Thriller पनौती (COMPLETED)

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तुम मजाक कर रही हो, अभी तो उनकी शादी को साल भी नहीं गुजरा होगा।”

“दस महीने हुए हैं।”

“कमाल की फ्रेंड है तुम्हारी, दस महीने में ही पति से इस कदर बोर हो गई कि उसका खून कर डाला, जबकि इससे कहीं ज्यादा आसान ये था कि वह उससे तलाक ले लेती।”

“उसने नहीं किया है।”

“तुम्हें कैसे पता?”

“मेरा मतलब है उसने अपने पति का कत्ल नहीं किया हो सकता।”

“मैं फिर पूछता हूं तुम्हें कैसे पता?”

“समझ लो मेरा दिल कहता है कि वह कातिल नहीं हो सकती।”

“तुम मिली थीं उससे?”

“नहीं मुझे तो आज सुबह ही एक फ्रेंड की मार्फत उस बात की खबर लगी, सुनकर हैरान रह गई, फिर सोचा कि मुझे मामले की असलियत जानने की कोशिश करनी चाहिए। अकेले पुलिस स्टेशन जाने में हिचकिचाहट हो रही थी, पापा को पता चलता तो मेरी टांगें तोड़ डालते, इसीलिये मैंने तुम्हें अपने घर बुलाया था, सारा दिन इंतजार करती रही कि अब तुम आ जाओगे, मगर तुम नहीं पहुंचे, तब मम्मी को किसी तरह समझा बुझाकर मैं यहां चली आई।”

“मुझसे क्या चाहती हो?”

“भीतर चल कर बात करें।” उसने उम्मीद के साथ उसकी आंखों में देखा।

“नहीं जो बात करनी है यहीं करो, और जरा जल्दी-जल्दी जुबान चलाओ, मैं बहुत बिजी हूं इस वक्त।”

“गेम खेलने में?”

“हां गेम खेलने में, कोई प्रॉब्लम है तुम्हें, है तो वापिस लौट जाओ।”

“राज!” उसने आंखें तरेरीं।

“समझ लो मैं तुम्हारी बड़ी-बड़ी आंखों का खौफ खा गया अब जाओ यहां से, या फिर मैं जाता हूं।”

“डरपोक कहीं के, पहले मेरी बात तो सुन लो।”

“बोलो।”

“वह जेल में है।”

“पहले भी बता चुकी हो, अब तुम्हारे कहने से मैं जेल तोड़कर उसे निकालने तो नहीं पहुंच जाऊंगा।”

“जैसे चाहोगे तो निकाल ही लाओगे।”

पनौती ने जवाब नहीं दिया।

“मैं बस इतना चाहती हूं कि तुम उसकी मदद करो।”

“कैसी मदद, कोर्ट में खड़े होकर ये कबूल कर लूं कि अपने पति की कातिल वो नहीं बल्कि मैं हूं?”

“कहां की बात कहां ले जाते हो यार!”

“यार मत बोलो, वल्गर लगता है।”

डॉली ने फिर से उसे घूर कर उसे देखा।

“घूरो भी मत काम की बात करो।”

“मैं चाहती हूं तुम उसके पति के कत्ल की छानबीन करो, और उसे बेगुनाह साबित कर के दिखाओ।”

“मैं कोई डिटेक्टिव हूं?”

“नहीं हो मगर मैं जानती हूं कि चाहो तो कर सकते हो।”

“भले ही प्रियम शर्मा का कत्ल उसी ने किया हो?”

“उसने नहीं किया, फिर मैं तुम्हें स्याह को सफेद करने को नहीं कह रही, तुम कोशिश कर के तो देखो, क्या पता तुम्हें भी वह बेगुनाह लगने लगे।”

“तुम्हारी खातिर?”

“नहीं एक बेगुनाह की खातिर क्योंकि मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मेरे लिये तो तुम अपनी उंगली तक नहीं हिलाने वाले।
 
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“कत्ल कब हुआ था?”

“कल रात को, पुलिस ने फौरन उसे गिरफ्तार कर लिया था। आज कोर्ट में पेशी हुई तो उसे जमानत के काबिल केस ना मानते हुए जेल भेज दिया गया। यहां तक कि पुलिस ने रिमांड तक की दरख्वास्त नहीं लगाई क्योंकि उनकी निगाहों में केस में कुछ अलग से जानने को बचा ही नहीं था।”

“केस कौन से थाने का है?”

“सेक्टर बीस का, जहां आजकल तुम्हारा यार इंस्पेक्टर की ड्युटी भुगत रहा है।”

“सतपाल साहब की बात कर रही हो?”

“जैसे सौ-पचास पुलिस वालों को जानते हो तुम?”

“ठीक है मैं कल उनसे बात करूंगा।”

“आज ही करो, केस का इंचार्ज भी वही है, इसलिए तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होने वाली।”

“इतनी रात गये?”

“हां इतनी रात गये।”

“ठीक है तुम घर जाओ, मैं देखता हूं उस बारे में क्या किया जा सकता है?”

“मैं कहीं नहीं जा रही, बल्कि तुम चल रहे हो, इसी वक्त मेरे साथ।”

“कम से कम उसे फोन कर के दरयाफ्त तो कर लूं कि वह इस वक्त थाने में है भी या नहीं?”

“वो काम मैं पहले ही कर चुकी हूं, उसने मुझसे वादा भी किया है कि मेरे वहां पहुंचने से पहले थाने से नहीं हिलेगा भले ही पूरी रात बीत जाये।”

“तुमने क्यों फोन किया उसे?”

“अरे कर लिया तो क्या आफत आ गई?”

“किसी गैर मर्द को रात के वक्त फोन करना क्या अच्छी बात है?”

“ये डॉयलाग तुम शादी के बाद मारना, फिर सोचूंगी इस बारे में, अभी तो तुम मेरे साथ चल रहे हो, फौरन।”

पनौती ने एक क्षण उसे घूरकर देखा फिर बोला, “वेट करो पांच मिनट में आता हूं।”

कहकर उसने डॉली के मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया।

उसने एक लंबी आह भरी और इंतजार करने लगी।

ठीक पांच मिनट बाद पनौती बाहर आया और दरवाजे को ताला लगाता हुआ बोला, “पता नहीं इतनी रात गये कोई ऑटो मिलेगा भी या नहीं।”

“मैं स्कूटी ले कर आई हूं, तुम मेरे पीछे बैठ जाना।”

“कोई जरूरत नहीं है मैं ड्राइव कर लूंगा, एक्स्ट्रा हेल्मेट है तुम्हारे पास?”

