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चैप्टर -3 नागमणि कि खोज अपडेट -31
गांव विष रूप
ठाकुर ज़ालिम सिंह अपनी हवेली पहुंच चुके थे, जहाँ सब लोग काम मे व्यस्त थे.
रामु, बिल्लू कालू घोड़ा गाड़ी से सामान उतार रहे थे, वही नागेंद्र चुपचाप रेंगता अपने तहखाने मे पहुंच चूका था.
कामवती का बढ़े धूमधाम से स्वागत हुआ,
भूरी काकी स्वमः आरती कि थाली लिए खड़ी थी,
कामवती घोड़ा गाड़ी से उतरती है भूरी काकी उसकी सुंदरता देख चौक जाती है,
गांव वाले और ठाकुर के अन्य रिश्तेदार ठाकुर कि किस्मत से ईर्ष्या कर रहे थे, " कहाँ बुढ़ापे मे इतनी सुन्दर जवान लड़की मिली है ठाकुर को "
ठाकुर ज़ालिम सिंहभी मन ही मन ख़ुश दे आखिर वो दिन आज आ ही गया था जब ठाकुर को रूपवती जैसी काली कलूटी बेडोल स्त्री से निजात मिल गई थी इसे सुन्दर जवान स्त्री मिल गई थी
आज ठाकुर कि सुहागरात थी काफ़ी बरसो बाद ठाकुर किसी स्त्री को भोगने वाला था.
खेर विषरूप मे नाच गाना शोर शराबा शुरू हो गया था, शाम को होने वाले स्वागत भोज कि तैयारिया चल रही थी
वही भूरी काकी कामवती के साथ ठाकुर के कमरे मे बैठी थी.
भूरी :- कितनी सुन्दरहो बेटी तुम बिल्कुल स्वर्ग कि अप्सरा.
कामवती को देख उसे अपनी जवानी के दिन याद गये थे वो भी जवानी मे गजब ढाती थी,
कामवती घूंघट मे सर झुकाये बैठी थी, उसे कुछ पता नहीं था जैसे किसी ने उसका शादी से संबधित ज्ञान ही छीन लिया हो.
भूरी :- बेटी आज तेरी सुहागरात है, शाम को नहा धो के तैयार हो जाना, जैसा ठाकुर साहेब कहे वैसा ही करना.
कामवती सिर्फ सुने जा रही थी, हाँ मे सर हिला रही थी.
परन्तु उसका दिमाग़ कही और व्यस्त था जब से हवेली मे प्रवेश किया था कुछ अजीब लग रहा था उसे, जैसे ये हवेली मे पहले भी आई हो, कुछ कुछ धुंधला सा दिख रहा था परन्तु क्या ये स्पष्ट नहीं था.
वो कुछ कुछ बेचैन थी....
गांव कामगंज मे भी रतिवती बहुत बेचैन थी
उसने कल रात हवस मे डूब के खूब गुलछर्रे उड़ाए, ऐसी गांड और चुत मरवाई कि होश ही नहीं रहा ये भी ना समझ सकी कि सामने वाला कोई चोर डाकू लुटेरा भी हो सकता है,
फॉस्वरूप अपने सारे गहने जेवरात लूटा बैठी.
रतिवती सुबह से ही अपने कमरे मे उदास बैठी थी वो रूआसी थी उसे अपनी हवस पे गुस्सा आ रहा था.काश उसका पति नामर्द नहीं होता तो ये सब नहीं होता, खुद कि हवस का जिम्मेदार वो रामनिवास को ठहरा रही थी इस चक्कर मे वो सुबह सुबह ही रामनिवास पे बरस पड़ी थी.रामनिवास सुबह से ही बेवड़े के अड्डे पे बैठा दारू खींच रहा था.
गांड मे उसके अभी भी दर्द था कल रात जोश जोश मे गांड मे हाथ घुसवा बैठी थी. दिल से ले के गांड टक दर्द ही दर्द रहा रतिवती के
तभी.... चाटक... छन्न.... कि आवाज़ के साथ खिड़की से कुछ टकराता है.
