Adultery किस्सा कामवती का

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चैप्टर -1, ठाकुर कि शादी,अपडेट -9

विषरूप, ठाकुर कि हवेली मे... भूरी मदहोशी, हवस मे भरी स्तन उछालती भागे जा रही थी. और गिर पड़ी.
धमममममम...... और किसी कि चीखने कि आवाज़ गूंज उठी
ये आवाज़ झोपडीनुमा कमरे मे बैठे बिल्लू तक़ भी पहुंची उसके कान खड़े हो गये. उसे लगा जैसे कोई चोर उच्चका हवेली मे घुस आया है , वाह फ़ौरन अपनी लाठी उठा के आवाज़ कि दिशा मे भागा.. उसे दूर से ही कोई ज़मीन पे चित लेता हुआ दिखाई दिया.दौड़ के वो इस आकृती के पास पंहुचा, तभी बिजली जोर से चमकी और जो उसे दिखाई दिया उस चीज ने उसके रोंगटे खड़े कर दिए, ऐसा आदमय नजारा उसने कभी देखा ही नहीं था.
नीचे भूरी गिरी पड़ी थी बिल्कुल चित बारिश मे भीगी हुई, एक बार तो वो उसे एकटक देखता ही रह गया इतनी गोरी, सुडोल वक्ष स्थल एक दम गोल, कही कोई लचक नहीं सपाट पेट, बीच मे पतली से नाभि.
उसके नीचे पेटीकोट भीग के बिल्कुल कमर से चिपक गया था, थोड़ी नीचे नजर पड़ते ही उसके होश ही उड़ गये.
वो बूत बना खड़ा बराबर उस उभरी जगह को देखने लगा, भूरी का पेटीकोट उसकी चुत से भीगे होने के कारण बिल्कुल चिपक गया था, चुत भी ऐसी कि क्या कहने बिल्कुल उभरी हुई जैसे किसी ने समोसा रख दिया हो.
ऐसा नजर ऐसा कामुक बदन बिल्लू क्या उसके पुरखो ने भी कभी नहीं देखा होगा,दुनिया पता नहीं क्यों भूरी को काकी काकी कहती है.
बिल्लू बेसुध भूरी के हुस्न का दीदार कर रहा था बारिश मे भीगता हुआ, तभी नीचे पड़ी भूरी कि एक हलकी से आह निकली, थोड़ा हिली.
उसके हिलता देख बिल्लू जड़ अवस्था से बाहर आया और तुरंत भूरी को अपनी बलिष्ट बाहो मे उठा लिया, भूरी को उठाने से उसके भीगे स्तन बिल्लू कि छाती से चिपक गये, बिल्लू का एक हाथ भरी कि बड़ी गद्देदार गांड पे था.
भूरी के शरीर से निकलती खुशबू और गर्मी बिल्लू के बदन मे आने लगी और उसका लंड तन तनाने लगा जो कि भूरी कि कमर मे धसा जा रहा था, भूरी बेसुध बिल्लू कि बाहों मे झूली पड़ी थी.
बिल्लू भूरी को ले के अपने कमरे कि और चल पड़ता है, कमरे मे रखे बड़े से पलंग पे लिटा देता है, ये पलंग बहुत बड़ा था क्युकी तीनो लोग इसी पे सोते थे इसलिए ठाकुर साहेब ने बड़ा पलंग बनवा के दिया था.
बिल्लू भूरी को लेटाने के बाद भी उसके मखमली बदन को घूरे जाता है, सांस लेने कि वजह से भूरी के सुडोल स्तन ऊपर नीचे हो रहे थे,
ऐसा नजारा बिल्लू का दिल रोक सकता था उसका लंड फटने पे आतुर था. क्या करे क्या ना करे कुछ समझ नहीं आ रहा था.
तभी धड़ाम से कमरे का दरवाजा खुलता है,
बिल्लू चौक के पीछे देखता है तो कालू रामु दो बॉटल और हाथ मे खाना लिए खड़े थे.
कालू रामु कभी बिल्लू को देखते कभी पीछे पलंग पे पड़ी भूरी काकी को. उनके समझ से सबकुछ बाहर था.
बिल्लू मूर्ति बने खड़ा था उसके तो इन सब मे होश उड़ गये थे...
कालू :- अबे बिल्लू ये सब क्या है? क्या किया तूने भूरी काकी के साथ?
रामु :- साले कही तूने इसे नशे मे मार तो नहीं दिया?
हरामी ठाकुर साहेब हमें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे.
बिल्लू जस का तस खड़ा था.
रामु और कालू अंदर आ जाते है और दरवाजा बंद कर देते है.कालू उसका खड़ा लंड देख लेता है.
रामु :- बोल बे हरामी क्या किया तूने? कालू उसे झकझोरता है.
तब बिल्लू होश मे आता है. म..... मै.... मैंने......

मैंने..... मम... कुछ नहीं किया.
कालू :- साले पहले होश मे आ, हरामखोर
बिल्लू खुद को संभालता है और सारा वाक्य बयान कर देता है.
तब कालू और रामु भी भूरी के नजदीक आते है और देखते है दंग रह जाते है ये भूरी काकी है? अपनी भूरी काकी?
कपड़ो मे तो ऐसी नहीं लगती.
भूरी के सुडोल स्तन, उभरी हुई चुत देख के उन दोनों कि हालात भी बिल्लू जैसी हो जाती है.
कालू थोड़ा समझदार था उन तीनो मे.
कालू :- एक बात समझ नहीं अति ये साली इतनी रात को नंगी बाहर करने क्या आई थी?
बिल्लू :- साला मेरा तो दिमाग़ ही भंड हो गया है इसे देख के लोड़ा बैठने का नाम ही नहीं ले रहा.
पहले दारू पीते है फिर सोचते है.
कालू ने जल्दी से एक एक पग बनाया और तीनो एक ही सांस मे नीट पी गये.
गरमागरम दारू गले के नीचे गई तब जा के तीनो नार्मल हुए....
कालू :- मुझे तो लगता है ऐसे मौसम मे काकी को भी गर्मी चढ़ी होंगी तभी गर्मी उतरने बाहर आई.
रामु :- साले काकी तो मत बोल उसे, देख उसके दूध, उसकी चुत देखि है कभी ऐसी? किसी नई नवेली जवान लड़की को भी मात दे दे.
बिल्लू :- बात तो तुम दोनों कि सही है लेकिन अब करे क्या?
कालू :- करना क्या है चल इसकी गर्मी उतारते है.
Ramu- साले पागल हो गया है क्या? मरवाएगा इसने ठाकुर को बता दिया तो हम तीनो को मौत नसीब होंगी समझा.
कालू :- अरे कुछ नहीं होगा मै जो देख रहा हूँ वो तुम नहीं देख रहे, कालू कि आँखों मे हवस थी आखिर हो भी क्यों ना
इन तीनो ने पिछली बार कब चुत मारी थी इन्हे खुद नहीं पता...
अच्छा सुनो एक काम करते है.... जिसमे हमारी कोई गलती भी नहीं होंगी.

उधर गांव कामगंज ने डॉ. असलम बेचैन थे और कमरे के बाहर टहल रहे थे, परन्तु मौसम और ठंडी हवा ने उत्तेजना कम करने के बदले और बड़ा थी थी ऐसी उत्तेजना खुमारी पहले कभी नहीं चढ़ी थी असलम को, ये आग अब सहन से बाहर थी लंड अकडे अकडे दर्द देने लगा था.
डॉ. असलम आस पास नजर दौड़ाते है बरामदा खाली था किन्तु बारिश हो रही थी तभी बरामदे से लगी एक गली दिखती है जिसके अंत मे छज्जा था,
डॉ. असलम :- वो जगह ठीक लगती है, वहाँ अंधेरा भी है कोई देखेगा नहीं वही जा के हस्थमैथुन कर लेता हूँ थोड़ी शांति तो आये.
डॉ. असलम चल पड़ते है ये वही गली थी जिस से रतीवती का कमरा लगा हुआ था.
डॉ. असलम जल्दी से वहाँ पहुंच कर अपना पजामा पूरा नीचे सरका के लंड आज़ाद कर देते है, आज लंड फूल के कुप्पा हो गया था नसे फटने पे आतुर थी, एकदम कड़क था लंड.
इधर रतीवती भी दरवाजा खोल के जल्दी से बाहर निकलती है, बारिश हो रही थी तो वो जल्दी से मूत के भाग लेना चाहती थी.
रतीवती कमरे से पूर्ण नग्न ही बाहर निकल पड़ती है सिर्फ मंगलसूत्र और चुडिया अँधेर मे चमक रही थी वो अँधेर मे जल्दी से जा के गली के आगे अपनी बड़ी सी गांड फैला के मूतने बैठ जाती है.
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इन सब बातो से अनजान डॉ असलम आंख बंद करे ठीक रतीवती के पीछे अपना लंड जोर जोर से रगड़ रहे थे.
उन्हें थोड़ा सुकून मिलता है, तभी उन के कान मे सूररररररर.... सुरररमररर.. कर के किसी सिटी कि आवाज़ पड़ती है. वो घबरा के आंखे खोलते है.
आंखे खोलते ही उनकी आंखे फटी कि फटी रह जाती है, शरीर का सारा खून लंड मे इकठ्ठा हो जाता है मुँह खुला का खुला रह जाता है, उनके सामने रतीवती कि बिजली मे चमकती सुन्दर चिकनी बड़ी गांड थी, सुररर कि आवाज़ के साथ हिल रही थी....आआआह्हःम्म... वाहहहह... उनके मुँह से ना चाहते हुए भी हवस भरी सिसकारी निकल पड़ती है.
जिसे सुन के रतीवती एकदम चौक जाती है, और खड़ी हो के तुरंत पीछे मूड जाती है.
उसकी चीख निकल जाती है डर से.... ये चीख बादल कि गर्ज़ीना मे दब जाती है. डर के मारे उसका मूत खड़े खड़े ही निकलने लगता है,
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रतीवती अभी पूरी तरह मूत भी नहीं पाई थी कि सिसकारी सुन के खड़ी हो गई थी.
डॉ. असलम एकटक खड़े खड़े पेशाब करती रतीवती कि चुत को घूरे जा रहे थे,
तभी बिजली जोरदार चमकती है डॉ. असलम का बदन उजाले से नहा जाता है जो कि अभी तक़ अँधेरे मे था,एक पल के उजाले मे रतीवती डॉ असलम को देखती है, फिर बिजली चमकती है इस बार रतीवती कि नजर सीधा डॉ. असलम के तूफानी काले मोटे लंड पे पड़ती है.
पहले से ही कामउत्तेजना मे जल रही रतीवती कि चुत लंड देखते ही फड़फड़ा जाती है उसका मूत बंद हो जाता है.
वापस से गर्मी हवस उसके शरीर को घेर लेटी है, ठंडी हवा से निप्पल खड़े हो के टाइट हो जाते है.
पता नहीं किस सम्मोहन मे बँधी वो छज्जे कि तरफ बढ़ जाती है, डॉ असलम स्तम्भ खड़े थे उन्हें समझ नहीं आ रहा था इतनी सुन्दर स्त्री, इतनी सुन्दर काया, उन्नत सुडोल स्तन, बिल्कुल चिकने मुलायल, सपाट पेट, जिसके बारे मे सपने मे भी नहीं सोचा था वो पूर्ण नंगी उनके सामने खड़ी है, अजी खड़ी क्या है ये तो पास चली आ रही है.
ना ना न..... ये तो सपना है हक़ीक़त नहीं हो सकता मेरी ऐसी किस्मत कहाँ.
अब तक़ रतीवती, डॉ असलम के बिल्कुल नजदीक पहुंच चुकी थी.
इतनी पास कि डॉ. असलम कि गरम गरम सांस अपने स्तनों पे महुसूस कर रही थी. डॉ असलम कि hight ही इतनी थी कि उनका मुँह रतीवती के स्तन के सामने थे, वो मुँह फाडे खड़े थे.
रतीवती ना जाने किस नशे मे थी कोई सम्मोहन तो जरूर था, हवस का सम्मोहन, बरसो से सम्भोग ना करने का सम्मोहन.
उसकी नजर सिर्फ डॉ. असलम के लंड पे थी इतना बढ़ा, कड़क लंड उसने कभी देखा ही नहीं था, वो कड़क लंड सीधा रतीवती कि फूली चुत पे टकरा जाता है.
दोनों के मुँह से सिसकारी फुट पड़ती है आहहहह.... बारिश के छींटे दोनों जिस्म को भीगा के ठंडा करने कि कोशिश कर रहे थे कि कही फट ना पड़े.
परन्तु बारिश का ये अहसान बेकार ही था उल्टा ये छींटे गर्मी बड़ा दे रहे थे.
जैसे गर्म तवे पे पानी के छींटे मार देने से तवा ठंडा नहीं हो जाता, तवा तैयार ही तब होता है जब उसपे पानी के ठन्डे छींटे मारे जाये.
वही हाल रतीवती का था वो अपने आपे मे नहीं थी, देखते ही देखते वो असलम के लंड को अपने एक हाथ से पकड़ लेती है, लंड पकड़ते ही उसकी चुत टप टप कर के टपकने लगती है, इतनी गर्मी थी चुत मे कि पानी सीधा भाँप बन के उड़ता प्रतीत होता था..
रतीवती कामुत्तेजना मे घुटनो के बल बैठ जाती है, और असलम के कड़क लम्बे मोटे लंड को टटोल टटोल के देखने लगती है वो निश्चित कर लेना चाहती थी कि ये चीज लंड हि है ना..
दोनों मे से कोई कुछ बोल नहीं रहा था.... या शायद उनके कंठ जाम हो गये थे, भरी बरसात मे गला सुख गया था.
डॉ. असलम मन्त्रमुग्ध खड़े थे बस रतीवती कि हरकत देखे जा रहे थे.
रतीवती अपनी नाक पास ला के लंड को सुघटी है.... मम..... आआआहहहह... पूरी सांस खींच लेती है अंदर तक़
लंड कि खुशबू से रतीवती झंझना जाती है. उसकी जीभ स्वतः ही बाहर निकलती है, जीभ कि नौक से लंड के ऊपरी हिस्से को हलके से चाट लेती है...
डॉ. असलम काँप जाते है उनके लंड को पहली बार किसी औरत ने हाथ लगाया था हाथ क्या यहाँ तो जीभ भी लगाई थी..वो भी कोई ऐरी गैरी औरत नहीं साक्षात् स्वर्ग कि अप्सरा के समान रतीवती उनका लंड पकड़े बैठी थी
पहली बार के इस अहसास को वो अपने अंदर समेट लेना चाहते थे.
अब जो होना है होने दिया जाये.... ये सोच के डॉ. असलम अपनी आंखे बंद कर रतीवती के सर पे हाथ रख देते है.
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पहली बार तो विषरूप मे ठाकुर कि हवेली पे भी हो रहा था.
कालू, रामु, बिल्लू तीनो भूरी को घेरे खड़े थे.तीनो एक एक पैग और ले चुके थे तीनो के लंड तनतनाये हुए थे
होते भी क्यों ना जिस्म था ही कुछ ऐसा.
कथा जारी है.....
 
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अपडेट -9 contd....

