Adultery चन्डीमल हलवाई की दो बीवियाँ और नौकर (सम्पूर्ण)

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शाम ढल चुकी थी और रघु की माँ अपने घर के पीछे खेतों में जा रही थी।
उनके खेतों के बीचों-बीच भैंसों को बाँधने के लिए दो कमरे बने हुए थे।
रघु की माँ विमला दूध दुहने के लिए खेतों में जा रही थी.. रघु भी अपनी माँ के साथ हो लिया।
जैसे वो भैसों के कमरे के पास पहुँचे, तो रघु को पीछे से गुंजन की आवाज़ आई।
गुंजन- अरे काकी कैसी हो.. दूध दुहने आई हो।
विमला- हाँ बेटी.. दूध दुहने ही आई थी, आज तुम्हारी माँ नहीं आई दूध दुहने?
'नहीं काकी.. माँ की तबियत थोड़ी खराब है।'
गुंजन ने रघु की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए कहा और हल्की सी आँख भी दबा दी।
विमला- अच्छा.. अच्छा..
गुंजन अपने खेत में बने हुए कमरे के तरफ बढ़ गई, जहाँ वो अपनी भैंसों को बांधती थी।
रघु- माँ.. मैं गुंजन दीदी के साथ जाऊँ?
विमला- हाँ जाओ..पर ज्यादा शरारत मत करना।
रघु- ठीक है माँ।
रघु गुंजन के पीछे चल पड़ा.. गुंजन ने एक बार पीछे मुड़ कर रघु की तरफ देखा, उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, फिर गुंजन और रघु दोनों उस कमरे के अन्दर चले गए.. जहाँ पर गुंजन के घर वाले भैंसें बांधते थे।
अन्दर आते ही गुंजन ने रघु को अपने पास खींच लिया और उसका एक हाथ पकड़ कर अपनी चूत पर लहँगे के ऊपर से रखा और रघु की तरफ नशीली आँखों से देखते हुए बोली- दोपहर को मज़ा आया था ना..
रघु का दिल जोरों से धड़क रहा था, हाथ-पैर अनजानी उत्सुकता के कारण काँप रहे थे। रघु ने गुंजन की तरफ देखते हुए 'हाँ' में सर हिला दिया।
गुंजन ने एक बार कमरे से बाहर झाँक कर देखा, बाहर दूर-दूर तक कोई नहीं था, फिर गुंजन एक दीवार से सट गई और अपने लहँगे को अपनी कमर तक ऊपर उठा दिया।
यह देख कर रघु के दिल की धड़कनें और तेज हो गईं।
उसके सामने गुंजन के एकदम साफ़.. बिना झांटों वाली चूत थी.. जिसकी फाँकें आपस में सटी हुई थीं।
गुंजन की चूत देखते ही, रघु के दिमाग़ में कल रात देखी.. अपनी काकी नीलम की चूत आँखों के सामने घूम गई।
गुंजन की चूत की उलट नीलम की चूत बहुत ही घनी झाँटों से भरी हुई थी।
अपनी चूत की तरफ रघु को यूँ घूरता देख कर गुंजन के चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई.. उसने रघु को इशारे से पास आने के लिए कहा।
रघु काँपते हुए क़दमों के साथ गुंजन की तरफ बढ़ा।
जैसे ही रघु गुंजन के पास पहुँचा, गुंजन ने रघु के कंधे पर हाथ रख कर उसने नीचे की ओर दबाया।
रघु गुंजन का इशारा तुरंत समझ गया और नीचे पैरों के बल बैठ गया।
अब गुंजन की चूत ठीक रघु के मुँह के सामने थी, गुंजन उसकी गरम साँसों को अपनी चूत पर महसूस करके मदहोश हुए जा रही थी।
उसने रघु के सर को पकड़ कर उसके चेहरे को अपनी चूत पर लगा दिया, उसका पूरा बदन मस्ती में काँप गया।
'आह रघु ओह्ह.. चूस्स्स ना.. मेरी चूत ओह्ह…'
गुंजन ने कसमसाते हुए कहा और फिर रघु के सर को छोड़ कर अपने दोनों हाथों से अपनी चूत की फांकों को फैला दिया।
अब रघु के सामने गुंजन की चूत का लपलपाता छेद आ गया.. उसकी चूत का दाना एकदम फूला हुआ था।
गुंजन ने उसने अपनी ऊँगली से रगड़ते हुआ कहा- ले रघु चूस इसे मेरे जान… कब से मरी जा रही हूँ।
गुंजन की कामुक सिसकारियाँ रघु के ऊपर अपना जादू सा कर रही थीं और रघु मन्त्र-मुग्ध होकर अपने होंठों को उसकी चूत की तरफ बढ़ाने लगा।
गुंजन ने अपनी आँखें बंद कर लीं और फिर एक ज़ोर से 'सस्स्स्स्सिईई' के आवाज़ के साथ उसका पूरा बदन अकड़ गया..
