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सुबह के ६:३५ बज रहें है. उर्मिला गैस पर चाय चढ़ा के रोज की तरह रसोई का दूसरा काम कर रही है. तभी पायल वहां आती है. वही गुलाबी टॉप पहने, कन्धों पर दुपट्टा और निचे टाइट फिटिंग वाला पजामा.
पायल : गुड मोर्निंग भाभी...
उर्मिला : गुड मोर्निंग पायल... (ऊपर से निचे देखती है) कमाल की लग रही है पायल... लेकिन ये दुपट्टा क्यूँ डाल रखा है... निकाल इसे...
पायल दुपट्टा निकाल देती है और पास के टेबल पर रख देती है. उसकी नज़रे यहाँ वहां घूम रही है जैसे किसी को तलाश रहीं हो.
उर्मिला : पापा को ढूंड रही है?
पायल : (मुस्कुराते हुए बेहद धीमी आवाज़ में) हाँ...!! कहाँ है पापा...?
उर्मिला : आ जायेंगे...इतनी उतावली क्यूँ हो रही है...
तभी पायल और उर्मिला को कदमो की आहट सुनाई देती है. दोनों सतर्क हो जाती है. रमेश अपने सर को गर्दन से गोल गोल घुमाते, गर्दन की अकडन ठीक करते हुए रसोई में आते है.
रमेश : बहू.... (इतना कहते ही बाबूजी जी नज़र पायल पर पड़ती है और उनका घूमता सर वैसे ही थम जाता है. आज पायल ने दुपट्टा नहीं लिया है. पायल की बेहद टाइट टॉप उसके बड़े बड़े खरबूजों पर कसी हुई है. टॉप के बड़े गले से चुचियों के बीच की गहरी गली साफ़ दिखाई दे रही है. बाबूजी की नज़रे पायल के सीने के बीच की गहरी खाई पर आ कर रुक जाती है)
उर्मिला : क्या हुआ बाबूजी...??
रमेश : (उर्मिला की आवाज़ सुन के अपने आप को संभालता है) अ...कुछ नहीं बहु...ये..ये...पायल आज फिर से इतनी जल्दी उठ गई...? पायल बेटी...आज तू फिर से इतनी सुबह ?
पायल : हाँ पापा...कल मैंने कहा था ना की अब से मैं रोज जल्दी उठ जाया करुँगी और भाभी का काम में हाथ बटाया करुँगी...तो बस...उठ गई जल्दी...(पायल अपने चेहरे पर भोलापन लाते हुए कहती है)
रमेश : (पायल के सर पर हाथ रखते हुए) शाबाश बिटिया....!! बहुत अच्छा कर रही हो तुम... (एक नज़र टाइट टॉप में उठी हुई पायल की बड़ी बड़ी चुचियों पर डालने के बाद रमेश उर्मिला से कहता है) अच्छा बहु....वो ..चाय बन गई क्या?
उर्मिला : बस बाबूजी बनने ही वाली है. आप छत पर जाइये, मैं आपकी चाय ले कर ऊपर ही आ जाउंगी.
रमेश : (थोडा हिचकिचाते हुए) अरे नहीं नहीं बहु ..दिन में दस बार ऊपर निचे करती है, थक जाती होगी. अभी पायल तो ऊपर आएगी ही ना...(पायल की तरफ घूम कर) क्यूँ पायल ? तू तो कपडे डालने आएगी ना छत पर?
पायल : गुड मोर्निंग भाभी...
उर्मिला : गुड मोर्निंग पायल... (ऊपर से निचे देखती है) कमाल की लग रही है पायल... लेकिन ये दुपट्टा क्यूँ डाल रखा है... निकाल इसे...
पायल दुपट्टा निकाल देती है और पास के टेबल पर रख देती है. उसकी नज़रे यहाँ वहां घूम रही है जैसे किसी को तलाश रहीं हो.
उर्मिला : पापा को ढूंड रही है?
पायल : (मुस्कुराते हुए बेहद धीमी आवाज़ में) हाँ...!! कहाँ है पापा...?
उर्मिला : आ जायेंगे...इतनी उतावली क्यूँ हो रही है...
तभी पायल और उर्मिला को कदमो की आहट सुनाई देती है. दोनों सतर्क हो जाती है. रमेश अपने सर को गर्दन से गोल गोल घुमाते, गर्दन की अकडन ठीक करते हुए रसोई में आते है.
रमेश : बहू.... (इतना कहते ही बाबूजी जी नज़र पायल पर पड़ती है और उनका घूमता सर वैसे ही थम जाता है. आज पायल ने दुपट्टा नहीं लिया है. पायल की बेहद टाइट टॉप उसके बड़े बड़े खरबूजों पर कसी हुई है. टॉप के बड़े गले से चुचियों के बीच की गहरी गली साफ़ दिखाई दे रही है. बाबूजी की नज़रे पायल के सीने के बीच की गहरी खाई पर आ कर रुक जाती है)
उर्मिला : क्या हुआ बाबूजी...??
रमेश : (उर्मिला की आवाज़ सुन के अपने आप को संभालता है) अ...कुछ नहीं बहु...ये..ये...पायल आज फिर से इतनी जल्दी उठ गई...? पायल बेटी...आज तू फिर से इतनी सुबह ?
पायल : हाँ पापा...कल मैंने कहा था ना की अब से मैं रोज जल्दी उठ जाया करुँगी और भाभी का काम में हाथ बटाया करुँगी...तो बस...उठ गई जल्दी...(पायल अपने चेहरे पर भोलापन लाते हुए कहती है)
रमेश : (पायल के सर पर हाथ रखते हुए) शाबाश बिटिया....!! बहुत अच्छा कर रही हो तुम... (एक नज़र टाइट टॉप में उठी हुई पायल की बड़ी बड़ी चुचियों पर डालने के बाद रमेश उर्मिला से कहता है) अच्छा बहु....वो ..चाय बन गई क्या?
उर्मिला : बस बाबूजी बनने ही वाली है. आप छत पर जाइये, मैं आपकी चाय ले कर ऊपर ही आ जाउंगी.
रमेश : (थोडा हिचकिचाते हुए) अरे नहीं नहीं बहु ..दिन में दस बार ऊपर निचे करती है, थक जाती होगी. अभी पायल तो ऊपर आएगी ही ना...(पायल की तरफ घूम कर) क्यूँ पायल ? तू तो कपडे डालने आएगी ना छत पर?