पहली बार तो विषरूप मे ठाकुर कि हवेली पे भी हो रहा था.
कालू, रामु, बिल्लू तीनो भूरी को घेरे खड़े थे.तीनो एक एक पैग और ले चुके थे तीनो के लंड तनतनाये हुए रहे
होते भी क्यों ना जिस्म था ही कुछ ऐसा.
कालू :- मित्रो भूरी काकी अर्धनग्न अवस्था मे बाहर आई थी, कही इसका कोई यार तो नहीं जिस से मिलने जा रही हो और अपना लंड मसलने लगा.
बिल्लू :-अरे अपने को क्या मेरा तो भूरी के दूध देख के लंड बैठने का नाम ही नहीं ले रहा, बिल्लू अपना लंड धोती से बाहर निकाल के मसलने लगता है,
रामु कालू का हाल भी कुछ ऐसा हि था,
कालू उत्तेजना के जोश मे भूरी के स्तन कि और हाथ बढ़ा देता है उस से रुका नहीं जा रहा था.
रामु :- क्या कर रहा है उसको होश आ गया तो?
कालू :- कुछ नही होगा वो खुद नंगी बाहर आई थी, सोच इतनी रात को ये नंगी हवेली से बाहर क्या कर रही थी...
इन तीनो उल्लू के चरखो को कौन बताये कि भूरी तो तब ही होश मे आ गई थी जब बिल्लू ने उसे गोंद मे उठाया था, वो थोड़ा सा करहि थी.
लेकिन क्या जवाब देती कि वो अर्धनग्न बारिश मे क्या करने आई थी?
अपनी बरसो कि इज़्ज़त उसे तार तार होती दिखाई दे रही थी,
भूरी काकी चुपचाप आंख बंद किये बिल्लू कि गोंद मे पड़ी रही थी.
परन्तु अब उसकी हालात ख़राब थी, उन तीनो कि बाते सुन के जो उसके कड़क कसे हुए बदन को घूरे जा रहे थे, उसके स्तन से खेलने पे आतुर थे.
भूरी तो पहले से ही गरम थी, बिल्लू का लंड धोती से बाहर झूल रहा था इस बात का अहसास होते ही उसकी चुत चुपचाप टपक पड़ती है,वो आंख बंद किये पड़ी रहती है दिल कि धड़कन धाड़ धाड़ कर के चल रही थी.
कालू :- पहले थोड़ी दारू पी लेते है, कालू के दिमाग़ मे कुछ तो चल रहा था वो कुछ भाँप चूका था.
रामु :- लेकिन.... पर....
कालू :- लेकिन वेकीन कुछ नहीं आओ तुम्हे आज नये तरीके से पिलाता हूँ.
कालू तीन कांच के गिलास भूरी के सपाट पेट पे रख देता है.
ठंडे गिलास पड़ते ही भूरी का दिल बाहर निकलने को होता है.वो हल्का सा कसमसती है परन्तु आंख नहीं खोलती.
पेट से होती हुई ठंडाई सीधा चुत कि लकीर मे स्थित दाने को छेड़ रही थी.
पहले से गरम भूरी का बदन तपने लगता है.
जिसे कालू भाँप लेता है.
पेट पे रखे ठन्डे गिलासो मे कालू दारू डालता है और तिनों भूरी के इर्द गिर्द बैठ जाते है तीनो ही भगवान कि बनाई इस नक्कासी किये जिस्म को घूर रहे थे.
बिल्लू दारू पिता हुआ एक हाथ भूरी के स्तन पे हलके से रखता है, आह्हःम... कितना मखमली अहसास था ये अहसास कभी महसूस ही नहीं हुआ था.
अंदर भूरी भी सिहर उठती है आज पुरे 30 साल बाद किसी मर्द का कड़क हाथ उसके स्तन पे लगा था, लेकिन विडंबना देखिये वो खुल के कुछ बोल भी नहीं सकती थी सिसकारी भी नहीं ले सकती थी.
होंठो के अंदर ही उसकी सिसकारी घुटी रह जाती है.
भूरी की कोई भी हरकत ना पाकर बिल्लू जोर से एक स्तन को दबा देता है.
बिल्लू :- यार क्या दूध है देख कैसे उछल रहे है, जैसे कोई गेंद हो.
मजा आ गया.
रामु भी बिल्लू कि बात सुन के अपना हाथ दूसरे स्तन पे रख देता है
रामु :- आअह्ह्ह.... हाँ यार रामु क्या मुलायम है.
अब हमला दो तरफ़ा हो गया था कहाँ एक मर्द को तरसती थी भूरी आज दो अलग अलग मर्दो के हाथो ने दोनों स्तनों को दबोच रखा था.
दारू का शुरूर सर चढ़ रहा था, रामु कालू कि हिम्मत बढ़ने लगी थी.
जबकि कालू चुपचाप शराब चूसक चूसक के पी रहा था.
रामु कालू अब भूरी के स्तनों को रगड़ने लगते है, भूरी के निप्पल टाइट हो के दर्द करने लगे थे, उसके निप्पल बार बार दोनों के सख्त हाथो से रगड़ खा रहे थे,
भूरी को सहन से बाहर हो रहा था, उसकी चुत छलछला के पानी बहा रही थी.
उत्तेजना के मारे उसकी चुत फुले जा रही थी जो कि भीगे हुए पेटीकोट से साफ दिख रही थी,पेटीकोट चुत कि दरार मे घुसा हुआ था,चुत दो हिस्सों मे बटी हुई थी, अब कहना मुश्किल था कि पेटीकोट का वो हिस्सा चुत के पानी से गिला हो के चिपका था या पहले से ही गिला था.
कालू रस बहती चुत को एकटक देखे जा रहा था, तभी वो अपनी उत्तेजना मे सर नीचे झुका के अपनी नाक चुत के उभार के ऊपर रख देता है.
भूरी को अपनी चुत पे गरम हवा का झोका सा महुसूस होता है, ऊपर से स्तन मर्दन, रगड़ाई चालू ही थी. भूरी अब मर जाएगी यदि वो जल्दी ना उठी तो अब सहन नहीं कर पायेगी.
30 साल कि गर्मी मार ही डालेगी, उसके मन मे आता है आंखे खोल दे उठ जाये और बोल ही दे कि चोदो मुझे गांड चुत सब फाड़ दो, परन्तु कैसे कहे बरसो कि इज़्ज़त दाव पे थी.
परन्तु आज ये तीनो जमुरे ठान के ही बैठे थे कि रगड़ के रख देंगे.
कालू चुत को सुंघे जा रहा था, वाह क्या खुशबू है साली दारू भी फ़ैल है इसके सामने, फिर गहरी सांस लेता है और अंदर तक़ तृप्त हो जाता है.
बिल्लू रामु कि नजर भी जैसे ही कालू कि सिसकारी सुन के नीचे कि और जाती है तो दोनों ही स्तन रगड़ना भूल जाते है नशा दिमाग़ मे चढ़ जाता है.
क्या उभार था चुत का, इतनी मोटी चुत.... गीले कपड़े मे साफ झलक रही थी.
अब तीनो के बर्दाश्त के बाहर कि बात हो चली थी बिल्लू हाथ आगे बढ़ा के पेटीकोट का नाड़ा एक झटके मे खोल देता है, जैसे ही पेटीकोट के नाड़े का खुलने का अहसास भूरी को होता है वो अंदर तक़ सिहर जाती है दिल का दौरा पड़ना अब लाजमी था इनती मदहोसी इतनी उत्तेजना क्या करू क्या करू? मै मर ना जाऊ?
इस उत्तेजना के मारे भूरी कि चुत पानी कि जोरदार उलटी कर देती है.
अब उठना ही होगा... भूरी मन बना ही लेती है.
परन्तु देर हो चुकी थी बिल्लू पेटीकोट को घुटने तक सरका चूका था लेकिन सामने जो नजारा था उसे देख के तीनो पलंग से गिर पड़ते है, धड़द्दाम्म्म..... हे भगवान ऐसी चुत इस उम्र मे ऐसी मोटी फूली हुई चुत इतनी छोटी सी.चुत पे एक भी बाल का नामोनिशान नहीं था, एकदम चिकनी चुत...
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तीनो को कोई होश नहीं था नीचे पड़े पड़े लम्बी सांस ले रहे थे...
तभी नह्ह्ह्हईई कि चीख के साथ भूरी उठ बैठती है अपने दोनों हाथो से अपने स्तन और चुत को ढक लेती है बिल्कुल नंगी तीनो के सामने खड़ी थी अपने हाथो का सहारा था सिर्फ....
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उधर गांव कामगंज मे भी सिर्फ हाथो का ही सहारा था... रतीवती अपने हाथो मे डॉ. असलम का लंड पकड़े हैरानी से आगे पीछे कर रही थी उसके लिए तो आश्चर्य कि बात यही थी कि लंड इतना भयानक भी होता है, वो नजर ही नहीं हटा पा रही थी पागलो कि तरह अलट पलट के लंड देखे जा रही थी.
कभी सुघती, कभी जीभ से चाट लेती,
डॉ. असलम आंख बंद किये इस सपने जैसी हक़ीक़त का मजा ले रहे थे.
उनका हाथ रतीवती के सर के पीछे था जैसे वो कुछ बोल रहे हो.
दोनों मुँह से कुछ नहीं बोल रहे थे बस उनका बदन बोल रहा था उनकी उत्तेजना काम कर रही थी.
तभी रतीवती कमावेश उत्तेजना से भर के पूरी जीभ निकाल के नीचे से ऊपर कि तरफ पूरा लंड चाट लेती है.
मदहोश कर देने वाला स्वाद महसूस होता है रतीवती को, वो अब पागल हो चुकी थी, स्थति ऐसी थी कि कोई आ भी जाता तो वो लंड ना छोड़ती.
डॉ. असलम थोड़ी सी आंखे खोलते है और देख के दंग रह जाते है कि इनका लंड पूरा गिला था रतीवती के थूक से.
अब वो भी इस नज़ारे को देखना चाहते थे नजर नीची किये रतीवती के सुन्दर होंठ से निकली लपलपाति जीभ देख रहे थे जो लगातार उनका लंड ऊपर नीचे चाटी जा रही थी जैसे किसी बच्चे को सालो बाद उसकी फेवरेट मिठाई मिली हो.
डॉ. असलम अपने हाँथ से रतीवती के सर के पीछे थोड़ा दबाव बढ़ाते है.
रतीवती स्वतः ही अपना सुन्दर मुँह खोल देती है और पुरे सुपाडे को अपने गरम मुँह मे भर लेती है
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उसे इतना पसंद आ रहा था कि वो सुपडे को मुँह मे लिए अंदर से सुपाडे के चारो तरफ जीभ चलाने लगती है
असलम का हाल बहुत बुरा था उनके मुँह से जोरदार आअह्ह्ह... हुंकार निकल जाती है जो बादल कि गरजना मे कही दब जाती है.
हुंकार सुन के रतीवती लंड मुँह मे पकडे ही ऊपर देखती है असलम तो नीचे ही देख रहे थे दोनों कि नजर टकरा जाती है ये पहला मौका था जब दोनों कि नजरें एक दूसरे से मिली थी, इस मिलन मे सिर्फ हवस थी, प्यास थी.
वो प्यास जो दोनों को एक दूसरे कि आँखों मे नजर आ रही थी, असलम के लंड के आगे उनकी कुरूपता खो गई थी असली सौंदर्य उनका काला भसंड लंड ही था.
दोनों ही नजरों नजरों मे एक दूसरे को स्वस्कृति दे चुके थे, बोल चुके थे कि ये लंड तुम्हारा है रतीवती मेरी प्यास बुझाओ.

और रतीवती पूरा मुँह खोल के लंड अंदर धकेल लेती है.
आहाहाहा म.क्या आनंद था, जितनी गरम रतीवती थी उस से कही ज्यादा उसका मुँह गरम था बिल्कुल कोई भट्टी जिसमे असलम का लंड आज पिघलने का था.
ऊपर से ये मौसम कि मार.... पानी के छींटे जमीन से टकरा के वापस रतीवती कि गांड और चुत पे लग रहे थे. रतीवती अपनी ऐड़ी के बल पूरी गांड फैलाये बैठी थी.
छींटे किसी छोटे छोटे तीर कि तरह चुत और गांड के छेद पे हमला कर रहे थे.
उत्तेजना से भरी रतीवती का एक हाँथ नीचे अपनी चुत के करीब पहुंच जाता है. और लकीर के बीच मौजूद दाने को सहलाने लगता है. उफ्फ्फ्फ़ .. करती रतीवती असलम के लंड को जड़तक़ मुँह मे भर लेती है उसके होंठ असलम के भारी टट्टो से टकरा जाते है, उसकी नजर टट्टो पे पड़ती है तो दंग रह जाती है इतने बड़े टट्टे?
अब हो भी क्यों ना बरसो का माल जमा कर रखा था इन टट्टो मे डॉ. असलम ने.
रतीवती कि सांस थामती महसूस होती है तो वो अपना सर पीछे कि और खिंचती है परन्तु लंड मुँह से बाहर नहीं निकालती.
अब एक हाथ चुत पे चल रहा था, दूसरे हाथ से वो असलम के बड़े भारी टट्टो को पकड़ के जोर दार झटके से वापस लंड गले तक़ उतार लेती है,
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डॉ. असलम हौरान थे कि ऐसा भी हो सकता है कोई औरत इस कदर कामुक हो सकती है.
उन्हें क्या पता कि औरत नंगेपन पे आ जाये तो क्या नहीं करती, वो इन मामलो मे बिल्कुल अनाड़ी थे. उनको तो ये सब बर्दाश्त के बाहर लग रहा था....
वो सिर्फ एकटक रतीवती कि काम क्रीड़ा को देखे जा रहे थे,
अब रतीवती इतनी गरम हो चुकी थी कि जोर जोर से धचा धच अपनी दो ऊँगली चुत मे चला रही थी वो अब रुकना नहीं चाहती थी उसे कैसे भी स्सखलित होना था.
नीचे चुत मे चलता हाथ, ऊपर मुँह मे सटासट जाता लंड और दूसरा हाथ टट्टो को मसल रहा था.
ऐसा कारनामा, ऐसी कामुक औरत नसीब वालो को ही मिलती है लेकिन जिसके नसीब मे थी वो दारू पी के लुड़का पड़ा था कमरे मे..
जिसको ऐसे खजाने कि कद्र नहीं वो खजाना कोई और लूट लेता है, जबकि यहाँ तो डॉ. असलम पे खुद रतीवती अपना यौवन का खजाना लूटा रही थी... जी भर के लूटा रही थी.
अब लंड पूरी रफ़्तार से मुँह मे जा रहा था, डॉ. असलम ने अपने दोनों हांथो से रतीवती का सर पकड़ के अपने लंड पे धकेले जा रहे थे, रतीवती भी क्या कम थी वो भी असलम के टट्टे पकडे धचा धच मुँह जड़ तक़ मारे जा रही थी.
एक बार मे लंड गले तक अंदर जाता एक बार मे बाहर.
रतीवती का थूक से लंड लिसलिसा गया था थूक टपक टपक के स्तन के रास्ते चुत तक पहुंच रहा था जहाँ रतीवती कि उंगलियां उस थूक का फायदा उठा के फचा फच चुत मे ऊँगली मारे जा रही थी...
फच फच फच.... आअह्ह्हह्ह्ह्ह....
अब वो छड़ आ चूका था जब इस गर्मी का अंत हो, असलम और रतीवती ही इस रगड़ाई को बर्दाश्त नहीं कर पाते और एक साथ भलभला के झड़ने लगते है. रतीवती कि चुत से सफ़ेद पानी का जोरदार फाव्वारा निकल के सीधा असलम के पैर पे चोट करता है.
अह्ह्ह्ह...... मै मरी पहली बार रतीवती के मुँह से शब्द फूटे थे.
असलम भी गर्मी बर्दास्त नहीं कर पाता पीच पीच पीछाक.... के साथ पहली धार वो रतीवती के मुँह के अंदर ही मार देता है परन्तु रतीवती के स्सखालन कि वजह से वो धम्म से गांड के बल बैठ जाती है... असलम कि पिचकारी एक के बाद एक रतीवती का बदन भिगोने लगती है..
रतीवती ने अभी भी असलम का लंड पकडे हुई थी, उसका हाथ और असलम का काला भयानक लंड वीर्य से भीगा हुआ था
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इतना वीर्य था कि पूरा शरीर नहा जाता है... रतीवती जैसे ही गरम वीर्य का स्पर्श अपने जलते बदन पे महसूस करते ही एक लम्बी धार अपनी चुत से छोड़ देती है रतीवती का वीर्य असलम के पैरो को भिगो रहा था.
रतीवती आजतक ऐसा कभी नहीं झड़ी थी उसकी तो जान ही निकल गई थी वो दिवार के सहरे निढाल बैठी अपनी टांग फैलाये लम्बी लम्बी सांसे ले रही थी, वीर्य जो मुँह मे था वो गले से नीचे जा चूका था.
असलम भी ढेर हो गया था उसका तो पहली बार ही था ऊपर से ऐसी कामुक औरत के साथ जो सिर्फ लंड चूस के ही किसी कि जान लेे ले.
असलम पीछे दिवार के साहरे खड़ा हांफ रहा था.
दोनों मे से अभी भी कोई कुछ नहीं बोल रहा था बस एक दूसरे को लम्बी लम्बी सांस लिए देखे जा रहे थे.
रतीवती कि जीभ अपने होंठो के चारो तरफ चल रही थी उसे वीर्य का स्वाद पसंद आया था. सारा चाट जाना चाहती थी..
तभी जोरदार बिजली कड़कती है दोनों के जिस्म रौशनी मे नहा जाते है, रतीवती का वीर्य से भरा जिस्म और असलम का थूक से भरा लंड ऐसा नजारा अच्छो अच्छो कि जान ले लेता.
दोनों को किसी से कोई शिकायत नहीं थी, तभी कमरे से कुछ गिरने कि आवाज़ आति है. रतीवती तुरंत खुद को संभालती है और जल्दी से खड़ी हो के अपनी मस्तानी गांड हिलाती गली से बाहर अपने कमरे कि और निकल पड़ती है.
जाते जाते वो मुड़ के असलम को देख मुस्कुरा देती है जैसे धन्यवाद कह रही हो...
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असलम तो मूर्ति बना एकटक उस बला कि खूबसूरत कामुक स्त्री को जाता देखता रह जाता है.
कथा जारी है.....
 
