Erotica कामुक भिखारी

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UPDATE-16


भूरे सिंह के अचानक चले जाने के बाद कुछ देर तक तो नेहा वही पानी मे खड़ी रही......इतना मज़ा आ रहा था ...और अचानक भूरे कहीं चला गया...आज तो अगर गंगू घर पर होता तो उसके उपर चड़कर वो उसके लंड को अपने अंदर ले लेती...इतनी आग लगी हुई थी उसके अंदर..

वो ऐसे ही बिना कपड़े बदले अपना भीगा बदन लिए अपने झोपडे की तरफ चल दी...वो किसी रोबोट की तरह चले जा रही थी...उसके मन मे उथल पुथल मची हुई थी..जो ऐसे मिटने वाली नही थी...उसे अपनी चूत पर चींटियां सी रेंगती महसूस हो रही थी..ऐसा तो उसके साथ आजतक नही हुआ था...अगर हुआ भी होगा तो उसे याद नही, वैसे भी उसकी यादाश्त खोए सिर्फ़ एक हफ़्ता ही तो हुआ था.

तभी उसे याद आया की वो खाने के लिए पैसे भी लाई है...भूख भी लगने लगी थी उसको..वो जैसे किसी सपने से एकदम से बाहर आई..और जब उसे ये एहसास हुआ की वो पूरी गीली है और उसके कपड़े उसके बदन से चिपक कर पारदर्शी लुक दे रहे हैं और आने जाने वाले सभी लोग उसके बदन को आँखे फाड़े देख रहे हैं..उसने जल्दी से अपने साथ लाया हुआ टावल अपने उपर लपेट लिया..

सामने ही उसको एक हलवाई की दुकान दिख गयी..वो वहाँ पहुँची और देखने लगी की क्या मिल सकता है उसके पास ..पर वहाँ कुछ सुखी मिठाइयों के अलावा कुछ नही था..एक मोटा सा आदमी गल्ले पर बैठा था.

नेहा : "भाई साहब, कुछ खाने के लिए नही है क्या आपके पास...''

उसने उसे उपर से नीचे तक देखा और बोला : "बस जी, अभी तैयारी कर रहा हू, आलू पूरी का नाश्ता बनाते हैं हम...थोड़ी ही देर मे पूरी निकालने वाला हू..''

वो पूरी भीगी हुई थी और उसके अंदर से पानी टपक रहा था..उसकी हालत देखकर वो हलवाई बोला : "तू गंगू की लुगाई है ना ...?''

नेहा ने हाँ मे सिर हिला दिया..

हलवाई : "तू जा...मैं अपने लड़के के हाथ भिजवाता हू तेरे लिए आलू पूरी..''

नेहा वहां से चली गयी..अब उसको सच मे काफ़ी तेज भूख लगी थी..भूख के मारे उसके जबड़े खींच रहे थे..

पर पहले उसने अपने कपड़े बदलने की सोची, उसने दरवाजा बंद कर दिया और अपने सारे कपड़े उतार कर सूखने के लिए टाँग दिए..उसका नंगा संगमरमरी बदन चमक रहा था...वो दीवार पर लगे छोटे से शीशे मे अपनी बड़ी-2 छातियाँ देखकर मुस्कुरा दी...आख़िर उसको देखकर ही तो ज़्यादातर मर्द खुश होते हैं..और गंगू भी तो उस दिन कैसे रज्जो की चुदाई करते हुए उसके मुम्मे चूस रहा था...दबा रहा था...और वो भी कितनी आनंदविभोर हो रही थी उनको दबवाते हुए..

गंगू और रज्जो की चुदाई के बारे मे सोचते ही उसके अंदर एक अजीब सी लहर दौड़ गयी...उसके हाथ अपने आप अपने स्तनों के उपर चले गये और उसने उन्हे पूरी ताक़त से दबा दिया..

''अहह सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स ...''

वो खुद ही सीत्कार उठी अपने आप को दबाकर..गोरे-2 मुम्मों पर उसकी उंगलियों के निशान छप गये,पर मज़ा भी काफ़ी मिला उसको..ऐसा लगा की अंदर की नसों मे जो हल्का दर्द हो रहा था उनको राहत मिल गयी है ..

फिर उसके हाथ अपने आप अपनी चूत की तरफ खिसकने लगे..क्योंकि वहां तो ज्यादा तकलीफ हो रही थी उसको इस वक़्त ..........

