Adultery किस्सा कामवती का

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चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी अपडेट -22



घुड़वतीं सुन्दर मनमोहक झरने को देख खुद को रोक नहीं पाती और धीरे धीरे कर के पानी मे उतरने लगती है

आहहहह.... कितना शीतल जल है, तन को ठंडक पंहुचा रहा है.



घुड़वती का नया नया जवान हुआ जिस्म ठन्डे पानी का लुत्फ़ उठाने लगा, उसके रोंगटे खड़े होने लगे.

हवा मे एक तरह का नशा था मादक नशा

जो घुड़वती के बदन को भिगो रहा था.

घुड़वती सम्मोहित सी झरने के पास चली जाती है, और झरने के नीचे अपने जवान सुडोल बदन को नहलाने लगती है.

लेकिन यहाँ झरने मे सिर्फ वो ही अकेली नहीं थी कोई और भी था जो इस प्रकृति इस सौंदर्य का दीवाना था.

विषरूप का बड़ा राजकुमार "नागकुमार" उसे कोई खबर नहीं थी कि कोई जवान घोड़ी उसकी और बड़ी चली आ रही है.

घुड़वती झरने के नीचे पहुंच चुकी थी, ठन्डे पानी कि बुँदे उसके बदन पे अंगारो कि तरह गिर रही थी.

मदमस्त घोड़ी झरने के नीचे अंगड़ाई लेने लगी, उसके शरीर मे उठती मदकता जंगल मे फैलने लगी,

मदकता से भारी खुशबू जो एक जवान खूबसूरत घोड़ी कि थी वो खुशबू नागकुमार कि नाक से भी टकरा गई.

आहहहह... ये कैसी गंध है? ऐसी खुशबू तो आजतक जीवन मे कभी महसूस ही नहीं कि.

ये मुझे क्या हो रहा है? मेरे लिंग का आकर क्यों बढ़ रहा है.

आअह्ह्ह.... इस खुशबू मे नशा है.

नागकुमारगंध से आकर्षित हो घुड़वती कि दिशा कि तरफ चल पड़ता है.

वही घुड़वाती मदहोशी मे डूबती जा रही थी, उसके हाथ खुद ही अपने स्तन पे चल पड़ते है वो उन्हें दबाने लगती है,

आअह्ह्ह.... कितना आनंद है इस वातावरण मे, मेरे बदन मे आग क्यों लग रही है.

अच्छा लग रहा है... घुड़वती कामक्रीड़ा से पहली बार परिचित हो रही थी.

वो अपने ऊपरी वस्त्र त्याग देती है, खुले वातावरण मे झरने के नीचे दो सुन्दर गुलाबी स्तन आज़ाद हो चुके थे,

बड़े और मादक स्तन जिस पर छोटे से बिंदु सामान निप्पल अंकित था.

स्तन आज़ाद होने से एक मादक और पहले से कही ज्यादा गंध निकलती है नाग कुमार को अपनी और खींचने लगती है...

गंध कि दिशा मे खींचा चला जाता है झरने से कुछ दूर पहुँचता है तो उसे झरने के नीचे जो दीखता है वो प्राण खींचने के लिए काफ़ी था, ऐसा अद्भुत सौंदर्य ऐसी काया ऐसे स्तन... उसके पैर वही झड़ी के पास ही जाम जाते है,

लगता था जैसे खून जम गया है बस आंखे जिन्दा है वो भी इसलिए जिन्दा है कि ये नजारा निहार सके.

धम्म से वही झड़ी के बीच गिर पड़ता है.

दृश्य ही ऐसा था झरने के नीचे बला कि खूबसूरत स्त्री अर्ध नग्न अवस्था मे अठखेलिया कर रही थी.

घुड़वती कभी अपने स्तन को निहारती कभी अपने सपाट खूबसूरय पेट को,

एक हाथ स्तन पे रख मसल देती तो दूसरा हाथ पेट सहलाता, उसके मुँह से हलकी हलकी सिसकारिया निकल रही थी जो कि झरने के साथ मधुर संगीत उत्पन्न कर रही थी,

घुड़वती से रहा नहीं जा रहा था उसकी टांगो के बीच कुछ हो रहा था, जैसे कोई उन्माद निकलना चाहता हो.

घुड़वतीं के लिए कामुकता का अहसास पहली बार था नया था.

जिज्ञासावंश वो अपना एक हाथ कपड़ो के ऊपर से ही चुत पे रख देती है.

आअह्ह्ह.... सुन्दर अहसास क्या हो रहा है मुझे कुछ नशा हो रहा है.

नशा तो नागकुमार को भी हो रहा था जो ये दृश्य देख जडवत था, उसका लिंग पूरा तना हुआ था

इतना तन गया था कि मारे उत्तेजना के लाल पड़ गया था.

नागकुमार भी अपना एक हाथ अपने लिंग के ऊपर रख चमड़ी को पीछे सरका देता है

नागकुमार भी ऐसा सौंदर्य ऐसा कामुक नजारा पहली बार ही देख रहा था उसके लंड से निकली मादक गंध घुड़वती के नाथूनो तक पहुंचती है.

घुड़वती :- आह्हः... ये अचानक से कैसी गंध है, कितनी मादक गंध है ये

लंड कि गंध सूंघते हीघुड़वती के बदन मे सिरहान कोंध जाती है उसकी उत्तेजना बढ़ने लगती है

उसके हाथ स्वतः ही चुत पे चलने लगते है, दाने को घिस देते है...

उत्तेजना और रगड़ से चुत का पानी छल छला जाता है.

वातावरण मे मदकता लहरा जाती है.

घुड़वती मदहोशी मे स्तन और चुत रगड़ रही थी.. नई नई जवान घोड़ी को ये अहसास अपने कब्जे मे लेता जा रहा था,

नागकुमार से अब रहा नहीं जाता वो उस मादक खुशबू मे बंधा चल पड़ता है घुड़वाती क ओर.. उसे कोई होश नहीं था उसका लंड वस्त्र से बाहर निकला पड़ा था

वो एकटक घुड़वती को देखे जा रहा था, चले जा रहा था

अचानक छप छप.. गुलुप.. कि आवाज़ से घुड़वती होश मे अति है तो सामने नागकुमार को खड़ा देख घबरा जाती है,, उसके मुँह से चीख निकल जाती है.आआआईई.....

कौन हो तुम ऐसा बोल वो खड़ी हो जाती है ओर एक हाथ से अपने बड़े सुडोल स्तन ढकने का नाकामयाब प्रयास करती है.



घुड़वती कि चीख से नागकुमार भी होश मे आता है तो पाता है कि वो बिल्कुल सामने खड़ा है अद्भुत सौंदर्य उसके ठीक सामने खड़ा था.

घुड़वती :- कौन हो तुम? यहाँ क्या कर रहे हो?

नागकुमार :- हे सुंदरी मै कौन हूँ मुझे नहीं पता, आपका सौंदर्य मुझे यहाँ खींच लाया.

नागकुमार अभी भी मदहोशी मे था.

घुड़वती :- तुम्हे शर्म नहीं अति किसी स्त्री को नहाते देखते? जानते भी हो इस दुस्साहस का अंजाम क्या होगा?

नागकुमार :- अंजाम जों हो सुंदरी सब मंजूर है बस आप युही खड़ी रहिये, इतनी सुन्दर स्त्री मैंने कभी नहीं देखि.

अब घुड़वती भी थोड़ी नरम पड़ने लगी थी अपनी तारीफ सुन के.

घुड़वती :- अच्छा मै इतनी सुन्दर हूँ?

नागकुमार :- अप्सरा है आप, आपको कौन नहीं पाना चाहेगा.

घुड़वती को वही मादक गंध महसूस होती है जो नागकुमार के लंड से निकली थी.

आह्हः... वही मदहोश करने वाली गंध.

नागकुमार कि ओर देखती है जैसे ही उसकी नजर नीचे को जाती है उसको एक सम्पूर्ण गोरा खड़ा लंड दीखता है जो लगातार एक मादक नशीली खुशबू छोड़ रहा था.

घुड़वती :- अच्छा तो ये खुशबू तुम्हारे पास से आ रही है? आप है कौन? ओर इसे क्यों बाहर निकाल रखा है?

ये सुन के नागकुमार खुद को देखता है उसका लंड बाहर को निकला हुआ था,

वो हड़बड़ा के उसे अंदर करता है ओर पीछे घूम जाता है.

नागकुमार :- माफ़ कीजिएगा सुंदरी आपके सौंदर्य कामुक बदन को देख बेकाबू हो गया था.

घुड़वती ठहरी नई जवान घोड़ी ऐसी कामुक बाते ओर मादक गंध वापस से उसके बदन को जलाने लगी.

घुड़वती :- नागकुमार के ऐसे घूमने से वो हस देती है.

अच्छा ऐसा क्या देखा?

नागकुमार :- आपकी बड़ी आंखे, सुराहीदार गर्दन, सुनहरे बाल, गोल स्तन जिन्हे आप मसल रही थी.

घुड़वती ये सुन के शर्मा जाती है.

घुड़वती :- कितने गंदे है आप ऐसी बाते भी कोई करता है.

नागकुमार :- आप जैसे अप्सरा हो तो क्यों नहीं करता

ऐसी ही नोक झोंक मे घुड़वती भी नागकुमार कि तरफ आकर्षित होने लगती है उसे जरा भी ख्याल नहीं था कि वो अर्ध नग्न अवस्था मै एक अनजान पुरुष के सामने खड़ी है.

कथा जारी है...
 
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चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी अपडेट -23

