Adultery किस्सा कामवती का

Member
105
75
30
चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी , अपडेट -15

वीरा लगातार दोड़े जा रहा था.... तूफानी रफ्तार थी उसकी
वीरा आज से 15 साल पहले रूपवती को जंगल मे घायल अवस्था मे मरने कि हालत मे मिला था, वीरा के पुरे शरीर मे जहर फैला हुआ था.
रूपवती उस वक़्त कच्ची जवानी कि दहलीज पे थी, दिल मे दयालुता थी... जंगल वो अपने पिता कसाथ शिकार पे आई हुई थी.... तभी उसकी नजर एक काले घोड़े पे पड़ती है जो दर्द से तड़प रहा था.
उस दिन वीरा मर ही जाता यदि रूपवती उसे अपने साथ हवेली ना ले अति... उसका उपचार ना कराती.
तब से आज तक वीरा हद से ज्यादा रूपवती का वफादार था... परन्तुआज उसे ऐसा क्या हुआ कि वो कामवती का नाम सुनते ही खुद को ना रोक सका दौड़ चला कामगंज कि ओर...
उसके मन मे कई सवाल उठ रहे थे जिसका जवाब वो खुद ही दे रहा था... " हे घुड़ देव ये वही कामवती निकले जिसकी मुझे 1000 सालो से तलाश है इसकी ही प्रतीक्षा किये मे ये नरक जैसा जीवन भोग रहा हूँ. कृपा करना घुड़ देव.... वीरा कामगंज कि दहलीज पे पहुंच चूका था...
ठाकुर कि बारात भी गांव कि दहलीज पे आ चुकी थी अब वीरा भी बारात मे शामिल था...
सब को एक ही जगह जाना था "कामवती के घर "

घर पे कामवती तैयार हो चुकी थी, क्या रूप निखर के आया था.. लगता था जैसे लाल जोड़े मे कोई स्वर्ग कि अप्सरा उतर आई है.
गहनो से लदी, तंग चोली मे कसे हुए मदमस्त दो गोल आकृतिया, नीचे सपाट गोरा पेट, नाभी से नीचे बंधा हुआ लहंगा. जो देखता देखता ही रह गया.
सखियाँ कामवती को देख हैरान थी कोई चुटकी ले रहा था तो कोई हिदायत दे रहा था.
"ठाकुर साहेब तो देखते ही गश खा जायेंगे "
एक सखी :- देखो कामवती सुहागरात को जैसा ठाकुर साहेब कहे वैसा ही करना.
लेकिन कामवती को जैसे इन सब बातो मे कोई दिलचस्पी ही नहीं थी, सुहागरात क्या है उसे पता था उसने पहले भी अपने शादी सुदा सहेलियों से सुना था परन्तु ये सब सुन क भी उसके दिल मे ना कोई हुक उठती थी ना ही कोई उत्तेजना आती थी.
कैसी स्त्री थी कामवती? नाम तो कामवती परन्तु काम कि लेश मात्र भी कोई इच्छा नहीं.
ऐसे कैसे हो सकता है?
खेर ठाकुर कि बारात दरवाजे आ चुकी थी.... रामनिवास के घर हड़कंप मचा हुआ था कोई स्वागत कर रहा था तो कोई खाने पीने कि तैयारी मे था.
रुखसाना जो कामगंज कि ही रहने वाली थी वो भी मौलवी साहेब म साथ रामनिवास क घर मौजूद थी..
अचानक उसकी नजर रंगा पे पड़ती है जो कि मजदूरों क साथ सामान अंदर रखवा रहा था.
दोनों कि नजर मिलती है और नजरों मे ही कुछ बाते हो जाती है.
तीन प्राणी और बेचैन थे एक ठाकुर साहेब जो अपनी होने वाली बीवी को देख लेना चाहते थे.
दूसरा वीरा जो कि देखना चाहता था कि कौन है ये कामवती.
तीसरा फलो कि टोकरी मै बैठा कामवती को देख लेने का ही इंतज़ार कर रहा था.
तभी पंडित ज़ी घोसणा करते है कि ठाकुर साहेब मंडप मे बठिये, और दुल्हन को लाया जाये.
रतीवती अपनी बेटी क साथ मंडप कि और चली आ रही थी... वाह कहना मुश्किल था कि माँ ज्यादा जवान है या बेटी ज्यादा खूबसूरत.
असलम तो जैसे ही रतीवती को देखता है उसकी बांन्छे खिल उठती है, जाते वक़्त भी रतीवती का साथ नहीं मिल पाया था उसे आजरात ही कोई मौका ढूंढना था..
रतीवती पे चोर मंगूस भी नजर टिकाये था.. क्या औरत है ये लगता है जैसे इसकी जवानी फटने पे आतुर है.
रतीवती अपनी बड़ी गांड हिलती कामवती को मंडप तक ले आती है और असलम के पास आ क बैठ जाती है.
वो बहुत ख़ुश थी डॉ. असलम को देखते ही उसकी चुत को चीटिया खाने लगती थी...
जैसे ही कामवती मंडप मे बैठती है एक जोर का हवा का झोंका आता है और उसका घूँघट उड़ जाता है ऐसा हसीन चेहरा देख के ठाकुर साहेब के होश उड़ जाते है..
ठाकुर :- कितना नसीब वाला हूँ मै जो कामवती जैसी सुन्दर स्त्री मिली...
वही दो और लोगो ने जैसे ही कामवती को देखा उनके तो दिलो पे बिजली गिरने लगी, उनकी बरसो कि तलाश पूरी ही चुकी थी..
वीरा :- वही है वही है.... यही है मेरी कामवती जिसकी मुझे तलाश थी धन्यवाद घुड़ देव इतने सालो बाद कामवती का पता चल ही गया.
टोकरी मे बैठा प्राणी :- हे नाग देव कही मै सपना तो नहीं देख रहा यही तो है मेरी कामवती जिसकी मुझे तलाश थी.
अब मेरा जीवन सफल होगा, मेरी शक्तियां वापस लौट आएंगी.
दोंनो कि बांन्छे खिली हुई थी.... परन्तु जैसे ही वीरा कि नजर उस प्राणी से मिलती है
उन दोनों का चेहरा घृणा और नफरत से भर जाता है.
वीरा :- ये मनहूस यहाँ कहाँ से आ गया? क्या इसने भी कामवती को देख लिया है.
परन्तु इस बात कामवती को मै हासिल कर क रहूँगा और इस सपोले नागेंद्र को मिलेगी मौत.
नागेंद्र :- ये कमीना अभी भी जिन्दा है, पर कैसे मैंने तो इसके बदन मे इतना जहर भर दिया था कि इसका मरना तय था.
खेर इस बार ये नहीं बचेगा कामवती मेरी ही रानी बनेगी. नफरत से वीरा कि तरफ फूंकार देता है.
वीरा का रुकना अब व्यर्थ था उसे जो देखना था देख चूका था वो वापस घुड़पुर कि और दौड़ चलता है रूपवती कि हवेली कि ओर...
पंडित मंत्रोउच्चारण मे लगे थे, शादी हो रही थी.. तभी रतीवती पेशाब का बहाना कर के उठ चलती है, घर के पीछे उसे चुत कि गर्मी सहन नहीं हो रही थी.... असलम पास हो ओर वो सम्भोग से अछूती रह जाये ये गवारा नहीं था
गली के मुहने पे खड़ी हो वो पीछे पलट क असलम कि ओर देखती है ओर एक हाथ अपने स्तन पे रख क हल्का सा मसल देती है.
असलम उसकी ऐसी निडरता पे हैरान था, इतने लोग होने क बावजूद भी उसे अपनी प्यास बुझानी थी...
डॉ. असलम कामुक औरत को ज्ञान ले रहे थे उन्हें समझ आ रहा था कि जब हवास हावी होती है तो जगह मौका नहीं देखा करती.
ऊपर से रतीवती जैसे औरत ऐसा मौका नहीं छोड़ना चाहती थी क्युकी आज कि रात थी सिर्फ फिर पता नहीं असलम कब मिलेंगे.
थोड़ी देर बाद असलम भी बहाने से उठ कर गली से लग के अँधेरे मे खो जाते है.
असलम जैसे ही घर के पीछे पहुँचता है भोचक्का रह जाता है. रतीवती हमेशा ही उसके होश उड़ा दिया करती थी... आज भी वो अपना ब्लाउज खोले खड़ी थी साड़ी सिर्फ उसकी कमर मे लिपटी पड़ी थी
20210802-203826.jpg

असलम को देखते ही उसे अपने पास आने का इशारा करती है असलम आ चूका था बिल्कुल नजदीक, असलम कि सांसे रतीवती क गोल सुडोल स्तन पे तीर कि तरह लग रही थी, असलम कि लम्बाई ही इतनी थी.
रतीवती प्यासी थी बहुत प्यासी... वो असलम का सर पकड़ धड़ाम से अपने स्तन क बीच दे मरती है
रतीवती :- असलम ज़ी सब्र नहीं होता पीजिये इसे, काटिये इसे...और अपना एक स्तन पकड़ के उसके मुँह मे दे देती है
असलम भी गरम हो चूका था, जो ऐसा दृश्य देख के भी गरम ना हो वो नामर्द ही होगा.
असलन लपा लप स्तन चाट रहा था, काट रहा था, निप्पल को तंटो तले चबा रहा था.
रतीवती का एक हाथ तुरंत असलम के पाजामे मे कुछ टटोले लगती है... जैसे ही उसे वो खजाना मिलता है उसके मुँह से सिसकारिया निकल पड़ती है
आहहहह.... असलम ज़ी चुसिये और जोर से काटिये.
आपके लिए ही तरस रही थी मै.
रतीवती असलम के पाजामे का नाड़ा खोल देती है पजामा तो जैसे मुर्दे इंसान कि तरह भर भरा के नीचे गिर जाता है और एक जिन्न प्रकट होता है काला मोटा, भयानक लंड के रूप मे.
रतीवती तुरंत इस कालजाई लंड का अहसास पा लेना चाहती थी तुरंत अपने गोरे चूड़ी पहने हाथ से सहलाने लगती है.

असलम :- आह रतीवती... क्या कर रही हो जान ही लोगी क्या समय कम है जल्दी से साड़ी ऊपर करो.
रतीवती तुरंत घूम के चौपया बन जाती है और अपनी साड़ी कमर तक ऊपर उठा लेती है.... एक दम गोरी गांड प्रकट होती है लगता था जैसे अमवास कि रात मे चाँद निकल आया हो इस चाँद के बीच एक लकीर भी थी जो चाँद को दो भागो मे बाटती थी... इसी लकीर मे दो अनमोल खजाने छुपे थे...
20210809-151528.jpg

रतीवती के पास यही तो एक अमूल्य धरोहर थी
जिसे असलम जल्द से जल्द खोद के निकाल लेना चाहता था.
इस गोरी गांड के दर्शन पा के कोई और भी हैरान था..
चोर मंगूस तो सुबह से ही रतीवती पे नजरें टिकाये बैठा था असलम क साथ साथ उसने भी ये हरकत देख ली थी.
वो भी असलम के पूछे चल पड़ा.
चोर मंगूस ने जब ये नजारा देखा तो उसकी बांन्छे खिल गई थी... रतीवती वाकई काम कि देवी ही है.
क्या बड़ी मुलायम गांड है इसकी मजा आ गया.लेकिन अब ये मेरी है... हाहाहाहा...
तभी हलकी से आहट करता है... पीछे कामक्रीड़ा मे लिप्त असलम और रतीवती ये आवाज़ सुन के चौंक जाते है.पीछे देखते है तो गली के पास कोई आकृति दिखती है
असलम भाग के गली के मुहने पे जाता है... लेकिन वहाँ कोई नहीं था, होता भी कैसे चोर मंगूस था ही छालावा.. हो गया गायब
लेकिन इनका काम बिगाड़ गया.
रतीवती असलम खौफजदा थे कि कही कोई देख ले... अभी उचित टाइम नहीं है.. वो दोनों वापस आ के मंडप के पास बैठ जाते है.
रतीवती तो काम अग्नि मे बुरी तरह जल रही थी... उसकी उत्तेजना चरम पे थी लेकिन मंजिल तक ना पहुंच सकी.
इधर दरोगा वीर प्रताप जो कि बारात मे ही अपने हवलदार के साथ शामिल था वो बारीकी से सब पे नजर बनाये हुए था.... उनका ध्यान सब जगह था बस सामने नहीं था
इधर रुखसाना घर से बाहर जा रही थी और दरोगा वीरप्रताप घर के अंदर.
दोनों आपस मे टकरा जाते है,
वीरप्रताप :- माफ़ करना बहन मैंने देखा नहीं.
रुखसाना : कोई बात नहीं मेरी भी गलती है माफ़ कीजियेगा
उठते वक़्त जैसे ही उनकी नजर पड़ती, दोनों के मन मे विचार उत्पन्न होता है... इसे तो कही देखा है?कौन है कहाँ देखा है? समझ नहीं आ रहा?
रुखसाना बाहर को चल पड़ती है और दरोगा घर के अंदर..

तभी अंदर पंडित घोषणा करते है कि शादी संपन्न हुई, दूल्हा दुल्हन को मंगलसूत्र पहनाये... और विदाई आज ही होनी चाहिए ठाकुर साहेब वरना बढ़ा अपशुकुन होगा.
ठाकुर :- सब समय पे होगा पंडित ज़ी...
रुखसाना .. अपनी सोच मे आगे बढ़ती जाती है कहाँ देखा है कहाँ देखा है उस आदमी को..
अचानक उसे याद आ जाता है अरे हाँ ये तो दरोगा वीर प्रताप सिंह है मेरे पति कि मौत पे घर आये थे परन्तु ये यहाँ क्या कर रहे है....
कही कही कही.... इन्हे रंगा बिल्ला के बारे मे तो कोई खबर नहीं.
मुझे रंगा बिल्ला को बचाना होगा.. रुखसाना वापस रामनिवास के घर दौड़ पड़ती है.. रंगा को सचेत करने.
क्या रुखसाना पहुंच पायेगी?
रंगा बिल्ला कामयाब होंगे?
बने रहिये कथा जारी है..
 
