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चैप्टर :-3 नागमणि कि खोज अपडेट -41
रंगा कि रिहाई
वीरप्रताप के थाने से बहुत दूर शहर मे दरोगा कि पत्नी आज खूब सज धज के तैयार हुई थी, उसे अपने पति के वापस लौटने कि खुशी थी आज सुलेमान को विशेष तोहफा देना था क्युकी इतने सालो मे सुलेमान ने दरोगा कि कमी नहीं खलने दी थी कभी कलावती को....खूब मन लगा के सेवा कि थी सुलेमान ने.
आज वक़्त आ गया था कि इस सेवा को वापस चुकाया जाये.
सुलेमान रसोई घर मे रोटी बेल रहा था, उसके मजबूत हाथ पसीने से चमक रहे थे.
सुलेमान दिखने मे लम्बा चौड़ा काला पुरुष था. मजबूत और बड़े लंड का मालिक हमेशा सफ़ेद मुसलमानी टोपी ही पहने रखता. उम्र मात्र 23 साल बांका नौजवान था सुलेमान.
अभी भी एक गन्दी बनियान, लुंगी और सफ़ेद टोपी पहने रोटी बेल रहा था.
कलावती दरवाजे के पास आ के खाँखारती है...
उम्मम्मम..... रोटी बेल रहे हो सुलेमान?
सुलेमान तो कलावती कि काया ही देखता रह जाता है तरासा हुआ जिस्म सिर्फ साड़ी मे लिपटा हुआ था माथे पे लाल बिंदी, मांग मे सिदूर, हाथो मे चुडी, कानो मे बाली, गले मे दरोगा वीरप्रताप के नाम का मंगलसूत्र, बिल्कुल संस्कारी औरत लग रही थी कलावती.
सुलेमान जो कि इसे हज़ारो बार देख चूका था फिर भी उसके जिस्म ने कलावती कि काया देख काम करने से मना कर दिया था उसके हाथ रोटी बेलते बेलते वही रुक गये थे.
कलावती अपनी सारी का पल्लू गिरा देती है, शर्म से सर झुका लेती है उसके मोटे चिकने गोरे दूध छलक पड़ते है.
वो मादक चाल से चलती हुई सुलेमान के पास पहुंच जाती है इतनी पास कि उसकी मादक गंध सीधा सुलेमान कि नाक मे घुस रही थी,
कलावती :- ऐसे क्या देख रहा है सुलेमान मेरे लाल, पहली बार देखे है क्या?
सुलेमान :- ज़ी ज़ी ज़ी.... नहीं मालकिन
आप खूबसूरत लग रही है.
कलावती हस देती है "हट पागल झूठ बोलता है अभी देखती हूँ "
ऐसा बोल वो लुंगी के अंदर हाथ डाल देती है उसके हाथ मे एक गरम लोहे का सख्त 9" का रॉड हाथ लगता है.
कलावती :-तू तो सही बोल रहा है रे.... मेरी खूबसूरती कि गवाही तेरा ये कला लंड दे रहा है.
ऐसा बोल वो सुलेमान के लंड को पकड़ के ऐंठ देती है.
'आअह्ह्हह्म... मालकिन क्या कर रही हो दर्द होता है"
कलावती :- अच्छा बड़ा दर्द होता है भूल गया जब तूने ये मुसल मेरी चुत मे डाला था पूरी चुत फाड़ के रख दी थी बिल्कुल भी दया नहीं दिखाई थी तूने.
सुलेमान झेप जाता है.
कलावती :- शर्माता क्या है मेरी इज़्ज़त लूट के आज शर्माता है बोल क्यों चोदा था तूने मुझे? बोल
लंड को और जोर से नोच लेती है.
वो सुलेमान के अंदर का जानवर जगा रही थी.
सुलेमान :- मेरी रण्डी मालकिन... साली मुझसे सुन ना चाहती है तो सुन...
