Lustyweb's Exclusive Story Contest 2022 ➣ Reviews & Comments Thread

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Story - Kalpna ka Sapna
writer - XP 007

Well.... bike sikhne ke chakkar mein aur girkar chhot lagne ke chakkar nikhil aur kalpana ke bich wo sab incidents hua....
I mean to say... hakikat mein bhi aur sapne mein kuch zyada... :D
Hawas ki aag mein jal dono rahe the ... Par saamne se ye cheej dikhane se dono hi dar rahe the.... isliye mann mein hi wo hawas dab ke reh gaya tha... aur shayad dono hi ek dusro ko chaahne bhi lage the... dusri taraf ek flat mein dono akele.... inhi sabhi Ghatana karm ke chalte wo ek hi tarah ke sapne aaye dono ko.... sapne mein dono sex kar rahe the.....fark bas itna tha ki nikhil ko ek raat pehle jo sapna aaya wohin sapna agli raat kalpana ko aaya...
ab iske aage kya hua......kya Kalpana aur nikhil ne kya kiya.... ye to bas writer sahab hi jaane.... :D

Shaandaar kahani, shaandaar lekhni, shaandaar shabdon ka chayan sath dilchasp kirdaaron ki bhumika bhi dekhne ko mili hai... :D
Brilliant storyline with awesome writing skills :clapping: :clapping:
Thanks Naina jii :love:


ab iske aage kya hua......kya Kalpana aur nikhil ne kya kiya.... ye to bas writer sahab hi jaane.... :D
Iske age ka hamko bhi na malu :D coz mera sapna tut gawa tha :verysad:
 
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Lagii Lund Ki Lagan, Chudi Sajan Ke Sange

SiddHart ye story cnp story h proof chiye to bata dena de duga :online:
 
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🍁🍁🌼कर्मों का फल🌼🍁🍁
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Prefix- Non-Erotica
रचनाकार- Mahi Maurya
(6995 शब्द)
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रात का समय था। मैं अपने कमरे में लेटा सोने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी। ये मेरे साथ आज पहली बार नहीं हो रहा, बल्कि पिछले कई सालों से होता आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे नींद ने मेरी आँखों से अपना रिश्ता तोड़ लिया हो

तभी मुझे जतिन के कमरे से अंतरा और जतिन की आवाज़ आने लगी।जतिन मेरा बेटा और अंतरा मेरी बहू है। जिनकी 3 वर्ष पहले शादी हुई थी। अभी उनको कोई संतान नहीं है। मेरी बहू अंतरा सर्वगुण सम्पन्न स्त्री है। उसके अंदर वो हर गुण मौजूद हैं जो एक पत्नी, बहू, बेटी और माँ में मौजूद होने चाहिए।

कुल मिलाकर अंतरा मेरी पत्नी पूजा पर गई है। अंतरा को पूजा की कॉर्बनकॉपी कह सकते हैं गुणों के मामले में। पूजा में भी वो सारे गुण मौजूद थे जो एक पति और सास-ससुर को चाहिए। लेकिन मैं बहुत ही बसदनसीब इंसान हूँ जिसने कभी भी उसके गुणों की कद्र नहीं की।।

कुछ देर में अंतरा और जतिन की आवाज़ तेज़ होने लगी। कुछ ही देर में कमरे से मार-पीट की आवाज आने के साथ-साथ अंतरा के सिसकने की भी आवाज़ आने लगी। अंतरा और जतिन की शादी के लगभग डेढ़ साल के बाद ये रोज की बात हो गई थी।

मुझे ये सब बहुत खराब लगता था और गुस्सा भी बहुत आता था, लेकिन मैं जतिन को समझाने के अलावा चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था। मैं आज भी अपने कमरे से निकला और बेटे-बहू के कमरे के पास पहुंचकर तेज़ आवाज़ में कहा।

मैं- ये सब क्या है जतिन। तुम ऐसे कैसे बहू पर हाथ उठा सकते हो। तुम्हारा रोज का यही काम हो गया है। बाहर का पूरा गुस्सा तुम रोज आकर बहू पर उतरते हो। तुम्हें शर्म नहीं आती ऐसी घिनौनी हरकत करते हुए।।

मेरी आवाज सुनकर मेरा बेटा कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर आया और मुझपर चिल्लाते हुए बोला।

जतिन- आपसे मैंने कितनी बार कहा है कि आप अपने काम से काम रखा करिए। मेरे मामले में टांग अड़ाने की कोई जरूरत नहीं है। अंतरा मेरी पत्नी है मैं उसके साथ चाहे जो करूँ आप कौन होते हैं मुझे रोकने वाले।

मैं- (गुस्से से) मैं कौन होता हूँ? मैं तुम्हारा बाप हूँ। तुम्हें गलत करने से रोकना मेरा फर्ज है। तुम बहू पर इतना अत्याचार करते हो। तुम्हें शर्म नहीं आती। इतनी अच्छी, सुशील, संस्कारी और रूपवान पत्नी तुम्हें चिराग लेकर ढूंढने से भी नहीं मिलेगी, लेकिन तुम्हें उसकी कद्र ही नहीं है। सुधर जाओ बेटा नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि बाद में तुम्हें बहुत पछताना पड़े।

जतिन- आप अपने ज्ञान का पिटारा अपने पास रखिए। मुझे आपकी इन बकवास बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है। और क्या बोल रहे हैं आप। आप बाप हैं मेरे। हाहाहाहा। मेरे बाप हैं।

कभी बाप होने का फर्ज निभाया है अपने। कभी मुझे अपना बेटा माना है। हर समय मुझे रोकते टोकते रहते हैं। अगर आप सच में मेरे बाप होते तो मुझे किसी काम के लिए रोकते नहीं। इसलिए अपना ये झूठा प्यार का नाटक मेरे सामने मत करिए। मेरा कोई बाप नहीं है। मेरी सिर्फ माँ थी जो अब इस दुनिया में नहीं है।। समझे आप।

मैं जतिन का दो टूक जवाब सुनकर कोई जवाब नहीं दे पाया, क्योंकि उसके दिलो-दिमाग में बचपन से उसकी माँ ने जो कुछ मेरे बारे में जहर घोला था वो अब अपनी चरम पर पहुंच चुका था इसलिए मेरी कही गई किसी भी बात को वो कभी मानता नहीं था। उसकी बात सुनकर मैंने उससे कहा।

मैं- ठीक है तुम मुझे अपना बाप नहीं मानते। मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं हूँ, लेकिन जिसको तुम रोज प्रताड़ित करते हो, जिसको तुम रोज मारते हो। वो तो तुम्हारी अपनी है। तुम्हारी पत्नी है। तुम्हारी अर्धांगिनी है। तुम उसके साथ जानवरों वाला व्यवहार कैसे कर सकते हो।

जतिन- (गुस्से में) उससे आपको कोई मतलब नहीं होना चाहिए। वो मेरी पत्नी है। मैं उसे चाहे मारूँ या प्यार करूँ। आप होते हैं हैं मेरे और अंतरा के बीच बोलने वाले। इसलिए आप हमारे मामले में घुसना बन्द कर दीजिए नहीं तो आपके लिए अच्छा नहीं होगा।

मुझे कुछ भी कहने से पहले जरा एक बार अपनी गिरेबान में झांककर देखिए पापा उसके बाद मुझे अपने प्रवचन दीजिएगा। अब जाकर चुपचाप सो जाइये। मुझे भी आपकी इन पकाऊ बातों से नींद आने लगी है।

इतना कहकर जतिन ने मेरे मुंह पर दरवाजा बन्द कर दिया। मैं अवाक होकर अपने मुंह पर बन्द हुए दरवाजे को कुछ देर देखता रहा, फिर निराश, हताश सा अपने कमरे में आ गया और बिस्तर पर लेटकर अपनी आंखें बंद कर ली।

मेरी आँखों की कोर से आँसू निकलकर तकिए को भिगोने लगे। ये रोज का काम हो गया था। मैं ऐसे ही रोज अपने बेटे को समझाने जाता और उसकी खरी-खोटी सुनकर वापस अपने कमरे में चला आता और लेटकर आंसू बहाने लगता। ऐसा नहीं है कि मैं जतिन की बात सुनकर रोने लगता। अपने लिए रोना तो मैंने कब का छोड़ दिया था।

ये आंसू तो मेरी आँखों मे मेरी बहू अंतरा के लिए अनायास ही निकल पड़ते थे, क्योंकि वो जितनी गुणवान और संस्कारी थी उस हिसाब से वो बहुत अच्छा पति और बहुत अच्छे परिवार की हकदार थी, लेकिन उसकी किस्मत में मेरे निर्दयी बेटे का साथ लिखा था जिसे मैं बदल नहीं सकता था। मैं मजबूर था।

यही सब सोचते हुए कब मेरी आँख लग गई पता ही नहीं चला। रात देर से सोने के कारण मेरी आँख देर से खुली। मैंने उठकर नित्यक्रिया से फुरसत होने के पश्चात स्नान किया और हाल में आकर बैठ गया। जतिन घर में नहीं था वो अपने काम पर चला गया था।

थोड़ी देर बाद बहू ने मुझे चाय और नाश्ता लाकर दिया। मैंने उसकी तरफ देखा तो वो एकदम बुझी सी लग रही थी। उसे इस हालत में देखकर मेरे दिल में एक हूक सी उठी। जो मुझे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रही थी। बहू की सूजी आंखें और शरीर पर पड़े नीले निशान देख कर मेरा दिल कराह उठता है। मैं कसमसा उठता हूं। पर मैं इतना ज्यादा मजबूर था कि कुछ कर नहीं कर सकता था।

काश अगर आज पूजा होती तो वो जतिन को जरूर समझाती और उसे वो कभी न बनने देती जो आज जतिन बन चुका है। पर पूजा को तो मैंने अपनी ही गलतियों के कारण खो दिया था।

यही सब सोचते-सोचते मेरे दिमाग की नसें फटने लगी। मैं अपने आप से भाग जाना चाहता था, लेकिन नहीं भाग सकता था, क्योंकि नियति द्वारा मेरे लिए सजा तय की जा चुकी थी और वो सज़ा ये थी कि मैं पछतावे की आग में धीरे-धीरे जलूँ और तिल-तिल कर मरूँ।

यही सब सोचकर मेरी आँखों से आंसू बहने लगे। जिसे अंतरा ने देख लिया और वो जान गई कि मैं किसलिए रो रहा हूँ तो वो मेरे पास बैठ गई और बोली।

अंतरा- पापा। ये सब क्या है। आप फिर से रो रहे हैं। मैंने आपसे कितनी बार कहा है कि आप जब रोते हैं तो मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता। आपको तो पता है कि मैं आपसे कितना प्यार करती हूँ और आपकी आंखों में आंसू नहीं देख सकती। आपने वादा किया था कि आप फिर नहीं रोएंगे, लेकिन आज आपने फिर से अपना वादा तोड़ दिया। जाइए मैं आपसे बात नहीं करती।

इतना कहकर अंतरा मुंह फुलाकर अपना चेहरा दूसरी तरफ करके बैठ गई। अंतरा ऐसे ही करती थी, जब कभी उसकी हालत देखकर मेरी आँखों मे आंसू निकलने लगते थे तो वो ऐसे ही मुझसे रूठ जाया करती थी। मैंने उसे मनाते हुए कहा।

मैं- बेटी। मैं क्या करूँ। मुझसे तुम्हारा ये दुःख और तुम्हारी ये हालात देखी नहीं जाती। तुम्हें इस हालत में देखकर मुझे बहुत तकलीफ होती है। मैं तुम्हारे लिए बहुत कुछ करना चाहता हूँ बेटी, लेकिन मैं इतना मजबूर हूँ कि देखने के अलावा मैं कुछ कर नहीं पा रहा हूँ।

मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ बेटी। मेरे कारण ही तुम्हें ये दुःख और तकलीफ झेलनी पड़ती हैं। मैं न कभी एक अच्छा पति बन पाया और न ही एक अच्छा बाप। हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।

इतना कहकर मैंने उसके सामने अपना हाथ जोड़ लिए तो उसने तुरंत मेरे हाथ को अपने हाथों से पकड़कर नीचे किया और न में गर्दन हिलाते हुए बोली।।

अंतरा- ये क्या कर रहे हैं आप पापा। मेरे सामने आप हाथ जोड़कर मुझे लज्जित मत कीजिए। आप हमसे बड़े हैं और बड़ों का हाथ हमेशा छोटों को आशीर्वाद देने के लिए उठना चाहिए न कि उनके सामने हाथ जोड़ने के लिए और किसने कह दिया कि आप एक अच्छे पापा नहीं हैं।

आप दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं। जब मैं पांच साल की थी तभी मेरे पापा हम सबको छोड़कर इस दुनिया से चले गए। तब से मैं अपने पापा के प्यार के लिए हमेशा तरसती रही, लेकिन जब से मैं इस घर में आई हूँ आपने मुझे वो प्यार दिया है जो शायद मेरे अपने पापा भी मुझे नहीं दे पाते। मुझे आपसे पता चला कि पापा का प्यार क्या होता है।

आप ऐसे बात-बात पर आंसू मत बहाया करिए। आप जब मेरे सिर पर प्यार से अपना हाथ फेरते हैं न तो मेरा सारा दुःख-दर्द पल भर में छू-मंतर हो जाता है। इसलिए आप अपने आपको दोष मत दीजिए। मेरी किस्मत में जो लिखा था वो मुझे मिला, इसमें न आप कुछ कर सकते हैं न मैं कुछ कर सकती हूँ।

इतना कहकर अंतरा मुझे देखने लगी। उसकी बात सुनकर मैं किसी सोच में डूब गया और अपने मन में सोचने लगा।

मैं- तुम सच मे बहुत भोली हो बहू। तुम मुझ जैसे घटिया और नीच इंसान को इतना मान सम्मान देती हो। मुझे इतना अच्छा मानती हो। लेकिन मैं इस मान-सम्मान का हकदार नहीं हूँ बेटी। जिस दिन तुम्हें मेरी सच्चाई पता चलेगी उस दिन तुम मुझसे नफरत करने लगोगी। वैसे भी मैंने जो पाप किया है उसके लिए मैं किसी के प्यार और सम्मान का हकदार नहीं हूँ।।

किस सोच में डूब गए हैं पापा- अचानक से अंतरा की आवाज़ सुनकर मैं वर्तमान में वापस आया और बात को बदलते हुए कहा।

मैं- मेरा नाश्ता हो गया है बहू मैं बाजार की तरफ जा रहा हूँ, तुम्हें कुछ चाहिए तो बता दो मैं आते वक्त लेते आऊंगा।।

अंतरा- हां पापा चाहिए न।। आप मेरे लिए समोसा लेते आइयेगा। मुझे बहुत पसंद है।

मैं- क्या बेटी। तुम कुछ और नहीं मंगा सकती हो क्या। हमेशा समोसा ही मंगाती हो।

अंतरा- जो मुझे पसंद है वो मैंने बता दिया है पापा। अगर आपको कुछ और पसन्द हो तो अपनी पसंद का लेते आइयेगा।

मैं- ठीक है बेटी मैं लेता आऊंगा।

इतना कहकर मैं तेज़ी से अपने कमरे की तरफ भागा। मैं और ज्यादा देर अंतरा का सामना नहीं कर सकता था, क्योंकि वो मुझे इतना मान-सम्मान और प्यार देती थी कि मुझे अपने आपसे नफरत होने लगती थी। मैं अपने पापों के बोझ के कारण आत्मग्लानि में जलने लगता हूँ। खुद को बहुत छोटा महसूस करने लगता हूँ और सोचता हूँ कि क्या मैं उस इज़्ज़त का हकदार हूँ जो अंतरा मुझे देती है।।

अपने कमरे में आकर मैंने अपने कपड़े पहने और घर से बाहर निकल गया मैं घर से बाहर ये सोचकर निकला कि शायद कुछ देर बाहर रहने के बाद मेरा मन थोड़ा बहल जाएगा, लेकिन बाहर निकलते ही मेरा मन अतीत के गलियारों में भटकने लगा और मैं अतीत की गहराइयों में खो गया।


*********

मैं जगदीश प्रसाद। बचपन से ही बहुत ही होशियार और कुशाग्र बुद्धि का मालिक था। अच्छा खासा व्यक्तित्व था मेरा। एक लड़की को जो चाहिए होता है लड़कों में वो सबकुछ था मेरे पास। सुंदर से सुंदर लड़की एक नजर मुझे देखकर मेरे बारे में जरूर सोचती होगी ऐसा मेरा मानना था।

मेरे घर में मम्मी पापा और एक बड़ी बहन थी। सभी मुझसे बहुत प्यार करते थे।

घर में पैसों की कोई कमी थी नहीं क्योंकि मेरे बाबा मेरे पापा के लिए बहुत संपत्ति छोड़कर गए थे। खेती बाड़ी भी बहुत थी इसलिए पैसे की कभी तंगी नहीं हुई।। सबकुछ बहुत बढिया चल रहा था। लेकिन किसकी किस्मत में क्या लिखा है ये किसी को पता नहीं रहता।

मैं हमेशा से लड़कियों को सम्मान और आदर की दृष्टि से देखता था, लेकिन मेरी सोच में बदलाव तब आया जब मैंने एमबीए में अपना दाखिला लिया। वहां मेरी दोस्ती कुछ ऐसे लड़कों से हुई जिन्होंने मेरी जिंदगी की दिशा और दशा दोनों बदलकर रख दी।

लोग कहते हैं कि संगत का असर जरूर पड़ता है। ये बात सही है और मेरे मामले में ये बात 101 फीसदी लागू होती है। मेरी दोस्ती ऐसे लड़कों से हुई जो बहुत ही अय्यास और लड़कीबाज़ थे। मैं उनका साथ छोड़ना चाहता था लेकिन छोड़ नहीं पाया। अब इसके पीछे की वजह क्या थी ये मुझे नहीं पता।

चूंकि मैं गांव से शहर एमबीए करने के लिए आया था और वहां की चकाचौंध और लड़कियों को देखकर और अपने दोस्तों की संगत में पड़कर मेरा मन भी लड़कियों के प्रति बदलने लगा।

रही सही कसर एक दिन तब पूरी हो गई जब मैं अपने उन्हीं दोस्तों के साथ एक लड़की के साथ हमबिस्तर हो गया। एक बार मुझे लड़की का जो चस्का लगा तो फिर मैं इसमें डूबता चला गया। पहले जहां मैं लड़कियों के चेहरे से नीचे नहीं देखता था। अब आलम ये हो गया था कि मैं अब लड़कियों का चेहरा बाद में देखता था उसके उरोज कर टांगों के बीच मेरी नजर पहले जाती थी।।

बीतते वक्त के साथ मेरा ये नशा बढ़ता गया और मैं भी अपने दोस्तों की तरह अय्यास और लड़कीबाज़ हो गया। इसके बावजूद मेरी पढ़ाई में कोई कमी नहीं आई और में हमेशा की तरह चारो वर्ष अच्छे अंकों से परीक्षा उत्तीर्ण की।।

पढ़ाई खत्म होने के बाद मैंने अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया। जिसमें लड़कियों को रखने की प्रथम प्राथमिकता दी मैंने। मेरे शौक आसानी से पूरे होने लगे। मेरी कंपनी में आने वाली अधिकतर लड़कियों के साथ मेरे संबंध बनने लगे। जो लड़की मेरी बात नहीं मानती थी उसे मैं नौकरी से निकाल देता था।

जिस बात को मैं अपने घरवालों से छुपाना चाह रहा था आखिर वो बात उन्हें पता चल ही गई। उस दिन पापा ने मुझे बहुत मारा और माँ ने खूब खरी खोटी सुनाई मुझे। मैं भले ही अय्याश हो गया था लेकिन मैंने अपने माँ बाप के साथ आज तक कोई बदतमीज़ी नहीं कि थी और न ही कभी उन्हें पलटकर कोई जवाब दिया था।

लोग कहते हैं न कि अगर बेटा गलत रास्ते पर चल निकले तो उसकी नाक में नकेल डाल देनी चाहिए जिससे वो सुधर जाता है। मेरे माँ बाप ने भी मुझे सही रास्ते पर लाने के लिए मेरी शादी बिना मेरी मर्जी के तय कर दी। जिसका मैंने विरोध किया लेकिन उनके आगे मेरी एक न चली।

जिस लड़की से मेरी शादी तय हुई उसका नाम पूजा था और वो अपने नाम के अनुरूप ही पूजनीय भी थी। उसकी सुंदरता के सामने अप्सरा भी शर्मा जाएं। साथ में वो सर्वगुण सम्पन्न लड़की थी। वो एक गरीब परिवार की थी जिसके माता पिता नहीं थे। एक बड़ा भाई था जो शराबी था, इसलिए उसने तुरंत ये रिश्ता मान लिया।

लेकिन ये शादी मुझे मेरी आजादी पर ग्रहण के समान लग रही थी जिसके कारण मैं पूजा के ऊपर गुस्सा था और इन सबका कुसूरवार उसे मान रहा था, मुझे ये लगता था कि अगर वो इस रिश्ते के लिए मना कर देती तो मुझे शादी नहीं करनी पड़ती।

और इसी बात का गुस्सा मैंने सुहागरात वाली रात उसपर निकाला जब मैं एक जानवर बनकर उसके साथ पेश आया। मैंने सुहागरात वाली रात उसका बलात्कार किया। वो रोती रही, चिल्लाती रही और छोड़ने के लिए गिड़गिड़ाती रही लेकिन मैंने उसपर कोई रहम नहीं दिखाया। मैं उसके मुंह मे कपड़ा ठूंसकर उसके साथ अपनी मनमानी करता रहा।

मुझे उसके दुःख दर्द से कोई मतलब नहीं था। उसने इस बारे में सुबह मम्मी को कुछ नहीं बताया तो मैं और भी ज्यादा शेर हो गया। फिर उसके साथ ये हर रात होने लगा। जिसे शायद उसने अपनी किस्मत समझकर स्वीकार कर लिया था।

मैं भले ही उसके साथ जानवर की तरह पेश आता था लेकिन इसके बावजूद भी वो मेरे माँ बाप को अपने माँ बाप की तरह सम्मान और आदर देती थी। मेरे माँ बाप बहुत खुश थे कि उन्हें ऐसी संस्कारों वाली बहू मिली है। अगर कभी मेरी माँ उसे उदास देखकर पूछ भी लेती थी तो पूजा बात को टाल जाती थी।

शादी के एक माह के अंदर ही पूजा गर्भवती हो गई। मुझे वैसे भी उससे कोई मतलब नहीं था। मेरी अय्याशियां बाहर भी चलती रही। साल भर के अंदर मैं बाप बन गया था। मुझे पूजा से भले ही स्नेह नहीं था लेकिन बेटा होने के बाद मुझे अपने बेटे से लगाव जरूर हो गया था।

ऐसे ही वक्त का पहिया चलता रहा है मेरी शादी को 4 वर्ष पूरे हो गए। इन चार वर्षों में शायद ही कोई दिन रहा होगा जब मैंने पूजा से प्रेम से बात की होगी। उसे स्नेह किया होगा। मैं रात को उसके साथ अपनी हवस मिटाने के लिए ही सोता था। एक दो बार उसने मुझसे शिकायत भी की थी, लेकिन मैंने उसकी बात सुनने के बजाय उस पर हाथ उठा दिया था।

एक बार पूजा फिर से गर्भवती हुई। गर्भावस्था के चौथे महीने की बात है मैं अपनी अय्याशी मनाने एक लड़की के साथ होटल जा रहा था, उसी समय पूजा भी किसी काम से बाहर आई हुई थी, उसने मुझे किसी लड़की के साथ देखा तो उसने मेरा पीछा किया और मुझे होटल में लड़की के साथ रंगरेलियाँ मनाते हुए पकड़ लिया।

वो वहां से रोती हुई चली गई। उसे मेरे ऊपर शक तो था लेकिन उसने कभी मुझसे इस बारे में नहीं पूछा था लेकिन आज अपनी आंखों से देखने के बाद वो ये सब बर्दास्त नहीं कर पाई और घर जाकर मेरी मम्मी को सबकुछ बता दिया। मेरी मम्मी तो ये सुनकर अवाक रह गई, क्योंकि उन्हें लगता था कि मैं सुधर चुका हूँ।

रात को जब मैं घर लौटा तो पूजा ने मुझसे आज की घटना के बारे में पूछा। कुछ देर में बात इतनी बढ़ गई कि मुझे हद से ज्यादा गुस्सा आ गया और मैं उसे मारने लगा।

मर्द जात में यही कमजोरी होती है। जब उन्हें अपनी सच्चाई साबित करने का मौका नहीं मिलता या उन्हें अहम को ठेस पहुंचती है तो वो अपनी असली औकात पर आ जाते हैं।

मेरे साथ भी यही हुआ। मुझे ये कतई बर्दास्त नहीं हुआ कि मेरे सामने मुंह न खोलने वाली आज मुझसे जुबान लड़ा रही है। मैं उसे मरते हुए चिल्लाया।

मैं- मुझ से जबान लड़ाती है। तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझसे इस तरह से बात करने की। आज मैं तुझे छोडूंगा नहीं।

पूजा- आह…प्लीज मत मारो मुझे, मेरे बच्चे को लग जाएगी, दया करो. मैं ने आखिर किया क्या है। बाहर रंगरेलियाँ तुम मनाओ और पूछने पर अपनी औकात दिखा रहे हो। मैं पूछती हूँ क्या कमी है मेरे प्यार में, क्या कमी है मुझमें जो तुम बाहर मुंह मरते फिरते हो। तुम सच में मर्द ही हो न।

बस पूजा का इतना कहना था कि मेरा पौरुष्व जाग उठा और मैं उसे बेतहासा मारने लगा। मैं इतना वहसी हो चुका था कि मैं ये भी भूल गया था कि पूजा 4 माह की गर्भवती है। वो लगातार चीख रही थी। वो अपने कोख में पल रहे बच्चे पर आंच नहीं आने देना चाहती थी. इसलिए हर संभव प्रयास कर रही थी बचने का।

लेकिन मैं कम क्रूर नहीं था. जब इससे भी मेरा मन नहीं भरा तो उसे बालों से पकड़ते हुए घसीट कर हाल में ले आया और अपनी बैल्ट निकाल ली. बैल्ट का पहला वार होते ही उसकी जोरों की चीख खामोशी में तबदील होती चली गई. वह बेहोश हो चुकी थी. तब तक मेरी माँ भी हाल में आ चुकी थी। उन्होंने मुझे उससे अलग करते हुए गुस्से से कहा।

माँ- पागल हो गया है क्या जगदीश। अरे उस के पेट में तेरी औलाद है। अगर उसे कुछ हो गया तो?

