Incest Paap ne Bachayaa written By S_Kumar

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Notes:- iss story ko maine nahi likha iss story ko s_kumar ji ne likha isliye iss story ka sabhi credit s_kumar ji ko jata hai.
 
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Update- 42

इत्तेफ़ाक़ देखो उजाला होने के ठीक आधे घंटे पहले बिजली कड़की और रजनी की आंख खुल गयी, नियति आज बहुत प्रसन्न थी मानो उसी ने बिजली कड़काकर उन्हें जगाने की कोशिश की हो, बारिश थम तो गयी थी पर ऐसा लग रहा था कि महापाप का शुभ आरंभ होने की खुशी में आज मेघा पूरे दिन ही बरसेंगे। बरसों से चली आ रही जकड़न आज टूट चुकी थी, जंजीर आज टूट चुकी थी, एक नया सवेरा हो चुका था।

रजनी ने आंखें खोली तो उसकी आंखें कच्ची नींद में उठ जाने की वजह से काफी लाल थी, उसने आंखें मली और एक नज़र अपने बाबू पर डाला और बीती रात को क्या क्या हुआ ये सोचते हुए मुस्कुरा दी, उसने अपना चेहरा आगे कर अपने बाबू को धीरे से चूम लिया और धीरे से बोली- उठो बाबू सवेरा होने वाला है, उठो मेरे सैयां, इससे पहले की इधर कोई आ जाये चलो घर चलें।

रजनी के मीठे चुम्बन और नशीली आवाज से उदयराज की भी आंखें खुली तो उसने अपनी बेटी को बड़े प्यार से देखा जो उनकी आंखों में ही देखने की कोशिश कर रही थी क्योंकि अंधेरा अब भी था तो ज्यादा कुछ दिख नही रहा था, उदयराज ने रजनी को अपने ऊपर लेकर बाहों में भरकर चूम लिया, रजनी सिरह उठी और अपने बाबू की बाहों में समा गई, दोनों पूर्ण निवस्त्र थे, बस ऊपर से रजनी की साड़ी ओढ़ रखी थी वो भी इधर उधर से खुल ही गयी थी सोते वक्त।

रजनी- बाबू, अब उठो नही तो देर हो जाएगी, कोई भी इस तरफ आ सकता है।

उदयराज- हाँ, बेटी, चलो

रजनी उठी और एक अंगडाई ली, उदयराज ने लेटे लेटे अपनी बेटी को पहले तो अंगडाई लेते हुए देखता रहा फिर उठकर उसकी पीठ पर दो चार चुम्बन अंकित कर दिए, रजनी फिर सिसक गयी पर उदयराज आगे नही बढ़ा, अगर बढ़ता तो देर हो जाती, वो और रजनी जल्दी से उठे और अपने अपने कपड़े अंधेरे में पहने, हल्के बादल गरज रहे थे, बारिश फिर होने वाली थी।

रजनी- बाबू आपका अंगौछा, खेत में ही रह गया न, और डलिया और तेल भी।

उदयराज- हां, बेटी तू यहीं बैठ मैं लेकर आता हूँ।

उदयराज जल्दी से गया और खेत के पानी में तैर रहा अपना अंगौछा, डलिया और तेल की शीशी उठा लाया।

अब हल्का हल्का रोशनी होनी शुरू हो चुकी थी, हालांकि बादल छाए होने की वजह से सूरज की रोशनी खुलकर नही आई थी पर अंधकार मिटना शुरू हो चुका था।

उदयराज और रजनी ने एक दूसरे को देखा तो रजनी शर्मा गयी और उदयराज ने अपनी बेटी की इस अदा पर उसको अपनी बाहों में भर लिया।

उदयराज- थक गई न

रजनी ने शर्मा कर हाँ में सर हिलाया फिर पूछा- आप नही थके क्या बाबू?

उदयराज- रात भर मक्ख़न खाया है, मक्ख़न खाने से तो और ताकत आती है तो थकूंगा कैसे? हम्म

रजनी ने शर्माते हुए एक हल्का मुक्का अपने बाबू की पीठ पर मारा- बदमाश! बाबू, बहुत बदमाश बाबू हो आप, मेरा तो सारा मक्ख़न खा गए आप एक ही रात में (रजनी ने शरारत से कहा)

उदयराज- अभी सारा कहाँ खाया मेरी बेटी, अभी तो बस आगे की रसोई में रखा मक्ख़न खाया है। पीछे वाली रसोई को तो अभी ठीक से देखा भी नही। (ऐसा कहते हुए उदयराज ने रजनी के भारी नितम्ब साड़ी के ऊपर से दबा दिए)

रजनी अपने बाबू की बात का अर्थ समझते ही फिर शर्मा गयी, एक मुक्का और पीठ पर मारा- गन्दू, गन्दू बाबू, बदमाश! अच्छे बच्चे सिर्फ आगे की रसोई में घुस के खाना खाते है।

उदयराज- वो तो मैं खा चुका हूं न मेरी रानी बेटी, अभी तो आगे की रसोई में खाना खत्म।

रजनी- हां तो और बन रहा है न मेरे बाबू, जैसे ही पक जाएगा मैं अपने बाबू को खुद ही खिलाऊंगी। मेरे बाबू पीछे की रसोई न खाली देखने में बड़ी है, कुछ नही है उसमे और उसका तो दरवाजा भी बहुत छोटा है बाबू, कैसे जाओगे आप अंदर? (रजनी ने अपने बाबू को चिढ़ाते हुए कहा)

उदयराज- दरवाजा तो आगे वाली रसोई का भी छोटा ही था न मेरी रानी, कैसे मैंने तुम्हारी मदद से तीन बार अंदर जा के खूब मक्ख़न खाया, वैसे ही तुम अगर पीछे वाली रसोई का ताला तोड़ने में मदद करो तो हम दोनों मिलकर उसमे रखे असीम आनंद को लूटेंगे, और रही बात दरवाजे की तो उसकी फिक्र तुम न करो मेरी बिटिया रानी, क्या मुझे मेरी अपनी पीछे वाली रसोई में जाने का हक़ नही? (उदयराज ने ये बात रजनी के नितम्ब को सहलाते हुए कहा)


रजनी शर्माते हुए- ऐसे क्यों बोल रहे हैं मेरे बाबू, मेरा तो तन मन सबकुछ आपका है, मैं तो बस मजाक कर रही थी, मैं तो अपने बाबू को हर चीज़ का सुख दूंगी, जो उनको चाहिए।

उदयराज ने रजनी को और भी कस के गले लगा लिया- ओह मेरी बेटी, मैं कितना भाग्यशाली हूँ जो मुझे तुम जैसी बेटी मिली, जो मुझे इतना प्यार करती है।

रजनी- भाग्यशाली तो मैं भी हूँ बाबू, जो मुझे ऐसे बाबू मिले जिन्होंने मुझे इतना प्यार दिया कि मेरा तन और मन दोनों तृप्त हो गए।

उदयराज- आगे वाली रसोई में खाना दुबारा कब तक तैयार हो जाएगा? (उदयराज ने रजनी से वसनात्मय होते हुए कहा)

रजनी शर्माते हुए- हाहाहाहायययय .....बाबू! जल्द ही हो जाएगा बाबू, जैसे ही होगा मैं आपको इशारा कर दूंगी, तब तक आप पीछे वाली रसोई का ताला तोड़कर उसमे घुसकर असीम आनंद ले लेना।

उदयराज- सच्ची

रजनी- मुच्ची, मेरे बाबू सच्ची मुच्ची। पर पीछे वाली रसोई में डाका दिन में डालोगे तो और भी मजा आएगा, वो कहावत है न "दिन दहाड़े डाका डालना" (रजनी ने अपने मन की बात कही)

उदयराज- दिन में, मतलब मैं समझा नही।

रजनी- अरे मेरे बुद्धू सजना, मेरे बाबू, अपनी बेटी की पीछे वाली रसोई में डाका डालना है तो दिन में डालना, क्योंकि रात को तो आगे वाली रसोई में खाना खाया था न।

उदयराज- हाँ तो ठीक है, जैसी मेरी बेटी की इच्छा, पर कहाँ किस जगह, किस कमरे में, क्योंकि दिन में तो काकी भी रहेंगी न।

रजनी तपाक से- बाहर पेड़ के नीचे

उदयराज सन्न होते हुए- बाहर।

रजनी- हाँ मेरे बाबू बाहर।

उदयराज एक पल के लिए रजनी के साहस को देखता रह गया कि रजनी क्या बोल रही है, उसके अंदर ये कैसा रोमांच आ गया है वो किस तरह का रोमांच लेना चाहती है, मन में तो उसके भी गुदगुदी सी हुई कि दिन में ही, किसी ने देख लिया तो, फिर उसने सोचा कि छोरी छिपे कितना रोमांच आएगा जरूर इसी रोमांच को महसूस करने के लिए रजनी ये चाह रही है।

उदयराज- बाहर कहा, जब तुम इतना कह रही हो तो कोई जगह भी सोची होगी तुमने जरूर, मेरी जान।

रजनी- हाँ सोची है न मेरे राजा जी, दालान के बग़ल में जो अमरूद का पेड़ है उसके नीचे खाट बिछा के, वही पीछे वाली रसोई का खाना परोसुंगी अपने बाबू को।

उदयराज- और काकी आ गयी तो, या किसी ने देख लिया तो, अनर्थ हो जाएगा

रजनी- अब ये तो हमारी काबिलियत पर है बाबू की हम सबकी नजर बचा कर कैसे रोमांच का रसपान करें, और मुझे नही लगता कि मेरे बाबू इस बात से डरते होंगे।

उदयराज- वो तो अब वक्त ही बताएगा, चल अब (ऐसा कहते हुए उदयराज ने अपनी बेटी को बाहों में उठा लिया)

राजनी- ऊई मां, बाबू आप भी तो थक गए हो न, रहने दो मैं चल लूँगी धीरे धीरे।

उदयराज- अपनी रानी बेटी को अब मैं पैदल नही चलने दूंगा, जो मुझे मक्ख़न खिलाये उसको मैं भला पैदल चलने दूंगा।

