Incest Paap ne Bachayaa written By S_Kumar

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Update- 87

जब पूर्वा ने अपनी माँ सुलोचना से पूछा तो सुलोचना ने कहा- महात्मा जी के यहां जाने से पहले जो बातें तूने मुझे बताई थी, बात तो वही है, तेरा अंदेशा सही था, शैतान अपनी जल्दी मुक्ति के लिए दुष्ट आत्माओं के बहकावे में आकर मानव स्त्री का अर्क इकट्ठा कर रहा है।

पूर्वा- अर्क शब्द तो मुझे पता है अम्मा......पर कैसा अर्क?...... क्या पसीना?

सुलोचना- नही

पूर्वा- फिर.....फिर कैसा अर्क......... क्या रक्त?

सुलोचना- अरे नही पुत्री........रक्त अर्क कैसे हो सकता है....रक्त तो रक्त है...... बताऊंगी अभी। पहले पूरी बात तो जान ले।

पूर्वा- अच्छा बोलो अम्मा।

सुलोचना- दरअसल शैतान बहकावे में आ गया है बुरी आत्माओं के, वो अर्क आत्माओं को चाहिए ताकि वह मानव स्त्री को वश में करके हमेशा हमेशा के लिए भोग सकें।

"भोग सकें" शब्द अपनी माँ के मुंह से सुनकर पूर्वा थोड़ी असहज हो गयी, कुछ अजीब सा लगा उसे।

सुलोचना- शैतान की समय पूर्व मुक्ति संभव नही, बुरी आत्मायें उसे बहकाकर उससे अपनी मंशा पूर्ण करा रही है, क्योंकि यज्ञ वही कर सकता है।

(इस तरह सुलोचना ने पूर्वा को महात्मा द्वारा सारी बात बताई, पूर्वा चुपचाप सारी बात सुनती रही, बस सुलोचना ने पाप शब्द का व्याख्यान उस तरह नही किया जैसा महात्मा ने उसे समझाया था, आखिर वो उसकी कुवांरी पुत्री थी, सुलोचना न जाने क्यों थोड़ा झिझक सी गयी, बाकी सारी बातें उसने ज्यों की त्यौं पूर्वा को बता दी, पर पूर्वा भी जिद्दी थी, बार बार बस यही पूछती की अम्मा कैसा पाप, मैं समझी नही, आखिर थक हारकर सुलोचना को पाप कर्म को पूर्वा को झिझकते हुए समझाना पड़ा, क्योंकि रात का वक्त था, अंधेरा था दोनों एक लाठी की दूरी पर अपनी अपनी खाट पर लेटी थी इसलिए एक दूसरे का चेहरा नही दिखाई दे रहा था, दरअसल पूर्वा समझ तो पहले ही गयी थी पर जानबूझ के अपनी अम्मा को छेड़ रही थी और ये बात सुलोचना समझ नही पाई, जब वो अनैतिक संभोग को समझाने लगी तो दोनों ही लजा भी गयी थी।)

पूर्वा- अम्मा आप फिक्र मत करो आपकी पुत्री कल से इस काम में आपके साथ डटी रहेगी जबतक ये पूर्ण नही हो जाता, आपने सही कहा हम स्त्री हैं और एक स्त्री के लिए इस विधि से इन आत्माओं को बुलाना बहुत आसान है, अभी घर मे 40- 50 नारियल रखे हैं, जितना है उतनो का नाश कल कर देंगे।

सुलोचना- हां बिल्कुल बेटी, पर बहुत संभल के, अब सो जा।

पूर्वा- ठीक है अम्मा, आप भी सो जाओ

(दोनों ने एक दूसरे को बोल तो दिया पर नींद किसे आ रही थी, चुपचाप दोनों काफी देर तक लेटी रही, न चाहते हुए भी बार बार ध्यान उस पाप और अनैतिक संभोग पर जा रहा था, आज बहुत अजीब भी लग रहा था, आज पहली बार सुलोचना ने पूर्वा से ऐसी बात की थी और पूर्वा ने भी पहली बार अपनी माँ के मुख से ऐसी बात सुनी थी)

पूर्वा अपने मन में सोचने लगी "आज अम्मा के मुख से योनि शब्द सुनकर कितना अजीब लगा, हम स्त्रियों की दोनों जाँघों के बीच कितनी सुंदर चीज़ बनाई है ईश्वर ने, क्या लिंग भी इतना ही सुंदर होता होगा? मैंने तो आजतक देखा भी नही है। कैसा होता होगा? लिंग और योनि आपस में कैसे मिलते होंगे? इनको मिलाने पर कैसा आनंद आता होगा?
इनका मिलन कैसा होता होगा? मैंने सुना है कि योनि को "बूर" भी कहते है? और लिंग को क्या क्या कहते होंगे? वो देखने में कैसा होता होगा? उसको योनि में कहां डालते होंगे? योनि तो कितनी नरम होती है, कितना दर्द होता होगा? एक संपूर्ण पुरुष का लिंग कितना लम्बा और बड़ा होता होगा? इसको योनि से कैसे मिलाते होंगे, क्या योनि के अंदर उसको डालते होंगे, इतनी छोटी सी योनि में वो कैसे अंदर जाता होगा, गहराई में जाकर वो कैसा महसूस होता होगा?

पूर्वा की योनि में हल्का सा संकुचन हुआ तो उसने अपनी दोनों जाँघों से योनि को हल्का सा भींच दिया, वो चुपचाप अपनी अम्मा की तरफ पीठ करके लेटी यही सब सोचने लगी थी, न चाहते हुए भी उसके जेहन में अब यही सब बातें आ रही थी, पर उसने जैसे तैसे अपने को संभाला।

इधर सुलोचना अपने मन में- आज पूर्वा के सामने ये सब बोलकर कैसा अजीब सा हो रहा है, उसके मन की स्थिति न जाने क्या होगी? मुझे संभोग किये हुए कितना अरसा हो गया, जब वो थे तो यौनसुख मिलता था पर इतने वर्षों में आज पहली बार अजीब सा महसूस हो रहा है, काश की वो होते, अब अगर ऐसा सोचते हुए योनि की तपिश बढ़ेगी तो मैं क्या करूँगी? सोचूंगी तो मन करेगा ही और सोचना जरूरी है वो भी अनैतिक, अनैतिक संभोग के विषय में आज महात्मा जी ने कैसे बताया कि जो खून के रिश्ते में पिता, भाई या फिर पुत्र के साथ किया गया सम्भोग हो, जो समाज के नियमों के खिलाफ हो, पर उन्होंने स्वयं अपने मुख से कहा कि इसमें परम आनंद होता है, एक पुत्री अपने ही पिता के साथ सम्भोग करेगी तो कैसा लगेगा, एक बहन अपने ही सगे भाई के साथ संभोग करेगी तो कैसा लगेगा और एक माँ...... एक माँ अपने ही सगे पुत्र के साथ .......सम्भभोभोभोभो.....गगगगगग.......आह........ कैसा लगेगा उस वक्त.......उस माँ को अपने ही पुत्र के साथ संभोग करके.....जिसे उसने जन्म दिया है उसी के साथ.........इसमें कैसा अजीब सा नशा है.......ये सब सोचने पर सच में ये सब चीज़ें तन मन पर हावी होती हैं...... . और सच में अजीब सी तपिश होती है.....कितनी अजीब सी सनसनी होती है पूरे बदन में........पर मैं ये अभी क्या क्या सोचने लगी।