वो भाग के खिड़की के पास आती है तो देखती है उसके गहाने जमीन पे बिखरे पडे थे, उसकी बांन्छे खिलजाती है वो किसी वहशी पागलो कि तरह अपने गहने समेटने लगती है.
हाय रे मेरे गहने.. हाय मेरा हार जैसे उसे नया जीवन मिल गया हो
तभी उसके हॉट्ज कागज़ का टुकड़ा लगता है... उसे खोल के ददेखती है
"नमस्कार वासना से भरी स्त्री रतिवती
कल रात ओके साथ सम्भोग का बहुत आनन्द उठाया, आपके जैसी कामुक गद्दाराई स्त्री मैंने कभी जीवन मे नहीं देखि.
आपकी गांड के कहने ही क्या, आपकी चुत का पानी किसी अमृत सामान हैआपके पास स्तन के रूप मे दो अनमोल खजाने है, उस खजाने के सामने आपके ये गहाने कि कोई औकात नहीं, इसलिए मै इन्हे वापस कर रहा हूँ.
, ये सब पढ़ के कल रात का दृश्य उसके सामने घूमने लगता है.
लेकिन गहने के बदले मै जब चाहु आपके इस कामुक बदन का रस चखना चाहता हूँ.
आपका चोर मंगूस "
रतीवतीं ये सब पढ़ के घन घना जाती है, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसने कुख्यात चोर मंगूस के साथ सम्भोग किया.
ये जानने के बाद उसके बदन मे एक उमंग जागने लगी, तरग हिलोरे लेने लगी, चुत से रस टपकने लगा.
फिर क्या था.... रतिवती कि दो ऊँगली रस छोड़ती गुफा मे घुस चुकी थी घपा घप.... धपा धाप...
पानी पानी चुत फच फचाने लगी उसके आँखों के सामने कल रात का दृश्य दौड़ रहा था,
चोर मंगूस ये नजारा देख रहा था.....
साली ऐसी स्त्री तो कभी देखि ही नहीं, हमेशा तैयार रहती है, खेर इसे तो बाद मे भी देख लूंगा.
अभी विष रूप जाना होगा.
चोर मंगूस रतिवती कि चुत को याद करता मुस्कुराता चल पड़ता है अपने जीवन कि सबसे बड़ी चोरी करने.
इसी गांव मे रुखसाना भी विष रूप जाने कि तैयारी मे थी.इसे डॉ. असलम को दवाई देने के लिए मजबूर करना था परन्तु कैसे?
"मुझे भी घाव चाहिए होगा?"
रुखसानाअपनी सलवार उतार फेंकती है, उसकी सुनहरी बिना बालो कि चुत चमक उठती है.
कितना चुदवाती थी फिर भी चुत गांड वैसी ही कसी हुई थी.
वो पास पड़ा चाकू उठा लेती है और शीशे के सामने अपनी दोनों टांग फैला के बैठ जाती है.
ना जाने उसके मन मे क्या चल रहा था, तभी फचक से चाकू चल जाता है उसकी नौक चुत और गांड के बीच कि जगह पे दंस गया था एक दर्द के साथ रुखसाना सिहर उठती है.
अजीब स्त्री थी रुखसाना सिर्फ रंगा बिल्ला के लिए इतना दर्द क्यों सहन कर रही थी?
"या अल्लाह मुझे अपने मकसद मे कामयाब करना "
चाकू बाहर निकल गया था चुत और गांड के बीच का हिस्सा लहूलुहान हो गया था, फिर भी वो हिम्मत कर खड़ी हो जाती है अपनी जांघो के बीच वो एक कपड़ा फसा लेती है.
सलवार वापस बाँध कुछ जरुरी सामान ले के विष रूप कि तरफ कूच कर जाती है
रुखसाना का क्या मकसद है?
