Incest गांव की कहानी

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सुरज का लंड दिखाने वाली बात आई गई हो गई थी सुरज इस बात को भूल चुका था,,,,,, वह फिर से अपनी मस्ती में मस्त हो गया था और रविकुमार उसी तरह से रोज बैलगाड़ी को रेलवे स्टेशन ले जाता है और वहां से सवारी ढोकर अपना जीवन निर्वाह कर रहा था,,,,,,,

मंजू अपनी जवानी के एक-एक पल को बड़ी मुश्किल से बिता रही थी उसके तन बदन में जवानी की लहर चिकोटीयां काट रही थी,,, इसमें उसका दोश बिल्कुल भी नहीं था एक तो उसकी उम्र शादी लायक हो चुकी थी और अभी तक उसकी शादी नहीं हुई थी ऐसे में जवानी की उफान उसके बदन में हर तरफ से बाहर की तरफ झांक रहा था और ऊपर से अपने भैया और भाभी के कमरे में से आ रही मादक चुदाई की सिसकारीयो की आवाज से वह पूरी तरह से मस्त हो जाती थी,,,,,, उसके बदन में जवानी किसी बाढ़ के पानी की तरह थी जो कि सब्र के बांध से बंधी हुई थी जिस दिन अगर यह सब्र का बांध टूट गया तो उसकी जवानी पिघल कर ना जाने कितनों को डुबा ले जाएगी,,,,,, वैसे मंजू इस उफान मारती उम्र में भी अपनी जवानी को किसी की नजर लगने नहीं दी थी ऐसा नहीं था कि किसी की नजर उस पर पडती नहीं थी गांव के सभी जवान लड़कों की नजर उस पर हमेशा बनी रहती थी वैसे उसकी भाभी की मस्त जवानी का आकर्षण मंजू से एक कदम आगे ही था लेकिन फिर भी मंजू किसी से कम नहीं थी गोरा रंग तीखे नैन नक्श ऊपर से जवानी की दस्तखत रूपी उसके दोनों अमरूद जान लेवा थे हालांकि अब तक यह दोनों अमरुद किसी के हाथों मैं नहीं आए थे इसलिए उसके उभार कुछ ज्यादा नहीं था लेकिन आकर्षण का केंद्र बिंदु जरूर था,,,, पतली कमर कमर के नीचे का उन्नत नितंबों का उभार ज्यादा घेरा उधार नहीं था लेकिन सीमित रूप से उसका भौगोलिक आकार बेहद आकर्षक और मस्त कर देने वाला था जिसकी लचक पगडंडियों पर चलते हुए पानी भरे गुब्बारे की तरह इधर उधर लुढकती रहती थी जैसे अपने दोनों हाथों में लेकर संभालने के लिए गांव के बूढ़े और जवान दोनों मचलते रहते थे,,, लेकिन मंजू ना किसी को आज तक ऐसा मौका नहीं दी थी,,,,,
उसके साथ के सहेलियों कि धीरे-धीरे एक-एक करके शादी होती जा रही थी,,। उसकी खुद की भतीजी जो कि उसे छोटी थी उसकी भी शादी हो चुकी थी लेकिन वह अभी तक कुंवारी थी,,, मन से भी और तन से भी,,,,,,।

धीरे-धीरे जैसे समय गुजरता चाह रहा था वैसे वैसे मंजू से अपनी जवानी संभाले संभल नहीं रही थी,,,,, अपनी भाभी की कमरे से शिकारियों की आवाज से उसका तन बदन मचल उठता था पहचानती थी कि बगल वाले कमरे में उसका बड़ा भाई उसकी भाभी के साथ क्या कर रहा है,,,। हालांकि अभी तक उसने अपनी आंखों से अपने भैया भाभी की चुदाई देखी नहीं थी और अभी तक कोशिश भी नहीं की थी,,,,।

लेकिन आज उससे रहा नहीं जा रहा था,,, उसकी भाभी की मादक सिसकारियां उसके कानों में मधुर रस खोल रही थी साथ ही उसके तन बदन को मदहोश कर रही थी एक अजीब सा नशा उसके तन बदन को अपनी गिरफ्त में लिया जा रहा था आंखों में खुमारी छा रही थी,,,,,,,,

आहहहह आआआआहहहह,,,ऊईईईई, मां ,,,,मर गई रे आहहहह,,,आपका तो बहुत मोटा है,,,,(यह शब्द जैसे ही मंजू के कानों में पड़े उसके कान एकदम से खड़े हो गए और उसका रोम-रोम पुलकित हो गया,,,,वह एक नजर लालटेन की रोशनी में सुरज के ऊपर डाली वह पूरी तरह से गहरी नींद में सो रहा था और यही उसकी खासियत भी थी जब होता था तो घोड़े बेच कर सोता था उसे बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ता था कि क्या हो रहा है कहां से आवाज आ रही है या उसके साथ क्या किया जा रहा है वापस सोने में मस्त रहता था इसलिए उसके जागने की बिल्कुल भी चिंता नहीं थी,,,, वह धीरे से खटिया पर से ऊठी ओर बगल वाले कमरे में देखा जा सके ऐसी जगह ढुंढने लगी,,,, आज तक उसने इस तरह की हिम्मत और हिमाकत नहीं की थी वह अपने भैया भाभी की बहुत इज्जत करती थी और इसीलिए उन्हें इस हाल में देखना उसके लिए गलत था लेकिन आज वह मजबूर हो गई थी जवानी से भरपूर है उम्र से ऐसा करने पर मजबूर कर रही थी अपने संस्कार अपनी मर्यादा को एक तरफ रख कर वह अपने बदन की जरूरत पर ध्यान देते हुए बड़ी शिद्दत से बगल वाले कमरे में देखा जा सके ऐसा कोई छेंद देखने लगी,,,,दोनों कमरों के बीच एक पतली कच्ची दीवार थी जो जगह-जगह से उसकी इंटे खिसक चुकी थी जिसमें थोड़ा-थोड़ा दरार पड़ चुका था इन दरारों पर कभी भी मंजू का ध्यान नहीं गया था लेकिन आज उसकी किस्मत कुछ और खेल खेलना चाहती थी,,,, इसलिए जल्दी उसे ईटों के बीच की एक पतली दरार नजर आ गई जिसमें से उसे बगल वाले कमरे की लालटेन की रोशनी नजर आ रही थी,,,, लालटेन की रोशनी नजर आते ही उसके दिल जोरो से धड़कने लगा क्योंकि आज तक उसने किसी भी औरत मर्द की चुदाई को अपनी आंखों से नहीं देखी थी बस कल्पना भर की थी लेकिन आज वह जो करने जा रही थी अगर उसकी किस्मत अच्छी रही तो उसे हुआ नजारा भी देखने को मिल जाएगा इसके बारे में सिर्फ वह कल्पना करके अपनी जवानी को सुलगा रही थी,,,।

ईटों के बीच की पत्नी दरार के बीच मिटटी भरी हुई थी,,, जिससे अंदर का दृश्य साफ नजर नहीं आ रहा था,,,इसलिए वह अपने कमरे में लालटेन की रोशनी में एक छोटी सी पतली लकड़ी ढूंढ कर ले आई और उसे से कुरेद कुरेद कर वह मिट्टी को नीचे गिराने लगे वजह से ही पतली दरार में फंसी हुई मिट्टी नीचे गिर गई,,,,,, और मिट्टी के गिरते ही कमरे का दृश्य एकदम साफ नजर आने लगा,,,,,,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था,,,, वह अपनी प्यासी आंखों को उस दरार से सटा दी जैसे,, एक खगोल शास्त्री नक्षत्रों का मुआयना करने के लिए टेलिस्कोप से अपनी आंखें सटा देता है,,,,,, और अगले ही पल उसे जो दृश्य नजर आया,,, उसे देखते ही उसकी प्यासी बुर कुल बुलाने लगी,,, उसकी आंखें फटी की फटी रह गई,,।

उसकी आंखें जिंदगी में पहली बार ईस तरह का दृश्य देख रही थी,,,यह दृश्य देखने के बावजूद उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था उसे लग रहा था कि कहीं वो सपना तो नहीं देख रही है,,,।लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं था उसकी आंखें जो कुछ भी देख रही थी वह सरासर सत्य था,,। उसे साफ दिखाई दे रहा था कि उसके भैया और भाभी बिना कपड़ों के थी उसकी भाभी खटिया पर पीठ के बल लेटी हुई थी,,, उसकी साड़ी साया और ब्लाउज खटीए के नीचे बिखरे हुए थे उसके भैया भी बिना कपड़ों के एकदम नंगे थे,,,,,,, शायद एक बार वह उसकी भाभी की चुदाई कर चुके थे और दोबारा प्रदान करने की तैयारी कर रहे थे ऐसा मंजू सोच रही थी और जो कि सच भी था क्योंकि कुछ देर पहले उसकी भाभी की गरम सिसकारियां और आहहह आहहहह की आवाज उसके कानों में पड रही थी लेकिन इस समय उसके भैया खटिया पर नहीं थे बल्कि खटिया के पास खड़े होकर सरसों के तेल को कटोरी में से अपने खड़े लंड पर गिरा रहे थे,,,, और जैसे ही मंजू की आंखें अपने बड़े भैया के लंड पर पड़ी तो उसके होश उड़ गए,,,, एकदम काला लंड एकदम किसी काले नाग की तरह हवा में लहरा रहा था जिस पर सरसों का तेल गिलाकर उसका भाई अपने लंड की मालिश कर रहा था,,,, यह दृश्य मंजू के लिए उत्तेजना की संपूर्ण पराकाष्ठा थी इसलिए तो उसकी बुर तुरंत गीली हो गई,,, उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी वह कभी सोची नहीं थी कि मर्दों के पास इस तरह का लंड होता है,,,,। एक बार तो वह सचमुच में घबरा गई थी अपने भाई के लंड को देख करके इतना मोटा लंबा लंड छोटे से छेद में जाता कैसे होगा,,,,। वह सांसो को बांधकर अंदर के नजारे का लुफ्त उठाने लगी,,,, उसकी भाभी प्यासी नजरों से उसके भैया के लंड को देख रही थी और साथ में अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर मसल भी रही थी,,,।


मैं हु ना मेरी रानी तुम अपने हाथों को क्यों तकलीफ देती हो मैं अपने हाथों से तुम्हारी चूची दबा दबा कर लाल कर दूंगा,,,(रविकुमार अपने लंड पर तेल की मालिश करते हुए बोला और अपने भाई की इतनी गंदी बात को सुनकर मंजू का गाल शर्म से लाल हो गया,,,वह कभी सोची नहीं थी किसके भैया इस तरह से गंदी बात करते होंगे लेकिन आज सब कुछ उसकी आंखों के सामने था,,,,)


आप बहुत शैतान है जी एक बार चोद चुके हो फिर भी आपका मन नहीं भर रहा है,,,,


भला औरत की बुर से कभी मन भरता है,,, अगर मर्दों का मन भर जाए तो औरत और मर्द के बीच प्यार का रिश्ता ही खत्म हो जाए,,,,,,, यही प्यास है जो हम दोनों के बीच अभी भी प्यार को बरकरार रखा हुआ है,,,,।


लेकिन आपका बहुत मोटा है दर्द करता है,,,


मोटा है तभी तो मजा आता है मेरी रानी और तभी तो तुम अभी तक जाग रही हो तुम्हें भी दुबारा लेने का मन कर रहा है तभी तो तुम्हारी बुर कितना पानी छोड़ रही है,,,

(अंदर का गरमा गरम दृश्य और साथ ही गरमा गरम वार्तालाप मंजू के तन बदन में मदहोशी भर रहा था,,, वह कभी सपने में नहीं सोचा थी कि वह अपनी आंखों से इस तरह का दृश्य देखेगी सब कुछ अद्भुत था,,,,मंजू की सांसे सिर्फ अंदर के नजारे को देखकर उनकी बातों को सुनकर बड़ी तेजी से चल रही थी,,,,)


अब देखना रानी एक बार पानी छोड़ दिया हूं अब देखना कितनी देर तक तुम्हारी चुदाई करता हूं,,,,


जोर जोर से मत करना दर्द करने लगता है,,,,(इस बार इतना कहते हुए मंजू की भाभी अपनी हथेली को अपनी दोनों टांगों के बीच लाकर अपनी बुर को मसलते हुए बोली तो इस नजारे को देख कर मंजू एकदम से मचल उठी और अपने आप ही उसका हाथ सलवार के ऊपर से ही बुर पर चला गया जिसे वह मसलना शुरू कर दी,,,,,)


जोर जोर से चोदने में ही मजा आता है धीरे धीरे से तो बिल्कुल भी मजा नहीं आता और तुम ही तो कहती हो और जोर से और जोर से मेरे राजा और जोर से,,,,
(इस बात पर मंजू की भाभी एकदम से शर्मा गई और बोली)


अच्छा अब जल्दी से आ जाओ मुझसे भी रहा नहीं जा रहा है,,,,


ओहहहह ,,,,, मेरी रानी मैं जानता हूं मेरे लंड को देखकर तुम्हारी बुर में पानी आ जा रहा है,,,, लो अभी तुम्हारी इच्छा पूरी कर देता हूं,,,,(और इतना कहते ही रविकुमार और मंजू की भाभी खुद अपनी दोनों टांगों को फैला दी मंजू को अंदर का दृश्य साफ नजर आ रहा था अपनी भाभी का गोरा बदन उसकी गुदाज पन को देखकर खुद मंजू के मुंह में और बुर में पानी आ रहा था,,, उसकी मोटी मोटी चिकनी जांघों को देखकर मंजू का होश खो रहा था देखते-देखते उसका भाई उसकी भाभी के दोनों टांगों के बीच आ गया और अपने लंड को हाथ में पकड़ कर उसकी गुलाबी बुर के गुलाबी छेद पर रख दिया,,,,, मंजू को सबकुछ साफ नजर आ रहा था उसका सब्र अब टूटता हुआ नजर आ रहा था उसने भी आनंद खाना मैं अपनी सलवार की डोरी खोल कर अपनी सलवार को नीचे कदमों में गिरा दी और अपनी नंगी बुर पर अपनी हथेली को रगड़ना शुरु कर दी,,,,और दूसरी तरफ उसका भाई अपने लंड को धीरे-धीरे उसकी भाभी की बुर में डालना शुरू कर दिया इसे देखकर मंजू से रहा नहीं गया और वह अपनी उंगली को अपनी बुर में डाल दी,,,,मंजू के लिए पहला मौका था जब वह अपनी उंगली को बुर में डाल रही थी इससे पहले वह बुर को अपनी हथेली से मसलती भर थी,,,। लेकिन आज उसे बहुत मजा आ रहा था मसलने से ज्यादा अपनी बुर में उंगली डालने में उसे आनंद की अनुभूति हो रही थी,,, दूसरी तरफ उसका भाई अपना पूरा लंड उसकी भाभी की बुर में डाल चुका था,,,।

अंदर कमरे में लालटेन की रोशनी में से साफ नजर आ रहा था जिसका कारण था कि लालटेन की रोशनी कि लोग कुछ ज्यादा ही की गई थी जिसका मतलब साफ था कि रविकुमार को रात के अंधेरे में नहीं बल्कि रात के उजाले में चुदाई करने में ज्यादा आनंद आता था,,,,लेकिन गांव में ऐसा होता नहीं था क्योंकि गांव की औरतों को शर्म के मारे अंधेरे में ही चुदवाने में मजा आता था और अंधेरे में चुदवाती भी थी,,,,,लेकिन मंजू अपने मन में सोचने लगी कि अच्छा हुआ कि उसके भाई और भाभी को ऊजाले में चुदाई करने का शौक है जिसकी बदौलत वह अपनी आंखों से सब कुछ साफ-साफ देख पा रही थी,,,।

क्या जबरदस्त और मादकता से भर देने वाला नजारा था,,, बगल के कमरे में मंजू के भैया और भाभी चुदाई में पूरी तरह से तल्लईन हो चुके थे और बगल के कमरे में मंजू खुद अपनी सलवार को खोलकर अपनी बुर में उंगली पेल रही थी,,, जिसमें उसे बहुत मजा आ रहा था और दूसरी तरफ सुरज घोड़े बेच कर सो रहा था अगर ऐसे में कोई और लड़का होता तो उसकी आंख खुल गई होती और अब तक तो वह अपनी मौसी की बुर में लंड भी डाल दिया होता और जो कि उस समय उसकी मौसी को भी यही पसंद भी होता,,,।


धक्कों की गति बड़ी तेजी से खटिया को चरमरा रही थी जिससे उसकी भाभी की दोनों चूचियां पानी भरे गुब्बारे की तरह उछल रही थी जो कि इस समय उसके भाई के दोनों हाथों में उसकी शोभा बढ़ा रही थी,,,।

मंजू के गाल शर्म के मारे और उत्तेजना से लाल हो चुके थे,,, वह साफ तौर पर देख पा रही थी कि उसके भैया बड़ी तेजी से अपनी कमर हिला रहे थे और उसकी भाभी मस्ती भरी सिसकारी ले रही थी उसे बहुत मजा आ रहा था जो कि उसके चेहरे से बंया हो रहा था,,,। देखते ही देखते मंजू का बड़ा भाई उसकी भाभी पर ढेर हो गया इसका मतलब साफ था कि दोनों का काम हो चुका था और इधर मंजू जोर जोर से अपनी बुर में उंगली डालकर पानी निकाल चुकी थी,,,, मंजू का भी गर्म लावा ठंडा हो चुका था,,,इसलिए वह नीचे झुक कर अपनी सलवार को ऊपर की ओर डोरी बांधकर वापस खटिया पर आकर सो गई,,।
 
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धीरे-धीरे दिन-ब-दिन मंजू के हाव भाव बदलने लगे थे,,,,, अपनी आंखों से अपने भैया और भाभी को चुदवाते हुए देखकर उसके तन बदन में उस दृश्य को याद करके हलचल सी मच जाती थी और उसकी बुर पानी छोड़ने लगती थी इस उमर में उसे भी एक जवान मोटे तगड़े लंड की जरूरत महसूस होने लगी थी,,,,, लेकिन अपनी भाभी को अपने भैया से चुदवाते हुए देखकर उसकी जो हालत हुई थी और अपनी भैया के लंड को अपनी भाभी की बुर में अंदर बाहर होता हुआ देखकर वह भी पहली बार अपनी बुर के अंदर अपनी ऊंगलियो को प्रवेश करा दी थी ऐसा करने में उसे बहुत ही आनंद की अनुभूति हुई थी हालाकी उंगलियां लंड का मजा बिल्कुल भी नहीं दे सकती थी लेकिन फिर भी अपनी जवानी की गर्मी को शांत करने के लिए यही एक उचित मार्ग था जो कि वह जब चाहे तब उपयोग कर सकती थी,,,,,,,, लेकिन धीरे-धीरे उसका सब्र जवाब देने लगा था उसे अपनी जरूरतों के अधीन होकर इतना यकीन हो गया था कि अगर कोई भी उसकी चुदाई करना चाहेगा तो उससे चुदवा लेगी,,,, लेकिन यह कब कैसे और कहां होगा इसके बारे में उसे भी ज्ञात नहीं था वह सब कुछ समय पर छोड़ चुकी थी,,,,।

दूसरी तरफ सुरज दूसरे लड़कों की तरह चालाक और समझदार औरतों के मामले में बिल्कुल भी नहीं था वरना अब तक वह अपने लंड का सही उपयोग कर चुका होता,,, अभी तक तो उसने अपने हाथ का उपयोग करके मुठ भी नहीं मारा था जबकि गांव के उसके हम उम्र के इस क्रिया को रोज ही करते थे,,, और ज्यादातर लड़कों की कल्पना में सुरज की खूबसूरत यवन से भरी हुई मादकता छलकाती हुई उसकी मामी और उसकी मौसी ही रहती थी,,,,।

रविकुमार रोज की तरह रेलवे स्टेशन पर सवारी का इंतजार कर रहा था,,,,, और उसके बाकी साथी भी बेल गाड़ी लेकर रेलवे स्टेशन पर ही थे और रविकुमार और उसका एक साथी बड़े घने पेड़ के नीचे बैठकर बीडी सुलगा कर उसका कस खींच रहे थे,,,, अभी ट्रेन आने में समय था,,,,,,, रविकुमार के मन में उस दिन नामदेवराय के घर वाले दृश्य ही घूम रहा था,,,, वह यह जानना चाहता था कि उस दिन नामदेवराय के बिस्तर पर उसके साथ पूरी तरह से नंगी होकर कौन औरत चुदवा रही थी,,, क्योंकि जहां तक मैं जानता था नामदेवराय के घर में कोई भी औरत नहीं रहती थी नामदेवराय की बीवी थी नहीं तो आखिरकार,,, वह औरत कौन थी जो नामदेवराय एकदम नंगी होकर चुदवा रही थी,,, और उसके पहुंच जाने पर भी उसे जरा भी फर्क नहीं किया और उसी तरह से वह चुदाई में तल्लीन रही,,,, यही सोचते हुए वह बीड़ी का कश् खींच रहा था,,,, और आसमान की तरफ देखकर इसी बारे में सोच रहा था कि उसका साथी जोकि बीडी जलाकर माचिस को अपनी धोती में खोंसते हुए बोला,,,,)


क्या हुआ यार क्या बात है किस चिंता में डूबा हुआ है,,,,


यार मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है,,(कुछ देर सोचने के बाद बोला)


अरे क्या समझ में नहीं आ रहा है कुछ बोलेगा तभी तो पता चलेगा,,,,



यार मैं सोच रहा था कि अपने गांव में कोई ऐसी औरत है जो पैसे लेकर गंदा काम करती हो,,,,


क्या बात है यार तू यह क्यों पूछने लगा क्या भाभी अब मजा नहीं देती क्या,,,?(वो एकदम से आश्चर्य जताते हुए बोला) या बाहर की औरतों से मजा लेना चाहता है,,,,



अरे ऐसी बात नहीं है यार मै कुछ और सोच रहा हूं,,,


अरे क्या सोच रहा है मुझे भी बताएगा तेरी बातों से तो यह लग रहा है कि तू मजा लेना चाहता है और जहां तक मेरा सवाल है कि भाभी बहुत खूबसूरत है और तुझे बहुत प्यार करती है फिर तू ऐसा क्यों कर रहा है,,,(जोर से बीड़ी खींचते हुए वह बोला)


अरे पागल हो गया क्या तु मैं अपने लिए नहीं पूछ रहा हूं मेरे मन में किसी को लेकर शंका जाग रही है इसलिए पूछ रहा हूं,,,,(रविकुमार झुंझलाते हुए बोला,,)


अच्छा ठीक है लेकिन किसके लिए यह तो बता,,,


नहीं नहीं यार मैं अभी नहीं बता सकता हो सकता है मेरा सोचना और देखना दोनों गलत हो और ऐसे में किसी की इज्जत जा सकती है इसी के मान मर्यादा खत्म हो सकती है इसलिए मैं बता नहीं सकता पहले तो मुझे बता क्या कोई ऐसी औरत है अपने गांव में या आस-पास के गांव में,,,,



लेकिन तुम मुझसे ही क्यों पूछ रहा है मैं क्या ऐसी औरतों के पास जाता रहता हूं क्या,,,,


नहीं नहीं यह बात नहीं है तू शराब के ठेके पर जाता है ना तो वहां तो तुझे कई किस्म के लोग मिलते होंगे हो सकता है उनसे सुना हो,,,,,,,



हां मिलते तो बहुत हैं,,,, लेकिन कुछ इस तरह की खबर मुझे है नहीं,,,,(तभी उसकी नजर स्टेशन मास्टर पर पड़ी जो की स्टेशन से बाहर निकल कर कच्ची सड़क के नीचे की तरफ झाड़ियां में जा रहा था,,, उस पर नजर पड़ते ही वह एकदम उत्साहित स्वर में बोला,,,)

चल उठ मेरे साथ मैं तुझे कुछ दिखाता हूं,,,,(इतना कहते हुए वह खड़ा हुआ और साथ ही रविकुमार का हाथ पकड़ कर उसे खड़ा करने लगा,,, तो रविकुमार उसका सहारा लेकर खड़ा होते हुए बोला,,,)


अरे कहां ले चल रहा है क्या दिखाने ,,,,


पहले तू आ तो सही तुझे मैं कुछ दिखाता हूं शायद तेरा काम बन जाए,,,,
(और इतना कहकर वह रविकुमार का हाथ पकड़ कर उसे उसी दिशा में ले गया जहां पर स्टेशन मास्टर चुपके छुपाते हुए झाड़ियों के अंदर गया था,,,,,रविकुमार को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसे कहां ले जा रहा है और क्या दिखाना चाहता है,,, वह रविकुमार को झाड़ियों के अंदर ले जाने लगा रविकुमार को कुछ अजीब लग रहा था लेकिन फिर भी वह उसके साथ चलता चला जा रहा था,,,,,देखते ही देखते वह दोनों झाड़ियों के बीच पहुंच गए और एक मोटा सा बड़ा पेड़ के पीछे अपने आप को छुपा कर खड़े हो गए,,,,


यहां क्यों लाया मुझे ,,,(रविकुमार उत्सुकता जताते हुए बोला)


तेरे काम की चीज यहीं है,,,,


यहां कहां,,,?