घुड़वती और नागकुमार एक दूसरे मे खोये थे, वातावरण ही मदहोश कर देने वाली गंध से भरा पड़ा था ऊपर से दोनों ही नौ नये जवान जिस्म... दोनों ही एक दूसरे के कामुक अंगों को देख उत्तेजना महसूस कर रहे थे.
नागकुमार :- हे सुंदरी नाम क्या है तुम्हारा? कहाँ से आई हो?
घुड़वती :- हम घुड़पुर कि राजकुमारी घुड़वती है. ऐसा कह शरारत और मदहोशी मे वो अपने स्तन ढके हाँथ हटा देती है.
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धम्म... से दो मदमस्त गोरे बड़े स्तन छलक जाते है.
और आप महाशय कौन है?
थोड़ा मुस्कुरा देती है
नाग कुमार को काटो तो खून नहीं. इतनी पास से ऐसी हसीन स्त्री पहली बार देख रहा था.
नागकुमार :- मै मै मममम..... मै कौन हूँ?
घुड़वती हस पड़ती है, उसे नागकुमार कि ऐसी हालत अच्छी लग रही थी.
"बोलिये बोलिये शर्माइये मत " अपने स्तन थोड़े हिला देती है.
ये नजारा देख के तो नागकुमार पानी मे ही गिर पड़ता है
आह्हः.... घुड़वती.
पानी मे गिरने से नागकुमार का निचला वस्त्र हट जाता है.
अभी चोकने की बारी घुड़वती की थी.
घुड़वती स्तंभ खड़ी रह जाती है उसने जीवन में पहली बार लंड देखा था, लंड के बाहर आ जाने से वही मादक खुशबू चारों दिशा में फैल जाती है घुड़वती जैसे ही खुशबू सूंघती है बहुत बेचैन होने लगती है क्या खुशबू है
घुड़वती :- अच्छा तो यह खुशबू तुम्हारे पास से आ रही है, ऐसा बोल घुड़वती भी पानी में उतर जाती है नाग कुमार घुड़वती को अपने पास देख कर चौक जाता है उसके लिए सब सपने जैसा था गोरे बड़े उछलते स्तन सपाट पेट गहरी नाभि नाग कुमार का लंड झटके मारने लगा झटकता लंड देखकर कर घुड़वती भी उत्तेजना महसूस करने लगी
दोनों ही जवान जिस्म एक ही आग में सुलग रहे थे
चढ़ती जवानी क्या ना करा दे दोनों के साथ वही हो रहा था
घुड़वती :- बताइए ना आप कौन हैं? उसकी आवाज़ मे अब कामुकता थी मदकता से भरे शब्द थे.
नाग कुमार. मैं मैं मैं मैं विषरूप का राजकुमार नागकुमार हूँ, एक ही झटके में सारी बात कह जाता है
घुड़वती :- अच्छा तो आप का शौक है छुप के नहाती स्त्री को देखना
वैसे यह नीचे क्या छुपा रखा है?
नाग कुमार:- कुछ भी तो नहीं, वो वो वो..तो बस ऐसे ही आपको देख के.
घुड़वती अब मदहोश हो रही थी लंड कि गंध पा कर, उसे पकड़ के देखना था महसूस करना था इस अनोखी चीज को जो उसके जवान जिस्म को बहका रही थी.
पानी मे नीचे गिरे नागकुमार के बिल्कुल पास आ के बैठ जाती है.
बताइये ना ये क्या है? लंड कि तरफ इशारा कर के पूछती है.
नागकुमार भी घुड़वती कि बात सुन सहज़ महसूस करता है लेकिन पहली बार स्त्री को इतनी पास पाकर थोड़ा घबरा रहा था थोड़ी उत्तेजना महसूस कर रहा था.
नागकुमार :- आप पकड़ के ही देख लीजिये ना घुड़वती, हिम्मत कर के बोल ही जाता है नागकुमार
घुड़वती भी समझ जाती है कि नागकुमार से कोई खतरा नहीं है, वो उसकी तरफ आकर्षित हो रही थी सुन्दर चेहरा गोरा बदन ऊपर से सुन्दर लिंग जो कि उसे मदहोश कर रहा था.
घुड़वती धीरे से अपना हाथ नागकुमार के लिंग पे रख देती है,
नागकुमार :- आअह्ह्ह.... घुड़वती ये क्या कर रही है आप? मुझे कुछ हो रहा है.
अर्ध नग्न घुड़वती कुछ सुनने सुनाने कि फिराक मे नहीं थी अपितु उसे सुनाई ही नहीं दे रहा था बस दिख रहा था ये खूबसूरत लंड.
बिना कुछ बोले वो अपनी नाक लिंग के पास ले जाती है और जोर कि सांस लेटी है.
शनिफ़्फ़्फ़.... आअह्ह्ह..... उसके मुँह से सिसकारी निकाल पड़ती है और नीचे चुत से पानी कि धार.
लंड कि गंध सीधा दिमाग मे चढ़ जाती है घुड़वती के.
नागकुमार को तो अभी भी ये समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है.
घुड़वती :- आपके इस से कोई गंध आ रही है हे नागकुमार.
नागकुमार :- मुझे तो नहीं आ रही कोई गंध, मुझे तो आपके पास से गंध आ रही है जिस वजह से मेरा लिंग खड़ा हुआ है.
आह्हः.... आपके हाथ रखने से मुझे कुछ हो रहा है राजकुमारी

दोनों जवान जिस्म आज जिंदगी का नया पाठ पड़ रहे थे, दोनों मिल के जिस्म का खजाना खोज रहे थे.
वो खजाना जो हर किसी के भाग्य मे नहीं होता.
तभी अचानक नागकुमार अपना एक हाथ बड़ा के घुड़वती के स्तन पे रख देता है..
घुड़वती चौक जाती है... आअह्ह्ह.... नागकुमार अच्छा लग रहा है.
सिर्फ मर्दाना छुवन भर से घुड़वती सिसक उठती है.
ऐसी उत्तेजना ऐसा आंनद तो कभी नहीं आया... दो कच्चे खिलाडी खेल के मैदान मे पक्के हो रहे थे.
खेल का आनंद उठा रहे थे.
घुड़वती मजे और उत्तेजना मे अपना स्तन और आगे को कर देती है ताकि नागकुमार के हाथ पुरे महसूस कर सके.
वो अभी भी एक हाथ से नागकुमार का लंड पकडे हुए थी.
नागकुमार अपने पुरे हाथ से घुड़वती के स्तन पकड़ने कि नाकामयाब कोशिश करता है स्तन इतने बड़े थे कि पुरे हाथ मे आ ही नहीं पा रहे थे.
नागकुमार स्तन मसलने लगता है,
स्तन रगड़ाई से चिंगारी छूट छूट के सीधा घुड़वती कि चुत तक पहुंच रही थी,
छोटी सी चुत लगातार पानी छोड़ रही थी.
दोनों जिस्मो मे समझौता हो चूका था आनन्द का समझौता, मादक सुख का समझौता.
अब घुड़वती के हाथ भी नागकुमार के लंड पे चलने लगे थे, उसे लंड को सहलाना अच्छा लग रहा था जैसे जीवन का अनमोल खजाना मिला हो.
नागकुमार उठ के बैठ जाता है उस से रहा नहीं जा रहा था वो स्तन रुपी फल को चख लेना चाहता था.
घुड़वती आप अतुल्य है बहुत सुन्दर है, ऐसा बोल दूसरा हाथ भी स्तन पे रख देता है.
घुड़वती के लिए ये दोहरी मार थी उसका हाथ नागकुमार के लंड पे कस जाता है.
आअह्ह्ह... नागकुमार के लंड मे ऐसा दर्द ऐसी उत्तेजना उठी कि वो झटके मार रहा था जैसे घुड़वती ने कोई मछली पकड़ी हो.
अच्छा लग रहा है घुड़वती... ये अहसास नया है..
ऐसा कह वो अपना मुँह स्तन के बिल्कुल नजदीक ले आता है, और अपनी लम्बी जबान से स्तन पे छोटे से बिंदु रुपी निप्पल को चाट लेता है.

आअह्ह्ह.... के चित्कार उठती है घुड़वतीगरम गीली जीभ, ऊपर से झरने का गिरता ठंडा पानी उसकी जान लेने पे उतारू था,जवानी का फूल खिल रहा था उसकी चुत लगातार पानी छोड़ रही थी.
नागकुमार बारी बारी स्तन चाटे जा रहा था वो पागल हो चूका था ऐसा अनमोल तोहफा पा के.
चुत से निकलती कुंवारी गंध जंगल मे दूर दूर तक फ़ैल रही थी.
ये गंध कही दूर किसी और के नाक तक भी पहुंच रही थी..
उस शख्श के भी होश उड़ जाते है वो गंध कि दिशा मे सरसरा जाता है...
इधर नागकुमार एक हाथ से स्तन मसल रहा था दूसरा स्तन उसके मुँह और जीभ के हवाले था जिसे चाट चाट के चूस चूस के निप्पल बाहर निकाल चूका था.
घुड़वती लगातार हंफे जा रही थी सिसकारी रुक ही नहीं रही थी, सुनसान वातावरण उसकी कामुक सिसकारी से गूंज रहा था.
आआआहहहह.... आआआहहहह.... नागकुमार उसके हाथ नागकुमार के लंड पे जोर जोर से चल रहे थे.
तभी नागकुमार उसकी निप्पल को दाँत मे रख के दबा देता है. घुड़वती इतनी उत्तेजित थी कि उसकी चुत भल भला के झड़ने लगती है
आअह्ह्ह..... नागकुमार मैम.. मै ममममम... गई.
मात्र स्तन चुसाई सेघुड़वती कि जवानी जवाब दे जाती है उसका यौवन चुत के रास्ते छलक उठता है. वो पीछे कि तरफ चट्टान पे लुढ़क जाती है उसके शरीर मे जान नहीं बची थी
आखिरकार उसके जीवन का पहला स्सखलन था ये.
कथा जारी है...
आज रात ही अगला अपडेट मिलेगा
 
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चैप्टर -2, नागवंश और घुडवंश की दुश्मनी अपडेट -24