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चैप्टर -1, ठाकुर कि शादी, अपडेट -10

गांव विषरूप, ठाकुर कि हवेली मे
भूरी काकी मदहोशी,उत्तेजना, डरी हुई अपने स्तन और चुत पे हाथ रखे तीन मर्दो के बीच खड़ी थी,
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सभी भावनाये मिक्स हो रही थी, उत्तेजना से चुत टपक रही थी, निप्पल रगड़े जाने कि वजह से खड़े थे. और अब क्या होगा, बरसो कि इज़्ज़त मिट्टी मे मिल जायगी ये सोच के दिल धाड़ धाड़ कर धड़क रहा था सीना फट जाने पे आमादा था.
बिल्लू और रामु भूरी को अपने सामने नंगा खड़ा देख डर जाते है कि अब क्या होगा कही ठाकुर साहेब को ना कह दे,
भूरी :- ये क्या कर रहे हो तुम लोग? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? मुझे काकी बोलते हो तुम लोग.
जैसे तैसे खुद को संभाले अपनी इज़्ज़त बचाने के संघर्ष मे बोल गई भूरी.
कालू अभी तक शांत खड़ा था और आराम से दारू चूसक रह था, वही बिल्लू और रामु के चेहरे पे हवाईया उडी हुई थी.
कालू:- काकी आपको जो भी काकी बोलता है वो नीरा बेवकूफ है, कपडे के बाहर से कभी आपको देखने का मौका ही नहीं मिला.लेकिन अंदर से तो आप किसी जवान लड़की को भी मात दे दे...
भूरी कालू के मुँह से ऐसी तारीफ सुन सिसकरती है जो कि बहुत धीमी थी उसने अभी तक अपना पेटीकोट उठाने कि कोई जहामात नहीं उठाई थी
बिल्लू, कालू कि ऐसी हिम्मत देख के दंग रह जाता है, और थोड़ा हौसला रख के बोल देता है
" वैसे काकी आप इतनी रात गये अँधेरी तूफानी रात मे अर्धनग्न अवस्था मे क्या कर रही थी "
जिस बात का डर था वही हुआ भूरी बिल्लू कि बात सुन के शर्म से मरी जाती है उत्तेजना दबने लगती है.
कोई जवाब नहीं था...
भूरी :- वो वो .... मै मै..... वो मै.. हाँ... मै
कालू :- रहने दो काकी आपके पास कोई जवाब नहीं है शायद आप इस चीज कि तलाश मे थी?
ऐसा बोल के कालू अपनी धोती खोल फेंकता है. उसका नाग कि तरह फनफ़नाता लंड भूरी कि आँखों के सामने झलक पड़ता है.
भूरी पुरे 30 साल बाद लंड देख रही थी, वो भी बड़ा भारी मोटा 8इंच का लंड.
वो इसी के लिए तो तरसती थी यही तो वो खजाना था जिसे पा लेने कि चाह लिए ही लोकी तोड़ने चली थी.
भूरी कि चुत रुपी सुखी नदी मे बरसाती मौसम मे बाढ़ आ गई थी....
वो कुछ भी बोलने सुनने कि शक्ति खो चुकी थी.
कालू कि हिम्मत देख रामु बिल्लू दंग रह जाते है, वो भूरी कि तरफ देखते है तो पाते है कि भूरी एकटक कालू के झुलते इठलाते लंड को घूरे जा रही थी, उसकी छाती मारे हवस के ऊपर नीचे हो रही थी.
भूरी कि उत्तेजना और इज़्ज़त मे संघर्ष का अंत हो चूका था, इज़्ज़त शर्म पे हवस, कामवासना कि विजय हुई थी.
कालू :- क्यों काकी कैसा लगा? हम भी प्यासे है काकी
ऐसा बोल के कालू भूरी के नजदीक पहुंच के ठीक सामने खड़ा हो जाता है.
इतना पास कि जिस हाथ से भूरी ने चुत छुपा रखी थी उस हाथ पे कालू का लंड टकरा रहा था, जैसे मकान का मालिक अपने घर मे घुसने के लिए दरवाज़ा पिट रहा हो...
कालू कि सांसे दारू भरी सांसे सीधा भूरी के नाथूनो पे हमला कर रही थी.
भूरी इतना कुछ एक साथ होने से सिहर जाती है उसके हाथ पे लंड कि चुभन महसूस ही रही थी लगता था जैसे हथेली को पिघला के चुत मे घुस जायेगा.
शराब भरी सांसे भूरी को मदहोशी के कुएँ मे धकेल रही थी.
वो ये सब सहन नहीं कर सकती थी... आअह्ह्ह.... करती गर्म सांस छोड़ के आंखे बंद कर लेती है.
गर्म साँसो का भभका कालू अपने काले भद्दे होंठो पे पड़ते ही उसका लंड जोर जोर से चुत का दरवाजा खटखटाने लगता है.
बिल्लू रामु बैठे बैठे ये दुर्लभ दृश्य देख रहे थे उनके लोडे वापस बगावत पे उतर आये थे.
दोनों ही एक साथ खड़े हो जाते है और अपनी धोती निकाल फेंकते है.. अब हमाम मे सब नंगे थे.

भूरी अभी भी आंखे बंद किये आने वाले पल कि प्रतीक्षा कर रही थी.
तभी कोई गीली लपलापती चीज उसे अपने सूखे होंठो पे महुसूस होती है वो अपनी आंखे खोल देखती है कि कालू अपनी जबान से उसकी फड़फड़ाते होंठो को चाट रहा था, जैसे कोई सांप अपने शिकार से खेलना चाहता हो.
भूरीअब शर्म और इज़्ज़त का टोकरा पूरी तरह उतार फेंक देना चाहती थी, जिस चीज का 30 साल से इंतज़ार था वो आज कर लेना चाहती थी उसका बदन तो कबका शर्म छोड़ चूका था.
कालू धीरे धीरे भूरी के होंठ चाट रहा था उसे कामुक रस पिने कि अनुभूति हो रही थी, कालू थोड़ा पीछे हटता है तो भूरी कि नजर कालू के पीछे खड़े बिल्लू और रामु पे पड़ती है दोनों ही पूर्णतया नंगे खड़े थे अपना मोटा काला लंड पकड़े, भूरी को बता देना चाहते थे कि हम किसी से कम नहीं.
ऐसा विहंगम नजारा देख के भूरी कि चुत छल छला जाती है उसे महुसूस होता है कि हज़ारो चीटिया उसकी चुत मे चल रही हो.
अब हवस ऐसी सवार हुई कि भूरी कुछ भी कर सकती थी उत्तेजना इतनी बढ़ गई थी कि बदन जलने लगा था, बिल्लू रामु भी आगे बढ़ के भूरी का हाथ पकड़ उसके स्तन से हटा देते है और अपने लंड पे रख देते है.
एक बार को तो भूरी हाथ पीछे खींच लेती है परन्तु वो भी ये मौका नहीं गवाना चाहती थी वो अब अपने होश मे नहीं थी स्वतः ही उसके हाथ बिल्लू रामु के लंड पे चले जाते है....
आअह्ह्हम... कितना गरम अहसास था ऐसा सुकून कभी नहीं मिला उत्तेजना से प्रेरित हो कर दोनों हाथ दोनों के लंड पे आगे पीछे होने लगते है
रामु बिल्लू भी मदहोशी मे अपने हाथ भूरी के स्तन पे रख सहलाने लगते है.
भूरी कि तो हालात ही ख़राब थी दोनों उसके निप्पल को नोच रहे थे कभी पुरे स्तन को जोर से दबा देते थे.
भूरी के मुँह से रह रह के सिसकारी निकले जा रही थी....
इतने मे कालू अपने घुटने के बल बैठ जाता है और सीधा फूली हुई चुत के सामनेबैठा घूरे जा रहा था.
अब कालू अपनी जीभ निकाल के भूरी कि साफ चिकनी मादकता से भीगी चुत पे रख देता है.... आअह्ह्ह..... भूरी सिहर उठती है पसीना छूट पड़ता है दोनों हाथ से रामु बिल्लू के लंड जोर से कस लेती है सिसकारी के साथ ही तीनो नीचे कालू कि तरफ देखते है, कालू लपा लप जीभ से चुत चाटे जा रहा था उसकी पूरी कोशिश थी कि वो लकीर के अंदर जीभ घुसा सके परन्तु भूरी के खड़े होने के कारण ऐसा संभव नहीं था.
रामु बिल्लू चुत चटाई देख कर उत्तेजना मे जोर जोर से भूरी के स्तन को मसलने लगते है
हमला तीन तरफा था भूरी अपना सर दिवार के सहारे पटक लेती है.
उसकी चुत कालू के थूक से भर गई थी, कालू लगातार जीभ को लकीर मे चलाये जा रहा था मानो कोई सुखी नदी है जिसे खोद खोद के पानी निकाल देगा उसकी मेहनत रंग भी ला रही थी भूरी कि चुत लबालब कामरस से भर गई थी नदी कभी भी अपना बांध तोड़ के बह सकती थी....
थोड़ी खुदाई और करनी थी कालू को...
इतने मे बिल्लू अपना होंठ भूरी के निप्पल पे रख उसे दाँत से पकड़ के खींच देता है, नीचे लगातर होती चुत चटाई से भूरी बेहाल थी अब नहीं अब नहीं...... कालऊऊऊ.....
आह्हःम्म.. आआहहहह.... मै गई
इसी के साथ सब्र का बांध टूट पड़ा भूरी कि छोटी सी फूली हुई चुत से पानी छलछला उठा, ऐसे भरभरा के झड़ी जैसे उसकी आत्मा ही चुत से बाहर निकल गई हो.
कालू का पूरा मुँह चिपचिपे पानी से गिला हो गया जो कि उसके लिए अमृत सामान था वो अभी भी चुत चाटे जा रहा था पूरी नदी का पानी एक बार मे ही पी जाना चाहता था...
आअह्ह्ह..... कर के एक धार और सीधा कालू के मुँह मे मार देती है और वही बिल्लू रामु का लंड पकड़े पकड़े ही झूल जाती है उसके प्राण चुत के रास्ते निकल गये प्रतीत होते थे.
ये स्सखलन 30 सालो से जमा था भूरी कि चुत मे.
तेज़ तेज़ सांस लेती भूरी निढाल पड़ी थी..
बिल्लू :- अबे कालू कही मर तो नहीं गई ये.
कालू :- साले उल्लू का पट्ठा कभी लड़की नहीं चोदी क्या, काकी जैसी कामुक औरत ने आज अपना अमृत बहाया है.
ऐसी औरते मर्दो को मारा करती है मरा नहीं करती.
भूरी कालू के मुँह से अपनी कामुकता कि तारीफ सुन मुस्कुरा पड़ती है.
वो भी अब इस खेल मे शामिल हो जाना चाहती थी.
भूरी :- सही कहाँ कालू तुमने ये कामरस मे पिछले 30 सालो से ले के घूम रही हूँ, कभी शर्म से बोल ही ना सकी.
लेकिन मुझे पता नहीं था कि बेशर्मी मे ज्यादा मजा है.
ऐसा बोल के भूरी पास खड़े बिल्लू के लंड को पकड़ के सहलाने लगती है.... बिल्लू कराह उठता है क्या कोमल हाथ है, रामु भी अपना नंगा लंड भूरी के मुँह के नजदीक ले आता है. भूरी झड़ने के बाद भी गरम थी रामु के लंड से आती खुशबू उसे वापस से मदहोश करने लगी.
भूरी अपना मुँह मे रामु का मोटा लंड भर लेती है, ऐसा करने से भूरी थोड़ा आगे को झुक जाती है जिस कारण उसकी गांड ऊपर को उठ जाती है
तीनो पहली बार भूरी कि गांड देख रहे थे, क्या गांड थी बिल्कुल गोरी चिकनी फैली हुई.
गांड के बीच रास्ते पे एक महीन सा छेद था
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जो गांड कि खूबसूरती मे चार चाँद लगा रहा था. तीनो ही ऐसे दुर्लभ दर्शन पा के हैरान रह जाते है.
रामु :- वाह काकी क्या गांड है आपकी इतनी गोरी गांड हमने कभी नहीं देखि.
भूरी सिर्फ मुस्कुरा देती है अपनी तारीफ पे.. शर्माहाट उत्तेजना मे गांड का छेद खुल बंद होने लगता है.
ये देख के तीनो घनघना जाते है, कालू से अब सब्र नहीं होता वो तुरंत भूरी के पीछे जा के गांड के पास बैठ जाता है और किसी भूखे कुत्ते कि तरह जीभ लप लपाता भूरी कि गांड पे टूट पड़ता है.
लप लप कर के चाटने लगता है, उसके अंदर का जानवर बाहर आ रहा था.
भूति इस आक्रमण से चौक जाती है और आवेश मे आ के बिल्लू के लंड को जोर से मुँह मे पकडे दबा देती है...
बिल्लू :-आहहहह..... काकी मार दिया.
भूरी जो इतने सालो बाद मर्दो के स्पर्श का आनंद ले रही थी उसके अंदर कि कुतिया जाग चुकी थी वो सिर्फ चुदना चाहती थी, पीछे लगातार कालू गांड मे मुँह मारे जा रहा था.
भूरी अतिउत्तेजना मे आ के रामु का लंड भी मुँह के करीब ले आती है वो साथ मे दोनों लंडो को मुँह मे ठूस लेने कि कोशिश करती है.
ऐसा रंडिपन, ऐसी कामुकता देख के तीनो हक्के बक्के थे. इतनी उम्र मे भी ऐसी गर्मी... लपालप दोनों के लंड को भूरी चाटे जा रही थी पीछे अपनी गांड हिला हिला के कालू के मुँह पे मार रही थी.
वासना पूरी तरह हावी हो चुकी थी, कालू कभी जीभ से चाटता तो कभी अपने होंठो मे भर के छेद को अंदर ही अपनी जबान से चुभलाता,
कालू के ऐसे कामुक अंदाज़ से भूरी घनघना जाती है फिर भी नहीं बोल पाती कि मुझे चोदो जबकि तीनो सिर्फ उसके बदन से खेल रहे थे.
उन्हें इसमें ही आनंद आ रहा था, बहुत दिन बाद कोई औरत मिली थी वो भी भूरी जैसी कामुक हवस से भरी औरत पुरे आनंद से खेलना था सम्भोग का पूरा आनंद उठाना था.
भूरी कि गांड थूक से बिल्कुल गीली हो चुकी थी कालू का थूक गांड कि लकीर से रिसता हुआ नीचे झरने बहती चुत से जा के मिलन कर रहा था.... कामरस और थूक दोनों नीचे टपक टपक कर जाँघ के रास्ते रिस रहे थे.
भूरी से अब रहा नहीं जाता वो अपना एक हाथ पीछे ले जाती है और चुत को बेरहमी से मसलाने लगति है, उसे अपनी चुत से दुश्मनी थी वो उसे नोच के निकाल फेंक देना चाहती थी. घुटी घुटी सी सिसकारी उसके मुँह मे गु गु गुम... कि आवाज़ के साथ निकाल रही थी...
रामु भूरी को चुत सहलाते देख उसका हाथ पकड़ लेता है " काकी हमारे रहते खुद आपको ही रगड़नी पड़े तो हमारा जीना व्यर्थ है.
चाटक के साथ एक हाथ उसकी बहती चुत पे मार देता है, भूरी उछल पड़ती है.
आअह्ह्ह.... रामु क्या कर रहे हो.
एक और चटाक.... पड़ती है चुत पे...
आह्हः.... रामु..... आहहहह.... लेकिन इस बार सिसकारी के अलावा कुछ नहीं निकलता उसके मुँह से.
दो चार और थप्पड़ चुत पे पढ़ने से भूरी मदमस्त हाथनि कि तरह हो जाती है जिसे काबू करना तीनो के लिए मुश्किल होने वाला था.
अभी इस हथनि पे अंकुश नहीं लगाया तो बात हाथ से निकल जाएगी.
कालू भी भूरी कि गर्मी, बैचैनी से इधर उधर गांड हिलाती भूरी कि हालत समझ रहा था.
अब उसे आगे बढ़ना ही था....कालू अपना सूखा लंड एक बार मे ही थूक से गीली गांड मे एक ही बार मे जड़ तक डाल देता है...
आआहहहह...... चिहुक पड़ती है भूरी. जैसे किसी ने गर्म मोटी सलाख गांड मे जड़ तक उतार दि हो. हवस और दर्द से आंखे बंद कर आगे कि और गिरने लगती है.
ये पहला मौका था कि गांड मे कुछ गया था, चुत मे तो खुद ही कुछ ना कुछ डालती ही रहती थी. दर्द बर्दाश्त के बाहर था.... निढाल हो वो सर आगे जमीन पे रख देती है परन्तु कालू पीछे से गांड मजबूती से पकडे रखता है..
धचा धच धचा धच... बिना रहम के कालू गांड मारे जा रहा था, भूरी सिसकती जा रही थी अभी भी जोर से बिल्लू का लंड पकडे हुई थी.
रामु बिलकुल हैरानी से इस कामुक चुदाई को देख रहे थे, क्या गांड थी.... हर धक्के के साथ हिल जाती थी. हिल हिल के रामु बिल्लू को बुला रही थी कि तुम क्यों खाली बैठे हो? आओ तुम भी चोदो मुझे.
रामु एक हाथ भूरी के जलते बदन के नीचे दबे बड़े बड़े गोल स्तन पे रख देता है और तेज़ी से मसलने लगता है.
इस मर्दन से भूरी वापस से उत्तेजना हवास के आगोश मे जाने लगी और वापस से कुतिया बन जाती है, बिल्लू उसे सहारा दे के वापस उसके मुँह मे लंड डाल के धचा धच पेलने लगता है.
मुँह गांड दोनों भरे हुए थे, भूरी मादकता के चरम पे थी, यही मौका था रामु भूरी के जलते बदन के नीचे सरक जाता है और स्तन को पकड़ अपने मुँह मे ठूस लेता है, चाटता है, काटता है उत्तेजना मे भरा रामु बेरहमी से रगड़ाई चुसाई कर रहा था.निप्पल बिल्कुल सुर्ख लाल हो चुके थे. लगता था जैसे कोई गाय का बछड़ा बहुत बरसो बाद दूध पी रहा है चूस चूस के नोच ही डालेगा.
आअह्ह्ह..... आह्हब..... नोच रामु नोच खा जा इसे... तेरे लिए ही है.
कालू तू गांड फाड़ मेरी और तेज़ कर अंदर ही घुस जा.
बोल के वापस से बिल्लू का लंड गले तक ठूस लेती है
अब रुकना मुश्किल था..... कालू गचा गच लंड मारे जा रहा था
....उसे अब स्सखलित होना था गर्मी बहुत हो गई थी.
आअह्ह्ह... के साथ.... गांड मे वीर्य कि बौछार हो जाती है, पच पीच.... गांड मे गर्मी पाते ही भूरी कि रस बाहती चुत फट पड़ती है..