वह देख सामने,,,,(वह हाथ की उंगली से इशारा करते हुए रविकुमार को बोला और रविकुमार उसके उंगली के ईसारे की तरफ देखा तो उसके होश उड़ गए,,,,)


अरे यह तो अपने स्टेशन मास्टर है,,,,,,, लेकिन वह औरत कौन है बाप रे,,,,, यह क्या हो रहा है,,,,,


देखता जा,,, और पहचानने की कोशिश कर,,,,
(रविकुमार उस झाड़ी के अंदर के दृश्य को देखकर पूरी तरह से रोमांचित हो उठा था उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था स्टेशन मास्टर तकरीबन ५२ वर्ष के आदमी थे रविकुमार को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था क्योंकि वह स्टेशन मास्टर एक औरत की चुदाई कर रहे थे,,,औरत साड़ी को कमर तक उठाकर पेड़ पकड़कर झुकी हुई थी और की बड़ी-बड़ी गांड हवा में लहरा रही थी जिसे स्टेशन मास्टर अपने दोनों हाथों से पकड़ कर अपना लंड उसकी बुर में पेल रहा था,,,,,,,, रविकुमार को समझ में नहीं आ रहा था कि वह औरत कौन है इस समय रविकुमार की नजर सिर्फ उसकी परी परी कहां पर टिकी हुई थी जो कि स्टेशन मास्टर के हाथों में थी और उसका लंड उसकी बुर में अंदर बाहर हो रहा था,,,, रविकुमार रोमांचित तो हुआ ही था लेकिन काफी हद तक आश्चर्यचकित भी था क्योंकि उसे स्टेशन मास्टर से इस तरह की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी क्योंकि स्टेशन मास्टर बहुत ही कड़क इंसान था और वह बेवजह स्टेशन में किसी को भी प्रवेश करने नहीं देता था खासकर के बैल गाड़ी वालों को,,,,,,जिस रफ्तार से उसे स्टेशन मास्टर की कमर आगे पीछे हो रही थी रविकुमार को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि इस उम्र में भी कोई इतनी तेजी से कमर हिलाता होगा,,,लेकिन यह बात शायद मैं भूल गया था कि चुदाई के मामले में इंसान अगर बिस्तर भी पकड़ा हो तो उठ कर खड़ा हो जाता है,,,,,,रविकुमार के कानों में उस औरत की आवाज साफ सुनाई दे रही थी जो कि स्टेशन मास्टर के हर धक्के पर ओहह बाबुजी,,,,आहहहह बाबुजी कर रही थी,,,,
रविकुमार को यकीन नहीं हो रहा था कि इस उम्र में भी स्टेशन मास्टर उस औरत की इतनी जबरदस्त चुदाई कर रहा है कि उसकी आहहह निकल जा रही है,,,,।,,)


देख रहा है रविकुमार कितना जबरदस्त है इस उम्र में भी स्टेशन मास्टर बड़ी कुर्ती दिखा रहे हैं,,, और उस औरत को देख कितने मजे ले रही है,,,,।


हां यार देख तो रहा हूं लेकिन वह औरत है कौन,,,?


अरे ठीक से उसका चेहरा तो देख,,,,


अरे हां यार यह तो वही औरत है जो स्टेशन पर मुरमुरे बेचती है,,,,,


हां अभी पहचाना उसको देख कर कुछ समझ में आ रहा है,,,, कहीं तु ईसी औरत के बारे में तो बात नहीं कर रहा था,,,


नहीं नहीं यार यह वह औरत नहीं है जिसको मैं देखा था वह तो खानदानी लग रही थी और एकदम गोरी चिट्टी भरे बदन की थी और उम्र भी उसकी कम थी मतलब कि इस औरत से कम थी,,,,, और यह तो हल्की सांवले रंग की है,,,, लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिरकार यह औरत ऐसा गंदा काम क्यों करवा रही हैं,,,,


अरे उसकी मजबूरी होगी,,,,


ऐसी कैसी मजबूरी बड़े आराम से तो मुरमुरे बेचती है,,,,


बेचती तो है लेकिन,,,, देखता नहीं है बेझिझक स्टेशन के अंदर बाहर आती जाती रहती है,,,,स्टेशन मास्टर की कृपा है तभी तो ऐसा करती है और पैसों की जरूरत भी होगी जोकि स्टेशन मास्टर कुछ पैसे दे देता होगा,,,,, और वैसे भी सांवली है तो क्या हुआ इसका बदन भी तो भरा हुआ है बड़ी-बड़ी चूचियां,,,, जब मुरमुरे खरीदने जाता हूं तो जी भर कर उसकी चूचियां देखता हूं,,,,


तू भी कितनी गंदी सोच रखता है,,,,(रविकुमार उसे थोड़ा सा डांटते हुए बोला)


अच्छा मैं गंदी सोच रखता हूं,,,,

तो जरा अपने पजामे की तरफ देख,,,, खड़ा क्यों हो गया है,,,
(उसकी बात सुनते ही रविकुमार अपने पजामे की तरफ देखा तो शर्मा गया,,,, और बोला कुछ नहीं बस फिर से उस नजारे को देखने लगाअभी स्टेशन मास्टर जोर-जोर से उस औरत की गांड पर चपत लगा रहा था और उस चपत को खा कर ऐसा लग रहा था कि उस औरत की मस्ती और बढ़ जा रही थी,,,,,)

आहहहहह ,,,,,,आहहहहहहह बाबुजी,,,,, क्या कर रहे हैं,,,।


कुछ नहीं मेरी रानी मजे ले रहा है ऐसे ही मुझे मजा दिया कर पूरा स्टेशन तेरे नाम कर दूंगा,,,,


ओहहहह,,,,, मजे तो आपको बहुत देती हूं बाबूजी,,,, आजकल पैसो की बड़ी तंगी है,,,


तू चिंता मत कर मेरी रानी मैं हूं ना बस ऐसे ही रोज मुझसे चुदवा लिया कर पैसों की बिल्कुल भी कमी नहीं होगी,,,,आहहहहह आहहहहहह मेरी रानी,,,,


बहुत मजा आ रहा है मेरे राजा और जोर जोर से धक्के लगाओ,,,,
(पैसों की बात सुनते ही उस औरत की मस्ती और ज्यादा बढ़ गई थी और वह और मजे से लेकर उसे सेशन मास्टर से चुदवाने लगी थी,,,,, रविकुमार की भी हालत खराब हो रही थी और उस साथी की भी दोनों का लंड पूरी तरह से खड़ा हो चुका था रविकुमार का मन कर रहा था कि वह भी बीच में कूद जाए और उस औरत की बुर में अपना लंड डालकर अपनी गर्मी शांत कर ले,,,, तभी उसका साथी बोला,,,,)


चल रविकुमार आज अपना काम भी बना लेते हैं,,,


अब क्या करने जा रहा है तू,,,,


हम दोनों का काम बनाने देखता नहीं है हम लोगों को वह स्टेशन में घुसने भी नहीं देता,,,,


तो वहां जाकर क्या होगा,,,,


तू आ तो सही,,,,(और इतना कहने के साथ ही वह रविकुमार का हाथ पकड़कर पेड़ के पीछे से बाहर आ गया और उसे स्टेशन मास्टर को आवाज देते हुए उसकी तरफ बढ़ने लगा)


अरे वह बड़े बाबू यह क्या हो रहा है,,,,,
(इतना सुनते ही वह एकदम से हड़बड़ा गया उसको तो जैसे सांप सूंघ गया हो और वह औरत पूरी तरह से सक पका गई,,,, स्टेशन मास्टर को तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें उसका लंड अभी भी उस औरत की बुर में घुसा हुआ था और वह घबराया हुआ रविकुमार और उसके साथी को ही देख रहा था,,,,)

अरे रुक क्यों गए बड़े बाबू अपना काम जारी रखिए,,,,(रविकुमार का साथी बड़े इत्मीनान से अपनी बात कह रहा था और वह औरत शर्म के मारे अपना मुंह छुपाने की कोशिश कर रही थी तो वह बोला)

मुंह छुपाने की जरूरत नहीं है हम तुम्हें पहचानते हैं,,, और बड़े बाबू आप चुदाई जारी रखिए,,,,,


देखो मैं तुम दोनों के हाथ जोड़ता हूं यहां जो कुछ भी हो रहा है इसके बारे में किसी को कुछ मत कहना,,,,( वह स्टेशन मास्टर हाथ जोड़ते हुए बोला,,,,, स्टेशन मास्टर को इस तरह से हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाता हुआ देखकर रविकुमार बोला,,,)

बिल्कुल भी चिंता मत करिए हम दोनों यह बात किसी को नहीं बताएंगे ,,(तभी उसका साथी बीच में बोल पड़ा)

लेकिन इसमें हमारा क्या फायदा होगा,,,,


क्या चाहते हो तुम दोनों,,,,


देखिए हम दोनों कुछ नहीं,,,,(तभी वह बीच में ही रविकुमार की बात काटते हुए बोला)

हम दोनों को बेझिझक स्टेशन में घुसकर सवारी लेने की इजाजत देना पड़ेगा हमें कोई रोकेगा नहीं,,,,,,(अपने साथी के पास चलकर रविकुमार उसकी तरफ अच्छे से देख लेना क्योंकि जो बात हुआ स्टेशन मास्टर से मंगवाना चाहता था इसमें उन दोनों का बहुत फायदा था इससे वह दोनों बेझिझक स्टेशन के अंदर घुस कर सवारी ढो सकते थे और उनसे थोड़ा किराया भी ज्यादा ले सकते थे,,,, यह तो रविकुमार के लिए सोने पर सुहागा जैसा था,,,, इसलिए बीच में कुछ बोला नहीं,,,) बोलो बड़े बाबू मंजू है कि हम लोग बाहर जाकर सबको बता दें,,,,


नहीं नहीं ऐसा मत करना नहीं तो मैं बदनाम हो जाऊंगी,,,,( वह औरत रुंआसी होते हुए बोली,,,)

ठीक है तुम दोनों को मैं मंजूरी देता हूं,,,, अब कर लु,,(स्टेशन मास्टर उस औरत की गांड पकड़ते हुए बोला,,,)

ठीक है कर लो ट्रेन आने वाली है क्या हम लोग स्टेशन के अंदर जा सकते हैं,,,,


जा सकते हो जो कोई रोके तो मेरा नाम बता देना,,,,


ठीक है बड़े बाबू जी,,,,(इतना कहने के साथ ही वह हंसता हुआ रविकुमार का हाथ पकड़ लिया और जाने लगा रविकुमार जाते-जाते मोड़ कर एक बार उन दोनों पर नजर डाला तो स्टेशन मास्टर फिर से अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया था,,,,)

देखा ना आज एक फायदा हो गया,,,,


हां तु ठीक कह रहा है इसमें हम दोनों का ही फायदा है,, चल जल्दी ट्रेन आने वाली है,,,,
(इतना कहकर दोनों स्टेशन के अंदर चले गए,,, फायदा होने के बावजूद भी रविकुमार का मन अभी भी उदास था क्योंकि नामदेवराय के साथ वाली औरत के बारे में उसे अभी भी कुछ भी पता नहीं था,,,)
 
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रात को रविकुमार रूपाली के साथ लेटा हुआ था रूपाली दिन भर की थकान से सो चुकी थी,,,, और रविकुमार बीड़ी पीते हुए नामदेवराय के घर में जो दृश्य देखा था उस बारे में सोच रहा था,,,, उस समय अपनी आंखों से जो दृश्य रविकुमार ने देखा था उस दृश्य से ज्यादा वह इस बारे में सोच कर ही रहा था कि आखिरकार नामदेवराय के साथ वह औरत कौन थी,,, घोड़ी बनकर चुदवाते हुएउसकी बड़ी-बड़ी चूचियां जिस तरह से दशहरी आम की तरह लटक रही थी उस बारे में सोचते ही रविकुमार का लंड खड़ा हो जा रहा था,,, उस पर नामदेवराय की जबरदस्त पकड़ मानो ऐसा लग रहा था जैसे दशहरी आम को दबोच कर पिचका डालेगा,,,, जिस तरह से गर्म सिसकारी की आवाज उस औरत के मुंह से आ रही थी,,, उस सिसकारी के आवाज के बारे में सोच कर वह मन ही मन परेशान था कि आखिरकार वह औरत थी कौन,,,, जिसके बारे में रविकुमार अभी तक समझ नहीं पाया था वह गांव की थी या गांव से बाहर की,,, क्योंकि अगर यह बात भी अच्छी तरह से जानता था कि नामदेवराय की हवेली में कोई भी स्त्री नहीं थी,,,, अगर कोई नौकरानी औरत होती तो भी रविकुमार समझ सकता था कि नामदेवराय उस औरत को भोग रहा है लेकिन उस औरत का मांसल मखमली बदन किसी नौकरानी का बिल्कुल भी नहीं हो सकता था,,,, इसी बारे में सोचते हुए रविकुमार को,,, दोपहर वाली घटना के बारे में याद आ गया और उसकी आंखों के सामने सब कुछ साफ नजर आने लगा कि किस तरह से रेलवे स्टेशन से बाहर निकल कर स्टेशन मास्टर झाड़ियों में चला गया और उससे मुरमुरे बेचने वाली औरत की जबरदस्त चुदाई कर रहा था रविकुमार हैरान था क्योंकि स्टेशन मास्टर की उम्र ढलने के कगार पर थे लेकिन फिर भी एक औरत की नंगी जिस्म नंगी गांड को देखकर जिस तरह से वह धक्के पर धक्के पेल रहा था,,,,, वह दृश्य रविकुमार के सोच के बिल्कुल परे था,,,,,,,लेकिन वह मन में यह सोच कर पूरी तरह से निश्चिंत था कि स्टेशन मास्टर को रंगे हाथ पकड़ कर उन दोनों का फायदा हुआ था अब वह दोनों कभी भी स्टेशन में प्रवेश करके निश्चिंत होकर सवारी ढो सकते थे,,,।

नामदेवराय और स्टेशन मास्टर की चुदाई का गरमा-गरम दृश्य जेहन में आते ही रविकुमार कहीं ना पूरी तरह से हो चुका था वह एक नजर अपनी बीवी के ऊपर डाला वह निश्चिंत होकर सो रही थी उसकी सांसो की गति के साथ उसकी ऊपर उठती और नीचे गिरती हुई चुचियों को देख कर उसके मुंह में पानी आ गया,,,, रविकुमार जानता था कि जब उसकी बीवी गहरी नींद में होती है तो किसी भी हाल में जाकर चुदवाने के लिए तैयार नहीं होती लेकिन इस समय उसके तन बदन में चुदाई की गर्मी सवार हो चुकी थी इसलिए वह अपना एक आगे बढ़कर ब्लाउज के ऊपर से अपनी बीवी की चूचियों को दबाना शुरू कर दिया,,,,।

ऊमममम,,,, क्या कर रहे हैं आप सोने दीजिए,,,,(बिना आंख खुले ही गहरी नींद में वह बोली)


तो सो जाओ तुम्हें उठा कौन रहा है,,,,(रविकुमार गहरी नींद में सो रही अपनी बीवी के ब्लाउज के बटन को खोलते हुए बोला,,,,, रविकुमार की सांसो की गति तेज होने लगी थी उसकी आंखों के सामने उसकी बीवी की नंगी चूचियां थी जिसे देख कर रविकुमार के मुंह में पानी आ रहा था,,,,बरसों से वह अपनी बीवी के खूबसूरत नंगे बदन से खेलता रहा था लेकिन यह प्यार थे कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थी और आखिरकार,, मर्दों और औरतों के बीच का यही आकर्षण तो है जो उन्हें एक साथ जोड़ कर रखता है उम्र में प्यार भी बढ़ाता है नफरत भी बढ़ाता है,,,,किसी पर मर मिटने की चाहत होती है तो इसी आकर्षण के चलते किसी को मारने की भी तैयारी हो जाती है,,,,, कुछ भी हो मर्द और औरत के बीच का यह आकर्षण जन्मों से चलता चला रहा है और चलता ही रहेगा,,,,।


गर्मी का मौसम अपने उफान पर था लेकिन रात की शीतलता रात को और ज्यादा खूबसूरत बना रही थी रूपाली की बड़ी चुचियों पर पसीने की बूंदें मोती के दाने की तरह चमक रही थी जिसे देखकर रविकुमार के मुंह में पानी आ रहा था और इस समय रूपाली की उन्नति चूचियां किसी और की तरह नजर आ रही थी जो कि अपने आकर्षण के गोले से रविकुमार के मजबूत इरादों को ध्वस्त कर रही थी,,, रविकुमार पूरी तरह से अपनी बीवी की मदमस्त जवानी के आगे घुटने देख चुका था,,,, इसीलिए तो रूपाली के गहरी नींद में होने के बावजूद भी वह अपनी प्यास बुझाने के लिए अग्रसर था,,,,ब्लाउज का बटन खुलते ही अपनी बीवी की नंगी चूचियों को दोनों हाथों में लेकर किसी दशहरी आम की तरह दबा दबा कर उसे मुंह में भर कर पीना शुरू कर दिया,,,, उत्तेजना के मारे रविकुमार के हथेली का दबाव चुचियों परकुछ ज्यादा ही बढ़ जाता था जिससे नींद में होने के बावजूद भी दर्द का अहसास होते ही रूपाली के मुंह से हल्की आह की आवाज निकल जाती थी,,,,,,, लेकिन यह हल्की आह की आवाज चिंगारी को भड़काने का काम कर रही थी,,,रविकुमार पागलों की तरह कभी दांई तो कभी बाईं चूची को अपने मुंह में भर कर बारी बारी से पीना शुरू कर दिया,,,,,,,,, रविकुमार को अपनी बीवी की बड़ी-बड़ी चूचियां दशहरी आम से कम नहीं लग रही थी बल्कि दशहरी आम तो अपने मौसम में मिल ही जाती हैं लेकिन रूपाली की मदमस्त चूचियां किस्मत वालों को ही मिलती हैं,,,।

रविकुमार के दिलों दिमाग पर वैसे भी नामदेवराय और बड़े बाबू का कामुक दृश्य छाया हुआ था,,, इसलिए ,, कुछ ज्यादा ही उत्तेजित हो चुका था,,,।


रहने दीजिए क्या कर रहे हैं,,,, रोज-रोज करना जरूरी है क्या,,,,?(आंखों को बंद किए हुए ही रूपाली नींद में बोली)

अरे तुम सोओ ना तुमहे कौन जगा रहा है,,,,(ऐसा कहते हुए रविकुमार,, अपना हाथ नीचे की तरफ लाया और अपनी बीवी की साड़ी को खोलने लगा,,,, लेकिन अगले ही पल मधुर अपना हाथ आगे बढ़ाकर रविकुमार का हाथ पकड़ ली और बोली,,,)


नहीं जी आज नहीं मुझे नींद आ रही है,,,,,


तुम्हें उठने को कौन कह रहा है,,,,


नहीं तो साड़ी मत उतारो,,,,


तो ठीक है ऊपर तो उठा सकता हूं,,,,,



आप परेशान बहुत करते हैं,,,,



क्या करूं रानी तुम्हारी चुचियों को देखकर,,, रहा नहीं जाता,,,



जाग रही थी तभी कर लेना चाहिए था ना,,,,


अब छोड़ो भी मुझे उतारने दो साड़ी,,,,,



नहीं ऐसा मत करिए मैं बहुत थकी हुई हूं,,,,
(रूपाली आंखों को बंद किए हुए ही अपने पति को रोकते हुए बोली,,)


ठीक है अच्छा नहीं उतारता हूं,,, लेकिन तुम्हें चोदे बिना आज मेरा मन नहीं मानेगा,,,,, तो आज भी ना कपड़े उतारे ही कर लेता हूं,,,,(और ऐसा कहते हुए रविकुमार अपनी बीवी के साड़ी को ऊपर की तरफ उठाने लगा,,,यही बात मैं तुमको बहुत अच्छी लगती थी कि उसका पति उसके साथ जबरदस्ती कभी भी नहीं करता था वरना वह अपनी सहेलियों से गांव की औरतों से कई बार सुन चुकी थी कि उनका पति उनके साथ जबरदस्ती कर लेता है,,, आंखों को बंद किए गहरी नींद में फिर से साफ महसूस हो रहा था कि उसका पति उसके साथ कमर की तरफ उठा रहा था और उसका पति जैसे ही साड़ी को जानो तक ले आया तो रूपाली खुद ही अपनी भारी-भरकम काम को कमर से ऊपर की तरफ उठा ले ताकि सारी को कमर तक ले जाने में दिक्कत बिल्कुल भी ना हो और यही बात रविकुमार को मदहोश कर देती थी कि हर हाल में उसकी बीवी उसका साथ जरूर देती थी,,,,रविकुमार भी तुरंत अपनी बीवी की साड़ी को कमर से उठा दिया और उसकी आंखों के सामने लालटेन की रोशनी में रूपाली की बुर चमक उठी,,, जिसे देखते ही उसका लैंड उठक बैठक करने लगा,,,,, और तुरंत अपनी बीवी की गुदाज टांगों के बीच आकर अपनी धोती को उतार फेंका और तुरंत अपने खड़े लंड को अपनी बीवी के गुलाबी बुर के छेद पर रखकर कमर को आगे की तरफ धकेला,,, तभी रूपाली के कराहने की आवाज निकल गई,,,।


आहहहहह,,,, क्या कर रहे हैं थोड़ा थुक तो लगा लिए होते,,,,


माफ करना रानी थोड़ा जल्दबाजी में था,,,,(और इतना कहने के साथ ही रविकुमारं ढेर सारा थूक अपने लंड पर लगाया और फिर उसे अपनी बीवी की बुर लगाकर उसे भी गीला कर लिया,,, और फिर अपने लंड को उसकी बुर में डालकर चोदना शुरू कर दिया हालांकि अभी भी रूपाली कह रही नींद में थी लेकिन फिर भी उसे अहसास हो रहा था कि उसके पति का मोटा लंड उसकी बुर के अंदर बाहर हो रहा है इसलिए उसके मुंह से हल्की सिसकारी की आवाज भी निकल रही थी,,,,,


रविकुमार अपनी बीवी की चुदाई करने में पूरी तरह से मस्त था उसे इस बात का अहसास तक नहीं था कि बगल वाले कमरे में दीवार में बने हल्के से सुराग से उसकी जवान बहन इस गरमा गरम नजारे को देखकर पूरी तरह से गर्म हो चुकी है,,,, मंजू शुरू से अपने भाई और अपनी भाभी की गरमा गरम बातों को सुनकर पूरी कर से गर्म हो चुकी थी और थोड़ी मेहनत से ढूंढे गए उस छोटे से सुराग से अंदर के दृश्य को देख रही थी,,,,मंजू अपने मन में यही सोच कर खुश हो रही थी कि अच्छा हुआ कि वह अंदर के नजारे को देखने के लिए यह सुराग ढूंढ ली थी,,,, वह अपने भाई की कामाग्नि को देखकर और अपनी भाभी को गहरी नींद में होने के बावजूद भी उसे चोदने की इच्छा देखते हुए उसकी खुद की हालत खराब हो रही थी और उसकी सलवार कब उसके पैरों में जा गिरी थी उसे इस बात का पता ही नहीं चला था उत्तेजना के मारे वहां अपनी भाभी की चुदाई को देखकर अपनी हथेली में जोर से अपनी बुर को दबा रही थी,,, जिससे उसकी उत्तेजना और ज्यादा बढ रही थीअपने भाई को देख कर उसके लंड को देखकर वह अपने मन में अनजाने में यह कल्पना करने लगी थी कि जैसे उसके बिस्तर पर उसकी भाभी नहीं बल्कि वह खुद नंगी लेटी हुई है और अपनी दोनों टांगों को फैला कर अपने बड़े भाई के लंड को अपनी बुर में लेकर बड़ी मस्ती से चुदवा रही है,,,ये एहसास यह कल्पना ही मंजू के तन बदन में आग लगा रही थी उससे रहा नहीं जा रहा था,,,, चुदवाने की खुजली उसके अंदर बढ़ती जा रही थी लेकिन कैसे किससे यह सवाल एक पहाड़ की तरह था,,,,,,,