घुड़वती जिंदगी के पहले चरम सुख को महसूस कर रही थी,
निचला वस्त्र पूर्णत्या गिला हो चूका था, सांसे धोकनी कि तरह चल रही थी.
नागकुमार साँसो के साथ उठते गिरते स्तन को देख रहा था, ये नजारा उसके लंड को फाड़ने को बेकरारा था.
घुड़वती कपड़े के ऊपर से ही अपनी चुत को दबोच हांफ रही रही, पानी का फव्वारा लगातार निकल रहा था.
उसका बदन झटके खा रहा था.... आंखे उलट चुकी थी.
नागकुमार के हाथ घुड़वती के निचले वस्त्र तक पहुंच जाये है, उसे देखना था कि ये मादक गंध कहाँ से आ रही है...
इसी मादक गंध मे खींचता हुआ कोई और भी झरने के नजदीक झाड़ियों तक पहुंच चूका था..... वो भी मदहोश था ऐसी सुन्दर काया को देख के.
नागकुमार धीरे से पकड़ के कपडे को हटा देता है, घुड़वती कोई विरोध नहीं करती अपितु उसने दम ही नहीं था कि वो कुछ करती या बोलती वो बस आंखे बंद किये किसी अनजानी दुनिया मे थी.
नागकुमार कपड़ा खींच देता है जैसे ही उसकी नजर घुड़वती कि जांघो के बीच पड़ती है उसके होश उड़ जाते है, मुँह खुला रह जाता है, आंखे और लंड फटने को बेकरार हो जाते है.
आअह्ह्हह्म..... मुँह से हैरानी भरी सिसकारी निकल जाती है.
घुड़वती कि जांघो के बीच चुत के नाम पे सिर्फ एक लकीर थी, कोई बाल नहीं एक दम गोरी चिकनी चुत.
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महीन दरार से पानी रिस रहा था जो सीधा गांड के छेद से चुता हुआ बहते पानी मे टपक रहा था, ये कामरस का झरना था इस झरने को देखने का नसीब ही नागकुमार को मिला था...
नागकुमार स्तंभ खड़ा चुत रुपी झरने को देख रहा था
दूसरी तरफ झड़ी ने छुपा शख्स " ये तो अपने नागकुमार है, ये साथ मे लड़की कौन है? विष रूप कि तो नहीं लगती? इसकी मादक गंध से तो किसी के भी होश उड़ जायेंगे.
ये सिर्फ हमारे मालिक के बिस्तर कि शोभा बढ़ाने लायक है "
"मालिक को बताना होगा " ऐसा सोच वो शख्स विषरूप कि और सरसरा जाता है.
सभी बातों से बेखबर नागकुमार का हाथ घुड़वती कि चुत के पास पहुंच चूका था, वो धीरे से अपनी एक ऊँगली चुत से निकलते शहद मे डूबा के अपनी नाक के पास ले आता है.
शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... आअह्ह्ह.... क्या मादक गंध है.
उसके दिमाग़ सुन्न पड़ जाता है, उत्तेजना सर चढ़ जाती है धीरे से अपनी लम्बी जबान निकल के ऊँगली पे रख देता है, जैसे ही स्वाद चखता है घन घना जाता है
उसका धैर्य जवाब देने लगा था, ऐसा मादक स्वाद उसके रोम रोम को हिला रहा था.
जैसे कोई शराबी को थोडी शराब चख के तो पूरी बॉटल ही मुँह को लगा देता है ऐसी ही इच्छा जन्म ले चुकी थी नागकुमार के दिल मे.
वो अपने घुटने के बल झुकता चला जाता है, उसे सिर्फ वो पतली लकीर दिख रही थी जहाँ से मादक नशीला शहद टपक रहा था,
उसकी नाक ठीक घुड़वती कि चिकनी चुत के ऊपर थी इस बार जोर से सांस खिंचता है ये मादक गंध शरीर के हर रोये तक पहुंच चुकी थी... उस से रहा नहीं जाता वो अपनी लापलापति लम्बी जीभ घुड़वती कि चुत पे रख देता है.....
आनंदसागर मे डूबी घुड़वती इस हमले से सिहर उठती है, आग उगलती चुत पे जीभ कि ठंडक पड़ते है घुड़वती तड़प के आंखे खोल देती है कोहनी के बढ़ उठ जाती है.
आअह्ह्ह..... नागकुमार क्या कर रहे है आप?
नागकुमार कुछ नहीं बोलता बस वो कही खो गया था, उसकी जबान चुत कि लकीर पे कभी ऊपर तो कभी नीचे को चल रही थी.
आअह्ह्ह..... घुड़वती कि सिसकारिया फिर से निकलने लगती है.
उसका बदन उत्तेजना के मारे तड़प रहा था, दोनों हाथ से नागकुमार का सर पकड़ के चुत पे दबाने लगती है, जैसे अंदर ही घुसा देगी... नागकुमार लपा लप मलाईदार चुत चाट रहा था कभी गांड के छेद से चुत के दाने तक चाटता तो कभी चुत के दाने से गांड के छेद तक चाटता,
दोनों ही जिस्म सम्भोग कला सिख़ रहे थे, कामसुःख के नये द्वारा खोल रहे थे.
कामकला कोई सिखाता नहीं है वो तो बस स्वतः आ जाती है.
नाग कुमार को चाटने और घुड़वती को चाटवाने मे मजा आ रहा था.
नागकुमार चुत चाटते चाटते पत्थर के ऊपर आ कर अपना लिंग घुड़वती के मुँह कि तरफ कर देता है.
अब नागकुमार का मुँह घुड़वती कि चुत मे और लंड घुड़वती के मुँह पे दस्तक दे रहा था.
आखिर उसे भी चुसाई चटाई का सुख चाहिए था, ये कला खुद से ही विकसित हो गई जहाँ दोनों रखा साथ मजा ले सके.
घुड़वती अचानक इस बदलाव से चौकती है आंखे खोल देखती है तो एक गोरा खूबसूरत लंड बिल्कुल नाक के पास झटक रहा है.
घुड़वती लम्बी सांस खींचती है... आअह्ह्ह शिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... लिंग कि गंध साँसो मे उतरती चली जाती है नाक से होती चुत तक एक लहर दौड़ उठती है जिसे चुत चाटता नागकुमार महसूस करता है,
घुड़वती कि चुत एक पल को खुलती है फिर बंद हो जाती है जैसे तड़प रही हो कुछ मांग रही हो.
लेकिन क्या मांग रही है दोनों को ही नहीं पता था.... बस जो हो रहा था सौ हो रहा था.
घुड़वती अपनी जीभ निकाल के लिंग के छीद्र पे रख देती है एक अजीब स्वाद से मुँह भर जाता है, स्तन पेट काँपने लगते है.
स्वाद ऐसा मदहोश कर देने वाला था कि उस से रहा नहीं जाता वो अपना छोटा सा मुँह खोले लिंग को अंदर लेने कि पुरजोर कोशिश करती है.. नीचे होती चुत चुसाई उसे ऐसा करने को प्रेरित कर रही थी.
मुँह मे लिंग जाने से नागकुमार के टट्टे सिकुड़ने लगते है, ये अजीब था ये अहसास वो था जिसका कोई जवाब नहीं किसका कोई शब्द नहीं होता.
दुगने जोश मे आ केदांतो से पकड़ पकड़ के चुत को काटने लगता है.
आअह्ह्ह..... नागकुमार ऐसा बोल घुड़वती भी लंड को मुँह मे भर लेती है.
अब जो हो रहा था सब काम कला का हिस्सा था, वो खजाना था जो इन दोनों जवान जिस्म ने मिल के खोजा था.
अब इस खजाने का लुत्फ़ एकसाथ उठा रहे थे.
चुत चाटे जाने से पच पच.... फुचक कि आवाज़ और लंड चूसे जाने से गुलुप गुलुप पीच... पूछ... का मधुर संगीत गूंज रहा था.
जैसे कोई दो महान संगीत कार जुगलबंदी कर रहे हो हारना कोई नहीं चाहता था.
नागकुमार उत्तेजना मे अपनी कमर को हिलाने लगता है जिस कारण लिंग सीधा घुड़वती के गाके तक जा के वापस आ रहा था, थूक निकल निकल के पुरे मुँह को भिगो चूका था.
नीचे चुत छप छप कर रही थी सारा रस नागकुमार गटके जा रहा था.
थूक और काम रस से चुत चमक रही थी.
परन्तु कब तक दो नये जवान जिस्म इस आग को संभाल पाते....
घुड़वती अपनी गांड उठा उठा के नागकुमार के मुँह पे मारने लगी... नागकुमार अपने लंड को जितना हो सकता था उतना घुड़वती कि मुँह मे पेले जा रहा था..
सिसकारिया रुकने का नाम नहीं ले रही थी. उत्तेजना मदकता दोनों के सर पे हावी थी,
बस कभी भी हवस से लठपथ जवानी फटने को थी.
तभी घुड़वती वापस से छल छला उठी.... आअह्ह्ह.....
जोरदार सफ़ेद पानी का फव्वारा छटा और नागकुमार के मुँह मे समा गया.
नागकुमार भी कामरस का स्वाद पा के काबू ना कर सका वो भी भल भला के फट पड़ा.
आअह्ह्ह..... करता एक के बाद एक पिचकारी छोड़ता चला गया, घुड़वती जो स्सखालन होने से निढाल थी उसके मुँह मे गर्म लावा फट गया था, गरम कसैला मादक स्वाद पा के उसकी चुत से एक जोरदार फव्वारा फिर निकला.
आअह्ह्ह..... नागकुमार.
दोनों ही परम आनंद कि गहराई मे खोये हुए थे.
घुड़वती और नाग कुमार का मुँह एक दूसरे के वीर्य से भीगा पड़ा था.
घुड़वती बचे खुचे वीर्य को जीभ से पोंछ पोंछ के चाट रही थी, ये स्वाद अद्भुत था, ये पल खोना नहीं चाहती थी.
आखिर उसके जीवन मे पहली बार मर्दाना वीर्य चख रही थी.
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कुछ गाल होंठ पे ही रह गया था कुछ गले से नीचे उतार चूका था.
दोनों ही अपने जीवन के अनमोल खजाने को पा चुके थे..
दोनों पता नहीं कितने वक़्त को यु ही एक दूसरे को घूरते रहे...
तभी शाम हो चली घुड़वती को होश आता है कि वो सुबह से ही घर से निकली है.
वो जल्द ही उठती है . नाग कुमार कि और वीर्य भरे चेहरे से देखती है और अपने अर्ध घुड़ रूप मे दौड़ पड़ती है...
नागकुमार :- कल मै यही इंतज़ार करूंगा सुंदरी.... आना जरूर.
घुड़वती पीछे पलट के देखती है उसके चेहरे पे एक कामुक मुस्कान थी,हाथ उठा अलविदा कह चल देती है
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और दौड़ पड़ती है. तिगड... तिगाड़ टप टप टप....
पीछे रह जाते है सिर्फ उड़ती धूल... और नागकुमार अपने मुरझाये लंड के साथ.
"हे नाग देव क्या घोड़ी थी "
नागकुमार भी विषरूप कि ओर चल पड़ता है.

नागकुमार से पहले ही कोई शख्स विष रूप पहुंच चूका था.
शख्स :- हे नाजराजा सर्पटा, मै सही कह रहा हूँ मैंने अपनी आँखों से देखा है क्या सुंदरी थी वो, ऐसा सौंदर्य कि अपने कभी जीवन मे नहीं देखा.
सर्पटा :- ऐसे कैसी हो सकता है गुप्तनाग?
हमने तो राज्य कि हर औरत लड़की को भोगा है तो फिर ये कौन आ गई?
गुप्त नाग :-वो स्त्री अपने राज्य कि है भी नहीं मालिक अपितु वो स्त्री ही नहीं है वो तो घोड़ी है, जवान कमसिन घोड़ी
घुड़पुर कि राजकुमारी घुड़वती.वो आँखों देखा विवरण सर्पटा को सुना देता है.
सर्पटा :- आह्हः.... गुप्त नाग तुम्हारी बातो से तोमेरा लंड अंगड़ाई लेने लगा, हमारे बेटे नागकुमार के मुँह पे वो चुत मसल रही थी, वाह मतलब चुदासी घोड़ी है.
गुप्त नाग :- हाँ मालिक नई नई जवानी निकली है तो उफान मार रही है, यही मौका है.
बोल के खिसयानी हसीं हस देता है.
सर्पटा :- hmmmm... तुम्हारी बात मानते है गुप्त नाग, यदि तुम्हारी बात झूठ निकली तो जानते हो ना सजा ऐसी मौत दूंगा कि पूरा राज्य याद रखेगा
गुप्त नाग :- खबर पक्की है मालिक, कल आप स्वयं चल कर देख लीजिएगा और यदि मैं सही हुआ तो?
सर्पटा :- गर तुम सही तो मर्ज़ी तुम्हारी मुँह माँगा ले लेना.
तो मालिक कल चलने के लिए तैयार रहिएगा.
प्लान बन चूका था घुड़वती पे संकट मंडराने लगा था.
परन्तु इन सब से अनजान घुड़वती घुड़पुर पहुंच चुकी थी आज वो अपने आपे मे नहीं थी.
बिस्तर पे लेटी आज दिन भर कि घटना ही उसकी आँखों के सामने दौड़ रही थी उसकी चुत अभी भी पानी छोड़ रही थी, मुँह मे नागकुमार के वीर्य का स्वाद अभी भी महसूस हो रहा था.
आंखे बंद किये वो आने वाले कल के बारे मे सोच रही थी. मुझे जाना चाहिए? लेकिन हम क्यों जाये? वो नागकुमार हमारा है कौन?सवाल का जवाब उसका सुलगता बदन दे रहा था
घुड़वती तेरी ये आग का क्या? देख तेरी चुत कैसे उसकी याद मे अंशु बहाँ रही है.
तेरा ये जवान जिस्म यहाँ महल मे धूल खा रहा है, अपना जीवन जी अपने जिस्म से खेल उसे उचाईया छूने दे.
"क्या ये सही है?"
सही गलत कुछ नहीं होता घुड़वती, यही तो अच्छा लगता है तुझे देख खुद को तेरे ये गोल स्तन, उभरी गांड टपकती चुत क्या कहती है.
जा मजा ले अपने जिस्म का.
इसी उधेड़बुन मे उसे कब नींद आ जाती है पता ही नहीं चलाता.
विष रूप मे नागकुमार भी इसी आग मे तड़प रहा था.
क्या जवान घोड़ी थी वो, ऐसी स्त्री ऐसी मादक महक कभी नहीं महसूस कि मैंने.
यही स्त्री इस विष रूप कि रानी बनने लायक है.
नागकुमार तो घुड़वती को रानी बनाने के सपने संजोने लगा था.
वो भी इसी मीठे सपने मे सौ चूका था.
लेकिन नियति को ये सब मंजूर नहीं था.
क्या होगा घुड़वती का?
क्या यही से दुश्मनी कि शुरुआत हुई थी नाग ओर घोड़ो के बीच?
बने रहिये कथा जारी है
 
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अपडेट -25 contd...