“अरे कोई ट्रैफिक वाला नहीं मिलेगा रास्ते में, फिर चालान कटेगा तो मेरा कटेगा, तुम्हें क्यों फिक्र हो रही है।”

“पढ़ी लिखी होकर जाहिलों जैसी बात मत किया करो, सवाल चालान का नहीं बल्कि राइडर की सेफ्टी का होता है। ट्रैफिक रूल्स फॉलो करने का होता है, इसलिए बिना हेल्मेट मैं ना तो खुद बैठूंगा ना ही तुम्हें बैठने दूंगा।”

“भाषण मत दो, डिक्की में स्पेयर हैलमेट है, अब चलो यहां से।”

कहकर डॉली ने स्कूटी की डिक्की से हेल्मेट निकाल कर उसे थमा दिया। पनौती ने चाबी के लिये उसकी तरफ हाथ बढ़ाया तो एकदम से जाने क्या हुआ कि डॉली बुरी तरह से लड़खड़ा गई, ऐन वक्त पर अगर उसने राज का कंधा न पकड़ लिया होता तो उसका नीचे जा गिरना तय था।

झुककर नीचे देखा तो पता चला कि उसकी नई नकोर सैंडिल का दायें पैर की हाई हील टूट गई थी। उसने एकदम से विस्मित निगाहों से पनौती की तरफ देखा।

“क्या हुआ?” वह हड़बड़ाकर बोला।

“वही जो तुम्हारी मौजूदगी में अक्सर होता रहता है। सैंडिल की हील टूट गई, जबकि आज पहली बार ही पहना है इसे मैंने। इस वक्त ना तो कोई मोची मिलेगा ना ही इतनी रात गये आस-पास किसी शॉप के खुले होने की उम्मीद है।”

“वेट” - कहकर पनौती ने स्कूटी को साइड स्टैंड पर लगाया और नीचे उतर कर बोला – “कौन से पैर की हील टूटी है?”

“राईट वाले की।”

“ठीक है लेफ्ट वाली सैंडिल पैर से उतारो।”

“उसे क्यों?” वह हैरानी से बोली।

“तुम उतारो तो सही।”

डॉली ने बहस करने की कोशिश नहीं की और बायें पैर की सैंडिल उतार दी।

पनौती ने झुककर उसे हाथ में उठाया और पूरी ताकत लगाकर उसके अच्छे खासे हील को नोंच कर दूर फेंक दिया, “लो अब इस नये डिजाईन के प्रोडक्ट को इंज्वाय करो, फ्लैट सोल, ना टूटने का खतरा ना गिरने का।”

डॉली ने एक बार आग्नेय निगाहों से उसे घूर कर देखा फिर उसके पीछे स्कूटी पर सवार हो गयी।
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साढ़े दस बजे डॉली की स्कूटी ड्राइव करता पनौती सेक्टर बीस के थाने पहुंचा। रास्ते में डॉली ने एक दो बार उसकी कमर में हाथ डालकर बैठना चाहा तो उसने बुरी तरह झिड़क दिया था।


इंस्पेक्टर सतपाल सिंह उन्हें अपने कमरे में बैठा उन्हीं का इंतजार करता मिला।

उठकर उसने प्रफुल्लित मन से दोनों का स्वागत किया, फिर उन्हें बैठाने के बाद इंटरकॉम पर किसी को कोल्ड ड्रिंक लाने का आर्डर दे दिया जो कि फौरन सर्व कर दी गई।

“मैं तुम दोनों को एक साथ यहां देखकर बहुत खुश हूं।”

“खामख्वाह का दिखावा कर रहे हो।” पनौती बोला।

“कैसा दिखावा भाई?”

“खुश होने का, जब कि तुम्हें पहले ही पता था कि ये मेरे साथ ही यहां पहुंचने वाली है।”

“पक्का नहीं पता था मगर जब इसने फोन पर मुझसे कहा कि कोमल शर्मा के केस के बारे में कुछ डिस्कस करना चाहती है तो मुझे लगने लगा कि आज शर्मा साहब के भी दर्शन होकर रहेंगे।”

“अब काम की बात करें? मत भूलो कि तुम इस वक्त ड्युटी पर हो, इसलिए गप्पे हांककर सरकार से मिलने वाली तन्ख्वाह को जाया करना तुम्हें शोभा नहीं देता।”

“यार कभी तो सीधे मुंह बात कर लिया करो।”

“मैं तुम्हारा यार नहीं हूं।”

“ठीक है मेरे बाप...।”

“कितनी बार कहा है ऐसा कहकर आंटी को गाली मत दिया करो।”

सतपाल ने एक बार डॉली की तरफ देखा फिर बोला, “यस सर! बताइए हरियाणा पुलिस का इंस्पेक्टर सतपाल सिंह आपकी क्या मदद कर सकता है?”

“सुना है बीते रोज तुमने कोमल शर्मा नाम की एक शादीशुदा लड़की को उसके पति के कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार किया था।”

“आपकी जानकारी एकदम दुरूस्त है सर।”

“और अब वह जेल में है, अपने मुलजिम के प्रति तुम इतने श्योर हो कि अदालत में उसके रिमांड की दरख्वास्त तक लगाना जरूरी नहीं समझा?”

“ओपेन ऐंड शट केस था सर, खामख्वाह उसे रिमांड पर लेकर अपना और अदालत का वक्त क्यों जाया करता। करने को बचा ही क्या था उस केस में?”

“खबर कैसे लगी थी तुम्हें?”

“उसके जेठ ने फोन कर के वारदात की सूचना दी थी।”


“और तुम्हारी मुलजिम क्या कहती थी उस बारे में?”

“सुनोगे राज साहब तो हैरान रह जाओगे।”

“मैं हैरान होना चाहता हूं।”

“वह कबूल करती है कि प्रियम की जान उसी की चलाई गोली से गई थी, लेकिन इतना जरूर कहती है कि वैसा अनजाने में कर बैठी थी।”

डॉली और पनौती हकबका कर उसकी शक्ल देखने लगे।

“कोमल शर्मा का बयान है कि कत्ल से ऐन पहले दोनों में किसी बात को ले कर झगड़ा हो रहा था। उसी दौरान गुस्से में प्रियम ने उसपर हाथ उठा दिया। कोमल उस बात को बर्दाश्त नहीं कर सकी, उसने कमरे में मौजूद प्रियम की लाइसेंसी पिस्तौल उठाकर उसपर तान दी, तब उससे डरने की बजाये प्रियम उसे हूल देने लगा कि ‘चला गोली, हिम्मत है तो चलाकर दिखा’ वह कहती है कि उसका इरादा गोली चलाने का नहीं था, मगर बार-बार प्रियम के चैलेंज के कारण वह इतना ज्यादा गुस्से में आ गई कि कब उसके हाथों से ट्रिगर दब गया उसे पता ही नहीं चला। गोली इत्तेफाक से प्रियम के दिल में जा घुसी जिसके कारण फौरन उसकी मौत हो गई। उसके बाद घर के बाकी लोग गोली चलने की आवाज सुनकर उनके बेडरूम में आ घुसे, फिर पुलिस को खबर कर दी गई।”

“यानि गैरइरादतन हत्या का चार्ज लगाया है तुम लोगों ने उसपर?”

“खामख्वाह! जबकि साफ-साफ जाहिर हो रहा है कि उसने जो किया था वह जानबूझकर किया था, भले ही गुस्से में आकर किया। हो सकता है पति का कत्ल कर चुकने के बाद उसने अपने बचाव के लिए असल कहानी में फेर-बदल कर दी हो, ऐसे में हम उसके साथ रियायत क्यों बरतते?”