ये मैं कल अच्छे से सोचूंगी......एक मां अपने ही पुत्र के साथ...........अनैतिक संभोग।

दोनों माँ बेटी चुपचाप काफी देर लेटे लेटे यही सब सोचती रहती हैं, दोनों को ही ये लगता है कि वो सो गई हैं, अपनी अपनी खाट पर दोनों ही लेटे लेटे सोचते हुए हल्की हल्की उत्तेजना में एक दूसरे का लिहाज करते हुए कसमसाती हैं काफी देर तक यही चलता रहता है फिर दोनों अपने पर काबू करते हुए ताकि योनि न रिसने लगे, सो जाती हैं।
 
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जब पूर्वा ने अपनी माँ सुलोचना से पूछा तो सुलोचना ने कहा- महात्मा जी के यहां जाने से पहले जो बातें तूने मुझे बताई थी, बात तो वही है, तेरा अंदेशा सही था, शैतान अपनी जल्दी मुक्ति के लिए दुष्ट आत्माओं के बहकावे में आकर मानव स्त्री का अर्क इकट्ठा कर रहा है।

पूर्वा- अर्क शब्द तो मुझे पता है अम्मा......पर कैसा अर्क?...... क्या पसीना?

सुलोचना- नही

पूर्वा- फिर.....फिर कैसा अर्क......... क्या रक्त?

सुलोचना- अरे नही पुत्री........रक्त अर्क कैसे हो सकता है....रक्त तो रक्त है...... बताऊंगी अभी। पहले पूरी बात तो जान ले।

पूर्वा- अच्छा बोलो अम्मा।

सुलोचना- दरअसल शैतान बहकावे में आ गया है बुरी आत्माओं के, वो अर्क आत्माओं को चाहिए ताकि वह मानव स्त्री को वश में करके हमेशा हमेशा के लिए भोग सकें।

"भोग सकें" शब्द अपनी माँ के मुंह से सुनकर पूर्वा थोड़ी असहज हो गयी, कुछ अजीब सा लगा उसे।

सुलोचना- शैतान की समय पूर्व मुक्ति संभव नही, बुरी आत्मायें उसे बहकाकर उससे अपनी मंशा पूर्ण करा रही है, क्योंकि यज्ञ वही कर सकता है।

(इस तरह सुलोचना ने पूर्वा को महात्मा द्वारा सारी बात बताई, पूर्वा चुपचाप सारी बात सुनती रही, बस सुलोचना ने पाप शब्द का व्याख्यान उस तरह नही किया जैसा महात्मा ने उसे समझाया था, आखिर वो उसकी कुवांरी पुत्री थी, सुलोचना न जाने क्यों थोड़ा झिझक सी गयी, बाकी सारी बातें उसने ज्यों की त्यौं पूर्वा को बता दी, पर पूर्वा भी जिद्दी थी, बार बार बस यही पूछती की अम्मा कैसा पाप, मैं समझी नही, आखिर थक हारकर सुलोचना को पाप कर्म को पूर्वा को झिझकते हुए समझाना पड़ा, क्योंकि रात का वक्त था, अंधेरा था दोनों एक लाठी की दूरी पर अपनी अपनी खाट पर लेटी थी इसलिए एक दूसरे का चेहरा नही दिखाई दे रहा था, दरअसल पूर्वा समझ तो पहले ही गयी थी पर जानबूझ के अपनी अम्मा को छेड़ रही थी और ये बात सुलोचना समझ नही पाई, जब वो अनैतिक संभोग को समझाने लगी तो दोनों ही लजा भी गयी थी।)

पूर्वा- अम्मा आप फिक्र मत करो आपकी पुत्री कल से इस काम में आपके साथ डटी रहेगी जबतक ये पूर्ण नही हो जाता, आपने सही कहा हम स्त्री हैं और एक स्त्री के लिए इस विधि से इन आत्माओं को बुलाना बहुत आसान है, अभी घर मे 40- 50 नारियल रखे हैं, जितना है उतनो का नाश कल कर देंगे।

सुलोचना- हां बिल्कुल बेटी, पर बहुत संभल के, अब सो जा।

पूर्वा- ठीक है अम्मा, आप भी सो जाओ

(दोनों ने एक दूसरे को बोल तो दिया पर नींद किसे आ रही थी, चुपचाप दोनों काफी देर तक लेटी रही, न चाहते हुए भी बार बार ध्यान उस पाप और अनैतिक संभोग पर जा रहा था, आज बहुत अजीब भी लग रहा था, आज पहली बार सुलोचना ने पूर्वा से ऐसी बात की थी और पूर्वा ने भी पहली बार अपनी माँ के मुख से ऐसी बात सुनी थी)

पूर्वा अपने मन में सोचने लगी "आज अम्मा के मुख से योनि शब्द सुनकर कितना अजीब लगा, हम स्त्रियों की दोनों जाँघों के बीच कितनी सुंदर चीज़ बनाई है ईश्वर ने, क्या लिंग भी इतना ही सुंदर होता होगा? मैंने तो आजतक देखा भी नही है। कैसा होता होगा? लिंग और योनि आपस में कैसे मिलते होंगे? इनको मिलाने पर कैसा आनंद आता होगा?
इनका मिलन कैसा होता होगा? मैंने सुना है कि योनि को "बूर" भी कहते है? और लिंग को क्या क्या कहते होंगे? वो देखने में कैसा होता होगा? उसको योनि में कहां डालते होंगे? योनि तो कितनी नरम होती है, कितना दर्द होता होगा? एक संपूर्ण पुरुष का लिंग कितना लम्बा और बड़ा होता होगा? इसको योनि से कैसे मिलाते होंगे, क्या योनि के अंदर उसको डालते होंगे, इतनी छोटी सी योनि में वो कैसे अंदर जाता होगा, गहराई में जाकर वो कैसा महसूस होता होगा?