सर्पटा, घुड़वती कि ओर बढ़ रहा था, घुड़वती सरकतें सरकतें पीछे चट्टान से जा लगी अब उसके पास कोई जगह नहीं थी भागने कि सामने राक्षस जैसा इंसान इच्छादारी नागो का राजा सर्पटा खड़ा था.
अपना भयंकर लंड लिए वो लंड जो कई औरतों कि मौत कि चुदाई दे चूका था. लंड था ही इनता भयानक ओर मोटा कि हर औरत नहीं झेल पाती थी.
सर्पटा :- सुंदरी डरो नहीं हमसे हम तो बस तुम्हारा प्यार पाना चाहते है तुम्हारे कामुक बदन को खिला देंगे, तुम्हारी जवानी इस लंड से ही पूरी खिलेगी ऐसा बोल वो लंड को घुड़वती कि ओर बड़ा देता है.
पीछे गुप्त नाग सुप्त नाग घुड़वती के नग्न सौंदर्य को देख लंड हिला रहे थे, घुड़वती तो उनके लिए अजूबा ही थी गोरा ओर भरा बदन कि मालकिल थी घुड़वती.
घुड़वती कि तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना पा के सर्पटा समझ जाता है कि े डर रही है इसे जवानी का मजा तो लेना है परन्तु डर रही है इसे उत्तेजित करना होगा.
सर्पटा जब भी किसी स्त्री को भोगता था तो स्त्री को तैयार करने का काम सुप्त नाग ओर गुप्तनाग ही किया करते थे.
सर्पटा :- सुंदरी तुम किसका इंतज़ार कर रही थी यहाँ?
घुड़वती अभी भी अपनी चुत ओर स्तन को हाथो से छुपाये हुए थी.
घुड़वती :- वो वो वो.... मै नागकुमार का
सर्पटा :- ऐसे कपडे खोल के? हाहाहाहा...
ऐसा बोलने से घुड़वती को अपनी गलती का अहसास होता है, वो जमीन मे गड़ी जा रही थी.
उसे अहसास हो गया था कि उसने कितनी बड़ी गलती कर दि है उत्तेजना मे,
वो अपनि हवस पे शर्मिंदा होने लगी उसका सर नीचे को झुक गया.
सर्पटा:- बोलो सुंदरी कपडे खोल के इंतज़ार करती हो तुम?
सर्पटा प्यार से बाँट संभालना चाहता था क्युकी वो कोई जबरदस्ती नहीं करना चाहता था.
वो थोड़ा नजदीक आता है.
घुड़वती सहमी हुई अचानक चीख पड़ती है.
घुड़वती :- दूर रहो मुझसे गंदे इंसान, किसी स्त्री के साथ ऐसे पेश आते है.
सर्पटा राजा था वो भी ज़ालिम क्रूर राजा.. ऐसी बदतमीजी से उस से किसी ने बात नहीं कि थी.
उसका दिमाग़ गरम हो जाता है.
ओर कोई स्त्री होती तो अभी चुत मे लंड डाल के मुँह से बाहर निकाल देता.
लेकिन यहाँ सर्पटा घुड़वती के रूप पे मोहित हो गया था वो उसको प्यार से भोगना चाहता था.
सर्पटा :- साली... खुद किसी वेश्या कि तरह नंगी अपनी चुत मसल रही थीऔर मुझे तमीज़ सिखाती है.
अब मै तुझे हाथ भी नहीं लगाऊंगा तू खुद मेरा लंड लेगी देखता हूँ कब तक तेरी हवस तेरे कामुक बदन को रोके रखती है.
तू मान या ना मान तुझे लंड कि जरुरत है...
"गुप्त सुप्त तैयार करो " ऐसा बोल वो पीछे हट जाता है और पास मे चट्टान पे आराम से बैठ जाता है नंगा ही काला बदन काला भयानक लंड नीचे लटक के चट्टान से छू रहा था.
सर्पटा को पीछे हट ता देख घुड़वती को राहत महसूस होती है परन्तु वो नहीं जानती थीं कि ये तो सर्पटा का खेल है पहले मुर्गी को खूब दौड़ाओ थकाओ फिर शिकार करो.
खेल देखने के लिए सर्पटा आराम से बैठ चूका था.
गुप्तनाग :- मालिक पहले क्या देखना चाहेंगे?
सर्पटा :- भई पहले तो इसके गोरे स्तन ही दिखाओ.
गुप्तनाग सुप्तनाग आगे बढ़ते है और एक ही झटके मे घुड़वती का जो हाथ स्तन ढके था वो उसे पकड़ के हटा देते है.
खेल से पर्दा हट गया था दो चमकते मोटे मोटी धुप मे चमक रहे थे उस पे पड़ती पानी कि ठंडी बून्द निप्पल को थपेड़े मार रही थी.
निप्पल तो किसी कील कि भांति नुकिले हो चुके थे.
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सुप्तनाग :- मालिक इसके स्तन तो कुछ और ही बोल रहे है, लेकि ये तो मुँह से मना कर रही है.
सर्पटा सिर्फ मुस्कुरा रहा था घुड़वती कि कामुक स्तन देख लंड को सहला रहा था.
घुड़वती सहमी हुई काँप रही थी उसकी नजर रहरह के सर्पटा के हिलते लंड पे पड़ जा रही थी.
उसका बदन उसकी बात नहीं मान रहा था बदन बगावत पे उतारू था.
"नहीं नहीं .. मै ऐसा नहीं कर सकती मुझे अपना ध्यान हटाना होगा, मै सिर्फ नागकुमार के लिए यहाँ आई थी "
सुप्तनाग अपना एक हाथ घुड़वती के मुलायम मखमली स्तन पे रख देता है,
आअह्ह्ह.... नयी नयी जवान घुड़वती के मुँह से हलकी सी सिसकारी निकाल जाती है जिसे सर्पटा साफ सुनता है.
उधर नाग कुमार जो कि जलन सिंह कि हवेली कि और बढ़ रहा था उसका दिल बहुत बैचेन था, रह रह के उसका दिल वापस लौट जाने को कह रहा था.
परन्तु वो अपने पिता कि आज्ञा भी नहीं टाल सकता था,
"जल्दी से काम खत्म कर के यही से विषरूप के जंगल चला जाऊंगा शायद घुड़वती मेरा इंतज़ार कर रही हो"
क्या नागकुमार समय पे पहुंच पायेगा?
या घुड़वती हवस मे डूब के सर्पटा को हाँ कह देगी.
बने रहिये कथा जारी है....
 
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सुप्तनाग का हाँथ घुड़वती के मखमली बड़े स्तन पे था वो उस से खेल रहा था, ऐसा शानदार अहसास पा के सुप्तनाग के होश उड़े हुए थे, स्तन साहलाने मे वो मग्न था..
स्तन सहलाये जाने से घुड़वती भी पिघल रही थी परन्तु मन मजबूत किये सहमी हुई पड़ी थी वो भी गरम हो रही है दिखाना नहीं चाहती थी. परन्तु सर्पटा हज़ारो स्त्रियों को चोद चूका था वो औरत के रग रग से वाकिफ था.
घुड़वती को गरम होता देख उसकी बांन्छे खिल रही थी.
घुड़वती अभी भी विरोध कर रही थी हालांकि बदन पिघल रहा था, गुप्तनाग भी अब तक दूसरे स्तन को पकड़ चूका था घुड़वती का एक हाथ गुप्तनाग के पैर के नीचे दबा हुआ था, और एक बात बची खुची इज़्ज़त बचा रहा था जो गोरी चुत पे टिका हुआ था.
घुड़वती :- देखो तुम लोग जो भी हो छोड़ दो मुझे, नागकुमार को मालूम पड़ा तो वो तुम्हे छोड़ेगा नहीं. आवाज़ मे एक कम्पन था अब ye कम्पन हवस का था या घबराहट का कह नहीं सकते.
सर्पटा :- फूंकारता है... मै हूँ नाग वंश विष रूप का राजा सर्पटा, नागकुमार मेरा ही बड़ा बेटा है
विष रूप का होने वाला राजा उसने ही मुझे तेरे पास भेजा है,
अपने पिता को तोहफा दिया है उसने "तेरा शिकार "
हाहाहाहाहा...
भयानक हसीं से वातावरण गूंज उठता है, सर्पटा बड़ी सफाई से अपनी चाल खेल गया था.
घुड़वती ये सुनते ही ढीली पड़ गई, उसकी रही सही हिम्मत भी जवाब दे गई.
वो जिस से मिलने आई थी उसी ने उसका सौदा कर दिया "मै तो मन ही मन नागकुमार को चाहने लगी थी "
नहीं नहीं... ये झूठ है ऐसा नहीं हो सकता कहाँ नागकुमार सुन्दर कोमल गोरा और ये सर्पटा काला भयानक राक्षस जैसा.
फिर फिर ... नागकुमार क्यों नहीं आया? और इस जगह का सर्पटा को कैसे मालूम?
सर्पटा को कैसे मालूम कि मै मिलने आउंगी.
मतलब सर्पटा सही बोल रहा है.
अब घुड़वती फस चुकी थी उसे सर्पटा कि बात पे यकीन हो चला था
उसके आँखों से अंशु धारा फुट पड़ी थी.. अब ना हवस थी ना कोई उमग ना ही प्यास
सिर्फ पछतावा, दुख और आँसू रह गये थे.
सर्पटा घुड़वती कि हालात देख के ख़ुश था उसने घुड़वती कि हिम्मत तोड़ दि थी
अब मंजिल दूर नहीं थी उसके मन से नागकुमार हट चूका था अब जगानी थी सिर्फ हवस... शुद्ध हवस.

गुप्तनाग बहते हुए आँसू को अपनी जीभ से चाट लेता है, बेचारी भोली घुड़वती को बहुत अच्छा लगता है उसके दिल को जैसे मरहम लगा हो ये कुछ नया था
गुप्तनाग कि जीभ लगातार आँसू चाट रही थी कभी गाल पे कभी नाक पे तो कभी हलके से गुलाबी सुर्ख होंठ को छू जाती, इस छुवन से घुड़वती मचल जाती है,
उसके होंठ पे गीली जीभ और खुद के आँसू का नमकीन स्वाद मजा दे रहा था.
लेकिन वो ये दिखाना नहीं चाहती थी उसके आँसू बंद हो चुके थे ऊपर से लगातर होते स्तन मर्दन से उसके बदन मे झुरझुरी दौड़ने लगी थी उसके स्तन से निकलता करंट सीधा नाभी पे जा रहा था उसकी नाभी फूल रही थी
सांसे जोर जोर से चलने लगी थी वो अपना मुँह भींचे लेती हुई थी.
गुप्तनाग लगातार उसके होंठो को छेड रहा था घुड़वती हलके से अपनी जीभ बाहर निकलती है उतने मे ही गुप्तनाग अपने होंठ पीछे खींच लेता है.
नीचे सुप्तनाग अपनी जीभ घुड़वती के स्तन पे नीचे कि तरफ ले जा के चाटता हुआ ऊपर के और ले जाता है,
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आआआह्हः.... गीली चिपचिपी जीभ के स्पर्श से ही घुड़वती सिहर उठती है, नया कामुक बदन को और क्या चाहिए था उसकी उमंग इस एक छुवन से ही वापस लौटने लगी..
उसे और चाहिए था यही अहसास... उसके ना चाहते हुए भी साँसो के साथ उसके स्तन ऊपर को हो जाते है और सर पीछे को झुक जाता है जैसे स्तन खुद कि मन मर्जी चला रहे हो
सुप्तनाग स्थति को भापता हुआ एक बार फिर अपनी चिपचिपी जबान से ऊपर से नीचेचाट लेता है.
3-4 बार ऐसा करने से घुड़वती के निप्पल बाहर को निकाल जाते है जो किजीभ चलाने से टकरा रहे थे, निप्पल पे गिला खुर्दरा अहसास अलग ही कहर ढा रहा था, उसका मन करता है कि निप्पल को पकड़ के नोच ले परन्तु एक हाथ चुत ढके हुए था तो दूसरा हाथ गुप्तेनाग के पैर के नीचे दबा था घुड़वटी बेबस थी.
सुप्तनाग धीरे से अपना मुँह खोल उसके बड़े से तीखे निप्पल को मुँह मे भर चुभलाने लगता है.
आअह्ह्ह.... कामुक सिसकारी निकाल जाती है घुड़वती के मुँह से अब वो भूल चुकी थी नागकुमार को उसपे हवस सवार होने लगी थी,
उसे यही तो चाहिए रहा यही तो करने आई थी.
फिर नाग कुमार के धोखे ने उसे आज़ाद कर दिया था, आजादी थी अपने बदन को जानने कि, आजादी थी काम क्रीड़ा का नया पाठ पड़ने कि.
अब गुप्तनाग भी नीचे उतार आया था उसने घुड़वती का हाथ आज़ाद कर दिया था परन्तु अब घुड़वती अपने हाथ से स्तन नहीं ढक रही थी वो ऐसे ही पड़ा था.
गुप्तनाग भी स्तन पे टूट पड़ता है, एक स्तन सुप्तनाग नोच रहा था तो दूसरा स्तन गुप्तनाग
दोनों ने स्तन चाट चाट के लाल कर दिए थे
दोनों ही प्यार से पेश आ रहे थे, लेकिन ये तो सिर्फ छलावा था प्यार से सम्भोग मे क्या मजा?
घुड़बती के स्तन चमक रहे थे, फुल के पहले से ज्यादा बड़े हो गये थे, उसकी चुत लगातार पानी छोड़ रही थी चुत का पानी हाथ को पूरी तरह भिगो चूका था,
घुड़वती इस कदरगरम हो चुकी थी कि वो अपना एक हाथ उठा के सुपटनाग के सर पे रख देती है और जोर से स्तन पे दबा देती है जैसे बोलना चाहती हो चुसो इसे खाओ.... नोच लो