Member
105
75
30
चैप्टर -2, नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी अपडेट -16

रुखसाना घर के अंदर घुस जाती है उसकी नजरें सिर्फ रंगा को ही ढूंढ़ रही थी परन्तु रंगा कही दिख नहीं रहा था...
इधर गांव घुड़ पुर मे वीरा वापस अपने अस्तबल मे पहुंच चूका था, उसकी धड़कन तेज़ थी भागने कि वजह से नहीं
अपने पुराने दिन याद कर के जो उसने कामवती के साथ बिताये थे.... आह्हः.... क्या दिन थे
आज भी वही यौवन, वही खूबसूरती, वही कामुकता, सोचते सोचते वीरा उत्तेजित होने लगा, सालो बाद उसे कामक्रीड़ा कि याद आने लगी, उसका भारी भरकम लंड अपने घोसले से बाहर आ रहा था
Collected-hosted-by-Makloo-s-Male-Animal-Genitalia-Gallery-http-makloox-zoohaven-com.jpg

.. परन्तु ये किस्मत अपना घोड़े का रूप नहीं त्याग सकता, क्या करे अब भला घोड़े से कौन स्त्री सम्भोग करती है.
हे घुड़ देव ये कैसी सजा दी तूने... कामवती को सामने देख के भी कुछ ना कर पाया, वीरा अपनी उत्तेजना को दबाने शांत करने कि कोशिश करता है पर सब बेकार.
रात के 11:30 बज चुके थे शादी संपन्न हो चुकी थी.
पंडित :- विदाई का मुहर्त निकला जा रहा है ठाकुर साहेब.
डॉ. असलम ये बात सुन के चिंतित होने लगे थे, परन्तु ठाकुर साहेब तो अपनी ही खुमारी मे थे, उन्हें तो ऐसी सुन्दर बीवी पा के खुशी से फुले नहीं समा रहे थे.
डॉ. असलम :- ठाकुर साहेब जल्दी कीजिये अब विदाई करवाइये, कही पंडित ज़ी कि कही बात सत्य ना हो जाये कोई अपशकुन ना हो जाये....
रतीवती भी अब जल्द बाजी मे थी.... जल्दी जल्दी डोली सजाई गई....
सारे सामान लादे जाने लगे, कालू बिल्लू रामु जल्दी जल्दी हाथ चला रहे थे.
ठाकुर साहेब कि घोड़ा गाड़ी भी तैयार थी.... लेकिन ये क्या इस तैयारी मे रात के 11:55 हो चुके थे इसपे किसी का ध्यान नहीं था.
कामवती डोली मे बैठ चुकी थी.... चार लोगो ने डोली उठाई हुई थी..
रुखसाना कि नजर जैसे ही डोली कि तरफ पड़ती है हैरान रह जाती है.. डोली रंगा और उसके आदमियों ने ही उठा रखी थी.
जल्दबाजी और अफरा तफरी मे किसी ने ध्यान ही नहीं दिया कि डोली किसने उठाई वो कौन है?
कामगंज वालो को लगा कि ठाकुर के आदमी है और ठाकुर को लगा कि रामनिवास के आदमी है.
दरोगा वीरप्रताप सिंह सबसे आगे ठाकुर के आदमियों के साथ सबसे आगे घोड़ा गाड़ी मे बाकि मजदूरों के साथ बैठे थे. ताकि कोई अपिर्य घटना होने से रोक सके, उसके पीछे ठाकुर साहेब और असलम एक घोड़ा गाड़ी मे बैठे थे.
और सबसे पीछे चल रही थी कामवती कि डोली, गहनो से लदी कामवती को कोई अंदाजा नहीं था कि उसकी डोली किन राक्षसों के हाथ मे है.
रुखसाना भी सबकी नजर बचाती हुई पीछे हो ली थी.
उसे रंगा बिल्ला को बचाना था हर हालात मे.
पूछे छूट गया था रामनिवास का घर बिल्कुल सुनसान, वीरान अकेला घर... गांव वाले रतीवती और रामनिवास को द्धांढास बंधा के अपने अपने घर चले गये थे.
और बाकि जो कुछ मेहमान थे वो अपने अपने सोने कि व्यवस्था देख रहे थे, अब मैदान खाली था मैदान ऐसा जहाँ खेलना पसंद था चोर मंगूस को.
शादी के बाद का वीरान घर जहाँ सब थक हार के नींद के आगोश मे समा चुके थे.
रतीवती अपने कमरे कि और बढ़ चलती है, वो दुखी तो थी लेकिन उस से ज्यादा कही ज्यादा ख़ुश थी कि उसकी बेटी इतनी बड़ी हवेली कि अकेली मालकिन है.
आह्हः.... वाह भगवान क्या किस्मत लिखी है तूने मेरी बेटी मालकिन मतलब मै मालकिन वाह वाह....
ऐसा सोचती कमरे मे आ के अपने बिस्तर पे गिर पड़ती है.

ऐसे ही किसी बिस्तर पे गिरा कोई और भी तड़प रहा था.
गांव घुड़पुर मे रूपवती अपने कमरे मे उलट पलट रही थी, अपनी साड़ी वो कबकी खोल के फेंक चुकी थी उसका बदन जल रहा था, मन मे गुस्सा भी था और हवस भी, और कोई ऐसी वैसी हवस नहीं प्रचंड हवस जिसमे रूपवती जल रही थी... लगता था जैसे उसके कमर के नीचे कोई ज्वालामुखी है वो फटना चाहता है लेकिन फट नहीं पा रहा है... वो अपने जलते ज्वालामुखी के मुहने को ऊँगली से छुती है... एक बार तो ऊँगली गर्मी से जल ही उठती है उसकी सिसकारी निकल जाती है.
images

आअह्ह्ह.... तांत्रिक ये क्या किया तूने? ये कैसी आग लगा छोडी है मेरे बदन मे. वो अपने स्तन जोर जोर से रगड़ रही थी मसल रही थी.
स्तन रगड़े जाने से चिंगारी निकल निकल के चुत गांड पे हमला कर रही थी, हवस उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी.
अपनी काली चिकनी चुत मे ऊँगली कर कर के बेतहाशा रुला रही थी रूपवती अपनी मासूम चुत को काली चुत से निकलता सफ़ेद पानी बिस्तर को भिगोये जा रहा था.
कुछ करना होगा रूपवती कुछ करना होगा... ये उत्तेजना जान ना ले ले.
रूपवती अपनी भारी भरकम काली गांड उठा उठा के अपनी ऊँगली पे मार रही थी अब भला इतने बड़े लावे के कुंड को एक ऊँगली क्या संभाल पाती.
उसे तांत्रिक कि गुफा मे किया गया कृत्य याद आता है जब उसने एक लकड़ी अपनी गांड मे घुसा ली थी....
जिसे बाद मे घर आ के उसने अपनी गांड से बाहर निकाल लिया था उस लकड़ी का ध्यान आते ही वो उसे ढूढ़ने के लिए उठती है.. ब्लाउज खुले होने कि वजह से धम से बड़े बड़े काले स्तन उछल पड़ते है.
पास के ही अलमारी मे लकड़ी मिल जाती है, लकड़ी लिए वो वापस बिस्तर कि और चल पड़ती है इस उम्मीद मे कि शायद ये हवस ये प्यास मिट सके..
दूसरी और ठाकुर कि बारात विदा हो के जंगल के इलाके से गुजर रही थी, चारो तरफ सन्नाटा था, ठाकुर असलम और कुछ गांव के मेहमान घोड़ा गाड़ी मे बैठे ऊंघ रहे थे, दरोगा वीरप्रताप सिंह चोक्कन्ने थे,
अमावस कि काली अँधेरी रात थी बस जलती हुई मसालो का ही सहारा तो जो कि पर्याप्त नहीं था फिर भी धीरे धीरे... बारात विदा हो रही थी.
पीछे रंगा और उसके आदमियों ने अपना खेल शुरू कर दिया था वो लोग लगातार ठाकुर कि बगघी से दुरी बनाते जा रहे थे, अंदर बैठी कामवती को इस बात का कोई अहसास नहीं था वो तो गमगीन माहौल मे ऊंघ रही थी कभी आंखे लगती तो कभी खोलती.
इच्छाधारी सांप नागेंद्र भी फलो कि टोकरी मे शांति से पड़ा हुआ था उसकी तो मन कि मुराद ही पूरी हो चली थी आखिर आना कामवती को उसके घर ही था वो उसके पास रहने का सौभग्य प्राप्त कर सकता था.
तभी सुनसान जंगल के बीचो बीच एक नदी पड़ती है जिसे घोड़ा गाड़ी और बाकि पैदल मजदूर सामान उठाये पार कर लेते है, दरोगा, ठाकुर, नागेंद्र सब पुल पार कर नदी के पार पहुंच जाते है.
परन्तु डोली अभी पुल के मुहने पे भी नहीं पहुंची थी..
दरोगा वीरप्रताप सचेत था उसे कुछगड़बड़ी कि आशंका सताने लगती है.
वो घोड़ा गाड़ी रुकवा देता है...
ठाकुर :- गाड़िवान ये बाघी क्यों रोकी?क्या हुआ?
दरोगा पीछे मुड़ के ठाकुर कि गाड़ी के पास आता है बोलता है ठाकुर साहेब कुछ गड़बड़ है....
वही बिल्ला और उसके आदमी ये दृश्य देख रहे थे पास ही पेड़ो कि ओट मे छुपे हुए.
ठाकुर :- सामने एक मजदूर को खड़ा देख, साले तेरी हिम्मत कैसे हुई बारात रुकवाने कि? ऐसा कह के ठाकुर और साथ मे असलम भी गाड़ी से नीचे उतर जाते है.
तभी..... बाअअअअअअअड़ड़ड़ड़ड़आआमममम.....
जोर दार धमाका होता है... काबउउउउउउउम्म्म्म.
30a43d5a-b1f3-455f-b815-b67acd7512a3.webp

धमाका तो रामनिवास के घर भी हो रहा था.
लेकिन ये धमाका रतीवती कि चुत से निकलती आवाज़ का था.... फच फच फछाक...
रतीवती आज बहुत ज्यादा गरम थी, बहुत उत्तेजित थी उसकी चुत लगातार पानी के फव्वारे छोड़ रही थी.
असलम से मिलन अधूरा रह गया था, उसकी प्यास अधूरी थी... उसे लंड चाहिए था शुद्ध खालिश लंड, असलम के मिलन आधा अधूरा रहने से उसके बदन मे जो तड़प मची थी जो उत्तेजना उठी थी उसका ही परिणाम था ये दृश्य.
परन्तु अब रामनिवास का ही सहारा था अब किस्मत कि मार रामनिवास जाने कहाँ पड़ा था शारब के नशे मे.
रतीवती लगातार अपनी चुत मे ऊँगली मारे जा रही थी... वो इतनी कामुकता से भरी थी कि ऊँगली धचा धच मारते मारते कलाई तक पूरी हथेली ही चुत मे घुसा ली थी उसे उस से भी सब्र नहीं था वो तो आज खुद का पूरा हाथ डाल देने पे उतारू थी.. चुत कि धज्जिया उड़ा देना चाहती थी.
5146241_257cbd1_640x_.jpg

हे भगवान क्या करू मै.. असलम भी कुछ कर नहीं पाए ना जाने कब मिलेंगे वापस से. आज रामनिवास को छोडूंगी नहीं भले ही चुत चाटे गांड चाटे उसे मेरी प्यास बुझानी ही होंगी.. हाँ वो मेरा मर्द है उसका फर्ज़ है उसे मेरी प्यास बुझानी ही होंगी.
रतीवती कामवासना मे पागल हो चुकी थी, उत्तेजना से गरमाई औरत क्या नहीं कर सकती उसका ताज़ा उदाहरण रतीवती ही थी.
हाथ कलाई तक चुत मे था और स्तन रगड़ रगड़ के लाल हो चुके थे इतने गरम कि कोई हाथ लगा दे बस जल ना उठे तो कहना.
चुडिया छन छनाती जा रही थी... और इस मधुर संगीत को सुन के चुत पानी छोड़े जा रही थी. गांड का छेद कुलबुला रहा था जैसे उसे कोई नज़रअंदाज़ कर दिया हो.
रतीवती पागलो कि तरह सर पटक रही थी.. तभी कमरे का दरवाजा खुला है वहाँ एक काली परछाई दिखती है...
रतीवती आव देखती है ना ताव, सीधा पलग से उठ के उस आकृति को पकड़ के बिस्तर पे गिरा देती है और धम से अपनी बड़ी सी मतवाली गांड और चुत उस परछाई के मुँह पे रख घिसने लगती है....
15401496_011_3606.jpg

आअह्ह्ह... कम्मो के बापू आअह्ह्ह.... चाटिए इसे खाइये मेरी चुत बहुत परेशान कर रही है.
परन्तु ये क्या रामनिवास तो शराब पी के छत पे मेहमानों के साथ सोया पड़ा है...
फिर ये कौन है?
कामवती का क्या हुआ?
कथा जारी है....
 
Member
105
75
30
चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी अपडेट -17

काबूम.... धमाके के साथ नदी पे बनी कच्ची पक्की पुलिया बिल्ला ने बम से उड़ा दी थी, हड़कंप मच जाता है चारो तरफ, ठाकुर और असलम को तो कुछ समझ ही नहीं आता कि क्या हुआ एक दम
धमाके से प्रकाश होता है सबकी नजर पुलिया के पार जाती है जहाँ रंगा और उसके आदमी डोली उठाये अलग ही दिशा मे भागे जा रहे थे.
बिल्ला भी रंगा के पास पहुंच चूका था उसके बाकि आदमी हड़कंप का फायदा उठा के दो तीन घोड़ा गाड़ी को अपने साथ जंगल ओझल हो गये किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है
ठाकुर :- ये क्या हो रहा है असलम ये हमला किसने किया?
दरोगा :- ठाकुर साहेब ये रंगा बिल्ला का काम है, मुझे पहले ही खबर थी कि ये लूट मचाएंगे, इसलिए मै वेश बदल आपकी बारात मे शामिल हो क्या था.
परन्तु इन सब के बीच नागेंद्र सर सरा जाता है, पानी मे उतर के जितना तेज़ हो सकता उतना तेज़ तेरे जा रहा था, नदी का बहाव तेज़ था.... नहीं नहीं... मुझे नदी पार करनी होंगी मै कामवती को वापस हाथ से नहीं निकलने दूंगा.
दरोगा और उसके आदमियों ने भी स्थति को काबू कर लिया था, अब उन्हें नदी पार करनी थी.