पूर्वा की योनि में हल्का सा संकुचन हुआ तो उसने अपनी दोनों जाँघों से योनि को हल्का सा भींच दिया, वो चुपचाप अपनी अम्मा की तरफ पीठ करके लेटी यही सब सोचने लगी थी, न चाहते हुए भी उसके जेहन में अब यही सब बातें आ रही थी, पर उसने जैसे तैसे अपने को संभाला।

इधर सुलोचना अपने मन में- आज पूर्वा के सामने ये सब बोलकर कैसा अजीब सा हो रहा है, उसके मन की स्थिति न जाने क्या होगी? मुझे संभोग किये हुए कितना अरसा हो गया, जब वो थे तो यौनसुख मिलता था पर इतने वर्षों में आज पहली बार अजीब सा महसूस हो रहा है, काश की वो होते, अब अगर ऐसा सोचते हुए योनि की तपिश बढ़ेगी तो मैं क्या करूँगी? सोचूंगी तो मन करेगा ही और सोचना जरूरी है वो भी अनैतिक, अनैतिक संभोग के विषय में आज महात्मा जी ने कैसे बताया कि जो खून के रिश्ते में पिता, भाई या फिर पुत्र के साथ किया गया सम्भोग हो, जो समाज के नियमों के खिलाफ हो, पर उन्होंने स्वयं अपने मुख से कहा कि इसमें परम आनंद होता है, एक पुत्री अपने ही पिता के साथ सम्भोग करेगी तो कैसा लगेगा, एक बहन अपने ही सगे भाई के साथ संभोग करेगी तो कैसा लगेगा और एक माँ...... एक माँ अपने ही सगे पुत्र के साथ .......सम्भभोभोभोभो.....गगगगगग.......आह........ कैसा लगेगा उस वक्त.......उस माँ को अपने ही पुत्र के साथ संभोग करके.....जिसे उसने जन्म दिया है उसी के साथ.........इसमें कैसा अजीब सा नशा है.......ये सब सोचने पर सच में ये सब चीज़ें तन मन पर हावी होती हैं...... . और सच में अजीब सी तपिश होती है.....कितनी अजीब सी सनसनी होती है पूरे बदन में........पर मैं ये अभी क्या क्या सोचने लगी।

ये मैं कल अच्छे से सोचूंगी......एक मां अपने ही पुत्र के साथ...........अनैतिक संभोग।

दोनों माँ बेटी चुपचाप काफी देर लेटे लेटे यही सब सोचती रहती हैं, दोनों को ही ये लगता है कि वो सो गई हैं, अपनी अपनी खाट पर दोनों ही लेटे लेटे सोचते हुए हल्की हल्की उत्तेजना में एक दूसरे का लिहाज करते हुए कसमसाती हैं काफी देर तक यही चलता रहता है फिर दोनों अपने पर काबू करते हुए ताकि योनि न रिसने लगे, सो जाती हैं।
 
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Update- 88

दोनों माँ बेटी चुपचाप काफी देर लेटे लेटे यही सब सोचती रहती हैं, दोनों को ही ये लगता है कि वो सो गई हैं, अपनी अपनी खाट पर दोनों ही लेटे लेटे सोचते हुए हल्की हल्की उत्तेजना में एक दूसरे का लिहाज करते हुए कसमसाती हैं काफी देर तक यही चलता रहता है फिर दोनों अपने पर काबू करते हुए ताकि योनि न रिसने लगे, सो जाती हैं।

अब आगे---

अगली सुबह सुलोचना उठी तो पूर्वा बिस्तर पर नही थी, उसने दोनो का बिस्तर समेटा और बगल वाली कोठरी में रखकर जैसे ही रसोई की तरफ गयी तो देखा कि पूर्वा रसोई में नाश्ता तैयार कर रही थी। पूर्वा अपनी अम्मा को देखकर मुस्कुरा दी और बोली- अम्मा उठ गई आप, देखो आज मैंने जल्दी ही रसोई का काम खत्म कर लिया है, आओ चलो नाश्ता तैयार है।

सुलोचना- अरे तूने मुझे उठाया क्यों नही, आज देख कितना काम है। अकेले अकेले ही कर रही है।

पूर्वा- अम्मा मैंने सोचा कि कल आप महात्मा जी के पास गई थी तो थक गई होंगी इसलिए नही उठाया जल्दी। अच्छा चलो जल्दी आप दातुन कर के आओ।


सुलोचना नित्यकर्म करके आयी और पूर्वा ने नाश्ता निकाला, दोनो नाश्ता करने लगी, पूर्वा ने कहा- अम्मा घी तो आधी मेटी ही रखा है और नारियल भी 40- 50 ही होंगे।

सुलोचना- कोई बात नही पुत्री, भस्मीकरण यज्ञ आज रात शुरू करते हैं, एक दो दिन में उदयराज के पास संदेश पहुँचाती हूँ मैं, बिना मेरे पुत्र और पुत्री की मदद के ये कार्य सम्पन्न नही हो पायेगा।

पूर्वा नाश्ता करते हुए अपनी माँ को देखकर मुस्कुराती जा रही थी।

नाश्ता करके दोनो माँ बेटी यज्ञ के लिए सूखी पीपल की लकड़ियां लेने और घने जंगल की तरफ निकल गए।

रास्ते में चलते चलते पूर्वा ने जिज्ञासा से दुबारा अपनी अम्मा से पूछा- अम्मा, क्या ऐसा वास्तव में इस दुनियां में घटित हो रहा है? हो तो रहा ही है...है न, तभी तो ये बुरी आत्मायें ऐसी स्त्री की खोज में हैं जो ऐसा सोचती है और कर चुकी हैं या कर रही हैं। क्या स्त्री ही सोचती है...पुरुष नही?

सुलोचना अचानक पूर्वा के इस तरह के सवाल पर पहले तो थोडा असहज हो गयी फिर कुछ देर चुप रहने के बाद बोली- पाप और पुण्य दोनो का अस्तित्व है पुत्री, पाप है तभी पुण्य है और पुण्य है तभी पाप भी है, जिस तरह रात्रि है तभी सवेरे का अस्तित्व है और फिर पुनः सवेरे के बाद सांझ है फिर रात्रि।

सब ईश्वर ने ही बनाया है, बुद्धि और विवेक भी उसी ने दिया है और वासना और अनैतिक सोच भी एक सीमा के बाद पनपना भी उसी की माया है, माया भी तो ईश्वर की ही बनाई हुई है। अब हमी को देख लो जान मानस की भलाई के लिए ही सही आखिर इस रास्ते से हमे भी तो गुजरना ही है न, बस यही है इंसान बेबस हो जाता है, कभी फ़र्ज़ के हांथों कभी वचन के हांथों कभी नियम और कर्तव्य के हांथों और कभी वासना के हांथों, आखिर इंद्रियां भी कोई चीज़ है पुत्री वो भी ईश्वर के द्वारा ही बनाई हुई हैं, क्या वो इतनी कमजोर हैं कि हर इंसान उनको बड़ी आसानी से जीत लेगा...नही न...अगर ऐसा होता तो हर कोई हिमालय पर बस तपस्या कर रहा होता, ध्यान से सोचो तो सब ईश्वर की बनाई हुई माया है बस, रचा सब ईश्वर ने ही है और इंसान सोचता है कि मैंने किया है।