स्तन ले दबाव बनाये घुड़वती लगातार सिसक रही थी, वो ऐसा नहीं करना चाहती थी परन्तु ये निगड़ा नया जवान जिस्म कहाँ साथ दे रहा था मुँह से निकलती हुंकार इसका सबूत थी, उसका सर पीछे को झुका हुआ था, स्तन हवा मे उठे हुए थे चुत अभी भी हाथ से ढकी हुई थी वो अभी भी अपनी चुत को बचा लेना चाहती थी, परन्तु कब तक?
दोनों सेवक स्तन को चाट चाट के गिला और चिपचपा कर चुके थे उनकी लार स्तन से टपकती हुई नीचे चट्टान पे गिर रही थी,
घुड़वती कमर उठाये मरे जा रही थी उसकी हालात ख़राब होने लगी थी लग रहा था जैसेझड़ जाएगी, उसकी चुत फव्वारा छोड़ देगी...
तभी अचानक दोनों हट जाते है.. सुनसान
घुड़वती झड़ने के बिल्कुल करीब थी लेकिन ये क्या हुआ ये हट क्यों गये..
वो अपनी आंखे खोलती है तो पाती है कि दोनों उसे देख मुस्कुरा रहे थे वो तीनो के सामने सिर्फ चुत पे हाथ रखे पूरी नंगीब्लेती हुई थी उसे स्सखालित होना था उसे ये उत्तेजना सहन नहीं हो रही थी
वो कैसे बोलती कि चुसो और चुसो बंद किया.. वो सवालिया नजरों से दोनों को देखती है.
सर्पटा :- क्या हुआ सुंदरी क्या चाहिए? ये चाहिए क्या?
वो इशारे से अपना लंड दिखता है जो कि घुड़वती के कामुक चूसे हुए स्तन को देख खड़ा हो चूका था एक दम काला मोटा ताकतवर लंड.
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गुस्से से उबालती घुड़वती उस लंड को देखती ही रह जाती है, असर सीधा चुत पे हो रहा था, जाने क्या प्रभाव था सर्पटा के लंड का कि एक कुंवारी लड़की के चुत से पानी आने लगा था मात्र लंड देखने से.
 
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हवस के चरम पे पहुंचा के घुड़वती को वापस खींच लिया गया था, उसकी चुत फूल के सिकुड़ने लगी थी.
वो बस झड़ना चाहती थी लेकिन सर्पटा इतनी आसानी से ये खेल ख़त्म करने वाला नहीं था, उसे दौड़ा दौड़ा के शिकार करने मे ही मजा आता था
आज शिकार थी एक नयी जवान मासूम घोड़ी जिसके दिल मे नागकुमार के लिए नफरत और बदन मे हवस थी.
अँगारे भरी आँखों से वो सर्पटा कि तरफ देखती है सर्पटा बिना कुछ बोले लंड हिला रहा था,धीरे से ऍबे लंड कि चमड़ी को ऊपर खिंचता है, सीधी मादक गंध घुड़वती कि नाक से टकरा जाती है
पहले से ही काम अग्नि मे जल्दी घुड़वती महक पा के चित्कार उठी... आअह्ह्ह.... उसकी आँखों मे याचना थी.
सुप्तनाग और गुप्तनाग पीछे हट चुके थे, सर्पटा अपनी जगह सेउठ खड़ा होता है और कामुक स्तन जो कि चुसाई से लाल हो गये थे उन्हें देखता आगे बढ़ता है,
विशालकाय लंड जांघो के बीच झूल रहा था, सर्पटा कि मर्दाना चाल से लंड हिलोरे खा रहा था.
घुड़वती आंखे फाडे चुत पे हाथ रखे सर्पटा को नजदीक आते देख रही थी.
सर्पटा बिल्कुल पास पहुंच चूका था, वो अपने एक हाथ से लंड पकड़ता है ऊपर कि और कर के एक दम छोड़ देता है,
लंड सीधा घुड़वती कि चुत ढके हाथ पे प्रहार करता है.
धममम.... लंड कि गर्माहट और वजन से ही घुड़वती सिहर जाती है उसके बदन मे एक अनोखी गुदगुदी होती है जो उसने कभी महसूस नहीं कि थी ऊपर से लंड से निकली गंध...
आअह्ह्ह... कुछ हो रहा है मुझे "मन कर रहा है इस चुत को रागड़ू "
उसका बदन अब बिल्कुल साथ छोड़ देने पे उतारू था.
सर्पटा ऐसा ही कई बार करता है अपने भारी लंड को उठता और धम से वापस पटक देता, जैसे कोई लोहार हथोड़ा पिट रहा हो वैसा ही आभास हो रहा था घुड़वती को अपनी चुत पे, हाथ पे पड़ते प्रहार सीधा उसकी चुत पे असर डाल रहे थे,
उसकी चुत और ज्यादा पानी छोड़ने लगी थी, इतना पानी कि उंगलियों के बीच से पानी बाहर आने कि कोशिश कर रहा था,
कामुक मादक चुत का कुछ रस सर्पटा के लंड पे भी लग गया था.
सर्पटा :- क्यों सुंदरी अच्छा लग रहा है ना?
घुड़वती कुछ नहीं कहती वो अपना सर दूसरी तरफ घुमा लेती है "कैसे कहती कि मजा आ रहा है"
सर्पटा :- तेरी चुत तो चीख चीख के बोल रही है कि मारो मुझे
हाहाहाहाहा....
घुड़वती शर्म और लज्जत से गड़े जा रही थी, "नहीं नहीं मै ऐसा नहीं कर सकती मै तो नागकुमार से मिलने आई थी "
लेकिन कौन नागकुमार जिसने मुझे धोका दिया "
सर्पटा :- हाथ हटा भी दे देखने तो दे क्या अनमोल खजाना छुपा रखा है जांघो के बीच?
घुड़वती ना मे सर हिलती है हालांकि वो गरम थी हवस भरी पड़ी थी लेकिन थी तो स्त्री ही ना वो भी पहली बार ऐसा कुछ कर रही थी.
फलस्वरूप नहीं बोल पाई.
सर्पटा :- कोई बात नहीं घुड़कन्या हम भी तेरे बिना बोले कुछ नहीं करेंगे.
इसी के साथ एक तेज़ प्रहार चुत ढके हाथ पे पड़ता है.
आअह्ह्ह..... घुड़वती कि सिसकारी निकाल पड़ती है.
तीनो हस पड़ते है.
बुरी फसी थी घुड़वती हवस के चक्कर मे.
इस तेज़ प्रहार से घुड़वती एक बार फिर झड़ने को थी लेकिन सर्पटा पीछे हट जाता है,
एक दो प्रहार और पड़ते तो काम बन जाता, लेकिन घुड़वती तड़प के रह जाती है उसकी सांसे तेज़ चल रही थी वो मछली कि तरह चट्टान पे लेटी तड़प रही थी.
सर्पटा अब आगे बढ़ता है वो अपनी एक ऊँगली धीरे से चुत ढके हाथ पे रखता है और धीरे धीरे सहलाता हुआ ऊपर कि ओर चल पड़ता है.
सर्पटा कि ऊँगली घुड़वती कि नाभी पे आ के रूकती है, वो अपनी ऊँगली को नाभी के आस पास फेरता है,घुड़वती सिहारन से पेट अंदर खींच लेटी है, नाभी कणास पास पसीने कि बुँदे जमा हो जाती है,
सर्पटा लगातार नाभी और पेट को सहला रहा था, कामुकता के मरे घुड़वती सिसकारी भर रही थी, पेट कभी फूलता तो कभी पिचकता, उसनेसर्पटा का हाथ हटाने कि कोई चेष्टा नहीं कि.
करती भी क्यों वो तो मदहोश थी आनंद मे आंखे बंद किये खुर्दरे हाथ का मजा ले रही थी.
सर्पटा का हाथ अब ऊपर को बढ़ जाता है दोनों लाल हुए स्तन के बीच.
सर्पटा :- अरे दुष्टो इतनी बुरी तरह कौन चूसता है देखो कैसे लाल कर दिए.
ये शब्द सुन के घुड़वती को कुछ होता है उसे दोनों का छुवन और चुसाई याद अति है, उसके निप्पल कड़क हो के बाहर आ जाते है.
सर पीछे किये स्तन उठाये घुड़वती पड़ी हुई थी उसे वापस से उसी छुवन और चुसाई का इंतज़ार था
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वो चाहती थी कि सर्पटा भींचे उसके स्तन को.
परन्तुसर्पटा दोनों स्तन कि गोलाइयो पे ऊँगली से सहलाये जा रहा था, हलकी चुवन एक अलग ही कामुकता पैदा कर रही थी.
तभी सर्पटा स्तन के निप्पल को पकड़ के बेरहमी से ऊपर को खींच लेता है, घुड़वती चीख पडती है.
आअह्ह्ह..... उम्म्म्म..... जैसे ही सर्पटा निप्पल छोड़ता है घुड़वती को हल्का दर्द और मजे का मिलाजुला मजा आता है.
दर्द मे मजे का पाठ पढ़ रही थी घुड़वती.
दूसरे स्तन के निप्पल को भी सर्पटा पकड़ के बेदर्दी से मरोड़ देता है. दर्द का मजा हि अलग है.
घुड़वती कि सांसे भरने लगी थी, स्तन उठ गिर रहे थे, उसे बस स्सखालित होना था कैसे भी.