ऐसा बोल के वो अपनी लुंगी खोल देता हैऔर कलावती को घुटने के बल बैठा के उसके मुँह पे बैठ जाता है.
कलवाती जीभ बाहर निकले कभी सुलेमान कि काली गांड चाट रही थी तो कभी काले बड़े टट्टे.
साली रण्डी तेरा दरोगा पति नामर्द है वो तेरी जैसी चुद्दाकड़ औरत कि प्यास नहीं बुझा पाता.
जब वो चला गया अपना फर्ज़ निभाने तब तू साली बदन कि गर्मी से सुलगने लगी.... ऐसा बोलते हुए सुलेमान अपने टट्टो को बुरी तरह कलावती के होंठो पे रगड़ रहा था, तूने एक दिन मुझे मूतते हुए मेरा बड़ा लंड देख लिया जब से ही तू चुदने को तैयार थी मुझसे, फिर तूने एक दिन बाथरूम मे गिरने के बहाने मुझे अंदर बुला लिया मै भी तेरा नंगा कामुक बदन देख के बहक गया साली.... चूस मेरे टट्टे.
पहली बार तू मुझसे बाथरूम मे ही चुदी थी... उसके बाद ये लंड हमेशा तेरी सेवा मे ही है छिनाल मालकिन.
अपनी कामुक गाथा सुलेमान के मुँह से सुन के कलावती गरमा गई उसने मुँह खोल पूरा का पूरा लंड मुँह मे भर लिया...
और सर आगे पीछे करने लगी.
बहादुर दरोगा कि बीवी यहाँ लंड चाट रही थी..
और यहाँ खुद दरोगा कामवासना मे झुलस रहा था.
अभी अभी जो उसने देखा था उस पे यकीन करना मुश्किल था, दरोगा बरसो से प्यासा था आज तो खुद कुआँ चल के उसके पास आया था.
रुखसाना लुंगी लपेटे बहार आ जाती है उसकी चाल और नजर मे शर्माहाट थी, लुंगी ज्यादा बड़ी नहीं थी स्तन से जाँघ तक के हिस्से को ढकी हुई थी, रुखसाना का ऊपरी हिस्सा और जाँघ से निचला हिस्सा सम्पूर्ण नग्न था.
कमरा मादक पसीने कि गंध से महक उठा था इस महक मे सिर्फ कामवासना थी.
दरोगा उठ खड़ा होता है "तुम यही बैठो मै आया "
दरोगा लगभग भागता हुआ बाहर को आता है वहाँ शराब की आधी भरी बोत्तल पड़ी थी "मुझे जल्दी ही कुछ करना होगा" दरोगा कामवासना मे एकदम चूर था, एक हाथ से लंड पकड़े दूसरे हाथ से बोत्तल थामे दरोगा कमरे कि और चल पड़ता है.
दरोगा :- आप यहाँ सुरक्षित है मोहतरमा, वैसे आपका नाम क्या है?
"ज़ी रुखसाना "
दरोगा :- आप बुरा ना माने तो एक पैग ले लू मौसम थोड़ा ठंडक लिए हुए है और मुझे रात भर ड्यूटी करनी है जागना भी जरुरी है ऐसा कह रुखसाना कि तरफ मुस्कुरा देता है.
रुखसाना अभी भी खुद को ढकने कि नाकाम कोशिश कर रही थी जिस वजह से कभी उसके हाथ स्तन पे जाते तो कभी पेट से होते हुए जाँघ को मसलते, ऐसा लगता था जैसे वो खुद अपने शरीर से खेल रही हो.
दरोगा ये दृश्य देख के आनंदित हुए जा रहा था उसे शराब का नशा हो चूका था आँखों मे लाल डोरे तैर रहे थे फिर भी कामवासना मे भरा दरोगा एक पैग बना पूरा एक घूंट मे पी जाता है.