मैं- तो फिर कह देना इससे कि मैं भाड़े पर लड़कियां लाऊं या बियर बार जाऊं या कुछ और करूँ। यह मेरी अम्मा बनने की कोशिश न करे वरना अगली बार जान से मार दूंगा इसे मैं।

कहते हुए मैंने अपने 3 साल के नन्हे जतिन को धक्का दिया। जो अपनी मां को मार खाते देख सहमा हुआ-सा एक तरफ खड़ा था. फिर गाड़ी उठाई और निकल पड़ा अपनी आवारगी की राह पर।

उस पूरी रात मैं नशे में चूर रहा और एक लड़की की बाहों में पड़ा रहा। सुबह के लगभग 6 बज रहे होंगे कि पापा के एक कॉल ने मेरे शराब का सारा नशा उतार दिया।

पापा- जगदीश कहां है तू कब से फोन लगा रहा हूं। पूजा ने फांसी लगा ली है। तुरंत आ घर।

जैसे-तैसे घर मैं पहुंचा तो हताश पापा सिर पर हाथ धरे अंदर सीढि़यों पर बैठे थे और मां नन्हे जतिन को चुप कराने की बेहिसाब कोशिशें कर रही थी।

अपने बैडरूम का नजारा देख मेरी सांसें रुक सी गईं। बेजान पूजा पंखे से लटकी हुई थी। मुझे काटो तो खून नहीं। मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ भी हो सकता है। मां-पापा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए।

पूजा ने अपने साथ अपनी कोख में पल रहे मेरे अंश को भी खत्म कर लिया था। पर इतने खौफनाक माहौल में भी मेरा शातिर दिमाग काम कर रहा था। इधर-उधर खूब ढूंढ़ने के बाद भी पूजा की लिखी कोई आखिरी चिट्ठी मुझे नहीं मिली।

चूंकि पूजा अब मर चुकी थी और जतिन को भी संभालना था, इसलिए पुलिस को देने के लिए हमने एक ही बयान को बार-बार दोहराया कि मां की बीमारी के चलते उसे मायके जाने से मना किया तो जिद व गुस्से में आ कर उसने आत्महत्या कर ली. वैसे भी मेरी मां का सीधापन पूरी कालोनी में मशहूर था, जिस का फायदा मुझे इस केस में बहुत मिला।

कुछ दिन मुझे जरूर लॉकअप में रहना पड़ा, लेकिन बाद में सब को दे दिला कर इस मामले को खत्म करने में हम ने सफलता पाई, क्योंकि पूजा के मायके में उस की खैर-खबर लेने वाला एक शराबी भाई ही था जिसे अपनी बहन को इंसाफ दिलाने में कोई खास रुचि न थी।

थोड़ी परेशानी से ही सही, लेकिन कुछ समय के बाद केस रफा-दफा हो गया और मैं बाहर आ गया। इस भयानक घटना के बाद होना तो यह चाहिए था कि मैं पश्चाताप की आग में जलता और अपने गुनाहों और कुकर्मों के लिए पूजा से माफी मांगता, पर मेरे जैसा आशिकमिजाज व्यक्ति ऐसे समय में भी कहां चुप बैठने वाला था।

जेल से बाहर आने के बाद मेरी अय्याशियां फिर शुरू हो गई। अब तो पूजा भी नहीं थी तो मैं छुट्टा साँड़ हो गया था। इस बीच मेरी रासलीला मेरे एक दोस्त की बहन लिली के साथ शुरू हो गई।

लिली का साथ मुझे खूब भाने लगा। क्योंकि वह भी मेरी तरह बिंदास थी साथ मे खूबसूरत भी थी। पूजा की मौत के साल भर के भीतर ही हमने शादी कर ली। शादी के कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि वो चलते पुर्जे की लड़की है। मैं शेर था तो वो सवा शेर थी।

बदतमीजी, आवारगी, बदचलनी आदि दुर्गुणों में वह मुझ से कहीं बढ़ कर निकली. मेरी परेशानियों की शुरुआत उस दिन शुरू हुई जिस दिन मैंने पूजा समझ कर उस पर पहली बार हाथ उठाया। मेरे उठे हाथ को हवा में ही थाम उस ने ऐसा मरोड़ा कि मेरे मुंह से आह निकल गई। उस के बाद मैं कभी उस पर हाथ उठाने की हिम्मत न कर पाया।

घर के बाहर बनी पुलिया पर आस-पास के आवारा लड़कों के साथ बैठी वह सिगरेट के कश लगाती जब-तब कालोनी के लोगों को नजर आती। अपने दोस्तों के साथ कार में बाहर घूमने जाना उस का प्रिय शगल था। रात को वह शराब के नशे में धुत हो घर आती और सो जाती। अब हमारी बदनामी भी कॉलोनी में होने लगी।

मैं ने उसे अपने झांसे में लेने की कई नाकाम कोशिशें कीं, लेकिन हर बार उस ने मेरे वार का ऐसा प्रतिवार किया कि मैं बौखला जाता। उसने साफ शब्दों में मुझे चेतावनी दी कि अगर मैंने उस से उलझने की कोशिश की तो वह मुझे मरवा देगी या ऐसे केस में फंसाएगी कि मेरी जिंदगी बरबाद हो जाएगी। मैं उस के गदर से तभी तक बचा रहता जब तक कि उस के कामों में हस्तक्षेप न करता।

लेकिन उसने एक काम अच्छा किया जो उसने जतिन को अपने बेटे की तरह प्यार दिया। ऐसा मुझे लगता था। लेकिन सच्चाई तो इसके बिकुल उलट थी। वो जतिन को अपने नक्शेकदम पर चलाना चाहती थी और जातिन भी दिन रात मम्मी मम्मी कहकर उसके आगे पीछे घूमता रहता था।

कहते हैं न कि इंसान जो बोता है वो काटकर जाता है। अपनी करनी का फल सभी जरूर भुगतते हैं। सभी के पापों का घड़ा जरूर भरता है। तो मेरे पापों का घड़ा भी भर चुका था वो भी बहुत जल्दी।

तो मैंने प्रकृति के न्याय के तहत वह काटा, जो मैंने बोया था। घर की पूरी सत्ता पर मेरी जगह वह काबिज हो चुकी थी। शादी के सालभर के भीतर दबाव बना कर उसने पापा से हमारे घर को भी अपने नाम करवा लिया और फिर मेरे मम्मी पापा को घर से निकाल दिया और ये मकान बेचकर एक बहुत ही पॉश इलाके ने दूसरा मकान ले लिया।

मेरे मम्मी-पापा मेरी बहन यानी अपनी बेटी के घर में रहने को मजबूर थे। यह सब मेरी ही कारगुजारियों की अति थी जो आज सब-कुछ मेरे हाथ से मुट्ठी से निकली रेत की मानिंद फिसल चुका था और मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था।

अपना मकान बिकने से हैरान-परेशान पापा इस सदमे को न सह पाए और हृदयघात का शिकार हो महीनेभर में ही चल बसे। उन के जाने के बाद मेरी मां बिलकुल अकेली हो गईं। प्रकृति मेरे कर्मों की इतनी जल्दी और ऐसी सजा देगी मुझे मालूम न था।

नए घर में शिफ्ट होने के बाद भी उस के क्रियाकलाप में कोई खास अंतर नहीं आया। इस बीच 5 साल के हो चुके जतिन को उस ने पूरी तरह अपने अधिकार में ले लिया. उस के सान्निध्य में पलता-बढ़ता जतिन भी उस के नक्शेकदम पर चल पड़ा। जतिन मेरी बात कभी नहीं सुनता था। लिली उसे मेरी बारे में जो बताती गई वो उसे ही सत्य मानता गया।

पढ़ाई-लिखाई से उसका खास वास्ता था नहीं। जैसे-तैसे 12वीं कर उस ने छोटा-मोटा बिजनैस कर लिया और अपनी जिंदगी पूरी तरह से उसी के हवाले कर दी। उन दोनों के सामने मेरी हैसियत वैसे भी कुछ नहीं थी। किसी समय अपनी मन-मरजी का मालिक मैं आजकल उनके हाथ की कठपुतली बन बस उन के रहमो-करम पर जिंदा था।

मेरे कर्मों की मुझे सजा मिल रही थी। अब मुझे पूजा के साथ किये हुए हर जुल्मोसितम याद आने लगे। अब मैं पश्चाताप की आग में जलने लगा। रोज मैं अपने गुनाहों की माफी पूजा से मांगने लगा। उससे वापस लौट आने के लिए गिड़गिड़ाने लगा। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। रोज नई नई लड़की की बाहों में अपनी रात रंगीन करने वाला मैं जगदीश अब लड़की जात से नफरत करने लगा।

इसी रफ्तार से जिंदगी चलती रही। मैंने जो बोया था वो तो मैं काट रहा था, लेकिन लिली ने जो बोया उसको मुझसे भी ज्यादा भयानक दंड मिला, एक दिन पता चला कि लिली एक भयानक बीमारी एड्स की चपेट में आ गई है। इस बीमारी के कारण वो अब गुमसुम रहने लगी अब घर की सत्ता मेरे बेटे जतिन के हाथों में आ गई।

हालांकि इसका मेरे लिए कोई खास मतलब नहीं था। हाँ जतिन की शादी होने पर उस की पत्नी अंतरा के आने से अलबत्ता मुझे कुछ राहत जरूर मिली, क्योंकि मेरी बहू भी पूजा जैसी ही एक नेकदिल इंसान थी। फिर भी उसकी चिंता मुझे दिन-रात खाए जाती थी।

अंतरा लिली की सेवा जी-जान से करती और जतिन को खुश करने की पूरी कोशिश भी। पर जिसकी रगों में मेरे जैसे गिरे और नीच इंसान का लहू बह रहा हो। उसे भला किसी की अच्छाई की कीमत का क्या पता चलता। साल-भर पहले लिली ने अपनी आखिरी सांस ली। उस वक्त सच में मन से जैसे एक बोझ उतर गया और मेरा जीवन थोड़ा आसान हो गया।

इस बीच जतिन के अत्याचार अंतरा के प्रति बढ़ते जा रहे थे। लगभग रोज रात में जतिन अंतरा को पीटता और हर सुबह अपने चेहरे व शरीर की सूजन छिपाने की भरसक कोशिश करते हुए वह फिर से अपने काम पर लग जाती। कल रात भी जतिन ने उस पर अपना गुस्सा निकाला था।


**********

मुझे समझ नहीं आता था कि आखिर वह ये सब क्यों सहती है। क्यों नहीं वह जतिन को मुंहतोड़ जवाब देती। आखिर उस की क्या मजबूरी है? तमाम बातें मेरे दिमाग में लगातार चलती रहती। मेरा मन उस के लिए इसलिए भी परेशान रहता क्योंकि इतना सबकुछ सह कर भी वह मेरा बहुत ध्यान रखती थी। कभी-कभी मैं सोच में पड़ जाता कि आखिर औरत एक ही समय में इतनी मजबूत और मजबूर कैसे हो सकती है?

ऐसे वक्त पर मुझे पूजा की बहुत याद आती। अपने 4 वर्षों के वैवाहिक जीवन में मैं ने एक पल भी उसे सुकून का नहीं दिया. शादी की पहली रात जब सजी हुई वह छुईमुई सी मेरे कमरे में दाखिल हुई थी, तो मैं ने पलभर में उसे बिस्तर पर घसीट कर उस के शरीर से खेलते हुए अपनी कामवासना शांत की थी। यही सोचकर मैं अपने आपसे घृणा करने लगता।

काश उस वक्त उसके रूप सौंदर्य को प्यार भरी नजरों से कुछ देर निहारा होता। तारीफ के दो बोल बोले होते तो वह खुशी से अपना सर्वस्व मुझे सौंप देती। उस घर में आखिर वह मेरे लिए ही तो आई थी, पर मेरे लिए तो उस समय प्यार की परिभाषा शारीरिक भूख से ही हो कर गुजरती थी। उस दौरान निकली उस की दर्दभरी चीखों को मैं ने अपनी जीत समझ कर उसका मुंह कपड़े से बंदकर अपनी मनमानी की थी।

वह रातों में मेरे दिल बहलाने का साधनमात्र थी इसलिए मुझे ऐसा करने का हक था आखिर मैं मर्द जो था। मेरी इसी सोच और दम्भ ने मुझे कभी इंसान नहीं बनने दिया।।

काश उस समय प्रकृति मुझे थोड़ी-सी सद्बुद्धि देती।

मैंने उसे चैन से एक सांस न लेने दी। अपनी गंदी हरकतों से सदा उस का दिल दुखाया। उस की जिंदगी को मैं ने वक्त से पहले खत्म कर दिया।

उस दिन उस ने आत्महत्या भी तो मेरे कारण ही की थी। क्योंकि उसे मेरे नाजायज संबंधों के बारे में पता चल गया था और उस की गलती सिर्फ इतनी थी कि इस बारे में मुझ से वह पूछ बैठी थी। बदले में मैंने जीभर कर उस की धुनाई की थी। ये सब पुरानी यादें दिमाग में घूमती रहीं और कब मैं घर लौट आया पता ही नहीं चला।

पापा, जब आप बाजार गए थे। उस वक्त बुआजी आई थीं। थोड़ी देर बैठीं। फिर आप के लिए यह लिफाफा दे कर चली गईं। बाजार से आते ही अंतरा ने तुरंत मुझे एक लिफाफा पकड़ाया।

ठीक है बेटा। मैंने समोसा उसे देकर लिफाफा खोला। उस में एक छोटी सी पर्ची और करीने से तह किया हुआ एक खत रखा था। पर्ची पर लिखा था।

मां के जाने के सालों बाद आज उन की पुरानी संदूक खोली तो यह खत उस में मिला। तुम्हारे नाम का है सो तुम्हें देने आई थी। ये मेरी बहन की लिखावट थी। सालों पहले मुझे यह खत किस ने लिखा होगा यह सोचते हुए मैं अपने कमरे में आकर कांपते हाथों से मैंने खत खोलकर पढ़ना शुरू किया।

''प्रिय जगदीश

''वैसे तो तुमने मुझे कई बार मारा है, पर मैं हमेशा यह सोच कर सब सहती चली गई कि जैसे भी हो, तुम मेरे तो हो. कभी तुम्हें मेरी कद्र होगी। कभी तुम मुझसे प्रेम से बात करोगे। यही सोचकर मैं तुम्हारे साथ रहती रही।

परंतु कल जब तुम्हारे इतने सारे नाजायज संबंधों का पता चला तो मेरे धैर्य का बांध टूट गया। हर रात तुम मेरे शरीर से खेलते रहे हर दिन मुझ पर हाथ उठाते रहे, लेकिन मन में एक संतोष था कि इस दुखभरी जिंदगी में भी एक रिश्ता तो कम से कम मेरे पास है, लेकिन जब पता चला कि यह रिश्ता, रिश्ता न हो कर एक कलंक है तो इस कलंक के साथ मैं नहीं जी सकती।

सोचती थी कभी तो तुम्हारे दिल में अपने लिए प्यार जगा लूंगी, लेकिन अब सारी उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं। मायके में भी तो कोई नहीं है जिसे मेरे जीने-मरने से कोई सरोकार हो। मैं अपनी व्यथा न ही किसी से बांट सकती हूं और न ही उसे सह पा रही हूं। तुम्हीं बताओ फिर कैसे जिऊँ मैं, किसके लिए जिऊँ।

मेरे बाद मेरे बच्चे की दुर्गति न हो, इसलिए अपनी कोख का अंश अपने साथ लिए जा रही हूँ। मासूम जतिन को मारने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। खुश रहो तुम। कम से कम जतिन को एक बेहतर इंसान बनाना। जाने से पहले एक बात तुम से जरूर कहना चाहूंगी। मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं बहुत ज्यादा प्यार करती हूँ।

''तुम्हारी चाहत के इंतजार में पल-पल मरती…तुम्हारी पूजा।''

पूरा पत्र आंसुओं से गीला हो चुका था। जी चाह रहा था कि मैं चिल्ला-चिल्ला कर रो पडूँ। पूजा माफ कर दो मुझ पापी को।

मैं इंसान कहलाने के काबिल नहीं हूँ तो तुम्हारे प्यार के काबिल भला क्या बनूंगा।

हे ईश्वर मेरी पूजा को लौटा दे मुझे। मैं उस के पैर पकड़ कर अपने गुनाहों की माफी तो मांग लूंगा उससे।

लेकिन कहते हैं न कि अब पछताए होत क्या, जब चिडि़या चुग गई खेत.

मैं काफी देर तक अपने बिस्तर पर बैठा रोता रहा। जब भावनाओं का ज्वार थमा तो कुछ हलका महसूस हुआ।

शायद मां को पूजा का यह पत्र मिला हो और मुझे बचाने की खातिर यह पत्र उन्होंने अपने पास छिपा कर रख लिया हो। यह उन्हीं के प्यार का साया तो था कि इतना घिनौना जुर्म करने के बाद भी मैं बच गया। उन्होंने मुझे कालकोठरी की भयानक सजा से तो बचा लिया, परंतु मेरे कर्मों की सजा तो नियति से मुझे मिलनी ही थी और वह किसी भी बहाने से मुझे मिल कर रही।

पर अब सब-कुछ भुला कर पूजा की वही पंक्ति मेरे मन में बार-बार आ रही थी ''कम से कम जतिन को एक बेहतर इंसान बनाना।'' अंतरा के मायके में भी तो उस की बुजुर्ग मां और छोटी बहन के अलावा कोई नहीं है। हो सकता है इसलिए वह भी पूजा की तरह मजबूर हो। पर अब मैं मजबूर नहीं बनूंगा।

कुछ सोच कर मैं उठ खड़ा हुआ, अपने चेहरे को साफ किया और अंतरा को आवाज दी।

''जी पापा,'' कहते हुए अंतरा मेरे सामने मौजूद थी।

बहुत देर तक मैं उसे सब-कुछ समझाता रहा और वह आंखें फाड़-फाड़ कर मुझे हैरत से देखती रही। शायद उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जतिन का पिता होने के बावजूद मैं उसका दर्द कैसे महसूस कर रहा हूं या उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि अचानक मैं यह क्या और क्यों कर रहा हूं। क्योंकि वह मासूम तो मेरी हकीकत से हमेशा अनजान थी। पहले तो वह इसके लिए तैयार नहीं हो रही थी, लेकिन बहुत समझाने, मिन्नत करने और अपनी कसम देने के बाद वह तैयार हुई।

पास के पुलिस स्टेशन पहुंच कर मैंने अपनी बहू पर हो रहे अत्याचार की धारा के अंतर्गत बेटे जतिन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। मेरे कहने पर अंतरा ने अपने शरीर पर जख्मों के निशान उन्हें दिखाए, जिससे केस पुख्ता हो गया। जतिन को सही राह पर लाने का एक यही तरीका मुझे कारगर लगा। क्योंकि सिर्फ मेरे समझाने भर से बात उस के पल्ले नहीं पड़ेगी। पुलिस, कानून और सजा का खौफ ही अब उसे सही रास्ते पर ला सकता था।

पूजा के चिट्ठी में कहे शब्दों के अनुसार मैं उसे रिश्तों की इज्जत करना सिखाऊंगा और एक अच्छा इंसान बनाऊंगा, ताकि फिर कोई पूजा किसी जगदीश के अत्याचारों से त्रस्त हो कर आत्महत्या करने को मजबूर न हो। ऑटो में वापसी के समय अंतरा के सिर पर मैं ने स्नेह से हाथ फेरा. उस की आंखों में अब खौफ की जगह अब सुकून नजर आ रहा था. यह देख मैंने राहत की सांस ली।

मैंने तो उसे सुधरने के लिए पुलिस की मदद ली थी और पुलिस ने अपना काम भी कर दिया था। उसे जेल में एक हफ्ता रखकर उसकी अच्छे से खातिरदारी भी की, लेकिन जतिन के ऊपर इसका उल्टा असर पड़ा। जिस दिन वो जेल से घर वापस आया। वो बहुत गुस्से में था और उसने आते ही अंतरा के ऊपर हाथ उठा दिया।

मैंने बीच बचाव करने की कोशिश की तो आज वो हो गया जो इतने दिनों में पहली बार हुआ था। आज जतिन ने मेरे ऊपर भी हाथ उठा दिया।

मैं चाहे जैसा भी था। लिली ने जतिन को मेरे बारे में चाहे जो भी बताया हो। लेकिन नितिन ने आजतक ऐसा नहीं किया था।

जतिन और अंतरा के मामले में हस्तक्षेप करने पर वो केवल मेरे ऊपर चिल्लाता था। भला-बुरा कहता था, लेकिन उसने कभी मुझपर हाथ नहीं उठाया था।

मुझपर हाथ उठाता देख अंतरा भी बिफर पड़ी और उसने घर में रखी लाठी उठाकर जतिन को मारना शुरू कर दिया। अंतरा बहुत ज्यादा गुस्से में लग रही थी। जतिन अंतरा का ये रूप देखकर सहम गया और घर से बाहर चला गया।।

हम ससुर और बहू अपना अपना सिर पकड़कर हॉल में बैठे हुए थे। हमने क्या सोचा था और क्या हो गया। जतिन को गए हुए अभी एक घंटे हुए थे कि तभी अंतर का मोबाइल बजने लगा। उसने अपना मोबाइल उठाकर कान में लगाया। फिर एक चीख के साथ उसका मोबाइल उसके हाथों से छूटकर नीचे गिर पड़ा।

मैंने भी हड़बड़ाते हुए अंतरा से पूछा।

मैं- क्या हुआ बेटी। तुम ऐसे चीखी क्यों।

अंतरा- (रोते हुए) पापा अभी ........ अस्पताल से फ़ोन था। जतिन का एक्सीडेंट हो गया है और वो अस्पताल में है। जिसने उसे अस्पताल पहुंचाया है उसी ने फ़ोन किया था।

मैं- (चौकते हुए) क्या? एक्सीडेंट। हमें अभी अस्पताल चलना होगा।

मैं तुरंत अंतरा के साथ अस्पताल पहुंच गया जहां पर मेरे बेटे की भर्ती किया गया था। मैंने उस व्यक्ति को धन्यवाद दिया जिसने जतिन को अस्पताल पहुंचाया था। डॉक्टर से मिलने के बाद पता चला कि उस एक्सीडेंट में जतिन का एक पैर टूट गया है साथ में उसके सारे शरीर मे बहुत चोटें आई थी। जिसे ठीक होने में बहुत समय लगेगा।

हम दोनों को वहां देखकर जतिन कुछ नहीं बोला। अंतरा मेरे पास खड़ी आंसू बहा रही थी। 5 दिन अस्पताल में रहने के बाद मैं जतिन को लेकर घर आया। अंतरा पूरे मन से जतिन की सेवा करने में जुट गई।

पहले तो जतिन अपने पौरुष्व के अभिमान में न मुझसे बात करता था और न ही अंतरा से, लेकिन धीरे धीरे अंतरा की अपने लिए ऐसी सेवा भावना देखकर उसका हृदय परिवर्तित होने लगा। अब वो अंतर से धीरे धीरे बात करने लगा।।

वो मुझसे भी बात करना लगा था। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने के बाद उसका हम लोगों के लिए जो गुस्सा था अब वो खत्म हो गया था। मैं भी कई दिन से जतिन से बात करने की फिराक में था, एक दिन अच्छा मौका देखकर मैने जतिन से बात की।।

मैं- अब किसी तबियत है तुम्हारी जतिन।

जतिन- अब ठीक है पापा थोड़ा बहुत चलने फिरने भी लगा हूँ अब। ये सब अंतरा की मेहनत का फल है जो मै इतनी जल्दी ठीक हो रहा हूँ।

मैं- मुझे अंतरा के बारे में ही तुमसे बात करनी है बेटा। तुम अंतरा के साथ जो कुछ भी कर रहे हो वो बिल्कुल भी अच्छा नहीं है। तुम्हें बिल्कुल भी अंदाजा नहीं है कि तुम्हारे इतने जुल्म सहने के बाद वो तुम्हारे साथ अभी भी क्यों रह रही है। क्योंकि वो तुमसे बहुत प्यार करती है।