“इस बात की कोई उम्मीद! कि कोमल शर्मा सच बोलती हो सकती है।”

“गोली चलाना तो वह कबूल कर ही चुकी है, रही बात उसके इरादे और गैरइरादे की, तो क्या फर्क पड़ता है, गैरइरादतन हत्या होने के कारण मरने वाला उठकर बैठ तो नहीं जायेगा।”

“बेशक नहीं बैठ जायेगा, मगर मुलजिम को तो इसका लाभ मिलकर रहेगा, जो कि जानबूझकर की गई हत्या के मामले में तो हरगिज नहीं मिलने वाला।”

“उस बात को साबित करना आसान नहीं होगा, ऊपर से हमने उसके घरवालों से विस्तृत पूछताछ की है, प्रियम की मां कहती है कि शादी के बाद से ही उनकी बहू आये दिन घर में फसाद करती रहती थी। पति की उसे धेले भर की परवाह नहीं थी, जबकि मकतूल का बड़ा भाई अनुराग शर्मा कहता है कि एक बार पहले भी वह प्रियम पर जानलेवा हमला कर चुकी थी, तब उसे ससुराल पहुंचे महज महीना ही बीता था। वह नजारा उसने अपनी आंखों से देखा था। उस रोज प्रियम फर्श पर गिरा हुआ था जबकि कोमल चाकू हाथ में लिये उसके सीने पर चढ़ी थी, तब उसे यही लगा था कि वह बस चाकू चलाने ही वाली थी कि किसी की आहट पाकर उसके ऊपर से हट गई थी। तब प्रियम ने यह कहकर उस बात पर पर्दा डाल दिया था कि वे दोनों मजाक कर रहे थे।”
 
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अगर वह मजाक नहीं था, तो उसी वक्त प्रियम शर्मा ने बीवी की बाबत कोई एक्शन क्यों नहीं लिया?”

“भई तब दोनों की नई नई शादी हुई थी, उसने सोचा होगा कि वक्त के साथ वह सुधर जायेगी।”

“जबकि नहीं सुधरी, उसके अग्रेसिव नेचर में कोई बदलाव नहीं आया था।”

“अब तो यही लगता है, सच पूछो तो उसके खिलाफ इकलौती जेठ की गवाही ही गैरइरादतन हत्या वाली बात की धज्जियां उड़ाकर रख देती है।”

“और कोई बात जो ये साबित करती हो कि पति की हत्या जानबूझकर की थी, ना कि - जैसा वह कहती है - अनजाने में गोली चल गई थी?”

“हां एक बात और है जो उसके कत्ल के इरादे पर मुहर लगाती है।”

पनौती ने सवालिया निगाहों से उसकी तरफ देखा।

“आला-ए-कत्ल, बत्तीस कैलिबर की रिवाल्वर कमरे में यूं ही नहीं पड़ी हुई थी जिसे गुस्से में आकर वह पति पर तान देती। वह वार्डरोब में बनी एक छोटी सी तिजोरी में रखा हुआ था जो उस घड़ी लॉक्ड था, ऐसा उसने खुद अपने बयान में कबूल किया है। उसने ताला खोलकर वहां से रिवाल्वर निकाला और पति को शूट कर दिया। हमने उस बाबत मनोचिकित्सक की भी राय ली है, उसका नाम विपुल सदाचारी है और शहर का माना-जाना साइक्रियेटिस्ट है, वह कहता है कि आम तौर पर ऐसे घरेलू मामले में गुस्सा आने पर लोग सामने वाले पर अपने आस-पास मौजूद चीजों से प्रहार करते हैं, क्योंकि वह क्रोध क्षणिक होता है, ऐसे में कोमल शर्मा द्वारा ताला खोलकर रिवाल्वर निकालना जाहिर करता है कि उसने जो कुछ भी किया जानबूझकर किया, भले ही गुस्से में आकर किया, इसलिए उसे गैरइरादतन हत्या का दोषी करार नहीं दिया जा सकता।”

“ये पूछना तो बेकार ही होगा कि रिवाल्वर से उसके फिंगर प्रिंट बरामद हुये थे या नहीं?”

“अच्छा याद दिलाया, उस बारे में भी सुन लो, वह लड़की इतनी शातिर है कि कत्ल के फौरन बाद उसने रिवाल्वर से अपने फिंगर प्रिंट पोंछ दिये थे, जब उस बारे में हमने उससे सवाल किया तो कहने लगी कि गोली चलने के बाद रिवाल्वर उसके हाथ से नीचे जा गिरा था, गिरते वक्त उसके कपड़ों से रगड़ खाकर उंगलियों के निशान मिट गये होंगे।”

“यूं कहीं फिंगर प्रिंट मिट जाते हैं?”

“वही तो।”

“मगर ऐसा करने से उसे फायदा क्या हुआ?”

“होता अगरचे कि कत्ल के फौरन बाद घर के लोग वहां नहीं पहुंच गये होते, तब वह चीख-चीख कर कह रही होती कि उसे नहीं पता किसने उसके पति को गोली मार दी थी।”

“और कुछ?”

“क्यों इतना कम लगता है तुम्हें?”

“कम तो खैर नहीं है सतपाल साहब, मगर तुम्हारी बताई गई बातों में इस बात की गुंजायश साफ-साफ दिखाई दे रही है, कि हो सकता है उसने पति को जानबूझकर शूट न किया हो।”

“खामख्वाह! जबकि कत्ल के बाद अभी तक ना तो तुम कोमल से मिले हो ना ही मौका-ए-वारदात पर गये हो। जबकि मैं गया था, इसलिए दो टूक कह सकता हूं कि वहां जो कुछ भी घटित हुआ था वह जानबूझकर किया गया था।”

“मकतूल रिवाल्वर क्यों रखे हुए था अपने पास?”

“कोई खास वजह अभी तक सामने नहीं आई है, लेकिन इतना जरूर पता लगा है कि मरने वाला ‘फॉस्ट ट्रेक सिक्योरिटी सर्विसेज प्राईवेट लिमिटेड’ नाम की एक कंपनी का मालिक था, जो रेजिडेंशियल इलाके में सिक्योरिटी गार्ड्स की सेवा मुहैया कराती हैं। इस फील्ड में उसकी कंपनी का बहुत नाम था। हो सकता है अपने बिजनेस की जरूरत बताकर उसने रिवाल्वर रखने का लायसेंस हासिल कर लिया हो, भले ही उसकी उसे कोई जरूरत न रही हो।”

“ऑफिस कहां था उसका?”

“बाटा चौक पर एक बिल्डिंग है ‘यूनिक स्पेस’ नाम से, उसी के सेकेंड फ्लोर पर खूब बड़ा ऑफिस है उसका, कोई वजह ना होते हुए भी हमने रूटीन के तौर पर वहां का भी फेरा लगाया था।”

“सुन लिया तुमने” - पनौती डॉली की तरफ देखता हुआ बोला – “इस बात में शक की कोई गुंजायश नहीं है कि प्रियम को तुम्हारी सहेली ने ही गोली मारी थी।”

“बेशक मारी होगी, मगर उसका ये कहना भी तो सही हो सकता है कि उसके हाथों गोली अनजाने में ही चल गई थी?”

“तो?”