रजनी खिलखिला कर हंस दी- अच्छा तो इतनी मेहनत मक्ख़न के लिए हो रही है।

उदयराज- हाँ और क्या, सेवा करेंगे तभी तो मेवा मिलेगा खाने को।

रजनी- बेटी का मेवा, सगी बेटी का

उदयराज- हां सगी बेटी का

रजनी फिर खिलखिलाकर हंस दी- बदमाश! बाबू, कोई सुन लेगा।

उदयराज- अभी तो हल्का हल्का अंधेरा है, अभी इस तरफ कोई नही आएगा, तब तक हम पहुँच जाएंगे, देखो बादल भी फिर से कितने छा गए हैं, लगता है आज बारिश ही होगी पूरे दिन।

उदयराज अपनी बेटी को बाहों में लिये कंधों पे उठाये अंधेरे में चल दिया अपने घर की ओर।

उदयराज और रजनी ऐसे ही बातें करते हुए घर के पास बाग तक पहुँच गए तो उदयराज ने रजनी को उतार दिया और रजनी अपने भारी नितम्ब को मटकाते हुए आगे आगे चलने लगी, अब उजाला हो चुका था।

रजनी और उदयराज के घर पहुचते ही काकी ने उन्हें देखा तो मुस्कुरा पड़ी और बोली- अरे मेरे बच्चों भीगे तो नही, सारी रात बारिश हुई आज तो और देखो अब भी बदल छाए है लगता है दिन भर बरसेंगे।

रजनी- हाँ काकी, बारिश की वजह से कुछ देर वहीं रुकना पड़ा, फिर आंख लग गयी और वहीं सो गए, गुड़िया रोई तो नही रात में।

काकी- नही, लेकिन अब उसको भूख लगी है जोर से, ले दूध पिला दे, तब तक मैं तुम दोनों के लिए नाश्ता बनाती हूँ।

रजनी- काकी रुको जरा मेरे कपड़े गीले हैं, मैं जरा बदल लूं।

काकी- हाँ जरूर, उदयराज तू भी कपड़े बदल ले

उदयराज और रजनी ने अपने कपड़े बदले, काकी रसोई में चली गयी नाश्ता बनाने, रजनी ने अपने बाबू को मुस्कुराकर दिखाते हुए अपना ब्लॉउज खोल के दायीं चूची निकाली और बच्ची के मुँह में डाल दी, उदयराज कुछ देर अपनी बेटी की मोटी सी गोल चूची देखता रहा फिर उसने इशारे से उसको ढक लेने के लिए कहा क्योंकि बच्ची दूध पी रही थी,रजनी ने आँचल से स्तन को ढक लिया।

उदयराज उठा और घर का काम करने लगा, जानवरों को चारा दिया और फिर जाकर नहाया, रजनी भी नहा धोकर फ्रेश हो गयी और सबने मिलकर नाश्ता किया।

काकी- मुझे मालूम है की रात भर तुम लोग बारिश की वजह से जागे हो तो जाकर आराम कर लो।

रजनी- जी काकी, लेकिन खाना आप मत बनाना मैं दिन में बनाउंगी, आप परेशान मत होना।

काकी- ठीक है बेटी तू पहले सो ले जा के ठीक से।

रजनी घर में सोने चली गयी, उदयराज भी बरामदे में लेटकर सो गया, काकी बच्ची को खिलाने लगी, बादल एक बार फिर बरसने लगे। काकी मन ही मन मुस्कुरा रही थी।

आगे क्रमशः जारी रहेगा.....
 
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Update- 43

(तो चलिए उदयराज और रजनी को सोने देते हैं और चलते हैं नीलम के घर, यहां कहानी में थोड़ा पीछे आना पड़ेगा, आइए थोड़ा पीछे जाकर नीलम की जिंदगी में देखें क्या क्या घटित हुआ।)

उस दिन अपनी माँ को वचन देने के बाद, कि कभी भी बाबू को ऐसा कुछ हुआ तो मैं वही करूँगी जो आपने सपने में देखा था, नीलम बहुत खुश थी, एक तो वो इस बात से खुश थी कि उसकी माँ ने ऐसा सपना देखा और सपने में जैसा हुआ था उसे समस्या का समाधान मानके अपनी बेटी से वैसा ही करने का वचन लिया, दूसरा उसकी माँ इस तरह की बातें आज जीवन में पहली बार करके उसके मन के और नजदीक आ गयी थी, परंतु उसने फिर सोचा कि नही वो अपने बाबू बिरजू को खुद ही अपना रसीला यौवन दिखा दिखा के रिझाएगी, आखिर कभी तो उसके बाबू उसपर टूट पड़ेंगे तब आएगा मजा, आखिर एक प्यासा मर्द कब तक अपने आप को रोकेगा। अपने बाबू की मन की हल्की हल्की मंशा को नीलम जान चुकी थी और वो ये भी जानती थी कि उसकी अम्मा अब बाबू को अपना मक्ख़न नही दे पाती हैं खाने को और बिना मक्ख़न के मर्द कैसे और कब तक रहेगा।

उस दिन छत पर गेहूं फैलाते वक्त जब से उसने अपने बाबू बिरजू का काला खुला हुआ लन्ड देखा था, तभी से वो बहुत विचलित थी और कामाग्नि में जल रही थी, बिरजू को तो ये बात पता भी नही थी कि उसकी बेटी उसका क्या देख चुकी है, पर जब छुप छुप के बाहर काम करते हुए वो अपने बाबू को निहारती और बिरजू द्वारा देख लिए जाने पर जान बूझ कर मुस्कुराते हुए इधर उधर देखने लगती तो बिरजू को भी कुछ कुछ होता था।

नीलम रंग में रजनी से बस हल्का सा कम थी पर शरीर में थोड़ा सा भारी थी, नीलम की मस्त चूचीयाँ कयामत ला देने वाली चूचीयों की श्रेणी में आती थी और नैन नक्श में वो रजनी को बराबर का टक्कर दे देती थी, उसकी लंबाई रजनी से थोड़ी कम थी जिस वजह से वो रजनी से थोड़ा ज्यादा भारी दिखती थी, जब वो चलती थी तो उसकी भारी गांड देख के उसके बाबू का मन डोल ही जाता था, अपनी सगी शादीशुदा बेटी पर उसका मन आसक्त होता था और नीलम यही तो चाहती थी।

नीलम की शादी हुए चार साल हो चुके थे पर अभी तक उसको बच्चा नही हुआ था, बच्चे के लिए मन ही मन वो बहुत तरसती थी, इस वजह से उसने नियमित रूप से पूजा पाठ भी शुरू कर दिया था, जैसा भी जो लोग करने के लिए बोलते थे वो उसको नियम से करती थी, अपने पति से उसका इस बात को लेकर कभी कभी मनमुटाव और हल्का फुल्का झगड़ा भी हो जाता था, और जब उसका दिमाग ज्यादा खराब होता तो वो ससुराल से मायके आ जाती थी और तीन चार महीने रहकर ही जाती थी। नीलम का अपने पति से बच्चे को लेकर इसलिए झगड़ा होता था क्योंकि नीलम को बहुत अच्छे से पता था कि उसके पति का वीर्य बहुत पतला था और वो इसी को इसका कारण मानती थी, अपने पति को वो इसका इलाज कराने के लिए बोलती तो उसका पति अपनी मर्दानगी पर लांछन समझकर चिढ़ जाता था और अक्सर झगड़ा कर लेता था हालांकि नीलम से वो डरता था, नीलम उसपर भारी पड़ती थी, उसपर ही क्या वो अपने ससुराल में दबदबा बना कर रहती थी, पर दिल की बहुत अच्छी थी, ससुराल में जब भी रहती सारा घर संभाल कर रखती थी, उसकी सास भी उससे ज्यादा बहस नही करती थी, पर वो ये मानने को तैयार नही होती थी कि उसके बेटे में कमी है, खैर नीलम भी अपनी सास के सामने कभी इस बात का जिक्र नही करती थी और न ही करना ठीक समझती थी, पर चिंता तो सबको ही थी, नीलम की सास को भी और नीलम की माँ को भी, बस चिंता नही थी तो उसके पति को, वो बोलता था कि जब जो होना होगा हो जाएगा, मैं क्या करूँ और नीलम इस बात से चिढ़ भी जाती थी और अक्सर वो अपने मायके आ जाती थी उसके ससुराल में भी काम धाम संभालने वाली उसकी देवरानी और उससे बड़ी जेठानी थी तो उसकी वजह से वहां काम रुकता नही था, जिस वजह से वो अक्सर अपने मायके में रह लेती थी।

एक दिन नीलम की माँ ने नीलम से कहा- बेटी तेरे नानी के यहां एक बुढ़िया है जो ओझाई का काम करती है छोटा मोटा, लोग कहते हैं कि वो कुछ जड़ी बूटियां देती है जिससे बच्चे न होने की समस्या हल हो जाती है, पता नही कितना सच है कितना झूट, मेरा तो मन कर रहा है कि किसी दिन तेरे नानी के घर जा के मिल कर आऊं उस बुढ़िया से, तू ठीक लगे तो बोल मैं जाती हूँ किसी दिन।

नीलम- अम्मा, जो भी जैसा भी लोग बोलते हैं मैं सब करती हूं, अगर आपको ऐसा लगता है तो किसी दिन चली जाओ और मेरी जरूरत पड़े तो मैं भी चलूंगी।

नीलम को माँ- अभी नही पहले मैं जाउंगी अकेले फिर देखो वो क्या बताती है, क्या कहती है, काफी पहले मैंने सुना था उसके बारे में, पता नही अब वो बुढ़िया जिंदा भी है या नही।

