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रात क़रीब ११ बजे बंसल के मोबाइल पे किसी की कॉल आ रही थी। बंसल नींद में अपनी जेब से फ़ोन निकाला।
बंसल - हेलो।
दूसरी तरफ फ़ोन पे - हेलो बंसल मैं माथुर बोल रहा हूँ।
बंसल - सर आप? इस वक़्त? सब ठीक तो है?
माथुर - सब ठीक है, शालु कहाँ है?
बंसल - शालु यहीं है।
माथुर - (अस्चर्य से।) क्या? शालु तुम्हारे साथ?
बंसल - नहीं सर मेरा मतलब उसका घर मेरे होटल के पास ही है मैं उसे घर ड्राप कर होटल आ गया।
माथुर - काफी नशे में थी वो, तूने कुछ फ़ायदा नहीं उठाया?
बानसाल - जी मै।।।? नही।
माथुर - हाँ हाँ तुम भी बंसल बड़े ही नादान हो। गुप्ता जी को देखा तुमने कैसे शालु को अपने पास बिठा के उसके टॉप के अंदर हाथ डाल के उसके नरम-नरम चूचियां दबा रहे थे। २-३ बार तो मैंने भी उसकी जाँघो और चूचियों पे हाथ फेरा था। साली बहुत गदराई माल है।
बंसल - जी।
माथुर - क्या हुआ इतना चुप क्यों है यार? तुम्हे अच्छा नहीं लगा क्या? ऐसा लग रहा है जैसे शालु तुम्हारी सेक्रेटरी न हो तुम्हारी कोई रिलेटिव हो।
बंसल - जी नहीं ऐसी बात नहीं है। मैं भी शालु के बारे में ही सोच रहा था। (बंसल ने मुड़कर बिस्तर पे देखा तो शालु नींद में थी और उसके कपडे अस्त-व्यस्त हो गए थे। अपनी बेटी के खुले अंगो को देख बंसल की धड़कन तेज़ हो जाती है)
माथुर - नाइस बंसल, केवल शालु के बारे में सोच रहे थे या फिर सोचकर मुट्ठ भी मारा ? मैं तो कण्ट्रोल नहीं कर पाया और अपना पानी निकल गया।
बंसल - नहीं सर मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया।
माथुर - तू तो बड़ा शरीफ है बंसल, लेकिन एक बात कहूं मुझे लगता है तेरी सेक्रेटरी शालु भोली नहीं है। मुझे लगता है वो पहले से ही चूदी हुई है।
माथुर के मुँह से अपनी बेटी के चुदने की बात सुनकर बंसल का लंड खड़ा हो जाता है। वो अपनी बेटी के जिस्म को देखते हुए अपना लंड बाहर निकाल कर हिलाने लगता है।
बंसल - हेलो।
दूसरी तरफ फ़ोन पे - हेलो बंसल मैं माथुर बोल रहा हूँ।
बंसल - सर आप? इस वक़्त? सब ठीक तो है?
माथुर - सब ठीक है, शालु कहाँ है?
बंसल - शालु यहीं है।
माथुर - (अस्चर्य से।) क्या? शालु तुम्हारे साथ?
बंसल - नहीं सर मेरा मतलब उसका घर मेरे होटल के पास ही है मैं उसे घर ड्राप कर होटल आ गया।
माथुर - काफी नशे में थी वो, तूने कुछ फ़ायदा नहीं उठाया?
बानसाल - जी मै।।।? नही।
माथुर - हाँ हाँ तुम भी बंसल बड़े ही नादान हो। गुप्ता जी को देखा तुमने कैसे शालु को अपने पास बिठा के उसके टॉप के अंदर हाथ डाल के उसके नरम-नरम चूचियां दबा रहे थे। २-३ बार तो मैंने भी उसकी जाँघो और चूचियों पे हाथ फेरा था। साली बहुत गदराई माल है।
बंसल - जी।
माथुर - क्या हुआ इतना चुप क्यों है यार? तुम्हे अच्छा नहीं लगा क्या? ऐसा लग रहा है जैसे शालु तुम्हारी सेक्रेटरी न हो तुम्हारी कोई रिलेटिव हो।
बंसल - जी नहीं ऐसी बात नहीं है। मैं भी शालु के बारे में ही सोच रहा था। (बंसल ने मुड़कर बिस्तर पे देखा तो शालु नींद में थी और उसके कपडे अस्त-व्यस्त हो गए थे। अपनी बेटी के खुले अंगो को देख बंसल की धड़कन तेज़ हो जाती है)
माथुर - नाइस बंसल, केवल शालु के बारे में सोच रहे थे या फिर सोचकर मुट्ठ भी मारा ? मैं तो कण्ट्रोल नहीं कर पाया और अपना पानी निकल गया।
बंसल - नहीं सर मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया।
माथुर - तू तो बड़ा शरीफ है बंसल, लेकिन एक बात कहूं मुझे लगता है तेरी सेक्रेटरी शालु भोली नहीं है। मुझे लगता है वो पहले से ही चूदी हुई है।
माथुर के मुँह से अपनी बेटी के चुदने की बात सुनकर बंसल का लंड खड़ा हो जाता है। वो अपनी बेटी के जिस्म को देखते हुए अपना लंड बाहर निकाल कर हिलाने लगता है।