Adultery किस्सा कामवती का

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रंगा कि रिहाई


वीरप्रताप के थाने से बहुत दूर शहर मे दरोगा कि पत्नी आज खूब सज धज के तैयार हुई थी, उसे अपने पति के वापस लौटने कि खुशी थी आज सुलेमान को विशेष तोहफा देना था क्युकी इतने सालो मे सुलेमान ने दरोगा कि कमी नहीं खलने दी थी कभी कलावती को....खूब मन लगा के सेवा कि थी सुलेमान ने.
आज वक़्त आ गया था कि इस सेवा को वापस चुकाया जाये.
सुलेमान रसोई घर मे रोटी बेल रहा था, उसके मजबूत हाथ पसीने से चमक रहे थे.
सुलेमान दिखने मे लम्बा चौड़ा काला पुरुष था. मजबूत और बड़े लंड का मालिक हमेशा सफ़ेद मुसलमानी टोपी ही पहने रखता. उम्र मात्र 23 साल बांका नौजवान था सुलेमान.
अभी भी एक गन्दी बनियान, लुंगी और सफ़ेद टोपी पहने रोटी बेल रहा था.
कलावती दरवाजे के पास आ के खाँखारती है...
उम्मम्मम..... रोटी बेल रहे हो सुलेमान?
सुलेमान तो कलावती कि काया ही देखता रह जाता है तरासा हुआ जिस्म सिर्फ साड़ी मे लिपटा हुआ था माथे पे लाल बिंदी, मांग मे सिदूर, हाथो मे चुडी, कानो मे बाली, गले मे दरोगा वीरप्रताप के नाम का मंगलसूत्र, बिल्कुल संस्कारी औरत लग रही थी कलावती.
सुलेमान जो कि इसे हज़ारो बार देख चूका था फिर भी उसके जिस्म ने कलावती कि काया देख काम करने से मना कर दिया था उसके हाथ रोटी बेलते बेलते वही रुक गये थे.
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कलावती अपनी सारी का पल्लू गिरा देती है, शर्म से सर झुका लेती है उसके मोटे चिकने गोरे दूध छलक पड़ते है.
वो मादक चाल से चलती हुई सुलेमान के पास पहुंच जाती है इतनी पास कि उसकी मादक गंध सीधा सुलेमान कि नाक मे घुस रही थी,
कलावती :- ऐसे क्या देख रहा है सुलेमान मेरे लाल, पहली बार देखे है क्या?
सुलेमान :- ज़ी ज़ी ज़ी.... नहीं मालकिन
आप खूबसूरत लग रही है.
कलावती हस देती है "हट पागल झूठ बोलता है अभी देखती हूँ "
ऐसा बोल वो लुंगी के अंदर हाथ डाल देती है उसके हाथ मे एक गरम लोहे का सख्त 9" का रॉड हाथ लगता है.
कलावती :-तू तो सही बोल रहा है रे.... मेरी खूबसूरती कि गवाही तेरा ये कला लंड दे रहा है.
ऐसा बोल वो सुलेमान के लंड को पकड़ के ऐंठ देती है.
'आअह्ह्हह्म... मालकिन क्या कर रही हो दर्द होता है"
कलावती :- अच्छा बड़ा दर्द होता है भूल गया जब तूने ये मुसल मेरी चुत मे डाला था पूरी चुत फाड़ के रख दी थी बिल्कुल भी दया नहीं दिखाई थी तूने.

सुलेमान झेप जाता है.
कलावती :- शर्माता क्या है मेरी इज़्ज़त लूट के आज शर्माता है बोल क्यों चोदा था तूने मुझे? बोल
लंड को और जोर से नोच लेती है.
वो सुलेमान के अंदर का जानवर जगा रही थी.
सुलेमान :- मेरी रण्डी मालकिन... साली मुझसे सुन ना चाहती है तो सुन...
ऐसा बोल के वो अपनी लुंगी खोल देता हैऔर कलावती को घुटने के बल बैठा के उसके मुँह पे बैठ जाता है.
कलवाती जीभ बाहर निकले कभी सुलेमान कि काली गांड चाट रही थी तो कभी काले बड़े टट्टे.
साली रण्डी तेरा दरोगा पति नामर्द है वो तेरी जैसी चुद्दाकड़ औरत कि प्यास नहीं बुझा पाता.
जब वो चला गया अपना फर्ज़ निभाने तब तू साली बदन कि गर्मी से सुलगने लगी.... ऐसा बोलते हुए सुलेमान अपने टट्टो को बुरी तरह कलावती के होंठो पे रगड़ रहा था, तूने एक दिन मुझे मूतते हुए मेरा बड़ा लंड देख लिया जब से ही तू चुदने को तैयार थी मुझसे, फिर तूने एक दिन बाथरूम मे गिरने के बहाने मुझे अंदर बुला लिया मै भी तेरा नंगा कामुक बदन देख के बहक गया साली.... चूस मेरे टट्टे.
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पहली बार तू मुझसे बाथरूम मे ही चुदी थी... उसके बाद ये लंड हमेशा तेरी सेवा मे ही है छिनाल मालकिन.
अपनी कामुक गाथा सुलेमान के मुँह से सुन के कलावती गरमा गई उसने मुँह खोल पूरा का पूरा लंड मुँह मे भर लिया...
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और सर आगे पीछे करने लगी.
बहादुर दरोगा कि बीवी यहाँ लंड चाट रही थी..

और यहाँ खुद दरोगा कामवासना मे झुलस रहा था.
अभी अभी जो उसने देखा था उस पे यकीन करना मुश्किल था, दरोगा बरसो से प्यासा था आज तो खुद कुआँ चल के उसके पास आया था.
रुखसाना लुंगी लपेटे बहार आ जाती है उसकी चाल और नजर मे शर्माहाट थी, लुंगी ज्यादा बड़ी नहीं थी स्तन से जाँघ तक के हिस्से को ढकी हुई थी, रुखसाना का ऊपरी हिस्सा और जाँघ से निचला हिस्सा सम्पूर्ण नग्न था.
कमरा मादक पसीने कि गंध से महक उठा था इस महक मे सिर्फ कामवासना थी.
दरोगा उठ खड़ा होता है "तुम यही बैठो मै आया "
दरोगा लगभग भागता हुआ बाहर को आता है वहाँ शराब की आधी भरी बोत्तल पड़ी थी "मुझे जल्दी ही कुछ करना होगा" दरोगा कामवासना मे एकदम चूर था, एक हाथ से लंड पकड़े दूसरे हाथ से बोत्तल थामे दरोगा कमरे कि और चल पड़ता है.
दरोगा :- आप यहाँ सुरक्षित है मोहतरमा, वैसे आपका नाम क्या है?
"ज़ी रुखसाना "
दरोगा :- आप बुरा ना माने तो एक पैग ले लू मौसम थोड़ा ठंडक लिए हुए है और मुझे रात भर ड्यूटी करनी है जागना भी जरुरी है ऐसा कह रुखसाना कि तरफ मुस्कुरा देता है.
रुखसाना अभी भी खुद को ढकने कि नाकाम कोशिश कर रही थी जिस वजह से कभी उसके हाथ स्तन पे जाते तो कभी पेट से होते हुए जाँघ को मसलते, ऐसा लगता था जैसे वो खुद अपने शरीर से खेल रही हो.
दरोगा ये दृश्य देख के आनंदित हुए जा रहा था उसे शराब का नशा हो चूका था आँखों मे लाल डोरे तैर रहे थे फिर भी कामवासना मे भरा दरोगा एक पैग बना पूरा एक घूंट मे पी जाता है.
आअह्ह्ह...... अब आई ना गर्मी
रुखसाना :- ज़ी वो मै क्या.... मै... मुझे ठण्ड लग रही है
दरोगा :- मेरे पास तो कपडे नहीं है ओर कोई भी..?
रुखसाना :- ऐसे तो मै ठण्ड से मर ही जाउंगी दरोगा साहेब.
दरोगा :- तो थोड़ी तुम भी पी लो
रुखसाना :- ये कैसी बात कर रहे है दरोगा ज़ी आप? थोड़ी नाराज होती है.
दरोगा :- अरे मोहतरमा मै जबरजस्ती नहीं कर रहा इस से ठण्ड दूर होती है. लीजिये पी लीजिये.शराब से भरा ग्लास रुखसाना कि ओर बड़ा देता है.
रुखसाना हाथ बड़ा देती है ओर ग्लास थाम लेती है.
दरोगा ओर रुखसाना आमने सामने कुर्सी पे बैठे थे, बीच मे टेबल थी.
रुखसाना ग्लास को नाक के पास लाती है परन्तु सूंघते ही दूर हटा लेती है.
छी दरोगा साहेब कैसी अजीब बदबू आ रही है मै नहीं पी पाऊँगी मै ठण्ड मे ही ठीक हूँ.
परन्तु दरोगा मन मे सोच चूका था कि इसे पिलानी ही है, यही सही मौका है इस सुन्दर स्त्री को भोगने का.
शराब ओर शबाब के नशे मे दरोगा अपनी प्रतिज्ञा, फर्ज़ भूल गया था,
वो अपने सामने बैठी मजबूर मगर खूबसूरत औरत को भोगना चाहता था,आज कामवासना फर्ज़ ओर सेवा से आगे निकाल आई थी.
दरोगा :- नाक बंद कर के पी लीजिये एक बार मे कुछ नहीं होगा.
रुखसाना हिम्मत करती है ओर ग्लास मुँह मे लगा पूरी शराब मुँह मे डाल लेती है. अजीब सा मुँह बना के सर नीचे को झुका देती है.
रुखसाना वापस मुँह ऊपर किये, मुँह पोछती है "छी कितनी गन्दी थी ये शराब "
मर ही जाती मै तो.
दरोगा को यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो अपनी योजना. मे कामयाब हो गया है "एक ओर लो रुखसाना देखना फिर कैसे गर्मी अति है "
रुखसाना का दिमाग़ चकरा रहा था फिर भी उसे गर्मी क अहसास से अच्छा लग रहा था वो अगले पैग के लिए मना नहीं कर पाती, ओर झट से मुँह लगाए एक बार मे गटक के मुँह नीचे झुका लेती है,दारू का कड़वा घुट निगलने मे उसे समस्या हो रही थी.

दो पैग पीने के बाद रुखसाना कि आवाज़ भरराने लगी थी उसका सर घूम रहा था उसके बदन मे पसीने कि बुँदे दौड़ गई थी.
आअह्ह्ह.... दरोगा साहेब क्या हो रहा है मुझे?
दरोगा :- कुटिल मुस्कान के साथ कुछ नहीं रुखसाना गर्मी आ रही है बदन मे देखो कैसे पसीना आ गया है तुम्हे
ऐसा बोल रुखसाना के नंगे कंधे पे हाथ रख देता है.
नशे मे घिरती रुखसाना को ये स्पर्श बड़ा ही मादक लगता है वैसे भी रुखसाना कामवासना से भरी स्त्री थी उसे उत्तेजित होने मे वक़्त नहीं लगता था, हो भी ऐसा ही रहा था.
कहाँ वो दरोगा को फ़साने आई थी.... कहाँ खुद दरोगा कि चाल मे घिरती चली जा रही है...