नीलम- अम्मा मेरा मन तो नही मानता की मेरे अंदर कोई कमी है, वैसे भी हमारे गांव में बच्चे जल्दी होते कहाँ हैं ये बात तो आप भी जानती हो न, क्या पता वही असर हो, इसी समस्या का हल ढूंढने के लिए तो रजनी दीदी और बड़े बाबू देखो तीन चार दिन कितना डरावना सफर करके महात्मा से मिलकर उस समस्या का हल लेकर आये हैं अब वो जैसे ही यज्ञ करेंगे सब ठीक हो जाएगा और एक बात और भी है जो मैं तुम्हे बता चुकी हूं, मैं उन्हें बहुत बोलती हूँ इलाज़ कराने के लिए पर वो मेरी सुनते ही कहाँ हैं, उन्हें तो जैसे कोई चिंता ही नही है।

नीलम की माँ- देख बेटी वजह चाहे जो भी हो पर कहीं कुछ पता चलता है जो जाकर कर लेने में क्या हर्ज है, तू चिंता न किया कर, तेरी कोख भी ईश्वर जल्द ही भरेंगे मेरा दिल कहता है, तू खुश रहा कर, ईश्वर सबकी सुनता है। मैं जाती हूँ किसी दिन तेरे नानी के घर। वो नही ध्यान देता तो छोड़ तू उसको, तेरी सास तो तेरे को लांछन नही देती न।

नीलम- नही अम्मा लांछन तो नही देती पर वो मुझे कम मानती है, देवरानी और जेठानी को ज्यादा मानती हैं, हालांकि कभी वो सीधा मुझसे नही कहती पर उनके हाव भाव से मुझे लग जाता है।

नीलम की माँ- तू चिंता न कर सब ठीक हो जाएगा मेरी बच्ची।

ऐसा कहकर नीलम की माँ उसको गले लगा लेती है।

नीलम के घर के आगे द्वार पर एक बहुत बड़ा जामुन का पेड़ था और जामुन था भी मीठा वाला, बड़े बड़े और काले काले जामुन लगते थे उनमे, गांव के बच्चे अक्सर जामुन के चक्कर में वहीं डेरा जमाए रहते थे, ज्यादातर बच्चे पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करते कि पेड़ पर चढ़कर अच्छे अच्छे जामुन तोड़ेंगे, नीचे गिरकर जामुन बेकार हो जाते हैं, मीठे जामुन होने की वजह से ततैया भी उन्हें खाने ले लिए पेड़ पर मंडराती रहती थी, बच्चे नीलम की मां से डरते थे क्योंकि वह पेड़ पर चढ़ने से डांटती थी, जब भी वो देखती की बच्चे पेड़ पर चढ़ रहे है और ज्यादा शरारत कर रहे है या शोर मचा रहे हैं तो डंडा लेकर उन्हें खदेड़ लेती थी, हालांकि वह ज्यादा फुर्ती से भाग नही पाती थी पर जामुन के पेड़ पर नजर रखती थी कहीं बच्चे उसपर चढ़े न और अपने हाँथ पांव न तुड़वा बैठें।

नीलम ये सब देखकर खूब हंसती थी, अपने घर पे बच्चों के इस तरह आकर खेलना, जामुन खाना और उनका जेब में भर भर के अपने घर ले जाना नीलम को बहुत अच्छा लगता था। बच्चे अक्सर नीलम से ही जामुन खाने और तोड़ने की आज्ञा मांगते थे और जब नीलम बोल देती थी कि जाओ खा लो, तोड़ लो, तो सीना चौड़ा करके जमीन पर पेड़ के नीचे गिरे सारे जामुन बिन लेते थे, कुछ बच्चे बड़ी सी लग्गी लेके आते और अच्छे अच्छे जामुन तोड़कर नीलम को भी देते खुद भी खाते और घर भी ले जाते, नीलम को ये सब देखकर बहुत सुकून मिलता था, इन प्यारे प्यारे मासूम बच्चों और बच्चियों को देखकर। नीलम खुद छोटी छोटी बच्चियों को लग्गी से अच्छे अच्छे जामुन तोड़कर देती थी और जब वो बच्चियां घर से कुछ लेकर नही आई होती थी तो उनकी फ्रॉक के आगे के हिस्से को उठाकर जामुन उसमे भर देती थी, वो छोटी छोटी बच्चियां अपने फ्रॉक को आगे से उठाए उसमे जामुन भरे हुए नन्हे नन्हे कदमों से चलकर अपने घर जाती तो देखकर बहुत अच्छा लगता, नीलम तो उन्हें देखकर बहुत खुश होती थी। नीलम की मां भी बच्चों के मामले में खड़ूस नही थी पर वो उन्हें इसलिए डांटती थी कि कहीं पेड़ से गिर कर चोट न लगा लें।

तो जब तक नीलम के घर के आगे जामुन के पेड़ पर जामुन लगे रहते तब तक उसके घर पेड़ के नीचे गांव के बच्चों का जमावड़ा अक्सर शाम को या दोपहर को लगा रहता था। नीलम भी उनके साथ खाली वक्त में अपना मन बहलाने के लिए या जामुन तोड़ने में उनकी मदद करने के लिए हँसती खिलखिलाती लगी रहती थी, हर उम्र के छोटे बडे बच्चे वहां आते थे जामुन खाने। सब बच्चे नीलम को दीदी कहकर बुलाते थे।

एक दिन नीलम की माँ ने नीलम से और उसके बाबू बिरजू से अगले दिन शाम को नीलम की नानी के घर जाने के लिए कहा तो बिरजू बोला- हाँ ठीक है चली जाओ पर जल्दी आ जाना एक दो दिन में।

नीलम की माँ- अरे नीलम के बाबू मैं कल शाम को जाउंगी और उसके अगले दिन ही आ जाउंगी, मुझे रुकना थोड़ी है वहां। वो तो मैं किसी काम से जा रही हूँ।

बिरजू- कैसा काम?

नीलम की माँ- है कुछ काम, जरूरी है तुम्हे पहले से ही सब बताऊं, जब सफल हो जाएगा तो बता दूंगी, कुछ काम औरतों वाले भी होते हैं मर्दों को नही बताये जाते पहले।

बिरजू हंसता हुआ नीलम को देखकर- अच्छा बाबा ठीक है, जाओ।

अपने बाबू को अपनी तरफ देखते हुए देखकर नीलम शर्मा गयी।

रात को खाना खाने के बाद जब बिरजू बाहर सोने चला गया तो नीलम ने अपनी माँ से कहा- अम्मा अपने जामुन के पेड़ में बहुत जामुन लगे हैं तो तुम कल जामुन भी लेते जाना नाना नानी और मामा मामी के लिए, मैं तोड़ दूंगी।

नीलम की माँ ने पहले तो मना किया फिर नीलम की जिद पर मान गयी।

अगली सुबह नीलम ने अपने बाबू बिरजू को अपना मदमस्त यौवन दिखाने की सोचकर उनके किसी काम से निकलने से पहले ही उसने बोली- बाबू आप जा रहे है काम से।

बिरजू- हाँ बिटिया, क्या हुआ, मेरी बेटी को कुछ काम है क्या मुझसे?

नीलम- हां है तो

बिरजू- तो बोल न शर्माती क्यों है।

नीलम की मां उस वक्त सुबह सुबह लायी हुई घास मशीन के पास बैठकर पीट रही थी। (गांव में क्या होता है कि खेत से घास छीलकर लाने के बाद उसको किसी छोटे डंडे से पीटते हैं ताकि उसकी मिट्टी निकल जाए, फिर उसको मशीन में लगाकर छोटा छोटा काटते हैं और फिर उस घास में भूसा मिलाकर जानवर को खाने को देते हैं तो नीलम की माँ उस वक्त घास को डंडे से पीट रही थी)

नीलम ने आज नहा कर जानबूझ कर घाघरा चोली पहना हुआ था और नीचे काली रंग की पैंटी पहनी हुई थी।

बिरजू अपनी बेटी को आज घाघरा चोली में देखकर निहारे जा रहा था, नीलम मंद मंद अपने बाबू को चोर नज़रों से घूरते हुए देखकर सिरह सिरह जा रही थी और उसे बड़ा मजा आ रहा था।

नीलम- बाबू मेरी जामुन तोड़ने में मदद करो न, अकेले कैसे तोडूं, अम्मा आज नाना के घर जाएंगी तो मैंने सोचा था कि अपने यहां के अच्छे पके हुए जामुन तोड़कर भेजूंगी पर बिना आपके कैसे होगा?

बिरजू- हां तो बेटी चल न तोड़ देता हूँ, इतना कहने में तुझे संकोच क्यों हो रहा है वो भी अपने बाबू से।

नीलम- मुझे लगा क्या पता आप मना कर दो।

बिरजू- मना क्यों कर दूंगा, अपनी प्यारी बेटी की हर इच्छा पूरा करना बाप का फर्ज होता है, चाहे छोटी चीज़ हो या बड़ी।

नीलम- अच्छा तो फिर ठीक है, अब नही शरमाउंगी बोल दूंगी जो भी इच्छा होगी, पूरा करोगे न। (नीलम ने डबल मीनिंग में बोला पर बिरजू अभी समझ न पाया)

बिरजू- क्यों नही करूँगा, मेरी तू ही तो प्यारी सी बेटी है, ऐसा कभी मत सोचना अब ठीक है, चल।

सवेरे की खिली खिली धूप निकल आयी थी, नीलम एक खाट लेके आयी और उसको जामुन के पेड़ के नीचे बिछा दिया और उसपर एक पुराना चादर डाल दिया फिर अपने बाबू से बोली- बाबू आप न इस खाट के बगल में खड़े रहो, मैं पेड़ पर चढ़ती हूँ।

ये सुनकर बिरजू बोला- अरे नही बेटी तू यहीं खाट के पास रह मैं पेड़ पर चढ़कर तोड़ देता हूँ पर नीलम मानी नही क्योंकि उसको पेड़ पे चढ़कर अपने बाबू को कुछ दिखाना था, घाघरा उसने इसी लिये पहना था आज।

नीलम नही मानी, बिरजू ने एक बार नीलम की माँ को देखा जो बैठकर घास पीटने में व्यस्त थी, उसको तो पता भी नही था कि नीलम और बिरजू कर क्या रहे हैं, वो बस डंडे से पट्ट पट्ट की आवाज करते हुए घास पीटे जा रही थी पीछे क्या हो रहा था उसे पता नही और लगातार डंडे ही आवाज से उसे कुछ सुनाई भी नही दे रहा था।