नदी तो रूपवती को भी पार करनी थी अपनी हवस कि नदी...परन्तु ये नदी गरम लावे से बह रही थी सफ़ेद लावा जो लगातार रूपवती कि चुत से रिस रहा था मोटी लकड़ी रुपी बाँध इस सैलाब को रोकने मे असमर्थ था.
रूपवती उस लावे को लकड़ी से अंदर ठेलने का प्रयास कर रही थी, किन्तु जितना वो लकड़ी अंदर डालती उतना पानी बह के बाहर आ जाता.
ये हवस ये उत्तेजना आज बेकाबू थी, इस हवस को शांत करने के लिए वो कुछ भी कर सकती थी.
घोड़ा वीरा भी कामअग्नि मे जल रहा था, उसके मुँह से बेबसी कि हुक निकले जा रही थी वो हिनहिना रहा था हवस मे हिनहिना रहा था.
रूपवती के कानो मे लगातार वीरा कि हिनहिनहत पहुंच रही थी... वो अपनी हवस को काबू कर उठ जाती है, उसे लगता है वीरा किसी तकलीफ मे है, उसका ब्लाउज खुला हुआ था पेटीकोट ढीला सा कमर पे नाभी के नीचे अटका पड़ा था.
बड़े बड़े काले स्तन अँधेरे मे हिलते चमक रहे थे, बड़ी सी गांड धल धला के हिल रही थी "वीरा कभी इस तरह तो शोर नहीं करता क्या हुआ उसे "
कोई जानवर तो नहीं आ गया?
रूपवती अर्धनग्न अवस्था मे ही अस्तबाल कि ओर चल पड़ती है, भले एक घोड़े के सामने जाने से क्या शर्माना.
20210802-163223.jpg

वो अस्तबाल पहुंच के देखती है सब ठीक है लेकिन अंधेरा होने कि वजह से वीरा का इंसानी रूप नहीं देख पाती वहाँ एक कला बड़ा सा इंसान पूर्णरूप से नंगा खड़ा था उसका बड़ा सा लंड उसे दीखता नहीं है, रूपवती को लगता है शायद वीरा भूखा है वो उसे पास जाती है ओर घास उठा के उसके खाने कि टंकी (नांद ) मे डालने के लिए झुकती है, स्तन अपने भार कि वजह से आगे को झूल जाते है, पीछे पेटीकोट सरकार के गांड पे टिक जाता है, रूपवती कि गांड इतनी बड़ी थी कि नीचे झुकने से पेटीकोट टाइट हो जाता है इतना टाइट कि चरररररर... कि आवाज़ के साथ फट पड़ता है.
वीरा का मुँह बिल्कुल रूपवती कि गांड के पीछे था जैसे ही पेटीकोट फटता है एक मादक खुशबू आ के वीरा के नाथूनो को हिला देती है, वीरा जो पहके से ही गरम था मदहोश हो जाता है बरसो बाद उसे स्त्री के कामुक अंग कि खुशबू मिली थी ऊपर से रूपवती कि चुत तो पानी ओर खुशबू भारी मात्र मे छोड़ रही थी.
जैसे ही रूपवती को अपने पेटीकोट फटने का अहसास होता है वो उठने को होती है तभी अचानक एक घूरदरी,गीली सी चीज उसकी चुत के दाने से ले कर गांड के छेद तक लप लपाती चली जाती है
आह्हः..... इतना गर्म ओर गिला अहसास यही तो चाहिए था रूपवती को, खुर्दरापन ऐसा कि चुत गांड घिस गई थी.
एक बार फिर सड़प कि आवाज़ के साथ वही कामुक अहसास होता है जैसे कोई गीली चीज उसकी चुत को पिघला रही हो.
वो पीछे मुड़ के देखती है उसके पीछे एक इंसान खड़ा था उसके बदन पे बहुत बाल थे,रूपवती चीख पड़ती है डर से आअह्ह्ह..... तुम कौन हो? मेरा घोड़ा वीरा कहाँ है. वीरा अपनी जीभ उसकी गांड मे लगाए खड़ा था, रूपवती चुपचाप वैसी ही झुकी खड़ी रहती है. उसे तो मन कि मुराद पूरी हो रही थी, उसे अभी सिर्फ अपनी हवस मिटानी थी, अब ये इंसान कौन है ये बाद मे देखा जायेगा, उसे खुर्दरी जीभ का अहसास मन्त्रीमुग्ध कर रहा था. खड़े खड़े अपनी चुत और गांड को वीरा कि जीभ को धकेलने लगती है. मस्ती मे चुत चाटवा रही थी...
gifcandy-asslicking-177.gif

चुत चटाई तो रामनिवास के घर भी हो रही थी
रतीवती उस अनजान शख्स के मुँह पे बैठी पागलो कि तरह अपनी गांड उठा उठा के पटके जा रही थी, घिसे जा रही थी
नीचे लेटा शख्स रतीवती के द्वारा किये गये हमले से चौक गया था, परन्तु अब वो चुत से निकलती महक मे खोने लगा था,वो भी अपनी जीभ बाहर निकाल के लपा लप चाट रहा था,
रतीवती :- अह्ह्ह.... कामम्मो के बापू.. आअह्ह्ह आज तो बड़ा लपक केचाट रहे हो, इतना जोश कहाँ से लाये.
इतना कह के रतीवती अपना हाथ नीचे ले जाती है रामनिवास का लंड टटोलने लगती है.
ये क्या इतना बड़ा लंड, वो भी इतना कड़क मोटा, रामनिवास का खड़ा होने पे भी इतना नहीं होता....
कही कही कहीं..... ये कोई और तो नहीं
लेकिन रतीवती हवस के मार्ग पे इतना आगे बढ़ चुकी थी कि वापस लौटना मुश्किल था, उसे समझ आ चूका था कि ये रामनिवास नहीं है लेकिन अब क्या फर्क पड़ता है उसे तो लंड चाहिए था ऐसा ही लंड जो उसकी प्यास बुझा सके, उसकी गांड फाड़ सके.
उसे अपनी हवा मिटानी थी भले लंड किसी का भी हो.
नीचे लेटा शख्स अपनी जीभ को तिकोना कर चुत मे घुसा देता है . आह्हब..... रतीवती अपनी सोच से बाहर आती है और उत्तेजना के मारे शख्स के बाल पकड़ के अपनी चुत मे घुसाने लगती है लगता था जैसे पूरा मुँह ही अपनी चुत मे डाल लेगी.
शख्स :- वाह वाह क्या गरम माल हाथ लगा है, क्या स्वाद है इसकी चुत का आज चोरी का ही मजा आ जायेगा.
ये चोर मंगूस ही था जो चोरी के इरादे से घुसा था परन्तु यहाँ तो जरुरत से ज्यादा मिल रहा था.
चोर मंगूस अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा था कभी जीभ चुत मे डालता कभी वही जीभ गांड मे डाल देता,
चुत के दाने से लेकर गांड तक लगातार चाटे जा रहा था, रतीवती इस कला से मरी जा रही थी अपने स्तन नोच रही थी परिणाम सामने आया रतीवती भरभरा के मंगूस के मुँह मे ही झड़ने लगती है, कई दिनों से रुका ज्वालामुखी फट पड़ता है आहहहह...... फच फच फच... करती रतीवती चुत से फववारा छोड़ने लगती है.
img-3269.gif

रतीवती ने अभी भी मंगूस के बाल पकड़े अपनी चुत पे दबाये जा रही थी अपना सारापानी मंगूस के मुँह मे उतार दिया.... धम.. से बिस्तर पे गिर पड़ती है आह्हः..... मै गई.
उधर जंगल मे रंगा बिल्ला कामवती को डोली से उतार चुके थे, कामवती ये सब देख हैरान रह जाती है उसके सामने दो हैवान जैसे दिखने वाले दो आदमी खड़े थे, लगता था जैसे कोई दो राक्षस प्रकट हो गये हो.
कामवती जोर से चिल्लाती है..... उसके मुँह पे अभी भी घूँघट था, चीख कि आवाज़ इतनी जोरदार थी कि पुरे जंगल मे गूंज उठती है.
रंगा उसका मुँह बंद करता है.... दोनों उसे कंधे पे उठाये उबड़ खबड़ रास्ते पे दौड़ पड़ते है अपने अड्डे कि ओर.
काली पहाड़ी पे स्थित अड्डे पे पहुंच चुके थे... कामवती को नीचे जमीन पे बिछी घाँस मे पटक देते है.
रंगा :- हम कामयाब हुए बिल्ला, हाहाहाहा.. उतार इसके गहाने खूब लदि पड़ी है गहनो से..
बिल्ला कामवती कि ओर बढ़ चलता है.
कामवती डर ओर घबराहट से पसीने पसीने हो गई थी, उसकी सांसे ज्वार भाटे कि तरह ऊपर नीचे हो रही थी.
बिल्ला करीब पहुंच चूका था... एक दम से घूँघट हटा देता है, चेहरे ओर स्तन से कपड़ा हट जाता है,जैसे ही कामवती का चेहरा सामने आता है दोनों के होश उड़ जाते है, ऐसा सुन्दर चेहरा इतनी सुन्दर स्त्री सोनो ने कभी नहीं देखि थी, माथे पे बिंदी मांग मे सिंदूर लाल चोली से झाँकते गोरे बड़े सुडोल स्तन...
20210804-165413.jpg

आअह्ह्ह.... रंगा देख तो सही क्या माल हाथ लगा है, गहनो के साथ ऐसा यौवन भी हाथ लग गया.
रंगा :- वाह बिल्ला मजा आ गया खूब रागड़ेंगे इसे आज.स्तन देख कितने गोरे ओर बड़े है.
कामवती ये सब बाते सुन घबराने लगी थी.
नागेंद्र नदी पार कर चूका था... फिर भी उसे अभी लम्बा सफर तय करना था.
"मै वापस से कामवती के साथ ऐसा नहीं होने दूंगा " नागेंद्र फुसफुसाता तेज़ी से रेंगे जा रहा था.
क्या कामवती बच पायेगी?
वापस मतलब? क्या पहले भी कामवती के साथ ऐसा हुआ है?
बने रहिये कथा जारी है
 
Member
105
75
30
चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी अपडेट -18

वीरा अब तक चाट चाट के रूपवती को चुत ओर गांड को बुरी तरह गिला कर चूका था, रूपवती का रोम रोम काँप रहा था इस चटाई से, काली चिकनी चुत अँधेरी रात मे भी लार से चमक रही थी, वीरा बरसो बाद ऐसी कामुक चुत पा के बेकाबू था, वो बेसुध सिर्फ जीभ चलाये जा रहा था कभी जीभ को चुत मे घुसाने कि कोशिश करता तो कभी गांड मे उसे जैसे किसी खजाने कि तलाश थी, उसे प्यास थी जिसे खोद खोद के निकाल लेना चाहता था...
अपनी लम्बी जीभ गोल कर के रूपवती कि खुली चुत मे डाल के लप लापने लगता है, अंदर से चाटने लगता है.
ऐसा मजा ऐसी मदकता ऐसी उत्तेजना का अहसास कभी रूपवती को नहीं हुआ था वो अपने मे ही खोती जा रही थी,
वीरा इस कदर चाट रहा था कि जब नीचे चुत के दाने से जीभ चलाता तो रूपवती को जीभ से ही हवा मे उठा देता, फिर गांड तक पहुँचता तब जा के रूपवती के पैर जमीन पे टिकते..
कब तक ऐसी घमासान चाटाई झेलती रूपवती, आह्हःम्म्म्म...... वीरा वीरा ओर अंदर चाट घुसा अंदर जीभ
आखिर वीरा कि मेहनत रंग लाइ. उसे वो खजाना मिल ही गया, रूपवती अति उत्तेजना मे कंपने लगी ओर भल भला के झड़ने लगी .. ऐसा कभी ना झड़ी जीवन मे,
उसकी गांड कि सारी हवा ओर चुत का सारा पानी फच फच कि आवाज़ के साथ निकलने लगा ..... चरररत... फुर्रररम...
वीरा के मुँह पे सफ़ेद गरम पानी के फव्वारे पड़ने लगे जिसे वो लपा लप चाटे जा रहा था.कमरस का एक कतरा भी व्यर्थ नहीं गया सब वीरा के मुँह मे समा गया जीभ के रास्ते..
जैसे ही वीरा ने मुँह हटाया रूपवती धम से पीछे कि ओर गिर पड़ी उसके पैरो मे खुद का वजन संभाल सकने लायक ताकत नहीं बच्ची थी.
निढाल बेचैन वो वीरा के दोनों पैरो के बीच गिर पड़ती .. आंखे खुली थी ओर जोर जोर से हांफ रही थी
उसके आँखों के सामने ठीक सर के ऊपर मोटा मुसल 15इंच का लंड लहरा रहा था, रूपवती कि नजर उस लंड पे बनी हुई थी आंखे चौड़ी हो गई थी.... सांसे दुरुस्त करने मे लगी थी रूपवती... या फिर आने वाले दंगल के लिए सांसे भर रही थी
वो सोच मे पड़ गई थी कि इतना बड़ा लंड किसी इंसान का कैसे हो सकता है.
042-450.jpg

इधर रंगा बिल्ला के अड्डे पे कामवती बुरी फंसी हुई रही, दो रक्षासो के बीच एक मासूम सुन्दर चिड़िया फसी हुई थी पसीने से लथपथ ब्लाउज गिला हो चूका था इतना गिला कि निप्पल के दाग दिखने लगे थे डर के मारे निप्पल खडे को के दर्शन दे रहे थे, रंगा बिल्ला ये दृश्य देख खुद को रोक नहीं पा रहे थे उनके बड़े लंड औकात मे आ गये थे.
रंगा कामवती कि ओर बढ़ता है ओर एक ही झटके मे ब्लाउज पकड़ के आगे से नोच देता है... दो गोरे सुडोल बड़े स्तन धमाके के साथ सामने आ जाते है.
रंगा बिल्ला ललचाई नजरों के साथ इस अनमोल खजाने को पा लेना चाहते है, इतने गोरे सुडोल स्तन कौन नहीं पाना चाहता भला..कामवती डर ओर घबराहट से हांफ रही थी.