रविकुमार अपनी बीवी की चुदाई करके शांत हो गया था और उसके बगल में गहरी सांस लेते हुए सो चुका था लेकिन मंजू की आंखों से नींद कोसों दूर जा चुकी थी इसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें बुर के अंदर खुजली बढ़ती जा रही थी,,,,,,, वह बिना सलवार पहने खटिया पर आ गई और अपने भांजे सुरज के बगल में लेट गई,,,,, आज अच्छा बुरा उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था उसकी नजर सुरज के पजामे की तरफ गई जो कि आगे से अच्छा खासा उठा हुआ था उसे देखकर उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी,,, वह हिम्मत बढाकर अपना हाथ आगे बढ़ाने लगी ,,,, उसके दिल की धड़कन जोरों से धड़क रही थी लेकिन एक लालच उसके मन में बसेर ले चुकी थी लंड को अपने हाथ से छुने का उसे पकडने का,,,, और देखते ही देखते मंजू अपनी हथेली को सुरज के पजामे के ऊपर उठे भाग पर रख दी,,,,, एक गजब की मदहोशी उसके तन बदन को अपनी गिरफ्त में ले ली यह पहला मौका था,, जब मंजू किसी जवान लंड को अपने हाथ से पकड़ रही थी,,,यह एहसास उसकी बुर को पूरी तरह से गीली कर रहा था,,,, गहरी सांस लेते हुए मंजू कभी हल्के से तो कभी कसके पजामे के ऊपर से ही सुरज के लंड को पकड़ रही थी और उसकी तरफ देखती रही थी जो कि उसमें जरा भी हलचल नहीं हो रही थी वह गहरी नींद में सो रहा था यह देखकर उसकी हिम्मत बढने लगी थी वह बेहद नजदीक से करीब से किसी जवान लंड को अपने हाथ में पकड़ कर उसे देखना चाहती थी लेकिन उसे डर भी लग रहा था कहीं सुरज जाग ना जाए,,, लेकिन उसे मजा बहुत आ रहा था सुरज के लंड की मोटाई से उसकी पूरी हथेली भर चुकी थी,,,,,सुरज गहरी नींद में सो रहा था इसलिए उसकी इच्छा हो रही थी कि उसके पजामे को खसका कर देखा जाए,,,, इसलिए वो उठ कर बैठ गई और धीरे-धीरे पजामे को नीचे की तरफ सरका ने लगी ऐसा करने में उसे बहुत डर लग रहा था दिल की धड़कन वह खुद महसूस कर रही थी पूरे कमरे में केवल उसके दिल की धड़कन और गहरी सांस की आवाज ही सुनाई दे रही थी धीरे-धीरे वह अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने लगी और देखते ही देखते हो पजामे को काम भर नीचे करने में सफल हो गई ताकि उसे ऊपर भी किया जा सके लेकिन सुरज का लंड मोटा और लंबा था इसलिए पजामे के बाहर आ नही पा रहा था,,,, मंजू को समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे बाहर निकाला जाए,,, और अभी तक सुरज के बदन में किसी भी तरह की कसमसाहट हलचल नहीं हुई थी जिससे मंजू की हिम्मत थोड़ा बढ़ने लगी थी और वैसे भी अभी तक वह हिम्मत ही दिखा रहे थे उसके मन में यह लालच देकर कर थोड़ा और हिम्मत दिखा लेगी तो वह एक नंगे जवान लंड के दर्शन कर पाएगी,,, इसलिए कांपते हाथों से वह अपना हाथ धीरे से पजामे के अंदर डाल कर अपने भांजे के लंड को पकड़ ली,,, बस इतने मात्र से ही उसकी बुर से पानी की बूंदे टपकने लगी,,उसकी सांसों की गति तेज हो गई लालटेन की रोशनी में सब कुछ साफ नजर आ रहा था वह सुरज के लंड को मुट्ठी में दबाए हुए थी और सुरज के चेहरे की तरफ देख रही थी जो कि बिल्कुल शांत था गहरी सांस लेते हुए वह सुरज के लंड को बाहर की तरफ खींची ताकि पजामे से बाहर आ जाए,,, और जैसे ही बाहर आया उसे देखते ही मंजू की हालत खराब हो गई,,, क्योंकि जैसा उसने सोची थी उससे भी कहीं ज्यादा जबरदस्त सुरज का लंड था,,,,पहली बार मंजू इतनी नजदीक से मर्दाने लंड के दर्शन कर रही थी जिसे पाकर वह धन्य हो चुकी थी,,,,लंड की गर्माहट उसे अपनी हथेली के अंदर साथ में सो सो रही थी और उसकी गर्मी जैसे मानो तुरंत उसकी हाथों से होते हुए उसकी दोनों टांगों के बीच की उस पतली दरार में पहुंच रही थी जहां से उसका गर्म लावा पिघलने लगा था,,,, मंजू को उस लंड को अपनी बुर में लेने की इच्छा कर रही थी लेकिन यह अभी बिल्कुल भी मुमकिन नहीं था,,,,।

वाह सुरज की तरफ देखते हुए धीरे-धीरे सुरज के लंड को हिलाना शुरू कर दी जिसे हिलाने में से बहुत मजा आ रहा था,,,। वह सुरज के लंड कै सुपाड़े को खोल कर अच्छी तरह से देख रही थी जो कि आलूबुखारे की शक्ल का नजर आ रहा था,,, जिसे देखते ही उसकी बुर कुलबुलाने लगी थी,,,, मंजू से यह बिल्कुल भी सहन नहीं हो रहा था वह चाहती थी कि सुरज को इसी समय चबाकर अपनी दोनों टांगें फैला दें ताकि सुरज अपने मोटे लंड को उसकी बुर में डाल कर,,, उसकी गर्म जवानी को ठंडा कर दे लेकिन मंजू जानती थी कि है इतनी जल्दी सच होने वाला नहीं था इसलिए वह सुरज के लंड को हिलाना शुरू कर दी थी,,,,साथ ही अपनी हथेली को अपनी दोनों टांगों के बीच रखकर अपनी बुर को मसल ना शुरू कर दी थी और साथ ही अपनी उंगली को अपनी बुर में डाल दी थी,,,, मंजू की गर्मी बढ़ती जा रही थी और साथ ही उसकी हथेली का कसाव सुरज के लंड पर बढ़ता जा रहा था लेकिन सुरज को बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ रहा था लेकिन उसकी सांसे धीरे-धीरे तेज हो रही थी,,,।,,,

मंजू उसी लय में लंड को मुठीया रही थी और अपनी बुर में उंगली पेल रही थी,,, देखते ही देखते उसकी बुर के पानी के साथ-साथ सुरज के लंड में पानी छोड़ दिया और उसकी पिचकारी ऊपर तक उठी जिसे देखकर खुद मंजू हैरान रह गई,,।,, सारी पिचकारी खुद सुरज के ऊपर गिरी थी जिसे मंजू कपड़े से अच्छी तरह से साफ कर दी थी और उसे पजामे को उपर कर दी थी,,,, और खटिए पर से उठ कर अपनी सलवार उठाई और उसे पहन कर सो गई,,,।

सुबह जब सुरज की नींद खुली तो उसे इस बा
त का एहसास और भनक तक नहीं हुआ कि रात को उसके साथ क्या हुआ था,,,।
 
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मंजू का मन अब काम में बिल्कुल भी नहीं लग रहा था,,, उसकी जवानी चुदास की मदहोशी छाती चली जा रही थी,,,
अब तक जो भी वह अपने कानों से सुनती आ रही थी और देखते आ रही थी,,, और अब रात को अपने हाथों से सुरज के मदमस्त मोटे तगड़े लंबे,,लंड को अपने हाथ से पकड़ कर उसकी गर्माहट को अपनी हथेली में महसूस कर के चित्र की उत्तेजना का अनुभव उसने की थी इस तरह का अनुभव से अब तक नहीं ले पाई थी उसके लिए पहला मौका था जब वह इतने पास से अपने बहन के लड़के का यानी सुरज के लंड के दर्शन कर रहे थे उस पल का अनुभव उसके लिए बेहद अनमोल और मदहोशी भरा था और पूरी तरह से मदहोश होकर अपनी प्यासी बुर में उंगली का सहारा लेकर अपना पानी निकाल दी थी,,,,,

सुरज ने कभी अपने हाथ से अपने लंड को पकड़ कर मुठीआया नहीं था,,, जो कि उसके उम्र के लड़के हमेशा ही करते हैं लेकिन वह इस ज्ञान से पूरी तरह से अज्ञान था लेकिन,,, उसकी मौसी ने यह शुभ काम अपने हाथों से की थी लेकिन इस बात का एहसास और भनक सुरज को बिल्कुल भी नहीं था उसके लिए यह सब ना होने के बराबर था जो कि उसके साथ हो चुका था,,,,,, सुरज गहरी नींद में सोता है यह बात तो मंजू अच्छी तरह से जानती थी लेकिन इतनी गहरी नींद में सोता है यह उसे रात को ही पता चला था कि उसके साथ कुछ भी कर लो तो उसे पता नहीं चलता,,,,,
मंजू को पहली बार इस बात का आभास हुआ कि मर्दों के लंड से इतनी तेज पिचकारी निकलती है,,, जिसे देखकर मंजू का पूरा वजूद हिल गया था उसकी बुर में जिस तरह की सुरसुराहट सुरज के लंड से निकलती पिचकारी को देखकर हुई थी उस तरह की सुरसुराहट अपने भैया और भाभी की चुदाई देख कर भी नहीं हुई थी,,,,,,,लंड से निकले लावा को वह अपने हाथों से साफ की थी उसकी गर्माहट उसे अभी तक महसूस हो रही थी,,,,उसकी चिकनाहट को महसूस करके उसे इस बात का आभास हो चुका था कि जब कभी भी वह सुरज के पजामे को साफ करती थी तो उसमें कभी-कभी इस तरह की चिकनाहट महसूस होती थी,,,,,,

मंजू का मन अब चुदवाने के लिए पूरी तरह से बहकने लगा था,,, उससे बिल्कुल भी रहा नहीं जाता था,,, जिस तरह से वह रात को गरमा गरम दृश्य देखी थी जिसमें उसकी भाभी गहरी नींद में होने के बावजूद भी उसके भैया उसे चोदने के लिए लालायित नजर आ रहे थे यह देखकर मंजू अपने मन में यही सोच रही थी कि उसके भैया एक नंबर के चुडक्कड़ इंसान है,,,, दिन भर एकदम एकदम सीधे साधे इंसान बने रहते हैं और रात होते ही उन्हें सिर्फ भाभी की बुर नजर आती है,,,, मंजू अपने मन में ही यह बातें सोच कर एकदम गरम हो रही थी,,,,,,,,

रात वाली बात को सोचकर वह खाना बना रही थी तवे पर रोटी रखी हुई थी जो कि ख्यालों में खोने की वजह से उसकी रोटी जल रही थी जिस पर उसका बिल्कुल भी ध्यान नहीं था तभी बाहर से पानी की बाल्टी भर कर लाती हुई रूपाली की नजर से तौर पर पड़ी तो वह जोर से चिल्लाई,,,।


अरे महारानी कहां खोई हुई हो,,,, देख नहीं रही हो रोटी जल रही है,,,,(इतना कहते हुए रूपाली बाल्टी नीचे जमीन पर रख दी और कमर पर मुट्ठी बांधकर हाथ रखकर खड़ी हो गई इस रुप में रूपाली एकदम काम देवी लग रही थी,,, जिस तरह से कमर पर मुट्ठी बांध कर खड़ी हुई थी,, उसकी भरावदार उठी हुई गांड और ज्यादा बड़ी लग रही थी उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां पपाया की तरह तनी हुई थी,,।अपनी भाभी की बात सुनते ही जैसे वह नींद से जागी हो इस तरह से चोंकते हुए तवे पर देखने लगी तो वाकई में रोटि जलकर काली हो गई थी,,,।)

बाप रे,,,(और ईतना कहने के साथ ही वह जली हुई रोटी उतार कर नीचे रख दी,,)


ध्यान कहां है तुम्हारा,,,,(रूपाली अपनी साड़ी को कमर में खोंसते हुए बोली,,,)

अरे भाभी आंख लग गई थी,,,,



आंखें ही लगी है ना कहीं किसी से दिल तो नहीं लगा ली,,,


धत्,,, भाभी कैसी बातें करती हो,,,,



चलो अच्छा उठो,, तुम रहने दो तुम दूसरा काम कर लो मैं रोटियां बना देती हुं,,,,


ठीक है भाभी,,,,( इतना कहकर मंजू वहां से खड़ी हो गई और रूपाली उसकी जगह बैठकर रोटियां बनाने लगी और मंजू दूसरे काम करने लगी,,,,,,,, हर पल रूपाली की खूबसूरती में चार चांद लगा रहता था,,, बनाने वाले ने रूपाली को बड़ी फुर्सत से बनाया था,,,, थोड़ी ही देर में दोनों का काम पूरा हो गया था,,,,।
दोपहर का समय हो रहा था और सुरज अपने दोस्तों के साथ तालाब पर खेल रहा था,,,,,, शुभम भी वहां मौजूद था,,, सुरज को देखते ही वह उससे मस्ती करने लगता था,,, ऐसे ही वह सुरज का मजाक उड़ाते हुए बोला,,,)


क्यों सुरज गया कि नहीं सुधियां काकी के पास,,,, तुझे बहुत याद करती है,,,। (कपड़े के बने गेंद से खेलने के बाद थक कर सभी लोग घने पेड़ के नीचे बैठे हुए थे,,, शुभम की बात सुनकर सुरज बोला)


मैं क्यों जाऊं सुधियां काकी के पास,,,, मुझे भला उनसे क्या काम है,,,,


अरे सुधियां काकी तू से चुदवाना चाहती है तुझे इतना भी समझ नहीं आता,,,,(शुभम के मुंह से चुदवाना शब्द सुनते ही सुरज के तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी,,,, वह कुछ बोला नहीं फिर भी शुभम अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)

तेरा पसंद आ गया है सुधियां काकी को,,,,, तेरे लंड को अपनी बुर में लेना चाहती है,,,,लेकिन मुझे तो लगता है तेरे से कुछ होने वाला नहीं है इसीलिए तो सुधियां काकी के पास जा नहीं रहा है कसम से मुझे अगर ऐसा मौका मिला होता ना तो तुमने काकी की बड़ी बड़ी गांड को अपने लंड डालकर फाड दिया होता,,,, लेकिन साली को तेरा पसंद आ गया है जिसके पास कुछ है ही नहीं,,,,(शुभम की बातों को सुनकर सभी हंसने लगे सुरज को बुरा बहुत लग रहा था लेकिन आज आने की उसकी बातों को सुनकर उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी जिससे धीरे-धीरे उसका लंड खड़ा होना था और पास में ही खड़ा सुरज का दोस्त सोनू उसे इशारा करके उस आ रहा था कि वह अपना पजामा उतार कर अपना लंड उसे दिखा दे लेकिन उसे शर्म आ रही थी,,,, शुभम अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला)


यार सुरज तुझे तो मौका मिल रहा है औरत चोदने का हम लोगों को तो मौका ही नहीं मिलता ,,,, वरना अपने लंड की ताकत कब का दिखा दिए होते,,, और एक तू है पकवान से भरी हुई थाली को ठुकरा दे रहा है,,,,


देख शुभम मुझे यह सब बिल्कुल भी पसंद नहीं है उस दिन की तरह तू आज फिर शुरू हो गया,,,,


शुरू क्यों ना होऊं,,,,आखिरकार तो मेरा दोस्त जो है और दोस्त की इतनी बड़ी बेइज्जती में बर्दाश्त कैसे कर पाऊंगा कल को अगर तेरे मामाजी को पता चला कि उनका भांजा मर्द ही नहीं है तो वह गांव वालों को क्या मुंह दिखाएंगे अपने पोते पोते को कैसे खिला पाएंगे,,, और अब तो मुझे लगने लगा है कि तेरी शादी भी नहीं होगी और अगर हो भी गई तो तेरी औरत मेरे पास जरूर आएगी,,,,।


शुभम जबान संभाल कर बात कर,,,,( सुरज एकदम से क्रोधित स्वर में बोला,,,,)


बीवी के बारे में बोलते ही कैसा गुस्सा हो गया,,,,,,, लेकिन उस समय क्या करेगा जब सुहागरात को तेरी बीवी अपने सारे कपड़े उतार कर नंगी हो जाएगी और अपनी दोनों टांगे फैला देगी की मेरा पति अपना खड़ा लंड मेरी बुर में डालकर मेरे साथ सुहागरात मनाएगा,,,,, और सोच जब तेरा खड़ा ही नहीं होगा तब तेरी औरत सुहागरात कैसे मनाएगी तु उसे संतुष्ट कैसे कर पाएगा,,,, और तू शायद नहीं जानता की बुर की प्यास कैसी होती है जब तेरी बीवी को बड़े बड़े लंड की आवश्यकता पड़ेगी तब तेरा ना पाकर वह कहां जाएगी हम जैसे नौजवान लड़कों के पास ही आएगी,,,,,,,,(शुभम को इस तरह की गद्दीपति करने में बहुत मजा आता था और उसका मजा दूसरे लड़के भी उठा रहे थे वह भी जोर जोर से हंस रहे थे,,,, सोनू बार-बार उसे उकसा रहा था कि कुछ बोले लेकिन वह कुछ भी बोल नहीं रहा था वह बस गुस्सा किया जा रहा था,,,, गंदे शब्दों में जवाब ना देने का कारण यह भी था कि उसने आज तक इन शब्दों का कभी प्रयोग नहीं किया था और ना ही इस तरह की गंदी बातों ने कभी रुचि दिया था लेकिन वक्त के साथ धीरे-धीरे बड़ा होने लगा था जो कि इस तरह की बातों को सुनकर उसके तन बदन में उत्तेजना कि नहीं पाती थी और उसके बाद कभी भी इस तरह की बातें करने की मंजूरी नहीं दी क्योंकि बचपन में ही किसी को गाली दे दिया उसकी गाली सुनकर उसकी मामी और उसके मामा उसे बहुत मारे थे,,,,तब से लेकर आज तक वह कभी गद्दे शब्दों का प्रयोग नहीं किया था लेकिन शुभम उसे बार-बार उकसा रहा था उसकी मर्दानगी पर सवाल उठा रहा था जो कि यह बात सोनू भीअच्छी तरह से जानता था कि सुरज मर्दानी से भरा हुआ था और उसके जैसी मर्दाना ताकत शायद ही गांव में किसी के पास हो,,,। लेकिन फिर भी सोनू हैरान था कि इतना कुछ सुनने के बाद भी सुरज अपना दिखाता क्यों नहीं,,, शुभम की बातों को सुनकर सुरज गुस्से में बोला,,,)

कोई अगर तेरी मां के बारे में गंदी गंदी बातें बोले तो तुझे कैसा लगेगा,,,,


यहां किसी की हिम्मत ही नहीं है कि मुझे कोई भला बुरा बोलें,,,,,


अगर मैं तेरी मामी मां के बारे में गंदी गंदी बातें बोलु तो,,,,(सुरज गुस्से में बोला और उसकी बातें सुनकर शुभम कुछ देर तक शांत रहने के बाद और कुछ सोचने के बाद वह हंसते हुए बोला,,,)


तू बोल कर भी क्या कर पाएगा,,,,, तेरे से कुछ होने वाला भी नहीं है अगर होने वाला होता तो अब तक सुधियां काकी की बुर में लंड डाल दिया होता,,,,



देख शुभम मैं कहता हूं शांत हो जा अगर मैं बोलना शुरू किया तो सुनकर तु शर्म से मर जाएगा,,,,,,,,



देख रहा हूं जैसा मैं बोलता हूं वैसा तू भी बोलेगा जैसे कि मैं तेरी मामी को चोदना चाहता हूं,,,, और अगर मौका मिला तो मैं तेरी खूबसूरत मामी को चोद भी लुंगा और मेरी चुदाई से तेरी मामी खुश भी हो जाएगी लेकिन सोच तू अगर मेरी मामी को चोदना चाहेंगा तो भी नहीं चोद पाएगा,,, पता है क्यों क्योंकि तेरे पास है ही नहीं,,,,, और मेरे पास देख,,,,(इतना कहने के साथ ही शुभम अपना पजामा नीचे करके अपने लंड को पिलाना शुरू कर दिया,,,,,शुभम की बेशर्मी भरी हरकत पर बाकी के लड़के जोर जोर से हंस रहे थे उन्हें मजा आ रहा था लेकिन सुरज को गुस्सा आ रहा था,,,, गांव के लड़कों की आवारागर्दी और गंदी बातों को दूर झाड़ियों के पीछे छुप कर कजरी और उसकी सहेलियां देख रही थी,,,, नामदेवराय की बहन दोपहर के समय सौच करने आई थी और सोच करने के बाद वह अपनी सहेली के साथ घर जाने को हुई थी कि लड़कों की बातें सुनते ही बाहर खड़ी हो गई थी और झाड़ियों के पीछे कजरी और उसकी सहेलियां छुपकर उन लड़कों की बातें सुन रही थी और उनकी गंदी गंदी बातें सुनकर मुस्कुरा रही थी और उन्हें मजा भी आ रहा था,,,, लेकिन इस समय कजरी और उसकी सहेलियों की नजर शुभम के लंड पर थी जो कि ज्यादा बड़ा तो नहीं था लेकिन पूरी तरह से सख्त हो चुका था,,,जिसे देखकर कजरी और उसकी सहेलियों के तन बदन में भी उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी थी,,,, कजरी जोकी पति के देहांत के बाद से बेहद प्यासी थी और अपनी प्यास अपने बड़े भाई के लंड से बुझाती आ रही थी लेकिन उसे भी एक जवान लंड की जरूरत थी,,,, इसीलिए तो उसकी नजर शुभम के लंड पर एकदम से चिपक गई थी,,,, जिसे शुभम जोर जोर से हिला रहा था,,,,,)

देखा सुरज तेरी मामी की प्यास में अपने लंड से बुझा सकता हूं,,, और मुझे बहुत मजा आएगा जब तेरी मामी अपनी दोनों टांगें फैलाकर मेरे लंड को अपनी बुर में लेगी,,,, लेकिन तुझ से कुछ नहीं हो पाएगा,,,,,,,

(सुरज का गुस्सा बढ़ता जा रहा था आज पहली बार एक लड़के के मुंह से अपनी ही मामी के बारे में गंदी बातें सुन रहा था और उसकी गंदी बातें सुनकर उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर बढ़ती जा रही थी और लंड का आकार बढ़ता जा रहा था,,,,,, अभी तक सुरज एक दूसरे की मां के बारे में गाली गलौज सुनता आ रहा था लेकिन आज शुभम के मुंह से उसकी मामी के बारे में गंदी बात को सुनकर सुरज के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी थी और उसका लंड कुछ ज्यादा उछाल मारने लगा था,,,इस बार उससे रहा नहीं गया क्योंकि वह सारी हदों को पार कर चुका था उसकी मामी के बारे में बेहद गंदी बातें बोल चुका था इसलिए अब उसके सब्र का बांध टूट चुका था और उसे अपनी मर्दानगी दिखाना बेहद जरूरी हो चुका था ताकि वह हमेशा के लिए उसका मुंह बंद कर सके,,,सुरज को अपनी मर्दानगी दिखाना ही नहीं था बल्कि उसकी मामी के बारे में गंदी गंदी बातों को बोल कर अपनी सारी भड़ास निकाल लेना चाहता था इसलिए वह बोला,,,)


मादरचोद शुभम,,,, तेरी मां की चुदाई मैं ही अच्छे से करूंगा देखना चाहिए अपना लंड डालूंगा तेरी मां की बुर में पर जोर जोर से चिल्ला उठेगी और मुझे अपना लंड बाहर निकालने के लिए मिन्नतें करेगी फिर भी मैं अपना लगा नहीं निकालुंगा और तेरी मां की बुर में धकाधक पेलता रहूंगा,,,,
(कजरी सुरज की बातों को सुनकर पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी लड़कों के मुंह से एक दूसरे की मां के बारे में गंदी से गंदी बातों को सुनकर उसकी बुर कुल बुलाने लगी थी,,,, वह देखना चाहती थी कि वह क्या करता है,,,इसलिए झाड़ियों के पीछे छुप कर अपनी सहेलियों के साथ होना अपने कान खड़े करके उन लोगों की बातों को सुन रही थी लेकिन सुरज की बातों को सुनकर शुभम जोर जोर से हंस रहा था उसे ऐसा ही लग रहा था कि वास्तव में सुरज के पास मर्दाना ताकत से भरा हुआ लंड है ही नहीं,,,)

तेरी बातों का मुझे बुरा नहीं लग रहा है सुरज बल्कि मुझे तो तुझ पर तरस आ रहा है,,,।





तरस तो तुझे तेरी में पर आएगा,,, जब मैं अपना मोटा और लंबा लंड तेरी मां की बुर में धीरे-धीरे डालूंगा,,, तेरी मां जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर देगी,,,, मेरा मोटा लंड पाकर तेरी मां एकदम मस्त हो जाएगी देखना,,,
(शुभम सुरज की कही बातों को हल्के में ले रहा था जोर जोर से हंस रहा था लेकिन सोनू को पूरा यकीन था क्योंकि इसलिए कह रहा था अगर ऐसा हो सकता तो एक-एक कही हुई बात सच निकलती जोर जोर से हंसते हुए शुभम बोला)


पर डालेगा क्या मेरी मां की बुर में,,, लंड तो तेरे पास है नहीं,,,, बैगन डालेगा,,,,,
(सुरज और शुभम की बातों को सुनकर कजरी की बुर गीली हो रही थी गांव के लड़कों को इस तरह से गंदी बातें करते हुए देखकर उनकी बातों को सुनकर उसके होश उड़ गए थे,,,शुभम का इस तरह से जोर जोर से हंसना उसकी बातों को सुनकर सुरज एकदम से तैश में आ गया और बोला,,,)


तेरी मां की बुर में बैगन नहीं डालूंगा डालूंगा तुम्हें इतना मोटा तगड़ा लंबा लंड ही,,, पर देखना चाहेगा रुक दिखाता हुं तुझे मादरचोद,,,(इतना कहने के साथ ही सुरज एकदम से जोश से भर गया था और तुरंत अपने दोनों हाथ सपने पजामे को पकड़ करएक झटके से नीचे कर दिया और उसका लंबा मोटा लंबा लंड लहरा उठा जिस पर नजर पड़ते ही सबके होश उड़ गए शुभम तो देखता ही रह गया यकीन नहीं हो रहा था कि पजामे के अन्दर सुरज इतना दमदार लंड छुपाया हुआ था,,,। कजरी की तो आंखें फटी की फटी रह गई कजरी ने अभी तक इस तरह का दमदार मोटा लंबा लंड कभी नहीं देखी थी,,,, पल भर में ही सुरज के लंड के दीदार से ही उसकी बुर कुलबुलाने लगी थी,,,, उसकी सहेली अभी आश्चर्य से देखे जा रही थी और सुरज एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर ऊपर नीचे करके ही जाना शुरू कर दिया था यह पहला मौका था उसके लिए जब वह अपने ही हाथ में लंड पकड़ कर हीला रहा था,,,। शुभम के पास बोलने लायक कुछ नहीं था,,, वह बस आंकड़े सुरज के लंड को देखे जा रहा था,,,,)


