उस रात सोनू ने जया की दो और बार जम कर चुदाई करके उससे बेहाल कर दिया।
चलिए अब ज़रा बेला के घर की तरफ रुख़ करते हैं।
यहाँ अगली सुबह बड़ी चहल-पहल से भरी हुई थी, गाँव भर की लड़कियाँ और औरतें बेला के घर में हँसी ठिठोली कर रही थीं.. आज बिंदया की शादी है।
अब शादी के बारे में ज्यादा लिखना वक्त बर्बाद करने जैसा होगा.. रघु की शादी बिंदया से हुई और रघु बिंदया को साथ लेकर अपने गाँव आ गया।
वहाँ बिंदया की सास कमला ने उससे घर के बाकी सदस्यों से मिलवाया.. जैसे उसकी चाची सास, नीलम और उसके बच्चों से.. और घर आए हुए कुछ मेहमानों से भी मिलवाया।
दिन का समय तो यूँ ही गुजर गया।
बिंदया की ससुराल के माली हालत उसके मायके से कहीं बेहतर थे।
सभी के लिए अपने-अपने कमरे थे।
कुछ तो सिर्फ़ मेहमानों के लिए थे.. जैसे कि मैं पहले ही बता चुका हूँ कि रघु की चाची नीलम विधवा है और उसके दो बच्चे हैं, पर नीलम के चेहरे को देखने से ऐसा नहीं लगता कि वो एक विधवा है, उसके होंठों पर सदा मुस्कान फैली रहती है, जैसे उसने अपनी जिंदगी में सब कुछ पा लिया हो।
रात के वक़्त रघु के घर पर आए हुए मेहमान और बाकी घर के सभी लोग खाना खा कर सोने की तैयारी कर रहे थे।
उधर बिंदया थोड़ी घबराई हुई सी सेज पर दुल्हन के रूप में बैठी.. रघु के अन्दर आने का इंतजार कर रही थी।
इतने में रघु भी कमरे में दाखिल हुआ, अन्दर आते ही दरवाजे की कुण्डी लगा कर वो चारपाई पर बिंदया के पास आकर बैठ गया।
बिंदया सहमी सी सर झुका कर बैठी हुई थी।
'अरे जान.. अब मुझसे क्या परदा..?' रघु ने बिंदया की चुनरी उसके चेहरे से हटाते हुए कहा।
बिंदया ने शरमा कर अपने चेहरे को दोनों हाथों से ढक लिया।
फिर रघु ने उसे कंधों से पकड़ कर चारपाई पर लिटा दिया, बिंदया के दिल की धडकनें एकदम से बढ़ गईं.. उसके हाथ-पैर आने वाले पलों के बारे में सोच कर रोमांच से काँप रहे थे।
रघु अपने सामने लेटी उस कच्ची कली के हुश्न को देख कर तो जैसे पागल हो गया।
कमसिन बिंदया का जिस्म एकदम गदराया हुआ था, आप उसे मोटी तो नहीं कह सकते, पर उसका पूरा बदन भरा हुआ था।
एकदम मोटी-मोटी जाँघें.. मांसल और एकदम कड़क गुंदाज चूचियाँ… रघु के लिए इतना हुश्न देखना बर्दाश्त से बाहर था।
उसने एक ही झटके में आँखें बंद करके लेटी हुई बिंदया के लहँगे को उसकी कमर तक चढ़ा दिया।
बिंदया इस तरह के बरताव से एकदम सहम गई, सब कुछ उसके उलट हो रहा था.. जैसा कि उसने अपनी ब्याही हुई सहेलियों और पड़ोस के भाभियों से सुना था।
रघु ने ना कोई प्यार भरी बातें की और ना ही रघु ने उसके अंगों को सहलाया और ना ही चूमा और उसके दिल के धड़कनें और ज़ोर से बढ़ गईं।
ये सोच कर अब वो नीचे उसके जिस्म पर केवल एक चड्डी ही बची है जो उसकी चूत को ढके हुए थी।
पर रघु तो जैसे उस कामरूपी कच्ची कली को देख कर पागल हो गया था।
उसने दोनों तरफ से बिंदया की चड्डी को पकड़ कर खींचते हुए उसके पैरों से निकाल दिया।
बिंदया का पूरा बदन काँप गया.. उसकी साँसें मानो जैसे थम गई हों और उसका दिल, जो थोड़ी देर पहले जोरों से धड़क रहा था… मानो धड़कना ही भूल गया हो।
लाज और शरम के मारे, बिंदया ने अपना लहंगा नीचे करना चाहा, तो रघु ने उसके दोनों हाथों को पकड़ कर झटक दिया।
अब उसके सामने मांसल जाँघों के बीच कसी हुई कुँवारी चूत थी, जिसे देख कर रघु का लण्ड उसकी धोती के ऊपर उठाए हुए था।
वो चारपाई से खड़ा हुआ और अपनी धोती और बनियान उतार कर एक तरफ फेंकी।
अब उसका विकराल लण्ड हवा में झटके खा रहा था।
अपने पास रघु की कोई हरकत ना पाकर बिंदया ने अपनी आँखों को थोड़ा सा खोल कर देखा, तो उसके रोंगटे खड़े हो गए।
रघु अपने कपड़े उतार चुका था और उसकी चूत की तरफ देखते हुए.. अपने 7 इंच के लण्ड को तेज़ी से हिला रहा था।
ये देख कर बिंदया ने अपनी आँखें बंद कर लीं और रघु चारपाई के ऊपर घुटनों के बल बैठ गया।
उसने बेरहमी से बिंदया की टाँगों को फैला दिया और टांगों को घुटनों से मोड़ कर ऊपर उठा कर फैला दिया.. जिससे बिंदया की कुँवारी चूत का छेद खुल कर उसकी आँखों के सामने आ गया।
'आह धीरे…'