आअह्ह्ह...... अब आई ना गर्मी
रुखसाना :- ज़ी वो मै क्या.... मै... मुझे ठण्ड लग रही है
दरोगा :- मेरे पास तो कपडे नहीं है ओर कोई भी..?
रुखसाना :- ऐसे तो मै ठण्ड से मर ही जाउंगी दरोगा साहेब.
दरोगा :- तो थोड़ी तुम भी पी लो
रुखसाना :- ये कैसी बात कर रहे है दरोगा ज़ी आप? थोड़ी नाराज होती है.
दरोगा :- अरे मोहतरमा मै जबरजस्ती नहीं कर रहा इस से ठण्ड दूर होती है. लीजिये पी लीजिये.शराब से भरा ग्लास रुखसाना कि ओर बड़ा देता है.
रुखसाना हाथ बड़ा देती है ओर ग्लास थाम लेती है.
दरोगा ओर रुखसाना आमने सामने कुर्सी पे बैठे थे, बीच मे टेबल थी.
रुखसाना ग्लास को नाक के पास लाती है परन्तु सूंघते ही दूर हटा लेती है.
छी दरोगा साहेब कैसी अजीब बदबू आ रही है मै नहीं पी पाऊँगी मै ठण्ड मे ही ठीक हूँ.
परन्तु दरोगा मन मे सोच चूका था कि इसे पिलानी ही है, यही सही मौका है इस सुन्दर स्त्री को भोगने का.
शराब ओर शबाब के नशे मे दरोगा अपनी प्रतिज्ञा, फर्ज़ भूल गया था,
वो अपने सामने बैठी मजबूर मगर खूबसूरत औरत को भोगना चाहता था,आज कामवासना फर्ज़ ओर सेवा से आगे निकाल आई थी.
दरोगा :- नाक बंद कर के पी लीजिये एक बार मे कुछ नहीं होगा.
रुखसाना हिम्मत करती है ओर ग्लास मुँह मे लगा पूरी शराब मुँह मे डाल लेती है. अजीब सा मुँह बना के सर नीचे को झुका देती है.
रुखसाना वापस मुँह ऊपर किये, मुँह पोछती है "छी कितनी गन्दी थी ये शराब "
मर ही जाती मै तो.
दरोगा को यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो अपनी योजना. मे कामयाब हो गया है "एक ओर लो रुखसाना देखना फिर कैसे गर्मी अति है "
रुखसाना का दिमाग़ चकरा रहा था फिर भी उसे गर्मी क अहसास से अच्छा लग रहा था वो अगले पैग के लिए मना नहीं कर पाती, ओर झट से मुँह लगाए एक बार मे गटक के मुँह नीचे झुका लेती है,दारू का कड़वा घुट निगलने मे उसे समस्या हो रही थी.
दो पैग पीने के बाद रुखसाना कि आवाज़ भरराने लगी थी उसका सर घूम रहा था उसके बदन मे पसीने कि बुँदे दौड़ गई थी.
आअह्ह्ह.... दरोगा साहेब क्या हो रहा है मुझे?
दरोगा :- कुटिल मुस्कान के साथ कुछ नहीं रुखसाना गर्मी आ रही है बदन मे देखो कैसे पसीना आ गया है तुम्हे
ऐसा बोल रुखसाना के नंगे कंधे पे हाथ रख देता है.
नशे मे घिरती रुखसाना को ये स्पर्श बड़ा ही मादक लगता है वैसे भी रुखसाना कामवासना से भरी स्त्री थी उसे उत्तेजित होने मे वक़्त नहीं लगता था, हो भी ऐसा ही रहा था.
कहाँ वो दरोगा को फ़साने आई थी.... कहाँ खुद दरोगा कि चाल मे घिरती चली जा रही है...
तो क्या रंगा आज़ाद नहीं हो पायेगा?
रुखसाना तो खुद नशे मे डूबती जा रही है?
दरोगा कि कामवासना उसे बचा पायेगी या ले डूबेगी?