ठाकुर अपनी सुहागरात
गांव विष रूप
ठाकुर ज़ालिम सिंह अपनी हवेली पहुंच चुके थे, जहाँ सब लोग काम मे व्यस्त थे.
रामु, बिल्लू कालू घोड़ा गाड़ी से सामान उतार रहे थे, वही नागेंद्र चुपचाप रेंगता अपने तहखाने मे पहुंच चूका था.
कामवती का बढ़े धूमधाम से स्वागत हुआ,
भूरी काकी स्वमः आरती कि थाली लिए खड़ी थी,
कामवती घोड़ा गाड़ी से उतरती है भूरी काकी उसकी सुंदरता देख चौक जाती है,
गांव वाले और ठाकुर के अन्य रिश्तेदार ठाकुर कि किस्मत से ईर्ष्या कर रहे थे, " कहाँ बुढ़ापे मे इतनी सुन्दर जवान लड़की मिली है ठाकुर को "
ठाकुर ज़ालिम सिंहभी मन ही मन ख़ुश दे आखिर वो दिन आज आ ही गया था जब ठाकुर को रूपवती जैसी काली कलूटी बेडोल स्त्री से निजात मिल गई थी इसे सुन्दर जवान स्त्री मिल गई थी
आज ठाकुर कि सुहागरात थी काफ़ी बरसो बाद ठाकुर किसी स्त्री को भोगने वाला था.
खेर विषरूप मे नाच गाना शोर शराबा शुरू हो गया था, शाम को होने वाले स्वागत भोज कि तैयारिया चल रही थी
वही भूरी काकी कामवती के साथ ठाकुर के कमरे मे बैठी थी.
भूरी :- कितनी सुन्दरहो बेटी तुम बिल्कुल स्वर्ग कि अप्सरा.
कामवती को देख उसे अपनी जवानी के दिन याद गये थे वो भी जवानी मे गजब ढाती थी,
कामवती घूंघट मे सर झुकाये बैठी थी, उसे कुछ पता नहीं था जैसे किसी ने उसका शादी से संबधित ज्ञान ही छीन लिया हो.
भूरी :- बेटी आज तेरी सुहागरात है, शाम को नहा धो के तैयार हो जाना, जैसा ठाकुर साहेब कहे वैसा ही करना.
कामवती सिर्फ सुने जा रही थी, हाँ मे सर हिला रही थी.
परन्तु उसका दिमाग़ कही और व्यस्त था जब से हवेली मे प्रवेश किया था कुछ अजीब लग रहा था उसे, जैसे ये हवेली मे पहले भी आई हो, कुछ कुछ धुंधला सा दिख रहा था परन्तु क्या ये स्पष्ट नहीं था.
वो कुछ कुछ बेचैन थी....
गांव कामगंज मे भी रतिवती बहुत बेचैन थी
उसने कल रात हवस मे डूब के खूब गुलछर्रे उड़ाए, ऐसी गांड और चुत मरवाई कि होश ही नहीं रहा ये भी ना समझ सकी कि सामने वाला कोई चोर डाकू लुटेरा भी हो सकता है,
फॉस्वरूप अपने सारे गहने जेवरात लूटा बैठी.
रतिवती सुबह से ही अपने कमरे मे उदास बैठी थी वो रूआसी थी उसे अपनी हवस पे गुस्सा आ रहा था.काश उसका पति नामर्द नहीं होता तो ये सब नहीं होता, खुद कि हवस का जिम्मेदार वो रामनिवास को ठहरा रही थी इस चक्कर मे वो सुबह सुबह ही रामनिवास पे बरस पड़ी थी.रामनिवास सुबह से ही बेवड़े के अड्डे पे बैठा दारू खींच रहा था.
गांड मे उसके अभी भी दर्द था कल रात जोश जोश मे गांड मे हाथ घुसवा बैठी थी. दिल से ले के गांड टक दर्द ही दर्द रहा रतिवती के
तभी.... चाटक... छन्न.... कि आवाज़ के साथ खिड़की से कुछ टकराता है.