सर्पटा अब घुड़वती के सर के पीछे कि तरफ आ चूका था, उसकी जांघो के ठीक आगे घडवती का सर था लंड सर पे छू रहा था.
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घुड़वती जैसे ही कुछ समझती सर्पटा ने अपना लंड उठाया और धम से घुड़वती के चेहरे पे दे मारा.
आअह्ह्ह.... मा... लंड सीधा घुड़वती के होंठ पे जा के लगा, प्रहार इतना तेज़ था कि किनारे से होंठ थोड़ा फट गया एक हलकी महीन सी खून कि धारा निकाल पड़ी जो सीधा लंड पे लगी.
एक प्रहार और धमममम.... लंड नाक के करीब लगा, लंड से निकली गंध सीधा नाक मे घुस गई
आअह्ह्ह.... यही कमजोरी थी घुड़वती कि लंड कि मादक गंध
इस गंध ने घुड़वती के रोम रोम मे हवस का संचार कर दिया अब वो सब कुछ भूल चुकी थी अब जो होना है हो जाने दो.
जैसे ही वो अपने होंठ से निकलते खून को चाटने के लिए जीभ बाहर निकलती है वैसे ही लंड वापस से उसके होंठ पे पड़ता है
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इस बार उसकी गीली जीभ लंड पे पड़ती है, लंड से निकला स्वाद उसकी जीभ पे रेंगने लगता है,
अंदर ही अंदर उसकी हवस भी जवाब दे रही थी, नागकुमार कि गंध मे एक प्यार था परन्तु सर्पटा कि गंध मे सिर्फ हवस थी,, ये स्वाद सीधा चुत तक गया, उसकी चुत बेतहासा पानी छोड़ने लगी, ना जाने कब उसकी एक ऊँगली चुत कि लकीर मे चलने लगी, चुत ढके ढके ही उसकी ऊँगली चुत सहला रही थी, ये कुछ अलग थाकमसिन घुड़वती को तो पता ही नहीं था कि सम्भोग होता क्या है, परन्तु हवस अपने आप सब सीखा देती है.. घुड़वती का भी यही हाल था वो सब से छुपा के अपनी एक ऊँगली धीरे धीरे चुत कि लकीर मे अंदर घुसाने कि कोशिश कर रही थी उसे ऐसा करने से थोड़ी राहत का अनुभव हो रहा था.
थोड़ा सा ही सही लेकिन उसे सर्पटा के लंड का स्वाद मिल गया था, शसर्पटा वापस जैसे ही लंड पटकता है घुड़वती इस बार जानबूझ के जीभ बाहर निकाल देती है और लंड जीभ पे घिसता हुआ निकाल जाता है.
श्सर्पटा अपने लंड पे गिला अहसास पा है ख़ुश होता है
सर्पटा :- देखो तो ये जवान काली हमारा लंड चाटने कि कैशिश कर रही है. अरे मेरी रानी शर्माती क्यों है बोल दे ना कि तुझे मेरा लंड पसंद है चूसना है.
हाहाहाहा..... घुड़वती वापस से शर्मिंदा हो चली थी, वो चाहती तो यही थी लेकिन स्त्री सुलभ व्यवहार उसे रोक रहा था.
 
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घुड़वती को इस शर्म और लज्जत मे अलग ही मजा आ रहा था हवस क साथ साथ उसके बदन मे बेइज़्ज़त होने कि उमंग उठ रही थी, बेइज़्ज़त हो के सम्भोग कला मे जो मजा है आज घुड़वती को यही सीखना था.
घुड़वती सर्पटा को गर्दन हिलाके ना कह देती है, हालांकि उसे लंड कि गंध आकर्षित कर रही थी.
सर्पटा अनुभवी था उसे कोई जल्दी नहीं थी,उसे कोई जबरजस्ती नहीं करनी थी.
वो अपने शिकार से खेल रहा था और दोनों सेवक इस खेल का आनद उठा रहे थे वो दोनों दूर खड़े मालिक के अगले आदेश का इंतज़ार कर रहे थे.
सर्पटा का भी सब्र अब जवाब देने लगा था उसे घुड़वती का कामुक खजाना देखने कि तालाब मच रही थी जिसे घुड़वती ने अपनी हथेली से ढका हुआ था.
सर्पटा वापस से घुड़वती के पैरो कि तरफ बढ़ चलता है उसकी ऊँगली ऊपर होंठ से छुती नाभी तक आ चुकी थी.
सर्पटा घुड़वती के पैरो के पास बैठ जाता है और धीरे से उसके पैर के अंगूठे को मुँह मे ले के चुभला देता है.
आअह्ह्ह.... घुड़वती सिहर उठती है उसे मदकता कि असहनीय आनंद होता है रोम रोम कामुकता मे डूबने लगता है.
सर्पटा अपनी लम्बी जबान को चलाता हुआ जाँघ तक पहुंच जाता है, पूरा पैर अंगूठे से ले के जाँघ तक गिला और चिपचिपा हो गया था सर्पटा के मुँह से लगातार लार निकली जा रही थी ऐसा गरम और चिकना बदन जो चाट रहा था.
घुड़वती तो मरे सिरहन के अपना सर इधर उधर पटक रही थी उसने अपनी चुत को जोर से भींच लिया था जैसे उसमे से कुछ निकलना चाह रहा हो और वो उसे दबाने कि कोशिश कर रही है, पूरी हथेली चिपचिपे पानी से सन गई थी, चुत मादक गंध छोड़ रही थी ऐसी मादक गंध जो सर्पटा को बेचैन कर रही थी.
सर्पटा जाँघ पे अपनी लम्बी जबान को चुत कि तरफ घुमा रहा था चुत गांड से निकलती गर्मी साफ सर्पटा के चेहरे मे महसूस हो रही थी,
गर्मी और कामुक गंध से सर्पटा का हाल बुरा था नीचे उसका लंड पूरा खड़ा हो के भयानक चूका था उसके अंदर का वहसी जानवर बाहर आना चाहता था.
इसी उपक्रम मे सर्पटा घुड़वती के जाँघ पे काट लेता है दर्द सीधा चुत से टकराता है.
घुड़वती के लिए अब असहनीय होता जा रहा था ये खेल वो अपना मुँह खोले जबान बाहर निकाले अपनी जबान चाट रही थी.
बस बोल नहीं पा रही थी कि चोदो मुझे.
सर्पटा :- अरे सुप्तनाग गुप्तनाग खड़े क्यों हो देखो बेचारी कैसे तड़प रही है अपनी जबान चला रही है.
दोनों ये आदेश सुन के ख़ुश हो जाते है तुरंत घुड़वती के सिरहाने पहुंच जाते है अपने नंगे खड़े लंड लिए हुए.
दोनों के लंड घुड़वती के मुँह और नाक के करीब लहरा रहे थे लंड से निकलती गांड उसे मदहोश कर रही थी बेचैनी पैदा कर रही थी,
वो लंड मुँह मे भर लेना चाहती थी लेकिन अभी भी थोड़ा विरोध बाकि था उसमे, वो मुँह बंद कर लेती है परन्तु दो दो मोटे काले लंड उसके मुँह के करीब थे. अपनी आँखों के इतना करीब वो पहली बार देख रही थी.
सुप्तनाग अपना लंड उसके होंठो से छुवा देता है, घुड़वती अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लेती है,
दूसरी तरफ गुप्तनाग अपना लंड लिए खड़ा है, घुड़वती के होंठ गुप्तनाग के लंड से छुवा जाते है.
ऐसे ही दोनों अपने लंड घुड़वती के होंठो पे मारने लगते है कभी रागढ़ते है.
नीचे सर्पटा लगातार जाँघ को चुत तक चाट रहा था, कभी चुत ढकी हथेली पे लगे चुतरस को चाट लेता.
नीचे ऊपर होते हमलोग से घुड़वती कि हालात ख़राब हो चली थी वो अपना मुँह खोल देती है आखिर कब तक सह पाती उअके जवान बदन को यही पसंद आ रहा था.
मुँह खुलते ही सुप्तनाग का मोटा टोपा घुड़वती के गिके गरम मुँह मे समा जाता है,