“तो ये कि गोली अगर अनजाने में उसके हाथों चल गई थी तो उसे बचाने की कोशिश की जा सकती है, मैं कानून नहीं जानती मगर तुम दोनों की बातों से मुझे इतना जरूर समझ में आ रहा है कि इरादतन की गई हत्या की अपेक्षा गैरइरादतन की गई हत्या में कम सजा मिलती है, फिर ये कहां का न्याय है कि उससे होने वाले लाभ से कोमल को वंचित कर रखा जाये।”

“तुम्हारा उस लड़की में क्या इंट्रेस्ट है?” सतपाल ने डॉली से पूछा।

“वह मेरी बहन जैसी सहेली है इंस्पेक्टर साहब, मुझे नहीं लगता कि उसने जीवन में कभी मक्खी भी मारी होगी, ऐसे में उसका जेल चले जाना! हे भगवान मैं तो सोचकर ही कांप उठती हूं। जाने कोमल पर इस घड़ी क्या बीत रही होगी।”

“फिर तो मैं यही कहूंगा कि तुमने यहां आने में देर कर दी, अगर कोर्ट में उसे पेश किये जाने से पहले मिली होतीं तो शायद...।”

“क्या शायद” - पनौती बिफर कर बोला – “तब तुम केस में हेर-फेर कर देते? सिर्फ इसलिए कि वह डॉली की सहेली थी?”

“मैंने ऐसा कब कहा?” सतपाल हड़बड़ाकर बोला।


“इशारा तो कुछ ऐसा ही था तुम्हारा।”

“भई मेरे कहने का मतलब सिर्फ इतना था कि अगर ये पहले मुझसे मिली होती तो मैं गैरइरादतन हत्या वाली बात पर और ज्यादा गहराई से विचार कर लेता।”

“पहले क्यों नहीं किया, एक इंसान की जिन्दगी का सारा दारोमदार तुम्हारी ईमानदारी भरी इन्वेस्टीगेशन पर टिका हुआ था ऐसे में तुमने लापरवाही क्यों की?”

“कोई लापरवाही नहीं की है मैंने।”

“तो फिर डॉली के पहले ना मिला होने का अफसोस क्यों जता रहे हो? या तो कबूल करो कि तुमने अपने काम को ठीक ढंग से अंजाम नहीं दिया था, या फिर ये कहना बंद करो कि अगर ये पहले मिली होती तो तुमने गैरइरादतन हत्या वाली बात पर गहराई से विचार किया होता।”

“समझ लो मैं अपनी बात वापिस लेता हूं, और कुछ नहीं कहना मुझे इस बारे में” - कहकर उसने डॉली की तरफ देखा – “क्या जरूरत थी ऐसे फसादी आदमी के साथ यहां आने की, जो अपने हक में जाती बात पर भी मीन मेख निकालने से बाज नहीं आता।”

“आप इसकी बातों पर ध्यान मत दीजिये, वो सुनिये जो मैं कहती हूं।”

“बोलो?”

“मेरा आप से उतना भी मुलाहजा नहीं है जितना कि राज का है, फिर भी रिक्वेस्ट करती हूं कि कम से कम एक बार आप फिर से इस केस की शुरू से छानबीन कीजिये, बेशक आप के बताये ढंग से साफ-साफ साबित हो जाता है कि कातिल कोमल ही है, फिर भी एक बार दोबारा कोशिश कर के देखिये क्या पता कुछ ऐसा सामने आ जाये जो ये साबित कर दे कि उसने जानबूझकर गोली नहीं चलाई थी।”


“मैं बेशक तुम्हारे कहने पर ऐसा कर सकता हूं, मगर ये काम तुम इसी को करने के लिए क्यों नहीं कहती, कबूल करते शर्म आती है मगर सच्चाई यही है कि यह मुझसे ज्यादा बेहतर ढंग से तुम्हारे काम आकर दिखा सकता है।”

“आपकी बातें सुनने के बाद तो अब ये मुझे घर तक छोड़ने को तैयार हो जाये, वही बड़ी बात होगी।”


“क्यों नहीं मैं मिट्टी का माधो जो हूं” - पनौती तुनक कर बोला – “जो पुलिस के कहे को पत्थर की लकीर समझ लूंगा।”

“नहीं समझोगे तो क्या करोगे?” डॉली ने पूछा।

“वही करूंगा जो तुम चाहती हो, और इसलिये नहीं करूंगा कि कोमल शर्मा तुम्हारी सहेली है, इसलिए भी नहीं करूंगा कि मुझे उसको लंबी सजा से बचाना है। बल्कि इसलिए करूंगा क्योंकि मुझे लगता है पति की मौत की बाबत वह जो कुछ भी कह रही है, सच कह रही है” - कहकर उसने सतपाल की तरफ देखा – “अब अगर रात होने की दुहाई न देने लग जाओ तो मेरे साथ घटनास्थल तक चलो, देखें क्या पता कुछ हासिल हो ही जाये।”


“इस वक्त?”

“रहने दो, मैं खुद चला जाऊंगा।”

“अरे मैंने मना कब किया यार!”

“नहीं किया तो अच्छी बात है, चलो।”

तीनों उठ खड़े हुए।

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ग्यारह बजे के करीब पुलिस जीप में सवार होकर तीनों मकतूल प्रियम शर्मा के बंगले पर पहुंचे। जो कि बड़खल फ्लाई ओवर को पार करते ही बायीं तरफ को जाती सड़क पर पांचवा बंगला था।


बंगले के सामने पुलिस जीप को रूकती देखकर वॉचमैन तत्काल अपने केबिन से बाहर निकल आया। पनौती और सतपाल जीप से नीचे उतर आये जबकि डॉली भीतर ही बैठी रही।

“भीतर खबर करो कि पुलिस आई है।”

वॉचमैन ने फौरन इंटरकॉम पर बंगले के भीतर सूचना दे दी।

थोड़ी देर बाद मृतक का बड़ा भाई अनुराग शर्मा दरवाजे पर प्रकट हुआ।

“क्या बात है इंस्पेक्टर साहब, इतनी रात गये आप लोग...।” कहकर उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।

“कुछ पूछताछ करनी है, मगर उससे पहले आपके मरहूम भाई के कमरे का एक बार फिर से मुआयना करना है।”

“सुबह आइयेगा, इस वक्त रात बहुत हो चुकी है, हम लोग सोने की तैयारी कर रहे हैं।”

“तकलीफ देने के लिये माफी चाहता हूं सर, बहुत जरूरी नहीं होता तो हम इतनी रात गये यहां नहीं आते।”

“मैं समझ सकता हूं, मगर सुबह आइयेगा।”

“अब जब आ ही गये हैं तो..।”

“कोई ‘तो’ नहीं, इस वक्त आप लोग जाइये यहां से, वरना मैं अभी आपके डीसीपी कुलदीप भड़ाना साहब को फोन करता हूं, बहुत अच्छे रिलेशंस हैं हमारे उनके साथ।”

“कर लीजिए।” पनौती बोला।

“क्या कहा?” अनुराग शर्मा हैरानी से बोला।

“यही कि पहले आप डीसीपी साहब को फोन कर के अपने मन की कर लीजिए ताकि हम लोगों को भी अपनी मनमानी करने का मौका हासिल हो, प्लीज कैरी ऑन।”

“तुम लोग मेरे साथ ऐसे पेश नहीं आ सकते।”