रामनिवास के घर रतीवती भी अपने स्सखलन को प्राप्त कर मंगूस के बगल मे लेटी हांफ रही थी....
मंगूस का स्सखालन बाकि था, रतीवती जैसे ही बगल मे लेटती है मंगूस उसके स्तन पे टूट पड़ता है, इतने बढ़े स्तन थे कि एक बार मे मुँह मे समा ही नहीं रहे थे.
मंगूस पूर्णतया रतीवती के ऊपर चढ़ जाता है उसका कडक लंड चुत पे दस्तक देने लगता है, हाफ़ती हुई रतीवतीं इस छुवन से चिहूक जाती है, पानी बहाती चुत पे गर्म लंड का अहसास ठंडक पंहुचा रहा था,
चिंगारी वापस भड़क रही थी, रतीवती अपना एक स्तन पकड़ मंगूस के मुँह मे ठूस देती है. चूस इसे जोर से चूस खा जा
20210802-163530.jpg

मंगूस इस औरत कि दिलेरी उत्तेजना पे हैरान था वो खुद अपने बड़े स्तन पकड़े उसके मुँह मे ठूस रही थी,
मंगूस लप लप कर निप्पल पे जीभ फिरा रहा था, कभी एक निप्पल को पकड़ता तो कभी दूसरे को काटने लगता, स्तन तो इतने बड़े थे कि हाथ मे ही नहीं समा रहे थे.
रतीवती कि उत्तेजना वापस से जागने लगी थी देखा जाये तो हवस सोइ ही कब थी रतीवती तो हमेशा तैयार रहती थी चुदाई के लिए बस लंड ही नहीं मिलते थे.
परन्तु आज लंड भी था और बराबर खड़ा भी था.
मंगूस का लंड रतीवती कि चुत पे दस्तक दे रहा था, रतीवती एक झटके के साथ अपनी गद्दाराई जाँघे खोल देती है जाँघे खुलते है लंड चुत के दाने को रगड़ता हुआ लकीर को घिसता सीधा गांड के छेद को खटखटाने लगता है.
आह्हःम.... इस छुअन, इस रगड़न से रतीवती सिहर जाती है अपनी टांगे और ज्यादा खोल लेटी है, मंगूस अब बार बार ऐसा ही कर रहा था रतीवती हवस उत्तेजना मे सर पटक रही थी उसके सहन के बाहर था... लेकिन मजेदार बात यही थी कि रतीवती बोलती नहीं थी बस कर देती थी..
रतीवती धीरे से अपना हाथ नीचे ले जा के मंगूस का लंड पकड़ लेती है और सीधा गांड के मुहाने पे टिका देती है.
Anal234.gif

लंड चुत के पानी से भीग चूका था... पच कर के एक ही बार मे सरसराता अंदर खुद जाता है, मंगूस के टट्टे रतीवती कि गांड पे तपाक से पड़ते है, गांड थलथला के हिलती है. स्तन तो अपनी आजादी का मौज ले रहे थे,
चूसे काटे जाने से और भी खिल चुके थे.
0539.gif

मंगूस के मजे कि कोई सीमा नहीं थी.. आज किसी गरम भट्टी मे उसने लंड दे मारा था,
अंदर लंड बार बार मांस के लोथड़ो से टकराता, रतीवती काम उत्तेजना मे गांडभींच लेती थी जब मंगूस लंड बाहर खींचता तो लगता जैसे गांड अंदर से बाहर ही आ जाएगी.
रतीवती:- आअह्ह्ह... और अंदर और तेज़
सिसकारिया गूंजने लगी थी कमरे मे फचा फच करती गांड पेली जा रही थी .
रतीवती को इतने से भी सब्र नहीं था पता नहीं किस आग मे जल रही थी उसकी चुत
वो अपना एक हाथ चुत तक ले जाती है और फछाक से कलाई तक पूरा हाथ चुत मे डाल देती है
3518045.webp

आअह्ह्हम्म...... मेरी चुत
मारो मेरी गांड और जोर से
मंगूस तो ऐसी हवस ऐसा रंडिपान देख हैरान ही रह गया उसका जोश दुगना हो गया था पूरी ताकत से गांड मे लंड पेल रहा था, दृश्य ऐसा था कि कोई देख लेता तो उसकी जिंदगी फना हो जाती, चूड़ी से भरे हाथ कलाई तक चुत मे धसे हुए थे, मजबूत बड़ा लंड गांड के उबड़ खबड़ रास्ते पर धक्के लगा रहा था.
रतीवती लगातार सिसकरती अपना सर इधर उधर पटक रही थी.
रंगा बिल्ला के अड्डे पर कामवती का हाल भी कुछ ऐसा ही था,ब्लाउज के बटन खुल. चुके थे, वो अपने एक हाथ से अपने दोनों स्तनों को ढकने कि नाकाम कोशिश कर रही थी. रंगा उसकेपास आ के जोर से सांस लेता है.

रंगा :- आअह्ह्ह.... बिल्ला क्या क्या खुशबू है, कच्ची कली कि खुशबू.
आअह्ह्ह..... बिल्ला भी रतीवती के एक हाँथ को पकड़ ऊँचा कर देता हैऔर उसकी बगल कि खुशबू लेता है
आह्हः.. हाहाहा.... क्या खुशबू है यार रंगा तू सही कहता था अब सहन नहीं होता चल पहले तो इसकी सुहागरात आज ही मना देते है.
कामवती ये सुन के बिल्कुल घबरा जाती है उसकी धड़कन ट्रैन बन चुकीथी, तेज़ धड़कने से स्तन काँप रहे थे, पसीने से भीगे हुए थे..
रंगा कामवती को पलट देता है, कामवती पेट के बल लेट जाती है, वो बेबस थी मजबूर थी.
बिल्ला उसके हाथ आगे से पकड़ लेता है, " यार रंगा इसकी बगल कि खुशबू इतनी मादक है तो गांड और चुत से कैसी खुशबू अति होंगी ".
रंगा :- हाँ बिल्ला अभी देख लेते है, रंगा कामवती का लेहंगा पकड़ लेता है परन्तु जैसे ही वो लहंगा ऊपर उठाने लगता है कही से एक भयानक काला भुजंग सांप आ के कामवती कि जांघो पे लहंगे के ऊपर से लिपट जाता है और लगातार कसता चला जाता है.
नागेंद्र :- कामवती मुझे माफ़ करना मेरे पास सिर्फ यही तरीका है तुम्हे बचाने का, काश श्राप के कारण मेरी शक्तियां विलुप्त ना हुई होती तो इन राक्षसों को जीवित ना छोड़ता.
रंगा बिल्ला एक पल को डर जाते है, कामवती भी घबरा के सीधी हो बैठ जाती है और अपने ब्लाउज को पकड़ जैसे तैसे अपने बड़े स्तनों को काबू मे करती है.
तभी गोली चलने कि आवाज़ आती है...
धाययय....
किसको लगी गोली?
कथा जारी है
 
Member
105
75
30
, चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी अपडेट -19

नागेंद्र कामवती कि जांघो पे लिपटा फूंकार रहा था भयानक रूप धारण किये हुआ था, इस से ज़्यदा वो कर भी क्या सकता था जहर तो बचा नहीं थी...
रंगा बिल्ला अचानक हमले से चौक जाते है और छीटक के कामवती को छोड़ देते है.
तभी एज़ आवाज़ गूंजती है घायययय...
एक गोली कही से चलती हुई बिल्ला कि बाहाँ को चीर देती है, सभी लोग अचानक होती घटना से अचंभित थे,
रंगा कुछ समझने लायक नहीं था, बिल्ला गोली के झटके से संतुलन खो कमरे कि खिड़की के पास जा गिरता है,
गोली दरोगा वीरप्रताप कि राइफल से निकली थी जो कि अपनी प्रतिज्ञा के चलते समय पे पहुंच चुके थे,
पीछे से दरोगा के आदमी भी भागते हुए वहाँ पहुंचते है.
हवलदार :- साहब रंगा बिल्ला के सभी आदमी मारे गये है.
दरोगा :- शाबास लखन शबास वो देखो इनके सरदार एक भीगी बिल्ली बना पड़ा है दूसरा गोली खा के मरने के कगार पे है.
हाहाहाहाहा... हाहाहाहा..
जोरदार ठहका लगा देता है उसे अपने सफलता पे अतिआत्मविश्वास हो चला था अपितु उसे यकीन नहीं हो रहा था कि इतनी आसानी से रंगा बिल्ला हाथ आ जायेंगे.
दरोगा :- देख लखन देख... जिन डाकुओ से सारा इलाका काँपता है, जिनका खौफ फैला हुआ है उन्हें हमने पकड़ लिया.
कब्जे मे लो सालो को....
लखन और उसके आदमी जैसे ही आगे बढ़ने को होते है
तभी अचानक खिड़की के पास एक साया प्रकट होता है निपट अँधेरी रात मे सिर्फ एक परछाई दिखती है.
परछाई बिल्ला को पकड़ती है और रस्सी के सहारे खिड़की से नीचे कुदा देता है साथ ही खुद भी गायब.
दरोगा के आदमी जब तक पहुंचते बिल्ला और परछाई गायब... बचता है सिर्फ रंगा.
लखन :- साहेब यहाँ तो कोई नहीं है लगता है बिल्ला भाग गया.
दरोगा :- कोई बात नहीं रंगा तो हाथ आया बिल्ला को तो वैसे ही गोली लगी है ज्यादा दिन नहीं जी पायेगा. हाहाहाहाा.....
दरोगा वीरप्रताप बहुत ख़ुश था उसनेअपने जीवन का मुकाम हाशिल कर लिया था बिल्ला घायल मारने को था रंगा उसकी गिरफ्त मे था.
वीर प्रताप कामयाब हो चूका था....

यहाँ रामनिवास के घर पे मंगूस को भी कामयाब होना था लेकिन कैसे हो रतीवती तो काम कि देवी थी हार कहाँ मानती थी, जितना चोदो सब कम है....
मंगूस :- मुझे कामयाब होना है तो इस स्त्री को काबू करना ही होगा, ये सोच के मंगूस रतीवती को उल्टा पटक देता है और उसके ऊपर सवार हो जाता है.
उसका लंड अभी भी रतीवती कि गांड मे घुसा हुआ था पूरा जड़ तक टपा टप मारे जा था, रतीवती कामुक आहे भर रही थी वो तो कब से इसी अग्नि मे जल रही थी, वो भी अपनी गांड मंगूस के लंड पे पटक रही थी.
रतीवती :- जो भी है ये शख्स कमाल का है गांड कि खुजली मिट रही है.
मंगूस :- हे भगवान क्या स्त्री है स्सखालित होने का नाम ही नहीं लेती.... फच फच पच कि आवाज़ करता चुत से पानी का सागर छलके जा रहा था जिसे रतीवती अपना हाथ डाले रोकने कि नाकाम कोशिश कर रही थी.चुत के दाने को घिसी जा रही थी, इसे अपनी चुत रुपी नदी पे बाँध बनाना था, परन्तु भला कभी कोई हवस को रोक पाया है जो आज रतीवती रोकती

gifcandy-brunette-66.gif

मंगूस अब देर नहीं कर सकता था,
वो कामअग्नि मे जलती रतीवती को बिस्तर से नीचे पलट देता है उसका सर नीचे और गांड बिस्तर के सहारे ऊपर को थी.
इस कला ऐसे आसन से रतीवती घन घना गई और उत्तेजना मे एक पानी का फव्वारा मार दिया जो ऊपर उछल वापस नीचे आ के सीधा रतीवती के मुँह मे गिरा, खुद कि चुत का पानी पी के रतीवती तृप्त होने लगी आंखे बंद किये स्वाद ही ले रही थी कि गरम पानी छोड़ती चुत मे मोटा सा कुछ सरकने लगा, और धीरे धीरे जा बच्चेदानी से जा लगा ये वही खूबसूरत बच्चेदानी है जहाँ से कामवती जैसी अप्सरा निकली है..
रतीवती सिसकारी मारती आंखे खोलती है मनहूस पूरी तरह उसकी चुत ने लंड फ़साये खड़ा रहा
रतीवती नीचे से मंगूस का गोरा लंड अपनी चुत मे धसा देख पा रही थी...
deep-dicking.gif

