की लौड़ी.. सारा गाँव इकठ्ठा करेगी क्या.. मादरचोदी.. तू किसी काम की नहीं..
नशे में धुत्त रघु खड़ा हुआ और खीजते हुए अपने कपड़े पहन कर बाहर निकाल गया।
बिंदया सहमी से वहीं उठ कर बैठ गई, उसने अपने लहँगे को ठीक किया।
अब रघु बाहर जा चुका था और ये उसके लिए और शरम की बात थी कि अगर किसी को पता चला कि दूल्हा सुहागरात को अपनी पत्नी के साथ नहीं है, तो वो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेगी।
अगर कोई इधर आ गया तो क्या जवाब देगी, बिंदया खड़ी होकर दरवाजे के पास आ गई और बाहर झाँकने लगी.. बाहर कोई नहीं था।
चारों तरफ घोर सन्नाटा फैला हुआ था और रघु भी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। बिंदया की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे.. वो अपनी किस्मत और बेबसी पर रो रही थी।
जब काफ़ी देर तक रघु वापिस नहीं आया, तो वो कमरे से बाहर निकल आई और घर के आँगन में आगे बढ़ने लगी, पर रघु का कोई ठिकाना नहीं था।
आख़िर तक हार कर बिंदया अपने कमरे की तरफ जाने लगी, जब वो अपने कमरे की तरफ जा रही थी, उसे एक कमरे से किसी के खिलखिलाने की आवाज़ सुनाई दी।
'इतनी रात को इस तरह खिलखिला कर कौन हँस रहा है?'
यह हँसी सुनते ही एक बार बिंदया का माथा ठनका पर बिंदया ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगी।
पर एक बार फिर से उस चहकती हुई आवाज़ ने बिंदया का ध्यान अपनी तरफ खींचा।
इस बार बिंदया से रहा नहीं गया और वो कमरे के दरवाजे पास आकर अन्दर हो रही बातों को सुनने की कोशिश करने लगी।
पर अन्दर जो भी था.. वो बहुत धीमी आवाज़ में बात कर रहा था।
इसलिए अन्दर हो रही वार्तालाप बिंदया की समझ में नहीं आ रही थी।
आख़िर जब कुछ हाथ ना लगा, तो बिंदया अपने कमरे में आ गई.. उसका कमरा ठीक उसी कमरे के बगल में था।
रघु का अब भी कोई ठिकाना नहीं था, बिंदया ने दरवाजा बंद किया और चारपाई पर बैठ गई।
जब इंसान के पास काम ना हो तो उसका इधर-उधर झाँकना स्वाभाविक हो जाता है.. सुहाग की सेज पर बैठी.. बिंदया तन्हाई के वो लम्हें गुजार रही थी, जिसके बारे में कोई भी नई ब्याही लड़की नहीं सोच सकती थी।
कमरे के अन्दर इधर-उधर झाँकते हुए.. अचानक उसका ध्यान कमरे के उस तरफ वाली दीवार पर गया..जिस तरफ वो कमरा था।
बिंदया ने गौर किया, उस दीवार में काफ़ी ऊपर दीवार में से एक ईंट निकली हुई थी।
ये देखते ही बिंदया से रहा नहीं गया और उसने कमरे में चारों तरफ नज़र दौड़ाई और उसे अपने काम आ सकने वाली एक चीज़ मिल ही गई।
कमरे के उसी तरफ दीवार के एक कोने में एक बड़ी सी मेज लगी हुई थी, जिस पर चढ़ कर दूसरे कमरे में उससे छेद से झाँका जा सकता था।
बिंदया तुरंत खड़ी हो गई और उस मेज को ठीक उस दीवार में बने छेद के नीचे सैट करके ऊपर चढ़ गई और दूसरे तरफ झाँकने लगी।
कुछ ही पलों में उस कमरे का पूरा नज़ारा उसकी आँखों के सामने था और जो उसने देखा, उसे देख कर बिंदया एकदम हक्की-बक्की रह गई, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है।
 