बिंदया ने अपने साथ हुई उठापटक के कारण कराहते हुए कहा, पर रघु तो जैसे अपने होश गंवा बैठा था.. उसने अपने लण्ड को बिंदया की चूत के छेद पर लगा दिया और बिंदया की चोली के ऊपर से ही उसकी गुंदाज चूचियों को पकड़ते हुए.. एक ज़ोरदार झटका मारा।
कसी चूत के छोटे से छेद में लण्ड जाने की बजाए, रगड़ ख़ाता हुआ एक तरफ निकल गया।
भले ही पहले झटके में बिंदया की चूत की सील नहीं टूटी, पर सील पर दबाव ज़रूर पड़ा और बिंदया दर्द से तिलमिला उठी.. उसके मुँह से चीख निकल गई।
'हाए माँ.. दर्द होता.. है…'
रघु- चुप कर बहन की लौड़ी.. चिल्ला कर सारे गाँव को इकठ्ठा करेगी क्या..? पहली बार तो दर्द होता ही है।
अपने पति रघु के मुँह से ऐसे अपमानजनक शब्द सुन कर बिंदया की आँखों में आँसू आ गए, जिसे देख कर रघु गुस्से से आग-बबूला हो गया।
उसने एक बार फिर से बिंदया की परवाह किए बिना अपने लण्ड के सुपारे पर ढेर सारा थूक लगाकर उसकी चूत के छेद पर लगाया और एक बार फिर से जोरदार धक्का मारा, पर लण्ड फिर बिंदया की चूत की सील नहीं तोड़ पाया और सरक कर बाहर आ गया।
बिंदया एक बार फिर से दर्द से चीख उठी।
रघु- चुप साली बहन की लौड़ी.. सारा गाँव इकठ्ठा करेगी क्या.. मादरचोदी.. तू किसी काम की नहीं..
नशे में धुत्त रघु खड़ा हुआ और खीजते हुए अपने कपड़े पहन कर बाहर निकाल गया।
बिंदया सहमी से वहीं उठ कर बैठ गई, उसने अपने लहँगे को ठीक किया।
अब रघु बाहर जा चुका था और ये उसके लिए और शरम की बात थी कि अगर किसी को पता चला कि दूल्हा सुहागरात को अपनी पत्नी के साथ नहीं है, तो वो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेगी।
अगर कोई इधर आ गया तो क्या जवाब देगी, बिंदया खड़ी होकर दरवाजे के पास आ गई और बाहर झाँकने लगी.. बाहर कोई नहीं था।
चारों तरफ घोर सन्नाटा फैला हुआ था और रघु भी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। बिंदया की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे.. वो अपनी किस्मत और बेबसी पर रो रही थी।
जब काफ़ी देर तक रघु वापिस नहीं आया, तो वो कमरे से बाहर निकल आई और घर के आँगन में आगे बढ़ने लगी, पर रघु का कोई ठिकाना नहीं था।
आख़िर तक हार कर बिंदया अपने कमरे की तरफ जाने लगी, जब वो अपने कमरे की तरफ जा रही थी, उसे एक कमरे से किसी के खिलखिलाने की आवाज़ सुनाई दी।
'इतनी रात को इस तरह खिलखिला कर कौन हँस रहा है?'
यह हँसी सुनते ही एक बार बिंदया का माथा ठनका पर बिंदया ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगी।
पर एक बार फिर से उस चहकती हुई आवाज़ ने बिंदया का ध्यान अपनी तरफ खींचा।
इस बार बिंदया से रहा नहीं गया और वो कमरे के दरवाजे पास आकर अन्दर हो रही बातों को सुनने की कोशिश करने लगी।
पर अन्दर जो भी था.. वो बहुत धीमी आवाज़ में बात कर रहा था।
इसलिए अन्दर हो रही वार्तालाप बिंदया की समझ में नहीं आ रही थी।
आख़िर जब कुछ हाथ ना लगा, तो बिंदया अपने कमरे में आ गई.. उसका कमरा ठीक उसी कमरे के बगल में था।
रघु का अब भी कोई ठिकाना नहीं था, बिंदया ने दरवाजा बंद किया और चारपाई पर बैठ गई।
जब इंसान के पास काम ना हो तो उसका इधर-उधर झाँकना स्वाभाविक हो जाता है.. सुहाग की सेज पर बैठी.. बिंदया तन्हाई के वो लम्हें गुजार रही थी, जिसके बारे में कोई भी नई ब्याही लड़की नहीं सोच सकती थी।
कमरे के अन्दर इधर-उधर झाँकते हुए.. अचानक उसका ध्यान कमरे के उस तरफ वाली दीवार पर गया..जिस तरफ वो कमरा था।
बिंदया ने गौर किया, उस दीवार में काफ़ी ऊपर दीवार में से एक ईंट निकली हुई थी।
ये देखते ही बिंदया से रहा नहीं गया और उसने कमरे में चारों तरफ नज़र दौड़ाई और उसे अपने काम आ सकने वाली एक चीज़ मिल ही गई।
कमरे के उसी तरफ दीवार के एक कोने में एक बड़ी सी मेज लगी हुई थी, जिस पर चढ़ कर दूसरे कमरे में उससे छेद से झाँका जा सकता था।
बिंदया तुरंत खड़ी हो गई और उस मेज को ठीक उस दीवार में बने छेद के नीचे सैट करके ऊपर चढ़ गई और दूसरे तरफ झाँकने लगी।
कुछ ही पलों में उस कमरे का पूरा नज़ारा उसकी आँखों के सामने था और जो उसने देखा, उसे देख कर बिंदया एकदम हक्की-बक्की रह गई, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है।