बने रहिये... कथा जारी है
रंगा कि रिहाई
वीरप्रताप के थाने से बहुत दूर शहर मे दरोगा कि पत्नी आज खूब सज धज के तैयार हुई थी, उसे अपने पति के वापस लौटने कि खुशी थी आज सुलेमान को विशेष तोहफा देना था क्युकी इतने सालो मे सुलेमान ने दरोगा कि कमी नहीं खलने दी थी कभी कलावती को....खूब मन लगा के सेवा कि थी सुलेमान ने.
आज वक़्त आ गया था कि इस सेवा को वापस चुकाया जाये.
सुलेमान रसोई घर मे रोटी बेल रहा था, उसके मजबूत हाथ पसीने से चमक रहे थे.
सुलेमान दिखने मे लम्बा चौड़ा काला पुरुष था. मजबूत और बड़े लंड का मालिक हमेशा सफ़ेद मुसलमानी टोपी ही पहने रखता. उम्र मात्र 23 साल बांका नौजवान था सुलेमान.
अभी भी एक गन्दी बनियान, लुंगी और सफ़ेद टोपी पहने रोटी बेल रहा था.
कलावती दरवाजे के पास आ के खाँखारती है...
उम्मम्मम..... रोटी बेल रहे हो सुलेमान?
सुलेमान तो कलावती कि काया ही देखता रह जाता है तरासा हुआ जिस्म सिर्फ साड़ी मे लिपटा हुआ था माथे पे लाल बिंदी, मांग मे सिदूर, हाथो मे चुडी, कानो मे बाली, गले मे दरोगा वीरप्रताप के नाम का मंगलसूत्र, बिल्कुल संस्कारी औरत लग रही थी कलावती.
सुलेमान जो कि इसे हज़ारो बार देख चूका था फिर भी उसके जिस्म ने कलावती कि काया देख काम करने से मना कर दिया था उसके हाथ रोटी बेलते बेलते वही रुक गये थे.
कलावती अपनी सारी का पल्लू गिरा देती है, शर्म से सर झुका लेती है उसके मोटे चिकने गोरे दूध छलक पड़ते है.
वो मादक चाल से चलती हुई सुलेमान के पास पहुंच जाती है इतनी पास कि उसकी मादक गंध सीधा सुलेमान कि नाक मे घुस रही थी,
कलावती :- ऐसे क्या देख रहा है सुलेमान मेरे लाल, पहली बार देखे है क्या?
सुलेमान :- ज़ी ज़ी ज़ी.... नहीं मालकिन
आप खूबसूरत लग रही है.
कलावती हस देती है "हट पागल झूठ बोलता है अभी देखती हूँ "
ऐसा बोल वो लुंगी के अंदर हाथ डाल देती है उसके हाथ मे एक गरम लोहे का सख्त 9" का रॉड हाथ लगता है.
कलावती :-तू तो सही बोल रहा है रे.... मेरी खूबसूरती कि गवाही तेरा ये कला लंड दे रहा है.
ऐसा बोल वो सुलेमान के लंड को पकड़ के ऐंठ देती है.
'आअह्ह्हह्म... मालकिन क्या कर रही हो दर्द होता है"
कलावती :- अच्छा बड़ा दर्द होता है भूल गया जब तूने ये मुसल मेरी चुत मे डाला था पूरी चुत फाड़ के रख दी थी बिल्कुल भी दया नहीं दिखाई थी तूने.
सुलेमान झेप जाता है.
कलावती :- शर्माता क्या है मेरी इज़्ज़त लूट के आज शर्माता है बोल क्यों चोदा था तूने मुझे? बोल
लंड को और जोर से नोच लेती है.
वो सुलेमान के अंदर का जानवर जगा रही थी.
सुलेमान :- मेरी रण्डी मालकिन... साली मुझसे सुन ना चाहती है तो सुन...