“आप भी पुलिस के साथ ऐसा रवैया अख्तियार नहीं कर सकते।”

“ठीक है तुम लोग यही चाहते हो तो ऐसा ही सही।”

कहकर उसने तैश में आकर जेब से मोबाइल निकालने की कोशिश की तो मोबाइल उसके हाथों से छिटककर करीब दो फीट दूर बायीं तरफ जा गिरा। घबराते हुए, झपट कर उसने फोन उठाया तो ये देखकर हैरान रह गया कि मोबाइल की स्क्रीन चूर-चूर हो गई थी।

सतपाल ने गहरी निगाहों से पनौती की तरफ देखा और मुस्करा उठा।

“मेरा आईफोन!” - कलपते हुए उसने स्वयंभाषण किया – “अभी हफ्ता भर पहले ही खरीदा था।”

“मोबाइल तो खैर आप दूसरा खरीद लेंगे” - पनौती जैसे जलती आग में घी डालता हुआ बोला – “मगर डीसीपी साहब को फोन कैसे करेंगे अब? नंबर तो उनका याद नहीं होगा आपको।”

“मैं सौ नंबर पर फोन कर के मांग लूंगा।”

“तकलीफ मत कीजिए, आप मेरे मोबाइल से उन्हें कॉल कर लीजिए, बल्कि नंबर भी मैं खुद ही लगाये देता हूं।”

“नहीं चाहिए तुम्हारा फोन” - वह बड़बड़ाने वाले अंदाज में बोला – “जाने कैसे मनहूस कदम हैं तुम लोगों के पड़ते ही नुकसान शुरू हो गया।”

“आपकी बात से मुझे पूरा-पूरा इत्तेफाक है सर” - पनौती बोला – “शुक्र मनाइये कि अभी सिर्फ फोन टूटा है जिसे आप फिर से खरीद लेंगे, होने को तो ये भी हो सकता था कि जमीन खिसक जाती, भूकम्प आ जाता या फिर बिजली गिर जाती! इसलिये ऊपर वाले को शुक्रिया बोलिये जो बात महज फोन पर ही खत्म हो गई।”
 
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अनुराग ने हैरान निगाहों से उसकी तरफ देखा, फिर सतपाल को घूरता हुआ बोला, “तुम क्यों चुप हो भाई, तुम भी कोई भविष्य वाणी क्यों नहीं कर डालते, क्या पता खौफ खाकर ही मैं तुम लोगों को भीतर बुला लूं।”

“मैं तो बस रिक्वेस्ट ही कर सकता हूं सर, साथ ही यकीन दिलाता हूं कि हम लोग आपका ज्यादा वक्त नहीं लेंगे।”

अनुराग ने कुछ क्षण उस बात पर विचार किया फिर झल्लाता हुआ बोला, “जो मन में आये करो।” कहकर वह बार-बार अपने आई फोन को देखता, मन ही मन उसके टूट जाने का शोक मनाता, भीतर की तरफ बढ़ गया।

उसके पीछे-पीछे दोनों ने बंगले के अहाते में कदम रखा।

करीब सौ फीट की दूरी पर एक दो मंजिला इमारत बनी हुई थी जिसका अधिकतर हिस्सा उस घड़ी अंधेरे में डूबा हुआ था। रास्ते में दोनों तरफ फूलों के बड़े-बड़े गमले रखे हुए थे और गमलों के पीछे बंगले की चौड़ाई के बराबर लॉन बना हुआ था जिसके बीच-बीच में छोटे-छोटे खम्बों पर लैंप लगे हुए थे। लैंप की रोशनी में लॉन का बड़ा ही मनमोहक नजारा हो रहा था।

दोनों ने अनुराग के पीछे-पीछे इमारत में कदम रखा।

दरवाजे से भीतर कदम रखते ही उन लोगों ने खुद को एक बड़े हॉल में पाया जो ड्राईंगरूम के अनुरूप ही खूब सजा-धजा दिखाई दे रहा था। पनौती ने सरसरी निगाहों से हॉल का जायजा लिया फिर सतपाल की तरफ देखने लगा।

“मैं यहीं इंतजार करता हूं” - अनुराग शर्मा बोला – “तुम लोग जी भरकर प्रियम के कमरे का मुआयना करो।”

सतपाल ने सहमति में सिर हिला दिया और हॉल के बायीं तरफ मौजूद एक दरवाजे के कुंडे पर लिपटी पट्टियों की सील को खोलकर भीतर दाखिल हो गया। उसके पीछे पनौती ने कमरे में कदम रखा और गहरी निगाहों से वहां का जायजा लेने लगा।

वह बीस बाई बीस या फिर उन्नीस-बीस के फर्क के साथ लगभग उतना ही बड़ा कमरा था, जिसके बीचों बीच एक खूब बड़ा पलंग रखा हुआ था। पायताने की तरफ दीवार से सटाकर एक नक्काशीदार टीवी कैबिनेट था जिसपर प्लाज्मा टीवी रखी हुई थी। जबकि दायीं तरफ वाली दीवार पर स्प्लिट ए.सी. लगा हुआ था जिसके नीचे थोड़ा दायें हटकर लकड़ी की एक वार्डरोब मौजूद थी। बेड के पीछे करीब-करीब दीवार के ही साइज़ की खिड़की थी, जिसपर उस घड़ी खूब मोटे पर्दे पड़े हुए थे।

वार्डरोब और बेड के बीच में फर्श पर लाश की स्थिति को दर्शाती आउट लाइन बनी हुई थी, जो कि उस घड़ी पनौती के निगाहों की मरकज बनी हुई थी। वह काफी देर तक झुककर उस आउट लाइन को देखता रहा, उस दौरान उसने दायें-बायें, आगे-पीछे होकर अलग-अगल ऐंगल से उस आउट लाइन का मुआयना किया, फिर सीधा खड़ा हो गया।

लाश की स्थिति को दर्शाती आउट लाइन बताती थी कि गोली लगने के बाद मकतूल जब फर्श पर गिरा था तो उसका सिर कमरे के दरवाजे की तरफ था जब कि दोनों पैर खिड़की की तरफ थे, उस स्थिति में वार्डरोब उसके बायीं तरफ था। जिसके भीतर बनी तिजोरी से रिवाल्वर निकालकर कोमल ने अपने पति को शूट किया था।

“लाश पीठ के बल मिली थी?” उसने सतपाल से पूछा।

“हां।”

“यानि गोली लगने से पहले इसका रूख खिड़की की तरफ था?”

“लाश की पोजिशन तो यही कहती थी, साथ ही कोमल शर्मा का इकबालिया बयान भी इस बात की पुष्टि करता है।”

“तुमने बताया था कि गोली चलने से पूर्व रिवाल्वर वार्डरोब में रखी हुई थी, जिसका लॉक खोलकर कोमल ने उसे बाहर निकाला और निकाल कर पति पर तान दिया था।”

“हां ऐसा ही हुआ था।”

“ऐसे में तो मौत से पहले मकतूल का मुंह खिड़की की बजाये वार्डरोब की तरफ होना चाहिये था। थप्पड़ खाकर गुस्से में तमतमाती अपनी बीवी को वार्डरोब का ताला खोलता देखकर वह मुंह फेर कर खड़ा हो गया, ये क्या मानने वाली बात है?”

