Incest Paap ne Bachayaa written By S_Kumar

Well-known member
1,798
2,249
143
Update- 83

नरेन्द्र अपनी बेटी कंचन की दोनों फूलकर तनी हुई चूचीयों को पिये जा रहा था, नीचे बूर में लंड जड़ तक समाया हुआ था, कंचन पर तो सनसनाहट की अब दोहरी मार हो रही थी, एक तो उसकी कमसिन सी गोरी बूर में उसके बाबू का काला लौड़ा जड़ तक घुसा हुआ उसे जन्नत का अहसाह करा रहा था ऊपर से उसके बाबू का लगातार उसकी छलकती चूचीयों को सहला सहला कर पीना उसे बेसुध कर रहा था, इतनी उत्तेजना उसे जीवन में कभी नही हुई थी, अत्यधिक उत्तेजना में वो कभी तेज तो कभी धीमे धीमे सिसकती कराहती जा रही थी।

बड़े प्यार से बीच बीच में सर नीचे कर कभी अपने सगे बाबू को अपनी चूचीयाँ किसी बच्चे की तरह पीते देख कर उनके सर को चूम लेती और कभी खुद ही अपनी मोटी चूची को पकड़ के गुलाबी कड़क निप्पल को बड़ी मादकता से उनके मुँह में भरती तो नरेन्द्र और उत्तेजित होकर चूचीयों पर और टूट पड़ता, "हाय.....बाबू.......ऊई अम्मा.....ईईईईईईईईईशशशशश.......कैसे पी रहे हैं आप मेरी चूची..........आआआआआ आहहहहहहह.........मेरे बच्चे.......मेरे बाबू

मेरे बच्चे बोलने पर नरेन्द्र ने सर उठा के नीलम को देखा तो वो मुस्कुराते हुए बहुत ही प्यार से उन्हें देख रही थी, नरेन्द्र को कंचन के बच्चा बोलने पर उन्हें इतना प्यार आया कि उन्होंने थोड़ा ऊपर उठकर उसके मुस्कुराते होंठों को अपने होंठों में भरकर चूम लिया और बोला- हाँ मैं अपनी बेटी का बच्चा हूँ।

कंचन ने वासना में फिर बोला- मेरा बच्चा......और पियो न बाबू मेरी चूची..... मेरा बच्चा बनकर

कंचन के मुंह से "चूची" सुनकर नरेन्द्र को अदभुत उत्तेजना होने लगी, वो समझ गया कि उत्तेजना अब कंचन के सर चढ़कर बोल रही है, उसकी आँखों में देखने लगा तो कंचन भी अपने बाबू को देखकर मुस्कुराने लगी, नरेन्द्र बोला- क्या पियूँ अपनी बिटिया की.....उसका बच्चा बनकर

कंचन ने उनकी आंखों में देखते हुए बोला- "चूची"

और इस बार वो शरमा कर अपने बाबू के सीने से लग गयी, मोटी मोटी तनी हुई चूचीयाँ एक बार फिर नरेन्द्र के बालों से भरे सीने से किसी सपंज की तरफ दब गई। नरेन्द्र ने कंचन के चेहरे को ऊपर किया तो उसकी आंखें बंद थी, बेटी के होंठों पर नरेन्द्र ने अपने होंठ रख दिये और बड़ी तन्मयता से कुछ देर चूसा, कंचन उनके सर को सहलाते हुए पूरा साथ देने लगी। कुछ देर होंठ चूसने के बाद वो गालों पर चुम्बन करता हुआ नीचे झुका और एक बार फिर मोटी मोटी तनी हुई चूचीयों को मुंह मे भर लिया तो कंचन सिसक उठी, नरेन्द्र फिर लगा अपनी बेटी की चूचीयों को मसल मसल कर पीने तो कंचन उत्तेजना में फिर कराह उठी, कुछ ही देर में कंचन की दोनों चूचीयाँ अत्यधिक उत्तेजना में तनकर और कस कस के मीजे जाने की वजह से लाल हो गयी, उसे अब इतना मजा आ रहा था कि उससे रहा नही जा रहा था, वो छटपटाने लगी, नीचे से हल्का हल्का जब खुद ही उसकी चौड़ी गाँड़ तीन चार बार ऊपर को उछली तो नरेन्द्र ने कंचन की आंखों में देखा और कंचन शरमाकर अपने बाबू से लिपट गयी, उसे विश्वास ही नही हुआ कि अचानक उसने कैसे बेशर्मी से खुद ही अपनी गाँड़ नीचे से उछालकर अपने बाबू को अब बूर चोदने का इशारा कर डाला, और एक बार और हल्का सा शर्माते हुए दुबारा अपनी गाँड़ नीचे से उठाकर अपने बाबू के कान में "बाबू अब चोदिये न" बोलते हुए उनसे फिर लिपट गयी, नरेन्द्र ने उसके चेहरे को सामने किया तो उसकी आँखें शर्म से बंद थी, होंठ थरथरा रहे थे, चहरे पर वासना की भरपूर खुमारी थी, उन्होंने कंचन के होंठों को कस के एक बार चूमा और होठ को बिना उठाए गाल पर से सरकाते हुए बाएं कान के पास ले जाकर बोला- क्या चोदू?

कंचन और शरमा गयी, नरेन्द्र ने उसके गाल को चूम लिया और बोला- बोल न

कंचन ने बोला- गंदे हो आप

नरेन्द्र - गंदेपन का अपना अलग ही मजा है.....बोलकर देख

कंचन शर्माते हुए बोली- "बूर" "बूर चोदिये न".......... आह बाबू

कंचन को बोलकर बहुत सिरहन हुई।

नरेन्द्र- किसकी बूर?.......किसकी बूर चोदू?

कंचन सिरहते हुए- "अपनी बिटिया की........अपनी बिटिया की बूर चोदिये"

कंचन के ये कहते ही नरेन्द्र उससे बुरी तरह लिपट गया और कंचन ने अपने बाबू को कराहते हुए अपने आगोश में भरकर नीचे से फिर एक दो बार अपनी गाँड़ को हिलाया, नरेन्द्र ने कंचन के कान में फिर बोला - बूर

कंचन फिर सिरह उठी, बदन उसका गनगना गया, उसके बाबू ने फिर उसके कान में धीरे से बोला- बूबूबूबूबूरररररर

कंचन फिर गनगना गयी और "अह.... बाबू" कहकर मचल उठी।

एक बार फिर नरेन्द्र ने कंचन के कान में दुबारा बोला- "बूबूबूबूबूबूबूररररररररर.................बुरिया"

कंचन फिर एक बार सनसना गयी और इस बार अनजाने में उसके मुंह से भी धीरे से निकला- "लंड............पेल्हर"

और कहते हुए वो अपने बाबू को उनकी पीठ पर चिकोटी काटते हुए उन्हें चूमने लगी।

(पेल्हर अक्सर गांव में बोले जाने वाला शब्द है, जिसका अर्थ होता है बूर को पेलने वाला दमदार लंड)

नरेंद को इतना जोश चढ़ा की उन्होंने कस के अपने लन्ड को अपनी बेटी की बूर में गाड़ ही दिया, कंचन चिहुँक कर हल्का सा कराह उठी।

नरेन्द्र ने फिर बोला- "बूबूबूबूबूबूबूररररररररर...........माखन जैसी तोर बुरिया"

इस बार कंचन ने गनगनाते हुए तुरंत उनके कान में बोला- "लंड.............लोढ़ा जइसन हमरे बाबू क पेल्हर"

(लोढ़ा- सिलबट्टा, जिससे सिल पर मसाला पीसा जाता है)