ऐसा बोल के वो अपनी लुंगी खोल देता हैऔर कलावती को घुटने के बल बैठा के उसके मुँह पे बैठ जाता है.
कलवाती जीभ बाहर निकले कभी सुलेमान कि काली गांड चाट रही थी तो कभी काले बड़े टट्टे.
साली रण्डी तेरा दरोगा पति नामर्द है वो तेरी जैसी चुद्दाकड़ औरत कि प्यास नहीं बुझा पाता.
जब वो चला गया अपना फर्ज़ निभाने तब तू साली बदन कि गर्मी से सुलगने लगी.... ऐसा बोलते हुए सुलेमान अपने टट्टो को बुरी तरह कलावती के होंठो पे रगड़ रहा था, तूने एक दिन मुझे मूतते हुए मेरा बड़ा लंड देख लिया जब से ही तू चुदने को तैयार थी मुझसे, फिर तूने एक दिन बाथरूम मे गिरने के बहाने मुझे अंदर बुला लिया मै भी तेरा नंगा कामुक बदन देख के बहक गया साली.... चूस मेरे टट्टे.
पहली बार तू मुझसे बाथरूम मे ही चुदी थी... उसके बाद ये लंड हमेशा तेरी सेवा मे ही है छिनाल मालकिन.
अपनी कामुक गाथा सुलेमान के मुँह से सुन के कलावती गरमा गई उसने मुँह खोल पूरा का पूरा लंड मुँह मे भर लिया...
और सर आगे पीछे करने लगी.
बहादुर दरोगा कि बीवी यहाँ लंड चाट रही थी..
और यहाँ खुद दरोगा कामवासना मे झुलस रहा था.
अभी अभी जो उसने देखा था उस पे यकीन करना मुश्किल था, दरोगा बरसो से प्यासा था आज तो खुद कुआँ चल के उसके पास आया था.
रुखसाना लुंगी लपेटे बहार आ जाती है उसकी चाल और नजर मे शर्माहाट थी, लुंगी ज्यादा बड़ी नहीं थी स्तन से जाँघ तक के हिस्से को ढकी हुई थी, रुखसाना का ऊपरी हिस्सा और जाँघ से निचला हिस्सा सम्पूर्ण नग्न था.
कमरा मादक पसीने कि गंध से महक उठा था इस महक मे सिर्फ कामवासना थी.
दरोगा उठ खड़ा होता है "तुम यही बैठो मै आया "
दरोगा लगभग भागता हुआ बाहर को आता है वहाँ शराब की आधी भरी बोत्तल पड़ी थी "मुझे जल्दी ही कुछ करना होगा" दरोगा कामवासना मे एकदम चूर था, एक हाथ से लंड पकड़े दूसरे हाथ से बोत्तल थामे दरोगा कमरे कि और चल पड़ता है.
दरोगा :- आप यहाँ सुरक्षित है मोहतरमा, वैसे आपका नाम क्या है?
"ज़ी रुखसाना "
दरोगा :- आप बुरा ना माने तो एक पैग ले लू मौसम थोड़ा ठंडक लिए हुए है और मुझे रात भर ड्यूटी करनी है जागना भी जरुरी है ऐसा कह रुखसाना कि तरफ मुस्कुरा देता है.
रुखसाना अभी भी खुद को ढकने कि नाकाम कोशिश कर रही थी जिस वजह से कभी उसके हाथ स्तन पे जाते तो कभी पेट से होते हुए जाँघ को मसलते, ऐसा लगता था जैसे वो खुद अपने शरीर से खेल रही हो.
दरोगा ये दृश्य देख के आनंदित हुए जा रहा था उसे शराब का नशा हो चूका था आँखों मे लाल डोरे तैर रहे थे फिर भी कामवासना मे भरा दरोगा एक पैग बना पूरा एक घूंट मे पी जाता है.
