गुसलखाने के पास जाकर नीलम रघु की तरफ पलटी।
उसने देखा कि रघु उससे नजरें चुराने की कोशिश कर रहा है। यह देख कर उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, उसने रघु को पेशाब करने के लिए कहा।
रघु जल्दी से गुसलखाने में घुस गया।
नीलम रघु में आए अचानक इस बदलाव से थोड़ी हैरान जरूर थी, पर कल रात से उसमें भी बदलाव आ चुका था।
रघु के चाचा की मौत के बाद से ही रघु उसके कमरे में सो रहा था, पर आज तक उसके मन में रघु के लिए कभी ऐसा विचार नहीं आया था।
पर कल रात से उसकी अन्दर की छुपी हुई वासना ने फिर से सर उठा लिया था।
रघु गुसलखाने के अन्दर ठीक उसके सामने खड़ा था। उसकी पीठ नीलम की तरफ थी और रघु की चड्डी उसकी जाँघों तक नीचे उतरी हुई थी।
ये सब देख और रघु में आए बदलाव के बारे में सोच कर नीलम के मन में पता नहीं क्या आया, वो एकदम से गुसलखाने में घुस गई।
रघु अन्दर आई हुई नीलम को देखकर एकदम से चौंक गया और उसकी तरफ घबराते हुए देखने लगा। नीलम उसकी घबराहट ताड़ गई और उसकी ओर देखते हुए बोली- मुझे भी बहुत तेज पेशाब लगी थी।
यह कहते हुए.. उसने अपने पेटीकोट को पकड़ कर कमर तक उठा लिया और पैरों के बल नीचे बैठ गई।
भले ही बाहर अंधेरा था.. पर नीलम की झाँटों भरी चूत रघु से छुपी ना रह सकी।
फिर मूतने की तेज आवाज़ के साथ उसकी चूत से मूत की धार निकलने लगी, मूतने की आवाज सुन कर रघु का लण्ड और झटके खाने लगा।
नीलम ने देखा कि रघु मूत नहीं रहा है.. बस अपना लण्ड पकड़ कर खड़े हुए.. उसकी ओर चोर नज़रों से देख रहा है।
'क्या हुआ.. पेशाब नहीं आ रही..?' नीलम ने यूँ बैठे-बैठे ही कहा।
जिससे सुन कर रघु एकदम से हड़बड़ा गया और अपनी चड्डी ऊपर करके बिना कुछ बोले कमरे में चला गया।
नीलम के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
जब नीलम अन्दर आई तो उसने देखा कि रघु बिस्तर पर बैठा हुआ दूध पी रहा था।
अन्दर आने के बाद उसने दरवाजे बन्द किया और रघु की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए बोली- दूध पी लिया?
रघु ने 'हाँ' में सर हिलाते हुए खाली गिलास नीचे रख दिया।
नीलम अकसर कमरे में कपड़े बदलने के वक़्त लालटेन की रोशनी कम कर देती थी, पर आज उसने ऐसा नहीं किया और फिर अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी।
रघु उसके पीछे बैठा.. टेड़ी नज़रों से उसकी तरफ देख रहा था।
जैसे ही नीलम के बदन से उसका पेटीकोट अलग हुआ तो रघु का लण्ड फिर से उसकी चड्डी के अन्दर कुलाँचे भरने लगा।
सामने ऊपर से बिल्कुल नंगी नीलम उसकी तरफ पीठ किए खड़ी थी.. उसकी कमर जो सांप की तरह बल खा रही थी।
उस पर से रघु चाह कर भी अपनी नज़र हटा नहीं पा रहा था।
नीलम ने अपना ब्लाउज टाँग कर दूसरा पतला सा ब्लाउज पहन लिया, पर उसके हुक बंद नहीं किए और फिर रघु की तरफ मुड़ी।
रघु की साँस मानो जैसे रुक गई हो, उसकी काकी उसके सामने खुले ब्लाउज में खड़ी थी.. उसके एक इंच लम्बे और आधा इंच मोटे चूचुक उसके ब्लाउज में से साफ़ झलक रहे थे।
गोरे रंग की चूचियों पर गहरे भूरे रंग के चूचुक एकदम कयामत ढा रहे थे, जिन्हें बड़ी ही कामुक निगाहों से रघु देख रहा था।
यह देख कर नीलम मन ही मन खुश हो रही थी।
पर अचानक से उसके दिमाग़ में एक सवाल उमड़ा कि क्या जो वो कर रही है, वो ठीक है?