आहहहह..... उत्तेजना वंश बिल्लू का लंड टट्टो सहित पूरा मुँह मे डाल लेती है बिल्लू ऐसी लंड चुसाई सहन नहीं कर पाता वो भी फट पड़ता है भूरी के मुँह मे ही....
तीनो झाड रहे थे... कालू का वीर्य गांड से निकल के चुत के रास्ते नीचे गिर रहा था. रामु अभी भी दूध पीने मे बिजी था भूरी उस के ऊपर धम से गिर पड़ती है.
जिस वजह से बिल्लू का लंड बाहर निकल जाता है बिल्लू का लंड टट्टो तक पूरा वीर्य और थूक से भरा झूल रहा था.
भूरी लंड को देख के मुस्कुरा रही थी और अपनी सांसे दुरुस्त करने का प्रयास कर रही थी. कालू नाम का गांडफाड़ तूफान भी शांत हो चूका था, कालू कि नजर भूरी कि गांड पे पड़ती है वहाँ अब वो छोटा छेद नहीं था वहाँ गड्डा बन गया था ऐसा गड्डा कोई मेहनती मजदूर ही कर सकता था.
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रामु भी भूरी के नीचे पड़ा स्तन चूस रहा था उसका लंड भी अब चरम पे था, भूरी कि चुत रामु के लंड से स्पर्श हो रही थी, भूरी अभी पूरी तरह सम्भली भी नहीं थी कि उसकी कामरस वीर्य से भीगी चुत गर्म सख्त मोटे लंड का स्पर्श पा के फिर कुलबुलाने लगी.... रामु का लंड भूरी के हिलने से फचाक से भूरी कि छोटी सी चुत मे उतर जाता है. भूरी सिर्फ कसमसा के रह जाती है क्युकी उसे रामु ने अपनी मजबूत भुजाओं मे जकड रखा था....
आआ..... हहह.... असीम संतोष कि प्राप्ति हुई थी, भूरी को समझ आ चूका था असली लंड और लोकी बैगन मे कितना अंतर होता है..
पुरे 30 साल बाद चुत ने लंड का अहसाह पाया था, लज्जत से भूरी कि आंखे पलट गई थी, वो विक्षिप्तो कि तरह अपने बाल पकडे सर इधर उधर किये रामु के लंड पे कूद रही थीउसे ये मौका मजा नहीं खोना था.
धपा धप करती भूरी अपनी गांड पटक रही थी एक बार मे पूरा लंड बाहर निकालती और दुगनी रफ़्तार से वापस लंड पे टट्टो के ऊपर कूद पड़ती.
तीनो ही भूरी काकी के इस रूप को देख के दंग रह गये थे.... एक हाथ से सर पकड़े दूसरे हाथ से अपने स्तन नोचती भूरी साक्षात् काम देवी लग रही थी....
बिल्लू जो अभी तक गांड चुत के सुख से अछूता था उसके दिल मे हुक सी मचने लगती है उसका लंड वापस से तन तनाने लगता है. उसका लंड अभी भी वीर्य और थूक से बिल्कुल गिला था.
बिल्लू उछलती भूरी के पीछे आ जाता है और जैसे ही गांड के छेद पे नजर पड़ती है उसका लंड बगावत पे उतर आता है, वहाँ गांड का छेद उसे बुला रहा था, खुल बंद हो रहा था ठीक उसके नीचे रामु का लंड सटा सट अंदर बाहर हो रहा था.
आव देखा ना ताव सीधा अपना मुसल लंड भूरी कि गांड मे धसा देता है.
आअह्ह्ह..... भूरी चीख पड़ती है, लेकिन अब इस चीख मे संतोष, हवस कामवासना शामिल थी दर्द का कोई नामोनिशान नहीं था.
अब भूरी को अपनी मुराद से ज्यादा मिल रहा था कहाँ एक लंड भी नहीं था आज दो दो लंड एक साथ घुसे पड़े थे.
भूरी चीख मारती सिसकारी लेती धचा धच पेली जा रही थी, कमरे पे फच फच.... फचाक का मधुर संगीत गूँजता रहा.
बिल्लू रामु दोनों ही एक साथ लंड बाहर निकालते और एक साथ अंदर जड़ तक़ समा जाते.
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दोनों के टट्टे चुत और गांड पे चोट कर रहे थे जिस से मजा दुगना हो चला था भूरी का.....
ये हवस ये कामुकता आज रात रुकने वाली नहीं थी, कब किसने किस छेद मे कितनी देर तक मारा पता नहीं था.
प्रतियोगिता शुरू हो चुकी थी जिसमे भूरी नहीं हारने कि थी आज उसे पुरे 30 साल बाद जीत मिली थी.
इस जीत का उत्साह उसने ना जाने कितनी बार स्सखलित हो के मनाया.....
बाहर बारिश जारी थी और अंदर चुदाई कि प्रतियोगिता.

सुबह हो चुकी थी.

कथा जारी है..
 
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अपडेट -10 contd...


भूरी पूरी तरह वीर्य मे लथपथ कमरे मे तीनो मर्दो के बीच पड़ी थी. उसके बदन के हर छेद से वीर्य टपक रहा था, शरीर का ऐसा कोई भी हिस्सा नहीं बचा था जहाँ भूरी वीर्य रुपी अमृत से अछूती रह गई हो.
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बारिश बंद हो चुकी थी हवस का तूफान भी खत्म हो चूका था. सूरज कि पहली किरण भूरी के बदन को नहला रही थी,
उसका पूरा बदन चमक रहा था... नई सुबह के साथ हवस कि भी नई सुबह कि शुरुआत हो चुकी थी 30 साल का वनवास खत्म हो चूका था.
भूरी नंगी ही कमरे से बाहर निकल पड़ती है जाती हुई बस एक बार पलट के देखती है तीनो जमुरे पस्त पड़े हुए थे.
भूरी हवेली कि तरफ निकल पड़ती है.

सुबह कि किरण गांव कामगंज, रामनिवास के घर पे भी नया अध्याय लिख रही थी.
रात भर असलम सो ही नहीं पाए थे, उनके लंड पे रह रह के रतीवती के होंठ का कसाव महुसूस हो रहा था. उनके पैर पे लगे रतीवती के वीर्य को ऊँगली मे लपेट कर रह रह के चाट रहा था.
रतीवती भी असलम के वीर्य का स्वाद पा के फूली नहीं समा पा रही थी एक नई ऊर्जा नये जीवन का संचार हो चूका था. रतीवती नंगी ही सो चुकी थी.
इसी कसमाकस मे सुबह हो चली थी
ठाकुर साहेब भी उठ चूके थे, रामनिवास ठाकुर साहेब के उठने कि ही प्रतीक्षा कर रहा था,
ठाकुर साहेब और असलम ने नाश्ता कर लिया था वो जाने कि तैयारी मे थे... परन्तु असलम और रतीवती के चेहरे उतरे हुए थे. रतीवती इतना कुछ होने के बाद कुछ और पा लेना चाहती थी लगता था उसे इंतज़ार करना पड़ेगा.
असलम भी नये नये अहसास से बाहर निकला भी नहीं था कि उसके वापस जाने कि घड़ी आ गई थी.
रतीवती और रामनिवास ठाकुर साहेब और असलम को छोड़ने दरवाजे पे खड़े थे.
रामनिवास काफ़ी तनाव और चिंता मे खड़ा था.
ठाकुर :- क्या हुआ रामनिवास तुम उदास दिख रहे हो? लगता है तुम इस रिश्ते से ख़ुश नहीं हो
रामनिवास :- नहीं नहीं.... नहीं तो ठाकुर साहेब हम लोग तो बहुत ख़ुश है बस मे ये नहीं समझ पा रहा हूँ कि इतनी सारी तैयारी इतने कम समय मे कैसे हो पायेगी? इतनी जल्दी पैसे का इंतज़ाम कैसे कर पाउँगा मै?
ठाकुर :- हाहाहाहाहा.... रामनिवास बस इतनी सी बात कल ही बता देते ऐसी समस्या थी तो.
ऐसा बोल के वो अपनी जेब से 1000rs निकालते है और रामनिवास के हाथ ने थमा देते है (1857 मे 1000rs लाखो रूपए के बराबर थे)
रामनिवास :- ठाकुर साहेब ये... ये... क्या है? इतने सारे रूपये? रतीवती कि तो आंखे ही चमक उठती है इतना पैसा एक साथ सपने मे भी नहीं देखे थे मियां बीवी ने.
ठाकुर :- रखिये रामनिवास रखिये... अब आप हमारे समधी है, कामवती होने वाली ठकुराइन है ये मामूली रकम है.
और रही तैयारी कि बात तो मै ऐसा करता हूँ डॉ. असलम को 2दिन के लिए यही छोड़ जाता हूँ वो सब प्रबंध कर के वापस विषरूप चले आएंगे. क्यों डॉ. असलम आप कर देंगे ना?
डॉ. असलम कि ये बात सुन के ही फ्यूज उड़ गये थे... रतीवती भी स्तम्भ खड़ी ठाकुर साहेब को देख रही थी जैसे ठाकुर ने रतीवती के मन कि बात सुन ली हो.
डॉ. असल:- मै म.... मै..... ठाकुर साहेब मै.... जैसा आप कहे मै रुक के सारी तैयारी कर दूंगा आखिर आपकी शादी है लगना चाहिए कि इस घर मे ठाकुर ज़ालिम सिंह कि बारात आई है.
खुद को समय रहते असलम संभल चूका था.
इतना सुन ना था कि रतीवती काँप जाती है चुत से पानी छलक जाता है, वो शर्म से मुस्कुरा के सर नीचे कर लेती है.
इस बात का अहसास सिर्फ डॉ. असलम को ही हो पाया था.
फिर ठाकुर साहेब अपने गाड़िवान के साथ विष रूप के लिए निकल जाते है.
पीछे 2 दिन के लिए असलम रामनिवास के घर ही रह जाता है...


कैसी होंगी शादी कि तैयारी?
तैयार रहिएगा ठाकुर कि बारात मे चलने के लिए?
जल्द ही मिलेगा आपका दोस्त andy pndy 👍😀
 
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चैप्टर -1 ठाकुर कि शादी, अपडेट -11

डॉ. असलम और रतीवती कि बांन्छे खिल जाती है, रात कि खुमारी उतरी ही कहाँ थी के असलम के रुकने का इंतेज़ाम हो गया था. बिन बोले ही आँखों आँखों मे ही एक दूसरे के प्रीति जो हवस थी वो साफ झलक रही थी.
इधर उल्लू का चरखा रामनिवास ख़ुश था कि उसे कुछ नहीं करना पड़ेगा आराम से बैठ के शराब पी के मौज करूंगा असलम तैयारी देख लेगा.
रामनिवास :- अरी भाग्यवन ये लो पैसा और डॉ. असलम के साथ मिल के सामान कि लिस्ट बना ले ना देखना कोई कमी ना रह जाये.
मै अभी आता हूँ.... ऐसा कह के वो घर से बाहर निकल जाता है और सीधा शराब कि दुकान पे ही रुकता है.
आज पहली बार रतीवती उसके दारू पिने कि आदत से ख़ुश थी वो अब तो यही चाहती थी कि वो पड़ा रहे दारू के नशे मे असलम है ना सब संभाल लेगें....
वो भी मंद मंद मुस्कुरा के नहाने कमरे मे चली जाती है. असलम बलखाती रतीवती को देखते ही रह जाता है उसे कल रात नंगी अपनी गांड मटकाती रतीवती का नंगा गोरा कामुक बदन याद आ जाता है.
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असलम अपना लंड मसलता कमरे मे चला जाता है,
तभी कमरे मे किसी के आने कि आहट होती है असलम चौक के ऊपर देखता है तो कामवती थी क्या सुंदर थी बला कि खूबसूरत.... उसकी माँ का जवानी वाला रूप थी कामवती.
कामवती :- काका नाश्ता कर लीजिये आगे बहुत काम है.
डॉ. असलम :- अरे कामवती तुम मेरी होने वाली भाभी हो इस हिसाब से तो मै तुम्हारा देवर हुआ ना. असलम मजाकिया लहजे मे बोलते है.
कामवती :- काका आप तो मेरे पिता के उम्र के है, आप को मै काका ही बोलूंगी.
और मुस्कुरा देती है.आप भी मुझे कामवती या कम्मो ही बुलाइये अच्छा लगेगा मुझे.
कितनी भोली मासूम मुस्कुराहट थी कामवती कि.