पर पुत्री मैं चाहती हूं कि इस भस्मीकरण यज्ञ को केवल मैं ही अंजाम दूंगी, तू इसे न कर, इसकी विधि सीधे प्रवाह में नही है।

पूर्वा- पर अम्मा अभी कल ही आप कह रही थी कि मेरे बिना यह कैसे संभव होगा? मैं यह जानती हूं और बखूबी समझती हूं कि आप ऐसा क्यों कह रही हो...पर अम्मा बुरी आत्माओं के बीच आपका अकेले रहना मुझे चिंता में डाल रहा है।

सुलोचना- नही पुत्री इसमे चिंता की कोई बात नही, और ऐसा नही है कि तू बिल्कुल ही मेरे साथ नही रहेगी, बस यज्ञ नही करेगी बाकी तो बाहर रहकर एक प्रहरी की भांति मेरी सुरक्षा तो करेगी ही, बस मैं यही चाहती हूं कि अभी शुरुवात के लिए तू मुख्य कार्य नही करेगी, यह मुझे ही करने दे।

पुर्वा- मेरा मन तो नही है अम्मा की मैं यज्ञ में आपको अकेले बैठने दूँ, पर आपकी इच्छा को मैं टाल नही सकती, मैं अच्छी तरह समझ रही हूं कि आपने मुझे क्यों रोका है पर फिर भी यज्ञ के दौरान कहीं भी आप अकेली महसूस करना तो मैं शामिल हो जाउंगी यह बात मैं आपसे पहले ही कह रही हूं।

सुलोचना ने पुर्वा की तरफ देखा तो पुर्वा ने अपने अम्मा का हाँथ अपने हांथों में लेकर हल्का सा दबाते हुए आस्वासन देने के साथ साथ आज्ञा भी मांगी।

सुलोचना- ठीक है पुत्री...अच्छा चल अब जल्दी जल्दी पीपल की लकड़ियां इकट्ठी कर लेते हैं।

दोनो ने ढेर सारी लकड़ियां इकट्ठी की, उसके दो बड़े बड़े बोझ बनाये और सर पर रखकर अपनी कुटिया की तरह आ गयी, दिन का दूसरा पहर भी ढलने को आ गया था।

सुलोचना- पुर्वा..

पुर्वा- हाँ अम्मा

सुलोचना- पर पुत्री बिना किसी संदेश के, बिना किसी खबर के यह कैसे संभव हो सकता है कि तेरे भैया और रजनी यहां एक दो दिन में आ ही जायेंगे, क्या पता उन्हें आने में वक्त लगे? और अगर हम यहां पर अपना यह भस्मीकरण यज्ञ शुरू करेंगे तो इसके समाप्ति के बाद ही वहां जाकर वहां का यज्ञ सम्पन्न करा पाएंगे। और यहां के यज्ञ की समाप्ति तभी हो पाएगी जब संसाधन और यज्ञ से संबंधित पर्याप्त सामग्री उपलब्ध होगी, अभी तो हमारे पास पर्याप्त सामग्री है भी नही।

पुर्वा- हाँ अम्मा यह बात तो आप सही कह रही हो, हम केवल अनुमान के आधार पर इस यज्ञ को शुरू नही कर सकते पहले पर्याप्त लगने वाली सामग्री को एकत्र करना पड़ेगा, पर इसके लिए तो भैया का होना जरूरी है, और वो जल्द ही तभी आ पाएंगे जब उनतक संदेश पहुचेगा।

सुलोचना- सही कह रही हो बेटी, पर कैसे करें?

पुर्वा- अम्मा, मैं सिद्ध मंत्र के द्वारा ध्यान लगा कर देखती हूँ, क्या पता कुछ रास्ता दिखाई दे।

सुलोचना- ठीक है बेटी तू कोशिश कर..तब तक मैं, यज्ञ वाली कोठरी को यज्ञ के लिए तैयार करती हूं।

सांझ हो चली थी पुर्वा ने वहीं नीम के पेड़ के नीचे आसान लगाया और गंगाजल से आसान को स्वक्छ किया, पीपल का एक पत्ता लेकर उसपर कुछ हवन सामग्री रखकर उसे जला दिया फिर अपने सिद्ध किये हुए मंत्रो को पढ़ने लगी, कुछ वक्त मंत्र पढ़ने के बाद उसने ध्यान लगाया और उसे कुछ दिखाई दिया, उसने झट से आंखे खोली और सुलोचना को पुकारा।

पुर्वा- अम्मा

सुलोचना तुरंत कोठरी से बाहर आई- हाँ बेटी क्या हुआ, कुछ रास्ता समझ आया।

पुर्वा- अम्मा..एक तोता है जो इस घने जंगल से दो बार भैया के गांव की तरफ गया है, वो तोता शैतान की ओर से उड़कर उस गांव की तरफ दो बार गया है।

सुलोचना- शैतान की तरफ से।

पुर्वा- हाँ उसी तरफ से

सुलोचना- हो न हो ये कोई बुरी आत्मा ही होगी, जो रूप बदल सकती है, जो तोते का रूप धारण करके उस तरफ गयी हो।

पुर्वा- अम्मा..तो एक काम करते है न आज रात सबसे पहले इसे ही बांध देते हैं, मारने से पहले इसी से संदेश भेजवा देंगे, बांध के रखेंगे तो जाएगी कहाँ, संदेह कह के जैसे ही आएगी उसी समय भस्म कर देना।

सुलोचना मन में सोचने लगी- पर इसको बुलाने के लिए मुझे पहले अनैतिक संभोग के चिंतन में लीन होना होगा, अनैतिक संभोग के विषय में सोचती हुई स्त्री के मन की इच्छा ये आत्माएं जान लेती हैं तभी तो उस स्त्री के पास योनि का अर्क लेने आती हैं, और ये आत्मायें ये भी जान लेती है कि स्त्री किस पुरुष के विषय में सोचकर काम अग्नि में जल रही है, या कल्पनाओं में उसके साथ संभोगरत होकर आनंदित हो रही है, क्या पता ये वहां जाकर मेरे पुत्र के सामने ये बक दे कि मैं क्या सोच रही हूं, तो उदयराज मेरे बारे में क्या सोचेगा, इन आत्माओं का कोई भरोसा तो है नही...कैसे करूँ।