“तुम भूल रहे हो कि रिवाल्वर हाथ में आते ही उसने पति को गोली नहीं मार दी थी, उससे पहले दोनों के बीच कुछ डॉयलाग भी हुये थे, उस दौरान दोनों कमरे में थोड़ इधर-उधर हो गये थे तो इसमें इतना हैरान होने वाली क्या बात है?”

“तुमने कोमल से पूछा तो होगा ही कि उसने कहां खड़े होकर गोली चलाई थी
 
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सतपाल सकपका सा गया, फिर झेंपे हुए लहजे में बोला, “नहीं मैंने नहीं पूछा था, इसलिए नहीं पूछा क्योंकि मेरे यहां कदम रखते ही उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया था। ऐसे में बाकी पूछताछ बस इस सिलसिले में की गई थी कि गोली चलने की नौबत क्यों कर आई और उससे ऐन पहले दोनों क्या कर रहे थे?”

“उसने कहा कि गोली उसके हाथों चली है और तुमने उसके कहे को पत्थर की लकीर मान लिया।”

“अरे भाई यहां के हालात और घर के लोगों के बयान भी तो वही कहानी बयान कर रहे थे, फिर कत्ल की वारदात को कबूल करना क्या कोई मजाक था जो उसने यूं ही कत्ल किया होना स्वीकार कर लिया?”

“मैं कुछ और कहना चाहता हूं।”

“क्या?”

“उसकी बात पर यकीन कर जब तुमने ये मान लिया कि गोली उसी ने चलाई थी तो दूसरी बात पर यकीन क्यों नहीं किया? क्यों नहीं ये भी मान लिया कि अनजाने में रिवाल्वर का घोड़ा दब गया होने की बाबत भी वह सच बोल रही थी?”

“क्योंकि अपने बचाव में उसने कुछ तो कहना ही था, यूं आसानी से भला जेल कौन जाना चाहता है?”

“अगर ऐसा था तो रिवाल्वर से उसके फिंगर प्रिंट बरामद क्यों नहीं हुए?”

“उस बारे में मैं पहले ही बता चुका हूं, फिंगर प्रिंट उसने जानबूझकर मिटाये थे, उसके बाद उसका इरादा कमरे से खिसक कर बंगले के किसी और कोने में पहुंच जाने का रहा होगा, जहां से वह तभी वापिस लौटी होती जब उससे पहले कोई लाश का नजारा कर चुका होता। मगर अपने सोचे को अंजाम देने का मौका उसे हासिल नहीं हो सका, क्यों कि गोली चलने के फौरन बाद घर के लोग इस कमरे में घुस आये थे और घर के ही क्यों, तीन लोग ऐसे भी यहां मौजूद थे जो कि परिवार के सदस्य नहीं थे।”

“यह तुम नई बात बता रहे हो?”

“पहले ध्यान से उतर गया था।”

“कौन थे वो लोग?”

“एक तो पड़ोस के बंगले में रहने वाला संजीव चौहान नाम का लड़का था जो कि मरने वाले का लंगोटिया यार बताया जाता है। दूसरा इस परिवार का वकील ब्रजेश यादव था जो कि फेमिली फ्रेंड बताया जाता है, जबकि तीसरा शख्स मकतूल के बड़े भाई का साला भुवनेश शर्मा था, जो दो रोज पहले ही अपनी बहन से मिलने के लिये यहां आया था और प्रियम की मौत वाली रात वापिस लौट ही रहा था कि घर में वारदात हो जाने की वजह से वापिस नहीं जा सका, बाद में हमने उसके शहर से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी, जो कि अभी तक जारी है।


“उन तीनों से पूछताछ की तुमने?”

“नहीं भाई तुम्हारी इजाजत का इंतजार कर रहे हैं।”

“बाहर के लोगों की मौजूदगी की वजह से सिर्फ इतना साबित होता है कि घर के लोग वारदात के बारे में कोई गलतबयानी नहीं कर रहे हैं” - पनौती उसके तंज को नजरअंदाज कर के बोला – “मगर ये जानना फिर भी जरूरी है कि गोली चलाते वक्त कोमल शर्मा कमरे में कहां खड़ी थी?”

“उससे क्या फर्क पड़ता?”

“फर्क नहीं पड़ता मगर इस बात की गुंजायश बनती दिखाई देती कि ये गैरइरादतन हत्या का मामला हो सकता है।”

“कैसे?”

“अगर उसने रिवाल्वर निकालकर फौरन पति पर तान दिया था तो वह काम उसने गुस्से में बिना कुछ विचार किये किया हो सकता है, इसके विपरीत अगर मौत से पहले प्रियम खिड़की की तरफ मुंह कर के खड़ा हो गया था और कोमल बायीं तरफ दिखाई दे रहे वार्डरोब से रिवाल्वर निकालकर उसके सामने पहुंची थी, तो पहले वाले सिनेरियो की अपेक्षा जानबूझकर गोली चलाये जाने के चांस बढ़ जाते हैं।”

“तो फिर वैसा ही हुआ होगा, क्योंकि लाश की पोजिशन से साफ जाहिर हो रहा था कि मौत से पहले वह खिड़की की तरफ मुंह कर के खड़ा था।”

“और खिड़की की पोजिशन क्या थी उस वक्त, मेरा मतलब है क्या कत्ल के वक्त भी यूं ही पर्दे पड़े हुए थे, जैसे कि इस वक्त दिखाई दे रहे हैं?”

“हां कमरा ऐन इसी हालत में मिला था हमें।”

“उस वक्त खिड़की के पल्लों को चेक किया था तुमने?”

“किसलिए करता भाई, जब वह खुद अपना जुर्म कबूल कर रही थी तो खामख्वाह की इन्वेस्टीगेशन में टाइम क्यों बर्बाद करता मैं? अलबत्ता फोरेंसिक वालों ने पक्का चेक किया होगा। क्योंकि अपने काम के वक्त वे लोग बहुत से गैरजरूरी कामों को अंजाम देने से बाज नहीं आते।”

“कत्ल के केस में कुछ भी गैर जरूरी नहीं होता सतपाल साहब, तुम अपनी ही बात लो, अगर पूरी जिम्मेदारी के साथ तुमने अपने काम को अंजाम दिया होता तो अपनी कोताही की वजह गिनाने की बजाये साफ कह रहे होते कि खिड़कियों के तमाम पल्ले भीतर की तरफ से बंद मिले थे। गोली चलाने से ऐन पहले कोमल शर्मा फलां जगह खड़ी थी।”

“तुम्हारे भीतर सबसे बड़ी खराबी यही है शर्मा साहब, मौका मिलते ही लैक्चर देना शुरू कर देते हो, जबकि तुम बखूबी जानते हो कि इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर को मौका-ए-वारदात पर अलग-अलग तरह की ढेरों मुसीबतों से जूझना पड़ता है, खासतौर से तब जब कि कत्ल घर के भीतर हुआ हो। क्योंकि उन हालात में हर तरफ रोना-धोना चल रहा होता है, कोई एक शख्स ऐसा नहीं होता जो आईओ की बात पूरे ध्यान से सुने और सुनकर उसका माकूल जवाब दे। कल रात यहां का माहौल भी वैसा ही था, अधिकतर बातें तो हमें यहां मौजूद उन तीन लोगों की जुबानी पता चलीं जो इस परिवार के सदस्य नहीं थे।”

“तुम फिर अपनी कोताही पर लीपा-पोती करने की कोशिश कर रहे हो।”

“ठीक है भाई मैं कबूल करता हूं कि मुझसे कोताही हुई थी जो मैंने खिड़की के पल्लों को चेक नहीं किया, मैं ये भी कबूल करता हूं कि उस घड़ी ऐसा करने का मुझे ख्याल तक नहीं आया था।”

“रिवाल्वर के सीरियल नंबर से तुमने ये जानने की कोशिश तो जरूर की होगी कि वह रिवाल्वर मकतूल के ही नाम से रजिस्टर्ड थी या नहीं?”
 