रघु ने उसकी चूत के दाने को मुँह में भर कर चूसना चालू कर दिया।
गुंजन दीवार से पीठ टिका कर अपनी जाँघें फैलाए खड़ी थी और अपने बालों को मस्ती में नोचने लगी।
गुंजन- ओह्ह हाँ.. रघु ओह चूस.. ज़ोर से..इई आह्ह.. आह्ह.. मर..गइईई.. बहुत मज़ा आ रहा है.. ओ माआ.. ओहुम्ह ओह्ह हा..आँ चूस्स्स मेरी चूत को ह ह…
गुंजन की चूत से निकल रहे कामरस का स्वाद रघु थोड़ी देर के लिए अटपटा सा लगा, पर गुंजन की मदहोशी और मस्ती से भरी सिसकारियाँ उस पर अलग सा नशा कर रही थीं।
 
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गुंजन कभी रघु के सर को अपने दोनों हाथों से कस कर पकड़ लेती, तो कभी वो अपने बालों को नोचने लगती।
रघु उसकी चूत को ऐसे चूस रहा था मानो कोई बच्चा माँ का दूध पीता हो.. गुंजन की मस्ती का कोई ठिकाना नहीं था और रघु को तो मानो कोई नई चीज़ मिल गई हो।
वो बड़ी तन्मयता के साथ उसकी चूत की दाने को चूस रहा था।
गुंजन का पूरा बदन दोहरा हुआ जा रहा था, फिर एकदम से गुंजन का बदन ढीला पड़ गया और उसके चेहरे पर गहरी मुस्कान फ़ैल गई।
गुंजन को शांत देख कर रघु ने अपना चेहरा उसकी चूत से हटाया और खड़ा हो गया।
गुंजन ने अपनी वासना से भरी आँखों को खोल कर रघु की तरफ देखा।
उसके होंठों पर गुंजन की चूत से निकला हुआ कामरस लगा हुआ था। गुंजन ने अपने लहँगे को पकड़ कर उसके चेहरे को साफ़ किया।
इससे पहले कि गुंजन या रघु कुछ बोलती.. दूर खड़ी माँ ने रघु को चिल्लाते हुए आवाज़ लगाई।
वो रघु को घर चलने के लिए कह रही थी, उसकी माँ दूध दुह चुकी थी। बेचारा रघु मुँह लटका कर कमरे से निकल कर माँ की तरफ चल पड़ा।
चुदाई का जो मज़ा आज रघु को मिला था, वो उसी की याद में दिन भर इधर-उधर भटकता रहा।
रात ढल चुकी थी, सब लोग खाना खा कर अपने कमरों में जा चुके थे।
उधर रघु नीलम के कमरे में बिस्तर पर लेटा हुआ था और सोने की कोशिश कर रहा था।
इतने में नीलम कमरे में आ गई।
रघु बिस्तर पर लेटा हुआ था, उसके बदन पर सिर्फ़ एक चड्डी थी, शायद गरमी के वजह से उसने कपड़े नहीं पहने थे।
वो अभी भी सुबह के घटना-क्रम में खोया हुआ था और उसका 5 इंच का लण्ड उस चड्डी को ऊपर उठाए हुए तना हुआ था।
जैसे ही नीलम दरवाजे बंद करके उसकी तरफ मुड़ी, तो सबसे पहले उसकी नज़र बिस्तर पर लेते हुए रघु पर पड़ी।
जो अपने ही ख्यालों की दुनिया में खोया हुआ था, फिर अचानक से उसकी नज़र रघु की चड्डी के तरफ पड़ी, जो आगे से फूली हुई थी।
नीलम के दिमाग़ में उसी पल आज सुबह हुई घटना गूँज गई और उसके आँखों के सामने वो नज़ारा आ गया.. जब उसने रघु के काले लण्ड और उसके गुलाबी सुपारे को देखा था।
