College ki jivan to bas kahani aur filmo me hi jiya hai . Real life me aise college gaye jaha bas degree li college life ka maza na mila .शायद प्रकृति का कवितामय होकर इठलाना इसलिए भी हो सकता है क्योंकि यह सुमित्रा नंदन पंत जैसे महान विचारक, दार्शनिक,कवि की जनम स्थली भी है। जो प्रकृति की गोंद में पल पोस कर बड़े हुए और आज भी उनके बिताये शैशवकाल के अंश उनकी धरोहर के रूप में यहाँ मौजूद हैं। जो भले ही जर्जर अवस्था में हों मगर उनके स्वरुप से बिलकुल भी छेड़छाड़ नहीं की गयी है। प्रकृति के चितेरे पंत जी का घर अब 'सुमित्रा नंदन पंत वीथिका' के नाम से परिवर्तित कर दिया गया है। जो उनकी लेखनी के आसमान का गवाह है। शायद ये मौसम, ये नज़ारे, और ये नैसर्गिक सौंदर्य ही रहा होगा जिसने उनकी कविताओं को रस से लबालब भर दिया। उनकी बहुत सी कविताओं में इसका प्रमाण मिलता है।
"प्रथम रश्मि का आना रंगिनी
तूने कैसे पहचाना ?
कहाँ कहाँ ये बाल-विहंगिनी !
पाया, तूने ये जाना ?"
कवि चिड़ियों से पूंछ रहा है की तुमने कैसे जाना की सूर्य के निकलने का समय हो गया है ?....
अहा !...कितने रस से भरी हैं उनकी नैसर्गिक कवितायेँ ? जैसे दूर तक फैली पर्वत श्रंखलाओं में अठखेलियां कर रही हों और उन सुगन्धित वादियों ने उन्हें अपने नूर से नहला दिया हो !
"काले बादल में रहती चांदी की रेखा..."
इस कविता में भी कवि ने बादलों का जिक्र किया है।
देश को पंत जी जैसा प्रकृति सुकुमार देने वाली ये घाटियां, यहाँ की अद्भुत वादियां, नज़ारे और चंचल समां ही हैं। फिर भला ऐसा कौन होगा जो इस अनुपम सौंदर्य को देख कर उससे अछूता रह पायेगा ?
वही कानपुर के एक घर में एक बेहद खूबसूरत लड़की अपनी गहरी नींद में सो रही थी। हालाँकि सुबह तो कब की हो चुकी थी किन्तु अभी भी वह अपने मीठे सपनो में खोयी हुयी थी। सोते हुए वह कभी मुस्कुराती तो कभी उदास हो जाती। ये उम्र ही ऐसी होती है जिसमे लगभग सभी लड़किया अपने अपने होने वाले भावी राजकुमार के सपने देखती हैं। अभी उसका ख्वाब चल ही रहा था की तभी जैसे किसी आफत ने उसके सपनो को चकनाचूर कर दिया और वो चिल्ला कर उठ बैठी।
"अरे ओ साधना की बच्ची, क्या कर रही है..? चल उठ , कॉलेज नहीं जाना क्या..?"
जब दो तीन बार आवाज़ देने के बाद भी वो लड़की, जिसका कि नाम साधना है, नहीं उठी तो उसने पास में रखे हुए जग का पानी उसके ऊपर उड़ेल दिया जिससे वो हड़बड़ा कर उठ बैठी।
"ओये महारानी, सुबह के आठ बज गए हैं और तू अब तक सो रहीं है, कॉलेज नहीं जाना क्या ...?"
"नैना की बच्ची, उठाने का ये कौन सा तरीका है तेरा ..? तूने मेरा इतना खूबसूरत ख्वाब तोड़ दिया। " उस लड़की ने ऑंखें खोलते हुए कहा.
"क्यों, सपने में कोई राजकुमार आया था क्या, जिससे ख्वाब टूट जाने पर तुझे मुझ पर गुस्सा आ रहा है...?"
" कुछ नहीं यार, बस देर रात तक एक स्टोरी पढ़ रही थी जिसमे कोसानी के बारे में बहुत अच्छा लिखा था । पढ़ते पढ़ते उसमे इतना खो गयी कि नींद कब लग गयी,पता ही नहीं चला। मैं अभी सपने में कोसानी में ही घूम रही थी कि तूने बीच में आकर सब सत्यानाश कर दिया। सच में नैना, इतना बढ़िया लिखा था कि मन करता है कि मैं भी उड़ कर वहीं पहुँच जाऊं। " साधना ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा
"सपने को छोड़ और जल्दी से तैयार हो जा जब तक मैं आंटी से बात करती हूँ। " नैना ने कमरे से निकलते हुए कहा.