कंचन को अपने सगे बाबू के मुंह से और नरेन्द्र को अपनी सगी बेटी के मुंह से ये शब्द सुनकर बहुत उत्तेजना हो रही थी, और एक अलग ही प्रकार के रोमांच और वासना से बदन सनसना जा रहा था। दोनों इसी तरह थोड़ी देर तक कामुक उत्तेजक बोल बोल कर गनगनाते रहे फिर नरेन्द्र ने अपना समूचा लंड कंचन की बूर से बाहर निकाला और एक ही झटके में दुबारा जड़ तक पेल दिया, कंचन मारे जोश के थरथरा गयी, नरेन्द्र ने शुरू में आठ दस बार ऐसे ही किया और हर बार दोनों के मुंह से तेज सिसकी और कराह निकल जाती। अब तक नरेन्द्र के मोटे लंड ने अच्छे से बेटी की बूर में जगह बना ली थी बूर काफी देर से पहले ही रिस रही थी इसलिए कंचन को भी कम दर्द हो रहा था, ज्यादा से ज्यादा मीठे मीठे दर्द के अहसास से वो मस्ती में कराह जा रही थी, ऐसा लग रहा था कि उसकी बूर की बरसों की खुजली मिट रही है, अपने ही सगे बाबू का लंड कैसे उसकी बूर की खुजली को मिटा रहा था और कितना अच्छा लग रहा था कि वो इसकी बयां नही कर सकती थी, कैसे उसके बाबू के लंड का मोटा चिकना सुपाड़ा उसकी बूर की प्यासी दीवारों से रगड़ता हुआ बच्चेदानी पर ठोकर मारता और फिर वापस जाता, वो आंखे बंद कर कराहते हुए जन्नत में थी।

अपनी सगी बेटी की मखमली बूर की लज़्ज़त पाकर नरेन्द्र पर भी अब वहशीपन छा रहा था, एक लेवल के बाद बूर को तेज तेज चोदने की इच्छा होने ही लगती है फिर चाहे बूर कितनी ही नाजुक क्यों न हो, और बूर भी एक लेवल के बाद यही चाहती है कि उसको बक्शा न जाय।

नरेन्द्र से रहा नही गया तो उसने झट से अपनी बिटिया की चौड़ी गाँड़ को अपने हांथों से उठाया और गचा गच बेरहमी से बूर को चोदने लगा, कंचन बिन पानी की मछली की तरह तड़पने लगी, कभी वो जोर जोर से सिसकते हुए अपने पैर अपने बाबू के कमर से कस देती, कभी पैर हवा में उठाकर फैला लेती तो कभी कराहते हुए दोनों पैर फैलाकर खटोले के पाटों पर रख लेती, तेज तेज धक्कों के साथ लंड कभी बूर में बिल्कुल सीधा गप्प से जाता और बच्चेदानी से टकराता तो उसके मुंह से "आह बाबू" की तेज सिसकी निकल जाती और कभी सरसरा कर थोड़ा टेढ़ा होकर दीवारों से रगड़ता हुआ जाता तो वो तेजी से कराह कर मस्ती में "ऊऊऊऊऊईईईईईईईईई अम्मा" कहते हुए थोड़ा उछल सी जाती। अपने बाबू का उसकी कमसिन बूर को इस तरह कुचल कुचल कर चोदना उसे अपने बाबू का और दीवाना बना रहा था।

नरेन्द्र काफी तेज तेज धक्के अपनी बेटी की बूर में मार रहा था, कंचन इतनी उत्तेजित हो चुकी थी कि वो भी नीचे से तेज तेज कूल्हे उछालकर अब अपने बाबू का साथ दे रही थी मानो अपनी निगोड़ी बूर जिसने उसे इतने दिन तड़प तड़प के परेशान किया हो उसको पिटवाने में अपने बाबू का साथ दे रही हो "कि हाँ बाबू इसको और चोदो ये मुझे बहुत तड़पाती है, अब छोड़ना मत इसको" अब लाज और शर्म छूमंतर हो चुकी थी दोनों एक दूसरे को इस कदर तेज तेज चोद रहे थे कि पूरा खटोला चर्रर्रर्रर चर्रर्रर्रर करते हुए हिलने लगा, तेज तेज चुदायी की सिसकियां झोपड़ी में गूंजने लगी।

तभी अचानक तेज धक्कों से खटोले के सिरहाने का बायां पाया टूट गया, खटोला पुराना था, उसका पाया टूटा तो खटोला बायीं तरफ से चराचर कर जमीन को छू गया, दोनों का वजन और तेज धक्कों की मार बूर तो झेल रही थी पर खटोला नही झेल पाया, एक साइड से नीचे पूरा झुकने की वजह से तकिया सरककर नीचे रखी टॉर्च से जा टकराया और टॉर्च गोल गोल घूमती हुई लुढ़ककर कुएं में जा गिरी, पर उसका जलना बंद नही हुआ, कुएं में नीचे मिट्टी थोड़ी गीली गीली थी और इत्तेफ़ाक़ देखो टॉर्च गिरी तो उसका पीछे का हिस्सा सीधे जमीन में धंस गया और मुँह ऊपर को था, टॉर्च से रोशनी अब कुएं के अंदर से सीधी झोपड़ी के छप्पर पर टकरा रही थी और झोपड़ी में रोशनी और हल्की हो गयी।

पर फर्क किसे पड़ने वाला था, दोनों बाप बेटी तो एक दूसरे में समाय बस एक दूसरे को भोगे जा रहे थे, जैसे ही खटोला टूटा एक पल के लिए नरेन्द्र रुका पर कंचन से नीचे से गाँड़ उचका के चोदते रहने का इशारा किया और इस रोमांच से नरेन्द्र और कस कस के धक्के अपनी बिटिया की बूर में मारने लगा, खटोला टूटने से कंचन का बदन कुछ टेढ़ा जरूर हो चुका था उसका सर नीचे और कमर से नीचे का हिस्सा ऊपर हो चुका था, नरेन्द्र उसपर चढ़ा ही हुआ था, अब बदन की पोजीशन इस तरह होने से नरेन्द्र का लंड कंचन की बूर में और गहराई में उतरने लगा, जिसने कंचन को दूसरी ही दुनियां में पंहुचा दिया, कुछ ही और तेज धक्कों के बाद दोनों का बदन तेजी से सनसना कर अकड़ने लगा और दोनों मदहोश होकर सीत्कारते हुए एक साथ झड़ने लगे, कंचन कस के अपने बाबू से लिपट गयी, "ओओओओओ ओहहहहहह.......मेरे बाबू.......मैं गयी.........आआआआआहहहहह दैय्या.......बस बाबू.....बस.......बस मेरे बाबू........आपका पेल्हर......कितना मजा देता है.......आआआआआहहहहह....मेरी बूर

कंचन ऐसे ही कराहते हुए काफी देर तक झड़ती रही।

नरेन्द्र ने तो आतिउत्तेजना में अपना समूचा लंड मानो अपनी बेटी की बूर में गाड़ ही दिया था,
"आआआआआहहहहह.......मेरी बेटी......कितनी सुखद है तेरी बूबूबूबूबूबूबूबूबूबूररररररररररररर.........तेरी बुरिया........ये सुख सबको कहाँ मिलता है.........हाय मेरी बिटिया कहते हुए नरेन्द्र अपनी बेटी से कस के लिपटता चला गया।

कंचन झड़ते हुए परम चर्मोत्कर्ष की अनुभूति से सराबोर हो गयी। इतने प्यार और दुलार से अपने बाबू को चूमने लगी जैसे कोई मां अपने बेटे के विजयी होने पर उसे गले लगा कर प्यार करती है, दोनों काफी देर तक हाँफते हुए टूटे खटोले पर लेटे रहे।
 
Well-known member
1,798
2,249
143
Update- 84

थोड़ी देर बाद नरेंद्र कंचन के गालों पर एक चुम्मी लेकर उठा और धोती लपेटकर खड़ा हो गया, कंचन ने भी अपने को ढकते हुए अपने बाबू से पूछा- क्या हुआ बाबू?