पुर्वा- क्या सोचने लगी अम्मा? क्या यह तरीका ठीक नही।

सुलोचना- नही पुत्री ठीक है...ऐसा ही करते हैं..मैं कोठरी को तैयार कर रही हूं, आज की रात यज्ञ शुरू करते हैं पहला वार उसी बुरी आत्मा को ढूंढकर करेंगे जो तोता बनकर वहां गयी थी, उसको बांधकर उससे ये काम करने के बाद उसको भस्म कर देंगे, जान छूट जाने की लालच में आकर वो वही करेगी जो हम चाहेंगे। तो बाहर की तैयारी कर मैं अंदर तैयार करती हूं।

(सुलोचना ने कह तो दिया कि तोते को दुबारा गुलाम बना कर संदेश पहुचने भेजेंगे पर वो मन ही मन बेचैन भी थी कि कहीं तोते ने उदयराज के सामने बक दिया कि मैं क्या सोच रही थी, क्या सोचकर मैंने उस बुरी आत्मा को अपनी ओर आकर्षित किया था तो उदयराज..मेरा पुत्र मेरे बारे में क्या सोचेगा...खैर जो भी हो देखा जाएगा)
 
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Update- 89

सुलोचना ने भस्मीकरण यज्ञ के लिए कोठरी तैयार कर दी और पुर्वा ने यज्ञ की सारी सामग्री लाकर यज्ञ कुंड के पास रख दिया, रात्रि की बेला गहराती जा रही थी।

सुलोचना ने पुर्वा से कहा- पुत्री अब तू अपने लिए रात का भोजन तैयार कर ले, मैं तो महात्मा द्वारा दिया गया अमृत पेय का सेवन आज का यज्ञ समाप्त करने के बाद ग्रहण करूँगी, पर तू अपने लिए भोजन तैयार करके भोजन कर ले, और भोजन करने के बाद तू कोठरी के बाहर आराम करना, मैं यज्ञ करूँगी।

पुर्वा- ठीक है अम्मा।

पुर्वा अपने लिये भोजन तैयार करने लगी, कुछ ही देर में भोजन तैयार होने के बाद पुर्वा ने भोजन किया और बाहर अपनी खटिया बिछा कर बैठ गयी, रात काफी गहरी होती जा रही थी, जंगल मे छोटे-छोटे कीड़ों के बोलने की आवाज, पत्तों के आपस में रगड़ने से सरसराहट की आवाज रात के सन्नाटे को चीरते हुए आ रही थी, कभी कभी ऐसा लगता कि दूर किसी के चिल्लाने की आवाज आ रही है, कभी ऐसा लगता मानो दूर कहीं बहुत से लोग लड़ाई कर रहे हैं और उनके झगड़ने की आवाज हल्की हल्की सुनाई दे रही है, पर पुर्वा और सुलोचना के लिए ये सब आम बात थी फिर भी आज कुछ ज्यादा ही प्रतिकूल रात थी, ऐसा लग रहा था कि जो सुलोचना आज रात शुरू करने जा रही है वो किसी को अच्छा नही लग रहा था।

पुर्वा ने अपनी खाट पर बैठे बैठे सर घुमा घुमा कर बड़े गौर से चारों तरह देखा, ठंडी हवा से पेड़ों की पत्तियां लगातार हिल रही थी, ऊपर आसमान में तारे टिमटिमा रहे थे, पुर्वा मुस्कुरा दी और बिस्तर पर लेट गयी, इतनी अंधेरी घने जंगलों की रात, जहां आम इंसान के रोंगट खड़े हो जाएं वहीं बिस्तर पर लेटते हुए पुर्वा बोली- "कितनी हसीन रात है आज की"

तब तक सुलोचना नहा कर आ गयी, उसने काले रंग की साड़ी और काले रंग का ब्लॉउज पहन रखा था, पुर्वा अपनी माँ को ही देखती रह गयी, जब पुर्वा को बड़े गौर से अपनी ओर देखते हुए सुलोचना ने देखा तो बोली- ऐसे क्या देख रही है पुर्वा, अपनी अम्मा को नही देखा क्या कभी...आज पहली बार देख रही है?

पुर्वा- इतनी सुंदरता आपके अंदर छिपी हुई है आज पहली बार देख रही हूं अम्मा, देखो न अंधेरी रात है, खिड़की पर दिया हल्का हल्का जल रहा है, और फिर भी आप पर नज़र ठहर गयी, आप ऐसे ही हरदम रहा करो न अम्मा।

सुलोचना- अच्छा जी...बस कर अब तारीफ मेरी, बूढ़ी हो चली हूँ मैं अब, अब वो दिन गए बेटी की मैं हरदम सज धज के रहूं, अच्छा!... रात्रि का भोजन कर लिया न तूने?

पुर्वा- किसने कहाँ बूढ़ी हो गयी हो अम्मा, बूढ़ी हो आपके दुश्मन....बूढ़ी हों वो बुरी आत्मायें, मेरी अम्मा तो हरदम जवान है। दिन तो आते जाते रहते हैं आप ऐसे ही रहा करो।

सुलोचना- अरे मैं पूछ रही हूं कि भोजन कर लिया तूने?

पुर्वा- पहले आप बोलो की ऐसे ही रहा करोगी न?

सुलोचना- अच्छा ठीक है...जैसा तू कहेगी वैसे ही रहा करूँगी....रात्रि का भोजन कर लिया न तूने?

पुर्वा- हाँ अम्मा कर लिया।

सुलोचना - तो चल ठीक है तू यहीं बाहर बिस्तर पर लेट और मैं यज्ञ शुरू करती हूं।

पुर्वा- मैं लेटूंगी नही अम्मा, मैं भी आसान लगा के बैठूंगी।

सलोचना- ठीक है तू बाहर ही बैठ, मैं अंदर जा रही हूं अब शुरू करने।

सुलोचना आज वास्तव में बहुत खूबसूरत लग रही थी, जब से उसके पति से उसका साथ छूटा और एक नीरस जिंदगी को जीने के लिए वह विवस हुई, लोककल्याण को ही अपना कर्तव्य मानकर पुर्वा के साथ अपना जीवन यापन करते-करते वह सजना संवरना मानो भूल ही गयी थी, आज यज्ञ में बुरी आत्माओं को बुलाने के लिए वह फिर से सजी धजी थी, बहुत अरसे के बाद उसने काली साड़ी पहनी, शृंगार किया, बालों में फूलों का गजरा लगाया।

काले रंग की साड़ी में उसका गोरा गोरा बदन कहर ढा रहा था, एक एक अंग का कसाव, कटाव मन में हलचल पैदा कर रहा था,बड़ी बड़ी गुदाज चूचीयाँ ध्यान खींच रही थी, पहले वो अपने अंगों को ज्यादा से ज्यादा ढककर रखती थी पर आज न जाने क्यों मानो सब अंगों को अपनी मादकता दिखाने के लिए आजाद सा कर दिया हो, बुरी आत्माओं को बुलाने के लिए, अनैतिक संभोग के विषय में सोचने के लिए उसने वेषभूसा सहित सब इस कार्य के प्रतिकूल कर लिया था।