उसके संस्कार ऐसे हैं कि तुम्हारे इतने जुल्म सहने के बाद भी वो तुमसे शिकायत नहीं करती। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है बेटा तुम अंतरा को सच्चे दिल से अपना लो। नहीं तो मेरी तरह तुम्हें भी पछताने के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा।

तुम्हें नहीं पता जिस दिन से तुम्हारा एक्सीडेंट हुआ है वो बहुत रोती है। तुम्हारे सामने वो भले ही खुद को मजबूत दिखाती है लेकिन अंदर से वो बहुत टूट चुकी है। ऊपर से तुम्हारी बेरुखी उसे पल पल मार रही है। जितना अत्याचार तुमने उसपर किए हैं अगर उसकी जगह कोई और लड़की होती तो या तो वो घर छोड़कर चली जाती या फिर तुम्हें तुम्हारी ही भाषा मे जवाब देती।

लेकिन उसने कभी भी ऐसा नहीं किया। अगर तुम्हें इस बात का गुस्सा है कि उसने तुम्हारे खिलाफ पुलिस में शिकायर दर्ज कराई है तो तुम्हारा गुस्सा निराधार है। वो शिकायत मैंने दर्ज करवाई है और अपनी कसम देकर मैं उसे अपने साथ ले गया था।

इतनी सुशील और संस्कारी पत्नी बहुत किस्मत वालों को मिलती है बेटा। मैंने जो गलती की मैं नहीं चाहता कि तुम भी वही गलती करो। अभी भी वक्त है सुधर जाओ। नहीं तो तुमसे बदनसीब इंसान दुनिया में कोई नहीं होगा।

लगभग डेढ़ से दो महीने से अपने लिए अंतरा की सेवा और त्याग को देखकर अब जतिन को हर भूल और हर एक जुल्म जो उसने अंतरा के साथ किए थे उसका एहसास हो चुका था, लेकिन शायद वो अपने किये पर शर्मिंदा था इसलिए वो बात नहीं कर पा रहा था। मेरी बातों को सुनकर उसे जैसे हौसला मिल गया था। उसने मेरा हाथ अपने हाथों में लिया और रोते हुए कहा।

जतिन- पापा मुझे माफ़ कर दीजिए जो मैंने आजतक आपके और अंतरा के साथ किया। मुझे अपनी गलती का एहसास है जिसके लिए मैं आपसे माफी मांगता हूं। मैं जानता हूँ कि मैंने जो किया है वो माफी के काबिल नहीं है लेकिन हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।।

उसकी बात सुनकर मैंने उसे गले लगा लिया। आज कितने सालों बाद मेरे दिल को सुकून मिला था। ये सुकून इस बात का था कि पूजा की आखिरी इच्छा को शायद मैंने पूरा कर दिया था जो उसने आपके खत में लिखी थी।

जतिन ने अपने किए हर सितम के लिए अंतरा से हाथ जोड़कर माफी मांगी। अंतरा जो जतिन के उस प्यार के लिए कब से तरस रही थी। उसने भी जतिन को माफ कर दिया।

मुद्दतों बाद हमारे घर मे फिर से खुशहाली लौट आई थी। हम खुशी खुशी अपना जीवन बिताने लगे।

समाप्त
Story padhte hue aisa laga jaise koi movie chal rahi ho samne pahle to laga ye koi sasur bahu ki sex story hogi lekin yahan aisa nai hai sasur lampat sahi lekin usko akal aa gayi Jo ki bahut der se aayi lekin aa gayi.is story me hame jindgi ke sare rang dikha diye ki aap kabhi kamjor bhi hongen us time aapka past aapko rulayega ishiliye hamko hamesha achche karam karne chahiye.story ending bahut badhiya rahi kyuki usme uske bete ko apni bhul ka ahsaas ho gaya akhir aur bolte hain na ki ant bhala to sab bhala Happy ending hui hai kulmila kar mai story ko 10/10 deta hun
 
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🍁🍁🌼कर्मों का फल🌼🍁🍁
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Prefix- Non-Erotica
रचनाकार- Mahi Maurya
(6995 शब्द)
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रात का समय था। मैं अपने कमरे में लेटा सोने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी। ये मेरे साथ आज पहली बार नहीं हो रहा, बल्कि पिछले कई सालों से होता आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे नींद ने मेरी आँखों से अपना रिश्ता तोड़ लिया हो

तभी मुझे जतिन के कमरे से अंतरा और जतिन की आवाज़ आने लगी।जतिन मेरा बेटा और अंतरा मेरी बहू है। जिनकी 3 वर्ष पहले शादी हुई थी। अभी उनको कोई संतान नहीं है। मेरी बहू अंतरा सर्वगुण सम्पन्न स्त्री है। उसके अंदर वो हर गुण मौजूद हैं जो एक पत्नी, बहू, बेटी और माँ में मौजूद होने चाहिए।

कुल मिलाकर अंतरा मेरी पत्नी पूजा पर गई है। अंतरा को पूजा की कॉर्बनकॉपी कह सकते हैं गुणों के मामले में। पूजा में भी वो सारे गुण मौजूद थे जो एक पति और सास-ससुर को चाहिए। लेकिन मैं बहुत ही बसदनसीब इंसान हूँ जिसने कभी भी उसके गुणों की कद्र नहीं की।।

कुछ देर में अंतरा और जतिन की आवाज़ तेज़ होने लगी। कुछ ही देर में कमरे से मार-पीट की आवाज आने के साथ-साथ अंतरा के सिसकने की भी आवाज़ आने लगी। अंतरा और जतिन की शादी के लगभग डेढ़ साल के बाद ये रोज की बात हो गई थी।

मुझे ये सब बहुत खराब लगता था और गुस्सा भी बहुत आता था, लेकिन मैं जतिन को समझाने के अलावा चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था। मैं आज भी अपने कमरे से निकला और बेटे-बहू के कमरे के पास पहुंचकर तेज़ आवाज़ में कहा।

मैं- ये सब क्या है जतिन। तुम ऐसे कैसे बहू पर हाथ उठा सकते हो। तुम्हारा रोज का यही काम हो गया है। बाहर का पूरा गुस्सा तुम रोज आकर बहू पर उतरते हो। तुम्हें शर्म नहीं आती ऐसी घिनौनी हरकत करते हुए।।

मेरी आवाज सुनकर मेरा बेटा कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर आया और मुझपर चिल्लाते हुए बोला।

जतिन- आपसे मैंने कितनी बार कहा है कि आप अपने काम से काम रखा करिए। मेरे मामले में टांग अड़ाने की कोई जरूरत नहीं है। अंतरा मेरी पत्नी है मैं उसके साथ चाहे जो करूँ आप कौन होते हैं मुझे रोकने वाले।

मैं- (गुस्से से) मैं कौन होता हूँ? मैं तुम्हारा बाप हूँ। तुम्हें गलत करने से रोकना मेरा फर्ज है। तुम बहू पर इतना अत्याचार करते हो। तुम्हें शर्म नहीं आती। इतनी अच्छी, सुशील, संस्कारी और रूपवान पत्नी तुम्हें चिराग लेकर ढूंढने से भी नहीं मिलेगी, लेकिन तुम्हें उसकी कद्र ही नहीं है। सुधर जाओ बेटा नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि बाद में तुम्हें बहुत पछताना पड़े।

जतिन- आप अपने ज्ञान का पिटारा अपने पास रखिए। मुझे आपकी इन बकवास बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है। और क्या बोल रहे हैं आप। आप बाप हैं मेरे। हाहाहाहा। मेरे बाप हैं।

कभी बाप होने का फर्ज निभाया है अपने। कभी मुझे अपना बेटा माना है। हर समय मुझे रोकते टोकते रहते हैं। अगर आप सच में मेरे बाप होते तो मुझे किसी काम के लिए रोकते नहीं। इसलिए अपना ये झूठा प्यार का नाटक मेरे सामने मत करिए। मेरा कोई बाप नहीं है। मेरी सिर्फ माँ थी जो अब इस दुनिया में नहीं है।। समझे आप।

मैं जतिन का दो टूक जवाब सुनकर कोई जवाब नहीं दे पाया, क्योंकि उसके दिलो-दिमाग में बचपन से उसकी माँ ने जो कुछ मेरे बारे में जहर घोला था वो अब अपनी चरम पर पहुंच चुका था इसलिए मेरी कही गई किसी भी बात को वो कभी मानता नहीं था। उसकी बात सुनकर मैंने उससे कहा।

मैं- ठीक है तुम मुझे अपना बाप नहीं मानते। मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं हूँ, लेकिन जिसको तुम रोज प्रताड़ित करते हो, जिसको तुम रोज मारते हो। वो तो तुम्हारी अपनी है। तुम्हारी पत्नी है। तुम्हारी अर्धांगिनी है। तुम उसके साथ जानवरों वाला व्यवहार कैसे कर सकते हो।

जतिन- (गुस्से में) उससे आपको कोई मतलब नहीं होना चाहिए। वो मेरी पत्नी है। मैं उसे चाहे मारूँ या प्यार करूँ। आप होते हैं हैं मेरे और अंतरा के बीच बोलने वाले। इसलिए आप हमारे मामले में घुसना बन्द कर दीजिए नहीं तो आपके लिए अच्छा नहीं होगा।

मुझे कुछ भी कहने से पहले जरा एक बार अपनी गिरेबान में झांककर देखिए पापा उसके बाद मुझे अपने प्रवचन दीजिएगा। अब जाकर चुपचाप सो जाइये। मुझे भी आपकी इन पकाऊ बातों से नींद आने लगी है।

इतना कहकर जतिन ने मेरे मुंह पर दरवाजा बन्द कर दिया। मैं अवाक होकर अपने मुंह पर बन्द हुए दरवाजे को कुछ देर देखता रहा, फिर निराश, हताश सा अपने कमरे में आ गया और बिस्तर पर लेटकर अपनी आंखें बंद कर ली।

मेरी आँखों की कोर से आँसू निकलकर तकिए को भिगोने लगे। ये रोज का काम हो गया था। मैं ऐसे ही रोज अपने बेटे को समझाने जाता और उसकी खरी-खोटी सुनकर वापस अपने कमरे में चला आता और लेटकर आंसू बहाने लगता। ऐसा नहीं है कि मैं जतिन की बात सुनकर रोने लगता। अपने लिए रोना तो मैंने कब का छोड़ दिया था।

ये आंसू तो मेरी आँखों मे मेरी बहू अंतरा के लिए अनायास ही निकल पड़ते थे, क्योंकि वो जितनी गुणवान और संस्कारी थी उस हिसाब से वो बहुत अच्छा पति और बहुत अच्छे परिवार की हकदार थी, लेकिन उसकी किस्मत में मेरे निर्दयी बेटे का साथ लिखा था जिसे मैं बदल नहीं सकता था। मैं मजबूर था।

यही सब सोचते हुए कब मेरी आँख लग गई पता ही नहीं चला। रात देर से सोने के कारण मेरी आँख देर से खुली। मैंने उठकर नित्यक्रिया से फुरसत होने के पश्चात स्नान किया और हाल में आकर बैठ गया। जतिन घर में नहीं था वो अपने काम पर चला गया था।

थोड़ी देर बाद बहू ने मुझे चाय और नाश्ता लाकर दिया। मैंने उसकी तरफ देखा तो वो एकदम बुझी सी लग रही थी। उसे इस हालत में देखकर मेरे दिल में एक हूक सी उठी। जो मुझे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रही थी। बहू की सूजी आंखें और शरीर पर पड़े नीले निशान देख कर मेरा दिल कराह उठता है। मैं कसमसा उठता हूं। पर मैं इतना ज्यादा मजबूर था कि कुछ कर नहीं कर सकता था।

काश अगर आज पूजा होती तो वो जतिन को जरूर समझाती और उसे वो कभी न बनने देती जो आज जतिन बन चुका है। पर पूजा को तो मैंने अपनी ही गलतियों के कारण खो दिया था।

यही सब सोचते-सोचते मेरे दिमाग की नसें फटने लगी। मैं अपने आप से भाग जाना चाहता था, लेकिन नहीं भाग सकता था, क्योंकि नियति द्वारा मेरे लिए सजा तय की जा चुकी थी और वो सज़ा ये थी कि मैं पछतावे की आग में धीरे-धीरे जलूँ और तिल-तिल कर मरूँ।

यही सब सोचकर मेरी आँखों से आंसू बहने लगे। जिसे अंतरा ने देख लिया और वो जान गई कि मैं किसलिए रो रहा हूँ तो वो मेरे पास बैठ गई और बोली।

अंतरा- पापा। ये सब क्या है। आप फिर से रो रहे हैं। मैंने आपसे कितनी बार कहा है कि आप जब रोते हैं तो मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता। आपको तो पता है कि मैं आपसे कितना प्यार करती हूँ और आपकी आंखों में आंसू नहीं देख सकती। आपने वादा किया था कि आप फिर नहीं रोएंगे, लेकिन आज आपने फिर से अपना वादा तोड़ दिया। जाइए मैं आपसे बात नहीं करती।

इतना कहकर अंतरा मुंह फुलाकर अपना चेहरा दूसरी तरफ करके बैठ गई। अंतरा ऐसे ही करती थी, जब कभी उसकी हालत देखकर मेरी आँखों मे आंसू निकलने लगते थे तो वो ऐसे ही मुझसे रूठ जाया करती थी। मैंने उसे मनाते हुए कहा।

मैं- बेटी। मैं क्या करूँ। मुझसे तुम्हारा ये दुःख और तुम्हारी ये हालात देखी नहीं जाती। तुम्हें इस हालत में देखकर मुझे बहुत तकलीफ होती है। मैं तुम्हारे लिए बहुत कुछ करना चाहता हूँ बेटी, लेकिन मैं इतना मजबूर हूँ कि देखने के अलावा मैं कुछ कर नहीं पा रहा हूँ।

मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ बेटी। मेरे कारण ही तुम्हें ये दुःख और तकलीफ झेलनी पड़ती हैं। मैं न कभी एक अच्छा पति बन पाया और न ही एक अच्छा बाप। हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।

इतना कहकर मैंने उसके सामने अपना हाथ जोड़ लिए तो उसने तुरंत मेरे हाथ को अपने हाथों से पकड़कर नीचे किया और न में गर्दन हिलाते हुए बोली।।

अंतरा- ये क्या कर रहे हैं आप पापा। मेरे सामने आप हाथ जोड़कर मुझे लज्जित मत कीजिए। आप हमसे बड़े हैं और बड़ों का हाथ हमेशा छोटों को आशीर्वाद देने के लिए उठना चाहिए न कि उनके सामने हाथ जोड़ने के लिए और किसने कह दिया कि आप एक अच्छे पापा नहीं हैं।

आप दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं। जब मैं पांच साल की थी तभी मेरे पापा हम सबको छोड़कर इस दुनिया से चले गए। तब से मैं अपने पापा के प्यार के लिए हमेशा तरसती रही, लेकिन जब से मैं इस घर में आई हूँ आपने मुझे वो प्यार दिया है जो शायद मेरे अपने पापा भी मुझे नहीं दे पाते। मुझे आपसे पता चला कि पापा का प्यार क्या होता है।

आप ऐसे बात-बात पर आंसू मत बहाया करिए। आप जब मेरे सिर पर प्यार से अपना हाथ फेरते हैं न तो मेरा सारा दुःख-दर्द पल भर में छू-मंतर हो जाता है। इसलिए आप अपने आपको दोष मत दीजिए। मेरी किस्मत में जो लिखा था वो मुझे मिला, इसमें न आप कुछ कर सकते हैं न मैं कुछ कर सकती हूँ।

इतना कहकर अंतरा मुझे देखने लगी। उसकी बात सुनकर मैं किसी सोच में डूब गया और अपने मन में सोचने लगा।

मैं- तुम सच मे बहुत भोली हो बहू। तुम मुझ जैसे घटिया और नीच इंसान को इतना मान सम्मान देती हो। मुझे इतना अच्छा मानती हो। लेकिन मैं इस मान-सम्मान का हकदार नहीं हूँ बेटी। जिस दिन तुम्हें मेरी सच्चाई पता चलेगी उस दिन तुम मुझसे नफरत करने लगोगी। वैसे भी मैंने जो पाप किया है उसके लिए मैं किसी के प्यार और सम्मान का हकदार नहीं हूँ।।

किस सोच में डूब गए हैं पापा- अचानक से अंतरा की आवाज़ सुनकर मैं वर्तमान में वापस आया और बात को बदलते हुए कहा।

मैं- मेरा नाश्ता हो गया है बहू मैं बाजार की तरफ जा रहा हूँ, तुम्हें कुछ चाहिए तो बता दो मैं आते वक्त लेते आऊंगा।।

अंतरा- हां पापा चाहिए न।। आप मेरे लिए समोसा लेते आइयेगा। मुझे बहुत पसंद है।

मैं- क्या बेटी। तुम कुछ और नहीं मंगा सकती हो क्या। हमेशा समोसा ही मंगाती हो।

अंतरा- जो मुझे पसंद है वो मैंने बता दिया है पापा। अगर आपको कुछ और पसन्द हो तो अपनी पसंद का लेते आइयेगा।

मैं- ठीक है बेटी मैं लेता आऊंगा।

इतना कहकर मैं तेज़ी से अपने कमरे की तरफ भागा। मैं और ज्यादा देर अंतरा का सामना नहीं कर सकता था, क्योंकि वो मुझे इतना मान-सम्मान और प्यार देती थी कि मुझे अपने आपसे नफरत होने लगती थी। मैं अपने पापों के बोझ के कारण आत्मग्लानि में जलने लगता हूँ। खुद को बहुत छोटा महसूस करने लगता हूँ और सोचता हूँ कि क्या मैं उस इज़्ज़त का हकदार हूँ जो अंतरा मुझे देती है।।

अपने कमरे में आकर मैंने अपने कपड़े पहने और घर से बाहर निकल गया मैं घर से बाहर ये सोचकर निकला कि शायद कुछ देर बाहर रहने के बाद मेरा मन थोड़ा बहल जाएगा, लेकिन बाहर निकलते ही मेरा मन अतीत के गलियारों में भटकने लगा और मैं अतीत की गहराइयों में खो गया।


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मैं जगदीश प्रसाद। बचपन से ही बहुत ही होशियार और कुशाग्र बुद्धि का मालिक था। अच्छा खासा व्यक्तित्व था मेरा। एक लड़की को जो चाहिए होता है लड़कों में वो सबकुछ था मेरे पास। सुंदर से सुंदर लड़की एक नजर मुझे देखकर मेरे बारे में जरूर सोचती होगी ऐसा मेरा मानना था।

मेरे घर में मम्मी पापा और एक बड़ी बहन थी। सभी मुझसे बहुत प्यार करते थे।

घर में पैसों की कोई कमी थी नहीं क्योंकि मेरे बाबा मेरे पापा के लिए बहुत संपत्ति छोड़कर गए थे। खेती बाड़ी भी बहुत थी इसलिए पैसे की कभी तंगी नहीं हुई।। सबकुछ बहुत बढिया चल रहा था। लेकिन किसकी किस्मत में क्या लिखा है ये किसी को पता नहीं रहता।

मैं हमेशा से लड़कियों को सम्मान और आदर की दृष्टि से देखता था, लेकिन मेरी सोच में बदलाव तब आया जब मैंने एमबीए में अपना दाखिला लिया। वहां मेरी दोस्ती कुछ ऐसे लड़कों से हुई जिन्होंने मेरी जिंदगी की दिशा और दशा दोनों बदलकर रख दी।

लोग कहते हैं कि संगत का असर जरूर पड़ता है। ये बात सही है और मेरे मामले में ये बात 101 फीसदी लागू होती है। मेरी दोस्ती ऐसे लड़कों से हुई जो बहुत ही अय्यास और लड़कीबाज़ थे। मैं उनका साथ छोड़ना चाहता था लेकिन छोड़ नहीं पाया। अब इसके पीछे की वजह क्या थी ये मुझे नहीं पता।

चूंकि मैं गांव से शहर एमबीए करने के लिए आया था और वहां की चकाचौंध और लड़कियों को देखकर और अपने दोस्तों की संगत में पड़कर मेरा मन भी लड़कियों के प्रति बदलने लगा।

रही सही कसर एक दिन तब पूरी हो गई जब मैं अपने उन्हीं दोस्तों के साथ एक लड़की के साथ हमबिस्तर हो गया। एक बार मुझे लड़की का जो चस्का लगा तो फिर मैं इसमें डूबता चला गया। पहले जहां मैं लड़कियों के चेहरे से नीचे नहीं देखता था। अब आलम ये हो गया था कि मैं अब लड़कियों का चेहरा बाद में देखता था उसके उरोज कर टांगों के बीच मेरी नजर पहले जाती थी।।

बीतते वक्त के साथ मेरा ये नशा बढ़ता गया और मैं भी अपने दोस्तों की तरह अय्यास और लड़कीबाज़ हो गया। इसके बावजूद मेरी पढ़ाई में कोई कमी नहीं आई और में हमेशा की तरह चारो वर्ष अच्छे अंकों से परीक्षा उत्तीर्ण की।।

पढ़ाई खत्म होने के बाद मैंने अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया। जिसमें लड़कियों को रखने की प्रथम प्राथमिकता दी मैंने। मेरे शौक आसानी से पूरे होने लगे। मेरी कंपनी में आने वाली अधिकतर लड़कियों के साथ मेरे संबंध बनने लगे। जो लड़की मेरी बात नहीं मानती थी उसे मैं नौकरी से निकाल देता था।

जिस बात को मैं अपने घरवालों से छुपाना चाह रहा था आखिर वो बात उन्हें पता चल ही गई। उस दिन पापा ने मुझे बहुत मारा और माँ ने खूब खरी खोटी सुनाई मुझे। मैं भले ही अय्याश हो गया था लेकिन मैंने अपने माँ बाप के साथ आज तक कोई बदतमीज़ी नहीं कि थी और न ही कभी उन्हें पलटकर कोई जवाब दिया था।

लोग कहते हैं न कि अगर बेटा गलत रास्ते पर चल निकले तो उसकी नाक में नकेल डाल देनी चाहिए जिससे वो सुधर जाता है। मेरे माँ बाप ने भी मुझे सही रास्ते पर लाने के लिए मेरी शादी बिना मेरी मर्जी के तय कर दी। जिसका मैंने विरोध किया लेकिन उनके आगे मेरी एक न चली।

जिस लड़की से मेरी शादी तय हुई उसका नाम पूजा था और वो अपने नाम के अनुरूप ही पूजनीय भी थी। उसकी सुंदरता के सामने अप्सरा भी शर्मा जाएं। साथ में वो सर्वगुण सम्पन्न लड़की थी। वो एक गरीब परिवार की थी जिसके माता पिता नहीं थे। एक बड़ा भाई था जो शराबी था, इसलिए उसने तुरंत ये रिश्ता मान लिया।

लेकिन ये शादी मुझे मेरी आजादी पर ग्रहण के समान लग रही थी जिसके कारण मैं पूजा के ऊपर गुस्सा था और इन सबका कुसूरवार उसे मान रहा था, मुझे ये लगता था कि अगर वो इस रिश्ते के लिए मना कर देती तो मुझे शादी नहीं करनी पड़ती।

और इसी बात का गुस्सा मैंने सुहागरात वाली रात उसपर निकाला जब मैं एक जानवर बनकर उसके साथ पेश आया। मैंने सुहागरात वाली रात उसका बलात्कार किया। वो रोती रही, चिल्लाती रही और छोड़ने के लिए गिड़गिड़ाती रही लेकिन मैंने उसपर कोई रहम नहीं दिखाया। मैं उसके मुंह मे कपड़ा ठूंसकर उसके साथ अपनी मनमानी करता रहा।

मुझे उसके दुःख दर्द से कोई मतलब नहीं था। उसने इस बारे में सुबह मम्मी को कुछ नहीं बताया तो मैं और भी ज्यादा शेर हो गया। फिर उसके साथ ये हर रात होने लगा। जिसे शायद उसने अपनी किस्मत समझकर स्वीकार कर लिया था।

मैं भले ही उसके साथ जानवर की तरह पेश आता था लेकिन इसके बावजूद भी वो मेरे माँ बाप को अपने माँ बाप की तरह सम्मान और आदर देती थी। मेरे माँ बाप बहुत खुश थे कि उन्हें ऐसी संस्कारों वाली बहू मिली है। अगर कभी मेरी माँ उसे उदास देखकर पूछ भी लेती थी तो पूजा बात को टाल जाती थी।

शादी के एक माह के अंदर ही पूजा गर्भवती हो गई। मुझे वैसे भी उससे कोई मतलब नहीं था। मेरी अय्याशियां बाहर भी चलती रही। साल भर के अंदर मैं बाप बन गया था। मुझे पूजा से भले ही स्नेह नहीं था लेकिन बेटा होने के बाद मुझे अपने बेटे से लगाव जरूर हो गया था।

ऐसे ही वक्त का पहिया चलता रहा है मेरी शादी को 4 वर्ष पूरे हो गए। इन चार वर्षों में शायद ही कोई दिन रहा होगा जब मैंने पूजा से प्रेम से बात की होगी। उसे स्नेह किया होगा। मैं रात को उसके साथ अपनी हवस मिटाने के लिए ही सोता था। एक दो बार उसने मुझसे शिकायत भी की थी, लेकिन मैंने उसकी बात सुनने के बजाय उस पर हाथ उठा दिया था।

एक बार पूजा फिर से गर्भवती हुई। गर्भावस्था के चौथे महीने की बात है मैं अपनी अय्याशी मनाने एक लड़की के साथ होटल जा रहा था, उसी समय पूजा भी किसी काम से बाहर आई हुई थी, उसने मुझे किसी लड़की के साथ देखा तो उसने मेरा पीछा किया और मुझे होटल में लड़की के साथ रंगरेलियाँ मनाते हुए पकड़ लिया।

वो वहां से रोती हुई चली गई। उसे मेरे ऊपर शक तो था लेकिन उसने कभी मुझसे इस बारे में नहीं पूछा था लेकिन आज अपनी आंखों से देखने के बाद वो ये सब बर्दास्त नहीं कर पाई और घर जाकर मेरी मम्मी को सबकुछ बता दिया। मेरी मम्मी तो ये सुनकर अवाक रह गई, क्योंकि उन्हें लगता था कि मैं सुधर चुका हूँ।

रात को जब मैं घर लौटा तो पूजा ने मुझसे आज की घटना के बारे में पूछा। कुछ देर में बात इतनी बढ़ गई कि मुझे हद से ज्यादा गुस्सा आ गया और मैं उसे मारने लगा।

मर्द जात में यही कमजोरी होती है। जब उन्हें अपनी सच्चाई साबित करने का मौका नहीं मिलता या उन्हें अहम को ठेस पहुंचती है तो वो अपनी असली औकात पर आ जाते हैं।

मेरे साथ भी यही हुआ। मुझे ये कतई बर्दास्त नहीं हुआ कि मेरे सामने मुंह न खोलने वाली आज मुझसे जुबान लड़ा रही है। मैं उसे मरते हुए चिल्लाया।

मैं- मुझ से जबान लड़ाती है। तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझसे इस तरह से बात करने की। आज मैं तुझे छोडूंगा नहीं।

पूजा- आह…प्लीज मत मारो मुझे, मेरे बच्चे को लग जाएगी, दया करो. मैं ने आखिर किया क्या है। बाहर रंगरेलियाँ तुम मनाओ और पूछने पर अपनी औकात दिखा रहे हो। मैं पूछती हूँ क्या कमी है मेरे प्यार में, क्या कमी है मुझमें जो तुम बाहर मुंह मरते फिरते हो। तुम सच में मर्द ही हो न।

बस पूजा का इतना कहना था कि मेरा पौरुष्व जाग उठा और मैं उसे बेतहासा मारने लगा। मैं इतना वहसी हो चुका था कि मैं ये भी भूल गया था कि पूजा 4 माह की गर्भवती है। वो लगातार चीख रही थी। वो अपने कोख में पल रहे बच्चे पर आंच नहीं आने देना चाहती थी. इसलिए हर संभव प्रयास कर रही थी बचने का।

लेकिन मैं कम क्रूर नहीं था. जब इससे भी मेरा मन नहीं भरा तो उसे बालों से पकड़ते हुए घसीट कर हाल में ले आया और अपनी बैल्ट निकाल ली. बैल्ट का पहला वार होते ही उसकी जोरों की चीख खामोशी में तबदील होती चली गई. वह बेहोश हो चुकी थी. तब तक मेरी माँ भी हाल में आ चुकी थी। उन्होंने मुझे उससे अलग करते हुए गुस्से से कहा।

माँ- पागल हो गया है क्या जगदीश। अरे उस के पेट में तेरी औलाद है। अगर उसे कुछ हो गया तो?