नरेन्द्र- वो टॉर्च निकाल दूँ कुएं में से।

और नरेन्द्र पाइप के सहारे कुएं में उतरकर वो टॉर्च ले आया, पैरों और हाँथ में गीली मिट्टी लगने की वजह से वो दरवाजा धीरे से खोलकर बाहर गया और पानी की बड़ी टँकी में हाँथ पैर धो कर आया।

खटोला तो टूट चुका था, कंचन ने उठकर कपड़े पहन लिए थे, पर दोनों का मन अभी भरा नही था, नरेन्द्र ने टूटे खटोले पर पड़े बिस्तर को उठाया और जमीन पर पुआल बिछा के ऊपर वो बिस्तर लगा दिया फिर कंचन को बाहों में भरकर नीचे ही जमीन पर लेट गया, वासना इतनी प्रबल थी कि दोनों ने करीब तीन बार जमकर चुदायी की और फिर रात को ही थके मांदे घर आ गए।

इस तरह कंचन अपने मायके में अपने बाबू से मिलन करके तीन चार दिन बाद वापिस अपने ससुराल आ गयी, इधर नगमा भी अपने बाबू से इन तीन चार दिनों में जमकर चुदी, दोनों पूरी तरह तृप्त दिख रही थी, कंचन ने आकर अपनी ननद को सब विस्तार से बताया और नगमा ने भी अपनी रासलीला अपनी भौजी को सुनाया, अगले ही दिन नगमा अपने ससुराल आ गयी।

इधर नीलम और रजनी भी चुदायी का भरपूर आनंद अपने पिता के साथ ले ही रही थी।

कर्म के मुताबिक रजनी और उदयराज ने कुलवृक्ष के नीचे रात को फिर कई बार संभोग किया।

विक्रमपुर में और जगहों की तरह अब पाप पनपने लगा था पर धीरे धीरे।

तोता उस दिन के बाद अभी तक नही आया था रजनी के मन में न जाने क्यों उसके लिए बेचैनी थी, न जाने क्यों उस तोते की राह वो देख रही थी।

धीरे धीरे एक महीने का वक्त पूर्ण होने वाला था अमावस्या खत्म हो चुकी थी, पूर्णिमा की रात चल रही थी।

उधर जंगल में पूर्वा की, उसकी माँ द्वारा दी जा रही मंत्र दीक्षा पूर्ण होने को आ गयी थी, पूर्वा के चेहरे पर मंत्र प्राप्ति के बाद एक अलग ही तेज था, एक दिन उसने अपनी माँ से कहा- अम्मा वो भैया और मेरी सहेली रजनी अभी तक आये नही, एक महीना तो पूर्ण होने को आया है, है ना।

सुलोचना- आ जायेंगे बिटिया, अभी तो हमे उनके गांव भी चलना है यज्ञ कराने के लिए, हो सकता है दो चार दिन में आ जाएं। मुझे महात्मा ने किसी काम से कल बुलाया है तो मैं कल उनके पास जाउंगी तुम घर पर रहना, मैं उन्हें तुम्हारी मंत्र दीक्षा पूर्ण होने की जानकारी दूंगी, उनके आशीर्वाद से तुम और परिपक्व हो जाओगी।

पूर्वा- अच्छा अम्मा वो भैया किस काम के लिए महात्मा के पास गए थे, क्या वो सफल हुआ?

सुलोचना- बेटी पूरी तरह तो मुझे भी नही पता, पर था तो कोई नेक काम ही, जैसे हम लोगों की भलाई के लिए नेक काम करते हैं, वैसे वो भी अपनी जान जोखिम में डालकर कोई नेक काम को ही अंजाम देने आए थे।

पूर्वा- तो क्या वो सफल हुआ?

सुलोचना- अब ये तो मुझे नही पता, ये तो उन लोगों के आने के बाद ही पता चलेगा, और वैसे भी अभी यज्ञ कराना बाकी है, पता नही वो काम सफल हुआ या नही, ये तो अब दुबारा महात्मा के पास जा के ही पता चलेगा।

पूर्वा- लेकिन अम्मा मैं अपनी मंत्र शक्ति से ये जान सकती हूं कि वो काम सफल हो रहा है या नही?

सुलोचना- क्या बात कर रही है? (सुलोचना थोड़ा चौंक गई), अभी तो तू इतनी परिपक्व हुई नही, फिर कैसे?

पूर्वा- हां अम्मा, इतने दिन लगन से मैंने मंत्रों की सिद्धि ऐसे ही थोड़े न प्राप्त की है, आपके बताए गए मंत्रों को मैंने बहुत लगन से सिद्ध किया है और आपकी कृपा से कुछ और मंत्र का भी अभ्यास करती थी, उसी का परिणाम है। अब आपकी बिटिया इतनी तो काबिल हो गयी है कि शैतान को उसकी मनमानी करने से रोक सके। (पूर्वा ने जानबूझकर एक नई बात अपनी अम्मा के सामने रख दी)


सुलोचना- शैतान को? मनमानी? क्या बोल रही है तू?

पूर्वा- हां अम्मा, जैसे ही मेरी सिद्धि खत्म हुई सबसे पहले मैंने अपने मंत्रों की शक्ति से ये जानने की कोशिश की सिंघारो जंगल में सबसे शक्तिशाली दुष्ट आत्मा कौन सी है, तो मुझे ज्ञात हुआ कि दुष्ट आत्माएं तो बहुत हैं पर सबसे शक्तिशाली एक शैतान है जो श्रापित है, वो दुष्ट तो नही है पर कुछ दुष्ट आत्माओं के बहकावे में आकर महात्मा की आज्ञा के विरुद्ध, छुप छुपकर अपने श्राप से जल्दी मुक्त होने के लिए उन दुष्ट आत्माओं के बहकावे में आकर न जाने कैसा अर्क इकट्ठा कर रहा है, और शायद किसी स्त्री को फंसा रहा है, मैं यह नही जान पाई की वो नारी कौन है जिसको वो फंसा रहा है, और वो कैसा अर्क इकट्ठा कर रहा है, पर इतना तो जरूर है कि वो अब महात्मा का विरोध करने वाला है, वो अपनी शक्ति मजबूत कर रहा है, अपनी टोली बना रहा है दुष्ट आत्माओं के साथ मिलकर।

सुलोचना- क्या बोल रही है तू?

पूर्वा- हां अम्मा ये सच है? इसलिए मैं कह रही थी कि मैं अपनी शक्ति से यह जाने की कोशिश करती हूं कि भैया का कार्य सफल हो रहा है या नही, क्या पता इस शैतान ने उसमें भी कुछ खलल किया हो?

सुलोचना- नही नही बेटी वो इतना बुरा भी नही है, अगर ऐसा होता तो वो उनका साथ न देता।

पूर्वा- उनका साथ?

सुलोचना- हां... ये बात मैं जानती हूं कि महात्मा ने ही उसे उदयराज और रजनी की गुप्त रूप से रक्षा करने का कार्यभार सौंपा था, उसको उसने बखूबी किया है। पर अब वो ऐसा क्यों कर रहा है? महात्मा के विरुद्ध क्यों जा रहा है, उसका श्राप तो अभी दो सौ साल तक बाकी है।

पूर्वा- अपनी मुक्ति के लिए अम्मा....अपनी मुक्ति के लिए, बुरी आत्माओं के बहकावे में आकर, उसको जल्दी मुक्ति चाहिए और शायद और कुछ भी।

सुलोचना- और कुछ भी...और कुछ क्या?

पूर्वा- ये मुझे नही पता अम्मा? पर मंत्र शक्ति से इतना पता चला कि उसको दो चीज़ें चाहिए एक तो मुक्ति जिसको मैं जान गई पर दूसरी नही जान पाई और दूसरी चीज में बुरी आत्माओं का भी हिस्सा होगा, उसी के लालच में आकर वो उसे बहका रही हैं और वो बहक रहा है।

सुलोचना- क्या ये बात महात्मा जी को पता है?

पूर्वा- हां अम्मा पता है, और शायद इसी सिलसिले में उन्होंने आपको बुलाया हो।

सुलोचना- हो सकता है, पर इतनी जानकारी तुझे कैसे मेरी पुत्री।

पूर्वा- मंत्र शक्ति से अम्मा....मंत्र शक्ति से.....पर फिर भी मैं अभी कच्ची हूँ, अभी मुझे और सीखना है, क्योंकि पूरी पूरी जानकारी मुझे भी नही हो पाती कुछ ही पता लग पाता है ऊपर ऊपर, मुझे और यज्ञ करना है....और सीखना है।

सुलोचना- ठीक है मेरी बेटी सीख.... मन लगा के सीख और जनमानस की रक्षा कर।

पूर्वा- ठीक है अम्मा मैं अपने मंत्र से ये जानने की कोशिश करती हूं कि भैया की मेहनत सफल हो रही है या नही।

सुलोचना- ठीक है तू कोशिश कर।

पूर्वा ने रात को अपनी मंत्र शक्तियों को जागृत करके ये जाना कि उदयराज की मेहनत रंग लाई और उनकी समस्या धीरे धीरे ठीक हो रही है पर अभी तंत्र मंत्र की दुनियां में कच्ची होने की वजह से वो ये नही जान पायी की समस्या के हल में करना क्या था?। फिर भी उसने अपनी अम्मा को बताया तो दोंनो खुश हो गयी।

सुलोचना- सफलता तो मिल रही है न धीरे धीरे ही सही।

पूर्वा- हां अम्मा मिल रही है सफलता। मुझे लगता है यज्ञ पूर्ण होने पर समस्या बिल्कुल ठीक हो जाएगी।

सुलोचना- हम्म्म्म....अच्छा अब मैं जाती हूँ महात्मा के पास शाम तक आ जाउंगी तू अपना ख्याल रखना।

पूर्वा- हां ठीक है अम्मा

सुलोचना- तू उदास सी क्यों है थोड़ा थोड़ा?....ऐसा मुझे लग रहा है।

पूर्वा- पता नही क्यों मुझे भैया की याद आ रही है, आप और भैया मुझे एक जैसे लगते हैं।

सुलोचना- मतलब?