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रिवाल्वर के सीरियल नंबर से तुमने ये जानने की कोशिश तो जरूर की होगी कि वह रिवाल्वर मकतूल के ही नाम से रजिस्टर्ड थी या नहीं?”

“बिल्कुल की थी, जिससे ये साबित हो गया था कि रिवाल्वर उसी की थी।”

उस बात पर कोई कमेंट किये बिना पनौती खिड़की के पल्लों को चेक करने लगा। वह कुल जमा छह पल्ले थे जो जोड़ियो की शक्ल में बराबर फासले पर लगाये गये थे। कोई भी पल्ला उसे खुला हुआ नहीं मिला।

“अब चलो यहां से” - आखिरकार वह बोला – “और कुछ नहीं रखा यहां।”

तीनों कमरे से बाहर निकल कर सोफे पर बैठे अनुराग शर्मा के पास पहुंचे।

“कर ली तसल्ली?” उसने पूछा।

“जी हां कर ली।” सतपाल बोला।

“अनुराग साहब” - पनौती उसके सामने बैठता हुआ बोला – “आपके भाई की मौत का हमें अफसोस है, और पुलिस पुरजोर कोशिश कर रही है कि कातिल को उसके किये की लंबी सजा मिले, मगर वैसा तब तक नहीं होने वाला जब तक कि निर्विवाद रूप से ये साबित न हो जाये कि उसने जो कुछ भी किया था जानबूझकर किया था।”

“उस बात में कोई शक है आप लोगों को?”

“पुलिस को नहीं है, मगर कोमल शर्मा का कहना है कि अनजाने में ही उसके हाथों से रिवाल्वर का घोड़ा दब गया था।”

“वो तो ऐसा कहेगी ही, क्योंकि अब उसी बात में उसे अपनी कोई भलाई दिखाई दे रही होगी।”

“जबकि पुलिस चाहती है कि वह किसी भी तरह अपने कहे को साबित न कर पाये, यही कारण है कि छानबीन लगातार जारी है, ऐसे में आपका सहयोग बहुत जरूरी है वरना कहीं ये गैरइरादतन हत्या का केस साबित हो गया तो उसे जल्दी ही जमानत मिल जायेगी।”

“नहीं मिलनी चाहिए” - वह तिरस्कृत लहजे में बोला – “उस स्साली को तो फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए।”

“गाली मत दीजिये” - पनौती बोला – “गाली देना बुरी बात होती है।”

जवाब में अनुराग ने एक बार हैरान निगाहों से उसकी तरफ देखा फिर बोला, “सॉरी मेरे मुंह से यूं ही निकल गया।”

“तो आपको यकीन है कि कोमल ने जानबूझकर आप के भाई पर गोली चलाई थी, जिसके कारण वह अपनी जान से हाथ धो बैठा?”

“ऐसा ही हुआ था, रिवाल्वर का घोड़ा टच स्क्रीन वाला मोबाइल नहीं होता जो उंगली रखते ही कमांड एक्सेप्ट कर ले, उसे दबाने के लिए थोड़ा ही सही मगर जोर तो लगाना ही पड़ता है, ऐसे में वह काम अनजाने में हो गया हो, इस बात पर मैं सात जन्मों में यकीन नहीं कर सकता।”

“बात तो सौ फीसदी सही है आपकी, वैसे कोमल का स्वभाव कैसा था?”

“अग्रेसिव नेचर की थी, बात-बात पर भड़क जाना उसके लिए आम बात थी, लेकिन वह कभी इतना भयानक कदम भी उठा सकती है इस बारे में तो मैं सपने भी नहीं सोच सकता था।”

“क्या पता उसने भयानक कदम ना उठाया है, सबकुछ वैसे ही घटित हुआ हो जैसा कि पुलिस को दिये गये अपने बयान में उसने बताया था।”

“लगता तो नहीं है” - कुछ देर तक विचार करने के बाद वह बोला – “मगर उस बारे में मैं कोई दावा नहीं कर सकता क्योंकि वह वाकया मेरी आंखों के सामने तो घटित हुआ नहीं था। हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि अगर उसने जानबूझकर प्रियम को गोली मारी थी तो अपने किये की सजा पाने से किसी भी हाल में बचनी नहीं चाहिये। इसके उलट कल को अगर ये साबित हो जाता है कि उसने जो किया अनजाने में किया था तो समझ लीजिये हमें उससे कोई शिकायत नहीं है।”


“सर असल समस्या यही है कि उसके साथ जो भी होगा वह पुलिस से ज्यादा आप लोगों के किये होगा, अगर आप कोर्ट में खड़े होकर उसके अग्रेसिव नेचर की दुहाई देंगे, या ये कहेंगे कि वह पहले भी प्रियम की जान लेने की कोशिश कर चुकी है, तो उसे लंबी सजा हो जाना महज वक्त की बात होगी। इसके उलट अगर आप ये कहते हैं कि मियां बीवी दोनों ही अग्रेसिव नेचर के थे इसलिए झगड़े के दौरान प्रियम का उसे थप्पड़ मारना और गुस्से में कोमल का अलमारी से रिवाल्वर निकाल लेना कोई बड़ी बात नहीं थी तो उसका पूरा-पूरा लाभ कोमल को मिलेगा।”
 
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इस बारे में फौरन कोई फैसला कर पाना कठिन काम है, सच पूछिये तो हमारे घर में कोई भी उसे बचाने के पक्ष में नहीं है। मगर आपकी बातों से मुझे पूरा-पूरा इत्तेफाक है, गोली अगर उसने जानबूझकर नहीं चलाई थी तो बेशक वह दया की पात्र है। मैं इस बारे में फेमिली में बात करूंगा, देखें बाकी लोग क्या कहते हैं, और किसी को आपकी बातों से इत्तेफाक होता है या नहीं।”

“जरूर कीजियेगा, अब जरा ये बताइये कि गोली चलने की आवाज से ऐन पहले फेमिली का कौन सा मेंबर कहां था और क्या कर रहा था?”

“क्या मतलब है भई?” - अनुराग शर्मा चौंकता हुआ बोला – “ये अचानक तुम हम लोगों के पीछे क्यों पड़ गये? क्या फर्क पड़ता है कि गोली चलने से पहले कौन कहां था या कहां नहीं था?”