रात्रि के 10 बज चुके थे, पुर्वा बाहर आसान लगा कर मंत्र जाप करने लगी। सुलोचना ने भी कोठरी में अपना आसान लगाने से पहले अपनी साड़ी को ऊपर उठा कर अंदर पहनी हुई काली रंग की छोटी सी कच्छी को जिसने उसके अनमोल खजानों को कस कर चारों तरफ से घेर कर एक आवरण बनाया हुआ था उसको अपने पुत्र के बारे में सोचती हुई निकालने लगी, उसके हृदय की गति एकदम से बढ़ गयी, एक पल के लिए उसने महसूस किया कि एक बेटा अगर अपनी ही सगी माँ की चड्डी को इस तरह निकलेगा तो वो अनुभूति कैसी होगी? ये सोचते ही उसकी हृदय की गति तेज हो गयी और उसने कच्छी को धीरे से घुटनों तक सरकाकर एक बार सीधे पैर को उठाकर फिर दूसरे पैर को उठाकर बड़े ही कामुक तरीके से बाहर पुर्वा की ओर देखते हुए निकाल दी।

कच्छी निकाल कर उसने आसान के नीचे दबा दिया और गंगाजल छिड़क कर यज्ञ कुंड, आसान और आस-पास की जगह को पवित्र करते हुए यज्ञ का आगाज किया, वह आसान पर जैसे ही आलथी-पालथी मार कर बैठी, उसकी मखमली बूर की दोनों फांकें बहुत ही हल्के "पुच्च" की आवाज के साथ बैठने की वजह से थोड़ा सा खुल गयी, गीला-पन आने की वजह से हल्की "पुच्च" की आवाज जब आयी तब सुलोचना को अहसास हुआ कि उसकी चूत हल्का सा पनिया गयी थी, उसने साड़ी में हाँथ डालकर अपनी मध्यमा उंगली से चूत की मोटी-मोटी फांकों को छुआ और बाहर आये हल्के से काम रस को उंगली से उठाकर जब सूँघा तो एक मदहोश करने वाली मूत्र की गंध लिए काम रस की महक ने उसे बेचैन कर दिया, वह सोचने लगी कि माँ-बेटा के बीच अभी थोड़ा सा ही अनैतिक सोचने पर जब इतना आनंद है और ये निगोड़ी रस बहाने लगी, तो जो सगे माँ बेटे इस अनैतिक संभोग को कर चुके होंगे और कर रहे होंगे उन्हें कितना आनंद आता होगा? एकदम ही यह सारी चीज़ें सुलोचना के मन पर हावी होने लगी तो उसने इसे झटक कर खुद को संभाला और कार्यक्रम को आगे बढ़ाया।

यज्ञ कुंड में पीपल की लकड़ियां लगाई, यज्ञ सामग्री डालकर उसमे घी डाला और मंत्र पढ़ते हुए महात्मा जी नाम लेकर अग्नि प्रज्वलित कर दी, यज्ञ कुंड में अग्नि जलने लगी, काफी देर तक पहले सुलोचना अपने सिद्ध किये हुए मंत्रों का आवाहन करती रही, नारियल उसकी बगल में टोकरी में रखे थे, उसने एक नारियल उठाया और उसे साड़ी के अंदर ले जाकर अपनी बूर के थोड़ा आगे रख लिया, और एक बार फिर महात्मा जी का नाम लेकर कुछ मंत्र पढ़े फिर वह सोचने लगी-

"मुझे संभोग किये हुए कितने दिन हो गए, मन बहुत करता है, पर क्या करूँ बेबस हूँ, अब मुझे कोई पुरुष साथी कहाँ मिलेगा, कितना आनंद आता अगर कोई पुरुष मुझे रात को चोरी चोरी छुप छुप कर चो......द......आह!, पुरुष का लिंग....उसको छूने का....पकड़ने का....सहलाने का मन करता है.....उसकी महक.....कितने बरस बीत गए लिंग को देखे....कितना अच्छा लगता था जब उनका लिंग मेरी योनि में समाता था...(ऐसे सोचते ही सुलोचना की बूर में संकुचन हुआ और उसने अपनी जांघे थोड़ा भींच ली)

लिंग की चमड़ी खोलकर उसके अग्र भाग के छेद को चूमना कितना उत्तेजक होता है, उत्तेजना में फुले हुए उसके चिकने अग्र भाग को मुंह मे लेकर चूसने में कितना आनंद है, पूरे लिंग को धीरे धीरे सहलाना, चाटना, उसे अपने होंठों से प्यार कर-कर के योनि के लिए तैयार करना जैसे कोई माँ अपने बेटे को युद्ध में जाने से पहले तैयार करती है...कितना आनंदमय होता है लिंग को प्यार करना।

काश कोई लिंग मेरे जीवन में पुनः आ जाता, काश कोई मुझे बाहों में भरकर रात भर प्यार करता, काश मेरी योनि को कोई छूता...सहलाता....चूमता...क्यों मेरा जीवन इतना नीरस हो गया है? मेरा क्या दोष है?....क्यों मैं स्वयं को इस सुख से वंचित किये हुए हूँ, कहते हैं लिंग और योनि का कोई रिश्ता नही होता....तो क्या...तो क्या...वह पुरुष जो मेरे सबसे नजदीक है....वह मेरा हो सकता है....मेरे सबसे नजदीक कौन है?....मेरा पुत्र....मेरा पुत्र ही तो मेरे सबसे नजदीक है, एक माँ के लिए उसके जिगर का टुकड़ा उसका बेटा ही होता है, वही उसके सबसे नजदीक होता है, अगर माँ कुछ चाहती है तो क्या उसका बेटा उसे देगा? क्या बेटा भी चाहेगा? क्या वह उसकी वेदना को समझेगा? क्या मेरा उदय....उफ्फ्फ....कैसा होगा मेरे उदय का.....लिं......ग...ग..ग.गगगग....ओह!