पूर्वा- मतलब यही की अम्मा जैसे आपने जनमानस के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया वैसे ही भैया ने भी देखो कैसे पूरे गांव के लिए इतना जोखिम भरा काम किया, हमारी और उनकी नीयत एक जैसी है न अम्मा।


सुलोचना मुस्कुरा उठी- हाँ बिटिया ये बात तो तूने सही ही कही है, जो इंसान जिस नीयत का होता है उसी नीयत के इंसान से वो एक जुड़ाव महसूस करता है, मुझे भी उन लोगों की याद आती है और अब तो वो हमारे और हम उनके परिवार के सदस्य जैसे हैं, तू चिंता मत कर कुछ दिन में तेरे भैया जरूर आ जाएंगे तुझे और मुझे लेने, फिर तू रह लेना उनके साथ उनके गांव में।

पूर्वा के चेहरे पर खुशी की चमक आ गयी ये सुनकर- आप भी रहोगी अम्मा मेरे साथ।

सुलोचना- तो यहां राहगीरों को कौन रास्ता दिखायेगा?, मैं कुछ दिन रहकर यज्ञ करवा के चली आऊंगी।

सुलोचना ने पूर्वा को बाहों में लेकर प्यार से थपथपाया, वो जानती थी कि बचपन से ही एक जगह रहते रहते पूर्वा ऊब चुकी है, उदयराज और रजनी ही अब तक के ऐसे राहगीर थे जिन्होंने सुलोचना और पूर्वा को अपना परिवार मान लिया था और अपने साथ चलने के लिए कहा था, वरना आजतक ऐसा किसी ने नही किया था, ऐसा नही था कि सुलोचना और पूर्वा किसी के घर जाना चाहते थे या वो किसी पर निर्भर होना चाहते थे, वो तो खुद इतने शक्तिशाली और काबिल थे कि दूसरों का सहारा बनते थे पर न जाने कैसा लगाव हो गया था उदयराज और रजनी से।

सुलोचना- चिंता मत कर तेरे भैय्या आ जायेंगे जल्द ही।

पूर्वा मां की दिलासा से खुश हो गयी, कहते हैं कि इंसान चाहे जितना भी परिपक्व और मजबूत हो जाये उसके सीने में जो दिल है वो उसे बच्चा बना ही देता है, वही हाल पूर्वा का था, इतनी गुणी और मंत्र विद्या में परिपूर्ण थी, ऊपर से देखने में एक गंभीर और सहनशील साहसी लड़की होते हुए भी अपने दिल के आगे हार गई थी अपने भैया का साथ पाने के लिए बेचैन थी, वो खुद भी नही समझ पा रही थी कि आखिर वो इतनी बेचैन क्यों है?


सुलोचना पूर्वा को घर की जिम्मेदारी देकर महात्मा के पास चली जाती है।
 
Well-known member
1,798
2,249
143
Update- 85


महात्मा के दो सेवक सुलोचना को लेने के लिए आये थे सुलोचना उनके साथ महात्मा से मिलने चली गयी, गुफा में जाते ही महात्मा ने सुलोचना को अपने पास बैठाया और आशीर्वाद देते हुए दैविक पेय पीने को दिया और बोले- पुत्री मैंने तुम्हें आज यहां कुछ बताने के लिए और एक जिम्मेदारी तुम्हें सौंपने के लिए बुलाया है, तुम मेरी सबसे परम शिष्या रही हो, तुम्हारी भावना जनमानस के कल्याण के अनुरूप है, तुमने तन मन से सदैव मेरे बताए हुए आदर्श, आज्ञा का पालन किया है इसलिए मुझे तुम सबसे प्यारी हो और तुमपर भरोसा है कि यह काम सिर्फ तुम ही कर सकती हो।


सुलोचना हाँथ जोड़कर- जी महात्मन कहिए, आजतक मैंने आपकी कोई आज्ञा का उलंघन नही किया है, जैसा आपने कहा जैसा अपने सिखाया बताया मैंने वैसा ही किया है और आगे भी करूँगी, आपके बताए हुए रास्ते पर चलकर ही आज मैं यहां तक पहुंची हूँ और आज मेरी पुत्री पूर्वा भी आपके आशीर्वाद से मंत्र विद्या में कुशल होती जा रही है।


महात्मा- मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है तुम्हारी पुत्री अवश्य एक महान तांत्रिक शक्तियां प्राप्त कर तुम्हारे यश को आगे बढ़ाते हुए जनमानस की सेवा करेगी।


सुलोचना हाँथ जोड़े बैठी थी


महात्मा- पुत्री बात ऐसी है कि अभी तक जो शांति बनी हुई थी वो अब खंडित होती जा रही है हमे उसपर काम करना है।


सुलोचना- मैं समझी नही महात्मा जी


महात्मा- ये तो तुम जानती ही हो कि सिंघारो जंगल में एक शैतान जो श्रापित है वो एक पेड़ के रूप में वहां सजा काट रहा है, अभी तक वो मेरी आज्ञा का पालन करता था पर अब वो बुरी आत्माओं के बहकावे में आकर अपनी सजा पूर्ण होने से पहले ही मुक्त होना चाहता है, हालांकि वो बहुत पहले से श्रापित है और वो क्यों श्रापित है ये तो मुझे भी नही पता, बस इतना ही जानता हूँ कि बहुत पहले से ही वो किसी ऋषि द्वारा श्रापित करके यहां बांध दिया गया था, जब मैं पहली बार इन पहाड़ियों पर बसने के लिए उस रास्ते से इधर की तरफ आ रहा था तो उसने मुझे रास्ता बताकर मेरी मदद की थी, यहां बसने के बाद बदले में मैंने उसे अच्छा शैतान जानकर अपने मंत्रों की शक्ति से उसपर लगे श्राप के कुछ बंधन को काट दिया ताकि वह थोड़ा इधर उधर घूम फिर सके, पर उसने वचन दिया था कि वो किसी का अहित नही करेगा।


हालांकि उसने अभी तक किसी का अहित नही किया है, परंतु बुरी आत्माओं के बहकावे में आकर समय से पुर्व अपनी मुक्ति के लिए उनका साथ लेकर वो जो कर रहा है वो गलत है, मैं जानता हूँ कि वो समय से पूर्व मुक्त नही हो सकता, उस ऋषि के श्राप में बहुत शक्ति है, परंतु बहकावे में आकर वो जैसी जैसी बुरी आत्मायों को अपनी शक्तियां देकर पाप कर चुकी स्त्री की योनि रस लाने के लिए भेज रहा है वो गलत है, क्योंकि ये बुरी आत्माएं किसी की नही होती, ये दुष्ट होती है, ये किसी के शरीर में प्रवेश कर जीवन भर उसे परेशान कर सकती है, किसी को डरा सकती हैं, किसी को पागल कर सकती है, बीमार कर सकती है, इनका कोई भरोसा नही होता, ये जान लेने में भी परहेज नही करती, इन्हें इन्ही सब कामो में मजा आता है।