डॉ. असलम :- hahahaha.... ठीक है भाभी ज़ी... म.. मम... मेरेमतलब कामवती.
असलम के मन मे कामवती के लिए रत्तीभार भी कोई गलत भावना नहीं थी, थी ही इतनी मासूम कामवती
मै मस्जिद हो के आता हूँ फिर नाश्ता करता हूँ.
डॉ. असलम अपनी मुसलमानी टोपी पहने मस्जिद कि और निकल जाते है.
जहाँ रास्ते मे असलम मौलवी साहब से टकरा जाते है.
मौलवी :-अरे बरखुरदार देख के जरा, इस गांव मे नये लगते हो कभी देखा नहीं आपको?
डॉ. असलम :- ज़ी मौलवी साहेब मै कल ही ठाकुर साहेब के साथ रामनिवास के घर आया था, तैयारी के लिए 2 दिन रुक गया. सोचा अल्लाह का शुक्रिया अदा कर दू मेरी मुराद पूरी करने के लिए.
और अपने बारे मे बताते है.
मौलवी :- अच्छा अच्छा तो आप ही है डॉ. असलम भई काफ़ी नाम सुना है आपका और ठाकुर ज़ालिम सिंह ज़ी का.
आप आस पास के गांव मे एकलौते डॉक्टर है.
डॉ. असलम :- अरे मौलवी साहेब अब इतनी भी तारीफ के काबिल नहीं है हम. झेम्प जाते है थोड़ा तारीफ सुन के.
मौलवी और डॉ. असलम बात करते करते गांव कि और लौट रहे थे.
बातचीत करते हुए असलम को मालूम पड़ता है कि उनकी एक विधवा बेटी है जिसकी पति को डाकुओ ने मार डाला था.
असलम ये जान के दुखी होते है...
बात करते करते गांव आ जाता है.
असलम रामनिवास के घर आ जाते है और नाश्ते केिये कामवती को आवाज़ देते है..
कामवती कामवती....लाओ नाश्ता ले आओ भूख लगी है.
इधर मौलवी साहेब भी अपने घर पहुंचते है जहाँ रुखसाना खाना बना रही थी.
अपने बापू को आता देख उनके लिए नाश्ता निकलती है....
मौलवी :- अरी ये नाश्ता छोड़ और मेरी बात सुन, अपने गांव कि कामवती का रिश्ता पक्का हो गया है. अगले मंगलवार को उसकी शादी है. यहाँ पे ठाकुर ज़ालिम सिंह कादोस्त दो दिन के लिए रुझान हुआ है.
डॉ. असलम ज्ञानी पुरुष है हमें इसका भी वीर्य चाहिए होगा काम पूरा करने के लिए.
रुखसाना :- बापू पिछली बार ही तो मै रंगा बिल्ला का ताज़ा वीर्य लाइ थी.
मौलवी :- हाँ बेटा लेकिन जो हमें करना है उसके लिए ताकत के साथ अक्ल भी चाहिए, ताकत तो रंगा बिल्ला और अन्य पुरुषो से मिल जाएगी परन्तु दिमाग़ डॉ. असलम के पास से ही मिलेगा.
पिछला मंगलवार....
रुखसाना रंगा बिल्ला से चुद कर वापस घर आई थी तो उसकी गांड मे दोनों का ढेर सारा वीर्य भरा था, वोअपने बापू के कमरे मे घुसते ही जल्दी से एक कटोरा ढूंढती है और अपनी सलवार तुरंत नीचे खिसका के कटोरे पे बैठ जाती है.
वो अपनी गांड के छेद को थोड़ा ढीला छोड़ती है उतने मे ही पुररर.... पुररर.... फस फस... कर के वीर्य कि धार निकल पड़ती है. कटोरे मे वीर्य जमा होने लगता है.
मौलवी :- वाह बेटी आज तो बहुत सारा वीर्य लाइ है.
रुखसाना :- हाँ बापू आज दोनों का खेल सुबह तक चला. ऐसा कह मुस्कुरा देती है.
वीर्य ख़त्म हो चूका था बचाखुचा वीर्य वो अपनी गांड मे एक ऊँगली डाल के बाहर निकलती है और कटोरे के किनारे पे ऊँगली रगड़ के एक एक बून्द कटोरे मे गिरा देती है
रुखसाना :- लीजिये बापू भर दिया है कटोरा मैंने, अपना सलवार ऊपर कर नाड़ा बांधती हुई बोलती है.
मौलवी तुरंत उस कटोरे को उठा उसमे कुछ मन्त्र पढ़ने लगता है, और कटोरे पे फूंकता है
ऐसा दो तीन बार करता है और कटोरा रुखसाना कि तरफ बड़ा देता है ले बेटी इसे एक सांस मे पूरा पी जा.
इस से तुझे वो ताकत मिलेगी जो तुझे चाहिए....तुझे तेरे मकसद मे सफल होने के लिए ताकत कि जरुरत है.
रुखसाना बिना कुछ कहे कटोरा उठा अपने होंठो से लगा लेती है और गाटागट एक ही सांस मे हलक के नीचे उतार लेती है.
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आअह्ह्ह.... मजा आगया बापू मुझे शक्ति ताकत का संचार होता लग रहा है. वैसे भी रुखसाना को वीर्य पसंद था.

वर्तमान मे आज के दिन
मौलवी :- समझी मेरी बच्ची हमें ताकत के साथ अक्ल भी चाहिए जो कि असलम से मिलेगा.
रुखसाना :- ठीक है बापू मै उसका वीर्य भी हासिल कर लुंगी....
ये किस ताकत, किस मकसद कि बात हो रही थी?
रुखसाना को अलग अलग मर्दो का वीर्य क्यों चाहिए था?
सब वक़्त ही जनता था...

रामनिवास के घर पे असलम कि आवाज़ का कोई उत्तर नहीं आता तो वो रसोई घर कि और चल पड़ता है.
रसोई घर मे भी कोई नहीं था.
डॉ. असलम :- कहाँ गई ये कामवती? वो रतीवती को आवाज़ देने का सोचता है.. रतीवती का ख्याल आते ही उसे क रात कि घटना याद आ जाती है... जो हुआ कैसे हुआ? कुछ नहीं पता.
लेकिन सुबह रतीवती के चेहरे पे कोई शिकायत नहीं थी. लगता है जिस आग मे मै तड़प रहा हूँ रतीवती भी उसी मे तड़प रही है.
असलम का सोचना ठीक ही था.
रतीवती अपनेबाथरूम मे पुरे कपडे उतार पूर्ण रूप से नंगी बैठी कल रात कि घटना याद कर रही थी, फचा फच अपनी चुत मे ऊँगली मार रही थी..... क्या लंड है असलम ज़ी का.
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चूसने मे इतना मजा आया था, चुत मे कैसा मजा आएगा. फच फच... ऊँगली लगातार चुत चोदे जा रही थी.... रतीवती गांड उठा उठा के कल्पना मे खोई हुई थी..
इधर असलम रतीवती के कमरे कि और चल पड़ता है, दरवाजे के बाहर आ के आवाज़ देता है लेकिन कोई उत्तर नहीं मिलता वो दरवाजा खटखटाने का सोच के जैसे ही दरवाजे को हाथ लगाता है वो चरररर.... कि आवाज़ के साथ खुल जाता है.
अंदर बाथरूम मे रतीवती काम उत्तेजना, हवस मे इस कदर खोई थी कि उसे कोई आहट सुनाई नहीं देती.
कमरे से लगे बाथरूम मे दरवाजे कि जगह सिर्फ पर्दा था, वैसे भी दरवाजे कि जरुरत ही क्या थी कमरा रतीवती का था चाहे जैसे रहे कौन देखने वाला है..
असलम को बाथरूम से फच फच.... सिसकारी कि आवाज़ आ रही थी... आअह्ह्ह..... फच फच.... असलम
डॉ. असलम :- ये तो रतीवती को आवाज़ है और ये मेरा नाम क्यों ले रही है? कही कुछ तकलीफ तो नहीं?
अब असलम क्या जाने गरम और कामुक औरत कि आवाज़.
असलम उत्सुकता वंश बाथरूम कि ओर बढ़ चलता है.
तभी कही से हवा का झोका आता है ओर पर्दा हल्का सा नीचे से हट जाता है.
अंदर का नजारा देख असलम के तोते उड़ जाते है, एक झटके मे ही लंड फनफना जाता है, असलम का लंड इतनी तेज़ झटका देता है कि वो गिरतर गिरते बचते है..
अंदर का नजारा ही ऐसा था... काम रस मे भीगी गोरी चिकनी चुत... जिस पे बालो का एक भी कटरा नहीं था...
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या.... अल्लाह चुत ऐसी भी होती है.
असलम को दिल का दौरा पड़ जाना तय था जीवन मे वो पहली बार चुत देख रहे थे.
कल रात सिर्फ मुख चोदन हुआ था परन्तु अँधेरे मे कुछ दिखा नहीं था... लेकिन आज असलम ने वो देख लिया था जो शायद उसकी किस्मत मे ही नहीं था.
अंदर रतीवती फचा फच चुत मे ऊँगली मार रही थी.

ऐसा कामुक ऐसा मादक नजारा देख असलम के मुँह से जोरदार चीख रुपी हवस कि चिंगारी निकल जाती है... उनका लंड फटने पे आतुर था.... वो लुंगी उतार फेंकते है
अंदर रतीवती भी मर्दना सिसकारी सुन के चौक जाती है
तभी पर्दा उड़ता है.... ओर दोनों एक दूसरे के सामने पेपर्दा हो जाते है.
कथा जारी है...
 
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अपडेट -11 contd...