मैं- तो फिर कह देना इससे कि मैं भाड़े पर लड़कियां लाऊं या बियर बार जाऊं या कुछ और करूँ। यह मेरी अम्मा बनने की कोशिश न करे वरना अगली बार जान से मार दूंगा इसे मैं।

कहते हुए मैंने अपने 3 साल के नन्हे जतिन को धक्का दिया। जो अपनी मां को मार खाते देख सहमा हुआ-सा एक तरफ खड़ा था. फिर गाड़ी उठाई और निकल पड़ा अपनी आवारगी की राह पर।

उस पूरी रात मैं नशे में चूर रहा और एक लड़की की बाहों में पड़ा रहा। सुबह के लगभग 6 बज रहे होंगे कि पापा के एक कॉल ने मेरे शराब का सारा नशा उतार दिया।

पापा- जगदीश कहां है तू कब से फोन लगा रहा हूं। पूजा ने फांसी लगा ली है। तुरंत आ घर।

जैसे-तैसे घर मैं पहुंचा तो हताश पापा सिर पर हाथ धरे अंदर सीढि़यों पर बैठे थे और मां नन्हे जतिन को चुप कराने की बेहिसाब कोशिशें कर रही थी।

अपने बैडरूम का नजारा देख मेरी सांसें रुक सी गईं। बेजान पूजा पंखे से लटकी हुई थी। मुझे काटो तो खून नहीं। मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ भी हो सकता है। मां-पापा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए।

पूजा ने अपने साथ अपनी कोख में पल रहे मेरे अंश को भी खत्म कर लिया था। पर इतने खौफनाक माहौल में भी मेरा शातिर दिमाग काम कर रहा था। इधर-उधर खूब ढूंढ़ने के बाद भी पूजा की लिखी कोई आखिरी चिट्ठी मुझे नहीं मिली।

चूंकि पूजा अब मर चुकी थी और जतिन को भी संभालना था, इसलिए पुलिस को देने के लिए हमने एक ही बयान को बार-बार दोहराया कि मां की बीमारी के चलते उसे मायके जाने से मना किया तो जिद व गुस्से में आ कर उसने आत्महत्या कर ली. वैसे भी मेरी मां का सीधापन पूरी कालोनी में मशहूर था, जिस का फायदा मुझे इस केस में बहुत मिला।

कुछ दिन मुझे जरूर लॉकअप में रहना पड़ा, लेकिन बाद में सब को दे दिला कर इस मामले को खत्म करने में हम ने सफलता पाई, क्योंकि पूजा के मायके में उस की खैर-खबर लेने वाला एक शराबी भाई ही था जिसे अपनी बहन को इंसाफ दिलाने में कोई खास रुचि न थी।

थोड़ी परेशानी से ही सही, लेकिन कुछ समय के बाद केस रफा-दफा हो गया और मैं बाहर आ गया। इस भयानक घटना के बाद होना तो यह चाहिए था कि मैं पश्चाताप की आग में जलता और अपने गुनाहों और कुकर्मों के लिए पूजा से माफी मांगता, पर मेरे जैसा आशिकमिजाज व्यक्ति ऐसे समय में भी कहां चुप बैठने वाला था।

जेल से बाहर आने के बाद मेरी अय्याशियां फिर शुरू हो गई। अब तो पूजा भी नहीं थी तो मैं छुट्टा साँड़ हो गया था। इस बीच मेरी रासलीला मेरे एक दोस्त की बहन लिली के साथ शुरू हो गई।

लिली का साथ मुझे खूब भाने लगा। क्योंकि वह भी मेरी तरह बिंदास थी साथ मे खूबसूरत भी थी। पूजा की मौत के साल भर के भीतर ही हमने शादी कर ली। शादी के कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि वो चलते पुर्जे की लड़की है। मैं शेर था तो वो सवा शेर थी।

बदतमीजी, आवारगी, बदचलनी आदि दुर्गुणों में वह मुझ से कहीं बढ़ कर निकली. मेरी परेशानियों की शुरुआत उस दिन शुरू हुई जिस दिन मैंने पूजा समझ कर उस पर पहली बार हाथ उठाया। मेरे उठे हाथ को हवा में ही थाम उस ने ऐसा मरोड़ा कि मेरे मुंह से आह निकल गई। उस के बाद मैं कभी उस पर हाथ उठाने की हिम्मत न कर पाया।

घर के बाहर बनी पुलिया पर आस-पास के आवारा लड़कों के साथ बैठी वह सिगरेट के कश लगाती जब-तब कालोनी के लोगों को नजर आती। अपने दोस्तों के साथ कार में बाहर घूमने जाना उस का प्रिय शगल था। रात को वह शराब के नशे में धुत हो घर आती और सो जाती। अब हमारी बदनामी भी कॉलोनी में होने लगी।

मैं ने उसे अपने झांसे में लेने की कई नाकाम कोशिशें कीं, लेकिन हर बार उस ने मेरे वार का ऐसा प्रतिवार किया कि मैं बौखला जाता। उसने साफ शब्दों में मुझे चेतावनी दी कि अगर मैंने उस से उलझने की कोशिश की तो वह मुझे मरवा देगी या ऐसे केस में फंसाएगी कि मेरी जिंदगी बरबाद हो जाएगी। मैं उस के गदर से तभी तक बचा रहता जब तक कि उस के कामों में हस्तक्षेप न करता।

लेकिन उसने एक काम अच्छा किया जो उसने जतिन को अपने बेटे की तरह प्यार दिया। ऐसा मुझे लगता था। लेकिन सच्चाई तो इसके बिकुल उलट थी। वो जतिन को अपने नक्शेकदम पर चलाना चाहती थी और जातिन भी दिन रात मम्मी मम्मी कहकर उसके आगे पीछे घूमता रहता था।

कहते हैं न कि इंसान जो बोता है वो काटकर जाता है। अपनी करनी का फल सभी जरूर भुगतते हैं। सभी के पापों का घड़ा जरूर भरता है। तो मेरे पापों का घड़ा भी भर चुका था वो भी बहुत जल्दी।

तो मैंने प्रकृति के न्याय के तहत वह काटा, जो मैंने बोया था। घर की पूरी सत्ता पर मेरी जगह वह काबिज हो चुकी थी। शादी के सालभर के भीतर दबाव बना कर उसने पापा से हमारे घर को भी अपने नाम करवा लिया और फिर मेरे मम्मी पापा को घर से निकाल दिया और ये मकान बेचकर एक बहुत ही पॉश इलाके ने दूसरा मकान ले लिया।

मेरे मम्मी-पापा मेरी बहन यानी अपनी बेटी के घर में रहने को मजबूर थे। यह सब मेरी ही कारगुजारियों की अति थी जो आज सब-कुछ मेरे हाथ से मुट्ठी से निकली रेत की मानिंद फिसल चुका था और मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था।

अपना मकान बिकने से हैरान-परेशान पापा इस सदमे को न सह पाए और हृदयघात का शिकार हो महीनेभर में ही चल बसे। उन के जाने के बाद मेरी मां बिलकुल अकेली हो गईं। प्रकृति मेरे कर्मों की इतनी जल्दी और ऐसी सजा देगी मुझे मालूम न था।

नए घर में शिफ्ट होने के बाद भी उस के क्रियाकलाप में कोई खास अंतर नहीं आया। इस बीच 5 साल के हो चुके जतिन को उस ने पूरी तरह अपने अधिकार में ले लिया. उस के सान्निध्य में पलता-बढ़ता जतिन भी उस के नक्शेकदम पर चल पड़ा। जतिन मेरी बात कभी नहीं सुनता था। लिली उसे मेरी बारे में जो बताती गई वो उसे ही सत्य मानता गया।

पढ़ाई-लिखाई से उसका खास वास्ता था नहीं। जैसे-तैसे 12वीं कर उस ने छोटा-मोटा बिजनैस कर लिया और अपनी जिंदगी पूरी तरह से उसी के हवाले कर दी। उन दोनों के सामने मेरी हैसियत वैसे भी कुछ नहीं थी। किसी समय अपनी मन-मरजी का मालिक मैं आजकल उनके हाथ की कठपुतली बन बस उन के रहमो-करम पर जिंदा था।

मेरे कर्मों की मुझे सजा मिल रही थी। अब मुझे पूजा के साथ किये हुए हर जुल्मोसितम याद आने लगे। अब मैं पश्चाताप की आग में जलने लगा। रोज मैं अपने गुनाहों की माफी पूजा से मांगने लगा। उससे वापस लौट आने के लिए गिड़गिड़ाने लगा। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। रोज नई नई लड़की की बाहों में अपनी रात रंगीन करने वाला मैं जगदीश अब लड़की जात से नफरत करने लगा।

इसी रफ्तार से जिंदगी चलती रही। मैंने जो बोया था वो तो मैं काट रहा था, लेकिन लिली ने जो बोया उसको मुझसे भी ज्यादा भयानक दंड मिला, एक दिन पता चला कि लिली एक भयानक बीमारी एड्स की चपेट में आ गई है। इस बीमारी के कारण वो अब गुमसुम रहने लगी अब घर की सत्ता मेरे बेटे जतिन के हाथों में आ गई।

हालांकि इसका मेरे लिए कोई खास मतलब नहीं था। हाँ जतिन की शादी होने पर उस की पत्नी अंतरा के आने से अलबत्ता मुझे कुछ राहत जरूर मिली, क्योंकि मेरी बहू भी पूजा जैसी ही एक नेकदिल इंसान थी। फिर भी उसकी चिंता मुझे दिन-रात खाए जाती थी।

अंतरा लिली की सेवा जी-जान से करती और जतिन को खुश करने की पूरी कोशिश भी। पर जिसकी रगों में मेरे जैसे गिरे और नीच इंसान का लहू बह रहा हो। उसे भला किसी की अच्छाई की कीमत का क्या पता चलता। साल-भर पहले लिली ने अपनी आखिरी सांस ली। उस वक्त सच में मन से जैसे एक बोझ उतर गया और मेरा जीवन थोड़ा आसान हो गया।

इस बीच जतिन के अत्याचार अंतरा के प्रति बढ़ते जा रहे थे। लगभग रोज रात में जतिन अंतरा को पीटता और हर सुबह अपने चेहरे व शरीर की सूजन छिपाने की भरसक कोशिश करते हुए वह फिर से अपने काम पर लग जाती। कल रात भी जतिन ने उस पर अपना गुस्सा निकाला था।


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मुझे समझ नहीं आता था कि आखिर वह ये सब क्यों सहती है। क्यों नहीं वह जतिन को मुंहतोड़ जवाब देती। आखिर उस की क्या मजबूरी है? तमाम बातें मेरे दिमाग में लगातार चलती रहती। मेरा मन उस के लिए इसलिए भी परेशान रहता क्योंकि इतना सबकुछ सह कर भी वह मेरा बहुत ध्यान रखती थी। कभी-कभी मैं सोच में पड़ जाता कि आखिर औरत एक ही समय में इतनी मजबूत और मजबूर कैसे हो सकती है?

ऐसे वक्त पर मुझे पूजा की बहुत याद आती। अपने 4 वर्षों के वैवाहिक जीवन में मैं ने एक पल भी उसे सुकून का नहीं दिया. शादी की पहली रात जब सजी हुई वह छुईमुई सी मेरे कमरे में दाखिल हुई थी, तो मैं ने पलभर में उसे बिस्तर पर घसीट कर उस के शरीर से खेलते हुए अपनी कामवासना शांत की थी। यही सोचकर मैं अपने आपसे घृणा करने लगता।

काश उस वक्त उसके रूप सौंदर्य को प्यार भरी नजरों से कुछ देर निहारा होता। तारीफ के दो बोल बोले होते तो वह खुशी से अपना सर्वस्व मुझे सौंप देती। उस घर में आखिर वह मेरे लिए ही तो आई थी, पर मेरे लिए तो उस समय प्यार की परिभाषा शारीरिक भूख से ही हो कर गुजरती थी। उस दौरान निकली उस की दर्दभरी चीखों को मैं ने अपनी जीत समझ कर उसका मुंह कपड़े से बंदकर अपनी मनमानी की थी।

वह रातों में मेरे दिल बहलाने का साधनमात्र थी इसलिए मुझे ऐसा करने का हक था आखिर मैं मर्द जो था। मेरी इसी सोच और दम्भ ने मुझे कभी इंसान नहीं बनने दिया।।

काश उस समय प्रकृति मुझे थोड़ी-सी सद्बुद्धि देती।

मैंने उसे चैन से एक सांस न लेने दी। अपनी गंदी हरकतों से सदा उस का दिल दुखाया। उस की जिंदगी को मैं ने वक्त से पहले खत्म कर दिया।

उस दिन उस ने आत्महत्या भी तो मेरे कारण ही की थी। क्योंकि उसे मेरे नाजायज संबंधों के बारे में पता चल गया था और उस की गलती सिर्फ इतनी थी कि इस बारे में मुझ से वह पूछ बैठी थी। बदले में मैंने जीभर कर उस की धुनाई की थी। ये सब पुरानी यादें दिमाग में घूमती रहीं और कब मैं घर लौट आया पता ही नहीं चला।

पापा, जब आप बाजार गए थे। उस वक्त बुआजी आई थीं। थोड़ी देर बैठीं। फिर आप के लिए यह लिफाफा दे कर चली गईं। बाजार से आते ही अंतरा ने तुरंत मुझे एक लिफाफा पकड़ाया।

ठीक है बेटा। मैंने समोसा उसे देकर लिफाफा खोला। उस में एक छोटी सी पर्ची और करीने से तह किया हुआ एक खत रखा था। पर्ची पर लिखा था।

मां के जाने के सालों बाद आज उन की पुरानी संदूक खोली तो यह खत उस में मिला। तुम्हारे नाम का है सो तुम्हें देने आई थी। ये मेरी बहन की लिखावट थी। सालों पहले मुझे यह खत किस ने लिखा होगा यह सोचते हुए मैं अपने कमरे में आकर कांपते हाथों से मैंने खत खोलकर पढ़ना शुरू किया।

''प्रिय जगदीश

''वैसे तो तुमने मुझे कई बार मारा है, पर मैं हमेशा यह सोच कर सब सहती चली गई कि जैसे भी हो, तुम मेरे तो हो. कभी तुम्हें मेरी कद्र होगी। कभी तुम मुझसे प्रेम से बात करोगे। यही सोचकर मैं तुम्हारे साथ रहती रही।

परंतु कल जब तुम्हारे इतने सारे नाजायज संबंधों का पता चला तो मेरे धैर्य का बांध टूट गया। हर रात तुम मेरे शरीर से खेलते रहे हर दिन मुझ पर हाथ उठाते रहे, लेकिन मन में एक संतोष था कि इस दुखभरी जिंदगी में भी एक रिश्ता तो कम से कम मेरे पास है, लेकिन जब पता चला कि यह रिश्ता, रिश्ता न हो कर एक कलंक है तो इस कलंक के साथ मैं नहीं जी सकती।

सोचती थी कभी तो तुम्हारे दिल में अपने लिए प्यार जगा लूंगी, लेकिन अब सारी उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं। मायके में भी तो कोई नहीं है जिसे मेरे जीने-मरने से कोई सरोकार हो। मैं अपनी व्यथा न ही किसी से बांट सकती हूं और न ही उसे सह पा रही हूं। तुम्हीं बताओ फिर कैसे जिऊँ मैं, किसके लिए जिऊँ।

मेरे बाद मेरे बच्चे की दुर्गति न हो, इसलिए अपनी कोख का अंश अपने साथ लिए जा रही हूँ। मासूम जतिन को मारने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। खुश रहो तुम। कम से कम जतिन को एक बेहतर इंसान बनाना। जाने से पहले एक बात तुम से जरूर कहना चाहूंगी। मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं बहुत ज्यादा प्यार करती हूँ।

''तुम्हारी चाहत के इंतजार में पल-पल मरती…तुम्हारी पूजा।''

पूरा पत्र आंसुओं से गीला हो चुका था। जी चाह रहा था कि मैं चिल्ला-चिल्ला कर रो पडूँ। पूजा माफ कर दो मुझ पापी को।

मैं इंसान कहलाने के काबिल नहीं हूँ तो तुम्हारे प्यार के काबिल भला क्या बनूंगा।

हे ईश्वर मेरी पूजा को लौटा दे मुझे। मैं उस के पैर पकड़ कर अपने गुनाहों की माफी तो मांग लूंगा उससे।

लेकिन कहते हैं न कि अब पछताए होत क्या, जब चिडि़या चुग गई खेत.

मैं काफी देर तक अपने बिस्तर पर बैठा रोता रहा। जब भावनाओं का ज्वार थमा तो कुछ हलका महसूस हुआ।

शायद मां को पूजा का यह पत्र मिला हो और मुझे बचाने की खातिर यह पत्र उन्होंने अपने पास छिपा कर रख लिया हो। यह उन्हीं के प्यार का साया तो था कि इतना घिनौना जुर्म करने के बाद भी मैं बच गया। उन्होंने मुझे कालकोठरी की भयानक सजा से तो बचा लिया, परंतु मेरे कर्मों की सजा तो नियति से मुझे मिलनी ही थी और वह किसी भी बहाने से मुझे मिल कर रही।

पर अब सब-कुछ भुला कर पूजा की वही पंक्ति मेरे मन में बार-बार आ रही थी ''कम से कम जतिन को एक बेहतर इंसान बनाना।'' अंतरा के मायके में भी तो उस की बुजुर्ग मां और छोटी बहन के अलावा कोई नहीं है। हो सकता है इसलिए वह भी पूजा की तरह मजबूर हो। पर अब मैं मजबूर नहीं बनूंगा।

कुछ सोच कर मैं उठ खड़ा हुआ, अपने चेहरे को साफ किया और अंतरा को आवाज दी।

''जी पापा,'' कहते हुए अंतरा मेरे सामने मौजूद थी।

बहुत देर तक मैं उसे सब-कुछ समझाता रहा और वह आंखें फाड़-फाड़ कर मुझे हैरत से देखती रही। शायद उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जतिन का पिता होने के बावजूद मैं उसका दर्द कैसे महसूस कर रहा हूं या उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि अचानक मैं यह क्या और क्यों कर रहा हूं। क्योंकि वह मासूम तो मेरी हकीकत से हमेशा अनजान थी। पहले तो वह इसके लिए तैयार नहीं हो रही थी, लेकिन बहुत समझाने, मिन्नत करने और अपनी कसम देने के बाद वह तैयार हुई।

पास के पुलिस स्टेशन पहुंच कर मैंने अपनी बहू पर हो रहे अत्याचार की धारा के अंतर्गत बेटे जतिन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। मेरे कहने पर अंतरा ने अपने शरीर पर जख्मों के निशान उन्हें दिखाए, जिससे केस पुख्ता हो गया। जतिन को सही राह पर लाने का एक यही तरीका मुझे कारगर लगा। क्योंकि सिर्फ मेरे समझाने भर से बात उस के पल्ले नहीं पड़ेगी। पुलिस, कानून और सजा का खौफ ही अब उसे सही रास्ते पर ला सकता था।

पूजा के चिट्ठी में कहे शब्दों के अनुसार मैं उसे रिश्तों की इज्जत करना सिखाऊंगा और एक अच्छा इंसान बनाऊंगा, ताकि फिर कोई पूजा किसी जगदीश के अत्याचारों से त्रस्त हो कर आत्महत्या करने को मजबूर न हो। ऑटो में वापसी के समय अंतरा के सिर पर मैं ने स्नेह से हाथ फेरा. उस की आंखों में अब खौफ की जगह अब सुकून नजर आ रहा था. यह देख मैंने राहत की सांस ली।

मैंने तो उसे सुधरने के लिए पुलिस की मदद ली थी और पुलिस ने अपना काम भी कर दिया था। उसे जेल में एक हफ्ता रखकर उसकी अच्छे से खातिरदारी भी की, लेकिन जतिन के ऊपर इसका उल्टा असर पड़ा। जिस दिन वो जेल से घर वापस आया। वो बहुत गुस्से में था और उसने आते ही अंतरा के ऊपर हाथ उठा दिया।

मैंने बीच बचाव करने की कोशिश की तो आज वो हो गया जो इतने दिनों में पहली बार हुआ था। आज जतिन ने मेरे ऊपर भी हाथ उठा दिया।

मैं चाहे जैसा भी था। लिली ने जतिन को मेरे बारे में चाहे जो भी बताया हो। लेकिन नितिन ने आजतक ऐसा नहीं किया था।

जतिन और अंतरा के मामले में हस्तक्षेप करने पर वो केवल मेरे ऊपर चिल्लाता था। भला-बुरा कहता था, लेकिन उसने कभी मुझपर हाथ नहीं उठाया था।

मुझपर हाथ उठाता देख अंतरा भी बिफर पड़ी और उसने घर में रखी लाठी उठाकर जतिन को मारना शुरू कर दिया। अंतरा बहुत ज्यादा गुस्से में लग रही थी। जतिन अंतरा का ये रूप देखकर सहम गया और घर से बाहर चला गया।।

हम ससुर और बहू अपना अपना सिर पकड़कर हॉल में बैठे हुए थे। हमने क्या सोचा था और क्या हो गया। जतिन को गए हुए अभी एक घंटे हुए थे कि तभी अंतर का मोबाइल बजने लगा। उसने अपना मोबाइल उठाकर कान में लगाया। फिर एक चीख के साथ उसका मोबाइल उसके हाथों से छूटकर नीचे गिर पड़ा।