घुटी हुई सी सिसक निकाल जाती है.
मुँह मे लंड लिए घुड़वती अंदर ही अंदर सुपडे पे अपनी जीभ चलाने लगती है.
सुप्तनाग आनंद से अपनी आंखे बंद कर लेती है ना जाने कहाँ से घुड़वती मे ये कला आ गई थी.
सर्पटा :- सुंदरी हमें भी तो अपनी प्यारी चुत के दर्शन कराओ ऐसा बोल के वो अपना हाथ चुत ढकी हथेली पे रख देता है.
घुड़वती कि तो जान ही निकाल जाती है वही तो उसका आखिरी खजाना था जिसे वो अब तक छुपाये रखी थी.
परन्तु मुँह मे घुसा लंड कुछ अलग ही जादू चला रहा था धीरे धीरे सुप्तनाग अपने लंड को आगे पीछे करने लगा था.
सर्पटा हल्का सा जोर लगा के हथेली हटाता है इस बार कोई विरोध नहीं था घुड़वती का चिपचिपा हाथ हटता चला जाता है.
और जो नजारा सामने आता है उसे देख तीनो चकित रह जाते है एक बार तो भूल ही जाते है कि वो क्या करने आये है यहाँ.
एकटक तीनो घुड़वती कि चुत को घूरते रह जाते है.
एक दम गोरी चिकनी चुत बाल का एक कतरा भी नहीं कामरस से पूरी भीगी हुई.
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चुत के नाम पे सिर्फ एक लकीर थी उसके नीचे बारीक़ सा गांड का छेद.
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आअह्ह्हह्ह्ह्ह.... हे नागदेव
सर्पटा कि आह निकाल गई थी उसे अपने देवता याद आ गये थे ये नजारा देख के.
ऐसी चुत तो उसने कभी पुरे जीवनकल मे ही नहीं देखि थी.
यही हाल सुप्तनाग और गुप्तनाग का भी था.
इनसब से अनजान घुड़वती आंख बंद किये सुप्तनाग के लंड पे मुँह चला रही थी.
उसे पता ही नहीं पड़ा कि कब सुप्तनाग ने धक्के लगाना बंद किया और वो खुद अपने होंठो मे लंड दबाये आगे पीछे कर रही थी.
हवस सर पे चढ़ चुकी थी उसको कोई होश नहीं था उसे मजा आ रहा था सिर्फ मादक मजा
उसका बदन भट्टी कि तरह जल रहा था
सर्पटा कि लापलापति लम्बी जीभ चुत कि लकीर को छू जाती है.
आअह्ह्ह.... कि चीख सुप्तनाग के मुँह से निकलती है, घुड़वती ने मारे लज्जत और हवस से सुप्तनाग का लंड अपने दांतो तले भींच लिया था, जैसे किसी ने उसकी आत्मा पे जलती सालाख रख दि हो ऐसा अहसास हुआ था घुड़वती को अपनी चुत पे.
सर्पटा लप लप करता चुत से निकलते झरने को अपने मुँह ने समेटता जा रहा था,लेकिन घुड़वती कि लकीर नुमा चुत से कामरस का समुन्द्र निकाल रहा था जिसको मुँह मे भर पाना किसी के बसमे नहीं था सर्पटा के मुँह से थूक और कामरस निकल निकल के गांड के छेद को भिगो रहा था.
अब घुड़वती किसी भी वक़्त अपने चरम पे पहुंच सकती थी.
अचानक तीनो अपनी जगह से उठ खड़े होते है...
ये क्या फिर क्या हुआ अब नहीं इस बार नहीं....
घुड़वती आंखे खोल देती है उसकी आंख मे सिर्फ हवस थी सच्ची हवस
बस उसे कोई स्सखालित कर दे कोई अच्छा बुरा नहीं था बस लंड दिख रहा था उसे.
इस बार चिल्ला उठती है
घुड़वती :- ऐसा मत करो मै मर जाउंगी
सर्पटा :- तो बोल ना क्या चाहिए?
घुड़वती :- वो... उसके लंड कि तरफ इशारा कर देती है.
सर्पटा :- मुँह से बोल छिनाल क्या चाहिए?
घुड़वती चीखती हुई लंड चाहिए मुझे लंड दो....
मै मार जाउंगी.
पागलो कितरह अपने बाल खींचने लगती है.
सर्पटा उसकी हरकत देख के ठहका लगा देता है, हाहाहाहाहा.... " सोच ले फिर एक बार मै शुरू हुआ तो रुकूंगा नहीं "
बेचारी घुड़वती सम्भोग से अनजान रही उसे क्या पता कि इतना बड़ा लंड लेने से क्या हो सकता है.
वो फिर चिल्ला देती है.
घुड़वती :- मुझे कुछ नहींपता, कुछ करो मेरे साथ मेरा बदन जल रहा है,
स्तन दर्द कर रहे है मै सहन नहीं कर सकती
मै हाथ जोड़ती हूँ तुम लोगो के आगे कुछ करो.
घडवती कि आवाज़ मे हवस थी लाचारी थी वो चुदने कि भीख मांग रही थी.
इसी मे तो सर्पटा को मजा आता था.
सर्पटा अपना लंड ले के चल पड़ता है घुड़वती कि और एक ही बार मे टांग पकड़ के दोनों दिशाओ मे फैला देता है अब सर्पटा नामक जानवर कि बारी थी बेवकूफ घुड़वती उसने राक्षस कोआमंत्रित कर दिया था.
सर्पटा अपना भरी भरकम लंड घुड़वती कि कैसी हुई बंद चुत पे रख देता है. और धक्का लगाता है लंड फिसलता हुआ ऊपर को नाभी पे जा लगता है.
आअह्ह्ह.... सिसकारी मार के रह जाती है घुड़वती
सर्पटा फिर कोशिश करता है अंजाम वही.
घुड़वती लंड कि छुवन पा के भीफर उठी थी उसने होना धड ऊपर उठा लिया था तनिक भी नहीं सोचा कि इतना बड़ा मोटा लंड छोटी सी चुत मे जायेगा कैसे.
सर्पटा घुड़वती कि चुत ोे अपने लंड को अच्छे से रगड़ के गिला करता है ढेर सारा थूक गिरा देता है...
इस बार धक्का मरता है,
एक ही बार मे जोरदार.... धाकककककक..... से
पच करता लंड का टोपा अंदर समा जाता है, चुत के किनारे एक दूसरे का साथ छोड़ने लगते है, उनके बीच से खून कि एक पतली धार पाचक से निकल सर्पटा के टट्टो पे पड़ती है.
घडवती का सीना ऊपर आसमान को तन जाता है उसकी सांस अटक जाती है आंख पथरा जाती है.
उसके मुँह से आवाज़ ही नहीं निकल रही थी...
एक धक्का और आधा लंड अंदर कोई रहम नहीं कोई दया नहीं.
लेकिन इस बार आअह्ह्हह्म......उह्म्म्मम्म ..... बाहर निकालो
चीख से जंगल गरज उठा था.
घुड़वती ने अंजाम सोचा ही नहीं था सारी हवस सारी उत्तेजन चुत मे ही दफ़न हो गई थी.
सर्पटा हस रहा था. हाहाहाहा..... सुंदरी ये तो शुरुआत है मैंने पहले ही आगाह किया था
घुड़वती चीख रही थी उसकी आँखों मे आँसू थे.
सर्पटा इशारा करता है...
गुप्तनाग तुरंत घुड़वती का मुँह पकड़ लंड ठूस देता है उसकी चीख हलक मे दब जाती है.
हलक और चुत दोनों सुख चुके थे घुड़वती के.
सर्पटा लंड बाहर को खिंचता है.
घुड़वती को लगता है जैसे चुत बाहर को आ के पलट जाएगी, चुत के बाहरी मुख ने लंड पे कब्ज़ा कर लिया था जैसे अपने प्रेमी से मिली प्रेमिका हो जो बरसो बाद मिली है छोड़ना ही नहीं चाहती.
सर्पटा थोड़ा सा लंड बाहर खींच वापस ठेल देता है....
घुटी से चीख घुड़वती के गले मे दबी रह गई, उसकी बेबसी, लाचारी, दर्द सिर्फ उसके आँसू ही बता रहे थे, उसमे तो इतनी भी जान नहीं थी कि वो अपने हाथ पैर हिला पाती.
सुप्तनाग भी घुड़वती के सिरहाने पहुंच अपना लंड उसके मुँह पे मारने लगता है इरादा मुँह मे घुसा देने का था परन्तु जगह नहीं थी गुप्तनाग का लंड पहले ही गले तक घुसा हुआ था,
तो क्या हुआ जगह तो बनाने से बनती है यहाँ भी बनेगी.
घुड़वती अपने एक हाथ से लंड पकड़े हुई थी
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नीचे सर्पटा एक के बाद एक भयंकर बेरहमी के साथ लंड ठेले जा रहा था, खून से गोरी चुत लाल हो चुकी थी अभी तो आधा लंड ही घुसा था.
आधे लंड को ही आगे पीछे कर रहा था या यु कहो कि घुड़वती कि चुत मे जगह ही नहीं थी लंड जाने कि, सर्पटा सब्र से काम ले रहा था.
परन्तु ऊपर सुप्तनाग का सब्र जवाब दे गया था,गुप्तनाग के लंड निकलते ही जैसे ही घुड़वती चिल्लाने को हुई सुप्तनाग ने अपना लंड एक ही बार मे गले तक ठूस दिया,
चीख सिर्फ घुटन बन के रह गई, घुड़वती का गला और मुँह दर्द करने लगा था परन्तु चिंता किसे थे यहाँ तो तीनो जानवर थे.
एक लंड निकलता दो दूसरा लंड ठेल देता, दूसरा निकालता तो पहका गले तक उतार देता.
नीचे लगातार धक्के पड़ रहे थे धच धच धच.....
अब घुड़वती को भी दर्द के साथ थोड़ा मजा आने लगा था उसकी उमंग लौट आई थी.
लगातर होते घरषण से चुत पानी छोड़ने लगी थी, खून बंद हो गया था
, मुँह मे पड़ते लंड आनद दे रहे थे.
परन्तु सर्पटा को घुड़वती का यु आनंद लेना पसंद नहीं आया, वो अपना पूरा लंड बाहर को निकाल लेता है और दोनों टांगो को पकड़ के स्तन से घुटने लगा देता है.
घुड़वती कुछ समझ पाती उस से पहले ही गांड के छोटे से छेद को भेदता हुआ लंड अंदर समा जाता है पूरा का पूरा
उसके टट्टे गांड मे धच से धंस जाते है.
घुड़वती कि आंखे उलट जाती है, उसकी जान जैसे निकल गई हो ना कोई चीख ना कोई हरकत लंड मुँह से निकल चुके थे सर पीछे को झुक गया था.
गुप्तनाग :- मालिक लगता है झेल नहीं पाई बड़ी जल्दी ही मर गई.
सर्पटा :- अभी कहाँ मरी, घोड़ी है जवान घोड़ी इतनी जल्दी ना मरने कि.
बोल के सर्पटा पूरा लंड बाहर निकाल देता है उसका लंड खून से सना हुआ लाल चत बाहर आया, गांड बाहर को खींची चली आई थी घुड़वती कि.... धापपाक एक बेतहाशा बेदर्द धक्का और पूरा लंड वापस गांड के जड़तक.
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आआहहहह..... आहहहह...... घुड़वती होश मे आ जाती है इस हमले से जैसे बेजान शरीर मे प्राण लौट आये हो.
उसे समझ आ गया था कि उसने हाँ कह के बहुत बड़ी गलती कर दि, उसकी हवस आज उसकी जान लेने पे आमदा थी.
जोरदार चीख पुरे जंगल मे गूंज उठी थी..... चीख इतनी दूर गई कि जंगल मे प्रवेश करते एक शख्स के कानो मे भी पहुंची...
नाग कुमार जल्दी काम ख़त्म कर के जंगल के मुहने आ चूका था, उसे अपनी प्रेमिका, होने वाली राजकुमारी से मिलना था...
उसके कान मे एक तीखी चीख सुनाई पड़ती है....
नागकुमार :- ये कैसी चीख है जंगल के अंदर से ही आ रही है.
नागकुमार चीख कि दिशा मे बढ़ जाता है.
दूसरी तरफ घुड़पुर मे आज सुबह ही घुड़पुर का राजकुमार वीरा वापस महल आया हुआ है,
आज रक्षाबंधन जो था परन्तु सुबह से ही घुड़वती को महल मे ना पा के वो बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रहा है.
घुड़वती हवस मे ऐसी डूबी थी कि उसे ये भी ध्यान नहीं रहा कि आज उसका भाई वीरा आएगा रखी बंधवाने.
वो मदमस्त घोड़ी तो नाहकुमार से मिलने चल पड़ी थी.
परन्तु शाम होने को आई घुड़वती वापस नहीं आई, उसकी किसी सखी सहेली को भी नहीं बता के गई.
बेचैनी और चिंतावश वीरा घुड़वती को ढूढ़ने महल से बाहर निकल पड़ता है.
क्या घुड़वती जिन्दा बचेगी?
या उसकी हवस उसके प्राण हर लेगी?
कथा जारी है...
 
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चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी अपडेट -29

सर्पटा लगातार गांड कि जड़ मे धक्के मारे जा रहा था, फच फच फच... कि आवाज़ से जंगल हिल रहा था.
सर्पटा जानवर बन चूका था उसे घुड़वती कि चीख से कोई लेना देना नहीं था.
वापस से एक झटके मे लंड बाहर खिंचता है और इस बार पूरा का पूरा लंड चुत मे जोरदार धक्के के साथ पेल देता है.
लंड चिकना हो चूका था बेकाबू सर्पटा इतनी जोर से लंड घुसाता है कि लंड चुत चिरता हुआ बच्चेदानी को भेद देता है.
घुड़वती अपनी जिन्दगी कि आखिरी चीख निकालती है फिर वही पत्थर पे लुढ़क पड़ती है.
ये आखिरी चीख नागकुमार के कान मे पहुँचती है वो झरने के पास आ चूका था, सर्पटा कि पीठ नागकुमार कि और थी.
उसने साफ घुड़वती को चीखते सुना था.
नागकुमार वही पत्थर बन के रह गया.
सर्पटा अभी भी खून से सनी चुत मे धक्के मरे जा रहा था धच धच धच.....
सुप्तनाग :- मालिक मालिक..... वो मर गई है जाने दे अब
सर्पटा धच धच धच.... आआहहहह..... करता अपना सारा वीर्य चुत मे भर देता है.
स्सखालित होते ही उसे होश आता है वो घुड़वती कि तरफ देखता है वो निढाल हो चुकी थी सांसे थम है थी..
सर्पटा पक से अपना लंड बाहर निकलता है घुड़वती कि लकीर नुमा चुत और गांड पूरी गुफा जैसी हो चुकी थी जिसमे से खून और वीर्य निकल रहा था.
हवस का दर्दनाक अंत हो चूका था.
सर्पटा :- साली घोड़ी हो के भी लंड झेल ना पाई....
हाहाहाहा....
तभी एक तलवार का वार होता है सर्पटा का सर धड से अलग, महान सम्राट, भयानक सर्पटा नागो का राजा सिर्फ एक वार मे मरा पड़ा था.
उसके ठीक पीछे लहू से सनी तलवार लिए अपने रोन्द्र रूप मे नागकुमार खड़ा था, सुप्तनाग, गुप्तनाग उसका ऐसा रूप पहली बार देख रहे थे कोमल सा, मासूमसा दिखने वाला नागकुमार अपने रोन्द्र रूप मे था.
एक वार और सुप्तनाग गुप्तनाग भी गिर पड़ते है.
प्रेम पूरा ना जो तो विनाश कि ताकत स्वमः पनप जाती है वही नागकुमार बन चूका था
वो घुड़वती के करीब पहुँचता है घुड़वती कि हालात देख उसका दिल जार जार रो रहा था.
वो अपना रोन्द्र रूप त्याग चूका था बिल्कुल बेबस निढाल बेचारा नागकुमार घुड़वती के ऊपर झुकता चला जाता है.
तभी तिगाड़ तिगाड़... टप टप टप..... कि आवाज़ के साथ एक भयंकर गर्जना उठती है

"दूर रह नीच पापी मेरी बहन से "
वीरा घुड़वती को ढूंढता जंगल आ चूका था,
नागकुमार जैसे ही वीरा को देखता है चकित रह जाता है वीरा अपने अर्ध घुड़रूप मे तलवार लिए आँखों से अँगारे बरसा रहा था.
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नागकुमार के हटते ही वीरा कि नजर घुड़वती पे पड़ती है वो बदहावस सा आगे बढ़ता है अनहोनी कि शंका उसके दिल मे घर करने लगी, करीब पहुंच के देखता है घुड़वती बिल्कुल नंगी, जननअंगों से खून और वीर्य निकाल रहा था, सांस नहीं चल रही थी.
वीरा गुस्से से हिनहिनाने लगता है उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था..
गुस्से से भरा वो नागकुमार कि और पलटता है.
नागकुमार :- मेरी बात सुनो घुड़ राजकुमार....
वीरा :- नहीईईईई......तलवार का एक जबरजस्त वार और गर्दन अलग हो के दूर गिर पड़ती है.
वार इतना जबरजस्त रहा कि तलवार धड मे लग के वही चट्टान मे धस जाती है,
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वीरा रुनदन कर उठता है,"मेरी बहन देख आज रक्षाबंधन है और मे तेरी रक्षा नहीं कर पाया "
जार जार रोता वीरा घुड़वती को गोद मे लिए घुड़पुर कि ओर दौड़ा चला जा रहा था.
आँखों मे अँगारे थे ये अँगारे विनाश के थे.
पीछे बची थी सिर्फ लाश नागवंश कि लाश...