(सुलोचना न चाहते हुए भी आज पाप सोचने के लिए विवश थी, आज जीवन में वो पहली बार व्यभिचार के सागर में चिंतन रूपी नाव पर सवार होकर उतरने जा रही थी, उसका बदन कांप गया, एक तो सामने यज्ञ कुंड में अग्नि धधक रही थी वातावरण वैसे ही गरम हो चुका था और सुलोचना अपने अंदर जो अग्नि सुलगा रही थी वो न जाने अब कैसे थमेगी ये नियति के ऊपर ही था, वह पसीने पसीने हो गयी, बार बार आंख बंद करके वो अनैतिक संभोग की कल्पना करती जिससे उसका बदन सनसना जाता, बेचैन होकर वो कभी इधर उधर देखने लगी, एकाध बार तो उसने चुपके से बाहर देखते हुए अपनी दायीं चूची को खुद ही मसल लिया, जांघों को रह रह कर सिकोड़ लेती, कभी लजा जाती, शर्माकर आँख बंद कर लेती, रह रह कर चुदाई की कल्पना से मन सिरह उठता, आखिर चुदाई का सुख लिए बरसों बीत चुके थे, सांसों की धौकनी बन जाना लाज़मी था)

आखिर खुलकर रिसने ही लगी उसकी निगोड़ी बूररर

एक बार धीरे से उसके मुंह से निकला... "उदय....मेरे पुत्र.....

कैसा महसूस होगा जब उदय मेरा बेटा मुझे छुएगा, मेरी प्रतिकिया क्या होगी?

आंख बंद करती तो कल्पना में मानो उदयराज उसे पीछे से बाहों में भरकर मेरी "माँ" बोलते हुए गालों को चूम रहा होता (सुलोचना सिरह जाती, आंख खोल कर इधर उधर देखती, उत्तेजना में गला सूख गया था...पर न जाने क्यों अच्छा भी लग रहा था, हल्का सा मुस्कुरा भी देती...फिर आंख बंद करती)

छोटे छोटे कल्पना में उत्तेजक दृश्य उसकी आँखों में ऐसे आ जाते जैसे वह घटित ही हो रहे हैं

मुँह से उसके सिसकारी निकल गयी, बस इस कल्पना मात्र से की, रात के घनघोर अंधेरे में बाहर नीम के पेड़ के नीचे खटिया पर वो धीरे-धीरे लेटती गयी, जैसे जैसे वो लेटती गयी उदयराज प्यार से उसे चूमते हुए उसपर चढ़ता गया, "आह माँ और हाय मेरा बेटा" की सिसकी के साथ दोनो लिपट गए और उदय का कठोर लंड सुलोचना की चूत को फैलाता हुआ चूत में घुसता चला गया। एक बेटे का लन्ड माँ की प्यासी गीली चूत में डूब गया। एक माँ की प्यासी चूत उसी के बेटे के लन्ड से भर गई।

सुलोचना पसीने पसीने हो गयी, कुछ पल के लिए उसने खुद को संभाला, बूर अब चिपचिपी हो गयी, भारी मन से उसने दुबारा मन्त्र पढ़ना शुरू किया।
 
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Update- 90

मंत्र पढ़ते हुए अभी कुछ ही वक्त हुए थे, बाहर तेज हवाओं का रुख बार बार बदल जा रहा था, कुछ ही देर में झोपड़ी के ऊपर जहां सुलोचना यज्ञ कर रही थी कुछ बुरी आत्मायें मंडराने लगी, सुलोचना को उनके आगमन का आभास हो गया, पुर्वा ने भी एक नजर उन्हें देखा फिर जाप करने लगी, इन आत्माओं में वो आत्मा नही थी जो तोता बनकर विक्रमपुर गयी थी।

जैसे ही आत्मायें झोपड़ी में घुसी, दरवाजे पर लटका नींबू एकदम लाल हो गया, उन बुरी आत्माओं को पहले तो जरा भी आभास नहीं था कि वो कहाँ फंस गई अब वो वापिस नही जा सकती, मन्त्र सिद्ध किया हुआ नींबू उन्हें अंदर तो आने दे सकता था पर बिना सुलोचना की आज्ञा के अब वो बाहर नही जा सकती थी, वो झोपड़ी में यज्ञ कुंड को देखकर घबरा गई, तेज तेज चिल्लाती और, तरह तरह के डरावने चेहरे बनाती हुई सुलोचना और यज्ञ कुंड के चारों ओर घूमने लगी, सुलोचना को डराने की कोशिश करने लगी, सुलोचना की बूर की महकती खुशबू उन्हें आकर्षित कर रही थी।

एक तरफ यज्ञ कुंड में जल रही अग्नि और सुलोचना के मुख से निकल रहे मंत्र, दूसरी तरफ पाप की खुशबू उन्हें भ्रमित कर रही थी, वह बुरी आत्मायें जो बूर का अर्क लेने आयी थी यह सोचकर भ्रमित हो गयी कि एक तरफ मंत्र और अग्नि और दूसरी तरफ उसी स्त्री में पाप रस की खुशबू, योगिनी के अंदर भोगिनी, यह कैसे संभव है? वह भ्रमित थी कि कहीं और तो नही आ गयी पर सुलोचना की बूर की खुशबू उन्हें अपनी तरफ खींच रही थी, बिना बूर का रस लिए वो जाना नही चाहती थी, पर उन्हें ये नही पता था कि वापस तो अब वो जा ही नही सकती।

वह डरी हुई थी पर बनावटी निडरता दिखाते हुए जोर जोर से चीख चीख कर यज्ञ कुंड और सुलोचना के चारों तरफ चक्कर लगाने लगी। इतने भयानक चेहरे बनाती की आम इंसान देख ले तो वैसे ही मर जाये, कभी वो झोपड़ी की छप्पर से जा चिपकती तो कभी हाहाकार करती हुई सुलोचना के ठीक सामने आकर चीखने लगती और तरह तरह की डरावनी आकृतियां बनाती, खुद डरी हुई होने के बावजूद वो सुलोचना को डराने का भरकस प्रयास कर रही थी।

सुलोचना ने धीरे से आंख खोला और बगल में रखी सुपारी को मंत्र पढ़ते हुए अग्नि में डाल दिया, थोड़ा घी और डाला, फिर उसने आंख बंद की, अग्नि और भड़क उठी।

झोपडी में घी और हवन सामग्री की महक चारों तरफ फैली हुई थी, खिड़कियों और छप्पर के छोटे छोटे छेदों से हवन का धुआँ निकलकर बाहर के वातावरण में फैलने लगा।

सुलोचना ने मुस्कुराते हुए आँखे बंद की और एक बार फिर वासना के समंदर में उतरने लगी, कल्पना की दुनियां में उनसे देखा कि वह बाहर खटिया पर लेटी है, अंधेरी काली रात है, कुटिया के अंदर दिया जल रहा है जिसकी हल्की हल्की रोशनी बाहर आ रही है, खटिया पर लेटे लेटे वह झोपड़ी के दरवाजे की तरफ देखते हुए अंगड़ाई लेती है, तभी उदयराज झोपड़ी से निकलकर बाहर आता है बदन पर सिर्फ एक सफेद धोती पहने वह सुलोचना के पास आता है, उसके चेहरे पर झुककर उसको बड़े ध्यान से देखता है, वो भी उदयराज को बड़े ध्यान से देखती है, दोनो एक दूसरे के चेहरे को बड़े गौर से देखते है, फिर आंखों में देखने लगते हैं, कुछ देर एक दूसरे की आँखों में देखने के बाद उदयराज धीरे से कहता है- माँ

सुलोचना- मेरा बेटा

उदय जैसे ही सुलोचना के प्यासे होंठों को चूमने के लिए उसपर थोड़ा झुकता है, सुलोचना शर्म से अपना चेहरा दोनो हांथों से ढक लेती है।

उदय सुलोचना के कान के पास होंठ ले जाकर धीरे से कहता है- माँ... अपने रसीले होंठ चूमने दे न।

सुलोचना सिसक उठती है, फिर धीरे से बोलती है- क्या? रसीले होंठ, माँ के होंठ तुझे रसीले लगते हैं....धत्त

उदय- छूने दे न माँ... चूम लेने दे न...बहुत नशीले हैं ये होंठ।

सुलोचना- नशीले होंठ.....गन्दे....नही....बिल्कुल नही...