मैंने भी हड़बड़ाते हुए अंतरा से पूछा।

मैं- क्या हुआ बेटी। तुम ऐसे चीखी क्यों।

अंतरा- (रोते हुए) पापा अभी ........ अस्पताल से फ़ोन था। जतिन का एक्सीडेंट हो गया है और वो अस्पताल में है। जिसने उसे अस्पताल पहुंचाया है उसी ने फ़ोन किया था।

मैं- (चौकते हुए) क्या? एक्सीडेंट। हमें अभी अस्पताल चलना होगा।

मैं तुरंत अंतरा के साथ अस्पताल पहुंच गया जहां पर मेरे बेटे की भर्ती किया गया था। मैंने उस व्यक्ति को धन्यवाद दिया जिसने जतिन को अस्पताल पहुंचाया था। डॉक्टर से मिलने के बाद पता चला कि उस एक्सीडेंट में जतिन का एक पैर टूट गया है साथ में उसके सारे शरीर मे बहुत चोटें आई थी। जिसे ठीक होने में बहुत समय लगेगा।

हम दोनों को वहां देखकर जतिन कुछ नहीं बोला। अंतरा मेरे पास खड़ी आंसू बहा रही थी। 5 दिन अस्पताल में रहने के बाद मैं जतिन को लेकर घर आया। अंतरा पूरे मन से जतिन की सेवा करने में जुट गई।

पहले तो जतिन अपने पौरुष्व के अभिमान में न मुझसे बात करता था और न ही अंतरा से, लेकिन धीरे धीरे अंतरा की अपने लिए ऐसी सेवा भावना देखकर उसका हृदय परिवर्तित होने लगा। अब वो अंतर से धीरे धीरे बात करने लगा।।

वो मुझसे भी बात करना लगा था। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने के बाद उसका हम लोगों के लिए जो गुस्सा था अब वो खत्म हो गया था। मैं भी कई दिन से जतिन से बात करने की फिराक में था, एक दिन अच्छा मौका देखकर मैने जतिन से बात की।।

मैं- अब किसी तबियत है तुम्हारी जतिन।

जतिन- अब ठीक है पापा थोड़ा बहुत चलने फिरने भी लगा हूँ अब। ये सब अंतरा की मेहनत का फल है जो मै इतनी जल्दी ठीक हो रहा हूँ।

मैं- मुझे अंतरा के बारे में ही तुमसे बात करनी है बेटा। तुम अंतरा के साथ जो कुछ भी कर रहे हो वो बिल्कुल भी अच्छा नहीं है। तुम्हें बिल्कुल भी अंदाजा नहीं है कि तुम्हारे इतने जुल्म सहने के बाद वो तुम्हारे साथ अभी भी क्यों रह रही है। क्योंकि वो तुमसे बहुत प्यार करती है।

उसके संस्कार ऐसे हैं कि तुम्हारे इतने जुल्म सहने के बाद भी वो तुमसे शिकायत नहीं करती। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है बेटा तुम अंतरा को सच्चे दिल से अपना लो। नहीं तो मेरी तरह तुम्हें भी पछताने के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा।

तुम्हें नहीं पता जिस दिन से तुम्हारा एक्सीडेंट हुआ है वो बहुत रोती है। तुम्हारे सामने वो भले ही खुद को मजबूत दिखाती है लेकिन अंदर से वो बहुत टूट चुकी है। ऊपर से तुम्हारी बेरुखी उसे पल पल मार रही है। जितना अत्याचार तुमने उसपर किए हैं अगर उसकी जगह कोई और लड़की होती तो या तो वो घर छोड़कर चली जाती या फिर तुम्हें तुम्हारी ही भाषा मे जवाब देती।

लेकिन उसने कभी भी ऐसा नहीं किया। अगर तुम्हें इस बात का गुस्सा है कि उसने तुम्हारे खिलाफ पुलिस में शिकायर दर्ज कराई है तो तुम्हारा गुस्सा निराधार है। वो शिकायत मैंने दर्ज करवाई है और अपनी कसम देकर मैं उसे अपने साथ ले गया था।

इतनी सुशील और संस्कारी पत्नी बहुत किस्मत वालों को मिलती है बेटा। मैंने जो गलती की मैं नहीं चाहता कि तुम भी वही गलती करो। अभी भी वक्त है सुधर जाओ। नहीं तो तुमसे बदनसीब इंसान दुनिया में कोई नहीं होगा।

लगभग डेढ़ से दो महीने से अपने लिए अंतरा की सेवा और त्याग को देखकर अब जतिन को हर भूल और हर एक जुल्म जो उसने अंतरा के साथ किए थे उसका एहसास हो चुका था, लेकिन शायद वो अपने किये पर शर्मिंदा था इसलिए वो बात नहीं कर पा रहा था। मेरी बातों को सुनकर उसे जैसे हौसला मिल गया था। उसने मेरा हाथ अपने हाथों में लिया और रोते हुए कहा।

जतिन- पापा मुझे माफ़ कर दीजिए जो मैंने आजतक आपके और अंतरा के साथ किया। मुझे अपनी गलती का एहसास है जिसके लिए मैं आपसे माफी मांगता हूं। मैं जानता हूँ कि मैंने जो किया है वो माफी के काबिल नहीं है लेकिन हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।।

उसकी बात सुनकर मैंने उसे गले लगा लिया। आज कितने सालों बाद मेरे दिल को सुकून मिला था। ये सुकून इस बात का था कि पूजा की आखिरी इच्छा को शायद मैंने पूरा कर दिया था जो उसने आपके खत में लिखी थी।

जतिन ने अपने किए हर सितम के लिए अंतरा से हाथ जोड़कर माफी मांगी। अंतरा जो जतिन के उस प्यार के लिए कब से तरस रही थी। उसने भी जतिन को माफ कर दिया।

मुद्दतों बाद हमारे घर मे फिर से खुशहाली लौट आई थी। हम खुशी खुशी अपना जीवन बिताने लगे।

समाप्त

कर्मों का फल ये तो सत प्रतिशत सच हैं इंसान जो बोता हैं वोही कटता हैं।

जगदीश ने जैसा जुर्म पूजा के साथ किया बाद में वैसा ही जुर्म उसका बेटा अंतरा के साथ करने लगा। कितना रोकना चाहा पर रोक नहीं पाया।

तब उसे पूजा के साथ किए सभी अत्याचार याद आने लगा। पूजा कितनी आशय थीं। पहले दिन से ही पति का अत्याचार सहती रहीं पर उफ्फ तक न किया। क्योंकि उसकी खेम ख़बर लेने वाला इसके पास कोई नहीं था एक भाई था जिसके लिए बहन एक बोझ समान थीं बहना के विदा होते ही चैन की सांस लिया।

जगदीश को सबक सिखाने लिली इसके जीवन में आई। लिली हुबहू वैसी थी जैसा जगदीश था। लिली ने जतिन को आभास कराया की वो पूजा नहीं जो मार पीट और उसके क्रूरता को सह लेगी। बल्की उसका माकूल जवाब भी देगी और दिया सिर्फ दिया ही जगदीश का सब कुछ छीन लाया। मां बाप बाप की जागीर चैन सकून यह तक की उसके बेटे को भी उससे छीन लिया।

पूजा की खत जगदीश को नहीं मिलती तो शायद ही वो समझ पाता की एक स्त्री कितनी मजबुर हो जाती हैं जब उसका साथ देने वाला कोई नहीं होता हैं।

कर्मों का फल नाम को अपने कहानी के हर एक मोड़ पर साकार करके दिखाया।

बहुत खूब :bow2::bow2::bow2:
 
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Kalpna ka Sapna
यह कहानी है निखिल और कल्पना की है
कहानी शुरू होती है निखिल के घर से, आज सुबह उसकी बहन अपने कॉलेज के लिए लेट हो रही थी उसने निखिल से आग्रह किया कि वह उसकी मदद करें और उसे कॉलेज छोड़ आए।
निखिल अपनी बहन से बहुत प्यार करता है और उसकी सारी बात मानता है , उसे ऑफिस के लिए देरी हो रही थी फिर भी वह अपनी बहन को मना नहीं कर पाया।
निखिल अपनी बहन को बाइक से उसके कॉलेज छोड़ने गया, कॉलेज के पास पहुंचते ही उसकी बहन बोली, भैया प्लीज आज मुझे ड्राइव करने दीजिए, मैं अपने कॉलेज के दोस्तों को इंप्रेस करना चाहती हूं।
निखिल मान गया, अब निखिल की बहन उससे पीछे बैठा कर बाइक चलाने लगी, कॉलेज में उसके दोस्त उसे बाइक चलाता देखकर बहुत इंप्रेस हो गए। कॉलेज पहुंचते ही उनका फोटो खींचना चालू हो गया। निखिल थोड़ा दूर जाकर खड़ा हो गया और इंतजार करने लगा। थोड़ी देर बाद उसने देखा कि उसकी बहन की अच्छी दोस्त कल्पना उसकी तरफ आ रही थी, निखिल कल्पना को पसंद करता था पर यह बात कभी उससे कह नहीं पाया। कल्पना निखिल के पास आकर उसका हालचाल पूछने लगी, निखिल को बहुत हैरानी हुई क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। थोड़ी देर बाद कल्पना ने कहा कि क्या निखिल उसे बाइक चलाने में मदद करेगा। निखिल थोड़ा हैरान था उसे समझ नहीं आ रहा था की कल्पना ने उससे मदद क्यों मांगी है
कल्पना ने बताया कि उसके घर में कोई उसे बाइक नहीं चलाने देता और क्योंकि निखिल अपनी बहन के साथ बाइक पर आया तो कल्पना को लगा कि शायद निखिल उसकी मदद कर देगा ।
निखिल ने हां कह दिया, कल्पना ने पूछा कि क्या आज दोपहर कॉलेज के बाद वह बाइक चला सकती है, निखिल तुरंत बोला की दोपहर में तो वह अपने ऑफिस में होगा, यह बोलते ही निखिल को लगा कि उसने अच्छा खासा मौका गवा दिया है पर वह कर भी क्या सकता था।
कल्पना ने फिर पूछा की नकल का ऑफिस कब तक का होता है, निखिल ने इस बार थोड़ा सोच कर बोला कि आज 5:00 बजे वह ऑफिस से फ्री हो जाएगा।
कल्पना खुश हो गई, उसने निखिल से कहा कि क्या वह कल्पना को 6:00 बजे कॉलेज से ले जाएगा, निखिल भी खुश हो गया।
आज पूरा दिन ऑफिस का बहुत बड़ा लग रहा था क्योंकि शाम को कल्पना से जो मिलना था, निखिल को पता था कि वह थोड़ी देर के लिए ही मिल पाएगा पर उसके लिए यह भी बहुत था। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वह कल्पना के साथ जा पाएगा
शाम को निखिल ठीक 6:00 बजे कल्पना को लेने पहुंच गया, कल्पना ने कहा कि क्या निखिल कोई ऐसी जगह जानता है जहां लोग कम हो क्योंकि उसे बाइक ठीक से चलानी नहीं आती है, निखिल उसे वहां से थोड़ी दूर बाइक सिखाने वाली जगह पर ले गया। कल्पना ने बाइक चलाना शुरु किया, उसे ठीक-ठाक बाइक चलानी आती थी, निखिल को उसे गाइड करने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई पर फिर भी यह एक्सपीरियंस अपनी बहन को बाइक चलाने के एक्सपीरियंस से काफी अलग था। निखिल कल्पना की तारीफ करने लगा कि वह बहुत अच्छा चलाती है और वह बेकार में डर रही थी वह चाहे तो कॉलेज में भी चला सकती है। यह सब सुनकर घटना बहुत खुश हो गई और खुशी में उसका संतुलन बिगड़ गया। निखिल ने संभालने की कोशिश भी बहुत की पर झिझक के कारण वह कल्पना को ढंग से नहीं पकड़ पाया और वह दोनों गिर गए।
निखिल को ज्यादा चोट नहीं आई थी परंतु कल्पना को थोड़ी चोट लग गई थी, निखिल यह देख कर बहुत परेशान हो गया उसने बाइक साइड में लगाई और कल्पना की चोट को देखने लगा, चोट बहुत ज्यादा गहरी नहीं थी पर फिर भी कल्पना बहुत रोई सी हो गई थी। निखिल कल्पना से माफी मांगने लगा। कल्पना ने कहा कि इसमें निखिल की कोई गलती नहीं है । निखिल ने पूछा की कल्पना इतना क्यों रो रही है क्या उसे बहुत दर्द हो रहा है। कल्पना ने कहा कि उसे दर्द नहीं हो रहा है पर उसे डर लग रहा है कि आज के बाद वह बाइक नहीं चला पाएगी। निखिल ने उसका हौसला बढ़ाते हुए कहा की सीखते हुए ऐसे छोटे-मोटे एक्सीडेंट तो हो जाते हैं, परेशान मत हो मैं तुम्हें सिखाता रहूंगा। कल्पना ने निखिल को बहुत धन्यवाद दिया पर फिर भी उसकी उदासी खत्म नहीं हो रही थी। निखिल ने फिर से पूछा क्या बात है। कल्पना ने बताया कि वह इस चोट के साथ अपने घर नहीं जा सकती नहीं तो उसके घर वालों को पता चल जाएगा और वह उसे कभी बाइक नहीं चलाने देंगे। निखिल ने कहा बस इतनी सी बात तुम आज हमारे साथ रुक जाओ। यह सुनकर कल्पना ने कहा कि वह अपनी दोस्त को भी बात नहीं बताना चाहती। निखिल ने बताया कि उनका एक फ्लैट खाली है जिसमें पहले किराएदार रहा करते थे, कल्पना चाहे तो वहां रह सकती है, कल्पना यह सुनकर बहुत खुश हो गई।
निखिल और कल्पना थोड़ी ही देर में फ्लैट पर पहुंच गए, फ्लैट थोड़ा छोटा था, वहां पर एक ही बेडरूम था और एक ड्राइंग रूम था। कल्पना सोफे पर बैठ गई और निखिल कुछ दवाइयां ले आया। निखिल में दिखाओ की कल्पना के हाथ में भी चोट थी और उसका घुटना बिछड़ गया था, निखिल ने दवाई लगा दी । निखिल ने कहा की कल्पना कपड़े चेंज कर ले जिससे वह घुटने पर भी दवाई लगा दे तभी उसे समझ आया की कल्पना की कपड़े तो वहां है ही नहीं। निखिल घर गया और अपनी बहन का एक सूट ले आया। कल्पना के हिसाब से वह सूट थोड़ा बड़ा था पर उसके पास कोई और रास्ता भी नहीं था। निखिल ने कल्पना से पूछा कि उसे कहां-कहां चोट लगी है। कल्पना ने बताया कि उसे थोड़ी चोट कमर पर भी लगी है। निखिल कल्पना की कमर पर दवाई लगाने लगा तभी उसे महसूस हुआ की कल्पना अपने अंदर कुछ नहीं पहना हुआ है। निखिल को अपनी गलती का एहसास हुआ, वह सूट तो ले आया पर वह अंडरगारमेंट्स तो लाया ही नहीं।
निखिल ने खाना बाजार से ऑर्डर कर दिया। निखिल और कल्पना नहीं रात के खाने के साथ बहुत सारी बातें करी। कल्पना को निखिल के साथ बातें करना बहुत अच्छा लग रहा था, उसको पहली बार यह लगा कि वह निखिल को कभी जानते ही नहीं थी , उसके मन का जो डर था वह धीरे धीरे कम हो रहा था । काफी रात हो गई थी निखिल ने कहा कि क्यों ना आप सोया जाए, निखिल ने कहा की कल्पना अंदर कमरे में सो सकती है और निखिल बाहर सोफे पर सो जाएगा। यह सुनकर कल्पना को बहुत अच्छा लगा उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह निखिल का कैसे शुक्रिया अदा करें। कल्पना अंदर सोने चली गई और निखिल बाहर लेट गया।
रात में कल्पना की नींद खुली तो उसे प्यास लग रही थी, वह बाहर आई और उसने देखा कि निखिल ठंड के मारे सोफे पर बड़ी मुश्किल से लेटा हुआ है। कल्पना को यह अच्छा नहीं लगा और वह सोचने लगी कि वह किस तरह निखिल की मदद करें तभी उसे एक विचार आया। कल्पना ने निखिल को जगाया और बोली आप भी मेरे साथ अंदर ही लेट जाइए। निखिल बोला पर यह कैसे मुमकिन है, कल्पना ने कहा कि हम दोनों एक दूसरे से दूसरी तरफ मुंह करके लेट जाएंगे, निखिल यह नहीं समझ पा रहा था कि वह इस बात को माने या नहीं पर कल्पना के मनाने पर मान गया और दोनों बेड पर जाकर लेट गए।
कल्पना को अब बहुत डर लग रहा था, उसने बोल तो दिया पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि कहीं कुछ गलत ना हो जाए और तू बहुत देर तक जाग रही है। काफी देर जागने के बाद कल्पना कब सो गई उसे पता ही नहीं चला। निखिल का भी हाल कुछ ज्यादा अच्छा नहीं था उसको भी नींद नहीं आ रही थी, वह दूसरी तरफ लिखने के बावजूद भी कल्पना को महसूस कर पा रहा था और यह सोच सोच कर उसे बहुत अजीब लग रहा था कि कल तक जिससे वह बात भी नहीं कर पा रहा था आज वह उसके पीछे लेटी है। उसके मन में सब तरह की भावनाएं जागृत हो रही थी और ना चाहते हुए भी उसका मन बार-बार उसे कह रहा था कि वह एक परी कल्पना को पीछे मुड़ कर देखें । निखिल बहुत देर तक अपने आप को कंट्रोल करता रहा और वह भी थोड़ी देर में सो गया।
निखिल का दिमाग सोते हुए भी सिर्फ कल्पना के बारे में ही सोच रहा था ।
निखिल और कल्पना दोनों सो चुके थे और थोड़े ही देर में कल्पना ने अपना पैर निखिल के ऊपर रख दिया। निखिल जो अभी भी कल्पना के बारे में ही सोच रहा था एक सपने में खो गया।
निखिल ने सपने में अपना आपा खो दिया था और वह कल्पना को किस कर रहा था। सपने में निखिल ने देखा की कल्पना भी अपना आपा खो चुकी है और वह भी निखिल को उसी प्यार के साथ किस कर रही है, कुछ ही देर में खेलने कल्पना का सूट निकाल दिया, उसने अंदर कुछ नहीं पहना हुआ था, कल्पना मुस्कुराई और उसने कहा कि तुम जान पूछ कर कुछ लेकर ही नहीं आए। इतना सुनते ही निखिल ने अपना मुंह कल्पना के स्तन पर लगा दिया। कल्पना जोर जोर से सांस लेने लगी और निखिल उसके स्तन को चूसने में लगा हुआ था। धीरे धीरे निखिल अपना मुंह कल्पना के टांगो तक ले गया। निखिल कल्पना की च** को चाटने लगा। कल्पना सिसकियां ले रही थी और अनुभूति को समझ नहीं पा रही थी। जैसे-जैसे निखिल की जीभ काम कर रही थी वैसे वैसे कल्पना का अपने आप पर से वश छूटता जा रहा था। आखिर में वह लम्हा आ ही गया जब कल्पना को परम आनंद प्राप्त हुआ। अब कल्पना की बारी थी, कल्पना धीरे धीरे से नीचे पड़ी है और निखिल के ल** को छूने लगी, कल्पना के छूते ही मानो निखिल की पूरे जिस्म में बिजली की कौंध गई हो।
यहां हकीकत में कल्पना ने अपना पैर निखिल के ऊपर रखा हुआ था और वहां सपने में निखिल को ऐसा लग रहा था की घटना उसके ल** को सहला रही है। निखिल का ल** उफान मार रहा था। धीरे धीरे कल्पना ने अपनी जीभ निखिल के गुप्तांग से छुई और निखिल का वीर्य निकलना शुरू हो गया। यह होते ही उसकी नींद खुल गई और उसने देखा की उसका पजामा गीला हो चुका है। कल्पना का पैर भी निखिल के ऊपर ही रखा हुआ था और निखिल को डर था कि कहीं कल्पना इस गीलेपन को महसूस ना कर ले। निखिल हिल भी नहीं सकता था इस डर से कि वह कल्पना को जगा देगा। निखिल को अब अच्छा नहीं लग रहा था और उसे अपनी ऐसी सोच पर बहुत गुस्सा आ रहा था।
निखिल सुबह उठा तो कल्पना उसके साथ नहीं थी। निखिल को लगा कि कहीं कल्पना को सब पता तो नहीं चल गया और वह चली तो नहीं गई। निखिल ने जब बाहर देखा तो कल्पना नाश्ता बना रही थी। निखिल को उसे देख कर बहुत खुशी हुई और उसने राहत की सांस ली है। निखिल जल्दी से तैयार हो गया और कल्पना और निखिल ने साथ नाश्ता किया। कल्पना ने बताया कि उसे लगता है कि उसकी चोट 2 या 3 दिन में ठीक हो जाएगी और फिर वह वापस अपने घर जा सकेगी। निखिल को यह सुनकर अच्छा नहीं लगा, उसे कल्पना के साथ रहना अच्छा लग रहा था। निखिल ने कहा कि वह आज ऑफिस की छुट्टी ले लेता है परंतु कल्पना ने कहा किसी कोई जरूरत नहीं है और वह निश्चिंत ऑफिस जा सकता है। कल्पना अपना ध्यान रख लेगी।
निखिल शाम को जब ऑफिस से लौट रहा था तब बहुत जोर से बारिश होने लगी , निखिल घर पहुंचते-पहुंचते पूरी तरीके से भीग गया था। घर पर कल्पना ने भी सोचा कि वह अपने सभी कपड़े धो कर सुखा दे उसे क्या पता था कि शाम को बारिश होने वाली है, अचानक बारिश होता देख बाहर की तरफ भागी पर इतने वह कपड़े उतार पाती वह भी पूरी तरीके से भीग गई और उसके सारे कपड़े भी। निखिल जब घर पहुंचा तब पूरी तरह भीग चुका था और कल्पना भी उसी हालत में थी। निखिल को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करेगा। निखिल ने अपने लिए कपड़े निकाले और जो सबसे छोटे कपड़े थे वह कल्पना के लिए निकाल लिए इस उम्मीद में कि शायद कल्पना को ठीक से आ जाए। थोड़ी देर बाद दोनों ने कपड़े बदल लिए। निखिल ने कमरे का हीटर की ऑन कर दिया था क्योंकि उसे डर था कहीं दोनों को ठंडा लग जाए । जब कल्पना उसके सामने आई तो वह ढीले ढाले कपड़ों में जोकर की तरह लग रही थी। कल्पना को देखते ही निखिल को बहुत जोर से हंसी आ गई, यह देखकर कल्पना रोई सी हो गई। निखिल ने अपनी हंसी रोक कर कल्पना से माफी मांगना शुरू कर दिया और निखिल ने कहा कि कल्पना इन कपड़ों में भी बहुत सुंदर लग रही है। कल्पना ने कहा कि निखिल अभी उसकी टांग खींच रहा है। निखिल ने फिर माफी मांगी और कहा की कल्पना उसे माफ कर दे और जो कल्पना सजा देगी वह निखिल को मंजूर होगी। कल्पना को हंसी आ गई और उसने निखिल को चढ़ाते हुए पूछा क्या मैं कुछ भी सजा दे सकती हूं, निखिल अचंभित रह गया पर फिर भी उसका जवाब था हां।
कल्पना ने कहा कि वह चाहती है कि निखिल एक गाना गाए और उस पर डांस करके दिखाएं, निखिल दंग रह गया। निखिल ने कहा कि उसे डांस करना नहीं आता है, यह सुनकर कल्पना ने कहा की फिर तो यह बिल्कुल सही सजा है और निखिल को डांस करना ही पड़ेगा साथ में उसने अपना फोन भी निकाल लिया और कहा कि वह यह सब रिकॉर्ड करेगी और भविष्य में निखिल को ब्लैकमेल भी कर सकती है। निखिल हंसने लगा और बोला जो हुकुम मेरी शहजादी। निखिल ने अपनी बेसुरी आवाज में गाना शुरू कर दिया और साथ में नाचने भी लगा वह बिल्कुल जोकर की तरह लग रहा था यह देख कर कल्पना को बहुत हंसी आ रही थी और वह जो जोर से हंस रही थी। निखिल को भी अच्छा लग रहा था करना को हंसते हुए देखकर। थोड़ी देर बाद निखिल ले फोन पर गाना चला दिया और कल्पना से बोला क्या वह उसका साथ देगी। कल्पना भी तैयार हो गई और अब वह दोनों साथ में नाचने लगे। थोड़ी देर नाचने के बाद दोनों थकने लगे तो वह धीरे-धीरे एक दूसरे के पास आ गए, कल्पना ने अपना सर निखिल की छाती पर रख दिया और दोनों एक दूसरों की बाहों में आकर धीरे धीरे पास आने लगे।निखिल और कल्पना दोनों ही एक दूसरे की बाहों में खो गए थे तभी निखिल को कल्पना का पूरा शरीर महसूस होने लगा और देखते ही देखते उसका लिंग भी खड़ा हो गया। कल्पना भी निखिल के लिंग को महसूस कर पा रही थी पर उसने कुछ नहीं कहा उसने सोचा कि कहीं कुछ बोलने से निखिल को बुरा ना लग जाए। निखिल की हालत हर गुजरते पल के साथ बेकाबू होती जा रही थी उसका शरीर उसकी नहीं सुन रहा था और धीरे-धीरे उसका ल** निखिल और कल्पना के बीच में फस गया और उन दोनों की शरीर मिलकर उसे सहलाने लगे। निखिल अब पूरी तरीके से उत्तेजित हो चुका था और वह अब कल्पना को नहीं छोड़ सकता था वही कल्पना को भी अनचाहा एहसास हो रहा था और उसे भी यह साथ अच्छा लगने लगा। दोनों कुछ नहीं बोले और एक दूसरे को गले लगाए धीरे धीरे हिल रहे थे। निखिल और कल्पना के जिस्म एक दूसरे से बातें कर रहे थे, कल्पना और निखिल दोनों ने ही हल्की सी कमीज पहनी हुई थी और अब उनको ऐसा लग रहा था जैसे वह दूसरे के शरीर को भी छू रहे हो। कुछ देर बाद निखिल अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया और उसका वीर्य निकलने लगा। कल्पना भी अपने एहसास की गहराइयों में थी। निखिल उस मंत्र मुक्त अवस्था से बाहर आया और अचानक से रुक गया। निखिल के रुकने से कल्पना भी मदहोशी से बाहर आ गई और उसने निखिल को छोड़ दिया, निखिल भी धीरे से बाथरूम की तरफ बढ़ गया।