क्यों क्या हुआ हरामी मादरचोद देख ले यही डालूंगा और तेरी मां की बुर फट जाएगी,,,,

(शुभम क्या बोलता है शुभम के पास बोलने के लिए शब्द नहीं थे उसका खड़ा लंड सुरज के तने के सामने नुनु साबित हो रहा था,,,,, बहुत शर्मिंदा हो गया था वह तुरंत अपने पजामे को ऊपर करके वहां से चलता बना,,,, लेकिन कजरी के दोनों टांगों के बीच हलचल मच गई थी,,,, अजीब सी हालत हो गई थी उसकी अपनी सहेली से उस लड़के के बारे में पूछा तो पता चला कि बेल गाड़ी चलाने वाले रविकुमार का लड़का था उसे तुरंत याद आ गया कि यह उसी रविकुमार का लड़का है जो उस दिन ब्याज के पैसे देने घर पर आया था और उसे चुदवाते हुए पकड़ लिया था लेकिन वह पहचान नहीं पाया था,,,,,,,क्योंकि उस समय कजरी के घने बाल उसके चेहरे को ढके हुए थे और कोई नंगे बदन को देख कर चेहरा पहचान ले ऐसा हो नहीं सकता था और वैसे भी रविकुमार ने उसे पहले कभी देखा भी नहीं था,,, अपने मन में ठान ली थी कि सुरज से मुलाकात करनी ही पड़ेगी,,,।
 
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देखते ही देखते कई दिन गुजर गए थे शुभम अब सुरज से उसकी मर्दानगी के बारे में मजाक नहीं करता था बल्कि उसकी मर्दानगी भरे अंग को देखकर मन ही मन में जल उठता था क्योंकि वह जानता था कि औरतों को लंबा और मोटा लंड ही पसंद होता है,,,,,, इस बात को वहां भली भांति जानता था कि सुधियां काकी को लेकर जिस तरह से उस पर कब्जा किया कर रहा था अगर वह सुधियां काकी के पास चला गया तो सुधियां काकी उसे लेकर मस्त हो जाएगी कि वह तो सुरज की गुलाम ही बन जाएगी इसलिए वह नहीं चाहता था की सुधियां काकी सुरज के साथ संभोग करें,,,,,,
शुभम के साथ-साथ दूसरे लड़के भी सुरज के लंड को देखकर अचंभित हो चुके थे,,,,, वह लोग तो मजाक मजाक में शुभम को कह भी देते थे कि,,,।

शुभम अगर सोच अगर ऐसा हो गया कि सच में उसे मौका मिले तेरी मां को चोदने का तो तेरी मां उसकी दीवानी हो जाएगी,,,
(और अपनी मां के बारे में अपनी ही दोस्तों से इस तरह की गंदी बात सुनकर भड़क ऊठता था और झगड़ा करने लगता था,,,,,,दूसरी तरफ कजरी की भी हालत खराब थी दिन-रात ना उसके ख्यालों में केवल सुरज के लंड की ही छवि घूमती रहती थी कजरी जल्द से जल्द सुरज से मुलाकात करना चाहती थी,,, क्योंकि कजरी अभी पूरी तरह से जवान थी गदराई जवानी की मालकिन थी हरी भरी जवानी में ही उसका पति उसे छोड़कर स्वर्ग सिधार गया था अपनी जवानी की आग और अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उसे अपने भाई की शरण लेना पड़ा था जहां से उसकी सारी जरूरतें पूरी भी हो रही थी,,,, पेट की भी और तन की भी नामदेवराय भी कोई कसर नहीं छोड़ता था कजरी को चोदने का,,,ऐसा नहीं था कि नामदेवराय से उसे संतुष्टि नहीं मिलती थी ,,, नामदेवराय चुदाई में उसे संपूर्ण संतुष्टि का अहसास कराता था,,,, लेकिन फिर भी कजरी की उम्र में एक जवान लंड की जरूरत होती है सुरज के लंबे तगड़े मोटे लंबे लंड को देखकर कजरी की इच्छा कुछ ज्यादा ही प्रज्वलित हो चुकी थी,,, जो कि सुरज से मिलने के बाद ही मुझे सकती थी लेकिन उससे कैसे मिला जाए कजरी को समझ में नहीं आ रहा था,,, तभी उसे ख्याल आया कि वैसे भी वह समय व्यतीत करने के लिए गांव के लड़के और लड़कियों को पढ़ाया करती थी,,,।अपने मन में सोचने लगी कि क्यों ना सुरज को भी पढ़ने के लिए अपने पास बुलाया जाए,,,अगर ऐसा हो गया तो उसके मन की इच्छा पूरी हो जाएगी,,,। लेकिन ऐसा होगा कैसे क्या वह पढ़ने आएगा यह बात उसके मन में आते ही वह परेशान हो गई थी,,,, लेकिन कुछ तो उपाय सोचना पड़ेगा और अपने मन में एक दिन जरूर सुरज के घर जाकर उसे पढ़ने के लिए अपने घर बुलाएगी,,, यह बात मन में सोचते ही उसके खूबसूरत होठों पर मादक मुस्कान तैरने लगी,,,

दूसरी तरफ रविकुमार और उसका साथी बेरोकटोक स्टेशन के अंदर घुसकर सवारी ढो रहे थे जिससे उसकी आमदनी अच्छी खासी बढ़ गई थी,,,,, लेकिन दिन रात उसके जेहन में एक ही सवाल उठता रहता था कि नामदेवराय के घर में नामदेवराय के साथ नंगी होकर चुदवाने वाली औरत कौन थी,,,।,,, यही सवाल सोच सोच कर वह बीड़ी पर बीड़ी फुंकता जा रहा था जिससे उसकी खांसी भी बढने लगी थी,,,,,,,

रूपाली की जिंदगी बड़े अच्छे से कट रही थी,,, अपनी घरेलू और संस्कारी जीवन में अभी तक उसने आकर्षण और वासना की गंदगी आने नहीं दी थी इसीलिए तो वह अपने पति के साथ बहुत खुश थी,,,,,,,,,


ऐसे ही एक दिन सुरज दोपहर के समय गांव में इधर उधर भटक रहा था कि तभी सुधियां काकी के घर से गुजरने को हुआ तो उसे ख्याल आया कि क्यों नहीं पर सुधियां काकी से मिल लिया जाए,,,क्योंकि वैसे भी सुधियां काकी उसे एक बार मिलने के लिए बोली ही थी,,,,,, सुरज सुधियां काकी के घर के दरवाजे के पास पहुंच कर दरवाजे के बाहर से आवाज लगाता हुआ बोला,,,,।


सुधियां काकी,,,,,ओ,,,, सुधियां काकी घर पर हो कि नहीं,,,,,।
(सुरज की आवाज सुनते ही सुधियां काकी के तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी,,,, वह घर के आंगन में नहा रही थी,,,,सुधियां काकी के घर का आंगन बड़ा था और खुला हुआ था और चारों तरफ से दीवार से घिरा हुआ था जिससे घर के आंगन में हेड पंप लगा था जहां पर वह नहा रही थी,,,, और वैसे भी गांव में इक्का-दुक्का लोगों के पास ही हैंडपंप था बाकी सभी लोग नदी पर ही नहाया करते थे ,,,वह अभी नहाते समय अजीब कशमकश में थी कि तभी बाहर से फिर आवाज आई,,,।)


,,, कोई बात नहीं मैं फिर कभी सुधियां काकी से मिल लुंगा,,, लेकिन बता जरुर देना कि मैं आया था वरना सुधियां काकी नाराज होंगी,,,(सुरज को लगा कि सुधियां काकी घर पर नहीं है और उनकी बहू घर पर है जो कि जवाब नहीं दे रही है इसलिए वह ऐसा बोलकर जाने ही वाला था कि तभी अंदर से आवाज आई,,,।)


आजा दरवाजा खुला ही है,,,,,,,

(अंदर से सुधियां काकी की आवाज सुनते ही सुरज को इत्मीनान हुआ और वह दरवाजे को हल्का सा धक्का देकर अंदर प्रवेश कर गया लेकिन अंदर प्रवेश करते ही आंगन में बने हेड पंप चला रही सुधियां काकी पर नजर पड़ते ही सुरज के तो होश उड़ गए,,,,,, क्या करें आंखों के सामने का नजारा ही कुछ ऐसा था सुधियां काकी की पीठ सुरज की तरफ से जो कि वह जानबूझकर खड़ी हो गई थी सुरज के आने के पहले वह बैठकर ही ना रहे थे और इसलिए खड़ी हुई थी कि सुरज को उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां बराबर दिखाई दे जो कि इस समय पानी में भीगने की वजह से उसका पेटीकोट जो कि वह सारे कपड़े उतार कर केवल पेटीकोट को अपनी दोनों चुचियों पर लपेट कर उसकी डोरी से बात करते हुए थी और पानी में भीगने की वजह से वह पूरी तरह से उसके गोरे बदन पर चिपक गया था और इसीलिए पानी में भीगी पेटीकोट बदन पर चिपकने की वजह से उसकी भारी-भरकम गांड एकदम साफ तौर पर अपना भूगोल लिए हुए नजर आ रही थी,,,। सुरज तो बस देखता ही रह गया,,,, और सुधियां काकी जानबूझकर उसी अंदाज में हेडपंप चलाते हुए अपनी भारी-भरकम गांड को थिरका रही थी जिसकी थीरकन पर सुरज के तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी,,,,,,

सुधियां काकी अच्छी तरह से जान रही थी कि जिस तरह से वह पीठ दरवाजे की तरफ की है खड़ी हो कर काम चला रही थी ऐसे में सुरज की नजर उस की भारी-भरकम खान पर जरूर करेगी और यही निश्चित करने के लिए वह अपनी नजर पीछे घुमा कर देखी तो उसके होठों पर काम अब मुस्कान तैरने लगी वाकई में सुरज की नजर अपनी गांड पर घूमती हुई पाकर वह उत्तेजित हुए जा रही थी,,, अपनी चूचियों पर पेटीकोट चढ़ाकर बांधने की वजह से पेटिकोट उसकी मोटी मोटी जांघों को बिल्कुल भी ढक पाने पर असमर्थ थी जिसकी वजह से सुरज को,, सुधियां काकी की मोटी मोटी गोरी जाम है एकदम साफ नजर आ रही थी और यह सुरज के लिए पहला मौका था जब औरत को इस अवस्था में देख रहा था,,,,पहली बार सुरज ने एक औरत की मोटी जांघों को देख रहा था और पहली बार यह एहसास हुआ कि औरत की जांघें कितनी खूबसूरत होती है,,,,,,, जिस पर पानी की बूंदे मोती के दाने की तरह फिसल रही थी,,,,,,,,।


दूसरी तरफ अपने अर्ध नग्न शरीर का प्रदर्शन करते समय खेली खाई सुधियां काकी जो की बहू वाली हो गई थी फिर सुरज के सामने इस अवस्था में उसके तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी,,, एक अजीब सा सुख उसे प्राप्त हो रहा था,,, सुरज को वह इस समय मौके को देखते हुए अपना सब कुछ दिखा देना चाहती थी लेकिन वो जानती थी कि उसकी बहू घर में मौजूद है और ऐसा करना ठीक नहीं है लेकिन फिर भी वह अपनी खूबसूरती बदन के आकर्षण के केंद्र बिंदु को सुरज को दिखाकर उसे धराशाई कर देना चाहती थी ताकि वह जब उसे बुलाए तो वह खींचा चला आए इसीलिए वह,,,,कुछ ऐसा कर देना चाहती थी जिसकी शायद सुरज को उम्मीद भी नहीं थी लेकिन कैसे वह भी पहुंच कशमकश में थी बाल्टी भर जाने के बावजूद भी वह नल चला रही थी,, और सुरज जैसे कि सब कुछ भूल चुका हूं उस तरह से दरवाजे पर ठिठक कर खड़ा रह गया था वह भी काफी देर से सुधियां काकी के बदन के खूबसूरत भूगोल को अपनी आंखों से नाप रहा था,,,,।

सुधियां काकी जानती थी कि किसी भी वक्त कमरे से बाहर उसकी बहू आ जाएगी और उसकी मौजूदगी में वह ऐसा कुछ कर नहीं सकती थी इसीलिए जल्द से जल्द अपने बदन की झलक सुरज को दिखा देना चाहती थी हालांकि आधा नंगा बदन पीछे से उसका नजर आ ही रहा था और पेटीकोट पानी में पूरी तरह से गीली होने की वजह से बदन का कटाव भी साफ तौर पर नजर आ रहा था लेकिन कपड़ों में और नंगे पर में जमीन आसमान का फर्क होता है वह जानती थी कि सुरज अगर उसके नंगे बदन को देखेगा तो और ज्यादा उत्तेजित और उत्सुक हो जाएगा और वह खुद काफी उत्सुक थी अपनी हरकत को अंजाम देने के लिए,,,,, इसलिए वह पेटिकोट को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर हल्के से उसे झाड़ने के बहाने कमर तक उठा‌दी और तुरंत उसे नीचे करते हुए बोली,,,।,,

आ गया तू दरवाजा तो बंद कर दे ,,,,(और ऐसा कहते हुए नीचे बैठ गई,,, लेकिन इतने से ही सुरज के होश उड़ गए थे सुरज को सुधियां काकी की गोरी गोरी बड़ी गांड के दर्शन हो चुके थे,, पल भर के लिए ही एक झलक भर थी लेकिन सुरज के लिए इतना काफी है जवान हो रहा सुरज सुधियां काकी की नंगी गांड को देखकर पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था और उसकी उत्तेजना उसकी दोनों टांगों के बीच पजामे में साफ झलक रही थी,,,,,,, सुधियां काकी की गांड को नजर भर कर देखना चाहता था,,। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया बस झलक भर देख पाया था लेकिन फिर भी यह सुरज के लिए बहुत था उसके कोमल मन पर सुधियां काकी की नंगी गांड भारी पड़ रही थी,,,। सुरज अभी भी पूरी तरह से मदहोशी में था होश उसे बिल्कुल भी नहीं था,,,,,, किसी भी प्रकार का जवाब ना आता देखकर सुधियां काकी पीछे नजर घुमाकर देखी तो अभी भी सुरज आश्चर्य से आंखें फाड़े उसे देख रहा था तो यह देखकर सुधियां काकी के होठों पर मुस्कान तैरने लगी,,,।)

अरे सुरज ऐसे क्या देख रहा है दरवाजा तो बंद कर दे,,,
(सुधियां काकी की आवाज सुनकर जैसे वह होश में आया हो इस तरह से लड़खड़ा दरवाजा बंद किया और वापस उसी जगह पर खड़ा होकर सुधियां काकी को देखने लगा,,, तो फिर सुधियां काकी बोली,,)


अरे मेरे पीछे मत खड़ा रे,,,, सामने जो लोटा पड़ा है ना लाकर मुझे दे,,, नहाना है,,,,
(सुधियां काकी जानबूझकर उसे लौटा लाने के लिए बोली थी क्योंकि सुधियां काकी उसे अपना बदन आगे से दिखाना चाहती थी,,,पीछे से जलवा दिख कर उसे पूरी तरह से मंत्रमुग्ध कर चुकी थी अब आगे का जलवा दिखा कर उसे पूरी तरह से धराशाई करना चाहती थी,,,,,, पानी में भीग कर भी सुधियां काकी की बुर सुरज को अपने बदन का जलवा दिखाते हुए गीली हो रही थी,,,,,, सुरज तुरंत आगे की तरफ जा कर लौटा उठा लिया और सुधियां काकी को थमाने लगा,,, लेकिन सुधियां काकी के पास पहुंचते ही सुरज का दिल और जोरो से धड़कने लगा,,, क्योंकि सुरज को लोटा लेकर आने से पहले ही सुधियां काकी अपने पेटिकोट की डोरी को छातियों पर से थोड़ी ढीली कर चुकी थी जिससे उसकी खरबूजे जैसी बड़ी-बड़ी चूचियां आधे से ज्यादा पेटिकोट के बीच से नजर आ रही थी और उस पर नजर पड़ते ही सुरज के होश उड़ गए,,,, सुरज सुधियां काकी को लौटा उसके हाथ में थमाते हुए उसकी भारी-भरकम गोलाकार चुचीयों को ही देख रहा था और यह बात सुधियां काकी से छिपी नहीं रह सकी वह सुरज की नजरों को देखकर समझ गई थी कि उसकी नजर उसकी चुचियों पर है और अपनी युक्ति काम आते ही उसका मन हर्षोल्लास से भर उठा,,,,,,, और सुधियां काकी की नजर उसके पजामे पर पड़ी तो उसकी बुर फुदकने लगी,,,,,,,, उसके पजामे में अच्छा खासा तंबू बना हुआ था जिसे देखकर सुधियां काकी समझ गई थी कि पजामे के अंदर घमासान मचाने वाला औजार हैं,,,,। सुरज पूरी तरह से मंत्रमुग्ध और मदहोश हो चुका था पेटिकोट की डोरी के बीच वाली खुली जगह के बीचो बीच में से ऐसा लग रहा था कि मानो एक साथ दो दो चंद्रमा अपनी अर्ध कला दिखा रहे हो,,, हालांकि चुचियों के निप्पल पेटिकोट की आड़ में छुपी हुई थी लेकिन फिर भी उसकी नुकीली नोक पेटीकोट के भीगे होने की वजह से साफ उपसी हुई नजर आ रही थी,,,,।

सुधियां काकी अंदर ही अंदर बेहद खुश और उत्तेजित हुए जा रही थी सुधियां काकी मन ही मन यह चाह रही थी कि सुरज की नजर से दोनों चुचियों की तरफ से हठ जाए जहां पर वह खुद अपने हाथों से पेटीकोट उठाकर अपनी बुर को नंगी छोड़ रखी थी ताकि सुरज को उसकी बुर अच्छे से नजर आए,,,,,,, और वह बाल्टी में से लोटा भर भर कर अपने ऊपर डालने लगी,,,, लेकिन सुरज अभी भी उसकी चूचियों की तरफ देख रहा था,,, और अपने ऊपर पानी डालते हुए सुधियां काकी अपने मन में ही बड़बड़ा रही थी कि,,,, ऊपर क्या देखता है हरामजादे नीचे देख तुझे और मजा आएगा,,,,,,,, लेकिन जब सुधियां काकी की खुद की नजर अपनी दोनों टांगों के बीच गई तो वहनिराश हो गई पानी डालने की वजह से उसका पेटीकोट वापस सरक कर उसकी दोनों टांगो के बीच की उस पतली दरार वाली जगह को छुपा दिया था,,,,, जिसे दिखाने के लिए सुधियां काकी इतना तर कट रची थी,,,, लेकिन जो कुछ भी दिख रहा था सुरज के लिए उत्तेजना से भरपूर था वह रह रह कर अपनी नजर को सुधियां काकी के दोनों टांगों के बीच भी डाल देता था जहां पर दोनों टांगों के बीच उसे पेटीकोट का कपड़ा ढका हुआ नजर आ रहा था जो निराशा सुधियां काकी को हाथ लगी थी वही निराशा सुरज को भी महसूस हो रही थी क्योंकि एक लड़का और वह भी जवान होने के नाते उसे इतना तो पता ही था कि औरत की दोनों टांगों के बीच खास चीज होती है जिसके लिए लड़के पागल रहते हैं,,,,,

सुधियां काकी वापस किसी बहाने से अपने पेटिकोट को उठाकर अपनी बुर दिखाना चाहती थी और इसके लिए वह अपनी पूरी तैयारी भी कर चुकी थी,,,, और सुरज को एक बहाने से नल चलाने के लिए बोल भी दी थी,, और सुरज भी नल चलाने लगा था,,,लेकिन सुधियां काकी अपनी हरकत को अंजाम देती है इससे पहले ही अंदर कमरे में से उसकी बहु बाहर निकल कर और सुधियां काकी के साड़ी को हाथों में लिए बाहर आई और बोली,,,)


माजी आप जल्दी से नहा लो कपड़ों को वैसे ही छोड़ देना मैं धो दूंगी,,,,,(ऐसा कहते हुए सुधियां काकी की बहू खटिया पर साड़ी रख दी,,, और खड़ी हो गई और सुरज की तरफ देखने लगी जो कि नल चला रहा था,,, और वह बोली,,)


यह कौन है मा जी,,,?


अरे नीलम बहु यह अपने रविकुमार का भांजा सुरज है बचपन में अनाथ हो गया,, तबसे वह अपने मामा के साथ हमारे गांव में रहता है बहुत ही सीधा साधा है,,, जा जाकर इसके लिए,,,,, गुड़ और पानी ले आ,,,।


नहीं नहीं काकी इसकी क्या जरूरत है,,,, नमस्ते भाभी (सुधियां काकी की बहू नीलम को हाथ जोड़ते हुए) आप रहने दीजिए भाभी इसकी जरूरत नहीं है,,,,)


अरे कैसी बात कर रहे हो पहली बार इधर आए हो,,,, बैठो मैं पानी लेकर आती हूं,,,(इतना कहकर सुधियां काकी की बहू अंदर कमरे में पानी और गुड़ लेने चली गई लेकिन सुधियां काकी का मन उदास हो क्या आज वह सुरज को अपनी बुर दिखा देना चाहती थी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया लेकिन इस बात की तसल्ली उसे अच्छी तरह से थी कि सुरज अब उसके नंगे बदन को देख कर मदहोश हो चुका था,,, इस उमर में उसके लिए यही काफी था,,,, सुरज खटिया पर जाकर बैठ गया था लेकिन फिर भी वह सुधियां काकी को चोर नजरों से देख ले रहा था और यह देखकर सुधियां काकी को भी अच्छा लग रहा था,,,,, औरत की खूबसूरत नंगे बदन को देख कर पहली बार उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर जागरूक हुई थी,,,, इसलिए उसे अपने तन बदन में उत्तेजना की लहर की यह हलचल बहुत ही सुखदाई लग रही थी,,,। सुधियां काकी के पास अपना बदन दिखाने का मौका बिल्कुल भी नहीं था थोड़ी ही देर में नीलम एक कटोरी में गुड़ का टुकड़ा और हाथ में गिलास दिए हुए बाहर आ गई और सुरज के हाथ पर गुड़ का टुकड़ा रख दिया सुरज गुड़ का एक टुकड़ा खाकर नीलम के हाथों से पानी का गिलास लेने लगा तो अनजाने में ही उसकी उंगली नीलम की नाजुक उंगलियों से रगड़ खा गई,,, और यह रगड़ सुरज के तन बदन में उत्तेजना की लहर पैदा कर गई और यह हलचल नीलम को भी अपने बदन में महसूस हुई,, सुरज का भोलापन और उसका मासूम चेहरा नीलम को भा गया था,,,।


अब ज्यादा देर तक वहां बैठे रहना सुरज के लिए उचित नहीं था इसलिए वह सुधियां काकी की और उसकी बहू को नमस्ते कहकर घर से बाहर आ गया,,,,लेकिन जो नजारा उसने अपनी आंखों से देखा था उसे तेरी कसम उसकी दोनों टांगों के बीच की हल-चल अभी भी शांत नहीं हुई थी,,,

गांव में इधर-उधर घूम कर वह अपने मन को शांत करने की कोशिश करने लगा और थोड़ी ही देर में खेलकूद के चक्कर में वह कुछ देर पहले की बात को भूल चुका था,,,
 
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ऐसे ही १ दिन रूपाली रात के समय खाना बना रही थी,,,,, और रूपाली मंजू को घर के पीछे से इंधन के लिए लकड़ियां लाने के लिए बोली,,,,,, और मंजू जो की सब्जियां काट रही थी वह ,,,,बोली,,,।


जा रही हूं भाभी पहले सब्जियां काट लु तब जाती हुं,,,,(ऐसा कहते हुए वह सब्जियां काटती रही तो रूपाली बोली,,)


अरे मंजू देर हो रही है और यहां लकड़ियां खत्म हो गई है,,, तेरे भैया आ गए होंगे जल्दी जाकर लकड़िया ले आ मैं सब्जी काट देती हूं,,,,


ठीक है भाभी लो तुम सब्जी काट लो मुझे जोर की पेशाब भी लगी है,,,


अरे तुझे कितनी पेशाब लगती है खाना बनाने से पहले ही तो मेरे साथ गई थी और फिर से तुझे लग गई,,,,


हा भाभी पता नहीं क्यों मुझे बार बार जोरों की पेशाब लग जाती है,,,,


पता नहीं तेरी बुर में कितनी पेशाब भरी हुई है,,,

धत्,,, भाभी कैसी बातें करती हो,,,,(रूपाली शरमाते हुए बोली)


अरे सच कह रही हूं तुझे जोर जोर की पेशाब लगती है ना बार-बार अब तुझे दूल्हे की जरूरत है,,,,