तो क्या रंगा आज़ाद नहीं हो पायेगा?
रुखसाना तो खुद नशे मे डूबती जा रही है?
दरोगा कि कामवासना उसे बचा पायेगी या ले डूबेगी?
बने रहिये... कथा जारी है
 
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चैप्टर-3 नागमणी की खोज अपडेट -42

रात गहरा गई थी सभी लोग अपनी अपनी कौशिश में लगे हुए थे
रुखसाना रंगा को छुड़ाने की फिराक में थी वहीं विष रूप ठाकुर की हवेली में नागमणी की खोज जारी थी
उसने पूरी हवेली छान मारी थी परन्तु नागमणी का कोई नामोनिशान नहीं था ,
भूरी काकी के कमरे के पास में ही चोर मंगूस खोज में लगा था कि उसकी नजर एक काले साए पे पड़ती है मंगुस सांस रोके खड़ा हो जाता है ,
वो साया इधर उधर देखता है और हवेली के पिछ्ले हिस्से की और चल पड़ता है
चोर मंगूस- ये इतनी रात को हवेली से बाहर कौन जा रहा है ?
मुझे पता लगाना होगा ये सोच मंगूस भी उस साए के पीछे लगा जाता।
जरूर ये साया किसी औरत का है ,साए के हिलते स्तन और मतकती गांड इस बात के सबूत थे कि साया किसी मादक भारी हुई स्त्री का ही है।
साया हवेली से बाहर निकाल के चलता ही जा रहा था दूर बहुत दूर ,
मंगूस- कौन है ?जब से चली ही जा रही है ,ये तो काली पहाड़ी का सुनसान इलाका आ गया चक्कर क्या है ?
वो साया एक गुफा नुमा कमरे में प्रवेश करता चला जाता है ,मंगूस भी दीवार के सहारे चिपक के अंदर झांकने की कौशिश करता है साफ कुछ दिख नहीं रहा था शायद सुनाई से सके।
अंदर गुफा में एक पूर्ण नग्न व्यक्ति तपस्या की अवस्था में बैठा हुआ था उसका बड़ा सा काला भयानक लंड चट्टान से नीचे की तरफ झुल रहा था।
साया :- हम्ममम।। प्रणाम स्वामी महान तांत्रिक उलजुलूल
इस नाचीज़ का प्रणाम स्वीकार करे ।
तांत्रिक उलजुलुल इस आवाज से भलीभांति परिचित था वो तुरंत बेचैनी से आंखे खोल देता है।
तांत्रिक :- तू....तू....तुम....इतने सालो बाद ? तांत्रिक की आंखे उस साए को देख पूरी बाहर को आ गई थी।
वो हद से ज्यादा हैरान था।
साया :- हां मेरे स्वामी मै..आपकी धर्म पत्नी कामरूपा
तांत्रिक उठ खड़ा होता है "चुप कर रंडी मत कह मुझे अपना स्वामी अपनी गंदी जबान से वरना जबान खींच लूंगा तेरी "
कामरूपा:- क्यों नाराज होते है प्राणनाथ ? वो बला की खूबसूरत औरत एक कामुक मुस्कान बिखेर देती h
और अपनी मादक चाल चलती हुई तांत्रिक उल्जुलुल के पास पहुंच जाती है।
तांत्रिक उस अपने इतने पास पाकर पिघले लगता h।
बहार मंगु्स ये सब देख सुन के हैरान था "मादरचोद ये चल क्या रहा है यहां में नागमणी ढूंढ रहा हूं और यह अलग ही चोद चल रही है "
तांत्रिक :- दूर रह मुझसे नापाक पापी औरत जरूर तुझे कोई काम होगा मुझसे तभी मेरे पास आई है ?
कामरूपा:- आप तो सब जानते h स्वामी फिर भी पूछते है ?
तांत्रिक:- तू तो हजार साल पहले मुझे छोड़ के उस नीच पापी सर्पटा के पास चली गई थी, तू मेरे सच्चे प्यार से खुश नहीं थी
तेरे जाने के बियोग में मैंने अपना पूरा जीवन इस तांत्रिक जीवन में ही लगा दिया।
कामरूपा:- मै क्या करती मुझे सदा जवान रहना था और ऐसा सिर्फ सर्पटा ही कर सकता था.
तुम मे वो बात नहीं जो सर्पटा मे है उसका वीर्य मुझे जवान रखता है, तुम्हारे वीर्य मे ऐसी ताकत कहा? सर्पटा के वीर्य के बिना देखो मै कैसे बूढ़ी होती जा रही हु.
उलजूलुल बुरी तरह शर्मिंदा था शर्म से उसका चेहरा नीचे झुक गया था

तांत्रिक:-नीच स्वार्थी औरत क्या चाहती हो तुम ? क्या सिर्फ मेरी मर्दानगी का मजाक उड़ाने ही आई हो इतने सालो बाद ?
कामरूपा:- नहीं स्वामी.....मुझे नागमणी चाहिए ।मुझे उसका पता बताओ कहा है नागेन्द्र और उसकी नागमणी ?
तांत्रिक हैरान था " क्या??? क्यों चाहिए तुम्हें नागमणी ?
और तुम तो मुझसे भी बड़ी तांत्रिक हुआ करती थी खुद क्यों नहीं ढूंढ लेती मेरे पास आने का क्या तात्पर्य है ?
कामरूपा:- सर्पटा के लिए
तांत्रिक :- क्या?? डर और आतंक से उलजुलूलू की आंखे कटोरे से बाहर आ गई थी.
ये ये ये...क्या कह रही हो तुम? सर्पटा तो मर चूका है वीरा ने खुद अपनी बहन का बदला दिया था उस से,उस का सर धड से अलग कर दिया था.
कामरूपा:-हाहाहाहाहा...... मेरे होते ऐसा कैसे हो सकता था,मत भूलो की सर्पटा साँपो का राजा है महाशक्ति धारक है,वीरा के जाते ही मै झरने के किनारे पहुंच गई थी,जहा सर्पटा का धड तड़प रहा था उसमे अभी प्राण बाकि थे,मेरी सारी शक्ति सर्पटा को जिंदा करने में चली गई ,सर्पटा जी तो उठा परन्तु उसमे रत्तीभर शक्ति भी नहीं बची थी.
मुझे उसका वीर्य चाहिए था परन्तु वो इस हालत मे ही नहीं है की सम्भोग कर सके.
मुझे जवान होना है उलजुलूल मुझे जवान होना है मुझे उस नागमणि का पता बताओ.

तांत्रिक:- मुर्ख औरत तुझे पता है तू क्या बोल रही है,तेरी हवस और इच्छा क्या कहर ढाएगी पता है तुझे?
कामरूपा :- मुझे कुछ नहीं पता मुझे बस अपनी जवानी चाहिए.
तांत्रिक :- ऐसा नहीं हो सकता,सर्पटा की शक्ति वापस आ गई तो वो दुनिया मे कोहराम मचा देगा,मानव जाती का सम्पूर्ण विनाश कर देगा सिर्फ सर्प प्रजाति है रह पायेगी धरती पे.
कामरूपा भी जिद पेअड़ी थी और यदि कोई औरत जिद पे आ जाये तो कोई कुछ नहीं कर सकता...
कामरूपा :- मुझे लता है मेरे पतिदेव तुम आसानी से नहीं मानोगे.
मै भी जानती हु तुम्हारी कमजोरी..
ऐसा बोल कामरूपा अपनी ब्लाउज एक ही झटके मे खोल फेंकती है उसके मदमस्त सुडोल बड़े स्तन बाहर को छलक जाते है.
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पीछे मंगूस नंगी पीठ देख के हैरान था गोरी एक दम चिकनी कैसी हुई पीठ और कमर उसके निचे लहंगे मे कैद बड़े से हिलती गांड.
आगे उलजुलूल की भी हालत ठीक नहीं थी वो सालो बाद अपनी पत्नी को इस रूप मे देख रहा था,भले कामरूपा उसे छोड़ के चली गई थी परन्तु उलजुलूल के मन मे कामरूपा ही बस्ती थी.
उसका जवान जिस्म मदमस्त अंग चोड़े चूतड.
बड़े स्तन चिकना पेट,गहरी नाभि आज भी कामरूपा किसो अप्सरा से काम नहीं है.
"नहीं नहीं...ये मै क्या सोच रहा हु मै सन्यास ले चूका हु,ये पाप है "
तांत्रिक आज खुद से लड रहा था..

उधर थाने मे रुखसाना नशे और मदहोशी से लड़ रही थी,वो खुद को सँभालने की भरसक कोशिश कर रही थी परन्तु दरोगा की छुवन उसे वापस मदहोशी की खाई मे धकेल देती...

बने रहिये कथा जारी है....
 