आज उसके भतीजे का लण्ड फिर से सर उठाए हुआ था, जैसे वो अपनी काकी को सलामी दे रहा हो।
पर रघु तो जैसे इस दुनिया में ही नहीं था, उससे ये भी नहीं पता था कि उसकी काकी कमरे में आ चुकी हैं।
अपने भतीजे का लण्ड यूँ चड्डी में खड़ा देख कर एक बार नीलम की आँखों में अजीब सी चमक आ गई और उसके होंठों पर लंबी मुस्कान फ़ैल गई।
नीलम- रघु बेटा.. कहाँ खोया हुआ है? दूध रखा है पी ले।
रघु नीलम की आवाज़ सुन कर एकदम से चौंकते हुए बोला- जी.. जी काकी जी।
जैसे ही रघु खड़ा होने को हुआ तो उसका ध्यान अपने लण्ड की तरफ गया जो एकदम तना हुआ था और उसकी चड्डी को फाड़ कर बाहर आने के लिए तैयार था।
रघु ने बिस्तर पर बैठते हुए, अपनी दोनों जाँघों को आपस में सटा लिया ताकि काकी की नज़र उस पर ना पड़ सके।
पर रघु नहीं जानता था कि उसकी काकी कब से उसके तने हुए लण्ड को देख कर ठंडी 'आहें' भर रही थी।
नीलम ने रघु को यूँ थोड़ा परेशान देख कर कहा- क्या हुआ रघु… परेशान क्यों है?
अब रघु बेचारा क्या कहे कि उसका लण्ड गुंजन की वजह से सुबह से खड़ा है, वो बोला- वो काकी मुझे पेशाब आ रही है।
नीलम ने हँसते हुए कहा- तो जा.. फिर पेशाब कर आ… कहीं बिस्तर मत गीला कर देना।
रघु ने थोड़ा खीजते हुए कहा- क्या काकी..
नीलम जानती थी कि रघु अंधेरे में अकेला बाहर नहीं जाता है, तो वो बोली- अच्छा चल आ.. मैं तेरे साथ चलती हूँ।
यह कहते हुए नीलम ने अपनी साड़ी उतार कर टाँग दी, अब उसके बदन पर सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट था।
एक बार तो रघु भी अपनी काकी के गदराए हुए बदन को देखे बिना नहीं रह सका।
एकदम साँचे में ढला हुआ बदन.. 38 नाप की चूचियाँ.. हल्का सा गदराया हुआ पेट.. कद साढ़े 5 फुट के करीब.. गोरा रंग.. चेहरा भी पूरी तरह से भरा हुआ ये सब आज दूसरी नजर से देखकर तो रघु की और बुरी हालत हो गई।
नीलम यह जान चुकी थी।
जब तक वो रघु की तरफ देख रही है.. वो खड़ा नहीं होगा.. इसलिए उसने पलट कर दरवाजे खोला और बाहर चली गई और बाहर से आवाज़ लगाई, 'रघु जल्दी आ जा… मुझे बहुत नींद आ रही है..'
जैसे ही काकी बाहर गईं.. रघु भी उठ कर बाहर चला गया.. बाहर बहुत अंधेरा था इसलिए रघु का संकोच थोड़ा कम हो गया।
 
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सोनू उदास मन से एक ओर खड़ा हुआ बेला की तरफ देखते हुए- पर काकी अभी तो मेरा हुआ ही नहीं!
बेला के होंठों पर संतुष्टि से भरी मुस्कान फैली हुई थी- तो मैं कब तुम्हें मना कर रही हूँ, आज से ये फुद्दी तेरे ही मेरे राजा.. चल इधर आ मुँह लटका कर क्यों खड़ा है?