लो अब इसमें दूल्हा क्या करने वाला है,,,?(मंजू ईतरातें हुए बोलि,,,)


अरे पगली जब तेरा दूल्हा अपना मोटा लंड तेरी बुर में डाल कर रात भर चोदेगा तो खुद ही तेरे बदन की गर्मी चुदाई से निकल जाएगी,,,, फिर यह बार-बार मुतना बंद हो जाएगा,,,(रूपाली हंसते हुए बोली,,,)


क्या भाभी तुम भी लगता है भैया से शादी करने के बाद तुम्हारा भी बार-बार मुतना बंद हो गया,,,


हां रे तू सच कह रही है जब नई नई मैं इधर आई थी तो मुझे भी बार-बार पेशाब लग जाती है लेकिन तेरे भैया का लंड बुर में जाते ही तकलीफ दूर हो गई,,,,( रूपाली एकदम बेशर्म बन कर अपनी ननद से बोली वैसे भी भाभी और ननद का रिश्ता ही हंसी मजाक का होता है और हंसी मजाक में कितनी गंदी बातें एक दूसरे को बोलते ही रहते हैं,,,)


मुझे इस तरह से तकलीफ दूर नहीं करवाना है,,,(इतना कहकर वह चलने लगी तो रूपाली पीछे से ही आवाज लगाते हुए बोली,,,)


अरे तू चाहे या ना चाहे शादी के बाद तेरा दूल्हा तेरी बुर में डालेगा ही डालेगा,,,,

(अपनी भाभी की बातें सुनकर मंजू शर्म से लाल हो गई थी और उत्तेजित भी हो गई थी,,, अपने भाई के मोटे तगड़े लंड को वह देख चुकी थी और उसे अपनी भाभी की बुर में अंदर बाहर होता हुआ भी देख चुकी थी और अपने भाई से भी ज्यादा दमदार लंड उसे सुरज का लगा था,,,,भले ही वह अपने मुंह से बोल कर आई थी कि इस तरह से अपनी तकलीफ दूर नहीं करवाना है लेकिन एक मोटे लंड को अपनी बुर में लेने की उत्सुकता उसके चेहरे के हाव भाव से सांप पता चल रही थी,,,। लकड़ी लेने के लिए पेशाब करने के लिए घर के पीछे पहुंच गई थी जहां पर ढेर सारी सूखी लकड़ियां रखी हुई थी और पास में ही बेल के लिए घास फूस की झोपड़ी बनी हुई थी जिसमें रोज उसके भैया बैल को बांध दिया करते थे,,,,। मंजू सूखी सूखी लकड़ियों को उठाने लगी मन में यह सोच कर कि लकड़ी को भाभी के पास रखकर वह बाद में पेशाब करने आएगी लेकिन लकड़ी को उठाते हुए उसके पेट में जोड़ों का दर्द होने लगा जो कि पेशाब की वजह से ही हो रहा था वह समझ गई कि ज्यादा देर रुकना ठीक नहीं है,,,, इसलिए वह तुरंत लकड़ियों को नीचे पटक दि और दो कदम की दूरी पर जाकर अपनी सलवार की डोरी खोलने लगी इस बात से अनजान की थोड़ी देर पहले ही उसका बड़ा भाई रविकुमार बेलगाडी को लेकर घर आ चुका था और बैल को उस घास फूस की झोपड़ी में बाधकर वहीं बैठ गया था और बीड़ी सुलगा कर पी रहा था जब वहां मंजू आई थी तो वह जानता था वह लकड़ी ले जाने में उसकी मदद करने के लिए झोपड़ी से बाहर आना चाहता था लेकिन बीड़ी का आखिरी तक खींचने के लिए वहीं बैठ गया था लेकिन इतनी देर में मंजू लकड़ियों को पटक कर दो कदम आगे जा चुकी थी और इसीलिए रविकुमार उत्सुकता वश बैठा रहा था यह देखने के लिए की आखिरकार वह लकड़ी को उठा कर क्यो नीचे फेंक दी,,,, उसे आवाज भी लगाने वाला था की लकड़ियों को क्यों पटक दी लेकिन जैसे ही पर दो कदम की दूरी पर जाकर अपने दोनों हाथों को अपने सलवार की डोरी पर ले जाकर उसे खोलने को हुई की रविकुमार का दिल जोरो से धड़कने लगा क्योंकि वह समझ गया था कि उसकी बहन मंजू क्या करने जा रहे हैं वह पीछे से आवाज लगाना चाहता था लेकिन लगा नहीं पाया उसे समझ में नहीं आ रहा कि वह क्या करें क्योंकि उसकी बहन ठीक उसके सामने खड़ी थी ऐसे में वह इधर उधर भी नहीं हो सकता था क्योंकि उसके इधर-उधर होने से आवाज आ सकती थी और उसकी बहन की निगाह उस पर पढ़ सकती थी और ऐसे हालात में उसका इस तरह से पकड़े जाना अपनी ही बहन के नजर में शायद शक के दायरे में खड़ा कर देना जैसा होता उसकी बहन को ऐसा ही लगता कि उसका भाई उसे पेशाब करते हुए देख रहा है हालांकि अभी मंजू पेशाब करना शुरू नहीं की थी बस अपनी सलवार की डोरी खोलने जा रही थी इतने से ही रविकुमार की हालत खराब हो गई थी,,,, रविकुमार दूसरे लोगों की तरह बिल्कुल भी नहीं था वह शर्म से गड़े जा रहा था क्योंकि वह जानता था कि कुछ ही देर में उसकी बहन अपने सलवार को नीचे सरका देगी और इस अवस्था में वह अपनी बहन को देखना गवारा नहीं समझ रहा था,,,,,,


और रविकुमार मन में उठ रही कशमकश को दबाते हुए नजर को दूसरी तरफ फेर लिया,,,,, रविकुमार एक काफी सुलझा हुआ इंसान था मान मर्यादा इज्जत उसके लिए सब कुछ थी,,,, मान मर्यादा संस्कार के मामले में वह खरा सोना था,,,,रिश्तो को वह अच्छी तरह से समझता था उसकी आंखों के सामने तो उसकी खुद की बहन मंजू थी,,,, लेकिन सारे रिश्ते नाते को ताक पर रखकर सबसे पहले वह एक मर्द था,,,,और उसकी आंखों के सामने ,,, ५ कदम की दूरी पर जो लड़की खड़ी थी वह रविकुमार की बहन से पहले एक औरत थी,,,, और दुनिया में मर्द और औरत के प्रति आकर्षण और खींचाव का रिश्ता कभी खत्म होने वाला नहीं था और इसीलिए एक मर्द होने के नाते रविकुमार अपने आपको लाख बनाने के बावजूद भी अपने मन को अपने वश में नहीं कर पा रहा था और उसकी नजर बार-बार उसकी बहन मंजू की तरफ चली जा रही थी जो कि अभी भी अपनी सलवार की डोरी को खोलने में उलझी हुई थी,,,,,,,

और बार-बार रविकुमार अपनी बहन मंजू की तरफ देख रहा था और फिर वापस नजर को दूसरी तरफ फेर ले रहा था,,,, ऐसा वह बार-बार कर रहा था,,,, काफी मेहनत करने के बाद मंजू आखिरकार सलवार की डोरी खोलने में कामयाब हो चुकी थी जो कि वह जल्दबाजी में कसकर बांध ली थी,,,,, उसे बड़े जोरों की पेशाब लगी थी जो की इस बात से ही समझ में आ जा रहा था कि वह बार-बार अपने पैरों को पटक रही थी,,,।अपनी बहन मंजू की हरकत और उसकी बैचेनी को देखकर रविकुमार के तन बदन में अजीब सी उत्तेजना का एहसास हो रहा था और वह इस उत्तेजना से अपने अंदर में भी महसूस कर रहा था लेकिन वह अपने आप को रोक भी नहीं पा रहा था,,,

चारों तरफ अंधेरा छा चुका था लेकिन फिर भी चांदनी रात होने की वजह से रविकुमार को सब कुछ साफ नजर आ रहा था और वह इस बात के लिए भगवान को धन्यवाद भी दे रहा था जोकि अपने मन में चांदनी रात के लिए भगवान को धन्यवाद देते हुए वह शर्मिंदगी का अहसास भी कर रहा था,,,।देखते ही देखते मंजू सलवार एक झटके में अपने घुटनों तक सरकायी जिसकी वजह से उसकी मदमस्त गोरी गोरी गदराई गांड आसमान में चमक रहे चांद की तरह नजर आने लगी,,,,,,अपनी बहन की गोरी गांड देखते ही रविकुमार के मुंह में पानी आ गया साथ ही उसकी धोती में उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो,, गया,,,,,, उत्तेजना के मारे रविकुमार का गला सूखता चला जा रहा था और दूसरी तरफ मंजू इस बात से बेखबर कि ठीक उसके पीछे खड़ा होकर उसका बड़ा भाई उसकी मदमस्त गांड के दर्शन करके मस्त हो रहा है,,,,वह तो नीचे बैठते ही अपनी मंजू बुर से पेशाब की धार मारने लगी क्योंकि बड़ी तेज सीटी की आवाज के साथ घर के पीछे के वातावरण में पूरी तरह से घुलने लगा,,, और इस मधुर मादक दूर से निकल गई सीटी की आवाज सुनते ही रविकुमार का मन डोल उठाऔर वह ना चाहते हुए भी धोती के ऊपर से ही अपने लंड को हाथ में पकड़ कर मसलने लगा,,,।


रविकुमार के लिए यह पहला मौका था जब वह अपनी बहन की नंगी गांड को अपनी आंखों से देख रहा था और साथ ही उसे पेशाब करते हुए भी देख रहा था यह उसके लिए सोने पर सुहागा था कामोत्तेजना के परम शिखर पर पलभर में ही वह विराजमान हो चुका था इतनी उत्तेजना सहन कर पाना उसके पास में बिल्कुल भी नहीं था हालांकि एक खूबसूरत बीवी का पति होने के नाते वह रोज अपनी खूबसूरत बीवी की चुदाई करता था और उसमें तृप्त हो जाता था लेकिन मर्द तो आखिर मर्द ही रहता है घर की मुर्गी दाल बराबर का कथन उसके ऊपर बराबर बैठ रहा था क्योंकि उसकी बीवी रूपाली बेहद खूबसूरत औरत की और बेहद खूबसूरत मादक जिस्म की मालकिन भी थी जिसको जब चाहे वह भोग सकता था,,, और मंजू उसकी बीवी रूपाली से ज्यादा खूबसूरत बिल्कुल भी नहीं थी,,,,लेकिन मर्दों का आकर्षण हमेशा से औरतों के नंगे बदन खास करके उन की गोरी गोरी कांड उनकी बुर और उनकी चूची पर हमेशा टिकी रहती थी और उसी प्रचलन के चलते रविकुमार भी अपने आप को संभाल नहीं पाया था,,,,, वह अपनी उत्तेजना को संभालना सकने के कारण दूसरी बीडी को धीरे से सुलगा कर उसे फूक रहा था,,,। बीड़ी से ज्यादा अपनी बहन की नंगी गांड और उसे इस तरह से पेशाब करते हुए देख कर वह खुद सुलग रहा था,,,,।


बीड़ी पीते हुए हैं वह इस बात का शुक्रगुजार था कि अभी तक उसे खांसी नहीं आई थी वरना उसका भांडा फूट जाता और वह शर्मिंदा हो जाता,,,,,,, मंजू भी अपनी हरकतों से अपने बड़े भाई रविकुमार पर अनजाने में ही बिजलियां गिरा रही थी,,। वह बार-बार अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ ले जाकर अपनी गोरी गोरी गांड को ऐसे थाम ले रही थी मानो जैसे किसी खरबूजे को थाम ले रही हो,,,।,, यह देखकर रविकुमार का मन लालच जा रहा उसके मन मेंहो रहा था कि वह खुद आगे बढ़कर अपनी बहन की गांड को अपनी दोनों हथेली में भरकर जोर-जोर से दबाए,,,, लेकिन ऐसा करना उचित नहीं था,,,,


लेकिन आंखों के सामने का मादक दृश्य उसे पूरी तरह से मदहोश किए जा रहा था वह जोर-जोर से धोती के ऊपर से अपने लंड को दबा रहा था,,,,, उसे आज अपनी बहन की गांड देखकर अपना लंड कुछ ज्यादा ही फूला हुआ महसूस हो रहा था,,,। उसे इस बात का डर था कि कहीं उसका पानी ना निकल जाए,,,,उसकी बहन की बुर से लगातार पानी की धार फूट रही थी और उसमें से मधुर संगीत रूपी सीटी की आवाज कानों में गूंज रही थी,,, ऐसा नहीं था कि वह पहली बार किसी औरत को पेशाब करते हुए देखना वह अपनी बीवी को बहुत बार पेशाब करते हुए देखकर मस्त भी हो चुका है और पेशाब करते समय अंदर जाग रही मदहोश माता पिता के पास होकर वह अपनी बीवी को पेशाब करते करते उसकी चुदाई भी किया है लेकिन आज की बात कुछ और थी आज उसकी आंखों के सामने उसकी बहन के साथ कर रही थी वह पूरी तरह से मस्त हो गया था और अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रहा था,,,। उसका मन अपनी बहन को चोदने के लिए बहुत मन कर रहा था क्योंकि वह जानता था कि शुरू के दिनों में जब उसकी नई नई शादी हुई थी तब उसकी बीवी की बहुत ही टाइट और संकरी थी,,, जिसमें उसका लंड बड़ी मुश्किल से जाता था,,, इसलिए अपने मन में सोच रहा था कि इस समय उसकी बहन की भी बुर बहुत ही टाइट और उसकी गलियारी एकदम संकरी होगी जिसमें उसे लंड डालने में बहुत मजा आएगा,,,,, यह सोचकर वह अपने तन बदन में मदहोशी का रस घोल रहा था,,,,,,,, उसका मन आगे बढ़ने को कर रहा था वह इसी समय अपनी बहन को घर के पीछे ही चोदना चाहता था लेकिन उसके मन में यह डर भी था कि कहीं उसकी बहन इस बात से बुरा मान गई और अपनी भाभी को बता दी तो क्या होगा वह तो कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रह जाएगा डूब मरने वाली बात उसके लिए होगी इसलिए काफी कशमकश के बाद वह अपने कदमों को वही टिका कर रखा था,,,,,


देखते ही देखते पेशाब की धार कमजोर पड़ने लगी और पेशाब करने के बाद मंजू उठ खड़ी हुई और अपनी सलवार को ऊपर कमर तक चढ़ाकर अपनी सलवार की डोरी बांधने लगी,,,।पेशाब करते समय अपनी भाभी के द्वारा कही गई बात को याद करके काफी उत्तेजना का अनुभव भी कर रही थी जिससे उसके तन बदन में अजीब सा एहसास हो रहा था अपनी भाभी की बातों को सुनकर उसका मन बहुत करता था अपनी बुर में लंड लेने के लिए लेकिन वह जानती थी कि उसकी बुर की किस्मत मे अभी लंड नहीं लिखा था,,,,।


इसलिए जल्दी-जल्दी अपने सलवार की डोरी बांधकर सूखी लकड़ियों को उठाकर वापस चली गई और रविकुमार अपनी बहन को जाते हुए देखता रह गया,,,, उसका ध्यान जब अपनी धोती पर गया तो वह हैरान रह गया क्योंकि धोती से कब उसका लंड बाहर आ गया और कब वह उसे पकड़कर हिलाना शुरू कर दिया था उसी को पता नहीं चला,,,, अपनी बहन की मादक गांड के उत्तेजना में वह इस कदर डूब गया कि अपनी बहन की कल्पना करते हुए अपने लंड को मुठीयाना शुरू कर दिया ,,,इसे अनुभव उसके लिए बिल्कुल नया था पहले भी वह मूठ मार चुका था लेकिन तब उसके ख्यालों में उसकी खूबसूरती रहती थी और जब कभी भी वह मायके जाती थी तभी लेकिन आज उसके ख्यालों में उसकी खूबसूरत बहन मंजू थी जिसकी कल्पना करके वह पूरी तरह से मस्त हुए जा रहा था,,,,


और थोड़ी ही देर में देखते ही देखते उसके लंड से पानी की पिचकारी छुट पड़ी,,,,,,, तब जाकर उसे शांति मिली,,,,,,,।

कुछ देर तक वह इधर-उधर घूमता रहा और थोड़ी देर बाद घर पहुंचा तो खाना तैयार था,,,वह मंजू सी नजर नहीं मिला पा रहा था,,,,कुछ देर पहले जो कुछ भी उसने देखा था और करा था उससे उसे शर्मिंदगी का अहसास हो रहा था लेकिन मंजू को इस बात का बिल्कुल भी पता नहीं था कि उसे पेशाब करते हुए उसका भाई देख रहा था और अपना लंड हीला रहा था,,,, मंजू अपने हाथों से खाना परोस कर अपने भाई को खिला रही थी और अपनी भाभी को भी सुरज भी पास में ही बैठा दिया और थोड़ी देर बाद मंजू भी बैठ कर खाने लगी,,,,।


रात को सोते समय अपनी बहन की गांड और उसे पेशाब करता हुआ देखकर जो उत्तेजना का अनुभव से नहीं किया था वह सारी कसर अपनी बीवी से उसकी चुदाई करके उतार रहा था और मंजू दीवार के उसी छेद में से उस नजारे को देख रही थी और उत्तेजित हो रही थी सलवार उतार कर वह अपनी भाभी की बात को याद करके की शादी के बाद उसकी बुर में उसके दूल्हे का लंड जाएगा तब बार-बार पेशाब लगने वाली आदत छुट जाएगी,,, इस बात को याद करके और अपनी भैया भाभी की चुदाई बेटे करो पूरी तरह से फिट हो गई थी और अपनी बुर में उंगली डालकर अंदर बाहर कर रही थी,,,, थोड़ी देर में उसके भैया भाभी के साथ वो खुद शांत हो गई और खटिए पर आकर सुरज के पास बिना सलवार पहने ही सो गई,,,,।
 
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मंजू को ऐसा ही लगता था कि अंधेरे की वजह से सुरज,,, कमर के नीचे उसके नंगे पन को नहीं देख पाया है इसलिए थोड़ा इत्मीनान था लेकिन इस बात से सकते में आ गई थी कि वह ऐसे कैसे अपनी सलवार पहनना भुल गई थी,,,,, बार-बार उसके मन में यही ख्याल आ रहा था कि रात को अपने भाई की गरमा गरम चुदाई देखकर खुद अपनी बुर में उंगली डालकर अपनी गर्मी को शांत की थी जहां से खड़ी होकर अपने भैया और भाभी की चुदाई देख रही थी वहीं पर अपनी सलवार उतार कर फेंक दी थी और शायद,,,अपने बदन की गर्मी शांत करके संतुष्टि भरे एहसास के साथ वह खटीया पर पड़ी और गहरी नींद में सो गई और शायद इसीलिए सलवार पहनना भूल गई थी लेकिन इस बात के लिए वह बार-बार भगवान को धन्यवाद दे रही थी कि अंधेरे की वजह से उसका सुरज उसका कुछ देख नहीं पाया था,,,,। लेकिन फिर अपने मन में यह सोचने लगे कि अगर उसका सुरज कमर के नीचे उसके नंगे पन को देख भी लेता तो क्या होता क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि सुरज दूसरे लड़कों की तरह आवारा नहीं था तो शायद उसकी नजर अगर उसकी नंगी बुर पर भी पड़ जाती तो सुरज कुछ नहीं करता,,,,,,,।

यह ख्याल मन में आते ही वह अपने ही मन से सवाल कर रही थी कि ऐसा खयाल उसे क्यों आ रहा है,,,, अच्छा ही तो हुआ सुरज ने कुछ देखा नहीं,,,, लेकिन देख लेता तो शायद मर्द होने के नाते एक खूबसूरत नौजवान लड़की की वर देखने की वजह से उसका लंड खड़ा हो जाता तो क्या उसका चोदने का मन नहीं करता,,,, जरूर करता,,,, अगर ऐसा हो जाता तो कितना मजा आता बाहर कहीं भी मुंह मारने की जरूरत ही नहीं पड़ती और सुरज उसके वश में रहता पूरी तरह से,,, इस बात की किसी को कानों कान खबर भी नहीं पड़ती और जवान लड़का होने के नाते चुदाई करने में उसे परम आनंद की अनुभूति होती और यह आनंद वह खोना नहीं चाहता,,,,,


मंजू के मन में ऐसे ख्याल आते ही उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी,,, उसे ऐसा महसूस होने लगा था कि जो कुछ भी हो सोच नहीं है वह सच हो जाएगा,,,, और इस बात का भी इसे तसल्ली थी कि सुरज का लंड उसके भाई रविकुमार से भी तगड़ा था,,,।जिस की गर्मी को वह अपने हथेली में लेकर महसूस कर चुकी थी और जिस तरह से उसके लंड में पिचकारी छोड़ी थी उसे देखकर उसकी दोनों टांगों के बीच में हलचल सी मच गई थी,,,,,,, यह सब ख्याल आते ही मंजू का मन बहकने लगा था,,, वह कुछ कर गुजरने की सोच रही थी वह अच्छी तरह से चाहती थी कि सुरज जवान होता हुआ लड़का है और वह खुद एक जवान खूबसूरत लड़की,,,, और उसका सुरज जरूर उसकी तरफ आकर्षित होगा,,,,, मंजू अपनी जवानी की प्यास बुझाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार थी लेकिन उसे डर भी था कि कहीं उसका दाव उल्टा ना पड़ जाए वरना वह किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह जाएगी,,,,, यही सब सोचते हुए मंजू घर का काम कर रही थी,,,,,,,,


रविकुमार नहा धोकर बेल गाड़ी ले जाने के लिए तैयार था,,, बस जाते समय रोटी ले जाने का इंतजार कर रहा था,,, उसकी बीवी रूपाली उसके लिए भोजन तैयार करके उसे एक बर्तन में रखकर कपड़ा बांधकर उसे थमा देती थी जिसे रविकुमार अपने साथ ले जाता था और दोपहर के समय जब उसे भूख लगती थी तो खा लेता था,,,, अपने बेल को चारा पानी से तैयार करते हैं अपने बेल पर हाथ रख कर उसे सहलाते हुए वह बोला,,,।



अरे सुनती हो भोजन तैयार होगा कि नहीं बहुत देर हो रही है स्टेशन पहुंचना है वरना ट्रेन आ गई तो,,,, मेरे पहुंचने से पहले ही सवारी निकल जाएगी तब कोई फायदा नहीं रहेगा,,,,



थोड़ा रुकिए तैयार हो गया है बस बांध रही हूं,,,,,(रोटी को साफ कपड़े में बांधते हुए)

अरे मंजू सुन तो जैसे जल्दी से अपने भैया को दे कर आ जा उन्हें बहुत देर हो रही है,,,,(मंजू ख्यालों में खोई हुई वहीं पास में कपड़े धो रही थी लेकिन उसे रूपाली की आवाज सुनाई नहीं दी तो रूपाली फिर जोर से बोली,,)
अरे सुन रही है या बहरी हो गई है,,,, ना जाने कौन से ख्याल में खोई हुई है,,,,,(रूपाली की बातों का असर मंजू पर बिल्कुल भी नहीं हो रहा था वह अपनी ही धुन में थी इसलिए रूपाली को खड़ा होना पड़ा और वह कपड़े धो रही मंजू के कंधे को पकड़कर उसे जोर से झगझोरते हुए बोली,,,।)

अरे मंजू कौन से ख्यालों में खोई हुई है तुझे कुछ समझ में आ रहा है मैं कब से आवाज लगा रही हूं,,,,।
(रूपाली के द्वारा इस तरह से झकझोरे जाने पर मंजू एकदम से हड़बड़ा कर खड़ी हो गई मानो की किसी ने नींद में से उसे पानी डालकर जगाया हो,,,)


ककककक,,,, क्या हुआ भाभी,,,?(मंजू एकदम से हडबडाए हुए स्वर में बोली,,,,)


अरे हुआ कुछ नहीं तू सो गई थी इसलिए तुझे इस तरह से जगाना पड़ा,,,, रात भर जाग रही थी क्या,,,,?