आअह्ह्ह..... चोदो मुझे रहा नहीं जा रहा कस के चोदो फाड़ दो चुत
मंगूस गचा गच चुत मे लंड पिरोये जा रहा था, ऐसी उत्तेजक और गरम चिकनी पानी से भरी चुत रोज़ नहीं मिला करती.
नीचे रतीवती सर पटक रही थी, अपने स्तन नोच रही थी मांग मे सिदुर लगाए माथे पे बिंदी सजाये एक कामुक औरत को और क्या चाहिए.
मंगूस अब तेज़ हो चूका था पूरी रफ़्तार से चुत मारे जा रहा था टप थप थप.... कि आवाज़ गूंज रही थी.
गांड का छेद खुल बंद हो रहा था,मंगूस गांड पे ढेर सारा थूक देता है और उस थूक को ऊँगली से गांड के छेद के चारो तरफ फैलाने लगता है..
आअह्ह्ह...... इस अहसास ने तो जान ही ले ली रतीवतीं कि. भयंकर सिसकारी कि गरजना उठीं थी रतीवती के मुँह से.
मंगूस :- लगता है यही है इसका कमजोर बिंदु.
ऐसा सोच वो पक से एक ऊँगली गांड मे डाल देता है और गांड को अंदर से कुरेदने लगता है. चुत मे पड़ते लंड और गांड मे घुसी ऊँगली एक अलग ही गुदगुदी मचा रही थी,चुत से निकलता करंट नाभी को भेद रहा था.
रतीवती उत्तेजना के उन्माद मे गांड ऊपर कि और धकेल रही थी चाहती थी कि गांड कि जड़ तक कुछ पहुंच जाये.
तड़प रही थी, बेचैन थी उसे वो चरम सुख चाहिए था जिसका परिचय डॉ. असलम से मिला था लेकिन ये कुछ अलग था कुछ नया था.
जहाँ डॉ. असलम पे रतीवती हावी रहती थी वही आज मंगूस भारी था काम कला का अलग सबक सिख़ रही थी रतीवती.
चुत से निकलते पानी को मंगूस अच्छे से हाथ मे लपेट लेता है और एक तीखी आवाज़ धक फच केसाथ गांड का छेद बड़ा होता चला जाता है मंगूस कलाई तक हाथ पूरा गांड मे उतार चूका था.
आअह्ह्हम...... ये क्या किया आहहहह मरी मै रतीवती सिहर उठी उन्माद मे जोर से चीख पड़ी परन्तु ये चीख किसी के कान तक ना पहुंच सकी सब थके हारे गहरी नींद मे थे ....
गहरी तो रतीवती कि गांड भी थी, मंगूस लंड का धक्का रोक चूका था लंड सिर्फ अंदर बच्चेदानी के साथ चुम्बन कि अवस्था मे था परन्तु मंगूस का हाथ कहर ढा रहा था आज इस मादक स्त्री पे.
मंगूस अपना हाथ गांड ने घुसाए अंदर मुठी ने गांड के मांस को टटोल रहा था, भींच रहा रहा नोच रहा था.
पांचो उंगलियां गांड से खेल रही थी वो भी अंदर... लगता था जैसे मंगूस किसी संकरे खड्डे मे हाथ डाले मछली पकड़ रहा हो, कभी पकड़ाई अति तो कभी हाथ से छूटजाती..
रतीवती बेसुध हो गई थी, पसीने से लाल सिदूर चेहरे पे फ़ैल गया था, स्तन तेज़ी से ऊपर नीचे हो रहे थे. ऐसा सुख वो भी गांड के रास्ते ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं.
रतीवती मंगूस का हाथ पकड़ लेती है, उसपे दबाव बनाने लगती है जैसे कह रही हो और अंदर डालों भींच लो पकड़ के.... आअह्ह्ह.... सिसकारी बंद होने का नाम नहीं ले रही थी.
मंगूस गांड के मांस को अंदर से पकड़ के थोड़ा बाहर खिंचता फिर छोड़ देता... रतीवती तो दोहरी ही होती जा रही थी, अब लंड भी चल पड़ा था इसी रास्ते पे...
चुत और गांड के बीच सिर्फ एक पतली से चमड़ी ही थी... चुत मे जाते लंड को मंगूस का हाथ गांड से ही महसूस कर रहा था. वो गांड मे हाथ डाले ही खुद के लंड को पकडडने कि कोशिश करने लगता है.... ऐसा मजा ऐसा सुख रतीवती सहन ही ना कर सकी.... भरभरा के फछाक से सफ़ेद पानी के फव्वारा चुत से निकल पड़ता है, फव्वारा इतना प्रेशर से निकलता है कि अंदर घुसे लंड को बाहर फेंक देता है.... रतीवती कि चुत काँपे जा रही थी... गांड को इतनी जोर से भींच लिया था कि मंगूस का हाथ अंदर ही फस गया थ.... गांड मे हाथ फ़साये मंगूस रतीवती के बदन मे होते झटको को महसूस कर रहा था.
चुत से पानी निकल निकल के सीधा रतीवती के मुँह मे गिर रहा था क्युकी उसका मुँह नीचे और गांड ऊपर थी..
बेसुध अपनी चरम अवस्था को महसूस करती रतीवती मुँह खोले पड़ी थी उसकी आंखे बंद हो चुकी थी लगता था अब नहीं उठेगी.
मंगूस धीरे से पुक कि आवाज़ के साथ गांड से अपना हाथ बाहर निकलता है अब वहाँ बड़ा से द्वार खुल चूका था.
बेहोशी कि हालत मे पड़ी रतीवती को कोई सुध नहीं थी कि उसके जिस्म से सोने के गहने खुलते चले जा रहे है....
सोने के कंगन, मंगलसूत्र, कान कि बलिया... सब उतरने लगे.
मंगूस को अपना खजाना मिल चूका था और रतीवती भी चरमसुःख का खजाना प्राप्त कर चुकी थी...
धीरे से दरवाज़ा खुलता है और जैसे अँधेरे से पैदा हुआ था वैसे ही अँधेरे मे गायब....
मंगूस अपने घर जा रहा था!
कही और भी घोर अँधेरे मे एक साया बिल्ला को थामे लड़खड़ाते लिए चले जा रहा था. बाह मे गोली धसी हुई थी, लगातार खून बहे जा रहा था, लगता था बिल्ला अब मरा कि तब मरा.
मालिक कुछ नहीं होगा आपको? मै हूँ ना?
आप मर नहीं सकते.
तो क्या बिल्ला मर जायेगा?
और मंगूस कहाँ चल दिया? कहाँ रहता है मंगूस?
कथा जारी है... बने रहिये
 
Member
105
75
30
चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी अपडेट -20

सब कुछ शांत हो चूका था, जैसे कोई तूफान आ के गया हो.
ठाकुर साहेब कि सवारी विषरूप चल पड़ी थी, रंगा गिरफ्तार था, कामवती के गहने और इज़्ज़त दोनों लूटने से बच गई थी परन्तु इस बीच नागेंद्र ना जाने कहाँ गायब था वो ना होता तो कामवती कि कुंवारी खूबसूरत चिकनी चुत सबके सामने उघाडी हो गई होती.
कामवती ठाकुर और असलम के साथ उनकी गाड़ी मे बैठी थी.
डॉ. असलम :- अल्लाह का शुक्र है ठाकुर साहेब आज लूटने से बच गये वरना कोई अनहोनी हो जाती.
ठाकुर :- हाँ असलम देवता गण हम पे मेहरबान है, कल दरोगा वीरप्रताप को बुलावा भेजिएगा आखिर उनकी चालाकी और सजकता से ही हमारी पत्नी बच पाई है.
ऐसा कह वो कामवती कि तरफ देख मुस्कुरा देते है.
वही कामवती लालजोड़े मे आंख झुकाये,घुंघट मे सुंदरता छुपाये सोच रही थी उसे कुछ कुछ धुंधला नजर आ रहा था, लगता था जैसे ये सब पहले भी हुआ हो?
20210810-145915.jpg

वो नाग कौन था? मुझे उस से डर क्यों नहीं लग रहा था, जबकि कितना भयानक था वो?
कई सवाल कामवती के जहन मे कोंध रहे थे.
जिसका जवाब या तो नागेंद्र जनता था या फिर वक़्त.
सब कुछ शांत चल रहा था...


शांति तो रूपवती कि हवेली मे भी थी.
गांव घुड़पुर जहाँ वीरा अभी अभी रूपवती कि चुत और गांड को अपनी खुर्दरी जीभ से सहला रहा था, रूपवती जबरदस्त स्सखलन को प्राप्त कर वीरा के नीचे लेटी सांसे भर रही थी उसकी नजरों के सामने काला भयानक वीरा का लंड झूल रहा था.
042-450.jpg

रूपवती कि नजर उसी लंड पे जमीं हुई थी, उसकी आंखे आश्चरय से फटी जा रही थी,
ये इंसान का लंड है या किसी घोड़े का?
इतना बड़ा लंड देख उसकी चुत कि खुजली बढ़ने लगी थी अभी अभी उसकी चुत ने बेतहाशा पानी बहाया था, काली चुत फिर रोने लगी.... जैसे कोई बच्चा अपनी पसंदीदा मिठाई के लिए रोता है आँखों से पानी बहाता है.
धीरे धीरे रूपवती अपने धड को ऊपर उठाती है, उसके स्तन आज़ाद थे, उसके उठने से हिल रहे थे जिनका बोझ उठाना ही मुश्किल था, रूपवती इन पहाड़ो को उठाये वीरा के लंड तक पहुंच गई थी, उसे छू के देखना था कि असली ही है या फिर कोई खिलौना, वो धीरे से अपना हाथ वीरा के बड़े लटके लंड पे रख देती है
वीरा इस मादक और कोमल छुआन से सिहर उठता है, हज़ारो साल बाढ़ उसके लंड पे किसी स्त्री का हाथ लगा था... आअह्ह्ह... उम्म्म्म...
रूपवती समझ जाती है कि वीरा भी यही चाहता है वो अपनी हथेली मे लंड को पकड़ने कि कोशिश करती है परन्तु वीरा का लोड़ा इतना मोटा था कि मुट्ठी मे बंद करना मुश्किल था,

वो अपने हाथ से जितना पकड़ सकती थी उतना पकडे ही हाथ ऊपर ले जाने लगी, जब हाथ लंड के जड़ तक पहुंच गया तो उसके हथेली से दो बड़ी बड़ी गेंद कि आकृति कि कोई चीज टकराती है,
"ये क्या है?"
रूपवती जिज्ञासावंश आंखे ऊपर कर के देखती है तो उसके तो होश ही फाकता हो जाते है, आंखे अपने कटोरे से निकलने को होती है... इतने बड़े टट्टे? हे भगवान इस शख्स के टट्टो मे कितना वीर्य होगा.
gifcandy-interracial-80.gif

कोतुहल से भरी टट्टो पे अपने दोनों हाथ रख देती है जैसे जाँच रही हो कि कितना वीर्य है इनमे.
टट्टे सहलाये जाने से वीरा के पुरे बदन मे सनसनी मच जाती है, उसका लंड अति उत्तेजना मे सीधा खड़ा हो झटके मारने लगता है, रूपवती भी लंड को मचलता देख अपनी चुत सहला देती है

आह्हः.... कैसी तड़प है ये, प्यास बुझ क्यों नहीं रही मेरी.
जितना पानी निकलता है उतना ही सहलाने का मन करता है चुत को.
अब रूपवती एक हाथ से चुत सहला रही थी और दूसरे हाथ से वीरा के बड़े टट्टे.
चुत सहलाये जाने से उसकी मादक मोटी काली गांड हिल रही थी, वीरा मुँह नीचे झुकाये रूपवती के खेल को देख रह था उसकी उत्तेजना कि कोई सीमा नहीं थी.
रूपवती वीरा के दोनों पैरो के बीच अपनी मादक गांड को हिलाती बैठ जाती है, उसे लंड का स्वाद चाहिए था अब अपनी नाक को वीरा के लंड कि नोक पे रख देती है और जोर से सांस खिंचती है एक मादक खुशबु बदन मे भरती चली जाती है, इस मादक खुशबू का असर चुत के अंदरूनी हिस्सों पे हो रहा था.. गांड खुल के बाहर आ रही थी.
ये उत्तेजक मादक महक एक मजबूत लंड ही दे सकता था.
रूपवती जीभ से लंड के आगे के चोड़े हिस्से को छू लेती है.

वीरा के लिए ये अहसास अद्भुत था, बरसो से सुखी बंजर भूमि पे पानी कि पहली बून्द थी.
ऊपर से रूपवती इस कदर हवस और मदकता मे खोई थी कि उसे सिर्फ लंड दिख रहा था बड़ा लंड.
अब इस लंड का मालिक कोई भी हो फर्क नहीं पड़ता, प्यासा कुवा, नदी, झरना नहीं सिर्फ पानी देखता है.
रूपवती जितना हो सकता था उतना मुँह खोल लेती है और वीरा के लंड को एक हाथ से पकड़ मुँह पे टिका लेती है लंड धीरे धीरे मुँह मे सरकाने लगती है.
रूपवती पहली बार कोई लंड ले रही थी, अब उसमे ये सब कला तांत्रिक का वीर्य पीने के बाद खुद ही विकसित हो गई थी वैसे भी हवस मे डूबा इंसान अपने आप नये नये तरीके कि खोज कर ही लेता है.
रूपवती धीरे धीरे मुँह को आगे पीछे करने लगती है, उसका एक हाथ अभी भी वीरा के टट्टे सहला रहा था. जीभ हलक से निकाल के टट्टो को गिला कर रही थी.
gifcandy-interracial-72.gif

ये वीरा कि उतीजना को बड़ा रहे थे,वीरा को अपना लंड किसी गरम गीले लावे मे धस्ता महसूस हो रहा था,. वो आंनद मे सिसकारिया भरे जा रहा था, नीचे रूपवती बेसुध लंड चूसने मे व्यस्त थी, कभी लंड चूसते चूसते जबान वीरा कि गांड टक भी पहुंच जाती
gifcandy-asslicking-195.gif

उसके होंठो से रह रह के थूक लार कि शक्ल मे टपक रहा था, रूपवती थोड़ी हिम्मत दिखाती अपना मुँह लंड पे मार रही थी जैसे गन्ना बरसो बाद चूसने को मिला हो, मुँह मे लंड डाले जीभ से अगले हिस्से को कुरेद भी रही थी.... वीरा तो इतने सालो मे सम्भोग का सुख ही भूल गया था, उसकी सम्भोग कला को एक मादक काली हवस मे डूबी स्त्री जगा रही थी.
चूसते चूसते एक समय आया जब वीरा के लंड बिना किसी रोक टोक के गले तक उतर जा रहा था, जब गले से बाहर निकलता तो ढेर सारा थूक साथ ले आता वो थूक होंठो से गिरता स्तन को पूरी तरह भीगा चूका था, स्तन से होता चुत तक पहुंच रहा था.
जैसे कोई झरना स्तन रूपी पहाड़ से गिर के चुत, गांड रूपी खाई मे गिर रहा हो. रूपवती लगातार थूक और कामरस से भीगी चुत मे ऊँगली मारे जा रही थी अब भला ऊँगली लावा रोक सकती है, रूपवती उत्तेजना मे पागल हो गई थी उसे लंड चाहिए था अपनी चुत मे,
वो तुरंत खड़ी होती है और वीरा के के आगे दिवार पे हाथ रखे अपनी गांड वीरा के सामने खोल के खड़ी हो जाती है.
वीरा बरसो बाद किसी कामुक स्त्री से मिल रहा है वो समझ गया था कि दोनों कि प्यास सिर्फ इस गुफा मे घुसने से ही मिटेगी.