नीलम जामुन के पेड़ पर चढ़ने के लिए अपनी चुन्नी को कमर पर बांधने लगी, बिरजू अपनी बेटी की सुंदरता को मंत्रमुग्द होकर देखे जा रहा था, उसके भीगे बालों की लटें, माथे पे छोटी सी बिंदिया, मांग में सिंदूर, कान की हिलती हुई झुमकियाँ, लाली लगे रसीले होंठ और वो गज़ब के मस्त मोटे मोटे तने हुए, चोली में कसे हुए दोनों जोबन और अपनी कमर में चुन्नी बांधते हुए वो कितनी खूबसूरत लग रही थी, कमर में कस कर चुन्नी बांधने से उसकी दोनों उन्नत चूचीयाँ और भी उभरकर बाहर आ गयी थी।

नीलम ने जैसे ही कमर में चुन्नी बांधकर अपने बाबू की तरफ देखा तो वो उसे ही मंत्रमुग्ध सा देख रहा था, एक पल के लिए नीलम मुस्कुरा उठी अपने बेटी से नज़र मिलते ही बिरजू भी मुस्कुरा दिया तो नीलम धीरे से बोली- ऐसे क्या देख रहे हो बाबू,।

बिरजू- अपनी बेटी की सुंदरता, आज क्या बला की खूबसूरत लग रही है मेरी बेटी इस घाघरा चोली में।

नीलम का चेहरा शर्म से लाल हो गया क्योंकि बिरजू ने आज से पहले कभी ऐसा नही कहा था, नीलम के छोड़े गए तीर सही जगह पर जा जा के लग रहे थे।

नीलम- अच्छा जी, बाबू आज से पहले तो आपने कभी ऐसा नही कहा, क्या मैं तब सुंदर नही थी।

बिरजू- सुंदर तो तू मेरी बेटी हमेशा से ही है पर मैंने आज तुझे ध्यान से और.........

बिरजू रुककर नीलम की माँ की तरफ देखने लगता है नीलम भी एक नज़र अपनी माँ पर डालती है जो मस्त मौला बेखबर होकर घास पीटे जा रही थी।

नीलम- बोलो न बाबू आज अपने मुझे ध्यान से और.....और क्या? बोलो न.... अम्मा तो घास पीट रही है नही सुनेगी, बोलो न धीरे से।

बिरजू- और...... दिल से देखा है, पता नही क्यों, तू सच में बहुत खूबसूरत है

नीलम- सच बाबू, आपको मैं इतनी अच्छी लगने लगी हूँ, ऐसा क्या है मुझमें, मैं तो आपकी बेटी हूँ न, सगी बेटी।

बिरजू- हाँ है तो मेरी बेटी, मेरी सगी बेटी, पर तू मुझे अच्छी लगती है तो क्या करूँ, तू सच में बहुत......

नीलम- बहुत क्या बाबू.....बोलो न

बिरजू ने एक बार फिर नीलम की माँ की तरफ देखा तो नीलम भी फिर अपनी माँ को देखने लगी।

बिरजू- बाद में बताऊंगा और कहकर नीलम की आंखों में देखने लगा।

नीलम- जब अम्मा नानी के यहां चली जायेगी।

बिरजू- हाँ

नीलम- तो आप जल्दी घर आ जाना आज, मैं आपका इंतजार करूँगी, आपकी बेटी आपका इंतजार करेगी आज रात।

इतना कहकर नीलम का चेहरा वासना में लाल हो गया और वो अपने बाबू की आंखों में देखकर मुस्कुराने लगी।

बिरजू को भी आज इतना अच्छा लग रहा था की वो आसमान में उड़ने लगा, अपनी ही सगी बेटी से उसे मोहब्बत होती जा रही थी और उसकी बेटी के मन में भी यही था अब ये उसे थोड़ा थोड़ा आभास हो गया था।

दोनों मंत्रमुग्द से एक दूसरे को देखते रहे कि तभी नीलम बोली- बाबू चलो मुझे पीछे से सहारा देकर पेड़ पर चढ़ाओ नही तो मैं चढ़ नही पाऊंगी, देखो कितना मोटा है इसका तना।

बिरजू- हाँ चल, तू चढ़ मैं तुझे पीछे से तुझे उठाता हूँ।

नीलम ने अपने दोनों हांथों से जामुन के पेड़ के तने को पकड़ा और अपना सीधा पैर उठा कर तने पर चढ़ने के लिए लगाया जिससे उसकी भारी विशाल गांड की चौड़ी चौड़ी गोलाइयाँ बिरजू को पागल कर गयी और नीलम ये बात जानती थी उसने ये सब प्लान जानबूझकर बनाया ही था इसलिए उसने जानबूझकर भी अपनी गांड को और भी पीछे को निकाल लिया, बिरजू अपनी बेटी की गांड बहुत नजदीक से देखता रह गया, नीलम समझ गयी कि उसके बाबू की नज़र कहाँ है, वो मंद मंद मुस्कुराते हुए बोली- बाबू हाँथ लगाओ न, ऐसे ही देखते रहोगे क्या, जो भी देखना है बाद में देख लेना, अभी मुझे चढ़ाओ पेड़ पर।

नीलम ने ये लाइन "जो भी देखना है बाद में देख लेना" जानबूझकर धीरे से बोली और उदयराज अपनी सगी बेटी के इस निमंत्रण पर अचंभित सा रह गया और धीरे से बोला- बाद में कब?

नीलम मुस्कुराते हुए- जब अम्मा चली जायेगी नानी के घर तब रात में।

बिरजू की सांसें ये सुनकर अब तेज चलने लगी नीलम की भी सांसे ये सोचकर काफी तेज चलने लगी कि आज वो ये क्या क्या कर और बोल रही है, उसके अंदर इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई है, बोलते बोलते उसका चेहरा भी शर्म से लाल हो गया था, पर नीलम ने सोचा था कि वो पहल जरूर करेगी ताकि उसके बाबू को आगे बढ़ने के लिए सिग्नल मिल सके, पर वो इस द्विअर्थी बातों से खुद भी बहुत उत्तेजित होती जा रही थी।

एकाएक बिरजू ने नीलम की पतली मखमली कमर को अपने दोनों हाँथ से पकड़ा और ऊपर को उठाने लगा, कमर को पकड़ते ही बिरजू को जैसे बिजली का झटका सा लगा, अपनी जवान सगी शादीशुदा बेटी के मखमली बदन को वो आज पहली बार उसकी जवानी में छू रहा था, बेटी के जवान हो जाने के बाद वो केवल बेटी नही रहती वो एक स्त्री भी हो जाती है और जवान होने के बाद पिता अपनी बेटी के बदन से इसलिए दूर भी रहता है क्योंकि कामभावना जागने का डर रहता है फिर चाहे वो सगी बेटी ही क्यों न हो, यही हाल इस वक्त बिरजू का था आज पहली बार उसने जब अपनी सगी बेटी नीलम के बदन को छुवा तो उसकी कामवासना जाग गयी।

बिरजू ने नीलम को कमर से पकड़कर ऊपर को उठाने की कोशिश की पर नीलम भारी बदन की मलिका थी, सिर्फ कमर पर हाँथ लगाने से आसानी से उठ जाती ये तो मुमकिन ही नही था, नीलम ने भी पेड़ पर चढ़ने की कोशिश की पर फिसलकर फिर नीचे आ गयी।
 
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Update- 44

नीलम ने पलटकर अपने बाबू को देखा और फिर अपनी माँ की तरफ देखा फिर बोली- बाबू ठीक से पकड़कर उठाओ न, दम लगा के ऐसे तो मैं चढ़ ही नही पाऊंगी, उस डाल तक उठा दो बस वो पकड़ में आ जाये फिर तो मैं चढ़ जाउंगी।

बिरजू ने भी एक बार पलटकर नीलम की माँ को देखा, वो अपने काम में मस्त थी, बिरजू ने नीलम को बोला थोड़ा इधर आ इस तरफ से चढ़, बिरजू और नीलम पेड़ के तने के दायीं ओर आ गए और पेड़ के मोटे तने के पीछे छुप से गये, वहां से नीलम की माँ दिख नही रही थी, पेड़ से ओट हो गया था।

नीलम ने फिर कोशिश की, बिरजू ने जैसे ही कमर को हाँथ लगाया नीलम ने अपने बाबू का हाँथ खुद ही पकड़कर अपने विशाल चूतड़ पर रख दिया और बोली- बाबू कमर पर नही यहां हाँथ लगा के उठाना, और अपने बाबू को देखकर हंस दी फिर बोली- अब तो अम्मा भी नही दिख रही यहां से, अब मुझे सहारा दो अच्छे से।

बिरजू भी हंस दिया और बोला- ठीक है चल, जल्दी कर।

नीलम ने एक पैर पेड़ के तने पर रखा और दोनों हांथों से तने को पकड़ा, बिरजू ने जैसे ही अपना एक हाँथ नीलम की कमर पर लगाया और दूसरा हाँथ उसकी चौड़ी मांसल गांड पर लगाया, नीलम और बिरजू दोनों एक साथ सिरह उठे, क्या मस्त गुदाज गांड थी नीलम की, बिरजू बावला सा हो गया, बिरजू के हाँथ की उंगलियाँ मानो नीलम की गुदाज फूली हुई गांड में धंस सी गयी।

नीलम- ऊऊऊऊईईईईईई.....बाबू.....हाँ ऐसे ही उठाओ, जोर लगाओ, पकड़े रहना, बस वो डाली पकड़ लूं मैं।

नीलम ने थोड़ा ऊपर चढ़कर अपने हाँथ से उस डाली को पकड़ने की कोशिश की, वो डाली उसकी पहुंच से सिर्फ एक फुट ऊपर थी।

बिरजू तो मस्त हो चुका था अपनी सगी बेटी के मांसल बदन को छूकर और उसकी मदमस्त चौड़ी गांड को दबोचकर।