नननन,,,नहीं,,,,नहीं,,,, नहीं तो,,,,, बस थोड़ा सा आंख लग गई थी,,,।(मंजू घबराहट के मारे हक लाते हुए बोली,,)

रात भर तेरे भैया मुझे सोने नहीं देते और सुबह तुझे नींद आती है,,,,



भला भैया क्यों तुम्हें सोने नहीं देते,,,,



इतनी ही जानने की उत्सुक है तो जाकर अपने भैया से क्यों नहीं पूछ लेती,,, मुझे सोने क्यों नहीं देते,,,,(रोटी और सब्जी रुमाल में बांदी पोटली मंजू को थमाते हुए बोली,,,)

जा जाकर अपने भैया को दे कर आ कब से इंतजार कर रहे हैं और पूछ भी लेना कि मुझे रात भर सोने क्यों नहीं देते,,।

(अपनी भाभी की ऐसी बात सुनकर मंजू मुस्कुराने लगी क्योंकि अपनी भाभी के कहने का मतलब अच्छी तरह से समझती थी और अपनी आंखों से देख भी चुकी थी भले ही उसके भैया रात भर उसकी भाभी को जगाते हैं लेकिन साथ में उसके भैया की वजह से वो खुद जागती रहती है,,, अब इस बात को वह अपनी भाभी को तो बता नहीं सकती थी,,,,)


भाभी तुम्हारी समस्या है तुम ही पूछो,,,(इतना कहते हो वह खाना लेकर के पास आ गई ,,, उसके भैया बैलगाड़ी पर सवार हो चुके थे,,,,, और मंजू को खाना लेकर आते देखकर वह बोले)

ला जल्दी कर मंजू बहुत देर हो रही है,,,,


लो भैया समय पर खा लेना,,,,,(इतना कहते हुए मंजू कपड़ों में बंधा हुआ खाना अपने भाई रविकुमार को समाने लगी और रविकुमार अपना हाथ आगे बढ़ाकर उसे थामने लगा कि तभी उसकी नजर मंजू की कुर्ती पर गई जो कि कपड़े धोने की वजह से पूरी तरह से गीली हो चुकी थी और भीगे हुए कुर्ती में से मंजू कि दोनों चूचियां एकदम साफ झलक रही थी,,,। और जिस तरह के गंदे कपड़े धोते समय मंजू के मन में आ रहे थे उन उत्तेजक ख्यालों की वजह से उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ ने लगी थी जिसकी उत्तेजना उसकी दोनों टांगों के बीच की दरार और उसकी चुचीयों में साफ महसूस हो रही थी जिसकी वजह से उसकी चूची की निप्पल तन कर खड़ी हो गई थी,,,, अपनी बहन की झलकती हुई चुची और उसकी कड़ी निप्पल को देखते ही,,, रविकुमार की धोती में खलबली मचने लगी,,, उसका लंड मुंह उठाकर देखने लगा,,,, रविकुमार भोजन को थाम ते हुए अपनी आंखों को अपनी बहन की छातियों पर गड़ाए हुए था पहले तो मंजू को कुछ समझ में नहीं आया लेकिन जैसे ही अपने बड़े भाई की नजर के ध्यान को वह अपनी छातीयो पर महसूस की,,,उस बात को महसूस क्योंकि उसकी कुर्ती पूरी तरह से गीली हो चुकी थी और गीली कुर्ती में से उसकी चूचियां साफ़ झलक रही थी उसकी निप्पल साफ झलक रही थी ,,, अपने भैया के नजर को भांपते ही वह एकदम शर्म से पानी पानी हो गई उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें,,, और वह अपनी भाई की प्यासी नजरों को अच्छी तरह से समझ रही थी,,,,,, क्योंकि वह इसी तरह से अपने भैया को अपनी चुचूयों को देखते हुए देखी थी,,,,,,


पल भर में ही मंजू की सांसे भारी हो गई,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें,,,, उसके लिए यह पल बेहद कशमकश भरा हुआ था,,,,उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है लेकिन इतना तो जानती थी कि उसका भाई उसकी चुचियों को देखकर स्तब्ध रह गया है,,,, ऐसा उसके साथ कभी भी नहीं हुआ था कभी भी उसने अपने भाई को इस तरह से गंदी नजरों से देखते नहीं पाई थी,,,, लेकिन आज जो कुछ भी हो रहा था वह कोई स्वप्न या कल्पना नहीं था ,,,, हकीकत था,,,,, अभी भी मंजू उसी तरह से रोटी की पोटली को आगे बढ़ाई हुई थी और उसका भाई रविकुमार उसे था में हुए था वह पूरी तरह से जडवंत मूर्ति बन चुका था,,,,,,,

रविकुमार के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ उठी थी,,, यहपल उसके लिए भी बेहद अतुल्य और लुभावना लग रहा था क्योंकि आज तक उसने इतने नजदीक से कभी भी अपनी बहन के खूबसूरत अंगो को देखा नहीं था,,,, उसकी आंखों के सामने उसकी खूबसूरत बहन मंजू के संतरे नजर आ रहे थे हालांकि वह कुर्ती के अंदर थे लेकिन कुर्ती के किले होने की वजह से उसका आकार और उसका हल्का का रंग साफ नजर आ रहा था,,,,,,, रविकुमार के लिए तो यह मौका मानो कि अनजाने में भी हापुस के ढेर में रसीले आम नजर आ जाने के बराबर था,,,,इसलिए तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गई थी और उसकी आंखों में वासना की चमक साफ नजर आ रही थी,,,, रविकुमार के लिए यह दूसरा मौका था जब अपनी बहन की खूबसूरत अंगों को देख कर पूरी तरह से उत्तेजित हो गया था,,,रात को ही उसने अनजाने में ही अपनी बहन को पेशाब करते हुए देखा था उसकी नंगी में गोल गोल गांड को देखकर जिस तरह से उसका लंड ऊबाल मार रहा था उसे अपनी जवानी का दिन याद आ गया था,,,,,, उस समय रविकुमार अपने आप को किसी तरह से संभाल ले गया था वरना उसका मन तो कर रहा था कि आगे बढ़े और अपनी बहन की गोरी गोरी गांड को अपने दोनों हाथों से थाम कर उसे जी भर कर प्यार करें,,,,,,,,


इस हालात में मंजू के तन बदन में अजीब सी कसमसाहट हो रही थी वह समझ नहीं पा रही थी कैसे हालत में वह क्या करें वह अपने भैया की हालत को अच्छी तरह से समझ रही थी उसका भाई पूरी तरह से उसकी चूचियों की तरफ आकर्षित हो चुका था,,,,,,, मंजू को इस बात का डर था कि जिस लालच भरी निगाहों से उसका उसकी चूची को देख रहा था कहीं वहां अपना हाथ आगे बढ़ाकर उसकी चूचीयो को थाम न ले,,,, इसलिए मंजू खुद ही इस आकर्षण के भंवर को तोड़ते हुए बोली,,,।


भैया समय मिले तो जल्दी खाना खा लेना,,,,
(मंजू की आवाज सुनते ही जैसे रविकुमार की तंद्रा भंग हुई होगा इस तरह से हर बढ़ाते हुए अपना हाथ पीछे खींच लिया और बिना कुछ बोले और बिना नजर मिला ही बस हां ठीक है बोलकर बैलगाड़ी को आगे की तरफ हांक दिया,,, मंजू कुछ देर तक वहीं खड़े अपने भाई को जाकर भी देखती रही और फिर जब एक नजर अपनी छातियों पर घुमाई तो वो खुद शर्मिंदा हो गई क्योंकि उसकी गोल-गोल चूचियां एकदम साफ झलक रही थी,,,, मंजू का दील अभी भी जोरों से धड़क रहा था वह वापस घर में आ गई और इस बार रूपाली की नजर उसकी छातियों पर पड़ी तो वह जोर जोर से हंसने लगी,,,, अपनी भाभी को इस तरह से हंसता हुआ देखकर मंजू बोली)


तुम क्यों हंस रही हो तुम्हें क्या हो गया,,,,


अरे मुझे कुछ नहीं हुआ है लेकिन अपनी हालत तो देख तेरी कुर्ती देख पूरी तरह से गीली हो चुकी है और तेरी चूची दिख रही है,,,
(अपनी भाभी के मुंह से चुची सबसे सुनकर मंजू गनगना गई,,,,,,)

अरे यह तो कपड़े धोते समय गीला हो गया,,,,(अपनी कुर्ती को अपने दोनों हाथों से पकड़कर उसे झाड़ते हुए बोली)


तेरे भैया ने तो देख ही लिया होगा तेरी चूची,,,,


नहीं तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ,,,,


अरे पगली तू नहीं जानती तेरे भैया को चूचियां बड़ी अच्छी लगती है,,,,, देख नहीं रही है मेरी चूची को क्या हाल किए है दबा दबा कर,,,,,(रूपाली अपनी चूचियों की तरफ नजर डालते हुए बोली,,,,)


अरे भाभी भैया को तो बड़ी-बड़ी चूचियां पसंद होगी ना मेरी तो अभी संतरे जैसी है,,,,


अरे बुद्धू मेरी भी पहले संतरे जैसी ही थी तेरे भैया ने दबा दबा कर मेहनत की है तभी तो खरबूजे जैसी हो गई है,,,,(रूपाली हंसते हुए बोली)


क्या भाभी तुम भी,,,,(इतना कहकर मंजू फिर से कपड़े धोने बैठ गई)


लगता है तेरे भैया ठीक से तेरी चुची को देखे नहीं वरना,,,,,(इतना कहकर रूपाली चुप हो गई,,,)


वरना क्या भाभी,,,,(मंजू कपड़े धोते हुए बोली मंजू और जानना चाहती थी इसलिए हो सकता हूं बस अपनी भाभी को बोली थी,, ताकि उसकी भाभी उसे आगे की बात बता सके मंजू का दिल जोरो से,,, धड़क रहा था,,,, खास करके उसके भैया से जुड़ी बातें ना जाने क्यों अच्छी लग रही थी,,,, मंजू की बात सुनकर रूपाली yबोली,,,,)


वरना क्या ,,,अरे तेरे भैया बैलगाड़ी छोड़कर तुरंत तेरी कुर्ती उतार कर फेंक देते और तेरी चुची दबा दबा कर मुंह में भर कर पीना शुरू कर देते,,,,


धत् भाभी कैसी बातें करती हो,,,,(मंजू एकदम से शरमा गई और शर्माते हुए बोली,,,,)


अरे सच कह रही हूं तेरे भैया को तु जानती नहीं है,,,, एक बार मौका देकर देख अपना मोटा तगड़ा लंड तेरी बुर में डालकर तेरी चुदाई करने से भी नहीं चूकेंगे,,,,,
(अपनी भाभी की इस तरह की गंदी बातें सुनकर मंजू पूरी तरह से उत्तेजना से गनगना गई,,,, उसे उम्मीद नहीं थी कि उसकी बातें उसके भैया को लेकर इतनी गंदी बात बोलेगी लेकिन मंजू को इसमें मजा आ रहा था उसकी बुर पनिया रही थी,,, अपनी भाभी की बातें सुनकर मंजू भी अपनी भाभी को चिढ़ाने के उद्देश्य से बोली,,,)


भाभी अगर भैया मेरे पीछे पड़ जाएंगे तो तुम्हारा क्या होगा तूमे तो भूल ही जाएंगे,,,,


अरे भगवान का लाख-लाख शुक्र होगा जो तेरे भैया मुझे छोड़ कर तेरे पीछे पड़ जाएंगे तो मेरी जान तो बचेगी नही तो रात भर सोने नहीं देते फिर तु झेलना अपने भैया को,,,,
(इतना कहकर मंजू काम करने लगी और मंजू अपनी भाभी की बातों को कल्पना का रूप देने लगी,,,,, कि कैसे उसके भैया अपने हाथों से उसकी कुर्ती निकाल कर उसके संतरे जैसी चूची को अपनी हथेली में भर भर कर दबा रहे हैं और उसे मुंह में भरकर पी रहे हैं इसके बाद अपनी गोद में उठाकर खटिया पर लेटाते हुएसलवार की डोरी को अपने हाथों से खोल कर उसकी सलवार उतार कर खटिया से नीचे फेंक दिया और अपने मोटे तगड़े लंड को हिलाते हुए खटिया पर चढ़कर उसकी दोनों टांगों को फैला कर उसकी दोनों टांगों के बीच अपने लिए जगह बनाते हुए अपने लंड को उसकी बुर में डाल दिया और जोर-जोर से चोदना शुरू कर दिए इस कल्पना को करते हुए मंजू कपड़े धोना भुल गई और इस कल्पना में इस कदर खोई की उसकी बुर से पानी निकल गया
 
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रविकुमार बैलगाड़ी को हांक कर सीधे रेलवे स्टेशन पर ही खड़ा हुआ,,,बेल गाड़ी पर बैठ कर आया था लेकिन फिर भी उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि वह इस कदर अपनी बहन की मस्ताई चुचियों को प्यासी नजरों से देख रहा था,,,,रविकुमार अपने मन में सोच कर हैरान हो रहा था कि यह उसे क्या हो रहा है उसके अंदर अपनी बहन को देखकर बदलाव क्यों आ रहा है जबकि वह अपनी बहन को जान से भी ज्यादा मानता था उसके बारे में कभी भी गंदे विचार उसके मन में नहीं आए थे लेकिन कुछ दिनों से हालात कुछ और ही बयां कर रहे थे उसके ना चाहते हुए भी अनजाने में ही उसकी आंखों के सामने ऐसे तेरे से नजर आ जा रहे थे कि लाख मनाने के बावजूद भी उसका मन बहक जा रहा था,,,, ऐसा उसके साथ कभी भी नहीं हुआ था रविकुमार स्टेशन के बाहर बैलगाड़ी पर बैठे-बैठे उस दिन की घटना से अब तक के उस दृश्य को याद करने लगा जो अचानक ही उसकी आंखों के सामने आए थे और उन पर उसको देखना उसके जेहन में उसके दिलो-दिमाग पर अपनी बहन के बारे में ही गंदे विचार आने लगे थे,,,,,,रविकुमार के दिमाग में पहली बार की घटना याद आ रही थी जब वह खटिया पर बैठकर दातुन कर रहा था और उसकी आंखों के सामने उसकी बहन मंजू घर की सफाई करते हुए झाड़ू मार रही थी,,, झाड़ू मारने की वजह से वह झुकी हुई थी जिसकी वजह से उसकी गोलाकार गांड उभर कर रविकुमार की आंखों के सामने अपने आप ही प्रदर्शित हो रही थी जिसे देख कर रविकुमार की धोती में खलबली मच गई थी,,, रविकुमार के लिए वह पहला मौका था जब वह अपनी बहन को दूसरी नजरों से देख कर उत्तेजित हो रहा था अपने जनपद में में उत्तेजना महसूस किया था किसी भी तरह से अपने आप को रविकुमार ने संभाल लिया था और आगे ना बढ़ने का अपने आप से ही वादा किया था अपनी इस हरकत पर उसे खुद भी गुस्सा आया था,,,, दूसरी मर्तबा घर के पीछे बेल को बांधते हुए अनजाने में ही उसकी बहन उसकी आंखों के सामने आ गई थी,,,उस समय रविकुमार को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें क्योंकि उसकी आंखों के सामने ही उसकी बहन अपनी सलवार की डोरी खोलने लगी थी उसकी पीठ रविकुमार की तरफ थी लेकिन उसकी बहन नहीं जानती थी कि उसकी पीठ पीछे उसका भाई का है रविकुमार अजीब सी कशमकश महसूस कर रहा था और देखते ही देखते उसकी पहन अपनी सलवार की डोरी खोल कर के पेशाब करने के लिए बैठ गई अपने आपको लाख संभालने के बावजूद भी रविकुमार अपनी बहन की नंगी काम को देखने की लालच को रोक नहीं पाया था और उसे प्यासी आंखों से देख रहा था,,,, उसने रविकुमार के मन में क्या चल रहा था उससे रविकुमार पूरी तरह से वाकिफ था,,,,, और रविकुमार अपने मन पर काबू नहीं कर पाया था और अभी-अभी पानी में भीगी हुई अपनी बहन की कुर्ती में से झांक रही उसकी दोनों मंजू चुचियों को देखकर रविकुमार का मन पूरी तरह से लोटपोट हो चुका था,,, वह पूरी तरह से अपनी बहन की चूचीयो की तरफ आकर्षित हो गया था,,,,,,, जैसे ही अपनी बहन की चुचियों के आकर्षण के मंत्रमुग्ध माया में से बाहर निकला वह पूरी तरह से हड़बड़ा गया था और बैलगाड़ी को सीधा हांक कर रेलवे स्टेशन पर खड़ा हुआ था,,,, उन सब वाक्ए के बारे में सोच कर इस समय रविकुमार के दिल की धड़कन बढ़ गई थी और उसकी धोती में पूरी तरह से बवंडर उठ रहा था,,,, कि तभी उसका दोस्त उसका हाथ पकड़कर झकझोरते हुए बोला,,,।


अरे कहां खोया है ट्रेन आ चुकी है जल्दी चल वरना सवारी हाथ से निकल जाएगी,,,,।
(अपने दोस्त की बात सुनते ही जैसे वह नींद से जागा हो एकदम से हड़बड़ा गया,,,)


सो रहा था क्या भाभी लगता है रात भर सोने नहीं देती,,,,


अरे नहीं यार ऐसे ही चल जल्दी चल,,,
(और इतना कहने के साथ ही रविकुमार बैलगाड़ी से नीचे उतरा और सीधे रेलवे स्टेशन की तरफ दौड़ लगा दिया)




कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए,,,,,, सुरज के मन में अपनी मौसी की बुर देखने की चाहत बढ़ने लगी थी,,, इसलिए वह सुबह जल्दी जागने की कोशिश करता था लेकिन ऐसा हो नहीं पाता था और मंजू भी लोक लाज के डर से मन होते हुए भी सलवार पहनकर सोती थी,,,,,,, उस समय तो हालात को देखते हुए और शर्म के मारे मंजू यही सोचकर संतुष्ट थी कि सुरज ने उसकी नंगी बुर को देखा नहीं था लेकिन अब जैसे-जैसे उसकी बुर की प्यास बुर की गर्मी बढ़ती जा रही थी वैसे वैसे अपने मन में यही सोच रही थी कि काश सुरज उसकी बुर को देख लिया होता तो शायद उसके मन और तन की प्यास बुझने का कोई तरीका निकाल आता,,,, लेकिन उसी तरह से अपनी बुर दिखाने की हिम्मत उसकी नहीं हो रही थी,,, उसके मन में इस बात का डर बराबर बना हुआ था कि अगर वहां कैसे सलवार उतार कर सोएगी और सुरज उसे उस हाल में देख लेगा तो कहीं ऐसा ना हो कि वह भाभी से बता दे कि वह बिना सलवार पहने सोती है तब क्या होगा क्योंकि वह सुरज की नादानियत को अच्छी तरह से जानती थी,,,, भले ही वह शरीर से लंबा तंबा हो गया था लेकिन औरतों के मामले में उसका दिमाग ज्यादा नहीं चलता था,,,, अगर वह भी दूसरे लड़कों की तरह होता तो शायद ही खूबसूरत लड़कि के साथ एक ही खटिया पर सोने की वजह से वह अब तक उसके अंगो से छेड़खानी जरूर किया होता,,, और उसे चोदने का अपनी तरफ से पूरा प्रयास किया था लेकिन ऐसा आज तक नहीं हुआ था कि जाने अनजाने में ही वह उसके अंगों को स्पर्श किया हो इसलिए मंजू को डर लगता था बिना सलवार पहने सोने में,,,,,, हालांकि वह रोज अपने भैया और भाभी की चुदाई देखकर पूरी तरह से मस्त हो जाती थी उसकी आदत सी पड़ गई थी अपनी बुर मे उंगली करके सोने की,,,, ऐसे ही एक रात को सुरज की नींद खुल गई उसने जोरों की प्यास लगी थी ,,,, वह नींद से उठकर खटिया पर बैठ गया,,, तो देखा कि उसकी मौसी खटीए पर ना होकर दीवार के पास खड़ी होकर कुछ देख रही थी सुरज को कुछ समझ में नहीं आया वह अभी भी नींद में ही था बस प्यास लगने की वजह से जाग गया था,,,,,, वह अपनी मौसी की तरफ देखते हुए बोला,,,

मौसी मुझे प्यास लगी है,,, तुम वहां क्या कर रही हो,,,?
(सुरज की आवाज सुनते ही मंजू एकदम से चौक गई क्योंकि कमरे में लालटेन चल रही थी पूरे कमरे में लालटेन की रोशनी और उस समय मंजू दूसरे कमरे में अपने भैया भाभी की गरमा गरम चुदाई को देखकर सलवार के ऊपर से अपनी बुर को मसल रही थी,,, सुरज की आवाज कानों में पडते ही वह झट से अपने हाथ को पीछे की तरफ खींच ली,,,,सारा मजा किरकिरा हो गया था क्योंकि अंदर मंजू का भाई अपने लंड को उसकी भाभी की बुर में डालने ही वाला था,,,)

ककककक,,, क्या हुआ,,,?(एकदम से सुरज की तरफ देखते हुए हक लाते हुए बोली)


मुझे प्यास लगी है मौसी,,,


रुक तुझे पानी दे रही हुं,,,(इतना कहकर वह तुरंत कमरे में ही कोने पर रखे हुए मटके में से गिलास भर कर पानी निकाल कर सुरज को थमाते हुए बोली,,,)

ले पी ले,,,, रात रात को जाग कर पानी पीता है,,,
(सुरज पानी का गिलास लेकर पानी पीने लगा मंजू की हालत खराब हो रही थी उत्तेजना के मारे उसकी बुर से पानी निकल रहा था,, वह अपना कुर्ता खोलकर बुर में उंगली डालने की तैयारी में थी कि तभी उसकी आवाज आ गई थी इसलिए उसके सारे मजे पर पानी फिर गया था,,, मंजू मन ही मन में सुरज पर गुस्सा कर रही थी,,, सुरज पानी पीकर ग्लास को अपनी मौसी को थमाते हुए बोला,,)

लो मौसी रख दो,,,,(मंजू गिलास थामकर उसे वापस मटके के पास रख दी और खड़ी हो गई उसे लगा कि सुरज अभी सो जाएगा लेकिन सुरज मौसी की तरफ देखते हूए बोला)

दीवाल के अंदर क्या देख रही थी मौसी,,,?
(सुरज के इस सवाल पर मंजू एकदम से झेंप गई और हकलाहट भरे स्वर में बोली)

ककककक,,, कुछ तो नहीं वो क्या है ना कि छिपकली आ गई थी इसलिए मैं उसे भगा रही थी और वह दीवाल में चली गई,,,


ओहहहह ,,,,,,, अच्छा हुआ मौसी तुम छिपकली को भगा दी मुझे छिपकली से डर लगता है,,,, अब आओ जल्दी से सो जाओ,,

तू सो जा मुझे नींद नहीं आ रही है,,,

मुझे भी नहीं आ रही है मौसी,,,,
(सुरज की बात सुनकर मंजू को और ज्यादा गुस्सा आने लगा लेकिन कर भी क्या सकती थी वह जानते थे कि उसके जागते हैं वह अंदर के दृश्य को नहीं देख पाएगी,,, इसलिए ना चाहते हुए भी उसे सोना पड़ा,,, थोड़ी ही देर में दोनों को नींद आ गई,,,)





दूसरी तरफ सुधियां काकी जानबूझकर सुरज को अपना अंग दिखाने की कोशिश करते हुए जिस तरह की उत्तेजना का अनुभव की थी उससे वह पूरी तरह से मस्त हो चुकी थी,,, दो बहू की सास हो जाने के बावजूद भी इस उम्र में सुधियां काकी की उत्तेजना बरकरार थी,,,, इसीलिए तो वहां मन ही मन में अपने आपको सुरज को समर्पित करने की ठान ली थी क्योंकि वह जानती थी जवान लंड को अपनी बुर में लेने से अत्यधिक आनंद आएगा,,,,,, सुधियां काकी पूरी तरह से तैयार थी लेकिन उसे कोई मौका नहीं मिल रहा था,,,,,,
ऐसे ही एक दिन वह अपने घर पर बैठी हुई थी उनकी बहू खाना बना रही थी सुधियां काकी को भूख लगी थी खाना बनने में थोड़ी देर थी उसी समय सुरज अपने मन में एक आस लेकर कि आज के कुछ देखने को मिल जाएगा इसलिए वह सुधियां काकी के घर पर आया,,, तो दरवाजे पर खड़ा होकर दरवाजे पर दस्तक देते हुए बोला,,,।


काकी घर पर हो कि नहीं,,,,
(सुरज की आवाज कानों में पड़ते ही सुधियां काकी का तन बदन में आनंद की लहर दौड़ में लगी लेकिन अपनी बहू की मौजूदगी में उन्हें खुशी नहीं हुई लेकिन फिर भी सुरज की आवाज सुनते ही वह बोली,,,)


हां घर पर ही हूं आ जा,,,,

(सुधियां काकी की आवाज सुनते ही सुरज दरवाजे को थोड़ा धक्का दिया तो दरवाजे अपने आप ही खुल गया और अंदर कदम रखते ही व सुधियां काकी को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और खाना बना रही उनकी बहू को भी नमस्ते भाभी बोल कर उनका अभिवादन किया,,,, सुरज को एक बार फिर से अपनी आंखों के सामने खड़ा देखकर सुधियां काकी की बहू नीलम उसे एकटक देखने लगी नीलम को सुरज अच्छा लगने लगा था उसका भोलापन उसे भा गया था,,,)

आ बैठ,,,,,(सुधियां काकी खटिया पर बैठने का इशारा करते हुए बोली,,,,,,, लेकिन सुरज सुधियां काकी को खटिया पर बैठा हुआ देखकर और उसकी बहू उपस्थिति को देखते हुए उसका मन उदास हो गया उसे ऐसा था कि आज भी सुधियां काकी नहा रही हो तो मजा आ जाए,,, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था इसलिए सुधियां काकी की बात सुनते ही वो बोला,,)


नहीं नहीं काकी बैठने में नहीं आया हूं बस यहां से गुजर रहा था तो सोचा आप से मिलता चलु,,,।



ठीक कीया सुरज,,, जो तु मिलने आ गया,,, तू अच्छा लड़का है,,,,,
(सुधियां काकी की ऐसी बात सुनकर सुरज मन ही मन प्रसन्न हो गया और मुस्कुराते हुए बोला,,,,)