वीरा का लंड अब गांड पे इधर उधर छटपटा रहा था, रूपवती एक हाथ पीछे ले जा के वीरा के लंड को पकड़ गांड के बीच स्थित काली गहरी खाई मे रख देती है,
वीरा के लंड का टोपा इतना बड़ा था कि उसके घेराव मे चुत और गांड का छेद एक साथ आ रहे थे.
रूपवती तो लंड को अपने दोनों छेदो पे एक साथ महसूस कर रही थी उसके आनंद कि कोई सीमा नहीं थी वो अपनी बड़ी गांड थोड़ा सा हिलाती है जैसे वीरा को बोल रही हो कि मै तैयार हूँ तुम आगे बढ़ो.
वीरा भी समझ जाता है और थोड़ा आगे बढ़ता है परन्तु छेद छोटे लंड बड़ा कैसे घुसता... वीरा का लंड फिसलता हुआ गांड के छेद को रगड़ता कमर पे जा लगता है,
अब मजा तो इस रगड़ाई मे भी था, लेकिन चुत रगड़ाई के लिए नहीं सम्भोग के लिए बनी होती है, मादक हवस से भरी स्त्री अपनी चुत मे कुछ भी समा सकती है.
वीरा वापस पीछे को आ के अपना लंड दरार मे डालता है, फिर आगे होने लगता है लंड वापस फिसलने ही वाला था कि रूपवती तुरंत हाथ पीछे ले जा के गांड के दोनों हिस्सों को को जोर लगा के खिंचती है.
आअह्ह्ह..... एक भयानक चींख गूंज जाती है वातावरण मे. आअह्ह्ह..... वीरा
वीरा के लंड का टोपा फचक से चुत फाड़ता समा गया था अंदर, चुत अत्यंत गीली थी उसके बावजूद रूपवती को लगा कि जैसे वो कुंवारी है आज उसकी चुत फटी है
देखा जाये तो बात सही भी थी, ठाकुर ज़ालिम का 3इंच का लंड क्या खाक खोल पाया होगा रूपवती कि चुत को.
दर्द बर्दाश्त के बाहर था परन्तु आज दर्द पे हवस भारी थी, मदकता सवार थी.
रूपवती दिवार का सहारा लिए सांसे दुरुस्त कर ही रही थी कि... एक जबरदस्त झटका और लगा.
आअह्ह्ह.... मेरी बच्चेदानी आह्हः....
gifcandy-interracial-81.gif

वीरा को आज हज़ारो साल बाद चुत मिली थी वो सहन नहीं कर पाया था और बिना सोचे ही दूसरा झटका भी दे मारा... वीरा का लंड बच्चेदानी को चीर के सीधा अंदर ही प्रवेश कर गया था.
रूपवती कि चुत से खून छलछला उठा था.
आअह्ह्ह.... नहीं रुक जाओ
उत्तेजना उतरने लगी थी रूपवती कि.
लेकिन आज वीरा नहीं मानने का था और ना ही माना.
धक्के मारने लगा एक के बाद एक... धका धक धका धक रूपवती बेहोशी कि हालत मे आंखे बंद किये दर्द से चीखे जा रही थी ...

पीछे टप टप टप... करते वीरा के टट्टे रूपवती कि गांड पे पड़ रहे थे गांड थल थला रही थी, रूपवती कि हवस का केंद्र उसकी गांड ही थी,
gifcandy-interracial-71.gif

गांड ले पड़ते टट्टो कि मार से वो होश मे आने लगी उसने नीचे झुक के देखा तो पाया कि लंड जड़ तक उसकी चुत मे जा रहा था, जब वीरा का लंड अंदर जाता तो नाभी तक महसूस होता, और जब वीरा लंड बाहर खिंचता तो लगता जैसे बच्चेदानी भी चुत के रास्ते बाहर आ जाएगी.

ये सब एक अलग ही अहसास पैदा कर रहे थे रूपवती के बदन मे, उसका शरीर जल उठा, उत्तेजना उठने लगी
उसे इस सम्भोग मे आंनद आ रहा था सही मायनो मे आज उसका कोमर्या भंग हुआ था.
ऊपर से दो बॉल के आकर के टट्टे गांड पे किसी थप्पड़ कि तरह चटा चट पड़ रहे थे.

आह्हः.... ऐसे ही जोर से मार और जोर से.
वीरा हैरान था स्त्री कि ताकत पे कि जब चुत मे लेने पे आ जाये तो दुनिया के सम्पूर्ण लंड अपनी चुत मे डाल ले लेकिन उफ़ तक ना करे...
आअह्ह्ह...... वीरा कुछ कुछ घोड़े कि तरह आवाज़ निकाल रहा था.... वीरा और दम लगा के पेलने लगा पच पच पच कि आवाज़ से हवेली गूंज रही थी...
और जोर से.. रूपवती इस कदर हवस मे पागल थी कि 15 इंच लंड पूरा उसकी चुत मे था फिर भी उसे और चाहिए था.
वीरा भी उत्तेजना जोश से पागल हो चूका था उसे रोकना खुद कि मौत को दावत देने के बराबर था.
वीरा जोर दार तरीके से गच से पूरा लंड रूपवती कि चुत मे डाल के रुक जाता है, रूपवती बहुत ही आश्चर्य के साथ पीछे देखती है कि रुक क्यों गया वीरा, परन्तु जैसे ही वो ये जानने कि कोशिश करती है पीछे से एक जोड़ी हाथ उसके जांघो के निचली तरफ लिपट जाते है ओर एक ही झटके मे ऊपर उठा के उसकी पीठ को अपने सीने से चिपका लेता है, रूपवती दर्द से चीखती हवस मे डूबी नीचे को देखती है उसकी चुत मे 15 इंच का खुटा गड़ा हुआ था वो उसके लंड के सहारे टिकी हुई वीरा के बालदार सीने से लगी हुई थी.
अब आलम ये था कि वीरा रूपवती को अपने लंड पे बिठाये सीधा खड़ा था,
gifcandy-21.gif

रूपवती तो इस तरह के आसन से दोहरी हो गई लंड जितना हो सकता था उतना अंदर तक चला गया, उसकी सांसे टंग गई.
सांस भरती ही कि वीरा ने एक धक्का मार दिया नीचे से.... फिर क्या एक के बाद एक धका धक धका धक... रूपवती को अपने लंड पे उछाले जा रहा था.
ऐसा आंनद ऐसी कामुकता रूपवती पे भारी पड़ रही थी.
उसकी चुत से खून और पानी का मिला जुला रस टपक टपक के जमीन पे गिर रहा था.
वीरा मोटी काली काया को अपने लंड पे उछाल रहा था ऐसा कारनामा और कोई कर ही नहीं सकता था.

रूपवती के मजे का ठिकाना नहीं था... आह्हः... आह्हः.... करती अपने मोटे बड़े स्तनो को नोच रही थी, निप्पल मरोड़ रही थी. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई इंसान उस जैसे भारी भरकम महिला को ऐसे उठा के चोद सकता है.
नीचे धचा धच लंड चोट मारे जा रहा था,1घंटे तक घिसने के बाद वीरा का धैर्य जवाब देने लगा वो बेचैन होने लगा लगातार सिसकारी मार रहा था.... रूपवती भी पसीने पसीने हो चुकी थी स्तन रगड़ रगड़ के लाल कर दिए थे.
उसे गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही थी.... वो फट पड़ी
उसकी गांड से तेज़ हवा निकली फॉररर..... और चुत ने गर्म लावा उगलना शुरू कर लिया.
आह्हः.... मै गई... सफ़ेद रंग का गाड़ा पानी लंड को भिगोने लगा.
कामरस इतना गरम था कि वीरा भी सहन नहीं कर पाया.
और जोर से गुरराते हुए..जिसमे थोड़ी हिनहिनाहत जैसी आवाज़ थी .. बरसो पुराने वीर्य को निकालने लगा..
आअह्ह्ह....... ये क्या घोड़े जैसी आवाज़ कहाँ से आई ?
मोटे चिपचिपे गाढ़े वीर्य कि बौछार रूपवती कि चुत मे होने लगी, वीरा का वीर्य सीधा रूपवती कि बच्चेदानी मे ही भरने लगा आअह्ह्ह...।.... कितना गर्म है तेरा वीर्य लग रहा है जैसे किसी ने मेरे पेट मे लावा भर दिया है.
वीर्य निकले ही जा रहा था, फच फच फच..... करता वीरा चिल्ला पड़ा आअह्ह्हह्ह्ह्ह.........कामवती
ये क्या कामवती का नाम?
रूपवती कि बच्चेदानी पूरी तरह से वीर्य से भर चुकी थी... अपने उन्माद मे डूबी रूपवती ने उस शख्स के गले से निकली कामवती शब्द को सुन लिया था..
वीरा अभी भी इन सब से अनजान अपने स्सखालन को महसूस कर रहा था, एक आखरी बार वीर्य कि धार वो रूपवती कि चुत मे छोड़ता है..
आअह्ह्ह.... मेरी कामवती आह्हः...
और रूपवती को साथ लिए जमीन पे धाराशयी हो जाता है उसका लंड अभी भी रूपवती कि बच्चेदानी मे ही फसा हुआ था.
आह्हः..... करता सांसे भर रहा था रूपवती का भी यही हाल था परन्तु वो उस शख्स
के मुँह से कामवती का नाम सुन के हैरान भी थी.
उसका पेट फूल के बाहर निकल आया उसमे वीरा का वीर्य भरा पड़ा था बाहर आने कि कोई जगह नहीं थी चुत ने लंड को बुरी तरह जकड़ा हुआ था..

वीरा धीरे से आंखे खोलता है तो सामने रूपवती को देख उसकी चुत मे समाया लंड देख उसके होश उड़ जाते है
उन्माद ओर कामवासना मे आज वो अपने इंसानी रूप. मे आ गया था ओर रूपवती के साथ सहवास कर बैठा, इतने सालो से जो राज छुपा के रखा था वो खुल गया था.
रूपवती :- तुम कौन हो? और ये कामवती कौन है? तुम्हारे मुँह से सम्भोग करते वक़्त घोड़े जैसे आवाज़ क्यों आ रही थी?
मेरा घोड़ा वीरा कहाँ गया?
वीरा :- चुप चाप पड़ा रहता है.
रूपवती :- बोलो मेरी बात का जवाब दो, तुम मुझसे झूठ नहीं बोल सकते अभी भी तुम्हारा लंड मेरी चुत मे फसा हुआ है,कौन हो तुम?
वीरा :-मालकिन...... आखिर वीरा बोल ही देता है.
मालिकिन मै वीरा ही हूँ, मै इच्छाधारी घोड़ा हूँ ओर ये मेरा इंसानी रूप है.
मै कभी कभी रात को अपने इंसानी रूप मे ही विचरता हूँ.आपने मेरा जीवन बचाया उसके लिये मे जिंदगी भर आपका कर्ज़ादार, वफादार रहूंगा.मुझे माफ़ कर दीजिये मैंने आपके साथ सम्भोग किया.
रूपवती :- वीरा इसमें कर्जदार जैसी कोई बात नहीं है, और तुमने सम्भोग नहीं किया मैंने किया मै हवस मे पागल हो गई थी कई सालो से तड़प रही थी इस आग मे.
तुमने तो मेरी सेवा कि. तुम मुझे मालकिन बोलते हो तो मेरी सेवा करना तो तुम्हारा फर्ज़ है. ऐसा कह रूपवती मुस्कुरा देती है.
अभी तक वीरा का लंड, चुत मे ही फसा पड़ा था.
वीरा लंड को निकालने के लिए बाहर खिंचता है रूपवती को लगता है जैसे बच्चेदानी भी बाहर ही चली आएगी.
रूपवती :- कोई बात नहीं वीरा इसे अंदर ही रहने दो हमें अच्छा लग रहा है तुम्हारा लंड.
लेकिन जल्द ही मेरी जिज्ञासा शांत करो वीरा, तुम इंसानी रूप मै कैसे हो?और ये कामवती कौन है? क्या रिश्ता है तुम्हारा उस से?
अब वीरा सुनाने जा रहा है कहानी नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी कि..
बने रहिये कथा जारी है 👍
 
Member
105
75
30
चैप्टर -2, नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी अपडेट 21

घमासान चुदाई के बाद रूपवती और वीरा सुस्ता रहे थे, दोनों को सांसे दुरुस्त हो चुकी थी, परन्तु रूपवती कि चुत छोटी होने के कारण उसने अभी तक वीरा के लम्बे मोटे भयानक लंड को कस रखा था.
रूपवती :- इसे अंदर ही रहने दो, तुम अपने बारे मे बताओ?
वीरा :- ज़ी मालकिल बोल के आराम से करवट लिए लेटे रहता है रूपवती उसकी लंड पे फसी उसके आगे गांड पीछे किये लेट जाती है.
लंड बाहर निकालने का मन ही नहीं कर रहा था.
रूपवती :- और ये मुझे बार बार मालकिन मत बोलो, मुझे अच्छा नहीं लगता वीरा.
नाम से ही बोलो तुमने तो मेरी बरसो कि प्यास बुझाई है मुझपे तो तुम्हारा अधिकार है.
वीरा :- ज़ी मालकिन.... ना ना... मेरा मतलब रूपवती
आपका अहसान तो जिंदगी भर रहेगा मुझ पे, मै मर जाता तो कामवती को कैसे पाता ये जीवन आपका ही दिया हुआ है.
रूपवती :- अच्छा ठीक है आगे बोलो ये सब शुरू कहाँ से हुआ?
वीरा :- तो सुनिए रूपवती...

चरित्र परिचय
1. ठाकुर जलन सिंह
ठाकुर ज़ालिम सिंह का लकड़दादा
रोबदार मुछे, hight 6फ़ीट, चौड़ी छाती
सारे इलाके मे गजब कि दहशत लेकिन बिस्तर पे मच्छर कि तरह लंड वही खानदानी 3इंच का


2. सर्पटा
नागो का राजा, बहुत ज़ालिम क्रूर भयानक बेहद जहरीला फूँक भी दे तो इंसान फना हो जाये.
लंड 10 इंच काला मोटा जिसको चोदने पे आता उसे मौत देके ही मानता था..
12742ca6ff3654ef29c43ed626e2f8f7.jpg

3. नागकुमार
सर्पटा का बड़ा बेटा, गोरा चिट्टा कोमल नाजुक किस्म का नाग.. लंड 7इंच

4. घुड़वती
घुड़पुर कि राजकुमारी, वीरा कि बहन
खूबसूरत जवान घोड़ी, मानवरूप मे
34 के गोरे स्तन, पतली कमरऊपर से नई नई जवानी
गांड बिल्कुल मजबूत बाहर को निकली.
जो देखे देखता रह जाये
genesis-8-female-centaur.jpg

5. नागेंद्र और वीरा के बारे मे तो जानते ही है आप लोग
बाकि कहानी मे पता चलेगा.

आज से हज़ार साल पहले इस गांव घुड़ पुर मे हम घुड़- मानवो कि बस्ती हुआ करती थी, मै वीरा यहाँ के घुड़नरेश का एकलौता पुत्र हूँ, बड़े प्यार से माता ने मेरा नाम वीरा रखा था. मेरी एक बहन भी थी घुड़वती पुरे घुड़पुर ने सबसे सुंदर मनमोहनी. कोई देखता तो सिर्फ देखता ही रह जाता.
हम लोग समय के साथ जवान हो रहे रहे.. घुड़वती पे जवानी जरा जल्दी आई मुझे युद्ध कला और विद्या लेने के लिए आश्रम भेज दिया गया.
हमारा साम्राज्य बड़ा ही भव्य था,,दूर दूर तक फ़ैला, कही किसी मानव का हस्तक्षेप नहीं था.
हम घुड़ मानव कभी भी मानव रूप, घोड़ा रूप ले सकते थे या फिर सम्मलित रूप मे भी रहते थे.
आधे इंसान आधे घोड़े.
हमारे साम्राज्य से दूर एक और साम्राज्य था "इच्छाधारी नागो" का विष रूप, जहाँ आज के वक़्त आपका ससुराल है.