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रुखसाना लगातार मदहोशी मे घिरती चली जा रही थी,उसका बदन उसका साथ नहीं दे रहा था वही हालत दरोगा वीर प्रताप के भी थे
उसका हाँथ लगातार रुखसाना के नंगे कंधे पे चल रहा था,हाथ स्तन की गोलाई तक आता और वापस चला जाता,रुखसाना चाहती थी की दरोगा स्तन पकड़ के भींच दे परन्तु दरोगा को इसी छुवन और छीटाकसी मे मजा आ रहा था.
रुखसाना मदहोशी मे अपनी गर्दन पीछे कुर्सी पे टिका देती है उसकी नजरें दरोगा की नशे मे लाल आँखों से टकरा जाती है नजरों मे एक मौन स्वस्कृति थी रुखसाना के.जैसा कहना चाहती हो भोग लो मुझे तड़पा क्यों रहे हो.
दरोगा के हाथ चलते चलते स्तन और लुंगी की बिच आने लगे ऊँगली लुंगी की लाइन से छूने लगी, रुखसाना के निपल कड़क हो के लुंगी से साफ झलक रहे थे,
दरोगा का मकसद पूरा होता दिख रहा था.
दरोगा से रहा नहीं जाता उसकी उंगलियां स्तन मे घुसती चली जाती है और सीधा निप्पल पे आ के रूकती है निप्पल बिलकुल कड़क हो के तने हुए थे जो की दरोगा की दो उंगलियों के बिच पीस गए थे.
रुखसाना :- आअह्ह्ह.... दरोगा जी बस इतना ही बोल पाई की हवस से उसकी आंखे बंद हो चली, डाकुओ के साथ तो खूब सम्भोग किया था रुखसाना ने आज एक पुलिस वाले के हाथ अलग ही रोमच पैदा कर रहे थे,ऐसा रुखसाना ने नहीं सोचा था.
उसके बदन मे एक पुलिस वाले की छुवन से अलग ही सुरसूरी उत्तपन हो रही थी एक कामुक अहसास था दरोगा के स्पर्श मे.
दरोगा की ऊँगली के बिच रुखसाना के निप्पल अठखेलिया कर रहे थे,वीरप्रताप बहुत दिनों से प्यासा था उसे कोई होश नहीं था वो लगातार रुखसाना के निप्पल को रगड़े जा रहा था,स्तन पे बँधी लुंगी की गांठ ढीली होती चली जा रही थी.
आअह्ह्हम...दरोगा साहेब रुखसाना मदहोशी मे सिस्कारिया भर रही थी.
दरोगा को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था उसे सिर्फ एक नायब जवान जिस्म दिख रहा था. तभी लुंगी की पूरी गांठ खुल जाती है लुंगी सरकती हुई कमर मे जमा होने लगती है,अचानक हुए इस अहसास से दोनों ही दोहरे हो गए थे,दरोगा की तो आंखे ही फट पड़ी थी ऐसे नायब तराशे हुए स्तन देख के,कमरे मे स्तन के गोरेपान से उजाला फ़ैल गया था
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रुखसाना तुरंत खुद को संभालती है और होने स्तन पे हाथ रख एक नाकामयाब कोशिश करती है अपनी इज़्ज़त ढकने की.
परन्तु हुआ इसका उल्टा रुखसाना के हाथ दरोगा के हाथ को अपने स्तन पे भींचते चले गए..
आआहहहहहह.....उम्मम्मम....
दरोगा अपने हाथ पर रुखसाना के हाथ का दबाव पा के उन्माद मे झूम उठा उसने भी कामवासना मे भर के जोर से स्तन को भींच दिया इतनी ताकत से भींचा की रुखसाना मे हलक से चीख निकल गई.
स्तन ने लालिमा छोड़ना शुरू कर दिया.
अब ये खेल शुरू हो गया था जिसमे दोनों की सहमति थी.दरोगा पूरी ताकत से रुखसाना के स्तन का मर्दन कर रहा था वही रुखसाना की सांसे धोकनी की तरह फूल रही थी जिस वजह से उसके स्तन फूल के दुगने हो गए थे.
आअह्ह्ह.... दरोगा जी और मसलिये इन्हे
दरोगा ऐसी विनती सुन मुस्कुरा उठा उसका इरादा कामयाब हो चूका था रुखसाना पूरी तरह गरम हो गई थी.
दरोगा वीरप्रताप मौके को भाँप के कुर्सी के आगे आ जाता है बिलकुल रुखसाना से चिपक के खड़ा हो जाता है उसकी पेंट का उभार रुखसाना के गाल को छू रहा था,रुखसाना उत्तेजना वंश अपने चेहरे को उस उभार पे रगड़ रही थी.
दरोगा स्तन को जोर जोर से भींचे जा रहा था इस उन्माद से उसका लंड पेंट फाड़ के बाहर आने को आतुर था वो अपनी चैन को निचे सरका देता है एक होरा नस से भरा लंड बाहर को गिर जाता है जो को सीधा रुखसाना के होंठ पे गिरता है
नशे मे धुत रुखसाना दरोगा के लंड को मुँह मे भर लेती है,गरम गीले मुँह मे लंड का अहसास पाते ही दरोगा सिहर जाता है वो तो इस सुख को भूल ही चूका था सालो बाद उसके लंड को सुकून मिला था, रुखसाना आंख बंद किये लपा लाप लंड चाटे जा रही थी,
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हालांकि दरोगा का लंड 6इंच का ही था परन्तु सालो बाद हवस और कामवासना के संचार ने उसके लंड मे फौलाद भर दिया था,लंड किसी लोहे की दहकती छड़ जैसा गरम और सख्त हो गया था ये गर्मी रुखसाना के मुँह मे पिघल रही थी रुखसाना ने रंगा बिल्ला के बड़े बड़े भयानक लंड गले तक लिए थे वो दोनों किसी जानवर की भांति उसका मुख चोदन करते थे
लेकिन आज दरोगा जैसा सभ्य व्यक्ति प्यार से रुखसाना का मुँह चोद रहा था.
ये प्यार का कोमल अहसास पा के रुखसाना दोहरी हुई जा रही थी उसकी कामवसाना चरम पे पहुँचती महसूस हो रही थी,
उसकी चुत से पानी रिसने लगा,सफ़ेद पानी की बुँदे कुर्सी को भीगाने लगी.
दरोगा के लिए भी ये गर्मी अब सहन के बाहर हो चली थी सामान्य दिन होता तो दरोगा कबका वीर्य फेंक चूका होता परन्तु आज शराब का शुरूर और सालो बाद की हवस उसके लंड को ताकत दे रही थी वो मैदान मे जम के टिका हुआ था.
दरोगा सर निचे किये अपने लंड को लाल होंठो के बिच आता जाता देख रहा था थूक और लार निकल निकल के स्तन को पूरी तरह भीगा चुकी थी.
दरोगा कभी भी झड़ सकता था परन्तु आज वो ऐसा सुनहरा मौका इतनी जल्दी नहीं गवाना चाहता था.
वो अपने लंड को रुखसाना के मुँह से बाहर खिंच लेता है,रुखसाना हैरानी से दरोगा की एयर देखती है उसकी सूरत ऐसी थी जैसे किसी लॉलीपॉप चूसते बच्चे से किसी ने लॉलीपॉप छीन ली हो.
उसकी नजरों मे सवाल था...."ये क्यों किया मुझे चूसना है और चूसना है "
उसे दरोगा के लंड का स्वाद पसंद आया था.
दरोगा बिना कुछ बोले घुटनो के बल कुर्सी पे बैठी रुखसाना मे सामने झुकता चला जाता है.
रुखसाना कुछ समझ पति उस से पहले ही दरोगा ने अपना मुँह लुंगी के अंदर रुखसाना की दोनों जांघो के बिच घुसा दिया.
आअह्ह्ह.....शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....क्या महक है इस साली की चुत की चुत की महक दरोगा के रोम रोम मे उतरती चली गई.
उसकी जीभ स्वतः ही दांतो की रक्षा दिवार को भेदती बाहर आ गई और रुखसाना को चुत मे घुसती चली गई.
आअह्ह्ह.....रुखसाना मजे और लज्जत से सिसकारी भरती कुर्सी के सिरहाने पे सर टिका देती है उसकी आंखे बंद थी उसे दरोगा का प्यार से चुत चाटना पसंद आ रहा था,चुत का रस रिसता हुआ सीधा दरोगा के मुँह मे समा रहा था,अमृत पिता चला गया दरोगा....इस अमृत ने हवस का ऐसा संचार किया की दरोगा पूरा मुँह खोले रुखसाना की चुत पे टूट पडा.
यहाँ दरोगा चुत चाट रहा था....
वही दूर उसके घर मे उसकी पत्नी कलावती सुलेमान से चुत चाटवा रही थी.
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माथे पे बिंदी गले मे मंगलसूत्र डाले कलावती चुत चाटवा रही थी,हाथो की चुडिया छन छाना रही थी
आअह्ह्ह...सुलेमान चूस अपनी मालकिन की चुत,खां जा इसे फिर पता नहीं कब मौका मिलेगा
कलावती हवस मे ना जाने क्या बड़बड़ा रही थी...सुलेमान था की चुत खाये जा रहा था कभी चुत के दाने को दांतो तले दबा देता तो कभी पूरी जीभ को गांड के छेद से के के चुत के दाने तक चाट लेता..
कलावती बिस्तर पे पडी सर इधर उधर पटक रही थी...चाटअककककक....छत्तकककक...
तभी दो जोरदार थप्पड़ कलवाती की चुत पे पड़ते है.
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आह्हःब...सुलेमान उम्म्म्म...
ले मेरी रंडी मालकिन और ले चाटककककक....
कलावती की चुत लाल लाल हो गई थी थप्पड़ पड़ने से उसकी फूली हुई गोरी चुत थरथरा जाती.
सुलेमान को ये देख हवस का उन्माद चढ़ रहा था,कलावती भी कहाँ काम थी वो अपनी टांगे फैलाये थप्पड़ खां रही थी.
दोनों पति पत्नी हवस मे डूबे थे..
ना जाने किसकी हवस क्या परिणाम लाएगी.
बने रहिये कथा जारी है...
 
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काली पहाड़ियों के बिच स्थित तांत्रिक उलजुलूल की गुफा मे माहौल गरमा गया था,कामरूपा के गोरे बड़े स्तन देख तांत्रिक का मुँह खुला रह गया था "मेरी दोखेबाज पत्नी आज भी कितनी सुन्दर है आअह्ह्ह....."
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उलजुलूल के मुँह से हलकी काम उत्तेजक सिस्करी निकल पड़ती है जिसे कामरूपा बेहतरीन ढंग से सुन पाई थी ये सिसकरी उसकी जीत की गवाह थी एक स्त्री का बदन अच्छे अच्छे तापस्वीयो को भी मजबूर कर सकता था इसका ताज़ा उदाहरण चोर मंगूस खुद अपनी आँखों से देख रहा था.
उसकी नजरें बराबर कामरूपा पे टिकी हुई थी हालांकि उसे कामरूपा का चेहरा नहीं दिख रहा था फिर भी उसकी हालत उसकी पीठ कमर देख के ही ख़राब थी.
ना जाने तांत्रिक किस तरह खुद को संभाल रहा था उसके स्तन देख के.
कामरूपा अपने स्तन को पकड़ के दबा देती है,aàहहह..... मेरे पति देव देखो ये किस तरह मचल रहे है इन्हे दबाइये ना.
ऐसा बोल वो अपने कड़क निप्पल को पकड़ के उमेड देती है एक पत्नी दूध जैसी रस की धार छूट के तांत्रिक के सांप जैसे लम्बे परन्तु सोये हुए लंड पे हीर जाती है.
तांत्रिक :- ये क्या है कामरूपा? बंद करो ये नाटक मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है तुम मे ना इन सब क्रिया कलापो मे,
तांत्रिक मुँह से विरोध तो कर रहा था परन्तु वो सख़्ती नहीं थी उसके शब्दों मे कामरूपा का गरम दूध उसके लंड पे पड़ते है उसके लंड ने जैसे करवट ली हो.
जैसे किसी सोते जानवर के मुँह पे पानी का छिंटा मारा हो और उस जानवर ने अंगड़ाई ली हो ऐसा ही हाल तांत्रिक के लंड का था.
कामरूपा :- गौर से देखो उलजुलूल मेरे महबूब कैसे तुम्हारा लंड मेरी खुसबू को पहचान रहा है.
ऐसा बोल वो तांत्रिक के पास पहुंच घुटने के बल बैठ जाती है अब उसके भारी स्तन सीधा तांत्रिक के लंड के सामने थे.
अपने भारी स्तनों को उठा के तांत्रिक के घुटनो पे रख देती है,उन्हें मसलने लगती है उसके स्तन के ठीक निचे तांत्रिक का बड़ा मोटा काला लंड झूल रहा था.
उलजुलूल बेबस था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था वो खुद को जितना रोकता उसका लंड कामरूपा के यौवन को देख अंगड़ाई लेने लगता..
तभी कामरूपा अपने दोनों स्तन को पकड़ के आपस मे सत्ता देती है और तांत्रिक की आँखों मे एक कामुक नजर डाल के अपने मुँह को खोल ढेर सारा थूक अपने स्तनों की घाटी मे गिराने लगती है...उसके स्तन के बिच का मार्ग बिलकुल चिकना चिपचिपा हो चला था.
स्तन छोड़ते है धम से तांत्रिक के लंड पे गिरते है स्तन की मार से लंड फड़फड़ाने लगता है,कामरूपा अपनी नजरें तांत्रिक की आँखों मे गाड़ाए हुई थी इस नजर मे कामवासना विधमान थी हवस से भारी नजरें थी कामरूपा की.
वो वापस से अपने स्तन को पकड़ के ऊपर उठा देती है और वापस स्वागत ढेर सारा थूक स्तन के बिच डाल देती है,ये नजारा देख उलजुलूल फड़फड़ा जाता है उसका सब्र जवाब देने लगता है बरसो से सोइ काम इच्छा अपने फन फैलाने लगती है...देखते ही देखते उसकी वासना उसके लंड मे सामने लगती है विशालकाय लंड खड़ा होने लगा था
वो कामरूपा की इच्छा को समझ रहा था उसकी का पालन करते हुए उलजुलूल अपने बड़े लंड को पकड़ कामरूपा के स्तन के बिच निचे से ठूस देता है.
स्तन घाटी इतनी गीली और चिकनी थी की लंड स्तन के बिच सरसरा जाता है.
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कामरूपा अपने स्तन पकड़े तांत्रिक के लंड को पनाह दे देती है तांत्रिक का लंड थूक से सरोबर हो आगे पीछे होने लगा था.
कामरूपा के हाथ उलजुलूल के लंड की जड़ को थाम चुके थे,तांत्रिक मदहोशी मे अपनी जाँघे खोल देता है अब लंड स्तन चोदन के लिए पूरी तरह तैयार था जिसका फायदा कामरूपा बखूबी उठा रही थी.
कामरूपा के चेहरे पे कामुक और कुटिल मुस्कान थी उसने दूसरी सीढ़ी पे पैर रख दिया था.
कथा जारी है....
 