वो बुरी आत्माओं को अब ज्यादा से ज्यादा हर जगह भेज रहा है ताकि वो पाप कर चुकी या उसके विषय में सोच रही स्त्री की योनि का रस लाकर इकठ्ठा करें और फिर वो उस रस को यज्ञ कुंड में डालकर अपनी मुक्ति का मार्ग खोल सकें। पर जिस जिस स्त्री की योनि का रस उस यज्ञ कुंड में गया वो स्त्री इन बुरी आत्माओं की गुलाम हो जाएंगी, फिर ये आत्माएं उनपर अत्याचार करते हुए उन्हें भोगेंगी और फिर उन्हें छुड़ाना मुश्किल हो जाएगा। वो शैतान ये समझ नही पाया और बुरी आत्माओं के बहकावे में आ गया कि वो मुक्त हो जाएगा, वो मुक्त तो नही होगा पर लाखों मानव स्त्रियां इन बुरी आत्माओं के चंगुल में फंस जाएंगी, वो यज्ञ शैतान ही कर सकता है ये आत्मायें नही कर सकती, इसलिए इन आत्माओं ने उसको बहकाया है और वो बहक गया है, वो ये नही समझ पा रहा है कि ये बुरी आत्माएं उससे अपना काम करवा रही है न कि उसका काम कर रही है, वो अपनी शक्तियां इन आत्माओं को देकर पूरी दुनियां में भेज रहा है ताकि वो ऐसी स्त्रियां जो पाप कर रही है या कर चुकी है उन्हें खोजकर उनकी योनि का रस चुराकर ला सके।


मैं चाहूं तो शैतान को पूरी तरह बांध कर विवश कर सकता हूँ पर मैंने उसे एक जो जिम्मेदारी दी है कि उदयराज और रजनी के गांव में जब तक उनका मकसद पूरा नही हो जाता तुम उनकी रक्षा करोगे, और शैतान इसी बात का फायदा उठाकर की मैं अभी उसको पूरी तरह नही बांध सकता हूँ, अपनी मुक्ति का मार्ग खोज रहा है।


(सुलोचना आज पहली बार महात्मा के मुंह से योनि शब्द सुनकर लजा सी गयी, आज वर्षों बाद पहली बार उसे अजीब सा महसूस हुआ, उसके बदन में हल्की गुदगुदी हुई, महात्मा तो सीधे बोलने में लगे हुए थे, वो तो सुलोचना को अपनी शिष्या समझते हुए तपाक से बोले जा रहे थे पर "योनि रस" शब्द ने सुलोचना के अंदर बरसों से सो चुकी भावनाओं को जगा दिया था, शर्म उसके चेहरे पर झलक रही थी)


महात्मा- मुझे इससे परहेज नही है की वो अपनी मुक्ति का मार्ग खोजे पर इसके लिए वो जिन जिन बुरी आत्माओं को बढ़ावा दे रहा है वो जनमानस का बहुत अहित करेंगी।


सुलोचना महात्मा के मुँह से ये सब सुनकर चकित रह गयी और बोली- महात्मा जी कुछ बातें तो मैं जानती थी पर पूरी तरह नही जानती थी कि इतना बड़ा षडयंत्र चल रहा है, पर ये लोग ऐसी स्त्री को खोजते है जो पाप कर चुकी होती है मतलब कैसा पाप? मैं ठीक से समझी नही?


महात्मा- पुत्री पाप से मेरा अर्थ संभोग से है, ऐसा संभोग जो सामाजिक नियमो के अनुसार अनैतिक है, 'एक अनैतिक संभोग" जिसको समाज में गलत कहा गया है, पर क्योंकि इसमें अपूर्व सुख की अनुभूति होती है जिसको सोचने या करने से योनि से बड़ी मनमोहक गंध के साथ रस निकलता है, स्त्री संभोगरत हो या ऐसे पुरुष के साथ संभोग करने की इच्छा मन में लिए तरस रही हो जिससे उसका खून का रिश्ता हो या समाज में वो अनैतिक हो जैसे पिता, पुत्र, भाई, या कोई रिश्तेदार, तो उसकी योनि जो काम रस छोड़ते हुए रिसती है वही रस इन बुरी आत्माओं को चाहिए होता है, उसे सूंघकर इन्हें तृप्ति मिलती है।


(महात्मा के मुँह से ये सुनते ही सुलोचना का चेहरा शर्म से लाल हो गया, बड़ी मुश्किल से वो अपनी भावनाओं को छुपाकर नीचे देखने लगी)


महात्मा- इन आत्माओं को कुल 100 करोड़ योनि का रस इकट्ठा करना है और अभी तक ये केवल 31000 योनि रस इकट्ठा कर पाई हैं।


सुलोचना- ऐसा क्यों महात्मा जी, ये तो आत्माएं है बहुत तेजी से ये काम कर सकती है।


महात्मा- कर सकती है पर योनि भी तो तैयार मिलनी चाहिए न, जिस वक्त स्त्री अनैतिक संभोग को सोचते हुए उसकी अग्नि में जलेगी, या संभोग कर रही होगी, तो ही उसकी योनि से वो रस निकलेगा, इसे खोजने में वक्त लगता है, इसलिए इसमें वक्त लगेगा।


सुलोचना- तो मुझे क्या करना होगा महात्मन।


महात्मा- पुत्री तुम्हें इन आत्माओं की पहचान कर उन्हें मंत्र की शक्ति से पकड़कर एक नारियल में बांधकर जलाना होगा, पर इन आत्माओं को पहचानना बड़ा मुश्किल है, एक मंत्र को जागृत कर पहले तो एक एक को ढूंढना है फिर दूसरे मंत्र से उन्हें लालच देकर अपने पास बुलाना है, जब ये आएं तो फिर जल्दी से मंत्र से नारियल में समाहित कर इन्हें बांध कर जलाना होगा, परंतु उन्हें बुलाना कठिन है, और मैं अन्य दूसरे कार्य में व्यस्त होने की वजह से इन कार्य को वक्त नही दे पा रहा हूँ, इसलिए पुत्री तुम्हे बुलाया है ये कार्यभार तुम्हें सौपना चाहता हूं, क्योंकि मेरे बाद इस कार्य को तुम ही बखूबी कर सकती हो।


सुलोचना- आपकी आज्ञा सर आंखों पर महात्मा जी, एक पुरुष की अपेक्छा स्त्री के लिए इन बुरी आत्माओं को बुलाना बहुत आसान है, मुझे इनकी पहचान करने की भी जरूरत नही है, ये अपने आप आएंगी।


महात्मा चौंक से गए- कैसे पुत्री?....कैसे? बिना मंत्र के कैसे संभव है की ये आत्माएं तुम्हारे पास स्वयं आएं?


सुलोचना- है महात्मा जी....है.....देखो अभी आपने कहा कि ये आत्माएं ऐसी स्त्री को खोजती है जो पाप कर चुकी है या उसके विषय में सोचकर अति उत्तेजित होती है जिससे उसकी यो......


(योनि शब्द बोलने से पहले सुलोचना शर्म से नीचे देखने लगी, महात्मा ने उसे समझाया कि अच्छे उद्देश्य से किया गया कार्य या बातें गलत नही होती, तो पुत्री शर्माओ मत...और कहो....क्या कहना चाह रही थी)


सुलोचना- जिससे उसकी योनि से काम रस निकलता है और उसी को लेने ये आत्माएं आती है, तो स्त्री तो मैं भी हूं न, बस मुझे अनैतिक मिलन के विषय में सोचते हुए उसमे डूबना है और फिर प्राकृतिक रूप से वही प्रक्रिया होगी जो होता है, जैसे ही कोई आत्मा मुझे ढूंढते हुए मुझ तक आएगी फिर वो जिंदा बचकर जा नही पाएगी, अब क्योंकि वो मेरा रस ले ही नही जा पाएगी तो दूसरी आत्मा उसे लेने आएगी और फिर वो भी जलाकर मुक्त करा दी जाएगी, तो मेरे लिए ये काम बहुत आसान है महात्मा जी।


महात्मा ने उठकर सुलोचना के सर पर प्यार से हाँथ फेरा और उसे गले लगा लिया- तुम सच में बहुत महान स्त्री हो, मुझे गर्व है कि तुम मेरी शिष्या हो, सच में तुमने अपना जीवन जनमानस के लिए न्यौछावर कर दिया है, आज तुमने मेरी गुरुदक्षिणा दे दी पुत्री....दे दी, मेरा आशीर्वाद सदैव तेरे साथ रहेगा।


महात्मा ने सुलोचना को आशीर्वाद दिया और फिर अपनी जगह पर बैठ गए।


महात्मा- पर पुत्री आत्माएं बहुत है, तुम अकेले कितना करोगी, अगर मैं भी स्त्री होता तो हम दोनों साथ में मिलकर इन सारी बुरी आत्माओं को मौत के घाट उतार देते।