यह सब होने के बाद कल्पना और निखिल एक दूसरे से ठीक से बात नहीं कर पा रहे थे। कल्पना ने खाना लगा दिया और खाने के बाद दोनों ने मिलकर बर्तन धो दिया। दोनों सोने के लिए अपने कमरे में चल रही है और एक दूसरे की तरफ पीठ करके लेट गए। निखिल को जल्दी ही नींद आ गई पर कल्पना बहुत देर तक सोचती रही और वह समझ नहीं पा रही थी कि आज जो हुआ है क्या वह सही है। कल्पना सोचते सोचते अपनी नींद में चली गई। कल्पना अपने सपने में भी निखिल को अपने साथ देखा।

कल्पना के सपने में भी वह निखिल की बाहों में थी और दोनों एक दूसरे को कस के पकड़े हुए थे। कल्पना ने देखा की वह बहुत देर तक निखिल के साथ थी। जैसे-जैसे सपना आगे बढ़ा कल्पना ने देखा कि धीरे-धीरे उसके शरीर से कपड़े कम होते जा रहे हैं। शुरुआत में उन दोनों ने वही कपड़े पहने हुए थे जो शाम में पहने हुए थे परंतु धीरे-धीरे वह गायब होना शुरू हो गए पहले निखिल की शर्ट गायब हो गई और फिर कल्पना टी-शर्ट भी गायब हो गई। अब कल्पना अपने स्तन के ऊपर निखिल का सीना महसूस कर पा रही थी और उसे लग रहा था कि निखिल के हाथ उसकी कमर पर है और उसके हाथ निखिल की कमर पर। दोनों ने एक दूसरे को कस कर पकड़ा हुआ है और कल्पना के स्तन पूरी तरीके से निखिल के सीने में दफन हो गए हैं। कुछ देर बाद निखिल की जींस भी गायब हो गई और कल्पना का पजामा भी नहीं रहा अब वह निखिल के ल** को उसके कच्छे मैं तड़पता देख पा रही थी। उसे लग रहा था कि किसी भी पल यह भी गायब हो जाएगा और अगले ही पल निखिल का लिंक कल्पना एक प्रवेश कर जाएगा। कल्पना अब निखिल के पैरों के ऊपर खड़ी थी और किसी भी वक्त उसकी च** में प्रवेश होने वाला है, कल्पना थोड़ी डरी हुई थी पर वह निखिल को जाने देना भी नहीं चाहती थी। जैसे ही निखिल का अंडरवियर गायब हुआ और कल्पना को लगा कि उसके अंदर अब प्रवेश होने वाला है उसकी आंखें खुल गई और उसने देखा कि उसने अपना हाथ अपने गुप्तांग पर रखा हुआ है और किसी भी वक्त उसकी उंगली अंदर घुसने को तैयार है। कल्पना झटके से उठ गया पर उसने देखा कि निखिल महान नहीं है। कल्पना ने राहत की सांस ली और उम्मीद की कि निखिल ने कुछ ना देखा हो।
कल्पना का सपना

बाईक का गिरना तो एक बहाना मात्र था। क्योंकि बाइक के गिरने से ही सभी घटनाएं हुआ। कल्पना को चोट लगीं कल्पना चोट के साथ घर नहीं जाना चाहती तो बस शुरू हो गया दोनों के कल्पनाओं का उड़ान। जब पेट्रोल और आग आस पास हों तो धमाका तो होना ही था।

धमाका तो हुआ पर एक अलग ही तरीके से दोनों के आस पास होने से वासना ने जन्म लिया और एक दूसरे के साथ सपने में वो किया जो वास्तव में करने में डर लग रहा था।

बहुत खूब अच्छा लिखा बीच बिच में एक दो जगह लड़की का नाम बादल दिया कल्पना के जगह घटना लिख दिया। बाकी सब ठीक था।
 
Respect All, Trust few!!!
Councillor
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Prefix- Suspence, Thriller
रचनाकार- Mahi Maurya

(7980 शब्द)
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Poster par jo aapne mehnat ki hai yahi bata rahi hai ki kahani kis level ki hai mahi siso. Poster hi Thriller ka ehsaas kara raha hain:bow2: .
दृश्य-1

रीतिका खन्ना..... एक जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार। आज उनके घर के बाहर भारी संख्या में लोग एकत्रित हुए थे। मीडियाकर्मी का जमवाड़ा लगा हुआ था वहाँ पर। तभी पुलिस और एंबुलेंस का तेज सायरन सुनकर भीड़ तितर-बितर हो उन्हें आगे जाने का रास्ता देती है। पुलिसवाले गाड़ी से धड़धड़ाते हुए नीचे उतरते हैं और साथ में ही डॉक्टर के साथ स्वास्थ्यकर्मी भी एंबुलेंस से नीचे उतरते हैं।

Police aur Doctor dono ek saath woh bhi ek samajik karykarta ke ghar ke bahar :think2: Kuch galath huva lagta hain par kya ye sochne waali baat hain. Kahi ussne uske khude ke saath toh kuch galath nahin huva...
जैसे ही पुलिस कमिश्नर अग्नेय त्रिपाठी अपनी गाड़ी से नीचे उतरते हैं। मीडियाकर्मियों की भारी भीड़ ने उन्हें घेर लिया।
Ye Media waale kabhi nahi sudhrenge. Trp ke liye ye kuch bhi kar sakte hain :sigh: .
सर. क्या आप बता सकते हैं कि रीतिका खन्ना की हत्या में किसका हाथ हो सकता है। एक पत्रकार ने अग्नेय त्रिपाठी से पूछा।
:shocked2: Ritika Khana ki hatiya. Abhi toh first para bhi pura nahin huva tha aur unki hatiya hogai. Kon hai unka hatiyara :dwarf: .
अग्नेय त्रिपाठी ने एक विशेष अदाज में अपने सिर को जुंबिश दी और मुँह में भरे पान को जमीन पर थूकते हुए कहा।
Swach bharat abhiyan ka kya huva. Koe aur agar kare toh ye challan kaat dete hain aur yaha khude police comissioner hi rule thode raha hain. Iss ka chalan kato :bat2: .
देखिए हम तो अभी अभी यहाँ पर आएँ हैं। आप सब तो हमसे पहले ही यहाँ पर मौजूद हैं। तो आपसब ही हमें ये बताइए कि रीतिका खन्ना की हत्या में किसका हाथ है।
Tumko Comissioner kisne banaya be. Bina logic ki baat karta hain ye iss ko toh kala paani ki saja dedo. Kyuki ye aadmi pagal hain :mad2: .
कमिश्नर त्रिपाठी की बात सुनकर सभी पत्रकार एक दूसरे को देखने लगे। तभी एक दूसरे पत्रकार ने कहा।
Dekhenge hi kyuki issne baat hi ish tarah ki baat boli hain sab soch rahe hai ye pagal hain kya :lol4: .
सर, हत्यारे का पता लगाना तो पुलिस का काम है। हमारा काम हो सच्चाई को जनता तक पहुँचाना।
Chal jhutaa trp ke liye kuch bhi karoge tum. Agar koe marne wala bhi hona tab bhi tum uska live telecast kardo :slap: .
तो हमें अभी अपनी छानबीन करने दीजिए आप। अभी तो हम नहीं बता सकते कि इसमें किसका हाथ है लेकिन इतना विश्वास जरूर दिलाते हैं कि बहुत ही जल्द हत्यारा हमारी गिरफ्त में होगा। तो कृपा करके आप लोग मुझे अंदर जाने दीजिए।
Operation theater se bahar aakar doctor ka dialogue "Humne puri kosis ki par hum usse ko nahin bacha sake. I am sorry".
Aur murder ke baade police ka dialogue
"Abhi hum jaach kar rahe hai jese hi kuch pata chalta hain hum aapko jarure bataege"
Lagta hain ye dialogue yaad karne mein inn ko kaafi time laga hain :D

इतना कहकर कमिश्नर त्रिपाठी ने एक बार फिर थूका और वारदात की जगह चले गए जहाँ पर रीतिका खन्ना की लाश सोफे पर पड़ी हुई थी।
Pahle iss ka chalan kaato :dwarf:
बाहर एक रिपोर्टर दूसरे रिपोर्टर से- पता नहीं कैसा आदमी है ये। इसे कमिश्नर किसने बना दिया। इसे देखकर तो शहंशाह फिल्म के अमिताभ बच्चन के किरदार की याद आती है।
Dekha same feeling mujhe aae kahi ye hi toh murder nahin hai :idea: .
सही कहा तुमने। पता नहीं ये कमिश्नर जैसे उच्च पद पर कैसे पहुँच गया जबकि ये उसके योग्य ही नहीं। दूसरे पत्रकार ने कहा।
Bolne waale khude kitne yogya hain :roflol:
नहीं दोस्त तुम लोग गलत समझ रहे हो। ये इनका छद्मरूप है। इनके काम करने के अलग तरीके के कारण ही इन्हें कमिश्नर बनाया गया है। इनके पान खाने और बात करने के अंदाज पर मत जाओ बल्कि इनके काम करने के तौर तरीके पर जाओ। अगर इन्हें रीतिका हत्याकांड का केस सौंपा गया है तो कोई बात तो जरूर होगी। देखना ये कितनी जल्दी और समझदारी से इस केस को सुलझाते हैं। एक अन्य पत्रकार ने उन्हें समझाया।
Acha actor hain ye comissioner :?:
अंदर कमिश्नर त्रिपाठी लाश के चारों ओर घूम रहे थे। उनकी आँखें किसी गिद्ध की मानिंद अपने शिकार की तलाश कर रही थी। उन्होंने लाश का बारीकी से मुआयना किया। माथे के आर-पार हो चुकी गोली के अलावा लाश के शरीर पर चोट का कोई निशान न था।
Goli kisne maari :thinking: .
तभी उनकी आँखें एक जगह अटक गई। लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उन्होंने जाँच के लिए भेजे गए क्राइम विभाग के दोनों अफसरों चैतन्य और आदित्य ठकराल को जल्दी से लाख का पंचनामा कर पोस्टमार्टम के लिए भेजने को कहा और रसोईघर की तरफ चले गए। फ्रिज से पानी पीने के बाद वो बाहर चले गए। उनकी आँखों में अजीब तरह की चमक थी।
Kahi ye chamak torch waali tih nahin thi ya fir sarita ke sasur waali toh nahin hain :lol:
अब तक घर के बाहर प्रवेश निषिद्ध के फीते लग चुके थे। कुछ देर बाद चैतन्य और आदित्य भी बाहर आ गए।
Wo murder spot par chalk waali drawing bana di kya inn dono ne.
यार चैतन्य हमने इतने सारे केस हल किए हैं। तुम्हें नहीं लगता कि ये केस कुछ हटके हैं। गाड़ी चलाते हुए आदित्य ने कहा।

मैं भी यही सोच रहा हूँ कि जिसने भी ये हत्या ही होगी वो रीतिका खन्ना का करीबी रहा होगा। वरना इतने कारगर तरीके से हत्या को अंजाम नहीं दिया जा सकता था। न ही कातिल ने कोई सबूत छोड़ा है न ही फिंगरप्रिंट न ही कोई अन्य निशान। ऊपर से गोली भी आरपार हो कर गायब हो गई। चैतन्य ने गंभीरता से कहा।
:shocked5: goli gayab :eyeclean: . Ye case toh kabhi crime paterol mein bhi nahi aaya. Na hi Cid mein. Daya kuch toh gadbad hai :D.
भाई दुनिया में आजतक कोई अपराधी पैदा नहीं हुआ है जो सबूत न छोड़ा हो। बस हमें थोड़ी बारीकी से जाँच करनी होगी। आदित्य ने चैतन्य से कहा।
Toh abhi murder spot par tum dono jogging kar rahe the :slap:
लेकिन एक बात मुझे अभी भी समझ में नहीं आई। चैतन्य ने गाड़ी एक कैफे के सामने रोकते हुए कहा।
Ki ye teeno numne kis tarah case solve karenge :lol1:
कौन सी बात। दोनों कैफे में जाकर बैठ गए और कॉपी का ऑर्डर देने के बाद सिगरेट का कश लगाते हुए आदित्य ने कहा।
Public place par smoking karna kanunan jurm hain :dwarf: . Chalan kaato dono ka :D
यही कि रीतिका के पास अकूत संपत्ति के साथ ऐशोआराम के सारे साधन मौजूद थे फिर उसने किसी से रुपए उधार क्यों लिया था। चैतन्य ने कहा।
Ye ritika bhi kuch gadbad hain :think3: . Kyuki social worker ke pass itna paisa hona bhoute rare hain.
क्या। ये तुम्हें किसने बताया। आदित्य ने चौकते हुए कहा।

यार मैं भी तेरी तरह ही क्राइम विभाग के स्पेशल इनवेस्टीगेशन विंग का अधिकारी हूँ। चैतन्य ने कॉफी के बाद धुएँ का छल्ला बनाते हुए कहा।
Officer hone ke baad bhi batana pade raha hain ki mein officer hun. Mtlab nala officer hai ye :lol:
तुम्हें कैसे पता चला। आदित्य ने हैरान परेशान होते हुए कहा।

तुम्हें इतना हैरान परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। मुझे सुबूत ढूँढते हुए कूड़ेदान में कुछ कागज मिले थे जिसमें कुछ लिखा तो नहीं था, लेकिन जब मैंने उसे लाल रोशनी में स्कैन किया तो उन पर डॉलर का चिह्न मिला। तभी मैं समझ गया कि भारत में रहकर रीतिका का रुपयों के बजाय डॉलर से संबंध होना किसी गहरी साजिश का हिस्सा है। मैं वो कागज अपने साथ में लाया हूँ। ले तू भी देख। चैतन्य ने आदित्य को कागज पकड़ाते हुए कहा।
Hawala ka paisa :shocked2: . Ritika ka connection. Oh my god :shocking: .
आदित्य ने कागज को उलट पुलट कर देखा फिर उसने लाइटर जलाकर कागज के नीचे किया तो उसे भी चैतन्य का शक सही प्रतीत हुआ क्योंकि डॉलर के चिह्न के नीचे कुछ रकम लिखी हुई थी, लेकिन रीतिका ने ये रकम किसी को दी थी या किसी से उधार ली थी ये कहना मुश्किल था।
Kisne officer banaya tum dono ko :abbey: .
क्या हुआ आदित्य। कुछ समझ में आया कि ये डॉलर वाली पहेली क्या है। चैतन्य ने सिगरेट का कश लेते हुए कहा।
Hawala ka paisa hai ye. Tum dono se jayada toh mujhe pata hain :smarty: .
आदित्य की आँखें अभी भी कागज को ही देख रही थी। डॉलर चिह्न के पहले तीन अंकों की संख्या लिखी थी और उसके पहले किसका नाम लिखा था ये समझ में नहीं आ रहा था। चैतन्य की बात सुनकर आदित्य ने कहा।

नहीं भाई। इसे लैब भेजना पड़ेगा जाँच के लिए। आदित्य ने कागज वापस चैतन्य को देते हुए कहा।

तो चलो लैब ही चलते हैं।
Kaam karne ka paission nahi hai dono main. Paka cheating kar ke officer bnne hai.
इतना कहकर चैतन्य आदित्य के साथ जैसे ही उठा उसी समय एक शख्स, जिसके काले रंग की लंबी ओवरकोट और लाल रंग की टोपी पहन रखी थी सामने आया और वह कागज का टुकड़ा चैतन्य के हाथ से झपटकर भागने लगा। जब तक ये दोनों कुछ समझ पाते तब तक वो शख्स एक गली में दाखिल हो चुका था। पीछे पीछे आदित्य भी उस गली में पहुँचा, लेकिन तब तक वह शख्स गायब हो चुका था।
:galaghot: aur jaao cafe. Ek clue tha aur vo bhi gayab :risk: .
Ab jakar cctv check karo.

तभी वहाँ से सायरन बजाती हुई पुलिस की कई गाड़ियाँ गुजरी। जिसमें कमिश्नर त्रिपाठी की भी गाड़ी थी। आदित्य को देखकर कमिश्नर ने गाड़ी पीछे लेते हुए कहा।
Police bina phone kiye aagai. Kamal hain. Ye Comissioner bhoute time par pahuch raha hain :huh: .
क्या हुआ ऑफीसर्स। यहाँ क्या कर रहे हो आप।
Bata denge toh job gae aur na bataya toh case. :Swing:
कुछ नहीं सर एक चोर मेरी कुछ चीजें लेकर भागा था। उसी के पीछे पीछे मैं यहाँ आया था, लेकिन वो कम्बख्त पता नहीं कहाँ गायब हो गया। आदित्य ने कहा।
Kitna jutta hai ye :galaghot:ek min :flysmash: . Ab maja aaya :D
अगर आप कहें तो मैं कुछ पुलिसवालों को आपकी मदद के लिए भेज दूँ। कमिश्नर त्रिपाठी ने कहा।
Ek min. ye cafe mein kya kar raha hain :bat2: .
नहीं सर आप कष्ट न करें। आदित्य ने मुस्कुराते हुए कहा तब तक चैतन्य भी वहाँ पर आ गया। उसके आते ही आदित्य से पूछा।

वह आदमी कहाँ गया आदित्य।

पता नहीं कहाँ गायब हो गया। लगता है हमें खाली हाथ लौटना पड़ेगा। चलो घर चलते हैं। देर हो रही है फिर हमें ऑफिस भी पहुँचना है। आदित्य के इतना कहने के बाद दोनो गाड़ी पर बैठे और चले गए। कमिश्नर त्रिपाठी भी नहाँ से चले गए।
Ye officer hain :thumbdown: inn teeno ko toh kala paani ki saja hini chahiye. Aur kittne jhutte hain ye. :risk: .
दृश्य- 2
एक बहुत बड़ा सा हॉल। हॉल के बीचों बीच एक गोलाकार मेज और उसके चारो तरफ लगी कुर्सियों पर दो लोग बैठे हुए थे। एक लंबे शख्स ने गिलास में शराब डालते हुए कहा।

Ye raha murder karne wala. :call: Police ye criminal mere saamne hai aap jaldi aa jao.
बाल बाल बच गए सर आज तो वरना ये क्राइम विभाग वाले तो पीछे ही पड़ गए थे।
Ish tarah ye kaam hi kyu karte ho :bat2:
बात तो तुम्हारी सही है। ये क्राइम ब्रांच वाले आजकल कुछ ज्यादा ही तेजी दिखा रहे हैं। आज अगर वो कागज उनके हाथ लग जाता और फोरेंसिक लैब चला जाता तो मेरे ऊपर शक उटना लाजिमी भी था। वो तो ठीक समय पर पता चल गया और मैंने तुम्हें भेज दिया वरना मेरे साथ साथ तुम भी सलाखों के पीछे होते। दूसरे शख्स ने शराब की बोतल उठाते हुए कहा।
Ye comissioner toh nahin :huh: . Uski aakh chamak rahi thi.
इसीलिए कहता हूँ सर कि कोई भी सबूत किसी भी कीमत पर मत छोड़ो। आज हमलोग फँसते फँसते बचे हैं। माफ करना सर, परंतु इस कागज के टुकड़े में ऐसा क्या है जो मुझे इसे अपनी जान हथेली पर रखकर क्राइम ब्रांच वालों से छीनकर लाना पड़ा। पहले शख्स ने कहा।
Rasan ka saaman ha, ja lekar aa :slap: . Hawala ka paisa hai ye gadhe.
तुम लोग अभी चैतन्य और आदित्य को जानते नहीं हो।
Inko apni behan ki shadi karani hai unke saath jo jaante nahin ho :beee: .
वे बेस्ट ऑफिसर्स हैं क्राइम डिपार्टमेंट के। जब भी कोई जटिल केस सामने आता है विभाग उन्ही को चुनता है उसे सुलझाने के लिए। विशेष रूप से उस चैतन्य को।
Ittne best ki tumhara chamcha clue unke haath se chinn laya :lol:
वह बहुत साहसी और कुशाग्र बुद्धि वाला प्राणी है। तुम्ही दिमाग लगाओ कि चैतन्य की नजर कूड़ेदान में कैसे गई। और तो और कूड़ेदान के इतने कागजों में उसकी नजर इसी कागज पर कैसे पड़ी होगी। दूसरे व्यक्ति ने खाली गिलास मेज पर रखते हुए कहा।

ये तो सोचने वाली बात है। मेरा ध्यान ही इस बात पर नहीं गया। पहले शख्स ने आँखें सिकोड़ते हुए कहा।
Dimaag hona chahiye :rano: .
अगर तुम्हारी बुद्धि इतनी ही तेज होती तो तुम चैतन्य नहीं बन जाते। ये देखो। इतना कहकर दूसरे शख्स ने एक हाथ से उस कागज के टुकड़े को खोला और दूसरे हाथ से लाइटर जलाते हुए कहा।

अरे बाप रे बाप। ये तो मैने सोचा ही नहीं था।

उस कागज में डॉलर का निशान साफ दिखाई पड़ रहा था, लेकिन उसके पहले का अंक साफ नहीं था हालांकि दो शून्य जरूर दिख रहे थे।

सर मुझे लगता है कि उन्हें पता नहीं चला होगा कि कितनी रकम लिखी गई है। पहले व्यक्ति ने शराब का गिलास मुँह में लगाते हुए कहा।
Teri tarah drink nahi kiya tha ussne :slap: .
मैंने कहा न कि अभी तुम उन दोनों को नहीं जानते। तुम सोच रहे हो कि इस कागज के टुकड़े को उनसे छीनकर तुमने बहुत बड़ा तीर मार लिया है, लेकिन तुम्हें इसकी भनक भी नहीं कि दोनों ने तुम्हें बेवकूफ बनाया। और तुम आसानी से बन भी गए। दूसरे शख्स ने सर्द लहजे में कहा।
Ye paka vo comissioner hain kyuki ye kuch jayada hi jaan raha hain.
ये क्या कह रहे हैं आप सर, लेकिन कैसे। पहले शख्स ने कहा।

वो ऐसे कि क्या तुम्हें लगता है कि तुम उनसे कोई चीज छीनकर सुरक्षित भाग सकते हो। बिना किसी व्यवधान के तुम यहाँ तक पहुँच सकते हो। क्या तुम ये सोच रहे हो कि तुम उन दोनो से ज्यादा चालाक हो। तुम उनसे ज्यादा तेज भाग सकते हो और वो तुम्हें भागने देंगे। इन सारे सवालों का जवाब है नहीं। दूसरे शख्स ने सिगरेट का कश लेते हुए आगे कहा।

तुम गलत कागज का टुकड़ा लेकर आए हो। क्योंकि जिस पैड से वो टुकड़ा फाड़ा गया था वह ये नहीं है। अर्थात् उन्होंने जानबूझकर ये टुकड़ा छिन जाने दिया। अब तुम यहाँ से जल्दी से निकलो मैं भी कुछ देर में आता हूँ।
:woohoo: kya baat mujhe toh ghatiya officer lage the par ye toh sach mein acche hain. :clap3:
जी सर। ये कहते हुए पहले शख्स ने अपने काले कोट को उतारकर आलमारी में रखा और वहाँ से निकल गया। दूसरा व्यक्ति कुर्सी पर बैठ गया और सिगरेट का कश लेते हुए अपना दिमाग चलाने लगा।
:evilsmile: Kaha tak bhagoge :evillaugh: .
दृश्य-3
क्राइम विभाग का कार्यालय। सभी कर्मचारी और अधिकारी अपने अपने काम में व्यस्त थे। आदित्य अपनी कुरसी पर बैठा लैपटॉप में कुछ देख रहा था।

Kya dekh raha hai laptop mein. Kahi Ullu ki koe series toh nahin hain :D
क्या देख रहे हो आदित्य। चैतन्य मूँगफली चबाते हुए उसके केबिन में आते हुए बोला।