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चैप्टर -2, ठाकुर कि शादी अपडेट -14

विषरूप से ठाकुर कि बारात धूम धाम से निकल रही रही.
कामगंज अभी दूर था.. दरोगा वीर प्रताप रास्ते मे निगरानी के लिए ग्रामीण वेश मे बारात मे शामिल हो चुके थे.
इधर रंगा बिल्ला का प्लान भी तैयार था, बिल्ला अपने कुछ आदमियों क साथ जंगल मे छुपे बैठे थे लाठी डंडोऔर विस्फोटक हथियारों से लेस थे,
रंगा ठाकुर कि बारात मे शामिल हो गया था, सामान उठाये मजदूरों कि टोली मे घुस चूका था..
देखना तो कौन कामयाब होता है?
वीरप्रताप या रंगा बिल्ला....

रामनिवास के घर चोर मंगूस सुबह से ही साज सज्जा वाले मजदूर का वेश बनाये अपनी नजरें बनाये हुए था.
सुबह से ही मेहमानों का आना जारी था,कामवती कि सखियाँ उसे तैयार कर रही थी, कोई छेड़ रहा था, गहनो के अम्बार लगे थे...
चोर मंगूस कामवती के कमरे मे दाखिल होता है..
मंगूस :- दीदी बाउजी ने कमरा सजाने के लिए बोला था, इज़ाज़त हो तो काम करू..
सहेलियां चौंक जाती है.
एक सहेली :- क्या भैया अभी दुल्हन तैयार हो रही है बाद मे आना, हम खुद बुला लेंगी आपको.
चोर मंगूस दिखने मे था ही इतना मासूम कि उसपे कोई गुस्सा ही नहीं कर पाता था
जाते जाते मंगूस कि नजर कामवती के जेवरो पे पड़ती है
वाह वाह ठाकुर ने बहुत माल दिया लगता है रामनिवास को, खूब गहने लिए है कामवती के लिए.
बला कि सुन्दर स्त्री है कामवती ठाकुर तेरे तो मजे है...
मंगूस वापस काम मे लग जाता है, याका यक उसके मन मे विचार आता है यदि अभी मैंने ये गहने चुरा लिए तो बेचारी कि शादी नहीं हो पायेगी? बढ़ा बुरा होगा
मै बुरा इंसान नहीं हूँ... मै ऐसा नहीं कर सकता.
लेकिन हूँ तो मै चोर ही.... शादी के बाद चुरा लूंगा.
हाहाहाहाबा.......
मन ही मन हसता वो घर के पीछे मूतने चल देता है... वो धोती उतार के मूत ही रहा था कि उसे अपने पीछे कुछ खन खानने कि आवाज़ आती है. वो चौक के देखता है तो उसे एक खुली खिड़की दिखती है..
कोतुहल वस वो खिड़की से अंदर झाँकता है..... अरे दादा... उसके तो होश ही उड़ जाते है.
रतीवती अंदर अपने कमरे मे पूर्णत्या नंगी सिर्फ सोने के गहने पहने आदम कद शीशे के सामने खुद को निहार रही थी, गोल सुडोल स्तन के बीच झूलता हार माथे का मांगटिका,रतीवती साक्षात् काम देवी लग रही थी.
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चोर मंगूस ऐसी खूबसूरती, ऐसा यौवन, ऐसी काया देख के हैरान था, रतीवती कि मादकता से लबरेज बदन ने उसके पैरो मे किले ठोंक दिए थे वो अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रहा था वो एकटक उस बला कि सुन्दर स्त्री को देखे जा रहा था.
क्या बदन था माथे पे बिंदी, गले मे हार, कमर मे चमकती हुई कमर बंद, हाथो मे चुडिया....
कमरबंद नाभि के नीचे बँधी हुई खूबसूरती पे चार चाँद लगा रही थी,
उसके नीचे पतली सी चुत रुपी लकीर, जो कि रतीवती कि कामुकता और यौवन का परिचय दे रही थी
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ऐसा चोरी का माल तो उसने कभी देखा ही नहीं था ये तो चुराना ही है चाहे जो हो जाये... जो उसे चाहिए था वो दोनों ही चीज रतीवती के पास थी.
सोना भी और सोने जैसा बदन भी...
अंदर रतीवती इन सभी बातो से बेखबर खुद को निहार रही रही, या यु कहे वो आत्ममुग्ध थी.
अपना नंगा बदन देख उसे असलम कि याद सताने लगती है आखिर इतने दिन बाद वो फिर से असलम को देखने वाली थी वही डॉ. असलम जिसे उसके यौवन और बदन कि कद्र है, जिसने उसकी कामुकता का सही मूल्य पहचाना....
रतीवती को ये सब बाते याद आते ही स्वतः ही अपनी चुत पे हाथ चला देती है.... इतने मे ही चुत छल छला जाती है रसजमीन पे टपक पड़ता है.... तापप्पाकककक.... कि शब्दहीन आवाज़ थी लेकिन ये आवाज़ चोर मंगूस कि कानो मे घंटे कि तरह सुनाई दे..
मंगूस :- हे भगवान... क्या स्त्री है ऐसी कामुकता
मेरी जिंदगी कि शानदार चोरी होंगी, भले जान जाये
इतने मे कामवती के दरवाजे पे आहट होती है.
अरी भाग्यवान कब तक तैयार होंगी, बारात आती ही होंगी.. रामनिवास था.
रतीवती :- बस आई कम्मो के बापू
उसे कुछ सरसराहत कि आवाज़ आती है वो पीछे मुड़ के देखती है, कोई नहीं था...
चोर मंगूस छालावे कि तरह गायब हो चूका था.
कामगंज से 30Km दूर एक गांव स्थित था

गांव घुड़पुर

यहाँ रहते हे ठाकुर भानुप्रताप
वो गुस्से मे अपनी आलीशान हवेली कि बैठक मे इधर उधर टहल रहे थे भून भुना रहे थे.
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भानुप्रताप :- मै कैसा बाप हूँ, वो हरामी ज़ालिम सिंह मेरी बेटी का घर उजाड़ के दूसरी शादी करने चला है.
और मै कुछ कर भी नहीं सकता...
पास बैठी उनकी बेटी उन्हें ढानढस बँधाती है,
बेटी :-आप चिंता ना करे पिताजी ज़ालिम सिंह से पाई पाई का हिसाब लिया जायेगा, उसकी तो 7 पीढ़ियों को खून क आँसू रोने होंगे.
भानुप्रताप :- पर कैसे? कैसे होगा रूपवती ये सब?
क्या सोचा है तुमने?
ज़ी हाँ ये रूपवती कि ही हवेली है, भानु प्रताप उनके पिता है जो कि बूढ़े हो चुके है, चुप चाप अपनी बेटी का घर उजड़ते देख रहे है तो काफ़ी उदास और परेशान है.
बाप बेटी के बीच होती बात हवेली कि बैठक कि दिवार से लगे किसी के कान तक पहुंच रही थी.
परन्तु जैसे ही कामवती का जिक्र आया उसके कान खड़े हो गये... " ये कामवती..? किस कामवती कि बात कर रहे है? कही वही कामवती तो नहीं जिसकी मुझे हज़ारो सालो से तलाश है "
" देखना होगा, आज रात ही गांव कामगंज जाना होगा, ठाकुर कि शादी मे "

भानुप्रताप :- और ये हमारा लाडला कहाँ मर गया है? कहाँ है वो आजकल?
रूपवती :- पिताजी आप तो जानते ही है हमारा छोटाभाई विचित्र सिंह हाथ से निकल गया है रात रात भर गायब ही रहता है, सुबह ही आता है.
मुझे तो लगता है कि किसी गलत संगत का शिकार हो गया है हमारा भाई ...
भानुप्रताप :- क्या करे विचित्र सिंह का?
बड़बड़ता हुआ अपने कमरे कि और निकल जाता है.
रूपवती अपने छोटे भाई के बारे मे सोचने लगती है...
ठाकुर विचित्र सिंह
जैसा नाम वैसा काम
उम्र 21 साल, बिल्कुल मासूम गोरा चेहरा
जब 10 साल के थे तो गांव मे नौटंकी आई थी, अभिनय के ऐसे दीवाने हुए, ऐसे प्रभावित हुए कि नौटंकी कि टोली क साथ ही हो लिए 10 साल तक गांव गांव शहर शहर घूम घूम के खूब अभिनय किया, खूब चेहरे बदले..
अचानक घर कि याद आई तो वापस आ गये... इस बीच रूपवती कि शादी ज़ालिम सिंह से हो चुकी थी, पिताजी अकेले थे तो हवेली मे रहने का ही फैसला किया.
विचित्र सिंह अभिनय, रूप बदलने, आवाज़ बदलने मे खूब माहिर अभिनयकर्ता है..... इनको बचपन मे चोरी कि आदत थी अब पता नहीं सुधरे कि नहीं..
वक़्त ही जाने
वैसे है कहाँ विचित्र सिंह आज सुबह से ही गायब है...
रूपवती :- ये लड़का भी अजीब है कब आता है कब जाता है पता ही नहीं चलता
वो भी अपने कमरे मे बिस्तर पे जा गिरती है.... आज आँखों मे नींद नहीं थी, बल्कि यु कहिये रूपवती जब से तांत्रिक उलजुलूल से मिल के लोटी है उसकी आँखों से नींद कोषहो दूर थी, जब से वीर्य रुपी आशीर्वाद ग्रहण किया है रूपवती के बदन मे कामुकता का संचार हो गया है, वो जब से लोटी है तब से हमेशा हर वक़्त उत्तेजित रहती है.. चुत से मादक रस टपकता ही रहता है,उसे अब लंड चाहिए था, बड़ा लंड तांत्रिक उलजुलूल जैसा जो उसकी बरसो कि प्यास, हवस बुझा सके....
रूपवती कमरे मे काम अग्नि और बदले कि भावना से जल रही थी...
इधर हवेली से निकल के तूफान कि गति से टपा टप... टपा टप.... रूपवती का वफादार घोड़ा "वीरा " गांव कामगंज कि और दौड़ा जा रहा था....ऐसी गति से कोई साधारण घोड़ा तो नहीं दौड़ सकता....?
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तो कौन है ये वीरा?
क्या कहानी है इसकी?
और क्या विचित्र सिंह और चोर मंगूस का कोई रिश्ता है?
सवाल बहुत है...
जवाब के लिए बने रहिये.. कथा जारी है
आपका दोस्त andy pndy
Shandar story hai prtayek Update me kuch na kuch rahash ujagar ho raha hai
 
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चैप्टर :-3 नागमणि की खोज अपडेट -45

कामरूपा सफलता की सीढ़ी चढ़ रही थी
वही थाने मे दरोगा नाकामयाबी की गहराई मे गिरता जा रहा था,रुखसाना की जांघो के बिच मुँह फ़साये अमृत पान कर रहा था.
लाप लाप....लप चाटे जा रहा था चुतरस था की खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था,रुखसाना की चुत जीभ की खुदरन से अति उत्तेजित हो के खुल बंद हो रही थी उसकी चुत का दाना पूरी तरह उभार के बाहर निकाल आया था जिसे दरोगा मे अपने होंठो के बिच भर लिया और चुभलाने लगा, यही वो छड़ था जहा रुखसाना अपना सब्र खो देती है उसकी चुत एक तेज़ पिचकारी के साथ दरोगा को दूर फेंक देती है दरोगा पीछे को और लुढ़क जाता है रुखसाना लगातार कामरस और पेशाब को धार दरोगा की छाती पे छोड़ती चली जा रही थी...