सुलोचना- महात्मा जी मैं अकेली कहाँ हूँ, आप ये कैसे भूल गए कि पूर्वा मेरी पुत्री भी है, वो भी मेरा साथ देगी, आखिर वो भी तो स्त्री ही है न, वो तो अकेले ही इन सबका सफाया कर देगी, आपके आशीर्वाद का असर उसपर बहुत है, वो बहुत गुस्सैल भी है महात्मा जी, पर दिल की बहुत साफ और निश्छल है।


महात्मा- मैं जानता हूँ पुत्री, ईश्वर की कृपा और मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम दोनों के साथ है।


महात्मा- तो पुत्री इस कार्य को जल्दी ही शुरू करो, क्योंकि मनुष्य योनि का सुख भोगने की लालसा लिए बड़ी तेजी से बुरी आत्माएं इसमें शामिल हो रही हैं।


सुलोचना- आप चिंता मत कीजिये महात्मा जी, इन आत्माओं को अच्छे से योनि का सुख भोगवा दूंगी मैं, अब आपने ये काम मुझे सौंप दिया है न अब आप निश्चिन्त रहो। पर हो सकता है अभी हमे विक्रमपुर जाना पड़ जाए, वहां पर भी एक यज्ञ कराना है, पर कोई बात नही जहां भी हम दोनों रहेंगी बुरी आत्माओं को मौत के घाट उतारती रहेंगी।


महात्मा- सदा सुखी रहो मेरी पुत्री, आज मैं बहुत खुश हुआ, तुमने मेरा बोझ हल्का कर दिया आज।


सुलोचना- ये तो मेरा फ़र्ज़ है महात्मा जी, आपका आशीर्वाद बना रहे.....अच्छा और दूसरी बात कौन सी है जो आप कहना चाहते थे।


महात्मा- वो मैं बाद में बताऊंगा पहले तुम कुछ खा पी ले और आराम कर ले।


सुलोचना- जो आज्ञा महात्मा जी


इतना कहकर महात्मा जी उठकर चले गए और सुलोचना गुफा में बने दूसरे कक्ष में आकर आराम करने लगी, दासियाँ उसके पैर दबाने लगी, उन्होंने सुलोचना को फल और दिव्य रस पीने को दिया, सुलोचना ने वो ग्रहण किया और दुबारा लेटकर आराम करने लगी।
 
Well-known member
1,798
2,249
143
Update- 85


महात्मा के दो सेवक सुलोचना को लेने के लिए आये थे सुलोचना उनके साथ महात्मा से मिलने चली गयी, गुफा में जाते ही महात्मा ने सुलोचना को अपने पास बैठाया और आशीर्वाद देते हुए दैविक पेय पीने को दिया और बोले- पुत्री मैंने तुम्हें आज यहां कुछ बताने के लिए और एक जिम्मेदारी तुम्हें सौंपने के लिए बुलाया है, तुम मेरी सबसे परम शिष्या रही हो, तुम्हारी भावना जनमानस के कल्याण के अनुरूप है, तुमने तन मन से सदैव मेरे बताए हुए आदर्श, आज्ञा का पालन किया है इसलिए मुझे तुम सबसे प्यारी हो और तुमपर भरोसा है कि यह काम सिर्फ तुम ही कर सकती हो।


सुलोचना हाँथ जोड़कर- जी महात्मन कहिए, आजतक मैंने आपकी कोई आज्ञा का उलंघन नही किया है, जैसा आपने कहा जैसा अपने सिखाया बताया मैंने वैसा ही किया है और आगे भी करूँगी, आपके बताए हुए रास्ते पर चलकर ही आज मैं यहां तक पहुंची हूँ और आज मेरी पुत्री पूर्वा भी आपके आशीर्वाद से मंत्र विद्या में कुशल होती जा रही है।


महात्मा- मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है तुम्हारी पुत्री अवश्य एक महान तांत्रिक शक्तियां प्राप्त कर तुम्हारे यश को आगे बढ़ाते हुए जनमानस की सेवा करेगी।


सुलोचना हाँथ जोड़े बैठी थी


महात्मा- पुत्री बात ऐसी है कि अभी तक जो शांति बनी हुई थी वो अब खंडित होती जा रही है हमे उसपर काम करना है।


सुलोचना- मैं समझी नही महात्मा जी


महात्मा- ये तो तुम जानती ही हो कि सिंघारो जंगल में एक शैतान जो श्रापित है वो एक पेड़ के रूप में वहां सजा काट रहा है, अभी तक वो मेरी आज्ञा का पालन करता था पर अब वो बुरी आत्माओं के बहकावे में आकर अपनी सजा पूर्ण होने से पहले ही मुक्त होना चाहता है, हालांकि वो बहुत पहले से श्रापित है और वो क्यों श्रापित है ये तो मुझे भी नही पता, बस इतना ही जानता हूँ कि बहुत पहले से ही वो किसी ऋषि द्वारा श्रापित करके यहां बांध दिया गया था, जब मैं पहली बार इन पहाड़ियों पर बसने के लिए उस रास्ते से इधर की तरफ आ रहा था तो उसने मुझे रास्ता बताकर मेरी मदद की थी, यहां बसने के बाद बदले में मैंने उसे अच्छा शैतान जानकर अपने मंत्रों की शक्ति से उसपर लगे श्राप के कुछ बंधन को काट दिया ताकि वह थोड़ा इधर उधर घूम फिर सके, पर उसने वचन दिया था कि वो किसी का अहित नही करेगा।


हालांकि उसने अभी तक किसी का अहित नही किया है, परंतु बुरी आत्माओं के बहकावे में आकर समय से पुर्व अपनी मुक्ति के लिए उनका साथ लेकर वो जो कर रहा है वो गलत है, मैं जानता हूँ कि वो समय से पूर्व मुक्त नही हो सकता, उस ऋषि के श्राप में बहुत शक्ति है, परंतु बहकावे में आकर वो जैसी जैसी बुरी आत्मायों को अपनी शक्तियां देकर पाप कर चुकी स्त्री की योनि रस लाने के लिए भेज रहा है वो गलत है, क्योंकि ये बुरी आत्माएं किसी की नही होती, ये दुष्ट होती है, ये किसी के शरीर में प्रवेश कर जीवन भर उसे परेशान कर सकती है, किसी को डरा सकती हैं, किसी को पागल कर सकती है, बीमार कर सकती है, इनका कोई भरोसा नही होता, ये जान लेने में भी परहेज नही करती, इन्हें इन्ही सब कामो में मजा आता है।


वो बुरी आत्माओं को अब ज्यादा से ज्यादा हर जगह भेज रहा है ताकि वो पाप कर चुकी या उसके विषय में सोच रही स्त्री की योनि का रस लाकर इकठ्ठा करें और फिर वो उस रस को यज्ञ कुंड में डालकर अपनी मुक्ति का मार्ग खोल सकें। पर जिस जिस स्त्री की योनि का रस उस यज्ञ कुंड में गया वो स्त्री इन बुरी आत्माओं की गुलाम हो जाएंगी, फिर ये आत्माएं उनपर अत्याचार करते हुए उन्हें भोगेंगी और फिर उन्हें छुड़ाना मुश्किल हो जाएगा। वो शैतान ये समझ नही पाया और बुरी आत्माओं के बहकावे में आ गया कि वो मुक्त हो जाएगा, वो मुक्त तो नही होगा पर लाखों मानव स्त्रियां इन बुरी आत्माओं के चंगुल में फंस जाएंगी, वो यज्ञ शैतान ही कर सकता है ये आत्मायें नही कर सकती, इसलिए इन आत्माओं ने उसको बहकाया है और वो बहक गया है, वो ये नही समझ पा रहा है कि ये बुरी आत्माएं उससे अपना काम करवा रही है न कि उसका काम कर रही है, वो अपनी शक्तियां इन आत्माओं को देकर पूरी दुनियां में भेज रहा है ताकि वो ऐसी स्त्रियां जो पाप कर रही है या कर चुकी है उन्हें खोजकर उनकी योनि का रस चुराकर ला सके।


मैं चाहूं तो शैतान को पूरी तरह बांध कर विवश कर सकता हूँ पर मैंने उसे एक जो जिम्मेदारी दी है कि उदयराज और रजनी के गांव में जब तक उनका मकसद पूरा नही हो जाता तुम उनकी रक्षा करोगे, और शैतान इसी बात का फायदा उठाकर की मैं अभी उसको पूरी तरह नही बांध सकता हूँ, अपनी मुक्ति का मार्ग खोज रहा है।