साधना और नैना बचपन से ही ख़ास सहेलियाँ हैं। दोनों में बेहद घनिष्ठता थी और अपनापन इतना था की बिना कुछ कहे ही एक दूसरे के दिल का कोना कोना पढ़ लेती थी। जहाँ साधना बेहद शांत स्वभाव की थी तो वही नैना का मिज़ाज़ चुलबुला और तीखा था।
नैना के जाने के बाद साधना बाथरूम में घुस गयी। वहां से तारो ताज़ा होकर निकली और ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हो कर अपने बाल सँवारने लगी। उसके बाल घने काले, इंतहाई चमकीले,और रेशमी थे। लम्बे इतने की नीचे कमर तक आते थे।
साधना इतनी सुन्दर थी की कोई अगर उसे एक नज़र देख ले तो बार बार उसे देखने की ख्वाइश करता। बाल ऐसे की जैसे कई विष-धर लिपटे हुए उसके शरीर की सुगंध ले रहे हों। अगर अपने वह बाल खोल कर वो उन्हें झाड़ दे तो धरती,स्वर्ग और पाताल में अंधकार छ जाये। उसके बाल देख कर ऐसा लगता है की जैसे मलयगिरि चन्दन की सुगंध से सम्मोहित होकर हज़ारो सांप उसके सर पर लोट रहे हों। उसकी विष पूरित घुंघराली पलकें, प्रेम की श्रृंखलाएं हैं जो किसी के गले में पड़ना चाहती हैं। उसकी ऑंखें किसी समुद्र की तरह अथाह गहरी हैं, जिन्हे एक बार जो देख ले बस उनमे डूबने को आतुर हो जाये। उसके होंठ इतने सुन्दर और अमृत रस से भरे हैं। उसके होंठ एकदम लाल रक्त वर्ण के हैं जैसे की लगातार पान खाते रहने के कारण इतने लाल हो गए हों। जिन्हे देख कर ही प्रतीत होता है जैसे की विधाता ने उसके होठों में अमृत भर दिया हो और जिन्हे अब तक किसी ने भी चखा न हो। जब वह अपने इन् होठो को हिलाते हुए बात करती है तो ऐसा लगता है जैसे की कोयल बोल रही हो।
चेहरा इतना खूबसूरत की जिसे देख कर चाँद निकल आने का भ्रम हो जाये। लम्बी सुराहीदार गर्दन,नम-ओ-नाज़ुक हाथ, कोमल, पाँव,स्तन ऐसे जैसे की विधाता ने अमृत से भरे हुए दो कटोरे उल्टा कर के छातियों में लगा दिया हो। जाँघे इतनी सुन्दर और चिकनी जैसे की केले के तने को उल्टा कर के उन्हें जाँघों की शकल दे दी गयी हो। दो उलटे कलश की तरह मादक नितम्ब किसी की भी तपस्या को भंग करने के लिए पर्याप्त थे। चाल ऐसी की जिसे देख वक़्त अपनी रफ़्तार भूल जाये। रंग-रूप, यौवन और सौंदर्य का ठाठे मारती सागर थी साधना। वह कही की राजकुमारी या परी लोक की कोई शहज़ादी तो नहीं थी किन्तु उसका रूप, यौवन परियों को भी मात देने वाला था।
हालाँकि नैना भी खूबसूरती के मामले में किसी से कम नहीं थी। दोनों को बी.एस.सी. फर्स्ट ईयर में एडमिशन लिए अभी चाँद दिन ही हुए थे किन्तु इन चंद दिनों में ही उनकी सुंदरता के चर्चे पूरे कॉलेज में हो गए थे। कई लड़के उनकी एक झलक पाने के लिए कॉलेज गेट पर नज़रें जमाये खड़े रहते थे। कईयों ने दोस्ती तो कुछ ने अपने प्यार का इज़हार तक कर दिया था, किन्तु दोनों ने कभी किसी लड़के से दोस्ती करना तो बहुत दूर उन्हें अपने आस-पास भी फटकने नहीं दिया था।
साधना तैयार होकर नास्ता करने के बाद नैना के साथ उसकी स्कूटी में कॉलेज के लिए निकल गयी। आज भी कॉलेज पहुँचने पर सब कुछ वैसा ही था जैसा कि हर रोज़ होता है। कई दिल फ़ेंक आशिक़ अपना दिल थामे दोनों के दीदार में ऑंखें बिछाए खड़े थे। दोनों ने उन्हें इग्नोर करते हुए कॉलेज परिसर में प्रवेश किया और स्कूटी पार्क करके वापिस पलटी ही थी कि तभी....
Sadhna aur Naina do kirdar samne aa gaye ab dekhte hai Sadhna ka Rajkumar kaha hai ?