थाने का कमरा चीख से गूंज उठा था...आआहहहहह....दरोगा साहेब....उम्मम्मम...
रुखसाना हाथ को चुत पे रख निकलते झरने को रोकने का भरसक प्रयास करती है किन्तु आज जैसे रुखसाना झड़ी थी वैसा कभी नहीं हुआ था हाथ से लग के पेशाब इधर उधर बिखरने लगा.
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आअह्ह्ह....
आआहहहह..उम्मम्मम.....माँ आअह्ह्ह....
इस आखरी चीख के साथ सब शांत हो गया था अजीब सन्नाटा पसर गया चारो और सिर्फ गिलापन था मादक खुसबू फैली हुई
थी.
निचे गिरा दरोगा हैरानी से आंखे फाडे इस बला के कामुक खूबसूरत औरत को सख्तीलित होते देख रहा था ऐसा नजारा ऐसा दृश्य उसने कभी सपने मे भी नहीं देखा था,"भला कोई स्त्री ऐसे भी झड़ सकती है "
आज जीवन मे कुछ नया सीखा था दरोगा ने.
रुखसाना कुर्सी पे पूर्णनग्न अवस्था मे बैठी थी, बैठी क्या थी झूल गई थी हाथ पाव ढीले पड़ गए थे चुत से अभी भी बून्द बून्द अमृत टपक रहा था फूल के पाव रोटी बन गई थी चुत.

शहर मे
सुलेमान भी दरोगा की बीवी पे टुटा हुआ था सुलेमान जितना मजबूत और काम क्रिया मे माहिर था उतनी ही कलावती भी जटिल औरत थी आसानी से झड़ने का नाम ही नहीं लेती थी.
सुलेमान चुत और गांड को चाट चाट के बिलकुल गिला कर चूका था,चुत चाटता तो ऊँगली गांड मे धसा देता, गांड चाटता तो चुत मे ऊँगली फसा देता,
कलावती इस क्रिया से मरी जा रही थी उसकी उत्तेजना का कोई ठिकाना ही नहीं था दोनों हाथो से अपने स्तन को मसले जा रही थी.जितनी ताकत से भींच सकती थी भींच रही थी,अपनी गांड उठा उठा के सुलेमान के मुँह पे पटक रही थी.
उस से रहा नहीं जाता वो उठ बैठती है और सुलेमान को निचे गिरा उसके मुँह मे गांड रख के बैठ जाती है.
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कलावती शेरनी थी जब सम्भोग पे अति थी ये बात सुलेमान भी अच्छे से जनता था इसलिए वो पहले ही तैयार था निचे गिरते ही वो अपना मुँह खोल चूका तो और एक लम्बी सांस ले ली थी क्युकी अब अगली सांस लेने का मौका कब मिलेगा वो कलावती की मर्ज़ी पे निर्भर था.
कलावती अपनी गांड सुलेमान के खुले मुँह पे रख देती है उसकी चुत सुलेमान की नाक पे दब गई थी और मुँह मे गांड का छेद भरा था.
सुलेमान को सांस लेने की कोई जगह नहीं थी.
अब सुलेमान को जिन्दा बचने का एक ही तरीका पता था वो था कलावती को जल्द से जल्द सख्तीलित करवाना.
सुलेमान अपना पूरा मुँह खोले कलावती की गांड के बड़े छेद को चूस रहा था चाट रहा था उसकी नाक चुत मे घुसी हुई थी चुत से निकलती मादक महक सीधा नाक मे घुसती चली जा रही थी इसका असर ये हुआ की सुलेमानी काला बड़ा लंड पूरी तरह फन फनाने लगा,
कलावती आंख बंद किये हुए अपने स्तन मसल रही थी उसको जितनी उत्तेजना बढ़ती इतना ही दबाव सुलेमान के मुँह पे बढ़ता चला जाता.
नाक से गर्म सांसे सीधा चुत मे प्रवेश कर रही थी, सुलेमान ने जीभ गोल कर सीधा गांड मे घुसा दी एक मादक कसैला स्वाद मुँह मे घुलता चला गया,इस स्वाद ने सिर्फ मदकता थी जो सुलेमान को और ज्यादा उकसा रही थी,
सुलेमान जितना हो सकता था उतनी जीभ गांड के अंदर डाल देता है उसके होंठ गांड के चारो ओर चिपक गए थे थूक रिसता हुआ बाहर आ रहा था,ऊपर से कळवती की चुत लगातर पानी छोड़ रही थी जो निचे रिसता नाक से होता हुआ सुलेमान के मुँह मे समता जा रहा था.
सांसे थमने ही वाली थी की सुलेमान अपने मुँह को पूरी ताकत से भींच लेता है.
गांड के छेद को दांतो तले दबा के बाहर को खिंचता है...
आआआआह्हः.....उम्मम्मम कलावती दर्द ओर काम उन्माद मे तड़प उठती है उसकी चुत से अमृत धारा छूट पड़ती है.
आअह्ह्हम....सुलेमान मै गई सुलेमान उम्म्म्म....
भलभला के झड़ने लगी ढेर सारे सफ़ेद पानी से सुलेमान का चेहरा भीगने लगा काली दाढ़ी पूरी चिपचिपी हो गई. उन्माद और दर्द से कालावती अपनी गांड सुलेमान के चेहरे पे रागड़ने लगती है.

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परन्तु सुलेमान अभी भी गुदाछिद्र को मुँह मे दबोच रखा.
तभी गांड से एक तेज़ हवा निकली...पुररररररर.....फुससससस...इसी के साथ कालावती आज़ाद हो गई ओर धड़ाम से पेट के बल गिर पडी.
गांड के छेद के चारो ओर दांतो के निशान थे,सुलेमान का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था.
सुलेमान :- साली रांड मै मर जाता अभी तक तो...
कालावती सिर्फ मुस्कुरा दी उसकी तरफ देख के एक हसीन औरत गांड बाहर निकाले चूड़ी छानछनाती उसे देखे जा रही थी सांसे दुरुस्त कर रही थी.
उसकी इस मुस्कुराहट से सुलेमान का पारा सातवे आसमान पे चढ़ गया.
उसने आव देखा ना ताव पलट के कालावती के पीछे आ गया और एक ही बार मे बिना किसी चेतावनी के पूरा 9इंची मुसल लंड सीधा गांड मे पेल दिया उसके टट्टे बहती चुत से टकरा गए.
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थाअप्प्प....की आवाज़ के साथ साथ ही एक जोरदार चीख भी गूंज उठी ये चीख कालावती के खूबसूरत हलक से निकली थी...
आअह्ह्हम......हरामखोर जानवर ऐसे कौन चोदता है,छोड़ मुझे छोड़ साले..
कालावती की चीख पुकार का कोई असर नहीं था सुलेमान पे.
वो पूरी ताकत से कालावती की कमर पकड़ लेता है और लंड बाहर खिंच लेता है...लंड के साथ साथ गांड का मांस भी बाहर आने लगता है की तभी धाप....थप्पप....से लंड वापस जड़ तक अंदर डाल देता है टट्टे फिर चुत ले चोट कर देते है.
आअह्ह्ह....सुलेमान....आअह्ह्ह....
इस बार सिर्फ सिसकारी थी.
गांड के चारो और दाँत से कटे गए निशान का घेरा रहा उस की बिच लाल छेद मे एक काला मुसल फसा हुआ था
लगता था जैसे किसी ने चक्रवयूह की रचना की हो और किसी बलशाली योद्धा को बीच मे फसा लिया हो.
आज ये युद्ध जीतना है तो चक्रव्यूह तोडना होगा.
सुलेमान वो योद्धा था जो गुस्से मे पागल हो चूका था....धाड़ धाड़..धप धप घप....लगातार लंड बाहर आता और तुरंत अंदर तक घुस जाता.
चाटे जाने और कालावती के झड़ने से से गांड गीली थी इसलिए लंड घुस भी गया वरना मृत्यु पक्की थी कलावती की.
ऐसे ही बेदर्दी से लंड गांड की दिवार को तोड़ता रहा फाड़ता रहा....टट्टे लगातार चुत पे हमला कर रहे थे परिणाम स्वरूप चुत पानी छोड़ने लगी.
रस तपकने लगा सुलेमान के टट्टे होने उद्देश्य मे कामयाब हो गए थे.
आआहहब्ब.....सुलेमान फाड़ो मेरी गांड मारो और तेज़ और तेज़ मारो कस के चोदो मुझे.
इतनी बड़ी गांड कर दो की दरोगा इसी मे समा जाये.
आअह्ह्ह....उम्मम्मम...
काम पिपशु औरत क्या नहीं करती अभी दर्द मे चिल्ला रही थी अब उसी गांड को फाड़ देने की बात कर रही थी.
सुलेमान को ये शब्द ताकत दे रहे थे.
सुलेमान...फचा फच फचा फच....कालावती के बाल और गला पकड़े चोदे जा रहा था काला भयानक लड़का एक भरी हुई संस्कारी पूरी सजी धजी स्त्री की गांड की धज्जिया उड़ा रहा था.
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सुलेमान,कालावती की हिम्मत और कामवासना देख के अचंभित था


हैरान अचंभित तो चोर मंगूस भी था
कामरूपा के कामुक अवतार को देख के,कामरूपा अपने यौवन और गद्दाराये बदन से सालो से सोये लंड को जगा चुकी थी, जगाया ही नहीं अपितु उस बड़े काले लंड को अपने स्तनों मे पनाह भी दे रखी थी वो लगातर तांत्रिक के लंड को घिसे जा रही रही जब भी लंड दोनों स्तन की घाटी से बाहर आता कामरूपा अपनी जीभ बाहर निकाल के लंड के टोपे को चाट लेती.
उलजुलूल लगातार घायल होता जा रहा था उसकी तपस्या,साधना पल पल टूटती जा रही थी.
कामरूपा :- कैसा लग रहा है उलजुलूल? सम्भोग ही असली सुख है
तांत्रिक :- हम्म.....आअह्ह्ह....सिसक रहा था.
कामरूपा :- बता कहाँ है वो नागमणि?
तांत्रिक झटके से पीछे हट जाता है नीच औरत तू मुझे फसा रही है ये सब कर तू मुझसे कुछ नहीं उगलवा सकती.
लेकिन कामरूपा एक स्त्री थी वो भी कामुक गदराई स्त्री मादकता कूट कूट के भरी थी
चिंगारी तो लगा ही दी थी अब आग लगाने का समय था.
कामरूपा तांत्रिक की आँखों मे देखती हु खड़ी हो जाती है.उसके चेहरे बहुत ही खौफनाक, रहस्यमयी और कुटिल मुस्कान थी
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कामरूपा :- तुझे बताना ही होगा उलजुलूल..इसी के साथ उसके हाथ कमर मे बँधी लहंगे की डोरी पे आ जाते है और पल भर मे एक डोरी खिंच जाती है.
कामरूपा का लहंगा सरसरते हुए पैरो मे इकठा होता चला जाता है.
अब जो नजारा गुफा मे प्रस्तुत था वो किसी की भी जान ले सकता था.
बड़ी से गांड जिसपे कोई दाग़ नहीं था मांगूस उस गांड के दर्शन कर पा रहा था.
आगे तांत्रिक का रहा साहब विरोध धवस्त होता चला गया उसका लंड एक दम कड़क हो गया.
उसकी आंखे सपाट पेट गोल नाभि के निचे छोटी सी लकीर देख के फटी जा रही थी.
हलके बाल जो चुत का ताज बने हुए थे
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तांत्रिक और चोर मंगूस के हलक सुख गए थे.