ठीक है काकी मे चलता हूं खेतों में थोड़ा काम है,,,,,,,
(इतना कहकर वह जैसे ही चलने को हुआ तुरंत सुधियां काकी बोली,,,)

अरे रुक मैं भी चलती हूं मुझे भी खेतों में थोड़ा काम है,,,,
(इतना कहकर सुधियां काकी खटिया पर से खड़ी हो गई तो उनकी बहू नीलम बोली,,)


अरे मा जी खाना तो खाते जाइए बस थोड़ी देर रह गई, है,,..
(लेकिन अपनी बहु की बात अनसुनी करते हुए सुधियां काकी उसके पीछे पीछे चल दी,,, सुधियां काकी की बहू को लगा कि शायद खाना मैं देर हो जाने के कारण हमपर गुस्सा कर चली गई है इसलिए वह जल्दी जल्दी बनाने लगी,,, सुधियां काकी को अपने पास आता देखकर सुरज को अंदर ही अंदर खुशी हो रही थी,,,क्योंकि नहाते समय जिस तरह से सुधियां काकी अपनी अंगो का प्रदर्शन की थी उसे देखकर सुरज के तन बदन में उत्तेजना की लहरों में लगी थी और उसी अंगप्रदर्शन की लालच की वजह से ही सुरज सुधियां काकी के पास दोबारा आया था वरना सुधियां काकी के पास भटकने की उसकी हिम्मत नहीं होती थी,,,। और यह हकीकत ही था कि,,, सुधियां काकी के अंगों को देखकर ही उसके बारे में पता चला था और रही सही कसर सुरज ने अपनी मौसी की बुर देखकर पूरी कर ली थी,,,
 
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सुरज को ऐसे तो कोई भी काम नहीं था बस वह एक बहाना बनाया था सुधियां काकी से मिलने के लिए,,,, और उसका यह बहाना कामयाब भी हो चुका,,,,एक औरत से इस तरह से मिलने कि सुरज में बिल्कुल भी हिम्मत नहीं होती थी,,, लेकिन जब से वहां सुधियां काकी के अंगों को अपनी जवान और उत्सुक आंखों से टटोला था और अपनी खूबसूरत बुआ की बुर के दर्शन किया था तब से औरतों के अंगों को ऐसी नजरों से देखने में उसे अधिक आनंद की अनुभूति होती थी और इसी आनंद की अनुभूति के लिए बहाना बनाकर सुधियां काकी से मिलने आया था,,,,,, और सुधियां काकी भीकहां संस्कारी होना थी वह तो खुद सुरज को अपने अंगों को बड़ी अच्छे से दिखाना चाहती थी,,,,, और वही सुधियां काकी के अंगो का जादू ही था जो वो खुद बहाना बना कर उससे मिलने के लिए आया था,,,,,



मुझे भी थोड़ा कोई तो मैं काम है सोच रही हूं तु साथ रहेगा तो जल्दी से हो जाएगा,,, तू साथ देगा ना मेरा,,,,


हां काकी क्यों नहीं तुम्हारा साथ में बराबर दूंगा,,,,


तू बहुत अच्छा लड़का है गांव में सबसे अच्छा लड़का तु ही है और तुझे ही मैं अच्छा मानती हूं,,,, बाकी सारे लड़के तो आवारा है,,,,(ऐसा कहते हुए सुधियां काकी सुरज के बराबर चलने लगी थी,,,,)

नहीं काकी ये तो आपका बड़प्पन है,,,, वरना मैं भी दूसरों की तरह ही हूं,,,


नहीं नहीं तु दूसरों की तरह नहीं तु सबसे अलग है,,,( ऐसा कहते हुए सुधियां काकी कदमों को जल्दी से आकर बढ़ाने लगी क्योंकि वह सुरज से आगे चलना चाहती थी क्योंकि अब खेत शुरू हो रहा था और पगडंडी काफी संकरी थी जिसपे एक साथ दो लोग नहीं चल सकते थे १ को आगे तो दूसरे को पीछे चलना पडता था और इसीलिए सुधियां काकी सुरज से आगे चलना चाहती थी ताकि वह अपनी बड़ी-बड़ी गांड को उसकी आंखों के सामने मटका सके जिसे देखकर सुरज के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगे,,,, और सुधियां काकी सुरज से एक कदम आगे पहुंच चुकी थी,,, और शायद सुरज भी मन में यही चाहता था,,, क्योंकि सुधियां काकी को अपनी आंखों के सामने अपनी गांड मटका कर चलती हुए देखकर सुरज के तन बदन में हलचल सी होने लगी क्योंकि सुधियां काकी की गांड चलते ही बड़े मादक तरीके से हील रहीं थी,,, (सुधियां काकी अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,)



इसीलिए तो मैं तुझे पसंद करती हूं और दूसरे लड़के को हमेशा डांटती रहती हूं,,, लेकिन तू ही है कि मुझसे भागता रहता है,,,, पता नहीं आज कैसे मुझसे मिलने के लिए आ गया,,,,(सुधियां काकी आगे चलते हुए पीछे नजर घुमाकर सुरज की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोली,,,,सुधियां काकी को मुस्कुराता हुआ देखकर सुरज के तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी,,,. और वह बोला)


ऐसा नहीं है मैं हमेशा से आपकी इज्जत करता हूं उस दिन आपके घर में ले आया था ना इसलिए सोचा कि फिर से आपसे मिलने चलु,,,
(सुरज की बातें सुनकर सुधियां काकी समझ गई थी कि वह किस उद्देश्य से उसके घर पर मिलने के लिए आया था उस दिन जिस तरह का दृश्य उसने सुरज को दिखाकर आकर्षण कराया था वही देखने के लिए और यह बात का आभास होते ही सुधियां काकी के तन बदन में भी हलचल सी होने लगी,,,,,, सुरज की बातें सुनकर सुधियां काकी मन ही मन में खुश हो रही थी खेत शुरू हो चुका था,,,सुरज की नजर सुधियां काकी की बड़ी बड़ी गांड के ऊपर टिकी हुई थी जिसकी थिरकन को देखकर उसका मन डोल रहा था,,, सुधियां काकी के नितंबों के ऊपर की गहरी खाई बेहद आकर्षक नजर आ रही थी,,, सुधियां काकी का बदन गोरा था,,, और इस उम्र में भी बेहद मादकता से भरी हुई खूबसूरत लग रही थी इस उम्र में औरत का आकर्षण इतना अत्यधिक नहीं होता है,, लेकिन सुधियां काकी की बात कुछ और ही थी,,,,,,आगे आगे चलती हुई अपनी गांड मत खा कर सपने अंगो का प्रदर्शन करते हुए सुधियां काकी को देखकर बार-बार सुरज के मन में वही दृश्य बार-बार नजर आ रहा था काकी के घर पर पहुंचने पर सुधियां काकी नहा रही थी और पेटीकोट को इधर-उधर करके अपने नितंबों का प्रदर्शन कर रही थी,,,,,, उन दृश्यों को याद करके सुरज के तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी औरतों के प्रति इस तरह का आकर्षण सुरज को पहले कभी नहीं हुआ था लेकिन उसके हावभाव बदलने लगे थे भले ही सुधियां काकी तो खूबसूरत साड़ी के अंदर था लेकिन फिर भी साड़ी के ऊपर से उसके बदन के कटाव का नाप लेकर मस्त हो रहा था,,,,,,, एक तरह से सुधियां काकी के पीछे चलने में सुरज का ही फायदा था,,, सुधियां काकी उससे ३ फीट की दूरी पर आगे आगे चल रही थी और इतनी दूरी पर पहली बार सुरज किसी औरत के बदन को निहार रहा था,,,।




और सुधियां थी कि अपने बदन की चाल को बेहद मादक बना रही थी वह जानती थी कि ,,, ऊंची नीची टेंढी मेढी पगडंडियों से चलते हुए उसकी कमर बलखा जा रही है जिसकी वजह से उसकी भारी-भरकम गांड की लचक कुछ ज्यादा ही मचक दे रही है,,,,,,। सुधियां काकी आगे आगे चलते हुए अपने मन में ही कहीं युक्तियों को जन्म दे रही थी कि किस तरह से वह सुरज के सामने अपने अंग का प्रदर्शन करें जिसकी वजह से सुरज पूरी तरह से उत्तेजना होकर उसके साथ संभोग सुख प्राप्त करें और उसे इस उम्र में भी जवानी का मजा चखा दे,,, और इस बात को भी वह भी जानती थी कि सुरज पूरी तरह से औरतों के साथ खेले जाने वाले खेल में अनाड़ी है उसे धीरे-धीरे सिखाना भी पड़ेगा,,,, लेकिन एक शिक्षिका के भांती संभोग के बाराखडी में कमजोर अपने विद्यार्थी को संभोग का संपूर्ण अध्ययन कराने के लिए वह बेहद उत्सुक थी,,,,,,, और गुरु दक्षिणा के रूप में वह सुरज से संपूर्ण संतुष्टि चाहती थी,,,



देखते ही देखते दोनों घने खेतों के बीच पहुंच चुके थे,,,,,, खेतों के बीच पहुंचते ही सुधियां काकी बेहद उत्सुकता दिखाते हुए सुरज की तरफ घूम गई और उससे बोली,,,,।




सुरज हमें यह हरी हरी घास जो दिख रही है ना इन्हें उखाड़ कर एक तरफ रखना है ताकि यह जगह एकदम साफ हो जाए और हम इस पर अनाज लगा सके,,,,,,
(लेकिन शायद सुधियां काकी की बात कर सुरज का ध्यान नहीं गया वह एकदम सन्न होकर एकटक सुधियां काकी की विशाल छातियों की तरफ देख रहा था,,,और देखता भी क्यों नहीं आखिरकार उसकी आंखों के सामने सुधियां काकी की छातियों का नजारा है कुछ अद्भुत और आकर्षक था सुधियां काकी सुरज के आगे आगे चलते हुए मन में युक्ति सोचते हुए वह जानबूझकर अपने ब्लाउज के ऊपर के २ बटन को खोल दी थी ताकि उनमें से उसकी चुचियों का अधिकांश भाग सुरज को दिखाई दे और ऐसा ही हो रहा था,,, सुधियां काकी की मदमस्त कर देने वाली चुचीयां आधे से ज्यादा बाहर को झलक रही थी ऐसा लग रहा था कि सुधियां काकी के ब्लाउज बड़े-बड़े दशहरी आम रखे हुए हैं और वह पक कर बाहर आने के लिए मचल रहे हैं,,,, सुरज की तो सांसे उपर नीचे हो रही थी चूचियों के निप्पल तो नहीं लेकिन निप्पल के इर्द-गिर्द भूरे रंग का घेराव साफ नजर आ रहा था,,,, सुरज की सांसे ऊपर नीचे हो रही थी,,,, उसके दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी सुधियां काकी मन में युक्ति सोचकर जिस तरह का प्रहार सुरज के ऊपर की थी उससे वह खड़े खड़े ढेर हो चुका था क्योंकि खेतों में काम करने के बारे में जिस तरह का निर्देश सुधियां काकी बता रही थी उस पर सुरज का बिल्कुल भी ध्यान नहीं था और सुरज अपनी फटी आंखों से सुधियां काकी की छातियों को बोल रहा था यह देखकर सुधियां काकी के तन बदन में भी अजीब सी हलचल हो रही थी,,,। सुधियां काकी को अपनी युक्ति कामयाब होती नजर आ रही थी,,,। सुरज के मुंह से एक भी शब्द नहीं फुट रहे थे,,,, सुधियां काकी ही उसका ध्यान भंग करते हुए बोली,,,)


कहां खो गया मैं तुझसे कुछ कह रही हूं,,,,,
(सुधियां काकी की आवाज कान में पडते ही जैसे वह होश में आया हो इस तरह से हड़बड़ा गया,,,)

ककककक,, क्या करना है काकी,,,,




अरे मैं कह रही हूं कि खेतों में से घास उखाड़ कर एक बगल में रखना है,,,,


ठीक है काकी,,,,(और इतना कहने के साथ ही वह नीचे झुककर हरी हरी घास दोनों हाथों से उखाड़ना शुरू कर दिया,,, सुधियां काकी वहीं पास में खड़ी मुस्कुरा रही थी वह जानती थी कि उसकी युक्ती पूरी तरह से काम कर रही थी,,,,,,, उसके मन में अभी भी कुछ और युक्ति चल रही थी वह ठीक उसके सामने खड़ी हो गई और नीचे झुककर घास उखाड़ने को हुई ही थी कि,,,आधे से ज्यादा बाहर झांक रही उसकी दोनों चूचियां गप्प से ब्लाउज से बाहर निकलकर दशहरी आम की तरह झूलने लगी,,,,,,,सुधियां काकी अच्छी तरह से जानती थी कि उसके इस तरह से झुक जाने की वजह से उसकी भारी-भरकम खरबूजे जैसी चूचियां ब्लाउज में ठहर नहीं पाएंगी और लचक कर लटक जाएंगी,,, जैसे ही उसकी दोनों चूचियां पके हुए आम की तरह ब्लाउज में से बाहर झूल गई वैसे ही उसके मुंह से आह निकल गई,,,,)




आहहहहहह,,, यह क्या हो गया,,,,(सुधियां काकी यह सब तो जानबूझकर बोल रही थी ताकि वह सुरज का ध्यान अपनी और कर सके क्योंकि वह जानती थी कि वह नजर मिला पाने में शर्म महसूस कर रहा था सुधियां काकी के चुचियों को देखते ही सुरज आश्चर्य से उसकी तरफ देखने लगा तो उसकी रही है सही ताकत भी एकदम क्षीण हो गई,,,, उसकी आंखों के सामने सुधियां काकी की दोनों खरबूजा जैसी चूचियां उसकी छाती पर लटक रही थी मानो के जैसे कोई पपिया का फल पपिया के पेड़ पर झूल रहा हो,,, उत्तेजना के मारे सुरज का गला सूखने लगा वह नीचे झुका हुआ ही सुधियां काकी की मदमस्त कर देने वाली चुचीयों को देख रहा था,,, जिंदगी में पहली बार सुरज किसी नंगी चूची को देख रहा था,,,, इसके लिए उसकी सांसे ऊपर नीचे हो चली सुधियां काकी जानती थी कि सुरज की उत्तेजना को बढ़ाने के लिए इतना काफी था इसलिए,,, वह अपनी दोनों चुचियों को मादक अंदाज में अपने दोनों हाथेली में पकड़कर उठाते हुए खुद भी खड़ी होते हुए बोली,,,)
सुधियां काकी की बड़ी बड़ी चूची हो तो देख कर सुरज का मन कर रहा था कि वह खुद सुधियां काकी के ब्लाउज के बटन को खोले,,,,



अरे दैया यह तो बाहर निकल गई,,,, बड़ी बेशर्म है किसी का भी लिहाज नहीं करती,,,(सुधियां काकी मुस्कुराते हुए बोली और अपनी दोनों चुचियों को बारी-बारी से अपने हाथ से पकड़ कर ब्लाउज में ठुसने लगी,,,, सुरज के लिए उसके कोमल उम्र की तुलना में यह दृश्य असहनीय था,,, सुधियां काकी अपनी कामुक हरकत की वजह से ही सुरज के तन बदन पर अपनी कामुकता का वार पर वार कर रही थी,, और सुरज के लिए सुधियां काकी का हर एक वार घातक सिद्ध हो रहा था सुरज की उमंग मारती जवानी और ज्यादा मचल उठ रही थी,,,,,, सुधियां काकी जानबूझकर अपनी चूचियां को जोर जोर से दबाते हुए और सुरज को दिखाते हुए अपने ब्लाउज मे भर रही थी वह जानती थी कि ऐसा करके वह सुरज के तन बदन में आग लगा रही है और यही तो वह चाहती ही थी सुधियां काकी की हरकत को देखकर सुरज जोकि इस खेल में बिल्कुल भी अनजान था वह अपने मन में सोचने लगा कि कास सुधियां काकी की चूचियां उसके हाथ में होती तो कितना मजा आ जाता ,,,,
सुधियां काकी की कामुक हरकत को देखकर सुरज का मन सुधियां काकी की चूचियों को दबाने का कर रहा था,,



सुरज की आंखों के सामने ही सुधियां काकी अपनी चुचियों को बारी-बारी से अपने ब्लाउज में भरकर बटन बंद कर ली इस बार केवल एक ही बटन खुला रखी क्योंकि वो जानती थी कि अगर दोनों बटन खुला रखी थी तो फिर से दोनों बाहर निकल आएगी और जितना वह सुरज को दिखा चुकी थी उतना काफी था सुरज के पजामे में उसके समझ के परे ही तंबू बन चुका था जिस पर सुधियां काकी की नजर पड़ चुकी थी और उस तंबू को देखकर सुधियां काकी की बुर गीली होने लगी थी,,, सुरज अपने सूखे गले को थूक निगल कर गिला करने की कोशिश करते हुए बोला,,,)


यह कैसे हो गया काकी,,,,


अरे बटन खुला था ना इसलिए,,,,(इतना कहते हुए सुधियां काकी अपनी साड़ी को थोड़ा ऊपर की तरफ उठाकर कमर में खुश ले जिससे उसकी साड़ी उसकी पिंडलियों तक उठ गई और उसकी चिकनी मोटी मांसल पिंडलिया साफ दीखने लगी,,,)


बटन बंद कर लेना चाहिए था ना काकी,,,,


कोई बात नहीं कहां किसी गैर ने देख लिया है तू ही तो देखा है,,,,(इतना कहकर सुधियां काकी मुस्कुराने लगी और सुधियां काकी की बात सुनकर सुरज के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ गई वह वापस नीचे झुक कर घास तोड़ने लगा,,,, और सुधियां काकी भी घास उखाड़ने लगी,,,, सुरज अपने मन में सोच रहा था कि सुधियां काकी के घर जो देखने को आया था लेकिन सुधियां काकी तो उससे भी ज्यादा दिखा दी सुरज अपने मन में सोचने लगा कि सुधियां काकी की चूचीया कितनी बड़ी बड़ी है,,, दबाने में बहुत बहुत मजा आएगा,,, इस तरह की बातों को सुरज पहली बार अपने मन में ला रहा था जिस पर उसका भी बस नहीं था,,,,,अपनी लटकती हुई चूचियों को दबा दबा कर अपने ब्लाउज में भरने की वजह से और सुरज को दिखाकर उकसाने की वजह से सुधियां काकी की भी हालत खराब हो रही थी,,,, सुधियां काकी के मन में उत्सुकता बढ़ती जा रही थी क्योंकि वह सुरज जैसे मर्दों की सबसे बड़ी कमजोरी अपनी बुर दिखाना चाहती थी क्योंकि वह जानती थी कि बुरे के लिए इंसान कुछ भी कर सकता है,,, लेकिन कैसे दिखाएं उसे समझ नहीं आ रहा था,,,,


कुछ देर ऐसे ही गुजर गए दोनों घास उखाड़ उखाड़ कर घास का ढेर लगा चुके थे सुरज के मन में वही दृश्य बार-बार घूम रहा था सुधियां काकी की चूचियों से उसके होश उड़ा चुकी थी,,,,, वह अपने मन में यही सब सोच रहा था कि तभी सुधियां काकी अपनी साड़ी पकड़कर जोर-जोर से उछलने लगी,,,


हाय ,,,, दैया काट ली रे,,,,हाय मैं मर गई बहुत जोर से काट रही है मुझे दर्द कर रहा है,,,(सुधियां काकी उछलते हुए अपने साडी को जोर-जोर से झटक रही थी,,, सुरज के समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है सुधियां काकी जोर-जोर से उछल रहे थे मानो कि जैसे उनकी साड़ी में बिच्छू घुस गया हो,,,)


क्या हुआ काकी क्या हुआ क्या काट लिया,,,,,


अरे लगता है चींटी काट लई बहुत जोर से दर्द कर रहा है,,,,


चींटी लाल वाली चींटी तब तो काकी सूजन आ जाएगी,,,, जल्दी से उसे दूर करो नहीं तो और ज्यादा काट लेगी,,,,
(सुरज को लग रहा था कि सही में सुधियां काकी को चींटी काट रही है वह यह नहीं जानता था कि सुधियां काकी बस एक बहाना कर रही थी उसे अपनी बुर दिखाने के लिए,,,,)


आहहहहह,,,ऊईईईई , मां,,,,,,,,,,आहहहहहहह,,,,,दैया रे,,,,
(ऐसा कहते हुए सुधियां काकी जानबूझकर साड़ी के ऊपर से ही अपनी बुर वाली जगह को हथेली में भरकर दबाने लगी,,,,)

आहहहहहह ,,,, बहुत दर्द कर रहा है,,,,, मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है सुरज ,,,,,

(सुधियां काकी का दर्द सुरज से देखा नहीं जा रहा था जो कि बनावटी दर्द था,,,, वह इस बात से अनजान था कि सुधियां काकी सिर्फ और सिर्फ नाटक कर रही है,,,,,लेकिन उसका ध्यान बार-बार सुधियां काकी के उछलने की वजह से उसकी बड़ी बड़ी चूची पर था क्योंकि चूचियां बड़े गेंद की तरह ब्लाउज में उछल रहा था,,, सुधियां काकी की उछलती हुई चुचियों को देख कर सुरज का लंड अकड रहा था,,,,, उस नजारे पर वह पूरी तरह से मर मिटा था,,,,, तेज चलती सांसों के साथ,,,,, अपना काकी का उछलना देख रहा था,,,, सुधियां काकी इंतजार में कि कि सुरज कुछ करें या कुछ बोले तभी सुरज बोला,,,)

काकी को झाड़ी के पीछे जाकर चींटी निकाल दो नहीं तो ज्यादा दिक्कत हो जाएगी,,,,,
(सुरज की इस बात पर सुधियां काकी को मन ही मन बहुत गुस्सा आया वह अपने मन में यही सोच रही थी कि अगर सुरज की जगह दूसरा कोई लड़का होता तो इस मौके का जरूर फायदा उठाता हूं और खुद ही उसकी साड़ी उठाकर चींटी निकालने के बहाने उसकी बुर को प्यासी नजरों से देख कर उससे छेड़खानी करता,,, लेकिन सुरज बेवकूफ का बेवकूफ ही है,,, लेकिन सुधियां काकी इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं थी इसीलिए वह उसी तरह से उछलते हुए बोली,,,,)


नहीं सुरज मुझसे नहीं हो पाएगा तु ही कुछ कर,,,, मुझे तो लग रहा है कि चींटी अंदर घुसश रही है,,,,


अंदर ,,,,,,अंदर कहां काकी,,,?(सुरज आश्चर्य जताते हुए बोला,,,)


अरे तू ही क्यों नहीं देख लेता,,,,(सुधियां जान बुझकर दर्द दायक चेहरा बनाते हुए बोली,,,)


ममममम,,,, में,,,, मैं कैसे काकी,,,,(सुरज एकदम हैरान होते हुए बोला,,,)


हां तु,,, देख कर निकाल दे वरना यह चींटी ना जाने कहां कहां काटेंगी,,,,

(सुधियां काकी की बातें सुनकर सुरज का दिल जोरो से धड़कने लगा क्योंकि सुधियां काकी जी जिस बारे में बात कर रही थी इस तरह की उम्मीद सुरज को कभी भी नहीं थी इसलिए वह हैरान था,,,,, पर आश्चर्य से सुधियां काकी के चेहरे की तरफ और उसकी उछलती हुई चुचियों की तरफ देखे जा रहा था,,,।)
 
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सुधियां काकी की हालत को देखकर सुरज को लग रहा था कि सुधियां काकी को बहुत दर्द कर रहा है और वैसे भी चींटी के काटने के दर्द से वह अनजान नहीं था वह अच्छे से जानता था कि जिस जगह पर चींटी काटती है तो थोड़ा उस जगह जलन भी करती है और सूज भी जाती है,,,। इसलिए सुरज को भी चिंता हो रही थी,,,, सुरज के मन में दो भाव पैदा हो रहे थे एक तो उसे सुधियां काकी की चिंता भी हो रही थी और उसके इस तरह से उछल कूद में जाने की वजह से जिस तरह से उसकी खरबूजे जैसी चूचियां ब्लाउज में गदर मचा रही थी उसे देखकर उसे उत्तेजना भी महसूस हो रही थी और तो सुधियां काकी जब खुद बात बोल दी कि तु ही चींटी निकाल दे तो इस बात से सुरज एकदम उत्तेजना से भर गया,,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें,,, वह बस एक टक सुधियां काकी को देखे जा रहा था,,,,। उसे इस तरह से आश्चर्य से देखते हुए सुधियां काकी बोली,,,।


ऐसे क्या देख रहा है तू ही निकाल दे,,,,


ममममम,,, में,,, कैसे काकी,,,,




अरे क्यों नहीं,,,? , तु निकाल सकता है,,,, देख सुरज मेरी जल्दी मदद कर बड़े जोरों से काट रही है,,,,,आहहहहह ,,,ऊईईईईई,, मां,,,,,(दर्द से आह भरते हुए सुधियां काकी साड़ी के ऊपर से ही जोर से अपनी बुर को हथेली में दबोच ली,,,, सुधियां काकी की इस हरकत पर सुरज पूरी तरह से मोहित हो गया,,,,,,, अपने अंदर वह अजीब सी हलचल तो महसूस कर रहा था उसके पजामे में पूरी तरह से तंबू तन चुका था,,, जिस पर सुरज का तो नहीं लेकिन सुधियां काकी का ध्यान बराबर बना हुआ था सुधियां काकी के तन बदन में सुरज के तंबू को देखकर सुरूर सा चढने लगा था,,, सुरज को इसी तरह से खड़ा देखकर सुधियां काकी अपने मन में सोची कि उसे ही कुछ करना होगा इसलिए वह,,, बोली,,)