रतीवती पर्दा हटने से चौक जाती है लेकिन जैसे ही सामने असलम को खड़ा देखती है उसका डर उत्तेजना मे तब्दील हो जाता है, उठने को हो चुकी रतीवती धम से वापस बैठ जाती है.... छापक कर के गांड पानी मे पड़ती है.
वापस से ऊँगली अन्दर बाहर होने लगती है. रतीवती मुस्कुराती असलम के तन तानाये लंड को घूरति रहती है जो उसकी कल्पना मे था वो सामने आ चूका था नियति पूरी तरह मेहरबान थी दोनों पर.
डॉ. असलम तो ये नजारा, ये कामुक दृश्य देख के दंग रह गये थे उनके सामने एक जवानी के चरम पे पहुंची औरत धकाधक अपनी चुत मे ऊँगली मारे जा रही थी....
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औरत का ये रूप ये यौवन ऐसी कामुकता देख के असलम हैराम थे. हाथो मे चूड़ी, गले मे मंगलसूत्र, माथे पे बिंदी... ओर नीचे पानी बाहती चिकनी गोरी चुत... जिसमे खुद वो स्त्री खुद ऊँगली डाले कुछ ढूंढ रही थी... रातीवति अपनी चुत मे सुख ढूंढ रही थी, आनन्द ढूंढ़ रही थी जो बरसो से नहीं मिला था, उसे चरम सुख कि तलाश थी जो ऊँगली से ढूंढे नहीं मिल रहा था..... इस चरम सुख को तलाश करने का एक ही सहारा था जो परदे के पार मुस्लिम टोपी, गंजी पहने... नीचे से नंगा हैरान खड़ा था.
असलम ये सब कुछ पहली बार देख रहा था.... उसके कदम बाथरूम कि ओर बढ़ चलते है, सुध बुध खो चूका था.
उसे कल रात वाला सुख चाहिए था... उस से कम मे कोई समझौता नहीं.
रतीवती तो इस कदर उत्तेजना से घिरी थी कि उसे ये भी भान नहीं था कि वो किस अवस्था मे है वो जिस चीज को अपनी चुत मे ऊँगली डाले तलाश कर रही थी वो बाहर खड़ा था... असलम के रूप मे.
असलम अब अंदर बिल्कुल नीचे बैठी रतीवती के सामने खड़ा हो चूका था... उसका लंड सीधा रतीवती के लाल होंठो के सामने हिल रहा था.
उस से निकलती गंध रतीवती को ओर ज्यादा मदहोश कर देती है.
वो अपने घुटने के बल बैठ जाती है ओर एक बार मे ही पूरा लंड निगल लेती है.... आअह्ह्ह..... इस अहसास से असलम अपने पंजो पे खड़ा हो जाता है.
कल रात जैसा ही था या उस से भी बढकर.
असलम हैरान परेशान रतीवती कि कला का प्रदर्शन देखे जा रहा था... आज रतीवती को कोई रोकने वाला नहीं था.
लप लप... धचा धच.... मुँह चलाती रतीवती लंड को निगले जा रही थी...
ऐसी चटाई ऐसे मुख मैथुन से असलम घन घना गये थे... उन्हें आज कुछ ओर चाहिए था इस से भी ज्यादा.
उन्हें भी औरत कि चुत का रस पीना था...
असलम एक झटके से रतीवती को पीछे धक्का दे देते है... रतीवती चिहुक के पीछे कि ओर पीठ के बल गिर पड़ती है जिसकारण उसकी टांगे हवा मेउठ जाती है, टांगे दोनों दिशाओ मे फ़ैल जाती है.... अब असलम के सामने फूली हुई रस टपकाती चिकनी गोरी चुत थी जो उसे बुला रही थी... आओ असलम आओ.... आपके लिए ही है.
मदहोशी मे होश खोया असलम तुरंत चुत पे टूट पड़ता है ओर एक बार मे ही पूरी चुत को मुँह मे भर के चूस लेता है.
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असलम अनाड़ी था उसे कामक्रीड़ा के बारे मे कुछ नहीं पता था, बस उसे आज चुत खानी थी अंदर का रस पी जाना था..
असलम चुत को मुँह मे भरे चूस रहा था अपने होंठो के साथ खिंचता हुआ अंदर से कुछ निकाल लेना चाहता था.... खींच खींच के चुत चूस रहा था.
रतीवती इस चुसाई से सातवे आसमान मे थी.... ऐसी चुसाई तो कभी रामनिवास ने भी नहीं कि थी.
वैसे रामनिवास चुत चाटता भी नहीं था वो तो कभी रतीवती बेकाबू होती तो नशे कि हालत मे सोये रामनिवास के मुँह पे अपनी नंगी चुत ले के चढ़ जाती थी..
अपनी चुत पे वो शराब गिरा लेती जिस वजह से रामनिवास खूब चाटाचट चुत चाट लेता था.. बस यही सुख ले पति थी रतीवती अपने नामर्द शराबी पति से.
लेकिन आज जैसे असलम चाट रहा था जैसे बरसो का भूखा हो, खा ही जायेगा चुत....
इतने मे असलम को चुत का दाना मिल जाता है वो उसे ही मुँह मे ले के चुबलाने लगता है.... रतीवती इस हमले से मर ही जाती है अपनी गांड उठा उठा के पटकने लगती है गीली जमीन पे, असलम बरसो कि प्यास बुझा रहा था उसे चुत का पानी चाहिए था... फिर कभी मिले या ना मिले आज ही पी लेना था.
रतीवती कि हालत ख़राब थी उसे ऐसा उन्माद कभी नहीं चढ़ा था. उसकी हालत बिगड़ती ही जा रही थी.
वोअसलम के सीने पे पैर रख जोर से धक्का दे के जमीन पे गिरा देती है ओर तुरंत असलम का लंड पकड़ के वापस अपने हलक मे डाल लेती है.
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ये कुश्ती का खेल जैसा था बस यहाँ नियम थोड़े अलग थे, हारता कोई भी लेकिन जीत का जश्न दोनों मनाते.
यहाँ हार जीत मायने नहीं रखती थी ये खेल था ही कुछ ऐसा, हवस से भरा खेल....
डॉ. असलम ऐसा कामुक बदन, कामुक मुँह पा के पागल हो चूका था वो जानवरो कि तरह रतीवती का सर पकडे धका धक... गले तक़ पेले जा रहा था.
गु गुह.. गुह्म.... कि आवाज़ गूंज रही थी, टट्टे जोर जोर से आ के रतीवती के होंठ पे लग रहे थे.
रतीवती एकदम से खड़ी हो जाती है उसे सहन नहीं हो रहा था वो तुरंत बाथरूम के गीली जमीन पे लेट जाती है बिल्कुल नंगी टांग फैलाये टप टपाती चुत खोले जमीन पे पड़ी थी...
असलम रतीवती के इस कृत्य से हैरान था कि उसे क्या हुआ एकदम, परन्तु जैसे ही उसकी नजर रतीवती कि फूली चुत पे पड़ती है उसका तो दिल ही मुँह को आ जाता है. बिल्कुल कसी चुत टांग फैलाये भी सिर्फ लकीर दिख रही थी.
इसी पगडंडी पे असलम को खुदाई करनी थी, यही पे उसे चौड़ा रास्ता बनाना था
थूक से स्तन सने हुए थे, हाथो मे चूड़ी मांग मे सिंदूर पहने.... एक कामुक औरत पानी से भीगी जमीन पे टांग फैलाये अपना सर इधर उधर पटक रही थी.
रतीवती :- असलम ज़ी अब सहन नहीं होता प्यास बुझाइये मेरी, पहली बार रतीवती मुँह से कुछ बोल पाई थी, उत्तेजना चरम पे थी.
असलम अपनी शर्ट उतार देता है रतीवती टांगे फैलाये स्वागत के लिए तैयार थी
असलम रतीवती कि दोनों जांघो के बीच बैठ जाता है ओर अपना लंड उस पतली लकीर पे चलाने लगता है, यही वो पतला महीन रास्ता था तो आज तक कभी असलम को मिल ही नहीं पाया.
असलम लंड चुत पे टिकाये आगे को झुकता है लेकिन चुत इतनी गीली थी कि लंड फिसल के दाने को रगड़ता ऊपर को निकल जाता है. ऊपर से असलम ठहरा अनाड़ी इसके लिए तो ये सुख ही स्वर्ग से कम नहीं था... परन्तु रतीवती स्वर्ग कि अप्सरा थी वो तो इस सुख का आनंद जानती थी.
वो अपना हाथ नीचे ले जा के असलम का भारी मोटा लंड पकड़ लेती है, लंड पकड़ते ही एक बिजली दोनों के शरीर मे कोंध जाती है..
रतीवती लंड पकड़ के अपने चुत के मुहने पे रख देती है ओर पीछे से अपनी टांग से असलम कि गांड पे दबाव डालती है कि.... है वीर भेद तो लक्ष्य तुम्हरे सामने है.
असलम ठहरा अनाड़ी जोर से अपनी गांड नीचे को कर देता है.... आअह्ह्ह....... लंड चुत को चिरता हुआ पूरा जड़ तक समा जाता है. असली योद्धा एक बार मे ही लक्ष्य को भेद देते है असलम भी असली लड़ाका निकला.
रतीवती दर्द से बिलबिला जाती है, उसकी बरसो से सुखी चुत मे अजगर समा गया था. उसे क्या पता था कि असलम एक बार मे ही गच गचा देगा.
रतीवती कि चीख अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि असलम लंड हल्का सा बाहर निकाल के वापस जड़ तक ठोंक देता है.
रतीवती कि तो सांस ही अटक गई थी... ऐसा मुसल लंड एक बार मे ही अंदर जा के बच्चेदानी को भेद गया था.
आअह्ह्ह.... असलम... असलममम... बस यही निकला मुँह से.
असलम तो जानवर बन गया था उसे ये सब पहली बार मिला था उसे कुछ नहीं कहना था ना सुनना था.... बस धचा धच... धचा धच..... चुत मारे जा रहा था, उसे इस सम्भोग का आनंद उठा लेना था.
रतीवती पहली बार ऐसी चुदाई झेल रही थी उसकी चुत ने असलम के लंड को पूरी तरह जकड लिया था, जैसे ही असलम लंड को बाहर निकलता चुत उसी के साथ खींची चली जाती, जैसे ही अंदर डालता चुत पूरी कि पूरी अंदर को चली जाती ...
आअह्ह्ह..... क्या मजा था रतिवती उस मजे मे खोने लगी थी. आह्हः.... असलम ओर जोर से असलम ओर जोर से.... ओर अंदर ओर अंदर...
रतीवती कि ये विनती ये चितकार असलम का हौसला बढ़ा रही थी असलन एक पैर घुटने तक मोड के रतीवती के स्तन पे रख देता है ओर दे धचा धच .... लंड मारे जाता है.
रतीवती तो मरने के कगार पे थी.... उसे अब ये उत्तेजना ये गर्मी सहन नहीं हो पा रही थी... वो अपनी गांड उछल उछाल के असलम के लंड पे पटकने लगती है.
नतीजा 5 मिनट बाद ही सामने आता है असलम चुत कि गर्मी पा के भलभला के चुत मे ही झड़ने लगता है अनाड़ी जो ठहरा.... रतीवती भी वीर्य कि गर्मी पा के पिघलने लगी ओर एक के बाद एक झटके के साथ उसकी चुत असलम के वीर्य को पीने लगी....
दोनों हांफ रहे थे, सांसे दुरुस्त कर रहे थे.... दोनों एक साथ जीते थे, ये जीत हवस पे थी. सालो बाद कि हवस बरसो पुराना अकाल खत्म हो चूका था, वीर्य कि बारिश से चुत रुपी जमीन लहरा गई थी, चमन मे नई बहार आ गई थी.
इतने मे ही कमरे केबाहर से कामवती कि आवाज़ अति है.आवाज़ सुन के असलम जल्दी से खड़ा होता है पोक कि आवाज़ का साथ असलम का लंड रतीवती कि चुत खिंचता हुआ बाहर निकल जाता है परन्तु ये क्या वीर्य का कोई नामोनिशान नहीं.... सारा वीर्य रतीवती कि चुत ने सोख लिया था,
गजब औरत थी.... असलम को तो दिन पर दिन आश्चर्य घेरे जा रहा था, औरत नाम का अध्याय उसे हैरान कर रहा था.
कमवती : - माँ माँ... कहाँ है आप? अभी तक नहाई नहीं क्या?
रतीवती असलम को पीछे के दरवाजे से बाहर निकाल देती है, असलम गली से होता हुआ अपने कमरे मे पहुंच जाता है.
उसे तो कुछ कहने सुनने का मौका ही नहीं मिला था.... वो अभी अभी हुए सम्भोग पे यकीन ही नहीं कर पा रहा था.
इधर रतीवती तुरंत अपना हुलिया सुधारती है ओर दरवाज़ा खोल देती है.
कामवती :-माँ खरीदारी पे नहीं चलना क्या?
रतीवती :- हाँ बेटा चलते है पहले डॉ. असलम को खाना तो खा लेने दे, तू जा तब तक तैयार हो जा...
कामवती चली जाती है तैयार होने.
रतीवती भी खूब अच्छे से लाल सारी, लाल चूड़ी, लाल सिदुर पहने तैयार हो जाती है, शादी इसकी बेटी कि है लेकिन लगता है जैसे रतीवती कि ही शादी है, अब भले शादी ना हो परन्तु सुहागरात तो मन ही रही थी.
रतीवती को देख के कोई माई का लाल ये नहीं बता सकता था कि ये अभी अभी चीख चीख के चुद रही थी ओर अभी भी असलम का वीर्य अपनी चुत मे समेटे गांड मटकाती जा रही है.
रतीवती असलम को खाना देने चल पड़ती है....
असलम अपनी ही दुनिया मे खोया अपने साथ हुए घटना को सोच रहा था.... तभी उसके नाथूनो मे वही जानी पहचानी कामुक गंध पहुँचती है, वो अपने विचारों से बाहर आता है.... दरवाजे पे रतीवती खड़ी थी...
लगता था इन दो दिनों मे असलम को मार के ही छोड़ेगी, लाल ब्लाउज, लाल साड़ी मे क्या गजब कामुक लग रही थी, ब्लाउज से झाकते गोरे मोटे स्तन वापस से असलम के होश उड़ा रहे थे
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वो अभी अभी इस कामुक औरत के चोद के हटा था फिर भी ऐसा लग रहा था जैसे पहली बार देख रह हो .... ये अहसास पक्का असलम कि जान ले लेगा ..... जिन्दा नहीं जाने का असलम.
रतीवती :- ये लीजिये असलम ज़ी खाना खा लीजिये, भूख लगी होंगी मैंने आपसे खमाखां सुबह सुबह मेहनत करा ली....
अब असलम को औरत कि संगत का अनुभव तो था नहीं
असलम :-...मै.. मै....क्या.....मेहनत कौनसी मेहनत?
रतीवती :- आप तो ऐसे हकला रहे है जैसे पहली बार किसी औरत के साथ सम्भोग किया हो.
रतीवती पूरी तरह खुल चुकी थी वो अब शब्दों से भी सुख पाना चाहती थी परन्तु अपने असलम मियां इन मामलो मे अनाड़ी ही थे..
डॉ. असलम:- ज़ी ज़ी ज़ी.... मेरा पहली बार ही है...
रतीवती :- हाहाहाहा..... क्या असलम मियां आप भी.
चलिए खाना खा के तैयार हो जाइये खरीदी पे चलना है. उसके बाद फिर रात मे खड्डा खोदना है
ऐसा बोल के रतीवती अपनी बड़ी सी गांड मटकाती कमरे से बाहर निकल जाती है.

असलम ठगा सा देखता ही रह जाता है, क्या औरत है किसी ने सही कहाँ है औरत हवस पे आ जाये तो मर्द के छक्के छुड़ा दे...

कथा जारी रहेगी, बने रहिये....
 
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चैप्टर -1 ठाकुर कि शादी, अपडेट -12

असलम, रतीवती ओर कामवती खरीद दारी के लिए बाजार निकल जाती है.
तांगे पे बैठे रतीवती अपनी अदाओ हरकतों से बाज़ नहीं आ रही थी. असलम मियां तो हैरान परेशान हक्के बक्के बाजार जल्दी पहुंचने कि दुआ कर रहे थे..
दूर गांव के बाहर रामनिवास आज दबा के शराब पिए जा रहा था... पिए भी क्यों ना ठाकुर साहेब मोटी रकम जो दे गये थे.
वही पास कि टेबल पे बैठे दो आदमी अपना मुँह ढके लगातार रामनिवास को देख रहे थे.... एक के बाद एक पैग मारे जा रहा था.
जब बिल्कुल नशे मे टुल्ल हो गया दो दोनों नकाबपोश व्यक्ति उठ के रामनिवास के पास आ बैठे.
पहला :- ओर भई रामनिवास आज बहुत दिनों बाद दिखे, क्या बात है बहुत चहक रहे हो आज?
रामनिवास को सब धुंधला दिख रहा था, उसे लगा उसके ही गांव का कोई दोस्त होगा
रामनिवास :- अरे भई खुशी का मौका है लो तुम भी पियो.
दूसरा :- लेकिन पैसे???
रामनिवास :- दोस्त के रहते पैसे कि चिंता करते हो, बहुत पैसा है मेरे पास, नशे मे शेखी बखार रहा था.
पहला :- वैसे खुशी कि क्या बात है दोस्त?
रामनिवास :- मेरी बेटी....हिक्क... हिक्क... मेरी बेटी का रिश्ता तय हो गया है वो हिक.... हिक्क.... अब ठकुराइन बनेगी.... हिक्क ठकुराइन....
रामनिवास नशे मे बेसुध था.
दूसरा :- अच्छा तो वहाँ से मिला है मोटा माल? कहाँ किस से हो रही है शादी?
रामनिवास :- अपने ठाकुर है ना विष रूप वाले हिक्क... ठाकुर ज़ालिम सिंह उनसे.
सारी बाते बताता चला जाता है कि कब शादी है, कब विदाई है, बेवकूफ रामनिवास.
बहुत अमीर है वो खूब पैसा है उनके पास.
ये बात सुन दोनों कि आंखे चौड़ी हो जाती है, मुस्कुराहट चेहरे पे तैर जाती है.
दोनों रामनिवास से विदा ले के निकल जाते है.
रास्ते मे
यार रंगा ये ठाकुर तो वाकई मोटी आसामी है, रुखसाना कि खबर पक्की है,इसे लूट लिया तो जिंदगी बन जाएगी.
रंगा :- हाँ बिल्ला योजना बनानी होंगी चल अड्डे पे, हमारे पास टाइम कम है.
. रंगा बिल्ला कम्बल से मुँह ढके वहाँ से निकल जाते है


परन्तु इन सब मे किसी कि नजर बराबर रामनिवास ओर रंगा बिल्ला कि बातचीत पे बनी हुई थी.
एक दुबला पतला लड़का, हलकी मुछे रखे वही आस पास टहल रहा था. चेहरे से इतना मासूम कि प्यार आ जाये गोरा चिट्टा... जैसे कोई राजकुमार हो...
लेकिन ये है चोर मंगूस... एकदम शातिर चोर.
रूप बदलने मे माहिर, चुत मारने मे दुगना माहिर
चोरी भले चुत कि हो या सोने चांदी कि सब चुरा लेता है.
आजतक इसे कोई पकड़ नहीं पाया पकड़ेगा क्या खाक जब कोई इसे देख ही नहीं पाया.
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कब आता है कब चला जाता है कुछ पता नहीं...
चोर मंगूस सारी बाते सुन लेता है... उसकी योजना तुरंत तैयार हो चुकी थी
अब उसे भी ठाकुर कि शादी का इंतज़ार था..

विष रूप ओर कामगंज के बीच मौजूद जंगली इलाके मे एक शख्स टहल रहा था, उसके हाव भाव से लग रहा था जैसे कि वो किसी का इंतज़ार कर रहा हो.
तभी पता नहीं कहाँ अँधेरे मे से एक साया निकल के उस व्यक्ति के सामने खड़ा हो जाता है...
व्यक्ति :- कहो खबरी क्या खबर लाये हो?
साया :- मालिक खबर मिली है कि विष रूप के ठाकुर ज़ालिम सिंह, कामगंज के रामनिवास कि बेटी से शादी कर रहे है ओर मंगलवार को बारात आएगी उसी रात विदा भी हो जाएगी.
व्यक्ति :- इसका मतलब यही मौका है उन्हें पकड़ने का?
साया :- ज़ी दरोगा साहेब रंगा बिल्ला कि योजना ठाकुर को विदाई के वक़्त लूट लेने कि है जब ठाकुर कीमती सामानो के साथ वापस जा रहा होगा, उसकी दुल्हन सोने चांदी से लदी होंगी.

ज़ी हां ये है इस इलाके के दरोगा वीरप्रताप सिंह है जैसा नाम वैसा काम वीर पुरुष तो है लेकिन कभी किसी चोर डाकू को पकड़ नहीं पाए.
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उम्र लगभग 40कि होंगी ऊँचा लम्बा कद है इनकी एक खूबसूरत बीवी कलावती भी है जो गांव से दूर शहर मे रहती है.
काम ओर जिम्मेदारी मे इस कदर डूबे है कि सम्भोग कि इच्छा ही ख़त्म सी हो गई है बीवी को हाथ लगाए बरसो बीत गये.
ना जाने इनकी बीवी कैसे रहती होंगी.
कलावती ने कई बार जिद्द कि मुझे भी अपने साथ ले चलो लेकिन यहाँ डाकुओ का खतरा था इसलिए साथ मे लाये नहीं.

वीरप्रताप :- चोर मंगूस कि कोई खबर?
खबरी :- नहीं मालिक उसकी ना तो कोई खबर मिलती है ना ही उसका हुलिया, कहाँ से आता है कहाँ जाता है कुछ पता नहीं है.
वीरप्रताप :- खेर कोई बात नहीं पहले रंगा बिल्ला को हो दबोच लेता हूँ फिर उस चोर मंगूस कि भी खबर लूंगा.
अब तुम जाओ कोई खबर हो तो यही मिलना
साया अँधेरे मे विलुप्त हो जाता है जैसे आया था वैसे ही गायब.
वीरप्रताप गहरी सोच मे डूब जाता है " ऊपर से निर्देश आ चुके है ये मेरा लास्ट मौका है रंगा बिल्ला को नहीं पकड़ा तो ससपेंड कर दिया जाऊंगा "
नहीं नहीं.... ये मौका मुझे गवाना नहीं है.
ठाकुर कि शादी का इंतज़ार करना होगा...दरोगा के दिमाग़ मे योजना तैयार हो चुकी थी.
सोचते सोचते वो जंगल के बाहर खड़ी गाड़ी कि ओर बढ़ जाते है.
यहाँ सभी को ठाकुर कि शादी का ही इंतज़ार था.
कैसी होंगी शादी?
हो भी पायेगी या नहीं?
बने रहिये... कथा जारी है...
सब शादी के लिए तैयार है... आप भी इंतज़ार कीजिये ठाकुर कि शादी का
 
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चैप्टर -1 ठाकुर कि शादी, अपडेट -13



सबकी योजना तैयार थी.....