आअह्ह्ह...... अब आई ना गर्मी
रुखसाना :- ज़ी वो मै क्या.... मै... मुझे ठण्ड लग रही है
दरोगा :- मेरे पास तो कपडे नहीं है ओर कोई भी..?
रुखसाना :- ऐसे तो मै ठण्ड से मर ही जाउंगी दरोगा साहेब.
दरोगा :- तो थोड़ी तुम भी पी लो
रुखसाना :- ये कैसी बात कर रहे है दरोगा ज़ी आप? थोड़ी नाराज होती है.
दरोगा :- अरे मोहतरमा मै जबरजस्ती नहीं कर रहा इस से ठण्ड दूर होती है. लीजिये पी लीजिये.शराब से भरा ग्लास रुखसाना कि ओर बड़ा देता है.
रुखसाना हाथ बड़ा देती है ओर ग्लास थाम लेती है.
दरोगा ओर रुखसाना आमने सामने कुर्सी पे बैठे थे, बीच मे टेबल थी.
रुखसाना ग्लास को नाक के पास लाती है परन्तु सूंघते ही दूर हटा लेती है.
छी दरोगा साहेब कैसी अजीब बदबू आ रही है मै नहीं पी पाऊँगी मै ठण्ड मे ही ठीक हूँ.
परन्तु दरोगा मन मे सोच चूका था कि इसे पिलानी ही है, यही सही मौका है इस सुन्दर स्त्री को भोगने का.
शराब ओर शबाब के नशे मे दरोगा अपनी प्रतिज्ञा, फर्ज़ भूल गया था,
वो अपने सामने बैठी मजबूर मगर खूबसूरत औरत को भोगना चाहता था,आज कामवासना फर्ज़ ओर सेवा से आगे निकाल आई थी.
दरोगा :- नाक बंद कर के पी लीजिये एक बार मे कुछ नहीं होगा.
रुखसाना हिम्मत करती है ओर ग्लास मुँह मे लगा पूरी शराब मुँह मे डाल लेती है. अजीब सा मुँह बना के सर नीचे को झुका देती है.
रुखसाना वापस मुँह ऊपर किये, मुँह पोछती है "छी कितनी गन्दी थी ये शराब "
मर ही जाती मै तो.
दरोगा को यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो अपनी योजना. मे कामयाब हो गया है "एक ओर लो रुखसाना देखना फिर कैसे गर्मी अति है "
रुखसाना का दिमाग़ चकरा रहा था फिर भी उसे गर्मी क अहसास से अच्छा लग रहा था वो अगले पैग के लिए मना नहीं कर पाती, ओर झट से मुँह लगाए एक बार मे गटक के मुँह नीचे झुका लेती है,दारू का कड़वा घुट निगलने मे उसे समस्या हो रही थी.
दो पैग पीने के बाद रुखसाना कि आवाज़ भरराने लगी थी उसका सर घूम रहा था उसके बदन मे पसीने कि बुँदे दौड़ गई थी.
आअह्ह्ह.... दरोगा साहेब क्या हो रहा है मुझे?
दरोगा :- कुटिल मुस्कान के साथ कुछ नहीं रुखसाना गर्मी आ रही है बदन मे देखो कैसे पसीना आ गया है तुम्हे
ऐसा बोल रुखसाना के नंगे कंधे पे हाथ रख देता है.
नशे मे घिरती रुखसाना को ये स्पर्श बड़ा ही मादक लगता है वैसे भी रुखसाना कामवासना से भरी स्त्री थी उसे उत्तेजित होने मे वक़्त नहीं लगता था, हो भी ऐसा ही रहा था.
कहाँ वो दरोगा को फ़साने आई थी.... कहाँ खुद दरोगा कि चाल मे घिरती चली जा रही है...
तो क्या रंगा आज़ाद नहीं हो पायेगा?
रुखसाना तो खुद नशे मे डूबती जा रही है?
दरोगा कि कामवासना उसे बचा पायेगी या ले डूबेगी?
बने रहिये... कथा जारी है