बिरजू- हाँ चढ़ बेटी, मैंने पकड़ा है नीचे से, गिरेगी नही।

ऐसा कहते हुए बिरजू ने अपना दूसरा हाँथ भी कमर से हटा कर नीलम के दूसरे चूतड़ पर रख दिया और अब दोनों हांथों से उसके चूतड़ के दोनों उभार थाम लिए, अपनी बेटी के मादक गरम गुदाज गांड की लज़्ज़त और नरमी का अहसास मिलते ही बिरजू के लंड में हलचल होने लगी। उसने एक पल के लिए आंखें बंद कर ली। नीलम भी सिरहते और शर्माते हुए डाली को पकड़ने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

बिरजू का मन कर रहा था कि अपना हाँथ अपनी बेटी की गांड की महकती दरार पर रख दे पर संकोच उसे रोक ले रहा था, तभी नीलम बोली- बाबू और जोर लगाओ न, और उठाओ मुझे, इसलिए बोलती हूँ दूध पिया करो ताकत रहेगी, पीते तो हो नही, उठाओ और जोर से मुझे। (नीलम ने double meaning में कहा)

बिरजू अपनी बेटी की बात का अर्थ समझ गया और बोला- दूध है ही कहाँ जो पियूँ बेटी, तुझे तो पता है गाय बूढ़ी हो गयी है अब कहाँ दूध होता है उसको।

नीलम- अच्छा, बहाना मत करो, जिसको दूध पीने की इच्छा होती है न वो कैसे न कैसे करके घर में या बाहर से दूध की व्यवस्था कर ही लेता है, गाय बूढ़ी हो गयी तो क्या हुआ उसकी जवान बछिया तो है न। (नीलम ने double meaning में खुला निमंत्रण सा दिया अपने बाबू को और ये बोलकर वो खुद सिरह गयी, शर्म से उसका चेहरा लाल हो गया, हालांकि उसका चेहरा ऊपर की तरफ था)

(नीलम के घर में सच में एक गाय थी जो बूढ़ी हो चुकी थी और इत्तेफ़ाक़ से उसकी एक जवान बछिया भी थी पर अभी उसकी मैचिंग किसी बैल से नही हुई थी तो उसको कोई बच्चा नही हुआ था और जब बच्चा ही नही हुआ था तो उसको दूध कैसे होता, इसी गाय और बछिया को लेकर नीलम और बिरजू डबल मीनिंग में कामुक बातें करने लगे)

बिरजू- पर बछिया को दूध आता ही कहाँ है बेटी, जब तक उसको बच्चा नही होगा वो दूध नही देगी और बाहर का दूध मैं पियूँगा नही।

नीलम- सच, आप बाहर का दूध नही पियोगे।

बिरजू- नही, बिल्कुल नही।

नीलम- तब तो फिर बछिया को जल्दी बच्चा देना होगा, पर वो बेचारी अकेली तो बच्चा कर नही सकती न, अब तो किसी बैल को बुलाना होगा न बाबू।

(और इतना कहती हुई नीलम खिलखिलाकर अपने बाबू को नीचे की तरफ देखती हुई हंस दी, बिरजू भी नीलम की गुदाज गांड को अपने दोनों हांथों से पकड़े पकड़े हंस दिया, दोनों के चहरे और कान वासना की गर्माहट से लाल हो चुके थे, दोनों ने एक बार फिर पेड़ की ओट से झांककर नीलम की माँ को देखा तो वो बस घास ही पीटने में लगी थी)

बिरजू- हाँ अगर दूध पीना है तो उसको बैल के पास तो ले जाना ही पड़ेगा।

नीलम- इस पर हम बाद में बात करेंगे, क्योंकि आपकी सेहत की बात है और मैं अपने बाबू की सेहत से समझौता नही कर सकती।

बिरजू- कब बात करेगी मेरी बेटी इस विषय में।

नीलम- जब अम्मा नही रहेंगी तब, रात को....ठीक, रुक क्यों गए ऊपर को ठेलों न मुझे बाबू, लटकी हुई हूँ बीच में मैं, उठाओ जोर से।

जैसे ही बिरजू ने तेज जोर लगाने के लिए दम लगाया, न जाने कहाँ से एक लाल ततैया आ के बिरजू के हाँथ पर बैठ गयी और बिरजू ने हाँथ तेज से झटका, ततैया तो फुर्र से उड़ गई पर ऊपर को चढ़ने की कोशिश कर रही नीलम का बैलेंस बिगड़ा और वो सीधे नीचे सरक कर अपने बाबू पर इस तरह गिरी की उसकी भारी गुदाज गांड बिरजू के चहरे पर बैठ गयी, बिरजू की नाक सीधे नीलम की मक्ख़न जैसी मुलायम गांड की दरार में जा घुसी।

नीलम- अरेरेरेरेरे.......ऊऊऊऊऊईईईईईईईई.......... बाबू........अरे मैं गिरी.....पकड़ो मुझे........बाबू........आआआआआआआआह हहहहहहहहहहहह......बाबू आपको लगी तो नही।

लगने की बात तो दूर, बिरजू ने ये सोचा भी नही था कि अचानक ऐसा हो जाएगा आज जीवन में पहली बार ये क्या हो रहा था, पर जो हो रहा था उसमें वो खो गया, आखिर इस लज़्ज़त को भला वो कैसे जाने देता जिसके लिए वो मन ही मन तरसता था। ये समझ लो की नीलम अपने बाबू के चेहरे पर अपनी भारी गांड रखकर बैठ चुकी थी, अपनी ही जवान सगी शादीशुदा बेटी की इतनी गुदाज गांड की दरार में एक दिन अचानक उसका मुँह घुस जाएगा ये बिरजू ने कभी सोचा नही था और न ही नीलम ये सोचा था।

नीलम की रसभरी चौड़ी गांड की मदहोश कर देने वाली भीनी भीनी महक को बिरजू सूंघने लगा, उसने जानबूझ के अपनी नाक को और नीलम की गांड की दरार में घुसेड़ दिया और अच्छे से अपनी सगी शादीशुदा बेटी की गांड की महक को जी भरकर सूंघने लगा, नीलम धीरे से शर्माते हुए अपनी मोटी गांड और मांसल जांघे आपस में भींचते हुए चिहुँक उठी, एकाएक अपने बाबू की नाक और मुँह अपनी गांड की गहराई और बूर के पास महसूस करके नीलम चौंक सी गयी और चिहुँकते, शर्माते हुए
ऊऊऊऊईईईईईई.......माँ की कामुक आवाज निकलते हुए सिरह उठी और कुछ देर तो वो खुद ही मदहोशी में अपने बाबू के मुँह पर अपनी गांड और बूर रखे बैठी सिसकती रही उसे काफी गुदगुदी भी हो रही थी।

फिर वो समझ गयी कि उसके बाबू दीवाने हो चुके है और उसकी गांड और बूर के छेद को कपड़ों के ऊपर से ही सूंघने में लगे हुए हैं, बिरजू ने दोनों हाँथों से नीलम की कमर को पकड़ रखा था, नीलम के दोनों पैर पेड़ के तने पर ही थे और हांथों से नीलम ने तने को घेरा बना के कस कर पकड़ा हुआ था, नीलम अब शर्म से गड़ी जा रही थी, अपनी गांड की मखमली दरार में और बूर पर उसे अपने बाबू की नाक और दहकते होंठ महसूस हुए तो वो फिर से चिहुँक उठी और उसके मुँह से भी जोर से मादक सिकारियाँ निकल गयी, ये सब इतनी जल्दी हुआ कि न तो नीलम ही संभाल पाई और न ही बिरजू और जो होना था वो हो चुका था, अपनी सगी बेटी की गांड और बूर की खुशबू और उसका अच्छे से अहसास करके बिरजू बेकाबू सा होने लगा।

नीलम ने समय की नजाकत को समझते हुए, शर्माते हुए, अपने को बेकाबू होने से संभालते हुए अपनी अम्मा की तरफ एक नज़र घुमा के पेड़ की ओट से देखा और अपने चौड़े चूतड़ और बूर की खुशबू लेकर मदहोश हो चुके अपने बाबू से उखड़ती सांसों से बोला- बाबू.....अम्मा देख लेगी...बस करो न...बाद में कर लेना ऐसा.....बस करो न बाबू।

बिरजू ने जब ये सुना तो उसकी बांछे खिल गयी और फिर उसने नीलम के दोनों चूतड़ पर अपने हाँथ लगा के ऊपर को उठा दिया और तेज चल रही सांसों को संभालते हुए बोला- बाद में कब बेटी? मुझे तेरे बदन से आ रही ये मदहोश कर देने वाली खुशबू लेना है, कितनी अच्छी है ये, खुशबू लेने देगी मुझे?