(सुलोचना आज पहली बार महात्मा के मुंह से योनि शब्द सुनकर लजा सी गयी, आज वर्षों बाद पहली बार उसे अजीब सा महसूस हुआ, उसके बदन में हल्की गुदगुदी हुई, महात्मा तो सीधे बोलने में लगे हुए थे, वो तो सुलोचना को अपनी शिष्या समझते हुए तपाक से बोले जा रहे थे पर "योनि रस" शब्द ने सुलोचना के अंदर बरसों से सो चुकी भावनाओं को जगा दिया था, शर्म उसके चेहरे पर झलक रही थी)


महात्मा- मुझे इससे परहेज नही है की वो अपनी मुक्ति का मार्ग खोजे पर इसके लिए वो जिन जिन बुरी आत्माओं को बढ़ावा दे रहा है वो जनमानस का बहुत अहित करेंगी।


सुलोचना महात्मा के मुँह से ये सब सुनकर चकित रह गयी और बोली- महात्मा जी कुछ बातें तो मैं जानती थी पर पूरी तरह नही जानती थी कि इतना बड़ा षडयंत्र चल रहा है, पर ये लोग ऐसी स्त्री को खोजते है जो पाप कर चुकी होती है मतलब कैसा पाप? मैं ठीक से समझी नही?


महात्मा- पुत्री पाप से मेरा अर्थ संभोग से है, ऐसा संभोग जो सामाजिक नियमो के अनुसार अनैतिक है, 'एक अनैतिक संभोग" जिसको समाज में गलत कहा गया है, पर क्योंकि इसमें अपूर्व सुख की अनुभूति होती है जिसको सोचने या करने से योनि से बड़ी मनमोहक गंध के साथ रस निकलता है, स्त्री संभोगरत हो या ऐसे पुरुष के साथ संभोग करने की इच्छा मन में लिए तरस रही हो जिससे उसका खून का रिश्ता हो या समाज में वो अनैतिक हो जैसे पिता, पुत्र, भाई, या कोई रिश्तेदार, तो उसकी योनि जो काम रस छोड़ते हुए रिसती है वही रस इन बुरी आत्माओं को चाहिए होता है, उसे सूंघकर इन्हें तृप्ति मिलती है।


(महात्मा के मुँह से ये सुनते ही सुलोचना का चेहरा शर्म से लाल हो गया, बड़ी मुश्किल से वो अपनी भावनाओं को छुपाकर नीचे देखने लगी)


महात्मा- इन आत्माओं को कुल 100 करोड़ योनि का रस इकट्ठा करना है और अभी तक ये केवल 31000 योनि रस इकट्ठा कर पाई हैं।


सुलोचना- ऐसा क्यों महात्मा जी, ये तो आत्माएं है बहुत तेजी से ये काम कर सकती है।


महात्मा- कर सकती है पर योनि भी तो तैयार मिलनी चाहिए न, जिस वक्त स्त्री अनैतिक संभोग को सोचते हुए उसकी अग्नि में जलेगी, या संभोग कर रही होगी, तो ही उसकी योनि से वो रस निकलेगा, इसे खोजने में वक्त लगता है, इसलिए इसमें वक्त लगेगा।


सुलोचना- तो मुझे क्या करना होगा महात्मन।


महात्मा- पुत्री तुम्हें इन आत्माओं की पहचान कर उन्हें मंत्र की शक्ति से पकड़कर एक नारियल में बांधकर जलाना होगा, पर इन आत्माओं को पहचानना बड़ा मुश्किल है, एक मंत्र को जागृत कर पहले तो एक एक को ढूंढना है फिर दूसरे मंत्र से उन्हें लालच देकर अपने पास बुलाना है, जब ये आएं तो फिर जल्दी से मंत्र से नारियल में समाहित कर इन्हें बांध कर जलाना होगा, परंतु उन्हें बुलाना कठिन है, और मैं अन्य दूसरे कार्य में व्यस्त होने की वजह से इन कार्य को वक्त नही दे पा रहा हूँ, इसलिए पुत्री तुम्हे बुलाया है ये कार्यभार तुम्हें सौपना चाहता हूं, क्योंकि मेरे बाद इस कार्य को तुम ही बखूबी कर सकती हो।


सुलोचना- आपकी आज्ञा सर आंखों पर महात्मा जी, एक पुरुष की अपेक्छा स्त्री के लिए इन बुरी आत्माओं को बुलाना बहुत आसान है, मुझे इनकी पहचान करने की भी जरूरत नही है, ये अपने आप आएंगी।


महात्मा चौंक से गए- कैसे पुत्री?....कैसे? बिना मंत्र के कैसे संभव है की ये आत्माएं तुम्हारे पास स्वयं आएं?


सुलोचना- है महात्मा जी....है.....देखो अभी आपने कहा कि ये आत्माएं ऐसी स्त्री को खोजती है जो पाप कर चुकी है या उसके विषय में सोचकर अति उत्तेजित होती है जिससे उसकी यो......


(योनि शब्द बोलने से पहले सुलोचना शर्म से नीचे देखने लगी, महात्मा ने उसे समझाया कि अच्छे उद्देश्य से किया गया कार्य या बातें गलत नही होती, तो पुत्री शर्माओ मत...और कहो....क्या कहना चाह रही थी)


सुलोचना- जिससे उसकी योनि से काम रस निकलता है और उसी को लेने ये आत्माएं आती है, तो स्त्री तो मैं भी हूं न, बस मुझे अनैतिक मिलन के विषय में सोचते हुए उसमे डूबना है और फिर प्राकृतिक रूप से वही प्रक्रिया होगी जो होता है, जैसे ही कोई आत्मा मुझे ढूंढते हुए मुझ तक आएगी फिर वो जिंदा बचकर जा नही पाएगी, अब क्योंकि वो मेरा रस ले ही नही जा पाएगी तो दूसरी आत्मा उसे लेने आएगी और फिर वो भी जलाकर मुक्त करा दी जाएगी, तो मेरे लिए ये काम बहुत आसान है महात्मा जी।


महात्मा ने उठकर सुलोचना के सर पर प्यार से हाँथ फेरा और उसे गले लगा लिया- तुम सच में बहुत महान स्त्री हो, मुझे गर्व है कि तुम मेरी शिष्या हो, सच में तुमने अपना जीवन जनमानस के लिए न्यौछावर कर दिया है, आज तुमने मेरी गुरुदक्षिणा दे दी पुत्री....दे दी, मेरा आशीर्वाद सदैव तेरे साथ रहेगा।


महात्मा ने सुलोचना को आशीर्वाद दिया और फिर अपनी जगह पर बैठ गए।


महात्मा- पर पुत्री आत्माएं बहुत है, तुम अकेले कितना करोगी, अगर मैं भी स्त्री होता तो हम दोनों साथ में मिलकर इन सारी बुरी आत्माओं को मौत के घाट उतार देते।


सुलोचना- महात्मा जी मैं अकेली कहाँ हूँ, आप ये कैसे भूल गए कि पूर्वा मेरी पुत्री भी है, वो भी मेरा साथ देगी, आखिर वो भी तो स्त्री ही है न, वो तो अकेले ही इन सबका सफाया कर देगी, आपके आशीर्वाद का असर उसपर बहुत है, वो बहुत गुस्सैल भी है महात्मा जी, पर दिल की बहुत साफ और निश्छल है।


महात्मा- मैं जानता हूँ पुत्री, ईश्वर की कृपा और मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम दोनों के साथ है।


महात्मा- तो पुत्री इस कार्य को जल्दी ही शुरू करो, क्योंकि मनुष्य योनि का सुख भोगने की लालसा लिए बड़ी तेजी से बुरी आत्माएं इसमें शामिल हो रही हैं।


सुलोचना- आप चिंता मत कीजिये महात्मा जी, इन आत्माओं को अच्छे से योनि का सुख भोगवा दूंगी मैं, अब आपने ये काम मुझे सौंप दिया है न अब आप निश्चिन्त रहो। पर हो सकता है अभी हमे विक्रमपुर जाना पड़ जाए, वहां पर भी एक यज्ञ कराना है, पर कोई बात नही जहां भी हम दोनों रहेंगी बुरी आत्माओं को मौत के घाट उतारती रहेंगी।