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एक पल के लिए बिंदया के हाथ-पाँव मानो जैसे सुन्न पड़ गए हों।
उसे ऐसा लग रहा था, मानो जैसे उसके पैरों में खड़े रहने की जान ही ना बची हो।
दूसरे कमरे के अन्दर ठीक उसकी आँखों के सामने नीलम का बेटी-बेटा बिस्तर पर एक किनारे पर सो रहे थे और दूसरी तरफ रघु बिस्तर पर नीचे पैर लटका कर बैठा हुआ था।
उसके तन से उसकी धोती गायब थी और उसका 7 इंच लम्बा काले रंग का लण्ड हवा में झटके खा रहा था, पर नीलम उसे दिखाई नहीं दे रही थी।
रघु कमरे के उस कोने की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए.. लगातार अपने लण्ड को मुठिया रहा था, जिससे उसके काले रंग के लण्ड की चमड़ी जब पीछे होती और उसका गुलाबी रंग का सुपारा बिंदया की आँखों के सामने आ जाता।
बिंदया ने उस छेद से उस तरफ देखने की कोशिश की जिस तरफ देखते हुए रघु मुठ्ठ मार रहा था, पर उसे छोटे से छेद से कमरे के उस कोने के तरफ की कोई भी चीज नज़र नहीं आ रही थी।
बिंदया अपनी साँसें थामे हुए.. उस शख्स को देखने का इंतजार कर रही थी, जो उस समय वहाँ मौजूद था और ऊपर से लालटेन की रोशनी भी कम थी।
तभी बिंदया को वो शख्स दिखाई दिया, जिसके बारे में उसके मन में आशंका थी।
नीलम रघु की काकी बड़ी ही मस्तानी चाल के साथ रघु की तरफ बिस्तर की ओर बढ़ रही थी।
उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।
नीलम के ब्लाउज के हुक खुले हुए थे और उसकी साड़ी उसके बदन पर नहीं थी, नीचे सिर्फ़ पेटीकोट ही था।
नीलम की 40 साइज़ की बड़ी-बड़ी चूचियाँ ब्लाउज के पल्लों को हटाए हुए बाहर की तरफ हिल रही थीं।
जैसे ही नीलम बिस्तर के पास पहुँची.. वो अपने पैरों पर मूतने वाले अंदाज़ में रघु के सामने नीचे बैठ गई और उसके हाथ को उसके लण्ड से हटा कर खुद उसके लण्ड को पकड़ लिया और उसकी और देखते हुए बोली- आज तो सच में सुबह से मेरी चूत में खुजली और बढ़ गई है.. ये सोच कर कि जिस लण्ड को मैं इतने बरसों से अपनी चूत में ले रही हूँ, वो अब मेरी उस सौत की चूत को चोदेगा.. जिससे तुम ब्याह कर लिया है मेरे लाला..
रघु- क्या काकी.. मैं तो सुहागरात भी तुम्हारे साथ ही मनाऊँगा.. वो साली तो ऐसे चिल्लाने लगी.. जैसे अभी चीख-चीख कर गाँव को इकठ्ठा कर लेगी।
नीलम ने रघु के लण्ड के गुलाबी सुपारे पर अपनी ऊँगलियाँ घुमाते हुए कहा- मैंने तो पहले ही तुझसे कहा था.. वो साली रांड तुझे वो सुख कभी नहीं दे पायगी… जो इतने सालों से मैं तुझे अपनी चूत में तेरा लण्ड डलवा कर देती आई हूँ।
रघु- हाँ काकी.. मैं तो शुरू से ही तुम्हारा गुलाम रहा हूँ, वो तो मेरा दिमाग़ खराब हो गया था, जो उससे शादी कर ली.. देख ना काकी तेरी मस्त चूचियों को देख कर मेरा लौड़ा कैसे तन गया है।