चैप्टर -2 नाग वंश और घुड़वंश कि दुश्मनी
समाप्त

चैप्टर -3 नागमणि कि खोज
आरम्भ


कथा वापस से वर्तमान मे जारी है....
 
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चैप्टर -3 नागमणि कि खोज अपडेट -30

सुबह हो चुकी थी, सुहाना मौसम हो रहा था अभी सूरज नहीं निकला था सिरद उसकी लालिमा फ़ैल गई थी चारो तरफ.
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सभी जगह तूफान शांत हो चूका था, रूपवती और वीरा कि आँखों मे आँसू थे, वीरा अपनी दर्दनाक कहानी सुना चूका था उसका लंड सिकुड़ के रूपवती कि चुत से बाहर आ गया था रात भर उसका लंड रूपवतीं कि चुत मे ही पड़ा रहा था.
गांड चुत के छेद पुरे खुल चुके थे वीरा ने मार मार के गुफा बना दिया था.
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चुत से लंड बाहर आते ही वीरा वापस अपने घुड़ रूप मे आ जाता है.
रूपवती आश्चर्य चकित होती है इसका मतलब वीरा सब सच बोल रहा था, वो विचार मे ही थी कि...
तभी टक टाकक की आवाज़ होती है जैसे कोई दरवाजे को टटोल rha हो..
रूपवती जल्दी से उठती है पुच कि आवाज़ के साथ ढेर सारा वीर्य उसके चुत के रास्ते बाहर निकलने लगता है जिसे देख वो वीरा कि तरफ देख शर्मा जाती है और एक कामुक मुस्कान चेहरे पे दौड़ जाती है.
जैसे कहना चाहती हो जो हो गया सौ हो गया अब मै हूँ ना वीरा.
वीरा भी हिनहिना के हामी भरता है.
रूपवती कपडे संभाल के दरवाज़े कि और बढ़ती है कोई काली परछाई दरवाजा के ऊपर चढ़ के अंदर हवेली मे कूद जाती है..
रूपवती स्तंभ रह जाती है उसे थोड़ा डर लगता है कि चोर आ गया है.
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वही दूसरी तरफ बिल्ला कि रात बहुत मुश्किल कटी उसे असहनीय पीड़ा हो रही थी बार बार रास्ते मे गिर पड़ता था, बिल्ला का मददगार शख्श खुद थक चूका था.
अब संभालना मुश्किल था फिर भी जैसे तैसे वो शख्स बिल्ला को लिए गांव कामगंज पहुँचता है मौलवी के घर.
ठाक ठाक ठाक....
मौलवी :- इतनी सुबह कौन है? दरवाजा खोलता है
सामने रुखसाना किसी भीमकाय आदमी को थामे खड़ी थी.
मौलवी :- अरे बेटी जल्दी अंदर आ ये कौन है? क्या हुआ इसे? तू रात भर कहाँ थी?
रुखसाना अन्दर आती है "पिताजी ये बिल्ला है इसे गोली लगी है, रंगा गिरफ्तार है "
कल रात शादी मे मैंने दरोगा वीरप्रताप सिंह को देख लिया था तो मै भी किसी अनहोनी के अंदेशे मे बारात के पीछे चल पड़ी थी..
मेरा जाना व्यर्थ नहीं गया.
मौलवी :- बेटी ये क्या किया इसे यहाँ क्यों लाइ हम लोग भी बेमौत मारे जायेंगे.
रुखसाना :- पिताजी मैंने इनकी सेवा कि है आज भी कर रही हूँ, ऐसा बोल बिल्ला को बिस्तर पे लेटा देती है उसकी सलवार कमीज़ पूरी खून से लाल हो चुकी थी.
कातिलाना बदन हलके उजाले मे चमक रहा था.
मौलवी :- बेटा गोली निकालनी होंगी वरना जहर फ़ैल जायेगा.
जा जा के इंतज़ाम कर पानी गरम कर.
रुखसाना थोड़ी देर मे सभी औजार ले आती है.
कुछ वक़्त बाद
मौलवी :- गोली तो निकाल दि है बेटी लेकिन अभी भी कमजोरी है खून बहुत ज्यादा बह गया है, जख्म भी बहुत गहरा है तुझे किसी डॉक्टर के पास जा के कुछ दवाइया लानी होंगी.
रुखसाना :- पिताजी लेकिन यहाँ दूर दूर तक तो कोई डॉक्टर है ही नहीं?
मौलवी :- बेटी विष रूप गांव मे एक डॉ है डॉ. असलम मै कल सुबह उनसे मिला था तुझे बताया तो था.
तुझे विष रूप ही जाना होगा यदि बिल्ला को बचाना है तो.
रुखसाना :- इसे तो बचाना ही होगा पिताजी तभी तो ये मुझे अपने मतलब के आदमी से मिला पाएंगे.
मै दवाई ले आउंगी पिताजी
ऐसा बोल रुखसाना नहाने निकाल पड़ती है उसे आज ही विष रूप के लिए निकलना था..
गांव घुड़पुर मे
रूपवती स्थिर चुपचाप खड़ी उस परछाई को हवेली मे अंदर आती देख रही थी.
"ये क्या ये परछाई भाई विचित्र सिंह के कमरे मे क्यों जा रहा है, जबकि उसके आगे मेरा भी कमरा है"
पीछे जाना होगा
रूपवतीं उस परछाई के पीछे चल देती है...
वो शख्स बड़े आराम से विचित्र सिंह के कमरे का दरवाजा खोल देता है और अंदर चला जाता है उसने पीछे वापस दरवाजा बंद करने कि जहमत भी नहीं उठाई थी.
वो सीधा विचित्र सिंह के बिस्तर पे गिरता है और जेब से एक हार निकाल के निहारने लगता है.
वाह क्या औरत थी चुत के साथ साथ गहने भी दे दिए...
वाह चोर मंगूस वाह... मंगूस खुद को शाबाशी दे रहा था.
तभी अचानक कमरे मे चिमनी जल उठती है, खिड़की से पर्दा हट जाता है
चिमनी रूपवती के हाथ मे थी...
मंगूस चौक जाता है "दीदी आप.... इतनी सुबह "
ऐसा बोल हाड़बड़ाहट मे हार और सभी गहने तकिये के नीचे छुपा देता है.
रूपवती :- तू रात भर कहाँ था? और चोरो कि तरह क्यों आया? वो तेरे हाथ मे क्या है? और ये मजदूरों कि तरह कपडे क्यों पहने है?
ममंगूस को काटो तो खून नहीं उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया था इतने सालो बाद उसका राज खुल गया था.
विचित्र सिंह :- दीदी वो मै... वो मै... हाँ शादी मे गया था.
रूपवती :- ऐसे कपड़ो मे? ठाकुर हो के मजदूर के कपड़ो मे. और कल तक तो तेरी मूँछ नहीं थी एक रात मे कैसे उग गई?
रूपवती तुरंत उसके सिरहाने के पास जा के उसका तकिया खींच लेती है, गहने हार जमीन पे गिर पड़ते है. रूपवती का दूसरा हाथ विचित्र सिंह कि मूछों पे जाता है एक झटके मे निकल जाती है नकली मुछ.
अब खेल ख़त्म हो गया था मंगूस का उसका पर्दाफाश हो गया था.
विचित्र सिंह :- दीदी वो मै....दीदी मै...
रूपवती :-चुप कर... आज तक तेरी चोरी कि आदत नहीं गई, अपनी माँ तेरी इसी आदत कि वजह से चल बसी, पिताजी जीवन से विरक्त हो गये.
कही कही.... तू ही तो वो बहरूपिया कुख्यात चोर मंगूस तो नहीं? ऐसा बोलते हुए रूपवती का कलेजा काँप रहा था,
उसे पता लग गया था कि यही है चोर मंगूस फिर भी एक कसक थी कि विचित्र मना कर दे कि मै चोर नहीं हूँ.
लेकिन ऐसा हुआ नहीं...
विचित्र :- अपना सर झुकाये... मै ही हूँ चोर मंगूस
रूपवती वही धम से बैठ जाती है अपना माथा पिट लेती है
हे भगवान... ये क्या हो रहा है
विचित्र सिंह अपनी बहन से बहुत प्यार करता था उसका दुख नहीं देख सकता था
उठ के उसके पास बैठता है उसके सर को पकड़ के उठाता है
विचित्र :- दीदी मुझे माफ़ कर दो.... लेकिन मै क्या करू मेरी आदत अब लत बन चुकी है जब तक मै चोरी नहीं कर लेता मुझे नींद नहीं आती मै बेचैन हो जाता हूँ.
कही भी हीरे मोती सोना चांदी देखता हूँ तो खुद को रोक नहीं पाता.
बिना चोरी के मै मर जाऊंगा दीदी.मैंने कभी किसी का अहित नहीं किया, कभी किसी गरीब के घर चोरी नहीं कि.
विचित्र सिंह कि आँखों मे आँसू थे होंठो पे सचाई थी.
रूपवती :- क्या तू मेरे कहने पे भी चोरी नहीं रोक सकता
विचित्र :- जिस दिन कोई बड़ा खजाना हाथ लग जाये मेरा मन भर जाये तो हो सकता है मेरी चोरी कि तम्मना खत्म हो जाये.
दोनों भाई बहन के आँखों मे आँसू थे,
मंगूस मजबूर था बाहर से विचित्र सिंह था लेकिन वो असल मे था ही चोर मंगूस.
"दीदी मै आपको दुख नहीं दे सकता आप वैसे ही बहुत दुखी है " भले मै मार जाऊ लेकिन अब चोरी नहीं करूंगा.
रूपवती अपना हाथ उसके मुँह पे रख देती है "मरे हमारे दुश्मन "
उसके दिमाग़ मे एक विचार चल रहा था.
रूपवती :- अच्छा तुझे कोई अनमोल खजाना मिल जाये तो तू चोरी छोड़ देगा?
विचित्र सिंह :- बिल्कुल दीदी
रूपवती :- अच्छा सुन एक चीज चोरी करनी है तुझे तेरी जीवन कि आखरी चोरी
जिसमे तेरी दीदी का भी भला है.बोल करेगा?
विचित्र :- आपके लिए जान हाजिर है दीदी, वैसे भी चोरी जितनी मुश्किल हो मुझे उतना ही मजा आता है.
वैसे मुझे चुराना क्या है?
रूपवती :- नागमणि कि चोरी
विचित्र :- नागमणि कि चोरी? ये कहाँ है?
रूपवती अपनी आपबीती सुना देती है, तांत्रिक उलजुलूल से मिली जानकारी दे देती है,
सिर्फ वीरा से हुए सम्भोग को छोड़ नागवंश और घुड़वंश कि सबकुछ बता देती है.
विचित्र सिंह कि तो बांन्छे खिल जाती है सुनते सुनते.
"वाह दीदी उस ज़ालिम सिंह को सबक सिखाने और आपकी सुंदरता के लिए आपका ये छोटा भाई जरूर चुराएगा नागमणि.
"अब चोर मंगूस जायेगा विष रूप "
बने रहिये
कथा जारी है....
 

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