सोनू बेला के पास जाकर बिस्तर पर खड़ा हो गया, बेला नीचे अपने चूतड़ों के बल बैठी हुई थी, उसने तकिए को उठा कर अपने चूतड़ों के नीचे रखा और सोनू के लण्ड को मुठ्ठी में भर कर गौर से देखने लगी।
‘हाय राम.. यह तो सच में बहुत बड़ा है.. इसलिए तो मेरी चूत से मूत निकाल दिया तेरे लण्ड ने…’ फिर बेला ने सोनू के लण्ड को मुठ्ठी में भर कर तेज़ी से हिलाना शुरू कर दिया।
‘आह.. काकी धीरे ओह्ह.. काकी धीरे करो ना!’ बेला ने मुस्कुराते हुए सोनू के लण्ड के सुपारे को अपनी उँगलियों के बीच में लेकर ज़ोर से मसल दिया।
सोनू एकदम सिसकते हुए चिल्ला उठा।
बेला सोनू के लण्ड को तेज़ी से हिलाते हुए- क्यों रे.. अब मैं क्यों रुकूँ.. जब मैंने तुम्हें रुकने के लिए कहा था, तब तो तूने मेरी एक भी नहीं सुनी.. बोल मारेगा अपनी काकी के फुद्दी..हाँ…
सोनू- हाँ काकी.. पहले मेरा लण्ड तो छोड़ो।
सोनू की बात सुन कर बेला ने सोनू का लण्ड छोड़ दिया।
फिर वो दूसरी तरफ पलट गई और कुतिया के जैसी अवस्था में आ गई।
‘ये चोद अपनी काकी की फुद्दी.. बेटा देख मैं तेरे लिए कुतिया की तरह अपनी चूत फैला कर कुतिया बनी हुई हूँ। अब डाल दे अपना मूसल सा लण्ड मेरी चूत में..।’
सोनू का लण्ड एक बार फिर से पूरे उफान पर था।
सोनू बेला के पीछे आकर घुटनों के बल बैठ गया।
बेला आगे से नीचे की ओर झुक गई और उसने अपनी गाण्ड को जितना हो सकता था ऊपर उठा लिया, जिससे बेला की चूत का छेद बिल्कुल सोनू के लण्ड की सीध में आ गया।
सोनू ने एक हाथ से अपने लण्ड को पकड़ा और एक हाथ से बेला की झाँटों भरी चूत की फांकों को पकड़ कर पेलने की कोशिश करने लगा।
ये देख बेला भी अपना एक हाथ पीछे ले आई और अपनी चूत की फांकों को एक तरफ से फैला दिया और दूसरी तरफ से सोनू ने जोर लगाया।
अब सोनू को बेला की चूत का गुलाबी छेद बिल्कुल साफ़ दिखाई दे रहा था।
सोनू ने अपने लण्ड के सुपारे को बेला की चूत के छेद पर टिका कर उसकी कमर को दोनों तरफ से पकड़ कर धीरे-धीरे अपने लण्ड के सुपारे को अन्दर पेलना शुरू किया।
बेला की आंखें फिर से मस्ती में बंद हो गईं।
सोनू के लण्ड के गरम सुपारे ने एक बार फिर बेला की चूत की दीवारों को रगड़ कर उसे गरम कर दिया।
‘ऊंह हाआअँ.. बेटा बहुत अच्छे बेटा हाआआं और घुसाओ… उफ़फ्फ़ ऊंह..’
ये कहते हुए बेला ने अपनी चूतड़ों को पीछे की तरफ धकेला।
सोनू का लण्ड बेला की चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ आधे से ज्यादा अन्दर घुस गया।
‘सुन बेटा तेरा लण्ड बहुत मोटा है.. पर तुझे अपनी काकी पर तरस खाने के कोई ज़रूरत नहीं है… चोद मुझे कुतिया की तरह.. रगड़ कर चोद.. ज़ोर-ज़ोर से पेल अपना लण्ड.. मेरी फुद्दी में.. तेरे मोटे लण्ड को चूत में लेने के लिए मैं कुछ भी सह लूँगी..’