महात्मा- सदा सुखी रहो मेरी पुत्री, आज मैं बहुत खुश हुआ, तुमने मेरा बोझ हल्का कर दिया आज।


सुलोचना- ये तो मेरा फ़र्ज़ है महात्मा जी, आपका आशीर्वाद बना रहे.....अच्छा और दूसरी बात कौन सी है जो आप कहना चाहते थे।


महात्मा- वो मैं बाद में बताऊंगा पहले तुम कुछ खा पी ले और आराम कर ले।


सुलोचना- जो आज्ञा महात्मा जी


इतना कहकर महात्मा जी उठकर चले गए और सुलोचना गुफा में बने दूसरे कक्ष में आकर आराम करने लगी, दासियाँ उसके पैर दबाने लगी, उन्होंने सुलोचना को फल और दिव्य रस पीने को दिया, सुलोचना ने वो ग्रहण किया और दुबारा लेटकर आराम करने लगी।
 
Well-known member
1,798
2,249
143
Update- 86

सुलोचना लेटे लेटे काफी देर सोचती रही, फिर उसकी हल्की सी आंख लग गयी, अभी आराम करते हुए करीब एक घंटा ही हुआ होगा कि एक सेविका ने आकर उसे उठाया और बोली- आपको महात्मा जी ने बुलाया है।

सुलोचना- हां चलिए

सुलोचना दुबारा महात्मा जी के सामने आकर बैठ गयी।

महात्मा- आराम कर लिया न पुत्री?

सुलोचना- हां महात्मा जी, अब आप बताइए, मुझे दूसरी कौन जी जिम्मेदारी पूरी करनी होगी?

महात्मा- पुत्री, मैंने तुम्हें यहां आज बुलाया तो था कि मैं तुम्हे दो कार्य दूंगा, पर अभी तुम केवल एक ही कार्य पर ध्यान दो, इसके पूरे हो जाने पर ही दूसरा कार्य संभालना, वो कार्य इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।

सुलोचना- जी महात्मा जी, आपकी जैसी आज्ञा, पर दिए गए कार्य का अभी तो कुछ पता नही की ये कितने वक्त में खत्म हो पायेगा, क्योंकि आत्माओं का कुछ पता नही की उनकी संख्या कितनी है?

महात्मा मुस्कुराए और बोले- कितनी भी हो उसकी संख्या मैं जानता हूँ तुम जल्द से जल्द कार्य पूर्ण करने की पूरी कोशिश करोगी?

सुलोचना मुस्कुराई और बोली- महात्मा जी ये तो आपका आशीर्वाद है, आपकी ही दी हुई शक्ति और शिक्षा है, जिसके बल पर ये संभव हो पायेगा, परंतु मेरे मन में न जाने क्यों दूसरे कार्य को जानने का कौतूहल हो रहा है?

महात्मा- थोड़ा धैर्य पुत्री, समय आने पर वो भी बता दूंगा? चलो ठीक है मैं तुम्हें वह दूसरा कार्य इस दिए गए कार्य के आधे समापन पर बताऊंगा।

सुलोचना- जैसी आपकी मर्जी महात्मा जी।

दिन का दूसरा पहर शुरू हो चुका था, सुलोचना महात्मा जी से विदा लेकर वापिस आने लगी, दो सेवक दुबारा उसे घर तक छोड़ने के लिए साथ आये।

रास्ते में सुलोचना इस कार्य के विषय में सोचने लगी, इस कार्य के लिए उसे ढेर सारे नारियल और घी की जरूरत पड़ेगी, इस जंगल में अभी इतना तो संभव नही, इसके लिए मुझे अपने पुत्र उदयराज की मदद भी चाहिए होगी, मेरा दिल कह रहा है कि वो जरूर दो चार दिन में यज्ञ के लिए हमे लेने आ ही जायेगा, तब मैं उसके सामने ये बात रखूंगी, अभी कुछ नारियल तो हैं कुटिया में, काम शुरू कर देती हूं।

तभी सुलोचना का ध्यान इस बात पे गया की आत्माएं कब आएंगी, जब योनि में अनैतिक संभोग की कल्पना से गीलापन आएगा, लेकिन जैसे ही उसका ध्यान इस बात पर गया उसने रास्ते में ये सोचना ठीक नही समझा, क्योंकि एक तो वो रास्ते में थी दूसरा योनि का कोई भरोसा नही, आत्माएं कहीं भी हो सकती हैं, इसलिए उसने कुछ सोचना बंद कर दिया।

शाम तक वो घर पहुंची, पूर्वा रात का खाना बनाने के लिए कुछ लकड़ियां इकठ्ठी करके ला रही थी, मां को देखते ही खुश हो गयी और बोली- अम्मा आ गयी आप।

सुलोचना- हां मेरी पुत्री आ गयी, ला थोड़ा लोटे में पानी दे हाँथ पैर धो लूं।

पूर्वा एक बाल्टी में पानी और उसमे लोटा डालकर ले आयी, और बोली- महात्मा जी कैसे हैं अम्मा?

सुलोचना- वैसे तो ठीक है पर कमजोर होते जा रहे हैं, कह रहे थे कि तुम्हारी पुत्री पूर्वा बहुत होनहार लड़की है, उसको कहना कि खुद मन लगाकर मंत्र विद्या ग्रहण करे, आगे चलकर उसको भी जनमानस की सेवा करनी है।

पूर्वा मुस्कुरा उठी और बोली- वो तो मैं करूँगी ही अम्मा, आप सिखाती जाओ मैं सीखती जाउंगी, मुझे महात्मा जी जैसा बनना है।

सुलोचना- जरूर बनेगी मेरी बिटिया....जरूर।

पूर्वा- अच्छा अम्मा किसलिए बुलाया था उन्होंने?

सुलोचना- तू पहले खाना बना ले फिर बताऊंगी, एक काम है जो दिया है उन्होंने, जैसा तूने हल्का फुल्का बताया था बात वही है, पूरी बात अब समझ में आ गयी है, वो कार्य हम कल से शुरू करेंगे, कल रात से।

पूर्वा- कैसा कार्य अम्मा? क्या कार्य दिया है महात्मा जी ने?

सुलोचना- बताऊंगी पुत्री, इत्मिनान से बताऊंगी?

पूर्वा- ठीक है फिर आप आराम करो मैं चूल्हा जलाकर अदहन रख देती हूं।

पूर्वा चली गयी कुटिया में खाना बनाने और सुलोचना बाहर खाट पर लेटकर आराम करने लगी, एक बार तो सोचने लगी कि पूर्वा उसकी पुत्री है और अभी जवानी की दहलीज पर उसने कदम रखा है, एक कार्य को सम्पन्न करने में जो जो करना है, वो उसको कैसे समझाएगी, ये कितने लाज की बात है, उस वक्त मुझे कितनी लाज आ रही थी जब महात्मा जी मुझे वर्णन करके वह सब बता रहे थे, मैं ये सब पूर्वा को कैसे बताऊंगी, कैसे कहूंगी? लेकिन बताना तो पड़ेगा ही, कभी कभी हमें अच्छे के लिए वो काम भी करने पड़ते है, जिन्हें हमने कभी सोचा भी नही होता।

रात को दोनों माँ बेटी ने खाना खाया और अगल बगल खाट डालकर दोनों लेट गई, पूर्वा बोली- अम्मा, भैया कब आएंगे?

सुलोचना- मुझे ऐसा लग रहा है कि वो दो चार दिन में आ ही जायेंगे।

पूर्वा- हां अम्मा मुझे भी ऐसा ही लग रहा है कि मेरे भैया जल्दी ही आएंगे अब।

सुलोचना- तुझे बहुत याद आ रही है उनकी।

पूर्वा- हाँ अम्मा.....बहुत

सुलोचना- और रजनी बिटिया की नही आ रही याद, तू तो बुआ है उसकी।

पूर्वा- उनकी भी आती है याद...पता नही कब मिलूंगी मैं उनसे?

सुलोचना- अरे आ ही जायेंगे, मिल लेना, वो भी तुझे याद करती होगी, जरूर......अच्छा ये बता कुछ नारियल रखे हैं न घर में।

पूर्वा- हां अम्मा...रखे हैं....पर क्यों?

सुलोचना- उस कार्य में लगेंगे नारियल।

पूर्वा- हाँ अम्मा बताओ फिर वो कौन सा कार्य है, जो महात्मा जी ने आपको बताया है।
 

Top