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कहानी- हद से ज्यादा कुछ भी नही
रचनाकार- महोदया
अक्सर ऐसा ही होता है कि लड़के सिर्फ मतलब के लिए लड़कियों का इस्तेमाल करते हैं। ये बात लड़कों पर ही नहीं लड़कियों पर भी लागू होती है। बहुत सी लड़कियां लड़कों से सिर्फ इसलिए प्यार करती हैं कि वो उनका खर्च उठा सकें। लेकिन इस कहानी में बिल्कुल इसके उलट है। रवि अंजली से सिर्फ प्यार का नाटक करता है ताकि उसकी अय्यासी चलती रहे
यहां पर एक बात समझ नहीं आती की जब अंजली ने पहली बार उसका फेसबुक देखा तभी उसे उसके बारे में पता चल गया था। लेकिन फिर भी अंजली ने उसकी बात का भरोशा कर लिया। यहां तक कि उसके तंज भरे लफ्ज और प्रताड़ना को भी उसने चुपचाप सहन कर लिया। जबकि वो स्वावलंबी और कमाऊ लड़की थी। लेकिन कहते हैं न कि प्यार अंधा होता है यही अंजली के साथ भी हुआ।
जहां तक कहानी की बात है तो कहानी औसत ही है। वार्तालाप के प्रवाह और संवेदनशीलता की कमी है कहानी में। एक पाठक को कहानी में जो मटेरियल चाहिए उसका अभाव है कहानी में। फिर भी आपने बहुत अच्छी कोशिश की है कुछ नया पेश करने की।।
रचनाकार- महोदया
अक्सर ऐसा ही होता है कि लड़के सिर्फ मतलब के लिए लड़कियों का इस्तेमाल करते हैं। ये बात लड़कों पर ही नहीं लड़कियों पर भी लागू होती है। बहुत सी लड़कियां लड़कों से सिर्फ इसलिए प्यार करती हैं कि वो उनका खर्च उठा सकें। लेकिन इस कहानी में बिल्कुल इसके उलट है। रवि अंजली से सिर्फ प्यार का नाटक करता है ताकि उसकी अय्यासी चलती रहे
यहां पर एक बात समझ नहीं आती की जब अंजली ने पहली बार उसका फेसबुक देखा तभी उसे उसके बारे में पता चल गया था। लेकिन फिर भी अंजली ने उसकी बात का भरोशा कर लिया। यहां तक कि उसके तंज भरे लफ्ज और प्रताड़ना को भी उसने चुपचाप सहन कर लिया। जबकि वो स्वावलंबी और कमाऊ लड़की थी। लेकिन कहते हैं न कि प्यार अंधा होता है यही अंजली के साथ भी हुआ।
जहां तक कहानी की बात है तो कहानी औसत ही है। वार्तालाप के प्रवाह और संवेदनशीलता की कमी है कहानी में। एक पाठक को कहानी में जो मटेरियल चाहिए उसका अभाव है कहानी में। फिर भी आपने बहुत अच्छी कोशिश की है कुछ नया पेश करने की।।