सोनू ने बेला के दोनों चूतड़ों को फैला कर अपनी कमर को थोड़ा सा पीछे किया और फिर साँस रोक कर जोरदार धक्का मारा।
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नीलम चाची और रघु की चुदाई आपने अच्छी तरह से वर्णन की है, पर सुहाग रात में नई चूत छोड़ कर पुरानी चूत चोदने के लिए कोई जायेगा ये संभव नहीं लगत
 
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गुसलखाने के पास जाकर नीलम रघु की तरफ पलटी।
उसने देखा कि रघु उससे नजरें चुराने की कोशिश कर रहा है। यह देख कर उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, उसने रघु को पेशाब करने के लिए कहा।
रघु जल्दी से गुसलखाने में घुस गया।
नीलम रघु में आए अचानक इस बदलाव से थोड़ी हैरान जरूर थी, पर कल रात से उसमें भी बदलाव आ चुका था।
रघु के चाचा की मौत के बाद से ही रघु उसके कमरे में सो रहा था, पर आज तक उसके मन में रघु के लिए कभी ऐसा विचार नहीं आया था।
पर कल रात से उसकी अन्दर की छुपी हुई वासना ने फिर से सर उठा लिया था।
रघु गुसलखाने के अन्दर ठीक उसके सामने खड़ा था। उसकी पीठ नीलम की तरफ थी और रघु की चड्डी उसकी जाँघों तक नीचे उतरी हुई थी।
ये सब देख और रघु में आए बदलाव के बारे में सोच कर नीलम के मन में पता नहीं क्या आया, वो एकदम से गुसलखाने में घुस गई।
रघु अन्दर आई हुई नीलम को देखकर एकदम से चौंक गया और उसकी तरफ घबराते हुए देखने लगा। नीलम उसकी घबराहट ताड़ गई और उसकी ओर देखते हुए बोली- मुझे भी बहुत तेज पेशाब लगी थी।
यह कहते हुए.. उसने अपने पेटीकोट को पकड़ कर कमर तक उठा लिया और पैरों के बल नीचे बैठ गई।
भले ही बाहर अंधेरा था.. पर नीलम की झाँटों भरी चूत रघु से छुपी ना रह सकी।
फिर मूतने की तेज आवाज़ के साथ उसकी चूत से मूत की धार निकलने लगी, मूतने की आवाज सुन कर रघु का लण्ड और झटके खाने लगा।
नीलम ने देखा कि रघु मूत नहीं रहा है.. बस अपना लण्ड पकड़ कर खड़े हुए.. उसकी ओर चोर नज़रों से देख रहा है।
'क्या हुआ.. पेशाब नहीं आ रही..?' नीलम ने यूँ बैठे-बैठे ही कहा।
जिससे सुन कर रघु एकदम से हड़बड़ा गया और अपनी चड्डी ऊपर करके बिना कुछ बोले कमरे में चला गया।
नीलम के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
जब नीलम अन्दर आई तो उसने देखा कि रघु बिस्तर पर बैठा हुआ दूध पी रहा था।
अन्दर आने के बाद उसने दरवाजे बन्द किया और रघु की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए बोली- दूध पी लिया?
रघु ने 'हाँ' में सर हिलाते हुए खाली गिलास नीचे रख दिया।
नीलम अकसर कमरे में कपड़े बदलने के वक़्त लालटेन की रोशनी कम कर देती थी, पर आज उसने ऐसा नहीं किया और फिर अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी।
रघु उसके पीछे बैठा.. टेड़ी नज़रों से उसकी तरफ देख रहा था।
जैसे ही नीलम के बदन से उसका पेटीकोट अलग हुआ तो रघु का लण्ड फिर से उसकी चड्डी के अन्दर कुलाँचे भरने लगा।
सामने ऊपर से बिल्कुल नंगी नीलम उसकी तरफ पीठ किए खड़ी थी.. उसकी कमर जो सांप की तरह बल खा रही थी।
उस पर से रघु चाह कर भी अपनी नज़र हटा नहीं पा रहा था।
नीलम ने अपना ब्लाउज टाँग कर दूसरा पतला सा ब्लाउज पहन लिया, पर उसके हुक बंद नहीं किए और फिर रघु की तरफ मुड़ी।
रघु की साँस मानो जैसे रुक गई हो, उसकी काकी उसके सामने खुले ब्लाउज में खड़ी थी.. उसके एक इंच लम्बे और आधा इंच मोटे चूचुक उसके ब्लाउज में से साफ़ झलक रहे थे।
गोरे रंग की चूचियों पर गहरे भूरे रंग के चूचुक एकदम कयामत ढा रहे थे, जिन्हें बड़ी ही कामुक निगाहों से रघु देख रहा था।
यह देख कर नीलम मन ही मन खुश हो रही थी।
पर अचानक से उसके दिमाग़ में एक सवाल उमड़ा कि क्या जो वो कर रही है, वो ठीक है?