नीलम- हाँ देख रही हूँ मेरे लाला.. मेरी चूत भी तो तेरे लण्ड को देखते ही पानी छोड़ने लगती है। मैं कैसे बर्दाश्त करती.. इस लण्ड को किसी और की चूत में घुसता देख कर… जिससे मैंने रोज मालिश करके इतना तगड़ा बनाया है.. याद है जब तूने मुझे पहली बार चोदा था.. तब तू इतना छोटा था कि सारा दिन तेरी नाक बहती रहती थी।
रघु ने धीमे स्वर में हँसते हुए कहा- हाँ काकी.. खूब याद है, तुमने ही तो मुझे चोदना सिखाया था।
नीलम ने नखरे से मुसकराते हुए कहा- चल हट बदमाश.. तूने ही तो उस उम्र में भी मेरी चूत की आग बढ़ा दी थी।
रघु- वो काकी.. तब तो मैं नादान था। वो तो मुझे पता भी नहीं था कि मैं क्या कर रहा हूँ।
नीलम- अच्छा छोड़ ये सब.. आज कितने दिनों बाद मेरी चूत और जीभ तेरे लण्ड का स्वाद चखने वाली है… खाली गप्पें लगा कर वक्त बर्बाद ना कर मेरे लाल.. मेरे भोसड़ी में आग लगी हुई है, अब तो मुझे ये तेरा लौड़ा अपनी चूत में लेने दे।
यह कहते हुए नीलम ने झुक कर रघु के लण्ड के सुपारे पर अपनी जीभ बाहर निकाल कर उसकी ओर देखते हुए.. चारों तरफ से चाटने लगी।
रघु ने पलक झपकते ही.. नीलम के बालों को कस कर पकड़ लिया।
'आह चूस साली रांड.. ओह बहुत अच्छा चूसती है तू.. ओह साली दिल करता है… दिन-रात तेरी चूत और मुँह में लौड़ा पेजया रहूँ।'
नीलम ने रघु की ओर बनावटी गुस्से से देखते हुए कहा- धीरे.. बच्चे सो रहे हैं.. कहीं देख लिया तो?
रघु ने नीलम के सर को पकड़ कर अपने लण्ड पर झुकाते हुए कहा- तू चूस ना साली… मुझे पता है, जब तक तू मेरे साथ है, कोई बहन का लौड़ा मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।
नीलम ने एक बार रघु की ओर देखा फिर अपने बच्चों की तरफ देखा और फिर अपने होंठों को खोल कर रघु के लण्ड के सुपारे को मुँह में ले लिया।
रघु की आँखें मस्ती में बंद हो गईं।
ये नज़ारा देख कर बिंदया एकदम से हैरान रह गई।
उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि आख़िर उसके साथ हो क्या रहा है।
उसकी आँखों से आँसू सूखने का नाम नहीं ले रहे थे, पर अब उसे भी अपनी चूत की बीच नमी महसूस होने लगी थी।
उधर नीलम रघु के लण्ड को मुँह के अन्दर-बाहर करते हुए चूस रही थी और रघु अपने एक हाथ से उसकी चूचियों को मसल रहा था। बीच-बीच में नीलम अपनी जीभ की नोक से उसके लण्ड के पेशाब वाले छेद को कुरेद देती और रघु एकदम से मचल उठता।
तभी उसने नीलम को उसके कंधों से पकड़ कर ऊपर उठा लिया।
जैसे ही नीलम सीधी खड़ी हुई.. रघु ने उसके पेटीकोट के नाड़े को पकड़ कर खींच दिया।
इससे पहले के नीलम का पेटीकोट सरक कर नीचे गिरता.. नीलम ने उससे लपक कर थाम लिया।
'आह्ह.. क्या कर रहे हो..? इसे क्यों खोल रहे हो, अगर बच्चे उठ गए और मुझे इस हालत में देख लिया तो..?' नीलम ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा।
रघु ने नीलम के हाथों से उसके पेटीकोट को छुड़ाते हुए कहा- काकी जब तक तुझे नंगा करके नहीं चोद लेता.. मेरा लण्ड नहीं झड़ता.. तुम्हें तो मालूम है।
ये कहते ही, रघु ने अपनी काकी नीलम का पेटीकोट को पकड़ कर नीचे सरका दिया..