वो हमारे कट्टर शत्रु है, जहाँ मिल जाये उन्हें मौत के घाट उतार दे हम लोग.
गुस्से मे वीरा गुर्राता है...
गुर्राने से उसका लंड रूपवती कि चुत मे धक्का मार देता है.
रूपवती :- आह्हः.... वीरा
आराम से, दुश्मनी क्यों थी तुम्हारी उन नाग मानवो से?

वीरा :- वहाँ का राजा था सर्पटा ज़ालिम और कुर्र उसके दो बेटे थे बड़ा बेटा नाग कुमार और छोटा बेटा नागेंद्र.
एक बार घुड़वती महल से निकल मौज मस्ती के लिए बिना किसी को बताये जंगल कि और चली गई, नई नई जवान थी दिल सेर सपाटे के लिए मचलता ही था,
अपने घुड़रूप मे सरपट दौड़े चली जा रही थी हवा का झोंका बदन मे रोमांच पैदा कर रहा था.
घुड़वती बिल्कुल सफ़ेद, चमकती चमड़ी कि मालकिन थी.
0-genesis-8-female-centaur.jpg

दौड़ते दौड़ते वो विष रूप के जंगलो मे पहुंच गई.
आहहहह.... क्या सुन्दर नजारा है हमने घुड़पुर मे ऐसी प्रकृति तो नहीं देखि यहाँ एक अजीब मादक गंध है जो सर चढ़ रही है.
तभी घुड़वती को एक झरना दीखता है,
वाह... क्या मनमोहक दृश्य है, कौनसी जगह है यह
जिज्ञासा वंश घुड़वती अपना घुड़रूप त्याग कर मानव रूप मे आ जाती है, कमाल कि खूबसूरत थी घुड़वती
अभी अभी जवानी फूटी थी परन्तु स्तन बड़े भारी और सुडोल थे लेश मात्र भी लचक नहीं थी.. सुन्दरचेहरा, बड़ी आंखे, सुराहीदार गर्दन.
सपाट चिकना गोरा पेट,पेट के बीच स्थित सुन्दर काली नाभी.
177614823-127084462785073-6720806615365284022-n.jpg

घुड़वाती झरने को देख खुद को रोक नहीं पाती
और धीरे धीरे पानी मे उतरने लगती है....
 
130
137
45
अपडेट -11 contd...

रतीवती पर्दा हटने से चौक जाती है लेकिन जैसे ही सामने असलम को खड़ा देखती है उसका डर उत्तेजना मे तब्दील हो जाता है, उठने को हो चुकी रतीवती धम से वापस बैठ जाती है.... छापक कर के गांड पानी मे पड़ती है.
वापस से ऊँगली अन्दर बाहर होने लगती है. रतीवती मुस्कुराती असलम के तन तानाये लंड को घूरति रहती है जो उसकी कल्पना मे था वो सामने आ चूका था नियति पूरी तरह मेहरबान थी दोनों पर.
डॉ. असलम तो ये नजारा, ये कामुक दृश्य देख के दंग रह गये थे उनके सामने एक जवानी के चरम पे पहुंची औरत धकाधक अपनी चुत मे ऊँगली मारे जा रही थी....
20210802-163921.jpg

औरत का ये रूप ये यौवन ऐसी कामुकता देख के असलम हैराम थे. हाथो मे चूड़ी, गले मे मंगलसूत्र, माथे पे बिंदी... ओर नीचे पानी बाहती चिकनी गोरी चुत... जिसमे खुद वो स्त्री खुद ऊँगली डाले कुछ ढूंढ रही थी... रातीवति अपनी चुत मे सुख ढूंढ रही थी, आनन्द ढूंढ़ रही थी जो बरसो से नहीं मिला था, उसे चरम सुख कि तलाश थी जो ऊँगली से ढूंढे नहीं मिल रहा था..... इस चरम सुख को तलाश करने का एक ही सहारा था जो परदे के पार मुस्लिम टोपी, गंजी पहने... नीचे से नंगा हैरान खड़ा था.
असलम ये सब कुछ पहली बार देख रहा था.... उसके कदम बाथरूम कि ओर बढ़ चलते है, सुध बुध खो चूका था.
उसे कल रात वाला सुख चाहिए था... उस से कम मे कोई समझौता नहीं.
रतीवती तो इस कदर उत्तेजना से घिरी थी कि उसे ये भी भान नहीं था कि वो किस अवस्था मे है वो जिस चीज को अपनी चुत मे ऊँगली डाले तलाश कर रही थी वो बाहर खड़ा था... असलम के रूप मे.
असलम अब अंदर बिल्कुल नीचे बैठी रतीवती के सामने खड़ा हो चूका था... उसका लंड सीधा रतीवती के लाल होंठो के सामने हिल रहा था.
उस से निकलती गंध रतीवती को ओर ज्यादा मदहोश कर देती है.
वो अपने घुटने के बल बैठ जाती है ओर एक बार मे ही पूरा लंड निगल लेती है.... आअह्ह्ह..... इस अहसास से असलम अपने पंजो पे खड़ा हो जाता है.
कल रात जैसा ही था या उस से भी बढकर.
असलम हैरान परेशान रतीवती कि कला का प्रदर्शन देखे जा रहा था... आज रतीवती को कोई रोकने वाला नहीं था.
लप लप... धचा धच.... मुँह चलाती रतीवती लंड को निगले जा रही थी...
ऐसी चटाई ऐसे मुख मैथुन से असलम घन घना गये थे... उन्हें आज कुछ ओर चाहिए था इस से भी ज्यादा.
उन्हें भी औरत कि चुत का रस पीना था...
असलम एक झटके से रतीवती को पीछे धक्का दे देते है... रतीवती चिहुक के पीछे कि ओर पीठ के बल गिर पड़ती है जिसकारण उसकी टांगे हवा मेउठ जाती है, टांगे दोनों दिशाओ मे फ़ैल जाती है.... अब असलम के सामने फूली हुई रस टपकाती चिकनी गोरी चुत थी जो उसे बुला रही थी... आओ असलम आओ.... आपके लिए ही है.
मदहोशी मे होश खोया असलम तुरंत चुत पे टूट पड़ता है ओर एक बार मे ही पूरी चुत को मुँह मे भर के चूस लेता है.
20210802-133123.jpg

असलम अनाड़ी था उसे कामक्रीड़ा के बारे मे कुछ नहीं पता था, बस उसे आज चुत खानी थी अंदर का रस पी जाना था..
असलम चुत को मुँह मे भरे चूस रहा था अपने होंठो के साथ खिंचता हुआ अंदर से कुछ निकाल लेना चाहता था.... खींच खींच के चुत चूस रहा था.
रतीवती इस चुसाई से सातवे आसमान मे थी.... ऐसी चुसाई तो कभी रामनिवास ने भी नहीं कि थी.
वैसे रामनिवास चुत चाटता भी नहीं था वो तो कभी रतीवती बेकाबू होती तो नशे कि हालत मे सोये रामनिवास के मुँह पे अपनी नंगी चुत ले के चढ़ जाती थी..
अपनी चुत पे वो शराब गिरा लेती जिस वजह से रामनिवास खूब चाटाचट चुत चाट लेता था.. बस यही सुख ले पति थी रतीवती अपने नामर्द शराबी पति से.
लेकिन आज जैसे असलम चाट रहा था जैसे बरसो का भूखा हो, खा ही जायेगा चुत....
इतने मे असलम को चुत का दाना मिल जाता है वो उसे ही मुँह मे ले के चुबलाने लगता है.... रतीवती इस हमले से मर ही जाती है अपनी गांड उठा उठा के पटकने लगती है गीली जमीन पे, असलम बरसो कि प्यास बुझा रहा था उसे चुत का पानी चाहिए था... फिर कभी मिले या ना मिले आज ही पी लेना था.
रतीवती कि हालत ख़राब थी उसे ऐसा उन्माद कभी नहीं चढ़ा था. उसकी हालत बिगड़ती ही जा रही थी.
वोअसलम के सीने पे पैर रख जोर से धक्का दे के जमीन पे गिरा देती है ओर तुरंत असलम का लंड पकड़ के वापस अपने हलक मे डाल लेती है.
gifcandy-interracial-79.gif

ये कुश्ती का खेल जैसा था बस यहाँ नियम थोड़े अलग थे, हारता कोई भी लेकिन जीत का जश्न दोनों मनाते.
यहाँ हार जीत मायने नहीं रखती थी ये खेल था ही कुछ ऐसा, हवस से भरा खेल....
डॉ. असलम ऐसा कामुक बदन, कामुक मुँह पा के पागल हो चूका था वो जानवरो कि तरह रतीवती का सर पकडे धका धक... गले तक़ पेले जा रहा था.
गु गुह.. गुह्म.... कि आवाज़ गूंज रही थी, टट्टे जोर जोर से आ के रतीवती के होंठ पे लग रहे थे.
रतीवती एकदम से खड़ी हो जाती है उसे सहन नहीं हो रहा था वो तुरंत बाथरूम के गीली जमीन पे लेट जाती है बिल्कुल नंगी टांग फैलाये टप टपाती चुत खोले जमीन पे पड़ी थी...
असलम रतीवती के इस कृत्य से हैरान था कि उसे क्या हुआ एकदम, परन्तु जैसे ही उसकी नजर रतीवती कि फूली चुत पे पड़ती है उसका तो दिल ही मुँह को आ जाता है. बिल्कुल कसी चुत टांग फैलाये भी सिर्फ लकीर दिख रही थी.
इसी पगडंडी पे असलम को खुदाई करनी थी, यही पे उसे चौड़ा रास्ता बनाना था
थूक से स्तन सने हुए थे, हाथो मे चूड़ी मांग मे सिंदूर पहने.... एक कामुक औरत पानी से भीगी जमीन पे टांग फैलाये अपना सर इधर उधर पटक रही थी.
रतीवती :- असलम ज़ी अब सहन नहीं होता प्यास बुझाइये मेरी, पहली बार रतीवती मुँह से कुछ बोल पाई थी, उत्तेजना चरम पे थी.
असलम अपनी शर्ट उतार देता है रतीवती टांगे फैलाये स्वागत के लिए तैयार थी
असलम रतीवती कि दोनों जांघो के बीच बैठ जाता है ओर अपना लंड उस पतली लकीर पे चलाने लगता है, यही वो पतला महीन रास्ता था तो आज तक कभी असलम को मिल ही नहीं पाया.
असलम लंड चुत पे टिकाये आगे को झुकता है लेकिन चुत इतनी गीली थी कि लंड फिसल के दाने को रगड़ता ऊपर को निकल जाता है. ऊपर से असलम ठहरा अनाड़ी इसके लिए तो ये सुख ही स्वर्ग से कम नहीं था... परन्तु रतीवती स्वर्ग कि अप्सरा थी वो तो इस सुख का आनंद जानती थी.
वो अपना हाथ नीचे ले जा के असलम का भारी मोटा लंड पकड़ लेती है, लंड पकड़ते ही एक बिजली दोनों के शरीर मे कोंध जाती है..
रतीवती लंड पकड़ के अपने चुत के मुहने पे रख देती है ओर पीछे से अपनी टांग से असलम कि गांड पे दबाव डालती है कि.... है वीर भेद तो लक्ष्य तुम्हरे सामने है.
असलम ठहरा अनाड़ी जोर से अपनी गांड नीचे को कर देता है.... आअह्ह्ह....... लंड चुत को चिरता हुआ पूरा जड़ तक समा जाता है. असली योद्धा एक बार मे ही लक्ष्य को भेद देते है असलम भी असली लड़ाका निकला.
रतीवती दर्द से बिलबिला जाती है, उसकी बरसो से सुखी चुत मे अजगर समा गया था. उसे क्या पता था कि असलम एक बार मे ही गच गचा देगा.
रतीवती कि चीख अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि असलम लंड हल्का सा बाहर निकाल के वापस जड़ तक ठोंक देता है.
रतीवती कि तो सांस ही अटक गई थी... ऐसा मुसल लंड एक बार मे ही अंदर जा के बच्चेदानी को भेद गया था.
आअह्ह्ह.... असलम... असलममम... बस यही निकला मुँह से.
असलम तो जानवर बन गया था उसे ये सब पहली बार मिला था उसे कुछ नहीं कहना था ना सुनना था.... बस धचा धच... धचा धच..... चुत मारे जा रहा था, उसे इस सम्भोग का आनंद उठा लेना था.
रतीवती पहली बार ऐसी चुदाई झेल रही थी उसकी चुत ने असलम के लंड को पूरी तरह जकड लिया था, जैसे ही असलम लंड को बाहर निकलता चुत उसी के साथ खींची चली जाती, जैसे ही अंदर डालता चुत पूरी कि पूरी अंदर को चली जाती ...
आअह्ह्ह..... क्या मजा था रतिवती उस मजे मे खोने लगी थी. आह्हः.... असलम ओर जोर से असलम ओर जोर से.... ओर अंदर ओर अंदर...
रतीवती कि ये विनती ये चितकार असलम का हौसला बढ़ा रही थी असलन एक पैर घुटने तक मोड के रतीवती के स्तन पे रख देता है ओर दे धचा धच .... लंड मारे जाता है.
रतीवती तो मरने के कगार पे थी.... उसे अब ये उत्तेजना ये गर्मी सहन नहीं हो पा रही थी... वो अपनी गांड उछल उछाल के असलम के लंड पे पटकने लगती है.
नतीजा 5 मिनट बाद ही सामने आता है असलम चुत कि गर्मी पा के भलभला के चुत मे ही झड़ने लगता है अनाड़ी जो ठहरा.... रतीवती भी वीर्य कि गर्मी पा के पिघलने लगी ओर एक के बाद एक झटके के साथ उसकी चुत असलम के वीर्य को पीने लगी....
दोनों हांफ रहे थे, सांसे दुरुस्त कर रहे थे.... दोनों एक साथ जीते थे, ये जीत हवस पे थी. सालो बाद कि हवस बरसो पुराना अकाल खत्म हो चूका था, वीर्य कि बारिश से चुत रुपी जमीन लहरा गई थी, चमन मे नई बहार आ गई थी.
इतने मे ही कमरे केबाहर से कामवती कि आवाज़ अति है.आवाज़ सुन के असलम जल्दी से खड़ा होता है पोक कि आवाज़ का साथ असलम का लंड रतीवती कि चुत खिंचता हुआ बाहर निकल जाता है परन्तु ये क्या वीर्य का कोई नामोनिशान नहीं.... सारा वीर्य रतीवती कि चुत ने सोख लिया था,
गजब औरत थी.... असलम को तो दिन पर दिन आश्चर्य घेरे जा रहा था, औरत नाम का अध्याय उसे हैरान कर रहा था.
कमवती : - माँ माँ... कहाँ है आप? अभी तक नहाई नहीं क्या?
रतीवती असलम को पीछे के दरवाजे से बाहर निकाल देती है, असलम गली से होता हुआ अपने कमरे मे पहुंच जाता है.
उसे तो कुछ कहने सुनने का मौका ही नहीं मिला था.... वो अभी अभी हुए सम्भोग पे यकीन ही नहीं कर पा रहा था.
इधर रतीवती तुरंत अपना हुलिया सुधारती है ओर दरवाज़ा खोल देती है.
कामवती :-माँ खरीदारी पे नहीं चलना क्या?
रतीवती :- हाँ बेटा चलते है पहले डॉ. असलम को खाना तो खा लेने दे, तू जा तब तक तैयार हो जा...
कामवती चली जाती है तैयार होने.
रतीवती भी खूब अच्छे से लाल सारी, लाल चूड़ी, लाल सिदुर पहने तैयार हो जाती है, शादी इसकी बेटी कि है लेकिन लगता है जैसे रतीवती कि ही शादी है, अब भले शादी ना हो परन्तु सुहागरात तो मन ही रही थी.
रतीवती को देख के कोई माई का लाल ये नहीं बता सकता था कि ये अभी अभी चीख चीख के चुद रही थी ओर अभी भी असलम का वीर्य अपनी चुत मे समेटे गांड मटकाती जा रही है.
रतीवती असलम को खाना देने चल पड़ती है....
असलम अपनी ही दुनिया मे खोया अपने साथ हुए घटना को सोच रहा था.... तभी उसके नाथूनो मे वही जानी पहचानी कामुक गंध पहुँचती है, वो अपने विचारों से बाहर आता है.... दरवाजे पे रतीवती खड़ी थी...
लगता था इन दो दिनों मे असलम को मार के ही छोड़ेगी, लाल ब्लाउज, लाल साड़ी मे क्या गजब कामुक लग रही थी, ब्लाउज से झाकते गोरे मोटे स्तन वापस से असलम के होश उड़ा रहे थे
20210804-165323.jpg