नहीं.. ये बिल्कुल ठीक नहीं है.. मैंने रघु को हमेशा अपने बेटे की तरह माना है। उसे अपने हाथों से पाला-पोसा है…
ये सब ग़लत बात है।
यही सब सोचते हुए, उसने अपना पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे अपने बदन से अलग कर दिया। एक बार फिर से अंजाने में ही उसने अपनी झाँटों भरी फूली हुई चूत को रघु को दिखा दिया।
रघु के दिमाग़ में शाम की घटना घूम गई।
जब वो उसकी चूत चाट रहा था, तब गुंजन कैसे मस्त होकर तड़फ रही थी और वही तड़फ अपनी काकी के चेहरे पर देखने का ख्याल भोले रघु के मन में आ गया।
जैसे ही नीलम ने अपना पेटीकोट टांगा.. रघु दौड़ता हुआ नीलम के बदन से जा चिपका। उसने अपने घुटनों को ज़मीन पर टिका दिया।
नीलम ने एकदम से हड़बड़ाते हुए रघु को पीछे हटाने की कोशिश करते हुए कहा- क्या.. क्या.. कर रहा है रघु.. पीछे हट…
रघु ने अपने चेहरे को नीलम की जाँघों में छुपाते हुए कहा- काकी वो कल वाला चूहा..
यह कह कर उसने अपने चेहरे को नीलम की जाँघों के बीच.. ठीक चूत के सामने सटा दिया।
रघु के नथुनों से बाहर आ रही गरम सांसों को महसूस करके एक बार फिर से नीलम के बदन वासना की खुमारी छाने लगी।
नीलम- कहाँ है चूहा.? पीछे हट।
नीलम ने रघु को अपने से अलग करने के कोशिश की और कहा- जा नहीं है… चूहा.. जाकर बैठ..
रघु- नहीं.. पहले आप भी साथ चलो।
यह कहते हुए रघु ने अपने होंठों को नीलम की चूत की फांकों पर रगड़ दिया।
नीलम की तो मानो जैसे साँस ही अटक गई हो, पूरा बदन काँप गया, गला ऐसे सूख गया जैसे कई दिनों से पानी ना पिया हो, पूरा बदन झटके खाने लगा और मुँह से हल्की सी मस्ती भरी 'आह' निकल गई।
चूत की फांकों पर होंठ पड़ते ही चूत ने अपने कामरस के खजाने से दो बूँदें बाहर निकल कर बरसों से सूख रही चूत की दीवारों को नम कर दिया।
नीलम ने काँपती हुई मदहोशी से भरी आवाज़ में कहा- रघुऊऊ.. हट नाआ…ओह्ह।
नीलम की मस्ती से भरी सिसकी सुन कर नादान रघु को लगा कि जैसे गुंजन को मज़ा आ रहा था, वैसे ही काकी को भी मज़ा आ रहा है।
रघु नीलम की बातों की तरफ ध्यान नहीं दे रहा था।
'अच्छा चल मैं साथ चलती हूँ..' यह कह कर उसने रघु को पीछे के तरफ धकेला, पर रघु अपनी बाँहों को उसकी कमर में कस कर लपेटे हुए था।
जैसे ही रघु पीछे की ओर लुड़का.. पीछे बिस्तर होने के वजह से रघु गिरते हुए बिस्तर पर बैठ गया।
नीलम ने अपने आप को संभालने के लिए रघु को उसके कंधों से थाम लिया, पर अपने आप को संभालने की कोशिश में नीलम की गदराई हुए जाँघें खुल गईं और रघु के होंठ ठीक नीलम की जाँघों के बीच चूत पर आ गए।
रघु ने एकदम से उसकी चूत की फांकों को अपने होंठों में दबा कर खींच दिया।
 

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