सुरज,,, जल्दी कुछ कर,,,,,( और इतना कहने के साथ ही सुधियां काकी,,, एक झटके से अपनी साड़ी पकड़कर कमर तक उठा दी,,,,, पल भर के लिए भी अपनी इस हरकत को लेकर सुधियां काकी शर्मा महसूस नहीं की वो एकदम से बेशर्म बन चुकी थी वह जानती थी कि वह क्या कर रही है वह पूरी तरह से होशो हवास में थी,,,,साड़ी के अंदर उसे किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं थी उसे किसी चींटी ने नहीं काटी थी बस वह तो एक बहाने से मर्दों की सबसे बड़ी कमजोरी दिखाना चाहती थी इसे देखते हैं मर्दो पर मदहोशी छाने लगती है और वही मदहोशी वह सुरज के तन बदन में उसके चेहरे पर देखना चाहती थी,,,,सुधियां काकी एक झटके से अपनी साड़ी कमर तक उठाकर अपनी कमर को थोड़ा सा आगे की तरफ कर दी एक बेहद अद्भुत दुर्लभ और अतुल्य दृश्य सुरज की आंखों के सामने था उसकी आंखें फटी की फटी रह गई थी उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसकी आंखों के सामने कोई औरत इस तरह से हरकत करेगी और सुधियां काकी से उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी,,,,,,,



दोपहर का समय था दुर दुर तक कोई नजर नहीं आ रहा था,,, चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था सिर्फ पंछियों के कलरव की आवाज ही सुनाई दे रही थी,,, ऐसे में खेतों के बीच अद्भुत और कामुकता से भरा हुआ दृश्य अपनी कामुकता फैला रहा था,,,,,, सुरज की सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी सब कुछ उसकी आंखों के सामने था फिर भी उसे किसी सपने की तरह लग रहा था क्योंकि हकीकत की तो उसे उम्मीद भी नहीं थी,,,, सुधियां काकी की भी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी क्योंकि वह जिसके सामने अपनी साड़ी उठाकर खड़ी थी और उसके बेटे से भी कम उम्र का था और कभी सुधियां काकी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतनी कम उम्र के लड़के के सामने उसे इस तरह से साड़ी उठाकर अपनी वासना का प्रदर्शन करना होगा और वैसे भी बहुत पहले से ही वासनामई औरत थी,,,,,, गहरी सांस लेते हुए सुधियां काकी बोली,,,।


देख सुरज चीटियां नजर आ रही है कि नहीं,,,,! (सुधियां काकी को अच्छी तरह से मालूम था कि कोई चींटी वीटी नहीं थी फिर भी वह एक बहाने से सुरज को अपने पास बुलाना चाहती थी ताकी अपनी रसीली बुर कि उसे दर्शन करा सकें,,,सुधियां काकी की बात सुनते ही वह अपना एक कदम आगे बढ़ाया उसका दिल जोरों से धड़क रहा था,,, वह वहीं रुक कर सुधियां काकी की दोनों टांगों के बीच की स्थिति का जायजा लेने लगा,,, सुरज के तन बदन में आग लग रही थी,,,, वह वहीं खड़ा हो कर देख रहा था आगे बढ़ने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी तो सुधियां काकी फिर बोली,,,)

अरे दूर से क्या देख रहा है पास आकर देख,,,,
(सुधियां काकी की इस तरह की बातें सुरज के लिए खुला आमंत्रण थी लेकिन सुरज उसके आमंत्रण को उसके इशारे को समझ नहीं पा रहा था उसे ऐसा लग रहा था कि वाकई में सुधियां काकी से चीटियां देखने के लिए कह रही है,,,, सुधियां काकी की बात सुनकर और एक कदम और आगे बढ़ाया उसके और सुधियां काकी के बीच केवल अब १ फीट की दूरी का ही फासला रह गया था,,,, अद्भुत नजारा सुरज ने कभी सपने में भी नहीं देखा था सुरज के लिए यह नजारा मादकता का विस्फोट कि तरह था,,, किसी जवान औरत का इस तरह से साड़ी उठाकर अपनी बुर दिखाना शायद इतना उत्तेजक नहीं होता उनकी एक उम्र दराज औरत का इस तरह से अपनी साड़ी कमर तक उठाकर अपनी बुर का प्रदर्शन करना बेहद कामोत्तेजक और उन मादक था सुरज के तन बदन में उत्तेजना की लहर अपने चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी अगर उत्तेजना नापने का कोई साधन होता तो शायद इस समय उत्तेजना का कांटा पार कर गया होता,, जैसे ज्वर नापने का थर्मामीटर होता है,,,, इस तरह की उत्तेजना का अनुभव सुरज अपने तन बदन में कर रहा था सुधियां काकी की सांसे भी तेजी से चल रही थी क्योंकि उम्र के इस दौर में अब तक उसने इस तरह की हरकत कभी नहीं की थी हालांकि मर्दों के प्रति उसका आकर्षण हमेशा से बनाई रहता था लेकिन सुरज के उम्र के लड़के के साथ यह उसका पहला अनुभव था,,,,।


सुधियां काकी उसी तरह से साड़ी को कमर तक उठाएं अपनी बुर दिखा रही थी जिस पर झांटों का झुरमुट से बना हुआ था,,,, और घूंघराले बालों के झुरमुट में छुपी बुर को देखने की कोशिश सुरज बड़े जोड़-तोड़ से कर रहा था लेकिन घने बालों की वजह से सुधियां काकी की बुर उसे नजर नहीं आ रही थी,,,, सुरज बड़े गौर से सुधियां काकी की बुर वाली जगह पर देख रहा था कि तभी सुधियां काकी बोल पड़ी,,,,



आहहहहह सुरज,,, देखना कब से काट रही है मुझे परेशान की हुई है और तू दूर से बस देखे जा रहे हैं पास आकर देख जल्दी से इसे अपने हाथों से निकाल,,,,(सुधियां काकी उत्तेजना में और सुरज को मदहोश करने के उद्देश्य से ऐसा बोलते हुए अपनी हथेली को अपनी बुर पर रखकर उसे मसल दी,,,सुरज के लिए सुधियां काकी की हरकत उत्तेजना की पराकाष्ठा थी वह और ज्यादा नजदीक आ गया उसका खुद का मन कर रहा था कि वह अपने हाथों से सुधियां काकी की बुर को स्पर्श करें उसे छू ले लेकिन उसे डर लग रहा था,,,,,,, वो डरते हुए सुधियां काकी से बोला,,,)


अब क्या करूं काकी,,,,


अरे करना क्या है मेरी बुर पर देख झांट के बाल में देख,,, चिंटी विटी फसी हो तो जल्दी से निकाल,,,,(सुधियां काकी गहरी सांस लेते हुए बोली,,, सुरज अजीब सी उलझन में फंसा हुआ था जो कुछ भी सुधियां काकी कह रही थी वह सब उसे करने का बहुत मन कर रहा था लेकिन डर रहा था,,,, फिर भी डरते हुए बोला)


मैं करूं काकी,,,,


हां और कौन करेगा मैं ठीक से ढूंढ नहीं पाऊंगी,,,,



लेकिन कोई देख लेगा तो,,,( सुरज घबराते में चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए बोला,,,,सुरज की बातें सुनकर सुधियां काकी मन में ही मुस्कुराने लगी वह इस बात से ही संतुष्ट थी कि चलो सुरज को इतना तो पता है कि यह सब अकेले में सबसे छिपकर किया जाता है,,,)

तू डर मत यहां कोई नहीं आने वाला है और कोई देखने वाला भी नहीं है और वैसे भी तू कोई पराया थोड़ी है तो अच्छा लड़का है तुझे मैं अपना समझती हूं इसलिए मैं तुझे बोल रही हूं फिर जगह अगर कोई होता तो मैं उससे से थोड़ी बोलती,,,
(सुधियां काकी की बातें सुनकर सुरज को थोड़ी तसल्ली हुई वह,,, सूरज थोड़ा सा झुक गया था कि सुधियां काकी की बुर को अच्छे से देख सके,,,, झुकने पर सुरज को सुधियां काकी की बुर बड़े अच्छे से दिखाई दे रही थी अपना हाथ आगे बढ़ा कर सुधियां काकी के घुंघराले बालों पर रख दिया और उसके अंदर उंगली घुमाने लगा सुरज की यह हरकत सुधियां काकी के तन बदन में उत्तेजना की लहर को बढ़ावा दे रही थी,,,, सुरज तो सच में झाठो के झुरमुट के बीच में चीटियों को ढूंढ रहा था उसकी उंगली चारों तरफ घूम रही थी इस हरकत को अंजाम देने में सुरज को भी अत्यधिक आनंद की प्राप्ति हो रही थी उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी रह रह कर उसकी उंगलियां सुधियां काकी की बुर पर स्पर्श हो जा रही थी जिससे सुधियां काकी की उत्तेजना पर जा रही थी और सुरज की हालत खराब हो जा रही थी,,,, वह अपनी उंगली को झांटों में गोल गोल घुमा रहा था,,,, तो सुधियां काकी बोली,,,।


क्या हुआ मिला क्या,,,,?


नहीं काकी कुछ भी नजर नहीं आ रहा है,,, मुझे लगता है कि चींटी चली गई है,,,,(सुधियां काकी की तरफ देखते हुए सुरज बोला)


आहहहहह,,,, ऐसे कैसे चली गई है देख मुझे अभी भी काट रही है अच्छे से देख बालों को फैला फैलाकर देख,,,,।

(सुरज बड़े अच्छे से सुधियां काकी की बुर को देखना चाहता था जिंदगी में एक ही बार बुर के दर्शन किया था और वह भी अपनी मौसी मंजू की बुर के जो कि एक पतली दरार के रूप में थी और बेहद खूबसूरत नजार‌ आ रहीं थी उस पर हल्के हल्के ही बाल थे,,,, लेकिन सुधियां काकी की बुर पर तो बालों का जंगल उगा हुआ था मंजू की बुर देखने में सुरज को बिल्कुल भी दिक्कत नहीं हो रही थी लेकिन सुधियां काकी की बुर देखने में सुरज को दिक्कत महसूस हो रही थी लेकिन अब काकी की बात सुनते ही उसे उम्मीद की किरण नजर आने लगी और वह अपने हाथों की उंगलियों से सुधियां काकी की बुर के बाल को इधर-उधर फैलाते हुए उसकी बुर देखने की कोशिश करने लगा और ऐसा करने पर उसे सुधियां काकी की बुर उसकी गुलाबी पत्ती उसकी पतली दरार बड़े अच्छे से नजर आने लगी,,,,,सुधियां काकी की बुर देखने में उसे इस बात का एहसास हुआ था कि उसकी बाकि बुर मात्र एक पतली दरार के रूप में नजर आ रही थी और सुधियां काकी की बुक हल्की सी खुली हुई थी शायद यह उम्र की वजह से थी,,।


सुरज अपनी उंगली से बड़े अच्छे से बुरके ऊपर ईधर उधर घुमा कर चींटी को ढूंढ रहा था,,, लेकिन उसे चींटी कहीं भी नजर नहीं आ रही थी लेकिन ऐसा करने में उसे ऐसा सुख प्राप्त हो रहा था जिसके बारे में उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था सुधियां काकी की बुर से अनजाने में खेलते हुए उसकी दोनों टांगों के बीच लटकता खंजर में दर्द महसूस होने लगा था,,,, क्योंकि उसके लंड की अकड़ बढ़ते जा रही थी,,,,दूसरी तरफ एक जवान लड़के के ऊंगलीयो का स्पर्श अपनी बुर के ऊपर महसूस करके सुधियां काकी पूरी तरह से मदहोश हुए जा रही थी इस उम्र में भी उसकी उत्तेजना बरकरार थी,,, सुरज की हरकतों में उसे पूरी तरह से चुदवासी बना दिया था जिसके चलते उसकी गुलाबी बुर के गुलाबी छेद में से मदन रस का रिसाव होना शुरू हो गया था,,,, जोकि धीरे-धीरे सुरज की अंगुलियों पर रीश रहा था,,,। सुरज का ध्यान पूरी तरह से सुधियां काकी की बुर पर टिका हुआ था,,, वह अपनी नजरों को इधर उधर भी नहीं घुमा रहा था,,,। सुधियां काकी की बुर का जायजा लेने में वह पूरी तरह से मशरुफ हो चुका था,,। देखते-देखते अनजाने में ही सुरज ने अपनी उंगली के छोर से सुधियां काकी की बुर के गुलाबी पत्तियों को छेड़ दिया,,,, तो वैसे ही तुरंत सुधियां काकी के मुंह से गर्म सिसकारी फूट पड़ी,,,,।


सहहहहह आहहहहहहह,,,,,,,,ऊमममममममम,,,,


क्या हुआ काकी,,,(उसकी गरम सिसकारी की आवाज को सुनकर सुधियां की तरफ देखते हुए बोला,,,)

ककककक,,, कुछ नहीं सुरज फिर से काट रही है,,,,(सुधियां काकी गर्म आहे भरते हुए बोली,,,)


लेकिन काकी यहां तो मुझे कुछ भी नजर नहीं आ रहा है,,,,(सुरज अपने दोनों हाथों की उंगलियों से झांट के बालों को फैलाते हुए बोला,,,)


ध्यान से देख सुरज मुझे बड़ी तकलीफ हो रही है,,,,आहहहहह नहीईईईई,,,,,।


क्या काकी सच में बहुत तकलीफ हो रही है,,,


अरे बहुत तकलीफ हो रही है मुझे तो डर है कहीं सूज ना जाए,,,, देख बड़े अच्छे से मेरी बुर को देख,,,,आहहहहह सुरज,,,
(सुधियां काकी के मुंह से बुर शब्द सुन कर सुरज पूरी तरह से रोमांचित हो उठा,,,)


रुको काकी में फिर से देखता हूं,,,,,,

(सुधियां काकी उसी तरह से अपनी साड़ी उठाए हुए सुरज को अपनी बुर बड़े अच्छे से दिखा रही थी और सुरज को मजा भी आ रहा था लेकिन इस बात से अनजान था कि सुधियां काकी उसे चींटी वाली बात झूठ कह रही है और वह चींटी ढूंढने में ही व्यस्त था,,, लेकिन चींटी ढुंढते हुए उसे अद्भुत आनंद की प्राप्ति भी हो रही थी,,,, सुरज फिर से बड़े ध्यान से देखने लगा सुरज को सुधियां काकी की बुर का गुलाबी छेद बड़े साफ तौर पर नजर आ रहा था वह उसे गुलाबी छेद को देखते हुए सुधियां काकी से बोला,,,)

काकी चींटी तो नहीं नजर आ रही है लेकिन तुम्हारे बुर का गुलाबी छेद नजर आ रहा है,,,,।
(सुरज के मुंह से बुर शब्द और गुलाबी छेद सुनकर वह पूरी तरह से मस्त हो गई,,, अनजाने में ही सुरज के इन शब्दों ने उसकी उत्तेजना को और ज्यादा बढ़ा दिया क्योंकि अच्छी तरह से जानती थी कि सुरज किस बारे में बात कर रहा है,,, इसलिए मदहोशी भरे शब्दों में वह बोली,,)


हां,,, सुरज लगता है चींटी उसी चीज में चली गई है मुझे वही दर्द हो रहा है,,,,सहहहहह,,आहहहहहह,,,,,(सुधियां काकी पूरी तरह से मदहोश हो गई थी उसकी बातों को सुनकर सुरज बोला,,,)


तो अब क्या करूं चाची,,,,(सुरज उत्सुकता बस सुधियां काकी की तरफ देखते हुए बोला,,,, सुरज की बात सुनकर सुधियां काकी बोली)


करना क्या है सुरज उसे निकालना तो पड़ेगा ही अपनी उंगली डालकर उसे निकाल बाहर वरना यह मेरी बुर सुजा देगा,,,,,,
(सुधियां काकी की इस तरह की गंदी बातों को सुनकर सुरज के तन बदन में जो आग लग रही थी उसे बयां करना शायद शब्दों में मुश्किल हो रहा था सुधियां काकी की गंदी बातें उत्तेजना की आग में घी डालने का काम कर रहा था,,,, सुधियां काकी की बातें सुनकर सुरज की उत्तेजना और ज्यादा बढने लगी और उसका गला सूखने लगा,,, इसलिए वह अपने थुक से अपने गले को गिला करने की कोशिश करने लगा,,,, सुधियां काकी ने उसे अद्भुत काम सौंप दीया था,,,। जिसे करने में सुरज को बहुत खुशी भी हो रही थी और वह उत्सुक भी था,,, सुधियां काकी चाहती तो सुरज से सीधे-सीधे उसका लंड अपनी बुर में डालने के लिए कह देती और सुरज इंकार भी नहीं करता लेकिन उसे न जाने क्यों धीरे-धीरे इस खेल में मजा आ रहा था सुरज के नादानियत उसे और ज्यादा मदहोश कर रही थी,,,


सुरज के दिल की धड़कन बढने लगी थी उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी,,, वह अपनी बीच वाली उंगली को बुरके छेद में डालना शुरू कर दिया,,,,सुधियां काकी अपने मन में यही सोच रही थी कि सुरज के लिए यह संभोग का पहला सबक था जिसमें वह धीरे-धीरे कामयाब हो रहा था,,, सुधियां काकी की बुर उत्तेजना के मारे पूरी तरह से गीली हो चुकी थी इसीलिए सुरज की उंगली बड़े आराम से अंदर की तरफ सरक रही थी,,,,जैसे-जैसे सुरज की उंगली बुर के अंदर जा रही थी वैसे वैसे सुधियां काकी की हालत खराब होती जा रही थी उसके चेहरे का हाव भाव उसका रंग बदलता जा रहा था और पल भर में ही उसके गोरे गोरे गाल लाल टमाटर कि तरह हो गए,,,,, सुरज की सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी,,,, उसे मजा आ रहा था कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि दोबारा कभी उसे इतनी नजदीक से किसी औरत की बुर को देखने का मौका भी मिलेगा और उसने उंगली डालने का भी मौका मिलेगा लेकिन सुरज के सोचने के विपरीत हो रहा था और इसमें सुरज को मजा भी आ रहा था,,,,धीरे-धीरे करके सुरज अपनी आधी से ज्यादा ऊंगली वसुधियां काकी की बुर के अंदर डाल दिया था,,, बुर के अंदर अपनी उंगली पर बेहद गर्मी महसुस हो रही थी,,, इसलिेए वह उत्सुकता बस बोला,,,,।


काकी तुम्हारे बुर के अंदर तो बहुत गर्मी है,,,

क्यों क्या हुआ रे,,,,(सुधियां काकी मदहोश होते हुए बोली,,)


मेरी उंगली तुम्हारी बुर के अंदर जाकर जल रही है,,,,

(सुरज की बात सुनकर पूरी तरह से कामोत्तेजना मे मदहोश होते हुए भी हंसने लगी और वह बोली,,)


तो क्या तुझे क्या लगा औरत की बुर ऐसे ही नरम नरम होती है सिर्फ ऊपर से ही मुलायम होती है अंदर तो‌ शोला दहकता रहता है,,,,


सच में काकी बहुत गर्म है,,,,,(ऐसा कहते हुए सुरज अपनी पूरी उंगली सुधियां काकी की बुर में डाल दिया,,, जैसे ही उसकी पूरी उंगली बुर के अंदर तक घुशी वैसे ही सुधियां काकी कि सिसकारी फूट पड़ी,,,,)


सहहहहह आहहहहहहह,,,,,


क्या हुआ ,,,, काकी,,,,


ककककक,,,कुछ नहीं अपनी उंगली को अंदर बाहर कर ताकि चींटी आराम से बाहर भी कर सकें,,,
(सुधियां काकी की बात सुनते ही सुरज उसी तरह से अपनी ऊंगली को अंदर बाहर करते हुए अनजाने में ही उसकी बुर में अपनी उंगली पेलने लगा,,, सुधियां काकी की उत्तेजना और सिसकारी बढ़ने लगी,,,, सुरज का मजा आने लगा,,, सुरज जो कि अभी तक औरत की बुर तो देख लिया मैंने तुम कहां के दर्शन नहीं कर पाया था जो कि उसकी आंखों के बेहद करीब थी लेकिन फिर भी उसका ध्यान सुधियां काकी की गांड पर ना होकर उसकी बुर पर ही टिका हुआ था,,, लेकिन उत्तेजना के मारे वह अपना एक हाथ सुधियां काकी के पीछे की तरफ ले जाकर उसकी नरम नरम बड़ी-बड़ी गांड को अपनी हथेली में दबाए हुए था,,,जिससे वह पूरी तरह से अनजान था लेकिन सुधियां काकी को इसका अहसास बड़ी अच्छी तरह से था और जिस तरह से वह अपनी हथेली में जोर-जोर से उसकी गांड को दबा रहा था उससे काकी का मजा दोगुना होता जा रहा था,,,।

सहहहहह आहहहहह ,,,आहहहहहहह,,,,, और जोर से सुरज और जोर से अंदर बाहर कर,,,,आहहहहहहहह,,,,


(सुधियां काकी की बातें सुनकर सुरज बड़ी तेजी से अपनी ऊंगली को बुर के अंदर बाहर कर रहा था जिसमें से चप-चप की आवाज आना शुरू हो गई थी,,, सुधियां और सुरज दोनों चींटी के बारे में बिल्कुल भी भुल गए थे बस दोनों अपने अपने तरीके से मजा ले रहे थे,,,, सुधियां की गरम सिसकारियां खेतों में गूंजने लगी थी वह गर्म सिसकारी लेते हुए बोली,,,।)


सहहहहह ,आहहहहह,,, सुरज तुझे मेरी बुर कैसी लगी,,,?


आहहहहहह बहुत अच्छी है काकी ,,,,, बहुत खूबसूरत है,,,,


मेरी बुर के अंदर तेरी उंगली तुझे बहुत गर्म महसूस हो रही है ना,,


बहुत ज्यादा गर्म लग रही है काकी,,,


मैं जानती हूं बुर के अंदर उंगली बुर की गर्मी नही सहन कर पाती,,,, बुर के अंदर केवल एक ही चीज इसकी गर्मी को सहन कर पाती है,,,।


कौन सी चीज है काकी,,(सुरज लपालप अपनी उंगली को सुधियां काकी की बुर में पेलते हुए बोला,,,)


लंड,,,,,,

(सुधियां काकी के मुंह से लंड शब्द सुनकर जैसे कि सुरज को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था इसलिए वह दोबारा पूछा,,)

क्या काकी,,,?


लंड रे,,,,,बुर की गर्मी को केवल लंड ही सहन कर सकता है और बुर की गर्मी को उतार भी सकता है,,,,

क्या कह रही हो काकी,,,,
(सुरज आश्चर्य जताते हुए बोला काकी के मुंह से सुनी यह बातें सुरज के लिए बिल्कुल नंई थी,,, सुधियां काकी इसी मौके की तलाश में थी वह सुरज से एकदम से पूछ बैठी,,,)


तु अपनी उंगली की जगह लंड डालेगा इसमें,,,,
(सुधियां काकी के मुंह से इतनी गंदी बात सुनकर सुरज उत्सुकता उत्तेजना और आश्चर्य से सुधियां काकी की तरफ देखने लगा उसे यकीन नहीं हो रहा था कि सुधियां काकी उससे यह सवाल पूछ रही है,,,, सुरज का गला सूखता जा रहा था,,,, सुधियां काकी की बुर में अभी भी उसकी उंगली पूरी तरह से घुसी हुई थी,,, सुधियां काकी देखना चाहती थी कि सुरज क्या कहता है व अच्छे से जानती थी कि सुरज उसकी बात को इंकार नहीं कर पाएंगा,,, सुरज ही क्यों कोई भी लड़का उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा नहीं पाएगा वह अच्छी तरह से जानती थी,,, सुरज कि हां मैं जवाब देता इससे पहले ही उसके कानों में और सुधियां के कानों में जो आवाज पड़ी उससे वह दोनों एकदम से चौक गए,,,।


माजी खाना लेकर आई हूं,,,,
(इतना सुनते ही सुधियां काकी के होश उड़ गए वह तुरंत सुरज से बोली,,)

निकाल निकाल अपनी उंगली निकाल जल्दी कर,,,,(सुरज आवाज सुनकर हैरान हो गया था और तुरंत अपनी उंगली को सुधियां काकी की बुर से बाहर निकाल लिया था,,, सुधियां काकी तुरंत अपनी साड़ी को कमर से नीचे छोड़ दी और व्यवस्थित करने लगी और अपनी बहू नीलम के आने से पहले ही बाहर सुरज को जो काम कर रहा था वह काम करने के लिए बोल दिया और इस बारे में उसी से बिल्कुल भी बात ना करें,, यह बात, सुरज भी अच्छी तरह से जानता था कि इस तरह की बातें किसी को बताना नहीं चाहिए था इसलिए वह सुधियां काकी की बात मानते हुए घास उखाड़ना शुरू कर दिया,,, सुधियां काकी अपने काम में लग गई,,, और उसकी बहू नीलम खाना लेकर पहुंच गई,,,।
 

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