ठाकुर ज़ालिम सिंह भी अपने गांव विष रूप पहुंच चुके थे, उनके गांव मे उत्सव का माहौल था.

ठाकुर :- भूरी काकी शादी कि तैयारी करो, रिश्ता तय कर आया हूँ, अब हवेली कि रौनक फिर लौट आएगी.

बहुत ख़ुश थे ठाकुर साहेब.....

भूरी :- कैसी है कामवती?

ठाकुर :- बहुत सुन्दर

वो तीनो नामुराद कहाँ मर गये है जब से दिख नहीं रहे



भूरी उन तीनो का जिक्र सुनते ही घन घना जाती है, रात भर का सारा दृश्य एक बार मे ही जहाँ मे दौड़ जाता है,भूरी कि चुत पनियाने लगती है.

ठाकुर :- कहाँ खो गई काकी? तबियत तो ठीक है ना?

कहाँ है वो तीनो हरामी

तभी तीनो पीछे से एक साथ आते है

कालू :- ज़ी ठाकुर साहेब आदेश दीजिये?

ठाकुर :- कहाँ मर गये थे तुम लोग? सालो सिर्फ मुफ्त कि खाते हो.

बिल्लू :- मालिक वो... वो.... कल रात काकी ने बहुत मेहनत करवाई तो सुबह देर से उठे.

बिल्लू डर से जो मुँह मे आया बोल देता है.

भूरी चौक जाती है

ठाकुर :- कैसी मेहनत?

कालू :-ज़ी ठाकुर साहेब वो कल रात बारिश बहुत तेज़ थी हवेली मे पानी जमा हो गया था तो रात भर पानी ही निकलते रहे. क्यों भूरी काकी? कालू बात संभाल लेता है.

भूरी :- ज़ी ज़ी... ठाकुर साहेब तीनो ने अच्छे से पानी निकाला.

ठाकुर :- अच्छा अच्छा ठीक है जाओ काम पे लगो अब.

गांव के पंडित को बुलावा भेज दो, हलवाई को बुला लाओ.

ओर हवेली कि साज सज्जा का प्रोग्राम करो.

डॉ. असलम 2दिन मे आ जायेंगे तो बाकि का प्रबंध वो देख लेंगे.

चलो दफा हो लो अब हरामी साले....

शादी कि तैयारी जारी थी.

इन सब के बीच हवेली के तहखने मे एक शख्स ये सब बाते सुन रहा था, उसके कान बहुत तेज़ थे.... वो कामवती का नाम सुन के तन तना जाता है.

"कही कही... ये वही कामवती तो नहीं जिसका मै हज़ारो सालो से इंतज़ार कर रहा हूँ? यही वो कामवती तो नहीं जो मेरी नय्या प्यार लगाएगी "

मुझे भी ठाकुर कि शादी मे जाना होगा. मंगलवार का इंतज़ार है बस...

ये शख्स कौन था जो कामवती को जनता था?

कामवती कैसे नय्या पार लगाएगी?

वक़्त बताएगा



इधर गांव कामगंज मे

बाजार मे खूब रौनक थी कामवती ओर रतीवती कि मौजूदगी से, सभी कि नजर माँ बेटी पे ही थी उनकी दोनों कि खूबसूरती के बीच डॉ. असलम जैसे कुरूप को कोई देख ही नहीं पा रहा था, कहाँ असलन नाटा काल ओर कहाँ रतीवती कामवती सुन्दर सुडोल लम्बी.

असलम ने दिल खोल के खर्चा किया, ठाकुर साहेब के कहे अनुसार शादी मे कोई कमी नहीं रहनी चाहिए थी.

कामवती भी असलम से काफ़ी घुलमिल गई थी.

लेकिन असलम रतीवती के साथ अभी तक असहज थे.

वो दो बार रतीवती के संपर्क से निकल. चुके भी फिर भी ना जाने क्यों उनको रतीवती के साथ होने से खलबली मच जाती थी,रतीवती का हाथ कभी छू जाता तो सीधा करंट लंड पे जा के ही रुकता, फिर भी बाजार मे होने के कारण उसे अपने ऊपर काबू रखना था.

खेर इस खींचा तानी मौज मस्ती मे खरीददारी होती रही.

रतीवती ने एक लाल चटक सारी ली

रतीवती :- असलम ज़ी कैसी है ये साड़ी?

असलम : अ... अ.... अच्छी है रतीवती ज़ी

रतीवती :- कब तक शर्माएंगे असलम ज़ी आप, आप के लिए ही ले रही हूँ, आखिर अपने ही कद्र कि है मेरी.

ऐसा कह के मुस्कुरा देती है. असलम फिर से लजा जाये है.

दिन भर कि मेहनत के बाद तीनो शाम होने पे घर लौट पड़ते है, अंधेरा घिर चूका था..

घर पहुंच जाते है, रामनिवास अभी तक घर नहींआया था रतीवती को चिंता सताने लगी थी

कामवती अपने कमरे मे सामान रखने चली जाती है.

कामवती :- माँ मै सामान रख के आती हूँ फिर खाना बना लेती हूँ आप आराम कीजिये.

असलम भी अपने कमरे कि ओर निकल जाता है.

रतीवती अपने कमरे मे जाते ही लाल साड़ी पहन के देखने लगती है, सारे कपडे उतार के बिल्कुल नंगी हो जाती है.उसे जल्दी से तैयार हो के असलम को अपना रूप दिखाना था.

वो असलम आश्चर्य चकित चेहरे को देखना चाहती थी.

क्या मादक शरीर था रतीवती का बिल्कुल नक्कसी किया हुआ गोरा बदन

वो अपनी कमर के चारो तरफ साड़ी लपेट लेती है, ओर जैसे ही वो ब्लाउज उठाती है पहनने के लिए बाहर धममम.... से किसी के गिरने कि आवाज़ अति है.

रतीवती सब भूल के जल्दी से उसी अवस्था मे सिर्फ साड़ी लपेटे ही बाहर को भागती है.

बाहर आ के देखती है कि रामनिवास मुँह के बल गिरा पड़ा था.

रतीवती :- इस हरामी को दारू से ही फुर्सत नहीं आज बेवड़ा ज्यादा पी आया.

भागती हुई रामनिवास को उठाने जाती है... उतने मे असलम भी आवाज़ सुन के कमरे से बाहर आता है ओर जैसे ही दरवाजे कि ओर देखता है दंग रह जाता है.

या अल्लाह.... ये क्या हो रहा है मेरे साथ? कैसे कैसे नज़ारे लिख दिए तूने मेरे जीवन मे. शुक्रिया

असलम देखता है कि रतीवती झुकी हुई रामनिवास को उठाने कि कोशिश कर रही है इस कोशिश मे उसकी गांड पूरी बाहर को निकली हिल रही थी साड़ी का कुछ हिस्सा गांड कि बीच दरार मे घुस गया था.

आह्हः.... क्या गांड है रतीवती कि अपने लंड को मसलते रतीवती कि कामुक गांड को ही निहारते रहते है.

जैसे ही उनकी नजर आगे को बढ़ती है उनका मुँह से हलकी सिसकारी निकल पड़ती है.... ब्लाउज ना पहनने कि वजह से रतीवती के स्तन बाहर को निकल पड़े थे साड़ी तो कबका हट चुकी थी.



हलकी सिसकरी सुन रतीवती पीछे देखती है तो असलम मुँह खोले हाथ मे लंड पकडे मन्त्र मुग्ध खड़ा था.

रतीवती :-अरे असलम ज़ी मदद कीजिये? रतीवती मुस्कुरा देते है उसे असलम कि इसी हालत पे तो मजा आता था.

असलम रतीवती के पास आता है ओर रामनिवास को उठाने मे मदद करता है

इस मदद मे दोनों के शरीर रगड़ खा जाते है, रतीवती तो थी ही कामुक औरत हमेशा उत्तेजना से भरी रहती है, निप्पल कड़क हो जाते है असलम कि रगड़ से.

रतीवती :- असलम से अच्छे से उठाइये, ये तो इनका रोज़ का काम है

असलम अब समझ चूका था कि क्यों रतीवती इतनी कामुक ओर हमेशा गरम क्यों रहती है, उसकी चुत हमेशा क्यों पानी छोड़ती है, जिसका पति ऐसा हो उसकी औरत ओर क्या करे...

किस्मत ने ही मुझे रतीवती से मिलाया है. उनके दिल मे रतीवती के लिए हमदर्दी जगती है क्युकी वो खुद भी बरसो से सम्भोग नहीं कर पाया था, रतीवती ही थी जिसने उसका इस सुख से परिचय करवाया.

असलम मन ही मन रतीवती को धन्यवाद देता है.

अब तक असलम रतीवती मिल कर रामनिवास को कमरे मे ला के बिस्तर पे पटक चुके थे...

रतीवती सीधी खड़ी हो जाती है उसकी साड़ी स्तन से पूरी हट चुकी थी,बस उसके बाल ही बमुश्किल स्तन ढके हुए थे. नीचे सपाट पेट, गहरी नाभि, माथे पे बिंदी

गजब कि काया पाई है रतीवती ने



आह्हः.... कितनी खूबसूरत है रतीवती असलम बहुत कुछ कहना चाहते थे.

परन्तु कामवती रसोई से आवाज़ लगा देती है, माँ खाना बन गया है आ जाओ, ओर असलम काका को भी बोल दो.

असलम कि तंद्रा टूटती है, वो बाहर को जाने लगता है

रतीवती :- धन्यवाद असलम ज़ी आपकी वजह से है सब हो पाया

असलम समझ नहीं पाता कि किस बात का धन्यवाद

आंखे बड़ी किये प्रश्नभरी निगाहो से रतीवती कि तरफ देखता है.

रतीवती :- आज रात इंतज़ार रहेगा आपका ओर मुस्कुरा देती है...
 
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अपडेट -13 contd...

रात हो चुकी थी, अंधेरा गहराने लगा था आसमान मे काले बादल छाने लगे थे.
मौसम पूरी तरह रूहानी बन चूका है गांव कि बरसाती रात ऐसी ही होती है. कामवती दिन भर कि तैयारी से थक हार कर कबका सो चुकी थी.
लेकिन इस घर मे दो लोग जगे हुए थे जो आग मे जल रहे थे काम कि आग मे
असलम अपने कमरे मे नंगा लेटा अपना लंड मसल रहा था ओर उसके जीवन मे आये बदलाव के बारे मे सोच रहा था कहाँ तो चुत नसीब नहीं थी लेकिन जब मिली तो ऐसी मिली कि इतने वर्षो कि कमी पूरी होने लगी.... वो निर्णय ले लेता है कि खुदा के इस फैसले का स्वागत करेगा ओर जम के सम्भोग आनंद उठाएगा.
असलम :- ये सब रतीवती ज़ी के कारण ही संभव हो पाया है उसे धन्यवाद देना ही चाहिए ऐसा सोच के वो कमरे से बाहर निकल रतीवती के कमरे कि ओर चल पड़ता है

रतीवती के कमरे मे रतीवती पूर्णतया नंगी कांच के सामने बैठी अपने हुस्न को निहार रही थी.चूड़ी पहने, माथे पे बिंदी खूबसूरत लग रही थी.
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जब से उसने असलम का लंड चूसा है उनके वीर्य का स्वाद चखा है तबसे उत्तेजना शांत होने का नाम ही नहीं लेती थी, हमेशा चुत मे आग लगी रहती थी अभी भी कांच के सामने नंगी बैठी अपनी चुत मसल रही थी
उसे असलम का इंतज़ार था... लेकिन सब्र नहीं था.
उसे एक विचार आता है, वो कमरे मे कुछ ढूंढने लगती है, थोड़ी सी मेहनत के बाद ही उसे शराब से भरी बॉटल मिल जाती है,
वो बोत्तल पकड़ी रामनिवास के बगल मे लेट के टांग फैला लेती है... रामनिवास नशे मे बेसुध फैला पड़ा था.
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रतीवती शराब कि बोत्तल उठा के अपनी फैली टांगो के बीच चुत मे पेल देती है, शराब गटा गट चुत मे सामने लगती है ना जाने कितनी गहरी चुत थी रतीवती कि, पूरी बोत्तल कि शराब चुत मे समा जाती है, शराब कि गर्मी से रतीवती चितकार उठती है, आअह्ह्ह....... असलम जल्दी आओ.
ऐसा बोल के रतीवती पास मे लेटे रामनिवास के खुले मुँह पे बैठ जाती है.
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रामनिवास नशे मे बेसुध मुँह खोले सोया पड़ा था उसके मुँह पे जैसे ही दबाव बनता है वो अपना मुँह ऊपर नीचे करता है,ऊपर बैठी रतीवती अपने स्तन मसलती हुई अपनी चुत थोड़ी सी खोलती है जिस से शराब चुत से रिसती हुई रामनिवास के मुँह मे जाने लगती है.. रतीवती हद से ज्यादा गरम थी वो असलम के आने का इंतज़ार भी नहीं कर पाई थी.
रामनिवास पक्का शराबी था... अब शराबी को ओर क्या चाहिए शराब ही ना... उठते सोते सिर्फ शराब.
रामनिवास के मुँह मे दारू जाने लगती है तभी रतीवती अपनी चुत जोर लगा के बंद कर लेती है दारू रुक जाती है...
रामनिवास बेचैन हो जाता है वो जीभ निकाल निकाल के शराब ढूंढने लगता है आंख बंद किये बेसुध.
रामनिवास कि लपलापती जीभ रतीवती कि चुत पे चल रही थी, जिस वजह से रतीवती का मजा बढ़ता ही जा रहा था,उत्तेजना चरम पे पहुंच रही थी.... वो अपने स्तन को रगड़े मसले जा रही थी. वो जोर जोर से अपनी गांड रामनिवास के मुँह पे रगड़ रही थी कभी कभी चुत थोड़ी सी खोल के शराब गिरा देती, रामनिवास लालच मे आ के ओर जोर से जीभ लप लपाता... क्या खेल था वाह..
चुत से ले के गांड के छेद तक रतीवती चाटवाये जा रही थी.
तभी कमरे का दरवाजा धीरे से खुलता है, रतीवती कम्मोउत्तेजना मे पीछे मुड़ के देखती है असलम बिल्कुल नंगा दरवाजे पे खड़ा था सिर्फ मुसलमानी टोपी पहने, 9 इंच का लंड बिल्कुल तना हुआ झूल रहा था
हो भी क्यों ना जब भी असलम रतीवती से मिलता कुछ ऐसी ही स्थति मे मिलता वो बहुत सी बाते करना चाहता था लेकिन रतीवती का नंगा कामुक बदन बातो कि इजाजत कहाँ देता था वो सिर्फ सम्भोग चाहता था ओर शायद अब असलम भी यही चाहता था बिना बोले..
रतीवती असलम को देखते ही ख़ुश हो जाती है ओर दुगने जोश से गांड रामनिवास के मुँह पे घिसने लगती है जैसे घिस घिस के जिन्न ही निकाल देगी
असलम तो ये दृश्य देख के ही सन्न रह जाता है, वो जब भी सोचता कि बस एक औरत इतना ही कर सकती है तभी रतीवती उसका भ्रम तोड़ देती, बता देती कि स्त्री कि कामुकता का कोई अंत नहीं होता बरखुरदार.
आज असलम ये बात अच्छे से जान गया था.
रतीवती अपनी एक ऊँगली से असलम को अन्दर आने का इशारा करती है फिर वही ऊँगली अपनी गांड को पीछे सरका के गांड के छेद ने डाल देती है.
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असलम इस रंडीपने इस कामुकता से हैरान था कि ऐसा भी होता है.... उसका लंड फटने लगा था.
वो तुरंत दरवाजा बंद कर रतीवती के बिस्तर पे चढ़ जाता है ओर अपना लंड पकड़े सीधा रतीवती कि उभरी गांड मे पेल देता है.
आआहहहहह..... असलम मार डाला.
ऐसा नहीं था कि रतीवती पहली बार गांड मे ले रही थी शादी के पहले ही वो अपनी गांड खुलवा चुकी थी गांव के लड़को से.
शादी के बाद गांड चुदाई का सुख आज मिलने वाला था
गांड मे लंड जड़ तक घुसने से चुत से शराब छलक पड़ती है, नीचे रामनिवास लेटा नशे मे लपा लप शराब पिए जा रहा था.
असलम के लिए ये गांड चुदाई का पहला मौका था वो सुबह ही रतीवती कि रसीली चुत पेल चूका था, लेकिन गांड का मजा दुगना था उसे समझते देर ना लगी.
अब हालत ये थे कि असलम पीछे से रतीवती के स्तन पकडे धका धक लंड गांड मे पेले जा रहा था, नीचे रामनिवास नशे मे चुत से शराब निकाल निकाल के पिए जा रहा था..
. रतीवती तो कामवासना से मजे मे पागल थी उसके जिंदगी मे ऐसी चुदाई कि बाहर कभी नहीं आई थी, अपने नामर्द पति के सामने चुदावाने का मजा ही अलग था.
पीछे असलम जानवर बन चूका था, वो भूल गया था कि रामनिवास नीचे लेटा हुआ है. स्तन पकड़े रतीवती के होंठो को अपने होंठ मे कैद किया चूसे जा रहा था गजब का स्वाद था रतीवती के लबों मे प्यास बुझा रहा था बरसो कि काम कि प्यास
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वो तो स्तन का मर्दन किये गांड फाडे जा रहा था.... बरसाती रात मे रतीवती कि चीतकार सिसकारिया खोती जा रही थी... असलम जगह जगह काटे जा रहा था
रतीवती तो थी ही काम से भरी कामुक औरत उसे तो इस मे भी मजा था.