नीलम- रात को जब अम्मा चली जायेगी, तब कर लेना जो भी करना हो (नीलम ने ये बात बहुत उत्तेजना से धीरे से बोली)

बिरजू- सच, करने दोगी।

नीलम- हाँ बाबू, बिल्कुल, क्यों नही, पर अभी अम्मा देख सकती है जब वो चली जायेगी तब।

ये कहकर नीलम शर्म से लाल भी होती चली गयी।

बिरजू की तो ये सुनकर मानो लॉटरी लग गयी थी, दिल में हज़ारों घंटियाँ एक साथ बजने लगी, अपनी ही सगी शादीशुदा बेटी के यौवन का रसपान उसे अपने ही घर में चुपके चुपके करने को मिल जाएगा, इस बात को सोचकर ही वो फूला नही समाया और जोश में आकर उसने नीलम को कस के उसकी दोनों गांड पकड़के इतनी तेज उठाया की नीलम ऊऊऊऊईईईईईई करते हुए ऊपर को उचकी और उसने अब वो डाल पकड़ ली, और फिर पैर ऊपर रखते हुए दूसरे हाँथ से दूसरी डाल पकड़ते हुए जामुन के पेड़ पर चढ़ गई। बिरजू वासना भारी नजरों से अपनी सगी बेटी के मादक गदराए बदन को पेड़ पर चढ़ते हुए निहारता रहा।

नीलम पेड़ पर डाल पकड़ पकड़ कर ऊपर चढ़ने लगी, पैर फैला कर जब नीलम ने आगे बढ़ने और ऊपर चढ़ने के लिए एक डाल पर रखा तो नीचे खड़े बिरजू को अब जाकर फैले घाघरे के अंदर वो दिखा जिसको देखने के लिए उसकी आंखें तरस रही थी, घाघरे के अंदर नीलम को गोरी गोरी टांगें जाँघों तक दिख गयी, बिरजू अवाक सा रह गया, कितनी मांसल जाँघे थी नीलम की, लार ही टपक पड़ी उसकी अपनी ही बेटी की जाँघे देखकर, तभी नीलम ने अपना दूसरा पैर उठा कर दूसरी डाल पर रखा और एक मोटी डाल पर वहीं बैठ गयी, घाघरा नीचे लटका हुआ था, दोनों गोरे गोरे पैर और जाँघों का निचला हिस्सा देखकर बिरजू सनसना गया, एकटक लगाए वो अपनी बेटी के घाघरे में ही झांकने की कोशिश कर रहा था, नीलम ने नीचे अपने बाबू को देखा तो उसने पाया कि उसके बाबू की प्यासी नज़रें कहाँ है, समझते उसे देर नही लगी और वो मुस्कुरा दी, उसने एक जामुन तोड़ा और खींच कर अपने बाबू के ऊपर फेंका, जामुन सीधा बिरजू के सर पर लगा और फूटकर फैल गया, बिरजू की तन्द्रा भंग हुई तो नीलम खिलखिलाकर हंसने लगी और बोली- बाबू खाट को खींचकर मेरी सीध में लाओ ताकि मैं जामुन तोड़कर उसपर फेंकती रहूँ।

बिरजू को होश आया तो वो झेंप सा गया फिर जल्दी से उसने खाट को खींचकर नीलम की सीध में नीचे किया, और ऊपर देखने लगा, नीलम की नजरें अपने बाबू से मिली तो दोनों मुस्कुरा दिए, नीलम अभी डाली पर घाघरे को समेटकर जानबूझ कर बैठी थी वो जानती थी खड़े होने पर बाबू को घाघरे के अंदर का नज़ारा अच्छे से दिख जाएगा पर वो अपने बाबू को कुछ देर तड़पाकर उनकी हालत देखना चाहती थी, बिरजू भी बार बार सर उठाये अपनी बेटी के घाघरे के अंदर झांकने की कोशिश करता और जो भी थोड़ा बहुत दिख रहा था उसे ही बड़ी वासना भरी नजरों से देखता।

नीलम ने बिरजू से इशारे से पूछा कि अम्मा क्या कर रही है क्योंकि ऊपर पत्तियों की आड़ से नीचे दूर साफ दिख नही रहा था, बिरजू ने एक नजर नीलम की माँ पर डाली तो देखा कि वो घास को बड़ी टोकरी में भरकर बगल में कुएं पर ही बने बड़े से हौदे में धोने के लिए डाल रही थी, उसने नीलम को ग्रीन सिग्नल का इशारा किया, नीलम और बिरजू दोनों मुस्कुराने लगे।

नीलम ने नीचे अपने बाबू को देखते हुए एक हाँथ से डाल पकड़े, डाल पर बैठे बैठे ही आस पास लगे जामुनों के गुच्छों में से अच्छे पके पके जामुन तोड़कर नीचे खाट पर फेंकना तो दूर पहले तोड़कर खुद ही खाने लगी, ऊपर जामुनों की भरमार थी, पूरा पेड़ जामुन से लदा हुआ था, आस पास पके पके बड़े बड़े काले काले जामुनों को देखकर नीलम से रहा न गया और वो खिलखिलाकर हंसते हुए अपने बाबू को नीचे देख देखकर रिझाकर जामुन तोड़कर खाने लगी।

अब बिरजू ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए अपनी कमर पर दोनों हाँथ रखकर खड़ा हो गया और बोला- तू वहां जामुन तोड़ने गयी है कि खाने गयी है।

नीलम- अरे बाबू यहां पर आ के कितना अच्छा लग रहा है देखो न कितने बड़े बड़े मीठे मीठे काले काले जामुन है ऊपर, नीचे से तो ये दिखते ही नही है, अच्छा लो आप मुँह खोलो, आ करो आपके मुँह में मैं यहीं से फेंककर मरती हूँ जामुन, देखना सीधे मुँह में जायेगा।

बिरजू- तेरी मां ने देख लिया न तो हम दोनों का जामुन निकाल देगी (बिरजू ने बनावटी गुस्से से कहा, पर वो चाहता था कि उसकी बेटी अच्छे से अपने मन की कर ले)

नीलम- अरे बाबू आप अम्मा से कितना डरते हो, उनको मैं देख लुंगी आप मुँह खोलो, खोलो तो सही, एक बार बाबू......बस एक बार....खोलो न मुँह अपना...जोर से आ करो, खूब जोर से, यहीं से डालूंगी आपके मुँह में सीधा जामुन।

बिरजू को भी नीलम की शरारते बहुत भा रही थी, उसने बड़ा सा मुँह खोला, नीलम ने एक अच्छा सा जामुन तोड़कर तीन चार बार अच्छे से निशाना लगाया और खींचकर अपने बाबू के मुँह की तरफ फेंका, जामुन सीधा बिरजू के गाल पर जा के पट्ट से लगा, फुट गया, जामुन का जमुनी रस गाल पर फैल गया।

बिरजू- लो! यही निशाना है तेरा, बस अब रहने दे तू, खिला चुकी तू जामुन अपने बाबू को (बिरजू ने double meaning में कहा)

नीलम- जामुन तो मैं खिला के रहूँगी अपने बाबू को, देख लेना, बाबू एक बार और, एक बार और न बाबू, देखो एक दो बार तो इधर उधर हो ही जाता है, फिर आ करो न, करो न बाबू, इस बार ठीक से फेंकूँगी, देखो मैं कितनी ऊपर भी तो हूँ, पर इस बार पक्का सीधा मुँह में डालूंगी।

बिरजू अपनी बेटी की इस बचपने और जिद पर निहाल होता जा रहा था आज नीलम उसे जवानी और बचपन हर तरह का प्यार दे रही थी, उसने फिर से आ किया, बड़ा सा मुँह खोला।

नीलम ने अपने आस पास सर उठा के एक अच्छा सा बड़ा सा जामुन देखा और तोड़कर पांच छः बार निशाना लगाया फिर खींच कर अपने बाबू के मुँह में फेंका, इस बार जामुन सीधा बिरजू के मुँह में गप्प से चला गया और बिरजू उस रसभरे मीठे जामुन को खाने लगा।

नीलम- देखा बाबू! है न मेरा निशाना अच्छा, खिलाया न आपको जामुन, मीठा है न बहुत, बोलो ना।

बिरजू- नही तो ज्यादा मीठा तो नही था, बाकी निशाना तो तेरा बहुत अच्छा है। (बिरजू ने जानबूझकर ये बोला कि जामुन मीठा नही है वो देखना चाहता था कि नीलम अब क्या करेगी, क्योंकि वो सबसे ज्यादा पका हुआ अच्छा जामुन था)

नीलम- क्या बाबू, कितना अच्छा मीठा जामुन खिलाया आपको मैंने और आप कह रहे हैं कि मीठा ही नही था, तो और कैसे मीठा होगा? (तभी नीलम को ये बात click कर गयी, वो समझ गयी उनके बाबू ने ऐसा क्यों बोला), अच्छा रुको अब मैं तुम्हे सच में बहुत मीठा जामुन खिलाती हूँ, एक बार फिर से मुँह खोलो।

बिरजू ने फिर मुँह खोला- नीलम में एक और बड़ा सा जामुन तोड़ा और अपने बाबू को दिखाते हुए उसे थोड़ा सा काटकर जूठा किया, ये देखते ही बिरजू की आंखें खुशी से चमक गयी, वो अपनी बेटी की समझ को समझ गया, नीलम ने जामुन जूठा करके निशाना लगा के सीधा अपने बाबू के मुँह में फेंका, इस बार भी जामुन सीधा मुँह में गया और वाकई में इस बार के जामुन में बेटी के होंठों की मदहोश कर देने वाली खुशबू थी, बिरजू उसे आंखें बंद करके नशे में खाने लगा तो ऊपर से नीलम उन्हें देखकर हंस दी, नीलम और बिरजू दोनों के ही बदन में अजीब सी सुरसुरी दौड़ गयी। बिरजू ने वो जामुन खा लिया फिर आंखें खोलकर ऊपर देखा तो नीलम उसे ही बड़े प्यार से देख रही थी।

नीलम ने पूछा- ये वाला मीठा था?

बिरजू- बहुत, बहुत मीठा, तेरा प्यार जो था इसमें, ये दुनिया का सबसे मीठा जामुन था।

नीलम- मेरे छूने से इतना मीठा हो गया बाबू।

बिरजू- हाँ और क्या, तू है ही इतनी मीठी।

नीलम- मैं मीठी हूँ?

बिरजू- बहुत

नीलम- सिर्फ इतने से पता लग गया आपको?

बिरजू- थोड़ा थोड़ा तो पता लग ही गया, बाकी का..........

नीलम- बाकी का क्या?.....बाबू बोलो न रुक क्यों गए।

बिरजू- बोल दूँ।

नीलम धीरे से-हम्म्म्म

बिरजू- बाकी का तो तुझे पूरा चख के पता लगेगा, होंठों का तो पता लग गया बहुत मीठे होंगे।

नीलम- हाय दैय्या, धत्त बाबू, बेशर्म.... कोई सुन लेगा तो क्या सोचेगा, धीरे बोलो, अम्मा भी घर पर ही हैं (नीलम अपने बाबू के इस खुले बेबाक जवाब से बेताहाशा शर्मा गयी, बदन उसका गनगना गया, पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गयी, वासना की तरंगें उठने लगी, क्योंकि वो ऊपर पेड़ पर थी तो उसने झट से बात को बदला), अच्छा बाबू और खाओगे जामुन?

बिरजू- मन तो बहुत है मेरी बेटी पर अब अभी नही।

नीलम- तब कब?