पर तभी बाहर का दरवाजा खड़का...वो फिर से अपने सपने से बाहर निकली..कौन हो सकता है इस वक़्त ....वो पूरी नंगी खड़ी थी.

उसने दरवाजे के पास जाकर पूछा : "कौन है ...''

बाहर से किसी बच्चे की आवाज़ आई .. ''जी मैं केशव....रामलाल हलवाई के यहा से आया हू...उन्होने नाश्ता भिजवाया है..''

उसने अपने बदन पर जल्दी से टावल लपेट लिया...और दरवाजा खोल दिया, ये सोचकर की हलवाई की दुकान पर काम करने वाला कोई बच्चा होगा..

पर उसके कद को देखकर वो हैरान रह गयी...वो तो गंगू से भी लंबा था..उमर होगी करीब 18 के आस पास ...एक बनियान और पुराना सा पायजामा पहना हुआ था..जो जगह -2 से फटा हुआ था.

वो एकदम से अंदर आ गया,और सीधा किचन वाली जगह पर पहुँचकर उसने अपने हाथ मे पकड़ी थाली रख दी..

केशव : "गंगू भाई ने पहले भी कई बार नाश्ता मँगवाया है हमारी दुकान से...और पिछली बार की थाली अभी तक वापिस भी नही की...पिताजी वो भी मंगवा रहे हैं..''

वो रामलाल हलवाई का लड़का था. चेहरे और आवाज से बिल्कुल बच्चा ही था पर कद-काठी से पता चलता था की वो जवानी की दहलीज पर खड़ा है..

उसको तो जैसे कोई फ़र्क ही नही पड़ा था नेहा को केवल टावल मे खड़ा देखकर..वो अपनी ही मस्ती मे इधर उधर देखता हुआ प्लेट ढूँढने लगा..

नेहा को पता था की वो प्लेट कहा है, वो अंदर वाले हिस्से मे आई और एक अलमारी खोलकर उसमे से प्लेट निकाल कर दे दी..

प्लेट देते हुए नेहा के हाथ केशव के हाथों से छू गये...और वो सिहर उठी...वो पहले से ही गर्म थी..मर्द का स्पर्श ऐसी अवस्था मे औरत को और उत्तेजित कर देता है..वही हाल नेहा का भी हुआ..उसकी नज़र एकदम से केशव के लंड वाले हिस्से पर चली गयी...वहाँ बिल्कुल शांति थी..वो थोड़ा और आगे आई...और केशव की आँखों मे आँखे डालकर बोली : "अभी थोड़ी देर रुक जा,मैं नाश्ता कर लू..फिर तू ये थाली भी साथ ही लेकर चले जाना, वरना ये भी पिछली बार की तरह यहीं पड़ी रहेगी...''

नेहा को अपने इतने पास देखकर केशव सकपका सा गया..उसने आज तक किसी लड़की को छुआ तक नही था...सारा दिन दुकान पर काम करते रहने की वजह से उसका कोई ऐसा दोस्त भी नही था जो उसे सेक्स के बारे मे सोचने के लिए उकसाता..यानी उसकी कोई बुरी संगत नही थी...

पर औरत का शरीर होता ही ऐसा है..समझ ना होते हुए भी सामने वाला उसके जाल मे फँस जाता है...नेहा ने जो टावल बाँधा हुआ था, वो उसके बड़े-2 मुम्मो को पूरी तरह से ढक नही पा रहा था..उसके उभरे हुए मुम्मे देखकर केशव की हालत भी खराब होने लगी...और उसके लंड मे कड़ापन आने लगा..

वो नेहा की बात मानकर वहीं ज़मीन पर बैठ गया..और नेहा नाश्ता करने लगी..

अब उसका ध्यान आलू पूरी से ज़्यादा केशव के केले पर था..जो धीरे-2 खड़ा होकर उसके पायजामे मे उभर रहा था..

भूख तेज थी, इसलिए नाश्ता जल्दी ही ख़त्म हो गया.

अब थी असली काम करने की बारी...नेहा ने पहले से ही सोच लिया था की आज जो भी हो जाए, वो मज़े लेकर ही रहेगी...गंगू के आने तक का वेट वो नही कर सकती थी..

जैसे ही केशव प्लेट लेने के लिए आगे आया..नेहा ने ज़ोर से साँस ली और उसकी छातियाँ फूल कर और बाहर निकल आई...और उसके साथ ही उसके टावल की गाँठ भी खुल गयी...और एक ही पल मे उसका टावल नीचे पड़ा था...और वो पूरी नंगी होकर केशव के सामने खड़ी थी.
 
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