वो अभी अभी इस कामुक औरत के चोद के हटा था फिर भी ऐसा लग रहा था जैसे पहली बार देख रह हो .... ये अहसास पक्का असलम कि जान ले लेगा ..... जिन्दा नहीं जाने का असलम.
रतीवती :- ये लीजिये असलम ज़ी खाना खा लीजिये, भूख लगी होंगी मैंने आपसे खमाखां सुबह सुबह मेहनत करा ली....
अब असलम को औरत कि संगत का अनुभव तो था नहीं
असलम :-...मै.. मै....क्या.....मेहनत कौनसी मेहनत?
रतीवती :- आप तो ऐसे हकला रहे है जैसे पहली बार किसी औरत के साथ सम्भोग किया हो.
रतीवती पूरी तरह खुल चुकी थी वो अब शब्दों से भी सुख पाना चाहती थी परन्तु अपने असलम मियां इन मामलो मे अनाड़ी ही थे..
डॉ. असलम:- ज़ी ज़ी ज़ी.... मेरा पहली बार ही है...
रतीवती :- हाहाहाहा..... क्या असलम मियां आप भी.
चलिए खाना खा के तैयार हो जाइये खरीदी पे चलना है. उसके बाद फिर रात मे खड्डा खोदना है
ऐसा बोल के रतीवती अपनी बड़ी सी गांड मटकाती कमरे से बाहर निकल जाती है.

असलम ठगा सा देखता ही रह जाता है, क्या औरत है किसी ने सही कहाँ है औरत हवस पे आ जाये तो मर्द के छक्के छुड़ा दे...

कथा जारी रहेगी, बने रहिये....
Shandar update sabhi ek se badkar ek tha.
 
130
137
45
चैप्टर -1 ठाकुर कि शादी, अपडेट -13



सबकी योजना तैयार थी.....

ठाकुर ज़ालिम सिंह भी अपने गांव विष रूप पहुंच चुके थे, उनके गांव मे उत्सव का माहौल था.

ठाकुर :- भूरी काकी शादी कि तैयारी करो, रिश्ता तय कर आया हूँ, अब हवेली कि रौनक फिर लौट आएगी.

बहुत ख़ुश थे ठाकुर साहेब.....

भूरी :- कैसी है कामवती?

ठाकुर :- बहुत सुन्दर

वो तीनो नामुराद कहाँ मर गये है जब से दिख नहीं रहे



भूरी उन तीनो का जिक्र सुनते ही घन घना जाती है, रात भर का सारा दृश्य एक बार मे ही जहाँ मे दौड़ जाता है,भूरी कि चुत पनियाने लगती है.

ठाकुर :- कहाँ खो गई काकी? तबियत तो ठीक है ना?

कहाँ है वो तीनो हरामी

तभी तीनो पीछे से एक साथ आते है

कालू :- ज़ी ठाकुर साहेब आदेश दीजिये?

ठाकुर :- कहाँ मर गये थे तुम लोग? सालो सिर्फ मुफ्त कि खाते हो.

बिल्लू :- मालिक वो... वो.... कल रात काकी ने बहुत मेहनत करवाई तो सुबह देर से उठे.

बिल्लू डर से जो मुँह मे आया बोल देता है.

भूरी चौक जाती है

ठाकुर :- कैसी मेहनत?

कालू :-ज़ी ठाकुर साहेब वो कल रात बारिश बहुत तेज़ थी हवेली मे पानी जमा हो गया था तो रात भर पानी ही निकलते रहे. क्यों भूरी काकी? कालू बात संभाल लेता है.

भूरी :- ज़ी ज़ी... ठाकुर साहेब तीनो ने अच्छे से पानी निकाला.

ठाकुर :- अच्छा अच्छा ठीक है जाओ काम पे लगो अब.

गांव के पंडित को बुलावा भेज दो, हलवाई को बुला लाओ.

ओर हवेली कि साज सज्जा का प्रोग्राम करो.

डॉ. असलम 2दिन मे आ जायेंगे तो बाकि का प्रबंध वो देख लेंगे.

चलो दफा हो लो अब हरामी साले....

शादी कि तैयारी जारी थी.

इन सब के बीच हवेली के तहखने मे एक शख्स ये सब बाते सुन रहा था, उसके कान बहुत तेज़ थे.... वो कामवती का नाम सुन के तन तना जाता है.

"कही कही... ये वही कामवती तो नहीं जिसका मै हज़ारो सालो से इंतज़ार कर रहा हूँ? यही वो कामवती तो नहीं जो मेरी नय्या प्यार लगाएगी "

मुझे भी ठाकुर कि शादी मे जाना होगा. मंगलवार का इंतज़ार है बस...

ये शख्स कौन था जो कामवती को जनता था?

कामवती कैसे नय्या पार लगाएगी?

वक़्त बताएगा



इधर गांव कामगंज मे

बाजार मे खूब रौनक थी कामवती ओर रतीवती कि मौजूदगी से, सभी कि नजर माँ बेटी पे ही थी उनकी दोनों कि खूबसूरती के बीच डॉ. असलम जैसे कुरूप को कोई देख ही नहीं पा रहा था, कहाँ असलन नाटा काल ओर कहाँ रतीवती कामवती सुन्दर सुडोल लम्बी.

असलम ने दिल खोल के खर्चा किया, ठाकुर साहेब के कहे अनुसार शादी मे कोई कमी नहीं रहनी चाहिए थी.

कामवती भी असलम से काफ़ी घुलमिल गई थी.

लेकिन असलम रतीवती के साथ अभी तक असहज थे.

वो दो बार रतीवती के संपर्क से निकल. चुके भी फिर भी ना जाने क्यों उनको रतीवती के साथ होने से खलबली मच जाती थी,रतीवती का हाथ कभी छू जाता तो सीधा करंट लंड पे जा के ही रुकता, फिर भी बाजार मे होने के कारण उसे अपने ऊपर काबू रखना था.

खेर इस खींचा तानी मौज मस्ती मे खरीददारी होती रही.

रतीवती ने एक लाल चटक सारी ली

रतीवती :- असलम ज़ी कैसी है ये साड़ी?

असलम : अ... अ.... अच्छी है रतीवती ज़ी

रतीवती :- कब तक शर्माएंगे असलम ज़ी आप, आप के लिए ही ले रही हूँ, आखिर अपने ही कद्र कि है मेरी.

ऐसा कह के मुस्कुरा देती है. असलम फिर से लजा जाये है.

दिन भर कि मेहनत के बाद तीनो शाम होने पे घर लौट पड़ते है, अंधेरा घिर चूका था..

घर पहुंच जाते है, रामनिवास अभी तक घर नहींआया था रतीवती को चिंता सताने लगी थी

कामवती अपने कमरे मे सामान रखने चली जाती है.

कामवती :- माँ मै सामान रख के आती हूँ फिर खाना बना लेती हूँ आप आराम कीजिये.

असलम भी अपने कमरे कि ओर निकल जाता है.

रतीवती अपने कमरे मे जाते ही लाल साड़ी पहन के देखने लगती है, सारे कपडे उतार के बिल्कुल नंगी हो जाती है.उसे जल्दी से तैयार हो के असलम को अपना रूप दिखाना था.

वो असलम आश्चर्य चकित चेहरे को देखना चाहती थी.

क्या मादक शरीर था रतीवती का बिल्कुल नक्कसी किया हुआ गोरा बदन

वो अपनी कमर के चारो तरफ साड़ी लपेट लेती है, ओर जैसे ही वो ब्लाउज उठाती है पहनने के लिए बाहर धममम.... से किसी के गिरने कि आवाज़ अति है.

रतीवती सब भूल के जल्दी से उसी अवस्था मे सिर्फ साड़ी लपेटे ही बाहर को भागती है.

बाहर आ के देखती है कि रामनिवास मुँह के बल गिरा पड़ा था.

रतीवती :- इस हरामी को दारू से ही फुर्सत नहीं आज बेवड़ा ज्यादा पी आया.

भागती हुई रामनिवास को उठाने जाती है... उतने मे असलम भी आवाज़ सुन के कमरे से बाहर आता है ओर जैसे ही दरवाजे कि ओर देखता है दंग रह जाता है.

या अल्लाह.... ये क्या हो रहा है मेरे साथ? कैसे कैसे नज़ारे लिख दिए तूने मेरे जीवन मे. शुक्रिया

असलम देखता है कि रतीवती झुकी हुई रामनिवास को उठाने कि कोशिश कर रही है इस कोशिश मे उसकी गांड पूरी बाहर को निकली हिल रही थी साड़ी का कुछ हिस्सा गांड कि बीच दरार मे घुस गया था.

आह्हः.... क्या गांड है रतीवती कि अपने लंड को मसलते रतीवती कि कामुक गांड को ही निहारते रहते है.

जैसे ही उनकी नजर आगे को बढ़ती है उनका मुँह से हलकी सिसकारी निकल पड़ती है.... ब्लाउज ना पहनने कि वजह से रतीवती के स्तन बाहर को निकल पड़े थे साड़ी तो कबका हट चुकी थी.



हलकी सिसकरी सुन रतीवती पीछे देखती है तो असलम मुँह खोले हाथ मे लंड पकडे मन्त्र मुग्ध खड़ा था.

रतीवती :-अरे असलम ज़ी मदद कीजिये? रतीवती मुस्कुरा देते है उसे असलम कि इसी हालत पे तो मजा आता था.

असलम रतीवती के पास आता है ओर रामनिवास को उठाने मे मदद करता है

इस मदद मे दोनों के शरीर रगड़ खा जाते है, रतीवती तो थी ही कामुक औरत हमेशा उत्तेजना से भरी रहती है, निप्पल कड़क हो जाते है असलम कि रगड़ से.

रतीवती :- असलम से अच्छे से उठाइये, ये तो इनका रोज़ का काम है

असलम अब समझ चूका था कि क्यों रतीवती इतनी कामुक ओर हमेशा गरम क्यों रहती है, उसकी चुत हमेशा क्यों पानी छोड़ती है, जिसका पति ऐसा हो उसकी औरत ओर क्या करे...

किस्मत ने ही मुझे रतीवती से मिलाया है. उनके दिल मे रतीवती के लिए हमदर्दी जगती है क्युकी वो खुद भी बरसो से सम्भोग नहीं कर पाया था, रतीवती ही थी जिसने उसका इस सुख से परिचय करवाया.

असलम मन ही मन रतीवती को धन्यवाद देता है.

अब तक असलम रतीवती मिल कर रामनिवास को कमरे मे ला के बिस्तर पे पटक चुके थे...

रतीवती सीधी खड़ी हो जाती है उसकी साड़ी स्तन से पूरी हट चुकी थी,बस उसके बाल ही बमुश्किल स्तन ढके हुए थे. नीचे सपाट पेट, गहरी नाभि, माथे पे बिंदी

गजब कि काया पाई है रतीवती ने



आह्हः.... कितनी खूबसूरत है रतीवती असलम बहुत कुछ कहना चाहते थे.

परन्तु कामवती रसोई से आवाज़ लगा देती है, माँ खाना बन गया है आ जाओ, ओर असलम काका को भी बोल दो.

असलम कि तंद्रा टूटती है, वो बाहर को जाने लगता है

रतीवती :- धन्यवाद असलम ज़ी आपकी वजह से है सब हो पाया

असलम समझ नहीं पाता कि किस बात का धन्यवाद

आंखे बड़ी किये प्रश्नभरी निगाहो से रतीवती कि तरफ देखता है.

रतीवती :- आज रात इंतज़ार रहेगा आपका ओर मुस्कुरा देती है...
शानदार अपडेट तैयारी जोरों पर है रंगा और बिल्ला ठाकुर को लूटने की योजना बना रहे है तो वहीं वीर प्रताप रंगा और बिल्ला को पकड़ने की योजना पर काम कर रहे है
 

Top