बिरजू- वही, तेरी अम्मा के जाने के बाद।

नीलम मुस्कुरा दी- रात को खिलाऊंगी फिर।

बिरजू- हाँ बिल्कुल, और बचा के रख लेना जामुन सारा मत भेजना नाना के यहां।

नीलम- ठीक है बाबू।

नीलम और बिरजू दोनों एक दूसरे को कातिल मुस्कान से देखने लगे दोनों की आंखों में वासना भर चुकी थी।
 
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Update- 45


नीलम जमुन के पेड़ की डाल पर बैठी आस पास लगे मोटे मोटे पके हुए काले काले जामुनों को गुच्छों सहित तोड़कर नीचे खाट पर फेंकने लगी, बिरजू नीचे खड़ा अपनी बेटी को मंत्रमुग्ध सा देखता रहा, जब खाट पर काफी जामुन हो गए तो बिरजू ने उन्हें एक बाल्टी में पलट लिया, फिर ऊपर देखने लगा, नीलम जिस डाल पर बैठी थी वहां आस पास और थोड़ा दूर दूर उसने हाँथ बढ़ा कर सारे अच्छे अच्छे पके हुए जामुन तोड़ लिए। नीलम अपने बाबू को देखते हुए उस डाल से उठी और दूसरी डाल पर चली गयी, बिरजू नीचे से नीलम को निहार रहा था।


नीलम इस वक्त जहां पर थी वहां दो मोटी मोटी डाल थी, नीलम को यही तो चाहिए था, जामुन तो वो अच्छे खासे तोड़ चुकी थी अब उसे बिरजू को कुछ अच्छे से दिखाना था उसने अपना एक पैर अच्छे से खोलकर फैलाकर दूसरी डाल पर रख दिया, घाघरा पूरा फैल गया, नीलम के ठीक नीचे बिरजू खाट के पास खड़ा किसी चकोर की तरफ एक टक लगाए अपनी बिटिया को निहार रहा था, जैसे ही नीलम ने अपने पैर ऊपर डाली पर रखकर फैलाये घाघरे के अंदर नीलम की वो गोरी गोरी टांगें, मादक मोटी मोटी जाँघे और उसमे फंसी काली पैंटी साफ दिख गयी, उसके विशाल गुदाज दोनों नितम्ब कैसे पतली सी पैंटी में कसे हुए थे और उफ़्फ़फ़फ़ वो दोनों जाँघों के बीच वो मोटा सा फूला हुआ हिस्सा जो चीख चीख के कह रहा था कि हां यहीं है वो महकती हुई मखमली सी जवान प्यासी बूर, इसलिए दोनों जाँघों के बीच पैंटी यहां उभरी हुई है, उस जगह पर पैंटी इतनी पतली थी कि बस उसने किसी तरह केवल मखमली बूर को ही ढका हुआ था, ऐसा लग रहा था कि वो काली पैंटी नीलम की मदमस्त जवानी को, उसके गुदाज, मांसल जाँघों को, मस्त चौड़े नितम्ब को संभाल पाने में असमर्थ है।


बिरजू अपनी ही सगी शादीशुदा बेटी की मदमस्त जवानी को देखकर वासना से लाल होता चला गया उसका लंड धोती में हिचकोले खाने लगा उसने जैसे तैसे नज़रें बचा कर उसे ठीक किया, एक टक वो पैंटी के अंदर अपनी सगी बेटी की बूर और मोटी मोटी जाँघे, मदमस्त गोरी टांगें घूरे जा रहा था, कई बार उसने अपने सूख गए होंठो पर जीभ फेरा और अपनी बेटी की नग्नता के दर्शन करते हुए अपनी सांसों को काबू करने की कोशिश करने लगा। नीलम अपने बाबू की मनोदशा देख देखकर जामुन तोड़ तोड़कर नीचे फेंकते हुए चुपके से मंद मंद मुस्कुराते जा रही थी।


नीलम ने एक बार फिर काफी जामुन तोड़ तोड़ कर खाट पर इकठ्ठे कर दिए, बिरजू ने उसे भी बाल्टी में पलट दिया, नीलम ने अब अपने बाबू को तरसाने के लिए अपने दोनों पैर एक ही डाल पर रख लिए, बिरजू मन मकोस कर रह गया, अपने बाबू की हालत देख नीलम हंस पड़ी और बोली- क्या देख रहे थे बाबू?


बिरजू- यही की तू जामुन कैसे तोड़ रही है?


नीलम- पक्का यही देख रहे थे।


बिरजू- हाँ


नीलम ने बड़ी अदा से कहा- सच्ची बोलोगे तो दुबारा.........


बिरजू ने बड़ी वासना से नीलम को देखा फिर बोला- सच, दुबारा


नीलम- ह्म्म्म, बिल्कुल, सच बोलने का इनाम मिलेगा न।


बिरजू- अच्छा! और क्या क्या मिलेगा?


नीलम- क्या क्या चाहिए मेरे बाबू को?


बिरजू- मुझे..... मुझे तो पूरी की पूरी नीलम ही चाहिए।


नीलम जोर हंसते हुए शर्मा गयी और बोली- धत्त, पगलू, बेटी हूँ न मैं आपकी, वो भी सगी, अपनी ही सगी बेटी चाहिए मेरे बाबू को, कोई जान जाएगा तो क्या सोचेगा, बदमाश? (नीलम ने बड़ी अदा से धीरे से कहा)


बिरजू- कोई जानेगा कैसे? तुम बताओगी क्या किसी को?


नीलम- मैं, मैं तो कभी नही बताऊंगी, किसी को भी नही, मैं भला क्यों बताऊंगी?


बिरजू- फ़िर, और मैं तो बताने से रहा, तो कोई जानेगा कैसे?


नीलम- फिर भी कभी किसी ने देख लिया तो?


बिरजू- चुपके चुपके, छुप छुप कर...समझी। तो फिर कोई कैसे देखेगा?


नीलम शर्म से लाल हो गयी फिर बोली- लेकिन सच सच बताओगे तब, की आप क्या देख रहे थे?


बिरजू- अच्छे से तो रात को बताऊंगा अभी तो बस यही कहूंगा कि जो मेरी बेटी मुझे दिखा रही थी वही देख रहा था।


नीलम ये सुनकर शर्मा गयी और अपने बाबू की आंखों में देखने लगी फिर उसने अपना एक पैर खोलकर दूसरी डाली पर रख दिया और दिखावे के लिए जामुन तोड़ने लगी, घाघरा एक बार फिर फैल गया और बिरजू ने दोनों आंखें फाड़े घाघरे के अंदर अपनी सगी बेटी की नग्नता के अच्छे से दर्शन किये, क्या बदन था नीलम का, हाय वो कसी हुई पैंटी, वो मोटी मोटी जाँघे, पैंटी के अंदर कसमसाती बूर.....ऊऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़फ़फ़


बिरजू तो हिल गया, नीलम भी शर्म से लाल होती रही, अपनी नग्नता अपने ही सगे बाबू को दिखाने में उसे अजीब सी गुदगुदी और शर्म के साथ साथ वासना की तरंगें पूरे बदन में उठती हुई महसूस हो रही थी, ये सोचकर वो गनगना जा रही थी कि कैसे उसके बाबू उसके घाघरे के अंदर एक टक लगाए उसकी टांगों, जाँघों, नितम्बों और पैंटी को देख रहे थे, कितनी शर्म भी आ रही थी उसको, काफी देर वो इसी तरह अपने बाबू को अपने हुस्न का खजाना दिखाती रही फिर उसने धीरे से बोला- अब बस करो बाबू, अब बाद में, अभी के लिए बस, ज्यादा नही, कोई देख लेगा बाबू।


नीलम ने अपने दोनों पैर एक डाल पर रखे और जैसे ही वो सीधी खड़ी हुई पूरी डाल कड़कड़ा कर टूटी, नीलम लगभग 14-15 फुट ऊपर से नीचे गिरी। नीलम के मुँह से एक पल के लिए डर के मारे चीख निकल गयी, नीलम की तेज चीख और डाल टूटने की कड़कड़ाहट सुनकर नीलम की माँ ने भी कुएँ से पलट के देखा, और चिल्लाते हुए पेड़ की तरफ भागी।


बिरजू ने लपकक्कर अपनी बेटी नीलम को जल्दी से अपनी बलशाली भुजाओं में थाम लिया और भाग्यवश बगल में ही मजबूत खाट होने की वजह से दोनों उस खाट पर धड़ाम से गिरे, और खाट की एक पाटी मजबूत होने पर भी कड़ाक से टूट गयी, करीब 14-15 फुट ऊपर से नीलम गिरी और बिरजू उसे थामते हुए लेकर खाट पर गिरा तो पाटी तो टूटनी ही थी, नीलम का मदमस्त गदराया बदन अपने बाबू की मजबूत बाहों में झूल गया, बिरजू नीलम को लेके अपने दाएं हाँथ के बल खाट पे गिरा और सारा भार उसके हाँथ पर आ गया जिससे उसके हाँथ में गुम चोट लगी, ईश्वर की कृपा थी कि बस यही एक चोट बिरजू को लगी थी, नीलम बिल्कुल सुरक्षित बच गयी थी, अपने बाबू से वह बुरी तरह लिपटी उनके ऊपर पड़ी थी, उसका गदराया बदन, मोटी मोटी चूचीयाँ बिरजू के सीने पर दब गई, बिरजू को चोट के दर्द और अपनी बेटी के गदराए बदन का मीठा मीठा मिला जुला अहसाह हो रहा था। डाल पूरी तरह टूटी नही थी बस आधी टूटकर झूल गयी थी अगर डाल पूरी टूटकर अलग हो गयी होती तो वो भी साथ में गिरती और फिर डाल से भी काफी चोट लग सकती थी, पर ये ईश्वर की दूसरी गनीमत थी।