कुछ नहीं यार एक फिल्म देख रहा हूँ। घर में देख नहीं पाता हूँ तो सोचा यहीं पर देख लूँ। आदित्य ने लैपटॉप से नजरें हटाकर चैतन्य को देखते हुए कहा।
:akshay:
अच्छा में भी तो देखूँ कि कौन सी फिल्म देख रहे हो। इतना कहकर जैसे ही चैतन्य ने लैपटॉप सरकाया। आदित्य ने झट से उसके हाथ से मूँगफली छीन ली और आराम से छीलकर खाने लगा।
:akshaysmile2:
अरे ये क्या कर रहे हो। मेरी मूँगफली क्यों छीन ली तुमने। चैतन्य ने कहा।

तो क्या तुम ही खा सकते है।

आदित्य ने जब ये कहा तो चैतन्य ने उसे घूरकर देखा और अचानक मुस्कुराते हुए लैपटॉप में देखने लगा। दरअसल आदित्य कोई फिल्म नहीं बल्कि आगे की योजना का खाका तैयार कर रहा था।
:akshaysmile2: konsi yojna :lol4:
यार आदित्य। मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही है कि ये आखिर किस तरह की पहेली है जो इस डायरी में बनाई गई है। ये कहते हुए चैतन्य ने अपने जेब से एक छोटी सी डायरी निकाली और टेबल पर ऱख दी। फिर आदित्य ने अपनी जेब से कागज का असली टुकड़ा निकाला जिसको छीनने का प्रयास काले कोट वाले ने किया था। फिर डायरी के उस फटे हुए पेज से मिलाया और जोड़कर आगे पीछे देखने लगा, लेकिन वो टुकड़ा डायरी का था नही नहीं।

डायरी के एक पेज पर एक पहेली लिखी हुई थी।
:woohoo:
हर घर में हम रहते हैं। लड़ते झगड़ते रहते हैं।

हमपे कहावत बनती है। दादी बाबा कहते हैं।
:think3:
आखिर ये किसने लिखी होगी और इसका अर्थ क्या निकलता है। चैतन्य की नजरें सोंच वाली मुद्रा में सिकुड़ती चली गई। उधर आदित्य अभी भी मूँगफली खाने में व्यस्त था। चैतन्य ने एक घूसा आदित्य को मारा तो वह गिरते गिरते बचा।

अब मैंने क्या किया है जो मुझे मार रहे हो। आदित्य ने ये कहकर मूँगफली के दाने जमीन से उठाकर साफ करके मुँह में डाल लिया। उसे प्रेम से चबाया और बोला।

देखो भाई मेरा साफ-साफ मानना है कि रीतिका खन्ना की मौत की वजह उसकी अकूत संपत्ति ही रही होगी। किसी अपने ने ही उसकी सम्पत्ति के लिए उसकी हत्या की होगी।
:galaghot: Hawala ka naam suna hain.
अब तुम ये कोई नई बात नहीं बता रहे हो। इतना तो सभी जानते हैं कि रीतिका खन्ना की मौत की वजह उसकी संपत्ति है। पर हत्या किसने की है प्रश्न ये है। लेकिन पहले इस पहेली को सुलझाना आवश्यक है। चैतन्य ने गंभीर होते हुए फिर वहीं से आरंभ किया जहाँ से छोड़ा था।

तो चलो इस पहेली को सुलझाते हैं।
Kitna timepass karte ho SiddHart aur Ares ki tarah :lol:
हाँ तो पहली पंक्ति है।

हर घर में हम रहते हैं। लड़ते झगड़ते रहते हैं।

इसका कुछ भी मतलब हो सकता है।
Sab yahi karte hai aajkal :sigh: .
दूसरी पंक्ति है।

हमपे कहावत बनती है। दादी बाबा कहते हैं।

दूसरी पंक्ति में कहावत का जिक्र है।

अगर दोनों पंक्तियों को साथ में जोड़कर देखें तो चूहा बिल्ली हो सकता है। क्योंकि ये हर घर में रहते हैं और इन्हीं पर कहावत कही गई है।


अर्थात् चूहा बिल्ली।

लेकिन संकेत अक्सर अंग्रजी में ही होते हैं। इसलिए इसका मतलब हो सकता है।
RAT CAT

आखिर हत्यारे ने ऐसा क्यों लिखा। कहीं उसने कोडवर्ड में हमें चुनौती तो नहीं दी है। आदित्य ने पहेली को अपने हिसाब से सुलझाने के बाद कहा।

लग तो यही रहा है। पर शायद वह ये नहीं जानता कि उसने किसे चुनौती दी है। आदित्य और चैतन्य को। वह चाहे पाताल में छुपे या लाख कोशिश कर ले लेकिन हमसे नहीं बच सकता। चैतन्य ने सर्द लहजे में कहा।

तो अब हमें क्या करना चाहिए। आदित्य ने सिगरेट का कश लेते हुए कहा।

तुम्हीं बताओ हमारा अगला कदम क्या होना चाहिए। चैतन्य ने आदित्य से सबाल पर ही सवाल कर दिया।

मेरे हिसाब से हमें एक बार फिर से रीतिका खन्ना के घर जाकर कत्ल की जगह को ठीक से और दोबारा बारीकी से जाँच करनी चाहिए।

हम्म्म्म्म। आदित्य के जवाब पर चैतन्य ने बस इतना ही कहा और सिगरेट का कश लेने लगा।
:woohoo: kya baat hain :clapclap:
दृश्य-4
जूतों की आवाज से कई कुत्ते एक साथ भौंकने लगे। अंधेरे में दो शख्स धीरे-धीरे चारो तरफ नजर दौड़ाते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। कुछ देर बाद कुत्तों का भौंकना भी बंद हो गया। दोनो शख्स चोर नजरों से इधर-उधर देखते हुए रीतिका खन्ना के घर के पिछले हिस्से में पहुँच गए। जहाँ पर एक छोटे से गेट पर लगे ताले को चारों तरफ पुलिस ने कपड़ा बाँधकर सील लगा दिया था।

दोनों ने चारदीवारी फाँदी और दबे पाँव अंदर दाखिल हो गए। एक कमरे की खिड़की में लगी चौकोर काँच के टुकड़े को हटाया और खिड़की की सिटकनी खोल कमरे में दाखिल हो गए और धीरे-धीरे उस उस कमरे में पहुँचने की कोशिश करने लगे जहाँ पर रीतिका खन्ना की हत्या हुई थी।

उनके आने से पहले ही वहाँ पर दो लोग मौजूद थे। दोनों ने हाथों में टार्च ले रखी थी और बड़ी ही तेजी से कमरे में रखी आलमारी को खंगाल रहे थे। आखिर कौन थे वो।

तभी दोनों की नजर दरवाजे पर पड़ी जहाँ से अभी अभी दो परछाई दिखी थी उन्हें। दोनों शख्स यह देखकर चौंक गए। दोनों में से एक ने अपनी टार्च की रोशनी बुझाई और धीरे धीरे दरवाजे की तरफ खिसकने लगा। दोनों व्यक्तियों के चेहरे पर पसीने की बूँदे नजर आने लगी। पहले व्यक्ति दरवाजे की ओट से बाहर की ओर झाँका जहाँ पर उसे परछाई दिखी थी।

उस व्यक्ति ने दरवाजे की ओट से टार्च अचानक से जलाई जिससे बाहर वाले कमरे में तेज रोशनी फैल गई। उसने टार्च की रोशनी में कमरे में चारों तरफ देखा लेकिन उसे कोई नजर नहीं आया। फिर वह कमरे में वापस आया और दूसरे व्यक्ति के कान में फुसफुसाते हुए बोला।

लगता है कोई चोर था जो हमें देखकर भाग गया।

बेवकूफ कहीं के। कोई चोर यहाँ पर कैसे आ सकता है। चारों तरफ से पुलिस का पहरा है। कोई चोर यहाँ पर घुसने की सोच भी नहीं सकता है। जरूर कोई दूसरा व्यक्ति भी यहाँ है जो हमसे ज्यादा चालाक और तेज है। दूसरे व्यक्ति ने धीरे से कहा।


Ye vo daru waale haina. Lagta hain nasha na utra :risk:
तभी दूसरे कमरे में कुछ आहट सुनाई दी। दूसरे शख्स ने देखने की सोची की बाहर कौन हो सकता है। ये सोचकर उसने टॉर्च बंद की और दरवाजे को पास पहुँचकर दरवाजे से बाहर की तरफ झाँकने लगा।

जब उसे बाहर कोई नजर नहीं आया तो वो कमरे से बाहर निकल गया। बेहद सतर्कता के साथ आगे बढ़ते हुए वो सोफे तक पहुँचा ही था कि आदित्य ने पीछे से उसके ऊपर छलांग लगा दी और उसे दबोच लिया। उसकी गर्दन और मुँह अब आदित्य के कब्जे में थी।

कौन हो तुम।
Vo kya apna viva dene aaya hai idhar :slap: .
आदित्य की कैद में छटपटाते हुए पहले व्यक्ति ने कहा।

पहले तुम बताओ कि तुम कौन हो। आदित्य ने अपनी पकड़ और मजबूत करते हुए दूसरे व्यक्ति से पूछा।
Vaiva chal raha hain :slap:
आदित्य को अब तक एहसास हो रहा था कि जिस शख्स को उसने पकड़ा है वो शारीरिक रूप से और शारीरिक बल में उसके किसी भी मामले में कम नहीं है। इसलिए आदित्य जितनी अपनी पकड़ मजबूत करने को कोशिश करता। दूसरा व्यक्ति अपनी पूरी ताकत से आदित्य की पकड़ से छूटने की कोशिश करता। जिसके कारण आदित्य की पकड़ उसपर कमजोर पड़ती जा रही थी।

तभी उस व्यक्ति के टॉर्च के पिछले हिस्से से आदित्य के माथे पर भरपूर वार किया। दर्द के कारण आदित्य की पकड़ ढीली पड़ी तो उस शख्स ने अपने आपको आजाद करते हुए टॉर्च की रोशनी पकड़ने वाले के चेहरे पर डाली तो वह चौंक गया।

उसने झट से टॉर्च बुझाई और लगभग दौड़ते हुए उस कमरे में चला गया और अपने साथी को कुछ इशारा किया। उसी रास्ते बाहर निकल गए जिस रास्ते से वो अंदर आए थे। आदित्य भी उन्हें पकड़ने के लिए उनके पीछे भागा, लेकिन तब तक वो दोनों भाग चुके थे।
:abbey:
आदित्य के सिर से खून निकल रहा था। साथ में दर्द भी हो रहा था। उसने दर्द के कारण अपना सिर पकड़ा हुआ था। आदित्य जो कुछ तलाश कर रहा था वो अभी तक उसे नहीं मिला। अचानक उसकी नजर एक चीज पर पड़ी जो भाग चुके शख्स की जेब से गिरी थी। आदित्य ने वो चीज उठाई और अपनी जेब में रख ली।

फिर वो उस कमरे में आया जहाँ पर रीतिका खन्ना की हत्या हुई थी। तभी उस कमरे में चैतन्य एक लैपटॉप के साथ प्रवेश करते हुए बोला।

क्या हुआ आदित्य, तुम्हारे सिर पर ये चोट कैसी।
Makeup kiya hai ussne :makeup: . Dekh nahi raha chot lagi hain :slap:
कुछ नहीं यार। अँधेरे में दरवाजे से टकरा गया था, लेकिन तुम कहाँ रह गए थे। बड़ी देर लगा दी तुमने। आदित्य ने बड़ी सफाई से झूठ बोलते हुए लैपटॉप उसके हाथ से लेते हुए कहा।

मैं तो रीतिका खन्ना के कार्यालय में चला गया था। जहाँ से बड़ी मशक्कत के बाद मुझे उसका व्यक्तिगत लैपटॉप मिला है। इसमें हमें कई महत्त्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है। अब हमें यहाँ से निकलना चाहिए ताकि बाहर पहरा दे रहे पुलिसवालों को कोई शक न हो की अंदर कोई है। चैतन्य ने कहा।

फिर दोनों जिस रास्ते से आए थे। उसी रास्ते से बाहर चले गए। वो दोनों पुलिस की नजर में नहीं आना चाहते थे लेकिन आवारा कुत्तों को कौन समझाए। उनके भौंकने से पुलिस वालों का ध्यान उनकी तरफ चला गया।
Dogs jaya acche se duty kar rahe hain :lol:
वो देखो, पिछली गली से कोई भाग रहा है। पकड़ो उन्हें। इस आवाज के साथ ही पुलिस की गाड़ी का सायरन बजने लगा। वहाँ अफरा-तफरी मच गई। दोनों ने और तेज दोड़ लगाई और दूर खड़ी कार में जाकर बैठ गए।

सर क्या आपने दो लोगों को इधर से भागते हुए देखा है। क्राइम विभाग की गाड़ी देखकर एक पुलिस कर्मी रुका और ड्राइविंग सीट पर बैठे हुए चैतन्य से पूछा।

हाँ। अभी अभी दो लोग उधर भागते हुए गए हैं। चैतन्य ने उन्हें उँगली से इशारा करते हुए कहा।

सारे पुलिसवाले उसी दिशा में निकल गए। चैतन्य को लग रहा था कि उसने झूठ बोलकर अपने आपको बचाया है, लेकिन चैतन्य को ये नहीं पता था कि रीतिका खन्ना के घर से जो दो शख्स भागे थे वो उसी तरफ गए थे। जिनमें से एक के साथ आदित्य की झड़प हुई थी और उसी झड़प में आदित्य के सिर पर चोट लगी थी, परंतु ये समझ से परे था कि आदित्य ये बात चैतन्य से क्यों छिपा रहा था।
Daal mein kuch kala hain :rano:
दृश्य-5
क्राइम विभाग की फोरेंसिक लेबोरेटरी। आदित्य और चैतन्य अपने केबिन में बैठकर रीतिका खन्ना का लैपटॉप खंगालने में लगे थे। वो रैट कैट के बारे में जानकारी जुटाना चाहते थे। वो रीतिका खन्ना की अकूत सम्पत्ति का सारा ब्यौरा जानना चाहते थे। वो ये जानना चाहते थे कि रीतिका खन्ना के बिजनेस में उसका साझीदार कौन-कौन था। वो सिर्फ भारत से ही थे या फिर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी थे। जिनके साथ रीतिका खन्ना का व्यापारिक रिश्ता था।

लगभग चार घंटे के अथक प्रयास और एक्सपर्ट टेक्नीशियन की मदद से जो जानकारी सामने आई वो सचमुच में बहुत चौकाने वाली थी।

अरे बाप रे बाप। ये तो किसी अतंर्राष्ट्रीय रैकेट का हिस्सा जान पड़ता है। सामने से तो पता ही नहीं चलता था कि ये इतने बड़े कारोबार की मालकिन है। आदित्य ने आश्चर्य जताते हुए कहा।


Hawala queen hai vo mene toh kaha tha :smarty:
उसकी आँखों में एक अनजाना सा खौफ़ नजर आ रहा था। दरअसल लैपटॉप में कुछ ऐसी जानकारी भी थी कि वो पुलिसवाला होकर भी डर रहा था।

लैपटॉप से जो बातें खुलकर सामने आई वो इस प्रकार थी।

रीतिका खन्ना ने सबसे पहले अपना कैरियर बिजनेस में आजमाया, चूंकि उसके पापा खुद एक सफल व्यवसायी थे तो वो अपने पापा के काम में हाथ बँटाती थी। धीरे-धीरे उसने एक लड़के से दोस्ती कर ली जो उसके कॉलेज का सहपाठी हुआ करता था।
Dosti :hehe:
नाम था सुयस।

सुयस ने बिजनेस में अभी नया नया कदम रखा था। उसने अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए रीतिका का सहारा लिया। चूँकि रीतिका के पापा बड़े बिजनेसमैंन थे तो सुयस के बिजनेस में हुए घाटे की भरपाई करना रीतिका के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। इस तरह सुयस अपने बिजनेस में तरक्की करता चला गया और रीतिका उसके प्यार में पागल होती चली गई।
Golddigger hain ye ladka :galaghot:
लेकिन कुछ दिन बाद सुयस ने अपना नाता रीतिका से तोड़ लिया और अपना बिजनेस समेटकर कहीं दूर चला गया। सुयस के प्यार में पागल रीतिका ये सदमा सह न सकी और उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया।
:taran: -Ritika :lol:
कुछ दिन तक रीतिका अवसाद से ग्रस्त रही। उसके पापा ने उसे सहारा दिया, लेकिन अब रीतिका का मन बिजनेस में नही लगा। उसने इस फील्ड को छोड़कर किसी अन्य फील्ड में नाम कमाने का सोचा। पढ़ी लिखी तो थी ही वो तो उसने पत्रकारिता का रास्ता अपनाया।
Course karna padeta hain :surprised:
कुछ सालों की कड़ी मेहनत के बल पर वह एक जानी-मानी पत्रकार बन गई।
Baap ke dum par :roflol: .
लेकिन उसका इस तरह से अचानक कत्ल हो जाना संदेह पैदा करता था। ऊपर से कातिल का इस तरह चुनौती देना वो भी डायरी के माध्यम से रैट कैट जैसे शब्द का इस्तेमाल करना।

इसका जवाब ढूँढना बहुत जरूरी था।
Ye vo aashiq toh nahin :think3:
क्या हुआ चैतन्य। आदित्य ने गंभीर होते हुए कहा। अब हमें क्या करना चाहिए।

कुछ नहीं। अब कातिल को पकड़ने के लिए इस रैट कैट शब्द का पोस्टमार्टम करना ही पड़ेगा।

मतलब। चैतन्य की बात सुनकर आदित्य ने कहा।

मतलब कि अब एक एक अक्षर को जोड़-तोड़ कर इस चुनौती को स्वीकार करना होगा और हमें कातिल तक पहुँचना होगा। चैतन्य ने सुर्ख लहजे में कहा।

मतलब अब होगी लड़ाई RAT CAT की। आदित्य ने बात पूरी की।

लगता तो ऐसे ही है। कहता हुआ चैतन्य ने एक रहस्यमयी मुस्कान अपने चेहरे पर बिखेरी जो आदित्य देख नहीं पाया।

तो शुरू करते हैं फिर। आदित्य ने कहा।

फिर चैतन्य ने डायरी से एक पन्ना फाड़ा और कागज पर लिखा।

RAT CAT

R से रीतिका.. नहीं हो सकता क्या। आदित्य ने सवालिया नजरों से चैतन्य की तरफ देखा।
:yeahboi:
आगे बताओ। चैतन्य ने मुस्कुराते हुए कहा तो आदित्य सकपका गया।

दोनों काफी देर सोचते रहे पर कोई हल न निकला। दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई। आदित्य ने घर के लिए विदा ली। वह रीतिका खन्ना के घर की तरफ जा रहा था। उसके दिमाग बहुत तेजी से चल रहा था। जितनी जल्दी हो सके वह घर पहुँच जाना चाहता था।

अचानक से उसे कुछ याद आया और उसने तेजी से अपनी गाड़ी यूँ टर्न लेकर कार्यालय की तरफ मोड़ दी। कार्यालय परिसर में पहुँचकर उसने देखा कि चैतन्य गाड़ी निकाल रहा है। आदित्य को देखते ही वो बोल पड़ा- क्या हुआ आदित्य तुम उलटे पाँव वापस क्यों लौट आए।

तुम ऊपर चलो बताता हूँ। आदित्य ने बदहवासी से कहा।
:akshay:
क्या हुआ।

कुछ नहीं। मुझे कुछ याद आ गया है। ऊपर पहुँचकर आदित्य ने रीतिका की डायरी फिर से खोली और बोला।
:akshaypose:
हमने शायद ठीक से पढ़ा नहीं। आदित्य ने एक-एक शब्द चबाते हुए बोला। उसने इस पहेली का हल स्वयं दे दिया है। ये देखो।

इस तरह आदित्य ने डायरी के एक कोने पर
आर डॉट फिर ए डॉट फिर टी डॉट लिखा फिर एक स्पेश देकर सी डाट लिखा फिर ए डाट लिखा फिर टी डाट लिखा।

R.A.T. C.A.T.

इसमें लिखे गए अक्षरों के बीच के बिंदुओं पर हमने ध्यान ही नहीं दिया। अर्थात ये पहला शब्द RAT न होकर R.A.T. है और आगे CAT न होकर C.A.T. है। इसका मतलब तो कुछ और ही निकल रहा है।
:yes4:
इसका मतलब मैं तुम्हें बताता हूँ। कहते हुए कमिश्नर अग्नेय त्रिपाठी ने क्राइम विभाग के कार्यालय में कदम रखा।
Aa gaya actor par agar iss ko pata tha toh ab tak timepass kyu kar raha tha :sigh2: .
अरे सर आप कब आए । कहते हुए आदित्य और चैतन्य खड़े हो गए।

और ये आपकी गरदन को क्या हुआ। कमिश्नर की गरदन पर लगी गद्देदार पट्टी को देखकर चैतन्य ने पूछा।
Ye raat wala toh nahin :bat2:
कुछ नहीं बस रात में सोते हुए गरदन अकड़ गई थी। कमिश्नर त्रिपाठी ने गरदन पर हाथ फेरते हुए कहा
:AbeSale:
इसके पहले कोई कुछ समझ पाता। कमिश्नर ने एक पुलिसवाले को इशारा किया। उसने झट से आदित्य के हाथों में हथकड़ी पहना दी। आदित्य उसे आश्चर्य से देखने लगा तो कमिश्नर ने कहा।

तुम्हें रीतिका खन्ना की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार किया जाता है।

ये सुनकर आदित्य के साथ-साथ चैतन्य भी चौंक गया।

ये आप क्या कह रहे हैं सर। चैतन्य ने चौकते हुए कहा।

मैं ठीक कह रहा हूँ। कमिश्नर ने अपने वाक्य को चबाते हुए कहा।
:what:
लेकिन आपके पास कुछ तो सुबूत होगा न जिसके आधार पर आप आदित्य को गिरफ्तार कर रहे हैं। चैतन्य ने कहा।

हाँ है न। क्यों मिस्टर सुयस।

क्या... सुयस वो भी आदित्य..। चैतन्य ने चौकते हुए कहा।
WHat kya huva. Shaktimaan hi gangadhar hain :eyeclean:
हाँ मिस्टर चैतन्य। सुयस ही आपका दोस्त आदित्य है। कमिश्नर ने कहा।
Businnes kar raha tha na toh officer kis tarah bana :galaghot:
ये आप इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हैं। चैतन्य ने हैरानी से पूछा।

मेरी बात का विश्वास न हो तो आप खुद पूछ सकते हैं। कमिश्नर ने विश्वास के साथ कहा।

कुछ देर के लिए चैतन्य का सिर चकरा गया।

कुछ समझ में आया मिस्टर चैतन्य। कमिश्नर की इस आवाज के बाद चैतन्य ने कमिश्नर की तरफ देखा।

ये अकाडमिक ट्रस्ट चलाने वाले कोई और नहीं आपके दोस्त आदित्य ही हैं। जिससे दस वर्ष पहले रीतिका खन्ना जुड़ी हुई थी। कमिश्नर अग्नेय ने मुस्कान चेहरे पर लाते हुए कहा।
O my godddddddd. Suru se ye wahi tha toh ek min. Vo sharab wala toh ye actor tha... :bat2:
तुम लोग जिस R.A.T. C.A.T. द्वारा हत्या की गुत्थी सुलझाने का प्रयास कर रहे हो उसमें अंतिम के दो अक्षर A और T आदित्य ठकराल ही बनते हैं। जिस R.A.T. की बात तुम लोग सुलझा रहे हो वो और कुछ नहीं बल्कि रीतिका अकाडमिक ट्रस्ट ही है।
:shockedd:
इस बात पर आदित्य और चैतन्य दोनों चौंक गए।

तो इससे कहाँ साबित हो जाता है कि आदित्य ने ही रीतिका खन्ना का कत्ल किया है। चैतन्य ने कहा।

मैं ये कहाँ कह रहा हूँ कि आदित्य ने ही रीतिका खन्ना का कत्ल किया है। पर इसके और रीतिका के पुराने संबंधों और बिजनेस के आधार पर शक तो जाता ही है और मैं शक के आधार पर ही इसे गिरफ्तार कर रहा हूँ। आप प्लीज सहयोग करें। कमिश्नर ने कहा।

सर मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा है कि आदित्य हत्या जैसा घिनौना काम कर सकता है।

पैसा कुछ भी करवा सकता है मिस्टर आदित्य। कमिश्नर ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा।
MUjhe toh tum khude criminal lag rahe ho.
मुझे विश्वास ही नहीं होता कि आदित्य ने मेरे साथ-साथ पूरे विभाग को इतना बड़ा धोखा दिया है। आप इसे यहाँ से ले जाइए। चैतन्य ने मुट्ठी भींजते हुए कहा।

सर अगर आपकी अनुमति हो तो मैं चैतन्य से कुछ देर बात कर सकता हूँ। आदित्य ने कमिश्नर से कहा।

ठीक है... पर थोड़ी देर के लिए। कमिश्नर ने जहरीली मुस्कान के साथ कहा और पुलिसवालों के साथ वहाँ से बाहर निकल गए।

ये कमिश्नर क्या कह रहे हैं तुम्हारे बारे में। ये कैसे हो सकता है कि तुम्हारा रिश्ता रीतिका से रहा हो और तुमने मुझे बताया भी नहीं। तुमने मेरे साथ-साथ पूरे विभाग को बदनाम किया है। चैतन्य ने गुस्से से कहा।

