- 1,167
- 1,335
- 143
तुम मजाक कर रही हो, अभी तो उनकी शादी को साल भी नहीं गुजरा होगा।”
“दस महीने हुए हैं।”
“कमाल की फ्रेंड है तुम्हारी, दस महीने में ही पति से इस कदर बोर हो गई कि उसका खून कर डाला, जबकि इससे कहीं ज्यादा आसान ये था कि वह उससे तलाक ले लेती।”
“उसने नहीं किया है।”
“तुम्हें कैसे पता?”
“मेरा मतलब है उसने अपने पति का कत्ल नहीं किया हो सकता।”
“मैं फिर पूछता हूं तुम्हें कैसे पता?”
“समझ लो मेरा दिल कहता है कि वह कातिल नहीं हो सकती।”
“तुम मिली थीं उससे?”
“नहीं मुझे तो आज सुबह ही एक फ्रेंड की मार्फत उस बात की खबर लगी, सुनकर हैरान रह गई, फिर सोचा कि मुझे मामले की असलियत जानने की कोशिश करनी चाहिए। अकेले पुलिस स्टेशन जाने में हिचकिचाहट हो रही थी, पापा को पता चलता तो मेरी टांगें तोड़ डालते, इसीलिये मैंने तुम्हें अपने घर बुलाया था, सारा दिन इंतजार करती रही कि अब तुम आ जाओगे, मगर तुम नहीं पहुंचे, तब मम्मी को किसी तरह समझा बुझाकर मैं यहां चली आई।”
“मुझसे क्या चाहती हो?”
“भीतर चल कर बात करें।” उसने उम्मीद के साथ उसकी आंखों में देखा।
“नहीं जो बात करनी है यहीं करो, और जरा जल्दी-जल्दी जुबान चलाओ, मैं बहुत बिजी हूं इस वक्त।”
“गेम खेलने में?”
“हां गेम खेलने में, कोई प्रॉब्लम है तुम्हें, है तो वापिस लौट जाओ।”
“राज!” उसने आंखें तरेरीं।
“समझ लो मैं तुम्हारी बड़ी-बड़ी आंखों का खौफ खा गया अब जाओ यहां से, या फिर मैं जाता हूं।”
“डरपोक कहीं के, पहले मेरी बात तो सुन लो।”
“बोलो।”
“वह जेल में है।”
“पहले भी बता चुकी हो, अब तुम्हारे कहने से मैं जेल तोड़कर उसे निकालने तो नहीं पहुंच जाऊंगा।”
“जैसे चाहोगे तो निकाल ही लाओगे।”
पनौती ने जवाब नहीं दिया।
“मैं बस इतना चाहती हूं कि तुम उसकी मदद करो।”
“कैसी मदद, कोर्ट में खड़े होकर ये कबूल कर लूं कि अपने पति की कातिल वो नहीं बल्कि मैं हूं?”
“कहां की बात कहां ले जाते हो यार!”
“यार मत बोलो, वल्गर लगता है।”
डॉली ने फिर से उसे घूर कर उसे देखा।
“घूरो भी मत काम की बात करो।”
“मैं चाहती हूं तुम उसके पति के कत्ल की छानबीन करो, और उसे बेगुनाह साबित कर के दिखाओ।”
“मैं कोई डिटेक्टिव हूं?”
“नहीं हो मगर मैं जानती हूं कि चाहो तो कर सकते हो।”
“भले ही प्रियम शर्मा का कत्ल उसी ने किया हो?”
“उसने नहीं किया, फिर मैं तुम्हें स्याह को सफेद करने को नहीं कह रही, तुम कोशिश कर के तो देखो, क्या पता तुम्हें भी वह बेगुनाह लगने लगे।”
“तुम्हारी खातिर?”
“नहीं एक बेगुनाह की खातिर क्योंकि मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मेरे लिये तो तुम अपनी उंगली तक नहीं हिलाने वाले।
“दस महीने हुए हैं।”
“कमाल की फ्रेंड है तुम्हारी, दस महीने में ही पति से इस कदर बोर हो गई कि उसका खून कर डाला, जबकि इससे कहीं ज्यादा आसान ये था कि वह उससे तलाक ले लेती।”
“उसने नहीं किया है।”
“तुम्हें कैसे पता?”
“मेरा मतलब है उसने अपने पति का कत्ल नहीं किया हो सकता।”
“मैं फिर पूछता हूं तुम्हें कैसे पता?”
“समझ लो मेरा दिल कहता है कि वह कातिल नहीं हो सकती।”
“तुम मिली थीं उससे?”
“नहीं मुझे तो आज सुबह ही एक फ्रेंड की मार्फत उस बात की खबर लगी, सुनकर हैरान रह गई, फिर सोचा कि मुझे मामले की असलियत जानने की कोशिश करनी चाहिए। अकेले पुलिस स्टेशन जाने में हिचकिचाहट हो रही थी, पापा को पता चलता तो मेरी टांगें तोड़ डालते, इसीलिये मैंने तुम्हें अपने घर बुलाया था, सारा दिन इंतजार करती रही कि अब तुम आ जाओगे, मगर तुम नहीं पहुंचे, तब मम्मी को किसी तरह समझा बुझाकर मैं यहां चली आई।”
“मुझसे क्या चाहती हो?”
“भीतर चल कर बात करें।” उसने उम्मीद के साथ उसकी आंखों में देखा।
“नहीं जो बात करनी है यहीं करो, और जरा जल्दी-जल्दी जुबान चलाओ, मैं बहुत बिजी हूं इस वक्त।”
“गेम खेलने में?”
“हां गेम खेलने में, कोई प्रॉब्लम है तुम्हें, है तो वापिस लौट जाओ।”
“राज!” उसने आंखें तरेरीं।
“समझ लो मैं तुम्हारी बड़ी-बड़ी आंखों का खौफ खा गया अब जाओ यहां से, या फिर मैं जाता हूं।”
“डरपोक कहीं के, पहले मेरी बात तो सुन लो।”
“बोलो।”
“वह जेल में है।”
“पहले भी बता चुकी हो, अब तुम्हारे कहने से मैं जेल तोड़कर उसे निकालने तो नहीं पहुंच जाऊंगा।”
“जैसे चाहोगे तो निकाल ही लाओगे।”
पनौती ने जवाब नहीं दिया।
“मैं बस इतना चाहती हूं कि तुम उसकी मदद करो।”
“कैसी मदद, कोर्ट में खड़े होकर ये कबूल कर लूं कि अपने पति की कातिल वो नहीं बल्कि मैं हूं?”
“कहां की बात कहां ले जाते हो यार!”
“यार मत बोलो, वल्गर लगता है।”
डॉली ने फिर से उसे घूर कर उसे देखा।
“घूरो भी मत काम की बात करो।”
“मैं चाहती हूं तुम उसके पति के कत्ल की छानबीन करो, और उसे बेगुनाह साबित कर के दिखाओ।”
“मैं कोई डिटेक्टिव हूं?”
“नहीं हो मगर मैं जानती हूं कि चाहो तो कर सकते हो।”
“भले ही प्रियम शर्मा का कत्ल उसी ने किया हो?”
“उसने नहीं किया, फिर मैं तुम्हें स्याह को सफेद करने को नहीं कह रही, तुम कोशिश कर के तो देखो, क्या पता तुम्हें भी वह बेगुनाह लगने लगे।”
“तुम्हारी खातिर?”
“नहीं एक बेगुनाह की खातिर क्योंकि मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मेरे लिये तो तुम अपनी उंगली तक नहीं हिलाने वाले।