वो भाग के खिड़की के पास आती है तो देखती है उसके गहाने जमीन पे बिखरे पडे थे, उसकी बांन्छे खिलजाती है वो किसी वहशी पागलो कि तरह अपने गहने समेटने लगती है.
हाय रे मेरे गहने.. हाय मेरा हार जैसे उसे नया जीवन मिल गया हो
तभी उसके हॉट्ज कागज़ का टुकड़ा लगता है... उसे खोल के ददेखती है
"नमस्कार वासना से भरी स्त्री रतिवती
कल रात ओके साथ सम्भोग का बहुत आनन्द उठाया, आपके जैसी कामुक गद्दाराई स्त्री मैंने कभी जीवन मे नहीं देखि.
आपकी गांड के कहने ही क्या, आपकी चुत का पानी किसी अमृत सामान हैआपके पास स्तन के रूप मे दो अनमोल खजाने है, उस खजाने के सामने आपके ये गहाने कि कोई औकात नहीं, इसलिए मै इन्हे वापस कर रहा हूँ.
, ये सब पढ़ के कल रात का दृश्य उसके सामने घूमने लगता है.
लेकिन गहने के बदले मै जब चाहु आपके इस कामुक बदन का रस चखना चाहता हूँ.
आपका चोर मंगूस "
रतीवतीं ये सब पढ़ के घन घना जाती है, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसने कुख्यात चोर मंगूस के साथ सम्भोग किया.
ये जानने के बाद उसके बदन मे एक उमंग जागने लगी, तरग हिलोरे लेने लगी, चुत से रस टपकने लगा.
फिर क्या था.... रतिवती कि दो ऊँगली रस छोड़ती गुफा मे घुस चुकी थी घपा घप.... धपा धाप...
पानी पानी चुत फच फचाने लगी उसके आँखों के सामने कल रात का दृश्य दौड़ रहा था,
चोर मंगूस ये नजारा देख रहा था.....
साली ऐसी स्त्री तो कभी देखि ही नहीं, हमेशा तैयार रहती है, खेर इसे तो बाद मे भी देख लूंगा.
अभी विष रूप जाना होगा.
चोर मंगूस रतिवती कि चुत को याद करता मुस्कुराता चल पड़ता है अपने जीवन कि सबसे बड़ी चोरी करने.
इसी गांव मे रुखसाना भी विष रूप जाने कि तैयारी मे थी.इसे डॉ. असलम को दवाई देने के लिए मजबूर करना था परन्तु कैसे?
"मुझे भी घाव चाहिए होगा?"
रुखसानाअपनी सलवार उतार फेंकती है, उसकी सुनहरी बिना बालो कि चुत चमक उठती है.
कितना चुदवाती थी फिर भी चुत गांड वैसी ही कसी हुई थी.
वो पास पड़ा चाकू उठा लेती है और शीशे के सामने अपनी दोनों टांग फैला के बैठ जाती है.
ना जाने उसके मन मे क्या चल रहा था, तभी फचक से चाकू चल जाता है उसकी नौक चुत और गांड के बीच कि जगह पे दंस गया था एक दर्द के साथ रुखसाना सिहर उठती है.
अजीब स्त्री थी रुखसाना सिर्फ रंगा बिल्ला के लिए इतना दर्द क्यों सहन कर रही थी?
"या अल्लाह मुझे अपने मकसद मे कामयाब करना "
चाकू बाहर निकल गया था चुत और गांड के बीच का हिस्सा लहूलुहान हो गया था, फिर भी वो हिम्मत कर खड़ी हो जाती है अपनी जांघो के बीच वो एक कपड़ा फसा लेती है.
सलवार वापस बाँध कुछ जरुरी सामान ले के विष रूप कि तरफ कूच कर जाती है
रुखसाना का क्या मकसद है?
ठाकुर अपनी सुहागरात