उदय- माँ... ओ मेरी प्यारी माँ.... कर लेने दे न मुझे तेरे साथ अपने मन की...छू लेने दे न इन होंठों को....तुझे भी मजा आएगा।

सुलोचना ने अपने चेहरे को ढके हुए मुस्कुराकर करवट बदल ली - नही मेरे बेटे....पाप है ये....महापाप...अपने ही बेटे के साथ...कैसे?

उदय ने सुलोचना को प्यार से फिर अपनी तरफ पलटा और चेहरे से हाँथ हटाता हुआ उसके गालों को चूम लिया और बोला- ऐसे (फिर दूसरा चुम्बन कान के बगल गर्दन पर लिया और सुलोचना सिसक पड़ी)

उदय- मजा आया न माँ

सुलोचना - गंदे....अपनी माँ के साथ गन्दा काम करेगा।

(और फिर से अपने चेहरे को ढकते हुए करवट लेकर लेट गयी)

उदय ने ब्लॉउज में से दिख रही सुलोचना की नग्न गोरी गोरी पीठ को कई जगह चूम लिया, सुलोचना का बदन थरथराया गया, हल्की हल्की सिसकी उसके मुँह से निकल गयी।

उदय- एक बेटा गन्दा काम तो अपनी माँ के साथ ही कर सकता है न माँ

सुलोचना मुस्कुरा दी, उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया, उदय ने उसे फिर अपनी तरफ पलटा और धीरे से बोला- बोल न माँ... मुझे तेरे साथ गन्दा काम करने देगी?

सुलोचना फिर सिसक गयी, उदय ने फिर गालों को चूम लिया, दोनो एक दूसरे की आंखों में देखने लगे।

उदय- बोल न माँ... मेरी प्यारी माँ

सुलोचना धीरे से- किसी को पता चल गया तो? यह महापाप करते हुए?

उदय- कैसे पता चलेगा माँ... न तुम बताओगी? न मैं।

उदय ने फिर सुलोचना के गालों को चूम लिया और वो फिर से हल्की से सिसकी।

उदय- माँ

सुलोचना- हूँ

उदय- तेरी योनि देखने का मन करता है?

सुलोचना- धत्त...गंदे...बदमाश

सुलोचना फिर से शर्म से बेहाल हो जाती है।

उदय- सच माँ... बहुत मन करता है तेरी प्यारी सी बूर देखने का, यह सच है कि बेटा अपनी माँ की बूर को देखना चाहता है, उसके मन मे ये इच्छा होती है कि उसकी माँ की बूर कैसी होगी?...दोनों फांकें कैसी होंगी?...फांकों के बीच की दरार कितनी लंबी और रसीली होगी?..... उसकी महक कैसी होगी?....माँ की बूर की गंध कैसी होगी?....भगनासा कैसा होगा?...बूर छोटी सी होगी या बड़ी सी, जब वो नंगी होकर दोनो पैर सीधे करके उसके सामने लेटेगी तो उसकी बूर कैसी दिखती होगी, एक बेटा अपनी माँ की बूर को देखना चाहता है चूमना चाहता है...मुझे दिखाओगी न अपनी बूर...माँ?

सुलोचना उदयराज से बुरी तरह लिपट जाती है, कुछ नही बोलती, शर्म से वह लाल हो चुकी थी, बूर शब्द उदय के मुंह से सुनते ही वह बेसुध हो जाती है, योनि, बूर, फांकें, ये सब शब्द सुने बरसों बीत गए थे,उसकी सांसें बहुत तेज चल रही थी, मोटी मोटी चूचीयाँ उदय के सीने से दब गई थी।

उदय फिर धीरे से सुलोचना के कान में - माँ... मुझे अपनी बूर पेलने दोगी...चोदने दोगी मुझे, बहुत मन करता है बूर छूने का?

सुलोचना बदहवास ही उदय से लिपट जाती है काफी देर तक उससे लिपटी रहती है फिर सिसकते हुए धीरे से बोलती है- हाँ... हाँ....मेरे बेटे.....करने दूंगी।

और ख्यालों में इतना सोचते ही सुलोचना की आंखें खुल जाती है, उसके बदन में बहुत उत्तेजना हो रही थी, बूर उसकी बहुत पनिया गयी, उससे अब बर्दाश्त नही हो पाया और वह आंखें खोल कल्पना की दुनियाँ से बाहर आ गयी

देखा तो सारी आत्माएं चारों तरफ चीखते चिल्लाते हुए उसके चारों ओर घूम रही थी, उसमे से एक एकदम उसके सामने आके चिल्लाते हुए बोली- मजा आया...कितना आनंद है न पाप में?

और जैसे ही सुलोचना की योनि की तरफ लपकी योनि के ठीक सामने रखे नारियल में जा घुसी, वो नारियल भी सिद्ध मंत्र से तैयार किया हुआ था जैसे ही वह आत्मा उसमे घुसी उसके पीछे सारी आत्माएं एक एक करके बूर का अर्क छूने के लिए बड़ी तेजी से आगे बढ़ी और सब की सब नारियल में जा फंसी, बहुत तेज चीखने की आवाज हुई, सुलोचना ने वो नारियल साड़ी के अंदर से निकाला और बगल में रखे काले धागे से उसे बांधते हुए, मंत्र पढ़ा और महात्मा जी का नाम लेकर यज्ञ कुंड की धधकती अग्नि में डाल दिया, बुरी आत्माओं के भस्म होने के दौरान मानो चीखने की आवाज पूरे जंगल में गूंज गयी हो, अब तक आयी हुई सारी आत्मओं का एक ही नारियल में भस्मीकरण हो गया, अपनी उत्तेजना को सुलोचना ने काबू किया, दरवाजे पर लटका नीबू जो पूरा लाल हो गया था एक बार फिर अपने वास्तविक रंग में आ गया।
 

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