हाँ ये सच है। लेकिन कुछ और भी बातें हैं जो मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ। आदित्य ने चैतन्य के कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा।
Gangadhar hi shaktimaan hain.
मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी।

पहले मेरी बात तो सुन लो।

मैंने कहा न कि मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी। चैतन्य ने गुस्से से बिफरते हुए कहा।

थक हारकर कुछ देर बाद आदित्य बाहर आकर गाड़ी में बैठ गया। कमिश्नर ने गाड़ी थाने की तरफ बढ़ा दी।


दृश्य-6

अदालत का दृश्य। चारों तरफ खचाखच भीड़। पाँव रखने को भी जगह नहीं बची थी। आज रीतिका हत्या केस की सुनवाई थी। जज साहब के केस की कार्रवाई शुरू करने के आदेश के बाद दो पुलिसवाले आदित्य को लेकर आए और कठघरे में खड़ा कर दिया। केस की कार्रवाई शुरू हुई पब्लिक प्रोसिक्यूटर ने अपनी दलील पेश करते हुए कहा।

मीलार्ड। ये जो शख्स कठघरे में खड़ा है। यह एक ऐसा मुजरिम है जिसने रीतिका खन्ना की बेरहमी से हत्या की है सिर्फ उसकी संपत्ति हथियाने के लिए। ऐसे हत्यारे को किसी भी सूरत में माफ नहीं किया जाना चाहिए।

आई आब्जेक्ट योर ऑनर...। आदित्य के वकील ने पब्लिक प्रोसिक्यूटर की बात को काटते हुए कहा- बिना किसी ठोस सबूत या गवाह के आप ये कैसे कह सकते हैं कि मेरे मुवक्किल ने रीतिका खन्ना की हत्या की है।

सुबूत हैं जज साहब....। अगर आपकी अनुमति हो तो मैं कुछ सवाल आदित्य से पूछना चाहता हूँ। पीपी(पब्लिक प्रोसिक्यूटर) ने कहा।
:?:
अनुमति है। जज साहब ने कहा।

पीपी- आदित्य साहब। क्या आप बता सकते हैं कि आप रीतिका खन्ना को कब से जानते हैं।

आदित्य- पिछले दो सालों से।

पीपी- परंतु आपने तो अपने पुलिस बयान में ये बताया है कि आप रीतिका खन्ना को पिछले दस वर्षों से जानते हैं।

आदित्य- हाँ ये भी सत्य है।

पीपी- ये किस तरह का सत्य है जज साहब। यहाँ अदालत में कुछ और बयान दे रहे हैं और पुलिस को कुछ और।

आदित्य- हाँ यही सत्य है। ये बात सही है कि मैं रीतिका को दस साल पहले मिला था। मैंने उस समय एक नया व्यवसाय शुरू किया था आयात-निर्यात का। मेरे पास पूँजी की कमी थी तो मैंने रीतिका से मदद माँगी।
Goldigger :galaghot:
चूँकि मैं और रीतिका कॉलेज में साथ-साथ पढ़े थे तो उसने मेरी मदद की। मेरा पूरा ध्यान अपने कारोबार पर था। मैंने अथक परिश्रम से अपनी कंपनी खड़ी की। उसके पैसे मैंने वापस कर दिए।
Jhutaa :crazykill:
रीतिका एक साइको थी जिसे अपने किसी भी काम को जूनून के रूप में लेने की आदत थी। पता नहीं वह कब मुझे पसंद करने लगी मुझे पता ही नहीं चला। इसी बीच मैंने एक संस्था खोली जो गरीब और असहाय बच्चों को शिक्षा देने का काम करती थी।

मेरा देखा-देखी उसने भी एक ट्रस्ट बना लिया। चूँकि उसके पास पैसों की कमी थी नहीं। उसकी ट्रस्ट चल निकली। देश-विदेश की नामी-गिरामी कई शैक्षणिक संस्थाएँ उससे जुड़ गई।

अकूत संपत्ति होने के बावजूद उसने सामाजिक कार्यों की आड़ में उसने गलत काम करने शुरू कर दिए। उसने एक बार मुझे विदेशी बैंक के सीईओ से मिलवाया और खाता खुलवाने के लिए कहा तो मैंने मना कर दिया। मैं अपने देश की मदद करना चाहता था न कि किसी विदेशी बैंक से मिलकर गलत काम। इसके लिए वो मुझपर दबाव बनाने लगी। मैने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ। मैं उसके पागलपन को जानता था।

हद तो तब हो गई जब उसने मुझे धमकी देनी शुरू कर दी कि अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो वो मेरे सारे धन्धे को चौपट कर देगी और मेरी संस्था को मिलने वाले अनुदान को भी बंद करवा देगी।
Ye dard hein tumhara :evilsmile:
मैं अपनी खुद्दारी के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहता था। इसलिए मैंने सारे कारोबार और शैक्षणिक संस्था बंद कर दिया और इस शहर में चला आया। कड़ी मेहनत के बाद मैंने पुलिस फोर्स जॉइन कर लिया और अंततः क्राइम विभाग। यही मेरी कहानी थी मीलॉर्ड। ये सही है कि मेरे रीतिका के साथ पुराने ताल्लुकात रहे हैं। लेकिन मैने उसका खून नहीं किया। भला मैं उसका खून क्यों करूँगा।
:think3:
पीपी- उसकी संपत्ति हड़पने के लिए। सारे शहर को पता है कि उसके पास अकूत संपत्ति थी और आपके पुराने ताल्लुकात भी थे उससे और आपसे बेहतर उसके सारे राज कौन जान सकता है।
Tu bada yakin se bol raha hai :huh:
संबंध तो एसपी साहब से भी रहे हैं सर. अगर आपकी अनुमति हो तो मैं एसपी अग्नेय त्रिपाठी से कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ। आदित्य के वकील शशांक मनोहर ने कहा।

अनुमति मिलने के बाद पुलिस कमिश्नर अग्नेय त्रिपाठी कटघरे में आकर खड़े हो गए और गीता पर हाथ रखकर सच बोलने की सौगन्ध खाई।

शशांक- एसपी साहब। मैं आपसे कुछ सवाल करना चाहता हूँ उम्मीद है कि आप सच बोलेंगे।

कमिश्नर- (मुस्कुराकर) वकील साहब आपसे गलती हो रही है। में एसपी नहीं पुलिस कमिश्नर हूँ।

शशांक- गलत संबोधन के लिए क्षमा चाहता हूँ सर। आपसे जानना चाहता हूँ कि आप रीतिका खन्ना को कब से जानते थे।

कमिश्नर- (हिचकिचाते हुए) ये कैसा सवाल है। जाहिर सी बात है कि जब से मेरी पोस्टिंग कमिश्नर के पद पर हुई है तब से।
Jhutta vo sharab wala tu hi hai mujhe pata hain. Teri gardan akedi thi na :D
शशांक- (मुस्कुराते हुए) ठीक से याद कीजिए सर।

कमिश्नर- (हिचकिचाते हुए) मुझे अच्छी तरह से याद है।

शशांक- तो फिर ये क्या है।

शशांक ने एक फोटो कमिश्नर को देखते हुए जज साहब की तरफ बढ़ा दी। सारे रूम में सन्नाटा छा गया। सबकी धड़कने बढ़ गई कि आखिर उस फोटो में क्या है।

जज साहब- (फोटो देखते हुए) मिस्टर त्रिपाठी। आप तो कह रहे हैं कि आप रीतिका खन्ना से इस शहर में आने के बात मिले थे। पर इस फोटो में तो आप रीतिका खन्ना के साथ दिख रहे हैं और आपके नाम के आगे एसपी लिखा दिख रहा है।
Fas gaya....yes yes...yes :dance:
कमिश्नर- (सकपकाते हुए) मुझे नहीं पता कि ये फोटो इन्हें कहाँ से मिली और कैसे मिली। हो सकता है कि तस्वीर के साथ कुछ छेड़छाड़ की गई हो। पर इससे कहाँ साबित होता है कि मैंने ही रीतिका का कत्ल किया है। ये भी हो सकता है कि किसी पार्टी में ये तस्वीर खीची गई हो जिसमें हम दोनों की तस्वीर साथ में आ गई हो।

शशांक- (मुस्कुराते हुए) जी जज साहब ये हो सकता है कि तस्वीर के साथ छेड़खानी की गई हो। ये भी हो सकता है कि इत्तेफाक से दोनों लोगों की तस्वीर साथ में आ गई हो। लेकिन इसे कैसे झुठला सकेंगे कमिश्नर साहब।

इतना कहते हुए शशांक ने एक वीडियो कैसेट जज साहब की ओर बढ़ाया और अदालत में दिखाने का आग्रह किया। अदालत में वीडियो को दिखाया गया। जिसमें साथ-साथ दिखाई-सुनाई दे रहा था कि कमिश्नर हँस-हँस कर रीतिका खन्ना से बातें कर रहे थे। जज साहब ने कमिश्नर की ओर देखते हुए कहा।

जज साहब- मिस्टर त्रिपाठी आपने अदालत से झूठ बोलकर अदालत की तौहीन की है। अदालत में झूठ बोलने के एवज में आपको सजा भी हो सकती है।
:yes1: . Judge sir iss ka chalan bhi kaatna.
जज साहब की बात सुनकर कमिश्नर का चेहरा उतर गया। उन्होने हाथ जोड़ते हुए कहा।

कमिश्नर- मीलॉर्ड। मुझे इस बात के लिए माफ कर दिया जाए कि मैंने रीतिका खन्ना से मिलने की बात छुपाई, पर मैं ये भी कहना चाहूँगा कि सिर्फ बात कर लेने या मिलने से ये साबित नहीं होता कि मैंने ही रीतिका की हत्या की है।
Ruk ja ruk ja 2 min. ruk ja abhi sab shabit hoga :evillaugh:
पीपी- आई ऑब्जेक्ट योर हॉनर.. जज साहब मेरे मुवक्किल को जबरन इस केस में घसीटा जा रहा है। उन्हें फँसाने की कोशिश की जा रही है। कल को अगर मेरे या आपके साथ भी रीतिका खन्ना की जान-पहचान निकल आई तो क्या मुझे या आपको भी रीतिका खन्ना का हत्यारा घोषित कर दिया जाएगा।
शशांक- नहीं जज साहब मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि सिर्फ जान-पहचान होना ही हत्यारा साबित करता है किसी को। इस बिना पर तो मेरे मुवक्किल भी हत्यारे साबित नहीं होते। लेकिन अभी भी मेरे कुछ और सबूत हैं जो इन्हें गुनहगार साबित करते हैं।

मैं अदालत में इनके एक पुराने साथी और मददगार मिस्टर चतुर मिश्रा जी को बुलाना चाहता हूँ। जो इनके सहकर्मी हैं और इनके ही विभाग में सब-इंस्पेक्टर हैं।

इजाजत मिलने के बाद मिस्टर चतुर को दूसरे कठघरे में बुलाया गया। शशांक ने उन्हें कसम दिलाई।

शशांक- मिस्टर चतुर मैं कुछ कहूँ या आप खुद ही सच्चाई बताएँगे।

चतुर- जज साहब। मुझे जितनी जानकारी है मैं सब सच-सच बताने के लिए तैयार हूँ। हाँ मैंने कमिश्नर साहब का सहयोग किया है। चूँकि ये मेरे सीनियर थे तो मुझे इनकी मदद करनी पड़ी। मैंने इनके कहने पर आदित्य से एक कागज का टुकड़ा छीनकर भागा था पर मुझे पता नहीं था कि उस कागज के टुकड़े में क्या था। मैं बस इतना ही जानता हूँ कि मैंने जो भी किया इनके अंडर में रहने की एवज में किया।
:yes1: mein right thi :smarty:
ठीक है आप जा सकते हैं। कहकर शशांक ने चैतन्य को बुलाने की इजाजत माँगी। कुछ देर में चैतन्य कठघरे में था। शशांक ने उसे शपत दिलाई।

शशांक- सर क्या आप बता सकते हैं कि उस कागज में क्या लिखा था।

चैतन्य- जज साहब मैं उस कागज के बारे में कुछ कहने से पहले कुछ और बताना चाहता हूँ। रीतिका मर्डर के बाद मुझे और आदित्य को उस केस को सुलझाने का काम सौंपा गया था।

जिस समय रीतिका के लाश का पंचनामा तैयार किया जा रहा था उस समय वहाँ पर कमिश्नर साहब भी मौजूद थे। मुझे वहाँ पर दो चीजें मिली थी। कूड़ेदान में वो कागज का टुकड़ा और एक डायरी जिसमें किसी ने रीतिका की हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए हमारे लिए एक चैलेंज छोड़ा था। जिसपर लिखा था।


R.A.T. C.A.T.

मैने और आदित्य ने इस गुत्थी को सुलझाने में बहुत मेहनत की और एक-एक अक्षर की बारीकी से जाँच की।

R का अर्थ रीतिका

A.T का अर्थ था अकाडमिक ट्रस्ट, लेकिन CAT का अर्थ नहीं मिल पाया था। हम किसी ठोस नतीजे तक पहुँचे भी नहीं थे कि अचानक कमिश्नर साहब वहाँ पहुँच गए। कमिश्नर साहब ने कहा कि अतिंम के दो अक्षर A.T. का मतलब कहीं आदित्य ठकराल तो नहीं।
Nahi aaditya thakral nahi hai :?:
तब हमारे दिमाग में किसी का नाम फिट करने की बात कौंधी, चूँकि डायरी का हम दोनो के अलावा किसी को नहीं पता था। फिर इन्हें R.A.T. C.A.T. के बारे में किसने बताया। जिसके कारण हमारा शक इनके ऊपर गया। मुझे तो लगता है कि

C. का अर्थ चतुर है और

A.T. का अर्थ अग्नेय त्रिपाठी है।

मतलब ये डायरी अग्नेय त्रिपाठी की ही चाल थी। वह हमें चैलेंज करना चाहते थे कि हम नतीजे तक नहीं पहुँच पाएँगे।
Wow kya baat hain.
अब आते हैं उस कागज के टुकड़े पर। उस कागज के टुकड़े पर हमें कुछ लिखी हुई राशि के चिह्न नजर आए। हमने इंफ्रा रेड तकनीक की सहायता से देखा तो पता चला कि उसमें 100 मिलिटन डॉलर के लेनदेन का जिक्र था।
Mein starting se kah rahi hun ye hawala ka paisa hai. Par meri koe sunta hi nahin :rano: .
इतनी बड़ी रकम आखिर किसके साथ लेन-देन कर सकती है रीतिका। इसी की जानकारी लेने हम रात को दोबारा रीतिका के घर गए। जहाँ कमिश्नर साहब और चतुर जी पहले से मौजूद थे। जहाँ रीतिका की हत्या हुई थी उसके बगल वाले कमरे में आदित्य की कमिश्नर साहब के साथ झड़प भी हुई थी।

कमिश्नर साहब को पता ही नहीं चला की इस झड़प में कब रीतिका की पार्टी वाली तस्वीर नीचे गिर गई जिसमें इनकी फोटो भी थी। शायह वही हासिल करने के लिए ये वहाँ पर गए थे।

झड़प के बीच वो यह भी भूल गए कि जिस कागज पैड पर 100 मिलियन डॉलर का हिसाब-किताब था वह वहीं रह गया जो किस्मत से हमारे हाथ लग गया। असली कागज की तलाश में कल रात मैं कमिश्नर साहब के घर गया था तो गद्दे के नीचे मुझे वो असली कागज मिला।

जिसमें लिखावट कमिश्नर साहब की है। जिससे ये क्लीयर हो गया कि रीतिका और कमिश्नर साहब के बीच 100 मिलियन डॉलर का लेनदेन हुआ है। अब उन्होंने रीतिका की हत्या क्यों की ये तो वही बता सकते हैं।

पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया। सभी साँसे थामे बैठे थे। केस कभी आदित्य की तरफ मुड़ता तो कभी कमिश्नर की तरफ। कभी कातिल आदित्य लगता तो कभी कमिश्नर।
:chilling2: bery interesting....
आई ऑब्जेस्ट योर हॉनर..।
:slap: chup bilkul chup.
पता नहीं त्रिपाठी सर से क्या दुश्मनी है क्राइम विभाग वालों की जो उन्हें फँसाना चाहते हैं। पर इतना जरूर है कि वे कमिश्नर साहब को एक फर्जी केस बनाकर, झूठे गवाह और सबूत पेश कर जानबूझकर कातिल साबित करने चाह रहे हैं। पब्लिक प्रोसिक्यूटर ने उठते हुए कहा।

ये आप किस बिनाह पर कह सकते हैं। क्या आपके पास कोई सुबूत है। जज साहब ने प्रोसिक्यूटर से कहा तो वकील ने मुस्कुराते हुए कहा।

पीपी- है जज साहब। एक ठोस वजह है। अभी चैतन्य जी ने कहा कि इनके पास दो सबूत हैं। एक वह कागज का टुकड़ा और दूसरी वह डायरी। जिसपर इनका कहना है कि इस डायरी के माध्यम से कमिश्नर साहब ने इनको चैलेंज किया और उस 100 मिलियन डॉलर वाले कागज पर लिखी लिखावट उनकी ही है जो उनके गद्दे के नीचे से निकली थी।

फिर तो दोनो लिखावट मिलानी चाहिए। इसलिए मेरी दरख्वास्त है कि किसी राइटिंग एक्सपर्ट को बुलाकर कागज, डायरी और कमिश्नर साहब तथा आदित्य की लिखाई का मिलान किया जाए।

जज साहब ने ध्यान से कुछ देर सोचा और किसी राइटिंग एक्सपर्ट को बुलाने का कह मध्यान्तर बाद कार्रवाई जारी रखने का कहकर अपनी जगह से उठ गए। सभी लोगों में कानाफूसी होने लगी। कमिश्नर और आदित्य को पुलिस ने अपनी गिरफ्त में ले लिया।

लगभग एक घंटे बाद सुनवाई फिर से शुरू हो गई। कोर्ट रूम शांत था। सामने ही एक राइटिंग एक्सपर्ट बड़े ही ध्यान से सभी लिखावट का मिलान कर रहा था। उसने अपनी रिपोर्ट बनाई और जज साहब को थमा दिया। खामोशी से रिपोर्ट देखने के बाद जज साहब ने फैसला सुनाया।

जज साहब- तमाम सबूतों, गवाहों और राइटिंग एक्सपर्ट के किए गए जाँच के आधार पर अदालत इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि मिस्टर आदित्य ने ही रीतिका खन्ना की हत्या की है। इसलिए उन्हें दफा 302 के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है।
:galaghot: abbe judge ye bhi ho sakta hai na kisi aur ne likha ho.
पुलिस कमिश्नर त्रिपाठी को रीतिका की हत्या की साजिश रचने, हत्या का प्रयाश करने और उनकी संपत्ति हड़पने की साजिश में पाँच साल की सजा दी जाती है और सरकार को ये आदेश देती है कि उनकी बेनामी और अवैध संपत्ति को जब्त करे एवं समिति द्वारा इसकी जाँच करवाए। रीतिका खन्ना की हत्या आदित्य ने क्यों की इसका खुलासा वह स्वयं करेंगे।

जज साहब के फैसले के बाद वहाँ एक भूचाल सा आ गया। लोग कानाफूसी करने लगे।

इधर आदित्य कटघरे में खड़ा था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि इतनी सफाई से सबकुछ करने के बाद भी वह पकड़ा जाएगा। लेकिन कातिल कितना भी चालाक क्यों न हो कोई-न-कोई सुराग जरूर छोड़ देता है। काश वो अतिउत्साह में वो डायरी वहाँ पर नहीं छोड़ता तो आज वह नहीं बल्कि कमिश्नर त्रिपाठी को उम्र कैद होती।
Ye aditya nikla. Aakhir tak mujhe comissioner hi lag raha tha :verysad:
जज साहब...। मैं अपना गुनाह कबूल करता हूँ।

कहानी तब शुरू होती है जब मैंने अपना छोटा सा आयात-निर्यात का व्यवसाय शुरू किया था। बिजनेस में नया होने के कारण मेरी मदद रीतिका खन्ना ने की। जब मेरा बिजनेस चल निकला तो मैंने उसके पैसे वापस कर दिए। मैंने एक अकाडमी खोली जो गरीब और कमजोर बच्चों को शिक्षा देने का काम करती थी।

देखा-देखी रीतिका ने भी एक अकाडमी खोल दी। रीतिका एक साइको थी जो मुझे प्यार के नाम पर जबरन शादी के लिए दबाव डालने लगी।

मेरे लाख समझाने के बाद भी वो नहीं मानी बल्कि मुझे ब्लैकमेल करने लगी। मेरी दोस्ती को प्यार का नाम देने लगी। मेरी अकाडमी के विरुद्ध वो अपने पैसे और ताकत का इस्तेमाल करने लगी। उस समय कमिश्नर साहब वहाँ के एसपी हुआ करते थे। जो बहुत ही कड़क पुलिस अधिकारी थे। मेरी उनकी जान-पहचान नहीं थी, बस पार्टियों में कभी-कभी मिलना हो जाता था। बाद में पता चला कि उनका धन्धा कई अंतर्राष्ट्रीय अपराधियों के गिरोह से था।

रीतिका की मनमानी के कारण मैंने अपना व्यवसाय बंद करने की कोशिश की तो उसने यहाँ भी अपना अड़ंगा लगा दिया और मुझसे शादी के लिए दबाव डालने लगी। मेरे इनकार करने पर उसने मेरे खिलाफ कई तरह के आरोप लगाए और मुझे झूठे केस में फँसा दिया। मेरी माँ ये सदमा न सह सकी और उनकी हृदयघात से मौत हो गई।

उस समय चैतन्य ने मेरा साथ दिया और केस रफा-दफा करवाया। मैं उसके साथ इस शहर चला आया और अथक मेहनत से पुलिस फोर्स जॉइन किया और फिर क्राइम विभाग का बेस्ट ऑफीसर बना।

पर दुर्भाग्य ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा और अरसे बाद एक केस के सिलसिले में मेरी मुलाकात फिर रीतिका से हो गई जो सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार बन चुकी थी। उसके बाद उसकी मनमानी फिर से शुरू हो गई।

एसपी त्रिपाठी अब कमिश्नर बन चुके थे और एक अलग रुतबा था उनका अब। उनके पास इतना पैसा कहाँ से और कैसै आया ये पूछने की हिम्मत डिपार्टमेंट को नहीं थी। पता नहीं क्यों ये जानने के बाद कि रीतिका और कमिश्नर के बीच अवैध ताल्लुकात हैं, इसी रीतिका की वजह से मेरी माँ की मौत हुई। इसी वजह से मुझे अपना शहर छोड़ना पड़ा, मुझे उसकी जान लेने के लिए मजबूर कर दिया।

मेरी योजना तब पूरी होती हुई नजर आई जब शराब के नशे में मिस्टर चतुर ने ये बताया कि रीतिका की संपत्ति हड़पने के लिए उसे मारने वाले हैं। मैंने पुलिस को गुमराह करने के लिए वो पहेली लिखी और डायरी रखने जब रीतिका के घर गया तो वहाँ किसी बात को लेकर रीतिका और कमिश्नर के बीच बहस हो रही थी।

बहस इतनी बढ़ गई की कमिश्नर ने बंदूक निकाल ली और गोली चला दी। लेकिन उनका निशाना चूक गया ठीक उसी समय मैंने साइलेंसर लगी बंदूक से उसपर गोली चला दी।

कमिश्नर को लगा कि उनकी गोली लगी है रीतिका को तो वो उसकी लाश का मुआयना करने लगे। मैंने डायरी चुपचाप टेबल के दराज में डाल दी और छुप गया। डायरी कमिश्नर ने भी देखा लेकिन किसी काम का न जानकर वहीं छोड़ दिया और जिस कागज पैड पर 100 डॉलर की डील हुई थी उसे फाड़ लिया।

लेकिन गलती से उसके तीन पेज फट गए तो दो पेज को कमिश्नर ने मोड़कर कूड़ेदान में डाल दिया।

चैतन्य मेरा बहुत अच्छा मित्र है, लेकिन उसका इसमें कोई हाथ नहीं है। सारा गुनाह मेरा है। मैंने मेरी जिंदगी बरबाद करने वाली, मेरी माँ की कातिल को बदले की भावनावश मारने का प्लान बनाया।

पूरा कोर्ट रूम गहरे सन्नाटे में डूब गया। चैतन्य भावनाशून्य होकर एक टक आदित्य को देखे जा रहा था।

लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि गुनहगार कौन है। क्या रीतिका अपनी मौत की जिम्मेदार खुद है। क्या आदित्य ने रीतिका की हत्या करके सही किया। यही एक विचारणीय प्रश्न था जिसे सारे लोगों को सोचना था।

1645679009435
समाप्त

Mindblowing story thi Mahi Maurya sissy. Sach mein last tak ye pata nahin chal paya ki kon real ka criminal hai. Ek baat kahu aapki ye story bollywood ki stories se jayada acchi hai. Mujhe ye story humesha yaad rahegi.
Mujhe padh kar ye kahani bhote jayada accha laga. Story mein flow bana raha aur saath mein ek ke baad ek part aata gaya aur kahani ko aur shandar banata gaya.
:clapclap: for your effort. Mahi sissy bhote acchi story thi. Hats off too you
 
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