नहीं.. ये बिल्कुल ठीक नहीं है.. मैंने रघु को हमेशा अपने बेटे की तरह माना है। उसे अपने हाथों से पाला-पोसा है…
ये सब ग़लत बात है।
यही सब सोचते हुए, उसने अपना पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे अपने बदन से अलग कर दिया। एक बार फिर से अंजाने में ही उसने अपनी झाँटों भरी फूली हुई चूत को रघु को दिखा दिया।
रघु के दिमाग़ में शाम की घटना घूम गई।
जब वो उसकी चूत चाट रहा था, तब गुंजन कैसे मस्त होकर तड़फ रही थी और वही तड़फ अपनी काकी के चेहरे पर देखने का ख्याल भोले रघु के मन में आ गया।
जैसे ही नीलम ने अपना पेटीकोट टांगा.. रघु दौड़ता हुआ नीलम के बदन से जा चिपका। उसने अपने घुटनों को ज़मीन पर टिका दिया।
नीलम ने एकदम से हड़बड़ाते हुए रघु को पीछे हटाने की कोशिश करते हुए कहा- क्या.. क्या.. कर रहा है रघु.. पीछे हट…
रघु ने अपने चेहरे को नीलम की जाँघों में छुपाते हुए कहा- काकी वो कल वाला चूहा..
यह कह कर उसने अपने चेहरे को नीलम की जाँघों के बीच.. ठीक चूत के सामने सटा दिया।
रघु के नथुनों से बाहर आ रही गरम सांसों को महसूस करके एक बार फिर से नीलम के बदन वासना की खुमारी छाने लगी।
नीलम- कहाँ है चूहा.? पीछे हट।
नीलम ने रघु को अपने से अलग करने के कोशिश की और कहा- जा नहीं है… चूहा.. जाकर बैठ..
रघु- नहीं.. पहले आप भी साथ चलो।
यह कहते हुए रघु ने अपने होंठों को नीलम की चूत की फांकों पर रगड़ दिया।
नीलम की तो मानो जैसे साँस ही अटक गई हो, पूरा बदन काँप गया, गला ऐसे सूख गया जैसे कई दिनों से पानी ना पिया हो, पूरा बदन झटके खाने लगा और मुँह से हल्की सी मस्ती भरी 'आह' निकल गई।
चूत की फांकों पर होंठ पड़ते ही चूत ने अपने कामरस के खजाने से दो बूँदें बाहर निकल कर बरसों से सूख रही चूत की दीवारों को नम कर दिया।
नीलम ने काँपती हुई मदहोशी से भरी आवाज़ में कहा- रघुऊऊ.. हट नाआ…ओह्ह।
नीलम की मस्ती से भरी सिसकी सुन कर नादान रघु को लगा कि जैसे गुंजन को मज़ा आ रहा था, वैसे ही काकी को भी मज़ा आ रहा है।
रघु नीलम की बातों की तरफ ध्यान नहीं दे रहा था।
'अच्छा चल मैं साथ चलती हूँ..' यह कह कर उसने रघु को पीछे के तरफ धकेला, पर रघु अपनी बाँहों को उसकी कमर में कस कर लपेटे हुए था।
जैसे ही रघु पीछे की ओर लुड़का.. पीछे बिस्तर होने के वजह से रघु गिरते हुए बिस्तर पर बैठ गया।
नीलम ने अपने आप को संभालने के लिए रघु को उसके कंधों से थाम लिया, पर अपने आप को संभालने की कोशिश में नीलम की गदराई हुए जाँघें खुल गईं और रघु के होंठ ठीक नीलम की जाँघों के बीच चूत पर आ गए।
रघु ने एकदम से उसकी चूत की फांकों को अपने होंठों में दबा कर खींच दिया।