जामुन की डाल भले ही देखने में मोटी हो पर वो ज्यादा मजबूत नही होती ये बात नीलम जानती तो थी पर उस वक्त अपने बाबू के साथ वो वासना में डूबी हुई थी उसे ये बिल्कुल ध्यान ही नही आया कि डाल टूट सकती है और वही हुआ, जमीन पर काफी जामुन झटका लगने से टूटकर गिर गए थे, बगल में दो बाल्टी भरकर जामुन पहले ही रखे हुए थे जो नीलम ने तोड़े थे।


नीलम की माँ कुएँ पर से ही देखकर चिल्लाई- हाय मेरी बच्ची....नीलम, अरे नीलम के बाबू बचाओ उसे, पकड़ो उसे, गयी मेरी बच्ची आज, हे भगवान, टूट गयी न डाल
इसीलिए मैं बोलती हूँ कि पेड़ पर मत चढ़, गांव के बच्चों को भी डांटती रहती हूं, मैंने बोला था कि जामुन नही चाहिए रहने दे, पर ये जिद्दी माने तब न, और ये भी इसी के साथ दीवाने हुए रहते हैं, जो कहेगी बस कर देना है, सोचना समझना नही है, अरे तुम्ही चढ़ जाते पेड़ पे, उसको चढ़ाने की क्या जरूरत थी, बताओ भगवान का लाख लाख शुक्र है कि बच गयी मेरी बच्ची, आज हाथ पैर टूट ही जाते उसके, जामुन तो लग्गी से भी तोड़ी जा सकती थी पेड़ पे चढ़ने की क्या जरूरत थी, ये लड़की सच में किसी दिन हाथ पैर तुड़वायेगी अपना।


अपनी माँ को बड़बड़ाते हुए अपनी तरफ आते देखकर नीलम हड़बड़ा के अपने बाबू को देखते हुए धीरे से उनके ऊपर से उठी और बोली- मेरे बाबू आपको लगी तो नही, आज आप न होते तो मुझे कौन बचाता?, आप तो ठीक तो हो न मेरे बाबू?


बिरजू- हाँ मेरी बेटी मैं बिल्कुल ठीक हूँ, हम बच गए, बस थोड़ा सा इस सीधे हाँथ में गुम चोट आ गयी है, बाकी तो सब ठीक है (बिरजू ने हल्का सा दर्द की वजह से कराहते हुए कहा)


नीलम की आंखों से आँसू बह निकले और वो लिपटकर उनके हाँथ को देखने लगी- कहाँ बाबू कहाँ लगी मेरे बाबू को दिखाओ जरा, हे भगवान ये तो सूज गया है यहां पर हाँथ, सब मेरी वजह से हुआ न बाबू, न मैं ऐसा करती न होता।


बिरजू- नही मेरी बेटी कुछ नही हुआ मुझे, तू भी न, और तू रोने क्यों लगी हे भगवान, ये तो बस इस खाट की पाटी की वजह से दबाव पड़ गया उसकी वजह से गुम चोट लगी है बस, तू तो रोने भी लगी इतनी जल्दी, बस कर मेरी बिटिया रानी।


बिरजू ने नीलम के आँसू पोछे और गले से लगा लिया।


नीलम- आपके होते हुए मुझे कुछ हो सकता है बाबू, आज मैं ये जान गई कि आप ही मेरे रक्षक हो, आप उठो चलो बरामदे में।


तभी नीलम की मां आ गयी और नीलम को बाहों में भर लिया- मेरी बच्ची तुझे कहीं लगी तो नही, तुझे कितनी बार मना किया है न कि पेड़ पर मत चढ़ मत चढ़, पर तु माने तब न, तुझे कुछ हो जाता तो ससुराल वालों को क्या जवाब देती मैं, कितने ऊपर से गिरी है तू, लाख लाख शुक्र है ईश्वर का की बच गयी मेरी बच्ची आज, अब मत चढ़ना कभी पेड़ पर।


नीलम- अम्मा मुझे तो बाबू ने बचा लिया, मुझे चोट नही लगी पर बाबू को हाँथ में गुम चोट लग गयी है, आज वो न होते तो मुझे बहुत चोट लगती, मेरे बाबू ने मुझे बचाया है।


नीलम की माँ- कहाँ लगी तुम्हे दिखाओ, हे भगवान देखो कितनी सूजन हो गयी है, चलो बरामदे में लेटो मैं धतूरे के पत्ते में हल्दी गरम करके बांध देती हूं शाम तक सूजन उत्तर जाएगी, आज सुबह सुबह यही सब होना था।


बिरजू- अरे नीलम की माँ तू ज्यादा परेशान मत हो ये सब तो होता ही रहता है जिंदगी में, ज्यादा नही लगी है बस यहीं बाजू में लगी है थोड़ी सी, वो तो खाट थी तो बच गए वरना ज्यादा लग जाती।


नीलम और उसकी माँ बिरजू को सहारा देकर बरामदे में लाये और बिस्तर पर लिटाया, नीलम दौड़ कर गयी धतूरे के पत्ते तोड़कर लायी और माँ को दिया उसकी माँ रसोई में हल्दी, लहसन, फिटकरी मिलाकर सरसों के तेल में पकाकर पेस्ट बनाने ले लिए चली गयी।


नीलम अपने बाबू की आंखों में बड़े प्यार से एकटक देखने लगी और बोली- सब मेरी वजह से हुआ न बाबू, न मैं जिद करती और न ये सब होता, देखो चोट लग गयी न आपको, मुझे तो बचा लिया अपने पर मेरी वजह से आपको चोट लगी न बाबू।


बिरजू ने नीलम के चहरे को हाँथों में थाम लिया और बोला- तू अपने को क्यों कोस रही है पगली, कभी कभी कुछ दर्द भरी घटना अगर अच्छे के लिए हो तो वो घटना अच्छी ही मानी जाती है, तेरे लिए तो मैं कुछ भी कर जाऊंगा ये छोटा सी चोट क्या चीज़ है,आज तूने मुझे इतना प्यार दिया और इतना आनंद दिया, उसका भी तो अपना अलग ही मजा था, तू ये सब न करती तो भला तू मुझे आज मिलती कैसे, तुझे पता है आज तू मुझे मिल गयी है, तुझे आज पाया है मैंने, अपनी बेटी को आज पाया है मैंने, आज मैं कितना खुश हूं तुझे नही पता, और इसके बदले में ये छोटा सा दर्द तो बहुत कम है मेरी बेटी, बहुत कम, तू अपने को मत कोस ये होना था और अच्छे के लिए होना था।


नीलम इतना सुनते ही भावुक होकर अपने बाबू के गले लग गयी और बोली- ओह बाबू आज अपने मेरा दिल जीत लिया, सच पूछो तो दीवानी तो मैं आपकी बहुत पहले से थी पर आज मैं पूरी तरह आपकी हो गयी सिर्फ आपकी, आज मैं भी इतनी खुश हूं कि मैं बयान नही कर सकती।


ऐसा कहकर नीलम और बिरजू एक दूसरे की आंखों में देखने लगे, दोनों की आंखों में प्यार और प्यास दोनों साफ नज़र आ रहा था अपनी बेटी के तरसते होंठों को वो लगतार देखे जा रहा था, कभी पूरे चेहरे को निहारता, कभी लाली लगे हुए होंठो को देखता, कभी आंख और नाक तथा नाक की प्यारी सी लौंग को देखता, बिरजू को हाथ में दर्द भी हो रहा था। इतने में वो बोला- अब आज तो तेरी अम्मा जाने से रही नाना के घर, तो हम गाय और बछिया के बारे में बात कैसे करेंगे और तुम मुझे जामुन कैसे खिलाओगी?


नीलम मुस्कुराते हुए- आप अपनी बेटी को कम समझते हैं क्या बाबू, देखते जाइये मैं कैसे अम्मा को नाना के यहां भेजती हूँ और हाँ अगर आज नही मानी तो कल तो पक्का भेजूंगी, अपने बाबू को जामुन तो खिलाकर रहूँगी वो भी बहुत मीठा वाला।


बिरजू- हाय! सच


नीलम- हाँ सच, देखते जाइये।


बिरजू- ये तो मुझे पता है कि मेरी बेटी बहुत तेज है।


नीलम- आपकी बेटी हूँ, तेज तो होऊंगी ही न।


इतने में नीलम की माँ धतूरे के पत्ते में पकाया हुआ गरम हल्दी का पेस्ट लेकर आती हुई जान पड़ी तो दोनों बाप बेटी अलग हो गए, नीलम की माँ ने वो पेस्ट बिरजू के चोट पर लगा कर पत्ते से बांध दिया और ऊपर से पट्टी बांध दी और बोली- अब ऐसे ही लेटे रहो, आज कहीं जाना नही, ये घरेलू दवाई शाम तक सारा दर्द खींच लेगी और सूजन भी कम हो जाएगी, शाम को एक बार और बांध दूंगी, आराम करो अब।


नीलम की माँ ने पेड़ के नीचे रखी जामुन से भरी दोनों बाल्टी उठाकर घर में रख दी और बिखरे हुए जामुन भी बटोर लिए, टूटी खाट उठा कर बगल में रख दी, डाल पेड़ पर लटकी झूल ही रही थी उसे देख बिरजू नीलम की माँ से बोला- देखना किसी गाँव के बच्चे को पेड़ के नीचे मत खेलने देना ये डाल कभी भी टूटकर गिर सकती है, मुझे थोड़ा आराम हो जाये तो मैं इसे खींचकर गिराता हूँ।


नीलम की माँ- अरे अभी तुम आराम करो, करना बाद में जो भी करना हो, जरा सा चैन नही है, चोट लगने पर भी।


नीलम अपने बाबू को देख कर मुस्कुराने लगी बिरजू भी उसे देखकर मुस्कुरा दिया।



(ये वही 6ठा दिन था जब उदयराज ने शाम को खेत से आते वक्त नीलम को रोड के पास धतूरे के पत्ते तोड़ते हुए देखा था और पूछा था कि क्या हो गया, फिर नीलम ने उसे जब बताया कि बाबू को चोट लग गयी है तब वो उसी वक्त बिरजू को देखने गया था और उसे फिर थोड़ा देर भी हो गयी थी, इसी के बाद था 7वां दिन अमावस्या की रात)
 

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