तो क्या तांत्रिक टूट जायेगा?
मांगूस और कामरूपा नागमणि खोज लेंगे?
बने रहिये..कथा जारी है....
 
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चैप्टर :-3 नागमणि की खोज अपडेट -46

मंगूस और तांत्रिक के हलक सूखे हुए रहे परन्तु वही पुलिस चौकी मे दरोगा वीरप्रताप का हलक बिलकुल तर था रुखसाना के पेशाब और वीर्य से.
रुखसाना खूब झड़ी थी और आधे से ज्यादा कामरस दरोगा के गले मे समा गया था.
दरोगा ज़मीन से उठ जाता है उसका लंड पूरा पेंट के बाहर आ चूका था,लगता था जैसे कोई योद्धा रणभूमि मे गिर के उठा हो.
दरोगा भी तलवार रुपी लंड ले के वापस खड़ा था उसे अभी और युद्ध करना था.
लंड झूलाये वो रुखसाना की और बढ़ चलता है रुखसाना एकटक दरोगा को देखती कभी उसके फन फनाते लंड को देखती.
दरोगा अब जानवर बन चूका था उसके मुँह चुत रस लग चूका था आगे बढ़ रुखसाना को कंधे से पकड़ के उठा देता है रुखसाना जो अभी अभी झड़ी थी बेजान सी उठ जाती है और पेट के बल सामने रखी टेबल पे झुकती चली जाती है.लुंगी पूरी तरह बदन का साथ छोड़ चुकी थी,रुखसाना के स्तन टेबल पे दब गए थे,गांड पूरी तरह उभर के बाहर को आ गई.
दरोगा की नजर जैसे ही रुखसाना की गांड पे जाती है उसकी सोचने समझने की रही सही शक्ति भी चली जाती है.
बिलकुल गोरी गांड सामने प्रस्तुत थी दोनो पाट अलग अलग थरथरा रहे थे,बीच मे एक लकीर थी जिसमे से गांड का लाल छेद खुल बंद हो रहा था और उसके निचे चुत रुपी खजाना चमक रहा था.
पूरी लकीर मादक पानी से भारी हुई थी रस टपक टपक कर जाँघ तक जा रहा था.
ये नजारा देख दरोगा का रुकना मुश्किल था वो इस पतली दरार मे समा जाना चाहता था,
उसका मुँह खुला रह गया था इतनी शानदार गांड देख के,
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वो पीछे चिपकता चला गया उसका लंड रुखसाना की दरार मे कही हलचल करने लगा दरोगा की हालत किसी कुत्ते की तरह थी कुत्ते का लंड खुद ही चुत ढूंढ लेता है ठीक वैसे ही दरोगा की एक दो बार की नाकामयाब कोशिश के बाद लंड धच से रुखसाना की गीली चुत मे समाता चला गया.

आअह्ह्ह.....उम्म्म्म...दरोगा जी
एक घुटी हुई मादक सिसकारी रुखसाना के गले से फुट पडी.
दरोगा बरसो से प्यासा था उसे जैसे ही अहसास हुआ की उसका लंड चुत मे जा चूका है वो धपा धप धपा धप एक के बाद एक धक्के मरने लगा...रुखसाना बस मीठी सिसकारी लेती रही,छोटे लंड का भी अपना ही मजा है उसे आज मालूम पडा था.
दरोगा पे जैसे खून सवार था वो पूरी ताकत के साथ चुत मे लंड पेले जा रहा था फच फच फच....की आवाज़ के साथ ही चुत से पानी निकल निकल के दरोगा के टट्टो को भीगा रहा था.
चुत की रगड़ से लंड की गर्मी बढ़ती ही जा रही थी, अब ये गर्मी सहन से बाहर थी दरोगा एक पैर उठा के टेबल पे रख देता है और पूरा लंड का दबाव रुखसाना की चुत पे बना देता है अभी एक दो झटके ही पड़े थे की दरोगा रुखसाना के ऊपर ही गिर पडा...आआहहहह.....रुखसाना
उसके मुँह से एक जोरदार आह निकल पडी जैसे कोई अंतिम समय मे चिल्लाया हो, दरोगा रुखसाना जैसी कामुक स्त्री का संसर्ग बर्दास्त नहीं कर पाया और चुत मे ही झड़ गया.
ऐसे झाड़ा था जैसे की उसकी आत्मा लंड के रास्ते बाहर निकल गई हो.दरोगा टेबल के निचे ही लुढ़क पडा उसकी सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी शरीर मे कोई जान नहीं बची थी जोश ठंडा हुआ तो शराब का नशा हावी होने लगा उसकी आंखे नशे से बंद होने लगी..पानी पानी....पानी दो मुझे दरोगा बस इतना ही बोल पा रहा था.
रुखसाना के चेहरे पे विजयी मुस्कान तैर गई वो खड़ी होती हुई और दरोगा के दोनों तरफ पाँव रख के मुँह के सामने बैठती चली गई.
रुखसाना :- बेचारा दरोगा ले पी पानी...ऐसा बोल उसने अपनी चुत खोल दी भलभला के पेशाब की धार दरोगा के चेहरे पे गिरने लगी जिसे दरोगा जीभ निकाल निकाल के पिने लगा,
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उसको इतनी प्यास लगी थी की किसी कुत्ते की तरह सब पेशाब चाट लेना चाहता था.
रुखसाना ने हाथ पीछे कर दरोगा की पेंट से हवालत की चाभी निकाल ली और अपने उतारे कपड़े कंधे पे डाले बाहर को चल दी, दरवाजे पे पहुंच पीछे मूड के देखा तो दरोगा वैसे ही बेजान सा बेहोश पडा था.
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रुखसाना :- बेचारा वीर्य प्रताप सिंह....हाहाहाहा...
दरोगा,रुखसाना के बुने कामजाल मे फस के हार चूका था

वही...दूसरी और कामरूपा अपने काम का जाल पूरी तरह फैला चुकी थी,
तांत्रिक के रोम रोम मे उत्तेजना की लहर दौड़ गई थी उसे आज फिर से सम्भोग की इच्छा ने घेर लिया था.
कामरूपा,तांत्रिक की कमजोरी अच्छे से जानती थी वो तांत्रिक के बिलकुल करीब पहुंच के अपनी गांड को एक झटका देती है बड़ी गांड थालथला जाती है ये गांड की थल थलहट तांत्रिक के लंड पे भारी पड़ती है.
चोर मंगूस जो की ये नजारा बड़े सब्र से देख रहा था उसे लगने लगता है की तांत्रिक कभी भी टूट सकता है और नागमणि के बारे मे बता सकता है उसे तांत्रिक के पीछे एक छोटा सा झरोखा दीखता है "वहा जा के तांत्रिक की बात भी सुन सकूंगा और इस कामरूपा का चेहरा भी देख सकूंगा आखिर पता तो चले की कौन है ये जो ठाकुर की हवेली से निकल के यहाँ तक आई है "
चोर मंगूस पीछे की ओर चुप चाप बिना आहट के चल पड़ता है..
अंदर कामरूपा एकदम पलट जाती है उसकी बड़ी गद्देदार गांड तांत्रिक के सामने थी

कामरूपा गांड पीछे निकाले आगे को झुकती चली गई,गांड की बीच की दरार खुलती गई,खुलती दरार मे से दो कामुक छेद झाँक रहे रहे,कामरूपा पूरी झुक गई, गांड ओर चुत से एक तीखी मादक गंध निकल के कमरे मे फैलने लगी...
तभी पीछे झरोखे पे मांगूस भी पहुंच चूका था अंदर झंका तो एक बड़ी खूबसूरत गांड की मालकिन अपनी गांड खोले झुकी हुई थी उसमे से निकलती मादक गंध दोनों को निचोड़ने मे लगी रही.
तांत्रिक तो जैसे किसी सम्मोहन मे बंध गया था उसकी आंखे पथरा गई थी उसकी नाक उस खुसबू को पास से महसूस करना चाहती थी तांत्रिक अपना सर कामरूपा की गांड की तरफ बड़ा देता है जैसे ही वो पास आता है कामरूपा आगे को सरक जाती है और पीछे मूड के बड़ी हसरत से उलजुलूल की तरफ देखती हुई एक हाथ को पीछे ले जा के गांड के छेद को कुरेद देती है और दूसरा हाथ चुत सहला देता है
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उलजुलूल की आँखों ने विनती थी "और मत तड़पाओ पिने दो मुझे ये रस "
कामरुप वापस अपनी गांड तांत्रिक के मुँह के करीब ले अति है जैसे ही तांत्रिक अपनी जीभ बाहर निकलता है कामरूपा आगे सड़क जाती है.तांत्रिक का लंड झटके पे झटके खां रहा था
तांत्रिक :- कामरूपा ये क्या कर रही हो? मै हार मानता हूँ,मुझे चख लेने दे अपनी गांड,चुत का रस पीला दे एक बार...
आज पंहुचा हुआ टतांत्रिक भी कामवासना मे लिप्त अपने मार्ग से भटक गया था.
कामरूपा :- ऐसे नहीं मेरे पतिदेव आज भोग लोगे परन्तु कल को मै बूढ़ी हो चली तो ये जवानी नहीं रहेगी ना ये जिस्म रहेगा.
तांत्रिक सोच मे पड़ गया,सोचना क्या था दिमाग़ मे जब हवस घर कर जाये तो क्या खाक समझ आता है वही तांत्रिक के साथ हुआ,सबकी अक्ल पे पत्थर पड़ता है उलजुलूल की अक्ल पे गांड पड़ गई थी
तांत्रिक :- तो सुनो कामरूपा..... पीछे चोर मंगूस के कान भी खड़े हो गए थे.
हवेली के पिछवाड़े मे एक कमरा है जहा ठाकुर ज़ालिम सिंह के परदादा जलन सिंह की याद मे उनका समान आज भी रखा हुआ है उसी सामान मे हवेली का नक्शा भी है जो हवेली मे ही मौजूद गुप्त तहखाने की राह बतलाता है.
उसे ढूंढो नागमणि भी मिल जाएगी और हाँ...
इतना सुनना था की वोर मंगूस की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा वो तो उड़ चला हवेली की ओर मंगूस कामरूपा का चेहरा नहीं देख पाया था परन्तु अब उसे इस बात से मतलब भी नहीं था उसे तो बस कामरूपा से पहले हवेली पहुंच के वो नक्शा ढूंढ लेना था,और नागमणि हासिल कर गायब हो जाना था.
आसमान मे सुबह होने के संकेत हो चुके थे,हलकी रौशनी फैलने लगी थी.
चोर मंगूस अपनी कामयाबी की तरफ बढ़ रहा था वही रंगा जेल के बाहर था,रुखसाना कामयाब हो गई थी.दोनों काली पहाड़ी मे स्थित अपने ठिकाने की और चले जा रहे थे.
काश मंगूस पूरी बात सुन लेता... जल्दी का काम शैतान का काम.
तो क्या मंगूस मुसीबत मे फस जायेगा?
नागमणि किसे मिलेगी मंगूस को या कामरूपा को?
सवाल कई है जवाब यही है
बने रहिये कथा जारी है...
 