अब नीलम के बदन सिर्फ़ एक ब्लाउज रह गया था, वो भी आगे से पूरा खुला हुआ था।
जैसे ही नीलम के बदन से पेटीकोट अलग हुआ.. रघु ने अपने हाथों को पीछे ले जाकर नीलम की मांसल गाण्ड को अपने हाथों में भर कर मसलना चालू कर दिया।
नीलम की आँखें मस्ती में बंद हो गईं, उसके पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई। रघु दोनों पैरों को लटका कर बिस्तर के किनारे बैठा हुआ था।
नीलम रघु से लिपटे हुए.. अपने दोनों पैरों को रघु के दोनों तरफ बिस्तर के किनारों पर रख कर उकड़ू होकर बैठ गई।
उसने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर रघु के लण्ड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर रखा और धीरे-धीरे अपनी चूत को रघु के लण्ड के सुपारे पर दबाने लगी।
रघु का लण्ड फिसजया हुआ नीलम की चूत की गहराईयों में घुसने लगा। जैसे ही रघु का पूरा लण्ड नीलम की चूत की गहराईयों में समाया, नीलम ने अपनी बाँहों को रघु की पीठ पर कस लिया और अपनी गाण्ड को ऊपर-नीचे उछाल कर रघु के लण्ड से चुदवाने लगी।
नीलम ने पूरी रफ़्तार से अपनी चूत को रघु के लण्ड पर पटकते हुए सीत्कार भरी, 'आह ह.. हाँ बेटा.. मसल मेरी गाण्ड को.. ओह तेरे लण्ड के बिना नहीं रह सकती.. ओह ओह्ह और ज़ोर से चोद अपनी काकी को.. ओह्ह माआआ मर गई ओह्ह आह्ह.. आह्ह..'
रघु के दोनों हाथ नीलम के मांसल चूतड़ों को ज़ोर-ज़ोर से मसल रहे थे। उधर दूसरे कमरे में खड़ी बिंदया की हालत ये नज़ारा देख कर खराब हुई जा रही थी और दूसरे कमरे में चुदाई का खेल अपने जोरों पर था।
आख़िर बिंदया कब तक ये सब सहन करती.. उसका पति उसके सामने ही अपनी काकी को चोद रहा है।
वो भी अपनी शादी की सुहागरात को अपनी नई ब्याही पत्नी को छोड़ कर….
अब बिंदया से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो मेज से नीचे उतरी और गुस्से से बौखलाई हुई.. अपने कमरे से बाहर आई और नीलम के कमरे के सामने पहुँच कर दरवाजे पर दस्तक दी, पर तब तक दोनों झड़ चुके थे।
 
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अन्दर नीलम रघु के गोद में बैठी हुई हाँफ रही थी और उसकी चूत में रघु का लण्ड अभी भी घुसा हुआ था।
दरवाजे पर दस्तक सुन कर दोनों एकदम से हड़बड़ा गए, दोनों ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और नीलम ने कमरे का दरवाजे खोला.. तो उसने बिंदया को सामने खड़ा पाया।
बिंदया को सामने देख कर नीलम के चेहरे का रंग उड़ गया.. इस बात की परवाह किए बिना कि नीलम उसकी काकी सास है.. बिंदया नीलम को पीछे धकेलती हुई कमरे के अन्दर आ गई।
रघु बिस्तर के पास बदहवास सा खड़ा रह गया।
नीलम- अरे.. ये क्या तरीका हुआ, किसी के कमरे में ऐसे घुस आने का? माँ-बाप ने तुझे कुछ अकल दी है कि नहीं?
बिंदया- अच्छा अगर मेरा तरीका ठीक नहीं है, तो आप इस वक़्त मेरे पति के साथ अन्दर क्या कर रही हैं?
नीलम एक झूठी मुस्कान चेहरे पर लाते हुए बोली- वो रघु तो इसलिए आ गया था कि उससे तेरा झगड़ा हो गया था.. बेचारा सर्दी में बाहर खड़ा था, इसलिए मैंने उसको अन्दर बुला लिया।
बिंदया- हाँ.. वो तो देख चुकी हूँ कि उसे आपने कैसे गरम किया.. आप ये सब ठीक नहीं कर रही हैं.. मैं पूरे घर वालों को बता दूँगी कि आप रघु के साथ क्या कर रही थीं।
बिंदया की बात सुनते ही नीलम के चेहरे का रंग एकदम से उड़ गया, वो कभी बिंदया की तरफ देखती तो कभी रघु की तरफ बेबस सी देखती।
रघु को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर हो क्या रहा है।
दूसरी तरफ नीलम के बच्चे शोर सुन कर उठ ना जाए, ये सोच कर रघु ने बिंदया का हाथ पकड़ा और उसे खींचता हुआ अपने कमरे में ले गया।
नीलम ने एक बार अपने सो रहे बच्चों की तरफ देखा और फिर कमरे से बाहर आकर दरवाजे बन्द करके, रघु के कमरे में आ गई।
कमरे में बिंदया चारपाई पर सहमी सी बैठी हुई थी, रघु बोला- साली.. अगर मुँह खोला तो कल ही तलाक़ दे दूँगा.. तेरी जिंदगी नरक बना दूँगा..