“फर्क पड़ता है सर! क्योंकि कोर्ट में महज इकबालिया बयान की वजह से किसी को कातिल नहीं मान लिया जाता। बल्कि कातिल के खिलाफ सबूत इकट्ठे कर के उसे कातिल साबित करना पड़ता है और उस कोशिश में सबसे पहले मौका-ए-वारदात पर मौजूद दूसरे लोगों को शक के घेरे से बाहर करना पड़ता है, वह काम तभी हो सकता है जब पुलिस को वारदात से पहले घर में मौजूद सभी लोगों की स्थिति का पूरा-पूरा ज्ञान हो। अगर पुलिस ऐसा नहीं करेगी, तो कल को कोर्ट में मौजूद उसका वकील ये दावा तक कर सकता है कि उसकी क्लाईंट निर्दोष है, कातिल घर का ही कोई दूसरा मेंबर है जिसे बचाने के लिए मुलजिम सारा गुनाह अपने सिर ले रही है। उन हालात में आपसे मिली जानकारी सरकारी वकील के बहुत काम आयेगी, वह उसको हथियार की तरह इस्तेमाल कर के कहेगा कि कातिल कोमल शर्मा के अलावा कोई और हो ही नहीं सकता क्योंकि कत्ल के वक्त बंगले में मौजूद फलां-फलां शख्स फलां-फलां जगह पर था। उम्मीद है मेरी बात आपकी समझ में आ गई होगी?”

“हां आ गई” - अनुराग बोला – “सबसे पहले मैं अपनी ही बात करता हूं, जिस वक्त गोली चली उस वक्त मैं अपने बेडरूम में अपनी बीवी कल्पना के साथ टीवी देख रहा था। उससे पहले मैं यहीं ड्राईंग रूम में बैठा हुआ था।”

“आपका बेडरूम कहां है?”

“पहली मंजिल पर सीढ़ियों के ऐन सामने वाला कमरा है।”

पनौती ने निगाह उठाकर ऊपर देखा फिर बोला, “और बाकी लोग?”

“मेरी मां उस वक्त यहीं ड्राईंगरूम में हमारे वकील ब्रजेश यादव के साथ कुछ बिजनेस की बातें डिस्कस कर रही थीं, वह गोली चलने से करीब एक घंटा पहले यहां आया था, और आगे घंटा दो घंटा तक उसके यहां से टलने की कोई उम्मीद नहीं थी। वह जब भी यहां आता है दो तीन घंटे तक मां के साथ उसकी जाने किन-किन विषयों पर उबा देने वाली चर्चा शुरू हो जाती है। इसी कारण मैं उठकर अपने कमरे में चला गया था। जबकि मेरा साला भुवनेश, प्रियम के ऐन बगल वाले कमरे में था जो कि मेहमानों के लिए हमेशा खाली और तैयार रखा जाता है।”

“और संजीव चौहान वह कहां था?”

“कहीं नहीं था, मेरा मतलब है उसने गोली चल चुकने के बाद यहां कदम रखा था।”

“कितनी देर बाद?”

“ठीक ठीक बता पाना तो मुश्किल है, गोली ठीक नौ बजे चली थी, टीवी की आवाज में मैंने उस धमाके को नजर अंदाज कर दिया था, मगर तभी मेरे साले ने ऊपर पहुंचकर मुझे बताया कि प्रियम के कमरे से गोली चलने की आवाज आई थी और अब भीतर से कोई दरवाजा नहीं खोल रहा था। घबराकर मैं नीचे पहुंचा तो मां और वकील को प्रियम के दरवाजे पर दस्तक देता पाया, कुछ देर तक दरवाजा खटखटाने के बाद भी जब भीतर से कोई रिस्पांस नहीं मिला तो हम लोग दरवाजा तोड़ने के बारे में विचार करने लगे। उसी वक्त संजीव चौहान ने भीतर कदम रखा था। इस लिहाज से देखो तो गोली चलने के महज तीन-चार मिनट बाद वह यहां पहुंच गया था।”

“आया किस लिये था?”

“प्रियम से मिलने ही आया था, अक्सर आता-जाता रहता था। कई बार तो प्रियम की अनुपस्थिति में भी यहां आ धमकता था और कोमल के साथ घंटों बातें करता रहता था। दरअसल तीनों ने स्कूल से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई एक साथ पूरी की थी, इसलिए उनमें गहरे दोस्ताना ताल्लुकात थे।”

“आप लोगों को प्रियम की अनुपस्थिति में कोमल के साथ उसकी लंबी बातचीत पर ऐतराज नहीं होता था?”

“नहीं होता था, क्योंकि संजीव को हम लोग बचपन से ही जानते हैं, वह हमेशा इस परिवार के सदस्य की तरह ही लगता है हमें।”

“उस रोज से आगे-पीछे कोई ऐसी घटना घटित हुई हो जिसने खासतौर से आपका ध्यान खींचा हो?”

“ऐसा कुछ नहीं हुआ था।”


“आप के भाई साहब की किसी के साथ रंजिश रही हो, या कोई पारिवारिक दुश्मनी?”

“जी नहीं ऐसा कुछ नहीं है, अलबत्ता हाल ही में पास में रहते एक शख्स से उसका थोड़ा झगड़ा जरूर हुआ था मगर डीसीपी भड़ाना साहब की मध्यस्थता के कारण वह बात उसी रोज आई गई हो गयी थी।”

“निरंजन राजपूत की बात कर रहे हैं आप?”

“जी हां, आप लोग मिल चुके हैं उससे?”

“आपके भाई साहब कोई सिक्योरिटी एजेंसी चलाते थे?” पनौती उसके सवाल को नजरअंदाज कर के बोला।

“एजेंसी नहींभाई, बहुत बड़ी कंपनी है हमारी ‘फास्ट ट्रेक सिक्योरिटी सर्विसेज’ के नाम से, हम दोनों भाई और मां, उसमें बराबर के पार्टनर थे।”

“बिजनेस में कोई हालिया ऊंच-नीच हुई हो, जैसे कि कोई बड़ा घाटा, या आप लोगों की कंपनी के कारण किसी और को बड़ा नुकसान पहुंचा हो?”

“बिजनेस में ये सब तो चलता ही रहता है, एक ही फील्ड में ऑपरेट करने वाली किसी कंपनी को जब तगड़ा फायदा पहुंचता है तो ऐन उसी वक्त किसी दूसरी कंपनी को तगड़ा नुकसान हो रहा होता है, इसलिए इस तरह के सवाल पूछने का कोई फायदा नहीं होगा आपको।”

“ठीक कहते हैं आप, अगर ऐतराज न हो तो क्या मैं आपके बंगले के पिछले हिस्से का एक फेरा लगा सकता हूं?”

“शौक से लगाओ भाई, जब भीतर आ ही गये हो तो जो मन में आये करो, मगर जाने से पहले अपनी पूरी तसल्ली कर के जाना ताकि दोबारा यहां लौटकर आने की जरूरत महसूस न हो।”

“इत्मीनान रखिये, ऐसा ही होगा।”

कहकर वह उठ खड़ा हुआ, सतपाल ने उसके पीछे उठने की कोशिश की तो उसने इशारे से मना कर दिया।
 

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