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चैप्टर -3 नागमणि की खोज अपडेट -47

काली पहाड़ी स्थित गुफा मे
तांत्रिक :- नक्शा ढूंढो नागमणि भी मिल जाएगी,और एक बात नागमणि किसी तिलिस्म मे कैद है उसे निकलने की कैशिश की गई तो शरीर के प्राण खींचते चले जायेंगे तिलिस्म मे.
तो मेरी प्यारी कामरूपा नागमणि हासिल करने की जिद छोड़ दो, मेरे पास लौट आओ संसर्ग का आनंद लो तांत्रिक अभी भी कामरूपा की गांड को ललचाई नजरों से देख रहा था.
कामरूपा तांत्रिक की बात सुन आगबबूला हो जाती है,
दूर हट मुझसे नीच आदमी.. मुझे हमेशा जवान रहना है.
धिक्कार है ऐसे तपस्वी पे जिसे अपने अंगों पे जरा भी नियंत्रण नहीं है,मुझे नंगा देख लार टपकाने लगा.... लानत है तुझपे
कामरूपा गुस्से मे भरी तांत्रिक के अहम् पे चोट कर रही थी.
तांत्रिक को ये शब्द किसी नाश्तार की तरह चुभते महसूस होते है उसका सारा जोश सारी कामवासना ठंडी पड़ जाती है.
उसका मन आत्मगीलानी से भर जाता है उसे पछतावा होने लगता है की वो क्यों अपने अंगों अपनी भावना को नियंत्रण नहीं कर सका.
कामरूपा :- मै वो नागमणि हासिल कर ही मानुँगी.
तांत्रिक अपनी दुर्बलता का जिम्मेदार कामरूपा को मानता है उसने ही इतने सालो बाद आ के उसकी कामइच्छा को जाग्रत किया और अब बिना सम्भोग सुख दिए ही जाने को तैयार थी.
तांत्रिक :- ठहर जा दुष्ट औरत आज तूने जिस तरह मुझे काम अग्नि मे जलता छोड़ दिया है उसी प्रकार तू भी जिंदगी भर काम अग्नि मे जलती रहेगी तेरी हवस कभी शांत नहीं होंगी.
जीतना सम्भोग करेगी उतनी ही इच्छा बढ़ती रहेगी ये मेरा श्राप है.
गुस्से से भुंभूनाया तांत्रिक कामरूपा को श्राप दे देता है.
कामरूपा पे उसके बोल का कोई फर्क नहीं पड़ता वो अपनी गांड मटकाती गुफा से बाहर कूच कर जाती है.
"साला उलजुलूल जिसे खुद पे नियंत्रण नहीं उसका श्राप मेरा क्या बिगाड़ेगा "
मुझे जल्द से जल्द हवेली पहुंचना होगा.


सुबह की पहली किरण फुट पड़ी थी.
दूर शहर मे सुलेमान ने रात भर कालावती की गांड चुत जम के पेली थी. ऐसे चोदा था जैसे उसकी चुदाई की आखरी रात हो.
कभी चुत मरता तो कभी गांड रात भर चली चुदाई से कलावती की गांड पूरी खुल गई थी.
ना जाने कितनी बार झड़ी थी इस रात मे, उसकी गांड और चुत सुलेमान के वीर्य से पूरी भरी हुई थी,
सुलेमान अभी भी अपने लंड से चुत को थप्पड़ मार रहा था,कालावती फिर से भलभला के झड़ने लगी उसकी चुत से पानी का फववारा निकाल के उसके कामुक पसीने से तरबतर बदन को भीगाने लगा.
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कालावती के कहे अनुसार सुलेमान उसकी गांड इतनी चौड़ी कर चूका था की दरोगा पूरा उसमे घुस जाता.
पूरी तरह थकी निचूड़ी,निढाल कालावती नींद की आगोश मे सामाती चली गई.

अब पूरी तरह सुबह हो चुकी थी लाल सूरज क्षितिज पे नजर आने लगा.
सर....सर...सर.... उठिये सर क्या हुआ है आपको
पानी लाओ कोई
पुलिस चौकी मे एक हवलदार दरोगा वीरप्रताप को उठाने की कोशिश कर रहा था.
तभी कोई पानी ले आया,हवलदार ने दरोगा के मुँह पे पानी के छींटे मारे
दरोगा अपनी आंखे टीमटीमाने लगा..आअह्ह्ह... रामलखन लगता है कल रात ज्यादा ही पी ली.
आअह्ह्ह....करता दरोगा सर पे हाथ रखे उठने की कोशिश करता है उसका माथा भन्ना रहा था.
रामलखन :- दरोगा साहेब जल्दी उठिये गजब हो गया है.
दरोगा :- क्या गजब हो गया है? जा पहके निम्बू पानी बना ला सर भन्ना रहा है.
रामलखन:- मालिक रंगा फरार हो गया है, अब हम सब की मौत निश्चित है सर.
रामलखान के चेहरे पे दहाशत साफ नजर आ रही थी...
क्या...बक रहे हो रामलखन दरोगा भागता हुआ कमरे से बाहर निकाल जाता है बाहर हवालत खाली था,तले मे चाभी लगी हुई थी.
ये..ये...चाभी यहाँ कैसे आई ये तो मेरी जेब मे रहती है.
तभी कल रात का सारा दृश्य उसकी आँखों के सामने नाच जाता है,उसके होश उड़ते चले जाते है.
हे...भगवान इतनी बड़ी साजिश, दरोगा खुद को थप्पड़ मरने लगता है छत्तताक्क्क...चटाक...सब मेरी गलती है
चटाक....मै हवस मे डूब गया था.
सर...सर....क्या कर रहे है आप होश मे आइये रामलखन दरोगा के हाथ पकड़ लेता है.
और उसे सहारा देता अंदर कुर्सी पे बैठा देता है,दरोगा उसी कुर्सी पे बैठा तबै जहा रुखसाना बैठी थी
दरोगा दुख और पछतावे से अपना सर टेबल पे झुका देता है उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करे तभी उसकी नजर टेबल के निचे रखे गमले पे पड़ती है उसकी मिट्टी गीली थी.
दरोगा मिट्टी को हाथ लगता है और उसे सूंघता है उस मिट्टी से शराब की तेज़ गंध आ रही थी.
"ओह इसका मतलब कल रात उस औरत ने मुझे पूरी तरह मुर्ख बना दिया,उसने शराब पी ही नहीं यहाँ गमले मे गिरा दी और मै बेवकूफ समझता रहा की शिकार फस गया है जबकि मै खुद शिकार हो गया.लानत है मुझपे लानत है."
दरोगा पूरी तरह टूट गया था उसकी आँखों मे पछताप के आंसू थे आंखे नशे और दुख से लाल थी सर फटा जा रहा था.
"रामलखन मुख्यालय मे खबर भिजवा दो की हम नाकामयाब रहे रंगा फरार हो गया है"

उधर चोर मंगूस उड़ता हुआ हवेली पहुंच गया था उसे जलन सिंह का कमरा ढूंढने मे जरा भी वक़्त नहीं लगा उसने वो नक्शा हासिल कर लिया..उसके चेहरे की रौनक बता रही थी की वो मंजिल के करीब है. लेकिन मंजिल पे मौत खड़ी है उसे पता नहीं था,काश वो तांत्रिक की पूरी बात सुन लेता.

मंगूस कामयाब होगा?
या कामरूपा रोक देगी मंगूस को?
तांत्रिक का श्राप सच साबित होगा?
बने रहिये कथा जारी है...
 
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चैप्टर -2 नागमणि की खोज अपडेट -48

सुबह की किरण आलीशान कमरे मे सोती कामवती पे पड़ रही थी आंखे मीचमीचाती स्वर्ग की अप्सरा अंगड़ाई लेते उठ बैठती है कल की रात भी उसकी बिना सम्भोग के ही निकली ठाकुर फिर से नाकामयाब रहा था,
कमरे मे एक कोने मे सिमटा हुआ नागेंद्र अपनी हुस्न परी को निहार रहा था "कितनी सुन्दर है कामवती आह्हः..."
कामवती बिस्तर से उठ खड़ी होती है और कमरे से बाहर निकाल भूरी काकी को आवाज़ देने लगती है काकी... भूरी काकी...
लेकिन कोई जवाब मिला.
"लगता जी कही बाहर गई है मुझे अकेले ही जाना होगा गुसालखाने "
ऐसा विचार कर कामवती घर के पिछवाड़े चल पड़ती है. नागेंद्र ये मौका कैसे गवा सकता रहा वो भी धीरे से कामवती के पीछे सारसरा जाता है.
गुसालखाने मे पहुंच के कामवती धीरे से अपना लहंगा उठा देती है,गोरी गांड की चमक फ़ैल जाती है जो की नागेंद्र की आँखों को चकाचोघ कर रही थी.
क्या खूबसूरत और मुलायम अंग थे कामवती के कही कोई दाग़ नहीं कही कोई बाल नहीं.
कामवती धीरे से पैरो के बल बैठ जाती है तभी पिस्स्स्स..... सुरररररर....करती एक तेज़ सिटी बज जाती है.
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कामवती की चुत से तेज़ पेशाब की धार फुट पड़ती है.
कामवती सुकून से आंखे बंद कर लेती है आअह्ह्ह.....उसके चेहरे पे सुकून का भाव था.
कामवती की चिकनी पानी छोड़ती चुत नागेंद्र के सामने थी "यही मौका है मुझे कामवती की चुत का चुम्बन लेना होगा "
ऐसा सोच वो कामवती की तरफ बढ़ जाता है परन्तु जैसे ही वो अपना फन उठाता है कामवती भी थोड़ा सा उठ जाती है उसका पेशाब हो चूका था...नतीजा नागेंद्र का फन कामवती की गांड के छेद पे पड़ता है.
कामवती एक तीखे दर्द से मचल जाती है.....और जैसे ही निचे देखती है एक काला भयानक सांप उसके दोनों पैरो के बीच फन फैलाये फुफकार रहा था....आआहहहहह....
बचाओ...बचाओ करती कामवती डर से वही बेहोश हो जाती है.
कामवती की ये चीख हवेली मे हर किसी ने सुनी...एक साथ कई सारे कदमो की आहट गुसालखाने की और आने लगी.
नागेंद्र :- साला दिन ही ख़राब है बोलता वही कही छुप जाता है.
ठाकुर ज़ालिम सिंह चीखता हुआ अंदर प्रवेश करता है
"क्या हुआ...क्या हुआ...कामवती तुम चिखी क्यों परन्तु जैसे ही उसकी नजर कामवती पे पड़ती है उसके होश फकता हो जाते है कामवती निढाल बेजान जमीन पे पडी थी.
अरे हरामखोरो कहाँ मर गए सब के सब....ठाकुर गुस्से से चिल्ला पड़ता है.
तभी रामु कालू बिल्लू तीनो गुसालखाने मे घुसे चले आतेहै....
ठाकुर :- सालो हरामजादो..कहाँ मर गए थे ये देखो तुम्हारी ठकुराइन को क्या हो गया है?
कोई इसे उठाओ कमरे मे ले चलो...कोई डॉ.असलम को भुलाओ.....भूरी कहाँ है उसे बुलाओ.
ठाकुर बदहवस चिल्लाये जा रहा था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.
रामु तुरंत बाहर को डॉ.असलम के घर की और दौड़ पड़ता है.
कालू बिल्लू कामवती को हाथ और पैर से पकड़ के उठाने की कोशिश करते है परन्तु कालू पैर की तरफ था जहा कामवती का लहंगा जाँघ तक ऊपर चढ़ा हुआ था...कालू ने इनती चिकनी और गोरी जाँघे कभी नहीं देखि थी वो उस जाँघ को छूने के लिए तरस उठा...जैसे ही उसने हाथ बढ़ाया
सालो हराम खोरो सोच क्या रहे हो जल्दी उठाओ ठकुराइन को वरना मार मार के भूसा भर दूंगा खाल मे.
कालू को तुरंत होश आया दोनों ने संभाल के कामवती को उठाया और ठाकुर के कमरे मे बिस्तर पे लेटा दिया.
ठाकुर :- डॉ.असलम आये या नहीं....निक्कमो बुलाओ उन्हें
और भूरी काकी कहाँ है ढूंढो उसे.
कालू :- मालिक रामु गया है डॉ.साहेब के पास आता ही होगा. हम भूरी काकी को ढूंढ़ लाते है सुबह से ही नहीं दिखी...
कालू बिल्लू कमरे से बाहर निकल जाते है.
वही चोर मंगूस इन सब बातो से बेखबर नक़्शे मे दिखाए अनुसार तहखाने की ओर बढ़ चलता है,तहखाने का रास्ता हवेली के पीछे स्थित एक खंडर से जाता था,खंडर गंदगी और घाँस फुस से भरा हुआ था,मंगूस पसीने पसीने हो चूका था की तभी उसे जमीन मे बना एक छोटा सा झरोखा दीखता है,वहा की घाँस हटाने लगता है अब झरोखा एक दरवाजे की शक्ल मे प्रकट हो गया था उसपे एक जंग लगा ताला पडा हुआ था जो मंगूस के एक ही प्रहार से शहीद हो गया...
मंगूस दरवाजा खोल देता है अंदर से एक तेज़ बदबूदार सीलन की महक उसके नाथूनो मे घुस जाती है तहखाना बरसो से बंद था,उसकी बदबू नाकाबिले बर्दास्त थी अंदर सम्पूर्ण अंधकार छाया हुआ था,
कोई आम आदमी होता तो उसकी रूह फना हो जाती इस मंजर को देख के परन्तु ये मंगूस था महान कुख्यात चोर मंगूस जिसने एक बार चोरी की ठान ली मतलब चोरी हो कर रहेगी.
मंगूस मुँह पे कपड़ा बाँधे एक लकड़ी पे ढेर सारी घाँस और अपनी कमीज खोल के बाँध लेटा है और उस लकड़ी को मसाल की तरह जाला लेता है.
और गीली लिसलिसी काई से भरी सीढ़ी उतरता जाता है अंदर इतना अंधेरा था की हाथ को हाथ सुझाई ना दे...जैसे कोई पाताल हो.
ना जाने मंगूस कितनी सीढिया उतर चूका था,हद
डर और उन्माद से उसकी धड़कने तेज़ तेज़ चल रही थी की तभी उसका पैर किसी समतल धरातल पे पड़ता है मंगूस तहखाने के तल तक पहुंच गया था.