रघु की बात सुन कर बेचारी बिंदया और सहम गई।
उधर नीलम अपने होंठों पर तीखी मुस्कान लिए दोनों को देख रही थी।
बिंदया को शांत देख कर वो रघु से बोली- तू बाहर जा.. मैं इसे समझाती हूँ।
रघु गुस्से से भड़कता हुआ बाहर चला गया, रघु के जाते ही, नीलम ने दरवाजे बन्द किए और बिंदया के पास आकर चारपाई पर बैठ गई, 'ए सुन छोरी.. देख अगर हंगामा करेगी तो हमारा कुछ नहीं जायगा, तुम्हारी बात कोई नहीं मानेगा.. उल्टा ये कह कर घर से निकाल दिया जाएगा कि तूने सुहागरात को अपने पति को कमरे से बाहर निकाल दिया.. और अपने ग़रीब माँ-बाप के बारे में तो सोच.. कैसे-तैसे करके उन्होंने मुश्किल से तेरा ब्याह किया है, वो तो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।
बिंदया बहुत डर गई थी उसने सुबकते हुए कहा- ठीक है.. नहीं कहूंगी, पर आप रघु को छोड़ दो।
नीलम ने मुस्कुराते हुए कहा- अरे ऐसे कैसे छोड़ दूँ.. तू तो आज आई है यहाँ पर… मैंने उससे तब से चुदवा रही हूँ, जब उसके दूध के दाँत भी नहीं टूटे थे। अब जब मज़ा लेने की बारी आई तो तू मेरी सौत बन कर आ गई.. देख रघु मेरा है और सिर्फ़ मेरा ही रहेगा.. हाँ.. अगर कभी उसका दिल कर आया तो मैं रघु को मना नहीं करूँगी।
बिंदया एकटक नीलम की तरफ देखते हुए उसकी बातों को सुन रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है।
बिंदया को चुप देख कर एक बार फिर नीलम ने कहा- देख ले मर्ज़ी तेरी है.. तेरी बात पर यहाँ कोई यकीन नहीं करेगा।
ये कह कर नीलम अपने कमरे में चली गई और अन्दर से दरवाजे बन्द करके.. बिस्तर पर लेट गई, लेटते ही बीते सालों की यादें उसके दिमाग़ में एक-एक करके ताज़ा होने लगीं…
फ़्लैशबैक-
यह उस समय की बात है, जब नीलम ने अपनी दूसरी संतान के रूप में अपने बेटे को जन्म दिया था और बेटे के जन्म के एक साल बाद ही नीलम का पति दुलारा चल बसा था, तब नीलम सिर्फ़ 24 साल की थी।
शादी के महज 3 साल में उसने दो संतानों को जन्म दिया था और पति की मौत ने उसे तोड़ कर रख दिया था, वो भरी जवानी में विधवा हो गई।
तब रघु की उम्र कम थी और तब रघु अक्सर नीलम के बच्चों के साथ खेला करता था और घर में सब का लाड़ला था।
वो अक्सर नीलम के कमरे में उसके बच्चों के साथ ही सोता था।
एक रात की बात है.. गर्मियों के दिन थे। रघु नीलम के कमरे में उसके बच्चों के साथ खेल रहा था।
नीलम के बच्चे खेलते-खेलते सो गए.. इतने में नीलम घर का काम निपटा कर कमरा में आ गई।
उसने देखा कि बच्चे सो गए हैं और रघु उनके पास बिस्तर पर लेटा हुआ है।
नीलम अपने साथ में रघु के लिए दूध से भरा गिलास लेकर आई थी।
उसने रघु को दूध पीने के लिए कहा। रघु बिस्तर से नीचे उतर कर खड़ा होकर दूध पीने लगा।
 

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