रतीवती आज अपने आपे मे नहीं थी... यहाँ बरसो कि प्यास बुझाई जा रही थी जो सुबह तक चली.
गांड मे सटा सट लंड जा रहा था, मोटा काला भयानक लंड... रतीवती कि बरसो कि प्यास बुझ रही थी गांड रुपी सुखी नदी मे बाढ़ आ गई थी लंड कि बाढ़
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रात भर चुत गांड फाड़वाती रही रतीवती खुल के धन्यवाद बोल देना चाहती थी असलम को.
चुत से पूरी शराब निकल के रामनिवास के हलक मे उतर चुकी थी ओर असलम का वीर्य रतीवती के हलक, गांड, चुत मे चला गया था कितना गया पता नहीं.
सभी छेद लबा लब भर गए थे. दोनों छेद खुल के दोगुने चोड़े हो गये थे.
सुबह हो चुकी थी.... असलम कब का जा चूका था रतीवती नहा धो के तैयार हो गई थी.... रामनिवास ने रात भर दारू पी थी तो अभी तक सोया पड़ा था.

आज असलम का अंतिम दिन था
खूब खरीदारी हुई, सारे इंतेज़ाम कर चूका था, कोई कमी नहीं रह गई थी.... परन्तु आज अंतिम दिन मे रतीवती ओर असलम को कोई मौका नहीं मिल पाया सम्भोग का जिस वजह से रतीवती थोड़ी उखड़ी हुई थी... उसके बाद असलम अपने गांव विष रूप लौट गये.

आज मंगलवार था
ठाकुर कि शादी का दिन, जिस दिन का सभी को इंतज़ार था.
ठाकुर :- अरे हरामखोरो कमीनो कहाँ मर गये सालो सब....जल्दी चलो आज ही वापस आना है वरना विदाई नहीं हो पायेगी... फिर मुहर्त नहीं है
ठाकुर बड़बड़ये जा रहा था.
भूरी :- चिंता मत कीजिये ठाकुर साहेब सब तैयारी हो गई है,उन तीनो ने सब सामान लाद दिया है घोड़ा गाड़ी मे. आप कामवती को ब्याह के लाये बाकि तैयारी मै देख लुंगी.
कालू बिल्लू रामु तीनो ही तैयारी मे व्यस्थ थे, एक पल का चैन नहीं था....शादी मे सब लोग इतना बिजी रहे कि वापस भूरी को पाने का मौका ही नहीं मिला था किसी को भी.
कालू :-चलो भाइयों नई ठकुराइन लेने, वो आएगी तो ठाकुर साहेब थोड़ा व्यस्त हो जायेंगे ओर हमें भी कुछ मौका मिल जायेगा भूरी काकी कि लेने का हाहाहा....
तीनो हस पड़ते है
पीछे से हरामखोरों यहाँ हस रहे हो चलना नहीं है.
ठाकुर साहेब कि रोबदार आवाज़ से तीनो को सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है लेकिन शुक्र है कि काकी वाली बात नहीं सुन पाए ठाकुर साहेब
रामु :- ज़ी मालिक सब तैयारी ही गई है आप आदेश दे निकाल जाते है.
ठाकुर :- बस डॉ. असलम आ जाये निकलते ही है..
डॉ. असलम ओर बाकि मेहमान कुछ गांव वाले सब आ जाते है...
इन सब के बीच चुपके से कोई रेंगता हुआ सामान लदी घोड़ा गाड़ी मे चढ़ चूका था, " आखिर वो घड़ी आ ही गई, मै भी तो देखु कौन सी कामवती है ये "
बारात निकल चली थी,खूब गाजे बाजे के साथ ठाकुर कि बरात निकल चली थी...

चैप्टर -1 ठाकुर कि शादी
समाप्त

चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी

आरम्भ...


बने रहिये कथा जारी है...
 
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चैप्टर -2, ठाकुर कि शादी अपडेट -14

विषरूप से ठाकुर कि बारात धूम धाम से निकल रही रही.
कामगंज अभी दूर था.. दरोगा वीर प्रताप रास्ते मे निगरानी के लिए ग्रामीण वेश मे बारात मे शामिल हो चुके थे.
इधर रंगा बिल्ला का प्लान भी तैयार था, बिल्ला अपने कुछ आदमियों क साथ जंगल मे छुपे बैठे थे लाठी डंडोऔर विस्फोटक हथियारों से लेस थे,
रंगा ठाकुर कि बारात मे शामिल हो गया था, सामान उठाये मजदूरों कि टोली मे घुस चूका था..
देखना तो कौन कामयाब होता है?
वीरप्रताप या रंगा बिल्ला....

रामनिवास के घर चोर मंगूस सुबह से ही साज सज्जा वाले मजदूर का वेश बनाये अपनी नजरें बनाये हुए था.
सुबह से ही मेहमानों का आना जारी था,कामवती कि सखियाँ उसे तैयार कर रही थी, कोई छेड़ रहा था, गहनो के अम्बार लगे थे...
चोर मंगूस कामवती के कमरे मे दाखिल होता है..
मंगूस :- दीदी बाउजी ने कमरा सजाने के लिए बोला था, इज़ाज़त हो तो काम करू..
सहेलियां चौंक जाती है.
एक सहेली :- क्या भैया अभी दुल्हन तैयार हो रही है बाद मे आना, हम खुद बुला लेंगी आपको.
चोर मंगूस दिखने मे था ही इतना मासूम कि उसपे कोई गुस्सा ही नहीं कर पाता था
जाते जाते मंगूस कि नजर कामवती के जेवरो पे पड़ती है
वाह वाह ठाकुर ने बहुत माल दिया लगता है रामनिवास को, खूब गहने लिए है कामवती के लिए.
बला कि सुन्दर स्त्री है कामवती ठाकुर तेरे तो मजे है...
मंगूस वापस काम मे लग जाता है, याका यक उसके मन मे विचार आता है यदि अभी मैंने ये गहने चुरा लिए तो बेचारी कि शादी नहीं हो पायेगी? बढ़ा बुरा होगा
मै बुरा इंसान नहीं हूँ... मै ऐसा नहीं कर सकता.
लेकिन हूँ तो मै चोर ही.... शादी के बाद चुरा लूंगा.
हाहाहाहाबा.......
मन ही मन हसता वो घर के पीछे मूतने चल देता है... वो धोती उतार के मूत ही रहा था कि उसे अपने पीछे कुछ खन खानने कि आवाज़ आती है. वो चौक के देखता है तो उसे एक खुली खिड़की दिखती है..
कोतुहल वस वो खिड़की से अंदर झाँकता है..... अरे दादा... उसके तो होश ही उड़ जाते है.
रतीवती अंदर अपने कमरे मे पूर्णत्या नंगी सिर्फ सोने के गहने पहने आदम कद शीशे के सामने खुद को निहार रही थी, गोल सुडोल स्तन के बीच झूलता हार माथे का मांगटिका,रतीवती साक्षात् काम देवी लग रही थी.
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चोर मंगूस ऐसी खूबसूरती, ऐसा यौवन, ऐसी काया देख के हैरान था, रतीवती कि मादकता से लबरेज बदन ने उसके पैरो मे किले ठोंक दिए थे वो अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रहा था वो एकटक उस बला कि सुन्दर स्त्री को देखे जा रहा था.
क्या बदन था माथे पे बिंदी, गले मे हार, कमर मे चमकती हुई कमर बंद, हाथो मे चुडिया....
कमरबंद नाभि के नीचे बँधी हुई खूबसूरती पे चार चाँद लगा रही थी,
उसके नीचे पतली सी चुत रुपी लकीर, जो कि रतीवती कि कामुकता और यौवन का परिचय दे रही थी
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ऐसा चोरी का माल तो उसने कभी देखा ही नहीं था ये तो चुराना ही है चाहे जो हो जाये... जो उसे चाहिए था वो दोनों ही चीज रतीवती के पास थी.
सोना भी और सोने जैसा बदन भी...
अंदर रतीवती इन सभी बातो से बेखबर खुद को निहार रही रही, या यु कहे वो आत्ममुग्ध थी.
अपना नंगा बदन देख उसे असलम कि याद सताने लगती है आखिर इतने दिन बाद वो फिर से असलम को देखने वाली थी वही डॉ. असलम जिसे उसके यौवन और बदन कि कद्र है, जिसने उसकी कामुकता का सही मूल्य पहचाना....
रतीवती को ये सब बाते याद आते ही स्वतः ही अपनी चुत पे हाथ चला देती है.... इतने मे ही चुत छल छला जाती है रसजमीन पे टपक पड़ता है.... तापप्पाकककक.... कि शब्दहीन आवाज़ थी लेकिन ये आवाज़ चोर मंगूस कि कानो मे घंटे कि तरह सुनाई दे..
मंगूस :- हे भगवान... क्या स्त्री है ऐसी कामुकता
मेरी जिंदगी कि शानदार चोरी होंगी, भले जान जाये
इतने मे कामवती के दरवाजे पे आहट होती है.
अरी भाग्यवान कब तक तैयार होंगी, बारात आती ही होंगी.. रामनिवास था.
रतीवती :- बस आई कम्मो के बापू
उसे कुछ सरसराहत कि आवाज़ आती है वो पीछे मुड़ के देखती है, कोई नहीं था...
चोर मंगूस छालावे कि तरह गायब हो चूका था.
कामगंज से 30Km दूर एक गांव स्थित था

गांव घुड़पुर

यहाँ रहते हे ठाकुर भानुप्रताप
वो गुस्से मे अपनी आलीशान हवेली कि बैठक मे इधर उधर टहल रहे थे भून भुना रहे थे.
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भानुप्रताप :- मै कैसा बाप हूँ, वो हरामी ज़ालिम सिंह मेरी बेटी का घर उजाड़ के दूसरी शादी करने चला है.
और मै कुछ कर भी नहीं सकता...
पास बैठी उनकी बेटी उन्हें ढानढस बँधाती है,
बेटी :-आप चिंता ना करे पिताजी ज़ालिम सिंह से पाई पाई का हिसाब लिया जायेगा, उसकी तो 7 पीढ़ियों को खून क आँसू रोने होंगे.
भानुप्रताप :- पर कैसे? कैसे होगा रूपवती ये सब?
क्या सोचा है तुमने?
ज़ी हाँ ये रूपवती कि ही हवेली है, भानु प्रताप उनके पिता है जो कि बूढ़े हो चुके है, चुप चाप अपनी बेटी का घर उजड़ते देख रहे है तो काफ़ी उदास और परेशान है.
बाप बेटी के बीच होती बात हवेली कि बैठक कि दिवार से लगे किसी के कान तक पहुंच रही थी.
परन्तु जैसे ही कामवती का जिक्र आया उसके कान खड़े हो गये... " ये कामवती..? किस कामवती कि बात कर रहे है? कही वही कामवती तो नहीं जिसकी मुझे हज़ारो सालो से तलाश है "
" देखना होगा, आज रात ही गांव कामगंज जाना होगा, ठाकुर कि शादी मे "

भानुप्रताप :- और ये हमारा लाडला कहाँ मर गया है? कहाँ है वो आजकल?
रूपवती :- पिताजी आप तो जानते ही है हमारा छोटाभाई विचित्र सिंह हाथ से निकल गया है रात रात भर गायब ही रहता है, सुबह ही आता है.
मुझे तो लगता है कि किसी गलत संगत का शिकार हो गया है हमारा भाई ...
भानुप्रताप :- क्या करे विचित्र सिंह का?
बड़बड़ता हुआ अपने कमरे कि और निकल जाता है.
रूपवती अपने छोटे भाई के बारे मे सोचने लगती है...
ठाकुर विचित्र सिंह
जैसा नाम वैसा काम
उम्र 21 साल, बिल्कुल मासूम गोरा चेहरा
जब 10 साल के थे तो गांव मे नौटंकी आई थी, अभिनय के ऐसे दीवाने हुए, ऐसे प्रभावित हुए कि नौटंकी कि टोली क साथ ही हो लिए 10 साल तक गांव गांव शहर शहर घूम घूम के खूब अभिनय किया, खूब चेहरे बदले..
अचानक घर कि याद आई तो वापस आ गये... इस बीच रूपवती कि शादी ज़ालिम सिंह से हो चुकी थी, पिताजी अकेले थे तो हवेली मे रहने का ही फैसला किया.
विचित्र सिंह अभिनय, रूप बदलने, आवाज़ बदलने मे खूब माहिर अभिनयकर्ता है..... इनको बचपन मे चोरी कि आदत थी अब पता नहीं सुधरे कि नहीं..
वक़्त ही जाने
वैसे है कहाँ विचित्र सिंह आज सुबह से ही गायब है...
रूपवती :- ये लड़का भी अजीब है कब आता है कब जाता है पता ही नहीं चलता
वो भी अपने कमरे मे बिस्तर पे जा गिरती है.... आज आँखों मे नींद नहीं थी, बल्कि यु कहिये रूपवती जब से तांत्रिक उलजुलूल से मिल के लोटी है उसकी आँखों से नींद कोषहो दूर थी, जब से वीर्य रुपी आशीर्वाद ग्रहण किया है रूपवती के बदन मे कामुकता का संचार हो गया है, वो जब से लोटी है तब से हमेशा हर वक़्त उत्तेजित रहती है.. चुत से मादक रस टपकता ही रहता है,उसे अब लंड चाहिए था, बड़ा लंड तांत्रिक उलजुलूल जैसा जो उसकी बरसो कि प्यास, हवस बुझा सके....
रूपवती कमरे मे काम अग्नि और बदले कि भावना से जल रही थी...
इधर हवेली से निकल के तूफान कि गति से टपा टप... टपा टप.... रूपवती का वफादार घोड़ा "वीरा " गांव कामगंज कि और दौड़ा जा रहा था....ऐसी गति से कोई साधारण घोड़ा तो नहीं दौड़ सकता....?
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तो कौन है ये वीरा?
क्या कहानी है इसकी?
और क्या विचित्र सिंह और चोर मंगूस का कोई रिश्ता है?
सवाल बहुत है...
जवाब के लिए बने रहिये.. कथा जारी है
आपका दोस्त andy pndy
 

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