अब नागमणि दूर नहीं है,लेकिन क्या इस नागमणि की कीमत चोर मंगूस की मौत होंगी?

चैप्टर -3 नागमणि की खोज समाप्त

चैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म
आरम्भ


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चैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -49

हवेली मे कोहराम मचा हुआ था,ठाकुर ज़ालिम सिंह बदहवास इधर उधर टहल रहा था.
क्या हुआ ठाकुर साहेब...क्या हुआ...इतनी जल्दी मे क्यों बुलवा भेजा? डॉ.असलम कमरे मे दाखिल जोते हुए बोला.
ठाकुर :- असलम..असलम मेरे भाई ये देखो कामवती को क्या हो या है? आज सुबह गुसालखाने गई थी वहा से चीखने की आवाज़ आई हम लोग पहुचे तो ये बेहोश पडी थी.
असलम तुरंत कामवती के बगल मे बैठ जाता है उसका हाथ पकड़ नब्ज़ टटोलने लगता है सब कुछ ठीक था सांसे और नब्ज़ दोनों बराबर थी
"सब कुछ ठीक है फिर कामवती को हुआ क्या है?" असलम मन ही मन सोचने लगा.
वही कमरे मे छुपा बैठा नागेंद्र भी चिंतित था उसे समझ नहीं आ रहा था की कामवती बेहोश क्यों हो गई जबकि उसके पास तो जहर ही नहीं बचा है ऊपर से योनि पे चुम्बन करना था और हो गया गुदा छिद्र पे.
मुझे अगला मौका ढूंढना होगा.
डॉ.असलम पानी के कुछ छींटे कामवती के मुँह पे मारता है,
कामवती कस मसाती आंखे खोल देती है,उसकी गुदा छिद्र पे अभी भी दर्द था भले ही नागेंद्र मे जहर नहीं था परन्तु उसके दाँत बराबर चुभे थे.
कामवती दरी सहमी चारो और देखती है.... और चिल्ला पड़ती है सांप....सांप....सांप... काला भयानक सांप...
सभी लोगो को सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है.
ठाकुर दौड़ के कामवती के पास आता है उसे संभालता है.
ठाकुर :- कहाँ है सांप कामवती....सांप ने क्या किया? कही काटा तो नहीं.
कामवती बदहवस बिलखने लगती है "ठाकुर साहेब मै मरना नहीं चाहती...वो वो...वो.... काला भयानक सांप था उसने मुझे काट लिया है.
ये सुन ना था की ठाकुर की गांड ही फट गई उसके हाथ पैर ढीले पड़ने लगे.
ठाकुर :- कहाँ काटा है सांप ने तुम्हे बताओ हमें....बताओ.
कामवती बिलकुल चुप थी....अब कैसे कहे की गांड पे काटा है "भूरी काकी कहाँ है उन्ह्र बुलाओ "
ठाकुर और असलम को समझ ही नहीं आता की कामवती,भूरी काकी को क्यों बुलवाना चाहती है
स्त्री सुलभ संकोच था कामवती मे वो ऐसी बात किसी पुरुष को कैसे बताती,स्त्री को ही बताया जा सकता था.
तभी कमरे मे कालू बिल्लू भी पहुंच जाते है
कालू :- मालिक भूरी काकी कही नहीं है,पूरी हवेली छान मारी आस पास भी देख लिया लोगो से पूछा भी परन्तु भूरी काकी कही नहीं है..
ठाकुर:- गुस्से मे लाल पीला हो रहा था ऐसे कैसे कहाँ चली गई? काकी आजतक बिन बोले कही नहीं गई.
ये हो क्या रहा है हवेली मे....
असलम जो अभी तक चुप बैठा था उसने बारीकी से कामवती का परीक्षण कर लिया था...कही से भी कोई सांप कटे का नमो निशान नहीं था, ना कोई जहर फैलने का निशान.
सांप जहरीला होता तो कामवती अब तक बेहोश ही हो जाती.
फिर भी उसे कुछ शंका थी...
डॉ.असलम :- ठाकुर साहेब शांत हो जाइये आप चिंता ना करे इलाज है मेरे पास.
हमें उसी सांप को ढूंढना होगा जिसने कामवती को काटा है उसके ही जहर से दवाई बनेगी.
जब तक मै अपनी तरफ से जहर उतरने की कोशिश करता हूँ.....ना जाने असलम को क्या विचार आ रहा था.
कुछ तो अलग था उसके दिमाग़ मे...
कामवती :- ठाकुर साहेब मेरी माँ को बुलावा भेजिए...मै मरते वक़्त उन्हें देखना चाहती हूँ.
कामवती अति डर से पगला गई थी उसे लग रहा था की वो मर रही है.
जबकि असलम को पता था की ऐसा कुछ नहीं है.
ठाकुर :- हरामखोरो अभी तक यही खड़े हो सुना नहीं ठकुराइन क्या बोली....
बिल्लू तू कामगंज जा और ठकुराइन के माँ बाप को लिवा आ.
और कालू रामु मेरे साथ चलो आज सके उस सांप की खेर नहीं....मिल गया तो मौत के घाट उतार दूंगा.
मेरी कामवती को काटता है... ठाकुर आज रोन्द्र रूप मे था कालू रामु चुप चाप उसके पीछे कमरे से बाहर निकल जाते है.
कोने मे बैठा नागेंद्र की भी घिघी बंध गई थी..
"अबे ये तो दाँव ही उल्टा पड़ गया..इन हरामियों के हाथ लग गया तो मार मार के कचूमर बना देंगे, तहखाने ने जाने मे ही भलाई है"
नागेंद्र सबकी नजर बचा के निकल जाता है तहखाने की ओर....
वही तहखाना जहा मंगूस आपने कदम रख चूका था, घोर अंधेरा छाया हुआ था मसाल की रौशनी भी नाकाफी थी..
मंगूस नागमणि को ढूंढने लगा उसके दिमाग़ मे लगातार विचार चल रहे थे. उसे तहखाने के एक कोने मे कुछ हलचल सी महसूस होती है जैसे कोई रौशनी चालू बंद जो रही हो.
वो उस ओर बढ़ जाता है घास फुस का खूब ढेर था उसी के निचे से कभी रौशनी आती तो कभी गायब हो जाती..मंगूस के पास वक़्त नहीं था वो जल्दी जल्दी घाँस हटाने लगा..जैसे ही पूरी घाँस हटी पूरा तहखाना तेज़ रौशनी से जगमगा उठा, निचे एक चमकली सी चीज लकड़ी के पाटे पे रखी थी...
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आआआहहहह....तो ये है वो नायब नागमणि अनमोल बेशकीमती नागमणि.
मंगूस ख़ुशी से उछल पडा उसके जीवन की सबसे नायब चोरी उसके सामने थी,उस नागमणि की चमक ने उसे अंधा बना दिया था आँख से भी और अक्ल से भी, नागमणि की चमक ऐसी थी की सिर्फ नागमणि ही दिख रही थी उसके आस पास क्या है इसका कोई अनुमान नहीं था.
खुशी के मारे मंगूस हाथ आगे बढ़ा देता है....परन्तु जैसे ही वो नागमणि को पकड़ता है उसके गले से एक घुटी चीख निकल जाती है लगता था जैसे उसके प्राण खींचते चले जा रहे हो,शरीर का सारा खून मणि मे समाता चला जा रहा था.
मांगूस की मौत निश्चित थी..यही वो तीलीस्म था जो नागमणि की रक्षा करता था.
तभी उसे एक भयानक झटका लगता है वो मणि से दूर फिंक जाता है,उसका बेजान शरीर कठोर जमीन से टकरा जाता है,
उसमे तो चीखने की ताकत भी नहीं थी, खून का एक कतरा नहीं बचा था, गाल और आंखे अंदर को धंस गई थी, पासलियो की हड्डी बाहर दिखने लगी थी, बदन की चमड़ी धीरे धीरे गल रही थी.
धीरे धीरे उसका शरीर किसी कंकाल मे तब्दील हो रहा था.
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बिलकुल चित्त जमीन पे पडा था महान चोर मंगूस...बिलकुल लाचार अपनी मौत का इंतज़ार करता हुआ, आंखे धीरे धीरे बंद होती चली गई.

तो क्या यही है चोर मंगूस का अंत?😔😪
डॉ.असलम के दिमाग़ मे क्या है?
कथा जारी है....
 

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